जिद ने उजाड़ा आशियाना – भाग 1

अदालत के आदेश पर बीवी पर गोली चलाने वाले इकबाल को जेल पहुंचाने आई पुलिस टीम उसे जेल स्टाफ को सौंपने के लिए लिखापढ़ी की काररवाई कर रही थी, तभी थाना रामगंज के थानाप्रभारी रामकिशन बिश्नोई के रीडर जगदीश चौधरी ने इकबाल को जो बताया, उसे सुन कर उस का चेहरा सफेद पड़ गया. उस की आंखों से पश्चाताप के आंसू बहने लगे.

जेल में ऐसा होना आम बात है. लेकिन इकबाल का मामला कुछ अलग तरह का था. वह नासमझ नहीं, पढ़ालिखा इंसान था. दिल्ली के जामिया मिल्लिया विश्वविद्यालय से एम.फिल. कर रहा था. पढ़ालिखा और समझदार होने के बावजूद उस ने गुस्से में बीवी को एक नहीं, 2 गोलियां मार दी थीं. उस ने गोलियां ऐसी जगह मारी थीं, जिस से वह मरे न, लेकिन वह मर गई थी.

इस बात की जानकारी इकबाल को तब तक नहीं थी. उसे यही मालूम था कि उस का अस्पताल में इस इलाज चल रहा है. यही वजह थी कि जेल स्टाफ को सौंपते समय जब रीडर जगदीश चौधरी ने उसे बताया कि उस की बीवी शफकत मर चुकी है तो वह सन्न रह गया था.

बीवी की मौत के बारे में जान कर इकबाल की आंखों से आंसू बहने लगे थे. उस के दोनों हाथ दुआओं के लिए उठ गए थे. इस के बाद हथेली से आंसू पोंछते हुए उस ने कहा, ‘‘साहब, मैं शफकत से बहुत प्यार करता था और शायद इतना ही प्यार हमेशा करता रहूंगा. आप मेरे सासससुर से कहिएगा कि वे उस की कब्र पर कोई निशान लगा कर रखेंगे. मैं जेल से बाहर आऊंगा तो बाकी की जिंदगी उसी की कब्र पर बिताऊंगा. क्योंकि अब मैं सिर्फ उसी का हो कर रहना चाहता हूं. मैं अपने सासससुर से भी दूर नहीं रहना चाहता. ताउम्र उन से नाता बनाए रखना चाहता हूं.’’

जयपुर (उत्तर) के थाना रामगंज की पुलिस ने इकबाल को 19 अगस्त को अपनी बीवी शफकत को गोली मारने के आरोप में गिरफ्तार किया था. लेकिन अस्पताल पहुंचतेपहुंचते शफकत की मौत हो गई थी. पुलिस ने इकबाल को अदालत में पेश कर के पूछताछ के लिए 3 दिनों के पुलिस रिमांड पर ले लिया था.

उस की मनोस्थिति को देखते हुए पुलिस ने उसे यह नहीं बताया था कि शफकत अब इस दुनिया में नहीं रही. बीवी की मौत के बारे में जानकारी न होने की वजह से इकबाल रिमांड अवधि के दौरान खुदा से शफकत के जल्द से जल्द ठीक होने की दुआएं मांगता रहा.

लेकिन रिमांड अवधि खत्म होने पर अदालत के आदेश पर इकबाल को न्यायिक हिरासत में भेजा गया तो उसे जेल पहुंचाने आई पुलिस टीम में शामिल रीडर जगदीश चौधरी ने जब उसे बताया कि शफकत अब इस दुनिया में नहीं रही तो उस ने रोते हुए कहा, ‘‘आप झूठ बोल रहे हैं. ऐसा कैसे हो सकता है. उस ने साथ जीने और मरने की कसमें खाई थीं. वह मुझे इस तरह छोड़ कर नहीं जा सकती. सासससुर ने शफकत को मेरे साथ नहीं भेजा, इसीलिए मैं ने उसे गोली मारी थी. मुझे पता नहीं था कि इस तरह वह मेरा साथ छोड़ देगी.’’

इकबाल की बातें सुन कर पुलिस वालों को भी उस पर दया आ गई थी. पुलिस वालों ने इकबाल को समझाबुझा कर शांत किया और उसे जेलकर्मियों के हवाले कर दिया. जेल वाले उसे बैरक में ले गए. जेल की बैरक में पहुंच कर इकबाल अपनी मोहब्बत की दुनिया में खो गया. उस की आंखों के सामने शफकत से प्यार, निकाह और बेटे अथर के पैदा होने से ले कर गोली मारने तक की पूरी घटना फिल्म की तरह चलने लगी.

हरियाणा के नूंह जिले की पुन्हाना तहसील के गांव बिछोर के रहने वाले याकूब खां के बड़े बेटे इकबाल ने गांव से इंटर पास कर के आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली के जामिया मिल्लिया विश्वविद्यालय में दाखिला ले लिया था.  जिन दिनों इकबाल एमए कर रहा था, उस की जानपहचान अब्दुल्ला से हुई. लखनऊ का रहने वाला अब्दुल्ला इकबाल से सीनियर था. उस समय वह जामिया से ही पीएचडी कर रहा था, साथ ही वह किसी प्राइवेट स्कूल में पढ़ाता भी था.

अब्दुल्ला से इकबाल की जानपहचान हुई तो वह उसी के साथ उसी के कमरे में रहने लगा. साथ रहने की वजह से दोनों की दोस्ती और गहरी हो गई तो वे अपनेअपने परिवारों तथा दुखदर्द के साथसाथ दुनियाजहान की बातें करने लगे. अब्दुल्ला के रिश्ते के एक भाई शमशाद अहमद जयपुर में रहते थे. मूलरूप से वह उत्तर प्रदेश के जिला बिजनौर के थाना नांगल सोती के गांव सबलपुरा बीतरा के रहने वाले थे. सन 2008 में वह अपने परिवार के साथ जयपुर आ गए थे और वहां वह रामगंज स्थित रैगरों की कोठी में किराए का मकान ले कर रहने लगे थे.

शमशाद अहमद एमए पास थे, लेकिन उन्होंने नौकरी करने के बजाय व्यवसाय को महत्व दिया. जयपुर में उन्होंने हल्दियों का रास्ता में बच्चों के कपड़ों की दुकान खोली, जो बढि़या चल रही है. दुकान से उन्हें ठीकठाक आमदनी होती थी, जिस से वह आराम की जिंदगी बसर कर रहे थे. वह खुद पढ़ेलिखे थे, इसलिए उन्होंने अपने बच्चों की भी पढ़ाई पर विशेष ध्यान दिया. शमशाद की 6 संतानों में 4 बेटियां और 2 बेटे थे. शफकत उन की दूसरे नंबर की बेटी थी. उस का पूरा नाम था शफकत खानम.

अब्दुल्ला और इकबाल में जब कभी घरपरिवार और नातेरिश्तेदारों की बातें होतीं तो कभीकभी शमशाद अहमद की बेटी शफकत का भी जिक्र हो जाता. शफकत जयपुर के वैदिक कन्या कालेज से बीएससी कर रही थी. उसी बीच अब्दुल्ला के साथ इकबाल भी एकदो बार जयपुर घूमने गया.

चूंकि वहां अब्दुल्ला भाई के घर रुकता था, इसलिए दोस्त होने के नाते इकबाल भी वहीं रुकता था. इसी आनेजाने और घर में रुकने की वजह से इकबाल और शफकत खानम के दिलों में एकदूसरे के लिए चाहत पैदा हो गई. इस के बाद कभीकभी इकबाल से मिलने के लिए शफकत अपने चाचा अब्दुल्ला के पास दिल्ली आने लगी.

अब तक दोनों एकदूसरे से काफी खुल चुके थे. अब्दुल्ला को दोस्त पर विश्वास था, इसलिए वह शफकत को उस के साथ अकेली छोड़ कर चला जाता था. ऐसे में ही एक दिन इकबाल और शफकत शाहरुख खान की फिल्म ‘बाजीगर’ देख रहे थे तो टीवी स्क्रीन पर गाना आया, ‘किताबें बहुत सी पढ़ी होंगी तुम ने, मगर कोई चेहरा भी तुम ने पढ़ा है..?’

इस लाइन के पूरा होते ही शफकत ने इकबाल की कलाई थाम कर शरारत भरे अंदाज में कहा, ‘‘क्या तुम ने भी किसी का चेहरा पढ़ा है?’’

इकबाल उस की शरारत को समझ गया. इसलिए गाने की लय से लय मिलाते हुए बोला, ‘‘पढ़ा है, मेरी जां नजर से पढ़ा है…’’

अब भला शफकत क्यों चुप रहती. उस ने गाने को आगे बढ़ाया, ‘‘बता, मेरे चेहरे पर क्याक्या लिखा है?’’

इस तरह शरारतशरारत में मोहब्बत का इजहार हो गया तो कभी इकबाल शफकत से मिलने जयपुर जाने लगा तो कभी शफकत उस से मिलने दिल्ली आने लगी. इन मुलाकातों में दोनों साथसाथ जीनेमरने की कसमें खाते हुए भविष्य के सपने बुनने लगे.

विधवा से इश्क में मिली मौत – भाग 1

उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर के कस्बा पनकी की एक कालोनी है गंगागंज. इसी कालोनी का रहने वाला दीपक सिंह उर्फ पप्पू रात 10 बजे खाना खाने के बाद घर के बाहर जाने लगा तो उस की मां तारावती ने टोका, ‘‘पप्पू बेटा, इतनी रात को तू कहां जा रहा है? खाना खा लिया है. अब कमरे में जा कर आराम करो. सुबह फैक्ट्री भी तो काम पर जाना है.’’

‘‘अम्मा, दोस्त का फोन आया है. उसी से मिलने जा रहा हूं. शायद उसे मुझ से कोई जरूरी काम होगा. तुम चिंता मत करो, एकाध घंटे में वापस घर आ जाऊंगा,’’ कह कर दीपक घर से चला गया.

उस के जाने के बाद तारावती भी कमरे में जा कर चारपाई पर लेट गई. लेकिन उस की आंखों से नींद कोसों दूर थी. वह बेटे के इंतजार में कभी चारपाई पर लेटती तो कभी उठ कर बैठ जाती. कभी उस की निगाहें घड़ी की सुइयों पर टिक जातीं तो कभी दरवाजे की तरफ टकटकी लगा कर देखने लगती.

इंतजार करतेकरते जब रात के 12 बज गए और दीपक घर वापस नहीं आया तो तारावती का सब्र जवाब दे गया. वह चारपाई से उठी और बड़े बेटे दयानंद सिंह के कमरे में जा पहुंची. उस ने उसे बताया कि दीपक अभी तक घर वापस नहीं आया है. मां की बात सुन कर दयानंद सिंह के माथे पर भी बल पड़ गए. उस ने दीपक को कई बार फोन मिलाया. लेकिन उस का फोन बंद था. इस के बाद ज्योंज्यों रात गहराती जा रही थी, त्योंत्यों उन दोनों की चिंता बढ़ती जा रही थी. यह बात 13 जनवरी, 2023 की है.

रात तो जैसेतैसे कट गई, सुबह 6 बजे किसी ने जोरजोर से दयानंद का दरवाजा पीटना शुरू किया तो दयानंद ने दरवाजा खोला. सामने पड़ोसी राजू खड़ा था. वह बेहद घबराया हुआ था. उस ने बताया, ‘‘दया भैया, मैं खाली पड़े प्लौट में कूड़ा डालने गया तो वहां एक लाश देखी. ऐसा लगता है कि वह लाश तुम्हारे छोटे भाई…’’ आगे के शब्द राजू के गले में ही अटक गए.

राजू की बात सुन कर दयानंद सिंह की सांसें अटक गईं. वह नंगे पांव ही राजू के साथ चल पड़ा. खाली प्लौट उस के घर से करीब 200 मीटर की दूरी पर था. चंद मिनटों में ही वे दोनों प्लौट पर पहुंच गए. उस समय वहां पर कुछ और लोग भी मौजूद थे. दयानंद सिंह ने शव को गौर से देखा तो फफक पड़ा. क्योंकि वह लाश उस के छोटे भाई 30 वर्षीय दीपक सिंह उर्फ पप्पू की ही थी.

इस के बाद तो दयानंद सिंह के घर में कोहराम मच गया. तारावती बेटे का शव देख कर फूटफूट कर रोने लगी. कुछ ही देर में पनकी गंगागंज में दीपक सिंह उर्फ पप्पू की हत्या की खबर फैली तो लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा.

14 जनवरी, 2023 की सुबह 8 बजे दयानंद सिंह थाना पनकी पहुंचा. उस समय एसएचओ विक्रम सिंह थाने में ही थे. दयानंद सिंह ने उन्हें अपना नाम व पता बताने के बाद अपने छोटे भाई दीपक सिंह उर्फ पप्पू की हत्या की जानकारी दे दी.

हत्या की सूचना पाते ही एसएचओ विक्रम सिंह ने कुछ पुलिसकर्मियों को साथ लिया और घटनास्थल की ओर रवाना हो लिए. रवाना होने से पहले उन्होंने हत्या की सूचना से अपने अधिकारियों को भी दे दी थी.

जब वह घटनास्थल पर पहुंचे तो वहां एक युवक की लाश पड़ी थी. उस समय वहां भीड़ जुटी थी. एसएचओ विक्रम सिंह ने शव का बारीकी से निरीक्षण शुरू किया. मृतक दीपक सिंह की हत्या किसी ठोस वस्तु से सिर पर प्रहार कर की गई थी. उस की उम्र 30 साल के आसपास थी. उस का पर्स व मोबाइल फोन गायब था.

निरीक्षण के दौरान सूचना पा कर डीसीपी (पश्चिम) विजय ढुल, एडिशनल डीसीपी लखन सिंह यादव तथा एसीपी (पनकी) निशांक शर्मा भी मौके पर आ गए. पुलिस अधिकारियों ने मौके पर डौग स्क्वायड व फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया.

पुलिस अधिकारियों ने मौकाएवारदात का सूक्ष्म निरीक्षण किया तथा मृतक के भाई व पड़ोसियों से घटना के संबंध में जानकारी हासिल की. डौग स्क्वायड टीम व फोरैंसिक टीम ने भी जांच कर साक्ष्य जुटाए. इस के बाद शव को पोस्टमार्टम हाउस हैलट अस्पताल भेज दिया गया.

पुलिस अधिकारियों को जब हत्या के कारणों और हत्यारों का पता नहीं चला तो डीसीपी (पश्चिम) विजय ढुल ने इस ब्लाइंड मर्डर का परदाफाश करने और हत्यारों की गिरफ्तारी के लिए एसीपी निशांक शर्मा की अगुवाई में एक पुलिस टीम का गठन कर दिया.

इस टीम में एसएचओ विक्रम सिंह, एसआई मनोज कुमार दीक्षित, अमित मलिक, दीपक कुमार, हैडकांस्टेबल मनोज कुमार, विष्णु पाल सिंह, अनार सिंह, कांस्टेबल नयन सिंह, विजय सिंह, अनिल कुमार, विनय कुमार, महिला कांस्टेबल रेनू प्रजापति, प्रीति सिंह, सर्विलांस टीम के एसआई शिवप्रताप सिंह तथा स्वाट टीम प्रभारी को शामिल किया गया.

इस गठित पुलिस टीम ने बड़ी सतर्कता के साथ दीपक सिंह उर्फ पप्पू की हत्या की जांच शुरू की. टीम ने सब से पहले मृतक के बड़े भाई दयानंद सिंह व मां तारावती से पूछताछ की तथा उन के बयान दर्ज किए. उस के बाद टीम ने घटनास्थल के आसपास के मकानों में लगे सीसीटीवी फुटेज को खंगाला.

सर्विलांस की मदद से उन नंबरों को भी खंगाला जो घटना के वक्त घटनास्थल पर सक्रिय थे. इस के बाद पुलिस टीम ने एक दरजन से अधिक युवकों को संदेह के आधार पर उठाया और उन से कड़ाई से पूछताछ की. लेकिन दीपक सिंह के हत्यारों का पता नहीं चल सका.

पुलिस ने मृतक के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि रात करीब पौने 10 बजे दीपक के मोबाइल फोन पर अंतिम काल आई थी. इस नंबर की पड़ताल की गई तो यह नंबर 48ई पनकी गंगागंज निवासी शशांक सक्सेना का पाया गया.

टीम ने शशांक को हिरासत में ले कर पूछताछ की तो उस ने दीपक सिंह को अपना खास दोस्त बताया और अकसर उस से बात होने की बात कही. उस ने यह भी बताया कि जैकी, जीतू व सत्येंद्र भी दीपक के खास दोस्त हैं. वे तीनों सगे भाई हैं और दीपक के पड़ोसी हैं.

पुलिस ने जैकी, जीतू और सत्येंद्र से भी पूछताछ की. उन तीनों ने दोस्ती तो कबूल की, लेकिन दीपक की हत्या किस ने और क्यों की, इस की जानकारी उन्हें नहीं थी.

पाक प्यार में नापाक इरादे – भाग 2

पुलिस ने देखा कि सर्वेश इस तरह लाइन पर नहीं आ रही है तो पुलिस ने उस के साथ ऐसा खेल खेला कि बड़ी आसानी से वह उस में फंस गई. पुलिस ने उस से कहा था कि नेत्रपाल उन के कब्जे में है और उस ने बता दिया है कि तुम्हारी मदद से उसी ने पाकेश की हत्या की थी.

सर्वेश एकदम से बोली, ‘‘साहब, वह झूठ बोल रहा है. मैं ने उस से पाकेश की हत्या के लिए नहीं कहा था. उस ने अपने आप उस की हत्या की थी.’’

इस तरह सर्वेश ने सच्चाई उगल दी. इस के बाद लंबी पूछताछ में पुलिस ने सर्वेश से पाकेश की हत्या की पूरी कहानी उगलवा ली, जो इस प्रकार थी.

उत्तराखंड के जसपुर से लगभग 30 किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश के जिला बिजनौर का एक गांव है मोहद्दीपुर हसनपुर. कृपाल सिंह का परिवार इसी गांव में रहता था. उस के पास जो खेतीबाड़ी थी, उसी में मेहनत कर के वह गुजरबसर कर रहा था. शादी के बाद बड़ा बेटा हरियाणा में जा कर रहने लगा था. उस से छोटा धर्मवीर मंदबुद्धि था.

भाईबहनों में पाकेश सब से छोटा था, जो खेतीबाड़ी में कृपाल सिंह की मदद करता था. धर्मवीर मंदबुद्धि था, इसलिए उस की शादी नहीं हो रही थी. तब कृपाल सिंह ने सोचा कि वह पाकेश की शादी कर दें, क्योंकि उस की शादी के लिए लोग आने लगे थे.

बिजनौर के थाना रेहड के पास एक गांव है देहलावाला. उसी गांव के रहने वाले देवेंद्र सिंह चौहान की बेटी सर्वेश कृपाल सिंह को पसंद आ गई तो उस ने पाकेश की शादी उसी से कर दी.

देवेंद्र सिंह भी कृपाल सिंह की ही तरह सीधासादा आदमी था. लेकिन उस की पत्नी मूर्ति देवी काफी तेजतर्रार थी और घर में उसी की चलती थी. सर्वेश ने जैसा अपने घर में देखा था, वैसा ही कुछ ससुराल में करने की कोशिश करने लगी. पाकेश सीधा और शांत स्वभाव का था, इसलिए चंचल स्वभाव वाली सर्वेश को ससुराल में अपनी चलाने में जरा भी परेशानी नहीं हुई.

देहलावाला गांव की गिनती इलाके में अच्छे गांवों में नहीं होती, क्योंकि यहां की कई औरतें देह के धंधे से जुड़ी थीं. वे खुद तो यह धंधा करती ही थीं, अपने साथ कई लड़कियों को भी जोड़ रखा था. इसी देह के धंधे की कमाई से उन के रहनसहन में और गांव के अन्य लोगों के रहनसहन में जमीनआसमान का अंतर था.

उन्हीं के रहनसहन को देख कर सर्वेश की मां मूर्ति देवी भी गांव छोड़ कर काशीपुर आ गई थी. काशीपुर आने के बाद उस ने भी वही रास्ता अपना लिया था और नोट कमाने लगी थी. हालांकि सर्वेश को मां के इस धंधे की जानकारी नहीं थी. लेकिन मां के रहनसहन को ही देख कर उस की भी काशीपुर में रहने की इच्छा होने लगी थी.

शादी के कुछ दिनों बाद ही कृपाल सिंह की मौत हो गई थी, इसलिए पाकेश अकेला पड़ गया था. वह सीधासादा तो था ही, इसलिए सर्वेश जैसा कहती थी, वह वैसा ही करती थी. सर्वेश उस पर काशीपुर चलने के लिए दबाव बनाने लगी. वह पत्नी को बहुत प्यार करता था, इसलिए उसे नाराज नहीं करना चाहता था. पत्नी के कहने पर ही उस ने अपनी एक एकड़ जमीन बेचने का मन बना लिया.

गांव की जमीन बिकते ही सर्वेश अपनी मां की मदद से काशीपुर में घर बनाने के लिए प्लौट ढूंढने लगी. मूर्ति देवी की काशीपुर के कई प्रौपर्टी डीलरों से अच्छी जानपहचान थी. उन्हीं प्रौपर्टी डीलरों की मदद से मूर्ति देवी ने सर्वेश को बाजपुर रेलवे लाइन के किनारे काशीपुर विकास कालोनी में एक प्लौट दिला दिया.

काशीपुर में प्लौट तो खरीद लिया गया, लेकिन जब उस की रजिस्ट्री करानी हुई तो पाकेश और सर्वेश में तकरार होने लगी. पाकेश उस प्लौट की रजिस्ट्री अपने नाम से कराना चाहता था, जबकि सर्वेश चाहती थी कि रजिस्ट्री उस के नाम हो. इस बात को ले कर विवाद ज्यादा बढ़ा तो पाकेश को ही झुकना पड़ा. क्योंकि वह पत्नी को नाराज नहीं करना चाहता था.

सर्वेश के नाम प्लौट की रजिस्ट्री करा कर पाकेश ने घर बनवा लिया. अब तक सर्वेश 2 बच्चों की मां बन चुकी थी, जिन में बेटा तुषार और बेटी गार्गी थी. सर्वेश ने अपने दोनों बच्चों का दाखिला भी काशीपुर में करा दिया था.

काशीपुर में गुजरबसर के लिए पाकेश महुआखेड़ा की फैक्ट्री में नौकरी करने लगा था. पाकेश का घर जिस मोहल्ले में था, वहां अभी इक्कादुक्का घर ही बने थे. दोनों बच्चे स्कूल चले जाते थे और पाकेश अपनी नौकरी पर. उस के बाद सर्वेश घर में अकेली रह जाती, ऐसे में उस के लिए समय काटना मुश्किल हो जाता था.

काशीपुर आने के बाद सर्वेश का अपनी मां के यहां आनाजाना बढ़ गया था. इसी आनेजाने में उसे मां की हकीकत का पता चल गया. वैसे तो वह महुआखेड़ा की किसी फैक्ट्री में नौकरी करती थी, लेकिन उस की कमाई का मुख्य स्रोत लड़कियों की दलाली थी. यह काम वह मोबाइल फोन से करती थी. उसे लड़कियों की दलाली से अच्छी कमाई हो रही थी.

मां की हकीकत जान कर सर्वेश ने भी उसी राह पर चलने का इरादा बना लिया. उस ने पाकेश से दिन में अकेली रहने वाली परेशानी बता कर एक जूता फैक्ट्री में नौकरी कर ली. उसी जूता फैक्ट्री में उस की मुलाकात नेत्रपाल से हुई. नेत्रपाल वहां सुपरवाइजर था. सर्वेश जितनी खूबसूरत थी, उस से कहीं ज्यादा चंचल और शोख थी.

नेत्रपाल उत्तर प्रदेश के जिला मुरादाबाद के गांव चतरपुर का रहने वाला था. उस का गांव महुआखेड़ा के नजदीक ही था, इसलिए वह घर से ही अपनी ड्यूटी पर आताजाता था. उस की अभी शादी नहीं हुई थी. इसलिए नेत्रपाल के नेत्र सर्वेश से लड़े तो वह उस के लिए पागल हो उठा. जबकि सर्वेश 2 बच्चों की मां थी. लेकिन उस की कदकाठी ऐसी थी कि देखने में वह कुंवारी लगती थी.

कुछ ही दिनों में नेत्रपाल सर्वेश के लिए ऐसा पागल हुआ कि दिनरात उसी के बारे में सोचने लगा. नेत्रपाल के पास सर्वेश का मोबाइल नंबर था ही, इसलिए वह छुट्टी के बाद भी फोन कर के उस से बातें करने लगा.

पाकेश पूरे दिन नौकरी पर रहता था. शाम को थकामांदा आता तो खाना खा कर सो जाता. उसे इस बात की भी चिंता नहीं रहती थी कि पत्नी क्या कर रही है. सर्वेश इसी बात का फायदा उठा कर नेत्रपाल से देर रात तक बातें करती रहती. मोबाइल पर बातें करतेकरते ही नेत्रपाल सर्वेश को अपने इतने नजदीक ले आया कि मौका मिलते ही उस ने उस से अवैध संबंध बना लिए.

नेत्रपाल से संबंध बनने के बाद सर्वेश को पाकेश की अपेक्षा नेत्रपाल की जरूरत ज्यादा महसूस होने लगी थी. सर्वेश को जब भी मौका मिलता, नेत्रपाल को फोन कर देती. नेत्रपाल को उस के फोन का इंतजार रहता ही था, संदेश मिलते ही वह सर्वेश के घर आ जाता.

मसीहा : शांति की लगन

दोपहर का खाना खा कर लेटे ही थे कि डाकिया आ गया. कई पत्रों के बीच राजपुरा से किसी शांति नाम की महिला का एक रजिस्टर्ड पत्र 20 हजार रुपए के ड्राफ्ट के साथ था. उत्सुकतावश मैं एक ही सांस में पूरा पत्र पढ़ गई, जिस में उस महिला ने अपने कठिनाई भरे दौर में हमारे द्वारा दिए गए इन रुपयों के लिए धन्यवाद लिखा था और आज 10 सालों के बाद वे रुपए हमें लौटाए थे. वह खुद आना चाहती थी पर यह सोच कर नहीं आई कि संभवत: उस के द्वारा लौटाए जाने पर हम वह रुपए वापस न लें.

पत्र पढ़ने के बाद मैं देर तक उस महिला के बारे में सोचती रही पर ठीक से कुछ याद नहीं आ रहा था.

‘‘अरे, सुमि, शांति कहीं वही लड़की तो नहीं जो बरसों पहले कुछ समय तक मुझ से पढ़ती रही थी,’’ मेरे पति अभिनव अतीत को कुरेदते हुए बोले तो एकाएक मुझे सब याद आ गया.

उन दिनों शांति अपनी मां बंती के साथ मेरे घर का काम करने आती थी. एक दिन वह अकेली ही आई. पूछने पर पता चला कि उस की मां की तबीयत ठीक नहीं है. 2-3 दिन बाद जब बंती फिर काम पर आई तो बहुत कमजोर दिख रही थी. जैसे ही मैं ने उस का हाल पूछा वह अपना काम छोड़ मेरे सामने बैठ कर रोने लगी. मैं हतप्रभ भी और परेशान भी कि अकारण ही उस की किस दुखती रग पर मैं ने हाथ रख दिया.

बंती ने बताया कि उस ने अब तक के अपने जीवन में दुख और अभाव ही देखे हैं. 5 बेटियां होने पर ससुराल में केवल प्रताड़ना ही मिलती रही. बड़ी 4 बेटियों की तो किसी न किसी तरह शादी कर दी है. बस, अब तो शांति को ब्याहने की ही चिंता है पर वह पढ़ना चाहती है.

बंती कुछ देर को रुकी फिर आगे बोली कि अपनी मेहनत से शांति 10वीं तक पहुंच गई है पर अब ट्यूशन की जरूरत पड़ेगी जिस के लिए उस के पास पैसा नहीं है. तब मैं ने अभिनव से इस बारे में बात की जो उसे निशुल्क पढ़ाने के लिए तैयार हो गए. अपनी लगन व परिश्रम से शांति 10वीं में अच्छे नंबरों में पास हो गई. उस के बाद उस ने सिलाईकढ़ाई भी सीखी. कुछ समय बाद थोड़ा दानदहेज जोड़ कर बंती ने उस के हाथ पीले कर दिए.

अभी शांति की शादी हुए साल भर बीता था कि वह एक बेटे की मां बन गई. एक दिन जब वह अपने बच्चे सहित मुझ से मिलने आई तो उस का चेहरा देख मैं हैरान हो गई. कहां एक साल पहले का सुंदरसजीला लाल जोड़े में सिमटा खिलाखिला शांति का चेहरा और कहां यह बीमार सा दिखने वाला बुझाबुझा चेहरा.

‘क्या बात है, बंती, शांति सुखी तो है न अपने घर में?’ मैं ने सशंकित हो पूछा.

व्यथित मन से बंती बोली, ‘लड़कियों का क्या सुख और क्या दुख बीबी, जिस खूंटे से बांध दो बंधी रहती हैं बेचारी चुपचाप.’

‘फिर भी कोई बात तो होगी जो सूख कर कांटा हो गई है,’ मेरे पुन: पूछने पर बंती तो खामोश रही पर शांति ने बताया, ‘विवाह के 3-4 महीने तक तो सब ठीक रहा पर धीरेधीरे पति का पाशविक रूप सामने आता गया. वह जुआरी और शराबी था. हर रात नशे में धुत हो घर लौटने पर अकारण ही गालीगलौज करता, मारपीट करता और कई बार तो मुझे आधी रात को बच्चे सहित घर से बाहर धकेल देता. सासससुर भी मुझ में ही दोष खोजते हुए बुराभला कहते. मैं कईकई दिन भूखीप्यासी पड़ी रहती पर किसी को मेरी जरा भी परवा नहीं थी. अब तो मेरा जीवन नरक समान हो गया है.’

उस रात मैं ठीक से सो नहीं पाई. मानव मन भी अबूझ होता है. कभीकभी तो खून के रिश्तों को भी भीड़ समझ उन से दूर भागने की कोशिश करता है तो कभी अनाम रिश्तों को अकारण ही गले लगा उन के दुखों को अपने ऊपर ओढ़ लेता है. कुछ ऐसा ही रिश्ता शांति से जुड़ गया था मेरा.

अगले दिन जब बंती काम पर आई तो मैं उसे देर तक समझाती रही कि शांति पढ़ीलिखी है, सिलाईकढ़ाई जानती है, इसलिए वह उसे दोबारा उस के ससुराल न भेज कर उस की योग्यता के आधार पर उस से कपड़े सीने का काम करवाए. पति व ससुराल वालों के अत्याचारों से छुटकारा मिल सके मेरे इस सुझाव पर बंती ने कोई उत्तर नहीं दिया और चुपचाप अपना काम समाप्त कर बोझिल कदमों से घर लौट गई.

एक सप्ताह बाद पता चला कि शांति को उस की ससुराल वाले वापस ले गए हैं. मैं कर भी क्या सकती थी, ठगी सी बैठी रह गई.

देखते ही देखते 2 साल बीत गए. इस बीच मैं ने बंती से शांति के बारे में कभी कोई बात नहीं की पर एक दिन शांति के दूसरे बेटे के जन्म के बारे में जान कर मैं बंती पर बहुत बिगड़ी कि आखिर उस ने शांति को ससुराल भेजा ही क्यों? बंती अपराधबोध से पीडि़त हो बिलखती रही पर निर्धनता, एकाकीपन और अपने असुरक्षित भविष्य को ले कर वह शांति के लिए करती भी तो क्या? वह तो केवल अपनी स्थिति और सामाजिक परिवेश को ही कोस सकती थी, जहां निम्नवर्गीय परिवार की अधिकांश स्त्रियों की स्थिति पशुओं से भी गईगुजरी होती है.

पहले तो जन्म लेते ही मातापिता के घर लड़की होने के कारण दुत्कारी जाती हैं और विवाह के बाद अर्थी उठने तक ससुराल वालों के अत्याचार सहती हैं. भोग की वस्तु बनी निरंतर बच्चे जनती हैं और कीड़ेमकोड़ों की तरह हर पल रौंदी जाती हैं, फिर भी अनवरत मौन धारण किए ऐसे यातना भरे नारकीय जीवन को ही अपनी तकदीर मान जीने का नाटक करते हुए एक दिन चुपचाप मर जाती हैं.

शांति के साथ भी तो यही सब हो रहा था. ऐसी स्थिति में ही वह तीसरी बार फिर मां बनने को हुई. उसे गर्भ धारण किए अभी 7 महीने ही हुए थे कि कमजोरी और कई दूसरे कारणों के चलते उस ने एक मृत बच्चे को जन्म दिया. इत्तेफाक से उन दिनों वह बंती के पास आई हुई थी. तब मैं ने शांति से परिवार नियोजन के बारे में बात की तो बुझे स्वर में उस ने कहा कि फैसला करने वाले तो उस की ससुराल वाले हैं और उन का विचार है कि संतान तो भगवान की देन है इसलिए इस पर रोक लगाना उचित नहीं है.

मेरे बारबार समझाने पर शांति ने अपने बिगड़ते स्वास्थ्य और बच्चों के भविष्य को देखते हुए मेरी बात मान ली और आपरेशन करवा लिया. यों तो अब मैं संतुष्ट थी फिर भी शांति की हालत और बंती की आर्थिक स्थिति को देखते हुए परेशान भी थी. मेरी परेशानी को भांपते हुए मेरे पति ने सहज भाव से 20 हजार रुपए शांति को देने की बात कही ताकि पूरी तरह स्वस्थ हो जाने के बाद वह इन रुपयों से कोई छोटामोटा काम शुरू कर के अपने पैरों पर खड़ी हो सके. पति की यह बात सुन मैं कुछ पल को समस्त चिंताओं से मुक्त हो गई.

अगले ही दिन शांति को साथ ले जा कर मैं ने बैंक में उस के नाम का खाता खुलवा दिया और वह रकम उस में जमा करवा दी ताकि जरूरत पड़ने पर वह उस का लाभ उठा सके.

अभी इस बात को 2-4 दिन ही बीते थे कि हमें अपनी भतीजी की शादी में हैदराबाद जाना पड़ा. 15-20 दिन बाद जब हम वापस लौटे तो मुझे शांति का ध्यान हो आया सो बंती के घर चली गई, जहां ताला पड़ा था. उस की पड़ोसिन ने शांति के बारे में जो कुछ बताया उसे सुन मैं अवाक् रह गई.

हमारे हैदराबाद जाने के अगले दिन ही शांति का पति आया और उसे बच्चों सहित यह कह कर अपने घर ले गया कि वहां उसे पूरा आराम और अच्छी खुराक मिल पाएगी जिस की उसे जरूरत है. किंतु 2 दिन बाद ही यह खबर आग की तरह फैल गई कि शांति ने अपने दोनों बच्चों सहित भाखड़ा नहर में कूद कर जान दे दी है. तब से बंती का भी कुछ पता नहीं, कौन जाने करमजली जीवित भी है या मर गई.

कैसी निढाल हो गई थी मैं उस क्षण यह सब जान कर और कई दिनों तक बिस्तर पर पड़ी रही थी. पर आज शांति का पत्र मिलने पर एक सुखद आश्चर्य का सैलाब मेरे हर ओर उमड़ पड़ा है. साथ ही कई प्रश्न मुझे बेचैन भी करने लगे हैं जिन का शांति से मिल कर समाधान चाहती हूं.

जब मैं ने अभिनव से अपने मन की बात कही तो मेरी बेचैनी को देखते हुए वह मेरे साथ राजपुरा चलने को तैयार हो गए. 1-2 दिन बाद जब हम पत्र में लिखे पते के अनुसार शांति के घर पहुंचे तो दरवाजा एक 12-13 साल के लड़के ने खोला और यह जान कर कि हम शांति से मिलने आए हैं, वह हमें बैठक में ले गया. अभी हम बैठे ही थे कि वह आ गई. वही सादासलोना रूप, हां, शरीर पहले की अपेक्षा कुछ भर गया था. आते ही वह मेरे गले से लिपट गई. मैं कुछ देर उस की पीठ सहलाती रही, फिर भावावेश में डूब बोली, ‘‘शांति, यह कैसी बचकानी हरकत की थी तुम ने नहर में कूद कर जान देने की. अपने बच्चों के बारे में भी कुछ नहीं सोचा, कोई ऐसा भी करता है क्या? बच्चे तो ठीक हैं न, उन्हें कुछ हुआ तो नहीं?’’

बच्चों के बारे में पूछने पर वह एकाएक रोने लगी. फिर भरे गले से बोली, ‘‘छुटका नहीं रहा आंटीजी, डूब कर मर गया. मुझे और सतीश को किनारे खड़े लोगों ने किसी तरह बचा लिया. आप के आने पर जिस ने दरवाजा खोला था, वह सतीश ही है.’’

इतना कह वह चुप हो गई और कुछ देर शून्य में ताकती रही. फिर उस ने अपने अतीत के सभी पृष्ठ एकएक कर के हमारे सामने खोल कर रख दिए.

उस ने बताया, ‘‘आंटीजी, एक ही शहर में रहने के कारण मेरी ससुराल वालों को जल्दी ही पता चल गया कि मैं ने परिवार नियोजन के उद्देश्य से अपना आपरेशन करवा लिया है. इस पर अंदर ही अंदर वे गुस्से से भर उठे थे पर ऊपरी सहानुभूति दिखाते हुए दुर्बल अवस्था में ही मुझे अपने साथ वापस ले गए.

‘‘घर पहुंच कर पति ने जम कर पिटाई की और सास ने चूल्हे में से जलती लकड़ी निकाल पीठ दाग दी. मेरे चिल्लाने पर पति मेरे बाल पकड़ कर खींचते हुए कमरे में ले गया और चीखते हुए बोला, ‘तुझे बहुत पर निकल आए हैं जो तू अपनी मनमानी पर उतर आई है. ले, अब पड़ी रह दिन भर भूखीप्यासी अपने इन पिल्लों के साथ.’ इतना कह उस ने आंगन में खेल रहे दोनों बच्चों को बेरहमी से ला कर मेरे पास पटक दिया और दरवाजा बाहर से बंद कर चला गया.

‘‘तड़पती रही थी मैं दिन भर जले के दर्द से. आपरेशन के टांके कच्चे होने के कारण टूट गए थे. बच्चे भूख से बेहाल थे, पर मां हो कर भी मैं कुछ नहीं कर पा रही थी उन के लिए. इसी तरह दोपहर से शाम और शाम से रात हो गई. भविष्य अंधकारमय दिखने लगा था और जीने की कोई लालसा शेष नहीं रह गई थी.

‘‘अपने उन्हीं दुर्बल क्षणों में मैं ने आत्महत्या कर लेने का निर्णय ले लिया. अभी पौ फटी ही थी कि दोनों सोते बच्चों सहित मैं कमरे की खिड़की से, जो बहुत ऊंची नहीं थी, कूद कर सड़क पर तेजी से चलने लगी. घर से नहर ज्यादा दूर नहीं थी, सो आत्महत्या को ही अंतिम विकल्प मान आंखें बंद कर बच्चों सहित उस में कूद गई. जब होश आया तो अपनेआप को अस्पताल में पाया. सतीश को आक्सीजन लगी हुई थी और छुटका जीवनमुक्त हो कहीं दूर बह गया था.

‘‘डाक्टर इस घटना को पुलिस केस मान बारबार मेरे घर वालों के बारे में पूछताछ कर रहे थे. मैं इस बात से बहुत डर गई थी क्योंकि मेरे पति को यदि मेरे बारे में कुछ भी पता चल जाता तो मैं पुन: उसी नरक में धकेल दी जाती, जो मैं चाहती नहीं थी. तब मैं ने एक सहृदय

डा. अमर को अपनी आपबीती सुनाते हुए उन से मदद मांगी तो मेरी हालत को देखते हुए उन्होंने इस घटना को अधिक तूल न दे कर जल्दी ही मामला रफादफा करवा दिया और मैं पुलिस के चक्करों  में पड़ने से बच गई.

‘‘अब तक डा. अमर मेरे बारे में सबकुछ जान चुके थे इसलिए वह मुझे बेटे सहित अपने घर ले गए, जहां उन की मां ने मुझे बहुत सहारा दिया. सप्ताह  भर मैं उन के घर रही. इस बीच डाक्टर साहब ने आप के द्वारा दिए उन 20 हजार रुपयों की मदद से यहां राजपुरा में हमें एक कमरा किराए पर ले कर दिया. साथ ही मेरे लिए सिलाई का सारा इंतजाम भी कर दिया. पर मुझे इस बात की चिंता थी कि मेरे सिले कपड़े बिकेंगे कैसे?

‘‘इस बारे में जब मैं ने डा. अमर से बात की तो उन्होंने मुझे एक गैरसरकारी संस्था के अध्यक्ष से मिलवाया जो निर्धन व निराश्रित स्त्रियों की सहायता करते थे. उन्होंने मुझे भी सहायता देने का आश्वासन दिया और मेरे द्वारा सिले कुछ वस्त्र यहां के वस्त्र विके्रताओं को दिखाए जिन्होंने मुझे फैशन के अनुसार कपड़े सिलने के कुछ सुझाव दिए.

‘‘मैं ने उन के सुझावों के मुताबिक कपड़े सिलने शुरू कर दिए जो धीरेधीरे लोकप्रिय होते गए. नतीजतन, मेरा काम दिनोंदिन बढ़ता चला गया. आज मेरे पास सिर ढकने को अपनी छत है और दो वक्त की इज्जत की रोटी भी नसीब हो जाती है.’’

इतना कह शांति हमें अपना घर दिखाने लगी. छोटा सा, सादा सा घर, किंतु मेहनत की गमक से महकता हुआ.  सिलाई वाला कमरा तो बुटीक ही लगता था, जहां उस के द्वारा सिले सुंदर डिजाइन के कपड़े टंगे थे.

हम दोनों पतिपत्नी, शांति की हिम्मत, लगन और प्रगति देख कर बेहद खुश हुए और उस के भविष्य के प्रति आश्वस्त भी. शांति से बातें करते बहुत समय बीत चला था और अब दोपहर ढलने को थी इसलिए हम पटियाला वापस जाने के लिए उठ खड़े हुए. चलने से पहले अभिनव ने एक लिफाफा शांति को थमाते हुए कहा, ‘‘बेटी, ये वही रुपए हैं जो तुम ने हमें लौटाए थे.

मैं अनुमान लगा सकता हूं कि किनकिन कठिनाइयों को झेलते हुए तुम ने ये रुपए जोड़े होंगे. भले ही आज तुम आत्मनिर्भर हो गई हो, फिर भी सतीश का जीवन संवारने का एक लंबा सफर तुम्हारे सामने है. उसे पढ़ालिखा कर स्वावलंबी बनाना है तुम्हें, और उस के लिए बहुत पैसा चाहिए. यह थोड़ा सा धन तुम अपने पास ही रखो, भविष्य में सतीश के काम आएगा. हां, एक बात और, इन पैसों को ले कर कभी भी अपने मन पर बोझ न रखना.’’

अभिनव की बात सुन कर शांति कुछ देर चुप बैठी रही, फिर धीरे से बोली, ‘‘अंकलजी, आप ने मेरे लिए जो किया वह आज के समय में दुर्लभ है. आज मुझे आभास हुआ है कि इस संसार में यदि मेरे पति जैसे राक्षसी प्रवृत्ति के लोग हैं तो

डा. अमर और आप जैसे महान लोग भी हैं जो मसीहा बन कर आते हैं और हम निर्बल और असहाय लोगों का संबल बन उन्हें जीने की सही राह दिखाते हैं.’’

इतना कह सजल नेत्रों से हमारा आभार प्रकट करते हुए वह अभिनव के चरणों में झुक गई.     द्य

 

चलन : जाति के बंधन तोड़ रहा है प्यार

गांवकसबे हों या शहर, आज नौजवान पीढ़ी अपने मनचाहे साथी के लिए जाति, धर्म और दूसरे सामाजिक बंधन तोड़ रही है. जरूरत पड़ने पर ऐसे प्रेमी जोड़े घरपरिवार छोड़ कर भाग भी रहे हैं. जाति हो या धर्म हो या फिर रुतबा, सभी पारंपरिक बेडि़यों को तोड़ते हुए आज नौजवानों का प्यार परवान चढ़ रहा है.

19 साल के विकास और 16 साल की स्नेहा की दोस्ती 2 साल पहले स्कूल में शुरू हुई थी. स्नेहा बताती है, ‘‘हमारी पहली मुलाकात स्कूल के रास्ते में हुई थी. यह पहली नजर का प्यार नहीं था. शुरुआत दोस्ती से हुई थी, फिर नंबर ऐक्सचेंज हुए और हमारी बातें होने लगीं.

‘‘मैं ने विकास से 3 वादे कराए थे. पहला, ये मुझे अपने परिवार से मिलाएंगे. दूसरा, मुझ से शादी करेंगे और तीसरा, अपना कैरियर बनाएंगे,’’ यह बताती हुई स्नेहा का चेहरा सुर्ख हो गया.

एक तरफ इन का इश्क परवान चढ़ रहा था, वहीं दूसरी तरफ स्नेहा के मातापिता का पारा. उस के पिता ने उसे फोन पर विकास से बात करते हुए सुन लिया था. अगले ही पल स्नेहा का फोन तोड़ कर फेंका जा चुका था और वह पिटाई के बाद रोते हुए एक कोने में दुबक गई थी.

विकास को जब इस सब का पता चला, तो उस ने स्नेहा को कुछ औरदिन बरदाश्त करने की बात कही. उन दोनों को यकीन था कि वे जल्द ही शादी कर लेंगे.दिसंबर की सर्दियों में दोपहर के तकरीबन 2 बजे होंगे. विकास एक कंपनी में नाइट ड्यूटी के बाद घर वापस आया था. उस की मां उस के लिए खाना गरम कर रही थीं कि तभी स्नेहा अचानक उन के घर चली आई. कड़कड़ाती सर्दी में उस के शरीर पर सिर्फ एक ढीला टौप और जींस थी.स्नेहा ने विकास की बांह पकड़ कर रोते हुए कहा, ‘‘यहां से चलो, अभी चलो. मेरे घर वाले तुम्हें मार डालेंगे…’’ और विकास उस के साथ निकल गया.

विकास के माबाप को लगा कि वे आसपास ही कहीं जा रहे होंगे, इसलिए उन्होंने दोनों को रोकने की कोशिश भी नहीं की.विकास ने उस दिन के बारे में बताया, ‘‘हम पैदल चल कर जयपुर पहुंचे और वहां हम ने रात बसअड्डे पर बिताई. हम पूरी रात जागते रहे. फिर हम ने जयपुर के पास ही एक गांव में किराए पर छोटा सा कमरा ले लिया और साथ रहने लगे.’’

स्नेहा बताती है कि वे दोनों वहां खुश थे, लेकिन विकास के परिवार को धमकियां मिल रही थीं. उस के मातापिता ने थाने में उन के लापता होने की शिकायत दर्ज कराई थी और स्नेहा के मातापिता जयपुर महिला आयोग जा चुके थे, इसलिए विकास ने अपने घर में फोन कर के अपना ठिकाना बताया.

इस बीच मैडिकल रिपोर्ट भी आगई थी, जिस में विकास और स्नेहा के बीच जिस्मानी संबंध होने की बात कही गई थी.पुलिस ने विकास को पोक्सो ऐक्ट यानी प्रोटैक्शन औफ चिल्ड्रेन फ्रोम सैक्सुअल औफैंस और रेप के आरोप में जेल में डाल दिया. उस ने जेल में 6 महीने बिताए. वहां रोज स्नेहा को याद कर के वह रोता था.क्या इस दौरान उन दोनों का भरोसा नहीं डगमगाया? एकदूसरे के पलटने का डर नहीं लगा? विकास के मन में थोड़ा डर जरूर था, लेकिन स्नेहा ने न में सिर हिलाया. उस ने कहा, ‘‘मैं ने सब समय पर छोड़ दिया था.’’

मामला अदालत में पहुंचा. स्नेहा ने जज के सामने अपने परिवार के साथ जाने से साफ इनकार कर दिया. उस ने बताया, ‘‘मैं ने कोर्ट में सचसच बता दिया कि मैं इन्हें ले कर घर से निकली थी, ये मुझे नहीं. हम दोनों अपनी मरजी से साथ हैं. इस पूरे मामले में इन की कोई गलती नहीं है.’’

जज ने फैसला सुनाया, ‘‘दोनों याचिकाकर्ता अपनी मरजी से साथ हैं. यह भी नहीं कहा जा सकता कि लड़की समझदार नहीं है. लेकिन चूंकि अभी दोनों नाबालिग हैं, इन्हें साथ रहने की इजाजत नहीं दी जा सकती.’’

जज ने विकास पर लगे पोक्सो ऐक्ट और रेप के आरोपों को भी खारिज कर दिया.राजस्थान के कोटा जिले के 28 साल के मनराज गुर्जर ने पिछले साल 30 दिसंबर को बांरा जिले की सीमा शर्मा से शादी कर ली. शादी में दोनों के परिवार खुशीखुशी शामिल हुए. राजस्थान यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान दोनों में प्यार हुआ.

मनराज राजस्थान पुलिस में सबइंस्पैक्टर हैं, तो सीमा स्कूल में टीचर. पर हर किसी की कहानी इन दोनों की तरह नहीं है. जयपुर की रहने वाली दलित समाज की पूनम बैरवा को ओबीसी समुदाय के सचिन से शादी के लिए न सिर्फ सामाजिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा, बल्कि उन के परिवार ने भी उन से नाता तोड़ लिया. ऐसा भी नहीं है कि यह हौसला बड़े शहरों की ओर रुख करने वाले ज्यादा पढ़ेलिखे नौजवानों में ही देखा जा रहा है, छोटे कसबों की कहानी तो और भी हैरानी भरी है.

अलवर जिले के तिजारा थाना इलाके के एक गांव की बलाई (वर्मा) जाति की खुशबू ने घर से भाग कर यादव जाति के किशन के साथ शादी रचा ली. जयपुर के महिला एवं बाल विकास संस्थान की सहायक निदेशक तारा बेनीवाल बताती हैं, ‘‘पिछले 2 साल में जयपुर में तकरीबन 30 लड़कियों ने अंतर्जातीय विवाह प्रोत्साहन राशि के लिए आवेदन किया है.’’ अजमेर के सरवाड़ इलाके के विजय कुमार ने जब सुनीता से अंतर्जातीय शादी की, तो उन्हें न केवल परिवार से अलग होना पड़ा, बल्कि पानी, बिजली और शौचालय जैसी सुविधाओं से भी वंचित कर दिया गया.

समाज ने उन का बहिष्कार कर दिया. इस दर्द को विजय कुमार कुछ यों बयान करते हैं, ‘‘लोग कहते हैं कि मैं आवारा निकल गया, बिरादरी की नाक कटा दी. आखिरी समय तक शादी तोड़ने की कोशिश की गई.’’ यहां तक कि बेटियों की आजादी पर भी बंदिश लगाई जाती है. 26 सितंबर, 2020 को अंतर्जातीय शादी करने वाली ज्योति बताती हैं, ‘‘मेरे परिवार वाले समाज के तानों से दुखी हैं. लोग कहते हैं कि बेटी को ज्यादा छूट देने की वजह से उस ने नीच जाति के लड़के से शादी कर ली. मांबाबूजी को तो यह भी फिक्र है कि दूसरे बेटेबेटियों की शादी कैसे होगी?’’

विजय कुमार अपने प्यार का राज खोलते हैं, ‘‘हम दोनों का संपर्क मोबाइल फोन के जरीए हुआ और उसी के जरीए परवान भी चढ़ा.’’जाहिर है कि मोबाइल और दूसरी तकनीकों और पढ़ाईलिखाई ने दूरियां मिटा दी हैं. जयपुर के महारानी कालेज में इतिहास की प्रोफैसर नेहा वर्मा इसी ओर इशारा करती हैं, ‘‘मर्दऔरत के बीच समाज ने जो अलगाव गढ़े थे, वे खत्म हो रहे हैं. दोनों के बीच आपसी मेल बढ़ा है, खासकर औरतें घर की दहलीज लांघ रही हैं.’’ अंतर्जातीय प्यार या शादी करने वालों को थोड़ीबहुत रियायत तो मिल भी जाती है, लेकिन अंतर्धार्मिक रिश्तों के लिए परिवार और समाज कतई तैयार नहीं होता.

अजमेर जिले के किशनगढ़ की 20 साला सकीना बानो ने जब घर से भाग कर 22 साल के अमित जाट से शादी की, तो उन्हें न केवल सामाजिक बुराई सहनी पड़ी, बल्कि उन के परिवार वालों ने अमित और उस की मां को जान से मारने और घर जलाने की धमकी तक दी.

मजबूरन उन्हें आत्मसमर्पण करना पड़ा और सकीना को पुनर्वास केंद्र भेज दिया गया. लेकिन अब अदालत के आदेश के बाद नवंबर, 2020 से दोनों पतिपत्नी की तरह रह रहे हैं. सकीना अब एक बेटे की मां बन गई है. उस के पिता अब बेहद बीमार हैं, पर बेटी से मिलना तक नहीं चाहते. अमित की मां भी सकीना को ले कर सहज नहीं हैं वहीं टोंक जिले की ही मनीषा की कहानी लव जिहाद की थ्योरी गढ़ने वाले संघी समूहों के मुंह पर करारा तमाचा है. 16 अप्रैल, 2022 को वह अपने प्रेमी मोहम्मद इकबाल के साथ घर से भाग गई.

भला समाज और परिवार को यह कैसे मंजूर होता. मनीषा के पिता जयनारायण ने इकबाल और उस के पिता हसन के खिलाफ अपहरण की प्राथमिकी दर्ज कराई. इस से बचने के लिए मनीषा और इकबाल ने अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया. समाज और परिवार का अडि़यल रुख ही है कि ऐसे ज्यादातर प्रेमी जोड़ों को प्यार या शादी के लिए घर से भागना पड़ रहा है. लेकिन वे उन से पीछा नहीं छुड़ा पाते, क्योंकि परिवार वाले उन के खिलाफ अपहरण और बहलाफुसला कर शादी करने का मामला दर्ज करा देते हैं. लेकिन इस से नौजवानों को कोई फर्क नहीं पड़ रहा.

इस सिलसिले में राजस्थान पुलिस के आंकड़े चौंकाने वाले हैं. प्यार के मामलों में घर छोड़ कर भागने वाले नौजवानों की  तादाद में तकरीबन 6 गुना की बढ़ोतरी हुई है. पुलिस ने राज्य में अपहरण के दर्ज मामलों की जांच के बाद खुलासा किया है कि साल 2013 में जहां प्यार की खातिर घर से भागने वालों की तादाद सिर्फ 172 थी, वहीं साल 2021 में 763 हो गई और यह तादाद सिर्फ अपहरण के दर्ज मामलों की है.ब्राह्मण जाति की अंकिता और बहुत पिछड़ी जाति से आने वाले उन के पति के परिवारों में रिश्ते सामान्य होने में 3 साल लग गए. इस के लिए अंकिता के भाई ने ही पहल की. दोनों के 2 बच्चे भी हो गए हैं, तो वहीं कई लड़कियां पुनर्वास केंद्र में अपने प्रेमी से मिलने के इंतजार में दिन काट रही हैं. तमाम दुखों के बावजूद उन का हौसला नहीं टूटा है.

बेडि़यां तोड़ते इस प्यार को मनीषा के इस हौसले में देखा जा सकता है, ‘‘हमारे रिश्ते को जाति और धर्म के बंधन में नहीं बांधा जा सकता. कोई भी मुश्किल हमें डिगा नहीं सकती.’’प्रोफैसर नेहा वर्मा कहती हैं, ‘‘समाज में जहां एक तरफ धर्म और जाति का राजनीतिकरण बढ़ा है, वहीं दूसरी तरफ इन में दरारें भी पैदा हो रही हैं. नौजवान उन को चुनौती भी दे रहे हैं. लिहाजा, बांटने वाली ताकतों की प्रतिक्रिया भी बढ़ी है. लव जिहाद का झूठा मिथक इस की मिसाल है.’’

प्रेमिका के प्लान में बच्चे बने गवाह

राजधानी दिल्ली से सटे गजियाबाद के कवि नगर थाने की पुलिस 35 वर्षीय महेंद्र राणा नाम के व्यक्ति की मौत को ले कर उलझ गई थी. उस की लाश की स्थिति और डबडबाए आंसुओं से भरी पत्नी समेत रोतेबिलखते बच्चों को देख कर पुलिस ने शुरुआत में आत्महत्या का मामला समझ लिया था.

दरअसल, उस की पत्नी कविता 30 नवंबर,2022 की रात अपने पति महेंद्र राणा को गाजियाबाद के सर्वोदय अस्पताल में ले कर पहुंची थी. वह उसी अस्पताल में नर्स थी.

महेंद्र राणा की हालत देखते ही इमरजेंसी में तैनात डाक्टर ने कहा, ‘‘क्या कविता, इतनी समझदार नर्स हो कर भी तुम ने इसे लाने में देर क्यों कर दी?’’

‘‘सर! मैं इन की हालत देख कर घबरा गई थी…कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूं?’’ कविता रूआंसी हो कर बोली.

‘‘ठीक है, ठीक है! अब जल्द से वार्डबौय को बुला कर औक्सिजन लाने को बोलो.’’ कह कर डाक्टर ने महेंद्र के सीने को दोनों हथेलियों से दबा कर दिल को पंपिंग करना शुरू कर दिया.

डाक्टर के ऐसा करते ही महेंद्र के मुंह से कुछ निकलने लगा. तभी डाक्टर ने कहा, ‘‘अरे, यह क्या, इस के मुंह में गुटखा भरा है!… आ कर निकालो इसे!’’

‘‘जी सर!… यही तो मुसीबत है!! बारबार कह कर मैं थक गई हूं. इन का गुटखा छूटता ही नहीं है!’’ कविता बोली.

‘‘ठीक है! ठीक है!! तुम्हारा पति जल्द अच्छा हो जाएगा… उस के बाद इसे समझा देना… गुटखा तो एकदम बंद कर दे…! और क्याक्या नशा करता है तुम्हारा पति?’’ डाक्टर जांच के साथसाथ सवाल भी करते जा रहा था.

जैसे ही कविता आधी रात के करीब बेहोशी की हालत में अपने पति को इमरजेंसी के गेट पर ले कर आई, उस के साथ काम करने वाले दूसरी नर्स और स्टाफ वाले चौंक गए. उन्होंने कविता के पति को आटो से स्ट्रेचर पर लिटाने और इमरजेंसी वार्ड में पहुंचाने में मदद की.

वहां तैनात डाक्टरों ने भी देरी किए बगैर कविता के पति का इलाज शुरू कर दिया. तबतक कविता ने मरीज की भरती का पर्चा बनवा लिया था.

डाक्टर ने वार्डबौय की मदद से फटाफट बेहोश महेंद्र की नाक में औक्सिजन लगाई. इमरजेंसी जांच के लिए हर्टबीट जांचने वाली मशीन भी लगा दी गई… लेकिन मशीन में दिल की धड़कनों का जरा भी संकेत नहीं मिला. जब डाक्टर हथेलियों से उस के सीने पर दबाव बनाते तब मशीन की स्क्त्रीन पर थोड़ी हरकत होती लेकिन फिर बंद हो जाती.

डाक्टर के साथसाथ कविता भी अपने पति की नब्ज टलोलने लगी. नब्ज में उसे भी कोई गति नहीं मिली…फिर वह मायूसी से डाक्टर के चेहरे को देखने लगी…डाक्टर ने भी उस के चेहरे को देखा और इतना ही बोल पाया,‘‘ही इज नो…!’’

‘‘समझ गई डाक्टर साहब…’’ कहती हुई वह रोने लगी. साथ खड़ी दूसरी नर्स और स्टाफ ने उसे सहारा दिया. वहीं कुरसी पर बिठाया.

‘‘अब क्या कर सकती हो कविता, उस की जिंदगी यहीं तक थी…!’’

‘‘जी डाक्टर!’’ कहती हुई कविता की आंखों से आंसू बह निकले. इमरजेंसी वार्ड में थी…वहां खुलकर रो भी नहीं सकती थी. साथी नर्सों ने उस के आंसू पोछे. वह बारबार दुपट्टे से आंसू पोछती रही और सुबकती रही.

कुछ मिनट बाद डाक्टर ने कहा, ‘‘अस्पताल की फर्मालिटी पूरी कर लो. डेथ सर्टिफिकेट बनवाने के लिए जरूरी हैं. मरीज की मौत आकस्मिक है. मरने वाले की उम्र भी काफी कम है. कानूनी प्रक्त्रिया भी पूरी करनी होगी…’’

‘‘… नहींनहीं डाक्टर! उतना सबकुछ करने की जरूरत नहीं है…मरने वाला तो हमें छोड़ कर चला गया…बच्चों को अनाथ बना गया…अब वह सब क्यों?…उस से वह लौट तो नहीं आएगा न!’’ बोलती हुई कविता फिर रोने लगी.

‘‘देखो अस्पताल का रूल तो तुम्हें भी मालूम है, वह तो पूरा करना ही होगा.’’ डाक्टर ने समझाया.

‘‘नहींनहीं! वह सब करेंगे. तब पुलिस पोस्टमार्टम करवाएगी. मैं नहीं चाहती कि मेरे पति की मरने के बाद चीरफाड़ हो.’’

‘‘लेकिन, उस के बगैर अस्पताल का प्रशासन  लाश को यहां से बाहर जाने नहीं देगा…और श्मशान तक पुलिस तुम से सवालजवाब करेगी. उसी सब के लिए तो नियम और कानून हैं…’’ डाक्टर ने फिर एक बार समझाया.

तब तक सीनियर डाक्टर भी वहां आ गए. उन के साथ और दूसरे डाक्टर और प्रशासनिक अधिकारी भी थे. कविता उन से लाश ले जाने की विनती करने लगी. किंतु उन्होंने भी वही कहा जो इलाज करने वाले डाक्टर ने कहा.

कविता की लाख मिन्नतों के बावजूद अस्पताल प्रबंधन ने प्रोटोकाल का पालन करते हुए पुलिस को सूचना दे दी. पुलिस ने प्राथमिकी में डाक्टर के उपचार से पहले उसे भरती के समय की स्थिति से अवगत करवाते हुए सारे दस्तावेजों की जांचपरख की. मौत संदिग्ध हालत में हुई थी.

मृतक का मुंह गुटखे से भरा था और शराब की गंध भी आ रही थी. इसे देखते हुए एसएचओ ने इस पूरे मामले के बारे में एसपी (सिटी) निपुण अग्रवाल  को सूचना दे दी. वहां से मिले आदेश के मुताबिक मृतक का पंचनामा तैयार कर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया.

इसी बीच कविता के रोते बिलखते दोनों बच्चे भी वहां पहुंच गए. अपने पिता को मृत पा कर वे और जोरजोर से रोने लगे. कविता ने बच्चों को चुप करवाते हुए अपनी बाहों में लेने की कोशिश की लेकिन वे मां से छिटक कर अलग दीवार से लग गए.

वहां मौजूद लोगों के साथसाथ पुलिस को भी यह अजीब लगा कि बच्चे गम की घड़ी में मां से अलग क्यों चले गए.

मृतक का अगले रोज ही पोस्टर्माटम हो गया और उस की लाश कविता और उस के घर वालों को सौंप दी गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने तक पुलिस ने कविता को शहर से कहीं भी बाहर जाने पर पाबंदी लगा दी.

महेंद्र राणा अपनी पत्नी कविता और 2 बच्चों के साथ गाजियाबाद के थाना कवि नगर क्षेत्र में स्थित शास्त्री नगर के एसजे-50 में रहता था. कविता पास के ही सर्वोदय अस्पताल में नर्स थी. उस की मौत को ले कर आसपास के लोग हैरान थे. पुलिस भी हैरान थी कि अच्छा भला स्वस्थ दिखने वाले महेंद्र की अचानक मृत्यु कैसे हो सकती है.

जबकि मैडिकल रिपोर्ट में वैसी किसी खास बीमारी का भी जिक्र नहीं था. और तो और, रिपोर्ट के अनुसार वह भरती के समय बेहोशी की हालत में था. उस की सांसें भी नहीं चल रही थीं. उस की नब्ज और चेहरे की रंगत देख कर ही डाक्टर उसे मृत समझ गए थे, फिर भी उन्होंने प्राथमिक उपचार शुरू कर दिया था…और जल्द ही उन्होंने मृत घोषित कर दिया.

पुलिस को इसे ले कर संदेह पैदा हो गया था क्योंकि अस्पताल के कुछ स्टाफ ने ही बताया था कि कविता ने अपने पति को मृत हालत में दाखिल करवाया था. उसे मृत घोषित किए जाने के बाद उस ने लाश का पोस्टमार्टम नहीं करवाने और मामले को पुलिस में नहीं जाने देने की पूरी कोशिश की थी.

2 दिन बाद पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई, जिसे पढ़ कर पुलिस चौंक गई, क्योंकि महेंद्र की मौत सांस रुकने के कारण हुई थी, और उस का गला दबाया गया था. इस रिपोर्ट से साफ था कि उस की हत्या की गई थी. इसी नजरिए से जांच शुरू की गई, जो एक ब्लाइंड मर्डर का मामला था.

ऐसे मामले में अकसर पहला संदेह घर के सदस्य ही बनते आए हैं और उन्हीं में कोई न कोई अपराधी निकल आता है. इस लिहाज से कविता शक के दायरे में आ गई. उसे पूछताछ के लिए थाने बुलाया गया. साथ में नाबालिग बच्चों को भी बुलाया.

कविता से पूरे घटनाक्रम की जानकारी ली गई, जबकि बच्चों को अलग कमरे में बिठाकर तरह तरह के वैसे घरेलू सवाल पूछे गए, जिन से उन्हें कविता और महेंद्र के बीच अनबन या तनाव की कोई बात मालूम हो सके.

बच्चों ने पूछताछ में जल्द ही बता दिया कि उस की मां और पिता के बीच अकसर लड़ाईझगड़े होते रहते थे. पापा शराब पी कर घर आते थे. उन के घर आते ही मां (कविता) उन से झगड़ने लगती थी. कोई न कोई कारण और बहाना बना कर काफी समय तक बहस करती थी. यहां तक कि कई बार उन के बीच हाथापाई तक हो जाती थी.

बच्चों का एक बयान पुलिस के लिए महत्वपूर्ण  बन गया. कविता की 13 साल की बेटी ने बताया कि घटना की रात उस की मां पिता के सीने पर बैठी थी और उस का हाथ पिता की  गरदन पर था. इस पर जब उस ने पूछा कि वह क्या कर रही है तब कविता गुस्से में बोली थी, ‘तेरे बाप के मुंह से गुटखा निकाल रही हूं.’

उस के कुछ समय बाद ही कविता परेशान हो गई थी और जल्दी से पिता को अस्पताल ले जाने की तैयारी करने लगी थी. यहां तक कि आटो में बिठाने के समय उस के पिता में कोई हलचल नहीं थी. उसे दोनों ने टांगकर आटो में बिठाया था.

उस के एक घंटे बाद ही मां का फोन आया कि उस के पिता की हार्टअटैक से मौत हो गई है.

दूसरी तरफ कविता से भी सख्ती के साथ पूछताछ की गई. उस का मोबाइल ले कर वाट्सऐप मैसेज चेक किए गए. उस आधार पर भी उस से पूछताछ की गई.

उस ने मैसेज के मुताबिक घुमावदार जवाब दिए. कुछ मैसेज विनय शर्मा के भी थे. उस के कई मैसेज बेहद करीबी और राजदार बनने की गवाही दे रहे थे. जब कि पुलिस ने पाया कि महेंद्र की अस्पताल में भरती से लेकर 3-4 दिनों तक उस का कोई अतापता नहीं था.

विनय शर्मा से उस के संबंध के बारे में पूछा गया. पहले तो कविता ने उसे ले कर मना किया कि वह उसे नहीं जानती. जल्द ही पुलिस के सवालों के जाल में वह फंस गई और उस ने सच उगलते हुए कह दिया कि विनय उस का एक खास दोस्त है. जहां कविता काम करती थी वहां विनय इंश्योरेंस का काम देखता था.

महेंद्र को विनय शर्मा और कविता से संबंध की भनक लग गई थी. इसे ले कर उस ने पत्नी पर आरोप भी लगाए थे, तब उलटे कविता ने ही उस पर जवाबी हमला बोल दिया था. उस के बाद से महेंद्र और अधिक शराब पीने लगा था. रात को एकदम से मदहोशी में घर आता था. घटना की रात भी महेंद्र की हालत वैसी ही थी.

उस दिन भी वह लड़खड़ाते कदमों से घर आया और अपने कमरे जा कर सीधे बेड पर लेट गया था. कविता को लगा कि मौका अच्छा है और उसे गालियां सुनाती हुई कमरे का दरवाजा भीतर से बंद कर लिया था, उस ने दरवाजे की कुंडी नहीं लगाई थी.

कुछ देर बाद उस की बेटी ने देखा कि कमरे से मां के झगड़े की आवाज आनी बंद हो गई है तब उस ने कमरे में झांक कर देखा था. उस ने पाया कि उस की मां पिता के सीने पर बैठी उन का गला दबा रही है.

विनय शर्मा भी शक के दायरे में आ गया और उसे भी पूछताछ के लिए थाने बुलाया गया. कड़ाई से पूछताछ और नौकरी जाने के भय से उस ने स्वीकार कर लिया कि उस के कविता के साथ प्रेम संबंध थे, लेकिन महेंद्र की मौत के बारे में कुछ नहीं जानता है.

विनय शर्मा द्वारा प्रेम संबंध स्वीकारे जाने के बाद कविता ने बताया कि वह विनय को बहुत प्यार करती थी. लेकिन उन दोनों के अवैध संबंधों की जानकारी पति महेंद्र को हो गई थी. जिस के बाद महेंद्र रोजरोज उस के साथ क्लेश करता था. इतना ही नहीं, वह उस की पिटाई भी कर देता था.

पति की रोजरोज की कलह से वह परेशान हो चुकी थी और उस से छुटकारा पाना चाहती थी. एक बार अपने दिल की बात उस ने प्रेमी विनय को भी बता दी थी. जब विनय से पति की शराब पीने की लत का जिक्र किया था, तब उस ने महेंद्र को रास्ते से हटाने की योजना बताई थी.

विनय ने कविता को यह भी बताया कि महेंद्र की मौत से उसे दोहरा फायदा होगा.  एक तो उसे शराबी पति से छुटकारा मिल जाएगा, दूसरा लाभ उस की मौत के बाद वह उस के इंश्योरेंस का पैसा भी दिलवा देगा.

फिर क्या था कविता की आंखों में चमक आ गई, और उस ने प्रेमी के कहे मुताबिक पति को रास्ते से हटाने की योजना को अंजाम तक पहुंचा दिया.

फिर को कविता ने शराब में धुत पति महेंद्र राणा की गला दबाकर हत्या कर दी और उस के मुंह में गुटखा भर दिया.

इस के बाद वह उसे उसी अस्पताल में ले गई, जहां वह नौकरी करती थी. उस ने सोचा कि वहां से वह परिचित डाक्टर से पति की हार्टअटैक से हुई मौत लिखवा लेगी. लेकिन ऐसा नहीं हो सका. बल्कि मामला संदिग्ध होने पर डाक्टर ने ही पुलिस को सूचना दे दी.

इस तरह से पुलिस को मोबाइल से कुछ वाट्सऐप चैट और रिकौर्डिंग के जरिए महेंद्र की हत्या की गुत्थी सुलझाने में सफलता मिल गई.

विनय ग्रेटर नोएडा के कुड़ी खेड़ा गांव का रहने वाला है. पूरी जांचपड़ताल के बाद कविता को हत्या का और विनय को हत्या का षड्यंत्र रचने का आरोपी बनाया गया. पुलिस ने कविता और विनय से पूछताछ कर ने के बाद उन्हें कोर्ट में पेश किया. जहां से  दोनों को  जेल भेज दिया.द्य

(कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित)