लव यू ! रेस्ट इन पीस : प्यार का अंत

3 जुलाई, 2017 को आतिश नाइक पत्नी तनुजा के साथ अपने गांव वरड़गांव आया था. तनुजा को घर में ही छोड़ कर वह दोपहर को होटल से खाना लाने गया तो शाम तक नहीं लौटा. इस बीच तनुजा भी घर से बाहर नहीं निकली तो पड़ोस में रहने वाली आतिश की चाची मोहिनी को चिंता हुई. क्या बात है, जानने के लिए उन्होंने आतिश के मोबाइल पर फोन किया तो उस का फोन बंद था.

उन्होंने आतिश के घर का दरवाजा खटखटाया तो अंदर से कोई आवाज नहीं आई. किसी अनहोनी की आशंका से उन का दिल बैठने लगा. जब आतिश से संपर्क नहीं हो सका और तनुजा ने भी दरवाजा नहीं खोला तो घबरा कर मोहिनी ने गोवा के मडगांवराय में रहने वाली आतिश की बहन को फोन कर के यह बात बता दी.

चाची की बात सुन कर आतिश की बहन घबरा गई. उस ने भी भाई को फोन किया, लेकिन संपर्क नहीं हो सका. इस के बाद वह पति के साथ वरड़ गांव के लिए रवाना हो गई. गांव पहुंच कर आतिश की बहन दूसरी चाबी से घर का ताला खोल कर अंदर दाखिल हुई तो वहां का मंजर देख उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई. अंदर की स्थिति हैरान कर देने वाली थी. उस ने तुरंत पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना दे दी.

घटनास्थल चूंकि फोंडा पुलिस थाने के अंतर्गत आता था. पुलिस कंट्रोल रूम से यह सूचना थाना फोंडा को मिली तो थानाप्रभारी सुदेश आर. नाइक तुरंत इंसपेक्टर परेश सिनारी, नितिन हरर्णकर आदि के साथ घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. घटनास्थल थाने से ज्यादा दूर नहीं था, इसलिए पुलिस टीम 20 मिनट में वहां पहुंच गई. तब तक गांव के तमाम लोग इकट्ठा हो चुके थे.

पड़ोस में रहने वाली आतिश नाइक की चाची मोहिनी नाइक ने पुलिस को बताया कि आतिश अपनी पत्नी तनुजा के साथ उसी दिन सुबह करीब 8 बजे आया था और उन से अपने घर की चाबी ले गया था. घर के अंदर जाने के बाद दोनों के बीच कहासुनी होने लगी थी. पता नहीं वे किस बात पर झगड़ रहे थे. उन के लड़नेझगड़ने की आवाजें घर के बाहर तक आ रही थीं. पतिपत्नी के बीच इस तरह की कहासुनी होती रहती है, इसलिए उन्होंने इस बात पर ध्यान नहीं दिया था.

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दोपहर करीब 12 बजे वह आतिश और तनुजा को खाने के लिए बुलाने गईं तो आतिश दरवाजे पर ताला लगा कर कहीं जा रहा था. उन्होंने उस से खाने के लिए पूछा तो उस ने कहा, ‘‘तनुजा नानवेज खाना चाहती है, इसलिए होटल से नानवेज लाने जा रहा हूं. तनुजा सोई हुई है, इसलिए दरवाजे पर ताला लगा दिया है.’’

दोपहर का गया आतिश शाम तक लौट कर नहीं आया तो उन्होंने यह बात आतिश के बहनबहनोई को बता दी. पुलिस टीम घर में दाखिल हुई तो कमरे में खाट पर तनुजा की लाश सीधी अवस्था में पड़ी थी. उस के सीने पर एक तकिया रखा था.

इस से लगा कि तनुजा की हत्या उसी तकिए से की गई थी. तकिए के बीचोबीच एक दिल बना था, जिस में ‘लव यू’ लिखा था. इस के अलावा तकिए के एक कोने में ‘रेस्ट इन पीस’ लिखा हुआ था. कातिल ने लव यू लिख कर अपने मन का दर्द जाहिर किया था और रेस्ट इन पीस लिख कर शांति से आराम करने को कहा था. शायद हत्या करने वाला मृतका से काफी दुखी था.

सूचना पा कर एसपी कार्तिक कश्यप और डीएसपी सुनीता सावंत भी घटनास्थल पर आ गई थीं. इन्हीं के साथ फोरैंसिक टीम भी आई थी. फोरैंसिक टीम का काम खत्म हो गया तो अधिकारियों ने घटनास्थल और लाश का निरीक्षण किया. इस के बाद जरूरी काररवाई कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भिजवा दिया गया.

मोहिनी नाइक की ओर से हत्या का मुकदमा दर्ज कर पुलिस ने मामले की जांच शुरू कर दी. हत्या का शक आतिश नाइक पर था. लेकिन वह फरार था. उस का पता नहीं चल रहा था. उस का फोन भी बंद था.

पुलिस आतिश को खोज रही थी, तभी पता चला कि उस ने अपनी बहन और बहनोई को फोन कर के कहा है कि उसी ने तनुजा की हत्या की है और वह गांव आ रहा है. यह पता चलते ही पुलिस सतर्क हो गई. फोंडा बसअड्डा और आतिश के घर के आसपास पुलिस लगा दी गई.

फोंडा आने वाली हर बस पर पुलिस की नजर थी. एक बस से जैसे ही आतिश उतरा, पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया. डीएसपी सुनीता सावंत के सामने उस से पूछताछ शुरू हुई तो उस ने बिना हीलाहवाली के तनुजा की हत्या का अपराध स्वीकार कर लिया. उस ने पत्नी की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार थी—

26 साल के आतिश नाइक के मातापिता की मौत तभी हो गई थी, जब वह 4 साल का था. मांबाप की मौत के बाद उसे गोवा के तटवर्ती इलाके मड़गांवराय में रहने वाली उस की बहन और बहनोई ने पालापोसा. आतिश की बहन और बहनोई जिस मोहल्ले में रहते थे, उसी मोहल्ले में तनुजा का भी परिवार रहता था.

वैसे तनुजा के घर वाले मूलरूप से कर्नाटक के कारवार शहर के रहने वाले थे. रोजीरोटी की तलाश में वे गोवा के मड़गांवराय आए थे. तनुजा और आतिश हमउम्र थे. चूंकि दोनों के परिवार आसपास रहते थे, इसलिए उन के बीच पारिवारिक संबंध थे. आतिश और तनुजा एक ही क्लास में पढ़ते थे, इतना ही नहीं दोनों स्कूल भी साथसाथ आतेजाते थे.

पढ़ाई के मामले में तनुजा आतिश से होशियार थी. आतिश का मन पढ़ाई में कम लगता था, नतीजा यह हुआ कि वह 10वीं में फेल हो गया. फेल होने के बाद उस ने पढ़ाई छोड़ दी और अपने बहनोई के साथ धंधे में लग गया, जबकि तनुजा पढ़ती रही. आतिश ने पढ़ाई भले छोड़ दी थी, लेकिन उस का तनुजा से मिलनाजुलना बरकरार था.

दोनों ने जवानी की दहलीज पर कदम रखा तो उन्हें एकदूसरे से प्यार हो गया. उन के दिलों में प्यार के अंकुर फूटे तो वे एकदूसरे को जीवनसाथी के रूप में देखने लगे. उन्हें लगता था, जैसे वे दोनों एकदूसरे के लिए ही बने हैं. दोनों सारी मर्यादाओं को ताक पर रख कर साथसाथ पार्क, पिकनिक, सिनेमा और रेस्टोरेंट जाने लगे.

समय के साथ दोनों का प्यार बढ़ता गया. आतिश ने अपना खुद का कैटरिंग का काम शुरू कर दिया, जो अच्छा चल निकला. तनुजा ने भी अच्छे नंबरों से 12वीं पास कर ली. अब दोनों शादी के बारे में सोचने लगे. लेकिन जब इस बात की जानकारी तनुजा के घर वालों को हुई तो वे सन्न रह गए. जबकि आतिश के घर वालों पर इस बात का किसी तरह का कोई असर नहीं हुआ.

तनुजा के घर वाले उस के भविष्य को ले कर परेशान थे. उन्होंने तनुजा को आतिश से मिलनेजुलने से रोका. तनुजा ने घर वालों की बात पर ध्यान न देते हुए कहा, ‘‘आखिर आतिश में बुराई क्या है, हम दोनों एकदूसरे से प्यार करते हैं. उस का कामधंधा भी ठीक चल रहा है.’’

तनुजा की इस बात पर उस के पिता ने कहा, ‘‘बेटा, उस में कोई बुराई नहीं है, लेकिन तुम यह क्यों नहीं समझतीं कि वह तुम्हारे काबिल नहीं है. वह 10वीं फेल है. तुम्हारा भविष्य और कैरियर दोनों उज्ज्वल हैं. तुम पढ़लिख कर आगे बढ़ सकती हो. तुम्हें अच्छी नौकरी और शादी के लिए अच्छा परिवार मिल सकता है. हम जो भी कह रहे हैं, तुम्हारे भले के लिए कह रहे हैं.’’

‘‘लेकिन पापा…’’ तनुजा अपनी बात पूरी कर पाती, उस के पहले ही उस के पिता ने कहा, ‘‘देखो बेटी, अब तुम बच्ची नहीं हो, 20-22 साल की हो गई हो. तुम खुद सोचसमझ सकती हो, मेरी भी कुछ मानमर्यादा है, समाज है. हम बस यही चाहते हैं कि तुम कोई ऐसा कदम मत उठाना, जिस से समाज और सोसायटी में मेरा और परिवार का सिर शर्म से झुक जाए.’’

तनुजा अजीब स्थिति में फंस गई थी. एक तरफ मातापिता और परिवार था तो दूसरी ओर प्यार था. कुछ दिनों तक तनुजा के दिलोदिमाग में मंथन चलता रहा. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. आखिर उस ने परिवार के बजाय प्यार को ज्यादा महत्त्व दिया और घर वालों से बगावत कर के सन 2015 में आतिश से प्रेम विवाह कर लिया. इस विवाह में आतिश का पूरा परिवार उस के साथ था, जबकि तनुजा के परिवार का कोई भी सदस्य शादी में शामिल नहीं हुआ था. विवाह के बाद दोनों किराए का मकान ले कर रहने लगे. दोनों काफी खुश थे. उन्हें किसी से कोई शिकायत नहीं थी. आतिश अपने काम में रम गया तो तनुजा ने गृहस्थी संभाल ली.

लेकिन तनुजा जल्द ही घरगृहस्थी के कामों से ऊब गई. आतिश के काम पर जाने के बाद वह घर में अकेली रह जाती थी, जिस से उस का मन नहीं लगता था. ऐसे में उस ने आगे की पढ़ाई करने का फैसला लिया. उस के इस फैसले पर आतिश ने भी मोहर लगा दी. उस ने मड़गांवराय के एक कालेज में तनुजा का दाखिला करा दिया.

दाखिला होने से तनुजा बहुत खुश हुई. आतिश उस की पढ़ाई में हर तरह से सहयोग कर रहा था. लेकिन समय के साथ दोनों के बीच दूरियां बढ़ने लगीं. इस की वजह यह थी कि तनुजा अब कालेज के माहौल में रम गई थी. उस का आचारविचार और व्यवहार बदल गया था.

उस के कई नए दोस्त और सहेलियां बन गई थीं. वह उन के बीच समय भी बिताने लगी थी. घर और आतिश के प्रति वह लापरवाह हो गई थी. कालेज से घर आने के बाद भी वह घंटों मोबाइल से चिपकी रहती, बिना बताए यारदोस्तों के साथ पार्टी और पिकनिक पर चली जाती.

यह सब देख कर आतिश के मन में तरहतरह के सवाल उठने लगे. वह उस पर शक करने लगा. उसे डर लगने लगा कि कहीं वह तनुजा को खो न दे. अपने इस डर को दूर करने के लिए जब भी वह उस से बात करने की कोशिश करता, तनुजा उस पर बरस पड़ती और ताने मारने के साथसाथ उस का अपमान भी करने से नहीं चूकती.

कभीकभी वह यह भी कह देती कि मेरे मांबाप ठीक ही कहते थे कि तुम मेरे लायक नहीं हो. पता नहीं मुझे क्या हो गया था कि मैं ने तुम जैसे कम पढ़ेलिखे से विवाह कर लिया. मेरा एहसान मानने के बजाय तुम मुझ पर संदेह करते हो. न तुम्हारे पास कोई अच्छी सर्विस है और न ही भविष्य उज्ज्वल है. इस के बावजूद मैं तुम पर भरोसा करती हूं, पर तुम्हें मुझ पर भरोसा नहीं है.

दोनों के बीच विवाद बढ़ जाता तो तनुजा लड़झगड़ कर कुछ दिनों के लिए अपने मायके चली जाती. कुछ दिनों बाद आतिश ससुराल जा कर उसे मना कर ले आता. मातापिता के समझाने के बाद तनुजा का रवैया कुछ दिनों तक तो ठीक रहता, लेकिन फिर वैसा ही हो जाता. धीरेधीरे तनुजा का व्यवहार और ताने आतिश की बरदाश्त से बाहर होते गए.

पहली जुलाई, 2017 को तनुजा कालेज से काफी देर से घर आई. घर आते ही वह मोबाइल फोन से चिपक गई तो आतिश का धैर्य जवाब दे गया. उसे यकीन हो गया कि उस का किसी से अफेयर चल रहा है. उस ने उस से कालेज से देर से आने और आते ही फोन करने के बारे में पूछा तो वह ठीक से जवाब देने के बजाय उसे ही चुप कराने लगी. इस से आतिश का रहासहा धैर्य भी जवाब दे गया. उस ने उसी समय एक खतरनाक फैसला ले लिया.

3 जुलाई, 2017 को आतिश गांव घुमाने के बहाने तनुजा को वहां ले गया. उसे मालूम था कि गांव वाले घर की एक चाबी चाची मोहिनी के पास रहती है. चाची ही उस के घर और काश्तकारी की देखरेख करती थीं. गांव पहुंच कर आतिश ने बीती बातों का जिक्र फिर से छेड़ दिया. वह उस पर कालेज छोड़ने और दोस्तों से ज्यादा बातें न करने का दबाव बनाने लगा, जबकि तनुजा यह नहीं चाहती थी. उसे अपनी कालेज लाइफ भी देखनी थी.

वह कह रही थी कि उस के दोस्त सिर्फ दोस्त हैं. इस के अलावा उन का उस से कोई और रिश्ता नहीं है. लेकिन संदेह का कीड़ा आतिश के दिमाग में घुस कर कुछ इस तरह हावी हो गया था कि उस की सोचने और समझने की शक्ति खत्म हो गई थी. उसे अब तनुजा की किसी भी बात पर भरोसा नहीं हो रहा था, जिस की वजह से आतिश ने सोते समय तनुजा के मुंह पर तकिया रख कर उस की हत्या कर दी.

पत्नी की हत्या कर के वह कुछ देर तक बुत बना उसे देखता रहा. इस के बाद उस ने तनुजा के पर्स से लिपस्टिक निकाली और तकिए के कवर पर दिल का आकार बना कर उस के अंदर ‘लव यू’ और तकिए के एक कोने में ‘रेस्ट इन पीस’ लिख दिया. इस के बाद जब वह बाहर आ कर मुख्य दरवाजे पर ताला लगा रहा था, तभी उस की चाची मोहिनी आ गईं. उस ने चाची को बताया कि वह तनुजा के लिए होटल से नानवेज लाने जा रहा है.

आतिश वहां से सीधे कर्नाटक के वेलगांव में रहने वाले अपने एक दोस्त के यहां चला गया. लेकिन वहां उसे सुकून नहीं मिला. उस के सामने बारबार तनुजा का सुंदर चेहरा घूम रहा था. अगले दिन सुबह उस ने अपनी बहन को फोन कर के अपना गुनाह कबूल करते हुए कहा कि अब वह भी अपने जीवन का अंत करने जा रहा है, क्योंकि तनुजा के बिना उस के जीवन में कुछ नहीं बचा है.

उस के बहनबहनोई ने उसे समझाते हुए ऐसा करने से मना किया और उसे गांव लौट आने को कहा. उन के समझाने पर आतिश जब अपने गांव पहुंचा तो उस की ताक में बैठी पुलिस ने उसे पकड़ लिया. आतिश ने अपना अपराध स्वीकार कर के पूरी बात पुलिस को बता दी.

विस्तार से पूछताछ के बाद पुलिस ने आतिश के खिलाफ तनुजा की हत्या का मुकदमा दर्ज कर उसे अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक वह जेल में था. मामले की जांच थानाप्रभारी सुरेश नाइक कर रहे थे.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

तिनके की तरह बिखरा परिवार

21 जून, 2017 की सुबह करीब 6 बजे की बात है. पूर्वी दिल्ली के सीमापुरी थाना के एएसआई हीरालाल नाइट ड्यूटी पर थे. उन्हें पुलिस कंट्रोल रूम से सूचना मिली कि दिलशाद गार्डन के पी ब्लौक के फ्लैट नंबर-पी 13 में हिंसक वारदात हो गई है. मामले की सूचना दर्ज कर वह हैडकांस्टेबल कर्मवीर को साथ ले कर मोटरसाइकिल से घटनास्थल की ओर रवाना हो गए.

घटनास्थल थाने से करीब एक किलोमीटर दूर था, इसलिए वह 10 मिनट के अंदर ही वहां पहुंच गए. फ्लैट के बाहर खड़े लोग कानाफूसी कर रहे थे. हीरालाल ने उन में से किसी से घटना के बारे में पूछा तो पता चला कि उस फ्लैट में रहने वाले विनोद बिष्ट ने अपनी पत्नी रेखा के ऊपर कातिलाना हमला किया है.

हीरालाल फ्लैट के अंदर पहुंचे तो उन्हें कमरे के फर्श पर खून ही खून फैला दिखाई दिया. वहां मौजूद लोगों ने उन्हें बताया कि गंभीर रूप से घायल रेखा और उस के बेटे विनीत को पीसीआर वैन गुरु तेगबहादुर (जीटीबी) अस्पताल ले गई है. घटनास्थल की निगरानी के लिए एएसआई हीरालाल ने हैडकांस्टेबल कर्मवीर को वहीं छोड़ दिया और खुद जीटीबी अस्पताल पहुंच गए.

अस्पताल पहुंचने पर उन्हें पता चला कि रेखा ने अस्पताल पहुंचने से पहले ही दम तोड़ दिया था. उस के बेटे विनीत का इलाज चल रहा था. हीरालाल विनीत से मिले. उस ने बताया कि मां को बचाने की कोशिश में उस के पिता ने उस के ऊपर भी चापड़ से वार कर दिया था, जिस से उस की हथेली कट गई थी. उन्होंने घायल विनीत का बयान दर्ज कर लिया.

विनीत का बयान ले कर एएसआई हीरालाल ने घटना की सूचना थानाप्रभारी संजीव गौतम को फोन द्वारा दे दी. इस के बाद अन्य औपचारिक काररवाई पूरी कर के उन्होंने रेखा की लाश को पोस्टमार्टम के लिए जीटीबी अस्पताल की मोर्चरी में रखवा दिया.

थानाप्रभारी संजीव गौतम ने घटना की जानकारी एसीपी हरेश्वर वी. स्वामी और डीसीपी नूपुर प्रसाद को दी और खुद घटनास्थल के लिए चल दिए. थानाप्रभारी विनोद बिष्ट के पड़ोसियों से घटना के संबंध में पूछताछ कर रहे थे, तभी क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम, एसीपी हरेश्वर वी. स्वामी के साथ डीसीपी नूपुर प्रसाद भी पहुंच गईं. दोनों अधिकारियों ने घटनास्थल का मुआयना किया और जीटीबी अस्पताल में भरती विनीत से मिलने पहुंच गए.

क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम ने घटनास्थल से सबूत जुटाए. विनीत से बात कर के साफ हो गया था कि घर के मुखिया विनोद बिष्ट ने ही वारदात को अंजाम दिया था, इसलिए पुलिस ने विनोद के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 324 के तहत मामला दर्ज कर लिया.

विनोद बिष्ट फरार हो चुका था. उस की गिरफ्तारी के लिए डीसीपी नूपुर प्रसाद ने एसीपी हरकेश्वर वी. स्वामी के निर्देशन में सीमापुरी थाने और स्पैशल स्टाफ की एक टीम का गठन किया, जिस में थानाप्रभारी संजीव गौतम, अतिरिक्त थानाप्रभारी जे.के. सिंह, एसआई राहुल, गौरव, एएसआई हीरालाल, हैडकांस्टेबल कर्मवीर, कांस्टेबल जगवीर एवं स्पैशल स्टाफ के एएसआई अशोक राणा आदि को शामिल किया.

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अतिरिक्त थानाप्रभारी जे.के. सिंह ने आरोपी के भाई मदन बिष्ट को पूछताछ के लिए थाने बुलाया. उस से विनोद के मोबाइल नंबर, दोस्तों के नाम तथा उस के छिपने के संभावित जगहों के बारे में पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि वह पौड़ी गढ़वाल स्थित अपने पैतृक घर जा सकता है.

एसीपी के निर्देश पर पुलिस टीमों को बसअड्डों तथा रेलवे स्टेशनों पर भेजा गया, मगर विनोद पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ा. पुलिस टीमें खाली हाथ लौट आईं. पुलिस ने अपने मुखबिरों को भी सतर्क कर दिया था. मुखबिर की सूचना पर अतिरिक्त थानाप्रभारी जे.के. सिंह अपनी टीम के साथ विनोद के फ्लैट के निकट पहुंच कर उस का इंतजार करने लगे.

कुछ देर बाद किसी ने बताया कि पार्क के पास एक आदमी छिपा बैठा है. पुलिस टीम ने वहां पहुंच कर उस आदमी को हिरासत में ले लिया. वह कोई और नहीं, विनोद बिष्ट ही था. उस की पीठ पर एक पिट्ठू बैग था. बैग की तलाशी ली गई तो उस में से एक खून सनी शर्ट और एक चापड़ बरामद हुआ. पुलिस टीम उसे ले कर थाने आ गई. थाने में जब विनोद से पूछताछ की गई तो उस ने अपना जुर्म स्वीकार कर पत्नी की हत्या करने की जो वजह बताई, वह इस प्रकार थी—

मूलरूप से उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल का रहने वाला विनोद अपने परिवार के साथ पिछले 30 सालों से दिल्ली के दिलशाद गार्डन के पी ब्लौक में रह रहा था. उस के परिवार में पिता सतीश बिष्ट, माता शकुंतला देवी, भाई मदन बिष्ट, उस की पत्नी कुसुम और विनोद की पत्नी रेखा तथा 2 बेटे थे.

उस का बड़ा बेटा विनीत पढ़ने में ठीकठाक था. वह 10वीं में पढ़ रहा था, जबकि छोटा बेटा संचित छठीं कक्षा में पढ़ता था. विनोद की सन 2001 में रेखा से शादी हुई थी.

शादी के बाद से पतिपत्नी अपने फ्लैट में खुशहाल जीवन गुजार रहे थे. विनोद कृष्णानगर के गुरमीत टेंटहाउस में मैनेजर था, जहां उसे अच्छा वेतन मिलता था. किसी बात की कमी न होने के कारण उस के दोनों बच्चे अच्छे स्कूलों में पढ़ रहे थे.

विनोद की ड्यूटी अकसर रात में होती थी. ऐसे में वह सुबह घर लौटता था. छोटा भाई मदन बिष्ट अपने परिवार के साथ पड़ोस में ही रहता था. दोनों भाई दिल्ली में ही रह रहे थे. उन्हें गांव जाने का मौका न के बराबर मिलता था, इसलिए कुछ सालों पहले विनोद ने अपने मातापिता को भी अपने पास दिल्ली बुला लिया था.

विनोद के बड़े बेटे विनीत को 10वीं में अच्छे नंबर मिले थे. बेटे के अंक देख कर विनोद और रेखा काफी खुश थे और उस के भविष्य की रूपरेखा तय करने में जुटे थे.

वैसे तो विनोद और रेखा का दांपत्य ऊपर से शांत और स्वच्छ नजर आ रहा था. लेकिन हकीकत कुछ और थी. रेखा की उम्र 36 साल के आसपास थी. लेकिन मौडर्न लाइफस्टाइल और आकर्षक डिजाइनर कपड़ों में वह मुश्किल से 25 साल की लगती थी. वह रोजाना अपने छोटे बेटे को स्कूल छोड़ने जाती थी, जहां और भी कई बच्चों के मातापिता आते थे.

उसी कालोनी का रहने वाला विकास भी अपने बेटे को स्कूल छोड़ने जाता था. उसे रेखा बहुत अच्छी लगती थी. वह चोरीछिपे उसे निहारता रहता था. रेखा उसे इस तरह चोरीछिपे ताकते हुए देखती तो उसे मन ही मन अजीब सी खुशी मिलती. विकास ऊंची कदकाठी का तनदुरुस्त युवक था. शक्लसूरत अच्छी होने के साथ वह खुद को मेंटेन रखता था. कुछ दिनों तक रेखा ने उसे ज्यादा तवज्जो नहीं दी. वह उस की नजरों को नजरअंदाज करती रही.

पर रेखा ज्यादा दिनों तक अपने इस रुख पर कायम नहीं रह सकी. विकास की चाहत ने उस के दिल में घंटी बजानी शुरू कर दी. वह भी कनखियों से उसे देखने लगी. एक दिन दोनों की नजरें मिलीं तो रेखा ने मुसकरा दिया. इस के बाद विकास की हिम्मत बढ़ गई. उस के समीप आ कर उस ने पूछा, ‘‘कहां से आती हैं आप?’’

रेखा ने भी उसे निराश नहीं किया. जवाब में उस ने कहा, ‘‘पी ब्लौक से.’’

इस के बाद दोनों इधरउधर की बातें करने लगे. जाते समय दोनों ने एकदूसरे को अपनेअपने मोबाइल नंबर दे दिए.

इस के बाद उन्हें जब भी मौका मिलता, अपने दिल की बातें कर लेते. रात को विनोद घर पर नहीं होता था और रेखा के बच्चों का बैडरूम अलग था. अकेली तनहाई में जब रेखा को नींद न आती तो वह मोबाइल पर विकास से मीठीमीठी बातें कर के अपने दिल की आग को शांत करने की कोशिश करती.

दोनों जवान और खूबसूरत होने के साथ एकदूसरे के प्रति आकर्षित थे. कुछ ही दिनों में दोनों ने मोबाइल पर समय तय कर के  मिलना शुरू कर दिया. रेखा को घर के कामकाज से बाहर जाना ही पड़ता था. ऐसे में वह विकास को फोन कर देती थी. विकास उस से मिलने आ जाता था.

मुलाकातों का सिलसिला चल निकला तो दोनों करीब आ गए और उन के बीच शारीरिक संबंध भी बन गए. इस के बाद रेखा के स्वभाव में परिवर्तन यह आ गया कि उस ने पति की ओर ध्यान देना बंद कर दिया.

रेखा के बदलते रंगढंग देख कर विनोद को उस पर शक होने लगा. वह दिन में घर पर ही रहता था, इसलिए उस ने उस की हरकतों पर नजर रखनी शुरू कर दी. एक दिन उस ने रेखा के मोबाइल फोन के सारे नंबर चैक किए. जब भी उसे कोई अंजान नंबर दिखाई दे दिया, उस ने पूरी तसल्ली के साथ उस नंबर के बारे में पूछा. रेखा निडर हो कर जवाब दे रही थी, पर विनोद महसूस कर रहा था कि रेखा उस से कुछ छिपा रही है.

शक की दीवार रिश्तों के बीच आई तो दांपत्य में कड़वाहट घुलने लगी. उन के बीच अविश्वास की खाई चौड़ी होती गई. परिणामस्वरूप अकसर दोनों के बीच किसी न किसी बात को ले कर लड़ाईझगड़ा होने लगा.

कुछ दिनों पहले विनोद के मातापिता पौड़ी गढ़वाल चले गए. इसी बीच एक दिन रेखा बेटे को स्कूल से लाने गई तो उसे विकास मिल गया. विकास से बातें कर रेखा अपने सारे दुख दूर कर लेती थी. वह विकास से बातें कर रही थी कि उस के मोबाइल पर विनोद का फोन आ गया. वह पति का फोन रिसीव कर उस से बातें करने लगी. बीचबीच में वह अपने साथ चल रहे प्रेमी विकास से भी बातें करती रही.

वह प्रेमी से जो बातें कर रही थी, उसे विनोद भी सुन रहा था. विनोद ने उन बातों को अपने फोन में रिकौर्ड कर लिया था. रेखा की इन बातों से विनोद समझ गया कि रेखा का जरूर किसी से संबंध है. वह घर आई तो विनोद ने बेटे को दूसरे कमरे में भेज कर रेखा को अपने पास बिठा कर मोबाइल की रिकौर्डिंग सुनाई. रिकौर्डिंग में कुछ ऐसी बातें भी थीं, जो कोई औरत अपने पति या प्रेमी से ही कर सकती थी.

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रिकौर्डिंग सुन कर रेखा सन्न रह गई. विनोद ने उस दिन रेखा को जम कर पीटा. शाम को उस ने रेखा को नया मोबाइल नंबर दिला दिया, साथ ही उस ने उसे चेतावनी दी कि अब अगर उस ने उस से बात की तो ठीक नहीं होगा. फोन नंबर बदलने के कारण उस की प्रेमी से बात नहीं हो पा रही थी. इस की वजह यह थी कि विकास का नंबर उसे याद नहीं था और विनोद ने फोन से उस का नंबर डिलीट कर दिया था. रेखा को प्रेमी से बात किए बिना चैन नहीं मिल रहा था. इसलिए उस ने अपना नया नंबर विकास को दे दिया. वह फिर प्रेमी से मिलने लगी. यानी उस ने प्रेमी से मिलनाजुलना नहीं छोड़ा.

विनोद को जब पता चला कि रेखा अब भी प्रेमी से मिलती है तो उसे बहुत गुस्सा आया. उस ने रेखा से साफ कह दिया कि अगर उसे उस के साथ रहना है तो ठीक से रहे अन्यथा अपने प्रेमी के साथ रहने चली जाए. वह उसे कुछ नहीं कहेगा.

लेकिन रेखा भी अब ढीठ हो गई थी. उस ने विनोद की बात एक कान से सुनी अैर दूसरे से निकाल दी. लिहाजा उन के बीच कलह बढ़ने लगी. जब भी दोनों के बीच ज्यादा झगड़ा होता, रिश्तेदार बीचबचाव कर के सुलह करा देते. इस की वजह से घरेलू कलह का मामला कभी थाने तक नहीं पहुंचा.

20 जून, 2017 मंगलवार को दिलशाद गार्डन में स्थानीय साप्ताहिक बाजार लगा था. बाजार में रेखा को विकास मिल गया. दोनों आपस में बातें करने लगे. उसी बीच वहां विनोद पहुंच गया. उस ने रेखा और विकास को देखा तो उस का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचा. लेकिन गुस्से को काबू कर वह अपने फ्लैट पर आ गया. रेखा घर लौटी तो उस ने दोटूक कहा, ‘‘तुम अब मेरे साथ नहीं रह सकती. तुम मेरा घर छोड़ कर उसी कमीने के साथ रंगरलियां मनाने चली जाओ.’’

इस पर रेखा ने कहा कि वह घर छोड़ कर नहीं जाएगी और जो उस का मन करेगा, वही करेगी. पत्नी की बात सुन कर विनोद को गुस्सा तो बहुत आया, पर वह कुछ सोच कर गुस्से को पी गया.

अगले दिन छोटे बेटे को स्कूल से लाने के लिए विनोद खुद गया और उसे उस के ननिहाल छोड़ कर अकेला घर आया. विनोद का साला भी दिलशाद गार्डन में ही रहता था. रेखा ने बेटे को मायके में छोड़ आने की बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया. शाम को दोनों में काफी लड़ाई हुई. इस के बाद विनोद ड्यूटी पर कृष्णानगर चला गया. वहां वह रात भर शराब पीता रहा. योजना बना कर उस ने मीट काटने वाला चापड़ अपने बैग में छिपा कर रख लिया और सुबह 5 बजे घर पहुंचा.

योजना को अंजाम देने के लिए विनोद ने छोटे भाई के कमरे की कुंडी बाहर से बंद कर दी. इस के बाद उस ने रेखा से दरवाजा खोलने को कहा. जैसे ही रेखा ने फ्लैट का दरवाजा खोला, विनोद ने उसे मारना शुरू कर दिया. रेखा ने बेटे विनीत को बचाने के लिए आवाज दी. उसी समय विनोद ने छिपाया चापड़ निकाल लिया.

खतरा भांप कर रेखा बचने के लिए बाहर भागी, लेकिन विनोद चौकन्ना था. वह किसी कीमत पर रेखा को छोड़ना नहीं चाहता था. उस ने चापड़ से रेखा के सिर पर वार कर दिया. रेखा के सिर से खून का फव्वारा फूट पड़ा. वह वहीं फर्श पर गिर पड़ी.

विनीत ने मम्मी को बचाने के लिए हाथ आगे बढ़ाया तो चापड़ उस के हाथ पर लग गया. पापा की इस हरकत से डर कर विनीत चाचा मदन को बुलाने बाहर भागा. उस गुस्से में विनोद ने रेखा के ऊपर 35 वार किए. विनीत चाचा के कमरे की बाहर से लगी कुंडी खोल कर उन्हें बुला लाया. रेखा की चीखपुकार सुन कर पड़ोसी भी वहां आ गए थे. लोगों को देख कर विनोद वहां से भाग निकला.

आनंद विहार के पास एक सुनसान पब्लिक टायलेट में जा कर उस ने अपना रक्तरंजित शर्ट बदला और उसे पिट्ठू बैग में रख लिया. दिन भर उस ने कौशांबी में गुजारा. शाम को उसे अपने घायल बेटे विनीत की चिंता हुई तो वह उस के बारे में जानने के लिए फ्लैट पर आ रहा था. वह अपने कपड़े और नकदी ले कर पौड़ी गढ़वाल भाग जाना चाहता था, लेकिन अतिरिक्त थानाप्रभारी जे.के. सिंह की टीम ने उसे फ्लैट पर पहुंचने से पहले ही गिरफ्तार कर लिया.

22 जून को पत्नी के के हत्यारे विनोद को कड़कड़डूमा की अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. आखिर रेखा की चरित्रहीनता ने एक हंसतेखेलते परिवार को बरबाद कर दिया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

प्रेमी की आरजू : जब पत्नी ने किया पति का कत्ल – भाग 3

आरजू मन मसोस कर रह गई. उस ने दूसरे दिन मेहताब के दुकान पर जाने के बाद चुपके से अपने प्रेमी कासिफ को फोन मिलाया और अपना जिस्म मैला हो जाने की जानकारी देते हुए आंसू बहाए, ‘‘अगर तुम ने मुझ से तुरंत निकाह कर लिया होता तो मैं तुम्हारे लिए अछूती ही आती कासिफ, लेकिन तुम्हारी लापरवाही से मैं अपना दामन मैला कर बैठी.’’

‘‘यह तो होना ही था आरजू.’’ कासिफ गंभीर स्वर में बोला, ‘‘यदि तुम मुझे प्यार करती तो मेहताब के साथ निकाह को मना कर देती. अब उसे शौहर बनाया है तो उस के पहलू में सोना भी पड़ेगा और उस की हर बात माननी भी पड़ेगी.’’

‘‘यानी कुसूर मेरा ही है.’’ आरजू गुस्से में बोली, ‘‘लड़की होते तो देखती तुम अपने अम्मीअब्बू या उन की इज्जत की खातिर उन की बात मानते या नहीं. मैं ने बहुत इंकार किया था इस निकाह के लिए, लेकिन अम्मी ने अपनी इज्जत की दुहाई दी तो मुझे निकाह के लिए हां कहना पड़ा. फिर भी कहूंगी तुम्हारी वजह से ऐसा हुआ, तुम अच्छी नौकरी पा जाते तो मैं तुम से निकाह कर लेती.’’

‘‘गुस्सा मत करो यार, जो हुआ उसे मजबूरी समझ कर सह लो. मैं जल्दी ही तुम्हें अच्छी खबर दूंगा.’’ कासिफ ने समझाया तो लंबी सांस ले कर आरजू ने फोन काट दिया और घर के काम में लग गई.

आरजू ने 2-3 महीने तक अच्छी बहू बन कर दिखाया. फिर वह घर के काम में लापरवाही बरतने लगी. थोड़ाबहुत काम करती. मेहताब के जाने के बाद वह कमरा बंद कर के फोन से चिपक जाती. रुखसाना बाकी काम समेटती. रोजरोज ऐसा होने लगा तो रुखसाना ने एक दिन आरजू को टोक दिया, ‘‘बहू अब तुम रोटी पकाती हो और फोन ले कर कमरे में बंद हो जाती हो. यह क्या चल रहा है?’’

‘‘क्या चल रहा है!’’ आरजू ने हैरानी व्यक्त की, ‘‘रोटी तो पका रही हूं न.’’

‘‘बाकी काम तो मुझे करने पड़ रहे हैं बहू.’’ रुखसाना ने शिकायत की.

‘‘अच्छा तो है, यूं खाओगी और पड़ी रहोगी तो हाथपांव जाम हो जाएंगे. चौकाबरतन करने से आप के हाथपांव चलेंगे, सेहत भी ठीक रहेगी.’’

रुखसाना को उस की बातों से एक झटका सा लगा लेकिन वह गुस्सा पी कर बोली, ‘‘यह कमरे में बंद हो कर किस से बातें करती हो सारा दिन?’’

‘‘मेरी सहेलियां हैं. क्या उन से बात करना गुनाह है?’’ आरजू ने सास को घूरा, ‘‘आप के मन में कोई और संदेह हो तो बता दीजिए.’’

‘‘सहेलियों से एकदो घंटे ही बातें की जाती हैं बहू, दोपहर से शाम तक तो कोई बात नहीं करेगा.’’

‘‘मैं तो करूंगी, आप मुझे आज के बाद नहीं टोकना,’’ गुस्से में भर कर आरजू ने कहा और अपने कमरे में जा कर दरवाजा बंद कर लिया.

रुखसाना ने जब बरदाश्त से बाहर हो गया तो बेटे मेहताब को सब कुछ बता दिया. मेहताब अम्मी की बात सुन कर हैरत में पड़ गया. कई दिनों से आरजू के बदले हुए व्यवहार को वह भी देख रहा था, लेकिन खामोश था. अम्मी की बात सुन कर उस ने आरजू को समझाया कि वह घर का पूरा काम करे और फोन पर सहेलियों से बातें करना बंद कर दे.

आरजू इस पाबंदी पर भड़क गई. उस दिन मेहताब और रुखसाना से उस ने लड़ाई की. फिर ऐसा रोज होने लगा.

रुखसाना देखती. अब वह अपने लिए रोटी बनाती और कमरे में बंद हो कर किसी से हंसहंस कर बातें करती रहती.

मेहताब आरजू को जब समझा कर हार गया तो उस ने अपने ससुर इसलाम को बुला कर आरजू के रूखे व्यवहार और लड़ाईझगड़ा करने की बात बताई. इसलाम ने बेटी को 2 दिन तक समझाया, लेकिन आरजू के रुख में बदलाव नहीं आया. इसलाम लौट गया तो आरजू ने पहले से ज्यादा क्लेश करना शुरू कर दिया.

मेहताब और रुखसाना के बीच 29 अप्रैल, 2022 को दिन में कोई कहासुनी नहीं हुई. रात 11 बजे वह खाना खा कर कमरे में सोने चले गए और 30 अप्रैल को मेहताब अपने कमरे में नग्नावस्था में अचेत पड़ा मिला, अस्पताल ले जाने पर डाक्टर ने उसे मृत घोषित कर दिया.

इस की जांच थानेदार शेख सद्दाम हुसैन कर रहे थे. उन्हें मेहताब की पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल चुकी थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार मेहताब की मौत दम घुटने से हुई थी. चूंकि रात को मेहताब के साथ उस की पत्नी आरजू सोई थी, इसलिए सद्दाम हुसैन को उसी पर शक हो रहा था.

रुखसाना ने भी ज्वालापुर कोतवाल से अपनी बहू आरजू को बेटे की मौत का जिम्मेदार बता कर उस के खिलाफ उचित काररवाई करने की गुहार लगाई थी.

आखिर 6 मई को भादंवि की धारा 304 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया. इस मामले में आरोपी आरजू को बनाया गया था.

आरजू अपने खिलाफ आरोप पत्र दाखिल होते ही अपने मायके चली गई. इस से वह पूरी तरह शक के दायरे में आ गई. थानेदार शेख सद्दाम हुसैन उस की गिरफ्तारी के लिए कोर्ट से आदेश लेते, उस से पहले ही आरजू के अब्बू इसलाम ने उच्च अधिकारियों से मिल कर आरजू को निर्दोष बताते हुए मेहताब हत्याकांड की जांच थाना कनखल (हरिद्वार) से करवाने का आदेश पारित करा लिया.

थाना कनखल के थानेदार अभिनव शर्मा ने पूरी रिपोर्ट पढ़ने के बाद आरजू के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवा कर चैक की तो एक नंबर से आरजू की लंबीलंबी बातें होने की जानकारी मिली. जांच में वह नंबर ज्वालापुर में रहने वाले कासिफ का निकला. बाद में पता चला कि वह आरजू का प्रेमी था.

पुलिस ने उसे उठा लिया. थाने में उस से पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि आरजू ने उसे पाने के लिए अपने पति मेहताब की हत्या मेहताब के मुंह पर तकिया रख कर खुद की है. वह उस वक्त अपने घर पर था. इस हत्या में उसका हाथ नहीं है.

पुलिस ने उसे बुलाए जाने पर थाने में उपस्थित होने की हिदायत दे कर छोड़ दिया. उस की आवाज रिकौर्ड कर ली गई थी. इस के आधार पर थानेदार अभिनव शर्मा ने कोर्ट से आरजू की गिरफ्तारी के लिए गैरजमानती वारंट हासिल कर लिया.

इस का पता चलते ही आरजू अपने मायके से फरार हो गई. पुलिस उस की गिरफ्तारी के लिए छापेमारी करने लगी. वह नहीं मिली तो उस पर 10 हजार रुपए का ईनाम घोषित कर के उस पर सीआरपीसी की धारा 82 के तहत संपत्ति कुर्क करने का आदेश ले लिया.

इसलाम ने तीसरी बार विवेचना बदलवा दी. केस थाना राजीपुर पहुंच गया. यहां भी जांच में आरजू दोषी पाई गई. तब चौथी बार इसलाम ने यह जांच थाना कनखल पहुंचा दी. इस से मीडिया ने पुलिस को ही सवालों के घेरे में ले लिया.

एसएसपी अजय सिंह ने कोतवाली ज्वालापुर को निर्देश दिया कि आरजू को तुरंत गिरफ्तार किया जाए. पुलिस ने पूरी ताकत झोंक दी, लेकिन आरजू लगातार पुलिस को छका रही थी. इस केस की जांच थाना कनखल के थानेदार बी.एल. भारती कर रहे थे. उन्होंने इस मुकदमे की धारा 304 बदल कर हत्या की धारा 302 कर दी.

10 महीने तक आरजू के गिरफ्तार न होने से मीडिया भी पुलिस पर सवाल खड़े कर रही थी.

इस मामले में सब से अहम बात यह रही कि मेहताब की अम्मी रुखसाना ने 10 महीने तक अधिकारियों, कोर्ट कचहरी और अलगअलग पुलिस थानों के चक्कर काटने के बाद उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के यहां 25 जनवरी, 2023 को गुहार लगाई, जिस का जल्द ही नतीजा सामने आ गया.

आखिर 31 जनवरी, 2023 को थानेदार बी.एल. भारती ने महिला थानेदार पूजा पांडे और महिला सिपाही रुचिता के साथ रुड़की से आरजू को गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने आरजू से पूछताछ की तो उस ने पति मेहताब की हत्या की बात स्वीकार कर ली. पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उसे कोर्ट में पेश कर के जेल भेज दिया गया.

कथा लिखे जाने तक आरजू हरिद्वार जेल में बंद थी. कनखल थाने के थानेदार बी.एल. भारती कथा लिखने तक इस केस का आरोपपत्र कोर्ट में भेजने की तैयारी कर रहे थे.      द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

प्रेमी की आरजू : जब पत्नी ने किया पति का कत्ल – भाग 2

रुखसाना उत्तराखंड के जिला हरिद्वार के ज्वालापुर के मोहल्ला कैस्थवाड़ा में अपने परिवार के साथ रहती थी. काफी समय पहले रुखसाना के पति नवाबुद्दीन की मौत हो गई थी. रुखसाना के पास वह 2 बेटे और 2 बेटियां छोड़ गया था, जिसे रुखसाना ने जैसेतैसे चौकाबरतन का काम कर के पाला था.

बेटा मेहताब जब समझदार हो गया तो उस ने ज्वालापुर में प्लास्टिक के सामान की दुकान खोल कर घर खर्च की जिम्मेदारी अपने कंधे पर उठा ली. रुखसाना घर में बैठ गई तो उस ने सुकून की सांस ली. अब वह अपने मेहताब का घर बसाने का सपना देखने लगी.

मेहताब बहुत मेहनती था, वह जो कमाता था, वह ला कर अपनी अम्मी के हाथ पर रख देता था. रुखसाना बहुत किफायत से घर चलाती और 2 पैसे बचा कर रखती. जब उस के हाथ में 2 पैसे जुड़ गए तो उस ने रिश्तेदारी में मेहताब के लिए लड़की देखने की चर्चा कर दी.

रुखसाना अपने होनहार बेटे मेहताब के लिए चांद सी बहू लाना चाहती थी. ऐसी बहू जो उस के बेटे मेहताब का पूरा खयाल रखे और घर की जिम्मेदारी भी संभाल ले. मेहताब के लिए अनेक रिश्ते आए, जो रुखसाना के मनपसंद नहीं थे. उसे रुड़की के मोहल्ला सत्ती में रहने वाले इसलाम की बेटी आरजू पसंद आई. रुखसाना ने 25 नवंबर, 2021 को मेहताब के सिर पर सेहरा बंधवा दिया.

आरजू घर में दुलहन बन कर आई तो सभी ने रुखसाना को बधाई दी कि वह अपने बेटे मेहताब के लिए चांद सी बहू तलाश कर के लाई है. रुखसाना के कंधे गर्व से और चौड़े हो गए.

आरजू ने आने के बाद घर की जिम्मेदारी संभाल ली, लेकिन उस ने मेहताब को अभी तक अपने जिस्म को छूने भी नहीं दिया है, यह न रुखसाना जानती थी न कोई रिश्तेदार. जानता था सिर्फ उस का पति मेहताब, लेकिन वह सब्र वाला इंसान था.

सुहाग सेज पर आरजू का जब मेहताब ने घूंघट पलटा था तो आरजू शरमाई, सकुचाई नहीं थी. उस ने बड़े प्यार से मेहताब के अपने कपड़ों की तरफ बढ़ते हाथ थाम कर कहा था, ‘‘देखो जी, मैं ने एक मन्नत मांग रखी है, वह मन्नत सवा महीने में पूरी होगी. तब तक आप मुझे पाकसाफ रहने दें. मैं आप को सवा महीने बाद पूरा प्यार दूंगी, यह मैं आप से वादा करती हूं.’’

मेहताब ने उस की भावनाओं की कद्र करते हुए अपनी इच्छाओं पर काबू पा कर उस रात से अपना बिस्तर नीचे बिछाना शुरू कर दिया था. उस ने यह बात अम्मी और यारदोस्तों से छिपा ली थी.

चौथे दिन पहली बार आरजू अपनी ससुराल से मायके फेरा लगाने के लिए गई तो वह काफी खुश थी. शायद इसलिए कि वह जैसी पाकसाफ अपने शौहर के घर गई थी, वहां से पाकसाफ ही अपने मायके में लौटी थी.

इस की वजह यह थी कि वह ज्वालापुर के ही रहने वाले कासिफ नाम के युवक से प्यार करती थी. वह उस का दूर का रिश्तेदार भी था. उस ने कासिफ से वादा किया था कि उस की शादी मेहताब से हो जरूर रही है, लेकिन वह उसे अपना तन छूने तक नहीं देगी.

मायके लौटते ही उस ने अपने प्रेमी कासिफ को फोन किया. मोबाइल स्क्रीन पर आरजू का नंबर चमका तो कासिफ खुशी से उछल पड़ा. वह रिसीव करते हुए चहका, ‘‘कैसी हो आरजू?’’

‘‘तुम बताओ, कैसी हो सकती हूं?’’ दूसरी ओर से आरजू की आवाज में शोखी भरी हुई थी.

कासिफ ने गहरी सांस भरी. वह एकदम उदास हो गया, ‘‘शौहर के घर गई हो तो रातें हसीन और यादगार ही गुजर रही होंगी तुम्हारी.’’

‘‘न रातें हसीन होने दी हैं मैं ने, न कोई यादों का पुलिंदा शौहर के लिए छोड़ा है. मैं जैसी गई थी, वैसी ही पाकसाफ अपने मायके आई हूं. मैं ने यही वादा किया था न तुम से.’’

‘‘अरे! तुम मायके भी आ गई.’’ कासिफ चौंकता हुआ बोला.

‘‘हां. मैं रुड़की में हूं.’’ आरजू ने बताया.

‘‘यह पाकसाफ वाला क्या चक्कर है, क्या तुम्हारा शौहर तुम्हारे काबिल नहीं है?’’ कासिफ ने उतावलेपन से पूछा.

‘‘वह काबिल है या नहीं, कह नहीं सकती. मैं ने उसे अपने बदन को हाथ ही नहीं लगाने दिया है.’’

‘‘रियली!’’ कासिफ खुश हो कर बोला.

‘‘हां, मैं ने वादे के मुताबिक अपने आप को तुम्हारे लिए बचा कर रखा है.’’ आरजू ने बड़ी संजीदगी से कहा, ‘‘तुम बताओ अब कब मुझ से निकाह करोगे?’’

‘‘मैं अभी नौकरी की तलाश कर रहा हूं आरजू. पहले मुझे अपने पैरों पर तो खड़ा हो जाने दो, फिर हम निकाह भी कर लेंगे.’’

‘‘कासिफ, अब मैं लंबा इंतजार नहीं कर सकती. मैं ने शौहर को सवा महीने के लिए खुद से दूर रखा है. सवा महीने बाद मेरे पास दूसरा महीना नहीं बचेगा.’’

‘‘ठीक है मेरी आरजू, मैं जल्दी नौकरी ढूंढ लेता हूं. फिर मैं और तुम एक छत के नीचे एकदूसरे की बांहों में सोएंगे.’’ कासिफ ने रोमांटिक अंदाज में कहा, ‘‘तुम ससुराल कब लौटोगी?

‘‘8-10 दिन बाद.’’

‘‘तो फिर मैं रुड़की आ जाता हूं तुम से मिलने.’’

‘‘आ जाओ, मैं इंतजार करूंगी.’’ आरजू के स्वर में मदहोशी थी.

एक हफ्ते में ही मेहताब आरजू को लिवाने के लिए अपनी ससुराल रुड़की पहुंच गया. आरजू के अरमानों पर पानी फिर गया, उसे उम्मीद नहीं थी कि मेहताब इतनी जल्दी उसे लेने आ धमकेगा. ससुर इसलाम ने पहली बार घर आए दामाद की खूब खातिरदारी की. फिर आरजू को उस के साथ भेजने की तैयारी कर दी.

आरजू अभी जाने के मूड में नहीं थी. लेकिन उस के पास इंकार करने के लिए कोई बहाना नहीं था. उसे मेहताब के साथ वापस कैस्थवाड़ा आना पड़ा.

आरजू ने एक अच्छी बहू का किरदार निभाते हुए घर की जिम्मेदारी संभाल ली. वह खाना बनाती, घर के दूसरे काम करती. रुखसाना को वह किसी भी काम में हाथ नहीं लगाने देती. रुखसाना अपनी बहू की तारीफ में कसीदे पढ़ती. पासपड़ोस में बहू की अच्छाइयों का बखान करती. रिश्तेदारी में कहती, ‘आरजू लाखों में एक है, उस की सेवा से वह बहुत खुश है.’

इधर सवा महीने तक मेहताब ने अपना वादा निभाया. वह आरजू से अलग चटाई पर सोया, लेकिन सवा महीना बीतते ही वह आरजू के पलंग पर आ गया. आरजू घबरा गई, अब क्या बहाना करती. मेहताब ने उसे जबरन अपनी बाहों मे भर कर अपनी सुहागरात मना डाली.

मेरा कसूर क्या था

3 जुलाई, 2017 की रात कोई 10 बजे अफजल का परिवार खापी कर सोने की तैयारी कर रहा था कि उस के मोबाइल फोन की घंटी बजी. उस समय मोबाइल अफजल की बीवी नूरी के पास था. नूरी ने देखा, फोन हाशिम का है. हाशिम उस का सगा भाई था. भाई का नंबर देख कर उस ने जैसे ही फोन रिसीव किया, दूसरी ओर से हाशिम ने घबराए स्वर में कहा, ‘‘बाजी, मेरी कार का ऐक्सीडेंट हो गया है. तुम्हारी भाभी की हालत बहुत नाजुक है. आप लोग जितनी जल्दी हो सके, आ जाइए.’’

इस के बाद हाशिम ने बहन को वह जगह बता दी, जहां ऐक्सीडेंट हुआ था. बहन को ऐक्सीडेंट की बात बता कर हाशिम ने अपने घर वालों को भी फोन कर के ऐक्सीडेंट की बात बता दी थी. भाई की बात सुन कर नूरी हक्काबक्का रह गई. उस ने तुरंत यह बात अफजल और घर के अन्य लोगों को बताई.

अफजल ने हाशिम के ऐक्सीडेंट की बात रिश्तेदारों को बताई और नूरी को साथ ले कर चल पड़ा. ये लोग वहां पहुंचते, जहां ऐक्सीडेंट हुआ था, उस के पहले ही हाशिम खुद कार चला कर एक निजी अस्पताल पहुंच गया था. डाक्टरों ने उस की पत्नी यानी शाहीन को तो मृत घोषित कर दिया था, जबकि उसे भरती कर के उस का इलाज शुरू कर दिया था.

भरती होने से पहले हाशिम ने घर वालों को शाहीन के खत्म होने की बात बता दी थी. हाशिम की कार को ही देख कर लगता था कि उस की किसी चीज से जबरदस्त टक्कर हुई थी. उस की कार का शीशा बुरी तरह से टूटा हुआ था. इस में उस की पत्नी शाहीन की मौत हो गई थी, जबकि उस के सिर में मामूली चोट आई थी.

शाहीन की मौत की खबर सुन कर उस के घर में मातम छा गया था. वह 3 भाइयों की एकलौती बहन थी. वह 3 महीने की थी, तभी उस की मां की मौत हो गई थी. शाहीन के अब्बू नसीम और भाइयों ने जैसेतैसे पालपोस कर उसे बड़ा किया था. यही वजह थी कि उस की मौत की खबर से उस के घर में कोहराम मच गया था.

society

ऐक्सीडेंट का मामला होने के बावजूद न तो हाशिम ने और न ही उस के घर वालों ने इस बात की सूचना पुलिस को दी थी. रिश्तेदारों के कहने पर शाहीन के घरवालों ने भी ऐक्सीडेंट मान कर बिना पोस्टमार्टम कराए ही 3 जुलाई, 2017 को उत्तराखंड के काशीपुर के मोहल्ला करबला बस्ती अल्लीखां स्थित रहमत शाह बाबा वाले कब्रिस्तान में शाहीन की लाश को दफना दिया था.

लेकिन शाहीन को दफन कर सभी घर आए तो उन्हें एक बात परेशान करने लगी कि शाहीन की मौत ऐक्सीडेंट से हुई थी तो उस का शरीर नीला क्यों पड़ गया था? नसीम अहमद अपनी लाडली बेटी शाहीन का जनाजा उठते देख फूटफूट कर रो पड़े थे. उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि उन की जवान बेटी की मौत इस तरह होगी.

घर आ कर नसीम अहमद और उन के बेटे इसी बात को ले कर परेशान थे. अब उन्हें इस बात का अफसोस होने लगा था कि उन्हें जल्दबाजी में शाहीन को दफनाना नहीं चाहिए था. उन्हें संदेह हुआ तो सब ने निर्णय लिया कि शाहीन की मौत की सच्चाई का पता लगाना जरूरी है. उन्होंने तय किया कि पुलिस की मदद से लाश कब्र से निकलवा कर उस का पोस्टमार्टम कराया जाए.

फिर क्या था, अगले दिन अफजल घर वालों के साथ काशीपुर कोतवाली पहुंचा और बहन की हत्या की आशंका प्रकट करते हुए बहनोई हाशिम अली के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज करा दिया. उस ने पुलिस को बताया कि मौत के बाद शाहीन का शरीर नीला पड़ गया था, इसलिए उन्हें लगता है कि उस की मौत कार ऐक्सीडेंट में नहीं, बल्कि किसी अन्य वजह से हुई है. इसलिए अब वह उस की लाश को कब्र से निकलवा कर पोस्टमार्टम कराना चाहता है.

मामले को गंभीरता से लेते हुए कोतवाली प्रभारी चंचल शर्मा ने एसडीएम विनीत तोमर से बात की तो उन्होंने लाश को कब्र से निकालने की अनुमति दे दी. अनुमति मिलते ही चंचल शर्मा, एसआई पी.डी. जोशी और अन्य पुलिसकर्मियों के साथ जा कर मृतका शाहीन के सगेसंबंधियों की मौजूदगी में कब्रिस्तान में दफनाई शाहीन की लाश निकलवा कर बारीकी से निरीक्षण किया तो उस के शरीर पर चोट का कोई निशान नजर नहीं आया.

इस से साफ हो गया कि शाहीन की मौत ऐक्सीडेंट से नहीं, बल्कि किसी अन्य वजह से हुई थी. पुलिस ने आवश्यक काररवाई कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए सरकारी अस्पताल भिजवा दिया.

शक के आधार पर पुलिस ने उसी दिन मृतका शाहीन के पति हाशिम अली को हिरासत में ले लिया. पुलिस ने घटनास्थल का भी निरीक्षण किया. घटनास्थल पर कोई ऐसा सबूत नहीं मिला कि कार किसी वाहन से या किसी पेड़ से टकराई हो. कार का अगला हिस्सा बिलकुल सहीसलामत था, सिर्फ उस का आगे का शीशा टूटा हुआ था. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार शाहीन की मौत 36 से 72 घंटे पहले हो चुकी थी, जबकि हाशिम के अनुसार, कार का ऐक्सीडेंट हुए हुए अभी 24 घंटे भी पूरे नहीं हुए थे.

इस के बाद हाशिम अली शक के दायरे में आ गया. पुलिस को अब विसरा रिपोर्ट का इंतजार था. विसरा रिपोर्ट आई तो उस में साफ लिखा था कि मृतका की मौत जहर से हुई थी. फिर तो साफ हो गया कि हाशिम अली ने बीवी की हत्या कर उस की मौत को ऐक्सीडेंट में दिखाने की कोशिश की थी.

इस के बाद पुलिस ने हाशिम अली को बाकायदा गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने घटनास्थल के पास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज निकलवा कर देखी तो हाशिम की करतूत का खुलासा हो गया. फिर तो हाशिम के झूठ बोलने का सवाल ही नहीं रहा. उस ने शाहीन की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर के उस की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी—

काशीपुर के मोहल्ला कानूनगोयान में मोहम्मद नसीम अपने परिवार के साथ रहते थे. पत्नी की मौत के बाद उन के परिवार में 3 बेटे अशरफ, अफजल और जाकिर तथा एक बेटी शाहीन थी. जिस समय नसीम की पत्नी की मौत हुई थी, बच्चे छोटेछोटे थे. बेटी शाहीन तो मात्र 3 महीने की थी. इस के बावजूद उन्होंने दूसरी शादी नहीं की.

जैसेतैसे नसीम ने बच्चों को पाला. बेटे थोड़ा बड़े हुए तो उन के काम में हाथ बंटाने लगे. अशरफ और जाकिर इनवर्टर मरम्मत का काम करने लगे तो अफजल वैल्डिंग का काम करने लगा. शाहीन बड़ी हुई तो उस ने पढ़ने से साफ मना कर दिया, क्योंकि वह अब्बू और भाइयों की परेशानी देख रही थी, इसलिए पढ़ाई छोड़ कर उस ने घरगृहस्थी संभाल ली.

समय पर नसीम ने बेटों की शादी कर दी थी. घर में बहुएं आ गईं तो शाहीन का बोझ काफी कम हो गया. तीनों भाइयों की शादी होतेहोते शाहीन भी शादी लायक हो गई. नसीम उस के लिए लड़का ढूंढने लगे. काशीपुर के ही मोहल्ला अली खां में नसीम का साढू मोहम्मद अली रहता था. उस से नसीम के 2 रिश्ते थे. एक रिश्ते से वह उन का साढ़ू लगता था तो दूसरे रिश्ते से समधी. क्योंकि मोहम्मद अली की बेटी नूरी उन के बेटे अफजल से ब्याही थी.

ऐसे में ही कभी नसीम ने शाहीन की शादी की बात मोहम्मद अली से चलाई तो उस ने कहा, ‘‘अरे समधीजी, बेटी की शादी को ले कर इतना परेशान क्यों हो रहे हो? आप की बेटी के लायक एक लड़का मेरी नजर में है. आप जब चाहें, देख लें.’’

मोहम्मद अली का इतना कहना था कि नसीम लड़का देखने के लिए बेताब हो उठे. उन्होंने लड़का दिखाने को कहा तो मोहम्मद अली ने अपने बेटे हाशिम अली को बुला कर कहा, ‘‘हमारा हाशिम भी तो शादी लायक है, क्यों न आप अपनी बेटी की शादी इसी से कर दें.’’

हाशिम अली को देख कर नसीम को झटका सा लगा. उन्होंने कहा, ‘‘आप कह तो ठीक रहे हैं, लेकिन इस के लिए बच्चों से सलाह लेनी पड़ेगी. उस के बाद ही कोई निर्णय लूंगा.’’

नसीम ने बेटों से बात की तो सभी को यह रिश्ता ठीक लगा. हाशिम देखने में तो ठीकठाक था ही, वह रोजीरोजगार से भी था. उस की काशीपुर की मेनबाजार में जूतेचप्पलों की दुकान थी. उस की दुकान चलती भी ठीकठाक थी, इसलिए नसीम के बेटों ने हामी भर दी. इस के बाद दोनों परिवारों ने बैठ कर शाहीन और हाशिम अली की शादी तय कर दी.

शाहीन और हाशिम अली की शादी तय हो गई तो दोनों के घर वाले शादी की तैयारी में जुट गए. इस के बाद 28 जुलाई, 2007 को दोनों का निकाह हो गया तो शाहीन ससुराल आ गई.

शादी के कुछ दिनों बाद तक सब ठीकठाक चला. हाशिम शाहीन को दिल से प्यार करता था. कभी भी उस ने किसी तरह की शिकायत का मौका नहीं दिया. उस की दुकान अच्छी चल रही थी, जिस से उसे अच्छी आमदनी हो रही थी. दुकान की ही कमाई से उस ने सैंट्रो कार भी खरीद ली थी.

आदमी की कमाई अच्छी हो तो वह पैसे भी खुले हाथों से लुटाता है. लेकिन अगर वही पैसा गलत कामों में लगने लगे तो कमाई का कोई मतलब नहीं रह जाता. ऐसा ही हाशिम अली के साथ हुआ. वह शराब पीने लगा. शराब के बाद उसे शबाब का शौक लग गया. गलत लोगों के साथ पड़ कर वह इस तरह बिगड़ गया कि दोनों हाथों से पैसे लुटाने लगा.

आए दिन हाशिम दोस्तों के साथ अय्याशी करने रामनगर जाने लगा. वहां वह महंगे होटलों में लड़कियों के साथ मौजमस्ती करता. इस से पैसे तो बरबाद हो रहे ही थे, दुकानदारी पर भी असर पड़ रहा था.

अब तक शाहीन के 2 बच्चे हो चुके थे, बेटी लाइवा और बेटा हमजा. पति की करतूतों का पता शाहीन को चला तो उसे बच्चों की चिंता सताने लगी. उस ने हाशिम अली को बहुत समझाया, पर पत्नी के समझाने का असर उस पर जरा भी नहीं हुआ. मजबूर हो कर शाहीन ने हाशिम की शिकायत अपने अब्बू और भाइयों से कर दी. नसीम ने हाशिम अली को अपने घर बुला कर समझाने की कोशिश की तो उस ने अपने ऊपर लगे सभी आरोपों को झूठा बताया.

शाहीन ने सोचा था कि शिकायत करने से हाशिम अली डर कर सुधर जाएगा, लेकिन हुआ इस का उलटा. हाशिम अली शाहीन से खफाखफा रहने लगा. अब वह उस से ठीक से न बात करता और न उस के पास उठताबैठता. ठीक से दुकान पर न बैठने की वजह से कमाई भी कम हो गई थी. जबकि हाशिम अली के खर्च बहुत बढ़ गए थे.

इस स्थिति में मियांबीवी में तनाव रहने लगा. शाहीन का समझाना हाशिम अली को बुरा लगता था. इसी वजह से हाशिम ज्यादातर घर से बाहर ही रहने लगा. हाशिम को आपराधिक धारावाहिक काफी पसंद थे. बीवी की पाबंदियों से वह परेशान रहने लगा था. शाहीन अब उसे पत्नी नहीं, चुडै़ल नजर आने लगी थी. जिसे अब वह एक पल भी नहीं देखना चहता था.

शायद यही वजह थी कि आपराधिक धारावाहिक देखतेदेखते उस ने खुद अपराध करने का विचार कर लिया. वह जानता था कि अपराध का परिणाम अच्छा नहीं होता, लेकिन उसे लगता था कि वह इस तरह अपराध करेगा कि कोई उसे पकड़ नहीं पाएगा. यही सोच कर उस ने शाहीन को खत्म करने की योजना बना डाली.

योजना बना कर हाशिम शाहीन को अपने मकड़जाल में फंसाने लगा. अपना व्यवहार बदल कर वह शरीफ बन गया. वह शाहीन और बच्चों को प्यार करने का नाटक करने लगा. उस के इस बदलाव से शाहीन हैरान थी, लेकिन उसे खुशी भी थी. उस ने यह बात मायके वालों से बताई तो उन्हें भी खुशी हुई.

हाशिम में आए बदलाव को देख कर शाहीन के भाइयों ने उसे अलग मकान दिलाने का विचार किया. अफजल ने बहन के लिए पदमावती कालोनी में एक मकान खरीद दिया. बस इसी के बाद हाशिम ने षडयंत्र रचना शुरू कर दिया. शाहीन को विश्वास में ले कर उस ने समझाया कि कारोबार बढ़ाने के लिए उसे पैसों की जरूरत है. क्यों न वह अपने मकान पर कर्ज ले ले.

शाहीन ने इस बारे में अब्बू और भाइयों से सलाह ली तो हाशिम अली की बेहतरी के लिए सभी ने हां कर दी. इस के बाद हाशिम अली ने मकान पर 12 लाख रुपए कर्ज ले लिया.

हाशिम अली ने बिना किसी को बताए शाहीन का 8 लाख रुपए का दुर्घटना बीमा करा दिया, जिस का नामिनी उस ने खुद को बनाया. इतना सब कर के वह निश्ंिचत हो गया. शाहीन को लग रहा था कि हाशिम अब पूरी तरह से सुधर गया है, जबकि वह कुछ और ही तैयारी कर रहा था.

संयोग से उसी बीच शाहीन ने हाशिम अली को किसी औरत से फोन पर बातें करते पकड़ लिया तो दोनों में संबंध फिर बिगड़ गए. इस तरह हाशिम की योजना पर पानी फिर गया. शाहीन को कहीं से पता चला कि हाशिम के एक नहीं, कई औरतों से संबंध हैं तो दोनों के बीच तनाव काफी बढ़ गया.

अब रोज ही घर में क्लेश होने लगा. इस से हाशिम अली शाहीन को रास्ते का कांटा समझ कर उसे जल्दी निकालने की योजना बनाने लगा. उसे पूरा विश्वास था कि वह अपनी बनाई योजना में शाहीन को खत्म भी कर देगा और किसी को उस पर शक भी नहीं होगा. शाहीन के खत्म होते ही वह मालामाल हो जाएगा. उस के मकान और बीमे से मिलने वाली रकम से वह मौज करेगा.

अपनी उसी योजना के अनुसार, हाशिम अली दिल्ली माल लाने गया तो वहीं से जहर ला कर घर में रख लिया. अब वह मौके की तलाश में लग गया. 1 जुलाई, 2017 की रात किसी बात को ले कर पतिपत्नी के बीच बहस हो गई. हाशिम जानता था कि इस तरह उस की योजना सफल नहीं हो पाएगी. योजना को सफल बनाने के लिए उस ने शाहीन से माफी मांग कर कहा कि अब वह ऐसी गलती फिर कभी नहीं करेगा.

भोलीभाली शाहीन उसे अब तक न जाने कितनी बार माफ कर चुकी थी, इसलिए उस दिन भी माफ कर दिया. अगले दिन यानी 2 जुलाई, शनिवार को हाशिम अली शाहीन और बच्चों को कार से घुमाने ले गया. दरअसल घुमाने के बहाने वह ऐसी जगह देखने गया था, जहां अपनी योजना को अंजाम दे सके. पहले रामनगर रोड पर गया, उस के बाद वह दढि़याल वाली रोड पर गया.

अपना काम करने के लिए दढि़याल वाली रोड उसे ज्यादा उचित लगी, क्योंकि रात को वह सुनसान हो जाती थी. जगह देख कर वह वापस आ गया. घर आ कर शाहीन बच्चों और हाशिम अली को खाना खिला कर घर के काम निपटाने लगी.

उसी बीच हाशिम अली ने कोल्डड्रिंक की बोतल में दिल्ली से लाया जहर मिला कर रख दिया. काम निपटा कर शाहीन उस के पास आ कर बैठी तो उस ने प्यार जताते हुए फ्रिज से कोल्डड्रिंक की बोतल ला कर जहर वाली कोल्डड्रिंक शाहीन को थमा दी और दूसरी खुद ले ली.

जहर वाली कोल्डड्रिंक पी कर शाहीन का काम तमाम हो गया तो हाशिम ने उसे बिस्तर से उतार कर नीचे लेटा दिया और खुद बच्चों के पास जा कर लेट गया. सुबह 4 बजे उठ कर उस ने शाहीन की लाश को कार की डिक्की में रख कर अपने 5 साल के बेटे हमजा को बगल वाली सीट पर बैठा कर कहा कि उस की मम्मी रामनगर में है, वह उसे वहीं ले चल रहा है.

3 जुलाई, 2017 को पूरे दिन वह शाहीन की लाश को ठिकाने लगाने के लिए इधरउधर घूमता रहा, लेकिन दिन में उसे मौका नहीं मिला. रात 8 बजे वह दढि़याल वाली रोड पर पहुंचा तो सुनसान जगह पर कार रोक कर अंधेरे का फायदा उठाते हुए अगली सीट पर सो रहे बेटे को पिछली सीट पर लिटा दिया और कार की डिक्की खोल कर शाहीन की लाश को निकाल कर अगली सीट पर इस तरह बैठा दिया, जैसे वह सो रही हो.

इस के बाद हाशिम ने कार का अगला शीशा तोड़ दिया और कार को सड़क के किनारे इस तरह खड़ी कर दी, जैसे कोई वाहन वाला उस की कार को टक्कर मार कर चला गया हो. शाहीन मरी पड़ी थी. जरा सा झटका लगते ही उस का सिर टूटे शीशे से जा टकराया. अपनी योजना को अंजाम दे कर खुद को चोटिल दिखाने के लिए उस ने अपना सिर कार की बौडी पर पटक दिया.

इस तरह उस ने अपनी योजना को अंजाम दे दिया. घर वालों ने शव भी दफना दिया. लेकिन शाहीन के घर वालों को शक इस बात पर हुआ कि शाहीन की लाश नीली क्यों थी?

हाशिम को सुंदर और सुशील बीवी मिली थी. ससुराल भी अच्छी थी. उस के फूल से 2 सुंदर बच्चे भी थे. लेकिन शराब और शबाब के चक्कर में उस ने अपनी बसीबसाई गृहस्थी उजाड़ दी. पत्नी को मार कर वह जेल चला गया, जिस से उस के बच्चे अनाथ हो गए.

हाशिम के अपराध स्वीकार करने के बाद पुलिस ने अपराध संख्या 350/2017 पर भादंवि की धारा 302, 201 के तहत उस के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर उसे कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. शाहीन के बच्चे अब अपने मामा अफजल के पास हैं.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

जिस्म की आग में मां बेटी ने खेला खूनी खेल

8 नवंबर, 2016 को किसी ने राजस्थान के बाड़मेर जिले के थाना पचपदरा पुलिस को फोन कर के सूचना दी कि मंडापुरा साजियाली फांटा के पास सड़क किनारे झाडि़यों में एक लाश पड़ी है. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी जयकिशन सोनी पुलिस टीम के साथ सूचना में बताई गई जगह पर पहुंच गए. वहां बबूल की झाडि़यों में 25-26 साल के एक युवक की लाश पड़ी थी. उस के गले में रस्सी का फंदा लगा था. इस से यही लग रहा था कि उस की हत्या रस्सी से गला घोंट कर की गई थी. लाश के पास किसी आदमी के पैरों के निशान के साथ मोटरसाइकिल के टायरों के भी निशान थे.

पुलिस ने वहां पर मौजूद लोगों से लाश की शिनाख्त कराने की कोशिश की, पर मृतक को कोई भी पहचान नहीं सका. थानाप्रभारी ने अज्ञात युवक की लाश मिलने की सूचना बाड़मेर के एसपी डा. गगनदीप सिंगला और बालोतरा के एडिशनल एसपी कैलाशदान रतनू को भी दे दी थी.

कुछ ही देर में एसपी और एडिशनल एसपी भी मौके पर पहुंच गए. लाश का निरीक्षण कर उन्होंने भी वहां मौजूद लोगों से बात की. इस के बाद दोनों पुलिस अधिकारी थानाप्रभारी जयकिशन सोनी को जरूरी दिशानिर्देश दे कर चले गए. अधिकारियों के जाने के बाद थानाप्रभारी ने लाश का पंचनामा भर कर उसे पोस्टमार्टम के लिए बालोतरा के सरकारी अस्पताल भिजवा दिया.

लाश की शिनाख्त जरूरी थी, इसलिए पुलिस अधिकारियों ने सलाहमशविरा कर के लाश के फोटो वाट्सएप ग्रुप में शेयर कर लोगों से शिनाख्त की अपील की. पुलिस की यह तरकीब काम कर गई और किसी ने उस की शिनाख्त कर दी. उस का नाम गोमाराम था और वह थाना धोरीमन्ना के गांव कोठाला के रहने वाले गुमानाराम का बेटा था.

जयकिशन सोनी ने गुमानाराम को बुलवाया तो उन्होंने बालोतरा अस्पताल जा कर लाश देखी और उस की शिनाख्त अपने बेटे गोमाराम के रूप में कर दी. शिनाख्त हो गई तो पोस्टमार्टम के बाद लाश घर वालों को सौंप दी गई. घर वालों ने पुलिस को बताया कि गोमाराम की किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी. इस से मामला और पेचीदा हो गया. पुलिस ने हत्या की रिपोर्ट दर्ज कर केस की जांच शुरू कर दी.

एसपी डा. गगनदीप सिंगला ने इस केस को सुलझाने के लिए 2 पुलिस टीमें बनाई. पहली टीम में थाना नागाणा के थानाप्रभारी देवीचंद ढाका, एसपी (स्पेशल टीम) कार्यालय से भूपेंद्र सिंह तथा ओमप्रकाश और दूसरी टीम में कल्याणपुर के थानाप्रभारी चंद्र सिंह व उन के थाने के तेजतर्रार सिपाहियों को शामिल किया.

दोनों टीमों का निर्देशन एडिशनल एसपी कैलाशदान रतनू कर रहे थे. पुलिस ने मृतक के बारे में जानकारी जुटाई तो पता चला कि बाटाड़ू गांव का एक लड़का मृतक के साथ आताजाता रहता था. 2 महीने पहले वह गांव लुखू स्थित मृतक की ससुराल भी गया था.

उस युवक की पहचान गंगाराम निवासी दुर्गाणियों का तला, थाना लुंदाड़ा गिड़ा, के रूप में हुई. पुलिस ने 13 नवंबर, 2016 को उसे जोधपुर से धर दबोचा. थाने ला कर उस से पूछताछ की गई तो सारा सच सामने आ गया.

उस ने बताया कि गोमाराम की हत्या में उस की पत्नी वीरो और सास जीतो भी शामिल थीं. पुलिस ने 14 नवंबर की सुबह उन दोनों को भी गिरफ्तार कर लिया. तीनों से पूछताछ के बाद गोमाराम की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

राजस्थान का बाड़मेर जिला जाट बाहुल्य है. यहां के लोगों का मुख्य पेशा खेतीकिसानी है. पहले राजस्थान में बालविवाह का प्रचलन था. दादादादी अथवा नानानानी की मौत होने पर मौसर (मृत्युभोज) की कड़ाही पर नन्हें बच्चों का बालविवाह करने की परंपरा थी.

अक्षय तृतीया को भी हजारों की संख्या में बालविवाह किए जाते थे. इसी जिले के गांव कोठाला के रहने वाले गोमाराम का भी 15-16 साल पहले लुखू गांव के श्रवणराम चौधरी की बेटी के साथ बालविवाह हुआ था. उस समय वीरो की उम्र 4 साल थी, जबकि गोमाराम 10 साल का था.

घर वालों ने गुड्डेगुडि़यों के खेल की तरह छोटी सी उम्र में इन दोनों की शादी कर दी थी. इस से पहले गोमाराम की शादी अपनी ही बिरादरी की एक लड़की के साथ हो गई थी, पर गौना होने से पहले ही उस की बीवी टांके में डूब कर मर गई थी. राजस्थान में अंडरग्राउंड बने पानी के टैंक को टांका कहते हैं.

वक्त के साथ गोमाराम और वीरो जवान हो गए. दोनों ने घर वालों से सुन रखा था कि उन की बचपन में ही शादी हो चुकी है. गोमाराम ने स्कूली पढ़ाई के बाद पढ़ाई छोड़ दी थी, जबकि वीरो जब 10वीं कक्षा में पढ़ रही थी, तभी उस का गौना गोमाराम से कर दिया गया था.

वीरो ने अपने वैवाहिक जीवन को ले कर कई रंगीन ख्वाब देखे थे, मगर गौने के बाद जब गोमराम से उस का सामना हुआ तो उस के ख्वाब टूट गए. किसी सुंदरस्वस्थ युवक के बजाय उस का पति दुबलापतला और शराबी था. चूंकि उस के साथ उस की शादी हो चुकी थी, इसलिए निभाना उस की मजबूरी थी.

गोमाराम हर समय शराब के नशे में डूबा रहता था. पत्नी से जैसे उसे कोई लगाव ही नहीं था. वह तो केवल शराब को अपनी जरूरत समझता था. नईनवेली दुलहन का दुखसुख पूछना तो दूर, वह उस से रात में भी बात नहीं करता था. शराब पी कर वह बिस्तर पर एक तरफ लुढ़क जाता था.

गौने के कुछ दिनों बाद ससुराल से वीरो जब मायके आई तो उस ने अपना दुखड़ा अपनी मां जीयो से कह सुनाया. उस ने साफसाफ कहा कि ऐसे शराबी के साथ वह जिंदगी कैसे गुजारेगी. बेटी की व्यथा सुन कर जीयो को भी महसूस हुआ कि बचपन में गोमाराम के साथ बेटी की शादी कर के उस ने बड़ी गलती की थी.

मां ने उसे दिलासा दी कि वक्त के साथ सबकुछ ठीक हो जाएगा. गौने के बाद वीरो स्कूल की गर्मियों की छुट्टियों में ससुराल गई. मगर पति की शराब की आदत में कोई सुधार नहीं आया. गौने के डेढ़ साल तक वह ससुराल में रही. उस ने अपने प्यार से पति का दिल जीतना चाहा, पर पति पर इस का कोई फर्क नहीं पड़ा.

वीरो ने मायके आ कर मां को सारी बातें बताईं तो बेटी का दुख देख कर जीयो को बड़ा झटका लगा. गोमाराम जोधपुर शहर की एक फैक्ट्री में नौकरी करता था. उस के साथ गंगाराम और उस का भाई चूनाराम भी काम करते थे. तीनों आपस में अच्छे दोस्त थे.

गोमाराम अपनी ज्यादातर कमाई शराब पर उड़ा देता था. वहीं गंगाराम और चूनाराम शराब को हाथ तक नहीं लगाते थे. वे अपनी तनख्वाह बचा कर रखते थे.  गोमाराम की बीवी वीरो पिछले 6 महीने से मायके में थी. गोमाराम कभीकभी उस से फोन पर बातें कर लेता था. वह उस से आने को कहती तो वह पैसे न होने का बहना कर देता. उस के पास पैसे होते भी कहां से, क्योंकि वह सारे पैसे शराब में उड़ा देता था.

एक बार पैसे न होने पर गोमाराम ने अपना मोबाइल चूनाराम को बेच दिया. चूनाराम ने वह मोबाइल अपने भाई गंगाराम को दे दिया. वीरो को यह बात पता नहीं थी, इसलिए जब उस ने पति को फोन किया तो फोन गंगाराम ने रिसीव किया. वीरो ने पूछा, ‘‘कैसे हो?’’

‘‘मैं तो ठीक हूं. तुम कैसी हो?’’ गंगा ने पूछा.

उस की आवाज सुन कर वीरो चौंकी, क्योंकि एक तो वह आवाज उस के पति की नहीं थी, दूसरे पति ने कभी उस से इतनी तमीज से बात नहीं की थी. उस ने कहा, ‘‘यह नंबर तो गोमाराम का है, आप कौन बोल रहे हैं?’’

‘‘मैं गोमाराम का दोस्त गंगाराम बोल रह हूं. उन का फोन मैं ने ले लिया है. आप इसी नंबर पर फोन करना, मैं गोमा से बात करा दूंगा.’’

‘‘बात क्या करनी है, उन्हें तो शराब पीने से ही फुरसत नहीं है. उन के लिए कोई मरे या जिए, उन्हें किसी से कोई मतलब नहीं है.’’ वीरो ने लंबी सांस ले कर कहा.

‘‘आप सही कह रही हैं, उसे सचमुच किसी की परवाह नहीं है. आप को मायके गए कितने दिन हो गए, मिलने तक नहीं जाता. पता नहीं कैसा आदमी है. दिनरात शराब में मस्त रहता है.’’

‘‘बिलकुल सही कह रहे हैं आप.’’ वीरों ने लंबी सांस ले कर कहा.

इस बातचीत से गंगाराम समझ गया कि वीरो अपने पति से खुश नहीं है. इसलिए जब भी वीरो उस से बात करती, वह उस से बड़ी तहजीब से बातें करता.

गंगाराम की यही आदत वीरो को भा गई. वह अकसर उस से मोबाइल पर बातें करने लगी. उसे गंगारम ने बताया कि उस का बचपन में बालविवाह हुआ था. वीरो जब भी गंगाराम से बातें करती, उसे अपनेपन का अहसास होता.

थोड़े दिनों तक फोन पर होने वाली बातों से दोनों एकदूसरे की ओर आकर्षित हो गए. वीरों ने अपनी मां जीयो को भी गंगाराम के बारे में बता दिया. जीयो ने भी गंगाराम से बात की. उसे भी गंगाराम का व्यवहार सही लगा. इस के बाद जीयो ने गंगाराम से कहा कि गोमाराम के साथ उस की बेटी खुश नहीं है. अगर वीरो का उस से तलाक हो जाए तो नाताप्रथा के तहत वह बेटी का ब्याह उस के साथ कर देगी.

इस बात से गंगाराम का दिल बागबाग हो उठा. वीरो ने भी गंगाराम से कहा कि वह गोमाराम का दोस्त है, उसे तलाक के लिए मनाए. एक दिन गोमा जब शराब के नशे में धुत था तो गंगाराम ने उस से कहा, ‘‘तुम वीरो का जीवन क्यों बरबाद कर रहे हो. उसे तलाक दे दो.’’

‘‘तलाक… मैं उसे इस जनम में तो तलाक नहीं दूंगा. वह अपने आप को बहुत सुंदर और होशियार समझती है. मुझे शराबी, निकम्मा और न जाने क्याक्या कहती है. इसलिए जीते जी मैं उसे तलाक नहीं दे सकता. वह शादीशुदा हो कर भी विधवा की तरह जीती रहे. बस मैं यही चाहता हूं?’’ गोमाराम ने कहा.

गंगाराम ने यह बात जब वीरो को बताई तो उस ने अपनी मां से बात की. इस के बाद उन्होंने गंगाराम को अपने गांव लुखू बुलाया. यह 2 महीने पहले की बात है. गंगाराम अपनी प्रेमिका वीरो से मिलने लुखू पहुंच गया. वहां पर गंगाराम और वीरो ने एकदूसरे को देखा.

दोनों ने एकदूसरे को पसंद कर लिया. बस फिर क्या था, मांबेटी ने गंगाराम से कहा कि वह गोमाराम से वीरो का तलाक करवा दे. अगर वह तलाक के लिए राजी न हो तो उसे रास्ते से हटा दे. गंगाराम को भी उन की बात पसंद आ गई.

गंगाराम गोमाराम को रास्ते से हटाने का मौका तलाशने लगा. वीरो और उस की मां की गंगाराम से अकसर मोबाइल पर बातें होती रहती थीं. दोनों उसे उकसाती रहती थीं कि जल्द से जल्द गोमाराम का पत्ता साफ करे. गंगाराम भी इसी धुन में था, मगर मौका नहीं मिल रहा था.

गोमाराम ने सपने में भी नहीं सोचा था कि उस की बीवी और सास उस की हत्या का तानाबाना बुन रही हैं. वह तो अपनी मस्ती में मस्त था. आखिर 7 नवंबर, 2016 को गंगाराम को उस समय मौका मिल गया, जब दिन में ही गोमाराम उसे शराब के नशे में धुत मिल गया. इस मौके को भला वह हाथ से क्यों जाने देता.

उस ने रात होने का इंतजार किया. रात करीब 8 बजे गंगाराम ने अपनी मोटरसाइकिल पर गोमाराम को बिठाया और गांव चलने को कहा. गोमाराम उस मना नहीं कर सका. बालोतरा रोड पर मोटरसाइकिल पहुंची तो रास्ते में भांडू गांव के ठेके से गंगाराम ने शराब की बोतल खरीद कर गोमाराम को दी. एक जगह बैठ कर वह उसे पी गया. इस के बाद दोनों ने कल्याणपुर के एक ढाबे पर खाना खाया.

गंगाराम को लग रहा था कि गोमाराम अभी भी होश में है. उस ने पचपदरा में जोधपुर रोड पर उसे फिर शराब पिलाई. इस से उसे गहरा नशा हो गया. मोटरसाइकिल के पीछे बैठ कर वह लहराने लगा. गंगाराम इसी मौके की ताक में था. वह गोमा को मोटरसाइकिल से उतार कर बबूल की झाडि़यों के बीच ले गया और वहीं उस का गला दबा कर मार डाला. लाश को वहीं पड़ी छोड़ कर वह मोटरसाइकिल से जोधपुर चला गया.

गंगाराम ने गोमाराम की हत्या करने की बात वीरो तथा जीयो को बता दी थी. वीरो खुश थी कि अब गंगाराम से वह नाता के तहत ब्याह कर लेगी. गंगाराम भी यही सोच रहा था. मगर पुलिस ने उन के मंसूबों पर पानी फेरते हुए 5 दिनों में इस हत्याकांड का खुलासा कर दिया.

पूछताछ के बाद पुलिस ने 16 नवंबर, 2016 को तीनों को पचपदरा की कोर्ट में पेश किया, जहां से वीरो और जीयो को केंद्रीय कारागार जोधपुर और गंगाराम को बालोतरा जेल भेज दिया गया. क्योंकि बालोतरा जेल में महिलाओं को रखने की जगह नहीं है. इस मामले में भी वही हुआ, जो ऐसे मामलों में होता है. थानाप्रभारी जयकिशन सोनी इस मामले की जांच कर रहे हैं.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

महबूबा के लिए बेटे ने कर दिया मां का कत्ल

पुराने भोपाल में बन्ने मियां और उन की पत्नी जमीला का नाम किसी पहचान का मोहताज नहीं था. उन्हें वहां हर कोई जानता था. बन्ने मियां की इमेज एक भाजपा समर्थक मुसलमान नेता की थी. वह आपातकाल के समय गिरफ्तार कर के जेल भी भेजे गए थे. वह बड़ी शान से खुद को मीसाबंदी बताते हुए जेल के उस समय यानी सन 1975 के किस्से लोगों को सुनाते रहते थे कि कांग्रेसी शासनकाल में हम नई आजादी के सिपाहियों पर किसकिस तरह के जुल्मोसितम ढाए गए थे.

48 साल की जमीला बेगम उन की दूसरी पत्नी थीं. वह भी राजनीति में जरूरत के हिसाब से सक्रिय रहने वाली महिला थीं और कदकाठी से भी काफी मजबूत थीं. उन की इमेज झुग्गीझोपड़ी की राजनीति करने वाली औरत की थी, जो अपने पति की पहुंच और रसूख के दम पर झुग्गीझोपड़ी का कारोबार भी करती थी. इस काम से उन्होंने खासा पैसा बनाया था. हालांकि पैसों की कमी उन्हें वैसे भी नहीं थी, क्योंकि बन्ने मियां खानदानी आदमी थे. उन्हें विरासत में ही कोई 25 एकड़ जमीन मिली थी, जिस की कीमत अब करोड़ों में थी.

दूसरी शादी कर के बन्ने मियां गौतमनगर थाना इलाके के इंदिरानगर में रहने लगे थे. जमीला से उन्हें एक बेटा अमन था, जो अब 22 साल का बांका जवान हो चुका था. बन्ने मियां की पहली बीवी अपने 4 बच्चों के साथ गांधीनगर इलाके में रहती थी. उन के बच्चों में से एक बेटा अपराधी प्रवृत्ति का था. जिंदगी में कई उतारचढ़ाव देखने वाले बन्ने मियां यह कहने का हक तो रखते ही थे कि मियां ऊपर वाले के फजल से सब कुछ है मेरे पास, किसी चीज की कमी नहीं है.

भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा अब कहने भर का रह गया है, जिस में पुराने जमाने के इनेगिने नेता ही सक्रिय हैं और इस इकाई को जैसेतैसे ढो रहे हैं. लेकिन उन्हें इस का अच्छाखासा फायदा मिल रहा है. बन्ने मियां और जमीला बेगम सियासत करते हुए तबीयत से भाजपाई राज में चांदी काट रहे थे. इन दोनों ने मिल कर अपना खासा समर्थक वर्ग भी तैयार कर रखा था.

30 नवंबर की दोपहर को अचानक जमीला बेगम की मौत की खबर आग की तरह फैली. दोपहर के वक्त इंदिरानगर में आमतौर पर औरतें और बच्चे ही होते थे. मर्द अपनेअपने काम पर निकल चुके होते थे. अमन ने तंग गली में बने अपने मकान के बाहर आ कर शोर मचाया तो वहां मौजूद तमाम औरतें अपना कामधंधा छोड़ कर जमीला के घर की ओर भागीं. हर एक की जुबान पर यही सवाल था कि क्या हुआ?

जवाब में घबराए अमन ने बताया कि अम्मी को करंट लगा है. औरतों ने देखा कि जमीला बेगम खाट पर लेटी थीं और उन के शरीर में कोई हलचल नहीं हो रही थी. लिहाजा तुरंत नजदीक से औटो बुलवा कर उन्हें हमीदिया अस्पताल ले जाया गया. घर आई औरतों में कुछ औरतें हैरानी से घर की दीवारों को देख रही थीं कि जमीला को करंट लगा कैसे? यह सवाल अमन से किया गया तो वह घबराहट में कोई जवाब नहीं दे सका. औरतों ने भी उस की हालत देखते हुए ज्यादा कुरेदना ठीक नहीं समझा.

अलबत्ता, जमीला को जब औटो से ले जाया जा रहा था तो जरूर कुछ औरतों ने उस के बाएं कंधे के नीचे एक सुराख देखा था. लेकिन अस्पताल पहुंचने की जल्दबाजी में किसी ने इस बाबत सवाल नहीं किया. बन्ने मियां उस समय अपनी मीसाबंदियों वाली पेंशन लेने बैंक गए हुए थे. जैसे ही उन्हें बीवी की मौत की खबर मिली, वह भी भागेभागे हमीदिया अस्पताल पहुंचे. तब तक डाक्टरों ने जमीला का निरीक्षण कर उन्हें मृत घोषित कर दिया था. अस्पताल में खासी भीड़ जमा हो गई थी. जमीला बेगम के दफनाए जाने की यानी अंतिम संस्कार की बातें और तैयारियां दोनों शुरू हो गई थीं.

जमीला की मौत की खबर थाना गौतमनगर के थानाप्रभारी मुख्तार कुरैशी तक पहुंची तो वह तुरंत हरकत में आ गए. जमीला की मौत कुदरती नहीं, बल्कि संदिग्ध थी. यह बात उन्हें अपने सूत्रों से पता चल चुकी थी, साथ ही यह भी कि जमीला के घर वाले यानी खासतौर पर पति बन्ने मियां और बेटा अमन इस मौत को राज ही रखना चाहते हैं, इसलिए कफनदफन के इंतजाम में जुट गए हैं.

मुख्तार कुरैशी के लिए जमीला की मौत संदिग्ध इस लिहाज से भी थी कि 2 दिनों पहले ही ट्रैक्टर रखने को ले कर कुछ पड़ोसियों से जमीला का विवाद हुआ था. कुछ लोगों के खिलाफ जमीला ने थाने में शिकायत भी दर्ज करा रखी थी. कुरैशी नहीं चाहते थे कि किसी को कुछ कहने का मौका मिले, क्योंकि मामला एक भाजपा नेत्री की संदिग्ध मौत का था, जिस पर उचित काररवाई न करने पर बवाल भी मच सकता था. लिहाजा वह बगैर वक्त गंवाए हमीदिया अस्पताल पहुंच गए.

उन का शक सच निकला. जमीला बेगम के बाएं कंधे के नीचे सुराख था. लेकिन हैरान करने वाली बात यह थी कि खून का कहीं नामोनिशान नहीं था. कुरैशी ने तुरंत जमीला के कंधे पर बने सुराख का एक्सरे कराया तो इस बात की पुष्टि हो गई कि उन की मौत करंट लगने से नहीं, बल्कि गोली लगने से हुई थी. साफ हो गया कि यह हत्या का मामला था. एक्सरे रिपोर्ट से यह भी साफ हो गया था कि कंधे में धंसी गोली 318 बोर के कट्टे की थी.

जमीला के अंतिम संस्कार की बात अब खत्म हो गई थी और उन का पोस्टमार्टम शुरू हो चुका था. पोस्टमार्टम के बाद उन का शव घर वालों यानी बन्ने मियां और अमन को सौंप दिया गया. पूछताछ में पुलिस को अमन से कुछ हासिल नहीं हुआ. वह कभी करंट लगने की बात कहता था तो कभी यह शक भी जाहिर करता था कि मुमकिन है कि मम्मी को किसी ने घर में घुस कर गोली मारी हो, जिस का उसे पता नहीं चला, क्योंकि उस वक्त वह सो रहा था.

दूसरी ओर शहर में यह अफवाह फैल चुकी थी कि जमीला की हत्या की गई है, पर हत्यारे कौन हैं, इस का पता नहीं चल पा रहा है. पुलिस को अमन पर शक था, लेकिन उसे कातिल ठहराने की कोई ठोस वजह उन के पास नहीं थी. पूछताछ में पड़ोसियों से विवाद की बात भी सामने आई थी. उस से भी ज्यादा दिलचस्प लेकिन गंभीर बात यह भी उजागर हुई थी कि बन्ने मियां का पहली पत्नी से कुछ दिनों पहले ही जायदाद को ले कर झगड़ा हुआ था, जिस का एक बेटा अपराधी प्रवृत्ति का था. लिहाजा वह भी शक के दायरे में आ गया था.

आमतौर पर हत्या के ऐसे मामलों में पुलिस 1-2 दिन में ही असली कातिल तक पहुंच जाती है, लेकिन जमीला बेगम की हत्या पुलिस वालों के लिए गुत्थी बनती जा रही थी. पड़ोसियों से पूछताछ की गई तो झगड़े की बात तो उन्होंने स्वीकारी, लेकिन जमीला की मौत के तार उन से जुड़ नहीं पाए. बन्ने मियां की पहली बीवी और बच्चों से भी पूछताछ की गई, लेकिन कोई ऐसी वजह सामने नहीं आई, जिस से उन पर शक किया जाता.

कोई नतीजा न निकलते देख एसपी (नौर्थ) अरविंद सक्सेना ने यह मामला क्राइम ब्रांच के सुपुर्द कर दिया. अब मामला क्राइम ब्रांच के एएसपी शैलेंद्र सिंह के हाथ में आ गया, जो अपनी खास स्टाइल के चलते ऐसे ब्लाइंड मर्डर सुलझाने के लिए जाने जाते हैं.

मुखबिरों के जरिए और जो नई बातें पता चलीं, उन में एक अहम बात यह थी कि हादसे के वक्त बन्ने मियां पेंशन लेने बैंक नहीं गए थे, जैसा कि उन्होंने बताया था, बल्कि वह एक फड़ पर बैठे ताश खेल रहे थे. दूसरी महत्त्वपूर्ण बात यह भी पता चली थी कि कुछ दिनों पहले ही बन्ने मियां और जमीला का किसी बात पर इतना झगड़ा हुआ था कि जमीला नाराज हो कर घर छोड़ कर अपनी बहन के यहां चली गई थी, जहां से बाद में बन्ने मियां उसे मना कर ले आए थे. आते हुए उन्होंने साली से अपनी गलती के लिए माफी भी मांगी थी.

अब शक की सुई बन्ने मियां पर घूमी तो वह झल्ला उठे और एसपी (नौर्थ) से मिल कर शिकायत की कि बीवी के कत्ल के मामले में पुलिस वाले उन के घर वालों को पूछताछ के नाम पर परेशान कर रहे हैं. पुलिस वाले बन्ने मियां को हलके में लेने की भूल नहीं कर रहे थे, जो पेशे से नेता थे और बातबात में नेतागिरी के दम पर सिर पर आसमान उठाने के हुनर में माहिर थे.

पर अब उन में पहले सा आत्मविश्वास नहीं रह गया था, इसलिए पुलिस वाले ताड़ गए कि दाल में कुछ काला जरूर है. पर दाल कहां और कितनी काली है, वहां तक पहुंचने के लिए सब्र की जरूरत थी. लिहाजा ढील दे कर पतंग उड़ाने की शैली अपनाई गई. बन्ने मियां पर शक की वजह यह मनोवैज्ञानिक पहलू भी था कि कई बार कलह के बाद शौहर सुलह करता है तो एक खतरनाक खयाल उस के दिमाग में बीवी को देख लेने या उसे सबक सिखाने का भी पनप रहा होता है.

पुलिस की बारबार की पूछताछ और छानबीन कम हो जाने से बन्ने मियां और अमन को थोड़ा सुकून मिला. अब तक जमीला बेगम की हत्या हुए 3 हफ्ते गुजर चुके थे और लोग इस मामले को भूल चुके थे. जिन्हें याद था, उन्होंने अपनी तरफ से उसे ब्लाइंड मर्डर की लिस्ट में डाल दिया था.

आखिरकार 20 दिसंबर, 2016 को सनसनीखेज तरीके से इस हत्याकांड से पुलिस ने परदा उठाया तो लोग एक बार फिर यह जान कर चौंके कि बेटा अमन ही अपनी मां जमीला का हत्यारा था और हत्या की वजह एक लड़की थी, जो उस की माशूका थी. पूछताछ में अमन टूट गया था और अपना जुर्म कबूल करते हुए उस ने हत्या में प्रयुक्त कट्टा भी बरामद करा दिया था.

अमन निकम्मा और आलसी किस्म का बेजा लाड़प्यार में पला लड़का था, जिस का एक शौक बाइक चलाना भी था. कई लड़कियों से उस की दोस्ती थी. लेकिन मोहल्ले की ही एक लड़की से उसे सच्चा प्यार हो गया था. लड़की चूंकि बिरादरी की थी, इसलिए उस के लिहाज से शादी में कोई अड़चन पेश नहीं आनी थी. लेकिन इस प्रेमप्रसंग की गहराई के बारे में जब जमीला बेगम को पता चला तो वह दुखी भी हुईं और बेटे पर भड़क भी उठीं, क्योंकि उन्होंने अपनी रिश्तेदारी की एक लड़की को बहू के रूप में चुन रखा था और उन रिश्तेदारों को वह जुबान भी दे चुकी थीं.

जमीला ने तरहतरह से अमन को समझाया, पर वह टस से मस नहीं हुआ. वारदात की दोपहर वह सो कर उठा तो मम्मी से चाय की फरमाइश की. इस पर जमीला बाहर नुक्कड़ की किराने की दुकान पर गईं और दूध का पैकेट तथा लड्डू ले आईं. बेटे के लिए चाय बनातेबनाते उन का ध्यान इस तरफ गया कि बिस्तर पर पड़ा बेटा अपनी माशूका से गुफ्तगू कर रहा है तो उन का पारा सातवें आसमान पर जा पहुंचा. उन्होंने उसे खुली चेतावनी दे दी, ‘तेरी शादी वहीं होगी, जहां मैं तय कर चुकी हूं. अपनी पसंद की लड़की से शादी करना है तो मेरे मरने के बाद कर लेना.’

इस कलयुगी आशिक बेटे ने मां की हिदायत कुछ इस तरह मानी कि तकिए के नीचे रखा कट्टा निकाला और उन पर गोली दाग दी. अब वह मां के मरने के बाद अपनी मरजी से शादी करने के लिए आजाद था. मां के कंधे से निकले खून को उस ने गीले कपड़े से पोंछ दिया. हत्या के बाद जो हुआ, वह शुरू में बताया जा चुका है.

जल्दी ही बन्ने मियां की समझ में आ गया था कि उन की बीवी का कत्ल किस ने किया है. बीवी तो वह खो ही चुके थे, अब बेटे को नहीं खोना चाहते थे. लिहाजा जांच के दौरान पड़ोसियों से ट्रैक्टर को ले कर झगड़े को उन्होंने तूल दे कर पुलिस का ध्यान बंटाने की कोशिश की और पहली बीवी से हुए विवाद को भी उन्होंने तूल दिया, जो पुलिसिया जांच में खारिज हो गए थे.

बिगड़ैल अमन मांबाप के बेजा लाड़प्यार के चलते ज्यादा पढ़लिख नहीं पाया था. लेकिन इश्क में मास्टर डिग्री हासिल कर चुका था. उस की महबूबा एकांत में अकसर उस के साथ होती थी और दोनों साथ जीनेमरने की कसमें खाते रहते थे. नई आजादी के सिपाही बन्ने मियां की दुनिया लुट चुकी है. कातिल बेटा जेल में है और करोड़ों की पुश्तैनी जायदाद अब उन्हें मुंह चिढ़ा रही है, जिस का पहली बीवी और बच्चों के हिस्से में जाना तय दिख रहा है.

जमीला की जिद खुद उन्हें भारी पड़ी. अगर वह पुरानी कहानी की तरह बेटे को उस की माशूका को देने के लिए अपना कलेजा सौंप देतीं तो बात बन जाती. इधर अमन का सोचना यह था कि अगर अपनी मरजी से शादी की तो मांबाप के पैसों पर ऐश करने को नहीं मिलेगा. तय है कि जमीला को इस बात का अहसास नहीं था कि बेटा गले तक इश्क के समंदर में डूब चुका है. गोली मारने के पहले उस ने कहा भी था कि अब्बा ने भी तुम से इसी तरह शादी की थी.

पुराने भोपाल के गरीब जरूरतमंद बाशिंदों को झोपड़ी दिलाने का कारोबार करने वाली जमीला का घर अब उजड़ चुका है, जिस में अब बन्ने मियां गमगीन से बैठे रहते हैं. बेटे की परवरिश में कहां गलती हो गई, यह अब उन्हें सब कुछ लुटने के बाद समझ आ रहा है.

प्रेमी की आरजू : जब पत्नी ने किया पति का कत्ल – भाग 1

रुखसाना काफी परेशान थी. वह पिछले 10 महीने से थानों तथा वकीलों के चक्कर काट रही थी, मगर उस की कहीं पर भी कोई सुनवाई नहीं हो रही थी. उस के दिमाग में अब बारबार यह सवाल उठ रहा था कि वह अब क्या करे? पुलिस और अदालत भी उसे इंसाफ देने में देरी कर रहे थे. स्थानीय नेता भी कई बार उस की मदद कर चुके थे, फिर भी उसे लगता था कि अभी इंसाफ उस से कोसों दूर है.

रुखसाना अकसर अपने बीते दिनों को याद करती. उस का सपना था कि वह अपने बेटे मेहताब का निकाह कर के जो चांद जैसी दुलहन लाएगी, वह घर की सारी जिम्मेदारियां संभाल लेगी और बहू उस की भी खूब सेवा किया करेगी, लेकिन हुआ इस का उलटा.

आरजू नाम की जिस बहू को वह ब्याह कर लाई थी, उस ने रुखसाना के सारे अरमानों पर पानी फेर दिया था.

बात पिछले साल की है. रमजान का महीना शुरू हो गया था. रात को 11 बजे खाना खा कर मेहताब और आरजू अपने कमरे में सोने चले गए. रुखसाना ने सुबह 3 बजे अपने बेटे मेहताब के कमरे का दरवाजा खटखटा कर आवाज लगाई, ‘‘आरजू-मेहताब, उठ जाओ, सेहरी का वक्त हो गया है.’’

2-3 बार दरवाजा खटखटा कर आवाज लगाने के बाद रुखसाना को बहू आरजू का अलसाया हुआ स्वर सुनाई दिया, ‘‘अम्मी, इन की तबियत खराब है, सो रहे हैं. यह रोजा नहीं रखेंगे.’’

रुखसाना बड़बड़ाई, ‘‘रात तो अच्छाभला सोने गया था, तबियत कैसे खराब हो गई?’’ रुखसाना मायूसी से अपने कमरे में लौट आई.

9 बजे तक अच्छाखासा दिन निकल आया था. रुखसाना हैरान थी, अभी तक न आरजू अपने कमरे से निकल कर आई थी, न मेहताब. ‘कहीं मेहताब की तबियत ज्यादा खराब तो नहीं है?’ सोच कर रुखसाना फिर से आरजू के कमरे के दरवाजे पर पहुंच गई. दरवाजा अभी भी बंद पड़ा था.

रुखसाना ने जोर से दरवाजा खटखटाया और चीखी, ‘‘बहू उठती क्यों नहीं, दिन चढ़ आया है और तुम लोग अभी तक घोड़े बेच कर सो रहे हो, यह अच्छी बात नहीं है.’’

‘‘अम्मी इन की तबियत ज्यादा खराब है, रजाई ओढ़ कर गहरी नींद सो रहे हैं, इसीलिए मैं भी लेटी हूं.’’ अंदर से आरजू का स्वर उभरा, ‘‘आप भी जा कर आराम करें.’’

‘‘आराम कैसे करूं, मेहताब की तबियत खराब बता रही है तू. दरवाजा खोल, मैं देखती हूं उसे क्या हुआ है.’’ परेशानहाल रुखसाना ने कहा.

लेकिन आरजू ने अपनी सास की बात अनसुनी कर दी. उस ने दरवाजा नहीं खोला. रुखसाना बहू आरजू की इस हरकत पर संदेह में पड़ गई.

‘आरजू आखिर दरवाजा क्यों नहीं खोल रही है, बात क्या है. मेहताब ठीक तो है न?’ अनेक तरह की शंकाए मन में उमड़ीं तो रुखसाना अपने कमरे में लौट आई. उस ने फोन द्वारा अपने नजदीकी रिश्तेदारों को आरजू के दरवाजा न खोलने वाली बात बता कर घर आने को कह दिया.

कुछ ही देर में पास के कुछ रिश्तेदार उस के घर पहुंच गए. उन्होंने मेहताब के कमरे का दरवाजा जोरजोर से खटखटा कर आरजू को तुरंत दरवाजा खोलने के लिए कहा. दरवाजा न खोलने पर दरवाजा तोड़ने की धमकी भी दी तो इस बार आरजू ने दरवाजा खोल दिया.

रिश्तेदारों ने अंदर कदम रखा तो मेहताब फर्श पर रजाई ओढ़ कर लेटा पड़ा था. मेहताब के चाचा ने मेहताब के ऊपर से रजाई खींची तो सभी हैरान रह गए. मेहताब एकदम नग्नावस्था में बेहोशी की हालत में पड़ा था.

मेहताब के चाचा ने उस की नब्ज टटोली तो उन का दिल धड़क उठा, क्योंकि उस की नब्ज में कोई धड़कन नहीं थी. वह लोग मेहताब को चाहर में लपेट कर तुरंत अस्पताल की तरफ दौड़ पड़े. भूमानंद अस्पताल ज्यादा दूर नहीं था. इमरजेंसी में वह मेहताब को ले कर पहुंचे तो डाक्टर ने उस की जांच करते ही बता दिया कि यह मर चुका है. डाक्टर ने इस की सूचना तुरंत कोतवाली ज्वालापुर को दे दी.

आरजू और रुखसाना बाद में अस्पताल पहुंची थीं. बेटे मेहताब की मौत की खबर लगते ही रुखसाना विलाप करने लगी. साथ आए रिश्तेदार मेहताब की इस रहस्यमयी मौत से सन्नाटे में थे, उन की समझ में नहीं आ रहा था कि यह सब अचानक कैसे हो गया. आरजू एक ओर गुमसुम खड़ी आंसू बहा रही थी.

कोतवाली ज्वालापुर के कोतवाल आर.के. सकलानी अपने साथ थानेदार शेख सद्दाम हुसैन को ले कर भूमानंद अस्पताल पहुंच गए. उन्होंने मृतक की लाश का बारीकी से निरीक्षण किया. उस के शरीर पर चोट के निशान नहीं थे. अब यह पोस्टमार्टम होने पर ही पता चल सकता था कि मेहताब की मौत किस प्रकार हुई.

कोतवाल सकलानी ने वहां मौजूद रिश्तेदारों और रुखसाना से मेहताब की मौत का कारण पूछा. रिश्तेदार तो नहीं, रुखसाना ने यह संदेह जरूर जाहिर किया कि मेहताब की मौत में आरजू का हाथ है.

कोतवाल सकलानी ने आरजू की ओर देखा. वह गम में डूबी एक ओर खड़ी आंसू बहा रही थी. सकलानी उस के पास आ गए. उन्हें देख कर आरजू सकपका गई.

कोतवाल सकलानी ने उस के चेहरे पर नजरें जमा कर पूछा, ‘‘तुम्हारा पति मेहताब कैसे मर गया?’’

‘‘म…मैं क्या बताऊं. रात को तो यह खाना खाने के बाद अच्छेभले मेरे साथ बैडरूम में आए थे.’’

कोतवाल सकलानी ने आरजू की बात काट दी, ‘‘अच्छेभले तुम्हारे साथ बैडरूम में मेहताब आया फिर क्या हुआ कि वह मौत के मुंह में चला गया..?’’

‘‘मैं नहीं जानती साहब, यह तो डाक्टर ही बताएंगे कि इन की अचानक मौत क्यों और कैसे हो गई.’’

‘‘यह तो हम पोस्टमार्टम से मालूम कर लेंगे, बस मुझे इतना बताओ कि क्या इस की मौत में तुम्हारा हाथ है?’’

‘‘म…मैं अपने पति को क्यों मारूंगी साहब.’’ आरजू एकाएक भड़क उठी, ‘‘आप मुझ पर झूठी तोहमत लगा रहे हैं. मैं पहले ही अपने पति की मौत से सदमे में हूं, मैं इस समय बहुत दुखी हूं. आप मुझे परेशान न करें.’’

कोतवाल सकलानी मन ही मन मुसकराए. वह समझ रहे थे कि आरजू कितनी दुखी और सदमे में है. वह दिखावटी आंसू बहा रही है. यह उन की पारखी नजरों से छिपा नहीं रह सका था. फिलहाल उस से वह अधिक सवालजवाब नहीं कर सकते थे, क्योंकि अभी माहौल वहां गमगीन था.

उन्होंने आवश्यक काररवाई निपटा कर मेहताब की लाश को पोस्टमार्टम के लिए हरिमिलापी अस्पताल हरिद्वार भेज दिया. और इस मामले की जांच का जिम्मा थानेदार शेख सद्दाम हुसैन को सौंप दिया.

जैसी करनी, वैसी भरनी

पहली मई, 2017 को सोबरन सिंह अदालत के कटघरे में खड़ा था. उस दिन उस की जिंदगी का अहम फैसला होने वाला था. उस की आंखों में याचना थी. अपराध ऐसा था, जिसे सुन कर लोगों के रोंगटे खड़े हो जाएं. फिर भी उसे उम्मीद थी कि सामने डायस पर बैठे जज साहब उसे जीवनदान दे देंगे.

आखिर गलती किससे नहीं होती. लेकिन उस ने जो किया था, उसे गलती नहीं, गुनाह कहते हैं. विवाह से ले कर जुर्म करने तक का घटनाक्रम किसी चलचित्र की तरह उस की आंखों के सामने घूम गया था. जब 15 साल पहले उस की शादी ममता से हुई तब वह बहुत खुश था. ममता उत्तर प्रदेश के जिला फर्रुखाबाद के गांव समसुइया निवासी सतीशचंद्र की बेटी थी.

शादी के बाद ममता अपनी ससुराल रूपपुर पहुंची तो घर खुशियों से भर उठा. बहू के आने पर बूढ़ी सास को राहत मिली थी, क्योंकि उन का बड़ा बेटा पन्नालाल पत्नी को ले कर अलग रहता था. वह छोटे बेटे सोबरन के साथ रहती थीं. आते ही ममता ने घर संभाल लिया. समय के साथ ममता 3 बेटियों और 2 बेटों की मां बनी.

घर में खुशहाली थी. सोबरन ठीकठाक कमाता था, इसलिए आराम से गुजारा हो रहा था. भाई पन्नालाल पड़ोस में ही रहता था, लेकिन उस से उस के संबंध अच्छे नहीं थे.

अचानक ममता को पति में बदलाव महसूस होने लगा. वह घर खर्च के लिए जो पैसे देता था, उस में कमी कर दी थी. पूछने पर कहता कि आजकल काम ठीक नहीं चल रहा है. कभी पैसे गिर जाने का बहाना बना देता. ममता की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे?

ममता को लग रहा था कि कुछ गड़बड़ जरूर है. उस ने पता लगाया कि पति कहांकहां बैठता है. उसे पता चला कि वह गांव के कुछ आवारा और शराबी लोगों के साथ उठताबैठता है और उन्हीं के साथ ढाबे पर खापी कर आता है. ममता ने पति से कहा, ‘‘तुम अपनी कमाई शराब और ढाबे पर खाने में खर्च देते हो, मैं इन बच्चों को क्या खिलाऊं, यह घर कैसे चलाऊं?’’

पत्नी की यह बात सोबरन को बहुत बुरी लगी. उस ने गुस्से में कहा, ‘‘तू कौन होती है, मुझ से सवाल करने वाली? मैं कमाता हूं, मेरी मरजी कि मैं अपनी कमाई किस तरह और किस पर खर्च करूं.’’

‘‘तुम अपनी कमाई शराब में उड़ा दो और बच्चे भूखे रहें, इस बात को मैं सहन नहीं कर सकती.’’ ममता ने कहा.

‘‘ओह, तो तू अब मुझ पर हुकुम चलाएगी.’’ कह कर सोबरन ममता पर टूट पड़ा. ममता हैरान रह गई. सोबरन ने पहली बार उस पर हाथ उठाया था. पत्नी की पिटाई कर के वह सीधे ठेके पर गया और नशे में झूमता हुआ घर लौटा. उस की इस हरकत से ममता और बच्चे सहम उठे थे.

crime

उस दिन के बाद सोबरन किसी न किसी बात को ले कर ममता की पिटाई करने लगा. ममता पति की इस हरकत से परेशान रहने लगी. एक दिन वह अपनी बुआ सुदामा के घर गई, जो मैनपुरी के नगला पजावा में रहती थी. उस ने बुआ को सारी बात बताई तो सुदामा भी परेशान हो उठी. सुदामा का बेटा रजनेश भी वहीं था. उस ने कहा कि वह सोबरन जीजा को समझाएगा.

एक दिन रजनेश रूपपुर गया और सोबरन को समझाने की कोशिश की तो उस ने कहा, ‘‘अगर तुम्हें अपनी बहन और बच्चों की इतनी ही फिक्र है तो ले जाओ उन्हें अपने घर.’’

रजनेश की समझ में नहीं आ रहा था कि इस स्थिति में वह क्या करे? बहन के घर में कलह बढ़ रही थी और वह कुछ कर नहीं पा रहा था. आखिर सभी ने ममता और उस के बच्चों को उन के हालात पर छोड़ दिया.

ममता ने भी तय कर लिया कि सोबरन जिस हालत में रखेगा, वह उसी हालत में रहने की कोशिश करेगी. पर उस ने यह कभी नहीं सोचा था कि पति की इन हरकतों से जीवन में ऐसा तूफान आएगा कि सब तबाह हो जाएगा.

सोबरन दिनोंदिन शराब का आदी होता जा रहा था. नशा उसे वहशी बना रहा था. नशे में एक दिन उस ने पिता की झोपड़ी में आग लगा दी. उस समय झोपड़ी में उस के पिता और बच्चे सो रहे थे. गांव वालों ने बड़ी मुश्किल से आग बुझा कर उन्हें बाहर निकाला.

गांव वालों की नजर में सोबरन हिंसक और एक शराबी था. सभी उस से दूरियां बनाने लगे थे. गांव वालों की नफरत भी सोबरन को अपराधी बनने की ओर ले जा रही थी. उस के हिंसक स्वभाव की वजह से पत्नी और बच्चे घर में सहमे रहते थे.

सोबरन इतना क्रूर हो जाएगा, यह किसी ने नहीं सोचा था. 29 जून, 2014 की शाम को सोबरन नशे में लड़खड़ाता हुआ घर आया तो उस के डर से सभी बच्चे छिप गए.

ममता ने पति को धिक्कारा कि कुछ तो शरम करे, बच्चों को पेट भर खाना नहीं मिलता और वह है कि उसे पीने से ही फुरसत नहीं है. इस पर सोबरन ने गुस्से में ममता को एक थप्पड़ जड़ दिया. संयोग से उसी समय उस के पिता बाबूराम सामने आ गए तो सोबरन ने हंसते हुए कहा, ‘‘चल बापू, आज तू भी शराब पी ले. तू भी देख, इसे पीने पर कैसा मजा आता है.’’

इस के बाद बापबेटे ने मिल कर शराब पी और फिर किसी बात पर दोनों में झगड़ा होने लगा. नतीजतन दोनों में मारपीट शुरू हो गई. बेटे का गुस्सा देख कर बाबूराम डर गया और पत्नी के साथ बाहर चला गया.

सोबरन को लगा कि इतना पीने के बाद भी अभी नशा नहीं चढ़ा है. उस ने ममता से पैसे मांगे. ममता ने पैसे देने से मना कर दिया. वह उसे पीटने लगा. ममता क्या करती, उस ने सौ रुपए निकाल कर दे दिए. सोबरन उस समय जैसे दानव बन गया था. उस की नजर अपनी 11 साल की बेटी सपना पर पड़ी तो उसे पास बुला कर कहा, ‘‘ये पैसे अंदर रख दे.’’

सपना पैसे ले कर अंदर चली गई. पीछेपीछे सोबरन भी गया और सपना को पीटने लगा. बेटी को पिटता देख ममता डर गई और अकेली ही पड़ोसी के घर में जा छिपी. बाकी बच्चे एक चारपाई पर लेटे चादर के अंदर से सब देख रहे थे. सपना को बचाने वाला वहां कोई नहीं था.

सपना चीखचिल्ला रही थी, लेकिन सोबरन को उस पर तनिक भी दया नहीं आ रही थी. वह उसे पीटते हुए खेतों की ओर खींच कर ले गया. कुछ देर बाद सपना को गोद में लेकर लौटा और जमीन पर पटक दिया. सपना बेहोश थी. 7 साल की पूनम ने अपनी आंखों से अपनी बड़ी बहन को तड़पते देखा. उस ने देखा कि पिता ने किस तरह उस की गरदन पर पैर रख कर तब तक दबाए रखा, जब तक तड़पतड़प कर उस की सांसें बंद नहीं हो गईं. सपना की आंखों, कानों और मुंह से खून निकल रहा था. वह मर चुकी थी.

बेटी को मौत के घाट उतार कर भी सोबरन पर कोई असर नहीं हुआ. वह पूरी तरह बेखौफ था. वह छत पर गया और वहीं से ममता को आवाज दी कि सपना को बुखार है, आ कर उसे दवा दे दे.

यह सुन कर ममता भागी चली आई. वह नहीं जानती थी कि कसाई उसे भी हलाल करने को तैयार है. ममता के आते ही सोबरन उसे डंडे से पीटते हुए बाहर ले आया. बाहर ला कर उसे ईंट से मारा और नाले में डुबो दिया. इतने से भी मन शांत नहीं हुआ तो घसीट कर घर ले आया. तब तक ममता भी दम तोड़ चुकी थी.

सोबरन को लगा कि दोनों मर चुकी हैं तो लाशों को एकएक कर के सीढि़यों से घसीटता हुआ छत पर ले गया और बड़े भाई पन्नालाल की छत पर डाल दिया. इस के बाद उस ने रात भर पूरे घर की सफाई की और खून के निशान मिटाए. सुबह होने पर उस ने बच्चों को धमकाया कि अगर उन्होंने किसी को कुछ बताया तो उन का भी यही हाल होगा.

इस के बाद सोबरन मोटरसाइकिल ले कर निकल गया. जाने से पहले 7 साल की बेटी पूनम से कहा कि वह तारीख पर कोर्ट जा रहा है. उस के जाते ही पूनम रोने लगी. उस के रोने की आवाज सुन कर पड़ोसी और मोहल्ले के लोग आ गए. रोतेरोते उस ने सारी बात उन लोगों को बताई तो लोगों ने छत पर जा कर देखा. वहां सचमुच मांबेटी की लाशें पड़ी थीं.

गांव के किसी आदमी ने रजनेश को फोन कर के सारी बात बता दी. बहन और भांजी की हत्या की खबर सुन कर रजनेश के पैरों तले से जमीन खिसक गई. मां को सारी बात बता कर वह तुरंत थाना करहल गया और थानाप्रभारी को सारी बात बताई.

हत्या का पता चलते ही थानाप्रभारी पुलिस टीम के साथ रूपपुर गांव पहुंच गए. वहां गांव वालों की भीड़ इकट्ठा थी. पुलिस ने पन्नालाल की छत से ममता और 11 साल की सपना की लाशें बरामद कर लीं.

ममता और सपना की बेरहमी से की हत्या से पूरा गांव सहमा था. दोनों के शरीर पर चोटों के निशान थे. जरूरी काररवाई कर के पुलिस ने दोनों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. घटना की चश्मदीद गवाह पूनम थी. पूछताछ के लिए पुलिस पूनम को अपने साथ थाने ले आई.

रजनेश की ओर से सोबरन के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया गया. पुलिस ने चश्मदीद गवाह पूनम के बयान दर्ज कर लिए. पूनम के दिल में क्रूर पिता के प्रति इतनी नफरत थी कि उस ने अपने बयान में बताया कि अब वह अपने पिता की शक्ल भी नहीं देखना चाहती. वह उसे फांसी पर लटका देखना चाहती है.

ममता और सपना की जघन्य हत्या ने पूरे परिवार को हिला कर रख दिया था. सोबरन को पुलिस ने उसी दिन गिरफ्तार कर लिया. गिरफ्तारी के समय उस के चेहरे पर जरा भी शिकन नहीं थी. पूरे मामले की जांच कर 23 अगस्त, 2014 को थानाप्रभारी बलबीर सिंह ने सोबरन के खिलाफ चार्जशीट दाखिल कर दी.

इस के बाद मामले की सुनवाई शुरू हुई तो रजनेश ने तय कर लिया कि कुछ भी हो, वह सोबरन को जेल से बाहर नहीं आने देगा. सभी रिश्तेदार सोबरन से नफरत करने लगे थे. रजनेश ने मन लगा कर मुकदमे की पैरवी की. यही वजह थी कि सोबरन की जमानत अर्जी हाईकोर्ट तक खारिज हो गई.

दोहरे कत्ल का यह मामला अपर जिला जज एवं सत्र न्यायाधीश (प्रथम) गुरुप्रीत सिंह बावा की अदालत में पहुंचा. माननीय न्यायाधीश ने मामले को बहुत गंभीरता से लिया. पत्नी और बेटी के कातिल सोबरन के खिलाफ काफी मजबूत सबूत थे. कातिल की बेटी पूनम घटना की चश्मदीद गवाह थी, उस ने अदालत को घटनाक्रम बता दिया था. उस के बयान से ही पता चल रहा था कि वह अपने शराबी पिता से कितनी नफरत करती थी.

गवाहियां पूरी हो चुकी थीं. अगले दिन फैसला सुनाया जाना था. घर वाले चाहते थे कि सोबरन को फांसी हो. लगभग 3 साल तक मुकदमा चला. फैसले की तारीख अदालत ने तय कर दी थी. 1 मई, 2017 को फैसला सुनाया जाना था. मृतका ममता के मांबाप सुदामा के यहां नगला पजावा मैनपुरी आ गए थे. सभी के चेहरे पर चिंता की लकीरें थीं. पुलिस मुलजिम सोबरन को कोर्टरूम ले आई और उसे कटघरे में खड़ा कर दिया गया. वह काफी बेचैन लग रहा था.

11 बजे माननीय न्यायाधीश गुरुप्रीत सिंह बावा अदालत में आए तो सन्नाटा सा छा गया. जज साहब ने अपना फैसला सुनाया. उन्होंने कहा कि मुलजिम ने जो अपराध किया है, वह समाज के लिए घातक है. अत: आरोपी सोबरन सिंह दया का पात्र नहीं है. अदालत ने उस के अपराध को अतिजघन्य माना और भारतीय दंड विधान की धारा 302 के अंतर्गत उसे फांसी की सजा दी.

अदालत के इस फैसले को सुन कर सोबरन फूटफूट कर रोने लगा. पुलिसकर्मियों ने उसे मुश्किल से शांत किया. इस फैसले से सोबरन के घर वालों और ममता के घर वालों ने राहत की सांस ली. सतीशचंद्र और तारावती अपनी बेटी और धेवती के कातिल को दी जाने वाली सजा से संतुष्ट हैं. बेटी और धेवती की याद में उन की आंखों में आंसू आ गए. उन्होंने सिर्फ इतना ही कहा, ‘‘जैसी करनी, वैसी भरनी.’’

सोबरन निचली अदालत के फैसले के खिलाफ ऊपरी अदालत में अपील करेगा या नहीं, यह पता नहीं. पर यह फैसला समाज के लिए एक सबक  जरूर है.