खतरनाक औरत : गांव की गलियों से निकली माया के सपने – भाग 1

27 जून, 2018 की सुबह काशीपुर स्टेशन के अधीक्षक ने थाना आईटीआई को फोन कर के बताया कि बाजपुर ट्रैक पर किसी की लाश पड़ी है. यह सूचना मिलते ही आईटीआई थानाप्रभारी कुलदीप सिंह अधिकारी पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. जब पुलिस वहां पहुंची, तब वहां कोई भी मौजूद नहीं था. वजह यह थी कि न तो वहां कोई आम रास्ता था और न ही कोई वहां से गुजरा था.

घटनास्थल पर पहुंच कर पुलिस ने लाश और घटनास्थल का मुआयना किया. साथ ही जरूरी काररवाई भी की. मृतक के गले और छाती पर चोट के निशान थे. उस की एक पैर की एड़ी भी कटी हुई थी, जो शायद ट्रेन की चपेट में आने से कट गई थी.

लेकिन लाश देख कर ही पता चल रहा था कि उस की मौत ट्रेन से कट कर नहीं हुई थी. इस का मतलब यह था कि उस की हत्या कर के डैडबौडी वहां फेंकी गई थी, जिस से यह मामला दुर्घटना का लगे. रेलवे ट्रैक पर लाश मिलने की सूचना मिलते ही आसपास के गांवों के लोग एकत्र होने लगे. घटनास्थल पर काफी लोग जुट गए थे, उन में राजपुरम निवासी छत्तर ने मृतक की पहचान करते हुए पुलिस की बड़ी सिरदर्दी खत्म कर दी.

छत्तर ने मृतक की पहचान अपने जीजा राकेश उर्फ हरकेश के रूप में की. राकेश की हत्या की बात सुन कर उस के घर वाले तुरंत घटनास्थल पर पहुंच गए. वहां पहुंचे उस के घर वालों से पुलिस ने राकेश के बारे में पूछताछ की और लाश पोस्टमार्टम के लिए राजकीय चिकित्सालय भिजवा दी.

राकेश की लाश के पोस्टमार्टम के समय एक बात चौंकाने वाली पता चली. मृतक के पैरों पर जला हुआ इंजन औयल लगा मिला था. वैसा ही तेल वहां मौजूद मृतक राकेश के मौसेरे भाई इंद्रपाल के कपड़ों पर भी लगा हुआ था. यह पता चलते ही राकेश के घर वालों ने इंद्रपाल को अपने कब्जे में ले कर उसे मारनापीटना शुरू कर दिया.

वैसे भी राकेश के घर वालों को शक था कि उस की हत्या इंद्रपाल ने ही की है. पोस्टमार्टम के दौरान यह बात सामने आते ही उन्हें पूरा विश्वास हो गया कि राकेश का हत्यारा वही है.

राकेश के घर वालों ने इंद्रपाल को ठोकपीट कर पुलिस के हवाले कर दिया. इंद्रपाल को हिरासत में लेने के बाद पुलिस ने उस से कड़ी पूछताछ की तो पहले तो उस ने साफ इनकार कर दिया कि राकेश की हत्या से उस का कोई लेनादेना नहीं है. लेकिन जब पुलिस ने उस के कपड़ों पर लगे काले औयल का राज पूछा तो वह पुलिस को कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पाया.

आखिरकार उस ने सब कुछ साफसाफ बता दिया. पूछताछ में इंद्रपाल ने बताया कि राकेश की हत्या उस की बीवी माया ने कराई है. यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस इंद्रपाल को थाना ले आई. थाने में उस से कड़ी पूछताछ की गई.

पुलिस पूछताछ के दौरान पता चला कि राकेश की हत्या में मृतक की बीवी माया, इंद्रपाल निवासी मोहनतखतपुर, थाना कुंदरकी जिला मुरादाबाद, गुड्डू निवासी नगला थाना भगतपुर, जिला मुरादाबाद, रेखा निवासी खड़कपुर काशीपुर, जमुना निवासी खड़कपुर शामिल थे.

यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस ने आरोपियों की धरपकड़ शुरू की तो सभी आरोपी पकड़ में आ गए. गिरफ्तारी के बाद उन से पूछताछ की गई तो राकेश की हत्या की पूरी सच्चाई सामने आ गई.

मेहनतकश राकेश पहुंच गया शहर की ड्योढ़ी पर

बाजपुर, उत्तराखंड के गांव कनौरा निवासी हरकेश उर्फ राकेश की शादी करीब 17 साल पहले गांव परमानंदपुर (गौशाला) निवासी खानचंद्र की बेटी माया से हुई थी. माया देखने में खूबसूरत ही नहीं, तेजतर्रार भी थी.

राकेश के पास जुतासे की थोड़ी सी जमीन थी, जिस में इतनी पैदावार नहीं होती थी कि परिवार की गुजरबसर हो सके. राकेश फैक्ट्रियों में काम कर के परिवार का भरणपोषण करता था. बाद में एक फैक्ट्री में उसे लेबर का ठेका मिल गया तो उस की मेहनत कम हो गई और आमदनी ज्यादा.

शादी के कुछ समय बाद तक राकेश की घरगृहस्थी ठीक से चलती रही. इस बीच पतिपत्नी का तालमेल भी ठीक बैठ गया था. राकेश शुरू से ही अपनी बीवी माया को बहुत प्यार करता था. वह सुबह काम पर चला जाता और देर शाम घर लौटता था. घर आने के बाद वह दिन भर की थकान की वजह से खाना खापी कर जल्दी सो जाता था. उस की बीवी माया को यह पसंद नहीं था. वह चाहती थी कि जब तक वह जागे, पति उस का साथ दे. लेकिन राकेश की अपनी मजबूरी थी, जो माया के अरमानों पर भारी पड़ती थी.

माया ज्यादा पढ़ीलिखी नहीं थी. लेकिन उस की हसरतों की उड़ान ऊंची थी. वह शुरू से ही शरारती थी, बनठन कर रहने वाली. राकेश के साथ शादी के बंधन में बंध कर वह ससुराल तो आ गई थी, लेकिन वह अपनी शादी से खुश नहीं थी.

शादी के बाद अनचाहे ही सही, राकेश के साथ रहना उस की मजबूरी थी. जबकि राकेश उसे पा कर खुश था. शादी के बाद वह उसे जी जान से चाहने भी लगा था.

गुजरते समय के साथ माया 3 बच्चों की मां बन गई. उस की बड़ी बेटी का नाम मधु था, उस से छोटा बेटा था आकाश और सब से छोटी थी बेटी प्रीति. राकेश काम के लिए गांव से शहर आता था. जब बच्चे थोड़े बड़े हो गए तो माया का मन शहर में रहने का होने लगा. यह बात मन में आते ही उस ने राकेश से कहा, ‘‘जब तुम्हें शहर में ही काम करना है तो क्यों न हम शहर में थोड़ी सी जमीन खरीद कर छोटा सा मकान बना लें.’’

राकेश अपने घर की स्थिति अच्छी तरह जानता था. उस के सामने पैसे की मजबूरी थी. उस ने इनकार कर दिया तो माया को मन मार कर गांव में ही रहने को मजबूर होना पड़ा.

शादी के कुछ सालों के बाद तक तो माया पत्नी का धर्म निभाती रही, लेकिन जब उस के दिमाग से राकेश की छवि धूमिल होने लगी तो उस का मन और निगाहें इधरउधर भटकने लगीं. जल्द ही उस ने अपने रंगढंग दिखाने शुरू कर दिए. उस ने चोरीछिपे ससुराल में कई लोगों से अवैध संबंध बना लिए. राकेश को इस बात की जानकारी कानोंकान नहीं हुई. हालांकि माया 3 बच्चों की मां बन चुकी थी, फिर भी उस के शरीर की कशिश बरकरार थी.

नफरत का खौफनाक अंजाम : परिवार आया निशाने पर

1 अक्तूबर, 2021 की रात के करीब साढ़े 11 बजे फरीदाबाद के गोठड़ा मोहब्ताबाद का रहने वाला गगन (26 वर्ष) अपने परिवार के साथ खाटू श्याम के दर्शन कर के घर लौटा था. गगन हर साल इसी समय के आसपास अपने पूरे परिवार के साथ खाटू श्याम मंदिर में दर्शन के लिए जाया करता था. उस मंदिर के प्रति उस की आस्था बहुत थी.

वह इस साल अपनी माता सुमन (50 वर्ष), बहन आयशा (30 वर्ष), छोटे भांजे सक्षम (12 वर्ष) और दोस्त राजन शर्मा के साथ मंदिर में दर्शन कर के लौटा था.

गगन राजन के साथ ही फरीदाबाद सेक्टर 55-56 में प्रौपर्टी डीलिंग और पुरानी गाडि़यों की खरीदफरोख्त का काम करता था. इस से पहले गगन अपने परिवार के साथ फरीदाबाद सेक्टर 55 में किराए पर ही रहता था. लेकिन इसी साल सितंबर में उस ने गोठड़ा मोहब्ताबाद में किराए के एक मकान में, जो कि एक पूर्व सरपंच का मकान है, वहां रहने लगा था. उस के पुराने घर से इस नए मकान के बीच करीब 30 मिनट पैदल की दूरी थी.

21 अक्तूबर को मंदिर से दर्शन कर देर रात घर लौटने की वजह से गगन ने राजन को अपने घर पर ही रुकने का आग्रह किया था, क्योंकि रात बहुत हो चुकी थी और वह अपने इलाके में देर रात होने वाली घटनाओं और वारदातों के बारे में अच्छे से जानता था.

राजन ने भी गगन की बात मान ली और वह रात में उसी के घर रुक गया. देर रात को लंबा सफर कर के लौटे सभी लोग पहले फ्रैश हुए और हलकाफुलका खाना खा कर वे सब सोने के लिए अपनेअपने कमरे में चले गए.

आयशा व उस की मां सुमन मकान में नीचे के कमरे में सोने चली गईं और गगन, राजन व सक्षम पहली मंजिल पर सोने चले गए. सब थकेहारे थे तो हर किसी को जल्दी नींद भी आ गई थी और सभी गहरी नींद में सो भी गए थे. बस सक्षम ही रात को जागा हुआ था.

नींद तो सक्षम को भी तेज आ रही थी, लेकिन वह किसी का बहुत बेसब्री से इंतजार कर रहा था. वह रात को जगे हुए अपने मम्मी के फोन में गेम खेल रहा था. रात के करीब ढाई बजे के आसपास उस का फोन बजा. इस से पहले कि फोन की घंटी हर किसी को नींद से जगा देती कि उस से पहले ही सक्षम ने तुरंत फोन उठा लिया.

यह उस के पिता नीरज चावला (35 वर्ष) का फोन था. सक्षम ने फोन उठा कर फुसफुसाते हुए कहा, ‘‘हैलो पापा.’’

नीरज अपने बेटे को पुचकारते हुए बोला, ‘‘अरे मेरा बेटा कैसा है? खाटू श्याम घूम कर आ गए सब? कैसा लगा वहां घूम कर? मजा आया?’’

सक्षम ने फिर से फुसफुसाते हुए अपने पिता के सवालों का जवाब दिया, ‘‘जी पापा. वहां तो खूब मजा आया पापा. काश! आप भी साथ होते और मजा आता. हमें तो काफी रात हो गई थी वहां से वापस आते हुए.’’

ये सुन कर नीरज ने कहा, ‘‘कोई बात नहीं बेटे. सुनो, जो हमारी बीच बात हुई थी तुम्हें याद है न?’’

सक्षम ने उत्सुकता के साथ कहा, ‘‘जी पापा, मुझे याद है. आप क्या लाए हो मेरे लिए?’’

नीरज ने जवाब दिया, ‘‘वो तो सरप्राइज है मेरे बच्चे. मैं अभी तुम्हारे घर के बाहर ही तो खड़ा हूं. नीचे आ कर दरवाजा खोलो और अपना गिफ्ट ले जाओ. और हां, किसी को इस बारे में बताने की जरूरत नहीं है. ये गिफ्ट स्पैशल तुम्हारे लिए मंगवाया है बाहर से. अब जल्दी से नीचे आ कर अपना गिफ्ट ले लो. इसी बहाने मैं अपने बेटे से भी मिलूंगा.’’

अपने पिता के द्वारा लाए हुए गिफ्ट की बात सुन कर सक्षम के मन में खुशी का कोई ठिकाना नहीं था. वह तुरंत अपने बिस्तर से इस तरह से उठा कि किसी और को उस के उठने की भनक तक नहीं लगी और वह जल्द ही नीचे दरवाजे की ओर भागा.

आहिस्ता से सक्षम ने अंदर से लगी दरवाजे की कुंडी खोली और धीरे से दरवाजा खोला. उस ने देखा उस के पिता दरवाजे के ठीक सामने अपने हाथों में एक थैली लिए खड़े थे.

सक्षम के दरवाजा खोलने पर नीरज ने झुक कर उसे पहले अपने गले लगा लिया और फुसफुसाते हुए उस से पूछा, ‘‘कोई जागा तो नहीं बेटा?’’

सक्षम ने भी उसी तरह से नीरज को जवाब दिया, ‘‘नहीं पापा, कोई नहीं जागा.’’

यह सुन कर नीरज ने सक्षम के कंधे पर हाथ रखा और घर के अंदर आ गया. सक्षम को यह देख कर थोड़ा अजीब लगा. उस ने अपने पिता को रोकना चाहा, लेकिन वह कहां रुकने वाला था. उन दोनों के अंदर घुसते ही बाहर से एक और आदमी मकान में आ घुसा.

यह शख्स नीरज का दोस्त लेखराज था. लेखराज के अंदर आते ही उस ने भीतर से मुख्य दरवाजे की कुंडी बंद कर दी और भाग कर पहली मंजिल पर जा पहुंचा.

लेखराज को देखते ही इस से पहले कि सक्षम कुछ कहता, नीरज ने उस के मुंह पर हाथ रख दिया और उसे अपनी गोद में उठा कर उस कमरे की ओर चल पड़ा, जहां पर उस की पत्नी आयशा और उस की सास सुमन सोए हुए थी.

एक तरफ नीचे ग्राउंड फ्लोर पर नीरज अपने बेटे के साथ था तो दूसरी ओर लेखराज पहली मंजिल पर गगन और राजन के कमरे में था. लेखराज ने अपनी कमर से एक देसी तमंचा निकाल कर सोते हुए राजन पर गोली चला दी.

गोली चलने की आवाज सुन कर गगन नींद से जाग गया और उस की नजर लेखराज और उस के हाथ में तमंचे पर पड़ी. गगन के अवचेतन दिमाग ने खुद को बचाने के लिए बिस्तर किनारे रखे फोन को लेखराज की ओर जोर से फेंका. वह फोन लेखराज के चेहरे पर जा कर लगा और कुछ पलों के लिए उस का ध्यान गगन से हट गया.

इतने में गगन भाग कर दरवाजे की ओर से निकलने ही वाला था कि लेखराज ने गगन पर पीछे से गोली चला दी, जोकि उस की कमर पर लगी. गोली लगते ही वह गिर पड़ा.

गगन के शरीर से निकला खून पूरे फर्श पर फैल चुका था, जिसे देख लेखराज को लगा कि वह मर गया है, क्योंकि गगन के शरीर से किसी तरह की कोई हरकत नहीं हो रही थी.

पहली मंजिल पर गोली चलने की आवाज सुन कर 12 साल का छोटा बच्चा इस से पहले कि कुछ समझ पाता, नीरज ने उसे नीचे उतार दिया. फिर उस ने अपने थैले में से तमंचा बाहर निकाल कर अपनी सास सुमन पर निशाना साधते हुए 2 गोलियां चला दीं.

नीरज की पत्नी आयशा जो गहरी नींद में सो रही थी, बाहर होने वाले शोर से वह भी जाग गई. इस से पहले कि वह कुछ समझ पाती, नीरज ने मौका देख कर एक गोली अपनी पत्नी की छाती पर दाग दी. गोली मारने के बाद नीरज ने इधरउधर देखा तो सक्षम वहां मौजूद नहीं था.

नीरज ने जब उसे अपनी गोद से उसे नीचे उतारा था, तब वह भाग कर बाथरूम में चला गया था. उस ने खुद को बाथरूम में बंद कर लिया. सक्षम इतनी दहशत में था कि उस ने बाथरूम में किसी तरह की कोई हरकत करने की हिम्मत नहीं दिखाई.

इतने में लेखराज अपना काम पूरा कर के नीचे आया और उस ने नीरज से पूछा, ‘‘काम हो गया, अब आगे क्या करना है?’’

नीरज ने अपने थैले में से 2 धारदार चाकू निकाले और एक उस के हाथ में थमाते हुए बोला, ‘‘ये दोनों किसी भी कीमत पर जिंदा नहीं रहने चाहिए. इन्होंने मेरा जीना हराम कर दिया है, इसलिए इन्हें पूरी तरह से खत्म कर दो.’’

कहते हुए लेखराज और नीरज दोनों सुमन और आयशा की लाश की ओर बढ़े और दोनों उन के शरीर पर चढ़ कर उन के शरीर पर लगातार चाकू से वार करने लगे. उन्होंने उन का शरीर गोदने के बाद महसूस किया कि मकान में उन का नौकर भी रहता है, उस नौकर को भी उन्होंने ठिकाने लगाना जरूरी समझा. उसी समय उन्होंने महसूस किया कि कोई मकान का मेन दरवाजा खोल रहा है.

वह उस मकान में काम करने वाला नौकर शिवा ही था. उसे देख कर नीरज उस की ओर अपना तमंचा ले कर दौड़ा. शिवा अपनी जान बचाने के लिए तेजी से भागा और दीवार फांदते हुए वह मकान के इर्दगिर्द खाली पड़े प्लौट को पार करते हुए भाग निकला.

इस बीच नीरज ने उस की ओर निशाना साध कर गोली भी चलाई थी, लेकिन गोली के तमंचे में फंस जाने की वजह से शिवा अपनी जान बचाने में कामयाब रहा. नीरज और लेखराज सक्षम को छोड़ घर में सभी को गोली मारने के बाद तुरंत वहां से नौ दो ग्यारह हो गए.

नीरज और लेखराज ने सभी को गोली तो मार दी थी, लेकिन उन्हें इस बात का अंदाजा नहीं था कि गगन को गोली लगने के बाद भी वह बच जाएगा. गगन को उस की कमर पर गोली लगी थी, उस का खून भी काफी बह चुका था लेकिन वह जिंदगी और मौत के बीच लटक गया था.

नीरज और लेखराज के वहां से निकल जाने के बाद सक्षम रोताबिलखता एकएक कर अपने परिवार के पास जा कर उन्हें देख रहा था, तभी उस ने देखा कि उस के मामा के शरीर में हरकत हो रही थी. यह देख कर फोन ले कर वह भागते हुए अपने मामा गगन के पास पहुंचा.

गगन ने 100 नंबर डायल कर पुलिस को फोन लगाया और पुलिस को कराहती आवाज में जल्द ही अपने घर पर आने के लिए कहा.

सुबह के करीब साढ़े 3 बज रहे थे, जब इस घटना की सूचना फरीदाबाद में धौज थाना क्षेत्र को मिली. धौज थाना गगन के नए घर से मात्र 5 मिनट की दूरी पर ही था.

मामले की सूचना मिलते ही धौज थानाप्रभारी दयानंद अपनी टीम के साथ कुछ ही देर में गगन के घर जा पहुंचे और उन्होंने सब से पहले मकान में गगन को ढूंढ निकाला और उसे पास के अस्पताल ले गए. उसी दौरान उन्होंने वरिष्ठ अधिकारियों को इस मामले की सूचना दी.

सूचना मिलने पर थोड़ी देर में जिले के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी और फोरैंसिक टीम भी वहां पहुंच गई. फोरैंसिक टीम द्वारा अपना काम निपटाने के बाद पुलिस ने दोनों लाशें पोस्टमार्टम के लिए भेज दीं.

इस के बाद उच्चाधिकारियों के निर्देश पर थानाप्रभारी ने जांच शुरू कर दी. पुलिस ने सक्षम से उस के पिता का मोबाइल नंबर ले कर टैक्निकल टीम को दे दिया. टीम ने ट्रेसिंग कर के नीरज की लोकेशन का पता लगा लिया.

घटना के 9 घंटे बाद डीएलएफ और धौज की क्राइम ब्रांच की टीमों ने 22 अक्तूबर को एनआईटी फरीदाबाद से दोनों आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया.

इस हत्या के दोनों आरोपियों को गिरफ्तार करने के बाद उन से पूछताछ के दौरान इस पूरे हत्याकांड की वजह सामने आई. दरअसल, नीरज और उस की पत्नी आयशा के जीवन में सब कुछ सही चल रहा था, लेकिन नीरज के मन में आयशा को ले कर उसे शक होता था.

आयशा अकसर अपने बचपन के दोस्तों के साथ फोन पर बातचीत किया करती थी. कई बार वह बातों में इतनी मशगूल हो जाती थी कि आयशा का ध्यान नीरज पर होता ही नहीं था.

इस के अलावा आयशा खुले दिमाग वाली युवती थी. दोस्तों के संग बातचीत, हंसीमजाक करना उसे बेहद पसंद था. लेकिन कहीं न कहीं आयशा का इस तरह का बर्ताव करना नीरज को पसंद नहीं आता था. इसी को ले कर अकसर नीरज और आयशा के बीच झगड़े होते रहते थे.

दोनों के बीच झगड़े इतने बढ़ जाते थे कि उन के बीच सुलह के लिए आयशा के मायके वालों को आना पड़ता था.

इसी बीच पिछले साल, नीरज ने आयशा के भाई यानी अपने साले गगन से 10 लाख रुपए उधार भी मांगे थे. एनआईटी फरीदाबाद का रहने वाला नीरज अपने इलाके में एक टेलर मैटेरियल की दुकान खोलना चाहता था, जिस के लिए उसे पैसों की जरूरत थी.

उस ने गगन से पैसे ले कर साल भर में वापस करने की बात भी कही थी. लेकिन जब एक साल से ज्यादा का समय हो गया तो गगन नीरज को पैसे लौटाने के लिए कहने लगा.

कोरोना की वजह से धंधा नहीं चलने के कारण नीरज के पास गगन को लौटाने के लिए पैसा इकट्ठे नहीं हो सके. वह गगन को आज कल कह कर हर दिन पैसे लौटाने की बात किया करता, लेकिन वह पैसों का जुगाड़ नहीं कर पा रहा था. ये बात कहीं न कहीं गगन को भी समझ आ गई थी कि उस के जीजा के पास पैसे नहीं है.

जब यह बात उस ने अपने घर वालों को बताई तो आएशा की मां सुमन ने नीरज को ताना मारना शुरू कर दिया. सुमन और गगन के साथसाथ आएशा को जब कभी मौका मिलता, वे सब उसे पैसे लौटाने के लिए कहते, नहीं तो उसे किसी न किसी बहाने ताने मारते थे.

यही नहीं, पिछले एक साल से आयशा अपने बेटे सक्षम के साथ अपने मायके में ही थी. दोनों के बीच झगड़े के बाद आयशा अपने बेटे को ले कर अपने मायके रहने के लिए आ गई थी. और यह बात नीरज को काफी खटकने लगी थी.

ये सब देखते हुए और इन सभी चीजों से परेशान हो कर उस ने इस हत्याकांड की प्लानिंग अपने दिमाग में ही रच ली थी.

पूरी प्लानिंग के चलते नीरज ने बीते कुछ दिनों से ससुराल के लोगों को राजीनामे के बहाने अपनी बातों में फंसाना शुरू कर दिया, ताकि उस पर कोई शक न कर सके.

इसी के चलते 15-16 दिन पहले नीरज ससुराल के लोगों से राजीनामा करने के बहाने मोहब्ताबाद गया और पूरी कोठी को अपनी नजरों में उतार लिया था.

उस ने इस हत्याकांड को अंजाम देने के लिए पैसों का लालच दे कर अपने करीबी दोस्त लेखराज को भी इस में शामिल कर लिया था.

इस हत्याकांड को अंजाम देने के लिए नीरज ने एक महीने पहले हापुड़ से 35 हजार रुपए में 2 देसी तमंचे, 2 चाकू और कुछ कारतूस खरीद लिए थे.

नीरज ने कभी न तो हथियार रखे और न ही चलाए थे, लेकिन पत्नी के चरित्र और पैसे के लेनदेन के चलते तीनों की हत्या करने के लिए उस ने तमंचा चलाना भी सीख लिया था. फिर उस ने 21 अक्तूबर, 2021 की रात को घटना को अंजाम दे दिया.

कोई भी जीवित न बचे, इसलिए नीरज और लेखराज ने गोली चलाने के साथसाथ चाकुओं से भी वार किए.

सास सुमन को एक गोली लगी और चाकू के कई वार किए गए. आयशा को 2 गोली लगी थीं. राजन शर्मा को एक गोली सीने में लगी, जबकि गगन के कमर में गोली लगी थी.

नीरज को अनुमान था कि इस गोली से गगन की मौत हो जाएगी. लेकिन वह जीवित बच गया. दोनों आरोपियों से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया.

बेटी बनी पिता का काल : पैसो के लिए रिश्तों का खून

सुबह 6 बजे का समय था और तारीख थी 20 जुलाई, 2021. उत्तर प्रदश के जिला संभल के मुटेना गांव के पास दक्षिण की ओर खेत के बीचोबीच पेड़ से लाश लटकी हुई थी. उस के नीचे एक औरत और 2 लड़कियां विलाप कर रही थीं. उन के अलावा गांव के कुछ लोग भी मौजूद थे.

उसी गांव के ही एक व्यक्ति ने पुलिस को इस की सूचना दी थी. वहां मौजूद सभी को पुलिस के आने का इंतजार था, लेकिन वे आपस में कानाफूसी करते हुए अचरज भी जता रहे थे कि 60 साल से अधिक उम्र के इस सीधेसादे बुजुर्ग ने आखिर फांसी क्यों लगाई होगी? कैसे फंदा बनाया होगा? कैसे फांसी लगाई होगी?

कुछ देर में ही चौकी इंचार्ज 2 कांस्टेबलों के साथ वहां पहुंच गए थे. उन्होंने पहले आसपास के लोगों को वहां से हटाया. फिर पेड़ से लटकी लाश का गहराई से मुआयना किया. प्राथमिक छानबीन की और इस की सूचना रजपुरा के थानाप्रभारी को भी दे दी.

सूचना पाते ही थानाप्रभारी विद्युत गोयल उच्च अधिकारियों को सूचना भेज कर घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने लाश नीचे उतरवाई और पंचनामा भर कर पोस्टमार्टम के लिए संभल जिला मुख्यालय भेज दी. मृतक की पहचान मुटेना के हरपाल यादव के रूप में हुई.

पुलिस की निगाह में मामला आत्महत्या का लग रहा था. इसलिए पुलिस ने इसे गंभीरता से नहीं लिया. हालांकि वहां मौजूद कुछ लोगों ने हत्या किए जाने की आशंका जरूर जताई, लेकिन मृतक के घर वालों में से किसी ने भी किसी पर कोई आरोप नहीं लगाया.

हरपाल यादव के पास 30 बीघा खेती की जमीन थी. वह खेती कर अपने परिवार का गुजरबसर करते आ रहे थे. उन की 3 बेटियां नीतू, प्रीति व कविता थीं, जिन की परवरिश में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी थी.

हालांकि उन को बेटे की कमी भी खलती रहती थी. बेटा नहीं होने की टीस के चलते उन की एक आदत शराब पीने की भी लग गई थी. जबकि पत्नी लाजवंती उन से शराब छोड़ने को कहती रहती थी.

उन्होंने बड़ी बेटी नीतू की शादी कई साल पहले कर दी थी. कुछ समय से दूसरी बेटी प्रीति की शादी की चिंता सताने लगी थी. लाजवंती प्रीति के विवाह को ले कर कुछ ज्यादा चिंतित रहती थी, इस की वजह यह थी कि वह बाकी 2 बेटियों से अलग जिद्दी स्वभाव की थी. अपनी बात चाहे जैसे हो, मनवा कर ही दम लेती थी.

शादी की चिंता में घुले जा रहे मातापिता की समस्या का समाधान प्रीति ने खुद ही निकाल दिया था. उस ने अपनी मां को बताया कि वह अपनी ही जाति के बदायूं के रहने वाले धर्मेंद्र यादव नाम के लड़के को जानती है. उस ने उसे एक शादी में देखा था. उसे वह पसंद करती है.

प्रीति को उस के बारे जो जानकारी थी, मां को बता दी. मां लाजवंती ने यह जानकारी अपने पति को दे कर बताया कि धर्मेंद्र बदायूं जिले की इसलामनगर तहसील के पतीसा गांव का रहने वाला है. उस के 4 भाई और एक बहन है.

जल्द ही प्रीति के मातापिता ने धर्मेंद्र के परिवार वालों से मिल कर कोरोना काल में ही शादी तय कर दी, किंतु शादी की तारीख कोरोना की वजह से तय नहीं हो पाई थी.

प्रीति और धर्मेंद्र की शादी तय हो जाने के बाद वे मिलने को बेचैन हो गए थे, किंतु सामाजिक और पारिवारिक मानमर्यादा के चलते मिल नहीं पा रहे थे. दूसरा कोरोना काल की वजह से कहीं आनाजाना भी मुश्किल था.

दोनों की फोन पर बातें होने लगी थीं. उस के बाद उन की मिलने की इच्छा और प्रबल हो गई. एक दिन धर्मेंद्र ने प्रीति से मुलाकात करने का आग्रह किया. प्रीति भी इसी का इंतजार कर रही थी. धर्मेंद्र ने मिलने की जगह और समय बताया.

धर्मेंद्र से मिलने के बाद प्रीति उस पर फिदा हो गई. उसे अपने सपनों का शहजादा मिल गया था. इकहरे बदन के मजबूत कदकाठी वाले धर्मेंद्र के चेहरे पर गजब का आकर्षण धा. उस से बातें कर प्रीति बहुत प्रभावित हो गई. धर्मेंद्र भी प्रीति को देख कर लट्टू हो गया. जवानी से मदमस्त प्रीति को देखा तो एकटक से देखता ही रह गया.

उस की सुंदर काया, झलकती जवानी, इतरानेइठलाने की अदाएं धर्मेंद्र को बहुत पसंद आईं. उस रोज उन की छोटी से मुलाकात हुई, लेकिन बाद में दोनों ने मिलनेजुलने का सिलसिला बना लिया.

धीरेधीरे धर्मेंद्र का प्रीति के घर भी आनाजाना हो गया. प्रीति भी अपने होने वाले ससुराल घूम आई. धर्मेंद्र ने प्रीति से कहा कि वह काफी धूमधाम से पूरे जश्न के साथ शादी करना चाहता है.

जबकि कोरोना काल में शादी में लगी बंदिशों के चलते शादी की तारीखें टलती जा रही थीं. इस बीच उन के बीच वह सब भी हो गया, जो विवाह बाद होना चाहिए था.

उन की शादी अब महज विशेष औपचारिकता भर रह गई थी. दोनों  एकदूसरे के दीवाने हो गए थे. उन्होंने साथ जीनेमरने की कसमें भी खाई थीं.

शादी के इंतजार में 2 महीने और निकल गए. जून का महीना भी जाने वाला था. उन दिनों धर्मेंद्र प्रीति के पास आया हुआ था. प्रीति के घरवालों को उन के मिलनेजुलने से कोई आपत्ति नहीं थी. वह अकसर शाम तक ठहरता और फिर अपने घर चला जाता था.

उस दिन धर्मेंद्र ने प्रीति से अचानक कहा कि उसे कुछ खास बात करनी है. उस के साथ ही वह पूछ बैठा, ‘‘अच्छा प्रीति, एक बात बताओ…’’

‘‘क्या?’’ प्रीति उत्सुकता से बोली.

‘‘तुम्हारे पिताजी हमारी शादी में कितना रुपया खर्च करेंगे?’’

प्रीति याद करती हुई बोली, ‘‘नीतू दीदी की शादी में 3 लाख रुपया खर्च हुआ था. मेरी शादी में भी लगभग इतना तो खर्च करेंगे ही.’’

‘‘इतना पैसा जमा कर लिया होगा पिताजी ने?’’ धर्मेंद्र चिंता जताते हुए बोला.

‘‘इतनी रकम की व्यवस्था नहीं है,  फिर भी कुछ रिश्तेदारों से और कुछ खेती की जमीन पर बैंक से लोन लेने की तैयारी कर रहे हैं.’’ प्रीति बोली.

तभी धर्मेंद्र बोला, ‘‘3 लाख रुपए में क्या होगा. देखो मुझे अपना कोई कारोबार करने के लिए कम से कम 5 लाख रुपए चाहिए. बारात की अच्छी खातिरदारी होनी चाहिए. दहेज के जरूरी सामान के लिए भी 3 लाख रुपए कम पड़ जाएंगे. शादी के बाद कोई किसी का साथ नहीं देता. हम दोनों जो खुशहाल जिंदगी का तानाबाना बुन रहे हैं, सुनहरे सपने देख रहे हैं, वे सब पूरे नहीं हो सकेंगे.’’

‘‘इतना पैसा कहां से आएगा?’’ प्रीति चिंतित हो गई.

‘‘चिंता करने की जरूरत नहीं है. मेरे पास उस का समाधान है.’’ धर्मेंद्र बोला.

‘‘वह क्या?’’ प्रीति ने पूछा.

‘‘देखो पिताजी के पास 30 बीघा जमीन है. 3 बेटियां हैं. बेटा कोई है नहीं. हमारे हिस्से में भी 10 बीघा जमीन आएगी. उन्हें सिर्फ इतना करना है कि हमारे हिस्से की जमीन बेच कर रकम हमें दे दें.’’

धर्मेंद्र की बात प्रीति की समझ में तो आ गई पर दुविधा के साथ बोली, ‘‘लेकिन यह बात उन को कौन समझाएगा?’’

‘‘तुम, और कौन?’’

‘‘नहीं माने तो?’’

‘‘नहीं कैसे मानेंगे, तुम कोई गलत थोड़े कहोगी. ऐसा करने से उन के सिर पर कर्ज का कोई बोझ भी नहीं पड़ेगा. और वह अपनी तीसरी बेटी की भी शादी अच्छी तरह से कर लेंगे.’’

कुछ सोचती हुई प्रीति बोली, ‘‘अच्छा चलो, मैं आज ही उन से बात करूंगी.’’

थोड़ी देर रुक कर धर्मेंद्र चला गया. रात में पिता को खाना खिलाने के बाद प्रीति ने धर्मेंद्र ने जैसे कहा था, पिता को वैसे ही कह दिया.

संयोग से मां भी वहां मौजूद थी. हरपाल प्रीति की बात सुन कर अवाक रह गए.

उन्होंने तुरंत कहा, ‘‘देखो प्रीति, मैं तुम्हारी हर बात मान लेता हूं, लेकिन यह बात मुझे जरा भी पसंद नहीं है.’’

प्रीति ने पिता को समझाने की कोशिश की, ‘‘धर्मेंद्र कह रहे हैं कि 10 बीघा जमीन बेच ली जाए तो शादी ठीकठाक हो जाएगी. धर्मेंद्र को भी कोई कामधंधा करने के लिए रकम मिल जाएगी. वैसे भी तीनों बहनों के नाम 10 -10 बीघा जमीन तो आनी ही है.’’

दोबारा जमीन की बात सुन कर हरपाल आगबबूला हो गए. गुस्से में बोले, ‘‘जमीन मेरी मां है, तुम लोगों के कहने पर मैं अपनी मां को बेच दूं. ऐसा आज तक खानदान में न हुआ है और न आगे होगा.’’

इतना कह कर वह वहां से उठ कर चले गए. जातेजाते कह गए, ‘‘आइंदा अब इधर मत आना, मुझ से बात मत करना. तुम्हारी शादी तो मैं किसी तरह करवा ही दूंगा. उस के बाद समझो हमारा रिश्ता खत्म हो जाएगा.’’

प्रीति पिता की इस नाराजगी से काफी दुखी हो गई. उस ने पूरी बात अगले रोज धर्मेंद्र को फोन पर बताई. वह समझ नहीं पा रही थी क्या करे कि उस के पिता जमीन बेचने को तैयार हो जाएं.

एक हफ्ते तक बापबेटी के बीच कोई बातचीत नहीं हुई. धर्मेंद्र ने भी प्रीति की इस बीच कोई खोजखबर नहीं ली. आखिरकार प्रीति ने ही फोन कर धर्मेंद्र से हालचाल पूछा. फोन पर धर्मेंद्र काफी उखड़ाउखड़ा सा लगा. वह लापरवाही से बातें करता रहा.

प्रीति ने महसूस किया कि जैसे उस के मंगेतर धर्मेंद्र को उस से कोई लगाव नहीं रहा. किसी तरह से प्रीति अपने प्रेम और अंतरंग संबंधों का हवाला देते हुए धर्मेंद्र को मनाने में कामयाब रही.

वह धर्मेंद्र के प्रेम जाल में बुरी तरह फंस चुकी थी. धर्मेंद्र को अपना सब कुछ सुपुर्द कर चुकी थी. उस ने धर्मेंद्र को आश्वासन दिया कि वह कोई न कोई रास्ता निकाल लेगी, जिस से पिता उस के हिस्से की जमीन देने के लिए राजी हो जाएंगे.

इसी के साथ उस ने धर्मेंद्र को किसी जगह बैठ कर समस्या का समाधान निकालने का सुझाव दिया.

धर्मेंद्र प्रीति की बात मानते हुए उस से मिला. मिलते ही प्रीति उस के गले लग कर बोली, ‘‘गुस्सा थूक दो, आओ कोई तरीका निकालते हैं.’’

‘‘बुड्ढे ने तो सारा खेल बिगाड़ दिया. और ऐसा ही हाल रहा तो हम दोनों को वह जीते जी सुखी जीवन शुरू करने नहीं देगा.’’ धर्मेंद्र गुस्से में बोला.

‘‘तो फिर उन्हें रास्ते से ही हटा देते हैं.’’ प्रीति तुरंत बोली.

धर्मेंद्र अवाक रह गया, ‘‘यह तुम क्या कह रही हो? वो तुम्हारे पिता हैं.’’

‘‘पिता हैं तो क्या हुआ, तुम सही कह रहे हो, उन के जीते जी हमें सुखी जीवन नहीं नसीब होगा.’’

‘‘एक बार फिर समझाते हैं, मैं भी तुम्हारे साथ रहूंगा.’’ धर्मेंद्र बोला.

‘‘तुम इस में साथ मत दो, मैं ने जो योजना बनाई है उस में मेरी मदद करो.’’

उस के बाद प्रीति ने धर्मेंद्र को अपनी योजना बताई और दोनों ही उसे अंजाम देने की तैयारी में जुट गए.

योजना के मुताबिक दोनों ने मिल कर हरपाल को ठिकाने लगाने की पूरी तैयारी कर ली थी. उस के बाद जो घटित हुआ, उस का खुलासा पोस्टमार्टम रिपोर्ट और पुलिस की गहन तफ्तीश से सामने आ गया. वह इस प्रकार है—

19 अगस्त, 2021 को हरपाल खेतों पर काम करने के बाद घर आ रहे थे. रास्ते में  गांव का ही एक दोस्त मिल गया. वह शराब पीनेपिलाने वाला दोस्त था. दोनों ने एकांत में बैठ कर शराब पी. फिर हरपाल घर आ गए. तभी प्रीति ने बताया कि अभी उन से कोई मिलना चाहता है.

प्रीति अपने पिता को घर से दूर खड़े धर्मेंद्र के पास ले गई. वह बाइक ले कर खड़ा था. प्रीति अपने पिताजी को धर्मेंद्र के हवाले कर घर आ गई.

धर्मेंद्र हरपाल को उन के खेतों की तरफ ले गया, जहां उस का साथी गौरव मौजूद था. वहां बैठ कर हरपाल को और दारू पिलाई गई. जब वह नशे में काफी धुत हो गए, तब उन के सिर पर रौड मार कर हत्या कर दी.

हरपाल की मौत के बाद धर्मेंद्र ने पूरी बात फोन से प्रीति को बता दी. उन के द्वारा ही गले में फंदा डाले हरपाल के पेड़ पर लटके होने की खबर घर पहुंचा दी गई. प्रीति इस से पहले ही घटनास्थल पर पहुंच चुकी थी. फिर उन्होंने लाश पेड़ से इस तरह लटका दी जिस से मामला आत्महत्या का लगे.

हरपाल की लाश को पेड़ से लटकाने में काफी समय लग गया, लेकिन सुबह होने से पहले ही प्रीति ने सभी परिचितों को इस घटना की सूचना दे दी और वे आननफानन में घटनास्थल पर जा पहुंचे.

हत्या के इस मामले को आत्महत्या बनाने की कोशिश तो की गई थी, लेकिन धर्मेंद्र और उस के दोस्त इस में सफल नहीं हो पाए. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से ही इस का खुलासा हो गया. फिर पुलिस ने शक के आधार पर परिजनों से पूछताछ की, जिस में प्रीति का व्यवहार ही संदिग्ध दिखा.

उस के बयान के आधार पर पुलिस ने धर्मेंद्र को गिरफ्तार कर लिया. हरपाल के मर्डर केस का परदाफाश एसपी (संभल) चक्रेश मिश्रा द्वारा पत्रकार वार्ता में किया गया. पूरे हत्याकांड में प्रीति की साजिश होने के कारण 120बी आईपीसी के तहत प्रीति को भी नामजद किया गया है.

तीनों आरोपियों से पूछताछ के बाद उन्हें कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

शरीरों के खेल में मासूम कार्तिक बना निशाना – भाग 1

परसराम महावर का परिवार हर तरह से खुशहाल था, जो भोपाल की सिंधी बाहुल्य बैरागढ़ स्थित राजेंद्र नगर के एक छोटे से मकान में रहता था. परसराम कपड़े की दुकान में काम करता था. बैरागढ़ का कपड़ा बाजार देश भर में मशहूर है, यहां देश के व्यापारी थोक और फुटकर खरीदारी करने आते हैं. परसराम सुबह 8-9 बजे दुकान पर चला जाता था और देर रात लौटना उस की दिनचर्या थी. घर में उस की 30 वर्षीय पत्नी कविता (बदला नाम) और 2 बच्चे 10 साल की कनक और 8 साल का बेटा कार्तिक था, जिसे भरत भी कहते थे.

सुबह के वक्त दोनों बच्चों को स्कूल भेज कर कविता घर के कामकाज में जुट जाती थी और दोपहर 12 बजे तक फारिग हो कर या तो पड़ोस में चली जाती थी या फिर अपने मोबाइल फोन पर गेम खेल कर वक्त गुजार लेती थी. दोपहर ढाई बजे बच्चे स्कूल से वापस आ जाते थे तो वह फिर उन के कामों में व्यस्त हो जाती थी. इस के बाद बच्चों के खेलने और ट्यूशन पढ़ने का वक्त हो जाता था.

एक लिहाज से परसराम और कविता का घर और जिंदगी दोनों खुशहाल थे, उस की पगार से घर ठीकठाक चल जाता था. शादी के 12 साल हो जाने के बाद पतिपत्नी का मकसद बच्चों को पढ़ालिखा कर कुछ बनाने भर का रह गया था. इन लोगों ने अपने बच्चों को नजदीकी क्राइस्ट स्कूल में दाखिल करा दिया था. हर मांबाप की तरह इन की इच्छा भी बच्चों को अंगरेजी स्कूल में पढ़ाने की थी, जिस वे फर्राटे से अंगरेजी बोलने लगें. कनक और कार्तिक जब स्कूल की यूनिफार्म के साथ टाई बेल्ट और जूते पहन कर जाते थे, तो परसराम के काम करने का उत्साह और बढ़ जाता था.

कपड़े की दुकान का काम कितना कठिन होता है, यह परसराम जैसे लोग ही बेहतर जानते हैं जो दिन भर ग्राहकों के सामने कपड़ों के थान और पीस खोल कर रखते हैं, फिर वापस तह बना कर उन्हें उन की जगह पर जमाते हैं. सीजन के दिनों में तो कर्मचारी कमर सीधी करने और बाथरूम जाने तक को तरस जाते हैं. सालों से कपड़े की दुकान में काम कर रहे परसराम को अपनी नौकरी से कोई शिकायत नहीं थी. रात को घर लौट कर उस की थकान बच्चों की बातों और खूबसूरत पत्नी के होंठों की मुसकराहट देख कर गायब हो जाती थी.

अच्छीभली गृहस्थी थी कविता और परसराम की

कविता कुशल गृहिणी थी, जो किफायत से खर्च कर के घर चला लेती थी. वह दूसरी औरतों की तरह फिजूलखर्ची नहीं करती थी. 12 साल के वैवाहिक जीवन में उस ने पति को किसी भी शिकायत का मौका नहीं दिया था. इस बात पर परसराम को गर्व भी होता था और पत्नी पर प्यार भी उमड़ आता था.

कुल जमा परसराम अपनी जिंदगी से खुश था, लेकिन बीती 8 जनवरी को उस की इन खुशियों को ऐसा ग्रहण लगा, जिस से शायद ही वह जिंदगी में कभी उबर पाए. उस दिन दोपहर करीब 3 बजे उस के पास कविता का फोन आया कि कनक तो आ गई है, लेकिन कार्तिक स्कूल से वापस नहीं लौटा है. फोन सुनते ही वह घबरा कर घर की तरफ भागा.

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कनक और कार्तिक दोनों एक ही औटो से स्कूल आतेजाते थे. दोनों के आनेजाने का वक्त तय था, सुबह 8 बजे जाना और दोपहर ढाई बजे लौट आना. लेकिन उस दिन कविता जब रोजाना की तरह घर के दरवाजे पर आई तो कविता ने कनक के साथ कार्तिक को नहीं देखा.

‘‘भाई कहां है?’’ पूछने पर कनक ने बड़ी मासूमियत से जवाब दिया कि वह तो नहीं आया. क्यों नहीं आया, इस सवाल का कनक कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दे पाई तो कविता घबरा उठी.

इस पर उस ने औटो वाले से पूछा तो उस ने भी हैरानी से बताया कि आज तो कार्तिक स्कूल में दिखा ही नहीं और जल्दबाजी में उस ने भी ध्यान नहीं दिया.

इन जवाबों पर कविता को गुस्सा तो बहुत आया कि कार्तिक को छोड़ने की लापरवाही क्यों की, पर इस गुस्से को रोक कर उस ने पहले पति को फोन किया, फिर यह सोच कर बेचैन निगाहों से सड़क को निहारने लगी कि शायद कार्तिक आता दिख जाए.

हो न हो, वह बच्चों के साथ खेलने के कारण औटो में बैठना भूल गया हो या फिर स्कूल में ही किसी काम से रुक गया हो. कई तरह की शंकाओं, आशंकाओं से घिरी कविता परसराम के आने तक बेटे की सलामती की दुआ मांगती रही.

कोई खास वजह थी, जिस से परसराम और कविता दोनों जरूरत से ज्यादा आशंकित हो उठे थे. परसराम ने घर आतेआते फोन पर अपने भाई दिलीप को यह बात बताई तो वह भी चंद मिनटों में राजेंद्रनगर आ पहुंचा.

दोनों भाई भागेभागे क्राइस्ट मेमोरियल स्कूल पहुंचे और कार्तिक के बारे में पूछताछ की. वहां मौजूद सिक्योरिटी गार्ड और स्कूल स्टाफ ने बताया कि कार्तिक तो वक्त रहते चला गया था. इस जवाब पर परसराम का झल्लाना स्वाभाविक था, लेकिन स्कूल वालों से बहस करने के बजाय उस ने कार्तिक को ढूंढना ज्यादा बेहतर समझा और दोनों भाई उसे इधरउधर ढूंढने लगे. उन्होंने स्कूल से घर तक का रास्ता भी छाना. कई लोगों से कार्तिक के बारे में पूछताछ भी की लेकिन उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली.

एक घंटे की खोजबीन के बाद परसराम ने बैरागढ़ थाने जा कर बेटे की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखवा दी, जो एक जरूरी औपचारिकता वाली बात थी. कार्तिक को जान से भी ज्यादा चाहने वाले परसराम को चैन नहीं मिल रहा था, इसलिए रिपोर्ट दर्ज करने के बाद वह फिर बेटे को तलाशने में लग गया. उस ने बैरागढ़ की कोई गली नहीं छोड़ी.

कटवा दी जिंदगी की डोर : पत्नी और उस के प्रेमी ने ली जान – भाग 1

भारतीय खुफिया एजेंसी इंटेलीजेंस ब्यूरो यानी आईबी के सहायक तकनीकी सूचना अधिकारी चेतन प्रकाश गलाना बीती 14 फरवरी को 2 दिन की छुट्टी पर दिल्ली से अपने घर कोटा जिले की रामगंज मंडी आए थे. दिल्ली में वह अकेले रहते थे. उन के मातापिता रामगंज मंडी में और पत्नी अनीता 2 छोटे बेटों के साथ झालावाड़ में रहती थी.

चेतन आमतौर पर महीने में 1-2 बार छुट्टी पर घर आ जाते थे. जब भी वह घर आते तो रामगंज मंडी में रहने वाले मातापिता से मिलने जरूर जाते थे. उस दिन भी वह रामगंज मंडी में अपने घर वालों से मिल कर शाम 6 बजे की ट्रेन से झालावाड़ के लिए रवाना हुए थे. उन्हें करीब एक घंटे में झालावाड़ पहुंच जाना चाहिए था. जब रात 8 बजे तक चेतन घर नहीं पहुंचे तो उन की पत्नी अनीता ने अपने रिश्तेदारों को फोन कर के चेतन के बारे में बताया.

अनीता के कहने पर झालावाड़ की गायत्री कालोनी में रहने वाले रिश्तेदार मनमोहन मीणा ने चेतन की तलाश शुरू की. इसी खोजबीन में रात करीब साढ़े 8 बजे चेतन झालरापाटन-भवानी मंडी मार्ग पर रेलवे की रलायता पुलिया के पास बेहोश पड़े मिले. मनमोहन मीणा ने अनीता को चेतन के अचेत पड़े होने की सूचना दी. इस के बाद रिश्तेदार बेहोश चेतन को एआरजी अस्पताल ले गए. जांच के बाद डाक्टरों ने चेतन को मृत घोषित कर दिया.

संदिग्ध मौत का मामला होने की वजह से अस्पताल से पुलिस को सूचना दी गई. पुलिस ने अस्पताल पहुंच कर शव का निरीक्षण किया, लेकिन शरीर पर चोट का कोई निशान नहीं मिला.

पुलिस ने रलायता पुलिया के पास उस जगह का भी मौका मुआयना किया, जहां चेतन अचेत पड़े मिले थे. लेकिन ऐसा कोई सबूत नहीं मिला, जिस से पता चलता कि चेतन की मौत कैसे हुई. रिश्तेदारों की सूचना पर रामगंज मंडी से चेतन के मातापिता और अन्य घर वाले भी झालावाड़ आ गए.

पिता को था बेटे की हत्या का संदेह

चेतन के पिता महादेव मीणा ने झालावाड़ के थाना सदर में बेटे की संदिग्ध मौत का मामला दर्ज करा दिया. पुलिस ने सीआरपीसी की धारा 174 में मामला दर्ज कर जांच शुरू की. पुलिस ने 15 फरवरी को चेतन के शव का मैडिकल बोर्ड से पोस्टमार्टम कराया. पोस्टमार्टम के बाद चेतन का विसरा जांच के लिए विधि विज्ञान प्रयोगशाला भेज दिया.

खुफिया अधिकारी की मौत का मामला होने के कारण पुलिस हर एंगल से जांच कर रही थी. इन में 3 मुख्य बिंदु थे, पहला हार्ट अटैक, दूसरा आत्महत्या और तीसरा हत्या. चेतन के शरीर पर चोट या हाथापाई के कोई निशान नहीं मिले थे. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी ऐसा कुछ नहीं बताया गया, जिस से मौत का रहस्य खुलता.

अब पुलिस के सामने सवाल यह था कि चेतन जब ट्रेन से झालावाड़ आ रहे थे तो वह रलायता पुलिया कैसे पहुंचे और उन की मौत कैसे हुई? पुलिस कई दिनों तक इन सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश करती रही, लेकिन कोई ऐसी महत्त्वपूर्ण जानकारी नहीं मिली, जिस से चेतन की मौत के कारणों का पता चल पाता.

इस बीच, चेतन के पिता महादेव मीणा ने अदालत में इस्तगासा दायर कर दिया. इस्तगासे में कहा गया कि चेतन की सुनियोजित तरीके से हत्या की गई है. इस पर अदालत ने पुलिस को चेतन की हत्या का मुकदमा दर्ज करने के आदेश दिए. तब तक चेतन की हत्या को 3 महीने हो चुके थे.

अप्रैल के दूसरे सप्ताह में झालावाड़ के सदर थाने में अज्ञात लोगों के खिलाफ आईबी औफिसर चेतन प्रकाश गलाना की हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया गया. एसपी आनंद शर्मा ने चेतन की हत्या के मामले का खुलासा करने के लिए एडीशनल एसपी छगन सिंह राठौड़ के नेतृत्व में सदर थानाप्रभारी संजय मीणा, एएसआई अजीत मोगा, हैडकांस्टेबल मदन गुर्जर, कुंदर राठौड़, महेंद्र सिंह, हेमंत शर्मा और कुछ कांस्टेबलों की टीम गठित की.

पत्नी को किया गिरफ्तार

पुलिस की इस टीम ने चेतन प्रकाश की दिनचर्या के बारे में पता लगाया. इस के बाद उन के दोस्तों, परिचितों और दुश्मनी रखने वालों को चिह्नित कर के उन से पूछताछ की. इंटेलीजेंस ब्यूरो के दिल्ली कार्यालय में चेतन प्रकाश के साथी कर्मचारियों से भी पूछताछ की गई.

पुलिस टीम ने रामगंज मंडी, झालावाड़ रेलवे स्टेशन और रलायता पुलिया के आसपास घटनास्थल का कई बार दौरा कर के तथ्यों का पता लगाने का प्रयास किया. साइबर टीम ने कई जगह के मोबाइल टावरों का रिकौर्ड निकलवाया. साथ ही चेतन के घरपरिवार की पूरी जानकारी प्राप्त कर के घर वालों से भी पूछताछ की गई.

जांचपड़ताल में यह बात सामने आई कि चेतन के अपनी पत्नी अनीता के साथ संबंध अच्छे नहीं थे. इस के बाद पुलिस ने तकनीकी जांच और मुखबिरों की मदद से चेतन की मौत की कडि़यां जोड़नी शुरू कीं. लंबी चली जांचपड़ताल के बाद 25 जून को पुलिस ने आईबी औफिसर चेतन प्रकाश की हत्या के मामले में उन की पत्नी अनीता को गिरफ्तार कर लिया. अनीता से की गई पूछताछ में चेतन की हत्या की पूरी तसवीर सामने आ गई.

जांच में पता चला कि चेतन की हत्या पुलिस कांस्टेबल प्रवीण राठौड़ ने अपने साथियों के साथ मिल कर सुनियोजित तरीके से की थी. चेतन की पत्नी अनीता भी पति की हत्या में शामिल थी. कांस्टेबल प्रवीण के चेतन की पत्नी अनीता से अवैध संबंध थे. इन संबंधों को ले कर चेतन का अपनी पत्नी अनीता से कई बार विवाद भी हुआ था.

चेतन को शक था कि छोटा बेटा उस का नहीं, बल्कि प्रवीण का है. चेतन ने छोटे बेटे का डीएनए टेस्ट कराने की बात कही थी. इस से अनीता और प्रवीण को अपने अवैध संबंधों का राज खुलने का डर था. इसी वजह से उन्होंने चेतन को रास्ते से हटाने का फैसला किया.

कांस्टेबल प्रवीण राठौड़ ने अपने साथियों के सहयोग से चेतन को मौत के घाट उतारने के लिए 5 प्रयास किए थे. 3 बार की असफलता के बाद चौथी बार चेतन को दिल्ली में उन के घर पर मारने की योजना बनाई गई, लेकिन उस में भी कामयाबी नहीं मिली. अंतत: 5वीं बार वे चेतन को मौत की नींद सुलाने में कामयाब हो गए.

कांस्टेबल प्रवीण राठौड़ पहले झालावाड़ पुलिस की स्पैशल टीम में तैनात था. बाद में वह प्रतिनियुक्ति पर भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो यानी एसीबी में चला गया. एसीबी में भी वह झालावाड़ में ही तैनात रहा. पुलिस कांस्टेबल होने के कारण प्रवीण को आपराधिक पैंतरों की अच्छी जानकारी थी कि हत्या के मामले को साधारण मौत में कैसे दर्शाया जाए, वह अच्छी तरह जानता था. इस के लिए उस ने चेतन का अपहरण किया और उसे कैटामाइन इंजेक्शन की हैवी डोज दे कर मौत की नींद सुला दिया.

कैटामाइन इंजेक्शन प्रतिबंधित नशीली दवा है. यह बाजार में खुले तौर पर नहीं मिलती. कैटामाइन इंजेक्शन अस्पतालों और चिकित्सा संस्थानों में ही काम आता है. खास बात यह कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी इस इंजेक्शन के बारे में पता नहीं चल पाता.

पुलिस ने व्यापक जांचपड़ताल के बाद चेतन की हत्या के मामले में उस की पत्नी अनीता के साथसाथ अन्य आरोपियों को भी गिरफ्तार कर लिया. इन आरोपियों से की गई पूछताछ और पुलिस की जांच में चेतन की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस तरह है. झालावाड़ में मंगलपुरा रोड पर रहने वाले रमेशचंद का बेटा प्रवीण राठौड़ जब पढ़ता था, तभी से अनीता उसे जानती थी.

बचपन के प्यार ने हिलोरें मारे तो बन गई हत्या की योजना

अनीता भी झालावाड़ में रहती थी. पढ़नेलिखने की उम्र में दोनों एकदूसरे को चाहने लगे थे. सन 2008 में अनीता का चयन अध्यापिका के पद पर हो गया. उसी साल प्रवीण राठौड़ की नौकरी भी राजस्थान पुलिस में लग गई.

चौधरी की भूलभुलैया : अपनी ही बनाई योजना में फंसा – भाग 1

उन दिनों मैं नजीबाबाद में तैनात था. एक दिन एक दोहरे हत्याकांड का मामला सामने आया. मैं एक कांस्टेबल को ले कर घटनास्थल पर पहुंच गया. मई का महीना था. तेज गरमी पड़ रही थी. हत्या की वारदात चौधरी गनी के डेरे पर हुई थी, जो गांव टिब्बी का रहने वाला था. उस डेरे में नीची छतों के कमरे थे और एक कमरे में दोनों मृतकों की लाशें चारपाई पर रखी थीं, जो एक चादर से ढंकी थीं.

कमरे में जितने लोग थे, चौधरी ने सब को बाहर कर के दरवाजा बंद कर दिया. इस के बाद उस ने लाशों के ऊपर से चादर खींच दी. मेरी नजर लाशों पर पड़ी तो मैं ने शरम से नजरें दूसरी ओर फेर लीं. लाशें मर्द और औरत की थीं और दोनों नग्न हालत में एकदूसरे से लिपटे हुए थे. चौधरी ने कहा, ‘‘मैं ने इसीलिए सब को बाहर निकाला था.’’

मैं ने पूछा, ‘‘कौन हैं ये दोनों?’’

उस ने मर्द की ओर इशारा कर के कहा, ‘‘यह तो मुश्ताक है, मेरा नौकर और यह औरत बशारत की पत्नी सुगरा है.’’

मैं ने दोनों लाशों का बारीकी से निरीक्षण किया. जांच से पता लगा कि दोनों जब एकदूसरे में खोए हुए थे, तभी किसी ने दोनों पर पूरा रिवौल्वर खाली कर दिया था. दोनों के शरीर का ऊपरी भाग खून में नहाया हुआ था. पहली नजर में यह बदले की काररवाई लगती थी. दोनों जवान और सुंदर थे. देखने के बाद मैं ने लाशों पर चादर डाल दी.

‘‘यह किस का काम हो सकता है?’’ मैं ने चौधरी गनी से पूछा.

वह अपनी एक टांग को दबाते हुए बोला, ‘‘यह आप जांच कर के पता लगा सकते हैं.’’

‘‘लेकिन आप का दिमाग क्या कहता है?’’ मैं ने पूछा.

‘‘मुझे बशारत मतलब सुगरा के पति पर शक है.’’

‘‘क्या आप ने बशारत से पूछताछ की है?’’

‘‘मैं ने एक आदमी उस के घर भेजा था, लेकिन वह घर पर नहीं मिला.’’

‘‘इस का मतलब उसे अभी तक इस घटना का पता नहीं लगा.’’

‘‘मलिक साहब, वह खुद ही इधरउधर निकल गया होगा.’’

चौधरी की बात से मैं समझ गया कि वह बशारत को मुश्ताक और सुगरा का हत्यारा समझ रहा है. मैं ने उस की आंखों में देखते हुए कहा, ‘‘चौधरी साहब, आप इस घटना के बारे में क्या जानते हैं?’’

‘‘कुछ ज्यादा नहीं.’’ उस का एक हाथ फिर अपनी बाईं टांग की ओर गया.

‘‘आप की टांग में क्या हो गया है, जो आप बारबार हाथ लगा रहे हैं.’’

‘‘मेरी टांग में कुछ दिनों से बहुत दर्द हो रहा है.’’ वह कुछ रुक कर बोला, ‘‘मैं तो यहां हवेली में आराम कर रहा था कि मुराद दौड़ते हुए आया. उस ने बताया कि मुश्ताक और सुगरा को किसी ने मार दिया है. मैं ने डेरे पर जा कर लाशों को देखा और एक आदमी बशारत को देखने के लिए भेज दिया. फिर हवेली पहुंच कर मंजूरे को आप के पास थाने भेजा और मुश्ताक की पत्नी को भी खबर कर दी. वह बेचारी रोपीट रही है.’’

मुश्ताक की पत्नी बिलकीस लाशों को देखने के लिए कहती रही, लेकिन मुराद ने उस से कह दिया कि जब तक पुलिस काररवाई नहीं हो जाती, वह उसे देखने नहीं देगा.

मैं ने जरूरी काररवाई कर के लाशों को जिला अस्पताल भिजवा दिया और कमरे की बारीकी से जांच की. कमरे में एक ओर खिड़की थी, खिड़की में कोई जाली या सरिए नहीं लगे थे. वहां एक चारपाई थी, जिस पर दोनों की लाशें रखी थीं.

चारपाई को रंगते हुए खून नीचे फर्श पर गिरा था, जो जम गया था. हत्या करने का कोई भी हथियार अथवा कोई भी ऐसी चीज नहीं मिली, जो हत्या की जांच में मदद कर पाती. कमरे के बाहर कुछ लोग खडे थे. मैं ने उन में से एक समझदार से आदमी की ओर इशारा कर के उसे बुलाया. मैं ने उस से पूछा, ‘‘चाचा, तुम्हारा नाम क्या है?’’

‘‘जी, रहमत…रहमत अली.’’

‘‘क्या तुम भी इसी गांव में रहते हो?’’

उस ने हां में जवाब दिया तो मैं ने उस का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘चाचा, तुम मेरे साथ आओ.’’

मैं उसे एक कमरे में ले गया, जिस में खेती का सामान और कबाड़ रखा था. उस सामान में मैं हत्या करने वाला हथियार देख रहा था, साथ ही चाचा से भी बात कर रहा था.

इस के बाद मैं ने 2 और कमरों की तलाशी ली, लेकिन काम की कोई चीज नहीं मिली. मेरे पास सरकारी ताला था, मैं ने उस कमरे में ताला लगा कर उसे सील कर दिया, जिस में उन दोनों की लाशें मिली थीं.

कुछ और लोगों से बात कर के मैं रहमत को साथ ले कर डेरे से निकल कर टिब्बी गांव की ओर चल दिया. मैं चलतेचलते उस से बात कर रहा था. उस से काम की कई बातें पता लगीं, जो मैं आगे बताऊंगा.

चौधरी गनी ने मुझ से कहा था कि घटनास्थल से सीधा हवेली आऊं, लेकिन मैं ने पहले बशारत से मिलने की सोची. मैं पूछतेपूछते बशारत के घर तक पहुंच गया.

बशारत का घर गांव के बीचोबीच था, लेकिन वह घर में नहीं था. एक आदमी फरमान ने बताया कि वह खेतों में भी नहीं है. हम सब उस का इंतजार कर रहे हैं. उस ने गली में इधरउधर देखते हुए कहा, ‘‘आप अंदर आ जाएं सरकार, कुछ देर और खड़े रहे तो यहां मेला लग जाएगा.’’

‘‘तुम्हारे साढ़ू ने कारनामा ही ऐसा किया है, मेला तो लगेगा ही.’’

वह परेशान सा हो कर बोला, ‘‘समझ नहीं आ रहा, उस ने ऐसा काम कैसे कर दिया.’’

मैं अंदर एक कमरे में बैठ गया, जहां पहले से ही फरमान की पत्नी और बच्चे बैठे थे.

में ने उन्हें अपना परिचय दे कर बताया कि मैं कस्बा नजीबाबाद के थाने का इंचार्ज हूं. गांव टिब्बी मेरे ही थाने में आता है.

फरमान ने सिर हिला दिया, लेकिन उस की पत्नी कुबरा चुप नहीं रही. वह बोली, ‘‘थानेदार साहब, आप ने काररवाई करने में इतनी जल्दी क्यों की? कम से कम बशारत के आने का तो इंतजार कर लेते. लाशों को बाद में भी अस्पताल भिजवाया जा सकता था. हम अपनी बहन का मुंह भी नहीं देख सके.’’ इतना कह कर वह रोने लगी.

‘‘पागलों जैसी बातें न कर कुबरा, ऐसी हालत में उन का मुंह देखती. कुछ शरम है कि नहीं?’’ फरमान ने उसे झिड़का.

‘‘मैं गरमी की वजह से लाशों को अधिक देर तक नहीं रख सकता था.’’ मैं ने कुबरा से कहा, ‘‘तसल्ली रखो, पोस्टमार्टम के बाद लाशों को आप के हवाले कर दिया जाएगा, फिर आप अच्छी तरह अपनी बहन का मुंह देख लेना.’’

वह बोली, ‘‘थानेदार साहब हम चौधरियों के डेरे तक गए थे, लेकिन उस कमीने मुराद ने हमें कमरे के अंदर नहीं जाने दिया.’’

‘‘तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है कुबरा, हालात को समझने की कोशिश करो. तुम्हारी छोटी बहन ने ऐसी हरकत कर के हमारी नाक कटवा दी, अब तुम बाकी की कसर भी पूरी करना चाहती हो.’’ फरमान ने उसे डांटते हुए कहा.

मैं ने कुबरा को तसल्ली देते हुए कहा, ‘‘बीवी, मैं तुम्हारा दुश्मन नहीं हूं, चौधरी गनी ने ही मुराद को वहां खड़ा किया था. मृतक मुश्ताक की पत्नी भी अपने पति का मुंह देखने वहां पहुंची थी, लेकिन मुराद ने उसे भी अंदर नहीं जाने दिया.’’ फरमान ने मेरी ओर देखते हुए कहा, ‘‘मलिक साहब, आप की बातों से लग रहा है कि आप इस हत्या में बशारत पर शक कर रहे हैं.’’

‘‘क्या मैं बशारत पर शक करने के मामले में सही नहीं हूं?’’ मैं ने उसे जवाब देने के बजाय उल्टा सवाल कर दिया.

मेरा सवाल सुन कर वह इधरउधर देखने लगा, फिर बोला, ‘‘मेरा मतलब यह है कि बशारत…इतना हिम्मत वाला नहीं है.’’

सुगरा यानी सुग्गी के बेखौफ व्यवहार के बारे में मुझे रहमत अली ने भी बताया था. अब फरमान की बातों से लग रहा था कि वह अपनी साली के कारनामों से खुश नहीं था.

‘‘फरमान, पत्नी का मामला ऐसा होता है कि कमजोर आदमी भी अपनी इज्जत के लिए टार्जन बन जाता है. अगर उस ने हत्या नहीं की तो गायब क्यों हो गया?’’

‘‘यह बात तो मेरी समझ में भी नहीं आ रही. मैं ने उसे खेतों में भी देखा और गांव में भी, लेकिन उस का कहीं पता नहीं लगा. वह आज बैलगाड़ी भी ले गया था. कह रहा था कि वापसी में अपने और मेरे जानवरों के लिए चारा ले आएगा, लेकिन अभी तक नहीं आया.’’

कुबरा कहने लगी, ‘‘हम भी बशारत के इंतजार में अपना घर छोड़े बैठे हैं, छोटे बच्चे की भी तो समस्या है.’’

‘‘कौन सा छोटा बच्चा?’’

वह बोली, ‘‘सुग्गी का एक ही तो बच्चा है नवेद. उसे किस के पास छोड़ें. फरमान कहते हैं इसे अपने साथ ले चलो, वैसे भी वह हमारे ही घर में रहता है.’’

मैं ने नवेद के बारे में कुरेद कर पूछा तो कुछ बातें सामने आने लगीं. कुबरा ने बताया, ‘‘आज दोपहर सुग्गी जब बशारत के लिए खेतों पर खाना ले कर जाने लगी तो उस ने 5 साल के नवेद को मेरे पास छोड़ दिया था. वह हमारे घर खुशी से रहता है.’’

मैं ने उस से पूछा, ‘‘क्या वह रोज इसी वक्त खाना ले कर जाती थी?’’

‘‘जी हां, वह इसी समय खाना ले कर जाती थी,’’ वह संकोच से बोली, ‘‘और जाते वक्त नवेद को हमारे घर छोड़ जाती थी.’’

‘‘क्या बात है कुबरा, तुम इतनी बेचैन क्यों हो?’’ मैं ने उस के अंदर की उलझन को पहचान कर कहा, ‘‘तुम मुझे उलझी हुई दिखाई दे रही हो. अगर कोई परेशानी हो तो बताओ.’’

‘‘दरअसल, मैं एक बात बताना भूल गई. पता नहीं उस बात का कोई महत्त्व है भी या नहीं.’’

मैं ने जल्दी से कहा, ‘‘बताओ तो सही.’’

‘‘आज सुग्गी ने जाते हुए कहा था कि उसे वापस लौटने में देर हो जाएगी.’’ वह रोते हुए बोली, ‘‘मुझे क्या पता था कि उसे इतनी देर हो जाएगी कि वापस ही नहीं लौटेगी.’’

मैं ने उस से पूछा, ‘‘कुबरा बीबी, यह बताओ सुग्गी ने यह क्यों कहा था कि देर हो जाएगी, क्या उस ने कारण बताया था?’’

उस ने आंसू पोंछते हुए कहा कि सुग्गी ने बताया था कि बशारत को खाना खिलाने के बाद वह चौधरियों की हवेली जाएगी.

मैं ने पूछा, ‘‘वह चौधरियों की हवेली क्यों जाना चाहती थी?’’

‘‘चौधरी गनी ने उसे किसी काम के लिए बुलाया था.’’

मैं ने पूछा, ‘‘कौन सा काम?’’

‘‘यह तो उस ने नहीं बताया, लेकिन चौधरी गनी इस गांव के मालिक हैं, वह किसी को भी तलब कर सकते हैं.’’

मैं सोचने लगा, जब चौधरी गनी से मैं बात कर रहा था तो उस ने सुग्गी को बुलाने के बारे में नहीं बताया था. मुझे लगा कि कहीं कोई गड़बड़ जरूर है. मैं ने उस से पूछा, ‘‘सुग्गी से बुलाने की बात किस ने कही थी?’’

‘‘मासी मुखतारा आई थी.’’

‘‘मासी मुखतारा कौन है और कहां रहती है?’’

‘‘मासी मुखतारा हवेली में काम करती है और वहीं रहती है.’’

मैं ने मुखतारा को भी अपने दिमाग में रखा. इस से पहले 3 और नाम थे चौधरी गनी, बशारत और मुराद. यहां से निपट कर मुझे हवेली जाना था. मैं चौधरी गनी की हवेली की ओर जाने लगा तो फरमान भी मेरे साथ चलने लगा. तभी एक छोटा सा गोराचिट्टा बच्चा घर से निकल कर आया और बोला, ‘‘खालू, मेरे अब्बाअम्मा कब आएंगे?’’

फरमान चौधरी की हवेली तक मेरे साथ आया. मैं ने उस से कहा कि तुम बशारत के घर में ही रहना और जैसे ही वह आए, मुझे खबर कर देना. मैं इधर चौधरी की हवेली में बैठा हूं.

चौधरी ने बड़े तपाक से मेरा स्वागत किया. उस ने अपनी बैठक में बिठाया. उस की बैठक की सजावट देख कर लगा कि वास्तव में वह उस इलाके का राजा था. मैं ने उस से पूछा, ‘‘मुराद कहां है?’’

चौधरी बोला, ‘‘वह डेरे पर गया है, मंजूर भी उस के साथ है. दोनों वहीं रहेंगे, सोएंगे भी वहीं.’’

‘‘डेरे के कमरे पर तो मैं ने ताला डाल दिया है.’’

‘‘वहां 2 कमरे और भी हैं. वैसे आजकल गरमी है, वे अहाते में ही सोते हैं.’’ इतना कह कर चौधरी ने पूछा, ‘‘आप बशारत के घर काफी देर तक रहे हैं, कोई नुक्ता हाथ लगा या नहीं?’’

‘‘हां, एक सिरा हाथ तो लगा है, देखो उस से काम चलता है या नहीं.’’

सुन कर चौधरी के कान खड़े हो गए. वह तुरंत बोला, ‘‘आप कौन से सिरे की बात कर रहे हैं?’’

‘‘चौधरी साहब, जो सिरा मेरे हाथ लगा है, उस के दूसरे किनारे पर आप खड़े हैं.’’

‘‘मतलब?’’ वह चौंका.

मैं ने क हा, ‘‘मुझे पता लगा है कि आप ने सुग्गी को कल दोपहर अपने डेरे पर बुलाया था.’’

उस के चेहरे का रंग फीका पड़ गया. वह बोला, ‘‘आप को यह बात किस ने बताई?’’

‘‘पहले आप इस बात की पुष्टि करें, फिर उस का नाम बताऊंगा.’’

‘‘नहीं, मैं ने उसे नहीं बुलाया था.’’

मैं ने कहा, ‘‘आज दोपहर जब सुग्गी बशारत का खाना ले कर खेतों पर जा रही थी, तो उस ने अपने बेटे नवेद को फरमान के घर छोड़ा और उस की पत्नी कुबरा से कहा कि वापस लौटने में उसे देर हो जाएगी, क्योंकि उसे मासी मुखतारा ने कहा है कि चौधरी की हवेली जाना है.’’

वह गुस्से से बोला, ‘‘उस दुष्ट औरत ने झूठ बोला है, आप उसे जानते नहीं. वह औरत…लेकिन छोड़ो मरने वाले को बुरा नहीं कहना चाहिए.’’

‘‘तो चौधरी साहब आप इस बात से इनकार करते हैं कि मासी मुखतारा उसे बुलाने नहीं गई थी?’’

‘‘हां, बिलकुल मैं इनकार करता हूं. आप को अभी पता लग जाएगा.’’ उस ने मुखतारा को बुलाया तो वह तुरंत आ गई. देखने में वह बहुत तेज औरत लग रही थी. उस ने आते ही कहा, ‘‘नहीं, मैं ने कुछ नहीं कहा, पिछले 3 दिन से तो मैं ने सुग्गी की शक्ल भी नहीं देखी.’’

खून में डूबी दूध की धार : माँ हुई मौत का शिकार

20 दिसंबर, 2020 को सुबह के 7 बजे का वक्त रहा होगा. ममता सो कर उठी तो सब से पहले उसे अपनी मम्मी की याद आई. क्योंकि ममता हर रात अपनी मां के लिए 5-6 बादाम पानी में भिगो कर रखती थी. जिन्हें सुबह होते ही छील कर मां को खाने के लिए देती थी.

उस ने बादाम छीले और मां हीरा देवी को आवाज लगाई. लेकिन मां ने जब कोई जबाव नहीं दिया तो वह उन के कमरे में गई. उस वक्त उस की मां लिहाफ ओढ़े सोई हुई थी.

मां को सोता देख कर उसे हैरानी हुई कि वह अभी तक सोई हुई हैं. जबकि हर रोज वह सब से पहले उठ जाती थीं.

मम्मी के पास जा कर उस ने उन के मुंह से लिहाफ हटाया तो उन के चेहरे को रक्तरंजित देख ममता के होश उड़ गए.

मां की हालत देख उस की चीख निकल गई. सुबहसुबह ममता के चीखनेचिल्लाने की आवाज सुन कर उस की छोटी बहन अंजलि और भाई रवींद्र भी कमरे में आ गए. कमरे में सोती मां हीरा देवी की किसी ने रात में गरदन काट कर हत्या कर दी थी.

सुबहसुबह हीरा देवी की हत्या की बात सुनते ही वहां कुछ ही देर में काफी लोग इकट्ठा हो गए. हीरा देवी की हत्या किस ने और क्यों की, यह कोई नहीं समझ पा रहा था. उस रात उस घर में 5 सदस्य थे, स्वयं हीरा देवी, उन की 2 बेटियां ममता, अंजलि और बेटे रवींद्र शाही व राहुल. हीरा देवी के पति राजेंद्र सिंह शाही किसी काम से घर से बाहर गए हुए थे.

हालांकि राजेंद्र शाही का घर अलग था, लेकिन घर के मुख्य दरवाजे पर लोहे का जाल वाला शटर लगा था. जिस के होते बाहर वाले इंसान का घर में घुसना नामुमकिन था. फिर ऐसे में बाहर का व्यक्ति घर में घुस कर हीरा देवी की हत्या कर के कैसे भाग सकता था. यह बात समझ के बाहर थी.

इस घटना की जानकारी हल्द्वानी की टीपी नगर पुलिस चौकी को दी गई. चौकी इंचार्ज ने यह सूचना आला अधिकारियों को दे दी. एक 65 वर्षीय बुजुर्ग महिला की हत्या की जानकारी मिलते ही एसपी (सिटी) अमित श्रीवास्तव, सीओ शांतनु पाराशर, कोतवाल संजय कुमार पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंचे.

पुलिस ने अपनी काररवाई करते हुए मृतका हीरा देवी के परिवार वालों से विस्तार से जानकारी हासिल की.

पुलिस पूछताछ में ममता शाही ने बताया कि हर रोज की तरह सभी घर वाले खाना खा कर सो गए थे. वह सुबह उठी तो मम्मी को बादाम देने गई. तब उसे पता चला कि किसी ने मम्मी का गला काट कर हत्या कर दी. उन की हत्या किस ने किस समय की, किसी को कुछ नहीं मालूम. उस ने बताया कि मम्मी अलग कमरे में सोती थीं और घर के बाकी सदस्य अलग कमरों में सोते थे.

मृतका के पति राजेंद्र शाही उस रात भोटिया पड़ाव क्षेत्र अंबिका विहार में रहने वाली अपनी चाची के घर गए हुए थे. इस घटना की जानकारी उन को छोटी बेटी अंजलि ने फोन कर के दी. तब राजेंद्र शाही घर लौट आए.

घटना की जांचपड़ताल हेतु फोरैंसिक टीम को भी मौके पर बुलाया गया था. फोरैंसिक टीम ने घटनास्थल की बारीकी से जांचपड़ताल कर के जरूरी नमूने ले कर पैक कर लिए. इस केस के खुलासे के लिए एसपी (सिटी) अमित श्रीवास्तव ने कोतवाल संजय कुमार के नेतृत्व में एक पुलिस टीम गठित कर दी.

घटनास्थल से साक्ष्य जुटाने के बाद पुलिस ने हीरा देवी की लाश पोस्टमार्टम हेतु भिजवा दी. 20 दिसंबर, 2020 को ही मृतका की बेटी मंजू शाही की तरफ से कोतवाली हल्द्वानी में अज्ञात व्यक्ति के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज करा दिया गया.

केस दर्ज होते ही पुलिस टीम ने अपनी काररवाई में फिर से फोरैंसिक टीम के साथ घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. पुलिस ने मृतका के पति राजेंद्र शाही और उन के परिवार वालों से पूछताछ की तो पता चला कि इस परिवार में काफी समय से संपत्ति को ले कर विवाद चल रहा था.

इस मामले में राजेंद्र शाही का सब से छोटा बेटा राहुल उर्फ राजा हमेशा तनाव में रहता था, जिस के कारण आए दिन मांबेटे में किसी न किसी बात को ले कर तकरार होती रहती थी.

इस जानकारी के मिलते ही पुलिस ने राहुल को पूछताछ के लिए अपनी कस्टडी में ले लिया. पुलिस ने राहुल को एकांत में ले जा कर उस से कड़ी पूछताछ की तो उस ने साफ शब्दों में कहा कि वह अपनी मां को क्यों मारेगा क्योंकि मां ही उस का सहारा थी.

उसी दौरान राहुल की बहन ममता ने पुलिस को बताया कि राहुल रात में कभी भी घर का शटर खोल कर बाहर घूमने लगता था. घटना वाली रात भी उस ने उसे रात के एक बजे घर के बाहर घूमते देखा था. इस बात की जानकारी मिलते ही पुलिस का उस के प्रति शक गहरा गया.

पुलिस ने उस की जांचपड़ताल करते हुए उस के कपड़े देखे. उस ने उस वक्त लोअर के ऊपर पैंट पहन रखी थी. पुलिस ने उस की पैंट उतरवाई तो सारा मामला सामने आ गया. उस की लोअर खून से सनी हुई थी.

पुलिस पूछताछ में वह लोअर पर लगे खून का कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे सका. उस के जिस मां ने बेटे को 9 महीने कोख में पाला, उस के लालनपालन में अपनी नींद चैन की भी परवाह नहीं की, वही कपूत बन गया था. राहुल और उस के परिवार वालों की जानकारी से इस हत्याकांड की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह हृदयविदारक थी.

उत्तराखंड के शहर हल्द्वानी की ट्रांसपोर्ट नगर चौकी के अंतर्गत एक गांव है करायल जौलासाल. राजेंद्र शाही का परिवारइसी गांव में रहता था. राजेंद्र शाही फौज में थे. फौज में होने के कारण वह साल में एकाध बार ही अपने घर आ पाते थे. राजेंद्र शाही के परिवार में उन की पत्नी हीरा देवी सहित समेत 8 सदस्य थे. 4 बेटियों और 2 बेटों में राहुल उर्फ राजा सब से छोटा था.

राजेंद्र सिंह के फौज में होने के कारण सभी बच्चों का लालनपालन हीरा देवी की देखरेख में ही हुआ था. हीरा देवी के सभी बच्चे समझदार थे. सभी ने मन लगा कर पढ़ाई की, जिस की वजह से सभी कामयाब हो गए थे.

राजेंद्र शाही ने बहुत पहले बच्चों की सहूलियत के हिसाब से गांव के छोर पर काफी बड़ा मकान बनवाया था. उन के पास पैसों की कमी नहीं थी. उसी दौरान उन्होंने अपने घर के सामने एक प्लौट और खरीद लिया था. जिसे उन्होंने अपनी बड़ी बेटी ममता के नाम करा दिया था.

ममता अपनी मां के साथ रहती थी. दूसरे नंबर की बेटी मंजू की शादी हो चुकी थी. तीसरे नंबर पर रवींद्र सिंह था, जो फौज में चला गया था.

रवींद्र की शादी पिथौरागढ़ की युवती से हुई थी. उस की पत्नी अधिकांशत: पिथौरागढ़ में ही रहती थी. राजेंद्र शाही की चौथे नंबर की बेटी सपना सरकारी टीचर बनकर मनीला में रहने लगी थी. जबकि पांचवें नंबर की बेटी अंजलि भीमताल में टीचर बन गई थी. राहुल इन सब में सब से छोटा था. जो इंटरमीडिएट पास करने के बाद नौकरी की तलाश में लगा था.

इस परिवार में सभी पढ़ेलिखे होने के बावजूद एकदूसरे से तालमेल नहीं बिठा पाते थे. हीरा देवी का शुरू से ही लड़कियों की तरफ झुकाव था. यही कारण था कि उन्होंने जब घर के सामने प्लौट खरीदा था, वह किसी लड़के के नाम न करा कर अपनी सब से बड़ी बेटी ममता के नाम कराया था. वही प्लौट बाद में पारिवारिक विवाद का कारण बना.

हीरा देवी की अन्य बेटियां भी उस प्लौट पर अपना अधिकार जमाना चाहती थीं, जबकि ममता उस पर केवल अपना ही अधिकार मानती थी. इसी विवाद के चलते अब से लगभग 16 साल पहले पतिपत्नी में मनमुटाव हो गया था. मनमुटाव के चलते पतिपत्नी के रिश्तों में ऐसी दरार आई कि राजेंद्र सिंह अपने परिवार से अलग रहने लगे.

सन 1990 में राजेंद्र सिंह फौज से रिटायर हो चुके थे. उन के रिटायरमेंट के वक्त भी पतिपत्नी में पैसों को ले कर तकरार बढ़ी थी. जिस के बाद राजेंद्र सिंह ने पत्नी को घर खर्च देना बंद कर दिया था. इस पर हीरा देवी ने अदालत में पति के खिलाफ भरणपोषण का मुकदमा दायर किया था, जिस के चलते हीरा देवी को पति की तरफ से हर माह 3 हजार रुपए भरणपोषण के रूप में मिलते थे, जिस के सहारे ही हीरा देवी अपने खर्च चलाती थीं.

सन 2005 से राजेंद्र सिंह का अपने घर आनाजाना बंद हो गया था. अपना घर होने के बावजूद राजेंद्र सिंह को किराए के मकान में रहने पर मजबूर होना पड़ा. फौज से रिटायर होने के बाद उन्होंने रामनगर में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी की. उस वक्त बेटा राहुल भी उन के साथ रहता था. राहुल शुरू से ही गुस्सैल और चिड़चिड़े स्वभाव का था.

राहुल ने इंटरमीडिएट करने के बाद आईटीआई की थी. इस के बावजूद उसे कहीं कोई काम नहीं मिल पाया था. राहुल जब कभी घर जाता तो उस की मां हीरा देवी उसे नौकरी न लगने का ताना मारती थी. जिस से उस की दिमागी हालत और भी खराब होती गई थी.

उस की दिमागी हालत के चलते एक बार राहुल ने खुद को भी चोट पहुंचाने की कोशिश की थी. उस की मां अपनी बेटियों को ज्यादा ही महत्त्व देती थी, जिस के कारण राहुल की मां से नहीं पटती थी. पत्नी की तरफ से राजेंद्र सिंह का मन टूटा तो उन्होंने रामनगर से नौकरी छोड़ गुजरात जा कर सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी की.

गुजरात में नौकरी करने के दौरान भी राहुल उन्हीं के साथ रहा. बापबेटे के बाहर रहने के बावजूद राजेंद्र शाही की बेटियों में आपस में तकरार बनी रही.

गुजरात में नौकरी करने के दौरान राहुल किसी बीमारी का शिकार हो गया. उस की परेशानी को देखते हुए राजेंद्र शाही उसे ले कर दिल्ली आ गए. उस के बाद राजेंद्र शाही और राहुल दोनों ने दिल्ली में ही सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी कर ली.

दिल्ली में नौकरी करने के दौरान उन्होंने राहुल का एम्स में इलाज कराया. उस दौरान राहुल बीचबीच में घर आताजाता था. लेकिन अपने प्रति मां का बदला व्यवहार देख कर वह फिर अपने पिता के पास चला जाता था. उस के अधिकांश दोस्त पढ़ाई करने के बाद नौकरियों में लग गए थे. लेकिन राहुल ही एक ऐसा बचा था, जिसे बाहर दोस्तों के उलाहने सुनने पड़ते थे और घर में मां की सुनती पड़ती थी.

राहुल की मानसिक हालत और भी खराब हो गई थी. जिस कारण परिवार वालों के प्रति उस का व्यवहार काफी बदल गया था. कभीकभी वह अपने पिता की जिंदगी के बारे में सोचता तो परेशान हो उठता था. उस की नजरों में इस सब का कारण उस की मां हीरा देवी थी, जिस के प्रति उसे नफरत पैदा हो गई थी.

अगस्त, 2020 को दोनों बापबेटे दिल्ली से काम छोड़ कर घर आ गए थे. राजेंद्र शाही किराए के मकान के बजाए अपने ही मकान में रहने लगे थे. दिल्ली से आने के बाद से ही राहुल नौकरी की तलाश में लगा था. लेकिन उस की मां उसे हर वक्त बेरोजगारी का ताना मारती रहती थी. जिस से उस का मानसिक संतुलन और भी खराब हो गया था. ऊपर से पारिवारिक विवाद ने घर की शांति छीन रखी थी.

चारों बहनों में जमीनजायदाद को ले कर मनमुटाव होता रहता था. उस वक्त तक राहुल का बड़ा भाई रवींद्र भी मानसिक परेशानी होने के कारण नौकरी छोड़ कर घर आ गया था.

घर के विवाद को देख कर रवींद्र सिंह ने सभी को समझाने की कोशिश की,लेकिन घर में उस की एक न चली. रवींद्र की पत्नी पहले से ही पिथौरागढ़ में रहती थी. जबकि रवींद्र सिंह परिवार के साथ ही रहता था. एक घर में रहते हुए भी परिवार में अलगअलग खाना बनता था. कुल मिला कर राजेंद्र शाही के पास जमीनजायदाद सब कुछ होने के बावजूद परिवार में खुशियां बिलकुल नही थीं.

20 दिसंबर, 2020 को राहुल कुछ ज्यादा ही परेशान था. थोड़ी देर पहले ही वह शहर से आया था. तभी उस की मां ने फिर से वही ताना मारा, ‘‘आ गया आवारागर्दी कर के, तू नौकरी करेगा भी क्यों? तुझे तो मुफ्त की रोटी खाने की आदत पड़ गई है.’’

हीरा देवी न जाने क्याक्या बड़बड़ाए जा रही थी. इस के बावजूद राहुल चुपचाप घर के अंदर चला गया. उस ने कपड़े चेंज किए, फिर मोबाइल खोल कर उसी में लग गया. लेकिन दिमाग में मां के कहे शब्द बारबार गूंज रहे थे.

शाम तक उस का दिमाग यूं ही घूमता रहा. शाम को पता चला कि उस के पिता आज कहीं गए हुए हैं. वह रात में नहीं आएंगे. राहुल अपने पिता के कमरे में सोता था. उस रात उस ने खाना खाया और फिर अपने ही कमरे में कैद हो गया. रात के 10 बजे ममता ने अपनी मां और भाई रवींद्र को खाना खिलाया और मां हीरा देवी को दवा देने के बाद कमरे में सुला दिया. हीरा देवी बीमार चल रही थी. फिर ममता भी अपने कमरे में जा कर सो गई. लेकिन उस रात राहुल अपनी मां के शब्दों से इतना आहत था कि उसे चाह कर भी नींद नहीं आ रही थी.

तभी उस के दिमाग में तरहतरह की शैतानी खुराफातें पैदा होने लगीं. उस के मन में बैठा शैतान जागा तो उस ने अपनी मां को ही मौत की नींद सुलाने की योजना बना डाली. वह देर रात उठा, फिर अपनी मां के कमरे में जा कर देखा. वह गहरी नींद में सोई पड़ी थीं.

घर के अन्य सदस्य भी अपनेअपने कमरों में सोए हुए थे. अपने कमरे से निकल कर राहुल सीधा किचन में गया. उस ने वहां से चाकू उठाया और उसे हाथ में थामे मां के कमरे की ओर बढ़ गया. हीरा देवी हर रात दवा खा कर सोती थी. उन पर दवाओं का नशा हावी रहता था.

मां को गहरी नींद में सोते देख राहुल शैतान बन गया. उस ने एक हाथ से अपनी मां का मुंह बंद किया और फिर दूसरे हाथ में थामे चाकू से मां के गले पर एक जोरदार वार कर डाला. इस से पहले कि हीरा देवी कुछ समझ पाती, चाकू के एक ही वार से उन के प्राणपखेरू उड़ गए.

मां को मौत की नींद सुलाने के बाद राहुल ने अपनी खून में सनी शर्ट चेंज कर ली. लेकिन खून सने लोअर के ऊपर उस ने पैंट पहन ली थी. उस के बाद उस ने बाहर के शटर का लगा ताला खोला, फिर वह निडर बेखौफ बाहर घूमता रहा.

उसी दौरान बाहर उस की आहट सुन कर ममता की आंखें खुलीं तो उस ने उसे बाहर घूमते हुए देखा. लेकिन वह उस की आदत को पहले से ही जानती थी. जिस के कारण उस ने उसे नहीं टोका.

इस केस के खुलते ही पुलिस ने मौके का मुआयना कर हत्या में प्रयुक्त चाकू, कमरे से राहुल के खून से सने कपड़े तथा वारदात के बाद खून से सने हाथ धोने में प्रयुक्त साबुन भी बरामद कर लिया था. पुलिस ने राहुल को अपनी ही मां की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

जमीनजायदाद के मोह ने एक हंसतेखेलते परिवार को बिखरने पर मजबूर कर दिया था, जिस की परिणति परिवार के सभी लोग रिश्तेनातों को दरकिनार कर कोर्टकचहरी के चक्कर लगा रहे थे.

वहीं घर की अशांति और बेरोजगारी से परेशान राहुल के दिल में परिवार वालों के प्रति इतनी नफरत पैदा हो गई थी कि उस ने अपनी मां को मौत की नींद सुला दिया. हत्या भी ऐसी अकल्पनीय जिसे सुन कर रोंगटे खड़े हो जाएं. 

ताबीज का रहस्य : मूर्ति की मौत का खुलासा

उत्तर प्रदेश का एक जिला है मैनपुरी. इसी जिले के गांव भहलोई में रहते थे सौरभ और मूर्ति देवी. दोनों जवानी की दहलीज पर कदम रख चुके थे. इस उम्र में युवकयुवतियों का एकदूसरे के प्रति आकर्षण बढ़ जाता है. ये दोनों भी एकदूसरे के आकर्षण में बंधते चले गए.

दोनों को एकदूसरे से कब प्यार हो गया, इस का उन्हें एहसास ही नहीं हुआ. बाद में उन की स्थिति ऐसी हो गई कि जब तक वह एकदूसरे को देख नहीं लेते थे, चैन नहीं मिलता था.

मूर्ति के पिता जीतपाल सिंह किसान थे. उन के 4 बच्चों में ऋषि, मूर्ति, सुषमा व सब से छोटा बेटा सोनू था. मूर्ति और सौरभ का प्यार परवान चढ़ रहा था. धीरेधीरे उन के प्यार के चर्चे गांव में होने लगे. यह खबर जब मूर्ति के पिता जीतपाल के कानों तक पहुंची तो वे बदनामी को ले कर वह परेशान रहने लगे.

इस से बचने के लिए उन्होंने मूर्ति की शादी करने का फैसला कर लिया. वह उस के लिए लड़का ढूंढने लगे. कोशिश रंग लाई और उन्होंने 19 वर्षीय बेटी मूर्ति की शादी 30 अप्रैल, 2018 को फिरोजाबाद जिले के कस्बा शिकोहाबाद के गांव मोहिनीपुर के रहने वाले श्याम सिंह के बेटे अर्जुन सिंह के साथ कर दी. श्याम सिंह भी खेतीकिसानी करते थे.

प्रेमिका की शादी हो जाने के बाद सौरभ मायूस हो गया. अब मूर्ति के बिना उसे गांव में अच्छा नहीं लगता था. वह मूर्ति से मिलने के लिए बेचैन हो उठा. उस ने मूर्ति से मिलने की खातिर किसी तरह अर्जुन के भाई उदयवीर से दोस्ती कर ली.

अब सौरभ कभीकभी मूर्ति की ससुराल मोहिनीपुर आने लगा. ससुराल वालों के सामने वह मूर्ति से बातचीत भी कर लेता था. धीरेधीरे सौरभ का आनाजाना बढ़ गया. वह बेहिचक घर आता और मूर्ति से घंटों हंसीठिठोली करता.ससुराल वालों को यह पता नहीं था कि सौरभ और मूर्ति का पहले से कोई चक्कर है. लिहाजा उन्होंने उन के मिलने की बात को गंभीरता से नहीं लिया. लेकिन बाद में अर्जुन को सौरभ का बारबार उस के घर के चक्कर लगाना अच्छा नहीं लगा तो अर्जुन ने सौरभ को अपने घर आने से साफ मना कर दिया.

सौरभ बेशरम था. वह नहीं माना और मना करने के बावजूद मूर्ति से मिलने पहुंच जाता. तब अर्जुन और उस के घर वाले उसे बेइज्जत कर के भगा देते थे. 7 सितंबर, 2019 को सौरभ फिर अर्जुन के घर पहुंच गया. घर वालों के विरोध पर गांव के लोगों ने उसे पकड़ लिया और उस की पिटाई कर दी. इस के बाद उसे गांव में दोबारा न आने की नसीहत देते हुए भगा दिया.

इस पूरे मामले की जानकारी अर्जुन ने अपनी सास मोहरश्री व बड़े साले ऋषि कुमार को दी. सूचना मिलने पर दोनों 9 सितंबर को मोहिनीपुर आ गए. ससुराल वालों ने शिकायत करते हुए सौरभ के घर आने और मूर्ति से बात करने पर विरोध जताया. मोहरश्री और उस के बेटे ने मूर्ति को समझाया कि वह सौरभ से बात न करा करे. मूर्ति को समझा कर वे दोनों रात को वहीं रुके.

मूर्ति ने मां और अपने भाई से वादा तो कर लिया था कि वह आइंदा सौरभ से बात नहीं करेगी लेकिन उस के मन में अलग ही खिचड़ी पक रही थी. वह सौरभ को हरगिज छोड़ना नहीं चाहती थी. और उसी रात वह ससुराल से रहस्यमय ढंग से गायब हो गई.

10 सितंबर की सुबह जब घर वालों की अांखें खुलीं तो इस घटना का पता चला. घर वालों ने मूर्ति की तलाश भी की, लेकिन वह नहीं मिली.अर्जुन सिंह ने पुलिस कंट्रोल रूम में फोन कर अपनी पत्नी के भाग जाने की खबर दी. कुछ ही देर में शिकोहाबाद थाने की पुलिस गांव पहुंच गई. पुलिस ने इस संबंध में अर्जुन सिंह की तरफ से सौरभ के खिलाफ पत्नी मूर्ति को आभूषण व 50 हजार की नकदी सहित बहलाफुसला कर भगा ले जाने की रिपोर्ट दर्ज करा दी.

रिपोर्ट दर्ज होने के बाद भी पुलिस ने सौरभ और मूर्ति को ढूंढने में दिलचस्पी नहीं दिखाई बल्कि उस ने इस मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया. मूर्ति के घर वाले ही उसे तलाश करते रहे लेकिन दोनों का कोई सुराग नहीं मिला.

फिरोजाबाद जिले का एक थाना है सिरसागंज. इस थाने के गांव भदेसरा निवासी चौकीदार रमेशचंद्र ने 20 सितंबर, 2019 की सुबह थाने में आ कर सूचना दी कि गांव में बचान सिंह के खेत में खड़ी बाजरे की फसल के बीच एक अधजली लाश पड़ी है. जो देखने में महिला की लग रही है.

तत्कालीन थानाप्रभारी सुनील कुमार तोमर ने चौकीदार से विस्तार से पूछताछ की. चौकीदार ने बताया कि वह सुबह खेतों की तरफ गया था. वहां बचान सिंह के बाजरे के खेत से एक कुत्ता एक व्यक्ति की टांग का कुछ हिस्सा ले कर बाहर निकला. इस पर जिज्ञासावश वह खेत में कुछ अंदर की तरफ गया. उस ने वहां जो दृश्य देखा तो परेशान हो गया.

वहां एक महिला के सिर के टुकड़े, बाल, दांत व एक पैर गली हुई अवस्था में पड़ा थे. इस के साथ ही पसलियों की हड्डियां व कंकाल भी खेत में पड़ा था.

इस सूचना पर थानाप्रभारी पुलिस टीम के साथ भदेसरा गांव स्थित बाजरे के खेत में पहुंच गए. यह गांव थाने से लगभग 6 किलोमीटर दूर था.

पुलिस जब वहां पहुंची तो बाजरे के खेत के बीचोंबीच एक जली हुई लाश क्षतविक्षत कंकाल के रूप में पड़ी थी. कुछ अधजले कपड़े आदि भी पुलिस ने खेत से बरामद किए. थानाप्रभारी ने यह सूचना अपने उच्चाधिकारियों को भी दे दी. बिना किसी देरी के अवशेषों को एकत्र कर उन्हें मोर्चरी भेज कर अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201 के अंतर्गत मुकदमा दर्ज कर लिया.

पुलिस को घटनास्थल के निरीक्षण से पता चला कि लाश को कई दिन पूर्व रात के समय खेत के बीचोंबीच ले जा कर जलाया गया था. इस से यह बात साफ हो गई थी कि हत्यारों ने महिला की हत्या के बाद उस के शव को यहां चोरीछिपे ला कर किसी ज्वलनशील पदार्थ से जलाया था.

लाश किस महिला की है, इस का पता लगाया जाना बहुत जरूरी था, लिहाजा पुलिस ने लाश के अस्थिपंजरों के फोटो सोशल मीडिया व अन्य माध्यमों से खूब प्रसारित किए. लेकिन पुलिस को इस में कोई सफलता नहीं मिली.

मृतका की पहचान न हो पाने तथा हत्यारे का भी पता न चलने के कारण इस मामले के विवेचक ने सुरागरसी जारी रखते हुए 8 मार्च, 2020 को मामले में फाइनल रिपोर्ट लगा दी.इस बीच 14 महीने बीत गए. सितंबर, 2020 में एसएसपी (फिरोजाबाद) सचिंद्र पटेल थाना शिकोहाबाद में निरीक्षण कर रहे थे.

इस दौरान उन की जानकारी में एक मामला आया.मामला यह था कि मोहिनीपुर के रहने वाले अर्जुन सिंह ने शिकोहाबाद में 10 सितंबर, 2019 को एक रिपोर्ट दर्ज कराई थी. इस में कहा गया था कि उस की पत्नी मूर्ति देवी सौरभ नाम के अपने प्रेमी के साथ घर से कुछ नकदी व आभूषण ले कर भाग गई है.

मामले के विवेचक ने इस संबंध में कोई काररवाई नहीं की थी. एसएसपी ने इस केस को खोलने के लिए एएसपी (ग्रामीण) राजेश कुमार के नेतृत्व में एक टीम बनाई. उन्होंने इस काम में एसओजी व सर्विलांस सैल को भी लगा दिया.

जिम्मेदारी मिलने के तुरंत बाद एसओजी प्रभारी कुलदीप सिंह चौहान की टीम ने अपना काम शुरू कर दिया.टीम ने जिले के विभिन्न थानों से इस संबंध में लापता महिलाओं की जानकारी जुटानी शुरू कर दी. जांच में पता चला कि अर्जुन सिंह द्वारा शिकोहाबाद थाने में रिपोर्ट दर्ज कराने के 10 दिन बाद ही सिरसागंज थाना पुलिस ने बाजरे के खेत से एक महिला का कंकाल बरामद किया था.

इस जानकारी के बाद पुलिस टीम थाना सिरसागंज पहुंची. टीम ने महिला के कंकाल के साथ मिले अन्य सामान को देखा. इस सामान में कंकाल से प्राप्त ताबीज, एक रुपए का छेद वाला सिक्का व अन्य सामान भी था. पुलिस ने लापता मूर्ति देवी के पिता जीतपाल सिंह निवासी मैनपुरी को बुला कर वह सारा सामान दिखाया.

जीतपाल ने ताबीज व सिक्के को देखते ही बता दिया कि यह सारा सामान उन की बेटी मूर्ति का है. वह अपने गले में काले धागे में बंधा यह ताबीज व एक रुपए का सिक्का पहनती थी. इसी के आधार पर उन्होंने बताया कि खेत में मिला कंकाल उन की बेटी मूर्ति का ही था.

मृतका की शिनाख्त होने पर एसओजी प्रभारी कुलदीप सिंह चौहान व थाना सिरसागंज के थानाप्रभारी गिरीशचंद्र गौतम को लगा कि दाल में जरूर कुछ काला है. उन्होंने जीतपाल से मूर्ति का मोबाइल नंबर ले लिया.

टीम ने इस मामले में संदिग्ध लग रहे लोगों से पूछताछ शुरू कर दी. चूंकि अर्जुन ने सौरभ के खिलाफ पत्नी को भगा कर ले जाने की रिपोर्ट दर्ज कराई थी, इसलिए पुलिस भहलोई गांव स्थित उस के घर गई. सौरभ घर से गायब मिला. पुलिस ने उस के घर वालों के फोन नंबर ले लिए. इस के बाद पुलिस ने पूछताछ के लिए मृतका के ससुराल वालों को कई बार बुलाया.

कई बार बुलाए जाने के बाद भी मृतका के ससुरालीजन यहां तक कि मृतका का पति अर्जुन भी पुलिस के सामने नहीं आया. इस से पुलिस का संदेह और मजबूत हो गया. उधर सर्विलांस टीम ने बताया कि पता चला कि जिस जगह पर कीर्ति के अस्थिपंजर मिले थे, वहां पर घटना वाले दिन कीर्ति के पति अर्जुन और जेठ उदयवीर के फोन की लोकेशन वहीं की थी.

मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने 30 नवंबर,2020 को सुबह करीब सवा 8 बजे सोथरा चौराहा फ्लाईओवर से मृतका मूर्ति देवी के पति अर्जुन व जेठ उदयवीर को हिरासत में ले लिया. पुलिस दोनों को थाना सिरसागंज ले आई. दोनों से गहनता से पूछताछ की गई.

दोनों भाइयों ने स्वीकार कर लिया कि मूर्ति की हत्या उन्होंने ही की थी. इस के बाद उन्होंने उस की लाश ठिकाने लगा दी थी.केस का खुलासा होने के बाद एसएसपी सचिंद्र पटेल ने पुलिस लाइन सभागार में प्रैस कौन्फ्रैंस कर के हत्यारोपियों की गिरफ्तारी की जानकारी दी. इस हत्याकांड के पीछे प्रेम संबंधों की चौंकाने वाली कहानी सामने आई.

मूर्ति देवी की शादी के कुछ महीने बाद ही उस के पति अर्जुन को पता चल गया था कि शादी से पहले से ही मूर्ति के संबंध गांव के ही सौरभ से हैं. उस ने यह बात अपने बड़े भाई उदयवीर को बताई. दूसरे युवक से प्यार करने की बात ने अर्जुन के कलेजे को चीर कर रख दिया था. यह बात उसे अंदर ही अंदर खाए जा रही थी. उस के सीने में नफरत की आग सुलग रही थी. उस ने भाई उदयवीर के साथ मिल कर मूर्ति देवी को रास्ते से हटाने और बाद में दूसरी शादी करने का निर्णय लिया.

अर्जुन के बड़े भाई उदयवीर की दोस्ती मूर्ति के प्रेमी सौरभ से थी. योजना के अनुसार उन्होंने 9 सितंबर, 2019 को मूर्ति को सौरभ के साथ जाने दिया. सौरभ प्रेमिका मूर्ति को इटावा ले गया. सुबह होने पर अर्जुन ने यह बात फैला दी कि मूर्ति घर से भाग गई है. चूंकि उस के संबंध सौरभ से थे, इसलिए अर्जुन ने सौरभ के खिलाफ रिपोर्ट भी दर्ज करा दी.

कुछ दिनों बाद अर्जुन व उदयवीर ने षडयंत्र के तहत मूर्ति को सौरभ के पास से ले आए और रात में उस के गले में गमछा (अंगौछा) डाल कर उस का गला दबा दिया. जिस से उस की मौत हो गई.

हत्या करने के बाद शव को ठिकाने लगाने के लिए अर्जुन और उस के भाई उदयवीर ने पड़ोसी से मांगी गई मोटरसाइकिल पर लाश को बीच में इस प्रकार बैठाया मानो वह किसी बीमार को ले जा रहे हों.

हत्या के बाद शव को करीब 6 किलोमीटर दूर गांव भदेसरा में बाजरे के एक खेत में ले जा कर पैट्रोल छिड़क कर जला दिया था.पूछताछ के दौरान आरोपी उदयवीर ने बताया था कि मूर्ति की हत्या में सौरभ भी शामिल था.लेकिन पुलिस का मानना है कि वह ऐसा केवल सौरभ को फंसाने के लिए कह रहा है. हत्या दोनों भाइयों ने ही प्रेमी सौरभ से चलते प्रेम संबंधों को ले कर की थी.

मृतका के पिता जीतपाल के अनुसार उन की बेटी मूर्ति गर्भवती थी. हत्यारों ने उस पर जरा भी रहम नहीं किया और उस की गर्भवती बेटी को मार डाला.

घटना को अंजाम देने के बाद दोनों भाई वापस अपने गांव आ गए थे. पुलिस ने दोनों हत्यारोपियों की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त गमछा तथा मोटरसाइकिल बरामद कर ली.

पूछताछ के बाद गिरफ्तार दोनों हत्यारोपियों को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया.

घटना का परदाफाश करने वाली टीम में थानाप्रभारी गिरीशचंद्र गौतम, एसओजी प्रभारी कुलदीप सिंह चौहान, एसआई रनवीर सिंह के अलावा कांस्टेबल (एसओजी) राहुल यादव, रविंद्र कुमार, भगत सिंह, नदीम खान व थाना सिरसागंज के कांस्टेबल विजय कुमार व कुलदीप सिंह आशीष शुक्ला व मुकेश कुमार शामिल थे.

एसएसपी सचिंद्र पटेल ने इस घटना का खुलासा करने वाली टीम को 25 हजार रुपए का ईनाम दिया.

हत्यारे निश्चिंत थे कि वह अपनी योजना में पूरी तरह सफल हो गए हैं लेकिन 14 महीने बाद पुलिस ने ताबीज के जरिए इस सनसनीखेज हत्याकांड का खुलासा कर आरोपियों को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

मदहोश बाप : मौत के निशाने पर आया बेटा

अस्पताल में दुष्यंत की मौत हो चुकी थी. उस का मंझला भाई आशू लाश को घर लाने का प्रबंध कर रहा था. मां रेखा और भाभी दीपिका को उस ने घर भेज दिया था. घर में पुलिस पूछताछ कर रही थी. रेखा रो रही थी, उस की छोटी बेटी भी. बहू दीपिका का रोरो कर बुरा हाल था.

तभी रेखा का छोटा बेटा विमलेश आया और पुलिस इंसपेक्टर के सामने खड़ा हो गया. वह अपनी अंटी से पिस्तौल निकाल कर इंसपेक्टर की ओर बढ़ाते हुए मुसकरा कर बोला, ‘‘मैं ने मारा है भाई को, इसी से.’’इंसपेक्टर ने उस की ओर हैरानी से देखा और रूमाल में लिपटी पिस्तौल ले ली. साथ ही पास खड़े सिपाही से कहा, ‘‘गिरफ्तार कर लो इसे.’’

घर में मोहल्ले वाले भी थे, रिश्तेदार भी. यह देख कर सब हैरान रह गए. रेखा और बहू दीपिका तक का रोना थम गया था. किसी की समझ में नहीं आया कि यह सब क्या है. पुलिस ने विमलेश को थाने भेज दिया, क्योंकि वह जुर्म भी स्वीकार कर रहा था और उस के पास हत्या में इस्तेमाल किया गया हथियार भी था. रेखा का पति, बच्चों का बाप यानी घर का मालिक वीरेंद्र कौशिक घर में नहीं था. वहां मौजूद लोगों का कहना था कि बड़े बेटे दुष्यंत पर गोली वीरेंद्र ने खुद चलाई थी, जिस से उस की  मौत हुई.

दुष्यंत के गिरते ही वीरेंद्र और विमलेश बाहर भाग गए थे. अब विमलेश तो लौट आया पर वीरेंद्र का कोई पता नहीं था. रेखा का कहना था कि पति ने दुष्यंत पर ही नहीं, उस के पांव के पास भी गोली चलाई थी, जो लगी नहीं थी. दुष्यंत पर ससुर वीरेंद्र द्वारा गोली चलाने की बात दुष्यंत की पत्नी दीपिका भी कह रही थी.

इस का मतलब गोली वीरेंद्र कौशिक ने ही चलाई थी. लेकिन वह फरार था. उस ने न जाने क्यों पिस्तौल दे कर अपने नाबालिग बेटे विमलेश को आगे कर दिया था. आश्चर्य की बात यह कि उस ने जुर्म भी स्वीकार कर लिया था. गोली क्यों चलाई गई, यह अभी रहस्य ही बना हुआ था.

वीरेंद्र कौशिक के बारे में पता चला कि वह कांठ रोड स्थित एक डाक्टर के यहां सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करता है. वहां पुलिस भेजी गई, लेकिन वह नहीं मिला.

मृतक दुष्यंत मुरादाबाद की तीर्थंकर यूनिवर्सिटी के मैडिकल कालेज में वार्डबौय की नौकरी करता था. उस की ड्यूटी कोरोना वार्ड में चल रही थी. एक साल पहले 6 जनवरी, 2020 को उस की शादी दीपिका के साथ हुई थी. दीपिका का परिवार लाइनपार सूर्यनगर में रहता था. जबकि वीरेंद्र कौशिक का घर लाइनपार हनुमाननगर में था. शादी के बाद से दुष्यंत और दीपिका दोनों खुश थे.

थाना मझोला को दुष्यंत को गोली लगने और उस की मृत्यु की खबर एपेक्स अस्पताल से मिली थी. इस के तुरंत बाद थाना पुलिस अस्पताल और मृतक के घर पहुंच गई थी. थाना मझोला के क्राइम इंसपेक्टर अवधेश कुमार ने यह सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को भी दे दी थी.

सूचना पा कर मुरादाबाद के एसपी (सिटी) अमित कुमार आनंद और एएसपी कुलदीप सिंह गुनावत एपेक्स अस्पताल पहुंच गए, जहां दुष्यंत को भरती कराया गया था. पुलिस ने प्राथमिक जांच और लिखापढ़ी के बाद दुष्यंत के शव को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

इस बीच मृतक दुष्यंत की पत्नी दीपिका ने थाना मझोला में ससुर वीरेंद्र कौशिक और देवर विमलेश के खिलाफ दुष्कर्म और हत्या की रिपोर्ट दर्ज करा दी. उस ने यह भी बताया कि  उस का ससुर वीरेंद्र कौशिक दबंग इंसान है. उस के पास एक लाइसैंसी पिस्तौल और एक बंदूक है.

शाम तक पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी आ गई. गोली बहुत करीब से मारी गई थी जो दुष्यंत के पेट में लगी थी और पेट को चीरते हुए दाईं ओर से बाहर निकल गई थी. पुलिस अफसरों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया तो 2 खाली खोखे और एक बुलेट मिला. सीएफएसएल टीम ने घटनास्थल से सबूत जुटाए.

छानबीन में जो कहानी सामने आई, वह एक बेगैरत इंसान की शैतानी करतूत से जुड़ी थी. वीरेंद्र कौशिक अपनी पत्नी रेखा, 3 बेटों दुष्यंत, विमलेश, आशू और एक बेटी के साथ हनुमान नगर में रहता था. वहां ज्यादातर दूरसंचार, एफसीआई, बैंक कर्मचारियों, टीचर्स और रिटायर्ड लोगों के घर हैं. वह खुद सिक्योरिटी गार्ड था. उस के बड़े बेटे दुष्यंत की एक साल पहले दीपिका से शादी हो गई थी.

25 नवंबर, 2020 को एक करीबी रिश्तेदारी में शादी थी. रेखा विमलेश, आशू और अपनी बेटी के साथ शादी में चली गई. उन दिनों दुष्यंत की रात की ड्यूटी चल रही थी. खाना खा कर वह भी ड्यूटी पर चला गया था. घर में दीपिका और उस का ससुर वीरेंद्र रह गए.

रात करीब 11 बजे वीरेंद्र कौशिक दबेपांव दीपिका के कमरे में घुसा. उस वक्त वह गहरी नींद में थी. वीरेंद्र ने सोती हुई दीपिका को दबोच लिया. आंखें खुलीं तो दीपिका ने ससुर का भरपूर विरोध किया. कहा भी कि ससुर तो पिता समान होता है, उसे ऐसी गिरी हरकत शोभा नहीं देती. लेकिन वीरेंद्र पर वासना का भूत सवार था. उस ने दीपिका का मुंह दबोच कर उस की इज्जत तारतार कर दी.

बाद में दीपिका ने धमकी दी, ‘‘घर वाले आएंगे, दुष्यंत आ जाएंगे तो मैं तुम्हारी इस हरकत के बारे में सब को बताऊंगी. मुंह दिखाने के काबिल नहीं रहोगे तुम. मैं छोड़ूंगी नहीं तुम्हें.’’

वीरेंद्र कौशिक ने एक हजार रुपए निकाल कर दीपिका के पास रखते हुए हंस कर कहा, ‘‘रख ले और अपना मुंह बंद रखना. जो चीज मुझे पसंद थी, मैं ने हासिल कर ली.’’

दीपिका ने 5-5 सौ के दोनों नोट ससुर के मुंह पर फेंक कर मारे और गुस्से से फट पड़ी, ‘‘कल पता चलेगी तुझे तेरी औकात. मैं चुप रहने वालों में नहीं हूं.’’

‘जो मन आए करना,’’ वीरेंद्र हंसते हुए बोला, ‘‘कौन करेगा तेरी बात पर यकीन? तेरी ही बदनामी होगी, मैं ससुर हूं तेरा. लोग तुझे झूठी कहेंगे. रहीबची कमी मैं पूरी कर दूंगा, तेरे 10 लक्षण गिना कर. झूठ बोलने में क्या जाता है.’’  उस रात दीपिका को नींद नहीं आई. वह रात भर रोती रही. कोई न उसे देखने वाला था, न सांत्वना देने वाला.

26 नवंबर, 2020 की सुबह दुष्यंत ड्यूटी से घर लौटा तो दीपिका उस से लिपट कर खूब रोई. उस ने रात की पूरी बात पति को बता दी. सुन कर वह गुस्से से आगबबूला हो गया. उस ने पिता को खूब खरीखोटी सुनाई.

तब तक घर के बाकी सदस्य भी लौट आए थे. दुष्यंत की मां रेखा ने सुना तो उस ने भी पति वीरेंद्र को खूब गालियां दीं. उस ने कहा, ‘‘जब यह बात परिवार वालों को पता चलेगी तो किसी को क्या मुंह दिखाएगा?’’

दीपिका रोए जा रही थी. दुष्यंत ने उसे चुप कराया, सांत्वना दी. फिर बोला, ‘‘मेरा बाप मेरे लिए मर चुका. अब हम परिवार के साथ नहीं रहेंगे. कहीं अलग किराए का कमरा ले कर रह लेंगे.’’

उसी दिन वीरेंद्र ने अपना सामान ऊपर की मंजिल पर शिफ्ट कर लिया. खानेपीने का इंतजाम भी अलग. इस बात को ले कर अगले 3 दिन तक वीरेंद्र के घर में झगड़ा चलता रहा. दुष्यंत ने फिर पिता को धमकी दी, ‘‘मैं तुम्हारी करतूत पूरे परिवार को बताऊंगा. पुलिस में भी रिपोर्ट लिखाऊंगा. छोड़ूंगा नहीं तुम्हें.’’

रेखा ने भी कहा, ‘‘मैं तेरी करतूत तेरे बहनबहनोई को बताऊंगी.’’घर में केवल छोटे बेटे विमलेश के अलावा सभी को दीपिका की बात पर यकीन था. दरअसल, वीरेंद्र दबंग आदमी था. किसी से न डरने वाला. विमलेश के वह काफी नजदीक था. पिता की तरह बदतमीज और दबंग स्वभाव का विमलेश कोई गलती करता था तो वीरेंद्र उस पर परदा डाल देता था.

वह बाहर किसी से लड़ कर आता या कोई खुराफात कर के लौटता तो वीरेंद्र उसे कुछ कहने या समझाने के बजाय शिकायत करने वालों से भिड़ जाता था. बापबेटे की यही कैमिस्ट्री नजदीकियों का कारण थी.

वीरेंद्र के घर में 3 दिनों से जो झगड़ा चल रहा था, पड़ोसी भी देखसुन रहे थे. लेकिन दीपिका से दुष्कर्म की बात किसी को पता नहीं थी. वीरेंद्र की पासपड़ोस के लोगों से बातचीत भी नहीं थी, इसलिए उस की दबंगई के कारण किसी को पूछने की हिम्मत नहीं थी.

जबकि मंझला बेटा आशू इस से सहमत था कि उस के पिता ने दुष्कर्म किया है. उस ने कह भी दिया था, ‘‘आज से बाप बेटे का रिश्ता खत्म.’’28 नवंबर को वीरेंद्र और दुष्यंत के बीच खूब कहासुनी हुई. बात हाथापाई तक पहुंच गई. बेटे ने बाप पर हाथ छोड़ दिया. इस पर वीरेंद्र का चेहरा गुस्से से लाल हो गया. उस ने अंटी से पिस्तौल निकाल कर पहले अपनी पत्नी रेखा पर गोली चलाई जो उस के पैर के पास से निकल गई. यह देख कर दुष्यंत बोला, ‘‘मेरी मां को क्यों मार रहा है. हिम्मत है तो मुझे मार. मैं नहीं डरता तेरी पिस्तौल से.’’

वीरेंद्र तैश में था, उस ने सामने खड़े दुष्यंत के पेट को निशाना बना कर गोली चला दी. खून के फव्वारे के साथ दुष्यंत निढाल हो कर फर्श पर गिर पड़ा. जरा सी देर में होहल्ला मच गया.पासपड़ोस के लोगों ने वीरेंद्र और उस के छोटे बेटे को जल्दबाजी में बाहर भागते देखा. किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि वीरेंद्र के घर में गोलियां क्यों चलीं और शोर और रोनाधोना क्यों हो रहा है.

कुछ लोग घर में गए तो पता चला दुष्यंत को गोली लगी है. आशू कुछ लोगों केसाथ दुष्यंत को पास के एपेक्स अस्पताल ले गया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. अस्पताल ने ही यह सूचना पुलिस को दी और पुलिस अस्पताल पहुंची.

बाद में मृतक दुष्यंत की पत्नी ने थाना मझोला में ससुर वीरेंद्र कौशिक और देवर विमलेश के खिलाफ दुष्कर्म और हत्या की रिपोर्ट लिखवाई.

उधर वीरेंद्र घर से भाग कर छोटे बेटे विमलेश के साथ मुरादाबाद कचहरी जा पहुंचा था. उस का इरादा आत्मसमर्पण करने का था. इस बारे में उस ने वकीलों से बात की. लेकिन तब तक थाना मझोला में एफआईआर दर्ज नहीं हुई थी. ऐसे में अदालत में कागजात पेश नहीं किए जा सकते थे. इस पर वीरेंद्र ने वकीलों से पूछा कि वह कैसे बच सकता है.

वकीलों ने उसे राय दी कि यह तभी संभव है जब वह खुद की जगह अपने नाबालिग बेटे विमलेश को पुलिस के सामने पेश कर दे. नाबालिग होने की वजह से उसे सजा भी कम होगी और पुलिस टौर्चर भी नहीं करेगी. तब वीरेंद्र ने विमलेश को समझा कर पिस्तौल दिया और घर भेज दिया. घर जा कर विमलेश ने पिस्तौल पुलिस को सौंप कर दुष्यंत की हत्या की बात स्वीकार कर ली. यह 11 बजे घटी घटना के 2 घंटे बाद 1 बजे की बात है. यह सब मोहल्ले वालों के सामने हुआ. जब विमलेश को गिरफ्तार कर थाना मझोला भेजा गया तब वह मुसकरा रहा था, जैसे उसे बड़े भाई की हत्या से कोई फर्क न पड़ा हो.

विमलेश से वीरेंद्र के बारे में जानकारी मिली तो पुलिस ने कचहरी में दबिश दी लेकिन वीरेंद्र नहीं मिला.  हकीकत सामने आई तो पुलिस को मामले की गंभीरता का पता चला. तब आईजी मुरादाबाद रेंज रमित शर्मा ने एसएसपी प्रभाकर चौधरी को आदेश दिया कि वीरेंद्र कौशिक को तुरंत गिरफ्तार कराएं.

वीरेंद्र पुलिस की पकड़ में नहीं आया तो दीपिका ने एसएसपी प्रभाकर चौधरी को लिखित प्रार्थनापत्र दिया कि उस की जान को खतरा है. उस का ससुर उस की भी हत्या कर सकता है, दीपिका अपने मायके सूर्यनगर चली गई थी. एसएसपी के आदेश पर उस के मायके में पुसिस तैनात कर दी गई.

एसएसपी प्रभाकर चौधरी ने 2 पुलिस टीमों का गठन किया. एक टीम को एसपी (सिटी) अमित कुमार आनंद के नेतृत्व में काम करना था और दूसरी को एएसपी कुलदीप सिंह गुनावत के नेतृत्व मे. दोनों टीमों ने तुरंत काम करना शुरू कर दिया.

मोबाइल लोकेशन से पता चला कि वीरेंद्र लाइनपार कहीं छिपा है लेकिन पुलिस जब वहां पहुंची तो वह फरार हो गया. फिर भी पुलिस ने उस का पीछा नहीं छोड़ा. आखिर मोबाइल लोकेशन से उसे 30 नवंबर को रामपुर के होटल टूरिज्म से गिरफ्तार कर लिया गया.

गिरफ्तार कर उसे मुरादाबाद लाया गया. पूछताछ में उस ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया. 1 दिसंबर, 2020 को उसे अदालत पर पेश कर के जिला जेल भेज दिया गया. उस के बेटे विमलेश को पहले ही बाल कारागार भेजा चुका था.

वीरेंद्र कौशिक रंगीन तबीयत का आदमी था. एक महिला से छेड़छाड़ के मामले में वह पहले भी जेल जा चुका था. इसी रंगीनमिजाजी में उस ने अपने ही बड़े बेटे की हत्या कर के न केवल उस की पत्नी को विधवा बना दिया था बल्कि अपना ही घर उजाड़ लिया था.

उस का मझला बेटा आशू भी कह चुका है कि बाप से अब उस का कोई रिश्ता नहीं है. उधर बाद में वीरेंद्र का नाबालिग बेटा विमलेश भी अपने बयान से पलट गया. उस ने कहा कि भाई दुष्यंत पर गोली उस ने नहीं, उस के पिता वीरेंद्र कौशिक ने चलाई थी.

वीरेंद्र के पास पिस्तौल और बंदूक के 2 लाइसैंस थे. पुलिस ने दोनों लाइसैंस निरस्त कर दिए. दोनों हथियार भी बरामद कर लिए गए. इस पूरे मामले में महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि कौशिक परिवार अगर 3 दिन तक इस घटना को न छिपाता तो शायद दुष्यंत की जान न जाती.

—दीपिका और विमलेश नाम परिवर्तित हैं

गायत्री की खूनी जिद : कैसे बलि का बकरा बन गया संजीव – भाग 1

उत्तर प्रदेश के जिला फिरोजाबाद में एक कस्बा है एटा इस कस्बे में थाना भी है. एटा कस्बे से कुछ दूर एक गांव है  नगलाचूड़. सोनेलाल अपने परिवार के साथ इसी गांव में रहता था. सोनेलाल के 3 बेटे थे गोपाल, कुलदीप और संजीव. इन के अलावा 2 बेटियां भी थीं. सोनेलाल के पास खेती की जमीन थी, जिस से उस के घरपरिवार का गुजारा बडे़ आराम से हो जाता था. सोनेलाल के बड़े बेटे गोपाल और एक बेटी की शादी हो चुकी थी.

शादी के बाद गोपाल अपने परिवार के साथ काम के लिए पंजाब गया था. वहां से वह कभीकभी ही घर आता था. सोनेलाल की एक बेटी और बेटा कुलदीप अपनी पढ़ाई कर रहे थे. जबकि संदीप अपने पिता के साथ खेती के कामों में हाथ बंटाता था. घर की व्यवस्था सोनेलाल की पत्नी सरला के जिम्मे थी. सरला चाहती थी कि संजीव का भी घर बस जाए इसलिए वह 24 साल के संजीव के लिए कोई लड़की देखने लगी.

इसी सिलसिले में रिजौर निवासी छबिराम नाम के एक रिश्तेदार ने रिजौर के ही रामबाबू शाक्य की बेटी गायत्री के बारे में बताया. छबिराम की मार्फत सोनेलाल ने रामबाबू से बात की.

उन्हें रामबाबू की बेटी गायत्री अपने बेटे संजीव के लिए सही लगी. दोनों ओर से चली बातचीत के बाद संजीव और गायत्री का रिश्ता तय कर के जल्द ही दोनों की शादी कर दी गई. यह लगभग डेढ़ साल पहले की बात है.

खूबसूरत गायत्री से शादी कर के संजीव ही नहीं बल्कि उस के घर वाले भी बहुत खुश थे. लेकिन यह कोई नहीं जानता था कि आगे चल कर यही खूबसूरत दुलहन कितनी बड़ी मुसीबत बनने वाली है.

शादी के बाद गायत्री की शिकायत

गायत्री ससुराल आ तो गई थी पर उस के तेवर किसी की समझ में नहीं आ रहे थे. संजीव की मां सरला ने सोचा था कि बहू घर आ जाएगी तो सब कुछ ठीक हो जाएगा. घर की जिम्मेदारी बहू के हवाले कर के वह आराम करेगी, क्योंकि बड़ी बहू शादी के कुछ दिनों बाद ही गोपाल के साथ पंजाब चली गई थी. पर सरला का यह सपना अधूरा रहा. क्योंकि गायत्री पूरे दिन अपने कमरे में बैठी टीवी देखती रहती थी.

टीवी से फुरसत मिल जाती तो वह मोबाइल पर लग जाती. वह काफीकाफी देर तक किसी से बातें करती रहती थी. कुछ दिन तक तो सरला ने गायत्री से कुछ नहीं कहा. लेकिन जब पगफेरे के लिए उस का भाई टीटू उसे लेने आया तो सरला ने टीटू से कहा, ‘‘अपनी बहन को समझाओ. वह ससुराल में रहने का सलीका सीखे. यह इस घर की बहू है, इसे यहां बहू की तरह ही रहना होगा.’’

बहन की शिकायत सुन कर टीटू के माथे पर शिकन आ गई. उस ने घूर कर गायत्री की तरफ देखा लेकिन उस से कहा कुछ नहीं. टीटू के पिता बीमार रहते थे, इसलिए वह ही सब्जी की दुकान चलाता था. भाई के साथ गायत्री अपने मायके आ गई. घर पहुंचते ही टीटू ने अपनी मां रामश्री से कहा, ‘‘संभालो अपनी लाडली को, यह हमें जीने नहीं देगी.’’

गायत्री अपने कमरे में चली गई. इस के बाद रामश्री और टीटू देर तक बातें करते रहे. रामबाबू कुछ देर बाद घर आया तो उसे भी पता चल गया कि गायत्री के ससुराल वाले उस से खुश नहीं हैं. वह गुस्से में बोला, ‘‘हम ने तो सोचा था कि गायत्री शादी के बाद सुधर जाएगी, पर लगता है ये लड़की उन लोगों को भी नहीं जीने देगी.’’

दरअसल शादी के पहले से ही रामबाबू के घर में तनाव था. इस की वजह यह थी कि गायत्री संजीव से शादी करने से इनकार कर रही थी. पर घर वालों के सामने उस की एक नहीं चली. रामबाबू और रामश्री इस बात को ले कर बहुत चिंतित थे कि कहीं गायत्री की वजह से वह लोग किसी नई परेशानी में न पड़ जाएं.
रिजौर में ही रामबाबू के घर से कुछ दूरी पर किशनलाल का घर था. उस के बेटे रंजीत ने भी अपने घर वालों को परेशान कर रखा था. यूं तो किशनलाल के 4 बेटे थे, जिन में से 3 पढ़ेलिखे थे पर छोटे बेटे रंजीत का पढ़ाई में मन नहीं लगता था. वह सारे दिन गांव में अपने दोस्तों के साथ गपशप करता रहता था. वह अपने पिता के खेती के काम में भी हाथ नहीं बंटाता था.

रंजीत की जिंदगी में आई गायत्री

एक दिन अचानक रंजीत की नजर गायत्री से टकराई और वह उस की ओर खिंचता चला गया. वह उस से बात करने के लिए मौके की तलाश में था. एक दिन मोबाइल की दुकान पर उसे मौका मिल गया, जहां गायत्री अपना मोबाइल रीचार्ज कराने आई थी. उस से बात की शुरुआत करने का कोई बहाना चाहिए था. लिहाजा उस ने गायत्री से कहा, ‘‘गायत्री, देखें तुम्हारा मोबाइल किस कंपनी का है.’’

गायत्री ने उस के हाथ में मोबाइल दे दिया. रंजीत हाथ में मोबाइल ले कर देखते हुए बोला, ‘‘यह मोबाइल तो तुम्हारी तरह ही स्मार्ट है.’’

गायत्री ने उसे घूर कर देखा फिर खिलखिला कर हंसते हुए बोली, ‘‘तुम भी काफी स्मार्ट लगते हो.’’
सुन कर रंजीत की हिम्मत और बढ़ गई. गायत्री वहां से चलने लगी तो रंजीत ने कहा, ‘‘अगर आप बुरा न मानो तो मैं बाइक से तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ दूंगा.’’

गायत्री मुसकराई और उस की बाइक पर बैठ गई. रंजीत बहुत खुश हुआ. पहली बार किसी लड़की ने उस की दोस्ती कबूल की थी.

‘‘रंजीत वैसे तुम आजकल क्या कर रहे हो.’’ गायत्री ने पूछा.

‘‘इंटरमीडिएट पास कर के घर पर ही मौज कर रहा हूं. वैसे भी तुम्हें तो पता ही है कि घर में किसी चीज की कमी तो है नहीं. जब जिम्मेदारी आ जाएगी, देखा जाएगा’’ रंजीत बोला, ‘‘गायत्री, क्या तुम अपना मोबाइल नंबर दे सकती हो?’’

‘‘हांहां क्यों नहीं, तुम मुझे अपना मोबाइल नंबर बताओ, मैं मिस्ड काल कर देती हूं.’’ गायत्री बिना किसी झिझक के बोली. बाइक चलातेचलाते रंजीत ने उसे अपना मोबाइल नंबर बता दिया. गायत्री ने तुरंत उस के नंबर पर मिस्ड काल दे दी. गायत्री ने अपने घर से कुछ पहले ही मोटरसाइकिल रुकवा ली और बाइक से उतर कर पैदल अपने घर चली गई ताकि कोई घर वाला उसे बाइक पर बैठे न देख ले. उसे उतार कर रंजीत भी मुसकराता हुआ अपने घर चला गया.