कैलेंडर गर्ल : कैसी हकीकत से रूबरू हुई मोहना

‘‘श्री…मुझे माफ कर दो…’’ श्रीधर के गले लग कर आंखों से आंसुओं की बहती धारा के साथ सिसकियां लेते हुए मोहना बोल रही थी.

मोहना अभी मौरीशस से आई थी. एक महीना पहले वह पूना से ‘स्कायलार्क कलेंडर गर्ल प्रतियोगिता’ में शामिल होने के लिए गई थी. वहां जाने से पहले एक दिन वह श्री को मिली थी.

वही यादें उस की आंखों के सामने चलचित्र की भांति घूम रही थीं.

‘‘श्री, आई एम सो ऐक्साइटेड. इमैजिन, जस्ट इमैजिन, अगर मैं स्कायलार्क कलेंडर के 12 महीने के एक पेज पर रहूंगी दैन आई विल बी सो पौपुलर. फिर क्या, मौडलिंग के औफर्स, लैक्मे और विल्स फैशन वीक में भी शिरकत करूंगी…’’ बस, मोहना सपनों में खोई हुई बातें करती जा रही थी.

पहले तो श्री ने उस की बातें शांति से सुन लीं. वह तो शांत व्यक्तित्व का ही इंसान था. कोई भी चीज वह भावना के बहाव में बह कर नहीं करता था. लेकिन मोहना का स्वभाव एकदम उस के विपरीत था. एक बार उस के दिमाग में कोई चीज बस गई तो बस गई. फिर दूसरी कोई भी चीज उसे सूझती नहीं थी. बस, रातदिन वही बात.

टीवी पर स्कायलार्क का ऐड देखने के बाद उसे भी लगने लगा कि एक सफल मौडल बनने का सपना साकार करने के लिए मुझे एक स्प्रिंग बोर्ड मिलेगा.

‘‘श्री, तुम्हें नहीं लगता कि इस कंपीटिशन में पार्टिसिपेट करने के लिए मैं योग्य लड़की हूं? मेरे पास एथलैटिक्स बौडी है, फोटोजैनिक फेस है, मैं अच्छी स्विमर हूं…’’

श्री ने आखिर अपनी चुप्पी तोड़ी और मोहना की आंखों को गहराई से देखते हुए पूछा, ‘‘दैट्स ओके, मोहना… इस प्रतियोगिता में शरीक होने के लिए जो 25 लड़कियां फाइनल होंगी उन में भी यही गुण होंगे. वे भी बिकनी में फोटोग्राफर्स को हौट पोज देने की तैयारी में आएंगीं. वैसी ही तुम्हारी भी मानसिक तैयारी होगी क्या? विल यू बी नौट ओन्ली रैडी फौर दैट लेकिन कंफर्टेबल भी रहोगी क्या?’’

श्री ने उसे वास्तविकता का एहसास करा दिया. लेकिन मोहना ने पलक झपकते ही जवाब दिया, ‘‘अगर मेरा शरीर सुंदर है, तो उसे दिखाने में मुझे कुछ हर्ज नहीं है. वैसे भी मराठी लड़कियां इस क्षेत्र में पीछे नहीं हैं, यह मैं अपने कौन्फिडैंस से दिखाऊंगी.’’

मोहना ने झट से श्री को जवाब दे कर निरुतर कर दिया. श्री ने उस से अगला सवाल पूछ ही लिया, ’’और वे कौकटेल पार्टीज, सोशलाइजिंग…’’

‘‘मुझे इस का अनुभव नहीं है लेकिन मैं दूसरी लड़कियों से सीखूंगी. कलेंडर गर्ल बनने के लिए मैं कुछ भी करूंगी…’’ प्रतियोगिता में सहभागी होने की रोमांचकता से उस का चेहरा और खिल गया था.

फिर मनमसोस कर श्री ने उसे कहा, ‘‘ओके मोहना, अगर तुम ने तय कर ही लिया है तो मैं क्यों आड़े आऊं? खुद को संभालो और हारजीत कुछ भी हो, यह स्वीकारने की हिम्मत रखो, मैं इतना ही कह सकता हूं…’’

श्री का ग्रीन सिगनल मिलने के बाद मोहना खुश हुई थी. श्री के गाल पर किस करते हुए उस ने कहा, ‘‘अब मेरी मम्मी से इजाजत लेने की जिम्मेदारी भी तुम्हारी ही है?’’

श्री ने भी ज्यादा कुछ न बोलते हुए हामी भर दी. श्री के समझाने के बाद मोहना की मम्मी भी तैयार हो गईं. मोहना आखिर सभी को अलविदा कह कर मौरीशस पहुंची. यहां पहुंचने के बाद उसे एक अलग ही दुनिया में आने का आभास हुआ था… उस के सदाशिवपेठे की पुणेरी संस्कृति से बिलकुल ही अलग किस्म का यहां का माहौल था. फैशनेबल, स्टाइल में फ्लुऐंट अंगरेजी बोलने वाली, कमनीय शरीर की बिंदास लड़कियां यहां एकदूसरे की स्पर्धी थीं. इन 30 खूबसूरत लड़कियों में से सिर्फ 12 को महीने के एकएक पन्ने पर कलेंडर गर्ल के लिए चुना जाना था.

शुरुआत में मोहना उन लड़कियों से और वहां के माहौल से थोड़ी सहमी हुई थी. लेकिन थोड़े ही दिनों में वह सब की चहेती बन गई.

सब से पहले सुबह योगा फिर हैल्दी बे्रकफास्ट, फिर अलगअलग साइट्स पर फोटोशूट्स… दोपहर को फिर से लाइट लंच… लंच के साथ अलगअलग फू्रट्स, फिर थोड़ाबहुत आराम, ब्यूटीशियंस से सलाहमशवरा, दूसरे दिन जो थीम होगी उस थीम के अनुसार हेयरस्टाइल, ड्रैसिंग करने के लिए सूचना. शाम सिर्फ घूमने के लिए थी.

दिन के सभी सत्रों पर स्कायलार्क के मालिक सुब्बाराव रेड्डी के बेटे युधि की उपस्थिति रहती थी. युधि 25 साल का सुंदर, मौडर्न हेयरस्टाइल वाला, लंदन से डिग्री ले कर आया खुले विचारों का हमेशा ही सुंदरसुंदर लड़कियों से घिरा युवक था.

युधि के डैडी भी रिसौर्ट पर आते थे, बु्रअरी के कारोबार में उन का बड़ा नाम था. सिल्वर बालों पर गोल्डन हाईलाइट्स, बड़ेबड़े प्लोटेल डिजाइन के निऔन रंग की पोशाकें, उन के रंगीले व्यक्तित्व पर मैच होती शर्ट्स किसी युवा को भी पीछे छोड़ देती थीं. दोनों बापबेटे काफी सारी हसीनाओं के बीच बैठ कर सुंदरता का आनंद लेते थे.

प्रतियोगिता के अंतिम दौर में चुनी गईं 15 लड़कियों में मोहना का नाम भी शामिल हुआ है, यह सुन कर उस की खुशी का ठिकाना ही न रहा. आधी बाजी तो उस ने पहले ही जीत ली थी, लेकिन यह खुशी पलक झपकते ही खो गई. रात के डिनर के पहले युधि के डैडी ने उसे स्वीट पर मिलने के लिए मैसेज भेजा था. मोहना का दिल धकधक कर रहा था. किसलिए बुलाया होगा? क्या काम होगा? उसे कुछ सूझ ही नहीं रहा था. लेकिन जाना तो पड़ेगा ही. आखिर इस प्रतियोगिता के प्रमुख का संदेश था.

श्री को छोड़ कर किसी पराए मर्द से मोहना पहली बार एकांत में मिल रही थी.

जब वह रेड्डी के स्वीट पर पहुंची थी तब दरवाजा खुला ही था. दरवाजे पर दस्तक दे कर वह अंदर गई. रेड्डी सिल्क का कुरता व लुंगी पहन कर सोफे पर बैठा था. सामने व्हिस्की की बौटल, गिलास, आइस फ्लास्क और मसालेदार नमकीन की प्लेट रखी थी.

‘‘कम इन, कम इन मोहना, माई डियर…’’ रेड्डी ने खड़े हो कर उस का हाथ पकड़ कर उसे सोफे पर बैठाया.

मोहना अंदर से सहम गई थी. रेड्डी राजकीय, औद्योगिक और सामाजिक सर्कल में मान्यताप्राप्त थे. इतना ही नहीं ‘कलेंडर गर्ल’ में सब से हौट सुपरमौडल का चुनाव तो यही करने वाले थे.

‘‘ड्रिंक,’’ उन्होंने मोहना से पूछा. मोहना ने ‘नो’ कहा, फिर भी उन्होंने दूसरे खाली गिलास में एक पैग बना दिया. थोड़ी बर्फ और सोडा डाल कर उन्होंने गिलास मोहना के सामने रखा.

‘‘कम औन मोहना, यू कैन नौट बी सो ओल्ड फैशंड, इफ यू वौंट टु बी इन दिस फील्ड,’’ उन की आवाज में विनती से ज्यादा रोब ही था.

मोहना ने चुपचाप गिलास हाथ में लिया. ‘‘चिअर्स, ऐंड बैस्ट औफ लक,’’ कह कर उन्होंने व्हिस्की का एक बड़ा सिप ले कर गिलास कांच की टेबल पर रख दिया.

मोहना ने गिलास होंठों से लगा कर एक छोटा सिप लिया, लेकिन आदत न होने के कारण उस का सिर दुखने लगा.

रेड्डी ने उस से उस के परिवार के बारे में कुछ सवाल पूछे. वह एक मध्यवर्गीय, महाराष्ट्रीयन युवती है, यह समझने के बाद तो उन्होंने कहा, ‘‘तुम्हारी हिम्मत की दाद देता हूं, मोहना… लेकिन अगर तुम्हें सचमुच कलेंडर गर्ल बनना है, तो इतना काफी नहीं है… और एक बार अगर तुम्हारी गाड़ी चल पड़ी, तब तुम्हें आगे बढ़ते रहने से कोई नहीं रोक सकता. सिर्फ थोड़ा और कोऔपरेटिव बनने की जरूरत है…’’

रेड्डी ने व्हिस्की का एक जोरदार सिप लेते हुए सिगार सुलगाई और उसी के धुएं में वे मोहना के चेहरे की तरफ देखने लगे.

रेड्डी को क्या कहना है यह बात समझने के बाद मोहना के मुंह से निकला, ‘‘लेकिन मैं ने तो सोचा था, लड़कियां तो मैरिट पर चुनी जाती हैं…’’

‘‘येस, मैरिट… बट मोर दैन रैंप, मोर इन बैड…’’ रेड्डी ने हंसते हुए कहा और अचानक उठ कर मोहना के पास आ कर उस के दोनों कंधों पर हाथ रखा और अपनी सैक्सी आवाज में कहा, ‘‘जरा सोचो तो मोहना, तुम्हारे भविष्य के बारे में… मौडलिंग असाइनमैंट… हो सकता है फिल्म औफर्स…’’

इतने में दरवाजे पर दस्तक हुई और वेटर खाने की टे्र ले कर अंदर आया. मोहना उन के हाथ कंधे से दूर करते हुए उठी और उन की आंखों में देख कर उस ने कहा, ‘‘आई एम सौरी, बट आई एम नौट दैट टाइप, रेड्डी साहब,’’ और दूसरे ही पल वह दरवाजा खोल कर बाहर आ गई.

उस रात वह डिनर पर भी नहीं गई. रात को नींद भी नहीं आ रही थी. बाकी लड़कियों के हंसने की आवाज रात को देर तक उसे आ रही थी. उस की रूममेट रिया रातभर गायब थी और वह सुबह आई थी.

दूसरे ही दिन उस के हाथ में स्कायलार्क का लैटर था, पहले तो अंतिम दौर के लिए उस का चुनाव हुआ था, लेकिन अब उस का नाम निकाल दिया गया था. वापसी का टिकट भी उसी लैटर के साथ था.

उस के सारे सपने टूट चुके थे. मनमसोस कर मोहना पूना आई थी और श्री के गले में लग कर रो रही थी, ‘‘मेरी… मेरी ही गलती थी, श्री… स्कायलार्क कलेंडर गर्ल बनने का सपना और सुपर मौडल बनने की चाह में मैं ने बाकी चीजों की तरफ ध्यान ही नहीं दिया. लेकिन यकीन करो मुझ पर, श्री… मैं ने वह लक्ष्मण रेखा कभी भी पार नहीं की… उस के पहले ही मैं पीछे मुड़ गई और वापस लौट आई, अपने वास्तव में, अपने विश्व में तुम्हारा भरोसा है न श्री?’’

श्री ने उसे बांहों में भर लिया…’’ अब 12 महीनों के पन्नों पर सिर्फ तुम्हारे ही फोटोज का कलेंडर मैं छापूंगा, रानी,’’ उस ने हंसते हुए कहा और मोहना रोतेरोते हंसने लगी.

उस की वह हंसी, उस के फोटोशूट की बनावटी हंसी से बहुत ही नैचुरल और मासूमियत भरी थी.

मोहिनी : कौन सी गलती ने बर्बाद कर दिया परिवार

मनोहरा की पत्नी मोहिनी बड़ी शोख और चुलबुली थी. अपनी अदाओं से वह मनोहरा को हमेशा मदहोश किए रहती थी. उस को पा कर मनोहरा को जैसे पंख लग गए थे और वह हमेशा आकाश में उड़ान भरने को तैयार हो उठता था. मोहिनी उस की इस उड़ान को हमेशा ही सहारा दे कर दुनिया जीतने का सपना देखती रहती थी.

अपने मायके में भी मोहिनी खुली हिरनी की तरह गांवभर में घूमती रहती थी. इस में उसे कोई हिचक नहीं होती थी, क्योंकि उस की मां बचपन में ही मर गई थी और सौतेली मां का उस पर कोई कंट्रोल न था.

मोहिनी छोटेबड़े किसी काम में अपनी सीमा लांघने से कभी भी नहीं हिचकती थी. शादी से पहले ही उस का नाम गांव के कई लड़कों से जोड़ा जाता था. वैसे, ब्याह कर अपने इस घर आने के बाद पहले तो मोहिनी ने अपनी बोली और बरताव से पूरे घर का दिल जीत लिया, पर जल्दी ही वह अपने रंग में आ गई.

