तांत्रिक शक्ति के लिए अपने बच्चों की बलि – भाग 1

बात 22 मार्च, 2023 की है. मेरठ शहर के थाना दिल्ली गेट के एसएचओ ऋषिपाल औफिस में बैठे अखबार देख रहे थे, तभी 2 युवक उन के पास आए. दोनों के चेहरे पर परेशानी साफ झलक रही थी. उन्होंने एसएचओ साहब को सलाम कहा तो ने उन्हें सामने पड़ी कुरसियों पर बैठने का इशारा किया. दोनों बैठ गए. कपड़ों और चेहरों से दोनों मुसलमान दिखाई पड़ रहे थे.

“कहिए, थाने में आप का कैसे आना हुआ?” एसएचओ ऋषिपाल ने पूछा.

“साहब, मेरा नाम शाहिद बेग है.” एक छरहरे बदन का युवक अपना परिचय देते हुए बोला, “मेरे साथ मेरा साला दानिश खान है. मैं आप के पास अपने 2 बच्चों के गुम हो जाने की फरियाद ले कर आया हूं. मुझे शक है कि मेरे दोनों बच्चे कत्ल कर दिए गए हैं.”

कत्ल की बात सुन कर ऋषिपाल चौंक गए, वह कुरसी पर झुकते हुए बोले, “आप को यह शक क्यों और कैसे है कि आप के बच्चों का कत्ल कर दिया गया है?”

“साहब, निशा ने मेरे 3 बच्चों को पहले भी मार डाला था. अब मेरे बेटे मेराब और बेटी कोनेन की भी उस ने हत्या कर दी है.”

“निशा…यह कौन है?”

“मेरी बीवी है साहब, एक नंबर की मक्कार, चालबाज और फरेबी औरत है. ढोंगी तांत्रिक का लबादा ओढ़ कर वह लोगों को बेवकूफ बना रही है, तंत्रमंत्र के नाम पर उस ने अपनी पांचों औलादों की बलि चढ़ा दी है. मेरे बच्चे परसों शाम से गायब हैं…”

मामला काफी संगीन नजर आ रहा था. एसएचओ के चेहरे पर गंभीरता फैल गई. उन्होंने शाहिद बेग के चेहरे को ध्यान से देखा, वह काफी परेशान और दुखी दिखाई पड़ रहा था.

“शाहिद बेग, मुझे सारी बात विस्तार से बताओ.”

“साहब, मेरा निकाह सन 2001 में निशा के साथ हुआ था. वह शुरूशुरू में बहुत नेक और शांत स्वभाव की थी. वह मेरे 5 बच्चों की मां बनी, तब तक सब कुछ सामान्य चलता रहा. बाद में निशा में तेजी से परिवर्तन आ गया. वह खुद को तांत्रिक बताने लगी. उस की बातों में अनेक अनपढ़, गरीब लोग आ गए. मेरे घर पर लोगों का जमावड़ा लगने लगा. मैं ने उसे समझाने की बहुत कोशिश की, लेकिन वह नहीं मानी. वह कहती, “मैं तुम्हारे घर की खुशहाली के लिए सिद्धि प्राप्त करने की कोशिश कर रही हूं. तुम देखना कि मैं तुम्हें दुनिया का सब से बड़ा अमीर आदमी बना दूंगी.

“वह घर में अजीबअजीब तंत्रमंत्र के टोटके करने लगी, उस की हरकतों से परेशान हो कर मैं ने घर छोड़ दिया. मैं बच्चों को साथ रखना चाहता था, लेकिन निशा ने बच्चे मेरे हवाले नहीं किए. कुछ दिन बाद मुझे पता चला कि मेरे 3 बच्चे गायब हो गए हैं. मै ने निशा से मिल कर बच्चों की बाबत पूछा तो वह तरहतरह के बहाने बनाने लगी. कभी कहती कि वह पीर बाबा के मुरीद बन कर घर से चले गए, कभी कहती कि अजमेर शरीफ में उस से बिछुड़ गए.

“मैं तब चुप लगा गया. अब उस मक्कार औरत ने मेरा बेटा और बेटी को गायब कर दिया है. मुझे किसी ने बताया है कि निशा ने तांत्रिक शक्ति पाने के लिए मेरे बच्चों की बलि चढ़ा दी है. साहब, आप उस सिरफिरी औरत को कोतवाली ला कर पूछताछ कीजिए, सच्चाई सामने आ जाएगी.”

एसएचओ ऋषिपाल ने शाहिद बेग की बातों को गंभीरता से सुना. उन्होंने साथ में आए दानिश खान की तरफ देखा, “दानिश खान, आप को अपने जीजा की बातों में कितनी सच्चाई नजर आती है?”

“यह हकीकत बयां कर रहे हैं साहब. मुझे निशा को अपनी बहन कहते हुए भी शरम आती है. उस ने मेरे मासूम भांजेभांजियों का कत्ल किया है, उसे गिरफ्तार कर के सख्त से सख्त सजा दीजिए.”

“ठीक है. मैं निशा को यहां बुला कर पूछताछ करता हूं. आप अपनी एफआईआर दर्ज करवा दीजिए.” एसएचओ ने बड़ी गंभीरता से इस मामले को लिया. उन्होंने तुरंत निशा को पकड़ कर लाने के लिए एक पुलिस टीम खैर नगर भेज दी. इस की सूचना उन्होंने अपने वरिष्ठ अधिकारियों को भी दे दी.

police team

दोनों बच्चों की हत्या की

पुलिस टीम निशा को हिरासत में ले कर थाने लौट आई. जब उसे एसएचओ के सामने लाया गया तो वह जरा भी भयभीत नहीं थी. उस ने साड़ी ब्लाउज पहन रखा था, पूरे शृंगार से सजीधजी हुई थी. वह शान से आ कर उन के सामने तन कर खड़ी हो गई. उस ने एसएचओ के चेहरे पर नजरें जमा कर उपेक्षा से पूछा, “मुझे यहां क्यों बुलाया है कोतवाल साहब, आप जानते नहीं, मैं कौन हूं?”

एसएचओ उस की बेबाकी पर चौंके. वह इतनी बेफिक्री से बातें किस दम पर कर रही है, यह जानना जरूरी था. लेकिन उस से पहले वह उस से उस के बच्चों के विषय में जान लेना जरूरी समझते थे. उन्होंने उसे घूरते हुए पूछा, “तेरा बेटा मेराब और बेटी कोनेन कहां है?”

“उन दोनों को तो मैं ने खैरनगर की सलामती के लिए कुरबान कर दिया है.” निशा उसी लापरवाही भरे अंदाज में बोली, “जिस प्रकार युद्ध में अमन (शांति) के लिए मोघ्याल राजा राहिब सिद्ध दत्त ने अपने बच्चे का सिर कलम कर दिया था, उसी तर्ज पर मैं ने भी खैरनगर में अमन के लिए अपने दोनों बच्चों की कुरबानी दी है. यदि मैं ऐसा नहीं करती तो पूरा खैरनगर तबाह और बरबाद हो जाता. वहां लाशों के ढेर लग जाते.” वह बोली.

एसएचओ ऋषिपाल ऊपर से नीचे तक हिल गए. एक मां अपने जिगर के टुकड़ों को अपने हाथों से हलाक कर सकती है, वह सपने में भी नहीं सोच सकते थे. यह औरत बड़ी बेशरमी से अपना गुनाह खैरनगर में अमन लाने के नाम पर थोप रही है. या तो यह अपना दिमागी संतुलन खो चुकी है या फिर जरूरत से ज्यादा शातिर और मक्कार है. कुछ सोच कर उन्होंने पास में खड़ी महिला सिपाही से कहा, “मुझे लगता है, इस का दिमागी पेच ढीला हो गया है. जरा इस का दिमाग दुरुस्त तो करो.”

महिला सिपाही एसएचओ साहब का इशारा समझ गई. एसएचओ उठ कर बाहर आ गए. वह उस कक्ष में आए, जहां उन्होंने शाहिद बेग और उस के साले दानिश खान को बिठाया हुआ था. वे दोनों अमित राय को देख कर खड़े हो गए.

“आप लोग सही कह रहे थे.” ऋषिपाल गंभीर स्वर में बोले, “निशा तुम्हारे दोनों बच्चों की बलि चढ़ा चुकी है. उस ने बताया है कि खैरनगर को तबाह होने से बचाने के लिए उस ने दोनों बच्चों की कुरबानी दी है. हकीकत उगलवाने के लिए उस से पूछताछ चल रही है.”

शाहिद और दानिश खान बच्चों के कत्ल की पुष्टि हो जाने पर सकते में आ गए. शाहिद फूटफूट कर रोने लगा. एसएचओ ने उस का कंधा थपथपा कर कहा, “निशा की सरकारी खातिरदारी की जा रही है. अभी वह बता देगी कि बच्चे कत्ल किए गए हैं तो उन की लाश कहां हैं.”

10 मिनट बाद वह शाहिद बेग और दानिश खान को साथ ले कर उसी कमरे में आ गए, जहां निशा से पूछताछ की जा रही थी. निशा पूरी तरह टूट गई थी, वह चीखते हुए कह रही थी, “रुक जाइए, मुझे मत मारिए, मैं सब बता दूंगी.”

ऋषिपाल ने महिला कांस्टेबल को हाथ रोकने का इशारा किया और निशा को घूरते हुए पूछा, “बोलो, तुम ने दोनों बच्चों का क्या किया?

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“म… मैं ने उन दोनों को अपनी जिंदगी से दूर करने के लिए अपने प्रेमी सऊद फैजी, आरिफ कोसर, मुसर्रत बेगम और उस के बेटे साद को अमनचैन के नाम पर उकसाया. उन लोगों ने दोनों बच्चों मेराब और कोनेन को पहले रजाईगद्ïदे रखने वाले संदूक में हाथपांव बांध कर बंद कर दिया. 2 घंटे तक बंद रखने के बाद भी उन के प्राण नहीं निकले तो सऊद फैजी ने दोनों को जहर के इंजेक्शन लगा दिए. इस से छोटी कोनेन तो मर गई, मेराब नहीं मरा. तब उस का गला घोंटा गया. वह मर गया तो हम लोगों ने उन की लाशें गंगनहर में फेंक दी.”

“तू मां नहीं, मां के नाम पर कलंक है, तूने मेरे पांचों बच्चों की अंधविश्वास में हत्या की है. तुझे फांसी होनी चाहिए.” शाहिदबेग गुस्से से चीख पड़ा.

गंगनहर में हुई लाशों की तलाश

एसएचओ ने उसे शांत करवा कर बाहर भेज दिया. उन्होंने मां द्वारा अंधविश्वास में 2 बच्चों की हत्या करने की सूचनाएसएसपी रोहित सिंह सजवाण, एसपी (सिटी) पीयूष सिंह और सीओ अमित राय को दे दी तो ये तीनों पुलिस अधिकारी भीथाने पहुंच गए.

                                                                                                                                          क्रमशः

मृतक की वीडियो से खुला हत्या का राज़ – भाग 1

18 मार्च, 2023 की रात करीब साढ़े 11 बजे का वक्त था. मध्य प्रदेश के रीवा शहर की पडऱा इलाके की दुर्गा कालोनी में रहने वाली 31 साल की शालेहा परवीन बदहवास हालत में अपने पति शाहिद को ले कर अपनी मां के साथ संजय गांधी मेमोरियल जिला अस्पताल पहुंची. शालेहा आंखों में आंसू लिए ड्यूटी पर मौजूद डाक्टर से गुहार लगाते हुए बोली, “डाक्टर साहब, मेरे पति को बचा लीजिए.”

“आखिर क्या हुआ है इन को. इन की हालत तो काफी नाजुक है.” शाहिद की नब्ज पर हाथ रखते हुए डाक्टर ने पूछा.

“डाक्टर साहब, इन्होंने किसी जहरीले पदार्थ का सेवन किया है, जल्दी से इलाज कीजिए इन का.” कहते हुए शालेहा फफकफफक कर रोने लगी.

डाक्टर ने स्टेथेस्कोप को कान में लगा कर उस का चेकअप किया. कुछ ही सेकेंड बाद डाक्टर ने शालेहा की ओर मुखातिब होते हुए कहा, “आई एम सौरी, ही इज नो मोर.”

डाक्टर के इतना कहते ही शालेहा दहाड़ मार कर रोने लगी. शालेहा की मां ने उसे संभालते हुए कहा, “शालू रो मत बेटी, शायद खुदा को यही मंजूर था. अपने आप को संभाल और शाहिद के पापा को इत्तिला कर दे बेटी.”

कुछ देर बाद शालेहा ने अपने पर्स से शाहिद का मोबाइल फोन निकालते हुए अपने ससुर को यह दुखद खबर सुना दी. यूं तो

शालेहा के ससुर सलामत खान परिवार के खिलाफ जा कर शादी करने की वजह से शाहिद से नाराज थे. पिछले 7 सालों से दोनों के बीच बातचीत बंद थी. मगर बेटे की मौत की सूचना मिली तो जल्दी से अस्पताल पहुंच गए. हौस्पिटल पहुंचे तो देखा शाहिद का बदन सफेद चादर में लिपटा हुआ था. उस के पास ही बहू शालेहा और उस के अब्बूअम्मी खड़े थे.

तब तक अस्पताल प्रशासन की सूचना पर थाना सिविल लाइंस पुलिस अस्पताल आ चुकी थी. पुलिस ने आवश्यक औपचारिकताएं पूरी कर शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. शालेहा ने अपने ससुर को रोतेबिलखते हुए बताया, “अब्बाजान, किसी बात से नाराज हो कर शाहिद ने जहर पी लिया था, मैं उन्हें ले कर अस्पताल आई, लेकिन उन्हें बचा नहीं सकी.”

सलामत खान को वहां पर शालेहा और उस की अम्मी का रवैया संदिग्ध लग रहा था. उन्होंने देखा कि बहू शालेहा अपने अब्बू और अम्मी से बारबार कानाफूसी कर रही थी, इसलिए बहू की बात सुन कर सलामत खान वहीं पर बुरी तरह बिफर पड़े. उन्होंने बहू पर आरोप लगाते हुए कहा, “तुम्हारी हरकतों की वजह से ही मेरे बेटे की जान गई है.”

सलामत खान ने पुलिस से कहा कि मेरे बेटे ने आत्महत्या नहीं की है. उसकी पत्नी ने ही उसे जहर दे कर मारा है. पुलिस ने सभी के बयान दर्ज कर लिए, मगर पुलिस के पास ऐसा कोई सबूत नहीं था, जिस से सलामत खान की बात को सही साबित कर सके.

लव मैरिज से नाराज थे पिता

पब्लिक वक्र्स डिपार्टमेंट (पीडब्ल्यूडी) में असिस्टेंट ड्राफ्ट्समैन के पद से रिटायर 65 साल के सलामत खान रीवा के घोघर मोहल्ले में रहते हैं. उन की 2 बेटियां और एक 37 साल का बेटा शाहिद था. शाहिद बचपन से ही होनहार था. उसे मोबाइल और नेटवर्क से जुड़े काम में काफी रुचि थी. साल 2015 में रीवा के न्यू बस स्टैंड के पास एक मोबाइल शोरूम खुला था. उस के लिए वैकेंसी निकली तो कई लडक़े व लड़कियों ने इस के लिए इंटरव्यू दिए.

इंटरव्यू में शाहिद के साथ शालेहा परवीन नाम की लडक़ी का भी चयन हुआ था. मोबाइल शोरूम में दोनों दिन भर साथ काम करते थे. इस वजह से शाहिद खान की दोस्ती शालेहा से हो गई. दोनों ड्यूटी पर साथ रहते, वहां से भी साथ में ही निकलते और खाली समय भी एकदूसरे के साथ बिताने लगे. धीरेधीरे उन की दोस्ती प्यार में बदल गई. जब उन का प्यार परवान चढऩे लगा तो दोनों के रिश्ते के बारे में घर वालों को भी पता चला.

शाहिद के पिता ने जब लडक़ी के बारे में जानकारी जुटाई तो उन के नजदीकी रिश्तेदारों ने बताया कि लडक़ी का चालचलन ठीक नहीं है. शाहिद तो शालेहा के प्यार में इस कदर दीवाना हो चुका था कि परिवार के लाख समझाने के बाद भी नहीं माना और घर वालों की मरजी के खिलाफ जा कर 2016 में शालेहा से लव मैरिज कर ली.

शाहिद के घर वाले इस बात से बहुत खफा हो गए और उन्होंने शाहिद को घर से निकाल दिया. शाहिद रीवा शहर की पडऱा इलाके की दुर्गा कालोनी में किराए के मकान में बीवी शालेहा के साथ रहने लगा. शादी के बाद शाहिद के सासससुर का उस के घर में दखल बढ़ गया था.

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शादी के 2 साल तक सब कुछ ठीक रहा, इस दौरान शालेहा ने एक बेटी को जन्म दिया. लेकिन उस के बाद दोनों के बीच छोटीछोटी बातों को ले कर विवाद होने लगा. इस बात की भनक शाहिद के वालिद सलामत खान को भी थी, मगर वह शाहिद से इतने खफा थे कि उस से कोई मतलब नहीं रखना चाहते थे. उन का मानना था कि जिस बेटे ने हमारी बात ही नहीं मानी तो हमें भी उस की फिक्र नहीं है. वह अकसर यही कहते थे कि शाहिद ने गलत कदम उठाया है तो खुद ही भुगते.

मृतक के मोबाइल में छिपा मौत का राज

शाहिद के पिता सलामत खान को यकीन नहीं हो रहा था कि शाहिद इस तरह खुदकुशी कर सकता है. मौत के तीसरे दिन 21 तारीख की बात है, उन्होंने देखा कि शाहिद की मौत का गम बहू के चेहरे पर कहीं नजर नहीं आ रहा था. शाहिद की मौत के बाद बहू दिन भर उस का मोबाइल यूज कर रही थी.

उन्होंने गुस्से में बहू को डांटते हुए उस से मोबाइल ले लिया था. सलामत खान को यह बात समझ नहीं आ रही थी कि उन के इकलौते बेटे की मौत से परिवार में मातम पसरा था, मगर बहू के चेहरे पर शिकन तक नहीं थी. उस दिन शाम को वह शाहिद का मोबाइल साथ ले कर घर लौट आए.

21 मार्च को ही शाहिद की बहन मातमपुरसी के लिए अपने मायके आई हुई थी. उस समय वह अपने भाई को याद कर उस का मोबाइल देख रही थी, तभी अचानक मोबाइल में एक वीडियो देख कर उस की बहन चौंक गई. वह दौड़ती हुई अपने अब्बू के पास आ कर बोली, “अब्बा, इस मोबाइल में भाईजान का एक वीडियो है, जिस में वो बता रहे हैं कि उन्हें जान से मारने के लिए चाय में जहर मिला कर दिया गया है.”

“बेटी, जरा मुझे भी दिखाओ कैसा वीडियो है.” अपनी बेटी के हाथ से मोबाइल लेते हुए सलामत खान बोले. जैसे ही उन्होंने वीडियो देखा तो उन का शक पुख्ता हो गया. वे बिना देर किए मोबाइल ले कर सिविल लाइंस थाने पहुंच गए. वीडियो में शाहिद बारबार अपनी मौत के लिए ससुराल वालों को जिम्मेदार बता रहा था.

                                                                                                                                         क्रमशः

दो बहनों का संसार

अप्रैल, 2017 के पहले सप्ताह में पुलिस कमिश्नर दत्तात्रय पड़सलगीकर ने मुंबई के उपनगरीय पुलिस थानों का दौरा किया तो उपनगर कांदिवली पश्चिम के थाना चारकोप में दर्ज भारतीय स्टेट बैंक के सेवानिवृत्त मैनेजर प्रकाश गंगाराम वानखेड़े की गुमशुदगी की फाइल पर उन का ध्यान चला गया. उन्होंने उस फाइल का अध्ययन किया तो उन्हें लगा कि इस मामले की जांच ठीक से नहीं की गई है. उन्होंने वह फाइल जौइंट सीपी देवेन भारती को सौंपते हुए उस की जांच ठीक से कराने को कहा.

देवेन भारती को भी इस मामले की जांच में जांच अधिकारियों की लापरवाही दिखाई दी. वह कई सालों तक मुंबई क्राइम ब्रांच सीआईडी के प्रमुख रह चुके थे. उन्हें आपराधिक मामलों के खुलासे का अच्छाखासा अनुभव था. यह मामला एक साल पुराना था और बिना किसी नतीजे पर पहुंचे इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था. फाइल का अध्ययन करने पर देवेन भारती को यह मामला संदिग्ध और रहस्यमय लगा तो उन्होंने सहायक अधिकारियों को बुला कर एक मीटिंग की और इस मामले की जांच उन्होंने अपने सब से विश्वस्त अधिकारी एसीपी श्रीरंग नादगौड़ा को सौंप दी.

श्रीरंग नादगौड़ा ने खुद के निर्देशन में थाना मालवणी के थानाप्रभारी दीपक फटांगरे के नेतृत्व में एक टीम बनाई, जिस में इंसपेक्टर बेले, एएसआई धार्गे, कान्हेरकर, एसआई जगताप, सिपाही उगले आदि को शामिल किया. थानाप्रभारी दीपक फटांगरे भी क्राइम ब्रांच की सीआईडी यूनिट में कई सालों तक काम कर चुके थे. शायद इसीलिए पुलिस अधिकारियों को उन पर पूरा भरोसा था. उन्होंने भी इस मामले को पूरी गंभीरता से लिया. इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न बना कर पहले तो उन्होंने फाइल का गहराई से अध्ययन किया, उस के बाद इस मामले की जांच महाराष्ट्र के जिला अहमदनगर की शिवाजी कालोनी की रहने वाली वंदना थोरवे के यहां से शुरू की.

दरअसल, वंदना गुमशुदा भारतीय स्टेट बैंक के मैनेजर प्रकाश वानखेड़े की पत्नी आशा वानखेड़े की बहन थी. आशा ने अपने एक बयान में अहमदनगर की शिवाजी कालोनी का जिक्र किया था. इसी कालोनी में आशा की बहन वंदना रहती थी.

27 अप्रैल, 2016 को कांदिवली के सेक्टर 6 स्थित आकाश गंगाराम हाऊसिंग सोसाइटी की रहने वाली आशा वानखेड़े ने थाना चारकोप में अपने पति प्रकाश वानखेड़े की गुमशुदगी दर्ज कराई थी. गुमशुदगी दर्ज कराते समय उस ने बताया था कि उस के पति 12 अप्रैल, 2016 को घर से किसी काम से निकले तो अभी तक लौट कर नहीं आए. नौकरी से रिटायर होने के बाद वह इतने दिनों तक कभी बाहर नहीं रहे, इसलिए अब उसे उन की चिंता हो रही है.

प्रकाश वानखेड़े पढ़ेलिखे आदमी थे और अच्छी नौकरी से रिटायर हुए थे. उन की समाज में प्रतिष्ठा था. इन्हीं बातों को ध्यान में रख कर थाना चारकोप के थानाप्रभारी श्री पाटिल ने तुरंत ड्यूटी पर मौजूद एसआई जगताप से डायरी बनवाई और इस बात की जानकारी पुलिस कंट्रोल रूम को देने के साथ वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को भी दे दी. अधिकारियों के निर्देश पर थानाप्रभारी श्री पाटिल ने थाने में मौजूद पुलिस बल को कई टीमों में बांट कर प्रकाश वानखेड़े की तलाश में लगा दिया.

इस मामले में अपहरण जैसी कोई बात नहीं थी. क्योंकि अगर प्रकाश वानखेड़े का अपहरण हुआ होता तो अब तक उन की फिरौती के लिए फोन आ चुके होते. पुलिस का ध्यान दुर्घटना की ओर गया. थाना चारकोप पुलिस ने शहर के सभी थानों को वायरलैस मैसेज भेज कर इस बारे में पता किया. इस के बाद प्रकाश वानखेड़े के फोटो वाले पैंफ्लेट छपवा कर सार्वजनिक स्थानों पर चिपकवाए. दैनिक अखबारों में भी छपवाया गया. लेकिन इस सब का कोई नतीजा नहीं निकला.

पुलिस प्रकाश वानखेड़े के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवा कर उस का अध्ययन कर रही थी कि तभी उन की गुमशुदगी की शिकायत के 2 सप्ताह बाद उन की पत्नी आशा ने थाने आ कर बताया कि उसे पता चला है कि उस के पति प्रकाश वानखेड़े 31 मई, 2016 को अहमदगनर की शिवाजी कालोनी में रहने वाली उस की छोटी बहन वंदना थोरवे के यहां थे. वह उस की बहन वंदना को कुछ पैसे देने गए थे.

चूंकि आशा ने ही इस मामले की शिकायत की थी, इसलिए पुलिस ने उस की बातों पर विश्वास कर लिया और इस के बाद इस मामले की जांच में सुस्ती आ गई. समय आगे बढ़ता रहा, हालांकि इस बीच जांच टीम ने कई बार आशा वानखेड़े से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन पुलिस उस से मिल नहीं पाई. इस के बाद लगातार त्यौहार आते रहे, जिस की वजह से पुलिस इस मामले पर ध्यान नहीं दे पाई और एक तरह से यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया.

लेकिन अचानक 8 अप्रैल, 2017 को मुंबई के पुलिस कमिश्नर दत्तात्रय पड़सलगीकर की इस फाइल पर नजर पड़ी तो एक बार फिर इस मामले की जांच शुरू हो गई. पुलिस ने गुमशुदा प्रकाश वानखेड़े की पत्नी आशा को थाने बुलाया. लेकिन वह बहाना कर के थाने नहीं आई. ऐसा कई बार हुआ. इस बार पुलिस इस मामले को हल्के में नहीं लेना चाहती थी, इसलिए उस के पीछे हाथ धो कर पड़ गई.

पुलिस ने प्रकाश और आशा के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाने के साथसाथ लोकेशन भी निकलवाई तो जो जानकारी मिली, वह चौंकाने वाली थी. आशा ने अपने पति प्रकाश वानखेडे़ के गायब होने की जो तारीख बताई थी, उस के एक दिन पहले यानी 11 अप्रैल, 2016 को दोनों के मोबाइल फोन की लोकेशन एक साथ की मिल रही थी.

पतिपत्नी अहमदनगर की शिवाजी कालोनी में एक साथ थे. आशा की छोटी बहन वंदना थोरवे वहीं रहती थी. अगले दिन यानी 12 अप्रैल, 2016 को वंदना के मोबाइल की लोकेशन चारकोप स्थित आशा के घर की मिली थी.

जबकि पूछताछ में आशा ने पुलिस को स्पष्ट बताया था कि वंदना के पास कोई मोबाइल फोन नहीं है. वह मोबाइल फोन चला ही नहीं पाती. इस के बाद पुलिस ने आशा के फोन से वंदना का नंबर ले कर उसे फोन किया तो उस ने पुलिस से बात ही नहीं की, बल्कि यह भी बताया कि किस दिन प्रकाश वानखेड़े गायब हुए थे. जिस दिन वह गायब हुए थे, उस दिन वह मुंबई में बहन के घर थी. वह बड़ी बहन आशा को उस के घर ले आई थी.

मोबाइल फोन की लोकेशन से पुलिस को वंदना और आशा पर संदेह हुआ. इस के बाद एसीपी श्रीरंग नादगौड़ा के निर्देशन में थानाप्रभारी दीपक फटांगरे ने 12 अप्रैल, 2017 को संदेह के आधार  पर वंदना थोरवे को अहमदनगर स्थित उस के घर से गिरफ्तार कर लिया. पुलिस उसे गिरफ्तार कर थाना चारकोप ले आई. पुलिस ने उसे भले ही गिरफ्तार कर लिया था, लेकिन उस के चेहरे पर जरा भी शिकन नहीं थी. वह जरा भी डरी या घबराई हुई नहीं थी. थाने में पूछताछ शुरू हुई तो वह पुलिस के हर सवाल का जवाब बड़े आत्मविश्वास से देती रही. वह खुद को इस मामले में निर्दोष और अनभिज्ञ बताती रही.

लेकिन पुलिस के पास अब तक काफी सबूत जमा हो चुके थे, इसलिए पुलिस उसे आसानी से छोड़ने वाली नहीं थी. पुलिस ने उस से सबूतों के आधार पर सवाल पूछने शुरू किए तो वह जवाब देने में गड़बड़ाने लगी. धीरेधीरे पुलिस ने उसे ऐसा फांसा कि अंतत: बचाव का कोई उपाय न देख उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

इस के बाद वंदना ने प्रकाश वानखेड़े की गुमशुदगी का जो रहस्य बताया, वह चौंकाने वाला था. यही नहीं, उस ने अपने पति अशोक थोरवे की भी गुमशुदगी का रहस्य उजागर कर दिया. पता चला कि वह अपने प्रेमी नीलेश पंडित सूपेकर की मदद से बहनोई प्रकाश वानखेड़े की ही नहीं, अपने पति अशोक थोरवे की भी हत्या करा चुकी थी.

वंदना के अपराध स्वीकार करने के बाद पुलिस ने मुंबई से आशा तथा सोलापुर से वंदना के प्रेमी नीलेश पंडित सूपेकर को गिरफ्तार कर लिया. पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में तीनों ने प्रकाश वानखेड़े और अशोक थोरवे की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी—

आशा और वंदना महाराष्ट्र के जिला संगली की रहने वाली थीं. इन के पिता सहदेव खेतले मुंबई पुलिस में थे. वह सरकारी नौकरी में थे, परिवार छोटा था, इसलिए वह हर तरह से सुखी थे. उन के परिवार में सिर्फ 4 ही लोग थे. घर में किसी चीज की कोई कमी नहीं थी. उन की पत्नी पार्वती संस्कारी गृहिणी थीं, इसलिए उन्होंने दोनों बेटियों को भी अच्छे संस्कार दिए थे. लेकिन समय के साथ उन के दिए सारे संस्कार दोनों बेटियों ने ताक पर रख दिए.

आशा और वंदना सयानी हुईं तो सहदेव को उन की शादी की चिंता हुई. वह दोनों बेटियों की शादी नौकरी करते हुए कर देना चाहते थे. उन्होंने किया भी ऐसा ही. उन्होंने आशा की शादी प्रकाश वानखेड़े से कर दी. प्रकाश वानखेड़े एसबीआई बैंक में नौकरी करते थे. शादी के बाद वह आशा के साथ मुंबई के उपनगर कांदिवली के चारकोप में रहने लगे थे.

बड़ी बेटी की शादी कर के सहदेव वंदना की भी शादी अहमदनगर की शिवाजी कालोनी के रहने वाले अशोक थोरवे से कर दी. अशोक का अपना कारोबार था. वंदना अपनी बड़ी बहन आशा से कुछ ज्यादा सुंदर और चंचल तो थी ही, महत्वाकांक्षी भी काफी थी. लेकिन तब उस के महत्वाकांक्षा की हत्या सी हो गई, जब उसे उस के मनपसंद का पति नहीं मिला.

वंदना कारोबारी या खेती करने वाले लड़के से शादी नहीं करना चाहती थी. वह भी बड़ी बहन आशा की तरह हैंडसम और अच्छी नौकरी वाला पति चाहती थी. लेकिन पिता ने उस के लिए ऐसा पति ढूंढ दिया था, जैसा वह बिलकुल नहीं चाहती थी. लेकिन शादी के बाद उस ने समझौता कर लिया था.

पर वंदना को तो अभी और परेशान होना था. शादी के कुछ सालों बाद वंदना के पति अशोक की तबीयत खराब रहने लगी. दिखाने पर डाक्टरों ने उसे जो बीमारी बताई, वह काफी गंभीर थी. इस के बाद वंदना का रहासहा धैर्य भी जवाब दे गया. पति के संपर्क में आने के बाद वंदना भी उस बीमारी की शिकार हो गई.

वंदना ने इस के लिए पिता को जिम्मेदार माना. इस के बाद इसी बात को ले कर वह अकसर पिता से लड़ाईझगड़ा करने लगी. बापबेटी का यह झगड़ा तभी खत्म हुआ, जब सहदेव की मौत हो गई. उन की मौत जहर से हुई थी. लेकिन तब यह पता नहीं चला था कि उन्हें जहर दिया गया था या उन्होंने खुद जहर पिया था.

पति की बीमारी की वजह से वंदना की आर्थिक स्थिति धीरेधीरे खराब होती गई, जिस के कारण उसे पति का इलाज कराने में परेशानी होने लगी थी. उस स्थिति में उस की मदद के लिए लोकहितवादी संस्था में काम करने वाला नीलेश पंडित सूपेकर आगे आया. वह भी उसी कालोनी में रहता था, जिस में वंदना रहती थी.

23 साल का नीलेश पंडित काफी स्मार्ट था. वह वंदना की हर तरह से मदद करने लगा. कहा जाता है कि जहां फूस और आग होगी, वहां शोले भड़केंगे ही. इस कहावत को वंदना और नीलेश पंडित ने चरितार्थ कर दिया. वंदना की मदद करतेकरते नीलेश उस के इतने करीब आ गया कि दोनों में मधुर संबंध बन गए.

काफी इलाज के बाद भी अशोक ठीक नहीं हुआ. बीमारी की वजह से वह काफी चिड़चिड़ा हो गया था. वह बातबात में वंदना को भद्दीभद्दी गालियां देता रहता था, जिस से परेशान हो कर वंदना और नीलेश पंडित ने एक खतरनाक फैसला ले लिया.

उन का सोचना था कि उन के इस फैसले से जहां अशोक थोरवे का कष्ट दूर हो जाएगा, वहीं उन्हें भी उस से मुक्ति मिल जाएगी. फिर क्या था, एक दिन अशोक थोरवे सो रहा था, तभी वंदना और नीलेश ने गला घोंट कर उस की हत्या कर दी. इस के बाद शव को ठिकाने लगाने के लिए वंदना और नीलेश ने उसे एक प्लास्टिक की बोरी में भर दिया और रात में ही उसे ले जा कर बीड़ जनपद के अंभोरा पुलिस थाने के अंतर्गत आने वाले जंगल में फेंक दिया.

12 नवंबर, 2012 की सुबह थाना अंभोरा पुलिस ने अशोक थोरवे की लाश बरामद की थी. लेकिन काफी कोशिश के बाद भी लाश की शिनाख्त नहीं हो सकी तो पुलिस ने हत्या का मुकदमा दर्ज कर लाश को लावारिस मान कर अंतिम संस्कार कर दिया.

एक ओर जहां वंदना तरहतरह की परेशानियां झेल रही थी, वहीं आशा का दांपत्यजीवन काफी सुखमय था. उस के दांपत्य में दरार तब आई, जब प्रकाश वानखेड़े वंदना की मदद करने के बहाने उस का शारीरिक शोषण करने लगा. जब इस की जानकारी आशा को हुई तो उसे पति से नफरत सी हो गई. उस ने पति को खूब लताड़ा. इस से पतिपत्नी के बीच तनाव रहने लगा.

इस का नतीजा यह निकला कि पतिपत्नी एकदूसरे से दूर होते गए. इस की एक वजह यह भी थी कि प्रकाश आशा पर चरित्रहीनता का आरोप लगा कर उसे परेशान करने लगा था. सहनशक्ति की भी एक हद होती है. प्रकाश के लगातार परेशान करने से आशा की भी सहनशक्ति जवाब दे गई.

हार कर आशा ने अपनी परेशानी बहन वंदना को बताई तो उस ने कहा कि इस परेशानी से छुटकारा तो मिल जाएगा, लेकिन इस के लिए कुछ पैसे खर्च करने होंगे. वंदना ने उपाय बताया तो आशा के पैरों तले से जमीन खिसक गई. लेकिन रोजरोज की परेशानी के बारे में सोचा तो आखिर उस ने बहन की बात मान ली. आशा ने सवा 2 लाख रुपए में पति प्रकाश वानखेड़े की जिंदगी का सौदा कर डाला.

अशोक थोरवे की हत्या कर के बच जाने से वंदना और नीलेश पंडित के हौसले बुलंद थे. उन्होंने जिस तरह अशोक की हत्या का राज हजम कर लिया था, सोचा उसी तरह इसे भी हजम कर जाएंगे. 5 साल बीत जाने के बाद भी पुलिस अशोक थोरवे के हत्यारों तक नहीं पहुंच पाई थी. वे उसी तरह प्रकाश वानखेड़े की भी हत्या कर के बच जाना चाहते थे. लेकिन दुर्भाग्य से इस में सफल नहीं हुए. एक साल बाद ही सही, आखिर सभी पकड़े गए.

आशा की सहमति मिलने के बाद वंदना और नीलेश पंडित ने प्रकाश वानखेड़े को ठिकाने लगाने की योजना बना डाली. उसी योजना के तहत वंदना ने अपने जीजा प्रकाश और बहन आशा को 10 अप्रैल, 2016 को पूजापाठ के बहाने अपने घर बुलाया. वंदना के बुलाने पर प्रकाश वानखेड़े खुशीखुशी आशा के साथ एक प्राइवेट कार से उस के घर पहुंच गए.

जिस समय वह वंदना के घर पहुंचे थे, उस समय रात के 8 बज रहे थे. घर पहुंचे प्रकाश का वंदना ने अच्छी तरह से स्वागत किया. योजना के अनुसार उन के खाने में नींद की गोलियां मिला दी गईं. जब वह सो गए तो 10-11 बजे आशा ने प्रकाश के पैर पकड़े तो वंदना ने दोनों हाथ. इस के बाद नीलेश ने गला दबा कर उन्हें मार डाला.

प्रकाश वानखेड़े की हत्या कर तीनों ने उन की लाश को बोरी में ठूंस कर भर दिया. इस के बाद नीलेश पंडित ने लाश की बोरी को स्कौर्पियो में रख कर कल्याण अहमदनगर हाईवे रोड पर स्थित जंगल में ले जा कर फेंक दिया. कुछ दिनों बाद अहमदनगर के थाना पारनेर पुलिस को प्रकाश का अस्थिपंजर मिला था.

प्रकाश की लाश ठिकाने लगा कर आशा बहन के साथ अपने घर आ गई. जब कई दिनों तक प्रकाश दिखाई नहीं दिया तो पड़ोसियों में कानाफूसी होने लगी. कुछ लोगों ने आशा से उन के बारे में पूछा भी. आशा भला उन लोगों को क्या बताती. पड़ोसियों की इस पूछताछ से घबरा कर उस ने खुद को बचाने के लिए थाना चारकोप में उन की गुमशुदगी दर्ज करा दी.

पुलिस तुरंत तो नहीं, लेकिन साल भर बाद प्रकाश वानखेड़े की गुमशुदगी के रहस्य उजागर कर ही दिया. पूछताछ के बाद पुलिस ने आशा, वंदना और नीलेश पंडित को अहमदनगर के थाना पारनेर पुलिस को सौंप दिया.

वहां तीनों के खिलाफ प्रकाश वानखेड़े, अशोक थोरवे की हत्या और सबूत मिटाने का मुकदमा दर्ज कर सभी को अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक तीनों अभियुक्त जेल में थे. थाना पारनेर पुलिस अब आशा और वंदना के पिता की रहस्यमय मौत की जांच कर रही है. पुलिस इस बात का पता लगा रही है कि उन्होंने आत्महत्या की थी या उन्हें जहर दे कर मारा गया था.

– कथा में सहदेव खेलते का नाम काल्पनिक है. कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित.

जिंदगी में दौलत ही सब कुछ नहीं होती

दर्शन सिंह पंजाब के जिला कपूरथला के गांव अकबरपुर स्थित अपनी आलीशान कोठी में परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी स्वराज कौर के अलावा 2 बेटे कमलजीत सिंह और संदीप सिंह थे. संपन्न परिवार वाले दर्शन सिंह के पास कई एकड़ उपजाऊ भूमि थी. पढ़ाई पूरी होने के बाद उन्होंने दोनों बेटों की शादी कर दी थी. बड़े बेटे कमलजीत सिंह की शादी उन्होंने अपने एक दोस्त की बेटी राजेंद्र कौर से और छोटे संदीप सिंह की राजदीप कौर के साथ की थी. दर्शन सिंह एक रसूखदार व्यक्ति थे, इसलिए उन का पूरे गांव में दबदबा था. पर कुछ साल पहले एक दुर्घटना में उन की मौत हो गई थी. उन की मौत के बाद उन की पत्नी स्वराज कौर अपने परिवार पर पति जैसा दबदबा कायम नहीं रख पाईं, खासकर दोनों बहुओं पर.

समय का चक्र अपनी गति से घूमता रहा. कमलजीत और संदीप सिंह 3 बच्चों के पिता बन गए. इस बीच कमलजीत सिंह अपने किसी रिश्तेदार की मदद से इंग्लैंड जा कर नौकरी करने लगा. कुछ समय बाद संदीप सिंह भी फ्रांस जा कर नौकरी पर लग गया.

बेटों के विदेश जाने के बाद स्वराज कौर ने खेती की जमीन ठेके पर दे दी थी. दोनों बेटे विदेश से हर महीने मोटी रकम घर भेज रहे थे. स्वराज कौर को बस एक चिंता थी कि उस के पोतापोती पढ़लिख कर काबिल बन जाएं.

विदेश में रह कर दोनों भाई पैसे कमाने में लगे थे तो इधर गांव में उन की पत्नियों के रंगढंग बदलने लगे थे. एक साल बाद जब छुट्टी ले कर दोनों भाई गांव लौटे तो अपनेअपने पति द्वारा लाए हुए महंगे व अत्याधुनिक उपहार देख कर राजेंद्र कौर और राजदीप कौर की आंखें चुंधियां गईं.

पति के मुंह से विदेशियों का रहनसहन, खानपान और वहां के लोगों की सभ्यता आदि के बारे में सुन कर देवरानीजेठानी का मन करता कि काश वे भी अपने पतियों के साथ विदेश में रहतीं. अपने मन की बात उन्होंने अपनेअपने पतियों से कह दी. लिहाजा दोनों भाइयों ने पत्नी और बच्चों को साथ ले जाने की व्यवस्था करनी शुरू कर दी.

उन्होंने उन के पासपोर्ट बनवाने की प्रक्रिया शुरू कर दी. इस सब में समय तो लगता ही है. बहरहाल, यह सब ऐसा ही चलता रहा. साल, दो साल में कोई न कोई भाई छुट्टी ले कर गांव आता और अपनी मां, पत्नी और बच्चों से मिल कर लौट जाता.

स्वराज कौर बड़ी खुशी और शांति से परिवार की बागडोर संभालने में लगी रहती थीं. वह एक साधारण और धार्मिक विचारों वाली महिला थीं. जबकि उन की दोनों बहुएं बनठन कर रहती थीं. उन्होंने अपने आप को पूरी तरह से आधुनिकता के रंग में रंग लिया था. स्वराज कौर समयसमय पर उन्हें टोकते हुए सिख मर्यादा में रहने का पाठ पढ़ाया करती थीं. पर बहुओं ने उन की बात अनसुनी करनी शुरू कर दी तो स्वराज कौर ने भी उन की तरफ ध्यान देना बंद कर दिया.

पंजाब विधानसभा चुनाव 4 फरवरी, 2017 को होने थे, इसलिए पुलिसप्रशासन बड़ी मुस्तैदी से क्षेत्र में अमनशांति बनाए रखने में जुटा था. दिनांक 3/4 फरवरी की रात को स्वराज कौर की छोटी बहू राजदीप कौर ने उन्हें रात का खाना दिया. बड़ी बहू राजेंद्र कौर रसोई का काम निपटा कर बच्चों को सुलाने की तैयारी कर रही थी. उसी रात लगभग एक बजे किसी ने राजदीप कौर के कमरे का दरवाजा खटखटाया.

दरवाजा खटखटाने की आवाज सुन कर राजेंद्र कौर की भी आंखें खुल गईं. दोनों ने अपनेअपने कमरे से बाहर आ कर देखा तो मारे डर के उन की चीख निकल गई. उन के कमरों के बाहर बरामदे में 12-13 लोग खड़े थे. सभी के मुंह पर कपड़ा बंधा था और उन के हाथों में चाकू, तलवार आदि हथियार थे. इस के पहले कि वे दोनों कुछ समझ पातीं, उन लोगों ने आगे बढ़ कर दोनों को दबोच लिया और धकेलते हुए उन्हें स्वराज कौर के कमरे में ले गए.

इस बीच 2 लोग मेनगेट के पास खड़े हो कर रखवाली करने लगे. 2-3 लोगों ने सोते हुए बच्चों को अपने कब्जे में कर लिया. स्वराज कौर के कमरे में पहुंचते ही उन बदमाशों ने राजेंद्र कौर और राजदीप कौर को मारनापीटना शुरू कर दिया. वे उन से अलमारी की चाबी मांग रहे थे. 2 लोगों ने राजेंद्र कौर और राजदीप कौर की पहनी हुई ज्वैलरी उतारनी शुरू कर दी.

शोरशराबा और मारपीट की आवाज सुन कर स्वराज कौर जाग गई थी. खुद को और अपनी दोनों बहुओं को हथियारबंद बदमाशों से घिरे हुए देख कर उन के होश उड़ गए. परिवार को संकट में देख वह दहाड़ते हुए अपने बैड से उठीं पर तब तक एक हमलावर ने लोहे की रौड उन के सिर पर दे मारी. स्वराज कौर के मुंह से आवाज तक न निकल पाई. वह बैड पर ही चारों खाने चित्त गिर पड़ीं.

तब डर की वजह से राजेंद्र कौर ने अलमारियों की चाबी का गुच्छा बदमाशों के हवाले कर दिया. बदमाश घर में लूटखसोट कर धमकाते हुए चले गए.

आधी रात के बाद हुई इस वारदात से राजेंद्र और राजदीप कौर बुरी तरह डर गईं. काफी देर तक दोनों दहशत में बुत बनी अपनी जगह खड़ी रहीं. जब होश आया तो राजदीप कौर ने बैड पर पड़ी सास स्वराज कौर की सुध ली और राजेंद्र कौर ने आंगन में खड़े हो कर सहायता के लिए चीखनाचिल्लाना शुरू कर दिया था.

शोर सुन कर वहां पड़ोसी जमा हो गए. लूट की बात सुन कर सभी हैरान थे. स्वराज कौर की नब्ज टटोलने पर पता चला कि उन की मौत हो चुकी है. चोटों के घाव उन के शरीर पर भी थे, पर वे इतने गंभीर न थे. तब तक गांव का सरपंच भी वहां आ गया था. सलाहमशविरा के बाद तय हुआ कि पुलिस को सूचना देने से पहले मृतका के भाई प्रीतपाल सिंह को सूचित कर दिया जाए.

प्रीतपाल सिंह जिला होशियारपुर के गांव मंसूरपुर में रहते थे. रात को 2 बजे फोन द्वारा जब उन्हें खबर दी गई तो वह अपनी पत्नी कुलदीप कौर को साथ ले कर उसी समय घर से निकले और सुबह तक बहन के गांव अकबरपुर पहुंच गए. उस से पहले सरपंच ने पुलिस को भी फोन कर दिया था.

हत्या की खबर सुन कर थानाप्रभारी गुरमीत सिंह सिद्धू टीम के साथ मौके पर आ गए. पुलिस ने जब स्वराज कौर की लाश का मुआयना किया तो उन के सिर पर बाईं ओर गहरा घाव था. उस में से खून निकलने के बाद सूख चुका था.

थानाप्रभारी ने दोनों बहुओं राजेंद्र कौर और राजदीप कौर से घटना के बारे में पूछताछ की तो उन्होंने रोते हुए रात का पूरा वाकया बता दिया. पुलिस को उन की बात पर शक तो हुआ, पर उस समय गम का माहौल था, इसलिए उन से ज्यादा पूछताछ करना जरूरी नहीं समझा. घटनास्थल की काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया.

पुलिस ने राजेंद्र कौर और राजदीप कौर के बयान दर्ज किए तो दोनों के बयानों में कई पेंच दिखाई दे रहे थे. उन्होंने बताया कि लुटेरे घर से लगभग 7 तोले सोने के आभूषण और कुछ हजार रुपए की नकदी लूट ले गए हैं.

2 बातें थानाप्रभारी गुरमीत सिंह सिद्धू की समझ में नहीं आ रही थीं. एक तो मामूली लूट के लिए 12 लुटेरों का आना, दूसरे 12 लोग जब कहीं लूटमार करेंगे तो वहां अच्छाखासा हंगामा खड़ा हो जाना स्वाभाविक है, जबकि यहां किसी पड़ोसी को भी वारदात की भनक नहीं लगी थी. लुटेरों ने स्वराज कौर को तो जान से मार दिया था, जबकि उन की दोनों बहुओं को मामूली सी खरोंचें ही लगी थीं. थानाप्रभारी ने अज्ञात के खिलाफ हत्या और लूट की रिपोर्ट दर्ज कर जांच शुरू कर दी.

थानाप्रभारी ने जांच टीम में एएसआई परमिंदर सिंह, हैडकांस्टेबल गुरनाम सिंह, नौनिहाल सिंह, रविंदर सिंह व लेडी हैडकांस्टेबल सुरजीत कौर को शामिल किया था.

प्रीतपाल सिंह ने भी पुलिस से शक जताया कि उन की बहन की हत्या लूट की वजह से नहीं, बल्कि किसी साजिश के तहत की गई है.

थानाप्रभारी ने अब तक की काररवाई के बारे में एसएसपी अलका मीणा और डीएसपी डा. नवनीत सिंह माहल को अवगत करा दिया था. इस के बाद मुखबिर ने थानाप्रभारी को जो सूचना दी, उस के आधार पर मृतका की दोनों बहुओं राजेंद्र कौर और राजदीप कौर को हिरासत में ले लिया गया और उन की निशानदेही पर गांव अकबरपुर के ही अंचल कुमार उर्फ लवली को भी हिरासत में ले लिया गया.

इन तीनों से पूछताछ की गई तो उन्होंने स्वराज कौर की हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया. पुलिस ने तीनों को अदालत में पेश कर 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड के दौरान हुई पूछताछ में स्वराज कौर की हत्या और इस फरजी लूटपाट की जो कहानी सामने आई, वह परपुरुष की बाहों में सुख तलाशने वाली औरतों के अविवेक का नतीजा थी—

कमलजीत सिंह और संदीप सिंह के विदेश जाने के बाद स्वराज कौर के घर में नोटों की बारिश जरूर होने लगी थी, पर अपनेअपने पति से दूर होने पर दोनों बहुओं की हरीभरी जिंदगी में सूखा पड़ गया था. यानी उन्हें पैसा तो भरपूर मिल रहा था पर पति के प्यार को तरस रही थीं.

कमलजीत और संदीप दोनों ही बड़े मिलनसार थे. अपने और आसपास के गांवों में उन का अच्छा उठनाबैठना था. इस कारण उन के कई यारदोस्त थे, जो उन की गैरमौजूदगी में घर का हालचाल जानने आ जाते थे. दिखावे के लिए तो वे सब स्वराज कौर की खैरखबर जानने के लिए आते थे, पर हकीकत यह थी कि उन की नजरें राजदीप और राजेंद्र कौर पर थीं.

अकबरपुर का अंचल कुमार उर्फ लवली बड़ी बहू राजेंद्र कौर को चाहने लगा तो वहीं राजदीप की आंखें गांव जलालपुर, होशियारपुर के गुरदीप सिंह से लड़ गईं. कुछ ही दिनों में उन के बीच अवैध संबंध बन गए.

राजेंद्र कौर अपने प्रेमी अंचल कुमार को रोज रात के समय अपनी कोठी पर बुला लेती थी. गुरदीप का गांव जलालपुर दूर था, इसलिए वह रोज न आ कर सप्ताह में 2-3 बार राजदीप कौर के पास आता था.

चूंकि राजेंद्र कौर और अंचल कुमार का मिलनेमिलाने का सिलसिला चल रहा था, इसलिए राजेंद्र कौर अपनी सास स्वराज कौर के रात के खाने में नींद की गोलियां मिला देती थी, ताकि सास को कुछ पता न चले.

लाख सावधानियों के बाद भी स्वराज कौर को अपनी बहुओं के बदले व्यवहार पर संदेह होने लगा. वह बारबार उन से गैरपुरुषों से बातचीत करने से मना करती थीं. पर वे सास की बात पर ध्यान नहीं देतीं. करीब 4 सालों तक उन के संबंध जारी रहे. इस बीच राजदीप कौर का प्रेमी गुरदीप नौकरी के लिए विदेश चला गया.

स्वराज कौर को गांव के लोगों से बहुओं की बदचलनी की बातें पता चलीं तो उन्होंने दोनों बहुओं को बहुत डांटा. तब दोनों बहुओं ने सास से लड़ाई भी की. स्वराज कौर ने झगड़े की बात अपने भाई प्रीतपाल को भी बता दी थी, साथ ही उस ने बहुओं को धमकी दी कि बेटों के सामने वह उन का भांडा फोड़ देंगी.

सास की इस धमकी से राजेंद्र कौर डर गई. उस ने अंचल के साथ मिल कर सास की हत्या की ऐसी योजना बनाई, जो हत्या न लग कर कोई दुर्घटना लगे. इस काम के लिए अंचल ने अपने एक दोस्त गुरमीत को भी योजना में शामिल कर लिया. 3-4 फरवरी, 2017 की रात राजेंद्र कौर ने स्वराज के खाने में नींद की गोलियां कुछ ज्यादा मात्रा में मिला दीं.

रात करीब 12 बजे राजेंद्र कौर ने अंचल को फोन कर दिया तो वह अपने दोस्त के साथ सीधा राजेंद्र कौर के कमरे पर पहुंचा. उस समय राजदीप कौर भी वहीं थी. चारों स्वराज के कमरे में पहुंचे. राजदीप कौर ने सोती हुई सास की टांगें कस कर पकड़ लीं और राजेंद्र कौर ने दोनों बाजू काबू कर लिए.

तभी अंचल ने तकिया स्वराज के मुंह पर रख कर दबाया. फिर उन के गले में चुन्नी का फंदा डाल कर दोस्त के साथ उस फंदे को कस दिया. कुछ ही पलों में स्वराज की मौत हो गई. इस के बाद अंचल ने अपने साथ लाई हुई लोहे की रौड से स्वराज के सिर पर वार कर घायल कर दिया.

स्वराज की हत्या के बाद उन्होंने घर की अलमारियों से सामान निकाल कर कमरे में फैला दिया, ताकि देखने में मामला लूटपाट का लगे. राजेंद्र कौर और राजदीप ने घर में रखे करीब 7 तोले के आभूषण और कुछ हजार रुपए निकाल कर अंचल को दे दिए. इस के बाद अंचल ने दिखावे के लिए दोनों के शरीर पर कुछ खरोंचे मार दीं, जिस से किसी को शक न हो.

रिमांड अवधि के दौरान पुलिस ने लोहे की रौड, ज्वैलरी व रुपए भी बरामद कर लिए. पुलिस ने चौथे आरोपी संदीप को भी गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने चारों अभियुक्तों से पूछताछ कर उन्हें 7 फरवरी, 2017 को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया.

अपनी मां की हत्या की खबर सुन कर कमलजीत सिंह और संदीप सिंह जब अपने गांव आए तो मां की मौत का उन्हें बड़ा दुख हुआ.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित