प्रेमिका के प्लान में बच्चे बने गवाह

राजधानी दिल्ली से सटे गजियाबाद के कवि नगर थाने की पुलिस 35 वर्षीय महेंद्र राणा नाम के व्यक्ति की मौत को ले कर उलझ गई थी. उस की लाश की स्थिति और डबडबाए आंसुओं से भरी पत्नी समेत रोतेबिलखते बच्चों को देख कर पुलिस ने शुरुआत में आत्महत्या का मामला समझ लिया था.

दरअसल, उस की पत्नी कविता 30 नवंबर,2022 की रात अपने पति महेंद्र राणा को गाजियाबाद के सर्वोदय अस्पताल में ले कर पहुंची थी. वह उसी अस्पताल में नर्स थी.

महेंद्र राणा की हालत देखते ही इमरजेंसी में तैनात डाक्टर ने कहा, ‘‘क्या कविता, इतनी समझदार नर्स हो कर भी तुम ने इसे लाने में देर क्यों कर दी?’’

‘‘सर! मैं इन की हालत देख कर घबरा गई थी…कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूं?’’ कविता रूआंसी हो कर बोली.

‘‘ठीक है, ठीक है! अब जल्द से वार्डबौय को बुला कर औक्सिजन लाने को बोलो.’’ कह कर डाक्टर ने महेंद्र के सीने को दोनों हथेलियों से दबा कर दिल को पंपिंग करना शुरू कर दिया.

डाक्टर के ऐसा करते ही महेंद्र के मुंह से कुछ निकलने लगा. तभी डाक्टर ने कहा, ‘‘अरे, यह क्या, इस के मुंह में गुटखा भरा है!… आ कर निकालो इसे!’’

‘‘जी सर!… यही तो मुसीबत है!! बारबार कह कर मैं थक गई हूं. इन का गुटखा छूटता ही नहीं है!’’ कविता बोली.

‘‘ठीक है! ठीक है!! तुम्हारा पति जल्द अच्छा हो जाएगा… उस के बाद इसे समझा देना… गुटखा तो एकदम बंद कर दे…! और क्याक्या नशा करता है तुम्हारा पति?’’ डाक्टर जांच के साथसाथ सवाल भी करते जा रहा था.

जैसे ही कविता आधी रात के करीब बेहोशी की हालत में अपने पति को इमरजेंसी के गेट पर ले कर आई, उस के साथ काम करने वाले दूसरी नर्स और स्टाफ वाले चौंक गए. उन्होंने कविता के पति को आटो से स्ट्रेचर पर लिटाने और इमरजेंसी वार्ड में पहुंचाने में मदद की.

वहां तैनात डाक्टरों ने भी देरी किए बगैर कविता के पति का इलाज शुरू कर दिया. तबतक कविता ने मरीज की भरती का पर्चा बनवा लिया था.

डाक्टर ने वार्डबौय की मदद से फटाफट बेहोश महेंद्र की नाक में औक्सिजन लगाई. इमरजेंसी जांच के लिए हर्टबीट जांचने वाली मशीन भी लगा दी गई… लेकिन मशीन में दिल की धड़कनों का जरा भी संकेत नहीं मिला. जब डाक्टर हथेलियों से उस के सीने पर दबाव बनाते तब मशीन की स्क्त्रीन पर थोड़ी हरकत होती लेकिन फिर बंद हो जाती.

डाक्टर के साथसाथ कविता भी अपने पति की नब्ज टलोलने लगी. नब्ज में उसे भी कोई गति नहीं मिली…फिर वह मायूसी से डाक्टर के चेहरे को देखने लगी…डाक्टर ने भी उस के चेहरे को देखा और इतना ही बोल पाया,‘‘ही इज नो…!’’

‘‘समझ गई डाक्टर साहब…’’ कहती हुई वह रोने लगी. साथ खड़ी दूसरी नर्स और स्टाफ ने उसे सहारा दिया. वहीं कुरसी पर बिठाया.

‘‘अब क्या कर सकती हो कविता, उस की जिंदगी यहीं तक थी…!’’

‘‘जी डाक्टर!’’ कहती हुई कविता की आंखों से आंसू बह निकले. इमरजेंसी वार्ड में थी…वहां खुलकर रो भी नहीं सकती थी. साथी नर्सों ने उस के आंसू पोछे. वह बारबार दुपट्टे से आंसू पोछती रही और सुबकती रही.

कुछ मिनट बाद डाक्टर ने कहा, ‘‘अस्पताल की फर्मालिटी पूरी कर लो. डेथ सर्टिफिकेट बनवाने के लिए जरूरी हैं. मरीज की मौत आकस्मिक है. मरने वाले की उम्र भी काफी कम है. कानूनी प्रक्त्रिया भी पूरी करनी होगी…’’

‘‘… नहींनहीं डाक्टर! उतना सबकुछ करने की जरूरत नहीं है…मरने वाला तो हमें छोड़ कर चला गया…बच्चों को अनाथ बना गया…अब वह सब क्यों?…उस से वह लौट तो नहीं आएगा न!’’ बोलती हुई कविता फिर रोने लगी.

‘‘देखो अस्पताल का रूल तो तुम्हें भी मालूम है, वह तो पूरा करना ही होगा.’’ डाक्टर ने समझाया.

‘‘नहींनहीं! वह सब करेंगे. तब पुलिस पोस्टमार्टम करवाएगी. मैं नहीं चाहती कि मेरे पति की मरने के बाद चीरफाड़ हो.’’

‘‘लेकिन, उस के बगैर अस्पताल का प्रशासन  लाश को यहां से बाहर जाने नहीं देगा…और श्मशान तक पुलिस तुम से सवालजवाब करेगी. उसी सब के लिए तो नियम और कानून हैं…’’ डाक्टर ने फिर एक बार समझाया.

तब तक सीनियर डाक्टर भी वहां आ गए. उन के साथ और दूसरे डाक्टर और प्रशासनिक अधिकारी भी थे. कविता उन से लाश ले जाने की विनती करने लगी. किंतु उन्होंने भी वही कहा जो इलाज करने वाले डाक्टर ने कहा.

कविता की लाख मिन्नतों के बावजूद अस्पताल प्रबंधन ने प्रोटोकाल का पालन करते हुए पुलिस को सूचना दे दी. पुलिस ने प्राथमिकी में डाक्टर के उपचार से पहले उसे भरती के समय की स्थिति से अवगत करवाते हुए सारे दस्तावेजों की जांचपरख की. मौत संदिग्ध हालत में हुई थी.

मृतक का मुंह गुटखे से भरा था और शराब की गंध भी आ रही थी. इसे देखते हुए एसएचओ ने इस पूरे मामले के बारे में एसपी (सिटी) निपुण अग्रवाल  को सूचना दे दी. वहां से मिले आदेश के मुताबिक मृतक का पंचनामा तैयार कर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया.

इसी बीच कविता के रोते बिलखते दोनों बच्चे भी वहां पहुंच गए. अपने पिता को मृत पा कर वे और जोरजोर से रोने लगे. कविता ने बच्चों को चुप करवाते हुए अपनी बाहों में लेने की कोशिश की लेकिन वे मां से छिटक कर अलग दीवार से लग गए.

वहां मौजूद लोगों के साथसाथ पुलिस को भी यह अजीब लगा कि बच्चे गम की घड़ी में मां से अलग क्यों चले गए.

मृतक का अगले रोज ही पोस्टर्माटम हो गया और उस की लाश कविता और उस के घर वालों को सौंप दी गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने तक पुलिस ने कविता को शहर से कहीं भी बाहर जाने पर पाबंदी लगा दी.

महेंद्र राणा अपनी पत्नी कविता और 2 बच्चों के साथ गाजियाबाद के थाना कवि नगर क्षेत्र में स्थित शास्त्री नगर के एसजे-50 में रहता था. कविता पास के ही सर्वोदय अस्पताल में नर्स थी. उस की मौत को ले कर आसपास के लोग हैरान थे. पुलिस भी हैरान थी कि अच्छा भला स्वस्थ दिखने वाले महेंद्र की अचानक मृत्यु कैसे हो सकती है.

जबकि मैडिकल रिपोर्ट में वैसी किसी खास बीमारी का भी जिक्र नहीं था. और तो और, रिपोर्ट के अनुसार वह भरती के समय बेहोशी की हालत में था. उस की सांसें भी नहीं चल रही थीं. उस की नब्ज और चेहरे की रंगत देख कर ही डाक्टर उसे मृत समझ गए थे, फिर भी उन्होंने प्राथमिक उपचार शुरू कर दिया था…और जल्द ही उन्होंने मृत घोषित कर दिया.

पुलिस को इसे ले कर संदेह पैदा हो गया था क्योंकि अस्पताल के कुछ स्टाफ ने ही बताया था कि कविता ने अपने पति को मृत हालत में दाखिल करवाया था. उसे मृत घोषित किए जाने के बाद उस ने लाश का पोस्टमार्टम नहीं करवाने और मामले को पुलिस में नहीं जाने देने की पूरी कोशिश की थी.

2 दिन बाद पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई, जिसे पढ़ कर पुलिस चौंक गई, क्योंकि महेंद्र की मौत सांस रुकने के कारण हुई थी, और उस का गला दबाया गया था. इस रिपोर्ट से साफ था कि उस की हत्या की गई थी. इसी नजरिए से जांच शुरू की गई, जो एक ब्लाइंड मर्डर का मामला था.

ऐसे मामले में अकसर पहला संदेह घर के सदस्य ही बनते आए हैं और उन्हीं में कोई न कोई अपराधी निकल आता है. इस लिहाज से कविता शक के दायरे में आ गई. उसे पूछताछ के लिए थाने बुलाया गया. साथ में नाबालिग बच्चों को भी बुलाया.

कविता से पूरे घटनाक्रम की जानकारी ली गई, जबकि बच्चों को अलग कमरे में बिठाकर तरह तरह के वैसे घरेलू सवाल पूछे गए, जिन से उन्हें कविता और महेंद्र के बीच अनबन या तनाव की कोई बात मालूम हो सके.

बच्चों ने पूछताछ में जल्द ही बता दिया कि उस की मां और पिता के बीच अकसर लड़ाईझगड़े होते रहते थे. पापा शराब पी कर घर आते थे. उन के घर आते ही मां (कविता) उन से झगड़ने लगती थी. कोई न कोई कारण और बहाना बना कर काफी समय तक बहस करती थी. यहां तक कि कई बार उन के बीच हाथापाई तक हो जाती थी.

बच्चों का एक बयान पुलिस के लिए महत्वपूर्ण  बन गया. कविता की 13 साल की बेटी ने बताया कि घटना की रात उस की मां पिता के सीने पर बैठी थी और उस का हाथ पिता की  गरदन पर था. इस पर जब उस ने पूछा कि वह क्या कर रही है तब कविता गुस्से में बोली थी, ‘तेरे बाप के मुंह से गुटखा निकाल रही हूं.’

उस के कुछ समय बाद ही कविता परेशान हो गई थी और जल्दी से पिता को अस्पताल ले जाने की तैयारी करने लगी थी. यहां तक कि आटो में बिठाने के समय उस के पिता में कोई हलचल नहीं थी. उसे दोनों ने टांगकर आटो में बिठाया था.

उस के एक घंटे बाद ही मां का फोन आया कि उस के पिता की हार्टअटैक से मौत हो गई है.

दूसरी तरफ कविता से भी सख्ती के साथ पूछताछ की गई. उस का मोबाइल ले कर वाट्सऐप मैसेज चेक किए गए. उस आधार पर भी उस से पूछताछ की गई.

उस ने मैसेज के मुताबिक घुमावदार जवाब दिए. कुछ मैसेज विनय शर्मा के भी थे. उस के कई मैसेज बेहद करीबी और राजदार बनने की गवाही दे रहे थे. जब कि पुलिस ने पाया कि महेंद्र की अस्पताल में भरती से लेकर 3-4 दिनों तक उस का कोई अतापता नहीं था.

विनय शर्मा से उस के संबंध के बारे में पूछा गया. पहले तो कविता ने उसे ले कर मना किया कि वह उसे नहीं जानती. जल्द ही पुलिस के सवालों के जाल में वह फंस गई और उस ने सच उगलते हुए कह दिया कि विनय उस का एक खास दोस्त है. जहां कविता काम करती थी वहां विनय इंश्योरेंस का काम देखता था.

महेंद्र को विनय शर्मा और कविता से संबंध की भनक लग गई थी. इसे ले कर उस ने पत्नी पर आरोप भी लगाए थे, तब उलटे कविता ने ही उस पर जवाबी हमला बोल दिया था. उस के बाद से महेंद्र और अधिक शराब पीने लगा था. रात को एकदम से मदहोशी में घर आता था. घटना की रात भी महेंद्र की हालत वैसी ही थी.

उस दिन भी वह लड़खड़ाते कदमों से घर आया और अपने कमरे जा कर सीधे बेड पर लेट गया था. कविता को लगा कि मौका अच्छा है और उसे गालियां सुनाती हुई कमरे का दरवाजा भीतर से बंद कर लिया था, उस ने दरवाजे की कुंडी नहीं लगाई थी.

कुछ देर बाद उस की बेटी ने देखा कि कमरे से मां के झगड़े की आवाज आनी बंद हो गई है तब उस ने कमरे में झांक कर देखा था. उस ने पाया कि उस की मां पिता के सीने पर बैठी उन का गला दबा रही है.

विनय शर्मा भी शक के दायरे में आ गया और उसे भी पूछताछ के लिए थाने बुलाया गया. कड़ाई से पूछताछ और नौकरी जाने के भय से उस ने स्वीकार कर लिया कि उस के कविता के साथ प्रेम संबंध थे, लेकिन महेंद्र की मौत के बारे में कुछ नहीं जानता है.

विनय शर्मा द्वारा प्रेम संबंध स्वीकारे जाने के बाद कविता ने बताया कि वह विनय को बहुत प्यार करती थी. लेकिन उन दोनों के अवैध संबंधों की जानकारी पति महेंद्र को हो गई थी. जिस के बाद महेंद्र रोजरोज उस के साथ क्लेश करता था. इतना ही नहीं, वह उस की पिटाई भी कर देता था.

पति की रोजरोज की कलह से वह परेशान हो चुकी थी और उस से छुटकारा पाना चाहती थी. एक बार अपने दिल की बात उस ने प्रेमी विनय को भी बता दी थी. जब विनय से पति की शराब पीने की लत का जिक्र किया था, तब उस ने महेंद्र को रास्ते से हटाने की योजना बताई थी.

विनय ने कविता को यह भी बताया कि महेंद्र की मौत से उसे दोहरा फायदा होगा.  एक तो उसे शराबी पति से छुटकारा मिल जाएगा, दूसरा लाभ उस की मौत के बाद वह उस के इंश्योरेंस का पैसा भी दिलवा देगा.

फिर क्या था कविता की आंखों में चमक आ गई, और उस ने प्रेमी के कहे मुताबिक पति को रास्ते से हटाने की योजना को अंजाम तक पहुंचा दिया.

फिर को कविता ने शराब में धुत पति महेंद्र राणा की गला दबाकर हत्या कर दी और उस के मुंह में गुटखा भर दिया.

इस के बाद वह उसे उसी अस्पताल में ले गई, जहां वह नौकरी करती थी. उस ने सोचा कि वहां से वह परिचित डाक्टर से पति की हार्टअटैक से हुई मौत लिखवा लेगी. लेकिन ऐसा नहीं हो सका. बल्कि मामला संदिग्ध होने पर डाक्टर ने ही पुलिस को सूचना दे दी.

इस तरह से पुलिस को मोबाइल से कुछ वाट्सऐप चैट और रिकौर्डिंग के जरिए महेंद्र की हत्या की गुत्थी सुलझाने में सफलता मिल गई.

विनय ग्रेटर नोएडा के कुड़ी खेड़ा गांव का रहने वाला है. पूरी जांचपड़ताल के बाद कविता को हत्या का और विनय को हत्या का षड्यंत्र रचने का आरोपी बनाया गया. पुलिस ने कविता और विनय से पूछताछ कर ने के बाद उन्हें कोर्ट में पेश किया. जहां से  दोनों को  जेल भेज दिया.द्य

(कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित)

कर्मों का फल : कैसे बदली सुनील की जिदंगी

हजारीबाग की हरीभरी वादियों में बसे टनकपुर गांव की गिनती आदर्श गांवों में होती थी. झिलिया नदी के तट पर बसे इस गांव की आबादी तकरीबन सवा सौ परिवारों की थी.अयोध्या राम गांव के अमीर लोगों में से एक थे. मजबूत कदकाठी के चलते उन की अलग पहचान थी. उन के पास खेतखलिहान, नौकरचाकर थे.

वर्तमान समय में किसी चीज की कमी नहीं थी. लेकिन पर्वत्योहार के मौके पर उन की स्वर्गीय पत्नी सुलोचना की याद ताजा हो जाती थी, जिन्होंने बेटे सुनील को जन्म देने के बाद अस्पताल में ही दम तोड़ दिया था.सुनील का लालनपालन अयोध्या राम ने खुद किया था. पुत्र मोह में उन्होंने दूसरी शादी नहीं की थी. पता नहीं सौतेली मां कैसी मिलेगी, यह सोच कर उन्होंने अपने लिए आए हर रिश्ते को मना कर दिया था.

टनकपुर में हर साल हाई स्कूल के निकट बने मंदिर में भारी मेला लगता था, जिस में गांवदेहात में बनी चीजों से ले कर शहर में बने फैंसी सामान तक बिकते थे. 3 दिन के इस मेले में झूले, जादू घर, मौत का कुआं, कठ घोड़वा जैसे मनोरंजन के साधन थे, जो मेला देखने वालों के आकर्षण का केंद्र थे. बच्चों के लिए तरहतरह के खिलौने, औरतों के लिए सजनेसंवरने की चीजें भी खूब बिकती थीं.

टनकपुर के आसपास के लोग भी मेले में पहुंचते थे. गांव के लोग बहती झिलिया नदी में स्नान कर मंदिर में पूजाअर्चना करते और मेले में से सामान खरीद कर घर लौट जाते. वहीं बगल में मवेशियों का हाट लगा हुआ था, जहां तरहतरह के मवेशी बिकने के लिए आए हुए थे. मेले में भेड़, बैल, बकरा, मुरगा की लड़ाई की प्रतियोगिता भी होती थी. जीतने वाले पशु मालिकों को नकद इनाम आयोजकों द्वारा दिया जाता था. पशुओं की सेहत व सुंदरता की परख भी की जाती थी.

अयोध्या राम अपने बैलों को नहला कर और रंगबिरंगे रंगों से सजा कर सजी हुई बैलगाड़ी में जोत कर मेले में पहुंचे. बैलगाड़ी को एक पेड़ की छाया में खड़ा कर बापबेटा लिट्टी की दुकान पर चले गए और वहां गरमागरम लिट्टीचोखा और हरी मिर्च का स्वाद लिया. लिट्टी खाते समय सुनील की नजर बकरी के एक नटखट खस्सी पर जा पड़ी. उस का सफेद रंग, शीशे जैसी चमचमाती आंखें, खड़़े कान, उस का उछलनाकूदना और मचलना बहुत ही मनभावन था. सुनील अपने पिता से वह खस्सी खरीदने की जिद करने लगा.

अयोध्या राम ने भी सोचा कि बेटा घर में अकेला रहता है. खस्सी का साथ मिलेगा, तो उस का समय अच्छा कट जाएगा. उन्होंने बिना मोलभाव किए उस खस्सी को 1,000 रुपए में खरीद लिया. घर के अहाते में ला कर खस्सी को छोड़ दिया. सुनील खस्सी के साथ इतना घुलमिल गया कि अब वह उसे अपने बिछावन पर सुलाने लगा. देखते ही देखते 4 साल में वह खस्सी बकरा बन गया. सुनील ने उस की निडरता को देख कर उस का नाम शेरा रख दिया था, साथ ही उस के गले में पीतल की एक घंटी भी बांध दी थी.

जब शेरा उछलताकूदता तो घंटी की ‘टनटन’ की मधुर आवाज सब का मन मोह लेती. पूरे गांव में शेरा की चर्चा होने लगी थी. गांव के मंदिर में फिर मेला लगा और उस में मवेशियों की प्रतियोगिता का आयोजन हुआ, जिस में शेरा ने भी भाग लिया. उस ने खस्सी मुकाबला, परेड और दौड़ में पहला नंबर पाया. दूसरे खस्सी उस का मुकबला नहीं कर सके. तीनों प्रतियोगिताओं में सुनील को 3,000 रुपए मिले. शेरा की यह बढ़त कई साल तक जारी रही.

अब टनकपुर के लोग शेरा को इतना प्यार करते, जैसे वह उन के घर का सदस्य हो. वह दिनरात सुनील के साथ रहता, उस के साथ खातापीता और घूमता था. इधर सुनील ने अपने गांव के स्कूल से मैट्रिक पास कर ली थी. अयोध्या राम ने उस का दाखिला रांची के नामीगिरामी कालेज में करा दिया था. कालेज के होस्टल में उस के रहने का इंतजाम हो गया था.

कालेज में सीधासादा सुनील बुरे लड़कों की संगत में पड़ गया. गबरी गाय का दूधदही खाने वाला सुनील अब कालेज में नशा करने लगा था. इतना ही नहीं, अब सुनील स्मैक की सप्लाई करने लगा था. वह अपनी फुजूलखर्ची को पूरा करने के लिए अपने पिता से और ज्यादा रुपयों की मांग करता था.

सुनील के ड्रग्स लेने की जानकारी कालेज के शिक्षकों द्वारा प्रिंसिपल तक पहुंच गई. नतीजतन, पहले उसे चेतावनी दी गई और बाद में जब वह नहीं माना, तो प्रिंसिपल ने उसे कालेज से निकाल दिया.

सुनील कालेज से अपना सामान समेट कर अपने घर टनकपुर पहुंचा. बेटे को देख कर अयोध्या राम ने कालेज छोड़ने की वजह पूछी, तो सुनील ने उन्हें बताया कि कोरोना काल में कालेज बंद हो गया है. कालेज की पढ़ाई औनलाइन घर पर होगी. इसी बहाने सुनील ने लैपटौप खरीदने के लिए अपने पिता से 65,000 रुपए झटक लिए. पैसा मिलते ही सुनील रांची चला गया. वहां उस ने 15,000 रुपए में एक पुराना लैपटौप खरीदा और बाकी रुपयों की उस ने स्मैक और नशे की गोलियां खरीद लीं.

रांची से लौटने के बाद वह घर में भी नशा करने लगा. जब उसे नशा हो जाता, तो वह शेरा को भी भूल जाता. शेरा को पहले जैसा प्यारदुलार नहीं दे पाता, जिस का आभास शेरा को हो चुका था. जब अयोध्या राम को सुनील के नशेड़ी होने की बात मालूम हुई, तो उन्होंने सुनील के जेबखर्च पर रोक लगा दी. तब सुनील ने अपना लैपटौप पतंग के भाव में बेच डाला. लेकिन, वह पैसा भी खत्म होने के बाद सुनील अपना सिर धुन रहा था कि स्मैक के लिए पैसा कहां से लाए. पास में बैठा शेरा उस को निरीह आंखों से देख रहा था.

गांव के एक कसाई जुम्मन की नजर शेरा पर थी. वह शेरा को खरीदने के लिए मौके की तलाश में था. एक दिन वह सुनील के पास पहुंचा और बोला, ‘‘सुनील बाबू, आप को कुछ पैसे चाहिए क्या?’’ चाहिए तो, पर कौन देगा पैसे? मेरे पास अब बेचने को है ही क्या?’’

सरकार अभी तो आप के पास खजाना है,’’ जुम्मन अपनी चाटुकारिता पर उतर आया. कैसा खजाना? क्यों मजाक करते हो जुम्मन भाई.’’‘हुजूर, शेरा तो आप का खजाना ही है. कहिए तो इस के लिए 12,000 रुपए अभी गिन दूं…’’12,000…’’ यह सुन कर सुनील का मुरझाया मन खिल उठा. उस की नजरें शेरा पर जा कर ठहर गईं. उस ने शेरा को देखा और जुम्मन से बोला, ‘‘अच्छा, लाओ रुपए.’’ जुम्मन ने रुपए निकालने में देर न की. उस ने तुरंत अपनी झोली में हाथ डाला और नोट सुनील के हाथों पर रख दिए.

अब जुम्मन शेरा के पास आया और उस के पुट्ठे पर हाथ फेरा. साथ ही, उस की कमर को ऊपर उठा कर वजन का अंदाजा लगाया. उस ने बिना देर किए शेरा को ले जाने के लिए उस की गरदन में रस्सी बांध कर खींचा, मगर शेरा अपनी जगह से हिला तक नहीं.जब जुम्मन ने पूरा जोर लगा कर शेरा को खींचा, तो वह मिमियाने लगा. पर सुनील को कोई खास फर्क नहीं पड़ा.

उस का ध्यान तो जेब में रखे पैसों पर था. लेकिन रात को उसे शेरा की खूब याद आई और वह अगली ही सुबह बाजार में जुम्मन की दुकान पर जा पहुंचा. उस ने अपनी जेब से 12,000 रुपए निकाल कर जुम्मन की तरफ बढ़ाए, तो जुम्मन ने शेरा के कटे हुए सिर व टंगे हुए धड़ को दिखाया.

यह देख कर सुनील बेकाबू हो गया और वह एकाएक जुम्मन पर टूट पड़ा. उस ने जुम्मन का चाकू छीन लिया. उन दोनों में मारपीट होने लगी कि इसी दौरान वे एक दीवार से टकरा गए. दीवार सुनील के ऊपर भरभरा कर गिर पड़ी और वह गंभीर रूप से घायल हो कर बेहोश हो गया.

आसपास के लोगों ने सुनील को मलबे से बाहर निकाला. इस घटना की खबर अयोध्या राम को दी गई. वे एक डाक्टर और पंचायत के मुखिया के साथ वहां पहुंचे. डाक्टर ने सुनील के प्राथमिक उपचार के बाद उसे रांची ले जाने की सलाह दी.

अयोध्या राम की हिम्मत ने जवाब दे दिया. तब मुखियाजी ने एक एंबुलैंस मंगवाई और सुनील को ले कर रांची रवाना हुए.

अस्पताल के बड़े डाक्टर जल्दी ही वहां पहुंचे और स्ट्रैचर पर ही सुनील का चैकअप करते हुए बोले, ‘‘आप लोगों ने लाने में देर कर दी. यह लड़का अब इस दुनिया में नहीं है…’’

इतना सुनते ही उस माहौल में अयोध्या राम के चीखने की आवाज गूंजने लगी. गांव के मुखिया उन्हें समझाने में लगे हुए थे. वे किसी तरह उन्हें ले कर कार में बैठे और गांव जाने के लिए रवाना हो गए.

इश्क की बिसात पर बिजली का करंट

14नवंबर, 2022 की रात यही कोई 2 बजे की बात है. मध्य प्रदेश के भिंड जिले के गोरमी थाने के गांव सिकरौदा की रहने वाली एक महिला ने 100 नंबर पर फोन कर के कहा, ‘‘मैं कृष्णपाल केवट की पत्नी रामकली बोल रही हूं, मेरे पति की किसी बदमाश ने हत्या कर के उनकी लाश मेरे घर के पीछे डाल दी है.’’

चूंकि मामला गोरमी थाने का था, इसलिए पुलिस कंट्रोल रूम ने गोरमी थाने को घटना की जानकारी दे दी.

सूचना मिलते ही गोरमी के एसएचओ सुधाकर सिंह तोमर, एसआई मनीराम, नादिर, एएसआई देवेंद्र भदौरिया, हैडकांस्टेबल कौशलेंद्र सिंह को साथ ले कर महिला द्वारा बताए पते की ओर रवाना हो गए. मौकाएवारदात पर पहुंचने के बाद एसएचओ ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों को भी मामले की सूचना दे दी.

मृतक के शव और आसपास की जांचपड़ताल से पता चला कि कृष्णपाल केवट उर्फ टिंकू की हत्या करने के बाद हत्यारे उस की लाश को ठिकाने लगाने के लिए वहां तक घसीट कर लाए थे.

लाश को घसीटे जाने के निशान देख कर अनुमान लगाया गया कि हत्यारा किसी अन्य स्थान पर हत्या कर लाश को ठिकाने लगाने ले जा रहा होगा, लेकिन किसी ने लाश घसीटते हुए उसे देख लिया होगा. अत: वह पकड़े जाने के डर से लाश छोड़ कर भाग खड़ा हुआ. उस के पैर के दोनों अंगूठों पर बिली के करंट से जलाने के निशान थे.

कृष्णपाल सिंह को उस के दोनों हाथ साड़ी से बांधने के बाद उस के पैरों के अंगूठे में बिजली का करंट लगा कर मौत के घाट उतारा गया था, मृतक के दोनों हाथ अभी भी साड़ी से बंधे हुए थे. उस की आयु 37-38 साल के आसपास पास रही होगी.

लाश पड़ी होने का सब से पहले पता रात के अंधेरे में दिशामैदान के लिए गई एक महिला को चला था. उसी ने घर आ कर लाश के बारे में अपने पति को बताया था. फिर जानकारी मिलते ही और लोग भी वहां जुटने लगे थे. उसी भीड़ में शामिल मृतक की पत्नी ने पुलिस कंट्रोल रूम को इस हत्या की सूचना दी थी.

घटनास्थल की स्थिति और शुरुआती जांच में ही परिस्थितियां रामकली के खिलाफ थीं. एसएचओ को कृष्णपाल उर्फ टिंकू केवट की हत्या के मामले में उस की पत्नी रामकली की भूमिका स्पष्ट तौर पर दिखाई दे रही थी.

पुलिस ने रामकली के बारे में जानकारी जुटाई तो पता चला कि उस का सिकरौदा के ही 20 वर्षीय युवक राजू से पिछले 6 महीने से चक्कर चल रहा था.

कुछ महीने पहले वह उस के साथ घर से भाग गई थी, काफी प्रयास के बाद उस का पति उसे खोज लाया था. रामकली की इस करतूत के बाद पतिपत्नी में विवाद रहने लगा था, उन दोनों के रिश्तों में दरार आती चली गई. यह दरार इतनी बढ़ गई कि रामकली ने अपने पति को मौत के घाट उतारने की योजना बना डाली.

एसएचओ सुधाकर सिंह तोमर को लगा कि कहीं कृष्णपाल की हत्या प्रेम संबंध में बाधा बनने की वजह से तो नहीं हुई? अगर ऐसा हुआ तो रामकली भी शामिल रही होगी. उन्होंने बिना वक्त गंवाए शक के आधार पर रामकली को थाने बुलाया और उस से गहराई से पूछताछ की.

इस पूछताछ में उस ने प्रेम प्रसंग से ले कर राजू के साथ नाजायज ताल्लुकात की बात बेहिचक स्वीकार कर ली. लेकिन पति की हत्या में किसी तरह का हाथ होने से स्पष्ट तौर से मना करती रही.

उलटे वह एसएचओ से बोली, ‘‘साहब, मेरे ही पति की हत्या हुई है और आप मुझ से ही इस तरह पूछ रहे हैं, जैसे मैं ने ही उन्हें मारा हो. जिन लोगों ने मेरे पति को मार कर मेरे घर के पीछे उन की लाश फेंकी, उन्हें पकड़ने में आप कोई दिलचस्पी नहीं ले रहे. आप ही बताइए, भला मैं अपने पति को क्यों मारूंगी? यदि मैं ने अपने पति की हत्या की होती तो इतनी रात गए पुलिस को खबर क्यों देती? अगर आप मुझे ज्यादा तंग करेंगे तो मैं एसपी साहब से आप की शिकायत कर दूंगी.’’

पूछताछ के बाद उसी दिन एसएचओ ने रामकली और राजू के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. काल डिटेल्स देख कर वह हैरान रह गए. काल डिटेल्स से पता चला कि दोनों एकदूसरे से अकसर घंटों तक बातें किया करते थे.

घटना वाली रात भी घटना से कुछ देर पहले और बाद में भी दोनों की काफी लंबी बातें हुई थीं. सबूत मिल जाने के बाद सुधाकर सिंह तोमर ने रामकली से कहा, ‘‘तुम जिस से चाहो मेरी शिकायत कर देना, मुझे तो इस अंधे कत्ल की पड़ताल कर जल्द से जल्द इस का खुलासा करना है.’’

सुधाकर सिंह तोमर ने रामकली से पूछा, ‘‘अब तुम यह बताओ कि तुम्हारे पति की हत्या से पहले और बाद में राजू से तुम्हारी क्या बातें हुई थीं? तुम्हारे मोबाइल फोन में मौजूद इस नंबर के बारे में भी बताओ कि यह किस का है?’’

रामकली ने तपाक से बताया कि यह नंबर  उस के प्रेमी राजू के मुंहबोले चाचा वीर सिंह का है.

इस बीच एसएचओ को अपने भरोसेमंद मुखबिर से पता चला कि घटना वाली रात सिकरौदा गांव के शातिर बदमाश वीर सिंह जिस पर अपनी पत्नी की हत्या सहित आधा दरजन आपराधिक मामले दर्ज हैं, को कृष्णपाल के घर में जाते हुए देखा गया था.

इस महत्त्वपूर्ण जानकारी से एसएचओ सुधाकर तोमर का माथा ठनका कि कहीं   रामकली के प्रेमी के साथसाथ वीर सिंह भी तो कृष्णपाल की हत्या में शामिल नहीं था.

एसएचओ ने राजू और उस के मुंहबोले चाचा वीर सिंह को भी पूछताछ के लिए थाने बुला लिया. उन दोनों से कृष्णपाल की हत्या के बारे में पूछताछ की गई. राजू ने बताया कि जिस वक्त कृष्णपाल की हत्या होने की बात कही जा रही है, उस समय वह सिकरौदा में नहीं था. वह तो किसी काम से उत्तर प्रदेश गया हुआ था.

राजू बारबार यही बात दोहराता रहा, उस के मोबाइल फोन की लोकेशन चैक करने से एक बात साफ हो गई कि कृष्णपाल की हत्या के समय राजू की मौजूदगी सिकरौदा में नहीं थी. यानी कृष्णपाल का हत्यारा कोई और था.

इस के बाद तोमर ने रामकली से पूछा, ‘‘तुम मुझे यह बताओ कि तुम्हारे पति की हत्या से पहले और बाद में राजू और उस के मुंहबोले चाचा से तुम्हारी क्या बातें हुई थीं?’’

इस सवाल पर रामकली के चेहरे का रंग उड़ गया. वह खुद को संभालते हुए बोली, ‘‘नहीं, मेरी उन दोनों से कोई बात नहीं हुई. साहब, किसी ने आप को गलत जानकारी दी है.’’

‘‘गलत नहीं बताया, यह देख लो. तुम ने घटना वाले दिन, कबकब और किस से बात की है. इस कागज में पूरी डिटेल है. एक नजर मार लो,’’ एसएचओ ने काल डिटेल्स वाला कागज उस के हाथ में थमाते हुए कहा.

रामकली अब झूठ नहीं बोल सकती थी, क्योंकि सुधाकर सिंह तोमर ने सारी हकीकत उस के सामने जो रख दी थी. उस की चुप्पी से तोमर समझ गए कि उन की जांच सही दिशा में चल रही है.

इस के बाद उन्होंने उस से मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ की तो रामकली ने कुबूल कर लिया कि पति की हत्या उस ने अपने प्रेमी के मुंहबोले चाचा वीर सिंह के साथ मिल कर की थी. उस ने पति के पैर के अंगूठे पर हीटर का तार बांधने के बाद एक घंटे तक करंट लगाया था. उस ने इस हत्या की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार निकली—

तकरीबन 9 साल पहले घर वालों ने रामकली का विवाह सिकरौदा के कृष्णपाल केवट के साथ कर दिया था. रामकली इस विवाह से काफी खुश थी. उस ने बेहतर जिंदगी के सपने संजो लिए थे.

उस का लालनपालन भले ही एक गरीब परिवार में हुआ था, लेकिन उसे उम्मीद थी कि विवाह के बाद उस की सभी इच्छाएं पूरी हो जाएंगी और उस का पति उस के हर शौक को पूरा करेगा.

लेकिन ऐसा नहीं हुआ, क्योंकि कृष्णपाल सिंह अव्वल दरजे का शराबी था. वह जो कुछ कमाता था, शराब में उड़ा देता था. ऐसी स्थिति में उस के सारे अरमान चकनाचूर हो गए. समय अपनी गति से चलता रहा. रामकली 4 बच्चों की मां बन गई.

रामकली जितनी सुंदर थी, उस से कहीं ज्यादा चंचल भी थी. वह ज्यादा पढ़ीलिखी तो नहीं थी, मगर उस की खासियत यह थी कि वह गजब की चालाक थी. उसे जो भी करना होता था, बेहिचक हो कर करती थी. उस के इसी स्वभाव की वजह से जो भी उस से एक बार मुलाकात कर लेता था, वह उस का दीवाना हो जाता था.

राजू भी पहली ही मुलाकात में उस का दीवाना हो गया था. यही नहीं, वह मन ही मन उसे अपनी जीवनसंगिनी बनाने के सपने संजोने लगा था. वह जब भी अल्हड़ रामकली को देखता तो उस के दिल की धड़कनें बढ़ जातीं और वह रामकली का मादक जिस्म पाने के लिए छटपटा उठता.

हालांकि शुरू में तो राजू रामकली से ठीक तरह नजर भी नहीं मिला पाता था. लेकिन जब उसे पता चला कि रामकली अपने पति से खुश नहीं है तो उस की हिम्मत बढ़ गई. जैसा कि कहा जाता है कि जहां चाह होती है, वहां राह निकल ही आती है. राजू के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ.

रामकली के पति कृष्णपाल केवट को शराब पीने का शौक था. इसी के जरिए राजू को उस के करीब पहुंचने का मौका मिल गया. राजू भी अपने मुंहबोले चाचा वीर सिंह के साथ रोज कृष्णपाल के संग उस के घर पर शराब पीने जाता था.

इसी दौरान रामकली से उस की आंखें चार हो जाती थीं. फिर इसी बहाने वह रामकली के पति से ही नहीं, रामकली से भी घुलमिल गया. राजू उस की आर्थिक मदद भी करने लगा. हालांकि वीर सिंह भी रामकली से जिस्मानी संबंध बनाना चाहता था, मगर 40 वर्षीय वीर सिंह के आपराधिक चरित्र को देखते हुए रामकली इस के लिए तैयार नहीं हुई.

रामकली कोई दूधपीती बच्ची नहीं थी. वह राजू के दिल की बात अच्छी तरह से समझ रही थी. राजू को अपनी तरफ आकर्षित होते देख वह भी उस की ओर खिंची चली गई. राजू और रामकली के दिल में प्यार के अंकुर फूटे तो जल्द ही वह समय भी आ गया, जब दोनों का एकदूसरे के बिना रहना मुश्किल हो गया.

रामकली अकसर पति के नशे में मदहोश होते ही प्यार का अनैतिक खेल खेलने और अपने जिस्म की प्यास बुझाने के लिए राजू को अपने घर पर बुलाने लगी थी. जैसेजैसे यह खेल आगे बढ़ रहा था, उन दोनों के प्यार का बंधन मजबूत होता जा रहा था.

धीरेधीरे स्थिति यह हो गई कि रामकली को अपने पति कृष्णपाल की बाहों की अपेक्षा राजू की बाहें सख्त और ज्यादा अच्छी लगने लगी थीं. जो जिस्मानी सुख उसे राजू की बाहों में मिलता था, वह अपने पति की बाहों में नहीं मिल पाता था.

यही वजह थी कि उन दोनों को लगने लगा था कि अब वे एकदूसरे के बिना नहीं रह सकते. हालांकि राजू ने तो कुछ नहीं कहा लेकिन एक रोज रामकली ने उस से कहा, ‘‘राजू, अब मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती. मैं अब तुम से शादी करना चाहती हूं.’’

इस पर राजू ने उस से मजाक करते हुए कहा, ‘‘ऐसा कभी नहीं हो सकता, क्योंकि तुम सिर्फ शादीशुदा ही नहीं, बल्कि बालबच्चेदार भी हो.’’

‘‘मुझे इस से कोई मतलब नहीं. तुम अगर मुझ से सच में प्यार करते हो और मुझे हमेशाहमेशा के लिए अपना बनना चाहते हो तो इस के लिए तुम्हें मेरे पति की हत्या करनी पड़ेगी.’’ रामकली ने साफ कह दिया.

अपनी प्रेमिका के मुंह से यह सब सुन कर राजू की सिट्टीपिट्टी गुम हो गई. उस ने रामकली से दोटूक शब्दों में कहा, ‘‘मुझ से ऐसा निहायत ही घिनौना काम नहीं हो सकेगा. ऐसा करने पर हम दोनों को ही सारी उम्र जेल में गुजारनी पड़ेगी.’’

राजू ने रामकली से कहा, ‘‘हम दोनों को जो चाहिए वह हमें मिल रहा है तो फिर हम ऐसा काम क्यों करें?’’

राजू ने उसे समझाने का भरसक प्रयास किया, लेकिन इस का उस पर लेश मात्र भी असर नहीं हुआ. क्योंकि वह अपने शराबी पति से हमेशा के लिए पीछा छुड़ाना चाहती थी. राजू के प्यार में अंधी हो चुकी रामकली कभी राजू से कहती कि मेरे पति को शराब में जहर दे कर मार दो, तो कभी कहती गला घोट कर किस्सा हमेशा के लिए खत्म कर दो.

रामकली किसी भी तरह अपने पति को हटाना चाहती थी. लेकिन राजू इस के लिए तैयार नहीं हो रहा था. रामकली इस बात को अच्छी तरह जानती थी कि जब तक शराबी पति जिंदा रहेगा, वह तसल्ली से अपने प्रेमी को अपना जिस्म सौंप कर तनमन की प्यास नहीं बुझा सकेगी.

13 नबंबर, 2022 की रात रामकली ने राजू को फोन कर के कहा, ‘‘राजू, कृष्णपाल इस वक्त शराब के नशे में बेसुध हो कर बिस्तर पर पड़ा है. आज अच्छा मौका है उसे रास्ते से हटाने का. जल्दी से तुम यहां आ जाओ.’’

मगर राजू ने रामकली से कहा, ‘‘आज मैं सिकरौदा में नहीं हूं, अत: मैं नहीं आ सकूंगा. तुम मेरे मुंहबोले चाचा वीर सिंह को तो जानती ही हो, उन्हें फोन कर के अपने घर पर बुला लो. उन की मदद से अपने पति का खेल खत्म कर दो.’’

कहते हैं कि औरत जब चरित्रहीनता पर उतर आती है तो उसे किसी लोकलाज का भय नहीं रहता. रामकली भी ऐसी ही औरत थी. जिस वक्त रामकली ने अपने प्रेमी के मुंहबोले चाचा वीर सिंह को फोन किया, उस समय रात के 11 बज रहे थे.

रामकली ने पहले तो उस से इधरउधर की बातें कीं, इस के बाद उस ने बिना किसी हिचकिचाहट के वीर सिंह से कहा, ‘‘मुझे आज अपने पति को अपने और राजू के रास्ते से हटाना है. पति नहीं रहेगा तो मैं राजू के साथ हमेशा के लिए रह सकूंगी.’’

उस का इतना कहना था कि वीर सिंह ने कहा, ‘‘मैं तेरी इच्छा के मुताबिक रास्ते के कांटे को आज ही हटाए देता हूं. मगर इस के बदले में तुझे मेरे संग सोना होगा.’’

रामकली पति को ठिकाने लगाने के एवज में वीर सिंह के साथ शारीरिक संबंध बनाने को तैयार हो गई. वीर सिंह खुशी से चहका और मोबाइल फोन बंद कर के सीधे रामकली के घर जा पहुंचा.

उस ने रामकली के दरवाजे पर दस्तक दी और धीरे से दरवाजे को धकेला. दरवाजा खुल गया. वीर सिंह के दिल की धड़कनें बेकाबू होने लगीं. वह उन पलों की कल्पना कर के ही रोमांचित होने लगा, जब रामकली उस की बाहों में समाने वाली थी. अब वह क्षण बहुत करीब था.

रामकली के घर पहुंच कर वीर सिंह ने रामकली की मदद से शराब के नशे में मदहोश पड़े कृष्णपाल के दोनों हाथ साड़ी से बांध दिए. उस के बाद पैर के अंगूठों पर हीटर के तार से करंट देना शुरू कर दिया. जब कृष्णपाल की सांसें थम गईं, तब रामकली ने अपनी साड़ी से उस का गला घोंट दिया.

इस के बाद वादे के मुताबिक रामकली ने अपने पति की लाश के सामने ही वीर सिंह के साथ सहवास कर उस की कामोत्तेजना शांत की.

इस के बाद रामकली ने पति की नब्ज टटोलने के बाद नफरत से उस की लाश पर थूकते हुए कहा, ‘‘मर गया कमीना. मेरे और राजू के रास्ते का कांटा हमेशा के लिए निकल गया. चलो वीर सिंह, अब इसे कुंवारी नदी में फेंक कर देते हैं.’’

रामकली ने सोचा कि लाश नदी के पानी के साथ बह जाएगी, जिस से इस की पहचान नहीं हो पाएगी तो मामला रफादफा हो जाएगा’ लेकिन जब 14 नवंबर, 2022 की रात कृष्णपाल की लाश को रस्सी से बांध कर घसीटते हुए पास में बहने वाली नदी में प्रवाहित करने दोनों ले जा रहे थे, तभी उन्हें किसी के आने की आहट सुनाई दी. तब दोनों लाश को रास्ते में ही पड़ा छोड़ कर भाग खड़े हुए.

रामकली, राजू और वीर सिंह से विस्तार से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने मृतक की पत्नी की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त बिजली का तार, रस्सी और 3 मोबाइल फोन बरामद कर लिए.

इस के बाद उन्हें आईपीसी की धारा 302, 201 के तहत गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.     द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

ब्लडी डैडी : बेटी ने खोया अपना आपा

दिसंबर का महीना था. रात के 12 बज रहे थे. ठंड भी ज्यादा थी, जिस के कारण मुंबई जैसे व्यस्त महानगर को भी ठंड ने अपनी आगोश में ले लिया था. लोग अपने घरों में रजाई, कंबल में सो रहे थे. कुछ अभी सोने की तैयारी में लगे थे.

मुंबई का ही एक इलाका है मीरा रोड. मीरा रोड में ही एक बंगला था शांति विला. जहां अभी लोग इतनी रात को ठंड के कारण रजाई में दुबके हुए थे, वहीं शांति विला के एक कमरे में अभी भी बहुत हलचल मची हुई थी.

16 साल की एक लड़की जिस का नाम कृति था, अपने हाथ में लिए चाकू से एक आदमी पर बदहवास अपनी पूरी ताकत लगा कर वार पे वार किए जा रही थी, जिस से खून के छींटे उस के चेहरे और कपड़ों पर फव्वारे की तरह आ रहे थे.

उसी कमरे में एक आलीशान पलंग भी था, जिस पर 14 साल की एक लड़की जिस का नाम नयना था, इन बातों से बेखबर बेसुध अभी भी सो रही थी. जबकि खून के छींटे उस के भी कपड़ों पर गिर रहे थे. खून की कुछ बूंदें उस के चेहरे पर भी आ गई थीं.

कृति इतनी बेसुध हो कर सामने वाले इंसान को चाकू घोंपती जा रही थी कि उसे जरा भी आभास नहीं हुआ था कि वह आदमी तो कब का मर चुका है. मगर वह अभी भी उस के पूरे जिस्म पर चाकू से अनगिनत जख्म बनाए जा रही थी. पता नहीं उसे उस आदमी से कितनी नफरत थी, जो वह उसे छलनी बना रही थी.

जब कृति के अंदर का गुस्सा कुछ कम हुआ तो वह रुक कर जोरजोर से सांसें लेने लगी. मगर जैसे ही उस की नजर खून से रंगे अपने हाथों और कपड़ों पर पड़ी तो पता नहीं क्या सोच कर वह जोरजोर से चीखने लगी.

पास के पलंग पर नयना अभी भी कमरे में हो रहे खूनखराबे से अनजान कुंभकरण की नींद सो रही थी. ऐसा लग रहा था, मानो वह नींद की गोली खा कर सो रही हो.  पलंग के पास ही फर्श पर उस मृत आदमी का जिस्म खून से लथपथ पड़ा था. उस के शरीर पर एक महंगा नाइट गाऊन था.

शांति विला के चारों ओर ऊंची चारदीवारी थी. चारदीवारी और मकान के बीच में 25 से 30 फीट का फासला था. जिस के कारण कृति के रोनेचिल्लाने की आवाज आसपास के घरों एवं फ्लैटों में नहीं के बराबर ही जा रही थी. वैसे भी जाड़े की रात में लोग ज्यादा ओढ़ढांक कर सोते हैं.

कृति के चीखने एवं जोरजोर से रोने की आवाज सुन कर नयना की नींद आखिर टूट ही गई. वह हड़बड़ा कर झट से उठ कर बैठ गई.

सामने का दृश्य देख कर उस के होश उड़ गए. कृति नयना की बड़ी बहन थी. और कमरे में मृत पड़ा इंसान कोई और नहीं बल्कि दोनों का पिता गजेंद्र मेहरा था. कृति ने अभी अपने ही डैडी का खून किया था.

आखिर उस ने अपने ही डैडी का इतनी बेरहमी से कत्ल क्यों किया था? नयना के दिमाग में भी ऐसे ही अनगिनत सवाल उमड़ रहे थे.

‘‘दीदी, यह तुम ने क्या किया? तुम ने अपने ही हाथों से डैडी का खून…’’

‘‘नयना, यह इंसान हमारा डैडी नहीं था, बल्कि डैडी के वेश में छिपा हुआ एक जालिम भेडि़या था. जिस की घिनौनी हरकतों के बारे में सिर्फ सोच कर ही रूह कांप जाती है. दुनिया में इस से ज्यादा कमीना और गिरी हुई सोच वाला बाप कोई नहीं होगा.’’ कृति अपने अंदर की धधकती हुई  ज्वालामुखी को शांत करती हुई बीच में ही बोल पड़ी थी.

‘‘दीदी, तुम ऐसा क्यों बोल रही हो? मुझे पूरी बात बताओ, आखिर हुआ क्या था?’’  नयना अपनी बड़ी बहन कृति के पास आ कर उस के कंधे पर धीरे से हाथ रखते हुए बोली.

कृति अभी भी गुस्से पर काबू पाने की कोशिश कर रही थी. कृति फर्श से धीरे से उठ कर पलंग पर आ कर बैठ गई. पीछे से नयना भी उसी के बगल में बैठ गई.

उन के डैडी गजेंद्र मेहरा, जोकि मुंबई के एक बहुत बड़े बिजनैसमैन थे, की लाश अभी भी वैसे ही फर्श पर खून से लथपथ पड़ी थी.

‘‘नयना, हर एक इंसान के बरदाश्त और धैर्य करने की सीमा एक न एक दिन टूट ही जाती है. आखिर इंसान तो इंसान ही होता है न. यह मरा हुआ हम दोनों का डैडी, मगर पता नहीं अब मैं इसे किस नाम से पुकारूं, पापी पापा, ब्लडी डैडी, कुकर्मी बाप या पता नहीं और क्याक्या उपमा दूं इसे. मुझ जैसी बेटी ऐसे कुकर्मी बाप को कुछ भी कहेगी, कम ही होगा. काश! ऐसा डैडी किसी का न हो.’’ कृति अपने चेहरे पर जमाने भर के कठोर भाव लाते हुए बोली.

‘‘नयना, आज मैं ने जो काम किया है न, वह मुझे बहुत पहले ही कर देना चाहिए था. कम से कम मुझ जैसी बेटी की उस का अपना सगा बाप ही इज्जत तो नहीं लूटता.’’

कृति की बात सुन कर नयना के पैरों तले की जमीन जैसे खिसक गई.

‘‘दीदी, यह तुम क्या कह रही हो, डैडी ने तुम्हारी…’’

‘‘हां, एक बार नहीं बहुत बार. आज यह कमीना बाप तुम्हारी भी इज्जत लूटने इस कमरे में आया था. तुम्हें आज इस ने दूध में नींद की गोलियां मिला कर दी थीं, ताकि तुम बेफिक्र हो कर सो जाओ और यह कुकर्मी अपनी हवस आराम से मिटा ले. मगर आज मेरी सहनशक्ति की सीमा टूट गई और मैं ने इसे मार दिया.’’

यह सुन कर नयना पर तो मानो पहाड़ ही टूट कर गिर पड़ा.

‘‘ये मैं क्या सुन रही हूं, यह इंसान जिसे आज तक मैं अपना डैडी समझती आ रही थी, वह इतना घिनौना और ब्लडी था. इसे तो अब डैडी कहने में भी शर्म आ रही है. दुनिया की कोई भी बेटी कभी ऐसे डैडी की कल्पना भी नहीं कर सकती है.’’ नयना भी गुस्से में मृत पड़े अपने डैडी को खा जाने वाली निगाहों से देखती हुई बोली.

‘‘दीदी, आज तुम मुझे पूरी बात बताओ. आखिर यह इंसान ऐसा कर क्यों रहा था? ’’

‘‘नयना, पता नहीं इस कुकर्मी बाप के कत्ल के इल्जाम में मुझे फांसी होगी या उम्रकैद की सजा. लेकिन मैं सीने में सच्चाई रूपी बोझ को दबाए नहीं मरना चाहती हूं. इसलिए आज मैं तुम को पूरी बात बताऊंगी.’’

कृति ने एक लंबी सांस ली. उस समय रात के एक बज रहे थे. ठंड अधिक होने के कारण बाहर श्मशान सा सन्नाटा पसरा हुआ था. कृति उसी समय अपनी बहन को पूरी बात विस्तार से बताने लगी.

कृति ने कहा कि जानती हो नयना, यह शांति विला मां की मां यानी नानी के लिए नाना ने ही बनवाया था. शांति नानी का ही नाम था. मां अपने मम्मीपापा की इकलौती संतान थीं. इसलिए नानानानी के मरने के बाद यह घर और उन की पूरी जायदाद मां को ही मिली थी.

मां बचपन से ही बहुत जिद्दी थीं. उन्होंने कालेज में अपने साथ पढ़ने वाले एक गरीब परिवार के युवक गजेंद्र मेहरा यानी हम दोनों के इस कुकर्मी बाप से अपने मम्मीपापा से झगड़ा कर के शादी की थी. नानानानी को भी अंत में अपनी इकलौती बेटी की जिद के आगे झुकना ही पड़ा था.

शुरूशुरू में तो सब कुछ ठीक रहा. नाना ने भी अपना सारा बिजनैस डैडी को सौंप दिया था. डैडी भी मन लगा कर बिजनैस की अच्छी तरह से देखभाल कर रहे थे.

शादी के 2 साल बाद मेरा और मेरे जन्म के 2 साल बाद तुम्हारा जन्म हुआ था. तुम्हारे जन्म के एक साल बाद ही एक कार दुर्घटना में नानानानी मर गए थे. नानानानी के मरते ही पता नहीं क्यों डैडी का स्वभाव एकदम से बदल गया था. अब वह बातबात पर मां से झगड़ा करने लगे थे. फिर भी मां हम दोनों की खातिर सब कुछ चुपचाप सहती जा रही थी.

उधर डैडी की हरकतें दिनप्रतिदिन और बदलती जा रही थीं. अब वह काम के बहाने अकसर घर से रात में भी बाहर ही रहने लगे थे. जबकि ये सब झूठ था. उन का अपनी ही सेक्रेटरी के साथ चक्कर चल रहा था और वो रात उसी के पास गुजारते थे.

जब मां को इस बात का पता चला तो उन्होंने गुस्से में डैडी से तलाक के लिए कोर्ट में अरजी दी. सारा कारोबार एवं यह घर भी मां के नाम पर ही था और मां यदि डैडी से तलाक ले लेतीं तो वह कंगाल बन कर सड़क पर आ जाते. इसीलिए वह किसी भी हालत में तलाक नहीं लेना चाहते थे. इस के लिए उन्होंने अपनी पूरी ताकत लगा दी थी. पैसे से वकील और जज को खरीद कर बारबार तलाक की अरजी को नामंजूर करवा दे रहे थे.

तारीख दर तारीख सिर्फ सुनवाई की तिथि बढ़ रही थी. देखते ही देखते तलाक के लिए कोर्ट का चक्कर लगाते मां को 7 साल बीत गए. फिर भी तलाक पर कोर्ट का कोई फैसला नहीं हुआ.

इसी बीच मां का बिना तलाक लिए ही दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया. मगर अब हमें लगता है कि नाना, नानी और मां को भी डैडी ने ही पूरी प्लानिंग के साथ सिर्फ जायदाद हड़पने के लिए मरवा दिया था.

यह सुनातेसुनाते कृति की आखों से फिर आंसू निकलने लगे. जबकि नयना ध्यान से पूरी बात सुन रही थी. उस ने कहा, ‘‘डैडी के साथ आए दिन होने वाले झगड़े के कारण ही शायद मां ने हम दोनों बहनों को बोर्डिंग स्कूल में पढ़ने को भेज दिया था. जिस के कारण ही हम दोनों आज तक घर के सारे हालात से अनजान थे. मां को शायद अपने मरने का भी आभास हो गया था, इसीलिए उन्होंने अपनी सारी जायदाद मेरे नाम कर दी थी.

‘‘यह जायदाद बाद में जब तुम्हारी भी उम्र 20 साल की हो जाओगी तो इस में से आधी तुम्हारे नाम हो जाएगी. इसीलिए डैडी मां के मरते ही मुझे तुरंत हौस्टल से अपने पास बुला लिया था, ताकि वो मुझ से बहलाफुसला कर सारी जायदाद अपने नाम करवा सके.’’ कहतेकहते फिर से कृति सिसकने लगी.

‘‘जानती हो नयना, मुझे मां की एक दोस्त जाह्नवी आंटी ने सारी बातें मेरे घर आने के ठीक अगले ही दिन बता दी थीं. इसीलिए मुझे डैडी की सारी सच्चाई और उन की काली करतूतों का पता चल गया था. अब तो मुझे भी उन से नफरत हो गई थी. तभी उन के लाख कोशिश के बावजूद भी मैं जायदाद उन के नाम नहीं की थी.

‘‘इस के बाद ही डैडी का घिनौना चेहरा मेरे सामने उजागर हुआ था. मेरा घर से निकलना बंद करवा दिया गया था. मुझे तुम से फोन पर डैडी अपने सामने बैठा कर ही बात करवाते थे. उस के बाद फिर मुझे कमरे में भूखेप्यासे बंद कर दिया जाता था.

‘‘इस पर भी जब इस जालिम बाप का दिल नहीं भरा तो वह जायदाद को जबरदस्ती अपने नाम करवाने के लिए मुझे मारनेपीटने भी लगा था. मगर मैं ने भी फैसला कर लिया था कि जीते जी मां की अमानत को इस निर्दयी इंसान के नाम कभी नहीं लिखूंगी.’’

कृति ने रुक कर एक लंबी सांस ली और कहा, ‘‘नयना, इस के बाद तो इंसानियत की सारी मर्यादाएं ही टूट गईं, जब यह बेशर्म बाप अपनी ही बेटी की अस्मत रोज तारतार करने लगा.’’

उस की बात सुन कर नयना दंग रह गई. वह बोली, ‘‘दीदी, इस इंसान को तो डैडी कहते हुए भी अब शर्म आ रही है. आखिर कोई इंसान इतना घिनौना काम कैसे कर सकता है? क्या आज आदमी के अंदर की इंसानियत एकदम खत्म हो गई है, जो उसे अपनी बेटी को भी हवस का शिकार बनाने में जरा भी शर्म और ग्लानि महसूस नहीं हो रही थी.’’

नयना का क्रोध भी सारी बातें सुन कर सातवें आसमान पर पहुंच गया था.

‘‘नयना, पूरी बात सुनोगी तो तुम भी दंग रह जाओगी. तुम को भी हौस्टल से यहां इसीलिए इस जालिम ने बुलाया था, ताकि यह तुम्हें भी अपनी हवस का शिकार बना कर मुझे जायदाद अपने नाम लिखने को मजबूर कर सके.’’  कहतेकहते कृति नयना से लिपट कर जोरजोर से रोने लगी.

‘‘नयना, अब इस दुनिया में तुम्हारे सिवाय मेरा था ही कौन. मैं खुद तो रोज तिलतिल कर मर ही रही थी, आखिर तुम्हें भी कैसे यह जिल्लत भरी जिंदगी जीने देती, इसीलिए मैं ने इस जालिम इंसान का खून कर दिया.’’

कृति नयना से लिपटी रोती हुई अपने दिल की भड़ास निकाले जा रही थी. बीचबीच में नयना भी रोती हुई अपनी बहन को सांत्वना दे रही थी.

रात के सन्नाटे को चीरती हुई दोनों बहनों की सिसकियां धीरेधीरे संपूर्ण वातावरण में फैलने लगी थीं, मगर उसे कोई सुनने वाला नहीं था.

आज दौलत के चक्कर में इंसान की इंसानियत इतनी गिर गई है कि उसे अपने खून के रिश्ते भी नहीं दिख रहे. शायद सच में वह ब्लडी डैडी ही था.

अगली सुबह खुद कृति ने ही पुलिस को फोन कर के पिता की हत्या की सूचना दे दी. पुलिस ने घटनास्थल पर पहुंच कर गजेंद्र मेहरा के शव को बरामद कर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

पुलिस ने हत्या की आरोपी कृति को हिरासत में ले कर बाल न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे बाल सुधार गृह भेज दिया गया. बाल सुधार गृह से कृति को 2 साल बाद रिहा कर दिया गया. इस के बाद कृति और नयना ने मिल कर एक्सपोर्ट बिजनैस शुरू कर दिया. दोनों बहनें अब अपने बीते हुए कल को भूल चुकी हैं.     द्य