मनोहरा के बड़े भाई गोखुला की सब से बड़ी औलाद एक बेटी थी, जो अब सयानी और शादी के लायक हो चली थी. उस का नाम सलोनी था. गोखुला के 2 बेटे अभी छोटे ही थे. गोखुला की पत्नी पिछले साल हैजे की वजह से मर गई थी.

मोहिनी के सासससुर और गोखुला अब कभीकभी सलोनी की शादी कर देने की चर्चा छेड़ देते थे, जिस से वह डर जाती थी. उस की शादी में अच्छाखासा खर्च होने की उम्मीद थी.

मोहिनी चाहती थी कि अगर किसी तरह उस का पति अपने भाई गोखुला से अलग होने को राजी हो जाए, तो होने वाले इस खर्च से वह बच निकलेगी.

मोहिनी ने माहौल देख कर मनोहरा को अपने मन की बात बताई. मनोहरा एक सीधासादा जवान था. वह घर के एक सामान्य सदस्य की तरह रहता और दिल खोल कर कमाता था. वह इन छलप्रपंचों से कोसों दूर था.मोहिनी की बातों को सुन कर पलभर के लिए तो मनोहरा को बहुत बुरा लगा, पर मोहिनी ने जब इन सारी बातों की जिम्मेदारी अपने ऊपर छोड़ देने की बात कही, तो वह चुप हो गया.

यही तो मोहिनी चाहती थी. अब वह आगे की चाल के बारे में सोचने लग गई. पहले कुछ दिनों तक तो उस ने सलोनी से खूब दोस्ती बढ़ाई और उसे घूमनेफिरने, खेलनेखिलाने वगैरह की पूरी आजादी दे दी, फिर खुद ही अपने सासससुर से उस की शिकायत भी करने लगी.

1-2 बार उस ने सलोनी को गुपचुप उसी गांव के रहने वाले अपने चहेते पड़ोसी रामखिलावन के साथ मेले में भेज दिया और पीछे से ससुर को भी भेज दिया.

सलोनी के रंगे हाथ पकड़े जाने पर मोहिनी ने उस घर में रहने से साफ इनकार कर दिया. सासससुर और गांव वाले उसे समझासमझा कर थक गए, पर उस ने तब तक कुछ नहीं खायापीया, जब तक कि पंचों ने अलग रहने का फैसला नहीं ले लिया.

अब तो मोहिनी की पौबारह थी. अकेले घर में उसे सभी तरह की छूट थी. न दिन में कोई देखने वाला, न रात में कोई उठाने वाला. अब तो वह अपनी नींद सोती और अपनी नींद जागती थी. मनोहरा तो उस के रूप और जवानी पर पहले से ही लट्टू था, बंटवारा होने के बाद से तो वह उस का और भी एहसानमंद हो गया था.

मनोहरा दिनभर अपने खेतों में काम करता और रात में खापी कर मोहिनी के रूपरस का पान कर जो सोता, तो 4 बजे भोर में ही पशुओं को चारापानी देने के लिए उठता.

इस बीच मोहिनी क्या करती है, क्या खातीपीती है, कहां उठतीबैठती है, इस का उसे बिलकुल भी एहसास न था और न ही चिंता थी.

मोहिनी ने एक मोबाइल फोन खरीद लिया. कुछ ही दिनों में उस ने अपने पुराने प्रेमी से फोन पर बात की, ‘‘सुनो कन्हैया, अब मैं यहां भी पूरी तरह से आजाद हूं. तुम जब चाहो समय निकाल कर यहां आ सकते हो, केवल इतना ध्यान रखना कि मेरे गांव के पास आ कर पहले मुझ से बातचीत कर के ही घर पर आना… समझे?’’

‘क्यों, अब मेरे रात में आने से तुझे अपनी नींद में खलल पड़ती है क्या? दिन में बारबार तुम्हारे यहां आने से नाहक लोगों को शक होगा,’ कन्हैया ने कहा.

‘‘रात के अंधेरे में तो सभी काला धंधा चलाते हैं, पर दिन के उजाले में भी कुछ दिन अपना काला धंधा चला कर मजा लेने में क्या हर्ज है. रात को पशुशाला में गोबर की बदबू के बीच वह मजा कहां, जो दिन के उजाले में अपने मर्द के बिछावन पर मिलेगा.’’

‘ठीक है, मोहिनी. तुम्हारी बातों को मैं ने कब काटा है. यह आदेश भी सिरआंखों पर, लेकिन जोश के साथ होश कभी नहीं खोना चाहिए… ठीक है, कल दोपहर बाद…’ कन्हैया बोला.

दूसरे दिन सवेरे ही मोहिनी ने मनोहरा को चायनाश्ता करा कर, दोपहर का खाना दे कर खेत पर काम करने इस तरह विदा किया, जैसे कोई मां अपने बच्चे को तैयार कर पढ़ने के लिए भेजती है.

ठीक साढ़े 12 बजे मोबाइल फोन की घंटी बजने लगी. भीतरबाहर, अगलबगल देख कर मोहिनी ने कन्हैया को घर पर आने का सिगनल दे दिया.

कन्हैया सावधानी से उस के दरवाजे तक आ गया और वहां से उसे अपने आंगन तक ले जाने के लिए तो मोहिनी वहां मौजूद थी ही. तकरीबन 2 घंटे तक कन्हैया वहां रह कर मौजमजा लेता रहा, फिर जैसे आया था वैसे ही लौट गया.

ठीक उसी समय अलग हुए बराबर के घर में सलोनी अपने छोटे भाई रमुआ के साथ पशुओं को खूंटे से बांध रही थी. आज रमुआ अपने साथ दोपहर का खाना नहीं ले जा सका था, इसी वजह से वह सवेरे ही पशुओं को हांक लाया था.

सलोनी ने चाची के घर से निकल कर एक अजनबी को जाते देखा, तो उसे कुछ अटपटा सा लगा, पर वह चुप लगा गई.

दूसरे दिन भी जब सलोनी बैलों को पानी पिलाने के लिए दरवाजे पर आई, तो गांव के ही रामखिलावन को मोहिनी के घर से निकलते देखा. देखते ही वह पहचान गई कि यह वही रामखिलावन है, जिस के साथ चाची उसे बदनाम कर के दादादादी और उन से अलग हुई थी.

अब तो सलोनी के मन में कुछ उथलपुथल सी होने लगी. उस ने अपने मन को शांत कर एक फैसला लिया और मुसकराने लगी.

अब सलोनी बराबर चाचा के घर की निगरानी करने लगी. वह अपने आंगन से निकल कर चुपके से चाचाचाची के घर की ओर देख लेती और लौट जाती. एक दिन उसे फिर एक नया अजनबी उस आंगन से निकलते हुए दिखा.

अब सलोनी से रहा नहीं गया. उस ने अपनी दादी से सारी बातें बताईं. वह बूढ़ी अपनी एक खास जवान पड़ोसन से मदद ले कर इस बात की जांच में जुट गई.

तीनों मिल कर छिपछिप कर एक हफ्ते तक निगरानी करती रहीं. सलोनी की बात सोलह आने सच साबित हुई. फिर दादी ने अपने बड़े बेटे गोखुला और अपने पति से सहयोग ले कर एक नई योजना बनाई और 2-4 दिनों तक और इंतजार किया.

दूसरी ओर मोहिनी इन सभी बातों से अनजान मौजमस्ती में मशगूल रहती थी. वैसे, उस के घर में जो भी मर्द आता था, वह कोई कीमती चीज उसे दे जाता था.

कन्हैया को आए जब कई दिन हो गए, तो मोहिनी के मन की तड़प बढ़ गई, दिल जोरों से धड़कने लगा. उसे खयाल आया कि सिकंदर भी आने से मना कर चुका है, तो क्यों न आज फिर एक बार कन्हैया को ही बुला लिया जाए. उस ने झट से मोबाइल फोन उठा लिया.

दूसरी ओर से कन्हैया ने पूछा, ‘हां मोहिनी, क्या हालचाल है? तुम वहां खुश तो हो न?’

‘‘क्या खाक खुश रहूंगी. तुम तो इधर का जैसे रास्ता ही भूल बैठे. दिनभर बैठी रहती हूं मैं तुम्हारी याद में और तुम तो जैसे डुमरी का फूल बन गए हो आजकल.’’

‘बोलो क्या हुक्म है?’

‘‘आज तुम दोपहर के 12 बजे मेरे घर आ जाओ.’’

‘हुजूर का हुक्म सिरआंखों पर,’ कहते हुए कन्हैया ने फोन काट दिया.

मोहिनी ने तो अपनी योजना बना ली थी, पर उसे भनक तक नहीं थी कि कोई उस पर नजर रखे हुए है. कन्हैया पर नजर पड़ते ही सभी सावधान हो गए. वह एक ओर से आ कर मोहिनी के आंगन में घुस गया. लोगों ने देखा कि मोहिनी उसे दरवाजे से भीतर ले गई.

सलोनी ने दादी के कहने पर मनोहरा चाचा को भी बुला कर अपने दरवाजे पर बैठा लिया था. धीरेधीरे कुछ और लोग आ गए और जब तकरीबन आधा घंटा बीत गया होगा, तब मनोहरा को आगे कर सभी लोग उस के दरवाजे पर पहुंच गए.

दस्तक देने पर जब दरवाजा नहीं खुला, तब लोगों ने मनोहरा को ऊंची आवाज लगा कर मोहिनी को बुलाने को कहा. उस की आवाज को पहचान कर मोहिनी को कुछ शक हुआ, क्योंकि आज उसे धान के खेत की निराईगुड़ाई करनी थी. आज उसे शाम में भी देर से आने की उम्मीद थी. वह कन्हैया संग पलंग पर प्रेम की पेंगें भर रही थी.

ज्यों ही मोहिनी ने दरवाजा खोला, सामने मनोहरा के संग पासपड़ोस के लोगों को देख कर उस के होश उड़ गए. वह कुछ बोलती, इस से पहले ही पूरा हुजूम उस के आंगन में घुस गया और कन्हैया को भी धर दबोचा.

पत्नी मोहिनी के सामने हमेशा भीगी बिल्ली बना रहने वाला मनोहरा आज न जाने कैसे बब्बर शेर बन कर दहाड़ता हुआ उस पर पिल पड़ा और चिल्लाया, ‘‘आज मैं इस को जान से मार कर ही चैन की सांस लूंगा.’’

उस दिन के बाद से फिर न तो मोहिनी कभी वापस गांव में दिखी और न ही उस का प्रेमी. सुना था कि वह शहर जा कर कई घरों में बरतन मांज कर फटेहाल गुजारा कर रही है.

यह मेरी मंजिल नहीं : गुमराह होती सहेली की अंजलि ने कैसे की मदद

‘अंजली, तुम से आखिरी बार पूछ रही हूं, तुम मेरे साथ साइबर कैफे चल रही हो या नहीं?’ लहर ने जोर दे कर पूछा.

अंजली झुंझला उठी, ‘नहीं चलूंगी, नहीं चलूंगी, और तुम भी मत जाओ. दिन में 4 घंटे बैठी थीं न वहां, वे क्या कम थे. महीना भर भी नहीं बचा है परीक्षा के लिए और तुम…’

‘रहने दो अपनी नसीहतें. मैं अकेली ही जा रही हूं,’ अंजली आगे कुछ कहती, इस से पहले लहर चली गई.

‘शायद इसीलिए प्यार को पागलपन कहते हैं. वाकई अंधे हो जाते हैं लोग प्यार में,’ अंजली ने मन ही मन सोचा. फिर वह नोट्स बनाने में जुट गई, पर मन था कि आज किसी विषय पर केंद्रित ही नहीं हो रहा था. उस ने घड़ी पर नजर डाली.  शाम के 6 बजने को थे. आज लहर की मम्मी से फिर झूठ बोलना पडे़गा.

4 दिन से लगातार लहर के घर से फोन आ रहा था, शाम 6 से 8 बजे तक का समय तय था, जब होस्टल में लड़कियों के घर वाले फोन कर सकते थे. लहर की गैरमौजूदगी में रूममेट के नाते अंजली को ही लहर की मम्मी को जवाब देना पड़ता था. कैसे कहती वह उन से कि लहर किसी कोचिंग क्लास में नहीं बल्कि साइबर कैफे में बैठी अपने किसी बौयफे्रंड से इंटरनेट पर चैट कर रही है, समय व पैसे के साथसाथ वह खुद को भी इस आग में होम करने पर तुली है.

आग ही तो है जो एक चैट की चिंगारी से सुलगतेसुलगते आज लपट का रूप ले बैठी है, जिस में लहर का झुलसना लगभग तय है.

क्या अपनी प्रिय सखी को यों ही जल कर खाक होने दे? समझाने की सारी कोशिशें तो अंजली कर चुकी थी. पर अगर कोई डूबने पर आमादा हो जाए तो उसे किनारे कैसे लाया जाए. क्या वह लहर की मम्मी को सारी सचाई बयान कर दे? पर सचाई जानने के बाद लहर का क्या होगा. यह तो तय था कि सचाई पता चलते ही लहर के मम्मीपापा उस की पढ़ाई व होस्टल छुड़वा कर उसे वापस गांव ले जाएंगे. गांव में कैद होने का मतलब था लहर के लिए भविष्य के सारे रास्ते बंद. अंजली सोच में पड़ गई.

अपनी बचपन की सहेली के साथ ऐसा हो, यह तो अंजली कतई नहीं चाहती थी. पर दोनों के स्वभाव में शुरू से ही विरोधाभास था. लहर चुलबुली, अल्हड़ सी लड़की थी तो अंजली गंभीर और व्यावहारिक. इसलिए अकसर दोनों में बहस भी हो जाया करती. पर अगले ही पल वे दोनों एक हो जातीं.

इंटर पास कर के अंजली का शहर जा कर पढ़ना तय था. गांव में कालिज नहीं था और पढ़नेलिखने में तेज अंजली की महत्त्वाकांक्षा आसमान छू लेने की थी. मांबाप भी यही चाहते थे.

इस से उलट लहर के परिवार वाले उसे शहर में अकेले होस्टल में रखने के हक में कतई न थे. पर रोधो कर लहर ने घर वालों को मना ही लिया था, शहर भेजने के लिए. लहर हमेशा से औसत दरजे की छात्रा थी. भविष्य संवारने से बढ़ कर उसे आकर्षित कर रही थी शहरी चमकदमक, आजादी व मनमौजी जीवनशैली, जो गांव में मांबाप की छत्रछाया में संभव नहीं थी.

शहर आ कर दोनों ने बी.आई.टी. में प्रवेश ले लिया. दोनों ही लगन से कंप्यूटर की बारीकियां सीखने में लग गईं. कालिज में फ्री इंटरनेट सुविधा थी. लड़कियां कई बार समय काटने के लिए नेट चैट करती रहतीं. अंजली व लहर भी कभीकभार इस तरह समय काटा करती थीं.

पर कुछ समय बाद अंजली ने महसूस किया कि लहर किसी नेटफे्रंड को ले कर कुछ सीरियस हो रही है. उठतेबैठते, सोते- जागते, उसी की चर्चा. उसी के खयाल, हर वक्त, चैट करने का उतावलापन. अंजली उसे कई बार समझा चुकी थी कि किसी अनजान से इतना लगाव ठीक नहीं. माना कि तुम्हारी दोस्ती है पर इतना अधिक पजेसिव होने की जरूरत नहीं. ये नेट चैट तो आजकल लोगों के लिए टाइमपास है. आधी से ज्यादा बातें तो इस पर लोग झूठी ही करते हैं.

अंजली के समझाने पर लहर जाने कहांकहां की प्रेम कहानियां सुनाने लगती. ढेरों उदाहरण पेश कर देती, जिस में प्रेमी भारत का तो प्रेमिका न्यूजीलैंड की, कभी प्रेमी आस्ट्रेलिया का तो प्रेमिका भारत की होती. फिर लहर का तर्क होता, ‘इन की शादियां क्या यों ही हो गईं? रिश्ते तो विश्वास पर ही बनते हैं.’

‘वह तो ठीक है लहर, फिर भी सिर्फ बातों से किसी की सचाई का पता नहीं चल जाता,’ अंजली उसे समझाती, पर लहर ने तो जैसे ठान ही लिया था कि वह जो कर रही है वही ठीक है.

कालिज के बाद का फ्री टाइम लहर साइबर कैफे में बैठ कर गुजारने लगी, जहां प्रति घंटे की दर से कुछ पैसे ले कर इंटरनेट सुविधा उपलब्ध कराई जाती है. अंजली की बातों पर जब लहर ने ध्यान नहीं दिया तो उस ने भी कुछ कहना छोड़ दिया. वह जानती थी कि नेटचैट का भूत किसी नशे से कम नहीं होता. जिस दिन नशा उतर जाएगा, उस दिन लहर खुद राह पर आ जाएगी.

पर धीरेधीरे लहर का नशा उतरने के बजाय चढ़ता ही जा रहा था. दिन में 4-4 घंटे तो कभी 6-6 घंटे साइबर कैफे में बैठ कर चैट करने की लत लहर का पर्स 15 दिन में खाली कर देती. महीने के बाकी बचे 15 दिनों के लिए वह अंजली से उधार मांगती व कहती कि पहली तारीख को घर से मनीआर्डर आने पर पैसे लौटा देगी.

1-2 बार अंजली ने दोस्ती की खातिर रुपए उधार दे दिए. पहली तारीख को लहर ने लौटा भी दिए. पर फिर अगले माह उसे पैसे की तंगी हो जाती. अंजली के मना करने पर वह किसी दूसरी लड़की से पैसे उधार ले लेती. धीरेधीरे होस्टल की सभी लड़कियां उस की उधारी वाली आदत से परेशान हो गईं. सभी कोई न कोई बहाना बना कर उसे टाल देतीं.

अब लहर ने घर फोन कर और पैसे मांगने शुरू कर दिए, कभी यह कह कर कि मेरे पैसे रास्ते में कहीं गिर गए, तो कभी नया बहाना होता कि मुझे किसी विषय की ट्यूशन लगवानी है.

लहर अपनी लत में लगी रही. नतीजा तय था. परीक्षा में जहां अंजली अच्छे नंबरों से पास हो गई वहीं लहर सभी विषयों में फेल थी.

रोधो कर लहर ने अंजली को मजबूर कर दिया, एक और झूठ बोलने के लिए, ‘अंजली प्लीज, मेरे घर पर यही कहना कि परीक्षा के दिनों में मुझे तेज बुखार था. इसी वजह से रिजल्ट खराब रहा.’

फेल होने के बावजूद लहर को कोई अफसोस नहीं था बल्कि वह तो फिर यह सोच कर चैन की सांस लेने लगी थी कि चलो, मम्मीपापा को उस की असफलता को ले कर कोई शंका नहीं है. पर अंजली परेशान थी. उस ने लहर की खातिर सिर्फ यह सोच कर झूठ बोला था कि ठोकर खा कर वह अब सही राह पर चलेगी.

अंजली लहर से एक क्लास आगे हो गई थी. अब उन का साथसाथ आना कम हो गया था. अंजली होस्टल से सुबह निकलती तो लहर उस के 2 घंटे बाद. दोनों ही अपनीअपनी तरह जी रही थीं. अंजली का पढ़ाई में लगाव बढ़ता जा रहा था. लेकिन लहर का मन पढ़ाई से पूरी तरह उचट चुका था.

अंजली ने भी उसे समझाने की कोशिशें छोड़ दीं, पर एक दिन अचानक अंजली पर जैसे गाज गिरी. अटैची में रखे 1 हजार रुपए गायब देख कर उस के होश उड़ गए. ‘तो अब लहर इस हद तक गिर गई है,’ अंजली को यकीन नहीं हो रहा था. होस्टल के कमरे में उन दोनों के अलावा कोई तीसरा आता नहीं था.

‘लहर को पैसे की तंगी तो हमेशा ही रहती थी. पैसों के लिए जब वह अपने मांबाप से झूठ बोल सकती है तो चोरी भी कर सकती थी,’ अंजली ने सोचा, पर सीधा इलजाम लगाने से बात बिगड़ सकती है. कोई ठोस सुबूत भी तो नहीं, जो साबित कर सके कि पैसे लहर ने ही निकाले हैं.

अंजली मन ही मन बहुत दुखी थी. अचानक उसे ध्यान आया कि लहर का पासवर्ड वह जानती है. क्यों न उस के पासवर्ड को कंप्यूटर में डाल कर लहर का ईमेल अकाउंट जांचा जाए. आखिर 6-6 घंटे साइबर कैफे में बैठ कर चैट करने के पीछे कारण क्या हैं.

अंजली ने साइबर कैफे में जा कर लहर के पासवर्ड से उस का ईमेल अकाउंट खोला. लहर के नाम आए मेल पढ़ कर उस के पैरों तले जमीन खिसक गई. ये सारे मेल लहर के उसी दोस्त के थे जिस के पीछे वह दीवानी हो गई थी. नाम था साहिल खान. वह सऊदी अरब में काम करने वाला भारतीय था. साहिल खान के भावुकता के रस में डूबे प्रेम से सराबोर पत्रों से पता चला कि लहर तो उस के साथ भाग कर शादी करने का वादा भी कर चुकी है, वह शादी के बाद उस के साथ सऊदी अरब में रहने के सपने देख रही है. 3 माह बाद साहिल ने उस से भारत आने का वादा किया है.

अंजली ने अपनी एक नई आई.डी. बनाई फिर साहिल खान से दोस्ती गांठने के लिए ‘जिया’ नाम से उस से संपर्क किया. अंजली को ज्यादा प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी. साहिल उस वक्त आनलाइन ही था. वह ‘जिया’ बनाम अंजली से चैट करने लगा. अंजली ने भी बातों में उलझा कर उस से दोस्ती बढ़ाने की कोशिश की. साहिल ने अंजली को अपनी उम्र लगभग वही बताई जो लहर को बताई थी, पर लहर के लिए वह कंप्यूटर इंजीनियर था तो ‘जिया’ बनाम अंजली को उस ने बताया कि वह पिछले ही साल भारत से सऊदी अरब में 2 वर्ष के कांट्रैक्ट पर एक अस्पताल में चीफ मेडिकल आफिसर बन कर आया है. अंजली ने जिया के नाम से महीने भर लगातार साहिल से चैट किया. उस ने 2-4 भावुक प्रेमपत्र ईमेल से भेजे. जवाब में आए प्रेम से सराबोर लंबेचौडे़ वादे. भावभीने प्रेमरस में डूबे प्रेमपत्रों में साहिल ने कांटै्रक्ट खत्म होते ही अगले वर्ष भारत पहुंच कर जिया से शादी करने का वादा किया.

अंजली अपनी योजना के मुकाम पर पहुंच चुकी थी. लहर ने अपने नेटफें्रड के किस्से अंजली को सुनाने लगभग बंद कर दिए थे, क्योंकि उस की बातों पर अंजली बिफर पड़ती थी. इसी वजह से दोनों के बीच तनातनी सी हो जाती थी.

गांव से शहर में आ कर होस्टल में रह कर पढ़ाई करने के बीते हुए दिनों को याद कर अंजली अतीत में खो गई थी. तंद्रा भंग हुई तो उसे याद आया कि अब क्या करना है, अपनी प्रिय सहेली लहर को भटकने से कैसे बचाना है. आज अंजली ने लहर से कहा, ‘‘लहर, आज समय हो तो प्लीज मेरे साथ साइबर कैफे चलो न, बहुत जरूरी काम है.’’

‘‘तुम्हें, साइबर कैफे में काम है?’’ लहर हैरान हो गई.

‘‘हां, पर तुम्हारे जैसा नहीं. कुछ इनफार्मेशन कलेक्ट करनी है, टर्म पेपर के लिए,’’ अंजली ने कहा.

‘‘वह तो मैं जानती हूं. तुम जैसी नीरस लड़की को भला और कोई काम हो भी नहीं सकता. अच्छा चलती हूं.’’

‘‘तुम्हारे नेटफ्रेंड का क्या हालचाल है? बहुत दिनों से तुम ने कुछ सुनाया नहीं उस के बारे में,’’ अंजली ने बात छेड़ी, ‘‘गाड़ी कहां तक आ गई है?’’

‘‘बस, समझो स्टेशन आने वाला है. 3 माह बाद ही साहिल भारत आ रहा है. कह रहा था कि मम्मीपापा से बात कर के पहले उन्हें मनाने की कोशिश करेगा. नहीं तो शादी तो हर हाल में करनी ही है. उस के बाद वह मुझे सीधे सऊदी अरब ले जाएगा. तुम तो मेरी पक्की सहेली हो. तुम तो साथ दोगी न मेरा?’’ लहर ने पूछा.

‘‘क्यों नहीं. तुम्हारी पक्की सहेली हूं. तुम्हारी खुशी के लिए कुछ भी कर सकती हूं,’’ अंजली ने कहा.

बात करतेकरते दोनों साइबर कैफे पहुंच गईं. अगले ही पल सऊदी अरब में बसे लहर के तथाकथित प्रेमी साहिल खान बनाम कंप्यूटर इंजीनियर का कच्चा चिट्ठा अंजली ने लहर के सामने खोल कर रख दिया.

वही साहिल जो लहर के लिए कंप्यूटर इंजीनियर था, वही ‘जिया’ बनाम अंजली के लिए डाक्टर था, जो 3 माह बाद लहर को ब्याहने आने वाला था. वही साल भर बाद भारत आ कर जिया से भी शादी करने के वादे कर रहा था. अब समझनेसमझाने के लिए कुछ भी बाकी नहीं था.

लहर के जीवन का लक्ष्य अचानक धराशायी हो गया. उसे एहसास हो गया कि यह मंजिल नहीं है. कटी डाल की तरह टूट कर लहर, अंजली की गोद में सिर रख कर बिलख पड़ी, ‘‘अंजली, मैं तो भूल गई थी कि लहर की मंजिल कभी साहिल तो हो ही नहीं सकता. साहिल से टकरा कर लहर को वापस लौटना पड़ता है.’’

‘‘रो ले, जी भर कर रो ले, मन का सारा दुख आज बह जाने दे, ताकि आने वाले दिनों में बीती बातों की कोई कसक बाकी न रहे,’’ अंजली ने लहर के सिर पर प्यार से हाथ फेरा.

आज अंजली भी खुद को हलका महसूस कर रही थी. उसे याद आया कि शहर आने से पहले लहर की मम्मी ने कितने विश्वास के साथ उस से कहा था, ‘बेटी, लहर का ध्यान रखना. तुम तो जानती हो न इस का स्वभाव. मन की भोली है. बड़ी जल्दी किसी की भी बातों में आ जाती है. तुम साथ हो इसलिए हम ब्रेफिक्र हो कर इसे शहर भेज रहे हैं.’

आज लहर को गुमराह होने से बचा कर अंजली ने उस के मांबाप का विश्वास भी सहेज लिया था.         द्य

हरी चूडि़यां : सायरा ने क्या-क्या खरीदा

अम्मी खुश थीं सायरा को उस के शादी के बाद आए पहले तोहफे दिला कर. सायरा खुश थी अपनी पसंद के तोहफे पा कर. वह कभी हरा और रेशमी गरारा उठा कर देखती, तो कभी सलमासितारों से जड़ी हरी ओढ़नी अपने सिर पर रख कर कहती, ‘‘देखिए अम्मीजान, इस का हरा रंग कितना अलग सा है. इस पर जड़े सितारे तो ऐसे लगते हैं जैसे पूरी कायनात के सितारे मेरी ओढ़नी पर आ कर अपनी महफिल सजा कर बैठे हों.’’

अम्मी बोलीं, ‘‘मेरी बच्ची की ओढ़नी यों ही हरीभरी रहे…’’ फिर दोनों हाथों से सायरा की बलाएं ले कर अपने पान से सुर्ख हो रहे होंठों से उसे चूम लिया.मैं अभी भी किताब में अपना सिर झुकाए चोर नजरों से इन सासबहू का लाड़दुलार देख रहा था. मन ही मन कुढ़ भी रहा था

सायरा से मेरा निकाह हुए 2 महीने हो गए थे. मैं अभी तक उस से अपना जुड़ाव महसूस नहीं कर पा रहा था. जुड़ाव महसूस भी कैसे करता? कुछ ऐसा महसूस करने के लिए जुड़ना जरूरी होता है. केवल किसी को ‘कबूल’ बोल देने भर से तो वह कबूल नहीं हो जाता.

यह अलग बात है कि काजी साहब के सामने किए इजहार को मैं अपनी जिंदगी के कयामत वाले दिन तक निभाने को तैयार हूं. हां, मगर अभी मुझे वक्त चाहिए खुद को समेटने के लिए. सलमा को भुलाने के लिए.

मैं क्या करूं… नहीं लुभाती सायरा की खूबसूरती, उस की चुलबुली सी अदाएं, उस का चहकना और मचलना मुझे कुछ भी नहीं भाता. मुझे हर वक्त अपने आसपास सलमा का सांवला सा संजीदा चेहरा ही नजर आता है.

मैं मानता हूं कि सायरा रिमझिम बरखा सी है, पर मेरा इश्क मेरी सलमा… वह भी तो भादों से भरी घटा थी.फिर मेरे मिजाज में भी तो यह सब नहीं था. मुझे कभी अच्छा भी तो नहीं लगा बरसात में भीगना. चिढ़ थी मुझे भीगने से और फिर लौट कर अम्मी के तमाम नियमकायदे मानने से. गीले पैर पायदान पर रख कर उसे खिसकाते हुए गुसलखाने तक जाओ, कपड़े का पानी बाहर ही निचोड़ो, यह सब मुझे उकता देता था.

ऊपर से अम्मी का वह जोशांदा काढ़ा… उफ. वह तो मेरे हलक से नीचे ही नहीं उतरता था. जो चीज मेरे दिल से गुफ्तगू करती थी, वह थी घिरी हुई घटाओं के बीच दालान में बैठ कर किताबें पढ़ना.बादलों को एकदूसरे में सिमटते देखना, बादलों का गरजना यों लगता जैसे आसमां अपने भीतर के सारे मनोभाव जमीन से खुल कर कह रहा हो कि किसी से नहीं डरना हमें. हम तो तेरे आशिक हैं.अकसर सोचता एक दिन मैं भी खुशी से सब को बता दूंगा कि मुझे सलमा से मुहब्बत है.

मैं अपनी सोच में खोया हुआ था कि तभी सायरा ने अपने सामान का जखीरा मेरे सामने ला पटका और बोली, ‘‘देखिए साहिर साहब, हमें अम्मीजान ने कितने तोहफे दिलाए हैं. आप भी कुछ दिलाइए…’’

बिना मेरा जवाब सुने ही उस ने फिर से कहना शुरू किया, ‘‘यह हार देखिए, और ये झुमके भी. यह तो उन्होंने अपनी छोटी वाली पेटी से निकाल कर दिए हैं. कह रही थीं कि बड़े बेशकीमती हैं.

‘‘अम्मीजान बता रही थीं कि उन की दुबई वाली खाला ने उन्हें बतौर नजराना दिए थे. आप देखें, आज ये सब अम्मीजान ने हमें दे दिए.’’

मैं ने बड़ी बेतकल्लुफी से उन सब पर बिना नजर डाले ही कहा, ‘‘सब ले लो, आज भी यह सब तुम्हारा ही है. कल भी सब तुम्हारा ही तो होना है. अम्मी का मेरे सिवा है ही कौन?’’

री बात सुन कर बड़ी बेतकल्लुफी से वह बोली, ‘‘यह क्या बात हुई… हम भी तो हैं अम्मी के. साहिर, हम ने कितनी ही सासें देखी हैं. एकलौती बहू को भी अपना सब अपने जीतेजी नहीं सौंप देती हैं. अम्मीजान तो लाखों में एक हैं.

‘‘एक बात सुनें आप… फिर हों भी क्यों न? उन में हमारे सैयद खानदान का ही खून दौड़ रहा है. आखिर वे मेरी फूफी भी तो हैं.’’

मैं चुप हो गया. यह सैयद खानदान की जिद ही तो थी, जिस ने सलमा और मेरे इश्क को परवान नहीं चढ़ने दिया. अम्मी ने अपने एक फैसले से मेरी दुनिया बदल कर रख दी.

बहुत सालों बाद पिछले साल जब अम्मी अपने मायके गई थीं, तब वहीं से सायरा का रिश्ता मांग लाई थीं. बिना मुझ से पूछे, बिना मेरी मरजी जाने और वापस आ कर बस फरमान सुनाया था, ‘‘साहिर, तुम्हें सायरा याद है न? वही मेरे चचा भाई की मंझली बेटी… हम उसे तेरे लिए मांग आए हैं.’’

यह सुन कर बिना घबराए मैं ने बड़े यकीन से अम्मी को अपने दिल का हाल सुनाया था. लेकिन अम्मी ने चंद शब्दों में सारी बात खत्म कर दी, ‘बरखुरदार, हम सैयद खानदान से ताल्लुक रखते हैं. हम जबान दे कर पीछे नहीं हटते हैं. तुम्हें मेरी बात न माननी हो, तो शौक से तुम अपने मामू को फोन कर के मना कर दो.साथ ही साथ यह भी कह देना कि तुम्हारी बेवा मां का इंतकाल हो गया है, तभी तुम यह रिश्ता तोड़ रहे हो.’अम्मी की इस बात के बाद सिवा सेहरा पहनने के मेरे पास कुछ कहने को नहीं था.

सायरा अभी भी अपने तोहफे समेट रही थी, जबकि मैं यादों की बारादरी से गुजर कर वापस भी आ गया. कल सायरा की पहली विदाई है. वह अपने अरमान संजो रही थी.

सुबह ही मैं ने अपने मन में सोच लिया था कि कल कुछ भी कर के मैं सलमा से मुलाकात करूंगा. उस से सब कह दूंगा कि नहीं रहा जाता तुम्हारे बिना… बताओ क्या करूं? कोई तो रास्ता सुझाओ…

मैं अपनी ही उधेड़बुन में था कि तभी सायरा आ कर मेरे गले लग गई और चहक कर बोली, ‘‘आप तो बड़े छिपे रुस्तम हो जी. ये हरी चूडि़यां ले कर आए हो तो मुझे दी क्यों नहीं?’’फिर प्यार से हाथ आगे बढ़ाते हुए वह बोली, ‘‘आप जानते हैं… आप के नाम लिख गई है मेरी कलाई की एकएक नस, तो फिर शरमाना कैसा? चलिए, पहना दीजिए.’’

मैं पसोपेश में पड़ गया. कल सलमा से मुलाकात के लिए लाया हुआ तोहफा सायरा के हाथ में था. उन चूडि़यों की खनक सायरा की आवाज में थी. बिना कुछ भी बोले हुए मैं ने उस की कलाई में वे हरी चूडि़यां सजा दी थीं. वह एकएक चूड़ी को चूम रही थी.

मैं ने खुद को वफा की नजर में तोला तो पाया कि मैं भटक रहा था. खुद को झटकते हुए मैं ने अपने भटकते मन को सीधी राह पर चलाने के लिए नजरबंद कर लिया. मन की दबी हुई सारी काली घटाएं बूंद बन कर पिघलने लगीं. हवाओं का शोर बता रहा था कि बाहर जोर से पानी बरस रहा है.

अकेलापन : क्यों दर्द झेल रही थी सरोज

राजेश पिछले शनिवार को अपने घर गए थे लेकिन तेज बुखार के कारण वह सोमवार को वापस नहीं लौटे. आज का पूरा दिन उन्होंने मेरे साथ गुजारने का वादा किया था. अपने जन्मदिन पर उन से न मिल कर मेरा मन सचमुच बहुत दुखी होता.

राजेश को अपने प्रेमी के रूप में स्वीकार किए मुझे करीब 2 साल बीत चुके हैं. उन के दोनों बेटों सोनू और मोनू व पत्नी सरोज से आज मैं पहली बार मिलूंगी.

राजेश के घर जाने से एक दिन पहले हमारे बीच जो वार्तालाप हुआ था वह रास्ते भर मेरे जेहन में गूंजता रहा.

‘मैं शादी कर के घर बसाना चाहती हूं…मां बनना चाहती हूं,’ उन की बांहों के घेरे में कैद होने के बाद मैं ने भावुक स्वर में अपने दिल की इच्छा उन से जाहिर की थी.

‘कोई उपयुक्त साथी ढूंढ़ लिया है?’ उन्होंने मुझे शरारती अंदाज में मुसकराते हुए छेड़ा.

उन की छाती पर बनावटी गुस्से में कुछ घूंसे मारने के बाद मैं ने जवाब दिया, ‘मैं तुम्हारे साथ घर बसाने की बात कर रही हूं.’

‘धर्मेंद्र और हेमामालिनी वाली कहानी दोहराना चाहती हो?’

‘मेरी बात को मजाक में मत उड़ाओ, प्लीज.’

‘निशा, ऐसी इच्छा को मन में क्यों स्थान देती हो जो पूरी नहीं हो सकती,’ अब वह भी गंभीर हो गए.

‘देखिए, मैं सरोज को कोई तकलीफ नहीं होने दूंगी. अपनी पूरी तनख्वाह उसे दे दिया करूंगी. मैं अपना सारा बैंकबैलेंस बच्चों के नाम कर दूंगी… उन्हें पूर्ण आर्थिक सुरक्षा देने…’

उन्होंने मेरे मुंह पर हाथ रखा और उदास लहजे में बोले, ‘तुम समझती क्यों नहीं कि सरोज को तलाक नहीं दिया जा सकता. मैं चाहूं भी तो ऐसा करना मेरे लिए संभव नहीं.’

‘पर क्यों?’ मैं ने तड़प कर पूछा.

‘तुम सरोज को जानती होतीं तो यह सवाल न पूछतीं.’

‘मैं अपने अकेलेपन को जानने लगी हूं. पहले मैं ने सारी जिंदगी अकेले रहने का मन बना लिया था पर अब सब डांवांडोल हो गया है. तुम मुझे सरोज से ज्यादा चाहते हो?’

‘हां,’ उन्होंने बेझिझक जवाब दिया था.

‘तब उसे छोड़ कर तुम मेरे हो जाओ,’ उन की छाती से लिपट कर मैं ने अपनी इच्छा दोहरा दी.

‘निशा, तुम मेरे बच्चे की मां बनना चाहती हो तो बनो. अगर अकेली मां बन कर समाज में रहने का साहस तुम में है तो मैं हर कदम पर तुम्हारा साथ दूंगा. बस, तुम सरोज से तलाक लेने की जिद मत करो, प्लीज. मेरे लिए यह संभव नहीं होगा,’ उन की आंखों में आंसू झिलमिलाते देख मैं खामोश हो गई.

सरोज के बारे में राजेश ने मुझे थोड़ी सी जानकारी दे रखी थी. बचपन में मातापिता के गुजर जाने के कारण उसे उस के मामा ने पाला था. 8वीं तक शिक्षा पाई थी. रंग सांवला और चेहरामोहरा साधारण सा था. वह एक कुशल गृहिणी थी. अपने दोनों बेटों में उस की जान बसती थी. घरगृहस्थी के संचालन को ले कर राजेश ने उस के प्रति कभी कोई शिकायत मुंह से नहीं निकाली थी.

सरोज से मुलाकात करने का यह अवसर चूकना मुझे उचित नहीं लगा. इसलिए उन के घर जाने का निर्णय लेने में मुझे ज्यादा कठिनाई नहीं हुई.

राजेश इनकार न कर दें, इसलिए मैं ने उन्हें अपने आने की कोई खबर फोन से नहीं दी थी. उस कसबे में उन का घर ढूंढ़ने में मुझे कोई दिक्कत नहीं हुई. उस एक- मंजिला साधारण से घर के बरामदे में बैठ कर मैं ने उन्हें अखबार पढ़ते पाया.

मुझे अचानक सामने देख कर वह पहले चौंके, फिर जो खुशी उन के होंठों पर उभरी, उस ने सफर की सारी थकावट दूर कर के मुझे एकदम से तरोताजा कर दिया.

‘‘बहुत कमजोर नजर आ रहे हो, अब तबीयत कैसी है?’’ मैं भावुक हो उठी.

‘‘पहले से बहुत बेहतर हूं. जन्मदिन की शुभकामनाएं. तुम्हें सामने देख कर दिल बहुत खुश हो रहा है,’’ राजेश ने मिलाने के लिए अपना दायां हाथ आगे बढ़ाया.

राजेश से जिस पल मैं ने हाथ मिलाया उसी पल सरोज ने घर के भीतरी भाग से दरवाजे पर कदम रखा.

आंखों से आंखें मिलते ही मेरे मन में तेज झटका लगा.

सरोज की आंखों में अजीब सा भोलापन था. छोटी सी मुसकान होंठों पर सजा कर वह दोस्ताना अंदाज में मेरी तरफ देख रही थी.

जाने क्यों मैं ने अचानक अपने को अपराधी सा महसूस किया. मुझे एहसास हुआ कि राजेश को उस से छीनने के मेरे इरादे को उस की आंखों ने मेरे मन की गहराइयों में झांक कर बड़ी आसानी से पढ़ लिया था.

‘‘सरोज, यह निशा हैं. मेरे साथ दिल्ली में काम करती हैं. आज इन का जन्मदिन भी है. इसलिए कुछ बढि़या सा खाना बना कर इन्हें जरूर खिलाना,’’ हमारा परिचय कराते समय राजेश जरा भी असहज नजर नहीं आ रहे थे.

‘‘सोनू और मोनू के लिए हलवा बनाया था. वह बिलकुल तैयार है और मैं अभी आप को खिलाती हूं,’’ सरोज की आवाज में भी किसी तरह का खिंचाव मैं ने महसूस नहीं किया.

‘‘थैंक यू,’’ अपने मन की बेचैनी के कारण मैं कुछ और ज्यादा नहीं कह पाई.

‘‘मैं चाय बना कर लाती हूं,’’ ऐसा कह कर सरोज तेजी से मुड़ी और घर के अंदर चली गई.

राजेश के सामने बैठ कर मैं उन से उन की बीमारी का ब्योरा पूछने लगी. फिर उन्होंने आफिस के समाचार मुझ से पूछे. यों हलकेफुलके अंदाज में वार्तालाप करते हुए मैं सरोज की आंखों को भुला पाने में असमर्थ हो रही थी.

अचानक राजेश ने पूछा, ‘‘निशा, क्या तुम सरोज से अपने और मेरे प्रेम संबंध को ले कर बातें करने का निश्चय कर के यहां आई हो?’’

एकदम से जवाब न दे कर मैं ने सवाल किया, ‘‘क्या तुम ने कभी उसे मेरे बारे में बताया है?’’

‘‘कभी नहीं.’’

‘‘मुझे लगता है कि वह हमारे प्रेम के बारे में जानती है.’’

कुछ देर खामोश रहने के बाद मैं ने अपना फैसला राजेश को बता दिया, ‘‘तुम्हें एतराज नहीं हो तो मैं सरोज से खुल कर बातें करना चाहूंगी. आगे की जिंदगी तुम से दूर रह कर गुजारने को अब मेरा दिल तैयार नहीं है.’’

‘‘मैं इस मामले में कुछ नहीं कहूंगा. अब तुम हाथमुंह धो कर फ्रैश हो जाओ. सरोज चाय लाती ही होगी.’’

राजेश के पुकारने पर सोनू और मोनू दोनों भागते हुए बाहर आए. दोनों बच्चे मुझे स्मार्ट और शरारती लगे. मैं उन से उन की पढ़ाई व शौकों के बारे में बातें करते हुए घर के भीतर चली गई.

घर बहुत करीने से सजा हुआ था. सरोज के सुघड़ गृहिणी होने की छाप हर तरफ नजर आ रही थी.

मेरे मन में उथलपुथल न चल रही होती तो सरोज के प्रति मैं ज्यादा सहज व मैत्रीपूर्ण व्यवहार करती. वह मेरे साथ बड़े अपनेपन से पेश आ रही थी. उस ने मेरी देखभाल और खातिर में जरा भी कमी नहीं की.

उस की बातचीत का बड़ा भाग सोनू और मोनू से जुड़ा था. उन की शरारतों, खूबियों और कमियों की चर्चा करते हुए उस की जबान जरा नहीं थकी. वे दोनों बातचीत का विषय होते तो उस का चेहरा खुशी और उत्साह से दमकने लगता.

हलवा बहुत स्वादिष्ठ बना था. साथसाथ चाय पीने के बाद सरोज दोपहर के खाने की तैयारी करने रसोई में चली गई.

‘‘सरोज के व्यवहार से तो अब ऐसा नहीं लगता है कि उसे तुम्हारे और मेरे प्रेम संबंध की जानकारी नहीं है,’’ मैं ने अपनी राय राजेश को बता दी.

‘‘सरोज सभी से अपनत्व भरा व्यवहार करती है, निशा. उस के मन में क्या है, इस का अंदाजा उस के व्यवहार से लगाना आसान नहीं,’’ राजेश ने गंभीर लहजे में जवाब दिया.

‘‘अपनी 12 सालों की विवाहित जिंदगी में सरोज ने क्या कभी तुम्हें अपने दिल में झांकने दिया है?’’

‘‘कभी नहीं…और यह भी सच है कि मैं ने भी उसे समझने की कोशिश कभी नहीं की.’’

‘‘राजेश, मैं तुम्हें एक संवेदनशील इनसान के रूप में पहचानती हूं. सरोज के साथ तुम्हारे इस रूखे व्यवहार का क्या कारण है?’’

‘‘निशा, तुम मेरी पसंद, मेरा प्यार हो, जबकि सरोज के साथ मेरी शादी मेरे मातापिता की जिद के कारण हुई. उस के पिता मेरे पापा के पक्के दोस्त थे. आपस में दिए वचन के कारण सरोज, एक बेहद साधारण सी लड़की, मेरी इच्छा के खिलाफ मेरे साथ आ जुड़ी थी. वह मेरे बच्चों की मां है, मेरे घर को चला रही है, पर मेरे दिल में उस ने कभी जगह नहीं पाई,’’ राजेश के स्वर की उदासी मेरे दिल को छू गई.

‘‘उसे तलाक देते हुए तुम कहीं गहरे अपराधबोध का शिकार तो नहीं हो जाओगे?’’ मेरी आंखों में चिंता के भाव उभरे.

‘‘निशा, तुम्हारी खुशी की खातिर मैं वह कदम उठा सकता हूं पर तलाक की मांग सरोज के सामने रखना मेरे लिए संभव नहीं होगा.’’

‘‘मौका मिलते ही इस विषय पर मैं उस से चर्चा करूंगी.’’

‘‘तुम जैसा उचित समझो, करो. मैं कुछ देर आराम कर लेता हूं,’’ राजेश बैठक से उठ कर अपने कमरे में चले गए और मैं रसोई में सरोज के पास चली आई.

हमारे बीच बातचीत का विषय सोनू और मोनू ही बने रहे. एक बार को मुझे ऐसा भी लगा कि सरोज शायद जानबूझ कर उन के बारे में इसीलिए खूब बोल रही है कि मैं किसी दूसरे विषय पर कुछ कह ही न पाऊं.

घर और बाहर दोनों तरह की टेंशन से निबटना मुझे अच्छी तरह से आता है. अगर मुझे देख कर सरोज तनाव, नाराजगी, गुस्से या डर का शिकार बनी होती तो मुझे उस से मनचाहा वार्तालाप करने में कोई असुविधा न महसूस होती.

उस का साधारण सा व्यक्तित्व, उस की बड़ीबड़ी आंखों का भोलापन, अपने बच्चों की देखभाल व घरगृहस्थी की जिम्मेदारियों के प्रति उस का समर्पण मेरे रास्ते की रुकावट बन जाते.

मेरी मौजूदगी के कारण उस के दिलोदिमाग पर किसी तरह का दबाव मुझे नजर नहीं आया. हमारे बीच हो रहे वार्तालाप की बागडोर अधिकतर उसी के हाथों में रही. जो शब्द उस की जिंदगी में भारी उथलपुथल मचा सकते थे वे मेरी जबान तक आ कर लौट जाते.

दोपहर का खाना सरोज ने बहुत अच्छा बनाया था, पर मैं ने बड़े अनमने भाव से थोड़ा सा खाया. राजेश मेरे हावभाव को नोट कर रहे थे पर मुंह से कुछ नहीं बोले. अपने बेटों को प्यार से खाना खिलाने में व्यस्त सरोज हम दोनों के दिल में मची हलचल से शायद पूरी तरह अनजान थी.

कुछ देर आराम करने के बाद हम सब पास के पार्क में घूमने पहुंच गए. सोनू और मोनू झूलों में झूलने लगे. राजेश एक बैंच पर लेटे और धूप का आनंद आंखें मूंद कर लेने लगे.

‘‘आइए, हम दोनों पार्क में घूमें. आपस में खुल कर बातें करने का इस से बढि़या मौका शायद आगे न मिले,’’ सरोज के मुंह से निकले इन शब्दों को सुन कर मैं मन ही मन चौंक पड़ी.

उस की भोली सी आंखों में झांक कर अपने को उलझन का शिकार बनने से मैं ने खुद को इस बार बचाया और गंभीर लहजे में बोली, ‘‘सरोज, मैं सचमुच तुम से कुछ जरूरी बातें खुल कर करने के लिए ही यहां आई हूं.’’

‘‘आप की ऐसी इच्छा का अंदाजा मुझे हो चुका है,’’ एक उदास सी मुसकान उस के होंठों पर उभर कर लुप्त हो गई.

‘‘क्या तुम जानती हो कि मैं राजेश से बहुत पे्रम करती हूं?’’

‘‘प्रेम को आंखों में पढ़ लेना ज्यादा कठिन काम नहीं है, निशाजी.’’

‘‘तुम मुझ से नाराज मत होना क्योंकि मैं अपने दिल के हाथों मजबूर हूं.’’

‘‘मैं आप से नाराज नहीं हूं. सच तो यह है कि मैं ने इस बारे में सोचविचार किया ही नहीं है. मैं तो एक ही बात पूछना चाहूंगी,’’ सरोज ने इतना कह कर अपनी भोली आंखें मेरे चेहरे पर जमा दीं तो मैं मन में बेचैनी महसूस करने लगी.

‘‘पूछो,’’ मैं ने दबी सी आवाज में उस से कहा.

‘‘वह 14 में से 12 दिन आप के साथ रहते हैं, फिर भी आप खुश और संतुष्ट क्यों नहीं हैं? मेरे हिस्से के 2 दिन छीन कर आप को कौन सा खजाना मिल जाएगा?’’

‘‘तुम्हारे उन 2 दिनों के कारण मैं राजेश के साथ अपना घर  नहीं बसा सकती हूं, अपनी मांग में सिंदूर नहीं भर सकती हूं,’’ मैं ने चिढ़े से लहजे में जवाब दिया.

‘‘मांग के सिंदूर का महत्त्व और उस की ताकत मुझ से ज्यादा कौन समझेगा?’’ उस के होंठों पर उभरी व्यंग्य भरी मुसकान ने मेरे अपराधबोध को और भी बढ़ा दिया.

‘‘राजेश सिर्फ मुझे प्यार करते हैं, सरोज. हम तुम्हें कभी आर्थिक परेशानियों का सामना नहीं करने देंगे, पर तुम्हें, उन्हें तलाक देना ही होगा,’’ मैं ने कोशिश कर के अपनी आवाज मजबूत कर ली.

‘‘वह क्या कहते हैं तलाक लेने के बारे में?’’ कुछ देर खामोश रह कर सरोज ने पूछा.

‘‘तुम राजी हो तो उन्हें कोई एतराज नहीं है.’’

‘‘मुझे तलाक लेनेदेने की कोई जरूरत महसूस नहीं होती है, निशाजी. इस बारे में फैसला भी उन्हीं को करना होगा.’’

‘‘वह तलाक चाहेंगे तो तुम शोर तो नहीं मचाओगी?’’

मेरे इस सवाल का जवाब देने के लिए सरोज चलतेचलते रुक गई. उस ने मेरे दोनों हाथ अपने हाथों में ले लिए. इस पल उस से नजर मिलाना मुझे बड़ा कठिन महसूस हुआ.

‘‘निशाजी, अपने बारे में मैं सिर्फ एक बात आप को इसलिए बताना चाहती हूं ताकि आप कभी मुझे ले कर भविष्य में परेशान न हों. मेरे कारण कोई दुख या अपराधबोध का शिकार बने, यह मुझे अच्छा नहीं लगेगा.’’

‘‘सरोज, मैं तुम्हारी दुश्मन नहीं हूं, पर परिस्थितियां ही कुछ…’’

उस ने मुझे टोक कर अपनी बात कहना जारी रखा, ‘‘अकेलेपन से मेरा रिश्ता अब बहुत पुराना हो गया है. मातापिता का साया जल्दी मेरे सिर से उठ गया था. मामामामी ने नौकरानी की तरह पाला. जिंदगी में कभी ढंग के संगीसाथी नहीं मिले. खराब शक्लसूरत के कारण पति ने दिल में जगह नहीं दी और अब आप मेरे बच्चों के पिता को उन से छीन कर ले जाना चाहती हैं.

‘‘यह तो कुदरत की मेहरबानी है कि मैं ने अकेलेपन में भी सदा खुशियों को ढूंढ़ निकाला. मामा के यहां घर के कामों को खूब दिल लगा कर करती. दोस्त नहीं मिले तो मिट्टी के खिलौनों, गुडि़या और भेड़बकरियों को अपना साथी मान लिया. ससुराल में सासससुर की खूब सेवा कर उन के आशीर्वाद पाती रही. अब सोनूमोनू के साथ मैं बहुत सुखी और संतुष्ट हूं.

‘‘मेरे अपनों ने और समाज ने कभी मेरी खुशियों की फिक्र नहीं की. अपने अकेलेपन को स्वीकार कर के मैं ने खुद अपनी खुशियां पाई हैं और मैं उन्हें विश्वसनीय मानती हूं. उदासी, निराशा, दुख, तनाव और चिंताएं मेरे अकेलेपन से न कभी जुड़ी हैं और न जुड़ पाएंगी. मेरी जिंदगी में जो भी घटेगा उस का सामना करने को मैं तैयार हूं.’’

मैं चाह कर भी कुछ नहीं बोल पाई. राजेश ठीक ही कहते थे कि सरोज से तलाक के बारे में चर्चा करना असंभव था. बिलकुल ऐसा ही अब मैं महसूस कर रही थी.

सरोज के लिए मेरे मन में इस समय सहानुभूति से कहीं ज्यादा गहरे भाव मौजूद थे. मेरा मन उसे गले लगा कर उस की पीठ थपथपाने का किया और ऐसा ही मैं ने किया भी.

उस का हाथ पकड़ कर मैं राजेश की तरफ चल पड़ी. मेरे मुंह से एक शब्द भी नहीं निकला, पर मन में बहुत कुछ चल रहा था.

सरोज से कुछ छीनना किसी भोले बच्चे को धोखा देने जैसा होगा. अपने अकेलेपन से जुड़ी ऊब, तनाव व उदासी को दूर करने के लिए मुझे सरोज से सीख लेनी चाहिए. उस की घरगृहस्थी का संतुलन नष्ट कर के अपनी घरगृहस्थी की नींव मैं नहीं डालूंगी. अपनी जिंदगी और राजेश से अपने प्रेम संबंध के बारे में मुझे नई दृष्टि से सोचना होगा, यही सबकुछ सोचते हुए मैं ने साफ महसूस किया कि मैं पूरी तरह से तनावमुक्त हो भविष्य के प्रति जोश, उत्साह और आशा प्रदान करने वाली नई तरह की ऊर्जा से भर गई हूं.

दौड़ : क्या निशा के अंदर बदलाव ला पाया रवि

‘‘नमस्ते, मम्मीजी. कल रात क्या आप सब लोग कहीं बाहर गए हुए थे?’’ अपनी आवाज में जरा सी मिठास लाते हुए निशा बोली.

‘‘हां, कविता के बेटे मोहित का जन्मदिन था इसलिए हम सब वहां गए थे. लौटने में देर हो गई थी.’’

कविता उस की बड़ी ननद थी. मोहित के जन्मदिन की पार्टी में उसे बुलाया ही नहीं गया, इस विचार ने उस के मूड को और भी ज्यादा खराब कर दिया.

‘‘मम्मी, रवि से बात करा दीजिए,’’ निशा ने जानबूझ कर रूखापन दिखाते हुए पार्टी के बारे में कुछ भी नहीं पूछा और अपने पति रवि से बात करने की इच्छा जाहिर की.

‘‘रवि तो बाजार गया है. उस से कुछ कहना हो तो बता दो.’’

‘‘मुझे आफिस में फोन करने को कहिएगा. अच्छा मम्मी, मैं फोन रखती हूं, नमस्ते.’’

‘‘सुखी रहो, बहू,’’ सुमित्रा का आशीर्वाद सुन कर निशा ने बुरा सा मुंह बनाया और फोन रख दिया.

‘बुढि़या ने यह भी नहीं पूछा कि मैं कैसी हूं…’ गुस्से में बड़बड़ाती निशा अपना पर्स उठाने के लिए बेडरूम की तरफ चल पड़ी.

कैरियर के हिसाब से आज का दिन निशा के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण व खुशी से भरा था. वह टीम लीडर बन गई है. यह समाचार उसे कल आफिस बंद होने से कुछ ही मिनट पहले मिला था. इसलिए इस खुशी को वह अपने सहकर्मियों के साथ बांट नहीं सकी थी.

आफिस में निशा के कदम रखते ही उसे मुबारकबाद देने वालों की भीड़ लग गई. अपने नए केबिन में टीम लीडर की कुरसी पर बैठते हुए निशा खुशी से फूली नहीं समाई.

रवि का फोन उस के पास 11 बजे के करीब आया. उस समय वह अपने काम में बहुत ज्यादा व्यस्त थी.

‘‘रवि, तुम्हें एक बढि़या खबर सुनाती हूं,’’ निशा ने उत्साही अंदाज में बात शुरू की.

‘‘तुम्हारा प्रमोशन हो गया है न?’’

‘‘तुम्हें कैसे पता चला?’’ निशा हैरान हो उठी.

‘‘तुम्हारी आवाज की खुशी से मैं ने अंदाजा लगाया, निशा.’’

‘‘मैं टीम लीडर बन गई हूं, रवि. अब मेरी तनख्वाह 35 हजार रुपए हो गई है.’’

‘‘गाड़ी भी मिल गई है. अब तो पार्टी हो जाए.’’

‘‘श्योर, पार्टी कहां लोगे?’’

‘‘कहीं बाहर नहीं. तुम शाम को घर आ जाओ. मम्मी और सीमा तुम्हारी मनपसंद चीजें बना कर रखेंगी.’’

रवि का प्रस्ताव सुन कर निशा का उत्साह ठंडा पड़ गया और उस ने नाराज लहजे में कहा, ‘‘घर में पार्टी का माहौल कभी नहीं बन सकता, रवि. तुम मिलो न शाम को मुझ से.’’

‘‘हमारा मिलना तो शनिवारइतवार को ही होता है, निशा.’’

‘‘मेरी खुशी की खातिर क्या तुम आज नहीं आ सकते हो?’’

‘‘नाराज हो कर निशा तुम अपना मूड खराब मत करो. शनिवार को 3 दिन बाद मिल ही रहे हैं. तब बढि़या सी पार्टी ले लूंगा.’’

‘‘तुम भी रवि, कैसे भुलक्कड़ हो, शनिवार को मैं मेरठ जाऊंगी.’’

‘‘तुम्हारे जैसी व्यस्त महिला को अपने भाई की शादी याद है, यह वाकई कमाल की बात है.’’

‘‘मुझे ताना मार रहे हो?’’ निशा चिढ़ कर बोली.

‘‘सौरी, मैं ने तो मजाक किया था.’’

‘‘अच्छा, यह बताओ कि मेरठ रविवार की सुबह तक पहुंच जाओगे न?’’

‘‘आप हुक्म करें, साले साहब के लिए जान भी हाजिर है, मैडम.’’

‘‘घर से और कौनकौन आएगा?’’

‘‘तुम जिसे कहो, ले आएंगे. जिसे कहो, छोड़ आएंगे. वैसे तुम शनिवार की रात को पहुंचोगी, इस बात से नवीन या तुम्हारे मम्मीडैडी नाराज तो नहीं होंगे?’’‘मुझे अपने जूनियर्स को टे्रनिंग देनी है. मैं चाह कर भी पहले नहीं निकल सकती हूं.’’

‘‘सही कह रही हो तुम, भाई की शादी के चक्कर में इनसान को अपनी ड्यूटी को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए.’’

‘‘तुम कभी मेरी भावनाओं को नहीं समझ सके,’’ निशा फिर चिढ़ उठी, ‘‘मैं अपने कैरियर को बड़ी गंभीरता से लेती हूं, रवि.’’

‘‘निशा, मैं फोन रखता हूं. आज तुम मेरे मजाक को सहन करने के मूड में नहीं हो. ओके, बाय.’’

रवि और निशा ने एम.बी.ए. साथसाथ एक ही कालिज से किया था. दोनों के बीच प्यार का बीज भी उन्हीं दिनों में अंकुरित हुआ.

रवि ने बैंक में पी.ओ. की परीक्षा पास कर के नौकरी पा ली और निशा ने बहुराष्ट्रीय कंपनी में. करीब 2 साल पहले दोनों ने घर वालों की रजामंदी से प्रेम विवाह कर लिया.

दुलहन बन कर निशा रवि के परिवार में आ गई. वहां के अनुशासन भरे माहौल में उस का मन शुरू से नहीं लगा. टोकाटाकी के अलावा उसे एक बात और खलती थी. दोनों अच्छा कमाते हुए भी भविष्य के लिए कुछ बचा नहीं पाते थे.

उन दोनों की ज्यादा कमाई होने के कारण हर जिम्मेदारी निभाने का आर्थिक बोझ उन के ही कंधों पर था. निशा इन बातों को ले कर चिढ़ती तो रवि उसे प्यार से समझाता, ‘हम दोनों बड़े भैया व पिताजी से ज्यादा समर्थ हैं, इसलिए इन जिम्मेदारियों को हमें बोझ नहीं समझना चाहिए. अगर हम सब की खुशियों और घर की समृद्धि को बढ़ा नहीं सकते हैं तो हमारे ज्यादा कमाने का फायदा क्या हुआ? मैडम, पैसा उपयोग करने के लिए होता है, सिर्फ जोड़ने के लिए नहीं. एकसाथ मिलजुल कर हंसीखुशी से रहने में ही फायदा है, निशा. सब से अलगथलग हो कर अमीर बनने में कोई मजा नहीं है.’

निशा कभी भी रवि के इस नजरिये से सहमत नहीं हुई. ससुराल में उसे अपना दम घुटता सा लगता. किसी का व्यवहार उस के प्रति खराब नहीं था पर वह उस घर में असंतोष व शिकायत के भाव से रहती. उस का व रवि का शोषण हो रहा है, यह विचार उसे तनावग्रस्त बनाए रखता.

निशा को जब कंपनी से 2 बेडरूम वाला फ्लैट मिलने की सुविधा मिली तो उस ने ससुराल छोड़ कर वहां जाने को फौरन ‘हां’ कर दी. अपना फैसला लेने से पहले उस ने रवि से विचारविमर्श भी नहीं किया क्योंकि उसे पति के मना कर देने का डर था.

फ्लैट में अलग जा कर रहने के लिए रवि बिलकुल तैयार नहीं हुआ. वह बारबार निशा से यही सवाल पूछता कि घर से अलग होने का हमारे पास कोई खास कारण नहीं है. फिर हम ऐसा क्यों करें?

‘मुझे रोजरोज दिल्ली से गुड़गांव जाने में परेशानी होती है. इस के अलावा सीनियर होने के नाते मुझे आफिस में ज्यादा समय देना चाहिए और ज्यादा समय मैं गुड़गांव में रह कर ही दे सकती हूं.’

निशा की ऐसी दलीलों का रवि पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा था.

अंतत: निशा ने अपनी जिद पूरी की और कंपनी के फ्लैट में रहने चली गई. उस के इस कदम का विरोध मायके और ससुराल दोनों जगह हुआ पर उस ने किसी की बात नहीं सुनी.

रवि की नाराजगी, उदासी को अनदेखा कर निशा गुड़गांव रहने चली गई.

रवि सप्ताह में 2 दिन उस के साथ गुजारता. निशा कभीकभार अपनी ससुराल वालों से मिलने आती. सच तो यह था कि अपना कैरियर बेहतर बनाने के चक्कर में उसे कहीं ज्यादा आनेजाने का समय ही नहीं मिलता.

अच्छा कैरियर बनाने के लिए अपने व्यक्तिगत जीवन की कठिनाइयों को निशा ने कभी ज्यादा महत्त्व नहीं दिया. अपने छोटे भाई नवीन की शादी में वह सिर्फ एक रात पहले पहुंचेगी, इस बात का भी उसे कोई खास अफसोस नहीं था. अपने मातापिता व भाई की शिकायत को उस ने फोन पर ऊंची आवाज में झगड़ कर नजरअंदाज कर दिया.

‘‘शादी में हमारे मेरठ पहुंचने की चिंता मत करो, निशा. आफिस के किसी काम में अटक कर तुम और ज्यादा देर से मत पहुंचना,’’ रवि के मोबाइल पर उस ने जब भी फोन किया, रवि से उसे ऐसा ही जवाब सुनने को मिला.

शनिवार की शाम निशा ने टैक्सी की और 8 बजे तक मेरठ अपने मायके पहुंच गई. अब तक छिपा कर रखी गई प्रमोशन की खबर सब को सुनाने के लिए वह बेताब थी. अपने साथ बढि़या मिठाई का डब्बा वह सब का मुंह मीठा कराने के लिए लाई थी. उस के पर्स में प्रमोशन का पत्र पड़ा था जिसे वह सब को दिखा कर उन की वाहवाही लूटने को उत्सुक थी.

टैक्सी का किराया चुका कर निशा ने अपनी छोटी अटैची खुद उठाई और गेट खोल कर अंदर घुस गई.

घर में बड़े आकार वाले ड्राइंगरूम को खाली कर के संगीत और नृत्य का कार्यक्रम आयोजित किया गया था. तेज गति के धमाकेदार संगीत के साथ कई लोगों के हंसनेबोलने की आवाजें भी निशा के कानों तक पहुंचीं.

निशा ने मुसकराते हुए हाल में कदम रखा और फिर हैरानी के मारे ठिठक गई. वहां का दृश्य देख कर उस का मुंह खुला का खुला रह गया.

निशा ने देखा मां बड़े जोश के साथ ढोलक बजा रही थीं. तबले पर ताल बजाने का काम उस की सास कर रही थीं.

रवि मंजीरे बजा रहा था और भाई नवीन ने चिमटा संभाल रखा था. किसी बात पर दोनों हंसी के मारे ऐसे लोटपोट हुए जा रहे थे कि उन की ताल बिलकुल बिगड़ गई थी.

उस की छोटी ननद सीमा मस्ती से नाच रही थी और महल्ले की औरतें तालियां बजा रही थीं. उन में उस की जेठानी अर्चना भी शामिल थी. अचानक ही रवि की 5 वर्षीय भतीजी नेहा उठ कर अपनी सीमा बूआ के साथ नाचने लगी. एक तरफ अपने ससुर, जेठ व पिता को एकसाथ बैठ कर गपशप करते देखा. अपनी ससुराल के हर एक सदस्य को वहां पहले से उपस्थित देख निशा हैरान रह गई.

उन के पड़ोस में रहने वाली शीला आंटी की नजर निशा पर सब से पहले पड़ी. उन्होंने ऊंची आवाज में सब को उस के पहुंचने की सूचना दी तो कुछ देर के लिए संगीत व नृत्य बंद कर दिया गया.

लगभग हर व्यक्ति से निशा को देर से आने का उलाहना सुनने को मिला.

मौका मिलते ही निशा ने रवि से धीमी आवाज में पूछा, ‘‘आप सब लोग यहां कब पहुंचे?’’

‘‘हम तो परसों सुबह ही यहां आ गए थे,’’ रवि ने मुसकराते हुए जवाब दिया.

निशा ने माथे पर बल डालते हुए पूछा, ‘‘इतनी जल्दी क्यों आए? मुझे बताया क्यों नहीं?’’

रवि ने सहज भाव से बोलना शुरू किया, ‘‘तुम्हारी मम्मी ने 3 दिन पहले मुझ से फोन पर बात की थी. उन की बातों से मुझे लगा कि वह बहुत उदास हैं. उन्हें बेटे के ब्याह के घर में कोई रौनक नजर नहीं आ रही थी. तुम्हारे जल्दी न आ सकने की शिकायत को दूर करने के लिए ही मैं ने उन से सब के साथ यहां आने का वादा कर लिया और परसों से यहीं जम कर खूब मौजमस्ती कर रहे हैं.’’

‘‘सब को यहां लाना मुझे अजीब सा लग रहा है,’’ निशा की चिढ़ अपनी जगह बनी रही.

‘‘ऐसा करने के लिए तुम्हारे मम्मीपापा व भाई ने बहुत जोर दिया था.’’

निशा ने बुरा सा मुंह बनाया और मां से अपनी शिकायत करने रसोई की तरफ चल पड़ी.

मां बेटी की शिकायत सुनते ही उत्तेजित लहजे में बोलीं, ‘‘तेरी ससुराल वालों के कारण ही यह घर शादी का घर लग रहा है. तू तो अपने काम की दीवानी बन कर रह गई है. हमें वह सभी बड़े पसंद हैं और उन्हें यहां बुलाने का तुम्हें भी कोई विरोध नहीं करना चाहिए.’’

‘‘जो लोग तुम्हारी बेटी को प्यार व मानसम्मान नहीं देते, तुम सब उन से…’’

बेटी की बात को बीच में काट कर मां बोलीं, ‘‘निशा, तुम ने जैसा बोया है वैसा ही तो काटोगी. अब बेकार के मुद्दे उठा कर घर के हंसीखुशी के माहौल को खराब मत करो. तुम से कहीं ज्यादा इस शादी में तुम्हारी ससुराल वाले हमारा हाथ बंटा रहे हैं और इस के लिए हम दिल से उन के आभारी हैं.’’

मां की इन बातों से निशा ने खुद को अपमानित महसूस किया. उस की पलकें गीली होने लगीं तो वह रसोई से निकल कर पीछे के बरामदे में आ गई.

कुछ समय बाद रवि भी वहां आ गया और पत्नी को इस तरह चुपचाप आंसू बहाते देख उस के सिर पर प्यार से हाथ फेरा तो निशा उस के सीने से लग कर फफक पड़ी.

रवि ने उसे प्यार से समझाया, ‘‘तुम अपने भाई की शादी का पूरा लुत्फ उठाओ, निशा. व्यर्थ की बातों पर ध्यान देने की क्या जरूरत है तुम्हें.’’

‘‘मेरी खुशी की फिक्र न मेरे मायके वालों को है न ससुराल वालों को. सभी मुझ से जलते हैं… मुझे अलगथलग रख कर नीचा दिखाते हैं. मैं ने किसी का क्या बिगाड़ा है,’’ निशा ने सुबकते हुए सवाल किया.

‘‘तुम क्या सचमुच अपने सवाल का जवाब सुनना चाहोगी?’’ रवि गंभीर हो गया.

निशा ने गरदन हिला कर ‘हां’ में जवाब दिया.

‘‘देखो निशा, अपने कैरियर को तुम बहुत महत्त्वपूर्ण मानती हो. तुम्हारे लक्ष्य बहुत ऊंचाइयों को छूने वाले हैं. आपसी रिश्ते तुम्हारे लिए ज्यादा माने नहीं रखते. तुम्हारी सारी ऊर्जा कैरियर की राह पर बहुत तेजी से दौड़ने में लग रही है…तुम इतना तेज दौड़ रही हो… इतनी आगे निकलती जा रही हो कि अकेली हो गई हो… दौड़ में सब से आगे, पर अकेली,’’ रवि की आवाज कुछ उदास हो गई.

‘‘अच्छा कैरियर बनाने का और कोई रास्ता नहीं है, रवि,’’ निशा ने दलील दी.

‘‘निशा, कैरियर जीवन का एक हिस्सा है और उस से मिलने वाली खुशी अन्य क्षेत्रों से मिलने वाली खुशियों के महत्त्व को कम नहीं कर सकती. हमारे जीवन का सर्वांगीण विकास न हो तो अकेलापन, तनाव, निराशा, दुख और अशांति से हम कभी छुटकारा नहीं पा सकते हैं.’’

‘‘मुझे क्या करना चाहिए? अपने अंदर क्या बदलाव लाना होगा?’’ निशा ने बेबस अंदाज में पूछा.

‘‘जो पैर कैरियर बनाने के लिए तेज दौड़ सकते हैं वे सब के साथ मिल कर नाच भी सकते हैं…किसी के हमदर्द भी बन सकते हैं. जरूरत है बस, अपना नजरिया बदलने की…अपने दिमाग के साथसाथ अपने दिल को भी सक्रिय कर लोगों का दिल जीतने की,’’ अपनी सलाह दे कर रवि ने उसे अपनी छाती से लगा लिया.

निशा ने पति की बांहों के घेरे में बड़ी शांति महसूस की. रवि का कहा उस के दिल में कहीं बड़ी गहराई तक उतर गया. अपने नजदीकी लोगों से अपने संबंध सुधारने की इच्छा उस के मन में पलपल बलवती होती जा रही थी.

‘‘मैं बहुत दिनों से मस्त हो कर नाची नहीं हूं. आज कर दूं जबरदस्त धूमधड़ाका यहां?’’ निशा की मुसकराहट रवि को बहुत ताजा व आकर्षक लगी.

रवि ने प्यार से उस का माथा चूमा और हाथ पकड़ कर हाल की तरफ चल दिया. उसे साफ लगा कि पिछले चंद मिनटों में निशा के अंदर जो जबरदस्त बदलाव आया है वह उन दोनों के सुखद भविष्य की तरफ इशारा कर रहा था.

उल्टी पड़ी चाल : कैसे सामने आई काजी वहीद की हकीकत – भाग 5

मैं ने तेज लहजे में कहा, ‘‘मैं हकीकत बयान कर रहा हूं काजी साहब. आप जिस मकान में रह रहे हैं, उस का असली मालिक कबीर वारसी है, जो बदकिसमती से आप जैसे धोखेबाज आदमी का रिश्ते में साला है. कबीर वारसी ने यह मकान अपनी बहन मकतूला रशीदा को रहने के लिए दिया था. फिर अचानक कबीर वारसी की मौत हो गई. क्या मैं गलत कह रहा हूं?’’

काजी के गुब्बारे की पूरी हवा निकल चुकी थी. मेरे सच ने उसे हिला कर रख दिया था. यह सब जानकारी मुझे अली मुराद की मेहनत से मिली थी. काजी की बदलती हुई हालत जज और सारे लोगों से छिपी नहीं रह सकी. उस ने संभलने की कोशिश करते हुए कहा, ‘‘कबीर वारसी, ने अपनी मौत से पहले मकान अपनी बहन यानी मेरी बीवी रशीदा के नाम कर दिया था.’’

‘‘और आप की कोशिश यह थी कि रशीदा अपनी मौत से पहले यह मकान आप के नाम कर दे. जब आप की बीवी ने आप की बात नहीं मानी, आप की सारी कोशिशें बेकार गई तो आप ने क्लाइंट को कुर्बानी का बकरा बना कर बीवी का पत्ता साफ कर दिया?’’

‘‘औब्जेक्शन योर औनर. वकील साहब मेरे क्लाइंट पर संगीन इलजाम लगा रहे हैं जो गलत है.’’

जज जो बहुत ही ध्यान से जिरह सुन रहा था, चौक उठा और मुझ से बोला, ‘‘बेग साहब, आप इस्तेगासा के ऐतराज पर क्या कहेंगे?’’

‘‘जनाबे आली, मैं आप को यकीन दिलाता हूं जो संगीन इलजाम मैं ने काजी वहीद पर लगाया है, मैं उसे अदालत में साबित कर के दिखाऊंगा.’’

जज ने ठहरे हुए लहजे में कहा, ‘‘जिरह जारी रखी जाए.’’

‘‘योर औनर, मैं इस केस के जांच अधिकारी से कुछ सवाल पूछना चाहता हूं.’’ जांच औफिसर को विटनेस बौक्स में बुलाया गया. मैं ने पूछा, ‘‘आईओ साहब, आप ने रिपोर्ट तो बहुत ऐहतियात से तैयार की होगी. मैं कुछ सवाल पूछूंगा, उस का जवाब आप हां या ना में देंगे. मकतूला रशीदा की मौत 15 अक्तूबर की रात 7 से 9 बजे के बीच हुई थी?’’

‘‘जी हां.’’ आईओ ने जवाब दिया तो मैं ने पूछा, ‘‘उसे गला घोंट कर मारा गया था?’’

‘‘यस.’’

‘‘मकतूला की गरदन पर कातिल की उंगलियों के निशान नहीं मिले, जिस से यह सोचा गया कि कत्ल के वक्त कातिल ने दस्ताने पहन रखे थे?’’

‘‘यस.’’ आईओ का जवाब आया.

‘‘मकतूला की लाश की डाक्टरी जांच से पता चला कि जिस आदमी ने रशीदा का गला घोंटा था, उस ने अपने दाएं हाथ की 2 अंगुलियों में (रिंग फिंगर और मिडिल फिंगर में) हैवी अंगूठियां पहन रखी थीं. अंगुलियों के दबाव के साथ अंगूठियों के दबाव से बनने वाले निशानात मकतूला की गर्दन पर पाए गए थे?’’

‘‘जी हां.’’ आईओ ने कहा.

अंगूठियों के जिक्र पर काजी वहीद ने बेसाख्ता अपने हाथों की तरफ देखा. उस की यह हरकत मुझ से छिपी नहीं रह सकी. मैं ने जांच अधिकारी की आंखों में देखते हुए कहा, ‘‘आईओ साहब, कत्ल की रात लगभग 11 बजे जब आप ने मुल्जिम फुरकान को उस की ससुराल से गिरफ्तार किया तो क्या उस के दाएं हाथ की रिंग फिंगर और मिडिल फिंगर में आप को अंगूठियां नजर आई थीं.’’

‘‘नो.’’ आईओ ने झटके से कहा.

मैं ने एकदम काजी वहीद की तरफ मुंह कर के कहा, ‘‘काजी वहीद, तुम्हारी अंगूठियां कहां हैं?’’

‘‘म…म… मेरी अंगूठियां… मैं ने तो अंगूठियां नहीं पहनी थीं… आप किन अंगूठियों की बात कर रहे हैं?’’

‘‘वह अंगूठियां जो पोस्टमार्टम की रिपोर्ट से पहले तुम्हारे दाएं हाथ की 2 अंगुलियों में मौजूद थीं और उस वक्त भी मौजूद थी, जब तुम ने अपने हाथों पर दस्ताने चढ़ा कर अपनी बीवी का गला घोंट कर उसे मौत के घाट उतारा था, जिन के निशान तुम्हारी अंगुलियों पर अभी भी मौजूद हैं.’’

काजी बौखला कर बोला, ‘‘आप झूठ बोल रहे हैं, बकवास कर रहे हैं.’’

‘‘काजी, मैं तुम्हारे जानने वालों में से 10 ऐसे लोगों को गवाही के लिए अदालत में ला सकता हूं जिन्होंने हादसे से पहले कई सालों से तुम्हारी अंगुलियों में चांदी की 2 हैवी अंगूठियां देखी हैं. जिन में से एक अंगूठी में 15 कैरेट का फिरोजा और दूसरी में यमन का अकीक जड़ा हुआ था.’’ मैं ने ड्रामाई अंदाज में अपनी बात खत्म की. और इसी के साथ काजी के हौसले के ताबूत में आखिरी कील ठोंक दी. ‘‘इन बैठे हुए गवाहों में ही 8-10 लोग अंगूठियों की गवाही देने को मिल जाएंगे.’’

इधर मेरी बात खत्म हुई, उधर काजी ने दोनों हाथों से सिर थाम लिया. यह मेरे इस हमले का नतीजा था जो मैं ने अंगूठियों के गवाहों के लिए कहा था. अगले ही पल वह धड़ाम से कटघरे के फर्श पर ढेर हो गया.

पिछली पेशी पर मेरे कड़े सवालात के नतीजे में काजी वहीद के गिरने ने उस का जुर्म साबित कर दिया. अदालत के हुक्म पर जब उसे पुलिस के हवाले किया गया तो उस ने इकबाले जुर्म कर लिया.

काजी की बीवी रशीदा बहुत अच्छी औरत थी. वह फुरकान को बेटा ही समझती थी. जब काजी ने फुरकान के साथ एक लाख का फ्रौड किया तो वह सख्त गुस्सा हुई. उस ने काजी को धमकी दी थी कि अगर उस ने फुरकान की रकम वापस नहीं की तो वह उस के खिलाफ फुरकान के हक में गवाह बन जाएगी.

काजी पहले से ही अपनी बीवी की बीमारी से बहुत तंग था और उसे ठिकाने लगाने की तरकीबे सोच रहा था. ताकि मकान पर उस का अकेले कब्जा हो जाए. रशीदा काजी की नीयत को समझ गई थी. वह अपनी जिंदगी  में किसी भी कीमत पर मकान काजी के नाम करने को राजी नहीं हुई तो काजी ने फुरकान को फंसा कर एक तीर से 2 शिकार करने का मंसूबा बना डाला.

काजी ने 15 अक्तूबर की शाम फुरकान को अपने घर बुलाया ताकि हादसे के दिन उस का वहां आना पक्का हो जाए. वह फुरकान के आने से पहले ही अपनी बीवी को गला घोंट कर मार चुका था और खुद घर के अंदर छिपा बैठा था. उस ने घर को अंदर से लौक कर दिया था ताकि फुरकान यह समझे कि घर के अंदर कोई नहीं है और वह मायूस हो कर वापस लौट जाए.

यह बताने की जरूरत नहीं है कि काजी के इकरारे जुर्म के बाद अदालत ने मेरे क्लाइंट फुरकान को बाइज्जत बरी कर दिया. साथ ही उसे एक लाख देने का भी हुक्म दिया. काजी वहीद ने एक टेढ़ी चाल चली थी, पर वह बुरे अंजाम से बच नहीं सका.

प्रस्तुति : शकीला एस. हुसैन    

उलझी हुई पहेली, जो सुलझ गई – भाग 3

एक रोज राघव थाने में बैठे मोबाइल पर यों ही दोस्तों की पोस्ट्स देख रहे थे कि तभी उन की साली का फोन आया.

‘‘जीजू, मैं ने जिस लड़के के बारे में बताया था आप को, उस के साथ मेरी वीडियो सेल्फी देखी आप ने? आज ही अपलोड की मैं ने.’’

राघव झल्लाए, लेकिन उस से जान छुड़ाने के लिए उस का प्रोफाइल पेज खोला. जैसे ही उन्होंने उस की सेल्फी देखी. उस की बैकग्राउंड पर नजर जाते ही मानो वे उछल पड़े.

यहां मुकुल के घर नए रिश्ते वाले आए थे. लड़की का पिता बोल रहा था.

‘‘चलिए, जो हुआ सो हुआ आप के साथ. अब एक नई जिंदगी शुरू कीजिए.’’

तभी एक मजबूत आवाज गूंजी ‘जिंदगी भी क्याक्या दिखा देती है भाईसाहब.’ सब ने आवाज की दिशा में देखा. इंसपेक्टर राघव मुसकराते हुए खडे़ थे. अचानक उन्हें यहां पा कर सभी चौंक उठे. मुकुल ने पूछा.

‘‘विमल ने अपना जुर्म कबूल लिया क्या सर?’’

‘‘उसी सिलसिले में बात करने आया हूं.’’ राघव ने मुसकराते हुए कहा. मुकुल के पिता ने एक प्लेट उन की ओर बढ़ाई, ‘‘जी जरूर, लीजिए मुंह मीठा कीजिए आप भी.’’

‘‘धन्यवाद,’’ राघव ने विनम्रता से मना कर दिया और बोले.

‘‘देखिए मुकुलजी, मैं ने बहुत कोशिश की लेकिन विमल ने अपना जुर्म कबूल नहीं किया.’’

‘‘तो अब क्या होगा?’’ मुकुल के चेहरे पर दुविधा के भाव साफ दिखने लगे. राघव आगे बोले, ‘‘होगा वही जो होना है. मैं ने अभीअभी अपनी साली की भेजी हुई एक वीडियो सेल्फी देखी, संयोगवश ये उसी दिन की है, जिस दिन नव्या का खून हुआ था.’’

‘‘तो? उस से इस केस का क्या लेना?’’ इस बार मुकुल की मां बोल पड़ी.

‘‘जी वही बता रहा हूं.’’ राघव ने कहा, ‘‘वो सेल्फी उस ने अपने पुरुष दोस्त के साथ मल्लिका स्टोर के सामने खड़ी हो कर बनाई थी और मजे की बात ये कि पीछे का एक बेहद जरूरी दृश्य उस में अनायास ही कैद हो गया.’’

‘‘कैसा दृश्य?’’ मुकुल ने पूछा.

‘‘सुनिए तो…’’ राघव ने फिर कहा, ‘‘मेरी तब तक की पूरी जांच के अनुसार ये समय वही था जब नव्या औफिस से घर लौट रही थी और विमल उस की गाड़ी से उतर चुका था. एक आदमी ने मल्लिका स्टोर के सामने नव्या की कार रुकवाई और उस में बैठ गया. कहने की जरूरत नहीं कि उसी आदमी का संग नव्या के लिए कातिल साबित हुआ.’’

‘‘कौन था वो आदमी?’’ मुकुल को देखने आए लड़की के पिता ने उत्सुकता से पूछा.

मिल गया हत्यारा, जिस ने बलात्कार भी कराया ‘‘वो आदमी…’’ राघव के इतना कहते कहते मुकुल बिजली की तेजी से उठा और दरवाजे की ओर भागा. राघव चिल्लाए, ‘‘पकड़ो इस को जल्दी.’’

सिपाहियों ने मुकुल को दबोच लिया. वो छटपटाने लगा. सब लोग हैरान थे. मुकुल खुद को छुड़ाने की कोशिश कर रहा था लेकिन राघव के जोरदार पुलिसिया थप्पड़ ने उसे दिन में तारे दिखा दिए. वह सोफे पर गिर पड़ा और सिसकते हुए कहने लगा, ‘‘हां, मैं ने उस शाम मोटरसाइकिल से नव्या का पीछा किया क्योंकि वो अगले दिन वकील को बुला कर मुझ पर तलाक के लिए दबाव डलवाने वाली थी. इसी कारण उस ने औफिस से भी छुट्टी ले ली थी.’’

सभी हैरानी से उस की बातें सुन रहे थे. वो कहता गया, ‘‘हालांकि मैं ने सोचा था कि एक बार फिर प्यार से उसे समझाऊंगा, लेकिन जब मैं ने उसे विमल के साथ संबंध बनाते देख लिया तो मेरा शक यकीन में बदल गया. मैं ने उस से पहले ही मल्लिका स्टोर के सामने पहुंच उस की कार रुकवाई और कहा कि मेरी बाइक खराब हो गई है. उस ने अनमने भाव से मुझे अंदर बिठाया. जब वो कुछ सामान लेने उतरी तो इसी बीच मैं ने अपने साथ लाई नींद की गोलियां उस की कोल्डड्रिंक की बोतल में मिला दीं, जो उस ने विमल के साथ आधी ही पी थी.’’

‘‘लेकिन उस के साथ सामूहिक बलात्कार किन से कराया तुम ने?’’ राघव को अभी तक इस सवाल का उत्तर नहीं मिल सका था. मुकुल बोला, ‘‘मैं अपने घरेलू तनाव में डूबा एक दिन उसी जंगल में बैठा था. मैं ने देखा कि कुछ नशेड़ी वहां गप्पें मारते हैं, वे रोज वहां उसी जगह आते. मैं ने उस शाम नव्या के बेहोश जिस्म को वहीं रख दिया और उन का इंतजार करने लगा. जब वे वहां आए तो मैं ने पत्थर मार के उन का ध्यान नव्या की ओर दिला दिया, वे नशे की हालत में उस पर टूट पडे़…’’

‘‘और तुम ने सोचा कि ये मामला बलात्कार और हत्या का मान लिया जाएगा.’’ राघव ने उसे बीच में ही टोकते हुए कहा, ‘‘तभी मैं कहूं कि ऐसा हत्या का केस मैं ने पहले कभी कैसे नहीं देखा. वे नशेड़ी बलात्कार कर वहां से भाग गए और दुबारा नहीं लौटे. वैसे हम उन को भी ढूंढ निकालेंगे. मानता हूं कि नव्या ने तुम्हारे साथ गलत किया लेकिन हत्या तो हत्या है. तुम्हें सजा मिलेगी ही.’’

राघव के चेहरे पर विश्वास साफ झलक रहा था. वे मुकुल को गिरफ्तार कर वहां से चल पड़े.

उल्टी पड़ी चाल : कैसे सामने आई काजी वहीद की हकीकत – भाग 4

‘‘क्या आप की बेटी और फुरकान की लव मैरिज है?’’

‘‘जी हां.’’ उस ने धीरे से कहा.

‘‘क्या आप ने फुरकान के मांबाप को खबर की?’’

‘‘जी हां, उन्हें खबर मिल गई है, पर उन का कहना है कि जब फुरकान ने घर छोड़ा था तभी वह हमारे लिए मर गया था. हमारा उस से कोई ताल्लुक नहीं है.’’ बाद में अली मुराद मुझे फुरकान, असमत और वहीद काजी के बारे में तफसील से बताता रहा. उस का खुलासा यह था.

फुरकान ने यूनिवर्सिटी से कौमर्स में मार्स्ट्स किया था और बैकिंग लाइन जौइन कर ली थी. उस का बाप भी बैंक से रिटायर हुआ था. फुरकान का एक भाई और एक बहन और थे. फुरकान की मुलाकात असमत से अली मुराद के घर पर हुई थी. वह असमत की बड़ी बहन नादिया के साथ पढ़ता था. पहली मुलाकात में ही दोनों के बीच मोहब्बत की नींव पड़ गई थी.

जब यह बात फुरकान के मांबाप को मालूम हुई तो वे बहुत नाराज हुए. फुरकान की मां उस की शादी अपनी भतीजी से करना चाहती थी. काफी दिन तक इस बात पर बहस चलती रही. नतीजा यह निकला कि उस के मांबाप ने उस से कह दिया, ‘‘यह शादी हमारे घर में नहीं होगी. अगर तुम्हें शादी करनी है तो हमारे घर से निकल जाओ.’’

यह सारी बातें फुरकान ने अली मुराद को बताईं. फिर एक प्लान के तहत अली मुराद ने फुरकान को अस्पताल के आईसीयू में भर्ती करवा दिया और मांबाप को इमोशनली ब्लैकमेल कर के यह शादी अंजाम तक पहुंचाई. पर लाख कोशिश के बाद भी वो अपने घर में 3 महीने ही रह सका.

जाते समय उस के बाप ने कहा, ‘‘तुम मेरी औलाद हो पर तुम ने हमारा मान नहीं रखा. याद रखना इस घर के दरवाजे तुम्हारे लिए हमेशा खुले रहेंगे पर तुम्हारी बीवी के लिए नहीं.’’

इस के बाद मायूस फुरकान बीवी को ले कर अली मुराद के घर पहुंचा और सारा माजरा कह सुनाया. अली मुराद ने कहा, ‘‘अल्लाह ने मुझे 2 बेटियां दी हैं. उन की मां पहले ही मर चुकी है. मैं तन्हा रहता हूं. तुम लोग मेरे साथ रह सकते हो.’’ फुरकान के पास कोई और रास्ता नहीं था. वह वहीं रहने लगा. अली मुराद ने उस पर घर दामाद बनने का दबाव नहीं डाला.

काजी वहीद सिर्फ नाम से काजी था, धंधा वह प्रौपर्टी डीलिंग का करता था. फुरकान ने उसे अपनी जरूरत के बारे में बताया और एक छोटे से फ्लैट की मांग की. काजी ने कहा, ‘‘छोटा फ्लैट तो नहीं है. क्या तुम किसी फैमिली के साथ रह सकते हो? सौ गज के एक घर में आप की ही तरह एक छोटी फैमिली और रहती है. उन के पास एक कमरा खाली है. तुम उन के साथ शेयर कर सकते हो. खर्च कम होगा और तन्हाई भी नहीं रहेगी.’’

जवाब में फुरकान ने कहा, ‘‘आइडिया तो अच्छा है, पर वो फैमिली किस की है?’’ इस पर काजी वहीद हंसते हुए बोला, ‘‘वो फैमिली हमारी ही है. हम मियांबीवी हैं, हमारे बच्चे नहीं हैं. क्योंकि मेरी बीवी बांझ है.’’

‘‘आप ने दूसरी शादी के बारे में नहीं सोचा?’’

‘‘मेरी बीवी ने तो कई बार कहा पर मेरे दिल ने ऐसा जुल्म करने की इजाजत नहीं दी. अब तो हमारी शादी को 25 साल गुजर चुके हैं.’’

फुरकान काजी की बात से प्रभावित हुआ और वह उस के साथ रहने लगा. काजी की बीवी अकसर बीमार रहती थी, इसलिए बहुत कम खाना पकाती थी. ज्यादातर खाना होटल से आता था. फुरकान और असमत के आने से  उन को भी खाने का आराम हो गया. 3 माह में आपस में इतने घुलमिल गए कि हर कोई उन्हें एक ही फैमिली का मेंबर समझता था.

फिर काजी ने फुरकान से कहा, ‘‘अगले कुछ दिनों में अगर कोई अपना घर बना ले तो बहुत फायदे में रहेगा. फुरकान तुम क्यों नहीं कोशिश करते, बहुत फायदा रहेगा.’’ फुरकान ने बेबसी से कहा, ‘‘काजी साहब, 2-4 लाख मेरे लिए सोचना भी नामुमकिन है.’’

काफी देर बहस के बाद काजी ने कहा, ‘‘अगर तुम 50-60 हजार का बंदोबस्त कर दो तो बाकी मैं मिला दूंगा. मेरी ऊपर की छत पर 2 कमरे बन जाएंगे. फिर तुम ऊपर शिफ्ट हो जाना. बाद में किसी अच्छे वकील की मदद से ऊपर की मंजिल तुम्हारे नाम कर दी जाएगी.’’

फुरकान ने सोचते हुए कहा, ‘‘कमरे के लिए मैं खर्च करूंगा पर छत तो आप की होगी.’’ इस पर काजी ने आंखों में आंसू भर के कहा, ‘‘फुरकान, मैं तुम्हें अपना बेटा समझता हूं और असमत को बेटी. मैं अपने बेटे से छत के पैसे कैसे ले सकता हूं. बस तुम लोग मांबाप की तरह हमारा खयाल रखना. इस के लिए कोई एग्रीमेंट नहीं होगा. बस जुबानी मुहायदा होगा.’’

‘‘पर मैं आप को रकम एक साथ नहीं दे सकता.’’

दरअसल, फुरकान बैंक से लोन लेना चाहता था. पर पहले ही वह बाइक के लिए लोन ले चुका था. जिस की एक किस्त बाकी थी. वह सोच रहा था कि यह किस्त पूरी होने के बाद नया लोन ले कर काजी को दे देगा और फिर ऊपर की मंजिल पर 2 कमरे बन जाएंगे. उस के दिल में भी लालच आ गया था कि एक लाख में उस के सिर पर छत आ जाएगी.

उस ने काजी से कहा, ‘‘मैं 2 महीने में आप को 75 हजार दे सकता हूं.’’ काजी ने सोचते हुए कहा, ‘‘मगर 2 माह के अंदर तो बिल्डिंग मैटेरियल के दाम बहुत ऊपर चढ़ जाएंगे. सरिया, सीमेंट रेत के दाम डबल हो जाएंगे. खैर, चलो तुम्हारे लिए मैं अपनी पहचान के सप्लायर्स से सामान अभी बुक कर लेता हूं. पैसे 2 माह बाद माल उठाने पर देंगे.’’

दोनों के बीच में सारे मामलात जुबानी तय हो गए. क्योंकि फुरकान के दिल में काजी के लिए बाप जैसी मोहब्बत थी. अप्रैल में यह मामला तय हुआ. जून के पहले हफ्ते में फुरकान ने बैंक से एक लाख का कर्जा उठाया. 75 हजार उस ने वहीद काजी को दे दिए, बाकी के 25 हजार घर की मेंटनेंस और लकड़ी के काम पर लगा दिए. इस तरह एक लाख में घर बन गया. जुलाई में वो लोग ऊपर के हिस्से में शिफ्ट हो गए.

मियांबीवी जीजान से काजी और उस की बीवी की खिदमत करते, खाना खिलाते और खुश रहते. 2-3 महीने बड़े आराम से गुजरे. वक्त गुजरता रहा. 8-10 महीने बाद काजी जो फुरकान के लिए एक फरिश्ता था, शैतान के रूप में सामने आ गया. अपनी मक्कारी और चालाकी से पहले उस ने फुरकान को घर से बेदखल किया और फिर अपनी बीवी के कत्ल के इलजाम में फंसा दिया.

रिमांड की मुद्दत पूरी होने के बाद पुलिस ने अदालत में चालान पेश कर दिया. मैं ने फुरकान के वकील की हैसियत से अपना वकालतनामा अदालत में पेश कर दिया. मैं ने अपने मुवक्किल के पक्ष में जमानत की अपील करते हुए कहा, ‘‘जनाब, मेरा मुवक्किल एक शरीफ और सीधा सच्चा इंसान है. वह काजी की मक्कारी को समझ नहीं सका और उस की मीठीमीठी बातों के झांसे में आ गया.