आशिक पति ने ली जान – भाग 3

दामोदर शीतल के पीछे पागल था, यही वजह थी कि एक दिन उस ने ओमप्रकाश से कहा, ‘‘मैं शीतल से शादी करना चाहता हूं.’’

‘‘तुम शीतल से कैसे शादी कर सकते हो. अगर तुम्हें उस से शादी करनी है तो पहले मोहरश्री को छोड़ो. उस के रहते मैं अपनी बेटी की शादी तुम्हारे साथ कतई नहीं करूंगा.’’ इस तरह ओमप्रकाश ने शादी से मना कर दिया.

इस से दामोदर निराश हो गया. उसे पता था कि मोहरश्री से छुटकारा पाना आसान नहीं है. दामोदर शीतल के लिए इस तरह बेचैन था कि मोहरश्री से छुटकारा पाने का आसान रास्ता न देख पाने के बारे में विचार करने लगा. जब उसे कोई राह नहीं सूझी तो उस ने उसे खत्म करने का निर्णय ले लिया. इस के बाद वह मोहरश्री की हत्या के लिए किराए के हत्यारों की तलाश करने लगा. पैसे ले कर हत्या करने वाला कोई नहीं मिला तो वह खुद ही कुछ करने के बारे में सोचने लगा. क्योंकि उसे लगता था कि मोहरश्री उस की खुशियों की राह का रोड़ा है.

संयोग से उसी बीच मोहरश्री खेत में डालने के लिए एक शीशी कीटनाशक ले आई. आधा कीटनाशक तो उस ने खेत में डाल दिया, बाकी घर में ही रख दिया. उस कीटनाशक को देख कर दामोदर ने भयानक योजना बना डाली.  इस के बाद वह मोहरश्री की हर हरकत पर नजर रखने लगा. इस बीच उस ने मोहरश्री के प्रति अपना व्यवहार बदल लिया था.

मोहरश्री सुबह खेतों पर चली जाती तो दोपहर को बच्चों के लिए खाना बनाने आती थी. बच्चों को खाना खिला कर वह फिर खेतों पर चली जाती थी. उस दिन मोहरश्री दोपहर को खेतों से आई तो दामोदर उस के इर्दगिर्द मंडराने लगा. इधर दामोदर का व्यवहार बदल गया था, इसलिए मोहरश्री ने इस बात पर खास ध्यान नहीं दिया.   मोहरश्री को खेतों में काम करना था, इसलिए वह बच्चों को खिला कर अपना खाना ले कर चली गई. वह अपना काम कर रही थी, तभी दामोदर आ गया. उस ने कहा, ‘‘मैं काम कर रहा हूं, तुम जा कर अपना खाना खा लो.’’

मोहरश्री को भूख लगी थी, इसलिए हाथपैर धो कर वह खाना खाने बैठ गई. खाना खातेखाते ही उस की तबीयत बिगड़ने लगी तो उस ने पानी पिया. पानी पीने के बाद उस की तबीयत और बिगड़ गई. उस समय वहां दामोदर के अलावा कोई और नहीं था. उस ने दामोदर को आवाज दी. दामोदर आया तो, लेकिन मदद करने के बजाय वह खड़ा मुसकराता रहा. थोड़ी देर में तड़प कर मोहरश्री ने दम तोड़ दिया.

मोहरश्री मर गई तो दामोदर की समझ में यह नहीं आया कि वह उस की लाश का क्या करे? जब उस की समझ में कुछ नहीं आया तो वह ओमप्रकाश के पास गया.  जब उस ने ओमप्रकाश से मोहरश्री की मौत के बारे में बताया तो वह घबरा गया. उस ने कहा, ‘‘तुम ने यह क्या कर डाला, क्यों मार डाला उसे? मैं इस मामले में कुछ नहीं जानता, तुम्हें जो करना है, करो.’’

दामोदर लौटा और मोहरश्री की लाश को घसीट कर मकाई के खेत में डाल दिया. वहां से वह घर आया तो बच्चों ने मां के बारे में पूछा. उस ने कहा, ‘‘तुम्हारी मम्मी थोड़ी देर में आएंगी. तब तक तुम लोग जा कर निमंत्रण खा आओ.’’

बच्चे निमंत्रण खाने चले गए. निमंत्रण खा कर लौटे, तब भी मां नहीं आई थी. कृष्णा को चिंता हुई तो वह मामा चंद्रपाल के पास पहुंचा और उसे सारी बात बताई. इस बीच दामोदर गायब हो गया. उस का इस तरह गायब हो जाना, शक पैदा करने लगा. चंद्रपाल घर तथा गांव वालों के साथ मोहरश्री की तलाश में निकल पड़ा.

सभी खेतों पर पहुंचे तो वहां उन्हें ओमप्रकाश और उस की पत्नी गुड्डी मिली. उन से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि मोहरश्री की तबीयत खराब हो गई थी, दामोदर उसे एटा ले गया है. इस के बाद सभी अपने घर लौट आए, जब दामोदर घर नहीं आया तो सब को चिंता हुई. सभी विचार कर रहे थे कि अब क्या किया जाए, तभी मक्की के खेत में मोहरश्री की लाश पड़ी होने की जानकारी मिली.

पुलिस को सूचना देने के साथ मोहरश्री के घर वालों के साथ पूरा गांव वहां पहुंच गया, जहां लाश पड़ी थी. सूचना मिलने के बाद कोतवाली (देहात) प्रभारी पदम सिंह सिपाहियों के साथ वहां पहुंच गए. लाश और घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद जरूरी कारर्रवाई कर के उन्होंने लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी.

कोतवाली प्रभारी द्वारा की गई पूछताछ में पता चला कि दामोदर के संबंध नगला गोकुल के रहने वाली ओमप्रकाश की बेटी शीतल से थे. इस के बाद उन्हें समझते देर नहीं कि यह हत्या दामोदर ने की है. उन्होंने चंद्रपाल की ओर से मोहरश्री की हत्या का मुकदमा दामोदर के खिलाफ दर्ज कर के उस की तलाश शुरू कर दी. पुलिस तो उस की तलाश कर ही रही थी, गांव वाले भी उस के पीछे लगे थे.

घटना के 4 दिनों बाद गांव वालों ने कासगंज के थाना पतरे के एक गांव के एक बाग से दामोदर को पकड़ लिया और पुलिस के हवाले कर दिया.  दामोदर ने पहले तो हत्या से इनकार किया लेकिन जब उस के साथ सख्ती की गई तो वह टूट गया. शीतल के साथ अपने संबंधों को स्वीकार करते हुए उस ने बताया कि मोहरश्री उस की खुशियों की राह में रोड़ा बन रही थी, इसलिए उस ने उस के खाने में कीटनाशक मिला कर उसे मार डाला था. पूछताछ के बाद पुलिस ने कीटनाशक की शीशी बरामद कर उसे अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

50 बोटियों में बंटी झारखंड की रुबिका

झारखंड में आदिवासी बहुल जिला साहिबगंज के बोरियो थाना क्षेत्र  में एक बेला टोला है. देश की राजधानी से 1,384 किलोमीटर दूर यहां के अदिवासी समुदाय के लोग बेहद खुश थे कि उन के समाज की एक महिला अब भारत की राष्ट्रपति हैं. स्कूलकालेज जाने वाली छात्राओं में उत्साह और उमंग का माहौल बना हुआ था. आए दिन वे अपने बेहतर भविष्य की चर्चा करती थीं.

उन्हीं में एक 22 साल की युवती रूबिका पहाड़न थी. वह ईसाई थी, लेकिन बोरियो थाना क्षेत्र के ही फाजिल मोमिन टोला में अपनी मरजी से मुसलिम समाज के दिलदार अंसारी से निकाह कर अपनी दुनिया में खोई हुई थी. खुश थी. रूबिका एक संयुक्त परिवार की बहू थी. उस के गरीब मातापिता और भाईबहन भी खुश थे कि उस का एक बड़े परिवार से नाता जुड़ गया है.

वे बेहद कमजोर जनजातीय समूह पार्टिक्युलरली वल्नरेबल ट्राइबल ग्रुप यानी पीवीटीजी से आते हैं. हालांकि रूबिका मोहब्बत के जाल में फंस कर जिस परिवार की बहू बनी थी, वह भी एक साधारण मुसलिम परिवार ही था, जिन का पुश्तैनी काम कपड़ा बुनने का था, जो सदियों से होता आया है.

किंतु अचानक उन की खुशियों को तब ग्रहण लग गया, जब 17 दिसंबर 2022 की शाम को रूबिका पहाड़न का टुकड़ों में कटा हुआ शव मोमिन टोला स्थित एक पुराने और बंद पड़े मकान में मिला. उस की लाश को दरजनों टुकड़ों में काटा गया था. लाश के टुकड़ों को देख कर कोई भी हत्यारों की हैवानियत का अंदाजा सहज ही लगा सकता था.

रूबिका की बोटीबोटी करने वालों ने हैवानियत की सारी हदें पार कर दी थीं. उस के शव की पहचान न हो सके, इस के लिए आरोपियों ने उस की खाल तक उतार दी थी.

शव के बरामद हुए 50 टुकड़ों में दाएं पैर के अंगूठे, कपड़े आदि से ही उस की पहचान हुई. शव के टुकड़े इलैक्ट्रिक कटर जैसे किसी औजार से किए गए जान पड़ते थे. रूबिका का सिर 2 हफ्ते बाद मोमिन टोला के निकट तालाब के पास से बरामद हुआ था. पुलिस ने सभी टुकड़ों की डीएनए जांच के लिए रूबिका की मां और पिता के सैंपल ले लिए थे.

रूबिका की बोटियों में बंटी लाश जब ताबूत में भर कर उस के मातापिता के घर लाई गई थी, तब हर कोई फफकफफक कर रो पड़ा था. मां विलाप करती हुई बोले जा रही थी कि आखिरी विदाई के पहले कोई बेटी का चेहरा तो दिखा दो. पर दरिंदों ने उस का चेहरा तो क्या, शरीर का कोई भी अंग साबूत नहीं छोड़ा था.

रूबिका की लाश के अवशेष को पैतृक गांव के पास गोंडा पहाड़ में गम और गुस्से के बीच दफना दिया गया था. अंतिम संस्कार के वक्त साहिबगंज के उपायुक्त रामनिवास यादव, एसपी अनुरंजन किस्पोट्टा, प्रखंड विकास पदाधिकारी टूटू दिलीप सहित कई अफसर मौजूद थे.

उसकी हत्या का आरोप पति दिलदार अंसारी और उस के परिवार के लोगों पर लगाया गया. पुलिस ने दिलदार अंसारी, उस के पिता मोहम्मद मुस्तकीम अंसारी, मां मरियम खातून, पहली पत्नी गुलेरा अंसारी, भाई अमीर अंसारी, महताब अंसारी, बहन सरेजा खातून सहित 10 आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. इस वारदात का मास्टरमाइंड दिलदार का मामा मोइनुल अंसारी बताया गया, जो पुलिस की गिरफ्त से बाहर था.

बोरिया पुलिस ने भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या), 201 (किसी अपराध के सबूतों को गायब करना), 120 बी (आपराधिक साजिश) और 34 सामान्य इरादे को आगे बढ़ाने में कई व्यक्तियों द्वारा किए गए आपराधिक कृत्य) के तहत गिरफ्तारियां की थीं.

बेला टोला गांव से करीब 12 किलोमीटर दूर गोदा पहाड़ी के एक छोटे से गांव में रूबिका का परिवार रहता है. वहां के कम से कम 30 अन्य परिवार उस के लिए इंसाफ और मुआवजे की मांग कर रहे थे. वे आक्रोश में थे, क्योंकि इस से पहले अगस्त 2022 में भी दुमका जिले के एक मुसलिम युवक द्वारा प्यार के प्रस्ताव को हिंदू छात्रा द्वारा ठुकराने पर कथित तौर पर उसे आग के हवाले कर दिया गया था.

बेला टोला से गोदा पहाड़ी पर स्थित रूबिका को घर तक जाने में 3 किलोमीटर तक चट्टानी पहाड़ी इलाके की चढ़ाई चढ़नी पड़ती थी. यह सामान्य रास्ता नहीं है. उस पहाड़ी से नीचे 12 किलोमीटर दूर बोरिया बाजार है. यह इलाका गुलजार रहता है. यहां लोग जरूरत का सामान खरीदने आते हैं. यह नई उम्र के लड़के और लड़कियों के लिए यह मिलनेजुलने का एक अड्डा भी है.

इस जगह पर ज्यादातर लड़कियां दूसरे लड़कों से मिलती हैं और फिर उन को दिल दे बैठती हैं. नईनई प्रेम कहानियां यहीं पनपती हैं. उन में कुछ सफल हो जाती हैं तो कुछ मामलों में प्रेमी युगल को असफलता भी मिलती है.

बीते साल एक दिन रूबिका अपने लिए कुछ जरूरी सामान खरीदने के लिए उसी बाजार में गई थी. वह जब कपड़े की दुकान पर थी, तब वहां उसके अलावा और कोई नहीं था. अपने लिए एक समीजसलवार का कपड़ा पसंद कर रही थी. दुकानदार कई सेट दिखा चुका था. उस के रंगों को ले कर रूबिका दुविधा में थी.

‘‘भैया, इस में कुछ समझ नहीं आ रहा, पन्नी में है न.’’ रूबिका असमंजस से बोली.

‘‘तो मैं तुम्हें पन्नी खोल कर दिखाऊं? …और नहीं पसंद आया तो उसे दोबारा कौन पैक करेगा? दिखता नहीं ऊपर दीपिका का फोटो लगा है,’’ दुकानदार झिड़कते हुए बोला.

‘‘अरे भैया, फोटो से क्या होता है? कपड़ा भी देखना है न,’’ रूबिका ने जिरह की.

‘‘नहींनहीं, इस का पैक नहीं खोलूंगा… लेना है तो सामने टंगा है उस में से चुन लो.’’

‘‘वो पसंद नहीं आ रहा है, इसी को खोल कर दिखा दो न.’’ रूबिका दुकानदार से मिन्नत करने लगी, लेकिन दुकानदार उस के सामने रखे सभी पैकेट को समेटने लगा. तभी एक युवक वहां आया और उन में से एक पैकेट खोलने लगा.

‘‘अरे, यह क्या करता है भाई, तू कौन है? इसे बगैर पूछे क्यों खोल रहा है?’’ दुकानदार उस से पैकेट झपटता हुआ बोला.

‘‘मैं भी इसी की तरह ग्राहक हूं. बगैर पन्नी से कपड़ा बाहर निकाले कैसे खरीदूंगा, भीतर खराब निकला तो?’’ बोलते हुए युवक ने दुकानदार से पैकट ले कर फटाफट खोल लिया और कपड़े को झट फैला दिया. पैकेट खोलने का तरीका देखती हुई पास ही सकुचाई हुई रूबिका भी अपनी पसंद के कपड़े का पैकेट खोलने लगी.

रूबिका को पैकेट खोलने से दुकानदार रोक नहीं पाया, कारण उस में युवक ने उस की मदद कर दी. दोनों अपनीअपनी पसंद के सलवारसूट पसंद करने लगे. उन्होंने बारीबारी से 3 पैकेट खोल दिए. रूबिका जब कपड़े को अपने कंधे पर रख कर देखने लगी, तब युवक सामने टंगे अंडरगारमेंट्स की ओर इशारा करता हुआ बोला, ‘‘अरे भाई, वह हरे रंग वाला दिखाना. उस में पूरा सेट है क्या?’’

‘‘अब देख उसे मत खोल देना. यहां लेडीज ग्राहक हैं.’’

‘‘अच्छा, चलो ठीक है.’’ युवक बोला.

‘‘तुम्हें अभी तक कोई कपड़ा पसंद नहीं आया?’’ दुकानदार ने रूबिका को टोका.

‘‘अरे यह नीले रंग वाला तुम ले लो, कपड़ा अच्छा है. रंग भी पक्का है.’’ युवक बोला.

‘‘हांहां, यही ले लो. 10 रुपए कम लगा दूंगा.’’ दुकानदार बोला.

‘‘ठीक है दे दो.’’ रूबिका बोली और पर्स में से पैसे गिनने लगी और पूरे छुट्टे पैसे मिला कर उसे दे दिए. लेकिन दुकानदार ने उस के एक रुपए के छोटे सिक्के लेने से मना कर दिया. कहा, ‘‘अरे ये छोटे वाले मैं नहीं लूंगा, चलते नहीं हैं.’’

इस बात पर युवक दुकानदार से बहस करने लगा, ‘‘क्यों नहीं चलते, यह भी तो सरकार के हैं.’’

खैर, किसी तरह से सिक्के का मामला निपटा. उस युवक ने भी कुछ कपड़े खरीदे.

रूबिका जब कपड़े ले कर जाने लगी, तब युवक ने उस से उस के गांव का नाम पूछा. रूबिका द्वारा गांव का नाम बताते ही वह चहक उठा, ‘‘अरे मैं भी तो वहीं पास के बेल टोला में रहता हूं. मुझे कभी नहीं देखा?’’

‘‘कैसे देखती, तुम्हारे आनेजाने का रास्ता अलग है. हमें पहाड़ी चढ़नी होती है.’’

‘‘अच्छा चलो, मेरे पास बाइक है. तुम्हें छोड़ता हुआ अपने घर चला जाऊंगा.’’ युवक बोला, ‘‘वैसे तुम्हारा नाम क्या है?’’

‘‘रूबिका.’’

‘‘ईसाई हो?’’

‘‘नहीं आदिवासी. चर्च जाती हूं. वहीं पढ़ती हूं.’’ रूबिका बोली.

‘‘तुम तो हाजिरजवाब हो. मेरा नाम दिलदार है और दिलदार हूं भी. किसी की समस्या में टांग अड़ा देता हूं. मदद करना मेरे खून में है. जैसे आज मैं ने की तुम्हारे साथ कपड़े खरीदने में.’’ युवक बोला.

इस तरह से दिलदार और रूबिका की पहली जानपहचान जल्द ही दोस्ती में बदल गई. वे अकसर मिलने लगे. दिलदार उस पर पैसे भी खर्च भी करने लगा. उन के बीच कब प्यार हो गया, उन्हें भी पता नहीं चला.

लेकिन दिलदार और रूबिका के बीच का रिश्ता बदकिस्मती भरा था. कारण, वह न केवल शादीशुदा था, बल्कि एक बेटे का बाप भी था. उन के बीच 15 साल की उम्र का भी अंतर था. वैसे रूबिका की भी 5 साल पहले शादी हो चुकी थी और उस की भी एक बेटी थी.

जब रूबिका ने अपने मातापिता और बड़ी बहन शीला से दिलदार से शादी करने का जिक्र किया, तब घर में हंगामा खड़ा हो गया. ऐसा ही हाल दिलदार के घर में हुआ. उस की मां बिफरती हुई बोली, ‘‘अपनी जात में लड़की मर गई है, जो आदिवासी से शादी करेगा. और पहली बीवी में क्या कमी है?’’

दोनों के घर वालों को किसी भी सूरत में उन का रिश्ता पसंद नहीं था. वे उन के घोर विरोधी बन गए थे. जब रूबिका ने अपने परिवार का विरोध जताते हुए अपना फैसला किया कि वह अपने गांव का घर छोड़ कर बेल टोला में रहने चली जाएगी, तब परिवार वाले उस की बात मानने को तैयार हो गया.

उधर दिलदार ने भी अपने परिवार को धमकी दी कि उस की रूबिका से शादी नहीं हुई तो वह बीवीबच्चों को छोड़ कर दूसरे किसी बड़े शहर में चला जाएगा.

और फिर उन की जिद के आगे दोनों के घर वालों को झुकना पड़ा. दिलदार के साथ रूबिका का नया रिश्ता बन गया. वह अपनी ससुराल चली गई, लेकिन परिवार में उसे चाहने वाला दिलदार के अलावा और कोई नहीं था. जब कभी ससुराल में कोई कुछ कहता, तब वह वही कपड़े पहन लेती, जो दिलदार ने पहली मुलाकात में पसंद किए थे.

दिलदार भी उसे नीली कुरती में देख कर समझ जाता था कि घर के किसी सदस्य ने जरूर उस के दिल को ठेस पहुंचाई है.

जल्द ही दिलदार के भरेपूरे परिवार में रूबिका एकदम अकेली पड़ गई थी. यहां तक कि उसे ले कर अंसारी समुदाय के लोग भी उस पर दबेछिपे फब्तियां कस देते थे कि वह उस के समाज की नहीं है…हिंदू भी नहीं है, ईसाई है. दिलदार को छोड़ कर सभी ने उन के रिश्ते को मानने से इनकार कर दिया था.

नतीजा यह हुआ कि दिलदार ने रूबिका को मातापिता और पत्नी के साथ अपने घर में नहीं रहने दिया. इस के बजाय, उस ने उसे उसी गांव में एक कमरे की एक छोटी सी झोपड़ी में रख लिया.

इसे ले कर रूबिका के घर वाले नाखुश थे कि दिलदार उन की बेटी की इज्जत नहीं कर रहा. दिसंबर, 2022 की शुरुआत में उन्होंने बोरिया पुलिस से संपर्क करते हुए हस्तक्षेप की मांग की थी.

पुलिस ने दिलदार और उस के घर वालों पर दबाव बनाया और उन के बीच समझौता करवा दिया.

उसके बाद दिलदार रूबिका को अपने घर ले गया. इस के कुछ ही दिन बाद पुलिस ने उस के शरीर के टुकड़े बरामद किए.

रूबिका के घर वालों को सब से पहले दिलदार ने ही इस बारे में सूचना दी थी कि वह गायब है. उस की इस सूचना के आधार पर ही पुलिस ने तलाशी अभियान शुरू किया था. आखिरकार 17 दिसंबर, 2022 को एक गुप्त सूचना मिली. फिर उस ने एक आंगनबाड़ी के पीछे से एक अंग बरामद किया. इस की पहचान दिलदार ने ही की.

रूबिका की आखिरी बार अपनी बहन से 16 दिसंबर, 2022 की सुबह बात हुई थी. उन्होंने अपनी मां की तबीयत के बारे में विस्तार से बातें की थीं. रूबिका की लाश का पहला टुकड़ा मिलने के बाद 48 घंटे से अधिक समय तक पहाड़ी इलाकों में तलाशी का अभियान चलाया गया. करीब 100 मीटर दूर स्थित उस मकान में ज्यादातर टुकड़े मिले, जो पिछले 2-3 साल से खाली पड़ा था.

लाश की शिनाख्त की जाने लगी. उसी रोज सिर को छोड़ कर शरीर के सभी हिस्सों को बरामद कर लिया गया. रूबिका की बहन शीला पहाड़न ने तुरंत पहचान लिया कि जबड़े के हिस्से, अंग और बड़े करीने से नेल पौलिश लगे हाथ के नाखून उस के ही थे. यहां तक कि वही नीली कुरती देख कर शीला ने रूबिका की लाश होने की बात स्वीकार कर ली.

पहचान से बचने के लिए रूबिका के शरीर को बुरी तरह क्षतविक्षत कर दिया गया था. एक पुलिस अधिकारी के अनुसार बाद में सिर मिला जरूर, लेकिन उस का चेहरा कुचला हुआ था. केवल जबड़ा और बालों का एक गुच्छा पाया गया.

लगभग 4 दरजन टुकड़ों में मिली रूबिका की लाश देख कर प्रदेश के लोगों में गुस्से का उफान आ गया. लोग विरोध प्रदर्शन कर आरोपी को फांसी की सजा दिए जाने की मांग कर रहे थे. लोगों का आक्रोश देख कर पुलिसप्रशासन के भी हाथपांव फूल गए थे.

कथा लिखे जाने तक पुलिस ने दिलदार समेत उस के परिवार के 10 सदस्यों को गिरफ्तार तो कर लिया, लेकिन इस हत्या में उन की भूमिका पर कोई विशेष बात पता नहीं चल पाई थी.

दिलदार ने रूबिका के परिवार को उस के लापता होने की सूचना दी थी. उस ने पूछताछ में पुलिस को बताया कि जिस दिन रूबिका की हत्या हुई, उस दिन वह काम के सिलसिले में पश्चिम बंगाल में था.

इस वारदात की तहकीकात में पुलिस ने दिलदार की मां पर रूबिका की हत्या की साजिश रचने और उस के मामा मोइनुल अंसारी द्वारा उस के शरीर के टुकड़ेटुकड़े करने का संदेह जताया है.

मामले में दर्ज रिपोर्ट के अनुसार, दिलदार की मां मरियम, रूबिका को बोरिया पुलिस थाने से 500 मीटर दूर स्थित फाजिल बस्ती में अपने भाई मोइनुल अंसारी के घर ले गई थी. फिर वहीं पर उस की हत्या की गई थी. मरियम ने कथित तौर पर लाश को ठिकाने लगाने के लिए मोइनुल को 20 हजार रुपए दिए थे.

पुलिस ने गिरफ्तार किए गए सभी आरोपियों से पूछताछ करने के बाद उन्हें जेल भेज दिया.     द्य

आशिकी में दिखी आस

बिहार में भोजपुर जिले की पुलिस ने 14 नवंबर, 2022 की देर रात 2 बजे के करीब सोहरा गांव से एक लाश बरामद की थी. लाश एक युवक की थी, जिस के शरीर पर चोट के कई निशान थे.

सुबह होने पर उस की पहचान 25 वर्षीय चंदन तिवारी के रूप में हुई, जो उस गांव का रहने वाला नहीं था. उस के बारे में पुलिस द्वारा गांव वालों से पूछताछ करने पर पर मालूम हुआ कि वह करीब 35 किलोमीटर दूर गांव धमवल का रहने वाला था, लेकिन इन दिनों वह बनारस में रह रहा था.

उस की लाश जहां पाई गई थी, उस के पास का एक घर में धमवल गांव की रहने वाली रूबी देवी की ससुराल थी. उस की शादी राजू पासवान से साल 2018 में हुई थी.

रूबी गुलाब पासवान की बेटी है. मृतक चंदन की बाइक रूबी की ससुराल के पास ही झाड़ी से बरामद की गई थी. फिर क्या था, संदेह के आधार पर पुलिस ने रूबी देवी और उस की ससुराल वालों को पूछताछ के लिए कृष्णागढ़ थाने ले आई.

घटना की जानकारी एसएचओ अरविंद कुमार के नेतृत्व में जुटाई गई. मृतक के शरीर पर जख्म के कई निशान पाए गए. मामला पूरी तरह से हत्या का था, इसलिए पुलिस ने लाश फोरैंसिक जांच कराने के बाद पोस्टमार्टम के लिए जिला मुख्यालय आरा के अस्पताल में भेज दी. साथ ही चंदन तिवारी के घर वालों को भी थाने बुला कर जांच का सिलसिला आगे बढ़ाया.

उन से पूछताछ में पता चला कि चंदन तिवारी उत्तर प्रदेश के बनारस शहर में एक आचार्य के साथ रह कर पूजापाठ का काम करता था. वहीं पढ़ाई भी कर रहा था. परिवार में चंदन अपने भाई दिलीप, अंजनी और 2 बहनों से छोटा था. गांव की रहने वाली रूबी से उस की बचपन से जानपहचान थी. वह साधारण कद और सामान्य रूपरंग की युवती थी.

चंदन के घर वालों के मुताबिक वह बनारस से 14 नवंबर, 2022 को जन्मदिन में शामिल होने के लिए बाइक से निकला था. उसे सोहरा गांव के दोस्त ने बुलाया था. दरअसल, रूबी के पति राजू पासवान से उस की पुरानी जानपहचान थी. रात के अंधेरे में वह रूबी की ससुराल कैसे पहुंचा, इस बारे में पुलिस ने रूबी से पूछताछ की.

रूबी ने भी यह स्वीकार कर लिया कि उस की चंदन से पुरानी जानपहचान ही नहीं थी, बल्कि वह उस का पूर्व प्रेमी था. इसी के साथ उस ने बताया कि अब उस के संबंध खत्म हो चुके हैं. शादी के बाद से वह उस से कभी भी मिलना नहीं चाहती थी. वही उस से मिलने को बेचैन रहता था. घटना के दिन भी वह उस से मिलने आया था.

चंदन और रूबी अलगअलग जाति के थे. उन के बीच सामाजिक तो क्या पारिवारिक मेल तक नहीं बैठने वाला था. इस कारण वे एकदूसरे से प्रेम करने के बावजूद शादी करने के लिए परिजनों से बात तक नहीं कर पाए, किंतु उन के बीच बचपन में पनपा प्रेम कितना गहरा बना हुआ था, इस बारे में रूबी कुछ भी बताना नहीं चाहती थी. जबकि लोगों से पता चला कि रूबी शादी के बाद भी पुराने प्रेम को नहीं भूल पाई थी.

सख्ती से पूछताछ करने के बाद उस ने चंदन की हत्या करने की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार है—

बात साल 2018 के मई महीने की है. धमवल गांव में रूबी के घर बारात आने वाली थी. शादी से एक सप्ताह पहले बाजार से लौट रही रूबी को गांव के युवक चंदन ने बीच राह रोक लिया. रूबी तपाक से बोल पड़ी, ‘‘अब हमारी शादी होने वाली है, ऐसे अकेले में मत रोकाटोका करो…’’

‘‘क्यों न रोकूंटोकूं… तुम्हारी शादी होने वाली है तो अब मैं गैर बन गया?’’ चंदन ने भी उसी लहजे में जवाब दिया.

‘‘बात समझो. हमारी और तुम्हारी जाति अलग है और हम गरीब परिवार के हैं, जरा सी बात पर हमारी इज्जत पर बन आती है,’’ रूबी बोली.

‘‘…और हमारी इज्जत नहीं है क्या?’’ चंदन बोला.

‘‘तुम्हारा तो हमारे से अधिक मानसम्मान है समाज में. तुम्हें हम से अच्छी और एक से बढ़ कर एक लड़की मिल जाएगी,’’ रूबी समझाने की कोशिश करने लगी.

‘‘कुछ भी हो, हम तुम्हें अपने दिल से नहीं निकाल सकते,’’ कहते हुए चंदन ने रूबी का हाथ पकड़ लिया, जबकि रूबी एक झटके के साथ हाथ छुड़ा कर जाने लगी, ‘‘मेरा हाथ मत पकड़ो, तुम्हारे साथ मेरा कोई मेल नहीं है, समझे?’’

‘‘कुछ भी हो, मैं तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ने वाला…’’ चंदन तैश में बोला.

‘‘देखो, शादी के दिन कोई हरकत नहीं कर बैठना,’’ रूबी नाराजगी दिखाती हुई बोली.

‘‘अरे, उस रोज तो देखना तमाशा होगा… तमाशा. पूरी दुनिया देखेगी हमारातुम्हारा तमाशा,’’ कहते हुए चंदन ने अपनी बाइक स्टार्ट कर ली.

‘‘दारू पी कर तो आना ही मत. दारू बंद है. हंगामा करोगे तुम और पुलिस पकड़ेगी हमारे घर वालों को,’’ रूबी डांटती हुई बोली.

कुछ पल बाद भावुक हो कर चंदन बोला, ‘‘मैं तुम्हें एक बार अपनी बाहों में पाना चाहता हूं.’’

रूबी उस की बात सुन कर स्तब्ध रह गई. उस की मंशा सुन कर डर गई. सोच में पड़ गई इस बारे में किस से बात करे? किसी को उस की बात बताए या नहीं?

शादी के ठीक एक दिन पहले उसे मालूम हुआ कि चंदन बनारस चला गया है. शादीब्याह का लगन तेज होने के कारण उसे बनारस के एक आचार्य ने अपने साथ रख कर पूजापाठ और विवाह आदि का विधिविधान सिखाने के लिए बुलाया था.

आचार्य उस के पिता दयाशंकर तिवारी के जानने वाले थे, इसलिए उन्होंने चंदन को उन के पास भेज दिया था. रूबी ने यह जान कर राहत की सांस ली. वह निश्चिंत हो गई कि उस की धमकी के अनुसार शादी के दिन उस की तरफ से कोई हंगामा नहीं होगा.

जैसा रूबी ने सोचा था वही हुआ. उस की शादी शांति से संपन्न हो गई और वह अपनी ससुराल आ कर रहने लगी. एक साल के दरम्यान उस का मायके भी आनजाना हुआ, लेकिन चंदन से उस की मुलाकात नहीं हुई. हां, सहेलियों से मालूम हुआ कि वह गांव कभीकभार आताजाता रहता है.

किंतु यह क्या मायके से विदा होने की सुबहसुबह ही चंदन उस के दरवाजे पर आ धमका था. एकदम शांत था. उस ने पति राजू पासवान से मुलाकात की. उस का हालचाल लिया. दोनों ने दोस्ती का हाथ मिलाया. एकदूसरे का मोबाइल नंबर लिया और चला गया.

दिन, सप्ताह और महीने साल बीतते गए. इसी में कोरोना काल भी आया. चंदन अपने कामकाज में व्यस्त हो गया, लेकिन उस के जेहन में रूबी बसी रही.

उस का कारण था कि वह जब भी अपने गांव आता, रास्ते में पहले रूबी की ससुराल का गांव आता था. वहां से गुजरते हुए उस का प्रेम ताजा हो जाता था. अपने गांव आतेआते उस का पुराना प्रेम लहलहा उठता था, लेकिन रूबी के ससुराल में होने की जानकारी मिलते ही बेचैन हो जाता था.

एक दिन चंदन जब अपने गांव में था, तब उसे मालूम हुआ कि रूबी को उस का पति सताता है. वह शराब के नशे में उस की पिटाई तक कर देता है. यह जानकारी झूठी भी हो सकती थी, लेकिन चंदन इस की पुष्टि रूबी से मिल कर करना चाहता था. उस के पास रूबी का मोबाइल नंबर भी नहीं था, जो उस से बात कर पाता. इस कारण वह मन मसोस कर रह गया था.

उन्हीं दिनों उस का एक शादी समारोह में जाना हुआ. वहीं रूबी का पति राजू पासवान भी आया हुआ था. उस ने शराब पी रखी थी. लड़खड़ाता हुआ एक कुरसी पर बैठ गया. चंदन उसे नशे में धुत देख कर समझ गया कि उस ने रूबी के सताने के बारे में जो कुछ सुना है, वह गलत नहीं हो सकता. पहले तो चंदन ने प्यार से पूछा, ‘‘इस प्रोग्राम में रूबी भी आई है क्या?’’

‘‘तुम्हें रूबी से क्या मतलब? अच्छा उस की याद सता रही है, अब भूल जाओ अपनी आशिकी को वरना…’’ राजू लड़खड़ाती आवाज में बोला.

चंदन समझ गया कि राजू को उस के और रूबी के प्रेम संबंधों के बारे में मालूम हो गया है. कुछ देर वह शांत बना रहा, फिर बोला, ‘‘तुम ने शराब पी है और नशे में धमकी दे रहा है. मुझे सब पता है, तुम रूबी को मारतेपीटते भी हो…’’

‘‘मैं उसे मारूं या पीटूं, कुछ भी करूं उस के साथ, तुम कौन होते हो बीच में टांग अड़ाने वाले? कल का यार था उस का, अब नहीं है. समझा रे पंडित, हरामजादा आशिक कहीं का.’’ राजू नशे में धुत था और वह चंदन की हर बात का जवाब गालियों से देने लगा था.

चंदन को भी गुस्सा आ गया, उस ने भी गुस्से में कहा, ‘‘हां, हूं मैं रूबी का प्रेमी, लेकिन तुम्हारी तरह हरामी की औलाद नहीं जो बीवी की इज्जत न करूं. अगर तूने उस के साथ आगे मारपीट की, तब मैं तुझे गोली मार दूंगा.’’

उन के बीच बात इतनी अधिक बढ़ गई कि दोनों हाथापाई पर उतर आए. कहीं से चंदन के हाथ रसोई में सब्जी काटने वाला चाकू हाथ लग गया. उस ने गुस्से में राजू पर वार कर दिया.

चाकू मजबूत था और वार तेज, नतीजा राजू का हाथ जख्मी हो गया. उन के झगड़े को शांत करने के लिए पुलिस को आना पड़ा. राजू को नशे की हालत में पा कर उसे थाने ले आई. उस पर शराबबंदी के नियम के मुताबिक मुकदमा दर्ज कर लिया गया, जबकि चंदन पर भी हथियार से वार कर उसे घायल करने की धाराएं लगा दी गईं.

किसी तरह से उन के घर वालों ने थाने में उन के बीच सुलह करवा दी. पुलिस ने भी उन के बीच समझौता करवा कर मामले को वहीं खत्म कर दिया. किंतु राजू और चंदन के बीच एक दुश्मनी की तलवार खिंच गई थी.

अगले दिन ही राजू ससुराल से रूबी को ले कर अपने गांव लौट गया था. उन के जाते समय चंदन ने दोनों से मुलाकात की थी. राजू से उस रोज की घटना पर एक बार फिर सौरी बोला और हाथ मिलाया. रूबी से कुछ नहीं बोला.

रूबी के ससुराल जाने के बाद चंदन ने उस से फोन पर बात की और उसे राजू के साथ हुई मारपीट की घटना के बारे में विस्तार से बताया. रूबी ने सिर्फ इतना कहा कि वह उसे उस के हाल पर छोड़ दे. वह एक बच्चे की मां है.

उस के बाद ही पहली बार मार्च 2020 में कोरोना का लौकडाउन लग गया. चंदन की पढ़ाई से ले कर पूजापाठ का काम भी ठप हो गया. वह बनारस से गांव आ गया. वहां रूबी की याद सताने लगीं, तब वह दोबारा बनारस चला गया. बीच में रूबी से फोन पर बात कर लेता था.

रूबी उस से इसलिए भी बात कर लेती थी क्योंकि वह उस के मायके का था. उसे चंदन के जरिए गांव में उस के परिवार वालों का भी हालचाल मालूम हो जाता था.

बीते साल 2022 के सितंबर में रूबी को चंदन के जरिए ही मालूम हुआ कि मायके में उस के परिवार और चंदन के परिवार के बीच जमीन को ले कर झगड़ा हो गया. मामला थानापुलिस और कोर्टकचहरी तक जा पहुंचा है. रूबी यह जान कर चिंतित हो गई.

उसे समझाते हुए चंदन बोला कि वह उस बारे में मिल कर ही समझा सकता है कि विवाद में दोषी कौन है? झगड़ा किस बात की है? चंदन का कहना था कि दोनों परिवार बेवजह झगड़ रहे हैं. गांव में पंचायत कर मामला आपस में सुलझाया जा सकता है. इसी के साथ उस ने बताया कि छठ के मौके पर वह गांव जाएगा, तब इस मामले को सुलझा देगा.

चंदन 14 नवंबर की शाम को बाइक से अपने गांव की ओर निकला था. उस ने अपने दादा को फोन पर ही बताया था कि गांव में पहले अपने कुछ दोस्तों के यहां जन्मदिन की पार्टी में शमिल होगा.

लेकिन रास्ते में उसे न जाने क्या सूझी कि उस ने पहले रूबी से मिलने की सोची. पहले उस ने फोन पर उस से बात की. मालूम हुआ कि घर के लोग किसी शादी समारोह में गए हैं. चंदन अपने गांव जाने से पहले रूबी की ससुराल जा पहुंचा.

उस रोज चंदन के हावभाव से ऐसा लग रहा था, मानो उस का दिमाग तेजी से चल रहा हो. कई बातें एक साथ उमड़घुमड़ रही हों. अपनी बाइक उस ने रूबी की ससुराल के पास झाडि़यों में छिपा दी थी.

लोगों की नजरों से छिपताछिपाता हुआ चंदन जब वह अचानक रूबी की ससुराल पहुंचा तो वह चौंक पड़ी. उस ने झट से उस का हाथ खींच कर कमरे में कर लिया. फिर किवाड़ों को भिड़ा कर बोली, ‘‘यहां क्यों आए हो, कोई देख लेगा तो अनर्थ हो जाएगा. तुम अभी के अभी यहां से चले जाओ.’’

‘‘अभी तुरंत कैसे चला जाऊं? कम से कम एक गिलास पानी तो पिला दो, प्यास लगी है,’’ चंदन बोला.

‘‘लाती हूं.’’ बोलती हुई रूबी नीचे आंगन के पास रसोई में गई. तभी बगल के कमरे से उस की ददिया सास की आवाज आई, ‘‘ऊपर कौन गया है, लगता है चोर है.’’

‘‘दादी कोई नहीं, मैं ही तो हूं.’’ रूबी बोली.

‘‘बाहर वाला दरवाजा ठीक से बंद कर ले.’’

‘‘जी अच्छा,’’ रूबी बोली और पानी का गिलास ले कर अपने कमरे में जाने के लिए सीढि़यां चढ़ने लगी. 3-4 सीढ़ी ही चढ़ पाई थी कि उस के ससुर की आवाज आई, ‘‘बहू बाहर का दरवाजा ऐसे खुला छोड़ती हो, रात हो चुकी है, कुत्ताबिल्ली घुस आएगा अांगन, रसोई में…’’

अपने ससुर की आवाज सुन कर रूबी समझ गई कि घर के लोग शादी से वापस लौट आए हैं. वह घबरा गई. भाग कर कमरे में गई. वहां पहले से चंदन था. उस ने पानी का गिलास पकड़ाया और जल्दी से पी कर चले जाने को कहा.

तब तक रूबी का पति राजू और देवर भी आ गए. जैसे ही चंदन कमरे से बाहर निकला, राजू अपने कमरे के सामने आ चुका था. हल्की रोशनी में चंदन का चेहरा देखते ही बोल पड़ा, ‘‘अरे कमीना, तू यहां भी आ पहुंचा?’’

दौड़ कर उस ने चंदन का हाथ पकड़ लिया, लेकिन चंदन हाथ छुड़ाता हुआ छत की थोड़ी जगह में इधरउधर भागने लगा. अंत में जब भागने का कहीं रास्ता नहीं मिला, तब दूसरी मंजिल पर चढ़ कर वहां से नीचे कूद गया.

तब तक राजू ने चोरचोर का शोर मचा दिया. तुरंत परिवार के सदस्य समेत गांव के कुछ लोग लाठीडंडों के साथ घर के बाहर जमा हो गए.

घर के पिछवाड़े झाडि़यों में गिरा चंदन जख्मी हो गया था. वह उठ नहीं पा रहा था. इसी बीच लोगों ने उसे देख लिया और उस पर लाठीडंडों की बरसात कर दी.

लाठियां चंदन के शरीर पर कहांकहां लगीं, किसी ने नहीं देखा. जब वह बेजान हो गया, तब सभी अपने अपने घर की ओर लौट गए. राजू ने भी घर आ कर रूबी की खूब खैरखबर ली. घटना के बाद पूरे इलाके में सनसनी फैल गई कि एक चोर मारा गया.

इस की सूचना शाहपुर थाने को भी मिल गई. पुलिस मौके पर पहुंच गई. पुलिस को मृतक चंदन तिवारी के दादा शिवजी तिवारी ने बताया कि वह धमवल के भुवनेश्वर पासवान, मुटन पासवान, गुड्डू पासवान और बिहारी पासवान ने उन के पोते को बर्थडे पार्टी में चलने के लिए बुलाया था. वह यहां कैसे पहुंच गया, नहीं मालूम.

इसी के साथ उन्होंने रूबी के परिवार वालों पर उस की हत्या करने का भी आरोप लगाया. उन्होंने बताया कि धमवल गांव में उस के और रूबी के परिवार वालों के बीच जमीन का भी विवाद चल रहा था. हो न हो रूबी ने उसे उस की हत्या करवाने के इरादे से यहां बुलवाया हो. उन्होंने चंदन और रूबी के बीच प्रेम संबंध की बात को गलत बताया.

चंदन की पीटपीट कर हत्या के मामले में पुलिस ने रूबी देवी के साथ उस के पति राजू पासवान, देवर सचिन पासवान और ससुर वीर बहादुर पासवान सहित 7 लोगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली. पुलिस ने रूबी, राजू पासवान, सचिन पासवान और वीर बहादुर पासवान को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. उन के साथ जेल जाने वालों में ढाई साल का एक बच्चा भी था.

ढाई वर्षीय बच्चा अपनी मां के बगैर नहीं रह सकता था, इसलिए आरोपी रूबी देवी के साथ वह भी जेल भेजा गया, वैसे रूबी 8 माह की गर्भवती भी थी.  द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

आशिक पति ने ली जान – भाग 2

बगल के गांव नगला गोकुल के रहने वाले ओमप्रकाश का खेत मोहरश्री के खेत से लगा था. ओमप्रकाश भी पत्नी गुड्डी के साथ अपने खेत पर काम करता था. उस की बेटी शीतल भी मांबाप की मदद करने खेत पर आती थी. मोहरश्री ने गौर किया कि जब तक शीतल खेत में रहती है, दामोदर उस के आसपास ही मंडराता रहता है. वह अपना काम करने के बजाय ओमप्रकाश की मदद में लगा रहता है.

उसी बीच कहीं से मोहरश्री को पता चला कि दामोदर ओमप्रकाश को मुफ्त में शराब पिलाता है तो ओमप्रकाश उसे मुफ्त खाना खिलाता है. उसे लगा कि इस के पीछे भी शीतल का ही आकर्षण है. प्रकाश के गायब होने के बाद बड़ी मुश्किल से मोहरश्री ने घरपरिवार संभाला था. अगर इस बार कुछ हुआ तो दोबारा संभालने में बहुत मुश्किल हो जाएगा. इसी चिंता में वह बेचैन रहने लगी थी.

शीतल के आकर्षण में बंधे दामोदर को अब उस के अलावा कुछ और दिखाई नहीं देता था. वह यह भी भूल गया था कि वह शादीशुदा ही नहीं, 4 बच्चों का बाप भी है. सारे कामकाज छोड़ कर वह इसी फिराक में लगा रहता था कि कैसे शीतल के नजदीक पहुंचे. अब दोपहर में उस के लिए खाना आता तो वह अपना खाना ले कर ओमप्रकाश के पास पहुंच जाता. इस के बाद दोनों शराब पीते और एकसाथ खाना खाते.

ऐसे ही समय में अपनी लच्छेदार बातों से दामोदर शीतल को आकर्षित करने की कोशिश करता. वह इस कोशिश में लगा रहता कि अगर शीतल एकांत में मिल जाए वह उस से दिल की बात कह देगा.दूसरी ओर शीतल भी अब उस के मन की बात से अनजान नहीं रह गई थी. इसलिए वह भी उसे देखती तो मुसकरा देती. दामोदर मौका ढूंढ़ ही रहा था. आखिर उसे मौका मिल ही गया. उस दिन शीतल मां के साथ खेत पर आई तो मां खेत में काम करने लगी. जबकि शीतल ट्यूबवैल के कमरे में बैठ गई. उसी बीच दामोदर वहां पहुंच गया.

हालचाल पूछ कर दामोदर शीतल से दिल की बात कहने ही जा रहा था कि मोहरश्री वहां आ गई. दामोदर को शीतल के पास देख कर उस ने कहा, ‘‘मैं तुम्हें वहां ढूंढ़ रही हूं, तुम यहां शीतल के पास बैठे क्या कर रहे हो?’’

‘‘मैं यहां पानी पीने आया था. मुझे क्या पता कि यहां शीतल बैठी है.’’

दामोदर ने सफाई तो दे दी, लेकिन मोहरश्री ने जो सुन रखा था, दोनों को इस तरह देख कर उसे बल मिला. लगा कि जो कानाफूसी हो रही है, उस में दम है. मोहरश्री ने दामोदर को समझाने की कोशिश तो की, लेकिन उस की समझ में कहां से आता. वह तो शीतल के पीछे पागल हो चुका था. इसलिए दिल की बात न कह पाने की वजह से वह मोहरश्री पर खीझ उठा था. यही वजह थी, अपना पलड़ा भारी बनाए रखने के लिए उस ने मोहरश्री को 2-4 तमाचे जड़ कर कहा, ‘‘तुम अपनी औकात में रहो, तभी ठीक है.’’

दामोदर मौके की तलाश में लगा ही था. आखिर एक दिन उसे मौका मिल ही गया. ओमप्रकाश पत्नी गुड्डी के साथ पड़ोस के गांव में किसी के यहां गया हुआ था. ओमप्रकाश के बाहर जाने वाली बात उसे पता थी, इसलिए उसे समय भी पता था. वह नगला गोकुल स्थित ओमप्रकाश के घर पहुंच गया. दरवाजा खटखटाया तो शीतल ने दरवाजा खोला. वह उसे देख कर बोली, ‘‘मम्मीपापा तो बाहर गए हैं.’’

‘‘मैं मम्मीपापा से नहीं, तुम से मिलने आया हूं.’’ दामोदर ने कहा तो शीतल का दिल धड़क उठा. वह कुछ कहती, उस के पहले ही दामोदर अंदर आ गया. घर में शीतल बिलकुल अकेली थी. उस ने शीतल का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘शीतल मैं तुम से प्यार करने लगा हूं. रातदिन सिर्फ तुम्हारे बारे में ही सोचता रहता हूं. लगता है, अब मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकता.’’

‘‘मुझे यह पहले से ही मालूम है. तुम्हारे मन में मेरे लिए क्या है, यह मैं ने तुम्हारी नजरों से जान लिया था.’’ शीतल ने नजरें नीची कर के कहा.

शीतल का इतना कहना था कि दामोदर ने खींच कर उसे बांहों में भर लिया. इस के बाद वही हुआ, जिस के लिए दामोदर न जाने कब से परेशान था. उस दिन के बाद जब भी मौका मिलता, दोनों एक हो जाते. दामोदर अब पत्नीबच्चों की ओर से पूरी तरह लापरवाह हो गया. वह अपनी सारी कमाई शीतल पर लुटाने लगा.  ओमप्रकाश और गुड्डी को दामोदर और शीतल के मिलनेजुलने में जरा भी ऐतराज नहीं था. दामोदर ओमप्रकाश को मुफ्त में शराब पिलाता ही था, जरूरत पड़ने पर गुड्डी को पैसे भी दिया करता था.

दामोदर की हरकतें मोहरश्री को बेचैन करने लगी थीं. लोग उस से कहते थे कि दामोदर को समझाती क्यों नहीं. वह पति को समझाना तो चाहती थी, लेकिन अब वह इतना आक्रामक हो गया था कि जरा भी बोलने पर मारपीट पर उतारू हो जाता था. उस की बातों और हरकतों से यही लगता था कि उसे पत्नी और बच्चे उसे बोझ लगने लगे हैं.

घर के जो हालात थे, उस से मोहरश्री परेशान रहने लगी थी. बच्चे भी सहमेसहमे रहते थे. गांव वालों से मोहरश्री की परेशानी छिपी नहीं थी, लेकिन मोहरश्री ने कभी किसी से कुछ नहीं कहा. वह बच्चों से जरूर कहती थी कि अगर उन्हें अपनी जिंदगी बनानी है तो मेहनत से पढ़ो.

मोहरश्री दामोदर को रास्ते पर लाने की कोशिश कर रही थी, जबकि दामोदर उस से पिंड छुड़ाने के बारे में सोच रहा था. अब वह शीतल के साथ अपनी गृहस्थी बसाना चाहता था. लेकिन दामोदर के लिए यह इतना आासन भी नहीं था. क्योंकि वह अपने सालों से बहुत डरता था.

दूसरी ओर मोहरश्री ने कभी अपने भाइयों से दामोदर की कोई बात नहीं बताई थी. इस के बावजूद चंद्रपाल को गांव वालों से दामोदर की हरकतों का पता चल गया था. उस ने एक दिन दामोदर को घर पर बुला कर पूछा, ‘‘पता चला है कि आजकल तुम कुछ ज्यादा ही उड़ने लगे हो?’’

साले की इस बात पर दामोदर का चेहरा सफेद पड़ गया. उस ने हकलाते हुए कहा, ‘‘भाईसाहब, ऐसी कोई बात नहीं है.’’

चंद्रपाल ने दामोदर को धमकाते हुए कहा, ‘‘एक बात याद रखना, मैं किसी भी कीमत पर यह बरदाश्त नहीं करूंगा कि तुम मेरी बहन या उस के बच्चों को परेशान करो. अगर तुम अपनी हरकतों से बाज नहीं आए तो अंजाम अच्छा नहीं होगा.’’

दामोदर खामोशी से चंद्रपाल की बातें सुनता रहा. उसे लगा कि मोहरश्री ने ही चंद्रपाल से उस की शिकायत की है. इसलिए वह घर लौटा तो शराब के नशे में धुत था. मोहरश्री खाना बना रही थी. आते ही वह मोहरश्री को गालियां देने लगा. उस ने कहा, ‘‘मेरे मन में जो आएगा, मैं वही करूंगा. कोई मेरा कुछ नहीं कर सकता. एक बात और सुन, मैं शीतल से प्यार करता हूं और अब उस से शादी भी करूंगा. जा कर कह दे अपने भाइयों से.’’

दामोदर की बातों से मोहरश्री सन्न रह गई. उस ने बच्चों को तो खाना खिला दिया, लेकिन खुद नहीं खा सकी. उस रात उसे नींद भी नहीं आई. उसे इस बात की चिंता थी कि अगर दामोदर ने सच में शीतल से शादी कर ली तो वह क्या करेगी.

उसे लगा कि अगर वह शीतल की मां से बात करे तो शायद कोई हल निकल आए. लेकिन हल निकालने की कौन कहे, गुड्डी उलटा उस पर बरस पड़ी, ‘‘शीतल तो अभी बच्ची है, उसे क्या समझ. तू ही दामोदर को क्यों नहीं समझाती. मैं दामोदर को बुलाने थोड़े ही जाती हूं, वह खुद ही यहां आता है.’’   गुड्डी की बातों से मोहरश्री दुविधा में पड़ गई. क्योंकि गुड्डी जो कह रही थी, सच वही था. दामोदर ही उस के घर आताजाता था.

जिद ने उजाड़ा आशियाना – भाग 3

इकबाल शफकत को समझाता रहता था कि वह उस से बहुत प्यार करता है और उस के बिना रह नहीं सकता. इस के बावजूद शफकत जयपुर में मकान ले कर अलग रहने की जिद पर अड़ी थी. उस का कहना था कि वह तो नौकरी कर ही रही है, अगर वह भी यहां आ जाएगा तो उसे भी बढि़या नौकरी मिल लाएगी. दोनों कमाएंगे और आराम से रहेंगे.  वैसे चाहे इकबाल जयपुर चला भी जाता, लेकिन शक की वजह से वह वहां नहीं जाना चाहता था. यही नहीं, वह यह भी नहीं चाहता था कि शफकत वहां रहे. इसीलिए वह जयपुर नहीं जा रहा था.

शफकत के जयपुर में रहने की जिद से इकबाल परेशान रहने लगा था. उसे लगने लगा था  कि शफकत बेवफा हो गई है. दोनों ही अपनीअपनी जिद पर अड़े थे. जब अब्दुल्ला को पता चला कि शफकत और इकबाल के बीच ठीक नहीं चल रहा है तो उस ने इकबाल को फोन किया. पहले तो उस ने दोस्त को समझाया. लेकिन जब वह अपनी जिद पर अड़ा रहा तो अब्दुल्ला ने कहा, ‘‘इकबाल, अगर तुम शफकत को ज्यादा परेशान करोगे और उस की बात नहीं मानोगे तो किसी दिन मैं तुम्हें गोली मार दूंगा.’’

कभी रूम पार्टनर और दोस्त रहे अब्दुल्ला ने गोली मारने की बात की तो इकबाल को भी गुस्सा आ गया. अब वह इस परेशानी से छुटकारा पाने के बारे में सोचने लगा. अब वह इस बात को ले कर काफी परेशान रहने लगा था, क्योंकि बात अब जान लेने तक पहुंच गई थी.

काफी सोचविचार कर 16 अगस्त को इकबाल ने नूंह से एक देसी कट्टा और 10 कारतूस खरीदे. 19 अगस्त को उस ने अपने गांव बिछोर से एक बोलेरो जीप किराए पर की और जयपुर पहुंच गया. बोलेरो के ड्राइवर से उस ने कहा था कि वह जयपुर अपनी बीवी को विदा कराने जा रहा है. जयपुर पहुंच कर उसने रामगंज में रैगरों की कोठी के पास बोलेरो रुकवा कर ड्राइवर से कहा, ‘‘तुम यहीं रुको, मैं दस मिनट में अपनी बीवी और बच्चे को ले कर आ रहा हूं. उस के बाद गांव चलेंगे.’’

इकबाल वहां से रैगरों की कोठी स्थित अपनी ससुराल की ओर पैदल ही चल पड़ा. उस समय दोपहर के 12 बज रहे थे. जब वह अपनी ससुराल पहुंचा तो घर में शफकत, उस के अब्बा शमशाद अहमद और अम्मी मौजूद थीं. इकबाल का 10 महीने का बेटा अथर पालने में सो रहा था.

इकबाल ने सासससुर से दुआसलाम की तो वे दामाद की खातिरदारी की तैयारी करने लगे. तभी इकबाल ने पैंट की जेब से कट्टा निकाला और वहां बैठी शफकत पर फायर कर दिया.  यह गोली शफकत के कंधे में लगी. सासससुर के आतेआते उस ने फुर्ती से एक और गोली भरी और उस पर चला दी, जो शफकत के पैर में लगी. इसी के साथ चीखपुकार मच गई.

इकबाल गोलियां चला कर भागा, लेकिन रैगरों की कोठी में गोलियां चलने की आवाज सुन कर पुलिस पौइंट पर ड्यूटी पर तैनात सिपाही उस दिशा में दौड़ पड़े, इसलिए इकबाल पकड़ा गया. रामगंज का यह इलाका जयपुर में सब से संवेदनशील माना जाता है. इसलिए गोली चलने की सूचना मिलते ही थाना रामगंज के थानाप्रभारी रामकिशन बिश्नोई तुरंत दलबल के साथ मौके पर पहुंच गए.

गोलियां चलाने वाला इकबाल पकड़ा जा चुका था. गोलियां लगने से घायल शफकत को इलाज के लिए तुरंत सवाई मानसिंह अस्पताल ले जाया गया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. थाने ला कर इकबाल से पूछताछ की गई. इस के बाद उसे उसी दिन अदालत में पेश कर के विस्तारपूर्वक पूछताछ के लिए 3 दिनों के पुलिस रिमांड पर ले लिया गया.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि शफकत को 5 महीने का गर्भ था. उस के पेट में पल रहा बच्चा लड़की थी. इकबाल ने गुस्से में पत्नी को गोली तो मार दी, लेकिन रिमांड के दौरान वह यही दुआ करता रहा कि उस की पत्नी की मौत न हो और वह जल्दी से जल्दी ठीक हो जाए.  लेकिन शफकत तो तुरंत मर चुकी थी. इकबाल बीवी के लिए बहुत बेचैन था, शायद इसलिए पुलिस ने उसे बताया नहीं था कि शफकत की मौत हो चुकी है.

शफकत की मौत और इकबाल के जेल चले जाने से अथर अनाथ हो गया है. अब उस की देखभाल मौसी और नानानानी कर रहे हैं. शमशाद अहमद चाहते थे कि जमाई जयपुर आ जाते, शफकत और वह नौकरी कर के अराम से अपना जीवन बिताते. लेकिन दोनों की जिद से उन का प्यार का आशियाना उजड़ गया. इस तरह दिल्ली से शुरू हुई उन की ‘लव स्टोरी’ जयपुर में खत्म हो गई. अब इकबाल भी अपने किए पर आंसू बहाते हुए पछता रहा है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

आशिक पति ने ली जान – भाग 1

एटा-कासगंज रोड पर स्थित है एक गांव असरौली, जो कोतवाली (देहात) क्षेत्र के अंतर्गत आता है. इसी गांव के रहने वाले चोखेलाल के परिवार में पत्नी पार्वती के अलावा 3 बेटियां सावित्री, बिमला, मोहरश्री तथा 2 बेटे सत्यप्रकाश और चंद्रपाल थे. सत्यप्रकाश खेतीकिसानी में बाप की मदद करता था तो चंद्रपाल सड़क पर खोखा रख कर अंडे बेचता था. चोखेलाल की गुजरबसर आराम से हो रही थी. उन्होंने सभी बच्चों की शादियां भी कर दी थीं. सभी अपनेअपने परिवार के साथ खुश थे. उन की छोटी बेटी मोहरश्री का विवाह कासगंज के कस्बा नदरई में प्रकाश के साथ हुआ था.

सब से छोटी होने की वजह से मोहरश्री मांबाप की ही नहीं, भाईबहनों की भी लाडली थी. शादी के लगभग डेढ़ साल बाद वह एक बेटे की मां बन गई. यह खुशी की बात थी, लेकिन बेटा पैदा होने के कुछ दिनों बाद ही उस के पति प्रकाश का दिमागी संतुलन बिगड़ गया और एक दिन वह घर से गायब हो गया. घर वालों ने उसे बहुत ढूंढ़ा, लेकिन उस का कुछ पता नहीं चला.

पति के गायब होते ही ससुराल में मोहरश्री की स्थिति गंभीर हो गई. ससुराल वालों का मानना था कि उसी की वजह से प्रकाश गायब हुआ है, इसलिए उसे दोषी मान कर सभी उसे परेशान करने लगे. चंद्रपाल मोहरश्री से मिलने उस की ससुराल गया तो उसे लगा कि बहन यहां खुश नहीं है. वह उसे अपने यहां लिवा लाया.

घर आ कर मोहरश्री ने जब मांबाप और भाइयों से ससुराल वालों के बदले व्यवहार के बारे में बताया तो सभी ने तय किया कि अब उसे ससुराल नहीं भेजा जाएगा. लेकिन ससुराल वालों ने खुद ही मोहरश्री की सुधि नहीं ली. अब घर वालों को उस की चिंता सताने लगी, क्योंकि अभी उस की उम्र कोई ज्यादा नहीं थी.  अकेली जवान औरत के लिए जीवन काटना बहुत मुश्किल होता है. अगर कोई ऊंचनीच हो जाए तो सभी उन्हीं को दोष देते हैं, इसलिए पिता और भाइयों ने तय किया कि वे मोहरश्री की शादी कहीं और कर देंगे.

मोहरश्री को जब पता चला कि घर वाले उस की दूसरी शादी करना चाहते हैं तो उस ने कहा, ‘‘आप लोगों को मेरे लिए परेशान होने की जरूरत नहीं है. मैं अपने बेटे के सहारे जी लूंगी. सभी के साथ मेहनतमजदूरी कर के जिंदगी बीत जाएगा.’’  लेकिन पिता और भाई उस की इस बात से सहमत नहीं थे. वे किसी भी तरह मोहरश्री का घर बसाना चाहते थे. वह बहुत ही सीधीसादी थी. उस के स्वभाव की वजह से गांव का हर आदमी उस की मदद और सम्मान करता था. यही वजह थी कि इस परेशानी में भी वह खुश थी.

चोखेलाल की बड़ी बेटी सावित्री एटा में ब्याही थी. मायके आने पर जब उसे पता चला कि घर वाले मोहरश्री का पुन: विवाह करना चाहते हैं तो उस ने बताया कि उस के पड़ोस में रहने वाली रानी का भाई दामोदर शादी लायक है. अगर सभी लोग तैयार हों तो वह बात चलाए.

मोहरश्री की शादी में उस के पहले पति का बेटा कृष्णा बाधा बन रहा था. घर वाले चाहते थे कि वह बेटे को मायके में छोड़ दे, लेकिन मोहरश्री इस के लिए तैयार नहीं थी. उस का कहना था कि वह उसी आदमी से शादी करेगी, जो उस के बेटे को अपनाएगा. सावित्री ने बताया कि दामोदर मोहरश्री के बेटे को अपना सकता है, इसलिए सभी को उस के फोन का इंतजार था.

सावित्री ने फोन कर के बताया कि दामोदर अपनी बहन रानी के साथ सावित्री को देखने आ रहा है तो घर वालों ने तैयारी शुरू कर दी. देखासुनी के बाद मोहरश्री और दामोदर की शादी इस शर्त पर हो गई कि वह मोहरश्री के पहले पति के बेटे कृष्णा को अपना नाम देगा.

दामोदर जिला फर्रुखाबाद के थाना पाटियाली के गांव शाहपुर का रहने वाला था. उस की 2 बहनें और 2 भाई थे. दोनों भाई पंजाब में नौकरी करते थे. शादी के बाद मोहरश्री बेटे के साथ शाहपुर आ गई.  ससुराल आने पर पता चला कि दामोदर की कमाई से घर नहीं चल सकता. इसलिए उस ने दामोदर को अपने मायके असरौली चलने को कहा.

दामोदर असरौली जाने को राजी नहीं हुआ तो मोहरश्री ने फोन द्वारा सारे हालात अपने भाई चंद्रपाल को बताए तो वह खुद शाहपुर पहुंचा और सभी को असरौली ले आया. इस तरह लगभग 10 साल पहले दामोदर परिवार के साथ ससुराल आ गया था.  ससुराल आ कर वह पूरी तरह से निश्चिंत हो गया. चंद्रपाल ने भागदौड़ कर के उसे एटा रोड पर स्थित आलोक की फैक्ट्री में चौकीदारी की नौकरी दिला दी. फैक्ट्री में उसे रहने के लिए कमरा भी मिल गया था. इस तरह एक बार फिर मोहरश्री की जिंदगी ढर्रे पर आ गई.

समय के साथ मोहरश्री दामोदर के 3 बच्चों अजय, सुमित और प्रेमपाल की मां बनी. शुरूशुरू में तो दामोदर का व्यवहार कृष्णा के प्रति ठीक रहा, लेकिन जब उस के अपने 3-3 बेटे हो गए तो उस का व्यवहार एकदम से बदल गया. अब वह बातबात में कृष्णा से मारपीट करने लगा. मोहरश्री को यह बिलकुल अच्छा नहीं लगता था. उस ने देखा कि दामोदर बच्चों में भेदभाव कर रहा है तो उस ने उसे टोका. लेकिन दामोदर पर इस का कोई असर नहीं पड़ा. कृष्णा के प्रति उस की हिंसा बढ़ती ही जा रही थी.

मोहरश्री ने दामोदर से शादी जीवन को सुखी बनाने के लिए की थी. लेकिन दामोदर तनाव पैदा करने लगा था. परिवार बढ़ा तो घर में आर्थिक तंगी रहने लगी. बहन की परेशानी देख कर चंद्रपाल ने एक खेत पट्टे पर ले कर बहन को दे दिया. मोहरश्री मेहनत कर के खेत की कमाई से बच्चों को पालने लगी. उस ने बेटों को समझाया कि वे अपनी जिंदगी संवारना चाहते हैं तो मेहनत कर के पढ़ें.

दामोदर न तो अच्छा पति साबित हुआ और न अच्छा बाप. इसलिए मोहरश्री को उस से कोई उम्मीद नहीं थी. उस ने चौकीदारी वाली नौकरी भी छोड़ दी थी. अपना खर्च चलाने के लिए वह खेतों में चोरी से शराब बना कर बेचने लगा था. जब इस बात का पता मोहरश्री को चला तो वह बहुत नाराज हुई. लेकिन दामोदर पर इस का कोई असर नहीं हुआ.

चरित्रहीन कंचन : क्यों उसने सारी हदें पार की

रामकुमार की जानकारी में अपनी पत्नी कंचन की कुछ ऐसी बातें आई थीं, जिस के बाद कंचन उस के लिए अविश्वसनीय हो गई थी. बताने वाले ने रामकुमार को यह तक कह दिया, ‘‘कैसे पति हो तुम, घर वाली पर तुम्हारा जरा भी अकुंश नहीं. इधर तुम काम पर निकले, उधर कंचन सजधज कर घर से निकल जाती है. दिन भर अपने यार के साथ ऐश करती है और शाम को तुम्हारे आने से पहले घर पहुंच जाती है.’’

रामकुमार कंचन पर अगाध भरोसा करता था. पति अगर पत्नी पर भरोसा न करे तो किस पर करे. यही कारण था कि रामकुमार को उस व्यक्ति की बात पर विश्वास नहीं हुआ. वह बोला, ‘‘हमारी तुम्हारी कोई नाराजगी या आपसी रंजिश नहीं है, मैं ने कभी तुम्हारा बुरा नहीं किया. इस के बावजूद तुम मेरी पत्नी को किसलिए बदनाम कर रहे हो, मैं नहीं जानता. हां, इतना जरूर जानता हूं कि कंचन मेकअपबाज नहीं है. शाम को जब मैं घर पहुंचता हूं तो वह सजीधजी कतई नहीं मिलती.’’

‘‘कंचन जैसी औरतें पति की आंखों में धूल झोंकने का हुनर बहुत अच्छी तरह जानती हैं.’’ उस व्यक्ति ने बताया, ‘‘तुम्हें शक न हो, इसलिए वह मेकअप धो कर घर के कपड़े पहन लेती होगी.’’

रामकुमार को तब भी उस व्यक्ति की बातों पर विश्वास नहीं हुआ. वह उस का करीबी था, इसलिए उस ने उसे थोड़ा डांट दिया.

रामकुमार ने उस शख्स को डांट जरूर दिया था, लेकिन उस के मन में यह भी खयाल आया कि कोई इतनी बड़ी बात कह रहा है तो वह हवा में तो कह नहीं रहा होगा. उस ने खुद देखा होगा या उस के पास कोई ठोस सबूत या गवाह होगा. वैसे भी धुंआ वहीं उठता है, जहां आग लगी होती है. लिहाजा वह बेचैन हो गया. उस ने सोचा कि अपनी तसल्ली के लिए वह इस बारे में कंचन से बात जरूर करेगा.

घर पहुंचतेपहुंचते रामकुमार ने कंचन से उक्त संदर्भ में बात करने का इरादा बदल दिया. इस के पीछे कारण यह था कि कोई भी औरत अपनी बदचलनी स्वीकार नहीं करती तो कंचन कैसे कर लेगी. इसीलिए उस ने स्वयं मामले की असलियत का पता लगाने का फैसला कर लिया.

पत्नी के चरित्र को ले कर रामकुमार तनाव में था. उस का वह तनाव चेहरे और आंखों से साफ झलक रहा था. एक दिन कंचन ने उस से पूछा भी, लेकिन रामकुमार ने टाल दिया, बोला, ‘‘मन ठीक नहीं है.’’

‘‘तुम्हारी दवा घर में रखी तो है, पी लो. जी भी ठीक हो जाएगा और चैन की नींद भी सो जाओगे.’’ वह बोली.

तनाव की अधिकता से रामकुमार का सिर फट रहा था. सिर हलका करने और चैन से सोने के लिए उसे स्वयं भी शराब की तलब महसूस हो रही थी. इसलिए वह कंचन से बोला, ‘‘ले आओ.’’

कंचन ने शराब की बोतल, पानी, नमकीन और एक गिलास ला कर पति के सामने रख दिया. रामकुमार ने एक बड़ा पैग बना कर हलक में उड़ेला और सोचने लगा कि कल उसे क्या करना चाहिए.

उत्तर प्रदेश के जनपद जौनपुर के गांव गोहानी में रहता था शंभू सिंह. शंभू सिंह के परिवार में पत्नी पार्वती के अलावा एक बेटा कुलदीप और एक बेटी कंचन थी. कुलदीप पंजाब में रह कर काम करता था. उस की पत्नी गांव में रहती थी.

शंभू सिंह खेतिहर मजदूर था. कमाई कम थी, इसलिए घरपरिवार में किसी न किसी चीज का सदैव अभाव बना रहता था. सुंदर व चुलबुली कंचन मामूली चीजों तक को तरसती रहती थी.

पिता की कमाई कम थी और खर्च अधिक, इसलिए निजी जरूरतें और शौक पूरा करने के लिए कंचन को घर से वांछित रुपए मिल नहीं  सकते थे. इसीलिए वह कभी कोई चीज खाने को तरसती, कभी किसी को अच्छे कपड़े पहने देख ललचाती तो कभी सोचती कि सजनेसंवरने का सामान कैसे खरीदे.

किशोर उम्र की लड़कियों की मानसिकता समझने और उन से लाभ उठाने वालों की दुनिया में कोई कमी नहीं है. गोहानी गांव में भी कुछ ऐसे ठरकी थे. उन्होंने कंचन का लालच समझा तो वह उसे रिझाने लगे. खिलानेपिलाने या कुछ सामान दिलाने के नाम पर वह कंचन के साथ अश्लील हरकत करते.

कुछ समय में ही कंचन समझ गई कि कोई यूं मेहरबान नहीं होता. जो पैसा खर्च करता है, उस के एवज में कुछ चाहता भी है. वह अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए लोगों की इच्छाएं पूरी करने लगी. परिणाम यह हुआ कि कंचन कुछ ही दिनों में पूरे गांव में बदनाम हो गई.

बात पिता शंभू सिंह और मां पार्वती तक पहुंची तो उन्होंने अपना सिर पीट लिया कि बेटी है या आफत की परकाला. छोटी सी उम्र में इतने बड़े गुल खिला रही है. दोनों ने कंचन को खूब मारापीटा, मगर कंचन ने अपनी राह नहीं बदली.

शंभू सिंह और पार्वती जब सारी कोशिश कर के हार गए तब उन्होंने सोचा कि कंचन की जल्द शादी कर के उसे ससुराल भेज दिया जाए, तभी थोड़ीबहुत इज्जत बची रह सकती है.

इस फैसले के बाद शंभू सिंह ने कंचन के लिए वर की तलाश शुरू कर दी. जल्द ही एक अच्छा रिश्ता मिल गया. प्रतापगढ़ जनपद के गांव धर्मपुर निवासी राजेश पटेल से कंचन का रिश्ता तय हो गया. 12 वर्ष पूर्व कंचन का विवाह राजेश पटेल से हो गया.

कंचन को अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए अब किसी और की जरूरत नहीं थी. पति राजेश उस की हर जरूरत पूरी करता था. कालांतर में कंचन ने 2 बेटियों को जन्म दिया.

धीरेधीरे कंचन और राजेश में मतभेद रहने लगे, जिस वजह से उन के बीच वादविवाद होता था. यह वादविवाद कभीकभी विकराल रूप धारण कर लेता था. कंचन को अब अपनी ससुराल काटने को दौड़ती थी. उस का वहां मन नहीं लगता था.

इसी बीच कंचन की मुलाकात रामकुमार दुबे से हो गई. रामकुमार दुबे कन्नौज के गुरसहायगंज का रहने वाला था. 10 सालों से वह हरदोई जिले में रहने वाली अपनी बहन मिथलेश की ससुराल में रहता था. काम की तलाश में वह प्रतापगढ़ आ गया. यहीं पर उसे कंचन मिल गई.

पहली मुलाकात हुई तो उन के बीच बातें हुईं. दोनों की यह मुलाकात काफी अच्छी रही. दोनों ने एकदूसरे को अपना नंबर दे दिया. इस के बाद तो उन की मुलाकातों का सिलसिला चल निकला. फोन पर भी बातें होने लगीं. कुछ ही दिनों में दोनों इतने करीब आ गए कि शादी कर के साथ रहने की सोचने लगे.

दोनों ने साथ रहने का फैसला लिया तो कंचन अपनी ससुराल छोड़ कर उस के पास आ गई. रामकुमार ने साथ रहने के लिए कंचन के कहने पर पहले ही जौनपुर के भुईधरा गांव में जमीन ले कर 2 कमरों का मकान बनवा लिया था. दोनों शादी कर के यहीं रहने लगे. यह 8 साल पहले की बात है. 4 साल पहले कंचन ने एक बेटे को जन्म दिया.

लेकिन अभावों ने कंचन का यहां भी पीछा न छोड़ा. रामकुमार की भी कमाई अधिक नहीं थी. घर का खर्च बड़ी मुश्किल से चलता था. कंचन की मुश्किलें बढ़ने लगीं तो उस ने इधरउधर देखना शुरू कर दिया. उसे ऐसे व्यक्ति की तलाश थी जो उस की जरूरतों पर पैसा खर्च कर सके. इस खेल की तो वह पुरानी खिलाड़ी थी.

उस की तलाश रामाश्रय पटेल पर जा कर खत्म हुई. रामाश्रय जौनपुर के मुगरा बादशाहपुर थाना क्षेत्र के बेरमाव गांव का निवासी था. बेरमाव पंवारा थाना क्षेत्र की सीमा से सटा गांव था. रामाश्रय दिल्ली में रह कर किसी फैक्ट्री में काम करता था. कुछ दिनों बाद वह घर आता रहता था. रामाश्रय विवाहित था और उस के 3 बच्चे भी थे. लेकिन उस की अपनी पत्नी से नहीं बनती थी.

रामाश्रय भुईधरा गांव आता रहता था. इसी आनेजाने में उस की मुलाकात कंचन से हो गई थी. कंचन जान गई थी कि रामाश्रय आर्थिक रूप से काफी मजबूत है. कंचन और रामाश्रय की मुलाकातें होने लगीं. इन मुलाकातों में कंचन ने रामाश्रय के बारे में काफी कुछ जान लिया.

वह यह भी जान गई कि रामाश्रय की अपनी पत्नी से नहीं बनती. यह जान कर वह काफी खुश हुई, उस का काम आसान जो हो गया था. पत्नी से परेशान मर्द को बहला कर अपने पहलू में लाना आसान होता है, यह कंचन बखूबी जानती थी.

कंचन ने अब रामाश्रय को अपने लटकेझटके दिखाने शुरू कर दिए. रामाश्रय भी कंचन के नजदीक आ कर उसे पाने की चाहत रखता था. कंचन के लटकेझटके देख कर वह भी समझ गया कि मछली खुद शिकार होने को आतुर है. वह भी कंचन पर अपना प्रभाव जमाने के लिए खुल कर उस पर अपना पैसा लुटाने लगा.

कंचन की रामाश्रय से नजदीकी क्या हुई, कंचन के अंदर की अभिलाषा जाग गई. कंचन ने अपनी कामकलाओं का ऐसा जादू बिखेरा कि रामाश्रय सौसौ जान से उस पर न्यौछावर हो गया.

रामकुमार के काम पर जाते ही कंचन सजधज कर घर से निकल जाती और रामाश्रय के साथ घूमती और मटरगश्ती करती. रामाश्रय पर कंचन के रूप का जबरदस्त नशा चढ़ा हुआ था. रामकुमार के घर आने से पहले कंचन घर आ जाती थी. घर आने के बाद अपना मेकअप धो कर साफ कर लेती. घर के कपड़े पहन कर घर का काम करने लगती.

कंचन समझती थी कि किसी को उस की रंगरलियों की खबर नहीं है. जबकि वास्तविकता सब जान रहे थे. एक दिन किसी शुभचिंतक ने रामकुमार को उस की पत्नी की रंगरलियों की दास्तान बयां कर दी.

रामकुमार ने इस बाबत कंचन से कोई सवाल नहीं किया. बल्कि उस ने अपने सारे पैग पीतेपीते सोच लिया कि हकीकत का पता करने के लिए उसे क्या करना है.

दूसरे दिन रामकुमार काम पर जाने के लिए घर से तो निकला, पर गया नहीं. कुछ दूरी पर एक जगह छिप कर बैठ गया. उस की नजर घर की ओर से आने वाले रास्ते पर जमी थी.

मुश्किल से आधा घंटा बीता होगा कि कंचन आती दिखाई दी. अच्छे कपड़े, आंखों में काजल, होठों पर लिपस्टिक, कलाइयों में खनकती चूडि़यां उस की खूबसूरती बढ़ा रही थी.

कंचन जैसे ही नजदीक आई. रामकुमार एकदम से छिपे हुए स्थान से निकल कर उस के सामने आ खड़ा हुआ. पति को अचानक सामने देख कर कंचन भौचक्की रह गई. वह रामकुमार से पूछना चाहती थी कि वह यहां कैसे, काम पर गए नहीं या लौट आए. मगर मानो वह गूंगी हो गई. चाह कर भी आवाज उस के गले से नहीं निकली.

रामकुमार ने कंचन की आंखों में देख कर भौंहें उचकाईं, ‘‘छमिया बन कर कहां चलीं… यार से मिलने? अपना मुंह काला करने और मेरी इज्जत की धज्जियां उड़ाने.’’

कंचन घबराई, लेकिन जल्दी ही खुद को संभालते हुए बोली, ‘‘नहाधो कर घर से निकलना भी अब जुल्म हो गया. दुखी हो गई हूं मैं तुम से.’’

‘‘घर चल, तब मैं बताता हूं कि कौन किस से दुखी है.’’

दोनों घर आए तो उन के बीच जम कर झगड़ा हुआ. कंचन अपनी गलती मानने को तैयार नहीं थी. उस का कहना था कि वह रामाश्रय से मिलने नहीं, अपनी सहेली से मिलने जा रही थी.

रामकुमार ने कंचन पर अंकुश लगाने का हरसंभव प्रयास किया, मगर वह नाकाम रहा.

14 मई को गांव रामपुर हरगिर के पास शारदा नहर के किनारे लोगों ने एक लाश देखी. देखते ही देखते वहां काफी संख्या में लोग जमा हो गए. लाश को ले कर लोग तरहतरह की चर्चाएं करने लगे. इसी बीच रामपुर हरगिर गांव के अजय कुमार नाम के व्यक्ति ने संबंधित थाना पंवारा को लाश मिलने की सूचना दे दी.

सूचना पा कर थानाप्रभारी सेतांशु शेखर पंकज अपनी टीम के साथ घटनास्थल की ओर रवाना हो गए. वहां पहुंच कर उन्होंने लाश का निरीक्षण किया. मृतक की उम्र लगभग 35-36 वर्ष रही होगी. मृतक के शरीर की खाल पानी में रहने से गल गई थी. लाश देखने में 2-3 दिन पुरानी लग रही थी. मृतक के दाएं हाथ पर रामकुमार पटेल और कंचन गुदा हुआ था.

थानाप्रभारी सेतांशु शेखर ने लाश के कई कोणों से फोटो खींचने के साथ नाम का जो टैटू था, उस की भी फोटो खींच ली. घटनास्थल का निरीक्षण किया गया तो पास से चाकू, रस्सी और कपड़े बरामद हुए.

वहां मौजूद लोगों से लाश की शिनाख्त कराने की कोशिश की गई, लेकिन कोई भी लाश को नहीं पहचान सका. थानाप्रभारी सेतांशु शेखर ने लाश पोस्टमार्टम हेतु भेज दी. फिर अजय कुमार को साथ ले कर थाने आ गए.

अजय कुमार की लिखित तहरीर पर थानाप्रभारी ने अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत थाने में मुकदमा दर्ज करा दिया. थाने के सिपाहियों को लाश पर मिले टैटू की फोटो दे कर अपने थाना क्षेत्र और आसपास के थाना क्षेत्र में भेजा, जिस से मृतक के बारे में कोई जानकारी मिल सके. उन का यह प्रयास सफल भी हुआ.

गोहानी गांव में टैटू देख कर लोगों ने पहचाना कि कंचन तो उसी गांव की बेटी है, रामकुमार उस का पति है. वह टैटू देख कर यह लगा कि वह लाश रामकुमार की थी.

जानकारी मिली तो थानाप्रभारी सेतांशु शेखर गोहानी गांव पहुंच गए. रामकुमार की ससुराल गोहानी में थी. वहां रामकुमार की पत्नी कंचन मौजूद थी. उस के साथ में रामाश्रय था. रामाश्रय का पता पूछा तो उस का गांव बेरमाव था जोकि घटनास्थल से काफी करीब था.

रामकुमार की हत्या होना, उस समय उस की पत्नी कंचन का मायके में होना और उस के साथ जो व्यक्ति रामाश्रय मिला उस के गांव के नजदीक रामकुमार की लाश मिलना, यह सब इत्तिफाक नहीं था. सुनियोजित साजिश के तहत घटना को अंजाम देने की ओर इशारा कर रहा था.

इस बात को थानाप्रभारी बखूबी समझ गए थे. इसलिए उन्होंने शक के आधार पर पूछताछ हेतु दोनों को हिरासत में ले लिया और थाने वापस आ गए.

थाने ला कर उन दोनों से पहले अलगअलग फिर आमनेसामने बैठा कर कड़ाई से पूछताछ की गई तो वे दोनों टूट गए और हत्या के पीछे की वजह बयान कर दी.

कंचन और रामाश्रय दोनों के संबंधों को ले कर हर रोज घर में रामकुमार झगड़ा करने लगा. वह उन के मिलने में अड़चनें पैदा करने लगा तो कंचन ने रामाश्रय से रामकुमार को हमेशा के लिए अपने रास्ते से हटाने के लिए कह दिया. यह घटना से करीब एक हफ्ते पहले की बात है. दोनों ने पूरी योजना बना ली.

योजनानुसार कंचन अपने मायके गोहानी चली गई. 11/12 मई की रात रामाश्रय रामकुमार के पास गया. उस से कंचन से संबंध खत्म करने की बात कही. फिर एक नई शुरुआत करने के बहाने उसे अपने साथ ले गया. रामकुमार को उस ने जम कर शराब पिलाई. देर रात एक बजे रामाश्रय रामकुमार को रामपुर हरगिर गांव के पास ले गया. उस समय रामकुमार नशे में धुत था.

रामाश्रय ने साथ लाए चाकू से गला काट कर रामकुमार की हत्या कर दी. उस के बाद उस के हाथपैर रस्सी और कपड़े से बांध कर लाश नहर में डाल दी लेकिन लाश नदी में स्थित बिजली के आरसीसी के बने खंभों में फंस कर रह गई. नदी के बहाव में वह नहीं बह सकी. रामाश्रय यह नहीं देख पाया.

वह तो चाकू वहीं फेंक कर घर चला गया. अगले दिन वह कंचन के पास उस के मायके पहुंच गया. वहां वह कंचन के साथ पुलिस के हत्थे चढ़ गया.

मुकदमे में भादंवि की धारा 201/120बी/34 और जोड़ दी गईं. कानूनी लिखापढ़ी करने के बाद दोनों को न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

दहेज नहीं मिला तो तलाक दे दिया

22 अगस्त, 2017 को सभी की नजरें सुप्रीम कोर्ट पर टिकी थीं. क्योंकि उस दिन सुप्रीम कोर्ट का 3 तलाक पर फैसला आने वाला था. आखिर 12 बजे के बाद सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने ऐतिहासिक फैसला देते हुए मुसलिमों में एक साथ 3 तलाक को अमान्य और असंवैधानिक करार दे दिया.

मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जे.एस. खेहर की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यीय संविधान पीठ ने 18 महीने तक चली सुनवाई के बाद इस प्रथा को गैरकानूनी घोषित करते हुए इसे संविधान के अनुच्छेद 14, 15 के खिलाफ माना.

सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक फैसले को जब कानपुर के पौश इलाके में रहने वाली सोफिया ने सुना तो उन्हें बहुत खुशी हुई, क्योंकि उन्हें भी इस फैसले का बेसब्री से इंतजार था. दरअसल, सोफिया भी 3 तलाक से पीडि़त थीं. उन के शौहर ने भी दहेज की मांग पूरी न होने पर उन्हें प्रताडि़त कर नशे की हालत में 3 बार तलाक कह कर घर से निकाल दिया था.

इस के बाद सोफिया पति और उस के घर वालों के खिलाफ तलाक सहित दहेज उत्पीड़न की रिपोर्ट दर्ज कराने की कोशिश करती रहीं, लेकिन शौहर की बहन सत्ता पक्ष की विधायक थीं, इसलिए उन के दबाव में पुलिस रिपोर्ट दर्ज नहीं कर रही थी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद सोफिया ने अपने घर वालों से सलाह की और शौहर तथा उस के घर वालों के खिलाफ मामला दर्ज कराने थाना स्वरूपनगर पहुंच गईं.

थानाप्रभारी राजीव सिंह थाने में ही मौजूद थे. सोफिया ने उन्हें सारी बात बता कर रिपोर्ट दर्ज करने का अनुरोध किया तो वह थोड़ा झिझके. सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उन्हें पता था. लेकिन समाजवादी पार्टी की पूर्व विधायक गजाला लारी का भी नाम इस मामले में आ रहा था, इसीलिए वह झिझक रहे थे.

गजाला लारी पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की बेहद करीबी थीं. राजीव सिंह सोफिया को मना भी नहीं कर सकते थे, इसलिए अधिकारियों की राय ले कर उन्होंने सोफिया की तहरीर पर अपराध संख्या 110/2017 पर भादंवि की धारा 498ए, 323, 506 तथा दहेज उत्पीड़न की धारा 3(4) के तहत पति शारिक अहमद, सास महजबीं बेगम, ससुर तैयब कुरैशी, ननद गजाला लारी और उन के बेटे मंजर लारी के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा कर जांच की जिम्मेदारी सबइंसपेक्टर कपिल दुबे को सौंप दी.

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मामला दर्ज होते ही सोफिया सुर्खियों में आ गईं. इस की वजह यह थी कि सुप्रीम कोर्ट का 3 तलाक पर फैसला आने के बाद देश में पहली रिपोर्ट कानपुर में सोफिया द्वारा दर्ज कराई गई थी. प्रिंट और इलैक्ट्रौनिक मीडिया वाले सोफिया का बयान लेने उमड़ पड़े. सोफिया ने मीडिया को जो बताया और तहरीर में जो लिख कर दिया था, उस के अनुसार क्रूरता की पराकाष्ठा की जो कहानी प्रकाश में आई, वह इस प्रकार थी—

कानपुर के मुसलिम बाहुल्य वाले मोहल्ले कर्नलगंज में तैयब कुरैशी परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी महजबीं के अलावा 5 बेटियां और 2 बेटे थे. बच्चों में शारिक सब से छोटा था. तैयब कुरैशी संपन्न आदमी थे. टेनरी उन का कारोबार था. उन की एक बेटी गजाला लारी समाजवादी पार्टी से विधायक थी.

समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव का उस पर वरदहस्त था. पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की भी वह करीबी थी. गजाला का निकाह मुराद लारी से हुआ था. वह देवरिया की सलेमपुर सीट से बीएसपी के विधायक थे. लेकिन उन की मौत हो गई तो गजाला ने सलेमपुर से चुनाव लड़ा और वह 4 हजार वोटों से जीत गईं.

उसी बीच गजाला की मुलाकात चौधरी बशीर से हुई. वह भी विधायक थे. जैसेजैसे दोनों की मुलाकातें बढ़ीं, उन के बीच दूरियां घटती गईं. 4 दिसंबर, 2011 को गजाला ने चौधरी बशीर से निकाह कर लिया. उन्होंने सन 2012 में देवरिया की रामपुर कारखाना सीट से समाजवादी पार्टी के टिकट से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. गजाला लारी कानपुर के जाजमऊ में रहती हैं. उन का एक बेटा मंजर लारी है, जो उन्नाव में पैट्रोल पंप चलाता है.

तैयब कुरैशी के बड़े बेटे का विवाह हो चुका था, जबकि छोटा बेटा शारिक अभी अविवाहित था. शारिक शरीर से हृष्टपुष्ट और खूबसूरत था. तैयब कुरैशी उस के लिए लड़की तलाश रहे थे. उसी बीच उन के यहां सोफिया का रिश्ता आया. सोफिया मूलरूप से चेन्नै की रहने वाली थी. उस के पिता समीर अहमद की मौत हो चुकी थी. उस का ननिहाल कानपुर के पौश इलाके स्वरूपनगर में था. वह भाई और बहन के साथ नाना के साथ रहती थी. वह शादी लायक हो गई थी, इसलिए नानानानी उस के लिए लड़का देख रहे थे.

ऐसे में उन के किसी रिश्तेदार ने उन्हें तैयब कुरैशी के बेटे शारिक के बारे में बताया. तैयब कुरैशी संपन्न आदमी थे, लड़का भी ठीकठाक था, इसलिए सोफिया के नानानानी तैयब कुरैशी के घर जा पहुंचे. लड़का सोफिया के नाना को पसंद आ गया. इस के बाद तैयब कुरैशी ने भी पत्नी के साथ जा कर सोफिया को देखा. पहली ही नजर में दोनों को सोफिया पसंद आ गई.

इस के बाद रिश्ता पक्का हो गया. भाई की शादी तय होने की बात विधायक गजाला लारी को पता चली तो उन्हें भी खुशी हुई. भाई की शादी को वह यादगार बनाना चाहती थीं, इसलिए उन्होंने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव, शिवपाल सिंह यादव सहित कानपुर के विधायक इरफान सोलंकी, सतीश निगम और मुनींद्र शुक्ला को भी आमंत्रित किया.

12 जून, 2015 को कानपुर के स्टेटस क्लब में धूमधाम से सोफिया का निकाह शारिक के साथ हो गया. इस विवाह में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, शिवपाल सिंह यादव सहित तमाम मंत्रियों और विधायकों ने भाग लिया था. सोफिया की शादी में एक बीएमडब्ल्यू कार, 10 लाख रुपए नकद तथा 20 लाख के गहने दहेज में दिए गए थे. कुल मिला कर 75 लाख का दहेज दिया गया था. शादी के बाद सोफिया मन में रंगीन सपने लिए ससुराल आ गई.

ससुराल में सोफिया के कुछ दिन तो ठीकठाक गुजरे, पर जल्दी ही उसे लगने लगा कि वह जो सपने ले कर ससुराल आई थी, वे बिखरने लगे हैं. सास महजबीं का व्यवहार सोफिया के प्रति रूखा हो गया था. वह बातबात में सोफिया को डांटनेफटकारने के साथ मायके वालों को ताने मारती रहती थी. सोफिया यह सब बरदाश्त करती रही.

2 महीने बीते थे कि शौहर शारिक का व्यवहार भी बदल गया. वह भी बातबात में सोफिया को डांटनेफटकारने लगा. कभीकभी मां के कहने पर उसे मार भी बैठता. धीरेधीरे यह सिलसिला बढ़ता ही गया. ससुराल वालों के इस रवैए से सोफिया परेशान रहने लगी. सास हमेशा कम दहेज लाने का ताना मारती रहती.

सास की जलीकटी सुन कर सोफिया की आंखों में आंसू आ जाते. पर उस के आंसुओं को वहां कोई देखने वाला नहीं था. ससुराल में घर का काम करने के लिए नौकरनौकरानियां थे, लेकिन सोफिया को अपना सारा काम खुद करना पड़ता था. सास ने सभी नौकरों को उस का काम करने से मना कर रखा था.

सोफिया ने सास और शौहर द्वारा परेशान करने की बात कई बार ससुर तैयब कुरैशी से बताई, पर उन्होंने पत्नी और बेटे का ही पक्ष लिया. इस तरह ससुर भी उसे परेशान करने लगे. सोफिया ने परेशान करने वाली बात ननद गजाला लारी को बताई  तो उस ने भी मां और भाई का ही पक्ष ले कर सोफिया से अपना मुंह बंद रखने को कहा.

इस तरह की परेशानी में सोफिया गर्भवती हुई तो ससुराल वाले खुश होने के बजाय उन्हें जैसे सांप सूंघ गया. दरअसल, सोफिया के ससुराल वाले नहीं चाहते थे कि वह मां बने. इसलिए वे उसे और परेशान करने लगे. उसे मारापीटा तो जाता, मानसिक रूप से परेशान भी किया जाता. इस तरह परेशान करने के बावजूद भी सोफिया ने अपने गर्भ पर आंच नहीं आने दी.

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31 मई, 2016 को सोफिया ने बेटे को जन्म दिया. बेटा पैदा होने से सोफिया जहां खुश थी, वहीं ससुराल वाले परेशान थे. सोफिया का बेटा अभी एक महीने का भी नहीं हुआ था कि शारिक, उस की मां महजबीं और पिता तैयब कुरैशी ने सोफिया से मायके से एक करोड़ रुपए तथा एक लग्जरी स्पोर्ट्स कार लाने को कहा.

शारिक का कहना था कि उसे अपना कारोबार बढ़ाने के लिए रुपयों की सख्त जरूरत है, इसलिए हर हाल में वह मायके से एक करोड़ रुपए ले आए. सोफिया ने ससुराल वालों की इस मांग को ठुकराते हुए कहा कि उस के घर वाले पहले ही महंगी कार, नकदी और काफी गहने दे चुके हैं, इसलिए अब और कुछ मांगना ठीक नहीं है.

सोफिया की इस बात पर शारिक ने उस की जम कर पिटाई कर दी. इस के बाद रुपए और कार लाने के लिए सोफिया को प्रताडि़त किया जाने लगा. उसी बीच सोफिया को कहीं से पता चला कि शारिक के किसी लड़की से मधुर संबंध हैं. उस ने सच्चाई का पता लगा लिया और वह पति के इस संबंध का विरोध करने लगी तो उसे और ज्यादा प्रताडि़त किया जाने लगा.

जुलाई, 2016 में परेशान हो कर सोफिया ननिहाल आ गई. ननिहाल में आने के कुछ दिनों बाद ही उस के बेटे की तबीयत खराब हो गई, वह उसे दिखाने के लिए डाक्टर के पास गई. डाक्टर ने कहा कि वह अपने शौहर को साथ लाए, तभी बच्चे का इलाज संभव है. सोफिया ने घर आ कर शारिक को फोन किया तो उस ने कहा कि वह शहर से बाहर है.

सोफिया ने किसी परिचित को शारिक के बाहर होने की बात कह कर मदद मांगी तो उस परिचित ने बताया कि शारिक शहर से बाहर नहीं है, वह रेव थ्री मौल में घूम रहा है. सोफिया तुरंत मौल पहुंच गई. शारिक सचमुच वहां एक लड़की के साथ घूमता मिल गया. वह उस से हंसहंस कर बातें कर रहा था.

शौहर को लड़की के साथ देख कर सोफिया को गुस्सा आ गया. वह लड़की को खरीखोटी सुनाने लगी तो शारिक ने विरोध किया. इस के बाद दोनों में झगड़ा होने लगा. गुस्से में सोफिया ने शारिक को थप्पड़ मार दिया. झगड़ा होते देख भीड़ जुट गई. मामला थाना कोहना पहुंचा.

सोफिया ने रिपोर्ट लिखानी चाही. लेकिन शारिक ने अपना परिचय दे कर बताया कि वह सत्तापक्ष की विधायक गजाला लारी का भाई है तो पुलिस ने पतिपत्नी का झगड़ा बता कर रिपोर्ट दर्ज नहीं की. इस के बाद सोफिया का ससुराल में उत्पीड़न और बढ़ गया. उस ने गजाला लारी से शिकायत की तो घर की इज्जत की बात कर गजाला ने उस का मुंह बंद करा दिया.

बहन के दखल से शारिक के हौसले और बढ़ गए. वह सोफिया को और ज्यादा परेशान करने लगा. 13 अगस्त, 2016 को शारिक शराब पी कर आया और सोफिया से गालीगलौज करने लगा. सोफिया ने विरोध किया तो उस ने मारनापीटना शुरू कर दिया.

इस के बाद नशे में ही शारिक ने ‘तलाक तलाक तलाक’ कह कर रात 3 बजे मासूम बच्चे के साथ सोफिया को घर से निकाल दिया. सोफिया ने ननिहाल जाने से मना किया तो जबरन कार में बैठा कर सुनसान इलाके में ले जा कर सोफिया और बच्चे को जान से मारने की कोशिश की. सोफिया ने शोर मचा दिया तो कुछ लोग आ गए, जिस से सोफिया बच गई. खुद को फंसता देख कर शारिक कार ले कर भाग गया.

शारिक को शक था कि सोफिया पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराएगी, इसलिए उस ने पूरी बात विधायक बहन गजाला लारी को बता दी. गजाला ने सोफिया से बात की और रिपोर्ट दर्ज कराने से मना किया. गजाला के बेटे मंजर ने भी सोफिया को धमका कर किसी भी तरह की काररवाई करने से मना किया.

लेकिन किसी भी तरह के दबाव में न आ कर सोफिया थाना स्वरूपनगर पहुंच गई. लेकिन पुलिस ने विधायक से जुड़ा मामला जान कर रिपोर्ट दर्ज नहीं की. सोफिया थाने से बाहर निकली तो रास्ते में शारिक मिल गया. उस ने एक बार फिर उस के साथ मारपीट की. यह स्थान थाना कोहना के अंतर्गत आता था.

सोफिया थाना कोहना पहुंची और शौहर के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराना चाहा. यहां भी विधायक की वजह से रिपोर्ट दर्ज नहीं हुई. हताश हो कर सोफिया घर लौट आई. इस के बाद भी गजाला और उस का बेटा मंजर उसे धमकाते रहे. काफी प्रयास के बाद भी जब सोफिया का तलाक और दहेज उत्पीड़न का मामला दर्ज नहीं हुआ तो सोफिया ने भाजपा के कुछ नेताओं से संपर्क किया.

उन नेताओं को अपनी व्यथा बता कर मदद मांगी तो उन की मदद से सितंबर, 2016 में थाना कर्नलगंज पुलिस ने सोफिया की तहरीर पर घरेलू हिंसा का मामला मामूली धाराओं में दर्ज कर लिया. पुलिस ने मामला तो दर्ज कर लिया, लेकिन सत्ता पक्ष की विधायक गजाला लारी के दबाव में कोई काररवाई नहीं की. इस तरह मामला ठंडे बस्ते में पड़ा रहा.

चूंकि भाजपा नेताओं ने सोफिया की मदद की थी, इसलिए सोफिया ने उन के कहने पर 13 दिसंबर, 2016 को भाजपा के क्षेत्रीय कार्यालय में भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली. इस के बाद वह भाजपा की सक्रिय सदस्य बन गई. सोफिया उत्पीड़न के खिलाफ लड़ ही रही थी कि 3 तलाक का मुद्दा उठा और मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया. सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संविधान पीठ ने 18 महीने तक सुनवाई की और 22 अगस्त, 2017 को 3 तलाक के खिलाफ फैसला सुना दिया.

इस फैसले के चंद घंटे बाद ही सोफिया थाना स्वरूपनगर पहुंच गई और ससुराल वालों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी. सोफिया को भरोसा है कि अब सपा सरकार नहीं है, इसलिए उस की ननद गजाला लारी का सिक्का नहीं चलेगा और उन्हें न्याय मिलेगा.

इस सब के बारे में जब सपा की पूर्व विधायक गजाला लारी, उन के मातापिता तथा भाई शारिक से बात की गई तो उन्होंने सोफिया के आरोपों को बेबुनियाद बताते हुए कहा कि सोफिया अपने मन से मायके गई थी. उस से कभी दहेज नहीं मांगा गया. उसे कभी प्रताडि़त भी नहीं किया गया, बल्कि वह खुद ही उन लोगों को परेशान करती रही थी.

गजाला का कहना था कि सोफिया ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण की है, इसलिए भाजपा नेताओं के उकसाने पर दहेज उत्पीड़न और अन्य धाराओं में उन के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया गया है. जांच में सच्चाई सामने आ जाएगी. उन के बेटे मंजर लारी का भी इस मामले से कोई संबंध नहीं है. परेशान करने के लिए उसे भी आरोपी बना दिया गया है.

बहरहाल, मामले की जांच चल रही है. सबइंसपेक्टर कपिल दुबे कई बार छापा मार चुके हैं, लेकिन अभी तक इस मामले में कोई भी पकड़ा नहीं जा सका है. पुलिस पकड़ने का प्रयास कर रही है.

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धोखे से तलाकनामे पर हस्ताक्षर

उत्तर प्रदेश के जिला सुलतानपुर के थाना कूरमार क्षेत्र के टीकर गांव के रहने वाले मोहम्मद इसलाम के बेटे आजम का निकाह 17 मार्च, 2016 को अंबेडकर जिले के भीटी थाना क्षेत्र के रेऊना गांव के रहने वाले शाकिर अली की बेटी रोशनजहां से हुआ था. निकाह के बाद से ससुराल वाले रोशनजहां को दहेज के लिए ताना देने लगे थे.

उन लोगों की मांग थी कि रोशनजहां के घर वाले एक लाख रुपया नकद और सोने की अंगूठी दें. दहेज न मिलने पर रोशनजहां के साथ मारपीट शुरू हो गई. एक दिन वह भी आया, जब रोशनजहां को मारपीट कर घर से निकाल दिया गया. रोशन के पिता ने बेटी का घर बचाने के लिए सुलह का प्रयास किया. 16 अप्रैल, 2017 को धर्म के कुछ संभ्रांत लोगों की मौजूदगी में पंचायत हुई.

इसी दौरान रोशन के शौहर आजम ने उसे धोखे से बहलाफुसला कर तलाकनामे पर हस्ताक्षर करा लिए. जब यह बात रोशनजहां को पता चली तो सदमे में आ गई.

कोई रास्ता न देख उस ने थाने जा कर पति मोहम्मद आजम, ससुर मोहम्मद इसलाम, सास आयशा बेगम, ननद गुडि़या और देवर गुड्डू के खिलाफ तहरीर दे कर काररवाई की मांग की.

थानाप्रभारी नंदकुमार तिवारी ने पांचों आरोपियों के विरुद्ध भादंवि की धारा 498ए और 323 व 3/4 दहेज उत्पीड़न का मामला दर्ज कर के सभी को गिरफ्तार कर लिया.

वे देश जहां 3 तलाक पर पाबंदी है

देश को आजाद हुए 70 साल हो गए हैं, लेकिन मुसलिम महिलाओं को असली आजादी 22 अगस्त को तब मिली, जब सुप्रीम कोर्ट ने 3 तलाक पर रोक लगाते हुए इसे असंवैधानिक करार दे दिया. एक तरह से 3 तलाक पर अब प्रतिबंध लग गया है. यह प्रतिबंध लगाने में देश को 70 साल लग गए, जबकि दुनिया के ऐसे तमाम देश हैं, जहां इस पर पहले ही प्रतिबंध लगा चुके हैं—

पाकिस्तान : सन 2015 की जनगणना के अनुसार, पाकिस्तान की जनसंख्या 19,90,85,847 है. यह दुनिया का दूसरा सब से अधिक मुसलिम आबादी वाला देश है. वहां ज्यादातर सुन्नी हैं, लेकिन शिया मुसलमानों की संख्या भी काफी है. पाकिस्तान ने सन 1961 में ही 3 तलाक पर प्रतिबंध लगा दिया था.

पाकिस्तान में एक कमेटी की सिफारिशों के आधार पर 3 तलाक को खत्म करने के लिए नियम बनाए गए थे. वहां 3 तलाक लेने के लिए पहले पति को सरकारी संस्था (चेयरमैन औफ यूनियन काउंसिल) के यहां नोटिस देनी पड़ती है. इस के 30 दिनों बाद काउंसिल दोनों के बीच समझौता कराने की कोशिश करती है. इस के बाद 90 दिनों तक इंतजार किया जाता है. इस बीच अगर समझौता हो गया तो ठीक, वरना तलाक मान लिया जाता है.

अल्जीरिया : अफ्रीकी महाद्वीप के देश अल्जीरिया में मुसलिम आबादी 3.47 करोड़ है. यहां भी 3 तलाक पर प्रतिबंध है. अगर कोई दंपत्ति तलाक लेना चाहत है तो उसे कोर्ट की शरण में जाना पड़ता है. कोर्ट पहले दोनों के बीच सुलह की कोशिश करता है, इस के लिए 3 महीने का समय मिलता है. इस बीच अगर सुलह नहीं होती तो कोर्ट कानून के मुताबिक ही तलाक मिलता है.

मिस्र : 7.70 करोड़ से ज्यादा की मुसलिम आबादी वाला देश मिस्र, ऐसा पहला देश है, जहां सन 1929 में कानून-25 के द्वारा घोषणा की गई थी कि एक साथ 3 तलाक कहने पर भी उसे एक ही माना जाएगा और उसे वापस भी लिया जा सकता है.

सामान्य तौर पर जल्दी से जल्दी तलाक लेने का तरीका यह होता है कि पति अपनी पत्नी से 3 तलाक अलगअलग बार जब मासिक चक्र न चल रहा हो, कह कर तलाक ले सकता है. लेकिन मिस्र में इसे 3 तलाक का पहला चरण माना गया है. इस के बाद वहां तलाक के लिए 90 दिन का इंतजार करना पड़ता है.

ट्यूनीशिया : उत्तरी अफ्रीकी महाद्वीप के ट्यूनीशिया देश की मुसलिम आबादी 1.09 करोड़ से ज्यादा है. यहां सन 1956 में तय कर दिया गया था कि तलाक कोर्ट के जरिए ही होगा. कोर्ट पहले दोनों पक्षों में सुलह कराने की कोशिश करता है. जब दोनों में सुलह नहीं होती तो तलाक मान लिया जाता है.

बांग्लादेश : भारत के पड़ोसी और सन 1971 में आजाद हुए बांग्लादेश में मुसलिम आबादी करीब 13.44 करोड़ है. 3 तलाक पर बांग्लादेश में भी प्रतिबंध है. सन 1971 से ही बांग्लादेश में 3 तलाक कोर्ट में मान्य नहीं है.

इंडोनेशिया : दुनिया का सब से ज्यादा मुसलिम आबादी वाला देश इंडोनेशिया है. यहां मुसलमानों की कुल आबादी 20.91 करोड़ से ज्यादा है. इंडोनेशिया में मैरिज रेग्युलेशन एक्ट के आर्टिकल 19 के तहत तलाक कोर्ट के जरिए ही दिया जा सकता है. 3 तलाक वहां मान्य नहीं है.

श्रीलंका : श्रीलंका में कुल आबादी का 10 फीसदी मुसलमान हैं. यहां के नियमों के मुताबिक, कोई मुसलिम पत्नी को तलाक देना चाहता है तो उसे मुसलिम जज काजी को नोटिस देना होता है. इस के बाद जज के साथसाथ दोनों परिवारों के सदस्य उन्हें समझाते हैं. अगर  ?      ?दोनों किसी की बात नहीं मानते तो उन्हें नोटिस दी जाती है. इस के 30 दिनों बाद युवक पत्नी को तलाक दे सकता है. इस के लिए उसे एक मुसलिम जज और 2 गवाहों की भी जरूरत पड़ती है.

यहां शादी और तलाक मुसलिम कानून, 1951 जो 2006 में संशोधित हुआ था, के मुताबिक तुरंत दिया गया 3 तलाक किसी भी नियम के तहत मान्य नहीं है.

तुर्की : तुर्की ने सन 1926 में स्विस सिविल कोड अपना लिया था. यह यूरोप में सब से प्रगतिशील और सुधारवादी कानून माना जाता है. इस के बाद 3 तलाक कानूनी प्रक्रिया के द्वारा ही दिया जा सकता है.

साइप्रस : साइप्रस में मुसलिम आबादी 2.64 लाख है. साइप्रस में भी 3 तलाक कानूनी प्रक्रिया द्वारा ही दिया जाता है.

इराक : एक साथ 3 तलाक को एक ही तलाक माना जाता है. यह ऐसा देश है, जहां पतिपत्नी दोनों ही तलाक दे सकते हैं. इस बीच अदालत झगड़े की वजह की जांच कर सकती है. अदालत सुलह के लिए 2 लोगों की नियुक्ति भी कर सकती है. उस के बाद वह मध्यस्थता कर अंतिम निर्णय सुनाती है.

सूडान : सन 1935 में कुछ प्रावधानों के साथ सूडान ने भी इसी कानून को अपना लिया.

मलेशिया : मलेशिया के सारावाक प्रांत में बिना जज के सलाह के पति तलाक नहीं दे सकता. उसे अदालत में तलाक का कारण बताना होता है. वहां शादी राज्य और न्यायपालिका के अंतर्गत होती है.

ईरान : शिया कानूनों के तहत 3 तलाक को मान्यता नहीं दी गई है.

संयुक्त अरब अमीरात, कतर, जोर्डन: 3 तलाक के मुद्दे पर तैमिया के विचार को स्वीकार कर लिया है.

सीरिया : सन 2014 की जनगणनना के मुताबिक यहां 74 प्रतिशत सुन्नी मुसलमान हैं, लेकिन यहां 1953 से ही 3 तलाक पर प्रतिबंध लगा हुआ है.

विधवा से इश्क में मिली मौत – भाग 3

उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर से 10 किलोमीटर दूर एक छोटा सा कस्बा है-सचेंडी. इसी कस्बे में चंद्रिका सिंह अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी के अलावा एक बेटी आशा उर्फ बिट्टी तथा बेटा बदन सिंह था. चंद्रिका सिंह की कस्बे में प्लास्टिक के सामानों की दुकान थी. दुकान की कमाई से वह अपने परिवार का भरणपोषण करता था.

चंद्रिका सिंह की बेटी आशा बेहद खूबसूरत थी. जवान होने पर उस की सुंदरता में और भी निखार आ गया था. आशा ने हाईस्कूल की परीक्षा अर्मापुर कालेज से पास कर ली थी. वह आगे भी पढ़ना चाहती थी. लेकिन मांबाप ने उस की पढ़ाई बंद करा दी. उस के बाद वह मां के घरेलू काम में हाथ बंटाने लगी.

चंद्रिका सिंह को अब जवान बेटी के ब्याह की चिंता सताने लगी थी. वह उस के योग्य वर की खोज में जुट गए थे. वह अपनी लाडली बेटी का ब्याह उस घर में करना चाहते थे, जहां उसे किसी चीज का अभाव न हो और परिवार भी बड़ा न हो. काफी प्रयास के बाद उन की तलाश बाबू सिंह पर जा कर खत्म हुई.

बाबू सिंह कानपुर शहर में पनकी गंगागंज (भाग एक) की ईडब्लूएस कालोनी में रहता था. वह मूल निवासी तो औरैया के गांव धुवखरी का था, लेकिन सालों पहले कानपुर आ गया था. 3 भाइयों में वह सब से बड़ा था. कानुपर शहर में वह फेरी लगा कर चटाई व पायदान बेचता था. इस धंधे में उस की अच्छी कमाई थी. मातापिता गांव में रहते थे और खेतीबाड़ी से गुजारा करते थे.

चंद्रिका सिंह को बाबू सिंह पसंद आया तो उन्होंने आशा का विवाह उस के साथ कर दिया. शादी के बाद आशा बाबू सिंह की दुलहन बन कर जब ससुराल आई तो बाबू सिंह अपने भाग्य पर इतरा उठा.

शादी के बाद आशा पति के साथ पनकी गंगागंज कालोनी में रहने लगी. दोनों ने बड़े प्यार से जिंदगी की शुरुआत की. हंसीखुशी से 5 वर्ष कब बीत गए, दोनों में से किसी को पता ही नहीं चला. इन 5 सालों में आशा ने एक बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम पंकज रखा. प्यार से पतिपत्नी उसे गोलू कह कर बुलाते थे. पंकज के जन्म से उन की खुशियां दोगुनी बढ़ गईं.

गोलू के जन्म के बाद जब घर खर्च बढ़ा तो आशा भी पति के धंधे में हाथ बंटाने लगी. बाबू सिंह जब फेरी पर चला जाता तो आशा घर के बाहर चटाईपायदान की दुकान सजा लेती.

शुरू में तो उस की बिक्री बहुत कम हुई, लेकिन धीरेधीरे उस की बिक्री होने लगी और कमाई भी होने लगी. इस तरह दोनों की कमाई से घर खर्च मजे से चलने लगा और चार पैसे बचने भी लगे.

समय धीरेधीरे बीतता रहा. समय के साथ पंकज बड़ा होता गया. आशा बेटे को पढ़ाना चाहती थी, लेकिन पंकज का मन पढ़ाई में कम आवारागर्दी में ज्यादा था. उस का स्वभाव भी जिद्दी था. उस की जिद के आगे मांबाप कमजोर पड़ जाते.

आशा उर्फ बिट्टी का जीवन हंसीखुशी से बीत रहा था. वह पति के साथ खुश भी थी. लेकिन उस की यह खुशी ज्यादा दिनों तक कायम न रह सकी. आशा पर कुदरत ने ऐसा कहर बरपाया कि उस के जीवन में ग्रहण लग गया और वह परेशान हो उठी.

हुआ यह कि एक रोज आशा के पति बाबू सिंह को तेज बुखार आया, जिस के बाद उस की मौत हो गई.

पति की आकस्मिक मौत से आशा टूट गई. क्योंकि वह 35 वर्ष की उम्र में ही विधवा हो गई थी.

पति की मौत के बाद आशा की आमदनी आधी रह गई थी. साथ ही घरगृहस्थी का बोझ भी उस के कंधों पर आ गया था. आमदनी बढ़ाने के लिए आशा अब बाजार में भी दुकान लगाने लगी थी. उस का बेटा पंकज उर्फ गोलू अब तक 15 साल का हो चुका था. वह भी मां के काम में हाथ बंटाने लगा था. इस तरह एक बार फिर आशा की जिंदगी पटरी पर आ गई थी.

इन्हीं दिनों आशा के घर दीपक सिंह का आनाजाना शुरू हुआ. दीपक सिंह पनकी गंगागंज (भाग एक) में अपनी मां तारावती व भाई दयानंद सिंह के साथ रहता था. दयानंद सिंह पनकी इंडस्ट्रियल एरिया में स्थित एक जूता फैक्ट्री में काम करता था. उस ने अपने छोटे भाई दीपक सिंह को भी जूता फैक्ट्री में ही नौकरी दिलवा दी थी. 28 वर्षीय दीपक सिंह हट्टाकट्टा जवान था और ठाटबाट से रहता था. उस के पिता रामसिंह की मौत हो चुकी थी.

दीपक सिंह दबंग किस्म का था. आशा उसे भाव देती थी. आशा को जब भी कोई परेशानी होती, वह पप्पू को बताती थी. पप्पू उस की परेशानी दूर करने में मदद कर देता था. पप्पू की दबंगई के कारण आशा से कोई उलझने की हिम्मत नहीं जुटा पाता था.

पप्पू ने अपनी दबंगई से पनकी बाजार में आशा को दुकान सजाने को जमीन भी कब्जा करा दी थी. उस के इस अहसान की आशा कायल थी. पप्पू से आशा उम्र में लगभग 10 वर्ष बड़ी थी.

दीपक सिंह जब भी खाली होता था, आशा के पास आ कर बैठ जाता था. उम्र में छोटा होने के कारण वह आशा को भाभी कहता था और देवर के रिश्ते से हंसीठिठोली भी कर लेता था. इसी हंसीमजाक ने दीपक सिंह के मन में आशा के प्रति प्रेम का बीज अंकुरित कर दिया और जब वह अपने पर काबू नहीं रख सका तो दोनों के बीच अवैध संबंध बन गए.

उस दिन के बाद से दीपक सिंह और आशा के बीच एक नया रिश्ता कायम हो गया. उन के बीच की सारी दूरियां भी खत्म हो गईं. चूंकि आशा अधिकांश समय घर में अकेली ही रहती थी. लिहाजा दीपक को मिलने में कोई दिक्कत नहीं होती थी.

जवान व बलिष्ठ भुजाओं वाले दीपक सिंह का साथ पा कर आशा के जीवन में बहार आ गई थी. उसे अब पति की कमी नहीं खलती थी. दीपक सिंह भी आशा के जिस्म की खुशबू से मदहोश था. उसे जब भी मौका मिलता था, वह उस के साथ मिलाप कर लेता था.