
31दिसंबर, 2022 की रात का दूसरा पहर अभी शुरू ही हुआ था. समूचा शहर 2022 की विदाई और नए साल के आगमन के जश्न में डूबा हुआ था. उसी दौरान फूल सिंह राठौर नाम के एक शख्स ने ग्वालियर के थाना हजीरा में मोबाइल फोन द्वारा सूचना दी थी कि उस के गदाईपुरा स्थित मकान में किराएदार 45 वर्षीय ममता कुशवाहा की किसी ने हत्या कर दी है.
मकान मालिक के जरिए हत्या की सूचना मिलते ही एसएचओ संतोष सिंह एसआई, एएसआई और महिला हवलदार को साथ ले कर कुछ देर में ही घटनास्थल पर पहुंच गए.
दिल दहला देने वाली इस घटना की खबर उन्होंने एसएसपी अमित सांघी और सीएसपी रवि भदौरिया सहित फोरैंसिक विशेषज्ञ अखिलेश भार्गव को दे दी थी. कुछ ही देर में वरिष्ठ पुलिस अधिकारी भी वहां पहुंच गए.
घटनास्थल पर पुलिस ने देखा कि हत्यारे ने महिला को चाकू से बुरी तरह से गोद कर मारने के बाद उस की लाश कंबल में लपेट कर पलंग के नीचे छिपा दी थी.
खून से लथपथ कंबल में लिपटी लाश का निरीक्षण करने के बाद एसएचओ संतोष सिंह भदौरिया ने मकान मालिक फूल सिंह राठौर और उन के मकान में रहने वाले अन्य किराएदारों से पूछताछ की तो उन्होंने बताया मृतका ममता की शादी भिंड जिले के सुकांड गांव में हुई थी. लेकिन पति ने शादी के 6-7 साल बाद ममता को छोड़ दिया था, तभी से वह अपनी नाबालिग बेटी के साथ ग्वालियर में किराए पर कमरा ले कर पति से अलग रह रही थी.
किराएदारों ने यह भी बताया कि ममता के साथ रहने वाली उस की 17 वर्षीय बेटी कल्पना इस घटना के बाद से नजर नहीं आ रही है. संतोष भदौरिया ने यह महत्त्वपूर्ण जानकारी पाने के बाद अपना सारा ध्यान मृतका की बेटी पर लगा दिया, क्योंकि उस के पकड़े जाने पर ममता की हत्या के रहस्य से परदा उठ सकता था.
उच्चाधिकारियों के जाने के बाद पुलिस ने घटनास्थल की कागजी काररवाई पूरी की. इस के बाद ममता की लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी. फिर एसएचओ ने मकान मालिक फूल सिंह राठौर की तहरीर के आधार पर भादंवि की धारा 302, 34 के तहत अज्ञात हत्यारों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर के जांच शुरू कर दी.
ममता हत्याकांड का खुलासा करने के लिए एसएसपी अमित सांघी ने सीएसपी रवि भदौरिया और एसएचओ संतोष सिंह के नेतृत्व में एक टीम गठित कर दी. इस के बाद दोनों पुलिस अधिकारियों ने एक बार फिर से घटनास्थल का दौरा कर स्थिति को समझने का प्रयास किया.
परिस्थितियां बता रही थीं कि ममता की हत्या सुनियोजित ढंग से की गई है. घटनास्थल को देख कर यह स्पष्ट तौर पर लग रहा था कि हत्या के इस मामले में मृतका का कोई करीबी ही शामिल हो सकता है. इतना ही नहीं, वह घर के चप्पेचप्पे से वाफिक रहा होगा, क्योंकि हत्यारा अपना काम कर के चुपचाप वहां से निकल गया और पड़ोस में रहने वाले किराएदारों तक को भनक नहीं लगी.
पुलिस के लिए अब उस शख्स को तलाश करने की सब से बड़ी चुनौती थी. इस काम के लिए भरोसेमंद मुखबिरों को भी लगा दिया गया.
जांच के दौरान ही एक मुखबिर ने एसएचओ को चौंकाने वाली जानकारी दी. उस ने बताया कि ममता का अपनी बेटी कल्पना से उस के प्रेम संबंधों को ले कर पिछले 2 सालों से काफी मनमुटाव चल रहा था. कल्पना अपने 25 वर्षीय प्रेमी सोनू ओझा के साथ 2 बार घर से भाग भी चुकी थी, जिस पर ममता ने बेटी के प्रेमी सोनू के खिलाफ अगवा कर दुष्कर्म करने का मामला दर्ज करवाया था.
तब पुलिस ने ममता की बेटी कल्पना और उस के प्रेमी सोनू को एक बार गुजरात और दूसरी बार भिंड से बरामद कर लिया था. पड़ोसियों ने बताया कि कल्पना अपने प्रेमी सोनू ओझा से शादी करना चाहती थी और ममता इस के लिए कतई तैयार नहीं थी.
बेटी कल्पना के दूसरी बार अपने प्रेमी के साथ घर से भागने पर ममता ने बेटी के नाबालिग होने का हवाला देते हुए सोनू के खिलाफ अपहरण की रिपोर्ट दर्ज करवाई थी. इस के बाद पुलिस ने जल्दी ही भिंड से कल्पना को ढूंढ निकाला.
अपनी मां के इस कदम से बेटी मां के खिलाफ हो गई. हालांकि उस वक्त कल्पना ने अपने प्रेमी सोनू को जेल जाने से बचाने के लिए अपना मैडिकल परीक्षण कराने से इंकार कर दिया था.
इस पर ममता ने तत्कालीन एसएचओ पर आरोपी की मदद करने का आरोप लगा कर न्यायालय में याचिका दायर कर एसएचओ को कड़ी फटकार लगवा कर बेटी का मैडिकल करवाने के बाद सोनू को आईपीसी की धारा 376 के तहत जेल भिजवा दिया था. मगर शातिरदिमाग कल्पना ने उल्टे अपनी मां पर गलत काम करने का आरोप लगा कर सनसनी फैला दी थी.
प्रारंभिक जांच के दौरान एसएचओ संतोष सिंह ने कल्पना का मोबाइल नंबर हासिल कर के उस की काल डिटेल्स निकलवाई. काल डिटेल्स देख कर उन के होश उड़ गए. उस के फोन पर एक पखवाड़े में एक ही नंबर से साढ़े 3 सौ से अधिक बार बात हुई थी. घटना से पहले एक घंटे के दरम्यान में भी 12 बार काल की थी.
अत: उक्त नंबर शक के घेरे में आ गया. पुलिस ने उस नंबर की काल डिटेल्स का सारा डाटा निकलवाया तो वह नंबर सोनू ओझा निवासी प्रसाद नगर का निकला. जांच अधिकारी ने बिना समय गंवाए उसी समय सोनू के घर पर दबिश दी तो सोनू और कल्पना वहीं मिल गए.
पुलिस दोनों को ही पूछताछ के लिए हजीरा थाने ले आई. कहते हैं कि पुलिस जब अपनी पर आ जाती है तो अपराधी से सच उगलवा ही लेती है.
एसएचओ संतोष सिंह ने जब सोनू से सख्ती से पूछताछ की तो वह टूट गया. उस ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए बताया कि कल्पना की मां मुझे मरवाने की धमकी देती थी. यहां तक कि ममता जब भी घर से बाहर जाती थी तो घर के दोनों दरवाजों पर बाहर से ताला लगा कर कल्पना को अंदर रोता हुआ छोड़ जाती थी.
ऐसी स्थिति में हम दोनों एकदूसरे से दिल खोल कर मेलमुलाकात नहीं कर पा रहे थे. इसलिए कल्पना के कहने पर उस की मां ममता का गला दबाने के बाद पेट में चाकू मार कर हत्या की थी. सोनू ने बताया कि वह कल्पना के साथ शादी कर के अपना घर बसाना चाहता था, मगर ममता इस के लिए तैयार नहीं हो रही थी. इसलिए दोनों ने मिल कर उस की हत्या करने की योजना बनाई.
यह सुन कर एसएचओ चौंक गए, क्योंकि देखने में नाबालिग और भोलीभाली लगने वाली मृतका की बेटी नागिन से भी ज्यादा जहरीली निकली, जिस ने इश्क के नशे में अपनी मां को डंस लिया. कल्पना के कमसिन चेहरे से मासूमियत का नकाब उतर गया था.
इस के बाद कल्पना ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया. उस ने बताया कि सोनू से मेलमुलाकात पर बंदिश लगा देने से उस का उस के प्रेमी से मिलनाजुलना बंद हो गया था.
वह सोनू से मिलने के लिए बहुत ही बेचैन रहने लगी, जिस से उसे अपनी मां दुश्मन नजर आने लगी और घर कैदखाना लगने लगा था. वह चाह रही थी कि किसी तरह मौका हाथ लगते ही अपने प्रेमी से मिलने जेल चली जाए.
जैसे ही उसे पता चला 15 दिसंबर को सोनू की रिहाई हो गई है तो उस ने सोनू से मुलाकात कर मां की हत्या की योजना बनाई.
योजना के अनुसार, उस ने सोनू द्वारा लाई गई नींद की गोलियां 30 दिसंबर की रात मां के खाने में मिला दीं. गोलियों का असर होते ही मां जल्द गहरी नींद में सो गई तो उस ने रात के तकरीबन 2 बजे अपने प्रेमी सोनू को फोन कर के घर के पिछले दरवाजे से कमरे में बुला लिया.
हत्या करने के दौरान मां की आवाज किसी को सुनाई न दे, इसलिए कल्पना ने मां का मुंह अपने दोनों हाथों से कस कर बंद कर लिया. इस के बाद सोनू ने मां का मुंह तब तक दबाए रखा, जब तक कि उन की सांस नहीं थम गई. वह जीवित न बच जाए, इसलिए उन के पेट पर चाकू से वार कर दिए.
नब्ज टटोलने के बाद जब मरने की संतुष्टि हो गई, उस के बाद सोनू अपने घर चला गया. सोनू के जाने के बाद कल्पना ने मां की लाश कंबल में लपेट कर बैड के नीचे छिपा दी.
सवेरा होने पर तैयार हो कर कमरे में ताला लगा कर वह अपने प्रेमी से मिलने उस के कमरे पर चली गई. सारे दिन प्रेमी के साथ मौज करने के बाद शाम को ताला खोल कर सोनू के पास प्रसाद नगर चली गई थी.
चूंकि कल्पना अब बालिग हो चुकी थी, इसलिए उस से और उस के प्रेमी सोनू से विस्तार से पूछताछ करने के बाद एसएचओ संतोष सिंह ने दोनों को न्यायलय में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. द्य
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में कल्पना परिवर्तित नाम है.
‘‘अब तक तो उन्हें घर आ जाना चाहिए था, दिन निकल चुका है… न तो इन्हें खाने की सुध है और न ही घर के कामकाज की, बस जंगल की रखवाली की ही फिक्र रहती है.’’ घर के आंगन में झाड़ू लगाते हुए पति जमुना प्रसाद के खयाल में डूबी शांति के मन में जो विचार आ रहे थे, वह बके जा रही थी.
झाड़ू लगाने के बाद वह दरवाजे पर आ कर पति की राह देखने लगी थी. जी नहीं माना तो बेटे संजय को आवाज लगाती हुई बोली, ‘‘जरा जा कर जंगल की ओर तो देख आते कि तुम्हारे बापू अभी तक आए क्यों नहीं?’’
मां की बात अभी पूरी भी नहीं हुई थी कि संजय ने मां की बात को काटते हुए तपाक से कहा, ‘‘तुम भी मां सुबहसुबह चिल्लाना शुरू कर देती हो. जानती हो न, बापू को कोई मिल गया होगा पीनेखाने वाला, सो लेट हो गए होंगे. आते होंगे न, क्यों शोर मचा रही हो.’’
जमुना वन विभाग में चौकीदार था.
बेटे की बात सुन कर शांति देवी शांत हो कर बैठ गई थी, लेकिन उस का मन नहीं मान रहा था. न जाने क्यों उसे रहरह कर मन में कुछ गलत खयाल आ रहे थे, जिस से उस का जी घबराने लगा था.
कुछ देर बीता था कि जब उस का मन नहीं लगा तो वह धीरे से उठी और जंगल की ओर चल दी. वह घर से तकरीबन 200 मीटर की दूरी पर पहुंची ही थी कि अचानक जंगल से लगे रास्ते के किनारे पति जमुना की लाश देख कर वह दहाड़े मार कर रोने लगी.
शांति की चीखपुकार सुन कर मौके पर ग्रामीण जमा होने लगे थे. जंगल में शांति के पति जमुना की लाश देख कर हर कोई हैरान और परेशान था. किसी को कुछ समझ में नहीं आ पा रहा था कि उस की हत्या किस ने कर दी. शांति भी रोने के सिवा कुछ बोल नहीं पा रही थी.
जंगल में वन विभाग के चौकीदार की लाश मिलने की यह खबर कानोकान होते हुए हलिया थाने तक पहुंच गई थी. यह खबर पा कर एसएचओ संजीव कुमार सिंह कुछ पुलिसकर्मियों के साथ मौके पर पहुंच गए.
पुलिस ने लाश का निरीक्षण किया तो किसी वजनी पत्थर से हत्या करने का शक हुआ. वह अधेड़ उम्र का था. मृतक के घर वालों ने उस की शिनाख्त जमुना के रूप में कर ली. थानाप्रभारी ने हत्या के संबंध में वहां मौजूद लोगों से बात करने के बाद इस घटना की सूचना अपने उच्चाधिकारियों को दे दी.
सूचना पा कर वन क्षेत्राधिकारी रामनारायण जैसल, स्क्वायड टीम प्रभारी पवन कुमार सिंह, संतोष कुमार के साथ वहां पहुंच गए. सभी अधिकारी घटनास्थल का निरीक्षण करने लगे.
इस के बाद उन्होंने लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला मुख्यालय भिजवा दी. फिर मृतक जमुना के बेटे धर्मेंद्र कुमार की तरफ से भादंवि की धारा 302, 201 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर के जांच शुरू कर दी थी. यह बात शनिवार 4 फरवरी, 2023 की है.
मृतक की पहचान पहले ही वन विभाग के चौकीदार जमुना प्रसाद धरिकार (58 वर्ष) निवासी ग्राम फुलयारी के रूप में हो चुकी थी. जमुना वन विभाग के हलिया वन रेंज अंतर्गत चौराबीट जंगल में पेड़पौधों की रखवाली करता था. पुलिस के सामने सब से बड़ा सवाल यह था कि उस की हत्या किन परिस्थितियों में किस ने और क्यों की है?
पूछताछ के दौरान मृतक के घर वाले भी कुछ बता पाने में जहां असमर्थ थे, वहीं आसपास के लोग भी इस मामले से साफ पल्ला झाड़ रहे थे. ऐसे में पुलिस के सामने हत्या के कारणों को ले कर कई जटिल सवाल खड़े हो रहे थे. फिर भी पुलिस छानबीन की दिशा में आगे बढ़ने की कोशिश में जुट गई थी.
मीरजापुर के एसपी संतोष कुमार मिश्रा ने एएसपी श्रीकांत प्रजापति, एएसपी (औपरेशन) महेश अत्री व सीओ (लालगंज) की निगरानी में स्वाट टीम प्रभारी राजेश चौबे, इलैक्ट्रौनिक सर्विलांस प्रभारी, एसओजी प्रभारी माधव सिंह एवं थाना हलिया की पुलिस टीमें गठित कर घटना का जल्द से जल्द खुलासा कर अभियुक्तों की गिरफ्तारी करने के निर्देश दिए.
उत्तर प्रदेश के मीरजापुर जिले के हलिया थाना क्षेत्र में एक गांव है फुलयारी. यहीं का रहने वाला जमुना प्रसाद धरिकार वन विभाग में चौकीदार (वाचर) था. उस की ड्यूटी हलिया वन रेंज के चौराबीट में थी. चौराबीट जमुना के घर से तकरीबन 200 मीटर की दूरी पर है, जहां वह रोज पेड़पौधों की रखवाली के लिए जाया करता था और शाम होने पर अपने घर लौट आता था. यह उस की दिनचर्या थी.
3 फरवरी, 2023 को भी वह अपनी ड्यूटी के लिए निकल गया था, जो काफी रात होने के बाद भी घर नहीं लौटा था. उस की दूसरे दिन 4 फरवरी, 2023 को सुबह लाश मिली थी.
मीरजापुर जिले का हलिया थाना जिला मुख्यालय से तकरीबन 65 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. हलिया थाना और हलिया वन रेंज दोनों ही जिले के अंतिम छोर पर स्थित होने के साथसाथ मध्य प्रदेश की सीमा से लगते हैं.
यह इलाका उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश का सरहदी इलाका भी कहलाता है. अपराध के साथसाथ हलिया वन रेंज क्षेत्र में रहने वाले दुर्लभ वन्यजीवों के लिए भी यह क्षेत्र सुविख्यात है. यहां तेंदुआ, मगरमच्छ, हिरन, भालू, जंगली सूअर, सांभर, अजगर सहित कई अन्य वन्य जीव पाए जाते हैं. इन में कुछ दुर्लभ वन्यजीव भी हैं.
यह जंगल कभी शेर और चीते की आवाजों से गूंजा करता था. दूरदूर तक फैले हरेभरे घनघोर जंगल और पहाड़ के चलते यहां लकड़ी माफियाओं से ले कर शिकारियों की भी आहट होती रहती है. ऐसे में इस क्षेत्र में पुलिस के साथसाथ वन विभाग द्वारा जंगली जीव और पेड़पौधों की सुरक्षा की खातिर व्यापक पैमाने पर वाचर (चौकीदारों) की तैनाती की गई है, जो पेड़पौधों की सुरक्षा से ले कर जंगली जीवजंतुओं के शिकार तथा पेड़ों के कटान पर नजर रखते हैं.
ऐसे में पुलिस टीम को वाचर जमुना प्रसाद की हत्या में शिकारियों या वन माफियाओं की संलिप्तता को ले कर भी संदेह बना हुआ था. इस संदेह के 2 कारण थे. पहला यह था कि शुक्रवार को जमुना जब घर से 200 मीटर दूर पौधरोपण की देखभाल करने के लिए गया था तो जंगल से कुछ लोग जलावनी लकडि़यों को काट कर ले जा रहे थे. उस ने उन लोगों को पकड़ कर काटी गई लकडि़यां और उन्हें काटने में प्रयुक्त होने वाली कुल्हाड़ी आदि अपने कब्जे में ले कर घर भिजवा दी थी.
उस के बाद वह फिर देखभाल करने के लिए जंगल में चला गया था, जहां से काफी देर होने के बाद भी वह घर नहीं लौटा था. शाम ढलने के बाद रात हो गई थी लेकिन उस का कुछ अतापता नहीं चला था. उस का मोबाइल फोन भी बंद था. ऐसे में उस का इंतजार करतेकरते घर वाले रात काफी होने पर सो गए थे.
दूसरे जमुना प्रसाद पर एक साल पहले हमला हुआ था, जिस की शिकायत उस ने हलिया थाने में की थी. घर वालों से मिली इस जानकारी को ध्यान में रखते हुए पुलिस टीम इस पर भी नजर गड़ाए हुए थी.
जमुना प्रसाद के घर वालों से मिली जानकारी और एसपी के निर्देशन में गठित पुलिस टीमों द्वारा इलैक्ट्रौनिक सर्विलांस एवं भौतिक साक्ष्यों के आधार पर छानबीन की जा रही थी कि इसी बीच मुखबिर की एक सूचना ने पुलिस टीम को मानो डूबते को तिनके का सहारा देते हुए इस घटना के खुलासे के करीब पहुंचने की राह दिखाई.
एसएचओ संजीव कुमार सिंह इस केस को ले कर उलझे हुए थे कि तभी उन का एक खास मुखबिर उन के पास आ कर बोला, ‘‘साहब, आप के लिए एक बहुत खास सूचना ले कर आया हूं?’’
‘‘…तो फिर बोलो पहेलियां क्यों बुझा रहे हो?’’
‘‘हुजूर, आप जिस बात को ले कर उलझन में पड़े हुए हैं उस उलझी हुई कड़ी की दूसरी कड़ी मृतक के घर से ही सुलझ सकती है.’’ वह बोला.
मुखबिर के मुंह से इतनी बात सुन कर एसएचओ उस की ओर मुखातिब होते हुए बोले, ‘‘मतलब मैं नहीं समझा कि तुम क्या कहना चाहते हो?’’
‘‘साहब, सीधी सी बात है जमुना प्रसाद की हत्या का राज तो उस के घर में ही छिपा हुआ है.’’
इस के बाद मुखबिर ने सारी जानकारी उन्हें दे दी. मुखबिर की इस सूचना से संजीव कुमार सिंह के चेहरे पर खुशी के भाव दिखाई देने लगे थे. यह बात 10 फरवरी, 2023 की है. इस के बाद पुलिस टीम ने मृतक जमुना के दोनों बेटों संजय कुमार (30 वर्ष), बुद्धसेन (20 वर्ष) व फूलचंद्र धरिकार (50 वर्ष) निवासी फुलयारी को हिरासत में ले लिया. इन से जमुना की हत्या के संबंध में पूछताछ की गई तो इन्होंने जमुना की हत्या करने का अपराध कुबूल कर लिया.
पूछताछ के बाद जमुना की हत्या की जो कहानी खुल कर सामने आई, वह न केवल हैरान कर देने वाली थी, बल्कि बापबेटी के समान ससुर और बहू के रिश्ते को तारतार कर देने वाली निकली, जो इस प्रकार से है—
फुलयारी गांव के रहने वाले जमुना प्रसाद धरिकार (58) का 5 बेटों और 4 बेटियों का भरापूरा परिवार था. बेटों और बेटियों का घर बसा कर जमुना अपने परिवार के साथ राजीखुशी से रह रहा था.
बेटे जहां मेहनतमजदूरी कर घर चला रहे थे तो वह वन विभाग में वाचर (चौकीदार) था. खापी कर सुबह जाता था तो शाम ढले घर लौट आया करता था.
एक दिन की बात है. रोज की तरह जमुना जल्दी से तैयार हो कर घर से निकलने ही वाला था कि तभी उस की पत्नी उस के पास आ कर बोली, ‘‘बस 5 मिनट रुको, बहू खाना ले कर आ रही है. कुछ खा लो तब जाना. मैं भी बकरियों को घास खिलाने ले जा रही हूं.’’
पत्नी की बात सुन कर जमुना रुक गया था. शांति घर से बाहर निकली थी कि तभी बेटे संजय की पत्नी सुमन भोजन की थाली ले कर आ खड़ी हुई थी. बहू के हाथ में भोजन की थाली देख कर जमुना ने भी सोचा कि जब बहू खाना ले ही आई तो खा लेता हूं. इस के बाद वह खाना खाने के लिए नीचे जमीन पर बिछी चटाई पर बैठ गया.
जमुना के चटाई पर बैठते ही सुमन भोजन की थाली नीचे रखने के लिए झुकी ही थी कि उस की साड़ी का पल्लू पूरी तरह से सरक कर नीचे आ गया, जिस से उस के गदराए बदन को देखते ही जमुना के तनमन में विचलन होने लगी थी.
झट से साड़ी का पल्लू संभालते हुए सुमन मारे शर्म से लालपीली होती हुई कमरे में चली गई तो वहीं जमुना उसे एकटक देखता ही रह गया था. खाना खाने के बाद जमुना बहू को आवाज लगाते हुए जंगल की ओर निकल तो गया था, लेकिन उस के दिलोदिमाग में बहू का गदराया बदन, उस के उभार उसे चैन से रहने नहीं दे रहे थे.
सुमन भी उस पल को याद कर शर्म से लाल हुए जा रही थी तो कभी साड़ी का पल्लू दांतों से दबाए हुए मन ही मन हंस पड़ती थी. 2 दिन बीते थे कि अचानक सुमन का सामना ससुर जमुना से हुआ तो वह उसी पल को याद कर शर्म से पानीपानी हुए जा रही थी, जबकि जमुना उसे एकटक देखे जा रहा था.
उस दिन शाम के समय जमुना जब काम से लौटा तो बहू को पानी के लिए आवाज लगाई. जैसे ही सुमन ने पानी भरा गिलास ससुर के आगे बढ़ाया तो जमुना ने गिलास के साथ बहू के हाथों को भी थाम लिया था. झट से हाथ छुड़ा कर सुमन मुसकान बिखेरते हुए चली गई थी. बहू की बस यही अदा जमुना को दीवाना कर गई थी.
फिर क्या था, जमुना अब अवसर की तलाश में जुट गया था. कुछ ही दिन बीते थे कि एक रोज जमुना दोपहर में ही घर लौट आया.
बेटे जहां कामधंधे पर निकले थे तो वहीं पत्नी शांति भी छोटी बेटी व बहू के साथ खेतों की ओर गई थी. घर में अकेली सुमन ही थी. वह भी घर के कामकाज से खाली हो कर आंगन में नहाने के लिए बैठी थी.
चूंकि उस दिन अचानक से हवा तेज होने से ठंड का असर बढ़ गया था सो उस ने यही सोचा कि थोड़ा धूप कड़क हो जाए तो नहाया जाए. सुमन जैसै ही सारे कपड़े उतार कर सिर्फ पेटीकोट पहने नहाने को हुई थी कि तभी अचानक से ससुर आंगन में आ गया. सामने बहू को उस अवस्था में देख जहां उस की आंखें फटी रह गईं तो वहीं बहू सुमन ने अपने उभारों को दोनों हाथों से ढकने का प्रयास करते हुए गरदन झुका ली.
यह देख कर झट से जमुना पीछे मुड़ा और घर की किवाड़, जो आते वक्त खुला हुई थी, को बंद कर वापस लौट आया. बिना देर किए उस ने बहू सुमन को बांहों में भर लिया और उस के बदन को सहलाने लगा.
ससुर की इस हरकत का सुमन ने विरोध करते हुए उस की बांहों की जकड़न से छूटने का प्रयास करते हुए कहा, ‘‘ब..ब.. बाबूजी, ये क्या कर रहे हैं आप? हटिए, छोडि़ए…’’
सुमन का इतना कहना था कि जमुना ने अपनी बांहों के बंधन को और मजबूत करते हुए उस के अधरों को चूमना शुरू कर दिया.
‘‘बाबूजी छोडि़ए, कोई आ गया तो…’’
उस की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि जमुना बोला, ‘‘इस की फिक्र मत करो, मैं ने किवाड़ की कुंडी चढ़ा दी है, जिसे तू चढ़ाना भूल गई थी.’’
इतना कह कर उस ने सुमन को गोद में उठा लिया. पहले तो सुमन ससुर की बांहों से मुक्त होने के लिए हाथपैर मार रही थी, लेकिन धीरेधीरे उस ने हाथपैर मारने बंद किए तो जमुना भी उस की मौन सहमति को समझ गया. फिर आंगन में ही बिछी चारपाई पर ले जा कर सुमन को लिटा दिया. इस के बाद उस ने अपनी हसरतें पूरी कीं.
जिस्मों की प्यास बुझी तो दोनों अलग हुए. एक बार यह सिलसिला शुरू हुआ तो फिर यह चलता ही रहा. दोनों को जब भी समय मिलता, दो जिस्म एक जान हो जाते थे.
ससुरबहू की इस लुकाछिपी का खेल ज्यादा दिनों तक नहीं चल पाया. किसी तरह बात पत्नी शांति के कानों से होते हुए बेटे संजय तक पहुंच गई थी. फिर क्या था, पूरे घर में भूचाल आ गया था.
इस बात को ले कर घर में आए दिन कलह होने लगी. अंत में वही हुआ, जिस की जमुना ने सपने में भी कल्पना नहीं की होगी.
काफी समझाने, घर की इज्जत का हवाला देने के बाद भी जब जमुना नहीं माना तो बेटे संजय ने अपने भाई बुद्धसेन को यह बात बताई.
पिता की इस करतूत ने दोनों भाइयों के खून में उबाल ला दिया. फिर उन्होंने अपने दोस्त और पड़ोसी फूलचंद्र धरिकार के साथ मिल कर पिता को ठिकाने लगाने की योजना बनाई.
फिर योजना के अनुसार संजय कुमार ने अपने भाई बुद्धसेन व पड़ोसी फूलचंद्र धरिकार के साथ मिल कर घर पर ही पिता के सिर पर पत्थर से प्रहार कर हत्या कर दिया. किसी को शक न हो, इसलिए शव को घर से कुछ दूरी पर ले जा कर डाल दिया था और हत्या में प्रयुक्त पत्थर भी छिपा दिया.
पुलिस ने संजय कुमार, बुद्धसेन व फूलचंद्र धरिकार से पूछताछ के बाद इन की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त पत्थर भी बरामद कर लिया इस के बाद सभी आरोपियों को सक्षम न्यायालय में पेश किया, जहां से सभी को जेल भेज दिया गया है.
एसपी संतोष कुमार मिश्रा ने केस का खुलासा करने वाली टीम को पुरस्कृत करने की घोषणा करने के साथ पीठ भी थपथपाई. द्य
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में कुछ पात्रों के नाम काल्पनिक हैं
अमित सहराना ने सपने में भी नहीं सोचा था कि यह सौदा इतना महंगा पड़ेगा कि जान पर बन आएगी. दिल्ली में एक नामी कंपनी में बतौर सौफ्टवेयर इंजीनियर काम कर रहे युवा अमित की शादी कहीं नहीं हो पा रही थी. दिक्कत यह थी कि उस की बंजारा बिरादरी में उतनी खूबसूरत लड़कियां होती नहीं, जितनी कि आजकल बगल में चिपका कर ले जा कर महफिल में भभका डाला जाता है. दूसरे उस के साथ घरपरिवार की भी कुछ समस्याएं भी थीं.
दिखने में ठीकठाक अमित की सैलरी दिल्ली जैसे महानगर के हिसाब से खासी अच्छी थी, लेकिन जाति आड़े आने से उसे मनपसंद जीवनसंगिनी नहीं मिल पा रही थी.
लंबी भागादौड़ी करने के बाद भी बात कहीं बनी नहीं तो एक दिन अमित ने मध्य प्रदेश के शिवपुरी का रुख किया. उस ने सुन रखा था कि यहां एक तयशुदा रकम देने के एवज में एक साल तक के लिए किराए पर बीवी मिलती है.
दिल्ली से शिवपुरी तक के सफर में उस का दिल हालांकि घोड़ी पर बैठे दूल्हे की तरह बल्लियों उछल रहा था, लेकिन कुछ आशंकाएं भी उसे घेर लेती थीं.
मसलन क्या पता कैसे लोग मिलेंगे वहां, पसंद की बीवी मिले या नहीं और मिली भी तो ज्यादा नखरे वाली न हो. लेकिन अगर अच्छी निकली तो फिर लाइफ बन जाएगी.
वह 29 जनवरी, 2022 की सुबह थी जब अमित शिवपुरी पहुंचा. चंबल ग्वालियर इलाके की हाड़ कंपा देने वाली ठंड से उस के इरादे और फैसले पर कोई फर्क नहीं पड़ा, क्योंकि अब वे अरमानों में तब्दील हो चुके थे.
लाल लंहगा पहने, हाथ में जयमाला लिए एक सकुचाई सी दुलहन उस के जेहन में मुकम्मल जगह बना चुकी थी, जिस के लिए कोई भी कीमत अदा करने को उस की जेब और बैंक एकाउंट में पैसा था.
दोपहर में तैयार हो कर वह उस जगह पहुंचा, जहां किराए की दुलहन मिलती हैं. लेकिन जैसा उस ने सुना था, वैसा माहौल देखने में नहीं आया कि बहुत सी लड़कियों की मंडी लगी है और देश भर से आए लोग उन का मोलभाव कर रहे हैं और तरहतरह से लड़कियों की नापातौली कर रहे हैं.
पूछतेपूछते वह एक अधपके मकान में जा पहुंचा, जहां लड़की सीमा (बदला नाम) और उस के घर वाले होने वाले टेंपरेरी दामाद का इंतजार कर रहे थे.
औपचारिक हायहैलो के बाद मुद्दे की बात पैसों की शुरू हुई. सीमा को देखते ही रवि को लगा कि यही है उस के सपनों की रानी. पेशेवर अंदाज में सीमा के घर बालों ने जो कीमत मांगी, वह बहुत ज्यादा तो नहीं थी पर रवि ने सुन रखा था कि यहां भावताव बहुत होता है इसलिए कुछ कम कराने की कोशिश करना, जोकि उस ने की. किसी सधे हुए व्यापारी की तरह अमित ने अपनी कीमत बता दी, जिस पर सहमति नहीं बनी तो वह वहां से चलता बना.
वह चला तो गया, लेकिन दिल तो पहली ही नजर में सीमा की अदाओं का दीवाना हो चुका था. इस के बाद भी उस ने सब्र से काम लिया. नहीं तो एक मन कह रहा था कि बेकार भावताव में उलझ गया, मुंहमांगी रकम दे देता तो सीमा दिल्ली में उस के घर बैडरूम में होती और वह सुहागरात मना रहा होता. सजेधजे कमरे में फूलों की सुगंध महक रही होती, वह बिस्तर पर पसरा होता, तभी सीमा दूध का गिलास ले कर कमरे में दाखिल होती तो वह उस का आंचल खींच कर अपने आगोश में ले लेता. फिर कमरे की लाइट बंद हो जाती.
अभी भी कुछ बिगड़ा नहीं था, लिहाजा दूसरे दिन वह फिर सीमा के घर जा पहुंचा. जिस के सयाने घर वाले समझ गए कि पंछी नया है, लिहाजा इसे तबियत से निचोड़ लिया जाए. जितनी समझदारी अमित दिखा रहा था, वह दरअसल अव्वल दरजे की नादानी और नातजुर्बेकारी इन खेलेखाए खिलाडि़यों के सामने थी.
इस बार बात कुछ बनती दिखी. लेकिन फिर पैसों पर अटक गई तो अमित फिर वापस चला आया. इतना तो उसे समझ आ गया था कि इन लोगों को पैसों की सख्त जरूरत है. लिहाजा बेकार की हड़बड़ाहट दिखाते ज्यादा पैसा क्यों दिया जाए. दूसरे माहौल को ले कर उस का डर भी खत्म हो गया था कि यहां से किसी खासतौर से पुलिस वालों को कोई मतलब नहीं. इस बार भी वह अपनी औफर प्राइस दे कर चला आया.
इस तरह आतेजाते फरवरी का पूरा महीना निकल गया इस दौरान वह कई बार दिल्ली से शिवपुरी आया. आखिरकार सौदा पट ही गया. सीमा के घर वाले 20 हजार रुपए में मान गए, जो अमित के लिहाज से मामूली रकम थी. 3 मार्च, 2022 को उस की और सीमा की शादी हो गई.
शिवपुरी की इस तरह की शादियों में कोई मंडप बारात और दूसरी रस्में नहीं होतीं, बल्कि विकसित देशों को भी मात करती ये शादियां स्टांप पेपर पर होती हैं. यानी कोई होहल्ला नहीं, तामझाम नहीं, बस लड़के और लड़की की सहमति काफी होती है. सहूलियत के लिए इन्हें कौन्ट्रैक्ट मैरिज कहा जा सकता है.
अमित और सीमा की शादी में तो स्टांप पेपर की भी जरूरत नहीं पड़ी, बल्कि लिखापढ़ी सादे कागज पर ही कर ली गई. जिस के मसौदे में खास इतना भर था कि दोनों रजामंदी से एकदूसरे को पतिपत्नी स्वीकार करते हैं, लेकिन इन की शादीशुदा जिंदगी की मियाद केवल एक साल होगी.
सीमा पत्नी की तरह अमित के साथ रहेगी और वे तमाम सुख उसे देगी, जो एक पत्नी अपने पति को देती है. इस बाबत तय रकम 20 हजार रुपए अमित ने सीमा के घर वालों को दे दी है. एक साल बाद यह करार खत्म हो जाएगा और अमित सीमा को वापस यहीं छोड़ जाएगा.
अमित की नजर में ये शर्तें मामूली थीं और वैसी ही थीं जैसी वह चाहता था कि कोई झंझट नहीं. सब कुछ यूज एंड थ्रो जैसा है. अगर मन करे और दोनों पक्ष राजी हों तो यह एग्रीमेंट आगे भी बढ़ाया जा सकता है, जिस की कीमत उसी वक्त तय की जाएगी.
कुछ साल पहले तक इस करार के मसौदे को शादी के फेरों के सात वचन की तरह दोनों पक्ष निभाते थे, लेकिन अब गड़बड़ होने लगी है, जैसी कि अमित के मामले में हुई.
सीमा जैसी सैकड़ों किराए की दुलहनें शिवपुरी में बेहद सहूलियत से और सस्ती मिलती हैं और जिन लोगों की शादी किसी भी वजह से नहीं होती है, वे यहां से साल भर तक के लिए किराए पर दुलहन ले जाते हैं. दुलहन का किराया उस की सेहत और उम्र पर निर्भर करता है कि वह कितना होगा.
मोटे तौर पर यह 25 हजार से ले कर एक लाख रुपए तक होता है. इसे ‘धडीचा प्रथा’ कहा जाता है, जो सदियों से इस इलाके में है और कोई इस का विरोध नहीं करता. सरकार ने कानूनन इस रिवाज को गैरकानूनी घोषित किया हुआ है, लेकिन दोटूक कहें तो यह देह व्यापार का एक अनूठा तरीका है, लेकिन इस पर देह व्यापार की ही तरह कोई रोक लगाना मुमकिन नहीं.
शिवपुरी के एक बुजुर्ग नागरिक के मुताबिक, इस रिवाज की शुरुआत अंगरेजों के जमाने में ही हो गई थी. इस की वजह पिछड़ापन, शोषण, गरीबी और जातिगत भेदभाव ज्यादा समझ आते हैं. क्योंकि किराए पर जाने वाली अधिकतर लड़कियां छोटी जाति की होती हैं.
पहले आसपास के जिलों के ही लोग यहां बीवी किराए पर लेने आते थे, लेकिन अब दूरदराज के प्रदेशों से भी आने लगे हैं. क्योंकि इस की चर्चा देश भर में होने लगी है. यह सच है कि कुछ साल पहले तक लड़कियों की नीलामी बोली लगा कर होती थी, पर अब ऐसा कम ही देखने में आता है. लोग सीधे लड़की के घर जाते हैं और सौदा कर लेते हैं.
किराए और शादी की लिखापढ़ी स्टांप पेपर पर होती है, जिस के कोई खास कानूनी माने नहीं होते. यह भी ‘धडीचा प्रथा’ का एक चला आ रहा पहलू है. पैसा लड़की के घर वाले रख लेते हैं, यही उन की रोजीरोटी है. जाहिर है निकम्मे मर्दों की वजह से लड़कियां यहां बिकती हैं, जिस में किसी को शर्म नहीं आती, क्योंकि इसे सभी ने अपना भाग्य या नियति जो भी कह लें, मान रखा है.
बात हैरत की इस लिहाज से भी नहीं है कि लड़कियों की खरीदफरोख्त का रिवाज देश में हर कहीं किसी न किसी शक्ल में है. मध्य प्रदेश के ही निमाड़ इलाके के मंदसौर और नीमच जिलों में बांछड़ा समुदाय के लोग खुलेआम लड़कियों से देह व्यापार करवाते हैं, लेकिन वह कुछ घंटों या एक रात का होता है साल भर का नहीं.
औरतों की यूं खरीदफरोख्त सभ्य समाज के लिए कलंक है और कानून के लिए चुनौती भी है. धडीचा के तहत पत्नी बनी महिला के कोई कानूनी अधिकार और घरगृहस्थी नहीं होते. वह एक के बाद एक कर बिकती ही रहती है. जो बच्चे कौन्ट्रैक्ट मैरिज से पैदा होते हैं, उन को न तो किसी पिता का नाम मिलता और न ही इन बच्चों का कोई भविष्य होता है. बड़े हो कर वे भी इसी गंदगी का हिस्सा बन कर दलाली करने लगते हैं.
औरतों को जायदाद समझने का गुनाह वेद पुराणों के जमाने से होता रहा है, वह देश के कुछ हिस्सों में आज भी दिखता है.
फसाद की जड़ अगर गरीबी और शोषण है तो उस का कोई हल अभी तक नहीं ढूंढा जा सका है. इस कुप्रथा में बिकी औरतों को बीच में करार तोड़ने का हक होता है. लेकिन ऐसा करने से पहले उन्हें ली गई कीमत अपने टेंपरेरी पति को लौटानी पड़ती है. ऐसा तभी होता है जब कोई दूसरा मर्द उन्हें ज्यादा पैसा देता है.
शिवपुरी का पिछड़ापन किसी सबूत का मोहताज नहीं रहा. नशा और देह व्यापार यहां खुलेआम होता है, लेकिन हालत कालगर्ल्स की भी अच्छी नहीं है. धडीचा में कोई उन का मुफ्त में इस्तेमाल नहीं कर सकता, यह अगर खुश होने वाली बात है तो क्या खा कर इस पर खुशी मनाई जाए.
यह भी कम हैरत की बात नहीं कि अभी तक किसी नाबालिग के बिकने की शिकायत सामने नहीं आई है, जबकि बिकने वाली औरतों में कुंवारी लड़कियों से ले कर उम्रदराज शादीशुदा औरतें भी होती हैं, जिन्हें पति कुछ हजार रुपए के लिए खुशीखुशी किराए पर दे देता है.
मुमकिन है कि नाबालिग भी किराए पर चलती हों और कोई इस की शिकायत करने की जरूरत नहीं समझता हो. कोई काररवाई अगर होनी होती तो वह बालिगों की बिक्री पर भी हो सकती है, जो खुलेआम भाजीतरकारी की तरह होती है. अब जबकि शिकायतें सामने आने लगी हैं, तब भी जिम्मेदार लोगों के कान पर जूं नहीं रेंग रही.
सीमा से शादी के महज 23 दिन बाद ही अमित शिवपुरी के एसपी के औफिस में अपना दुखड़ा रोने गया था. जिस ने सोचा यह भी था कि महज 2 हजार रुपए महीने पर न केवल चौबीसों घंटे सैक्स सुख देने वाली बीवी मिल रही है, बल्कि मुफ्त के भाव की नौकरानी भी मिल रही है जो खाना बनाएगी, घर की साफसफाई करेगी, बरतन और कपड़े भी धोएगी.
दिल्ली में ऐसी नौकरानी लगभग 7 हजार रुपए महीना पगार लेती है. इस लिहाज से उस ने घाटे का सौदा नहीं किया था.
लेकिन जल्द ही उसे समझ आ गया कि यह बेहद घाटे का सौदा था. शादी के बाद एक हफ्ता भी वह किराए की बीवी के साथ सुकून से नहीं गुजार पाया था कि सीमा के घर वालों ने उसे परेशान करना शुरू कर दिया.
वे उस से मकान दिलाने के लिए दबाब बनाने लगे. मना करने पर 5 लाख रुपए की एफडी और हर महीने 20 हजार रुपए मांगने लगे. इस में भी उस ने असर्मथता जाहिर की तो उसे जान से मारने की धमकियां दी जाने लगीं.
इस पर घबराया अमित पुलिस के पास गया पर बात आईगई हो गई. जिस उत्साह से वह एक साल पहले दिल्ली से शिवपुरी आया था, उस से भी ज्यादा मायूसी और निराशा ले कर वह शिवपुरी से दिल्ली वापस लौट गया.
उम्मीद है कि जल्द ही वह इस हादसे को भूल कर परमानेंट बीवी ले आएगा और सुखचैन से जिएगा. द्य
आटासाटा सामाजिक रीति के अनुसार चित्तौड़गढ़ में भाई बहन महेंद्र और तनु की शादी की तारीखें इसी साल फरवरी की तय हो चुकी थीं. इस रीति के मुताबिक महेंद्र की जिस लड़की से शादी होनी थी, उस के भाई से तनु की शादी होनी तय हुई थी. दोनों की शादी के लिए तारीखें और विवाह कार्यक्रम नवंबर 2022 में ही तय हो गए थे. अब परिवार में सिर्फ रस्मों की अदायगी का इंतजार था.
तैयारियां शुरू हो गई थीं. महेंद्र ब्याह होने को ले कर खुश था. मन में शादी के लड्डू फूटने लगे थे. उस की शादी मनपसंद सुंदर लड़की से तय हुई थी. महेंद्र ने उसे शादी से पहले ही पसंद कर लिया था.
गोविंद मध्य प्रदेश के जिला मंदसौर के गांव राइका गरोठ के रहने वाले थे, जो इस समय भाटखेड़ा में रह रहे थे. उन के 3 बच्चों में बेटा महेंद्र के अलावा उस से छोटी 2 बेटियां तनु और तनिष्का थीं. उन का साधारण खातापीता परिवार था. वह कपड़े धुलाई का पुश्तैनी काम कर रहे थे.
इस शादी को ले कर पूरे परिवार में काफी खुशी का माहौल बन गया था. सभी के चेहरे पर चमक थी और वे शादी की तैयारियों में जुट गए थे. इस शादी को ले कर अगर किसी के मन में दुविधा या नापसंद की बात थी तो वह थी तनु.
जब से उस की शादी की तारीख तय हुई थी, तभी से उस के दिल की धड़कनें बढ़ गई थीं और दिमाग में हलचल मची हुई थी. दरअसल, वह इस शादी को नहीं करना चाहती थी. हालांकि ऐसा भी नहीं था कि उस के मातापिता और भाई ने जो रिश्ता तय किया था, वह खोटा था. इस बारे में तनु ने पहले अपनी छोटी बहन से बात की. इस पर बहन ने तपाक से सुझाव दिया कि अगर उसे यह शादी पसंद नहीं है तो मां को बता दे.
तनु बड़ी हिम्मत कर मां आजोदिया बाई से बोली, ‘‘मां, मैं अभी शादी नहीं करना चाहती हूं.’’
यह सुनते ही मां तड़ाक से बोलने लगी, ‘‘शादी नहीं करना चाहती है? क्यों नहीं करना चाहती है अभी? यह क्या बात हुई. तुम्हारे चलते महेंद्र कुंवारा बैठा रहेगा? और फिर तुम्हारी शादी होने के बाद ही तो छोटी बहन की शादी हो पाएगी? मैं देख रही हूं कि जब से तू ननिहाल से आई है, तेरे तो रंगढंग ही बदल गए हैं.’’
मां की तेज आवाज महेंद्र के कानों में भी पड़ी. वह तुरंत मां के पास आया और बोला, ‘‘क्या हो गया मां?’’
‘‘अरे देख तो इस छोरी के… इस के लक्षण ठीक न लागे सै… बोले सै अभी शादी ना करेगी… काहे ना करैगी?…ऐसे होवे सै का!… तू ही समझा इसे…बापू सुनेगा तो बहुत नाराज हो जावेगा… आ वह परिवार वाला का सोचेगा? समझा!’’
महेंद्र को समझते देर न लगी. वह भी मां के लहजे में बोल पड़ा, ‘‘माई सा, इसे मैं बहुत समझा चुका. इस का कुछ न होवेगा…हम सब की नाक कटावेगी छोरी.’’
‘‘नाक कटावेगी…तैं का बोले सैं?’’ मां आश्चर्य से बोली.
‘‘हां माई सा! छोरी के दू साल से नैन मटक्का चल रहे सै!… ओहे संग ब्याह रचैहें!…हमरे औ बापू से बोले के हिम्मत ना सै, तभी ताहे से विनती करै…!’’
महेंद्र की मां से बात हो ही रही थी. तनु तब किसी को कुछ न बोली और पैर पटकती हुई घर से बाहर चली गई. यह 3 साल पहले की बात है.
तनु उर्फ तनिष्का राइका भी भाई महेंद्र, मां आजोदिया बाई और छोटी बहन के साथ भाटखेड़ा में अपने मामा शांतिलाल राइका के यहां रह रही थी. वहीं धोबियों के मोहल्ले में गंगरार निवासी महावीर धोबी का भी घर है. उस का महेंद्र के पास आनाजाना शुरू हुआ, तब वह तनु को देखते ही उस पर फिदा हो गया था. बाद में तनु भी उसे प्यार करने लगी.
उन्हीं दिनों रक्षाबंधन का त्यौहार आया. महावीर ने होशियारी दिखाते हुए महेंद्र के सामने ही तनु की छोटी बहन से राखी बंधवा ली. उस वक्त तनु खुशी से बोल पड़ी, ‘‘यह बहुत अच्छा हुआ महेंद्र भैया, हमें एक और भाई मिल गया. आज से महावीर हम सभी का धर्मभाई बन गया है.’’
तनु और महावीर धर्मभाई और धर्मबहन की आड़ ले कर रासलीला में लगे रहे. उन के बीच फोन पर लगातार बातें होने लगीं.
एक दिन महेंद्र ने दोनों को चूमते हुए देख लिया था. वे घर में एकदूसरे से लिपटे हुए चूम रहे थे. उस वक्त तो महेंद्र किसी तरह से खुद को काबू में किया, लेकिन उस के जाते ही बहन पर बरस पड़ा, ‘‘तनु, तू हम सब की आंख में धूल झोंकै सै…अभी माई को बताता हूं.’’
‘‘ना ना वीरा! तैने गलत समझे!’’ तनु ने सफाई देनी चाही.
‘‘का गलत और का सही, सब कुछ आंखन के सामने सै…’’ महेंद्र बोला.
‘‘ना वीरा, ना! उस को थोड़ा पैसा चाहो. वही हम इंतजाम करे का वादो कियो…और वह खुशी में गले लाग गयो.’’ तनु मासूमियत से बोली.
महेंद्र भी बहन की बातों में आ गया. सिर्फ इतना पूछा उसे कितना पैसा चाहिए.
तनु ने कहा कि 40 हजार. महेंद्र तब बोला कि यह तो बहुत है. इस पर तनु उस की तारीफ करती हुई बोली कि वह कितना कुछ उन के लिए करता है. एक आवाज में मदद करने को आ जाता है. हम सभी उस पर भरोसा करते हैं.
महेंद्र भी जब ठंडे दिमाग से महावीर के बारे में सोचने लगा, तब उसे एहसास हुआ कि वह भी किसी न किसी रूप में उस के सहयोग के एहसान तले दबा हुआ है. उस ने उसे भी कोरोना के दौरान कामधंधा कम हो जाने की स्थिति में मदद पहुंचाई थी. महावीर उस के भी खास दोस्तों में से एक था.
भाई बन रहा था रुकावट
तनु से महावीर ने कर्ज के तौर पर 40 हजार रुपए लिए थे, जिस की जानकारी महेंद्र को भी थी. कई माह हो जाने के बाद भी जब महावीर ने कर्ज के पैसे तनु को वापस नहीं लौटाए, तब उस का तकादा महेंद्र भी करने लगा.
पैसे के लिए बारबार तकादा किए जाने के चलते महावीर ने महेंद्र के घर आनाजाना बंद कर दिया, लेकिन फोन पर तनु से बातचीत जारी रखी. उन के बीच प्रेम के साथसाथ एकदूसरे संग शादी रचाने की हूक उठी हुई थी. तनु को कर्ज के पैसे की चिंता नहीं थी. वह चाहती थी कि महावीर संग उस का ब्याह हो जाए. किंतु सामाजिक और पारिवारिक विसंगतियों के चलते उन की शादी में कई बाधाएं थीं.
सब से बड़ी बाधा उस के परिवार को ले कर ही थी. परिवार में महेंद्र की उज्जैन में शादी की बात चल रही थी. वे दहेज की बातें भी कर रहे थे, लेकिन जहां महेंद्र की शादी तय होने वाली थी, वहां के लड़की वालों ने एक शर्त रखी कि वह दहेज की रकम नहीं दे पाएंगे, किंतु आटासाटा में अपने बेटे की शादी उस परिवार की किसी लड़की से जरूर करना चाहेंगे.
यह बात महेंद्र के मातापिता को जम गई. उन्होंने तनु की शादी भी महेंद्र के साथसाथ तय कर दी. तनु किसी भी सूरत में वह शादी रोकना चाहती थी. जबकि आटासाटा में शादी तय होने का मतलब था, उस की शादी टूटती तो महेंद्र की शादी भी टूट जाती. जो महेंद्र कतई नहीं चाहता था.
तनु परेशान हो गई. बहन की सलाह पर उस ने मां से बात करने की कोशिश की, लेकिन सब से बड़ी बाधा महेंद्र ही बन गया.
तनु की तरह महावीर भी परेशान हो गया था. वह भी हर सूरत में तनु से ही शादी करना चाहता था. उस ने कुछ सोचविचार कर 11 नवंबर, 2022 को तनु के घर गया. महेंद्र से मिला. महेंद्र उसे कई हफ्ते बाद घर आया देख कर्ज के पैसे मांगते हुए बोला, ‘‘तूने जो उधार लिए, वह पैसे लौटा दे. हमारे घर में शादी होने वाली है.’’
महावीर सहम गया, लेकिन नरमी के साथ बोला, ‘‘देखो भाई, मेरे पास उतने पैसे नहीं हैं. वैसे मैं तुम से अपनी शादी की बात करने आया हूं. तू हां कर देगा तो मेरा कर्ज भी उतर जाएगा और मेरे साथ तुम्हारी बहन भी खुश हो जाएगी.’’
‘‘मैं समझ गया तू क्या चाहता है? लेकिन सुन, वह मेरे जीते जी तो नहीं होने वाला है.’’ महेंद्र की नाराजगी कम नहीं हुई थी.
‘‘तो फिर देख ले, मैं भी जिद्दी किस्म का इंसान हूं. जो ठान लेता हूं वह हासिल कर ही छोड़ता हूं.’’ यह कहता हुआ महावीर जाने लगा, लेकिन जातेजाते बोल गया कि वह ठंडे दिमाग से उस की बात पर सोचे. तनु की शादी उस के साथ होने में ही सब के लिए अच्छा होगा.
जब से महेंद्र को लगा कि उस की शादी तनु और महावीर के चलते रुक सकती है, तब उस ने शादी में और जल्दबाजी कर दी. पंडित से पंचांगपत्रा दिखा कर फटाफट तारीखें निकलवा लीं.
दूसरी तरफ इन सब चीजों से परेशान हो कर तनु और महावीर ने महेंद्र को ही रास्ते से हटाने का प्लान बना लिया. उन्होंने ऐसा प्लान बनाया, ताकि वे पकड़े भी न जाएं. वे अपने प्लान में सफल भी हो गए, लेकिन पुलिस की गहन जांच से बच नहीं पाए. यहां तक कि तनु भी अपने परिवार को काफी गुमराह करती रही, लेकिन उस का भेद जब खुला, तब भाई और बहन के बीच पवित्र प्रेम पर भी खून का दाग लग गया.
गंगरार कस्बे की पुलिस 5 दिसंबर, 2022 को तब चौकन्नी हो गई, जब वहां के एसएचओ शिवलाल मीणा को हनुमान मंदिर के पीछे की तरफ करीब 200 फीट गहरे कुएं में अज्ञात व्यक्ति का सिर कटा धड़ होने की सूचना मिली.
यह सूचना एक राहगीर ने उस में से आ रही दुर्गंध फैलने पर दी थी. पुलिस ने काररवाई शुरू की. पुलिस टीम ने पहले लाश को कुएं से निकलवाया. उस की शिनाख्त की जाने लगी, लेकिन बगैर सिर के उसे पहचानना आसान नहीं था. हालांकि अगले दिन उस का सिर भी बरामद कर लिया गया.
प्रेमी की खातिर भाई को निपटाया
शव की शिनाख्त भी नाटकीय ढंग से हो पाई. शव को जब फिनाइल से साफ किया गया तब मृतक की बांह पर कुछ लिखा दिखा, जो पढ़ने में नहीं आ रहा था. पुलिस ने टौर्च की लाइट में देख कर कमलेश राइका पढ़ लिया. वहीं खड़ा महावीर एकदम से यह बोल उठा कि यह कमलेश नहीं बल्कि महेंद्र राइका लिखा हुआ है. इस तरह नाम के सही ढंग से पढ़ने पर पुलिस को तभी महावीर पर शक हो गया और उस पर नजर रखी जाने लगी.
शव की पहचान महेंद्र राइका के रूप में हो जरूर गई थी, लेकिन उस की मौत के बारे में खुलासा होना बाकी था. एसपी राजन दुष्यंत और एएसपी अर्जुन सिंह ने इस केस को गंभीरता से लिया.
डीएसपी भवानी सिंह के नेतृत्व में एक टीम बनाई गई. टीम में एसएचओ शिवलाल मीणा (थाना गंगरार), एएसआई नगजीराम, भैरूलाल, अमीचंद, हैडकांस्टेबल धर्मेंद्र, नरेंद्र व कांस्टेबल धर्मपाल, ओमप्रकाश, भीवाराम, माधवलाल, रोशनलाल, कालूराम, मनीष, वेदराम, राजेश, राजकुमार, कांस्टेबल राम अवतार, कमलेश, प्रवीण आदि को शामिल किया गया. टीम ने घटनास्थल से साक्ष्य जुटाए.
जांच के बाद टीम ने मृतक महेंद्र की बहन तनु, उस के प्रेमी महावीर समेत एक अन्य महेंद्र को हिरासत में ले लिया. तीनों से पुलिस द्वारा अलगअलग पूछताछ की गई. जल्द ही उन्होंने महेंद्र के मारे जाने की बात स्वीकार कर ली.
महावीर ने बताया कि इस हत्या की साजिश महेंद्र की बहन तनु ने रची थी और इस वारदात में उस का दोस्त गंगरार के ही रहने वाले पन्नालाल धोबी का बेटा महेंद्र धोबी समेत एक नाबालिग भी है.
पूछताछ में पता चला कि 12 नवंबर को तनु और उस की छोटी बहन को बुआ के घर बर्थडे पार्टी के लिए कोटा जाना था. महावीर ने दोनों बहनों को अपनी वैन से गंगरार से चित्तौड़ शहर तक छोड़ दिया. उस दिन तनु ने महावीर से कहा था कि कोटा से लौटने के दिन ही महेंद्र को मारना है.
16 नवंबर को तनु छोटी बहन के साथ कोटा से घर लौट रही थी. इस की जानकारी तनु ने अपने भाई महेंद्र को फोन पर दे कर कहा कि वह महावीर की बाइक ले कर हमें लेने के लिए गंगरार चौराहे पर आ जाए. उसी समय तनु ने महेंद्र की लोकेशन महावीर को बता दी. महेंद्र घर से पैदल ही गंगरार के लिए रवाना हो गया.
महावीर अपनी वैन ले कर भाटखेड़ा की तरफ गया. रास्ते में उसे महेंद्र मिल गया. उसे वैन में बैठा कर अपने साथ ले कर चल पड़ा. बातों में फंसाकर उसे गंगरार किले पर हनुमान मंदिर के पास ले गया. महेंद्र को गांजा पीने की आदत थी. इस कमजोरी का फायदा उठाते हुए महावीर ने कहा कि अभी तनु के गंगरार चौराहे तक आने में वक्त लगेगा तो क्यों न 2-4 कश गांजे का ले लें.
इस पर महेंद्र राजी हो गया और उस के साथ किले की ओर चल पड़ा. इसी बीच महावीर ने अपने दोनों साथियों महेंद्र धोबी व नाबालिग को गांजा ले कर आने के लिए बोल दिया. वहां पर चारों ने मिल कर गांजा पीया और महेंद्र को सारणेश्वर महादेव मंदिर के आगे सुनसान जगह पर ले गए.
अंधेरा होने के बाद तीनों ने मिल कर गमछा (तौलिया) से महेंद्र का गला घोट दिया तथा लाश को ठिकाने लगाने के लिए बिजली के वायर से हाथ व पैर बांध दिए. आरोपियों ने बताया कि हत्या करने के बाद रात करीब 10-11 बजे लाश को किले पर ले जा कर किले के पीछे स्थित कुएं में डाल दिया और अपनेअपने घर चले गए. कुएं में डालने के समय महेंद्र का सिर उस के धड़ से अलग हो गया. लाश गिराने पर सिर धड़ से अलग होने की बात पुलिस के भी गले नहीं उतरी थी.
प्लान के बाद पकड़े जाने से बचने के लिए महेंद्र का फोन बंद कर दिया और 5 दिन बाद 21 नवंबर को महावीर अपने मोबाइल को गंगरार में रख कर महेंद्र के मोबाइल को ले कर चित्तौड़गढ़ से ट्रेन द्वारा मंदसौर चला गया. मंदसौर रेलवे स्टेशन पर उतर कर महाराणा प्रताप सर्किल के पास मोबाइल औन कर तनु को फोन किया. तनु से बातचीत करने के बाद फोन को फेंक दिया. फिर सीधा गंगरार आ गया.
महावीर सामान्य बना रहा. तनु के परिवार वालों से मिलताजुलता रहा. तनु ने अपनी मां और छोटी बहन को गुमराह करने के लिए कहा कि 21 नवंबर को महेंद्र ने उसे फोन किया था और वह मंदसौर की तरफ एक ट्रक में है, जबकि महेंद्र की हत्या 16 नवंबर, 2023 को ही हो चुकी थी.
इस तरह से महेंद्र हत्याकांड में शामिल चारों आरोपियों से पूछताछ करने के बाद उन्हें गिरफ्तार कर मजिस्ट्रैट के सामने पेश कर दिया गया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. द्य
बिजनौर जिले में एक कस्बा है नगीना. इसी कस्बे के भीड़भाड़ वाले इस इलाके में रात के 9 बजे एक युवती सड़क पर अचानक चिल्लाने लगी, ‘‘पकड़ो… पकड़ो… भाग गया… बदमाश भाग गया… ले कर भाग गया.’’
उस के चीखनेचिल्लाने की आवाज सुन कर कुछ लोग उस के पास आ गए. पूछा, ‘‘अरे, क्या हुआ? क्यों चिल्ला रही हो?’’
‘‘बदमाश भाग गया… मेरा बच्चा ले कर भाग गया?’’ युवती बोली और सामने की ओर अंगुली उठा दी.
‘‘लेकिन उस ओर तो कोई नहीं दिख रहा और आगे का रास्ता भी बंद है.’’ एक व्यक्ति बोला.
‘‘अरे, वहीं पहले की गली में बाइक से भागा है बदमाश. मेरी गोद से बच्चा झपट्टा मार कर छीन ले गया,’’ युवती बोली और सिर पकड़ कर बैठ गई.
वहां मौजूद लोगों को हैरानी हुई. अभी तक राह चलती महिला के पर्स या गहने छीन कर भागने की बातें तो सुनी थीं, लेकिन बच्चा छीनने की बात पहली बार सुनने को मिली थी. एक व्यक्ति ने पूछा, ‘‘कितना बड़ा बच्चा था?’’
दूसरा बोला, ‘‘कौन लोग थे? कितने लोग थे? वे तुम्हारे जानने वाले थे…या कोई और?’’
‘‘आप लोग मुझ से ही सवाल करते रहोगे या कुछ करोगे भी,’’ देखने में अच्छीभली दिख रही युवती बिफरती हुई बोली.
उसी वक्त रात की गश्त पर निकली पुलिस कुछ लोगों की भीड़ देख कर पहुंच गई. पुलिस को लोगों ने युवती के साथ कुछ समय पहले की घटित घटना के बारे में बताया.
युवती ने भी पुलिस को वही सब बताया. वह अपने 6 महीने के बच्चे को गोद में लिए डाक्टर के पास जा रही थी. उस के पास अचानक एक बाइक आ कर रुकी. उस पर 2 लोग बैठे थे. वे हेल्मेट लगाए हुए थे. मेरे कुछ कहनेपूछने से पहले बाइक के पीछे बैठा बदमाश मेरी गोद से बच्चे को झपट्टा मार कर छीन लिया और फिर वे बाइक भगा ले गए.
‘‘तुम कहां से आ रही थी?’’ बाइक से गश्त लगाने वाली पुलिस ने पूछा.
‘‘जी, लाहौरी सराय मोहल्ले से.’’ युवती बोली.
‘‘तुम्हारा क्या नाम है?’’
‘‘खुदशिया तामजी, लेकिन परिवार में मुझे अफशा के नाम से जानते हैं. वहां मेरी ससुराल है. मेरे बेटे का नाम अरहान है.’’ युवती ने बताया.
‘‘बाइक का नंबर देखा था?’’ पुलिस वाले का अगला सवाल था.
‘‘जी नहीं.’’
‘‘कैसी बाइक थी?’’
‘‘काले रंग की. उसे चलाने वाला जींस पहने हुए मटमैला शर्ट पहने हुए था. पीछे बैठे बदमाश ने भी उसी तरह के कपड़े पहन रखे थे.’’
युवती से पूरी जानकारी नोट कर गश्त लगाने वाली पुलिस ने तुरंत इस घटना की सूचना नगीना थाने को भेज दी. उस वक्त एसएचओ प्रिंस शर्मा थाने पर ही मौजूद थे. सूचना मिलते ही वह एसआई देवेंद्र सिंह, कुलदीप राणा और 2 सिपाहियों के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने भी अफशा से पूछताछ की. वह एक ही रट लगाए हुए थी, ‘‘मेरे अरहान को बदमाश ले कर भाग गए.’’
पुलिस ने कर दी नाकेबंदी
उस के इस बयान पर उन्होंने भी बच्चे के अपहरण का मामला दर्ज कर लिया. एसएचओ ने इस घटना की जानकारी एसपी (बिजनौर) दिनेश सिंह और एसपी (सिटी) प्रवीन रंजन सिंह को भी दे दी. यह बात 31 अगस्त, 2022 की है.
एसपी का निर्देश पा कर थाना पुलिस हरकत में आ गई. आसपास के नाकों पर अपनी निगाह गड़ा दी. मामला बच्चे के अपहरण का था. प्रिंस शर्मा ने अपहृत बच्चे की मां अफशा से पूछा, ‘‘देखो, मुझ से कुछ मत छिपाना. तुम्हारी अगर किसी से दुश्मनी है तो साफसाफ उस के बारे में बताओ. उस की पूरी जानकारी दो, तभी हम बच्चे को वापस ला पाएंगे.’’
इस बारे में अफशा कुछ नहीं बोली. उस की चुप्पी पर उन्होंने फिर पूछा, ‘‘तुम्हारी हालत देख कर तो ऐसा नहीं लगता है कि बच्चे का अपहरण फिरौती के लिए किया गया है. फिर भी बताओ, तुम्हारी पारिवारिक स्थिति कैसी है? तुम्हारे शौहर क्या करते हैं? परिवार में कौनकौन है? तुम्हारे परिवार में कोई ऐसा तो नहीं, जिसे लंबे समय से कोई औलाद न हुई हो?’’
इतने सारे सवालों से अफशा घबरा गई. सामान्य होने पर बताया कि उस का शौहर नौकरी के लिए सऊदी गया हुआ है. शादी से पहले से वहीं रहता है. सिर्फ शादी करने के लिए 2 साल पहले आया था और शादी के तुरंत बाद वापस लौट गया था. वहां जाते ही कोरोना का लौकडाउन लग गया था. पूरे साल भर बाद आया और कुछ दिन रह कर फिर चला गया.
अफशा की बातों से एसएचओ समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर बच्चे के अपहरण का क्या मकसद रहा होगा. उस की बातचीत से उन्हें उस के द्वारा गुमराह करने का भी संदेह हो रहा था. खैर, उस वक्त उसे बच्चा जल्द सकुशल वापस लाने का आश्वासन दे कर घर भेज दिया.
अगले दिन पहली सितंबर, 2022 की सुबह पुलिस ने घटनास्थल के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों को चैक करवाया. उन की फुटेज में अफशा दिख गई. उस के साथ एक 8-9 साल की लड़की भी थी. उस के हाथ में एक बच्चा भी था. अगली फुटेज में वह बच्चे को बहते नाले में फेंकती दिखाई दी, जो उस के घर से 200 मीटर दूर बारात घर के पास था.
पुलिस तुरंत नाले के पास जा पहुंची. बच्चा वहीं नाले में पड़ा मिल गया. वह बहते हुए पानी के साथ प्लास्टिक कचरे के सहारे किनारे पर अटका हुआ था. उसे तुरंत बाहर निकाला गया. वह मर चुका था.
एसएचओ को मामला समझते हुए देर नहीं लगी. उन्होंने अफशा को तुरंत पूछताछ के लिए थाने बुलवा लिया. पुलिस उस के साथ सख्ती दिखाते हुए जबरदस्त झाड़ लगाई और सीसीटीवी फुटेज के बारे में जानकारी दी.
सच्चाई आई इस तरह सामने
कैमरे में उस की वीडियो रिकौर्डिंग देख कर वह डर गई. उस ने हाथ जोड़ लिए. वह महिला पुलिस के पैरों पर गिर कर रोने लगी. गिड़गिड़ाने लगी. उस की इस हालत को देख कर थोड़ी देर के लिए पुलिस समझ नहीं पाई कि उस का रोनाधोना बच्चे के मरने के कारण है या फिर उस की चोरी और हरकत पकड़े जाने की वजह से है.
वह जल्द ही सामान्य हो गई. एसएचओ ने उसे अपने सामने कुरसी पर बिठा कर सचसच बताने के लिए कहा.
अफशा के पछतावे के आंसू देख कर एसएचओ प्रिंस शर्मा ने कहा कि उस के सच बताने पर उस ने जो भी जुर्म किया होगा, उस की सजा कम हो सकती है. माफी भी मिल सकती है.
कहते हैं न मरता क्या नहीं करता. ऐसी स्थिति अफशा की थी. उस ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया और सब कुछ बताने को तैयार हो गई. उस के बाद जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार निकली—
अफशा निकाह कर 2 साल पहले अपनी ससुराल नगीना के लाहौरी सराय आई थी. उस का शौहर आसिफ बीते 5 सालों से सऊदी अरब में काम कर रहा था. वह बीचबीच में साल में एक बार घर आ जाता था और हफ्ते 2 हफ्ते रुक कर अपने काम पर चला जाता था. घटना के 6 माह पहले ही अफशा उस के बच्चे की मां बनी थी.
अफशा बच्चा पा कर बहुत खुश थी. उस का शौहर भी यह खबर सुन कर बहुत खुश हो गया. आसिफ की गैरमौजूदगी में आसिफ के परिवार वालों ने बच्चे के जन्म की खुशी में दावत का आयोजन किया था. उस समय उस का नाम अरहान रखा गया था. उस की वजह से पूरे परिवार में खुशी की लहर दौड़ गई थी.
शौहर सऊदी में, बीवी कैसे संभाले जवानी
सिर्फ परिवार में किसी के आने का इंतजार तो आसिफ का था. उसे सऊदी में छुट्टी नहीं मिल पा रही थी. अफशा मन मसोस कर रह गई थी. उस के दिन तनहाई में बीत रहे थे. महीनों से पुरुष संसर्ग से वंचित थी. बच्चे के जन्म के बाद उस का बदन और खिल उठा था. तंदुरुस्त दिखने लगी थी. देह की मांसलता, सुंदरता और सैक्स अपील किसी की निगाह में तुरंत आ जाती थी.
वैसे उस का मायका मुरादाबाद के ऊमरीकलां गांव में था. लेकिन मायके वाले मुरादाबाद के मंगल बाजार में रहते थे. शादी से पहले से ही अफशा पूरे मोहल्ले में इधरउधर घूमती रहने के चलते लड़कों के बीच चर्चित थी. कुछ लोगों को उस का चालचलन ठीक नहीं लगता था.
वहीं उस के चाहने वाले भी कम नहीं थे. उन्हीं में एक सलीम भी था, जो ऊमरीकलां का ही रहने वाला था. उस ने शादी से पहले अफशा से अपने दिल की बात कही थी, लेकिन तब तक उस का निकाह तय हो चुका था. सलीम उस का एक तरह से सच्चा प्रेमी था, उस ने अपनी प्रेमिका के अच्छे भविष्य और विदेश में नौकरी करने वाले पति के लिए अपने दिल पर पत्थर रख लिया था.
जबकि सच तो यह था कि सलीम और अफशा एकदूसरे के प्रेम को भूल नहीं पाए थे. सलीम अकसर अफशा की ससुराल लाहौरी सराय चला जाता था. वह मायके वालों की तरफ से परिवार से मिलता था और अफशा से अपने दिल की बातें किया करता था. सलीम अफशा के ससुराल वालों की नजर में भाईजान बना हुआ था. दोनों कई बार मौका देख कर नैनीताल आदि घूम आए थे. वहां उन्हें होटलों में ठहरने का मौका मिल गया था.
यह सिलसिला अफशा के मां बनने के बाद भी चलता रहा. उस के बाद से तो मानो ससुराल वालों की तरफ से उन दोनों को छूट मिल गई थी. एक बार सलीम बोला, ‘‘अरे यार, हम लोग कब तक ऐसे बहाने बना कर और छिपते हुए मिलते रहेंगे. मैं चाहता हूं कि तुम से निकाह कर हमेशा के लिए तुम्हें बना लूं.’’
‘‘अब कैसे मुमकिन है? मेरी गोद में आसिफ का बच्चा भी है.’’ अफशा बोली और बगल में बेफिक्री से सो रहे बच्चे पर एक नजर डाली.
‘‘उस के बारे में भी सोचता हूं.’’ सलीम यह कहता हुआ होटल के कमरे से बाहर निकल गया.
थोड़ी देर में ही कुछ खाने का सामान ले कर वापस लौट आया. उस वक्त अफशा बच्चे को दूध पिला रही थी. उस ने मजाक किया, ‘‘पूरे डेढ़ महीने बाद हमारा मिलना हुआ है. और तुम हो कि बच्चे में ही उलझी हो…’’
‘‘क्या करूं, यही मेरे दिल का टुकड़ा है.’’
‘‘और मैं?’’
‘‘अरे तुम तो मेरा दिल हो, जिस में मेरी जान बसती है,’’ अफशा भी सलीम से मजाकिया अंदाज में बोली.
‘‘हमारे आज के रोमांस का क्या होगा?’’ सलीम ने प्रश्न किया. तभी बच्चा रोने लगा. अफशा उसे चुप कराने लगी. लेकिन वह चुप ही नहीं हो रहा था.
‘‘हमारे प्यार में तुम्हारा बेटा ही बाधक बन गया है,’’ सलीम रोते बच्चे को देख कर बोला.
‘‘तो क्या करूं इस का? लगता है इसे कुछ तकलीफ है. कल सुबह डाक्टर को दिखाना होगा.’’
‘‘…और आज रात हमारी यूं ही कटेगी..’’ सलीम सांसें लेता हुआ बोला और वहीं पास बिछावन पर लेट गया. आधी रात को दोनों आलिंगनबद्ध थे कि बच्चा अचानक फिर से रोने लगा. ऐसे में उन का संसर्ग अधूरा रह गया. दोनों खिन्न हो गए. उन के चेहरे पर बच्चे को ले कर सवाल उभर आया था. सलीम ने सिर्फ इतना कहा, ‘‘इस का कुछ करो वरना!’’
मिलन में खलल बना बच्चा
अगले रोज अफशा बच्चे के साथ ससुराल आ गई. सलीम भी अपने घर लौट गया. दोनों के मन पर एक बोझ बना हुआ था. अफशा से विदा होते हुए सलीम ने पूछा, ‘‘बच्चे को कहीं ठिकाने नहीं लगाया जा सकता?’’
इस पर कुछ बोले बगैर अफशा अपनी ससुराल आ गई, लेकिन उस के दिमाग में बच्चे को ठिकाने लगाने का सवाल बना रहा. सलीम के साथ गुजारी उस रात में बच्चे को ले कर आई बाधा उस के दिमाग से निकल ही नहीं रही थी. उस बारे में सोचसोच कर वह उलझती ही जा रही थी. एक तरफ विदेश में बैठा उस का शौहर था तो दूसरी तरफ उस पर प्यार न्यौछावर करने वाला प्रेमी सलीम. वह अफशा पर दिल खोल कर खर्च करता था. उस के लिए मर मिटने की कसमें खाता था.
शादीशुदा अफशा भी आशिकी में कुछ भी करने को तैयार थी. सलीम की बच्चे को ठिकाने लगाने वाली बात उस के दिमाग से निकल ही नहीं पा रही थी. इसी बीच दिमाग में एक सवाल उभरा, ‘‘कैसे?’’
इसी के साथ उस ने पास में सो रहे बच्चे पर एक नजर डाली. दिमाग में खुराफाती विचार आए और उस ने तुरंत एक योजना बना ली.
अगले पल ही उस ने सलीम को फोन किया और उसे साजिश की योजना बता दी. अफशा की योजना सुन कर सलीम भी उछल पड़ा. फोन पर ही बोला, ‘‘इस से तो सांप भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी.’’
योजना के मुताबिक, अफशा 31 अगस्त, 2022 की रात साढ़े 8 बजे बेरहम बन गई. दिल को मजबूत किया. इश्क का भूत उस के दिलोदिमाग पर इस कदर हावी था कि उस ने गहरी नींद में सो रहे बच्चे का गला दबा दिया. चंद मिनटों में ही बच्चा बेजान हो गया.
उस के बाद योजना के मुताबिक घर में काम करने वाली नौकरानी सुमैया से बच्चे को डाक्टर से दिखाने के लिए साथ चलने को बोली. घर से थोड़ी दूर पर जा कर उस ने नौकरानी को घर वापस जाने के लिए कहा.
नौकरानी के चले जाने के बाद अफशा ने मृत बच्चे को नाले में फेंक दिया. फिर उस ने योजना के मुताबिक थोड़ी दूर भीड़ वाली जगह पर जा कर बाइक सवार द्वारा बच्चा छीन कर ले भागने का शोर मचा दिया.
इस पूरे मामले की कहानी को पुलिस ने कलमबद्ध कर लिया और उस के बयानों के आधार पर अगली काररवाई शुरू कर दी. बच्चे अरहान के चाचा बिलाल ने अपनी भाभी अफशा के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवा दी. उस दिन पहली सितंबर, 2022 को उसे हिरासत में ले लिया गया.
कथा लिखे जाने तक उस का प्रेमी सलीम पुलिस की गिरफ्त में नहीं आया था. पुलिस ने खुदशिया तामजी उर्फ अफशा से पूछताछ करने के बाद उसे कोर्ट में पेश करने के बाद जेल भेज दिया. द्य
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित