प्यार के भंवर में-भाग 2 : देवर भाभी ने क्यों की आत्महत्या

थोड़ी देर की चुप्पी के बाद होश दुरुस्त हुए, तो सुनीता ने राममिलन की ओर देख कर कहा, ‘‘देवरजी, तुम मुझे बहुत अच्छे लगते हो. लेकिन हमारे बीच रिश्तों की दीवार है. अब मैं इस दीवार को तोड़ना चाहती हूं. तुम मुझे बस यह बताओ कि हमारे इस रिश्ते का अंजाम क्या होगा?’’

‘‘भाभी मैं तुम्हें कभी धोखा नहीं दूंगा. तुम अपना बनाओगी तो तुम्हारा ही बन कर रहूंगा. मैं वादा करता हूं कि आज के बाद हम साथ ही जिएंगे और साथ ही मरेंगे.’’ कह कर राममिलन ने सुनीता को बांहों में भर लिया.

ऐसे ही कसमोंवादों के बीच कब संकोच की सारी दीवारें टूट गईं, दोनों को पता ही न चला. उस दिन के बाद राममिलन और सुनीता बिस्तर पर जम कर सामाजिक रिश्तों और मानमर्यादाओं की धज्जियां उड़ाने लगे. वासना की आग ने उन के इन रिश्तों को जला कर खाक कर दिया था.

सुनीता से शारीरिक सुख पा कर राममिलन निहाल हो उठा. सुनीता को भी उस से ऐसा सुख मिला था, जो उसे पति से कभी नहीं मिला था. राममिलन अपनी भाभी के प्यार में इतना अंधा हो गया था कि उसे दिन या रात में जब भी मौका मिलता, वह सुनीता से मिलन कर लेता. सुनीता भी देवर के पौरुष की दीवानी थी. उन के मिलन की किसी को कानोंकान खबर नहीं थी.

कहते हैं वासना का खेल कितनी भी सावधानी से खेला जाए, एक न एक दिन भांडा फूट ही जाता है. ऐसा ही सुनीता और राममिलन के साथ भी हुआ. एक रात पड़ोस में रहने वाली चचेरी जेठानी रूपाली ने चांदनी रात में आंगन में रंगरलियां मना रहे राममिलन और सुनीता को देख लिया. इस के बाद तो देवरभाभी के अवैध रिश्तों की चर्चा पूरे गांव में होने लगी.

हरिओम को जब देवरभाभी के नाजायज रिश्तोें की जानकारी हुई तो उस का माथा ठनका. उस ने इस बाबत सुनीता से बात की तो उस ने नाजायज रिश्तों की बात सिरे से खारिज कर दी. उस ने कहा राममिलन सगा देवर है. उस से हंसबोल लेती हूं. पड़ोसी इस का मतलब गलत निकालते हैं. उन्होंने ही तुम्हारे कान भरे हैं.

हरिओम ने उस समय तो पत्नी की बात मान ली, लेकिन मन में शक पैदा हो गया. इसलिए वह चुपकेचुपके पत्नी पर नजर रखने लगा. परिणामस्वरूप एक रात हरिओम ने सुनीता और राममिलन को रंगरलियां मनाते रंगेहाथों पकड़ लिया. हरिओम ने दोनों की पिटाई की और संबंध तोड़ने की चेतावनी दी.

लेकिन इस चेतावनी का असर न तो सुनीता पर पड़ा और न ही राममिलन पर. हां, इतना जरूर हुआ कि अब वे सतर्कता बरतने लगे. जिस दिन हरिओम, सुनीता को राममिलन से हंसतेबतियाते देख लेता, उस दिन शराब पी कर सुनीता को पीटता और राममिलन को भी गालियां देता. उस ने गांव के मुखिया से भी भाई की शिकायत की. साथ ही राममिलन को भी कहा कि वह घर न तोड़े.

उन्हीं दिनों हरिओम को बांदा जाना पड़ा. क्योंकि उस के ठेकेदार को सड़क निर्माण का ठेका मिला था. चूंकि हरिओम जेसीबी चालक था, सो उसे भी वहीं काम करना था. जाने से पहले वह अपनी मां व पिता को सतर्क कर गया था कि वह सुनीता व राममिलन पर नजर रखें.

सास गेंदावती सुनीता पर नजर तो रखती थी, लेकिन देवर की दीवानी सुनीता सास की आंखों में धूल झोंक कर देवर से मिल कर लेती थी. हरिओम मोबाइल फोन पर मां से बात कर घर का हालचाल लेता रहता था.
वह सुनीता से भी बात करता था और उसे मर्यादा में रहने की हिदायत देता रहता था. लेकिन सुनीता पति की बातों को कोई तवज्जो नहीं देती थी. वह तो देवर के रंग मे पूरी तरह रंगी थी.

एक रात आधी रात को गेंदावती की नींद खुली तो उसे सुनीता की बेटी मासूम क्रांति के रोने की आवाज सुनाई दी. वह उठ कर कमरे में पहुंची तो सुनीता अपने बिस्तर पर नहीं थी.

सास गेंदावती को समझते देर नहीं लगी कि बहू राममिलन के कमरे में होगी. वह दबे पांव राममिलन के कमरे में पहुंची, वहां सुनीता उस के बिस्तर पर थी. उस रात गेंदावती के सब्र का बांध टूट गया. उस ने दोनों की चप्पल से पिटाई की और खूब फटकार लगाई. रंगेहाथ पकड़े जाने से दोनों ने माफी मांग ली.

लगभग एक सप्ताह बाद हरिओम बांदा से घर आया तो गेंदावती ने बहू को रंगेहाथ पकड़ने की बात बेटे को बताई. तब हरिओम ने सुनीता की खूब पिटाई की, राममिलन को भी खूब डांटा फटकारा और समझाया भी. उस ने दोनों को धमकाया भी कि यदि वे न सुधरे तो अंजाम अच्छा न होगा.

लेकिन सुनीता और राममिलन प्यार के भंवर में इतनी गहराई तक समा चुके थे, जहां से बाहर निकलना उन के लिए नामुमकिन था. अत: दोनों ने हरिओम की धमकी को ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया. उन्हें जब भी मौका मिलता था, शारीरिक मिलन कर लेते थे.

सुनीता और राममिलन के नाजायज रिश्तों ने पूरे घर को चिंता में डाल दिया था. वे इस समस्या से निजात पाने के लिए उपाय खोजने लगे थे. एक रोज गेंदावती ने अपने पति शिवबरन व बेटे हरिओम के साथ बैठ कर मंत्रणा की. फिर तय हुआ कि समस्या से निजात पाने के लिए राममिलन की शादी कर दी जाए. शादी हो जाएगी तो समस्या भी हल हो जाएगी.

शिवबरन निषाद अब राममिलन के लिए गुपचुप तरीके से लड़की की खोज करने लगा. कई माह की दौड़धूप के बाद शिवबरन को असोधर कस्बे में राम सुमेर निषाद की बेटी कमला पसंद आ गई. कमला सांवले रंग की थी. लेकिन शिवबरन व उस की पत्नी गेंदावती ने उसे पसंद कर लिया था.
फिर आननफानन में उन्होंने रिश्ता तय कर दिया. इस रिश्ते के लिए राममिलन ने न ‘हां’ की और न ही इनकार किया. बारात जाने की तारीख तय हुई मई 2021 की 7 तारीख.

दो कदमों पर मौत : पत्नी हुई पति का शिकार

उत्तर प्रदेश के महानगर मुरादाबाद का एक इलाका है लाइनपार. समय के साथ अब यह इलाका काफी विकसित हो चुका है, जिस के चलते अब यहां की आबादी काफी बढ़ गई है. बात 9 मई, 2019 की है. रात के करीब साढ़े 11 बजे थे. दुर्गानगर, लाइनपार के अधिकांश लोग उस समय अपनेअपने घरों में सो चुके थे. तभी अचानक हुए एक फायर की आवाज ने कुछ लोगों की नींद उड़ा दी.

गोली की आवाज सुनते ही कुछ लोग अपनेअपने घरों से बाहर निकल आए और जानने की कोशिश करने लगे कि आवाज कहां से आई. पता चला कि गोली चलने की आवाज विष्णु शर्मा के घर से आई थी. उस के घर का दरवाजा भी खुला हुआ था.

लोगों ने जिज्ञासावश उस के घर में झांक कर देखा तो एक महिला फर्श पर गिरी पड़ी थी और फर्श पर काफी खून भी फैला हुआ था. यह देख कर किसी की भी उस के घर के अंदर जाने की हिम्मत नहीं हुई. मामले की गंभीरता को देखते हुए किसी ने फोन द्वारा सूचना थाना मझोला को दे दी. थानाप्रभारी विकास सक्सेना रात की गश्त पर निकलने वाले थे. उन्हें यह सूचना मिली तो पुलिस टीम के साथ वह दुर्गानगर के लिए रवाना हो गए.

दुर्गानगर में लोगों से पूछताछ करते हुए पुलिस विष्णु शर्मा के घर पहुंच गई. उस समय वहां खड़े पड़ोस के लोग कानाफूसी कर रहे थे. विष्णु शर्मा के घर का दरवाजा खुला हुआ था. थानाप्रभारी टीम के साथ उस के घर में घुस गए. उन के पीछेपीछे मोहल्ले के लोग भी आ गए. तभी उन्होंने देखा कि फर्श पर एक महिला लहूलुहान पड़ी हुई थी. वहीं पर एक शख्स खड़ा था. उस ने अपना नाम विष्णु शर्मा बताया. वहीं बिछी चारपाई पर एक देशी तमंचा भी रखा हुआ था.

पुलिस ने सब से पहले वह तमंचा अपने कब्जे में लिया. इस के बाद थानाप्रभारी और मोहल्ले के लोगों ने घायलावस्था में पड़ी महिला की नब्ज टटोली तो पता चला कि उस की मौत हो चुकी है. विष्णु शर्मा ने बताया कि मृतका उस की पत्नी आशु है. विष्णु ने बताया कि इस ने आत्महत्या कर ली है. तमंचा यह साथ लाई थी.
विष्णु की बात सुन कर थानाप्रभारी चौंकते हुए बोले, ‘‘क्या यह तुम्हारे साथ नहीं रहती थी?’’

‘‘नहीं सर, यह पिछले काफी दिनों से दोनों बच्चों को ले कर अपने प्रेमी सनी के साथ कांशीराम नगर में रह रही थी.’’ विष्णु ने बताया. थानाप्रभारी ने इस बिंदु पर फिलहाल विस्तार से जांच करना जरूरी नहीं समझा. उन्होंने हत्या के इस मामले की जानकारी अपने उच्चाधिकारियों को दे दी. सूचना पा कर रात में ही सीओ (सिविल लाइंस) राजेश कुमार भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

पुलिस ने अगले दिन जरूरी काररवाई कर के आशु की लाश पोस्टमार्टम हाउस पहुंचा दी. चूंकि घटना के संबंध में पुलिस को विष्णु शर्मा से पूछताछ करनी थी, इसलिए वह उसे थाना मझोला ले गई. सीओ राजेश कुमार भी मझोला थाने पहुंच गए.

सीओ राजेश कुमार की मौजूदगी में थानाप्रभारी विकास सक्सेना ने विष्णु शर्मा से पूछताछ की. उस ने बताया, ‘‘करीब 8-9 महीने पहले आशु अपने पुराने प्रेमी सनी नागपाल के साथ भाग गई थी. अपनी दोनों बेटियों को भी वह साथ ले गई थी. पिछले कई दिनों से आशु मेरे ऊपर काफी दबाव बना रही थी कि मैं दोनों बेटियों को अपने पास रख लूं. लेकिन मैं ने उन्हें पास रखने से मना कर दिया था.

‘‘कल रात साढ़े 11 बजे उस ने आ कर दरवाजा पीटना शुरू कर दिया. जैसे ही मैं ने किवाड़ खोले, आशु अंदर आ गई. बाहर उस का प्रेमी सनी नागपाल और दोनों बेटियां खड़ी थीं. घर में घुसते ही वह मुझ से इस बात पर झगड़ने लगी कि मैं बेटियों को अपने पास रख लूं. जिद में मैं ने भी मना कर दिया.

‘‘तभी उस ने अपने साथ लाए तमंचे से खुद को गोली मार ली. मैं ने उसे रोकना भी चाहा लेकिन तब तक वह गोली चला चुकी थी. आशु के नीचे गिरते ही सनी नागपाल दोनों बच्चों को अपने साथ ले कर भाग गया.’’

पूछताछ के दौरान थानाप्रभारी को विष्णु शर्मा के मुंह से शराब की दुर्गंध आती महसूस हुई तो उन्होंने पूछा, ‘‘तुम ने शराब पी रखी है?’’
‘‘हां सर, मैं ने कल रात पी थी.’’ विष्णु शर्मा ने कहा.

दोनों पुलिस अधिकारियों को विष्णु की बातों में झोल नजर आ रहा था. इस की वजह यह थी कि जिस तमंचे से आशु को गोली लगी थी, वह उस की लाश से दूर चारपाई पर रखा था. ऐसा संभव नहीं था कि खुद को गोली मारने के बाद वह चारपाई पर तमंचा रखने जाए. अगर आशु ने खुद को गोली मारी होती तो तमंचा उस की लाश के नजदीक ही पड़ा होता.

सीओ राजेश कुमार के निर्देश पर थानाप्रभारी ने विष्णु शर्मा से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उस ने कहा कि आशु की हत्या उस के हाथों ही हुई है. पत्नी की हत्या की उस ने जो कहानी बताई, वह हैरान कर देने वाली निकली—

आशु शर्मा का प्रेमी सनी नागपाल मूलरूप से मुरादाबाद के लाजपतनगर का रहने वाला था. उस के पिता कोयला कारोबारी हैं. उन्होंने कोयले का डिपो गोविंदनगर सरस्वती विहार में बना रखा था. डिपो के पास में ही आशु का घर था.

सनी नागपाल कारोबार के सिलसिले में अकसर कोयले की डिपो पर आता रहता था. वहीं पर उस की मुलाकात आशु से हुई थी. यह करीब 10 साल पुरानी बात है. यह मुलाकात पहले दोस्ती में बदली और फिर प्यार में. सनी नागपाल पैसे वाला था, इसलिए वह आशु पर दिल खोल कर पैसे खर्च करता था.

इसी दौरान आशु के घर वालों ने उस का रिश्ता शहर के ही दुर्गानगर निवासी विष्णु शर्मा से कर दिया. विष्णु उस समय बीए में पढ़ रहा था. सन 2009 में विष्णु शर्मा और आशु का सामाजिक रीतिरिवाज से विवाह हो गया.

विष्णु के पिता अशोक शर्मा थाना हयातनगर, संभल के कस्बा एंचोली के रहने वाले थे. वह खेतीकिसानी करते थे. उन के पास खेती की अच्छीखासी जमीन थी. विष्णु पत्नी के साथ मुरादाबाद में रहता था. आटा, दाल, चावल आदि सामान उस के गांव से आ जाता था. विष्णु व आशु दोनों हंसीखुशी से रह रहे थे.

इसी दौरान आशु ने इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की. आशु अपनी पढ़ाई जारी रखना चाहती थी. लिहाजा विष्णु ने अपने खर्च से आशु को अंगरेजी विषय से एमए कराया. इसी दौरान आशु 2 बेटियों की मां बन गई. ग्रैजुएशन के बाद भी विष्णु बेरोजगार था. उस की सास कृष्णा शर्मा समाजवादी पार्टी की नेता थीं, उन्होंने पार्षद का चुनाव भी लड़ा था.

सास ने दिलाई नौकरी

अपनी पहुंच के चलते उन्होंने दामाद विष्णु की भारतीय खाद्य निगम में संविदा के आधार पर मुंशी के पद पर नौकरी लगवा दी. एफसीआई का गोदाम मुरादाबाद के लाइनपार में ही था, विष्णु के घर के एकदम पास था. वह मन लगा कर नौकरी करने लगा.

आशु शर्मा शुरू से ही जिद्दी और महत्त्वाकांक्षी थी. उस के शौक महंगे थे. मौल में शौपिंग करना, स्टाइलिश कपड़े पहनना उस का शगल था. शुरुआती सालों में विष्णु पत्नी की हर जरूरत पूरी करता रहा. लेकिन बाद में वह पत्नी की बढ़ती महत्त्वाकांक्षाओं और खर्च को पूरा करने में असफल हो गया तो उस ने पत्नी को मौल में शौपिंग करानी बंद कर दी.

घटना से करीब एक साल पहले आशु अचानक बिना बताए दोनों बेटियों को साथ ले कर घर से गायब हो गई. विष्णु व आशु के मायके वालों ने उसे बहुत तलाश किया, पर वह नहीं मिली. इस पर विष्णु ने पत्नी की गुमशुदगी थाना मझोला में दर्ज करवा दी.
बाद में पता चला कि वह अपने पुराने प्रेमी सनी नागपाल के साथ कांशीराम नगर में किराए का कमरा ले कर लिवइन रिलेशन में रह रही है. जब यह बात विष्णु और आशु के मायके वालों को पता चली तो उन्होंने आशु को समझाया और घर चलने को कहा. लेकिन आशु अपने प्रेमी सनी को छोड़ने के लिए तैयार नहीं हुई.

आशु की शादी विष्णु से होने के बाद भी उस का प्रेमी सनी नागपाल उसे भूला नहीं था. 2 बच्चों की मां बनने के बाद भी आशु बनठन कर रहती थी. लगता ही नहीं था कि वह 2 बच्चों की मां है.

आशु जानती थी कि उस का प्रेमी सनी पैसे वाला है. उस की कभीकभी सनी से फोन पर बात होती रहती थी. सनी नागपाल उसे पहले की तरह ही चाहता था. साथसाथ गुजारे पुराने पलों को दोनों भूले नहीं थे. फलस्वरूप दोनों में फिर से नजदीकियां बढ़ने लगी.

आशु को लग रहा था कि विष्णु के साथ रह कर उस के सपने पूरे नहीं हो सकेंगे, लिहाजा वह पति को छोड़ कर प्रेमी सनी नागपाल के पास पहुंच गई.
इस के बाद दोनों तरफ के रिश्तेदारों ने कई बार पंचायत की लेकिन आशु की जिद की वजह से यह कोशिश भी नाकाम साबित हुई. करीब 10 महीने से आशु अपने प्रेमी सनी नागपाल के साथ रह रही थी.

उधर सनी नागपाल भी शादीशुदा था. उस की पत्नी का नाम सिमरन था और वह 2 बच्चों की मां थी. उस की बड़ी बेटी 9 साल की और बेटा 5 साल का था.
जब सनी नागपाल की पत्नी सिमरन को पता चला कि उस का पति अपनी प्रेमिका आशु के साथ कांशीराम नगर में रह रहा है, तो उस ने मार्च 2019 में महिला थाने में पति के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवा दी.

रिपोर्ट दर्ज हो जाने के बाद महिला थाने की पुलिस ने सनी नागपाल को गिरफ्तार कर लिया. उस के वकील ने सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश का हवाला दे कर कहा कि जब ये दोनों बालिग हैं तो दोनों को साथ रहने की आजादी है.

आशु जब अपनी मरजी से विष्णु के साथ रह रही है तो किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए. इस के बाद पुलिस ने सनी नागपाल को 41ए का नोटिस दे कर थाने से ही जमानत पर रिहा कर दिया.

आशु को पति से प्रेमी लगा प्यारा

आशु शर्मा खुले हाथ खर्च करना चाहती थी, जो उस के पति विष्णु के बूते की बात नहीं थी, इसलिए वह पति को छोड़ कर प्रेमी सनी के साथ रह रही थी.
उधर सनी नागपाल ने आशु से कहा, ‘‘आशु, देखो मैं ने तुम्हारी खातिर अपनी पत्नी और दोनों बच्चों को छोड़ दिया है. इसलिए अब तुम भी अपनी दोनों बेटियों को विष्णु के पास छोड़ आओ. उन की परवरिश विष्णु करेगा. फिर हम दोनों आराम से रहेंगे.’’
घटना से एक दिन पहले आशु ने अपनी बड़ी बहन नीरज शर्मा से फोन पर बात की. तब उस ने कहा कि दीदी मैं अब बहुत परेशान हो गई हूं. अपनी दोनों बेटियों को विष्णु को सौंप कर सेटल होना चाहती हूं.उधर विष्णु को जब अपनी पत्नी की जुदाई बरदाश्त नहीं हुई तो उस ने शराब पीनी शुरू कर दी. आशु भी आए दिन विष्णु को फोन करती रहती थी कि बच्चे याद कर रहे हैं. वे अब तुम्हारे पास ही रहेंगे. क्योंकि बच्चों के असली पिता तुम ही हो.

आशु वाट्सऐप से बच्चों की तसवीरें विष्णु के फोन पर भेजती रहती थी. कई बार उस ने विष्णु को नानवेज खाते हुए भी फोटो भेजे थे. विष्णु पूरी तरह से शाकाहारी था, इसलिए उसे आशु पर बहुत गुस्सा आया कि उस ने बच्चों को नानवेज खाना सिखा दिया. उस ने पत्नी को बहुत समझाया कि वह बच्चों को नानवेज न खिलाए और उन्हें ले कर आ जाए, लेकिन वह नहीं मानी.

घटना वाले दिन 9 मई, 2019 की रात में आशु व सनी नागपाल ने दोनों बेटियों के साथ एक होटल में खाना खाया. वहीं पर दोनों ने प्लान बनाया कि दोनों बेटियों को विष्णु के हवाले कर आएंगे. आशु बोली, ‘‘रात घिरने दो. मैं जब विष्णु के पास जाऊंगी तो वह मेरी बात नहीं टालेगा. वैसे भी वह रात में ड्रिंक किए होगा. मेरी बात मान लेगा.’’
आशु की दोनों बेटियों ने मना किया कि हमें पापा के पास क्यों ले जा रहे हो. हम वहां पर क्या करेंगे. घर पर वह अकेले रहते हैं, खुद जब पापा ड्यूटी पर चले जाया करेंगे तो हमें कौन देखेगा. हम वहां बोर हो जाएंगे. पर आशु ने उन की बातों को अनसुना कर दिया.

योजना के अनुसार सनी नागपाल व आशु अपनी दोनों बेटियों के साथ 9 मई की रात करीब साढ़े 11 बजे विष्णु के दुर्गानगर स्थित घर पहुंचे. उस समय विष्णु गहरी नींद में सोया हुआ था. वहां पहुंच कर आशु ने दरवाजा पीटना शुरू किया. इस से विष्णु की नींद टूट गई. वह उठा और अपनी सुरक्षा के लिए अंटी में .315 बोर का तमंचा लोड करके रख लिया. उस समय वह शराब के नशे में था.
दरवाजे पर पहुंच कर विष्णु ने आवाज लगाई, ‘‘कौन है?’’

तो बाहर से आवाज आई, ‘‘मैं तुम्हारी पत्नी आशु हूं. कुंडी खोलो, कुछ बात करनी है.’’
‘‘बात करनी है तो कल दिन में आना.’’ विष्णु ने कहा.
तब आशु ने जोर दे कर कहा, ‘‘देखो कोई जरूरी बात करनी है. दरवाजा तो खोलो.’’
विष्णु ने दरवाजा खोला तो देखा, बाहर उस का सनी, जिस ने उस का घर उजाड़ दिया था, दोनों बेटियों को लिए खड़ा था.
विष्णु बोला, ‘‘बताओ, क्या काम है?’’

‘‘देखो, मुझे सेटल होना है. बच्चियां तुम्हारी हैं इसलिए इन्हें तुम्हारे हवाले करने आई हूं. आज से तुम इन दोनों की परवरिश करना.’’ आशु बोली.विष्णु ने साफ मना कर दिया कि जो लोग मांस खाते हैं, उन से उस का कोई संबंध नहीं है, ‘‘तुम ही बेटियों को मांस खिलाती हो.’’
इस बात को ले कर आशु व विष्णु में बहस होने लगी. बात मारपीट तक पहुंच गई. दोनों में मारपीट व गुत्थमगुत्था होने लगी. तभी विष्णु ने अंटी में लगा तमंचा निकाल लिया. तमंचा देख कर आशु पहले तो घबरा गई फिर उस ने तमंचा छीनने की कोशिश की. इसी दौरान विष्णु ने फायर कर दिया. गोली लगते ही आशु जमीन पर गिर पड़ी. कुछ देर छटपटाने के बाद उस की मृत्यु हो गई.

फायर की आवाज सुन कर मकान के बाहर खड़ा सनी उस की दोनों बेटियों को ले कर भाग खड़ा हुआ. विष्णु ने तमंचा वहीं चारपाई पर रख दिया.
विष्णु शर्मा से पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे कोर्ट में पेश कर मुरादाबाद की जेल भेज दिया. उधर आशु का प्रेमी उस की दोनों बेटियों को ले कर रात में ही आशु की बहन नीरज शर्मा के घर पीतल बस्ती पहुंचा.
वह बोला, ‘‘आशु का विष्णु से झगड़ा हो गया है. तुम इन लड़कियों को अपने पास रख लो.’’

नीरज ने लड़कियों को रखने से मना कर दिया. आशु का फोन सनी नागपाल के पास था. पुलिस ने फोन किया तो फोन सनी नागपाल ने उठाया. पुलिस ने पूछा कि लड़कियां कहां हैं. उस ने बताया कि लड़कियां मेरे पास हैं. पर उस ने पुलिस को जगह नहीं बताई कि वह कहां है.

थानाप्रभारी विकास सक्सेना के नेतृत्व में एक टीम सनी नागपाल को उस के फोन की लोकेशन के आधार पर तलाशने लगी लेकिन उस के फोन की लोकेशन बारबार बदलती रही. इस के अलावा टीम उस के संभावित ठिकानों पर दबिश देने लगी.
सनी गिरफ्तारी से बचने के लिए साईं अस्पताल के सामने कांशीराम गेट के पास पहुंच गया. वहां से वह दिल्ली भागने की फिराक में था.

वह दिल्ली जाने वाली बस का इंतजार कर रहा था. तभी मुखबिर की सूचना पर पुलिस टीम ने उसे हिरासत में ले लिया. यह 19 मई, 2019 की बात है. पुलिस ने सनी नागपाल से पूछताछ कर उसे न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया.

सौजन्य- मनोहर कहानियां, जुलाई 2019

हतभागी भाग्यश्री : पिता के फैसले ने की जिंदगी बर्बाद

मध्य महाराष्ट्र की कृष्णा नदी की सहायक नदियों के किनारे निचली पहाडि़यों की लंबी शृंखला है. इन की घाटियों में बसे बीड शहर की अपनी एक अलग पहचान है. पहले यह शहर चंपावती के नाम से जाना जाता था. बीड में अनेक धार्मिक और ऐतिहासिक इमारतें हैं. इस के अलावा यहां शैक्षणिक संस्थान और कालेज भी हैं, जहां आसपास के शहरों से हजारों लड़केलड़कियां पढ़ने के लिए आते हैं.
घटना 19 दिसंबर, 2018 की है. उस समय शाम के यही कोई पौने 6 बजे का समय था. बीड के जानेमाने आदित्य इलैक्ट्रौनिक टेलीकम्युनिकेशन इंजीनियरिंग कालेज में सेमेस्टर परीक्षा का अंतिम पेपर चल रहा था, हजारों की संख्या में युवकयुवतियां परीक्षा दे रहे थे. इन्हीं में भाग्यश्री और सुमित वाघमारे भी थे. ये दोनों पतिपत्नी थे.
निर्धारित समय पर जब पेपर खत्म हुआ तो अन्य छात्रछात्राओं के साथ ये दोनों भी कालेज से बाहर आ गए. इन दोनों के चेहरों पर खुशी की चमक थी. मतलब उन का पेपर काफी अच्छा हुआ था, जिस की खुशी वह अपने सहपाठियों में बांट रहे थे.
लेकिन कौन जानता था कि उन के खिले चेहरों की खुशी सिर्फ कुछ देर की मेहमान है. परीक्षा के परिणाम आने के पहले ही उन की जिंदगी में जो परिणाम आने वाला था. वह काफी भयानक था. 15-20 मिनट अपने सहपाठियों से मिलनेजुलने के बाद दोनों पार्किंग में पहुंचे, जहां उन की स्कूटी खड़ी थी.
सुमित वाघमारे ने पार्किंग से अपनी स्कूटी निकाली और दोनों उस पर बैठ कर घर जाने के लिए निकल गए. 10 मिनट में वह नालवाड़ी रोड गांधीनगर चौक पर पहुंच गए. तभी उन की स्कूटी के सामने अचानक एक मारुति कार आ कर रुकी. उस वक्त सड़क कालेज के सैकड़ों छात्रों और भीड़भाड़ से भरी थी. मारुति कार उन की स्कूटी के सामने कुछ इस तरह आ कर रुकी थी कि वे दोनों रोड पर गिरतेगिरते बचे थे. इस के पहले कि वे संभल कर कुछ कहते, कार से 2 युवक निकल कर बाहर आ गए.
उन्हें देख कर भाग्यश्री और सुमित वाघमारे के होश उड़ गए. क्योंकि उन में से एकभाग्यश्री का भाई बालाजी लांडगे और दूसरा उस का दोस्त संकेत था. उन के इरादे कुछ ठीक नहीं लग रहे थे.
बालाजी लांडगे सुमित को खा जाने वाली नजरों से घूरे जा रहा था. भाग्यश्री अपने भाई के गुस्से को समझ रही थी. संभावना को देखते हुए भाग्यश्री अपने पति की रक्षा के लिए झट से पति के सामने आ खड़ी हुई. इस के बावजूद भी बालाजी लांडगे ने बहन को धक्का दे कर सुमित के सामने से हटाया और अपने दोस्त संकेत वाघ की तरफ इशारा कर के सुमित को पकड़ने के लिए कहा.
संकेत ने सुमित का कौलर पकड़ लिया. यह देख बालाजी बोला, ‘‘क्यों बे, मैं ने कहा था न कि मेरी बहन से दूर रहना, नहीं तो नतीजा बुरा होगा. लेकिन मेरी बातों का तुझ पर कोई असर नहीं हुआ. इस की सजा तुझे जरूर मिलेगी.’’

