बिना तलाक के तलाकशुदा – भाग 2

दोस्तों की इस बात से आसिफ ने खुद को काफी अपमानित महसूस किया. उसे लगा कि शबाना से निकाह कर के उस ने बहुत बड़ी गलती की थी. उस दिन के बाद से आसिफ शबाना से उखड़ाउखड़ा रहने लगा. उसे शबाना में हजार कमियां नजर आने लगीं. बातबात में वह उस की पिटाई करने लगा. उस की इस पिटाई से शबाना का 2 बार गर्भपात हो गया.

शबाना परेशान थी कि इस तरह पिटते हुए जिंदगी कैसे बीतेगी? पति का व्यवहार काफी तकलीफ देने वाला था. परेशान हो कर उस ने पिता को फोन कर दिया कि दिल्ली आ कर वह उसे ले चलें. समरुद्दीन दिल्ली पहुंचे और शबाना को एटा ले गए. घर पहुंच कर शबाना ने मांबाप को पति द्वारा प्रताडि़त करने की सारी बात बता दी.

अब तक समरुद्दीन को कहीं से पता चल चुका था कि शादी से पहले आसिफ किसी शादीशुदा औरत को भगा ले गया था. पुलिस ने उसे चंडीगढ़ में गिरफ्तार किया था. लेकिन आसिफ के नाना इसलाम ने किसी तरह से उसे जेल जाने से बचा लिया था. उस के बाद आननफानन में शबाना से उस का निकाह करा दिया गया था. इस से समरुद्दीन को लगा कि उस के साथ धोखा हुआ है.

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आसिफ मोटी बीवी शबाना से छुटकारा पाने के बारे में सोचने लगा. कुछ दिनों बाद वह शबाना को ले आया. शबाना एक बार फिर गर्भवती हो गई. घर वाले बेटा होने की उम्मीद कर रहे थे. शबाना को लगा कि अगर बेटा न हुआ तो उस पर होने वाले अत्याचार बढ़ जाएंगे. समय पर शबाना को बेटा ही हुआ, लेकिन वह दिव्यांग था. उस का नाम आतिश रखा गया.

दिव्यांग बेटा पैदा होने की वजह से शबाना पर होने वाले अत्याचार बढ़ गए थे. सास ने कह दिया था कि दिव्यांग बच्चे पैदा करने वाली बहू के साथ उस के बेटे का कोई भविष्य नहीं है. अब वह अपने बेटे के लिए चांद सी बहू लाएगी.

‘‘तो फिर मेरा क्या होगा अम्मी?’’ शबाना ने पूछा तो अफसरी ने कहा, ‘‘तुझे तलाक दे देगा और क्या होगा. मेरा बेटा मर्द है, जवान है, 4-4 शादियां कर सकता है.’’

‘‘नहीं, यह गलत है.’’ शबाना ने कहा तो अफसरी ने आसिफ से कहा, ‘‘तोड़ दे इस के हाथपैर. अब यह हमें बताएगी कि क्या गलत है और क्या सही है.’’

आसिफ जानवरों की तरह शबाना पर टूट पड़ा. इस के बाद बातबात पर उस की पिटाई होने लगी. शबाना समझ नहीं पा रही थी कि वह अब क्या करे? दिव्यांग बेटा पैदा होने के बाद आसिफ बेलगाम हो गया था. अलीदराज और अफसरी अकसर फैक्ट्री में रहते थे. ऐसे में आसिफ बाजारू लड़कियों को घर ला कर शबाना के सामने ही कमरे में बंद हो जाता था. विरोध करने पर उस की पिटाई करता और उसे घर से निकाल देने की धमकी देता.

आसिफ शबाना को इतना परेशान कर देना चाहता था कि वह खुद ही घर छोड़ कर चली जाए. क्योंकि उस के लिए दूसरी बीवी की तलाश शुरू हो गई थी.

आसिफ अपने दोस्तों को घर बुला कर उन के साथ शराब पीता. उस के दोस्तों ने नशे में एक दो बार शबाना से छेड़छाड़ भी की. शबाना ने इस बात की शिकायत आसिफ से की तो उस ने कहा, ‘‘अगर तू मेरे दोस्तों के साथ सो जाएगी तो तेरा क्या बिगड़ जाएगा.’’

पति इतना गिर सकता है, शबाना ने सोचा भी नहीं था. शौहर की हरकतें बरदाश्त से बाहर होती जा रही थीं. शबाना समझ गई कि आसिफ उस से छुटकारा पाना चाहता है. वह बुरी तरह फंसी हुई थी. वह कुछ कर भी नहीं सकती थी. संयोग से उसी बीच वह गर्भवती हो गई. इस की जानकारी होते ही आसिफ ने कहा, ‘‘तुझे यह बच्चा गिरवाना होगा, वरना तू फिर से दिव्यांग बच्चे को जन्म देगी. हमें तो स्वस्थ बेटा चाहिए.’’

शबाना ने पति को बहुत समझाया, पर वह अपनी जिद पर अड़ा रहा. शबाना पिता को बुला कर उन के साथ मायके चली गई. वह ससुराल के बजाय मायके में ही बच्चे को जन्म देना चाहती थी. लेकिन अफसरी और आसिफ ने तय कर लिया था कि वह इस बच्चे को पैदा नहीं होने देंगे. उसी बीच आसिफ के लिए बरेली की एक लड़की तलाश कर ली गई थी. फरवरी, 2016 में आसिफ ससुराल पहुंचा और ससुर समरुद्दीन से कहा कि वह शबाना को ले जाना चाहता है.

लेकिन समरुद्दीन ने शबाना को विदा करने के बजाय कहा कि वह उन लोगों के खिलाफ अदालत में घरेलू हिंसा का मुकदमा दर्ज कराएंगे. ससुर के तेवर से आसिफ डर गया. उस ने माफी मांगते हुए कहा, ‘‘मुझ से जो गलती हुई, उसे माफ कर दें. अब मैं शबाना को कुछ नहीं कहूंगा.’’

आखिर समरुद्दीन ने कुछ लोगों को बुलाया तो उन के सामने आसिफ ने आश्वासन दिया कि अब वह शबाना को अच्छी तरह रखेगा. इस के बाद समरुद्दीन ने शबाना को विदा कर दिया.

जीजा से जब लड़े नैन

दिल्ली जल बोर्ड में नौकरी करने वाला संजीव कौशिक अपनी पत्नी अंजू कौशिक को हर तरह से खुश रखता था. वह जो भी मांग करती, संजीव उसे जल्द से जल्द पूरी करने की कोशिश करता था. इस के बावजूद भी अंजू उसे पहले की तरह प्यार नहीं करती. आए दिन पति के प्रति उस का व्यवहार बदलता जा रहा था. बेटे के भविष्य को देखते हुए संजीव अपने घर में कलह नहीं करना चाहता था पर अंजू उस की बात को गंभीरता से समझने की कोशिश नहीं कर रही थी.

संजीव फरीदाबाद की ग्रीनफील्ड कालोनी का रहने वाला था. दिल्ली ड्यूटी करने के बाद जब वह घर पर पहुंचता तो घर वाले अंजू के बारे में बताते कि वह बेलगाम हो कर अकेली पता नहीं कहांकहां घूमती है. संजीव इस बारे में जब पत्नी से पूछता तो वह उलटे उस से झगड़ने पर आमादा हो जाती थी. इस के बाद संजीव को भी गुस्सा आ जाता तो वह उस की पिटाई कर देता था. इस तरह उन दोनों के बीच आए दिन झगड़ा होने लगा.

संजीव अपने स्तर से यही पता लगाने की कोशिश करने लगा कि आखिर उस की पत्नी का किस के साथ चक्कर चल रहा है. पर उसे इस काम में सफलता नहीं मिल सकी. आखिर इसी साल जनवरी महीने में जब अंजू घर से भाग गई तो हकीकत सामने आई. पता चला कि अंजू के अपने ही ननदोई यानी संजीव के बहनोई राजू के साथ ही नाजायज संबंध थे.

जबकि संजीव का शक किसी मोहल्ले वाले पर था, लेकिन उसे क्या पता था कि उस का बहनोई ही आस्तीन का सांप बना हुआ है. अंजू जब राजू के साथ भागी थी तो अपने बेटे को भी साथ ले गई थी. तब संजीव ने फरीदाबाद के सेक्टर-7 थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई थी. इस के करीब एक महीने बाद अंजू को करनाल से बरामद किया गया था.

घर लौटने के बाद अंजू ने अपने किए की पति से माफी मांगी और भविष्य में राजू से न मिलने का वादा भी किया था. संजीव ने उसे माफ कर फिर से स्वीकार कर लिया. लेकिन कहते हैं कि चोर चोरी भले छोड़ दे लेकिन हेराफेरी नहीं छोड़ता. यही हाल अंजू का भी था.

कुछ दिनों तक तो अंजू ठीक रही लेकिन जब उसे अपने ननदोई यानी प्रेमी राजू की याद आती तो वह बेचैन रहने लगी. उधर राजू भी अंजू से मिलने के लिए बेताब था.

दोनों ही जब एकदूसरे से मिलने के लिए मचलने लगे तब वे चोरीछिपे मिलने लगे. संजीव को जब पता चला तो उस ने पत्नी को समझाया पर वह नहीं मानी.

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वैसे भी जब किसी महिला के एक बार पैर फिसल जाते हैं तो वह रोके से भी नहीं रुकते. क्योंकि अवैध संबंधों की राह बड़ी ही ढलवां होती है. उस राह पर यदि कोई एक बार कदम रख देता है तो उस का संभलना मुश्किल होता है. यही हाल अंजू का हुआ.

संजीव अंजू के चालचलन से बहुत परेशान हो चुका था. उस की वजह से उस की रिश्तेदारियों में ही नहीं, बल्कि मोहल्ले में भी बदनामी हो रही थी. पत्नी को समझासमझा कर वह हार चुका था. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह ऐसी बदचलन पत्नी का क्या करे. पत्नी की वजह से वह तनाव में रहने लगा.

17 मार्च, 2018 को भी किसी बात को ले कर संजीव का पत्नी से झगड़ा हो गया. उस समय उस का 15 वर्षीय बेटा मनन अपने ताऊ के यहां था. झगड़े के दौरान अंजू ने ड्रेसिंग टेबल से कैंची निकाल कर पति पर हमला कर दिया. बचाव की कोशिश में संजीव की छोटी अंगुली (कनिष्ठा) कट गई. अंगुली कटने पर संजीव के हाथों से खून टपकने लगा.

इस के बाद संजीव को गुस्सा आ गया. उस ने पत्नी से कैंची छीन कर उसी कैंची से उस की गरदन पर ताबड़तोड़ वार करने शुरू कर दिए. उस ने उस की गरदन पर तब तक वार किए, जब तक उस की मौत नहीं हो गई. इस के बाद उस ने उस की गरदन काट कर अलग कर दी.

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पत्नी की हत्या करने के बाद संजीव ने खून से सने अपने हाथपैर साफ किए और कपड़े बदल कर उस ने कहीं भाग जाने के मकसद से एक बैग में अपने कुछ कपड़े भर लिए. फिर वह अपने बड़े भाई के पास गया. वहां मौजूद बेटे ने बैग के बारे में पूछा तो उस ने बता दिया कि इस में कपड़े हैं जो धोबी को देने हैं. फिर वह वहां से चला गया.

दोपहर करीब एक बजे मनन जब घर पहुंचा तो दरवाजे पर ताला लगा हुआ था. उस ने पड़ोसियों से अपनी मां के बारे में पूछा तो कुछ पता नहीं चला. पिता को फोन मिलाया तो वह भी बंद मिला. तब उस ने फोन कर के अपने ताऊ को वहां बुला लिया.

ताऊ ने शक होने के बाद पुलिस को सूचना दी. पुलिस जब वहां पहुंची तो आसपास के लोग जमा थे. कमरे का ताला तोड़ कर पुलिस जब कमरे में गई तो बैडरूम में अंजू की लाश पड़ी थी, जिस का सिर धड़ से अलग था. फिर पुलिस ने जरूरी काररवाई कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

पत्नी की हत्या करने के बाद संजीव 3 दिनों तक इधरउधर घूमता रहा. बाद में उसे लगा कि चाहे वह कितना भी छिपा रहे, पुलिस एक न एक दिन उसे गिरफ्तार कर ही लेगी. यही सोच कर उस ने खुद ही न्यायालय में आत्मसमर्पण करने का फैसला ले लिया और 21 मार्च, 2018 को फरीदाबाद न्यायालय में पहुंच कर आत्मसमर्पण कर दिया.

कोर्ट ने इस की सूचना डीएलएफ क्राइम ब्रांच को दे दी. तब क्राइम ब्रांच के इंचार्ज अशोक कुमार कोर्ट पहुंच गए. उन्होंने संजीव कौशिक को गिरफ्तार कर पूछताछ की, जिस में संजीव ने अपना अपराध स्वीकार कर पत्नी की हत्या में प्रयुक्त कैंची आदि पुलिस को बरामद करा दी. पुलिस ने संजीव कौशिक से पूछताछ के बाद उसे कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

इंसाफ में देर है पर अंधेर नहीं

ऐसा लग रहा है यह कोई अपराध नहीं, बल्कि फिल्मी कहानी है. अगर कोई निर्माता इस पर फिल्म बनाने का निर्णय ले ले तो हैरानी भी नहीं होनी चाहिए. घटना की शुरुआत या अंत कुछ भी कह लें, जबलपुर के थाना कैंट के बिलहरी मोहल्ले से हुई, जो मंडला रोड पर स्थित है. यहां अनुसूचित जाति के लोग ज्यादा रहते हैं. ज्यादा नहीं, अब से कुछ साल पहले तक बिलहरी एक गांव हुआ करता था. लेकिन धीरेधीरे यहां लोग बसने लगे तो यह जबलपुर के कैंट इलाके का प्रमुख मोहल्ला इस लिहाज से हो गया, क्योंकि यहां आसपास के गांव वालों के अलावा दूसरे शहरों और राज्यों के भी लोग आ कर बसने लगे थे.

कुछ लोगों को छोड़ दें तो बिलहरी में रह रहे ज्यादातर लोग मेहनतमजदूरी कर रोज कमानेखाने वाले हैं और कच्चे मकानों या झुग्गियों में रहते हैं. रोजाना कई लोग आ कर इस इलाके में बसते हैं और फिर धीरेधीरे यहीं के हो कर जबलपुरिया कहलाने लगते हैं.

रोजगार की तलाश में ऐसा ही एक जोड़ा अप्रैल, 2015 में जबलपुर आया तो बिलहरी में किराए का मकान ले कर रहने लगा. पति का नाम मयूर मलिक था और पत्नी का रिंकी शर्मा. रहने का ठिकाना मिल गया तो मयूर इधरउधर काम करने लगा. कुछ दिनों बाद उसे एक दुकान में नौकरी मिल गई. जल्दी ही उन के यहां एक बेटा भी हो गया.

रिंकी हालांकि हंसमुख और मिलनसार स्वभाग की थी, लेकिन अड़ोसपड़ोस में उस का कम ही उठनाबैठना था. रोज होने वाली बातचीत में उस ने पड़ोसियों से अपने बारे में बताया था कि वह और मयूर बिहार के जिला मुजफ्फरपुर के एक गांव के रहने वाले हैं.

शादी के बाद रोजगार की तलाश में दोनों जबलपुर आ गए हैं. आमतौर पर वहां रहने वालों में बाहर से आए परिवारों की औरतें भी घरगृहस्थी चलाने के लिए मजदूरी या घरों में झाड़ूपोंछा, बरतन आदि का काम करती थीं, पर रिंकी ने ऐसा कुछ नहीं किया तो इस की एक खास वजह थी.

उस खास वजह का पता 9 मई, 2017 को तब पता चला, जब थाना कैंट के थानाप्रभारी मनजीत सिंह दलबल के साथ उस के घर पहुंचे. पुलिस को देख कर स्वाभाविक रूप से हलचल मचनी ही थी. मोहल्ले वाले सवालिया नजरों से एकदूसरे को देखने लगे कि आखिर हुआ क्या है? रिंकी और मयूर मलिक तो किसी झगड़ेफसाद में भी नहीं पड़ते थे.

किसी को अंदाजा नहीं था कि सीधेसादे दिखने और लगने वाले रिंकी और मयूर एक हैरतंगेज फसाद खड़ा कर यहां रह रहे थे, जिस की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी. इसलिए जिस ने भी सुना, आंखें फाड़े हैरानी से यही कहा कि ‘हे भगवान! इतना बड़ा धोखा और जुर्म. कैसे लोग हैं ये?’

रिंकी और मयूर को थाना कैंट लाया गया. उन के गुनाह से परदा उठ चुका था. उन का गुनाह ऐसा था, जिस के बारे में मनजीत सिंह तो दूर, आला अफसरों ने भी नहीं सोचा था कि ऐसा भी होता है. सचमुच उन दोनों ने जो किया था, हैरान करने वाला था.

थाने में सिर झुकाए बैठी बेबस और थकीहारी रिंकी ने जो कहानी बताई, वह वाकई रहस्य और रोमांच से भरपूर थी, जिसे सुन कर हर किसी को उस आदमी पर तरस आया था, जिस का नाम मनोज शर्मा था. रिंकी की शादी बिहार के जिला मुजफ्फरपुर के गांव सरैया के रहने वाले मनोज शर्मा से फरवरी, 2015 में हुई थी. सरैया गांव थाना गुरका में आता है.

ससुराल में कुछ दिनों तक रहने के बाद एक दिन रहस्यमय तरीके से रिंकी गायब हो गई. उस की गुमशुदगी की खबर जब उस के पिता चंद्रशेखर शर्मा और मां बबीता को लगी तो उन्होंने थाने में रिपोर्ट लिखाई कि उन के दामाद मनोज और उस के घर वालों ने दहेज के लालच में उन की बेटी की हत्या कर दी है. यही नहीं, उन्होंने रिंकी की लाश भी पुलिस के सामने पेश कर दी थी, जो पूरी तरह से पहचान में नहीं आ रही थी.

पुलिस ने इस मामले में यकीन शायद इसलिए कर लिया था, क्योंकि खुद लड़की के मांबाप ने लाश की पहचान की थी. लिहाजा दहेज मांगने और हत्या के जुर्म में मनोज को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया, जिस की सुनवाई अदालत में चल रही थी.

मनोज की मां ललिता देवी को यकीन नहीं हो रहा था कि उन का सीधासादा बेटा अपनी पत्नी की हत्या कर सकता है. वह पुलिस वालों के सामने खूब रोईंगिड़गिड़ाईं, पर सब बेकार गया. तजुर्बेकार ललिता को बहू की हरकतें पहले दिन से ही संदिग्ध लग रही थीं. पर बेटा जेल में था और उस पर हत्या का आरोप था, इसलिए उन की समझ में नहीं आ रहा था कि वह बेटे की बेगुनाही कैसे साबित करें.

मां का दिल मां का होता है. उस की ममता और हिम्मत किसी सबूत की मोहताज नहीं होती. अपनी औलाद को खतरे में पड़ी देख कर उस की हिम्मत और बढ़ जाती है. ललिता ने ठान लिया था कि जैसे भी हो, बेटे की बेगुनाही साबित कर उसे जेल और हत्या के कलंक से मुक्त कराएंगी.

कानून की निगाहों में रिंकी मर चुकी थी. उस का अंतिम संस्कार भी हो चुका था. उस का हत्यारा पति अपने किए की सजा भुगत रहा था. जबकि ललिता का दिल बारबार यही कह रहा था कि कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है. पुलिस वालों को धोखा हुआ है. यही बात जब जानपहचान और नातेरिश्तेदार दोहराते तो उन का दिल डूबने लगता.

उन की समझ में एक बात यह नहीं आ रही थी कि अगर रिंकी मरी नहीं है तो वह लाश किस की थी, जिसे रिंकी समझ कर अंतिम संस्कार किया गया था. कम पढ़ीलिखी ललिता का दिमाग अब जासूसों सरीखा सोचने लगा था कि मुमकिन है कि इस साजिश में समधीसमधन के साथ रिंकी भी शामिल रही हो. लेकिन वे ऐसा क्यों करेंगे, यह सवाल भी अकसर मुंह बाए उस के सामने खड़ा रहता था.

आखिर तर्कों पर ममता भारी पड़ी और ललिता ने रिंकी का इतिहास यानी शादी के पहले की जिंदगी के बारे में खंगालना शुरू किया. उन्हें पहली बार में ही चौंकाने वाली बात यह पता चली कि रिंकी मयूर मलिक नाम के युवक को चाहती थी और यह बात हर कोई जानता था. उम्मीद की पहली किरण जागी तो दूसरी भी जल्द ही मिल गई. पता चला कि मयूर मलिक तभी से गायब है, जब से रिंकी की हत्या की बात कही गई थी. वह कहां है, यह किसी को नहीं मालूम था.

अब ललिता ने अपना पूरा ध्यान बहू के प्रेमी पर लगा दिया कि वह कहीं तो होगा और कभी न कभी तो अपने घर वालों से या फिर चंद्रशेखर और बबीता से संपर्क करेगा.

शक सच निकला. आखिरकार मई के पहले हफ्ते में ललिता को कहीं से पता चल गया कि मयूर मलिक उन की बहू रिंकी के साथ जबलपुर के बिलहरी इलाके में रह रहा है. देर न करते हुए उन्होंने यह जानकारी थाना सरैया पुलिस को दे दी.

पहली बार पुलिस ने ललिता की बात को गंभीरता से लिया और थानाप्रभारी ने तुरंत एएसआई शत्रुघ्न शर्मा की अगुवाई में एक टीम बना कर जबलपुर रवाना कर दिया. जबलपुर पहुंच कर शत्रुघ्न शर्मा ने थाना कैंट पहुंच कर थानाप्रभारी मनजीत सिंह को सारी बात बताई तो वह भी हैरान रह गए.

वह सोच कर रोमांचित थे कि अगर ऐसा है तो यह एक विरला मामला है. फौरन तैयारी कर के जब वह बिलहरी स्थित रिंकी के घर पहुंचे तो वाकई उन का सामना उस जिंदा लाश या औरत रिंकी शर्मा से हुआ, जो दुनिया और कानून की निगाह में 2 साल पहले मर चुकी थी. मयूर मलिक को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया.

रिंकी ने तुरंत स्वीकार कर लिया कि वह मनोज से शादी होने से पहले मयूर से प्यार करती थी और उसी से शादी करना चाहती थी. लेकिन घर वालों ने उस की शादी जबरदस्ती मनोज से कर दी थी. मनोज को वह मन से अपना पति नहीं स्वीकार पाई, जिस से ससुराल में उस का मन नहीं लगा.

यहां तक बात कतई हैरानी की या नई नहीं थी कि शादी के बाद लड़कियां अपने प्यार को भूल नहीं पातीं. ऐसे में वे भाग जाती हैं या फिर राज खुलने पर पति की निगाह में पत्नी का सम्मान और प्यार हासिल नहीं कर पातीं.

यही रिंकी के साथ हुआ. एक दिन मौका पा कर वह मयूर के साथ भाग गई और जबलपुर जा कर रहने लगी. अपनी नईनवेली पत्नी की गुमशुदगी के बारे में मनोज कुछ कर पाता, उस के पहले ही सासससुर ने उस पर परिवार सहित दहेज मांगने का आरोप लगा कर हत्या की रिपोर्ट दर्ज करा दी. पुलिस ने भी उसे जेल भेज दिया. जेल में वह यही सोचता रहा कि आखिरकार उस का गुनाह क्या है?

इधर चंद्रशेखर शर्मा और बबीता ने बेटी की गलती को ढंकने के लिए एक लाश का इंतजाम किया और रोरो कर पुलिस वालों को यकीन दिला दिया कि लाश उन की बेटी रिंकी की है. साफ दिख रहा है कि पुलिस ने  इस मामले में घोर लापरवाही बरती, जिस का खामियाजा निर्दोष मनोज को भगुतना पड़ा.

अभी इस मामले में एक अहम राज खुलना बाकी है. चंद्रशेखर और बबीता ने जिस लाश को रिंकी की लाश बताया था, उस की व्यवस्था उन्होंने कहां से की थी? कथा लिखे जाने तक दोनों फरार थे, इसलिए इस का पता नहीं चल सका था. अब उन की गिरफ्तारी के बाद ही पूरी तसवीर साफ होगी.

बात वाकई हैरान करने वाली है कि मनोज अपनी उस पत्नी की हत्या के आरोप में 2 साल जेल में रहा, जिस की हत्या हुई ही नहीं थी. अगर यह रहस्य न खुलता तो उस की हत्या के जुर्म में उसे मुमकिन है उम्रकैद या फांसी की सजा हो जाती. अगर ललिता देवी भागदौड़ कर के उसे नहीं बचातीं तो जरूर मनोज अंधे कानून की बेरहमी का शिकार हो जाता.

इस घटना ने अमिताभ बच्चन अभिनीत फिल्म ‘अंधा कानून’ के उस दृश्य की याद दिला दी, जिस में अमिताभ बच्चन भरी अदालत में खलनायक अमरीश पुरी की हत्या कर देता है और अदालत उसे सजा नहीं दे पाती, क्योंकि वह उसी खलनायक की हत्या के आरोप में उम्रकैद की सजा पहले ही भुगत चुका था.

हालांकि अब यह कहने में भी हर्ज नहीं है कि इंसाफ की चौखट पर देर है, अंधेर नहीं.

प्यार और इंतकाम के लिए मौत की अनोखी साजिश – भाग 2

सुलझने के बजाय उलझने लगी पुलिस की जांच

एसएचओ उपेंद्र कुमार ने हेमा की गुमशुदगी का मामला दर्ज करवा कर एसआई उपेंद्र को जांच सौंप दी. एसआई उपेंद्र ने गुमशुदगी के मामले में की जाने वाली औपचारिकताओं को पूरा करने के बाद उस शोरूम में जा कर पूछताछ की, जहां हेमा काम करती थी.

वहां पता चला कि शाम को वह निकल गई थी, उस के बाद उस ने कोई संपर्क नहीं किया. दिक्कत यह थी कि हेमा का फोन लगातार बंद आ रहा था.

हेमलता चौधरी मूलरूप से मथुरा जिले की रहने वाली थी. शादी हो चुकी थी, लेकिन एक बच्चा होने के बाद पति ने उसे गलत चालचलन का आरोप लगा कर बिना बच्चे के घर से निकाल दिया था.

पति से अलग होने के बाद बेसहारा हुई हेमलता सूरजपुर इलाके में सुनारों वाली गली में बड़ी बहन मुमतेश के पास आ गई, जो वहां अपने परिवार के साथ रहती थी. गुजरबसर के लिए हेमा कुछ महीना पहले ग्रेटर नोएडा के गौर सिटी मौल के वेन हुसैन शोरूम में सेल्सगर्ल की नौकरी करने लगी.

इधर, एसआई उपेंद्र ने जब गुमशुदगी की जांच को आगे बढ़ाते हुए हेमा के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि उस के फोन की आखिरी लोकेशन बढपुरा गांव में रविंद्र भाटी के घर पर थी.

काल डिटेल्स की जांच से यह भी पता चला कि उस की आखिरी बातचीत जिस नंबर पर हुई थी, वह नंबर बुलंदशहर में रहने वाले किसी अजय ठाकुर का था. अजय ठाकुर की लोकेशन भी उस वक्त बढ़पुरा में वहीं पाई गई, जहां हेमलता के फोन की थी.

एसआई उपेंद्र सब से पहले बढ़पुरा में रविंद्र भाटी के घर पहुंचे. वहां पहुंचने के बाद पता चला कि 12 नवंबर की रात तो परिवार की बेटी पायल ने खुदकुशी कर ली थी.

एसआई उपेंद्र समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर हेमलता इतनी दूर वहां किस से मिलने आई थी. क्योंकि पायल के दोनों भाई भी इस बात से इंकार कर चुके थे कि वो हेमा को जानते हैं.

पायल के परिवार व गांव वालों के बयानों की तसदीक करने के लिए जब एसआई उपेंद्र दादरी थाने गए तो वहां यह बात साफ हो गई कि पायल ने वाकई खुदकुशी की थी.

दादरी पुलिस ने उन्हें पायल की लाश के फोटो भी दिखाए, जिस में उस का चेहरा व गरदन बुरी तरह जल कर वीभत्स हो गए थे. उसे देख कर कोई पहचान ही नहीं सकता था कि लाश किस लड़की की है.

एसआई उपेंद्र अजय ठाकुर की तलाश में बुलंदशहर पहुंचे. अजय ठाकुर मूलरूप से बुलंदशहर में सिकंदराबाद के महेपा जागीर गांव का रहने वाला था. अजय ठाकुर खेतीबाड़ी करता था. भरेपूरे संयुक्त परिवार के युवक अजय ठाकुर के परिवार में मातापिता और भाईबहनों के अलावा पत्नी सुमन और 5 व 3 साल के 2 बेटे थे.

परिवार वालों से एसआई उपेंद्र ने जब अजय के बारे में पूछा तो पता चला कि अजय भी 12 नवंबर, 2022 से ही लापता है. वह 12 नवंबर को घर से नोएडा जाने की बात कह कर बाइक से निकला था, उस के बाद से घर नहीं लौटा. इतना ही नहीं, उस के फोन जबजब काल की गई तो बंद मिला.

अजय के लापता होने पर घर वालों ने उस की हत्या की आशंका जताते हुए सिकंदराबाद थाने में 14 नवंबर, 2022 को उस की गुमशुदगी दर्ज करा दी थी.

एसआई उपेंद्र ने जब सिकंदराबाद थाने जा कर इस बात की तसदीक की तो अजय ठाकुर के परिवार की बात सही पाई गई.

तकनीकी जांच से मिले कुछ सुराग

इस के बाद तो एसआई उपेंद्र के लिए हेमा चौधरी की गुमशुदगी एक रहस्य भरी फिल्म बन गई. क्योंकि हेमा तक पहुंचने के जिस संपर्क सूत्र तक पुलिस पहुंच रही थी, पता चलता कि या तो उस की मौत हो चुकी है या वो लापता है.

26 नवंबर को बिसरख थाने के एसएचओ का तबादला हो गया और नए एसएचओ के रूप में इंसपेक्टर अनिल राजपूत ने थाने का कार्यभार संभाला. उन्होंने जब थाने में लंबित विवेचनाओं की जानकारी ली तो एसआई उपेंद्र के पास हेमा चौधरी की गुमशुदगी के बारे में पता चला.

मामला बेहद दिलचस्प था. एसएचओ अनिल राजपूत ने एसआई उपेंद्र की मदद के लिए कांस्टेबल राजीव कुमार, अनिल कुमार, शिवांक ढालिया, सरविंद्र कुमार और महिला कांस्टेबल ज्योति की टीम बना दी.

साथ ही टीम को हेमा चौधरी के अलावा अजय ठाकुर और पायल भाटी के मोबाइल फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाने और अजय ठाकुर के फोन को सर्विलांस पर लगवाने का आदेश दिया.

इस का सुखद परिणाम जल्द ही सामने आया. पायल, हेमा और अजय पाल की काल डिटेल्स खंगालने के बाद सामने आया कि अजय और पायल कई महीनों से एकदूसरे को जानते थे. दोनों के बीच कई बार लंबीलंबी बातचीत होती थी. पिछले कुछ दिनों से अजय हेमा से भी उस के फोन पर बातचीत कर रहा था.

इतना ही नहीं, 12 नवंबर की रात पायल, हेमा और अजय की लोकेशन एक साथ होना इस बात का साफ इशारा था कि एक मौत और 2 गुमशुदगी का आपस में कोई न कोई संबंध जरूर है. क्योंकि 3 लोग जिन में 2 महिलाएं थीं, एक रात को साथ थे.

इन में से एक महिला खुदकुशी कर लेती है. उस की भी पहचान नहीं होती, पहचान भी परिवार द्वारा कपड़ों से की जाती है. इस के बाद बाकी 2 लोग लापता पाए जाते हैं. ये सारे संयोग कई सवाल खड़े कर रहे थे.

काल डिटेल्स और सर्विलांस की मदद से पुलिस को जल्द ही इस बात का पता चल गया कि अजय का फोन कभी स्विच्ड औफ हो जाता है तो कभी काम करने लगता है.

12 नवंबर, 2022 के बाद जब भी अजय का मोबाइल फोन इस्तेमाल हुआ, उस से कुछ खास नंबरों पर ही बात हुई. उन में से एक नंबर ऐसा भी था जो अजय के नाम पर ही रजिस्टर्ड था, लेकिन उस की लोकेशन भी अजय के पुराने नंबर के साथ ही थी.

जांचपड़ताल के बाद एसआई उपेंद्र को यह भी पता चला कि अजय अपने बैंक एकाउंट से नेट बैंकिग के जरिए ट्रांजैक्शन कर रहा है. इस का मतलब साफ था कि वो सहीसलामत है. लेकिन हेमलता के बारे में जानने के लिए पुलिस का अजय तक पहुंचना जरूरी था.

प्यासी दुल्हन : प्रेमी संग रची साजिश – भाग 2

रंजना थोड़ी देर उन मैलेकुचैले कपड़ों को देखती रही, उस के बाद सिर हिलाते हुए बोली, ‘‘नहीं.’’

‘‘इसे पहचानो.’’ एक अंगूठी दिखाते हुए टीआई ने कहा.

‘‘हां साहब, यह तो मेरी ही अंगूठी है. मैं ने ही पति को ठीक करवाने के लिए दी थी. इस का घिसा हुआ नग ठीक वैसे ही है, आप को कहां मिली?’’ रंजना बोली.

‘‘तुम्हारे पति की अंगुली से.’’ टीआई ने कहा.

‘‘मतलब?’’

‘‘इधर आओ मेरे साथ, लेकिन इस कुरते को एक बार फिर से देखो.’’ यह कह कर टीआई श्वेता मौर्या ने उस के सामने कुरते को अब पूरी तरह फैला दिया था.

‘‘अरे यह तो मेरे पति का ही कुरता है. इस की एक जेब फटी हुई है.’’ रंजना बोली.

‘‘इस का मतलब मेरा अनुमान सही था कि हो न हो वह लाश रामसुशील पाल की ही है.’’ वह बोलीं.

‘‘कहां हैं मेरे पति?’’ रंजना ने पूछा.

‘‘तुम्हीं ने तो बताया था कि वह 2 दिन पहले रीवा गया है. तो फिर तुम ही बताओ न वह कहां होगा.’’

‘‘मुझे कुछ नहीं मालूम.’’ रंजना ने कहा.

‘‘उस की मौत हो चुकी है. उस की किसी ने हत्या कर दी है, वह भी डेढ़ साल पहले. उस की लाश अब मिली है, एकदम से सूखी हुई, कंकाल की तरह.’’

टीआई की यह बात सुन कर रंजना रोने लगी, तभी टीआई ने उस के गालों पर जोरदार थप्पड़ जड़ दिए. डपटती हुई बोलीं, ‘‘बताओ, तुम ने अपने पति की हत्या क्यों की?’’

‘‘मैं ने? नहीं तो मैं ने कुछ नहीं किया. मैं भला क्यों..?’’ रंजना सुबकती हुई बोलने लगी.

‘‘तुम ने ही अपने पति की हत्या की है. देवर से तुम्हारे नाजायज संबंध हैं. इस बारे में गांव के कई लोग जानते हैं. तुम्हारा पति भी जानता था.’’

‘‘क्या कहती हो मैडमजी?’’ रंजना बोली.

‘‘तुम ने उस की बौडी को भूसे में छिपा कर भी रखा. यह देख कुरते की एक जेब में अभी भी कुछ भूसा है. गांव वालों से भी तुम्हारे भूसे वाले घर से मांस के सड़ने की गंध की शिकायत मिल चुकी है.’’ कहते हुए टीआई श्वेता मौर्या ने पास में खड़े पुलिसकर्मियों को निर्देश दिया, ‘‘यह ऐसे नहीं बताएगी, इस की ढंग से खातिरदारी करो, तभी सच बोलेगी.’’

सख्ती की बात सुनते ही रंजना डर गई. बोली, ‘‘बताती हूं, सब कुछ बताऊंगी, मुझे और मत पीटो.’’

इस के बाद रंजना पाल ने अपने पति रामसुशील की हत्या की जो कहानी बताई, वह अवैध संबंधों की चाशनी में तरबतर निकली—

मध्य प्रदेश के रीवा जिले के थाना मऊगंज के गांव उमरी श्रीपत का रहने वाला रामसुशील पाल एक साधारण किसान था. उस के पास खेती की अच्छीखासी जमीन थी. परिवार में वह अकेला था. उस की पत्नी की कुछ साल पहले बीमारी से मौत हो गई थी.

उस के 2 चाचा की नजर उस की जमीन पर थी. उन्होंने कुछ जमीन पहले से ही जबरदस्ती अपने कब्जे में कर ली थी. बाकी की जमीन पर भी वे नजर गड़ाए हुए थे. इस के चलते काफी विवाद चल रहा था. आए दिन उन के बीच लड़ाईझगड़े होते रहते थे.

उन के सामने रामसुशील अकेला पड़ जाता था. उस के अलावा कोई दूसरा घर संभालने वाला भी नहीं था. उम्र भी 40 पार करने वाली थी. इसलिए उसे अपने घर की चिंता सता रही थी. बिरादरी वाले उस के लिए कई बार रिश्ता ले कर आए, लेकिन उस की उम्र अधिक होने के चलते उस की दोबारा शादी नहीं हो रही थी.

एक दिन उस की शादी की मंशा पूरी हो गई. पास के गांव के गरीब परिवार की 20 वर्षीय रंजना पाल का रिश्ता आया तो उस ने तुरंत हां कर दी, रंजना उस से उम्र में काफी छोटी थी.

सुहागरात को मिली मायूसी

रामसुशील से रंजना की शादी तो हो गई, लेकिन नईनवेली पत्नी ने उस की मर्दानगी का परीक्षण सुहागरात को ही कर लिया था. उस ने अपनी सहेलियों से सुहागरात की जो रंगीन बातें सुनी थीं, वैसा उस ने कुछ भी नहीं पाया. इसलिए वह मायूस हो गई.

उसे संतुष्टि सिर्फ इस बात को ले कर थी कि घर में खानेपीने की मौज थी और पहननेओढ़ने की कोई कमी नहीं थी. पति भी उस का दिल रखने वाला मिला था. परिवार में न सास थी और ननद भाभी की कोई चिकचिक सुनने को मिलती थी.

रामसुशील सुंदर पत्नी पा कर बहुत खुश था, लेकिन इस चिंता में भी रहता था कि वह उसे चाचा के परिवार से दूर कैसे रखे. उसे खेती के काम से अकसर शहर जाना होता था, लेकिन जब भी लौटता था तब पत्नी रंजना के लिए कोई न कोई उपहार जरूर खरीद लाता था.

वह रंजना को खुश रखना चाहता था. उस की इच्छा होती थी कि वह जब घर आए तब रंजना सजीसंवरी मिले. मुसकराती रहे. जुबान पर कोई शिकायत न रहे. फिर भी वह रंजना की एक शिकायत दूर नहीं कर पाता था. वह शिकायत संतोषजनक यौन संबंध की थी. रंजना जी भर कर सैक्स का आनंद नहीं उठा पाती थी, जिस से कई बार वह खीझ तक जाती थी.

वह मन मसोस कर रह जाती थी. एक बार उस ने पति से शहर जा कर मर्दानगी बढ़ाने वाली दवाई लाने के लिए कहा. किंतु रामसुशील शर्म से इस के लिए दुकान पर नहीं जा सका. इस बारे में वह अपने दोस्तों से कुछ भी कहने से हिचकता था.

धधक रही थी जिस्म की आग

उस के दिमाग में हमेशा चाचा द्वारा जमीनजायदाद पर कब्जे की बात ही घूमती रहती थी. इस तनाव में वह रात को पत्नी से सिर दबाने को कहता, सिर में तेल की मालिश करवाता और उसे बाहों में ले कर सो जाता था.

रंजना पति की इस आदत से परेशान हो गई थी. उसे जल्द ही महसूस होने लगा था कि उस की जिंदगी नर्क बन चुकी है. एक तरफ देह की आग ठंडी नहीं हो पा रही थी, दूसरी तरफ गांव में किसी से भी हंसनेबोलने तक पर पति ने कई तरह की पाबंदियां लगा रखी थी. इस के लिए उस ने पासपड़ोस के बच्चे और बुजुर्ग महिलाओं को मुखबिरी के लिए लगा रखा था. वे उसे रंजना के दिनभर की गतिविधियों की खबर कर देते थे. और फिर रंजना से रामसुशील गुस्सा हो जाता था.

इस का नतीजा यह हुआ कि जल्द ही दोनों के बीच का प्यार परवान चढ़ने के बजाय तकरार में बदल गया. एक दिन की बात है. सुबहसुबह रामसुशील से भूसाघर में बिखरे भूसे को ठीक करने को ले कर बहस हो गई थी. पति गुस्से में बोलता हुआ चला गया था. वह उदास मन से अपने खेत की ओर जा रही थी, उसी वक्त बगल के खेत में काम कर रहा उस का चचेरा देवर गोपाल बोल पड़ा, ‘‘क्या बात है भाभी, भैया गुस्से में जा रहे थे. अगर मेरे लायक कोई काम हो तो मुझे बताओ.’’

रंजना ने पहली बार पति के छोटे चाचा के बेटे गोपाल से बात की थी. इस से पहले वह उसे देख कर सिर्फ मुसकरा देता था.

‘‘कुछ नहीं, भूसाघर में भूसे को ऊपर चढ़ाना था, उसी पर मुझे डांट दिया.’’ रंजना कुछ बात छिपाती हुई बोली.

‘‘कोई बात नहीं भाभी मैं कर देता हूं, आखिर मैं कोई गैर तो हूं नहीं.’’ गोपाल बोला.

‘‘नहीं…नहीं, रहने दो मैं खुद कर लूंगी. वैसे तुम्हारा नाम क्या है?’’ रंजना बोली.

‘‘जी भाभी गोपाल, वैसे आप गोपू कह कर बुला सकती हैं.’’

‘‘अभी तुम यहां से जाओ, बुढि़या हमें बतियाते हुए देख रही है,’’ रंजना बोली और अपने घर आने के लिए मुड़ गई.

गोपाल थोड़ी तेज आवाज में बोला, ‘‘भाभी, मैं आ रहा हूं भूसाघर के पास.’’

हनिट्रैप : अर्चना के चंगुल में कैसे फंसे विधायक – भाग 2

जैसे ही महिमा को यह पता चली कि फिल्म प्रमोटर अक्षय पारिजा ने अर्चना और उस के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया है तो अचानक से महिमा के अंदर तूफान जोश मार गया और सोचने लगी यही सही मौका है और लोहा भी गरम है चोट कर दो. क्योंकि वह भी 3 साल से अर्चना नाग से पीडि़त थी.

उस के बंद आस्तीन से निकल कर कई बार बाहर जाने की उस से कोशिश की थी, लेकिन उस के चंगुल से आजाद नहीं हो सकी थी. उसे आज वह सुनहरा मौका मिल गया था. घिनौनी जिंदगी से आजादी मिलने की.

3 सालों से उसे वेश्यावृत्ति के धंधे में झोंक दिया था. खुद तो कोठे की मौसी बन बैठी थी और कई जिंदगियों को नरक में धकेल दिया था.

हिम्मत जुटा कर महिमा खंडगिरी थाने जा पहुंची और एसएचओ संजय कुमार को आपबीती सुना कर एक लिखित नामजद तहरीर उन्हें सौंप दी. उस तहरीर में उस ने विस्तार से जिक्र किया था कि अर्चना नाग ने कैसे कोल्डड्रिंक और खाने में नशीला पदार्थ मिला कर उसे पिला दिया था.

उस के बाद अर्चना नाग, उस के पति जगबंधु चांद और उस का सहयोगी खगेश्वर नाथ तीनों मिल कर उस की नग्न फिल्म बना कर उसे मानसिक और शारीरिक रूप से नोचनोच खाने लगे थे.

उस की दर्दभरी कहानी सुन कर एकबारगी एसएचओ संजय कुमार के भी रोंगटे खड़े हो गए थे. फिलहाल उन्होंने विधिक काररवाई करते हुए मुकदमा आईपीसी की धरा 341, 328, 324, 354सी, 370, 386, 387, 388, 389, 416 के तहत अर्चना नाग, जगबंधु चांद और खगेश्वर नाथ के खिलाफ दर्ज कर के काररवाई शुरू कर दी थी. यह बात 2 अक्तूबर, 2022 की है.

4 साल में कमाए 30 करोड़

अर्चना नाग के खिलाफ 2 अलगअलग थानों में गंभीर घटनाओं के मुकदमे दर्ज किए गए थे, जिन में एक घटना 3 करोड़ रुपए की मांग करना तो दूसरी उसी के सिंडीकेट की सदस्य महिमा को धोखे से नशीला पदार्थ खिला कर उस की नग्न तसवीरें उतार लेने की. दोनों ही घटनाएं बड़ी और गंभीर थीं, इसलिए अर्चना को गिरफ्तार करना अब पुलिस की मजबूरी थी.

खैर, मामला सैक्स स्कैंडल से जुड़ा हुआ था. कानून के हिसाब से जब तक पुलिस का कोई बड़ा अधिकारी ऐक्शन लेने के लिए सामने नहीं आता, एसएचओ संजय कुमार अर्चना के खिलाफ कुछ नहीं कर सकते थे.

उन्होंने इस घटना की जानकारी डीसीपी प्रतीक सिंह और पुलिस कमिश्नर सोमेंद्र प्रियदर्शी को दे दी थी. पुलिस अधिकारियों ने गुप्त तरीके से अर्चना नाग के खिलाफ सबूत जुटाने शुरू कर दिए थे, ताकि उस के खिलाफ कड़ी से कड़ी काररवाई की जा सके.

पुलिस कमिश्नर सोमेंद्र प्रियदर्शी ने घटना की जांच डीसीपी प्रतीक सिंह को सौंप दी थी. उन्होंने अर्चना की लाइफस्टाइल की पड़ताल की तो उन के पैरों तले से जमीन खिसक गई थी. जांच में उन्होंने पाया कि अर्चना ने 4 सालों में 30 करोड़ रुपए से अधिक की संपत्ति अर्जित की थी.

यही नहीं, विदेशी नस्ल के 4 कुत्ते, एक सफेद घोड़ा, महंगी कारें और भुवनेश्वर के मंचेश्वर और सत्य विहार में 3 आलीशान कोठियां हैं. ये सब कुछ महज 4 सालों में अर्जित की थीं.

पुलिस यह सोच कर हैरान थी कि आखिर उस के हाथ ऐसा कौन सा कुबेर का खजाना लग गया था, जो चंद सालों में धनपति बन गई थी.

इन सभी बातों का खुलासा अर्चना नाग के गिरफ्तार होने के बाद ही होता. उस के खिलाफ पुलिस ने काफी सबूत इकट्ठा कर लिए थे.

सबूत इकट्ठा करने के बाद पुलिस ने अर्चना नाग, उस के पति जगबंधु चांद और उस के सहयोगी खगेश्वर नाथ को 7 अक्तूबर, 2022 को उस के घर जगमारा न्यू रोड, खंडगिरी से गिरफ्तार कर लिया और उन्हें अदालत के सामने पेश कर झारपाड़ा जिला जेल भेज दिया.

अर्चना नाग के गिरफ्तार होने के बाद पुलिस जांच में जो आईने की तरह सच सामने आया, उस से ओडिशा राज्य के कूल्हे हिल गए थे. प्रदेश में भूचाल सा आ गया था. पता चला कि अर्चना ने सैक्स स्कैंडल के जरिए प्रदेश सरकार के करीब 25 मंत्रियों, 18 विधायकों, नौकरशाहों, फिल्मकारों और बड़ेबड़े उद्योगपतियों को हनीट्रैप का शिकार बनाया था.

प्रदेश में बीजू जनता दल की सरकार है. वे मंत्री और विधायक इसी दल के थे, जो अर्चना नाग के हनीट्रैप का शिकार बने थे. विपक्षी पार्टी भाजपा, उन मंत्रियों और विधायकों के नाम उजागर करने के लिए प्रदेश के मुख्यमंत्री बीजू पटनायक पर दबाव बना रही थी.

प्रदेश सरकार ने यह कह कर पल्ला झाड़ लिया कि कानून सही तरीके से अपना काम कर रहा है. सही समय आने पर उन के नामों का खुलासा किया जाएगा. जो इस हनीट्रैप का शिकार बने हैं और उन की नजदीकियां नाग से हैं. सरकार की नीयत पर संदेह न करें, उस पर भरोसा रखें.

पुलिस जब तक जांच की काररवाई पूरी करती है, आइए तब तक हम पढ़ते हैं ये अर्चना नाग कौन है? उस का जन्म कहां हुआ था? उस की परवरिश किन हालात में हुई थी? उस की जगबंधु चांद से मुलाकात कैसे हुई? आदि.

27 वर्षीय खूबसूरत अर्चना नाग का जन्म ओडिशा के कालाहांडी जिले के छोटे से गांव केसिंगा में हुआ था. उस के मांबाप बहुत गरीब थे. वह 2 भाईबहन थी, जिन में वह सब से बड़ी थी. अर्चना के पिता की बरसों पहले स्वाभाविक मौत हो चुकी थी. पति की मौत के बाद घर की जिममेदारी का बोझ अर्चना की मां के कंधों पर आ गया था.

बच्चों की परवरिश के लिए मां ने नौकरी की. नौकरी की कमाई से ही वह अपने बच्चों की परवरिश करती रही. बच्चों को अच्छी शिक्षा देने की कोशिश की. उन की अच्छी शिक्षा पर पैसे खर्च किए, उन्हें किसी चीज की कमी नहीं होने दी.

यह भी सच है कि खुद नीलम भूखी रह जाती थी मगर बच्चों को कभी भूखा नहीं सोने दिया. आखिरकार, दोनों बच्चे ही तो उस की आंखों के तारे थे.

जिस मुफलिसी और गरीबी के दौर से वह अपने बच्चों को ले कर जी रही थी, उस निर्धनता का बेटी अर्चना को दिल की गहराई से एहसास था.

पति ने दिखाया अमीर बनने का रास्ता

गरीबी का अक्स अर्चना के बाल दिमाग पर ऐसा उभरा था कि जैसेजैसे वह सयानी होती जा रही थी, बस यही सोचती थी कि कब वह दिन आएगा, जब वह गरीबी की मैली चादर फेंक कर दौलत के नरम बिस्तर का सुख भोगेगी.

मां के लिए बेटियां बनी अपराधी – भाग 1

‘अम्मा, यह बेटा है या बेटी?’’ एक युवती ने समीना से पूछा. अस्पताल के वार्ड में एक स्टूल पर बैठी समीना ने कहा, ‘‘अरी लाली, यह मेरा पोता है. आज सुबह ही पैदा हुआ है.’’

‘‘अम्मा, पोता होने से तेरी तो मौज हो गई,’’ उस युवती ने समीना को बातें में लगाते हुए कहा.

‘‘हां लाली, सब अल्लाह की मेहर है,’’ समीना आसमान की ओर हाथ उठा कर बोली.

‘‘अम्मा, तेरा पोता बड़ा खूबसूरत और गोलमटोल है,’’ युवती ने नवजात बच्चे को दुलारते हुए कहा, ‘‘अम्मा, तू कहे तो मैं इसे गोद में ले कर खिला लूं.’’

‘‘ले तेरा मन बालक को गोद में खिलाने की है तो खिला ले.’’ समीना ने अपने पोते को युवती की गोद में देते हुए कहा.

युवती नवजात को गोद में ले कर दुलारने, प्यार करने लगी. उसे अपने पोते पर इतना प्यार बरसाते देख कर समीना ने पूछा, ‘‘लाली, तू यहां क्या कर रही है?’’

‘‘अम्मा, मेरी चाची के औपरेशन से बच्चा हुआ है. वह इसी अस्पताल के बच्चा वार्ड में मशीन में रखा है.’’ युवती ने समीना को बताया, ‘‘मैं तो चाची की मदद के लिए आई थी, लेकिन बालक मशीन में रखा है, इसलिए इधर आ गई. मुझे बच्चा खिलाना अच्छा लगता है.’’

समीना ने उस युवती को आशीर्वाद दिया.

यह बीती 10 जनवरी की बात है. भरतपुर जिले की पहाड़ी तहसील के हैवतका गांव के निवासी तारीफ की पत्नी मनीषा ने तड़के 4 बज कर 20 मिनट पर पहाड़ी के राजकीय अस्पताल में बेटे को जन्म दिया था. प्रसव के दौरान मनीषा को चूंकि अधिक रक्तस्राव हुआ था और वह एनीमिक भी थी, इसलिए डाक्टरों ने उसे जिला मुख्यालय भरतपुर के जनाना अस्पताल रेफर कर दिया था.

मनीषा के परिवार वाले उसे पहाड़ी से भरतपुर के राजकीय जनाना अस्पताल ले आए. भरतपुर, राजस्थान का संभाग मुख्यालय है. वहां अच्छी चिकित्सा सेवाएं उपलब्ध हैं.

मनीषा दोपहर करीब 12 बज कर 28 मिनट पर अस्पताल पहुंची. कागजी खानापूर्ति के बाद उसे 12 बज कर 50 मिनट पर अस्पताल के पोस्ट नैटल केयर वार्ड नंबर-1 में बैड नंबर 7 पर भरती कर लिया गया.

अस्पताल में भरती होने पर प्रसूता मनीषा बैड पर लेट गई. मनीषा के साथ उस की सास समीना और समीना की सास जुम्मी सहित गांव के कई पुरुष भी भरतपुर आए थे. मनीषा का पति तारीफ साथ नहीं था. वह ट्रक चलाता था और ट्रक ले कर दिल्ली से मुंबई गया हुआ था. मनीषा की शादी करीब डेढ़ साल पहले हुई थी. पहली संतान के रूप में उसे बेटा हुआ था.

SOCIETY

मनीषा के नवजात बेटे को समीना गोद में ले कर खिला रही थी, तभी वह युवती वहां आ गई थी. उस ने समीना और मनीषा को बातों में लगा लिया. हंसहंस कर बात करते हुए उस ने समीना से उस का पोता अपनी गोद में ले लिया.

वह युवती जब नवजात को गोद में ले कर दुलार रही थी, तभी डाक्टर ने मनीषा को ब्लड चढ़ाने की जरूरत बताई. इस पर मनीषा का जेठ मुफीद और ताया ससुर सद्दीक भरतपुर के ही आरबीएम अस्पताल से ब्लड लेने चले गए. अस्पताल में भरती मनीषा, उस की सास समीना और दादी सास जुम्मी अस्पताल में रह गईं.

उस युवती को अपने पोते के साथ खेलता देख कर समीना ने उस से कहा, ‘‘लाली, हम ने सुबह से चाय तक नहीं पी है. तू हमारी बहू के पास बैठ कर बच्चे को खिला, हम अस्पताल के बाहर कैंटीन पर चायनाश्ता कर आते हैं.’’

इस के लिए वह युवती खुशीखुशी तैयार हो गई. दोपहर करीब 2 बजे युवती को वहां बैठा छोड़ कर समीना और उस की सास जुम्मी चाय पीने अस्पताल के बाहर चली गईं.

समीना और उस की सास के बाहर जाने के बाद उस युवती ने मनीषा से कहा कि तुम्हें शौचालय जाना हो तो मैं ले चलती हूं. मनीषा के हां कहने पर वह युवती उस का हाथ पकड़ कर उसे शौचालय ले गई. मनीषा का बेटा युवती की गोद में ही था. मनीषा शौचालय के अंदर चली गई.

कुछ देर बाद मनीषा शौचालय से बाहर निकली तो वहां वह युवती नहीं थी. मनीषा ने सोचा कि शायद वह बैड पर जा कर बैठ गई होगी.

मनीषा जैसेतैसे सहारा ले कर अपने बैड तक आई, लेकिन वह वहां भी नहीं थी. इस पर मनीषा ने शोर मचाया तो वार्ड में भरती अन्य प्रसूताओं के घर वाले एकत्र हो गए.

उधर अस्पताल के बाहर मनीषा की सास समीना जब चाय पी रही थी तो उस ने उस युवती को बच्चे को कंबल में लपेट कर ले जाते हुए देखा. समीना ने कंबल देख कर युवती को टोका भी लेकिन वह रुकी नहीं.

वह तेज कदमों से चली गई. इस से समीना को संदेह हुआ. वह वार्ड में बहू के पास आई तो वह रो रही थी. मनीषा ने बताया कि जो युवती बच्चे को गोद में ले कर खिला रही थी, वह उसे ले कर भाग गई है.

समीना तुरंत अस्पताल के बाहर आई, लेकिन युवती वहां कहीं नहीं थी. तब तक अस्पताल में भरती प्रसूताओं के घर वाले भी बाहर आ गए थे. लोगों ने पूछताछ की तो पता चला, कंबल में बच्चे को लपेटे हुए एक युवती सफेद रंग की स्कूटी पर गई है. उस स्कूटी के पास पहले से ही एक और युवती खड़ी थी. दोनों स्कूटी से गई हैं.

करीब 10 घंटे पहले कोख से जन्मा कलेजे का टुकड़ा चोरी हो जाने से मनीषा पीली पड़ गई. उस की तबीयत खराब होने लगी तो उसे डाक्टरों ने संभाला.

 

कभी-कभी ऐसा भी – भाग 1

शौपिंग कर के बाहर आई तो देखा मेरी गाड़ी गायब थी. मेरे तो होश ही उड़ गए कि यह क्या हो गया, गाड़ी कहां गई मेरी? अभी थोड़ी देर पहले यहीं तो पार्क कर के गई थी. आगेपीछे, इधरउधर बदहवास सी मैं ने सब जगह जा कर देखा कि शायद मैं ही जल्दी में सही जगह भूल गई हूं. मगर नहीं, मेरी गाड़ी का तो वहां नामोनिशान भी नहीं था. चूंकि वहां कई और गाडि़यां खड़ी थीं, इसलिए मैं ने भी वहीं एक जगह अपनी गाड़ी लगा दी थी और अंदर बाजार में चली गई थी. बेबसी में मेरी आंखों से आंसू निकल आए.

पिछले साल, जब से श्रेयस का ट्रांसफर गाजियाबाद से गोरखपुर हुआ है और मुझे बच्चों की पढ़ाई की वजह से यहां अकेले रहना पड़ रहा है, जिंदगी का जैसे रुख ही बदल गया है. जिंदगी बहुत बेरंग और मुश्किल लगने लगी है.

श्रेयस उत्तर प्रदेश सरकार की उच्च सरकारी सेवा में है, सो हमेशा नौकर- चाकर, गाड़ी सभी सुविधाएं मिलती रहीं. कभी कुछ करने की जरूरत ही नहीं पड़ी. बैठेबिठाए ही एक हुक्म के साथ सब काम हो जाता था. पिछले साल प्रमोशन के साथ जब उन का तबादला हुआ तो उस समय बड़ी बेटी 10वीं कक्षा में थी, सो मैं उस के साथ जा ही नहीं सकती थी और इस साल अब छोटी बेटी 10वीं कक्षा में है. सही माने में तो अब अकेले रहने पर मुझे आटेदाल का भाव पता चल रहा था.

सही में कितना मुश्किल है अकेले रहना, वह भी एक औरत के लिए. जिंदगी की कितनी ही सचाइयां इस 1 साल के दौरान आईना जैसे बन कर मेरे सामने आई थीं.

औरों की तो मुझे पता नहीं, लेकिन मेरे संग तो ऐसा ही था. शादी से पहले भी कभी कुछ नहीं सीख पाई क्योंकि पापा भी उच्च सरकारी नौकरी में थे, सो जहां जाते थे, बस हर दम गार्ड, अर्दली आदि संग ही रहते थे. शादी के बाद श्रेयस के संग भी सब मजे से चलता रहा. मुश्किलें तो अब आ रही हैं अकेले रह के.

मोबाइल फोन से अपनी परेशानी श्रेयस के साथ शेयर करनी चाही तो वह भी एक मीटिंग में थे, सो जल्दी से बोले, ‘‘परेशान मत हो पूरबी. हो सकता है कि नौनपार्किंग की वजह से पुलिस वाले गाड़ी थाने खींच ले गए हों. मिल जाएगी…’’उन से बात कर के थोड़ी हिम्मत तो खैर मिली ही मगर मेरी गाड़ी…मरती क्या न करती. पता कर के जैसेतैसे रिकशा से पास ही के थाने पहुंची. वहां दूर से ही अपनी गाड़ी खड़ी देख कर जान में जान आई.

श्रेयस ने अभी फोन पर समझाया था कि पुलिस वालों से ज्यादा कुछ नहीं बोलना. वे जो जुर्माना, चालान भरने को कहें, चुपचाप भर के अपनी गाड़ी ले आना. मुझे पता है कि अगर उन्होंने जरा भी ऐसावैसा तुम से कह दिया तो तुम्हें सहन नहीं होगा. अपनी इज्जत अपने ही हाथ में है, पूरबी.

दूर रह कर के भी श्रेयस इसी तरह मेरा मनोबल बनाए रखते थे और आज भी उन के शब्दों से मुझ में बहुत हिम्मत आ गई और मैं लपकते हुए अंदर पहुंची. जो थानेदार सा वहां बैठा था उस से बोली, ‘‘मेरी गाड़ी, जो आप यहां ले आए हैं, मैं वापस लेने आई हूं.’’

उस ने पहले मुझे ऊपर से नीचे तक घूरा, फिर बहुत अजीब ढंग से बोला, ‘‘अच्छा तो वह ‘वेगनार’ आप की है. अरे, मैडमजी, क्यों इधरउधर गाड़ी खड़ी कर देती हैं आप और परेशानी हम लोगों को होती है.’’

मैं तो चुपचाप श्रेयस के कहे मुताबिक शांति से जुर्माना भर कर अपनी गाड़ी ले जाती लेकिन जिस बुरे ढंग से उस ने मुझ से कहा, वह भला मुझे कहां सहन होने वाला था. श्रेयस कितना सही समझते हैं मुझे, क्योंकि बचपन से अब तक मैं जिस माहौल में रही थी ऐसी किसी परिस्थिति से कभी सामना हुआ ही नहीं था. गुस्से से बोली, ‘‘देखा था मैं ने, वहां कोई ‘नो पार्किंग’ का बोर्ड नहीं था. और भी कई गाडि़यां वहां खड़ी थीं तो उन्हें क्यों नहीं खींच लाए आप लोग. मेरी ही गाड़ी से क्या दुश्मनी है भैया,’’ कहतेकहते अपने गुस्से पर थोड़ा सा नियंत्रण हो गया था मेरा.

इतने में अंदर से एक और पुलिस वाला भी वहां आ पहुंचा. मेरी बात उस ने सुन ली थी. आते ही गुस्से से बोला, ‘‘नो पार्किंग का बोर्ड तो कई बार लगा चुके हैं हम लोग पर आप जैसे लोग ही उसे हटा कर इधरउधर रख देते हैं और फिर आप से भला हमारी क्या दुश्मनी होगी. बस, पुलिस के हाथों जब जो आ जाए. हो सकता है और गाडि़यों में उस वक्त ड्राइवर बैठे हों. खैर, यह तो बताइए कि पेपर्स, लाइसेंस, आर.सी. आदि सब हैं न आप की गाड़ी में. नहीं तो और मुश्किल हो जाएगी. जुर्माना भी ज्यादा भरना पड़ेगा और काररवाई भी लंबी होगी.’’

उस के शब्दों से मैं फिर डर गई मगर ऊपर से बोल्ड हो कर बोली, ‘‘वह सब है. चाहें तो चेक कर लें और जुर्माना बताएं, कितना भरना है.’’

मेरे बोलने के अंदाज से शायद वे दोनों पुलिस वाले समझ गए कि मैं कोई ऊंची चीज हूं. पहले वाला बोला, ‘‘परेशान मत होइए मैडम, ऐसा है कि अगर आप परची कटवाएंगी तो 500 रुपए देने पड़ेंगे और नहीं तो 300 रुपए में ही काम चल जाएगा. आप भी क्या करोगी परची कटा कर. आप 300 रुपए हमें दे जाएं और अपनी गाड़ी ले जाएं.’’

उस की बात सुन कर गुस्सा तो बहुत आ रहा था, मगर मैं अकेली कर भी क्या सकती थी. हर जगह हर कोने में यही सब चल रहा है एक भयंकर बीमारी के रूप में, जिस का कोई इलाज कम से कम अकेले मेरे पास तो नहीं है. 300 रुपए ले कर चालान की परची नहीं काटने वाले ये लोग रुपए अपनीअपनी जेब में ही रख लेंगे.

घर से निकलते ही – भाग 1

रात के 10 बज चुके थे. रोजाना की तरह प्रदीप पत्नी ज्योति का इंतजार कर रहा था. बच्चे उस का इंतजार कर सो चुके थे. वैसे तो वह अकसर शाम का अंधेरा घिरते ही लखनऊ के धनवारा भसंडा गांव स्थित अपने घर आ जाती थी. हालांकि कई बार उसे थोड़ी देर भी हो जाती थी, किंतु उस रोज कुछ ज्यादा ही देर हो गई थी.

प्रदीप ने कई बार फोन किया था. लेकिन वह बारबार काल डिसकनेक्ट कर देती थी. फिर फोन पर ‘पहुंच से बाहर’ होने का संदेश मिलता था.

घर के दरवाजे पर नजर टिकाए गुमसुम प्रदीप ने अपनी 9 वर्षीया बेटी और 7 वर्षीय बेटे को खाना खिला कर सोने के लिए कमरे में भेज दिया था. सब से छोटा वाला बेटा तो काफी पहले ही सो गया था. जैसेजैसे रात गहराने लगी थी और गलियों में सन्नाटा पसरने लगा था, वैसेवैसे उस की बेचैनी बढ़ती जा रही थी.

खैर! इंतजार खत्म हुआ. दरवाजे की कुंडी बजी. और बाहर से किवाड़ पर लात मारने की आवाज भी आई. वह तेज कदमों से दरवाजे की ओर बढ़ा, तब तक किवाड़ एक झटके से खुल चुके थे.

दरअसल, दरवाजे की भीतरी चिटकनी नहीं लगी थी. लड़खड़ाती ज्योति 2-3 कदम ही बढ़ पाई थी कि प्रदीप ने उसे गिरने से पहले पकड़ लिया.

उस के पीछे जोगेंद्र सिंह चौहान भी खड़ा था. घर में घुसते ही जोगेंद्र ने ताना देते हुए प्रदीप से कहा, ‘‘ले भई, संभाल अपनी बीवी को. जब बीवी तुम से संभलती नहीं है, तुम्हारा कहना नहीं मानती है, तब तुम उस से पीछा क्यों नहीं छुड़ा लेते हो?’’

ज्योति को पकड़े हुए प्रदीप ने इस पर कोई जवाब नहीं दिया. सिर्फ उसे गुस्साई नजरों से देखता रहा.

‘हांहां, इस से नाता तोड़ कर अपना अलग ही घर बसा लो.’’ जोगेंद्र बोला.

‘‘अरे जोगेंद्र, ये मुझे क्या छोड़ेगा. देखना, एक दिन मैं ही इस से नाता तोड़ कर तुम्हारे साथ घर बसाऊंगी.’’ लड़खड़ाती आवाज में ज्योति बोली. प्रदीप चुप बना रहा. दोनों की उलटीसीधी बातें सुनता रहा.

ज्योति शराब के नशे में धुत थी. जोगेंद्र भी नशे में था. ज्योति प्रदीप का हाथ छुड़ाते हुए लड़खड़ाती आवाज में बोली, ‘‘तुम इतना फोन क्यों कर रहे थे? नाक में दम कर रखा था. तुम्हें कितनी बार मना किया है कि जब मैं कंपनी के काम से घर से बाहर रहूं तब बारबार फोन कर मुझे डिस्टर्ब मत किया करो. लेकिन तुम हो कि…’’

‘‘…अरे बच्चे खाने के लिए तुम्हारा इंतजार कर रहे थे.’’ धीमी आवाज में प्रदीप बोला.

‘‘तो क्या हुआ? उन्हें खाना पका कर खिलाया या यूं ही सो गए?’’ ज्योति नाराजगी दिखाती हुई बोली.

तभी जोगेंद्र बोला, ‘‘अच्छा ज्योति, मैं चलता हूं तुम आराम करो. तुम ने बहुत पी ली है.’’

‘‘अरे अकेले कहां जाएगा तू, मुझे भी तो तेरे साथ चलना है. थोड़ा दम तो लेने दे.’’ जोगेंद्र का हाथ खींचते हुए ज्योति बोली और उसे अपने साथ कमरे में पड़ी चारपाई पर बिठा लिया.

प्रदीप वहीं खड़ा रहा, जबकि ज्योति चारपाई पर पसर गई. लेटेलेटे प्रदीप से बोली,  ‘‘तुम ने तो मेरी पसंद का खाना पकाया नहीं होगा. मैं जोगेंद्र के साथ फिर वहीं दारोगा खेड़ा जा रही हूं. तुम्हारे और बच्चों के लिए खाना देने आई थी. हम ने कंपनी के काम की थकान उतारने के लिए वहीं दारू पी थी. अभी एक चौथाई बोतल बची है.’’

जोगेंद्र के कंधे का सहारा ले कर पसरी हुई ज्योति चारपाई पर बैठ गई. बोली, ‘‘चल जोगेंद्र, वहीं चलते हैं दारोगा खेड़ा के कमरे पर. फील्ड में जाने के लिए सुबह 7 बजे ही निकलना होगा. सामान भी तो वहीं पड़ा है. यहां से समय पर वहां पहुंचना मुश्किल है.’’

‘‘बच्चे पूछेंगे तब उन्हें क्या बोलूं?’’ प्रदीप बोला.

‘‘यह खाना तुम्हारे लिए है. रेस्टोरेंट का अच्छा खाना है. बच्चों को भी सुबह गर्म कर के खिला देना, खराब नहीं होगा. मैं वापस जा रही हूं. कल कंपनी की 9 बजे मीटिंग भी है. शाम तक वापस लौटूंगी. खाना बना कर रखना, जोगेंद्र के लिए भी.’’ ज्योति आदेश देने के अंदाज में बोली.

ज्योति प्रेमी के साथ छलकाने लगी जाम

ज्योति को जोगेंद्र के साथ जाने से प्रदीप रोक नहीं पाया. उस के सामने ही ज्योति जोगेंद्र के प्रति प्रेम दर्शाती रही. उस ने यहां तक कह दिया कि उस ने उस के साथ ही दारू पी है और रात भी उसी के साथ गुजारेगी.

दरअसल, ज्योति अब कहने भर को प्रदीप की ब्याहता थी. उस ने अपना प्रेमी तलाश लिया था. जब जी में आता था, उस के साथ कंपनी के काम के बहाने चली जाती थी. घर में शराब नहीं पीती थी, लेकिन बच्चों से छिपा कर सिगरेट जरूर पीने लगी थी.

कोरोना के बाद जब से ज्योति ने कंपनी का काम पकड़ा था, तब से ज्योति बहुत बदल गई थी. उस पर शहरी रंग चढ़ चुका था. फैशन भी करने लगी थी. उम्र 30-32 की हो चली थी, किंतु चालढाल और बनावशृंगार से वह 24-25 की ही दिखती थी. साड़ी जैसे पारंपरिक पहनावे के अलावा जींस टौप भी पहनने लगी थी.

जुबान कड़वी हो चुकी थी. छूटते ही मुंह से गाली निकलती थी. पति को तो कुछ समझती ही नहीं थी. जब भी वह गुस्से में होती, तब उसे मांबहन की गालियां बकनी शुरू कर देती थी.

और जब नशे में होती, तब प्रदीप को सैक्स के लिए परेशान कर देती थी. यौन संतुष्टि नहीं मिलने पर उसे पीट तक डालती थी. बातबात पर दबंगई दिखाती थी.