विचित्र संयोग : चक्रव्यूह का भयंकर परिणाम – भाग 1

रविवार के सुबह सात बजे के लगभग धनवानों का इलाका सेक्टर-15ए अभी सोया पड़ा था. चारों ओर शांति फैली थी. वीआईपी इलाका होने के कारण यहां सवेरा यों भी जरा देर से उतरता है, क्योंकि यहां रात का आलम ही कुछ और होता है. चहलपहल थी तो सिर्फ सेक्टर-2 के पीछे के इलाके में. सवेरे 4 बजे से ही यहां मछलियों का बाजार लग जाता है. ट्रौली रिक्शे और टैंपो रुक रहे थे और उन के साथ ही मछलियों के ढेर लग रहे थे. मछलियां लाने के लिए यहां टैंपो और ट्रौली रिक्शों की लाइन लगी थी.

इसी बाजार के पास फाइन चिकन एंड मीट शौप है, जहां सवेरे 4 बजे से ही बकरों को काटने और उन्हें टांगने का काम शुरू हो जाता है. इस इलाके के लोग इसी दुकान से गोश्त खरीदना पसंद करते थे. सामने स्थित डीटीसी बस डिपो से बसें बाहर निकलने लगी थीं. डिपो के एक ओर नया बास गांव है, जिस में स्थानीय लोगों के मकान हैं. डिपो के सामने पुलिस चौकी है, जिस के बाहर 2-3 सिपाही बेंच पर बैठ कर गप्पें मार रहे थे और चौकी के अंदर बैठे सबइंसपेक्टर आशीष शर्मा झपकियां ले रहे थे.

गांव के पीछे के मयूरकुंज की अलकनंदा इमारत की पांचवी मंजिल के एक फ्लैट में एक सुखी जोड़ा रहता था. यह फ्लैट सेक्टर-62 की एक सौफ्टवेयर कंपनी में काम करने वाले धनंजय विश्वास का था. फ्लैट में धनंजय अपनी पत्नी रोहिणी के साथ रहते थे.

रोहिणी दिल्ली में पंजाब नेशनल बैंक में प्रोबेशनरी औफिसर थी. वह आगरा की रहने वाली थी. 2 वर्ष पूर्व धनंजय से उस का विवाह हुआ था. इस से पहले धनंजय दिल्ली में अपने मातापिता के साथ रहता था. विवाह के बाद उस के सासससुर ने यह फ्लैट खरीदवा दिया था. रोहिणी वाकई रोहिणी नक्षत्र के समान सुंदर थी. धनंजय और उस की जोड़ी खूब फबती थी.

धनंजय के औफिस का समय सवेरे 9 बजे से शाम 6 बजे तक था. वह औफिस अपनी कार से जाता था. लेकिन लौटने का उस का कोई समय निश्चित नहीं था. रोहिणी शाम साढ़े छह बजे तक घर लौट आती थी. इन हालात में पतिपत्नी शाम का खाना साथ ही खाया करते थे. हां, छुट्ïटी के दिनों दोनों मिल कर हसंतेखेलते खाना बनाते थे. धनंजय हर रविवार को सेक्टर-2 में लगने वाली मछली बाजार से मछलियां और फाइन चिकन एंड मीट शौप की दुकान से मीट लाता था.

पहली जून की सुबह 6 बजे फ्लैट की घंटी बजने पर दूध देने वाले गनपत से दूध ले कर धनंजय फटाफट तैयार हो कर मीट लेने के लिए निकल गया. रोहिणी को वह सोती छोड़ गया था. वह कार ले कर निकलने लगा तो चौकीदार ने हंसते हुए पूछा, “साहब, आज रविवार है न, मीट लेने जा रहे हो?”

धनंजय ने हंस कर कार आगे बढ़ा दी थी. फाइन चिकन एंड मीट शौप पर आ कर उस ने 2 किलोग्राम मीट और एक किलोग्राम कीमा लिया. इस के बाद उस ने रास्ते में मछली और नाश्ते के लिए अंडे, ब्रेड, मक्खन और 4 पैकेट सिगरेट लिए. लगभग साढ़े 7 बजे वह फ्लैट पर लौट आया. वाचमैन नीचे ही था, साफसफाई करने वाले अपने काम में लगे थे. ऊपर पहुंच कर उस ने ‘लैच की’ से दरवाजा खोला. दरवाजे के अंदर अखबार पड़ा था, जिसे नरेश पेपर वाला दरवाजे के नीचे से अंदर सरका गया था. अखबार उठाते हुए उस ने रोहिणी को आवाज लगाई, “उठो भई, मैं तो बाजार से लौट भी आया.”

धनंजय के फ्लैट में सुखसुविधा के सभी आधुनिक सामान मौजूद थे. उस ने डाइनिंग टेबल पर सारा सामान रख कर 2 बड़ी प्लेटें उठाईं. एक में उस ने गोश्त और दूसरे में मछली निकाली. फ्लैट के हौल में शानदार दरी बिछी थी और कीमती सोफे सजे थे. एक कोने में टीवी और डीवीडी प्लेयर रखा था. दूसरे कोने में शो केस के नीचे टेलीफोन रखा था, वहीं मेज पर लैपटौप था. पीछे की ओर गैलरी थी, जहां से दिल्ली की ओर जाने वाली सडक़ के साथसाथ दूर तक फैली हरियाली और नोएडा गेट दिखाई देता था.

इस हौल के बाईं ओर बैडरूम का दरवाजा था. बैडरूम में डबल बैड, गोदरेज की 2 अलमारियां और एक ड्रेसिंग टेबल था. बैडरूम से लग कर ही एक छोटा गलियारा था. गलियारे में ही टौयलेट और बाथरूम था. सारा सामान डाइनिंग टेबल पर रखने के बाद बैडरूम में घुसते ही धनंजय की चीख निकल गई, “रोहिणी?”

उस की सुंदर पत्नी, उसे जीजान से चाहने वाली जीवनसंगिनी, जो अभी रात में उस के सीने पर सिर रख कर सोई थी, जिसे वह सुबह की मीठी नींद में छोड़ कर गया था, रक्त से सराबोर बैड पर मरी पड़ी थी. रोहिणी के गले, सीने और पेट से उस वक्त भी खून रिस रहा था, जिस से सफेद बैडशीट लाल हो गई थी.

कुछ क्षणों बाद धनंजय रोहिणी का नाम ले कर चीखता हुआ बाहर की ओर भागा. उस के अड़ोसपड़ोस में 3 फ्लैट थे. दाईं ओर के 2 फ्लैटों में सक्सेना और मिश्रा तथा बाईं ओर के फ्लैट में रावत रहते थे. पागलों की सी अवस्था में धनंजय ने सक्सेना के फ्लैट की घंटी पर हाथ रखा तो हटाया ही नहीं. वह पड़ोसियों के नाम लेले कर चिल्ला रहा था.

कुछ क्षणों बाद तीनों पड़ोसी बाहर निकले. वे धनंजय की हालत देख कर दंग रह गए. धनंजय कांप रहा था. वह कुछ कहना चाहता था, पर उस के मुंह से शब्द नहीं निकल रहे थे. उस के कंधे पर हाथ रख कर सक्सेना ने पूछा, “क्या हुआ विश्वास?”

सक्सेना रिटायर्ड कर्नल थे. उन्होंने ही नहीं, मिश्रा और रावत ने भी किसी अनहोनी का अंदाजा लगा लिया था. धनंजय ने हकलाते हुए कहा, “रो…हि…णी.”

सक्सेना, उन का बेटा एवं बहू, मिश्रा और रावत उस के फ्लैट के अंदर पहुंचे. बैडरूम का हृदयविदारक दृश्य देख कर सक्सेना की बहू डर के मारे चीख पड़ी और उलटे पांव भागी. अपने आप को संभालते हुए सक्सेना ने कोतवाली पुलिस को फोन लगा कर घटना की सूचना दी. कोतवाली में उस समय ड्ïयूटी पर सबइंसपेक्टर दयाशंकर थे.

दयाशंकर ने मामला दर्ज कर के मामले की सूचना अधिकारियों को दी और खुद 2 सिपाही ले कर अलकनंदा के लिए निकल पड़े. उन के पहुंचते ही वहां के चौकीदार ने उन्हें सलाम किया. लोगों के बीच से जगह बनाते हुए दयाशंकर सीधे पांचवीं मंजिल पर पहुंचे. लोग सक्सेना के घर में जमा थे. धनंजय सोफे पर अपना सिर थामे बैठा था.

दयाशंकर के पहुंचते ही धनंजय उठ कर खड़ा हो गया. आगे बढ़ कर सक्सेना ने अपना परिचय दिया और धनंजय के फ्लैट की ओर इशारा किया. थोड़ी ही देर में फोरैंसिक टीम के सदस्य भी आ पहुंचे. इंसपेक्टर प्रकाश राय भी आ पहुंचे थे.

उन के वहां पहुंचते ही एक व्यक्ति सामने आया, “गुडमौर्निंग सर? आप ने मुझे पहचाना? मैं रिटायर्ड इंसपेक्टर खन्ना. इन फ्लैटों की सुरक्षा व्यवस्था मेरे जिम्मे है. सोसाइटी के सेक्रैटरी ने फोन पर मुझे सूचना दी. दयाशंकर साहब से मुझे पता चला कि आप आ रहे हैं.”

प्रकाश राय को खन्ना का चेहरा जानापहचाना लगा. मगर उन्हें याद नहीं आया कि वह उस से कहां मिले थे. सीधे ऊपर न जा कर उन्होंने इमारत को गौर से देखना शुरू किया. इमारत में ‘ए’ और ‘बी’ 2 विंग थे. दोनों विंग के लिए अलगअलग सीढिय़ां थीं. धनंजय ‘ए’ विंग में रहता था. इमारत के गेट पर ही वाचमैन के लिए एक छोटी सी केबिन थी, जिस में से आनेजाने वाला हर व्यक्ति उसे दिखाई देता था.

कंजूस पिता की ज़िद का नतीजा – भाग 1

पारसराम पुंज सेना के कैप्टन पद से रिटायर जरूर हो गए थे लेकिन लोगों पर हुकुम और डिक्टेटरशिप चलाने की उन की  आदत नहीं गई थी. सेवानिवृत्त के बाद यह बात उन की समझ में नहीं आई थी कि सेना और समाज के नियमों में जमीनआसमान का अंतर होता है. अपने घर वालों के साथ मोहल्ले वालों पर भी वह अपनी हिटलरशाही दिखाते थे. घर वालों की बात दूसरी थी, लेकिन मोहल्ले वाले या और दूसरे लोग उन के गुलाम तो थे नहीं जो उन की डिक्टेटरशिप सहते. लिहाजा इसी सब को ले कर मोहल्ले वालों से उन की अकसर कहासुनी होती रहती थी. उन की पत्नी अनीता उन्हें समझाने की कोशिश करती तो वह उलटे ही उसे डांट देते थे. उन के घर में पत्नी के अलावा एक बेटी निष्ठा थी.

22 अक्तूबर, 2013 को करवाचौथ का त्यौहार था. इस त्यौहार के मौके पर महिलाओं के साथसाथ आजकल तमाम लड़कियां भी हाथों पर मेंहदी लगवाने लगी है. करवाचौथ से एक दिन पहले 21 अक्तूबर को निष्ठा भी अपने हाथों पर मेंहदी लगवा कर रात 8 बजे घर लौटी थी. उस समय घर पर पारसराम कुंज ही मौजूद थे. निष्ठा की मां अनीता पंजाबी बाग स्थित एक संत के आश्रम में गई हुई थीं. तभी निष्ठा ने कहा, ‘‘पापा, मम्मी ने बाहर से सरगी (करवाचौथ का सामान) लाने को कहा था, आप ले आइए.’’

मार्केट पारसराम पुंज के घर से कुछ ही दूर था. वह पैदल ही सरगी का सामान लेने बाजार चले गए. जब वह सामान खरीद कर घर लौटे उन के दोनों हाथों में सामान भरी पौलिथिन की थैलियां थीं. अभी वह अपने दरवाजे पर पहुंचे ही थे कि किसी ने उन के ऊपर चाकू से हमला कर दिया. दर्द से छटपटा कर उन्होंने जोर से बेटी को आवाज लगाई. उस समय तकरीबन साढ़े 8 बज रहे थे.

निष्ठा ने जब पिता के चीखने की आवाज सुनी. तब वह पहली मंजिल पर थी. चीख की आवाज सुन कर निष्ठा ने सोचा कि शायद आज फिर पापा का किसी से झगड़ा हो गया है. वह जल्दीजल्दी सीढि़यों से उतर कर नीचे आई. घर का मुख्य दरवाजा भिड़ा हुआ था उस ने जैसे ही दरवाजा खोला उस के पिता सामने गिरे पड़े थे और हाथ में चाकू लिए एक युवक वहां से भाग रहा था. कुछ आगे एक युवक लाल रंग की मोटरसाइकिल पर बैठा था. जिस ने सिर पर हेलमेट लगा रखा था. कुछ लोग गली में मौजूद थे लेकिन उन्हें पकड़ने की किसी की भी हिम्मत नहीं हुई. युवक मोटरसाइकिल पर बैठ कर भाग गए.

पिता को लहूलुहान देख कर निष्ठा जोरजोर से रोने लगी. उस के रोने की आवाज सुन कर आसपास के लोग वहां आ गए. पीछे वाली गली में निष्ठा का ममेरा भाई नरेंद्र रहता था वह दौड़ीदौड़ी उस के पास गई और यह बात उसे बता दी. जब तक वह आया तब तक वहां काफी लोग जमा हो गए थे. मामा को लहूलुहान देख कर वह भी घबरा गया. लोगों को सहयोग से वह पारसराम को नजदीक के आचार्य श्री भिक्षु अस्पताल ले गया लेकिन डाक्टरों ने पारसराम पुंज को मृत घोषित कर दिया. इसी दौरान किसी ने पुलिस कंट्रोल रूम को फोन कर के सूचना दे दी कि मोतीनगर के सुदर्शन पार्क में स्थित मकान नंबर बी-462 के सामने एक आदमी का मर्डर हो गया है.

पीसीआर ने यह सूचना थाना मोतीनगर को दे दी. हत्या की खबर मिलते ही थानाप्रभारी शैलेंद्र तोमर, इंसपेक्टर (तफ्तीश) रमेश कलसन, हेडकांस्टेबल सत्यप्रकाश और कांस्टेबल कृष्णराठी आदि के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने देखा कि सुदर्शन पार्क के मकान नंबर बी-462 के सामने काफी मात्रा में खून पड़ा था. पता चला कि किसी ने रिटायर्ड कप्तान पारसराम पुंज को कई चाकू मारे हैं और उन्हें आचार्य श्री भिक्षु अस्पताल ले जाया गया है. थानाप्रभारी अस्पताल पहुंचे तो डाक्टरों से पता चला कि पारसरामकी अस्पताल लाने से पहले ही मौत हो गई थी.

पुलिस ने लाश कब्जे में ले कर उसे पोस्टमार्टम के लिए दीनदयाल अस्पताल भेज दिया. थानाप्रभारी ने सेना के पूर्व कैप्टन पारसराम पुंज की हत्या की खबर आला अधिकारियों को भी दे दी. थोड़ी देर में पुलिस उपायुक्त डीसीपी रणजीत सिंह और सहायक पुलिस आयुक्त ईश सिंघल भी मौकाएवारदात पर पहुंच गए. मौका मुआयना करने के बाद पुलिस अधिकारियों ने आसपास के लोगों से बात की. मृतक की बेटी निष्ठा और कुछ लोगों ने पुलिस को बताया कि उन्होंने हमलावर को हाथ में चाकू लिए वहां से भागते देखा था.

डीसीपी रणजीत सिंह ने इस केस को सुलझाने के लिए एसीपी ईश सिंघल के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई. टीम में थानाप्रभारी शैलेंद्र तोमर, इंसपेक्टर रमेश कलसन, एसआई गुलशन नागपाल, हेड कांस्टेबल सत्यप्रकाश, कांस्टेबल कृष्ण राठी, अमित कुमार आदि को शामिल किया गया.

पुलिस को घटनास्थल से ऐसा कोई सुबूत नहीं मिला जिस के सहारे हत्यारों तक पहुंचा जा सकता. यह एक तरह से ब्लाइंड मर्डर केस था. इसलिए पुलिस ने सब से पहले पूर्व कैप्टन पारसराम और उस के परिवार के बारे में छानबीन करनी शुरू की.

छानबीन में पता चला कि मृतक पारसराम पुंज तेजतर्रार व्यक्ति थे. उन के मिजाज की वजह से मोहल्ले के लोगों से उन की अकसर कहासुनी होती रहती थी. लेकिन वह मामूली कहासुनी की वजह से कोई उन की हत्या कर सकता है. पुलिस को ऐसा नहीं लग रहा था. फिर भी पुलिस ने मोहल्ले के उन लोगों से भी पूछताछ की जिन से कप्तान साहब की नोंकझोंक होती रहती थी.

इस के बाद पुलिस ने पारसराम पुंज और बेटी निष्ठा पुंज के मोबाइल फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई. इस से पता चला कि निष्ठा की कुछ नंबरों पर ज्यादा बातें होती थीं. 16 साल की निष्ठा जवान होने के साथ साथ खूबसूरत भी थी. इसी मद्देनजर पुलिस ने यह सोचना शुरू कर दिया कि कहीं निष्ठा का किसी लड़के के साथ कोई चक्कर तो नहीं चल रहा है. हो सकता है कप्तान साहब उस के प्यार में रोड़ा बन रहे हों और इसलिए उस ने अपने प्रेमी की मार्फत अपने पिता को ठिकाने लगवा दिया हो.

जिन नंबरों पर निष्ठा की ज्यादा बात होती थी, पुलिस ने उन का पता लगाया तो वह एक झुग्गी बस्ती में रहने वाले युवकों के नंबर निकले. पूछताछ के लिए पुलिस ने उन युवकों को थाने बुलवा कर पूछताछ करनी शुरू की. उन्होंने बताया कि उन की निष्ठा से केवल दोस्ती थी. उस के पिता के मर्डर से उन का कोई लेनादेना नहीं है. उन लड़कों से सख्ती से की गई पूछताछ के बाद भी कोई नतीजा सामने नहीं आया.

इसी बीच पुलिस टीम को मुखबिर से खास जानकारी यह मिली कि हमलावर लाल रंग की जिस पैशन मोटरसाइकिल से आए थे, उस पर हरियाणा का नंबर था. वह नंबर क्या था यह पता नहीं लग सका. जबकि बिना नंबर के मोटरसाइकिल ढूंढना आसान नहीं था.

जांच टीम ने एक बार फिर घटनास्थल से मेन रोड तक आने वाले रास्तों का मुआयना किया. उन्होंने देखा कि जहां पारसराम पुंज का मर्डर हुआ था, उस के सामने वाले मकान के बाहर सीसीटीवी कैमरा लगा हुआ था. संभावना थी कि कातिलों की और उन की मोटरसाइकिल की फोटो उस कैमरे में जरूर कैद हुई होगी. यही सोच कर पुलिस ने उस मकान के मालिक से बात की. उस ने बताया कि उस के कैमरे की डीवीआर नहीं हो रही. इस से पुलिस की उम्मीद पर पानी फिर गया.

जिस गली में पारसराम का मकान था उस के बाहर मोड़ पर सुरेश का चावल का गोदाम था. गोदाम के बाहर भी सीसीटीवी कैमरे लगे हुए थे. पूछताछ के बाद पता चला कि वहां लगे सीसीटीवी कैमरे भी काम नहीं कर रहे थे. पुलिस टीम जांच का जो कदम आगे बढ़ा रही थी, वह आगे नहीं बढ़ पाता था. इस तरह जांच करते हुए पुलिस को 2 सप्ताह बीत गए.

टीम ने निष्ठा के फोन की काल डिटेल्स का एक बार फिर अध्ययन किया. उस से पता चला कि घटना वाले दिन एक फोन नंबर पर निष्ठा की 4 बार बात हुई थी. उस नंबर के बारे में निष्ठा से पूछा गया तो उस ने बताया कि यह नंबर उस के भाई यानी कप्तान साहब की पहली पत्नी ऊषा से पैदा हुए बेटे लाल कमल पुंज का है. इस के बाद ही पुलिस को पता लगा कि कप्तान साहब ने 2 शादियां की थीं. निष्ठा उन की दूसरी पत्नी अनीता की बेटी थी.

पुलिस ने निष्ठा से पूछा कि उस की लाल कमल से क्या बात हुई थी? तो उस ने जवाब दिया कि उस ने घर का हालचाल जानने के लिए फोन किया था. उस ने यह भी बताया की लाल कमल कभीकभी घर भी आता रहता था. पूछताछ में जानकारी मिली कि लाल कमल अपनी पत्नी के साथ पानीपत में रहता है.

मृतक की वीडियो से खुला हत्या का राज़

तांत्रिक शक्ति के लिए अपने बच्चों की बलि

फेसबुकिया प्यार में डबल मर्डर

ज्योति ने बुझाई पति की जीवन ज्योति

बहन का प्यार : यार बना गद्दार

निश्चित जगह पर पहुंच कर अखिलेश उर्फ चंचल को प्रियंका दिखाई नहीं दी तो वह बेचैन हो उठा. उस बेचैनी में वह इधरउधर  टहलने लगा. काफी देर हो गई और प्रियंका नहीं आई तो वह निराश होने लगा. वह घर जाने के बारे में सोच रहा था कि प्रियंका उसे आती दिखाई दे गई. उसे देख कर उस का चेहरा खुशी से खिल उठा. प्रियंका के पास आते ही वह नाराजगी से बोला, ‘‘इतनी देर क्यों कर दी प्रियंका. मैं कब से तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं. अच्छा हुआ तुम आ गईं, वरना मैं तो निराश हो कर घर जाने वाला था.

‘‘जब प्यार किया है तो इंतजार करना ही पड़ेगा. मैं तुम्हारी तरह नहीं हूं कि जब मन हुआ, आ गई. लड़कियों को घर से बाहर निकलने के लिए 50 बहाने बनाने पड़ते हैं.’’ प्रियंका ने तुनक कर कहा.

‘‘कोई बात नहीं, तुम्हारे लिए तो मैं कईकई दिनों तक इंतजार करते हुए बैठा रह सकता हूं. क्योंकि मैं दिल के हाथों मजबूर हूं,’’ अखिलेश ने कहा, ‘‘प्रियंका, मैं चाहता हूं कि तुम आज कालेज की छुट्टी करो. चलो, हम सिनेमा देखने चलते हैं.’’

प्रियंका तैयार हो गई तो अखिलेश पहले उसे एक रेस्टोरेंट में ले गया. नाश्ता करने के बाद दोनों सिनेमा देखने चले गए.

सिनेमा देखते हुए अखिलेश छेड़छाड़ करने लगा तो प्रियंका ने कहा, ‘‘दिनोंदिन तुम्हारी शरारतें बढ़ती ही जा रही हैं. शादी हो जाने दो, तब देखती हूं तुम कितनी शरारत करते हो.’’

‘‘शादी नहीं हुई, तब तो इस तरह धमका रही हो. शादी के बाद न जाने क्या करोगी. अब तो मैं तुम से शादी नहीं कर सकता.’’ अखिलेश ने कान पकड़ते हुए कहा.

‘‘अब मुझ से पीछा छुड़ाना आसान नहीं है. शादी तो मैं तुम्हीं से करूंगी.’’ प्रियंका ने कहा.

‘‘फिर तो मुझे यही गाना पड़ेगा कि ‘शादी कर के फंस गया यार.’’’ अखिलेश ने कहा तो प्रियंका हंसने लगी.

प्रियंका उत्तर प्रदेश के जिला शाहजहांपुर के थाना सदर बाजार के मोहल्ला बाड़ूजई प्रथम के रहने वाले चंद्रप्रकाश सक्सेना की बेटी थी. वह ओसीएफ में दरजी थे. उन के परिवार में प्रियंका के अलावा पत्नी सुखदेवी, 2 बेटे संतोष, विपिन तथा एक अन्य बेटी कीर्ति थी. बड़े बेटे संतेष की शादी हो चुकी थी. वह अपनी पत्नी प्रीति के साथ दिल्ली में रहता था.

कीर्ति की भी शादी शाहजहांपुर के ही मोहल्ला तारोवाला बाग के रहने वाले राजीव से हुई थी. वह अपनी ससुराल में आराम से रह रही थी. गै्रजएुशन कर के विपिन ने मोबाइल एसेसरीज की दुकान खोल ली थी. जबकि प्रियंका अभी पढ़ रही थी. प्रियंका घर में सब से छोटी थी, इसलिए पूरे घर की लाडली थी. विपिन तो उसे जान से चाहता था.

प्रियंका बहुत सुंदर तो नहीं थी, लेकिन इतना खराब भी नहीं थी कि कोई उसे देख कर मुंह मोड़ ले. फिर जवानी में तो वैसे भी हर लड़की सुंदर लगने लगती है. इसलिए जवान होने पर साधारण रूपरंग वाली प्रियंका को भी आतेजाते उस के हमउम्र लड़के चाहत भरी नजरों से ताकने लगे थे. उन्हीं में एक था उसी के भाई के साथ मोबाइल एसेसरीज का धंधा करने वाला अखिलेश यादव उर्फ चंचल.

अखिलेश उर्फ चंचल शाहजहांपुर के ही मोहल्ला लालातेली बजरिया के रहने वाले भगवानदीन यादव का बेटा था. भगवानदीन के परिवार में पत्नी सुशीला देवी के अतिरिक्त 3 बेटे मुनीश्वर उर्फ रवि, अखिलेश उर्फ चंचल, नीलू और 2 बेटियां नीलम और कल्पना थीं. अखिलेश उस का दूसरे नंबर का बेटा था. भगवानदीन यादव कभी जिले का काफी चर्चित बदमाश था. उस की और उस के साथी रामकुमार की शहर में तूती बोलती थी.

रामकुमार की हत्या कर दी गई तो अकेला पड़ जाने की वजह से भगवानदीन ने बदमाशी से तौबा कर लिया और अपने परिवार के साथ शांति से रहने लगा. लेकिन सन 2002 में उस के सब से छोटे बेटे नीलू की बीमारी से मौत हुई तो वह इस सदमे को बरदाश्त नहीं कर सका और कुछ दिनों बाद उस की भी हार्टअटैक से मौत हो गई.

बड़ी बेटी नीलम का विवाह हो चुका था. पिता की मौत के बाद घरपरिवार की जिम्मेदारी बड़े बेटे रवि ने संभाल ली थी. वह ठेकेदारी करने लगा था. हाईस्कूल पास कर के अखिलेश ने भी पढ़ाई छोड़ दी और मोबाइल एसेसरीज का धंधा कर लिया. एक ही व्यवसाय से जुड़े होने की वजह से कभी विपिन और अखिलेश की बाजार में मुलाकात हुई तो दोनों में दोस्ती हो गई थी.

दोस्ती होने के बाद कभी अखिलेश विपिन के घर आया तो उस की बहन प्रियंका को देख कर उस पर उस का दिल आ गया. फिर तो वह प्रियंका को देखने के चक्कर में अकसर उस के घर आने लगा. कहने को वह आता तो था विपिन से मिलने, लेकिन वह तभी उस के घर आता था, जब वह घर में नहीं होता था. ऐसे में भाई का दोस्त होने की वजह से उस की सेवासत्कार प्रियंका को करनी पड़ती थी. उसी बीच वह प्रियंका के नजदीक आने की कोशिश करता.

उस के लगातार आने की वजह से विपिन से उस की दोस्ती गहरी हो ही गई, प्रियंका से भी उस की नजदीकी बढ़ गई. इस के बाद विपिन और अखिलेश ने मिल कर मोबाइल हैंडसेट बनाने वाली एक नामी कंपनी की एजेंसी ले ली तो उन का कारोबार भी बढ़ गया और याराना भी. इस से उन का एकदूसरे के घर आनाजान ही नहीं हो गया, बल्कि अब साथसाथ खानापीना भी होने लगा था.

अब अखिलेश को प्रियंका के साथ समय बिताने का समय ज्यादा से ज्यादा मिलने लगा था. उस ने इस का फायदा उठाया. उसे अपने आकर्षण में ही नहीं बांध लिया, बल्कि उस से शारीरिक संबंध भी बना लिए. वह विपिन की अनुपस्थिति का पूरा फायदा उठाने लगा. विपिन के चले जाने के बाद केवल मां ही घर पर रहती थी. वह घर के कामों में व्यस्त रहती थी. फिर उसे बेटी पर ही नहीं, बेटे के दोस्त पर भी विश्वास था, इसलिए उस ने कभी ध्यान ही नहीं दिया कि वे दोनों क्या कर रहे हैं.

प्रियंका अपने भाई और परिवार को धोखा दे रही थी तो अखिलेश अपने दोस्त के साथ विश्वासघात कर रहा था. वह भी ऐसा दोस्त, जो उस पर आंख मूंद कर विश्वास करता था. उसे भाई से बढ़ कर मानता था. प्रियंका और अखिलेश क्या कर रहे हैं, किसी को कानोकान खबर नहीं थी. जबकि जो कुछ भी हो रहा था, वह सब घर में ही सब की नाक के नीचे हो रहा था.

संतोष की पत्नी प्रीति को बच्चा होने वाला था, इसलिए संतोष ने प्रीति को शाहजहांपुर भेज दिया. डिलीवरी की तारीख नजदीक आ गई तो उसे जिला अस्पताल में भरती करा दिया गया. प्रीति के अस्पताल में भरती होने की वजह से विपिन और उस की मां का ज्यादा समय अस्पताल में बीतता था.

छुट्टी न मिल पाने की वजह से संतोष नहीं आ सका था. उस स्थिति में प्रियंका को घर में अकेली रहना पड़ रहा था. विपिन को अखिलेश पर पूरा विश्वास था, इसलिए प्रियंका और घर की जिम्मेदारी उस ने उस पर सौंप दी थी. अखिलेश और प्रियंका को इस से मानो मुंहमांगी मुराद मिल गई थी. जब तक प्रीति अस्पताल में रही, दोनों दिनरात एकदूसरे की बांहों में डूबे रहे.

26 फरवरी, 2014 को प्रीति को जिला अस्पताल में बेटा पैदा हुआ था. खुशी के इस मौके पर अखिलेश ने 315 बोर के 2 तमंचे और 10 कारतूस ला कर विपिन को दिए थे. भतीजा पैदा होने पर दोनों ने उन तमंचों से एकएक फायर भी किए थे. बाकी 8 कारतूस और दोनों तमंचे अखिलेश ने विपिन से यह कह कर उस के घर रखवा दिए थे कि भतीजे के नामकरण संस्कार पर काम आएंगे. विपिन ने दोनों तमंचे और कारतूस अपने कमरे में बैड पर गद्दे के नीचे छिपा कर रख दिए थे.

विपिन पुलिस में भरती होना चाहता था, इसलिए रोजाना सुबह 5 बजे उठ कर जिम जाता था. वहां से वह 9 बजे के आसपास लौटता था. कभीकभी उसे देर भी हो जाती थी. 23 मार्च को विपिन 9 बजे के आसपास घर लौटा तो मां नीचे बरामदे में बैठी आराम कर रही थीं. भाभी प्रीति बच्चे के साथ सामने वाले कमरे में लेटी थी. उस ने कपड़े बदले और ऊपरी मंजिल पर बने अपने कमरे में सोने के लिए चला गया.

विपिन ने दरवाजे को धक्का दिया तो पता चला वह अंदर से बंद है. इस का मतलब अंदर कोई था. उस ने आवाज दी, लेकिन अंदर कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई. उस ने पूरी ताकत से दरवाजे पर लात मारी तो अंदर लगी सिटकनी उखड़ गई और दरवाजा खुल गया. अंदर अखिलेश और प्रियंका खड़े थे. दोनों की हालत देख कर विपिन को समझते देर नहीं लगी कि अंदर क्या कर रहे थे. उन के कपड़े अस्तव्यस्त थे और वे काफी घबराए हुए थे.

विपिन के कमरे में घुसते ही प्रियंका निकल कर नीचे की ओर भागी. विपिन का खून खौल उठा था. उस ने गुस्से में अखिलेश को एक जोरदार थप्पड़ जड़ते हुए कहा, ‘‘तुझे मैं दोस्त नहीं, भाई मानता था. मैं तुझ पर कितना विश्वास करता था और तूने क्या किया? जिस थाली में खाया, उसी में छेद किया.’’

‘‘भाई, मैं प्रियंका से सच्चा प्यार करता हूं और उसी से शादी करूंगा.’’ अखिलेश ने कहा, ‘‘वह मुझ से शादी को तैयार है.’’

‘‘तुम दोनों को पता था कि हमारी जाति एक नहीं है तो यह कैसे सोच लिया कि तुम्हारी शादी हो जाएगी?’’ विपिन गुस्से से बोला, ‘‘तुम ने जो किया, ठीक नहीं किया. मेरी इज्जत पर तुम ने जो हाथ डाला है, उस की सजा तो तुम्हें भोगनी ही होगी.’’

अखिलेश को लगा कि उसे जान का खतरा है तो उस ने जेब से 315 बोर का तमंचा निकाल लिया. वह गोली चलाता, उस के पहले ही विपिन ने उस के हाथ पर इतने जोर से झटका मारा कि तमंचा छूट कर जमीन पर गिर गया. अखिलेश ने तमंचा उठाना चाहा, लेकिन विपिन ने फर्श पर पड़े तमंचे को अपने पैर से दबा लिया.

अखिलेश कुछ कर पाता, विपिन ने बैड पर गद्दे के नीचे रखे दोनों तमंचे और आठों कारतूस निकाल कर उस में से एक तमंचा जेब में डाल लिया और दूसरे में गोली भर कर अखिलेश पर चला दिया. गोली अखिलेश के सीने में लगी. वह जमीन पर गिर गया तो विपिन ने एक गोली उस के बाएं हाथ और एक पेट में मारी. 3 गोलियां लगने से अखिलेश की तुरंत मौत हो गई.

अखिलेश का खेल खत्म कर विपिन नीचे आ गया. प्रियंका बरामदे में दुबकी खड़ी थी. उस के पास जा कर उस ने पूछा, ‘‘मैं ने सही किया या गलत?’’

प्रियंका ने जैसे ही कहा, ‘‘गलत किया.’’ विपिन ने उस की कनपटी पर तमंचे की नाल रख कर ट्रिगर दबा दिया. प्रियंका कटे पेड़ की तरह फर्श पर गिर पड़ी. इस के बाद उस ने एक गोली और चलाई, जो प्रियंका के सीने में बाईं ओर लगी. प्रियंका की भी मौत हो गई. प्रियंका को खून से लथपथ देख कर उस की मां और भाभी बेहोश हो गईं.

अखिलेश और प्रियंका की हत्या कर विपिन घर से बाहर निकला तो सामने पड़ोसी सचिन पड़ गया. सचिन से उस की पुरानी खुन्नस थी. उस ने उस की ओर तमंचा तान दिया. विपिन का इरादा भांप कर सचिन अपने घर के अंदर भागा. विपिन भी पीछेपीछे उस के घर में घुस गया. सचिन कहीं छिपता, विपिन ने उस पर भी गोली चला दी. गोली उस की कमर में लगी, जिस से वह भी फर्श पर गिर पड़ा.

सचिन के घर से निकल कर विपिन अपने एक अन्य दुश्मन सतीश के घर में घुस कर 2 गोलियां चलाईं. लेकिन ये गोलियां किसी को लगी नहीं. अब तक शोर और गोलियों के चलने की आवाज सुन कर आसपड़ोस वाले इकट्ठा हो गए थे. लेकिन विपिन के हाथ में तमंचा देख कर कोई उसे पकड़ने की हिम्मत नहीं कर सका. इसलिए विपिन एआरटीओ वाली गली में घुस कर आराम से फरार हो गया.

किसी ने कोतवाली सदर बाजार पुलिस को इस घटना की सूचना दे दी थी. चंद मिनटों में ही कोतवाली इंसपेक्टर यतेंद्र भारद्वाज पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए थे. इस के बाद उन की सूचना पर पुलिस अधीक्षक राकेशचंद्र साहू, अपर पुलिस अधीक्षक (नगर) ए.पी. सिंह, फोरेंसिक टीम और डाग स्क्वायड की टीम भी वहां आ गई थी.

पुलिस तो आ गई, लेकिन अपनी नौकरी पर गए चंद्रप्रकाश को किसी ने इस बात की सूचना नहीं दी. काफी देर बाद सूचना पा कर वह घर आए तो बेटी की लाश देख कर बेहोश हो गए. एक ओर बेटी की लाश पड़ी थी तो दूसरी ओर उस की और उस के प्रेमी की हत्या के आरोप में बेटा फरार था.

सचिन की हालत गंभीर थी. इसलिए पुलिस ने उसे तुरंत सरकारी अस्पताल भिजवाया. उस की हालत को देखते हुए सरकारी अस्पताल के डाक्टरों ने उसे कनौजिया ट्रामा सेंटर ले जाने को कहा. लेकिन वहां भी उस की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ. तब उसे वसीम अस्पताल ले जाया गया. डा. वसीम ने उस का औपरेशन कर के फेफड़े के पार झिल्ली में फंसी गोली निकाली. इस के बाद उस की हालत में कुछ सुधार हुआ.

फोरेंसिक टीम ने घटनास्थल से साक्ष्य उठा लिए. डाग स्क्वायड टीम ने खोजी कुतिया लूसी को छोड़ा. वह विपिन के घर से निकल कर सतीश के घर तक गई, जहां विपिन ने 2 गोलियां चलाई थीं. घटनास्थल के निरीक्षण के बाद पुलिस अधिकारियों को समझते देर नहीं लगी कि मामला अवैध संबंधों में हत्या का यानी औनर किलिंग का है.

पुलिस ने घटनास्थल की सारी काररवाई निपटा कर दोनों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए सरकारी अस्पताल भिजवा दिया. इस के बाद थाने आ कर इंसपेक्टर यतेंद्र भारद्वाज ने अखिलेश के बड़े भाई मुनीश्वर यादव की ओर से विपिन सक्सेना के खिलाफ अखिलेश और प्रियंका की हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया. इस के बाद विपिन की तलाश शुरू हुई.

26 मार्च की सुबह पुलिस ने मुखबिर की सूचना पर विपिन को पुवायां रोड पर चिनौर से पहले हाइड्रिल पुलिया के पास से गिरफ्तार कर लिया. उस समय वह अपने चचेरे भइयों सुशील और लल्ला के पास चिनौर जा रहा था. कोतवाली ला कर उस से पूछताछ की गई तो उस ने बिना किसी हीलाहवाली के अपना जुर्म कुबूल कर लिया.

पूछताछ में विपिन ने पुलिस को बताया कि जिस यार को मैं भाई की तरह मानता था, उस ने मेरी इज्जत पर हाथ डाला तो मुझे इतना गुस्सा आया कि मैं ने उस का खून कर दिया. घटना को अंजाम देने के बाद वह एआरटीओ वाली गली के पास से निकल रहे नाले में अखिलेश से छीना तमंचा और अपनी खून से सनी टीशर्ट निकाल कर फेंक दी थी.

खाली बनियान और जींस पहने हुए वह एआरटीओ गली से रोडवेड बसस्टैंड पहुंचा. यहां से उस ने निगोही जाने के लिए सौ रुपए में एक आटो किया. निगोही जाते समय रास्ते में उस ने दूसरा तमंचा फेंक दिया. निगोही से वह प्राइवेट बस से बरेली पहुंचा. बरेली में उस ने नई टीशर्ट खरीद कर पहनी. पूरे दिन वह इधरउधर घूमता रहा. रात को उस ने बरेली रेलवे स्टेशन से दिल्ली जाने के लिए टे्रन पकड़ ली.

दिल्ली में विपिन बड़े भाई संतोष के यहां गया. उसे उस ने पूरी बात बताई. संतोष को पता चल गया कि प्रियंका मर चुकी है, फिर भी वह उस के अंतिम संस्कार में शाहजहांपुर नहीं गया. संतोष को जब पता चला कि पुलिस विपिन की गिरफ्तारी के लिए घर वालों तथा रिश्तेदारों को परेशान कर रही है तो उस ने उसे घर भेज दिया.

26 मार्च को विपिन अपने चचेरे भाइयों के पास चिनौर जा रहा था, तभी पुलिस ने मुखबिरों से मिली सूचना पर गिरफ्तार कर लिया था. उस समय भी उस के पास एक तमंचा था.

पूछताछ में विपिन ने बताया था कि उस के पास कारतूस नहीं बचे थे. अगर कारतूस बचा होता तो वह खुद को भी गोली मार लेता. कानूनी औपचारिकताएं पूरी कर के पुलिस ने विपिन को सीजेएम की अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सनकी ‘मोबाइल चिपकू’ का कारनामा

उस समय रात के 8 बज रहे थे. विनोद तुरंत अपने जीजा ओमप्रकाश के घर पहुंचा. घर का दरवाजा अंदर से बंद था. काफी देर तक दरवाजा खटखटाने के बाद अंदर से कोई आवाज नहीं आई. विनोद जोरजोर से दरवाजा पीटने लगा, तो भीतर से ओमप्रकाश की आवाज आई. विनोद ने जब अपनी बहन नीतू के बारे में पूछा, तो उस ने दरवाजा खोले बगैर ही कह दिया कि वह काफी देर पहले घर से निकल चुकी है.

विनोद उस की बात मानने को तैयार नहीं था. उस ने जब दरवाजे पर धक्का मारना शुरू किया, तो ओमप्रकाश ने अंदर से कहा, ‘‘कुछ देर ठहरो, मैं कपड़े पहन कर बाहर निकलता हूं.’’

5 मिनट बाद घर के पिछले हिस्से में किसी के कूदने की आवाज सुनाई पड़ी, तो विनोद के कान खड़े हो गए. उस ने दोबारा दरवाजा खटखटाया, तो कोई आवाज नहीं आई. उस के बाद विनोद घर के पिछले हिस्से में गया और दीवार फांद कर घर के अंदर कूद गया. अंदर जाने पर देखा कि दोनों कमरों के दरवाजे पर भी ताले लटके हुए थे.

उस ने फिर दरवाजा खटखटाया, पर अंदर से कोई आवाज नहीं आई. उस ने एक कमरे के दरवाजे का ताला तोड़ा, तो देखा कि उस के दोनों मासूम भांजे जमीन पर ही पड़े हुए थे. उन्हें जगाने की कोशिश की गई, तो उन के जिस्म में कोई हलचल नहीं हुई.

दूसरे कमरे का ताला तोड़ा गया, तो वहां सुमन और नीतू बेसुध पड़ी हुई थीं. नीतू के मुंह से काफी झाग निकला हुआ था. अपनी दोनों बहनों और भांजों की ऐसी हालत देख विनोद रोने लगा और उस ने गांव के मुखिया को सूचना दी.

मुखिया के पति महेंद्र चौहान और पंचायत समिति के सदस्य बलिराम चौहान मौके पर पहुंचे और तुरंत पुलिस को खबर की. विनोद ने पुलिस को बताया कि जब उस की छोटी बहन नीतू शाम तक घर नहीं पहुंची, तो उस ने अपने जीजा ओमप्रकाश को फोन पर ही सारा माजरा बताया.

ओमप्रकाश के बात करने के लहजे से लग रहा था कि वह काफी घबराया हुआ है. कुछ देर बाद उस का मोबाइल स्विच औफ बताने लगा. इस से विनोद के मन में तरहतरह की शंकाएं उठने लगीं और वह तुरंत ओमप्रकाश के घर पहुंच गया.

झारखंड के धनबाद जिले के बरोरा थाने की प्योर बरोरा बस्ती में 19 फरवरी को बीसीसीएल में काम करने वाले मुलाजिम ओमप्रकाश चौहान ने अपनी बीवी, साली और 2 मासूम बच्चे को जहर दे कर मार डाला. चारों की लाशें घर में पड़ी मिलीं. 4 जानें लेने के बाद 35 साला ओमप्रकाश फरार हो गया.

पुलिस ओमप्रकाश की खोज में इधरउधर हाथपैर मारती रही और 20 फरवरी को धनबाद के पास ही गोमो रेलवे स्टेशन के डाउन यार्ड की 5 नंबर लाइन पर ट्रेन के सामने आ कर उस ने अपनी जान दे दी.

ओमप्रकाश झारखंड के धनबाद जिले की बरोरा ब्लौक-2 कोलियरी में काम करता था. पोस्टमार्टम की रिपोर्ट के मुताबिक, ओमप्रकाश की बीवी की मौत 17-18 फरवरी को ही हो चुकी थी. उसे जहर दे कर मारा गया था. सुमन, नीतू, पीयूष और हर्षित के पेट में जहर पाया गया. सभी के जिस्म में कोई भीतरी और बाहरी चोट नहीं पाई गई.

ओमप्रकाश की बीवी का नाम सुमन उर्फ तेतरी (30 साल), साली का नाम नीतू (23 साल), बड़े बेटे का नाम पीयूष(12 साल) और छोटे बेटे का नाम हर्षित  (8 साल) था. ओमप्रकाश की ससुराल फुसरो के ढोरी इलाके में है. उस की साली नीतू ढोरी में ही रह कर ब्यूटीशियन का कोर्स कर रही थी.

नीतू के भाई विनोद नोनिया और गुड्डन चौहान ने बताया कि नीतू रोज की तरह 19 फरवरी को ब्यूटीशियन की क्लास करने के लिए घर से निकली थी. शाम को जब वह घर नहीं लौटी, तो घर वालों को चिंता सताने लगी. उन्होंने नीतू की सहेली से उस के बारे में पूछा, तो सहेली ने बताया कि आज नीतू क्लास में नहीं गई थी. उस के बाद नीतू की खोज शुरू हुई.

विनोद ने अपने जीजा ओमप्रकाश को फोन कर के बताया कि नीतू घर से गायब है. ओमप्रकाश ने बताया कि नीतू उस के घर आई थी और शाम को कुछ सामान लेने के लिए बाजार की ओर गई है. उस के बाद वह घर पहुंच जाएगी.

ओमप्रकाश ने अपने सुसाइड नोट में अपनी साली को बहन की तरह बताया है, लेकिन उस के दोस्तों ने पुलिस को बताया है कि ओमप्रकाश और उस की साली के बीच नाजायज रिश्ता था और दोनों मोबाइल फोन पर घंटों बातें किया करते थे.

ओमप्रकाश के साथ काम करने वाले मजदूरों ने पुलिस को बताया है कि डंपर औपरेटर ओमप्रकाश अकसर उन के साथ बातचीत के दौरान साली से प्रेम संबंध होने की बात किया करता था. काम के दौरान भी वह घंटों अपनी साली के साथ फोन पर बातें करता रहता था. इस वजह से सभी साथी उसे मजाक में ‘मोबाइल चिपकू’ के नाम से पुकारने लगे थे.

ओमप्रकाश को उस की मां सोनवा कामिन की जगह बीसीसीएल में नौकरी मिली थी. साल 2000 में सोनवा की मौत हो गई थी. उस ने सब से पहले फुलेरीटांड कोलियरी में ड्यूटी जौइन की थी और फिलहाल वह ब्लौक-2 में डंपर औपरेटर था. उस के दफ्तर के हाजिरी बाबू अभय पांडे ने पुलिस को दिए बयान में कहा है कि ओमप्रकाश पिछले 2-3 महीने से गैरहाजिर था. वह काफी सनकी आदमी था और बातबात पर तैश में आ जाता था. उस ने कभी भी अपनी ड्यूटी सही तरीके से नहीं की.

अकसर वह पहाड़ी पर बैठ कर अपने स्मार्टफोन में मसरूफ रहा करता था. अफसरों ने उसे कई बार काम से निकालने की धमकी भी दी, लेकिन उस पर कोई असर नहीं होता था. ओमप्रकाश और सुमन की शादी साल 2003 में हुई थी. ओमप्रकाश का पैतृक घर बिहार के औरंगाबाद जिले के रफीगंज के कसमा थाने के तहत पड़ने वाले भटुकीकलां गांव में है.

ओमप्रकाश के भाई जयराम कुमार ने बताया कि 11 फरवरी को ओमप्रकाश गांव गया था. उस ने बताया कि उस का भाई अपनी साली से अकसर बातें किया करता था. 19 फरवरी की सुबह को भी ओमप्रकाश ने जयराम से बातें की थीं, लेकिन साली के साथ उस का कोई गलत रिश्ता था, इस की भनक किसी को नहीं लगी थी. नीतू के भाई विनोद ने बरोरा थाने में लिखित शिकायत दर्ज कराई है, जिस में कहा है कि ओमप्रकाश के साथ नीतू के किसी तरह के गलत संबंध होने की जानकारी किसी को नहीं थी.

बरोरा थाने के थानेदार प्रवीण कुमार ने बताया कि शुरुआती जांच में पता चला है कि ओमप्रकाश पिछले कुछ महीनों से काफी तनाव में था. वह लोगों से मिलता भी नहीं था. काम से लौट कर वह अपने घर में ही कैद हो जाता था.

जिद ने उजाड़ा आशियाना

अपनी ही गलती से बना हत्यारा