साजिश का तोहफा – भाग 1

महाराष्ट्र सरकार के अटार्नी जनरल नण्वीन करमाकर की पत्नी अवंतिका ने रात का खाना तैयार कर के खाने को कहा तो उन्होंने टीवी पर से नजरें हटा कर कहा, ‘‘खाना हम थोड़ा देर से खाएंगे. अभी कुछ लोग आने वाले हैं.’’

‘‘कौन?’’ अवंतिका ने पूछा.

‘‘वही स्वाति और मनोज, जिन की इसी दिवाली पर तुम ने शादी कराई थी.’’

‘‘मैं किसी की शादी कराने वाली कौन होती हूं.’’ अवंतिका ने कहा, ‘‘मैं ने तो सिर्फ उन का परिचय कराया था, बाकी के सारे काम तो उन्होंने खुद किए थे. कुछ भी हो, दोनों हैं बहुत अच्छे.’’

‘‘अगर तुम कह रही हो तो अच्छे ही होंगे.’’ नवीन करमाकर ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘तुम्हें यह सुन कर दुख होगा कि मनोज जैसे ही हनीमून से लौटा, उसे नौकरी से निकाल दिया गया. सोचो, उस के साथ कितना बड़ा अन्याय हुआ. शायद इसी बारे में वह हम से मिलने आ रहा है?’’

‘‘शायद वे लोग आ भी गए.’’ अवंतिका ने कहा.

इतना कह कर अवंतिका बाहर आई और कुछ पल बाद लौटी तो उस के साथ मनोज और स्वाति थे. स्वाति छरहरे बदन की काफी सुंदर युवती थी तो मनोज भी उसी की तरह लंबे कद का मजबूत कदकाठी वाला युवक था. उस की काली आंखों से ईमानदारी साफ झलक रही थी. यह एक ऐसा जोड़ा था, जिसे देख कर कोई भी आकर्षित हो सकता था. लेकिन उस समय दोनों के चेहरों पर परेशानी साफ झलक रही थी.

औपचारिक बातचीत के बाद मनोज ने कहा, ‘‘आप तो अटार्नी जनरल हैं. मैं आप के पास इसलिए आया हूं कि आप मुझे पुलिस के हाथों पकड़वा दें.’’

मेहमान की इस इच्छा पर नवीन करमाकर ने हैरानी से कहा, ‘‘इस की भी कोई वजह होगी. बेहतर होगा कि पहले आप वजह बताएं. उस के बाद जो उचित होगा, वह किया जाएगा.’’

‘‘मेरा पूरा नाम मनोज सोलकर है,’’ मनोज ने कहा, ‘‘कोलाबा में जो सोलकर इंस्टीटयूट है, उसे तो आप जानते ही हैं, क्योंकि आप ने वहां पढ़ाई की थी.’’

मनोज के इतना कहते ही नवीन करमाकर को सोलकर इंस्टीटियूट याद आ गया. कोलाबा के उस वैभवशाली शिक्षा संस्थान और रिसर्च इंस्टीटयूट को सोमनाथ सोलकर ने सन 1970 में बनवाया था. वह खुद भी एक आविष्कारक थे. उन्हें नए नए आविष्कार करने में काफी दिलचस्पी रहती थी. उन्होंने काफी आविष्कार किए भी थे. इस संस्था की स्थापना उन्होंने विज्ञान और उद्योग के विकास के काम के लिए की थी.

‘‘मैं सोमनाथ सोलकर का पोता हूं.’’ मनोज सोलकर ने कहा तो नवीन करमाकर चौंके. वह कुछ कहते, उस के पहले ही मनोज ने कहा ‘‘लेकिन दुर्भाग्य से वह मेरे बारे में कुछ नहीं जानते. क्योंकि काफी समय पहले मेरे मातापिता से उन का झगड़ा हो गया था तो उन्होंने संबंध खत्म कर लिए थे.

मैं 4 साल का था, तभी प्लेन क्रैश में मेरे पिता की मौत हो गई थी. उन की मौत के बाद मेरे दादाजी का व्यवहार मेरे और मेरी मां के प्रति और ज्यादा कठोर हो गया था. उन्होंने हम दोनों से कभी कोई संबंध नहीं रखा. मेरी मां ने नौकरी कर के मुझे पढ़ाया लिखाया. मां के प्रयास से ही किसी तरह मैं ने अच्छी शिक्षा प्राप्त की.’’

‘‘तुम ने मुझे बताया तो था कि तुम्हारी मां को शहरी जीवन से घबराहट होने लगी थी, इसलिए कई सालों पहले वह देहाती इलाके में रहने चली गई थीं.’’ अवंतिका ने कहा.

‘‘जी हां, उन्होंने लोनावाला में अपने लिए एक मकान खरीद लिया था क्योंकि वह उन का पैतृक गांव था.’’ मनोज ने कहा, ‘‘तब तक मेरी पढ़ाई पूरी हो चुकी थी. उस के बाद मैं ने एक स्कूल में नौकरी कर ली थी. मुझे पढ़ने का शौक था. फिर बच्चों को पढ़ाने के लिए भी पढ़ना पड़ता था, इसलिए मैं किताबें लेने के लिए सोलकर इंस्टीटयूट की लाइब्रेरी जाता रहता था. पिछले साल दिसंबर में मैं लाइब्रेरी से लौट रहा था तो मेरी मुलाकात इंस्टीटयूट के डायरेक्टर रमेश गायकवाड़ से हो गई.’’

‘‘एक तरह से रमेश गायकवाड़ ही इंस्टीटयूट के मैनेजिंग डायरेक्टर हैं. इंस्टीटयूट का सारा काम वही देखते हैं. उन्होंने कई बार मुझे आते जाते देखा था. उन्हें मेरे बारे में काफी कुछ पता था. वह मेरा नाम भी जानते थे. उस दिन मिलने पर उन्होंने मुझ से पूछा, ‘मुझे पता चला है कि तुम इस इंस्टीट्यूट के संस्थापक सोमनाथ सोलकर के पोते हो?’

‘‘जी मैं उन का पोता हूं.’’

‘‘तब तो आप को हमारे साथ काम करना चाहिए. सोलकर परिवार का सदस्य होने के नाते तुम्हारी जगह यहां है.’’

‘‘उस दिन हम दोनों के बीच काफी लंबी बातचीत हुई. मैं ने हामी भर दी कि स्कूल का कौंट्रैक्ट खत्म होने के बाद मैं यहां आ जाऊंगा. मैं बहुत खुश था, क्योंकि स्कूल में पढ़ाने का मुझे बहुत ज्यादा शौक नहीं था. इंस्टीटयूट के स्टाफ में शामिल के लिए मैं लालायित रहता था.’’

‘‘तो तुम्हें स्टाफ में शामिल कर लिया गया था?’’ नवीन करमाकर ने पूछा.

‘‘नहीं, रमेश गायकवाड़ ने मुझे अस्थाई नौकरी पर रखा था. उसी बीच मैं ने और स्वाति ने शादी का निर्णय लिया. मैं ने गायकवाड़ को बताया कि मैं शादी कर रहा हूं तो उस ने खुशी प्रकट करते हुए मुझे मुबारकबाद दी और हनीमून के लिए एक सप्ताह की छुट्टी भी दे दी. लेकिन हनीमून से लौट कर जब मैं इंस्टीट्यूट पहुंचा तो मुझे चोर कह कर नौकरी से निकाल दिया गया.’’

इतना कह कर मनोज ने एक लंबी सांस ली. इस के बाद कुछ देर सोचता रहा. फिर बोला, ‘‘हुआ यह कि जब मैं उसे अपनी शादी के बारे में बताने गया था तो उस ने अपने औफिस में मौजूद तिजोरी खोल कर उस में से 10 हजार रुपए निकाल कर बड़ी शान से कहा था, ‘हमारे यहां हर कर्मचारी को शादी के समय कुछ रकम तोहफे में देने की परंपरा है.’

‘‘रकम थमाते समय जैसे उसे कुछ याद आया हो इस तरह घड़ी देखते हुए उस ने कहा, ‘मुझे जरा कस्टोडियन से बात करनी है. मैं बात कर के अभी आया.

‘‘अब कह रहा है कि जो रकम जो उस ने मुझे उपहार में दी थी, वह मैं ने चोरी की थी. उस का कहना है कि जब वह कस्टोडियन से मिलने चला गया था तो मैं ने तिजोरी से वह रकम चुरा ली थी, क्योंकि भूल से वह तिजोरी खुली छोड़ गया था.’

‘‘आज उस ने मुझ से कहा कि मैं सोलकर परिवार का सदस्य हूं, इसलिए वह मेरे खिलाफ कानूनी काररवाई नहीं करना चाहता, लेकिन बदले में मुझे यह शहर छोड़ कर जाना होगा. क्योंकि अगर कभी बात खुल गई तो इस से मेरी बड़ी बदनामी होगी.’’

साजिश का तोहफा – भाग 2

कहते कहते गुस्से की वजह से मनोज की आवाज थोड़ी ऊंची हो गई थी. उस ने आगे कहा, ‘‘लेकिन मैं अपना भविष्य बरबाद नहीं करना चाहता. चोरी का आरोप लगने के बाद मुझे कोई बढि़या नौकरी मिल नहीं पाएगी. फिर मैं खुद भी अपनी नजरों में गिरा रहूंगा. इस के अलावा वह मुझे ब्लैकमेल भी कर सकता है. इसलिए मैं यह साबित करना चाहता हूं कि मुझ पर चोरी का यह जो आरोप लगा है, वह झूठा है.’’

इतना कह कर जैसे ही मनोज चुप हुआ, स्वाति बोली, ‘‘मनोज ने अभी तक इस घटना के बारे में अपनी मां को भी कुछ नहीं बताया है. फिर इतनी शर्मनाक बात बताई भी कैसे जा सकती है.’’

‘‘तुम बता सकते हो कि रमेश ने तुम्हारे साथ ऐसा क्यों किया?’’ नवीन ने पूछा.

‘‘जी नहीं,’’ मनोज ने कहा, ‘‘मैं ने उस से पूछा तो था कि वह ऐसा क्यों हर रहा है? मैं चिल्लाया भी था कि अगर मैं चोर हूं तो वह पुलिस को बुलाए और रिपोर्ट लिखा कर मुझे जेल भिजवा दे. लेकिन उस ने जवाब देने के बजाय मुझे औफिस से निकाल दिया. वहां से आने के बाद मैं ने अपने एकाउंट से 10 हजार रुपए निकलवाए और एक आदमी के हाथों उस के पास भिजवा दिए. मैं इस मामले को किसी किनारे लगते देखना चाहता हूं, इसीलिए आप से कह रहा हूं कि आप मुझे गिरफ्तार करवा दीजिए. क्योंकि मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि मुझे क्या करना चाहिए.’’

‘‘अभी तो अवंतिका के हाथ की बनी मिठाई खा कर कौफी पियो. कल रमेश गायकवाड़ से मिलते हैं. उस के बाद सोचते हैं कि इस मामले में हमें क्या करना चाहिए.’’ नवीन करमाकर ने कहा.

अगले दिन नवीन मनोज के साथ रमेश से मिलने सोलकर इंस्टीटयूट पहुंचे. नवीन ने अपने तौर पर फोन कर के रमेश से मुलाकात का समय ले लिया था. लेकिन जब दोनों रमेश के औफिस में दाखिल होने लगे तो गेटकीपर ने मनोज को रोक लिया, ‘‘डायरेक्टर साहब ने तुम्हें अंदर न जाने देने का आदेश दिया है. इसलिए तुम अंदर नहीं जा सकते.’’

अपने इस अपमान से मनोज का चेहरा गुस्से से सुर्ख पड़ गया, लेकिन वह कुछ बोला नहीं. वह वहीं बाहर ही बैठ गया. नवीन अंदर चले गए. रमेश ने बड़े ठंडे अंदाज से नवीन का स्वागत किया. उस की बगल में एक प्रभावशाली व्यक्तित्व वाला पक्की उम्र का आदमी बैठा था. रमेश ने नवीन से उस का परिचय कराया.

उस आदमी का नाम शशांक ठाकरे था और वह इंस्टीटयूट का कानूनी सलाहकार था. परिचय करने के बाद रमेश ने कहा, ‘‘शायद आप उस नौजवान चोर के बारे में बात करना चाहते हैं, जिसे मैं ने अंदर आने से रोकवा दिया है. कृपया संक्षेप में बात करिएगा, मेरे पास समय बहुत कम है.’’

‘‘समय मेरे पास भी ज्यादा नहीं है.’’ नवीन ने कड़वे लहजे में कहा, ‘‘मैं बहुत ही संक्षेप में एकदम सीधी बात करूंगा. आप ने मनोज का इंस्टीट्यूट में आना तो बंद ही करा दिया है, अब उसे इस शहर से बाहर भेजना चाहते हैं, इस की कोई विशेष वजह?’’

रमेश के कोई जवाब देने से पहले ही संस्था के कानूनी सलाहकार शशांक ठाकरे ने कहा, ‘‘लगता है, आप उस के बचाव में आए हैं?’’

‘‘वही समझ लो. मैं चाहता हूं कि आप लोग उस के खिलाफ बाकायदा चोरी का मुकदमा दर्ज करवाएं और अपना आरोप सिद्ध करें. वरना मैं उस नौजवान को सलाह दूंगा कि वह आप के खिलाफ मानहानि का दावा करे.’’ नवीन ने कहा.

‘‘अगर ऐसी कोई कोशिश की जाती है तो मैं यही समझूंगा कि आप यह सब पैसे के लिए कर रहे हैं. हम इस बात को लोगों के सामने लाने की कोशिश् करेंगे. बहरहाल अब आप जा सकते हैं.’’ शशांक ठाकरे ने कहा.

बाहर आने के बाद नवीन ने कहा, ‘‘अंदर हुई बातचीत से मुझे यही लग रहा है कि किसी वजह से तुम्हारा इंस्टीट्यूट में आना जाना रमेश को परेशान कर रहा था. इसी वजह से उस ने ऐसा किया है. लेकिन वह चाहता तो तुम्हें किसी दूसरे तरीके से भी रोक सकता था.’’

‘‘लेकिन मुझे यहां आने से रोकने के लिए नौकरी देने और यह सब करने की क्या जरूरत थी?’’

‘‘एक नौकर पर आरोप लगाना आसान ही नहीं होता, बल्कि थोड़ी कोशिश के बाद उसे सिद्ध भी किया जा सकता है.’’ नवीन ने कहा.

‘‘रमेश की कोशिश का संबंध तुम्हारे इस संस्था के संस्थापक के पोते होने से भी हो सकता है.’’

‘‘मुझे भी यही लगता है,’’ मनोज ने कहा, ‘‘मेरे दादाजी कभी न कभी इस संस्था का दौरा करने तो आते ही होंगे. शायद रमेश नहीं चाहता कि उन से मेरी मुलाकात हो. आखिर वह मुझे उन से मिलने से रोकना क्यों चाहता था, उसे क्या डर था?’’

‘‘यह सब छोड़ो. मैं तुम्हारी ओर से मानहानि और तुम्हारे खिलाफ साजिश रचने का मुकदमा दायर करता हूं.’’ नवीन ने कहा.

मनोज ने सहमति जताई तो पूरी तैयारी कर के नवीन करमाकर ने उस की ओर से मानहानि की याचिका दायर कर दी. लेकिन उस याचिका पर जिस दिन सुनवाई होनी थी, उस दिन मनोज ने खुद आने के बजाय एक पत्र और उस के साथ चैक भेज दिया था.

फिर सुनवाई के समय नवीन ने वह पत्र और चैक अदालत को दिखाते हुए कहा, ‘‘योर औनर, मनोज सोलकर की ओर से मानहानि और उस के खिलाफ साजिश रचने की मैं ने जो याचिका दायर की थी, उस के संबंध में आज सुबह मुझे यह पत्र और चैक मिला. पत्र में उस ने लिखा है कि वह यह याचिका वापस लेना चाहता है, क्योंक वह यह शहर छोड़ कर जा रहा है. उस ने मुझे कष्ट देने के लिए क्षमा मांगते हुए मेरी फीस के तौर पर कुछ रकम का यह चैक भेजा है. पत्र पाने के बाद मैं अपने मुवक्किल के फ्लैट पर पहुंचा तो वह पत्नी के साथ सचमुच जा चुका था.’’

‘‘इस का मतलब इस याचिका को खारिज कर दिया जाए?’’ जज ने पूछा.

‘‘जी नहीं,’’ नवीन ने कहा, ‘‘मुझे लगता है, यह पत्र दूसरे पक्ष ने उस पर कोई दबाव डाल कर लिखवाया है.’’

नवीन का इतना कहना था कि दूसरे पक्ष के वकील शशांक ठाकरे ने आगे बढ़ कर कहा, ‘‘योर औनर यह आरोप सरासर गलत है. अगर याचिका दायर करने वाला याचिका वापस ले रहा है तो उस पर कार्यवाही कर के याचिका को खारिज कर देना चाहिए. जब याचिका दायर करने वाला ही नहीं है तो उस पर कार्यवाही क्या होगी?’’

‘‘वकील साहब, शायद आप भूल गए हैं कि दीवानी के दावे में दोनों पक्षों की मौजूदगी जरूरी नहीं है.’’ नवीन ने कहा.

नवीन की बात काटते हुए शशांक ने कहा, ‘‘बात दरअसल यह है कि मनोज के वकील ने ही उस पर दबाव डाल कर यह दावा कराया है. शायद इस तरह वह कुछ रकम कमाना चाहते थे. लेकिन जब मनोज को लगा कि इस मामले में कुछ नहीं होने वाला तो उस ने पीछे हट जाना ही मुनासिब समझा. इस मामले में मैं मनोज सोलकर के वकील से पूरी जिरह करना चाहता हूं.’’

अजमेर डिस्कॉम में करोड़ों का घोटाला करने वाली ब्यूटी क्वीन

अजमेर विद्युत वितरण निगम की सहायक प्रशासनिक अधिकारी शीतल जैन कई दिनों से परेशान  थीं. वह कर्मचारियों के वेतन, कैश वाउचर, चैक आदि का हिसाब रखती थीं. उन की परेशानी का कारण यह था कि कई वाउचर नहीं मिल रहे थे.

इस के अलावा कर्मचारियों की वेतन स्लिप और उन के बैंक खातों में जमा हो रही राशि में भी अंतर आ रहा था. शीतल की नजर में कई ऐसे बैंक खाते भी आए, जिन में निगम की ओर से वेतन जमा कराया जा रहा था. लेकिन उन खाताधारक कर्मचारियों का कोई रिकौर्ड नहीं मिल रहा था. शीतल जैन इस औफिस में कुछ समय पहले ही आई थीं.

कर्मचारियों की हाजिरी देख कर उन का मासिक वेतन बनाना, बिल वाउचर और कैश का हिसाबकिताब रखना उन के लिए कोई नई बात नहीं थी. न ही पहले इस काम में उन से कोई गड़बड़ हुई थी, लेकिन उन्हें यहां का काम समझ नहीं आ रहा था.

वह रोजाना कर्मचारियों का रजिस्टर ले कर बैठतीं और उन के वेतन के हिसाबकिताब देखतीं, उन्हें हर जगह भारी गड़बडि़यां नजर आ रही थीं. कई दिनों की माथापच्ची के बाद भी वह यह नहीं समझ पाईं कि यह गड़बडि़यां किस ने, कैसे और क्यों कीं.

अलबत्ता यह बात उन की समझ में आ गई थी कि राजस्थान सरकार की अजमेर बिजली वितरण कंपनी में सब कुछ ठीकठाक नहीं चल रहा, बल्कि बड़े पैमाने पर गड़बड़ी हो रही हैं. यह गड़बड़ी किस स्तर पर हो रही हैं, यह पता जांच के बाद ही चल सकता था.

शीतल ने इस गड़बड़ी की जानकारी अपने उच्चाधिकारियों को देने का फैसला किया. यह दिसंबर 2018 की बात है.

एक दिन उन्होंने एक सहायक लेखाधिकारी के साथ अजमेर बिजली वितरण निगम यानी अजमेर डिस्काम के प्रबंध निदेशक बी.एम. भामू और डायरैक्टर फाइनैंस एस.एम. माथुर के पास पहुंच कर उन्हें इस बारे में बताया.  साथ ही उन्हें कुछ सबूत भी दे दिए. सरकारी रकम में गड़बड़ी के सबूत देख कर भामू साहब और माथुर साहब को यकीन हो गया कि अजमेर डिस्काम में बड़ा घपला हो रहा है.

डायरेक्टर फाइनैंस माथुर ने 3 अधिकारियों की जांच कमेटी बनाई. इस कमेटी में मुख्य लेखाधिकारी एम.के. जैन, बी.एल. शर्मा और सहायक लेखाधिकारी मनीष मेठानी को शामिल किया गया. तीनों अधिकारियों ने अजमेर डिस्काम मुख्यालय और हाथीभाटा पावर हाउस कार्यालय में कई दिनों तक जांचपड़ताल की.

प्रारंभिक जांच में पता चला कि अजमेर डिस्काम की सहायक प्रशासनिक अधिकारी अन्नपूर्णा सैन ने फरजी दस्तावेज तैयार कर कर्मचारियों के वेतन और बिलों में 96 लाख 36 हजार रुपए का गबन किया है. विस्तृत औडिट में यह राशि बढ़ने की आशंका जताई गई.

गबन का मामला सामने आने पर 17 दिसंबर, 2018 को अन्नपूर्णा सैन को निलंबित कर दिया गया. निलंबन काल में उस का स्थानांतरण नागौर स्थित मुख्यालय में कर दिया गया. इसी के साथ अजमेर डिस्काम प्रशासन ने अन्नपूर्णा के खिलाफ अजमेर के क्रिश्चियनगंज पुलिस थाने में मुकदमा दर्ज करा दिया.

डिस्काम कर्मचारियों का वेतन सीधे उन के बैंक खातों में जाता है. इस के लिए अजमेर डिस्काम की ओर से हर महीने भारतीय स्टेट बैंक की केसरगंज शाखा में कर्मचारियों के नाम, उन के वेतन बिल की राशि और बैंक खाता संख्या की सूची औनलाइन भेजी जाती है. इसी से कर्मचारियों को तनख्वाह मिलती थी.

प्रारंभिक जांच में सामने आया कि अन्नपूर्णा ने रोकडि़या के पद पर रहते हुए 378 कर्मचारियों के वेतन बिलों में काटछांट की थी. उस ने डिस्काम की ओर से अपने परिवार और रिश्तेदारों के बैंक खातों के नंबर भी बैंक को भेजी जाने वाली सूची में शामिल कर दिए थे.

वह कर्मचारियों की संख्या और तनख्वाह की राशि बढ़ा देती थी. बैंक डिस्काम की वेतन शीट के आधार पर खातों में राशि डाल देती थी. इस तरह फरजीवाड़े से डिस्काम कर्मचारियों के वेतन की रकम अन्नपूर्णा के जानकारों के बैंक खातों में पहुंच रही थी. अन्नपूर्णा इस गबन का खुलासा होने से पहले 14 नवंबर से ही स्वास्थ्य कारणों का हवाला दे कर छुट्टी पर चल रही थी. दरअसल, अन्नपूर्णा को अपना भांडा फूटने का अहसास नवंबर में ही हो गया था, इसलिए वह छुट्टी पर चली गई थी.

आगे बढ़ने से पहले उस अन्नपूर्णा की कहानी जानना जरूरी है, जिस ने अपनी खूबसूरती का जाल बिछा कर अजमेर डिस्काम में सवा 2 करोड़ रुपए से ज्यादा का गबन किया. अन्नपूर्णा की खूबसूरती पर फिदा अधिकारी आंखें मूंदे रहे. किसी अधिकारी ने कभी उस के तैयार किए कागजातों को जांचने की जरूरत महसूस नहीं की.

अजमेर शहर के चंदवरदाई नगर, रामगंज के रहने वाले वीरेंद्र सैन की बेटी अन्नपूर्णा की शादी अजमेर जिले के किशनगढ़ शहर में साधारण सैलून चलाने वाले युवक से हुई थी. अन्नपूर्णा पढ़ीलिखी थी. वह हाईप्रोफाइल तरीके से जीवन जीना चाहती थी, लेकिन उस के पति के सैलून से इतनी आमदनी नहीं थी कि उस के सपने साकार हो पाते.

फलस्वरूप घर में विवाद होने लगे. इस से उन के दांपत्य जीवन में दरार आने लगी. विवाद बढ़ा तो अन्नपूर्णा ने तलाक लेने का फैसला कर लिया. बाद में पतिपत्नी का तलाक हो गया. अन्नपूर्णा अपने पिता के घर आ गई. उस का भाई गौरव सैन रेलवे में लोको पायलट है.

बाद में अन्नपूर्णा ने परित्यक्ता कोटे से अजमेर बिजली वितरण निगम में 2012 में नौकरी हासिल कर ली. उस की पहली नियुक्ति कौमर्शियल असिस्टेंट के पद पर हुई. उसे अजमेर डिस्काम मुख्यालय में रोकडि़या और संस्थापन शाखा में रोकडि़या का काम सौंपा गया.

अन्नपूर्णा खूबसूरत थी, जब वह नौकरी में आई, तो बिलकुल भोलीभाली नजर आती थी. उस समय वह साड़ी पहनती थी और साधारण बन कर रहती थी.

डिस्काम में सर्विस रिकौर्ड में लगी अन्नपूर्णा की पासपोर्ट साइज फोटो उस की मासूमियत बयां करती थी. लेकिन वह ऐसी थी नहीं. वह महत्त्वाकांक्षी तो थी ही, सपने कैसे पूरे हो सकते हैं, यह बात भी जान गई थी.

डिस्काम की नौकरी करते हुए उसे अपने सपने पूरे होते नजर आने लगे. सपनों को पंख लगे, तो अन्नपूर्णा ने दूसरी शादी कर ली. उस की दूसरी शादी सुमित चौधरी से हुई. सुमित गुड़गांव में प्राइवेट नौकरी करता है. अन्नपूर्णा के एक दिव्यांग बेटा और एक बेटी है.

सरकारी नौकरी करते हुए अपने सपने पूरे करने के लिए उस ने अपनी खूबसूरती का जाल फैलाना शुरू किया. चेहरे से तो वह खूबसूरत थी ही, मेकअप करने के बाद वह मनचलों के दिलों पर भी गाज गिराने की क्षमता रखती थी.

अन्नपूर्णा की खूबसूरती से प्रभावित कई अधिकारी और कर्मचारी उस की ओर आकर्षित होने लगे. वह अधिकारियों और कर्मचारियों से नजदीकियां बढ़ाती रही. इसी के साथ वह अपने सपनों की उड़ान भरने के तरीके भी सोचती रही.

अन्नपूर्णा के कामकाज की जांच करने के लिए सीधे तौर पर 4 सहायक लेखाधिकारी थे और इन सहायक लेखाधिकारियों पर लेखाधिकारी, फिर मुख्य लेखाधिकारी और इन से भी बड़े अफसर थे. लेकिन किसी अधिकारी ने कभी अन्नपूर्णा के कामकाज की जांच करने की जरूरत महसूस नहीं की. अधिकारी उस के बनाए वेतन बिलों, बिल, वाउचर, चैक और रोकड़ के हिसाब पर आंख बंद कर के हस्ताक्षर कर देते थे.

अन्नपूर्णा ने इसी का फायदा उठाया. जब उस ने देखा कि कोई अधिकारी उस के बनाए कागजातों की जांच नहीं करता, तो उस ने अप्रैल 2017 से अजमेर डिस्काम के साथ गबन का खेल शुरू किया. यह सिलसिला अक्टूबर 2018 तक चलता रहा.

इस बीच, अन्नपूर्णा ने मुंबई में आयोजित प्रतियोगिता में मिसेज राजस्थान-2017 और मिसेज इंडिया मोस्ट एंटरटेनिंग-2017 का खिताब हासिल किया. यह प्रतियोगिता 2017 में 26 से 30 जून तक मुंबई के मड आइलैंड स्थित एक रिसोर्ट में हुई थी. इस प्रतियोगिता के अंतिम दौर में पूरे देश से करीब 200 प्रतियोगी पहुंचे थे. इन में राजस्थान की 5 महिलाएं भी शामिल थीं.

प्रतियोगिता के निर्णायक मंडल में फिल्म अभिनेता राज बब्बर, जयाप्रदा, टीवी कलाकार युवराज, किश्वर, पूनम झंवर व जय मदन आदि शामिल थे. राष्ट्रीय नाई महासभा ने अन्नपूर्णा की इस उपलब्धि को उल्लेखनीय बताया था. अन्नपूर्णा के पिता वीरेंद्र सैन नाई महासभा के वरिष्ठ प्रदेश उपाध्यक्ष हैं.

मिसेज राजस्थान का ताज पहनने के बाद अन्नपूर्णा का अपने औफिस में रुतबा और भी बढ़ गया था. उस की खूबसूरती की चर्चाएं भी होने लगी थीं. इसी खूबसूरती की चमक दिखा कर वह अधिकारियों के नजदीक बनी रही और डिस्काम को चपत लगाती रही. अफसरों की चहेती होने के कारण वह अपनी मनमर्जी से दफ्तर आती और जाती थी. वह छुट्टियां ले कर पति के पास गुड़गांव भी जाती रहती थी.

अनापशनाप पैसा आने लगा, तो वह उसी तरह से खर्च भी करने लगी. उस के फैशन स्टाइल और रहनसहन के तौरतरीके बदल गए. वह अपने पति से मिलने के लिए अजमेर से हवाई जहाज से गुड़गांव जाने लगी. वह मौडलिंग करने के प्रयास में भी जुटी हुई थी. इस के लिए वह हवाई जहाज से मुंबई और दिल्ली भी आतीजाती थी. वह सोशल मीडिया पर भी सक्रिय रहती थी.

गबन की राशि से अन्नपूर्णा ने होंडा सिटी जैसी महंगी गाड़ी खरीदी. उस ने कुछ जमीनों में भी निवेश किया. कहा जाता है कि उस ने अपने पिता द्वारा लिए गए कर्ज की मोटी राशि भी चुकाई. परिवार के विवाह में भी उस ने काफी पैसा खर्च किया.

अन्नपूर्णा ने कर्मचारी नेता और सेवानिवृत्त लेखाधिकारी रामवतार अग्रवाल के साथ मिल कर अजमेर में स्टीफन चौराहे पर ब्यूटी सैलून भी खोला था. उस ने अग्रवाल को काफी आर्थिक नुकसान भी पहुंचाया. वह अग्रवाल के एटीएम कार्ड से खरीदारी करती थी. आपसी विवादों के कारण बाद में यह सैलून बंद हो गया.

इस के बाद अन्नपूर्णा ने अमित वर्मा नामक युवक के साथ मिल कर अजमेर के पंचशील में ‘द रिपेयर’ नाम से दूसरा सैलून खोला. वह अमित के साथ महंगी कार में घूमती थी. गबन का मामला सामने के बाद जब से अन्नपूर्णा गायब हुई, तब से यह सैलून भी बंद है.

अन्नपूर्णा अजमेर डिस्काम के कर्मचारियों की संस्था राजस्थान राज्य विद्युत वितरण सहकारी बचत एवं साख समिति लिमिटेड की कोषाध्यक्ष बनना चाहती थी. इस के लिए उस ने अगस्त 2018 में सोसायटी के डायरेक्टर पद का चुनाव लड़ा. इस में वह जीत भी गई थी, लेकिन किसी भी पैनल का स्पष्ट बहुमत नहीं आने से वह कोषाध्यक्ष नहीं बन सकी थी.

लगभग डेढ़ हजार कर्मचारियों की इस सोसायटी का सालाना टर्नओवर करीब 60 करोड़ रुपए है. गबन का मामला सामने आने के बाद सोसायटी से जुड़े कर्मचारी इस बात को ले कर संतोष जता रहे हैं कि वे अन्नपूर्णा के कारनामे से बच गए. संभव था कि इस सोसायटी में भी हेराफेरी हो जाती.

अन्नपूर्णा ने इस सोसायटी से 6 लाख रुपए का हाउसिंग लोन भी लिया था. इस में से अभी 4 लाख रुपए से ज्यादा बकाया है. सोसायटी ने अब अन्नपूर्णा के नाम से उस के घर नोटिस भेज कर बकाया राशि जमा कराने को कहा है.

अजमेर डिस्काम प्रशासन ने विस्तार से जांच कराई, तो अधिकारी हैरान रह गए. जांच में सामने आया कि अन्नपूर्णा ने अप्रैल 2017 से अक्टूबर 2018 तक लगभग 2 करोड़ 28 लाख रुपए का गबन किया था. उस ने गबन की यह राशि करीब 65 संदिग्ध बैंक खातों में जमा करवाई थी.

डिस्काम के अधिकारियों ने बैंक से इन खाताधारकों की जानकारी ली है. इन में अधिकांश खाताधारक राजस्थान के और कुछ मध्य प्रदेश के हैं. पुलिस को इन खातों की सूची भी सौंपी गई है.

जांच में पता चला कि अन्नपूर्णा सैन ने 2017 के अप्रैल महीने में सब से पहले 30 हजार रुपए का गबन किया. उस ने मई में 2 लाख 49 हजार, जून में 11 लाख 35 हजार, जुलाई में 7 लाख 80 हजार, अगस्त में 25 लाख 63 हजार, सितंबर में 33 लाख 46 हजार, नवंबर में 7 लाख 68 हजार और दिसंबर में 9 लाख 21 हजार रुपए की हेराफेरी की.

अक्टूबर 2017 में कोई गड़बड़ी सामने नहीं आई. वर्ष 2018 के जनवरी महीने में उस ने 15 लाख 71 हजार, फरवरी में 9 लाख 43 हजार, मार्च में 12 लाख 41 हजार, अप्रैल में 9 लाख 79 हजार, मई में 6 लाख 11 हजार, जून में 11 लाख 16 हजार, जुलाई में 16 लाख 18 हजार, अगस्त में 6 लाख 70 हजार, सितंबर में 20 लाख 88 हजार और अक्टूबर में 15 लाख 30 हजार रुपए का गबन किया.

अन्नपूर्णा का तबादला 27 जून, 2018 को पंचशील स्थित अजमेर डिस्काम मुख्यालय से हाथीभाटा में अधीक्षण अभियंता कार्यालय में हो गया था. अधीक्षण अभियंता ने उसे अजमेर शहर सर्किल में रोकडि़या के पद पर लगा दिया. हाथीभाटा में भी उस ने 4 महीने गबन किया. इस बीच डिस्काम ने उसे पदोन्नति दे कर सहायक प्रशासनिक अधिकारी बना दिया.

इधर, पुलिस ने जांचपड़ताल के बाद 13 जनवरी 2019 को अन्नपूर्णा के पिता वीरेंद्र सैन और मामा नरेश कुमार सैन को सह आरोपी मानते हुए गिरफ्तार कर लिया.

मामा नरेश अजमेर में न्यू कालोनी सुभाष नगर का रहने वाला है. अन्नपूर्णा ने अपने पिता के खाते में 52 लाख 78 हजार 447 रुपए फरजी तरीके से जमा कराए थे. जबकि मामा नरेश के खाते में 2 लाख 73 हजार 336 रुपए जमा करवाए गए थे.

यह सारी राशि इन्होंने समयसमय पर पहले ही निकलवा ली थी. पुलिस ने संबंधित बैंकों से इन के खातों में हुए लेनदेन का ब्यौरा हासिल किया है. यह भी जानकारी जुटाई जा रही है कि इन आरोपियों के किसी अन्य बैंक में तो खाते नहीं हैं. अदालत ने दोनों आरोपियों को अगले दिन न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया.

अजमेर डिस्काम प्रशासन की ओर से कराई गई विस्तृत औडिट की रिपोर्ट आने के बाद 17 जनवरी को लेखा विभाग से जुड़े 16 अधिकारियों और कर्मचारियों को चार्जशीट थमा दी गई.

डिस्काम की सचिव प्रशासन नेहा शर्मा ने पंचशील स्थित मुख्यालय में अन्नपूर्णा सैन, वरिष्ठ लेखा अधिकारी जितेंद्र मकवाना, लेखा अधिकारी सुरभि पारीक, अशोक तिवाड़ी, सहायक लेखाधिकारी पल्लवी मीणा, तृप्ति तुनगरिया, नीता कृष्णानी, मिंटू जोधा, कनिष्ठ लेखाकार आशीष शर्मा, चंद्रप्रकाश, कीर्ति वर्मा और हाथीभाटा पावर हाउस में पवन कुमार शर्मा, आर.सी. पारीक, रजनी यादव, स्वाति अग्रवाल और शीतल जैन को आरोपपत्र दिए गए हैं.

गबन को उजागर करने वाली सहायक प्रशासनिक अधिकारी शीतल जैन को भी डिस्काम प्रबंधन ने काम में अनदेखी का दोषी मान कर आरोप पत्र दिया है. प्रबंधन का कहना है कि एक निश्चित अवधि तक शीतल जैन की ओर से जांच नहीं की गई.

अजमेर डिस्काम के एक कर्मचारी की मौत भी अन्नपूर्णा के गबन के मामले से जुड़ी होने की चर्चा है. इसी साल जनवरी की 13 तारीख को डिस्काम कर्मचारी प्रशांत की लाश आनासागर झील में तैरती मिली थी. उस समय प्रशांत की मौत के कारण स्पष्ट नहीं हुए थे. अन्नपूर्णा के गबन में उस के पिता और मामा की गिरफ्तारी भी इसी दिन हुई थी.

बाद में सामने आया कि अन्नपूर्णा ने प्रशांत के खाते में 3 लाख रुपए ट्रांसफर किए थे. प्रशांत की तनख्वाह 38 हजार 400 रुपए थी. अन्नपूर्णा ने उस के वेतन के शुरू में 3 का अंक और जोड़ दिया था. इस से एक बार प्रशांत के खाते में वेतन के रूप में 3 लाख 38 हजार 400 रुपए आ गए थे.

प्रशांत ने इस बारे में अन्नपूर्णा से एक बार पूछा था, तो उस ने बाद में बताने की कह कर उसे टाल दिया था. बाद में प्रशांत ने वह पैसे दूसरे काम में इस्तेमाल कर लिए. गबन की जांच होने पर प्रशांत के खाते में भी ज्यादा राशि जमा होने की बात सामने आई, तो वह परेशान हो गया.

माना जा रहा है कि अन्नपूर्णा के पिता और मामा की गिरफ्तारी से वह डिप्रेशन में आ गया और उस ने आनासागर झील में कूद कर जान दे दी. हालांकि प्रशांत की मौत के कारणों का खुलासा नहीं हुआ.

पुलिस ने गबन की आरोपी अन्नपूर्णा को गिरफ्तार करने के लिए बारबार कई जगह दबिश दी, लेकिन कथा लिखे जाने तक वह पुलिस की गिरफ्त से बाहर थी. डिस्काम प्रशासन की ओर से अन्नपूर्णा को नौकरी से बर्खास्त करने की कार्रवाई पर विचार किया जा रहा है.

बहरहाल, अन्नपूर्णा को पुलिस देरसवेर गिरफ्तार कर ही लेगी, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि बिजली निगम की सवा 2 करोड़ रुपए से ज्यादा की गबन की राशि की वसूली कैसे होगी? अन्नपूर्णा ने जिन खातों में गबन की राशि जमा कराई, उन में अब बहुत थोड़ाथोड़ा पैसा ही बाकी है. इन खातों से अधिकांश पैसा निकाला जा चुका है. यह पैसा किस ने निकाला, यह पुलिस की जांच का विषय है.

बैंक व वित्तीय मामलों के जानकार विधिवेत्ताओं का कहना है कि डिस्काम कानूनी रूप से गबन की राशि अन्नपूर्णा की व्यक्तिगत नामित संपत्तियों से ही वसूल सकता है. इस के अलावा उस की नौकरी के दौरान कटे जीपीएफ व अन्य जमा स्कीमों से भी रकम वसूली जा सकती है, लेकिन अन्नपूर्णा की नौकरी केवल 6-7 साल की है. इस अवधि में उस की जमा राशियां 10 लाख रुपए से कम होंगी.

पुलिस अगर गबन की राशि का उपयोग करने वाले उस के रिश्तेदारों व अन्य परिचितों के खिलाफ सख्त काररवाई कर अदालत में मामला पेश करे, तो उन से भी वसूली की काररवाई हो सकती है.

अजमेर डिस्काम प्रबंधन अभी यह जांच कर रहा है कि सिस्टम में लूपहोल कहां रही, जिस से गबन का मौका मिला. साथ ही सैलरी सिस्टम में भी बदलाव किया जा रहा है. अब डीओआईटी द्वारा तैयार सौफ्टवेयर लागू किया जाएगा. डिस्काम में स्पैशल औडिट भी कराई जाएगी.

हिना की शातिर चाल

जशन की एक गोली ने ली जान

एआई से खुली मर्डर मिस्ट्री – भाग 3

मृतक हितेंद्र के भाई राहुल यादव से जिन संदिग्ध युवकों के एड्रैस मिले थे, उन के ठिकानों पर ताबड़तोड़ छापेमारी की गई. लेकिन रौकी और जेम्स अपने घरों से फरार मिले. इन के घरों से इन के फोन नंबर मालूम कर के इन्हें फोन करने की कोशिश की गई, किंतु दोनों के फोन भी स्विच्ड औफ आ रहे थे.

पुलिस टीम ने इन के फोन नंबर सर्विलांस पर लगा दिए. इन के उठने बैठने के ठिकानों की भी जानकारी जुटाई गई और दिल्ली एनसीआर में विभिन्न स्थानों पर छापेमारी की गई. आखिर में जेम्स और हरजीत सिंह उर्फ रिकी उर्फ रौकी को गिरफ्तार कर लिया गया.

इन से मिली जानकारी द्वारा इन के साथी विपिन और जेम्स को प्रेमिका प्रियंका उर्फ एनी के साथ पकड़ लिया गया. कोतवाली में इन से कड़ी पूछताछ की गई तो बहुत ही चौंकाने वाली जानकारी सामने आई.

हितेंद्र कैसे बना लड़कियों का दलाल

परमवीर सिंह उर्फ नमन उर्फ जेम्स ने बताया, ”सर, मैं ने अपनी प्रेमिका एनी और रौकी के साथ मिल कर हितेंद्र की हत्या की है. उस की हत्या कर के मुझे थोड़ा सा भी पछतावा नहीं हुआ, क्योंकि हितेंद्र था ही इस लायक कि उसे जीवित नहीं छोड़ा जा सकता था. वह मतलबपरस्त व्यक्ति था. उसे दोस्तों की कद्र नहीं थी.

”आप को शायद अभी तक यह पता नहीं होगा कि हितेंद्र का काम क्या था. उस के भाई राहुल यादव ने आप लोगों को बताया होगा हितेंद्र एक बड़ी कंपनी में औडिट का काम करता था, लेकिन यह गलत है. हितेंद्र कालगर्ल के धंधे में लिप्त रहा है. वह लड़कियों का बहुत बड़ा दलाल था. एकएक लड़की को 50-50 हजार और एकएक लाख रुपए में होटलों में सप्लाई करता था.

”देह व्यापार में अपने जिस्म की कीमत वसूलने उतरी लड़कियों को वह बड़ेबड़े होटलों में भेजता था. उन लड़कियों को होटल वाले मोटे कमीशन पर अपने यहां बुक करते थे. अपना हिस्सा ले कर हितेंद्र अगले शिकार की तलाश में एक शहर से दूसरे शहर के चक्कर लगाता था.

”घर में उस ने यही कह रखा था कि वह कंपनी की ओर से विभिन्न शहरों में औडिट का काम करने जाता है. उस की बीवी पूजा उसे देवता मानती थी. उसे मालूम ही नहीं है कि उस का पति हितेंद्र वास्तव में लड़कियों का दलाल है.’’

”तुम इतना कुछ किस दावे के साथ कह रहे हो?’’ इंसपेक्टर जगदीप सिंह ने हैरानी से पूछा.

”साहब, मैं खुद हितेंद्र के साथ इसी अनैतिक धंधे में लगा हुआ था. मेरे साथ रौकी, विनीत, मेरी पार्टनर, मेरी लवर एनी भी इसी धंधे में हैं. हम ही नहीं और भी कुछ लोग इस काम में हितेंद्र के साथी रहे हैं.’’

”तुम हितेंद्र के लिए क्या काम करते थे?’’ एसआई सतेंद्र सिंह ने पूछा.

”हमारा काम शहरों में लड़कियां फंसाने का था. गरीब घरों की लड़कियां मोटा रुपया मिलने के लालच में जल्दी फंस जाती थीं, उन्हें नौकरी दिलाने के नाम पर शहरों में ला कर देह बेचने के लिए राजी किया जाता था. उन्हें हम हितेंद्र के हवाले कर देते थे. हितेंद्र के अनेक होटलों में अच्छे संपर्क थे. वह उन लड़कियों को कौंट्रैक्ट पर अच्छा कमीशन मिलने के नाम पर होटलों में बुक करवा देता था.’’

”हूं… हितेंद्र एक प्रकार से तुम लोगों का हैड था. यही बात है न?’’ एसआई सतेंद्र ने पूछा.

”जी हां.’’

”तो फिर तुम्हें अपने बौस की हत्या क्यों करनी पड़ी?’’

”साहब, 5 महीने पहले हितेंद्र 4 युवकों के साथ उस वक्त बेंगलुरु के ललित होटल में पकड़ा गया था, जब वह लड़की की सप्लाई दे रहा था. बेंगलुरु पुलिस ने लड़की के बयान पर उसे गिरफ्तार किया था. फिर उसे कोर्ट में पेश कर के जेल भेज दिया था.

”हितेंद्र को जेल में 3 महीने हो गए थे. वह डर रहा था कि लंबे समय तक जेल में रहा तो घर वालों के आगे उस के धंधे का भेद खुल जाएगा. हितेंद्र ने मुझ से कहा कि मैं उस की जमानत करवाऊं. मैं ने भागदौड़ कर के किसी तरह हितेंद्र की जमानत करवा दी थी. उस समय रौकी ने भी मेरा साथ दिया था. हम ने हितेंद्र की जमानत करवाने में एक लाख रुपया खर्च कर दिया था.

”हितेंद्र जमानत के बाद जेल से बाहर आ कर फिर अपने धंधे में रम गया. वह मांगने पर भी हमारा एक लाख रुपया नहीं दे रहा था. इसी बात पर हमारी हितेंद्र से कहासुनी होती थी. एक बार हमारे बीच जबरदस्त झगड़ा हुआ. मैं ने हितेंद्र की कार छीन ली और उसे पीटा भी.

”हितेंद्र की एक शादीशदा औरत से दोस्ती थी. मैं ने उस औरत के पति को मय सबूत के बता दिया कि तुम्हारी औरत के हितेंद्र से नाजायज संबंध हैं. तभी से हितेंद्र मुझ से खार खाने लगा. मैं ने सोचा कहीं हितेंद्र मेरे लिए कोई गलत कदम न उठा ले, इसलिए मैं ने उसे निपटाने का प्लान बना लिया. मैं ने हितेंद्र से माफी मांगी और उसे विश्वास दिलाया कि अब मैं उस से रुपयों की मांग नहीं करूंगा.

”प्लान बना कर मैं ने हितेंद्र को 9 जनवरी को रौकी के घर टैगोर गार्डन बुलाया. वह मंजीत के साथ आया तो हम ने मंजीत को वापस भेज दिया और हितेंद्र को कार में ड्रिंक करने के बहाने बैठा लिया. मेरे साथ रौकी, एनी और विपिन भी थे. हितेंद्र को बेवजह कार में इधरउधर तब तक घुमाता रहा, जब तक अंधेरा नहीं हो गया.

”अंधेरा होते ही मैं ने पीछे सीट पर हितेंद्र को दबोच लिया और उस की गरदन दबोच ली. उस की गरदन मैं ने तब तक दबाई, जब तक उस की मौत नहीं हो गई. इस के बाद हम ने रात के अंधेरे में उस की लाश गीता कालोनी फ्लाईओवर के नीचे झाडिय़ों में फेंक दी.’’

जेम्स के द्वारा जुर्म की स्वीकृति कर लेने के बाद पुलिस ने चारों को कोर्ट में पेश कर के जेल भिजवा दिया.

हितेंद्र की लाश पोस्टमार्टम के बाद परिजनों को सौंप दी गई थी. वे खुश थे कि पुलिस ने हितेंद्र के हत्यारों को जेल भेज दिया है. हितेंद्र का असली चेहरा क्या है, यह उन के लिए राज ही बना रहा. पुलिस टीम अब लड़कियों की सप्लाई में लिप्त गैंग के दूसरे फरार लोगों की तलाश में छापेमारी कर रही थी.

प्यार में की थीं 3 हत्याएं : 19 साल बाद खुला राज – भाग 4

एसएचओ मीणा और एसआई जयकिशन ने मौके पर जा कर जला हुआ ट्रक देखा. बालेश की कंकाल में परिवर्तित बौडी को पोस्टमार्टम हाउस में देखने के बाद वह भी इसी नतीजे पर पहुंचे कि बालेश कुमार की जल जाने की वजह से मौत हो गई है.

दोनों बुझे मन से दिल्ली लौट आए. राजेश वर्मा की हत्या का जिम्मेदार सुंदर लाल उन की गिरफ्त में था. अब उसी को कड़ी से कड़ी सजा दिलाने के लिए उन्हें चार्जशीट तैयार करनी थी.

पुलिस फाइल में बालेश मर चुका था और सुंदर लाल को राजेश वर्मा की हत्या का दोषी मान कर कोर्ट द्वारा आजीवन कारावास की सजा भी मिल गई थी. एक प्रकार से यह हत्या का केस यहीं समाप्त हो गया था और इस केस की फाइल बंद कर दी गई थी.

लेकिन 19 साल बीत जाने के बाद यह केस अक्तूबर, 2023 में फिर से चौंका देने वाली स्थिति में खुल गया. 19 साल पहले जिस बालेश कुमार को थाना बवाना और डांडियावास पुलिस मरा हुआ मान चुकी थी, वह जिंदा था और सेंट्रल रेंज (अपराध शाखा) के एसआई महक सिंह की टीम ने उसे नजफगढ़ (दिल्ली) के एक मकान से गिरफ्तार कर लिया था.

दरअसल, सन 2000 में कोटा हाउस (दिल्ली) के औफिसर मेस में चोरी हुई थी. औफिसर मेस से कीमती मैडल व प्राचीन वस्तुएं रात को चोरी कर ली गई थीं. इस चोरी में बालेश कुमार, उस के पिता चंद्रभान और साला राजेश उर्फ खुशीराम पकड़े गए थे.

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पुलिस उपायुक्त अंकित कुमार

दिल्ली के थाना तिलक मार्ग में तीनों के खिलाफ एफआईआर 341/2000 पर धारा 457/380/411/34 आईपीसी के तहत केस दर्ज हुआ था. उन्हें इस मामले में जमानत मिल गई थी. पुलिस ने इन के पास से चोरी का सामान बरामद कर लिया था. इसी की फाइल अपराध शाखा के स्पैशल पुलिस आयुक्त रविंद्र सिंह यादव के पास आई थी.

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इंसपेक्टर देवेंद्र कुमार

उन्होंने पुलिस उपायुक्त अंकित कुमार के सुपरविजन में इंसपेक्टर देवेंद्र कुमार के नेतृत्व में एसआई महक सिंह, यशपाल सिंह, एएसआई दीपक कुमार त्यागी, सुदेश कुमार, अनिल कुमार, हैडकांस्टेबल संदीप कुमार, करण सिंह, महिला सिपाही रानी की एक टीम बनाई.

हैडकांस्टेबल संदीप कुमार

इस टीम को कोटा हाउस के औफिसर मेस में बहुमूल्य सामान की चोरी करने वालों के अपराध रिकौर्ड चेक करने थे और देखना था कि इन्होंने भारतीय पुरातत्व संस्थान के किसी अन्य जगह पर भी ऐसी चोरी तो नहीं की है.

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महिला सिपाही रानी

एसआई महक सिंह इस मामले की जांच कर रहे थे कि 17 अक्तूबर को उन के खास मुखबिर ने उन्हें फोन पर सूचना दी कि 19 साल पहले जिस कातिल बालेश कुमार की ट्रक में जल जाने से मौत हो गई थी, वह जिंदा है. वह आरजेड-167, रोशन गार्डन, नजफगढ़ (दिल्ली) में अमन सिंह पुत्र जगत सिंह के नाम से रह रहा है. उस की पत्नी और बच्चे उसी के साथ में हैं. बालेश कुमार प्रौपर्टी खरीदने बेचने का धंधा कर रहा है.

मुखबिर की इसी सूचना पर सेंट्रल रेंज (अपराध शाखा) की टीम ने उसे उस के घर से दबोच लिया था. दिलचस्प कहानी को आगे बढ़ाने से पहले यह जान लेना जरूरी है कि बालेश कौन है.

बालेश कुमार पुत्र चंद्रभान मूलरूप से पट्टी कल्याण, समालखा, पानीपत (हरियाणा) का निवासी है. वह कक्षा 8वीं तक पढ़ा है. 1981 में यह नौसेना में स्टीवर्ड (मैस सहायक) के रूप में भरती हुआ और 1996 तक सेवा में रहा.

सेवानिवृत्ति के बाद बालेश कुमार अपने परिवार के साथ दिल्ली में संतोष पार्क (उत्तम नगर) में रहने लगा और प्रौपर्टी का काम करने लगा. सन 2000 में इस ने अपने पिता चंद्रभान और साले राजेश के साथ कोटा हाउस (तिलक मार्ग) में चोरी की.

तीनों पकड़े गए, चोरी का सामान इन के पास से बरामद हो गया. जमानत पर आने के बाद 2003 में बालेश ने अपने भाई महेंद्र के नाम से एक ट्रक एचआर38 एफ4832 फाइनैंस करवाया, जिसे वह खुद चलाने लगा.

खुद को मरा दिखाने के लिए कर दिए 2 और कत्ल

बालेश की पत्नी संतोष सुंदर और गृहकार्य में निपुण थी, फिर भी बालेश दूर के रिश्ते में साला लगने वाले राजेश उर्फ खुशीराम की पत्नी निशा के साथ अवैध संबंध बना कर निशा पर अपनी कमाई लुटाता रहता था. राजेश इस बात से चिढ़ता था. वह बालेश से खुन्नस रखता था. शायद मौका मिलने पर वह बालेश की हत्या कर देता, लेकिन दांव उल्टा पड़ गया.

20 अप्रैल, 2004 को बालेश ने अपने भाई सुंदर लाल के साथ मिल कर राजेश की हत्या कर दी. सुंदर लाल पकड़ा गया, बालेश फरार हो गया. जब वह फरार हुआ था तो 52 साल का था. अब वह 63 साल का हो चुका है. उसे अपराध शाखा के औफिस में लाया गया. सूचना पा कर स्पैशल पुलिस आयुक्त रविंद्र सिंह यादव और डीसीपी अंकित सिंह वहां पहुंच गए. उन के सामने बालेश कुमार से पूछताछ की गई.

”तुम राजेश उर्फ खुशीराम की हत्या कर के राजस्थान भाग गए थे. जिस ट्रक को तुम चला रहे थे, उस में आग लग गई थी और तुम जिंदा जल गए थे. हमें बताओ, वह क्या नाटक था?’’ एसआई महक सिंह ने सामने बैठे बालेश से प्रश्न किया.

”ट्रक ले कर मैं जब भागा था, तब मैं ने एक फुलप्रूफ योजना अपने दिमाग में बिठा ली थी. मैं ने बाईपास से 2 मजदूरों को काम देने का वायदा कर के अपने ट्रक में बिठा लिया था. वे दोनों बिहार के थे. उन के नाम मनोज और मुकेश थे.

”मैं ट्रक ले कर जोधपुर के थाना डांडियावास इलाके में पिथावास बाईपास रोड पर पहुंचा तो एक सुनसान जगह पर मैं ने ट्रक रोक दिया. बाईपास के एक शराब के ठेके से मैं ने 2 बोतल शराब खरीद ली थी. मैं ने ट्रक में मुकेश और मनोज को शराब पिलाई.

”दोनों जब ज्यादा शराब पीने से नशे में लुढ़क गए तो मैं ने मुकेश को जो मेरी कदकाठी का था, उसे अपने कपड़े पहना दिए और ट्रक की ड्राइविंग सीट पर बिठा दिया. मैं ने दिल्ली से ही पेप्सी लेबल के खाली गत्ते ट्रक में भर लिए थे. उन पर पेट्रोल डाल कर मैं ने ट्रक में आग लगा दी. मेरी आईडी और अन्य कागजात सामने के हिस्से में थे.

”ट्रक में आग लगाने के बाद दूर जा कर एक झाड़ी में दुबक कर मैं बैठ गया. काफी देर बाद वहां से गुजर रहे एक कार चालक ने पुलिस को फोन किया. जब फायर बिग्रेड और पुलिस वहां आई, तब तक ट्रक आग से काफी हद तक जल गया था. मैं अब निश्चिंत था.

”मैं ने घर पर फोन कर के अपने पिता और पत्नी को अपनी योजना बता दी. डांडियावास थाने की पुलिस द्वारा छानबीन करने के बाद मेरे पिता चंद्रभान को थाने में बुलाया गया तो मेरी पत्नी संतोष और भाई बिशन, महेंद्र सिंह, भीम सिंह भी उन के साथ डांडियावास थाने में आ गए. उन्हें ट्रक में जले 2 मानव कंकाल दिखाए गए तो एक की पहचान उन्होंने मेरे (बालेश) के रूप में कर दी.’’

”अपनी मौत का नाटक तुम ने इसलिए रचा ताकि राजेश के कत्ल के इलजाम से बच सको, क्या मैं ठीक कह रहा हूं?’’ इंसपेक्टर देवेंद्र कुमार ने पूछा.

योजना हुई फेल तो बालेश पहुंचा जेल

बालेश मुसकराया, ”बेशक यही कारण था साहब, मैं ने अपनी मौत हो जाने का नाटक कर के अपनी पत्नी को लाभ पहुंचाया था.’’

”वो कैसे?’’

”मेरी पत्नी और पिता ने डांडियावास से मेरी मौत का प्रमाणपत्र हासिल कर लिया था. मेरी पत्नी ने मेरा बीमा पालिसी की साढ़े 6 लाख रुपए की राशि, ट्रक इंश्योरेंस का 4 लाख रुपया हासिल कर लिया और मेरी पेंशन भी अपने नाम करवा ली.

”ओह!’’ सभी को इस खुलासे से हैरानी हुई. अपराध शाखा के पुलिस आयुक्त रविंद्र कुमार यादव ने बालेश को घूरा, ”तुम अपनी पत्नी के साथ मौत का नाटक करने के बाद कब से रह रहे हो?’’

”साहब, मौत का नाटक करने के बाद मैं 2-3 महीने इधर उधर रहा. पत्नी ने सारे रुपए हासिल कर लिए तो मैं ने नजफगढ़ में प्लौट ले लिया और अमन सिंह पुत्र जगत सिंह के नाम से बीवी बच्चों के साथ रहने लगा.

”मैं ने अपने आधार कार्ड, पैन कार्ड, पहचान पत्र आदि अमन सिंह के नाम से बनवा लिए, ताकि सभी मुझे अमन सिंह ही समझें. मैं इत्मीनान से प्रौपर्टी का धंधा करने लगा. वक्त गुजरता गया. मैं निश्चिंत था कि अब पकड़ा नहीं जाऊंगा.’’

”हम ने पकड़ लिया.’’ इंसपेक्टर देवेंद्र कुमार मुसकरा कर बोले, ”अब तुम जिंदगी भर जेल में सड़ोगे.’’

बालेश कुमार ने सिर झुका लिया.

उस के खिलाफ एफआईआर 232/2023 दर्ज करके आईपीसी की धारा 419, 420, 467, 468, 471, 474 और 120बी लगा कर उसे कोर्ट में पेश किया गया. कोर्ट ने उसे जेल भेज दिया.

अपराध शाखा (सेंट्रल रेंज) ने यह केस बवाना थाने के वर्तमान एसएचओ राकेश कुमार को सौंप दिया. उन्होंने बालेश कुमार की पत्नी संतोष को पकडऩे के लिए नजफगढ़ वाले घर पर रेड डाली, लेकिन संतोष पति के पकड़े जाते ही भूमिगत हो गई थी.

डांडियावास थाना (जोधपुर) ने यह मामला सीआरपीसी की धारा 174 के तहत 2004 में दर्ज किया था, कोई आपराधिक केस नहीं बनाया था. उसे यह सूचित कर दिया गया कि ट्रक में मरने वाला बालेश कुमार नहीं, उस का मजदूर मुकेश था. दूसरी लाश मनोज की थी. बालेश ने 2 हत्याएं उन के थानाक्षेत्र में की थीं, उस पर काररवाई की जाए.

बालेश कुमार जेल में था. पुलिस उस की पत्नी संतोष की तलाश कर रही थी, जो कथा लिखने तक फरार थी.

नोट: कथा में निशा नाम परिवर्तित है.

एआई से खुली मर्डर मिस्ट्री – भाग 2

राहुल यादव ने छावला पुलिस स्टेशन के नोटिस बोर्ड पर लगे पैंफ्लेट को देख कर मृतक की पहचान अपने बड़े भाई हितेंद्र उर्फ हितु के रूप में की. उसे थाने से बताया गया कि यह फोटो थाना कोतवाली लालकिला एरिया के हैडकांस्टेबल प्रशांत द्वारा लगाया गया है. इसलिए उन्हें कोतवाली से संपर्क करना चाहिए.

वह लोग थाना कोतवाली (लालकिला) पहुंच गए. वहां उन की मुलाकात एसआई सतेंद्र सिंह से हुई. राहुल यादव ने जेब से एक फोटो निकाल कर एसआई सतेंद्र सिंह की ओर बढ़ाते हुए कहा, ”सर, यह मेरे बड़े भाई हितेंद्र उर्फ हितु की फोटो है. यह इस सप्ताह घर नहीं आए तो मेरी भाभी पूजा रानी ने मुझ से उन का पता लगाने के लिए कहा. चूंकि भाई हितेंद्र का फोन स्विच्ड औफ आ रहा है, इसलिए मैं घबरा गया.

”हम भाई का फोटो ले कर उन की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखवाने थाना छावला गए थे. वहां नोटिस बोर्ड पर अपने भाई का फोटो लगा देख कर मालूम किया तो बताया गया उन की लाश मिली है. पहचान नहीं हो पा रही थी, इसलिए पुलिस ने यह पैंफ्लेट चस्पा किया है. हमें यहां संपर्क करने को कहा गया, तब हम यहां आ गए हैं.’’

”आप मृतक के छोटे भाई हैं?’’ एसआई सतेंद्र सिंह ने पूछा.

”जी हां, मेरा नाम राहुल है. साथ में मेरी भाभी पूजा है. मेरे पिता का नाम नरेंद्र सिंह है. मेरे पिता सीआरपीएफ में हैं. मैं मानेसर (हरियाणा) में एक फर्म में प्राइवेट जौब करता हूं. हमारा घर दौलतपुर, दिल्ली में है.’’

”आप पूरे विश्वास से कह रहे हैं कि नोटिस बोर्ड पर आप ने जो फोटो देखी है, वह आप के बड़े भाई की है.’’

”जी हां, मैं ने अपने बड़े भाई की फोटो आप को दी है. आप देख लीजिए.’’

एसआई सतेंद्र सिंह ने फोटो देखी. वह मृतक के साथ हूबहू मिल रही थी.

”आप चल कर पहले मृतक की लाश देख लीजिए, फिर हम बैठ कर बात करेंगे.’’

”ठीक है साहब.’’

एसआई सतेंद्र सिंह ने राहुल यादव और उस की भाभी पूजा को हैडकांस्टेबल प्रशांत और ओमपाल के साथ सब्जी मंडी मोर्चरी भेज दिया.

सब्जी मंडी मोर्चरी में उस अज्ञात युवक की लाश का पोस्टमार्टम नहीं किया गया था. युवक की लाश जब राहुल यादव और उस की भाभी पूजा को दिखाई गई तो लाश की पहचान उन्होंने अपने बड़े भाई और पति हितेंद्र के रूप में की.

लाश को देख कर दोनों रोने लगे. किसी तरह उन्हें शांत करवा कर हैडकांस्टेबल प्रशांत और ओमपाल वापस कोतवाली ले आए. एसआई सतेंद्र सिंह उन्हीं का इतंजार कर रहे थे. एसआई सतेंद्र सिंह ने दोनों को सामने बैठा कर पूछताछ शुरू की.

”पूजा, तुम्हारे पति हितेंद्र की लाश हमें रिंग रोड पर गीता कालोनी फ्लाईओवर के नीचे झाडिय़ों में मिली थी. तुम्हारे पति की हत्या हुई है, यह मेरा मानना है. हत्या कैसे हुई, यह पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बाद मालूम होगा. पहले यह बताओ वह क्या काम करते थे?’’

”साहब, वह किसी कंपनी में औडिट का काम करते थे. उस कंपनी ने उन्हें नोएडा से उत्तराखंड तक का एरिया औडिट के लिए दिया हुआ था, इसलिए वह अधिकतर समय घर से बाहर ही रहते थे. एक सप्ताह में एक बार ही वह घर आते थे.

”सर, पिछले 10 दिनों से वह घर नहीं आए थे. मुझे उन की चिंता सता रही थी. 8 दिन गुजर जाने पर वह घर नहीं आए थे, न उन का फोन लग रहा था. तब तब मैं ने राहुल को अपनी चिंता से अवगत करवाया.

”2 दिन तक यह उन के विषय में मालूम करता रहा, फिर मुझे ले कर छावला पुलिस स्टेशन आ गया. यहां से मालूम हुआ कि मेरे पति की किसी ने हत्या कर दी है.’’ पूजा कहने लगी, ”सर, मेरे पति की हत्या किस ने की, आप यह पता लगा कर उसे फांसी पर चढ़ाइए, तभी मेरे मन को तसल्ली मिलेगी.’’

”मैं पूरी कोशिश करूंगा कि आप के पति के कातिल को कड़ी से कड़ी सजा मिले. आप मुझे बताइए, आप के पति हितेंद्र की किसी से कोई दुश्मनी थी, जो उस की मौत का कारण बनी.’’

”वह तो बहुत सीधेसादे थे, सर. उन का भला कौन दुश्मन होगा.’’ पूजा ने बताया.

”भाई साहब सचमुच बहुत सीधे इंसान थे. अपने आप में व्यस्त रहने वाले, लेकिन मुझे जेम्स और रौकी पर संदेह जा रहा है.’’ राहुल गंभीर हो कर बोला.

”यह जेम्स और रौकी कौन हैं?’’ एसआई सतेंद्र सिंह ने राहुल के चेहरे पर नजरें जमा कर पूछा.

”भाई के गहरे दोस्त रहे हैं ये. आजकल इन का भाई के साथ पैसों के लेनदेन पर क्लेश चल रहा था.’’

”क्या तुम्हारे भाई ने इन लोगों से कर्ज लिया था?’’

”यह तो नहीं मालूम साहब, लेकिन इतना मालूम हुआ है कि जेम्स और रौकी भाई से एक लाख रुपए मांग रहे थे. उन्होंने भाई की कार भी इसी चक्कर में छीन रखी थी.’’

एसआई सतेंद्र सिंह ने सिर हिलाया, ”इन दोनों को चैक करना पड़ेगा. क्या तुम इन के पते ठिकाने जानते हो?’’

”हां साहब, इन 2 दिनों में मैं ने यही मालूम किया है. मुझे परमवीर उर्फ नमन उर्फ जेम्स के घर का पता मालूम है, वह खरबंदा प्रौपर्टीज के पास संत कबीर के सामने वाली गली, चंदर विहार, दिल्ली में रहता है.’’

”…और रौकी?’’

”इस का असली नाम हरजीत सिंह है. लोगों में रौकी नाम से मशहूर है. पिता का नाम सतविंदर सिंह है. यह सी-27, थर्ड फ्लोर, टैगोर गार्डन एक्सटेंशन, दिल्ली में रहता है.

”साहब, मेरे भाई हितेंद्र का एक गहरा दोस्त है मंजीत. मैं ने जब भाभी पूजा से सुना कि इस हफ्ते भाई घर नहीं आए हैं और उन का फोन भी स्विच्ड औफ आ रहा है तो मैं मंजीत से मिला. उस ने मुझे बताया कि 9 जनवरी, 2024 को भाई उस के साथ था. वे दोनों टैगोर गार्डन गए थे. वहां से भाई रौकी और जेम्स के साथ उन की गाड़ी में बैठ कर कहीं चला गया था. मंजीत अकेला घर लौट आया था.’’

”यह बहुत महत्त्वपूर्ण खुलासा किया है तुम ने.’’ एसआई सतेंद्र सिंह खुश हो कर बोले, ”मैं अब रौकी और जेम्स की गरदन नापता हूं. तुम अपनी भाभी को ले कर घर जाओ. जैसे ही पोस्टमार्टम हो जाएगा, तुम्हारे भाई की लाश तुम्हें अंतिम क्रिया के लिए मिल जाएगी.’’ एसआई सतेंद्र सिंह कुरसी छोड़ते हुए बोले. राहुल यादव अपनी भाभी को ले कर बाहर निकल गया.

ACP Vijay kumar                           HC PRASHANT BHIDURI

एसीपी (कोतवाली) विजय सिंह                             एसआई  प्रशांत    

हितेंद्र उर्फ हितु की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई थी. उस की मौत का कारण दम घुटना बताया गया, जिस से हत्या की संभावना बनती थी. एसआई सतेंद्र सिंह ने इस हत्या के मामले को आईपीसी की धारा 302/201 के तहत दर्ज कर लिया. उन्होंने उच्चाधिकारियों को अपनी तरफ से की गई अब तक की जांच का पूरा विवरण दे दिया.

एसीपी (कोतवाली) विजय सिंह और औपरेशन सेल के एसीपी धर्मेंद्र कुमार के नेतृत्व में एडिशनल डीसीपी (नौर्थ) श्वेता के. सुगाथन के निर्देशन में एक पुलिस टीम का गठन किया गया.

इस टीम में जतन सिंह एसएचओ (कोतवाली), इंसपेक्टर नीरज कुमार, जगदीप सिंह, राज मलिक (औपरेशन सेल), एसआई रोहित सारस्वत, सतेंद्र सिंह कोतवाली, देवेंद्र,  विनीत, योगेश कुमार, सुरेश कुमार, प्रीति, हैडकांस्टेबल अनिल, ओमपाल, सौरव, प्रशांत, कांस्टेबल रितु और राहुल को शामिल किया गया.

प्यार में की थीं 3 हत्याएं : 19 साल बाद खुला राज – भाग 3

मनदीप ने सुंदर लाल को कालर से पकड़ा तो वह घबरा कर बोला, ”मुझे टार्चर रूम में मत ले जाइए, मैं सब कुछ बताता हूं.’’

”बताओ, कल रात को राजेश उर्फ खुशीराम तुम्हारे साथ था या नहीं?’’ एसआई जयकिशन ने पूछा.

”था साहब, मैं ने और राजेश ने कल सुरेंद्र शर्मा के यहां जनकपुरी में शराब की पार्टी की थी. फिर हम तीनों मेरी मारुति वैन में बैठ कर पीरागढ़ी की ओर आ गए थे. यहां एक ठेके से मैं ने शराब की बोतल और जनरल स्टोर से नमकीन खरीदी. राजेश नशे में होने के बावजूद अभी और पीने के मूड में था, इसलिए घर नहीं जाना चाहता था.

”मेरा कई बार उस से झगड़ा हुआ था, आज उस से हिसाब किताब करने का सही मौका मिल गया था. मैं ने अपने भाई बालेश कुमार को फोन कर के कहा कि पीरागढ़ी आ जाओ, राजेश मेरे साथ है, उसे निपटा देते हैं. बालेश ने हामी भर दी. यह बात सुरेंद्र शर्मा ने सुनी तो वह बहाना बना कर वैन से उतर गया और अपने घर चला गया.’’

सुंदरलाल ने रुक कर सांसें दुरुस्त कीं फिर आगे बताने लगा, ”मेरा बड़ा भाई बालेश पीरागढ़ी आ गया तो मैं वैन को चला कर शाहबाद डेरी की ओर ले आया. रास्ते में फलवालों की रेहड़ी के पास से नायलोन की रस्सी मैं ने मांग ली थी. शाहबाद डेरी में खड़े ट्रकों की आड़ में मैं ने वैन रोक दी और 3 पैग बनाए. मैं ने राजेश के गिलास में ज्यादा शराब डाली ताकि वह नशे में और बेसुध हो जाए.

”2 पैग पीते ही राजेश पर गहरा नशा चढ़ा तो वह बालेश को अपनी बीवी निशा के साथ अवैध संबंध होने का आरोप लगा कर गालियां देने लगा. बालेश से यह सहन नहीं हुआ तो उस ने राजेश के चेहरे पर 3-4 घूंसे जड़ दिए. इस से राजेश अद्र्धबेहोशी में चला गया.

”मैं ने बालेश को राजेश के पैर पकडऩे का इशारा किया तो उस ने राजेश के पैर दबोच लिए. मैं ने नायलोन की रस्सी राजेश वर्मा के गले में डाल कर पूरी ताकत से कस दी, राजेश का शरीर फडफ़ड़ाया फिर शांत हो गया. बालेश और मैं उस की लाश को ले कर प्रह्लादपुर आए और सर्वोदय बाल विद्यालय के सामने उसे फेंक कर अपने घर चले गए.’’

”तुम्हारा बड़ा भाई बालेश इस समय कहां पर है?’’

”वह अपने घर में होगा साहब, उस का पता आरजेड-121, संतोष पार्क, उत्तम नगर है.’’

एसआई जयकिशन ने सुंदर लाल को हवालात में बंद कर दिया और 4-5 पुलिस वालों को साथ ले कर बालेश की गिरफ्तारी के लिए उत्तम नगर के लिए रवाना हो गए.

ट्रक में लगी आग से भस्म हो गया आरोपी?

एसआई जयकिशन पुलिस टीम के साथ संतोष पार्क, उत्तम नगर बालेश के घर पहुंचे तो मालूम हुआ वह घर पर नहीं है. उस की पत्नी संतोष से उस के उठने बैठने के ठिकाने मालूम कर के वहां पर दबिश डाली गई, लेकिन बालेश नहीं मिला.

परेशान हो कर एसआई जयकिशन टीम के साथ थाने में लौट आए. उन्होंने यह रिपोर्ट एसएचओ राम अवतार मीणा को दी तो उन्होंने बालेश की टोह पाने के लिए अपने खास मुखबिर लगा दिए.

एक हफ्ता निकल गया लेकिन बालेश कुमार का सुराग नहीं मिला. इस बीच राजेश की लाश का पोस्टमार्टम करवा कर लाश उस के घर वालों के हवाले कर दी गई और सुंदर लाल को न्यायालय में पेश कर के 2 दिन की रिमांड पर ले लिया गया.

राजेश की हत्या के लिए प्रयोग की गई नायलोन की रस्सी, शराब की खाली बोतल, गिलास आदि उस जगह से एकत्र कर लिए गए, जहां सुंदर और बालेश ने राजेश की हत्या की थी.

राजेश की हत्या का यह केस एफआईआर 146/2004 दफा 302/201 आईपीसी की धारा में दर्ज कर लिया गया. इस केस की मजबूती के लिए बी-2, बी/98 जनकपुरी से सुरेंद्र शर्मा को थाने बुलवा कर उस का बयान लिया गया.

उस ने अपने बयान में बताया कि पीरागढ़ी में सुंदर लाल ने भाई बालेश को फोन पर यह कहा था कि राजेश नशे में है, आ जाओ, आज उसे निपटा देते हैं. मैं सुंदर लाल का खतरनाक इरादा भांप कर वैन से उतर गया था. मुझे पक्का विश्वास है कि राजेश उर्फ खुशीराम की हत्या सुंदर लाल और बालेश कुमार ने ही की है.’’

2 दिन बाद रिमांड की अवधि समाप्त होने पर सुंदर लाल को फिर से न्यायालय में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

मर चुका बालेश 19 साल बाद कैसे हुआ जिंदा

बालेश कुमार की टोह में मुखबिर लगे हुए थे. उन्हें केवल इतना पता चला कि बालेश बाईपास पर खड़े अपने ट्रक नंबर एचआर 38एफ 4832 में सवार हो कर राजस्थान भाग गया है. थाना बवाना पुलिस को पहली मई, 2004 को शाम 5 बजे डांडियावास थाना, जोधपुर (राजस्थान) से बालेश के पिता चंद्रभान ने फोन कर के एक बुरी खबर दी.

चंद्रभान ने एसएचओ राम अवतार मीणा को बताया कि उन का बेटा बालेश दिल्ली पुलिस से बचने के लिए अपने ट्रक से राजस्थान भागा था, मगर पीथावास बाईपास, थाना डांडियावास (जोधपुर) पर उस के ट्रक में आग लग गई और अपने क्लीनर के साथ बालेश जिंदा जल कर मर गया है.

एसएचओ रामअवतार मीणा ने उच्चाधिकारियों को सारी बात बता कर राय मांगी तो उन से कहा गया, ”हत्या का केस है और बालेश वांछित आरोपी है. जा कर खुद इस बात कि जांच करें कि चंद्रभान की बात में कितनी सच्चाई है. अपने बेटे को बचाने के लिए चंद्रभान झूठ भी बोल सकता है.’’

एसएचओ मीणा, एसआई जयकिशन के साथ जोधपुर के थाना ट्रेन से डांडियावास रवाना हुए. दूसरे दिन वह डांडियावास थाने में थे. थाने में बालेश का पिता चंद्रभान, बालेश की पत्नी संतोष और बालेश के 2 भाई महेंद्र कुमार, भीमसिंह मौजूद थे. चारों के चेहरे मुरझाए हुए थे.

डांडियावास थाने के थानेदार ने इस बात की पुष्टि कर दी कि बालेश का ट्रक पीथावास बाईपास रोड पर जल गया है. ड्राइविंग सीट पर बालेश की बुरी तरह जल चुकी बौडी और उस के अधजले पहचान के कागज मिले हैं.

उस के पिता चंद्रभान और पत्नी संतोष का कहना था कि वह जली हुई डैडबौडी बालेश की है. मैं ने पूरी कागजी काररवाई कर के अपनी संतुष्टि कर ली है. आप जैसा उचित समझें, काररवाई करें.

एआई से खुली मर्डर मिस्ट्री – भाग 1

उत्तरी दिल्ली के कोतवाली थानाक्षेत्र में गीता कालोनी फ्लाईओवर की झाडिय़ों में मिली इस अज्ञात लाश की सूचना किसी व्यक्ति ने थाना कोतवाली में फोन कर के दी थी. यह बात 10 जनवरी, 2024 की थी. यह काल लाल किला पुलिस चौकी  के इंचार्ज सतेंद्र सिंह को ट्रांसफर कर दी गई. यह सूचना मिलते ही पुलिस चौकी लाल किला के इंचार्ज एसआई सतेंद्र सिंह 4 कांस्टेबलों को ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए थे.

जब वह मौके पर पहुंचे तो गीता कालोनी फ्लाईओवर के नीचे झाडिय़ों के पास लोगों की भीड़ जमा थी. वहां पर झाडिय़ों में एक 35-40 साल के युवक का शव नजर आ गया. उस युवक का सिर एक पेड़ के तने से सटा था और पांव पश्चिम दिशा की तरफ थे. उन्होंने पास जा कर उस लाश का गहनता से निरीक्षण किया गया.

युवक के गले पर खरोंच के निशान साफ दिखाई दे रहे थे. वह जिस स्थिति में पड़ा था, उस से अंदाजा लगाया गया कि इस की हत्या कहीं और कर के लाश इस सुनसान जगह पर झाडिय़ों में फेंक दी गई है. युवक के शरीर पर कोई ऐसा निशान नहीं नजर आ रहा था, जिस से उस की मौत का कारण समझा जा सकता था.

युवक की आंखें बंद थीं. एसआई सतेंद्र ने अनुमान लगाया कि इसे अवश्य ही गला घोंट कर मारा गया है. लाश के पास डबल बेड की प्रिंटेड चादर पड़ी थी, शायद इसी चादर में इसे लपेट कर यहां लाया गया होगा.

युवक के कपड़ों की तलाशी ली गई. उस की जेब में मोबाइल की लीड और लोहे की एक चाबी मिली. चाबी पर एक ओर गोदरेज लिखा था, दूसरी ओर 0879350 नंबर गुदा था. जेब में युवक का न तो मोबाइल फोन था, न पर्स. उस की पहचान की कोई भी चीज हत्यारों ने उस के पास नहीं छोड़ी थी.

पुलिस के सामने एक प्रकार से यह ब्लाइंड मर्डर केस था. फिर भी एसआई सतेंद्र सिंह ने वहां उपस्थित भीड़ की ओर देख कर पूछ लिया, ”क्या आप में से कोई इस युवक को पहचानता है?’’

जैसा कि उन्होंने सोचा था, वही उत्तर मिला, ”नहीं साहब.’’

आगे की जांच के लिए एसआई सतेंद्र सिंह ने फोरैंसिक टीम और फोटोग्राफर को फोन कर के वहां आने के लिए कह दिया. उन्होंने नार्थ जोन की एडिशनल डीसीपी श्वेता के. सुगाथन और एसीपी (कोतवाली) विजय सिंह तथा औपरेशन सेल के एसीपी धर्मेंद्र कुमार को भी इस अज्ञात युवक की लाश की सूचना दे दी. आधा घंटा में ही फोरैंसिक टीम, फोटोग्राफर और पुलिस अधिकारी घटनास्थल पर पहुंच गए.

केस सुलझाने में एआई ने कैसे की मदद

अधिकारियों ने लाश का बारीकी से निरीक्षण किया. उन की नजरों में भी यह ब्लाइंड मर्डर केस था. ऐसे मामलों में जांच का दायरा बढ़ जाता है. बारीक से बारीक बात पर ध्यान रख कर कदम बढ़ाया जाता है. ऐसे केस मुश्किल हो सकते हैं, लेकिन असंभव नहीं. पुलिस अत्यंत कड़ी मेहनत कर के मृतक का पता भी निकाल लेती है और उस की हत्या किस ने की है, यह भी मालूम कर लेती है.

        एसआई सतेंद्र

इस पेचीदा केस की जांच का काम एसआई सतेंद्र को सौंप दिया गया. औपरेशन सेल के एसीपी धर्मेंद्र कुमार ने एसआई सतेंद्र को आदेश दिया कि इस युवक की पहचान के लिए सार्वजनिक स्थानों पर पैंफ्लेट चिपकाए जाएं. लाश को यहां लाने के लिए किसी न किसी वाहन का भी प्रयोग हुआ होगा. वाहन की जांच के लिए सीसीटीवी कैमरों को खंगाला जाए.

एसआई सतेंद्र सिंह ने उन्हें आश्वासन दिया कि वह इस ब्लाइंड मर्डर केस की जांच के लिए रातदिन एक कर देंगे. फोरैंसिक टीम अपने काम में जुटी हुई थी. फोटोग्राफर ने विभिन्न कोणों से लाश के फोटो ले लिए थे.

सभी काम पूरा होने के बाद एसआई सतेंद्र सिंह ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए सब्जीमंडी की मोर्चरी में भिजवा दिया. सारा काम निपटा तो उच्चाधिकारी वहां से चले गए. एसआई सतेंद्र सिंह भी अपने दल के साथ कोतवाली के लिए रवाना हो गए.

युवक कौन है, कहां रहता है, इस की जानकारी 2 दिन बाद भी नहीं हो पाई थी. एसआई सतेंद्र सिंह की देखरेख में कोतवाली के 30 पुलिसकर्मियों की विशेष टीम का गठन कर दिया गया था. इस टीम को दिल्ली के सार्वजनिक स्थानों पर पैंफ्लेट चिपकाने का काम सौंपा गया था.

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                मृतक

फोटो में चूंकि मृतक की आंखें बंद थीं, इसलिए मृतक की फोटो को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) से सुधार कर फोटो का बैकग्राउंड चेंज किया गया व आंखों को खोला गया.

ऐसा करने से मृतक का चेहरा जीवित व्यक्ति जैसा लगने लगा, जिस से पहचान में आसानी हो सके. इस फोटो के 2000 पैंफ्लेट तैयार कराए गए.

30 व्यक्तियों की टीम ने इन पोस्टरों को आईएसबीटी, रेलवे स्टेशन, पार्कों, सड़क किनारे, बस स्टैंड, आटो स्टैंड के पास विभिन्न सार्वजनिक स्थानों पर चिपका दिया. दिल्ली के प्रत्येक पुलिस स्टेशन को भी सूचित किया गया.

जिस संदिग्ध वाहन में आरोपी द्वारा शव को फेंका गया था, उस का पता लगाने के लिए पुलिस की इस विशेष टीम ने लगभग 800 से अधिक सीसीटीवी कैमरे देखे. चूंकि शव को एकांत इलाके में फेंका गया था, इसलिए वहां कोई सीसीटीवी कैमरा कनेक्टिविटी नहीं थी. इसलिए वहां सीसीटीवी से किसी प्रकार की सफलता नहीं मिली.

गए थे रिपोर्ट लिखाने, मिल गई लाश

पैंफ्लेट 4 राष्ट्रीय अखबारों में प्रकाशित हुआ था. इस के बावजूद भी किसी ने मृतक को पहचानने का दावा नहीं किया था.

पुलिस इस इंतजार में थी कि कोई न कोई व्यक्ति मृतक का इश्तहार देख कर थाने तक पहुंचेगा, लेकिन 2 दिन बीत जाने के बाद भी मृतक के किसी परिचित के पहुंचने की जानकारी नहीं मिली थी. एसआई सतेंद्र सिंह सब्र किए बैठे थे. अपनी तरफ से उन्होंने मृतक की पहचान का हरसंभव प्रयास किया था. देर बेशक हो रही थी, लेकिन सतेंद्र सिंह जानते थे कि उन्हें मृतक की पहचान में सफलता जरूर मिलेगी.

हुआ भी यही. 14 जनवरी, 2024 को बाहरी दिल्ली के छावला पुलिस स्टेशन में राहुल यादव नाम का युवक घबराया हुआ आया. उस के साथ उस की भाभी पूजा भी थी. वह भी उस समय काफी बदहवास नजर आ रही थी.