शातिर बहू की चाल : योजना खुद पर ही पड़ी उलटी

थाने के फोन की घंटी बजी तो हलवदार ने रिसीवर उठाते ही कहा, ‘‘सर, थाना सुलतानपुरा से हवलदार जसवंत सिंह.’’

‘‘मैं सरकारी टीचर संदीप शर्मा बोल रहा हूं. कोठी नंबर 534 बी, आदर्श नगर से. आप जल्दी यहां आ जाइए. किसी ने कोठी की मालकिन सतनाम कौर की हत्या कर दी है. उन की लाश बेडरूम में पड़ी है.’’ दूसरी ओर से कहा गया.

हवलदार जसवंत सिंह ने यह सूचना थाने के एसएचओ इंसपेक्टर ओंकार सिंह बराड़ को दे दी. आेंकार सिंह पुलिस टीम के साथ आदर्श नगर स्थित घटनास्थल पर पहुंच गए. वहां पहले से ही लोगों की भीड़ जमा थी. भीड़ में से एक व्यक्ति ने आगे बढ़ कर बताया, ‘‘सर, मेरा नाम संदीप शर्मा है, मैं ने ही थाने में फोन किया था.’’

‘‘लाश कहां है?’’ इंसपेक्टर ओंकार सिंह ने पूछा तो संदीप शर्मा ने कोठी की ऊपरी मंजिल की ओर इशारा करते हुए बताया, ‘‘सर, लाश बेडरूम में पड़ी है.’’

ओंकार सिंह अपनी टीम के साथ कोठी के ऊपर वाले भाग में पहुंचे. बेडरूम में बेड पर एक बुजुर्ग महिला की लाश पड़ी थी. इंसपेक्टर ओंकार सिंह ने घटना की सूचना उच्च अधिकारियों को दी और घटनास्थल पर क्राइम टीम को बुलवा लिया.

फौरेंसिक एक्सपर्ट और फिंगरपिं्रट विशेषज्ञों ने आते ही अपना काम शुरू कर दिया. इस बीच सूचना पा कर एसपी कपूरथला मनदीप सिंह भी मौकाए वारदात पर पहुंच गए थे. घटनास्थल और लाश का निरीक्षण करने से पता चला कि मृतका की हत्या गला घोंट कर की गई थी.

पूछताछ के दौरान संदीप शर्मा ने बताया कि मृतका सतनाम कौर कनाडा की रहने वाली थीं. वह करीब 5 महीने पहले अपने रिश्तेदारों से मिलने यहां आई थीं. संदीप शर्मा ने यह भी बताया कि उस ने मृतका के बेटे मनमोहन सिंह को कनाडा फोन कर के घटना की सूचना दे दी है.

इंसपेक्टर ओंकार सिंह अभी संदीप शर्मा का बयान नोट कर ही रहे थे कि राजपुर महतानियां, जिला होशियारपुर निवासी राजिंदर सिंह ने वहां आ कर बताया कि मृतका उस की बहन सतनाम कौर है. दरअसल, संदीप शर्मा ने मृतका के बेटे मनमोहन सिंह को फोन कर के घटना के बारे में बता दिया था.

मनमोहन ने अपने मामा को फोन कर के कहा कि वह मां के पास जा कर देखें, खबर सच है या किसी ने भद्दा मजाक किया है. भांजे का फोन मिलने के बाद राजिंदर सिंह आदर्शनगर आ गए थे.

बहरहाल, राजिंदर सिंह के बयान पर 30 मार्च, 2019 को अज्ञात लोगों के खिलाफ सतनाम कौर की हत्या का मुकदमा भादंवि की धारा 302 के तहत दर्ज कर लिया गया. इस के साथ ही मृतक की लाश को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दिया गया.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार मृतका की हत्या दम घुटने के कारण हुई थी. उन के गले पर दुपट्टे वगैरह से कसने के निशान थे. हत्या का दिन 29 मार्च और समय दिन के 11 बजे से 12 बजे के बीच बताया गया था.

अब तक की पूछताछ में यह बात स्पष्ट हो गई थी कि मृतका की किसी से कोई दुश्मनी या अनबन नहीं थी. वह 2-3 साल में एक बार कुछ दिनों के लिए कनाडा से अपने रिश्तेदारों से मिलने आया करती थी. वह जब भी आती थीं, ज्यादातर अपनी आदर्शनगर वाली कोठी में ही रहा करती थीं.

चूंकि मामला एक एनआरआई बुजुर्ग महिला से जुड़ा था इसलिए एसपी मनदीप सिंह के आदेश पर इसे जल्द से जल्द सुलझाने के लि ए 3 टीमें गठित की गईं.

हत्या के इस मामले में अजीब बात यह थी कि घर में कोई चीज चोरी नहीं हुई थी. घर का सारा सामान ज्यों का त्यों था. किसी चीज को छेड़ा तक नहीं गया था. बेडरूम में चाय के 3 खाली गिलास रखे मिले. इस से साफ था कि घर में सतनाम कौर का कोई परिचित आया था.

पुलिस ने मृतका सतनाम कौर के पारिवारिक सदस्यों और निजी जिंदगी के बारे में पूछताछ की तो पता चला कि सतनाम कौर के पति बलदेव सिंह की साल 1998 में मौत हो गई थी. मृतका के 2 बेटे थे बड़ा बेटा जगमोहन सिंह जग्गा और छोटा मनमोहन सिंह उर्फ मनी.

मनमोहन सिंह उर्फ मनी कनाडा में रहता था. जबकि बड़े बेटे जगमोहन उर्फ जग्गा की साल 2017 में मृत्यु हो गई थी. जगमोहन की पत्नी हरजोत कौर अपने बच्चों के साथ गांव दादूवाल में रहती थी.

बलदेव सिंह की मौत के समय इस परिवार के पास 12 किले उपजाऊ जमीन थी, जिसे 3 बराबर हिस्सों में बोट दिया गया था. हरेक के हिस्से में 4-4 किले जमीन आई थी. दोनों बेटों के साथसाथ एक हिस्सा सतनाम कौर का था.

पति की मौत के बाद सतनाम कौर छोटे बेटे मनमोहन के पास कनाडा चली गई थीं. पुलिस जांच में एक अहम बात यह सामने आई कि बड़े बेटे जगमोहन की पत्नी हरजोत कौर की अपनी सास सतनाम कौर से बिलकुल नहीं बनती थी. जगमोहन की मौत के समय भी सतनाम कौर केवल उस की अंतिम अरदास पर ही गई थीं.

इस पूरे मामले की जांच के बाद शक की सुई हरजोत कौर की ओर घूम गई. इस बीच इंसपेक्टर ओंकार सिंह ने इलाके के सीसीटीवी फुटेज निकालवा कर चेक किए तो एक सरकारी दफ्तर के बाहर लगे कैमरे में एक्टिवा पर सवार एक पुरुष और उस के पीछे बैठी महिला को सतनाम कौर की कोठी में जाते देखा गया.

हालांकि दोनों ने अपने चेहरे कपड़े से ढक रखे थे. लेकिन एक्टिवा का नंबर- पीबी 37 एच-3277 स्पष्ट दिखाई दे रहा था.

आरटीओ औफिस से पता चला कि उक्त नंबर की एक्टिवा मृतका की बड़ी बहू हरजोत कौर की है. पुलिस का शक अब पूरी तरह यकीन में बदल गया था. जब हरजोत कौर को उस के गांव दादूवाल से हिरासत में ले कर पूछतछ की गई तो उस ने तुरंत अपन अपराध स्वीकार कर लिया. उस ने बताया कि उस ने पैसों के लालच में अपनी सास की हत्या की थी.

इस हत्याकांड में उस के साथ उस का परिचित विक्रमजीत सिंह उर्फ विक्की भी था जो गांव समरावा, जिला जालंधर का रहने वाला है. पुलिस ने हरजोत की निशानदेही पर विक्की को भी गिरफ्तार कर लिया.

दोनों आरोपियों को 1 अप्रैल को फगवाड़ा की अदालत में पेश कर उन का 2 दिन का पुलिस रिमांड लिया गया. रिमांड के दौरान दोनों आरोपियों से की गई पूछताछ के बाद मृतका सतनाम कौर की हत्या की जो कहानी सामने आई वह इस प्रकार थी.

हरजोत कौर जब ब्याह कर ससुराल आई थी तभी से अपनी सास सतनाम कौर के साथ उस की कभी नहीं बनी थी. सतनाम कौर भी अपनी बहू को नापसंद करती थी. इस का एक कारण शायद यह था कि बलदेव सिंह और सतनाम कौर अपने छोटे बेटे मनमोहन के साथ कनाडा में रहते थे.

हरजोत ने भी कनाडा जाने की जिद की थी, अपने पति जगमोहन को उकसाया भी था, पर सतनाम कौर ने उस की एक नहीं चलने दी थी. इसी वजह से वह सतनाम कौर से रंजिश रखने लगी थी.

बलदेव सिंह की मौत के बाद जब जमीन का बंटवारा हो गया तो हरजोत कौर अपने हिस्से की जमीन और पैसा ले कर पति और बच्चों के साथ जिला जालंधर के गांव दादूवाल में जा कर रहने लगी थी. अपने हिस्से की जमीन उस ने ठेके पर विक्की के पिता हरजीत को दे दी थी.

हरजोत चालाक और ज्यादा पैसा खर्च करने वाली औरत थी. जमीन से होने वाली कमाई उस के लिए पूरी नहीं पड़ती थी. उस की नजर हर समय अपनी सास के हिस्से वाली जमीन और उन के बैंक बैलेंस पर रहती थी. जबकि सतनाम कौर उसे अपने घर में घुसने तक नहीं देती थी.

हरजोत कौर पर इन दिनों काफी कर्जा हो गया था. कर्जदार उसे परेशान कर रहे थे, ऊपर से उस के बच्चे जवान हो रहे थे. उन के शादीब्याह की चिंता अलग से थी. हरजोत कौर को अपनी सास से यह रंजिश भी थी कि वह उस पर और उस की जवान होती बेटी पर तरहतरह के लांछन लगाती थीं.

सतनाम कौर ने पूरी बिरादरी में हरजोत और उस के बच्चों, जो कि उन के पोतापोती थे को बदनाम कर रखा था. इस घटना से 2 सप्ताह पहले हरजोत कौर यह शिकायत ले कर अपने मामा ससुर यानी सतनाम कौर के भाई राजिंदर सिंह के पास गई थी कि वह अपनी बहन को समझाएं.

वह उसे और उस के बच्चों को बेवजह बदनाम करना छोड़ दें. नहीं तो वह जहर खा कर आत्महत्या कर लेगी. राजिंदर सिंह ने सतनाम कौर को समझाया भी था, लेकिन सतनाम कौर अपनी आदत से बाज नहीं आई थीं. इसलिए हरजोत कौर ने अपनी सास को ही रास्ते से हटाने की योजना बना ली थी.

अपनी योजना को अमली जामा पहनाने के लिए उस ने ये सारी बातें विक्रमजीत को बताईं. विक्रम नशे का आदी था. सो थोड़ा सा नशा करने के बाद वह हरजोत का साथ देने के लिए तैयार हो गया. रिमांड के दौरान दिए गए अपने बयान में हरजोत ने बताया कि उस ने पति के जीवित रहते 2 साल पहले अपनी सास की कोठी की रेकी कर ली थी.

अब ताजा स्थिति में उस ने आदर्श नगर जा कर यह देखा था कि सतनाम कौर की कोठी तक पहुंचने के लिए रास्ते में किनकिन सीसीटीवी कैमरों का सामना करना पड़ सकता है. नए हिसाब से उस ने नई योजना तैयार की थी.

घटना वाले दिन 29 मार्च को वह अपनी एक्टिवा पर सवार हो कर विक्रम के साथ सतनाम पुरा पहुंची. विक्रम ने उस से 500 रुपए मांगे और पैसे ले कर पहले नशा किया. इस दौरान वह एक दुकान पर बैठ कर बर्गर खाती रही. इस के बाद दोनों सतनाम कौर की आदर्श नगर स्थित कोठी पर पहुंचे.

सतनाम कौर उसे देखते ही भड़क उठी और दोनों को वहां से चले जाने को कहा, लेकिन कोई जरूरी बात करनी है. बोल कर दोनों सतनाम के बेडरूम में बैठ गए. फिर मौका पाते ही विक्रम ने अपने गले में डाला हुआ काले रंग का साफा सतनाम के गले में डाल दिया, फिर दोनों ने मिल कर उस की हत्या कर दी.

आदर्शनगर, सतनामपुरा इलाके में सतनाम कौर कोठी नंबर 534 बी की ऊपरी मंजिल पर अकेली रहती थी. जबकि कोठी की नीचली मंजिल पर संदीप शर्मा व रामशरण 2 लोग किराए पर रहते थे. दिनांक 29 मार्च की सुबह किराएदार अपने काम पर चले गए थे, और देर रात घर लौटे थे. आ कर दोनों सो गए थे.

30 तारीख की सुबह जब किराएदार अध्यापक संदीप शर्मा ऊपर गया तो सतनाम कौर को आवाजें लगाने पर भी जब कोई आवाज नहीं आई, तो उसे शक हुआ. उस ने ऊपर जा कर देखा तो सतनाम कौर को मरा पाया और पुलिस को सूचना दे दी.

पुलिस ने दोनों आरोपियों की निशानदेही पर काले रंग का साफा बरामद कर लिया, जिस से उन्होंने सतनाम कौर का गला घोंट कर हत्या की थी. पुलिस ने आननफानन में 24 घंटे के भीतर सतनाम कौर के हत्यारों को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया.

आरोपियों ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया था. पर एक बात अभी तक पुलिस को हजम नहीं हो रही थी कि हरजोत कौर ने बिना किसी विरोध के साथ अपना अपराध स्वीकार कैसे कर लिया.

जबकि हत्या जैसा संगीन अपराध कोई भी आरोपी इतनी आसानी से कबूल नहीं करता. पुलिस ने पूरे मामले की दोबारा गहनता से जांच की तो कई चौंकाने वाले खुलासे हुए. 2 दिन बाद इस मामले में अचानक एक नया मोड़ आ गया.

पुलिस ने इस केस की एक और अभियुक्त  अंजू को हिरासत में ले लिया. पूछताछ के दौरान उस ने स्वीकार किया कि उस ने हरजोत के कहने पर विक्रम के साथ जा कर सतनाम कौर की हत्या की थी.

हरजोत कौर तो मौकाएवारदात पर गई ही नहीं थी. दरअसल सीसीटीवी फुटेज को बारीकी से चेक करने पर पुलिस को पता चला था कि एक्टिवा पर सवार औरत की कद काठी और उस समय पहने हुए कपड़े हरजोत से मेल नहीं खा रहे थे.

जब हरजोत से दोबारा सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने सब सच उगल दिया. वह और विक्रम अब तक पुलिस से झूठ बोलते आए थे. दरअसल, पुलिस को गुमराह करने और जांच की दिशा भटकाने के लिए यह हरजोत की चाल थी.

अंजू कई सालों से हरजोत के घर काम करती थी और उसी गांव की रहने वाली थी. हरजोत ने उसे अपनी बातों के जाल में फंसा कर इस काम के लिए राजी किया था. अंजू के अनुसार उस ने यह काम पैसों या किसी अन्य लालच में नहीं किया था.

वह हरजोत को अपनी बड़ी बहन जैसी मानती थी. हरजोत ने इसी बात का फायदा उठाया था. घटना वाले दिन 29 मार्च को अंजू, विक्रम और हरजोत तीनों एक साथ सतनामपुरा आए थे. हरजोत बर्गर की एक दुकान पर रुक गई थी और अंजू विक्रम के साथ हरजोत की एक्टिवा पर घटना को अंजाम देने सतनाम कौर के घर पहुंच गई.

सतनाम की हत्या करने के बाद हरजोत की योजना अनुसार वे दोनों अपने गांव दादूवाल लौट गए थे. गांव पहुंच कर अंजू ने अपना पहना हुआ सूट जला दिया था. ऐसा करने के लिए उस से हरजोत ने ही कहा था. पुलिस ने अंजू की निशानदेही पर वह अधजला सूट भी बरामद कर लिया.

3 अप्रैल को अंजू, विक्रम और हरजोत को पुन: अदालत में पेश किया गया. उस दिन विक्रम और हरजोत का रिमांड समाप्त हो गया था, इसलिए उन दोनों को जेल भेज दिया गया. जबकि अंजू को 5 अप्रैल तक पुलिस रिमांड पर लिया गया.

बाद में रिमांड अवधि समाप्त होने पर अंजू को भी जेल भेज दिया गया. पुलिस जांच भटकाने के पीछे हरजोत का मकसद यह था कि जरूरत पड़ने पर वह यह साबित कर सकती है कि घटना के समय वह मौका ए वारदात पर मौजूद नहीं थी. और अगर वह पकड़ी भी गई तो उस के बच्चों की देखभाल अंजू कर लेगी. दोनों हालातों में एक औरत का बाहर रहना तय था, पर पुलिस जांच में हरजोत की पोल खुल गई और उस के साथ अंजू भी पुलिस की गिरफ्त में आ फंसी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारि

सौजन्य- सत्यकथा, सितंबर 2019

 

विदेश में रची साजिश : रिश्तों में आई दरार

सरदार हरविंदर सिंह और उन के परिवार के अन्य लोग 27 फरवरी, 2019 को दिल्ली एयरपोर्ट पर आस्ट्रेलिया से आने वाली फ्लाइट का बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रहे थे. क्योंकि उस दिन सरदार हरविंदर सिंह की चहेती बेटी रवनीत कौर शादी के बाद पहली बार आस्ट्रेलिया से इंडिया आ रही थी. शादी के बाद से ही रवनीत अपने पति जसप्रीत सिंह के साथ आस्टे्रलिया जा कर बस गई थी. उस की एक 4 साल की बेटी नवसीरत कौर भी उस के साथ आ रही थी. उस का जन्म भी आस्टे्रलिया में ही हुआ था.

रवनीत के आने की खुशी में उस के मायके और ससुराल वालों ने स्वागत की पूरी तैयारियां कर रखी थीं. अपने निर्धारित समय पर प्लेन ने दिल्ली एयरपोर्ट पर लैंड किया और पंजाब से आया यह काफिला रवनीत और उस की बेटी को दिल्ली से ले कर सेक्टर-47 चंडीगढ़ की ओर रवाना हो गया. रवनीत उस समय करीब 5 महीने की गर्भवती थी.

रवनीत कौर की ससुराल चंडीगढ़ में ही थी. इसलिए उस का पहला हक ससुराल जाने का ही बनता था. बहरहाल रवनीत के आने की खुशी में ससुराल में जश्न मनाया गया, अगले दिन बाहर से आए सभी रिश्तेदार अपनेअपने घरों को लौट गए थे. रवनीत के पिता हरविंदर सिंह भी अपनी पत्नी और बेटे के साथ अपने गांव चले गए थे. यह बात 28 फरवरी, 2019 की है.

सरदार हरविंदर सिंह पंजाब के जिला फिरोजपुर के गांव बग्गे के पीपल के निवासी थे. यह गांव फिरोजपुर से करीब 8 किलोमीटर दूर है. हरविंदर सिंह बेहद शरीफ और मिलनसार इंसान थे. वह गांव बग्गे के पीपल की कोऔपरेटिव सोसाइटी के सेक्रेटरी भी थे.

उन के पास रुपएपैसे की कमी नहीं थी. उन के पास कई एकड़ उपजाऊ भूमि भी थी. परिवार में पत्नी के अलावा उन के 2 बच्चे थे. बड़ी बेटी रवनीत कौर और बेटा जश्नीत सिंह. दोनों की वह शादी कर चुके थे.

हरविंदर सिंह ने लगभग 6 साल पहले रवनीत की शादी चंडीगढ़ निवासी रावल सिंह के बेटे जसप्रीत सिंह के साथ की थी. जसप्रीत आस्टे्रलिया में रहता था. वहां उस का होटल का व्यवसाय था. शादी के कुछ महीने बाद जसप्रीत ने रवनीत को भी अपने पास आस्टे्रलिया बुला लिया. बाद में वे दोनों वहां के स्थाई नागरिक बन गए थे.

शादी के 2 साल बाद रवनीत ने एक बेटी को जन्म दिया जिस का नाम नवसीरत रखा गया. सब कुछ ठीकठाक चल रहा था. पतिपत्नी के अलावा दोनों के परिवार भी आपस में बहुत खुश थे.

रवनीत को आस्टे्रलिया से आए 15 दिन हो चुके थे और वह अपनी ससुराल चंडीगढ़ में ही थी. रवनीत के पिता सरदार हरविंदर ने एक दिन अपने बेटे से कहा, ‘‘पुत्तर रवनीश को आए 15 दिन हो गए हैं. हम चाहते हैं कि उसे तुम बुला लाओ जिस से वह कुछ दिन यहां रह सके.’’

‘‘जी पापाजी, मैं आज ही चंडीगढ़ जा कर रवनीत को ले आता हूं.’’ जश्नीत ने कहा और वह उसी दिन चंडीगढ़ में बहन की ससुराल जा कर उसे अपने साथ लिवा लाया. मायके में आ कर रवनीत की खुशी और बढ़ गई. अपने मातापिता और बचपन की सहेलियों से मिल कर वह बहुत खुश हुई. रवनीत के आने से केवल हरविंदर के परिवार वाले ही नहीं बल्कि गांव में उस के जानने वाले भी खुश थे.

14 मार्च, 2019 की बात है. वक्त करीब 11 बजे का होगा. रवनीत के घर के सभी लोग बैठक में बैठे आपस में हंसीमजाक कर रहे थे कि उसी समय रवनीत के मोबाइल पर आस्ट्रेलिया से उस के पति जसप्रीत की वीडियो काल आई. रवनीत परिवार वालों से बात करना छोड़ कर पति से बातें करने लगी.

फोन पर न जाने कैसी बातें चल रही थीं कि उसे इस बात का अंदेशा ही नहीं रहा कि वह फोन पर बात करतेकरते अपने घर से बाहर निकल आई और अपने पिता के खेतों की ओर चल दी.

वह वहां घूमते हुए पति से बातें करने में मशगूल थी. वहीं खेतों के पास एक कार खड़ी थी. उस कार के नजदीक 2 लोग भी मौजूद थे. फोन पर बातें करते हुए रवनीत जैसे ही उस कार के पास पहुंची तो दोनों लोगों ने रवनीत को उठा कर कार में डाला और वहां से फरार हो गए.

यह नजारा दूर खेत में काम करते केवल एक आदमी ने देखा था. इधर जब आधे घंटे से भी ज्यादा समय हो गया और रवनीत फोन पर बातें कर के घर में नहीं लौटी तो परिजनों को चिंता हुई कि आखिर फोन पर बातें करते हुए वह कहां चली गई.

सब ने उस की तलाश शुरू कर दी, इस बीच जिस व्यक्ति ने रवनीत को कार में ले जाते देखा था, उस ने आ कर पूरी बात सरदार हरविंदर सिंह को बताई तो सब के पैरों तले से जमीन खिसक गई.

आखिर वो कौन लोग थे जो रवनीत को जबरदस्ती उठा कर ले गए थे. सीधी सी बात यह थी कि वह लोग रवनीत का अपहरण कर के ले गए थे. यह बात कुछ ही देर में पूरे गांव में फैल गई. इस के बाद तो पूरा गांव रवनीत की तलाश में जुट गया. पर न तो कार मिली और न ही रवनीत का कोई पता चला. अंत में सभी गांववासी इकट्ठे हो कर थाना फिरोजपुर पहुंचे.

सरदार हरविंदर सिंह ने एसएचओ गुरचरण सिंह को बेटी के अपहरण होने की सारी बात विस्तार से बता दी. सरदार हरविंदर सिंह की शिकायत पर पुलिस ने अज्ञात लोगों के खिलाफ रवनीत के अपहरण का मामला दर्ज कर उस की तलाश शुरू कर दी थी.

क्योंकि मामला एक ऊंचे रसूखदार और जमींदार की एनआरआई बेटी से जुड़ा था. इसलिए एसएचओ गुरचरण सिंह ने इस घटना की सूचना अपने उच्चाधिकारियों को भी दे दी. सूचना मिलते ही एसएसपी संदीप गोयल, एसपी बलजीत सिंह सिद्धू क्राइम टीम के साथ मौके पर  पहुंच गए.

एसएसपी के निर्देश पर शहर के बाहर जाने वाली सभी सड़कों पर नाकेबंदी कर दी गई थी. एकएक गाड़ी की तलाशी ली जाने लगी पर कोई फायदा नहीं हुआ. शायद अपहर्त्ता पुलिस की नाकेबंदी से पहले ही सीमा पार कर चुके थे. फिर भी पुलिस ने रवनीत का फोटो जिले के सभी थानों में भेजवा दिया था.

रवनीत को अगवा हुए 24 घंटे से भी ज्यादा बीत चुके थे पर अभी तक पुलिस के हाथ कुछ नहीं लगा था. पुलिस मामले में लापरवाही बरत रही थी. तब परिजन और गांव वाले रवनीत की तलाश के लिए एसएसपी कार्यालय के बाहर धरने पर बैठ गए. कई दिनों तक चले इस आंदोलन के बाद एसएसपी ने धरने पर बैठे लोगों को भरोसा दिया कि पुलिस बहुत जल्दी केस का खुलासा कर देगी. तब कहीं जा कर 19 मार्च, 2019 को उन्होंने धरना खत्म किया.

एसएसपी ने एसपी बलजीत सिंह की निगरानी में एक टीम गठित की. पुलिस ने हरविंदर सिंह से बात करने के बाद कुछ लोगों के फोन सर्विलांस में लगा दिए थे तथा रवनीत के पति जसप्रीत सिंह और अन्य लोगों के फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवा ली थी. 19 मार्च को ही पुलिस को जानकारी मिली क कुछ लोग कार से एक महिला की लाश भाखड़ा नहर में फेंक कर फरार हो गए थे.

पुलिस ने इस सूचना को गंभीरता से लेते हुए भाखड़ा नहर में दूरदूर तक जाल डलवा दिया. पुलिस की यह कोशिश रंग लाई और एक महिला की लाश नहर से बरामद कर ली. जिस की पुष्टि रवनीत कौर के रूप में हुई. जरूरी काररवाई कर पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

एसपी बलजीत सिंह के नेतृत्व में गठित टीम इस मामले की जांच कर रही थी. पुलिस टीम ने पीडि़त परिवार द्वारा दी गई कुछ जानकारी के अधार पर जांच आगे बढ़ाई तो सफलता मिल गई.

दरअसल रवनीत के अपहरण के बाद हरविंदर सिंह ने यह खबर आस्टे्रलिया में अपने दामाद जसप्रीत सिंह को दे कर फौरन इंडिया आने के लिए कहा था पर वह हर बार टालमटोल करता रहा. कभी कहता कि अभी वीजा नहीं मिल रहा है तो कभी कोई और बहाना बना देता.

जब हरविंदर सिंह ने आस्ट्रेलिया एंबेसी से संपर्क किया तो पता चला कि जसप्रीत ने वीजा एप्लाई किया ही नहीं है. इन सब बातों से हरविंदर और अन्य रिश्तेदारों को शक हुआ कि ऐसी क्या मजबूरी है जो बीवी का अपहरण हो जाने की खबर मिलने के बाद भी जसप्रीत सिंह आराम से अपने घर बैठा रहा. उन्होंने अपने तौर पर जांच पड़ताल शुरू की.

इधर पुलिस ने भी अपने मुखबिरों का जाल बिछा रखा था. और साइबर क्राइम की टीम ने शक की सुई का रुख सीधा आस्टे्रलिया की तरफ मोड़ दिया था. आस्ट्रेलिया से जसप्रीत की इंडिया में पत्नी के अलावा और जिस नंबर पर ज्यादा बातें होती थीं, वह नंबर पटियाला के समाना की तरनजीत कौर का था. तरनजीत कौर के अलावा एक नंबर संदीप सिंह का भी था. संदीप सिलवर सिटी समाना का निवासी था.

इन दोनों नंबरों पर जसप्रीत की घंटों बातें होती थीं. इस मामले को हल करने के लिए पुलिस ने कई पहलुओं पर जांच शुरू कर दी थी. पुलिस ने यह पता लगाया कि जिस दिन रवनीत कौर के पास उस के पति जसप्रीत सिंह का आस्टे्रलिया से फोन आया था उस दिन जसप्रीत ने किनकिन लोगों से बात की थी.

पुलिस ने सभी के फोन नंबरों की लोकेशन टे्रस की इसी जांच के सहारे पुलिस समाना की रहने वाली तरनजीत कौर तक पहुंच ही गई.

पुलिस ने तरनजीत कौर को 24 मार्च, 2019 को हिरासत में ले कर पूछताछ शुरू कर दी. तरनजीत कौर को पकड़ने से पहले पुलिस ने आरोपितों की आपस में हो रही टेलीफोन पर बातचीत व उन की एक्टिविटी पर नजर रखी.

पूछताछ में तरणजीत कौर ने कई खुलासे किए, जिस से तरनजीत कौर की निशानदेही पर ही पुलिस को रवनीत का शव बरामद करने के साथ मामले का खुलासा करने में बड़ी सफलता मिल गई थी.

पूछताछ में आरोपियों ने बताया कि जसप्रीत सिंह ने अपनी प्रेमिका किरणजीत कौर के साथ मिल कर अपनी पत्नी रवनीत कौर की हत्या करवाई थी. इस में किरणजीत की बहन तरनजीत कौर और संदीप सिंह नामक युवक ने साथ दिया था. संदीप सिंह तरनजीत कौर की बुआ का बेटा है. पुलिस ने तरनजीत को कोर्ट में पेश कर 5 दिन के रिमांड पर लिया.

पूछताछ में तरनजीत की निशानदेही पर उस की बुआ के बेटे संदीप सिंह को भी 26 मार्च को गिरफ्तार कर लिया.

रिमांड के दौरान पूछताछ में यह बात सामने आई कि जसप्रीत सिंह के शादी से पहले से ही किरणजीत कौर के साथ अवैध संबंध थे. जसप्रीत सिंह और किरणजीत कौर ने आस्टे्रलिया से कनाडा भाग कर कथित तौर पर शादी कर ली थी. किरणजीत कौर वहां किसी अस्पताल में नर्स की नौकरी करती है और जसप्रीत सिंह एक रेस्टोरेंट में काम करता था. दोनों के बीच संबंध होने के कारण ही रवनीत कौर को ठिकाने लगाया गया था.

अवैध संबंधों में बाधा बन रही पत्नी को रास्ते से हटाने के लिए ही जसप्रीत ने प्रेमिका किरणजीत के साथ मिल कर आस्टे्रलिया में ही रवनीत की हत्या की साजिश रची थी. पत्नी रवनीत के भारत पहुंचने के कुछ दिन बाद उस ने प्रेमिका किरण को भी आस्ट्रेलिया से भारत भेज दिया था.

इस के बाद उस ने प्रेमिका के रिश्तेदारों की मदद से पत्नी की हत्या करवा दी. हत्या के अगले ही दिन किरणजीत कौर सिंगापुर के रास्ते वापस आस्टे्रलिया लौट गई थी.

एनआरआई महिला रवनीत कौर की हत्या के आरोप में फिरोजपुर पुलिस ने पटियाला जिले की समाना निवासी तरनजीत कौर व उस के रिश्तेदार संदीप सिंह को गिरफ्तार कर लिया. आरोपियों ने रवनीत कौर की हत्या 14 मार्च को उस के अगवा करने के कुछ देर बाद उसी दिन समाना में ले जा कर कर दी थी. इस के बाद शिनाख्त मिटाने के लिए शव को भाखड़ा नहर में फेंक दिया था. जिसे फिरोजपुर पुलिस ने बरामद कर लिया था.

जसप्रीत सिंह ने अपनी जिस प्रेमिका के लिए पत्नी रवनीत कौर की हत्या करवा दी. वह पहले से ही शादीशुदा है. हत्याकांड को अंजाम देने व सबूत मिटाने में संदीप सिंह शामिल रहा.

एनआरआई महिला रवनीत कौर की हत्या कैसे की गई, यह पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बाद ही स्पष्ट हो पाएगा. बताया जाता है कि मृतका रवनीत कौर 5 महीने की गर्भवती थी. रवनीत कौर की हत्या में शामिल 2 एनआरआई सहित 4 जनों के खिलाफ मामला दर्ज कर काररवाई शुरू कर दी.

पुलिस ने एनआरआई जसप्रीत सिंह, किरणजीत कौर, तरनजीत कौर और संदीप सिंह के खिलाफ मामला दर्ज कर एनआरआई जसप्रीत सिंह और किरणजीत कौर को विदेश से मंगवाने के लिए भी कानूनी काररवाई शुरू कर दी. जबकि तरनजीत और संदीप सिंह को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. वारदात में प्रयुक्त सफेद रंग की बीट कार नंबर एचआर51एजी-5522 भी बरामद कर ली गई.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य- सत्यकथा, जुलाई 2019

कैक्टस के फूल

इंसुलिन भरे इंजेक्शन की छोटी सुई लगते ही रघुबीर के मुंह से सिसकारी निकल गई थी. यह उन्हें रोज सहन करना पड़ता था, क्योंकि इंसुलिन ही अब उन की जिंदगी की डोर थी. वैसे भी अब तो सावित्री के साथ जीने की लालसा ने इस कष्ट को सामान्य कर दिया था. उन की इस सिसकारी पर सावित्री ने कहा, ‘‘इतने सालों से इंजेक्शन ले रहे हो, पर सिसकारी भरना नहीं भूले. कोई छोटे बच्चे तो हो नहीं, जो इंजेक्शन लगते ही सिस्स…सिस्स… करने लगते हो.’’

‘‘सावित्री, तुम्हें मैं बड़ा लगता हूं?’’  रघुबीर ने हमेशा की तरह सावित्री से॒  कहा.  अब उन के लिए तो सावित्री ही सर्वस्व थीं. एक मित्र, साथी और प्रेमी. हां प्रेमी भी. इसीलिए तो…जबजब सावित्री चश्मा चढ़ी अपनी आंखों को फैला कर इंजेक्शन भरने लगतीं, रघुबीर एकटक उन के चेहरे को ताकते रहते और जब वह इंजेक्शन लगातीं, रघुबीर सिसकारी जरूर भरते. सावित्री को पता था रघुबीर ऐसा जानबूझ कर करते हैं. फिर भी वह यह जरूर कहतीं, ‘‘सच में इंजेक्शन से बहुत दर्द होता है?’’

इस के बाद रघुबीर के ‘न’ के साथ शुरू हुआ संवाद सावित्री की जिंदगी की डोर था.  दसदस साल बीत गए थे रघुबीर और सावित्री को इस वृद्धाश्रम में आए. यहां पहला कदम रखने का दुख अब हृदय के किसी कोने में दब कर रह गया था. जब ये आए थे, तब दोनों के पैर साथ चलते थे और अब हृदय की धड़कन भी साथ चलने लगी थी. जैसे एक की थम जाएगी तो दूसरे की भी.

‘‘मैं भी बैठ जाऊं?’’ सावित्री ने पार्क में लगे झूले पर बैठे रघुबीर से पूछा. पर रघुबीर का ध्यान तो कहीं और था. वह सामने रखे गमले में लगे कैक्टस को एकटक ताक रहे थे.

‘‘मैं भी बैठ जाऊं यहां?’’ सावित्री ने दोबारा पूछा. इस बार भी कोई जवाब नहीं मिला तो सावित्री झूले पर बैठ गईं. थोड़ी देर झूले के साथ मौन भी झूलता रहा. उस ने अचानक पैरों को जमीन पर रख कर झूले को रोक कर पूछा, ‘‘आप केवल कैक्टस को ही क्यों देखते हैं?’’

‘‘मुझे लगता है इस जीवन में मैं ने कैक्टस ही बोए हैं, इसीलिए कैक्टस मुझे अच्छा लगता है. शायद इसी वजह से यहां हूं भी.’’ अचानक झूले के रुकने से रघुबीर जैसे नींद से जगे थे.

‘‘कैक्टस में भी फूल खिलते हैं. हो सकता है यह आश्रम भी तुम्हारे लिए कैक्टस बन जाए.’’ सावित्री ने आशावादी विचार व्यक्त करते हुए कहा, ‘‘कभीकभी कैक्टस से भी संबंध की शुरुआत हो सकती है.’’

रघुबीर जब से इस आश्रम में आए थे, उन के चेहरे पर उदासी छाई रहती थी. आश्रम में रहने वालों से भी वह बहुत कम बातचीत करते थे. हमेशा अकेले ही बैठे रहते थे. एक दिन रात के 2 बजे सावित्री ने झूले पर बैठे देखा. शायद उस आश्रम में सावित्री ही एक ऐसी थीं, जिन से रघुबीर कभीकभार दोचार बातें कर लिया करते थे. सावित्री ने उन के पास जा कर पूछा, ‘‘इस समय यहां क्या कर रहे हो?’’

‘‘नींद नहीं आ रही थी, इसलिए यहां आ कर बैठ गया.’’ रघुबीर ने जवाब में कहा.

‘‘नींद क्यों नहीं आ रही?’’ सावित्री ने पूछा. शायद वह उन से बातें करना चाहती थीं.

‘‘हर चीज की वजह नहीं होती.’’

‘‘होती तो है. बस हम जानना नहीं चाहते.’’ सावित्री ने रात की हवा में मिली नमी जैसी आवाज में कहा, ‘‘आप अपने मन की बात कह दीजिए, इस से मन हलका हो जाएगा. बात सुन लेने के बाद शायद मैं वजह खोज सकूं.’’

‘‘मैं मेजर डिप्रेशन का रोगी नहीं था.’’ रघुबीर ने रात को खुले आकाश में फैले अनगिनत सितारों को ताकते हुए कहा.

‘‘तो..?’’ सावित्री ने छोटा सा सवाल किया. उन्होंने डिप्रेशन शब्द न सुना हो, ऐसा नहीं था. सावित्री अध्यापिका थीं. स्वभाव से आशावादी. हर परिस्थिति को मुसकराते हुए स्वीकार करती थीं. सावित्री के इस सवाल से रघुबीर उत्तेजित हो कर बोले, ‘‘तो क्या… तो यह कि इसी बीमारी की वजह से आज मैं यहां इस वीरान वृद्धाश्रम में हूं. मैं ने अपने पोते पर हाथ उठा दिया था और जानती हो क्यों?’’ कहते हुए रघुबीर का शरीर कांप रहा था. आंखें चौड़ी और लाल हो गई थीं. उन की आंखों में ठहरी बातें पाला तोड़ कर बह रही थीं.

‘‘केवल…उस से मेरे इंसुलिन की सीरिंज टूट गई थी. मैं…मैं अभी भी उस दृश्य को देख रहा हूं, क्योंकि वह दृश्य मेरी आंखों के सामने नाचता रहता है. वह दृश्य मेरा पीछा नहीं छोड़ता.

उसी की वजह से बेटे ने मुझे अस्पताल में भरती कराया और अस्पताल से सीधे इस वीरान आश्रम में छोड़ गया. मैं ने अपने पोते पर हाथ उठाया?’’ रघुबीर ने यह अंतिम वाक्य इस तरह कहा, जैसे खुद से ही सवाल कर रहे हों. इतना कहतेकहते उन की सांस फूलने लगी थी.

उन्होंने एक लंबी सांस ले कर आगे कहा, ‘‘वह मेरा कितना खयाल रखता था, मेरे साथ कितना खुश रहता था. अपनी दादी के जाने के बाद वही एक सहारा था मेरा. मेरी लाठी था.

आप को पता है, वह रोजाना मेरे साथ मंदिर जाता था. मेरे पास बैठ कर होमवर्क करता था. कोई भी बात होती ‘दादाजी… दादाजी’ कह कर पहले मुझे बताता और मैं ने? मैं ने यह क्या किया? उस की दादी का खालीपन मुझे खा गया. अकेलापन मुझ से सहन नहीं हुआ.’’

इतना कह कर रघुबीर रोने लगे. सावित्री ने भी उन्हें रोने दिया. उन्हें तब तक देखती और उन की बातें सुनती रहीं, जब तक रघुबीर के मन की भड़ास न निकल गई. किसी को इस तरह सुनना भी एक कला है. यह कला सब के पास नहीं होती.

उस रात के बाद सावित्री रघुबीर का खयाल ही नहीं रखने लगीं, बल्कि हर तरह से उन की देखभाल भी करने लगीं. वह उन की देखभाल में कोई कसर नहीं रखती थीं. रोजाना याद कर के उन की दवाएं देना, इंसुलिन का इंजेक्शन लगाना, सब वही करतीं. दोनों साथ बैठ कर भगवदगीता का पाठ करते, उस का अर्थ समझने के लिए दोनों साथसाथ लंबे समय तक पार्क में टहलते हुए चर्चा करते.

कभीकभी बातों में विरोधाभास होता तो ‘तुम ही सच्चे हो, मैं गलत हूं.’ पर बात खत्म हो जाती. इस तरह दोनों में रसीला झगड़ा भी होता. इस तरह सालों बाद रघुबीर के लिए अब यह वीरान आश्रम रंगबिरंगा, फूलों से हराभरा लगने लगा था.

एक दिन सावित्री का बेटा उन से मिलने आया. उस ने मां से घर चलने को कहा, पर वह घर जाने को राजी नहीं हुईं. उस समय रघुबीर को पता चला कि सावित्री स्वेच्छा से आश्रम में रहने आई थीं. वह तो अपने गांव में ही रहना चाहती थीं, पर उन का बेटा गांव का सब कुछ बेच कर शहर में रहना चाहता था. सावित्री सादगी से जीने की आदी थीं, इसलिए उन्होंने बेटे से कहा था, ‘‘मैं वृद्धाश्रम में रहूंगी.’’

बेटे और बहू ने बहुत समझाया कि समाज में उन की बड़ी बदनामी होगी, पर वह नहीं मानीं और वृद्धाश्रम में रहने आ गई थीं. एकांत उन की प्रवृत्ति थी. वह रहती भी एकांत में ही थीं.

पर सावित्री और रघुबीर को कहां पता था कि वृद्धाश्रम में आने के बाद उन्हें एक साथी मिल जाएगा, जिस से निरंतर बातें की जा सकेंगी, नाराज भी हुआ जा सकेगा और मनाया भी जा सकेगा. इतने सालों से साथ रहतेरहते उन के बीच सात्विक प्रेम का सेतु बंध गया था. दोनों एक बार फिर युवा हो गए थे. उन में फिर से प्रेम हो गया था और जिंदगी एक बार फिर से प्रेममय हो गई थी. प्रेम तो कभी भी कितनी भी बार हो सकता है. पर प्रेम व्यक्ति से नहीं, उस के व्यक्तित्व से होता है.

रघुबीर कभी फूल तोड़ कर सावित्री को देते तो कभी कोई माला बना कर जूड़े में लगाते थे. यह सब करने में वह जरा भी नहीं शरमाते थे. उसी तरह सावित्री भी प्रेमभाव से यह सब स्वीकार करतीं. ऐसा करते हुए वे सहज हंस भी देते. इतना ही नहीं, अब दोनों एक ही थाली में साथसाथ खाना खाने लगे थे. ऐसे में एकदूसरे को खिला भी देते. बस, एक ही कौर में पेट भर जाता.

उन दोनों के प्रेम को देख कर वृद्धाश्रम के लोग तरहतरह की बातें करने लगे थे. पर उन की बातों पर न सावित्री ध्यान दे रही थीं और न रघुबीर. दोनों खुद में ही मस्त थे. लोग कहते, ‘इस उम्र में इन्हें यह सब करते शर्म भी नहीं आती. जिस उम्र में भगवान का नाम लेना चाहिए, इन्हें देखो, ये प्रेम गीत गा रहे हैं.’

शायद उन लोगों को सावित्री और रघुबीर जो कर रहे थे, उस बात पर गुस्सा नहीं था, उन्हें उन दोनों का साथ रहना खल रहा था. उन्हें इस बात तक की ईर्ष्या थी कि उन के साथ ऐसा क्यों नहीं है.

इसी ईर्ष्या की वजह से एक बार सावित्री और रघुबीर की जिंदगी में कैक्टस उग आया था. उन लोगों ने संचालक से शिकायत की कि इस उम्र में ये दोनों यह क्या तमाशा कर रहे हैं? एक वृद्ध ने तो कहा कि अगर किसी ने इन दोनों को एक साथ देख लिया तो आश्रम को लोग जो चंदा देते हैं, देना बंद कर देंगे.

इन्हीं लोगों की बातों में आ कर संचालक ने रघुबीर और सावित्री को फोन कर के सारी बात बताई. रघुबीर के घर से तो कोई जवाब नहीं आया, कहा गया कि आप को उन के बारे में जो निर्णय लेना हो, लीजिए.

हम लोगों से कोई मतलब नहीं है. जबकि सावित्री का बेटा तो उन्हें घर ले जाना चाहता था. पर इस बार भी उन्होंने मना कर दिया. तब बेटे ने कहा, ‘‘मुझे पता नहीं था कि मम्मी इसलिए अकेली रहना चाहती थीं.’’

अंत में निर्णय लिया गया कि किसी भी तरह रघुबीर और सावित्री को आश्रम से बाहर करना है. और किया भी वही गया. निर्णय सुन कर दोनों में से किसी ने भी कारण नहीं पूछा. उन्होंने तो तय कर लिया था, कुछ भी हो, दोनों साथ रहेंगे.

आर्थिक रूप से वे सुदृढ़ थे ही, केवल शरीर से ही कमजोर थे. लेकिन दोनों के मन मजबूत थे, इसलिए तन की चिंता नहीं थी. वे खुश थे, दोनों एकदूसरे की सांस थे.

सावित्री ने आश्रम के गेट से निकलते हुए कहा, ‘‘आगे का रास्ता अब शायद कैक्टस के फूल की तरह होगा.’’

सावित्री और रघुबीर एकदूसरे का हाथ थामे आगे बढ़ते गए, बिना किसी परवाह के अनंत प्रेम की यात्रा पर…

कहानी सौजन्यसत्यकथा,  जुलाई 2019

क्रूरता की हद की पार

जमाना कितना भी आगे बढ़ गया हो, देश में कितना ही तकनीकि विकास हो गया हो, लोग चाहे कितने ही शिक्षित बन गए हों पर कुछ लोग अपनी मानसिकता से अंधविश्वासी बने हुए हैं. इसीलिए गलीनुक्कड़ पर दुकान जमाए बैठे नीमहकीम, मुल्लामौलवी और तांत्रिक उन्हें अब भी चंद पैसों के लिए अपने जाल में फंसा ही लेते हैं.

ये लोग अंधविश्वासी लोगों का न केवल शोषण करते हैं बल्कि कभीकभी उन के हाथों ऐसा अपराध करवा देते हैं, जिस की वजह से उन्हें अपनी सारी जिंदगी सलाखों के पीछे काटनी पड़ती है. हाल ही में पंजाब की एक महिला तांत्रिक ने एक महिला को अपने सम्मोहन के जाल में फांस कर ऐसा जघन्य अपराध करा दिया, जिसे सुन कर किसी के भी रोंगटे खड़े हो जाएं.

पंजाब में थाना सदर बटाला के अंतर्गत एक गांव है काला नंगल. 32 वर्षीय बलविंदर सिंह उर्फ बिंदर अपनी 27 वर्षीय पत्नी जसबीर कौर के साथ इसी गांव में रहता था. वैसे बलविंदर सिंह मूलरूप से अमृतसर के गांव अकालगढ़ दपिया का निवासी था. लेकिन अपनी शादी के बाद वह अपनी पत्नी को साथ ले कर अपनी ननिहाल काला नंगल में रहने लगा था.

इस गांव में उस के नाना गुरनाम सिंह, मामा संतोख सिंह और बड़ा मामा जगतार सिंह रहते थे. उस के ननिहाल वाले कोई अमीर आदमी नहीं थे. बस मेहनतमजदूरी कर अपना परिवार चलाने वाले लोग थे. बिंदर भी उन के साथ खेतों में मेहनतमजदूरी करने लगा.

बिंदर के मामा के साथ उन की पत्नियां भी खेतों में काम करने जाया करती थीं. ताकि घर में ज्यादा पैसे आए. उन के देखादेखी बिंदर की पत्नी भी उन के साथ काम करने जाती थी.

बिंदर के पड़ोस में पूर्ण सिंह का परिवार रहता था. उस के परिवार में पत्नी जोगिंदर कौर के अलावा बेटा हरप्रीत सिंह, उस की पत्नी रविंदर कौर, बेटी नीतू अमन और राजिंदर कौर थीं. हालांकि नीतू और राजिंदर कौर दोनों ही शादीशुदा थीं पर वह अधिकतर अपने मायके में ही डेरा जमाए रहती थीं. ये सब लोग उन्हीं के खेतों के साथ वाले खेत में काम करते थे, जिस में बिंदर और उस के मामामामी काम किया करते थे, यह भी कहा जा सकता है कि ये दोनों परिवार साथसाथ काम करते थे.

27 अप्रैल, 2019 की बात है. सुबह के लगभग 11 बजे का समय था. कुछ लोग उस समय खेतों में काम पर लगे हुए थे तो कुछ लोग पेड़ों के नीचे बैठे सुस्ता रहे थे.

बिंदर का मामा संतोख सिंह, उस की पत्नी कंवलजीत कौर, मामा जगतार सिंह और बिंदर की पत्नी जसबीर कौर साथ बैठे इधरउधर की बातें कर रहे थे कि उन के बीच बैठी जसबीर कौर अचानक गायब हो गई.

उन लोगों ने सोचा शायद वह लघुशंका के लिए गई होगी और किसी ने इस बात पर अधिक ध्यान नहीं दिया. सब अपनेअपने काम में व्यस्त हो गए थे. शाम के 5 बजे यानी छुट्टी का समय हो गया पर तब तक जसबीर कौर किसी को दिखाई नहीं दी. अब पूरे परिवार को चिंता ने घेर लिया कि आखिर सब के बीच जसबीर कहां गायब हो गई. जसबीर कौर इन दिनों गर्भवती थी. उसे सातवां महीना चल रहा था.

सब ने मिल कर सोचा कि कहीं तबीयत खराब होने के कारण वह घर तो नहीं चली गई. घर पहुंचने पर पता चला कि वह वहां भी नहीं थी. उसे फिर पूरे गांव में ढूंढा गया पर उस का कहीं पता नहीं चला.

जसबीर के मायके और अन्य रिश्तेदारियों में भी उसे तलाशा गया. कुल मिला कर रातभर की खोज के बाद भी जसबीर का कहीं सुराग नहीं लगा. अगली सुबह 28 अप्रैल को सब लोगों ने थाना सदर बटाला जा कर जसबीर कौर के रहस्यमय तरीके से लापता होने की सूचना दी. पुलिस ने जसबीर कौर का फोटो ले कर उस की तलाश शुरू कर दी.

जसबीर कौर के लापता होने की वजह किसी की समझ में नहीं आ रही थी, क्योंकि न तो वो पैसे वाले लोग थे जो कोई फिरौती के लिए उस का अपहरण करता और न ही जसबीर कौर चालू किस्म की औरत थी. वह बेहद शरीफ औरत थी.

सरपंच परजिंदर सिंह और साबका सरपंच नवदीप सिंह भी यही सोचसोच कर हैरान थे. पुलिस और बिंदर के परिजन अपनेअपने तरीके से जसबीर की तलाश में जुटे  थे. इसी दौरान किसी ने सरपंच नवदीप सिंह और बिंदर को बताया कि जसबीर के गायब होने वाले दिन यानी 27 अप्रैल को उसे पूर्ण सिंह की पत्नी जोगिंदर कौर और पड़ोसन राजिंदर कौर के साथ उन के घर की तरफ जाते देखा गया था.

इस बात का पता चलते ही सरपंच नवदीप सिंह कुछ गांव वालों के साथ पूर्ण सिंह के घर पहुंचे और जसबीर के बारे में पूछा.

उस समय घर पर पूर्ण सिंह, उस की पत्नी जोगिंदर कौर, बेटा गुरप्रीत, उस की बहू रविंदर कौर और दोनों बेटियां नीतू व राजिंदर कौर मौजूद थीं. उन्होंने बताया कि जसबीर कौर दोपहर को उन के घर आई तो जरूर थी पर 3 बजे वापस अपने घर चली गई थी. जसबीर कौर का पता लगने की जो आशा दिखाई दे रही थी वह जोगिंदर कौर के बताने से बुझ गई थी.

जसबीर की तलाश फिर से शुरू की गई. पर न जाने क्यों सरपंच नवदीप को ऐसा लगने लगा कि जसबीर के गायब होने का राज पूर्ण सिंह और उस का परिवार जानता है. यही बात बिंदर और उस के दोनों मामाओं को भी खटक रही थी. आखिर 29 अप्रैल, 2019 को शाम को सरपंच नवदीप और परजिंदर  के साथ पूरे गांव ने पूर्ण सिंह के घर पर धावा बोल दिया.

उन्होंने उस के घर के चप्पेचप्पे की तलाशी लेनी शुरू कर दी. उन्हें घर में एक जगह बड़ा संदूक दिखाई दिया. वह संदूक कमरों के पीछे पशुओं के बाड़े के पास पड़ा था. संदूक पर मक्खियां भिनभिना रही थीं और उस में से अजीब सी दुर्गंध आ रही थी.

सरपंच नवदीप ने बढ़ कर जब उस संदूक को खोल कर देखा तो उन के पैरों तले से जैसे जमीन खिसक गई. संदूक में जसबीर कौर की लाश थी जो जगहजगह से कटी हुई थी. थोड़ी ही देर में यह खबर गांव भर में फैल गई. पूरा गांव पूर्ण सिंह के घर की ओर दौड़ने लगा.

बिंदर ने सरपंच नवदीप सिंह के साथ थाना बटाला जा कर इस की सूचना एसएचओ हरसंदीप सिंह को दी. एसएचओ तुरंत एएसआई बलविंदर सिंह, सितरमान सिंह, लेडी एएसआई अंजू बाला, लेडी हवलदार जसविंदर कौर, बलजीत कौर, हवलदार दिलबाग, सुखजीत सिंह, लखविंदर सिंह, सिपाही जगदीप सिंह और सुखदेव सिंह को साथ ले कर पूर्ण सिंह के घर पहुंच गए.

मौके पर पहुंच कर पुलिस ने सब से पहले जसबीर कौर की लाश अपने कब्जे में ली. इस के बाद पूर्ण सिंह उस की पत्नी जोगिंदर कौर, बेटे की पत्नी रविंदर कौर तथा एक महिला तांत्रिक जगदीशो उर्फ दीशो को गिरफ्तार कर लिया.

इस हत्याकांड से जुड़े अन्य 3 आरोपी नीतू, अमन और राजिंदर कौर फरार होेने में कामयाब हो गए थे. एसएचओ हरसंदीप सिंह ने एसपी बटाला एच.एस. हीर, डीएसपी बलबीर सिंह को भी घटना की सूचना दे दी थी.

कुछ देर में दोनों पुलिस अधिकारी क्राइम टीम के साथ मौकाएवारदात पर पहुंच गए. मृतका जसबीर कौर का पेट चीरा हुआ था. वह 7 महीने की गर्भवती थी. पुलिस ने जब लाश बरामद की तो उस के पेट से बच्चा गायब था.

इस बारे में पुलिस के साथ आरोपियों से पूछताछ की गई तो प्रथम पूछताछ में ही रविंदर कौर ने अपना अपराध स्वीकर कर लिया. उस ने बताया कि उस के परिवार के लोगों ने मृतका का पेट चीर कर उस के गर्भ से बच्चा निकाला था. इन लोगों ने गर्भवती महिला के पेट को चीर कर गर्भ से बच्चा निकालने की जो कहानी बताई वह वास्तव में रोंगटे खडे़ कर देने वाली निकली.

इस कहानी की मुख्य अभियुक्ता रविंदर कौर की शादी लगभग 12 साल पहले हुई थी. उस के 4 बच्चे थे. रविंदर कौर बचपन से ही आजादखयाल की महत्त्वाकांक्षी औरत थी. वह अपनी जिंदगी अपनी तरह से जीना चाहती थी. उसे अपने ऊपर किसी भी तरह की बंदिश पसंद नहीं थी.

अपने स्वार्थपूर्ति के लिए रिश्ते बदलना, बनाना उस का मनपसंद खेल था. करीब 6 साल पहले जब उस की आंख पूर्ण सिंह के बेटे हरप्रीत सिंह के साथ लड़ीं तो वह अपने चारों बच्चों सहित अपने पुराने पति को अलविदा कह कर हरप्रीत सिंह की पत्नी बन उस के घर आ गई थी.

अब इसे रविंदर की बदकिस्मती कहें या उस की ढलती उम्र समझें अथवा नए पति हरप्रीत सिंह की शारीरिक कमी. बात कुछ भी रही हो पर हरप्रीत के साथ शादी के 5 साल बीत जाने के बाद भी वह उस के बच्चे की मां नहीं बन पाई थी. बच्चा न जनने के कारण उस की सास जोगिंदर कौर हर समय उसे कोसती रहती और ताने देती थी. जिस कारण रविंदर कौर बड़ी परेशान थी.

एक बार उस की एक खास सहेली ने उसे बताया कि पास के गांव में जगदीशो उर्फ दीशो नाम की महिला तांत्रिक रहती है, जिस के आशीर्वाद से कई बांझ औरतों की गोद हरी हुई है. तुम उस के पास चलो.

सहेली के कहने पर रविंदर कौर तांत्रिक दीशो से मिली. दीशो कुछ टाइम तक अपनी ढोंग विद्या से उस से पैसे ऐंठ कर उल्लू बनाती रही. अंत में उस ने स्पष्ट कह दिया ‘‘रविंदर तुम्हारी कोख पर ऐसे जिन्न का साया है जो अब कभी तुम्हें मां नहीं बनने देगा. हां एक तरीका है अगर तुम उसे कर सको तो मैं तुम्हें बताऊं?’’

‘‘मैं कुछ भी करने को तैयार हूं.’’ रविंदर कौर बोली.

‘‘तो सुनो, अपने अड़ोसपड़ोस में कोई ऐसी औरत तलाश करो जो गर्भवती हो और तुम अभी कुछ दिन अपने घर से बाहर मत निकलना. अपने बारे में यह बात भी फैला दो कि तुम गर्भ से हो. इस के बाद क्या करना है यह मैं तुम्हें बाद में बताऊंगी.’’ दीशो ने सलाह दी.

दीशो के कहने पर रविंदर कौर ने वैसा ही किया. साथ ही यह बात अपनी सास और ननदों को भी बता दी. उन्हीं दिनों जसबीर कौर गर्भवती थी. यह बात रविंदर कौर ने तांत्रिक दीशो को बता दी. दीशो ने फिर एक भयानक योजना बनाई.

घटना वाले दिन रविंदर कौर पड़ोस के खेतों में काम कर रही जसबीर को इशारे से बुला कर वह उसे अपने घर ले गई. उस ने जसबीर को बताया था कि एक बड़ी देवी उन के घर आई हुई है. वह उस से आशीर्वाद ले ले ताकि उस का बच्चा सहीसलामत पैदा हो.

जसबीर नीयत की साफ थी और भोली भी. रविंदर कौर की बातों को वह समझ नहीं पाई और उस के घर चली गई. वहां पहले से ही रविंदर कौर के परिवार के सब लोग मौजूद थे. सो समय व्यर्थ न करते हुए सब ने किसी तरह जसबीर को अपने कब्जे में ले कर दुपट्टे से उस का गला घोंट दिया.

दम घुटते ही जसबीर एक ओर लुढ़क गई. वह मर चुकी थी. तभी तांत्रिक दीशो ने अपने साथ लाए सर्जिकल ब्लेड से उस का पेट चीर कर पेट का शिशु बाहर निकाल लिया. शिशु को गोद में ले कर जब देखा तो पता चला कि जसबीर कौर के साथसाथ वह भी मर चुका है. मां और बच्चे की मौत के बाद उन सब के हाथपैर फूल गए.

अब क्या किया जाए? सब के सामने अब यही एक प्रश्न था. काफी सोचविचार के बाद तय किया गया कि शिशु के शव को घर में बनी सीढि़यों के नीचे गाड़ दिया जाए और जसबीर की लाश कमरे के बाहर रखे संदूक में छिपा दिया जाए.

बाद में मौका मिलने पर जसबीर की लाश के टुकड़े कर नहर में बहा देंगे. किसी को कानोंकान खबर भी नहीं लगेगी कि जसबीर कहां गई. बाद में यह अफवाह फैला देंगे कि वह अपने किसी यार के साथ भाग गई होगी.

एसएचओ हरसंदीप सिंह ने भादंवि की धारा 302, 313, 316, 201 और 120 बी के तहत पूर्ण सिंह, जोगिंदर कौर, रविंदर कौर, गुरप्रीत सिंह, नीतू, अमन और राजिंदर कौर के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर चारों अभियुक्तों पूर्ण सिंह, उस की पत्नी जोगिंदर कौर, बेटे की पत्नी रविंदर कौर और महिला तांत्रिक जगदीशो उर्फ दीशो को गिरफ्तार कर पहली मई को अदालत में पेश कर पुलिस रिमांड पर ले लिया.

रिमांड के दौरान इस हत्याकांड की मुख्य आरोपी रविंदर कौर की निशानदेही पर ड्यूटी मजिस्ट्रैट अजय पाल सिंह और नायब तहसीलदार तथा पुलिस के उच्च अधिकारियों व गांव वालों की मौजूदगी में उन के घर में सीढि़यों के नीचे दफनाए गए मृतका जसबीर के शिशु को जमीन खोद कर बाहर निकला. फिर मांबेटे का शव पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवाया गया. अन्य 3 दोषियों की निशानदेही पर घर से खून सने कपडे़ और सर्जिकल ब्लेड बरामद कर लिया गया.

बहरहाल जो 4 लोग गिरफ्तार हो चुके हैं, उन्हें सीखचों के पीछे से बाहर आने का मौका कब मिलेगा, इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता. वह बाहर आ पाएंगे या नहीं, किसी को पता नहीं है. अदालत से उन्हें कितनी सजा मिलती है, यह भी अभी भविष्य के गर्भ में है.

लेकिन इतना तय है कि समाज में अंधविश्वास की जड़ें बहुत गहरे तक जमी हुई हैं. ये जड़ें कैसे और कब उखड़ सकेंगी, कोई नहीं जानता.

कहानी सौजन्यसत्यकथा,  जुलाई 2019

हैवानियत में 2 मासूमों की बलि

आरिफ से हिना को 2 बच्चे महक व अर्श हुए. आरिफ दकियानूसी विचारों वाला था. जबकि हिना खुले विचारों की थी. फलस्वरूप दोनों में अकसर मनमुटाव होने लगा. इसी के चलते सन 2015 में उन का तलाक हो गया था. तलाक के बाद हिना अपने बच्चों के साथ हरिद्वार के कस्बा मंगलौर के मोहल्ला पठानपुरा में मुशर्रत के मकान में किराए पर रहने लगी थी.

पति से अलग होने के बाद हिना के सामने अपना और बच्चों का खर्च चलाने की समस्या खड़ी हो गई. इस के लिए वह शादीविवाह में डांस करने लगी. डांस के लिए उसे बच्चों को अकेला छोड़ कर जाना होता था, इसलिए उस ने अपनी छोटी बहन आरजू को अपने पास बुला लिया, ताकि वह बच्चों का ध्यान रख सके.

पहली जनवरी, 2019 को हिना मुजफ्फरनगर गई थी. घर पर उस के दोनों बच्चों के अलावा छोटी बहन आरजू थी. उसी रात हिना जब वहां से घर लौटी तो दोनों बच्चे घर पर नहीं थे. उस ने आरजू से बच्चों के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि शाम के समय अर्श और महक पास की दुकान से चौकलेट लेने गए थे, तब से वापस नहीं लौटे.

यह सुन कर हिना के होश उड़ गए. वह बोली, ‘‘वहां से कहां गए? तूने उन्हें ढूंढा नहीं?’’

‘‘मैं ने उन्हें बहुत ढूंढा, लेकिन उन का पता नहीं चला.’’ आरजू बोली.

तब तक रात के 10 बज चुके थे. इतनी रात को वह बच्चों को कहां ढूंढे, यह हिना की समझ में नहीं आ रहा था. जिस दुकान पर वे गए थे वह भी बंद हो चुकी थी. 4 साल के बेटे अर्श और 6 साल की बेटी महक की चिंता में हिना रात भर लिहाफ ओढ़े बैठी रही. बच्चों की चिंता में भूखप्यास तो दूर, उसे नींद तक नहीं आई. उस ने सारी रात जागते हुए गुजारी.

सुबह होते ही वह बच्चों की खोज में जुट गई. परचून की दुकान खुलने पर वह दुकान वाले के पास गई. दुकानदार ने बताया कि दोनों बच्चे उस की दुकान पर आए तो थे, लेकिन जब वह चौकलेट ले कर अपने घर लौट रहे थे तो उसी वक्त वहां 2 युवक आए थे. उन दोनों ने बच्चों को गोद में उठा लिया था. इस के बाद वे उन्हें एक सफेद रंग की कार में बैठा कर उन्हें ले गए. बच्चे उन के साथ इस तरह चले गए थे, मानो वे दोनों युवक उन के परिचित हों.

यह सुन कर हिना घबरा गई. उस ने सोचा कि ऐसा कौन परिचित हो सकता है, जो बच्चों को कार में बैठा कर ले गया. हिना को अपने तलाकशुदा पति आरिफ पर शक हुआ. फिर भी उस ने अपनी सभी रिश्तेदारियों में बच्चों को ढूंढा. पूरे दिन बच्चों को यहांवहां तलाशने के बाद भी जब उन का कहीं पता न चला तो हिना 2 जनवरी को ही शाम के समय हरिद्वार की कोतवाली मंगलौर पहुंच गई.

वहां मौजूद इंसपेक्टर गिरीश चंद्र शर्मा को उस ने बच्चों के गायब होने की बात बता दी.

‘‘कल शाम बच्चों का अपरहण हुआ था, वारदात को 24 घंटे होने वाले हैं. तुम ने और तुम्हारी बहन ने घटना की सूचना पुलिस को क्यों नहीं दी?’’ इंसपेक्टर शर्मा ने नाराजगी भी जाहिर की.

‘‘सर, हम पहले तो बच्चों को आसपास ढूंढते रहे, इस के बाद सुबह से हम बच्चों को अपने रिश्तेदारों के घर जा कर ढूंढते रहे. जब वे वहां भी नहीं मिले तब हम यहां आए हैं.’’ हिना बोली.

‘‘ठीक है, तुम बच्चों के फोटो दे दो ताकि उन्हें तलाश करने में आसानी हो.’’ इंसपेक्टर शर्मा ने कहा तो हिना ने अपने पर्स से दोनों बच्चों के फोटो निकाल कर दे दिए. हिना की तहरीर पर इंसपेक्टर गिरीश चंद्र शर्मा ने 4 वर्षीय अर्श उर्फ चांद और 6 वर्षीय महक के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कर ली.

इस की जानकारी उन्होंने सीओ (मंगलौर) मनोज कत्याल, एसपी (देहात) मणिकांत मिश्रा व एसएसपी जन्मेजय खंडूरी को भी दे दी.

एक ही परिवार के 2 बच्चों के अपहरण की सूचना पा कर सीओ मनोज कत्याल और एसपी देहात मणिकांत मिश्रा कुछ देर में ही मंगलौर कोतवाली पहुंच गए. एसपी (देहात) मणिकांत मिश्रा ने इंसपेक्टर शर्मा को बच्चों के अपहरण के मामले में तेजी से काररवाई करने के निर्देश दिए.

इस के बाद कोतवाल शर्मा ने घटनास्थल के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगालनी शुरू कर दीं. उस वक्त शाम के 6 बज चुके थे. उसी समय हिना 2 युवकों के साथ कोतवाली पहुंची. हिना ने अपने साथ आए एक युवक का परिचय कराते हुए बताया कि इन का नाम ताबीज है. यह पास के ही गांव बुक्कनपुर में रहते हैं और मेरे पारिवारिक मित्र हैं.

दूसरे युवक का नाम हिना ने आजम बताया. वह भी गांव बुक्कनपुर में रहता था. हिना ने बताया कि वे दोनों अकसर उस के घर पर आते रहते हैं. यदाकदा उस की मदद भी करते हैं. इस के बाद इंसपेक्टर शर्मा हिना, ताबीज व आजम को ले कर एसपी (देहात) मणिकांत मिश्रा व सीओ मनोज कत्याल के पास पहुंचे.

उन के हावभाव से एसपी (देहात) को उन पर शक हुआ तो उन्होंने दोनों युवकों से बच्चों के अपहरण की बाबत पूछताछ की. दोनों ने बताया कि जब बच्चे गायब हुए थे तो वे अपने घरों पर थे. उन्हें बच्चों के गायब होने की जानकारी हिना से मिली थी.

काफी पूछताछ के बाद भी उन से बच्चों के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. इस पर मणिकांत मिश्रा ने तत्काल उस दुकानदार को थाने बुलवाया, जिस के सामने 2 युवकों द्वारा दोनों बच्चों को गोद में उठा कर कार में ले जाया गया था.

जब दुकानदार वहां आया तो उस ने थाने में आए ताबीज व आजम को देख कर कहा कि ये दोनों ही अर्श व महक को अपने साथ ले गए थे. दुकानदार के यह बताते ही ताबीज व आजम की सिट्टीपिट्टी गुम हो गई. ताबीज ने पुलिस को बताया कि वे दोनों बच्चों को अपने साथ ले तो गए थे, लेकिन बच्चों को चौकलेट दिलवा कर उन्हें उन के घर के पास छोड़ दिया था.

हिना ने भी दोनों अधिकारियों को बताया कि वे दोनों उस के परिवार के हितैषी हैं. ये उस के बच्चों का अपहरण नहीं कर सकते. इस के बाद जब एसपी (देहात) मणिकांत मिश्रा ने हिना की बहन आरजू से फोन पर बात की तो उस ने बताया कि बच्चे चौकलेट ले कर एक बार घर आए थे. उस के बाद ही वे लापता हुए थे.

इस से पुलिस को आरजू की बातों पर भी शक होने लगा, क्योंकि उस ने पहले बताया था कि बच्चे दुकान से चौकलेट ले कर घर लौटे ही नहीं थे. इस तरह ताबीज और आजम के साथ आरजू भी संदेह के दायरे में आ गई. अधिकारियों ने उस समय उन से और पूछताछ नहीं की, बल्कि उन सभी को घर भेज दिया. इस मामले की जांच एसआई चंद्रमोहन सिंह को सौंप दी गई.

एसआई चंद्रमोहन सिंह ने एसपी (देहात) मणिकांत मिश्रा को बताया कि जहां से हिना के बच्चों का अपहरण होना बताया जा रहा है, वह स्थान सीसीटीवी कैमरे की रेंज में नहीं है. चूंकि ताबीज व आजम शक के घेरे में थे, इसलिए उन्होंने एसआई चंद्रमोहन सिंह को निर्देश दिए कि उन दोनों से अलगअलग वीडियो रिकौर्डिंग के साथ पूछताछ करें.

3 जनवरी, 2019 को पुलिस ताबीज व आजम को थाने ले आई. दोनों ने पुलिस को बताया कि वे पहली जनवरी को अपनी कार से हिना के घर आए थे. हिना उस वक्त घर पर नहीं थी. घर पर हिना की बहन आरजू थी. अर्श व महक को चौकलेट दिलाने के बाद वे वापस अपने घर चले गए थे.

जिस तरह से दोनों युवकों ने बताया उस से पुलिस को ऐसा लगा वे दोनों रटीरटाई बात बोल रहे हों. इसलिए कोतवाल शर्मा ने एसआई चंद्रमोहन को निर्देश दिए कि वह ताबीज को अलग कमरे में ले जा कर पूछताछ करें. खुद कोतवाल आजम से पूछताछ करने लगे.

दूसरे कमरे में जाते ही ताबीज ने स्वीकार कर लिया कि उस ने आजम के साथ हिना के दोनों बच्चों का अपहरण कर उन्हें गंगनहर में फेंक दिया था. आजम ने भी यह अपराध स्वीकार कर लिया. दोनों से पूछताछ के बाद बच्चों के अपरहण की जो कहानी सामने आई, वह प्यार की बुनियाद पर रचीबसी निकली—

मंगलौर में रहते हुए घर का खर्च चलाने के लिए हिना शादियों में डांस करने लगी थी. एक दिन हिना पिरान कलियर में एक निकाह में डांस कर रही थी. इस निकाह में गांव बुक्कनपुर निवासी ताबीज भी शामिल था. हिना को डांस करते देख ताबीज उस की अदाओं पर फिदा हो गया.

डांस समाप्त होने के बाद ताबीज ने हिना के डांस की तारीफ की. इस के बाद उस ने हिना से उस का मोबाइल नंबर भी ले लिया. इस के बाद वह जबतब हिना से बात करने लगा. कुछ दिनों बाद ताबीज ने हिना के घर भी आनाजाना शुरू कर दिया. वह जब भी जाता, हिना व उस के बच्चों के लिए कुछ न कुछ ले कर जाता था.

हिना से दोस्ती के बाद ताबीज ने उस के साथ निकाह करने के सपने भी देखने शुरू कर दिए. ताबीज के परिजन भी उस से हिना का निकाह कराने को तैयार थे लेकिन वह हिना के पहले शौहर के बच्चों को नहीं अपनाना चाहते थे.

ताबीज अच्छी तरह जानता था कि अगर उसे हिना से निकाह करना है तो हिना के बच्चों को रास्ते से हटाना होगा. इस बारे में उस ने हिना की छोटी बहन आरजू से बात की. आरजू भी दूसरी बार बहन का घर बसाने के लालच में ताबीज की इस दरिंदगी में शामिल हो गई.

घटना वाले दिन ताबीज अपनी वैगनआर कार से अपने दोस्त आजम के साथ हिना के घर के बाहर पहुंचा. वहां पर आरजू ने अर्श व महक को चौकलेट लेने के बहाने बाहर भेज दिया. बच्चे चूंकि ताबीज को पहचानते थे, इसलिए वे खुश हो कर उस के साथ कार में बैठ गए. उन मासूमों को क्या पता था कि वे दोनों उन्हें कार में बैठा कर घुमाने नहीं बल्कि मौत के घाट उतारने ले जा रहे हैं.

थोड़ी देर बाद आजम ने अर्श व महक को नशीली गोलियां मिली हुई चौकलेट खाने के लिए दीं. उस वक्त उन की कार मुजफ्फरनगर की ओर जा रही थी. कुछ ही देर में दोनों बच्चे नशे में बेसुध हो गए. जैसे ही कार गांव कुम्हेड़ा के पास गंगनहर पुल पर पहुंची तो ताबीज ने कार से दोनों बेसुध बच्चों को गंगनहर में फेंक दिया.

पुलिस ने आरजू को भी गिरफ्तार कर लिया और बच्चों के शवों की तलाश के लिए गोताखोरों की मदद ली. कई दिनों तक की खोजबीन के बाद भी दोनों बच्चों में से किसी का शव गोताखोरों को नहीं मिला. पुलिस ने ताबीज की निशानदेही पर उस के घर से अपहरण में इस्तेमाल की गई वैगनआर कार भी बरामद कर ली.

10 जनवरी, 2019 को मुजफ्फरनगर के थाना जानसठ के अंतर्गत पड़ने वाली गंगनहर की चित्तौड़ झाल पर तैनात कर्मचारी ने एक बच्ची का शव झाल में फंसा हुआ देखा, जिस की उम्र 5-6 साल थी.

उसे अखबारों की खबरों से यह पहले ही पता था कि हरिद्वार के मंगलौर थाने से 2 बच्चों का अपहरण कर उन्हें गंगनहर में फेंक दिया गया था, जिन की लाशें गोताखोर भी नहीं ढूंढ पाए थे. इसलिए उस ने फोन कर के बच्ची की लाश मिलने की सूचना फोन द्वारा मंगलौर कोतवाली को दे दी.

यह खबर मिलते ही एसआई चंद्रमोहन चित्तौड़ झाल पर पहुंचे. शव को उन्होंने पहचान लिया. वह शव महक का ही था. जरूरी काररवाई कर के उन्होंने उसे पोस्टमार्टम के लिए राजकीय अस्पताल मुजफ्फरनगर भेज दिया. बाद में पुलिस को महक की जो पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिली, उस में उस की मौत का कारण पानी में डूबना बताया गया.

पुलिस ने ताबीज, आजम और आरजू से पूछताछ के बाद कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

कथा लिखे जाने तक ताबीज, आजम व आरजू जेल में बंद थे. पुलिस को अर्श का शव नहीं मिला था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य- सत्यकथामार्च 201

फरेबी चाहत : पत्नी ने दिया धोखा

घटना 31 दिसंबर, 2018 की है. 31 दिसंबर होने के कारण इंदौर के शाजापुर क्षेत्र में आधी रात के समय लोग शराब के नशे में डूब कर नए साल का स्वागत करने में जुटे थे. काशीनगर क्षेत्र के एक मकान से पतिपत्नी के झगड़े की तेज आवाज आ रही थी. वह आवाज सुन कर पड़ोसी डिस्टर्ब होने लगे तो एक पड़ोसी श्याम वर्मा ने कोतवाली में फोन कर झगड़े की सूचना दे दी.

जिस घर से झगड़े की तेज आवाज आ रही थी, वह मकान बलाई महासभा युवा ब्रिगेड के जिला अध्यक्ष और प्रौपर्टी डीलर रहे रमेशचंद्र उर्फ मोनू का था. उस की पत्नी मंजू भी भाजपा की सक्रिय कार्यकत्री थी.

नए साल में लड़ाईझगड़े की संभावना को देखते हुए पुलिस भी अलर्ट थी, इसलिए झगड़े की खबर सुनते ही कुछ ही देर में शाजापुर कोतवाली की मोबाइल वैन मौके पर पहुंच गई. लेकिन यह मामला पतिपत्नी के पारिवारिक झगडे़ का था तथा पतिपत्नी दोनों ही सम्मानित व जानेमाने लोग थे. इसलिए पुलिस दोनों को समझाबुझा कर थाने लौट गई.

पुलिस के जाने के बाद पतिपत्नी ने दरवाजा बंद कर लिया, जिस के बाद मकान से झगड़े की आवाज आनी बंद हो गई. फिर पड़ोसी भी अपनेअपने घरों में चले गए. लेकिन 45 मिनट बाद मोनू लहूलुहान अपने घर से निकला और पड़ोस में रहने वाले एक परिचित को ले कर शाजापुर के जिला अस्पताल पहुंचा.

मोनू के पेट से खून बह रहा था. पूछने पर मोनू ने डाक्टर को बताया कि ज्यादा नशे में होने की वजह से वह गिर गया और चोट लग गई. डाक्टर ने रमेश उर्फ मोनू को अस्पताल में भरती कर लिया. परंतु सुबह रमेश उर्फ मोनू की हालत और बिगड़ जाने के कारण उसे इंदौर के एमवाईएच अस्पताल रेफर कर दिया. उस समय मोनू के पास इतना पैसा भी नहीं था कि उसे इलाज के लिए इंदौर ले जाया जा सके, इसलिए मोनू के दोस्तों ने आपस में चंदा जमा कर कुछ रकम जुटाई और वह मोनू को इंदौर ले गए.

बलाई महासभा के युवा ब्रिगेड के बड़े नेता के घायल हो जाने की बात सुन कर समाज के लोग बड़ी संख्या में अस्पताल पहुंचने लगे. रमेश के परिवार वाले भी उस के जल्द ठीक होने की कामना करने लगे. परंतु होनी को कुछ और ही मंजूर था. 6 जनवरी की सुबह मोनू की मौत हो गई. रमेश की मौत से मामला एकदम बदल गया.

5 दिन से अस्पताल में मौजूद उस के पिता गंगाराम बेटे की मौत की खबर सुन कर टूट गए. वह रोते हुए बेटे की मौत का आरोप अपनी बहू मंजू पर लगाने लगे. उन का यह आरोप सुन कर अस्पताल के एमएस ने संयोगितागंज थाने में खबर कर दी. सूचना पा कर थाना पुलिस अस्पताल पहुंच गई. पुलिस ने जरूरी काररवाई पूरी कर के रमेश का शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

प्रारंभिक पूछताछ में रमेश के पिता गंगाराम व बुआ गीता बलाई ने पुलिस को बताया कि रमेश ने खुद उन्हें बताया था कि उसे उस की पत्नी मंजू ने चाकू मारा है. लेकिन समाज में बदनामी के डर से वह गिर कर चोट लगने की बात कहता रहा.

पुलिस ने उन से मंजू के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि मंजू तो घटना के बाद से एक बार भी अपने पति को देखने अस्पताल नहीं आई. वह पति को देखने अस्पताल क्यों नहीं आई, यह बात पुलिस की समझ में नहीं आ रही थी. इस से पुलिस का मंजू पर शक गहरा गया.

संयोगितागंज थाना पुलिस ने अपने यहां जीरो एफआईआर दर्ज कर के डायरी शाजापुर कोतवाली भेज दी. यहां रमेश की हत्या किए जाने की बात सामने आने पर बलाई समाज के लोगों में भारी आक्रोश फैल गया.

समाज के लोग बड़ी संख्या में एकत्र हो कर एसपी शैलेंद्र चौहान से मिले और रमेश की पत्नी मंजू को गिरफ्तार करने की मांग करने लगे. जिस पर एसपी ने बलाई समाज के लोगों को आश्वासन दिया कि जल्द ही आरोपी को गिरफ्तार कर लिया जाएगा. तब कहीं जा कर रमेश का अंतिम संस्कार किया गया.

रमेश की चिता की आग शांत होने के बाद आरोपी की गिरफ्तारी को ले कर लोगों में गुस्से की आग फिर भड़क उठी. चूंकि मंजू भी भाजपा नेत्री थी, इसलिए पुलिस भी जल्दबाजी में कोई ऐसा कदम नहीं उठाना चाहती थी, जिस से मामला उलटा पड़ जाए.

कोतवाली इंसपेक्टर के.एल. दांगी बड़ी ही सावधानी से एकएक कदम बढ़ा रहे थे. वरिष्ठ अधिकारियों से मशविरा करने के बाद उन्होंने मृतक रमेश की पत्नी मंजू को हिरासत में ले लिया. जब उस से रमेश की हत्या के संबंध में पूछताछ की गई तो उस ने रमेश चंद्र की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार थी—

शाजापुर के मध्यमवर्गीय बलाई परिवार में जन्मे रमेशचंद्र उर्फ मोनू की मां का देहांत उस समय हो गया था, जब रमेश बाल्यावस्था में था. मां के बिना रमेश गलत संगत में पड़ गया, जिस से मिली पिता की डांट से नाराज हो कर वह सन 1995 में घर से भाग कर गुजरात के भावनगर चला गया और वहां के एक होटल में नौकरी करने लगा.

वहां उस की मुलाकात मुंबई के एक जैन व्यापारी से हुई. होटल का काम छोड़ कर वह जैन व्यापारी के साथ चला गया. उसी दौरान उस ने ड्राइविंग सीख ली और जैन व्यापारी की कार चलाने लगा. जैन व्यापारी उन दिनों श्वेतांबर जैन संत सुरेशजी महाराज के भक्त थे और अकसर उन की सेवा करने जाया करते थे. इस दौरान रमेश भी अपने सेठ के साथ रहता था.

संयोग से एक रोज सुरेशजी महाराज ने सेठ से उन के ड्राइवर रमेश को कुछ दिन अपने साथ रखने को ले लिया. सेठजी भला अपने गुरुजी की बात कैसे टाल सकते थे. लिहाजा उन्होंने रमेश को महाराज के हवाले कर दिया. सुरेशजी महाराज के संपर्क में आ कर रमेश ने जैन धर्म को नजदीक से जाना.

धर्म में उस की रुचि देख कर सुरेशजी महाराज ने उसे दीक्षा दी और उस का नाम तरुणजी महाराज रख दिया. इस तरह रमेश की योग्यता और संयम देख कर उसे स्थानक वासी की पदवी दी गई. जिस के बाद वह देश भर में घूमघूम कर धार्मिक प्रवचन देने लगा.

उस के पिता को जब पता चला कि बेटा संत हो गया है तो वह बहुत खुश हुए. धर्म के मामले में असाधारण योग्यता के चलते रमेश ने समाज में काफी सम्मानित स्थान हासिल कर लिया था.

लेकिन उस की लाइफ काफी एक्सीडेंटल निकली. अचानक ही मालूम नहीं उस के मन को क्या आया कि वह त्याग का मार्ग छोड़ कर वापस सांसारिक दुनिया में आ गया. वह अपने घर लौट आया. बेटे के वापस घर लौटने पर पिता खुश थे.

शाजापुर आ कर रमेश ने प्रौपर्टी का काम शुरू कर दिया. वह ज्ञानी और धार्मिक प्रवृत्ति का था और सत्य के मार्ग पर चलने वाला भी, इसलिए लोग उस पर आसानी से भरोसा कर लेते थे. देखते ही देखते रमेश का बिजनैस चल निकला, जिस से कुछ ही समय में उस की गिनती समाज और शहर के संपन्न लोगों में होने लगी.

उसी दौरान शहर के एक थाने में पदस्थ सजातीय पुलिसकर्मी की नजर रमेश पर पड़ी. वह रमेश के साथ अपनी बेटी मंजू की शादी करना चाहता था. उस पुलिसकर्मी ने इस बारे में रमेश के पिता से बात की. लड़की सुंदर थी जो रमेश को भी पसंद थी. लिहाजा दोनों तरफ से बातचीत हो जाने के बाद रमेशचंद्र और मंजू की शादी हो गई.

मंजू खूबसूरत तो थी ही, साथ ही पढ़ीलिखी और समझदार भी थी. उन की गृहस्थी हंसीखुशी से चलती रही. इसी बीच मंजू 2 बेटों की मां बन गई. जब रमेश ने बलाई समाज की राजनीति में दखल देना शुरू किया तो अपने दोनों बेटों के बड़े हो जाने के बाद मंजू भी भाजपा से जुड़ कर उभरती नेत्री के रूप में पहचानी जाने लगी.

लेकिन रमेश की जिंदगी ने फिर एक बार करवट ली. समाज की राजनीति में ज्यादा समय देने के कारण उस का अपना बिजनैस एक तरह से ठप हो गया, जिस पर उस ने पहले तो ध्यान नहीं दिया और जब ध्यान दिया तब तक बहुत देर हो चुकी थी.

धीरेधीरे स्थिति बिगड़ती गई, जिस के चलते कभी समाज को शराब जैसी बुराई से दूर रहने का उपदेश देने वाला जैन स्थानक वासी रमेश खुद शराब की गिरफ्त में आ गया. जिस के चलते रमेश की पहचान एक शराबी के रूप में बन गई.

मंजू को यह कतई उम्मीद नहीं थी कि उस का पति शराबी भी हो सकता है. लेकिन अब तो यह बात सड़कों पर भी जाहिर हो चुकी थी. इसलिए खुद की सामाजिक पहचान कायम कर चुकी मंजू के लिए यह बात असहनीय थी. उस ने पति के शराब पीने का विरोध किया तो दोनों में आए दिन झगड़ा होने लगा, जिस की आवाज धीरेधीरे उन के घर के बाहर भी गूंजने लगी.

फिर एक बार यह आवाज बाहर आई तो यह रोज का क्रम बन गया. ऐसे में एक तरफ जहां मंजू का परिवार टूट रहा था तो वहीं दूसरी ओर पार्टी में उस की पकड़ मजबूत होती जा रही थी.

दोनों के अहं टकराने लगे, जिस से रमेश और भी ज्यादा शराब पीने लगा. राजनीति में सक्रिय होने के कारण मंजू देर रात तक घर से बाहर रहती थी. ऐसे में जब कभी रमेश शराब पी कर पत्नी के घर वापस आने से पहले लौट आता तो पत्नी के देर से वापस आने पर उस पर उलटेसीधे आरोप लगाकर उस से झगड़ना शुरू कर देता.

अब मंजू को अपना राजनैतिक भविष्य स्वर्णिम दिखाई देने लगा था. उसे दूर तक जाने का रास्ता साफ दिख रहा था, इसलिए उस का वापस लौटना भी संभव नहीं था. पति के विरोध को दरकिनार कर वह राजनीति में और ज्यादा सक्रिय हो गई. हाल ही में संपन्न हुए प्रदेश के विधानसभा चुनावों में मंजू ने पार्टी के हित में दिनरात मेहनत की.

जाहिर है राजनीति में शामिल कई महिलाओं के अच्छेबुरे किस्से अकसर चर्चा में बने रहते हैं, इसलिए रमेश भी पत्नी पर इसी तरह के आरोप लगाने लगा. वह उस के राजनीति में सक्रिय रहने पर ऐतराज करता था.

इस से दोनों के बीच विवाद इतना बढ़ गया कि वे एक ही छत के नीचे अलगअलग कमरों में रहने लगे. इस से दिन में तो शांति रहती लेकिन रात को रमेश के शराब पी कर आने पर सारी शांति कलह में बदल जाती थी. दोनों में रोजरोज रात में अकसर विवाद होने लगा.

31 दिसंबर, 2018 को रात 11 बजे के करीब रमेश ने शराब के नशे में आ कर घर का दरवाजा खटखटाया तो मंजू ने काफी देर बाद दरवाजा खोला. इस से रमेश को शक हो गया कि मंजू तो यह सोच कर बैठी होगी कि आज साल का आखिरी जश्न होने के कारण मैं रात भर घर वापस नहीं लौटूंगा, इसलिए उस ने किसी और के साथ पार्टी करने की योजना बना ली होगी. मंजू के देर से दरवाजा खोलने पर रमेश को शक हो गया कि मंजू के साथ घर में कोई और है.

दरवाजा खोलते ही वह पत्नी पर उलटेसीधे आरोप लगा कर मारपीट करने लगा. इस से विवाद इतना बढ़ गया कि उस का शोर पड़ोसियों के कानों तक पहुंच गया. उसी समय पड़ोसी श्याम वर्मा ने पुलिस को फोन कर दिया. पुलिस ने आ कर दोनों का मामला सुलझा दिया और वापस लौट गई.

लेकिन पुलिस के जाने के बाद एक बार फिर दोनों में विवाद गहरा गया और इस दौरान मंजू ने मोनू की जेब में हमेशा रखा रहने वाला खटके वाला चाकू निकाल कर उस के पेट में घोंप दिया. चाकू काफी गहरा जा घुसा जिस से वह गंभीर रूप से घायल हो गया. लेकिन शराब के नशे में उसे घाव की गंभीरता का अहसास नहीं हुआ इसलिए वह अपने कमरे में जा कर लेट गया.

कुछ देर बाद रमेश के पेट में दर्द बढ़ा तो पड़ोस में रहने वाले अपने परिचित के साथ वह अस्पताल गया, जहां से सुबह उसे इंदौर भेज दिया गया. लेकिन वहां भी इलाज के दौरान 6 जनवरी को उस की मौत हो गई.

थानाप्रभारी के.एल. दांगी ने मंजू से पूछताछ के बाद हत्या में प्रयुक्त चाकू भी बरामद कर लिया. इस के बाद उसे गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य- सत्यकथामार्च 2018

20 लाख के बीमे का चक्कर

23जनवरी, 2019 की बात है. सुबह के यही कोई 9 बजे थे. लोग अपनेअपने कामधंधे पर जा रहे थे. तभी अचानक रतलाम जिले के कमेड गांव में रहने वाले हिम्मत पाटीदार के घर से रोनेचीखने की आवाजें आने लगीं. हिम्मत पाटीदार के पिता लक्ष्मीनारायण पाटीदार घर के बाहर चबूतरे पर गमगीन बैठे थे.

गांव के लोगों ने जब उन से पूछा तो उन्होंने रोते हुए बताया कि रात को किसी ने उन के बेटे हिम्मत की हत्या कर दी है. थोड़ी ही देर में यह खबर पूरे गांव में फैल गई. हिम्मत की लाश गांव से बाहर खेत में पड़ी हुई थी. कुछ ही देर में उस जगह गांव के तमाम लोग पहुंच गए.

हिम्मत को दबंग किसान माना जाता था. उस के ताऊ के बेटे संजय पाटीदार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में जिला स्तर के पदाधिकारी थे. हिम्मत पाटीदार भी आरएसएस से जुड़ा था, इसलिए उस की हत्या से गांव के लोगों में काफी आक्रोश था.

इस घटना की जानकारी बिलपांक थानाप्रभारी विनोद सिंह बघेल को मिली तो वह अपनी टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. हिमत की लाश उस के खेत में पड़ी हुई थी. पुलिस ने जब लाश का मुआयना किया तो देखा, उस का गला रेता हुआ था.

पहचान छिपाने के लिए हत्यारे ने उस का चेहरा जलाने की कोशिश भी की थी, जबकि उस की पहचान की दूसरी चीज मोबाइल उस के पास पड़ा था. साथ ही उस की जैकेट व पैंट की जिप खुली हुई थीं. उस की पौकेट डायरी में फोटो व दूसरे कागज रखे मिले.

थानाप्रभारी ने यह जानकारी अपने उच्चाधिकारियों को दे दी. कुछ ही देर में एडीशनल एसपी प्रदीप शर्मा, एसडीपीओ मान सिंह चौहान भी घटनास्थल पर आ गए. दोनों अधिकारियों ने भी लाश का मुआयना किया. उन्हें आश्चर्य इस बात पर हुआ कि जब हत्यारों ने मृतक की पहचान छिपाने के लिए उस के चेहरे को जलाया था तो उस की पहचान की दूसरी चीजें वहां क्यों छोड़ दीं.

मौके पर एफएसएल अधिकारी अतुल मित्तल को भी बुला लिया गया था. उन्होंने घटनास्थल से सबूत जुटाए. उसी दौरान एसपी गौरव तिवारी भी घटनास्थल पर पहुंच गए. मौकामुआयना करने के बाद एसपी गौरव तिवारी ने आईजी (उज्जैन रेंज) राकेश गुप्ता को स्थिति से अवगत कराया. इस के बाद हिम्मत पाटीदार के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया.

मृतक की जेब से जो पौकेट डायरी मिली, पुलिस ने उस की जांच की तो उस में एसबीआई इंश्योरेंस, एफडी, एटीएम पिन आदि की जानकारी थी.

मोबाइल की जांच की तो वाट्सऐप मैसेज, काल रिकौर्डिंग, गैलरी की फोटो, वीडियो, हिस्ट्री आदि डिलीट मिले. जबकि उस मोबाइल पर रात को इंटरनेट यूज किया गया था.

मृतक के शरीर पर स्ट्रगल का कोई निशान नहीं था. एक चश्मदीद ने पुलिस को बताया कि हिम्मत रात को खेत पर आया तो था लेकिन उस ने पंपसेट चालू नहीं किया था. यह सारी बातें पुलिस के लिए शक पैदा करने वाली थीं.

छानबीन करने पर जहां हिम्मत पाटीदार के एक प्रेमप्रसंग की बात पता चली तो वहीं पुलिस को पता चला कि गांव से मदन मालवीय नाम का एक आदमी लापता है. मदन पहले हिम्मत के खेत पर मजदूरी किया करता था.

संघ से जुड़े लोग हिम्मत पाटीदार के हत्यारों को जल्द गिरफ्तार करने की मांग कर रहे थे. इस संबंध में पुलिस प्रशासन पर भी दबाव बनाया जा रहा था. पुलिस को डर था कि कहीं संघ से जुड़े लोग इस मामले को ले कर कोई आंदोलन खड़ा न कर दें. लिहाजा पुलिस तत्परता से जांच में जुट गई.

एसपी गौरव तिवारी ने दूसरे दिन भी घटनास्थल की बारीकी से जांच की. हिम्मत परिवार के परिजनों ने उन्हें बताया कि 22 जनवरी की रात को हिम्मत बाइक से खेतों में पानी लगाने के लिए पंपसेट चालू करने गया था. सुबह खेत में उस की लाश मिली.

पुलिस की समझ में यह बात नहीं आ रही थी कि हिम्मत जब पंपसेट चालू करने गया था तो उस ने पंपसेट चालू क्यों नहीं किया. साथ ही यह भी कि वह अपने साथ घर से पंपसेट के कमरे की चाबी भी नहीं ले कर गया था, जबकि रात को काफी ठंड थी.

एसपी गौरव तिवारी को यह जानकारी भी मिल चुकी थी कि हिम्मत पाटीदार के यहां मदन मालवीय नाम का जो नौकर काम करता था, वह भी घटना वाली रात से ही लापता है. लिहाजा उन्होंने थानाप्रभारी को मदन मालवीय के बारे में जांच करने के निर्देश दिए.

2 दिन बाद गांव में चर्चा होने लगी कि हिम्मत हत्याकांड में पुलिस हिम्मत के जिस पुराने नौकर मदन मालवीय को खोज रही है, उस की भी हत्या हो चुकी है. लोगों का मानना था कि हिम्मत के खेत में जो लाश मिली थी, वह हिम्मत पाटीदार की नहीं बल्कि नौकर मदन मालवीय की थी.

चूंकि पुलिस को पहले ही लाश की शिनाख्त पर शंका थी, इसलिए एसआई कैलाश मालवीय ने पोस्टमार्टम के समय लाश के थोड़े से अंश को डीएनए टेस्ट के लिए सुरक्षित रखवा लिया था.

पुलिस को गांव से बाहर कुछ दूरी पर एक जोड़ी जूते पड़े मिले थे. उन जूतों की पहचान मदन मालवीय के जूतों के तौर पर हुई. इस से सवाल उठा कि अगर हिम्मत पाटीदार की हत्या करने के बाद मदन मालवीय गांव से फरार हो रहा था तो अपने जूते फेंक कर नंगे पांव क्यों गया होगा.

घटना वाली रात मदन एक खेत पर सिंचाई कर रहा था, उस के जूतों पर जो गीली मिट्टी लगी मिली, वैसी ही मिट्टी हिम्मत की बाइक पर पिछले फुटरेस्ट पर लगी मिली. इस से शक हुआ कि घटना की रात मदन हिम्मत पाटीदार की बाइक पर बैठा था. पुलिस का शक बढ़ा तो उस ने मदन मालवीय के मामले की जांच तेजी से शुरू की.

पुलिस ने हिम्मत के खेत से जो लाश बरामद की थी, उस का अंडरवियर ले कर मदन के घर पहुंची. मदन के घर वालों ने उस अंडरवियर को तुरंत पहचान लिया. वह मदन का ही था. इस शिनाख्त के बाद पुलिस ने मदन के परिजनों के खून के नमूने ले कर डीएनए टेस्ट के लिए सागर स्थित लेबोरेटरी भेज दिए.

दूसरी तरफ पुलिस ने अब हिम्मत पाटीदार की जिंदगी में झांकने की कोशिश शुरू कर दी. पता चला कि हिम्मत के ऊपर 26 लाख का कर्ज हो गया था. इस से वह काफी परेशान था. लगभग महीने भर पहले ही उस ने एसबीआई लाइफ इंश्योरेंस से अपना 20 लाख रुपए का बीमा करवाया था, जिस का उत्तराधिकारी उस ने अपनी पत्नी को बनाया था.

बीमे की सिलसिलेवार जानकारी हिम्मत ने अपनी पौकेट डायरी में नोट कर रखी थी, जो घटनास्थल पर मिली थी. इस से पुलिस को यह शक हुआ कि संभव है हिम्मत ने अपनी कदकाठी के मदन की हत्या कर खुद को मृत साबित करने की कोशिश की हो ताकि उस की मौत पर पत्नी को बीमा राशि मिल जाए.

यह शक उस समय और भी पुख्ता हो गया जब 2 दिन बाद सागर लेबोरेटरी से डीएनए की जांच रिपोर्ट आ गई. इस से साफ हो गया कि खेत में मिला शव हिम्मत का नहीं, बल्कि उस के नौकर मदन मालवीय का था.

इस जानकारी के बाद पुलिस टीम गांव पहुंच गई. इस दौरान हिम्मत के परिवार वाले चिता के ठंडे होने पर अस्थि चुन कर ले लाए थे. चूंकि डीएनए जांच से उस लाश की पुष्टि मदन मालवीय के रूप में हो चुकी थी, इसलिए पुलिस ने हिम्मत के घर वालों से अस्थि कलश मदन के परिजनों को दिलवा दिया.

मदन की हत्या की पुष्टि होने पर उस गरीब के घर का माहौल गमगीन हो गया. बूढ़ी मां बेहोश हो गई तो मदन की मूकबधिर पत्नी अपना होशोहवास खो बैठी.

अब तक कहानी साफ हो चुकी थी कि हिम्मत पाटीदार ने बीमे की बड़ी रकम हड़पने के लिए अपनी कदकाठी के मदन मालवीय की हत्या करने के बाद उस के शव को अपने कपड़े पहनाए और शव के आसपास अपनी पहचान की चीजें छोड़ दीं. यानी उस ने खुद को मरा साबित करने की कोशिश की थी, इसलिए पुलिस अब हिम्मत पाटीदार की तलाश में जुट गई.

एसपी गौरव तिवारी ने हिम्मत पाटीदार की तलाश के लिए एक टीम गठित कर दी. टीम जीजान से जुट गई थी. 4 दिन की मेहनत के बाद पुलिस टीम ने हिम्मत पाटीदार को राजस्थान के प्रतापगढ़ जिले की अरनोद तहसील स्थित प्रसिद्ध होरी हनुमान मंदिर के पास एक धर्मशाला से गिरफ्तार कर लिया. बिलपांक थाने ला कर उस से पूछताछ की गई तो पूरी कहानी इस प्रकार सामने आई—

कमेड निवासी हिम्मत पाटीदार खुद को बड़ा नेता समझता था. उस के शाही खर्च थे, जबकि आमदनी सीमित थी. धीरेधीरे हिम्मत पर 26 लाख रुपए का कर्ज हो गया. इस कर्ज के चलते वह पिछले 2 सालों से काफी परेशान था. कर्ज से छुटकारा पाने का उसे कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था.

इसी बीच करीब 6 महीने पहले हिम्मत ने टीवी पर एक ऐसा क्राइम सीरियल देखा, जिस में एक व्यक्ति खुद को मरा साबित करने के लिए अपनी ही कदकाठी के एक दूसरे युवक की हत्या कर उस का चेहरा बिगाड़ने के बाद लाश को खुद के कपड़े पहना कर फरार हो जाता है. इस तरह वह पुलिस और समाज की नजरों में मर जाता है.

इस सीरियल को देख कर हिम्मत का दिमाग घूम गया. उसे लगा कि वह भी ऐसा कर के कर्ज से छुटकारा पा सकता है. लेकिन इस से कोई फायदा नहीं होने वाला था, क्योंकि वह मृत साबित तो हो जाता लेकिन उस का कर्ज तो यूं का यूं ही रह जाता, इसलिए सोचविचार के बाद उस ने एक महीने पहले एसबीआई लाइफ इंश्योरेंस से अपना 20 लाख रुपए का बीमा करवा लिया.

यह पैसा हिम्मत की मौत के बाद उस की पत्नी को मिलने वाला था. इतना करने के बाद उस ने एक डायरी बना कर उस में वे तमाम बातें सिलसिलेवार लिख दीं, जिन की मदद से उस के बाद पत्नी और परिवार वाले आसानी से उस के मरने का लाभ उठा सकें.

अब हिम्मत को तलाश थी, किसी एक ऐसे व्यक्ति की जिस की कदकाठी उस से मिलतीजुलती हो, ताकि अपनी जगह वह उस की हत्या कर सके. इस के लिए उस ने गांव में कल्लू नाम के एक युवक का चयन कर उस से दोस्ती बढ़ा ली.

वह अकसर उसे रात के समय अपने खेत पर पार्टी के लिए बुलाने लगा, लेकिन कल्लू और हिम्मत में एक अंतर था. हिम्मत अपने बाल छोटे रखता था, जबकि कल्लू के बाल काफी बड़े थे. सो हिम्मत ने प्रयास कर के कल्लू के बाल कटवा कर अपनी तरह के करवा दिए.

सारी व्यवस्था बना कर 22 जनवरी की रात को उस ने कल्लू का कत्ल करने की योजना बना ली. वह रात एक बजे घर से खेत की सिंचाई करने की बात कह कर बाइक ले कर निकल गया. खेत पर पहुंच कर उस ने कल्लू को फोन किया, लेकिन कल्लू ने उस का फोन रिसीव नहीं किया.

हिम्मत ने कल्लू के अलावा इस काम के लिए अपने पुराने नौकर मदन मालवीय का भी दूसरे नंबर पर चयन कर रखा था. मदन की कदकाठी भी हिम्मत जैसी ही थी. मदन आजकल दूसरे किसान के खेत पर काम करता था, लेकिन उस के पास मोबाइल नहीं था. इसलिए हिम्मत बाइक ले कर मदन को लेने खुद ही उस के खेत पर पहुंच गया.

हिम्मत के कहने पर मदन मालवीय उस के साथ बाइक पर बैठ कर उस के खेत पर आ गया. मौका देख कर हिम्मत ने तलवार से मदन मालवीय की गरदन काट कर हत्या कर दी.

फिर उस का चेहरा जलाने के बाद उस के शव को अपने कपड़े जूते पहना दिए. इस के बाद अपनी पहचान के कागज उस की जेब में ठूंस कर वह वहां से फरार हो गया.

हिम्मत की योजना थी कि पत्नी को बीमा का पैसा मिल जाने के बाद उसे ले कर कहीं दूर जा कर बस जाएगा, लेकिन पुलिस टीम ने हिम्मत पाटीदार की पूरी योजना पर पानी फेर दिया.

सौजन्य- सत्यकथाअप्रैल 2018

6 महीने भी न चल सका 7 जन्मों का रिश्ता

अब हमें शादी कर लेनी चाहिए. क्योंकि अब मेरा तुम्हारे बिना रहना संभव नहीं है. अगर तुम ने शादी में देर कर दी तो कहीं मेरे घर वाले किसी दूसरे से मेरी शादी न कर दें.’’

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के निशातगंज की रहने वाली स्मिता विशाल से प्यार करती थी और उस से शादी करना चाहती थी. जबकि विशाल और स्मिता की उम्र में करीब 8 साल का अंतर था. विशाल देखने में स्लिम था, इसलिए उस की उम्र का पता नहीं चलता था.

विशाल को स्मिता से शादी करने में कोई दिक्कत नहीं थी. लेकिन वह चाहता था कि स्मिता अपनी पढ़ाई पूरी कर ले और उस की उम्र शादी लायक हो जाए. क्योंकि दोनों की जातियां अलगअलग थीं. इसलिए दोनों के ही घर वाले इस शादी के लिए राजी नहीं थे. उन्हें कोर्ट में शादी करनी पड़ती, जिस के लिए स्मिता का बालिग होना जरूरी था.

स्मिता के घर वालों को जैसे ही विशाल और उस के प्यार के बारे में पता चला था, उन्होंने स्मिता के लिए घरवर की तलाश शुरू कर दी थी. वे उस की शादी जल्द से जल्द कर देना चाहते थे. इसी से स्मिता चिंतित थी और विशाल पर शादी के लिए दबाव डाल रही थी.

विशाल उत्तर प्रदेश के जिला लखीमपुर के गोला गोकरणनाथ स्थित बताशे वाली गली के रहने वाले आशुतोष सोनी का बेटा था. आशुतोष सोनी की वहां ज्वैलरी की दुकान थी. विशाल का छोटा भाई विकास पिता के साथ दुकान संभालता था, जबकि बड़ा भाई गौरव लखनऊ में रहता था. वह वहां किसी स्कूल में अध्यापक था.

विशाल और स्मिता की दोस्ती, जो प्यार में बदल गई विशाल खुद अपने पैरों पर खड़ा होना चाहता था, इस के लिए उस ने गहने बनाने का काम सीखा और लखनऊ की एक ज्वैलरी शौप में नौकरी कर ली. निशातगंज की जिस दुकान में विशाल काम करता था, स्मिता वहां आतीजाती थी. इसी आनेजाने में दोनों के बीच बातचीत शुरू हुई तो जल्दी ही उन में दोस्ती हुई और फिर यही दोस्ती प्यार में बदल गई.

स्मिता जब विशाल पर शादी के लिए कुछ ज्यादा ही दबाव डालने लगी तो उस ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘स्मिता हमें आज नहीं तो कल शादी करनी ही है. जबकि हमें पता है कि हमारी शादी का हमारे घर वाले विरोध कर रहे हैं. मैं अपने घर वालों की उतनी चिंता नहीं करता, जितनी तुम्हारे घर वालों की करता हूं. अगर हम ने घर वालों की इच्छा के विरुद्ध जा कर शादी कर ली तो मुझे तुम्हारे सहयोग की जरूरत पडे़गी. क्योंकि शादी के बाद तुम्हारे घर वाले पुलिस में शिकायत कर सकते हैं. तब तुम बदल तो नहीं जाओगी?’’

‘‘तुम्हारे घर वाले भले ही इस शादी का विरोध न करें, पर मेरे घर वाले इस शादी के लिए कतई तैयार नहीं हैं. रही बात बदल जाने की तो कान खोल कर सुन लो, मैं इस जन्म की ही बात नहीं कर रही, 7 जन्मों तक तुम्हारा साथ नहीं छोडूंगी.’’ इतना कह कर स्मिता ने विशाल को गले लगा लिया.

स्मिता बालिग हो गई तो कुछ दिनों तक तैयारी कर के स्मिता और विशाल ने अप्रैल, 2017 में लवमैरिज कर ली. विशाल के घर वाले तो केवल उस से नाराज ही हुए, स्मिता के घर वालों ने तो उस से रिश्ता ही खत्म कर लिया, वे विशाल को धमकियां भी देने लगे. विशाल और स्मिता के एकजुट होने से धीरेधीरे उन का विरोध तो खत्म हो गया, पर उन दोनों का ही अपनेअपने घर वालों से कोई संबंध नहीं रह गया.

स्मिता और विशाल का प्यार जब कलह में बदल गया शादी के बाद विशाल और स्मिता अकेले पड़ गए थे. घर वालों से पूरी तरह से संबंध खत्म होने की वजह से गृहस्थी के खर्च का सारा बोझ विशाल के कंधों पर आ गया था. घर के किराए से ले कर खानेपहनने की पूरी व्यवस्था विशाल को अकेले करनी पड़ रही थी, जिस की वजह से उसे दुकान पर ज्यादा से ज्यादा काम करना पड़ रहा था.

विशाल मेहनती और व्यवहारकुशल तो था ही, गंभीर भी था. जबकि स्मिता उस के उलट चंचल स्वभाव की थी. वह अपनी पढ़ाई जारी रखना चाहती थी, इसलिए विशाल को उस की पढ़ाई का भी खर्च उठाना पड़ रहा था. जबकि स्मिता ने कोई जिम्मेदारी नहीं उठा रही थी. वह खाना भी बाहर से ही मंगाती थी. शादी के बाद उस के शौक भी बढ़ गए थे.

नहीं बैठ सका विशाल और स्मिता में सामंजस्य विशाल को घर खर्च के अलावा स्मिता की पढ़ाई, उस के शौक और अन्य दूसरे खर्चे भी उठाने पड़ रहे थे. स्मिता को घर के कामकाज भी नहीं आते थे, जिस से विशाल को काफी परेशानी होती थी. परेशान हो कर एक दिन विशाल ने कहा, ‘‘स्मिता रोजरोज बाजार का खाना ठीक नहीं है. तुम कुछ भी बना लिया करो. मुझे दुकान पर जाना होता है. घर में खाना न बनने से बाजार से पूड़ीसब्जी मंगाता हूं. बाहर से खाना मंगाता हूं तो दोस्त कहते हैं कि घर में बीवी है, फिर भी बाजार का खाना खाते हो.’’

लेकिन स्मिता पर विशाल की इन बातों का कोई असर नहीं हुआ. वह सुबह देर तक सोती रहती थी. अकसर वह विशाल के दुकान पर जाने के बाद ही सो कर उठती थी. रात में 9 बजे वह घर आता तो स्मिता उस से बाहर चल कर खाने को कहती.

उस के इस व्यवहार से विशाल को गुस्सा तो बहुत आता था, पर वह कुछ कह नहीं पाता था. कभी कुछ कहता तो स्मिता सीधे कहती, ‘‘शादी से पहले तो तुम रोज बाहर खाने के लिए कहते थे. अब मैं बाहर खाने के लिए कहती हूं तो नाराज हो जाते हो.’’

‘‘स्मिता, शादी से पहले हम कुछ देर साथ रहने के लिए खाना खाने के लिए बाहर जाते थे. अब हम साथसाथ रहते हैं तो हमें घर पर ही खाना बनाना चाहिए. घर में बना कर खाने से पैसे भी कम खर्च होेते हैं और स्वास्थ्य भी ठीक रहता है.’’

‘‘विशाल, तुम तो जानते हो कि मुझे खाना बनाना नहीं आता. दाल खराब बन गई तो मैं खुद ही खाना नहीं खा पाऊंगी. इसलिए बाहर खा लेना ही ठीक रहेगा.’’ स्मिता कहती.

न चाहते हुए विशाल को स्मिता की बात माननी पड़ती. शादी से पहले स्मिता का जो व्यवहार विशाल को अच्छा लगता था, अब वही खराब लगने लगा था. वह स्मिता की बातों से तनाव में आ जाता, जिस की वजह से दोनों में झगड़ा होने लगता.

शादी के बाद धीरेधीरे पतिपत्नी के बीच जहां सामंजस्य बैठता है, वहीं विशाल और स्मिता के बीच तनाव और टकराव रहने लगा था. खर्च बढ़ने की वजह से विशाल को साथियों से कर्ज लेना पड़ा. वह परेशान रहता था कि अगर खर्च इसी तरह होता रहा तो वह कहां से पूरा करेगा.

खर्च को ले कर ही विशाल और स्मिता के बीच झगड़ा बढ़ता गया. खर्च पूरा होता न देख, स्मिता विशाल से वह नौकरी छोड़ कर कहीं ज्यादा वेतन वाली नौकरी करने को कहने लगी. एक दिन तो स्मिता ने विशाल के मालिक को फोन कर के कह भी दिया कि अब विशाल उन के यहां नौकरी नहीं करेगा.

विशाल को यह बात अच्छी नहीं लगी. इस से वह काफी परेशान हो उठा. स्मिता की हरकतों से तंग आ कर उस ने अपने साथियों को अपने घर वालों के मोबाइल नंबर नोट करा दिए कि अगर कभी उसे कुछ हो जाता है तो वे उस के घर वालों को खबर कर देंगे.

इस तरह सब खत्म हो गया   26 सितंबर, 2017 की सुबह की बात है. विशाल दुकान पर जाने को तैयार हो रहा था, तभी स्मिता उस से लड़ने लगी. गुस्से में उस ने विशाल का फोन छीन कर उस की दुकान के मालिक को फोन कर दिया कि आज से विशाल उन की दुकान पर काम नहीं करेगा.

मालिक ने दूसरी ओर से कहा, ‘‘तुम विशाल से मेरी बात कराएं, क्योंकि तुम्हारी बात पर मुझ से यकीन नहीं है.’’

विशाल फोन मांगता रहा, पर स्मिता ने उसे फोन नहीं दिया. विशाल को यह बात काफी बुरी लगी. नाराज हो कर वह बाजार गया और वहां से नैप्थलीन की गोलियां खरीद लाया. उस ने स्मिता के सामने ही कई गोलियां निगल लीं. इस से स्मिता घबरा गई. उस की समझ में नहीं आया कि अब वह क्या करे?

गोलियों ने अपना असर दिखाना शुरू किया. विशाल के मुंह से झाग निकलने लगा. घबराई स्मिता ने विशाल की दुकान के मालिक को फोन कर के बता दिया कि विशाल ने जहर खा लिया है.

इतना कह कर स्मिता ने तुरंत फोन काट दिया. इस के बाद दुकान के मालिक ने फोन किया तो उस ने फोन रिसीव नहीं किया, जिस से दुकान का मालिक भी घबरा गया. उस ने तुरंत दुकान पर काम करने वाले 2 लड़कों को स्मिता की मदद के लिए उस के घर भेज दिया. लेकिन उन्हें यह पता नहीं था कि विशाल रहता कहां है. जब तक पूछतेपूछते वे विशाल के घर पहुंचे, उस की हालत खराब हो चुकी थी.

स्मिता को कुछ समझ में नहीं आया तो डर कर उस ने भी बची हुई गोलियां खा लीं. विशाल के साथ काम करने वाले प्रदीप और नसीम जब उस के घर पहुंचे तो मकान मालिक को विशाल के जहर खाने वाली बात बताई. मकान मालिक दोनों को साथ ले कर पहली मंजिल पर स्थित विशाल के कमरे पर पहुंचा तो दरवाजा अंदर से बंद मिला.

किसी तरह उन्होंने दरवाजा खोला तो विशाल और स्मिता फर्श पर बेहोश पड़े मिले. स्मिता की चूडि़यां कमरे की फर्श पर बिखरी पड़ी थीं. दोनों के मोबाइल फोन और चप्पलें पड़ी थीं. एक मोबाइल फोन टूटा पड़ा था. नैप्थलीन की कुछ गोलियां फर्श पर बिखरी पड़ी थीं. प्रदीप और नसीम ने यह बात दुकान के मालिक अनुराज अग्रवाल को बताई तो उन्होंने पुलिस को फोन कर दिया.

पूरा न हुआ 7 जन्मों तक साथ निभाने का वादा घटना की सूचना पा कर थाना गाजीपुर के एसएसआई ओ.पी. तिवारी, एसआई कमलेश राय अपनी टीम के साथ विशाल के कमरे पर पहुंचे तो दोनों को मरा समझ कर ले जाने लगे. लेकिन तभी उन्हें लगा कि विशाल की सांसे चल रही हैं. इस के बाद उन्हें रामनोहर लोहिया अस्पताल ले जाया गया, जहां डाक्टरों ने दोनों को मृत घोषित कर दिया. घटना की सूचना थानाप्रभारी गिरिजाशंकर त्रिपाठी को दी गई तो वह भी अस्पताल पहुंच गए.

शादी के 6 महीने के अंदर ही युवा दंपत्ति द्वारा इस तरह जान देने की बात पर किसी को विश्वास नहीं हो रहा था. पुलिस ने जांच शुरू की तो पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि उन की मौत नेप्थलीन की गोलियां खाने से हुई थी. इस के बाद पुलिस ने मान लिया कि दोनों ने आत्महत्या ही की है. पुलिस ने इस मामले में फाइनल रिपोर्ट लगा दी.

विशाल के भाई का कहना था कि विशाल ने अपनी परेशानी कभी किसी से नहीं बताई. शादी के बाद वह तनाव में रहता था, यह बात उन्हें विशाल के दोस्तों से पता चली थी. जिस स्मिता के लिए विशाल ने अपना घरपरिवार छोड़ कर 7 जन्मों तक साथ निभाने का वादा किया था, वह उस के साथ 6 महीने भी नहीं बिता सका.

कई बार प्यार में अंधे हो कर लोग ऐसे बंधन मे बंध जाते हैं कि उस को निभाना मुश्किल हो जाता है. प्यार करने वाले अगर शादी करते हैं तो उन्हें स्थितियों से निपटने के लिए भी तैयार रहना चाहिए.

प्यार में एकदूसरे का साथ देने की कसमें खाना तो आसान है, लेकिन शादी के बाद जिम्मेदारियां पड़ती हैं तो पता चलता है कि प्यार के बाद शादी क्या चीज होती है. इसलिए काफी सोचसमझ कर ही प्यार के बाद शादी करनी चाहिए.   ?

सौजन्य- सत्यकथा, नवंबर 2017

आड़ी टेढ़ी राहों पर नहीं मिलता प्यार

आगरा के गांव खुशहालपुर के रहने वाले जगदीश यादव बरहन तहसील में वकालत करते थे. उन की 3 बेटियां नीलम, पूनम और नूतन के अलावा 2 बेटे हैं मानवेंद्र और राघवेंद्र. जगदीश यादव बेटे मानवेंद्र और 2 बेटियों पूनम व नीलम की शादी कर चुके थे. शादी के लिए अब बेटी नूतन और बेटा राघवेंद्र ही बचे थे.

दोनों पढ़ाई कर रहे थे. सभी कुछ ठीक चल रहा था कि परिवार में अचानक ऐसा जलजला आया कि सब कुछ खत्म हो गया. जगदीश यादव की होनहार बेटी नूतन ने टूंडला से इंटरमीडिएट पास करने के बाद आगरा के बैकुंठी देवी कालेज में दाखिला ले लिया.

अपने ख्वाबों को अमली जामा पहनाने के लिए उस ने खुद को किताबों की दुनिया में खपा दिया था लेकिन इसी बीच एक दिन रिश्ते के चाचा धनपाल यादव से उस की मुलाकात हो गई. कहा जाता है कि धनपाल और जगदीश यादव के परिवार के बीच बरसों पुरानी रंजिश चली आ रही थी. जब नूतन और धनपाल की मुलाकात हुई तो नूतन को लगा कि यदि बातचीत शुरू की जाए तो दोनों परिवारों के रिश्तों में फिर से मिठास आ सकती है.

धनपाल शादीशुदा था. अपनी पत्नी और 2 बेटों के साथ वह खुशहालपुर में ही रहता था. नूतन उसे चाचा कहती थी और पढ़ाई के दौरान आने वाली परेशानियों को भी उस से शेयर करती थी. खूबसूरत नूतन स्वभाव से शालीन और कम बात करने वाली लड़की थी. चाचा धनपाल का सहानुभूति वाला व्यवहार उसे अच्छा लगता था और वह धीरेधीरे कथित चाचा के नजदीक आने लगी.धीरेधीरे जगदीश यादव के घर में भी सब को पता चल गया कि धनपाल नूतन के सहारे सालों से चली आ रही रंजिश को खत्म करना चाहता है. इसलिए नूतन के साथ उस के मेलजोल को नूतन के घर वालों ने ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया. नूतन 20 साल की थी और अपना अच्छाबुरा समझ सकती थी.

वहीं दूसरी ओर धनपाल की पत्नी सरोज को धनपाल और नूतन की नजदीकियां रास नहीं आ रही थीं. वह पति से मना करती थी कि वह नूतन से न मिला करे. इस के बजाय वह अपनी दूध की डेरी पर ध्यान दे लेकिन धनपाल ने पत्नी की बात पर ध्यान नहीं दिया. धीरेधीरे वह नूतन की आर्थिक मदद भी करने लगा था. हालांकि नजदीकियों की शुरुआत चाचाभतीजी के रिश्ते से ही हुई थी, पर बाद में यह रिश्ता कोई दूसरा ही रूप लेने लगा.

नूतन से बढ़ रही नजदीकियों को ले कर धनपाल को पत्नी की खरीखोटी सुननी पड़ती थी, जिस से उस का पत्नी के साथ न सिर्फ झगड़ा होता था बल्कि दोनों के बीच दूरियां भी बढ़ रही थीं. उधर नूतन अपने भविष्य को संवारते हुए एमए की डिग्री लेने के बाद आगरा कालेज से कानून की पढ़ाई करने लगी.

नहीं मानी पत्नी की बात कथित भतीजी नूतन के ख्वाबों को पूरा करने की धुन में धनपाल उर्फ धन्नू अपने डेरी के व्यवसाय को भी बरबाद कर बैठा. वह हर कदम पर नूतन के साथ था. घर पर पत्नी की कलह से तंग आ कर उस ने अपना आशियाना खेत में बना लिया था. वह नूतन की पढ़ाई का पूरा खर्चा उठा रहा था. नूतन के एलएलबी पास कर लेने पर वह बहुत खुश हुआ. इस के बाद उस ने एलएलएम किया.

एलएलएम करने के बाद नूतन ने कोचिंग करने के लिए दिल्ली के एक कोचिंग सेंटर में दाखिला ले लिया. होस्टल में रह कर वह प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने लगी. नूतन के दिल्ली जाने के बाद धनपाल का मन नहीं लग रहा था.

उस के पास रिवौल्वर का लाइसैंस था. अपनी दूध डेयरी बंद कर वह दिल्ली में किसी नेता के यहां सुरक्षा गार्ड की नौकरी करने लगा. उस ने यह नौकरी सन 2015 से 2018 तक की. नौकरी के बहाने वह दिल्ली में रहा. दिल्ली में चाचाभतीजी की मुलाकातें जारी रहीं.

आशिकी का यह पागलपन धनपाल को किस ओर ले जा रहा था, यह बात वह समझ नहीं पाया. अपने से 10-12 साल छोटी कथित भतीजी के इश्क में वह एक तरह से अंधा हो चुका था. लेकिन दूसरी ओर इस सब के बावजूद नूतन का पूरा ध्यान अपने लक्ष्य पर था. वह कुछ बनना चाहती थी, जो उसे सफलता की ऊंचाइयों तक ले जाए.

धनपाल ने भी उस से कह दिया था कि चाहे जितना पैसा खर्च हो वह उस की पढ़ाई में हर तरह से मदद करेगा. आखिर नूतन की मेहनत रंग लाई और न्याय विभाग में उस का सहायक अभियोजन अधिकारी के पद पर सेलेक्शन हो गया, जिस की ट्रेनिंग के लिए उसे मुरादाबाद भेजा गया.

नूतन की ऊंचे पद पर नौकरी लगने पर धनपाल खुश था. उसे लगने लगा कि नूतन की पोस्टिंग के बाद वह पढ़ाई आदि से मुक्ति पा लेगी. तब दोनों अपने जीवन को सही दिशा देने के बारे में सोचेंगे. लेकिन यह उस के लिए केवल खयाली पुलाव बन कर रह गया.

नूतन की सोच कुछ अलग थी. अभी तो उसे केवल सहायक अभियोजन अधिकारी का पद मिला था. जबकि उसे बहुत आगे जाना था. खूब लिखपढ़ कर वह जज बनने का सपना देख रही थी. वह इस सच्चाई से अनभिज्ञ थी कि अधिकतर सपने टूटने के लिए ही होते हैं.

ट्रेनिंग के बाद नूतन की बतौर सहायक अभियोजन अधिकारी पहली पोस्टिंग एटा जिले की जलेसर कोर्ट में हुई. नौकरी मिल जाने पर नूतन और उस के परिवार के लोग बहुत खुश थे. कथित चाचा धनपाल भी बहुत खुश था. अब उस के दिल में एक कसक यह रह गई थी कि क्या नूतन समाज के सामने उस का हाथ थामेगी?

धनपाल आशानिराशा के बीच झूल रहा था. उसे लगता था कि वह नूतन के साथ अपनी दुनिया बसाएगा और उसे सरकारी अधिकारी पत्नी का पति होने का गौरव प्राप्त होगा. पर खुशियां कब किसी की सगी होती हैं, वह तो हवा की तरह उड़ने लगती हैं.

नूतन एटा आ गई. पुलिस लाइन परिसर में उस के नाम एक क्वार्टर अलाट हो गया. यह क्वार्टर महिला थाना और दमकल केंद्र से कुछ ही दूरी था. सरकारी क्वार्टर में आने के बाद भी धनपाल ने नूतन का पूरा ध्यान रखा. उस ने घर की जरूरत का सारा सामान उस के क्वार्टर पर पहुंचा दिया. वह भतीजी के साथ क्वार्टर में रह तो नहीं सकता था, लेकिन वहां उस का आनाजाना बना रहा.

नूतन अपनी जिंदगी व्यवस्थित करने के बाद अपने छोटे भाई राघवेंद्र की जिंदगी संवारना चाहती थी. लेकिन धनपाल को नूतन का यह निर्णय बिलकुल पसंद नहीं आया. लेकिन वह यह बात अच्छी तरह समझता था कि कच्चे कमजोर रिश्तों को संभालने में सतर्कता की जरूरत होती है.

कभीकभी धनपाल के सीने में एक अजीब सी कसक उठती थी कि क्या उस का और नूतन का रिश्ता सिरे चढ़ेगा. एक दिन उस ने अपनी यह शंका अपने दोस्त भारत सिंह से जाहिर की तो उस ने कहा कि ऐसा क्यों सोचते हो, जब तुम ने नूतन को इतना सहयोग किया है तो फिर वह क्यों तुम्हें छोड़ेगी?

दरअसल, धनपाल को नूतन का बढ़ता हुआ कद परेशान कर रहा था. वह उस के सामने खुद को बौना महसूस करने लगा था. इसीलिए उस के मन में इस तरह के विचार आ रहे थे. आखिर उस ने अपनी आशिकी की हिचकोले खाती नाव तूफान के हवाले कर दी और सही समय का इंतजार करने लगा.

बेचैनी थी धनपाल के मन में  नूतन की दिनचर्या व्यवस्थित हो गई थी. वह स्कूटी पर सुबह ड्यूटी पर जाती और शाम को क्वार्टर पर लौटती. अपने पासपड़ोस में रहने वालों से न तो उस की बातचीत थी और न ही उठनाबैठना.

इस बीच नूतन ने धनपाल से कहा कि उसे घर में एक काम वाली बाई की जरूरत है, क्योंकि खाना बनाने में उस का काफी समय खराब होता है. धनपाल ने तुरंत 2700 रुपए प्रतिमाह की सैलरी पर संगीता नाम की महिला का इंतजाम कर दिया. वह नूतन के यहां जा कर रसोई का काम संभालने लगी.

नूतन के अड़ोसपड़ोस में अधिकतर पुलिसकर्मियों के ही क्वार्टर थे. उन पड़ोसियों को बस इतना पता था कि नूतन के साथ उस का छोटा भाई रहता है और जबतब गांव से उस के चाचा आ जाते हैं.

नूतन की नौकरी लग चुकी थी. यहां तक पहुंचतेपहुंचते वह 35 साल की हो गई थी. घर वाले उस की शादी के लिए उपयुक्त लड़का देख रहे थे. घर में अकसर उस की शादी का जिक्र होता था. घर वाले चाहते थे कि उस की शादी किसी अच्छे सरकारी अधिकारी से हो जाए.

शादी की चर्चा सुन कर नूतन को झटका सा लगा, क्योंकि धनपाल के रहते उस ने कभी अपने अलग अस्तित्व के बारे में सोचा ही नहीं था. इसी बीच किसी मध्यस्थ के जरिए नूतन के लिए अलीगढ़ में पोस्टेड वाणिज्य कर अधिकारी राम सिंह (बदला हुआ नाम) का रिश्ता आया. नूतन के परिवार वाले खुश भी थे और इस रिश्ते के पक्ष में भी. लेकिन नूतन की समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे.

कुछ नहीं सूझा तो नूतन ने घर वालों से कहा कि वे लोग जिस लड़के से उस की शादी करना चाहते हैं, पहले वह उस के बारे में जानना चाहती है. तब घर वालों ने नूतन का फोन नंबर बिचौलिया के माध्यम से उस लड़के तक पहुंचवा दिया.

फिर एक दिन राम सिंह का फोन आया दोनों ने आपस में बात की, एकदूसरे के फोटो देखे. अचानक नूतन को लगा कि बरसों की कठिन मेहनत के बाद उस ने जो पद हासिल किया है, उस के चलते धनपाल के लिए उस की जिंदगी में अब कोई जगह होनी नहीं चाहिए. जीवनसाथी के रूप में बराबरी के दरजे वाले व्यक्ति का होना ही दांपत्य जीवन को सफल बना सकता है.

उस ने महसूस किया कि अब तक जो कुछ उस के जीवन में चल रहा था, वह केवल एक खेल था. लेकिन इस खेल के सहारे जीवन तो कट नहीं सकता. इस उम्र में उस के लिए यदि रिश्ता आया है तो उस का स्वागत करना चाहिए.

इस के बाद राम सिंह और नूतन के बीच फोन पर अकसर बातचीत होने लगी. वाणिज्य कर अधिकारी राम सिंह को भी नूतन जैसी जीवनसाथी की ही जरूरत थी, अत: नूतन ने एक दिन घर वालों के सामने भी इस रिश्ते के लिए हामी भर ली.

एक दिन धनपाल जब नूतन के आवास पर उस से मिलने आया तो नूतन ने कहा, ‘‘बिना सोचेसमझे मुंह उठाए चले आते हो. जानते हो, अगर आसपास रहने वाले लोगों को शक हो गया तो मेरी कितनी बदनामी होगी?’’

धनपाल को नूतन की यह बात चुभ गई, वह बोला, ‘‘यह क्या कह रही हो, तुम मेरी हो और मैं तुम्हारा, फिर इस में दूसरों की फिक्र का क्या मतलब?’’

‘‘हूं, यह तो है,’’ नूतन ने टालने की गरज से कहा पर धनपाल को लगा कि नूतन के मन में कुछ है, जो वह जाहिर नहीं कर रही है.

दोनों के बीच बनने लगीं दूरियां  उस दिन के बाद नूतन ने धनपाल से दूरी बनानी शुरू कर दी. उस ने उस का फोन भी उठाना बंद कर दिया. वह क्वार्टर पर आ कर शिकायत करता तो नूतन कह देती कि फोन साइलेंट पर था. बड़ेबड़े सपने देखने वाली नूतन को अब तनख्वाह मिलने लगी तो उसे धनपाल से आर्थिक मदद की भी जरूरत नहीं रही. वह अपनी बचकानी गलती को भूल जाना चाहती थी पर धनपाल के साथ ऐसा नहीं था.

इधर नूतन के मांबाप जल्दी ही उस की सगाई करना चाहते थे. लेकिन आने वाले वक्त को कब कोई देख पाया है. नूतन यादव ने तो कभी सोचा भी नहीं था कि उस ने बरसों मेहनत कर के सफलता पाई है. उस का क्या अंजाम होने वाला है. वह मौत की उस दस्तक को नहीं सुन पाई जो उस की खुशियों पर विराम लगाने वाली थी. 5 अगस्त, 2019 का दिन उस के जीवन में तूफान लाने वाला था, जिस से वह बेखबर थी.

6 अगस्त, 2019 को सुबह जब नौकरानी संगीता काम करने आई तो कई बार दरवाजा खटखटाने के बाद भी नहीं खुला. तभी उस ने महसूस किया कि दरवाजा अंदर से बंद नहीं है. संगीता ने धक्का दिया तो दरवाजा खुल गया. अंदर जा कर उस ने जो कुछ देखा, सन्न रह गई. लोहे के पलंग पर नूतन औंधे मुंह पड़ी हुई थी और बिस्तर खून से लाल था.

यह देखते ही नौकरानी भागती हुई बाहर आई और सीधे एटा कोतवाली का रुख किया. वहां पहुंच कर उस ने सारी बात कोतवाल अशोक कुमार सिंह को बता दी. कत्ल की बात सुन कर कोतवाल मय फोर्स के मौके पर पहुंचे. उन्होंने अपने उच्चाधिकारियों को भी इस घटना की सूचना दे दी.

सूचना मिलते ही मौके पर एसएसपी स्वप्निल ममगई, एएसपी संजय कुमार, एसपी (क्राइम) राहुल कुमार घटनास्थल पर पहुंच गए. फोरैंसिक टीम और डौग स्क्वायड टीम भी मौके पर पहुंच गई.

पुलिस ने लाश का निरीक्षण किया तो पता चला कि एपीओ नूतन यादव को बड़ी बेरहमी से मारा गया था. मौके पर पुलिस को 5 खोखे मिले. मृतका का चेहरा और शरीर क्षतविक्षत था. पुलिस को मृतका का मोबाइल भी वहीं पड़ा मिल गया.

आसपास पूछताछ करने पर लोगों ने बताया कि संभवत: गोली चलने की आवाज कूलरों की आवाज में दब गई होगी. इसलिए किसी को भी घटना का पता नहीं चल पाया.

घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद पुलिस को लगा कि हत्यारा नूतन को मारने के इरादे से ही आया था. क्योंकि क्वार्टर का सारा सामान ज्यों का त्यों था. ऐसा लग रहा था कि कोई परिचित रहा होगा, जिस ने बिना किसी विरोध के घर में पहुंचने के बाद नूतन की हत्या की और वहां से चला गया.

घटना की सूचना मिलने पर देर रात मृतका के परिजन भी वहां पहुंच गए. उन्होंने वहां पहुंचते ही चीखचीख कर धनपाल पर अपना शक जताते हुए बताया कि धनपाल इस बात से नाराज था कि नूतन शादी करने वाली थी.

परिजनों की बातचीत से स्पष्ट हो रहा था कि मृतका और धनपाल के बीच नजदीकी संबंध थे. इसीलिए धनपाल शादी का विरोध कर रहा होगा और न मानने पर उस ने नूतन की हत्या कर दी होगी. घर वालों ने धनपाल के अलावा उस के दोस्त भारत सिंह पर भी अपना शक जताया.

पुलिस भारत सिंह और धनपाल की तलाश में लग गई. अगले दिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई तो पता चला कि हत्यारे ने नूतन की हत्या बड़े ही नृशंस तरीके से की थी. उस ने मृतका के मुंह में रिवौल्वर की नाल घुसेड़ कर 3 गोलियां चलाईं और 2 शरीर के अन्य हिस्सों में मारीं.

पुलिस ने भारत सिंह और धनपाल के मोबाइल फोन सर्विलांस पर लगा दिए. नूतन के फोन की भी काल डिटेल्स खंगाली गई तो पता चला कि घटना वाली रात को भी एक फोन काल देर तक आती रही थी. जांच में पता चला कि नूतन उस नंबर पर घंटों बातें करती थी. जांच में वह नंबर अलीगढ़ के वाणिज्य कर अधिकारी राम सिंह का निकला.

अभियुक्तों की गिरफ्तारी के लिए पुलिस ने उन के घर दबिश डाली लेकिन वे नहीं मिले तो पुलिस ने पूछताछ के लिए धनपाल की पत्नी सरोज और श्यामवीर व उस के साले के बेटे को हिरासत में ले लिया. थाने ला कर उन से पूछताछ की गई तो उन से अभियुक्तों के बारे में जानकारी नहीं मिली. इस के बाद उन्हें छोड़ दिया गया.

पकड़ा गया धनपाल  10 अगस्त को पुलिस ने मुखबिर की सूचना पर माया पैलेस चौराहे से भारत सिंह को हिरासत में ले लिया. उस से पूछताछ में धनपाल और नूतन के संबंधों की बात खुल कर सामने आई. भारत सिंह ने बताया कि नूतन के कत्ल में उस का कोई हाथ नहीं है. धनपाल की गिरफ्तारी के लिए पुलिस ने उस के सभी ठिकानों पर छापे मारे. यहां तक कि दिल्ली तक में उस की तलाश की गई.

आखिर 12 अगस्त को पुलिस ने धनपाल को गांव बरौठा, थाना हरदुआगंज, अलीगढ़ में उस के रिश्तेदार के घर से दबोच लिया. थाने में उस से पूछताछ की गई.

धनपाल के चेहरे पर अपनी प्रेयसी की हत्या का जरा सा भी दुख नहीं था. पुलिस के सामने उस ने अपना गुनाह कबूल कर लिया और कहा कि नूतन की बेवफाई ही उस की मौत का कारण बनी. जिस नूतन के लिए उस ने अपना घर, बीवीबच्चे सब उस के कहने पर छोड़ दिए थे, उस की पढ़ाई पूरी करने के लिए उस ने अपनी दूध की डेयरी तक खपा दी. उस पर लाखों रुपए का कर्ज चढ़ गया, लेकिन नौकरी मिलते ही वह बदल गई.

धनपाल ने बताया कि जब वह बीए कर रही थी तभी एक दिन आगरा के एक होटल के कमरे में उस ने नूतन की मांग भर कर उसे  अपना बना लिया था. नूतन के कहने पर उस ने पत्नी और बच्चों को छोड़ दिया. वह उसे बेइंतहा प्यार करता था. पर वह पिछले 4 महीने से अचानक बदलने लगी थी. उस का फोन तक रिसीव नहीं करती थी. जिसे दिलोजान से चाहा, उसी की उपेक्षा ने उसे हत्यारा बना दिया.

नूतन ने 15 साल की मोहब्बत को एक पल में अपने पैरों तले रौंद दिया था. वह तो उस के प्यार में अपनी दुनिया लुटा चुका था, पर अपनी आशिकी को भुलाना उस के लिए मुश्किल था.

उस ने कबूला कि घटना वाले दिन उस ने भारत सिंह के जरिए पता लगा लिया था कि नूतन उस रोज छुट्टी पर है और उस के साथ रहने वाला उस का भाई राघवेंद्र भी अपने गांव गया हुआ है. बस फिर क्या था, अपनी लाइसैंसी रिवौल्वर में गोलियां भर कर वह नूतन के क्वार्टर पर पहुंच गया. उस ने तय कर लिया था कि वह आरपार की बात करेगा. या तो नूतन उस की होगी या फिर वह किसी की भी नहीं.

धनपाल ने बताया, ‘‘नूतन ने मेरे साथ हमेशा रहने का वादा किया था. लेकिन नौकरी मिलने पर उसे समझ आया कि मैं उस के स्तर का नहीं हूं. मेरे प्यार की उपेक्षा कर के वह जीने का अधिकार खो बैठी थी. मैं ने नूतन को मार डाला.

‘‘नूतन ने उस रात मुझ से कहा था कि उस से दूर ही रहूं तो अच्छा, वरना वह पुलिस से मुझे पिटवाएगी. उस ने मेरे इश्क का इतना अपमान किया, जिसे मैं बरदाश्त नहीं कर सका, इसलिए मैं ने उस की जबान ही बंद कर दी. उस के मर जाने का मुझे कोई अफसोस नहीं है.’’

धनपाल ने हत्या में इस्तेमाल की गई रिवौल्वर पुलिस को वहीं परिसर में खड़ी एक पुरानी गाड़ी में से बरामद करा दी. पुलिस ने भारत सिंह और धनपाल से पूछताछ की. उन्हें भादंवि की धारा 302, 120बी के तहत गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया गया.

इस तरह कई साल तक चली एक प्रेम कहानी का दुखद अंत हुआ. कथा लिखने तक दोनों अभियुक्त जेल में थे. मामले की जांच कोतवाल अशोक कुमार सिंह कर रहे थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

आखिरी मोड़ पर पत्नी की भूमिका

बात 19 जून, 2019 की है. जबलपुर सिटी की रांझी थानाप्रभारी जे. मसराम को किसी व्यक्ति ने फोन कर के सूचना दी कि खमरिया के पास झाडि़यों में किसी युवक की लाश पड़ी है. मामला हत्या का था, इसलिए थानाप्रभारी ने इस की सूचना तुरंत एसपी अमित सिंह और एसपी (सिटी) धर्मेश दीक्षित को दे दी. साथ ही खुद पुलिस टीम के साथ सूचना में बताई गई जगह के लिए रवाना हो गईं.

पुलिस जब मौके पर पहुंची तो वहां काफी लोग जमा थे. वहीं पर 30-32 साल के एक युवक का शव पड़ा था. थानाप्रभारी ने शव का निरीक्षण किया तो उस पर चोट का कोई निशान नहीं मिला. लेकिन उस के गले पर काले रंग का निशान जरूर नजर आ रहा था.

उस निशान को देख कर पुलिस को यकीन हो गया कि युवक की हत्या गला घोंट कर की गई होगी. इसी बीच एसपी अमित सिंह व एसपी (सिटी) धर्मेश दीक्षित भी मौके पर पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों ने वहां मौजूद लोगों से मृतक के बारे में पूछताछ की, लेकिन उन में से कोई भी लाश की शिनाख्त नहीं कर सका.

आसपास सुराग तलाशने की कोशिश की गई, पर कोई भी ऐसा सुराग नहीं मिला, जिस से शव की शिनाख्त होने में मदद मिल पाती. काफी कोशिशों के बाद भी शव की शिनाख्त नहीं होने पर थानाप्रभारी ने घटनास्थल की काररवाई पूरी कर के शव पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

लाश की शिनाख्त जरूरी थी, इसलिए एसपी अमित सिंह ने जिले के सभी थानों में वायरलैस से अज्ञात युवक की लाश मिलने का मैसेज प्रसारित करा दिया. इस के अलावा सीमावर्ती जिलों के थानों को भी अज्ञात युवक की लाश मिलने की सूचना दे दी गई.

इसी दौरान मौके पर मौजूद लोगों ने मोबाइल फोन से मृतक के फोटो खींच कर सोशल साइट पर वायरल कर दिए. शाम होतेहोते जब ये फोटो मध्य प्रदेश के राज्य पुलिस बल (एसएएफ) की छठीं बटालियन में तैनात आरक्षक नवीन के पास पहुंचा तो वह चौंक गया. क्योंकि उस फोटो में मृतक की दाईं कलाई पर दुर्गा और बांह पर ओम का टैटू गुदा हुआ था. उस की बाईं बांह पर आरडी और बीपीओ अक्षर का टैटू था.

यह देख कर उसे अपने साथ काम करने वाले आरक्षक राजेश बेन की याद आ गई. क्योंकि ऐसे ही टैटू व निशान राजेश बेन ने अपनी दोनों कलाइयों पर बनवा रखे थे. मृतक का चेहरा और हुलिया भी राजेश से मिल रहा था.

नवीन ने सोचा कि कहीं झाडि़यों में मिली लाश राजेश बेन की ही तो नहीं है. अपनी यह शंका उस ने बटालियन के दूसरे साथियों के सामने जाहिर की तो सब मिल कर शाम को राजेश की खोजखबर लेने रांझी स्थित उस के घर जा पहुंचे.

घर पर राजेश के दोनों बच्चों के साथ उस की पत्नी दीपिका मौजूद थी. नवीन और उस के साथियों ने दीपिका से राजेश के बारे में पूछा. दीपिका ने उन्हें बताया कि वह सुबह 9 बजे 15 हजार रुपए ले कर बेटे के स्कूल की फीस जमा करने गए थे, उस के बाद वापस नहीं लौटे.

उस समय राजेश का बेटा मोबाइल से खेल रहा था. इस का मतलब वह मोबाइल भी अपने साथ नहीं ले गया था. राजेश की पत्नी दीपिका ने बताया कि जब दोपहर तक वह नहीं लौटे तो हम ने सोचा कि शायद स्कूल में देर हो जाने के कारण वहां से सीधे ड्यूटी पर चले गए होंगे.

दीपिका की बात सुन कर साथियों का शक गहरा गया कि रांझी में मिली लाश कहीं राजेश बेन की तो नहीं है. क्योंकि उस रोज बटालियन में भी किसी ने राजेश को नहीं देखा था, इसलिए उन्होंने खबर रांझी पुलिस को दे दी. जिस पर थानाप्रभारी मसराम ने दीपिका को साथ ले जा कर अस्पताल में रखा शव दिखाया तो वह उसे दख्ेते ही जोरजोर से रोने लगी.

उस ने बताया कि शव उस के पति राजेश का ही है, जो आरक्षक के पद पर नौकरी करते थे. थानाप्रभारी ने दीपिका को सांत्वना दे कर चुप कराया और उस से उस के पति के बारे में पूछताछ की.

शक की सुई दीपिका पर पोस्टमार्टम रिपोर्ट में राजेश की मौत का कारण गला घोंटना बताया गया. रिपोर्ट के आधार पर पुलिस ने अज्ञात के खिलाफ हत्या का केस दर्ज कर लिया. मामला पुलिस वाले की हत्या का था, इसलिए एसपी अमित सिंह ने इस केस को गंभीरता से लेते हुए जांच के लिए तुरंत एक टीम गठित कर दी, जिस से हत्यारे को जल्द से जल्द पकड़ा जा सके.

एसपी साहब के आदेश पर पुलिस टीम जांच में जुट गई. 20 जून की रात 11 बजे रांझी थाने में तैनात महिला आरक्षक आरती सोनकर ने एएसपी को एक फोन की रिकौर्डिंग भेजी. वह रिकौर्डिंग ऐसी थी, जिस से पुलिस को केस खोलने में आसानी हो गई और हत्यारे भी पुलिस की गिरफ्त में आ गए.

उस रिकौर्डिंग में मृतक राजेश बेन की पत्नी दीपिका अपने भाई सोनू सोनकर को फोन कर उस से पति का शव ठिकाने लगाने के लिए मदद मांग रही थी.

रिकौर्डिंग सुनने के बाद एसपी अमित सिंह के आदेश पर रात में ही महिला पुलिस की एक टीम दीपिका के घर पहुंच गई. पुलिस ने उस के घर पर ही उस से सख्ती से पूछताछ की तो दीपिका ने स्वीकार कर लिया कि उस ने मजबूरी में पति की हत्या की थी. हत्या में उस की चचेरी बहन पायल, मां सुकरानी और पड़ोस में रहने वाली नाबालिग सहेली शामिल थीं. पुलिस टीम ने रात में ही सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया.

थाने ले जा कर आरोपियों से पूछताछ की गई तो आरक्षक राजेश बेन की हत्या की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार निकली—

मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले के मंडला कस्बे की रहने वाली दीपिका की शादी 12 साल पहले रांझी के राजेश बेन से हुई थी. राजेश एसएएफ में आरक्षक के पद पर नौकरी करता था. राजेश के पिता भी मध्य प्रदेश पुलिस में थे. उन की मौत के बाद उसे अनुकंपा के आधार पर नौकरी मिली थी.

शादी से पहले से ही राजेश को शराब पीने की लत थी. यहां तक कि सुहागरात के मौके पर भी वह न केवल शराब पी कर पत्नी के पास पहुंचा था बल्कि एक बोतल साथ में ले कर आया था.

यह देख पत्नी दीपिका चौंक गई. पहली रात को वह पति से ज्यादा कुछ नहीं कह सकी. बाद में उस ने पति को बहुत समझाया, लेकिन राजेश ने उस की बातों पर ध्यान नहीं दिया. वह अपने यारदोस्तों के साथ शराब पीने में मस्त रहता. अपनी सारी कमाई वह शराबखोरी में उड़ा देता था.

इतना ही नहीं, जब उस के पास पैसे खत्म हो जाते तो वह उधार ले कर दोस्तों के साथ पार्टी करता था, जिस से उस पर लाखों रुपए का कर्ज भी हो गया था. घर में खर्च के लिए भी परेशानी होने लगी थी.

पत्नी जब खर्च के पैसे मांगती तो वह अपने हाथ खड़े कर देता था. राजेश चिड़चिड़ा भी हो गया था. पत्नी से छोटीछोटी बातों पर झगड़े करता और नशे में दीपिका के साथ मारपीट शुरू कर देता. मारपीट के लिए आदमी को एक बहाना चाहिए, इसलिए वह पत्नी को चरित्रहीन बता कर उस की बुरी तरह पिटाई करता था.

दीपिका परेशान थी मारपीट से दीपिका रोजरोज की मारपिटाई से तंग आ गई थी, इसलिए उस ने पति की हत्या की योजना बनाई. 18 जून, 2019 को उस ने अपनी चचेरी बहन पायल और पड़ोस में रहने वाली 16 वर्षीय सहेली को अपने घर बुला कर उन दोनों को अपनी योजना में शामिल कर लिया.

रात लगभग 11 बजे राजेश शराब के नशे में घर पहुंचा तो वह पायल और उस की सहेली के सामने ही उस से कपड़े उतारने की जिद करने लगा. लेकिन दीपिका ने तो कुछ और ही सोच कर रखा था.

पति की कपड़े उतारने की जिद करने पर दीपिका को गुस्सा आ गया, उस ने एक झटके में उस के गले में अपनी चुन्नी लपेटी और फिर तीनों ने गला घोंट कर उस की हत्या कर दी. राजेश की हत्या करने के बाद उन्होंने शव प्लास्टिक के एक बोरे में भर कर घर के एक कोने में टिका दिया.

इस के बाद दीपिका ने अपनी मां सुकराना को फोन कर घटना की जानकारी दे कर शव को ठिकाने लगाने में मदद के लिए जबलपुर आने को कहा. मां ने भी बेटी की मदद करने की हामी भर दी. वह सुबह 5 बजे मंडला से जबलपुर पहुंच गई.

15 घंटे तक राजेश की लाश घर में ही पड़ी रही. दूसरे दिन लगभग 2 बजे पायल और दीपिका लाश को एक्टिवा पर रख कर रांझी इलाके की झाडि़यों में फेंक आईं. जिस बोरे में वे लाश ले कर गई थीं, उस पर कोई मार्का लगा था.

मार्का के जरिए पुलिस उन के पास तक न पहुंच सके, इसलिए उन्होंने राजेश की लाश बोरे से निकाल कर झाडि़यों में डाल दी. उस बोरे को वह घर ले आईं. इस दौरान एक्टिवा पायल चला रही थी.

शाम को जब राजेश के साथी उस के बारे में पूछताछ करने उस के घर आए तो दीपिका ने बताया कि राजेश सुबह 15 हजार रुपए ले कर बेटे की फीस भरने के लिए स्कूल गए थे. उस के बाद घर नहीं लौटे.

इसी बीच उस ने अपने भाई सोनू सोनकर को फोन कर लाश को ठिकाने लगाने में मदद मांगी जिस की रिकौर्डिंग किसी तरह पुलिस को मिल जाने से पूरा मामला उजागर हो गया.

दीपिका, उस की मां सुकराना और नाबालिग सहेली से पूछताछ कर पुलिस ने उन की निशानदेही पर एक्टिवा, गला घोंटने में इस्तेमाल हुई चुन्नी और वह बोरा भी बरामद कर लिया, जिस में लाश भर कर ठिकाने लगाई गई थी.

पूछताछ के बाद सभी आरोपियों को अदालत में पेश कर जेल भेज दिया गया, जबकि नाबालिग सहेली को बालिका सुधारगृह भेजा गया.

एक अलग मोड़ इस के दूसरे दिन ही इस कहानी में नया मोड़ आ गया. संजय कालोनी रांझी में रहने वाले मृतक राजेश बेन के घर वालों ने एसपी अमित सिंह को एक शिकायती पत्र सौंप कर उचित जांच की मांग की. उन्होंने बताया कि यह सच है कि राजेश के ऊपर काफी कर्ज था, लेकिन उस ने यह कर्ज शराब पीने के लिए नहीं, बल्कि पारिवारिक जिम्मेदारियां निभाने के लिए लिया था. वह ब्याज के रूप में लाखों रुपए चुकता कर चुका था. लेकिन कर्ज देने वाले उस पर लगातार पैसे देने का दबाव बनाए जा रहे थे.

उन्होंने आरोप लगाया कि एक साहूकार युवक के साथ दीपिका के अवैध संबंध थे. वह साहूकार राजेश की गैरमौजूदगी में लगभग रोज दीपिका से मिलने उस के घर आता था. एक दिन राजेश ने दीपिका को उस के साथ रंगेहाथ पकड़ भी लिया था.

राजेश के परिजनों का आरोप था कि दीपिका के प्रेमी ने ही अपने प्रेमिका के साथ मिल कर राजेश की हत्या की थी. इन की योजना थी कि राजेश के मरने के बाद उस की पत्नी दीपिका को पुलिस में नौकरी मिल जाएगी.

साथ ही उस की मौत के बाद मिलने वाले पैसे से उस का कर्ज भी चुक जाएगा. एसपी अमित सिंह ने उस के घर वालों द्वारा लगाए गए आरोपों की गंभीरता से जांच करने के आदेश दे दिए.