हवस के दरिंदों की करतूत

उत्तर प्रदेश का जाट बहुल जिला बागपत जिस रोंगटे खड़े कर देने वाली वारदात से रूबरू हुआ, उसे वहां के बाशिंदे शायद ही कभी भुला सकें. कई धरनेप्रदर्शनों के बाद पुलिस के शिकंजे में गुनाहगार आ गए थे, लेकिन जो हकीकत खुल कर सामने आई, उस ने सभी को चौंका दिया.

10वीं जमात में पढ़ने वाली छात्रा साक्षी चौहान अपने पिता ईश्वर सिंह की हत्या के बाद अमीनगर सराय कसबे के नजदीक खिंदौड़ा गांव में अपने ननिहाल में रह कर पढ़ाई कर रही थी. 31 दिंसबर को वह स्कूल गई, लेकिन इस के बाद उस का कहीं पता नहीं चला, तो परिवार वालों ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई.

आखिरकार 10 जनवरी को साक्षी की लाश नजदीक के गांव पूठड़ में ईंख के खेत में पड़ी मिली. वारदात वाली जगह पर हत्या का कोई निशान नहीं था. साक्षी स्कूली कपड़ों में थी. ऐसा लगता था कि उस की लाश को वहां ला कर फेंक दिया गया था.

साक्षी चौहान का अपहरण भले ही कई दिन पहले किया गया था, लेकिन उस की हत्या लाश मिलने से 24 घंटे पहले ही की गई थी. इस से  लोगों का गुस्सा और भी भड़क गया और पुलिस पर साक्षी चौहान की बरामदगी में तेजी न बरतने का आरोप लगाया.

पोस्टमार्टम के दौरान साक्षी के शरीर पर नोचे जाने और अंदरूनी हिस्सों पर चोटों के निशान पाए गए. चंद रोज की जांचपड़ताल में पुलिस ने इस मामले में 4 नौजवानों को गिरफ्तार कर लिया.

पकड़े गए आरोपियों में सैड़भर गांव के बिट्टू, मोनू, सौरभ व अन्नु शामिल थे. इन सभी की उम्र 20 से 24 साल के बीच थी. स्कूल जाते समय वे साक्षी को मोटरसाइकिल पर बैठा कर बिट्टू के घर ले गए. इस के बाद चारों आरोपियों ने उसे बंधक बना कर दरिंदगी की थी.

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यह सिलसिला 10 दिनों तक चला. वे साक्षी को नशीली चीज देते थे, ताकि वह बेहोश रहे. उन्हें डर था कि अगर साक्षी को छोड़ दिया गया, तो वे सभी फंस जाएंगे. पकड़े जाने के डर से उन्होंने गला दबा कर उस की बेरहमी से हत्या कर दी और मारुति कार में उस की लाश रख कर ईंख के खेत में फेंक गए.

उन चारों के सिर पर हवस का फुतूर सवार था. वे अकसर आनेजाने वाली छात्राओं पर फब्ति यां कसते थे और उन्हें अपना शिकार बनाने का घिनौना ख्वाब देखते थे.

इस तरह के मामलों में लड़कियां अकसर ऊंची जाति के लोगों की हैवानियत और हवस का शिकार होती हैं. हरियाणा के सोनीपत में कुछ दबंगों ने एक दलित लड़की को खेत में खींच कर उस के साथ गैंगरेप किया. बाद में पीडि़ता ने मौत को गले लगा लिया देहात के इलाकों में दलित बेचारे बेसहारा होते हैं. बैकवर्ड क्लासों में  दबंगों का बोलबाला होता है. लिहाजा, पुलिस भी ऐसे मामलों में लचीला बरताव करती है. होहल्ला होने पर कुरसी बचाने तक की सख्ती दिखाई जाती है. कितने मामले ऐसे भी होते हैं, जब दबंगों के डर से पीडि़त परिवार पुलिस तक पहुंचने की हिम्मत भी नहीं जुटा पाते.

पिछले साल हरदोई जिले में एक दलित लड़की के साथ हैवानियत की गई. मौत का मामला उछलने के बाद पुलिस हरकत में आई.

दबंगों की इस दरिंदगी का शिकार साक्षी चौहान कोई अकेली शिकार नहीं थी. उत्तर प्रदेश के ही सहारनपुर जनपद में भी एक दहलाने वाली वारदात हुई.

लेबर कालोनी की रहने वाली 11 साल की दलित लड़की तान्या 5 जनवरी को लापता हो गई. 2 दिन बाद तान्या की लाश पुलिस को झाडि़यों में मिली. उस के शरीर पर चोटों के निशान थे और उस के साथ रेप किया गया था.

इस मामले में 3 नौजवानों को गिरफ्तार किया गया. दरअसल, अंबेडकर कालोनी के रहने वाले इंद्रजीत, धर्मवीर और शिवकुमार शराब की लत के शिकार थे. उन तीनों ने खेतों में बनी एक झोंपड़ी को शराब का अड्डा बनाया हुआ था. वे अकसर वहां बैठ कर शराब पीते थे और सैक्स से जुड़ी बातें करते थे.

धीरेधीरे वे यह सोचने लगे कि किसी को अपना शिकार बनाया जाए. एक शाम उन तीनों ने जम कर शराब पी और तान्या को मोटरसाइकिल से अगवा कर लिया.

इंद्रजीत तान्या को पहले से जानता था. वह चाट खिलाने के बहाने उसे अपने साथ ले गया. झोंपड़ी में ले जा कर तीनों ने बारीबारी से उसे अपना शिकार बनाया. तान्या चीखीचिल्लाई, तो उन्होंने गला दबा कर उस की हत्या कर दी और उस की लाश को पुआल में छिपा दिया.

अगले दिन उन्होंने तान्या की लाश को तकरीबन 2 सौ मीटर दूर झाडि़यों में फेंक दिया. आरोपियों तक पहुंचने में ट्रैकर कुत्ते ने अहम भूमिका निभाई. लाश पर मिले फूस और गीली मिट्टी के सहारे ही कुत्ता झोंपड़ी तक पहुंच पाया.

बकौल एसएसपी आरपी सिंह, ‘‘आरोपियों पर पाक्सो ऐक्ट के तहत कार्यवाही की गई है. फौरैंसिक जांच के सुबूतों से भी आरोपियों को सजा दिलाई जाएगी.’’

बरेली में 29 जनवरी को घुमंतू जाति की एक दलित लड़की के साथ सारी हदों को लांघ दिया गया. नवाबगंज इलाके के गांव आनंदापुर में महावट जाति की बस्ती है. हेमराज की बेटी आशा अपनी मां के साथ खेत में चारा लेने गई थी. आशा को चारा ले कर घर भेज दिया गया, पर घर में चारा रख कर वह दोबारा खेत पर जा रही थी, तो लापता हो गई.

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खोजबीन के बाद महेंद्रपाल नामक आदमी के खेत में आशा की बिना कपड़ों की लाश मिली. गला दबा कर उस की हत्या कर दी गई थी और अंग में लकड़ी ठूंस दी गई थी. उस के शरीर को भी नोचा गया था. मौके पर उसे घसीटे जाने के निशान भी थे.

पुलिस ने इस मामले में गांव के बिगड़ैल नौजवान की तलाश की, तो एक नौजवान मुरारी गंगवार का नाम सामने आया. पुलिस ने उसे उठा कर सख्ती से पूछताछ की, तो मामला खुल गया.

मुरारी और उस का दोस्त उमाकांत शराब पी कर खेतों की तरफ निकले थे. उन की नजर लड़की पर पड़ी, तो सिर पर हैवानियत सवार हो गई. वे दोनों उसे खेत में खींच कर ले गए. उस का मुंह दबा कर पहले उमाकांत ने उस के साथ बलात्कार किया और फिर मुरारी ने. उन दोनों ने उस के नाजुक अंगों पर हमला भी किया. उन के बीच काफी खींचतान हुई. लड़की मुरारी को पहचानती थी, इसलिए गला दबा कर उस की हत्या कर दी गई.

मुरारी पहले भी गांव के एक बच्चे और पशुओं के साथ गलत काम करने की कोशिश कर चुका था, जिस के बाद उस की पिटाई हुई थी.

जबरन सैक्स और हत्या के मामले समाज और कानून दोनों को ही दहलाने का काम करते हैं. हवस के ऐसे अपराधी हर जगह हैं, जो कब किस को अपना शिकार बना लें, कोई नहीं जानता.

इस तरह के मामलों में सामने आता है कि ऐसे नौजवान किसी लड़की को भोगने के बाद 2 वजह से हत्या करते हैं. पहली, अपने पहचाने जाने के डर से. दूसरी, चीखनेचिल्लाने और पकड़े जाने के डर से. इस तरह के नौजवान समाज और कानून के लिए खतरा बन जाते हैं.

डाक्टर आरवी सिंह कहते हैं कि ऐसा करने वाले सैक्सुअल डिसऔर्डर बीमारी का शिकार होते हैं. विरोध करने पर उन में गुस्सा पैदा हो जाता है. वे अपनी कुंठा को मनमुताबिक शांत करना चाहते हैं. ऐसे लोग सैडेस्टिक टैंडैंसी से भी पीडि़त होते हैं. ऐसे शख्स को किसी का खून बहता देख कर खुशी होती है. यह एक तरह की दिमागी बीमारी है.

दबंगों ने शराब पिला कर बनाया शिकार

उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले में 27 जनवरी को कुछ दबंगों के सिर पर हवस का फुतूर सिर चढ़ कर बोला. कांधला थाना क्षेत्र के एक गांव की रहने वाली दलित किशोरी अपनी मां के साथ चारा लेने खेत पर गई थी. किसी बात पर नाराजगी हुई, तो मां ने उसे वापस घर चले जाने को कहा. जब वह रास्ते में पहुंची, तो गांव के ही 3 दबंग नौजवानों ने उसे दबोच लिया. वे उसे खींच कर खेत में ले गए. पहले उन्होंने उसे जबरन शराब पिलाई और फिर उस के साथ रेप किया. रेप करने के बाद सभी आरोपी जान से मारने की धमकी देते हुए फरार हो गए.

किशोरी जब शाम तक घर नहीं पहुंची, तो परिवार वालों ने उस की तलाश की. वह खेत में पड़ी मिली. होश में आने पर उस ने आपबीती सुनाई. बात यहीं खत्म नहीं हुई. आरोपी नौजवान ने दबंगई दिखाते हुए पुलिस कार्यवाही न करने का दबाव भी बनाया, लेकिन इस मामले में रिपोर्ट दर्ज करा दी गई. बाद में पुलिस ने एक आरोपी को गिरफ्तार कर लिया, जबकि उस के साथी फरार थे.

ममता का कातिल : बेटे ने की मां की हत्या

50 वर्षीय इंसपेक्टर ज्ञानेश्वर गणोरे महानगर मुंबई के उपनगर सांताकु्रज (पूर्व) की प्रभात कालोनी की ए.जी. पार्क इमारत की तीसरी मंजिल पर स्थित फ्लैट नंबर 303 में परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी दीपाली के अलावा 20 साल का बेटा सिद्धांत गणोरे था. इस समय वह मुंबई उपनगर के थाना खार में तैनात थे.

थाना खार में तैनाती होते ही उन्हें महानगर मुंबई के हाईप्रोफाइल शीना बोरा हत्याकांड जैसे मामले की जांच से जूझना पड़ा था. इस मामले की सूचना सब से पहले उन्हें ही मिली थी. इस के बाद थानाप्रभारी दिनेश कदम के साथ मिल कर उन्होंने इस हत्याकांड की तह तक पहुंच कर शीना बोरा के गुनहगार पीटर मुखर्जी और उन की पत्नी इंद्राणी मुखर्जी के साथ उन के ड्राइवर को सलाखों के पीछे पहुंचाया था. इस के बाद इस मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी गई थी.

यही इंसपेक्टर ज्ञानेश्वर गणोरे 16 मई, 2017 की सुबह 11 बजे पत्नी दीपाली और बेटे सिद्धांत के साथ नाश्ता कर के अपनी ड्यूटी पर चले गए थे. दरअसल, उन्हें एक अतिमहत्त्वपूर्ण केस की तैयारी करनी थी. उस दिन वह काफी व्यस्त रहे. शाम 6 बजे के करीब घर का हालचाल लेने के लिए उन्होंने फोन किया तो फोन बेटे सिद्धांत ने उठाया. उन्होंने पत्नी के बारे में पूछा तो उस ने कहा, ‘‘मां सिनेमा देखने गई हैं, देर रात तक लौटेंगी. मैं भी अपने दोस्त के यहां जा रहा हूं.’’

घर का हालचाल ले कर ज्ञानेश्वर गणोरे फिर उसी केस की फाइलों में व्यस्त हो गए थे. सारा काम निपटा कर रात 11 बजे के करीब वह घर पहुंचे तो घर का दरवाजा बंद था. कई बार डोरबेल बजाने और दरवाजा खटखटाने के बाद भी जब दरवाजा नहीं खुला तो उन्होंने पत्नी और बेटे को फोन किया. लेकिन दोनों का फोन बंद होने से बात नहीं हो सकी.

फोन बंद होने से ज्ञानेश्वर गणोरे को चिंता हुई. उन्होंने पड़ोसियों से पूछा कि बाहर जाते समय सिद्धांत घर की चाबी तो नहीं दे गया? लेकिन वह किसी को चाबी नहीं दे गया था, इसलिए अब उन के पास इंतजार करने के अलावा दूसरा कोई उपाय नहीं था. वह इंतजार करने लगे. रात के एक बज गए, अब तक न उन की पत्नी आईं और न ही बेटा. उन का कोई फोन भी नहीं आया.

ज्ञानेश्वर गणोरे को चिंता हुई. उन के मन में तरहतरह के बुरे खयाल आने लगे. चिंता बेचैनी में बदली तो वह पुलिसिया अंदाज में फ्लैट की चाबी ढूंढने लगे. काफी मेहनत के बाद आखिर उन्हें चप्पलों की रैक में फ्लैट की चाबी मिल गई. फ्लैट का दरवाजा खोल कर वह अंदर पहुंचे तो जिस बात को ले कर उन्हें बुरे खयाल आ रहे थे, वही हुआ था.

उन की आंखों के सामने जो मंजर था, उस ने उन के होश उड़ा दिए थे. सामने ही हाल के फर्श पर उन की पत्नी दीपाली का लहूलुहान शव पड़ा था. लाश के आसपास फर्श पर खून ही खून फैला था.

कुछ समय तक तो वह पत्नी का शव देखते रहे. उस के बाद एक अनुभवी पुलिस अधिकारी होने के नाते उन्होंने खुद को संभाला और सावधानीपूर्वक फ्लैट का जायजा लिया. पत्नी की हत्या हो चुकी थी और बेटा गायब था. मामला काफी गंभीर था, इसलिए उन्होंने तुरंत इस बात की जानकारी पुलिस कंट्रोल रूम और थाना वाकोला पुलिस को दे दी.

सूचना मिलते ही थाना वाकोला के थानाप्रभारी महादेव बावले ने तुरंत डायरी बनवाई और 10-15 मिनट में ही पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. इस बीच यह खबर सोसायटी में फैल गई थी, जिस से रात 2 बजे भी इमारत के कंपाउंड में काफी लोगों की भीड़ जमा हो गई थी.

पुलिस टीम भीड़ के बीच से होते हुए लिफ्ट द्वारा फ्लैट नंबर 303 के सामने पहुंची तो फ्लैट के बाहर ही गैलरी में इंसपेक्टर ज्ञानेश्वर गणोरे खड़े मिल गए. पड़ोसी उन्हें धीरज बंधा रहे थे. महादेव बावले उन से औपचारिक बातचीत कर सहायकों के साथ फ्लैट में दाखिल हुए तो उन के साथ ज्ञानेश्वर गणोरे भी अंदर आ गए.

फ्लैट के अंदर का दृश्य काफी मार्मिक  था. इंसपेक्टर ज्ञानेश्वर गणोरे की पत्नी दीपाली की हत्या बड़ी ही बेरहमी से की गई थी. हत्या जिस चाकू से की गई थी, वह लाश के पास ही पड़ा था. मृतका के शरीर पर 10-11 घाव थे, जो काफी गहरे थे. इस से लग रहा था कि हत्यारे ने पूरी ताकत से वार किए थे.

इस के अलावा पुलिस को जो खास बात देखने को मिली, वह मृतका के खून से दीवार पर लिखा एक संदेश था. संदेश के नीचे एक स्माइली भी बना था. निश्चित ही वह हत्यारे का लिखा था. संदेश में लिखा था, ‘टायर्ड औफ हर. कैच मी एंड हैंग मी’ यानी इस से थक गया था. मुझे पकड़ो और फांसी पर लटका दो. यह संदेश सभी को अटपटा और रहस्यमय लगा.

महादेव बावले सहायकों के साथ घटनास्थल और लाश का निरीक्षण कर रहे थे कि मुंबई के सीपी दत्तात्रय पड़सलगीकर, जौइंट सीपी देवेन भारती, एसीपी चेरिंग दोरजे, एडीशनल सीपी अनिल कुंभारे भी आ गए. इन्हीं अधिकारियों के साथ पुलिस की क्राइम ब्रांच की टीम और फोरैंसिक टीम भी आई थी.

फोरैंसिक टीम का काम खत्म हो गया तो पुलिस अधिकारियों ने भी घटनास्थल और लाश का बारीकी से निरीक्षण किया. इस के बाद थानाप्रभारी महादेव बावले तथा क्राइम ब्रांच की टीम को दिशानिर्देश दे कर सभी अधिकारी चले गए.

अधिकारियों के जाने के बाद महादेव बावले और क्राइम ब्रांच पुलिस ने घटनास्थल की सारी औपचारिकताएं पूरी कर के चाकू, मृतका दीपाली तथा सिद्धांत का मोबाइल फोन अपने कब्जे में ले लिया और लाश को पोस्टमार्टम के लिए विलेपार्ले कूपर अस्पताल भिजवा कर थाने आ गए.

घटनास्थल की स्थिति से स्पष्ट था कि मामला सीधासादा बिलकुल नहीं था. एक पुलिस अधिकारी की पत्नी की हत्या हो चुकी थी और बेटा गायब था. इस से यह भी अंदाजा लगाया जा रहा था कि किसी ने इंसपेक्टर ज्ञानेश्वर गणोरे से बदला तो नहीं लिया?

क्योंकि पुलिस अधिकारी होने के नाते उन का ऐसे तमाम अपराधियों से वास्ता पड़ा होगा, जो काफी शातिर रहे होंगे. यह काम कोई ऐसा अपराधी कर सकता था, जो उन से काफी नाराज रहा हो. उन्हें सबक सिखाने के लिए उस ने उन की पत्नी की हत्या कर बेटे का अपहरण कर लिया हो और दीवार पर संदेश लिख कर उन्हें चुनौती दी हो?

लेकिन दीवार पर लिखे संदेश के एकएक शब्द और वह स्माइली पर गंभीरता से विचार किया गया तो इस का कुछ अलग ही अर्थ निकल रहा था. यह बच्चों जैसा संदेश किसी शातिर अपराधी के दिमाग की उपज नहीं हो सकती थी. एक ओर जांच अधिकारी आपस में इस मामले को ले कर उलझे हुए थे, वहीं इंसपेक्टर ज्ञानेश्वर गणोरे भी अपने घर में घटी इस घटना पर गंभीरता से विचार कर रहे थे.

काफी सोचनेविचारने के बाद ज्ञानेश्वर गणोरे को अपने ही खून पर संदेह होने लगा. उन्होंने तुरंत इस बात की जानकारी थानाप्रभारी महादेव बावले को दे दी, क्योंकि वह अपने बेटे सिद्धांत की लिखावट से अच्छी तरह परिचित थे.

ज्ञानेश्वर गणोरे के संदेह के बाद राइटिंग एक्सपर्ट से उस संदेश की जांच कराई गई तो रिपोर्ट के अनुसार ज्ञानेश्वर गणोरे की बात सही निकली. उस के बाद सिद्धांत की तलाश शुरू हुई. इमारत और आसपास लगे सभी सीसीटीवी कैमरों की फुटेज भी निकलवा कर देखी गई. इस के बाद तो साफ हो गया कि दीपाली की हत्या किसी और ने नहीं, सिद्धांत ने ही की है. फिर तो पुलिस उस की तलाश में जीजान से जुट गई.

पुलिस को अपने सूत्रों से पता चला कि वह सूरत गया था, ज उसे राजस्थान के जोधपुर जाने वाली गाड़ी में बैठते देखा गया है. वह कहां जा रहा था, इस बात का अंदाजा नहीं लग रहा था.

पुलिस इस कोशिश में जुट गई कि वह जोधपुर से आगे न जा सके. इस के लिए वाट्सऐप द्वारा सिद्धांत का फोटो भेज कर जोधपुर के पुलिस कमिश्नर से बात की गई. उन्होंने इस मामले को जोधपुर रेलवे स्टेशन के नजदीक स्थित थाना उदयमंदिर के थानाप्रभारी इंसपेक्टर मदनलाल नवीवाल को सौंप दिया.

मदनलाल नवीवाल ने तुरंत एक टीम गठित की, जिस में एएसआई पूनाराम, जय सिंह, सिपाही पुनीत त्यागी और विनोद शर्मा को शामिल किया. अपनी इस टीम के साथ वह सिद्धांत की गिरफ्तारी के लिए स्टेशन के आसपास लग गए.

दूसरी ओर मुंबई पुलिस भी खामोश नहीं बैठी थी. वह भी मामले पर नजर गड़ाए हुए थी. इस का नतीजा यह निकला कि मुंबई पुलिस ने सिद्धांत के ईमेल को ट्रैस कर लिया और इस बात की जानकारी थाना उदयमंदिर पुलिस को दे दी. उदयमंदिर पुलिस ने तुरंत रेलवे स्टेशन के पास स्थित होटल धूम में छापा मार कर सिद्धांत गणोरे को गिरफ्तार कर लिया.

दरअसल, सिद्धांत गणोरे जोधपुर पहुंचतेपहुंचते काफी थक चुका था. वह आराम करने के लिए धूम होटल में कमरा लेने पहुंचा तो वहां उसे आईडी की जरूरत पड़ी. इस के लिए उस ने एक नया मोबाइल फोन खरीदा और जब उस में अपना मेल लौगिन किया तो मुंबई पुलिस को उस के जोधपुर में होने की जानकारी मिल गई.

इस बात की सूचना उदयमंदिर पुलिस को दी गई तो उन्होंने उसे गिरफ्तार कर लिया. इंसपेक्टर मदनलाल नवीवाल ने सिद्धांत गणोरे से पूछताछ कर उसे थाना वाकोला पुलिस के हवाले कर दिया. थाना वाकोला पुलिस सिद्धांत गणोरे को मुंबई ले आई और उस से पूछताछ की तो दीपाली गणोरे की हत्या की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह कुछ इस प्रकार थी.

यह सच है कि मांबाप कभी भी अपने बच्चों से न तो ईर्ष्या करते हैं और न दुर्व्यवहार. उन के डांटफटकार और मारपीट में भी उन का कोई स्वार्थ नहीं होता. वह मारतेपीटते भी हैं तो बच्चे की भलाई के लिए ही. क्योंकि वे हमेशा अपने बच्चों की भलाई चाहते हैं. लेकिन अब समय काफी बदल गया है. बच्चे इलैक्ट्रौनिक युग में जी रहे हैं. वे वैसा ही सोचते हैं, जैसा घर का माहौल होता है. घर के वातावरण का बच्चों के दिमाग पर गहरा असर पड़ता है. ऐसा ही सिद्धांत गणोरे के साथ भी हुआ.

इंसपेक्टर ज्ञानेश्वर गणोरे महाराष्ट्र के देवलाली कैंप के जनपद भगूर के रहने वाले थे. उन के पिता खेतीकिसानी करते थे. वह गांव में ही रह कर पढ़ेलिखे. लेकिन उन के मन में कुछ करने की तमन्ना थी, यही वजह थी कि पढ़ाई पूरी होते ही वह सबइंसपेक्टर के रूप में पुलिस विभाग में भरती हो गए. वह मेहनती तो थे ही, ईमानदार भी थे, इसलिए आज वह मुंबई पुलिस में इंसपेक्टर हैं.

पुलिस की नौकरी में आने के बाद उन की शादी दीपाली से हुई थी. दीपाली एलएलबी किए थी. पति की तरह वह भी महत्त्वाकांक्षी थी. वह एक प्रतिष्ठित वकील बनना चाहती थी. इस के लिए ज्ञानेश्वर गणोरे ने बेटे सिद्धांत के जन्म के बाद उसे एलएलएम की पढ़ाई के लिए लंदन भेज दिया था. यह अलग बात है कि लंदन से लौटने के बाद दीपाली ने कुछ दिनों ही वकालत की थी.

ज्ञानेश्वर गणोरे का बेटा सिद्धांत पहले तो पढ़ने में ठीक था, लेकिन हाईस्कूल के बाद उस का दाखिला मुंबई में करवाया गया तो पता नहीं क्या हुआ कि यहां उस का पढ़ाई में मन नहीं लगा. इंटर तो उस ने किसी तरह कर लिया, लेकिन कालेज के दूसरे साल में वह फेल हो गया. इस की वजह थी, घर का माहौल.

दरअसल, घर में अकसर मातापिता में लड़ाईझगड़ा होता रहता था. दीपाली को शक था कि उस के पति का किसी महिला से अफेयर है. सिद्धांत को यह पसंद नहीं था. वह मांबाप के रोजरोज के लड़ाईझगड़े से ऊब चुका था.

लेकिन मांबाप सिद्धांत को पढ़ालिखा कर इंजीनियर बनाना चाहते थे. पर उन का यह सपना पूरा नहीं हो सका. मांबाप के प्यार से वंचित सिद्धांत की दोस्ती कालेज के कुछ आवारा युवकों से हो गई थी, जिन के साथ रह कर वह ड्रग्स लेने लगा था.

इस बात की जानकारी दीपाली और ज्ञानेश्वर गणोरे को हुई तो उन के पैरों तले से जमीन खिसक गई. दोनों सिद्धांत पर नजर रखने लगे. उस के फोन और लैपटौप के इस्तेमाल पर पाबंदी लगा दी गई. इस से सिद्धांत परेशान रहने लगा.

दीपाली ने कोशिश कर के सिद्धांत का दाखिला बांद्रा के नेशनल कालेज में बीएससी में करवा दिया. वह खुद सिद्धांत को कालेज छोड़ने जाती थीं, लेकिन उन के वापस आते ही सिद्धांत अपने आवारा और नशेड़ी दोस्तों के साथ निकल जाता. घर में दीपाली उस के साथ मां की तरह नहीं, तानाशाह जैसा व्यवहार करती थीं. उस की किताबें, नोटबुक और लैपटौप चेक करती थीं.

काम पूरा न होने पर उस से तरहतरह के सवाल करतीं और ताना मारतीं. अगर ज्ञानेश्वर गणोरे बेटे का पक्ष लेते तो वह उन से भी उलझ जातीं. यह सब सिद्धांत को अच्छा नहीं लगता था.

घटना वाले दिन सिद्धांत ने मां से कुछ पैसे मांगे. दीपाली ने पैसे देने से साफ मना कर दिया. मांबेटे के बीच कहासुनी होने लगी तो ज्ञानेश्वर गणोरे दोनों को समझाबुझा कर अपनी ड्यूटी पर चले गए, लेकिन दीपाली शांत नहीं हुईं. वह सिद्धांत को अपनी मार्कशीट दिखाने को कह रही थीं, लेकिन सिद्धांत मार्कशीट दिखाता कैसे, उस ने तो परीक्षा ही नहीं दी थी. यह जान कर दीपाली को गुस्सा आ गया.

सिद्धांत को आड़ेहाथों लेते हुए उन्होंने उसे खूब खरीखोटी सुनाई. दीपाली की बातें सिद्धांत के बरदाश्त से बाहर होती जा रही थीं. जब उस की सहनशक्ति समाप्त हो गई तो उस का मानसिक संतुलन बिगड़ गया. पहले तो उस ने अपने हाथों की नसें काट कर आत्महत्या करनी चाही. लेकिन अचानक उस का विचार बदल गया. आत्महत्या करने के बजाय उसे अपनी मां दीपाली की हत्या करना उचित लगा.

वह किचन में गया और सब्जी काटने वाला चाकू उठा लाया. दीपाली हाल में बैठी टीवी देख रही थीं. वह उन के पास पहुंचा और उन पर हमला कर दिया. अचानक हुए हमले से दीपाली संभल नहीं सकीं और फर्श पर लुढ़क गईं. वह चीखतीचिल्लाती रहीं, पर सिद्धांत को उस पर जरा भी दया नहीं आई. आखिर उस ने उन्हें मौत के घाट उतार कर ही दम लिया.

अपनी जन्म देने वाली मां की हत्या कर के सिद्धांत खड़ा ही हुआ था कि पिता का फोन आ गया. उस ने फोन रिसीव कर के बड़ी ही शांति से कहा कि मां फिल्म देखने गई हैं. वह देर रात तक आएंगी. वह भी बाहर जा रहा है. पिता से बात करने के बाद सिद्धांत ने चाकू मां की लाश के पास फेंका और भड़ास निकालने के लिए उस ने मां के खून से दीवार पर संदेश लिख कर उस के नीचे स्माइली बना दिया.

इस के बाद उस ने बैडरूम में रखी अलमारी में रखे 2 लाख रुपए निकाले और अपने तथा मां के फोन को बंद कर के सिम निकाल कर अपने पास रख लिया. पुलिस अधिकारी का बेटा होने के नाते उसे पता था कि मोबाइल रखना खतरे से खाली नहीं है. उस ने सोचा तो ठीक था, लेकिन पकड़ा मोबाइल फोन से ही गया.

अब तक रात के 8 बज चुके थे. उस के पिता कभी भी आ सकते थे, इसलिए अब वह वहां से निकल जाना चाहता था. घर से बाहर आ कर वह सांताकु्रज लोकल स्टेशन पहुंचा, जहां से बोरीवली गया. वहां से गुजरात एक्सप्रैस पकड़ कर सूरत और वहां से जोधपुर एक्सप्रैस से जोधपुर चला गया. जोधपुर से कहीं और जाता, उस के पहले ही पुलिस ने उसे पकड़ लिया.

पूछताछ के बाद थानाप्रभारी महादेव बावले ने सिद्धांत के खिलाफ मां की हत्या का मुकदमा दर्ज कर अदालत में पेश किया, जहां से उसे आर्थर रोड जेल भेज दिया गया. सिद्धांत अपनी ही मां की हत्या के आरोप में जेल में बंद है. लेकिन उसे मां की हत्या का जरा भी अफसोस नहीं है. सोचने वाली बात यह है कि अगर बेटे इस तरह क्रूर हो जाएंगे तो मांबाप की ममता का क्या होगा.

जिस ने लूटा, वही बना सुहाग

जिस लड़की ने कुछ महीने पहले ही अपने करोड़पति बौयफ्रैंड पर बहका कर जिस्मानी संबंध बनाने, मारपीट करने और जातिसूचक गाली देने का आरोप लगा कर हंगामा खड़ा किया था, उस के ही गले में वरमाला डाली और उस के नाम का सिंदूर अपनी मांग में भर लिया.

बिहार के इस हाईप्रोफाइल केस में लड़का एक रिटायर्ड आईएएस अफसर का बेटा और करोड़पति औटोमोबाइल कारोबारी निखिल प्रियदर्शी है, वहीं लड़की बिहार के पूर्व मंत्री की बेटी सुरभि है.

9 महीने तक चले इस हंगामे के बाद दोनों ने शादी रचा कर मामले को ठंडा तो कर दिया, पर इस मामले में सुरभि ने निखिल के साथसाथ बिहार कांग्रेस के उपाध्यक्ष पर भी जिस्मानी शोषण का आरोप लगाया था.

इस आरोप में पिता समेत जेल जाने के बाद निखिल ने अदालत में समझौता याचिका दायर की और आरोप लगाने वाली सुरभि से शादी करने की बात कही थी. उस ने याचिका में कहा था कि सुरभि से अब उस का कोई झगड़ा नहीं है और दोनों शादी करने के लिए राजी हैं.

कोर्ट के आदेश के बाद 6 नवंबर, 2017 को पटना के रजिस्ट्रार के सामने निखिल और सुरभि ने शादी रचा ली.

इस शादी के पीछे एक लंबी कहानी है. 22 दिसंबर, 2016 को सुरभि ने निखिल, उस के भाई मनीष और पिता कृष्ण बिहारी प्रसाद के खिलाफ पटना के एससीएसटी थाने में एफआईआर दर्ज की थी. उस के बाद 8 मार्च, 2017 को पीड़िता ने बुद्धा कालोनी थाने में उस की पहचान उजागर करने, एक करोड़ रुपए और औडी कार मांगने की बातों को सोशल मीडिया पर वायरल करने को ले कर निखिल और ब्रजेश पांडे पर एफआईआर दर्ज कराई थी.

सीआईडी की सुपरविजन रिपोर्ट में मुख्य आरोपी निखिल को कुसूरवार करार दिया गया था. अनुसूचित जाति थाने के आईओ द्वारा की गई जांच में सीआईडी के डीएसपी ने सुपरविजन किया था.

सीआईडी के एडीजे विनय कुमार ने सुपरविजन की समीक्षा करने के बाद निखिल के खिलाफ लगाए गए बलात्कार के आरोप को सही पाया था.

आईजी (कमजोर वर्ग) अनिल किशोर यादव ने भी कहा था कि निखिल पर लगे आरोप सही पाए गए हैं.

निखिल को करीब से जानने वाले बताते हैं कि पावर, पैसा, पौलिटिक्स और पुलिस से निखिल की खूब यारी थी. निखिल एक नामी कार कंपनी के शोरूम का मालिक है. उस के बूते उस ने नेताओं और अफसरों के बीच खासी पैठ बना रखी थी. रसूखदारों से मिलना, उन के साथ उठनाबैठना और पार्टियां करने में उसे खूब मजा आता था. इन सब पर वह जमकर पैसा खर्च करता था.

यौन उत्पीड़न और सैक्स रैकेट चलाने के साथ ही बैंकों से लेनदेन को ले कर भी निखिल के खिलाफ कानूनी मामला चल रहा है. कुछ बैंकों से करोड़ों रुपए के लोन लेने के मामले में वह डिफौल्टर करार दिया गया है और बैंकों ने उस पर केस कर दिया है. बैंकों को रुपए लौटने के मामले में निखिल हाथ खड़े कर चुका है.

मुंबई हाईकोर्ट के आदेश पर निखिल प्रियदर्शी के बेली रोड पर बने कार शोरूम को सील कर दिया था.

टाटा कैपिटल फाइनैंशियल सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने निखिल की जायदाद जब्त करने का आदेश पुलिस को दिया था. टाटा कैपिटल का करोड़ों रुपए का लोन निखिल नहीं चुका रहा था. सगुना मोड़ के पास बना उस का दूसरा शोरूम पहले ही जब्त किया जा चुका है.

निखिल समेत कांग्रेस नेता ब्रजेश पांडे और संजीत शर्मा पर सुरभि ने बलात्कार और सैक्स रैकेट चलाने का आरोप लगाया था. निखिल ऊंचे ओहदे पर बैठे कई नेताओं और अफसरों को लड़कियां सप्लाई किया करता था.

सुरभि ने एसआईटी को बताया था कि शादी का झांसा दे कर निखिल उसे महंगी गाडि़यों में घुमाता था. एक दिन वह उसे बोरिंग रोड इलाके के एक फ्लैट में ले गया. उसे कोल्ड ड्रिंक पीने के लिए दी. उसे पीने के बाद वह बेहोश हो गई.

कुछ देर बाद जब उसे थोड़ा होश आया तो देखा कि ब्रजेश पांडे और संजीत शर्मा उस के साथ गलत हरकतें कर रहे थे. बाद में उस ने निखिल को फटकार लगाई और उस पर शादी करने का दबाव बनाया तो निखिल ने उस के साथ मारपीट की.

सुरभि ने मार्च महीने में पुलिस को दिए बयान में कहा था कि वह निखिल से प्यार करती थी और उस से शादी करना चाहती थी. निखिल ने उसे शादी करने का भरोसा दिया था, पर उस के बाद वह लगातार टालमटोल कर रहा था.

पहले तो कई महीनों तक शादी का झांसा दे कर निखिल ने उस के साथ जिस्मानी संबंध बनाए. उस के बाद उसे गलत कामों को करने पर जोर देने लगा. वह अपने दोस्तों के सामने उस के जिस्म को परोसना चाहता था.

एक दिन बोरिंग रोड के एक फ्लैट में ब्रजेश पांडे के सामने सुरभि को परोसने की कोशिश की. ब्रजेश ने उस के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की. जब पीडि़ता ने उस का विरोध किया तो उस के साथ मारपीट की गई.

सुरभि ने पुलिस को बताया था कि निखिल उस के साथ गलत हरकतें करता था. पहले वह इस बारे में खुल कर कुछ नहीं कह पाती थी, क्योंकि परिवार की बदनामी का डर था. अब उस का परिवार उस के साथ खड़ा है तो वह खुल कर बोल सकती है.

सुरभि ने बताया कि ब्रजेश उसे अपने साथ दिल्ली ले जाना चाहता था. उस ने कई बार उसे दिल्ली चलने को कहा. रुपयों का लालच भी दिया, लेकिन उस ने निखिल के साथ जाने से इनकार कर दिया.

निखिल गांजा पीता था और ज्यादा डोज लेने के बाद वह जानवरों की तरह बरताव करने लगता था. वह उस के जिस्म को नोचनेखसोटने लगता था.

पुलिस सूत्रों के मुताबिक, फेसबुक और ह्वाट्सऐप के जरीए लड़कियों से चैटिंग करना निखिल का शौक था. कई लड़कियों को वह सैक्स के घिनौने खेल में जबरन उतार चुका था. लड़कियों को परोस कर उस ने सत्ता के गलियारों और पुलिस महकमे में अपनी गहरी पैठ बना रखी थी.

दिखावे के तौर पर तो निखिल कारों का कारोबार करता था, लेकिन लग्जरी कारों के साथसाथ खूबसूरत लड़कियां भी उस की कमजोरी थीं. अफसरों और नेताओं को औडी और जगुआर जैसी महंगी कारों में घुमा कर उन से दोस्ती गांठने में वह माहिर था.

सुरभि ने जब निखिल पर यौन शोषण का आरोप लगा कर केस दर्ज किया था तो निखिल फरार हो गया था. एसआईटी ने उस की खोज में देश के कई राज्यों में छापामारी की. उसे पता था कि पुलिस उस की खोज में भटक रही है, इसलिए वह लगातार अपने ठिकाने बदलता रहा.

साढ़े 3 महीने तक फरार रहने और पुलिस की आंखों में धूल झोंकने वाला निखिल प्रियदर्शी और उस के रिटायर आईएएस पिता कृष्ण बिहारी प्रसाद को 14 मार्च को उत्तराखंड से गिरफ्तार किया गया था.

उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले के लक्ष्मण झूला थाने के चीला ओपी इलाके से उन्हें सुबहसुबह दबोचा गया. बिहार पुलिस को निखिल के उत्तराखंड में होने की सूचना मिली थी.

पटना के एसएसपी मनु महाराज ने पौड़ी गढ़वाल जिले के एसएसपी और अपने बैचमेट मुख्तार मोहसिन को फोन कर उन्हें निखिल के बारे में सूचना दी. उस के बाद ही उत्तराखंड पुलिस निखिल की खोज में लग गई थी. चीला इलाके में गाड़ी चैकिंग के दौरान निखिल अपनी औडी गाड़ी के साथ पकड़ा गया. गाड़ी में उस के पिता भी बैठे हुए थे.

पुलिस ने बताया कि निखिल और उस के पिता के पास पहचानपत्र था. इस वजह से वे किसी होटल में नहीं रुक पा रहे थे. तकरीबन 3 महीने तक बापबेटे ने दिनरात औडी कार में ही गुजारे. वे किसी पब्लिक प्लेस पर कार खड़ी कर के आराम किया करते थे. सार्वजनिक शौचालय में फ्रैश होते और उस के बाद फिर से कार से ही आगे की ओर बढ़ जाते थे.

अब शादी करने के बाद निखिल और सुरभि की नई जिंदगी क्या करवट लेगी, यह देखने वाली बात होगी.

फरजाना के प्यार का समंदर – भाग 1

राजमिस्त्री रईस अहमद दिन भर का थकामांदा रात 8 बजे घर वापस आया तो उस के घर का दरवाजा अंदर से बंद था. उस ने रुकरुक कर कई बार कुंडी खटखटाई, बीवी को आवाज भी लगाई, लेकिन उस की बीवी अदीबा बानो उर्फ फरजाना ने दरवाजा नहीं खोला.

रईस को तब गुस्सा आ गया, वह नशे में भी था सो वह फरजाना को भद्दीभद्दी गालियां बकने लगा. गालियां बकतेबकते जब वह थक गया तो उस ने घर के बाहर झोपड़ी के पास आग जलाई और तापने लगा.

अभी उसे तापते हुए आधा घंटा ही बीता था कि किसी ने उस पर धारदार हथियार से हमला कर दिया, जिस से उस का सिर फट गया और वहीं लुढ़क कर छटपटाने लगा.

इसी समय फरजाना दरवाजा खोल कर घर के बाहर आई तो उस ने झोपड़ी के पास शौहर को खून से लथपथ तड़पते देखा. तब वह चीखने और चिल्लाने लगी. कड़ाके की ठंड थी, सो लोग घरों में दुबके थे, लेकिन फरजाना की चीख सुन कर आसपड़ोस के इक्कादुक्का लोग घरों से निकले. फरजाना ने उन्हें बताया कि किसी ने उस के शौहर पर कातिलाना हमला किया है. यह सुन कर सभी दंग रह गए.

रईस के घर के पास ही उस का भाई वाहिद रहता था. उस ने भौजाई फरजाना के रोने की आवाज सुनी तो हड़बड़ा कर घर के बाहर आया. उस ने भाई रईस को मरणासन्न स्थिति में देखा तो उस का कलेजा कांप उठा. साथ ही मन में तरहतरह की आशंकाएं उठने लगीं.

इधर एक वफादार बीवी की तरह फरजाना ने शौहर को वाहिद की मदद से 4 पहिए वाली ठिलिया पर लादा और कन्नौज जिले में स्थित ठठिया के सरकारी अस्पताल की ओर भागी. लेकिन अस्पताल पहुंचतेपहुंचते रईस ने दम तोड़ दिया. डाक्टरों ने उसे देखते ही मृत घोषित कर दिया. तब वह रईस के शव को वापस घर ले आए. यह घटना 21 दिसंबर, 2022 की रात 9 बजे भदोसी गांव में घटित हुई थी.

सुबह सूरज के निकलते ही रईस की हत्या की खबर भदोसी गांव में फैली तो लोगों का जमावड़ा रईस के दरवाजे पर शुरू हो गया. लोग आपस में कानाफूसी भी करने लगे. फिर तो जितने मुंह उतनी बातें होने लगीं. इसी बीच ग्रामप्रधान रामजी कुशवाहा ने रईस की हत्या की खबर थाना ठठिया पुलिस को दे दी.

चूंकि मामला हत्या का था, अत: एसएचओ कमल भाटी पुलिस दल के साथ भदोसी गांव रवाना हो लिए. रवाना होने से पहले उन्होंने वारदात की खबर पुलिस अधिकारियों को भी दे दी थी.

भदोसी गांव ठठिया थाने के पास ही था, अत: पुलिस को वहां पहुंचने में ज्यादा समय नहीं लगा. उस समय वहां ग्रामीणों की भीड़ जुटी थी. भीड़ को हटाते कमल भाटी उस स्थान पर पहुंचे, जहां मृतक रईस का शव पड़ा था.

एसएचओ कमल भाटी ने शव का निरीक्षण किया तो वह चौंक गए. क्योंकि हत्यारों ने बड़ी निर्दयतापूर्वक धारदार हथियार से रईस की हत्या की थी. उस के सिर के पीछे की ओर गहरा घाव था. सिर की हड्डी कटने और अधिक खून बहने से ही शायद उस की मौत हुई थी. हत्यारों ने उस के सिर पर शायद पीछे से ही वार किया था. मृतक रईस की उम्र 50 वर्ष के आसपास थी और शरीर दुबलापतला था.

एसएचओ कमल भाटी अभी घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसपी (कन्नौज) कुंवर अनुपम सिंह तथा एएसपी डा. अरविंद कुमार भी आ गए. पुलिस अधिकारियों ने मौकाएवारदात का बारीकी से निरीक्षण किया. फिर ग्रामप्रधान रामजी कुशवाहा व अड़ोसपड़ोस के लोगों से घटना के संबंध में जानकारी हासिल की.

घटनास्थल पर मृतक की बीवी अदीबा बानो उर्फ फरजाना मौजूद थी. वह शौहर के शव के पास रो रही थी. एएसपी डा. अरविंद कुमार ने उसे धैर्य बंधाया और फिर उस से घटना के संबंध में पूछताछ की.

फरजाना ने बताया कि वह दरवाजा बंद कर घर के अंदर सो रही थी. रात 9 बजे उस की आंख खुली तो वह दरवाजा खोल कर घर के बाहर आई. वहां उस ने झोपड़ी के पास शौहर को छटपटाते देखा. किसी ने उन पर जानलेवा हमला किया था. उस ने शोर मचाया तो कुछ लोग घरों से निकले. उस के बाद देवर वाहिद की मदद से शौहर को ठठिया अस्पताल ले गई, जहां डाक्टरों ने मृत घोषित कर दिया.

‘‘क्या तुम बता सकती हो कि तुम्हारे शौहर का कत्ल किस ने किया?’’ एएसपी ने पूछा.

‘‘नहीं साहब, मुझे पता नहीं.’’ फरजाना ने जवाब दिया.

‘‘रईस की किसी से गांव में रंजिश थी या कोई लेनदेन था?’’

‘‘नहीं साहब. गांव में उन की न तो किसी से रंजिश थी और न ही लेनदेन था. वह रोज कमानेखाने वाले आदमी थे. हां, वह शराब के लती जरूर थे.’’

मृतक रईस का भाई वाहिद पुलिस अफसर और अपनी भौजाई फरजाना की बातें गौर से सुन रहा था. भौजाई के त्रियाचरित्र से उसे मन ही मन गुस्सा भी आ रहा था. वह सोच रहा था कि शौहर के साथ घात करने के बाद अब कितनी पाकसाफ बनने की कोशिश कर रही है.

एसपी कुंवर अनुपम सिंह की निगाहें चंद कदम की दूरी पर बैठे वाहिद पर ही टिकी हुई थीं. उस के चेहरे पर गुस्से और गम के मिलेजुले भाव उभर रहे थे. ऐसा लग रहा था, जैसे वह अंदर भरे गुबार को बाहर लाना चाहता है, लेकिन हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है. कहीं वह अपने भाई की हत्या का रहस्य तो पेट में नहीं छिपाए है. यही सोच कर उन्होंने उसे अपने पास बुलाया फिर उसे पूछताछ के लिए एकांत में ले गए.

‘‘रईस तुम्हारा सगा भाई था?’’ एसपी कुंवर अनुपम सिंह ने वाहिद से पूछा.

‘‘जी साहब. हम दोनों सगे भाई थे,’’ वाहिद ने जवाब दिया.

‘‘तुम्हारे भाई की हत्या किस ने की, तुम्हें किसी पर शक है?’’

‘‘साहब, शक ही नहीं यकीन भी है कि उसी ने हत्या को अंजाम दिया है.’’ वाहिद ने विस्फोट किया.

‘‘किस पर यकीन है और किस ने हत्या को अंजाम दिया?’’ एसपी ने पूछा.

‘‘साहब, वह कोई और नहीं रईस की बीवी यानी मेरी भौजाई फरजाना है.’’

‘‘क्याऽऽ बीवी ने शौहर का कत्ल कर दिया?’’ एसपी कुंवर अनुपम सिंह ने अचकचा कर पूछा.

‘‘हां साहब, यही सच है.’’ वाहिद ने पूरा भरोसा जताते हुए कहा.

‘‘यह बात तुम यकीन के साथ कैसे कह सकते हो?’’ श्री सिंह ने पूछा.

‘‘साहब, फरजाना का अपने पड़ोसी अमर सिंह कुशवाहा से नाजायज रिश्ता है. इन नापाक रिश्तों का रईस विरोध करता था. जिस रोज वह बीवी को रंगेहाथ पकड़ लेता था, उस रोज दोनों के बीच झगड़ा और मारपीट होती थी. रईस दोनों के नापाक रिश्तों में बाधक बन रहा था, इसलिए अदीबा बानो ने अपने प्रेमी अमर सिंह के साथ मिल कर उस की हत्या कर दी.’’

विधवा से इश्क में मिली मौत – भाग 4

आशा का बेटा पंकज जवानी की दहलीज पर था. उसे दीपक सिंह का घर आना अच्छा नहीं लगता था, क्योंकि उस के हमउम्र दोस्त दीपक सिंह को ले कर तरहतरह की बातें करते थे, पर पंकज को अपनी मां पर भरोसा था. इसलिए दोस्तों को वह झिड़क देता था. लेकिन उस के भरोसे को तब ठेस लगी, जब उस ने मां को दीपक के साथ खिड़की से आपत्तिजनक हालत में देख लिया.

किसी बेटे के लिए इस से अधिक शर्मनाक बात और क्या हो सकती थी कि मां अपने प्रेमी के साथ रास रचा रही थी. यह देख कर पंकज का खून खौलने लगा.

पंकज का जी चाह रहा था कि वह लातें मारमार कर दरवाजा तोड़ दे और मां व दीपक को उन की गंदी हरकत का सबक सिखाए, लेकिन ऐसा करना उस ने उचित नहीं समझा. क्योंकि ऐसा करने से पूरे मोहल्ले में घर की बदनामी हो जाती. वह स्वयं भी किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रह जाता.

गुस्से को काबू कर पंकज दरवाजे से ही लौट गया. लगभग एक घंटा बाद वह वापस घर आया. तब तक दीपक सिंह जा चुका था. मां घर के काम में व्यस्त थी. पंकज के आते ही वह मुसकराते हुए बोली, ‘‘गोलू खाना लगा दूं.’’

‘‘नहीं, मुझे भूख नहीं है.’’ पंकज गुस्से से बोला.

‘‘क्या बात है बेटा, तेरा मूड क्यों उखड़ा है? क्या किसी से झगड़ कर आया है?’’ आशा ने पूछा.

‘‘मां, पहले तुम यह बताओ कि पप्पू घर में क्यों आता है? उस से तुम्हारा क्या रिश्ता है?’’

‘‘मेरा उस से कोई रिश्ता नहीं है. लगता है बेटा, किसी ने तुम्हारे कान भरे हैं?’’

‘‘मेरे किसी ने कान नहीं भरे हैं. सब कुछ मैं ने अपनी आंखों से देखा है. आप झूठ बोल रही हैं कि पप्पू से कोई रिश्ता नहीं है. मैं ने तो सपने में भी नहीं सोचा था कि तुम इतनी गिर सकती हो. मुझे तो तुम्हें मां कहने में भी शर्म आ रही है.’’

बेटे की बात सुन कर आशा सन्न रह गई. वह जान गई कि उस के नाजायज रिश्तों का भांडा फूट गया है, इसलिए वह कुछ न बोली और सिर झुका लिया.

पंकज शाम को अपने मामा बदन सिंह के घर सचेंडी जा पहुंचा. उस ने मामा को मां और दीपक सिंह के नाजायज रिश्तों की जानकारी दी. बदन सिंह तब पंकज के साथ पनकी गंगागंज आया और विधवा बहन आशा को खूब जलील किया, साथ ही ऊंचनीच की नसीहत भी दी.

आशा ने गलती स्वीकार की और भाई व बेटे से वादा किया कि अब वह दीपक सिंह को घर में फटकने नहीं देगी. उस से कोई रिश्ता नहीं रखेगी. 2 दिन बाद जब पप्पू घर आया तो आशा ने उसे बता दिया कि उस के नाजायज रिश्तों की जानकारी उस के भाई और बेटे को हो गई है.

पप्पू पर इश्क का जुनून सवार था. जब आशा ने उसे घर आने को मना किया तो वह दबंगई पर उतर आया. वह जबर्दस्ती आशा को अपनी हवस का शिकार बनाने लगा. यही नहीं वह ब्लैकमेल कर आशा से रुपयों की मांग भी करने लगा.

आशा पैसे देने से मना करती तो वह उसे समाज में बदनाम करने की धमकी देता. आशा को तब झुकना पड़ता. आशा जब दीपक सिंह की ज्यादतियों से परेशान हो गई, तब उस ने भाई बदन सिंह को घर बुलाया. भाई को आशा ने बताया कि दीपक सिंह ने उस का जीना दूभर कर दिया है. वह उस के साथ जबरदस्ती करता है और ब्लैकमेल कर रुपयों की डिमांड करता है. रुपया न देने पर इज्जत नीलाम करने की धमकी देता है.

बहन की व्यथा सुन कर बदन सिंह के तनबदन में आग लग गई. उस ने उसी समय फैसला कर लिया कि वह बहन की इज्जत से खेलने वाले को सबक जरूर सिखाएगा. इस के बाद बदन सिंह ने बहन आशा व भांजे पंकज के साथ मिल कर दीपक सिंह उर्फ पप्पू की हत्या की योजना बनाई.

दीपक सिंह के वैसे तो कई पियक्कड़ दोस्त थे. लेकिन शशांक, सत्येंद्र, जितेंद्र उर्फ जीतू और देवेंद्र उर्फ जैकी उस के खास दोस्त थे. इन के साथ पप्पू अकसर शराब पार्टी करता था. जितेंद्र, सत्येंद्र व देवेंद्र पनकी गंगागंज (भाग एक) में रहते थे. वे तीनों सगे भाई थे. जबकि शशांक सक्सेना इन के घर से कुछ दूर रहता था. पप्पू के इन दोस्तों को उस के और आशा के नाजायज रिश्तों की बात पता थी.

अपनी योजना के तहत बदन सिंह ने दीपक सिंह के दोस्तों से यारी कर ली और वह उन के साथ शराब पार्टी में शामिल होने लगा.

बदन सिंह की शशांक से खूब पटती थी. वह उसे खानेपीने को अकसर बुलाता रहता था. शशांक का विश्वास जीतने के बाद बदन सिंह ने उसे अपना मोहरा बनाया.

13 जनवरी, 2023 की रात 9 बजे बदन सिंह ने शशांक से मुलाकात की और खाली पड़े प्लौट में शराब पार्टी की दावत दी. शशांक ने तब अपने दोस्त जितेंद्र, सत्येंद्र व देवेंद्र को भी बुला लिया. सभी बैठ कर शराब पीने लगे. बदन सिंह कुछ देर बाद वहां पहुंचा तो वहां दीपक सिंह उर्फ पप्पू नहीं था. बदन सिंह ने तब शशांक से कहा कि वह अपने दोस्त पप्पू को भी बुला ले.

शशांक ने रात 10 बजे पप्पू को फोन किया कि खाली पड़े प्लौट में शराब पार्टी चल रही है, वह भी आ जाए. कुछ देर बाद पप्पू वहां आ गया. इसी बीच बदन सिंह ने बहन आशा व भांजे पंकज उर्फ गोलू को वहां बुला लिया, जो प्लौट के पूर्वी छोर पर झाडि़यों में घात लगा कर बैठ गए. इधर पप्पू दोस्तों के साथ पैग लगा कर जैसे ही घर की ओर चला, तभी घात लगाए बैठे बदन सिंह, पंकज व आशा ने उसे दबोच लिया फिर ईंट से सिर कुचल कर उस की हत्या कर दी.

दीपक सिंह की चीखें उस के दोस्तों ने सुनीं पर उसे बचाने की कोशिश किसी ने नहीं की. हालांकि वे समझ गए थे कि पप्पू की हत्या किस ने की है, लेकिन उन्होंने जुबान बंद कर ली. उन्होंने न पुलिस को सूचना दी और न अड़ोसपड़ोस वालों को कुछ बताया.

14 जनवरी, 2023 की सुबह पड़ोसी राजू कूड़ा फेंकने खाली पड़े प्लौट पर गया तो उस ने दीपक सिंह की लाश देखी. तब राजू ने सूचना उस के घर वालों को दी.

21 जनवरी, 2023 को पुलिस ने हत्यारोपी बदन सिंह, पंकज, आशा तथा जुर्म छिपाने के आरोपी शशांक, सत्येंद्र, जितेंद्र व देवेंद्र को गिरफ्तार कर कानपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन सब को जिला जेल भेज दिया गया. द्य

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

लिव इन की कच्ची सड़क

रेखा धुर्वे भले ही 28 साल की हो गई थी, लेकिन जवानी उसके बदन से फूट रही थी. जब वह काम पर जाने के लिए बनसंवर कर झोपड़ी से निकलती, तब उसे भाभी कहने वाले लड़कों से ले कर उस की दोगुनी उम्र के लोगों के दिलों पर भी सांप लोटने लगता था.

कुछ तो मजाक कर उसे छेड़ देते थे, लेकिन कइयों के मन की बात दबी रह जाती थी. वैसे वे उस के पति मलखान के पसंद की तारीफ करते भी नहीं थकते थे.

इसी के साथ एक सच यह भी था कि पिछले कुछ समय से रेखा की मलखान से अनबन चल रही थी. मलखान के साथ उस की पारिवारिक और सामाजिक रीतिरिवाज के साथ शादी नहीं हुई थी.

रेखा अपने मांबाप, रिश्तेदार और समाज के सामने सिंदूर दान करने वाले पति को छोड़ कर मलखान के प्रेम में सिर्फ कसमेवादे के चंद लफ्जों में बंधी हुई थी. 12 सालों से उस के साथ लिवइन में रह रही थी. वही उस का पति था, उस की नजर में और समाज की नजर में भी. जबकि उस के पहले पति से 2 बच्चे भी थे.

वह नर्वदापुरम जिले की सिवनी मालवा तहसील स्थित आईटीआई के पास सीमेंट गोदाम में काम करती थी. वैसे वह मूल निवासी टिमरनी तहसील के गांव डोडरामऊ की थी. अपने पति को छोड़ कर वह दिसंबर, 2022 के पहले सप्ताह में काम के लिए सिवनी मालवा आई थी. घर के नाम पर एक टेंट था. उसी में वह मलखान के साथ रह रही थी. मलखान एक सीमेंट गोदाम में काम करता था.

मलखान सिंह पिपरिया के पास सररा लांजी गांव का रहने वाला था. रेखा उस से करीब 12 साल पहले मिली थी. मुलाकात जल्द ही जानपहचान में बदल गई. रेखा की जवानी पर मलखान फिदा हो गया, जबकि वह मलखान की हमदर्दी से उस की ओर खिंची चली गई. …और फिर उन का बारबार मिलनाजुलना मजबूत प्रेम में बदल गया.

एक दिन मलखान रेखा के सिर पर हाथ रख कर बोला, ‘‘तुम जब मेरे पास आओ, तब दुखी मन से उदास मत रहा करो. उस से तुम्हारी सुंदरता कम हो जाती है.

जब तुम हंसती हो तो बहुत अच्छी लगती हो…’’

‘‘क्या करूं मलखान, एक तुम्हीं हो जो मेरे मन की बात समझते हो. मैं किसी और के सामने तो दूर, अपने निखट्टू शराबी पति से भी उतना खुल कर बातें नहीं करती, जितनी तुम्हारे साथ कर लेती हूं.’’ कह कर रेखा सुबकने लगी.

‘‘शराबी तो मैं भी हूं. देखो, मैं ने अभी भी पी रखी है,’’ कहते हुए मलखान अपना मुंह रेखा के काफी करीब ले आया.

‘‘तुम शराब पी कर भी होश में बातें करते हो, लेकिन उसे तो…’’ रेखा बोली.

‘‘कोई बात नहीं, अगर तुम चाहो तो मेरे साथ रह सकती हो. सच कहूं तो मुझे तुम से प्यार हो गया है.’’ मलखान भावुक हो गया था.

रेखा कुछ बोल नहीं पा रही थी, लेकिन उस ने इशारे में इस की हामी जता दी थी. सिर्फ 2 शब्द बोल पाई थी, ‘‘मैं भी…’’

रेखा जाने लगी, तब मलखान ने उस के चेहरे को दोनों हाथों से हौले से पकड़ कर माथे को चूम लिया, ‘‘मैं तुम्हारे साथ जीनेमरने की कसम खाता हूं.’’

उस के बाद से दोनों ने साथ रहने का मन बना लिया. मलखान के वादे के साथ रेखा ने अपने पति का घर छोड़ दिया. उस के साथ ही बिनब्याहे रहने लगी. काम के सिलसिले में मलखान जहां जाता, रेखा उस के साथ चली जाती.

उन का कोई स्थाई घर नहीं था. वे अस्थाई झोपड़े या फिर टेंट के घर में रहते हुए अपनी जिंदगी गुजारने लगे थे. उन के बीच 12 साल तक तो सब कुछ अच्छा चला, लेकिन बाद में उन के बीच विवाद हो गया था.

मलखान के शराब पीने की लत काफी बढ़ गई थी. वह दिन में ही शराब पी कर काम पर चला जाता था. नशे की हालत में अनापशनाप बकता रहता था. इस कारण उस के साथ काम करने वाले परेशान रहने लगे थे. कोई भी दिन ऐसा नहीं गुजरता था, जब रेखा की मलखान के साथ बहस नहीं होती थी. यही नहीं, वह रेखा को भी अपने साथ बैठा कर शराब पिलाने लगा था. रेखा इस कारण भी परेशान रहने लगी थी.

देर रात तक उन के बीच लड़ाईझगड़े होते रहते थे, गालीगलौज होती थी. गालियां देने में दोनों की जुबान काफी तेज थी. छूटते ही मांबहन की गालियां बकना शुरू कर देते थे. जब मलखान गुस्से में होता, तब यहां तक कह देता, ‘‘जा चली जा अपने पति के पास. तू तो मेरी रखैल है, जब जरूरत होगी बुला लूंगा.’’

यह सुन कर रेखा और भी तिलमिला जाती. वह भी गुस्से में बोल देती, ‘‘हां चली जाऊंगी उसी के पास. लेकिन वहीं क्यों मेरे चाहने वाले और भी मर्द हैं, मेरी जवानी के प्यासे हैं. देख, आज भी मेरे यौवन में कोई कमी आई है क्या?’’

दिसंबर, 2022 की 18 तारीख को शाम ढलते ही मलखान अपने टेंट के घर में शराब पीने लगा था. इस बीच बारबार रेखा को आवाज भी लगा रहा था. वह चिल्लाता हुआ बाजार से कोई नमकीन लाने को बोल रहा था.

मलखान कभी उसे बाजार जा कर सब्जियां लाने को कहता तो कभी उबले अंडे ला कर फ्राई करने का आदेश देता था. रेखा उस की फरमाइशें सुनसुन कर परेशान हो गई थी. गुस्से में उसे गालियां भी दे रही थी.

उन के बीच की ये सारी बातें पड़ोस के दूसरे लोग भी सुन रहे थे, लेकिन कोई उस में दखलंदाजी नहीं कर रहा था. उन्हें मालूम था कि उन का यह नाटक 1-2 घंटे चलेगा और फिर वे शराब के नशे में शांत हो जाएंगे. उन की सोच के मुताबिक ऐसा ही हुआ. रात के एक बजे तक टेंट में सन्नाटा पसर गया था.

सुबह जब उस के पड़ोसी श्याम ने रेखा के टेंट में नजर दौड़ाई तो उस के पैरों तले से जैसे जमीन खिसक गई. उस ने जो कुछ देखा, उसे बयां करने के लिए मुंह से शब्द ही नहीं निकल रहे थे. वह कुछ पल के लिए बेसुध सा खड़ा रहा, फिर अचानक उस के मुंह से चीख निकल गई.

उस की चीख सुन कर दूसरे मजदूर वहां आ गए. उन्होंने भी टेंट का मंजर देखा. वे हैरान हो गए. उन की आंखों के सामने रेखा कंबल में लिपटी खून से सनी पड़ी थी. उस की स्थिति देख कर सभी ने समझ लिया कि वह मर चुकी है. कारण, सिर बुरी तरह से कुचला हुआ था. उस के आसपास खून भी फैला हुआ था, जो सूख कर काला हो चुका था.

किसी ने इस दिल दहला देने वाली वारदात की सूचना सिवनी मालवा थाना पुलिस को दे दी. सोमवार के दिन 19 दिसंबर, 2022 की सुबह के 9 बजे के करीब एसएचओ जितेंद्र यादव इस वारदात की सूचना पा कर घटनास्थल पर जा पहुंचे. उन के साथ पुलिस की पूरी टीम थी. महिला की निर्मम हत्या का मामला था.

मामले की गंभीरता को देखते हुए एसएचओ ने तत्काल घटना से एसडीपीओ आकांक्षा चतुर्वेदी को भी अवगत करवा दिया. वह भी तुरंत घटनास्थल पर पहुंच गईं. जितेंद्र यादव और पुलिस टीम ने घटनास्थल की बारीकी से जांच की.

वहां मौजूद लोगों ने बताया कि मृतका रेखा मलखान के साथ लिवइन रिलेशन में रहती थी. मलखान फरार था. पुलिस को घटनास्थल पर एक बड़ा सा पत्थर मिला, जिस पर खून एवं रजाई के धागे लगे थे. जिस से यह स्पष्ट था कि इसी पत्थर से रेखा की हत्या की गई होगी.

एसएचओ घटना को देखते ही समझ गए थे कि यह वारदात प्यार में अवश्य ही बेवफाई और चरित्र की शंका को ले कर हुई होगी.  उन्होंने आसपास रहने वाले लोगों और मृतक के जानपहचान वालों से पूछताछ की.

उन्हें मालूम हुआ कि वे आपस में लड़तेझगड़ते रहते थे. मृतका की पहचान तो हो गई, लेकिन हत्यारा फरार हो चुका था. पड़ोसियों के मुताबिक वह उस का प्रेमी मलखान भी हो सकता था. हालांकि इस बारे में दावे के साथ कुछ नहीं कहा जा सकता था.

घटनास्थल पर बिखरी हुई चीजों में 2 गिलास और 2 शराब की बोतलें भी थीं. पूछताछ में पड़ोसी श्याम ने पुलिस के रेखा की बहन के बारे में बताया, जो पास में ही रहती थी.

जब उस से भी पूछताछ की गई, तब उस ने बताया कि बीती रात को उस की तबीयत थोड़ी खराब थी, इसलिए वह दवाई खा कर सो गई थी. उसे सुबह को इस घटना की जानकारी मिली.

इस वारदात की तहकीकात के लिए पुलिस ने एफएसएल टीम के साथ डौग स्क्वायड, फिंगरपिं्रट एक्सपर्ट एवं फोटोग्राफर के माध्यम से गहन जांचपड़ताल कर सबूत एकत्र किए. इस के बाद पुलिस ने घटनास्थल की काररवाई पूरी कर लाश पोस्टमार्टम के लिएभेज दी.

मृतका रेखा की बहन ने पुलिस को बताया कि वह मलखान के साथ बिना शादी किए आपसी समझौते से साथ रह रही थी. उन के बीच काफी प्रेम था, लेकिन पता नहीं अचानक क्या हो गया जो उस की ऐसी निर्मम हत्या हो गई. उस ने हत्या का शक मलखान पर जता दिया.

पुलिस के सामने मृतक का पूरा अतीत उस की बहन ने बयां कर दिया था. फिर भी हत्यारे की मंशा और वारदात के पूरे घटनाक्रम का परदाफाश होना बाकी था.

एसडीपीओ आकांक्षा चतुर्वेदी ने बिना समय गंवाए एसएचओ जितेंद्र यादव को मलखान सिंह की तलाश में लगा दिया. उन्होंने पुलिस टीम को उस के मूल निवास के गांव पिपरिया की ओर रवाना कर दिया.

एसडीपीओ को लगातार इस की हर घंटे की अपडेट मिलती रही. इसी बीच मुखबिर की सूचना से पता चला कि मलखान सिंह सररा लांजी गांव की ओर देखा गया है.

उस सूचना के आधार पर पुलिस टीम ने फरार आरोपी को घेराबंदी कर दबोच लिया. उसे थाने ला कर सख्ती से पूछताछ की गई. पूछताछ में वह जल्द ही टूट गया और रेखा का सिर कुचल कर हत्या करने की बात कुबूल कर ली.

इस के बाद उस के खिलाफ थाना सिवनी मालवा में आईपीसी की धारा 302 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली गई.

इस तरह घटना के 24 घंटे के अंदर ही पुलिस टीम को सफलता मिल गई. हत्या का कारण पूछने पर मलखान ने बताया कि वह पिछले कई महीने से छोटीछोटी बातों पर झगड़ने लगी थी. उस की रोजरोज की चिकचिक से वह तंग आ गया था.

इस कारण उस ने शराब भी पहले से अधिक पीनी शुरू कर दी थी. उस ने बताया कि रेखा उसे हमेशा उस के दोस्तों के सामने भी गालियां दे देती थी.

इसी के साथ मलखान ने संदेह जताया कि रेखा ने किसी दूसरे युवक के साथ अवैध संबंध बना लिए थे. हालांकि इस बारे में वह सिर्फ शक ही जता पाया था. इस का कोई सबूत नहीं दे पाया. उस ने अपने बयान में बताया कि उसे यह चिंता होने लगी थी कि रेखा उसे छोड़ कर किसी और के साथ न चली जाए.

घटना के दिन वह शराब के नशे में अपना होश खो बैठा और दरम्यानी रात काफी झगड़ा होने लगा था, जिस से गुस्से में आ कर उस ने पत्थर से सिर पर वार कर दिया था. उस की तुरंत मौत हो जाने के बाद वह घबरा गया था और डर कर मौके से फरार हो गया था.  द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित है