बेटी के नाम पर कलंक है हरमीत कौर

पंजाब के जिला गुरदासपुर के कस्बाथाना धारीवाल के रहने वाले जाट सरदार पलविंदर सिंह के परिवार में पत्नी परमजीत कौर के अलावा 20 साल की बेटी हरमीत कौर थी. वह पंजाब पुलिस में हवलदार थे और इन दिनों पीएसी की 75वीं बटालियन की ओर से धार्मिक गुरु बाबा भनियार वाले की सुरक्षा में तैनात थे.

वह शरीफ, ईमानदार और जांबाज सिपाही थे. पलविंदर सिंह एक जिम्मेदार पिता और पति ही नहीं, समाजसेवक भी थे. उन्होंने कई रक्तदान कैंप अपने खर्चे पर लगवाए थे और जरूरतमंद लोगों के लिए सैकड़ों यूनिट खून जमा करा कर प्रशासन को दिया था. बाबा भनियार वाले की सुरक्षा में तैनाती के बाद से वह काफी व्यस्त हो गए थे. वह महीने, डेढ़ महीने में ही घर आ पाते थे.

28 अगस्त, 2016 को वह 4 दिनों की छुट्टी ले कर घर आए थे. सोमवार की रात को खाना खा कर वह आंगन में ही चारपाई डाल कर सो गए थे, जबकि पत्नी और बेटी अपनेअपने कमरों में जा कर सो गई थीं. रात करीब 2 बजे कमरे में सो रही परमजीत कौर को आंगन में सो रहे पति के कराहने की आवाज सुनाई दी तो वह कमरे से निकल कर पति के पास आ गई. उस समय पलविंदर सिंह तड़पते हुए छाती को जोरजोर से मसल रहे थे.

परमजीत कौर को लगा कि पति को हार्ट अटैक आया है, वह भी उन के सीने को सहलाने लगी. तभी उन्होंने देखा कि पति के नाक और मुंह से खून निकल रहा है. यह देख कर वह घबरा गईं और जल्दी से जा कर पड़ोस में रहने वाले जेठ मंगल सिंह को बुला लाई. पत्नी के साथ वह तुरंत आ गए. लेकिन जब वह आए तो पलविंदर एकदम शांति से बिस्तर पर लेटे थे. उन्होंने उन्हें हिलाडुला कर भी देखा. ऐसा लगा, जैसे उन में जान ही नहीं है. अब तक मंगल सिंह का बेटा और पलविंदर की बेटी हरमीत कौर भी वहां आ गई थी.

पलविंदर को उठा कर गाड़ी में डाल कर गुरदासपुर के सिविल अस्पताल ले जाया गया, जहां डाक्टरों ने चैकअप कर के उन्हें मृत घोषित कर दिया. घर वालों ने बताया था कि यह मौत हार्ट अटैक से हुई है, लेकिन चैकअप करने वालों डाक्टरों को यह मौत हार्ट अटैक से नहीं लगी तो उन्होंने इस की सूचना थाना धारीवाल पुलिस को दे दी. सूचना मिलने के कुछ देर बाद ही थानाप्रभारी इंसपेक्टर कुलवंत सिंह अधीनस्थों के साथ सिविल अस्पताल पहुंच गए थे.

पलविंदर की लाश कब्जे में ले कर कुलवंत सिंह ने परमजीत कौर से पूछताछ की तो उन्होंने उन से भी बताया कि रात में सोने के दौरान उन की हार्ट अटैक से मौत हो गई थी. इस के बाद कुलवंत सिंह ने सीआरपीसी की धारा 174 के तहत काररवाई करते हुए मौत की पुष्टि के लिए लाश को कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी में रखवा दिया.

पर परमजीत कौर का कहना था कि उस के पति की मौत हार्ट अटैक से हुई है तो पोस्टमार्टम कराने की क्या जरूरत है, अंतिम संस्कार के लिए लाश उन के हवाले कर दी जाए. इस बात को ले कर परमजीत कौर और हरमीत कौर ने अस्पताल में अच्छाखासा हंगामा भी किया, लेकिन कुलवंत सिंह ने यह कह कर उन्हें शांत करा दिया कि सच्चाई का पता लगाने के लिए यह जरूरी है. यह 30 अगस्त, 2016 की बात है.

सिविल अस्पताल के डाक्टरों ने एक पैनल बना कर उसी दिन पलविंदर सिंह की लाश का पोस्टमार्टम कर के रिपोर्ट पुलिस को सौंप दी, जो काफी चौंकाने वाली थी. रिपोर्ट के अनुसार मृतक का गला किसी तेजधार हथियार से काटा गया था. श्वांस नली कटने से पलविंदर की मौत हुई थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट से कुलवंत सिंह को यह मामला काफी संदिग्ध लगा. उन्हें परमजीत का बयान रहस्यमय लगने लगा, इसलिए उन्होंने तुरंत एएसआई जसबीर सिंह और हैडकांस्टेबल गुरमुख सिंह को मृतक पलविंदर सिंह के घर भेज कर घटनास्थल को सील करा दिया, जिस से घटनास्थल पर किसी चीज से छेड़छाड़ न की जा सके. इस के बाद उन्होंने इस घटना की सूचना अपने अधिकारियों को दे दी थी.

चूंकि मामला विभाग के एक पुलिसकर्मी की रहस्यमयी मौत का था,इसलिए सूचना मिलते ही एसएसपी जगदीप सिंह, एसपी प्रदीप मलिक, डीएसपी ए.डी. सिंह मृतक पलविंदर सिंह के घर पहुंच गए थे. क्राइम टीम, डौग स्क्वायड को भी बुलवा लिया गया था.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से मुआयना किया तो उन्हें यह मामला हत्या का लगा. क्योंकि पलविंदर सिंह जिस बिस्तर पर सोए थे, वह खून से तर था. नाक और कान से इतना खून नहीं निकल सकता था.

एसएसपी जगदीप सिंह के आदेश पर थाना धारीवाल पुलिस ने पलविंदर सिंह की हत्या का मुकदमा अज्ञात के खिलाफ दर्ज कर के जांच शुरू कर दी. कुलवंत सिंह को लगा था कि परमजीत कौर को या तो कुछ पता नहीं है या फिर वह झूठ बोल रही है. क्योंकि हार्ट अटैक से हुई मौत और हत्या में जमीनआसमान का फर्क होता है.

उन्होंने एएसआई जसबीर सिंह, विजय कुमार, हैडकांस्टेबल ओंकार सिंह, गुरमुख सिंह, कुलविंदर सिंह, कांस्टेबल मंजीत को मिला कर एक टीम बनाई और उसे सच्चाई का पता लगाने के लिए लगा दिया. पड़ोसियों से की गई पूछताछ में कुलवंत सिंह को पता चला कि पलविंदर सिंह की बेटी हरमीत कौर से किसी बात को ले कर अकसर कहासुनी होती रहती थी.

ऐसी ही एक हैरान करने वाली जानकारी यह भी मिली कि हरमीत कौर का किसी लड़के से प्रेमसंबंध चल रहा था और वह उस से शादी करना चाहती थी. जबकि पलविंदर सिंह इस शादी के लिए राजी नहीं थे, लेकिन उन की पत्नी परमजीत कौर राजी थी. इसी बात को ले कर अकसर घर में झगड़ा होता रहता था.

कुलवंत सिंह ने इस बात को ध्यान में रख कर जांच शुरू की. महिला सिपाही सुरजीत कौर ने हरमीत कौर से थोड़ी सख्ती से पूछताछ की तो उस ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए बताया कि अपने प्रेमी के साथ मिल कर उसी ने वासनापूर्ति के लिए जिस बाप ने अंगुली पकड़ कर चलना सिखाया, पढ़ालिखा कर समाज में जीने का मकसद दिया, उसी को मार दिया था.

इस के बाद परमजीत कौर ने भी स्वीकार कर लिया था कि उस ने भी बेटी को बचाने के लिए झूठ बोला था. कुलवंत सिंह ने उसी दिन हरमीत कौर की निशानदेही पर गांव दोस्तपुर से हरमीत कौर के प्रेमी गुरप्रीत सिंह उर्फ गोपी तथा उस के दोस्त मनजिंदर सिंह को गिरफ्तार कर सभी को जिला मजिस्ट्रैट के सामने पेश कर विस्तृत पूछताछ के लिए 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर ले लिया था.

रिमांड अवधि के दौरान सभी से हुई पूछताछ में पलविंदर सिंह की हत्या की जो कहानी प्रकाश में आई, वह अधिक लाडप्यार में बिगड़ी औलाद और स्वार्थ की खोखली नींव पर टिके रिश्ते की कहानी थी—

हरमीत कौर बचपन से ही पलविंदर सिंह की बेहद लाडली थी. वह बेटी को दुनिया की तमाम खुशियां देना चाहते थे, इसीलिए उन्होंने उस की पढ़ाई महंगे स्कूलों में कराई. वह चाहते थे कि हरमीत कौर उच्च शिक्षा हासिल कर आईपीएस बने. लेकिन कालेज में कदम रखते ही हरमीत कौर उन के अरमानों पर पानी फेर कर आधुनिकता के रंग में रंग कर आशिकी के चक्कर में पड़ गई.

हरमीत कौर सुंदर तो थी ही, उस की बातचीत की शैली और व्यक्तित्व भी काफी प्रभावशाली था. उस के चाहने वाले तो बहुत थे, पर उस का दिल गुरप्रीत सिंह उर्फ गोपी पर आ गया.  धीरेधीरे उन का प्यार परवान चढ़ने लगा. नजदीकियां बढ़ीं तो दोनों में शारीरिक संबंध भी बन गए. फिर तो हरमीत को इस का ऐसा चस्का लगा कि वह गुरप्रीत से बाहर तो मिलती ही थी, घर भी बुलाने लगी.

क्योंकि घर में उसे पूरी तरह एकांत मिलता था. उस की मां का अलग कमरा था. वह ज्यादातर अपने कमरे में ही रहती थीं. पलविंदर महीने, डेढ़ महीने में आते थे. ऐसे में हरमीत मरजी की मालिक बन गई थी. यही नहीं, वह दिन पर दिन जिद्दी भी होती जा रही थी.

अपने इसी जिद्दी स्वभाव की वजह उस ने तय कर लिया था कि वह शादी करेगी तो गुरप्रीत से ही करेगी. पलविंदर सिंह बेटी के इस फैसले और हरकत से अंजान उस के भविष्य को संवारने के लिए एकएक पैसा जोड़ रहे थे. जिस दिन उन्हें हरमीत की इस आवारगी का पता चला, गहरा आघात लगा.

पहले तो उन्होंने पत्नी परमजीत को आड़े हाथों लिया, उस के बाद हरमीत कौर की खबर ली. उन्होंने साफसाफ कह दिया कि इश्कमुश्क और शादीब्याह को दिमाग से निकाल कर अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे. अब अगर उन्होंने सुन लिया कि वह उस लड़के से मिली है तो ठीक नहीं होगा.

लेकिन जिद्दी हरमीत कौर ने पिता की बातों पर जरा भी ध्यान नहीं दिया और बेहिचक पहले की ही तरह गुरप्रीत से मिलती रही. ऐसे में ही किसी दिन उस ने गुरप्रीत से कहा, ‘‘पापा के जीते जी तो हम दोनों कभी शादी कर नहीं सकते, क्यों न हम दोनों भाग कर शादी कर लें?’’

‘‘घर से भाग कर शादी करने के लिए काफी रुपयों की जरूरत होती है, जो हमारे पास नहीं है.’’ गुरप्रीत ने कहा तो हरमीत ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘तुम रुपयों की चिंता मत करो. मेरे पापा ने मेरे भविष्य के लिए बहुत रुपए जमा कर रखे हैं.’’

हरमीत कौर ने गुरप्रीत के साथ भागने की कई बार कोशिश की, लेकिन हर बार वह यह सोच कर शांत बैठ गई कि अंजान जगह पर अंजान लोगों के बीच वह कैसे रह पाएगी? एक दिन किसी ने पलविंदर को हरमीत और गुरप्रीत के मिलने की जगह और समय बता दिया तो पलविंदर ने दोनों को रंगेहाथों पकड़ लिया.

इस बार उस ने हरमीत कौर को लताड़ा ही नहीं, 2-4 थप्पड़ जड़ कर हाथ जोड़ कर रोते हुए कहा, ‘‘मेरे सपने और अपना भविष्य बरबाद मत कर बेटी. मैं यह सब सह नहीं पाऊंगा और आत्महत्या कर लूंगा.’’

हरमीत कौर को पिता पर दया आने के बजाय घृणा हो गई. उस के मन में आया कि पिता की सर्विस रिवौल्वर से गोली मार उन्हें खत्म कर दे. बाद में कह देगी कि किसी बदमाश ने उन पर हमला किया है. इस के बाद दिनरात वह केवल एक ही बात सोचने लगी कि प्रेम कहानी में रोड़ा बन रहे पिता को कैसे रास्ते से हटाया जाए?

एक दिन पलविंदर सिंह पत्नी के साथ सो रहा था, तभी रात 1 बजे उसे हरमीत कौर के कमरे से खटरपटर की आवाजें आती सुनाई दीं. वह उठ कर बाहर आया तो उस के कमरे से एक साए को निकल कर दीवार फांदते देखा.

पलविंदर सिंह समझ गया कि वह गुरप्रीत ही था. अगले दिन ड्यूटी पर जाने से पहले पलविंदर ने हरमीत को खूब समझाया. अंत में उस ने यह भी बताया कि रात को उस ने सब कुछ देख लिया है. वह यह सब बंद कर दे, वरना परिणाम बहुत भयानक होगा.

बस, उसी दिन हरमीत कौर ने तय कर लिया कि अब चाहे कुछ भी हो, वह पिता को जिंदा नहीं छोड़ेगी. उसी दिन गुरप्रीत से मिल कर उस ने पिता की हत्या की योजना बना डाली.

चूंकि गुरप्रीत यह काम अकेला नहीं कर सकता था, इसलिए उस ने अपने जिगरी दोस्त मनजिंदर सिंह को अपने साथ मिला लिया. उस ने इस काम के लिए उसे कुछ पैसे भी देने को कहा. हरमीत कौर ने कुछ रुपए गुरप्रीत को दिए, जिस से उस ने एक तेजधार वाला दातर खरीदा और कुछ रुपए मनजिंदर को दे दिए.

अब उन्हें इंतजार था पलविंदर सिंह के छुट्टी आने का. 29 अगस्त को वह छुट्टी पर घर आए और हरमीत कौर पर नजर रखने के लिए अपना बिस्तर आंगन में लगाया.

हरमीत कौर ने रात 9 बजे गुरप्रीत को पिता के घर आने और आंगन में सोने की सूचना दे दी. रात करीब 1 बजे हरमीत कौर ने उठ कर बाहर के दरवाजे की कुंडी खोल दी, जिस से गुरप्रीत को अंदर आने में परेशानी न हो. रात 2 बजे के करीब गुरप्रीत अपने दोस्त मनजिंदर के साथ हरमीत के घर पहुंचा तो वह उसे बरामदे में खड़ी मिली.

बिना आवाज किए तीनों पलविंदर सिंह की चारपाई के पास पहुंचे. मनजिंदर और हरमीत कौर ने गहरी नींद सो रहे पलविंदर सिंह के हाथपैर पकड़ लिए तो गुरप्रीत ने दातर से उस की श्वांस नली काट दी, जिस से उस की तुरंत मौत हो गई. पलविंदर सिंह की हत्या कर के गुरप्रीत और मनजिंदर चले गए तो हरमीत कौर मां के साथ मिल कर पिता की हार्ट अटैक से हुई मौत का नाटक करने लगी.

पूछताछ के बाद पुलिस ने वह दातर बरामद कर लिया था, जिस से पलविंदर सिंह की हत्या की गई थी. इस के बाद 3 सितंबर, 2016 को सभी अभियुक्तों को अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

इस तरह स्वार्थी रिश्तों ने खून को पानी बना दिया और एक कानून के रक्षक की बेटी यह भी नहीं सोच सकी कि चाहे कितना भी झूठ क्यों न बोला जाए, सच से आखिर परदा उठ कर ही रहता है.

 – कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सूनी होने से बची सोनी की गोद

4 जून, 2017 को आधी रात तक उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद रेलवे स्टेशन पर ज्यादातर लोग सो गए थे. सिर्फ वही जाग रहे थे, जिन की गाड़ियां आने वाली थीं. स्टेशन के वेटिंग रूम में सोने वाले यात्रियों में सोनी और राम सिंह चौहान भी थे. ये मध्य प्रदेश के जिला सीधी के रहने वाले थे. इन्हें पंजाब के अमृतसर जाना था.

उन की गाड़ी सुबह की थी, इसलिए पतिपत्नी वेटिंग रूम में जा कर साथ लाया बिस्तर लगा कर अपने 5 महीने के बेटे कुलदीप उर्फ हर्ष के साथ सो गए थे. सुबह 3, साढ़े 3 बजे सोनी की आंखें खुली तो उस ने बगल में सो रहे बेटे को टटोला. बेटे को अपनी जगह न पा कर वह एकदम से हकबका कर उठी और इधरउधर देखने लगी. उसे लगा कि बेटा खिसक गया होगा. लेकिन बेटा कहीं दिखाई नहीं दिया. उस ने झकझोर कर बगल में सो रहे पति को जगाया, ‘‘हर्ष कहां है?’’

आंखें मलते हुए राम सिंह ने भी इधरउधर देखा. बेटा कहीं नहीं दिखाई दिया तो उसे समझते देर नहीं लगी कि उस के बेटे को कोई उठा ले गया है. जैसे ही उस ने यह बात सोनी से कही, वह रोनेचीखने लगी. फिर तो जरा सी देर में उन के पास भीड़ लग गई. लोग तरहतरह की बातें कर रहे थे, जबकि सोनी का रोरो कर बुरा हाल था. राम सिंह भी सकते में था कि अब वह क्या करे, बेटे को कहां खोजे?

थोड़ी ही देर में मासूम बच्चे की चोरी की बात पूरे रेलवे स्टेशन में फैल गई, जिस से वेटिंग रूम में खासी भीड़ लग गई थी. बच्चे के मांबाप की हालत देख कर सभी दुखी थे. लोग उन पर तरस तो खा रहे थे, लेकिन कुछ करने की स्थिति में नहीं थे. बच्चा चोरी की सूचना स्टेशन पर स्थित थाना जीआरपी को मिली तो जीआरपी की टीम बच्चे की खोजबीन में लग गई. लेकिन काफी मेहनत के बाद कोई सफलता नहीं मिली.

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सुबह जीआरपी थानाप्रभारी मनोज सिंह ने चोरी गए बच्चे के पिता राम सिंह से तहरीर ले कर अज्ञात के खिलाफ बच्चे की चोरी का मुकदमा दर्ज कर बच्चा चोरी की जानकारी एसपी रेलवे इलाहाबाद दीपक भट्ट को दे दी. सूचना मिलते ही दीपक भट्ट स्टेशन पर पहुंचे और इलाहाबाद रेलवे स्टेशन पर लगे सभी सीसीटीवी कैमरों की फुटेज निकलवाई.

सीसीटीवी फुटेज देखी गई तो उस में काले रंग की एक महिला सोनी और राम सिंह के बेटे कुलदीप उर्फ हर्ष को चुरा कर ले जाती साफ दिखाई दी. वह औरत बच्चे को ले कर सिविल लाइंस की ओर स्टेशन से बाहर निकली और पैदल ही अंधेरे में गायब हो गई थी. इस तरह पुलिस को बच्चा चुराने वाली औरत का फोटो मिल गया था.

इस के बाद दीपक भट्ट के आदेश पर थानाप्रभारी मनोज सिंह ने सीसीटीवी फुटेज से उस औरत का फोटो निकलवा कर पोस्टर छपवाए और पूरे शहर में सार्वजनिक स्थानों पर चस्पा करवा दिए. पोस्टर में पुलिस वालों के फोन नंबर के साथ बच्चे के बारे में सूचना देने वाले के लिए इनाम की भी घोषणा की गई थी.

इसी के साथ बच्चे की तलाश और उसे चुराने वाली औरत की गिरफ्तारी के लिए एक टीम गठित की गई, जिस में जीआरपी थानाप्रभारी मनोज सिंह, एसएसआई कैलाशपति सिंह, एसआई अंजनी सिंह, विनोद कुमार मौर्य, सर्विलांस प्रभारी सुबोध कुमार सिंह, एसआई मनोज कुमार और उदयशंकर कुशवाह को शामिल किया गया था.

पुलिस ने शहर के दारागंज रेलवे स्टेशन पर भी बच्चा चुराने वाली उस औरत के फोटो वाला पोस्टर चस्पा कराया था. स्टेशन पर ही चायपकौड़ा की दुकान लगाने वाले रामखेलावन (बदला हुआ नाम) ने वह पोस्टर देखा तो जीआरपी द्वारा पोस्टर में दिए गए फोन नंबर पर उस ने फोन किया. थानाप्रभारी मनोज सिंह ने फोन उठाया तो उस ने कहा, ‘‘साहब, आप लोगों को बच्चा चुराने वाली जिस महिला की तलाश है, वह बच्चे को ले कर मेरी दुकान पर आई थी.’’

‘‘तुम ऐसा करो, तुरंत इलाहाबाद रेलवे स्टेशन पर स्थित जीआरपी थाने आ जाओ.’’ मनोज सिंह ने कुछ पूछने के बजाय सीधे कहा, ‘‘तुम्हें थाने आने में कोई परेशानी तो नहीं होगी?’’

‘‘नहीं साहब, अगर मेरी वजह से किसी का बच्चा मिल जाता है तो मुझे बड़ी खुशी होगी.’’ रामखेलावन ने कहा.

थोड़ी देर में रामखेलावन जीआरपी थाना पहुंच गया. पूछताछ में उस ने पुलिस को बताया कि बच्चा चुराने वाली महिला सुबह मुंह अंधेरे उस की दुकान पर आई थी. उस के पास पैसे नहीं थे. उस ने कुछ खाने को मांगा तो उस की हालत पर तरस खा कर उस ने उसे पकौड़ा भी खिलाया था और चाय भी पिलाई थी. उस समय उस की गोद में एक बच्चा था, जिसे वह साड़ी के पल्लू से ढके थी.

रामखेलावन की सहानुभूति पा कर उस ने उसे एक मोबाइल नंबर दे कर कहा था, ‘‘भइया, आप ने मुझ पर इतनी मेहरबानी की है तो एक मेहरबानी और कर दीजिए.’’

‘‘बताओ और क्या चाहिए?’’ रामखेलावन ने पूछा.

इस के बाद उस महिला ने एक पर्ची देते हुए कहा, ‘‘इस कागज पर लिखे नंबर पर फोन कर के मेरी बात करा दीजिए. यह नंबर मेरे दामाद का है. आप मेरा इतना काम और कर दीजिए, आप की बड़ी मेहरबानी होगी.’’

रामखेलावन ने पर्ची पर लिखा फोन नंबर मिला कर फोन महिला को दे दिया था. उस ने क्या बात की, यह रामखेलावन नहीं जान सका था, क्योंकि वह अपनी दुकानदारी में लग गया था. फिर उसे क्या पता था कि वह औरत बच्चा चुरा कर ले जा रही है.

‘‘उस महिला ने जो मोबाइल नंबर तुम्हें दिया था, वह नंबर तो तुम्हारे मोबाइल में होगा?’’ मनोज सिंह ने पूछा.

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‘‘जी साहब, वह नंबर अभी भी मेरे मोबाइल में है?’’ रामखेलावन ने कहा.

इस के बाद रामखेलान ने वह नंबर निकाल कर थानाप्रभारी को दे दिया. उन्होंने वह नंबर डायरी में नोट किया और रामखेलावन का आभार व्यक्त कर के उसे विदा कर दिया.

थानाप्रभारी ने यह सारी जानकारी एसपी दीपक भट्ट को दी तो उन्होंने तुरंत रामखेलावन से मिले मोबाइन नंबर को सर्विलांस पर लगवा दिया. चूंकि वह नंबर चल रहा था, इसलिए उस नंबर की लोकेशन मिल गई. वह नंबर जिला जौनपुर के गांव सुरेरी में चल रहा था.

रामखेलावन ने मनोज सिंह को यह भी बताया था कि महिला ने कहा था कि वह ज्ञानपुर रेलवे स्टेशन पर उतर कर अपने गांव जाएगी. किस गांव जाएगी, यह उस ने नहीं बताया था. पुलिस के लिए यह एक अहम सुराग था. पुलिस ने उस नंबर के बारे में पता किया तो पता चला कि वह सुरेरी गांव के सिपाही के नाम है.

बच्चे की खोज के लिए गठित टीम 14 जून को जौनपुर के गांव सुरेरी पहुंच गई. पुलिस ने बच्चा चुराने वाली महिला का पोस्टर गांव वालों को दिखाया तो गांव का कोई आदमी उसे पहचान नहीं सका. पुलिस ने सिपाही के बारे में पता किया तो उस गांव में सिपाही नाम के कई लोग थे. लेकिन वह सिपाही नहीं मिला, जिस से महिला ने बात की थी.

जीआरपी टीम उसे फोन कर सकती थी, लेकिन पुलिस ने उसे इसलिए फोन नहीं किया था कि कहीं सिपाही भी इस खेल में शामिल न हो, उसे शक हो गया हो वह बच्चे को ले कर भाग सकता है. लेकिन जब उस सिपाही का पता नहीं चला, जिस से उस औरत ने बात की थी तो मजबूर हो कर पुलिस ने उसे फोन किया. वह गलत आदमी नहीं था, इसलिए उस ने पुलिस से बात ही नहीं की, बल्कि पुलिस टीम से मिलने भी आ पहुंचा.

जीआरपी ने जब उसे वह पोस्टर दिखाया तो उस ने बताया कि इस औरत का नाम करुणा है और यह उस की चाचिया सास है. यह भदोही के ज्ञानपुर में रहती है. लेकिन यह ज्यादातर मुंबई में रहती है, क्योंकि यह वहां किसी फैक्ट्री में नौकरी करती है.

इस के बाद जीआरपी टीम सिपाही को साथ ले कर उस की ससुराल पहुंची, जहां करुणा बच्चे के साथ मिल गई. लेकिन जैसे ही पुलिस ने उसे गिरफ्तार करना चाहा, उस ने शोर मचा कर पूरा गांव इकट्ठा कर लिया.

उस का कहना था कि यह बच्चा उस का है और उस के बेटे को किसी और का बता कर पुलिस उस से छीन रही है. उस ने धमकी दी कि इस बात की शिकायत वह पुलिस अधिकारियों से करेगी. लेकिन जब पुलिस ने अपना पुलिसिया हथकंडा दिखाया तो वह शांत हो गई. इस की एक वजह यह भी थी कि गांव वालों की कौन कहे, उस की ससुराल वालों ने भी उस का साथ नहीं दिया था.

इस की वजह यह थी कि सभी को लगता था कि यह बच्चा उस का नहीं हो सकता. क्योंकि करुणा जहां गहरे रंग की थी, वहीं बच्चा काफी सुंदर था. जिस से लोगों को संदेह हो रहा था कि करुणा यह बच्चा कहीं से चोरी कर के लाई है.

करुणा की ससुराल वालों की मदद से पुलिस ने बच्चे को कब्जे में ले कर उसे गिरफ्तार कर लिया. इस के बाद पुलिस टीम उसे ले कर इलाहाबाद आ गई. बच्चे को उस के मांबाप राम सिंह और सोनी को सौंप कर करुणा से पूछताछ की गई तो उस ने बच्चा चोरी का अपना अपराध स्वीकार कर के जो कहानी सुनाई, वह पूरी कहानी इस प्रकार थी—

मुंबई के उपनगर ठाणे की रहने वाली करुणा का विवाह वहीं के विजय के साथ 8 साल पहले हुआ था. विजय से उसे एक बेटा भी हुआ. लेकिन बेटा पैदा होने के बाद ऐसा न जाने क्या हुआ कि बेटे को अपने पास रख कर विजय ने उसे घर से भगा दिया. पति के घर से भगाए जाने के बाद करुणा अलग रह कर एक कपड़ा फैक्ट्री में नौकरी करने लगी, जिस से उस का गुजरबसर आराम से होने लगा.

करुणा जिस फैक्ट्री में नौकरी करती थी, उसी में उत्तर प्रदेश के जिला जौनपुर का रहने वाला पिंटू भी नौकरी करता था. एक साथ काम करने की वजह से पहले दोनों में परिचय हुआ, उस के दोनों में प्यार हो गया. दोनों में शारीरिक संबंध बन गए तो आपसी रजामंदी से उन्होंने शादी कर ली.

पिंटू से विवाह के बाद करुणा को एक बेटी पैदा हुई, जो इस समय 7 साल की है. लेकिन उस की सास को बेटा चाहिए था. करीब 3 साल पहले पिंटू मुंबई से घर आ गया तो करुणा भी उस के साथ आ गई. लेकिन पिछले साल वह गर्भवती हुई तो अपने मायके ठाणे चली गई, जहां उस ने 4 महीने पहले बेटे को जन्म दिया. दुर्भाग्य से 2 महीने बाद ही उस के बेटे की मौत हो गई.

