जुनूनी इश्क में पागलपन

वह गांव की सीधीसादी लड़की थी. नाम था उसका लाडो. वह आगरा के थानातहसील शमसाबाद के गांव सूरजभान के रहने वाले किसान सुरेंद्र सिंह की बेटी थी. घर वाले उसे पढ़ालिखा कर कुछ बनाना चाहते थे, लेकिन ऐसा नहीं हो सका.

इस की वजह यह थी कि 2 साल पहले उस के कदम बहक गए. उसे साथ पढ़ने वाले देवेंद्र से प्यार हो गया. वह आगरा के थाना डौकी के गांव सलेमपुर का रहने वाला था. शमसाबाद में वह किराए पर कमरा ले कर रहता था.

अचानक ही लाडो को देवेंद्र अच्छा लगने लगा था. जब उसे पता चला कि देवेंद्र ही उसे अच्छा नहीं लगता, बल्कि देवेंद्र भी उसे पसंद करता है तो वह बहुत खुश हुई.

एक दिन लाडो अकेली जा रही थी तो रास्ते में देवेंद्र मिल गया. वह मोटरसाइकिल से था. उस ने लाडो से मोटरसाइकिल पर बैठने को कहा तो वह बिना कुछ कहे देवेंद्र के कंधे पर हाथ रख कर उस के पीछे बैठ गई. देवेंद्र ने मोटरसाइकिल आगरा शहर की ओर मोड़ दी तो लाडो ने कहा, ‘‘इधर कहां जा रहे हो?’’

‘‘यहां हम दोनों को तमाम लोग पहचानते हैं. अगर उन्होंने हमें एक साथ देख लिया तो बवाल हो सकता है. इसलिए हम आगरा चलते हैं.’’ देवेंद्र ने कहा.

‘‘नहीं, आगरा से लौटने में देर हो गई तो मेरा जीना मुहाल हो जाएगा,’’ लाडो ने कहा, ‘‘इस के अलावा कालेज का भी नुकसान होगा.’’

‘‘हम समय से पहले वापस आ जाएंगे. रही बात कालेज की तो एक दिन नहीं जाएंगे तो क्या फर्क पड़ेगा.’’ देवेंद्र ने समझाया.

लाडो कशमकश में फंस गई थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे? वह देवेंद्र के साथ जाए या नहीं? जाने का मतलब था उस के प्यार को स्वीकार करना. वह उसे चाहती तो थी ही, आखिर उस का मन नहीं माना और वह उस के साथ आगरा चली गई.

देवेंद्र उसे सीधे ताजमहल ले गया. क्योंकि वह प्रेम करने वालों की निशानी है. लाडो ने प्रेम की उस निशानी को देख कर तय कर लिया कि वह भी देवेंद्र को मुमताज की तरह ही टूट कर प्यार करेगी और अपना यह जीवन उसी के साथ बिताएगी.

प्यार के जोश में शायद लाडो भूल गई थी कि उस के घर वाले इतने आधुनिक नहीं हैं कि उस के प्यार को स्वीकार कर लेंगे. लेकिन प्यार करने वालों ने कभी इस बारे में सोचा है कि लाडो ही सोचती. उस ने ताजमहल पर ही साथ जीने और मरने की कसमें खाईं और फिर मिलने का वादा कर के घर आ गई.

इस के बाद लाडो और देवेंद्र की मुलाकातें होने लगीं. देवेंद्र की बांहों में लाडो को अजीब सा सुख मिलता था. दोनों जब भी मिलते, भविष्य के सपने बुनते. उन्हें लगता था, वे जो चाहते हैं आसानी से पूरा हो जाएगा. कोई उन के प्यार का विरोध नहीं करेगा. वे चोरीचोरी मिलते थे.

लेकिन जल्दी ही लोगों की नजर उन के प्यार को लग गई. किसी ने दोनों को एक साथ देख लिया तो यह बात सुरेंद्र सिंह को बता दी. बेटी के बारे में यह बात सुन कर वह हैरान रह गया. वह तो बेटी को पढ़ने भेजता था और बेटी वहां प्यार का पाठ पढ़ रही थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि लाडो ऐसा कैसे कर सकती है. वह तो भोलीभाली और मासूम है.

घर आ कर उस ने लाडो से सवाल किए तो उस ने कहा, ‘‘पापा, देवेंद्र मेरे साथ पढ़ता है, इसलिए कभीकभार उस से बातचीत कर लेती हूं. अगर आप को यह पसंद नहीं है तो मैं उस से बातचीत नहीं करूंगी.’’

सुरेंद्र सिंह ने सोचा, लोगों ने बातचीत करते देख कर गलत सोच लिया है. वह चुप रह गया. इस तरह लाडो ने अपनी मासूमियत से पिता से असलियत छिपा ली. लेकिन आगे की चिंता हो गई. इसलिए वह देवेंद्र से मिलने में काफी सतर्कता बरतने लगी.

लाडो भले ही सतर्क हो गई थी, लेकिन लोगों की नजरें उस पर पड़ ही जाती थीं. जब कई लोगों ने सुरेंद्र सिंह से उस की शिकायत की तो उस ने लाडो पर अंकुश लगाया. पत्नी से उस ने बेटी पर नजर रखने को कहा.

टोकाटाकी बढ़ी तो लाडो को समझते देर नहीं लगी कि मांबाप को उस पर शक हो गया है. वह परेशान रहने लगी. देवेंद्र मिला तो उस ने कहा, ‘‘मम्मीपापा को शक हो गया है. निश्चित है, अब वे मेरे लिए रिश्ते की तलाश शुरू कर देंगे.’’

‘‘कोई कुछ भी कर ले लाडो, अब तुम्हें मुझ से कोई अलग नहीं कर सकता. मैं तुम से प्यार करता हूं, इसलिए तुम्हें पाने के लिए कुछ भी कर सकता हूं.’’ देवेंद्र ने कहा.

प्रेमी की इस बात से लाडो को पूरा विश्वास हो गया कि देवेंद्र हर तरह से उस का साथ देगा. लेकिन बेटी के बारे में लगातार मिलने वाली खबरों से चिंतित सुरेंद्र सिंह उस के लिए लड़का देखने लगा. उस ने उस की पढ़ाई पूरी होने का भी इंतजार नहीं किया.

जब लाडो के प्यार की जानकारी उस के भाई सुधीर को हुई तो उस ने देवेंद्र को धमकाया कि वह उस की बहन का पीछा करना छोड़ दे, वरना वह कुछ भी कर सकता है. तब देवेंद्र ने हिम्मत कर के कहा, ‘‘भाई सुधीर, मैं लाडो से प्यार करता हूं और उस से शादी करना चाहता हूं.’’

‘‘तुम्हारी यह हिम्मत?’’ सुधीर ने कहा, ‘‘फिर कभी इस तरह की बात की तो यह कहने लायक नहीं रहोगे.’’

देवेंद्र परेशान हो उठा. लेकिन वह लाडो को छोड़ने को राजी नहीं था. इसी बीच परीक्षा की घोषणा हो गई तो दोनों पढ़ाई में व्यस्त हो गए. लेकिन इस बात को ले कर दोनों परेशान थे कि परीक्षा के बाद क्या होगा? उस के बाद वे कैसे मिलेंगे? यही सोच कर एक दिन लाडो ने कहा, ‘‘देवेंद्र, परीक्षा के बाद तो कालेज आनाजाना बंद हो जाएगा. उस के बाद हम कैसे मिलेंगे?’’

‘‘प्यार करने वाले कोई न कोई रास्ता निकाल ही लेते हैं, इसलिए तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं है. हम भी कोई न कोई रास्ता निकाल लेंगे.’’ देवेंद्र ने कहा.

सुरेंद्र सिंह के घर से कुछ दूरी पर मनोज सिंह रहते थे. उन के 4 बच्चे थे, जिन में सब से बड़ी बेटी पिंकी थी, जो 8वीं में पढ़ती थी. पिंकी थी तो 12 साल की, लेकिन कदकाठी से ठीकठाक थी, इसलिए अपनी उम्र से काफी बड़ी लगती थी.

सुरेंद्र सिंह और मनोज सिंह के बीच अच्छे संबंध थे, इसलिए बड़ी होने के बावजूद लाडो की दोस्ती पिंकी से थी. लेकिन लाडो ने कभी पिंकी से अपने प्यार के बारे में नहीं बताया था. फिर भी पिंकी को पता था कि लाडो को अपने साथ पढ़ने वाले किसी लड़के से प्यार हो गया है.

गांव के पास ही केला देवी मंदिर पर मेला लगता था. इस बार भी 5 मार्च, 2017 को मेला लगा तो गांव के तमाम लोग मेला देखने गए. लाडो ने देवेंद्र को भी फोन कर के मेला देखने के लिए बुला लिया था. क्योंकि उस का सोचना था कि वह मेला देखने जाएगी तो मौका मिलने पर दोनों की मुलाकात हो जाएगी. प्रेमिका से मिलने के चक्कर में देवेंद्र ने हामी भर ली थी.

लाडो ने घर वालों से मेला देखने की इच्छा जाहिर की तो घर वालों ने मना कर दिया. लेकिन जब उस ने कहा कि उस के साथ पिंकी भी जा रही है तो घर वालों ने उसे जाने की अनुमति दे दी. क्योंकि गांव के और लोग भी मेला देखने जा रहे थे, इसलिए किसी तरह का कोई डर नहीं था.

लाडो और पिंकी साथसाथ मेला देखने गईं. कुछ लोगों ने उन्हें मेले में देखा भी था, लेकिन वे घर लौट कर नहीं आईं. दोनों मेले से ही न जाने कहां गायब हो गईं? शाम को छेदीलाल के घर से धुआं उठते देख लोगों ने शोर मचाया. छेदीलाल उस घर में अकेला ही रहता था और वह रिश्ते में सुरेंद्र सिंह का ताऊ लगता था. आननफानन में लोग इकट्ठा हो गए.

दरवाजा खोल कर लोग अंदर पहुंचे तो आंगन में लपटें उठती दिखाई दीं. ध्यान से देखा गया तो उन लपटों के बीच एक मानव शरीर जलता दिखाई दिया. लोगों ने किसी तरह से आग बुझाई. लेकिन इस बात की सूचना पुलिस को नहीं दी गई. मरने वाला इतना जल चुका था कि उस का चेहरा आसानी से पहचाना नहीं जा सकता था.

लोगों ने यही माना कि घर छेदीलाल का है, इसलिए लाश उसी की होगी. लेकिन लोगों को हैरानी तब हुई, जब किसी ने कहा कि छेदीलाल तो मेले में घूम रहा है. तभी किसी ने लाश देख कर कहा कि यह लाश तो लड़की की है. लगता है, लाडो ने आत्महत्या कर ली है. गांव वालों को उस के प्यार के बारे में पता ही था, इसलिए सभी ने मान लिया कि लाश लाडो की ही है.

लेकिन तभी इस मामले में एक नया रहस्य उजागर हुआ. मनोज सिंह ने कहा कि लाडो के साथ तो पिंकी भी मेला देखने गई थी, वह अभी तक घर नहीं आई है. कहीं यह लाश पिंकी की तो नहीं है. लेकिन गांव वालों ने उस की बात पर ध्यान नहीं दिया और कहा कि पिंकी मेला देखने गई है तो थोड़ी देर में आ जाएगी. उसे कोई क्यों जलाएगा. इस बात को छोड़ो और पहले इस मामले से निपटाओ.

लोगों का कहना था कि लाडो ने आत्महत्या की है. अगर इस बात की सूचना पुलिस तक पहुंच गई तो गांव के सभी लोग मुसीबत में फंस जाएंगे, इसलिए पहले इसे ठिकाने लगाओ. मुसीबत से बचने के लिए गांव वालों की मदद से सुरेंद्र सिंह ने आननफानन में उस लाश का दाहसंस्कार कर दिया. लेकिन सवेरा होते ही गांव में इस बात को ले कर हंगामा मच गया कि पिंकी कहां गई? क्योंकि लाडो के साथ मेला देखने गई पिंकी अब तक लौट कर नहीं आई थी.

मनोज सिंह ने पिंकी को चारों ओर खोज लिया. जब उस का कहीं कुछ पता नहीं चला तो घर वालों के कहने पर वह थाना शमसाबाद गए और थानाप्रभारी विजय सिंह को सारी बात बता कर आशंका व्यक्त की कि लाडो और उस के घर वालों ने पिंकी की हत्या कर उस की लाश जला दी है और लाडो को कहीं छिपा दिया है.

लाडो की लाश का बिना पुलिस को सूचना दिए अंतिम संस्कार कर दिया गया था, इसलिए जब सुरेंद्र सिंह को पता चला कि मनोज सिंह थाने गए हैं तो डर के मारे वह घर वालों के साथ घर छोड़ कर भाग खड़ा हुआ. लेकिन पुलिस ने भी मान लिया था कि लाडो ने आत्महत्या की है, क्योंकि उस का देवेंद्र से प्रेमसंबंध था और घर वाले उस के प्रेमसंबंध का विरोध कर रहे थे. लेकिन पिंकी का न मिलना भी चिंता की बात थी. तभी अचानक थाना शमसाबाद पुलिस को मुखबिरों से सूचना मिली कि लाडो आगरा के बिजलीघर इलाके में मौजूद है. इस बात की जानकारी लाडो के घर वालों को भी हो गई थी. लेकिन बेटी के जिंदा होने की बात जान कर वे खुशी भी नहीं मना सकते थे.

आखिर वे आगरा पहुंचे और लाडो को ला कर पुलिस के हवाले कर दिया. पुलिस ने लाडो से पूछताछ की तो उस ने बताया कि वह जली हुई लाश पिंकी की थी. उसी ने उस की हत्या कर के लाश को कंबल में लपेट कर जलाने की कोशिश की थी, ताकि लोग समझें कि वह मर गई है. इस के बाद वह अपने प्रेमी के साथ कहीं दूर जा कर अपनी दुनिया बसाना चाहती थी.

पिंकी के पिता मनोज की ओर से अपराध संख्या 88/2017 पर भादंवि की धारा 302, 201 के तहत सुरेंद्र सिंह, सुधीर सिंह और लाडो के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर के मामले की जांच शुरू कर दी गई. पुलिस को लग रहा था कि लाडो पिंकी की हत्या अकेली नहीं कर सकती, इसलिए पुलिस ने शक के आधार पर 24 अप्रैल, 2017 को देवेंद्र को गिरफ्तार कर लिया.

देवेंद्र से पूछताछ की गई तो उस ने लाडो के साथ मिल कर पिंकी की हत्या का अपराध स्वीकार कर लिया. इस के बाद उस ने पिंकी की हत्या की जो सनसनीखेज कहानी सुनाई, वह हैरान करने वाली कहानी कुछ इस प्रकार थी.

घर वालों की बंदिशों से परेशान लाडो और उस के प्रेमी देवेंद्र को अपने प्यार का महल ढहता नजर आ रहा था, इसलिए वे एक होने का उपाय खोजने लगे. इसी खोज में उन्होंने पिंकी की हत्या की योजना बना कर उसे लाडो की लाश के रूप में दिखा कर जलाने की योजना बना डाली. उन्होंने दिन भी तय कर लिया.

पिंकी और लाडो की उम्र में भले ही काफी अंतर था, लेकिन उन की कदकाठी एक जैसी थी. लाडो को पता था कि उस के दादा छेदीलाल मेला देखने जाएंगे, इसलिए मेला देखने के बहाने वह पिंकी को छेदीलाल के घर ले गई. कुछ ही देर में देवेंद्र भी आ गया, जिसे देख कर पिंकी हैरान रह गई. वह यह कह कर वहां से जाने लगी कि इस बात को वह सब से बता देगी.

लेकिन प्यार में अंधी लाडो ने उसे बाहर जाने का मौका ही नहीं दिया. उस ने वहीं पड़ा डंडा उठाया और पिंकी के सिर पर पूरी ताकत से दे मारा. पिंकी जमीन पर गिर पड़ी. इस के बाद लाडो ने उस के गले में अपना दुपट्टा लपेटा और देवेंद्र की मदद से कस कर उसे मार डाला.

लाश की पहचान न हो सके, इस के लिए लाश को छेदीलाल के घर में रखे कंबल में लपेटा और उस पर मिट्टी का तेल डाल कर आग लगा दी. आग ने तेजी पकड़ी तो दोनों भाग खड़े हुए, पर योजना के अनुसार दोनों आगरा में मिल नहीं पाए. दरअसल, देवेंद्र काफी डर गया था. डर के मारे वह लाडो से मिलने नहीं आया. जबकि लाडो ने सोचा था कि वह देवेंद्र के साथ रात आगरा के किसी होटल में बिताएगी. लेकिन देवेंद्र के न आने से उस का यह सपना पूरा नहीं हुआ. लाडो के पास पैसे नहीं थे, इसलिए रात उस ने बिजलीघर बसस्टैंड पर बिताई.

पूछताछ के बाद पुलिस ने दोनों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. चूंकि लाडो और देवेंद्र से पूछताछ में सुरेंद्र सिंह और उस के घर वाले निर्दोष पाए गए थे, इसलिए पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार नहीं किया.

लाडो ने जो सोचा था, वह पूरा नहीं हुआ. वह एक हत्या की अपराधिन भी बन गई. उस के साथ उस का प्रेमी भी फंसा. जो सोच कर उस ने पिंकी की हत्या की, वह अब शायद ही पूरा हो. क्योंकि निश्चित है उसे पिंकी की हत्या के अपराध में सजा होगी.

सरप्राइज गिफ्ट : अवैद्य संबंधों के शक में बीवी की हत्या

19 जून, 2017 की शाम मनोज बेहद खुश था. लेकिन उस के दोस्त अनुज को उस की यह बेवजह की खुशी समझ में नहीं आ रही थी. जब रहा न गया तो अनुज ने पूछ ही लिया, ‘‘बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना क्यों हो रहा है, कुछ बताएगा भी या यूं ही बकवास करता रहेगा.’’

‘‘बताऊंगा, पर ऐसे नहीं. पहले मिल कर थोड़ा जश्न मनाते हैं. फिर अपनी खुशी का राज जाहिर करूंगा. ये ले पैसे और औफिसर्स चौइस की बोतल, तले हुए काजू, नमकीन और सिगरेट का पैकेट ले आ. सोच ले, आज मैं तुझे अपनी आजादी की पार्टी दे रहा हूं.’’ कह कर उस ने पर्स से 2 हजार रुपए का नोट निकाल कर अनुज को दे दिया.

अनुज की समझ में तो कुछ नहीं आया, लेकिन उस ने मनोज के हाथों से 2 हजार रुपए का नोट ले कर जेब में रखा और शराब के ठेके की ओर चला गया. कुछ देर बाद वह सारा सामान ले आया तो दोनों कमरे में पीने बैठ गए. मनोज ने 2 पैग बनाए और जाम से जाम टकराने के बाद दोनों शराब पीने लगे. जब मनोज पर नशे का सुरूर चढ़ा तो उस ने कहना शुरू किया, ‘‘अनुज, जानते हो मैं आज इतना खुश क्यों हूं.’’

‘‘जब तक तू बताएगा नहीं, तब तक मैं कैसे जानूंगा कि तेरे मन में किस बात को ले कर लड्डू फूट रहे हैं.’’ नशे की झोंक में अनुज उस की ओर देख कर बोला.

‘‘बेटे, आज मैं आजाद हो गया हूं.’’

‘‘पहेलियां न बुझा कर सीधी तरह बता, तेरी इस खुशी का राज क्या है?’’ अनुज ने चौथा पैग पीते हुए उत्सुकता से पूछा.

‘‘मैं ने तेरी भाभी को खुदागंज रवाना कर दिया है. मुझे उस से हमेशा के लिए छुटकारा मिल गया है.’’

मनोज की बात सुन कर अनुज को विश्वास नहीं हुआ, लेकिन जब उस ने पूरी बात बताई तो उसे लगा कि हो न हो मनोज ने कोमल की हत्या कर दी है. अनुज का सारा नशा काफूर हो गया. थोड़ी देर तक वह मनोज की बात सुनता रहा, फिर पीना छोड़ कर उठ खड़ा हुआ और घर में किसी जरूरी काम का बहाना कर के वहां से चला गया.

बाहर आ कर वह कुछ दोस्तों से मिला और मनोज की बात उन्हें बताई. सब ने उसे यही सलाह दी कि इस बात की सूचना पुलिस को दे देनी चाहिए, क्योंकि बाद में वह भी पुलिसिया लफड़े में फंस सकता है. सोचविचार कर उस ने यह सूचना कंझावला थाने की पुलिस को दे दी.

पति द्वारा किसी औरत की हत्या की सूचना मिलते ही कंझावला थाने की पुलिस हरकत में आ गई. जेजे कालोनी सवदा पहुंच कर पुलिस ने मनोज गुजराती को हिरासत में ले लिया. थाने में जब मनोज से पूछताछ शुरू हुई, तब तक उस का नशा कम हो चुका था. पहले तो उस ने एसआई निखिल को बताया कि शराब के नशे में वह यह सब अपने दोस्त पर रौब जमाने के लिए  कह रहा था. लेकिन निखिल का एक करारा थप्पड़ उस के गले पर पड़ा तो उस के होश ठिकाने आ गए.

उस ने बताया कि वह अपनी पत्नी कोमल की हरकतों से बहुत परेशान था. इसलिए उस ने उसे बोंटा पार्क के जंगल में ले जा कर उस की हत्या कर दी है. बोंटा पार्क दिल्ली यूनिवर्सिटी के पास है. कंझावला थाने से वह काफी दूर था. तब तक काफी रात हो चुकी थी, इसलिए अगली सुबह निखिल कांस्टेबल महेश और नरेश को साथ ले कर उत्तरी दिल्ली के मोरिसनगर थाने पहुंचे और वहां की थानाप्रभारी इंसपेक्टर आरती शर्मा को उन के इलाके के बोंटा पार्क में एक लड़की की हत्या किए जाने की सूचना दी.

17 जून, 2017 को कंझावला पुलिस द्वारा मिली इस सूचना को थाना मौरिसनगर के डीडी नंबर 14 ए में दर्ज करवा कर इंसपेक्टर आरती शर्मा ने अतिरिक्त थानाप्रभारी इंसपेक्टर  वीरेंद्र सिंह को इंसपेक्टर राकेश कुमार, एएसआई बिजेंद्र, हैडकांस्टेबल राजकुमार, सुखवीर, कांस्टेबल श्याम सैनी तथा महिला कांस्टेबल मधु को आरोपी मनोज और कंझावला पुलिस के साथ बोंटा पार्क भेजा.

पुलिस टीम पार्क के गेट नंबर 6 से अंदर दाखिल हुई. अंदर जा कर पुलिस कोमल की लाश की तलाश में जुट गई. मनोज ठीक से उस जगह के बारे में नहीं बता पा रहा था, जहां उस ने अपनी पत्नी कोमल की हत्या कर के उस की लाश छिपाई थी. पुलिस की तलाशी 12 घंटे तक जारी रही, लेकिन कोमल की लाश नहीं मिली. रात घिर आई थी, फिर भी तलाशी चलती रही.

रात के करीब 12 बजे मनोज पुलिस टीम को एक छोटी चट्टान के पास ले कर गया, जहां 22-23 साल की एक लड़की की लाश पड़ी थी. वह गुलाबी रंग का टौप और नीले रंग की जींस पहने थी. लाश की छानबीन करते समय इंसपेक्टर वीरेंद्र सिंह ने देखा कि उस के दाहिने हाथ पर कोमल गुदा हुआ था.

आरोपी मनोज ने लाश की ओर इशारा कर के बताया कि यह उस की पत्नी कोमल की लाश है, जिसे उस ने कल शाम को धोखे से यहां ला कर उस की हत्या कर दी थी. लाश की फोटोग्राफी कराने के बाद उसे पोस्टमार्टम के लिए सब्जीमंडी मोर्चरी भेज दिया गया, साथ ही कोमल के घर वालों को फोन कर के उस की लाश की शिनाख्त के लिए सब्जी मंडी मोर्चरी बुला लिया गया.

17 जून को कोमल की बड़ी बहन गौरी सब्जी मंडी पहुंची,जहां लाश देखने के बाद उस ने उस की पहचान अपनी छोटी बहन और मनोज गुजराती की पत्नी कोमल के रूप में कर दी. कोमल की लाश की शिनाख्त होने के बाद गौरी की तहरीर पर उसी दिन कोमल की हत्या का मामला उस के पति मनोज गुजराती के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत दर्ज कर लिया गया. इस मामले की विवेचना इंसपेक्टर वीरेंद्र सिंह को सौंपी गई. गौरी के बयान तथा मनोज गुजराती के बयानों के बाद 2 साल की लव मैरिज का जो दर्दनाक वाकया सामने आया, वह इस प्रकार था—

कोमल के पिता चमनलाल का परिवार नांगलोई के चंचल पार्क में रहता था. उन के परिवार में पत्नी कमलेश के अलावा 4 बेटियां तथा 2 बेटे थे. इन में कोमल पांचवे नंबर की थी. घर के लोग उसे प्यार से कमली कह कर पुकारते थे. कोमल के बड़े भाई गंगाराम की शादी 8 साल पहले दिव्या से हुई थी. मनोज गुजराती दिव्या का चचेरा भाई था.

मनोज का परिवार कंझावला इलाके के सावदा गांव में रहता था. उस के परिवार में उस के अलावा इस के पिता राजू गुजराती, मां कमलेश तथा एक बहन परवीन थी. घर के बाहरी कमरे में मनोज की परचून की दुकान थी. दुकान अच्छीखासी चलती थी, जिस की वजह से मनोज की जेब हमेशा भरी होती थी. वह शौकीनमिजाज युवक था और हमेशा बनठन कर रहता था. चूंकि दोनों के परिवार आपस में रिश्तेदार थे, इसलिए समय समय पर उन का एकदूसरे के यहां आनाजाना लगा रहता था.

2 साल पहले एक दिन मनोज अपने दोस्तों के साथ मस्ती करने गुरुग्राम के सहारा मौल पहुंचा. वहां उस की नजर एक लड़की पर पड़ी, जो शक्लसूरत से जानीपहचानी लग रही थी. वह कोमल थी. मौडर्न कपड़ों, गहरे मेकअप और फ्लड लाइट की रंगबिरंगी रोशनी में कोमल बहुत ही सुंदर लग रही थी. दरअसल, कोमल वहां एक पब में नौकरी करती थी.

मनोज ने किसी बहाने से कोमल को अपने पास बुलाया तो दोनों ने एकदूसरे को पहचान लिया. बातोंबातों में मनोज ने उस का मोबाइल नंबर ले लिया और जल्द ही उस के घर चंचल पार्क आने का वादा किया. कोमल ने मनोज की खूब आवभगत की और उसे अपने साथ काम करने वाली कुछ सहेलियों से भी मिलवाया.

कोमल के लटकेझटके देख कर मनोज पहली ही नजर में उसे दिल दे बैठा. इधर कोमल भी मनोज के प्रति आकर्षित हो गई. उस दिन मनोज घर लौटा तो उस के दिलोदिमाग में कोमल की मनमोहिनी सूरत बसी हुई थी. वह जल्दी से जल्दी उसे अपनी बना लेना चाहता था.

उस दिन के बाद दोनों एकदूसरे को फोन कर के अपने दिल की बातें शेयर करने लगे. कोमल मनोज को हमेशा मौल में आने वाले हाईफाई लोगों के बारे में तरहतरह के किस्से सुनाती, जो मनोज को बहुत अच्छे लगते. वह कोमल को प्रभावित करने के लिए उसे महंगे तोहफे देने लगा. धीरेधीरे दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा. दोनों के घर वाले इस सब से कब तक अनजान रह सकते थे. उन्हें भी उन के प्यार की जानकारी हो गई.

मनोज और कोमल के घर वाले यों तो रिश्तेदार थे, लेकिन पता नहीं क्यों उन्हें यह रिश्ता मंजूर नहीं था. कोमल के पिता चमनलाल को लगता था कि मनोज उन की बेटी को ज्यादा दिनों तक खुश नहीं रख पाएगा. मनोज सावदा गांव में रहता था, जहां के लोगों का रहनसहन पुराने जमाने जैसा था.

उधर मनोज के घर वालों की सोच भी कुछ ऐसी ही थी. जब मनोज और कोमल ने अपनेअपने घरों में अपनी पसंद जाहिर की तो उन्होंने इसे सिरे से नकार दिया. लेकिन प्यार इन बंदिशों को कहां मानता है. वैसे भी दोनों ही अपने पैरों पर खड़े थे. इसलिए 5 जून, 2015 को कोमल ने अपने मम्मीपापा की मर्जी के खिलाफ जा कर तीसहजारी कोर्ट में मनोज से शादी कर ली. शादी के बाद दोनों रघुबीर नगर में किराए का मकान ले कर रहने लगे.

8-10 महीने तो दोनों ने खूब मौजमस्ती की, लेकिन बाद में मनोज को कोमल का सहारा मौल में काम करना बुरा लगने लगा. उस ने कोमल से यह काम छोड़ देने के लिए कहा, पर वह इस के लिए तैयार नहीं थी. उसे मौल में जा कर परफौरमेंस देना और नएनए लोगों से मिल कर हंसनाबोलना अच्छा लगता था. बात आगे बढ़ी तो दोनों के बीच झगड़े शुरू हो गए. पड़ोसियों ने दोनों को समझाया तो कोमल मनोज के घर जेजे कालोनी, सावदा में रहने को तैयार हो गई.

इस के बाद कोमल अपने पति मनोज के साथ सावदा में जा कर रहने लगी. लेकिन घर छोटा होने के कारण उसे काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था. मनोज की एक बहन परवीन थी, जिस से उस की कतई नहीं बनती थी. यह देख कर मनोज ने दूसरी जगह किराए पर एक घर ले लिया और दोनों उसी में रहने लगे. कुछ दिनों तक दोनों सुखचैन से रहे. मनोज की जिंदगी में अचानक भूचाल तब आया, जब एक दिन वह कोमल के सूटकेस में रखी उसकी एलबम देख रहा था. एक फोटो में वह एक लड़के के साथ बहुत खुश दिख रही थी.

मनोज ने कोमल को वह फोटो दिखा कर उस लड़के के बारे में पूछा तो कोमल ने बताया कि यह अमित है और उस के साथ सहारा मौल में नौकरी करता था. अमित महज उस का दोस्त है. लेकिन मनोज को कोमल की बातों पर विश्वास नहीं हुआ. उस ने कोमल के जानकारों से अमित के बारे में पूछा तो पता चला कि शादी से पहले अमित कोमल का बौयफ्रैंड था. मनोज को यह जानकारी मिली तो वह परेशान हो गया. कोमल के बारे में यह जानकारी मिलने के बाद मनोज उस से उखड़ाउखड़ा रहने लगा.

कुछ ही दिनों बाद उन के बीच फिर से झगड़े शुरू हो गए. कोमल ने अपने घर में फोन कर के बताया कि मनोज उस से दहेज लाने के लिए दबाव डालता है और मना करने पर उस के साथ मारपिटाई करता है.

एक महीने बाद कोमल मनोज की मारपिटाई से दुखी हो कर अपनी बड़ी बहन किरण के पास रहने के लिए रघुवीरनगर चली गई. मनोज सावदा स्थित अपने घर में अकेला रह गया. एक दिन उसे पता चला कि कोमल फिर से अपने पुराने बौयफ्रैंड अमित से मिलने लगी है. यह जान कर मनोज को चिंता हुई कि कोमल कहीं उस से किनारा न कर ले. यही सोच कर उस ने कोमल के मोबाइल पर बात करने की कोशिश की. कुछ दिन तो कोमल मनोज के फोन को नजरअंदाज करती रही, लेकिन धीरेधीरे दोनों में बातचीत शुरू हो गई.

एक महीना पहले कोमल ने मनोज को बताया कि वह बहन पर बोझ नहीं बनना चाहती, इसलिए उस ने रघुवीरनगर के ही डी ब्लौक में अपने लिए अलग कमरा ले लिया है, जहां रह कर अब वह फिर से जौब पर जाएगी. घर में बैठेबैठे उस का मन नहीं लगता. दूसरे बिना पैसों के जिंदगी भी नहीं चलती. मनोज को उस की यह बात अच्छी नहीं लगी तो उस ने उस के नौकरी करने का विरोध करते हुए वापस घर लौट आने के लिए कहा. इस पर कोमल ने ऐतराज करते हुए मनोज से कहा कि वह उस के साथ गांव में नहीं रहेगी, क्योंकि वह उस के  साथ गालीगलौच करने के साथ मारपीट करता है. ऐसा जीवन वह नहीं जी सकती.

15 जून, 2017 को मनोज अपनी दुकान छोड़ कर कोमल से मिलने उस के घर पहुंचा. मनोज को आया देख कर उस ने उसे और उस के परिवार वालों को बहुत बुराभला कहा. कोमल की बातों से मनोज को लगा कि वह उस के साथ नहीं रहना चाहती. उसे बहुत गुस्सा आया. घर पहुंच कर वह सोचने लगा कि उस ने कोमल से कोर्टमैरिज की है और वह उस की पत्नी है. अगर वह उस के साथ नहीं रहेगी तो वह भी उसे उस की मनमर्जी से नहीं जीने देगा.

अगले दिन सुबह उस ने एक मोबाइल शौप पर जा कर नया सिम खरीदा और एक मैकेनिक के यहां से क्लच वायर ले आया. उसी सिम से उस ने कोमल से बड़े प्यार से बात की. बातोंबातों में उस ने कोमल को घूमने जाने के लिए राजी कर लिया. उस दिन काफी बारिश हुई थी, जिस से मौसम सुहाना हो गया था.

16 जून को मनोज ने कोमल को फिर फोन कर के मिलने के लिए सीमेंट गोदाम के पास बुलाया. कोमल ने कहा कि वह उस के पास पहुंच जाएगी. 2 बजे मनोज अपनी मोटरसाइकिल से सीमेंट गोदाम के पास पहुंचा तो थोड़ी देर बाद कोमल आ गई. उस ने कोमल को मोटरसाइकिल की पिछली सीट पर बिठाया और रिंगरोड होते हुए दिल्ली यूनिवर्सिटी के बोंटा पार्क जा पहुंचा.

पार्क के गेट पर मोटरसाइकिल खड़ी कर के वह कोमल के साथ अंदर चला गया. कोमल को विश्वास में लेने के लिए वह उस से रोमांटिक बातें कर रहा था. वहां झाडि़यों के पास कई युवा जोड़े प्रेमालाप में मग्न थे. यह देख कर कोमल भी रोमांटिक हो गई. कोमल से प्यारीप्यारी बातें करते हुए मनोज उसे एकांत में ले गया, जहां दोनों एक साफसुथरी चट्टान पर बैठ गए. मनोज ने उसे बांहों में ले कर अपनी गलतियों के लिए माफी मांगी और फिर से ऐसा न करने की कसम खाई तो कोमल खुश हो गई.

जब मनोज को लगा कि मौका एकदम सही है तो उस ने कोमल से कहा, ‘‘तुम अपना मुंह पीछे की तरफ कर लो, मैं तुम्हारे लिए एक सरप्राइज गिफ्ट लाया हूं.’’

कोमल ने खुश हो कर मुंह पीछे की ओर कर लिया. उचित मौका देख कर मनोज ने जेब में रखा क्लच वायर निकाला और कोमल की गर्दन पर लपेट कर कस दिया. कोमल ने मनोज को वायर ढीला करने के लिए कहा, साथ ही बचने के लिए बहुत हाथपैर मारे, जिस की वजह से मनोज के हाथों में खरोंचे भी आ गईं. लेकिन उस ने वायर को ढीला नहीं किया.

कुछ ही पलों में कोमल ने आखिरी हिचकी ली और उस की गर्दन एक ओर लुढ़क गई. कोमल की लाश को परे धकेल कर वह पार्क से बाहर आ गया और अपनी मोटरसाइकिल पर सवार हो कर घर लौट आया. इस के बाद उस ने अपनी जीत का जश्न मनाने के लिए अपने दोस्त अनुज के साथ शराब की पार्टी की, जहां कोमल की हत्या का राज उस पर जाहिर कर दिया. पूछताछ के बाद पुलिस ने 17 जून, 2017 को मनोज को तीसहजारी कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

पिता का हत्यारा पुत्र

15 जून, 2017 की रात 10 बजे रिटायर्ड एएसआई मदनलाल  अपने घर वालों से यह कह कर मोटरसाइकिल ले निकले थे कि दरवाजा बंद कर लें, वह थोड़ी देर में वापस आ रहे हैं. लेकिन वह गए तो लौट कर नहीं आए. उन के वापस न आने से घर वालों को चिंता हुई. 65 वर्षीय मदनलाल पंजाब के जिला होशियारपुर राज्यमार्ग पर शामचौरासी-पंडोरी लिंक रोड पर स्थित थाना बुल्लेवाल के गांव लंबेकाने के रहने वाले थे.

मदनलाल सीआईएसएफ से लगभग 5 साल पहले रिटायर हुए थे. उन्हें पेंशन के रूप में एक मोटी रकम तो मिलती ही थी, इस के अलावा उन के 3 बेटे विदेश में रह कर कमा रहे थे. इसलिए उन की गिनती गांव के संपन्न लोगों में होती थी. उन के पास खेती की भी 8 किल्ला जमीन थी.

मदनलाल के परिवार में पत्नी निर्मल कौर के अलावा 3 बेटे दीपक सिंह उर्फ राजू, प्रिंसपाल सिंह, संदीप सिंह और एक बेटी थी, जो बीए फाइनल ईयर में पढ़ रही थी. दीपक और प्रिंसपाल कुवैत में रहते थे, जबकि संदीप ग्रीस में रहता था. उन के चारों बच्चों में से अभी एक की भी शादी नहीं हुई थी. बेटे कमा ही रहे थे, इसलिए मदनलाल को अब जरा भी चिंता नहीं थी.

मदनलाल सुबह जल्दी और रात में अपने खेतों का चक्कर जरूर लगाते थे. उस दिन भी 10 बजे वह अपने खेतों का चक्कर लगाने गए थे, लेकिन लौट कर नहीं आए थे. उन का बेटा दीपक एक सप्ताह पहले ही 8 जून को एक महीने की छुट्टी ले कर घर आया था.

सुबह जब दीपक को पिता के रात को घर न लौटने की जानकारी हुई तो वह मां निर्मल कौर के साथ उन की तलाश में खेतों पर पहुंचा. दरअसल उन्हें चिंता इस बात की थी कि रात में पिता कहीं मोटरसाइकिल से गिर न गए हों और उठ न पाने की वजह से वहीं पड़े हों.

खेतों पर काम करने वाले मजदूरों ने जब बताया कि वह रात को खेतों पर आए ही नहीं थे तो मांबेटे परेशान हो गए. वे सोचने लगे कि अगर मदनलाल खेतों पर नहीं गए तो फिर गए कहां  निर्मल कौर कुछ ज्यादा ही परेशान थीं. दीपक ने उन्हें सांत्वना देते हुए कहा, ‘‘मां, तुम बेकार ही परेशान हो रही हो. तुम्हें तो पता ही है कि वह अपनी मरजी के मालिक हैं. हो सकता है, किसी दोस्त के यहां या फिर बगल वाले गांव में चाचाजी के यहां चले गए हों ’’

crime

जबकि सच्चाई यह थी कि दीपक खुद भी पिता के लिए परेशान था. जब खेतों पर मदनलाल के बारे में कुछ पता नहीं चला तो वह मां के साथ घर की ओर चल पड़ा. रास्ते में उसे बगल के गांव में रहने वाले चाचा ओंकार सिंह और हरदीप मिल गए. उन के मिलने से पता चला कि मदनलाल उन के यहां भी नहीं गए थे. सभी मदनलाल के बारे में पता करते हुए शामचौरासी-पंडोरी फांगुडि़या लिंक रोड के पास पहुंचे तो वहां उन्होंने एक जगह भीड़ लगी देखी. सभी सोच रहे थे कि आखिर वहां क्यों लगी है, तभी किसी ने आ कर बताया कि वहां सड़क पर मदनलाल की लाश पड़ी है. यह पता चलते ही सभी भाग कर वहां पहुंचे. सचमुच वहां खून से लथपथ मदनलाल की लाश पड़ी थी. लाश देख कर सभी सन्न रह गए. मदनलाल के सिर, गरदन, दोनों टांगों और बाजू पर तेजधार हथियार के गहरे घाव थे.

इस घटना की सूचना तुरंत थाना बुल्लेवाल पुलिस को दी गई. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी सुखविंदर सिंह पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर आ पहुंचे. भीड़ को किनारे कर के उन्होंने लाश का मुआयना किया. इस के बाद अधिकारियों को घटना की सूचना दे कर क्राइम टीम और एंबुलेंस बुलवा ली. उन्हीं की सूचना पर डीएसपी स्पैशल ब्रांच हरजिंदर सिंह भी घटनास्थल पर आ पहुंचे.

मामला एक रिटायर एएसआई की हत्या का था, इसलिए एसपी अमरीक सिंह भी आ पहुंचे थे. घटनास्थल और लाश का निरीक्षण कर दिशानिर्देश दे कर पुलिस अधिकारी चले गए. मृतक मदनलाल का परिवार मौके पर मौजूद था, इसलिए सुखविंदर सिंह ने उन की पत्नी निर्मल कौर और बेटे दीपक से पूछताछ की. इस के बाद निर्मल कौर के बयान के आधार पर मदनलाल की हत्या का मुकदमा अपराध संख्या 80/2017 पर अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया गया.

मृतक मदनलाल की पत्नी और बेटे दीपक ने शुरुआती पूछताछ में जो बताया था, उस से हत्यारों तक बिलकुल नहीं पहुंचा जा सकता था. पूछताछ में पता चला था कि मदनलाल की किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी. गांव वाले उन का काफी सम्मान करते थे. इस की वजह यह थी कि वह हर किसी की परेशानी में खड़े रहते थे. अब तक मिली जानकारी में पुलिस को कोई ऐसी वजह नजर नहीं आ रही थी कि कोई उन की हत्या करता.

इस मामले में लूट की भी कोई संभावना नहीं थी. वह घर में पहनने वाले कपड़ों में थे और मोटरसाइकिल भी लाश के पास ही पड़ी मिली थी. गांव वालों से भी पूछताछ में सुखविंदर सिंह के हाथ कोई सुराग नहीं लगा. घर वालों ने जो बता दिया था, उस से अधिक कुछ बताने को तैयार नहीं थे.

चूंकि यह एक पुलिस वाले की हत्या का मामला था, इसलिए इस मामले पर एसएसपी हरचरण सिंह की भी नजर थी. 24 घंटे बीत जाने के बाद भी जब कोई नतीजा सामने नहीं आया तो उन्होंने डीएसपी हरजिंदर सिंह के नेतृत्व में एक स्पैशल टीम का गठन कर दिया, जिस में थानाप्रभारी सुखविंदर सिंह के अलावा सीआईए स्टाफ इंचार्ज सतनाम सिंह को भी शामिल किया था.

टीम ने नए एंगल से जांच शुरू की. सुखविंदर सिंह ने अपने मुखबिरों को मदनलाल के घरपरिवार के बारे में पता लगाने के लिए लगा दिया था. इस के अलावा मदनलाल के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स भी निकलवाई गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, तलवार जैसे किसी हथियार से गले पर लगे घाव की वजह से सांस नली कट गई थी, जिस से उन की मौत हो गई थी. इस के अलावा शरीर पर 8 अन्य गंभीर घाव थे. पोस्टमार्टम के बाद लाश मिलते ही घर वालों ने उस का अंतिम संस्कार कर दिया था.

मुखबिरों से सुखविंदर सिंह को जो खबर मिली, वह चौंकाने वाली थी. मुखबिरों के बताए अनुसार, मृतक के घर में हर समय क्लेश रहता था. घरपरिवार में जैसा माहौल होना चाहिए था, मृतक के घरपरिवार में बिलकुल नहीं था. ऐसा एक भी दिन नहीं होता था, जिस दिन पतिपत्नी में मारपीट न होती रही हो. मदनलाल पत्नी ही नहीं, जवान बेटी को भी लगभग रोज मारतापीटता था.

सुखविंदर सिंह ने सारी बातें एसएसपी और एसपी को बता कर आगे के लिए दिशानिर्देश मांगे. अधिकारियों के ही निर्देश पर सुखविंदर सिंह और सीआईए स्टाफ इंचार्ज सतनाम सिंह ने गांव जा कर मृतक के घर वालों से एक बार फिर अलगअलग पूछताछ की. घर वालों ने इन बातों को झूठा बता कर ऐसेऐसे किस्से सुनाए कि पूछताछ करने गए सुखविंदर सिंह और सतनाम सिंह को यही लगा कि शायद मुखबिर को ही झूठी खबर मिली है.

लेकिन मदनलाल के फोन नंबर की काल डिटेल्स आई तो निराश हो चुकी पुलिस को आशा की एक किरण दिखाई दी. काल डिटेल्स के अनुसार, 15 जून की रात पौने 10 बजे मदनलाल को उन के बेटे दीपक ने फोन किया था. जबकि दीपक ने पूछताछ में ऐसी कोई बात नहीं बताई थी. इस का मतलब था कि घर वालों ने झूठ बोला था और वे कोई बात छिपाने की कोशिश कर रहे थे.

एसएसपी और एसपी से निर्देश ले कर सुखविंदर सिंह और सतनाम सिंह ने डीएसपी हरजिंदर सिंह की उपस्थिति में मदनलाल के पूरे परिवार को पूछताछ के लिए थाने बुला लिया. तीनों से अलगअलग पूछताछ शुरू हुई. दीपक से जब पिता को फोन करने के बारे में पूछा गया तो उस ने साफ मना करते हुए कहा, ‘‘सर, आप लोगों को गलतफहमी हो रही है. उस रात मैं घर पर ही नहीं था. एक जरूरी काम से मैं होशियारपुर गया हुआ था. अगर मैं गांव में होता तो पापा को खेतों पर जाने ही न देता.’’

‘‘हम वह सब नहीं पूछ रहे हैं, जो तुम हमें बता रहे हो. मैं यह जानना चाहता हूं कि तुम ने उस रात अपने पिता को फोन किया था या नहीं ’’ सुखविंदर सिंह ने पूछा.

‘‘आप भी कमाल करते हैं साहब, मेरे पापा की हत्या हुई है और आप कातिलों को पकड़ने के बजाय हमें ही थाने बुला कर परेशान कर रहे हैं.’’ दीपक ने खड़े होते हुए कहा, ‘‘अब मैं आप के किसी भी सवाल का जवाब देना उचित नहीं समझता. मैं अपनी मां और बहन को ले कर घर जा रहा हूं. कल मैं आप लोगों की शिकायत एसपी साहब से करूंगा. आप ने मुझे समझ क्या रखा है. मैं भी एक पुलिस अधिकारी का बेटा और एनआरआई हूं.’’

दीपक की धमकी सुन कर एकबारगी तो पुलिस अधिकारी खामोश रह गए. लेकिन डीएसपी साहब ने इशारा किया तो दीपक को अलग ले जा कर थोड़ी सख्ती से पूछताछ की गई. फिर तो उस ने जो बताया, सुन कर पुलिस अधिकारी हैरान रह गए. पता चला, घर वालों ने ही सुपारी दे कर मदनलाल की हत्या करवाई थी, जिस में मदनलाल की निर्मल कौर ही नहीं, विदेश में रह रहे उस के दोनों बेटे भी शामिल थे. इस तरह 72 घंटे में इस केस का खुलासा हो गया.

पुलिस ने दीपक और उस की मां निर्मल कौर को हिरासत में ले लिया. अगले दिन दोनों को अदालत में पेश कर के विस्तार से पूछताछ एवं सबूत जुटाने के लिए 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि के दौरान सब से पहले दीपक की निशानदेही पर इस हत्याकांड में शामिल 2 अन्य अभियुक्तों की गिरफ्तारी के लिए छापा मारा गया.

इस छापेमारी में अहिराना कला-मोहितयाना निवासी सतपाल के बेटे सुखदीप को तो गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन दूसरा अभियुक्त सोहनलाल का बेटा रछपाल फरार हो गया. तीनों अभियुक्तों से पूछताछ में मदनलाल की हत्या की जो कहानी प्रकाश में आई, वह इस प्रकार थी—

यह बात सही थी कि मदनलाल का परिवार रुपएपैसे से काफी सुखी था, लेकिन यह बात भी सही है कि रुपएपैसे से इंसान को वह सुख नहीं मिलता, जिस के लिए वह जीवन भर भागता रहता है. ऐसा ही कुछ मदनलाल के घर भी था. 5 साल पहले रिटायर हो कर वह अपने घर आए तो 2 साल तो बहुत अच्छे से गुजरे. घर का माहौल भी काफी अच्छा रहा.

लेकिन अचानक न जाने क्या हुआ कि मदनलाल डिप्रेशन में रहने लगे. धीरेधीरे उन की यह बीमारी बढ़ती गई. फिर एक समय ऐसा आ गया, जब छोटीछोटी बातों पर वह उत्तेजित हो उठते और आपे से बाहर हो कर घर वालों से मारपीट करने लगते. इस में हैरानी वाली बात यह थी कि मदनलाल का यह व्यवहार केवल घर वालों तक ही सीमित था. बाहर वालों के साथ उन का व्यवहार सामान्य रहता था.

बेटे जब भी छुट्टी पर आते, पिता को समझाते. उन के रहने तक तो वह ठीक रहते, उन के जाते ही वह पहले की ही तरह व्यवहार करने लगते. मदनलाल लगभग रोज ही पत्नी और बेटी के साथ मारपीट तो करते ही थे, इस से भी ज्यादा परेशानी की बात यह थी कि वह उन्हें घर से भी निकाल देते थे. ऐसे में निर्मल कौर अपनी जवान बेटी को ले कर डरीसहमी रात में किसी के घर छिपी रहती थीं.

अपनी परेशानी निर्मल कौर फोन द्वारा बेटों को बताती रहती थीं. पिता के इस व्यवहार से विदेश में रह रहे बेटे भी परेशान रहते थे. कभीकभी की बात होती तो बरदाश्त भी की जा सकती थी, लेकिन लगभग 3 सालों से यही सिलसिला चला रहा था.

पिता सुधर जाएंगे, तीनों बेटे इस बात का इंतजार करते रहे. लेकिन सुधरने के बजाय वह दिनोंदिन बिगड़ते ही जा रहे थे. घर से हजारों मील दूर बैठे बेटे हर समय मां और बहन के लिए परेशान रहते थे. आखिर जब पानी सिर से ऊपर गुजरने लगा तो तीनों भाइयों ने मिल कर एक खतरनाक योजना बना डाली. यह योजना थी पिता के वजूद को ही खत्म करने की.

इस योजना में निर्मल कौर भी शामिल थी. हां, बेटी जरूर मना करती रही थी, पर उसे सभी ने यह कह कर चुप करा दिया कि वह पराया धन है, उसे आज नहीं तो कल इस घर से चली जाना है. वे सब कब तक इस तरह घुटघुट कर जीते रहेंगे  कल शादियां होने पर उन की पत्नियां आएंगी, तब वे क्या करेंगे.

भाइयों का भी कहना अपनी जगह ठीक था, इसलिए बहन खामोश रह गई. अब जो करना था, दीपक और निर्मल कौर को करना था. योजना के अनुसार, 9 जून, 2017 को दीपक कुवैत से घर आ गया. घर आते ही वह अपने दोस्तों सुखदीप सिंह और रछपाल से मिला और उन्हें पिता को रास्ते से हटाने की सुपारी 2 लाख रुपए में दे दी, साथ ही यह भी वादा किया कि वह उन्हें कुवैत में सैटल करा देगा.

इस के बाद दीपक के भाई प्रिंसपाल ने कुवैत से दीपक के खाते में डेढ़ लाख रुपए भेज दिए, जिस में से दीपक ने 1 लाख रुपए सुखदीप और रछपाल को दे दिए. बाकी पैसा उस ने काम होने के बाद देने को कहा.

दीपक के दोस्तों में सुखदीप तो सीधासादा युवक था, लेकिन रछपाल पेशेवर अपराधी था. उस पर सन 2011 से दोहरे हत्याकांड का केस चल रहा है. वह इन दिनों पैरोल पर जेल से बाहर आया हुआ था.

योजना के अनुसार, 15 जून की रात 9 बजे दीपक, सुखदीप और रछपाल शामचौरासी-पंडोरी रोड पर इकट्ठा हुए. वहीं से दीपक ने मदनलाल को फोन किया, ‘‘पापाजी, मेरी गाड़ी पंडोरी के पास खराब हो गई है. आप अपनी मोटरसाइकिल ले कर आ जाइए तो मैं आप के साथ आराम से चला चलूं.’’

मदनलाल किसी समस्या की वजह से मानसिक बीमारी से जरूर परेशान थे, लेकिन ऐसा भी नहीं था कि उन्हें अपनी जिम्मेदारी का अहसास नहीं था या वह अपना भलाबुरा नहीं समझते था. वह सिर्फ निर्मल कौर को ही देख कर उत्तेजित होते थे. वह ऐसा क्यों करते थे, इस बात को जानने की कभी किसी ने कोशिश नहीं की.

बहरहाल, दीपक का फोन आने के बाद मदनलाल ने कहा कि वह चिंता न करे, मोटरसाइकिल ले कर वह पहुंच रहे हैं. जबकि उस दिन उन की तबीयत ठीक नहीं थी और वह खेतों पर भी नहीं जाना चाहते थे. पर बेटे की परेशानी सुन कर उन्होंने मोटरसाइकिल उठाई और दीपक की बताई जगह पर पहुंच गए.

दीपक, रछपाल और सुखदीप तलवारें लिए वहां छिपे बैठे थे. मदनलाल के पहुंचते ही तीनों उन पर इस तरह टूट पड़े कि उन्हें संभलने का मौका ही नहीं मिला. पलभर में ही मदनलाल सड़क पर गिर कर हमेशा के लिए शांत हो गए. इस तरह बेटे के हाथों मानसिक रूप से बीमार पिता का अंत हो गया.

मदनलाल की हत्या कर सभी अपनेअपने घर चले गए. अगले दिन दीपक ने मां के साथ मिल कर पिता को खोजने का नाटक शुरू किया. लेकिन उस का यह नाटक जल्दी ही पुलिस ने पकड़ लिया.

पुलिस ने दीपक और सुखदीप की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त तलवारें बरामद कर ली थीं. निर्मल कौर और उस के कुवैत में रहने वाले बेटे प्रिंसपाल सिंह पर भी पुलिस ने धारा 120 लगाई है. रिमांड खत्म होने पर पुलिस ने निर्मल कौर, दीपक तथा सुखदीप को अदालत में पेश किया, जहां से सभी को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. तीसरा अभियुक्त रछपाल सिंह अभी पुलिस की पहुंच से दूर है. पुलिस उस की तलाश कर रही है.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

प्रेम के 11 टुकड़े : पति और सास ससुर ने की बहू की हत्या

6 मई, 2017 की बात है. दिन के यही कोई 9 बज रहे थे. नवी मुंबई के उपनगर रबाले के शिलफाटा रोड स्थित एमआईडीसी के बीच से बहने वाले नाले पर एक सुनसान जगह पर काफी लोग इकट्ठा थे. इस की वजह यह थी कि नाले की घनी झाडि़यों के बीच प्लास्टिक का एक बैग पड़ा था. उस में एक मानव धड़ भर कर फेंका गया था. उस का सिर, दोनों हाथ और पैर गायब थे.

यह हत्या का मामला था. इसलिए किसी जागरूक नागरिक ने इस की सूचना पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी थी.

चूंकि घटनास्थल नवी मुंबई के थाना एमआईडीसी के अंतर्गत आता था, इसलिए पुलिस कंट्रोल रूम से सूचना मिलते ही थानाप्रभारी चंद्रकांत काटकर ने चार्जरूम में ड्यूटी पर तैनात सहायक इंसपेक्टर अमर जगदाले को बुला कर डायरी बनवाई और तुरंत सहायक इंसपेक्टर प्रमोद जाधव, अमर जगदाले और कुछ सिपाहियों को ले कर घटनास्थल के लिए रवाना हो गए.

घटनास्थल पर पहुंच कर थानाप्रभारी चंद्रकांत काटकर ने वहां एकत्र भीड़ को हटा कर उस प्लास्टिक के बैग को झाडि़यों से बाहर निकलवाया. बैग में भरा धड़ बाहर निकलवाया गया. वह धड़ किसी महिला का था. हत्या के बाद लाश को ठिकाने लगाने के लिए उस का सिर और हाथपैर काट कर केवल धड़ वहां फेंका गया था. घटनास्थल की काररवाई निपटा कर चंद्रकांत काटकर ने धड़ को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. लेकिन पोस्टमार्टम के लिए भेजने से पहले उन्होंने डीएनए जांच के लिए सैंपल सुरक्षित करवा लिया था.

मृतका के बाकी अंग न मिलने से पुलिस समझ गई कि हत्यारा कोई ऐरागैरा नहीं, काफी होशियार और शातिर था. खुद को बचाने के लिए उस ने सबूतों को नष्ट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी.

धड़ के साथ ऐसी कोई चीज नहीं मिली थी, जिस से उस की शिनाख्त हो सकती. धड़ के निरीक्षण में पुलिस को उस की बची बांह पर सिर्फ गणेश भगवान का एक टैटू दिखाई दिया था. इस से यह तो स्पष्ट हो गया था कि मृतका हिंदू थी, लेकिन सिर्फ एक टैटू से शिनाख्त होना संभव नहीं था. फिर भी पुलिस को उम्मीद की एक किरण तो मिल ही गई थी.

घटनास्थल की काररवाई निपटा कर थानाप्रभारी थाने लौटे और सहायकों के साथ बैठ कर विचारविमर्श के बाद इस मामले को सुलझाने की जिम्मेदारी इंसपेक्टर प्रमोद जाधव को सौंप दी थी.

मामले की जांच की जिम्मेदारी मिलते ही प्रमोद जाधव ने तुरंत मुंबई और उस के आसपास के सभी छोटेबड़े थानों को वायरलैस संदेश भिजवा कर यह पता लगाने की कोशिश की कि किसी थाने में किसी महिला की गुमशुदगी तो नहीं दर्ज है. इसी के साथ उन्होंने मृतका की बाजू पर बने गणेश भगवान के टैटू को हाईलाइट करते हुए महानगर के सभी प्रमुख दैनिक अखबारों में फोटो छपवा कर उस धड़ की शिनाख्त की अपील की.

अखबार में छपी इस अपील का पुलिस को फायदा यह मिला कि धड़ की शिनाख्त हो गई. वह धड़ प्रियंका गुरव का था. उस की गुमशुदगी मुंबई के पौश इलाके के थाना वरली में दर्ज थी. ठाणे के डोंबिवली कल्याण की रहने वाली कविता दूधे और उन के भाई गणेश दूधे ने उस धड़ को अपनी छोटी बहन प्रियंका का धड़ बताया था.

अखबार में खबर छपने के अगले दिन सवेरे कविता दूधे अपने भाई गणेश दूधे के साथ थाना एमआईडीसी पहुंची और चंद्रकांत काटकर से मिल कर बांह पर बने गणेश भगवान के टैटू से आशंका व्यक्त की थी कि वह धड़ उन की बहन प्रियंका का हो सकता है. क्योंकि 5 मई, 2017 से वह गायब है.

ससुराल वालों के अनुसार, वह सुबह किसी नौकरी के लिए इंटरव्यू देने घर से निकली थी तो लौट कर नहीं आई थी. कविता ने बरामद धड़ देखने की इच्छा जाहिर की, क्योंकि वह उस टैटू को पहचान सकती थी. प्रियंका ने अपनी बांह पर वह टैटू उसी के सामने बनवाया था.

चंद्रकांत काटकर ने कविता और गणेश को धड़ दिखाने के लिए इंसपेक्टर प्रमोद जाधव के साथ अस्पताल के मोर्चरी भिजवा दिया. धड़ देखते ही कविता और गणेश फूटफूट कर रो पड़े थे. इस से साफ हो गया था कि वह धड़ प्रियंका का ही था. इस तरह धड़ की शिनाख्त हो गई तो जांच आगे बढ़ाने का रास्ता मिल गया.अब पुलिस को यह पता लगाना था कि प्रियंका की हत्या क्यों और किस ने की? पूछताछ में प्रियंका की बहन कविता और भाई गणेश ने बताया था कि प्रियंका ने वर्ली स्थित पीडब्ल्यूडी के सरकारी आवास में अपने परिवार के साथ रहने वाले सिद्धेश गुरव से 30 अप्रैल, 2017 को प्रेम विवाह किया था.

भाईबहन ने प्रियंका को इस विवाह से मना किया था. इस की वजह यह थी कि न सिद्धेश उस से विवाह करना चाहता था और न ही उस के घर वाले चाहते थे कि सिद्धेश प्रियंका से विवाह करे. आखिर वही हुआ, जिस की उन्हें आशंका थी. प्रियंका के हाथों की मेहंदी का रंग फीका होता, उस से पहले ही उस की जिंदगी का रंग फीका हो गया.

इस के बाद पुलिस ने मृतका के पति सिद्धेश और उस के घर वालों को थाने बुला कर पूछताछ की तो उन्होंने भी वही सब बताया, जो कविता और गणेश बता चुके थे. उन का कहना था कि 5 मई की सुबह इंटरव्यू के लिए गई प्रियंका रात को भी घर लौट कर नहीं आई तो उन्हें चिंता हुई. सभी पूरी रात उस की तलाश करते रहे. जब कहीं से भी उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली तो उन्होंने अगले दिन यानी 6 मई को थाना वर्ली में उस की गुमशुदगी दर्ज करा दी थी.

थाना एमआईडीसी पुलिस तो इस मामले की जांच कर ही रही थी, क्राइम ब्रांच के सीनियर इंसपेक्टर जगदीश कुलकर्णी भी इस मामले की जांच कर रहे थे. प्रियंका की ससुराल वालों ने जो बयान दिया था, उस में उन्हें दाल में कुछ काला नजर आ रहा था. जब उन्होंने प्रियंका के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स और लोकेशन निकलवाई तो उन्हें पूरी दाल ही काली नजर आई.

ससुराल वालों ने जिस दिन प्रियंका के बाहर जाने की बात बताई थी, मोबाइल फोन की लोकेशन के अनुसार उस दिन पूरे दिन प्रियंका घर पर ही थी. वह घर से बाहर गई ही नहीं थी. इस के अलावा किसी संपन्न परिपवार की बहू विवाह के मात्र 5 दिनों बाद ही नौकरी के लिए किसी कंपनी में इंटरव्यू देने जाएगी, यह भी विश्वास करने वाली बात नहीं थी. उस समय तो वह पति के साथ खुशियां मनाएगी.

मामला संदिग्ध लग रहा था. लेकिन परिवार सम्मनित था, इसलिए उन पर हाथ डालने से पहले इंसपेक्टर जगदीश कुलकर्णी ने अधिकारियों से राय ली. अधिकारियों ने आदेश दे दिया तो वह प्रियंका के पति सिद्धेश, ससुर मनोहर गुरव और मां माधुरी गुरव को क्राइम ब्रांच के औफिस ले आए.

सभी से अलगअलग पूछताछ की गई तो आखिर में प्रियंका की हत्या का खुलासा हो गया. पता चला कि इन्हीं लोगों ने प्रियंका की हत्या की थी. इस पूछताछ में प्रियंका की हत्या से ले कर उस की लाश को ठिकाने लगाने तक की जो कहानी प्रकाश में आई, वह इस प्रकार थी.

25 वर्षीय सिद्धेश गुरव का परिवार मुंबई से सटे ठाणे के उपनगर कल्याण बासिंद में रहता था. उस के पिता का नाम मनोहर गुरव और मां का माधुरी गुरव था. परिवार छोटा और सुखी था. मनोहर गुरव सरकारी नौकरी में थे. रहने के लिए सरकारी आवास मिला था. सिद्धेश गुरव उन का एकलौता बेटा था, जिसे पढ़ालिखा कर वह सीए बनाना चाहते थे.

सिद्धेश पढ़ाईलिखाई में तो ठीकठाक था ही, महत्त्वाकांक्षी भी था. वह सीए तो नहीं बन सका, लेकिन पढ़ाई पूरी होते ही उसे मुंबई के विक्रोली स्थित टीसीएस कंपनी में उसे अच्छी नौकरी मिल गई थी. बेटे को नौकरी मिलते ही मनोहर गुरव का भी प्रमोशन हो गया था. इस के बाद उन्हें रहने के लिए मुंबई के वर्ली स्थित पीडब्ल्यूडी कालोनी में बढि़या सरकारी आवास मिल गया. इस के बाद वह अपना बासिंद का घर छोड़ कर वर्ली स्थित सरकारी आवास में रहने आ गए.

22 साल की प्रियंका सिद्धेश के साथ ही पढ़ती थी. खूबसूरत प्रियंका की पहले सिद्धेश से दोस्ती हुई, उस के बाद दोनों में प्यार हो गया. आकर्षक शक्लसूरत और शांत स्वभाव का सिद्धेश प्रियंका को भा गया था. ऐसा ही कुछ सिद्धेश के साथ भी था.

प्रियंका अपनी बड़ी बहन कविता दूधे, भाई गणेश दूधे और बूढ़ी मां के साथ कल्याण के उपनगर दिवा गांव में रहती थी. पिता की बहुत पहले मौत हो चुकी थी. मां ने किसी तरह दोनों बेटियों और बेटे को पालपोस कर बड़ा किया था. कविता सयानी हुई तो मां की सारी जिम्मेदारी उस ने अपने कंधों पर ले ली. उस ने प्रियंका और भाई को पढ़ाया-लिखाया, जबकि वह खुद ज्यादा पढ़लिख नहीं पाई थी. लेकिन वह प्रियंका और गणेश को पढ़ालिखा कर उन्हें अच्छी जिंदगी देने का सपना जरूर देख रही थी.

प्रियंका और सिद्धेश की प्रेमकहानी की शुरुआत 3 साल पहले सन 2014 में हुई थी. उस समय डोंबिवली कालेज में दोनों एक साथ पढ़ रहे थे. दोनों में प्यार हुआ तो साथसाथ जीनेमरने की कसमें भी खाई गईं. इस के बाद दोनों में शारीरिक संबंध भी बन गए.

लेकिन जब सिद्धेश को नौकरी मिल गई और उस के पिता का प्रमोशन हो गया तो वह परिवार के साथ वर्ली रहने चला गया. इस के बाद कुछ दिनों तक तो वह प्रियंका से मिलता रहा और शादी करने की बात करता रहा, लेकिन धीरेधीरे उस ने प्रियंका से मिलनाजुलना कम कर दिया.

इस के बाद वह सिर्फ फोन पर ही प्रियंका से बातें कर के रह जाता था. प्रियंका जब भी उस से मिलने की बात करती, कोई न कोई बहाना बना कर वह टाल देता था. वह शादी की बात करती तो कहता कि अभी शादी की इतनी जल्दी क्या है, जब समय आएगा, शादी भी कर लेंगे.

अचानक प्रियंका को जो जानकारी मिली, उस से उस का सारा अस्तित्व ही हिल उठा. उसे कहीं से पता चला कि सिद्धेश के जीवन में कोई और लड़की आ गई है, जिस में उस के मांबाप की भी सहमति है. इस से वह परेशान हो उठी. जब इस बात की जानकारी उस के घर वालों को हुई तो उन्होंने उसे समझाया कि ऐसे में उस का सिद्धेश से विवाह करना ठीक नहीं है.

लेकिन प्रियंका ने तो ठान लिया था कि वह विवाह सिद्धेश से ही करेगी. क्योंकि वह मर्यादाओं की सारी सीमाएं तोड़ चुकी थी, इसलिए उस ने अपने घर वालों की बात भी नहीं मानी.

निश्चय कर के एक दिन प्रियंका सिद्धेश से मिली और विवाह के बारे में पूछा. सिद्धेश ने यह कह कर टालना चाहा कि वह उस के मांबाप को पसंद नहीं है, इसलिए वह उस से शादी नहीं कर सकता. इस पर प्रियंका ने कहा, ‘‘मुझे तुम्हारे मांबाप पसंद नहीं करते तो न करें, तुम तो मुझे पसंद करते हो. शादी के बाद हम मांबाप को राजी कर लेंगे.’’

प्रियंका की इस बात का सिद्धेश के पास कोई जवाब नहीं था. कुछ देर तक चुप बैठा वह सोचता रहा, उस के बाद बोला, ‘‘मैं मजबूर हूं. मैं अपने मांबाप के खिलाफ नहीं जा सकता. तुम मुझे भूल जाओ.’’

‘‘तुम मुझे भूल सकते हो, लेकिन मैं तुम्हें नहीं भूल सकती. तुम ने मुझे खिलौना समझ रखा है क्या कि जब तक मन में आया खेला और जब मन भर गया तो फेंक दिया? शादी का वादा कर के मेरे मन और तन से खेलते रहे. देखा जाए तो एक तरह से मेरा यौनशोषण करते रहे. अब तुम्हें कोई दूसरी लड़की मिल गई है तो मुझ से पीछा छुड़ा रहे हो. अगर तुम ने शादी नहीं की तो मैं तुम्हारे खिलाफ शादी का झांसा दे कर यौनशोषण का मुकदमा दर्ज कराऊंगी.’’

प्रियंका की इस धमकी से सिद्धेश और उस के घर वाले घबरा गए. समाज और नातेरिश्तेदारों में बदनामी से बचने के लिए सिद्धेश ने प्रियंका से शादी कर ली. इस में घर वालों ने भी रजामंदी दे दी. इस तरह सिद्धेश और प्रियंका ने प्रेम विवाह कर लिया.

सिद्धेश ने विवाह तो कर लिया, लेकिन यह एक तरह की जबरदस्ती की शादी थी. इसलिए प्रियंका को ससुराल में जो प्यार और सम्मान मिलना चाहिए था, वह नहीं मिला. सम्मान देने की कौन कहे, उस के पति और सासससुर तो किसी तरह उस से पीछा छुड़ाने की सोच रहे थे.

इस के लिए सिद्धेश और उस के मांबाप ने साजिश रच कर 4-5 मई, 2017 की रात प्रियंका जब गहरी नींद में सो रही थी, तब सिद्धेश ने उस के मुंह पर तकिया रख कर उसे हमेशा के लिए सुला दिया.

प्रियंका की हत्या के बाद जब उस की लाश को ठिकाने लगाने की बात आई तो सिद्धेश और उस के मांबाप ने डोंबिवली के रहने वाले अपने परिचित अपराधी प्रवृत्ति के दुर्गेश कुमार पटवा से संपर्क किया. प्रियंका की लाश को ठिकाने लगाने के लिए उस ने एक लाख रुपए मांगे.

सौदा तय हो गया तो दुर्गेश ने मदद के लिए डोंबिवली के ही रहने वाले अपने मित्र विशाल सोनी को सैंट्रो कार सहित बुला लिया. विशाल के आने पर दुर्गेश ने प्रियंका की लाश को बाथरूम में ले जा कर उस के 11 टुकड़े किए. लाश के टुकड़े करने के लिए हथियार वे अपने साथ लाए थे.

लाश के टुकड़ों को अलगअलग प्लास्टिक के बैग में अच्छी तरह से पैक कर विशाल ने उन्हें कार में रखा और 5-6 मई, 2017 की रात धड़ को रबाले के नाले में तो सिर को ले जा कर शाहपुर के जंगल में फेंका. कमर के नीचे के हिस्से और हाथों को अमरनाथ-बदलापुर रोड के बीच स्थित खारीगांव की खाड़ी में ले जा कर पैट्रोल डाल कर जला दिया.

लाश ठिकाने लग गई तो 6 मई को सिद्धेश अपने मांबाप के साथ थाना वर्ली पहुंचा और प्रियंका की गुमशुदगी दर्ज करा दी. उन्होंने तो सोचा था कि सब ठीक हो गया है, लेकिन 3 दिनों बाद ही सब गड़बड़ हो गया, जब क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर जगदीश कुलकर्णी ने पूछताछ के लिए उन्हें अपने औफिस बुला लिया. मामले का खुलासा होने के बाद उन्होंने सभी को थाना एमआईडीसी पुलिस के हवाले कर दिया.

सिद्धेश, उस के पिता मनोहर तथा मां माधुरी से पूछताछ कर मामले की जांच कर रहे प्रमोद जाधव ने 12 मई, 2017 को दुर्गेश पटवा को डोंबिवली से तो 14 मई को विशाल सोनी को भी उस के घर से सैंट्रो कार सहित गिरफ्तार कर लिया. इन की निशानदेही पर पुलिस ने प्रियंका के सिर तथा बाकी अंगों की राख बरामद कर ली थी.

सबूत जुटा कर पुलिस ने सिद्धेश गुरव, उस के पिता मनोहर गुरव, मां माधुरी गुरव, दुर्गेश कुमार पटवा और विशाल सोनी को अदालत में पेश किया, जहां से सभी को जेल भेज दिया गया.

  • कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

शैतान का कारनामा : इंसानियत हुई शर्मसार

लुधियाना के थाना सलेमटाबरी के मोहल्ला नानकनगर के रहने वाले देविंदर कुमार पेशे से फोटोग्राफर थे. उसी इलाके में उन की फोटोग्राफी की दुकान थी. अपनी दुकान पर तो वह फोटोग्राफी करते ही थे, जरूरत पड़ने पर थानों में जा कर पुलिस द्वारा पकड़े गए अभियुक्तों के फोटो खींच कर डोजियर भी बनाते थे. इस के अलावा लोकल समाचारपत्रों के लिए भी वह फोटोग्राफी करते थे.

हर किसी का दुखदर्द सुनने समझने वाले देविंदर कुमार काफी मिलनसार थे. उन के परिवार में पत्नी के अलावा 2 बेटे, 8 साल का चेतन और 5 साल का जतिन था. उन के दोनों बेटे पढ़ने जाते थे. अपने इस छोटे से सुखी परिवार के साथ देविंदर खुद को बड़ा भाग्यशाली समझ रहे थे. पुलिस प्रशासन में उन की काफी पैठ थी, जिस से आम लोग उन की काफी इज्जत करते थे.

देविंदर कुमार की पत्नी का अपना ब्यूटीपार्लर था. उन के बड़े और छोटे भाई भी उसी मोहल्ले में रहते थे. 3 मई, 2017 की शाम 7 बजे के करीब देविंदर घर पहुंचे तो पता चला कि गली में खेलते हुए उन का बड़ा बेटा चेतन अचानक गायब हो गया है. हैरान परेशान देविंदर पत्नी के साथ बेटे की तलाश में निकल पड़े. चेतन का इस तरह गायब होना हैरानी की बात थी. क्योंकि वह कहीं आताजाता नहीं था.

चेतन सुबह 7 बजे स्कूल जाता था तो दोपहर साढ़े 12 बजे लौटता था. खाना खा कर वह 2 बजे पड़ोस में रहने वाली अपनी ताई के घर चला जाता था. 5 बजे तक उन्हीं के यहां रहता था. इस के बाद थोड़ी देर वह छोटे भाई और गली के लड़कों के साथ गली में खेलता था या साइकिल चलाता था. इस के बाद घर आ जाता था तो घर से बाहर नहीं निकलता था.

गली के बच्चों से पूछने पर पता चला कि शाम 7 बजे तक चेतन उन्हीं के साथ गली में खेल रहा था. उस की साइकिल भी घर में अपनी जगह खड़ी थी. इस का मतलब था, साइकिल खड़ी कर के वह कहीं गया था. उस के गायब होने की जानकारी पा कर देविंदर के भाई तो आ ही गए थे, मोहल्ले वाले भी उन की मदद के लिए आ गए थे.

लगभग 9 बजे गली के ही रहने वाले रोशनलाल ने बताया कि शाम 7 बजे के करीब वह काम से बाहर जा रहे थे तो उन्होंने गली के कोने पर चेतन को विक्की से बातें करते देखा था. विक्की उस समय मोटरसाइकिल से था. वह चेतन को मोटरसाइकिल पर बैठने के लिए कह रहा था. उन्होंने यह भी आशंका व्यक्त की कि शायद वह बाईपास की ओर गया.

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रोशनलाल से इतनी जानकारी मिलने पर सभी को थोड़ी राहत महसूस हुई कि चलो चेतन विक्की के साथ है. लेकिन देविंदर परेशान हो उठे थे, क्योंकि वह विक्की की आदतों के बारे में जानते थे. विक्की का नाम राहुल था. वह अमृतसर के रहने वाले देविंदर के सगे मामा का बेटा था. वह ज्यादातर यहां उन के छोटे भाई रवि के यहां रहता था. कभीकभार उन के यहां भी रहने आ जाता था. चेतन और जतिन उसे चाचा कहते थे. वह एक नंबर का शराबी और सट्टेबाज था. इसी वजह से उस की अपने पिता से नहीं पटती थी. इसी वजह से वह अपना घर छोड़ कर अपनी बुआ के बेटों के यहां पड़ा रहता था.

देविंदर सभी के साथ जालंधर बाईपास पर पहुंचे, लेकिन वहां न विक्की मिला और न चेतन. थकहार कर रात साढ़े 11 बजे वह सभी के साथ थाना सलेमटाबरी पहुंचे और पुलिस को सारी बातें बता कर मदद मांगी. लेकिन पुलिस वालों से अच्छे संबंध होने के बावजूद थाना सलेमटाबरी पुलिस ने उन से यह कह कर अपना पिंडा छुड़ा लिया कि पहले  आप बच्चे को अच्छी तरह से तलाश लो, उस के बाद आना.

जबकि देविंदर कुमार पुलिस से यही कहते रहे कि उन के बेटे का अपहरण हुआ है. वह अपहर्त्ता का नाम बताने के साथ उस की फोटो और मोटरसाइकिल का नंबर भी पुलिस को दे रहे थे. इस के बावजूद पुलिस ने उन की एक नहीं सुनी.

देविंदर कुमार सभी के साथ घर लौट कर आए. वे घर पहुंचे ही थे कि विक्की मिल गया. उस से चेतन के बारे में पूछा गया तो कुछ बताने के बजाय वह सभी को धमकाने लगा.

उसे थाने ले जाया गया तो नशे में होने की वजह से पुलिस ने उस से पूछताछ करने के बजाय यह कह कर वापस कर दिया कि यह घर का मामला है, इस में हम कुछ नहीं कर सकते. थाने से खाली हाथ लौटने के बाद देविंदर ने पुलिस अधिकारियों से गुहार लगाई, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. अंत में उन्होंने पुलिस के हेल्पलाइन नंबर 181 पर फोन कर के शिकायत दर्ज कराई.

इस के बाद कुछ सिपाही चेतन की तलाश में उन के साथ निकले. देविंदर को किसी से पता चला कि बाईपास के पास एक खाली पड़े निर्माणाधीन मकान में विक्की अकसर अपने दोस्तों के साथ बैठ कर शराब पीता था. वह पुलिस के साथ वहां पहुंचे तो उन्हें वहां चेतन के रोने की आवाज सुनाई दी.

उन्होंने पुलिस से अंदर चल कर चेतन की तलाश करने को कहा, पर पुलिस वालों ने उन की एक नहीं सुनी और बाहर से ही लौट आए.

सुबह 6 बजे थाना सलेमटाबरी के थानाप्रभारी अमनदीप सिंह बराड़ के आदेश पर एक पुलिस टीम देविंदर के साथ विक्की और चेतन की तलाश में अमृतसर गई. पुलिस को वह वहां अपने घर के पास एक पार्क में बैठा दिखाई दे गया. पुलिस टीम उस तक पहुंचती, उस के पहले ही वह पुलिस को चकमा दे कर फरार हो गया. पुलिस ने उस की तलाश में अन्य कई जगहों पर छापे मारे, पर वह नहीं मिला.

अगले दिन 6 मई, 2017 को लुधियाना के प्रमुख दैनिक समाचार पत्रों ने इस खबर को प्रमुखता से छापा. समाचार में पुलिस की लापरवाही और गैरजिम्मेदाराना व्यवहार के बारे में विस्तार से छपा था. इस समाचार को पढ़ कर पुलिस विभाग तत्काल हरकत में आ गया.

उसी दिन शाम को 6 बजे किसी राहगीर ने सूचना दी कि कोलकाता होजरी के पास एक खाली प्लौट में किसी बच्चे की अर्धनग्न लाश पड़ी है. सूचना मिलते ही अमनदीप सिंह बराड़ देविंदर को ले कर पुलिस बल के साथ बताई गई जगह पर पहुंच गए. वहां सचमुच एक बच्चे की लाश पड़ी थी. वहां जो लाश पड़ी मिली थी, वह चेतन की ही थी. हालांकि लाश का चेहरा बुरी तरह कुचला था, उस के मुंह में कपड़ा भी ठूंसा हुआ था. उस पर पैट्रोल डाल कर जलाने की भी कोशिश की गई थी, इस के बावजूद देविंदर कुमार ने लाश की पहचान कर ली थी.

बेटे की हालत देख कर देविंदर फूटफूट कर रो पड़े. घटनास्थल पर पुलिस को चेतन की चप्पलों के अलावा और कुछ नहीं मिला था. लाश कब्जे में ले कर अमनदीप सिंह बराड़ ने पोस्टमार्टम के लिए सिविल अस्पताल भिजवा दिया. इस के बाद थाने आ कर चेतन की गुमशुदगी की जगह अपराध संख्या 135/2017 पर भादंवि की धारा 302, 364/34 के तहत मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू कर दी.

7 मई, 2017 को सिविल अस्पताल में 3 डाक्टरों के पैनल ने चेतन की लाश का पोस्टमार्टम किया. उस समय पुलिस अधिकारी भी अस्पताल में मौजूद थे.

अस्पताल में सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम किया गया था. इस की वजह यह थी कि पुलिस के रवैए से लोग काफी नाराज थे. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, मृतक चेतन की एक टांग और बाजू की हड्डी टूटी हुई थी. दोनों बाजुओं पर चोटों के निशान थे. मुंह में कपड़ा ठूंस कर सिर और चेहरे पर ईंटों से वार किए गए थे. उस के साथ कुकर्म भी किया गया था.

पुलिस ने सुरक्षा की दृष्टि से उसी दिन चेतन का अंतिम संस्कार करवा दिया था. एडीशनल पुलिस कमिश्नर धु्रमन निंबले स्वयं पलपल की रिपोर्ट ले रहे थे. एडीसीपी क्राइम, एसीपी सचिन गुप्ता सहित सीआईए स्टाफ की टीमें आरोपी विक्की की तलाश में लगी थीं. इस के अलावा मुखबिरों को भी उस की तलाश में लगा दिया गया था.

7 मई, 2017 को ही एक मुखबिर की सूचना पर चेतन की हत्या के अभियुक्त विक्की को थाना लाडोवाल के एक शराब के ठेके से गिरफ्तार कर लिया गया था. उस समय वह नशे में था.

पुलिस विक्की को थाना सलेमटाबरी ले आई. पूछताछ में उस ने मासूम चेतन के अपहरण और हत्या का अपराध स्वीकार कर के जो कहानी सुनाई, वह इंसानियत को शर्मसार करने वाली थी. हम सभी शैतान का केवल नाम सुनते आए हैं, अगर शैतान होता होगा तो वह विक्की जैसा ही होगा.

विक्की को नशे की आदत थी. इस के अलावा वह जुआसट्टा भी खेलता था. सभी जानते थे कि वह नशे के लिए कुछ भी कर सकता था. लेकिन नशे के लिए वह इस तरह की हरकत भी कर सकता है, यह किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था.

उस दिन विक्की ने काफी शराब पी रखी थी. इस के बावजूद वह संतुष्ट नहीं था. अब उस के पास पैसे नहीं थे, जबकि अभी वह और पीना चाहता था. इस के अलावा नशे में होने की वजह से उस की शारीरिक संबंध बनाने की भी इच्छा हो रही थी. जबकि उस के पास न कोई लड़की थी और न ही पास में पैसे थे.

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वह इसी सोच में डूबा घर की ओर लौट रहा था, तभी गली के कोने पर उसे चेतन खेलता दिखाई दे गया. उसे देख कर अचानक उस के अंदर का शैतान जाग उठा. कैसे और क्या किया जाए, वह योजना बना रहा था कि तभी चेतन ने उस के नजदीक आ कर पूछा, ‘‘चाचा, यहां क्या कर रहे हो?’’

‘‘चलो चेतन, मैं तुम्हें मोटरसाइकिल पर बैठा कर घुमा लाता हूं. वैसे ही तुम्हें टौफी भी दिला दूंगा.’’ विक्की ने कहा.

चेतन बच्चा तो ही था. विक्की के इरादों से अंजान वह उस के साथ चल पड़ा. पहले वह ब्लैक में शराब बेचने वाली एक औरत के घर गया. उस समय उस के पास पैसे कम थे. उस ने चेतन को उस के पास गिरवी रख कर शराब ली और फिर कहीं जा कर सौ रुपए का इंतजाम किया. इस के बाद उस औरत को पैसे दे कर चेतन को छुड़ाया और उसे कोलकाता होजरी के पास वाली उस निर्माणाधीन इमारत में ले गया.

अब तक रात के लगभग 10 बज चुके थे. चेतन अब टौफी भूल कर घर जाने की जिद करने लगा था. विक्की ने उसे 2 थप्पड़ मार कर एक कोने में बैठा दिया और खुद साथ लाई शराब पीने लगा. जब उसे नशा चढ़ा तो इंसानियत की सारी हदें पार करते हुए वह मासूम के साथ कुकर्म करने लगा. दर्द से कराहते हुए अर्धबेहोशी की हालत में चेतन ने कहा, ‘‘चाचा, तुम बड़े गंदे हो, मैं यह सब को बता दूंगा.’’

यह सुन कर विक्की डर गया. उस ने चेतन के मुंह में कपड़ा ठूंस कर पहले उस की जम कर पिटाई की, उसे उठाउठा कर जमीन पर पटका. इस के बाद ईंट से उस के चेहरे पर कई वार किए. लेकिन अभी वह मरा नहीं था. उसी हालत में उस ने उसे ले जा कर खाली प्लौट में फेंक दिया और मोटरसाइकिल से पैट्रोल निकाल कर उस के शरीर पर छिड़क कर आग लगा दी.

चेतन की लाश को जलाने के बाद वह अमृतसर चला गया. पुलिस वहां पहुंची तो वह तरनतारन भाग गया. पर हर जगह भटकने के 2 दिनों बाद वह अपनी मनपसंद की शराब पीने लुधियाना के बाहरी इलाके लाडोवाल पहुंचा तो मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया.

8 मई, 2017 को पूछताछ के बाद अमनदीप सिंह बराड़ ने उसे अदालत में पेश कर के 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि में उस की निशानदेही पर खून सने कपड़े और वह ईंट बरामद कर ली गई, जिस से उस ने चेतन का चेहरा कुचला था. मोटरसाइकिल बरामद कर के पुलिस जांच कर रही है कि नशे में उस ने और क्याक्या किया था?

मृतक चेतन के पिता देविंदर कुमार को इस बात का मलाल जीवन भर रहेगा कि अगर पुलिस ने समय रहते उन की बात मान ली होती तो आज उन का बेटा चेतन जीवित होता.

– पुलिस सूत्रों व जनचर्चाओं पर आधारित

भाई ने ही कराई अपने भाइयों की हत्या

24 नवंबर, 2016 की रात पटना के जमाल रोड स्थित कुमार कौंप्लेक्स की चौथी मंजिल पर स्थित फ्लैट में रहने वाले शिवराज चौधरी के बेटों अभिषेक और सागर चौधरी की हत्या हो गई थी. दोनों भाइयों की लाशें पुलिस ने फ्लैट के एक ही कमरे से बरामद की थीं. दोनों भाई यह फ्लैट किराए पर ले कर रह रहे थे.

हत्यारों ने दोनों भाइयों की बड़ी बेरहमी से हत्या की थी. हत्या के बाद गुप्तांग भी काट लिए थे. अभिषेक का सिर धड़ से अलग कर दिया गया था. सागर के गले में प्लास्टिक की रस्सी लपेटी थी, जिस से अंदाजा लगाया गया था कि उस की हत्या गला दबा कर की गई थी.

हत्यारों ने अभिषेक और सागर की हत्या में चाकू का भी उपयोग किया गया था. उन के शरीर पर चाकुओं के करीब 25-30 घाव थे. शरीर का कोई भी अंग बाकी नहीं था, जहां चाकू का घाव न रहा हो. इस से साफ लग रहा था कि हत्यारों को मृतकों से काफी खुन्नस थी.

पुलिस ने रोहतास, पटना और भोजपुर के ऐसे 9 लोगों से पूछताछ की, जिन का अभिषेक से संबंध था. ये सभी अभिषेक और सागर के करीबी रिश्तेदार थे. इन लोगों से पूछताछ में पता चला था कि सासाराम के बंजारी इलाके की रहने वाली किसी लड़की से अभिषेक का विवाह होने वाला था.

उस लड़की से अभिषेक की सगाई 16 सितंबर, 2016 को रोहतास में हुई थी. 23 नवंबर को शादी होने वाली थी. सगाई के बाद लड़की से अभिषेक की फोन पर बातें होने लगी थीं. लेकिन कुछ दिनों बाद ही सगाई टूट गई थी.

पुलिस ने जब इस की वजह पता की तो घर वालों ने बताया कि लड़की के सुंदर न होने की वजह से यह सगाई टूटी थी. अभिषेक के पिता शिवराज चौधरी का कहना था कि अभिषेक की सगाई होने के कुछ दिनों बाद ही उस की मर्चेंट नेवी में नौकरी लग गई थी.

मई, 2017 में उसे मुंबई जा कर नौकरी जौइन करनी थी. इसी बात को ले कर उसे विवाह में मामला उलझ गया था. अभिषेक के कैरियर को देखते हुए लड़की के घर वालों से विवाह के लिए मना कर दिया गया था, जिस की वजह से दोनों परिवारों में काफी विवाद हुआ था. अभिषेक के घर वालों ने दहेज के रूप में लड़की वालों से एक लाख रुपए एडवांस ले रखे थे.

24 नवंबर की सुबह 7 बजे अभिषेक नारायणपुर गांव के अपने घर से पटना पहुंचा था, जहां उस की मुलाकात कुछ दोस्तों से हुई थी. दोपहर 2 बजे वह अपने जीजा अमित से मिला था. वह पटना हाइकोर्ट में वकालत करते हैं. उसी दिन अभिषेक के मंझले भाई सागर को किसी काम से घर जाना था. वह घर के लिए निकला जरूर, पर पहुंचा नहीं.

अभिषेक और सागर के सब से छोटे भाई का नाम अमित चौधरी उर्फ भोलू है. पहले पुलिस को उसी पर दोनों भाइयों की हत्या का शक था. पुलिस उस से पूछताछ करना चाहती थी, लेकिन घर वाले पुलिस से कह रहे थे कि वह बीमार है. घर वालों का कहना था कि 2 भाइयों की हत्या की वजह से वह गहरे सदमे में हैं.

गौरतलब है कि हत्या के बाद भोलू और उस के मामा ही सब से पहले कमरे में पहुंचे थे. पुलिस को यह भी लग रहा था कि कहीं दोनों भाइयों की हत्या प्रेमप्रसंग की वजह से तो नहीं हुई है. लेकिन घटनास्थल की स्थिति से लग रहा था कि इस हत्याकांड में किसी जानपहचान वाले का हाथ है. इस की वजह यह थी कि हत्यारा आराम से दोनों के कमरे में पहुंच गया था और दोनों की हत्या कर के चला गया था.

हत्या वाले दिन दोपहर 2 बजे अभिषेक ने पिता शिवराज चौधरी और मां रेणु देवी को फोन कर के बात की थी. अभिषेक का बहनोई अमित दोनों का खाना पहुंचाता था. दोनों भाई पटना में रह कर मोबाइल फोन एसेसरीज का कारोबार करते थे. इस के अलावा दोनों भाई आरा से बिहटा ट्रक चलवाते थे.

उन का बालू का ठेका भी था. बालू के ठेके और ट्रक को ले कर कई बार दोनों भाई विवादों में फंस चुके थे. उन का एक डंपर उत्तर प्रदेश में भी चलता था. शिवराज चौधरी का कहना था कि उन के बेटों की किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी. दोनों बेटों की हत्या से उन के परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था.

पहले दोनों भाई गांव में किराए पर जेनरेटर चलाते थे. इस के बाद उन्होंने पोल्ट्री फार्म और डेयरी फार्म का भी काम किया. पास में कुछ पैसे आए तो उन्होंने पटना में कारोबार करने का विचार किया. पटना आ कर दोनों ने 2 ट्रक खरीदे और उन्हें किराए पर चलाने लगे.

सन 2014 में जमाल रोड स्थित कुमार कौंप्लेक्स में उन्होंने रहने के लिए राजकुमार गुप्ता का फ्लैट किराए पर लिया था. मकान मालिक ने बताया था कि दोनों भाई काफी शांत स्वभाव के थे. उन का बाहरी लोगों से कोई लेनादेना नहीं था.

हत्यारा दोनों भाइयों के मोबाइल फोन भी ले गया था. शायद हत्यारों का सोचना था कि मोबाइल फोन गायब होने से पुलिस को कोई सबूत नहीं मिलेगा, लेकिन वही पुलिस के लिए तुरुप का पत्ता साबित हुआ.

पुलिस ने दोनों के मोबाइल फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवा ली थी. वहीं 24 साल के अमित को अपने भाइयों की हत्या करवाने का जरा भी मलाल नहीं था. उस का कहना था कि उसे अपने भाइयों से नफरत हो गई थी. बड़ा भाई अभिषेक हमेशा परेशान करता रहता था. मंझला भाई सागर हमेशा उसे डांटतामारता रहता था. उन्होंने अपना धंधा तो चमका लिया था, जबकि उसे कोई काम नहीं करने दे रहे थे.

जब अभिषेक ने उसे घर से भगा दिया तो उसे लगा कि अगर दोनों भाइयों को रास्ते से हटा दिया जाए तो पिता और भाइयों की सारी संपत्ति उस की हो जाएगी. उस के बाद वह अकेला ऐश करेगा. इसी लालच में उस ने अपने भाइयों अभिषेक और सागर की हत्या करने का विचार बना लिया था.

22 अक्तूबर को अभिषेक और सागर ने अमित को घर से भगा दिया था. पहले अभिषेक ने एक ट्रक खरीदा था, उस के कुछ दिनों बाद सागर ने एक ट्रक खरीदा था. दोनों मिल कर तीसरा ट्रक खरीदना चाहते थे. अमित भी अपना एक ट्रक खरीदना चाहता था, जिस के लिए वह भाइयों से रुपए मांग रहा था. लेकिन भाइयों ने रुपए देने से ही मना ही नहीं कर दिया, बल्कि उसे घर से भाग जाने के लिए कह दिया.

इसी से नाराज हो कर अमित ने दोनों बड़े भाइयों अभिषेक और सागर को सबक सिखाने का मन बना लिया. अभिषेक ने फ्लैट की 3 चाबियां बनवा रखी थीं, जिस में से एक चाबी अभिषेक के पास रहती थी तो दूसरी सागर के पास रहती थी. जबकि तीसरी चाबी दरवाजे के ऊपर वेंटीलेटर पर रखी रहती थी. उस के बारे में उन दोनों के अलावा अमित और उन के पिता शिवराज चौधरी को पता था.

अमित के रिश्तेदारों का कहना था कि अमित इधर गलत लोगों की संगत में पड़ गया था. ऐसे लोगों से दूर रखने के लिए अभिषेक ने उसे बालू के कारोबार में लगा दिया था, जहां वह रुपयों की हेराफेरी करने लगा था. अभिषेक ने उसे कई बार समझाया, पर वह नहीं माना. दिवाली के पहले अमित की चोरी पकड़ी गई तो सागर ने उस की पिटाई कर दी थी.

शायद पिटाई से ही नाराज हो कर अमित ने अपराधियों के साथ मिल कर भाइयों की हत्या की साजिश रच डाली थी. अमित अपना ट्रक खरीदना चाहता था, जिस के लिए वह भाइयों से रुपए मांग रहा था. रुपए देने के बजाय दोनों भाई यही सलाह दे रहे थे कि वह पहले ट्रक चलवाने वाले कारोबार को अच्छी तरह समझ ले, उस के बाद ही वह इस कारोबार को शुरू करे.

बगैर समझेबूझे कोई काम करने से रुपए डूब सकते हैं. अमित भाइयों की बात मानने के बजाय ट्रक खरीदने की जिद पर अड़ा था. अभिषेक ने रुपए देने से मना कर दिया तो अमित उस के दुश्मन संतोष से जा मिला. आरा के नारायणपुर गांव के ही रहने वाले संतोष से अभिषेक का कुछ दिनों पहले ही झगड़ा हुआ था.

अमित ने उसी के साथ मिल कर अभिषेक की हत्या की योजना बनाई. संतोष को भी अभिषेक से बदला लेना था, इसलिए वह तुरंत उस की हत्या करने को तैयार हो गया. उसे इस काम के लिए ढाई लाख रुपए देने को भी कहा था. संतोष ने उसे अपने गैंग में शामिल करने का वादा किया था.

कुमार कौंप्लेक्स से कुछ दूरी पर लगे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज में पुलिस को 3 सदिग्धों की फोटो मिली. उन फोटो को ले कर पुलिस आरा पहुंची तो तीनों की पहचान हो गई. पता चला कि वे आरा के छुटभैए अपराधी थे, जिन का नाम संतोष, नीतीश और सच्चिदानंद था. इस के बाद पुलिस ने उन्हें हिरासत में लिया तो उन्होंने तुरंत स्वीकार कर लिया कि अमित ने ही उन्हें भाइयों की हत्या की सुपारी दी थी.

पुलिस ने अमित को भी गिरफ्तार कर लिया था. इस के बाद उस की निशानदेही पर रितेश और रमेश को भी आरा से गिरफ्तार कर लिया गया. इन के पास से 8 मोबाइल फोन, 3 चाकू और एक हथौड़ा बरामद किया गया. संतोष अभी नहीं पकड़ा जा सका है. पुलिस उसे गिरफ्तार करने के लिए ताबड़तोड़ छापे मार रही है. आरा में उस के खिलाफ दरजनों मामले दर्ज हैं.

पुलिस ने अमित से सख्ती से पूछताछ की तो वह घबरा गया. पुलिस ने उस से पूछा कि वह घटना वाले दिन कहां था तो उस ने कहा कि वह आरा में ही था. लेकिन मोबाइल फोन की लोकेशन से उस का झूठ पकड़ा गया. लोकेशन के अनुसार उस दिन वह पटना में था. इस के बाद पुलिस ने सख्ती की तो उस ने सच्चाई उगल दी.

अमित ने जो बताया उस के अनुसार, 23 नवंबर, 2016 की रात सागर जमाल रोड वाले फ्लैट में अकेला था. अमित, संतोष, सच्चिदानंद और नीतीश को साथ ले कर फ्लैट पर पहुंचा. अमित खुद नीचे रह गया, जबकि तीनों अपराधियों को ऊपर भेज दिया. हत्यारों ने सागर के सिर पर हथौड़ा मार कर बेहोश कर दिया.

उस के बाद अंगौछे से गला कस कर हत्या कर दी. उन्होंने अमित को बताया कि सागर को मार दिया है तो वह ऊपर पहुंचा और सागर की लाश को घसीट कर पूजाघर में छिपा दिया. सागर की हत्या कर के सभी बाहर आ गए और दरवाजा लौक कर के अभिषेक के पीछे लग गए.

24 नवंबर, 2016 को 10 बजे अभिषेक फ्लैट पर पहुंचा तो पीछा करता हुआ अमित, संतोष, रितेश और रमेश के साथ फ्लैट पर पहुंच गया. इस बार भी अमित नीचे ही खड़ा रहा और तीनों अपराधी अभिषेक के फ्लैट पर जा पहुंचे.

उन्होंने अभिषेक के सिर पर भी हथौड़ा मार कर बेहोश कर दिया और फिर गला रेत कर हत्या कर दी. उस के प्राइवेट अंगों को भी काट दिया. इस के बाद अमित कमरे में पहुंचा और अभिषेक की लाश को भी पूजाघर में ले जा कर छिपा दिया.

इस के बाद दोनों लाशों पर एसिड डाल कर जलाने की कोशिश की. उस ने कमरे में फैले खून को साफ किया और बाहर से दरवाजा बंद कर के सब के साथ फरार हो गया.

पटना के एसएसपी मनु महाराज ने बताया कि संपत्ति विवाद और ईर्ष्या की वजह से अभिषेक और सागर के छोटे भाई अमित ने ही उन की हत्या करवाई थी. 3 भाइयों में अभिषेक सब से बड़ा था और सागर उस से छोटा, अमित सब से छोटा था. 23 नवंबर को अमित के मोबाइल फोन की लोकेशन पटना की पाई गई तो पुलिस का शक यकीन में बदल गया था.

बीए करने के बाद अमित नौकरी खोज रहा था. जब कहीं नौकरी नहीं मिली तो वह अपने दोनों बड़े भाइयों से रुपए मांगने लगा था. कुछ समय तक अभिषेक रुपए देता रहा. उस के बाद में उस ने अभिषेक से कहा कि वह अपना अलग धंधा करना चाहता है, जिस के लिए वह उसे रुपए दे.

पिछली दिवाली से ही अमित अपने भाइयों से कारोबार के लिए रुपए मांग रहा था. जबकि वे टालमटोल कर रहे थे. अभिषेक के रवैए से नाराज हो कर अकसर अमित घर में हंगामा करता रहता था.

शिवराज चौधरी के 7 बच्चे हैं. अभिषेक, सागर और अमित के अलावा उन की 4 बेटियां हैं. चारों बेटियों का विवाह हो चुका है. घर वालों का कहना है कि अमित के रवैए और उस की अपराधियों से दोस्ती की वजह से घर के सभी लोग परेशान थे. उस पर किसी के समझाने का असर नहीं हो रहा था. वह रातोंरात करोड़पति बनने के सपने देखा करता था.

अभिषेक और सागर को उस के ही छोटे भाई अमित ने मौत के घाट उतरवा दिया था. अब वह जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दिया गया है. एक साथ तीनों बेटों के खोने के दर्द में डूबे शिवराज चौधरी आंखों में आंसू लिए कहते हैं कि उन का परिवार और जिंदगी दोनों बरबाद हो गई.

उन की पत्नी रेणु चौधरी बुत बनी बैठी रहती हैं. उन्हें किसी चीज की सुध नहीं है. उन की सूनी आंखें मानो हर पल अपने बच्चों को ढूंढती रहती हैं. शिवराज कहते हैं कि दौलत के लिए भाइयों के झगड़े के बारे में कई कहानियां सुनी थीं, पर उन के ही बेटे ने एक दर्दनाक कहानी बना डाली. अब उन की जिंदगी बेकार है.

बेहयाई का सागर : अवैध संबंधों ने ली जान

रविवार को छुट्टी होने की वजह से फैक्ट्रियों में काम करने वाले अधिकांश कामगार अपने घरों की साफ सफाई और कपड़े आदि धोने का काम करते हैं. 25 साल का सागर और उस का छोटा भाई सरवन भी घर की साफसफाई में लगे थे. दोनों भाई एक गारमेंट फैक्ट्री में काम करते थे. शाम 5 बजे के करीब सारा काम निपटा कर सरवन कमरे में लेट कर आराम करने लगा तो सागर छत पर हवा खाने चला गया.

7 बजे सागर आया और नीचे सरवन से खाना बनाने को कहा. छोटेमोटे काम करा कर वह फिर छत पर चला गया. सरवन खाना बना रहा था. दोनों भाई लुधियाना के फतेहगढ़ मोहल्ले में पाली की बिल्डिंग में तीसरी मंजिल पर किराए का कमरा ले कर रहते थे.

इस बिल्डिंग में 30 कमरे थे, जिसे मकान मालिक ने प्रवासी कामगारों को किराए पर दे रखे थे. पास ही मकान मालिक की राशन की दुकान थी. सभी किराएदार उसी की दुकान से सामान खरीदते थे. इस तरह उस की अतिरिक्त आमदनी हो जाया करती थी. साढ़े 7 बजे के करीब पड़ोस में रहने वाले संजय ने आ कर सरवन को बताया कि सागर खून से लथपथ ऊपर के जीने में पड़ा है.

संजय का इतना कहना था कि सरवन खाना छोड़ कर छत की ओर भागा. ऊपर जा कर उस ने देखा सागर के शरीर पर कई घाव थे, जिन से खून बह रहा था. हैरानी की बात यह थी कि छत पर दूसरा कोई नहीं था. वह सोच में पड़ गया कि सागर को इस तरह किस ने घायल किया.

लेकिन यह वक्त ऐसी बातें सोचने का नहीं था. संजय व और अन्य लोगों की मदद से सरवन अपने घायल भाई को पास के राम चैरिटेबल अस्पताल ले गया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. इस बीच किसी ने पुलिस को इस मामले की सूचना भी दे दी. यह 9 अप्रैल, 2017 की घटना है.

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सूचना मिलते ही थाना डिवीजन-4 के थानाप्रभारी मोहनलाल अपनी टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए थे. उन्होंने वहां रहने वाले किराएदारों से पूछताछ शुरू कर दी. दूसरी ओर अस्पताल द्वारा भी पुलिस को सूचित कर दिया गया था. 2 पुलिसकर्मियों को घटनास्थल पर छोड़ कर थानाप्रभारी राम चैरिटेबल अस्पताल पहुंच गए.

उन्होंने सागर की लाश का मुआयना किया तो पता चला कि किसी नुकीले और धारदार हथियार से उस पर कई वार किए गए थे. जरूरी काररवाई कर के पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. घटना की सूचना उच्चाधिकारियों को भी दे दी गई थी.

अस्पताल से फारिग होने के बाद थाना प्रभारी सरवन को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंचे. अब तक सूचना पा कर एसीपी सचिन गुप्ता व क्राइम टीम भी घटनास्थल पर पहुंच गई थी. घटनास्थल का गौर से निरीक्षण किया गया. बिल्डिंग के बाहर मुख्य दरवाजे के पास गली में खून सने जूतों के हलके से निशान दिखाई दिए थे.

छत और जीने में भी काफी मात्रा में खून फैला था. बिल्डिंग के बाहर गली में करीब 2 दरजन साइकिलें खड़ी थीं, जो वहां रहने वाले किराएदारों की थीं. काफी तलाश करने पर भी वहां से कोई खास सुराग नहीं मिल सका.

लुधियाना में ऐसे कामगार मजदूरों के मामलों में अकसर 2 बातें सामने आती हैं. ऐसी हत्याएं या तो रुपएपैसे के लेनदेन में होती हैं या फिर अवैध संबंधों की वजह से. सब से पहले थानाप्रभारी मोहनलाल ने रुपयों के लेनदेन वाली थ्यौरी पर काम शुरू किया. पता चला कि मृतक सीधासादा इंसान था. उस का किसी से कोई लेनदेन या दुश्मनी नहीं थी.

इस के बाद थानाप्रभारी ने इस मामले की जांच एएसआई जसविंदर सिंह को करने के निर्देश दिए. उन्होंने मामले की जांच शुरू की तो उन्हें पता चला कि मृतक के कई रिश्तेदारों के लड़के यहां रह कर काम करते हैं, जिन में एक अशोक मंडल है, जो मृतक के ताऊ का बेटा है.

अशोक मंडल टिब्बा रोड की किसी सिलाई फैक्ट्री में काम करता था और उस का मृतक के घर काफी आनाजाना था. इसी के साथ यह भी पता चला कि अशोक का किसी बात को ले कर मृतक से 2-3 बार झगड़ा भी हुआ था.

एएसआई जसविंदर सिंह ने हवलदार अमरीक सिंह को अशोक मंडल के बारे में जानकारी जुटाने का काम सौंप दिया. थानाप्रभारी अपने औफिस में बैठ कर जसविंदर सिंह से इसी केस के बारे में चर्चा कर रहे थे, तभी उन्हें चाबी का ध्यान आया.

दरअसल घटनास्थल का निरीक्षण करने के दौरान बिल्डिंग के बाहर खड़ी साइकिलों के पास उन्हें एक चाबी मिली. वह चाबी वहां खड़ी किसी साइकिल के ताले की थी.

थानाप्रभारी ने उस समय उसे फालतू की चीज समझ कर उस पर ध्यान नहीं दिया, लेकिन अब न जाने क्यों उन्हें वह चाबी कुछ महत्त्वपूर्ण लगने लगी. वह एएसआई जसविंदर सिंह और कुछ पुलिसकर्मियों को साथ ले कर उसी समय पाली की बिल्डिंग पहुंचे. साइकिलें अब भी वहीं खड़ी थीं.

उन्होंने बिल्डिंग में रहने वाले सभी किराएदारों को बुलवा कर कहा कि अपनीअपनी साइकिलों के ताले खोल कर इन्हें एक तरफ हटा लो.

सभी किराएदार अपनीअपनी साइकिलों का ताला खोल कर उन्हें हटाने लगे. सभी ने अपनी साइकिलें हटा लीं, फिर भी एक साइकिल वहां खड़ी रह गई.

‘‘यह किस की साइकिल है ’’ एएसआई जसविंदर सिंह ने पूछा. सभी ने अपनी गरदन इंकार में हिलाते हुए एक स्वर में कहा, ‘‘साहब, यह हमारी साइकिल नहीं है.’’

इस के बाद थानाप्रभारी मोहनलाल ने अपनी जेब से चाबी निकाल कर जसविंदर को देते हुए कहा, ‘‘जरा देखो तो यह चाबी इस साइकिल के ताले में लगती है या नहीं ’’

जसविंदर सिंह ने वह चाबी उस साइकिल के ताले में लगाई तो ताला झट से खुल गया. यह देख कर मोहनलाल की आंखों में चमक आ गई. उन्होंने उस साइकिल के बारे में सब से पूछा. पर उस के बारे में कोई कुछ नहीं बता सका.

इसी पूछताछ के दौरान पुलिस की नजर सामने की दुकान पर लगे सीसीटीवी कैमरे पर पड़ी. पुलिस कैमरे की फुटेज निकलवा कर चैक की तो पता चला कि घटना वाले दिन शाम को करीब पौने 7 बजे एक युवक वहां साइकिल खड़ी कर के पाली की बिल्डिंग में गया था. इस के लगभग 25 मिनट बाद वही युवक घबराया हुआ तेजी से बिल्डिंग के बाहर आया और साइकिलों से टकरा कर नीचे गिर पड़ा. फिर झट से उठ कर अपनी साइकिल लिए बगैर ही चला गया.

पुलिस ने वह फुटेज मृतक के भाई सरवन को दिखाई तो सरवन ने उस युवक को पहचानते हुए कहा, ‘‘यह तो मेरे ताऊ का बेटा अशोक मंडल है.’’

‘‘अशोक मंडल कल शाम तुम्हारे कमरे पर आया था क्या ’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘नहीं साहब, जब से भैया (मृतक) से इन का झगड़ा हुआ है, तब से यह हमारे कमरे पर नहीं आते हैं और न ही हम दोनों भाई इन के कमरे पर जाते थे.’’ सरवन ने कहा.

इस के बाद जसविंदर ने मुखबिरों द्वारा अशोक मंडल के बारे में पता कराया तो उन का संदेह विश्वास में बदल गया. उन्होंने सिपाही को भेज कर अशोक मंडल को थाने बुलवा लिया. थाने में उस से पूछताछ की गई तो हर अपराधी की तरह उस ने भी खुद को बेगुनाह बताया. उस ने कहा कि घटना वाले दिन वह शहर में ही नहीं था. लेकिन थानाप्रभारी मोहनलाल ने उसे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज दिखाई तो वह बगलें झांकने लगा.

आखिर उस ने सागर की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उस का बयान ले कर पुलिस ने उसे सक्षम न्यायालय में पेश कर 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर ले लिया. पुलिस रिमांड के दौरान अशोक मंडल से पूछताछ में सागर की हत्या की जो कहानी प्रकाश में आई, वह अवैध संबंधों पर रचीबसी थी—

अशोक मंडल मूलरूप से बिहार के अररिया का रहने वाला था. कई सालों पहले वह काम की तलाश में लुधियाना आया. जल्दी से लुधियाना में उस का काम जम गया था. वह एक्सपोर्ट की फैक्ट्रियों में ठेके ले कर सिलाई का काम करवाता था. उसे कारीगरों की जरूरत पड़ी तो गांव से अपने बेरोजगार चचेरे भाइयों व अन्य को ले आया. सभी सिलाई का काम जानते थे, इसलिए सभी को उस ने काम पर लगा दिया.

अन्य लोगों को रहने के लिए अशोक ने अलगअलग कमरे किराए पर ले कर दे दिए थे, लेकिन सागर को उस ने अपने कमरे पर ही रखा. अशोक शादीशुदा था. कुछ महीने बाद जब रोटीपानी की दिक्कत हुई तो अशोक गांव से अपनी पत्नी राधा को लुधियाना ले आया.

राधा एक बच्चे की मां थी. उस के आने से खाना बनाने की दिक्कत खत्म हो गई. सभी भाई डट कर काम में लग गए थे. इस बीच सागर ने अपने छोटे भाई सरवन को भी लुधियाना बुला लिया था.

देवरभाभी होने के नाते सागर और राधा के बीच हंसीमजाक होती रहती थी, जिस का अशोक ने कभी बुरा नहीं माना. पर देवरभाभी का हंसीमजाक कब सीमाएं लांघ गया, इस की भनक अशोक को नहीं लग सकी, दोनों के बीच अवैध संबंध बन गए थे.

सागर कभी बीमारी के बहाने तो कभी किसी और बहाने से घर पर रुकने लगा. चूंकि अशोक ठेकेदार था, इसलिए उसे अपने सभी कारीगरों और फैक्ट्रियों को संभालना होता था. इस की वजह से वह कभीकभी रात को भी कमरे पर नहीं आ पाता था. ऐसे में देवरभाभी की मौज थी.

लेकिन इस तरह के काम ज्यादा दिनों तक छिपे नहीं रहते. अशोक ने एक दिन दोनों को आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया. उस समय उसे गुस्सा तो बहुत आया, पर इज्जत की खातिर वह खामोश रहा. सागर और राधा ने भी उस से माफी मांग ली. अशोक ने उन्हें आगे से मर्यादा में रहने की हिदायत दे कर छोड़ दिया.

अशोक ने पत्नी और चचेरे भाई पर विश्वास कर लिया कि अब वे इस गलती को नहीं दोहराएंगे. पर यह उस की भूल थी. इस घटना के कुछ दिनों बाद ही उस ने दोनों को फिर से रंगेहाथों पकड़ लिया. इस बार भी सागर और राधा ने उस से माफी मांग ली. अशोक ने भी यह सोच कर माफ कर दिया कि गांव तक इस बात के चर्चे होंगे तो उस के परिवार की बदनामी होगी.

लेकिन जब तीसरी बार उस ने दोनों को एकदूजे की बांहों में देखा तो उस के सब्र का बांध टूट गया. इस बार अशोक ने पहले तो दोनों की जम कर पिटाई की, उस के बाद उस ने सागर को घर से निकाल दिया. अगले दिन उस ने पत्नी को गांव पहुंचा दिया. यह अक्तूबर, 2016 की बात है.

अशोक से अलग होने के बाद सागर ने अपने छोटे भाई सरवन के साथ पाली की बिल्डिंग में किराए पर कमरा ले लिया. वह गांधीनगर स्थित एक फैक्ट्री में काम करता था. बाद में उस ने उसी फैक्ट्री में सिलाई का ठेका ले लिया. वहीं पर उस का छोटा भाई सरवन भी काम करने लगा.

सागर को घर से निकाल कर और पत्नी को गांव पहुंचा कर अशोक ने सोचा कि बात खत्म हो गई, पर बात अभी भी वहीं की वहीं थी. शरीर से भले ही देवरभाभी एकदूसरे से दूर हो गए थे, पर मोबाइल से वे संपर्क में थे.

अशोक को जब इस बात का पता चला तो उसे बहुत गुस्सा आया. समझदारी से काम लेते हुए उस ने सागर को समझाया पर वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आया.

अब तक गांव में भी उन के संबंधों की खबर फैल गई थी. लोग चटखारे लेले कर उन के संबंधों की बातें करते थे. गांव में अशोक के घर वालों की बदनामी हो रही थी. इस से अशोक बहुत परेशान था. वह सागर को एक बार फिर समझाना चाहता था.

9 अप्रैल, 2017 की शाम को फोन कर के उस ने सागर से पूछा कि वह कहां है  सागर ने उसे बताया कि वह छत पर है. अशोक अपने कमरे से साइकिल ले कर सागर को समझाने के लिए निकल पड़ा. नीचे स्टैंड पर साइकिल खड़ी कर उस में ताला लगा कर वह सीधे छत पर पहुंचा.

इत्तफाक से उस समय सागर फोन से अशोक की बीवी से ही बातें कर रहा था. उस की पीठ अशोक की तरफ थी. सागर राधा से अश्लील बातें करने में इतना लीन था कि उसे अशोक के आने का पता ही नहीं चला.

अशोक गया तो था सागर को समझाने, पर अपनी पत्नी से फोन पर अश्लील बातें करते सुन उस का खून खौल उठा. वह चुपचाप नीचे आया और बाजार से सब्जी काटने वाला चाकू खरीद कर सागर के पास पहुंच गया. कुछ करने से पहले वह एक बार सागर से बात कर लेना चाहता था.

उस ने सागर को समझाने की कोशिश की तो वह उस की बीवी के बारे में उलटासीधा बोलने लगा. फिर तो अशोक की बरदाश्त करने की क्षमता खत्म हो गई. उस ने सारे रिश्तेनाते भुला कर अपने साथ लाए चाकू से सागर पर ताबड़तोड़ वार करने शुरू कर दिए. वार इतने घातक थे कि सागर लहूलुहान हो कर जीने पर गिर पड़ा.

सागर के गिरते ही अशोक घबरा गया, क्योंकि वह कोई पेशेवर अपराधी तो था नहीं. उसी घबराहट में वह अपनी साइकिल उठाए बिना ही भाग गया.

रिमांड अवधि के दौरान पुलिस ने अशोक से वह चाकू बरामद कर लिया था, जिस से उस ने सागर की हत्या की थी. रिमांड अवधि खत्म होने पर अशोक को पुन: अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में जिला जेल भेज दिया गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित