नफरत की गोली – भाग 3

एक तरफ मिथिलेश के सामने दो वक्त की रोटी के लिए दूसरों पर आश्रित होने वाली स्थिति थी तो वहीं दूसरी ओर जेठानी लाखों रुपयों का मकान, गहने आदि खरीदने में लगी हुई थी. मिथिलेश को इस बात की कोई शिकायत नहीं थी. लेकिन उसे दुख इस बात का था कि जेठानी उसे सार्वजनिक रूप से अपमानित करती रहती थी.

देवरानी जेठानी के बीच चल रही रार पर न तो जोदसिंह ही ध्यान देता था और न ही उस के पिता. इस से मिथिलेश कुंठित हो गई थी.वह अभी तक पति की रहस्यमय हत्या को भूल नहीं पाई थी, उस का मन जेठानी को सबक सिखाने का करता था. लेकिन वह बच्चों के भविष्य को देखते हुए चुप हो जाती. मगर उस के सीने में एक आग सुलग रही थी. यह आग कब विकराल रूप धारण कर लेगी, ये कोई नहीं जानता था.

जोदसिंह के बच्चों की शीतकालीन छुट्टियां हो गईं तो उस ने परिवार सहित अपने गांव जाने का कार्यक्रम बना लिया. वह पिछले कई महीनों से अपने घर वालों से नहीं मिला था. छोटे भाई टिंकू के लिए भी कोई रिश्ता पक्का करना था.

टिंकू नेवी में नौकरी करता था. फिलहाल उस की पोस्टिंग सऊदी अरब में थी. इस के अलावा उसे अपने लिए आगरा में फ्लैट भी खरीदना था और दिवंगत भाई बंटू की पहली बरसी पर होने वाले शांति पाठ में शरीक होना था. ये सब काम निपटाने के लिए जोदसिंह पत्नी और बच्चों को ले कर 18 जनवरी की शाम को आगरा से निकल पड़ा.

पत्नी की जिद के कारण उसे पहले अपनी ससुराल जाना पड़ा. अगली सुबह करीब 11 बजे तीनों बच्चों को उन के नानानानी के पास छोड़ कर जोदसिंह ने सब से पहले अपने लिए फ्लैट तलाशने का मन बनाया. ससुराल से बाइक ले कर वह हेमलता के साथ देवरी रोड पर बनी कालोनी में गया. वहां उन्हें एक फ्लैट पसंद आ गया तो जोदसिंह ने बयाना भी दे दिया.

फ्लैट का सौदा पक्का होने की खुशी में उन्होंने बाजार से मिठाई खरीदी और फिर निकल पड़े मलपुरा की ओर. हेमलता ने अपने मायके वालों का मुंह मीठा कराया और फिर करीब आधा घंटे बाद दोनों शंकरपुर के लिए रवाना हो गए. करीब 6 बजे दोनों शंकरपुर पहुंच गए.

घर पर जोदसिंह के 2 मामा भी आए हुए थे. एक अपनी बेटी के लिए रिश्ता देखने आए थे. जबकि दूसरे अपनी दवाई लेने के लिए. चूंकि 2 दिन बाद ही उन के दिवंगत भांजे बंटू की बरसी थी तब तक के लिए दोनों ही वहां रुक गए.

घर पहुंच कर हेमलता और जोदसिंह ने घर पर मौजूद सभी का अभिवादन किया हलकीफुलकी बात की. फिर हेमलता सास व देवरों से बातचीत करने में मशगूल हो गई तो वहीं जोदसिंह पड़ोस के बीमार बुजुर्ग  के पास जा कर अलाव पर हाथ सेंकने लगा.

बातचीत के बीच हेमलता ने बाइक की डिक्की में रखा लड्डुओं का डिब्बा मंगवा लिया और फ्लैट खरीदने की बात कह कर इतराती हुई सब का मुंह मीठा कराने लगी. इस बीच जब मिथिलेश का छोटा बेटा अंकित लड्डू लेने ताई हेमलता के पास पहुंचा तो हेमलता ने उसे दुत्कार दिया.

ये बात अंकित ने अपनी मां को बताई. मिथिलेश के मन में हेमलता को ले कर जो नफरत सुलग रही थी वह आज ज्वालामुखी में बदलने लगी. उस ने अंकित को कहा कि वह कमरे में जाए और टीवी देख ले. अंकित कमरे में चला गया.

उधर मिथिलेश अपने कमरे में गई और संदूक में रखा तमंचा निकाल लाई. वह तमंचा उस के पति का था. पति ने जीवित रहते हुए मिथिलेश को तमंचा चलाना सिखा दिया था. उस तमंचे को छिपा कर वह छत पर ले गई और वहीं रख आई. इस के अलावा योजना के अनुसार उस ने हथौड़ा भी छत पर ले जा कर रख दिया था. अब उसे केवल सही समय का इंतजार था.

करीब पौने 8 बजे हेमलता जब सास और देवरों के बीच से उठ कर लघुशंका के लिए सीढि़यों के नीचे बने बाथरूम में जा रही थी तो वहीं पर मिथिलेश ने उस के पैर पकड़ कर उस से एकांत में बात करने का 10 मिनट का समय मांगा. उस ने कहा कि वह दोनों के बीच चल रहे मनमुटाव को दूर करना चाहती है.

देवरानी जब पैरों में पड़ गई तो हेमलता को भला 10 मिनट देने में क्या एतराज था. देवरानी के अनुरोध पर एकांत में बातचीत करने के लिए वह उस के साथ छत पर चली गई. छत पर अंधेरा था. हेमलता के कहने पर मिथिलेश ने छत पर लगा बल्ब जला दिया. मिथिलेश ने बैठने के लिए वही जगह चुनी जहां पर उस ने हथौड़ा और तमंचा छिपा कर रखा था. जेठानी को बैठने के लिए उस ने पटरा उसी स्थान पर लगाया जिस से उसे बार करने में आसानी हो.

करीब 2-3 मिनट तक दोनों इधरउधर की बातें करते रहीं जब हेमलता को लगा कि मिथिलेश के पास बातचीत करने का कोई ठोस मुद्दा नहीं है, तो वह वहां नीचे आने को जैसे ही उठी, मिथिलेश ने फुरती से हथौड़ा निकाल कर उस से भरपूर वार उस के सिर पर किया. हेमलता के मुंह से आवाज भी न निकल पाई. उस के सिर से खून बहने लगा और वह बेहोश हो गई.

तभी उस ने तुरंत तमंचा निकाला और जेठानी को हिकारत भरी नजरों से देखा. फिर उस ने उस के सिर पर तमंचा सटा कर ट्रिगर दबा दिया. एक आवाज हुई और हेमलता का खेल खत्म हो गया. जेठानी को मारने के बाद वह छत की दीवार पर पीठ टिका कर इस तरह बैठ गई जैसे कि ये काम कर के उसे बहुत बड़ा सुकून मिला हो.

कुछ देर बाद हेमलता का पति जोदसिंह उसे ढूंढता हुआ जब छत पर पहुंचा तब उसे पता चला कि उस ने जो गोली की आवाज सुनी थी वह उस की पत्नी को ही मारी गई थी.

थानाप्रभारी ने जब मिथिलेश से पूछा कि क्या उसे अपनी जेठानी की हत्या करने का कोई पछतावा है तो उस ने तपाक से कहा, ‘‘कैसा पछतावा, मुझे कोई पछतावा नहीं है. जेठानी ने सारे परिवार के साथ मिल कर मेरे पति को मारा था, मैं ने उसे मार कर अपने पति की मौत का बदला ले लिया.’’

पूछताछ के बाद मिथिलेश को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया. जबकि उस के चारों बच्चों की देखभाल उन के दादादादी कर रहे हैं.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

4 लाख में खरीदी मौत – भाग 3

काशीपुर पहुंच कर जयप्रकाश ने बहन से पत्नी के बारे में बता कर कहा कि अब वह उस से किसी तरह पीछा छुड़ाना चाहता है. भाभी की बदचलनी की बात सुन कर केला देवी को बहुत गुस्सा आया. जयप्रकाश ने बहन से यह भी कहा था कि अगर इस काम के लिए उसे 2-4 लाख रुपए खर्च भी करने पड़े तो वह खर्च कर देगा. वह हरजीत, पत्नी सुनीता और बढ़े बेटे विशाल की हत्या कराना चाहता था.

केला देवी ने इस काम के लिए जयप्रकाश की मुलाकात अपने देवर के बेटे पंकज से करा दी. जयप्रकाश उस का मामा लगता था. पंकज अभी छोटा था. उस का बाप नन्हे कटरा मालियान में पान की दुकान चलाता था. वह भी बाप के साथ दुकान पर बैठता था.

पंकज ने कभी हत्या जैसे काम के बारे में सोचा भी नहीं था. लेकिन जब जयप्रकाश ने 4 लाख रुपए देने की बात कही तो वह लालच में पड़ गया और हामी भर दी. इस के बाद उस ने अपने दोस्तों शिवअवतार पुत्र सोमपाल निवासी बरखेड़ा, कपिल पुत्र बाबूराम निवासी कटरामालियान, दीपक पुत्र गोपाल यादव निवासी काशीपुर को 2 लाख रुपए देने की बात कह कर 3 हत्याएं करने के लिए राजी कर लिया.

कपिल एक अस्पताल में एक्सरे टेक्नीशियन था तो शिवअवतार उर्फ बबलू एक पैथालौजी लैब में लैब टेक्नीशियन था. दीपक यादव एक मेडिकल स्टोर पर काम करता था.  इस तरह जयप्रकाश ने 4 लाख रुपए में 3 हत्याओं का सौदा कर डाला. इस के बाद उस ने 3 लाख 60 हजार रुपए दे भी दिए. बाकी रकम काम हो जाने के बाद देने को कहा.

पंकज और उस के दोस्तों ने 3-3 हत्याओं की सुपारी ले तो ली, लेकिन चारों ही इस काम के लिए एकदम नए थे. इंसान की कौन कहे, इन में से किसी ने कभी चूहा तक नहीं मारा था. जिस ने कभी चूहा तक न मारा हो, वह आदमी कैसे मार सकता था.

बहरहाल, पंकज ने अपने दोस्तों को 2 लाख रुपए दे कर इस झंझट से खुद को अलग कर लिया. लेकिन हत्या करवाने की जिम्मेदारी उसी की थी, इसलिए हत्याएं कैसे की जाएं, योजना बनवाने में वह भी साथ रहता था.

चारों हर रोज बैठ कर इस काम के लिए नईनई योजनाएं बनाते, लेकिन अंजाम न दे पाते. धीरेधीरे एक सप्ताह गुजर गया, उन की योजना सफल न हो पाई. अब तक मिली रकम से उन्होंने काफी पैसे खर्च कर डाले थे.  हत्याएं करवाने की वजह से जयप्रकाश अपना घर छोड़ कर काशीपुर में पड़ा हुआ था. उस का सोचना था कि उस के काशीपुर रहते हत्याएं होंगी तो पुलिस उस पर शक नहीं करेगी.

जब सप्ताह भर से ज्यादा का समय गुजर गया और पंकज कुछ नहीं कर पाया तो जयप्रकाश को लगा कि यह काम उस के वश का नहीं है. उस ने पंकज से अपने रुपए वापस मांगे. लेकिन पंकज और उस के साथियों ने काफी रुपए खर्च कर दिए थे, इसलिए रुपए लौटाते कहां से.

जयप्रकाश ने पंकज पर रुपए लौटाने के लिए दबाव बनाया तो वह परेशान हो उठा. इस के बाद चारों ने बैठ कर एक नई योजना बना डाली. यह योजना थी जयप्रकाश की हत्या की. उन्हें पता ही था कि जयप्रकाश का उस की पत्नीबच्चों से मनमुटाव चल ही रहा है.

ऐसे में अगर जयप्रकाश की हत्या हो जाती है तो शक उस की पत्नी पर जाएगा और वे साफ बच जाएंगे. 3 लोगों की हत्या करने के बजाय एक की हत्या करना आसान भी था. उन्हें 3 की जगह एक ही हत्या करने पर सारे पैसे मिल जाएंगे.

पंकज मामा को मरवाना तो नहीं चाहता था, लेकिन मामा से सुपारी ले कर वह बुरी तरह से फंस चुका था, क्योंकि मामा से ली गई रकम से काफी रुपए खर्च हो चुके थे. इसीलिए दोस्तों के कहने पर मजबूरन उसे मामा की हत्या के लिए हामी भरनी पड़ी.

इस के बाद जयप्रकाश की हत्या की योजना बन गई. पंकज और उस के दोस्तों को पता था कि करवा चौथ के त्यौहार पर जयप्रकाश जसपुर जाने के लिए राजी हो जाएगा. दरअसल वे जयप्रकाश को जसपुर ले जा कर मारना चाहते थे. क्योंकि वहां मारे जाने पर उस की हत्या की शंका पत्नीबच्चों और प्रेमी पर होती. वे पुलिस की गिरफ्त से दूर रहते.

योजना बनाने के बाद पंकज और उस के साथियों ने जयप्रकाश को विश्वास में ले कर जसपुर चलने के लिए राजी कर लिया. बहाना था, उस के द्वारा कही गई 3 हत्याओं को अंजाम देने का. जयप्रकाश किसी भी तरह पत्नी नामक झंझट से मुक्ति चाहता था, इसलिए वह उन के साथ जाने को राजी हो गया. चारों ने जो योजना बनाई थी, उस के अनुसार जयप्रकाश को जसपुर ले जा कर खत्म कर देना था.

12 अक्तूबर की रात शिवअवतार और कपिल ने जयप्रकाश को साथ ले जा कर काशीपुर के एक होटल में शराब पिलाई और खाना खिलाया. पत्नी की करतूतों से दुखी जयप्रकाश बातबात में ज्यादा शराब पी गया. शिवअवतार और कपिल चाहते भी यही थे, इसलिए वे उसे ज्यादा से ज्यादा शराब पीने के लिए उकसाते रहे.

जयप्रकाश नशे में होश खो बैठा तो शिवअवतार और कपिल उसे मोटरसाइकिल पर बीच में बैठा कर जसपुर की ओर चल पड़े. संन्यासियों वाला रोड पर पहुंच कर वे ऐसी जगह की तलाश करने लगे, जहां वे उसे मार सकें. कुछ दूर चलने पर अहमदनगर गांव के पास जब उन्हें सुनसान मिला तो उन्होंने उसे मोटरसाइकिल से उतार कर गोली मार दी.

इस के बाद जयप्रकाश की लाश को वहीं छोड़ कर शिवअवतार और कपिल लौट पड़े. रास्ते से ही शिवअवतार ने पंकज को फोन कर दिया कि बाकी 40 हजार रुपए वह दीपक को दे दे. जयप्रकाश ने सुपारी तो दी थी पत्नी, बेटे और पत्नी के प्रेमी हरजीत को मारने की, लेकिन मारा गया खुद.

पंकज के बयान के आधार पर पुलिस ने शिवअवतार उर्फ बबलू, कपिल, दीपक यादव को भी गिरफ्तार कर लिया. इन में शिवअवतार और कपिल पर तो हत्या का आरोप है, जबकि पंकज पर षडयंत्र रचने का तथा दीपक यादव पर साक्ष्य छिपाने का.

पुलिस ने हत्यारों की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त 315 बोर का तमंचा, 2 जीवित कारतूस तथा 1 लाख 60 हजार रुपए नकद बरामद कर लिए हैं. सारे साक्ष्य जुटा कर पुलिस ने चारों अभियुक्तों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

पहले से हिरासत में लिए गए मास्टर हरजीत और मृतक जयप्रकाश की पत्नी सुनीता को पुलिस ने पंकज के अपराध स्वीकार करते ही रिहा कर दिया. सुनीता ने भले ही पति को नहीं मरवाया था, लेकिन अगर वह गलत न होती तो आज यह नौबत न आती. उसी की वजह से आज उस के 4 बच्चों का भविष्य अंधकारमय हो गया है.

एक जवान औरत की नौटंकी

नफरत की गोली – भाग 2

दरअसल, बंटू कोई कामधंधा नहीं करता था. वह हमेशा अपने पिता और बड़े भाइयों पर बोझ ही बना रहा. जुआ, सट्टा खेलना और अकसर गांव के लोगों के साथ झगड़ना उस की दिनचर्या में शुमार था. इन मामलों में उसे कई बार हवालात में भी बंद होना पड़ा था.

शादी के चंद रोज बाद ही मिथिलेश को जब पति की सच्चाई पता चली तो अपनी किस्मत पर आंसू बहाने के अलावा उस के सामने कोई उपाय नहीं था. हालात से समझौता करते हुए उस ने पति को काफी समझाया कि वह कोई काम करें, लेकिन उस ने पत्नी की बात को काफी गंभीरता से नहीं लिया.

इसी तरह एकएक कर पूरे 10 साल गुजर गए. बंटू भी अब तक 4 बच्चों का बाप बन चुका था लेकिन उस ने कभी पत्नी की ख्वाहिशों की तरफ ध्यान तक नहीं दिया.

इस की एक वजह यह थी कि बंटू को घर का खर्च चलाने में इसलिए ज्यादा परेशानी नहीं हुई क्योंकि उस के पिता और भाई जोदसिंह आर्थिक मदद कर देते थे. जोदसिंह उत्तर प्रदेश पुलिस में सिपाही (घुड़सवार) था.वैसे जोदसिंह और बंटू का विवाह एक सप्ताह आगेपीछे हुआ था. उस की पत्नी हेमलता मल्लपुरा थाने के ठीक पीछे रहने वाले जयंती प्रसाद की बेटी थी. जयंती प्रसाद भी यूपी पुलिस में सिपाही थे.

जोदसिंह 3 बच्चों का बाप बन चुका था. लेकिन वह पत्नी से चोरीछिपे बंटू की आर्थिक मदद करता रहता था. जबकि हेमलता इस का विरोध करती रहती थी.

मिथिलेश को रोटी कपड़ा तो मिल रहा था लेकिन इन के अलावा उस की और जरूरतें भी थीं. उस का मन भी करता था कि जेठानी की तरह उस के पास भी जरूरत की तमाम चीजें हों. वह भी रोजाना बढि़या से बढि़या कपड़े पहने. उस के पास भी इतने पैसे हों कि अपनी जरूरत के मुताबिक खर्च कर सके ऐसी ही तमाम महत्त्वाकांक्षाएं उस के मन में दबी पड़ी थीं.

पति की आदतों को देखते हुए उसे नहीं लग रहा था कि जिन अभावों में वह जी रही है, वह कभी पूरे भी हो सकेंगे या नहीं. उस की शादी को 11 साल बीत चुके थे. इन 11 सालों में बंटू व उस के अन्य भाइयों के रहनसहन, सामाजिक मानप्रतिष्ठा में जमीन-आसमान का अंतर आ गया था.

बुरे दौर से गुजरने के बाद भी बंटू ने अपनी गलत आदतें नहीं सुधारीं. उस का मोहल्ले के लोगों से आए दिन झगड़ा होता रहता. जिस से पुलिस उसे पकड़ कर ले जाती थी. तब जोदसिंह उसे जैसेतैसे थाने से छुड़वा देता था. अब घर वाले भी उस से परेशान रहने लगे. उन्होंने उस की आर्थिक मदद करनी बंद कर दी.

तब हेमलता ने बंटू से छुटकारा पाने का एक उपाय ढूंढ लिया. पति जोदसिंह को समझाबुझा कर उस ने एक दिन आगरा के आला पुलिस अधिकारियों को पति की तरफ से एक पत्र भिजवाया. जिस में लिखा कि बंटू जो उस का सगा भाई है, के चालचलन ठीक नहीं हैं और भविष्य में उस के द्वारा कोई आपराधिक कृत्य किया जाता है तो उस का जिम्मेदार खुद बंटू ही होगा, हमारे परिवार वाले नहीं.

जब यह पत्र एसएसपी को मिला तो उन्होंने थाना शमसाबाद पुलिस के पास आवश्यक काररवाई के लिए भेज दिया. थानाप्रभारी ने बंटू को थाने बुलाया और सीधे रास्ते चलने के लिए बुरी तरह हड़का दिया. तब उस ने वादा किया कि आइंदा वह कोई गैरकानूनी काम नहीं करेगा. इस के बाद ही पुलिस ने उसे छोड़ा.

पुलिस से जलील होने के बाद बंटू घर आ गया. बाद में उसे और मिथिलेश को यह पता लग गया कि हेमलता ने ही उस के खिलाफ पुलिस में शिकायत कराई थी. मिथिलेश के मन में जेठानी हेमलता के प्रति नफरत पनपने लगी.

वैसे तो बंटू अपने भाई जोदसिंह के रहनसहन को देख कर उस से मन ही मन नफरत करता था लेकिन अब इस के बाद उस की नफरत और बढ़ गई थी. जोदसिंह की पोस्टिंग अलीगढ़ में थी. अब तो हालात ये हो गए थे कि जब कभी जोदसिंह अलीगढ़ से अपने गांव आता तो बंटू और मिथिलेश, जोदसिंह और उस की पत्नी हेमलता से बात नहीं करते.

बंटू के घर की जरूरतें बढ़ती जा रही थीं और आमदनी शून्य थी. तो ऐसे में बंटू इधरउधर से उधार ला कर काम चलाने लगा. मगर ये भी ज्यादा दिन न चला. कुछ दिनों बाद तकादा करने वाले भी उस के यहां आने लगे. पैसे न मिलने पर वे भी उसे जलील कर के चले जाते थे.

घर में फाके पड़ने की नौबत आ गई. तब मिथिलेश का पति से रोजाना ही झगड़ा होने लगा. उन के बीच गालीगलौज, मारपीट जैसे रोज का नियम बन गया. क्लेश के साथ मिथिलेश ने पति को रास्ते पर लाने के लाख जतन कर लिए लेकिन न तो बंटू ने कोई कामधाम किया और न ही उस के व्यवहार में किसी प्रकार का कोई सुधार आया. इसी बीच एक रात बंटू की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई.

21 जनवरी, 2013 की रात की बात थी. बंटू नशा कर के आया था. पत्नी ने उसे खाना आदि खिला कर सुला दिया. वह खुद भी पास में ही मौजूद दूसरे कमरे में बच्चों के साथ सो गई. बंटू बरामदे में सो रहा था.रात के करीब एक बजे मिथिलेश जब बाथरूम जाने के लिए उठी तो बरामदे में पहुंचते ही उस की चीख निकल गई. उस का पति खून से लथपथ पड़ा था. किसी ने उस के सीने पर गोली मारी थी.

मिथिलेश के चीखने की आवाज सुन कर उस के ससुर प्रेमसिंह और देवर टीटू व टिंकू भी वहां आ गए. बंद घर में कौन उसे गोली मार गया इस बात को घर वाले समझ नहीं पाए.

बाद में मोहल्ले के लोग भी वहां पहुंच गए. दबी जुबान में कुछ कह रहे थे कि मिथिलेश ने ही नाकारा पति से छुटकारा पाने को लाइसेंसी बंदूक से मार डाला है. जबकि कई लोग जोदसिंह को कठघरे में खड़ा कर रहे थे. उन का कहना था कि जोदसिंह रात के अंधेरे में आया और साइलेंसर लगी रिवाल्वर से बंटू को भून कर रात में ही गायब हो गया.

लोगों का तो यहां तक कहना था कि जोदसिंह व मिथिलेश के बीच अवैध संबंध थे. बंटू रास्ते का रोड़ा था इसलिए उसे हटा दिया गया. बहरहाल, जितने मुंह उतनी बातें हो रही थीं.

घुमाफिरा कर अंगुली मिथिलेश की तरफ ही उठ रही थी. लेकिन प्रेमसिंह नहीं चाहते थे कि उन की बहू जेल जाए. इसलिए उन्होंने गांव के संभ्रांत लोगों से बात कर आननफानन में बेटे का अंतिम संस्कार कर दिया. और गांव में यह खबर फैला दी कि बंटू की मौत ज्यादा शराब पीने से हुई थी.

जबकि मिथिलेश पति की हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराने के लिए जेठ जोदसिंह और ससुर प्रेमसिंह से मानमनुहार करती रही लेकिन उन लोगों ने एक न सुनी. बात पंचों के सामने गई तो उन्होंने उसे यह समझा कर खामोश कर दिया कि चूंकि उस का ही बंटू से रोजरोज झगड़ा होता था इसलिए पुलिस भी यही मानेगी कि अपने पति की हरकतों से आजिज आ कर उस ने ही उसे मौत के घाट उतारा है.

पंचों व परिजनों की बात में दम था या नहीं परंतु उस समय किसी वजह से मिथिलेश ने भी पति की हत्या पर चुप्पी साध ली. बंटू के खत्म होने से मिथिलेश के जीवन में एक अजीब सी खामोशी छा गई. उस के पास आमदनी का कोई जरिया न होने की वजह से उसे अब अपने जेठ व ससुर के ऊपर ही निर्भर रहना था. वह अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती थी. इसलिए वह घर पर कपड़ों की सिलाई भी करने लगी थी लेकिन उस से घर का खर्च पूरा नहीं चल पाता था.

उस के सभी बच्चे स्कूल जाने लगे थे. यानी खर्चा भी बढ़ गया था. अब जोदसिंह खुल कर मिथिलेश व उस के बच्चों की मदद करने लगा. लेकिन हेमलता को ये सब सहन नहीं होता था. वह मिथिलेश से सीधे मुंह बात तो करती नहीं थी, मौका मिलने पर उसे उलाहना जरूर देती रहती थी.

मजबूरी में मिथिलेश को यह सब सुनना पड़ता था. मिथिलेश के बच्चे भी समझदार हो गए थे. हेमलता उन्हें भी फूटी आंख पसंद नहीं करती थी. बच्चे भी ताई के अपमान भरे व्यवहार को अच्छी तरह समझते थे. हेमलता जब भी अलीगढ़ से शंकरपुर आती तो परिवार के अन्य बच्चों के लिए कुछ न कुछ अवश्य लाती थी लेकिन मिथिलेश के चारों बच्चों के लिए कुछ भी नहीं.

जेठानी का यह बर्ताव देख कर मिथलेश के सीने पर सांप लोट जाता था. उस का दबंगपन दिखाने की एक वजह यह भी थी कि उस के पिता और पति दोनों ही पुलिस में थे. ऊपर से पति की कमाई का उस के पास अच्छा बैंक बैलेंस भी था. जिस से वह घमंड में रहती थी. गांव में रहने के बजाय वह आगरा की ही किसी कालोनी में फ्लैट लेने की योजना बना रही थी.

4 लाख में खरीदी मौत – भाग 2

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, जयप्रकाश की हत्या रविवार की रात को हुई थी. उसे 315 बोर के तमंचे से गोली मारी गई थी. जब इस पूछताछ से पुलिस हत्यारों तक पहुंचने में नाकाम रही तो जांच को आगे बढ़ाने के लिए पुलिस ने मोबाइल को आधार बनाया.

पुलिस ने मृतक जयप्रकाश और नामजद अभियुक्तों के काल डिटेल्स और लोकेशन निकलवाई. इस काल डिटेल्स और लोकेशन से पता चला कि जिस रात जयप्रकाश की हत्या हुई थी, चारों अभियुक्तों की लोकेशन जसपुर थी. चारों में से किसी की मृतक से कोई बात भी नहीं हुई थी. जबकि जयप्रकाश के मोबाइल फोन की लोकेशन काशीपुर की थी. उस की काल डिटेल्स में 2 नंबर ऐसे मिले थे, जिन की लोकेशन काशीपुर की थी और उन नंबरों से जयप्रकाश की कई बार बात भी हुई थी. पुलिस ने उन नंबरों के बारे में पता किया तो दोनों नंबर काशीपुर के निकले.

पुलिस को पता ही था कि मृतक इधर कई दिनों से काशीपुर में अपनी बहन के घर रह रहा था. पुलिस केला देवी से पूछताछ कर ही चुकी थी. उस ने बताया था कि करवा चौथ की बात कह कर जयप्रकाश अपने घर चला गया था. लेकिन जब मृतक के फोन की लोकेशन काशीपुर की ही मिली तो पुलिस ने एक बार फिर उस से पूछताछ करने पहुंची. पुलिस ने उस से उन दोनों नंबरों के बारे में पूछा, जो जयप्रकाश की काल डिटेल्स में मिले थे.

केला देवी से पता चला कि उन दोनों नंबरों में से एक नंबर उस के भतीजे पंकज का है. पुलिस पंकज को हिरासत में ले कर पूछताछ के लिए कोतवाली जसपुर ले आई. उसे हिरासत में लेने की वजह यह थी कि उस रात उस के नंबर की लोकेशन जसपुर की पाई गई थी.

कोतवाली में पंकज से पूछताछ शुरू हुई तो पुलिस के सवालों के आगे वह ज्यादा देर तक टिक नहीं सका. दरअसल पंकज शरीर से भले ही जवान लगता था, लेकिन उम्र के हिसाब से अभी बच्चा था. इसीलिए पुलिस की सख्ती के आगे उस की हिम्मत जवाब दे गई और उस ने सच उगल दिया. पंकज ने पुलिस को बताया कि अपने 3 साथियों के साथ मिल कर उसी ने जयप्रकाश की हत्या की थी.

पूछताछ में पंकज ने जयप्रकाश की हत्या की जो कहानी पुलिस को सुनाई, वह हैरान करने वाली थी. इस की वजह यह थी कि उस ने पत्नी, बेटे और पत्नी के प्रेमी को मारने की सुपारी दी थी, लेकिन मारा गया खुद. यह पूरी कहानी कुछ इस तरह थी.

जसपुर के बीएसबी इंटर कालेज में एक चपरासी था गंगाराम. कई सालों पहले जानलेवा बीमारी की वजह से उस की मौत हो गई थी. मृतक जयप्रकाश गंगाराम का बड़ा बेटा था. जवान होने पर गंगाराम ने सुनीता से उस की शादी कर दी थी. उस का परिवार पहले शहर के बीचोबीच सब्जी मंडी के पास रहता था. युवा होते ही जयप्रकाश नीरा बेचने लगा था. उसी की आय से उस के परिवार का गुजरबसर हो रहा था.

जयप्रकाश के 4 बच्चे हो गए तो उस पुराने मकान में रहने में उसे परेशानी होने लगी. तब जयप्रकाश ने अपने उस पुराने मकान को बेच दिया और बीएसबी इंटर कालेज के पास गांगूवाला मोहल्ले में भाई के साथ जमीन खरीद कर नया मकान बना कर उसी में परिवार के साथ रहने लगा.

पिता के समय से ही जयप्रकाश के बीएसबी इंटर कालेज के कई टीचरों से अच्छे संबंध थे, जो गंगाराम के मरने के बाद भी उस के घर आतेजाते रहते थे. उन्हीं अध्यापकों में एक हरजीत सिंह भी था. आनेजाने में ही हरजीत की नजर जयप्रकाश की पत्नी सुनीता पर पड़ी तो उस का मन मचल उठा. इस की वजह यह थी कि वह थोड़ा मनचले किस्म का था. शायद इसीलिए शादीशुदा होने के बावजूद खूबसूरत सुनीता पर उस की नीयत खराब हो गई थी.

मन के मचलते ही हरजीत सुनीता के पीछे पड़ गया. वह कभी सुनीता की सुंदरता की तारीफ करता तो कभी उस के नाश्तेपानी की. सुनीता को उस की ये तारीफें अच्छी लगतीं. जब हरजीत तारीफें कुछ ज्यादा ही करने लगा तो सुनीता का ध्यान उस पर गया. इस के बाद उस की भी समझ में आ गया कि हरजीत चाहता क्या है.

सुनीता की घरगृहस्थी ठीकठाक चल रही थी. लेकिन हरजीत की चाहत के आगे वह झुक गई. उस ने नजरों से ही बता दिया कि वह जो चाहता है, उसे वह मंजूर है. इस के बाद सुनीता की नजदीकी पाने के लिए हरजीत ने उसे गर्ल्स इंटर कालेज में मिड डे मील बनाने का काम दिला दिया. उसी के सहारे सुनीता ने वहीं एक छोटी सी चाय की दुकान खोल ली. अब हरजीत और सुनीता पूरा दिन एकदूसरे की आंखों के सामने रहने लगे.

जयप्रकाश का मकान बस्ती से दूर ऐसी जगह था, जहां कौन आताजाता है, कोई देखने वाला नहीं था. जयप्रकाश नीरा बेचने सुबह ही निकल जाता था. बच्चे भी स्कूल चले जाते थे. उस के बाद घर में सुनीता अकेली रह जाती थी. ऐसे में हरजीत को सुनीता से मिलने में कोई परेशानी नहीं होती थी. हरजीत जब भी सुनीता के यहां आता था, खानेपीने की तरहतरह की चीजें ले आता था, इसलिए सुनीता के बच्चों को भी वह अच्छा लगने लगा था. बच्चे पिता से ज्यादा उसे प्रेम करने लगे थे.

संबंध बनने के बाद हरजीत सुनीता के घर ज्यादा ही आनेजाने लगा तो यह जयप्रकाश को खलने लगा. जयप्रकाश ने दोनों को किसी दिन अश्लील हरकतें करते देख लिया तो हरजीत के आने का विरोध करने लगा. सुनीता अब उस की बात मानने को तैयार नहीं थी. जिस की वजह से हरजीत को ले कर घर में कलह रहने लगी.

जयप्रकाश ने देखा कि पत्नी उस का कहना नहीं मान रही है और बच्चे भी उसी का साथ दे रहे हैं तो बीवी बच्चों से उसे नफरत हो गई. इस के बाद वह बीवी बच्चों से अलग रहने के बारे में सोचने लगा. वह अपना मकान बेच कर पत्नीबच्चों को छोड़ कर अकेला रहना चाहता था. इस के बाद छोटे भाई से सांठगांठ कर के उस ने मकान बेचने की योजना बना डाली.

दरअसल यह मकान दोनों भाई ने मिल कर बनवाया था. आखिर दोनों भाइयों ने 30 सितंबर, 2014 को सुनीता की चोरी से 17 लाख रुपए में मकान का सौदा कर डाला. इस रकम से जो 9 लाख रुपए जयप्रकाश को मिले थे, उसे ले जा कर उस ने अपनी बहन केला देवी के यहां रख दिए थे.

कौन था जयप्रकाश की हत्या के पीछे? जानने के लिए पढ़ें कहानी का अगला भाग.

शक का नासूर : फोन ने घोला जिंदगी में जहर – भाग 4

8 जून, 2014 को भी ओमप्रकाश ने नीतू को नोएडा में फिल्म देखने आने के लिए फोन किया. पति के बदले व्यवहार से नीतू खुश थी. नोएडा जाने की बात उस ने अपनी मां विजम से बता दी थी. दोपहर करीब 11 बजे वह घर से नोएडा जाने के लिए निकल गई और मयूर विहार फेज-1 मैट्रो स्टेशन से मैट्रो द्वारा वह नोएडा सेक्टर-18 मैट्रो स्टेशन पहुंच गई.

ओमप्रकाश को दहेज में डीएल 8सी-एई 1782 नंबर जो सैंट्रो कार नंबर की मिली थी उस से वह नोएडा-18 मैट्रो स्टेशन पहुंच गया. कार मैट्रो की पाकिंग में खड़ा कर के वह स्टेशन पर पत्नी के आने का इंतजार करने लगा. करीब साढ़े 11 बजे नीतू नोएडा सेक्टर-18 मैट्रो स्टेशन पहुंची तो वह उस से बड़ी गर्मजोशी से मिला.

फिर कार से दोनों अट्टा मार्केट पहुंचे. वहां दोनों ने स्नेक्स खाए. नीतू को इस बात का जरा भी अंदेशा नहीं था कि जो पति आज उस की इतनी खातिर तवज्जो कर रहा है, उस का काल बनने जा रहा है.

ओमप्रकाश ने यह पहले से सोच रखा था कि पत्नी की हत्या कहां करनी है और  लाश कहां ठिकाने लगानी है. लाश ठिकाने लगाने के लिए उस ने एक बड़ा सा ट्राली बैग पहले ही खरीद कर कार में रख लिया था. नीतू ने जब उस से उस ट्राली बैग के बारे में पूछा तो ओमप्रकाश ने झूठ बोलते हुए कहा था कि औफिस के एक जने ने उस से बैग खरीद कर लाने को कहा था.

अट्टा मार्केट में स्नैक्स खाने के बाद ओमप्रकाश पत्नी को अपने औफिस परी चौक की तरफ ले गया. नोएडा, गे्रटर नोएडा के कुछ इलाकों को नीतू भी पहचानती थी. उस ने कार दूसरे रास्ते पर जाते देखी तो वह बोली, ‘‘यह तुम कहां जा रहे हो, पिक्चर तो हमें शिप्रा में देखनी थी?’’

‘‘हां, हम शिप्रा आ जाएंगे. मुझे औफिस में थोड़ा काम है. काम निपटा कर हम शिप्रा आ जाएंगे.’’ ओमप्रकाश ने उसे समझाने की कोशिश की. लेकिन नीतू उस पर भड़क गई. उन के बीच तकरार बढ़ गई. झट्टा गांव के पास ओमप्रकाश ने कार रोक दी. वह इलाका सुनसान सा रहता है. मौका देखते ही उस ने दोनों हाथों से पत्नी का गला दबा दिया. कुछ देर बाद नीतू की गरदन एक ओर लुढ़क गई.

पत्नी की हत्या करने के बाद ओमप्रकाश ने उस की लाश पहले से खरीदे हुए ट्राली बैग में रख कर चैन बंद कर दी. वह कार को मयूर विहार फेज-1 मैट्रो स्टेशन के पास ले आया और वहां से कुछ दूर यमुना खादर की झाडि़यों में वह बैग डाल दिया. नीतू का फोन स्विच्ड औफ कर के वहां से कुछ दूर रास्ते में फेंक दिया था. इस के बाद वह अपने औफिस चला गया.

मयूर विहार के पास यमुना खादर में उस ने लाश इसलिए फेंकी कि लाश बरामद होने के बाद भी पुलिस का शक उस पर न हो. लाश बरामद होने पर पुलिस उस से पूछती तो वह पुलिस को बता देता कि उस ने नीतू को नोएडा सेक्टर-18 के मैट्रो स्टेशन पर छोड़ दिया था.

खुद को सेफ रखने के लिए ओमप्रकाश ने अपने औफिस से पत्नी के मोबाइल पर कई फोन किए. बाद में अपने साले संजय को फोन कर के कहा कि नीतू का फोन नहीं मिल रहा है उस से बात करा दे.

ओमप्रकाश ने पत्नी को ठिकाने लगाने की फूलप्रूफ योजना बनाई थी. पूरी योजना को उस ने अकेले ही अंजाम दिया था. अपने ससुराल वालों को भी उस ने विश्वास में ले लिया था तभी तो वह दामाद को पुलिस के पास से ले आए थे.

एक बात तो सच है कि कोई भी व्यक्ति अपराध करने के बाद कितनी भी चालाकी से झूठ बोले, पुलिस के जाल में फंस ही जाता है. ओमप्रकाश ने भी पुलिस को गुमराह करने की काफी कोशिश की लेकिन वह सफल नहीं हो सका.

पुलिस ने ओमप्रकाश की निशानदेही पर वह सैंट्रो कार भी बरामद कर ली जिस से उस ने लाश ठिकाने लगाई थी. काफी खोजबीन के बाद भी नीतू का मोबाइल फोन नहीं मिल पाया. विस्तार से पूछताछ के बाद उसे न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया. मामले की तफ्तीश इंसपेक्टर सी.एम. मीणा कर रहे थे. द्य

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित और प्रिया परिवर्तित नाम है.

नफरत की गोली – भाग 1

रात के करीब पौने 8 बज रहे थे. जनवरी की कड़ाके की ठंड में ज्यादातर लोग रजाइयों में दुबके  पड़े थे. जोदसिंह भी अपने पड़ोस में रहने वाले एक बुजुर्ग के पास बैठा हुआ अलाव पर हाथ सेंक रहा था.

उसे उन से बात करते हुए करीब 10-15 मिनट ही हुए होंगे कि एक तेज आवाज आई. वह आवाज किसी बम धमाके की नहीं बल्कि गोली चलने जैसी थी. आवाज सुनते ही वह चौंक गया क्योंकि यह आवाज उस के घर की तरफ से ही आई थी. उस के अलावा आसपास रहने वाले जिन लोगों ने भी वह आवाज सुनी, घरों के बाहर निकल आए और उस के घर की तरफ चल दिए. जोदसिंह भी बुजुर्ग के पास से उठ कर अपने घर पहुंच गया.

जोदसिंह जब घर पर पहुंचा तो बरामदे में उस के पिता प्रेमचंद, भाई टीटू, टिंकू आदि बैठे थे लेकिन पत्नी हेमलता व छोटे भाई बंटू की पत्नी मिथिलेश वहां पर नजर नहीं आ रही थी. आवाज जोदसिंह के घर वालों ने भी सुनी थी लेकिन उन्होंने इस बात पर गौर नहीं किया था कि आवाज उन के घर से ही आई है. बल्कि वे सोच रहे थे कि किसी बच्चे ने पटाखा फोड़ा होगा.

जोदसिंह के 2 मामा व बच्चे कमरे में बैठे टीवी देख रहे थे. आवाज सुन कर वह भी बाहर निकल आए थे परंतु जब उन्हें यह पता नहीं लग सका कि आवाज कहां से आई है तो वे फिर से टीवी देखने में मशगूल हो गए.

जोदसिंह पत्नी को आवाज लगाता हुआ कमरे में पहुंचा. उसी दौरान उस की नजर जीने के दरवाजे पर गई. वह दरवाजा बंद नजर आया. दरवाजा अंदर की तरफ से नहीं बल्कि छत की तरफ से बंद था. वह यह नहीं समझ पा रहा था कि छत पर कौन है, जिस ने दरवाजा बंद कर रखा है. उस ने अपने भाइयों को आवाज लगाई. टिंकू और टीटू दौड़ेदौडे़ उस के पास आए. उन को भी कुछ शक हुआ.

तीनों ने जीने के दरवाजे को खटखटाते हुए आवाज लगाई. जब कोई जवाब नहीं आया तो टीटू और टिंकू ने वह दरवाजा तोड़ दिया. दरवाजा टूटते ही तीनों छत पर पहुंच गए. छत पर बल्ब जल रहा था. बल्ब की रोशनी में उन्होंने जो कुछ देखा, उन के रोंगटे खड़े हो गए.

छत पर खून फैला पड़ा था और वहां जोदसिंह की पत्नी हेमलता लहूलुहान पड़ी थी जबकि हेमलता की देवरानी मिथिलेश छत पर ही दीवार से टेक लगाए बैठी थी. उस के सामने ही एक तमंचा पड़ा था. जोदसिंह लपक कर पत्नी के पास गया.

उस ने लहूलुहान पत्नी को हिलायाडुलाया लेकिन वह मर चुकी थी. पत्नी को इस हालत मे देख कर वह जोरजोर से रोने लगा. टीटू और टिंकू यह बात समझ गए कि भाभी की हत्या मिथिलेश ने ही की होगी. वे उसे घूर कर देखने लगे. इस से पहले कि दोनों भाई कुछ कहते मिथिलेश ने झट से सामने पड़ा हुआ तमंचा उठा लिया.

उस में दूसरी गोली भर कर धमकाते हुए बोली, ‘‘मेरे पास मत आना वरना गोली मार दूंगी.’’

उस के डर की वजह से उन दोनों की हिम्मत उस पास जाने की नहीं हुई. जोदसिंह की रोने की आवाज सुन कर उस के घर के बाहर खड़े पड़ोसी भी छत पर आ गए.

उन्होंने भी हेमलता की लाश देखी तो वे भी हैरान रह गए. मगर उन्हें इस बात पर भरोसा नहीं हो रहा था कि हाथ में तमंचा लिए जो मिथिलेश खड़ी है उस ने यह हत्या की होगी. इसी बीच किसी ने फोन कर के सूचना थाना शमसाबाद में भी दे दी. यह बात 20 जनवरी, 2014 की है.

करीब 10 मिनट बाद गश्त पर घूम रहे 2 पुलिसकर्मियों ने जोदसिंह के घर के बाहर भीड़ लगी देखी तो वे भी पूछताछ करते हुए छत पर पहुंच गए. जबकि मिथिलेश के डर की वजह से मोहल्ले का कोई भी आदमी छत पर जाने की हिम्मत नहीं कर रहा था.

छत पर पहुंच कर पुलिस वालों को लगा कि मिथिलेश नाम की एक महिला ने अपनी ही जेठानी की गोली मार कर हत्या कर दी है. तो उन्होंने तुरंत फोन द्वारा यह सूचना थानाप्रभारी अरुण कुमार यादव को दे दी.

मिथिलेश के हाथ में तमंचा था. उस से वह किसी और के ऊपर गोली न चला दे, इसलिए उन की कोशिश उस से तमंचा हासिल करने की थी. उन्होंने मिथिलेश को समझाया और तमंचा फेंकने को कहा. लेकिन उस ने तमंचा नहीं फेंका बल्कि वह अपनी जेठानी की लाश को ही टकटकी लगाए देख रही थी. फिर हिम्मत कर के धीरेधीरे वे उस की ओर बढ़ने लगे.

उन्हें देख कर मिथिलेश बिलकुल भी नहीं डरी, जबकि पुलिसवालों को इसी बात का डर लग रहा था कि कहीं वह उन के ऊपर गोली न चला दे. फिर लपक कर उन्होंने मिथिलेश का वो हाथ पकड़ लिया जिस में वह तमंचा पकड़े हुए थी. जल्दी से तमंचा कब्जे में ले कर उन्होंने मिथिलेश को भी हिरासत में ले लिया. उन्होंने तमंचा चैक किया तो उस में कारतूस भरा हुआ था.

उसी समय शमसाबाद के थानाप्रभारी अरुण कुमार यादव सबइंसपेक्टर दयाराम, विनोद कुमार, कांस्टेबल कृष्ण, सतेंद्र, हरिओम आदि के साथ वहां पहुंच गए. अब तक घर में हेमलता की मौत को ले कर कोहराम सा मच गया था.

थानाप्रभारी ने घटनास्थल का निरीक्षण किया तो देखा कि उस का सिर फटा हुआ था साथ ही सिर में गोली लगने का निशान भी साफ नजर आ रहा था. इस से साफ लग रहा था कि उस की हत्या गोली मार कर की होगी.मरने से पहले हेमलता ने कोई विरोध किया हो, ऐसे कोई सुबूत भी वहां नहीं मिले. छत पर ही बने चूल्हे में एक हथौड़ा भी मिला. उस पर खून लगा हुआ था. पुलिस ने हथौड़ा भी बरामद कर लिया.

पुलिस क्या वहां मौजूद सभी लोगों के मन में बस एक ही सवाल उठ रहा था कि आखिर मिथिलेश ने अपनी जेठानी का कत्ल क्यों किया और वो भी गोली मार कर.

सूचना मिलने पर आगरा के एसएसपी शलभ माथुर और एसपी (देहात) के.पी.एस. यादव भी मौके पर पहुंच गए. उन्होंने भी लाश का निरीक्षण कर मौका मुआयना किया. उन्होंने मिथिलेश और परिवार के अन्य लोगों से भी बात की. इस के बाद वे थानाप्रभारी को कुछ निर्देश देने के बाद चले गए. उन के जाने के बाद थानाप्रभारी ने रात में ही लाश का पंचनामा करने के बाद उसे पोस्टमार्टम के लिए आगरा के एस.एन. मैडिकल कालेज भिजवा दिया.

पुलिस ने मिथिलेश को पहले ही हिरासत में ले रखा था. उसे थाने ले जा कर जब उस से जेठानी की हत्या के बारे में पूछताछ की तो उस ने बिना किसी डर के स्वीकार कर लिया कि उस की जेठानी हेमलता की हत्या कर के अपने पति की हत्या का बदला लिया है. फिर उस ने हेमलता की हत्या की जो कहानी बताई, वह चौंकाने वाली निकली.

उत्तर प्रदेश के जिला आगरा के मलपुरा क्षेत्र का एक गांव है नगल प्रताप. यहां के रहने वाले एक किसान निब्बोराम के 4 बच्चों में मिथिलेश सब से बड़ी बेटी थी. निब्बोराम की आर्थिक हालत इस लायक नहीं थी कि वह बच्चों को पढ़ालिखा सके. जैसेतैसे कर के वह परिवार को पाल रहा था.

मिथिलेश जब सयानी हुई तो उन्होंने ज्यादा जांचपड़ताल किए बिना शमसाबाद थाने के शंकरपुर गांव में रहने वाले प्रेमसिंह के बेटे बंटू के साथ उस की शादी कर दी. जिस बिचौलिए ने यह शादी कराई थी, उस ने निब्बोराम को बंटू के बारे में सही जानकारी नहीं दी थी.

पत्नी के लिए पिता के खून से रंगे हाथ

4 लाख में खरीदी मौत – भाग 1

सुबह खेतों की ओर जाते हुए कुछ लोगों ने एक आदमी को पड़े देखा तो उन्हें लगा, शायद कोई शराब पी कर पड़ा है. लेकिन जब उन्होंने नजदीक जा कर देखा तो पता चला कि वह तो मरा पड़ा है. वह खून से लथपथ था, इस से लोगों ने अंदाजा लगाया कि यह हत्या का मामला है.

हत्या का अंदाजा होते ही वहां मौजूद लोगों में से किसी ने इस बात की जानकारी ग्रामप्रधान निर्मल सिंह को दे दी. कुछ ही देर में वहां अच्छीखासी भीड़ लग गई. लाश जसपुर कोतवाली के अंतर्गत आने वाले गांव अहमदनगर के पास खेतों में पड़ी थी. ग्रामप्रधान निर्मल सिंह की सूचना पर जसपुर कोतवाली के एसएसआई संजीव कुमार पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

निरीक्षण में पुलिस ने देखा कि मृतक के शरीर पर किसी भी तरह का चोट का कोई निशान नहीं था. उस की हत्या गोली मार कर की गई थी. गोली आंख के पास लगी थी, जो छेद कर उस पार गले के पास से निकल गई थी.

मृतक की शिनाख्त के लिए पुलिस को किसी तरह की जहमत नहीं उठानी पड़ी. क्योंकि उसे वहां लगभग हर कोई जानता था. मृतक जसपुर के मोहल्ला गांगूवाला का रहने वाला जयप्रकाश था, जो घूमघूम पूरे दिन ठेले पर नीरा (खजूर के पेड़ का पानी) बेचता था. यही वजह थी कि अधिकांश लोग उसे जानतेपहचानते थे. हत्या की सूचना पा कर सीओ प्रकाशचंद आर्य भी घटनास्थल पर आ गए थे.

मृतक के कपड़ों की तलाशी में पुलिस को उस की जेब से पहचान पत्र, फोटो और 4 हजार रुपए नकद मिले थे. इस से यह साफ हो गया था कि मृतक की हत्या लूटपाट के लिए नही की गई थी.

साथ आई फोरेंसिक टीम अपना काम करने लगी तो एसएसआई संजीव कुमार ने जयप्रकाश की हत्या की सूचना उस के घर वालों को दिलवा कर वहीं बुला लिया. हत्या की सूचना पा कर घर वाले रोतेबिलखते वहां आ पहुंचे. पूछताछ में पता चला कि मृतक इधर कई दिनों से काशीपुर में रहने वाली अपनी बहन केला देवी के यहां रह रहा था. इस के बाद पुलिस के सामने यह सवाल खड़ा हो गया कि मृतक जब काशीपुर में रह रहा था तो इस की हत्या यहां कैसे हुई?

इसी पूछताछ में मृतक जयप्रकाश की पत्नी सुनीता ने बताया था कि कुछ दिनों पहले मृतक ने अपना मकान 9 लाख रुपए में बेचा था. मकान बेचने के बाद से ही वह अपनी बहन के यहां रह रहा था. 9 लाख रुपए एक मोटी रकम होती है. उस के लिए भी उस की हत्या हो सकती थी. यह सब जांच के बाद ही पता चल सकता था. पुलिस घटना की काररवाई निपटाते हुए लाश का पंचनामा तैयार कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवाने की तैयारी कर रही थी कि तभी मृतक जयप्रकाश की बहन केला देवी आ गई.

आते ही केला देवी भाई की लाश से लिपट कर जोरजोर से रोने लगी. पुलिस को जब पता चला कि यही उस की बहन केला देवी है, जिस के यहां जयप्रकाश अपने मकान के रुपए ले कर रहा था तो पुलिस ने उस से भी पूछताछ करना उचित समझा.

सांत्वना दे कर पुलिस ने केला देवी से पूछताछ की तो उस ने बताया कि 11 अक्तूबर को करवा चौथ होने की वजह से जयप्रकाश अपने घर जाने की बात कह कर उस के घर से चला आया था. इस के बाद वह कहां गया, उस के साथ क्या हुआ, उसे कोई जानकारी नहीं थी.

पुलिस केला देवी से पूछताछ कर रही थी कि तभी मृतक जयप्रकाश की मां बिरमो देवी आ गई. वह बहू की ओर इशारा कर के रोते हुए कहने लगी, ‘‘अपने यार के साथ मिल कर तू ने ही मेरे बेटे को मरवाया है. तू हत्यारिन है. मेरे बेटे को मरवा कर तेरा कलेजा ठंडा हो गया न, अब मौज कर अपने यार के साथ.’’

बिरमो देवी की बातें सुन कर पुलिस के कान खड़े हो गए. पुलिस को समझते देर नहीं लगी कि यह अवैध संबंधों में हुई हत्या का मामला है. पुलिस को लगा, अब जल्दी ही इस मामले का खुलासा हो जाएगा. इस के बाद पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया.

बिरमो देवी की बातों से पुलिस ने इसे अवैध संबंध में हुई हत्या का मामला माना था, इसलिए अंतिम संस्कार होने के तुरंत बाद पुलिस मृतक जयप्रकाश के घर पूछताछ के लिए पहुंच गई. मृतक की मां बिरमो देवी घर में नहीं थी, इसलिए पुलिस उस की पत्नी सुनीता और बच्चों से पूछताछ करने लगी.

सुनीता और बच्चों ने बताया कि करवा चौथ को जयप्रकाश घर नहीं आया था. उसे किस ने, कब और क्यों मारा, उन्हें इस बारे में कोई जानकारी नहीं है. पत्नी और बच्चों के खिलाफ पुलिस को अब तक की जांच में कोई सुबूत नहीं मिला था, इसलिए पुलिस इस बात पर भी विचार करने लगी कि कहीं रुपयों की वजह से तो जयप्रकाश की हत्या नहीं हुई.

इस के बाद पुलिस ने मकान खरीदने वाले से पूछताछ की तो उस ने बताया कि मकान का सौदा होते ही उस ने पूरी रकम अदा कर दी थी. उस के बाद जयप्रकाश ने पैसों का क्या किया, उसे कोई जानकारी नहीं थी.

पुलिस जयप्रकाश की मां बिरमो देवी से पूछताछ करना चाहती थी, इसलिए एक बार फिर उस के घर गई. इस बार की पूछताछ में उस ने पुलिस को बताया कि उस की बहू सुनीता का चमनबाग के रहने वाले मास्टर हरजीत सिंह से प्रेमसंबंध है. जब देखो, तब वह उसी के घर में पड़ा रहता था.

जयप्रकाश ने कई बार सुनीता को समझाया था, लेकिन सुनीता मास्टर के प्यार में इस कदर पागल थी कि मास्टर के लिए वह पति से लड़ने लगती थी. सुनीता का मास्टर हरजीत सिंह से चक्कर था, इसलिए वह उस की तरफदारी करती थी. उस का बड़ा बेटा विशाल भी उस के साथ उस की तरफदारी करता था.

बिरमो देवी ने पूरे विश्वास के साथ पुलिस से कहा था कि सुनीता ने ही मास्टर हरजीत सिंह के साथ मिल कर जयप्रकाश की हत्या की है. बिरमो देवी के इसी बयान को आधार बना कर पुलिस ने उस की ओर से मास्टर हरजीत सिंह, उस के बेटे दीपक, मृतक जयप्रकाश की पत्नी सुनीता और बेटे विशाल के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया था.

नामजद मुकदमा दर्ज होने के बाद जसपुर कोतवाली पुलिस ने मृतक जयप्रकाश की पत्नी सुनीता और मास्टर हरजीत सिंह को हिरासत में ले कर पूछताछ शुरू कर दी. काफी पूछताछ के बाद भी जब दोनों ने स्वीकार नहीं किया कि उन्होंने हत्या की है तो पुलिस चक्कर में पड़ गई. क्योंकि पुलिस इस मामले को बड़े हलके में ले रही थी. जब सुनीता और हरजीत ने हत्या करने से साफ मना कर दिया और पुलिस को उन के हत्या में शामिल होने का कोई सुबूत नहीं मिला तो पुलिस के लिए परेशानी बढ़ गई.

कहानी के अगले अंक में पढ़ें.. जयप्रकाश ने क्यों दी अपनी ही पत्नी और बेटे की सुपारी?

पति ने किया अर्चना की जिंदगी का सूर्यास्त