बेटा पैदा होने की बात तो उस ने पति और सास को बता दी थी, लेकिन उस की मौत की बात उस ने छिपा ली थी. उस की सास बारबार फोन कर के पोते को ले कर गांव आने को कह रही थी. पर करुणा के पास बेटा होता तब तो वह उसे ले कर आती. वह कोई न कोई बहाना बना कर टालती रही. अंत में उस की सास ने कहा, ‘‘तुम जब भी आना, मेरे पोते को ले कर आना, वरना मेरे यहां मत आना. तुम अपने मायके में ही रहना, यहां आने की जरूरत नहीं है.’’

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सास की इस धमकी से करुणा परेशान हो उठी. वह सोचने लगी कि अब क्या करे? बिना बच्चे के वह ससुराल आ नहीं सकती थी. काफी सोचविचार कर उस ने कहीं से 4 महीने का बच्चा चुराने की योजना बनाई. जिसे ले जा कर वह ससुराल में जगह पा सके.

यही सोच कर करुणा 27 मई को मुंबई से चली तो अगले दिन इलाहाबाद आ गई. स्टेशन पर इधरउधर भटकते हुए वह 4 महीने के बच्चे की तलाश में लग गई. चूंकि वह शक्लसूरत और पहनावे से भिखारिन जैसी लगती थी, इसलिए उस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया. क्योंकि स्टेशन पर इस तरह के लोग पड़े ही रहते हैं. फिर वह सचमुच भीख मांग कर अपना पेट भर रही थी.

आखिर 4 जून, 2017 को उस की तलाश पूरी हुई. सोनी और राम सिंह के 4 महीने के बेटे पर उस की नजर पड़ी तो वह उसे ले कर चंपत हो गई.

पूछताछ के बाद मनोज सिंह ने करुणा के खिलाफ अपराध संख्या 448/2017 पर आईपीसी की धारा 363, 365 के तहत मुकदमा दर्ज कर उसे अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. सोनी बेटे को पा कर बहुत खुश थी. वह बेटे को सीने से लगा कर बारबार पुलिस वालों को दुआएं देते हुए बेटे को दुलार रही थी.

प्यार में कुलांचें भरने की फितरत – भाग 4

खोजी कुत्ता शव को सूंघ कर भौकता हुआ शराब ठेके तक गया. वहां वह चक्कर लगाता रहा. उस के बाद वापस आ गया. पुलिस ने शराब ठेका मालिक दिनेश गुप्ता से पूछताछ की तथा शराब ठेके पर सीसीटीवी के फुटेज भी खंगाले. इस में एक संदिग्ध ललित के घर में घुसते नजर आया. लेकिन सीसीटीवी कैमरा दूर लगा होने व अंधेरे के चलते फुटेज स्पष्ट नहीं हो सकी.

पुलिस अधिकारी अभी जांच कर ही रहे थे कि मृतका के पिता कालीचरन व मां जयदेवी घटनास्थल पर आ गई. बेटी का शव देख कर वे फफक पड़े. पुलिस अधिकारियों ने उन दोनो को धैर्य बंधाया और उन से बेटी की हत्या के संबंध में पूछताछ की.

सौतेली बेटी ने दिया सुराग

कालीचरन ने बताया कि उन की बेटी सरोजनी की हत्या दामाद ललित के छोटे भाई राजेश व उस की पत्नी अंजू देवी ने की है. दामाद व राजेश के बीच संपत्ति को ले कर कई बार विवाद हुआ था. संपत्ति के लालच में ही राजेश व अंजू ने मिल कर सरोजनी की हत्या की है.

पुलिस अधिकारियों ने ललित की 12 वर्षीय बेटी अनन्या से पूछताछ की तो उस ने बताया कि बगल में रहने वाले चाचा राजेश व चाची अंजू की मम्मीपापा से नहीं पटती थी. कुछ माह पहले दोनों में संपत्ति को ले कर विवाद हुआ था.

उस ने बताया जब से मम्मी (सौतेली मां सरोजनी) ब्याह कर घर आई थी, चाचाचाची खुश नहीं थे. छोटीछोटी बात पर झगड़ा करने की कोशिश करते थे. उन्होंने बाबा को भी पापा के खिलाफ कर दिया था.

चाची ने कुछ दिन पहले मम्मी से कहा था कि तुम्हारे घर पर दीपक जलाने वाला नहीं बचेगा. चाहे जितना बड़ा मकान बना लो, इस में राज करने वाला कोई नहीं बचेगा.

चाची ने एक बार मम्मी को बहुत मारा था. पापा और चाचा में भी कई बार लड़ाई हो चुकी है. शक है कि चाचाचाची ने ही मम्मी की हत्या की है.

हालांकि जब ललित पासवान से पुलिस अफसरों ने पूछताछ की तो उस ने स्वीकार किया कि उस की अपने छोटे भाई राजेश से नहीं पटती है. लेकिन वह हत्यारा नहीं हो सकता. उन दोनों की नाराजगी का फायदा कोई तीसरा भी उठा सकता है. लेकिन वह तीसरा व्यक्ति कौन हो सकता है, इस की जानकारी उसे भी नहीं है.

पूछताछ के बाद पुलिस अधिकारियों ने सरोजनी के शव को पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपतराय अस्पताल भिजवा दिया. उस के बाद एसएचओ योगेश कुमार सिंह को आदेश दिया कि वह इस मामले की गहन पड़ताल करें और हत्यारों को गिरफ्तार करें.

आदेश पाते ही योगेश कुमार सिंह ने जांच शुरू कर दी. चूंकि मृतका के पिता कालीचरन तथा ललित की बेटी अनन्या ने राजेश व उस की पत्नी अंजू पर हत्या का शक जाहिर किया था. अत: उन्होंने उन दोनों को हिरासत में ले लिया. थाने में उन से सख्ती से पूछताछ की. लेकिन वे दोनों खुद को बेकुसूर बताते रहे.

उन्होंने लड़ाईझगड़ा व संपत्ति विवाद की बात तो स्वीकार की, पर हत्या जैसे जघन्य अपराध से साफ इनकार कर दिया. योगेश कुमार सिंह को लगा कि ये दोनों दोषी नहीं हैं. उन्होंने उन दोनों को सशर्त थाने से घर भेज दिया.

एसएचओ योगेश कुमार सिंह को अभी तक मृतका का मोबाइल फोन बरामद नहीं हुआ था. उन्होंने मृतका सरोजनी के मोबाइल फोन नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई. जिस से पता चला कि 29 अक्तूबर को शाम 4 से रात 12 बजे के बीच एक नंबर पर 3 बार तथा दूसरे नंबर पर एक बार बात हुई.

जिस नंबर पर 3 बार बात हुई थी, उस की जानकारी जुटाई गई तो पता चला वह नंबर तुलसियापुर (विधनू कस्बा) निवासी अंकुर श्रीवास्तव के नाम दर्ज है. दूसरा नंबर जिस पर एक बार बात हुई, वह नंबर राजू निवासी मेन रोड (विधनू) के नाम था.

अंकुर ने उगल दी सच्चाई

अब अंकुर व राजू पुलिस के रडार पर आ गए. पुलिस ने खबरियों को उन की टोह में लगा दिया. अंकुर तो पुलिस के हाथ नहीं लगा, लेकिन राजू हाथ आ गया.

राजू ने बताया कि उस ने रात 12 बजे सरोजनी को फोन किया था. लेकिन उस ने बात करने से नानुकुर की और फोन बंद कर दिया. उस के बाद क्या हुआ, उसे पता नहीं. सरोजनी की हत्या में उस का कोई हाथ नही है. वह बेकसूर है. श्री सिंह को भी लगा कि वह निर्दोष है. अत: सशर्त उसे थाने से जाने दिया.

2 नवंबर, 2022 की सुबह 5 बजे एसएचओ योगेश कुमार सिंह ने अंकुर श्रीवास्तव को समाधि पुलिया के पास से नाटकीय ढंग से गिरफ्तार कर लिया. जब उस से सरोजनी की हत्या के संबंध में पूछा गया तो वह साफ मुकर गया.

लेकिन सख्ती करने पर वह टूट गया और उस ने हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया. इस के बाद एसपी (आउटर) तेजस्वरूप सिंह ने आननफानन प्रैसवार्ता की और सरोजनी हत्याकांड का खुलासा कर दिया. अंकुर श्रीवास्तव ने बताया कि सरोजनी से उस के नाजायज संबंध थे. 29 अक्तूबर को जब ललित अपनी बेटी अनन्या के साथ ससुराल चला गया तो पति के जाने की जानकारी सरोजनी ने उसे दी. उस के बाद उस की 2-3 बार सरोजनी से फोन पर बात हुई. उस के बुलाने पर वह रात 11 बजे उस के घर पहुंच गया.

दोनों के बीच प्रेमालाप शुरू हो गया. उस ने प्रणय निवेदन किया तो नानुकुर के बाद वह राजी हो गई. वह चारपाई पर पहुंचा ही था कि इसी समय सरोजनी के मोबाइल फोन पर किसी की काल आई. सरोजनी ने उस से ‘हां, नहींनहीं, अभी मत आना’ कह कर बात की फिर फोन बंद कर दिया.

अंकुर ने बताया कि जब उस ने फोन के बारे में पूछा तो वह बहाने बनाने लगी. तभी उसे गुस्सा आ गया और वह उस की छाती पर सवार हो गया. उस ने उस का टेंटुआ दबा कर पूछा, ‘‘बता, फोन किस का था?’’

जान पर बन आई तो सरोजनी ने बता दिया कि फोन राजू मैकेनिक का था. यह सुनते ही अंकुर के तनबदन में आग लग गई. वह जान गया कि उस का टांका राजू से भी भिड़ा है.

उस ने सरोजनी से कहा कि वह विश्वासघातिनी है. पहले पति को धोखा दे कर उस से संबंध बनाए. अब उसे धोखा दे कर राजू के साथ रंगरलियां मनाना चाहती है. आज तुझे विश्वासघात की सजा जरूर मिलेगी. इस के बाद उस ने उस का गला कस दिया. फिर वह रसोई में गया और मीट काटने वाले चाकू से उस का गला रेत दिया. हत्या के बाद उस के शव को चारपाई के नीचे छिपा दिया. बाथरूम में जा कर खून सने हाथ व चाकू को धोया. उस के बाद कमरे का दरवाजा बाहर से बंद किया, फिर रात के अंतिम पहर में घर से बाहर आ गया.

कोई देख कर पहचान न ले, इस के लिए उस ने गमछा मुंह पर लपेट लिया. सरोजनी के मोबाइल फोन को तोड़ कर उस ने विधनू नहर में फेंक दिया. इस के बाद वह फरार हो गया. लेकिन पुलिस से बच न सका और पकड़ा गया.

चूंकि अंकुर श्रीवास्तव ने हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया था, अत: एसएचओ योगेश कुमार सिंह ने मृतका के पति ललित पासवान की तहरीर पर आईपीसी की धारा 302 के तहत अंकुर श्रीवास्तव के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली और उसे विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया. 4 नवंबर, 2022 को थाना विधनू पुलिस ने हत्यारोपी अंकुर श्रीवास्तव को कानपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया.

कथा लिखने तक अनन्या अपने पिता के साथ रह रही थी. प्यार पाने की उस की तमन्ना अधूरी ही रह गई. क्योंकि जब वह मात्र 5 साल की थी, तब जन्म देने वाली मां के प्यार से वंचित हो गई और अब जब वह थोड़ी बड़ी हो कर 12 साल की हुई तो सौतेली मां का प्यार भी छिन गया.      द्य

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में अनन्या नाम परिवर्तित है.

बेटे के कातिल पर आया मां को रहम

बिहार के गया शहर के हाईप्रोफाइल आदित्य मर्डर केस में अदालत ने हत्यारे रौकी उर्फ राकेश रंजन यादव (25 साल), उस के साथी टेनी यादव उर्फ राजीव कुमार (23 साल), उस की मां मनोरमा देवी के सरकारी बौडीगार्ड राजेश कुमार (32 साल) को उम्रकैद तथा रौकी के पिता बिंदी यादव (55 साल) को 5 साल की कैद की सजा सुनाई है.

जदयू की निलंबित एमएलसी मनोरमा देवी और पूर्व जिला परिषद अध्यक्ष बिंदी यादव के बिगड़ैल बेटे रौकी उर्फ राकेश रंजन यादव ने पिछले साल 7 मई को गया के बड़े कारोबारी श्याम सचदेवा के बेटे आदित्य सचदेवा की गोली मार कर हत्या कर दी थी.

आदित्य की गलती सिर्फ इतनी थी कि वह रौकी की लैंडरोवर कार को ओवरटेक कर के आगे निकल गया था. सत्ता और दौलत के नशे में चूर रौकी को आदित्य की इस हरकत पर इतना गुस्सा आया कि उस ने उसे गोली मार दी थी.

मृतक आदित्य की मां चंदा सचदेवा ने अदालत से अनुरोध किया था कि उन के मासूम बेटे के हत्यारों को फांसी की सजा न दी जाए. वह नहीं चाहतीं कि फांसी दे कर उन की तरह एक और मां की गोद सूनी कर दी जाए.

31 अगस्त को जब आदित्य की हत्या के मामले में रौकी और उस के साथियों को दोषी ठहरा दिया गया तो चंदा सचदेवा ने रोते हुए कहा था कि आखिर उन के बेटे का क्या कसूर था, जो उसे इस तरह मार दिया गया? उस ने तो अभी ठीक से दुनिया भी नहीं देखी थी. बेटे की मौत के बाद से आज तक उन के आंसू नहीं थमे हैं.

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शायद जिंदा रहने तक थमेंगे भी नहीं, इसीलिए वह नहीं चाहती थीं कि ऐसा दर्द किसी अन्य मां को मिले. उन्होंने अदालत का फैसला आने से पहले ही कहा था, ‘‘मेरा बेटा तो चला गया, पर मैं किसी और मां को ऐसा दर्द देने या दिलाने के बारे में कतई नहीं सोच सकती. रौकी को अदालत कड़ी से कड़ी सजा दे, पर फांसी न दे.’’ बाद में फैसला आने पर उन्होंने कहा, ‘‘अदालत ने जो फैसला सुनाया है, उस से मैं संतुष्ट हूं.’’

चंदा सचदेवा का कहना सही भी है. जवान बेटे के खोने का दर्द उन से बेहतर और कौन जान सकता है. वह अपना दर्द कम करने के लिए अन्य मां का बेटा नहीं छीनना चाहती थीं.

सरकारी वकील सरताज अली ने बहस के दौरान कहा था कि यह बहुत जघन्यतम मामला है, इसलिए हत्यारे रौकी को कड़ी से कड़ी सजा दी जानी चाहिए. जज ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कहा था कि यह मामला रेयरेस्ट औफ रेयर नहीं है, इसलिए 3 आरोपियों को उम्रकैद और एक को 5 साल की कैद की सजा दी जाती है.

आदित्य के पिता श्याम सचदेवा कहते ने कहा कि सरकार, पुलिस और प्रशासन ने उन का पूरा साथ दिया. इसी का नतीजा है कि आज उन्हें इंसाफ मिला है. इस हत्याकांड की जांच और सुनवाई के दौरान तमाम उतारचढ़ाव आए. वारदात के 3 दिनों बाद 10 मई को रौकी को गिरफ्तार किया गया था. 6 जून को सभी आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल कर दी गई थी. मुख्य आरोपी रौकी की जमानत की अर्जी को गया सिविल कोर्ट ने खारिज कर दिया था. इस के बाद रौकी ने पटना हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल की थी.

19 अक्तूबर, 2016 को वहां से जमानत मिल गई थी. हाईकोर्ट द्वारा जमानत देने के विरोध में बिहार सरकार सुप्रीम कोर्ट गई, जहां रौकी की जमानत रद्द कर दी गई तो उसे दोबारा जेल जाना पड़ा. इस मामले में 29 लोगों की गवाही हुई थी.

क्यों मारा गया आदित्य

पिछले साल 7 मई की रात 8-9 बजे के बीच गया के कारोबारी श्याम कुमार सचदेवा का बेटा आदित्य सचदेवा अपने दोस्त की मारुति स्विफ्ट कार बीआर-02ए सी2699 से बोधगया से गया स्थित अपने घर की ओर आ रहा था.

वह अपने दोस्तों के साथ बर्थडे पार्टी में बोधगया गया था. रास्ते में जेल के पास ही सत्तारूढ़ दल जदयू की एमएलसी मनोरमा देवी के बेटे रौकी अपनी लैंडरोवर कार से आदित्य की कार को ओवरटेक करने की कोशिश करने लगा.

काफी देर तक आदित्य ने उसे आगे नहीं जाने दिया. जब खाली सड़क मिली, रौकी ने उस की कार को ओवरटेक कर के आदित्य की कार रुकवा ली. इस के बाद उस ने उसे कार से उतार कर जम कर पिटाई की.

पिटाई के बाद आदित्य और उस के साथियों ने उन से माफी मांग ली. वे अपनी कार की अेर जाने लगे तो बाहुबली बाप के बिगड़ैल बेटे रौकी ने पीछे से गोली चला दी, जो आदित्य के सिर में जा लगी. वह जमीन पर गिर पड़ा. थोड़ी देर तक वह तड़पता रहा, उस के बाद प्राण त्याग दिए.

आदित्य के दोस्तों के बताए अनुसार, रात पौने 8 बजे के करीब उन की कार ने एक लैंडरोवर एसयूवी कार को ओवरटेक किया. इस के बाद वह कार उन की गाड़ी के आगे जाने के लिए रास्ता मांगने लगी. उस कार से आगे निकल कर उन की कार सिकरिया मोड़ से गया शहर में पुलिस लाइन की ओर मुड़ गई.

इस के कुछ देर बाद लैंडरोवर कार आदित्य की स्विफ्ट कार के बगल में आई तो उस में बैठे लोगों ने शोर मचाते हुए कार रोकने का इशारा किया. कार चला रहे नासिर ने गाड़ी रोक दी तो उस कार से 4 लोग नीचे उतरे. उन में रौकी, बौडीगार्ड, ड्राइवर और एक अन्य आदमी था, जिसे वे नहीं पहचानते थे.

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रौकी ने आदित्य की पिटाई तो की ही, पिस्तौल की बट से नासिर पर भी हमला किया, जिस से उस ने गाड़ी को भगाने की कोशिश की. गाड़ी कुछ ही दूर गई थी कि पीछे से गोली चलने की आवाज आई. वह गोली आदित्य को लगी, जिस वह सीट पर ही लुढ़क गया.

हत्यारे की गिरफ्तारी

हत्या के इस मामले में पुलिस ने रौकी उर्फ राकेश रंजन यादव, उस के पिता और मनोरमा देवी के पति बिंदेश्वरी यादव उर्फ बिंदी यादव को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था. मनोरमा देवी का सरकारी बौडीगार्ड राजेश कुमार भी हत्या के इस मामले में शामिल था.

पुलिस ने उसे भी गिरफ्तार कर लिया था. उस के पास से 70 राउंड गोली और कारबाइन जब्त कर ली गई थी. उस पर आरोप था कि उस ने रौकी को गोली चलाने से रोका नहीं था.

एडीजे मुख्यालय सुनील कुमार ने बताया था कि हथियार की फोरैंसिक जांच में पता चला था कि बौडीगार्ड के हथियार से गोली नहीं चलाई गई थी. पूछताछ में बौडीगार्ड ने बताया था कि रौकी ने ही आदित्य पर गोली चलाई थी.

रौकी के पिता बिंदी यादव का पुराना आपराधिक रिकौर्ड रहा है. वह और उस का बेटा रौकी, दोनों ही रिवौल्वर रखते थे. गया के थाना रामपुर में आदित्य के भाई आकाश सचदेवा की ओर से आदित्य की हत्या का मुकदमा अपराध संख्या 130/2016 पर आईपीसी की धारा 341, 323, 307, 427, 120बी और 27 आर्म्स एक्ट के तहत दर्ज किया गया था.

जबकि पुलिस यह मुकदमा दर्ज करने में टालमटोल कर रही थी. लेकिन आदित्य के घर वालों का कहना था कि जब तक मुकदमा दर्ज नहीं होगा, वे लाश का अंतिम संस्कार नहीं करेंगे. सियासी और प्रशासनिक दांवपेच चलते रहे. पुलिस ने 5 बार मुकदमे का मजमून बदलवाया.

आदित्य के पिता श्याम कुमार सचदेवा गया के बड़े कारोबारी हैं. वह मूलरूप से पंजाब के रहने वाले हैं. थाना कोतवाली के स्वराजपुरी रोड पर महावीर स्कूल के पास उन की सचदेवा इंटरप्राइजेज के नाम से पाइप की दुकान है.

कौन था आदित्य

आदित्य ने गया के नाजरथ एकेडमी कौनवेंट स्कूल से 12वीं की परीक्षा दी थी. उस की मौत के बाद उस का परीक्षाफल आया था. आदित्य के चाचा राजीवरंजन के अनुसार, उन का परिवार करीब 65 साल पहले पाकिस्तान से आ कर गया में बसा था.

आदित्य से पहले उन के परिवार के एक अन्य सदस्य की हत्या हो चुकी थी. सन 1987 में उन के बड़े भाई हरदेव सचदेवा के बेटे डिंपल की हत्या पतरातू में कर दी गई थी. इस के बाद उन के छोटे भाई के छोटे बेटे को मार दिया गया.

7 मई को आदित्य की हत्या हुई थी. 10 और 11 मई की रात 2 बजे के करीब रौकी को उस के पिता बिंदी यादव के मस्तपुरा स्थित मिक्सचर प्लांट से गिरफ्तार किया गया था. उस के पास से हत्या में इस्तेमाल की गई विदेशी रिवौल्वर और गोलियों से भरी मैगजीन बरामद की गई थी. उस के पिस्तौल का लाइसैंस दिल्ली से जारी किया गया था.

पूछताछ में रौकी ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया था. लेकिन बाद में वह अपने अपराध से मुकर गया था. उस का कहना था कि उस ने आदित्य की हत्या नहीं की. घटना के समय वह दिल्ली में था. वह तो मां के बुलाने पर गया आया था. अपनी मां के कहने पर ही उस ने आत्मसमर्पण किया था, पुलिस ने उसे गिरफ्तार नहीं किया.

जबकि एसएसपी का कहना था कि रौकी को गिरफ्तार किया गया था. आदित्य की हत्या के बाद एमएलसी मनोरमा देवी का पूरा परिवार और राजनीति चौपट हो गई. पहले बेटा रौकी हत्या के मामले में जेल गया, उस के बाद उस के पति बिंदी यादव को भी पुलिस ने हत्यारों को छिपाने और भगाने के आरोप में सलाखों के पीछे पहुंचा दिया था.

इस के बाद रौकी की खोज में जब पुलिस ने मनोरमा के घर छापा मारा तो रौकी तो वहां नहीं मिला, लेकिन उन के घर से विदेशी शराब की 6 बोतलें बरामद हुई थीं. राज्य में शराबबंदी के बाद सत्तारूढ़ दल के एमएलसी के घर से शराब की बोतलें मिलने से सरकार को छीछालेदर से बचाने के लिए तुरंत मनोरमा देवी को जदयू से निलंबित कर दिया गया था.

हत्यारे की मां भी जेल में

मनोरमा देवी के घर से शराब मिलने के बाद आननफानन उन की गिरफ्तारी का वारंट जारी कर दिया गया था. 11 मई को जिला प्रशासन, पुलिस और उत्पाद विभाग के अफसरों की मौजूदगी में मनोरमा देवी के घर को सील कर दिया गया था, जबकि वह फरार थीं. जिस घर से शराब बरामद हुई थी, वह मनोरमा देवी के नाम था, इसलिए इस मामले में उन्हें आरोपी बनाया गया. बाद में उन्हें गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया गया था.

पुलिस जांच से पता चला था कि रौकी ने जिस रिवौल्वर से आदित्य की हत्या की थी, वह इटली की बरेटा कंपनी का था. वह .380 बोर का था. पुलिस सूत्रों के अनुसार, आदित्य की हत्या करने के बाद रौकी पटना समेत राज्य के कई स्थानों पर छिपता रहा.

हत्या करने के तुरंत बाद रौकी भाग गया था. इस के बाद वह दिल्ली जाना चाहता था, लेकिन अचानक उस का प्लान बदल गया और वह गया चला गया. गिरफ्तारी के बाद उसे गया सैंट्रल जेल में रखा गया था, जहां उसे कैदी नंबर 22774 की पहचान मिली थी.

उस के बाहुबली पिता बिंदी यादव को कैदी नंबर 22758 की पहचान मिली थी. दोनों को जेल के एक ही वार्ड में रखा गया था. आदित्य हत्याकांड की जांच के दौरान यह भी खुलासा हुआ था कि देशद्रोह के आरोपी बिंदी यादव को किस तरह से सरकारी बौडीगार्ड मुहैया कराया गया था.

जिला सुरक्षा समिति ने 9 फरवरी, 2016 को बिंदी यादव को भुगतान के आधार पर एक पुलिसकर्मी मुहैया कराया था. बिंदी पर आरोप था कि उस ने प्रतिबंधित नक्सली संगठन भाकपा-माओवादी को प्रतिबंधित बोर की कई हजार गोलियां और हथियार उपलब्ध कराए थे. इस मामले में वह लंबे समय तक गया जेल में बंद रहा था.

मां-बाप के हत्यारे संदीप जैन को सजा-ए-मौत – भाग 4

बापबेटे में लंबे वक्त से मनमुटाव, झगड़े और संपत्ति को ले कर विवाद होता रहता था. रावतमल जैन ने इस का हल यह निकाला कि उन्होंने संदीप को अब रुपए देने बंद कर दिए. पैसे न मिलने से संदीप तिलमिला गया. वह साड़ी की दुकान चला रहा था, लेकिन उस से इतनी आमदनी नहीं होती थी कि वह अपनी जरूरतें पूरी कर सके. वह तनाव में रहने लगा.

संदीप पिता को समझने लगा दुश्मन

इस का असर यह हुआ कि वह पिता को अपना सब से बड़ा दुश्मन मानने लगा. एकांत में वह यही सोचता था, ‘यदि उस के पिता जिंदा रहेंगे तो वह पैसेपैसे को मोहताज हो जाएगा. उसे अपने पिता की पूरी संपत्ति का मालिक बनना है तो पिता को रास्ते से हटाना ही होगा.’

यह बात उस के दिमाग में बैठ गई. अब वह अपने पिता को रास्ते से हटाने के लिए तरहतरह की योजनाएं बनाने लगा.

अंत में उस ने ठोस योजना बना कर हत्या करने के लिए रिवौल्वर की तलाश शुरू कर दी. किसी से मालूम हुआ कि देशी कट्टे, पिस्तौल बेचने वाला भगत सिंह गुरुदत्ता है. संदीप भगत से जा कर मिला. गुरुदत्ता अग्रसेन चौक, दुर्ग में ही रहता था. संदीप ने उस से एक लाख 35 हजार रुपए में देशी रिवौल्वर और कारतूस खरीद लिए.

योजनानुसार संदीप ने अपनी पत्नी संतोष कुमारी को बेटे के साथ 27 दिसंबर, 2017 को अपनी ससुराल दल्ली राजहरा, जिला बालोद भेज दिया. संदीप ने 31 दिसंबर की रात को ही चौकीदार रोहित देशमुख को घर से जाने के लिए कह दिया. चौकीदार रात को उन के घर की चौकसी करता था. संदीप ने उस से कहा कि उस की मां और पिताजी कहीं रिश्तेदारी में 2 दिन के लिए जा रहे हैं, वह खुद ही घर की देखभाल कर लेगा. चौकीदार रोहित के जाने के बाद संदीप के लिए रास्ता साफ था.

रात को वह ऊपरी मंजिल पर रहा और मौका तलाश करता रहा. पूरी रात गुजर गई, तब सुबह साढ़े 5 बजे संदीप नीचे पिता रावतमल के कमरे में दबेपांव आ गया. उस के पिता फ्रैश होने के लिए बाथरूम में गए थे. संदीप ने अपनी मां के कमरे की बाहर से कुंडी लगा दी, उस के पिता बाथरूम से गैलरी में आए तो संदीप ने उन की पीठ में 2 फायर कर दिए. रावतमल गोली लगते ही लहरा कर गिरे.

गोली की आवाज से सूरजी देवी जाग गईं और चिल्लाने लगीं. संदीप डर कर ऊपरी मंजिल पर भाग गया. मां उसे फोन कर रही थीं, उस ने काल अटेंड नहीं की. कुछ देर बाद वह यह देखने के लिए नीचे आया कि स्थिति क्या है. उस की मां कमरे में बंद थीं और अपने नाती सौरभ गोलछा को फोन लगा कर कुछ बता रही थीं.

संदीप ने मां का मुंह बंद करने के लिए उस के कमरे का दरवाजा खोला और मां के सीने में 3 फायर झोंक दिए. मां नीचे गिर कर तड़पने लगीं तो संदीप वहां से भाग निकला.

कुछ ही देर मे सूरजी देवी का नाती सौरभ गोलछा वहां आया तो कमरे में नानानानी के शव देख कर घबरा गया. उस ने तुरंत पुलिस को काल कर के इस हत्याकांड की जानकारी दे दी. सुबहसुबह नए साल पर 2-2 कत्ल की सूचना मिलने पर पुलिस सकते में आ गई.

कोतवाली थाने के तत्कालीन एसएचओ भावेश साव अपने अधिकारियों को इस घटना की सूचना देने के बाद घटनास्थल पर आ गए.

सौरभ गोलछा के अलावा पासपड़ोस के लोग घटनास्थल पर मौजूद थे. एसएचओ ने दोनों लाशों का बारीकी से निरीक्षण किया. वहां पर 14 कारतूस और 2 खाली कारतूस के खोखे पड़े थे. उन्हें कब्जे में ले लिया गया.

यह हत्या दुर्ग के जानेमाने समाजसेवी रावतमल जैन की हुई थी, उन की पत्नी को भी गोलियां मारी गई थीं. थोड़ी देर में पुलिस आईजी दीपांशु काबरा, तत्कालीन एसपी अमरेश मिश्रा, एडिशनल एसपी शशिमोहन सिंह, डीएसपी एस.एस. शर्मा आदि घटनास्थल पर आ गए.

संदीप के खिलाफ मिले ठोस सबूत

आसपास पूछताछ की गई. सौरभ गोलछा वहां आने वाला पहला इंसान था. उस ने अपने मामा संदीप जैन पर शक जाहिर किया. पड़ोसियों से भी यही मालूम हुआ कि संपत्ति के लिए संदीप अपने पिता रावतमल से लड़ाई करता था.

पुलिस की नजर में संदीप का नाम आने पर उसे संदेह के घेरे में ले कर जांच शुरू कर दी गई.

रावतमल जैन और सूरजी देवी की लाशें पंचनामा बना कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी गईं.

आईजी दीपांशु काबरा ने पूरी रणनीति बना कर तत्कालीन एसपी अमरेश मिश्रा के निर्देशन में एडिशनल एसपी शशिमोहन सिंह की अगुवाई में एक टीम गठित कर दी, जिस में एसएचओ भावेश साव, इंसपेक्टर एस.आर. पठारे, आर.डी. मिश्रा, जांच इकाई के एएसआई नारायण सिंह व अन्य पुलिसकर्मियों को शामिल कर के संदीप जैन की तलाश शुरू कर दी गई.

पुलिस ने पूरे शहर की नाकाबंदी कर दी. संदीप जैन के मोबाइल नंबर को सर्विलांस पर लगा दिया गया.

दिन चढ़ने तक पूरे दुर्ग में समाजसेवी रावतमल जैन और उन की पत्नी सूरजी देवी की हत्या की खबर आग की तरह फैल गई. मीडिया जगत ने इस कांड को उछालना शुरू कर दिया. पुलिस मामले को जल्द से जल्द हल कर के मीडिया को शांत करना चाहती थी. पुलिस की मुस्तैदी के कारण 4 घंटे में ही संदीप जैन को धर दबोचा गया.

उसे थाने में ला कर कड़ी पूछताछ शुरू हुई तो उस ने अपना जुर्म स्वीकार करते हुए बताया कि उस के पिता बातबात पर उसे संपत्ति से बेदखल करने की धमकी देते रहते थे. उस की मनपसंद शादी पिता की रूढि़वादी विचारधारा के कारण नहीं हो पाई.

पिता की इस बात से भी उसे चिढ़ थी कि वह अपनी पूजा के लिए नौकर से शिवनाथ नदी से जल मंगवाते थे, जबकि उन के घर में साफ पानी का नल लगा था. उन्होंने कुछ समय से उसे खर्चा देना भी बंद कर दिया था, इसी से परेशान हो कर उस ने पिता को गोली मार दी. मां को वह मारना नहीं चाहता था, लेकिन उस ने घटना की सूचना फोन से अपने नाती को देनी चाही तो मैं ने उन्हें भी गोलियों से भून दिया.

मीडिया ने यह शोर मचाया कि पुलिस ने अपनी पीठ थपथपाने के लिए निर्दोष संदीप जैन को गिरफ्तार किया है. पुलिस ने संदीप जैन को रिमांड पर ले कर उसे हथियार देने वाले भगतसिंह गुरुदत्ता और सहयोगी शैलेंद्र सागर को गिरफ्तार किया तो संदीप को निर्दोष बताने वालों के मुंह बंद हो गए.

संदीप जैन की पत्नी संतोष, भांजा सौरभ गोलछा, चौकीदार रोहित देशमुख, ड्राइवर राजू सोनवानी पुलिस के मुख्य गवाह बने.

संदीप को जेल भेज कर इस मामले की चार्जशीट कोर्ट में लगाई गई. 5 साल बाद आखिर अपने जन्मदाता की हत्या करने वाले संदीप जैन को मृत्युदंड की सजा सुना दी गई.

एक लोक अभियोजक बालमुकुंद चंद्राकर के अनुसार कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि ऐसे अपराधों को गंभीरतापूर्वक और कठोरता से हतोत्साहित किया जाना उचित होगा, जिस से समाज में ऐसे अपराध और ऐसे अपराधी पनप न सकें या ऐसे अपराध करने की हिम्मत कोई व्यक्ति न कर सके.

सजा सुनाए जाने के बाद पुलिस ने तीनों मुजरिमों को हिरासत में ले लिया और उन्हें जेल भेज दिया.    द्य

—कथा अधिवक्ताओं से की गई बातचीत पर आधारित

हत्यारी पत्नी सपना : कानपुर में मारा पति और ससुर को – भाग 4

ऋषभ रात 8 बजे अपने दोस्त मनीष के साथ चकरपुर पंचायत घर पहुंच गया. उस ने स्कूटी पंचायत घर के बाहर खड़ी कर दी. कुछ देर बाद राजकपूर भी सत्येंद्र सिंह को साथ ले कर बाइक से चकरपुर पहुंच गया. वहां उन दोनों ने सूआ से ऋषभ की स्कूटी पंक्चर कर दी.

रात 10 बजे ऋषभ और मनीष खापी कर शादी समारोह के बाहर आए तो देखा कि उन की स्कूटी का पहिया पंक्चर है. पंक्चर बनवाने के लिए वे स्कूटी पैदल ही हाईवे तक लाए.

वे जैसे ही शिवा होटल की तरफ चले तभी घात लगाए बैठे राजकपूर व सत्येंद्र सिंह ने ऋषभ पर चापड़ से कातिलाना हमला कर दिया. ऋषभ की गरदन व कंधे पर गहरी चोट लगी और वह वहीं खून से लथपथ हो कर गिर पड़ा.

मनीष ने थाना सचेंडी पुलिस को सूचना दी तो एसएचओ प्रद्युम्न सिंह पुलिस दल के साथ आ गए. उन्होंने घायल अवस्था में ऋषभ को हैलट अस्पताल में भरती कराया. मनीष की सूचना पर सपना भी अस्पताल पहुंच गई और रोनेपीटने का नाटक करने लगी.

कुछ समय बाद ऋषभ को होश आया तो सपना ने उसे कानपुर के चर्चित मधुराज नर्सिंग होम में भरती करा दिया. रात में राजकपूर ने सपना को मैसेज भेजा कि काम हो गया. जवाब में सपना ने मैसेज किया कि वह तो बच गया.

दूसरे रोज सपना ने अपने पड़ोसी रामकिशन विश्वकर्मा के खिलाफ पति पर जानलेवा हमला करने की रिपोर्ट दर्ज करा दी. सपना ने एसएचओ प्रद्युम्न सिंह को बताया कि रामकिशन विश्वकर्मा से उस का पैसों के लेनदेन को ले कर विवाद चल रहा है. इसी रंजिश में उस ने हमला करवाया है.

ससुर की तरह पति ऋषभ को भी निपटा दिया लेकिन…

ऋषभ लगभग 3 दिन तक मधुराज नर्सिंगहोम में रहा. उस के बाद उसे छुट्टी मिल गई. सपना ऋषभ को घर ले आई. ऋषभ की जान बच गई तो उस ने पति को मारने के लिए बी प्लान तैयार किया. इस प्लान में उस ने प्रेमी राजकपूर व मैडिकल स्टोर संचालक सुरेंद्र सिंह को शामिल किया.

उस ने जिस तरह दवा में ओवरडोज दे कर ससुर को मारा था, उसी तरह पति को भी मारने का जतन करने लगी. सपना ने ऋषभ को दवा की ओवरडोज देनी शुरू कर दी. ऋषभ शुगर का भी मरीज था, फिर भी सपना ने उसे ग्लूकोज का इंजेक्शन लगवा दिया.

मैडिकल स्टोर संचालक सुरेंद्र सिंह यादव सपना का आशिक था. वही सपना को ऐसी घातक दवाएं मुहैया करा रहा था. जिस से उस के पति ऋषभ की किडनी तथा लीवर में संक्रमण फैल जाए और उस की मौत हो जाए. मौत के इस खेल में सपना का प्रेमी राजकपूर भी सहयोग कर रहा था.

3 दिसंबर, 2022 को ऋषभ की हालत बिगड़ी तो सपना ने प्रेमी राजकपूर को वाट्सऐप मैसेज भेजा कि ऋषभ की हालत बिगड़ रही है. उस की समझ में नहीं आ रहा है कि वह क्या करे.

इस पर राजकपूर ने जवाब भेजा कि वह ऋषभ को ले कर किसी अस्पताल भागे, इलाज का नाटक करे जिस से सभी को लगे कि उस की बीमारी से मौत हुई है. इस के बाद सपना ऋषभ को ले कर हैलट अस्पताल गई, जहां उस की मौत हो गई.

चूंकि 5 दिन पहले ऋषभ पर जानलेवा हमला हुआ था और उस की पत्नी सपना ने पड़ोसी रामकिशन के खिलाफ रिपोर्ट भी दर्ज कराई थी, इसलिए शक के आधार पर एसएचओ प्रद्युम्न सिंह ने ऋषभ के शव का पोस्टमार्टम कराया. लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट चौंकाने वाली थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में ऋषभ की मौत प्राणघातक हमले में आई चोटों से नहीं, बल्कि लीवर और किडनी में संक्रमण होने से हुई थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट की जानकारी एसएचओ ने पुलिस अधिकारियों को दी तो डीसीपी (पश्चिम) विजय ढुल तथा एसीपी (पनकी) निशंक शर्मा घटनास्थल पर मौकामुआयना करने पहुंचे. इस के बाद उन्होंने ऋषभ की संदिग्ध मौत की जांच हेतु एक पुलिस टीम गठित कर दी.

इस गठित पुलिस टीम ने अपनी जांच ऋषभ पर हुए हमले से शुरू की. सर्विलांस के जरिए जब टीम ने हाईवे घटनास्थल पर घटना के समय एक्टिव मोबाइल नंबरों को खंगाला तो पता चला, वहां पर आरोपी रामकिशन विश्वकर्मा का मोबाइल एक्टिव नहीं था, लेकिन 2 अन्य संदिग्ध नंबर एक्टिव थे.

पुलिस टीम ने उन नंबरों की काल डिटेल्स का मिलान मृतक ऋषभ की पत्नी सपना की काल डिटेल्स से किया तो पता चला कि एक नंबर पर सपना की बात होती थी. घटना के कुछ देर बाद ही उस से सपना को काल गई थी.

पुलिस ने उस नंबर की छानबीन की तो वह रायपुर (नर्वल) निवासी राजकपूर का निकला. पुलिस ने जब राजकपूर की छानबीन की तो पता चला कि वह सपना का प्रेमी है. सपना के उस से शादी के पहले से प्रेम संबंध है.

शक के आधार पर पुलिस ने सपना और राजकपूर को पकड़ा और सख्ती से पूछताछ की तो दोनों टूट गए और ऋषभ की हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया.

सपना ने बताया कि उस ने पति की हत्या के लिए 3 लाख की सुपारी प्रेमी राजकपूर को दी थी. उस ने अपने कर्मचारी सत्येंद्र सिंह के साथ ऋषभ पर हमला किया था. लेकिन जब उस की जान बच गई तो उस ने पति को दवा की ओवरडोज दे कर मार दिया. दवाइयां उसे आशा मैडिकल स्टोर संचालक सुरेंद्र सिंह यादव ला कर देता था.

सपना के बयान के आधार पर पुलिस टीम ने सत्येंद्र सिंह व सुरेंद्र सिंह को भी उन के घरों से गिरफ्तार कर लिया. राजकपूर व सत्येंद्र की निशानदेही पर पुलिस टीम ने हमले में प्रयोग किया चापड़, बाइक तथा सूआ बरामद कर लिया.

एसएचओ प्रद्युम्न सिंह ने ऋषभ की हत्या का खुलासा करने तथा आरोपियों को पकड़ने की जानकारी डीसीपी (वेस्ट) विजय ढुल को दी तो उन्होंने प्रैसवार्ता आयोजित कर ऋषभ की हत्या का खुलासा किया. उन्होंने खुलासा करने वाली टीम को 50 हजार रुपए ईनाम देने की घोषणा भी की.

चूंकि आरोपियों ने हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया था, अत: एसएचओ प्रद्युम्न सिंह ने भादंवि की धारा 302 के तहत सपना, राजकपूर, सत्येंद्र सिंह व सुरेंद्र सिंह के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर सभी को विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया.

10 दिसंबर, 2022 को पुलिस ने सभी आरोपियों को कानपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया.   द्य

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

स्पीड पोस्ट से आया तलाक

यह जनवरी, 2016 की दोपहर की बात है. कड़ाके की सर्दी पड़ने की वजह से आफरीन रहमान जयपुर स्थित अपने घर पर ही थीं. उन का खाना खाने का मन नहीं था, इसलिए कुरसी पर बैठ कर वह सोचने लगीं कि अब क्या किया जाए, क्योंकि घर के सारे काम वह पहले ही निपटा चुकी थीं. वह कुरसी पर बैठी थीं कि तभी उन की नजर सामने सैंटर टेबल पर पड़ी पत्रिका पर पड़ गई.

उसे एक दिन पहले ही वह बाजार से खरीद कर लाई थीं. रात को वह उसे पढ़ रही थीं, तभी उन्हें नींद आ गई थी. तब मैगजीन सैंटर टेबल पर रख कर वह सो गई थीं. मैगजीन देख कर आफरीन को उस कहानी की याद आ गई, जिसे वह पढ़ रही थीं. वह एक महिला की कहानी थी, जिसे पति ने घर से निकाल दिया था. इस समय वह महिला मायके में भाइयों के साथ रह रही थी.

आफरीन ने उसी कहानी को पढ़ने के लिए मैगजीन उठा ली. वह पन्ने पलट रही थीं, तभी डोरबैल बजी. आफरीन सोच में पड़ गईं कि इस समय दोपहर में कौन आ गया? उन्होंने बैठेबैठे ही आवाज लगाई, ‘‘कौन..?’’

बाहर से जवाब आने के बजाय दोबारा डोरबैल बजी तो आफरीन मैगजीन मेज पर रख कर अनमने मन से उठीं और दरवाजे पर जा कर दरवाजा खोलने से पहले एक बार फिर पूछा, ‘‘कौन है?’’

‘‘मैडम, मैं पोस्टमैन.’’ बाहर से आवाज आई.

आफरीन ने दरवाजा खोला तो बाहर खाकी वर्दी में पोस्टमैन खड़ा था. उस ने एक लिफाफा आफरीन की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘आप के यहां आफरीन रहमान कौन हैं? यह स्पीड पोस्ट आई है.’’

‘‘मैं ही आफरीन रहमान हूं.’’ उन्होंने कहा.

‘‘मैडम,’’ पोस्टमैन ने एक कागज आफरीन की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘इस पर दस्तखत कर दीजिए.’’

कागज थाम कर आफरीन ने पोस्टमैन की ओर देखा तो उस ने अपनी जेब से पैन निकाल कर उस की ओर बढ़ा दिया. आफरीन ने उस कागज पर दस्तखत कर दिए तो पोस्टमैन ने एक लिफाफा उन्हें थमा दिया. आफरीन ने दरवाजा बंद किया और कमरे में आ कर उस लिफाफे को उलटपलट कर देखने लगी. वह स्पीड पोस्ट उन्हीं के नाम थी. पत्र भेजने वाले की जगह अशहर वारसी, इंदौर लिखा था.

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इंदौर से अशहर का पत्र देख कर आफरीन खुश हो गईं लेकिन तुरंत ही अपनी उस खुशी को झटक कर वह सोचने लगीं कि अगर अशहर को उस की जरूरत होती तो वह खुद आता या फोन करता. पत्र भेजने की क्या जरूरत थी? आफरीन के मन में तरहतरह की आशंकाएं उपजने लगीं. 5-6 महीने बाद उस ने इस तरह क्यों याद किया? यह चिट्ठी क्यों भेजी, वह भी स्पीड पोस्ट से?

आफरीन का मन बैठने सा लगा. उन्होंने कांपते हाथों से स्पीडपोस्ट का वह लिफाफा खोला. उस में से एक कागज निकला. उन्होंने वह कागज खोला तो उस पर लिखा था ‘तलाक…तलाक… तलाक…’. उन्होंने एक बार फिर उस कागज पर लिखी इबारत पढ़ी. उस पर वही लिखा था, जो उन्होंने पहले पढ़ा था.

आफरीन ने उस कागज पर लिखे शब्दों को कई बार पढ़ा. उस तलाकनामा को देख कर उन की आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा. वह कुरसी पर बैठ गईं. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि उन की खुशियों को इतनी जल्दी ग्रहण कैसे लग गया? उन्हें जो खुशियां मिली थीं, वे इतनी जल्दी कैसे छिन गईं?

उन्होंने तो ऐसी कोई गलती भी नहीं की थी कि उस गलती की इतनी बड़ी सजा मिल रही हो. करीब डेढ़, दो साल पहले अशहर से रिश्ता तय होना, उस की बेगम बन कर जयपुर से इंदौर जाना, कुछ ही दिनों में ससुराल वालों की ओर से दहेज के लिए उन पर अत्याचार करना और फिर एक दिन उन्हें घर से निकाल देने की एकएक घटना उस के जेहन में फिल्म की तरह चलने लगी.

सन 2014 के मईजून महीने की बात रही होगी. जयपुर की रहने वाली 23 साल की आफरीन रहमान अपनी एमबीए की पढ़ाई पूरी कर नौकरी तलाश रही थी. उस के पिता मोहम्मद नसीर की सन 2009 में कौर्डियक अटैक से मौत हो गई थी. उस के बाद परिवार की जिम्मेदारी आफरीन के 2 भाइयों पर आ गई थी.

परिवार में आफरीन, मां और 2 भाई थे. भाई चाहते थे कि आफरीन का जल्द से जल्द निकाह हो जाए. वैसे भी आफरीन शादी लायक हो चुकी थी. उस की पढ़ाई भी पूरी हो चुकी थी. भाई उस के लिए रिश्ता तलाश रहे थे. उसी बीच एक मैट्रीमोनियल वेबसाइट के माध्यम से अशहर वारसी और आफरीन में जानपहचान हुई.

अशहर वारसी मध्य प्रदेश के शहर इंदौर के रहने वाले थे. वह वकालत करते थे. जानपहचान हुई तो बात शादी की चली. अशहर ने आफरीन को देखा और आफरीन ने अशहर को. दोनों ही एकदूसरे को पसंद आ गए. इस के बाद घर वालों की रजामंदी से नातेरिश्तेदारों की मौजूदगी में रिश्ता तय हो गया.

रिश्ता तय होने पर आफरीन अपने सपनों के राजकुमार अशहर के साथ भविष्य के सपने बुनने लगी. अशहर जवान थे और खूबसूरत भी. आफरीन ने पहले ही तय कर लिया था कि वह किसी अच्छे पढ़ेलिखे लड़के से ही शादी करेगी. अशहर वकालत की पढ़ाई कर के प्रैक्टिस कर रहे थे.

सब कुछ ठीकठाक था, इसलिए आफरीन के भाई और मां इस बात से बेफिक्र थे कि नाजनखरों में पली उन की लाडली को ससुराल में कोई परेशानी नहीं होगी. आफरीन की मां को केवल इसी बात का दुख था कि आफरीन जयपुर से सैकड़ों किलोमीटर दूर इंदौर चली जाएगी.

मां की इस बात पर आफरीन के भाई यह कह कर उन्हें सांत्वना देते थे कि आजकल इतनी दूरी कुछ भी नहीं है. सुबह जा कर रात में जयपुर आया जा सकता है. अशहर के घर वाले चाहते थे कि निकाह धूमधाम से हो. उन की चाहत को देखते हुए आफरीन के भाइयों ने शादी की तैयारी शुरू कर दी.

बहन की शादी के लिए उन्होंने इधरउधर से कर्ज भी लिया. लेकिन भाइयों ने शादी 4 सितारा होटल में की. 24 अगस्त, 2014 को आफरीन रहमान और अशहर वारसी की शादी धूमधाम से हो गई. आफरीन की शादी में उस के भाइयों ने अपनी हैसियत से ज्यादा दहेज दिया, ताकि उन की बहन को ससुराल में कोई परेशानी न हो.

शादी के बाद आफरीन इंदौर चली गई. शुरुआती दिन हंसीखुशी में निकल गए. अशहर भी खुश था और आफरीन भी. आफरीन को अपने शौहर के वकील होने का फख्र था तो अशहर को भी अपनी बेगम के उच्च शिक्षित होने की खुशी थी. न तो आफरीन को कोई गिलाशिकवा था और ना ही अशहर को.

दोनों मानते थे कि पढ़ालिखा होने से वे अपनी जिंदगी को खुशहाल बना लेंगे. सब कुछ ठीकठाक चल रहा था. लेकिन आफरीन की खुशियां ज्यादा दिनों तक टिकी नहीं रह सकीं. शादी के 3-4 महीने बाद ही अशहर और उस के घर वालों का व्यवहार बदलने लगा. जो अशहर आफरीन से प्यारमोहब्बत की बातें करते नहीं थकता था, वह उसे आंखें तरेर कर बातें करने लगा.

ससुराल वालों का भी व्यवहार बदल गया था. वे दहेज और अन्य बातों को ले कर ताने मारने लगे थे. आफरीन समझ नहीं पा रही थीं कि यह सब क्यों होने लगा? मौका मिलने पर वह अशहर को समझाने की कोशिश करती, लेकिन अशहर समझने के बजाय उन्हें ही दोषी ठहराता.

आफरीन पढ़ीलिखी और समझदार थीं. वह जानती थीं कि इन बातों का परिणाम अच्छा नहीं होगा. वह भाइयों की स्थिति को भी जानती थीं. अब वे इस हालत में नहीं थे कि बहन की ससुराल वालों की दहेज की मांग पूरी कर सकते. वह यह भी जानती थीं कि अगर एक बार इन की दहेज की मांग पूरी भी कर दी गई तो क्या गारंटी कि ये आगे कुछ नहीं मांगेंगे. उन्हें परेशान नहीं करेंगे.

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यही सोच कर आफरीन ससुराल वालों के अत्याचार सहती रहीं. वह जब भी अकेली होतीं, उस समय को कोसती रहतीं, जब उन की अशहर से जानपहचान हुई थी. उन का सोचना था कि शायद कुछ दिनों में सब ठीक हो जाएगा. लेकिन वैसा कुछ नहीं हुआ. ससुराल वालों के अत्याचार लगातार बढ़ते ही गए. अब उन के साथ मारपीट भी होने लगी थी, जिसे वह यह सोच कर सहन करती रहीं कि एक न एक दिन यह सब ठीक हो जाएगा.

अशहर घर वालों के कहने पर चल रहा था. वह आफरीन से सीधे मुंह बात भी नहीं करता था. बात सिर से गुजरने लगी तो आफरीन ने अपनी परेशानी भाइयों को बताई. भाई इंदौर गए और अशहर तथा उस के घर वालों को समझाया. अपनी आर्थिक स्थिति भी बताई.

इस के बाद महीना, 15 दिन तक आफरीन के प्रति ससुराल वालों का रवैया ठीक रहा, पर इस के बाद फिर वे उसे परेशान करने लगे. यह सिलसिला इसी तरह चलता रहा. शादी के करीब एक साल बाद अगस्त, 2015 में अशहर और उस के घर वालों ने पैसे और कई तरह का अन्य सामान लाने की बात कह कर आफरीन से मारपीट की और उन्हें घर से धक्के मार कर निकाल दिया.

आफरीन सब के सामने गिड़गिड़ाती रहीं और कहती रहीं कि उन के भाइयों की इतनी हैसियत नहीं है कि वे उन की मांगें पूरी कर सकें. ससुराल वालों ने उन की एक भी बात नहीं सुनी. आफरीन क्या करती? वह जयपुर भाइयों के पास आ गईं. भाइयों ने अशहर और उन के घर वालों से बात की. नातेरिश्तेदारों से दबाव डलवाया.

आखिर 7-8 दिनों बाद आफरीन के ससुराल वाले आ कर उन्हें इंदौर ले गए. आफरीन भी यह सोच कर उन के साथ चली गईं कि शायद अब इन्हें अक्ल आ गई होगी. लेकिन जल्दी ही ससुराल में उन के साथ फिर वैसा ही व्यवहार होने लगा. अशहर और उन के घर वाले फिर दहेज की मांग करते हुए उन के साथ मारपीट करने लगे. ऐसा कोई दिन नहीं होता था, जिस दिन उन्हें ससुराल न मारा जाता रहा हो.

आफरीन ने एक बार फिर अशहर को समझाने की कोशिश की, लेकिन वह कुछ भी सुनने को तैयार नहीं था. सितंबर, 2015 में अशहर और उस के घर वालों ने एक बार फिर मारपीट कर आफरीन को घर से निकाल दिया. आंखों से आंसू लिए आफरीन एक बार फिर जयपुर स्थित अपने मायके आ गईं. आफरीन अपने भाइयों पर बोझ नहीं बनना चाहती थीं.

आफरीन पढ़ीलिखी थीं, इसलिए अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती थीं. जयपुर में वह नौकरी की तलाश करने लगीं. उसी बीच उन पर दुखों का एक और पहाड़ टूट पड़ा. अक्तूबर, 2015 में जयपुर से जोधपुर जाते समय सड़क दुर्घटना में आफरीन की मां की मौत हो गई. हादसे में उन्हें भी चोटें आई थीं.

आफरीन की ससुराल वालों को सूचना भेजी गई. अशहर जयपुर आया जरूर, लेकिन 2-3 दिन रुक कर चला गया. उस ने आफरीन को ले जाने की बात एक बार भी नहीं की. आफरीन के भाइयों ने कहा भी तो उस ने कोई जवाब नहीं दिया. आफरीन जयपुर में रहते हुए अपने भविष्य के बारे में सोच रही थीं.

कभीकभी उन्हें लगता था कि सब कुछ ठीक हो जाएगा. अशहर को जिस दिन उस की अहमियत का अहसास होगा, वह जयपुर आ कर उसे ले जाएगा. लेकिन उन का यह सोचना केवल मन को तसल्ली देने वाली बात थी. जयपुर में रहते हुए आफरीन को पता नहीं था कि उस के शौहर अशहर के मन में क्या चल रहा है? जनवरी, 2016 के आखिरी सप्ताह में स्पीडपोस्ट से अशहर का भेजा तलाकनामा आ गया.

तलाकनामा में 3 बार लिखे ‘तलाक…तलाक…तलाक…’ को पढ़ कर आफरीन की आंखों में आंसू आ गए. वह सोचने लगीं कि अब क्या किया जाए? उन्होंने अपने भाइयों तथा मिलनेजुलने वालों से राय ली. सभी ने उन की हिम्मत बढ़ाई. वह कुछ महिला संगठनों, मुसलिम संगठनों एवं वकीलों से मिलीं. आखिर उन्होंने 3 तलाक के सिस्टम को ही सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का फैसला किया.

इस बीच, अप्रैल 2016 में आफरीन के बड़े भाई फहीम की दुर्घटना में मौत हो गई. एक तरफ आफरीन का विवाह टूट रहा था और दूसरी ओर 7 महीने के अंदर मां और बड़े भाई की हादसों में हुई मौत ने उन्हें तोड़ कर रख दिया था. परिवार में भाभी और एक छोटा भाई ही बचा था.

इस के बावजूद आफरीन ने अपना दिल कड़ा किया. 3 तलाक के खिलाफ अपने वकील के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी. सुप्रीम कोर्ट ने मई, 2016 में आफरीन की यह याचिका स्वीकार कर ली.

3 तलाक के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने वाली आफरीन देश की दूसरी महिला थीं.

इस से पहले उत्तराखंड के काशीपुर की शायरा बानो ने फरवरी, 2016 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर 3 तलाक और बहुविवाह को खत्म करने का आग्रह किया था.

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आफरीन का कहना है कि 3 तलाक पूरी तरह से नाइंसाफी है. उन की तलाक की इच्छा थी या नहीं, यह उन से एक बार भी नहीं पूछा गया. इस तरह चिट्ठी के जरिए तलाक देना अपने आप में क्रूरता है. इस तरह तलाक दे कर महिलाओं के अधिकारों और इच्छाओं को पूरी तरह नजरअंदाज किया जाता है. सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद अब आफरीन पति से मेहर की रकम और गुजारा भत्ता चाहती हैं.

दर्द के दरिया में डूबी मुमताज

उत्तर प्रदेश के झांसी के थाना सीपरी के इलाके की आवास विकास कालोनी की रहने वाली मुमताज बेगम का निकाह 21 दिसंबर, 2003 को वहीं के रहने वाले वारिस उज्जमा के साथ हुआ था. शादी के बाद वह जल्दी ही गर्भवती भी हो गई. लेकिन उस के पति और ससुराल वालों ने कहना शुरू कर दिया कि उन्हें बेटा चाहिए.

जब दिसंबर, 2004 में मुमताज बेटी की मां बनी तो उस पर मुसीबतें टूट पड़ीं. उत्पीड़न के साथ पति और ससुराल वाले उस पर यह कह कर मायके से 5 लाख रुपए लाने के लिए दबाव डालने लगे कि उस की बेटी मायके की है. उस की शादी के लिए पैसे की जरूरत पड़ेगी.

बात बेटी की शादी बचाने की थी. पूरा हालहवाल जान कर मायके वालों ने यह कह कर कि जब बेटी बड़ी हो जाए तो प्लौट बेच कर उस की शादी कर दी जाएगी. मुमताज के नाम एक प्लौट की रजिस्ट्री करा दी गई. कुछ समय शांति रही. इस बीच मुमताज एक बेटे और एक बेटी की मां बनी. इस के बावजूद फिर से मुमताज के साथ बदसलूकी शुरू हो गई. मारपीट भी होने लगी.

जल्दी ही वह दिन भी आ गया, जब 3 तलाक कह कर वारिस उज्जमा ने उसे घर से निकाल दिया. बाद मे उस ने बाकायदा लिख कर शरिया हिसाब से उसे तलाक दे दिया.

मुमताज ने समाज के ठेकेदारों से न्याय दिलाने की मांग की. मुसलिम पर्सनल लौ बोर्ड  से संबंद्ध अदालत के काजी (जज) से संपर्क किया.  लेकिन सब ने एक ही बात कही कि यह धर्म का मामला है, तलाक हो चुका है. इसलिए कुछ नहीं किया जा सकता. औल इंडिया पर्सनल लौ बोर्ड से संबंद्ध दारुल कजा शरई अदालत के मुफ्ती सिद्दीकी नकवी ने कहा कि बेशक तलाक का तरीका गलत है, पर तलाक तो हो ही गया है, इसलिए कुछ नहीं किया जा सकता.

अब सर्वोच्च न्यायालय का फैसला आने के बाद मुमताज को न्याय मिल सकेगा. अभी तक वह न्याय के लिए धर्म के ठेकेदारों के पास भटकती रही, जिन्होंने उसे दिलाशा देना तक उचित नहीं समझा.

बीवी ने मरवाया अमीर पति को – भाग 4

अपनी योजना के मुताबिक पूनम अपने बच्चों के साथ 29 जनवरी, 2023 की सुबह बिंदकी कस्बा वाले घर आ गई. पूनम अपने प्रेमी अविनाश के संपर्क में थी और अमित की हर गतिविधि की जानकारी उसे मोबाइल फोन पर दे रही थी.

दिन कोलाहल में बीत गया. रात 8 बजे पूनम ने पति अमित व बच्चों के साथ खाना खाया. इस बीच पूनम ने किसी को आभास नहीं होने दिया कि वह कितने खतरनाक मंसूबे ले कर मुंबई से आई है.

खाना खाने के बाद पूनम मकान दूसरी मंजिल पर पहुंची. वहां एक कमरे में उस ने 10 वर्षीय बेटे व 8 वर्षीया बेटी को लिटा दिया तथा दूसरे कमरे में पूनम अमित के साथ लेट गई. कुछ देर बाद अमित तो खर्राटे मार कर सो गया, लेकिन पूनम की आंखों से नींद कोसों दूर थी.

पूनम फोन पर अविनाश के संपर्क में थी. रात 12 बजे के बाद शेरा अपने साथी केशव, मोहित, शीलू व अंशुल के साथ लोडर पर सवार हो कर आ गए और अमित के घर के आसपास छिप गए.

अविनाश व रामखेलावन पहले ही बाइक से पहुंच गए थे और रेकी कर रहे थे. रात एक बजे पूनम दूसरी मंजिल से उतर कर नीचे आई. उस ने मुख्य दरवाजा धीरे से खोल कर अपने जीजा रामखेलावन व प्रेमी अविनाश को घर के अंदर कर लिया.

अविनाश ने फोन कर सुपारी किलर अंकित उर्फ शेरा तथा उसके साथियों को भी घर के अंदर बुला लिया. फिर सधे कदमों से सभी दूसरी मंजिल पर पहुंच गए, जहां अमित गहरी नींद सो रहा था.

अंकित सिंह उर्फ शेरा ने अपने बैग से लोहे का छोटा सब्बल निकाला और अमित के सिर पर भरपूर वार किया. अमित चीख न सके, इसलिए मोहित, अंशुल ने उस का मुंह दबोच लिया और शीलू तथा अविनाश ने पैर दबोच लिए. पूनम पति की छाती पर सवार हो गई. शेरा ने जहां अमित के सिर पर कई प्रहार किए, वहीं केशव ने नुकीली चीज से अमित का गला छेद डाला. अमित कुछ देर तड़पा, उस के बाद ठंडा हो गया.

अमित की हत्या के बाद शेरा और उस के साथी तो फरार हो गए, लेकिन पूनम का जीजा व प्रेमी अविनाश कुछ देर तक कमरे में रुके रहे. उन्होंने पूनम के हाथ रस्सी से बांधे फिर दरवाजे की कुंडी बाहर से लगा कर वे दोनों भी फरार हो गए.

सुबह 4 बजे पूनम जोरजोर से चीखने लगी और दरवाजा पीटने लगी. उस की आवाज सुन कर सास माधुरी देवी व ननद अनीता पूनम के कमरे के बाहर पहुंचीं. दरवाजे की कुंडी बाहर से लगी थी.

कुंडी खोल कर दोनों कमरे के अंदर पहुंचीं तो उन के मुंह से चीख निकल गई. सामने पलंग पर अमित की लाश खून से लथपथ पड़ी थी. माधुरी ने बहू के हाथ से रस्सी खोली और पूछा, ‘‘अमित की हत्या किस ने की?’’

पूनम रोते हुए बोली, ‘‘सासू मां, मुझे पता नहीं कि उन की हत्या किस ने की. कुछ लोग आए, उन्होंने इन के सिर पर वार कर मार डाला. विरोध करने पर उन्होंने मेरे हाथ बांध दिए और दरवाजे की कुंडी बाहर से बंद कर फरार हो गए.’’

अमित का शव देख कर मांबेटी पछाड़ें मार कर रो पड़ीं. दूसरे कमरे में सो रहे बच्चे सुरक्षित थे.

पुलिस जांच में पूनम आई निशाने पर

सुबह का उजाला फैलते ही अमित की हत्या की खबर जंगल की आग की तरह पूरे बिंदकी कस्बे में फैल गई. कुछ देर में वहां भीड़ जुट गई. थाना बिंदकी पुलिस को खबर लगी तो एसएचओ शमशेर बहादुर सिंह भारी पुलिस बल के साथ महाजनी गली में अमित गुप्ता के मकान पर पहुंच गए.

उन की सूचना पर कुछ ही देर बाद एसपी राजेश कुमार सिंह व सीओ परशुराम भी आ गए. उन्होंने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया और मृतक की मां व पत्नी से पूछताछ की. घटनास्थल पर मृतक का ममेरा भाई अभय मौजूद था.

पुलिस अधिकारियों ने अभय से पूछताछ की तो उस ने बताया कि नानी ने उसे फोन पर बताया था कि अमित की किसी ने हत्या कर दी है. तब वह यहां आया. उसे शक है कि अमित की हत्या में उस की पत्नी पूनम का हाथ है. मृतक की मां माधुरी देवी ने भी पूनम पर ही शक जाहिर किया.  मृतक के 10 साल के बेटे ने भी बताया कि मम्मीपापा में अकसर लड़ाई होती रहती थी. पुलिस अधिकारियों ने पूनम से पूछताछ की तो वह आंसू बहाने लगी. बारबार बयान भी बदल रही थी. शक होने पर पुलिस ने पूनम को हिरासत में ले लिया और शव को निरीक्षण के बाद पोस्टमार्टम हाउस फतेहपुर भेज दिया.

थाना बिंदकी पर पुलिस अधिकारियों ने जब पूनम से सख्ती से पूछताछ की तो वह टूट गई और पति की हत्या करने की बात कुबूल कर ली. उस ने हत्यारों के नाम भी बता दिए.

हत्या का भेद खुलते ही पुलिस ने ताबड़तोड़ छापा मार कर अंकित सिंह उर्फ शेरा और उस के साथी केशव व अंशुल को गिरफ्तार कर लिया. भोर पहर में साड़ चौराहे से पूनम के प्रेमी अविनाश उर्फ उमेंद्र को भी गिरफ्तार कर लिया लेकिन पूनम का जीजा रामखेलावन, मोहित तथा शीलू पुलिस को चकमा दे कर फरार हो गए. गिरफ्तार किए गए सभी आरोपियों ने हत्या का जुर्म कुबूल किया.

हत्यारोपियों की निशानदेही पर पुलिस ने आलाकत्ल लोहे का सब्बल मय बैग, 315 बोर के 2 तमंचे, 2 जिंदा कारतूस, 3 अदद मोबाइल फोन, 2 बाइकें, एक पिकअप (लोडर) यूपी78 एफटी 8157 तथा 30 हजार रुपया नकद बरामद किया.

अमित हत्याकांड का खुलासा होते ही एसपी राजेश कुमार सिंह ने पुलिस लाइन में प्रैसवार्ता की और केस की पूरी जानकारी दी.

एसएचओ शमशेर बहादुर सिंह ने मृतक की मां माधुरी देवी को वादी बना कर धारा 302 आईपीसी के तहत पूनम, अविनाश उर्फ उमेंद्र, रामखेलावन, अंकित सिंह उर्फ शेरा, मोहित, अंशुल, केशव व शीलू के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली.

3 फरवरी, 2023 को सभी आरोपियों को फतेहपुर की जिला अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

कथा लिखने तक शीलू, मोहित व रामखेलावन फरार थे. पुलिस उन को तलाश रही थी. मृतक के दोनों बच्चे अपनी दादी के संरक्षण में थे.       द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

दर्द ने बढ़ाया हौसला

खूबसूरत आतिया साबरी एक अजीब सजा से रूबरू हो रही थी. शौहरबीवी के रिश्तों के उस के जज्बातों पर वक्त के साथ बंदिश लग चुकी थी. यह रिश्ता अब ऐतबार के काबिल भी नहीं रह गया था. रिश्तों की डोर पूरी तरह टूट चुकी थी और जिंदगी गमजदा हो गई थी. लेकिन वह अपनी 2 मासूम बेटियों की मुसकराहटों व शरारतों से खुश हो कर गम को हलका करने की कोशिश करती थी.

21 अगस्त, 2017 की शाम को आतिया के चेहरे पर भले ही चिंता की लकीरें थीं, लेकिन आंखों में उम्मीदों के चिराग रोशन थे. उसे देख कर पिता मजहर हसन ने बेटी के नजदीक आ कर पूछा, ‘‘क्यों परेशान है आतिया? तेरे इरादे नेक हैं और तू इंसाफ के लिए लड़ रही है. देखना तुम लोगों की मुहिम जरूर रंग लाएगी.’’

‘‘सोचती तो मैं भी यही हूं. आप तो जानते हैं, यह लड़ाई मैं सिर्फ अपने लिए नहीं, बल्कि उन बहनों के लिए भी लड़ रही हूं, जो 3 तलाक के बाद जिल्लत की जिंदगी जी रही हैं. मैं सोचती हूं कि किसी को भी तलाक का ऐसा दर्द न झेलना पड़े.’’

‘‘जो होगा, ठीक ही होगा. बस, उम्मीद का दामन थामे रहो.’’ मजहर ने बेटी को समझाया तो आतिया की आंखों में चमक आ गई.

‘‘मुझे पूरी उम्मीद है अब्बू, अदालत औरतों के हक में फैसला दे कर इस 3 तलाक से निजात दिला देगी. कल का दिन शायद मेरे लिए खुशियां ले कर आए.’’ आतिया ने आत्मविश्वास भरे लहजे में कहा.

अब्बू से थोड़ी देर बात कर के आतिया सोने के लिए अपने कमरे में चली गई. उस की 2 मासूम बेटियां सादिया व सना तब तक सो चुकी थीं.

आतिया उत्तर प्रदेश के शहर सहारनपुर के नई मंडी कोतवाली के मोहल्ला आली की रहने वाली थी. वह तलाक पीडि़ता थी और उस ने इंसाफ के लिए देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर रखी थी. वह देश की उन 5 मुसलिम महिलाओं में से एक थी, जो 3 तलाक के खिलाफ जंग लड़ते हुए सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गई थीं.

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उन के मामलों पर लंबी सुनवाई हुई थी और फैसले के लिए 22 अगस्त की तारीख तय की गई थी. 5 जजों की संविधान पीठ को मुसलिम धर्म में शरीयत कानून के तहत दिए जाने वाले 3 तलाक पर फैसला सुनाना था. इस तरह के तलाक के खिलाफ देशभर में मुसलिम महिलाओं की लगातार आवाजें उठ रही थीं.

अगले दिन अदालत ने अपना फैसला सुनाया तो आतिया और उस के परिवार की खुशियों का ठिकाना नहीं रहा. अदालत ने अपने ऐतिहासिक फैसले में 3 तलाक की 14 सौ साल पुरानी प्रथा को संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन करार देते हुए खारिज कर दिया था. जजों की संविधान पीठ ने इस प्रथा को कुरान-ए-पाक के बुनियादी सिद्धांतों के खिलाफ और शरीयत कानून का उल्लंघन बताया.

आतिया को इसलिए और भी खुशी हुई थी, क्योंकि वह भी इस लड़ाई का एक हिस्सा थी. दरअसल, उस की जिंदगी दुख के पहाड़ से टकराई थी. उस ने कभी सोचा भी नहीं था कि जिस शख्स को ताउम्र उस का साथ देना था, वह एक दिन उसे अकेला छोड़ देगा. आतिया अपनी मां मुन्नी व 3 बड़े भाइयों की लाडली थी.

आतिया विवाह के लायक हुई तो उस के घर वालों को उस के विवाह की चिंता हुई. वे चाहते थे कि उस का विवाह किसी अच्छे घर में हो, ताकि उस की जिंदगी खुशियों से आबाद रहे. उस के पिता मजहर मूलरूप से हरिद्वार जिले के सुलतानपुर गांव के रहने वाले थे. करीब 25 साल पहले वह सहारनपुर आ कर बस गए थे. उन के नातेरिश्तेदार वहीं आसपास रहते थे.

मजहर मियां ने रिश्ते की तलाश भी वहीं शुरू कर दी. खोजबीन के बाद उन्होंने बेटी का रिश्ता हरिद्वार के खानपुर थाना क्षेत्र के गांव जसोदरपुर निवासी सईद अहमद के बेटे वाजिद अली के साथ तय कर दिया. सारी बातें तय होने के बाद 25 मार्च, 2012 को उन्होंने आतिया का निकाह वाजिद के साथ कर दिया.

निकाह के बाद आतिया की जिंदगी खुशियों से भर गई. उस ने अपने भविष्य को ले कर तमाम ख्वाब देखे थे. एक साल बाद उस ने बेटी को जन्म दिया. यह उस का पहला बच्चा था. इस से सभी को खुश होना चाहिए था, लेकिन आतिया को पहली बार अहसास हुआ कि बेटी के जन्म से न सिर्फ उस का पति, बल्कि ससुराल के अन्य लोग भी खुश नहीं थे. वे लोग बेटे के ख्वाहिशमंद थे.

आतिया ससुराल वालों के रवैये पर हैरान तो थी, लेकिन उस ने सोचा कि यह सब वक्ती बातें हैं, जो वक्त के साथ खत्म हो जाएंगी. एक साल कब बीत गया, पता ही नहीं चला. आतिया दोबारा गर्भवती हुई. इस बार उस के ससुराल वालों को भरोसा था कि बेटा ही होगा. एक दिन वाजिद ने कहा भी, ‘‘मुझे उम्मीद है कि इस बार तुम बेटे को ही जन्म दोगी?’’

उस की बात सुन कर आतिया को हैरानी हुई. उस ने जवाब में कहा, ‘‘तुम जानते हो वाजिद, यह सब इंसान के हाथ में नहीं होता. लड़का हो या लड़की मैं दोनों में कोई फर्क महसूस नहीं करती. बच्चे गृहस्थी के आंगन के फूल होते हैं.’’

उस की बात पर वाजिद ने नाखुशी जाहिर करते हुए कहा, ‘‘तुम्हारी सोच चाहे जो भी हो, लेकिन मैं बेटे की ख्वाहिश रखता हूं.’’

आतिया बहस नहीं करना चाहती थी. लिहाजा वह खामोश हो गई. लेकिन वह मन ही मन परेशान थी कि यह किस तरह की सोच है, जो बेटियों से परहेज किया जाता है. अपने शौहर की सोच उसे अच्छी नहीं लगी.

सन 2015 में आतिया ने एक और बेटी को जन्म दिया. इस पर उस की ससुराल में जैसे तूफान आ गया. कोई भी इस बात से खुश नहीं था. न उस का शौहर और न उस के घर वाले. आतिया ने सोचा कि वक्त के साथ सब ठीक हो जाएगा, लेकिन यह उस की भूल थी. सभी लोग उसे ताना मारने लगे. उन के तेवर भी बदल चुके थे.

इस के बाद ससुराल वाले दहेज को ले कर भी आतिया को ताना देने लगे थे. आतिया को सब से बड़ा झटका उस दिन लगा, जब वाजिद ने उस से तल्ख लहजे में कहा, ‘‘बेटी को जन्म दे कर तूने मेरे कंधे झुका दिए हैं.’’

उस की बात पर आतिया को गुस्सा आ गया. उस ने पलट कर जवाब दिया, ‘‘कैसी बात कर रहे हैं आप? कहीं अपने बच्चों के जन्म से भी किसी के कंधे झुकते हैं? आप को खुश होना चाहिए कि 2 बेटियों के पिता हैं. हम इन्हें पढ़ालिखा कर काबिल बनाएंगे.’’

‘‘यह सब ख्याली बातें हैं आतिया, तुम मेरी बात नहीं समझोगी.’’

‘‘मैं आप की सारी बातें समझती हूं.’’ आतिया ने भी तल्खी से जवाब दिया.

‘‘तुम्हें जो सोचना है, सोचती रहो. लेकिन सच यह है कि सिर बेटों से ही ऊंचा होता है.’’

आतिया की सोच और भावनाओं का किसी पर कोई असर नहीं हुआ. फलस्वरूप वक्त के साथ घर में कलह बढ़ती गई. पति की तानेबाजियों ने तल्खियों को और भी बढ़ा दिया. छोटीछोटी बातों पर कई बार विवाद बढ़ता तो आतिया के साथ मारपीट भी हो जाती. पानी सिर से ऊपर जाने लगा था.

आतिया ने ये बातें अपने मायके वालों को बताईं तो उन्होंने उसे सब्र से काम लेने की सलाह दी. लेकिन जब यह आए दिन की बात हो गई तो आतिया के मातापिता ने जा कर वाजिद व उस के घर वालों को समझाने की कोशिश की. इस से कुछ दिनों तक तो सब ठीक रहा, लेकिन जल्दी ही जिंदगी फिर से पुराने ढर्रे पर आ गई.

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धीरेधीरे आतिया की परेशानियों का सिलसिला बढ़ता गया. 12 नवंबर, 2015 को आतिया के साथ हद दर्जे तक मारपीट की गई. उस की तबीयत खराब होने लगी तो उसे उस के हाल पर छोड़ दिया गया. उसे यहां तक कह दिया गया कि वह चाहे तो ससुराल छोड़ कर जा सकती है.

अब आतिया को अपनी जान का खतरा महसूस होने लगा था. उसे जहर दे कर मारने की साजिश की जा रही थी. इसलिए अगले दिन वह दोनों बेटियों के साथ मायके चली आई. उस की हालत देख कर घर में सभी को धक्का लगा. आतिया ने आपबीती सुनाई तो उन्हें लगा कि बेटी जिंदा बच गई, यही बड़ी बात है.

आतिया को अस्पताल में भर्ती करा दिया गया. वह मानसिक व शारीरिक कमजोरी से उबर आई तो उसे अस्पताल से छुट्टी दे दी गई. आतिया के साथ ज्यादती हुई थी, इसलिए उस ने पुलिस में जाने का मन बना लिया. ऐसा ही उस ने किया भी. उस ने स्थानीय थाने में अपनी ससुराल वालों के खिलाफ मारपीट व दहेज उत्पीड़न की तहरीर दे दी.

चंद रोज ही बीते थे कि आतिया की जिंदगी में भूचाल आ गया. वाजिद ने 10 रुपए के स्टांप पेपर पर लिख कर तलाकनामा भिजवा दिया. तलाक की तारीख 2 नवंबर लिखी गई थी. दरअसल, ससुराल पक्ष के लोगों को पता चल चुका था कि आतिया पुलिस में शिकायत दर्ज करा रही है, इसलिए उन्होंने चालाकी बरतते हुए तारीख पहले की लिखी थी.

आतिया को उम्मीद नहीं थी कि नौबत यहां तक आ जाएगी. वह महिलाओं को तलाक देने की मुसलिम धर्म की इस परंपरा के खिलाफ थी. वाजिद ने बेटियां पैदा होने और दहेज के लिए उसे सताया और फिर छुटकारा पाने के लिए एकतरफा तलाक भी भेज दिया.

धार्मिक कानून ऐसे तलाक को मान्यता देता था, इसलिए आतिया चाह कर भी कुछ नहीं कर सकती थी. जबकि वह इस तरह की तलाक प्रक्रिया के खिलाफ थी. मामूली बातों पर दिए जाने वाले तलाक के किस्से वह सुनती आई थी. सारे हक मर्द के पास थे. वह जब चाहे, बीवी को अपनी जिंदगी से निकाल सकता था.

आतिया ने सोच लिया था कि वह खामोश नहीं बैठेगी, बल्कि अपने उत्पीड़न और तलाक के खिलाफ आवाज उठाएगी. उधर पुलिस ने उस की तहरीर के आधार पर मुकदमा दर्ज कर लिया. दिसंबर महीने में पुलिस ने आतिया के पति व ससुर को गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया. आतिया ने दोनों मासूम बेटियों में खुशियां ढूंढीं और तलाक को चुनौती देने की ठान ली.

आतिया का एक भाई रिजवान सामाजिक कार्यकर्ता था और फरीदी विकास समिति नामक संस्था चलाता था. उस ने भी इस लड़ाई में आतिया का साथ दिया. आतिया तलाक के खिलाफ थी, यह बात नातेरिश्तेदारों और समाज के लोगों को पता चली तो उन्होंने उसे मजहब का वास्ता दे कर समझाया. लेकिन आतिया उन की बात मानने को तैयार नहीं थी.

आतिया के मातापिता व घर वालों को भी लोगों ने समझाने की कोशिश की. लेकिन उन की नजर में आतिया कुछ गलत नहीं कर रही थी. उस की जिंदगी जिस तरह दोराहे पर आ गई थी, उस से वह भी आहत थे और इंसाफ चाहते थे.

आतिया ने ऐसी महिलाओं से मिलना शुरू किया, जो तलाक पीडि़ता थीं. उन की कहानियां उसे विचलित कर जाती थीं. उस ने मुसलिमों के बड़े धार्मिक केंद्र दारुल उलूम देवबंद में पति के तलाक के खिलाफ अर्जी लगाई. लेकिन उन्होंने तलाक को जायज ठहराया और धार्मिक कानून का हवाला भी दिया.

दरअसल, वाजिद वहां से अपने दिए तलाक के बारे में पहले ही फतवा ले चुका था. इस के बावजूद आतिया यह सब मानने को तैयार नहीं थी. क्योंकि उसे धोखे से तलाक दिया गया था. सारे हक एकतरफा थे यानी उस की रजामंदी के कोई मायने नहीं थे.

खास बात यह थी कि वाजिद इस बीच दूसरा निकाह भी कर चुका था. जब दारुल उलूम देवबंद से भी उसे निराशा मिली तो उस ने समाज से टकराते हुए 3 तलाक की परंपरा को बदलने के लिए न्यायालय की दहलीज तक पहुंचाने का मंसूबा बना लिया. 3 तलाक का मुद्दा देश के कई हिस्सों में बहस को जन्म दे रहा था और मुसलिम महिलाएं इस परंपरा के खिलाफ खड़ी हो रही थीं.

आतिया ने दिसंबर, 2016 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाल दी, जिसे स्वीकार कर लिया गया. 3 तलाक एक बड़ा मुद्दा बना ही हुआ था और कुछ याचिकाएं पहले से ही अदालत में थीं. देश के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ था, जब मुसलिम महिलाओं ने 3 तलाक के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाया था.

सुनवाई पर आतिया अदालत जाती रही. 3 तलाक का मामला चूंकि संवेदनशील और धार्मिक था, इसलिए सुनवाई के लिए अलगअलग धर्म के 5 जजों का समूह बना कर उन्हें 3 तलाक की सुनवाई और फैसले का जिम्मा दिया गया. इस के बाद ही अदालत ने सभी मामलों को जोड़ कर एक साथ सुनवाई कर के 22 अगस्त को फैसला सुना दिया.

आतिया कहती है कि अदालत के फैसले के बाद मुसलिम महिलाओं के लिए आजादी के दरवाजे खुल गए हैं. मामूली बातों पर भी तलाक को हथियार बना कर औरत से छुटकारा पाने की मनमानी वाली मानसिकता से उन्हें निजात मिलेगी और उत्पीड़न बंद होगा.

आतिया अपने पिता के घर रह रही है. वह अपनी बेटियों को पढ़ालिखा कर आगे बढ़ाना चाहती हैं. उस के पिता कहते हैं, ‘मैं ने बेटी के दर्द को करीब से महसूस किया है. समाज में किसी और बेटी के साथ नाइंसाफी न हो, इस लड़ाई का यही मकसद था.’

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अगले दिन ही तलाक

झारखंड के हजारीबाग में एक गांव है चितरपुर. 8 जून, 2012 को इस गांव की फातिमा सुरैया का निकाह बादमगांव के कैफी आलम से हुआ था.

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फातिमा का कहना है कि निकाह के समय 2 लाख रुपए नकद, 6 लाख रुपए के जेवरात और 2 लाख रुपए का अन्य सामान दहेज में दिया गया था. शादी के एक साल बाद फातिमा एक बेटी की मां बनी. उस के जन्म के 6 माह बाद फातिमा से कहा गया कि वह अपने मायके से 5 लाख रुपए लाए, उसे जमीन खरीदनी है.

वह पैसा लाई भी, लेकिन कैफी आलम ने जमीन अपने नाम खरीद ली. इस के कुछ दिनों बाद वह फातिमा के मायके वालों से 2 लाख रुपए की और मांग करने लगा. पैसे नहीं मिले तो ससुराल वाले सुरैया को प्रताडि़त करने लगे. सुरैया फिर भी सहती रही.

23 अगस्त को सब कुछ ठीक था. सुबह को सुरैया ने पति के साथ नाश्ता भी किया. लेकिन शाम को वह घर आया तो अचानक तीन बार तलाक कह कर उसे बेटे के साथ घर से निकाल दिया, साथ ही कहा भी, ‘थाना कोर्टकचहरी जहां भी जाना हो, जाओ.’

सुरैया अपने मायके चली गई. मायके वालों ने कैफी और उस के घर वालों को समझाने की काफी कोशिश की. लेकिन बात नहीं बनी. वे लोग रांची के अंजुमन कमेटी में गए, लेकिन कमेटी ने 20 दिनों बाद निर्णय लेने की बात कही.

आखिर सुरैया ने थाना कड़कागांव में अपने ससुर फकरे आलम, सास रोशन परवीन, ननद सुबैया आलम और ननदोई परवेज मलिक के खिलाफ दहेज के लिए प्रताडि़त करने की रिपोर्ट दर्ज करा दी. फैसला तो एक दिन पहले ही आ गया था. अब शायद सुरैया को राहत मिले.

3 तलाक के चक्कर में जान तक लगा दी दांव पर

जिला बरेली के आंवला क्षेत्र के गांव कुड्डा की रहने वाली 3 तलाक पीडि़ता अजरुन्निसा जिल्लत की जिंदगी से इतनी तंग आ गई थी कि 12 मई, 2017 को उस ने जिलाधिकारी कार्यालय के बाहर आत्मदाह की कोशिश की. उस ने अपने ऊपर मिट्टी का तेल डाल लिया था, गनीमत यह रही कि आग लगाने से पहले वहां मौजूद सिपाहियों ने उसे बचा लिया.

घटना से 4 महीने पहले ही अजरुन्निसा का निकाह बरेली के सीबीगंज निवासी तौफीक से हुआ था. शादी के बाद से तौफीक उस पर गलत काम के लिए दबाव डाल रहा था. वह नहीं मानी तो तौफीक उस के साथ मारपीट करने लगा. इस से भी उस का मन नहीं भरा तो शादी के 2 महीने बाद उस ने 3 बार तलाक कह कर अजरुन्निसा को घर से निकाल दिया.

इस के बाद अजरुन्निसा ने न्याय के लिए थाने से ले कर अधिकारियों तक के यहां गुहार लगाई. धर्म के ठेकेदारों के पास भी गई, पर हर जगह निराशा ही मिली. अंतत: उस ने आत्मदाह करने का फैसला किया. बहरहाल, वह बच तो गई, पर उसे न्याय कहीं से नहीं मिला. सर्वोच्च न्यायालय का फैसला आने के बाद भी वह न्याय की मुंतजिर है.