रामकुमार की जानकारी में अपनी पत्नी कंचन की कुछ ऐसी बातें आई थीं, जिस के बाद कंचन उस के लिए अविश्वसनीय हो गई थी. बताने वाले ने रामकुमार को यह तक कह दिया, ‘‘कैसे पति हो तुम, घर वाली पर तुम्हारा जरा भी अकुंश नहीं. इधर तुम काम पर निकले, उधर कंचन सजधज कर घर से निकल जाती है. दिन भर अपने यार के साथ ऐश करती है और शाम को तुम्हारे आने से पहले घर पहुंच जाती है.’’

रामकुमार कंचन पर अगाध भरोसा करता था. पति अगर पत्नी पर भरोसा न करे तो किस पर करे. यही कारण था कि रामकुमार को उस व्यक्ति की बात पर विश्वास नहीं हुआ. वह बोला, ‘‘हमारी तुम्हारी कोई नाराजगी या आपसी रंजिश नहीं है, मैं ने कभी तुम्हारा बुरा नहीं किया. इस के बावजूद तुम मेरी पत्नी को किसलिए बदनाम कर रहे हो, मैं नहीं जानता. हां, इतना जरूर जानता हूं कि कंचन मेकअपबाज नहीं है. शाम को जब मैं घर पहुंचता हूं तो वह सजीधजी कतई नहीं मिलती.’’

‘‘कंचन जैसी औरतें पति की आंखों में धूल झोंकने का हुनर बहुत अच्छी तरह जानती हैं.’’ उस व्यक्ति ने बताया, ‘‘तुम्हें शक न हो, इसलिए वह मेकअप धो कर घर के कपड़े पहन लेती होगी.’’

रामकुमार को तब भी उस व्यक्ति की बातों पर विश्वास नहीं हुआ. वह उस का करीबी था, इसलिए उस ने उसे थोड़ा डांट दिया.

रामकुमार ने उस शख्स को डांट जरूर दिया था, लेकिन उस के मन में यह भी खयाल आया कि कोई इतनी बड़ी बात कह रहा है तो वह हवा में तो कह नहीं रहा होगा. उस ने खुद देखा होगा या उस के पास कोई ठोस सबूत या गवाह होगा. वैसे भी धुंआ वहीं उठता है, जहां आग लगी होती है. लिहाजा वह बेचैन हो गया. उस ने सोचा कि अपनी तसल्ली के लिए वह इस बारे में कंचन से बात जरूर करेगा.

घर पहुंचतेपहुंचते रामकुमार ने कंचन से उक्त संदर्भ में बात करने का इरादा बदल दिया. इस के पीछे कारण यह था कि कोई भी औरत अपनी बदचलनी स्वीकार नहीं करती तो कंचन कैसे कर लेगी. इसीलिए उस ने स्वयं मामले की असलियत का पता लगाने का फैसला कर लिया.

पत्नी के चरित्र को ले कर रामकुमार तनाव में था. उस का वह तनाव चेहरे और आंखों से साफ झलक रहा था. एक दिन कंचन ने उस से पूछा भी, लेकिन रामकुमार ने टाल दिया, बोला, ‘‘मन ठीक नहीं है.’’

‘‘तुम्हारी दवा घर में रखी तो है, पी लो. जी भी ठीक हो जाएगा और चैन की नींद भी सो जाओगे.’’ वह बोली.

तनाव की अधिकता से रामकुमार का सिर फट रहा था. सिर हलका करने और चैन से सोने के लिए उसे स्वयं भी शराब की तलब महसूस हो रही थी. इसलिए वह कंचन से बोला, ‘‘ले आओ.’’

कंचन ने शराब की बोतल, पानी, नमकीन और एक गिलास ला कर पति के सामने रख दिया. रामकुमार ने एक बड़ा पैग बना कर हलक में उड़ेला और सोचने लगा कि कल उसे क्या करना चाहिए.

उत्तर प्रदेश के जनपद जौनपुर के गांव गोहानी में रहता था शंभू सिंह. शंभू सिंह के परिवार में पत्नी पार्वती के अलावा एक बेटा कुलदीप और एक बेटी कंचन थी. कुलदीप पंजाब में रह कर काम करता था. उस की पत्नी गांव में रहती थी.

शंभू सिंह खेतिहर मजदूर था. कमाई कम थी, इसलिए घरपरिवार में किसी न किसी चीज का सदैव अभाव बना रहता था. सुंदर व चुलबुली कंचन मामूली चीजों तक को तरसती रहती थी.

पिता की कमाई कम थी और खर्च अधिक, इसलिए निजी जरूरतें और शौक पूरा करने के लिए कंचन को घर से वांछित रुपए मिल नहीं  सकते थे. इसीलिए वह कभी कोई चीज खाने को तरसती, कभी किसी को अच्छे कपड़े पहने देख ललचाती तो कभी सोचती कि सजनेसंवरने का सामान कैसे खरीदे.

किशोर उम्र की लड़कियों की मानसिकता समझने और उन से लाभ उठाने वालों की दुनिया में कोई कमी नहीं है. गोहानी गांव में भी कुछ ऐसे ठरकी थे. उन्होंने कंचन का लालच समझा तो वह उसे रिझाने लगे. खिलानेपिलाने या कुछ सामान दिलाने के नाम पर वह कंचन के साथ अश्लील हरकत करते.

कुछ समय में ही कंचन समझ गई कि कोई यूं मेहरबान नहीं होता. जो पैसा खर्च करता है, उस के एवज में कुछ चाहता भी है. वह अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए लोगों की इच्छाएं पूरी करने लगी. परिणाम यह हुआ कि कंचन कुछ ही दिनों में पूरे गांव में बदनाम हो गई.

बात पिता शंभू सिंह और मां पार्वती तक पहुंची तो उन्होंने अपना सिर पीट लिया कि बेटी है या आफत की परकाला. छोटी सी उम्र में इतने बड़े गुल खिला रही है. दोनों ने कंचन को खूब मारापीटा, मगर कंचन ने अपनी राह नहीं बदली.

शंभू सिंह और पार्वती जब सारी कोशिश कर के हार गए तब उन्होंने सोचा कि कंचन की जल्द शादी कर के उसे ससुराल भेज दिया जाए, तभी थोड़ीबहुत इज्जत बची रह सकती है.

इस फैसले के बाद शंभू सिंह ने कंचन के लिए वर की तलाश शुरू कर दी. जल्द ही एक अच्छा रिश्ता मिल गया. प्रतापगढ़ जनपद के गांव धर्मपुर निवासी राजेश पटेल से कंचन का रिश्ता तय हो गया. 12 वर्ष पूर्व कंचन का विवाह राजेश पटेल से हो गया.

कंचन को अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए अब किसी और की जरूरत नहीं थी. पति राजेश उस की हर जरूरत पूरी करता था. कालांतर में कंचन ने 2 बेटियों को जन्म दिया.

धीरेधीरे कंचन और राजेश में मतभेद रहने लगे, जिस वजह से उन के बीच वादविवाद होता था. यह वादविवाद कभीकभी विकराल रूप धारण कर लेता था. कंचन को अब अपनी ससुराल काटने को दौड़ती थी. उस का वहां मन नहीं लगता था.

इसी बीच कंचन की मुलाकात रामकुमार दुबे से हो गई. रामकुमार दुबे कन्नौज के गुरसहायगंज का रहने वाला था. 10 सालों से वह हरदोई जिले में रहने वाली अपनी बहन मिथलेश की ससुराल में रहता था. काम की तलाश में वह प्रतापगढ़ आ गया. यहीं पर उसे कंचन मिल गई.

पहली मुलाकात हुई तो उन के बीच बातें हुईं. दोनों की यह मुलाकात काफी अच्छी रही. दोनों ने एकदूसरे को अपना नंबर दे दिया. इस के बाद तो उन की मुलाकातों का सिलसिला चल निकला. फोन पर भी बातें होने लगीं. कुछ ही दिनों में दोनों इतने करीब आ गए कि शादी कर के साथ रहने की सोचने लगे.

दोनों ने साथ रहने का फैसला लिया तो कंचन अपनी ससुराल छोड़ कर उस के पास आ गई. रामकुमार ने साथ रहने के लिए कंचन के कहने पर पहले ही जौनपुर के भुईधरा गांव में जमीन ले कर 2 कमरों का मकान बनवा लिया था. दोनों शादी कर के यहीं रहने लगे. यह 8 साल पहले की बात है. 4 साल पहले कंचन ने एक बेटे को जन्म दिया.

लेकिन अभावों ने कंचन का यहां भी पीछा न छोड़ा. रामकुमार की भी कमाई अधिक नहीं थी. घर का खर्च बड़ी मुश्किल से चलता था. कंचन की मुश्किलें बढ़ने लगीं तो उस ने इधरउधर देखना शुरू कर दिया. उसे ऐसे व्यक्ति की तलाश थी जो उस की जरूरतों पर पैसा खर्च कर सके. इस खेल की तो वह पुरानी खिलाड़ी थी.

उस की तलाश रामाश्रय पटेल पर जा कर खत्म हुई. रामाश्रय जौनपुर के मुगरा बादशाहपुर थाना क्षेत्र के बेरमाव गांव का निवासी था. बेरमाव पंवारा थाना क्षेत्र की सीमा से सटा गांव था. रामाश्रय दिल्ली में रह कर किसी फैक्ट्री में काम करता था. कुछ दिनों बाद वह घर आता रहता था. रामाश्रय विवाहित था और उस के 3 बच्चे भी थे. लेकिन उस की अपनी पत्नी से नहीं बनती थी.

रामाश्रय भुईधरा गांव आता रहता था. इसी आनेजाने में उस की मुलाकात कंचन से हो गई थी. कंचन जान गई थी कि रामाश्रय आर्थिक रूप से काफी मजबूत है. कंचन और रामाश्रय की मुलाकातें होने लगीं. इन मुलाकातों में कंचन ने रामाश्रय के बारे में काफी कुछ जान लिया.

वह यह भी जान गई कि रामाश्रय की अपनी पत्नी से नहीं बनती. यह जान कर वह काफी खुश हुई, उस का काम आसान जो हो गया था. पत्नी से परेशान मर्द को बहला कर अपने पहलू में लाना आसान होता है, यह कंचन बखूबी जानती थी.

कंचन ने अब रामाश्रय को अपने लटकेझटके दिखाने शुरू कर दिए. रामाश्रय भी कंचन के नजदीक आ कर उसे पाने की चाहत रखता था. कंचन के लटकेझटके देख कर वह भी समझ गया कि मछली खुद शिकार होने को आतुर है. वह भी कंचन पर अपना प्रभाव जमाने के लिए खुल कर उस पर अपना पैसा लुटाने लगा.

कंचन की रामाश्रय से नजदीकी क्या हुई, कंचन के अंदर की अभिलाषा जाग गई. कंचन ने अपनी कामकलाओं का ऐसा जादू बिखेरा कि रामाश्रय सौसौ जान से उस पर न्यौछावर हो गया.

रामकुमार के काम पर जाते ही कंचन सजधज कर घर से निकल जाती और रामाश्रय के साथ घूमती और मटरगश्ती करती. रामाश्रय पर कंचन के रूप का जबरदस्त नशा चढ़ा हुआ था. रामकुमार के घर आने से पहले कंचन घर आ जाती थी. घर आने के बाद अपना मेकअप धो कर साफ कर लेती. घर के कपड़े पहन कर घर का काम करने लगती.

कंचन समझती थी कि किसी को उस की रंगरलियों की खबर नहीं है. जबकि वास्तविकता सब जान रहे थे. एक दिन किसी शुभचिंतक ने रामकुमार को उस की पत्नी की रंगरलियों की दास्तान बयां कर दी.

रामकुमार ने इस बाबत कंचन से कोई सवाल नहीं किया. बल्कि उस ने अपने सारे पैग पीतेपीते सोच लिया कि हकीकत का पता करने के लिए उसे क्या करना है.

दूसरे दिन रामकुमार काम पर जाने के लिए घर से तो निकला, पर गया नहीं. कुछ दूरी पर एक जगह छिप कर बैठ गया. उस की नजर घर की ओर से आने वाले रास्ते पर जमी थी.

मुश्किल से आधा घंटा बीता होगा कि कंचन आती दिखाई दी. अच्छे कपड़े, आंखों में काजल, होठों पर लिपस्टिक, कलाइयों में खनकती चूडि़यां उस की खूबसूरती बढ़ा रही थी.

कंचन जैसे ही नजदीक आई. रामकुमार एकदम से छिपे हुए स्थान से निकल कर उस के सामने आ खड़ा हुआ. पति को अचानक सामने देख कर कंचन भौचक्की रह गई. वह रामकुमार से पूछना चाहती थी कि वह यहां कैसे, काम पर गए नहीं या लौट आए. मगर मानो वह गूंगी हो गई. चाह कर भी आवाज उस के गले से नहीं निकली.

रामकुमार ने कंचन की आंखों में देख कर भौंहें उचकाईं, ‘‘छमिया बन कर कहां चलीं… यार से मिलने? अपना मुंह काला करने और मेरी इज्जत की धज्जियां उड़ाने.’’

कंचन घबराई, लेकिन जल्दी ही खुद को संभालते हुए बोली, ‘‘नहाधो कर घर से निकलना भी अब जुल्म हो गया. दुखी हो गई हूं मैं तुम से.’’

‘‘घर चल, तब मैं बताता हूं कि कौन किस से दुखी है.’’

दोनों घर आए तो उन के बीच जम कर झगड़ा हुआ. कंचन अपनी गलती मानने को तैयार नहीं थी. उस का कहना था कि वह रामाश्रय से मिलने नहीं, अपनी सहेली से मिलने जा रही थी.

रामकुमार ने कंचन पर अंकुश लगाने का हरसंभव प्रयास किया, मगर वह नाकाम रहा.

14 मई को गांव रामपुर हरगिर के पास शारदा नहर के किनारे लोगों ने एक लाश देखी. देखते ही देखते वहां काफी संख्या में लोग जमा हो गए. लाश को ले कर लोग तरहतरह की चर्चाएं करने लगे. इसी बीच रामपुर हरगिर गांव के अजय कुमार नाम के व्यक्ति ने संबंधित थाना पंवारा को लाश मिलने की सूचना दे दी.

सूचना पा कर थानाप्रभारी सेतांशु शेखर पंकज अपनी टीम के साथ घटनास्थल की ओर रवाना हो गए. वहां पहुंच कर उन्होंने लाश का निरीक्षण किया. मृतक की उम्र लगभग 35-36 वर्ष रही होगी. मृतक के शरीर की खाल पानी में रहने से गल गई थी. लाश देखने में 2-3 दिन पुरानी लग रही थी. मृतक के दाएं हाथ पर रामकुमार पटेल और कंचन गुदा हुआ था.

थानाप्रभारी सेतांशु शेखर ने लाश के कई कोणों से फोटो खींचने के साथ नाम का जो टैटू था, उस की भी फोटो खींच ली. घटनास्थल का निरीक्षण किया गया तो पास से चाकू, रस्सी और कपड़े बरामद हुए.

वहां मौजूद लोगों से लाश की शिनाख्त कराने की कोशिश की गई, लेकिन कोई भी लाश को नहीं पहचान सका. थानाप्रभारी सेतांशु शेखर ने लाश पोस्टमार्टम हेतु भेज दी. फिर अजय कुमार को साथ ले कर थाने आ गए.

अजय कुमार की लिखित तहरीर पर थानाप्रभारी ने अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत थाने में मुकदमा दर्ज करा दिया. थाने के सिपाहियों को लाश पर मिले टैटू की फोटो दे कर अपने थाना क्षेत्र और आसपास के थाना क्षेत्र में भेजा, जिस से मृतक के बारे में कोई जानकारी मिल सके. उन का यह प्रयास सफल भी हुआ.

गोहानी गांव में टैटू देख कर लोगों ने पहचाना कि कंचन तो उसी गांव की बेटी है, रामकुमार उस का पति है. वह टैटू देख कर यह लगा कि वह लाश रामकुमार की थी.

जानकारी मिली तो थानाप्रभारी सेतांशु शेखर गोहानी गांव पहुंच गए. रामकुमार की ससुराल गोहानी में थी. वहां रामकुमार की पत्नी कंचन मौजूद थी. उस के साथ में रामाश्रय था. रामाश्रय का पता पूछा तो उस का गांव बेरमाव था जोकि घटनास्थल से काफी करीब था.

रामकुमार की हत्या होना, उस समय उस की पत्नी कंचन का मायके में होना और उस के साथ जो व्यक्ति रामाश्रय मिला उस के गांव के नजदीक रामकुमार की लाश मिलना, यह सब इत्तिफाक नहीं था. सुनियोजित साजिश के तहत घटना को अंजाम देने की ओर इशारा कर रहा था.

इस बात को थानाप्रभारी बखूबी समझ गए थे. इसलिए उन्होंने शक के आधार पर पूछताछ हेतु दोनों को हिरासत में ले लिया और थाने वापस आ गए.

थाने ला कर उन दोनों से पहले अलगअलग फिर आमनेसामने बैठा कर कड़ाई से पूछताछ की गई तो वे दोनों टूट गए और हत्या के पीछे की वजह बयान कर दी.

कंचन और रामाश्रय दोनों के संबंधों को ले कर हर रोज घर में रामकुमार झगड़ा करने लगा. वह उन के मिलने में अड़चनें पैदा करने लगा तो कंचन ने रामाश्रय से रामकुमार को हमेशा के लिए अपने रास्ते से हटाने के लिए कह दिया. यह घटना से करीब एक हफ्ते पहले की बात है. दोनों ने पूरी योजना बना ली.

योजनानुसार कंचन अपने मायके गोहानी चली गई. 11/12 मई की रात रामाश्रय रामकुमार के पास गया. उस से कंचन से संबंध खत्म करने की बात कही. फिर एक नई शुरुआत करने के बहाने उसे अपने साथ ले गया. रामकुमार को उस ने जम कर शराब पिलाई. देर रात एक बजे रामाश्रय रामकुमार को रामपुर हरगिर गांव के पास ले गया. उस समय रामकुमार नशे में धुत था.

रामाश्रय ने साथ लाए चाकू से गला काट कर रामकुमार की हत्या कर दी. उस के बाद उस के हाथपैर रस्सी और कपड़े से बांध कर लाश नहर में डाल दी लेकिन लाश नदी में स्थित बिजली के आरसीसी के बने खंभों में फंस कर रह गई. नदी के बहाव में वह नहीं बह सकी. रामाश्रय यह नहीं देख पाया.

वह तो चाकू वहीं फेंक कर घर चला गया. अगले दिन वह कंचन के पास उस के मायके पहुंच गया. वहां वह कंचन के साथ पुलिस के हत्थे चढ़ गया.

मुकदमे में भादंवि की धारा 201/120बी/34 और जोड़ दी गईं. कानूनी लिखापढ़ी करने के बाद दोनों को न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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