गुस्से में चाकू बना तलवार

इस के पहले कि सुमित कुछ कहता या संभल पाता, बालाजी लांडगे ने अपनी जेब से चाकू निकाला और सुमित पर हमला कर दिया. पति पर हमला होता देख भाग्यश्री चीखते हुए बोली, ‘‘भैया, सुमित को छोड़ दो. उस की कोई गलती नहीं है. सजा देनी है तो मुझे दो. मैं ने उसे प्यार और शादी के लिए मजबूर किया था. तुम्हें मेरी कसम है भैया. दया करो, बहन पर.’’
‘‘कैसी बहन, मेरी बहन तो उसी दिन मर गई थी, जब घर से भाग कर तूने इस से शादी की थी. जानती है तेरी इस करतूत से समाज और बिरादरी में हमारी कितनी बदनामी हुई. तूने परिवार को कहीं का नहीं छोड़ा. लेकिन मैं भी इसे नहीं छोड़ूंगा.’’ वह बोला.
अगले ही पल बालाजी लांडगे ने चाकू सुमित वाघमारे के पेट में उतार दिया. इस हमले से सुमित वाघमारे की मार्मिक चीख निकली और वह जमीन पर गिर कर तड़पने लगा. इस के बाद भी बालाजी लांडगे का गुस्सा शांत नहीं हुआ. वह सुमित वाघमारे पर तब तक वार करता रहा, जब तक कि उस की मौत न हो गई.
इस दौरान भाग्यश्री रहम की भीख मांगती रही. पति की जान बचाने के लिए वह मदद के लिए चीखतीचिल्लाती रही. लेकिन उस की सहायता के लिए कोई आगे नहीं आया. सुमित वाघमारे की हत्या करने के बाद बालाजी और उस का दोस्त संकेत दोनों वहां से चले गए.
अचानक घटी इस घटना को जिस ने भी देखा, स्तब्ध रह गया. शहर के बीचोबीच भीड़भाड़ भरे इलाके में घटी इस घटना से पूरे बीड शहर में सनसनी फैल गई. भाग्यश्री पति के शरीर से लिपट कर बुरी तरह चीखचिल्ला कर लोगों से सहायता मांग रही थी कि उस के पति को अस्पताल ले जाने में मदद करें. लेकिन मदद के लिए कोई आगे नहीं आया.
काफी हाथपैर जोड़ने के बाद आखिरकार एक आटो वाले को दया आई और वह सुमित वाघमारे को अपने आटो से जिला अस्पताल ले गया, जहां डाक्टरों ने सुमित को मृत घोषित कर दिया.
यह सुन कर भाग्यश्री अस्पताल में ही फिर से रोने लगी. अस्पताल स्टाफ ने उसे सांत्वना दी. पुलिस केस था, लिहाजा अस्पताल प्रशासन की सूचना पर पुलिस भी वहां पहुंच गई. भाग्यश्री ने अस्पताल से ही सुमित के घर वालों को फोन कर के उस की हत्या की खबर दे दी थी.
अस्पताल पहुंचे थाना विलपेठ के पीआई ने भाग्यश्री से बात की तो उस ने बता दिया कि उस के पति की हत्या उस के सगे भाई बालाजी लांडगे और उस के दोस्त संकेत ने की है. थानाप्रभारी ने यह सूचना अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी.
कुछ ही देर में बीड शहर के एसपी जी. श्रीधर, एडीशनल एसपी वैभव कलुबर्मे, डीएसपी (क्राइम) सुधीर खिरडकर, पीआई घनश्याम पालवदे, एपीआई दिलीप तेजनकर, अमोल धंस, पंकज उदावत के साथ अस्पताल आ गए. उन्होंने मृतक के शव का बारीकी से निरीक्षण किया. उस के शरीर पर तेज धार वाले हथियार के कई वार थे.
अस्पताल से पूछताछ करने के बाद पुलिस अधिकारी घटनास्थल पर पहुंचे. घटनास्थल की काररवाई निपटाने के बाद पीआई फिर से अस्पताल गए. उन्होंने सुमित की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

औनरकिलिंग के चक्कर में हुई हत्या

भाग्यश्री ने अपने भाई बालाजी लांडगे और संकेत वाघ के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज करवाने के बाद पुलिस को बताया कि जब से उस ने अपने परिवार के विरुद्ध जा कर सुमित वाघमारे से कोर्टमैरिज की थी, तब से उस के परिवार वाले अकसर सुमित को धमकियां देते आ रहे थे, जिस की उन्होंने करीब एक महीने पहले शिवाजी नगर पुलिस थाने में शिकायत दर्ज करवाई थी. लेकिन पुलिस ने कोई काररवाई नहीं की तो बालाजी के हौसले बुलंद हो गए.
पुलिस को मामला औनरकिलिंग का लग रहा था. दिनदहाड़े हत्या होने की खबर जब शहर में फैली तो एसपी जी. श्रीधर ने लोगों को भरोसा दिया कि हत्यारों को जल्द पकड़ लिया जाएगा. उन्होंने उसी समय इस केस की जांच पुलिस डीएसपी (क्राइम) सुधीर खिरडकर को सौंप दी.
खिरडकर ने जांच का जिम्मा लेते ही स्थानीय पुलिस और क्राइम ब्रांच की कई टीमें बना कर तेजी से जांच शुरू कर दी. पुलिस ने सब से पहले शहर की नाकेबंदी कर के अभियुक्तों के बारे में अलर्ट जारी कर दिया.
घटनास्थल के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली गई तो इस बात की पुष्टि हो गई कि वारदात को बालाजी लांडगे और संकेत वाघ ने ही अंजाम दिया था. लिहाजा पुलिस ने दोनों के फोन नंबर सर्विलांस पर लगा दिए. साथ ही मुखबिरों को भी सजग कर दिया. लेकिन 3 दिनों तक पुलिस और क्राइम ब्रांच को कोई सफलता नहीं मिली.
जांच के दौरान पुलिस को जानकारी मिली कि सुमित वाघमारे की हत्या में बालाजी लांडगे के दोस्त कृष्णा क्षीरसागर और उस के भाई गजानंद क्षीरसागर ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. बालाजी और उस का दोस्त संकेत फरार हो चुके थे. लिहाजा पुलिस टीम ने दबिश दे कर कृष्णा क्षीरसागर और उस के भाई गजानंद क्षीरसागर को गिरफ्तार कर लिया.
कृष्णा क्षीरसागर और गजानंद क्षीरसागर ने क्राइम ब्रांच को बताया कि बालाजी लांडगे और संकेत वाघ पुणे होते हुए औरंगाबाद में एक मंत्री के घर गए हैं. यह सूचना मिलते ही क्राइम ब्रांच की टीम पुणे में उस मंत्री के घर पहुंच गई. पता चला कि टीम के आने के कुछ घंटे पहले ही दोनों वहां से अमरावती के लिए निकल गए थे.
आरोपी अमरावती शहर से बाहर न जा सकें, इस के लिए एसपी जी. श्रीधर ने अमरावती के पुलिस कमिश्नर से अभियुक्तों की गिरफ्तारी में मदद करने को कहा. तब पुलिस कमिश्नर ने अमरावती शहर की पुलिस के साथ जीआरपी को भी सतर्क कर दिया. जीआरपी ने बालाजी लांडगे और संकेत वाघ को अमरावती के बडनेरा रेलवे स्टेशन पर गिरफ्तार कर लिया. इस के बाद उन्होंने दोनों अभियुक्त क्राइम ब्रांच की जांच टीम को सौंप दिए.
क्राइम ब्रांच औफिस में बालाजी लांडगे से पूछताछ की तो उस ने आसानी से अपना गुनाह स्वीकार करते हुए अपनी बहन के सुहाग की हत्या की जो कहानी बताई, इस प्रकार निकली—

25 वर्षीय सुमित वाघमारे महत्त्वाकांक्षी युवक था. मूलरूप से बीड तालखेड़ा, तालुका मांजल, गांव हमुनगोवा का रहने वाला था. उस के पिता शिवाजी वाघमारे गांव के जानेमाने किसान थे. गांव में उन की काफी प्रतिष्ठा थी. परिवार में उन की पत्नी के अलावा एक बेटी और बेटा सुमित वाघमारे थे.
शिवाजी वाघमारे उसे उच्चशिक्षा दिला कर कामयाब इंसान बनाना चाहते थे, इसलिए उन्होंने सुमित का एडमिशन बीड शहर के आदित्य इलैक्ट्रौनिक टेलीकम्युनिकेशन इंजीनियरिंग कालेज में करवाया. उस के रहने की व्यवस्था उन्होंने बीड शहर में ही रहने वाली अपनी साली के यहां कर दी थी. अपनी मौसी के घर रह कर सुमित इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने लगा.
इसी कालेज से भाग्यश्री लांडगे भी इंजीनियरिंग कर रही थी. दोनों एक ही कक्षा में थे, जिस से उन की अच्छी दोस्ती हो गई. उन की दोस्ती प्यार तक कब पहुंच गई, उन्हें पता ही नहीं चला.
दोनों के दिलों में प्यार के अंकुर फूटे तो वे एकदूसरे को अपने जीवनसाथी के रूप में देखने लगे थे. उन्हें ऐसा लगने लगा जैसे दोनों एकदूसरे के लिए ही बने हों.

पहले दोस्ती, फिर प्यार, बाद में शादी

समय धीरधीरे सरक रहा था. कालेज की पढ़ाई और परीक्षा में सिर्फ 6 महीने रह गए थे. दोनों ने फाइनल परीक्षा के बाद शादी करने का फैसला किया था, लेकिन इस के पहले ही भाग्यश्री के परिवार वालों को उस के और सुमित के बीच चल रहे प्यार की जानकारी हो गई, जिसे जान कर वे सन्न रह गए. उन्होंने भाग्यश्री के लिए जो सपना देखा था, वह टूट कर बिखरते हुए नजर आया.
मामला काफी नाजुक था. भाग्यश्री का फैसला उन की मानमर्यादा के खिलाफ था. लेकिन भाग्यश्री सुमित वाघमारे के प्यार में अंधी हो चुकी थी. फिर भी उन्होंने मौका देख कर भाग्यश्री को समझाने की काफी कोशिश की. उस के भाई बालाजी लांडगे को तो सुमित जरा भी पसंद नहीं था.
वह न तो उन की बराबरी का था और न ही उन की बिरादरी का. उस ने भाग्यश्री को न केवल डांटाफटकारा बल्कि बुरे अंजाम की चेतावनी भी दी. साथ ही यह भी कहा कि अगर उस ने अपनी राह और रवैया नहीं बदला तो उस का कालेज जाना बंद करा देगा.
घर और परिवार का माहौल बिगड़ते देख भाग्यश्री समझ गई कि घर वाले उस की शादी में जरूर व्यवधान डालेंगे. इसलिए किसी भी नतीजे की परवाह किए बगैर कालेज की परीक्षा के 3 महीने पहले उस ने अपने प्रेमी सुमित वाघमारे से कोर्टमैरिज कर ली. इतना ही नहीं, कुछ दिनों के लिए वह पति सुमित के साथ भूमिगत हो गई.
भाग्यश्री के अचानक गायब हो जाने के बाद उस के घर वालों की काफी बदनामी हुई. इतना ही नहीं, जब उन्हें पता चला कि उस ने सुमित से शादी कर ली है तो उन्हें बहुत गुस्सा आया. घर वालों ने दोनों को बहुत तलाशा. जब वे नहीं मिले तो सुमित वाघमारे को जिम्मेदार मानते हुए उन्होंने शिवाजी नगर थाने में सुमित के खिलाफ भाग्यश्री के अपहरण की शिकायत दर्ज करा दी.
पुलिस ने मामले में संज्ञान लेते हुए अपनी काररवाई शुरू कर दी. इसी बीच भाग्यश्री को पता चल गया कि पुलिस उन्हें तलाश रही है. लिहाजा अपनी शादी के एक महीने बाद भाग्यश्री और सुमित वाघमारे दोनों पुलिस के सामने हाजिर हो गए. दोनों ने अपने बालिग होने और शादी करने का प्रमाणपत्र पुलिस को दे दिया. साथ ही अपनी सुरक्षा की भी गुहार लगाई.
मामले की गंभीरता को देखते हुए पुलिस ने भाग्यश्री के परिवार वालों को समझा दिया कि दोनों बालिग हैं, इसलिए उन की शादी कानूनन वैध है. इसलिए उन्हें किसी भी तरह तंग न किया जाए. अगर भाग्यश्री या उस के पति ने थाने में अपनी सुरक्षा आदि को ले कर कोई शिकायत की तो पुलिस को काररवाई करनी पड़ेगी.
लेकिन पुलिस की चेतावनी के बाद भी भाग्यश्री के परिवार वालों का रवैया नहीं बदला. उन के अंदर प्रतिशोध की चिंगारी सुलगती रही. भाग्यश्री के भाई बालाजी लांडगे ने भाग्यश्री और सुमित वाघमारे को घटना के एक महीने पहले सबक सिखाने की धमकी दी थी, जिस की शिकायत उन्होंने थाने में भी की थी.

प्रेमी युगल की शिकायत
के बावजूद कुछ नहीं हुआ

पुलिस में की गई इस शिकायत का भी बालाजी पर कोई असर नहीं हुआ. वह अपने परिवार की बेइज्जती पर भाग्यश्री को सबक सिखाना चाहता था. इस के लिए उस ने एक खतरनाक योजना तैयार की, जिस में उस ने अपने दोस्त संकेत वाघ, कृष्णा क्षीरसागर और गजानंद क्षीरसागर की मदद ली. उन्हें उन का काम समझा कर वह मौके की तलाश में रहने लगा था.
19 दिसंबर, 2018 को कृष्णा क्षीरसागर ने बालाजी लांडगे को बताया कि भाग्यश्री और सुमित वाघमारे अपनी परीक्षा देने के लिए कालेज आएंगे. खबर पाते ही बालाजी लांडगे अपनी योजना की तैयारी में लग गया. उस ने अपने दोस्त संकेत वाघ को उस की कार के साथ लिया और कालेज के पास आ कर परीक्षा खत्म होने का इंतजार करने लगा.
परीक्षा खत्म होने के बाद भाग्यश्री और सुमित वाघमारे जब अपनी स्कूटी से कालेज से घर के लिए निकले तो बालाजी लांडगे ने उन का रास्ता रोक लिया और देखते ही देखते बहन के सिंदूर को रक्त के कफन में लपेट दिया.
सुमित वाघमारे की हत्या के बाद संकेत वाघ और बालाजी लांडगे ने कार ले जा कर मित्रनगर छोड़ दी. वहां से वह गजानंद क्षीरसागर की स्कूटी से वाडा रेलवे स्टेशन गए, वहां से वे पुणे, औरंगाबाद और अमरावती पहुंचे, जहां वे रेलवे पुलिस के हत्थे चढ़ गए थे.
चारों गिरफ्तार अभियुक्तों से विस्तृत पूछताछ करने के बाद बीड क्राइम ब्रांच के अधिकारियों ने उन्हें विलपेठ पुलिस थाने के अधिकारियों को सौंप दिया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

सौजन्य- मनोहर कहानियां, मई 2019

पढ़ा लिखा अमानुष : अपनी बेटी का किया शिकार

जूनियर इंजीनियर सुशील कुमार पिछले 2 सालों से मेरठ की ट्यूबवेल कालोनी स्थित सरकारी कालोनी में अपने परिवार के साथ रह रहा था.उस की नियुक्ति सिंचाई विभाग में थी. उस के परिवार में पत्नी मोनिका उर्फ डौली के अलावा 2 बेटियां और एक बेटा था. सब से बड़ी बेटी सोनी (परिवर्तित नाम) 14 साल की थी.

बात 13 मार्च, 2019 की सुबह करीब 9 बजे की है. जेई सुशील कुमार की पत्नी मोनिका अपनी बड़ी बेटी सोनी के साथ अस्पताल गई थी. थोड़ी देर बाद जब वह घर लौटी तो वहां का खौफनाक मंजर देख कर उस की चीख निकल गई. उस के रोनेबिलखने की आवाजें सुन कर आसपास रहने वाले लोग उस के यहां चले आए. सभी के मन में जिज्ञासा हो गई कि पता नहीं अचानक जेई साहब के यहां क्या हो गया. लेकिन लोगों ने एक कमरे में जब जेई सुशील कुमार की खून से सनी लाश बैड पर पड़ी देखी तो सन्न रह गए. लोग समझ नहीं पा रहे थे कि यह सब कैसे हो गया. कमरे का सारा सामान भी बिखरा हुआ था.

मोनिका ने उसी समय अपने देवर अजय कुमार को फोन कर के इस घटना की जानकारी दी. बड़े भाई की हत्या होने की बात सुन कर अजय भी अवाक रह गया. अजय सहारनपुर के पास स्थित अपने पैतृक गांव सलोनी में रहता था. भाई का दुखद समाचार सुन कर वह परिवार के अन्य लोगों के साथ मेरठ की तरफ रवाना हो गया. उसी दौरान मोनिका ने थाना सिविल लाइंस में फोन कर के पति की हत्या की सूचना दे दी.
मेरठ के सिविल लाइंस थानाप्रभारी अब्दुर रहमान सिद्दीकी को जैसे ही घटना की जानकारी मिली तो वह अपने स्टाफ के साथ नलकूप विभाग की कालोनी की ओर रवाना हो गए.

थानाप्रभारी ने घटनास्थल का बारीकी से मुआयना किया. उन्होंने फोरैंसिक टीम तथा डौग स्क्वायड को भी घटनास्थल पर बुला लिया. बैड पर मृतक जेई सुशील कुमार के हाथपैर तथा मुंह कपड़े से बंधे थे तथा उस के गले को किसी तेज धारदार हथियार से रेता गया था.

बैड के अलावा बैडरूम में चारों तरफ खून के छींटे दिख रहे थे तथा कमरे का सामान इधरउधर बिखरा पड़ा था. इस के अलावा जेई साहब के क्वार्टर के सामने वाले एक क्वार्टर के दरवाजे पर भी खून के छींटे दिखाई दिए.

घटनास्थल पर मिले तमाम फोरैंसिक नमूने एकत्र करने के बाद उन्होंने क्वार्टर के दूसरे कमरे का भी मुआयना किया. दरअसल, इस सरकारी क्वार्टर में 2 कमरे थे. दूसरे कमरे का सारा सामान भी बिखरा हुआ था और अलमारी खुली पड़ी थी.

यह सब देख कर ऐसा लग रहा था जैसे हत्या की यह वारदात लूटपाट के इरादे से की गई हो. शायद सुशील कुमार ने लुटेरों का विरोध किया होगा. जिस पर लुटेरों ने उस की निर्ममतापूर्वक हत्या कर दी होगी.

मृतक की पत्नी मोनिका से जब इस घटना के बारे में थानाप्रभारी ने पूछा तो उस ने रोते हुए बताया कि वह सुबह 9 बजे के आसपास अपनी बड़ी बेटी सोनी के साथ डाक्टर के पास गई थी. उस समय उस के पति चाय पीने के बाद नहाने जाने की तैयारी कर रहे थे. जबकि दोनों छोटे बच्चे घर से बाहर खेलने गए थे.

डाक्टर के पास से जब वह घर लौटी तो देखा कि क्वार्टर के दरवाजे की कुंडी बाहर से बंद थी. दरवाजा खोलने पर उसे बैड पर पति की लाश पड़ी मिली. यह सारी घटना महज आधे घंटे के अंतराल के दौरान घट गई थी.

मृतक की पत्नी और कालोनी के कुछ अन्य लोगों से पूछताछ करने के बाद सुशील कुमार की लाश पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दी.

काररवाई के बाद पुलिस ने सुशील कुमार के बैडरूम को अपने कब्जे में ले लिया. वहां पर कुछ पुलिसकर्मियों को निगरानी के लिए छोड़ कर थानाप्रभारी अब्दुर रहमान सिद्दीकी वापस थाने लौट आए. पुलिस ने मोनिका की शिकायत पर अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या और लूटपाट का मामला दर्ज कर लिया. थानाप्रभारी इस केस की आगे की तहकीकात थाने के ही इंसपेक्टर मुकेश कुमार को सौंप दी.

इंसपेक्टर मुकेश कुमार ने हत्या के इस सनसनीखेज मामले की तफ्तीश को आगे बढ़ाते हुए मृतक जेई के सामने रहने वाले दूसरे जेई भारत यादव को हिरासत में ले लिया. क्योंकि उन के दरवाजे पर खून के छींटे मिले थे. पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में जेई भारत यादव ने खुद को निर्दोष बताते हुए कहा कि सुबह वह अपने र्क्वाटर में मौजूद थे. लेकिन इस दौरान उन्होंने सुशील कुमार के क्वार्टर से चीखने जैसी कोई आवाज नहीं सुनी.

अलबत्ता मोनिका ने भारत यादव पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि भारत यादव के उस के पति से अच्छे संबंध नहीं थे इसलिए इस घटना में उस का हाथ हो सकता है. लेकिन जब अगले 36 घंटे की पूछताछ में इंसपेक्टर मुकेश कुमार को इस घटना में भारत यादव के ऊपर संदेह नहीं हुआ तो उन्होंने उसे शहर में ही रहने की ताकीद कर घर जाने की इजाजत दे दी.

उधर पोस्टमार्टम के बाद सुशील कुमार की लाश अतिम संस्कार के लिए उस के घर वालों को सौंप दी गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया गया कि सुशील कुमार की मौत गला कटने के कारण अधिक खून निकल जाने की वजह से हुई थी.

काल डिटेल्स में मिला क्लू

पुलिस जांच में यह भी पता चला कि सुबह 9 और साढ़े 9 बजे के बीच कालोनी के लोगों ने किसी को भी मृतक के क्वार्टर की तरफ आतेजाते नहीं देखा था. जब कहीं से कोई क्लू नहीं मिला तो पुलिस ने मृतक सुशील कुमार और उस की पत्नी मोनिका के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई.

मोनिका के मोबाइल की काल डिटेल्स देख कर इंसपेक्टर मुकेश कुमार चौंक उठे. पता चला कि पिछले कुछ महीने से लगातार एक मोबाइल नंबर पर उस की लगातार बातें होती आ रही हैं. बातचीत का यह सिलसिला उस के पति की हत्या के बाद भी जारी था.

पुलिस ने उस मोबाइल नंबर की भी डिटेल निकलवाई तो पता चला यह सिमकार्ड पवन कुमार सैनी के नाम रजिस्टर्ड था, जो राजस्थान के गंगानगर का रहने वाला था. जब इंसपेक्टर मुकेश कुमार ने मोनिका को थाने में बुला कर इस मोबाइल नंबर के बारे में सख्ती से पूछताछ की तो उस का चेहरा सफेद पड़ गया. उस ने बड़ी ही आसानी से पति की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली. पति की हत्या को स्वीकार करते हुए उस ने जो कुछ बताया, सुन कर वहां उपस्थित सभी पुलिस अधिकारी हैरान रह गए.

उस से की गई पूछताछ के बाद उसी दिन पुलिस टीम श्रीगंगानगर पहुंची और वहां से पवन को हिरासत में ले आई. उस से जब इस घटना के बारे में पूछताछ की तो थोड़ी देर तक आनाकानी करने के बाद उस ने मोनिका के साथ मिल कर उस के पति सुशील कुमार की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली.

मेरठ के एसएसपी नितिन तिवारी और एसपी डा. अखिलेश नारायण सिंह ने 16 मार्च, 2019 को एक प्रैस कौन्फ्रैंस आयोजित कर इस सनसनीखेज हत्याकांड का परदाफाश कर दिया.

उत्तर प्रदेश के जिला सहारनपुर का एक गांव है सलोनी. यह गांव थाना सरसावाला के अंतर्गत आता है. जेई सुशील कुमार इसी गांव का रहने वाला था. वह अपनी पत्नी मोनिका व 3 बच्चों के साथ मेरठ के सिंचाई विभाग के सरकारी क्वार्टर में रहता था. उस के पास सभी भौतिक सुखसुविधाएं थीं.

मोनिका अपने पति और तीनों बच्चों के साथ बेहद खुश थी. लेकिन पिछले कुछ महीनों से वह पति के चालचलन में कुछ परिवर्तन महसूस कर रही थी.

दरअसल, सुशील ने उस में रुचि लेनी बहुत कम कर दी थी. इस का पता लगाने के लिए जब मोनिका ने एक दिन पति के मोबाइल फोन की जांचपड़ताल की तो एक दिन उसे पता चला कि पति के कुछ महिलाओं के साथ अवैध संबंध हैं, जिन के साथ वह बराबर संपर्क में रहता है.

यह जान कर मोनिका के दिल को बहुत चोट पहुंची. उस ने पति को आकर्षित करने के कई हथकंडे अपनाए, लेकिन सुशील के व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आया. यह सब देख कर उस ने पति से बदला लेने की ठानी और अपने मोबाइल से एक सोशल साइट पर जा कर दूसरे लड़कों से रोमांटिक चैटिंग करनी शुरू कर दी. सोशल साइट पर उस की मुलाकात पवन कुमार सैनी नाम के युवक से हुई. पवन सैनी राजस्थान के श्रीगंगानगर के गांव नाहरावाली का रहने वाला था.

मोनिका की पवन से गहरी दोस्ती हो गई. मोनिका को पवन बहुत अच्छा लगा, इसलिए उस ने उस से प्यार का इजहार कर दिया. अब मोनिका पवन से मिलने के लिए उतावली हो रही थी. लिहाजा मोनिका ने एक दिन उसे मेरठ के एक होटल में मिलने के लिए बुलाया.

मोनिका के कहने पर पवन श्रीगंगानगर से चल कर मेरठ के एक होटल में पहुंच गया. मोनिका भी उसी होटल में पहुंच गई. पहली बार मिलने पर दोनों ही बहुत खुश हुए. पवन उम्र में उस से छोटा था.

होटल के बंद कमरे में दोनों ने एकदूसरे पर प्यार लुटाते हुए काफी वक्त गुजारा. एकदूसरे को प्यार करते रहने की कसमें खाईं. इस हसीन और रोमांचक मुलाकात के बाद पवन ने मोनिका से फिर मिलने आने का वादा किया और वापस श्रीगंगानगर लौट गया.

इस घटना के बाद वे दोनों अपनी सुविधा और मौके के अनुसार एक दूसरे को फोन कर अपने दिल की बात कर लेते थे. जब मोनिका के मन में पवन से मिलने की इच्छा हिलोरें मारती तो वह उसे मेरठ बुला लेती थी. पवन अभी कुंवारा था, इसलिए वह खुद भी मोनिका से मिलने की ताक में रहता था.

करीब ढाई साल तक अवैध संबंधों का यह सिलसिला बड़ी खामोशी से चलता रहा. मोनिका और पवन दोनों एकदूसरे को पा कर बहुत खुश थे. तभी एक दिन अचानक मोनिका की 14 वर्षीय किशोर बेटी सोनी ने उसे जो कुछ बताया, उसे सुन कर उस के पैरों तले की जमीन खिसक गई.

सोनी ने बताया कि उस के पापा पिछले कुछ महीनों से उस के साथ जबरन गलत काम करते हैं और मना करने पर वह उस के साथ मारपीट करते हैं.

मोनिका ने हिम्मत कर के यह बात पति से पूछी तो उलटे वह आगबबूला हो उठा और चुप रहने को कहा. इतना ही नहीं, उस ने यह भी धमकी दी कि अगर यह बात किसी को बताई तो वह तीनों बच्चों को मौत के घाट उतार देगा.

पानी चढ़ गया सिर से ऊपर

मोनिका ने कई बार पति को समझाने की कोशिश की, लेकिन सुशील अपनी हरकतों से बाज नहीं आया. पानी सिर से ऊपर जाता देख कर मोनिका ने सुशील की इस गंदी हरकत के बारे में अपनी सास परीक्षा देवी को बताया. अपने बेटे की करतूत सुन कर परीक्षा ने ऐसे पढ़ेलिखे बेटे को लानत दी. इतना ही नहीं, उन्होंने बेटे सुशील को समझाने की कोशिश की, मगर वह कुछ भी समझने की जगह उलटे मरनेमारने पर उतारू हो गया.

यह देख कर परीक्षा से बहू मोनिका से कहा कि ऐसे राक्षस का घर में रहना ठीक नहीं है. इसे तो समाज में जिंदा रहने का भी अधिकार नहीं है. सास की बात सुन कर मोनिका मन ही मन बहुत खुश हुई क्योंकि पति के मरने के बाद पूरी तरह से अपने प्रेमी पवन सैनी के साथ रहने की आजादी मिलती.

मोनिका एक तीर से दो शिकार कर रही थी. उसे अब सुशील से नफरत हो चुकी थी. वह सुशील की हत्या करने के बाद पवन के साथ अपनी जिंदगी शुरू करना चाहती थी. मोनिका ने पति को ठिकाने लगाने के बारे में सास से बात की तो उन्होंने मोनिका को कुछ रुपए भी दे दिए ताकि वह किसी और से सुशील की हत्या करा सके.

इस के बाद मोनिका ने पवन को मेरठ बुला कर उस से कहा कि अगर वह उसे हमेशा के लिए पाना चाहता है तो उसे पति को ठिकाने लगाना होगा. आखिर में पवन अपनी माशूका के साथ जिंदगी गुजारने की खातिर उस के पति की हत्या करने के लिए तैयार हो गया. इस काम के लिए मोनिका ने अपनी बड़ी बेटी सोनी को भी शामिल कर लिया.

बेटी भी हो गई बाप की हत्या में शामिल

दरअसल वह भी अपने बाप के अत्याचारों से इतनी तंग आ चुकी थी कि उसे मौत के घाट उतारने के लिए मम्मी का साथ देने में उस ने एक पल के लिए भी नहीं सोचा.

योजना के अनुसार, 12 मार्च, 2019 को मोनिका का प्रेमी पवन श्रीगंगानगर से मेरठ पहुंचा और वहां एक होटल में ठहर गया. अगले दिन 13 मार्च की सुबह मोनिका ने पवन के मोबाइल पर फोन कर उसे अपने क्वार्टर के बाहर बुला लिया. उस समय लोगों का अधिक आनाजाना नहीं था.

इसी बीच सोनी अपने पापा सुशील के पास पहुंची. सुशील कुमार उस समय अपने बैड पर बैठा हुआ था. सोनी ने प्यार से मनुहार करते हुए उसे एक खेल खेलने के लिए कहा तो वह इस के लिए फौरन राजी हो गया. दरअसल, वह सोनी को कभी किसी बात के लिए मना नहीं करता था.

इस के बाद पहले तो उस ने पापा सुशील कुमार की दोनों आंखों पर पट्टी बांधी. फिर उस के हाथ और पैरों को भी मजबूती से बांध दिया. तब तक मोनिका भी कमरे में आ गई. उस ने पति को बंधे देखा तो पवन को कमरे में आने के लिए फोन किया.

पवन चाकू ले कर वहां पहुंच गया. पवन को देखकर मोनिका की आंखें चमक उठीं. उस ने पति के सिर को पकड़ कर पीछे की ओर खींचा और पवन को जल्दी से उस की गरदन काटने का इशारा किया. शायद तभी सुशील को अपने साथ कुछ गलत होने का आभास हो गया था, इसलिए वह बचने के लिए छटपटाने लगा. लेकिन उस की बेटी सोनी ने उस के हाथ और पैर पकड़ लिए ताकि पवन आसानी से अपने काम को अंजाम दे सके. तभी पवन ने चाकू से सुशील की गरदन रेत डाली.

जब सुशील की लाश तड़प कर ठंडी पड़ गई तो पवन ने दूसरे कमरे में जा कर अपने कपड़ों से खून साफ किया और वहां से अपने होटल लौट गया. उस के जाने के बाद मोनिका और सोनी ने सुशील के खून के छींटे सामने रहने वाले जेई भारत यादव के दरवाजे पर लगा दिए ताकि साजिश के तहत इस कत्ल का आरोप उस के सिर मढ़ा जा सके.

दरअसल भारत यादव और सुशील के बीच किसी बात को ले कर खटपट होती रहती थी. इस के बाद उस ने घर के कपड़े और अलमारियों का सामान इस प्रकार कमरे में फेंक दिया ताकि यह मामला लूटपाट का लगे. फिर दोनों मांबेटी कमरों का दरवाजा बंद कर अस्पताल जाने के बहाने घर से बाहर निकल गईं. आधे घंटे के बाद दोनों वापस लौट आईं और घर में लूटपाट होने तथा पति की हत्या की झूठी खबर लोगों में फैला दी.

विवेचनाधिकारी इंसपेक्टर मुकेश कुमार ने हत्या में प्रयुक्त चाकू और खून से सने पवन के कपड़े बरामद करने के बाद सुशील कुमार हत्याकांड के दोनों आरोपियों पवन और मोनिका को स्थानीय अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

सोनी को बाल न्यायालय में पेश कर बाल सुधारगृह भेजा गया. बाद में इस हत्याकांड में शामिल चौथी आरोपी जेई सुशील कुमार की मां परीक्षा देवी को भी सहारनपुर स्थित उन के पुश्तैनी घर से गिरफ्तार कर अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें भी जेल भेज दिया गया.

सौजन्य- मनोहर कहानियां, मई 2019

प्यार के भंवर में-भाग 1 : देवर भाभी ने क्यों की आत्महत्या

उत्तर प्रदेश के जिला बांदा का एक गांव है-बदौली. रसपाल इसी गांव में रहता था. उस के परिवार में पत्नी चंद्रकली के अलावा एक बेटा भानुप्रताप तथा बेटी सुनीता थी. रसपाल खेती किसानी के साथसाथ ट्यूबवैल मरम्मत का काम करता था. इस से उसे अतिरिक्त आमदनी हो जाती थी.

कुल मिला कर उस का परिवार खुशहाल था. रसपाल ने अपनी बेटी सुनीता का विवाह सन 2016 में हरिओम के साथ कर दिया था. हरिओम के पिता शिवबरन, फतेहपुर जिले के गांव लमेहटा के रहने वाले थे. उन के परिवार में पत्नी गेंदावती के अलावा 2 बेटे हरिओम व राममिलन थे. हरिओम जेसीबी चालक था, जबकि राममिलन पिता के कृषि कार्य में हाथ बंटाता था.

एक तरह से सुनीता और हरिओम की शादी बेमेल थी. हरिओम उम्र में तो बड़ा था, साथ ही वह सांवले रंग का भी था. जबकि सुनीता सुंदर थी और चंचल भी. इस के बावजूद उस के घरवालों ने हरिओम को पसंद कर लिया था. इस की वजह यह थी कि हरिओम जेसीबी चला कर अच्छा पैसा कमाता था.

हरिओम जहां सुनीता को पा कर खुश था, वहीं सुनीता उम्रदराज और सांवले रंग के पति को पा कर जरा भी खुश नहीं थी. शादी से पहले उस के मन में पति को ले कर जो सपने थे, वे चकनाचूर हो गए थे.
शादी के एक साल बाद सुनीता ने एक बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम हर्ष रखा. इस के बाद एक बेटी का जन्म हुआ. 2 बच्चों की किलकारियों से सुनीता का घरआंगन गूंजने लगा.

सुनीता की अपने देवर राममिलन से खूब पटती थी. इस की वजह यह थी कि एक तो वह हमउम्र था, दूसरे सुनीता, राममिलन के बात व्यववहार से काफी प्रभावित थी. वह अपने देवर का हर तरह से खयाल रखती थी.

इसी वजह से राममिलन सुनीता के आकर्षण में बंध कर उस के नजदीक आने की कोशिश करने लगा. यही नहीं, वह उस की खूब तारीफ करता और उसे प्रभावित करने के लिए कभीकभार वह उस के लिए कोई उपहार भी ले आता.

हरिओम ड्राइवर था, सो पक्का शराबी था. अकसर वह झूमता हुआ घर वापस आता. वह कभी थोड़ाबहुत खाना खा कर तो कभी बिना खाए ही सो जाता था. सुनीता 2 बच्चों की मां जरूर थी, लेकिन अभी उस में पति का साथ पाने की प्रबल इच्छा थी. लेकिन हरिओम तो बिस्तर पर लेटते ही खर्राटे भरने लगता था. तब सुनीता मन मसोस कर रह जाती थी.

आखिर पति से जब उसे शारीरिक सुख मिलना बंद हुआ तो उस ने विकल्प की खोज शुरू कर दी.
सुनीता स्वभाव से मिलनसार थी. राममिलन भाभी के प्रति सम्मोहित था. जब दोनों साथ चाय पीने बैठते, तब सुनीता उस से खुल कर हंसीमजाक करती. सुनीता का यह व्यवहार धीरेधीरे राममिलन को ऐसा बांधने लगा कि उस के मन में भाभी सुनीता का सौंदर्य रस पीने की कामना जागने लगी.

एक दिन राममिलन खाना खाने बैठा, तो सुनीता थाली ले कर आई और जानबूझ कर गिराए गए आंचल को ढंकते हुए बोली, ‘‘लो देवरजी, खाना खा लो, आज मैं ने तुम्हारी पसंद का खाना बनाया है.’’
राममिलन को भाभी की यह अदा बहुत अच्छी लगी. वह उस का हाथ पकड़ कर बोला, ‘‘भाभी, तुम भी अपनी थाली परोस लो, साथ खाने में मजा आएगा.’’

सुनीता अपने लिए भी खाना ले आई. खाना खाते समय दोनों के बीच बातों का सिलसिला जुड़ा तो राममिलन बोला, ‘‘भाभी, तुम सुंदर व सरल स्वभाव की हो, लेकिन भैया ने तुम्हारी कद्र नहीं की. मुझे पता है, वह अपनी कमजोरी की खीझ तुम पर उतारते हैं. लेकिन मैं तुम्हें प्यार करता हूं.’’

यह कह कर राममिलन ने सुनीता की दुखती रग पर हाथ रख दिया था. सच में सुनीता पति से संतुष्ट नहीं थी. उसे न तो पति से प्यार मिल रहा था और न ही शारीरिक सुख, जिस से उस का मन विद्रोह कर उठा. उस का मन बेईमान हो चुका था. आखिर उस ने फैसला कर लिया कि अब वह असंतुष्ट नहीं रहेगी. चाहे इस के लिए उसे रिश्तों को तारतार क्यों न करना पड़े.

औरत जब जानबूझ कर बरबादी की राह पर कदम रखती है, तो उसे रोक पाना मुश्किल होता है. यही सुनीता के साथ हुआ. सुनीता जवान भी थी और पति से असंतुष्ट भी, अत: उस ने देवर राममिलन के साथ नाजायज रिश्ता बनाने का निश्चय कर लिया.

राममिलन वैसे भी सुनीता का दीवाना था. देवर राममिलन गबरू जवान था, दूसरे कुंवारा था. उस पर दिल आते ही सुनीता उसे अपने प्यार के भंवर में फंसाने की कोशिश करने लगी. भाभीदेवर के रिश्ते की आड़ में सुनीता राममिलन से ऐसेऐसे मजाक करने लगी कि राममिलन के शरीर में सिहरन सी होने लगी. जल्दी ही उस का मन स्त्री सुख के लिए बेचैन होने लगा.

एक शाम सुनीता बनसंवर कर बिस्तर पर लेटी थी, तभी राममिलन आ गया. वह उस की खूबसूरती को निहारने लगा. सुनीता को राममिलन की आंखों की भाषा पढ़ने में देर नहीं लगी. सुनीता ने उसे करीब बैठा लिया और उस का हाथ सहलाने लगी. राममिलन के शरीर में हलचल मचने लगी.

नरमुंड का रहस्य-भाग 3 : पत्नी का खतरनाक अवैध संबंध

इस तरह टिंकू की हत्या से 4 लोगों को फायदा हो रहा था. पहला फायदा बबलू को था, क्योंकि उस की पत्नी से उस के अवैध संबंध थे. दूसरा फायदा छंगा को था, जिस ने 3 लाख रुपए में टिंकू की हत्या की बात तय कर के 2 लाख रुपए में अपने भतीजे को कौन्ट्रैक्ट दे दिया था. तीसरा फायदा शबाबुल को था, जिसे टिंकू की हत्या पर 2 लाख रुपए छंगा से मिलने थे और 2 लाख नरमुंड देने पर फरीद से मिलने थे. चौथा और सब से बड़ा फायदा गुलाब नबी और सालिम को था, क्योंकि उन्हें दिल्ली के तांत्रिक महफूज आलम से नरमुंड पहुंचाने पर 20 लाख रुपए मिलने थे और उन्होंने 2 लाख में शबाबुल से बात कर ली थी. उन्हें 18 लाख रुपए बच रहे थे.

इस के बाद बबलू टिंकू की हर गतिविधि पर नजर रखने लगा. उसे कहीं से पता चल गया था कि 9 सितंबर की रात टिंकू अपने खेत में पानी लगाने जाएगा. यह बात उस ने छंगा को बता दी. छंगा ने शबाबुल को सूचित कर दिया. पूरी योजना बना कर छंगा, शबाबुल, फरीद, गुलाब नबी और बबलू टिंकू के खेत के पास पहुंच गए. रास्ते में उन्होंने ठेके से शराब खरीदी. बबलू के अलावा उन सब ने खेत के किनारे बैठ कर शराब पी. योजना के अनुसार उन्होंने बबलू के हाथ बांघ कर वहीं बैठा दिया.

9 सितंबर, 2017 की शाम को खाना खाने के बाद यादराम ने अपने दोनों बेटों लक्ष्मण और ओमकार को खेत में पानी लगाने को कहा. क्योंकि उस दिन उन का तीसरा बेटा टिंकू डीसीएम गाड़ी में तोरई भर कर दिल्ली की आजादपुर मंडी गया था. लक्ष्मण और ओमकार अपने चचेरे भाई शिवम को भी साथ ले गए थे. वे अपने साथ टौर्च भी ले गए थे.

जब वे खेत पर पहुंचे तो उन्हें वहां 4 बदमाश मिले और बबलू उन के पास बैठा था. उस के हाथ पीछे की ओर बंधे थे. बदमाशों ने धमकी दे कर उन तीनों को भी बांध दिया. बबलू ने देखा कि उन तीनों में टिंकू नहीं है तो वह चौंका, क्योंकि उसी की हत्या के लिए तो उस ने यह ड्रामा रचा था. बदमाशों ने बबलू के साथ मंत्रणा की. बबलू ने जब देखा कि खेल बिगड़ रहा है तो उस ने बदमाशों को बता दिया कि इन में से जो बीच में है, उसी का काम तमाम कर दिया जाए. बीच में लक्ष्मण था.

इस के बाद एक बदमाश ने लक्ष्मण के हाथ खोल दिए और 3 लोग शबाबुल, फरीद और गुलाम नबी लक्ष्मण को अंधेरे में अपने साथ ले गए. छंगा राइफल लिए बाकी के पास खड़ा रहा. करीब 5 मिनट बाद वे लक्ष्मण को ले कर वापस आ गए. उन्होंने बबलू से फिर बात की और कहा कि लड़का अच्छा है. बबलू ने उन से कहा कि कोई बात नहीं, इसी का काम कर दो. तब शबाबुल, फरीद व गुलाम नबी लक्ष्मण को फिर जंगल में ले गए.

तीनों ने लक्ष्मण को जमीन पर गिरा दिया. लक्ष्मण जान पर खेल कर उन से भिड़ गया. पर वह अकेला तीनों का मुकाबला नहीं कर सका. लिहाजा बदमाशों ने उसे फिर नीचे गिरा दिया. वह उठ न सके, इस के लिए फरीद ने उस के पैर पकड़े और गुलाम नबी ने सिर के बाल पकड़ लिए. तभी शबाबुल ने फरसे से एक ही वार में उस का सिर धड़ से अलग कर दिया. लक्ष्मण चिल्ला भी न सका. उस का सिर कलम कर के वे उन बंधकों के पास आ कर बोले, ‘‘काम हो गया.’’

यह काम करने में उन्हें केवल 20 मिनट लगे थे. इस के बाद वे बंधकों को उलटा लिटा कर उन के ऊपर चादर डाल कर चले गए. वह चादर ओमकार अपने साथ घर से लाया था. शबाबुल ने लक्ष्मण का सिर गुलाम नबी तांत्रिक के हवाले कर दिया. गुलाम नबी ने कैमिकल का लेप लगा कर उस के सिर को डींगरपुर के जंगल में एक बेर के पेड़ के नीचे दबा दिया था.

करीब आधे घंटे बाद ओमकार, बबलू और शिवम ने किसी तरह खुद को खोला और तेजी से गांव की तरफ भागे. उन के शोर मचाने पर गांव वाले जंगल की तरफ बदमाशों की तलाश में निकले. जंगल में लक्ष्मण की लाश मिलने पर बबलू ने ही कुंदरकी पुलिस को फोन कर के सूचना दी थी.

इतनी बड़ी घटना को अंजाम देने के बाद भी बबलू लक्ष्मण की अंतिम क्रिया तक में साथ रहा. सभी कर्मकांडों में उस ने अपना सहयोग दिया. लक्ष्मण की चिता के फूल चुनने के समय भी वह उस के घर वालों के साथ था.

गिरफ्तार किए गए अभियुक्तों से पूछताछ कर पुलिस ने उन की निशानदेही पर फरसा भी बरामद कर लिया. अभियुक्तों की निशानदेही पर पुलिस ने 2 अन्य अभियुक्तों इमरतपुर ऊधौ के राशिद और सालिम को भी गिरफ्तार कर लिया था. सालिम पूर्व ग्रामप्रधान था. इन सभी से पूछताछ के बाद उन्हें न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया.

फरार अभियुक्तों की तलाश में पुलिस ने कई स्थानों पर दबिशें डालीं, पर पुलिस को सफलता नहीं मिल सकी. इसी बीच अभियुक्त छंगा उर्फ अकबर ने 12 अक्तूबर, 2017 को मुरादाबाद की कोर्ट में आत्मसमर्पण कर दिया. पुलिस ने कोर्ट में दरख्वास्त दे कर छंगा को पुलिस रिमांड पर लिया और पूछताछ कर के जेल भेज दिया था.

इस के अलावा पुलिस सीलमपुर दिल्ली के तांत्रिक महफूज आलम को भी तलाश रही थी, जिस ने 20 लाख रुपए में नरमुंड लाने की बात डींगरपुर के तांत्रिक गुलाम नबी से तय की थी. महफूज की गिरफ्तारी के बाद ही यह पता चल सकेगा कि तांत्रिक 20 लाख रुपए में उस कटे हुए सिर को खरीद कर क्या करता? पुलिस जब तांत्रिक के दिल्ली ठिकाने पर पहुंची तो वह फरार मिला. लोगों ने बताया कि महफूज तांत्रिक के पास देश के अलगअलग राज्यों से ही नहीं, बल्कि अरब के शेख भी आते थे.

इस से पुलिस को शक है कि कहीं तांत्रिक ने इस से पहले तो नरमुंड के लिए किसी की हत्या तो नहीं कराई थी. बहरहाल, पुलिस फरार अभियुक्तों की तलाश कर रही है.

नरमुंड का रहस्य-भाग 2 : पत्नी का खतरनाक अवैध संबंध

सर्विलांस से पकड़े गए लक्ष्मण के हत्यारे

पुलिस का पहला काम लक्ष्मण का सिर ढूंढना था. अपने स्तर से वह सिर तलाश रही थी. पीडि़त परिवार के दबाव में पुलिस बबलू को जब थाने बुलाती, कोई न कोई राजनैतिक रसूख वाला उस की हिमायत में थाने पहुंच जाता. पुलिस ने उस से सख्ती से भी पूछताछ की, पर रोरो कर वह खुद को निर्दोष बताता रहा.

इस के बाद उसे इस हिदायत के साथ छोड़ दिया गया कि वह गांव में ही रहेगा और जब भी जरूरत पड़ेगी, उसे थाने आना पड़ेगा. बबलू ने पूरे गांव व पुलिस से कहा था, ‘‘अगर लक्ष्मण की हत्या में मेरा हाथ पाया जाए तो मुझे सरेआम फांसी पर लटका देना. यह बात सभी जानते हैं कि मैं ने इस परिवार की कितनी मदद की है.’’

पुलिस ने बबलू का फोन सर्विलांस पर लगा रखा था. पिछले एक महीने में उस ने जिनजिन नंबरों पर बात की थी, वे सभी सर्विलांस पर थे. जांच में पता चला कि घटना से पहले बबलू के मोबाइल पर छंगा उर्फ अकबर, निवासी इमरतपुर ऊधौ, थाना मैनाठेर से बात हुई थी. पुलिस ने मुखबिर के द्वारा छंगा के बारे में पता कराया तो जानकारी मिली कि वह घर पर नहीं है.

इस हत्याकांड को 27 दिन हो चुके थे, परंतु लक्ष्मण का सिर नहीं मिला था. पुलिस की हिदायत की वजह से बबलू सतर्क था. वह कहीं आताजाता भी नहीं था.

6 अक्तूबर, 2017 को बबलू ने किसी से फोन पर कहा कि वह गांव शिमलाठेर के बाहर अमरूद के बगीचे में आ जाए, वहीं बात करेंगे. यह बात सर्विलांस टीम को पता चल गई. थानाप्रभारी ने मुखबिर से गांव के बाहर की अमरूद की बाग के बारे में पूछा और उस पर नजर रखने को कहा.

मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने गांव शिमलाठेर के बाहर अमरूद के बाग में दबिश दे कर वहां से बबलू के अलावा 3 अन्य लोगों को हिरासत में ले लिया, जबकि 3 लोग भाग गए. हिरासत में लिए गए लोगों को थाने ला कर पूछताछ की गई तो उन्होंने अपने नाम शबाबुल निवासी इमरतपुर ऊधौ, फरीद निवासी लालपुर गंगवारी और गुलाम नबी निवासी डींगरपुर बताया.

उन्होंने बताया कि फरार होने वाले छंगा उर्फ अकबर, राशिद निवासी इमरतपुर ऊधौ और पिंटू उर्फ बिंटू निवासी दौलतपुर थे. उन सभी से पुलिस ने सख्ती से पूछताछ की तो न सिर्फ उन्होंने लक्ष्मण की हत्या का अपराध स्वीकार किया, बल्कि उन की निशानदेही पर एक जगह गड्ढे में दबाया हुआ लक्ष्मण का सिर भी बरामद कर लिया. उस पर उन्होंने ऐसा कैमिकल लगा रखा था, जिस से वह करीब एक महीने तक जमीन में दबा रहने के बावजूद खराब नहीं हुआ था. लक्ष्मण की हत्या की उन्होंने जो कहानी बताई, वह चौंकाने वाली थी.

उत्तर प्रदेश के जनपद मुरादाबाद से कोई 18 किलोमीटर दूर है थाना कुंदरकी. इसी थाने के गांव शिमलाठेर में बबलू अपने परिवार के साथ रहता था. वह संपन्न आदमी था. उस के पास 4 ट्रैक्टर और 6 ट्रक हैं. वह टै्रक्टरों से खेतों की जुताई करता है और ट्रकों से मुरादाबाद के रेलवे माल गोदाम में आने वाले सीमेंट को अलगअलग गोदामों तक पहुंचवाता था. इस सब से उसे अच्छी कमाई हो रही थी.

लक्ष्मण का छोटा भाई टिंकू बबलू के ट्रक पर पल्लेदारी करता था. वह मेहनती और ईमानदार था. बबलू उस पर बहुत विश्वास करता था, जिस की वजह से उस का बबलू के घर भी आनाजाना था. बबलू अपने कामधंधे में व्यस्त रहता था, इसलिए बबलू की पत्नी कमलेश टिंकू से ही घर के सामान मंगाती थी. ऐसे में ही कमलेश के टिंकू से संबंध बन गए.

हालांकि दोनों की स्थिति में जमीनआसमान का अंतर था. कमलेश के सामने टिंकू की कोई औकात नहीं थी. इस के बावजूद कमलेश का टिंकू पर दिल आ गया था. शुरू में तो उन के संबंधों पर किसी को शक नहीं हुआ. लेकिन ऐसे संबंधों में कितनी भी सावधानी बरती जाए, देरसवेर उजागर हो ही जाते हैं. कमलेश और टिंकू के संबंधों की बात भी गांव में फैल गई.

3 लाख रुपए में टिंकू की मौत का सौदा

बबलू गांव का रसूखदार व्यक्ति था. टिंकू की वजह से उस की गांव में अच्छीखासी बदनामी हो रही थी. इसलिए उस ने तुरंत टिंकू को पल्लेदारी से हटा दिया. इस के बाद टिंकू का कमलेश के घर आनाजाना बंद हो गया. कमलेश किसी भी हाल में टिंकू को छोड़ना नहीं चाहती थी. लिहाजा फोन पर संपर्क कर के वह टिंकू को अपने खेतों पर बुला लेती. बबलू ने पत्नी को भी समझाया, पर वह नहीं मानी. इस पर बबलू ने टिंकू को ठिकाने लगवाने की ठान ली.

बबलू के गांव के नजदीक ही इमरतपुर ऊधौ गांव है. इसी गांव में अकबर उर्फ छंगा रहता था. वह वहां का माना हुआ बदमाश था. कई थानों में उस के खिलाफ दरजन भर मामले दर्ज थे. बबलू ने उस से बात कर 3 लाख रुपए में टिंकू की हत्या का सौदा कर डाला.

छंगा का एक भतीजा शबाबुल सुपारी किलर था. उस पर भी 10-12 केस चल रहे थे. छंगा ने शबाबुल से बात की. वह मुरादाबाद के जयंतीपुर में अपनी 2 बीवियों के साथ रहता था. उसे अपना मकान बनाने के लिए पैसों की जरूरत थी, इसलिए वह 2 लाख रुपए में टिंकू की हत्या करने को राजी हो गया.

चूंकि शबाबुल पेशेवर अपराधी था, इसलिए उसी बीच लालपुर गंगवारी के फरीद और डींगरपुर के गुलाम नबी ने शबाबुल से किसी नवयुवक के कटे हुए सिर की डिमांड की. इस के लिए उन्होंने शबाबुल को 2 लाख रुपए भी दे दिए. वह नरमुंड उन्हें सालिम के मार्फत दिल्ली के सीलमपुर में रहने वाले एक बड़े तांत्रिक महफूज आलम के पास पहुंचाना था. फरीद संपेरा और तांत्रिक है.

महफूज आलम ने नरमुंड पहुंचाने पर गुलाब नबी और सालिम को 20 लाख रुपए देने की बात कही थी. पर इन दोनों ने शबाबुल से 2 लाख रुपए में ही सौदा कर लिया था. तांत्रिक महफूज उस नरमुंड का क्या करता, यह किसी को पता नहीं था.

शबाबुल को दोहरा फायदा उठाने का मौका मिल गया था. उसे टिंकू की हत्या 2 लाख रुपए में करनी थी. उस का सिर काट कर गुलाम नबी को देना था यानी एक तीर से उस के 2 शिकार हो रहे थे.

सिरकटी लाश का रहस्य

राजिंदर कुमार रोजाना की तरह सुबह 9 बजे काम पर जाने के लिए घर से निकला था. उस की मां बिशनो ने उसे दोपहर के खाने का टिफिन तैयार कर के दिया था. 20

वर्षीय राजिंदर मेनबाजार बटाला में रेडीमेड कपड़ों की दुकान पर काम करता था.वह ज्यादा पढ़ालिखा नहीं था. कुछ साल पहले उस के पिता शिंदरपाल की मृत्यु हो गई थी. पिता की मौत के बाद रिश्तेदारों ने भी परिवार का साथ छोड़ दिया था. किसी से सहायता की उम्मीद नहीं थी. घर के आर्थिक हालात ऐसे नहीं बचे थे कि राजिंदर पढ़ाई आगे जारी रख पाता. इसलिए उस ने पढ़ाई बीच में छोड़ कर काम करना शुरू कर दिया था.

राजिंदर के परिवार में उस की मां बिशनो के अलावा एक बहन नीलम थी. वह जो कमाता था, उस से जैसेतैसे घर खर्च चल पाता था. 19 सिंतबर, 2019 की सुबह राजिंदर काम पर गया. शाम को वह अपने समय पर घर नहीं लौटा तो मां को चिंता हुई. क्योंकि इस से पहले कभी ऐसा नहीं हुआ था. वह ठीक साढ़े 8 बजे काम से घर लौट आता था.

राजिंदर का इंतजार करतेकरते जब रात के 10 बज गए तो मां बिशनो और बहन नीलम कुछ पड़ोसियों के साथ उसे ढूंढने निकलीं. सब से पहले वे उस दुकान पर गईं, जहां राजिंदर काम करता था. उस समय दुकान बंद हो चुकी थी.

दुकान मालिक के घर जा कर पूछने पर पता चला कि राजिंदर अपने समय से पहले ही 7 बजे छुट्टी ले कर चला गया था. घर वालों ने राजिंदर के खास दोस्तों से पूछताछ की. इस के अलावा हर संभावित ठिकाने पर उस की तलाश की गई, लेकिन उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली.

अंत में हार कर पड़ोसियों की सलाह पर बिशनो ने बेटे राजिंदर के लापता होने की रिपोर्ट थाना सिविल लाइंस बटाला की पुलिस चौकी सिंबल में दर्ज करवा दी.

चौकी इंचार्ज एसआई बलविंदर सिंह ने उन्हें राजिंदर को जल्द तलाशने का आश्वासन दिया. राजिंदर का फोटो ले कर उन्होंने जिले के सभी थानों में भिजवा दिया और अस्पतालों में भी उस की तलाश करवाई गई. पर राजिंदर का कहीं कोई पता नहीं चला.

बिशनो ने बेटे के लापता होने में अपनी ही कालोनी गांधी कैंप निवासी अशोक प्रीतम दास पर शक जताया था. अशोक उसी मोहल्ले में रहता था और उस का बिशनो के घर काफी आनाजाना लगा रहता था.

करीब एक महीना पहले अशोक की पत्नी की रहस्यमयी हालात में मृत्यु हो गई थी. अशोक का बेडि़यां बाजार में अपना खुद का हेयरकटिंग सैलून था.

राजिंदर अशोक का अपने घर आने का विरोध करता था. उस की कई बार अशोक से झड़प भी हो चुकी थी. इस बात को ले कर राजिंदर की अपनी मां से भी कई बार कहासुनी हुई थी. उस ने मां से भी कह दिया था कि वह अशोक को अपने घर आने से रोके.

एसआई बलविंदर ने अशोक को थाने बुला कर उस से पूछताछ की. अशोक ने बताया कि उसे राजिंदर से मिले एक महीना हो गया है और कई दिनों से वह उस के घर भी नहीं गया. बातचीत में अशोक बेकसूर लगा तो एसआई बलविंदर सिंह ने उसे घर भेज दिया और राजिंदर की तलाश जारी रखी.

22 सितंबर, 2019 को सेंट फ्रांसिस स्कूल के पीछे मोहल्ला भट्ठा इंदरजीत में रहने वालों ने प्रधान अमरीक सिंह को बताया कि उन के घर के सामने वाले हंसली नाले से बड़ी भयानक दुर्गंध आ रही है.

अमरीक सिंह कुछ लोगों को साथ ले कर नाले के पास पहुंचे. उन्होंने देखा कि वहां बोरी में बंद किसी आदमी की लाश पड़ी थी. लाश की टांगें बोरे से बाहर थीं. अमरीक सिंह ने तुरंत इस बात की सूचना पुलिस चौकी सिंबल के इंचार्ज एसआई बलबीर सिंह को दी.

सूचना मिलते ही बलबीर सिंह मौके के लिए रवाना हो गए और यह जानकारी थाना सिविल लाइंस बटाला के एसएचओ मुख्तियार सिंह को दे दी. थानाप्रभारी भी पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

पुलिस ने मौके पर पहुंच कर लाश को नाले से बाहर निकलवाया. बोरी में मृतक का सिर नहीं था. हां, धड़ जरूर था. कंधों से बाजू कटे हुए थे. कपड़ों के नाम पर मृतक के शरीर पर केवल अंडरवियर था.

कई दिनों से लाश नाले के पानी में पड़ी रहने से बुरी तरह से गल चुकी थी, जिस की पहचान मुश्किल थी. वैसे भी बिना सिर के मृतक की शिनाख्त करना असंभव काम था.

पहचान के लिए मृतक के शरीर पर ऐसा कोई निशान नहीं था, जिस के सहारे पुलिस उस की शिनाख्त कराती. सिर और बाजू कटी लाश मिलने से पूरे शहर में सनसनी फैल गई थी, दहशत का माहौल बन गया था.

क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम बुलवा कर पंचनामे की कारवाई की गई. थानाप्रभारी ने लाश मिलने की जानकारी अपने आला अधिकारियों को दे दी थी. इस के कुछ देर बाद एसएसपी उपिंदरजीत सिंह घुम्मन, एसपी (इनवैस्टीगेशन) सूबा सिंह और डीएसपी (सिटी) बालकिशन सिंगला भी मौकाएवारदात पर पहुंच गए थे.

पुलिस ने नाले में आसपास मृतक के कटे हुए अंग तलाशने की मुहिम शुरू कर दी. पुलिस को यह पता नहीं था कि हत्यारे ने मृतक के शेष अंग वहीं फेंके थे या उन्हें किसी दूसरी जगह ठिकाने लगाया था.

काफी खोजने के बाद भी कटे हुए अंग नहीं मिले. मौके की काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने अज्ञात युवक की लाश 72 घंटों के लिए सिविल अस्पताल की मोर्चरी में रखवा दी और अज्ञात के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया.

अपनी तफ्तीश के पहले चरण में चौकी इंचार्ज बलबीर सिंह ने पिछले दिनों शहर से लापता हुए लोगों की लिस्ट चैक की. लिस्ट में राजिंदर का नाम भी था. चौकी इंचार्ज बलबीर सिंह ने 23 सितंबर को राजिंदर के परिवार वालों को बुलवा कर जब लाश दिखाई तो उस की मां बिशनो और बहन नीलम ने शरीर की बनावट और अंडरवियर से लाश की शिनाख्त राजिंदर के रूप में की.

राजिंदर 19 सितंबर, 2019 को लापता हुआ था और 22 सितंबर को उस की लाश नाले से मिली. चूंकि मां बिशनो ने मोहल्ले के ही अशोक पर शक जताया था, जिस से एक बार पुलिस पूछताछ भी कर चुकी थी. अब लाश की शिनाख्त हो जाने के बाद चौकी इंचार्ज उसी दिन अशोक को पूछताछ के लिए दोबारा थाने ले आए. इस बार भी वह अपने पहले बयान पर अड़ा रहा. पर जब उस से सख्ती की गई तो उस ने राजिंदर की हत्या करने का अपराध स्वीकार कर लिया.

अगले दिन अशोक को अदालत में पेश कर उस का 4 दिनों का पुलिस रिमांड लिया गया. रिमांड के दौरान सब से पहले उस से पूछा गया कि राजिंदर के शरीर के बाकी अंग उस ने कहां फेंके थे.

24 सितंबर को अशोक की निशानदेही पर पुलिस और नायब तहसीलदार जसकरण सिंह के नेतृत्व वाली टीम ने नाले से मृतक राजिंदर का सिर और बाजू ढूंढ निकाले. इन हिस्सों को पोस्टमार्टम के लिए सिविल अस्पताल भेज दिया गया और पोस्टमार्टम के बाद लाश उस के घर वालों को सौंप दी गई.

रिमांड के दौरान अशोक कुमार ने पुलिस को बताया कि बिशनो के पति की मृत्यु के बाद राजिंदर कुमार की मां बिशनो के साथ उस का करीब 7 साल से प्रेम प्रसंग चल रहा था. वह बिशनो से मिलने रोज उस के घर जाया करता था. उस समय राजिंदर और उस की बहन छोटे थे. सो उन्हें कोई रोकनेटोकने वाला नहीं था. जब बच्चे बड़े हुए तो राजिंदर उसे और मां को संदेह की नजरों से देखने लगा था.

वह उस के वहां आने का विरोध करता था. बिशनो के संबंधों का पता अशोक की पत्नी को भी था. इस बात को ले कर वह भी घर में क्लेश करती थी. तब अशोक गुस्से में उस की पिटाई कर देता था. दूसरी ओर राजिंदर के विरोध से अशोक भी काफी परेशान था. वह उसे अपने रास्ते का कांटा समझने लगा था. इस कांटे को रास्ते से हटाने के लिए अशोक कुमार ने राजिंदर की हत्या करने की एक खौफनाक साजिश रच ली.

अपनी योजना के अनुसार, 19 सितंबर की शाम वह राजिंदर से मिला और कोई जरूरी बात करने के बहाने उसे अपने घर ले गया. घर ले जा कर अशोक ने राजिंदर को चाय पिलाई, जिस में नशे की दवा मिली हुई थी. चाय पीते ही राजिंदर एक ओर लुढ़क गया.

राजिंदर के लुढ़कते ही अशोक ने पहले गला दबा कर उस की हत्या की और उस के बाद दातर (हंसिया) से बड़े आराम से उस का सिर काट कर धड़ से अलग किया. फिर दोनों बाजू काटे. यह सब करने के बाद अशोक ने राजिंदर के शव को बोरी में डाल कर बांधा और अपनी साइकिल पर रख कर रात के अंधेरे में हंसली नाले में फेंक आया.

रिमांड के दौरान पुलिस ने अशोक की निशानदेही पर दातर, साइकिल, अपने और राजिंदर के जलाए हुए कपड़ों की राख भी बरामद कर ली. रिमांड अवधि के दौरान पुलिस इस मामले में मृतक की मां बिशनो की भूमिका की भी जांच कर रही है. हालांकि पुलिस ने इस बारे में अभी स्पष्ट खुलासा नहीं किया है.

राजिंदर की बहन पर भी अशोक बुरी नजर रखता था. अब पुलिस इस बारे में भी जांच कर रही है. अगर कोई बात सामने आती है तो मृतक की मां बिशनो पर भी काररवाई की जाएगी. एक माह पहले अशोक की पत्नी की रहस्यमयी तरीके से मौत हो गई थी. पुलिस इस बात की जांच भी कर रही है कि बिशनो के चक्कर में कहीं अशोक ने ही तो अपनी पत्नी को कोई जहरीली चीज दे कर मारा था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य- सत्यकथा, नवंबर 2019

अपने ही परिवार की दुश्मन

17जून, 2019 की सुबह हरवंत सिंह लगभग हांफते हुए थाना झंजेर पहुंचा. उस ने थाना इंचार्ज एसआई जुगराज सिंह को बताया कि बीती रात उस की पत्नी, बेटी और दो बेटों सहित परिवार के 4 सदस्य लापता हो गए हैं. जल्द काररवाई कर उन्हें ढूंढा जाए.

हरवंत सिंह की गिनती गांव में बड़े किसानों में होती थी और उन का परिवार शिक्षित परिवार के रूप में जाना जाता था. इसलिए पुलिस ने हरवंत सिंह की शिकायत दर्ज कर तेजी से काररवाई शुरू कर दी.

हरवंत सिंह का परिवार अजनाला अमृतसर के देहाती इलाके के थाना झंजेर क्षेत्र में पड़ने वाले गांव तेडा खुर्द में रहता था. करीब 30 साल पहले हरवंत की शादी अजनाला के ही गांव पंधेर कंभोज निवासी मंगल की बेटी दविंदरपाल कौर से हुई थी. उस के परिवार में पत्नी के अलावा 28 वर्षीय बेटी शरणजीत कौर, 26 वर्षीय ओंकार सिंह और 24 वर्षीय लवरूप सिंह उर्फ लवी नाम के 2 बेटे थे.

तीनों बच्चे उच्चशिक्षा प्राप्त थे और अविवाहित थे. वे अपने कैरियर को ले कर गंभीर थे. ओंकार सिंह इन दिनों जौब के लिए आस्ट्रेलिया जाने की तैयारी कर रहा था.

16 जून की रात पूरा परिवार खाना खाने के बाद जल्दी सो गया था. अगली सुबह जब हरवंत सिंह अपने पशुओं को चारा डालने के लिए उठा तो यह देख कर हैरान रह गया कि परिवार के सभी सदस्य घर से लापता हैं. उस ने काफी देर तक अपने बीवीबच्चों को ढूंढा और उन के न मिलने पर पुलिस में सूचना दर्ज करवा दी.

गांव वालों के साथ पुलिस की समझ में भी यह बात नहीं आ रही थी कि सोतेसोते पूरा परिवार अचानक कैसे गायब हो गया. वे कहां हैं, इस के बारे में न तो हरवंत के रिश्तेदारों को कोई जानकारी थी और न ही गांव के सरपंच को. पुलिस ने गांव तेडा खुर्द जा कर पूछताछ की तो उन्हें घर के मुखिया हरवंत सिंह के बारे में कई चौंका देने वाली बातें पता चलीं.

पुलिस इस मामले में अभी और जानकारी हासिल कर ही रही थी कि 19 जून को हरवंत सिंह के साले मेजर सिंह ने झंजेर थाने पहुंच कर अपने जीजा हरवंत सिंह के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवाते हुए बताया कि उस की बहन और भांजेभांजी का अपहरण हरवंत सिंह ने ही किया है. मेजर सिंह ने उन के अपहरण की कई वजह भी पुलिस को बताईं.

थाना इंचार्ज को मेजर सिंह के बयान में सच्चाई नजर आई. पुलिस ने उसी समय मेजर सिंह की तहरीर के आधार पर हरवंत सिंह, उस के भांजे कुलदीप सिंह तथा 2 और अज्ञात व्यक्तियों को नामजद करते हुए हरवंत सिंह की पत्नी दविंदरपाल कौर, बेटी शरणजीत कौर, बेटे ओंकार सिंह और लवरूप सिंह उर्फ लवी के अपहरण का मुकदमा दर्ज कर काररवाई शुरू कर दी.

पुलिस पूछताछ करने जब गांव पहुंची तो हरवंत घर से लापता मिला. थाना इंचार्ज जुगराज सिंह ने इस घटना की सूचना एसपी (देहात) विक्रमजीत सिंह, एसपी (तफ्तीश) हरपाल सिंह और डीएसपी (अजनाला) हरप्रीत सिंह को भी दे दी थी.

बड़े अधिकारियों के निर्देश पर 2 पुलिस टीमें बनाई गईं. एक टीम हरवंत की तलाश में जुट गई और दूसरी टीम ने परिवार के बाकी सदस्यों को ढूंढना शुरू कर दिया.

एक गुप्त सूचना के आधार पर पुलिस ने 20 तारीख को हरवंत सिंह और उस के 2 साथियों सोनू सिंह और रछपाल सिंह को गिरफ्तार कर लिया. तीनों आरोपियों को उसी दिन अदालत में पेश कर 26 तारीख तक पुलिस रिमांड पर ले लिया गया.

रिमांड के दौरान हरवंत ने अपना अपराध कबूल करते हुए बताया कि उसी ने अपने भांजे कुलदीप और 2 साथियों सोनू व रछपाल के साथ मिल कर अपने परिवार के चारों सदस्यों की हत्या कर उन की लाशें नहर में बहा दी थीं.

हरवंत का चौंका देने वाला बयान सुन कर पुलिस अधिकारी सकते में आ गए. वे इस बात पर यकीन करने को तैयार ही नहीं थे कि गबरू जवान 2 बेटों, पत्नी और बेटी की हत्या करने के बाद कोई उन्हें वहां से ले जा कर नहर में फेंक सकता है.

बहरहाल पुलिस ने हरवंत की निशानदेही पर जगदेव कलां की लाहौर नहर से दविंदरपाल कौर की लाश बरामद कर ली, जिस की शिनाख्त उस के भाई मेजर सिंह ने कर दी.

दविंदर की लाश एक बोरी में बंद थी और बोरी में ईंटें भरी हुई थीं. उस की लाश बरामद होने के बाद पुलिस को पूरा विश्वास हो गया था कि हरवंत ने अपने बयान में जो कहा है, वह सच ही होगा. उस ने वास्तव में अपने पूरे परिवार की हत्या कर दी है.

एसडीएम हरफूल सिंह गिल की देखरेख में पुलिस ने बीएसएफ के गोताखोरों की सहायता से बाकी लाशों के लिए पूरी नहर को खंगालना शुरू कर दिया. 2 दिनों की तलाश के बाद 24 जून को अलगअलग जगहों से शरणजीत कौर, ओंकार सिंह और लवरूप सिंह उर्फ लवी की लाशें भी बरामद हो गईं. पुलिस ने चारों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए सिविल अस्पताल भेज दिया.

दरअसल, पुलिस को शुरू से ही हरवंत सिंह पर संदेह था. पुलिस ने जब मामले की गहनता से जांच की तो पाया कि हरवंत के घर में बनी पशुओं के चारा खाने वाली खुरली (हौदी) की काफी ईंटें उखाड़ी हुई थीं. यह देख पुलिस को शक हुआ कि यहां कुछ न कुछ तो जरूर हुआ था, पर पुलिस के पास कोई पुख्ता सबूत नहीं था और ईंटों का गायब होना महज एक इत्तफाक भी हो सकता था.

पुलिस रिमांड के दौरान हरवंत द्वारा अपनी पत्नी, बेटी और 2 बेटों की हत्या करने की जो कहानी प्रकाश में आई, वह अय्याशी में डूबे एक ऐसे बाप की कहानी थी, जिस ने अपनी अय्याशी में रोड़ा बन रहे पूरे परिवार को ही मौत के घाट उतार दिया था.

इस जघन्य और घिनौने अपराध को अंजाम देने के लिए हरवंत सिंह की प्रेमिका व उस के भांजे कुलदीप ने भी उस का साथ दिया था.

हरवंत सिंह जवानी से ही अय्याश किस्म का था. उस के अपने गांव के अलावा आसपास के गांवों की कई औरतों के साथ नाजायज संबंध थे. शराब और शबाब उस के पसंदीदा शौक थे. जब तक उस के बच्चे छोटे थे, तब तक उसे इस सब से कोई फर्क नहीं पड़ा था. रोकने वाली केवल उस की पत्नी दविंदरपाल थी, जिसे वह डराधमका कर चुप करा दिया करता था.

लेकिन जब उस के तीनों बच्चे बड़े हुए और उन्होंने लोगों से अपने पिता की करतूतें सुनीं तो उन्होंने हरवंत को टोकना शुरू कर दिया. अपने पिता की हरकतों पर लगाम कसने के लिए उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी थी. पंचायत से ले कर रिश्तेदारों तक को बीच में डाला, पर कोई फायदा नहीं हुआ.

हरवंत सिंह को अपने भांजे कुलदीप सिंह से बड़ा लगाव था. कुलदीप अधिकांशत: अपने मामा हरवंत के पास ही रहता था. जब कुलदीप जवान हुआ तो वह भी अपने मामा के नक्शेकदम पर चलने लगा. हरवंत को इस की बड़ी खुशी हुई कि कोई तो उस का साथ देने वाला है.

अब मामाभांजे दोनों मिल कर अय्याशी करने लगे थे. हरवंत और कुलदीप की इन हरकतों ने उस के परिवार को कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा था. जगहजगह उन की बदनामी होती थी. इसी कारण बच्चों के कहीं से रिश्ते भी नहीं आ रहे थे. जिस घर में अय्याश बाप हो, वहां कौन अपनी बेटी ब्याहना चाहेगा.

पिता की हरकतों से तंग आ कर पूरे परिवार ने उस का जम कर विरोध करना शुरू कर दिया. रोजरोज की किचकिच से गुस्साए हरवंत ने अपने भांजे कुलदीप के साथ मिल कर पूरे परिवार को ही मिटाने की योजना बना डाली. उस ने अपने 2 दोस्तों सोनू और रछपाल को भी अपनी योजना में शामिल कर लिया.

हत्याकांड को अंजाम देने के लिए उन्होंने सफेदा (यूकेलिप्टस) के पेड़ की टहनियां तोड़ीं और उन के आगे वाले हिस्से को नुकीला कर के उसे हथियार के रूप में प्रयोग किया. हरवंत सहित सभी हत्यारों के पास लकड़ी का बनाया एकएक हथियार था. इस के अलावा उन्होंने अपने साथ .32 बोर और .315 बोर की पिस्तौलें भी ले ली थीं. अपनी योजना के अनुसार 16 जून, 2019 को हरवंत ने रात के खाने की दाल में नशे की गोलियां मिला दी थीं.

16 जून की रात खाना खाने के बाद जब पूरा परिवार बेहोशी की हालत में सोया हुआ था, तब हरवंत ने कुलदीप, सोनू और रछपाल को अपने घर बुला लिया. परिवार के सभी लोग सोए हुए थे. सभी सदस्यों के सिरहाने एकएक आरोपी मोर्चा संभाल कर खड़ा हो गया.

फिर चारों ने एक साथ सब पर हमला बोल दिया. सब से पहले हरवंत ने एक ही कमरे में सोए दोनों बेटों लवरूप सिंह और ओंकार सिंह के सिर पर लकड़ी के नुकीले हथियार से हमला किया. इसी दौरान कुलदीप सिंह और अन्य ने उस की पत्नी दविंदर कौर व बेटी सिमरनजीत पर प्रहार किया.

जब चारों की मौत हो गई तो हरवंत ने कुलदीप और अपने 2 साथियों की मदद से सब से पहले खून के दागों को धोया. फिर पशुओं के चारे की खुरली से ईंटें उखाड़ कर उन की लाशों से ईंटें बांध दीं. फिर लाशों को बोरी में डाल कर जिप्सी में लादा और ले जा कर नहर में फेंक आए. लाशों के साथ ईंटें इसलिए बांधी गईं कि वे कभी ऊपर न आ सकें.

हरवंत सिंह, कुलदीप सिंह, सोनू सिंह और रछपाल सिंह की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में इस्तेमाल किए गए लकड़ी के 4 नुकीले डंडे, 2 पिस्तौल और 8 कारतूस बरामद किए गए.

हत्या के लिए बनाए गए लकड़ी के हथियार काफी वजनी थे. वहीं हरवंत की कथित प्रेमिका और एक अन्य साथी इस हत्याकांड में सीधे रूप जुड़े थे या नहीं, इस की जांच चल रही थी.

पुलिस ने हरवंत व उस के साथियों को घटनास्थल पर ले जा कर क्राइम सीन क्रिएट कर के भी जांच की थी. रिमांड अवधि समाप्त होने के बाद इस हत्याकांड से जुड़े आरोपियों को अदालत में पेश कर जिला जेल भेज दिया गया.द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य- सत्यकथा, नवंबर 2019

हत्यारी मां : ऐसी भी क्या नफरत

लेकिन पुलिस को सीताराम, दीपिका और कैलाबाई में से ही हत्यारे को ढूंढना था. जब पुलिस ने…

शनिवार, 18 मई की आधी रात से ज्यादा बीत चुकी थी. कोटा के बोरखेड़ा इलाके की सरस्वती कालोनी में निस्तब्धता छाई थी जिसे रहरह कर भौंकते कुत्तों की आवाज भयावह बना रही थी. कालोनी की गली नंबर 4 गहरे अंधेरे में डूबी हुई थी. गली में स्ट्रीट लाइट्स थीं, लेकिन एक भी लाइट रोशन नहीं थी. गली के मोड़ पर स्थित मकान नंबर 17 पर लिखा था, शुभम कुंज. बरामदे से आ रही मैली रोशनी में नाम पढ़ पाना मुश्किल था.

इस दोमंजिले मकान में सामने प्रथम तल के हिस्से में पहले बरामदा था, जिस में मद्धिम सी लाइट जल रही थी. उस के बाद बेडरूम था, जिस में गहरा अंधेरा था.

बेडरूम में अलगअलग पलंग पर कैलाबाई, सीताराम और दीपिका सोए थे. दीपिका के पास उस का 5 महीने का बेटा शिवाय भी सोया था.

लगभग 3 बजे टौयलेट जाने के लिए उठे सीताराम ने लाइट जलाई तो उस का दिमाग झनझना कर रह गया. दीपिका की बगल में लेटा 5 महीने का बेटा शिवाय गायब था. जबकि दीपिका गहरी नींद में सो रही थी.

सीताराम को हैरानी हुई कि बच्चा गायब है और नींद में गाफिल दीपिका को पता तक नहीं कि बच्चा कहां है. सीताराम की समझ में नहीं आया कि 5 महीने का बच्चा कहां गया. उस ने चीखते हुए दीपिका और अपनी सास कैलाबाई को जगाया. दीपिका अलसाई सी उठी तो उस ने उसे झिंझोड़ते हुए पूछा, ‘‘शिवाय कहां है?’’

‘‘कहां है शिवाय?’’ दीपिका ने आंखें मलते हुए उसी का सवाल दोहराया तो सीताराम गुस्से से उबल पड़ा.

‘‘यही तो मैं तुम से पूछ रहा हूं. कहां है शिवाय?’’ सीताराम पत्नी पर बुरी तरह झल्लाया, ‘‘तुम उलटा मुझ से सवाल कर रही हो.’’

इधरउधर ताकती निरुत्तर दीपिका को सीताराम ने झिंझोड़ दिया, ‘‘अभी तक तुम्हारी खुमारी नहीं उतरी? मैं पूछ रहा हूं शिवाय कहां है? कहां है हमारा बच्चा?’’ इस के साथ ही सीताराम बिलख उठा.

इस के बाद दीपिका समझ गई कि बच्चा गायब है. उस ने रोतेरोते बिस्तर खंगाल लिया. जब शिवाय कहीं नजर नहीं आया तो उस की रुलाई फूट पड़ी, ‘‘मेरा लाल?’’

रात में चीखपुकार मची तो मकान में हड़कंप मच गया. मकान के पिछवाड़े रहने वाले किराएदार और निचले हिस्से में रहने वाले घर वाले भी ऊपर आ गए. जब उन लोगों को बात समझ में आई तो सभी हैरान रह गए कि 5 माह के बच्चे को कौन ले गया.

लोगों ने घर का कोनाकोना छान मारा तभी सीताराम को सास कैलाबाई की चीख सुनाई दी, ‘‘अरे बेटा, गजब हो गया.’’ आवाज छत से आई थी. सीताराम घर वालों के साथ छत पर गया. कैलाबाई बिलखती हुई पानी की टंकी तरफ इशारा कर रही थी, ‘‘अरे मुन्ना तो यहां पड़ा है.’’

बदहवास सीताराम पानी की टंकी की तरफ दौड़ा. टंकी का ढक्कन खुला हुआ था और शिवाय पानी में डूबा हुआ था. बच्चे को पानी में डूबा देख कर सीताराम के रोंगटे खड़े हो गए. गुस्से से पूरा बदन सुलग उठा.

सीताराम ने जल्दी से बच्चे को टंकी से निकाला और अपने घर वालों के साथ जेके लान अस्पताल की तरफ दौड़ा. डाक्टरों ने बच्चे का इलाज शुरू किया भी. लेकिन उसे बचाया नहीं जा सका. नि:संदेह मामला हत्या का था. मैडिको लीगल केस होने की वजह से डाक्टरों ने इस की इत्तला पुलिस को दे दी.

बोरखेड़ा के थानाप्रभारी हरेंद्र सोढ़ा सूचना मिलते ही छानबीन के लिए अस्पताल पहुंच गए. डाक्टरों ने संदेह व्यक्त किया कि बच्चे को संभवत: गला दबाने के बाद पानी की टंकी में डाला गया होगा.

इंसपेक्टर सोढ़ा बच्चे के शव को देख कर हैरान रह गए. 5 माह के बच्चे के साथ यह क्रूरतम अपराध था. पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजना चाहा तो घर वाले अड़ गए. लेकिन सीआई सोढ़ा ने उन्हें समझाया कि मामला हत्या का है, इसलिए पोस्टमार्टम जरूरी है.

आखिरकार परिजन मान गए. पुलिस ने मैडिकल बोर्ड से पोस्टमार्टम कराने के बाद शव घर वालों को सौंप दिया. पुलिस ने बच्चे के पिता सीताराम की रिपोर्ट पर हत्या का केस दर्ज कर लिया.

थानाप्रभारी सोढ़ा ने वारदात की सूचना उच्च अधिकारियों को दे दी और सुबह 6 बजे अस्पताल से सरस्वती कालोनी पहुंच गए. तब तक एडिशनल एसपी राजेश मील और सीओ अमृता दुहन भी घटनास्थल पर पहुंच गए थे.

सूचना मिलने पर एसपी दीपक भार्गव भी घटनाक्रम पर आ गए. क्राइम टीम और डौग स्क्वायड को भी बुला लिया गया था. टीम के साथ आए फोटोग्राफर ने मृत बच्चे के विभिन्न कोणों से फोटो लिए.

प्रशिक्षित कुत्ते को शिवाय के कपड़े सुंघा कर छोड़ा गया तो वह ट्रेनर के साथ एक पलंग के चारों तरफ घूमा और कमरे से सीधा निकल कर छत पर जाने वाली सीढि़यों की तरफ दौड़ा. सीढि़यां चढ़ कर वह पानी की टंकी के पास पहुंच कर रुक गया.

फोरैंसिक टीम ने 11 जगह से फिंगरप्रिंट उठाए. सीताराम के पलंग के अलावा छत पर रखी टंकियों से भी फिंगर प्रिंट उठाए गए. मकान की छत पर 4 टंकियां थीं.

उन में 3 काले रंग की और एक सफेद रंग की थी. शिवाय को कमरे के ठीक ऊपर रखी सफेद रंग की टंकी में डुबोया गया था. साढ़े 5 सौ लीटर की यह टंकी 80 प्रतिशत भरी हुई थी.

पुलिस अधिकारियों ने मकान के बाहर और बरामदे में लगे 2 सीसीटीवी  कैमरों को भी देखा. लेकिन उस में कोई भी बाहरी शख्स दिखाई नहीं दिया. पुलिस इस मुददे पर संशय में ही रही कि कमरे की कुंडी भीतर से बंद थी या नहीं. बैडरूम का दरवाजा गैलरी की तरफ खुलता था. लगभग 4 फीट की गैलरी में बाथरूम और टौयलेट था.

पुलिस अधिकारियों ने झांक कर देखा, लेकिन ऐसा कोई सबूत नहीं मिला, जिस से यह आभास होता कि हत्यारा कहीं छिप कर बैठा रहा होगा. गैलरी से सीढि़यां नीचे भी जाती थीं और छत पर भी.

नीचे जाने वाली सीढि़यों पर उतरने के लिए दरवाजा खोलना पड़ता था. चूंकि कैमरों में कुछ नहीं मिला था, इस दरवाजे पर संदेह करना व्यर्थ था. छानबीन के दौरान पुलिस एक ही नतीजे पर पहुंची कि बैडरूम में दीपिका, सीताराम और कैलाबाई ही थे. यानी बाहर का कोई व्यक्ति नहीं आया था.

पुलिस ने मृत शिवाय की मौसी रत्ना गौड़ से पूछताछ की, जो ग्राउंड फ्लोर पर रहती थी. रत्ना गौड़ की बातों से कई चौंकाने वाली बातें पता चलीं. मसलन, शिवाय सीताराम दंपति का पहला बेटा नहीं था. उन के यहां शिवाय से पहले भी 2 संतानें हुई थीं, वह भी बेटे. रत्ना का कहना था पहले बेटे की मौत श्वास नली में दूध चले जाने से हुई और दूसरे बेटे के दिल में छेद था.

यही उस की मौत का कारण बना. रत्ना ने बताया कि 2 बच्चों की मौत के बाद दीपिका गुमसुम सी रहने लगी थी. रत्ना ने यह भी बताया कि उस का किसी से मिलनाजुलना भी नहीं के बराबर था.

सीताराम ने बताया कि उस की सास कैलाबाई गांव में रहती थीं. नाती को देखने और संभालने के लिए वह अकसर आती जाती रहती थीं. फिलहाल भी कैलाबाई इसीलिए आई हुई थीं. कैलाबाई भी उन के कमरे में भी सोई हुई थीं.

बातचीत करने के बाद पूरा परिवार 10 बजे सो गया था. रात 11 बजे उस की नींद खुली तो दीपिका बच्चे को दूध पिला रही थी. पत्नी को यह कह कर मैं फिर सो गया कि मुन्ने को डकार दिला कर सुलाना. लेकिन रात 3 बजे नींद खुली तो कहतेकहते… सीताराम की हिचकियां बंध गईं.

घटना के बाद से दीपिका रोरो कर बेहाल थी. ऐसी स्थिति में उस पर शक करना बेमानी था. ऐसे गमगीन माहौल में एडिशनल एसपी राजेश मील को पूछताछ करना उचित नहीं लगा.

कोटा के बोरखेड़ा थानांतर्गत एक कालोनी है- सरस्वती कालोनी. इस कालोनी की गली नंबर 4 में स्थित 17 नंबर का मकान ‘शुभम कुंज’ रविरत्न गौड़ का है. रविरत्न गौड़ अपनी पत्नी कैलाबाई के साथ अंता कस्बे में रहते हैं.

उन के इस मकान में 2 बेटियों के परिवार और 2 किराएदार यानी 4 परिवार रह रहे थे. रविरत्न गौड़ की छोटी बेटी दीपिका अपने पति सीताराम के साथ इस मकान की पहली मंजिल पर सामने के हिस्से में रहती थी. सीताराम शिक्षक था. उस की तैनाती ग्रामीण क्षेत्र में थी.

दीपिका कोटा के महाराव भीमसिंह अस्पताल में टेक्नीशियन के पद पर काम कर रही थी. मकान के ग्राउंड फ्लोर पर दीपिका की बहन रत्ना गौड़ अकेली रहती थी. रविरत्न गौड़ और उन की पत्नी कैलाबाई जब कोटा आते थे तो रत्ना वाले हिस्से में ठहरते थे.

यह संयोग ही था कि घटना वाली रात को कैलाबाई कोटा आई हुई थीं. रात में दीपिका और दामाद के साथ बातचीत करते हुए 10 बज गए तो वह उन्हीं के कमरे में सो गईं.

सीताराम और दीपिका का विवाह 16 साल पहले 2003 में हुआ था. इस बीच उन के 2 बच्चे हुए और काल कवलित हो गए. इस घटना के दौरान दीपिका मातृत्व अवकाश पर थी जो अब खत्म होने को था. उसे सोमवार 20 अगस्त को ड्यूटी जौइन करनी थी. दीपिका ने जिस तरह सोशल मीडिया पर बेटे शिवाय के फोटो शेयर किए थे, उस ने पुलिस को काफी प्रभावित किया.

पुलिस के लिए हैरानी की बात यह थी कि रविवार 19 मई को 5 माह के मासूम की हत्या की खबर सोशल मीडिया पर तो तेजी से फैली लेकिन कालोनी की गली नंबर 4 में किसी को इस बात की भनक तक नहीं लगी थी.

पुलिस के संदेह के दायरे में 3 व्यक्ति थे- सीताराम, दीपिका और कैलाबाई. तीनों के मृतक शिवाय से रक्त संबंध थे. लेकिन तफ्तीश  के दौरान पुलिस को एक के बाद एक मिली जानकारियां दीपिका की तरफ इशारा कर रही थीं.

पूछताछ के दौरान थानाप्रभारी सोढ़ा को सीताराम की एक बात कील की तरह चुभ रही थी कि पिछले एक महीने से दीपिका का व्यवहार अचानक बदल गया था.

पता नहीं क्यों वह इस बात की रट लगाए हुए थी कि मेरी छुट्टियां खत्म हो रही है. ड्यूटी पर जाऊंगी तो शिवाय को कैसे संभालूंगी. सीताराम के आश्वस्त करने के बाद भी वह फिर उसी ढर्रे पर आ जाती थी.

सीताराम के इस बयान से पुलिस के संदेह को बल तो मिला, लेकिन इस की पुष्टि एक निजी अस्पताल के रिकौर्ड से हुई. रिकौर्ड के मुताबिक करीब 20 दिन पहले भी दीपिका ने शिवाय का गला घोंटने का प्रयास किया था.

तब शिवाय निजी अस्पताल में करीब एक सप्ताह तक भरती रहा था. इस बीच पुलिस को पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल गई. मैडिकल बोर्ड में शामिल डाक्टरों के मुताबिक दुपट्टे से बच्चे का गला घोंटने का प्रयास किया गया था. लेकिन इस से उस की मौत नहीं हुई थी.

बाद में उसे पानी की टंकी में डाला गया था. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में शिवाय के गले पर नीले निशान पाए गए थे.

पुलिस अधिकारियों ने दीपिका के व्यवहार को ले कर महाराव भीम सिंह अस्पताल में उस के साथ काम करने वाले सहकर्मियों से भी बातचीत की. लगभग सभी की एक ही प्रतिक्रिया थी कि दीपिका न केवल व्यवहार कुशल थी बल्कि अपने काम के प्रति भी पूरी तरह समर्पित थी.

सहकर्मियों का यह भी कहना था कि उस के व्यवहार से ऐसा कभी नहीं लगा कि वह मानसिक रूप से परेशान थी. अलबत्ता उसे अस्पताल से घर ले जाने  और लाने वाले आटो चालक ने इतना जरूर कहा कि यह बेहद गुस्सैल थी.

गुस्सा आने पर वह कुछ भी भला बुरा कहने से नहीं चूकती थी. अलबत्ता कुल मिला कर वह ठीकठाक थी. सहकर्मियों से ले कर आटो चालक के उत्तर से पुलिस अधिकारी उलझन में पड़ गए. तभी एसपी दीपक भार्गव ने अपनी पैनी निगाहों से समस्या के समाधान के लिए जांच को नई दिशा दी.

भार्गव साहब ने जांचकर्ताओं से कहा कि दीपिका का मोबाइल खंगालो. मोबाइल में पता चलेगा कि वो क्या देखती थी, उस का रुझान किस तरफ था. एसपी भार्गव का कहना था कि किसी की मानसिक  स्थिति की जानकारी लेने के लिए मोबाइल सब से अच्छा साधन हो सकता है.

इस का नतीजा काम का साबित हुआ. दीपिका के मोबाइल से एक चौंकाने वाला रहस्योदघाटन हुआ. पता चला कि फुरसत के वक्त वह हौरर फिल्में देखती थीं. रात को सब के सो जाने के बाद हौरर फिल्म देखने के लिए उस की आंखें मोबाइल की स्क्रीन पर गड़ी रहती थीं. घटना की रात भी वह हौरर फिल्म देखने के बाद सोई थी.

एडिशनल एसपी राजेश मील ने जब यह बात एसपी साहब को बताई तो उन का कहना था यह भी एक तरह का नशा है. नशे की झोंक में अपराध का जुनून सवार होता है. तब आदमी वैसा ही कुछ करने को उतारू हो जाता है, जैसा देखता है. एसपी साहब ने कहा कि दीपिका से मनोवैज्ञानिक ढंग से पूछताछ करने की कोशिश करो.

एडिशनल एसपी राजेश मील की देखरेख में पुलिस अधिकारियों अमृता दुलहन और हरेंद्र सोढ़ा ने दीपिका, उस के पति सीताराम और कैलाबाई को सामने बिठा कर दीपिका से पूछताछ शुरू की तो वह पहले ही सवाल पर उबल पड़ी. उस ने सवाल के बदले सवाल किया कि कोई मां अपने बेटे को कैसे मार सकती है?

गुस्से से उफनती हुई दीपिका पुलिस पर आरोप लगाने पर तुल गई, ‘‘आप मुझे बेवजह फंसाने की कोशिश कर रहे हैं.’’

उस का गुस्सा यही नहीं थमा, उस ने पति सीताराम को भी लपेटे में ले कर कहा, ‘‘यह सब तुम्हारी करनी है. याद रखना मुझे फंसाओगे तो तुम भी नहीं बचोगे.’’ सीताराम दीपिका के तानों से स्तब्ध रह गया. उस के मुंह से बोल तक नहीं फूटे.

सीओ अमृता दुहन जैसा चाहती थीं वैसा ही हुआ. दीपिका का गुस्सा बुरी तरह उफान पर था. अमृता दुहन ने मौका देख सवाल किया तो तीर निशाने पर लगा. उन्होंने पूछा, ‘‘20 दिन पहले शिवाय को क्या हुआ था, जो तुम ने उसे एक निजी अस्पताल में दाखिल कराया था?’’

गुस्से में उफनती दीपिका की जैसे घिग्घी बंध गई. लोहा गरम था, अमृता दुहन ने उसे फिर निशाने पर लिया, ‘‘तुम हौरर फिल्में देखती हो? घटना की रात तुम ने जो फिल्म देखी, उस में क्या बताया गया था.’’

गुस्से के मारे दीपिका का चेहरा सुर्ख हो गया. वह तड़प कर पुलिस अधिकारियों की तरफ मुड़ी और जहरीले लहजे में चिल्ला कर बोली, ‘‘हां, मैं ने ही मार दिया शिवाय को, नहीं है मुझे बच्चे पसंद… बच्चा चाहे किसी का भी हो मुझे किसी का बच्चा नहीं सुहाता…?’’

सीताराम और कैलाबाई के चेहरे सफेद पड़ चुके थे. जबकि पुलिस अधिकारियों के चेहरों पर मुसकराहट थी. पुलिस ने शनिवार एक जून को दीपिका को अदालत में पेश किया जहां से उसे न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया.

पुलिस के अनुसार इस वारदात के बाद पहले 2 बच्चों की मौतें भी संदेह के दायरे में आ गई हैं. उन की जांच की जा रही है.

सौजन्य- सत्यकथा, अक्टूबर 2019