सीधी सादी बीवी का शराबी पति – भाग 1

उत्तर प्रदेश के जिला गोरखपुर के थाना कैंट का सब से व्यवस्ततम है इलाका अग्रसेन चौराहा. फर्नीचर व्यवसायियों की सब से बड़ी मार्केट  होने की वजह से यहां पूरे दिन भीड़ लगी रहती है. इस मार्केट की दुकान ‘गीता फर्नीचर’ काफी बड़ी और प्रतिष्ठित मानी जाती है. फर्नीचर व्यवसायी अभिषेक रंजन अग्रवाल की यह दुकान उन की पत्नी गीता के नाम पर है. दुकान के पीछे ही उन का मकान भी है.

  18 जून, 2013 की रात साढ़े 8 बजे अभिषेक अग्रवाल ने दुकान के कर्मचारियों सनी प्रजापति और राजेंद्र साहनी से दुकान बढ़ाने को कह कर खुद दुकान से बाहर आ कर अपने परिचित रवि अग्रवाल के साथ खड़े हो कर बातें करने लगे. इसी बीच बैंक रोड की ओर से एक मोटरसाइकिल उन के करीब आ कर रुक गई.

  उस पर 2 युवक सवार थे. वे कौन हैं, यह देखने के लिए जैसे ही अभिषेक पलटे, पीछे बैठे युवक ने रिवाल्वर निकाल कर उन पर 2 गोलियां दाग दीं. दोनों ही गोलियां उन के सिर में लगीं. गोलियां लगते ही अभिषेक जहां जमीन पर गिर गए, वहीं मोटरसाइकिल युवक भाग निकले. उन के हाथों में रिवाल्वर थे, इसलिए कोई भी उन्हें रोकने की हिम्मत नहीं कर सका.

  अप्रत्याशित घटी इस घटना से जहां सभी हैरान थे, वहीं पूरी बाजार में हड़कंप सा मच गया था. दोनों नौकर पहले तो भाग कर घायल हो कर गिरे अभिषेक के पास आए. उन्हें तड़पता देख कर सनी जहां रवि अग्रवाल की मदद से उन्हें संभालने लगा, वहीं रवींद्र घर के अंदर की ओर घटना की सूचना देने के लिए भागा.

  घर के सदस्य सूचना पा कर बाहर आते, उस के पहले ही पड़ोस के दुकानदारों ने अभिषेक को एक रिक्शे पर बैठाया और पास के विंध्यवासिनीनगर स्थित स्टार नर्सिंगहोम के लिए रवाना हो गए. पीछेपीछे अभिषेक के घर वाले भी अस्पताल की ओर भागे. लेकिन अभिषेक को अस्पताल ले जाने का कोई फायदा नहीं हुआ. क्योंकि अस्पताल पहुंचने के पहले ही उस की मौत हो चुकी थी. डाक्टरों ने देखते ही उसे मृत घोषित कर दिया था. मौत की जानकारी होते ही घरवाले बिलखबिलख कर रोने लगे.

 सूचना पा कर अभिषेक के तमाम परिचित भी अस्पताल पहुंच चुके थे. किसी ने घटना की सूचना फोन द्वारा  पुलिस कंट्रोलरूम को दे दी थी, जहां से सूचना पा कर थाना कैंट के इंस्पेक्टर टी.पी. श्रीवास्तव सिपाहियों को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए थे. वहीं से उन्होंने इस घटना की सूचना अधिकारियों को दे कर खुद अस्पताल जा पहुंचे. इस के बाद वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक शलभ माथुर, पुलिस अधीक्षक (नगर) परेश पांडेय, क्षेत्राधिकारी (कैंट) वी.के. पांडेय, कोतवाली के इंसपेक्टर बृजेंद्र कुमार सिंह भी वहां पहुंच गए.

  पुलिस ने लाश कब्जे में ले कर औपचारिक काररवाई निपटाने के बाद पोस्टमार्टम के लिए मेडिकल कालेज भिजवा दी. पुलिस ने घटनास्थल से 9 एमएम के 2 खोखे बरामद किए थे. सारी काररवाई निपटाने के बाद थाने लौट कर पुलिस ने मृतक अभिषेक के पिता अर्जुन कुमार अग्रवाल द्वारा दी गई तहरीर के आधार पर अभिषेक के बहनोई विवेक कुमार लाट, उस के मंझले भाई विनय कुमार लाट तथा 2 अज्ञात बदमाशों के खिलाफ अपराध संख्या 513/2013 पर भादंवि की धारा 302/120 बी/34 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.

  मुकदमा दर्ज होने के बाद थाना कैंट पुलिस ने उसी दिन विनय कुमार लाट को उस के घर से गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर उस से पूछताछ की गई. पहले तो वह पुलिस को बरगलाता रहा, लेकिन वह कोई पेशेवर अपराधी तो था नहीं, इसलिए पुलिस ने जब उस के साथ थोड़ी सख्ती की तो उसे टूटते देर नहीं लगी. उस ने स्वीकार कर लिया कि उसी ने सुपारी दे कर किराए के हत्यारों से अभिषेक की हत्या कराई थी. विनय द्वारा अपराध स्वीकार कर लेने और हत्यारों के नाम बता देने के बाद पुलिस ने उसे अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

  इस मामले में नामजद दूसरा अभियुक्त विनय का भाई विवेक पहले से ही जेल में बंद था. पुलिस अन्य अभियुक्तों की तलाश में जुट गई. इस मामले में सोचने वाली बात यह थी कि आखिर बहनोई के बड़े भाई ने ही छोटे भाई के साले की हत्या क्यों कराई? अभिषेक का बहनोई जेल में क्यों बंद था? यह सब जानने के लिए हमें थोड़ा पीछे चलना होगा.

  गोरखपुर के थाना कैंट के रहने वाले 72 वर्षीय अर्जुन कुमार अग्रवाल ढुनमुनदास बालमुकुंद दास इंटर कालेज से 30 जून, 2003 को रिटायर होने के बाद अपने एकलौते बेटे अभिषेक रंजन के साथ उस के व्यवसाय में हाथ बंटाने लगे थे. उन के परिवार में पत्नी के अलावा 4 बच्चों में 3 बेटियां रश्मि, शालिनी, दिवीता और एकलौता बेटा अभिषेक रंजन था. उन का यह बेटा तीसरे नंबर पर था.

  अध्यापक होने की वजह से अर्जुन कुमार खुद तो संस्कारी थे ही, उन के चारों बच्चे भी उन्हीं की तरह संस्कारी थे. अर्जुन की बड़ी बेटी रश्मि सीधीसादी, बेहद सुशील थी. उस ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय से संस्कृत से एमए करने के बाद नेट परीक्षा भी पास कर ली थी. अर्जुन कुमार अग्रवाल के सभी बच्चे इसी तरह पढ़ेलिखे थे. बायोलौजी से प्रथम श्रेणी में बीएससी करने के बाद अभिषेक रंजन अग्रवाल ने पढ़ाई छोड़ कर व्यवसाय की ओर कदम बढ़ाया था. अपने घर के आगे पड़ी जमीन में दुकान बनवा कर उस ने फर्नीचर और हार्डवेयर का काम शुरू कर दिया था. जल्दी ही उस का यह व्यवसाय चल निकला.

  घर में हर तरह से खुशहाली थी. रश्मि शादी लायक हुई तो अर्जुन कुमार उस के लिए लड़का ढूंढ़ने लगे. एक दिन अर्जुन कुमार अग्रवाल की नजर स्थानीय अखबार के शहनाई कालम में ‘वधु चाहिए’ में छपे एक विज्ञापन पर पड़ी तो उन्हें लगा कि यहां बात बन सकती है. यह विज्ञापन रामस्वरूप लाट ने अपने बेटे के विवाह के लिए छपवाया था. उस  में फोन नंबर भी दिया था, इसलिए अर्जुन कुमार अग्रवाल ने तुरंत फोन कर के बात कर ली.

  आखिर वहां बात बन गई. जल्दी गोदभराई कर के कुल 15 दिनों में अर्जुन कुमार ने अपनी बड़ी बेटी रश्मि का विवाह रामस्वरूप लाट के बेटे विवेक कुमार से कर दिया था. पहली और बड़ी बेटी का विवाह था, इसलिए अर्जुन कुमार ने अपनी हैसियत से कहीं ज्यादा इस शादी में खर्च किया था.

रामस्वरूप लाट ने यह विवाह इतनी जल्दी में कराया था कि अर्जुन कुमार को मौका ही नहीं मिला था कि वह लड़के या उस के घर वालों के बारे में ठीक से पता कर पाते. बाद में जो पता चला, उस के अनुसार गोरखपुर की कोतवाली के आर्यनगर के दक्षिणी हुमायूंपुर मोहल्ले के राज नर्सिंग होम के पास रहने वाले रामस्वरूप लाट ठेकेदारी करते थे. उन के परिवार में पत्नी के अलावा 4 बेटे, कमलेश कुमार लाट, विनय कुमार लाट, विवेक कुमार लाट, विकास कुमार लाट तथा 3 बेटियां, कमला, वंदना और एप्पुल थीं.

खुला नहीं उनकी मौत का रहस्य

अंकिता अग्रवाल उत्तर प्रदेश के जिला फैजाबाद की रहने वाली थी. उस के पिता अनिल कुमार  अग्रवाल का सोनेचांदी के गहनों का कारोबार था. पिता की लाडली तो वह थी ही, मां विमला और भाई अभिषेक भी उसे बहुत प्यार करते थे. अंकिता बीए की परीक्षा दे रही थी, तभी उस के पिता ने उस की शादी की बात चला दी.

अंकिता देखने में तो सुंदर थी ही, मासूम और सुशील भी थी. पिता चाहते थे कि उस की शादी किसी ऐसे लड़के से हो, जो उसे जीवन भर खुश और सुखी रख सके. काफी तलाश के बाद उन्हें अंकिता के लिए अमित अग्रवाल मिला तो वह उन्हें अपनी भोलीभाली बेटी के लिए योग्य वर लगा.

अमित अग्रवाल मथुरा के गुदड़ी बाजार का रहने वाला था. उस के पिता माधवराम अग्रवाल की मथुरा में के.डी. ज्वैलर्स के नाम से सोनेचांदी के गहनों की दुकान थी. अमित का परिवार मथुरा का बड़ा कारोबारी घराना माना जाता था. सोनेचांदी की दुकान के साथसाथ उस के अन्य कई कारोबार थे.

अनिल कुमार अग्रवाल को अंकिता और अमित की जोड़ी हर तरह से ठीक लगी थी. यही वजह थी कि 13 जुलाई, 2005 को उन्होंने बड़े धूमधाम से अंकिता की शादी अमित से कर दी. शादी के कुछ दिनों बाद अमित ने लखनऊ के चौक बाजार में अपनी सोनेचांदी की दुकान खोलने का विचार किया. अमित और अंकिता, दोनों के ही तमाम नातेरिश्तेदार लखनऊ में सोनेचांदी की दुकानें चलाते थे. उन्हीं लोगों की मदद से अमित ने मथुरा के के.डी. ज्वैलर्स की एक अन्य दुकान यानी शाखा लखनऊ के चौक बाजार के सुरंगी टोला में खोल दी.

अमित जल्द से जल्द अमीर होना चाहता था, इसलिए वह गहनों के कारोबार से जुड़े गैरकानूनी काम करने लगा. समय के साथसाथ अमित और अंकिता 2 बच्चों के मांबाप बन गए थे. बेटी वाणी बड़ी थी तो बेटा दिव्यांश छोटा था.

बच्चे स्कूल जाने लायक हुए तो उन का दाखिला लखनऊ के रेडहिल स्कूल में करा दिया गया. कारोबार को बढ़ाने के लिए अमित ने अपनी ससुराल वालों यानी अंकिता के घर वालों से भी मदद ली थी.

अंकिता के साथ अमित को जिस तरह का प्यार और व्यवहार करना चाहिए था, वह वैसा नहीं करता था. इस से अंकिता परेशान रहती थी. अंकिता ये बातें मायके वालों को बता कर उन्हें परेशान नहीं करना चाहती थी. इस की वजह यह थी कि उस के पिता अनिल कुमार अग्रवाल की तबीयत ठीक नहीं रहती थी. लेकिन बच्चे अपनी परेशानी या दुख कितना भी छिपाएं, मांबाप तो चेहरे के हावभाव से ही सब जान लेते हैं.

अंकिता भले ही अपने मन की बात मांबाप से नहीं कह रही थी, लेकिन मां उस की परेशानी को अच्छी तरह से समझ रही थी. लेकिन वह जब भी कुछ पूछती, अंकिता कुछ बताने के बजाए बात को टाल जाती थी.

कभी वह इतना जरूर कह देती, ‘‘मां, आप लोगों ने हमारे लिए रिश्ता बहुत अच्छा खोजा है, फिर भी मेरे साथ जो होना होगा, वह होगा ही. फिलहाल मुझे कोई परेशानी नहीं है.’’

इसी बीच अंकिता के पिता की मौत हो गई. अंकिता की मां विमला का कहना है कि अंकिता के पिता का उस की ससुराल और पति पर काफी दबाव रहता था. इस वजह से वे लोग अंकिता के साथ कोई गलत व्यवहार नहीं कर पाते थे. अमित को लगता था कि अगर कोई बात अंकिता के पिता को पता चल गई तो वह हंगामा खड़ा कर देंगे. लेकिन उस के पिता की मौत के बाद वह दबाव खत्म हो गया, जिस से अमित अंकिता को परेशान करने लगा. अंकिता हालात बेहतर होने की उम्मीद में सब सहती रही.

विमला अग्रवाल के अनुसार, 18 अगस्त, 2013 को अमित अंकिता और दोनों बच्चों को ले कर इनोवा कार से अचानक कहीं चला गया. जाने से पहले उस ने अपने घर वालों या ससुराल  वालों को कुछ बताने के बजाए अपने मैनेजर राजेश पांडे को सिर्फ एक पत्र लिखा था, ‘मैं बहुत परेशान हूं. मरने जा रहा हूं. पैसे का लेनदेन तो चलता ही रहता है, लेकिन कैलाश चाचा, रानू और मनोज ने परेशान कर रखा है. वे मुझे बहुत अपमानित करते हैं. अब जीने की इच्छा नहीं रही. इसलिए मरने जा रहा हूं. आप लेग दूसरी जगह नौकरी कर लीजिएगा.’

अगले दिन अमित की इनोवा कार इलाहाबाद के दारागंज में लावारिस हालत में खड़ी मिली. अंकिता की मां का कहना है कि अमित के गायब होने के बाद योजना के अनुसार अमित के करीबी लोगों ने अफवाह फैला दी कि अमित पर 25 करोड़ रुपए की देनदारी हो गई थी. वह बकाया चुकाने की हालत में नहीं था, इसलिए परिवार के साथ कहीं भाग गया.

अंकिता के भाई अभिषेक ने लखनऊ की चौक कोतवाली में इंसपेक्टर आई.पी. सिंह ने मिल कर अमित, बहन अंकिता और भांजेभांजी की गुमशुदगी दर्ज करा दी थी. इस की जांच सबइंसपेक्टर दिनेश सिंह को सौंपी गई. बकायेदारी की बात का पता चलने पर पुलिस को लगा कि कुछ दिनों बाद अमित खुद ही वापस आ जाएगा. इसलिए लखनऊ पुलिस ने अमित की खोज के लिए सर्विलांस का भी सहारा नहीं लिया. अगर पुलिस तत्काल अमित के घर और करीबी लोगों के फोन सर्विलांस पर लगा देती तो शायद कोई न केई नतीजा जरूर निकल आता.

अमित की तलाश में केवल अंकिता का परिवार जुटा था. अभिषेक का कहना है कि अमित का परिवार किसी भी तरह का सहयोग नहीं कर रहा था. इसी तरह समय गुजरता रहा. अचानक 15 दिसंबर को अंकिता के भाई अभिषेक के मोबाइल फोन पर उड़ीसा के जिला पुरी से पुलिस का फोन आया. पुरी की पुलिस ने उसे बताया कि अंकिता और उस के दोनों बच्चे वहां के होटल जमींदार पैलेस के कमरा नंबर 307 मृत पाए गए हैं.

पुरी पुलिस की इस सूचना पर अभिषेक पत्नी श्रद्धा और मां विमला अग्रवाल के साथ पुरी पहुंचा. अभिषेक के अनुसार होटल के कमरे में अंकिता और बच्चों के शव बिस्तर पर पड़े मिले थे. बिस्तर की चादर और तकिया खून से सने थे. होटल के कमरे में जहर की शीशी भी पड़ी थी. इस से अंदाजा लगाया गया कि अंकिता और उस के बच्चों को जहर दे कर बेहोश किया गया था. उस के बाद उन्हें बेरहमी से पीटा गया था. फिर सब की गला दबा कर हत्या कर दी गई थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, अंकिता के शरीर में चोट के 5 निशान पाए गए थे. शरीर की हड्डी 4 जगह से टूटी थी. अभिषेक का कहना है कि ये लोग पहले पुरी के अन्य होटलों में ठहरे थे. 22 नवंबर को होटल जमींदार पैलेस आए थे. यह अच्छा होटल था. यहां अमित ने सी-फेसिंग कमरा लिया था, जिस का एक दिन का किराया 7500 रुपए था. घटना वाली रात होटल में पार्टी चल रही थी, इसलिए होटल का सारा स्टाफ उस में लगा था. कमरा समुद्र की ओर वाला था, इसलिए तेज हवाओं के शोर की वजह से अंकिता की चीखपुकार किसी को सुनाई नहीं दी थी.

अंकिता के भाई अभिषेक के अनुसार, लाशों के गले में तुलसी की माला और शरीर पर कालेसफेद तिल पड़े मिले थे. इस से अंदाजा लगाया गया कि मरने के बाद उन के क्रियाकर्म की कोशिश की गई थी. बाद में पुलिस ने होटल का वह कमरा डुप्लीकेट चाबी से खोला था.

कमरे में कागज का एक टुकड़ा मिला था, जिस पर अभिषेक के फोन नंबर के साथ लिखा था कि इस नंबर पर घटना की सूचना दी जाए. पुलिस जांच में पता चला कि अमित ने होटल के रजिस्टर में अपना पता मथुरा वृदांवन लिखाया था. पते के साथ उस ने जो मोबाइल नंबर लिखाया था, वह पहले से ही बंद था.

अभिषेक ने अंकिता और उस के बच्चों का अंतिम संस्कार कर दिया था. वह अपने बहनोई अमित और उस के घर वालों के खिलाफ बहन और उस के बच्चों की हत्या का मुकदमा नामजद दर्ज कराना चाहता था. उस का कहना है कि अमित के पिता माधवराम ने भाजपा के एक स्थानीय विधायक से पैरवी करा दी, जिस से पुरी पुलिस ने दबाव में आ कर हत्या का मुकदमा नामजद दर्ज करने के बजाए अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज कर के जांच शुरू की.

अंकिता की मां विमला अग्रवाल का कहना है कि पहले तो उन्हें लग रहा था कि उड़ीसा की पुरी पुलिस अमित को खोज लेगी. लेकिन जैसेजैसे समय बीतता गया, उन की उम्मीद धूमिल होती गई. पुरी पुलिस ने इस मामले की जानकारी लखनऊ पुलिस को भी दी थी. दोनों ने तथ्यों का अदानप्रदान भी किया था, लेकिन मामले का कोई हल नहीं निकला.

अंकिता के भाई अभिषेक का कहना है कि अंकिता और उस के बच्चों की हत्या में उस के पति अमित का हाथ है. उस की मदद उस के घर वाले कर रहे हैं. ऐसा भी हो सकता है कि उन की मदद से वह देश से बाहर चला गया हो. अगर अमित के घर वाले उस की मदद न कर रहे होते तो वह इतने लंबे समय तक पुरी के महंगे होटलों में नहीं रह सकता था.

अंकिता की मां विमला अग्रवाल का कहना है कि अगर अमित सही मायने में गायब होता तो उस के घर वाले उस की तलाश में जमीनआसमान एक कर देते. अमित के गायब होने से उस के घर वाले जरा भी परेशान नजर नहीं आ रहे हैं. उन्होंने उस की खोज भी नहीं की. वे चाहते तो अमित की तलाश में अखबार में उस का फोटो छपवाते, टीवी पर दिखवाते, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं कराया.

विमला अग्रवाल का कहना है कि लखनऊ पुलिस ने भी इस मामले में कम लापरवाही नहीं की. अमित और अंकिता के गायब होने के बाद पुलिस को गुमशुदगी की रिपोर्ट को अपहरण की धारा में बदल कर जांच करनी चाहिए थी. लेकिन ऐसा नहीं किया गया. पुरी पुलिस के साथ मिल कर भी लखनऊ पुलिस ने कोई छानबीन नहीं की.

अंकिता के घर वालों ने न्याय पाने के लिए लखनऊ में कैंडिल मार्च निकाल कर पुलिस प्रशासन पर दबाव बनाने की भी कोशिश की थी. पुलिस के बड़े अफसरों के अलावा फैजाबाद के सांसद एवं उत्तर प्रदेश के कांग्रेस अध्यक्ष निर्मल खत्री और अयोध्या के विधायक अखिलेश सरकार के मंत्री तेजनारायण पांडेय से भी अपनी व्यथा सुनाई थी. सभी ने न्याय दिलाने और सही जांच कराने का भरोसा दिलाया था, लेकिन हकीकत में कुछ हुआ नहीं.

अंकिता के भाई अभिषेक अग्रवाल का कहना है कि अमित के घर वालों की सत्ता में पहुंच है, इसलिए पुलिस निष्पक्ष जांच नहीं कर रही है. अगर लखनऊ पुलिस ने शुरू में ही अमित के खिलाफ सख्त कदम उठाया होता तो अंकिता और उस के बच्चे आज जिंदा होते. अंकिता की मां विमला अग्रवाल का कहना है कि अब हमें सिर्फ सीबीआई जांच पर भरोसा है. हम उसी की मांग कर रहे हैं.

कितने शर्म की बात है कि अगस्त से अब तक 8 महीने बीत जाने के बाद भी 2-2 राज्यों की पुलिस अंकिता और उस के बच्चों की हत्या का राज खोलने में पूरी तरह से नाकाम रही है. ऐसे में पुलिस की वैज्ञानिक और खोजपूर्ण जांच की बातें पूरी तरह से खोखली और बेमानी नजर आती हैं. जब तक अमित का पता नहीं चलता, तब तक हत्या की वजह और हत्यारे के बारे में नहीं जाना जा सकता.

अंकिता के करीबियों का कहना है कि अमित देश में ही कहीं छिपा है. उस के घर वालों को पता भी है. लेकिन वे बता नहीं रहे हैं. जबकि अमित के घर वाले इस बात को गलत बता रहे हैं. उन का कहना है, ‘‘हम तो चाहते हैं कि अमित जल्द से जल्द वापस आ जाए. जिस से सच्चाई का खुलासा हो सके.’’

—कथा अंकिता की मां और भाई के बयान पर आधारित

पत्नी जब न बनी दोस्तों का बिछौना – भाग 4

सरिता एक सप्ताह तक खाट पर पड़ी रही तथा दर्द से छटपटाती रही. उस ने मारपीट की शिकायत न तो पुलिस में की और न ही मायके वालों को कुछ बताया. वह नहीं चाहती थी कि उस का परिवार बिखरे और वह दरदर की ठोकरें खाने को मजबूर हो. पति आज नहीं तो कल सुधर ही जाएगा.

लेकिन सरिता की यह सोच गलत थी. सरिता की चुप्पी से रमन को बढ़ावा मिला. वह उस पर और जुल्म ढाने लगा. सरिता का पति रमन सिर से पांव तक कर्ज में डूबा था. इस कर्ज को उतारने के लिए वह सरिता को गलत रास्ते पर ढकेलने की कोशिश कर रहा था. सरिता उस की बात मानने को राजी नहीं थी. जिस से वह उसे आए दिन शराब पी कर पीटता था. कभीकभी तो घर के बाहर भी निकाल देता था.

ससुर ने रमन को सुनाई खरीखोटी

सरिता पति के जुल्म सह रही थी. उस ने मायके वालों को इसलिए कभी कुछ नहीं बताया कि उस के मातापिता उस के गम में डूब जाएंगे, लेकिन इस के बावजूद किसी तरह उस के पिता कमलेश को बेटी पर ढाए जा रहे जुल्मों की बात पता चल गई. तब कमलेश पाल ने दामाद रमन को खूब बुराभला कहा और सुधर जाने की नसीहत दी. न सुधरने पर किसी हद तक जाने की धमकी भी दी.

कमलेश पाल की इस धमकी ने आग में घी का काम किया. शिकायत को ले कर रमन ने सरिता को खूब पीटा. उस दिन तो वह इतना हैवान बन गया कि पानी भरे टब में उस ने सरिता के बाल पकड़ कर उस के चेहरे को कई बार डुबोया. मासूम बेटी जोरजोर से रोने लगी तो उस के हाथ रुके. अन्यथा वह सरिता को डुबो कर मार ही डालता.

30 अगस्त, 2023 को रक्षाबंधन का त्योहार था. सरिता भाई को राखी बांधने मायके गहलों जाने लगी तो रमन ने मना कर दिया. मायके जाने को ले कर सरिता और रमन में बहस होने लगी. इसी बहस में रमन ने सरिता की पिटाई कर दी. लेकिन पिटाई के बावजूद सरिता नहीं मानी और बेटी को साथ ले कर मायके आ गई. यहां सरिता ने मारपीट की बात घर वालों को बताई तो उन का पारा चढ़ गया.

दूसरे रोज ही रमन ससुराल पहुंच गया. तब कमलेश पाल ने रमन को जम कर फटकार लगाई और खूब बेइज्जत किया. सरिता को भी साथ भेजने से इंकार कर दिया. सरिता ने भी रमन को बेइज्जत किया. अपमान का घूंट पी कर रमन वापस लौट आया. शाम को उस ने दोस्त अखिल व रंजीत संग शराब पी. फिर उस ने बेइज्जती वाली बात दोस्तों को बताई और सरिता को ठिकाने लगा कर बदला लेने की बात कही.

नशे में धुत अखिल व रंजीत दोस्त रमन का साथ देने को तैयार हो गए. इस की वजह यह भी थी कि अखिल व रंजीत को सरिता ने कई बार बेइज्जत किया था और घर से भगाया था. इस के बाद रमन, अखिल व रंजीत ने सरिता के अपहरण व हत्या की योजना बनाई. इस योजना में रंजीत ने अपने दोस्त सौरभ गौतम को भी शामिल कर लिया.

आखिर सरिता को लगा दिया ठिकाने

5 सितंबर, 2023 की सुबह 10 बजे रमन ने सरिता से मोबाइल फोन पर बात की और मारपीट के लिए माफी मांगी. साथ ही कहा कि वह शाम को उसे लेने आएगा, इंकार मत करना. सरिता से बात करने के बाद रमन ने चौबेपुर बाजार के शराब ठेके पर रंजीत, अखिल व सौरभ को बुलाया. कुछ देर में तीनों वहां आ गए. सभी ने बैठ कर शराब पी फिर सरिता की हत्या की योजना बनाई.

योजना के तहत शाम 6 बजे रंजीत, अखिल व सौरभ, केशरी निवादा गांव के पास नहर पट्टी सड़क पर गगनी देवी मंदिर के पास पहुंच गए. पीछे से रमन भी बाइक से वहां आ गया. सभी ने मिल कर आसपास के जंगल एरिया का जायजा लिया फिर आपस में बात की. इस के बाद दोस्तों को वहीं छोड़ कर रमन अपनी ससुराल गहलों चला गया.

गहलों पहुंच कर रमन ने सरिता को फोन कर गांव के बाहर बुला लिया फिर वह सरिता व बेटी अनिका को बाइक पर बिठा कर अपने घर की ओर चल पड़ा. अब तक सूरज छिप चुका था और अंधेरा छाने लगा था. रमन धीमी गति से बाइक चलाता हुआ केशरी निवादा गांव के पास पहुंचा.

तभी वहां स्थित देवी मंदिर के पास योजना के तहत अखिल, रंजीत व सौरभ ने रमन की बाइक रोक ली. सरिता कुछ समझ पाती, उस के पहले ही उन तीनों ने सरिता को दबोच लिया और घसीटते हुए जंगल की ओर ले गए. पीछे से रमन भी पहुंच गया. सरिता ने अपनी जान जोखिम में देखी तो वह उन से भिड़ गई. सभी ने मिल कर सरिता को खूब पीटा फिर उसी की चुनरी से उस का गला घोंट दिया और शव को बबूल के पेड़ के नीचे छोड़ आए.

हत्या करने के बाद अखिल, रंजीत व सौरभ तो फरार हो गए, लेकिन रमन पाल सड़क पर आया, जहां उस ने बाइक खड़ी की थी और मासूम बेटी अनिका डरीसहमी बैठी थी. उस ने ब्लेड से अपना हाथ जख्मी किया फिर शोर मचाने लगा.

रमन का शोर सुन कर कुछ लोग इकट्ठा हो गए. उन लोगों को उस ने बताया कि उसे जख्मी कर बदमाशों ने उस की पत्नी सरिता का अपहरण कर लिया है. कुछ देर बाद रमन ने पहले अपने ससुर कमलेश पाल को सरिता के अपहरण की सूचना दी फिर थाना शिवली पुलिस को सूचना दे दी.

सूचना पा कर शिवली थाने के एसएचओ एस.एन. सिंह घटनास्थल पहुंचे और सर्च औपरेशन शुरू किया. दूसरे रोज सरिता की लाश मिली.

8 सितंबर, 2023 को थाना शिवली पुलिस ने आरोपी रमन पाल, अखिल पाल व रंजीत को कानपुर देहात की कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल माती भेज दिया गया. सौरभ गौतम कथा लिखने तक फरार था. पुलिस उसे तलाश रही थी. मासूम अनिका नाना कमलेश के संरक्षण में रह रही थी.

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

पत्नी जब न बनी दोस्तों का बिछौना – भाग 3

सरिता मम्मी से छिपा गई हकीकत

कुछ समय बाद सरिता मायके गई तो उस का गिरा हुआ स्वास्थ्य देख कर उस की मम्मी को दुख हुआ. शादी के

पहले सरिता का खिला हुआ गुलाब सा चेहरा किसी लंबी बीमारी के मरीज जैसा मुरझा गया था. उस की आंखों के नीचे कालेकाले घेरे भी बन गए थे.

“यह तुझे क्या हो गया बेटी?’’ सरिता की मम्मी ने उस के सिर पर हाथ फेर कर पूछा, “तुझे ससुराल में कुछ तकलीफ है क्या, जो तेरी हालत ऐसी हो गई है?’’

“नहीं मम्मी, ऐसी कोई बात नहीं है,’’ सरिता फीकी मुसकराहट चेहरे पर लाती हुई बोली, “ससुराल में तो मैं बहुत खुश हूं.’’

दरअसल, सरिता नहीं चाहती थी कि वह ससुराल वालों की घटिया आदतों का बयान कर घर वालों को दुखी करे. इसलिए वह अपने दुखों का जहर खुद ही पी गई थी.

शादी के डेढ़ साल बाद सरिता ने एक बच्ची को जन्म दिया. इस का नाम उस ने अनिका रखा. अनिका के जन्म से सरिता तो खुश थी, लेकिन सासससुर व पति खुश न थे. ये लोग चाह रहे थे कि सरिता के बेटा पैदा हो. लेकिन जब बेटी पैदा हो गई तो उमा अकसर सरिता को जलीकटी सुनाने लगी. सरिता जवाब देती तो रमन उसे रुई की तरह धुन देता.

इन्हीं दिनों रमन में एक और बुराई घर कर गई. वह दोस्तों के साथ जुआ खेलने लगा. उस ने घर में पैसे देने भी बंद कर दिए. कभीकभी तो वह फैक्ट्री में मिलने वाले सारे पैसे जुए में हार जाता, जिस से घर में कलह होती. रामपाल सासबहू के झगड़े व बेटे की मारपीट से पहले ही परेशान था. इस जुए की मुसीबत ने उसे और विचलित कर दिया. इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए उस ने रमन को घर से बेदखल कर दिया.

इस के बाद रमन सरिता व बेटी अनिका के साथ अलग घर में रहने लगा. अलग होने के बाद सरिता तो खुश थी. क्योंकि उसे सास के तानों, झूठी शिकायतों और जलीकटी बातों से छुटकारा मिल गया था. लेकिन रमन खुश नहीं था, क्योंकि घरगृहस्थी का सारा बोझ अब उसी के कंधों पर आ गया था.

रमन पाल को फैक्ट्री में मामूली तनख्वाह मिलता था. उस से उस का घर का खर्च पूरा नहीं हो पाता था. वह खानेपीने का सामान चौबेपुर कस्बे की एक दुकान से लाता था. इस दुकान का मालिक अखिल पाल था. अखिल पाल रमन का बचपन का दोस्त था. आठवीं कक्षा तक दोनों साथसाथ पढ़े थे. रमन अलग रहने लगा तो अखिल उस के घर आनेजाने लगा. अखिल शराब पीने का आदी था.

दोस्त के कर्ज में दबता गया रमन

घर आतेजाते अखिल की नजर रमन की खूबसूरत पत्नी सरिता पर जमने लगी. रूपयौवन से भरपूर सरिता को अखिल पाल जब भी देखता तो मदहोश हो उठता था. रमन के घर आने पर अखिल की निगाहें सरिता को ही ढूंढा करती थीं.

सरिता को पाने के लिए धीरेधीरे उस ने रमन पर अपना जाल फेंकना शुरू कर दिया. अखिल ने मामूली तनख्वाह पाने वाले रमन को भी शराब आदि पीने का शौक लगा दिया. रमन पाल को जब भी पैसों की जरूरत होती तो अखिल से उधार ले लेता था. अखिल के कर्ज के नीचे दबे होने के कारण रमन उस की किसी बात से इंकार नहीं करता था.

सरिता को पाने की चाहत में अखिल ने अपने उधार के रुपए मांगने के बजाय उसे घर का सामान तथा पैसे भी देने शुरू कर दिए. शराब की महफिल भी रमन के घर जमने लगी. हालांकि रमन अखिल पाल की विशेष कृपा के पीछे उस के इरादे से वाकिफ था, लेकिन आराम, सुविधा व पैसे के लालच में फंसे रमन ने अखिल को सरिता के साथ बैठने व बतियाने की खुली छूट दे दी.

शुरू में तो सरिता ने इस इस ओर ध्यान नहीं दिया, लेकिन जब अखिल मनमानी करने लगा तो सरिता का माथा ठनका. शराब के नशे में जब एक रोज उस ने सरिता का हाथ पकड़ा और उस के साथ छेड़छाड़ करने लगा तो सरिता ने उस के गाल पर तमाचा जड़ दिया और उसे घर के बाहर खदेड़ दिया. अपमानित हो कर अखिल वहां से चला गया.

अखिल ने सरिता द्वारा की गई बेइज्जती की शिकायत रमन से की तो वह गुस्सा हो गया. शराब पी कर वह घर आया और सरिता की जम कर पिटाई कर दी. इस के बाद तो यह सिलसिला ही चल पड़ा. रात को अकसर वह शराब पीने के बाद बात बेबात सरिता को पीटता और उस के साथ गालीगलौज करता. सरिता अच्छी तरह जानती थी कि रमन उस के साथ मारपीट अखिल के उकसाने पर करता है.

रमन सरिता को परोसना चाहता था दोस्तों के सामने

एक शाम शराब की बोतल ले कर अखिल अपने शराबी दोस्त रंजीत उर्फ गुल्लू के साथ रमन के घर आया. रमन उन दोनों से ऐसे गले मिला जैसे वे दोनों उस के सगे भाई हों. इस के बाद महफिल जमी और तीनों ने शराब पी. कुछ देर तीनों शोरशराबा करते रहे, फिर रमन घर के बाहर चला गया.

सरिता कमरे में अकेली थी और अपनी बेटी अनिका को थपकी दे कर सुलाने की कोशिश कर रही थी. तभी भड़ाक से दरवाजा खुला. सामने अखिल व रंजीत खड़े थे. उन दोनों की आंखों में वासना के डोरे तैर रहे थे. सरिता को उन दोनों ने दबोचना चाहा तो वह भाग कर रसोई में जा पहुंची. वे दोनों वहां भी आ पहुंचे.

बचाव के लिए सरिता ने रसोई में रखा चाकू उठा लिया और बोली, “चले जाओ वरना पेट में चाकू घुसेड़ दूंगी. भूल जाऊंगी कि तुम मेरे पति के दोस्त हो.’’

सरिता के ये तेवर देख कर अखिल और रंजीत डर गए. उन का नशा उड़नछू हो गया. कुछ देर बाद रमन घर वापस आया तो दोनों ने सरिता की शिकायत की.

इस पर रमन ने सरिता को फिर पीटा और बोला, “साली, हरामजादी, कुतिया तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरे दोस्तों से भिड़ने की. हम तीनों एक प्याला, एक निवाला हैं. हर चीज मिलबांट कर खाते हैं. तुझे उन की बात मान लेनी चाहिए थी.’’

पति की बेहूदा बात सुन कर सरिता गुस्से से बोली, “लोग अपनी इज्जत बचाने के लिए दूसरों का खून तक कर देते हैं और एक तुम हो जो पत्नी को यारों के सामने परोसना चाहते हो. छि घिन आती है तुम पर. धिक्कार है तुम्हारी मर्दानगी पर.’’

यह सुनते ही रमन दांत पीसते हुए बोला, “मादरचो…रंडी. मुझे पाठ पढ़ा रही है. बेइज्जत कर रही है. आज मैं तेरी हड्डीपसली एक कर दूंगा.’’ कहते हुए रमन इंसान से हैवान बन गया. उस ने सरिता को पीटपीट कर उस की देह सुजा दी.

क्या होगा जब सरिता के पिता को रमन की सच्चाई पता लगेगी? जानने के लिए पढ़ें Family Crime Story का अंतिम भाग.

पत्नी जब न बनी दोस्तों का बिछौना – भाग 2

रमन पाल शक के दायरे में था. यह बात इंसपेक्टर एस.एन. सिंह भी अपने सीनियर अधिकारियों को बता चुके थे, अत: डीएसपी तनु उपाध्याय व एएसपी राजेश कुमार पांडेय ने रमन पाल को सामने बिठा कर सरिता की हत्या के बारे में पूछताछ की.

शुरू में लगभग 2 घंटे तक वह पुलिस अधिकारियों को गुमराह करता रहा और बदमाशों द्वारा सरिता का अपहरण व हत्या की बात कहता रहा, लेकिन जब डीएसपी तनु उपाध्याय ने कड़ा रुख अपनाया तो रमन पाल टूट गया. फिर सरिता की हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया.

रमन पाल ने बताया कि उस ने सरिता की हत्या का षडयंत्र अपने 3 दोस्तों रंजीत उर्फ गुल्लू, अखिल पाल व सौरभ गौतम के साथ मिल कर रचा था. उन तीनों ने ही अपहरण का नाटक किया, फिर हम सब ने मिल कर सरिता को मार डाला. ये तीनों चौबेपुर कस्बा में पुराने शराब ठेका के पास रहते हैं.

हत्या की निकली हैरतअंगेज कहानी

रंजीत, अखिल व सौरभ को गिरफ्तार करने के लिए इंसपेक्टर एस.एन. सिंह की अगुवाई में पुलिस टीम बनाई गई. इस टीम ने शाम 5 बजे रंजीत, अखिल व सौरभ के घर दबिश दी, लेकिन तीनों अपने घर से फरार थे. इसी बीच किसी ने इंसपेक्टर एस.एन. सिंह को फोन पर सूचना दी कि रंजीत उर्फ गुल्लू अपने दोस्त अखिल पाल के साथ बेला विधूना रोड पर स्थित शिवली नहर पुल पर मौजूद हैं.

इस सूचना पर पुलिस टीम शिवली नहर पुल पर पहुंची और रंजीत व अखिल को गिरफ्तार कर लिया. उन दोनों को थाने लाया गया. थाने की हवालात में जब उन दोनों ने रमन पाल को देखा तो समझ गए कि अब उन के बचने का कोई रास्ता नहीं है. अत: उन दोनों ने भी हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया. सौरभ फरार हो गया था.

एसएचओ एस.एन. सिंह ने सरिता की हत्या का खुलासा करने व आरोपियों को गिरफ्तार करने की जानकारी एसपी बी.बी.जी.टी.एस. मूर्ति को दी तो उन्होंने तुरंत आननफानन में पुलिस लाइन में प्रैसवार्ता आयोजित की और हत्या का खुलासा कर दिया.

चूंकि हत्यारोपियों ने अपहरण व हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया था, अत: एसएचओ एस.एन. सिंह ने मृतका के पिता कमलेश पाल की तरफ से भादंवि की धारा 364/302/120बी के तहत रमन पाल, रंजीत उर्फ गुल्लू, अखिल पाल तथा सौरभ के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली तथा इन्हें विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया.

इन से की गई पूछताछ में एक ऐसी नारी की कहानी सामने आई, जो पति को सब कुछ मानती रही और उस के जुल्म सहती रही. उस की इसी कमजोरी का फायदा उठा कर उस का पति हैवान बन गया और उस ने पत्नी को मौत की नींद सुला दिया.

उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात जिले का एक चर्चित कस्बा है- रूरा. यह उत्तर रेलवे का बड़ा स्टेशन भी है. व्यापारिक कस्बा होने के कारण यहां ज्यादातर एक्सप्रेस गाड़ियों का स्टापेज है. रूरा कस्बे से 3 किलोमीटर दूर एक गांव है- गहलों. कमलेश पाल इसी गांव का निवासी है. उस के परिवार में पत्नी विमला के अलावा 2 बेटियां तथा एक बेटा लाखन था. कमलेश पाल किसान था. किसानी से ही वह परिवार का भरणपोषण करता था. बड़ी बेटी के वह हाथ पीले कर चुका था. भाईबहनों में सरिता छोटी थी.

गरीब की दौलत उस की इज्जत होती है. कमलेश पाल भी गरीब था. सरिता उस की इज्जत थी. इस पर किसी की बुरी नजर पड़े, उस के पहले ही वह उस के हाथ पीले कर के निश्चिंत हो जाना चाहता था. अत: वह अपनी खूबसूरत और भोलीभाली बेटी के लिए सही लड़के की तलाश में जुट गया था. काफी दौड़भाग के बाद उस के कदम रमन पाल के घर जा कर रुके.

रमन के पिता रामपाल कानपुर नगर के थाना चौबेपुर के गांव पनऊपुरवा के रहने वाले थे. परिवार में पत्नी उमा पाल के अलावा 2 बेटे अमन व रमन थे. अमन का विवाह हो चुका था. वह गुड़गांव (हरियाणा) में किसी फैक्ट्री में काम करता था और वहीं अपने परिवार के साथ रहता था.

रमन अविवाहित था. वह चौबेपुर कस्बा स्थित लोहिया स्टार लिंगर फैक्ट्री में सफाई कर्मचारी था. कुछ उपजाऊ खेती की जमीन भी थी, जिस की रामपाल खुद देखभाल करता था. कुल मिला कर उस की आर्थिक स्थिति ठीकठाक थी.

रमन पाल सरिता के मुकाबले कम पढ़ालिखा था और उम्र में भी बड़ा था. लेकिन घर की माली हालत ठीक समझ कर व उसे काम पर लगा देख कर कमलेश पाल ने रमन को अपनी बेटी सरिता के लिए पसंद कर लिया था. फिर सामाजिक रीतिरिवाज से 17 फरवरी, 2018 को सरिता का विवाह रमन के साथ हो गया.

सरिता को किया जाने लगा प्रताड़ित

ससुराल आने के 2 दिन बाद तो सरिता को ऐसा नहीं लगा था कि वह कहीं नई जगह आ गई है. घर में आए मेहमानों के सामने सास का व्यवहार सरिता की उम्मीदों से अधिक अच्छा था, परंतु तीसरे ही दिन सुबहसुबह सास के तेवर बदले हुए थे. सास का वह रूप देख कर सरिता का मन आशंका से कांप उठा था.

डरतेडरते उस ने हिम्मत कर के सास से पूछा, “मुझ से कुछ गलती हो गई क्या मम्मी?’’

“गलती तुझ से नहीं मुझ से हुई है, जो तेरे कंगाल बाप की चिकनीचुपड़ी बातों में आ गई.’’

“ऐसा क्या किया है मेरे पापा ने, जो आप उन्हें मेरे सामने इस तरह बोल रही हैं.’’

“अच्छा, तो तेरा 2 दिन में ही इतना रुतबा हो गया कि मैं तेरे सामने तेरे दो कौड़ी के बाप को कुछ कहने की   हिम्मत न कर सकूं. तुझे सुनना ही है तो सुन अपने बाप की करतूत. उस ने मेरे बेटे का शादी में अपमान  किया है. हमारी हैसियत के मुताबिक उसे मोटरसाइकिल तो देनी ही चाहिए थी.

“शायद तुझे नहीं मालूम कि कई लोग मेरे घर के चक्कर काट रहे थे, जो लाखों रुपए का सामान देने का वादा कर रहे थे, लेकिन हमारी ही किस्मत फूटी थी, जो हम तेरे बाप की चिकनीचुपड़ी बातों में आ कर ठगे गए.’’ उमा तमक कर एक ही सांस में बोल गई.

यह सब सुन कर सरिता को ऐसा लगा, जैसे किसी ने उस के कानों में गर्म शीशा उड़ेल दिया हो. उसे सारा घर घूमता हुआ नजर आया. वह धम्म से वहीं जमीन पर बैठ गई. उस की आंखों से आंसुओं का सैलाब फूट पड़ा. उस दिन सरिता को पहली बार अपनी सास का असली चेहरा दिखा था. उस के पिता ने उस की शादी में अपनी हैसियत के अनुसार बहुत कुछ दिया था. जबकि शादी के पहले उस के सासससुर दहेज विरोधी थे और शादी के बाद कितना अंतर आ गया था उन के रवैए में. सरिता इसे अपने भाग्य का क्रूर मजाक ही समझ रही थी.

उधर उमा पाल बराबर बड़बड़ाए जा रही थी, “चल उठ, सुबहसुबह यह रोधो कर किसे नखरे दिखा रही है?’’

अपनी मां को चिल्लाते देख कर रमन पाल कमरे में आ गया था. उस ने उमा से पूछा था, “मम्मी, क्या हो गया, क्यों चिल्ला रही हो?’’

“क्या बताऊं बेटा, हमारे तो भाग्य ही फूट गए. मैं ने बहू से रसोई में काम करने को क्या कह दिया, इस ने तो मुझे ही बुराभला कह डाला.’’ उमा पाल भोली बन कर बेटे को बताने लगी थी.

उमा का इतना कहना था कि रमन पाल बिफर पड़ा. उस ने आव देखा न ताव घुटने में मुंह छिपा कर रो रही सरिता का चेहरा बाल पकड़ कर ऊपर उठाया और बोला, “2 कौड़ी की लड़की, तेरी इतनी हिम्मत कि इस घर में आते ही मेरी मां का अपमान करे. मैं तुझे तभी माफ करूंगा, जब तू मेरी मां के पैर पकड़ कर अपनी गलती की माफी मांगेगी.’’ इतना कहने के साथ ही रमन ने सरिता को अपनी मां के पैरों पर ढकेल दिया.

सरिता ने रोतेरोते सास से पूछा, “मम्मी, क्यों आप एक के बाद एक झूठ बोल कर मुझ से कलह कर रही हो. मैं ने कब आप से कुछ कहा. आप ही तो खुद मुझे व मेरे घर वालों को बुराभला कह रही थीं कि उन्होंने दहेज में मोटरसाइकिल नहीं दी. रसोई में काम करने की बात आप ने मुझ से कहां कही?’’

उमा कुटिल मुसकान लिए चुप रही. रमन ही गुस्से में बोला, “अगर मेरी मां ने तुझे यह सब कहा तो क्या गलत कहा. यदि तेरे बाप को मेरी हैसियत का खयाल होता तो शादी में मुझे बाइक जरूर देते.’’

सरिता तड़प कर बोली, “नहीं देंगे मेरे पिता मोटरसाइकिल. एक पैसा भी मैं उन से नही मांगूंगी. यदि मुझे तुम्हारे व तुम्हारे बेटे की ऐसी सोच का पता होता तो मैं भी शादी के लिए कभी हां न करती.’’

सरिता की इस बात को चुनौती मान कर रमन कमीनेपन पर उतर आया. उस ने सरिता पर लातघूंसों की बरसात शुरू कर दी. सरिता चुपचाप मार खाती रही. उस के सभी सुहाने सपने टूट गए थे. इस के बाद तो यह क्रम ही बन गया. सास झूठी शिकायत करती और रमन सरिता को बुरी तरह पीट देता था.

क्यों रमन अपने नई ब्याहता पत्नी पर इस कदर जुल्म करता था? क्या सरिता चुपचाप ये जुल्म सहती रहेगी? पढ़ें इस क्राइम स्टोरी के अगले अंक में.

पत्नी जब न बनी दोस्तों का बिछौना – भाग 1

जब अखिल मनमानी करने लगा तो सरिता का माथा ठनका. शराब के नशे में जब एक रोज उस ने सरिता का हाथ पकड़ा और उस के साथ छेड़छाड़ करने लगा तो सरिता ने उस के गाल पर तमाचा जड़ दिया और उसे घर के बाहर खदेड़ दिया. अपमानित हो कर अखिल वहां से चला गया.

एक शाम सरिता कमरे में अकेली थी और अपनी बेटी अनिका को थपकी दे कर सुलाने की कोशिश कर रही थी. तभी भड़ाक से दरवाजा खुला. सामने अखिल व रंजीत खड़े थे. उन दोनों की आंखों में वासना के डोरे तैर रहे थे. सरिता को उन दोनों ने दबोचना चाहा तो वह भाग कर रसोई में जा पहुंची. वे दोनों वहां भी आ पहुंचे.

बचाव के लिए सरिता ने रसोई में रखा चाकू उठा लिया और बोली, “चले जाओ वरना पेट में चाकू घुसेड़ दूंगी. भूल जाऊंगी कि तुम मेरे पति के दोस्त हो.’’

इस पर रमन ने सरिता को फिर पीटा और बोला, “साली, हरामजादी, कुतिया तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरे दोस्तों से भिड़ने की. हम तीनों एक प्याला, एक निवाला हैं. हर चीज मिलबांट कर खाते हैं. तुझे उन की बात मान लेनी चाहिए थी.’’

सरिता का पति रमन सिर से पांव तक कर्ज में डूबा था. इस कर्ज को उतारने के लिए वह सरिता को गलत रास्ते पर ढकेलने की कोशिश कर रहा था. सरिता उस की बात मानने को राजी नहीं थी. जिस से वह उसे आए दिन शराब पी कर पीटता था.

कानपुर देहात जिले के थाना शिवली के एसएचओ एस.एन. सिंह को सूचना मिली कि केशरी निवादा गांव के पास से सरिता नाम की विवाहित युवती का कुछ बदमाशों ने अपहरण कर लिया है और उसे जंगल की ओर ले गए हैं. यह सूचना 5 सितंबर, 2023 की रात 8 बजे सरिता के पति रमन पाल ने फोन के जरिए दी थी.

चूंकि खबर किडनैपिंग की थी, इसलिए इंसपेेक्टर एस.एन. सिंह पुलिस टीम के साथ जल्द ही घटनास्थल पहुंच गए. उस समय गांव के बाहर नहर की पक्की सड़क पर कुछ ग्रामीण मौजूद थे. उन ग्रामीणों में से एक व्यक्ति बदहवास हालत में निकल कर आया और एसएचओ से बोला, “साहब, मेरा नाम रमन पाल है, मेरी पत्नी सरिता का बदमाशों ने अपहरण कर लिया है. उसे जल्द ढूंढने की कोशिश करें. कहीं ऐसा न हो कि उस के साथ कोई अनहोनी हो जाए.’’ इतना कह कर वह फूटफूट कर रोने लगा.

इंसपेक्टर एस.एन. सिंह ने रमन पाल को धैर्य बंधाया, फिर पूरी घटना विस्तार से बताने को कहा. तब रमन पाल ने बताया कि वह चौबेपुर थाने के पनऊ पुरवा गांव का रहने वाला है. उस की ससुराल गहलों गांव में है.

आज वह पत्नी सरिता को लेने ससुराल गया था. वह सरिता व मासूम बेटी अनिका को बाइक पर बिठा कर अपने गांव की ओर शाम 7 बजे रवाना हुआ. जब वह केशरी निवादा गांव के पास मैथा नहर रोड पर गगनी देवी मंदिर के नजदीक पहुंचा, तभी 3 बदमाशों ने उस की बाइक रोकी और सरिता से छेड़खानी करने लगे. विरोध करने पर वे उस से उलझ गए और चाकू से हमला किया, जिस से उस का हाथ जख्मी हो गया और खून बहने लगा.

इस के बाद वे सरिता को उठा कर जंगल की ओर ले गए. कुछ देर तक वह समझ नहीं पाया कि क्या करे. थोड़ी देर बाद उस ने पहले ससुर कमलेश पाल को फिर पुलिस को सूचना दी. रमन पाल की बात पर विश्वास कर पुलिस ने सर्च औपरेशन शुरू कर दिया, लेकिन कोशिश बेकार रही. न तो सरिता का कुछ पता चला और न ही बदमाशों का. रात का गहरा अंधेरा भी छा गया था, अत: हताश हो कर पुलिस वापस थाने आ गई.

रमन पाल घायल था. उस के हाथ से खून बह रहा था. इंसपेक्टर एस.एन. सिंह ने सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र शिवली में रमन पाल के हाथ की मरहमपट्टी कराई, फिर उसे थाने ले आए. बेटी सरिता के अपहरण की सूचना पा कर सुबह कमलेश पाल भी थाना शिवली पहुंच गया. वह बेहद दुखी था.

एसएचओ एस.एन. सिंह ने उस से पूछताछ की तो कमलेश पाल ने बताया कि उस का दामाद रमन पाल बेहद कमीना व नीच इंसान है. वह जुुआरी व शराबी भी है. मेरी बेटी को वह जानवरों की तरह पीटता है और भूखाप्यासा रखता है. वह इंसान नहीं, हैवान है. सरिता के अपहरण की वह नौटंकी कर रहा है. उस ने या तो सरिता को बेच दिया है या फिर उस के साथ कोई अनहोनी हुई है. सारा रहस्य रमन पाल के ही सीने में छिपा है.

कमलेश पाल की बात एसएचओ को भी सच लगी. क्योंकि घटनास्थल पर उन्हें अपहरण का कोई सबूत नहीं मिला था, न ही लूट की बात सच थी. क्योंकि सरिता के शरीर पर न तो आभूषण थे और न ही उन दोनों के पास नकदी थी. घटना का ऐसा गवाह भी नहीं था, जिस ने यह सब देखा हो. मासूम अनिका डरीसहमी थी. वह कुछ भी बोल नहीं पा रही थी.

एसएचओ एस.एन. सिंह को लगा कि रमन पाल कुछ छिपा रहा है. अत: उन्होंने उस से एक बार फिर पूछताछ शुरू की. लेकिन वह यही कहता रहा कि उस की पत्नी सरिता का बदमाशों ने अपहरण किया है. वह उसे कहां ले गए, क्या किया, उसे कुछ भी मालूम नहीं है.

सुबह 10 बजे शिवली थाने की पुलिस फिर से सरिता की खोज में घटनास्थल पहुंची. साथ में सरिता का पिता कमलेश व पति रमन पाल भी था. इस बार पुलिस ने बड़ी सावधानी से नहर के किनारे झाड़ियों व जंगल में सरिता को ढूंढना शुरू किया. डौग स्क्वायड भी मौके पर पहुंच कर झाड़ियों में सरिता की खोज शुरू कर दी.

खोजी कुत्ते से टीम को सफलता नहीं मिली, लेकिन खोज में जुटा शिवली थाने का सिपाही रामवीर हांफतादौड़ता हुआ आया और इंसपेक्टर एस.एन. सिंह से बोला, “सर, बबूल के पेड़ के नीचे एक युवती की लाश पड़ी है. आप वहां जल्दी चलिए.’’

इंस्पेक्टर एस.एन. सिंह पुलिसकर्मियों के साथ बबूल के पेड़ के पास पहुंचे. पेड़ के नीचे एक महिला का शव पड़ा था. उस के गले में पीला दुपट्टा लिपटा था. देख कर लग रहा था कि दुपट्टे से गला कस कर उस की हत्या की गई थी. उस के शरीर पर चोटों के निशान थे. कुछ पुराने जख्म भी थे. शव के पास ही चप्पल व टूटी चूड़ियां पड़ी थीं. देखने से ऐसा लग रहा था कि महिला का मृत्यु से पहले हत्यारों से संघर्ष हुआ था. महिला की उम्र 30 वर्ष के आसपास थी.

महिला के शव को जब कमलेश पाल ने देखा तो वह फफक पड़ा और इंसपेक्टर एस.एन. सिंह से बोला, “साहब, यह लाश मेरी बेटी सरिता की है.’’

रमन पाल ने भी लाश की शिनाख्त अपनी पत्नी सरिता के रूप में की और वह रोने धोने लगा. इंसपेक्टर एस.एन. सिंह ने उन दोनों को धैर्य बंधाया और जल्दी ही सरिता के हत्यारों को गिरफ्तार करने की तसल्ली दी.

एस.एन. सिंह ने सरिता की अपहरण के बाद हत्या किए जाने की सूचना पुलिस अधिकारियों को दी तो कुछ देर बाद ही एसपी बी.बी.जी.टी.एस. मूर्ति, एएसपी राजेश कुमार पांडेय तथा डीएसपी तनु उपाध्याय घटनास्थल पर आ गईं.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया तथा घटना के संबंध में एसएचओ एस.एन. सिंह से जानकारी हासिल की. निरीक्षण के बाद पुलिस अधिकारियों ने सरिता के शव को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल माती भिजवा दिया.

एक ही घुड़की में उगल डाला राज

मृतका सरिता के पिता कमलेश पाल तथा पति रमन पाल को थाने लाया गया. यहां डीएसपी तनु उपाध्याय ने कमलेश पाल से पूछताछ की तो उस ने कहा कि उस की बेटी का हत्यारा कोई और नहीं, उस का दामाद रमन पाल ही है. वह बेटी सरिता को शारीरिक रूप से प्रताड़ित करता था. रक्षाबंधन वाले दिन भी उस ने सरिता को खूब पीटा था. उस के बाद वह मायके आ गई थी. रमन पाल ने ही षडयंत्र रच कर अपने साथियों के साथ मेरी बेटी को मार डाला और पुलिस से बचने के लिए उस ने उस के अपहरण की झूठी कहानी गढ़ दी.

क्या रमन ने ही सरिता की हत्या की थी? जानने के लिए पढ़ें कहानी का अगला भाग.

पाक प्यार में नापाक इरादे – भाग 3

सर्वेश के घर के आसपास ज्यादा मकान तो थे नहीं, इसलिए नेत्रपाल को उस के यहां आनेजाने में कोई परेशानी नहीं होती थी. साप्ताहिक छुट्टी के दिन तो पाकेश के ड्यूटी पर चले जाने के बाद नेत्रपाल पूरा दिन उसी के यहां पड़ा रहता. इस तरह यह सिलसिला काफी दिनों तक बिना किसी रोकटोक के चलता रहा.

एक दिन शाम को किसी वजह से पाकेश जल्दी घर आ गया. संयोग से नेत्रपाल उस समय उस के घर पर ही मौजूद था. तब सर्वेश ने पाकेश से उस का परिचय कराते हुए कहा, ‘‘यह नेत्रपाल हैं. हमारी कंपनी में सुपरवाइजर हैं. यह भी यहीं आसपास प्लौट खरीदना चाहते हैं. इन्हें मैं ने ही यह बगल वाला प्लौट दिखाने के लिए बुलाया था.’’

सर्वेश ने ऐसी चाल चली थी कि पाकेश को नेत्रपाल पर जरा भी शक नहीं हुआ. पाकेश शराब का आदी था. वह ड्यूटी से छूटने के बाद अकसर रास्ते में पड़ने वाले ठेके से शराब पी कर घर आता था. उस शाम सर्वेश ने नेत्रपाल से उस का परिचय कराया तो वह उस के लिए भी ठेके से शराब ले आया. दोनों ने साथसाथ बैठ कर शराब पी तो उन में दोस्ती हो गई.

पाकेश पहले से ही शराब पिए था, नेत्रपाल के साथ भी पी तो उसे इतना नशा हो गया कि वह बिना खाना खाए ही सो गया. बच्चे पहले ही सो चुके थे. जेठ मंदबुद्धि ही था, वह खाना खा कर बाहर निकल गया तो नेत्रपाल और सर्वेश ने इस मौके का लाभ अच्छी तरह उठाया.

उस रात नेत्रपाल समझ गया कि पाकेश को पत्नी से भी ज्यादा शराब से प्रेम है. इस के बाद उसे जब भी सर्वेश से एकांत में मिलना होता, वह शराब की बोतल ले कर पाकेश के घर पहुंच जाता. पाकेश शराब पी कर लुढ़क जाता तो उसे सर्वेश से एकांत में मिलने का मौका आराम से मिल जाता.

लेकिन एक दिन पाकेश ने नेत्रपाल को सर्वेश की छाती पर हाथ लगाते देख लिया तो नशे में होने की वजह से उसे एकदम से गुस्सा आ गया. वह नेत्रपाल और सर्वेश को भद्दीभद्दी गालियां देने लगा. नेत्रपाल समझ गया कि अब यहां रुकना ठीक नहीं है, इसलिए वह तुरंत चला गया.

इस के बाद नेत्रपाल ने पाकेश के रहते सर्वेश के घर आना बंद कर दिया. लेकिन एक दिन पाकेश ने दोनों को रंगेहाथों पकड़ लिया. तब पाकेश ने शराब पी कर सर्वेश की जम कर पिटाई की और इस के बाद उसे उस की मां के घर भेज दिया.

सर्वेश ने नेत्रपाल के सामने अपना दुखड़ा रोया तो उस ने हर हालत में उस का साथ देने का आश्वासन दिया. इसी के बाद दोनों ने अपने संबंधों के बीच रोड़ा बन रहे पाकेश को हटाने की योजना बना डाली. इस के लिए उन्होंने रक्षाबंधन वाला दिन तय किया. दोनों ने सलाह की कि उस दिन किसी भी कीमत पर पाकेश को ठिकाने लगा देना है.

योजना के अनुसार, सर्वेश ने पाकेश से रक्षाबंधन का त्यौहार मनाने के लिए गांव चलने को कहा. पाकेश जाना तो नहीं चाहता था, लेकिन पत्नी की जिद के आगे उसे जाना ही पड़ा. जेठ को भी वह गांव ले गई. रक्षाबंधन का त्यौहार मना कर वह पाकेश और बेटी को ले कर काशीपुर आ गई. घर वालों से उस ने बहाना बनाया कि रात को घर खाली छोड़ना ठीक नहीं है. जेठ और बेटे को उस ने गांव में ही छोड़ दिया था.

काशीपुर आने के बाद वह खाना बनाने को ले कर पाकेश से उलझ गई. उस ने कहा कि वह बुरी तरह से थकी है, इसलिए खाना नहीं बना सकती. पाकेश से उलझना भी उस की योजना में शामिल था. सर्वेश ने खाना बनाने से मना किया तो पाकेश उसे भद्दीभद्दी गालियां देते हुए घर से निकल गया. उस के जाते ही उस ने नेत्रपाल को फोन कर दिया.

योजना के अनुसार, उस दिन नेत्रपाल काशीपुर में ही रुका था. सर्वेश का संदेश मिलते ही वह उस के घर पहुंच गया. घर से निकल कर पाकेश सीधे ठेके पर गया और घर लौटा तो नशे में धुत था. पाकेश को देख कर नेत्रपाल दूसरे कमरे में छिप गया.

पाकेश के जाने के बाद सर्वेश ने जल्दीजल्दी रोटियां बना ली थीं. वापस आने पर सर्वेश ने उसे रोटियां खाने को दीं तो वह उसे गालियां देते हुए मारपीट करने लगा.

सर्वेश की पिटाई होते देख नेत्रपाल को गुस्सा आ गया. वह निकल कर बाहर आ गया और पाकेश को समझाने लगा. लेकिन नेत्रपाल को देख कर पाकेश का गुस्सा और बढ़ गया. वह सर्वेश को छोड़ कर नेत्रपाल को गालियां देने लगा. वह उसे मारने के लिए कोई औजार ढूंढ रहा था, तभी पहले से छिपा कर रखी लोहे की रौड उठा कर सर्वेश ने नेत्रपाल को थमा दी.

नेत्रपाल को लोहे की रौड थमा कर सर्वेश ने पाकेश को बांहों में दबोच लिया. नेत्रपाल ने इस मौके का लाभ उठाते हुए उस के सिर पर लोहे की रौड का जोरदार वार कर दिया. एक ही वार में वह जमीन पर गिर पड़ा. उस ने दूसरा वार किया तो पाकेश के गिरने की वजह से वह सर्वेश के सिर में लग गया. उस के सिर से भी खून रिसने लगा. लेकिन उस ने अपनी चोट पर ध्यान न दे कर बेहोश पड़े पाकेश को दबोच लिया तो नेत्रपाल ने उस का गला दबा दिया.

थोड़ी देर छटपटा कर पाकेश हमेशाहमेशा के लिए शांत हो गया. इस के बाद बचाव का तरीका समझा कर नेत्रपाल चला गया. सर्वेश सवेरा होने का इंतजार करने लगी.

वह पूरी रात यही सोचती रही कि यह बात वह घर वालों को कैसे बताएगी? सुबह उस ने फोन कर के जेठानी को किसी तरह सूचना भी दे दी और बचाव के लिए गढ़ी गई कहानी भी सुना दी, लेकिन वह खुद को पुलिस की नजरों से बचा नहीं सकी.

सर्वेश के बयान के बाद पुलिस ने नेत्रपाल को भी उस के मोबाइल फोन की लोकेशन के आधार पर गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में उस ने भी अपना अपराध स्वीकार करने के बाद वही पूरी कहानी दोहरा दी, जो सर्वेश सुना चुकी थी. नेत्रपाल और सर्वेश के अनुसार पाकेश को खत्म कर के दोनों शादी करना चाहते थे. लेकिन उन का यह सपना पूरा नहीं हो सका.

पूछताछ के बाद कोतवाली पुलिस ने नेत्रपाल और सर्वेश को अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया था. मजे की बात यह थी कि इतना बड़ा अपराध कर के भी सर्वेश को जरा भी पछतावा नहीं था. जेल जाते समय उस ने मां से भी बात नहीं की थी. अब उस के दोनों बच्चे सलेमपुर में ब्याही उस की बहन मुन्नी के पास हैं. द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

भाभी की सुपारी का राज

पाक प्यार में नापाक इरादे – भाग 1

सुबह के यही कोई 6 बजे बबीता का मोबाइल फोन बजा तो उस ने पहले नंबर देखा कि इतनी सुबहसुबह किसने फोन कर दिया. जब उस ने देखा कि नंबर देवरानी सर्वेश का है तो उस ने झट फोन रिसीव किया. फोन कान से लगा कर उस ने जैसे ही ‘हैलो’ कहा,

दूसरी ओर से सर्वेश ने रोते हुए कहा, ‘‘दीदी, मैं तो बरबाद हो गई. मेरा बसाबसाया घर उजड़ गया. पाकेश इस दुनिया में नहीं रहे. किसी ने उन्हें मार डाला.’’

बबीता सर्वेश की जेठानी थी, जो गांव में  रहती थी. सासससुर थे नहीं, इसलिए उस ने जेठानी को फोन किया था. सर्वेश ने जो भी कहा था, रोते हुए कहा था, इसलिए बबीता की समझ में पूरी बात नहीं आई थी. लेकिन इतना तो वह समझ ही गई थी कि पाकेश को किसी ने मार डाला है. वह कुछ पूछती, उस के पहले ही सर्वेश ने फोन काट दिया था, इसलिए उस ने पलट कर फोन किया.

पलट कर फोन करने पर सर्वेश ने बताया कि रात में पाकेश ने शराब पी कर उस के साथ मारपीट की थी. उस मारपीट में उस ने लोहे की रौड उस के सिर में मार दिया था, जिस से वह बेहोश हो गई थी. सुबह जब उसे होश आया तो पाकेश मरा पड़ा था. उस के बेहोशी के दौरान ही उस की किसी ने हत्या कर दी थी. इसलिए उसे पता नहीं चला कि उसे कौन मार गया.

बबीता ने तुरंत इस बात की जानकारी अपने पति तिरमल सिंह को दी. तिरमल सिंह सरकारी स्कूल में अध्यापक थे और उस समय स्कूल में थे. भाई की हत्या की सूचना मिलते ही वह छुट्टी ले कर घर आ गए और घर से अन्य लोगों को साथ ले कर काशीपुर के लिए रवाना हो गए.

तिरमल सिंह घर वालों के साथ पाकेश के घर पहुंचे तो सर्वेश घर का मुख्य दरवाजा बंद किए अंदर ही बैठी थी. उस समय तक आसपास रहने वालों को पता नहीं था कि पाकेश की हत्या हो चुकी है. जब घर वालों ने रोनाधोना शुरू किया, तब कहीं जा कर आसपड़ोस वालों को पाकेश की हत्या की जानकारी हुई. इस के बाद उस के घर के सामने भीड़ लग गई. यह 11 अगस्त की सुबह की बात है.

तिरमल सिंह ने पाकेश की हत्या की सूचना काशीपुर कोतवाली पुलिस को दी. सूचना मिलते ही आईटीआई चौकीप्रभारी रमेश तनबार, सीनियर सबइंसपेक्टर धीरेंद्र कुमार, एएसपी देवेंद्र पिंचा घटनास्थल पर पहुंच गए.

लाश के निरीक्षण के दौरान पुलिस ने लाश के पास से एक प्लास्टिक का फीता और कमरे के बाहर बरामदे से लोहे की एक रौड बरामद की, जिस के एक सिरे पर पेपर लपेट कर उस के ऊपर कपड़ा लपेटा हुआ था. लाश के सिर पर चोट के कई निशान थे. इस के अलावा उस के गले पर भी नीला निशान नजर आ रहा था. इस से साफ लग रहा था कि सिर पर चोट पहुंचाने के बाद उस का गला भी दबाया गया था.

घटनास्थल और लाश के निरीक्षण के बाद पुलिस ने मृतक पाकेश की पत्नी सर्वेश से पूछताछ की तो उस ने बताया कि 10 अगस्त, 2014 दिन रविवार को वह पति और बच्चों के साथ रक्षाबंधन का त्यौहार मनाने अपने गांव मोहद्दीपुर गई थी. त्योहार मना कर वह पति और बेटी के साथ वापस आ गई थी, जबकि जेठ धर्मवीर और बेटा वहीं गांव में रुक गए थे.

सर्वेश के बताए अनुसार रात में पाकेश ने खूब शराब पी. नशे में वह उस के साथ मारपीट करने लगा. तभी उस ने गुस्से में वहीं पड़ी लोहे की रौड उठा कर उस के सिर पर मार दी, जिस से वह बेहोश हो गई. सुबह 5 बजे के करीब उसे होश आया तो पाकेश मरा पड़ा था. इसलिए उसे पता नहीं कि वह कैसे मरा.

पुलिस ने सर्वेश से पाकेश के मिलनेजुलने वालों के बारे में पूछा तो उस ने कहा कि इस बारे में उसे कुछ पता नहीं है. सर्वेश की इस बात पर घर वाले चौंके, क्योंकि पिछले ही दिन वह घर वालों से कह कर आई थी कि शराब के चक्कर में पाकेश ने कई लोगों से दुश्मनी मोल ले ली है. अगर कल को इसे कुछ हो गया तो उसे कोई दोष नहीं देगा.

जब यह बात घर वालों ने पुलिस को बताई तो सारी परिस्थितियों पर गौर करने के बाद पुलिस को सर्वेश पर ही संदेह हो गया. लेकिन उस समय पुलिस के पास कोई सुबूत नहीं था, इसलिए पुलिस ने उसे हिरासत में लेना उचित नहीं समझा.

यह भी निश्चित था कि यह काम सर्वेश ने अकेले नहीं किया था, क्योंकि पाकेश अच्छी कदकाठी का नौजवान था. सर्वेश उसे अकेली काबू में नहीं कर सकती थी. उस ने पति को किसी की मदद से ही मारा था. पुलिस को उस के बारे में भी पता करना था.

पुलिस ने सर्वेश के साथी के बारे में पता करने के लिए उस का मोबाइल फोन कब्जे में ले लिया. इस के बाद घटनास्थल की सारी काररवाई निबटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. पोस्टमार्टम के बाद लाश घर वालों के हवाले कर दी गई तो उन्होंने उसे गांव ले जा कर उस का अंतिम संस्कार कर दिया.

मृतक पाकेश के भाई तिरमल सिंह ने पुलिस को जो तहरीर दी थी, उस में भाई की हत्या का संदेह उस की पत्नी सर्वेश पर व्यक्त किया था. पुलिस ने उसी हिसाब से जांच शुरू की. पुलिस ने सब से पहले उस के फोन नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई.

काल डिटेल्स के अनुसार, जिस रात पाकेश की हत्या हुई थी, उस रात सर्वेश ने एक नंबर पर कई बार फोन कर के बात की थी. पुलिस ने उस नंबर के बारे में पता किया तो वह नंबर नेत्रपाल का था. वह महुआखेड़ागंज की किसी फैक्ट्री में सुपरवाइजर था. पुलिस उस के घर पहुंची तो घर वालों ने बताया कि वह रक्षाबंधन की रात से घर नहीं आया था. पुलिस के पास उस का नंबर था ही, उसे सर्विलांस पर लगवा दिया.

पाकेश का अंतिम संस्कार हो जाने के बाद पुलिस सर्वेश को पूछताछ के लिए कोतवाली ले आई. इस बार की पूछताछ में भी उस ने वही पुरानी कहानी सुना दी, जो उस ने पहले सुनाई थी. लेकिन पुलिस ने इस बार उस की कहानी पर विश्वास नहीं किया और उस से नेत्रपाल के बारे में पूछा.

सर्वेश ने बताया कि वह जिस फैक्ट्री में काम करती थी, नेत्रपाल उसी में सुपरवाइजर था. साथसाथ काम करने की वजह से दोनों में जानपहचान हो गई थी. उसी की वजह से पाकेश से भी उस की दोस्ती हो गई थी. जिस रात पाकेश की हत्या हुई थी, उस रात पाकेश और नेत्रपाल की कई बार बातचीत हुई थी. उन के बीच क्या बात हुई थी, यह उसे पता नहीं था. क्योंकि उस समय वह खाना बना रही थी.

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