एक सहेली ऐसी भी : अपनी खुशियों के लिए किया कत्ल

जिला अलीगढ़, उत्तर प्रदेश. तारीख 10 मार्च, 2020. अलीगढ़ के थाना गांधीपार्क क्षेत्र की कुंवरनगर कालोनी. उस दिन होली थी. कुंवरनगर कालोनी के भूरी सिंह ने दोस्तों और परिचितों के साथ जम कर होली खेली. होली खेलने के बाद वह नहाधो कर सो गया. भूरी सिंह सटरिंग का काम करता था. शाम को सो कर उठने के बाद वह अपनी पत्नी रूबी से यह कह कर कि ठेकेदार से अपने रुपए लेने जा रहा है, घर से निकल गया.

जब वह देर रात तक घर वापस नहीं आया तो पत्नी को उस की चिंता हुई. रात गहराने लगी तो रूबी ने किराएदार हरिओम की पत्नी रितू के मोबाइल से पति को फोन किया, लेकिन उस का फोन रिसीव नहीं हुआ.

दूसरे दिन 11 मार्च की सुबह 7 बजे लोगों ने कालोनी से निकलने वाले नाले में एक लाश उल्टी पड़ी देखी. इस जानकारी से कालोनी में सनसनी फैल गई. आसपास के लोग जमा हो गए. इसी बीच किसी ने पुलिस को सूचना दे दी. कुछ ही देर में थाना गांधी पार्क के थानाप्रभारी सुधीर धामा पुलिस टीम के साथ वहां पहुंच गए.

इसी बीच भूरी सिंह की पत्नी रूबी को किसी ने नाले में लाश मिलने की जानकारी दी. रूबी तत्काल वहां पहुंच गई. थानाप्रभारी ने लाश को नाले से बाहर निकलवाया. मृतक की शिनाख्त घटनास्थल पर पहुंची उस की पत्नी रूबी व छोटे भाई किशन लाल गोस्वामी ने भूरी सिंह गोस्वामी के रूप में की.

थानाप्रभारी ने इस घटना की जानकारी अपने उच्चाधिकारियों को दे दी थी. कुछ ही देर में एसपी (सिटी) अभिषेक कुमार फोरैंसिक टीम के साथ मौकाएवारदात पर पहुंच गए.

पति की लाश देख रूबी बिलखबिलख कर रो रही थी. मोहल्ले की महिलाओं ने उसे किसी तरह संभाला.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया, फिर फोरैंसिक टीम ने भी जांच कर साक्ष्य जुटाए.  मृतक के मुंह पर टेप लगा था और उस के हाथपैर रस्सी से बंधे हुए थे.

जांच के दौरान फोरैंसिक टीम ने देखा कि मृतक भूरी की गरदन पर चोट का निशान है. भूरी सिंह की हत्या किस ने और क्यों की, इस का जवाब किसी के पास नहीं था. सवाल यह भी था कि हत्यारे हत्या कर लाश को मृतक के छोटे भाई के घर के पास नाले में क्यों फेंक गए थे?

पुलिस का अनुमान था कि हत्यारे भूरी सिंह की हत्या किसी अन्य स्थान पर करने के बाद लाश को उस के छोटे भाई किशन गोस्वामी के घर के पास फेंक गए होंगे. होली का त्यौहार होने के कारण आवागमन कम होने से हत्यारों को लाश फेंकते किसी ने नहीं देखा होगा. पुलिस को मृतक की जेब से उस का मोबाइल भी मिल गया था.

थानाप्रभारी ने रूबी से उस के पति के बारे में पूछताछ की. रूबी ने बताया, ‘मंगलवार रात 9 बजे पति के मोबाइल पर पेमेंट ले जाने के लिए ठेकेदार का फोन आया था. इस के बाद वह घर से निकल गए और फिर नहीं लौटे. काफी रात होने पर उन्हें फोन किया, लेकिन काल रिसीव नहीं हुई थी.’

परिवार वालों को यह जानकारी नहीं थी कि भूरी सिंह किस ठेकेदार के पास रुपए लेने गया था. पुलिस ने मौके की काररवाई निपटाने के बाद लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

दूसरे दिन पोस्टमार्टम की रिपोर्ट आई तो पता चला कि भूरी सिंह की हत्या तार अथवा रस्सी से गला घोटने से हुई थी. मृतक के भाई किशनलाल गोस्वामी की तहरीर पर पुलिस ने मृतक भूरी सिंह की पत्नी रूबी, उस के किराएदार डब्बू, डब्बू की पत्नी रजनी और दूसरे किराएदार हरिओम और डब्बू के एक दोस्त आसिफ के विरुद्ध हत्या का केस दर्ज कर लिया.

रिपोर्ट में आरोप लगाया गया कि मृतक भूरी सिंह की पत्नी रूबी के किराएदार डब्बू से अवैध संबंध थे. इस का भूरी सिंह विरोध करता था. इस बात को ले कर रूबी और भूरी सिंह में आए दिन झगड़ा होता रहता था. घटना से 10 दिन पहले भी रूबी व किराएदार डब्बू ने मिल कर भूरी सिंह को पीटा था.

घटना वाली रात डब्बू ने अपने दोस्त आसिफ को घर बुलाया और पांचों नामजदों ने मिल कर भूरी की हत्या कर दी. हत्या के बाद लाश को मकान से कुछ दूर नाले में फेंक दिया.

सुबह रूबी ने अपने आप को साफसुथरा दिखाने के लिए पुलिस को कपोलकल्पित कहानी सुनाई थी कि भूरी सिंह ठेकेदार से पेमेंट लेने गया था, जो लौट कर घर नहीं आया.

पुलिस ने हत्या का मुकदमा दर्ज करने के बाद जांच शुरू कर दी. सीओ (द्वितीय) पंकज श्रीवास्तव ने बताया कि मृतक की लाश से उस का मोबाइल बरामद हुआ था, जिस की मदद से कुछ तथ्य सामने आए. पुलिस केस की गहनता से जांच कर रही थी. नतीजतन पुलिस ने घटना के दूसरे दिन ही इस हत्या की गुत्थी सुलझा ली.

दरअसल, पुलिस ने भूरी सिंह की हत्या के आरोप में मृतक की पत्नी रूबी व उस के किराएदार डब्बू की पत्नी रजनी को हिरासत में ले कर पूछताछ की. शुरुआती पूछताछ में दोनों पुलिस को बरगलाने की कोशिश करने लगीं. लेकिन जब सख्ती हुई तो दोनों एकदूसरे को देख कर टूट गईं और अपना जुर्म कुबूल कर लिया.

12 मार्च को एसपी (सिटी) अभिषेक कुमार ने पुलिस लाइन में प्रैसवार्ता के दौरान जो कुछ बताया, वह चौंकाने वाला था. दरअसल, सभी समझ रहे थे कि भूरी सिंह की हत्या उस की पत्नी रूबी के किराएदार डब्बू से अवैध संबंधों के बीच रोड़ा बनने के चलते की गई थी, लेकिन हकीकत कुछ और ही थी, जिसे सुन कर पुलिस ही नहीं सभी हक्केबक्के रह गए.

भूरी सिंह की हत्या का कारण था 2 महिलाओं के समलैंगिक संबंध. रूबी और रजनी ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. दोनों ने इस हत्याकांड के पीछे जो कहानी बताई, वह चौंकाने वाली थी—

भूरी सिंह की हत्या पूरी प्लानिंग के तहत की गई थी. इन दोनों महिलाओं ने ही उस की हत्या की पटकथा एक माह पहले लिख दी थी, जिसे अंजाम तक पहुंचाया होली के दिन गया.

भूरी सिंह की पहली पत्नी की मृत्यु के बाद उस का विवाह पत्नी की बहन यानी साली रूबी से करा दिया गया था. भूरी सिंह दूसरी पत्नी रूबी से उम्र में 11 साल बड़ा था. भूरी सिंह के पहली पत्नी से 3 बेटे व 1 बेटी थी.

भूरी सिंह सीधेसरल स्वभाव का था. वह केवल अपने काम से काम रखता था. ऐसे व्यक्ति का सीधापन कभीकभी उस के लिए ही घातक साबित हो जाता है. भूरी सिंह जैसा था, उस की पत्नी रूबी ठीक उस के विपरीत थी. वह काफी तेज और चंचल स्वभाव की थी.

घर वालों ने उस की शादी भूरी सिंह से इसलिए की थी ताकि बहन के बच्चों की देखभाल ठीक से हो जाए. वह मजबूरी में भूरी सिंह का साथ निभा रही थी. अपनी ओर भूरी सिंह द्वारा ध्यान न देने से जवान रूबी की रातें करवटें बदलते कटती थीं.

भूरी सिंह अपने बड़े भाई के मकान में किराए पर रहता था. पड़ोस में ही रजनी भी किराए के मकान में रहती थी. दोनों हमउम्र थीं. एकदूसरे के यहां आनेजाने के दौरान जानेअनजाने सोशल मीडिया पर अश्लील फोटो, वीडियो देखतेदेखते दोनों में नजदीकियां हो गईं, फिर दोस्ती गहरा गई.

दोनों के बीच समलैंगिक संबंध बन गए और एकदूसरे से पतिपत्नी की तरह प्यार करने लगीं. रूबी पत्नी तो रजनी पति का रिश्ता निभाने लगी.

दोनों सोशल मीडिया की इस कदर मुरीद थीं कि अपना ज्यादातर समय मोबाइल पर बिताती थीं. दोनों अपने इस रिश्ते के वीडियो तैयार कर के टिकटौक पर भी अपलोड करती थीं. उन के कई वीडियो वायरल हो चुके थे.

डब्बू और रजनी की शादी को 5 साल हो गए थे. उन का कोई बच्चा नहीं था. इसलिए भी दोनों महिलाओं के रिश्ते और गहरे हो गए. बाद में दोनों ने साथ रहने की कसमें खाते हुए कभी जुदा न होने का फैसला लिया.

इस बीच भूरी सिंह ने अपना मकान बनवा लिया था. रूबी और रजनी के बीच बने संबंध इस कदर प्रगाढ़ हो चुके थे कि घटना से एक साल पहले पति भूरी सिंह से जिद कर के रूबी ने अपने मकान की ऊपरी मंजिल पर एक कमरा और बनवा लिया था. फिर रजनी को उस के पति डब्बू के साथ किराएदार बना कर रख लिया, ताकि उन के संबंधों के बारे में किसी को पता न चल सके.

एक ही मकान में रहने से अब दोनों महिलाएं बिना किसी डर के आपस में मिल लेती थीं. भूरी सिंह सटरिंग के काम के लिए सुबह ही निकल जाता था और देर शाम लौटता था. इस के चलते दोनों सहेलियों में पिछले 2 सालों में गहरे समलैंगिक संबंध बन गए थे. दोनों एकदूसरे से बिना मिले नहीं रह पाती थीं.

इन अनैतिक संबंधों को बनाए रखने के लिए दोनों काफी गोपनीयता बरतती थीं. फिर भी उन की पोल खुल ही गई. एक माह पहले ही भूरी सिंह को अपनी पत्नी रूबी  और किराएदार रजनी के बीच चल रहे अनैतिक संबंधों का पता चल गया. दोनों महिलाओं के बीच चल रहे प्रेम संबंधों का पता चलने के बाद भूरी सिंह के होश उड़ गए. वह परेशान रहने लगा.

उस ने इन अनैतिक संबंधों को गलत बताते हुए विरोध किया. उस ने पत्नी रूबी को समझाया और रजनी से दूर रहने को कहा. इन्हीं संबंधों को ले कर दोनों में विवाद होने लगा. भूरी सिंह ने रूबी को सुधर जाने की हिदायत देते हुए कहा कि वह अपने मकान में रजनी को किराएदार नहीं रखेगा.

दूसरे दिन भूरी सिंह के काम पर जाने के बाद रूबी ने यह बात रजनी को बताई. भूरी सिंह उन के प्रेम संबंधों में बाधक बन रहा था, इस से दोनों परेशान हो गईं. काफी विचारविमर्श के बाद दोनों ने राह के रोड़े भूरी सिंह को रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया. इस के बाद भी दोनों के संबंध चलते रहे. हां, अब दोनों थोड़ी होशियारी से मिलती थीं.

होली वाले दिन शाम को रूबी और रजनी ने भूरी सिंह को जम कर शराब पिलाई. इस के चलते भूरी सिंह नशे में बेसुध हो गया, तो दोनों ने उस के हाथपैर रस्सी से बांधे और मुंह पर टेप लगाने के बाद रस्सी से गला घोंट कर हत्या कर दी.

रात होने पर दोनों ने लाश को पड़ोस में रहने वाले छोटे भाई किशनलाल के घर के पास नाले में फेंक दिया ताकि शक भाई  के ऊपर जाए. बुधवार को कुंवर नगर कालोनी में नाले में उस का शव मिला.

पुलिस द्वारा पूछताछ करने पर रूबी ने अफवाह फैला दी कि उस का पति भूरी सिंह ठेकेदार से रुपए लेने की बात कह कर घर से निकला था, लेकिन देर रात तक जब घर वापस नहीं आया, तब उस ने किराएदार हरिओम की पत्नी रितू के फोन से काल थी. जबकि हकीकत वह स्वयं जानती थी.

पुलिस ने इस हत्याकांड का खुलासा करने के साथ ही दोनों महिलाओं की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त रस्सी व टेप बरामद कर लिया. दोनों महिलाओं को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया.

हालांकि भारतीय दंड संहिता की धारा-377 को वैध कर दिया गया है यानी समलैंगिकता अब हमारे देश में कानूनन अपराध नहीं है, अर्थात आपसी सहमति से 2 व्यस्कों के बीच समलैंगिक संबंध अब अपराध नहीं रहा. लेकिन हमारे देश में अभी तक इसे पूरी तरह अपनाया नहीं गया है. इसी के चलते लोग अपने संबंधों को समाज में स्थापित करने के लिए अपराध की राह पर चल पड़ते हैं. भूरी सिंह हत्याकांड के पीछे भी यही कारण प्रमुख रहा.

दोनों महिलाओं के अनैतिक संबंधों के चलते उन के परिवार उजड़ गए. भूरी सिंह की मौत के बाद उस के चारों अबोध बच्चे अनाथ हो गए.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्यसत्यकथा, मई 2020

प्रश्नचिन्ह बनी बेटी

दिनांक: 10 फरवरी, 2020 स्थान: गांव- मिट्ठौली, थाना- नौहझील, जिला- मथुरा, उत्तर प्रदेश  समय: रात 10 बजे रिटायर्ड फौजी चेतराम उर्फ झगड़ू का घर अचानक गोलियों की तड़तड़ाहट से गूंज उठा.

किसी अनहोनी की आशंका से गांव वाले जब फौजी के मकान पर पहुंचे तो वहां का दृश्य देख कर सकते में आ गए. रिटायर्ड फौजी चेतराम घर के बाहर खून से लथपथ पड़ा था. फोजी की 17 वर्षीय बेटी अलका हाथ में लोडेड पिस्टल लिए खड़ी थी, उस के कपड़ों पर खून लगा था. गांव वालों को देखते ही अलका ने पिस्टल तानते हुए धमकी दी, ‘‘कोई भी मेरे पास आने की कोशिश न करे. आगे बढ़ा तो गोली मार दूंगी.’’

उस के हाथ में लोडेड पिस्टल देख किसी की भी उस के पास जाने की हिम्मत नहीं हुई. कुछ देर बाद अलका मकान की ऊपरी मंजिल पर चली गई. वहां उस की मां राजकुमारी उर्फ नेहा लहूलुहान पड़ी थी. इसी बीच किसी ने पुलिस को घटना की जानकारी दे दी.

इस सनसनीखेज घटना की जानकारी मिलते ही नौहझील के थानाप्रभारी विनोद कुमार यादव पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. मौकाएवारदात पर पुलिस ने वारदात के बारे में पड़ोसियों से पूछताछ शुरू की.

पुलिस जब घटनास्थल पर पहुंची, तब भी खून से लथपथ फौजी चेतराम घर के बाहर पड़ा था, उस के पास ही पिस्टल पड़ी थी. पुलिस मकान की पहली मंजिल पर पहुंची तो वहां राजकुमारी और बेटी अलका खून से लथपथ पड़ी मिलीं.

मामला एक फौजी परिवार का था, इसलिए पुलिस के उच्चाधिकारियों को भी अवगत करा दिया गया. खबर पा कर एसएसपी शलभ माथुर और सीओ मांट आलोक दूबे घटनास्थल पर पहुंच गए. साथ ही फोरैंसिक टीम भी आ गई. अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया.

फौजी के घर में पत्नी के अलावा एक बेटी व एक बेटा था. परिवार के 4 सदस्यों में से 3 को गोलियां लगी थीं. इस वीभत्स गोलीकांड का एकमात्र गवाह फौजी का बेटा आदर्श ही था. इस गवाह को खरोंच तक नहीं आई थी. पुलिस ने फौजी, उस की पत्नी और बेटी को उपचार के लिए मथुरा के नयति अस्पताल भिजवा दिया.

नौहझील पुलिस ने अपने स्तर से जानकारी जुटाने के साथ ही ग्रामीणों से भी पूछताछ की. सूचना पर पहुंची फोरैंसिक टीम ने घर में कारतूस भी तलाशे और दीवारों में फंसी गोलियां भी निकालीं. फोरैंसिक टीम काफी देर तक पूरे घर को खंगालती रही.

टीम ने खून के नमूने और खून आलूदा मिट्टी के नमूने भी लिए. फौजी चेतराम के घर से पिस्टल, 2 खोखे, 3 जिंदा कारतूस, खाली मैगजीन और 4 कारतूसों की एक और मैगजीन बरामद हुई. पुलिस ने पिस्टल को बैलेस्टिक जांच के लिए भेजने हेतु जब्त कर लिया.

इस सनसनीखेज वारदात ने लोगों को हिला कर रख दिया था. गांव वाले चर्चा कर रहे थे कि अलका ने मांबाप को गोली मारने के साथ खुद को भी गोली मार ली. हालांकि यह केवल चर्चा थी. वास्तविकता का किसी को भी पता नहीं था. इस का पता पुलिस को ही लगाना था.

अस्पताल में जांच के बाद डाक्टरों ने बताया कि अस्पताल पहुंचने से पहले ही चेतराम की मौत हो चुकी थी. जबकि घायल मांबेटी की हालत चिंताजनक थी. चेतराम के सीने से और राजकुमारी के सिर से गोली पार हो गई थी, जबकि अलका के पेट में गोली लगी थी. पुलिस ने चेतराम की लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला चिकित्सालय भेज दी.

45 वर्षीय सेवानिवृत्त चेतराम जाट रेजीमेंट में नायक था. 2014 में वह सेवानिवृत्त हो चुका था. उस के परिवार में 17 वर्षीय बेटी अलका, 15 वर्षीय बेटा आदर्श और 38 वर्षीय पत्नी राजकुमारी उर्फ नेहा थे. अपनी नौकरी के दौरान ही चेतराम ने राइफल और पिस्टल का लाइसैंस ले लिया था. चेतराम चाहता था कि उस की बेटी अलका कोई ऊंचा मुकाम हासिल करे, इस के लिए उस ने दिल्ली में ओला कैब में अपनी गाड़ी लगा रखी थी.

अलका ने इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई नौहझील के स्कूल में की थी. इस के बाद उस ने बीएसए कालेज, मथुरा में एडमिशन ले लिया था. फिलहाल वह बीएससी द्वितीय वर्ष की छात्रा थी और प्रयागराज में कोचिंग ले रही थी. अलका घटना से कुछ दिन पहले ही गांव आई थी. उस का 15 वर्षीय भाई आदर्श मथुरा में ही 9वीं की पढ़ाई कर रहा था.

इस घटना में राजकुमारी के सिर की हड्डी टूट गई थी, चेहरे और आंखों पर भी सूजन थी. उन्हें वेंटीलेटर पर रखा गया था. जबकि अलका के पेट में गोली लगने का निशान था.

अलका को सांस लेने में परेशानी हो रही थी. राजकुमारी के सिर की हड्डी गोली से टूटी थी या किसी भारी चीज के प्रहार से, यह स्पष्ट नहीं हो पाया था. वहीं रिटायर्ड फौजी चेतराम को 2 गोलियां लगी थीं. एक सीने में और दूसरी पेट से कुछ ऊपर. यह खुलासा पोस्टमार्टम रिपोर्ट से हुआ.

फौजी चेतराम का पुलिस की मौजूदगी में अंतिम संस्कार कर दिया गया. मुखाग्नि बेटे आदर्श ने दी. गांव वाले इस घटना को ले कर तरहतरह की चर्चाएं कर रहे थे.

मंगलवार 11 फरवरी को चेतराम के छोटे भाई ओमवीर सिंह ने अपनी भतीजी अलका व उस के प्रेमी अंकित के खिलाफ हत्या, हत्या के प्रयास और जान से मारने की धमकी देने के आरोप लगाते हुए मुकदमा दर्ज कराया. ओमवीर का कहना था कि अलका का गांव के ही युवक अंकित के साथ प्रेम प्रसंग चल रहा था. चेतराम इस का विरोध करता था. इसी के चलते अलका और उस के प्रेमी अंकित ने मिल कर यह कांड कर डाला.

ओमवीर सिंह की तहरीर में यह बात भी शामिल थी कि गोलीकांड के बाद अंकित को उस ने भाई के घर से निकलते देखा था. इस के बाद वह अंदर गए तो अलका ने कहा, ‘‘मेरे और अंकित के बीच में जो भी आएगा, उसे छोड़ूंगी नहीं.’’

आखिर ऐसा क्या हुआ था कि मां और पिता को गोली लगने के साथसाथ बेटी भी घायल हो गई थी. यह बात अभी साफ नहीं थी कि आखिर गोली किस ने चलाई? इस मामले में सभी बिंदुओं की गहन पड़ताल की गई.

पता चला कि घटना वाली रात पतिपत्नी में विवाद हुआ था. पुलिस को गांव वालों से यह भी पता चला कि अलका का गांव के ही अंकित से प्रेम प्रसंग चल रहा था. यह भी स्पष्ट हो गया था कि गोलीबारी की शुरुआत पहली मंजिल पर हुई थी.

पुलिस ने गहनता से जांच कर पूरी जानकारी और साक्ष्य जुटाए गए. तथ्यों पर आधारित इस घटनाक्रम की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

अंकित और अलका ने नौहझील के स्कूल में इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई एक साथ पूरी की थी. दोनों में पिछले 5 साल से दोस्ती थी और दोनों रिलेशनशिप में थे.

महत्त्वाकांक्षी अलका देखने में स्मार्ट थी. गठे बदन और अच्छी लंबाई के कारण वह सुंदर दिखती थी. आधुनिक विचारों वाली अलका फैशन के हिसाब से कपड़े पहनती थी.

पुलिस जांच में सामने आया कि 31 दिसंबर, 2019 को अलका अचानक घर से लापता हो गई थी. उस  के पिता चेतराम ने उसे काफी तलाश किया. पता न लग पाने पर वह थाने भी पहुंचा. 5 दिन बाद गांव वालों के हस्तक्षेप के बाद अलका घर लौट आई. मगर यह शूल चेतराम के सीने में चुभता रहा. तभी से घर में क्लेश चल रहा था. विपरीत हालात देख अंकित का पिता नेत्रपाल अपने बेटे, बेटी और पत्नी को साथ ले कर गांव से चला गया था. नेत्रपाल भी सेना में था.

बचपन को पीछे छोड़ कर बेटी जवानी की दहलीज पर कदम रख चुकी थी. पिता चेतराम को बेटी के रंगढंग देख कर उस की चिंता होने लगती थी. जबकि अलका के खयालों में हरदम अपने दोस्त से प्रेमी बने अंकित की तसवीर रहती थी. वह चाहती थी कि उस का चाहने वाला हर पल उस की नजरों के सामने रहे. उस के कदमों को बहकते देख चेतराम ने अलका पर पाबंदियां लगा दीं. लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला. वे दोनों चोरीछिपे मिलने लगे.

बेटी की नादानी के लिए चेतराम अपनी पत्नी राजकुमारी को दोषी मानता था. उस का मानना था कि मां की शह के चलते ही बेटी ने इतना बड़ा कदम उठाया और गांव में उस की इज्जत मिट्टी में मिला दी. बेटी के इस कारनामे के चलते वह गांव में किसी से नजर भी नहीं मिला पा रहा था.

सेवानिवृत्त फौजी चेतराम के परिवार में कई महीने से चल रही कलह की जानकारी गांव के लोगों के साथ ही चेतराम के घर वालों और रिश्तेदारों को भी थी. रिश्तेदारों ने कई बार कलह को निपटाने के लिए चेतराम और उस के परिवार वालों से बात की, लेकिन समाधान कोई नहीं निकला. पिता की हिदायत व रोकटोक से अलका बहुत नाराज थी.

घटना से 4 दिन पहले ही नेत्रपाल अपने परिवार सहित गांव वापस आया था. वह यह सोच कर गांव आया था कि हालात सामान्य हो गए होंगे. अलका भी कुछ दिन पहले ही प्रयागराज से गांव आई थी. बिछड़े हुए प्रेमियों ने इतने दिनों बाद एकदूसरे को देखा तो बिना मिले नहीं रह सके. चेतराम यह सब बरदाश्त नहीं कर सका.

घटना की रात चेतराम ने अलका की हत्या का फैसला किया, लेकिन सामने पड़ गई पत्नी राजकुमारी. उस ने पत्नी पर ही गोली चला दी, जिस से वह घायल हो गई. बाद में उस ने बेटी पर भी गोली चलाई जो उस के पेट में लगी. पत्नी को गोली लगने के बाद चेतराम सुधबुध खो बैठा. इस का फायदा उठा कर अलका ने पिस्टल छीन कर उस पर गोलियां दाग दीं. जान बचाने के लिए वह भागा और घर के बाहर जा कर गिर गया.

एसएसपी शलभ माथुर ने प्रैस कौन्फ्रैंस में बताया कि घटना वाली रात पुलिस को सूचना मिली थी कि गांव मिट्ठौली में बेटी ने अपने पिता और मां को गोली मार दी है. इसी सूचना पर पुलिस गांव पहुंची थी. लेकिन जांच में पता चला कि फौजी की बेटी अलका ने सेल्फ डिफेंस में गोली चलाई थी.

अलका ने अपने बयान में बताया कि उस के पिता ने पहले उस पर गोली चलाई थी. इस दौरान गोली बचाव में आई उस की मां राजकुमारी को लग गई. मां के गिरते ही उस ने दूसरी गोली उस पर चलाई जो उस के पेट से रगड़ती हुई निकल गई, जिस से वह घायल हो गई. जब पिता उस के भाई पर गोली चलाना चाहते थे, मैं ने तेजी से झपट्टा मार कर पिता के हाथ से पिस्टल छीन ली और बचाव में उन के ऊपर गोली चला दी. वह हम सब को मारना चाहते थे.

उधर इस गोलीकांड में मृत फौजी की घायल पत्नी राजकुमारी जो वेंटीलेटर पर थी, ने घटना के 29वें दिन 11 मार्च की रात नयति अस्पताल, मथुरा में दम तोड़ दिया. मां की मौत से कुछ दिन पहले ही अलका के ठीक होने पर उसे अस्पताल से छुट्टी दे दी गई थी.

आरोपी अंकित के खिलाफ पुलिस को पर्याप्त सबूत नहीं मिल सके. अलका और उस के भाई आदर्श से पूछताछ में अंकित का कोई जिक्र नहीं आया. जबकि गोली पिता द्वारा चलाए जाने की बात दोनों ने बताई.

बयान लेने के बाद पुलिस ने अलका के घर वालों से उसे सुपुर्दगी में लेने को कहा, लेकिन किसी ने उसे लेने की हामी नहीं भरी. इस पर सिटी मजिस्ट्रेट ने अगले आदेश तक उसे नारी निकेतन भेज दिया.

दुश्मन से जूझने का दमखम रखने वाला चेतराम अपने खून के साथ जीवन की जंग हार गया.

बेटी की नादानी से पिता बुरी तरह टूट गया था. जब बेटी अलका अपने प्रेमी के साथ 5 दिनों तक गायब रही थी, चेतराम ने तभी से खाना छोड़ कर शराब के नशे में डुबो दिया था. वह गहरे सदमे में था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्यसत्यकथा, मई 2020

शीतल का अशांत मन : जिंदगी को किया बरबाद

38वर्षीय संजय भोसले महाराष्ट्र के जनपद सतारा के गांव एक्सल का रहने वाला था. उस के पिता पाडूरंग भोसले की जो थोड़ीबहुत खेती की जमीन थी, उस की उपज से वह परिवार का भरणपोषण कर रहे थे. गांव में उन की काफी इज्जत और प्रतिष्ठा थी. वह सीधेसरल स्वभाव के व्यक्ति थे.

संजय भोसले एक महत्त्वाकांक्षी युवक था. उस की नौकरी भारतीय थल सेना में बतौर ड्राइवर लग गई थी. पुणे में 6 माह की ट्रेनिंग के बाद उस की पोस्टिंग हो गई थी. संजय की नौकरी लग चुकी थी, इसलिए मातापिता उस की शादी करना चाहते थे.

मराठी समाज में जब लड़की शादी योग्य हो जाती है तो लड़की वाले लड़के की तलाश में नहीं जाते, बल्कि लड़के वालों को ही लड़की की तलाश करनी होती है. इसलिए पाडूरंग भोसले भी बेटे संजय के लिए लड़की की तलाश में जुट गए. उन्होंने जब यह बात अपने नाते रिश्तेदारों और जानपहचान वालों में चलाई तो उन के एक रिश्तेदार ने शीतल जगताप का नाम सुझाया.

28 वर्षीय शीतल पुणे शहर के तालुका बारामती, गांव ढाकले के रहने वाले बवन विट्ठल जगताप की बेटी थी. खूबसूरत होने के साथसाथ वह उच्चशिक्षित भी थी. वह डी.फार्मा कर चुकी थी. पाडूरंग भोसले ने बवन विट्ठल से मुलाकात कर अपने बेटे संजय के लिए उन की बेटी शीतल का हाथ मांगा.

संजय पढ़ालिखा था और सेना में नौकरी कर रहा था, इसलिए विट्ठल ने सहमति दे दी. फिर घरवालों ने शीतल और संजय की मुलाकात कराई. हालांकि संजय शीतल से 10 साल बड़ा था, लेकिन वह सरकारी मुलाजिम था, इसलिए शीतल ने उसे पसंद कर लिया. बाद में सामाजिक रीतिरिवाज से अक्तूबर 2008 में दोनों का विवाह हो गया.

जहां संजय शीतल को पा कर अपने आप को खुशनसीब समझ रहा था, वहीं शीतल भी मजबूत कदकाठी वाले फौजी संजय से शादी कर के गर्व महसूस कर रही थी. लेकिन शीतल का यह वहम शीघ्र ही धराशायी हो गया. शीलत के हाथों की मेंहदी का रंग अभी छूटा भी नहीं था कि संजय की छुट्टियां खत्म हो गईं. अपनी नईनवेली दुलहन शीलत को उस के मायके छोड़ कर संजय को अपनी ड्यूटी पर जाना पड़ा. जबकि शीतल चाहती थी कि संजय उस के पास कुछ दिन और रहे.

एक खतरनाक इलाके में पोस्टिंग होने के कारण संजय को बहुत कम छुट्टी मिलती थी. ऐसे में शीतल को ज्यादातर समय अपने मायके और ससुराल में ही बिताना पड़ता था. साल दो साल में जब भी संजय को छुट्टी मिलती तभी वह घर आ पाता था. इस बीच शीतल एक बच्चे की मां बन गई थी.

आज के जमाने में कोई भी पत्नी अपने पति से दूर नहीं रहना चाहती. लेकिन किसी मजबूरी के चलते उसे समझौता करना पड़ता है. यही हाल शीतल का भी था. उसे अपने मन और तन की प्यास को दबाना पड़ा था.

8 साल इसी तरह बीत गए. इस के बाद संजय का ट्रांसफर पुणे के सेना कैंप में हो गया. शीतल के लिए यह खुशी की बात थी. यहां उसे रहने के लिए सरकारी आवास भी मिल गया था, सो संजय शीतल को पुणे ले आया. पति के संग रह कर शीतल खुश तो जरूर थी. लेकिन वह खुशी अभी भी उसे नहीं मिल रही थी, जो एक औरत के लिए ज्यादा महत्त्वपूर्ण होती है. यहां भी संजय पत्नी को पूरा समय नहीं दे पाता था.

भटकने लगा शीतल का मन

हालांकि शीतल 10 वर्षीय बच्चे की मां थी. लेकिन हसरतें अभी भी जवान थीं, जो पति के संपर्क के लिए तरस रही थीं. शीतल का दिन तो बच्चे और घर के कामों में गुजर जाता था लेकिन रात उस के लिए पहाड़ सी बन जाती.

एक कहावत है कि नारी सहनशील और बड़े ही धीरज वाली होती है. लेकिन थोड़ी सी सहानुभूति पाने पर वह बहुत जल्दी बहक भी जाती है और उस का फायदा कुछ मनचले लोग उठा लेते हैं. यही हाल शीतल का भी हुआ. उस के कदम बहक गए. जिस का फायदा योगेश कदम ने उठाया. वह उस की निजी जिंदगी में कब आ गया, इस का शीतल को आभास ही नहीं हुआ.

संजय को जो सरकारी क्वार्टर मिला था, किसी वजह से 3 साल बाद उसे वह छोड़ना पड़ा. वह अपनी फैमिली ले कर पुणे के नखाते नगर स्थित अंबर अपार्टमेंट की दूसरी मंजिल के फ्लैट में आ गया. जिस फ्लैट में संजय भोसले अपनी पत्नी और बच्चे को ले कर रहने के लिए आया था.

उसी के ठीक सामने वाले फ्लैट में योगेश कदम रहता था. वह एक कैमिकल कंपनी में नौकरी करता था. पड़ोसी होने के नाते पहले ही दिन दोनों का परिचय हो गया. बाद में योगेश का संजय के यहां आनाजाना शुरू हो गया.

अविवाहित योगेश कदम ने जब से शीतल को देखा था, तब से वह उस का दीवाना हो गया था. ऐसा ही हाल शीतल का भी था. जबजब वह योगेश कदम को देखती, उस के मन में एक हूक सी उठती थी. शारीरिक रूप से भी योगेश कदम उस के पति संजय भोसले से ज्यादा मजबूत था. जबजब दोनों की नजरें एकदूसरे से टकरातीं, दोनों के दिलों में हलचल सी मच जाती थी. उन की नजरों में जो चमक होती थी, उसे अच्छी तरह से महसूस करते थे. यही कारण था कि उन्हें एकदूसरे के करीब आने में समय नहीं लगा.

योगेश कदम यह बात अच्छी तरह से जानता था कि शीतल अकसर घर में अकेली रहती है. बच्चे को स्कूल छोड़ने के बाद और कभीकभी संजय भोसले की नाइट ड्यूटी लग जाने पर योगेश को शीतल से बात करने का मौका मिल जाता था.

बाद में उस ने शीतल के पति संजय से भी दोस्ती बढ़ा ली, जिस के बहाने वह जबतब शीतल के घर आनेजाने लगा. इस तरह शीतल और योगेश के बीच अवैध संबंध कायम हो गए. जब एक बार मर्यादा की सीमा टूटी तो टूटती ही चली गई. जब भी शीतल और योगेश कदम को मौका मिलता, अपने तनमन की प्यास बुझा लेते थे.

योगेश कदम से मिलन के बाद शीतल खुश रहने लगी. उस के चेहरे का रंगरूप बदल गया. वह योगेश के प्यार में इतनी दीवानी हो गई थी कि अब वह पति संजय भोसले की उपेक्षा भी करने लगी. पत्नी के इस बदले रंगरूप और व्यवहार को पहले तो संजय समझ नहीं पाया. लेकिन जब तक समझ पाया, तब तक काफी देर हो चुकी थी.

मामला नाजुक था. लिहाजा एक दिन संजय ने पत्नी को काफी समझाया मानमर्यादा और समाज की दुहाई दी, लेकिन शीतल पर उस की बातों का कोई असर नहीं हुआ. पहले तो शीतल घर में ही योगेश के साथ रंगरलियां मनाती थी लेकिन जब संजय ने उस पर निगाह रखनी शुरू कर दी तो वह प्रेमी के साथ मौल और रेस्टोरेंट वगैरह में आनेजाने लगी. जब यह बात संजय को पता चली तो उस ने पत्नी पर सख्ती दिखानी शुरू कर दी. तो इस से शीतल बगावत पर उतर आयी. नतीजा मारपीट तक पहुंच गया.

दोनों के बीच अकसर रोजाना ही झगड़ा होता. रोजरोज की कलह से शीतल भी उकता गई. लिहाजा उस ने प्रेमी के साथ मिल कर पति को ही ठिकाने लगाने की योजना बना ली, लेकिन किसी कारणवश यह योजना सफल नहीं हो सकी. पत्नी की हरकतों से तंग आ कर आखिरकार संजय भोसले ने कहीं दूर जा कर रहने का फैसला किया. यह करीब 5 महीने पहले की बात है.

बनने लगी बरबादी की भूमिका

साल 2019 के अक्तूबर माह में एक माह की छुट्टी ले कर संजय भोसले ने अपना घर बदल दिया. वह पत्नी और बच्चे को ले कर पुणे के नखाते कालेबाड़ी स्थित एक सोसाइटी में आ गया. लेकिन उसे यहां भी राहत नहीं मिली. शीतल के व्यवहार में जरा भी परिवर्तन नहीं आया.

बच्चे के स्कूल और पति के ड्यूटी पर जाने के बाद शीतल फोन कर योगेश को फ्लैट पर बुला लेती थी. किसी तरह यह जानकारी संजय को मिल जाती थी. पत्नी की हठधर्मिता से वह इस प्रकार टूट गया कि उस ने शराब का सहारा ले लिया. शराब के नशे में वह पत्नी को अकसर मारतापीटता था.

इस के अलावा अब वह कभी भी वक्तबेवक्त घर आने लगा, जिस से शीतल और योगेश के मिलनेजुलने में परेशानियां खड़ी हो गईं. इस से छुटकारा पाने के लिए शीतल ने फिर वही योजना बनाई, जो पहले बनाई थी.

मौका देख कर शीतल ने योगेश कदम से कहा, ‘‘योगेश तुम अगर मुझ से प्यार करते हो और मुझे पूरी तरह अपना बनाना चाहते हो तो तुम्हें संजय के लिए कोई कठोर कदम उठाना होगा, मतलब उसे हम दोनों के बीच से हटाना पड़ेगा.’’ योगेश कदम भी यही चाहता था. वह इस के लिए तुरंत तैयार हो गया.

8 नवंबर, 2019 की सुबह करीब 5 बजे शिवपुर पुलिस चौकी पर तैनात एसआई समीर कदम को जो सूचना मिली उसे सुन कर वह चौंके. सूचना देने वाले एंबुलेंस ड्राइवर सूफियान मुश्ताक मुजाहिद, निवासी गांव बेलु, जनपद पुणे ने उन्हें बताया कि शिवपुर टोलनाका क्रौस पुणे सतारा हाइवे पर स्थित होटल गार्गी और कंदील के बीच सर्विस रोड पर एक युवक बुरी तरह घायल पड़ा है.

एसआई समीर कदम ने बिना किसी विलंब के इस मामले की जानकारी रायगढ़ थानाप्रभारी दत्तात्रेय दराड़े के अलावा पुलिस कंट्रोलरूम को दी और अपने सहायकों के साथ घटनास्थल की ओर रवाना हो गए.

घटनास्थल पर पहुंच कर एसआई अभी वहां का मुआयना कर ही रहे थे कि थानाप्रभारी दत्तात्रेय दराड़े, एसपी संदीप पाटिल और एएसपी अन्नासो जाधव मौकाएवारदात पर आ गए. तब तक वहां पड़ा युवक मर चुका था. उसे देख कर मामला रोड ऐक्सीडेंट का लग रहा था. इसलिए घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण कर शव पोस्टमार्टम के लिए पुणे के ससून अस्पताल भेज दिया गया.

पुलिस को घटना से एक मोबाइल फोन, ड्राइविंग लाइसेंस और एक डायरी मिली, जिस से पता चला कि मृतक का नाम संजय भोसले है. पुलिस ने फोन से उस की पत्नी शीतल का फोन नंबर हासिल कर के उसे पुलिस चौकी शिवपुर बुला लिया.

संजय भोसले की पत्नी शीतल ने संजय भोसले के मोबाइल फोन और ड्राइविंग लाइसेंस को पहचान लिया और दहाड़े मारमार कर रोने लगी. पूछताछ में शीतल ने कहा कि उसे नहीं पता है कि संजय घटनास्थल तक कैसे पहुंच गए.

आखिर सच आ ही गया सामने

शीतल ने आगे बताया कि कल रात उन्होंने परिवार के साथ खाना खाया था. रात 10 बजे के करीब उसे और बच्चे को सोने के लिए बेडरूम में भेज कर खुद हाल में सो गए थे. इस के बाद क्या हुआ, वह कुछ नहीं जानती.

मामला काफी उलझा हुआ था. जांच अधिकारी ने उस समय तो शीतल को घर जाने दिया था. लेकिन उन्होंने उसे क्लीन चिट नहीं दी. उन्हें शीतल के घडि़याली आंसुओं पर संदेह था. बाकी की रही सही कसर पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने पूरी कर दी.

रिपोर्ट में बताया गया कि मामला दुर्घटना का नहीं है, उसे सल्फास नामक जहरीला पदार्थ दिया गया था, जिस का सेवन तकरीबन 12 घंटे पहले किया गया था. यह जहर कहां से आया, क्यों आया यह जांच का विषय था. पुलिस टीम ने जब गहराई से जांचपड़ताल की और शीतल के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स देखी तो तो वह पुलिस के रडार पर आ गई.

पुलिस ने जब शीतल से सख्ती से पूछताछ की तो वह टूट गई और अपना गुनाह कबूल कर के प्रेमी योगेश कदम और उस के सहयोगियों का नाम बता दिए. उस ने बताया कि जिस जहरीले पदार्थ से संजय की मौत हुई, वह जहर 7 नवंबर, 2019 को योगेश कदम अपनी कंपनी से लाया था. उस ने वही जहर संजय के खाने में मिला दिया था. जहर खाने से जब उस की मौत हो गई तब उस ने योगेश को वाट्सएप मैसेज भेज कर जानकारी दे दी थी.

अब समस्या संजय के शव को ठिकाने लगाने की थी. योगेश ने अपने 2 दोस्तों मनीष कदम और राहुल काले के साथ मिल कर इस का बंदोबस्त पहले ही कर रखा था. उन्होंने एक कार किराए पर ली, उस कार से योगेश रात 2 बजे के करीब शीतल के घर पहुंचा और अपने दोस्तों के साथ संजय भोसले के शव को कार में डाल लिया, जिसे ये लोग यह सोच कर पुणे सतारा रोड की सर्विस लेन पर डाल आए कि मामला दुर्घटना का लगेगा, लेकिन इस में वह कामयाब नहीं हो सके.

शीतल से विस्तृत पूछताछ करने के बाद पुलिस ने मामले के अन्य अभियुक्तों की धड़पकड़ तेज कर दी और जल्दी ही संजय भोसले हत्याकांड के सभी अभियुक्तों को गिरफ्तार कर लिया.

गिरफ्तार शीतल संजय भोसले, योगेश कमलाकर राव कदम, मनीष नारायन कदम और राहुल अशोक काले को थानाप्रभारी ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों के समक्ष पेश किया.

उन्होंने भी आरोपियों से पूछताछ की. इस के बाद उन्हें भादंवि की धारा 302, 201, 120बी, 109 के तहत गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश कर पुणे की नरवदा जेल भेज दिया.

सौजन्य: सत्यकथा, अप्रैल 2020

 

घातक त्रिकोण प्रेम का

हरियाणा के जिला मेवात के गांव सुधराना का रहने वाला 35 वर्षीय सुरेंद्र कुमार नूंह कोर्ट में टाइपिस्ट के पद पर कार्यरत था. उस के परिवार में पत्नी सीमा के अलावा 11 साल का एक बेटा आलोक था. गांव में उस का अपना पैतृक मकान और सरकारी नौकरी होने के कारण उस के घर की आर्थिक स्थिति अच्छी थी. घर में सब कुछ ठीक था.

22 दिसंबर, 2019 को शनिवार का दिन था. शाम वह कोर्ट की ड्यूटी समाप्त करने के बाद अपने गांव लौटा तो सीमा उसे देख कर बहुत खुश हुई. क्योंकि सुरेंद्र जब कोर्ट खुला होता तो नूंह में ही रुक जाता था और सप्ताहांत में बीवीबच्चों से मिलने गांव आ जाता था. सीमा एक खूबसूरत मिलनसार स्वभाव की औरत थी. उस दिन उस ने पति की पसंद का खाना बनाया था. रात को खाना खाने के बाद तीनों अपने कमरे में सोने चले गए.

रात थोड़ी गहरी हुई तो अचानक सुरेंद्र के घर से चीखनेचिल्लाने की आवाजें आने लगीं. ये आवाजें सीमा की थीं. सीमा चीखचीख कर शोर मचा रही थी कि कुछ बदमाश रात के अंधेरे में उस के घर के पिछवाड़े की दीवार फांद कर घर में घुस आए और उस के पति सुरेंद्र के ऊपर घातक हथियारों से हमला कर दिया. शोर सुन कर कुछ लोग उस के घर आ गए थे. वहां वास्तव में सुरेंद्र घायल अवस्था में था. सुरेंद्र को गांव के लोग आननफानन में नजदीक के अस्पताल में ले गए, जहां उसे मृत घोषित कर दिया गया.

सीमा ने रात घटना के फौरन बाद अपने मोबाइल फोन से स्थानीय पुलिस को सूचित कर दिया था. लेकिन जब काफी देर के बाद भी पुलिस वहां नहीं पहुंची तो उस ने नूंह कोर्ट के रीडर को अपने पति पर हुए हमले की बात बता कर पुलिस को जल्दी घर पर भेजने के लिए उन से सहायता मांगी.

नूंह कोर्ट के रीडर के द्वारा कोसली थाने में घटना की सूचना दी तो इस के 2 घंटे बाद कोसली के थानाप्रभारी जगबीर सिंह अपने मातहतों के साथ घटनास्थल सुधराना गांव पहुंचे.

थानाप्रभारी जगबीर सिंह ने मृतक सुरेंद्र की पत्नी सीमा से घटना के बारे में पूछताछ की तो उस ने बताया कि रात को 10 बजे घर का दरवाजा बंद कर के वह पति और बेटे के साथ सो रही थी. कुछ देर बाद 3 बदमाश उस के घर की पिछली दीवार फांद कर कमरे में घुस गए और उस के पति को लाठीडंडों से बुरी तरह पीटने लगे. वह रोरो कर बदमाशों से अपने पति को छोड़ देने की गुहार लगाती रही लेकिन जब तक वह निढाल नहीं हो गए, तब तक वे उन्हें मारते रहे.

सुरेंद्र के साथ जी भर कर मारपीट करने के बाद तीनों बदमाश फरार हो गए. तीनों के चेहरे कपड़े से बंधे थे. इस कारण वह किसी का मुंह नहीं देख पाई. सीमा का बयान दर्ज करने के बाद थानाप्रभारी जगबीर सिंह अस्पताल पहुंचे और सुरेंद्र की लाश का मुआयना किया.

सुरेंद्र के सिर पर किसी तेजधार हथियार से वार किया गया था, जिस से उस की मौत हो गई थी. थानाप्रभारी जगबीर सिंह ने सुरेंद्र की लाश कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. इस के बाद वह थाने लौट गए.

अगले दिन मृतक की पत्नी सीमा के बयान पर थाने में 3 अज्ञात हत्यारों के खिलाफ आईपीसी की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज कर दिया गया. इस केस की विवेचना थानाप्रभारी ने स्वयं संभाली. सीमा ने अपने बयान के दौरान पति की हत्या का शक एक पड़ोसी पर लगाया था, जिस से कुछ दिन पहले नाली को ले कर आपस में मारपीट हुई थी.

सुरेंद्र की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया गया कि उस की मौत सिर पर हुए घातक वार के कारण अधिक खून बह जाने की वजह से हुई थी.

थानाप्रभारी ने अब तक घटना के बारे में डीएसपी जमाल खान को जानकारी दी तो उन्होंने जल्द से जल्द तहकीकात कर अपराधियों को गिरफ्तार करने का आदेश दिया. चूंकि मामला नूंह कोर्ट के कर्मचारी की हत्या से जुड़ा था, इसलिए पुलिस इस केस को जल्द से जल्द हल करना चाहती थी.

थानाप्रभारी जगबीर सिंह ने मृतक सुरेंद्र के पड़ोसियों को थाने बुलवा कर उन से पूछताछ की तो पता चला कि नाली के झगड़े का फैसला तो नाहड़ पुलिस चौकी में पहले ही निपट चुका था और सुरेंद्र की हत्या में उन का कोई हाथ नहीं है. फिर भी पुलिस ने उन्हें थाने बुला कर हिदायत दी कि जब तक इस केस का खुलासा न हो जाए, वे शहर छोड़ कर कहीं बाहर नहीं जाएंगे.

थानाप्रभारी जगबीर सिंह ने हत्याकांड में शामिल अपराधियों तक पहुंचने के लिए गंभीरता से विचार करना शुरू किया और उन संभावित कारणों को तलाशने की कोशिश में जुट गए, जिस के कारण सुरेंद्र की हत्या की जा सकती थी.

सुरेंद्र हत्याकांड के बारे में उन्हें एक बात बड़ी अजीब लग रही थी कि हत्यारों ने सुरेंद्र की हत्या को अंजाम दिए जाने के दौरान सीमा को कोई क्षति नहीं पहुंचाई थी और न ही उस के घर में किसी प्रकार की लूटपाट ही की थी. इस का मतलब साफ था कि हत्यारे केवल सुरेंद्र की हत्या करने के लिए ही उस के घर में दाखिल हुए थे.

उन्होंने कुछ सोच कर सीमा के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवा कर गहराई से छानबीन की तो यह देख कर चौंक गए कि सीमा एक खास मोबाइल नंबर पर बारबार फोन करती थी.

जब उक्त मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई गई तो पता चला कि यह नंबर अनिल नाम के एक युवक का था और घटना वाली रात उस की लोकेशन सुरेंद्र के गांव में थी. वह जींद के पांडू पिंडारा का था.

जब अनिल को थाने बुला कर उस से सुरेंद्र की हत्या के बारे में पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि सुरेंद्र तो उस के दूर के रिश्ते में दामाद लगता था. उस की हत्या का उसे भी बहुत दुख है. लेकिन जब उस से सीमा के साथ लगातार फोन करने और फोन पर लंबीलंबी बातें करने का कारण पूछा गया तो उस ने चुप्पी साध ली. यह देख थानाप्रभारी जगबीर सिंह समझ गए कि सुरेंद्र की हत्या में इस का हाथ हो सकता है.

जब थानाप्रभारी ने अनिल को थोड़ी पुलिसिया झलक दिखलाई तो उस ने स्वीकार कर लिया कि उस के सीमा के साथ अवैध संबंध थे. उस से शादी करने की नीयत से ही उस ने सीमा और अपने ही गांव के 2 युवकों के साथ मिल कर सुरेंद्र को मौत के घाट उतारा था.

अनिल के द्वारा सुरेंद्र की हत्या स्वीकार किए जाने के बाद उसे हिरासत में ले लिया गया और उसी दिन अनिल की निशानदेही पर उस के गांव पांडू पिंडारा में दबिश दे कर हत्या में शामिल विकास और मनीष को गिरफ्तार कर लिया. सब से अंत में थानाप्रभारी जगबीर सिंह सीमा के गांव सुधराना पहुंचे और उसे भी गिरफ्तार कर थाने ले आए. जहां तीनों ने अपने जुर्म स्वीकार कर लिए.

सीमा, अनिल, मनीष और विकास के बयानों और पुलिस की तहकीकात के बाद सुरेंद्र हत्याकांड के पीछे जो प्रेम कहानी उभर कर सामने आई, वह इस प्रकार है—

सुधीर कुमार हरियाणा के जिला हिसार में रहते हैं, जहां उन का अपना पुश्तैनी मकान है. उन की बेटी सीमा का विवाह सन 2007 में मेवात जिले के सुधराना गांव के निवासी सुरेंद्र यादव से हुआ था. सुरेंद्र सरकारी नौकरी करता था. शादी के बाद सीमा बेहद खुश थी, क्योंकि सुरेंद्र बिलकुल वैसा ही था जैसे भावी पति की कल्पना उस ने की थी.

सुरेंद्र गोरा, सुंदर तथा स्मार्ट था जो उसे बेइंतहा प्यार करता था. वह भी सुरेंद्र को दिलोजान से प्यार करती थी. शादी के एक साल बाद सीमा ने एक बेटे को जन्म दिया. बेटे के जन्म से सुरेंद्र बहुत खुश था.

अब उसे जीवन में वह सब सुख प्राप्त था, जिस की कल्पना एक आदमी अपने लिए करता है. एक सुंदर प्यार करने वाली पत्नी, चांद सा प्यारा बेटा और जीवनयापन करने के लिए हरियाणा सरकार की नौकरी. उस की जिंदगी बड़े खुशनुमा माहौल में आगे बढ़ रही थी. इस तरह देखते ही देखते कई साल गुजर गए.

सन 2015 में सीमा पांडू पिंडारा जिला जींद में स्थित अपनी ननिहाल गई तो वहां उस की मुलाकात शादी के पहले के प्रेमी अनिल से हुई. अनिल को देखते ही उस के जहन में उस का अतीत उभर कर सामने आ गया, जिसे अब लगभग भूलने के कगार पर थी.

दरअसल, अनिल दूर के रिश्ते में उस का मामा लगता था. शादी के पहले जब वह ननिहाल में रह कर आईटीआई कर रही थी, तब अनिल भी उस के साथ पढ़ाई कर रहा था. एक उम्र का होने के कारण दोनों मामाभांजी के रिश्ते को दरकिनार कर कब एकदूसरे को दिल दे बैठे, इस का उन्हें पता ही नहीं चला.

जल्द ही उन के बीच आंतरिक संबंध बन गए. दोनों अब शादी कर के एक होने के तानेबाने बुनने में मशगूल हो गए, तभी उन के अमर्यादित रिश्ते की जानकारी ननिहाल के लोगों को हो गई. उन लोगों ने सीमा और अनिल को उन के रिश्ते को याद दिलाते हुए एकदूसरे से दूर रहने के लिए कहा.

लेकिन सीमा ननिहाल में रह कर अपनी नानी और सगे मामा की आंखों में धूल झोंक कर अनिल के साथ प्रेम की पींग बढ़ाती रही. जैसे ही सीमा का आईटीआई डिप्लोमा पूरा हुआ, उसे ननिहाल पांडू पंडारा से वापस उस के पैतृक घर हिसार भेज दिया गया. इस के बाद 2007 में सीमा की शादी सुरेंद्र से हो गई.

आज जब अचानक सीमा की अनिल से मुलाकात हुई तो अनिल ने उसे अकेले में ले जा कर बताया कि वह अब भी उसे प्यार करता है, इसलिए उस ने अब तक शादी नहीं की. यह सुन कर सीमा का दिल पसीज गया और वह अनिल को अपना मोबाइल नंबर दे कर बोली कि जब उस का पति घर में नहीं रहेगा, तब वह उसे अपने यहां बुला लेगी फिर अपनी हसरतों की प्यास बुझा लेना.

सीमा की बात सुन कर अनिल की आंखों में एक अनोखी चमक उभर आई. उस का 12 साल पहले का खोया प्यार आज वापस मिल गया था. सीमा कुछ दिनों ननिहाल में रह कर वापस अपनी ससुराल सुधराना लौट आई.

जब उस का पति सुरेंद्र कोर्ट में रहता तो वह अनिल के मोबाइल पर फोन कर उसे अपने घर बुला लेती. इस तरह पति की गैरमौजूदगी में वह अपने पूर्वप्रेमी अनिल के साथ पिछले 4 सालों से गुलछर्रे उड़ा रही थी.

अनिल इन दिनों एक कुरियर कंपनी में काम कर रहा था. अब घर वाले उस पर शादी के लिए दबाव बनाने लगे थे. जबकि वह सीमा के अलावा किसी भी लड़की से शादी नहीं करना चाहता था. सीमा ने अपनी ओर से लाचारगी जताते हुए कहा कि वह तो शादीशुदा और एक बच्चे की मां है. इस पर अनिल ने उसे सुरेंद्र से तलाक लेने की सलाह दी.

सीमा ने अनिल से कहा कि सुरेंद्र उसे किसी भी कीमत पर तलाक नहीं देगा. यह सुनने के बाद अनिल ने सीमा की सहमति से सुरेंद्र की हत्या की योजना तैयार की और अपने ही गांव के 2 युवकों मनीष और विकास को रुपयों का लालच दे कर योजना में शामिल कर लिया.

22 दिसंबर की रात सीमा ने फोन कर अपने प्रेमी अनिल और उस के दोस्तों को बुला लिया. उस समय उस के घर में जब वे तीनों आए तब तक सुरेंद्र गहरी नींद में था. योजना के अनुसार सीमा ने घर के सारे दरवाजे खुले छोड़ दिए थे. अनिल ने मनीष और विकास की मदद से सुरेंद्र को नींद में ही मौत की आगोश में सुला दिया तथा सीमा और उस की बगल में सो रहे उस के बेटे को कुछ नहीं किया.

अगले दिन सीमा ने अपने पति की हत्या का शक झूठमूठ पड़ोसी पर लगा दिया, जबकि पड़ोसी का इस हत्याकांड से कोई मतलब नहीं था.

लेकिन हत्यारों की फ्रैंडली एंट्री और सीमा को जरा भी नुकसान नहीं पहुंचाए जाने के कारण सीमा पहले दिन से पुलिस के रडार पर थी.

6 जनवरी, 2020 को सुरेंद्र कुमार के चारों हत्यारों सीमा, उस का प्रेमी अनिल, मनीष और विकास को कोर्ट में पेश कर उन्हें 4 दिनों के पुलिस रिमांड पर ले लिया. इस अवधि में हत्या में प्रयुक्त मोबाइल फोन, कुल्हाड़ी, लोहे की रौड, रक्तरंजित कपड़े आदि बरामद करने के बाद 10 जनवरी को उन्हें फिर से कोर्ट में पेश कर दिया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

सौजन्य: सत्यकथा, अप्रैल 2020

देवर की दीवानी

खूबसूरत नैननक्श वाली अमनदीप कौर लखीमपुर खीरी के थाना कोतवाली गोला के अंतर्गत आने वाले गांव रेहरिया निवासी सरदार बलदेव सिंह की बेटी थी. अमनदीप के अलावा बलदेव सिंह की 2 बेटियां और एक बेटा और था. वह उत्तर प्रदेश परिवहन निगम में नौकरी करते थे. चूंकि वह सरकारी कर्मचारी थे, इसलिए उन्होंने अपने चारों बच्चों की परवरिश अच्छे तरीके से की थी.

अमनदीप कौर खूबसूरत लड़की थी. उसे सिनेमा देखना, सहेलियों के साथ दिन भर मौजमस्ती करना पसंद था. खुद को वह किसी फिल्मी हीरोइन से कम नहीं समझती थी.

अमनदीप की आधुनिक सोच को देख कभीकभी बलदेव सिंह भी सोच में पड़ जाते थे. एक दिन अमनदीप की मां सुप्रीति कौर ने पति से कहा, ‘‘बेटी अब सयानी हो गई है. कोई अच्छे घर का लड़का देख कर जल्दी से इस के हाथ पीले कर दो तो अच्छा है.’’

पत्नी की बात बलदेव सिंह की समझ में आ गई. वह अमनदीप के लिए वर की तलाश में लग गए. इस काम के लिए बलदेव सिंह ने अपने रिश्तेदारों से भी कह रखा था. उन के दूर के एक रिश्तेदार ने उन्हें संदीप नाम के एक लड़के के बारे में बताया.

संदीप लखीमपुर खीरी की तिकुनिया कोतवाली के अंतर्गत आने वाले गांव रायपुर कल्हौरी के रहने वाले मेहर सिंह का बेटा था. मेहर सिंह के पास अच्छीखासी खेती की जमीन थी. संदीप के अलावा मेहर सिंह की 3 बेटियां व एक बेटा और था.

सन 2001 में मेहर सिंह ने पंजाब में हर्निया का औपरेशन कराया था, लेकिन औपरेशन के दौरान ही उन की मृत्यु हो गई थी. इस के बाद परिवार का सारा भार उन की पत्नी प्रीतम कौर पर आ गया था. उन्होंने बड़ी मुश्किलों से अपने बच्चों की परवरिश की. जैसेजैसे बच्चे जवान होते गए, प्रीतम कौर उन की शादी करती रहीं.

संदीप की शादी के लिए बलदेव सिंह की बेटी अमनदीप कौर का रिश्ता आया. यह रिश्ता प्रीतम कौर और परिवार के अन्य लोगों को पसंद आया. तय हो जाने के बाद संदीप और अमनदीप का सामाजिक रीतिरिवाज से विवाह कर दिया गया. यह करीब 8 साल पहले की बात है.

कहा जाता है कि पतिपत्नी की जिंदगी में सुहागरात एक यादगार बन कर रह जाती है. लेकिन अमनदीप कौर के लिए यह काली रात साबित हुई. उस रात संदीप का जोश अमनदीप के लिए पानी का बुलबुला साबित हुआ, अमनदीप की खामोशी और संजीदगी उस के होंठों पर आ गई. वह नफरतभरी निगाहों से संदीप की तरफ देख कर बिफर पड़ी, ‘‘मुझे तुम से इस तरह ठंडेपन की उम्मीद नहीं थी.’’

पत्नी की बात से संदीप का सिर शर्मिंदगी से झुक गया. वह बोला, ‘‘दरअसल, मैं बीमार चल रहा हूं. शायद इसी कारण ऐसा हुआ. तुम चिंता मत करो, मैं जल्द ही तुम्हारे काबिल हो जाऊंगा.’’ संदीप ने सफाई दी.

इस के बाद संदीप ने अपने खानपान में सुधार किया. शराब का सेवन कम कर दिया, जिस का फल उसे जल्द ही मिला. वह पत्नी को भरपूर प्यार करने लायक बन गया. वक्त के साथ अमनदीप गर्भवती हो गई और उस ने बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम दलजीत रखा गया. इस के बाद उस ने एक बेटी सीरत कौर को जन्म दिया. इस वक्त दोनों की उम्र क्रमश: 6 और 4 साल है.

संदीप का परिवार बढ़ा तो खर्च भी बढ़ गया. वह पहले से और भी ज्यादा मेहनत करने लगा. जब वह शाम को थकहार कर घर लौटता तो शराब पी कर आता और खाना खा कर सो जाता. कभीकभी अमनदीप की चंचलता उसे विचलित जरूर कर देती, लेकिन एक बार प्यार करने के बाद संदीप करवट बदल कर सो जाता तो उस की आंखें सुबह ही खुलतीं.

लेकिन वासना की भूख ऐसी होती है कि इसे जितना दबाने की कोशिश की जाए, उतना ही धधकती है. अमनदीप अपनी ही आग में झुलसतीतड़पती रहती.

ऐसे में वह चिड़चिड़ी हो गई, बातबात में संदीप से उलझ जाती. शराब पी कर आता तो दोनों में जम कर बहस होती. कभीकभी संदीप उसे पीट भी देता था.

करीब 2 साल पहले संदीप की मां का देहांत हो गया था. घर पर संदीप, उस की पत्नी अमन और उस के बच्चे व छोटा भाई गुरदीप रहता था.

संदीप तो अधिकतर खेतों पर ही रहता था. वह कभी देर शाम तो कभी देर रात घर लौटता था. अमनदीप के दोनों बच्चे स्कूल चले जाते थे. घर पर रह जाते थे गुरदीप और अमनदीप. गुरदीप अमनदीप को संदीप से लाख गुना अच्छा लगने लगा था. गुरदीप जब भी काम से बाहर जाता तो अमनदीप उस के वापस आने के इंतजार में दरवाजे पर ही खड़ी रहती.

एक दिन अमनदीप जब इंतजार करतेकरते थक गई तो अंदर जा कर चारपाई पर लेट गई. कुछ ही देर में दरवाजा खटखटाने की आवाज आई तो अमनदीप ने दरवाजा खोला और उसे अंदर आने को कह कर लस्तपस्त भाव में जा कर फिर लेट गई.

गुरदीप ने घबरा कर पूछा, ‘‘क्या हुआ भाभी, इस तरह क्यों पड़ी हो? लगता है अभी नहाई नहीं हो?’’

अमनदीप ने धीरे से कहा, ‘‘आज तबीयत ठीक नहीं है, कुछ अच्छा नहीं लग रहा है.’’

गुरदीप ने जल्दी से झुक कर अमनदीप की नब्ज पकड़ कर देखा. उस के स्पर्श मात्र से अमनदीप के शरीर में झुरझुरी सी फैल गई. नसें टीसने लगीं और आंखें एक अजीब से नशे से भर उठीं. आवाज जैसे गले में ही फंस गई. उस ने भर्राए स्वर में कहा, ‘‘तुम तो ऐसे नब्ज टटोल रहे हो जैसे कोई डाक्टर हो.’’

‘‘बहुत बड़ा डाक्टर हूं भाभी,’’ गुरदीप ने हंस कर कहा, ‘‘देखो न, नाड़ी छूते ही मैं ने तुम्हारा रोग भांप लिया. बुखार, हरारत कुछ नहीं है. सीधी सी बात है, संदीप भैया सुबह काम पर चले जाते हैं तो देर शाम को ही लौटते हैं.’’

अमनदीप के मुंह का स्वाद जैसे एकाएक कड़वा हो गया. वह तुनक कर बोली, ‘‘शाम को भी वह लौटे या न लौटे, मुझे उस से क्या.’’

गुरदीप ने जल्दी से कहा, ‘‘यह बात नहीं है, वह तुम्हारा खयाल रखते हैं.’’

‘‘क्या खाक खयाल रखता है,’’ कहते ही उस की आंखों में आंसू छलछला आए.

भाभी अमनदीप को सिसकते देख कर गुरदीप व्याकुल हो उठा. कहने लगा, ‘‘रो मत भाभी, नहीं तो मुझे दुख होगा. तुम्हें मेरी कसम, उठ कर नहा आओ. फिर मन थोड़ा शांत हो जाएगा.’’

गुरदीप के बहुत जिद करने पर अमनदीप को उठना पड़ा. वह नहाने की तैयारी करने लगी तो वह चारपाई पर लेट गया. गुरदीप का मन विचलित हो रहा था. अमनदीप की बातें उसे कुरेद रही थीं. उस से रहा नहीं गया, उस ने बाथरूम की ओर देखा तो दरवाजा खुला था. गुरदीप का दिल एकबारगी जोर से धड़क उठा. उत्तेजना से शिराएं तन गईं और आवेग के मारे सांस फूलने लगी.

गुरदीप ने एक बार चोर निगाह से मेनगेट की ओर देखा, मेनगेट खुला मिला. उस ने धीरे से दरवाजा बंद कर दिया और कांपते पैरों से बाथरूम के सामने जा खड़ा हुआ.

अमनदीप उन्मुक्त भाव से बैठी नहा रही थी. उस समय उस के तन पर एक भी कपड़ा नहीं था. निर्वसन यौवन की चकाचौंध से गुरदीप की आंखें फटी रह गईं. वह बेसाख्ता पुकार बैठा, ‘‘भाभी…’’

अमनदीप जैसे चौंक पड़ी, फिर भी उस ने छिपने या कपड़े पहनने की कोई आतुरता नहीं दिखाई. अपने नग्न बदन को हाथों से ढकने का असफल प्रयास करती हुई वह कटाक्ष करते हुए बोली, ‘‘बड़े शरारती हो तुम गुरदीप. कोई देख ले तो…कमरे में जाओ.’’

लेकिन गुरदीप बाथरूम में घुस गया और कहने लगा, ‘‘कोई नहीं देखेगा भाभी, मैं ने बाहर वाले दरवाजे में कुंडी लगा दी है.’’

‘‘तो यह बात है, इस का मतलब तुम्हारी नीयत पहले से ही खराब थी.’’

‘‘तुम भी तो प्यासी हो भाभी. सचमुच भैया के शरीर में तुम्हारी कामनाएं तृप्त करने की ताकत नहीं है.’’ कहतेकहते गुरदीप ने अमनदीप की भीगी देह बांहों में भींच ली और पागल की तरह प्यार करने लगा. पलक झपकते ही जैसे तूफान उमड़ पड़ा. जब यह तूफान शांत हुआ तो अमनदीप अजीब सी पुलक से थरथरा उठी.

उस दिन उसे सच्चे मायने में सुख मिला था. वह एक बार फिर गुरदीप से लिपट गई और कातर स्वर में कहने लगी, ‘‘मैं तो इस जीवन से निराश हो चली थी, गुरदीप. लेकिन तुम ने जैसे अमृत रस से सींच कर मेरी कामनाओं को हरा कर दिया.’’

‘‘मैं ने तो तुम्हें कई बार बेचैन देखा था, भाई से तृप्त न होने पर मैं ने तुम्हें रात में कई बार तन की आग ठंडी करने के लिए नंगा नहाते देखा है. तुम्हारी देह की खूबसूरती देख कर मैं तुम पर लट्टू हो गया था. मैं तभी से तुम्हारा दीवाना बन गया था. मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं लेकिन तुम ने कभी मौका ही नहीं दिया.’’

‘‘बड़े बेशर्म हो तुम गुरदीप. औरत भी कहीं अपनी ओर से इस तरह की बात कह पाती है.’’

‘‘अपनों से कोई दुराव नहीं होता, भाभी. सच्चा प्यार हो तो बड़ी से बड़ी बात कह दी जाती है. आखिर भैया…’’

‘‘मेरे ऊपर एक मेहरबानी करो गुरदीप, ऐसे मौके पर संदीप की याद दिला कर मेरा मन खराब मत करो. हम दोनों के बीच किसी तीसरे की जरूरत ही क्या है. अच्छा, अब तुम कमरे में जा कर बैठो.’’

‘‘तुम भी चलो न.’’ कहते हुए गुरदीप ने अमनदीप को बांहों में उठा लिया और कमरे में ले जा कर पलंग पर डाल दिया. अमनदीप ने कनखी से देखते हुए झिड़की सी दी, ‘‘कपड़े तो पहनने दो.’’

‘‘क्या जरूरत है…आज तुम्हारा पूरा रूप एक साथ देखने का मौका मिला है तो मेरा यह सुख मत छीनो.’’

गुरदीप बहुत देर तक अमनदीप की मादक देह से खेलता रहा. एक बार फिर वासना का ज्वार आया और उतर गया.

लेकिन यह तो ऐसी प्यास होती है कि जितना बुझाने का प्रयास करो, उतनी और बढ़ती जाती है. फिर अमनदीप के लिए तो यह छीना हुआ सुख था, जो उस का पति कभी नहीं दे सका. वह बारबार इस अलौकिक सुख को पाने के लिए लालायित रहती थी.

दोनों इस कदर एकदूसरे को चाहने लगे कि अब उन्हें अपने बीच आने वाला संदीप अखरने लगा. हमेशा का साथ पाने के लिए संदीप को रास्ते से हटाना जरूरी था.

25 फरवरी, 2020 की रात संदीप शराब पी कर आया तो झगड़ा करने लगा. उस ने अमनदीप से मारपीट शुरू कर दी. इस पर अमनदीप ने गुरदीप को इशारा किया. इस के बाद अमनदीप ने गुरदीप के साथ मिल कर संदीप को मारनापीटना शुरू कर दिया.

किचन में पड़ी लकड़ी की मथनी से अमनदीप ने संदीप के सिर के पिछले हिस्से पर कई प्रहार किए. बुरी तरह मार खाने के बाद संदीप बेहोश हो गया. लेकिन सिर पर लगी चोट से काफी खून बह जाने से उस की मृत्यु हो गई.

संदीप की मौत के बाद दोनों काफी देर तक सोचते रहे कि अब वह क्या करें. इस के बाद सुबह होने तक उन्होंने फैसला कर लिया कि उन को क्या करना है.

सुबह दोनों बच्चों के साथ वह घर से निकल गए. साढ़े 11 बजे गुरदीप ने अपनी बड़ी बहन राजविंदर को फोन किया कि उस ने और अमनदीप ने संदीप को मार दिया है. कह कर काल काट दी और अपना फोन बंद कर लिया.

इस के बाद राजविंदर ने यह बात रोते हुए अपने पति रेशम सिंह को बताई. दोनों संदीप के मकान पर आए तो वहां संदीप की लाश पड़ी देखी. इस के बाद राजविंदर ने तिकुनिया कोतवाली में घटना की सूचना दी.

सूचना मिलते ही कोतवाली इंसपेक्टर हनुमान प्रसाद पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. मकान में घुसने पर पहले बरामदा था, उस के बाद सामने 2 कमरे और दाईं ओर एक कमरा था. सामने वाले बीच के कमरे में 3 चारपाई पड़ी थीं. कमरे के बीच में जमीन पर संदीप की लाश पड़ी थी. उस के सिर पर गहरी चोट थी, पुलिस ने सोचा कि शायद उसी चोट से अधिक खून बहने के कारण उस की मौत हुई होगी.

कमरे में ही खून लगी लकड़ी की मथनी पड़ी थी. इंसपेक्टर हनुमान प्रसाद ने खून से सनी मथनी अपने कब्जे में ले ली. पूरा मौकामुआयना करने के बाद इंसपेक्टर हनुमान प्रसाद ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

इस के बाद कोतवाली आ कर राजविंदर कौर से पूछताछ की तो उन्होंने पूरी बात बता दी. राजविंदर की तरफ से पुलिस ने अमनदीप और गुरदीप सिंह के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. इस के बाद पुलिस उन की तलाश में जुट गई.

इंसपेक्टर हनुमान प्रसाद को एक मुखबिर से सूचना मिली कि अमनदीप और गुरदीप सिंह लखीमपुर की गोला कोतवाली के ग्राम महेशपुर फजलनगर में अपने रिश्तेदार देवेंद्र कौर के यहां शरण लिए हुए हैं.

इस सूचना पर पुलिस ने 3 फरवरी, 2020 को सुबह करीब सवा 5 बजे उस रिश्तेदार के यहां दबिश दे कर दोनों को गिरफ्तार कर लिया. कोतवाली ला कर जब उन से पूछताछ की गई तो उन्होंने आसानी से अपना जुर्म स्वीकार कर लिया और हत्या की वजह भी बयान कर दी.

आवश्यक कानूनी लिखापढ़ी के बाद पुलिस ने हत्यारोपी गुरदीप सिंह और अमनदीप कौर को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य: सत्यकथा, अप्रैल 2020

दिलफेक हसीना : शक्की पति बना कातिल

थाना गोहपारू क्षेत्र में आने वाले गांव खन्नोदी का रहने वाला वृद्ध रामदीन रजक थाने आकर थानाप्रभारी डीएसपी (ट्रेनी) सोनाली गुप्ता से मिला. उस ने बताया कि उस की बेटी प्रीति करीब साल भर पहले अपने पति को छोड़ कर गंजबासोदा, जिला विदिशा निवासी हेमंत विश्वकर्मा के साथ गांव में रहने लगी थी. प्रीति का घर उस के मायके के पास ही था.

रामदीन ने आगे बताया कि बीती रात उस ने प्रीति और हेमंत के लड़नेझगड़ने की बातें सुनी थीं. सुबह को उन के घर में ताला पड़ा देखा तो सोचा कि सुबहसुबह दोनों कहां जा सकते हैं. शक हुआ तो उस ने खिड़की से झांक कर अंदर देखा. शक सही निकला. अंदर प्रीति की लाश पड़ी थी. जबकि हेमंत गायब था. यह देख कर वह थाने चला आया.

मामला वाकई गंभीर था. डीएसपी (ट्रेनी) सोनाली गुप्ता पुलिस ले कर रामदीन के साथ गांव खन्नोदी के लिए रवाना हो गईं. वहां पहुंच कर उन्होंने हेमंत के मकान का ताला तुड़वाया तो अंदर प्रीति की लाश पड़ी मिली. सोनाली ने इस की सूचना एसपी सत्येंद्र शुक्ला और एएसपी प्रतिभा मैथ्यू को दे दी. प्रीति का शव पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दिया गया.

पुलिस अधिकारियों ने इस केस की जांच के लिए एक टीम गठित कर दी. छानबीन में पता चला कि हेमंत करीब 14-15 महीने पहले प्रीति के साथ खन्नोदी आ कर रहने लगा था.

दोनों में कुछ दिनों तक तो अच्छी बनी, लेकिन बाद में उन के बीच लड़ाईझगड़े आम बात हो गए थे. उन के बीच झगड़ा किस बात को ले कर होता था, इस बारे में लोगों ने साफसाफ तो कुछ नहीं कहा, लेकिन कुछ लोगों ने दबी जुबान में यह बात मानी कि प्रीति की गांव के कुछ लड़कों से दोस्ती थी. संभवत: इसी बात को ले कर हेमंत और उस के बीच विवाद होता था.

पता चला कि 26 फरवरी की रात हेमंत घर में था, लेकिन 27 की सुबह जब प्रीति की लाश देखी गई तब घर के दरवाजे पर बाहर से ताला पड़ा था. हेमंत चूंकि लापता था, इसलिए पुलिस का सीधा शक उसी पर गया. थानाप्रभारी सोनाली गुप्ता के नेतृत्व में बनाई गई टीम में शामिल एएसआई नागेंद्र प्रताप सिंह, हैडकांस्टेबल महेंद्र झा, कांस्टेबल राजेंद्र तिवारी, गिरीश कसाना, आलोक सिंह और सतीश की टीम हेमंत की खोज में जुट गई.

चूंकि हेमंत विदिशा जिले की गंजबासोदा तहसील का रहने वाला था, इस टीम ने गंजबासोदा के अलावा विदिशा, गुना और शहडोल में उस के ठिकानों पर छापेमारी की. लेकिन वह हाथ न आया. अंतत: थानाप्रभारी ने मुखबिरों की मदद से 3 फरवरी को घेराबंदी कर उसे गिरफ्तार कर लिया.

पूछताछ में हेमंत पहले तो प्रीति की हत्या करने से इनकार करता रहा, लेकिन जब पुलिस ने उस के साथ सख्ती की तो उस ने मान लिया कि प्रीति की कई लड़कों से दोस्ती के कारण आपस में विवाद होता था.

घटना वाली रात उस ने गुस्से में प्रीति की हत्या कर दी. हत्या के बाद रात में ही वह दरवाजे पर बाहर से ताला लगा कर शहडोल भाग गया था. पुलिस ने उस की निशानदेही पर शहडोल रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर 3 पर लाइनों के नीचे छिपा कर रखी दरवाजे की चाबी भी बरामद कर ली. पुलिस ने आरोपी को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

सांवली मगर तीखे नाकनक्श वाली प्रीति अपनी चंचलता के कारण तभी गांव के युवकों की चहेती बन गई थी, जब वह किशोरावस्था के दौर से गुजर रही थी. छोटी उम्र में ही गांव के कई युवकों के साथ उस की दोस्ती हो गई थी. स्थिति यहां तक पहुंची कि उस के चक्कर में कई युवकों में आपस में मारपीट भी हो जाती थी.

जब प्रीति की वजह से गांव में बदनामी होने लगी तो उस के पिता ने जवानी की पहली पायदान पर पहुंचते ही उस की शादी पास के गांव में कर दी.

नासमझी की उम्र में प्रीति को जो चस्का लगा था, वह ससुराल जा कर भी नहीं छूटा. नतीजा यह निकला कि ससुराल में भी कई युवक उस के दीवाने बन गए. करीब 3 साल पहले प्रीति को फेसबुक का शौक लग गया. वह दिनदिन भर फेसबुक पर लगी रह कर नएनए दोस्त बनाने लगी.

इसी दौरान करीब 2 साल पहले फेसबुक पर उस की दोस्ती गंजबासोदा निवासी हेमंत विश्वकर्मा से हुई, जो टेलरिंग का काम करता था.

फेसबुक पर पहली चैटिंग में ही प्रीति ने हेमंत से पूछा, ‘‘क्या करते हो?’’

‘‘लेडीज टेलर हूं.’’ हेमंत ने जवाब दिया.

‘‘अरे वाह, तब तो लड़कियों का नाप भी लेते होगे? खूब मजे होंगे तुम्हारे.’’

‘‘ऐसा नहीं है जैसा समझ रही हो, सब लड़कियां नाप नहीं देतीं.’’

‘‘फिर उन के कपड़े कैसे सिलते हो?’’ प्रीति ने इसी विषय पर बात बढ़ा दी.

‘‘आंखों से नाप ले कर साइज समझ जाता हूं.’’ हेमंत ने भी छलिया की तरह जवाब दिया.

‘‘मेरी फोटो देखी है?’’

‘‘रोज देखता हूं.’’

‘‘तो मेरा साइज बताओ?’’

‘‘एकदम सही या अंदाज से?’’

‘‘सही.’’

‘‘इस के लिए बिना ब्लाउज वाली फोटो भेजो तो एकदम सही नाप बता दूंगा.’’

‘‘नहीं बता पाओगे.’’ प्रीति बात खत्म करना नहीं चाहती थी.

‘‘और बता दिया तो?’’

‘‘तो जो कहोगे, मानूंगी.’’

‘‘तो फोटो भेजो, फिर देखना मेरा कमाल.’’ हेमंत ने बातों में रस भर दिया.

‘‘कल भेजूंगी.’’ कह कर प्रीति ने बात समाप्त कर दी.

पहली ही चैटिंग में प्रीति से इतनी खुल कर बात की थी, जिस से हेमंत समझ गया कि लड़की आसानी से हाथ आ जाएगी. उस की सोच सच ही निकली.

अगले ही दिन वाट्सऐप नंबर ले कर प्रीति ने वैसी फोटो भेज दी, जैसी उस ने मांगी थी. फोटो देख कर हेमंत ने लिख दिया 36 नंबर है. वह प्रीति की फोटो देख कर रोमांचित हो रहा था.

‘‘अरे वाह, एकदम सही. तुम तो कमाल के हो यार. देख कर ही नाप बता दिया.’’ प्रीति ने जवाब में लिखा.

‘‘तुम चीज ही ऐसी हो. सच कहूं तो मैं ने आज तक किसी लड़की की इतनी खूबसूरत बनावट नहीं देखी.’’

‘‘तुम झूठ बोल रहे हो. लेडीज टेलर हो, ऐसा हो ही नहीं सकता.’’

‘‘सच, हजारों लड़कियों का नाप ले चुका हूं, लेकिन ऐसी सुंदर बौडी नहीं देखी. मन करता है तुम्हारी इस सुंदरता को जी भर कर प्यार करूं.’’

‘‘लेडीज टेलर के साथसाथ रसिया भी हो, लेकिन मैं हाथ आने वालों में नहीं हूं.’’ प्रीति ने हेमंत को छेड़ा.

‘‘अपनी शर्त मत भूलो. याद है, तुम ने कहा था कि अगर मैं शर्त जीत गया तो जो मैं कहूंगा तुम करोगी.’’

‘‘कह दिया तो क्या हुआ, हंसीमजाक में सब चलता है.’’ प्रीति ने जानबूझ कर बात हवा में उड़ानी चाही.

लेकिन हेमंत भी कम नहीं था. उस ने मन ही मन सोच लिया था कि प्रीति के ब्लाउज के पार जा कर ही रहेगा. उस ने बात आगे बढ़ाने के लिए कहा, ‘‘तुम्हारे दोनों नंबर हैं मेरे पास. वहां तक तो जरूर पहुंचूंगा.’’

‘‘मतलब,’’ प्रीति ने अनजान बनने की कोशिश की.

‘‘मतलब यह कि मेरी शर्त पूरी करो.’’

‘‘ठीक है, किसी दिन आ कर अपनी शर्त पूरी कर लेना.’’ प्रीति ने हेमंत से कहा तो वह फूला नहीं समाया.

इस के 15 दिन बाद हेमंत गंजबासोदा से कई सौ किलोमीटर दूर शहडोल में प्रीति के गांव जा पहुंचा. लेकिन फोन पर बात करने के बावजूद वह प्रीति को केवल देख भर सका. उन्हें मिलने का मौका नहीं मिल पाया.

इस के बाद प्रीति और हेमंत के बीच फोन पर देर रात तक अश्लील बातें होने लगीं. इसी सब के चलते प्रीति हेमंत के प्यार में ऐसी खोई कि उस ने डेढ़ साल पहले पति का घर छोड़ दिया.

यह जान कर हेमंत खन्नौदी पहुंचा, जहां दोनों बिना शादी किए ही साथ रहने लगे. इस के बाद दोनों के दिन सोने के और रातें चांदी की बन कर गुजरने लगीं. हेमंत ने टेलर की दुकान खोल ली, जिस से दोनों का खर्च चलने लगा.

प्रीति को पा कर केवल हेमंत ही खुश नहीं था, गांव के ऐसे कई युवक भी प्रीति के वापस आने से खुश थे, जिन्होंने किशोरावस्था में प्रीति के संग रंगरलियां मनाई थीं.

हेमंत की हो जाने के बाद प्रीति ने कुछ दिनों तक तो पुराने संगीसाथियों पर ध्यान नहीं दिया, लेकिन जल्दी ही उसे फिर से पुरानी बातें याद आने लगीं. जल्दी ही फेसबुक पर उसे उन में से युवकों के नंबर मिलने लगे. उन से प्रीति की फेसबुक और फोन पर बात भी होने लगी.

गांव में कुछ युवक ऐसे भी थे, जो किशोर उम्र में प्रीति को पाने के लिए पापड़ बेल चुके थे. लेकिन सफलता नहीं मिल पाई थी, इसलिए जब उन्होंने देखा कि प्रीति अपने पुराने यारों को भी चारा डालने लगी है, तो उन में कुछ युवकों ने बातोंबातों में हेमंत को प्रीति की पुरानी प्रेम कहानियों के बारे में बता दिया.

इस के बाद हेमंत प्रीति पर नजर रखने लगा. उसे जल्द ही यह बात समझ में आ गई कि प्रीति की गांव के कई युवकों से खास किस्म की दोस्ती है. जब उस ने प्रीति पर लगाम कसने की कोशिश की तो दोनों के बीच आए दिन विवाद होने लगा.

हेमंत ने बताया कि घटना की रात जब वह घर आया, तब प्रीति किसी से फोन पर बात कर रही थी. उस ने मुझे देख कर फोन काट दिया. जब मैं ने इस बारे में पूछा तो उस ने कुछ भी बताने से साफ मना कर दिया. इतना ही नहीं, उस ने अपने फोन को भी हाथ नहीं लगाने दिया. इस बात पर दोनों में विवाद हुआ, जिस के चलते गुस्से में उस ने प्रीति का गला दबा दिया.

हेमंत ने बताया कि वह उस की हत्या करना नहीं चाहता था, लेकिन अनजाने में ही प्रीति की मौत हो गई तो वह बुरी तरह डर गया और दरवाजे में ताला लगा कर वहां से भाग गया.

सौजन्य: सत्यकथा, मई 2020

हक की लड़ाई : बेटे ने मांगा डेढ़ करोड़ का मुआवजा

कहते हैं कि कुछ रिश्ते खून के होते हैं बाकी सब संयोग से बनते हैं, लेकिन खास बात यह भी है कि रिश्तों की यह दुनिया जितनी सुकून देती है, उतनी ही उलझनें भी पैदा करती है. क्योंकि कभी रिश्ते फूलों की तरह महकते हैं तो कभी कांटे बन कर जिंदगी के सुख और चैन ही छीन लेते हैं.

लेकिन संयोग से बने रिश्तों से अलग कुछ रिश्ते ऐसे भी होते हैं, जो बनते नहीं, बल्कि किन्हीं वजहों से बनाए जाते हैं. कुछ रिश्ते जताए जाते हैं तो कुछ सिर्फ दिखाए जाते हैं. ऐसा ही एक रिश्ता है एक मां और एक बेटे के बीच का, जिस का राज जब खुला तो मामला उच्च न्यायालय तक पहुंच गया.

आरती महास्कर वह नाम है, जो पिछले कई दिनों से मुंबई में ही नहीं बल्कि देश भर में चर्चा का विषय बना हुआ है. आरती पर आरोप है कि उन्होंने 38 साल पहले अपने ही बेटे श्रीकांत सबनीस को 2 साल की उम्र में चलती ट्रेन में जानबूझ कर छोड़ दिया और अभिनेत्री बनने के सपने लिए मायानगरी मुंबई आ गईं.

अब ऊषा सबनीस उर्फ आरती महास्कर की कहानी परदे के पीछे से झांक रही है. इतना ही नहीं, वह इंसानी रिश्तों की अहमियत और उन के बदलते मिजाज को ले कर तमाम सवाल खड़े कर रही है.

उन तमाम सवालों का जवाब क्या होगा? इसे कोई नहीं जानता, लेकिन बेटे ने जो सवाल खड़ा कर दिया, उस का जवाब दे पाना आरती महास्कर नाम की उस मां के लिए शायद बेहद मुश्किल हो गया है. क्या है श्रीकांत सबनीस की कहानी? इसे जानने के लिए हमें उस के अतीत के पन्नों को खंगालना होगा, वह कहानी कुछ इस तरह सामने आई—

उस रोज जनवरी, 2020 की 6 तारीख थी. मुंबई उच्च न्यायालय परिसर में वादकारियों की चहलकदमी बदस्तूर जारी थी. सौम्य, सजीला, गोरा और गठीले बदन वाला बेहद हैंडसम श्रीकांत सबनीस न्यायाधीश ए.के. मेनन के कक्ष में उन के सामने सावधान की मुद्रा में खड़ा था. उस की उम्र यही कोई 40 वर्ष थी.

काला कोट पहने लगभग श्रीकांत की ही उम्र के एडवोकेट संजय कुमार, जो श्रीकांत के वकील थे, हाथों में फाइल लिए अपना नंबर आने की प्रतीक्षा में जज के सामने खड़े थे. फाइल के भीतर कुछ जरूरी दस्तावेज थे, उन्हीं दस्तावेजों की एकएक प्रति न्यायाधीश मेनन के सामने डेस्क पर रखी थी, जिन्हें जज साहब पढ़ने में तल्लीन थे.

सफेद रंग के पन्नों पर नीली स्याही से उकेरे गए शब्द जैसेजैसे श्री मेनन पढ़ते गए, आश्चर्य और हैरत के महासागर में डूबतेउतराते गए. शायद यह देश की पहली चौंकाने वाली घटना थी, जिस में याचिकाकर्ता श्रीकांत सबनीस ने अपनी सगी मां ऊषा सबनीस उर्फ आरती महास्कर से मानसिक आघात की क्षतिपूर्ति के बदले डेढ़ करोड़ रुपए का मुआवजा मांगा था.

मां से मांगे गए मुआवजे के पीछे रोंगटे खड़े कर देने वाली जो पीड़ा एक कहानी के रूप में परोसी, वाकई वह किसी रोमांचित कर देने वाली फिल्मी पटकथा से कम नहीं थी.

बात करीब 41 साल पहले सन 1978 के आसपास की है. पुणे (महाराष्ट्र) के दीपक सबनीस के साथ खूबसूरत ऊषा सबनीस दांपत्य सूत्र में बंधी तो उस का जीवन चांदनी की भीनी खुशबू की तरह महक उठा. घर में चारों ओर खुशियां छाई थीं. मां के समान दुलारने वाली सास थीं तो पिता की तरह प्यार देने वाले ससुर.

सखी समान राज छिपाने वाली हरदिल अजीज ननद थी तो सच्चे और वफादार दोस्तों के समान देवर, मिलाजुला कर घर के सदस्यों का भरपूर प्यार ऊषा के खाते में आया था.

कुल मिला कर ऊषा सबनीस वहां बहुत खुश थी. इन्हीं खुशियों के बीच वह एक बेटे की मां बन गई, जिस का नाम श्रीकांत सबनीस रखा. उन के जीवन में श्रीकांत के आने से चारों ओर बहार सी छा गई थी.

दीपक सबनीस पत्नी से खुश थे ही, बेटे के जन्म के बाद वह और निहाल हो गए. भौतिक सुखसुविधाओं की तमाम वस्तुएं घर में थीं, इसलिए उन्हें अब किसी और चीज की लालसा नहीं थी. उसी में वह खुशहाल जीवन जी रहे थे.

इस के विपरीत ऊषा की आकांक्षाएं अनंत थीं. बचपन से ही उस की ख्वाहिश रुपहले परदे पर खुद को दिखाने की थी. ऊषा फिल्मी दुनिया में जाना चाहती थी.

वह जब भी कोई फिल्म देखती तो अभिनेत्री के स्थान पर खुद को रख कर देखती थी. ऐसा कर के ऊषा के मन को भरपूर सुकून मिलता था और मन ही मन वह खूब खुश हुआ करती थी. खुली आंखों से देखे गए सपनों को वह पति से शेयर भी करती.

दीपक उस का मन रखने के लिए हां तो कह देता लेकिन सच्चे दिल से उसे पत्नी की ये बातें अच्छी नहीं लगती थीं. वह कभी नहीं चाहता था कि उस की पत्नी फिल्मी दुनिया की ओर रुख करे.

दीपक सबनीस यही चाहता था कि ऊषा एक कुशल गृहिणी की तरह घर में रह कर सासससुर और बच्चे की सेवा करे लेकिन ऊषा की सोच इस के विपरीत थी. उसे तो हीरोइन बनने की सनक सवार थी. इतना ही नहीं, उस ने ठान लिया था कि उसे अपने सपने पूरे करने के लिए राह की हर मुश्किलों को पार कर के आगे बढ़ते जाना है. इस बात को ले कर अकसर उस का पति दीपक से विवाद भी हो जाया करता था.

बात सन 1981 के सितंबर की है. आंखों में अभिनेत्री बनने के सपने लिए ऊषा 2 साल के बेटे श्रीकांत को अपने साथ ले कर पुणे से मुंबई चल दी थी. उस ने कहीं सुना था कि फिल्मी दुनिया में कुंवारियों को हीरोइन के रूप में तरजीह दी जाती है. हालांकि शरीर की कसावट से वह अविवाहित लगती थी, लेकिन वास्तव में उस के पास तो अपना खुद का बेटा था. बेटे को ले कर वह परेशान थी.

उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह अपने 2 साल के बेटे का क्या करे? मुंबई पहुंच चुकी ऊषा की समझ में जब कुछ नहीं आया तो उस ने अपने दुधमुंहे बेटे श्रीकांत को जानबूझ कर ट्रेन के डिब्बे में किसी निर्मोही की तरह बिलखता छोड़ दिया और सपनों की तलाश में मायानगरी में गुम हो गई.

ट्रेन में 2 साल के रोते बच्चे की आवाज टीटीई के कानों के परदे से टकराई थी. बच्चे की करुण क्रंदन सुन कर टीटीई ने डिब्बे के अंदर झांका तो बच्चे को अकेला रोता देख कर उस का हृदय भर आया था.

ट्रेन में सवार सभी यात्री उस में से उतर कर अपनेअपने गंतव्य स्थान को जा चुके थे. 2 साल का बच्चा ही डिब्बे में अकेला मां की गोद पाने के लिए बिलख रहा था. उस की मां उस के आसपास कहीं नहीं दिख रही थी.

प्लेटफार्म पर मौजूद तमाम यात्रियों से उस ने बच्चे के बारे में पूछताछ की थी, लेकिन किसी ने उस नन्हीं सी जान को नहीं पहचाना. टीटीई की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे? अंत में टीटीई ने बच्चे को राजकीय रेलवे पुलिस (जीआरपी) को सौंप दिया. जीआरपी ने लिखापढ़ी करने के बाद वह बच्चा अनाथाश्रम को सौंप दिया था.

दुधमुंहे श्रीकांत का अपना भरापूरा परिवार था. घर था, प्यार करने वाले दादादादी और पिता थे, फिर भी वह अनाथों की तरह अनाथाश्रम में पहुंच गया था. वहां वह अन्य अनाथ बच्चों की तरह पल रहा था. उन अजनबी चेहरों के बीच नन्हा श्रीकांत अपनों को तलाशता रहता. उन में उस का अपना कोई नहीं था. अनजान और अजनबी चेहरों को देख कर वह अकसर रोता ही रहता था.

अगले दिन स्थानीय अखबारों में नन्हें श्रीकांत के ट्रेन में पाए जाने की खबर प्रमुखता से प्रकाशित की गई थी. समाचारपत्रों के माध्यम से लावारिस श्रीकांत की तसवीर राजस्थान के एक दंपति ने भी देखी. उस दंपति की अपनी कोई औलाद नहीं थी, जिस के बाद उस दंपति ने श्रीकांत को गोद ले लिया.

बाद में यह जानकारी श्रीकांत की नानी को मिली तो वह तड़प कर रह गईं. उन्होंने राजस्थान के उस दंपति से श्रीकांत को मांगा तो उन्होंने बच्चा देने से इनकार कर दिया. तब नानी ने कोर्ट की शरण ली. आखिर उन्होंने 4 साल तक कानूनी लड़ाई लड़ कर राजस्थानी दंपति से श्रीकांत को हासिल कर लिया. उस समय श्रीकांत करीब 6 साल का हो चुका था. इस के बाद वह अपनी नानी के पास ही पलाबढ़ा.

तकदीर का खेल देखिए, जिस मजबूत वृक्ष के सहारे श्रीकांत को घनी छाया मिल रही थी, वही उस से सदा के लिए छिन गई. सन 1991 में उस की नानी सदा के लिए दुनिया छोड़ गईं. नानी के देहांत के बाद वह अपनी मौसी आशा के साथ रहने लगा. अब तक श्रीकांत की जिंदगी खानाबदोश की जिंदगी हो गई थी.

मौसी आशा से उसे पिछली जिंदगी की सारी सच्चाई पता चली तो श्रीकांत का कलेजा फट गया. मां पर उसे काफी गुस्सा आया लेकिन वह नहीं जानता था कि इस वक्त उस की मां कहां हैं? लेकिन मन ही मन उस ने ठान लिया कि मां को एक न एक दिन जरूर ढूंढ़ निकालेगा. तब उस से अपनी त्रासद जिंदगी के एकएक पल का हिसाब मांगेगा.

नानी के बाद सहारा बनी मौसी आशा ने श्रीकांत को एक नई जिंदगी दी. सन 2006 में उन्होंने श्रीकांत की शादी करा दी. नई जिंदगी की शुरुआत श्रीकांत ने अपने तरीके से की. वह बतौर एक मेकअप आर्टिस्ट अपने पैरों पर मजबूती से खड़ा हो गया और मां की तलाश में पुणे से मुंबई आ गया.

मुंबई के जुहू में किराए का कमरा ले कर पत्नी के साथ रहने लगा. वह जानता था कि उस की मां मुबंई में रहती है. दिनरात वह यही कोशिश करता था कि किसी तरह उस की मां से मुलाकात हो जाए.

आखिर श्रीकांत की यह इच्छा भी पूरी हो गई. सन 2017 में श्रीकांत सबनीस को सोशल मीडिया की मदद से किसी तरह मां का पता चल गया. वह उस तक पहुंचा था. लेकिन मां की सच्चाई जान कर वह हैरान रह गया था. मां ऊषा सबनीस से अब आरती महास्कर बन चुकी थी और किसी धनाढ्य उदय महास्कर से शादी कर के अपना संसार बसा चुकी थी. ऊषा से आरती महास्कर का चोला ओढ़े ऊषा ने पति से अपना अतीत छिपा लिया था.

उस ने यह बात दूसरे पति से कभी नहीं बताई थी कि पुणे के रहने वाले दीपक सबनीस से उस की शादी हुई थी. उस से अपना एक बेटा भी है, जिसे उस ने हीरोइन बनने की लालसा में मुंबई की ट्रेन में लावारिस छोड़ दिया था.

आरती महास्कर उर्फ ऊषा सबनीस ने यह राज अपने सीने में हमेशा के लिए दफन कर लिया था और उदय महास्कर के साथ नई जिंदगी की पारी शुरू कर दी थी. बाद के दिनों में उस से 2 बच्चे भी हुए, जो आज भी हैं.

कहते हैं, ठान लो तो पत्थर के सीने से भी दूध निकाल सकते हैं. श्रीकांत ने ऐसा ही कुछ किया था. मौसी आशा द्वारा बताई अतीत को सच साबित करने के लिए श्रीकांत ने सोशल मीडिया का सहारा लिया और साथ ही अपने परिचितों से अपनी मां का पता लगाने का आग्रह भी किया. उस की मेहनत रंग लाई. डेढ़ साल बाद यानी सितंबर, 2018 में आखिरकार श्रीकांत ने मां ऊषा उर्फ आरती महास्कर का मोबाइल नंबर ढूंढ ही लिया.

उस ने मां से बात की. लेकिन मां आरती महास्कर ने उसे पहचानने से इनकार कर दिया. उस ने मां को याद दिलाने के लिए 38 साल पहले घटी पूरी घटना विस्तार से बताई तब जा कर उस की मां ऊषा सबनीस उर्फ आरती महास्कर ने यह तो स्वीकार किया कि वह उसी का बेटा है.

38 सालों से सीने में दबा राज अचानक सामने आया तो आरती महास्कर विचलित सी हो गई. वह सोच नहीं पा रही थी कि वह इस राज को राज कैसे रखेगी. बच्चों के सामने जब यह सच्चाई खुल कर आएगी तो क्या होगा? यह सोच कर आरती महास्कर कांप गई थी.

इस से पहले कि आरती की सच्चाई खुल कर सब के सामने आती, उस ने पति उदय महास्कर को सारी सच्चाई बता दी. किसी तरह पतिपत्नी ने मामला आपस में फिलहाल सुलझा लिया था. एक दिन आरती और उदय महास्कर ने श्रीकांत को अपने पास बुलाया और उसे समझाया कि यह बात उन के बेटों से कभी नहीं बताएगा कि वह उन्हीं का बेटा है, नहीं तो उन के घर में भूचाल आ जाएगा.

श्रीकांत को मां और सौतेले पिता से ऐसी उम्मीद नहीं थी कि वे उसे अपना बेटा नहीं स्वीकारेंगे. मां के इनकार से उस का कलेजा छलनीछलनी हो गया था. उसी समय उस ने फैसला किया कि वह मां को इतनी आसानी से नहीं छोड़ेगा.

38 सालों से जिस तरह वह अपनों के होते हुए भी उन के प्यार के लिए तरसा है, अनाथों की तरह यहांवहां जीया है, उन सब का हिसाब उन से जरूर लेगा. उस के बाद श्रीकांत मां के पास से लौट आया और मुंबई हाईकोर्ट की शरण में जा पहुंचा.

6 जनवरी, 2020 को श्रीकांत ने न्यायाधीश ए.के. मेनन की अदालत में एक याचिका दायर की. याचिका में उस ने लिखा था कि 38 साल पहले सन 1981 में मां ऊषा सबनीस उर्फ आरती महास्कर ने मुझे मुंबई (तब बंबई) स्टेशन पर ट्रेन में छोड़ दिया था.

मां भी यह मान चुकी थी कि ट्रेन में वह उसे छोड़ गई थी. मां ने यह तो माना कि वह उस का बेटा है. यह भी बताया कि कुछ अपरिहार्य परिस्थितियों के चलते उसे छोड़ना पड़ा था, लेकिन वह अब मिलना नहीं चाहती.

तब मैं ने वहीं जा कर मां और अपने सौतेले पिता उदय महास्कर से मुलाकात की. वहां उन दोनों ने कहा कि वह अपनी सच्चाई उन के बच्चों के सामने नहीं बताए. मैं एक तो पहले से ही परेशान था, लेकिन अपनी मां और सौतेले पिता की यह शर्त सुन कर और ज्यादा परेशान हो गया.

याचिका में श्रीकांत ने कहा कि कोर्ट मां को मुझे अपना बेटा घोषित करने और यह ऐलान करने का आदेश दे कि उस ने 2 साल की उम्र में उसे छोड़ दिया था. मैं ने बरसों तक मानसिक आघात सहा है और असुविधाओं को झेला है.

मां से बिछुड़ने पर जिंदगी दर्दभरी हो गई. मां की ममता को अनाथों की तरह तरसा है. मातापिता के होते हुए भी अनाथों की तरह रहा हूं. तब तक भिखारी की तरह जीना पड़ा, जब तक अपनी नानी के पास नहीं पहुंच गया. जिस ममता के लिए मैं तरसा हूं, मुझे बेटे का दरजा न देने के एवज में डेढ़ करोड़ का मुआवजा दें.

याचिकाकर्ता श्रीकांत सबनीस ने आगे बताया कि मैं अपने अतीत से बेखबर था. मेरी मौसी ने मुझे अतीत की पूरी हकीकत बयान की.

इस के बाद सोशल मीडिया की मदद से किसी तरह मैं अपनी मां ऊषा तक पहुंचा, लेकिन अब मां ऊषा सबनीस से आरती महास्कर बन चुकी थी और अपने दूसरे पति उदय महास्कर के साथ संसार बसा चुकी थी. अपनी पहचान बताने के बावजूद आरती महास्कर ने उसे सब के सामने बेटा स्वीकारने से इनकार कर दिया.

इसी के बाद श्रीकांत ने अदालत का दरवाजा खटखटाया और पिछले 38 साल तक झेले मानसिक संत्रास के लिए डेढ़ करोड़ रुपए के मुआवजे की भी मांग की.

इस घटना ने देश भर में सनसनी पैदा कर दी थी. इस के बाद श्रीकांत सबनीस और आरती महास्कर के बीच जंग शुरू हो गई थी. यह मामला अभी भी न्यायालय में चल रहा है. कथा लिखे जाने तक मुकदमे में काररवाई जारी थी.

—कथा सोशल मीडिया पर आधारित

काली की हीरा : तेजराम की कातिल बीवी

एक दिन कालीचरण हीराकली के घर आया तो वह घर में अकेली थी और आईने के सामने बैठी शृंगार कर रही थी. कालीचरण चुपचाप पीछे खड़ा हो गया. जैसे ही हीराकली ने आईने में कालीचरण को देखा तो उस ने चौंकते हुए अपना आंचल ठीक करने के लिए हाथ बढ़ाया, तभी कालीचरण उस का हाथ थामते हुए बोला, ‘‘हीरा भाभी, ऊपर वाले ने खूबसूरती देखने के लिए बनाई है. तुम इसे ढक क्यों रही हो. मेरा वश चले तो अपने सामने तुम को कभी आंचल डालने ही न दूं. इस खूबसूरती को परदे में बंद मत करो.’’

हीराकली उत्तर प्रदेश के पीलीभीत जिले के गांव मधौया के रहने वाले तेजराम की बीवी थी. कालीचरण भी इसी गांव का रहने वाला था. वह तेजराम का दोस्त था, इसलिए उस का तेजराम के यहां आनाजाना था. हीराकली गांव के रिश्ते में कालीचरण की भाभी लगती थी.

कालीचरण हीराकली को चाहता था, इसलिए वह तेजराम की गैरमौजूदगी में उस के यहां चक्कर लगाता रहता था. उस दिन भी जब वह उस के घर गया तो वह घर में अकेली थी. उसे शृंगार करते देख कर कालीचरण ने उस से शरारत की तो वह बोली, ‘‘पागल कहीं के, तुम को तो हमेशा शरारत सूझती है. काली, एक बात बताऊं, जब भी तुम मुझे छूने की कोशिश करते हो तो मुझे डर लगता है कि कहीं मुसकान के पापा न देख लें और तुम्हारी चोरी पकड़ी जाए.’’ हीराकली मुसकराई.

‘‘अरे भाभी, इस बात को ले कर तुम चिंता क्यों करती हो. मुझे सिर्फ इतना बताओ कि मेरी शरारत से तुम्हें तो कोई परेशानी नहीं होती. बुरा तो नहीं मानती मेरी छेड़छाड़ का?’’

‘‘बिलकुल नहीं. पर एक बात बताओ कि तुम्हारी इन बातों का मतलब क्या है? कहीं तुम मुझ पर डोरे डालने की कोशिश तो नहीं कर रहे?’’ हीराकली ने कालीचरण के मन की थाह लेनी चाही.

‘‘भाभी, जब तुम जान ही गई हो तो दिल की बात तुम्हें बता ही दूं. सच यह है कि भाभी, मैं तुम्हें प्यार करता हूं. जिस रोज मैं तुम्हें देख नहीं लेता, अजीब सी बेचैनी महसूस होती है. तभी तो किसी न किसी बहाने से यहां चला आता हूं. तुम्हारी चाहत कहीं मुझे पागल न…’’

कालीचरण की बात अभी खत्म भी नहीं हुई थी कि हीराकली बोली, ‘‘पागल तो तुम हो ही चुके हो. तुम ने कभी मेरी आंखों में झांक कर देखा है कि उन में तुम्हारे लिए कितनी चाहत है. दिल की भाषा को आंखों से पढ़ पाने में भी तुम अभी अनाड़ी ही हो.’’

‘‘सच कहा तुम ने, मैं अनाड़ी ही निकला लेकिन आज यह अनाड़ी खिलाड़ी बनना चाहता है.’’ कहते हए कालीचरण ने हीराकली के चेहरे को अपने हाथों में भर लिया. पलभर बाद हीराकली उस की बांहों में कैद थी.

आंखें बंद कर उस ने अपना सिर कालीचरण के सीने पर टिका दिया. कालीचरण का दिल तेज गति से धड़कने लगा. वह हीराकली को बांहों में उठा कर बैड पर ले गया. फिर दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कर लीं.

शराब पीपी कर खोखले हो चुके पति तेजराम के शरीर में अब वह बात नहीं रह गई थी जो हीराकली की देह की आग को बुझा पाती. इसलिए उस के कदम कालीचरण की तरफ बढ़ गए थे. आज कदम जब मंजिल तक पहुंचे तो उस की चाहत पूरी हो गई.

उत्तर प्रदेश के जिला पीलीभीत के बरखेड़ा थाना क्षेत्र में एक गांव है मधौया. परसादीलाल इसी गांव में सपरिवार रहते थे. उन के पास खेती की 10 बीघा जमीन थी. उस पर खेती कर के वह अपने परिवार का भरणपोषण करते थे. उन के परिवार में पत्नी पार्वती के अलावा 3 बेटे बुद्धसेन, तेजपाल व चेतराम और 2 बेटियां मीना और सीमा थीं. दोनों बेटियों के हाथ पीले करने के बाद उन्होंने बुद्धसेन का विवाह हीराकली से कर दिया था.

विवाह के कुछ समय बाद बुद्धसेन की जहर खाने से संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई. पति की मौत के बाद हीराकली का विवाह देवर तेजराम से रीतिरिवाज से कर दिया गया.

तेजराम से विवाह के बाद हीराकली 2 बेटियों और एक बेटे की मां बनी. इसी बीच तेजराम के मातापिता का देहांत हो गया. पिता की जो 10 बीघा जमीन थी, वह दोनों भाइयों तेजराम और चेतराम के बीच आधीआधी बंट गई.

तेजराम के हिस्से में 5 बीघा जमीन आई थी. उसी पर खेती कर के वह अपने परिवार का खर्च चलाता था. उसे शराब की बुरी लत लग गई थी. रोज शाम को वह शराब ले कर बैठ जाता और घंटों पीता रहता. कालीचरण भी मधौया गांव में रहता था. आपराधिक प्रवृत्ति का कालीचरण 40 साल की उम्र में भी अविवाहित था. वह तंत्रमंत्र व झाड़फूंक के नाम पर भी लोगों को ठगने का काम करता था.

कालीचरण और तेजराम में दोस्ती थी. इसी दोस्ती के चलते कालीचरण का तेजराम के घर आनाजाना शुरू हो गया. कालीचरण की नजर तेजराम की पत्नी हीराकली पर गई तो पहली नजर में ही वह उस के दिल में उतर गई. तेजराम के घर पर वह तेजराम से बात जरूर करता था लेकिन उस की निगाहें बारबार हीराकली पर ही जा कर रुकती थीं. हीराकली को भी कालीचरण अच्छा लगा था.

कालीचरण की भूखी नजरों की चुभन उस की देह को सुकून पहुंचाती थी. तेजराम और कालीचरण में दोस्ती कराने में सब से बड़ा हाथ शराब का था. रोज शाम को दोनों बैठ कर साथसाथ शराब पीते और खाना खाते.

कालीचरण जानबूझ कर खुद कम पीता और तेजराम को ज्यादा पिला देता. तेजराम के बेसुध होने पर वह हीराकली से जी भर कर बातें करता और उस की खूबसूरती की खूब तारीफ करता.

धीरेधीरे हीराकली को भी उस की बातों में रस आने लगा और उस की बातें, उस का साथ उसे भाने लगा. इस दौरान मौका मिलने पर कालीचरण हीराकली के जिस्म को भी छू लेता था. कालीचरण की मंशा हीराकली से छिपी नहीं रह सकी.

कालीचरण की चाहत भरी आंखों और मजबूत कदकाठी देख कर मीना का भी दिल डोल गया था. इस का एक कारण यह था कि कालीचरण हीराकली से संजीदगी और इज्जत के साथ बातचीत करता था, जबकि तेजराम उस के साथ बेहूदगी से पेश आता था. साथ ही शराब के नशे में उस के साथ मारपीट करता था.

हीराकली दिल के तराजू में तेजराम और कालीचरण को कई बार तौल चुकी थी. उसे हर बार तेजराम के मुकाबले कालीचरण का ही पलड़ा भारी नजर आया था.

कालीचरण तो पहले से ही हीराकली पर आसक्त था. वह उस के सौंदर्य को अपनी बांहों में समेटने की चाहत रखता था. बस देर थी तो अपनी चाहत का इजहार करने की.

कहते हैं कि जहां चाह होती है वहां राह निकल ही आती है. आखिर एक दिन कालीचरण को हीराकली के सामने अपने दिल की बात कहने का मौका मिल ही गया और उस के बाद दोनों के बीच वह रिश्ता बन गया, जो दुनिया की नजर में अनैतिक कहलाता है.

जब तन से तन का रिश्ता कायम हुआ तो फिर दोनों उसे बारबार दोहराने लगे. तेजराम जैसे ही खेतों पर जाने के लिए निकलता तो हीराकली कालीचरण को फोन कर देती. कालीचरण तुरंत उस के पास आ धमकता और फिर दोनों अपनी हसरतें पूरी करते.

यह राज आखिर कब तक राज बना रहता. आखिर दोनों की रंगरलियों की पोल खुल गई. एक दिन तेजराम हीराकली से यह कह कर घर से निकला कि वह काम से शहर जा रहा है और रात तक लौटेगा.

तेजराम के निकलते ही हीराकली ने कालीचरण को फोन कर के बता दिया कि आज मौका अच्छा है, इसलिए वह तुरंत आ जाए. कालीचरण भी बिना ज्यादा देर किए हीराकली के घर पहुंच गया.

आते ही उस ने हीराकली के गले में अपनी बांहों का हार डाल दिया, ‘‘अरे, यह क्या कर रहे हो, थोड़ा सब्र तो करो.’’ हीराकली कसमसाते हुए बोली.

‘‘कुआं जब सामने हो तो प्यासे को सब्र थोड़े ही होता है.’’

‘‘तुम्हारी इन्हीं बातों ने मुझे दीवाना बना रखा है. न दिन को चैन मिलता है और न रातों को. पता है, जब मैं तेजराम के साथ होती हूं तो केवल तुम्हारा ही चेहरा मेरे सामने होता है.’’ हीराकली ने इतना कह कर कालीचरण के गालों को चूम लिया. कालीचरण से भी नहीं रहा गया, वह हीराकली को बांहों में उठा कर पलंग पर ले गया. फिर दोनों के बीच कामक्रीड़ा शुरू हो गई.

इसी बीच दरवाजा खटखटाने की आवाज आई तो दोनों के दिमाग से वासना का ज्वार उतर गया. हीराकली ने किसी तरह अपने अस्तव्यस्त कपड़ों को ठीक किया और दरवाजा खोलने भागी. जैसे ही उस ने दरवाजा खोला, सामने तेजराम को देख कर उस के चेहरे का रंग उड़ गया.

‘‘तुम इतनी जल्दी कैसे आ गए?’’ हकलाते हुए हीराकली ने पूछा.

‘‘क्यों…क्या मुझे अपने घर में आने के लिए भी किसी से इजाजत लेनी होगी? अब दरवाजे पर ही खड़ी रहोगी या मुझे अंदर भी आने दोगी.’’ तेजराम बोला.

हीराकली को एक तरफ धकेलता हुआ तेजराम अंदर घुसा तो सामने कालीचरण को देख कर उस का माथा ठनका, ‘‘अरे, तुम कब आए?’’

तेजराम ने पूछा तो कालीचरण से था लेकिन वह घूर रहा था हीराकली को. हीराकली का व्यवहार उसे कुछ अजीब सा लगा. वह खुद को असहज महसूस कर रही थी. उस के बाल बिखरे हुए थे, माथे की बिंदी गले पर चिपकी हुई थी. कालीचरण भी परेशान सा दिख रहा था. कुछ देर इधरउधर की बातें करने के बाद कालीचरण वहां से चला गया.

उस के जाने के बाद तेजराम ने हीराकली से सीधा सवाल दागा, ‘‘कालीचरण यहां क्या करने आया था?’’

‘‘मुझे क्या पता, तुम से ही मिलने आया होगा.’’ हकलाते हुए हीराकली बोली.

‘‘लेकिन मुझ से तो उस ने कोई बात नहीं की.’’

‘‘अब मैं क्या जानूं, यह तो तुम्हें ही पता होगा.’’ हीराकली ने कहा तो तेजराम गुस्से का घूंट पी कर रह गया. दरअसल, सब कुछ समझते हुए भी वह उस समय कुछ नहीं बोला.

तेजराम को एक बार हीराकली और कालीचरण के संबंधों के बारे में शक पैदा हुआ तो वह फिर बढ़ता ही गया. तेजराम ने सख्ती का रुख अख्तियार कर लिया. वह घुमाफिरा कर पहले हीराकली से कालीचरण के आने के बारे में पूछता. हीराकली तेजराम की बातों का उलटासीधा जवाब देती तो वह उस की पिटाई कर देता.

इसी बीच तेजराम बीमार पड़ गया. ऐसा बीमार पड़ा कि चारपाई से लग गया. कुछ दिन में ही आंत फटने से उस की मौत हो गई. पति की मौत के बाद तो हीराकली आजाद हो गई. तेजराम की 5 बीघा जमीन भी हीराकली को मिल गई. बाकी 5 बीघा जमीन देवर चेतराम के नाम थी. हीराकली की नजर उस जमीन पर भी थी.

उस ने चेतराम से खुद के साथ विवाह करने की बात कही तो चेतराम ने उसे बड़े तीखे स्वर में जवाब दिया कि वह उस के 2 भाइयों को तो खा चुकी, क्या अब उसे भी खाना चाहती है. चेतराम के इस जवाब पर हीराकली कुछ नहीं बोली.

इस के बाद 3 दिसंबर, 2019 को पीलीभीत के दियोरिया कलां थाना क्षेत्र में जादोपुर-रंभोजा गांव के लोगों ने सड़क किनारे एक अज्ञात युवक की लाश पड़ी देखी. लाश के पास कुछ दूरी पर बाइक भी पड़ी थी. गांव के किसी व्यक्ति ने इस की सूचना दियोरिया कलां थाने को दे दी.

सूचना पा कर थानाप्रभारी शहरोज अनवर पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. मृतक की उम्र लगभग 30-32 साल रही होगी. उस के गले में कंटीला तार कसा हुआ था. उस की आंखें भी फूटी हुई थीं. हत्यारे ने बड़ी बेदर्दी से हत्या को अंजाम दिया था.

मृतक के कपड़ों की तलाशी ली गई तो उस की जेब से एक मोबाइल फोन मिला. उस मोबाइल में एक नंबर भाभी के नाम से सेव था. थानाप्रभारी शहरोज अनवर ने उस नंबर पर फोन किया तो दूसरी ओर से किसी महिला ने उठाया.

पूछने पर उस ने अपना नाम हीराकली और गांव का नाम मंधोया बताया. डायल किए गए नंबर के बारे में पूछने पर उस ने वह नंबर अपने देवर चेतराम का बताया. थानाप्रभारी ने चेतराम की लाश मिलने की बात उसे बता दी.

कुछ ही देर में हीराकली मौके पर पहुंच गई. उस ने लाश की शिनाख्त अपने देवर चेतराम के रूप में की और लाश के पास मिली बाइक को चेतराम की बताया. थानाप्रभारी अनवर ने बाइक को कब्जे में ले कर लाश पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दी.

इस के बाद पुलिस ने हीराकली की तहरीर के आधार पर अज्ञात के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया. थानाप्रभारी शहरोज अनवर ने गांव वालों से पूछताछ की तो उन्होंने चेतराम की हत्या में सीधे कालीचरण का नाम लिया. उन्होंने बताया कि कालीचरण और हीराकली के बीच अवैध संबंध हैं.

इस के बाद थानाप्रभारी ने हीराकली के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई. घटना की रात हीराकली के नंबर पर एक नंबर से फोन आया था. वह नंबर कालीचरण का था. इस का मतलब यह था कि घटना में कालीचरण के साथ हीराकली भी शामिल थी.

6 दिसंबर, 2019 को सुबह साढ़े 6 बजे मकरंदापुर तिराहे पर किसी महिला के दवा मांगने पर कालीचरण उसे दवा देने आया था. मुखबिर से सूचना मिलने पर थानाप्रभारी शहरोज अनवर ने अपनी टीम के साथ वहां पहुंच कर कालीचरण को गिरफ्तार कर लिया.

इस के बाद हीराकली को भी गिरफ्तार कर लिया गया. थाने ला कर जब दोनों से पूछताछ की गई तो दोनों ने पूरी कहानी बयां कर दी.

हीराकली पति तेजराम के न होने से आजाद हो गई थी. कालीचरण बेरोकटोक उस के घर आताजाता और उस के पास घंटों पड़ा रहता. यह बात पूरा गांव जानता था. चेतराम को भी इस बारे में पता चल गया था. उस ने नजर रखी तो बात सच निकली.

यह बात चेतराम को बहुत अखरी. भाभी को गांव भर में सरेआम इज्जत उछालना चेतराम से बरदाश्त नहीं हो रहा था. उस का हीराकली से रोज विवाद होने लगा. इसी बीच चेतराम ने अपनी एक बीघा जमीन बेच दी. इस पर हीराकली चेतराम से खूब लड़ी.

हीराकली ने अपने संबंधों के बीच चेतराम को आते देखा तो वह उस से छुटकारा पाने का रास्ता सोचने लगी. वैसे भी उस के हटने से उसे दोहरा लाभ होने वाला था.

एक तो वह उस के हटने के बाद कालीचरण के साथ आराम से जिंदगी बिता सकती थी, दूसरा चेतराम की शेष 4 बीघा जमीन भी उसे मिल जाती. उसे यह भी डर था कि कहीं अपनी बाकी जमीन भी चेतराम न बेच दे.

उस ने कालीचरण को पूरी बात बताई कि चेतराम के मरने से उन दोनों का किस तरह फायदा होगा. कालीचरण वैसे भी अपराधी किस्म का था. अपने 2 साथियों पराग यादव और धर्मवीर के साथ गोरखपुर के रामदास यादव की हत्या कर के गांव भाग आया था. इसलिए जब हीराकली ने चेतराम को ठिकाने लगाने की बात कही तो वह उस की बात मानने को तैयार हो गया.

2 दिसंबर की रात कालीचरण चेतराम को शराब पिलाने के बहाने ले गया. चेतराम अपनी बाइक से उस के साथ गया. शराब खरीद कर वे दोनों घर से लगभग 7 किलोमीटर दूर जादोपुर और रंभोजा गांव के बीच सड़क किनारे बैठ कर शराब पीने लगे. कालीचरण ने चेतराम को अधिक शराब पिलाई.

चेतराम के नशे में धुत होने पर कालीचरण ने कंटीले तार से उस का गला कस दिया. इस के बाद उस ने गुस्से में चेतराम की आंखें भी फोड़ दीं. चेतराम को मौत के घाट उतारने के बाद उस ने हीराकली को फोन कर के चेतराम की हत्या कर देने की सूचना दे दी और वहां से फरार हो गया.

लेकिन दोनों गुनाह कर के बच न सके और कानून की गिरफ्त में आ गए. आवश्यक कानूनी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद दोनों को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य- सत्यकथा, फरवरी 2020

कलंकित मां का यार : बेटी को बनाया शिकार

बात 21 अक्तूबर, 2019 की है. मध्य प्रदेश के धार जिले के थाना बगदून के टीआई आनंद तिवारी अपने औफिस में बैठे थे, अनीता नाम की महिला ने टीआई को बताया कि इस लड़की के साथ बहुत ही घिनौना कृत्य किया गया है. महिला की बात को समझ कर थानाप्रभारी ने तुरंत एसआई रेखा वर्मा को बुला लिया.

रेखा वर्मा ने उस महिला व उस के साथ आई लड़की से पूछताछ की तो उन की कहानी सुन कर वह आश्चर्यचकित रह गईं. वह सोच में पड़ गईं कि क्या कोई मां ऐसी भी हो सकती है. उन दोनों ने पूछताछ के बाद महिला एसआई रेखा वर्मा ने टीआई आनंद तिवारी को सारी बात बता दी.

सुन कर टीआई भी बुरी तरह चौंके. वही क्या कोई भी इस बात पर भरोसा नहीं कर सकता था कि एक मां अपनी मासूम बेटी के साथ एक अधेड़ व्यक्ति से बलात्कार जैसा घिनौना कृत्य करवाया.

प्रारंभिक पूछताछ में थाने आई किशोरी ने बताया था कि वह कक्षा 6 में पढ़ती है. पिता मांगीराम की मौत के बाद मां 4 भाईबहनों के साथ रह कर मेहनतमजदूरी करती थी. लेकिन 4 साल पहले मां ने तब मजदूरी करनी छोड़ दी जब उस की दोस्ती मटन बेचने वाले महमूद से हुई. तब से महमूद अकसर उस के घर आने लगा था.

पीडि़त बच्ची ने आगे बताया कि महमूद के आने पर मां सब भाईबहनों को बाहर के कमरे में बैठा कर खुद उस के साथ कमरे में चली जाती थी. ऐसा बारबार होने लगा तो मैं ने एक दिन चुपचाप झांक कर देखा. मां और महमूद पूरी तरह नंगे हो कर गंदा खेल खेल रहे थे. मैं ने मां को इस बात के लिए मना किया तो उस ने उलटा मुझे डांट दिया और खामोश रहने की हिदायत दी.

उस लड़की ने आगे बताया कि 15 अक्तूबर को महमूद शाम को हमारे घर आया तो मां ने मुझे उस के साथ पीछे के कमरे में भेज दिया. उस कमरे में महमूद मुझ से अश्लील हरकतें करने लगा. मैं ने भागने की कोशिश की तो मां ने मेरे हाथपैर बांध दिए और खुद दरवाजे पर आ कर खड़ी हो गई. तब महमूद ने मेरे साथ गंदा काम किया.

इस के बाद वह मां को 600 रुपए दे कर चला गया. इस बात की जानकारी मैं ने पड़ोस में रहने वाली अनीता आंटी को दी तो उन्होंने मदद करने का वादा किया. आज फिर महमूद हमारे घर आया और मुझे पकड़ कर पीछे के कमरे में ले जाने लगा, जिस पर मैं मां और उस की पकड़ से छूट कर बाहर भाग आई. काफी देर बाद जब घर वापस लौटी तो मेरी मां ने मेरे साथ मारपीट की, जिस के बाद मैं आंटी को ले कर थाने आ गई.

पड़ोस में रहने वाली अनीता के साथ आई मासूम बच्ची के झूठ बोलने की कोई संभावना और कारण नहीं था, इसलिए टीआई आनंद तिवारी ने उसी वक्त मासूम किशोरी का मैडिकल परीक्षण करवाया, जिस में उस के साथ दुष्कर्म किए जाने की पुष्टि हुई.

इस के बाद टीआई ने किशोरी की आरोपी मां ऊषा और उस के आशिक महमूद शाह के खिलाफ बलात्कार एवं पोक्सो एक्ट का मामला दर्ज कर के इस घटना की जानकारी एसपी (धार) आदित्य प्रताप सिंह को दे दी.

जबकि वह स्वयं पुलिस टीम ले कर आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए निकल गए. दोनों आरोपी घर पर ही मिल गए. आधे घंटे में पुलिस 30 वर्षीय ऊषा और उस के 42 वर्षीय आशिक महमूद को हिरासत में ले कर थाने लौट आई.

पूछताछ की गई तो पहले तो मां और उस का आशिक दोनों बेटी को झूठा बताने की कोशिश करते रहे. लेकिन थोड़ी सी सख्ती करने पर उन्होंने सच्चाई बता दी. उन से पूछताछ के बाद जो हकीकत सामने आई, उस ने मां शब्द पर ही ग्रहण लगा दिया. कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था कि मां ऐसी भी हो सकती है.

मध्य प्रदेश के धार जिले के पीतमपुर गांव की रहने वाली ऊषा के पति मांगीराम की अचानक मौत हो गई थी. पति की मौत के बाद ऊषा के सामने बच्चों को पालने की समस्या खड़ी हो गई. उस के 4 बच्चे थे. 30 वर्षीय ऊषा को किसी तरहघर का खर्च तो चलाना ही था, लिहाजा वह मेहनतमजदूरी करने लगी.

जवान औरत के सिर से अगर पति का साया उठ जाए तो कितने ही लोग उसे भूखी नजरों से देखने लगते हैं. ऊषा पर भी तमाम लोगों ने डोरे डालने शुरू कर दिए थे. इसी दौरान खूबसूरत ऊषा पर मटन की सप्लाई करने वाले महमूद शाह की नजर पड़ी.

महमूद का बगदून में पोल्ट्री फार्म था. अपने फार्म से वह ढाबे और होटलों में मटन सप्लाई करता था. महमूद ऊषा के नजदीक पहुंचने के लिए जाल बुनने लगा. इस से पहले महमूद गरीब घर की ऐसी कई लड़कियों और महिलाओं को अपना शिकार बना चुका था, वह जानता था कि गरीब औरतें जल्दी ही पैसों के लालच में आ जाती हैं.

उस ने काम के बहाने ऊषा से जानपहचान बढ़ाई और उस के बिना मांगे ही उसे मटन देने लगा. ऊषा ने जब उस से कहा कि वह पैसा नहीं चुका पाएगी तो उस ने कहा कि कभी मुझे अपने घर बुला कर मटन खिला देना. मैं समझ लूंगा कि सारे पैसे वसूल हो गए. जवाब में ऊषा ने कह दिया कि आज ही आ जाना, खिला दूंगी. इस पर महमूद ने मिर्चमसाले आदि के लिए उसे 200 रुपए भी दे दिए.

ऊषा खुश हुई. उस ने उस के लिए मटन बना कर रखा लेकिन महमूद नहीं आया. अगले दिन ऊषा ने महमूद से शिकायत की तो उस ने कोई बहाना बना दिया और फिर किसी दिन आने को कहा. उस के बाद अकसर ऐसा होने लगा.

ऊषा मटन बना कर उस का इंतजार करती. अब वह मटन के साथ उसे खर्च के पैसे भी देने लगा. इस तरह ऊषा का उस की तरफ झुकाव होने लगा.

महमूद ऊषा की बातों और मुसकराहट से समझ गया था कि वह उस के जाल में फंस चुकी है, लिहाजा एक दिन वह दोपहर के समय ऊषा के घर चला गया. उस समय ऊषा के बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ने गए हुए थे. महमूद को घर आया देख ऊषा खुश हुई. महमूद उस से प्यार भरी बातें करने लगा. उसी दौरान दोनों ने अपनी हसरतें भी पूरी कर लीं.

हालांकि महमूद शादीशुदा और 2 बच्चों का पिता था. लेकिन ऊषा ने जिस तरह उसे खुश किया, उस से वह बहुत प्रभावित हुआ. इस के बाद उसे जब भी मौका मिलता, ऊषा के घर चला आता.

कुछ महीनों बाद उस के कहने पर ऊषा ने मजदूरी करना बंद कर दिया. उस के घर का पूरा खर्च महमूद ही उठाने लगा. वह भी दिन भर महमूद के साथ बिस्तर में पड़ी रहने लगी.

ऊषा की बड़ी बेटी 12-13 साल की थी. मां के साथ महमूद को देख कर वह भी समझ गई थी कि मां किस रास्ते पर चल रही है.

बेटी ने मां की इस हरकत का विरोध करने की कोशिश की. लेकिन ऊषा पर बेटी के समझाने का तो कोई फर्क नहीं पड़ा, उलटे महमूद की नजर बेटी पर जरूर खराब हो गई.

कुछ समय बाद महमूद ने ऊषा को 2 हजार रुपए दे कर बड़ी बेटी को उस के साथ सोने के लिए तैयार करने को कहा. 2 हजार रुपए देख कर वह लालच में अंधी हो गई और बेटी को उसे सौंपने को तैयार हो गई. जिस के चलते 15 अक्तूबर की शाम को महमूद ऊषा की बेटी के संग ऐश करने की सोच कर उस के घर पहुंचा.

ऊषा ऐसी निर्लज्ज हो गई थी कि वह अपनी कोमल सी बच्ची को उस के हवाले करने को तैयार हो गई.

महमूद के पहुंचने पर ऊषा ने बेटी को महमूद के साथ बात करने के लिए कमरे में भेज दिया. उसे देखते ही महमूद उस पर टूट पड़ा तो वह रोनेचिल्लाने लगी.

यह देख बेदर्द ऊषा कमरे में आई और बेटी की चीख पर दया दिखाने के बजाए उलटा उसे समझाने लगी, ‘‘कुछ नहीं होगा, थोड़ा प्यार कर लेने दे. तू महमूद को खुश कर देगी तो यह तुम्हें लैपटौप और मोबाइल दिला देंगे.’’

बच्ची डर के मारे रो रही थी. वह नहीं मानी तो बेहया ऊषा ने अपनी बेटी के हाथ और पैर बांध कर बिस्तर पर पटक दिया. इस के बाद महमूद को अपनी मन की करने का इशारा कर के वह कमरे के दरवाजे पर बैठ कर चौकीदारी करने लगी.

महमूद वासना का भूखा भेडि़या बन कर उस कोमल बच्ची पर टूट पड़ा. असहाय और मासूम बच्ची दर्द से कराहती रही, लेकिन न तो उस दानव का दिल पसीजा और न ही जन्म देने वाली मां का. उस के नाजुक जिस्म को लहूलुहान करने के बाद महमूद मुसकराते हुए उठा और अपने कपड़े पहनने के बाद ऊषा को 600 रुपए दे कर दूसरे दिन फिर आने को कह कर वहां से चला गया.

बच्ची अपने शरीर से बहता खून देख कर डर गई तो ऊषा ने उसे डांटते हुए कहा, ‘‘नाटक मत कर. हर लड़की के साथ पहली बार यही होता है. तू इस से मरेगी नहीं, 1-2 दिन में सब ठीक हो जाएगा.’’

दूसरे दिन हवस का भेडि़या बन कर महमूद फिर आया पर ऊषा ने उसे समझाया कि बच्ची अभी घायल है. 2-4 दिन उस से मुलाकात नहीं कर सकती. इस पर महमूद ऊषा के संग कमरे में कुछ समय बिता कर चला गया.

इधर डर के मारे बच्ची कांप रही थी. वह सीधे आंटी अनीता के पास पहुंची और उन से मदद की गुहार लगाई.

21 अक्तूबर को ऊषा ने फिर अपनी बेटी को महमूद के साथ कमरे में भेजने की कोशिश की, जिस पर वह घर से बाहर भाग गई. लौटने पर ऊषा ने उस की पिटाई की तो उस ने अनीता आंटी को सारी बात बताई.

इस के बाद अनीता बच्ची को ले कर थाने पहुंच गईं. पुलिस ने कलयुगी मां ऊषा और उस के प्रेमी महमूद से पूछताछ के बाद कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

—कथा में अनीता परिवर्तित नाम है

सौजन्य- सत्यकथा, फरवरी 2020

प्यार के भंवर में-भाग 3 : देवर भाभी ने क्यों की आत्महत्या

राममिलन की जब शादी तय हुई थी, तब सुनीता मायके गई हुई थी. वह वहां से वापस आई तब उसे मालूम पड़ा कि देवर की शादी तय हो गई है. उस ने इस बाबत राममिलन से पूछा तो उस ने जवाब दिया कि उस से पूछ कर शादी तय नहीं की गई है. शादी के संबंध में वह कुछ भी नहीं बता सकता. लेकिन सुनीता को शक हुआ कि शादी के लिए राममिलन की रजामंदी है

सुनीता अब अपने भविष्य को ले कर चिंतित रहने लगी. वह सोचती, ‘‘कल को राममिलन की शादी हो जाएगी, तो वह उसे दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल फेंकेगा. वह अपनी रातें तो नईनवेली दुलहन के साथ रंगीन करेगा और वह पूरी रात करवट बदलते बिताएगी.’’

सुनीता जितना सोचती, उतना ही उसे अपना जीवन अंधकारमय लगता. इसी उलझन में सुनीता ने राममिलन से हंसनाबोलना बंद कर दिया. वह उस के प्रणय निवेदन को भी ठुकराने लगी. राममिलन उसे मनाने की कोशिश करता, लेकिन वह उस की कोई बात नहीं सुनती.

सुनीता में आए आकस्मिक परिवर्तन से राममिलन परेशान हो उठा. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह भाभी को कैसे मनाए. एक रोज जब उस से नहीं रहा गया तो उस ने पूछा, ‘‘भाभी, मुझ से ऐसी क्या खता हो गई, जो मुझ से नाराज हो. पहले तो तुम खूब हंसती थी, खूब बोलती थी. समर्पण को सदैव तैयार रहती थी. लेकिन अब दूर भागती हो. हंसनाबोलना भी गायब हो गया है. हमेशा चेहरे पर उदासी छाई रहती है. आखिर बात क्या है?’’

‘‘यह तुम अपने आप से पूछो देवरजी, तुम ने मेरे साथ जीनेमरने का वादा किया था. क्या वह वादा तुम शादी करने के बाद निभा सकोगे. शादी के बाद तुम दुलहन के पल्लू में बंध जाओगे और मुझे भूल जाओगे. यही सोच कर मैं उदास रहती हूं. तुम से दूर भागने का भी यही कारण है.’’ सुनीता बोली.

‘‘भाभी, मैं आज भी तुम्हारा हूं और कल भी रहूंगा. साथ जीनेमरने का वादा भी मैं नहीं भूला हूं. रही बात शादी की, तो वह मैं अपनी मरजी से नहीं कर रहा हूं. शादी तो मांबाप ने अपनी मरजी से तय कर दी है.’’
‘‘जो भी हो देवरजी, मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती और घर वाले हमें साथ रहने नहीं देंगे. इसलिए हमेंतुम्हें एकदूसरे से किया गया वादा निभाना होगा.’’

‘‘हम वादा निभाने को तैयार हैं.’’ कहते हुए राममिलन ने सुनीता को अपनी बांहों में समेट लिया. उस के बाद उन दोनों ने एक साथ आत्महत्या करने का निश्चय किया. फिर वह समय का इंतजार करने लगे.
30 नवंबर, 2020 को शिवबरन की रिश्तेदारी में असोथर कस्बा में शादी थी. इसी शादी में सम्मिलित होेने के लिए शिवबरन अपने बड़े बेटे हरिओम के साथ शाम 6 बजे घर से निकल गया.

खाना खाने के बाद गेंदावती पोते हर्ष (3 वर्ष) के साथ कमरे में जा कर लेट गई. घर पर काम निपटाने के बाद सुनीता भी अपनी मासूम बेटी क्रांति के साथ कमरे में जा कर लेट गई. लेकिन उस की आंखों से नींद ओेझल थी.

रात लगभग 11 बजे राममिलन, सुनीता के कमरे में आ गया. उन दोनों के बीच बातचीत शुरू हुई. बातचीत के दौरान सुनीता ने कहा, ‘‘देवरजी, अपनी जीवनलीला समाप्त करने का आज सही समय है. तुम मेरा साथ दोगे या नहीं?’’

‘‘तुम्हारे बिना मेरे जीवित रहने का मकसद ही क्या है. अत: मैं भी तुम्हारे साथ ही अपना जीवन समाप्त करूंगा.’’ इस के बाद सुनीता और राममिलन ने छत के कुंडे में साड़ी को बांधा और साड़ी के दोनों सिरों को फांसी का फंदा बनाया. फिर एकएक सिरा गले में डाल कर फांसी के फंदे पर झूल गए. कुछ देर बाद ही दोनों की गरदन लटक गई.

पहली दिसंबर, 2020 की सुबह करीब 7 बजे गेंदावती जागीं तो उन्हें मासूम बच्ची क्रांति के रोने की आवाज सुनाई दी. वह सुनीता के कमरे पर पहुंचीं, तो कमरे का दरवाजा अंदर से बंद था. तब उन्होंने दरवाजे की कुंडी खटखटाई और आवाज दी, ‘‘बहू, दरवाजा खोलो, बच्ची रो रही है. क्या घोड़े बेच कर सो रही हो?’’ पर अंदर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई. वह राममिलन के कमरे में पहुंची तो वह कमरे में नहीं था.

अब गेंदावती का माथा ठनका. उन के मन में तरहतरह के कुविचार आने लगे. इसी घबराहट में वह सुनीता की चचेरी जेठानी रूपाली को बुला लाई. उस ने भी दरवाजा थपथपाया और आवाज लगाई पर अंदर से कोई हलचल नहीं हुई. शोरशराबा सुन कर पासपड़ोस के लोग भी आ गए.

उसी समय शिवबरन व उस का बेटा हरिओम भी असोथर से आ गए. उन दोनों ने अपने दरवाजे पर भीड़ देखी तो घबरा गए. गेंदावती ने पति व बेटे को बताया कि सुनीता दरवाजा नहीं खोल रही है. राममिलन भी कमरे में नहीं है.

शिवबरन व हरिओम ने भी दरवाजा खुलवाने का प्रयास किया, लेकिन जब दरवाजा नहीं खुला तो दोनों ने कमरे का दरवाजा तोड़ दिया और कमरे के अंदर प्रवेश किया.

कमरे के अंदर का दृश्य बड़ा ही वीभत्स था. पंखे के हुक से साड़ी का फंदा बंधा था. साड़ी के एक छोर पर सुनीता तथा दूसरे छोर पर राममिलन का शव लटक रहा था. सुनीता का चेहरा राममिलन की छाती पर था. सुनीता का एक पैर चारपाई के नीचे लटक रहा था तथा दूसरा पैर चारपाई को छू रहा था.

देवरभाभी द्वारा आत्महत्या करने की खबर लमेहटा गांव में फैल गई. सैकड़ों लोग घटनास्थल पर आ पहुंचे. इसी बीच किसी ने थाना गाजीपुर पुलिस को सूचना दे दी. सूचना पाते ही थानाप्रभारी कमलेश पाल पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर आ गए. उन्होंने पुलिस अधिकारियों को सूचित किया तो एसपी सतपाल, एएसपी राजेश कुमार तथा सीओ संजय कुमार शर्मा आ गए.

पुलिस अधिकारियों ने फोरैंसिक टीम को भी मौके पर बुलवा लिया. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया तथा मृतक व मृतका के घर वालों से पूछताछ की. फोरैंसिक टीम ने भी जांच कर साक्ष्य जुटाए. निरीक्षण व पूछताछ के बाद पुलिस ने दोनों शवों को फांसी के फंदे से नीचे उतरवाया. फिर दोनों शवों को पोस्टमार्टम हेतु जिला अस्पताल फतेहपुर भिजवा दिया.

मृतक के पिता शिवबरन निषाद की तहरीर पर गाजीपुर पुलिस ने भादंवि की धारा 309 के तहत सुनीता और राममिलन के खिलाफ मुकदमा तो दर्ज किया, लेकिन दोनों की मौत हो जाने से पुलिस ने इस मामले की फाइल बंद कर दी.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित