हनिट्रैप : अर्चना के चंगुल में कैसे फंसे विधायक – भाग 3

12वीं क्लास तक अपनी पढ़ाई पूरी कर के उस ने मां का हाथ बंटाने के लिए एक प्राइवेट सिक्योरिटी गार्ड की जौब कर ली थी. यहीं से अर्चना की तकदीर ने अपना रास्ता खोल लिया था.

अर्चना कमसिन और खूबसूरत थी. उस पर सिक्योरिटी एजेंसी के मालिक का दिल आ गया था और वह अपनी हवस मिटाना चाहता था. लेकिन अर्चना अपने मालिक की नीयत भांप चुकी थी और अपनी इज्जत बचाती हुई सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी छोड़ कर खुद का ब्यूटीपार्लर खोल लिया.

थोड़ी सी मेहनत से उस का पार्लर चल निकला और वह आर्थिक तंगी से निजात पाने लगी थी और अपनी कमाई में से अधिकांश अपनी मां को खर्च के लिए देती रही. यह 2017 की बात है.

इसी दौरान अर्चना के जीवन में एक और कहानी ने जगबंधु चांद के रूप में जन्म लिया, जहां से उस के जीवन का रुख ही बदल गया.

ओडिशा के ही बालासोर का रहने वाला जगबंधु चांद गांव में अपनी किराने की दुकान चलाता था. दुकान से अच्छी कमाई हो जाती थी लेकिन वह अपने इस काम से खुश नहीं था और गांव में उस का मन भी नहीं लगता था. जगबंधु चांद कुछ बड़ा करना चाहता था, जिस से वह कम समय में अमीर बन जाए.

अपने सपनों को पंख लगाए जगबंधु बालासोर से राजधानी भुवनेश्वर आ पहुंचा और यहां आ कर उस ने उसी इलाके में अपनी पुरानी कार बेचने की दुकान खोली जिस इलाके में अर्चना का ब्यूटीपार्लर था.

अर्चना अपनी मां के साथ खंडगिरी में किराए के कमरे में रहती थी. उसी रास्ते में वह ब्यूटीपार्लर जातीआती थी. इसे इत्तफाक ही कहा जाएगा, इसी क्षेत्र में जगबंधु चांद भी किराए का कमरा ले कर रहता था और उसी रास्ते से हो कर अपनी दुकान आताजाता था.

आतेजाते रास्ते में ही अकसर दोनों की मुलाकात हो जाया करती थी. यह मुलाकात धीरेधीरे परिचय में बदल गई. फिर दोनों में बातचीत होने लगी और फिर प्यार हो गया. साल 2018 में दोनों ने कोर्ट मैरिज कर ली और साथ में रहने लगे. अर्चना ने अपनी मां को साथ रख लिया था.

जगबंधु चांद पुरानी कार बेचने का धंधा करता था, इसलिए उस का परिचय शहर के बड़े व्यापारियों, विधायकों और नेताओं से था. जबकि उस की पत्नी अर्चना नाग, जो अब तक अर्चना नाग चांद बन चुकी थी, ब्यूटीपार्लर चलाती थी.

पार्लर में लड़कियां और औरतें आती थीं. वह ब्यूटीपार्लर चलती तो थी, लेकिन उस से उसे मनमुताबिक आमदनी नहीं होती थी और जगबंधु का भी बिजनैस कोई खास नहीं चलता था.

हालात को देखते हुए जगबंधु ने पत्नी को उस के व्यवसाय के ट्रेंड को बदलने की युक्ति समझाई, जिस से उन्हें अमीर बनने से कोई रोक नहीं सकता था. उसे पति की वह युक्ति पसंद आ गई.

उस के पार्लर में मेकअप के लिए कुछ ऐसी भी लड़कियां आती थीं, जिन के घरों में आर्थिक तंगी रहती थी लेकिन मेकअप कराने में वे पीछे नहीं हटती थीं. ऐसी ही मजबूर और बेबस युवतियों की अर्चना ने शिनाख्त कर के उन्हें देह व्यापार के धंधे में उतारने के लिए राजी कर लिया और उन्हें धंधे में उतारने लगी.

वह जान चुकी थी कि पेट की आग क्या होती है और जब पेट की आग धधकती है तो उसे शांत करने के लिए रोटी चाहिए होती है और रोटी के लिए पैसे. पैसे कैसे मिलते हैं, अर्चना से बेहतर और कौन समझ सकता था.

ब्यूटीपार्लर की ओट में अर्चना ने देह व्यापार का धंधा शुरू कर दिया था. उस के पीछे उस का पति जगबंधु खड़ा था. देह व्यापार के धंधे से उस के घर में नोटों की बारिश होने लगी. दोनों पतिपत्नी उस बारिश में खूब भीग रहे थे. वह इस धंधे को बड़े स्तर पर करना चाहते थे.

कुछ ऐसा करना चाहते थे जिस से जो कोई भी मोटी आसामी उन के जाल में एक बार फंस जाए, ताउम्र वह सोने के अंडे देने वाली मुरगी बनी रहे और वे मालामाल बनते रहें. अपने इस धंधे में जगबंधु ने एक और सहयोगी को जोड़ लिया, जिस का नाम था खगेश्वर नाथ.

अर्चना और जगबंधु के पास जब पैसे आए तो उस ने भुवनेश्वर के खंडगिरी के जगमरा न्यू रोड पर एक प्लौट लिया और पार्लर के उन जगहों पर गुप्त कैमरे फिट करा दिए.

जहां कहीं लड़कियां तैयार होती थीं. अथवा ग्राहकों को दैहिक सुख भोगने के लिए कमरे उपलब्ध कराती थीं तो उन के वीडियो शूट कर लेते थे और उसी वीडियो के जरिए लड़कियों को देह व्यापार के लिए यह कह कर मजबूत करते थे कि अगर उन की बात नहीं मानी तो वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया जाएगा.

लड़कियां डर कर अपनी इज्जत बचाने के लिए वही करती थीं, जो अर्चना नाग उन्हें करने को कहती थी. पुरुष भी उसे मुंहमांगी रकम देते थे ताकि उन की इज्जत बची रहे.

देखने में भोलीभाली और बला की खूबसूरत अर्चना नाग, अब तक ऐसी जहरीली नागिन बन चुकी थी कि उस के काटे से कोई पानी नहीं मांगता था बल्कि इज्जत के हमाम में मरने के लिए मजबूर हो जाता था.

वह साल 2019 का था, जब अर्चना से महिमा की मुलाकात हुई थी. अर्चना ने अपने रसूख का ऐसा ट्रैप बिछाया, ऐसी मोहिनी मंत्र उस के सामने फेंका था कि वह उस की चिकनीचुपड़ी बातों में फंस गई.

महिमा यह नहीं जानती थी कि इज्जत की साड़ी में लिपटी सामने खड़ी यह औरत ऐसी नागिन बन चुकी है कि अपने मोहिनी रूप के जहर से अनगिनत बालाओं की जिंदगी बरबाद कर चुकी है, अब उस की बारी है.

जाल में ऐसे फंसी थी महिमा

मुलाकात के बाद एक दिन अर्चना ने महिमा को अपने घर पर खाने के लिए बुलाया था तो वह न नहीं कर सकी और खाने पर चली आई. बाहर से उस की आलीशान कोठी देख कर उस की आंखें फटी रह गई थीं. दरवाजे पर बड़ीबड़ी गाडि़यां, विदेशी नस्ल के 4-4 कुत्ते और सफेद रंग का एक घोड़ा था जो किसी राजामहाराजा की तरह प्रदर्शन कराता था.

महिमा जब घर के अंदर दाखिल हुई तो अंदर का वैभव देख कर चकित रह गई. घर के अंदर की चीजें काफी कीमती थीं. फर्श तो ऐसे चमक रहा था जैसे पांव रखते ही मैला हो जाएगा.

बहरहाल, अर्चना उसे एक कमरे में ले गई जहां एक बड़ा सा डाइनिंग टेबल बिछा था और उस के चारों ओर चमचमाती कुरसियां बिछी थीं. एक कुरसी पर खुद बैठती हुई अर्चना ने सामने की कुरसी पर महिमा को बैठने का इशारा किया. इशारा पा कर महिमा कुरसी पर बैठ गई. उस वक्त वहां दोनों के अलावा कोई और मौजूद नहीं था.

थोड़ी देर बाद नौकर 2 गिलासों में कोल्डड्रिंक लाया. दोनों कोल्डड्रिंक की चुस्की लेते हुए भविष्य की योजनाओं पर भी बातें करती रहीं.

बात करतेकरते कब घंटा बीत गया न तो अर्चना को पता चला और न ही महिमा को. इस के बाद नौकर खाना ले आया. दोनों ने साथ मिल कर खाना खाया. खाना खातेखाते महिमा का सिर भारी हो गया और उस की आंखें बोझिल हो झपकने लगीं. वह जहां बैठी थी, वहीं बैठेबैठे सो गई.

जब उस की आंखें खुलीं तो उस ने खुद को एक कमरे में बिस्तर पर पाया. सिर उस का अभी भी भारी था और आंखें अधखुली थीं. वह समझ नहीं पा रही थी कि उस के साथ क्या हो रहा था. जब उस की खुद पर पड़ी तो वह बुरी तरह चौंक गई. उस के शरीर पर एक भी कपड़ा नहीं था.

वह पूरी तरह से नग्न थी. तब तक कमरे में अर्चना दाखिल हो चुकी थी. उस के साथ उस का पति जगबंधु चांद और उस का साथी खगेश्वर नाथ भी था. तीनों को एक साथ देख कर वह समझ गई कि अर्चना ने उस के साथ धोखा किया है.

प्यार और इंतकाम के लिए मौत की अनोखी साजिश – भाग 3

अजय ठाकुर के नंबर पर लगातार सर्विलांस की मदद से निगाह रखी जाने लगीं. पुलिस ने अजय ठाकुर के घर से उस का फोटो व अन्य जानकारियां हासिल कर ली थीं.

इंसपेक्टर अनिल राजपूत को पहली दिसंबर, 2022 की दोपहर एसआई उपेंद्र कुमार ने बताया कि अजय पाल शाम को चार मूर्ति गोल चक्कर के पास किसी से मिलने के लिए आने वाला है.

सूचना चूंकि सर्विलांस की मदद से और एक ऐसे व्यक्ति के जरिए मिली थी, जो अजय ठाकुर के लगातार संपर्क में था, इसलिए संदेह की गुंजाइश नहीं थी.

शाम को 4 बजे से ही पुलिस ने उस इलाके में जाल बिछा कर घेराबंदी कर दी, जहां अजय ठाकुर के आने की सूचना मिली थी. पुलिस का टारगेट वो इंसान था, जिस से अजय मिलने आने वाला था.

शाम को 8 बजे इंतजार की घडि़यां खत्म हुईं. बाइक पर सवार हो कर अजय ठाकुर जब अपने परिचित से मिलने पहुंचा तो उस के साथ एक युवती भी थी. पुलिस ने दोनों को दबोच लिया.

अजय ठाकुर को पकड़ते ही इंसपेक्टर अनिल राजपूत का उस से पहला सवाल था, ‘‘हेमलता कहां है? कहां छिपा रखा है उसे.’’

पुलिस के चंगुल में फंसते ही अजय के पांवों तले से जमीन खिसक गई. सकपकाए अजय को समझ ही नहीं आया कि वो क्या करे.

हकलाते हुए उस ने जवाब दिया, ‘‘कौन हेमलता साहब, मैं किसी हेमलता को नहीं जानता तो उसे छिपाऊंगा क्यों?’’

‘‘लगता है ये ऐसे नहीं बताएगा. थाने ले चलो इसे. वहीं इसे सब याद आ जाएगा.’’ इंसपेक्टर राजपूत ने कहा.

पुलिस दोनों को पकड़ कर बिसरख थाने ले आई. तब तक पुलिस को ये पता ही नहीं था कि उस के साथ जो लड़की है, वो कौन है. अलबत्ता थाने ला कर जब दोनों की तलाशी ली गई तो पुलिस को अजय ठाकुर की जेब से एक मैरिज सर्टिफिकेट मिला, जो उस युवती के साथ अजय की अदालत में रजिस्टर्ड हुई मैरिज का था, जो उस के साथ थी. सर्टिफिकेट पर अजय के साथ युवती का नाम पायल लिखा था.

मैरिज सर्टिफिकेट देख कर अनिल राजपूत का दिमाग भी घूम गया. क्योंकि शादीशुदा अजय ठाकुर अपनी पत्नी और बच्चों के रहते दूसरी शादी कैसे कर सकता था. इंसपेक्टर राजपूत का दिमाग घूमने की सब से बड़ी वजह यह थी कि जिस लड़की से उस ने शादी की थी, वो पायल थी. वही पायल, जिस के घर के पास हेमलता और राकेश के फोन की लोकेशन मिली थी. जिस रात वह गायब हुई थी.

सब से हैरानी की बात यह थी कि पायल की तो मौत हो चुकी थी. अगर पायल सहीसलामत है तो उस के घर में जो लड़की मृत पाई गई थी, वो कौन थी.

एसएचओ अनिल राजपूत ने महिला पुलिस के माध्यम से पायल के साथ पूछताछ की और उस के परिवार की जानकारी ले कर बढपुरा गांव से उस के भाइयों व दादा को बुलवा लिया.

थाने में आने के बाद जब परिवार ने पायल को जिंदा देखा तो सब के पांवों तले की जमीन खिसक गई. घर की जिस बेटी को मृत समझ कर वे उस का अंतिम संस्कार, यहां तक कि तेरहवीं कर चुके थे, वो आखिर जिंदा कैसे हो गई. उन्होंने इंसपेक्टर राजपूत को पायल की खुदकुशी के बारे में सब कुछ बता दिया तो माजरा कुछकुछ उन की समझ में आ गया.  अजय ठाकुर और पायल भाटी से जब सख्ती से पूछताछ की गई तो सारी कहानी सामने आ गई.

पुलिस पूछताछ में सामने आया कि कि पायल भाटी ने कैसे अपने प्रेमी अजय ठाकुर के साथ जिंदगी बिताने और अपने मातापिता की मौत के जिम्मेदार लोगों से इंतकाम लेने के लिए एक फिल्मी साजिश रच कर एक बेगुनाह लड़की का कत्ल कर दिया. इस के बाद उस की लाश को अपनी पहचान दे कर खुद को मरा हुआ साबित कर दिया.

अजय और उस की प्रेमिका पायल ने उगल दी कहानी

पायल और अजय ठाकुर से पूछताछ के बाद इंसपेक्टर अनिल राजपूत ने एसीपी अरविंद कुमार और एडीशनल डीसीपी साद मियां खान को विस्तार से इस पूरे घटनाक्रम के बारे में बताया. वे भी तत्काल थाने पहुंच गए.

जिस हेमलता की वे गुमशुदा मान कर तलाश की रहे थे, उस की हत्या हो चुकी थी. इतना ही नहीं उस के शव का अंतिम संस्कार भी हो चुका था. लिहाजा सबूतों की तलाश में पुलिस की टीम फोरैंसिक टीम को ले कर पायल के घर पहुंची.

टीम ने उस के पूरे घर के साथ उस कमरे को बारीकी से खंगाला, जहां हेमलता की हत्या कर उसे अपने कपड़े पहना दिए थे और उसे खुदकुशी का रंग दे दिया था.

वारदात को 18 दिन बीत जाने के बाद भी पुलिस को पायल के घर की सीढि़यों से खून के कुछ सूखे हुए निशान मिल गए, जो शायद हेमा के खून के थे.

पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में पायल ने बताया कि मातापिता की मौत के बाद वह बुरी तरह टूट गई थी. लेकिन कुछ दिन बाद ही उस की जानपहचान फेसबुक के जरिए सिकंदराबाद के रहने वाले अजय ठाकुर से हुई.

पहली ही नजर में अजय उस के दिल को भा गया. पायल फेसबुक और इंस्टाग्राम पर दिल टूटने वाली शायरी और ऐसे ही वीडियो बना कर डालती थी, जो अजय को बहुत पसंद आते थे.

फेसबुक की जानपहचान जल्द ही मुलाकात में बदल गई और मिलतेजुलते न जाने कब वो एकदूसरे को दिल दे बैठे, पता ही नहीं चला. उन्हें अहसास तब हुआ जब दोनों का एकदूसरे के बिना कुछ भी अच्छा नहीं लगता.

इस के बाद दोनों ने साथ जीनेमरने की कसमें खानी शुरू कर दीं. अजय शादीशुदा और 2 बच्चों का बाप था, यह बात उस ने पायल को साफ बता दी. लेकिन उस ने यह भी कहा कि अगर वो उस की बनने के लिए तैयार है तो वह पत्नीबच्चे और परिवार सब कुछ छोड़ देगा.

प्रेमी अजय से शादी के खिलाफ थे घर वाले

ऐसा प्यार करने वाला किसी लड़की को मिल जाए तो कौन उससे दूर होना चाहेगा. अजय को अपना बनाने के लिए पायल ने अपने भाइयों से जब उस के बारे में बात की तो उन्होंने अपने चाचा, ताऊ और दादा से जिक्र किया.

उन्हें जब पता चला कि पायल एक शादीशुदा लड़के के प्यार में पड़ गई है तो उन्होंने उसे डांटफटकार कर साफ मना कर दिया कि किसी भी हालत में अजय से उस की शादी नहीं हो सकती वो उसे भूल जाए.

मां के लिए बेटियां बनी अपराधी – भाग 2

भरतपुर के सरकारी अस्पताल से नवजात लड़का चोरी होने की घटना से पूरे अस्पताल में सनसनी फैल गई. मनीषा के ताया ससुर सद्दीक ने इस की सूचना मथुरा गेट थाना पुलिस को दी. पुलिस ने अपहरण का मामला दर्ज कर लिया.

पुलिस ने अस्पताल पहुंच कर जांचपड़ताल की. अस्पताल के बाहर वाहन पार्किंग वाले से पूछताछ में पता चला कि जिस स्कूटी पर दोनों युवतियां गई हैं, उस का नंबर 1361 है. यह नंबर पार्किंग वाले के पास रहने वाली आधी पर्ची पर लिखा मिला.

पार्किंग वाले ने वाहन की सीरीज व जिले का कोड नंबर नहीं लिखा था. पुलिस ने अस्पताल के अंदरबाहर और आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की रिकौर्डिंग खंगाली. कैमरों की फुटेज में एक युवती गोद में बच्चा लिए हुए जाती नजर आई.

पुलिस के पास जांच करने के लिए केवल सफेद रंग की स्कूटी का नंबर 1361 था. पुलिस को इसी के सहारे अपनी जांच करनी थी. भरतपुर के एसपी अनिल कुमार टांक ने मामले को गंभीरता से लेते हुए एडीशनल एसपी सुरेश खींची और डीएसपी (सिटी) आवड़दान रत्नू के नेतृत्व में कई पुलिस टीमें गठित कीं.

पुलिस टीमों ने स्कूटी के अलावा रंजिशवश ऐसी वारदात करने और दूसरे कारणों को भी ध्यान में रखा. पुलिस को यह भी शक हुआ कि किसी पारिवारिक रंजिशवश तो बच्चे का अपहरण नहीं हुआ. इसी अस्पताल में उसी दिन एक प्रसूता के 2 जुड़वां नवजात बच्चों की मौत हो गई थी, इस एंगल पर भी बच्चा चोरी की आशंका को ध्यान में रख कर जांच की गई.

SOCIETY

पुलिस का ध्यान इस बात पर भी गया कि युवती जब बच्चा ले जा रही थी तो उसे समीना ने देख लिया था. इस से घबरा कर उस ने कहीं नवजात को भरतपुर की सुजानगंगा नहर में न फेंक दिया हो.

पुलिस की एक टीम ने परिवहन कार्यालय जा कर जांचपड़ताल की तो भरतपुर में 1361 नंबर की 2 स्कूटी मिलीं. ये दोनों स्कूटी लाल रंग की थीं, जबकि बच्चा चोरी में इस्तेमाल की गई स्कूटी सफेद रंग की थी. इस पर आसपास के जिलों के परिवहन कार्यालयों की मदद लेने का निर्णय लिया गया.

मथुरा गेट थानाप्रभारी राजेश पाठक के नेतृत्व में एक पुलिस टीम ने सुजानगंगा नहर और आसपास के इलाकों में नवजात की तलाश की, लेकिन कोई सुराग नहीं मिला. पुलिस ने प्रसूता मनीषा के गांव से भी जानकारी कराई कि कोई आपसी रंजिश का ऐसा मामला तो नहीं है, जिस के चलते नवजात का अपरहण कर लिया जाए.

दूसरे दिन पुलिस ने भरतपुर और आसपास के अस्पतालों व निजी नर्सिंगहोमों में बच्चे की तलाश की. पुलिस का मानना था कि नवजात की तबीयत ठीक नहीं है, इसलिए उसे किसी अस्पताल या नर्सिंगहोम में भरती कराया जा सकता है. लेकिन पुलिस को इस भागदौड़ में भी सफलता नहीं मिली.

जांच में एक तथ्य यह जरूर सामने आया कि बच्चे की अपहर्त्ता युवती एक दिन पहले और उस से पहले भी कई बार अस्पताल में रैकी करने आई थी. एक संभावना यह भी थी कि किसी की सूनी गोद भरने के लिए बच्चे की चोरी की गई हो.

पुलिस की एक टीम भरतपुर जिले के कुम्हेर भी भेजी गई. वहां 2 मृत बच्चों को जन्म देने वाली महिला बदहवास स्थिति में थी, इसलिए बच्चा चोरी की आशंका जताई गई थी, लेकिन वहां ऐसा कुछ नहीं मिला. फतेहपुर सीकरी में भी पुलिस टीम जांच करने गई, लेकिन नवजात का कोई सुराग नहीं मिला.

मामला उछलने पर दूसरे दिन पुलिस के साथ इस मामले की जांच बाल कल्याण समिति एवं अस्पताल प्रशासन ने भी शुरू की. अस्पताल प्रशासन ने जनाना अस्पताल की प्रभारी डा. ऊषा गुप्ता के नेतृत्व में 3 सदस्यीय जांच कमेटी बनाई.

पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज देखने के बाद उन रास्तों पर जांच शुरू की, जहां से बच्चे को ले जाया गया था. इसी क्रम में पुलिस की टीमें जांच के लिए मथुरा और आगरा भेजी गईं. भरतपुर के पास सब से बड़ा शहर मथुरा और आगरा है. पुलिस की एक टीम ने भरतपुर के वाहन शोरूमों पर पहुंच कर सफेद रंग की स्कूटी की बिक्री के रिकौर्ड की पड़ताल की. इस के अलावा निस्संतान दंपतियों और बावरिया बस्ती में भी नवजात की खोजबीन की गई.

तीसरे दिन अस्पताल प्रशासन ने प्रसूता मनीषा, उस की सास समीना, दादी सास, देवर व अन्य परिजनों से कई घंटे पूछताछ की. उधर नवजात बेटे का कोई अतापता नहीं मिलने पर मनीषा रोरो कर बेहाल हो गई थी.

भरतपुर से मथुरा गई पुलिस टीम को 12 जनवरी को वहां के परिवहन कार्यालय का रिकौर्ड देखने के बाद 1361 नंबर की सफेद रंग की एक स्कूटी के बारे में पता चला. यह स्कूटी यूपी85 सीरीज की थी. पुलिस को इस स्कूटी के मालिक का नामपता मिल गया.

इस बीच, 12 जनवरी को ही पूरे भरतपुर जिले में यह अफवाह तेजी से फैल गई कि अस्पताल से चोरी हुआ नवजात भरतपुर शहर के पास सरसों के एक खेत में पड़ा मिल गया है. यह अफवाह पुलिस तक पहुंची तो जांचपड़ताल की गई.

कई लोगों की काल डिटेल्स निकलवाई गईं. जांच में सामने आया कि मनीषा के मायके से फोन आया था. उन लोगों को भी यह बात किसी और ने बताई थी.

घटना के चौथे दिन यानी 13 जनवरी की सुबह भरतपुर से 15 किलोमीटर दूर सांतरुक की सड़क पर गोवर्धन नहर के किनारे झाडि़यों में कंबल में लिपटा एक नवजात बालक मिला. यह नवजात मनीषा का ही बेटा था, जो 10 जनवरी को भरतपुर के अस्पताल से चोरी हुआ था.

झाडि़यों में पड़े इस नवजात को 2 बाइक सवार युवकों ने देखा था. उन्होंने शोर मचाया तो आसपास के लोग एकत्र हो गए.

कभी-कभी ऐसा भी – भाग 2

मुझ में ज्यादा समझ तो नहीं थी लेकिन यह जरूर पता था कि जिंदगी में शार्टकट कहीं नहीं मारने चाहिए. उन से पहुंच तो आप जरूर जल्दी जाएंगे लेकिन बाद में लगेगा कि जल्दबाजी में गलत ही आ गए. कई बार घर पर भी ए.सी., फ्रिज, वाशिंग मशीन या अन्य किसी सामान की सर्विसिंग के लिए मेकैनिक बुलाओ तो वे भी अब यही कहने लगे हैं कि मैडम, बिल अगर नहीं बनवाएंगी तो थोड़ा कम पड़ जाएगा. बाकी तो फिर कंपनी के जो रेट हैं, वही देने पड़ेंगे.

श्रेयस हमेशा यह रास्ता अपनाने को मना करते हैं. कहते हैं कि थोड़े लालच की वजह से यह शार्टकट ठीक नहीं. अरे, यथोचित ढंग से बिल बनवाओ ताकि कोई समस्या हो तो कंपनी वालों को हड़का तो सको. वह आदमी तो अपनी बात से मुकर भी सकता है, कंपनी छोड़ कर इधरउधर जा भी सकता है मगर कंपनी भाग कर कहां जाएगी. इतना सब सोच कर मैं ने कहा, ‘‘नहीं, आप चालान की रसीद काटिए. मैं पूरा जुर्माना भरूंगी.’’

मेरे इस निर्णय से उन दोनों के चेहरे लटक गए, उन की जेबें जो गरम होने से रह गई थीं. मुझे उन का मायूस चेहरा देख कर वाकई बहुत अच्छा लगा. तभी मन में आया कि इनसान चाहे तो कुछ भी कर सकता है, जरूरत है अपने पर विश्वास की और पहल करने की.

वैसे तो श्रेयस के साथ के कई अफसर यहां थे और पापा के समय के भी कई अंकल मेरे जानकार थे. चाहती तो किसी को भी फोन कर के हेल्प ले सकती थी लेकिन श्रेयस के पीछे पहली बार घर संभालना पड़ रहा था और अब तो नईनई चुनौतियों का सामना खुद करने में मजा आने लगा था. ये आएदिन की मुश्किलें, मुसीबतें, जब इन्हें खुद हल करती थी तो जो खुशी और संतुष्टि मिलती उस का स्वाद वाकई कुछ और ही होता था.

पूरा जुर्माना अदा कर के आत्म- विश्वास से भरी जब थाने से बाहर निकल रही थी तो देखा कि 2 पुलिस वाले बड़ी बेदर्दी से 2 लड़कों को घसीट कर ला रहे थे. उन में से एक पुलिस वाला चीखता जा रहा था, ‘‘झूठ बोलते हो कि उन मैडम का पर्स तुम ने नहीं झपटा है.’’

‘‘नाक में दम कर रखा है तुम बाइक वालों ने. कभी किसी औरत की चेन तो कभी पर्स. झपट कर बाइक पर भागते हो कि किसी की पकड़ में नहीं आते. आज आए हो जैसेतैसे पकड़ में. तुम बाइक वालों की वजह से पुलिस विभाग बदनाम हो गया है. तुम्हारी वजह से कहीं नारी शक्ति प्रदर्शन किए जा रहे हैं तो कहीं मंत्रीजी के शहर में शांति बनाए रखने के फोन पर फोन आते रहते हैं. बस, अब तुम पकड़ में आए हो, अब देखना कैसे तुम से तुम्हारे पूरे गैंग का भंडाफोड़ हम करते हैं.’’

एक पुलिस वाला बके जा रहा था तो दूसरा कालर से घसीटता हुआ उन्हें थाने के अंदर ले जा रहा था. ऐसा दृश्य मैं ने तो सिर्फ फिल्मों में ही देखा था. डर के मारे मेरी तो घिग्गी ही बंध गई. नजर बचा कर साइड से निकलना चाहती थी कि बड़ी तेजी से आवाज आई, ‘‘मैडम, मैडम, अरे…अरे यह तो वही मैडम हैं…’’

मैं चौंकी कि यहां मुझे जानने वाला कौन आ गया. पीछे मुड़ कर देखा. बड़ी मुश्किल से पुलिस की गिरफ्त से खुद को छुड़ाते हुए वे दोनों लड़के मेरी तरफ लपके. मैं डर कर पीछे हटने लगी. अब जाने यह किस नई मुसीबत में फंस गई.

‘‘मैडम, आप ने हमें पहचाना नहीं,’’ उन में से एक बोला. मुझे देख कर कुछ अजीब सी उम्मीद दिखी उस के चेहरे पर.

‘‘मैं ने…आप को…’’ मैं असमंजस में थी…लग तो रहा था कि जरूर इन दोनों को कहीं देखा है. मगर कहां?

‘‘मैडम, हम वही दोनों हैं जिन्होंने अभी कुछ दिनों पहले आप की गाड़ी की स्टेपनी बदली थी, उस दिन जब बीच रास्ते में…याद आया आप को,’’ अब दूसरे ने मुझे याद दिलाने की कोशिश की.

उन के याद दिलाने पर सब याद आ गया. इस गाड़ी की वजह से मैं एक नहीं, कई बार मुश्किल में फंसी हूं. श्रेयस ने यहां से जाते वक्त कहा भी था, ‘एक ड्राइवर रख देता हूं, तुम्हें आसानी रहेगी. तुम अकेली कहांकहां आतीजाती रहोगी. बाहर के कामों व रास्तों की तुम्हें कुछ जानकारी भी नहीं है.’ मगर तब मैं ने ही यह कह कर मना कर दिया था कि अरे, मुझे ड्राइविंग आती तो है. फिर ड्राइवर की क्या जरूरत है.

रोजरोज मुझे कहीं जाना नहीं होता है. कभीकभी की जरूरत के लिए खामखां ही किसी को सारे वक्त सिर पर बिठाए रखूं. लेकिन बाद में लगा कि सिर्फ गाड़ी चलाना आने से ही कुछ नहीं होता. घर से बाहर निकलने पर एक महिला के लिए कई और भी मुसीबतें सामने आती हैं, जैसे आज यह आई और आज से करीब 2 महीने पहले वह आई थी.

उस दिन मेरी गाड़ी का बीच रास्ते में चलतेचलते ही टायर पंक्चर हो गया था. गाड़ी को एक तरफ रोकने के अलावा और कोई चारा नहीं था. बड़ी बेटी को उस की कोचिंग क्लास से लेने जा रही थी कि यह घटना घट गई. उस के फोन पर फोन आ रहे थे और मुझे कुछ सूझ ही नहीं रहा था कि क्या करूं.

गाड़ी में दूसरी स्टेपनी रखी तो थी लेकिन उसे लगाने वाला कोई चाहिए था. आसपास न कोई मैकेनिक शौप थी और न कोई मददगार. कितनी ही गाडि़यां, टेंपो, आटोरिक्शा आए और देखते हुए चले गए. मुझ में डर, घबराहट और चिंता बढ़ती जा रही थी. उधर, बेटी भी कोचिंग क्लास से बाहर खड़ी मेरा इंतजार कर रही थी. श्रेयस को फोन मिलाया तो वह फिर कहीं व्यस्त थे, सो खीझ कर बोले, ‘अरे, पूरबी, इसीलिए तुम से बोला था कि ड्राइवर रख लेते हैं…अब मैं यहां इतनी दूर से क्या करूं?’ कह कर उन्होंने फोन रख दिया.

काफी समय यों ही खड़ेखड़े निकल गया. तभी 2 लड़के मसीहा बन कर प्रकट हो गए. उन में से एक बाइक से उतर कर बोला, ‘मे आई हेल्प यू, मैडम?’

समझ में ही नहीं आया कि एकाएक क्या जवाब दूं. बस, मुंह से स्वत: ही निकल गया, ‘यस…प्लीज.’ और फिर 10 मिनट में ही दोनों लड़कों ने मेरी समस्या हल कर मुझे इतने बड़े संकट से उबार लिया. मैं तो तब उन दोनों लड़कों की इतनी कृतज्ञ हो गई कि बस, थैंक्स…थैंक्स ही कहती रही.

रुंधे गले से आभार व्यक्त करती हुई बोली थी, ‘‘तुम लोगों ने आज मेरी इतनी मदद की है कि लगता है कि इनसानियत और मानवता अभी इस दुनिया में हैं. इतनी देर से अकेली परेशान खड़ी थी मैं. कोई नहीं रुका मेरी मदद को.’’ थोड़ी देर बाद फिर श्रेयस का फोन आया तो उन्हें जब उन लड़कों के बारे में बताया तो वह भी बहुत आभारी हुए उन के. बोले, ‘जहां इस समाज में बुरे लोग हैं तो अच्छे लोगों की भी कमी नहीं है.’

और आज मेरे वे 2 मसीहा, मेरे मददगार इस हालत में थे. पहचानते ही तुरंत उन के पास आ कर बोली, ‘‘अरे, यह सब क्या है? तुम लोग इस हालत में. इंस्पेक्टर साहब, इन्हें क्यों पकड़ रखा है? ये बहुत अच्छे लड़के हैं.’’

‘‘अरे, मैडम, आप को नहीं पता. ये वे बाइक सवार हैं जिन की शिकायतें लेले के आप लोग आएदिन पुलिस थाने आया करते हैं. बमुश्किल आज ये पकड़ में आए हैं. बस, अब इन के संगसंग इन के पूरे गिरोह को भी पकड़ लेंगे और आप लोगों की शिकायतें दूर कर देंगे.’’

इतना बोल कर वे दोनों पुलिस वाले उन्हें खींचते हुए अंदर ले गए. मैं भी उन के पीछेपीछे हो ली.

मुझे अपने साथ खड़ा देख कर वे दोनों मेरी तरफ बड़ी उम्मीद से देखने लगे. फिर बोले, ‘‘मैडम, यकीन कीजिए, हम ने कुछ नहीं किया है. आप को तो पता है कि हम कैसे हैं. उन मैडम का पर्स झपट कर हम से आगे बाइक सवार ले जा रहे थे और उन मैडम ने हमें पकड़वा दिया. हम सचमुच निर्दोष हैं. हमें बचा लीजिए, प्लीज…’’

एक लड़का तो बच्चों की तरह जोरजोर से रोने लगा था. दूसरा बोला, ‘‘इंस्पेक्टर साहब, हम तो वहां से गुजर रहे थे बस. आप ने हमें पकड़ लिया. वे चोर तो भाग निकले. हमें छोड़ दीजिए. हम अच्छे घर के लड़के हैं. हमारे मम्मीपापा को पता चलेगा तो उन पर तो आफत ही आ जाएगी.’’

प्यार पर टूटा पंचायत का कहर – भाग 2

सोनी की एक झलक पाने के लिए वह बेताब था. पागलदीवानों की तरह वह यहांवहां भटकता फिरता था. उस की हालत देख कर मां जेलस देवी काफी परेशान रहती थी. मां ने भी बेटे को काफी समझाया कि उस ने जो किया, उसे समाजबिरादरी कभी मान्यता नहीं दे सकती. रिश्ते के बुआभतीजे की शादी को कोई स्वीकार नहीं करेगा. बेहतर है, तुम इसे बुरा सपना समझ कर भूल जाओ.

मगर हिमांशु मां की बात को मानने को तैयार नहीं था. उधर सोनी ने भी अपनी मां से कह दिया कि वह हिमांशु के अलावा किसी और लड़के से शादीनहीं करेगी. मां ने बहुत समझाया लेकिन प्रेम में अंधी सोनी की समझ में नहीं आया. वह अपनी जिद पर अड़ी रही.

मां भी क्या करती, जब समझातेसमझाते वह थक गई तो उस ने कुछ भी कहना छोड़ दिया. काफी देर बाद सोनी की समझ में आया कि उसे आजादी पानी है तो पहले घर वालों को विश्वास दिलाना होगा कि वह हिमांशु को पूरी तरह भूल चुकी है. घर वालों को जब उस पर विश्वास हो जाएगा तब वह इस का फायदा उठा कर हिमांशु तक पहुंच सकती है. अगर एक बार वह उस के पास पहुंच गई तो उसे कोई रोक नहीं पाएगा.

ये दिमाग में विचार आते ही सोनी का चेहरा खिल उठा और वह घडि़याली आंसू बहाते हुए मां की गोद में जा कर समा गई, ‘‘मां मुझे माफ कर दो. वाकई मुझ से बड़ी भूल हो गई थी. मैं ने आप की बात नहीं मानी, इसलिए आप के मानसम्मान को ठेस पहुंची. मेरी ही वजह से आप को और पापा को बेइज्जती का सामना करना पड़ा. पता नहीं ये सब कैसे हो गया. बताओ अब मैं क्या करूं.’’

‘‘देख बेटी, सुबह का भूला शाम को घर लौट आए तो उसे भूला नहीं कहते. फिर तू तो मेरा अपना खून है.’’ मां ने सोनी को समझाया, ‘‘मैं तो कहती हूं बेटी कि जो हुआ उसे बुरा सपना समझ कर भूल जा. तेरी शादी मैं अच्छे से अच्छे खानदान में करूंगी.’’

उस के बाद मांबेटी एकदूसरे के गले मिल कर पश्चाताप के आंसू पोंछती रहीं. मां को विश्वास में ले कर सोनी मन ही मन खुश थी. उस के होंठों पर एक अजीब सी कुटिल मुसकान थिरक उठी थी.

मांबाप को भी जब पक्का यकीन हो गया कि सोनी ने हिमांशु से बात तक करनी बंद कर दी है तो उन्होंने धीरेधीरे उस के ऊपर की पाबंदी हटा ली. पिता परमानंद अब उस के लिए लड़का ढूंढने लगे ताकि वह अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो सकें.

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परमानंद को इस बात की जरा भी भनक नहीं थी, उन की बेटी मांबाप की आंखों में धूल झोंक रही है. जबकि उस की योजना प्रेमी के साथ फुर्र हो जाने की है.

योजना मुताबिक, सोनी ने मां के सामने ननिहाल जाने की इच्छा प्रकट की तो मां उसे मना नहीं कर सकी. सोचा कि बेटी ननिहाल घूम आएगी तो मन भी बदल जाएगा. यही सोच कर सितंबर, 2016 में उसे बेटे के साथ ननिहाल भेजवा दिया.

ननिहाल पहुंचते ही सोनी आजाद पंछी की तरह हो गई. उस ने हिमांशु को फोन कर दिया कि वह ननिहाल में आ गई है. यहां उस पर किसी तरह की कोई पाबंदी या बंदिश नहीं है. इसलिए वह यहां आ कर उस से मिल सकता है. यह खबर मिलते ही हिमांशु उस की ननिहाल पहुंच गया.

महीनों बाद दोनों एकदूसरे से मिले थे. उन्होंने पहले जी भर कर एकदूसरे को प्यार किया. उसी वक्त सोनी ने हिमांशु से कह दिया कि वह उस के बिना जी नहीं सकती. वो उसे यहां से कहीं दूर ऐसी जगह ले चले, जहां उन के अलावा कोई तीसरा न हो. हिमांशु भी यही चाहता था कि सोनी को ले कर वह इतनी दूर चला जाए, जहां अपनों का साया तक न पहुंच सके.

सोनी घर से भागने के लिए हिमांशु पर दबाव बनाने लगी. प्यार के सामने विवश हिमांशु यार दोस्तों से कुछ रुपयों का बंदोबस्त कर के उसे ले कर दिल्ली भाग गया. परमानंद को जब पता चला तो वह आगबबूला हो उठा. उस ने हिमांशु और उस के घर वालों के खिलाफ कजरैली थाने में बेटी के अपहरण का मुकदमा दर्ज करा दिया.

अपहरण का मुकदमा दर्ज होते ही कजरैली  थाने की पुलिस सक्रिय हुई. पुलिस ने हिमांशु के घर पर दबिश दी. हिमांशु घर से गायब मिला तो पुलिस हिमांशु की मां जेलस देवी को थाने ले आई. उस से सख्ती से पूछताछ की लेकिन वह कुछ नहीं बता पाई. तब पुलिस ने जेलस देवी को घर भेज दिया.

कई महीने बाद भी जब सोनी का पता नहीं चला तो पुलिस हिमांशु और सोनी को हाजिर कराने के लिए जेलस देवी पर बारबार दबाव बनाती रही. कहीं से यह बात हिमांशु को पता चल गई कि पुलिस उस की मां को बारबार परेशान कर रही है. तब 8 महीने बाद हिमांशु सोनी को ले कर घर लौट आया.

सोनी ने अदालत में हाजिर हो कर न्यायाधीश के सामने यह बयान दिया कि वह बालिग हो चुकी है. अपनी मनमरजी से कहीं आजा सकती है. उसे अच्छेबुरे का ज्ञान है. अब रही बात मेरे अपहरण करने की तो मैं अपने मरजी से ननिहाल गई थी. वहीं रह रही थी, हिमांशु ने मेरा अपहरण नहीं किया था. बल्कि मैं अपनी मरजी से कहीं गई थी. हिमांशु निर्दोष है.

भरी अदालत में सोनी के बयान सुन कर परमानंद और उन के साथ आए लोग दंग रह गए, क्योंकि उस ने हिमांशु के पक्ष में बयान दिया था. सोनी के बयान के आधार पर अदालत ने उसे मुक्त दिया.

यह सब सोनी की वजह से ही हुआ था. इसलिए परमानंद भीतर ही भीतर जलभुन कर रह गया. उस समय तो उस ने समझदारी से काम लिया. वह सोनी को ले कर घर आ गया और हिमांशु अपने घर चला गया. घर ला कर परमानंद ने सोनी को बंद कमरे में खूब मारापीटा. फिर उसे उसी कमरे में बंद कर के बाहर से ताला लगा दिया.

इस के बाद परमानंद ने ठान लिया कि हिमांशु की वजह से ही पूरे समाज में उस के परिवार की नाक कटी है, इसलिए वह उसे ऐसा सबक सिखाएगा कि सब देखते रह जाएंगे. वह धीरेधीरे गांव के लोगों को भी हिमांशु के खिलाफ भड़काने लगा कि उस की वजह से ही पूरे गांव की बदनामी हुई है.

घर से निकलते ही – भाग 2

प्रदीप उस का जरा भी विरोध नहीं कर पाता था. इस का कारण था कि वह घर का काफी खर्च अपने सिर उठाए हुए थी. वह उस से अधिक कमाई कर रही थी. उसे लगता था कि जैसे वह घरपरिवार की झंझटों से फ्री हो गई हो.

दूसरी तरफ प्रदीप सुस्त मिजाज का आलसी इंसान था. उस के पास कोई ठोस कामधंधा नहीं था. जो कुछ काम जानता था, वह कोरोना की भेंट चढ़ गया था. ज्योति की निगाह में वह एकदम निखट्टू था.

प्रदीप उसी के पास के गांव का रहने वाला 35-36 का था. हालांकि वह हंसमुख, मिलनसार और स्वभाव का सरल व्यक्ति था. वह ज्योति की तरह खुले विचारों का नहीं था.

यही कारण था कि ज्योति हर समय उस की नाक में दम किए रहती थी. प्रदीप ने मात्र इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई की थी. वह एक समय में बंटाई पर खेतीबाड़ी किया करता था. वही उस के परिवार के लिए आमदनी का जरिया था.

परिवार में उस का बड़ा भाई महेंद्र सिंह था. बनी गांव के संतोष सिंह की बेटी ज्योति के साथ उस का विवाह साल 2012 में हुआ था. उस ने भी इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई की थी. पढ़ाई के दरम्यान ही उस के दिमाग में आत्मनिर्भर बनने की बात बैठ गई थी. वह नौकरी करना चाहती थी.

विवाह के बाद उस के सपने एक तरह से मिटने लगे थे. जल्द ही बेटी की मां बन गई. फिर 2 साल बाद बेटा पैदा हुआ. 2 साल बाद उस ने एक और बच्चे को जन्म दिया.

शादी के कुछ साल बाद से ही उस का मन घर से बाहर निकल कर काम करने के लिए बेचैन रहता था. 5-6 सालों में घर का खर्च भी बढ़ने लगा था. इस के लिए उस ने पति को मना लिया कि वह शहर में कहीं काम तलाश करेगी.

वह प्रदीप के साथ सासससुर से नजर बचा कर कंपनियों में काम की तलाश में लगी रहती थी. प्रदीप पर भी नौकरी खोजने के लिए दबाव डालती थी. कई बार इस बात को ले कर उन के बीच बहस भी हो जाती थी.

पति लगने लगा निठल्ला

इस बहस और विवाद के चलते ज्योति ने प्रदीप को निठल्ला कह कर ताने मारने शुरू कर दिए थे. वह कहती थी, ‘‘खुद तो निठल्ले पडे़ रहते हो. अगर तुम्हारी बहुत जानपचान है तो मुझे भी किसी स्कूल या कंपनी में 8-10 हजार की नौकरी का इंतजाम क्यों नहीं करवा देते हो?’’

इस ताने से तंग आ कर प्रदीप ने ईरिक्शा चलाने का निर्णय ले लिया. उस ने अपने बड़े भाई महेंद्र सिंह के एक परिचित की मदद से मोहनलाल गंज से 50 हजार रुपए में एक ईरिक्शा निकलवा लिया. बाकी की किस्त बन गई थी.

महेंद्र की मदद से प्रदीप रिक्शा चलाने लगा था. गांव से शहर तक आनेजाने की सवारियां होती थीं. उन में स्कूल जाने वाली लड़कियां और गांव के मजदूर भी होते थे.

दोपहर तक फेरे लगाने के बाद बैटरी चार्ज करने के लिए घर चला आता था. दोबारा 3 बजे निकलता था और शाम के 7 बजे तक वापस आ जाता था. मोहनलालगंज के धनवारा गांव तक आने के कारण उस की आमदनी ठीकठाक होने लगी थी.

कुछ महीने गुजर जाने के बाद ज्योति फिर से पति पर दबाव बनाने लगी कि उसे शहर में कोई काम दिलवा दे या कोई छोटामोटा धंधा ही करवा दे. उस ने तर्क दिया कि अब तो ईरिक्शा भी है. शाम को साथसाथ उस पर वापस लौट आएगी. प्रदीप को उस का सुझाव पसंद आया और उस ने हामी भर दी. वह पत्नी के लिए काम की तलाश करने लगा.

ज्योति के कहने पर ही प्रदीप ने बड़ी बेटी और बेटे को मोहनलालगंज के एक स्कूल में दाखिला करवा दिया था. प्रदीप को रिक्शा चलाते हुए करीब 9 महीने निकल गए. उस की बाकी किस्तें भी चुका दीं. उन्हीं दिनों उस की जानपहचान दारोगा खेड़ा निवासी जोगेंद्र सिंह चौहान से हो गई. वह उस के ननिहाल से रिश्ते में ममेरा भाई लगता था.

उन्नाव जिले के सोहरामऊ के गांव बल्लूखेड़ा का मूल निवासी जोगेंद्र 40 साल का हट्टाकट्टा मर्द था. मजबूत कदकाठी के साथसाथ आकर्षक व्यक्तित्व का था. वह  उन दिनों बंथरा थाना क्षेत्र में एक नेटवर्किंग कंपनी में काम करता था. इस कारण वह अलग से किराए का कमरा ले कर रह रहा था.

इस कंपनी में उस की मार्केटिंग टीम थी. टीम के लड़केलड़कियों और शादीशुदा औरतें घरघर जा कर सदस्य बनाने का काम करती थीं.

प्रदीप ने अपनी पत्नी ज्योति के बारे में जोगेंद्र सिंह से बात की. जोगेंद्र ने अपने फुफेरे भाई के आग्रह को गंभीरता से लिया. उस की सीनियर से सिफारिश कर ज्योति को भी कंपनी में काम मिल गया.

संयोग से ज्योति जोगेंद्र सिंह के अंडर में काम करने लगी. जोगेंद्र लड़कियों के रोजमर्रा के उपयोग की चीजों की सप्लाई का काम स्वयं करता था.

इस तरह ज्योति मन लगा कर काम करने लगी. कहने को तो जोगेंद्र उस का रिश्ते में जेठ लगता था, लेकिन बहुत जल्द ही उस से घुलमिल गई. उसे नाम ले कर बुलाने लगी और साथसाथ उठनेबैठने लगी.

लिवइन में रहकर बेटी और बहू पर बुरी नजर – भाग 2

एक दिन जैसे ही पूनम के पिता पुरोहिताई में घर से बाहर निकले तो एक पड़ोसी ने टोका, ‘‘क्यों पंडितजी, बेटी का ब्याह घर में बैठने के लिए किए थे? समाज में कोई मानमार्यादा है या नहीं?’’

दरवाजे की ओट में बैठी पूनम अपने बेटी को दूध पिला रही थी. पिता से इस तरह की गई बात उसे चुभ गई. उस के पिता ने कोई जवाब नहीं दिया, लेकिन एक नजर उसे देखते हुए तेज कदमों निकल गए.

अगले दिन ही पड़ोस की चाची आई और मांबाबूजी को ताना मारती हुई बोली, ‘‘का हो पंडिताइन नतिनी के बयाह ताही करबहूं की?’’

‘‘ऐसा काहे बोलती हो? अभी नतनी 3 महीना के है.’’

‘‘पूनम के दूल्हा कहां है? बेटी जन्म लेवे पर कोय हालचाल लेवे नहीं आया, ऐही से कहलियो. हमर बात के बुरा मता मानिह…’’

‘‘आइथिन कैसे नय! दिल्ली यहीं है? आबेजाय में खरचा हय…समय लाग हय…तोर बेटिया के ससुराल सुलतानपुर जैसन थोड़े हय कि कुछो गाड़ीघोड़ा से घंटा भर में आ जाय.’’ पूनम की मां ने जवाब दिया.

पूनम को अपने पड़ोस में चाची की बात बहुत बुरी लगी. उस के जाते ही वह बोली, ‘‘माई गे 1000 रुपया के इंतजाम कर दे हम दिल्ली जायम.’’

‘‘तू दिल्ली जयबे? कैसे? दूल्हा के पता मालूम हउ?’’ पूनम की मां बोली.

‘‘हां गे माई, ससुराल से अबे घड़ लक्ष्मी नगर बोललथिन.’’ पूनम बोली.

‘‘कहां खोजवहीं? पूनम की मां ने प्रश्न किया.

‘‘कल्लू के साथे रह हथिन न! उ ओहजे मदर डेरी के बगल में काम कर हथिन.’’ पूनम ने मां को समझाया.

‘‘अच्छा आवे दे बाबूजी के… सांझ के बोलवउ.’’ मां ने कहा.

पूनम की मां ने उसे आश्वासन दिया. शाम को जैसे ही पंडित जी आए, उन्होंने पूनम के बारे बात की. पहले तो वह यह सुन कर तमतमा गए. सिर्फ इतना कह पाए, ‘अकेले गोदी में बच्चा के ले कर कैसे जाएगी?’

इस पर पूनम की मां ने ही बताया कि मोहल्ले का एक लड़का 2 दिन बाद दिल्ली जा रहा है. उस के साथ पूनम जा सकती है. वह भरोसे का लड़का है. वहीं लक्ष्मी नगर में ही पढ़ता है. उस से बात भी कर ली है.

‘‘जब तुम मांबेटी ने पहले से ही मन बना लिया है तो मुझ से पूछने की क्या जरूरत?’’ पंडितजी बोले.

‘‘जाय खातिर कुछ पैसा चाहिए.’’

‘‘अच्छाअच्छा! केतान में हो जयतइ?’’ पंडितजी के इतना कहने पर कमरे के बाहर दरवाजे पर कान लगाए पूनम के चेहरे पर चमक आ गई. वहीं से बोल पड़ी, ‘‘जादे नय बाबूजी एक हजार रुपया, 3 सौ रुपया हमारो पास हकय.’’

‘‘अरे ओतना में की होतव…साथ में बच्चा हकउ… ओकर चिंता मत कर…आजे यजमान के हिंआ से दक्षिणा के पैसा मिललउ है…ले देख तो एकरा में केतना है?’’ यह कहते हुए पंडितजी ने कमर से खोंसी हुई छोटी सी थैली निकाल कर पूनम को दे दी. पूनम थैली ले कर उन के सामने ही 10, 20, 50, 100 के नोट और सिक्के निकाल कर गिनने लगी, ‘‘1800 रुपया.’’

‘‘सिक्का गिन…’’

‘‘350 रुपया.’’

‘‘सब रख ले. खुदरा पैसा है, रास्ता में काम अइतव…थैली भी रख ले…कल्हे बउवा और तोरा लगी नया कपड़ा ला देवअ.’’ पंडितजी बोले.

‘‘जी बाबूजी!‘‘ बोलती हुई पंडितजी के गले लग गई. उस की आंखों से आंसू आ गए.

‘‘अगे अभीए काहे रावे हें…जाय में अभी 2 दिना बाकी हकउ.’’ कह कर उस की मां अपनी आंचल से पूनम के गालों पर आए आंसू पोछने लगी.

…और फिर पूनम 2 दिन बाद भागलपुर से नई दिल्ली को आने वाली विक्रमशिला एक्सप्रेस से जाने के लिए जमालपुर जंक्शन स्टेशन पर आ गई थी. उस ने जनरल का टिकट ले लिया था. संयोग से उसी ट्रेन से जाने वाले लड़के का कोच जनरल डिब्बे से सटा हुआ था. ट्रेन समय से जमालपुर से चल दी थी.

ट्रेन सुबहसुबह नई दिल्ली आ गई थी. पूनम के साथ आए लड़के की मदद से पांडव नगर स्थित मदर डेयरी पहुंच गई. लड़का वहां से अपने ठहरने वाली जगह चला गया, जबकि पूनम ने कल्लू के बारे में पता करने लगी.

कल्लू तो मिल गया, लेकिन उस ने बताया कि उस का पति सुखदेव तिवारी अब उस के साथ नहीं रहता है. वह गाजियाबाद की किसी फैक्ट्री में काम करता है, इसलिए वहीं रहने चला गया है.

पूनम की गोद में नवजात बच्चा देख कर कल्लू ने पूछा, ‘‘तुम्हारा कोई और रहने का ठिकाना है?’’

पूनम ने ‘न’ में सिर हिला दिया. इस पर कल्लू उस से अपने किराए के कमरे पर ले गया, जो पास में ही था. छोटे से कमरे में ही एक स्लैब पर स्टोव और कुछ बरतन थे. कल्लू ने कहा अभी यहीं थोड़ा आराम कर ले. पहले वह उस के लिए इधर ही कहीं कोई कमरा दिलवा देगा. फिर सुखदेव के बारे में पता करेगा.

शाम को जब कल्लू अपने कमरे पर आया तब साफसुथरा घर देख कर चौंक गया. स्लैब पर करीने से धुले बरतन सजे हुए थे. स्टोव भी चमक रहा था. बिछावन ढंग से बिछे हुए थे. इधरउधर बिखरे कपड़े अलमारी में तह लगाए गए थे. बच्ची सो रही थी.

कल्लू खुश हो कर बोला, ‘‘अरे वाह! तुम ने तो हमारे घर को चमका दिया. यही होता है किसी औरत के घर में आने का असर. बच्ची ने दूध पिया? तुम ने कुछ खाया?’’

‘‘हां, नीचे दुकान से दूध लाई थी, आटा भी लाई. आलू यहीं थे. खाना पका दिया है है, परोस दूं?’’ पूनम झेंपती हुई बोली.

‘‘अरे इतना सब कुछ कर लिया?’’ कल्लू बोला.

‘‘…दूध भी बचा है, चाय पीनी हो तो बोलिए?’’ पूनम बोली.

‘‘मैं ने तुम्हारे लिए भी पास में ही एक कमरा देख लिया है, चलो दिखाए देता हूं.’’ कल्लू बोला.

‘‘पहले कुछ खा लीजिए.’’ पूनम बोली.

‘‘आ कर खाऊंगा…पहले कमरा देख लेता हूं…’’ कल्लू बोला.

‘‘जी अच्छा!’’ पूनम बोली.

संयोग से उन लोगों की आवाज सुन कर सो रही बच्ची भी जाग गई.

कविता : अपनी ही पत्नी की हत्या करने पर क्यों मजबूर हुआ विभाष

विभाष ने पक्का निश्चय कर लिया कि भले ही उसे नौकरी छोड़नी पड़े, लेकिन अब वह दिल्ली में बिलकुल नहीं रहेगा. संयोग अच्छा था कि उसे नौकरी नहीं छोड़नी पड़ी. मैनेजमेंट ने खुद ही उस का लखनऊ स्थित ब्रांच में ट्रांसफर कर दिया.

विभाष के लिए यह दोहरी खुशी इसलिए थी, क्योंकि उस की पत्नी लखनऊ में ही रहती थी. ट्रांसफर का और्डर मिलते ही विभाष जाने की तैयारी में जुट गया, उस ने पैकिंग शुरू कर दी. वह एकएक कर के सामान बैग में रख रहा था. उस के पास एक दरजन से भी ज्यादा शर्ट थीं. उन्हें रखते हुए उसे अंदाजा हो गया कि उस के पास लगभग हर रंग की शर्ट है. लेकिन उन में नीले रंग की शर्टें कुछ अधिक ही थीं. क्योंकि अवी यानी अवनी को नीला रंग ज्यादा अच्छा लगता था.

शुरूशुरू में जब वह अवनी से मिलने जाता था, हमेशा नई शर्ट पहन कर जाता था. अवनी उस के सिर के बालों में अंगुलियां फेरते हुए कहती थी, ‘‘विभाष, नीली शर्ट में तुम बहुत स्मार्ट लगते हो.’’

अवनी के बारबार कहने की वजह से ही नीला रंग उस की पसंद बन गया था. शर्टों को देखतेदेखते उस ने अपना हाथ सिर पर फेरा तो उसे अजीब सा लगा. वह अपना घर खाली कर रहा था, वह रसोई का सारा सामान समेट चुका था. फ्रीज में रखा जूस और ब्रेड भी खत्म हो गई थी. डाइनिंग टेबल पर रखी फलों की टोकरी भी खाली थी.

सब चीजों को खाली देख कर उस से अपने भरे हुए बैग की ओर देखा. उस के मन में आया कि घर खाली करने में वह जितना समय लगाएगा, उसे उतनी ही देर होगी. अभी उस के बहुत काम बाकी था, जिस के लिए उसे काफी दौड़भाग करनी थी.

अभी उस ने बैंक का अपना खाता भी बंद नहीं कराया था. लेकिन इस के लिए वह परेशान भी नहीं था. क्योंकि उस में कोई ज्यादा रकम नहीं थी. थोड़े पैसे पडे़ थे. लेकिन एक बार बैंक मैनेजर से मिलने का उस का मन हो रहा था. बैंक मैनेजर से ही नहीं, अवनी से भी. दिल्ली आ कर उस ने नोएडा में अपनी नौकरी जौइन की थी. तब फाइनेंस मैनेजर गुप्ताजी ने उसे बैंक के खासखास कामों की जिम्मेदारी सौंप दी थी, जो उस ने बखूबी निभाई थी.

विभाष की कार्यकुशलता देख कर ही उसे बैंक के बड़े काम सौंपे गए थे. बैंक मैनेजर मि. शर्मा से उस की अच्छी पटती थी. शर्माजी ने ही उस का परिचय अवनी से कराया था. इस के बाद बैंक के कामों को ले कर उस की अवनी से अकसर मुलाकात होने लगी, जो धीरेधीरे बढ़ती गई.

विभाष और बैंक अधिकारी अवनी की ये मुलाकातें जल्दी ही दोस्ती में बदल गईं. कभीकभी दोनों बैंक के बाहर भी मिलने लगे. उन की इन मुलाकातों में अवनी की अधिक उम्र, 3 साल के बेटे की मां होना और विधवा होने के साथसाथ लोगों की कानाफूसी भी आड़े नहीं आई. उन की दोस्ती और प्यार गंगा में तैरते दीए की तरह टिमटिमाता रहा.

मजे की बात यह थी कि दोनों का एक शौक मेल खाता था, कौफी पीने का. उन्हें जब भी मौका मिलता, अट्टा मार्केट स्थित कौफीहाउस में कौफी पीने पहुंच जाते. कौफी पीते हुए दोनों न जाने कितनी बातें कर डालते. उन में मनीष की यादें भी होती थीं. मनीष यानी अवनी का पति.

ध्रुव की मस्ती का खजाना भी कौफी की सुगंध में समाया होता था. मनीष के साथ शादी और उस की छोटीछोटी आदतों का विश्लेषण भी कौफी की मेज पर होता था. कभीकभी दोनों चुपचाप एकदूसरे को ताकते हुए कौफी की चुस्की लेते रहते.

उस समय दोनों के बीच भले ही मौन छाया रहता, लेकिन दिल कोई मधुर गीत गाता रहता. अवनी के गालों पर आने वाली लटों को विभाष एकटक ताकता रहता. उन लटों से वह कब खेलने लगा उसे पता ही नहीं चला.

मनीष की बातें करते हुए अवनी के चेहरे पर जो भाव आते, वे विभाष को बहुत अच्छे लगते थे. ऐसे में एक दिन उस ने कहा भी था, ‘‘अवनी, तुम्हारी बातों और आंखों में बसे मनीष को मैं अच्छी तरह पहचान गया हूं. लेकिन अब तुम्हारे जीवन में विभाष धड़कने लगा है.’’

यह सुन कर अवनी की आंखों में अनोखी चमक आ गई थी. उस ने कहा था, ‘‘विभाष, मेरी और मनीष की शादी घर वालों की मरजी से हुई थी. पर हमारे प्यार के लय में लैला मजनूं जैसी धड़कनें थीं.’’ यह कहतेकहते उस की आवाज गंभीर हो गई थी. उस ने आगे कहा था, ‘‘मेरा ध्रुव मेरे लिए मनीष के प्यार की भेंट है. अब वही मेरे जीवन का आधार है.’’

विभाष की शादी कुछ दिनों पहले ही हुई थी. उस की पत्नी लखनऊ यूनिवर्सिटी से बीएड कर रही थी. इसलिए वह विभाष के साथ दिल्ली नहीं आ सकी थी. वैसे भी यहां विभाष की नईनई नौकरी थी. वह यहां अच्छी तरह जम कर, अपना फ्लैट ले कर पत्नी को लाना चाहता था.

अब उसे पत्नी के बिना एक पल भी रहना मुश्किल लगने लगा था. एक दिन अवनी ने उस से पूछा भी था, ‘‘तुम यहां से पत्नी के लिए क्या ले जाओगे?’’

जवाब देने के बजाए विभाष अवनी को एकटक ताकता रहा. उसे इस तरह ताकते देख अवनी खिलखिला कर हंसते हुए बोली, ‘‘अरे मेरे बुद्धू राम, तुम यहां से जा रहे हो तो पत्नी के लिए कुछ तो ले जाओगे. उसे क्या पसंद है?’’

‘‘उसे रसगुल्ला बहुत पसंद है.’’ विभाष ने कहा.

अवनी और जोर से हंसी, किसी तरह हंसी को रोक कर उस ने कहा, ‘‘अरे रसगुल्ला तो पेट में जा कर हजम हो जाएगा. तुम्हें नहीं लगता कि कोई ऐसी चीज ले जानी चाहिए, जो महिलाओं को अच्छी लगती हो.’’

विभाष को असमंजस में फंसा देख कर अवनी मुसकरा कर रह गई. कुछ दिनों बाद अवनी ने एक बढि़या सी हरे रंग की साड़ी ला कर विभाष को देते हुए कहा, ‘‘इसे अपनी पत्नी के लिए ले जाइए, उन्हें बहुत अच्छी लगेगी.’’

विभाष कुछ देर तक उस साड़ी को हैरानी से देखता रहा. उस के बाद अवनी पर नजरें जमा कर पूछा, ‘‘तुम्हें कैसे पता चला कि यह रंग मेरी पत्नी को बहुत पसंद है?’’

‘‘तुम्हारी बातों से.’’ अवनी ने सहज भाव से कहा.

थोड़ी देर तक विभाष कभी साड़ी को तो कभी अवनी को देखता रहा. वह अवनी की दी गई भेंट को लेने से मना नहीं कर सकता था, इसलिए साड़ी ले कर अपने औफिस बैग में रख ली. धीरेधीरे दोनों में नजदीकियां बढ़ती गईं. यह नजदीकी कोई और रूप लेती, उस के पहले ही विभाष ने वह समाचार ‘प्रेमिका के लिए पत्नी की हत्या’ पढ़ा. ऐसे में उस का घर ही नहीं जिंदगी भी बिखर सकती थी.

वह भूल गया था कि यहां रह कर वह अवनी से दूर नहीं रह सकता. इसीलिए उस ने वापस जाने का निर्णय लिया था. उस के बौस उस के काम से खुश थे. इसलिए उसे अपने लखनऊ स्थित औफिस में शिफ्ट कर दिया था. इस तरह उस की नौकरी भी बची रहती और वह अपनी पत्नी के पास भी पहुंच जाता.

उस ने अलमारी से अवनी द्वारा दी गई साड़ी निकाली. कुछ देर तक साड़ी को देखने के बाद उस ने जैसे ही बैग में रखी, डोरबेल बजी. कौन हो सकता है. उस ने सब के पैसे तो दे दिए थे. अपने जाने की बात भी बता दी थी.

उस ने दरवाजा खोला तो सामने अवनी को खड़ा देख हैरान रह गया. वह इस वक्त आ सकती है, उसे जरा भी उम्मीद नहीं थी, इसीलिए वह उसे अंदर आने के लिए भी नहीं कह सका. अवनी उस का हाथ पकड़ कर अंदर ले आई. विभाष उसे देखने के अलावा कुछ कह नहीं सका.

अवनी के अंदर आते ही जैसे एक तरह की सुगंध ने उसे घेर लिया. उस सुगंध ने उस के मन को ही नहीं, बल्कि देह को. खास कर आंखें को घेर लिया था. उस का मन अभी भी मानने को तैयार नहीं था कि अवनी उस के कमरे में उस के साथ मौजूद है. जबकि अवनी उस का हाथ थामे उस के समने खड़ी थी.

सुगंध उस की आंखों में भरी थी, जो मन को लुभा रही थी. क्योंकि अवनी एक मस्ती भरे झोंके की तरह थी. वह कब खुश हो जाए और कब नाराज, अंदाजा लगाना मुश्किल था. तभी उसे कुछ दिनों पहले की बात याद आ गई.

अचानक एक दिन अवनी ने कौफी पीने जाने से मना कर दिया था. ऐसा क्यों हुआ, विभाष अंदाजा भी नहीं लगा सका. उस ने भी अवनी से कौफी पीने चलने का आग्रह नहीं किया. कुछ कहे बगैर वह वहां से चला गया. जहां वह हमेशा कौफी पीता था, वहीं गया.

अवनी ने कौफी पीने से मना कर दिया था, इसलिए कौफी पीने का उस का भी मन नहीं हुआ. आखिर में बगैर कौैफी पिए ही वह घर लौट आया. विभाष इतना ही सोच पाया था कि अवनी रसोई के पास आ कर बोली, ‘‘कौफी है या वो भी खत्म कर दी?’’

अब तक विभाष को घेरने वाली मनपसंद सुगंध हट गई थी. उस ने आंखें झपकाते हुए कहा, ‘‘नहीं…नहीं, कौफी की शीशी अपनी जगह पर रखी है.’’

कहता हुआ विभाष अवनी के पीछेपीछे किचन में आ गया. उस ने किचन की छोटी सी अलमारी से सारा सामान समेट लिया था.

लेकिन कौफी की शीशी और चीनी रखी थी. उस में से कौफी की शीशी निकाल कर अवनी के हाथ में रख दी. अवनी कौफी बनाने लगी तो वह बाहर आ गया. अवनी कौफी के कप ले कर कमरे में आई तो विभाष वहां नहीं था. उसे कौफी की सुगंध बहुत पसंद थी. वह वहां से चला गया, यह सोचते हुए अवनी कौफी से निकलती भाप को देखती रही.

पलभर बाद विभाष हांफता आया तो उस के हाथों में मोनेको और मेरी गोल्ड बिस्किट के पैकेट थे. अवनी ने कहा, ‘‘आज तो बिना बिस्किट के भी चल जाता.’’

‘‘जो आदत है, वह है. उस के बिना कैसे चलेगा?’’ विभाष ने कहा.

‘‘तुम्हारे बिना तो अब चलाना ही पड़ेगा.’’ अवनी ने कहा.

इसी के साथ दोनों की नजरें मिलीं, जैसे बिना गिरे कोई चीज व्यवस्थित हो जाए. उसी तरह उन की नजरें व्यवस्थित हो गई थीं. अवनी ने पूछा, ‘‘अभी तुम्हारी कितनी पैकिंग बाकी है?’’

‘‘लगभग हो ही गई है.’’

‘‘तो आज आखिरी बार साथ बैठ कर कौफी पी लेते हैं.’’ कहते हुए अवनी कौफी के दोनों कप ले कर बालकनी में आ गई. वहां पड़ी प्लास्टिक की कुरसी पर बैठते हुए अवनी ने कहा, ‘‘तुम्हें यहां आए कितने दिन हुए?’’

विभाष ने कौफी की चुस्की लेते हुए कहा, ‘‘करीब 1 साल.’’

‘‘मुझे अच्छी तरह याद है. तुम्हें यहां आए 11 महीने 10 दिन हुए हैं.’’ अवनी ने कहा.

विभाष ने कोई जवाब नहीं दिया. क्योंकि वह जानता था कि बैंक अधिकारी अवनी का जोड़नाघटाना गलत नहीं हो सकता. अवनी ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘‘तुम जब भी आए, अपनी जानपहचान को गिनो तो एक लंबा अरसा हो गया, लेकिन देखा जाए तो यह कोई बहुत लंबा अरसा भी नहीं है.

‘‘तुम्हारे आने से जिंदगी जीने के लिए मुझे एक साथी मिल गया था. मैं मनीष की यादों के साथ जी रही थी और आज भी जी रही हूं. पर तुम से दोस्ती होने के बाद हमारी यानी मेरी और मनीष की यादों का बुढापा जाता रहा. हम कितनी बार कौफी हाउस में साथसाथ बैठे, ध्रुव को ले कर पार्क में बैठे. वहां बैठ कर डूबते सूरज को साथसाथ देखते रहे. कितने मनपसंद काम साथसाथ किए.’’

‘‘अवनी, तुम यह बातें इस तरह बता रही हो, जैसे कविता पढ़ रही हो.’’ विभाष ने कहा. उसे अवनी के मुंह से यह सब कहना अच्छा लग रहा था.

‘‘अपनी दोस्ती भी तो एक कविता की ही तरह है.’’ अवनी ने आंख बंद कर के कहा.

‘‘मुझे लगता है कि अपनी इस दोस्ती को कविता की ही तरह रखना है तो हमारा अलग हो जाना ही ठीक है.’’

इतना कह कर अवनी खड़ी हो गई. विभाष ने उस का हाथ थाम कर कहा, ‘‘मैं तुम्हारी बात को ठीक से समझ नहीं सका. जरा अपनी बात को इस तरह कहो कि समझ में आ जाए.’’

‘‘विभाष, तुम ने मुझे जितने भी दिन दिए, वे मेरे लिए यादगार रहेंगे. मैं ने तुम्हें अपने मन मंजूषा में संभाल कर रख लिया है. यह थोड़ा मनपसंद समय और लंबा खिंचता तो उसे समय की नजर लग सकती थी. उस में न जाने कितनी झूठी सच्ची बातों और घटनाओं का टकराव होता. तुम्हारी शादी अनीशा से हुई है. तुम सुख से उस के साथ अपना जीवन व्यतीत करो. मैं अपनी जिंदगी मनीष की यादों और ध्रुव को पालने- पोसने में बिता लूंगी.

‘‘वादा करो कि तुम मुझे कभी ईमेल नहीं करोगे. जब कभी मेरी याद आए, अनीशा का हाथ पकड़ कर अस्त होते सूर्य को देखना और प्यार की छोटीछोटी कविताएं पढ़ कर सुनाना. अपना जीवन सुखमय बनाना.’’ इतना कह कर अवनी ने विभाष के गाल पर हल्के से चुंबन करते हुए कहा, ‘‘विभाष, मुझे तो प्यार की मीठी कविता होना है, महाकाव्य नहीं.’’

कातिल निकली सौतेली मां : मंजीत का ऐसा कौन सा स्वार्थ रह गया

‘‘देखो सरदारजी, एक बात सचसच बताना, झूठ मत बोलना. मैं पिछले कई दिनों से देख रही हूं कि आजकल तुम अपनी भरजाई पर कुछ ज्यादा ही प्यार लुटा रहे हो. क्या मैं इस की वजह जान सकती हूं?’’ राजबीर कौर ने यह बात अपने पति हरदीप सिंह से जब पूछी तो वह उस से आंखें चुराने लगा.

पत्नी की बात का हरदीप को जवाब भी देना था, इसलिए अपने होंठों पर हलकी मुसकान बिखेरते हुए उस ने राजबीर कौर से कहा, ‘‘तुम भी कमाल करती हो राजी. तुम तो जानती ही हो कि बड़े भाई काबल की मौत हुए अभी कुछ ही समय हुआ है. भाईसाहब की मौत से भाभीजी को कितना सदमा पहुंचा है. यह बात तुम भी समझ सकती हो. मैं बस उन्हें उस सदमे से बाहर निकालने की कोशिश कर रहा हूं. और फिर भाईसाहब के दोनों बच्चे मनप्रीत सिंह और गुरप्रीत सिंह भी अभी काफी छोटे हैं.’’

हरदीप अपनी पत्नी को प्यार से राजी कह कर बुलाता था.

‘‘हां, यह बात तो मैं अच्छी तरह समझ सकती हूं पर कोई ऐसे तो नहीं करता, जैसे तुम कर रहे हो. तुम्हें यह भी याद रखना चाहिए कि अपना भी एक बेटा किरनजोत है. तुम अपनी बीवीबच्चे छोड़ कर हर समय अपनी विधवा भाभी और उन के बच्चों का ही खयाल रखोगे तो अपना घर कैसे चलेगा.’’ राजबीर कौर बोली.

‘‘मैं समझ सकता हूं और यह बात भी अच्छी तरह से जानता हूं कि मेरी लापरवाही में तुम घर को अच्छी तरह संभाल सकती हो. फिर अब कुछ ही दिनों की तो बात है, सब ठीक हो जाएगा.’’ पति ने समझाया.

कहने को तो यह बात यहीं खत्म हो गई थी पर राजबीर कौर अच्छी तरह जानती थी कि अब आगे कुछ ठीक होने वाला नहीं है. इसलिए उस ने मन ही मन फैसला कर लिया कि जहां तक संभव होगा, वह अपने घर को बचाने की पूरी कोशिश करेगी.

पंजाब के अमृतसर देहात क्षेत्र के थाना रमदास के गांव कोटरजदा के मूल निवासी थे बलदेव सिंह. पत्नी के अलावा उन के 3 बेटे थे परगट सिंह, काबल सिंह और हरदीप सिंह. बलदेव सिंह ने समय रहते सभी बेटों की शादियां कर दी थीं और तीनों भाइयों में जमीन का बंटवारा भी कर के अपने फर्ज से मुक्ति पा ली थी.

अपने हिस्से की जमीन ले कर परगट सिंह ने अपना अलग मकान बना लिया था. काबल और हरदीप अपने पुश्तैनी घर में मातापिता के साथ रहते थे. काबल सिंह की शादी मनजीत कौर के साथ हुई थी. उस के 2 बच्चे थे 13 वर्षीय मनप्रीत सिंह और 12 वर्षीय गुरप्रीत सिंह.

सन 2003 में हरदीप सिंह की शादी खतराये निवासी राजबीर कौर के साथ हुई थी. शादी के बाद उन के घर किरनजोत सिंह ने जन्म लिया था. बच्चे के जन्म से दोनों पतिपत्नी बड़े खुश थे. तीनों भाइयों की अपनी अलगअलग जमीनें थीं. सब अपनेअपने कामों और परिवारों में मस्त थे.

सब कुछ ठीकठाक चल रहा था कि 24 जून, 2008 को काबल सिंह की दिल का दौरा पड़ने से मृत्यु हो गई. इस के बाद तो उस घर पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था. उस की खेती आदि के काम कोई करने वाला नहीं था क्योंकि उस समय बच्चे भी छोटे थे. तब भाई के खेतों के काम से ले कर उस के दोनों बच्चों की देखभाल का जिम्मा हरदीप सिंह ने संभाल लिया था.

अपनी विधवा भाभी मनजीत कौर से सहानुभूति रखने और उस की मदद करतेकरते हरदीप सिंह का झुकाव धीरेधीरे अपनी विधवा भाभी की ओर होने लगा. हरदीप की पत्नी राजबीर कौर इन सब बातों से बेखबर नहीं थी.

वह समयसमय पर पति हरदीप सिंह को उस की अपनी घरेलू जिम्मेदारियों का अहसास दिलाती रहती थी. पर उस ने इन बातों को ले कर कभी पति से क्लेश या लड़ाईझगड़ा नहीं किया था. वह हर मसले को प्यार और समझदारी से निपटाने के पक्ष में थी और यही बात उस के हक में नहीं रही.

उसे जब इन सब बातों की समझ आई तब पानी सिर से ऊपर गुजर चुका था. उस का पति हरदीप अब उस का नहीं रहा. वह कभी का अपनी विधवा भाभी मंजीत कौर की आगोश में जा चुका था. राजबीर कौर ने जब अपना घर उजड़ता देखा तब उस की नींद टूटी और उस ने इस रिश्ते का जम कर विरोध किया था.

बाद में उस ने इस मसले पर रिश्तेदारों से शिकायत भी की पर कोई नतीजा नहीं निकला. इस पूरे मामले में राजबीर कौर की यह गलती रही कि उस ने अपने पति पर विश्वास करते हुए समय रहते इन सब बातों का विरोध नहीं किया था. शायद उसे पति की वफादारी और अपनी समझ पर भरोसा था. बहरहाल उस का बसाबसाया घर टूट गया था. हरदीप सिंह और राजबीर कौर के बीच तलाक हो गया था. यह सन 2013 की बात है.

राजबीर कौर का हरदीप सिंह से तलाक भले ही हो गया था, पर वह वहीं रहती रही. हरदीप सिंह अपने 9 वर्षीय बेटे किरनजोत सिंह और अपने दोनों भतीजों मनप्रीत सिंह और गुरप्रीत सिंह के साथ मंजीत कौर के साथ रहने लगा था. भाभी के साथ रहने पर लोगों ने कुछ दिनों तक चर्चा जरूर की पर बाद में सब शांत हो गए.

समय का पहिया अपनी गति से घूमता रहा. सब अपनेअपने कामों में व्यस्त हो गए थे. हरदीप तीनों बच्चों और दूसरी पत्नी मंजीत कौर के साथ खुशी से रह रहा था.

बात 28 जून, 2018 की है. तीनों बच्चों सहित हरदीप और मंजीत कौर रात का खाना खा कर सो गए थे. हरदीप और मंजीत कौर कमरे के अंदर और तीनों बच्चे बाहर बरामदे में सो रहे थे. बिस्तर पर लेटते ही हरदीप को तो नींद आ गई थी पर मंजीत कौर अपने बिस्तर पर लेटेलेटे ही टीवी पर कोई कार्यक्रम देख रही थी. कमरे की लाइट बंद थी पर टीवी चलने के कारण उस कमरे में पर्याप्त रोशनी थी.

रात के करीब 12 बजे का समय होगा कि मंजीत कौर ने अपने कमरे में एक साया देखा. साया कमरे से बाहर की ओर निकल गया था. फिर अचानक मंजीत कौर की नजर कमरे में रखी हुई अलमारी पर पड़ी. अलमारी खुली हुई थी और पास ही सामान बिखरा पड़ा था. यह देख कर वह चौंक गई. घबरा कर उस ने पास में सोए पति हरदीप को जगाया और अलमारी की ओर इशारा किया.

कमरे में चल रहे टीवी की रोशनी में उसे भी खुली अलमारी के आसपास कपड़े आदि बिखरे दिखे. इस के बाद हरदीप ने तुरंत उठ कर घर की लाइट जला दी. वह समझ गया कि घर में चोरी हो गई है. कमरे से निकल कर जब वह बरामदे में पहुंचा तो उस की नजर बरामदे में सोए बच्चों पर गई. वहां मनप्रीत और गुरप्रीत तो सो रहे थे, लेकिन उस का अपना 9 वर्षीय बेटा किरनजोत सिंह गायब था.

यह सब देख कर हरदीप ने चोरचोर का शोर मचाना शुरू कर दिया था. रात के सन्नाटे में उस की आवाज सुन कर पड़ोसी उस के घर आ गए और जब सब को पता चला कि 9 वर्षीय किरनजोत को भी चोर अपने साथ उठा कर ले गए हैं तो सब हैरान रह गए.

किसी की समझ में कुछ नहीं आ रहा था. ऐसे में किरनजोत को कहां और कैसे ढूंढा जाए. फिर भी समय व्यर्थ न करते हुए सभी लोग रात में ही किरनजोत की तलाश में अलगअलग दिशाओं में निकल पड़े.

पूरी रात किरनजोत की तलाश होती रही. लोगों ने गांव से ले कर मुख्य मार्ग तक भी छान मारा पर वह नहीं मिला. पूरी रात बीत गई थी पर किरनजोत का कुछ पता नहीं चला था. हरदीप सिंह की पहली बीवी यानी किरनजोत को जन्म देने वाली मां राजबीर कौर को जब अपने बेटे के चोरी होने का पता चला तो रोरो कर उस ने अपना बुरा हाल कर लिया था.

किरनजोत को तलाश करतेकरते दिन निकल आया था. बच्चे के न मिलने पर सभी लोग निराश थे. कुछ देर बाद गांव के एक आदमी ने हरदीप सिंह को आ कर यह खबर दी कि किरनजोत की लाश नहर किनारे पड़ी है.

यह सुनते ही हरदीप व अन्य लोग नहर किनारे पहुंचे तो वास्तव में वहां किरनजोत की लाश मिली. कुछ ही देर में गांव के तमाम लोग नहर किनारे जमा हो गए. किसी ने पुलिस को भी खबर कर दी.

सूचना मिलते ही थाना रमदास के थानाप्रभारी मनतेज सिंह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. पुलिस ने बच्चे की लाश को अपने कब्जे में ले कर जरूरी काररवाई कर के पोस्टमार्टम के लिए सिविल अस्पताल भेज दी और भादंवि की धारा 302 के तहत अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया.

मुकदमा दर्ज होने के बाद मनतेज सिंह ने हरदीप सिंह के घर का मुआयना किया. हरदीप सिंह से बात करने के बाद पता चला कि उस के घर का कोई सामान चोरी नहीं हुआ था. इस से यही पता लगा कि वारदात को चोरी का रूप देने की कोशिश की गई है.

पुलिस को यह भी पता चला कि कमरे में कोई साया होने की बात सब से पहले हरदीप सिंह की पत्नी मंजीत कौर ने बताई थी, इसलिए थानाप्रभारी ने मंजीत कौर के ही बयान लिए.

थानाप्रभारी मनतेज सिंह को मंजीत के बयानों में काफी झोल दिखाई दे रहे थे. यह बात भी उन्हें हजम नहीं हो रही थी कि कमरे में जागते और टीवी देखते हुए कैसे चोर की हिम्मत हो गई कि वह चोरी करने के साथसाथ बच्चे को भी उठा कर अपने साथ ले गया. भला उस बच्चे से उसे क्या मतलब था और किस मकसद से उस ने बच्चे को अगवा किया था. लाख सोचने पर भी मनतेज सिंह को यह बात समझ नहीं आ रही थी.

तब थानाप्रभारी ने अपने कुछ विश्वासपात्र लोगों को सच्चाई का पता करने पर लगाया. इस बीच अस्पताल में किरनजोत के पोस्टमार्टम के समय उस की मां राजबीर कौर ने खूब हंगामा खड़ा किया. उस ने अपनी जेठानी मंजीत कौर पर आरोप लगाते हुए कहा कि किरनजोत की हत्या के पीछे मंजीत कौर का ही हाथ है क्योंकि वह उसे अपना सौतेला बेटा मानती थी.

राजबीर कौर के आरोप को मद्देनजर रखते हुए पुलिस ने अपने मुखबिरों को सच्चाई का पता लगाने के लिए लगाया. इस के बाद थानाप्रभारी को मंजीत कौर के बारे में जो खबर मिली, वह चौंकाने वाली थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में किरनजोत की मौत के बारे में बताया कि उस की मौत गला घोंटने से हुई थी.

सोचने वाली बात यह थी कि मारने वाले ने बच्चे को घर से उठाया और हत्या के बाद वह उसे नहर के किनारे फेंक आया. इस में इकट्ठे सो रहे तीनों बच्चों में से उस ने किरनजोत सिंह को ही क्यों उठाया.

थानाप्रभारी मनतेज सिंह ने मृतक किरनजोत की मां राजबीर कौर से भी पूछताछ की. राजबीर कौर ने बताया कि 10 साल पहले उस का विवाह हरदीप सिंह के साथ हुआ था.

उस के जेठ काबल सिंह की मौत हो जाने के बाद उस के पति हरदीप सिंह के उस की जेठानी मंजीत कौर से अवैध संबंध हो गए थे. इस कारण उस ने अपने पति को तलाक दे दिया और दूसरा विवाह कर लिया.

उस के पति हरदीप सिंह ने भी उस की जेठानी के साथ शादी कर ली थी. शादी के बाद न तो उस की जेठानी उसे उस के बेटे किरनजोत से मिलने देती थी और न ही वह उसे पसंद करती थी. उसे पूरा यकीन है कि उस के बेटे की हत्या मंजीत कौर ने ही करवाई है.

थानाप्रभारी ने महिला हवलदार सुरजीत कौर को भेज कर मंजीत कौर को पूछताछ के लिए थाने बुला लिया. शुरुआती दौर में वह अपने आप को निर्दोष बताते हुए चोरी की कहानी पर डटी रही पर जब उस से पूछा गया कि क्याक्या सामान चोरी हुआ है तो यह सुन कर वह बगलें झांकने लगी.

थोड़ी सख्ती करने पर उस ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए कहा कि उसी ने किरनजोत की गला घोंट कर हत्या की थी और लाश को गोद में उठा कर नहर किनारे फेंक आई. फिर आधी रात को अपने पति हरदीप को जगा कर चोरी वाली कहानी सुनाई थी.

इस की वजह यह थी कि मंजीत कौर को हरदीप और किरनजोत के बीच का प्यार खलता था. वह नहीं चाहती थी कि उस के दोनों बेटों के अलावा उस का पति हरदीप अपनी पहली बीवी से हुए बेटे किरनजोत के साथ कोई भी रिश्ता रखे. पिता का यही प्यार बेटे की मौत का कारण बन गया.

दरअसल हरदीप सिंह तीनों बच्चों से तो प्यार करता था पर वह सब से अधिक अपने किरनजोत को चाहता था. पति के इस प्यार की वजह से मंजीत कौर को यह भ्रम हो गया था कि हरदीप सिंह किरनजोत के बड़े होने पर अपनी सारी जायदाद उसी के नाम कर देगा.

ऐसे में उस के पैदा किए बच्चे दानेदाने को मोहताज हो जाएंगे, जबकि ऐसी कोई बात नहीं थी. हरदीप ने सपने में भी कभी यह नहीं सोचा था कि मंजीत कौर ऐसा भी कुछ सोच सकती है.

मंजीत कौर के बयान दर्ज करने के बाद किरनजोत सिंह की हत्या के आरोप में उसे गिरफ्तार कर अदालत में पेश किया गया. अदालत के आदेश पर उसे जिला जेल भेज दिया गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

पहचान : मां की मौत के बाद क्या था अजीम का हाल – भाग 2

उस ने राबिया से कहा, ‘‘अभी मैं तुम्हें यहां से सामान दे दूं तो नैशनल रजिस्टर में नाम दर्ज का अलग ही बखेड़ा खड़ा होगा. तुम्हारे परिवार का नाम छूटा है इस पहचान रजिस्टर में.’’

‘‘क्या करें, हम भी उन 40 लाख समय के मारों में शामिल हैं, जिन के सरकारी रजिस्टर में नागरिक की हैसियत से नाम दर्ज नहीं हैं. अब्बा नहीं हैं. जिंदगी जीने के लाले पड़े हुए हैं. नाम दर्ज करवाने के झमेले कैसे उठाएं?’’

‘‘ठीक है, तुम लोग पास ही के सरकारी स्कूल में बने शरणार्थी शिविरों में रह रहे हो न. मैं काम खत्म कर के 6 बजे तक सामान सहित वहां पहुंच जाऊंगा. तुम फिक्र न करो, मैं जरूर आऊंगा?’’

शिविर में आ कर राबिया की आंखें घड़ी पर और दिल दरवाजे पर अटका रहा. 2 कंबल, चादर और खानेपीने के सामान के साथ नीरद राबिया के पास पहुंच चुका था.

अम्मी तो धन्यवाद करते बिछबिछ जाती थीं. राबिया ने बस एक बार नीरद की आंखों में देखा. नीरद ने भी नजरें मिलाईं. क्या कुछ अनकहा सा एकदूसरे के दिल में समाया, यह तो वही जानें, बस, इतना ही कह सकते हैं कि धनसिरी की इस बाढ़ ने भविष्य के गर्भ में एक अपठित महाकाव्य का बीज ला कर रोप दिया था.

शरणार्थी शिविर में रोज का खाना तो दिया जाता था लेकिन नैशनल रजिस्टर औफ सिटिजन्स में जिन का नाम नहीं था, बिना किसी तकरार के वे भेदभाव के शिकार तो थे ही, इस मामले में आवाज उठाने की गुंजाइश भी नहीं थी क्योंकि स्थानीय लोगों की मानसिकता के अनुरूप ही था यह सबकुछ.

बात जब गलतसही की होती है, तब यह सुविधाअसुविधा और इंसानियत पर भी रहनी चाहिए. लेकिन सच यह है कि लोगों की तकलीफों को करीब से देखने के लिए हमेशा एक अतिरिक्त आंख चाहिए होती है.

बेबसी, अफरातफरी, इतिहास की खूनी यादें, बदले की झुलसाती आग, अपनेपरायों का तिकड़मी खेल और भविष्य की भूखी चिंता. राबिया के पास इंतजार के सिवा और कुछ न था.

नीरद जबजब आ जाता, राबिया, अजीम और उन की अम्मी की सांसें बड़ी तसल्ली से चलने लगतीं, वरना वही खौफ, वही बेचैनी.

राबिया नीरद से काफीकुछ कहना चाहती, लेकिन मौन रह जाती. हां, जितना वह मौन रहती उस का अंतर मुखर हो जाता. वह रातरातभर करवटें लेती. भीड़ और चीखपुकार के बीच भी मन के अंदर एक खाली जगह पैदा हो गई थी उस के. राबि?या के मन की उस खाली जगह में एक हरा घास का मैदान होता, शाम की सुहानी हवा और पेड़ के नीचे बैठा नीरद. नीरद की गोद में सिर रखी हुई राबिया. नीरद कुछ दूर पर बहती धनसिरी को देखता हुआ राबिया को न जाने प्रेम की कितनी ही बातें बता रहा है. वह नदी, हां, धनसिरी ही है. लेकिन कोई शोर नहीं, बदला नहीं, लड़ाई और भेदभाव नहीं. सब को पोषित करने वाली अपनी धनसिरी. अपनी माटी, अपना नीरद.

आज शाम को किराए के अपने मकान में लौटते वक्त आदतानुसार नीरद आया. नीरद के यहां आते अब महीनेभर से ऊपर होने को था.

राबिया एक  कागज का टुकड़ा झट से नीरद को पकड़ा उस की नजरों से ओझल हो गई.

अपनी साइकिल पर बैठे नीरद ने कागज के टुकड़े को खोला. असमिया में लिखा था, ‘‘मैं असम की लड़की, तुम असम के लड़के. हम दोनों को ही जब अपनी माटी से इतना प्यार है तो मैं क्या तुम से अलग हूं? अगर नहीं, तो एक बार मुझ से बात करो.’’

नीरद के दिल में कुछ अजीब सा हुआ. थोड़ा सा पहचाना, थोड़ा अनजाना. उस ने कागज के पीछे लिखा, ‘‘मैं तुम्हारी अम्मी से कल बात करूंगा?’’ राबिया को चिट्ठी पकड़ा कर वह निकल गया.

चिट्ठी का लिखा मजमून पढ़ राबिया के पांवों तले जमीन खिसक गई. ‘‘पता नहीं ऐसा क्यों लिखा उस ने? कहीं शादीशुदा तो नहीं? मैं मुसलिम, कहीं इस वजह से वह गुस्सा तो नहीं हो गया? क्या मैं ने खुद को असमिया कहा तो बुरा मान गया वह? फिर जो भी थोड़ाबहुत सहारा था, छिन गया तो?’’

राबिया का दिल बुरी तरह बैठ गया. बारबार खुद को लानत भेज कर भी जब उस के दिल पर ठंडक नहीं पड़ी तो अम्मी के पास पहुंची. उन्हें भरसक मनाने का प्रयास किया कि वे तीनों यहां से चल दें. जो भी हो वह नीरद को अम्मी से बात करने से रोकना चाहती थी.

अम्मी बेटी की खुद्दारी भी समझती थीं और दुनियाजहान में अपने हालात भी, कहा, ‘‘बेटी, बाढ़ से सारे रास्ते कटे पड़े हैं. कोई ठौर नहीं, खाना नहीं, फिर जिल्लत जितनी यहां है, उस से कई गुना बाहर होगी. जान के लाले भी पड़ सकते हैं. नन्हे अजीम को खतरा हो सकता है. तू चिंता न कर, मैं सब संभाल लूंगी.’’

शाम को कुछ रसद के साथ नीरद हाजिर हुआ और सामान राबिया को पकड़ा कर अम्मी के पास जा बैठा. अम्मी का हाथ अपने हाथों में ले कर उस ने कहा, ‘‘राबिया की वजह से आप से और अजीम से जुड़ा. अब मैं सचमुच यह चाहता हूं कि आप तीनों मेरे साथ गुवाहाटी चलें. जब मेरा यहां का काम खत्म हो जाए तब मैं आप सब से हमेशा के लिए बिछुड़ना नहीं चाहता. गुवाहाटी में मैं राबिया को एक एनजीओ संस्था में नौकरी दिलवा दूंगा. अजीम का दाखिला भी स्कूल में हो जाएगा. आप सिलाई वगैरह का कोई काम देख लेना. और रहने की चिंता बिलकुल न करिए. वहां हमारा अपना घर है. आप को किसी चीज की कोई चिंता न होने दूंगा.’’

राबिया की तो जैसे रुकी हुई सांस अचानक चल पड़ी थी. बारिश में लथपथ हवा जैसे वसंत की मीठी बयार बन गई थी. अम्मी ने नीरद के गालों को अपनी हथेलियों में भर कर कहा, ‘‘बेटा, जैसा कहोगे, हम वैसा ही करेंगे. अब तुम्हें हम सब अपना ही नहीं, बल्कि जिगर का टुकड़ा भी मानते हैं.’’

अजीम यहां से जाने की बात सुन नीरद की पीठ पर लद कर नीरद को दुलारने लगा. नीरद ने राबिया की ओर देखा. राबिया मारे खुशी के बाहर दौड़ गई. वह अपनी खुशी की इस इंतहा को सब पर जाहिर कर शर्मसार नहीं होना चाहती थी जैसे.

महीनेभर बाद वे गुवाहाटी आ गए थे. नीरद के दोमंजिला मकान से लगी खाली जगह में एक छोटा सा आउटहाउस किस्म का था, शायद माली आदि के लिए. छत पर ऐसबेस्टस था. लेकिन छोटा सा 2 कमरे वाला हवादार मकान था. बरामदे के एक छोर पर रसोई के लिए जगह घेर दी गई थी. वहां खिड़की थी तो रोशनी की भी सहूलियत थी. पीछे छोटा सा स्नानघर आदि था. एक अदद सूखी जमीन पैर रखने को, एक छत सिर ढांपने को, बेटी राबिया की एनजीओ में नौकरी, अजीम का सरकारी स्कूल में दाखिला और खुद अम्मी का एक टेलर की दुकान पर सिलाई का काम कर लेना- इस से ज्यादा उन्हें चाहिए भी क्या था.

पर बात यह भी थी कि उन के लिए इतना पाना ही काफी नहीं रहा. नैशनल रजिस्टर औफ सिटिजन्स का सवाल तलवार बन कर सिर पर टंगा था. अगर जी लेना इतना आसान होता तो लोग पीढ़ी दर पीढ़ी एक आशियाने की तलाश में दरबदर क्यों होते? क्यों लोग अपनी कमाई हुई रोटी पर भी अपना हक जताने के लिए सदियों तक लड़ाई में हिस्सेदार होते? नहीं था इतना भी आसान जीना.

अभी 3-4 दिन हुए थे कि नीरद की मां आ पहुंची उन से मिलने. राबिया की मां ने सोचा था कि वे खुद ही उन से मिलने जाएंगी, लेकिन नीरद ने मना कर दिया था. जब तक वे दुआसलाम कर के उन के बैठने के लिए कुरसी लातीं, नीरद की मां ने तोप के गोले की तरह सवाल दागने शुरू किए.

‘‘नीरद ढंग से बताता कुछ नहीं, आप लोग हैं कौन? धर्मजात क्या है आप की? आप की बेटी रोज कहां जाती है? नीरद ने किराया कुछ बताया भी है या नहीं? हम ने यह घर माली के लिए बनवाया था. अब जब तक आप लोग हो, मेरा बगीचा फिर से सही कर देना. वैसे, हो कब तक आप लोग?’’

अम्मी ने हाथ जोड़ दिए, कहा, ‘‘दीदी, नीरद बड़ा अच्छा बच्चा है. बाढ़ में हमारा घरबार सब डूब गया. समय थोड़ा सही हो जाए, चले जाएंगे.’’

सिर से पांव तक राबिया की अम्मी को नीरद की मां ने निहारा और कहा, ‘‘घरवालों के सीने में मूंग दल कर बाहर वालों पर रहमकरम कर रहा है, अच्छा बच्चा तो होगा ही.’’