भाभी की सुपारी का राज – भाग 3

इस बारे में जांच की तो पता चला कि पुष्पेंद्र की मौत के बाद उस के घर वालों ने तय कर लिया था कि सुशीला की शादी पुष्पेंद्र के छोटे भाई मनोज से करा देंगे, मनोज गांव में रह कर खेती संभालता था.

मनोज को लगा कि इस से भाई की मौत पर मिलने वाले पैसे भी उस को मिल जाएंगे. अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति भी सुशीला को मिल जाएगी, लेकिन इधर जब सुधा चौधरी को पुष्पेंद्र की मौत पर रुपयों की एक किस्त मिल भी गई थी तो मनोज को लगा कि इस तरह उस के सारे मंसूबों पर पानी फिर जाएगा.

ऐसे में मनोज ने डेढ़ महीने पहले से सुधा के मर्डर की प्लानिंग शुरू कर दी थी. उस ने सोचा कि सुधा की हत्या के बाद रुपए सुशीला को मिल जाएंगे और प्रौपर्टी में भी बंटवारा नहीं हो सकेगा.

5 लाख रुपए में दी सुधा की हत्या की सुपारी

ऐसे विचार मन में आए तो मनोज अपनी भाभी सुधा का मर्डर करवाने के लिए शूटर की तलाश करने लगा. मगर उसे कोई शूटर नहीं मिला. मनोज तब अपनी दूसरी भाभी सुशीला के भाई माधव व सुशीला के चचेरे भाई शिशुपाल निवासी बैरू का नगला, जिला मथुरा, उत्तर प्रदेश से मिला.

मनोज ने सुशीला के दोनों भाइयों माधव और शिशुपाल से कहा, “सुधा का मर्डर करवा दो. हमारी संपत्ति को ले कर मामला चल रहा है. हम लोग बरबाद हो रहे हैं. सुधा की मौत के बाद सारी संपत्ति सुशीला और मेरी हो जाएगी.”

“मनोज, मर्डर तो हो जाएगा लेकिन पैसे खर्च करने पड़ेंगे. पैसों के लिए शूटर की लाइन लगा दूंगा.” माधव ने कहा.

“कितने रुपए लगेंगे सुधा के मर्डर के?” मनोज ने पूछा.

“5 लाख खर्च करने पड़ेंगे. मैं काम करवा दूंगा.” शिशुपाल बोला.

सुधा की मौत के लिए 5 लाख में सौदा तय हो गया. माधव जाट ने एक नाबालिग से संपर्क किया, जो उस की जानपहचान का था एवं भरतपुर का रहने वाला था. माधव ने उस से सुधा का मर्डर करवाने के लिए 5 लाख में सौदा तय कर लिया.

मनोज ने 4 हजार रुपए एडवांस में दे दिए. बाकी रकम काम हो जाने के बाद देने का वादा किया. सुधा के मर्डर से 2 दिन पहले माधव ने 22 जून, 2023 को नाबालिग को 2 कट्टे ला कर दे दिए. नाबालिग और माधव ने सुधा की पहचान कर ली. उन्हें पता था कि सुधा सुबह भरतपुर में स्थित अपने गैस प्लांट जाती है और शाम के समय में नदबई वापस लौटती है.

24 जून, 2023 को बाइक पर आगे माधव व पीछे नाबालिग नदबई बस स्टैंड पर निगाह जमाए दोपहर बाद से खड़े थे. शाम करीब 4 बजे जब सुधा बस से उतर कर बेटे अनुराग के साथ स्कूटी पर घर के लिए निकली तो ये दोनों उस का पीछा करने लगे. रास्ते में सुधा ने खरीदारी की.

इस के बाद जब स्कूटी पर मांबेटा रवाना हुए तो माधव ने बाइक स्कूटी के पीछे भगा दी. कासगंज रोड पर मौका मिलते ही माधव ने बाइक जब स्कूटी के बराबर की तो नाबालिग ने दोनों कट्टों को दोनों हाथों में लिया और सुधा पर गोलियां दाग दीं और फरार हो गए.

अनुराग ने माधव जाट को पहचान लिया था. हत्या वाले दिन 24 जून, 2023 को भी मनोज दोनों शूटरों के संपर्क में था. जब उसे खबर मिल गई कि सुधा की हत्या कर दी गई है तो मनोज भी जयपुर भाग गया था.

पुलिस के हत्थे चढ़े आरोपी

मनोज के द्वारा शूटर के बारे में दी जानकारी के बाद पुलिस टीमें उत्तर प्रदेश रवाना हो गईं. 26 जून, 2023 को नदबई थाने की पुलिस ने आरोपी मनोज को कोर्ट में पेश कर न्यायिक हिरासत में भेज दिया था. पुलिस ने आरोपी माधव, शिशुपाल व एक नाबालिग के फरार होने के बाद उन तीनों पर 25-25 हजार रुपए का इनाम घोषित कर दिया था.

एसएचओ श्रवण पाठक को 27 जून, 2023 को आरोपियों माधव जाट और शिशुपाल जाट की मोबाइल लोकेशन मथुरा की मिली थी. पुलिस टीम राजस्थान से उत्तर प्रदेश पहुंच कर तलाश कर रही थी.

पुलिस टीम को सूचना मिली थी कि माधव और शिशुपाल एक नाबालिग के साथ धनवाड़ा पूंठ की खदानों में छिपे हुए हैं. वे तीनों रात को कहीं बाहर जाने की फिराक में हैं. फिर क्या था, पुलिस टीम अंधेरा घिरते ही धनवाड़ा पूंठ की खदानों में आरोपियों की तलाश में जुट गए.

पुलिस टीम जब सर्च करते हुए एक बंद पड़ी खदान में पहुंची तो तीनों आरोपी वहां से भागने लगे, पुलिस टीम ने पीछा किया. हड़बड़ाहट में तीनों आरोपी खदान में दौड़ते समय गिर कर घायल हो गए. पुलिस टीम ने उन तीनों को हिरासत में लिया और तीनों को कुम्हेर अस्पताल ले गए. जहां से तीनों आरोपियों का प्राथमिक उपचार करा कर भरतपुर के सरकारी अस्पताल आरबीएम ले आई.

माधव, शिशुपाल और नाबालिग से पुलिस ने पूछताछ की तो उन्होंने अपना जुर्म कुबूल कर लिया. सुधा चौधरी की हत्या का जुर्म कुबूल करने के बाद नाबालिग को बाल न्यायालय में पेश कर बाल सुधार गृह भेज दिया गया. वहीं आरोपियों माधव जाट और शिशुपाल जाट का आरबीएम सरकारी अस्पताल, भरतपुर में 28 जून, 2023 को इलाज कराया. उन के पैरों में चोट लगी थी, इस कारण प्लास्टर किया गया था.

चारों आरोपियों की गिरफ्तारी के बाद सुधा चौधरी हत्याकांड का पूरी तरह खुलासा हो चुका था. एसपी मृदुल कच्छावा ने 28 जून, 2023 को प्रैसवार्ता कर सुधा चौधरी हत्याकांड का खुलासा कर दिया.

पुलिस ने सुशीला एवं अन्य से पूछताछ की. मगर उन की संलिप्तता सुधा मर्डर में कहीं नजर नहीं आई. कथा संकलन तक आरोपियों माधव और शिशुपाल जाट का अस्पताल में इलाज चल रहा था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

भाभी की सुपारी का राज – भाग 2

पुलिस टीमों ने मनोज के संभावित जगहों पर होने की परिजनों से जानकारी ली. इस के बाद मनोज को उसी रात जयपुर से धर दबोचा और उसे पुलिस टीम थाने ले आई.

25 जून, 2023 को थाने में उस से सख्ती से पूछताछ की तो सुधा चौधरी हत्याकांड पर से परदा उठ गया. पुलिस ने 24 घंटे में ही मर्डर मिस्ट्री सौल्व कर ली. हत्या का आरोपी कोई और नहीं बल्कि सुधा का देवर मनोज ही निकला. उस ने ही 5 लाख रुपए में अपनी भाभी सुधा चौधरी की हत्या कराई थी. उस से पूछताछ के बाद सुधा चौधरी की हत्या की जो सनसनीखेज कहानी सामने आई, वह इस प्रकार है—

राजस्थान के भरतपुर जिले के अंतर्गत एक गांव बुढ़वारी खुर्द आता है. इसी गांव में पुष्पेंद्र सिंह चौधरी अपने परिवार रहता था. बचपन से ही मेहनती पुष्पेंद्र पढ़ाई के साथ खेलकूद में भी अव्वल था. सुबह जल्दी उठ कर दौड़भाग करने वाला पुष्पेंद्र सीआरपीएफ में भरती हो गया था.

घर परिवार में खुशियां मनाई गईं. पुष्पेंद्र की जब सरकारी नौकरी लगी तो आज से 18 साल पहले उस के योग्य लडक़ी की खोजबीन शुरू हुई. एक रिश्तेदार ने हाथरस (उत्तर प्रदेश) के सालाबाद निवासी बदनसिंह की बेटी सुधा के बारे में बता कर हिम्मत सिंह चौधरी से कहा, “चौधरी साहब, मेरी मानो तो पुष्पेंद्र के लिए सुधा जैसी गोरी और बला की खूबसूरत बीवी ले आओ. सुधा पढ़ीलिखी और सर्वगुण संपन्न है.”

“एक दिन आप साथ चल कर बता दें तो फिर देख कर रिश्ता पक्का करें.” हिम्मत सिंह ने कहा.

“शुभ काम में देरी नहीं करनी चाहिए. कल ही चलते हैं तैयार हो जाओ.”

“चलो ठीक है, कल चलते हैं.”

इस तरह सालाबाद (हाथरस) आ कर सुधा को देखा. गोरे रंग की तीखे नयननक्श वाली सुधा को पहली नजर में ही पुष्पेंद्र के लिए पसंद कर लिया गया. रिश्ता पक्का कर दिया गया. थोड़े दिन बाद शादी का मुहूर्त निकला. आज से 18 वर्ष पूर्व पुष्पेंद्र की सुधा से शादी हो गई.

एक साल बाद सुधा को बेटा हुआ, उस का नाम अनुराग रखा गया. अनुराग के जन्म के बाद सुधा उसे पालने पोसने में लग गई. पति ज्यादातर ड्यूटी पर रहते थे. बेटे की देखरेख में घर का काम समय पर नहीं होता तो सास उस से लडऩे लगती थी.

सुधा लाख सफाई देती कि वह अनुराग को नहलाधुला रही थी. मगर सास उस की एक भी न सुनती और कहती, “हम ने भी तो बच्चे पैदा किए थे, उन्हें संभालते हुए घर का सारा कामकाज करते थे. खेती का काम भी करती थी और पशु भी पालते थे.”

वगैरह वगैरह तमाम बातें बता कर यह जताती थी कि तुम कामचोर हो.

मां के बहकावे में उजाड़ी गृहस्थी

सासबहू की रोज किचकिच होने लगी. पुष्पेंद्र छुट्टी पर घर आता तो मां उस के कान भरती. पुष्पेंद्र मां का पक्ष लेता तो सुधा उस से लड़ पड़ती. पुष्पेंद्र भी लड़ पड़ता. अनुराग मात्र 2 साल का था तब यानी आज से 15 साल पहले रोजरोज के झगड़ों से आजिज आ कर सुधा अपने मायके जा बैठी.

पुष्पेंद्र को मां इस कदर भडक़ाती कि पुष्पेंद्र को सुधा फूटी आंख नहीं सुहाती थी. एक बार पतिपत्नी का रिश्ता खराब हुआ तो वह वक्त के साथ टूटता ही गया. सुधा काफी समय मायके में रही. फिर वह नदबई आ कर रहने लगी. उस ने भरतपुर में औक्सीजन गैस प्लांट पार्टनरशिप में लगा लिया. इस प्लांट से उसे अच्छी आय होती थी.

सुधा कासगंज रोड नदबई में अपने बेटे अनुराग के साथ रहती थी. वह सुबह भरतपुर गैस प्लांट जाती और शाम तक नदबई वापस लौट आती. सुधा एक तरह से अपने बेटे अनुराग के लिए जी रही थी. सुधा और पुष्पेंद्र ने तलाक नहीं लिया था. मगर वे अलगअलग पिछले 15 सालों से रह रहे थे.

पुष्पेंद्र ने एक तरह से सुधा को शादी के 2 साल बाद ही छोड़ दिया था. दोनों के बीच तलाक नहीं हुआ था. इस के बावजूद पुष्पेंद्र ने 3 साल पहले बेरू का नंगला, मथुरा (उत्तर प्रदेश) निवासी सुशीला के साथ दूसरी शादी कर ली. हालांकि कोर्ट से तलाक हुए बिना यह शादी गैरकानूनी थी.

सुशीला से भी एक बेटा लाव्यांश हो गया था. सुधा को जब पुष्पेंद्र की सुशीला से दूसरी शादी एवं उस के बाद बेटा होने का पता चला तो वह जलभुन गई थी. सुधा चौधरी नदबई नगरपालिका के दिसंबर 2021 में हुए चुनावों में कांग्रेस के टिकट से वार्ड नंबर 21 की प्रत्याशी थी. मगर वह चुनाव हार गई थी.

चुनाव के बाद सुधा चर्चा में आ गई थी. सुधा चौधरी जाट महासभा की यूथ विंग की अध्यक्ष भी थी. वह राजनीतिक पार्टियों में पूरी तरह से एक्टिव रहती थी. उस के और पुष्पेंद्र के बीच कोर्ट में तलाक का मुकदमा चल रहा था, लेकिन तलाक हुआ नहीं था. पति से अलग होने के बाद से सुधा अपने मातापिता को हाथरस से नदबई ले आई थी. वह मातापिता और बेटे अनुराग के साथ नदबई में रहती थी.

पुलिस को जांच में पता चला था कि परिवार में विवाद है. 2 पत्नियों के बीच विवाद के 4 कारण थे. पुष्पेंद्र सिंह सीआरपीएफ में थे. उन की दुर्घटना में 27 जुलाई, 2022 को मृत्यु हो गई थी. इस के बाद फैमिली क्राइम के तानेबाने बुनने शुरू हो गए.

पुष्पेंद्र की मौत के बाद भिड़ गईं दोनों पत्नियां

पुष्पेंद्र सिंह की मौत के बाद अनुकंपा नियुक्ति के नियम के तहत बेटे को नौकरी दी जानी थी. ऐसे में सुधा चौधरी और सुशीला दोनों ही अपनेअपने बेटों को नौकरी दिलाना चाहती थीं. इस के अलावा दूसरा कारण पति की पेंशन भी थी.

पुष्पेंद्र की मौत के बाद सरकार की ओर से लाखों रुपए दिए जाने थे. इन पैसों के लिए भी सुधा और सुशीला के बीच में लड़ाई शुरू हो चुकी थी. साथ ही पुष्पेंद्र के नाम पर गांव में खेती की काफी जमीन है. इस को लेकर भी दोनों में विवाद था.

जांच में पुलिस को पता चला कि सुशीला ने आधार कार्ड से ले कर अपने सारे डाक्यूमेंट्स में नाम चेंज करवा लिया था. उस के खिलाफ नदबई थाने में सुधा चौधरी ने रिपोर्ट भी दर्ज करवा दी थी. सुशीला के बेटे लाब्यांश के पिता के नाम को ले कर भी मथुरा गेट थाने में सुधा ने रिपोर्ट दर्ज करवा दी थी.

मामले में सब से बड़ा सवाल यह था कि जब पुष्पेंद्र की दोनों पत्नियों के बीच विवाद था तो देवर मनोज ने भाई पुष्पेंद्र की पहली पत्नी सुधा की हत्या की सुपारी क्यों दी?

कहानी के अगले अंक में पढ़िए, मनोज ने क्यों अपनी ही भाभी की हत्या करवा दी?

भाभी की सुपारी का राज – भाग 1

24 जून, 2023 का दिन था. शाम के पौने 5 बजे का समय था. 36 वर्षीया सुधा चौधरी अपने 17 साल के बेटे अनुराग के साथ स्कूटी द्वारा नदबई बस स्टैंड से कासगंज रोड पर स्थित अपने घर की ओर आ रही थी. तभी रास्ते में बाइक सवार 2 बदमाश उस का पीछा करने लगे. उन दोनों ने ही मुंह पर कपड़ा बांध रखा था. उस समय स्कूटी उस का बेटा अनुराग चला रहा था.

उस की स्कूटी जब सरस्वती मैरिज होम के पास स्थित मंदिर के नजदीक पहुंची ही थी कि बाइक पर पीछा कर रहे युवकों में से पीछे बैठे युवक ने स्कूटी के बराबर पहुंचते ही सुधा चौधरी पर 2 गोलियां चलाईं. गोली लगते ही सुधा की चीख निकल गई. उस के शरीर से खून का फव्वारा फूट पड़ा. जब तक लोग माजरा समझते, बाइक सवार हमलावर फरार हो गए थे. दिनदहाड़े हुई इस वारदात के बाद इलाके में सनसनी फैल गई थी. सुधा चौधरी का बेटा अनुराग बालबाल बच गया था.

यह घटना राजस्थान के जिला भरतपुर के नदबई कस्बे में घटी थी. सुधा चौधरी के एक गोली कंधे से होती हुई हार्ट तक पहुंच गई थी, यही गोली मौत का कारण बनी थी. दूसरी गोली उन की कमर से नीचे लगी थी. गोलियां लगते ही सुधा चौधरी स्कूटी से गिर पड़ी थी.

स्कूटी रोक कर अनुराग लोगों की मदद से अपनी मम्मी को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र नदबई ले गया. डाक्टर ने सुधा चौधरी को मृत घोषित कर दिया था. अस्पताल द्वारा थाना नदबई को फोन पर घटना की इत्तिला दे दी गई.

दिनदहाड़े एक महिला को सरेराह गोलियों से भूनने की खबर मिलते ही नदबई थाना के एसएचओ श्रवण पाठक पुलिस टीम के साथ अस्पताल पहुंच गए थे. इस के बाद उन्होंने घटनास्थल पर पहुंच कर शुरुआती जांच शुरू कर दी. आसपास के दुकानदारों से भी उन्होंने वारदात के बारे में पूछताछ की.

पुलिस ने सुधा चौधरी के शव को कब्जे में ले कर मोर्चरी में रखवा दिया. मृतका का बेटा अनुराग सिसकसिसक कर रो रहा था. उसे श्रवण पाठक ने दिलासा दे कर चुप कराया और घटना के बारे में पूछताछ की. एसएचओ श्रवण पाठक ने शव मोर्चरी में रखवाने के बाद उच्चाधिकारियों को घटना की खबर दे दी.

अनुराग ने पुलिस को दी घटना की जानकारी

घटना की खबर पा कर मृतका के मायके से एवं नदबई में रहने वाले आसपड़ोस के लोग भी अस्पताल व घटनास्थल पर पहुंच गए थे. हर कोई हैरत में था कि सुधा चौधरी जैसी दयालु, समझदार एवं हर किसी के दुखसुख में शामिल रहने वाली महिला की हत्या किस व्यक्ति ने और क्यों कर डाली.

सवाल अपनी जगह थे, मगर सच यही था कि 15 वर्ष से सुधा अपने पति पुष्पेंद्र चौधरी से अलग रह रही थी. पुष्पेंद्र सिंह सीआरपीएफ में नौकरी करता था. पुष्पेंद्र ने करीब 3 साल पहले सुशीला चौधरी नामक युवती से दूसरी शादी कर ली थी. पुष्पेंद्र 27 जुलाई, 2022 को दुर्घटना में चल बसा था.

सुधा और पुष्पेंद्र का तलाक नहीं हुआ था. बगैर तलाक लिए पुष्पेंद्र ने सुशीला से शादी कर ली थी. वह शादी कानून के हिसाब से मान्य नहीं थी. पुलिस को जैसेजैसे जानकारी मिल रही थी, मामला पेचीदा लगने लगा था.

मृतका सुधा के बेटे अनुराग चौधरी (17 साल) ने पुलिस को अपने बयान में बताया, “मैं और मेरी मम्मी सुधा चौधरी (36 वर्ष) पिछले 15 सालों से कासगंज रोड नदबई में अपने पिता पुष्पेंद्र सिंह चौधरी से अलग रह रहे थे. मम्मी का पार्टनरशिप में भरतपुर में औक्सीजन गैस प्लांट है. मम्मी हमेशा की तरह 24 जून, 2023 की सुबह नदबई से भरतपुर गैस प्लांट पर गई थीं. दोपहर साढ़े 3 बजे भरतपुर से बस में बैठ कर वह नदबई आईं.

“उन्होंने बस में बैठने के बाद मुझे फोन कर के स्कूटी लाने को कहा था. वह स्कूटी ले कर नदबई बस स्टैंड पर पहुंच गया था. भरतपुर वाली बस से उतरीं और मेरे पीछे स्कूटी पर बैठ गईं. बाजार से मम्मी ने कुछ खरीदारी की और फिर दोनों स्कूटी से घर की तरफ रवाना हो गए.

“जब स्कूटी कासगंज रोड पर देवी मां के मंदिर के पास पहुंची, तभी बाइक सवार 2 बदमाश स्कूटी के समीप पहुंचे और पीछे बैठे व्यक्ति ने दोनों हाथों में लिए कट्टों से मम्मी पर 2 फायर झोंके और फरार हो गए.”

घटना की खबर मिलते ही सीओ (नदबई) नीतिराज सिंह भी घटनास्थल पर पहुंचे और घटना की जानकारी ली. घटनास्थल का मौका मुआयना किया. उन के निर्देश पर पुलिस ने आसपास के सीसीटीवी फुटेज खंगाले तो काले रंग की बाइक पर 2 व्यक्ति नजर आए. एसएचओ श्रवण पाठक ने सीसीटीवी फुटेज खंगालने के बाद संभावित स्थानों पर दबिश दी.

अनुराग ने अपने नाना बदन सिंह निवासी सालाबाद, हाथरस (उत्तर प्रदेश) के साथ 24 जून, 2023 को थाने पहुंच कर अपनी मम्मी की हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराई.

चाचा के खिलाफ लगाई रिपोर्ट

अनुराग ने पुलिस को बताया था कि उस के चाचा मनोज चौधरी व सुशीला ने हत्या कराई है, क्योंकि पहले भी माधव के चचेरे भाई शिशुपाल के साथ मिल कर चाचा मनोज ने उन्हें मारने की धमकी दी थी. अनुराग ने आरोप लगाया कि मम्मी की हत्या में दादी रामदेई व बाबा के भाई गुटयारी उर्फ फत्ते का भी हाथ है.

अनुराग की तहरीर पर पुलिस ने हत्या का मामला दर्ज कर लिया. अनुराग व उस के नाना बदन सिंह द्वारा दी गई जानकारी के बाद पुलिस आरोपियों की खोजबीन करने लगी.

उधर 24 जून, 2023 की शाम को मैडिकल बोर्ड गठित कर सुधा चौधरी के शव का पोस्टमार्टम करा कर पुलिस ने शव परिजनों को सौंप दिया.

इस केस को सुलझाने के लिए भरतपुर के एसपी मृदुल कच्छावा के निर्देश पर विशेष पुलिस टीम का गठन किया गया. इस टीम में मनीषा लाडो (आरपीएस प्रोबेशनर), लखनपुर एसएचओ श्रवण पाठक एएसआई ओम प्रकाश, कांस्टेबल अमित, जयदेव, सुकेश मीना, थाना लखनपुर के एसएचओ, एसएचओ (कुम्हेर) गौरव कुमार, डीएसटी टीम के एएसआई बलदेव सिंह व बाबूलाल, हैडकांस्टेबल वीरेंद्र, सत्यवीर गिरधारी, जगदीश, अमर सिंह, कांस्टेबल लक्ष्मण सिंह आदि शामिल थे.

पुलिस टीम ने सर्वप्रथम सुधा चौधरी की ससुराल बुढ़वारी खुर्द जा कर ससुराल वालों से पूछताछ की. पता चला कि मनोज चौधरी गांव से फरार हो गया है. यह साफ संकेत था कि जरूर सुधा चौधरी हत्याकांड में मनोज का हाथ है. अगर वह निर्दोष था तो फरार क्यों हुआ था.

क्या सच में मनोज ने ही अपने भाभी की हत्या करवाई थी? या इस हत्या के पीछे कोई और था? जानने के लिए पढ़ें कहानी का अगला भाग.

साइको डैड : शक के फितूर में की बेटी की हत्या – भाग 3

यशपाल को कोई उपाय नहीं सूझा तो उस ने परमिंदर से छुटकारा पाने के लिए अदालत में तलाक का मुकदमा दायर कर दिया. तलाक के लिए उस ने पत्नी पर चरित्रहीनता का आरोप लगाया था, इसलिए उस ने अदालत में बच्चों का डीएनए टेस्ट कराने का भी मुकदमा दायर कर दिया था.

इन दोनों ही मामलों में तारीखों पर तारीखें पड़ रही थीं. इस से यशपाल को लगा कि पुलिस ही नहीं, जज भी उस की चरित्रहीन पत्नी की सहायता कर रहे हैं.

जबकि अदालत तलाक के मुकदमे को इसलिए लटकाए रहती है कि शायद पतिपत्नी में समझौता हो जाए. बहरहाल सन 2012 में अदालत ने परमिंदर कौर के पक्ष में फैसला सुना दिया. इस के बाद यशपाल ने पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट में अपील दायर की, जहां से उस की अपील खारिज कर दी गई.

अदालतों की इस कार्यवाही से यशपाल इस तरह बौखला गया कि वह लोअर कोर्ट से ले कर हाईकोर्ट तक के जजों को धमकी भरे पत्र लिख कर भेजने लगा. इसी के साथ उस ने उन लोगों की एक सूची भी तैयार कर ली, जिन की वह हत्या करना चाहता था. उस की उस सूची में डीएसपी, एसपी, आईजी, डीआईजी, डीजीपी, लोअर कोर्ट के जज से ले कर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के अलावा पत्नी, बच्चे, साला और कई बैंकों के मैनेजर भी थे. इस सूची में करीब 50 लोग थे.

यशपाल लगातार सभी को धमकी भरे पत्र भेजने लगा तो पटियाला के पुलिस अधीक्षक को हाईकोर्ट की ओर से आदेश मिला कि धमकी भरे पत्र भेजने वाले इस आदमी को हिरासत में ले कर पूछताछ की जाए कि वह ऐसा क्यों कर रहा है? उस की मैडिकल जांच भी कराई जाए.

हाईकोर्ट के आदेश पर पुलिस अधीक्षक ने कोतवाली प्रभारी जसविंदर सिंह टिवाणा को यशपाल को हिरासत में ले कर पूछताछ करने और उस का मैडिकल कराने का आदेश दिया. पुलिस पूछताछ में वह पत्नी की बेवफाई की बातें करता रहा.

इस के बाद उस का चैकअप कराया गया तो डा. बी.एस. सिद्धू के अनुसार वह डेल्यूजनल डिसौर्डर  का शिकार पाया गया. इस बीमारी का रोगी अपने दिमाग में कोई भ्रम पाल लेता है. फिर वह जैसा सोचता है, उसे वैसा ही दिखाई देता है.

पुलिस को इन बातों से क्या लेनादेना था. उस ने रिपोर्ट तैयार कर के मैडिकल रिपोर्ट सहित हाईकोर्ट भेज दी. पुलिस के चंगुल से छूटने के बाद यशपाल सिंह ने एक बार फिर पटियाला की सिविल कोर्ट में मैडम पवलीन कौर की अदालत में मुकदमा दायर कर दिया. इस मुकदमे में भी डीएनए टेस्ट की मांग की गई थी.

दूसरी ओर परमिंदर कौर ने भी सरदार हरपाल सिंह की अदालत में डोमेस्टिक वायलेंस का मुकदमा दायर कर दिया था. मुकदमेबाजी करते हुए यशपाल सिंह सब की हत्याओं की योजनाएं भी बना रहा था. वह लैपटौप पर हौलीवुड की फिल्में देखता और हत्याएं करने की तकनीकें खोजता रहता. बेटी हरमीत की हत्या के लिए उस ने इंटरनेट के माध्यम से एक दवा ढूंढ़ निकाली थी, जो धतूरे के बीजों से तैयार की जाती थी.

लेकिन तमाम कोशिश के बाद भी उसे वह दवा नहीं मिली. चाय की पत्ती से निकोटिन जैसा जहर बनाने का आइडिया भी उस ने इंटरनेट से ढूंढ़ निकाला. लेकिन इस में भी उसे सफलता नहीं मिली. 10 अक्तूबर, 2013 को मैडम पवलीन कौर के सुझाव पर यशपाल सिंह की बेटी हरमीत कौर उस के साथ रहने आ गई तो उस ने उस की हत्या की कोशिश और तेज कर दी. लेकिन वह उस की हत्या कुछ इस तरह से करना चाहता था कि उस पर किसी तरह की आंच न आए. इस के लिए वह इसी तरह की फिल्में देखने लगा.

22 फरवरी, 2014 की सुबह बैंक जाने के पहले रात भर पढ़ाई करने के बाद हरमीत कौर गहरी नींद सो रही थी, तभी मुर्गा काटने वाला छुरा ले कर यशपाल उस के कमरे में जा पहुंचा. हौलीवुड की फिल्म से लिए आइडिया के अनुसार उस ने हरमीत की गरदन की मुख्य नस एक ही झटके से काट दी. उसी बीच दर्द से तड़प कर हरमीत ने उसे पकड़ना चाहा तो उस के कुछ बाल उस की मुट्ठी में आ गए थे. दूसरी नस भी उस ने उसी तरह फुरती से काट दी थी. इस के बाद उस छुरे को गरदन में फंसा छोड़ कर वह कमरे में ताला बंद कर के बैंक चला गया.

दोपहर बाद बैंक से लौट कर कोतवाली गया, जहां कोतवाली प्रभारी जसविंदर सिंह टिवाणा को मनगढं़त कहानी सुना दी. लेकिन पुलिस ने घटनास्थल के निरीक्षण में ही ताड़ लिया था कि यह हत्या यशपाल के अलावा किसी और ने नहीं की है.

कोतवाली पुलिस ने यशपाल को सक्षम अदालत में पेश कर के सुबूत जुटाने के लिए 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड के दौरान यशपाल सिंह इंसपेक्टर जसविंदर सिंह टिवाणा से कहता रहा कि वह जितना चाहें पैसे ले लें, लेकिन उसे 2 दिनों के लिए छोड़ दें, ताकि वह अपने अन्य दुश्मनों को भी सबक सिखा सके. क्योंकि एक हत्या में भी उतनी ही सजा होगी, जितनी 5 हत्याओं में.

हरमीत कौर की हत्या की एक वजह यह भी थी कि वह 1 मार्च, 2014 को 18 वर्ष की हो रही थी. यशपाल उस पर यह दबाव डाल रहा था कि वह उस की बहन के पास कनाडा चली जाए. उस का सोचना था कि बालिग होने पर वह अपनी मरजी की मालिक हो जाएगी तो उसे छोड़ कर अपनी मां के पास जाएगी.

मां के साथ रहते हुए वह भी उसी की तरह चरित्रहीन हो जाएगी. जबकि हरमीत कौर चाहती थी कि किसी तरह मम्मीपापा में सुलह हो जाए तो पूरा परिवार एक साथ रह सके. उस की अच्छी सोच ने उसे मौत की नींद सुला दिया तो बाप की गंदी सोच ने उसे जेल पहुंचा दिया.

रिमांड अवधि समाप्त होने पर कोतवाली पुलिस ने यशपाल को एक बार फिर अदालत में पेश किया, जहां अदालत के आदेश पर उसे जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

साइको डैड : शक के फितूर में की बेटी की हत्या – भाग 2

जांच में यह साफ हो गया था कि वहां कोई बाहरी आदमी नहीं आ सकता था, क्योंकि सभी दरवाजे ज्यों के त्यों बंद पाए गए थे. यशपाल सिंह ने भी बताया था कि वह घर आया तो हरमीत का दरवाजा अंदर से बंद था. उसी ने दरवाजा खोला था.

बहरहाल, पुलिस को यशपाल पर ही संदेह हो गया था. लेकिन पुलिस ने उसे गिरफ्तार नहीं किया. उस के बारे में पता करते हुए उस पर नजर रखी जाने लगी.

पुलिस का संदेह तब और बढ़ गया, जब यशपाल सिंह ने बेटी का अंतिम संस्कार करने से मना कर दिया. जबकि उस के पास किसी चीज की कमी नहीं थी और हरमीत उसी के साथ रहते हुए मारी गई थी. पोस्टमार्टम के बाद हरमीत का अंतिम संस्कार उस की मां ने भाई परमजीत सिंह सिद्धू की मदद से किया था.

पूछताछ के दौरान पुलिस ने गौर किया था कि यशपाल से जब भी कोई सवाल पूछा जाता था, वह ठीक से जवाब देने के बजाय नजरें झुका कर बहस करने लगता था. ऐसी ही बातों से पुलिस को लगा कि हरमीत की हत्या किसी और ने नहीं, यशपाल सिंह ने ही की है तो उसे मनोवैज्ञानिक तरीके से घेरा गया.

फिर पुलिस द्वारा पूछे गए सवालों से वह इस तरह भावुक हुआ कि उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इस के बाद उस ने अपनी बेटी हरमीत कौर की हत्या की जो कहानी सुनाई, सुनने वाले दंग रह गए. सनक में एक बाप इस तरह भी दरिंदा हो सकता है, ऐसा उन्होंने पहली बार देखा था.

यशपाल सिंह शुरू से ही ऐसा नहीं था. कभी वह भी अपनी बीवीबच्चों से बहुत प्यार करता था. बीवी बैंक में मैनेजर थी तो वह खुद भी बैंक में ही असिस्टेंट मैनेजर था. सुंदर से 2 बच्चे थे, जो अच्छी शिक्षा ग्रहण कर रहे थे. रुपएपैसे, मानप्रतिष्ठा की भी कमी नहीं थी.

लगभग 7 साल पहले यशपाल ने एक फिल्म देखी, जो अवैध संबंधों पर बनी थी. पतिपत्नी अलगअलग कंपनियों में नौकरी करते थे. एक साथ काम करने पर न चाहते हुए भी महिलाओं को सहकर्मियों से शिष्टाचारवश घुलमिल कर रहना पड़ता है. ऐसे में फिल्म के हीरो को संदेह हो गया था कि उस की पत्नी का अपने सहकर्मी पुरुषों से अवैध संबंध है.

उस फिल्म ने यशपाल के दिलोदिमाग पर ऐसा असर छोड़ा कि उसे भी पत्नी पर संदेह होने लगा. वह खुद को फिल्म का हीरो और पत्नी को हीरोइन मान बैठा. फिर क्या था, हंसताखेलता, पत्नीबच्चों से प्यार करने वाला यशपाल उसी फिल्म के बारे में सोचसोच कर धीरेधीरे मानसिक रोगी हो गया. रातदिन वह परमिंदर कौर के बारे में ही सोचता रहता.

इस के बाद घर का माहौल बिगड़ने लगा. जहां खुशियां छाई रहती थीं, वहां रात दिन क्लेश रहने लगा. यशपाल को परमिंदर कौर चरित्रहीन लगने लगी तो बात मारपीट तक पहुंच गई. यशपाल को लगने लगा था कि दोनों बच्चे उस के नही, परमिंदर के किसी प्रेमी के हैं.

यशपाल सिंह के मन का वहम बढ़ता गया और एक दिन इसी बात को मुद्दा बना कर उस ने परमिंदर कौर को घर से निकाल दिया. पति ने घर से निकाल दिया तो वह अपने भाई परमजीत सिंह सिद्धू के घर रहने चली गई.  दोनों बच्चे भी उसी के साथ चले गए. परमजीत सिंह ग्रामीण बैंक मानसा ब्रांच के मैनेजर थे. यह 7 साल पहले की बात है.

पटियाला के रहने वाले सरदार कावर सिंह सिद्धू की 2 संतानें थीं, बेटा परमजीत सिंह सिद्धू और बेटी परमिंदर कौर. वह प्रशासनिक अधिकारी थे. 9 अप्रैल, 1993 को उन्होंने अपनी बेटी परमिंदर कौर का विवाह पटियाला के ही रहने वाले स्व. अमर सिंह के बेटे यशपाल सिंह के साथ किया था.

अमर सिंह की 4 संतानें थीं. 2 बेटे और 2 बेटियां. शादी के बाद दोनों बेटियों में से एक कनाडा चली गई थी तो दूसरी आस्ट्रेलिया. बड़े बेटे की मौत हो गई थी. यहां सिर्फ यशपाल रह गया था. जबकि उस के ज्यादातर रिश्तेदार विदेशों में रहते थे.

यशपाल और परमिंदर कौर सुखपूर्वक रह रहे थे. परमिंदर कौर बहुत ही साधारण, धार्मिक और संकोची स्वभाव की थीं. दोनों 2 बच्चों के मातापिता बन गए थे. बेटी हरमीत कौर इस समय आईआईटी की तैयारी कर रही थी, जबकि बेटा रिपुदमन सिंह मैट्रिक में पढ़ रहा था.

यशपाल सिंह ने परमिंदर को घर से निकाला तो वह अपने भाई परमजीत सिंह सिद्धू के घर रहने चली गई थी. इस से यशपाल का संदेह और बढ़ गया था. उसे लगा कि परमिंदर का चक्कर जरूर किसी से है, तभी वह अपने भाई के घर रहने चली गई है. दरअसल परमिंदर को घर से निकालने के बाद वह सनक में भूल गया था कि उसी ने उसे घर से निकाला था. चिढ़ कर उस ने अपने साले के खिलाफ थाने में तो शिकायत दर्ज कराई ही, अदालत में भी मुकदमा दायर कर दिया था.

जब उस की इन शिकायतों पर कोई काररवाई नहीं हुई तो नाराज हो कर उस ने पुलिस अधिकारियों, लोअर कोर्ट, सेशन कोर्ट के जजों को ही नहीं, पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को भी अंजाम भुगतने के धमकी भरे पत्र लिखने शुरू कर दिए थे.

उसी बीच गुस्सा शांत होने पर परमिंदर कौर पति को समझाने की गरज से घर लौट आई थी. लेकिन यशपाल पत्नी, साले, पुलिस प्रशासन और न्यायालय से भड़का हुआ था, इसलिए वह इन सब को सबक सिखाना चाहता था. पत्नी वापस आ गई तो उस ने सोचा, पहले इसे ही खत्म कर देते हैं. इस के लिए कहीं से वह बम टाइमर ले आया और 4 गैस सिलेंडरों के साथ जोड़ कर टाइम सैट कर दिया. इस के बाद खुद बाजार चला गया. उस ने सोचा था कि विस्फोट होने पर मकान के साथ बीवीबच्चे भी उड़ जाएंगे. लेकिन संयोग से ऐसा कुछ नहीं हुआ.

विस्फोट क्यों नहीं हुआ, लौट कर यशपाल चैक करने लगा तो छेड़छाड़ में सिलेंडर में आग लग गई, जिस में वह झुलस गया. पड़ोसियों ने आ कर किसी तरह आग पर काबू पाया और उसे ले जा कर अस्पताल में भरती कराया. इस तरह पत्नी को ऊपर पहुंचाने के चक्कर में वह स्वयं अस्पताल पहुंच गया. अस्पताल से लौटने के बाद उस ने फिर से परमिंदर को ठिकाने लगाने की कोशिश शुरू कर दी. परमिंदर को जब पता चला कि यशपाल उसे मारने की कोशिश कर रहा है तो वह फिर से उसे छोड़ कर चली गई.

4 लाख में खरीदी मौत

शक का नासूर : फोन ने घोला जिंदगी में जहर

साइको डैड : शक के फितूर में की बेटी की हत्या – भाग 1

दोपहर बाद बैंक की छुट्टी होने पर पौने 3 बजे के आसपास यशपाल सिंह जगदीशपुरा स्थित अपने घर पहुंचे तो जेब  से चाबी निकाल कर कमरे का ताला खोला और अंदर जा कर हाथ में लिया सामान टेबल पर रख दिया. इस के बाद उन्होंने बेटी के कमरे की ओर देखा. दरवाजा बंद था, इसलिए वह होठों ही होठों में बड़बड़ाए, ‘‘हरमीत अभी तक सो रही है?’’

हरमीत को आवाज देते हुए उन्होंने दरवाजे को धकेला तो वह खुल गया. कमरे में अंधेरा था. लाइट जलाने के बाद जैसे ही उन की नजर बेड पर पड़ी, भय से उन का शरीर कांप उठा और मुंह से चीख निकल गई. बेड पर उन की 17 वर्षीया बेटी हरमीत कौर की खून से लथपथ लाश पड़ी थी.

यशपाल सिंह भाग कर बेड के पास पहुंचे और हरमीत की नब्ज टटोली कि शायद वह जिंदा हो लेकिन हरमीत मर चुकी थी. उस की गरदन आधी से ज्यादा कटी हुई थी, बाकी में बीचोबीच एक चाकू घुसा हुआ था. गरदन की कटी नसें स्पष्ट दिखाई दे रही थीं. किसी ने बड़ी बेरहमी से उस की हत्या कर दी थी.

यशपाल सिंह लाश के पास बैठ कर रोने लगे. काफी देर तक रोने के बाद मन थोड़ा हलका हुआ तो उन्हें लगा कि इस तरह रोने से काम नहीं चलेगा. इस हत्या की सूचना पुलिस को देनी चाहिए. वह उठे और ताला लगा कर थाना कोतवाली पटियाला की ओर चल पड़े.

कोतवाली पहुंच कर यशपाल सिंह ने बेटी की हत्या की सूचना इंसपेक्टर जसविंदर सिंह टिवाणा को दी तो वह हैरान रह गए. क्योंकि यशपाल सिंह भीड़भाड़ वाले जिस इलाके में रहते थे, वहां दिनदहाड़े इस तरह घर में घुस कर हत्या करना आसान नहीं था.

बहरहाल, एएसआई प्रीतपाल सिंह और हेडकांस्टेबल कुलदीप सिंह को साथ ले कर इंसपेक्टर जसविंदर सिंह यशपाल सिंह के घर जा पहुंचे. वह एक शानदार कोठी थी. बरामदे में पहुंच कर इंसपेक्टर जसविंदर सिंह ने पूछा, ‘‘लाश कहां है?’’

‘‘जी, उधर कमरे में.’’ कह कर यशपाल ताला खोल कर पुलिस वालों को उस कमरे में ले गए, जहां बेड पर हरमीत कौर की लाश पड़ी थी.

मृतका के सिरहाने बेड पर कापीकिताबों का ढेर लगा था. एक किताब हाथ के पास पड़ी थी. शायद वह पढ़ते पढ़ते सो गई थी. सोते हुए में ही उस की हत्या की गई थी. उस का गला सामने की ओर से काटा गया था. चाकू अभी भी उस की गरदन में घुसा था. पुलिस ने देखा, बेड के आसपास कहीं खून नहीं था. चित्त पड़ी होने की वजह से शायद गरदन से बहा खून कपड़ों में समा गया था.

इंसपेक्टर जसविंदर सिंह टिवाणा ने इस हत्या की सूचना पुलिस अधीक्षक हरदयाल सिंह मान, डीएसपी (सिटी) केसर सिंह को देने के साथ क्राइम टीम को फोन कर के घटनास्थल पर बुला लिया था.

लाश का निरीक्षण करते समय इंसपेक्टर जसविंदर सिंह को मृतका की दाईं मुट्ठी में कुछ बाल दिखाई दिए. इस का मतलब मृतका ने हत्यारे से संघर्ष किया था. लेकिन बिस्तर पर ऐसे कोई चिह्न नहीं दिखाई दे रहे थे. उन्होंने बेड पर रखी कापीकिताबों के ढेर में से एक नोटबुक उठा कर देखी तो उस के प्रथम पृष्ठ पर लिखा था, ‘लड़ना नहीं, आपस में प्यार से मिल कर रहना.’

इस के बाद उन्होंने अन्य नोटबुक उठा कर देखीं तो यही लाइन लगभग सभी कापी किताबों में लिखी थी. मृतका ने अपनी सभी कापी किताबों में यह लाइन क्यों लिखी थी, यह इंसपेक्टर जसविंदर सिंह की समझ में नहीं आया?

क्राइम टीम ने अपना काम कर लिया तो घटनास्थल की अपनी सारी काररवाई निपटा कर पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए सरकारी अस्पताल भिजवा दिया. इस के बाद थाने आ कर मृतका हरमीत कौर के पिता यशपाल सिंह की ओर से हत्या का यह मुकदमा अज्ञात के खिलाफ दर्ज कर लिया गया. यह 22 फरवरी, 2014 की बात है.

पूछताछ में यशपाल सिंह ने घटना के बारे में जो बताया था, पुलिस को उस में तमाम पेंच नजर आ रहे थे. उन्होंने बताया था कि जुलाई, 2008 से उन का अपनी पत्नी परमिंदर कौर से झगड़ा चल रहा था. वह अलग रहती थी. उस ने तलाक ले लिया था. उन की 2 संतानें थीं, 18 वर्षीया बेटी हरमीत कौर, जिस की हत्या हो चुकी थी और 16 वर्षीय बेटा रिपुदमन सिंह. पहले दोनों बच्चे मां के साथ ही रहते थे.

अक्तूबर, 2013 में अदालत के सुझाव पर बेटी हरमीत कौर उन के पास रहने आ गई थी. लेकिन अदालत ने हरमीत को पिता के साथ रहने का कोई लिखित आदेश नहीं दिया था. बस सुझाव दिया था. इसी सुझाव पर मांबाप का झगड़ा खत्म करने की गरज से हरमीत पिता के पास रहने आ गई थी.

यशपाल सिंह मालवा ग्रामीण बैंक बुग्धाकलां में असिस्टेंट मैनेजर थे. उन की पत्नी परमिंदर कौर भी माल रोड, पटियाला में कोऔपरेटिव बैंक में मैनेजर थीं. मृतका हरमीत कौर आईआईटी की तैयारी कर रही थी, इसलिए रातरात भर जाग कर पढ़ती थी.

जगदीशपुरा कालोनी वाली जिस कोठी में यशपाल सिंह बेटी हरमीत कौर के साथ रह रहे थे, वह उन के बहनोई रणजीत सिंह चहल की थी. चूंकि वह परिवार के साथ कनाडा में रहते थे, इसलिए उन्होंने यह कोठी यशपाल सिंह को देखभाल के लिए सौंप रखी थी. पत्नी से मनमुटाव होने के बाद गुरुनानक नगर की टैंक वाली गली की अपनी कोठी छोड़ कर वह इसी कोठी में रहने आ गए थे. जबकि उन की पत्नी परमिंदर कौर उसी गली में किराए पर रह रही थीं.

पूछताछ में यशपाल ने पुलिस को बताया था कि सुबह जब वह बैंक जाने के लिए घर से निकले थे तो हरमीत सो रही थी. सामने वाले दोनों कमरों के बीच एक दरवाजा था. एक कमरे में हरमीत सोती थी और दूसरे में वह खुद सोते थे. हरमीत बाहर वाला दरवाजा अंदर से बंद कर लेती थी. बीच वाला दरवाजा खुला रहता था. सुबह जाते समय यशपाल अपने कमरे के दरवाजे पर ताला लगा देते थे. हरमीत सो कर उठती थी तो अपना दरवाजा खोल कर बरामदे में आ जाती थी और पिता के कमरे का ताला खोल देती थी.

दिन के 11 बजे के बाद साफसफाई वाली आती थी. उस समय तक हरमीत जाग गई होती थी. लेकिन सफाई वाली के अनुसार उस दिन वह काम पर आई तो हरमीत सो कर नहीं उठी थी.

नफरत की गोली

अवैध संबंधों में बेटी की हत्या

दादी के जिस कमरे में अभिरोज सोया करती थी, उसी कमरे में ज्योति ने पहले तकिए से अभिरोजप्रीत का गला दबा दिया. जब वह मरणासन्न अवस्था में हो गई तो उस ने रसोई से नमक कूटने वाली वजनी चीज से उस के सिर, मुंह, पांव, हाथ और अंगुलियों पर वार किए.

उस ने उस बच्ची के हाथों और दोनों पांवों को भी तोड़ दिया. जब अभिरोज की मृत्यु हो गई तो उस की लाश को बड़ी बाल्टी में डाल कर स्कूल के पास एक वीरान छप्पर के अंदर फेंक आई. हत्या की इस खबर से गांव रामपुराफूल में सनसनी फैल गई.

पंजाब के अमृतसर के गांव रामपुराफूल से 15 मई, 2023 की रात 10 बजे अमृतसर पुलिस को सूचना मिली कि उन के गांव की 7 साल की अभिरोजप्रीत कौर, जो गांव के ही सरकारी स्कूल में कक्षा 2 की छात्रा थी, 15 मई, 2023 की शाम 4 बजे ट्यूशन पढऩे घर से निकली थी, लेकिन वह अपनी ट्यूशन टीचर के पास नहीं पहुंची. वह रास्ते में ही गायब हो गई थी. जब रात के 10 बजे तक भी उस का कोई पता नहीं चला तो उस के घर वालों ने थाने में आ कर उस की गुमशुदगी दर्ज करा दी.

गुमशुदगी दर्ज हो जाने के बाद पुलिस हरकत में आ गई. पुलिस ने गांव में घरों के बाहर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज चैक की तो उस में एक नया ऐंगल सामने आया. पुलिस को पता चला कि एक आदमी बाइक चला रहा था. बीच में एक बच्ची बैठी थी और बच्ची के पीछे एक औरत थी, जिस ने बच्ची को पकड़ रखा था.

इस बीच पुलिस ने अगवा हुई बच्ची के बारे में और जानकारी जुटानी शुरू की तो पता चला कि अगवा हुई बच्ची अभिरोजप्रीत कौर के पिता का नाम अजीत सिंह था. अजीत सिंह ने 2 विवाह किए थे. उन का पहला विवाह हरजीत कौर से हुआ था. उन की एक बेटी हुई, जिस का नाम अभिजोतप्रीत कौर रखा गया था.

शादी के 2 साल के बाद दोनों में आपस में मनमुटाव होने लगा. दिन प्रतिदिन दोनों के आपसी संबंध बद से बदतर होते जा रहे थे. तब दोनों ने आपसी रजामंदी से संबंध विच्छेद कर दिए. अजीत सिंह ने अपनी पहली पत्नी हरजीत कौर को तलाक दे दिया और बेटी अपने पास रख ली.

उस के बाद अजीत सिंह के घर वालों ने अजीत का दूसरा विवाह ज्योति के साथ कर दिया. सब ने यही सोचा था कि बेटी अभिजोतप्रीत कौर को एक नई मां मिल जाएगी और अजीत सिंह का जीवन पटरी पर आ जाएगा. ज्योति की एक बेटी हुई जो अभी 3 माह की थी.

मां पर हुआ बेटी की हत्या का शक

पुलिस छानबीन में जब सीसीटीवी फुटेज में एक आदमी और औरत के बीच एक छोटी बच्ची दिखाई दी तो सभी का शक अजीत सिंह की पहली पत्नी हरजीत कौर पर गया, क्योंकि अभिजीतप्रीत कौर उस की बेटी थी.

पुलिस पूछताछ में यह सामने आया कि जब से अभिजोतप्रीत कौर घर से गायब हुई थी, इस की खबर उस की सगी मां को मिली थी तो वह भी बहुत चिंतित थी. पुलिस ने हरजीत कौर से पूछताछ की तो वह निर्दोष पाई गई.

इधर 7 वर्षीय अभिजोतप्रीत कौर के अचानक गायब होने के बाद यह मामला सोशल मीडिया में सुर्खियों में छाता जा रहा था. अभिजोतप्रीत कौर की सौतेली मां बार बार मीडिया से अपनी बेटी को खोजने की रोरो कर गुहार लगा रही थी. ग्रामीणों और जनप्रतिनिधियों की ओर से पुलिस पर दबाव बनाया जा रहा था. पुलिस की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठाए जाने लगे थे.

इस के बाद पुलिस इस केस में पूरी मुस्तैदी से जुट गई और अपने मुखबिरों को भी काम पर लगा दिया. इधर अभिजोतप्रीत कौर की सौतेली मां ज्योति उस की फोटो मीडिया के सामने प्रस्तुत कर के रोरो कर अपनी बेटी को तलाशने का गुहार लगा रही थी.

सीसीटीवी कैमरे से पुलिस के हाथ लगा एक अहम सुराग

पुलिस ने पूरे गांव को सील कर के घरघर सघन तलाशी का अभियान चलाया. पूरे शहर भर में अभिजोत प्रीत कौर को ढूंढा गया, मगर पुलिस के पास हाथ अब तक कोई भी सुराग नहीं लग पाया था. लेकिन बाद में पुलिस के हाथ एक अहम सुराग लग गया.

ज्योति के घर के सामने लगे सीसीटीवी कैमरे में सौतेली मां ज्योति एक बाल्टी में बच्ची के शव को ले जाते हुए दिखाई दी. उस के करीब 20 मिनट बाद वह खाली बाल्टी ले कर अपने घर पर आती दिखाई दी. सीसीटीवी फुटेज देखने के के बाद यह स्पष्ट हो गया था कि अभिजोतप्रीत कौर के गायब होने में उस की सौतेली मां की भूमिका है.

कत्ल का सबूत हाथ में आते ही अमृतसर पुलिस ने हत्यारी मां ज्योति को हिरासत में ले कर उस से कड़ी पूछताछ की तो सारा मामला उजागर हो गया. उस ने अभिजोतप्रीत कौर की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली. पुलिस ने उस की निशानदेही पर गांव के स्कूल के पास से बच्ची की लाश बरामद कर ली. इस के बाद एसएसपी सतिंदर सिंह ने प्रैस कौन्फ्रैंस कर पत्रकारों को अभिजोतप्रीत की हत्या का खुलासा कर दिया.

सौतेली मां देती थी यातनाएं

मृतका अभिरोजप्रीत कौर की नृशंस हत्या की खबर जब लोगों के सामने आई तो लोगों के दिल दहल उठे थे. इस संबंध में जानकारी देते हुए मृतका अभिरोजप्रीत कौर की ट्यूशन टीचर जगमोहन कौर ने बताया कि अभिरोजप्रीत कौर 15 मई को उस के पास ट्ïयूशन के लिए नहीं आई थी. वह गांव के सरकारी स्कूल में कक्षा 2 में पढ़ती थी. पढ़ाई में वह काफी होशियार थी और स्कूल की हर गतिविधि में हमेशा सब से आगे रहती थी.

जगमोहन कौर ने बताया कि अभिरोजप्रीत कौर की सगी मां उसे छोड़ कर चली गई तो उस के पिता अजीत सिंह ने दूसरा विवाह ज्योति के साथ कर लिया था. इस के बाद तो उस मासूम बच्ची के ऊपर दुखों और यातनाओं का पहाड़ ही टूट पड़ा था.

सौतेली मां ज्योति उसे यातनाएं दिया करती थी. इस के बारे में जब अभिरोजप्रीत कौर की दादी को पता चला तो वह हर रोज उसे स्कूल में छोडऩे और छुट्टी के वक्त घर लाया करती थीं. दादी का उस के प्रति काफी लगाव था. दादी स्कूल में दिन में भी उसे देखने आती रहती थी. उस की हर बात का, उस के हर सामान, कौपीकिताब, ड्रेस, खानेपीने का दादी विशेष ख्याल रखती थीं.

इस बीच दादी की तबीयत काफी खराब हो गई और उन्हें अस्पताल में भरती कराना पड़ा. क्योंकि उन के स्टेंट पडऩे थे, इसलिए वह पिछले 10 दिनों से आईसीयू में वेंटिलेटर पर थीं. इसी बात का फायदा उठाते हुए सौतेली मां ज्योति ने अभिरोजप्रीत कौर की हत्या कर डाली.

बेटी की मौत पर गमगीन पिता अजीत सिंह को गहरा सदमा लगा. उन्होंने बताया कि यह सोच कर ज्योति से विवाह किया था कि बेटी को भी एक मां मिल जाएगी, जो उस का सही तरह से लालनपालन कर सकेगी. लेकिन ज्योति ने शुरू से ही अभिरोजप्रीत को सच्चा प्यार नहीं दिया. बातबात पर उस से वह नाराज हो जाया करती थी. हर समय वह उसे डांटतीफटकारती रहती थी, इसलिए मेरी बेटी अपनी दादी के कमरे में ही सोया करती थी. दादी उसे बहुत प्यार करती थीं.

मां अवैध संबंधों पर डालना चाहती थी परदा

पुलिस द्वारा पूछताछ करने पर पता चला कि ज्योति की मौसी की बेटी प्रिया (काल्पनिक नाम) गांव के किसी युवक के साथ प्रेम करती थी. उन दोनों प्रेमियों को अभिरोजप्रीत ने एक दिन आपत्तिजनक हालत में देख लिया था. तब बहन ने यह बात ज्योति को बता दी थी. इस पर ज्योति अभिरोज को यह बात किसी को न बताने की हर समय चेतावनी देती रहती थी.

बाद में ज्योति ने यह सोचा कि कहीं अभिरोजप्रीत ने अवैध संबंधों की यह बात घर वालों या गांव के किसी व्यक्ति को बता दी तो उस की बहन और उस के परिवार की सारे गांव में बदनामी हो सकती है. इसलिए उस ने अभिरोजप्रीत कौर का मर्डर करने का फैसला कर लिया.

पता चला कि दादी के जिस कमरे में अभिरोज सोया करती थी, उसी कमरे में ज्योति ने पहले तकिए से अभिरोजप्रीत का गला दबा दिया. जब वह मरणासन्न अवस्था में हो गई तो उस ने रसोई से नमक कूटने वाली वजन चीज से उस के सिर, मुंह, पांव, हाथ और अंगुलियों पर वार किए.

उस ने उस बच्ची के हाथों और दोनों पांवों को भी तोड़ दिया. जब अभिरोज की मृत्यु हो गई तो उस की लाश को बड़ी बाल्टी में डाल कर स्कूल के पास एक वीरान छप्पर के अंदर फेंक आई. हत्या की इस खबर से गांव रामपुराफूल में सनसनी फैल गई.

ज्योति से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उसे कोर्ट में पश कर जेल भेज दिया. ज्योति की मौसेरी बहन का हत्या में कोई सहयोग था या नहीं, इस बारे में पुलिस की जांच की जारी थी.

—कथा पुलिस सूत्रों व जनचर्चा पर आधारित है.