खुद के बिछाए जाल में – भाग 2

सुरेंद्र के लिए यह सुनहरा मौका था. घर में लवली अकेली रह गई थी. अब वह उस से कुछ भी कह सकता था और उस की इच्छा होने पर उस के साथ कुछ भी कर सकता था. गांव में सुरेंद्र को ही डा. बिस्वास अपना सब से करीबी मानता था, इसलिए पत्नी और बच्चों की जिम्मेदारी उसे ही सौंप गया था.

इस जिम्मेदारी को निभाने के लिए सुरेंद्र ने लवली के पास आ कर कहा था, ‘‘किसी भी चीज की जरूरत हो, बेझिझक कहना.’’

लवली ने एक आंख दबा कर कहा, ‘‘डा. साहब तो गांव जा रहे हैं. अब हमें अपनी सभी जरूरतें तुम्हें ही बतानी पड़ेंगी.’’

सुबह सुरेंद्र ने क्लिनिक खुलवाई तो रात को बंद भी उसी ने करवाई. क्लिनिक बंद करा कर वह जाने लगा तो लवली ने कहा, ‘‘रुको, खाना खा कर जाना. वैसे भी अकेली बोर हो रही हूं.’’

बच्चे खा कर जल्दी ही सो गए थे. उस के बाद लवली और सुरेंद्र ने खाना खाया. इस बीच दोनों दुनिया जहान की बातें करते रहे. कामों से फुरसत हो कर लवली सुरेंद्र के पास आई तो उस ने उसे बांहों में भर लिया. तब लवली ने कहा, ‘‘सुरेंद्र, तुम तो जानते ही हो कि मैं शादीशुदा ही नहीं, 2 बच्चों की मां भी हूं. तुम्हारा यह प्यार मेरे शरीर तक तो ही सीमित नहीं रहेगा?’’

‘‘मैं तुम्हारे शरीर से नहीं, तुम से प्यार करता हूं. मैं तुम्हें वही इज्जत दूंगा, जो एक पत्नी को मिलती है. मैं तुम्हें रानी बना कर रखूंगा. तुम्हें तो पता ही है कि मेरे पास किसी चीज की कमी नहीं है.’’ सुरेंद्र ने कहा.

‘‘क्या तुम मुझ से विवाह करोगे?’’

‘‘क्यों नहीं. मैं ने तुम से प्यार किया है तो विवाह भी करूंगा.’’ कह कर सुरेंद्र ने अपने प्यार की मुहर लवली के कपोलों पर लगा दी. सुरेंद्र की मजबूत बांहों में लवली पिघलने लगी थी. वह भी उस से लिपट गई. तब उस ने न पति के बारे में सोचा, न बच्चों के बारे में.

डा. विश्वास के वापस आतेआते उस की गृहस्थी में सेंध लग चुकी थी. दोस्त और पत्नी ने डा. बिस्वास के विश्वास को खत्म कर दिया था. डाक्टर तो अपने काम में लगा रहता था, ऐसे में लवली को प्रेमी से मिलने में कोई परेशानी नहीं होती थी. दोनों दिन में न मिल पाते तो रात में डाक्टर के सो जाने के बाद मिल लेते थे.

सुरेंद्र और लवली का यह संबंध ज्यादा दिनों तक न तो गांव वालों से छिपा रह सका न डा. बिस्वास से. पत्नी के बेवफा हो जाने से डाक्टर हैरान तो हुआ ही, परेशान भी हो उठा. उसे पत्नी से ऐसी उम्मीद नहीं थी. जब गांव के कई लोगों ने उसे टोका तो एक दिन उस ने लवली से पूछा, ‘‘मैं जो सुन रहा हूं क्या वह सच है?’’

‘‘तुम क्या सुन रहे हो. मुझे कैसे पता चलेगा. इसलिए मैं क्या बताऊं कि तुम ने जो सुना है, वह सच है या झूठ?’’

‘‘तुम जानती हो कि तुम्हें और सुरेंद्र को ले कर गांव में खूब चर्चा हो रही है. मेरे खयाल से यह ठीक नहीं है. अगर तुम अपनी सीमा में रहो तो तुम्हारे लिए भी ठीक रहेगा और मेरे लिए भी.’’ डा. बिस्वास ने चेताया.

‘‘यह झूठ है. गांव वालों की बातों में आ कर मुझ पर शक करने लगे. मैं तुम्हारी सगी हूं या गांव वाले?’’ लवली बोली.

लवली ने भले ही अपने ऊपर लगे आरोप को नकार दिया था, लेकिन डा. बिस्वास को उस की बात पर विश्वास नहीं हुआ. फलस्वरूप वह तनाव में रहने लगा. सब से ज्यादा चिंता उसे अपने बच्चों की थी. अब अकसर पतिपत्नी में लड़ाईझगड़ा और मारपीट होने लगी. इस के बावजूद लवली ने सुरेंद्र से मिलना बंद नहीं किया. इस की एक वजह यह भी थी कि सुरेंद्र उसे शादी का भरोसा दे रहा था. शायद इसीलिए उसे न पति की परवाह रह गई थी, न ही बच्चों की. अब उसे सिर्फ अपने सुख की परवाह रह गई थी.

हालात बेकाबू होते देख डा. बिस्वास गांव लौटने की सोचने लगा. जहां उस का घर था और अपने लोग भी थे. लेकिन लवली वापस जाने के लिए तैयर नहीं थी. इसलिए उस ने सुरेंद्र से साफ कह दिया, ‘‘जो कुछ भी करना है जल्दी कर लो, वरना डाक्टर मुझे जबरदस्ती कोलकाता ले कर चला जाएगा. तब मैं उसे मना भी नहीं कर पाऊंगी. क्योंकि बिना विवाह के मैं तुम्हारे साथ रह भी नहीं सकती.’’

लवली के दबाव डालने पर सुरेंद्र लवली को ले कर बरेली में रहने ही नहीं लगा, बल्कि कोर्टमैरिज भी कर ली. पत्नी और दोस्त के विश्वासघात से डा. बिस्वास टूट गया. वह गांव वालों के सामने फूटफूट कर रो पड़ा. गांव वालों को उस से सहानुभूति तो थी, लेकिन कोई कुछ नहीं कर पाया. सुरेंद्र के पिता रामचरण सिंह और भाई महेंद्र को भी उस की यह हरकत पसंद नहीं आई, लेकिन उस की दबंगई के आगे उन की भी एक न चली.

डा. बिस्वास की दुनिया लुट चुकी थी. जिसे सुख देने के लिए वह घरपरिवार छोड़ कर इतनी दूर आया था, जब वही छोड़ कर चली गई तो उस के लिए यहां रहना मुश्किल हो गया. वह अपने बच्चों को ले कर अपने गांव लौट गया. यह करीब 17 साल पहले की बात है.

डा. बिस्वास गांव छोड़ कर चला गया तो सुरेंद्र लवली को ले कर गांव आ गया. लेकिन घर वालों ने उसे साथ नहीं रखा. उस के हिस्से की जमीन दे कर उसे अलग कर दिया. सुरेंद्र ने लवली के साथ अपनी गृहस्थी अलग बसा ली और आराम से रहने लगा.

लवली अब सुरेंद्र की प्रेमिका नहीं, पत्नी थी. इसलिए सुरेंद्र अब उसे अपने हिसाब से रखना चाहता था, जबकि लवली सीमाओं में बंध कर नहीं रहना चाहती थी. लवली सुरेंद्र के 2 बच्चों, वीरेंद्र और तृप्ति की मां बन गई थी. इस के बावजूद वह जिस तरह रहती आई थी, उसी तरह रहना चाहती थी. सुरेंद्र लवली को अपने हिसाब से रखने लगा तो उसे लगा कि उस की आजादी खत्म हो रही है. वह बंदिशों में रहने वाली नहीं थी. डा. बिस्वास ने कभी उसे बंदिशों में रखा भी नहीं था, इसलिए सुरेंद्र की ये बंदिशें उसे खल रही थीं.

अब लवली को अपना यह यार अखरने लगा था. उसे ज्यादा परेशानी हुई तो एक दिन उस ने सुरेंद्र से कह भी दिया, ‘‘मैं तुम्हारी खरीदी हुई गुलाम नहीं कि जो तुम कहोगे, मैं वही करूंगी. मैं उन औरतों में नहीं हूं, जो पति की अंगुली पकड़ कर चलती हैं. मेरी भी अपनी इच्छाएं हैं. मैं अपने हिसाब से जीना चाहती हूं.’’

लवली की ये बातें सुरेंद्र को बिलकुल अच्छी नहीं लगीं. अब उसे लगा कि दूसरे की पत्नी को अपनी पत्नी बना कर उस ने बड़ी गलती की है. लेकिन उसे अपनी मर्दानगी पर विश्वास था, इसलिए उसे लगता था कि वह जिस तरह चाहेगा, पत्नी को रखेगा. लेकिन उस का यह विश्वास तब टूट गया, जब लवली ने उस की मरजी के खिलाफ मीरगंज के एक निजी अस्पताल में नर्स की नौकरी कर ली.

लवली ने घर के बाहर कदम रखा तो उस की लोगों से जानपहचान बढ़ने लगी. उन में से कुछ लोगों से उस की दोस्ती भी हो गई, तो वे उस से मिलने हुरहुरी तक आने लगे. सुरेंद्र और उस के भाइयों ने इस का विरोध किया. लेकिन लवली अब खुद अपने पैरों पर खड़ी थी, इसलिए उस ने किसी की एक नहीं सुनी.

सुरेंद्र ने लवली को समझाया भी और धमकाया भी, लेकिन उस पर कोई असर नहीं हुआ. वह उस की कोई भी बात मानने को तैयार नहीं थी. सुरेंद्र और उस के भाइयों ने ज्यादा रोकटोक की तो लवली ने मीरगंज के मोहल्ला मुगरा में एक कमरा किराए पर लिया और उसी में बच्चों के साथ रहने लगी. बच्चे भी अब तक काफी बड़े हो गए थे. बेटा वीरेंद्र 16 साल का था तो बेटी तृप्ति 14 साल की.

खुद के बिछाए जाल में – भाग 1

पढ़ाई पूरी कर के रोजीरोटी की तलाश में डा. बिस्वास अपने एक दोस्त की मदद से पश्चिम बंगाल से उत्तर प्रदेश के जिला बरेली आ गया था. यहां वह किसी गांव में क्लिनिक खोल कर प्रैक्टिस करना चाहता था. अपने साथ वह पत्नी  और बच्चों को भी ले आया था. डा. बिस्वास का वह दोस्त बरेली के कस्बा मीरगंज मे अपनी क्लिनिक चला रहा था. उसी की मदद से डा. बिस्वास ने मीरगंज से यही कोई 5 किलोमीटर दूर स्थित गांव हुरहुरी में अपना क्लीनिक खोल लिया था.

गांव हुरहुरी में न कोई क्लिनिक थी न कोई डाक्टर. इसलिए बीमार होने पर गांव वालों को इलाज के लिए 5 किलोमीटर दूर भी दोरगंज जाना पड़ता था. इसलिए डा. बिस्वास ने हुरहुरी में अपना क्लिनिक खोला तो गांव वालों ने उस का स्वागत ही नहीं किया, बल्कि क्लीनिक खोलने में उस की हर तरह से मदद भी की. डा. बिस्वास को बवासीर, भगंदर जैसी बीमारियों को ठीक करने में महारत हासिल थी. इसी के साथ वह छोटीमोटी बीमारियों का भी इलाज करता था. सम्मानित पेशे से जुड़ा होने की वजह से गांव वाले उस का बहुत सम्मान करते थे.

इस की एक वजह यह भी थी कि उस ने गांव वालों को एक बड़ी चिंता से मुक्त कर दिया था. गांव वाले किसी भी समय उस के यहां आ कर दवा ले सकते थे. गांव में जाटों की बाहुल्यता थी. धीरेधीरे डा. बिस्वास गांव वालों के बीच इस तरह घुलमिल गया, जैसे वह इसी गांव का रहने वाला हो. गांव वालों ने भी उसे इस तरह अपना लिया था, जैसे वह उन्हीं के गांव में पैदा हो कर पलाबढ़ा हो.

डा. बिस्वास की पत्नी लवली घर के कामकाज निपटा कर उस की मदद के लिए क्लिनिक में आ जाती थी. वह एक नर्स की तरह क्लिनिक में काम करती थी. क्लिनिक में आने वाला हर कोई उसे भाभी कहता था. इस तरह जल्दी ही वह पूरे गांव की भाभी बन गई. वह काफी विनम्र थी, इसलिए गांव के लोग उस से काफी प्रभावित थे.

गांव के लोग अकसर खाली समय में डा. बिस्वास की क्लिनिक में आ कर बैठ जाते और गपशप करते हुए अपना समय पास करते. उन्हीं बैठने वालों में एक सुरेंद्र सिंह भी था. सुरेंद्र हुरहुरी के रहने वाले चौधरी रामचरण सिंह का बेटा था. सुरेंद्र सिंह जाट और संपन्न परिवार का था.

डा. बिस्वास को इस गांव में क्लिनिक खोले लगभग 2 साल हो चुके थे. गांव के लगभग सभी लोगों से उस के मधुर संबंध थे. लेकिन सुरेंद्र सिंह से उस की कुछ ज्यादा ही पटती थी.

इसी का नतीजा था कि सुरेंद्र डा. बिस्वास के घर भी आताजाता था. डा. बिस्वास को कभी शहर से दवा मंगानी होती थी तो वह उसे शहर भी भेज देता था. इस के अलावा भी उसे किसी तरह की मदद की जरूरत होती थी तो वह सुरेंद्र को ही याद करता था. अन्य लोगों की तरह सुरेंद्र भी लवली को भाभी कहता था. कभीकभी सुरेंद्र डाक्टर की गैरमौजूदगी में भी उस के घर आ जाता तो लवली पति के इस दोस्त की खूब खातिर करती.

सुरेंद्र जवान भी था और अविवाहित भी. शायद यही वजह थी कि डा. बिस्वास के यहां आनेजाने में दोस्ती की सीमाओं को लांघने के विचार उस के मन में आने लगे. खूबसूरत लवली की मुसकान और सेवाभाव का वह गलत अर्थ लगा कर उस के घर कुछ ज्यादा ही आनेजाने लगा. जबकि डा. बिस्वास उस पर उसी तरह विश्वास करते रहे. उस के मन में क्या है, यह वह समझ नहीं पाए.

डा. बिस्वास को अपने दोस्त सुरेंद्र पर इतना विश्वास था कि अगर पत्नी को कुछ खरीदने के लिए बरेली जाना होता तो वह उसे उस के साथ भेज देता था. सुरेंद्र के लिए यह बढि़या मौका होता था. उसे अकेले में लवली से बात करने का मौका तो मिलता ही था, उस के साथ घूमनेफिरने का भी मौका मिलता था.

सुरेंद्र और लवली जब भी बरेली जाते बस से जाते थे. ऐसे में वह लवली से सट कर बैठता. बगल में बैठ कर वह लवली से इस तरह हरकतें करता, जैसे वह उस की पत्नी हो. लवली उन की इन हरकतों पर ज्यादा ध्यान नहीं देती थी. फिर भी जल्दी ही उसे उस के मन की बात का पता चल गया. सुरेंद्र इतना खराब भी नहीं था कि वह उसे झिड़क देती. उस की शक्लसूरत तो ठीकठाक थी ही, खातेपीते घर का भी था. शरीर से भी हृष्टपुष्ट था. कुल मिला कर वह इस तरह का था कि कोई औरत उसे पसंद कर लेती.

इन्हीं सब वजहों से लवली को भी सुरेंद्र अच्छा लगता था. इस की एक वजह यह थी कि वह एक प्यार करने वाला लड़का था. उस की हरकतों ने लवली के मन के आकर्षण को और बढ़ा दिया था. इसलिए लवली कभी भी उस की किसी हरकत का विरोध नहीं करती थी. फिर तो सुरेंद्र की हिम्मत बढ़ती गई. इस के बावजूद वह अपने मन की बात लवली से कह नहीं पा रहा था.

एक दिन लवली सुरेंद्र के साथ शौपिंग करने बरेली गई तो जल्दी ही उस का काम खत्म हो गया. फुरसत मिलने पर सुरेंद्र ने कहा, ‘‘भाभीजी, अभी तो घर जाने में काफी समय है. अगर आप कहें तो चल कर फिल्म ही देख लें.’’

लवली भला क्यों मना करती. उस ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘अगर तुम्हारा दिल फिल्म देखने को कर रहा है तो मना कर के मैं उसे क्यों तोड़ूं. चलो तुम्हारे साथ मैं भी फिल्म देख लूंगी. वैसे भी यहां आने के बाद हौल में फिल्म देखने का मौका बिलकुल नहीं मिला है.’’

लवली के हां करते ही सुरेंद्र ने टिकटें खरीदीं और उस के साथ फिल्म देखने के लिए अंदर जा बैठा. फिल्म शुरू हुई. फिल्म में प्रेम का दृश्य आया तो अंधेरे में ही सुरेंद्र ने लवली का हाथ पकड़ कर चूम लिया. लवली ने इस का विरोध करने के बजाय उस का हाथ अपने हाथ में ले कर दबा दिया.

फिल्म खत्म हुई. दोनों बाहर आए तो उन के चेहरे खिले हुए थे. अब दोनों ही इस तरह चल रहे थे, जैसे प्रेमी प्रेमिका हों. सुरेंद्र ने लवली को फिल्म तो दिखाई ही, बढि़या रेस्तरां में खाना भी खिलाया. वह उस के लिए कोई बढि़या सा उपहार भी खरीदना चाहता था, लेकिन लवली ने कहा, ‘‘सब कुछ आज ही कर दोगे तो फिर आगे क्या करोगे.’’

दिल की बात जुबान पर आ जाने से लवली भी खुश थी और सुरेंद्र भी. दोनों के ही दिलों से बहुत बड़ा बोझ उतर गया था. लवली डाक्टर के 2 बच्चों की मां थी, लेकिन वह डाक्टर से संतुष्ट नहीं थी. शायद इस की वजह लवली की महत्त्वाकांक्षा थी. वैसे भी वह डा. बिस्वास के साथ ज्यादा खुश नहीं थी. इस की वजह यह थी कि डाक्टर की कमाई उतनी नहीं थी, जितनी उस की अपेक्षाएं थीं, शायद इसीलिए उस ने सुरेंद्र का हाथ थाम लिया था.

लवली का मन भटका तो डा. बिस्वास में उसे कमियां ही कमियां नजर आने लगी थीं. दिल पागल होता है तो अच्छाइयां भी बुरी नजर आती हैं. ऐसा ही लवली के साथ भी हुआ था.

सुरेंद्र ने लवली के दिल में अपने लिए जगह तो बना ली थी. लेकिन वह जो चाहता था, वह हासिल नहीं हुआ था. इस के लिए वह मौका तलाश रहा था. लेकिन उसे मौका नहीं मिल रहा था. उसी बीच डा. बिस्वास को सूचना मिली कि गांव में उन की मां की तबीयत खराब है. मां को देखने जाना जरूरी था, इसलिए डा. बिस्वास गांव चला गया. पत्नी और बच्चों को वह इसलिए नहीं ले गया कि उन के जाने से क्लिनिक में ताला लग जाता. इसीलिए लवली को उस ने हुरहुरी में ही छोड़ दिया.

पत्नी जब न बनी दोस्तों का बिछौना

आयशा हत्याकांड : मोहब्बत की सजा मौत – भाग 3

पूरी योजना तैयार कर के इमरान ने 14 सितंबर, शनिवार को बहन से कहा, ‘‘आयशा, मुझे लगता है कि नाजिम तुझे खुश रखेगा. इसलिए तेरा निकाह उस से कर देना ही ठीक है. ऐसा करो, आज रात 9 बजे नाजिम को फोन कर के तुम घर पर बुला लो. निकाह कब और कैसे किया जाए, बात कर लेते हैं.’’

इमरान की बात सुन कर आयशा को यकीन नहीं हुआ. इसलिए उस ने कहा, ‘‘भाईजान, आप यह क्या कह रहे हैं?’’

‘‘मैं सच कह रहा हूं,’’ इमरान ने विश्वास दिलाते हुए कहा, ‘‘जब घर के सभी लोग तैयार हैं तो मैं ही तेरी खुशी में टांग क्यों अड़ाऊं?’’

इमरान में बदलाव देख कर आयशा खुश हो उठी. उस ने कहा, ‘‘भाईजान, मैं अभी नाजिम को फोन किए देती हूं. वह काम से लौटते हुए सीधे अपने घर आ जाएगा.’’

इस के बाद आयशा ने अपने मोबाइल फोन से नाजिम को फोन कर के कहा, ‘‘नाजिम, आज काम से लौटते समय तुम सीधे मेरे घर आ जाना. इमरान भाई मान गए हैं. वह तुम से बात कर के निकाह की तारीख पक्की करना चाहते हैं.’’

आयशा ने अपनी यह बात पूरे विश्वास के साथ कही थी, इसलिए नाजिम ने हामी ही नहीं भरी, बल्कि ठीक समय पर वह उस के घर आ गया. इमरान उस से बड़ी आत्मीयता से मिला. नाजिम को उस ने ऊपर के कमरे में ले जा कर बैठा दिया. उस कमरे में पहले से ही उस्मान और सुफियान बैठे थे. नाजिम उन्हें जानता था, इसलिए उन से बातें करने लगा. नाजिम को नाश्ता भी कराया गया. इस के बाद निकाह कब और कैसे किया जाए, इस पर बातचीत होने लगी. रात 11 बजे तक निकाह के बारे में बहुत सी बातें तय हो गईं.

इस के बाद इमरान ने कहा, ‘‘नाजिम, अम्मी तुम्हारे लिए भी खाना बना रही हैं, खाना खा कर जाना.’’

नाजिम को लगा कि अब सब ठीक हो गया है, इसलिए उस ने हामी भर ली. अब तक गांव में सन्नाटा पसर गया था. दिन भर का थकामांदा नाजिम लापरवाह चारपाई पर बैठा था, इसी का फादया उठा कर उस्मान और सुफियान ने अचानक नाजिम के हाथपैर पकड़ लिए तो इमरान ने झपट कर नाजिम का गला पकड़ लिया और दबाने लगा. छटपटा कर नाजिम ने प्राण त्याग दिए. वह जिंदा न रह जाए, इस के लिए उस पर चाकू से भी वार किए गए. इस के बाद रात में ही नाजिम की लाश गांव के बाहर बाजरे के खेत में बीचोबीच फेंक दी गई.

काम हो जाने के बाद सुफियान और उस्मान अपनेअपने घर चले गए. आयशा, उस की अम्मी और अब्बू तथा घर के अन्य लोग नाजिम की हत्या होते देखते रहे, लेकिन डर के मारे कोई विरोध नहीं कर सका. आयशा ने कुछ कहना चाहा तो इमरान चीख कर बोला, ‘‘खबरदार, अगर किसी ने कुछ भी बोलने या कहने की हिम्मत की तो मुझ से बुरा कोई नहीं होगा. उस का भी वही हाल कर दूंगा, जो मैं ने नाजिम का किया है.’’

घर वालों को धमका कर इमरान उस कमरे में गया, जिस में उस ने नाजिम की हत्या की थी. उस की साफसफाई कर के सुबह से पहले ही घरवालों को बिना कुछ बताए वह भी फरार हो गया.

3 दिनों तक नाजिम के बारे में किसी को कुछ पता नहीं चला. 18 सितंबर को जब लाश से दुर्गंध आने लगी तो कुछ लोग खेत के भीतर यह देखने के लिए घुसे कि दुर्गंध किस चीज की आ रही है. तब नाजिम की हत्या का पता चला.

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मोहम्मद आरिफ की सूचना पर पुलिस इमरान और साथियों को गिरफ्तार नहीं कर सकी तो दबाव बनाने के लिए इमरान के अम्मीअब्बू तथा बहन आयशा को थाने ले आई थी. पूछताछ के बाद थानाप्रभारी रामसूरत सोनकर ने इब्राहीम को थाने में रोक कर परवीन बेगम और आयशा को घर भेज दिया.

इमरान को साथियों से पता चल गया था कि आयशा ने नाजिम की हत्या की एकएक बात पुलिस को बता दी है. यही नहीं, वह अदालत में भी यह कहने को तैयार है कि नाजिम की हत्या उस के भाई इमरान ने अपने मौसेरे भाई उस्मान तथा दोस्त सुफियान के साथ मिल कर की है.

आयशा चश्मदीद गवाह थी. अगर वह अदालत में गवाही देती तो इमरान और उस के साथियों को सजा निश्चित थी. इसलिए इमरान को लगा कि किसी भी तरह आयशा को रोका जाए. वह उसी रात छिपतेछिपाते घर आया और आयशा को समझाने लगा कि वह उस के खिलाफ गवाही न दे. लेकिन आयशा अपनी जिद पर अड़ी थी. क्योंकि उस के प्रेमी को मारा गया था.

उस ने कहा, ‘‘दुनिया भले ही इधर से उधर हो जाए, मैं अपनी बात से नहीं डिगूंगी. अदालत में मैं वही कहूंगी, जो मैं ने आंखों से देखा है.’’

इस के बाद इमरान को इतना गुस्सा आया कि उस ने तय कर लिया कि इसे मार देना ही ठीक है. उस ने मिट्टी के तेल का डिब्बा उठाया और उस पर तेल डालने लगा. आयशा जान बचाने के लिए चीखते हुए भागी. तब उसे लगा कि अगर उस ने आग लगाई तो यह शोर मचा देगी.

शोरशराबा न हो, यह सोच कर उस ने आयशा को पकड़ा और अपने दोस्त जहीद की मदद से उस का गला दबा कर मार दिया. इस के बाद हत्या को आत्महत्या का रूप देने के लिए उस ने आयशा की लाश को रस्सी का फंदा बना कर दरवाजे के ऊपर बने रोशानदान से लटका दिया और अपने साथी जहीद के साथ घर से भाग गया.

कथा लिखे जाने तक नाजिम की हत्या में शामिल तीसरे अभियुक्त सुफियान तथा आयशा की हत्या में शामिल जहीद को पुलिस गिरफ्तार नहीं कर सकी थी. पुलिस उन की गिरफ्तारी के लिए जगहजगह छापे मार रही थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित.

आयशा हत्याकांड : मोहब्बत की सजा मौत – भाग 2

पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में इमरान और उस्मान ने नाजिम और आयशा की हत्या की जो कहानी पुलिस को बताई, वह प्रेमसंबंध और औनर किलिंग की निकली.

इलाहाबाद के थाना धूमनगंज के गांव दामूपुर में मोहम्मद आरिफ अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी के अलावा 6 बेटे थे. बेटों में नाजिम सब से छोटा था. वह मकानों में मार्बल लगाने का ठेका लेता था, जिस से वह अच्छीखासी कमाई कर रहा था. जबकि मोहम्मद आरिफ गांव में ही पान की दुकान चलाते थे.

इसी गांव के रहने वाले मोहम्मद इब्राहीम मोटर मैकेनिक थे. जीटी रोड चौफटका पर उस की अपनी दुकान थी. घर में पत्नी परवीन बेगम के अलावा 3 बेटे और 4 बेटियां थीं. 18 वर्षीया आयशा तीसरे नंबर पर थी. एकहरे बदन की गोरीचिट्टी आयशा देखने में ठीकठाक लगती थी.

आयशा के भाई इमरान की नाजिम से खूब पटती थी. उन की यह दोस्ती बचपन की थी. नाजिम का उस के घर भी आनाजाना था. इसी आनेजाने में आयशा को नाजिम कब पसंद आ गया, उसे खुद ही पता नहीं चला. नाजिम आयशा को 1-2 दिन दिखाई न देता तो वह बेचैन हो उठती. उस की आंखें नाजिम के दीदार को तड़पने लगतीं.

जल्दी ही नाजिम को आयशा की इस तड़प का अहसास हो गया. यही वजह थी कि जिस आग में आयशा जल रही थी, उसी आग मे नाजिम भी जलने लगा. वह जब भी आयशा के घर आता, चाहतभरी नजरों से उसे देखता रहता.

ऐसे में ही किसी दिन आयशा और नाजिम को तनहाई में मिलने का मौका मिला तो दोनों के दिल की तड़प होठों पर आ गई. नाजिम ने आयशा का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘आयशा, तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो. जी चाहता है मैं तुम्हें हमेशा देखता रहूं.’’

‘‘नाजिम, मेरा भी यही हाल है.’’ आयशा उस के नजदीक आकर बोली, ‘‘मेरा भी मन करता है कि हर पल तुम्हें ही देखती रहूं, तुम से खूब बातें करूं, तुम्हारे साथ घूमूं. तुम मेरे दिलोदिमाग में रचबस गए हो. दिन में चैन नहीं मिलता तो रातों को नींद नहीं आती. बस, तुम्हारी ही यादों में खोई रहती हूं.’’

आयशा अपनी बात कह ही रही थी कि नाजिम ने उसे अपनी बांहों में भींच लिया. इस के बाद धीरेधीरे उन का प्यार परवान चढ़ने लगा. गुपचुप तौर पर दोनों कभी घर में तो कभी घर के बाहर रात के अंधेरों में मिलनेजुलने लगे. आयशा जब भी नाजिम से मिलती, अपने प्यार की दुनिया बसाने का स्वप्न उस के सीने पर सिर रख कर देखती.

आयशा नाजिम पर कुछ इस कदर दीवानी हुई कि एक दिन अपना सबकुछ उस के हवाले कर दिया. इस के बाद नाजिम ने उसे भरोसा दिलाया कि दुनिया भले ही इधर से उधर हो जाए, लेकिन वह उसे इधर से उधर नहीं होने देगा. वह उसी से निकाह करेगा. प्यार मोहब्बत कोई छिपने की चीज तो है नहीं, यही वजह थी कि नाजिम और आयशा की मोहब्बत का भी खुलासा हो गया. गांव में उन की मोहब्बत की चर्चाएं होने लगीं.

यह खबर इब्राहीम और उस के बेटे इमरान तक भी पहुंच गई. बहन की इस करतूत से इमरान को आग सी लग गई. वह आयशा पर नजर रखने लगा. उस ने आयशा का घर से निकलना बंद करा दिया.

इस के बाद उस ने नाजिम को भी धमकाया, ‘‘खबरदार, अब कभी आयशा से मिलने की कोशिश की तो अंजाम बहुत बुरा होगा.’’

लेकिन नाजिम और आयशा की मोहब्बत इतनी गहरी हो चुकी थी कि इमरान की कोई भी कोशिश सफल नहीं हुई. किसी न किसी बहाने आयशा और नाजिम मिल ही लेते थे.

ऐसे ही पलों में एक दिन आयशा ने कहा, ‘‘नाजिम, मेरे भाईजान इमरान को हमारी मोहब्बत पर सख्त ऐतराज है. वह नहीं चाहते कि मैं तुम से मिलूं. उन्होंने मुझ पर इतनी सख्ती कर दी है कि तुम से मिलना मेरे लिए मुश्किल हो गया है. गांव में भी हमारी मोहब्बत के चर्चे आम हो गए हैं. वैसे मेरी अम्मी और अब्बू को हमारी मोहब्बत पर ज्यादा ऐतराज नहीं है. अगर तुम अपने अब्बू को निकाह के लिए मेरे अब्बू के पास भेजो तो बात बन सकती है.

नाजिम को आयशा की बात उचित लगी. उस ने आयशा को आश्वासन दिया कि घर पहुंचते ही वह अम्मीअब्बू से निकाह की बात करेगा. नाजिम ने कहा ही नहीं, बल्कि घर आते ही बात भी की. तब अगले ही दिन उस के अब्बू आयशा के अब्बू इब्राहीम से मिलने उन के कारखाने पर जा पहुंचे. उन्होंने उन से आयशा और नाजिम के निकाह की बात की तो पहले तो इब्राहीम ने मना कर दिया.

लेकिन बाद में कहा, ‘‘देखो आरिफ भाई, मुझे तो इस निकाह से कोई ऐतराज नहीं है. लेकिन मुझे पूरा विश्वास है कि इमरान इस निकाह के लिए तैयार नहीं होगा. फिर भी मैं घर में बात चलाऊंगा.’’

इमरान को जब पता चला कि आयशा के निकाह के लिए नाजिम के अब्बू उस के अब्बू के पास आए थे तो वह स्वयं को रोक नहीं सका और जा कर नाजिम से झगड़ा करने लगा. तब गांव के कुछ लोगों ने उसे समझाबुझा कर शांत किया.

कहीं कुछ उलटासीधा न हो जाए, यह सोच कर गांव के कुछ बुजुर्गों ने इकट्ठा हो कर इमरान को समझाया कि नाजिम खाताकमाता है, आयशा भी बालिग हो चुकी है, इसलिए दोनों का निकाह करने में उसे परेशानी किस बात की है? कोई ऊंचनीच हो, इस से बेहतर है कि दोनों का निकाह कर दिया जाए. बुजुर्गों के सामने तो इमरान कोई विरोध नहीं कर सका, लेकिन दिल से वह इस निकाह के लिए तैयार नहीं हुआ.

आयशा और नाजिम की मोहब्बत की उम्र 2 साल से अधिक हो चुकी थी. लाख कोशिश कर के भी इमरान आयशा और नाजिम को अलग नहीं कर सका. बुजुर्गों के समझाने के बाद नाजिम और आयशा को लगने लगा था कि अब उन का निकाह हो जाएगा. इस की वजह यह थी कि दोनों के अम्मीअब्बू राजी थे. बात सिर्फ इमरान की थी. उन्हें विश्वास था कि एक न एक दिन वह भी मान जाएगा.

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15-20 दिनों तक इमरान ने भी विरोध नहीं किया तो आयशा और नाजिम को लगा कि अब सारी रुकावटें दूर हो गई हैं. जबकि आयशा ने जो किया था, उस से इमरान अंदर ही अंदर सुलग रहा था. वह किसी भी कीमत पर आयशा का निकाह नाजिम से नहीं होने देना चाहता था. इस के लिए जब उसे कोई राह नहीं सूझी तो उस ने गुपचुप तरीके से साजिश रच डाली. इस साजिश में उस ने अपने मौसेरे भाई उस्मान, जो बेगम बाजार, बमरौली का रहने वाला था तथा अपने दोस्त सुफियान को विश्वास में ले कर शामिल कर लिया.

आयशा हत्याकांड : मोहब्बत की सजा मौत – भाग 1

उत्तर प्रदेश के जिला इलाहाबाद के थाना धूमनगंज के थानाप्रभारी रामसूरत सोनकर अपने कार्यालय  में जैसे ही आ कर बैठे, एक बुजुर्ग उन के सामने आ कर खड़ा हो गया. उन्होंने उस की ओर देखा तो वह हाथ जोड़ कर बोला, ‘‘साहब, मेरा नाम मोहम्मद आरिफ है. मैं दामूपुर गांव का रहने वाला हूं. मेरा 26 वर्षीय बेटा नाजिम 14 सितंबर की सुबह 10 बजे घर से काम पर जाने के लिए निकला था.

शाम को वह घर नहीं लौटा तो मैं उस की तलाश करने लगा. लेकिन उस का कुछ पता नहीं चला. आज सुबह 5 बजे गांव में शोर मचा कि सुमित पाल के बाजरे के खेत में एक लड़के की लाश पड़ी है. मैं ने वहां जा कर देखा तो वह मेरे बेटे नाजिम की लाश थी. उस में से बदबू आ रही थी. साहब, मैं उसी की रिपोर्ट दर्ज कराने आया हूं.’’

सुबहसुबह हत्या की खबर से थानाप्रभारी रामसूरत सोनकर का दिमाग चकरा गया. उन्होंने स्वयं को संभाल कर मोहम्मद आरिफ से पूछा, ‘‘बता सकते हो कि तुम्हारे बेटे की हत्या किस ने की होगी?’’

‘‘जी मेरे ही गांव के मोहम्मद इब्राहीम के बेटे इमरान ने यह काम किया है. साहब, मेरा बेटा नाजिम उस की बहन आयशा से प्यार करता था. वह उस से निकाह करना चाहता था. जबकि इमरान को यह पसंद नहीं था.’’

आरिफ की सूचना पर थानाप्रभारी रामसूरत सोनकर ने अपराध संख्या-520/2013 पर भादंवि की धारा 302/364/201 के तहत मोहम्मद इब्राहीम के बेटे इमरान तथा 2 अन्य  लोगों, इमरान के मौसेरे भाई उस्मान और दोस्त सुफियान के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा कर अपने साथ एसएसआई उमाशंकर यादव, एसआई जीतेंद्र बहादुर सिंह, एसआई (टे्रनिंग) संगीता सिंह तथा कुछ सिपाहियों को ले कर गांव दामूपुर के लिए रवाना हो गए.

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पुलिस बल के साथ इंसपेक्टर रामसूरत सोनकर दामूपुर गांव के उस बाजरे के खेत पर जा पहुंचे, जहां लाश पड़ी थी. लाश निर्वस्त्र थी. देखने से ही लग रहा था कि हत्या गला दबा कर की गई थी. उस के बाद उसे चाकुओं से भी गोदा गया था. यह हत्या भी कहीं दूसरी जगह की गई थी. उस के बाद लाश को यहां ला कर फेंका गया था. लाश से तेज दुर्गंध आ रही थी.

इंसपेक्टर रामसूरत सोनकर ने घटनास्थल की आवश्यक काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए स्वरूपरानी नेहरू अस्पताल भिजवा दिया. इस के बाद अभियुक्तों को गिरफ्तार करने दामूपुर गांव जा पहुंचे. लेकिन वहां कोई नहीं मिला.

इंसपेक्टर रामसूरत सोनकर अभियुक्त इमरान की बहन आयशा, अम्मी परवीन बेगम तथा अब्बा इब्राहीम को पूछताछ के लिए थाने ले आए. पूछताछ में इब्राहीम और उन की पत्नी ने बताया कि न तो उन्होंने यह हत्या की है और न ही उन्हें हत्यारों के बारे में कुछ पता है.

इस के बाद इंसपेक्टर रामसूरत सोनकर ने आयशा को अलग ले जा कर पूछताछ की तो उस ने नाजिम से अपना प्रेम संबंध स्वीकार करते हुए बताया, ‘‘मेरे भाई इमरान ने मेरी मौसी के बेटे उस्मान और दोस्त सुफियान के साथ मिल कर नाजिम की हत्या की है. इमरान ने मुझ से निकाह करने का आश्वासन दे कर नाजिम को शनिवार की रात घर बुलाया. उसी रात तीनों ने नाजिम की गला दबा कर और चाकुओं से गोद कर हत्या कर दी. आधी रात के बाद गांव में सन्नाटा पसर गया तो वे नाजिम की लाश को गांव के बाहर बाजरे के खेत में फेंक आए थे.’’

इंसपेक्टर रामसूरत सोनकर ने इमरान के पिता इब्राहीम को रोक कर आयशा और उस की मां परवीन बेगम को घर भेज दिया था. यह 16 सितंबर की बात है.

19 सितंबर को सूरज ने अभी पूरी तरह आंखें खोली भी नहीं थी कि इब्राहीम के घर की महिलाओं के चीखचीख कर रोने की आवाज से पूरा गांव जाग गया. गांव वाले इब्राहीम के घर पहुंचे तो पता चला कि उस की बेटी आयशा ने फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली है.

गांव वालों के कहने पर परवीन बेगम ने इस घटना की सूचना थाना धूमनगंज पुलिस को दी. इंसपेक्टर रामसूरत सोनकर को परवीन बेगम की बातों पर कतई विश्वास नहीं हुआ. फिर भी उन्होंने उस के बताए अनुसार अपराध संख्या-529/2013 पर भादंवि की धारा 309 के तहत मुकद्दमा दर्ज करा कर साथियों के साथ दामूपुर स्थित इब्राहीम के घर जा पहुंचे.

आयशा की लाश मकान की पहली मंजिल बने कमरे में दरवाजे के ऊपर के रोशनदान से रस्सी के सहारे लटक रही थी. इंसपेक्टर रामसूरत सोनकर ने लाश का निरीक्षण करने के दौरान देखा कि लटक रही लाश के पैर फर्श को छू रहे थे. शरीर पर 2 जगहों पर जले के निशान थे. कपड़ों से मिट्टी के तेल की गंध आ रही थी. वहीं मिट्टी के तेल का डिब्बा भी पड़ा था.

स्थितियों से यही लग रहा था कि पहले उस पर मिट्टी का तेल डाल कर जला कर मारने का प्रयास किया गया था. किसी वजह से इरादा बदल गया तो गला दबा कर उस की हत्या कर दी गई. उस के बाद लाश को रस्सी के सहारे लटका कर आत्महत्या का रूप दे दिया गया. पुलिस ने जब हत्या की शंका व्यक्त की लेकिन घर वाले यह बात मानने को तैयार नहीं थे.

इंसपेक्टर रामसूरत सोनकर ने लाश को नीचे उतरवा कर आवश्यक काररवाई निपटाई और लाश को पोस्टमार्टम के लिए स्वरूपरानी नेहरू अस्पताल भिजवा दिया. अब उन्हें पोस्टमार्टम रिपोर्ट की प्रतीक्षा थी.

पोस्टमार्टम के बाद आयशा की लाश अंतिम संस्कार के लिए उस के घर वालों को सौंप दी गई. इंसपेक्टर रामसूरत को पोस्टमार्टम की रिपोर्ट मिली तो उन का शक विश्वास में बदल गया, क्योंकि पोस्टमार्टम रिपोर्ट आयशा की मौत एंटीमार्टम इंजरी स्ट्रांगग्यूलेशन यानी गला दबा कर हत्या करना बता रही थी.

इस बीच इंसपेक्टर रामसूरत सोनकर ने इस मामले में अपने मुखबिरों से बहुत सारी जानकारियां प्राप्त कर ली थीं. प्राप्त जानकारियों के अनुसार आयशा के भाई को उस रात गांव में देखा गया था. चर्चा थी कि आयशा नाजिम की हत्या की पूरी कहानी पुलिस को बता कर मुख्य गवाह बन गई थी, इसीलिए उसे उस के भाई ने मार दिया था.

अभियुक्तों की गिरफ्तारी के लिए थाना धूमनगंज पुलिस ने ताबड़तोड़ छापे मारने शुरू किए. परिणामस्वरूप 20 सितंबर को पुलिस ने इमरान के मौसेरे भाई उस्मान को गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ के बाद अगले दिन पुलिस ने उसे अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया. इस के बाद 28 सितंबर को आयशा का भाई इमरान भी पुलिस गिरफ्त में आ गया. पुलिस ने पूछताछ कर के अगले दिन उसे भी अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

सीधी सादी बीवी का शराबी पति – भाग 4

विवेक का जब मन होता, वह गंदीगंदी गालियां देते हुए रश्मि की पिटाई करने लगता. जबकि रश्मि को गालियों से बहुत चिढ़ थी. ऐसे में रश्मि विरोध करती तो घर का माहौल बिगड़ जाता. मजबूरन समझदारी का परिचय देते हुए रश्मि को ही चुप होना पड़ता.

मार्च महीने की बात है. रश्मि मायके आई हुई थी. उसी बीच एक दिन उस ने देवर विकास और उस की पत्नी को खाने पर अपने घर बुलाया. रात में विवेक भी आ गया. खाना खा कर विकास तो पत्नी के साथ चला गया, लेकिन विवेक ससुराल में ही रुक गया.

सब के जाने के बाद विवेक सोने के लिए लेटा तो पत्नी से लाइट बंद करने को कहा. काम में व्यस्त होने की वजह से रश्मि सुन नहीं पाई. इसलिए लाइट औफ नहीं की. विवेक गुस्से में उठा तो शराब की खाली पड़ी बोतल उस के पैर से टकरा गई. फिर तो विवेक का गुस्सा इस कदर बढ़ा कि उस ने चप्पल निकाली और रश्मि के घर में ही उस की पिटाई करने लगा, साथ ही गंदीगंदी गालियां भी दे रहा था.

हद तो तब हो गई, जब गिलास में रखी शराब उस ने उस के मुंह पर उड़ेल दी. इस पर रश्मि को भी गुस्सा आ गया. उस ने आवाज दे कर मांबाप को बुला लिया. इस के बाद उस रात विवेक से खूब झगड़ा हुआ. विवेक अकेला था, जबकि रश्मि का पूरा परिवार था. अंत में रश्मि ने ही बीचबचाव कर के मामला शांत कराया. इस के बाद एक बार फिर विवेक के संबंध ससुराल वालों से खराब हो गए. इतना सब होने के बावजूद रश्मि बेटी को ले कर पति के साथ ससुराल आ गई.

3 अप्रैल, 2013 की शाम 4 बजे के आसपास रश्मि ने अभिषेक को फोन कर के बताया कि विवेक ने उसे और श्रद्धा को खाने की चीज में जहर मिला कर खिला दिया है. इस के आगे वह कुछ नहीं कह पाई, क्योंकि दूसरी ओर से फोन कट गया था. शायद किसी ने फोन छीन कर काट दिया था. अभिषेक के पास सोचने का भी समय नहीं था. उस ने जल्दी से गाड़ी निकाली और पिता को साथ ले कर रश्मि की ससुराल जा पहुंचा.

विवेक घर में ही था. लेकिन उस से कोई बात किए बगैर बापबेटे सीधे रश्मि के कमरे में पहुंचे. श्रद्धा और रश्मि बिस्तर पर पड़ी तड़प रही थीं. बापबेटे ने मिल कर दोनों को गाड़ी में लिटाया और विंध्यवासिनीनगर स्थित स्टार नर्सिंग होम ले गए. दोनों का इलाज शुरू हुआ. इस बीच ससुराल का कोई भी सदस्य उन्हें देखने नहीं आया. रात करीब 11 बजे रश्मि की ननद वंदना जरूर आई. थोड़ी देर रुक कर वह भी चली गई.

श्रद्धा की हालत तो स्थिर रही, लेकिन रश्मि की हालत बिगड़ती गई. तब अर्जुन कुमार और अभिषेक, दोनों को वहां से डिस्चार्ज करा कर डा. मल्ल नर्सिंगहोम ले गए. श्रद्धा तो जैसेतैसे बच गई, लेकिन 2 दिनों तक जिंदगी और मौत से संघर्ष करते हुए 5 अप्रैल की शाम 6 बजे रश्मि मौत से हार गई और यह दुनिया छोड़ कर चली गई.

रश्मि की मौत की सूचना पा कर कोतवाली पुलिस अस्पताल पहुंची और लाश को कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए मेडिकल कालेज भिजवा दिया. इस के बाद श्रद्धा के बताए अनुसार अभिषेक ने कोतवाली पुलिस को जो तहरीर दी, उस के आधार पर कोतवाली पुलिस ने अपराध संख्या 139/2013 पर भादंवि की धारा 302, 307, 498ए के तहत विवेक कुमार लाट के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया. इस मामले की जांच कोतवाल प्रभारी इंसपेक्टर बृजेंद्र सिंह ने स्वयं संभाली.

6 अप्रैल, 2013 की सुबह बृजेंद्र सिंह ने विवेक कुमार को आर्यनगर स्थित उस के घर से गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ के बाद उसी दिन उसे अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. जांच के दौरान इंस्पेक्टर बृजेंद्र सिंह को अभिषेक ने रश्मि के हाथों के लिखी 13 बिंदुओं में 7 पृष्ठों की मर्मस्पर्शी एक चिट्ठी सौंपी. उस चिट्ठी में रश्मि ने पति के हर जुर्म को विस्तार से लिखा था. जांच के दौरान कोतवाली प्रभारी ने उस में लिखा एकएक शब्द सच पाया. इस मामले में पुलिस ने 29 जून, 2013 को विवेक कुमार लाट के खिलाफ आरोप पत्र भी दाखिल कर दिया.

श्रद्धा ने अपने बयान में पुलिस को बताया था कि उस के पापा ने ही उसे और उस की मां को खाने के चीज में जहर मिला कर जबरदस्ती खिलाया था. जिसे खाने के कुछ देर बाद दोनों की हालत बिगड़ने लगी थी. अभिषेक ने पुलिस को बताया था कि उस की बहन बहुत ज्यादा सुंदर नहीं थी. वह निहायत सीधीसादी और परंपराओं में जीने वाली नारी थी. उस की यही बातें विवेक की पसंद नहीं थीं. वह अय्याश था. उस के कई औरतों से नाजायज संबंध थे. रश्मि ने इस का विरोध किया तो वह उस के साथ मारपीट करने लगा. 15 सालों तक वह तिलतिल मरती रही.

अभिषेक बहन की मौत का बदला लेना चाहता था. इसी वजह से वह बहन की हत्या के मामले की पैरवी ठीक से कर रहा था. विवेक के घर वालों ने जब उस की जमानत के लिए अदालत में याचिका दायर की तो अभिषेक की पैरवी की वजह से उस की जमानत याचिका खारिज हो गई. विवेक का मंझला भाई विनय कुमार लाट अभिषेक पर दबाव बना रहा था कि इस मामले से धारा 302 हटवा दे. अभिषेक इस के लिए तैयार नहीं था.

अभिषेक और अर्जुन कुमार रश्मि की ससुराल वालों की धमकियों की परवाह किए बगैर मामले की पैरवी करते रहे. आखिरकार वही हुआ, जिस की उन्होंने परवाह नहीं थी. 18 जून, 2013 को भाड़े के शूटरों से विनय कुमार लाट ने अभिषेक रंजन अग्रवाल की हत्या करवा दी. मृतक अभिषेक के पिता अर्जुन कुमार अग्रवाल ने बेटे की हत्या की नामजद रिपोर्ट विवेक, उस के मंझले भाई विनय कुमार और 2 अज्ञात शूटरों के खिलाफ थाना कैंट में दर्ज कराई थी.

मुकदमा दर्ज होने के बाद थाना कैंट के इंस्पेक्टर टी.पी. श्रीवास्तव ने जांच के दौरान पाया कि यह हत्या पूर्व में हुए झगड़े की वजह से जेल में बंद एक बाहुबली सफेदपोश अपराधी को सुपारी दे कर कराई गई थी. विनय ने पुलिस के सामने अपना अपराध स्वीकार भी किया था. लेकिन हत्यारे कौन थे, कहां से आए थे? पुलिस इस का पता नहीं लगा सकी.

जबकि इस मामले में नामजद अभियुक्त विनय और विवेक के बड़े भाई और प्रौपर्टी डीलर कमलेश कुमार लाट का कहना था कि रश्मि ने पारिवारिक कारणों से आजिज आ कर खुद ही जहर खा लिया था और श्रद्धा को भी खिलाया था. अस्पताल में उस ने सब के सामने यही कहा भी था. लेकिन अर्जुन कुमार और अभिषेक ने जबरदस्ती उस के निर्दोष भाई को जेल भिजवा दिया. उस की जमानत तक नहीं होने दी. अभिषेक की हत्या में भी उन का कोई हाथ नहीं है.

इस लड़ाई में एकमात्र गवाह 14 वर्षीया श्रद्धा लाट की जान खतरे में है. शूटरों के न पकड़े जाने से अर्जुन कुमार का परिवार दहशत में है. उन की सुरक्षा के लिए पुलिस तैनात है. पुलिस ने विवेक कुमार और विनय कुमार पर 8 नवंबर, 2013 को गैंगस्टर एक्ट भी लगा दिया. कथा लिखे जाने तक दोनों अभियुक्तों विवेक और विनय की जमानत नहीं हुई थी.

—कथा परिजनों और पुलिस सूत्रों पर आधारित

सीधी सादी बीवी का शराबी पति – भाग 3

रश्मि के अकेली आने पर मांबाप को समझते देर नहीं लगी कि बेटी दामाद में ऐसा कुछ जरूर हुआ है, जिस की वजह से रश्मि को घर छोड़ कर अकेली आना पड़ा. जब उन्होंने ध्यान से देखा तो उस के जिस्म पर उभरे नीले निशान दामाद की दरिंदगी की कहानी कह रहे थे.

पहली बार उन्हें अहसास हुआ कि उन्होंने बेटी को गलत हाथों में सौंप दिया है. आगे से ऐसा न हो, इस के लिए अर्जुन कुमार ने बेटी का मेडिकल करवाया और उसे ले कर महिला थाने पहुंच गए. महिला थाने की थानाप्रभारी से रश्मि के साथ हुए अत्याचार के बारे में बता कर कानूनी काररवाई करने को कहा, ताकि भविष्य में बेटी के साथ कोई अनहोनी हो तो इस के लिए उस के दामाद विवेक को जिम्मेदार माना जाए.

रश्मि नहीं चाहती थी कि उस के पिता कोई ऐसा काम करें, जिस से ससुराल जाने पर उसे परेशानी हो. इसलिए थानाप्रभारी से उस ने कोई भी काररवाई करने से मना कर दिया. इस के बावजूद रश्मि के लिए परेशानी खड़ी हो गई. विवेक को पता चल ही गया था कि रश्मि पिता के साथ महिला थाने गई थी. इस बात से रश्मि के प्रति उस का व्यवहार और बदल गया.

अब वह पहले से ज्यादा शराब पी कर आने लगा और रश्मि को परेशान करने लगा. इसी तरह 3 साल बीत गए. इन 3 सालों में रश्मि ने ससुराल में एक दिन भी सुख का अनुभव नहीं किया. कोई भी ऐसा दिन नहीं बीता, जिस दिन पतिपत्नी के बीच लड़ाईझगड़ा या मारपीट न हुई हो. शारीरिक उत्पीड़न और प्रताड़ना उस की जिंदगी का हिस्सा बन गई थी. एक तरह से उस की जिंदगी नरक बन कर रह गई थी.

शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न सहतेसहते रश्मि पूरी तरह से टूट गई थी. जब उस की सहनशक्ति खत्म हो गई तो ससुराल में उस के साथ क्या क्या हुआ, उस ने एक एक बात मांबाप को बता दी. बेटी की दुखद कहानी सुन कर मांबाप के पैरों तले से जमीन खिसक गई. वे हैरानी से बेटी का मुंह ताकते रह गए कि इतना सब कुछ हो जाने के बाद भी उस ने उफ तक नहीं की. उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि नाजों से पलीबढ़ी बेटी ससुराल में दुख के अंगारों पर झुलस रही है.

वह ऐसे गुनाह की सजा वह काट रही है, जिसे उस ने कभी किया ही नहीं है. बिना वजह रश्मि को परेशान किए जाने की बात से अर्जुन कुमार और अभिषेक बहुत दुखी हुए. अब उन के पास कानून का सहारा लेने के अलावा कोई दूसरा उपाय नहीं था. इसलिए उन्होंने बेटी से दामाद द्वारा मारपीट करने की तहरीर महिला थाने में दिलवा दी.

रश्मि द्वारा दी गई तहरीर ने आग में घी का काम किया. महिला थाने की थानाप्रभारी ने विवेक को थाने बुलवा कर सब के सामने उसे इस तरह जलील किया कि वह भीगी बिल्ली बन कर रह गया. उस ने सब के सामने माफी मांगी और वादा किया कि भविष्य में वह फिर कभी किसी तरह की शिकायत का मौका नहीं देगा.

विवेक के घडि़याली आंसू पर रश्मि तो पिघल गई, लेकिन उस के इस नाटक पर न तो अर्जुन और अभिषेक को यकीन हुआ, न ही थानाप्रभारी को. रश्मि के कहने पर उस के घर वाले और पुलिस उसे इस शर्त पर विवेक के साथ भेजने को राजी हुई कि भविष्य में अगर रश्मि के साथ किसी भी तरह की कोई अनहोनी होती है तो इस के लिए वही जिम्मेदार होगा. विवेक ने यह शर्त मान ली तो रश्मि को उस के साथ भेज दिया गया.

रश्मि पति के साथ ससुराल आ तो गई, लेकिन इस के बाद उसे मायके वालों का मुंह देखना नसीब नहीं हुआ. विवेक का सख्त आदेश था कि वह न तो मायके जाएगी और न ही वहां फोन करेगी. यही नहीं, मायके वालों का फोन आता है, तब भी वह बात नहीं करेगी. इस तरह विवेक ने ससुराल वालों से संबंध लगभग तोड़ लिए. उसे नाराजगी इस बात की थी कि ससुर और साले ने दूसरी बार पत्नी से उस की शिकायत करा दी थी, जिस की वजह से उसे थाने में सब के साने जलील किया गया था. यह अपमान वह भूल नहीं पा रहा था.

रश्मि ने सब कुछ भाग्य के भरोसे छोड़ दिया था. अब बेटी ही उस के लिए एकमात्र जीने का सहारा रह गई थी. उसे ही देख कर वह जी रही थी. सासससुर, ननददेवर सभी ने मुंह मोड़ लिया था. शायद उस ने भी ठान लिया था कि वह वही करेगी, जो भारतीय नारियां करती आई हैं. जिस इज्जत के साथ वह ब्याह कर ससुराल आई है, उसी इज्जत के साथ उस की अर्थी ससुराल से ही उठेगी. इसी तरह 5 साल बीत गए.

सन 2008 में रश्मि की छोटी बहन दिवीता की शादी तय हुई. बेटी की शादी तय होने की बात अर्जुन कुमार ने बेटी रश्मि और दामाद विवेक को भी बताई. बहन की शादी तय होने की बात सुन कर रश्मि बहुत खुश हुई. न जाने क्या सोच कर विवेक ने रश्मि को शादी में जाने की अनुमति दे दी. यही नहीं, वह खुद भी उस शादी में शामिल हुआ.

बेटीदामाद के आने से सभी को खुशी हुई. अर्जुन कुमार और उन की पत्नी को लगा, शायद अब सब ठीक हो जाएगा. इस के बाद विवेक खुद भी ससुराल आनेजाने लगा और रश्मि को भी साथ ले जाने लगा. 2 बार वह रश्मि को ले कर सिंगापुर भी घूमने गया. विवेक भले ही ससुराल आनेजाने लगा था और रश्मि को देश के बाहर घुमाने भी ले गया था, लेकिन रश्मि के साथ वह जो व्यवहार करता आया था, उस में कोई बदलाव नहीं आया था.

वह अभी भी रश्मि को न जलील करने से चूकता था, न उस के साथ मारपीट करने में पीछे रहता था. उस में सब से बड़ी कमी यह थी कि वह यह भी नहीं देखता था कि पत्नी से कहां और कैसा व्यवहार किया जाए. बाप के इस व्यवहार से श्रद्धा भी दुखी रहती थी. कहने का मतलब यह था कि विवेक ने शराफत का जो चोला ओढ़ रखा था, वह मात्र दिखावा था, जबकि उस की आदत में कोई सुधार नहीं आया था.

सीधी सादी बीवी का शराबी पति – भाग 2

कमलेश प्रौपर्टी डीलिंग का काम करता था. उस से छोटे विनय, विवेक और विकास विजय चौक स्थित फोटो विजन स्टूडियो को संभालते थे. रामस्वरूप लाट सुखी और संपन्न थे, इसलिए उन की समाज में एक हैसियत थी. रामस्वरूप की बड़ी बेटी कमला की शादी कोलकाता में हुई थी. बेटों में भी कमलेश और विनय की शादी हो चुकी थी. अब उन्हें 2 बेटों और 2 बेटियों की शादी करनी थी.

उसी बीच उन का बड़ा बेटा कमलेश अपने परिवार के साथ कैंट स्थित हरिओमनगर कालोनी में रहने चला गया. बाद में उस ने अपने लिए लखनऊ में मकान बनवा लिया तो अपना वह मकान सब से छोटे भाई विकास को दे कर परिवार के साथ लखनऊ चला गया. विकास उस में रहने लगा तो विनय ने कोतवाली के विष्णु मंदिर स्थित बशारतपुर मोहल्ले में अपने लिए मकान बनवा लिया. विवेक उस की दोनों, बहनें वंदना और एप्पुल तथा मांबाप आर्यनगर स्थित पुश्तैनी मकान में एक साथ रहते थे. रहते भले ही सभी भाई अलगअलग थे, लेकिन एकदूसरे से दिल से जुड़े थे.

अभिषेक को जब भी मौका मिलता, बहन का हालचाल लेने उस के घर जाता रहता था. इस के अलावा विवेक का स्टूडियो अभिषेक के घर के नजदीक ही था, इसलिए सालेबहनोई की मुलाकात अकसर होती रहती थी. रश्मि जब भी मायके आती, खुश नजर आती. इसलिए मायके वालों को यही लगता था कि वह ससुराल में खुश है.

लेकिन रश्मि की यह खुशी ऊपरी तौर पर थी, जबकि अंदर से वह बहुत दुखी थी. इस की वजह थी पति का शराबी होना. इस में दुख देने वाली बात यह थी कि शराब का घूंट हलक के नीचे उतरते ही विवेक किसी को भी नहीं पहचानता था, वह उस की पत्नी की क्यों न हो. उस स्थिति में अगर रश्मि कुछ कह देती तो विवेक उसे भद्दीभद्दी गालियां तो देता ही था, पिटाई करने में भी पीछे नहीं रहता था.

इस की एक वजह यह भी थी कि विवेक की कल्पना के अनुरूप रश्मि खूबसूरत नहीं थी, इसलिए वह उसे पत्नी नहीं मानता था. पति के इस उपेक्षित व्यवहार को रश्मि ने अपना भाग्य मान लिया था और ससुराल में उस के साथ क्या होता है, मायके वालों से नहीं बताया.

बात उन दिनों की है कि जब रश्मि को 7 माह का गर्भ था. नवरात्र चल रहे थे. विवेक स्टूडियो बंद कर के घर पहुंचा ही था कि उस की मां का फोन आ गया. मां उन दिनों लखनऊ में थी. विवेक ने फोन रिसीव किया तो मां ने बिना हालचाल पूछे ही कहा, ‘‘कैसे कहूं, समझ में नहीं आ रहा है. कहूंगी तो कहोगे कि मेरे पत्नी के पीछे हाथ धो कर पड़ी हूं.’’

‘‘कहो तो बात क्या है?’’ विवेक ने कहा.

‘‘तेरी पत्नी कह रही थी कि बहुओं को पीटना इस घर का रिवाज है. अब तुम्हीं बताओ, मैं ने कब किस के साथ मारपीट की है, जो मुझ पर इस तरह के आरोप लग रहे हैं. जब से सुना है, कलेजे में आग लगी है. पूछ तो अपनी लुगाई से, आखिर वह चाहती क्या है? मांबेटे के बीच दरार क्यों डाल रही है?’’

मां ने ये बातें जिस तरह कही थीं, सुनते ही विवेक की देह में आग लग गई. उस ने आव देखा न ताव, रश्मि पर पिल पड़ा. उस के हाथ में जो भी आया वह उसी से उसे मारता रहा. उस समय उस ने यह भी नहीं सोचा कि रश्मि गर्भवती है. कहीं उल्टासीधा चोट लग गई तो क्या होगा.

आखिर इस पिटाई से रश्मि की हालत बिगड़ गई. वह चलने फिरने लायक नहीं रही. तब विवेक उसे रिक्शे पर बैठा कर ससुराल छोड़ आया. मांबाप और अभिषेक उस की हालत देख कर दंग रह गए. यह सब कैसे हुआ, सभी पूछते रह गए. लेकिन रश्मि ने बताया नहीं. उस ने झूठ बोल दिया कि पीरियड नजदीक होने की वजह से उसे कुछ तकलीफ हो गई है. जिस की वजह से इतनी रात को यहां आ गई.

मांबाप ने उस की बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया. इस की वजह यह थी कि उस के साथ यह सब जो हुआ था, उस के बारे में उन्होंने कभी सोचा ही नहीं था. उन्होंने उसे आराम करने के लिए कह दिया. विवेक उसे छोड़ कर उसी समय अपने घर लौट गया.

पति ने इतना मारापीटा था, इस के बावजूद रश्मि ने इस बात को दिल से नहीं लिया. शायद यही वजह थी कि उस ने मायके वालों से सच्चाई छिपा ली थी. उसे यह भी पता था कि अगर भाई को सच्चाई का पता चल गया तो हंगामा हो जाएगा. इसलिए चुप रहने में ही सब की भलाई है.

यही सोच कर रश्मि ने इस बात को भुला दिया. 3 दिनों बाद विवेक ने फोन किया. माफी मांगते हुए उस ने कहा कि उसे अपने किए पर काफी पछतावा है. इतने में ही रश्मि का दिल पसीज गया और उस ने विवेक को माफ कर दिया. यही नहीं, उस के साथ वह ससुराल भी आ गई.

रश्मि के ससुराल आने के बाद 2-4 दिनों तक घर का माहौल ठीक रहा. उस के बाद फिर पहले जैसे ही हालात हो गए. छोटीछोटी बातों को ले कर तूफान खड़ा होने लगा. विवेक पहले की तरह फिर रश्मि के साथ बदसलूकी और मारपीट करने लगा. जबकि उसे मना कर लाते समय उस ने वादा किया था कि अब वह उस के साथ न बदसलूकी करेगा न मारपीट. लेकिन घर आते ही वह अपना वादा भूल गया. धीरेधीरे रोज की यही नियति बन गई.

समय पर रश्मि ने बेटी को जन्म दिया, जिस का नाम श्रद्धा रखा गया. विवेक बेटी को पा कर निहाल था. उस की एप्पुल बुआ उस पर जान छिड़कती थी. वैसे तो सब कुछ ठीक रहता था, लेकिन विवेक की मां के आते ही घर का माहौल खराब हो जाता. वह उलटासीधा पढ़ाती तो मां के प्रेम में अंधा विवेक वही करता, जो मां उसे करने को कहती. जब तक वह घर में नहीं रहती, घर में सुखचैन रहता. वैसे वह ज्यादातर बड़े बेटे बहू के साथ लखनऊ में रहती थी.

श्रद्धा 2-3 महीने की थी, तभी एक दिन विवेक की बहन वंदना ने विवेक और रश्मि को अपने घर खाने पर बुलाया. बेटी को साथ ले कर रश्मि पति के साथ ननद के यहां पहुंची. हंसीठिठोली के बीच विवेक बातबात में रश्मि को जलील करने लगा. रश्मि वहां तो कुछ नहीं बोली, लेकिन घर आ कर वह विवेक से जलील करने की वजह पूछने लगी.

विवेक ने ठीक से जवाब नहीं दिया तो इसी बात पर दोनों में नोकझोंक हो गई. विवेक दूसरे कमरे में जा कर सो गया और रश्मि अपने कमरे में. सुबह रश्मि ने विवेक से कुछ कहा तो रात की खुन्नस निकालने के लिए वह उस की पिटाई करने लगा. पति की इस हरकत से क्षुब्ध हो कर उसी समय रश्मि बेटी को ले कर मायके आ गई.

पाक प्यार में नापाक इरादे