एक तरफ मिथिलेश के सामने दो वक्त की रोटी के लिए दूसरों पर आश्रित होने वाली स्थिति थी तो वहीं दूसरी ओर जेठानी लाखों रुपयों का मकान, गहने आदि खरीदने में लगी हुई थी. मिथिलेश को इस बात की कोई शिकायत नहीं थी. लेकिन उसे दुख इस बात का था कि जेठानी उसे सार्वजनिक रूप से अपमानित करती रहती थी.
देवरानी जेठानी के बीच चल रही रार पर न तो जोदसिंह ही ध्यान देता था और न ही उस के पिता. इस से मिथिलेश कुंठित हो गई थी.वह अभी तक पति की रहस्यमय हत्या को भूल नहीं पाई थी, उस का मन जेठानी को सबक सिखाने का करता था. लेकिन वह बच्चों के भविष्य को देखते हुए चुप हो जाती. मगर उस के सीने में एक आग सुलग रही थी. यह आग कब विकराल रूप धारण कर लेगी, ये कोई नहीं जानता था.
जोदसिंह के बच्चों की शीतकालीन छुट्टियां हो गईं तो उस ने परिवार सहित अपने गांव जाने का कार्यक्रम बना लिया. वह पिछले कई महीनों से अपने घर वालों से नहीं मिला था. छोटे भाई टिंकू के लिए भी कोई रिश्ता पक्का करना था.
टिंकू नेवी में नौकरी करता था. फिलहाल उस की पोस्टिंग सऊदी अरब में थी. इस के अलावा उसे अपने लिए आगरा में फ्लैट भी खरीदना था और दिवंगत भाई बंटू की पहली बरसी पर होने वाले शांति पाठ में शरीक होना था. ये सब काम निपटाने के लिए जोदसिंह पत्नी और बच्चों को ले कर 18 जनवरी की शाम को आगरा से निकल पड़ा.
पत्नी की जिद के कारण उसे पहले अपनी ससुराल जाना पड़ा. अगली सुबह करीब 11 बजे तीनों बच्चों को उन के नानानानी के पास छोड़ कर जोदसिंह ने सब से पहले अपने लिए फ्लैट तलाशने का मन बनाया. ससुराल से बाइक ले कर वह हेमलता के साथ देवरी रोड पर बनी कालोनी में गया. वहां उन्हें एक फ्लैट पसंद आ गया तो जोदसिंह ने बयाना भी दे दिया.
फ्लैट का सौदा पक्का होने की खुशी में उन्होंने बाजार से मिठाई खरीदी और फिर निकल पड़े मलपुरा की ओर. हेमलता ने अपने मायके वालों का मुंह मीठा कराया और फिर करीब आधा घंटे बाद दोनों शंकरपुर के लिए रवाना हो गए. करीब 6 बजे दोनों शंकरपुर पहुंच गए.
घर पर जोदसिंह के 2 मामा भी आए हुए थे. एक अपनी बेटी के लिए रिश्ता देखने आए थे. जबकि दूसरे अपनी दवाई लेने के लिए. चूंकि 2 दिन बाद ही उन के दिवंगत भांजे बंटू की बरसी थी तब तक के लिए दोनों ही वहां रुक गए.
घर पहुंच कर हेमलता और जोदसिंह ने घर पर मौजूद सभी का अभिवादन किया हलकीफुलकी बात की. फिर हेमलता सास व देवरों से बातचीत करने में मशगूल हो गई तो वहीं जोदसिंह पड़ोस के बीमार बुजुर्ग के पास जा कर अलाव पर हाथ सेंकने लगा.
बातचीत के बीच हेमलता ने बाइक की डिक्की में रखा लड्डुओं का डिब्बा मंगवा लिया और फ्लैट खरीदने की बात कह कर इतराती हुई सब का मुंह मीठा कराने लगी. इस बीच जब मिथिलेश का छोटा बेटा अंकित लड्डू लेने ताई हेमलता के पास पहुंचा तो हेमलता ने उसे दुत्कार दिया.
ये बात अंकित ने अपनी मां को बताई. मिथिलेश के मन में हेमलता को ले कर जो नफरत सुलग रही थी वह आज ज्वालामुखी में बदलने लगी. उस ने अंकित को कहा कि वह कमरे में जाए और टीवी देख ले. अंकित कमरे में चला गया.
उधर मिथिलेश अपने कमरे में गई और संदूक में रखा तमंचा निकाल लाई. वह तमंचा उस के पति का था. पति ने जीवित रहते हुए मिथिलेश को तमंचा चलाना सिखा दिया था. उस तमंचे को छिपा कर वह छत पर ले गई और वहीं रख आई. इस के अलावा योजना के अनुसार उस ने हथौड़ा भी छत पर ले जा कर रख दिया था. अब उसे केवल सही समय का इंतजार था.
करीब पौने 8 बजे हेमलता जब सास और देवरों के बीच से उठ कर लघुशंका के लिए सीढि़यों के नीचे बने बाथरूम में जा रही थी तो वहीं पर मिथिलेश ने उस के पैर पकड़ कर उस से एकांत में बात करने का 10 मिनट का समय मांगा. उस ने कहा कि वह दोनों के बीच चल रहे मनमुटाव को दूर करना चाहती है.
देवरानी जब पैरों में पड़ गई तो हेमलता को भला 10 मिनट देने में क्या एतराज था. देवरानी के अनुरोध पर एकांत में बातचीत करने के लिए वह उस के साथ छत पर चली गई. छत पर अंधेरा था. हेमलता के कहने पर मिथिलेश ने छत पर लगा बल्ब जला दिया. मिथिलेश ने बैठने के लिए वही जगह चुनी जहां पर उस ने हथौड़ा और तमंचा छिपा कर रखा था. जेठानी को बैठने के लिए उस ने पटरा उसी स्थान पर लगाया जिस से उसे बार करने में आसानी हो.
करीब 2-3 मिनट तक दोनों इधरउधर की बातें करते रहीं जब हेमलता को लगा कि मिथिलेश के पास बातचीत करने का कोई ठोस मुद्दा नहीं है, तो वह वहां नीचे आने को जैसे ही उठी, मिथिलेश ने फुरती से हथौड़ा निकाल कर उस से भरपूर वार उस के सिर पर किया. हेमलता के मुंह से आवाज भी न निकल पाई. उस के सिर से खून बहने लगा और वह बेहोश हो गई.
तभी उस ने तुरंत तमंचा निकाला और जेठानी को हिकारत भरी नजरों से देखा. फिर उस ने उस के सिर पर तमंचा सटा कर ट्रिगर दबा दिया. एक आवाज हुई और हेमलता का खेल खत्म हो गया. जेठानी को मारने के बाद वह छत की दीवार पर पीठ टिका कर इस तरह बैठ गई जैसे कि ये काम कर के उसे बहुत बड़ा सुकून मिला हो.
कुछ देर बाद हेमलता का पति जोदसिंह उसे ढूंढता हुआ जब छत पर पहुंचा तब उसे पता चला कि उस ने जो गोली की आवाज सुनी थी वह उस की पत्नी को ही मारी गई थी.
थानाप्रभारी ने जब मिथिलेश से पूछा कि क्या उसे अपनी जेठानी की हत्या करने का कोई पछतावा है तो उस ने तपाक से कहा, ‘‘कैसा पछतावा, मुझे कोई पछतावा नहीं है. जेठानी ने सारे परिवार के साथ मिल कर मेरे पति को मारा था, मैं ने उसे मार कर अपने पति की मौत का बदला ले लिया.’’
पूछताछ के बाद मिथिलेश को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया. जबकि उस के चारों बच्चों की देखभाल उन के दादादादी कर रहे हैं.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित