उस रात की सच्चाई : प्यार करने की मिली सजा – भाग 2

सच्चाई का पता चलने पर पूरा गांव हैरान रह गया था. आइए अब जानते हैं कि उस रात ऐसा क्या हुआ था कि पुलिस वाले ही नहीं, अशोक सिंह सिकरवार के समर्थन में आए लोग भी हैरान थे. बंधक बनाए गए बदमाश यानी शेर सिंह ने पुलिस को जो बताया था, उस के अनुसार यह घटना कुछ इस प्रकार थी.

उत्तर प्रदेश की ताजनगरी आगरा से यही कोई 30 किलोमीटर दूरी पर बसा है गांव चौगान. ठाकुर बाहुल्य इस गांव के किसान, जिन के पास अपने खुद के खेत थे, यमुना एक्सपे्रसवे का निर्माण होने से उन में से कुछ करोड़पति बन गए हैं. इस की वजह यह है कि 165 किलोमीटर लंबा यमुना एक्सप्रेसवे, जो आगरा से ग्रेटर नोएडा तक बना है, में जिन गांवों की जमीनों का अधिग्रहण किया गया था, उन्हीं गावों में एक चौगान भी था.

यमुना एक्सप्रेस वे के लिए किसानों की जमीन का अधिग्रहण किया जाने लगा था तो किसानों ने मिलने वाले मुआवजे के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया था. परिणामस्वरूप उन्हें मुंहमांगा मुआवजा मिला था, जिस से जिन किसानों की ज्यादा जमीनें गईं वे रातोंरात करोड़पति बन गए. ऐसे ही लोगों में चौगान गांव के भी 2 परिवार थे. उन में से एक था ठाकुर रामदयाल सिंह सिकरवार का परिवार तो दूसरा था अमर सिंह का. अमर सिंह की लगभग 20 साल पहले मौत हो चुकी थी. वर्तमान में उस के 4 बेटे थे, जो करोड़पति बन गए थे.

वैसे तो अशोक सिंह और अमर सिंह के घरों के बीच मात्र 100 कदम की दूरी रही होगी, लेकिन उन के बीच कोई आपसी सामंजस्य नहीं था. इस की वजह यह थी कि रामदयाल सिंह सिकरवार जहां ठाकुर थे, वहीं अमर सिंह दलित. शायद इसीलिए दोनों परिवार रहते भले ही आसपास थे, लेकिन उन में दुआसलाम तक नहीं थी.

अमर सिंह अपने पीछे 4 बेटों और 2 बेटियों का भरापूरा परिवार छोड़ गया था. उस के बेटों में शेर सिंह सब से छोटा था. पढ़ाई में तो वह ठीकठाक था ही, खेलकूद में भी अव्वल था. वह क्रिकेट बहुत अच्छा खेलता था, इसीलिए कालेज की क्रिकेट टीम का वह कप्तान था.

जिस विमला देवी इंटर कालेज में वह पढता था, उसी कालेज में उस के पड़ोस में रहने वाले अशोक सिंह सिकरवार की बेटी रुचि उर्फ रश्मि भी पढ़ती थी. उसे भी खेलकूद में रुचि थी, इसलिए वह भी स्कूल के खेलों में भाग लेती रहती थी. भले ही रुचि और शेर सिंह के परिवारों में कोई सामंजस्य नहीं था, लेकिन एक ही कालेज में पढ़ने की वजह से शेर सिंह और रुचि में पटने लगी थी.

साथ आनेजाने और खेल के मैदान में मिलते रहने की वजह से रुचि और शेर सिंह के बीच कब प्यार पनप उठा, उन्हें पता ही नहीं चला. हंसीमजाक और छेड़छाड़ में उन का यह प्यार बढ़ता ही गया. जब उन्हें लगा कि मिलने के दौरान वे पूरी बातें नहीं कर पाते तो उन्होंने बातें करने के लिए मोबाइल फोन का उपयोग करना शुरू कर दिया. फिर तो उन के बीच रात को लंबीलंबी बातें होने लगीं. शेर सिंह के पास अपनी मोटरसाइकिल थी, इसलिए रुचि कभीकभार उस की मोटरसाइकिल पर बैठ कर उस के साथ आगरा घूमने जाने लगी.

ऐसे में ही रुचि और शेर सिंह का प्यार शारीरिक संबंध में बदल गया. दोनों घर के बाहर तो मिलते ही थे, मौका देख कर रुचि शेर सिंह को अपने घर भी बुला लेती थी. इस में मोबाइल फोन उन की पूरी मदद करता था. रुचि जब भी घर में अकेली होती, फोन कर के शेर सिंह को बुला लेती.

रुचि की दोनों बहनें एक ही कमरे में एक साथ सोती थीं. जबकि रुचि पढ़ाई के बहाने अलग कमरे में अकेली ही सोती थी. क्योंकि अकेली होने की वजह से रात में उसे शेर सिंह से बातें करने में कोई परेशानी नहीं होती थी. एक समय ऐसा आ गया रुचि रात को घर वालों की उपस्थिति में ही रात को शेर सिंह को अपने घर बुलाने लगी.

उसी बीच गांव के किसी आदमी ने रुचि के पिता अशोक सिंह सिकरवार को बताया कि उस ने उन की बड़ी बेटी रुचि को गांव के ही शेर सिंह की मोटरसाइकिल पर बैठ कर शहर में घूमते देखा है. अशोक सिंह के लिए यह बहुत बड़ा झटका था. जिस घरपरिवार से कोई राहरीति न हो, उस घर के लड़के के साथ बेटी के घूमने का मतलब वह तुरंत समझ गए उन की बेटी गांव के ही दलित लड़के के साथ घूम रही है. यह सुन कर उन का खून खौल उठा.

अशोक सिंह ने तुरंत अपने भाइयों को बुलाया और दरवाजे पर कुर्सियां डाल कर बैठ गए. थोड़ी देर बाद रुचि लौटी तो सिर झुकाए सीधी घर की ओर चली जा रही थी. उस के हावभाव से ही लग रहा था कि वह कोई गलत काम कर के आई है और घर वालों से नजरें छिपा रही है. रुचि घर में घुसती, उस के पहले ही अशोक सिंह ने कहा, ‘‘रुचि, जरा इधर तो आना.’’

रुचि उन के सामने आ कर खड़ी हो गई. जब उस की नजरें पिता से मिलीं तो उस की तो जैसे हलक ही सूख गई.नजरों से ही उस ने भांप लिया कि पिता गुस्से में हैं. वह रुचि से कुछ कहते, उन के भाई ने कहा, ‘‘इसे जाने दो. इस से घर के अंदर चल कर बात करेंगे.’’

रुचि चुपचाप घर चली गई. लेकिन वह समझ गई कि आज का दिन उस के लिए ठीक नहीं है. उस की यह आशंका तब और बढ़ गई, जब उस के घर के अंदर आने के 10 मिनट बाद ही बाहर से शेर सिंह के रोनेचीखने की आवाजें आती उसे सुनाई दीं.

दरअसल शेर सिंह रुचि को गांव के बाहर अपनी मोटरसाइकिल से उतार कर रुक गया था, जिस से गांव वालों को यही लगे कि दोनों आगे पीछे आए हैं. रुचि घर पहुंच गई होगी, यह सोच कर वह अपने घर जाने लगा तो अशोक सिंह ने आवाज दे कर उसे बुला लिया. वह जैसे ही उन के पास पहुंचा, तीनों भाई लाठीडंडा ले कर उस पर पिल पड़े. वह बचाव के लिए चिल्लाता रहा, लेकिन किसी की क्या कहें, उस के भाइयों तक की हिम्मत नहीं पड़ी कि वे उसे बचाने आते.

अशोक सिंह और उन के भाई मारपीट कर थक गए तो उस के भाइयों से कहा कि इसे उठा ले जाओ. भाइयों ने शेर सिंह को घर ला कर इस मारपीट की वजह पूछी तो उस ने सच न बता कर कहा कि वह उधर से गुजर रहा था, तभी अशोक ने उसे रोक लिया और भाइयों के साथ पिटाई करने लगा. शेर सिंह के भाई भी पैसे वाले थे, उन्होंने सच्चाई का पता लगाने के बजाय शेर सिंह को साथ ले जा कर पुलिस चौकी पहुंचे और अशोक सिंह तथा उस के भाइयों के खिलाफ मारपीट की तहरीर दिलवा दी.

पुलिस ने अशोक सिंह को चौकी पर बुलवा कर मारपीट की वजह पूछी तो अशोक सिंह ने जो बताया, उस से शेर सिंह के भाइयों को भी सच्चाई का पता चल गया. सच्चाई पता चलने पर पुलिस ने इस मामले में कोई काररवाई इसलिए नहीं कि गांव की बात है, आपस में मामला सुलझ जाएगा. पुलिस ने कोई काररवाई नहीं की तो शेर सिंह को गुस्सा आ गया. इतनी मारपीट के बाद उसे रुचि से दूर हो जाना चाहिए था. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. शेर सिंह इस मारपीट का बदला रुचि से शारीरिक संबंध बना कर लेने लगा.

रुचि बीएससी सेकेंड ईयर में पढ़ रही थी. जबकि शेर सिंह ने पढ़ाई छोड़ कर छलेसर चौराहे पर जनरल स्टोर की दुकान खोल ली थी. अशोक सिंह ने अपने मकान की छत पर आनेजाने के लिए घर के बाहर से सीढि़यां बनवा रखी थीं. इसलिए उन की छत पर जाना तो आसान था, लेकिन घर के अंदर उतरने की कोई व्यवस्था नहीं थी.

इसलिए शेर सिंह ठंड की रातों में रुचि से मिलने उस के घर जाता था तो बाहर से बनी सीढि़यों से छत पर चढ़ जाता था. नीचे उतरने के लिए रुचि नीचे से साड़ी या रस्सी फेंक देती थी, जिसे आंगन की ओर बनी रेलिंग में बांध कर शेर सिंह नीचे आंगन में उतर आता था. उस के बाद रुचि उसे अपने कमरे में ले कर चली जाती थी.

काम होने के बाद शेर सिंह जिस तरह आता था, उसी तरह वापस चला जाता था. लेकिन यह सब ठंडी की रातों में ही हो पाता था. गर्मी के दिनों में सब बाहर सोते थे, इसलिए इस तरह दोनों का मिलना नहीं हो पाता था.

जेठानी की आशिकी ने बनाया कातिल

उस रात की सच्चाई : प्यार करने की मिली सजा – भाग 1

रात के यही कोई 11 बजे आगरा के थाना एतमादपुर के गांव चौगान से जिला नियंत्रण कक्ष को फोन द्वारा सूचना दी गई कि गांव के  अशोक सिंह के घर हथियारों से लैस कुछ बदमाश लूटपाट के इरादे से घुस आए थे. घर वालों ने बदमाशों से मोर्चा लिया तो बदमाश भाग निकले. लेकिन लूटपाट का विरोध करने की वजह से जातेजाते बदमाशों ने अशोक सिंह की बड़ी बेटी को गोली मार दी है, जिस की तुरंत मौत हो गई है. बाकी बदमाश तो भाग गए लेकिन एक बदमाश को उन लोगों ने बंधक बना लिया है.

खबर सनसनीखेज थी, लिहाजा पुलिस कंट्रोलरूम ने तुरंत इस खबर को पूरे जिले में प्रसारित कर दी.चौगान गांव थाना एतमादपुर के अंतर्गत आता था, इसलिए गश्त पर निकले एतमादपुर के थानाप्रभारी अमित कुमार ने जीप में लगे वायरलेस सेट से जैसे ही लूटपाट के इरादे से की गई हत्या की खबर सुनी, तत्काल चौगान गांव के लिए रवाना हो गए. उस समय उन के साथ 6 सिपाही थे. जीप से ही उन्होंने फोन द्वारा इस घटना की सूचना पुलिस चौकी छलेसर के प्रभारी टोडी सिंह को दे कर चौगान पहुंचने के लिए कह दिया था.

पुलिस को अशोक सिंह का घर ढूंढ़ने में ज्यादा देर नहीं लगी. गोलियों की आवाज और चीखचिल्लाहट से पूरा गांव जाग चुका था. इसलिए गांव में घुसते ही गांव वालों ने पुलिस को अशोक सिंह के घर पहुंचा दिया था. गांव वालों के साथ घर के बाहर खड़े अशोक सिंह अपनी लाइसेंसी रिवाल्वर के साथ पुलिस का इंतजार कर रहे थे. घर के अंदर से रोने की आवाजें आ रही थीं. अशोक सिंह के अन्य भाईभतीजे भी वहां मौजूद थे.

अशोक सिंह के जिस मकान में डकैती पड़ी थी, वह 6-7 कमरों का एकमंजिला मकान था. उन का यह मकान चारों ओर से बंद था, लेकिन छत से हो कर मकान के अंदर आसानी से जाया जा सकता था. क्योंकि छत पर जाने की सीढि़यां बाहर से बनी थीं.

पुलिस मकान के अंदर पहुंची तो देखा कि छत पर आंगन की ओर लगी रेलिंग से बंधी एक साड़ी लटक रही थी. पुलिस को अंदाजा लगाते देर नहीं लगी कि किसी बदमाश के इसी साड़ी के सहारे नीचे आ कर बाकी बदमाशों के आने के लिए दरवाजे की कुंडी खोली होगी.

पूछताछ में अशोक सिंह ने बताया, ‘‘साहब, मैं अपनी पत्नी कमला देवी के साथ अपने कमरे में सो रहा था तो मेरे दोनों बेटे सचिन और विपिन अपनेअपने कमरों में सो रहे थे. एक कमरे में मेरी 2 बेटियां सो रहीं थीं. चूंकि बड़ी बेटी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रही थी, इसलिए वह देर रात तक जाग कर पढ़ाई करती थी. इसी वजह से वह अकेली अलग कमरे मे सोती थी.’’

‘‘रात पौने 11 बजे के आसपास मैं ने बड़ी बेटी रुचि के चीखने की आवाज सुनी तो तुरंत कमरे से बाहर आ गया. वही आवाज सुन कर मेरे बेटे भी अपनेअपने कमरे से बाहर आ गए थे. रुचि के चीखते ही तड़ातड़ गोलियां चली थीं. उस के साथ एक बार फिर रुचि चीखी थी.

गोलियां चलाने वाले मुख्य दरवाजे की ओर भाग रहे थे, क्योंकि वे जान गए थे कि अब उन का मकसद पूरा नहीं होगा. तभी मेरी नजर रुचि पर पड़ी, जो गोलियों से घायल हो कर आंगन में गिरी पड़ी थी. बाकी बदमाश तो भाग गए, लेकिन एक बदमाश नहीं भाग सका. उसे हम ने हथियारों के बल पर कमरे में बंद कर दिया है.’’

मामला काफी गंभीर था. आंगन में एक जवान लड़की की लाश पड़ी थी. उस के शरीर से अभी भी खून बह रहा था. आंगन की ओर दीवारों पर गोलियों के कुछ निशान नजर आ रहे थे. माना गया कि बदमाशों ने अंधाधुंध गोलियां चलाईं होंगी, जिस से कुछ गोलियां दीवारों पर जा लगी थीं.

घटना की सूचना थानाप्रभारी अमित कुमार ने पुलिस अधिकारियों को भी दे दी थी. इसी सूचना के आधार पर डीआईजी विजय सिंह मीणा, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक शलभ माथुर, पुलिस अधीक्षक (ग्रामीण-पश्चिम) बबीता साहू, क्षेत्राधिकारी अवनीश कुमार गांव चौगान पहुंच गए थे. इन अधिकारियों ने भी घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण करने के साथ अशोक सिंह तथा घर के अन्य लोगों से घटना के बारे में पूछताछ की.

बंधक बना बदमाश अभी तक कमरे में बंद था. उस ने अंदर से कुंडी लगा रखी थी. बदमाश के पास कोई भी हथियार हो सकता था. इस स्थिति में पुलिस ने उसे रात में निकालना उचित नहीं समझा, क्योंकि पुलिस का मानना था कि वह अपनी जान बचाने के लिए पुलिस पर भी हमला कर सकता है.

पुलिस ने सुबह तक का इंतजार करना उचित समझा. सवेरा होने पर खिड़की और झरोखों से देख कर यह निश्चित कर लिया गया कि बंधक बनाए गए बदमाश के पास कोई हथियार नहीं है तो पुलिस ने उस से दरवाजा खोलने को कहा. वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की उपस्थिति में जान की भीख मांगते हुए बदमाश ने दरवाजा खोल दिया.

कमरे से निकला बदमाश 24-25 साल का हट्टाकट्टा नौजवान था. बदमाश के बाहर आते ही पुलिस उस के साथियों के नाम पते पूछने लगी तो उस ने रोते हुए कहा, ‘‘साहब, मुझे थाने ले चलो, क्योंकि यहां मेरी जान को खतरा है. थाने में मैं सब कुछ बता दूंगा.

क्षेत्राधिकारी अवनीश कुमार ने बदमाश का मुंह ढंक कर जीप में बैठाया और थानाप्रभारी अमित कुमार की देखरेख में उसे थाना एतमादपुर ले जाने के लिए कहा. इस के बाद अधिकारियों की देखरेख में चौकीप्रभारी टोडी सिंह ने घटनास्थल की काररवाई निपटा कर बदमाशों की गोली का शिकार अशोक सिंह की बेटी रुचि की लाश को पोस्टमार्टम के लिए आगरा के एस.एन. मेडिकल कालेज भिजवा दिया. पुलिस ने घटनास्थल से कारतूसों के खोखे भी कब्जे में ले लिए थे.

इस के बाद वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक शलभ माथुर सहयोगियों के साथ चलने लगे तो उन्होंने अशोक सिंह से थाने चल कर रिपोर्ट लिखवाने को कहा. तब उस ने बड़ी ही लापरवाही से कहा, ‘‘सर, आप चलिए. मैं घर वालों को समझाबुझा कर थोड़ी देर में आता हूं.’’

अशोक सिंह का यह जवाब वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक शलभ माथुर की समझ में नहीं आया. जिस की बेटी को बदमाशों ने मार दिया था और एक बदमाश पकड़ा भी गया था. इस के बावजूद भी वह आदमी मुकदमा दर्ज कराने में हीलाहवाली कर रहा था. वह उसे साथ ले जाना चाहते थे, इसलिए उन्होंने कहा, ‘‘देखो, रिपोर्ट जितनी जल्दी लिख जाएगी, पुलिस उतनी ही जल्दी काररवाई शुरू कर देगी. तुम्हारी बेटी के हत्यारों को पकड़ना भी है. बिना रिपोर्ट लिखे पुलिस कोई भी काररवाई करने से रही. इसलिए जितनी जल्दी हो सके तुम्हें थाने चल कर रिपोर्ट लिखा देनी चाहिए.’’

वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक की इस बात का अशोक सिंह पर कुछ असर पड़ा. उस ने अपने भाइयों, पत्नी और बेटों से कुछ सलाहमशविरा किया और फिर पुलिस के साथ थाने आ गया. उसी के साथ गांव के तमाम अन्य लोग भी उस बदमाश को देखने थाने आ गए थे.

पुलिस ने पहले तो गांव वालों को थाना परिसर से बाहर निकाला. क्योंकि वे बदमाश को सामने लाने की बात कर रहे थे. साथ ही वे यह भी कह रहे थे कि जल्दी रिपोर्ट लिख कर अशोक सिंह को जाने दो. गांव वालों को बाहर निकाल कर वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक शलभ माथुर की उपस्थिति में पकड़े गए बदमाश से उस के साथियों के बारे में पूछा गया तो उस ने जो बताया, उसे सुन कर पुलिस दंग रह गई.

पता चला, पकड़ा गया युवक बदमाश नहीं, उसी गांव का रहने वाला शेर सिंह था. उस ने पुलिस को जो बताया था, उस के अनुसार सारा मामला ही पलट गया था. उस के बताए अनुसार रुचि की हत्या का मुकदमा बदमाशों के बजाय उस के पिता अशोक सिंह सिकरवार तथा उन के बेटों के खिलाफ दर्ज कर के अशोक सिंह को उसी समय गिरफ्तार कर लिया गया था.

जब इस बात की जानकारी थाने आए गांव वालों को हुई तो वे भी हैरान रह गए क्योंकि अभी तक उन्हें ही पता नहीं था कि पकड़ा गया बदमाश कौन था और अशोक सिंह के घर में उस रात क्या हुआ था. दरअसल पुलिस ने कमरे में बंद शेर सिंह को जब बाहर निकाला था, तो उस के मुंह को ढक दिया था, इसलिए गांव वाले उस समय उसे देख नहीं पाए थे.

खुद के बिछाए जाल में

आयशा हत्याकांड : मोहब्बत की सजा मौत

जेठानी की आशिकी ने बनाया कातिल – भाग 3

आखिर एक दिन राजकुमारी ने तय किया कि वह पति को प्यार से समझाने की कोशिश करेगी. उस दिन उस ने अपने पति की पसंद का खाना बनाया. शाम को जब देशराज घर लौटा तो उस ने कहा, ‘‘हाथमुंह धो लो और खाना खा लो. आज मुझे तुम से कुछ बात करनी है.’’

देशराज गुसलखाने में घुस गया. नहाधो कर बाहर आते ही बोला, ‘‘मैं आज खाना नहीं खाऊंगा. मुझे कहीं जाना है.’’

‘‘लेकिन तुम ने यह बात मुझे सुबह तो बताई नहीं. मैं ने जब खाना बना लिया तो तुम खाने से मना कर रहे हो.’’

‘‘बनाया है तो तुम्हीं खा लो.’’ कह कर देशराज घर से बाहर निकल गया. पति की इस उपेक्षा ने राजकुमारी को तोड़ कर रख दिया. वह देर तक रोती रही.

देशराज रात भर घर से बाहर रहा. राजकुमारी चारपाई पर पड़ी करवटें बदतली रही और रोती रही. उसे अपनी बेचारगी का अहसास भी हो रहा था. उसी दौरान दरवाजे पर दस्तक हुई. उस ने कुंडी खोली तो सामने पति खड़ा था. उसे देखते ही वह बोली, ‘‘रात भर भाभी के पास रहे होगे?’’

‘‘हां, मैं वहीं था. अब बता तू क्या कर लेगी मेरा.’’ देशराज ने गुस्से में कहा.

कड़वा सच सुन कर राजकुमारी कुछ न बोली, क्योंकि अगर वह कुछ कहती तो देशराज उस की पिटाई कर देता. दोपहर के समय वह बड़ी जेठानी अविता के घर गई तो उसे पता चला कि दोनों जेठ अवधेश और शिवराज पड़ोस के किसी गांव गए हुए थे.

राजकुमारी की समझ में आ गया कि भाई की गैरमौजूदगी में देशराज रात भर भाभी के साथ रहा होगा. यह जान कर उस का खून खौलने लगा. तभी उसे एक झटका और लगा, जब अविता ने बताया कि प्रियंका गर्भवती है.

राजकुमारी को अब पक्का यकीन हो गया कि प्रियंका के गर्भ में देशराज का ही बच्चा है. यह बात उसे बरछी की तरह चुभी. उस ने मन ही मन तय कर लिया कि अब उसे कुछ नहीं सहना, चाहे इस के लिए उसे कितनी ही बड़ी कीमत क्यों न चुकानी पड़े और मन ही मन उस ने एक योजना बना ली.

अपनी योजना को साकार करने के लिए प्रियंका का विश्वास हासिल करना जरूरी था. अत: एक दिन वह प्रियंका के घर जा पहुंची. उसे देख कर प्रियंका चौंकी. उस ने पूछा, ‘‘तुम यहां कैसे?’’

‘‘अरे दीदी मुझे पता चला कि तुम्हें बच्चा होने वाला है तो सोचा कि तुम्हारी कुछ मदद कर दिया करूं.’’

प्रियंका को राजकुमारी के इस व्यवहार पर हैरानी हुई. वह बोली, ‘‘तुम परेशान मत हो. सब ठीक है, तुम मेरी छोटी बहन की तरह हो. मैं तो पहले ही कहती थी कि तुम्हें गुस्सा नहीं करना चाहिए.’’

‘‘हां दीदी, मैं ही गलत थी. बेकार ही अलग हो गई. हम साथसाथ रहते तो अच्छा होता. खैर अब अलग तो हो ही गए हैं, पर आपस में मिलजुल कर रहने में हर्ज ही क्या है.’’ कह कर राजकुमारी ने खूनी नजरों से प्रियंका को देखा. राजकुमारी वहां थोड़ी देर बैठ कर चली गई.

10 जुलाई को गांव में एक गमी हो गई. अवधेश और शिवराज वहीं गए हुए थे. देशराज काम पर गया हुआ था. उसी समय राजकुमारी प्रियंका के घर गई और बातों ही बातों में वह उसे अपने घर बुला लाई. वह प्रियंका से बातें करने लगी. प्रियंका राजकुमारी के मन से अनजान थी. उसे मौत की दस्तक भी सुनाई नहीं दी. बातें करतेकरते उस ने पास रखी कुल्हाड़ी उठाई और प्रियंका के सिर पर दे मारी.

सिर पर कुल्हाड़ी का वार होते ही प्रियंका लुढ़क गई. सिर से खून का फव्वारा फूट पड़ा. कुछ देर तड़पने के बाद प्रियंका का शरीर शांत हो गया. राजकुमारी को जब विश्वास हो गया कि वह मर चुकी है तो उसे तसल्ली हुई. फिर सारे कमरे को लीप कर खून के निशान मिटा दिए.

शाम के समय देशराज घर लौटा तो उस ने कहा, ‘‘बेटा ऊपर है, उसे जगाओ मैं खाना वहीं लाती हूं. देशराज चुपचाप ऊपर चला गया. राजकुमारी भी वहीं खाना ले कर पहुंच गई. खाना खाने के बाद वह सोने की तैयारी करने लगे, तभी शिवराज ने आवाज दी. राजकुमारी ने दरवाजा खोला. शिवराज ने पूछा, ‘‘यहां प्रियंका आई है क्या?’’

‘‘नहीं, वह तो शाम को थैले में कपड़े डाल कर कहीं जा रही थीं.’’ राजकुमारी की बात सुन कर शिवराज परेशान हो गया कि बेटी को घर में छोड़ कर वह कहां चली गई? ऐसे तो कहीं नहीं जाती थी. उस ने उसी समय अपनी ससुराल फोन किया. पता चला कि वहां भी नहीं पहुंची थी.

रात में कुछ नहीं हो सकता, यह सोच कर शिवराज घर चला गया. पूरी रात चिंता में कटी. लेकिन सुबह उठते ही गांव में होहल्ला हो गया. शिवराज के घर से कुछ दूरी पर गड्ढे में एक औरत के पैर दिखाई दे रहे थे. शिवराज का दिल धड़कने लगा, कहीं प्रियंका तो नहीं… देशराज भी वहां पहुंचा. तब तक किसी ने पुलिस को फोन कर दिया था.

कुछ ही देर में थाना किशनी के थानाप्रभारी भूपेंद्र शर्मा पुलिस टीम के साथ वहां पहुंचे. कुछ ही देर में पुलिस क्षेत्राधिकारी रामानंद कुशवाहा भी वहां पहुंच गए. पुलिस के आदेश पर गड्ढे की मिट्टी हटाई गई तो उस में प्रियंका की लाश निकली. बीवी की लाश देख कर शिवराज दहाड़े मार कर रोने लगा और देशराज डरा सहमा एक ओर जा खड़ा हुआ.

देशराज ने कुछ सोचा और घर की तरफ गया. लेकिन घर से राजकुमारी गायब थी. अब उस की समझ में सब कुछ आ गया. वह वापस शिवराज के पास आ गया और उसे बताया कि राजकुमारी गायब है. पुलिस ने शिवराज से पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस की पत्नी की हत्या उस के छोटे भाई की बीवी राजकुमारी ने की है और वह फरार हो गई है.

पुलिस देशराज के घर पहुंची. वहां ताला लगा हुआ था. वहां खून के निशान साफ दिखाई दे रहे थे. लाश की शिनाख्त हो चुकी थी. पुलिस ने आवश्यक काररवाई कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. दोनों भाइयों को पुलिस पूछताछ के लिए थाने ले आई. इस बीच प्रियंका का पिता वीरेंद्र भी थाने आ पहुंचा. उस ने भादंवि की धारा 302, 316, 201 के तहत राजकुमारी के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी.

पुलिस ने तफ्तीश की तो पता चला कि देशराज और प्रियंका के बीच लंबे समय से अवैध संबंध थे. लेकिन यह बात गले नहीं उतर रही थी कि अकेली औरत हत्या कर के प्रियंका को गड्ढे तक कैसे ले आई और उस ने अकेले ही कैसे दफना दिया? पुलिस की एक टीम राजकुमारी की तलाश में उस के मायके के लिए रवाना हुई. लेकिन राजकुमारी रास्ते में ही मिल गई तो पुलिस उसे गिरफ्तार कर के थाने ले आई.

पूछताछ के दौरान राजकुमारी ने कुबूल किया कि प्रियंका की हत्या उस ने ही की थी. प्रियंका ने उस के वैवाहिक जीवन को उजाड़ कर रख दिया था. इसी मजबूरी के चलते उस ने इस खतरनाक योजना को अंजाम दिया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में पता चला कि प्रियंका 7 माह की गर्भवती थी. पूछताछ के बाद पुलिस ने राजकुमारी को न्यायालय में पेश कर के जेल भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सीधी सादी बीवी का शराबी पति

जेठानी की आशिकी ने बनाया कातिल – भाग 2

पति के मुंह से देवर की शादी की बात सुन कर प्रियंका को कुछ खटका सा हुआ. लेकिन वह बोली कुछ नहीं. उधर शिवराज ने पत्नी से कुछ कहने के बजाए नजर रखने लगा. प्रियंका को इस बात का अहसास हो गया तो उस ने भी देवर से मिलने में एहतियात बरतनी शुरू कर दी.

रात को पति के सो जाने के बाद वह देशराज के पास आ जाती और मौजमस्ती करती. देशराज अपनी सारी कमाई प्रियंका के हाथ पर ही रखता था. शिवराज भाई के लिए अच्छा रिश्ता देखने लगा.

एक दिन प्रियंका ने देशराज से कहा, ‘‘जल्दी ही तुम्हारी शादी हो जाएगी, तब तुम मुझे भूल जाओगे?’’

‘‘यह कैसी बातें कर रही हो भाभी? मेरी शादी भले ही हो जाए, लेकिन तुम से मैं वादा करता हूं कि मैं हमेशा तुम्हारा ही रहूंगा.’’

उसी बीच देशराज की शादी के लिए जिला मैनपुरी के गांव चितायन से एक रिश्ता आया. चितायन के रहने वाले रामअवतार ने अपनी सब से छोटी बेटी राजकुमारी की शादी देशराज से करने की बात शिवराज से की. राजकुमारी हाईस्कूल पास कर चुकी थी. शिवराज को रिश्ता पसंद आया और दोनों तरफ से बात होने के बाद निश्चित तिथि पर राजकुमारी और देशराज की शादी हो गई.

शादी के बाद राजकुमारी ससुराल आ गई, लेकिन सुहागरात को खुशी की बजाय उस की आंखों से आंसू ही बहे. हुआ यह कि सुहागसेज पर बैठी राजकुमारी पति के कमरे में आने का इंतजार करती रही, लेकिन देशराज अपनी नईनवेली दुलहन के पास पहुंचा नहीं. सुबह 4-5 बजे राजकुमारी की नींद टूटी तो भी उसे कमरे में पति दिखाई न दिया. उसी दौरान उसे जेठानी के कमरे से पति और जेठानी की हंसीठिठोली की आवाज सुनाई दी.

राजकुमारी भी कोई नादान नहीं थी. वह समझ गई कि पति का भाभी के साथ चक्कर है. तभी तो सुहागरात को भी पत्नी के बजाय वह भाभी के साथ मौजमस्ती कर रहा है. थोड़ी देर बाद देशराज जब अपने कमरे में पहुंचा तो उस ने पत्नी को सुबकते हुए देखा. वह बोला, ‘‘तुम रो रही हो? क्या हुआ?’’

‘‘तुम यह बताओ कि रात भर कहां थे?’’ राजकुमारी ने पूछा.

‘‘मैं यहीं भाभी से बातें कर रहा था. जब मैं कमरे में आया तो तुम सो रही थी. मैं ने सोचा कि तुम थक गई होगी, इसलिए जगाया नहीं.’’ कह कर देशराज ने तौलिया उठाई और गुसलखाने में घुस गया.

राजकुमारी को पति का रवैया कुछ अजीब सा लगा. वह पति से बहस कर के बात को बढ़ाना नहीं चाहती थी, इसलिए उस ने खुद को समझाया और मन को शांत किया. दिन धीरेधीरे गुजरा. घर पर जो नजदीकी मेहमान थे, वे भी घर से विदा हो गए.

शाम का खाना खा कर राजकुमारी अपने कमरे में थी, तभी प्रियंका और देशराज भी वहां पहुंच गए. प्रियंका देर तक राजकुमारी के पास बैठी रही. आखिर तंग आ कर राजकुमारी ने कहा, ‘‘भाभी मुझे नींद आ रही है.’’

राजकुमारी 4 दिनों तक ससुराल में रही. इन 4 दिनों में उस ने महसूस किया कि कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है. फिर पिता उसे विदा करा कर ले गए.

मायके आने पर उस ने मां को जब सारी बात बताई तो मां ने कहा, ‘‘बेटा, तुझे कुछ वहम हो गया है. देवरभाभी में प्यार होना कोई हैरानी की बात नहीं है. तू एक समझदार और पढ़ीलिखी लड़की है. अपने परिवार को बिखरने न देना.’’

कुछ दिनों बाद वह पति के साथ फिर ससुराल आ गई. इस बार उस ने तय किया कि वह सच्चाई का पता लगा कर रहेगी. इसलिए उस ने पति और जेठानी पर नजर रखनी शुरू कर दी. काम से आने के बाद देशराज सीधा भाभी के कमरे में जाता और सारी कमाई उस के हाथ पर रख देता था.

राजकुमारी को यह सब अच्छा नहीं लगा. उस ने पति से कहा, ‘‘तुम्हारी कमाई पर मेरा हक है, किसी और का नहीं. अब जो भी कमा कर लाओगे मुझे देना, किसी और को नहीं.’’

प्रियंका ने देवरानी की यह बात सुन ली थी. लेकिन कुछ कहने की हिम्मत नहीं हुई.

‘‘लेकिन भाभी क्या सोचेंगी?’’ देशराज ने कहा.

‘‘वह जो भी सोचती हैं, सोचती रहें. हमारा परिवार बढ़ेगा, खर्चे बढ़ेंगे तो हम किस से मांगेंगे?’’

प्रियंका समझ गई कि राजकुमारी तेज दिमाग की है. उस के सामने उस की दाल अब नहीं गलेगी. इसलिए उस ने देशराज को समझा दिया कि अब मिलने में होशियारी बरती जाए.

राजकुमारी अब काफी सतर्क हो गई थी. जिस से देशराज और प्रियंका परेशान से रहने लगे. घर में भी तनाव रहने लगा. देशराज गुस्से में कभीकभी राजकुमारी की पिटाई करने लगा.

राजकुमारी गर्भवती हो गई तो देशराज और प्रियंका को मिलने का मौका मिल गया. लेकिन राजकुमारी ने पति और जेठानी को रंगेहाथों पकड़ लिया. पोल खुलने पर देशराज और प्रियंका के होश उड़ गए. देशराज ने पत्नी से माफी मांगी और उसे भरोसा दिलाया कि आइंदा ऐसी गलती नहीं होगी.

प्रियंका ने भी उस से अनुरोध किया कि यह बात वह किसी को न बताए. राजकुमारी का शक सही साबित हुआ. उस समय समझदारी दिखाते हुए उस ने कोई शोरशराबा नहीं किया, शाम को शिवराज घर लौटा तो उस ने उस से कहा, ‘‘जेठजी, मैं अब इस घर में नहीं रह सकती. आप हमें अलग कर दें.’’

‘‘यह क्या कह रही हो तुम, यहां तुम्हें कोई परेशानी है?’’ शिवराज ने कहा तो राजकुमारी बोली, ‘‘आप को तो पता नहीं कि घर में क्या हो रहा है? पर जो मैं देख रही हूं, उस का अंजाम अच्छा नहीं हो सकता. इसलिए मैं अलग होना चाहती हूं.’’

शिवराज राजकुमारी का इशारा समझ गया. इस के बाद उस ने घर का बंटवारा कर दिया. राजकुमारी ने राहत की सांस ली. उस ने सोचा कि अब देशराज का भाभी के पास आनाजाना बंद हो जाएगा. उस के पेट में पल रहा बच्चा 8 महीने का हो चुका था. ऐसे में राजकुमारी को देखभाल की ज्यादा जरूरत थी, लेकिन ससुराल में अब वह अकेली थी. घर के काम करने में उसे परेशानी हुई तो वह मायके चली गई. उस ने पति और जेठानी के अवैध संबंधों की बात मां से भी बता दी.

मां ने उसे फिर समझाया कि वह देशराज को समझाए. लेकिन राजकुमारी के मन में जेठानी के प्रति नफरत भर चुकी थी.

राजकुमारी ने मायके में ही बेटे को जन्म दिया. वहां कुछ दिन रहने के बाद वह ससुराल चली आई. वह बड़ी जेठानी अविता से मिली और उन्हें प्रियंका की बदचलनी की बात बताई. अविता ने भी प्रियंका को काफी समझाया, लेकिन उस ने देशराज से मिलना बंद नहीं किया.

राजकुमारी धीरेधीरे निराश होने लगी. अपने वैवाहिक जीवन में उस ने जिस सुख की कल्पना की थी, वह पति और जेठानी की वासना की ज्वालामुखी में खाक हो चुका था. न तो उसे अपने मायके से कोई राहत मिल रही थी और न ही ससुराल से. देशराज भाभी के खिलाफ एक शब्द सुनने को तैयार नहीं था. नतीजतन आए दिन घर में झगड़ा होने लगा. रोजाना के झगड़े को देख कर मोहल्ले के लोग यही सोचने लगे कि राजकुमारी एक तेजतर्रार और लड़ाकू औरत है.

खुद के बिछाए जाल में – भाग 3

लवली पति से अलग अकेली रहने लगी तो उस के दोस्तों की संख्या लगातार बढ़ने लगी. पत्नी की इन हरकतों से सुरेंद्र परेशान रहने लगा था. लेकिन अपने दिल का दर्द किसी से कह नहीं सकता था. घर वालों ने भी कह दिया था कि उस ने जैसा किया है, वही भोगे. यह भी सच है कि जो औरत एक बार पति और बच्चों को छोड़ सकती है, परिस्थिति बनने पर उसे दूसरे पति और बच्चों को छोड़ने में कोई परेशानी नहीं होगी.

सुरेंद्र तनाव में रहने लगा था, क्योंकि उस की परेशानी दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही थी. इस की एक वजह यह भी थी कि लवली के पास जिन लोगों का आनाजाना था, वे रसूखदार लोग थे. अब सुरेंद्र लवली से डरने लगा था. इसी चिंता में वह शराब पीने लगा. सुरेंद्र जब भी लवली से मिलने मीरगंज जाता. दोनों का झगड़ा जरूर होता. तब बच्चे मां का ही पक्ष लेते.

पत्नी और बच्चों की इन हरकतों से वह महसूस करता कि सब कुछ होते हुए भी उस के पास कुछ नहीं है. उसे चिंता बच्चों की थी. उसे लगता था कि अगर यही हाल रहा तो उस के बच्चे बरबाद हो जाएंगे. इसलिए बच्चों का हवाला दे कर भी उस ने लवली को समझाने की कोशिश की थी, इस पर भी वह नहीं मानी थी.

लवली मीरगंज में रहती थी, जबकि सुरेंद्र गांव में रहता था. सुरेंद्र के भाइयों ने उसे सलाह दी कि अगर उसे अपनी पत्नी और बच्चों पर कंट्रोल रखना है तो वह उन के साथ रहे. घर वालों की यह सलाह सुरेंद्र को उचित लगी. उस ने तय किया कि वह जमीन बेच कर मीरगंज में मकान बनवा ले और उसी में पत्नी और बच्चों के साथ रहे.

उसी बीच लवली की दोस्ती मुगरा मोहल्ले से जुड़े मोहल्ला शिवपुरी के रहने वाले 20 वर्षीय शिब्बू उर्फ शिवम से हो गई. शिवम के पिता की मौत हो चुकी थी, जो तहसील मिलक के सरकारी अस्पताल में नौकरी करते थे. पिता की मौत के बाद मृतक आश्रित कोटे में उसे वार्डब्याय की नौकरी मिल गई थी.

लवली नर्स थी, जबकि शिवम वार्डब्वाय इसी आधार पर दोनों की जानपहचान हो गई थी. उन का मिलनाजुलना होने लगा तो एकदूसरे के घर भी आनेजाने लगे. घर आनेजाने में ही दोनों में नाजायज संबंध बन गए. जबकि दोनों की उम्र में जमीन आसमान का अंतर था. लवली 40 साल की थी तो शिवम 20 साल का.

सुरेंद्र ने अपनी एक जमीन 13 लाख रुपए में बेच कर मीरगंज की टीचर कालोनी में 7 लाख रुपए में एक प्लौट खरीद कर बाकी बचे पैसों से मकान बनवाना शुरू कर दिया. लवली समझ गई कि मकान बन जाने के बाद उसे सुरेंद्र के साथ ही रहना पड़ेगा. तब उसे शिवम से मिलने में परेशानी होगी. जबकि लवली अब शिवम के बिना नहीं रह सकती थी.

सुरेंद्र को लवली के नए दोस्त शिवम के बारे में पता नहीं था. लेकिन मकान बनवाने के दौरान उस ने शिवम को लवली के कमरे पर आतेजाते देखा तो उस के बारे में पूछा. लवली ने ऐसे ही कह दिया, ‘‘लड़का ही तो है. आ जाता है तो इस में परेशानी क्या है?’’

सुरेंद्र को लगा कि जब सभी एक साथ रहने लगेंगे तो सब ठीक हो जाएगा, लेकिन यह सुरेंद्र की भूल थी, क्योंकि लवली कुछ  और ही सोच रही थी. एक बार फिर बहक चुकी लवली अब किसी भी कीमत पर पति की बंदिशों में नहीं रहना चाहती थी. लेकिन उसे यह भी पता था कि सुरेंद्र के पैसे और मकान पर उसे तभी हक मिलेगा, जब वह उस के साथ रहे.

फिर तो जल्दी ही वह यह सोचने लगी कि अगर सुरेंद्र नाम का यह कांटा निकल जाए तो वह आजाद भी हो जाएगी और इस की सारी प्रौपर्टी भी उस की हो जाएगी. इस के बाद उस ने अपने नए प्रेमी शिवम से बात कर के सुरेंद्र को ठिकाने लगाने की योजना बना डाली. उसे पैसे का लालच तो दिया ही था, साथ ही यह भी कहा था कि सुरेंद्र के न रहने पर वे दोनों चैन से एक साथ रह सकेंगे.

सुरेंद्र को ठिकाने लगाना शिवम के अकेले के वश का नहीं था. मदद के लिए उस ने अपने दोस्तों ललित और सनी से बात की. दोस्ती की खातिर वे दोनों भी उस की मदद के लिए तैयार हो गए. ललित मीरगंज के ही रहने वाले धाकनलाल का बेटा था तो सनी मिलक के रहने वाले छतरपाल का.

सुरेंद्र अपने बन रहे नए मकान पर ही रहता था. ऐसे में उसे ठिकाने लगाना कोई मुश्किल काम नहीं था. वह रोजाना शराब पीता ही था. इसलिए उसे मारना और आसान था. सुरेंद्र ने सपने में भी नहीं सोचा था कि लवली उस की हत्या भी करवा सकती है, इसलिए वह निश्चिंत था. 25 अक्तूबर की रात उस का खाना ले कर लवली आई. सुरेंद्र ने शराब पी कर खाना खाया. लवली ने भी उस के साथ ही खाना खाया था. काफी रात तक वह उस के साथ बातें करती रही. सुरेंद्र को नींद आने लगी तो वह कमरे पर आ गई.

सुबह सुरेंद्र के मकान पर काम करने वाले मिस्त्री और मजदूर आए तो पता चला कि सुरेंद्र की मौत हो गई. किसी ने पुलिस को खबर कर दी तो थोड़ी ही देर में चौकी इंचार्ज राजू राव आ पहुंचे. उन्होंने लाश का निरीक्षण किया. उस के गले पर दबाए जाने के निशान साफ नजर आ रहे थे. इस का मतलब था कि उस की गला घोंट कर हत्या की गई थी.

चौकीइंचार्ज राजू राव ने घटना की सूचना थानाप्रभारी जितेंद्र कौशल को दी. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी जितेंद्र कौशल भी क्षेत्राधिकारी धर्म सिंह के साथ आ पहुंचे. सुरेंद्र की हत्या की सूचना पत्नी और भाइयों को भी मिल चुकी थी. भाइयों ने आते ही कहा था कि उस के भाई की हत्या उस की पत्नी लवली ने ही कराई है.

लवली भी वहां मौजूद थी. उस के हावभाव से साफ लग रहा था कि उसे पति की हत्या का कोई गम नहीं है. उस की आंखों में आंसू भी नहीं थे. यह सब देख कर पुलिस को मृतक सुरेंद्र के भाइयों की बात सच लगी. पुलिस ने सुरेंद्र की लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दी और लवली को साथ ले कर थाने आ गई.

पूछताछ में लवली यही कहती रही कि उसे कुछ नहीं पता. रात में वह उसे खाना खिला कर अच्छाभला छोड़ कर आई थी. सुरेंद्र के भाई हरपाल सिंह द्वारा दी गई तहरीर के आधार पर पुलिस ने अपराध संख्या 655/2013 पर सुरेंद्र की हत्या का मुकदमा लवली और उस के अज्ञात साथियों के खिलाफ दर्ज कर लिया था.

हत्या के इस मामले की जांच चौकी इंचार्ज राजू राव को सौंपी गई. उन्हें अपने मुखबिरों से पता चला कि इधर कुछ दिनों से शिवपुरी का रहने वाला शिवम का लवली के यहां कुछ ज्यादा ही आनाजाना था. इस के बाद लवली के मोबाइल की काल डिटेल्स चैक की गई तो उस में आखिरी फोन शिवम का था. यह फोन उसी रात किया गया था, जिस रात सुरेंद्र की हत्या हुई थी.

लवली से शिवम के बारे में पूछा गया तो उस ने उस के बारे में भी कुछ नहीं बताया. तब पुलिस ने शिवम को उस के मोबाइल की लोकेशन के आधार पर 26 अक्तूबर को बरेली के रेलवे स्टेशन से गिरफ्तार कर लिया. शिवम को गिरफ्तार कर के थाने लाया गया तो वहां लवली को देख कर वह समझ गया कि अब सारा खेल खत्म हो चुका है. इसलिए बिना किसी हीलाहवाली के उस ने लवली के साथ के अपने अवैध संबंधों को स्वीकार करते हुए सुरेंद्र की हत्या की पूरी कहानी बता दी.

शिवम ने कहा, ‘‘लवली के कहने पर ही मैं ने अपने दोस्तों ललित और सनी की मदद से गला दबा कर सुरेंद्र की हत्या की थी. पुलिस ने शिवम की निशानदेही पर ललित और सनी के घरों पर छापा मार कर गिरफ्तार करना चाहा. लेकिन वे फरार हो चुके थे. इस के बाद पुलिस ने लवली और शिवम को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. थाना मीरगंज पुलिस ललित और सनी की तलाश कर रही है. कथा लिखे जाने तक दोनों पुलिस के हाथ नहीं लगे थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

जेठानी की आशिकी ने बनाया कातिल – भाग 1

उत्तर प्रदेश के जिला मैनपुरी के रहने वाले शिवराज सिंह और देशराज सिंह में काफी प्यार था. दोनों भाई  मकान बनवाने का ठेका लेते थे. उन का संयुक्त परिवार था. देशराज अविवाहित और शिवराज शादीशुदा. शादी के बाद शिवराज की पत्नी प्रियंका ने एक बेटी को जन्म दिया. जिस का नाम सुजाता रखा गया.

देशराज की अपनी भाभी प्रियंका से खूब पटती थी. देवरभाभी में हलकी फुलकी मजाक भी होती रहती थी. भाभी होने के नाते प्रियंका उस की बातों का बुरा भी नहीं मानती थी. शिवराज सीधासादा था, जबकि देशराज तेजतर्रार और दबंग था. वह बनठन कर रहता था, इसलिए प्रियंका को अच्छा लगता था. प्रियंका को जब कभी बाजार या और कहीं जाना होता तो वह अपने साथ देशराज को ही ले जाती थी.

देवर भाभी के इस तरह साथ रहने से कभीकभी शिवराज को शक होता तो मजाकिया लहजे में वह कह देती, ‘‘बड़े ईर्ष्यालु हो तुम. छोटे भाई की खुशी बरदाश्त नहीं होती? अरे, जैसे वह तुम्हारा छोटा भाई है, वैसे ही मेरा भी छोटा भाई है.’’

शिवराज सोचता कि शायद प्रियंका सही कह रही है. उसे क्या पता था कि उस का यह विश्वास आगे चल कर कोई बड़ी मुसीबत बन जाएगा.

देशराज का भाभी के प्रति झुकाव दिनोंदिन बढ़ता जा रहा था. इस बात को प्रियंका महसूस कर रही थी. भाभी को लुभाने के लिए देशराज आए दिन उस की पसंद की खानेपीने की चीजें और उपहार भी लाने लगा.

प्रियंका ने मना किया तो देशराज ने हंसते हुए जवाब दिया, ‘‘भाभी ये तो मामूली बातें हैं, मैं तो तुम्हारे लिए जान भी दे सकता हूं. किसी दिन कह कर तो देखो.’’

इस पर प्रियंका ने उसे चौंक कर देखा. तभी देशराज ने ठंडी आह भरते हुए कहा, ‘‘भाभी क्या कहूं, तुम तो मेरी ओर ध्यान ही नहीं देती हो.’’

‘‘अरे मेरे ऊपर तुम यह कैसा इलजाम लगा रहे हो. देखो मैं तुम्हें खाना बना कर देती हूं, तुम्हारे कपड़े धोती हूं, अब और क्या चाहिए तुम्हें.’’

देशराज ने प्रियंका के पास आ कर उस का हाथ पकड़ लिया. उस के द्वारा अकेले में हाथ पकड़ने से प्रियंका सिहर उठी. वह अपना हाथ छुड़ाते हुए बोली, ‘‘यह क्या कर रहे हो? क्या चाहते हो?’’

‘‘भाभी, तुम्हारी चंचलता और खूबसूरती ने मुझे बेचैन कर रखा है. मैं तुम्हारे करीब आना चाहता हूं.’’

‘‘देखो देशराज, अब तुम जाओ. मुझे घर के और भी काम करने हैं.’’

‘‘मैं जा तो रहा हूं लेकिन सीधेसीधे पूछना चाहता हूं कि तुम मुझ से प्यार करती हो या नहीं?’’

देशराज वहां से चला तो गया, लेकिन उस की बातों और अहसासों ने प्रियंका को सोचने के लिए मजबूर कर दिया. देशराज ने भी जज्बातों में आ कर प्रियंका को अपने प्यार का अहसास करा दिया था, लेकिन बाद में उसे इस बात का डर लगा था कि कहीं भाभी यह बात भैया से न कह दे.

रात को प्रियंका और देशराज अपने अपने कमरे में सोने के लिए चले गए लेकिन दोनों की ही आंखों में नींद नहीं थी. देशराज को डर सता रहा था तो प्रियंका के दिमाग में देवर की कही बातें घूम रही थीं. लेटे ही लेटे वह पति की तुलना देवर से करने लगी. उस का पति शिवराज काम से थकामांदा घर लौटता और खाना खा कर जल्दी ही खर्राटे लेने लगता. उस की तरफ अब वह पहले की तरह बहुत ध्यान नहीं दे रहा था.

अकसर भाभी से चुहलबाजी करने वाला देशराज अगले दिन उस से नजरें नहीं मिला पा रहा था. इस बात को प्रियंका महसूस भी कर रही थी. शिवराज के जाने के बाद देशराज भी जाने लगा तो प्रियंका ने कहा, ‘‘तुम रुको देशराज, आज मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं है, तुम मेरे साथ डाक्टर के यहां चलना.’’

‘‘भाभी, आज मुझे भी जल्दी जाना है, इसलिए तुम अकेली ही चली जाओ,’’ कह कर देशराज जब घर से निकलने लगा तो प्रियंका उस का हाथ पकड़ कर कमरे में ले आई. देशराज डर रहा था कि भाभी अकेले में अब उसे डांटेगी. उस ने अपना चेहरा नीचे कर रखा था. प्रियंका बोली, ‘‘कल तुम बड़ीबड़ी बातें कर रहे थे, लेकिन तुम तो बहुत डरपोक निकले. प्यार करने वाले अंजाम की चिंता नहीं करते.’’

यह सुन कर देशराज का डर थोड़ा कम हुआ. वह अचंभे से भाभी की तरफ देखने लगा. प्रियंका आगे बोली, ‘‘देशराज, तुम्हारी बातों ने मेरे ऊपर ऐसा असर किया है कि रात भर मैं तुम्हारे ही खयालों में बेचैन रही. मुझे भी तुम से प्यार हो गया है. लेकिन मेरे सामने एक समस्या है. मैं शादीशुदा हूं, इसलिए इस बात से डर रही हूं कि अगर तुम्हारे भैया को पता चल गया तो क्या होगा? वह तो मुझे घर से ही निकाल देंगे.’’

‘‘भाभी, मैं हूं न. मेरे होते हुए तुम्हें कोई कुछ नहीं कह सकता.’’ देशराज ने उसे विश्वास दिलाते हुए कहा तो प्रियंका ने उस के भरेपूरे जिस्म को गौर से देखा और सीने से लग गई. देशराज ने भी उसे अपनी मजबूत बांहों में भर लिया. उन के कदम गुनाह की तरफ बढ़ गए और उन्होंने अपनी हसरतें पूरी कर लीं.

उस दिन के बाद सब कुछ बदल गया. शिवराज के काम पर जाने के बाद देशराज किसी न किसी बहाने घर पर रुक जाता और भाभी के साथ मौजमस्ती करता. देशराज अकसर घर में भाभी के साथ रहने लगा तो पड़ोसियों को शक होने लगा. सब सोचने लगे कि दाल में कुछ काला जरूर है.

गलत काम की खबरें जल्दी फैलती हैं, इसलिए मोहल्ले भर में यह खबर फैल गई कि प्रियंका का अपने देवर के साथ चक्कर चल रहा है. मगर शिवराज को इस बात की भनक तक न लगी. वह तो कमाई में ही लगा रहता था.

एक दिन एक शुभचिंतक ने शिवराज से कहा, ‘‘शिवराज, तुम कभी अपने घर की तरफ भी ध्यान दे दिया करो. तुम्हें पता नहीं कि तुम्हारे घर में क्या चल रहा है? अब बेहतर यही होगा कि तुम देशराज की शादी कर दो.’’

यह सुन कर शिवराज सन्न रह गया. वह अपने भाई को सीधासादा समझता था. और तो और देशराज उस के सामने ऊंची आवाज में बात तक नहीं करता था. एक बार तो उसे भाई के बारे में कही बात पर विश्वास नहीं हुआ.

वह घर पहुंचा तो देशराज घर पर ही मिला. छूटते ही उस ने कहा, ‘‘दिनभर घर में चारपाई तोड़ना अच्छा लगता है क्या? कल से मेरे साथ ही काम पर चलना. चार पैसे कमाएगा तो तेरी शादी में ही काम आएंगे. मैं तेरी जल्दी ही शादी कराना चाहता हूं.’’