
नय अपने दोस्त पिंटू के साथ होटल खोलना चाहता था, इसलिए उसे 15 हजार रुपयों की सख्त जरूरत थी. उस ने पिंटू को पूरा भरोसा दिलाया था कि रुपयों की व्यवस्था कर लेगा. क्योंकि उसे विश्वास था कि उस की मौसी इंद्रा उसे रुपए दे देंगी. लेकिन मौसी ने तो रुपए देने से साफ मना कर दिया था. यह बात विनय को बड़ी नागवार लगी थी, क्योंकि मौसी के इस तरह मना कर देने से दोस्त के सामने उस की बड़ी बेइज्जती हुई थी.
इस बात को ले कर पिंटू अकसर उस की हंसी उड़ाने लगा था. मजबूरी में विनय खून का घूंट पी कर रह जाता था. तब उसे मौसी पर बहुत गुस्सा आता था. धीरेधीरे उस का यह गुस्सा इस कदर बढ़ता गया कि उस ने धोखा देने वाली मौसी को सबक सिखाने का निश्चय कर लिया. वह उस की हत्या कर के उस के घर में रखी नकदी और गहने लूट लेना चाहता था.
हमेशा की तरह 27 जनवरी को जब पिंटू ने विनय को चिढ़ाने के लिए रुपयों के बारे में पूछा तो उस ने गंभीर हो कर कहा, ‘‘चिंता मत करो दोस्त, अब बहुत जल्द रुपयों की व्यवस्था हो जाएगी.’’
‘‘वह कैसे, मौसी रुपए देने को तैयार हो गई क्या? पहले तो उस ने मना कर दिया था, अब कैसे राजी हो गई?’’ पिंटू ने उसे जलाने के लिए मुसकराते हुए कहा.
‘‘भई सीधी अंगुली से घी न निकले तो अंगुली टेढ़ी कर देनी चाहिए. मौसी सीधे रुपए नहीं दे रही न, देखो अब मैं कैसे उस से रुपए लेता हूं.’’ विनय ने कहा.
‘‘भई, जरा हमें भी तो बता मौसी से कैसे रुपए लेगा?’’ पिंटू ने हैरानी से पूछा.
‘‘मौसी के पास काफी गहने हैं. घर खर्च के लिए 10-5 हजार रुपए हमेशा घर में रखे ही रहते हैं. इस के अलावा आलोक भैया बिजनैस करते हैं, उन के भी कुछ न कुछ रुपए रखे ही रहते होंगे. मैं सोच रहा हूं मौसी की हत्या कर के उन के गहने और रुपए हथिया लूं.’’ विनय ने कहा, ‘‘अब तू बता, तेरा क्या इरादा है? इस मामले में तू मेरा साथ देगा या नहीं?’’
‘‘यार जिंदगी का सवाल है. इसलिए मैं तेरा साथ देने को तैयरा हूं. लेकिन पकड़े गए तो जिंदगी बनने के बजाय बिगड़ जाएगी.’’ पिंटू ने चिंता व्यक्त की.
‘‘मैं ने ऐसी योजना बना रखी है कि किसी को पता ही नहीं चलेगा. फिर मौसी पूरे दिन घर में अकेली ही रहती हैं. हम अपना काम कर के आराम से चुपचाप चले जाएंगे. बस इतना ध्यान रखना होगा कि कोई पड़ोसी न देखने पाए.’’ विनय ने कहा.
पिंटू ने हामी भर दी तो विनय ने उसे अपनी योजना समझा कर अगले दिन यानी 28 जनवरी को ही उसे अंजाम देने की तैयारी कर ली. अगले दिन सुबह ही पिंटू विनय के घर पहुंच गया. दोनों ट्रक से उन्नाव के लिए रवाना हो गए. विनय की मौसी का घर उन्नाव बाईपास के पूरननगर में था. इसलिए दोनों बाईपास पर ही उतर गए. वहां से दोनों पैदल ही चल पड़े.
जिस समय विनय पिंटू के साथ अपनी मौसी इंद्रा के घर पहुंचा, उस के मौसा प्रकाशचंद्र श्रीवास्तव अपनी ड्यूटी पर राजकीय आयुर्वेदिक औषधालय जा चुके थे तो मौसेरा भाई आलोक लुकइयाखेड़ा स्थित अपनी कंप्यूटर की दुकान पर. इंद्रा घर में अकेली ही थी. विनय ने घंटी बजाई तो उन्होंने झट दरवाजा खोल दिया.
विनय और पिंटू को देख कर इंद्रा ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘आओ, अंदर आओ. आज बहुत दिनों बाद आए हो?’’
‘‘हां, आप से मिले बहुत दिन हो गए थे, इसीलिए सोचा कि चलो आज मौसी से मिल आते हैं.’’ कहते हुए विनय अंदर आ गया.
‘‘बहुत अच्छा किया. इधर कई दिनों से तुम्हारी याद आ रही थी.’’ इंद्रा ने विनय के कंधे पर हाथ रख कर सोफे पर बैठते हुए कहा, ‘‘तुम दोनों बैठो, मैं चाय बना कर लाती हूं.’’
इतना कह कर इंद्रा रसोई में चाय बनाने चली गई तो विनय और पिंटू अपनी योजना को अंजाम देने के बारे में खुसुरफुसुर करने लगे. विनय ने टीवी की आवाज तेज कर दी, जिस से हत्या करते समय मौसी चीखे भी तो उस की आवाज उसी में दब जाए. इंद्रा ने चाय और नमकीन ला कर रखी तो सभी खानेपीने लगे.
चाय पीते हुए विनय ने कहा, ‘‘मौसी, मैं आप से होटल खोलने के लिए 15 हजार रुपए कब से मांग रहा हूं. लेकिन आप दे नहीं रहीं हैं. आप के अलावा कोई दूसरा मेरी मदद नहीं कर सकता, इसलिए आप कैसे भी रुपयों की व्यवस्था कर दीजिए.’’
‘‘मैं तुम्हें न जाने कितने रुपए दे चुकी हूं, इस का तुम्हारे पास कोई हिसाब है. जब देखो, तब तुम रुपए लेने आ जाते हो,’’ इंद्रा ने नाराज हो कर कहा, ‘‘तुम्हारी आदत पड़ गई है, मुझ से रुपए ऐंठने की. लेकिन अब मैं तुम्हें एक कौड़ी नहीं दूंगी. अगर तुम ने ज्यादा परेशान किया तो तुम्हारी शिकायत तुम्हारे मौसा से कर दूंगी.’’
मौसी की बातें सुन कर विनय गुस्से से पागल हो उठा. वह तो पिंटू के साथ उस की हत्या की योजना बना कर ही आया था, इसलिए फुरती से उठा और सामने बैठी मौसी को दबोच कर बोला, ‘‘तू मौसा से मेरी शिकायत करेगी, शिकायत तो तब करेगी, जब जिंदा रहेगी. मैं अभी तुझे जान से मारे देता हूं.’’
कह कर विनय ने अपने गले में लिपटा मफलर निकाला और मौसी के गले में लपेट कर कसने लगा. दबाव से इंद्रा की सांस रुकने लगी तो वह छटपटाने लगी. उस ने बचाव के लिए हाथपैर बहुत मारे, लेकिन गुस्से में पागल विनय फंदे को कसता गया. कुछ देर छटपटाने के बाद इंद्रा का शरीर शिथिल पड़ गया.
विनय को लगा कि मौसी का खेल खत्म हो गया है तो उस ने मफलर छोड़ दिया. उस के मफलर छोड़ते ही इंद्रा लुढ़क गई. विनय के साथ आए पिंटू को लगा कि अगर इंद्रा जिंदा रह गई तो उन का भेद खुल जाएगा. उस के बाद उन्हें जेल की हवा खानी पड़ेगी. यह सोच कर पिंटू ने घर में रखी सिल उठा कर इंद्रा के सिर पर पटक दिया, जिस से उस का सिर फट गया.
इंद्रा की हत्या करने के बाद विनय और पिंटू अलमारी की चाबी ढूंढ़ने लगे. जल्दी ही उन्हें चाबी मिल गई. विनय ने अलमारी खोल कर उस के लौकर में रखे सोने के एक जोड़ी झुमके, सोने की एक जंजीर, अंगूठी, 1 जोड़ी चांदी की पायल निकाल लिए. विनय को अलमारी में उतने रुपए नहीं मिले, जितने कि उसे उम्मीद थी. अलमारी से उसे मात्र 15 सौ रुपए ही मिले. चलते समय उस ने मौसी का मोबाइल भी ले लिया था. घर से निकल कर उन्होंने बाहर से दरवाजे की कुंडी बंद कर दी और भाग गए. घर से बाहर आते ही विनय ने मौसी के मोबाइल का स्विच औफ कर दिया था.
दोपहर को आलोक को कोई काम पड़ा तो उस ने अपनी मम्मी इंद्रा को फोन किया. लेकिन मम्मी के फोन का स्विच औफ था. काफी देर यही हाल रहा तो परेशान हो कर वह घर आ गया. उस ने दरवाजे पर बाहर से कुंडी लगी देखी तो सकते में आ गया. उसे लगा कि शायद मम्मी घर पर नहीं हैं. दरवाजा खोल कर वह घर के अंदर दाखिल हुआ तो खून से सनी मम्मी की लाश देख कर वह चीखने लगा. उस का चीखना सुन कर आसपड़ोस वाले आ गए.
इंद्रा की खून से सनी लाश देख कर पड़ोसियों को समझते देर नहीं लगी कि कोई उस की हत्या कर गया है. सूचना पा कर प्रकाशचंद्र श्रीवास्तव भी आ गए. अलमारी खुली थी और उस में रखे गहने, नकदी और उन की पत्नी का मोबाइल गायब था. लूट और हत्या के इस मामले की जानकारी थाना कोतवाली को दी गई.
एक महिला की हत्या और लूट की सूचना मिलते ही प्रभारी निरीक्षक धर्मेंद्र सिंह रघुवंशी सिपाहियों के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने डौग स्क्वायड और फोरेंसिक टीम को भी बुला लिया था. सारी काररवाई निपटाने के बाद कोतवाली प्रभारी धर्मेंद्र सिंह रघुवंशी मृतका इंद्रा के बेटे आलोक कुमार श्रीवास्तव को साथ ले कर कोतवाली आ गए, जहां उस की तहरीर पर हत्या और लूट का मुकदमा दर्ज कर लिया गया.
अभियुक्तों तक पहुंचने का पुलिस के पास एक ही सूत्र था, मृतका का मोबाइल. पुलिस ने उसे सर्विलांस पर लगवा दिया. लेकिन मोबाइल का स्विच औफ था, इसलिए उस की लोकेशन नहीं मिल रही थी. पुलिस ने इंद्रा के हत्यारों तक पहुंचने के लिए बहुत हाथपैर मारे, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला.
इस मामले का खुलासा न होते देख पुलिस अधीक्षक रतन कुमार श्रीवास्तव ने अपर पुलिस अधीक्षक रामकिशन यादव और क्षेत्राधिकारी (सदर) मनोज अवस्थी की देखरेख में एक पुलिस टीम गठित की, जिस का नेतृत्व प्रभारी निरीक्षक धर्मेंद्र सिंह रघुवंशी को ही सौंपा गया.
टीम का गठन होते ही संयोग से घटना के लगभग महीने भर बाद इंद्रा के मोबाइल की लोकेशन कानपुर के नौबस्ता की मिल गई. उस नंबर का भी पता चल गया, जो नंबर उस में उपयोग में लाया जा रहा था.
पुलिस टीम ने लोकेशन और नंबर के आधार पर उस आदमी को पकड़ लिया, जिस के पास वह मोबाइल फोन था. पूछताछ में उस ने बताया कि यह मोबाइल फोन उस ने सपई गांव के रहने वाले पिंटू सिंह चंदेल से खरीदा था.
पुलिस को उस आदमी से पिंटू का पता मिल गया था. छापा मार कर पुलिस ने 3 मार्च को पिंटू सिंह चंदेल को उस के घर से गिरफ्तार कर लिया. प्रभारी निरीक्षक धर्मेंद्र सिंह रघुवंशी ने कोतवाली ला कर जब उस से इंद्रा की हत्या के बारे में पूछताछ की तो उस ने बिना किसी हीलाहवाली के स्वीकार कर लिया कि मृतका की बहन के बेटे विनय के साथ मिल कर उस ने इस घटना को अंजाम दिया था.
पिंटू से पूछताछ के बाद पुलिस ने विनय की तलाश में उस के घर छापा मारा. लेकिन वह नहीं मिला. तब पुलिस ने पिंटू को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.
पुलिस विनय श्रीवातस्तव की तलाश में पूरे जोरशोर से लग गई थी, लेकिन पुलिस से बचने के लिए वह छिप गया था. आखिर 13 मार्च को पुलिस ने मुखबिर की सूचना पर विनय को भी गिरफ्तार कर लिया.
जब उस का दोस्त पकड़ा जा चुका था तो विनय के झूठ बोलने का सवाल ही नहीं था. इसलिए उस ने मौसी की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली. इस पूछताछ में उस ने जो कहानी सुनाई, वह हैरान करने वाली थी. क्योंकि विनय के अपनी मां समान ही नहीं, उम्र में दोगुनी से भी ज्यादा मौसी से अवैध संबंध थे. इस तरह अवैध संबंधों की नींव पर टिकी लूट और हत्या की यह कहानी कुछ इस प्रकार थी.
उत्तर प्रदेश के जिला उन्नाव के थाना कोतवाली के मोहल्ला पूरननगर में रहते थे प्रकाशचंद्र श्रीवास्तव. वह राजकीय आयुर्वेदिक औषधालय में वार्डब्वाय थे. उन के परिवार में पत्नी इंद्रा के अलावा बेटा आलोक और बेटी ज्योति थी. पढ़ाई पूरी कर के आलोक ने लुकइयाखेड़ा में कंप्यूटर की दुकान खोल ली थी. ज्योति की भी पढ़ाई पूरी हो गई तो प्रकाशचंद्र ने उस की शादी कर दी थी.
इंद्रा की बड़ी बहन मंजूलता की शादी कानपुर के थाना नौबस्ता के सरस्वतीनगर के रहने वाले अरुणकुमार श्रीवास्तव के साथ हुई थी. अरुण कुमार लोहिया फैक्ट्री में नौकरी करते थे. उन के कुल 3 बेटे थे, विकास, विनय और विनीत. पढ़ाई पूरी होने के बाद विकास ने लिटिल स्टार एंजल स्कूल में नौकरी कर ली थी, तो बीकौम करने के बाद विनय जूते का काम करने लगा था. सब से छोटे विनीत ने बीकौम कर के लैपटौप रिपेयरिंग का काम शुरू कर दिया था. 6 साल पहले अरुण कुमार की मौत हो गई तो घर की सारी जिम्मेदारी मंजूलता पर आ गई थी.
विनय का मन जूते के काम में कम, क्रिकेट खेलने में ज्यादा लगता था. मैच खेलने के चक्कर में ही वह इधरउधर घूमता रहता था. खाली होने की वजह से वह अकसर अपनी मौसी इंद्रा के घर भी चला जाता था, जहां वह कईकई दिनों तक रुका रहता था. इंद्रा उस का बहुत खयाल रखती थी.
एक तो प्रकाशचंद्र की उम्र हो गई थी, दूसरे बच्चे सयाने हो गए थे, इसलिए वह पत्नी में कम ही रुचि लेते थे जबकि इंद्रा चाहती थी कि पति रोजाना उस के पास आए और उसे संतुष्ट करे. पति से इच्छा पूरी न होने से इंद्रा का मन भटकने लगा तो वह, किसी युवक की तलाश में रहने लगी. लेकिन उसे इस बात का भी डर सता रहा था कि किसी युवक से संबंध बनाने पर अगर बात खुल गई तो बड़ी बदनामी होगी.
तब वह किसी ऐसे युवक की तलाश में लग गई, जिस से संबंध बनाने पर किसी को पता न चल सके. ऐसा युवक वही हो सकता था, जिस से उस के घरेलू संबंध हों यानी जिस के घर आनेजाने पर किसी को संदेह न हो. इस बारे में उस ने काफी सोचाविचारा तो उस की नजर अपनी बहन के बेटे विनय पर टिक गई. क्योंकि विनय उस के घर में ही रहता था. दूसरे बहन का बेटा होने की वजह से जल्दी उस पर कोई संदेह भी नहीं कर सकता था.
विनय उस उम्र में था, जिस उम्र में स्त्री देह कुछ ज्यादा ही आकर्षित करती है. तब रिश्तेनाते का भी खयाल नहीं रहता. विनय की शादी भी नहीं हुई थी. ऐसे में इंद्रा ने रिश्ते नाते, लाजशरम त्याग कर अपनी देह को उस के सामने परोसा तो जवानी की दहलीज पर खड़े विनय को फिसलते देर नहीं लगी. मौसी की देह तो उस के लिए अंधे सियार को पीपल ही मेवा की तरह लगा. वह निश्चिंत हो कर मौसी के साथ मौज करने लगा.
इंद्रा ने विनय को हिदायत दे रखी थी कि यह बात वह अपने दोस्तों तक को भी नहीं बताएगा. इसलिए विनय ने यह बात कभी किसी को नहीं बताई. उस का जब भी मन होता, वह मौसी के यहां आ जाता और जितने दिन मन होता, आराम से रहता. मौसा और मौसेरे भाई के जाने के बाद वही दोनों घर पर रह जाते थे, इसलिए उन का जो मन होता, आराम से करते.
इंद्रा विनय को न सिर्फ शारीरिक सुख देती थी, बल्कि उसे अपने आकर्षण में बांधे रहने के लिए उस की छोटीमोटी जरूरतें भी पूरी करती थी. वह उसे जेब खर्च के लिए रुपए भी देती थी. विनय को दोहरा लाभ था, इसलिए वह मौसी से खूब खुश रहता था.
क्रिकेट खेलने में ही विनय की दोस्ती कानपुर के थाना बिधनू के गांव सपई के रहने वाले वीरेंद्र सिंह चंदेल के बेटे पिंटू से हो गई थी. पिंटू नौबस्ता में चाय की दुकान चलाता था. विनय का जूते के काम में मन नहीं लगता था, इसलिए उस ने पिंटू के साथ होटल खोलने की योजना बनाई. होटल खोलने के लिए उसे 15 हजार रुपयों की जरूरत थी.
विनय को पूरा यकीन था कि मौसी इंद्रा उसे ये रुपए दे देंगी. इसीलिए उस ने बड़े ही विश्वास के साथ पिंटू से कह दिया था कि उस की मौसी एक बार मांगने पर रुपए दे देंगी. लेकिन मौसी ने रुपए नहीं दिए. उसी का नतीजा था कि नाराज हो कर विनय ने पिंटू के साथ मिल कर उन के यहां लूट के इरादे से उन की हत्या कर दी थी.
पूछताछ के बाद प्रभारी निरीक्षक धर्मेंद्र सिंह रघुवंशी ने विनय को पत्रकारों के सामने भी पेश किया. प्रेसवार्त्ता करा कर उन्होंने उसे अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक विनय और पिंटू की जमानत नहीं हुई थी.
कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
3 अक्तूबर, 2021 को जिस दिन उन्होंने शादी करने की सूचना दी, हम उसी दिन नीलिमा परिवार के साथ डिंडोरी पहुंचे, लेकिन मनीष वहां से गायब था. वह यहां सिर्फ पैसे लेने ही आता था.
शादी के बाद ही निशा को अपने पति मनीष पर संदेह होने लगा था, क्योंकि खुद को मनीष की दूसरी पत्नी बताने वाली रश्मि उसे मैसेज कर के कहती थी कि वह उस की पहली पत्नी है. उस के दोनों मोबाइल नंबर से भेजे मैसेज के स्क्रीनशौट्स भी उस ने सेव कर रखे थे.
निशा के परिवार के लोगों को पहले से ही मनीष पर संदेह था. मनीष ने मैट्रीमोनियल साइट पर अपने आप को प्रौपर्टी डीलर बताया था, जबकि वह बस कंडक्टर था. निशा ने उस की प्रोफाइल को सच मान कर घर वालों को बगैर बताए मनीष से शादी कर ली.
शादी के बाद मनीष की असलियत निशा जान चुकी थी, मगर अपने पद और स्टेटस के लिहाज से वह खून का घूंट पी कर रह गई थी. मनीष ने जब अपनी जरूरतों के लिए निशा पर पैसों का दबाव बनाना शुरू किया तो निशा ने एक बार बैंक से लोन ले कर उसे 5 लाख रुपए दिए थे. बाद में वह 15 लाख रुपए मांगने लगा तो निशा ने अपनी बड़ी बहन नीलिमा को बताया तो नीलिमा ने डांटते हुए सख्त हिदायत दे रखी थी कि उसे और पैसे नहीं देना.
मनीष पर परिवार के लोगों के संदेह की वजह यह भी थी कि वह खुद को अखंड समाज पार्टी का अध्यक्ष बताता था और इस नाम का विजिटिंग कार्ड भी उस ने दिया था, परंतु जब परिवार वालों ने अपने स्तर पर उस की पड़ताल की तो पता चला कि यह फरजी है.
सर्विस रिकौर्ड में नौमिनी बनाने पर क्यों अड़ा था मनीष
मनीष बेरोजगार था, इस से पुलिस का शक और बढ़ा, इसलिए जब पुलिस ने सख्ती की तो मनीष ने अपना गुनाह स्वीकार कर लिया कि उस ने ही निशा की हत्या की थी. उस की वजह यह थी कि बारबार कहने के बाद भी निशा सरकारी दस्तावेजों, मसलन सर्विस बुक, बैंक अकाउंट्स और इंश्योरेंस वगैरह में उसे अपना नौमिनी नहीं बना रही थी. इस पर दोनों में आए दिन कहासुनी और झगड़ा भी हुआ करता था, जो 28 जनवरी को भी हुआ तो मनीष ने तकिए से मुंह दबा कर पत्नी का नामोनिशान मिटा दिया.
निशा ने अपने सरकारी दस्तावेज और बैंक में पति की जगह बहन नीलिमा और उस के बेटे स्वप्निल का नाम बतौर नौमिनी दिया था. सामान्य तौर पर विवाहित महिलाएं पति का नाम देती हैं. इस वजह से भी मनीष शर्मा अपनी पत्नी निशा से विवाद करता था.
मनीष के दूसरे लड़कियों से संबंध की जानकारी निशा को थी. निशा मनीष की हरकतों से परेशान रहने लगी थी, मगर अपने ओहदे और प्रतिष्ठा की वजह से वह कोई ठोस कदम नहीं उठा पा रही थी.
मनीष अकसर ग्वालियर में ही रहता था. 10-15 दिनों में वह शहपुरा आता था. 25 जनवरी को मनीष शहपुरा आया और निशा से पैसों की मांग करने लगा. निशा अगले दिन होने वाले गणतंत्र दिवस की तैयारियों में व्यस्त थीं. इसलिए उन्होंने मनीष की डिमांड पर कोई ध्यान नहीं दिया.
गणतंत्र दिवस पर पूरे दिन वह कार्यक्रम में व्यस्त रहीं. 27 जनवरी को पैसे मांगने पर दोनों के बीच विवाद हुआ. दूसरे दिन 28 जनवरी, 2024 को सुबह 10 बजे मनीष निशा से बोला, ”निशा, मैं ने तुम से शादी की है. आखिर तुम मुझे अपने सर्विस रिकौर्ड में नौमिनी क्यों नहीं बनाना चाहती?’’
”तुम ने शादी कर के सोने के अंडे देने वाली मुरगी पा ली है. तुम ने झूठ बोल कर मुझ से शादी की. मैं तुम्हारी अय्याशी का खर्च अब नहीं उठा सकती.’’ निशा ने टोटूक कह दिया.
”मैं किस के साथ अय्याशी कर रहा हूं?’’ भड़कते हुए मनीष बोला.
”सोशल मीडिया पर जिस लड़की के साथ तुम्हारी फोटो है, उसी के साथ गुलछर्रे उड़ाते हो और खर्च मुझ से मांगते हो. अब से एक पैसा तुम्हें नहीं मिलेगा.’’ गुस्से में निशा ने कहा.
इतना सुनते ही मनीष गुस्से से आगबबूला हो गया और तकिया उठा कर निशा का मुंह जोर से बंद कर दिया.
कुछ ही पलों में दम घुटने से निशा की मौत हो गई. निशा की नाक से खून निकल आया, जिस से बेडशीट और तकिए के साथ निशा के कपड़ों पर खून के निशान बन गए. मनीष ने निशा के कपड़े चेंज किए और बैडशीट, तकिया कवर के साथ सभी कपड़े वाशिंग मशीन में डाल दिए.
हत्या के बाद सुबूत मिटाने की गरज से उस ने निशा के खून से सने कपड़े वाशिंग मशीन में धोए और अपने बचाव के लिए जो कहानी गढ़ी, वह पुलिस की सख्ती के आगे टिक नहीं पाई.
पुलिस ने निशा की हत्या के आरोपी मनीष शर्मा के खिलाफ आईपीसी की धारा 302, 304बी और 201 के तहत मामला दर्ज कर शहपुरा न्यायालय में पेश किया, जहां आरोपी लगातार पुलिस को चकमा देने के लिए चक्कर खा कर गिरने का नाटक कर रहा था.
इसी के चलते उसे 30 जनवरी की रात भर गिरफ्तारी के बाद भी पुलिस की निगरानी में भरती के दौरान थाने ला कर भी 3 बार पूछताछ की गई.
31 जनवरी, 2024 की दोपहर को आरोपी मनीष शर्मा को शहपुरा न्यायालय में पेश किया गया, लेकिन वहां भी वह चक्कर खा कर गिरने का नाटक करने लगा. न्यायालय के आदेश पर उसे फिर अस्पताल में भरती कराया गया.
देर शाम को पुलिस की सख्ती के बाद आरोपी मनीष शर्मा जेल भेज दिया. एसडीएम निशा नापित की मौत की कहानी बताती है कि किस तरह प्रशासनिक पदों पर बैठे पढ़ेलिखे लोग भी सोशल मीडिया साइट्स पर दी गई जानकारी को सच मान कर शादी जैसा अहम निर्णय ले लेते हैं और अपनी जिंदगी दुश्वार कर जान से हाथ धो डालते हैं.
—कथा मीडिया रिपोर्ट पर आधारित
बड़ी बहन ने बताया निशा के पति का सच
2021 से पहले स्वप्निल निशा के पास रह कर ही स्कूल की पढ़ाई करता था, बाद में निशा की शादी मनीष से होने पर मनीष ने ऐतराज जताया तो मनीष के कहने पर निशा ने अपने पास रखने से मना कर दिया था.
छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर में रहने वाली निशा नापित ने छत्तीसगढ के अंबिकापुर में चौपड़ा कालोनी में रह कर अपनी पढ़ाई की थी. उन के पापा ज्ञानचंद नापित और मम्मी का पहले ही निधन हो चुका था. निशा की बड़ी बहन के अलावा उन का कोई नहीं था.
निशा बचपन से ही प्रशासनिक अधिकारी बनने का सपना देख रही थीं. वह जिंदगी को अपने तरीके से जीना चाहती थीं. प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करतेकरते शादी की उम्र होने पर बड़ी बहन नीलिमा ने निशा से कहा, ”अब तू शादी कर ले, अधिकारी बनने के चक्कर में तेरी उम्र निकल रही है.’’
इस पर निशा ने अपना रुख साफ करते हुए कहा, ”दीदी, जब तक मैं अपना करिअर नहीं बना लेती, तब तक शादी हरगिज नहीं करूंगी.’’
निशा के इस जबाब पर नीलिमा के पास चुप रह जाने के अलावा कोई दूसरा रास्ता भी नहीं था. निशा नापित ने 15 मार्च, 2003 को नायब तहसीलदार के पद पर सेवाएं मध्य प्रदेश के छिंदवाडा जिले से शुरू की थी. पदोन्नत हो कर पहले वह तहसीलदार बनीं और उस के बाद डिप्टी कलेक्टर के पद पर पदस्थ हुई थीं. 2010 में निशा तहसीलदार बना कर सतना भेजी गईं और 2020 में उन का प्रमोशन डिप्टी कलेक्टर के रूप में हो गया. उस समय निशा मंडला में पोस्टेड थीं.
निशा ने दूसरी जाति के युवक से की थी शादी
प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारियों ने जब उन की बहन नीलिमा को पूरा घटनाक्रम बताया तो उन्होंने निशा के पति मनीष को ही मौत का जिम्मेदार बताया. छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर की रहने वाली निशा नापित और ग्वालियर के रहने वाले मनीष शर्मा ने लवमैरिज की थी. निशा नाई जाति की थीं जबकि मनीष ब्राह्मण था.
दोनों की मुलाकात एक मैट्रीमोनियल साइट ‘शादी डौटकौम’ के जरिए हुई थी. दोनों ने एकदूसरे को पसंद कर लिया और अक्तूबर 2020 में मंडला के गायत्री मंदिर में उन्होंने शादी कर ली थी.
एसडीएम जैसे ओहदे पर बैठीं निशा नापित की मनीष से जानपहचान एक मैट्रीमोनियल साइट के जरिए हुई थी. उस समय निशा की उम्र 46 साल हो चुकी थी. घर वाले भी निशा के लिए रिश्ते तलाश रहे थे. ऐसे ही समय निशा को मनीष की प्रोफाइल ठीक लगी.
मनीष उस समय 40 साल का था और निशा से शादी करने तैयार था. एकदूसरे को जानने समझने के लिए फोन पर शुरू हुआ बातचीत का सिलसिला मुलाकातों में बदल गया और जल्द ही दोनों में प्यार भी हो गया.
इस मामले में निशा ने अपनी बड़ी बहन नीलिमा से चर्चा की तो नीलिमा ने मनीष से बातचीत कर उस के बारे में तहकीकात की. मनीष से हुई बातचीत में नीलिमा को मनीष के व्यवसाय को ले कर शक भी हुआ था और नीलिमा ने निशा को आगाह भी किया था कि वह सोच समझ कर फैसला ले.
नीलिमा नापित
इस के बाद निशा ने परिवार को बिना बताए शादी कर ली थी. परिवार के लोगों को बाद में जानकारी लगी. निशा एक बार नीलिमा से मिलने घर आई तो पति मनीष भी साथ में था. मंडला में पोस्टिंग के दौरान भी दोनों के बीच खूब विवाद हुआ था. तत्कालीन एसपी ने दोनों को समझाया था.
निशा छत्तीसगढ़ की रहने वाली थीं और उन की शादी ग्वालियर में हुई थी. वह बतौर डिप्टी कलेक्टर जुलाई, 2023 में डिंडोरी जिले में पदस्थ हुई थीं और उन्हें 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले शहपुरा एसडीएम की कमान सौंपी गई थी.
निशा को कुत्ते पालने का बहुत शौक था, जब वह सतना में पोस्टेड थीं, तब उन के पास 3 डौग्स थे और शहडोल जिले के अनूपपुर आने के बाद 2 डौग और रख लिए थे. मनीष से शादी होने के कुछ ही महीने बाद उन्होंने वो सारे डौग्स अपने घर अंबिकापुर भेज दिए थे.
बाद में निशा की बड़ी बहन नीलिमा नापित ने पुलिस को बताया कि शादी के तीसरे दिन से ही मनीष निशा को पैसों के लिए प्रताडि़त करने लगा था. उस का कई दूसरी महिलाओं से भी अफेयर था.
पति की इन हरकतों से परेशान निशा ने नीलिमा के बेटे स्वप्निल को सरकारी दस्तावेजों में अपना नौमिनी बना दिया था. इस से मनीष झल्लाया रहता था, क्योंकि आमतौर पर तमाम रिकौर्डों में जीवनसाथी को ही नौमिनी बनाया जाता है.
शादी के चंद दिनों बाद ही निशा को समझ आ गया था कि अकसर घर से गायब रहने वाले मनीष ने उस के रुतबेदार ओहदे, पगार और पैसों से शादी की है. आए दिन वह निशा से पैसे मांगता रहता था. एक बार तो धंधे रोजगार के लिए निशा ने बैंक लोन ले कर भी उसे 5 लाख रुपए दिए थे. मनीष शराब भी पीता था और आवारा, मनचले भंवरों की तरह तितलियों पर मंडराना भी उस की फितरत थी. जाहिर है, प्यार का भूत निशा के सिर से उतर चुका था. निशा जल्दबाजी में लिए गए अपने शादी के फैसले पर पछता रही थी.
मनीष ने निशा ने क्यों छिपाई सच्चाई
मनीष शर्मा का परिवार ग्वालियर में रहता है. मनीष जब 14 साल का था, तभी उस ने घर छोड़ दिया था. वह घर से अलग ही रहता था. 2009 में वह घर आया था, तब उस ने कहा था कि मुझे खेती में हिस्सा चाहिए. उस के भाई नीलेश ने उस के हिस्से की 3 बीघा जमीन उस के नाम कर दी थी. इस के बाद हमारा उस से कोई रिश्ता नहीं रहा.
2018 में वह एक बार फिर घर आया और मां से कहने लगा कि मेरी उम्र 40 साल हो गई है. शादी नहीं हुई है. मेरे लिए एक रिश्ता आया है. मां ने पहले इनकार किया, लेकिन सब रिश्तेदारों ने सोचा कि चलो शादी के बाद सुधर जाएगा. यही सोच कर उस की शादी कर दी.
शादी के 3 महीने ही हुए थे कि मनीष ने उस लड़की से भी झगड़ा शुरू कर दिया. जब मां उस के कमरे में गई तो वह बोला कि तुम मेरे लिए मर गए हो. फिर हम ने अपने मामा से बात की. मामा ने समझाने की कोशिश की तो मनीष ने कहा कि तुम सब मेरे लिए मर चुके हो. बाद में फिर मनीष का उस लड़की से तलाक हो गया.
शादी डौटकौम पर अपनी प्रोफाइल में अपने आप को प्रौपर्टी डीलर बताने वाले मनीष शर्मा की जब निशा से शुरुआती मुलाकात हुई तो वो खुद को एक इंजीनियर बताता था. रिश्ते के लिए जब निशा की बड़ी बहन नीलिमा ने बात की तो वह उन के सवालों का ठीक से जवाब नहीं दे पाया. लेकिन निशा ने परिवार के मना करने के बावजूद एक दिन फोन कर बताया कि उन्होंने शादी कर ली है.
शाहपुरा पुलिस फोरैंसिक टीम के साथ जब जांच के लिए एसडीएम बंगले पर पहुंची तो पाया कि एसडीएम निशा की मौत जिस कमरे में हुई थी, वहां के बैड की बैडशीट और तकिया का कवर वहां मौजूद नहीं था. पुलिस टीम ने जब मनीष से इस के बारे में पूछा तो उस ने कहा, ”मैडम को उल्टी होने पर नाक से ब्लड आया था, जिस से कपड़े खराब हो गए थे. इसी वजह से उस ने बैडशीट और तकिए का कवर मशीन में धोने के लिए डाला था.’’
पुलिस टीम ने जब वाशिंग मशीन का ढक्कन खोला तो बैडशीट और तकिए के कवर के साथ एसडीएम निशा के कपड़े भी मशीन के सुखाने वाले पोर्शन में पड़े हुए थे. पुलिस टीम यह सोच कर हैरान थी कि एसडीएम बंगले पर मौजूद कर्मचारी से कपड़े मशीन में धुलवाने के बजाय मनीष ने खुद यह काम क्यों किया. मनीष के इसी बयान पर पुलिस का शक यकीन में बदल गया.
रविवार 28 जनवरी, 2024 का दिन था और मौसम का सब से सर्द दिन. ऐसे में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में तैनात सीनियर डा. रत्नेश द्विवेदी अपने सरकारी आवास पर बैठे धूप का आनंद ले रहे थे, तभी दोपहर करीब 2 बजे उन के मोबाइल फोन पर घंटी बजी.
जैसे उन्होंने काल रिसीव की तो दूसरी तरफ से हड़बड़ी में एक आवाज सुनाई दी, ”डाक्टर साहब, मैं गाड़ी भेज रहा हूं, जल्दी से एसडीएम के बंगले पर आ जाइए. मैडम की तबीयत ज्यादा खराब है.’’
फोन मध्य प्रदेश के डिंडोरी जिले की तहसील शहपुरा की एसडीएम निशा नापित के बंगले से आया था, लिहाजा डा. रत्नेश द्विवेदी बिना देर किए तैयार हो गए और जैसे ही गाड़ी आई, उस में बैठ कर वह एसडीएम बंगले पर पहुंच गए.
बंगले के बाहर एक शख्स उन का बेसब्री से इंतजार कर रहा था. जैसे ही डा. द्विवेदी गाड़ी से उतरे तुरंत ही उस शख्स ने कहा, ”डाक्टर साहब, अंदर चलिए. मैडम सुबह 10 बजे के बाद से ही कुछ बोल नहीं रहीं.’’
डा. रत्नेश द्विवेदी उस शख्स के साथ बंगले के अंदर दाखिल हुए. एसडीएम निशा नापित अपने बैड पर बेहाल पड़ी थीं. डा. द्विवेदी ने स्टेथस्कोप के एक सिरे को अपने कानों से और उस का दूसरा सिरा मैडम के सीने के बाईं ओर लगाया और उस शख्स से मुखातिब होते हुए बोले, ”मैडम की ऐसी हालत कब से है?’’
”डाक्टर साहब, कल शनिवार को उन का व्रत था और मेरे मना करने के बाद भी वह 2 अमरूद खा गईं. मैडम का एक ही गुर्दा काम करता है और उन को सर्दीखांसी की हमेशा दिक्कत रहती थी. शायद इसी वजह से आज 10 बजे के आसपास उन को उल्टी हुई, फिर उन की नाक से ब्लड आया. इसे ले कर हमारी बहस भी हुई. वह नहीं मानीं, गुस्से में सो गईं तो मैं भी गुस्से में बाहर आ गया.’’ एसडीएम बंगले पर मौजूद उस शख्स ने बताया.
”जब उल्टी होने पर नाक से ब्लड आया था, तभी आप को मुझे फोन करना था.’’ डा. रत्नेश द्विवेदी बोले.
”रविवार को कोई काम रहता नहीं, इसलिए मैं ने जगाया ही नहीं. 10 बजे काम वाली बाई आई तो मैं घूमने चला गया. फिर बाई ने खाना बनाया और चली गई. फिर एक बजे के आसपास मैं ने सोचा खाने के लिए मैडम को जगा दूं. जब वह नहीं जागीं तो मैं ने आप को काल किया.’’
”मैडम को तत्काल अस्पताल ले चलो. हाइपरटेंशन या फिर ब्रेन हेमरेज की वजह से नाक से खून निकलता है.’’ कान से स्टेथस्कोप निकालते हुए डा. द्विवेदी ने कहा.
यह घटना 28 जनवरी, 2024 दोपहर 3 बजे की थी. उप जिलाधिकारी (एसडीएम) निशा को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र शहपुरा लाया गया, जहां पर मौजूद डाक्टरों ने जांच के बाद बताया कि उन की मौत हो चुकी है. तहसील के सब से बड़े अधिकारी की मौत का मामला था, ऐसे में डा. रत्नेश द्विवेदी ने उन की मौत की सूचना जिले के वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी.
वाशिंग मशीन देख कर पुलिस क्यों हुई हैरान
सूचना मिलते ही डिंडोरी जिले के कलेक्टर विकास मिश्रा और एसपी अखिल पटेल, बालाघाट रेंज के डीआईजी मुकेश श्रीवास्तव भी शहपुरा अस्पताल पहुंच गए. संदिग्ध हालात में मौत की वजह से पुलिस ने एसडीएम का बंगला सील कर दिया और निशा नापित के घर वालों को भी सूचना दे दी गई.
एसपी अखिल पटेल
सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के डाक्टरों को शक होने पर पुलिस को खबर दे कर एसडीएम निशा का इलाज शुरू किया तो पाया कि निशा की मौत तो कोई 4-5 घंटे पहले ही हो चुकी थी.
मध्य प्रदेश के आदिवासी जिले डिंडोरी की शहपुरा तहसील में पिछले साल ही तहसीलदार पद से प्रमोट हुई निशा एसडीएम बनी थीं, इसलिए कस्बे में उन्हें हर कोई जानता था. शहपुरा पुलिस आई और उस ने एसडीएम के साथ रहने वाले उन के पति मनीष से पूछताछ की तो वह एक ही कहानी दोहराता रहा. पुलिस ने उन के ड्राइवर और घर के अन्य कर्मचारियों से भी पूछताछ की.
पुलिस की पूछताछ में मनीष ने कहा कि वह प्रौपर्टी ब्रोकर है और पत्नी निशा के पास आता जाता रहता है. पुलिस के शक की सुई मनीष की ओर ही घूम रही थी. एसपी अखिल पटेल ने मामले को गंभीरता से लेते हुए एसडीओपी मुकेश अविंदा के नेतृत्व में एक टीम का गठन किया, जिस में जांच शहपुरा पुलिस थाने के टीआई एस.एल. मरकाम को सौंप दी.
एसडीएम निशा की मौत की खबर जैसे ही उन के घर वालों को लगी तो उन्हें पहले तो विश्वास ही नहीं हुआ. शहपुरा में पोस्टमार्टम के बाद 30 जनवरी को निशा का पार्थिव शरीर छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर ले जाया गया, जहां उन के परिवार के लोगों की मौजूदगी में अंतिम संस्कार किया गया. निशा का अंतिम संस्कार बहन नीलिमा के बेटे स्वप्निल ने किया.
एक दिन जब इलियास अचानक घर आया तो नसीमा किसी से मोबाइल पर बात कर रही थी. इलियास को आया देख कर उस ने फोन काट दिया.
इस बात पर दोनों के बीच तीखी तकरार हो गई. एक बार तकरार का यह सिलसिला शुरू हुआ तो फिर यह आए दिन की बात हो गई. कुछ दिनों बाद नसीमा की तबीयत खराब रहने लगी. इलाज के लिए वह दिल्ली के गुरु तेग बहादुर सरकारी अस्पताल जाने लगी.
यह बात भी इलियास को परेशान करने लगी. उस के मन में यह बात घर कर गई कि नसीमा बहाने से किसी से मिलने जाती है. एक दिन जब इलियास दिल्ली में था तो नसीमा ने उसे फोन कर के बताया कि उस के पेट में तकलीफ है और उसे इलाज के लिए गुरु तेगबहादुर अस्पताल शाहदरा जाना है.’’
‘‘मुझे पहले ही पता था कि तुम वहीं जाने की बात करोगी. यार तो वहीं मिलते होंगे. तुम बागपत में भी तो दिखा सकती हो.’’ इलियास ने छूटते ही कहा.
‘‘खुदा के वास्ते सोचसमझ कर मुंह खोला करो इलियास. वहां अच्छी डाक्टर हैं, इसलिए जाती हूं.’’ नसीमा ने उसे समझाने की कोशिश की, लेकिन वह कुछ समझने को तैयार ही नहीं था. उस ने दो टूक अपना फैसला सुना दिया, ‘‘तुम्हें दवा लेने के लिए वहां जाने की जरूरत नहीं है.’’
इस बात को ले कर दोनों के बीच खूब बहस हुई. नसीमा पति की आदत से बहुत परेशान थी. उस ने उस की बात एक कान से सुन कर दूसरे से निकाल दी. इलियास के मना करने के बावजूद वह शाहदरा गई. यह बात इलियास को पता चली तो अगले ही दिन वह गांव आ गया और उस ने नसीमा के साथ जमकर मारपीट की.
इलियास की मारपीट से क्षुब्ध हो कर नसीमा ने अगले दिन पुलिस चौकी टटीरी में शिकायत दर्ज करा दी. पुलिस ने इलियास को बुला कर डांटाफटकारा. उस ने अपनी गलती मान ली तो पुलिस ने दोनों का समझौता करा दिया.
जरूरत से ज्यादा बंदिशें बगावत को जन्म देती हैं. नसीमा के साथ भी यही हुआ. इस के बाद उस ने इलियास से पूछना ही बंद कर दिया. उस का जब मन करता, शाहदरा चली जाती. इस का भेद तब खुला, जब एक दिन इलियास दिन के वक्त घर आ गया. बच्चे घर पर थे.
बच्चों से जब यह पता चला कि नसीमा शाहदरा गई है तो इलियास का पारा सांतवें आसमान पर पहुंच गया. उस ने नसीमा का मोबाइल मिलाया. उस का गुस्सा तब और भी ज्यादा भड़क उठा, जब उस का मोबाइल बंद मिला.
शाम को नसीमा घर आई. उस के पास दवाइयां भी थीं. लेकिन इलियास कुछ सुनने को तैयार नहीं था. उस ने फिर उस के साथ मारपीट की. मोबाइल की बाबत पूछने पर नसीमा ने बताया कि उस की बैटरी खत्म हो गई थी, जिस की वजह से वह बंद हो गया था. वह सच बोल रही थी, पर इलियास को यकीन नहीं हुआ. वह कुछ भी सुनना या समझना नहीं चाहता था.
उस दिन के बाद इलियास बीवी पर शक को ले कर परेशान रहने लगा. शक उस के दिलोदिमाग पर इस कदर हावी हो चुका था कि उस की रातों की नींद उड़ गई. सोतेजागते, उठतेबैठते उस के दिमाग में एक ही बात चलती रहती थी कि नसीमा के किसी के साथ नाजायज ताल्लुकात हैं.
वह जबजब दिल्ली जाती थी, इलियास का दिमाग घूम जाता था. उसे यही लगता था कि वह किसी से मिलने जाती है. हालांकि इन बातों का उस के पास कोई सुबूत नहीं था, लेकिन यह सच है कि शक करने वाला सुबूत पर नहीं सिर्फ अपने शक पर यकीन करता है. इलियास के साथ भी ऐसा ही था.
आखिर अपने शक की वजह से उस ने मन ही मन नसीमा को रास्ते से हटाने का एक खतरनाक निर्णय ले लिया. एक दिन उस ने ममेरे भाई साजिद, दोस्त परवेज व भांजे सलीम को अपने पास बुलवाया. ये सभी बागपत में ही रहते थे. इलियास ने अपनी परेशानी और शक के बारे में उन्हें बता कर कहा कि वह नसीमा को रास्ते से हटाना चाहता है. पहले तो ये लोग डरे, लेकिन इलियास के समझाने पर मान गए.
उस दिन चारों ने नसीमा की हत्या की योजना बना ली. योजना को अंजाम तक पहुंचाने के लिए इलियास ने सब से पहले नसीमा से नाराजगी दूर कर के उस के साथ मधुर रिश्ते बनाने शुरू कर दिए. जब वह इस में कामयाब हो गया तो उचित मौके की तलाश में रहने लगा.
जल्द ही उसे यह मौका मिला गया. 6 फरवरी, 2014 को नसीमा ने इलियास को फोन कर के बताया कि उसे अल्ट्रासाउंड के लिए शाहदरा जाना है.
‘‘ठीक है कल आ जाना, मैं साथ चलूंगा.’’ इलियास ने खुश हो कर कहा. उस के लिए यह अच्छा मौका था. उस ने इस बाबत अपने साथियों को भी फोन कर के बता दिया. इस बीच इलियास ने एक चाकू का इंतजाम कर के अपने पास रख लिया.
हालांकि उसी शाम इलियास खुद भी घर आ गया था, लेकिन 7 फरवरी की सुबह 7 बजे वह नसीमा से यह कह कर निकल गया कि दिल्ली आ कर वह उसे फोन कर ले. अगले दिन दोपहर के वक्त नसीमा बच्चों को ले कर इलियास के पास पहुंच गई. इलियास बच्चों को उस के साथ देख कर चौंका. उस ने नसीमा से पूछा, ‘‘इन्हें साथ लाने की क्या जरूरत थी?’’
‘‘मैं ने सोचा इन्हें कपड़े दिला देंगे. इसलिए साथ ले आई.’’
इलियास को लगा था कि वह अकेली ही आएगी. उस ने उस का भविष्य भी तय कर दिया था. साजिद, परवेज व सलीम को वह कह चुका था कि वे लोग तैयार रहें, जब वह फोन करे तो आ जाएं.
इलियास ने पहले नसीमा को अस्पताल में दिखाया. फिर शाम को बच्चों को बाजार घुमाया, लेकिन यह कह कर कपड़े नहीं दिलाए कि फिर कभी दिला देगा. शाम ढले इलियास के तीनों साथी भी आ गए.
रात में टे्रन में सवार हो कर वह सवा 9 बजे अहेड़ा रेलवे स्टेशन पहुंचे. वहां इक्कादुक्का लोग ही थे. जब यात्री चले गए तो इलियास नसीमा के साथ पैदल ही गांव की तरफ चल दिया. साजिद, परवेज व सलीम उस के पीछे थे. रास्ता सुनसान था. इलियास ने पीछे घूम कर इशारा किया तो सलीम आगे आया और उस ने तमंचा निकाल कर फायर कर दिया. लेकिन उस का निशाना चूक गया.
सकते में आई नसीमा को अपने सामने मौत नाचती नजर आई. वह समझ गई कि वे लोग उसे खत्म कर देना चाहते हैं. दहशत के मारे वह जमीन पर गिर गई. वह गिड़गिड़ाई, ‘‘खुदा के वास्ते मुझे मत मारो इलियास.’’
‘‘तू रहम के काबिल नहीं है नसीमा.’’ गुस्से में दांत पीसते हुए इलियास ने चाकू निकाला और नसीमा को खींच कर किनारे ले गया और चाकू से उस की गरदन पर वार कर दिया. उस का वार चूकने की वजह से चाकू माथे पर लगा. इलियास ने दोबारा वार किया. इस बार नसीमा की गरदन से खून की धार फूट पड़ी. वह बचाव के लिए छटपटाई तो सलीम व साजिद ने उस के पैर जकड़ लिए.
मां को लहूलुहान देख कर बच्चों की चीख निकल गई. वह बुरी तरह सहम गए. नसीमा तड़प रही थी. तीनों बच्चे इलियास से लिपट कर रोने लगे. लेकिन शैतान बने इलियास ने उन्हें खूंखार नजरों से घूरते हुए अपने से दूर झटक दिया.
जरा सी देर में नसीमा ने दम तोड़ दिया. यह देख उस का 7 वर्षीय बेटा नाजिम बहन का हाथ पकड़ कर चिल्लाया, ‘‘नाजिया. भाग, अब्बू ने अम्मी को मार दिया है. यह हमें भी मार डालेंगे. अकरम का भी हाथ पकड़ ले.’’ दहशतजदा तीनों बच्चे गेंहू के खेत की तरफ भागने लगे.
लेकिन उन लोगों ने दौड़ कर तीनों बच्चों को पकड़ लिया. इलियास के सिर पर खून सवार था. वह हैवान बन चुका था. बच्चे मौत के डर से कांप रहे थे. लेकिन इलियास को जरा भी दया नहीं आई. उस ने सब से पहले 4 साल के अकरम की गरदन काट दी. यह देख नाजिम व नाजिया रोते रहे, ‘‘अब्बू हमें मत मारो, अब्बू…’’
इलियास को रहम नहीं आया और उस ने नाजिया व नाजिम का भी गला काट दिया. बच्चों ने छटपटा कर दम तोड़ दिया. इस के बाद इन लोगों ने नसीमा का मोबाइल स्विच औफ कर के वहीं डाल दिया. इलियास ने चाकू परवेज के हवाले कर दिया और चुपचाप घर आ गया.
रात में उस ने नसीमा के जो चंद फोटो घर में थे, सब जला दिए. इस के पीछे उस की सोच थी कि उस के फोटो दिखा कर पुलिस ट्रेन या अस्पताल में पूछताछ न कर सके. क्योंकि नसीमा के साथ वह भी था. इस के बाद वह सो गया. उस के तीनों साथी अपनेअपने घर चले गए.
अगली सुबह दिन निकलते ही इलियास ने नाटक शुरू कर दिया. लियाकत को यह जताने की कोशिश की कि नसीमा नहीं आई है, इसलिए वह परेशान है. उस का मकसद लियाकत को गवाह बनाना था. बाद में हत्या की बात सामने आने पर खूब ड्रामा किया. यही वजह थी कि एकाएक पुलिस को उस पर शक नहीं हुआ था.
इलियास को उम्मीद नहीं थी कि पुलिस उसे पकड़ लेगी. उस ने सोचा था कि कोई यकीन भी नहीं करेगा कि कोई इस तरह अपने बच्चों और पत्नी को मार सकता है. पुलिस गिरफ्त में इलियास को देख कर कोई विश्वास नहीं कर पा रहा था कि वह ऐसा भी कर सकता है.
पुलिस ने तीनों अभियुक्तों को अदालत में पेश किया. वहां इलियास को देखने के लिए लोगों की भीड़ लग गई. अदालत ने सभी को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया. बाद में पुलिस ने सलीम को भी मुखबिर की सूचना के आधार पर गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया.
अपराध चूंकि सनसनीखेज था, इसलिए पुलिस ने बाद में सभी आरोपियों के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) के तहत भी काररवाई की. कथा लिखे जाने तक किसी भी आरोपी की जमानत नहीं हो सकी थी.
अगर इलियास ने शक को तवज्जो न दे कर खतरनाक निर्णय न लिया होता तो न सिर्फ नसीमा और उस के बच्चे जिंदा होते, बल्कि उस का घर भी उजड़ने से बच जाता.
— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
पूछताछ के दौरान इलियास ने पुलिस को बताया कि नसीमा के सिर व पेट में दर्द रहता था. उस का दिल्ली के सरकारी अस्पताल से इलाज चल रहा था. 7 फरवरी को उस का अल्ट्रासाउंड होना था. उस ने फोन पर यह बात इलियास को बता कर अस्पताल जाने के लिए कहा था. इलियास ने उसे जाने को कह दिया और उस शाम खुद गांव आ गया.
उसे हैरानी तब हुई, जब नसीमा देर रात तक घर नहीं आई. इलियास के अनुसार उस ने नसीमा से संपर्क करने की बहुत कोशिशें की. लेकिन नसीमा का मोबाइल बंद था. अगली सुबह जब उसे नसीमा की हत्या की खबर मिली तो वह हतप्रभ रह गया.
‘‘तुम्हारी किसी से कोई दुश्मनी तो नहीं थी?’’ एन.पी. सिंह ने पूछा तो वह बोला, ‘‘नहीं साहब, मैं तो सीधासादा आदमी हूं. मेरा तो कभी किसी से झगड़ा तक नहीं हुआ. कमाना और खाना, बस इसी में जिंदगी बीत रही है. पता नहीं मेरे परिवार को किस मनहूस की नजर लग गई.’’
पुलिस के सामने सब से बड़ा सवाल यह था कि जब इलियास और नसीमा की किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी तो फिर नसीमा को कोई क्यों मारेगा? साथ ही यह भी कि उस के बच्चों ने किसी का क्या बिगाड़ा था? यह बात साफ थी कि हत्यारे नसीमा या उस के बच्चों को जिंदा नहीं छोड़ना चाहते थे.
ऐसे में नसीमा का मोबाइल इस मामले के खुलासे में महत्त्वपूर्ण कड़ी साबित हो सकता था. इस बीच मृतकों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट पुलिस को मिल गई थी. नसीमा की गरदन व माथे पर तो 3 घाव थे, जबकि बच्चों के भी गले काटे गए थे. सभी की मृत्यु की एकमात्र वजह सांस की नली का कटना और अधिक रक्तस्राव होना थी.
अगले दिन पुलिस ने गांव के कुछ लोगों से भी पूछताछ की. पुलिस को इलियास की पहली बीवी के बेटे आबिद पर भी शक हुआ. दरअसल कई बार युवा लड़के प्रौपर्टी और मनमुटाव के चलते सौतेली मां के हत्यारे बन जाते हैं. लेकिन जांचपड़ताल में पता चला कि नसीमा का आबिद से कोई मनमुटाव नहीं था. कभी किसी ने उन्हें लड़तेझगड़ते भी नहीं देखा था.
नसीमा व उस के बच्चों की हत्याएं साफ इशारा कर रही थीं कि यह वारदात लूटपाट के लिए नहीं, बल्कि किसी अपने ने की थी. नसीमा की मौत से चूंकि आबिद को ही कोई फायदा हो सकता था, इसलिए शक की सूई उसी पर ठहर गई. सौतेली मां की मौत की खबर पा कर वह भी गांव आ गया था.
सीओ एन.पी. सिंह और इंसपेक्टर अनिल कपरवाल ने आबिद से घुमाफिरा कर पूछताछ की. उस ने बताया कि घटना वाली रात वह दिल्ली में था. पुलिस ने उस के बयानों की न सिर्फ तसदीक कराई, बल्कि उस के मोबाइल की लोकेशन की भी पड़ताल कराई.
शाम तक इस बात की पुष्टि हो गई कि आबिद सच बोल रहा है. वह इस तरह का युवक नहीं था कि हत्या या कोई षड्यंत्र कर सके. पुलिस ने उस के छोटे भाई शाहिद से भी पूछताछ की. लेकिन पुलिस को कोई दिशा नहीं मिल सकी.
पुलिस असमंजस में थी. जो शक के दायरे में आया था वह कातिल नहीं निकला और जो कातिल थे उन का कोई सुराग नहीं मिल पा रहा था. यह निश्चित था कि नसीमा की हत्या रात के वक्त की गई थी.
अनुमान था कि वह 1 बजे पैसेंजर ट्रेन से अहेड़ा स्टेशन पर उतर कर गांव की तरफ चली होगी. ऐसा भी कोई शख्स नहीं मिला जो बता सके कि उस ने नसीमा या उस के बच्चों को स्टेशन पर उतरते देखा था. घटना को 2 दिन बीत चुके थे, लेकिन पुलिस किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पा रही थी.
कोई और रास्ता न देख पुलिस ने नसीमा की काल डिटेल्स और फोन की लोकेशन निकलवाई. नसीमा की घटना वाले दिन इलियास से बात हुई थी. उस की लोकेशन शाहदरा के गुरु तेगबहादुर अस्पताल के अलावा, लोनी व अहेड़ा रेलवे स्टेशन पर पाई गई थी.
इस का मतलब उस का मोबाइल हत्या के बाद बंद किया गया था. लेकिन इस से किसी नतीजे पर पहुंचना मुश्किल था. इस बीच पुलिस को पता चला कि 2 महीने पहले नसीमा ने इलियास के खिलाफ टटीरी पुलिस चौकी पर मारपीट करने की शिकायत दर्ज कराई थी. हालांकि इस विवाद को पुलिस ने सुलझा दिया था.
इलियास के कमजोर शरीर को देख कर ऐसा नहीं लगता था कि वह इतना बड़ा कांड कर सकता है. लेकिन जब इस मामले पर दूसरे नजरिए से सोचा गया तो यह बात निकल कर सामने आई कि अपराध की पृष्ठभूमि में शरीर से नहीं दिमाग से काम लिया जाता है.
जो लोग ज्यादा शातिर होते हैं वे जाहिर तक नहीं होने देते कि उन के मन में क्या चल रहा है. पुलिस को लगा कि हो न हो इलियास के मामले में भी ऐसा ही हो. पुलिस ने उसे शक के दायरे में ले कर उस के मोबाइल की काल डिटेल्स और लोकेशन निकलवाई.
पता चला दोपहर से ले कर रात तक उस के और नसीमा के मोबाइल की लोकेशन एक ही थी. इस का मतलब वे दोनों साथसाथ थे. जबकि उस ने पुलिस को बताया था कि वह शाम को घर आ गया था. जाहिर है वह झूठ बोल रहा था. लेकिन पुलिस इस संवेदनशील मामले में कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी, क्योंकि इलियास कोई ड्रामा भी खड़ा कर सकता था.
अपने पक्ष को और पुख्ता बनाने के लिए पुलिस ने उस की आउटगोइंग काल्स की जांच की. घटना वाले दिन उस की नसीमा के अलावा 3 और नंबरों पर बातें हुई थीं. पुलिस ने उन नंबरों का पता किया तो वे तीनों नंबर साजिद, परवेज व सलीम के नाम थे.
पुलिस को पता चला कि साजिद इलियास का ममेरा भाई, परवेज दोस्त व सलीम भांजा था. इस के बाद शक की सुई पूरी तरह इलियास पर ठहर गई. चौंकाने वाली बात यह थी कि उन तीनों के मोबाइल की लोकेशन भी घटना वाली रात अहेड़ा स्टेशन के आसपास थी.
पुलिस ने सब से पहले उन्हीं तीनों पर शिकंजा कसने का फैसला किया. 12 फरवरी की शाम पुलिस ने एक सूचना के आधार पर परवेज व साजिद को गौरीपुर मोड़ से गिरफ्तार कर लिया. दोनों को थाने ला कर पूछताछ की गई तो जल्दी ही दोनों ने ऐसी बात बताई, जिसे सुन कर पुलिसकर्मी हैरान रह गए.
पता चला कि इस हत्याकांड का षड्यंत्र इलियास ने ही रचा था. उसी ने इन लोगों के साथ मिल कर वारदात को अंजाम दिया था. यह पता चलते ही पुलिस ने बिना समय गंवाए इलियास को हिरासत में ले लिया.
पूछताछ में पहले तो उस ने पुलिस को बरगलाने का प्रयास किया, लेकिन जब साजिद व परवेज को उस के सामने खड़ा किया गया तो वह टूट गया. उस से विस्तृत पूछताछ में चौंकाने वाली कहानी निकल कर सामने आई. बात कोई खास नहीं थी, बस इलियास के शक्की स्वभाव ने उसे कातिल बना दिया था.
इलियास शक्की स्वभाव का था. नसीमा से विवाह के बाद उस की जिंदगी आराम से बीत रही थी. नसीमा हंसमुख स्वभाव की थी. किसी से भी हंसबोल लेना उस का स्वभाव था. इलियास चूंकि दिल्ली में काम करता था, इसलिए कभी दिलशाद गार्डन में रुक जाता था तो कभी गांव आ जाता था.
करीब एक साल पहले उस ने नसीमा को मोबाइल ले कर दे दिया, ताकि वक्त जरूरत पर वह उसे फोन कर सके. इस से यह सुविधा हो गई थी कि इलियास घर फोन कर के न सिर्फ खैर खबर ले लिया करता था, बल्कि नसीमा अपने मायके भी बात कर लेती थी.
इसी के चलते कई बार ऐसा हुआ कि जब इलियास ने घर वाला नंबर मिलाया तो वह व्यस्त मिला. पूछने पर नसीमा ने बताया भी कि वह बिहार बात कर रही थी. इस के बावजूद इलियास ने उसे कई बार डांटा. वह शक्की तो था ही, उसे लगता था कि नसीमा किसी पुरुष से बात करती है.
कुछ दिनों तक तो सब ठीक चलता रहा. घर वालों का रागिनी से धीरेधीरे ध्यान हटने लगा था. फिर मौका देख कर रागिनी अपने प्रेमी राकेश से मिलने लगी. उस ने राकेश से कह दिया कि वह उस के बिना जी नहीं सकती. वह उसे यहां से कहीं दूर ले चले, जहां हमारे सिवाय कोई और न हो. राकेश ने उसे भरोसा दिया कि वह परेशान न हो, जल्द ही वह कोई बीच का रास्ता निकाल लेगा.
रागिनी इस बात से पूरी तरह मुतमईन थी कि अब तो घर वाले भी उस की ओर से बेपरवाह हो चुके हैं. लिहाजा वह पहले की तरह ही चोरीछिपे प्रेमी राकेश से मिलने लगी. यह रागिनी की सब से बड़ी भूल थी. उसे यह पता नहीं था कि घर वाले केवल दिखावे के तौर पर उस की तरफ से बेपरवाह हुए थे. लेकिन उन की नजरें हर घड़ी उसी पर जमी रहती थीं.
सिकंदर को पता चल गया था रागिनी फिर से राकेश से मिलने लगी है. इस बार सिकंदर ने रागिनी को राकेश के साथ बतियाते हुए रंगेहाथ पकड़ लिया था. फिर क्या था, वह उसे वहीं से पकड़ कर घर ले आया और उस की खूब पिटाई की. इस बार पारसनाथ ने बेटे को पिटाई करने से नहीं रोका, बल्कि उस ने बेटी को सुधारने के लिए बेटे को पूरी आजादी दे दी थी.
पानी अब सिर से ऊपर गुजरने लगा था. डांट या मार का रागिनी पर अब कोई असर नहीं होता. रागिनी की करतूतों से घर वालों की इज्जत तारतार हो रही थी. बहन के चलते परिवार की हो रही बदनामी को देख सिकंदर भी ऊब गया, इसलिए उस ने रागिनी की हत्या करने की ठान ली. इस बाबत उस के मांबाप में से किसी को कुछ भी नहीं बताया.
सिकंदर का एक जिगरी दोस्त था कामदेव सिंह. वह शाहपुर थानाक्षेत्र के व्यासनगर जंगल में रहता था. उस पर कई आपराधिक केस भी चल रहे थे. सिकंदर जानता था यह काम कामदेव आसानी से कर सकता है. दोस्त होने के नाते वह उस की बात कभी नहीं टालेगा. वैसे सिकंदर खुद भी इस काम को अकेला कर सकता था लेकिन वह खून के मजबूत रिश्तों की डोर से बंधा हुआ था. ऐसा करते हुए उस के हाथ कांप सकते थे.
सिकंदर ने कामदेव को रागिनी की करतूतें बता कर उसे रास्ते से हटाने की बात कही तो वह उस का साथ देने के लिए तैयार हो गया. दोनों ने दीपावली के दिन रागिनी की हत्या करने की योजना बना ली ताकि पटाखों के शोर में रागिनी की मौत की आवाज दब कर रह जाए.
लेकिन दोनों को दीपावली के दिन किसी वजह से यह मौका नहीं मिला. तब कामदेव ने सिकंदर को भरोसा दिया कि वह अकेला ही इस काम को अंजाम दे देगा. 20 नवंबर, 2018 की शाम रागिनी घर से साइकिल से कहीं जा रही थी. घर से थोड़ी दूर पर रास्ते में उसे कामदेव मिल गया.
कामदेव ने रागिनी को अपनी बातों में उलझा लिया और उसे प्रेमी राकेश से मिलाने की बात कह कर अपनी मोटरसाइकिल पर बैठा लिया. घंटों तक वह उसे इधरउधर घुमाता रहा. रागिनी के कुछ भी पूछने पर वह गोलमोल उत्तर दे कर उसे बहलाता रहा. रात करीब 10 बजे वह उसे चिलुआताल थाने से कुछ दूर उमरपुर गांव के बाग की ओर ले गया. तब तक चारों ओर गहरा सन्नाटा पसर गया था.
उस ने मोटरसाइकिल बाग में रोक दी और वे दोनों बाइक से नीचे उतर गए. रागिनी ने उस से फिर पूछा कि राकेश कहां है? तो कामदेव ने कहा, ‘‘बस कुछ देर और ठहर जाओ. वह आता ही होगा.’’ इतना कहते ही कामदेव ने कमर में खोंसा हुआ पिस्टल निकाला. पिस्टल देख कर रागिनी के होश उड़ गए.
अब वह समझ गई कि कामदेव ने उस के साथ बड़ा धोखा किया है. वह कुछ कह पाती, उस से पहले ही कामदेव ने उस के शरीर में पिस्टल से 5 गोलियां उतार दीं. गोलियां लगते ही रागिनी ने मौके पर दम तोड़ दिया. कहीं वह जीवित न रह जाए, इसलिए कामदेव ने साथ लाए पेचकस से उस के शरीर को गोद डाला.
उसे ठिकाने लगा कर वह वहां से इत्मीनान से घर चला गया. फिर सिकंदर को फोन कर के काम हो जाने की जानकारी दे दी. जिस पिस्टल से उस ने रागिनी की हत्या की थी, वह उस ने अपने कमरे की अलमारी में छिपा दी.
अगले दिन सिकंदर ने अफवाह फैला दी कि रागिनी फिर से अपने प्रेमी के साथ घर से भाग गई. 2 दिनों बाद पारसनाथ को सच्चाई का पता चल गया था. सच जान कर उस ने चुप्पी साध ली थी लेकिन उस की दोनों बेटियों ने राज से परदा उठा कर उन्हें बेनकाब कर दिया. नहीं तो सिकंदर और कामदेव ने मिल कर जो खतरनाक योजना बनाई थी, शायद पुलिस उन तक नहीं पहुंच पाती.
मामले का खुलासा हो जाने के बाद थानाप्रभारी ने पारसनाथ और उस की पत्नी को बेकसूर मानते हुए घर भेज दिया. पुलिस ने अभियुक्त सिकंदर और उस के दोस्त कामदेव को गिरफ्तार कर लिया. 7 दिसंबर, 2018 को एसपी (नार्थ) अरविंद कुमार पांडेय और सीओ रोहन प्रमोद बोत्रे ने पुलिस लाइन में प्रैस कौन्फ्रैंस कर पत्रकारों को केस के खुलासे की जानकारी दी. दोनों हत्याभियुक्तों को पुलिस ने कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित