अधूरी मौत-भाग 4 : क्यों अपने ही पति की खूनी बन गई शीतल

शीतल की तीक्ष्ण बुद्धि यह समझ गई की वीर दोस्ती के नाम पर धोखा दे रहा है. और हो न हो, यह वही शख्स है जो उसे रातों में डरा रहा है. यह मुझे डरा कर सारा पैसा हड़पना चाहता है. मैं ऐसा नहीं होने दूंगी और इसे रंगेहाथों पुलिस को पकड़वाऊंगी.

रोजाना की तरह आज भी लगभग 8 बजे शाम को वह क्लब जाने के लिए निकली. आज शीतल बेफिक्र थी, क्योंकि उसे पता चल चुका था कि पिछले दिनों हो रही घटनाओं के पीछे किस का हाथ है. अब उस का डर निकल चुका था. उस ने वीर को सबक सिखाने की योजना पर भी काम चालू कर दिया था.

बंगले की गली से निकल कर जैसे ही वह मुख्य सड़क पर आने को हुई तो कार की हैडलाइट सामने खड़े बाइक सवार पर पड़ी. उस बाइक सवार की शक्ल हूबहू अनल के जैसी थी.

अनल…अनल कैसे हो सकता है. ओहो तो वीर ने उसे डराने के लिए यहां तक रच डाला कि अनल का हमशक्ल रास्ते में खड़ा कर दिया. अपने आप से बात करते हुए शीतल बोली,  ‘‘हद है कमीनेपन की.’’

‘‘जी मैडम, कुछ बोला आप ने?’’ ड्राइवर ने पूछा.

‘‘नहीं कुछ नहीं. चलते रहो.’’ शीतल बोली.

‘‘मैडम, मैं कल की छुट्टी लूंगा.’’ ड्राइवर बोला.

‘‘क्यों?’’ शीतल ने पूछा.

‘‘मेरी पत्नी को झाड़फूंक करवाने ले जाना है.’’ ड्राइवर बोला, ‘‘उस पर ऊपर की हवा का असर है.’’

‘‘अरे भूतप्रेत, चुड़ैल वगैरह कुछ नहीं होता. फालतू पैसा मत बरबाद करो.’’ शीतल ने सीख दी.

‘‘नहीं मैडम, अगर मरने वाले की कोई इच्छा अधूरी रह जाए तो वह इच्छापूर्ति के लिए भटकती रहती है. उसे भी मुक्त करा दिया जाना चाहिए.’’ ड्राइवर बोला.

‘‘अधूरी इच्छा?’’ बोलने के साथ ही शीतल को याद आया कि अनल की मौत भी तो एक अधूरी इच्छा के साथ हुई है. तो अभी जो दिखाई पड़ा, वह अनल ही था? अनल ही साए के माध्यम से उसे अपने पास बुला रहा था? उस के प्राइवेट नंबर पर काल कर रहा था? पिछले 12 घंटों से जीने की हिम्मत बटोरने वाली शीतल पर एक बार फिर डर का साया छाने लगा था.

क्लब की किसी भी एक्टिविटी में उस का दिल नहीं लगा. आज वह इस डर से क्लब से जल्दी निकल गई कि दिखाई देने वाला व्यक्ति कहीं सचमुच अनल तो नहीं. अभी कार क्लब के गेट के बाहर निकली ही थी कि शीतल की नजर एक बार फिर बाइक पर बैठे अनल पर पड़ी, जो उसे बायबाय करते हुए जा रहा था. लेकिन इस बार उस ने रंगीन नहीं एकदम सफेद कपड़े पहने थे.

‘‘ड्राइवर उस बाइक का पीछा करो.’’ पसीने में नहाई शीतल बोली. उस की आवाज अटक रही थी घबराहट के मारे.

‘‘बाइक? कौन सी बाइक मैडम?’’ ड्राइवर ने पूछा.

‘‘अरे, वही बाइक जो वह सफेद कपड़े पहने आदमी चला रहा है.’’ शीतल कुछ साहस बटोर कर बोली.

‘‘मैडम मुझे न तो कोई बाइक दिखाई पड़ रही है, न कोई इस तरह का आदमी. और जिस तरफ आप जाने का बोल रही हैं, वह रास्ता तो श्मशान की तरफ जाता है. आप तो जानती ही हैं, मैं अपने घर में इस तरह की एक परेशानी से जूझ रहा हूं. इसीलिए इस वक्त इतनी रात को मैं उधर जाने की हिम्मत नहीं कर सकता.’’ ड्राइवर ने जवाब दिया.

अब शीतल का डर और भी अधिक बढ़ गया. वह समझ चुकी थी, उसे जो दिखाई दे रहा है वह अनल का साया ही है. अब उसे ऐसा लग रहा था जैसे वह पंक्तियों की आवाज भी अनल की ही थी. क्या चाहता है अनल का साया उस से?

शीतल अभी यह सब सोच ही रही थी कि कार बंगले के उस मोड़ पर आ गई, जहां उस ने जाते समय अनल को बाइक पर देखा था. उस ने गौर से देखा उस मोड़ पर अभी भी एक बाइक पर कोई खड़ा है. अबकी बार कार की हैडलाइट सीधे खड़े हुए आदमी के चेहरे पर पड़ी.

उसे देख कर शीतल का चेहरा पीला पड़ गया. उसे लगा जैसे उस का खून पानी हो गया है, शरीर ठंडा पड़ गया है. वह अनल ही था. वही सफेद कपड़े पहने हुए था.

‘‘देखो भैया, उस मोड़ पर बाइक पर एक आदमी खड़ा है सफेद कपड़े पहन कर.’’ डर से कांपती हुई शीतल बोली.

‘‘नहीं मैडम, जिसे आप सफेद कपड़ों में आदमी बता रहीं हैं वो वास्तव में एक बाइक वाली कंपनी के विज्ञापन का साइन बोर्ड है जो आज ही लगा है.’’ ड्राइवर ने कहा और गाड़ी बंगले की तरफ मोड़ दी.

ड्राइवर की बात सुन कर फुल स्पीड में चल रहे एयर कंडीशन के बावजूद शीतल को इतना पसीना आया कि उस के पैरों में कस कर बंधी सैंडल में से उस के पंजे फिसलने लगे, कदम लड़खड़ाने लगे.

वह लड़खड़ाते कदमों से ड्राइवर के सहारे बंगले में दाखिल हुई. और ड्राइंगरूम के सोफे  पर बैठ गई. वह सोच ही रही थी कि अपने बैडरूम में जाए या नहीं. तभी शीतल अचानक बजी डोरबेल की आवाज से डर गई. किसी अनहोनी की आशंका से पसीनेपसीने होने लगी.

शीतल उठ कर बाहर जाना नहीं चाहती थी. वह ड्राइंगरूम की खिड़की से देखने लगी.

चौकीदार ने मेन गेट पर बने स्लाइडिंग विंडो से देखने की कोशिश की, मगर उसे कोई दिखाई नहीं दिया. अत: वह छोटा गेट खोल कर बाहर देखने लगा. ज्यों ही उस ने गेट खोला शीतल को सामने के लैंपपोस्ट के नीचे खड़ा अनल दिखाई दिया. इस बार उस ने काले रंग के कपड़े पहने हुए थे और वह दोनों बाहें फैलाए हुए था. चौकीदार उसे देखे बिना ही सड़क पर अपनी लाठी फटकारने लगा और जोरों से विसलिंग करने लगा.

इस का मतलब था कि चौकीदार को अनल दिखाई नहीं पड़ा. इसीलिए वह उस से बात न कर के जमीन पर लाठी फटकार कर अपनी ड्यूटी की खानापूर्ति कर रहा था.

शीतल सोचने लगी उस दिन अगर उस की इच्छापूर्ति कर देती तो शायद अनल इस रूप में नहीं आता और उसे इस तरह डर कर नहीं रहना पड़ता. कल ड्राइवर के साथ वह भी उस झाड़फूंक करने वाले ओझा के पास जाएगी. पुलिस से शिकायत करने से कुछ नहीं होगा.

शीतल अभी पूरी तरह से निर्णय ले भी नहीं पाई थी कि मोबाइल पर आई काल की रिंग से डर कर वह दोहरी हो गई. उस के हाथपैर कांपने लगे. वह जानती थी कि इस समय फोन करने वाला कौन होगा.

उस ने हिम्मत कर के मोबाइल की स्क्रीन पर देखा. इस बार किसी का नंबर डिसप्ले हो रहा था. नंबर अनजाना जरूर था, मगर यह नंबर उस के लिए एक प्रमाण बन सकता है. यही सोच कर उस ने फोन उठा लिया. उसे विश्वास था कि उसे फिर वही पंक्तियां सुनने को मिलेंगी.

लेकिन उस का अनुमान गलत निकला.

‘‘हैलो शीतू?’’ उधर से आवाज आई.

‘‘क..क..कौन हो तुम?’’ शीतल बहुत हिम्मत कर के अपनी घबराहट पर नियंत्रण रखते हुए बोली.

‘‘तुम्हें शीतू कौन बुला सकता है. कमाल हो गया, तुम अपने पति की आवाज तक नहीं पहचान पा रही हो. अरे भई, मैं तुम्हारा पति अनल बोल रहा हूं.’’ उधर से आवाज आई.

‘‘तु..तु…तुम तो मर गए थे न?’’ शीतल ने हकलाते हुए पूछा.

‘‘हां, मगर मेरी वह अधूरी मौत थी, इट वाज जस्ट ऐन इनकंपलीट डेथ. क्योंकि मैं अपनी एक अधूरी इच्छा के साथ मर गया था. इस कारण मुझे तुम से मिलने वापस आना पड़ा.’’ अनल बोला.

‘‘तुम अपनी इच्छापूर्ति के लिए सीधे घर पर भी आ सकते थे. मुझे इस तरह परेशान करने की क्या जरूरत है?’’ शीतल सहमे हुए स्वर में बोली.

‘‘देखो शीतू, मैं अब आत्मा बन चुका हूं और आत्मा कभी भी उस जगह पर नहीं जाती, जहां पर भगवान रहते हैं. पिताजी ने बंगला बनवाते समय हर कमरे में भगवान की एकएक मूर्ति लगाई थी. यही मूर्तियां मुझे तुम से मिलने से रोकती हैं. लेकिन मैं तुम से आखिरी बार मिल कर जाना चाहता हूं. बस मेरी आखिरी इच्छा पूरी कर दो.’’ उधर से अनल अनुरोध करता हुआ बोला.

‘‘मगर एक आत्मा और शरीर का मिलन कैसे होगा?’’ शीतल ने पूछा.

‘‘मैं एक शरीर धारण करूंगा, जो सिर्फ तुम को दिखाई देगा और किसी को नहीं. जैसे आज ड्राइवर व चौकीदार को दिखाई नहीं दिया.’’ अनल ने जवाब दिया.

‘‘ठीक है, बताओ कहां मिलना है?’’ शीतल ने पूछा, ‘‘मैं भी इस डरडर के जीने वाली जिंदगी से परेशान हो गई हूं.’’ शीतल ने कहा.

‘‘शहर के बाहर सुनसान पहाड़ी पर जो टीला है, उसी पर मिलते हैं, आखिरी बार.’’ अनल बोला,  ‘‘दोपहर 12 बजे.’’

‘‘ठीक है मैं आती हूं.’’ शीतल बोली.

अधूरी मौत-भाग 3 : क्यों अपने ही पति की खूनी बन गई शीतल

शीतल की जिंदगी में बदलाव अब स्पष्ट दिखाई देने लगा था. एक दिन शीतल क्लब से रात 12 बजे लौटी. कार से उतरते हुए उसे घर की दूसरी मंजिल पर किसी के खड़े होने का अहसास हुआ.

उस ने ध्यान से देखने की कोशिश की मगर धुंधले चेहरे के कारण कुछ समझ में नहीं आ रहा था. आश्चर्य की बात यह थी कि जिस गैलरी में वह शख्स खड़ा था, वह उस के ही बैडरूम की गैलरी थी. और वह ऊपर खड़ा हो कर बाहें फैलाए शीतल को अपनी तरफ आने का इशारा कर रहा था.

शीतल अपने बैडरूम की तरफ भागी, मगर वह बाहर से उसी प्रकार बंद था जैसे वह कर के गई थी. दरवाजा बाहर से बंद होने के बावजूद कोई अंदर कैसे जा सकता है, यह सोच कर वह गैलरी की तरफ गई. गैलरी की तरफ जाने वाला दरवाजा भी अंदर से लौक था.

शीतल ने सोचा शायद कोई चोर होगा, अत: वह सुरक्षा के नजरिए से अपने साथ बैडरूम में रखी अनल की रिवौल्वर ले कर गैलरी में गई. मगर वहां कोई नहीं था. शीतल को अपनी आंखों पर भरोसा नहीं हो रहा था.

उस ने चौकीदार को आवाज दी. चौकीदार के आने पर उस ने पूछा, ‘‘ऊपर कौन आया था?’’

‘‘नहीं मैडम, ऊपर तो क्या आप के जाने के बाद बंगले में कोई नहीं आया.’’ चौकीदार ने जवाब दिया.

सुबह जैसे ही शीतल की नींद खुली, उसे रात की घटना याद आ गई.

शाम को शीतल पूरी तरह चौकन्नी थी. वह कल जैसी गलती दोहराना नहीं चाहती थी. बंगले से निकलते समय उस ने खुद अपने बैडरूम को लौक किया और चौकीदार को लगातार राउंड लेने की हिदायत दी.

रात को वह क्लब से घर लौटी, तभी उस के मोबाइल की घंटी बज उठी.

‘‘हैलो..’’

‘‘मेरे दिल ने जो मांगा मिल गया, मैं ने जो भी चाहा मिल गया…’’ दूसरी तरफ से किसी पुरुष के गुनगुनाने की आवाज आ रही थी.

‘‘कौन है?’’ शीतल ने तिलमिला कर पूछा.

जवाब में वह व्यक्ति वही गीत गुनगुनाता रहा. शीतल ने झुंझला कर फोन काट दिया और आए हुए नंबर की जांच करने लगी. मगर स्क्रीन पर नंबर डिसप्ले नहीं हो रहा था. उसे याद आया यह तो वही पंक्तियां थीं, जो वह उस हिल स्टेशन पर होटल में अनल के सामने बुदबुदा रही थी.

कौन हो सकता है यह व्यक्ति? मतलब होटल के कमरे में कहीं गुप्त कैमरा लगा था जो उस होटल में रुकने वाले जोड़ों की अंतरंग तसवीरें कैद कर उन्हें ब्लैकमेल करने के काम में लिया जाता होगा. लेकिन जब उन्हें उस की और अनल की ऐसी कोई तसवीर नहीं मिली तो इन पंक्तियों के माध्यम से उस का भावनात्मक शोषण कर ब्लैकमेल कर रुपए ऐंठना चाहते होंगे.

शीतल बैडरूम में जाने के लिए सीढि़यां चढ़ ही रही थी कि एक बार फिर से मोबाइल की घंटी बज उठी. इस बार उस ने रिकौर्ड करने की दृष्टि से फोन उठा लिया. फिर वही आवाज और फिर वही पंक्तियां. उस ने फोन काट दिया. मगर फोन काटते ही फिर घंटी बजने लगी. बैडरूम का लौक खोलने तक 4-5 बार ऐसा हुआ.

झुंझला कर शीतल ने मोबाइल ही स्विच्ड औफ कर दिया. उसे डर था कि यह फोन उसे रात भर परेशान करेगा और वह चैन से नहीं सो पाएगी.

शीतल कपड़े चेंज कर के आई और लाइट्स औफ कर के लेटी ही थी कि उस के बैडरूम में लगे लैंडलाइन फोन पर आई घंटी से वह चौंक गई. यह तो प्राइवेट नंबर है और बहुत ही चुनिंदा और नजदीकी लोगों के पास थी. क्या किसी परिचित के यहां कुछ अनहोनी हो गई. यही सोचते हुए उस ने फोन उठा लिया.

फोन उठाने पर फिर वही पंक्तियां कानों में पड़ने लगीं. शीतल बुरी तरह से घबरा गई. एसी के चलते रहने के बावजूद उस के माथे पर पसीना उभर आया. कोई उसे डिस्टर्ब न करे, इसलिए उस ने लैंडलाइन फोन का भी प्लग निकाल कर डिसकनेक्ट कर दिया.

फोन डिसकनेक्ट कर के वह मुड़ी ही थी कि उस की नजर बैडरूम की खिड़की पर लगे शीशे की तरफ गई. शीशे पर किसी पुरुष की परछाई दिख रही थी, जो कल की ही तरह बाहें फैलाए उसे अपनी तरफ बुला रहा था.

वह जोरों से चीखी और बैडरूम से निकल कर नीचे की तरफ भागी. चेहरे पर पानी के छीटें पड़ने से शीतल की आंखें खुलीं.

‘‘क्या हुआ?’’ उस ने हलके से बुदबुदाते हुए पूछा.

घर के सारे नौकर और चौकीदार शीतल को घेर कर खड़े थे और उस का सिर एक महिला की गोद में था.

‘‘शायद आप ने कोई डरावना सपना देखा और चीखते हुए नीचे आ गईं और यहां गिर कर बेहोश हो गईं.’’ चौकीदार ने बताया.

‘‘सपना…? हां शायद,’’ कुछ सोचते हुए शीतल बोली, ‘‘ऐसा करो, वह नीचे वाला गेस्टरूम खोल दो, मैं वहीं आराम करूंगी.’’

सुबह उठ कर शीतल पुलिस में शिकायत करने के बारे में सोच ही रही थी कि एक नौकर ने आ कर सूचना दी.

‘‘मैडम, वीर सर आप से मिलाना चाहते हैं.’’

‘‘वीर? अचानक? इस समय?’’ शीतल मन ही मन बुदबुदाते हुई बोली.

‘‘भाभीजी जैसा कि आप ने कहा था मैं ने इंश्योरेंस कंपनी के औफिसर्स से बात की है. चूंकि यह केस कुछ पेचीदा है फिर भी वह कुछ लेदे कर केस निपटा सकते हैं.’’ वीर ने कहा.

‘‘कितना क्या और कैसे देना पड़ेगा? हमारी तरफ से कौनकौन से पेपर्स लगेंगे?’’ शीतल ने शांत भाव से पूछा.

‘‘हमें उस हिल स्टेशन वाले थाने से पिछले तीन केस की ऐसी रिपोर्ट निकलवानी होगी, जिस में लिखा होगा कि उस खाई में गिरने के बाद उन लोगों की लाशें नहीं मिलीं.

‘‘इस काम के लिए अधिकारियों को मिलने वाली राशि का 25 परसेंट मतलब ढाई करोड़ रुपए देना होगा. यह रुपए उन्हें नगद देने होंगे. कुछ पैसा अभी पेशगी देना होगा बाकी क्लेम सेटल होने के बाद. चूंकि बात मेरे माध्यम से चल रही है अत: पेमेंट भी मेरे द्वारा ही होगा.’’ वीर ने बताया.

‘‘ढाई करोड़ऽऽ..’’ शीतल की आंखें चौड़ी हो गईं, ‘‘यह कुछ ज्यादा नहीं हो जाएगा?’’ वह बोली.

‘‘देखिए भाभीजी, अगर हम वास्तविक क्लेम पर जाएंगे तो सालों का इंतजार करना होगा. शायद कम से कम 7 साल. फिर उस के बाद कोर्ट का अप्रूवल.’’ वीर ने अपना मत रखा.

‘‘आप क्या चाहते हैं, इस डील को स्वीकार कर लिया जाए?’’ शीतल ने पूछा.

‘‘जी मेरे विचार से बुद्धिमानी इसी में है.’’ वीर बोला, ‘‘अभी हमें सिर्फ 25 लाख रुपए देने हैं. ये 25 लाख लेने के बाद इंश्योरेंस औफिस एक लेटर जारी करेगा, जिस के आधार पर हम उस हिल स्टेशन वाले थाने से पिछले 3 केस की केस हिस्ट्री लेंगे.

‘‘इस हिस्ट्री के आधार पर कंपनी हमारे क्लेम को सेटल करेगी और 10 करोड़ का चैक जारी करेगी.’’ वीर ने पूरी योजना विस्तार से समझाई.

‘‘ठीक है 1-2 दिन में सोच कर बताती हूं. 25 लाख का इंतजाम करना भी आसान नहीं होगा.’’ शीतल बोली.

‘‘अच्छा भाभीजी, मैं चलता हूं.’’ वीर उठते हुए नमस्कार की मुद्रा बना कर बोला.

मानसिक विकृति की इंतिहा

अंधेरा घिर आया था. रुखसार घर में कामकाज में लगी थी. रात 8 बजने के बाद भी जब बाहर खेलने गया उस का बेटा फैजान घर वापस नहीं आया तो उस ने बड़ी बेटी रुखसाना से कहा कि फैजान को बुला लाए, खाना खा लेगा. फैजान मध्य प्रदेश के शहर रतलाम के राजेंद्र नगर इलाके में रहने वाले मोहम्मद जफर कुरैशी का 5 साल का बेटा था.

जफर पेशे से दरजी था. उस की दुकान हाट की चौकी के पास थी. जफर के 4 से 10 साल तक की उम्र के 4 बच्चे थे. जिस में से फैजान तीसरे नंबर का था. वह रतलाम के गांधी मेमोरियल उर्दू स्कूल में केजी वन में पढ़ रहा था.

चंचल स्वभाव का फैजान स्कूल से आते ही बस्ता फेंक कर मोहल्ले के बच्चों के साथ खेलने के लिए निकल जाता था. फिर वह तब तक घर नहीं आता था, जब तक उसे कोई बुला कर न लाए.

मां के कहने पर रुखसाना फैजान को बुलाने गई लेकिन मैदान में खेल रहे बच्चों में उसे फैजान दिखाई नहीं दिया. वह घबराई हुई घर आई और अपनी अम्मी को फैजान के न मिलने की बात बता दी.

बेटी की बात सुन कर फैजान की मां रुखसार खुद उन बच्चों के पास पहुंची जो मैदान में खेल रहे थे. उस ने बच्चों से फैजान के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि फैजान तो यहां से काफी देर पहले जा चुका है. यह 13 अप्रैल, 2019 की बात है.

इतना सुनते ही वह घबरा गई. उस ने उसी समय यह जानकारी पति जफर कुरैशी को दे दी जो उस समय अपनी टेलरिंग शौप पर था. बेटे के गुम होने की जानकारी मिलते ही जफर भी घर पहुंच गया. जफर के साथसाथ मोहल्ले के कुछ लोग भी फैजान को इधरउधर खोजने लगे.

आधी रात तक फैजान का पता नहीं चला तो जफर कुरैशी अपने रितेदारों और दोस्तों के साथ हाट की पुलिस चौकी पहुंच गया. 5 वर्षीय बच्चे का लापता हो जाना गंभीर मामला था, इसलिए चौकीप्रभारी ने तत्काल इस बात की जानकारी माणक चौक थाने के टीआई रेवल सिंह बरडे को दे दी.

टीआई बरडे, एसआई दिनेश राठौर के साथ हाट की चौकी पर पहुंच गए. जफर से पूछताछ के बाद फैजान के अपहरण का मामला दर्ज कर टीआई ने टीम के साथ रात में ही उस की तलाश प्रारंभ कर दी. परंतु सुबह 8 बजे तक भी फैजान की कोई सूचना नहीं मिली.

दूसरे दिन रतलाम के एसपी गौरव तिवारी ने माणक चौक के टीआई रेवल सिंह बरडे को फैजान की खोज निकालने में तेजी लाने के निर्देश दिए. फैजान के परिवार वाले भी उस की तलाश में भटक रहे थे. पुलिस के पूछने पर जफर कुरैशी ने बता दिया था कि उस की व उस के परिवार की किसी से भी कोई दुश्मनी नहीं है.

किसी अनहोनी की आशंका को देखते हुए पुलिस आसपास के कुओं, नालों आदि को भी तलाश कर चुकी थी पर फैजान का कोई सुराग नहीं मिला. इस के बाद एसपी गौरव तिवारी ने एएसपी इंद्रजीत सिंह बाकलवार के नेतृत्व में सीएसपी मान सिंह ठाकुर, टीआई (माणक चौक) रेवल सिंह बरडे, टीआई (दीनदयाल नगर) वी.डी. जोशी, टीआई (नामली) किशोर पाटनवाल और एसआई दिनेश राठौर सहित 14 सदस्यीय एसआईटी का गठन कर उन्हें फैजान को खोजने की जिम्मेदारी सौंप दी.

इस टीम ने हाट रोड पर फैजान के घर के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली, जिस में फैजान शाम लगभग 5 बजे सड़क पर दौड़ कर एक तरफ जाता दिखाई दिया. लेकिन इस के बाद वह किसी भी कैमरे की रेंज में नहीं आया.

इस फुटेज से केवल इतना ही पता चला कि उस समय वह पास की एक दुकान पर टौफी खरीदने के लिए गया था. पुलिस ने दुकानदार से पूछताछ करने के अलावा सीसीटीवी कैमरों में कैद हुए वाहनों के नंबर के आधार पर उन के मालिकों से भी पूछताछ की लेकिन कुछ  हाथ नहीं आया. धीरेधीरे समय बीतने पर जहां लोगों का गुस्सा बढ़ता जा रहा था, वहीं फैजान के परिवार वालों का रोरो कर बुरा हाल था.

फैजान के गायब हुए 7 दिन बीत चुके थे. वह किस के साथ कहां चला गया, इस सवाल का किसी को कोई उत्तर नहीं मिल रहा था. इधर रतलाम रेंज के डीआईजी गौरव राजपूत ने भी घटनास्थल का निरीक्षण किया और एसपी से अपराधियों के खिलाफ सख्त काररवाई करने के निर्देश दिए.

टीआई रेवल सिंह बरडे ने थाना क्षेत्र के कई बदमाशों को पूछताछ के लिए उठाया. इस के अलावा उन्होंने क्षेत्र के मोबाइल टावरों के संपर्क में आए हजारों मोबाइल नंबरों की भी जांच की.

दूसरी तरफ फैजान को लापता हुए लंबा समय बीत जाने पर भी न तो उस की कोई खबर मिली और न ही किसी ने फिरौती की मांग की तो पुलिस ने अपनी जांच जफर कुरैशी के परिवार की तरफ मोड़ दी.

जफर और उस के आसपास रहने वाले लोगों की गतिविधियों पर नजर रखते हुए पुलिस उन से पूछताछ करने लगी. लेकिन फिर भी कुछ हाथ नहीं आया. जिस के चलते घटना से 8 दिन बाद मामले की कमान एसपी गौरव तिवारी ने अपने हाथ में ले ली.

नौवें दिन 22 अप्रैल, 2019 को एसपी रतलाम पूरी टीम ले कर उस इलाके में पहुंचे, जहां से फैजान गायब हुआ था. इस टीम ने हाट रोड, गौशाला रोड, तोपखाना रोड, राजेंद्र नगर, कंबल पट्टी, मदीना कालोनी और सुभाष नगर इलाके के चप्पेचप्पे में फैजान को ढूंढा.

साथ ही एक बार फिर परिवार के लोगों से पूछताछ की. अब तक लगभग डेढ़ सौ लोगों से पूछताछ की जा चुकी थी. लेकिन इस के बाद भी फैजान का पता नहीं चल पा रहा था.

घटना के 11वें दिन यानी 23 अप्रैल को पूरे मामले में चौंका देने वाला नाटकीय मोड़ आ गया. एक दिन पहले एसपी गौरव तिवारी स्वयं अपनी टीम के साथ हाट रोड के चप्पेचप्पे में फैजान की खोज कर चुके थे. मगर अगले ही दिन फैजान के घर से महज 100 कदम दूर नाले में पुलिस को एक संदिग्ध बोरा मिला.

बोरे से आ रही बदबू से पुलिस समझ गई कि बड़ा खुलासा हो सकता है. हुआ भी वही. प्लास्टिक के उस बोरे को खोल कर देखा गया तो उस के अंदर 5 साल के मासूम फैजान का सड़ा हुआ शव निकला.

फैजान के मुंह और हाथोंपैरों पर टेप चिपका था. लाश को देखने से ही लग रहा था कि फैजान की हत्या हफ्ते भर पहले की जा चुकी थी.

मामला गंभीर था, इसलिए एसपी के निर्देश पर मैडिकल कालेज से एफएसएल अधिकारी डा. एन.एस. हुसैनी और जिला एफएसएल अधिकारी डा. अतुल मित्तल भी मौके पर पहुंच गए. बारीकी से जांच करने के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी गई.

इस घटना से पुलिस के सामने एक बात तो साफ हो गई कि फैजान का हत्यारा इसी बस्ती में आसपास कहीं छिपा हुआ है. क्योंकि जिस जगह पर लाश मिली थी, एक दिन पहले वहां वह बोरी नहीं थी. लापता होते समय फैजान ने टीशर्ट और हाफ पैंट पहन रखी थी. जबकि लाश के शरीर पर टीशर्ट तो वही थी, जबकि हाफ पैंट की जगह शव को जींस पहना दी गई थी. इसलिए मामले में शक की सुई परिवार की तरफ भी मुड़ रही थी.

लेकिन जिस परिवार का मासूम इस तरह दुनिया छोड़ गया हो, उस परिवार पर सीधे शक नहीं किया जा सकता. इसलिए एसपी गौरव तिवारी ने एसआईटी को मोहल्ले में रहने वाले हर शख्स की पिछले 15 दिनों की कुंडली बनाने के निर्देश दिए.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट से साफ हो चुका था कि फैजान की मौत करीब 10 दिन पहले यानी उसी रोज हो चुकी थी, जिस रोज वह गायब हुआ था. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मासूम के साथ दुष्कर्म किए जाने की बात सामने आई थी.

मतलब साफ था कि फैजान की हत्या करने के बाद कातिल ने शव घर में ही छिपा कर रखा था, लेकिन पुलिस की सक्रियता के कारण उसे शव को ठिकाने लगाने का मौका नहीं मिल पाया था. लेकिन जब लाश से तेज बदबू आने लगी तो उसे ठिकाने लगाना कातिल की मजबूरी हो गई थी.

फैजान का शव जिस बोरी में मिला था, उस में धागों के टुकड़े मिले थे. बोरी का मुंह भी कपड़े की चिंदी से बांधा गया था. फैजान के घर में भी सिलाई का काम होता था. इस के अलावा मोहल्ले में अधिकांश घरों में टेलरिंग का काम होता था. इसलिए सुराग की तलाश में पुलिस ने करीब 200 घरों की गहनता से तलाशी ली.

पुलिस को पता चला कि फैजान के पड़ोस में रहने वाला 19 वर्षीय सोहेल अंसारी उर्फ मोनू घटना वाले दिन रतलाम में अपने घर पर ही था. 2 दिन बाद वह बहन की शादी में शामिल होने खंडवा चला गया था, जहां से वह 22 अप्रैल को वापस आया था.

उस के लौटने के अगले दिन ही 23 अप्रैल को सोहेल के घर से कुछ ही दूर नाले में फैजान का शव मिला था. इसलिए पुलिस ने सोहेल को पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया. ऐसा नहीं कि पुलिस ने सोहेल से पहले पूछताछ न की हो. घटना के ठीक बाद भी पुलिस उसे उठा कर थाने लाई थी लेकिन उस समय उस की बहन की शादी की वजह से उसे थाने से भेज दिया था.

फैजान का परिवार सोहेल पर खूब भरोसा करता था. घटना के ठीक बाद जब पुलिस मोहल्ले में घरों की तलाशी ले रही थी, तब फैजान के पिता ने खुद सोहेल के घर की तलाशी लेने से पुलिस को यह कह कर रोका था कि यह हमारे घर का ही आदमी है. अब उसी सोहेल को पुलिस ने पुख्ता शक के आधार पर हिरासत में लिया था. लेकिन सोहेल इस मामले में खुद को निर्दोष साबित करने पर तुला था.

अब तक पुलिस को इस बात की जानकारी मिल चुकी थी कि सोहेल को नशा करने के अलावा मोबाइल पर अश्लील फिल्में देखने की लत थी. फैजान के साथ भी अप्राकृतिक दुष्कृत्य की पुष्टि हुई थी. इसलिए पुलिस ने सोहेल के खून का सैंपल डीएनए जांच के लिए सागर भेज दिया. इस दौरान पुलिस ने उस के घर की तलाशी ली, उस के घर में पुलिस को वैसा ही एक प्लास्टिक का बोरा मिला, जिस तरह के बोरे में फैजान का शव नाले में पाया गया था.

30 अप्रैल, 2019 को पुलिस को डीएनए की रिपोर्ट मिल गई, जिस से साफ हो गया कि फैजान के साथ दुष्कृत्य करने वाला सोहेल ही था. पुलिस ने उस के साथ सख्ती बरती तो उस ने न केवल अपना अपराध स्वीकार कर लिया बल्कि यह भी बता दिया कि उस ने फैजान की लाश घर में छिपा कर रखी थी. लाश को छिपाते समय उसे उस की बड़ी बहन कश्मीरा ने देख लिया था.

लेकिन कश्मीरा ने यह जानकारी किसी को देने के बजाए भाई को बचाने की कोशिश की. इतना ही नहीं, 22 अप्रैल की रात में लगभग 8 बजे सोहेल ने कश्मीरा की मदद से ही फैजान की लाश नाले में फेंकी थी.

इस जानकारी के बाद पुलिस ने कश्मीरा को भी गिरफ्तार कर लिया. जिस के बाद पूरी कहानी इस प्रकार सामने आई.

रतलाम के हाट रोड पर बसी बस्ती में ज्यादातर परिवार सिलाई के काम से जुड़े हैं. जफर कुरैशी भी यही काम करता था. जफर का इसी बस्ती में घर भी है, जिस के पड़ोस में सोहेल का परिवार रहता है. सोहेल आवारा किस्म का युवक था. बताया जाता है कि उसे 12 साल की उम्र से ही नशा और सैक्स की आदत पड़ चुकी थी.

उस के मोबाइल में तमाम देशीविदेशी अश्लील फिल्में रहती थीं, जिन्हें वह देखता रहता था. कई बार वह नाबालिग लड़कियों की अश्लील फिल्म दिखाते हुए अश्लील हरकतें कर चुका था. जिन में से कुछ ने उस के घर जा कर इस की शिकायत भी की थी. जिस के चलते मोहल्ले में कुछ लोगों से विवाद भी हो चुका था.

उस ने पुलिस को बताया कि उन दिनों उस की छोटी बहन की शादी खंडवा में होने जा रही थी, जिस के चलते उस का पूरा परिवार 12 अप्रैल, 2019 को खंडवा चला गया था. सोहेल को भी साथ जाना था लेकिन वह 14 अप्रैल को दोस्तों के संग आने की बात कह कर घर पर रुक गया था.

13 अप्रैल को सोहेल ने पहले तो जी भर कर नशा किया फिर अपने फोन पर अश्लील फिल्में देखनेलगा. फिल्म देखतेदेखते वह इतना उत्तेजित हो गया कि गली में किसी लड़की की तलाश करने लगा. दुर्भाग्य से इसी बीच फैजान उसे अकेला दुकान की तरफ जाते दिखा.

फैजान को देख कर उस के दिमाग का शैतान जाग उठा. उस ने फैजान को आवाज दे कर अपने घर में बुला लिया. फैजान उसे भाईजान कह कर बुलाता था, इसलिए आसानी से उस के बुलाने पर नजदीक चला गया. उसे ले कर सोहेल अंदर गया और दरवाजा बंद कर उस से मीठीमीठी बातें करते हुए उस के कपड़े उतारने लगा.

मासूम फैजान कुछ समझ नहीं सका. लेकिन इतना तो जानता था कि इस तरह से कपड़े नहीं उतारे जाते. उस ने विरोध करना चाहा तो सोहेल ने घर में पड़े टेप से उस के हाथपैर बांध दिए. वह चिल्ला न सके, इस के लिए उस ने मुंह पर भी टेप चिपका दिया. फिर वह उस मासूम के साथ अप्राकृतिक रूप से अपनी वासना शांत करने में जुट गया.

उस दौरान सोहेल इतना पागल हो चुका था कि उस ने इस बात पर भी ध्यान नहीं दिया कि टेप से फैजान की नाक भी बंद हो गई है. इसलिए जब तक सोहेल की वासना की आग शांत हुई, मासूम फैजान की धड़कनें भी शांत हो चुकी थीं.

यह देख कर सोहेल डरा नहीं बल्कि उस ने उसी हालत में फैजान का शव उठा कर वाशिंग मशीन में डाल दिया और खुद बाहर घूमने निकल गया. इस के बाद जब मोहल्ले में फैजान के लापता होने का हल्ला हुआ तो वह भी उस के घर पहुंच गया. सब के साथ मिल कर उस ने फैजान को खोजने का नाटक किया.

दूसरे दिन बात बढ़ी तो पुलिस ने शक के आधार पर मोहल्ले के कई बदमाशों के साथ सोहेल को भी पूछताछ के लिए उठा लिया. यह खबर उस की बहन की शादी के लिए खंडवा गए उस के परिवार को पता चली तो वहां से उस की बड़ी बहन कश्मीरा रतलाम आई.

कश्मीरा घर पहुंची तो उस ने वाशिंग मशीन में रखा फैजान का शव देख लिया. लेकिन उस ने न तो इस बात की खबर पुलिस को दी और न ही किसी अन्य को. उलटे थाने जा कर छोटी बहन की शादी के नाम पर सोहेल को अपने साथ छुड़ा लाई और उसे ले कर खंडवा चली गई.

खंडवा से पूरा परिवार 22 अप्रैल को वापस रतलाम आया, जिस के बाद कश्मीरा और सोहेल ने मिल कर रात में लगभग ढाई बजे फैजान का शव बोरी में भर कर नाले में फेंक दिया. चूंकि फैजान का परिवार सोहेल पर काफी भरोसा करता था, इसलिए दोनों को विश्वास था कि पुलिस उन के ऊपर कभी शक नहीं करेगी.

लेकिन मोहल्ले में सोहेल 22 अप्रैल को वापस आया था और 23 को शव उस जगह मिला, जहां पहले ही पुलिस कई बार तलाश कर चुकी थी, इसलिए वह शक के घेरे में आ गया. बाकी का काम डीएनए रिपोर्ट के मिलान हो जाने से पुलिस को पुष्टि हो गई, जिस के बाद पुलिस ने दोनों भाईबहनों को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया.

 

सौजन्य- सत्यकथा, सितंबर 2019

डॉक्टर के सीने में डायलिसिस टेक्नीशियन की गोली

वो 3 लोग थे. तीनों में से 2 ने अपनी पहचान छिपाने के लिए चेहरों को कपड़े से ढक रखा था. तीनों करनाल के सेक्टर-16 के चौक के पास होटल येलो सफायर के पीछे वाली सुनसान सड़क पर खड़े थे. उन के पास बिना नंबर प्लेट की स्पलेंडर बाइक थी. उन्हें संभवत: किसी के आने का इंतजार था. उन की नजरें सामने से आने वाले वाहनों का जायजा ले रही थी.

उन के हावभाव देख कर ऐसा लगता था जैसे किसी बड़ी वारदात को अंजाम देने की फिराक में वहां खड़े हों. सवा 6 बजे सामने से आती हुई सफेद रंग की क्रेटा कार नंबर एचआर05ए यू4934 को देख कर तीनों चौकन्ने हो गए. तुरंत बाइक स्टार्ट कर वे तीनों धीरेधीरे कार की दिशा में बढ़ने लगे.

कार चौक की तरफ से आ रही थी. जैसे ही कार स्पीड ब्रेकर पर पहुंच कर धीमी हुई, बाइक सवारों ने अपनी बाइक कार के आगे लगा कर उसे रोक लिया और 2 लोगों ने बाइक से उतर कर कार के सामने से गोलियां चलानी शुरू कर दीं.

कार के शीशे को भेदती हुई गोलियां कार ड्राइवर के साथ वाली सीट पर बैठे व्यक्ति को लगीं. हमलावरों ने 3 गोलियां चलाने के बाद कार के बिलकुल पास जा कर 3 गोलियां और चलाईं. फिर बाइक पर सवार हो कर वहां से फरार हो गए. इस बीच कार का ड्राइवर घबरा कर अपनी जान बचाने के लिए कार से उतर कर निकल भागा था.

हमलावरों के जाने के बाद उस ने मदद के लिए चिल्लाना शुरू कर दिया. सामने से आते हुए बाइक सवार और आशीष नाम के एक कार चालक सहित कुछ लोगों ने इस वारदात को अंजाम देते हुए देखा था. कुछ लोगों की मदद से गंभीर रूप से घायल व्यक्ति को तुरंत पास के प्रसिद्ध अस्पताल अमृतधारा माई में लाया गया था.

जिस कार में फायरिंग हुई, उस में अमृतधारा माई अस्पताल के संचालक व इंडियन मैडिकल एसोसिएशन (आईएमए) की करनाल इकाई के पूर्व प्रधान 56 वर्षीय डा. राजीव गुप्ता थे. अज्ञात लोगों ने उन्हें गोलियां मार कर बुरी तरह से घायल कर दिया था. उन्हें उपचार हेतु उन्हीं के आधुनिक अस्पताल में भरती कराया गया.

डाक्टर राजीव गुप्ता शहर के नामचीन व्यक्ति थे. वह केवल करनाल में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी मशहूर थे. गरीबों का कम पैसों में इलाज करने के साथ वे कई सामाजिक संस्थाओं के चेयरपरसन भी थे. उन पर हमला होने की खबर जंगल की आग की तरह पूरे शहर में फैल गई.

तमाम लोग अमृतधारा अस्पताल की ओर दौड़े. देर रात तक अस्पताल के बाहर डाक्टरों और शहर के गणमान्य लोगों का तांता लग गया. यह घटना 6 जुलाई, 2019 शाम की है.

डाक्टर राजीव गुप्ता को करीब साढ़े 6 बजे सेक्टर-16 के चौक पर गोलियां मारी गई थीं. इस के बाद आननफानन में उन्हें उन के ही अस्पताल अमृतधारा माई ले जाया गया. पहले से ही सूचना मिल जाने के कारण अस्पताल में पूरा स्टाफ इमरजेंसी में अलर्ट था. साथ ही कई अस्पतालों के डाक्टर भी मौके पर पहुंच गए थे.

डा. गुप्ता की हालत गंभीर होने के कारण उन्हें तुरंत आईसीयू में ले जा कर वेंटीलेटर पर रखा गया. आननफानन में उन्हें बचाने के लिए डाक्टरों की टीम बनाई गई. टीम में शहर के टौप के सर्जन, एनेस्थीसिया और मैडिसन के डाक्टरों को शामिल किया गया.

मूलचंद अस्पताल के संचालक सर्जन डा. संदीप चौधरी, श्री रामचंद्र अस्पताल के डा. रोहित गोयल, मिगलानी नर्सिंगहोम के डा. ओ.पी. मिगलानी ने उन का औपरेशन किया.

इस दौरान अमृतधारा के आईसीयू के इंचार्ज डा. सामित समेत मैडिसन के डाक्टर कमल चराया और एनेस्थीसिया के डा. मक्कड़ की टीम भी मौजूद रही. बदमाशों ने डाक्टर पर 3 राउंड फायर किए थे, जिस में से 2 गोलियां उन की छाती पर लगी थीं और एक दिल के करीब.

डा. गुप्ता को बचाने के लिए डाक्टरों ने एक घंटे तक तमाम कोशिशें कीं, छाती से गोलियों को निकालने के लिए सर्जरी की गई. लेकिन तब तक डा. गुप्ता की धड़कनें रुक चुकी थीं. करीब 8 बजे उन्हें मृत घोषित कर दिया गया.

डाक्टरों का कहना था कि छाती में गोलियां लगने के कारण ब्लीडिंग ज्यादा हो गई थी. हालांकि उन्हें खून भी चढ़ाया गया, लेकिन हार्ट फेल होने के कारण उन्हें नहीं बचाया जा सका. डा. गुप्ता को बचाने के लिए जहां डाक्टरों ने पूरी कोशिश की, वहीं अस्पताल के अन्य स्टाफ ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी थी.

सूचना मिलने पर करनाल रेंज के आईजी योगेंद्र नेहरा व एसपी सुरेंद्र सिंह भौरिया, डीएसपी करनाल बलजीत सिंह, डीएसपी वीरेंदर सिंह, सीआईए स्टाफ प्रमुख दीपेंदर राणा सहित थाना सिटी करनाल के इंचार्ज इंसपेक्टर हरविंदर सिंह क्राइम टीम और एफएसएल की टीम अमृतधारा अस्पताल पहुंच गई थीं.

अस्पताल के डाक्टरों से मृत डाक्टर राजीव गुप्ता का हाल जानने के बाद सभी टीमों ने घटनास्थल पर जा कर वहां का मौकामुआयना किया. वहां से एफएसएल की टीम ने साक्ष्य जुटाए और गोलियों के खाली खोखे बरामद कर अपने कब्जे में लिए.

डा. राजीव के ड्राइवर साहिल से भी पूछताछ की गई. साहिल पिछले 8 सालों से उन के साथ बतौर असिस्टेंट और ड्राइवर का काम कर रहा था. 6 जुलाई, 2019 को साहिल से पूछताछ के बाद उसी के बयान पर डा. राजीव की हत्या का मुकदमा धारा 302 के तहत अज्ञात हत्यारों के खिलाफ दर्ज कर तुरंत काररवाई शुरू कर दी गई.

राजीव गुप्ता का घर आईटीआई चौक स्थित अमृतधारा अस्पताल परिसर में ही था. वहां पुलिस तैनात कर दी गई और अस्पताल को भी पुलिस छावनी में तब्दील कर दिया गया. डा. राजीव गुप्ता करनाल के बड़े डाक्टरों में से एक थे. उन का एक अस्पताल कर्ण गेट स्थित चौड़ा बाजार में और दूसरा आईटीआई चौक पर था.

राजीव बहुत मिलनसार व्यक्ति थे और शहर के सामाजिक कामों में सक्रिय रहते थे. इसीलिए उन की हत्या के बाद कई सवाल खड़े हो रहे थे, जबकि पुलिस के हाथ अभी तक कुछ नहीं लगा था.

अगली सुबह 8 बजे आननफानन में हरियाणा के डीजीपी मनोज यादव चंडीगढ़ से करनाल पहुंच गए. उन के कुछ देर बाद हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर खट्टर भी डाक्टर के परिवार को सांत्वना देने उन के घर पहुंचे.

डीजीपी मनोज यादव ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण करने के बाद मुख्यमंत्री और आला पुलिस अधिकारियों के साथ बैठक की. इस मीटिंग में डा. राजीव की हत्या के मामले को जल्द से जल्द सुलझाने के लिए 8 टीमें बनाने की बात तय हुई.

डा. राजीव गुप्ता के हत्यारों को पकड़ना पुलिस के लिए चुनौती बना हुआ था. वारदात के तुरंत बाद एसपी सुरेंद्र सिंह भौरिया और एएसपी मुकेश की अध्यक्षता में थाना पुलिस और सीआईए स्टाफ की 8 टीमों का गठन कर दिया गया, लेकिन हत्यारों का कोई सुराग नहीं मिलने के कारण पुलिस की जांच किसी भी दिशा में आगे नहीं बढ़ पा रही थी.

पुलिस ने पहले तो परिवार के लोगों से जानकारी ली कि उन्हें कभी किसी ने फिरौती के लिए तो फोन नहीं किया था या फिर किसी के साथ उन का झगड़ा तो नहीं हुआ था. इस बारे में परिवार के सदस्यों से कोई जानकारी नहीं मिल पाई.

इस के बाद पुलिस की एक टीम ने अस्पताल के डाक्टरों, नर्सों और कर्मचारियों से पूछताछ की. किसी मरीज ने डाक्टर के साथ झगड़ा किया हो, किसी मरीज की मौत के बाद उस के घर वालों ने झगड़ा किया हो या कोई धमकी दी हो. पर ऐसा कोई वाकया सामने नहीं आया.

इस हत्या के बाद शहर के सभी डाक्टर डरे हुए थे. अभी तक डाक्टर की हत्या के कारणों का खुलासा नहीं हुआ था. पुलिस इस मामले को फिरौती व पुरानी रंजिश से भी जोड़ कर देख रही थी.

पुलिस ने दोबारा डा. राजीव गुप्ता के ड्राइवर साहिल से गहराई से पूछताछ कर जानकारी ली. तीनों आरोपी कैसे दिखते थे?  इस पूछताछ में ड्राइवर ने बताया कि एक आरोपी सेहत में हट्टाकट्टा था और बाकी के 2 आरोपी दुबलेपतले थे.

2 लोगों ने अपने चेहरे ढंके हुए थे और बाइक चालक का चेहरा खुला था, पर वह उन्हें ठीक से देख नहीं पाया था क्योंकि गोली चलते ही वह कार से उतर कर पास वाली झुग्गियों की तरफ भाग गया था.

साहिल के इस बयान के बाद पुलिस ने आसपास के सीसीटीवी कैमरों की फुटेज निकलवाई तो एक के बाद एक तार जुड़ते चले गए. बाइक पर सवार एक व्यक्ति डा. राजीव गुप्ता के ही अस्पताल का पूर्व कर्मचारी था. पुलिस ने उस की कुंडली खंगाली तो पता चला कि वह  डायलिसिस तकनीशियन था और गांव पाढ़ा का रहने वाला था. लेकिन फिलहाल वह आर.के. पुरम में रह रहा था.

वह डा. गुप्ता के पास पिछले 10 सालों से काम कर रहा था. बाद में डा. गुप्ता ने दिसंबर, 2018 में किसी बात पर उसे अस्पताल से निकाल दिया था. दूसरी ओर पुलिस की एक टीम शहर के चौक चौराहे पर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाल रही थी.

इन फुटेज में वारदात से पहले बाइक पर सवार 3 युवकों को सेक्टर-16 में जाते देखा गया था. उस फुटेज को पुलिस ने ड्राइवर सहित अस्पताल के स्टाफ को दिखाया तो उन्होंने आरोपी पवन दहिया को पहचान लिया.

फिर क्या था. पुलिस की 8 टीमों ने ड्राइवर के बताए हुलिए से 10 घंटों में यानी सुबह पांच बजे तक पवन दहिया सहित 2 युवकों रमन उर्फ सेठी निवासी बड़ा मंगलपुर, शिवकुमार उर्फ शिबू निवासी रामनगर को गिरफ्तार कर लिया. इन तीनों को हरियाणा और उत्तर प्रदेश की सीमा के पास से गिरफ्तार किया गया.

पुलिस ने तीनों आरोपियों से वह देसी कट्टा भी बरामद कर लिया, जिस से उन्होंने डाक्टर पर गोलियां चलाई थीं. 8 जुलाई, 2019 को तीनों आरोपियों को अदालत में पेश कर उन का 7 दिनों का पुलिस रिमांड लिया गया.

रिमांड के दौरान हुई पूछताछ में डा. राजीव गुप्ता की हत्या का जो कारण सामने आया, वह था नौकरी से निकाले गए एक कर्मचारी की रंजिश. मुख्य आरोपी पवन डा. राजीव गुप्ता के पास काम करता था.

पवन डा. गुप्ता के साथ 10 साल तक बतौर डायलिसिस टेक्नीशियन के तौर पर काम कर चुका था. उस ने इस वारदात को अपने 2 साथियों के साथ मिल कर अंजाम दिया. डा. राजीव गुप्ता ने पवन को नौकरी से निकाल दिया था, जिस के बाद उसे कहीं और काम नहीं मिल रहा था. इसलिए वह डा. राजीव से रंजिश रखने लगा था.

दरअसल पवन दहिया को बचपन से ही हथियार रखने का शौक था. उस के फेसबुक पेज पर उस का जो फोटो लगा था, वह भी हथियारों के साथ था. उसे एक शौक यह भी था कि हर समय उस के साथ 3-4 चेले रहें और उस के कहे अनुसार काम करें.

पवन ने साल 2009 में असलहे का लाइसेंस बनवा कर एक रिवौल्वर खरीदा था. तभी से उस के रंगढंग बदल से गए थे. वह दुबलापतला इंसान था. लेकिन रिवौल्वर की धाक जमाने के लिए उस ने जिम जौइन किया और अपनी सेहत बना कर हट्टाकट्टा जवान बन गया.

अब वह हर समय रिवौल्वर अपने पास रखता था और लोगों पर धौंस जमाता था. यहां तक कि वह अस्पताल भी अपनी रिवौल्वर के साथ आता था. उस के यारदोस्त भी किसी पर रौब जमाने के लिए उसे साथ ले जाने लगे थे. इसी वजह से वह कभी भी समय पर अस्पताल नहीं पहुंचता था. मरीज उस का घंटों बैठ कर इंतजार करते और थकहार कर वापस लौट जाते.

डा. राजीव को जब पवन की इस हरकत का पता चला तो उन्होंने अस्पताल का मालिक और बड़ा होने के नाते पवन को समझाया. एक बार नहीं, बारबार समझाया. उसे मौखिक और लिखित चेतावनियां दी गईं. पर पवन अपनी हरकतों से बाज नहीं आया.

अपने अस्पताल की प्रतिष्ठा को देखते हुए राजीव गुप्ता ने पवन को दिसंबर 2018 में नौकरी से निकाल दिया था. नौकरी से निकाले जाने के बाद वह जहां भी नौकरी मांगने जाता, उसे नौकरी नहीं मिलती थी. धीरेधीरे पवन के दिमाग में यह बात घर करने लगी थी कि डा. राजीव ही दूसरे डाक्टरों को उसे नौकरी देने से मना करता होगा. वह डा. राजीव से रंजिश रखने लगा और उन से बदला लेने की फिराक में रहने लगा.

अमृतधारा अस्पताल के संचालक व आईएमए के पूर्व प्रधान डा. राजीव गुप्ता की हत्या को अंजाम देने के लिए पवन दहिया ने अपने लाइसैंसी रिवौल्वर का इस्तेमाल नहीं किया था, बल्कि उस ने उत्तर प्रदेश से 50 हजार रुपए में देसी पिस्तौल खरीदा था.

इस के बाद उस ने अपने दोस्त शिव कुमार और रमन निवासी मंगलपुर को पैसे का लालच दे कर डाक्टर की हत्या करने के लिए तैयार कर लिया. पवन ने दोनों को कहा कि वह उस के साथ मिल कर एक काम करेंगे तो मोटा पैसा आएगा, जो भी पैसा मिलेगा उसे आपस में बांट लेंगे.

रिमांड के दौरान पवन ने बताया कि उसे हुक्का पीने का शौक है. वह घर के बाहर ही मजमा लगा कर दोस्तों के साथ हुक्का पीता था. मंगलपुर निवासी शिव कुमार और रमन भी इसी हुक्के के कारण उस के दोस्त बने थे.

पवन ने उन्हें अपना चेला बना लिया था. वे उस के कहे अनुसार काम करते थे. पूछताछ में रमन और शिव कुमार ने बताया कि उन के पास रोजगार नहीं था, कुछ ही दिनों में पवन ने अच्छा पैसा कमा लिया था, इसलिए वे उस के साथ जुड़ गए ताकि पैसा कमाया जा सके.

डा. राजीव गुप्ता की हत्या के समय शिव कुमार बाइक चला रहा था, जबकि उस के पीछे रमन बैठा था और सब से पीछे मुंह ढके पवन दहिया बैठा हुआ था. शाम 5 बज कर 5 मिनट पर तीनों बदमाश बाइक से जाते हुए आईटीआई चौक के कैमरे में कैद हुए थे.

डा. गुप्ता नमस्ते चौक के पास से होते हुए जब होटल येलो सफायर, सेक्टर-16 से अमृतधारा अस्पताल की ओर जा रहे थे, तभी बदमाशों ने सेक्टर-16 के चौक के पास ब्रेकर पर बाइक खड़ी कर दी थी और डाक्टर के वापस आने का इंतजार करने लगे थे.

जब डा. राजीव वापस आए तो ब्रेकर पर गाड़ी धीमी होते ही पवन ने फायरिंग शुरू कर दीं. डाक्टर गुप्ता ड्राइवर साहिल के साथ अगली सीट पर बैठे हुए थे. एक के बाद एक बदमाशों ने शीशे पर 3 गोलियां दागीं, जो डाक्टर गुप्ता के हाथों पर लगीं.

इस के बाद पवन ने साइड के आधे खुले शीशे के पास जा कर डाक्टर की छाती पर 3 गोलियां दाग दीं. डाक्टर की हत्या करने के बाद तीनों आरोपी पहले पवन के घर गए. वहां से पवन ने अपनी स्विफ्ट कार ली और फिर वे उसी में सवार हो कर उत्तर प्रदेश भाग रहे थे. इस दौरान पुलिस को इस बात की भनक लग गई थी. सुबह 5 बजे ही पुलिस ने तीनों आरोपियों को उत्तर प्रदेश-हरियाणा सीमा पर गिरफ्तार कर लिया.

जिस बाइक पर सवार हो कर इन तीनों आरोपियों ने वारदात को अंजाम दिया था, वह बाइक शिवकुमार की थी. इस बाइक की नंबर प्लेट आरोपियों ने उतार दी थी ताकि कोई नंबर नोट ना कर सके. जिसे रिमांड के दौरान पुलिस ने बरामद कर लिया. इस पूरी वारदात को बदले की भावना से अंजाम दिया गया था.

7 जुलाई को शाम साढ़े 5 बजे जुंडला गेट स्थित शिवपुरी के श्मशानघाट में डा. राजीव गुप्ता का अंतिम संस्कार किया गया.

रिमांड की समाप्ति के बाद तीनों आरोपियों को अदालत में पेश कर जिला जेल भेजा गया. पवन दहिया इतना चालाक था कि डाक्टर राजीव गुप्ता की हत्या करने के बाद उस ने यह खबर रात 9 बजे बड़े दुख के साथ अपने फेसबुक पेज पर पोस्ट की थी ताकि कोई उस पर संदेह ना करे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य- सत्यकथा, सितंबर 2019

पेसमेकर ने खोला राज

घटना मध्य प्रदेश के सागर जिले के थाना बंडा की है. 30 जनवरी, 2019 की बात है. जिला कलेक्टर प्रीति मैथिल नायक पहली बार बंडा आई थीं, जिस की वजह से स्थानीय प्रशासन उन के साथ था. बंडा थाने के टीआई सतीश सिंह भी उन के साथ थे.

दोपहर करीब एक बजे अचानक टीआई के मोबाइल फोन की घंटी बजी. उन्होंने देखा तो वह फोन नंबर गांव के चौकीदार का था. चौकीदार ने टीआई को बताया कि गोराखुर्द गांव की पहाड़ी पर किसी की लाश पड़ी है.

हत्या की खबर सुनते ही सतीश सिंह चौंक गए. मामला हत्या का था इसलिए उन का मौके पर पहुंचना जरूरी था. सूचना से वहां मौजूद एसडीपीओ को अवगत कराने के बाद वह पुलिस टीम के साथ चौकीदार द्वारा बताई गई जगह के लिए रवाना हो गए. टीआई ने इस की सूचना एसपी साहब को भी दे दी थी.

करीब 30 मिनट में टीआई सतीश सिंह घटनास्थल पर पहुंच गए. वहां एक युवक की लाश औंधे मुंह झाडि़यों में पड़ी थी. देखने में लाश 3-4 दिन पुरानी लग रही थी. उस के शरीर पर पैंटशर्ट के अलावा एक स्वेटर था. पुलिस ने वहां मौजूद लोगों से मृतक की पहचान करानी चाही, लेकिन कोई भी उसे नहीं पहचान पाया, जिस से यह बात साफ हो गई कि मृतक उस क्षेत्र का नहीं है.

मृतक के कपड़ों से भी उस की पहचान की कोई चीज नहीं मिली थी. पुलिस ने घटनास्थल की काररवाई पूरी करने के बाद शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. हत्या का राजफाश करने से पहले मृतक की पहचान होनी जरूरी थी, इसलिए टीआई ने लाश के फोटो जिले के सभी थानों में भेज दिए, ताकि पता चल सके कि उस की किसी थाने में गुमशुदगी तो दर्ज नहीं है. लेकिन कहीं से भी पुलिस को ऐसी कोई जानकारी नहीं मिली.

अगले दिन 31 जनवरी को मृतक की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई. रिपोर्ट में बताया गया कि शव 3-4 दिन पुराना है और उस की हत्या गला दबा कर की गई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से यह भी पता लगा कि मृतक के सीने में पेसमेकर लगा था, जो हार्ट की गति को सामान्य बनाए रखने का काम करता है.

टीआई ने जब पेसमेकर को देखा तो उस पर एक नंबर और कंपनी का नाम प्रिंट था. उन्होंने जब गूगल पर कंपनी के बारे में सर्च किया तो पता चला कि वह यूएस की कंपनी थी.

उस कंपनी की डिटेल्स जानने के बाद पुलिस ने कंपनी से फोन नंबर और ईमेल द्वारा संपर्क किया. इस से कंपनी के मुंबई औफिस का पता और फोन नंबर मिल गया. पुलिस ने जब उस फोन नंबर पर संपर्क किया तो जांच को एक नई दिशा मिल गई.

टीआई को मुंबई से जानकारी मिली कि उक्त नंबर का पेसमेकर आगरा निवासी सुदामा यादव को लगाया गया था. पुलिस के लिए यह जानकारी काफी थी. पुलिस को सुदामा का पता भी मिल गया था, जिस के बाद एक टीम गठित कर सुदामा यादव के घर आगरा भेजी गई. घर पर सुदामा की पत्नी मुन्नीबाई मिली.

पूछताछ करने पर मुन्नीबाई ने बताया, ‘‘जमीन के एक विवाद को ले कर मैं अपने पति के साथ 25 जनवरी, 2019 को झांसी गई थी. पति वहीं रुक गए थे और मैं आगरा लौट आई थी. उस के बाद पति वापस नहीं आए. चूंकि वह इस से पहले भी कईकई दिनों तक घर नहीं आते थे, इसलिए मैं ने सोचा कि कहीं गए होंगे और कुछ दिनों में आ जाएंगे.’’

पुलिस मुन्नीबाई को ले कर थाने आ गई. सुदामा की लाश अस्पताल की मोर्चरी में रखी थी. पुलिस मुन्नीबाई को अस्पताल ले गई तो उस ने मोर्चरी में रखी लाश की पहचान अपने पति के रूप में कर दी. वह वहीं पर फूटफूट कर रोने लगी. पुलिस ने उसे सांत्वना दी और सुदामा की लाश उसे सौंप दी.

लाश की शिनाख्त होने के बाद पुलिस का अगला काम हत्यारों तक पहुंचना था. लाश का अंतिम संस्कार होने के बाद पुलिस ने उस की पत्नी मुन्नीबाई को पूछताछ के लिए थाने बुलवा लिया. पूछताछ में मुन्नीबाई ने बताया कि उस के पति का चालचलन ठीक नहीं था. उस का बाहरी औरतों के साथ चक्कर था, जिस की वजह से वह कभीकभी तो महीने भर बाद घर लौटता था. वह उसे समझाती तो उस के साथ मारपीट करता था.

मुन्नीबाई ने आशंका जाहिर करते हुए बताया कि झांसी में उस के पति का जमीनी विवाद चल रहा था. उसी को ले कर सुदामा का वहां के प्रधान और एक पुलिस वाले से मनमुटाव था. हो न हो इन्हीं लोगों ने… कहतेकहते उस की आंखों में आंसू छलक आए. प्रधान और उस पुलिस वाले का नामपता लेने के बाद टीआई ने एक पुलिस टीम झांसी भेज दी.

इस के अलावा टीआई ने मुन्नीबाई के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला मुन्नीबाई के नंबर पर 25 जनवरी की रात को एक नए नंबर से काल आई थी. पुलिस को वह नंबर संदिग्ध लगा. जिस फोन नंबर से बात हुई थी, पुलिस ने उस नंबर की जांच की तो वह मोबाइल नंबर गोराखुर्द के रहने वाले प्रभु सौर का निकला.

टीआई ने मुन्नीबाई से प्रभु सौर के बारे में पूछताछ की तो वह बोली कि वह किसी प्रभु सौर को नहीं जानती. टीआई समझ गए कि मुन्नीबाई शातिर किस्म की महिला है. वह आसानी से सच्चाई नहीं बताएगी, इसलिए उन्होंने उस से मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ की तो उस ने पति की हत्या करने का अपराध स्वीकार कर लिया.

उस ने बताया कि सुदामा ने घर के हालात ऐसे कर दिए थे जिस की वजह से उसे उस की हत्या करने के लिए मजबूर होना पड़ा. मुन्नीबाई ने अपने पति की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार थी—

सुदामा यादव मूलरूप से झांसी के पास जेरई गांव का रहने वाला था. उस के परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी. उस के परिवार में मातापिता और 2 भाई थे. थोड़ी सी जमीन थी. उसी से जैसेतैसे गुजरबसर हो जाती थी.

सुदामा शुरू से ही आवारा किस्म का था. पिता ने सोचा कि अगर उस की शादी कर दी जाए तो शायद सुधर जाए. इसलिए उन्होंने हमीदपुर के छोटे से गांव राठ में रहने वाली मुन्नीबाई से उस की शादी कर दी. मुन्नीबाई भी गरीब परिवार की थी. शादी हो जाने के बाद सुदामा की दिनचर्या कुछ दिन तो ठीक रही लेकिन वह फिर से आवारागर्दी करने लगा.

इस बीच सुदामा के परिवार की पैतृक संपत्ति का विवाद वहां के ग्रामप्रधान से हो गया. नौबत कोर्ट कचहरी तक पहुंच गई. इसी दौरान सुदामा अपनी पत्नी मुन्नीबाई को ले कर आगरा चला गया. वहां जा कर वह औटो चलाने लगा, जिस से थोड़ीबहुत आमदनी होने लगी.

अपनी आमदनी से कुछ पैसे वह अपने मातापिता को भेज देता था. सुदामा 4 बच्चों का बाप बन चुका था, लेकिन फिर भी अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा था. उस ने बाहरी औरतों के साथ मौजमस्ती करनी बंद नहीं की थी.

आगरा में उसे रोकने वाला कोई नहीं था, इसलिए वह खुल कर अय्याशी करने लगा. मुन्नीबाई जब मना करती तो वह उस की जम कर पिटाई कर देता. किसी तरह मुन्नीबाई ने अपनी 2 बेटियों और एक बेटे का विवाह करवा दिया था. सब से छोटा बेटा उस के साथ ही रहता था.

सुदामा 55 की उम्र पार कर चुका था. इसलिए उसे कई तरह के रोग भी घेरने लगे थे. उसे हार्ट की बीमारी हो गई. जिस के लिए मुन्नीबाई ने इधरउधर से पैसों की व्यवस्था कर के जयपुर के प्राइवेट अस्पताल में उस का इलाज करवाया, जहां डाक्टरों ने सुदामा के हृदय की धड़कनों को नियंत्रित करने के लिए पेसमेकर लगा दिया.

ठीक होने के बाद सुदामा घर आ गया. लेकिन बीमारी के बाद भी वह अपनी आदतों से बाज नहीं आया. कुछ दिनों बाद वह फिर से बाहरी औरतों के साथ मौजमस्ती करने लगा. मुन्नाबाई ने विरोध किया तो सुदामा ने उस की जम कर पिटाई कर दी. मुन्नीबाई रोजरोज की मारपीट से तंग आ चुकी थी. दुखी हो कर वह आत्महत्या करने की सोचने लगी थी.

इस बीच मुन्नीबाई के भाई रामकुमार यादव का फोन आ गया. मुन्नीबाई ने रोरो कर अपना दुखड़ा भाई को सुना दिया. भला कौन भाई अपनी बहन को रोता देख सकता है. रामकुमार को अपने बहनोई पर गुस्सा आ गया. वह बोला कि क्यों न इस मुसीबत को एक बार में ही निपटा दिया जाए. तुम क्यों मरने की सोच रही हो, हम जीजा को ही निपटा देंगे. मुन्नीबाई भी इस के लिए राजी हो गई.

रामकुमार यह काम खुद नहीं कर सकता था, लिहाजा उस ने 50 हजार का लालच दे कर गोराखुर्द निवासी भूरे गौड़ को अपनी योजना में शामिल कर लिया. योजना के अनुसार 25 जनवरी, 2019 को सुदामा, मुन्नीबाई और उस का भाई रामकुमार जमीनी विवाद की पेशी के लिए झांसी कोर्ट में पहुंचे.

पेशी के बाद मुन्नीबाई आगरा चली गई. सुदामा औरतों का रसिया था, इस बात को रामकुमार अच्छी तरह से जानता था. इसलिए वह एक लड़की से मिलवाने के बहाने सुदामा को बंडा के गोराखुर्द ले गया, जहां रात के करीब 8 बजे प्रभु सौर और हरिसिंह ठाकुर मिल गए.

प्रभु सौर लड़की से मिलाने की बोल कर सुदामा को गोराखुर्द के पहाड़ी क्षेत्र में ले गया. वह सुनसान जगह थी. सुदामा को कुछ गड़बड़ लगी तो उस ने लड़की के बारे में पूछा. तभी रामकुमार ने सुदामा को धक्का दे कर जमीन पर गिरा दिया और फिर तीनों ने मिल कर सुदामा का गला दबा कर उस की हत्या कर दी.

उस समय रामकुमार के फोन की बैटरी डाउन हो गई थी, इसलिए उस ने प्रभु सौर के मोबाइल से मुन्नीबाई को फोन कर के सुदामा का काम तमाम करने की जानकारी दे दी. उस की हत्या कर सभी घर लौट आए.

पुलिस ने मुन्नीबाई को गिरफ्तार करने के बाद उस की निशानदेही पर उस के भाई और अन्य आरोपियों को भी गिरफ्तार कर लिया. सभी आरोपियों से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उन्हें जेल भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों के आधार पर

कहानी सौजन्य: सत्यकथा, मई 2019

दोस्ती की कोख से जन्मी दुश्मनी

गोरखपुर के थाना शाहपुर में किसी अज्ञात व्यक्ति ने फोन कर के सूचना दी कि रेलवे डेयरी कालोनी के पास 2 लोगों की लाशें पड़ी हैं.

यह बात 23/24 जनवरी, 2019 की रात के साढ़े 12 बजे की है. थानाप्रभारी नवीन कुमार सिंह उस समय रात्रि गश्त पर थे.

2 लाशों की खबर पा कर वह सीधे घटनास्थल पर पहुंच गए. इस की सूचना उन्होंने आलाअधिकारियों को भी दे दी थी. एसपी (सिटी) विनय कुमार सिंह, सीओ (कैंट) प्रभात राय भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

लाशों की तलाशी लेने पर उन की जेब से मिले आधारकार्ड की वजह से दोनों की पहचान रमेश यादव निवासी कुशीनगर, हनुमानगंज और अरविंद कुमार सिंह निवासी शाहपुर के रूप में हुई. कुशीनगर वहां से दूर था इसलिए पुलिस ने उसी रात अरविंद के घर वालों को सूचना दे कर मौके पर बुला लिया.

अरविंद के पिता राजेश सिंह मौके पर पहुंचे और उन्होंने उन में से एक लाश की पहचान अपने बेटे अरविंद कुमार सिंह उर्फ रानू के रूप में कर दी. राजेश सिंह ने दूसरे मृतक को बेटे के दोस्त रमेश सिंह के रूप में पहचाना. पुलिस ने घटनास्थल से 4 खाली खोखे बरामद किए. सुबह को रमेश के घर वाले भी शाहपुर पहुंच गए.

पहचान होने के बाद पुलिस ने दोनों लाशें पोस्टमार्टम के लिए बाबा राघवदास मैडिकल कालेज, गुलरिहा भिजवा दीं. राजेश सिंह ने बेटे की हत्या के लिए 12 नामजद और 4 अज्ञात के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया. सभी आरोपी रुद्रपुर, देवरिया के थे. मुकदमा दर्ज करने के बाद पुलिस ने जांच शुरू कर दी. चूंकि रिपोर्ट नामजद थी इसलिए पुलिस ने नामजद आरोपियों को हिरासत में ले कर पूछताछ की. लेकिन उन का इस घटना में कहीं कोई हाथ नहीं पाया गया.

एसएसपी डा. सुनील गुप्ता ने इस दोहरे हत्याकांड के खुलासे के लिए पुलिस की 4 टीमें बनाईं. छानबीन में पुलिस को पता चला कि इस हत्याकांड में रमेश के दोस्त शेरू आदि का हाथ हो सकता है. क्योंकि दोनों की आपस में नहीं बनती थी. दुर्गेश यादव उर्फ शेरू गोरखपुर के गांव जमीन भीटी का रहने वाला था.

इस प्रकार की भी जानकारी मिली कि वारदात में उस का भाई बृजेश यादव उर्फ मंटू भी शामिल रहा हो. पुलिस ने दुर्गेश और बृजेश के घर पर दबिश दी, लेकिन दोनों भाई घर से फरार मिले. काफी कोशिश के बाद भी जब बृजेश और दुर्गेश नहीं मिले तो  आईजी (जोन) जयनारायण सिंह ने उन पर 25-25 हजार रुपए का ईनाम घोषित कर दिया. पुलिस टीमें अपने स्तर से दोनों आरोपियों को तलाशने लगीं.

इसी दौरान 29 जनवरी को शाहपुर थानाप्रभारी नवीन सिंह को एक मुखबिर से खबर मिली कि दोहरी हत्या की घटना में शामिल मुख्य आरोपी दुर्गेश यादव उर्फ शेरू अपने साथी राशिद खान के साथ हनुमान मंदिर बिछिया से मोहद्दीपुर की तरफ आने वाला है.

इस सूचना के बाद नवीन कुमार सिंह, कौआबाग चौकी प्रभारी राजाराम द्विवेदी और स्वाट टीम प्रभारी दीपक कुमार के साथ मोहद्दीपुर ओरवब्रिज के पास पहुंच गए और उन दोनों के आने का इंतजार करने लगे.

थोड़ी देर बाद एक काले रंग की मोटरसाइकिल पर 2 व्यक्ति आते दिखे तो मुखबिर के इशारे पर पुलिस ने मोटरसाइकिल रोकने का इशारा किया. पुलिस को देख दोनों ने मोटरसाइकिल मोड़ कर भागने की कोशिश की, लेकिन हड़बड़ाहट में मोटरसाइकिल फिसल कर गिर गई. तभी पुलिस ने उन्हें हिरासत में ले लिया.

तलाशी लेने पर दोनों के पास से .32 बोर की 1-1 पिस्टल और 5-5 जिंदा कारतूस बरामद हुए. पूछताछ में उन में से एक युवक ने अपना नाम दुर्गेश यादव और दूसरे ने राशिद खान निवासी गांव चेरिया थाना बेलीपार, जनपद गोरखपुर बताया. पुलिस दोनों को शाहपुर थाने ले आई. उन की गिरफ्तारी की जानकारी वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को भी दे दी गई.

सूचना मिलते ही एसएसपी डा. सुनील गुप्ता, एसपी (सिटी) विनय कुमार सिंह और क्षेत्राधिकारी प्रभात राय शाहपुर थाने पहुंच गए. दुर्गेश यादव उर्फ शेरू और राशिद खान से सख्ती से पूछताछ की गई तो दोनों ने दोहरे हत्याकांड का अपराध स्वीकार कर लिया.

पूछताछ में पता चला कि आरोपी दुर्गेश उर्फ शेरू और मृतक रमेश यादव दोनों गहरे दोस्त थे. उन के बीच दांतकाटी रोटी जैसी दोस्ती थी. दोनों एकदूसरे के हमराज भी थे. फिर उन के बीच ऐसा क्या हुआ कि वे एकदूसरे के खून के प्यासे बन गए. पूछताछ के बाद आरोपियों के बयानों से कहानी कुछ इस तरह सामने आई—

24 वर्षीय रमेश यादव मूलरूप से उत्तर प्रदेश के शहर कुशीनगर के धोबी छापर का रहने वाला था. वह 4 भाईबहनों में दूसरे नंबर पर था. बेहद स्मार्ट रमेश पढ़लिख कर जीवन में कुछ बड़ा बनना चाहता था.

हनुमानगंज के धोबी छापर इलाके में जहां वह रहता था, वह इलाका आज भी पिछड़ा माना जाता है. वहां रह कर वह अपने सपनों का महल खड़ा नहीं कर सकता था इसलिए उस ने गांव छोड़ने का फैसला कर लिया. उस के सपनों को साकार करने के लिए घर वालों ने भी उसे पूरी आजादी दे दी थी.

जीवन में आगे बढ़ने के लिए रमेश को जिस चीज की जरूरत होती घर वाले पूरी करते थे. रमेश गोरखपुर शहर आ गया और शाहपुर इलाके में पादरी बाजार मोहल्ले में किराए का कमरा ले कर रहने लगा. यहीं रह कर वह पढ़ता भी था.

इसी मोहल्ले में दुर्गेश यादव उर्फ शेरू भी रहता था. यहां उस का अपना निजी मकान था. उस के परिवार में एक छोटा भाई बृजेश कुमार यादव उर्फ मंटू और मांबाप रहते थे. दुर्गेश के पिता बलवंत यादव प्राइवेट जौब करते थे. हालांकि बलवंत यादव मूलरूप से गगहा थाने के जमीनी भीटी गांव के रहने वाले थे. गांव में उन की खेती की जमीन भी थी.

चूंकि, रमेश और दुर्गेश पास में रहते थे. दोनों हमउम्र भी थे इसीलिए जल्द ही दोनों के बीच दोस्ती हो गई. धीरेधीरे उन की दोस्ती घनिष्ठ से भी घनिष्ठतम हो गई. दुर्गेश से दोस्ती से पहले रमेश का एक और भी बचपन का दोस्त था- अरविंद कुमार सिंह उर्फ रानू. रानू शाहपुर के गीता वाटिका इलाके की आवास विकास कालोनी में मांबाप के साथ रहता था.

उस के पिता राजेश सिंह सरकारी मुलाजिम थे तो चाचा आरपीएफ में दारोगा थे. रानू के परिवार के लोग बड़े ओहदे पर थे और इज्जतदार भी थे. गोरखपुर के अलावा रानू का देवरिया के रुद्रपुर में पुश्तैनी घर और संपत्ति थी. उस के दादादादी गांव में ही रहते थे, इसलिए वह अकसर गांव आताजाता रहता था.

दुर्गेश से दोस्ती के बाद रमेश ने अपने घर पर एक पार्टी दी. पार्टी में रानू और दुर्गेश भी आए थे. वहीं पर रमेश ने दुर्गेश और रानू का आपस में परिचय कराया था. इस के बाद रानू भी दुर्गेश का दोस्त बन गया था. जितनी गहरी रानू की रमेश से छनती थी, पता नहीं क्यों उतनी रमेश से उस की नहीं बनती थी और न ही उस की दोस्ती उसे रास आ रही थी. इसलिए रानू दुर्गेश से कम ही मिलताजुलता था.

देखने में रमेश जितना मासूम और स्मार्ट दिखता था दरअसल, वो वैसा था नहीं. रमेश किसी बात को ले कर कभीकभी दुर्गेश उर्फ शेरू से नाराज हो जाता था तो उस का रौद्र रूप देख कर वह भीतर तक सहम जाता था.

इस कारण दुर्गेश पर वह भारी पड़ता था. उस समय शेरू अपने सामने किसी को कुछ नहीं समझता था, जब कभी दुर्गेश एकांत में होता था तो वह जरूर सोचता कि आखिर रमेश उस के साथ ऐसा क्यों करता है.

दरअसल, रमेश के चेहरे पर एक और चेहरा था. उस चेहरे के पीछे एक गंभीर राज छिपा था. उस राज को उस के बचपन के दोस्त रानू के अलावा कोई तीसरा नहीं जानता था. रमेश यादव एक शातिर अपराधी था और पुलिस का मुखबिर भी.

हनुमानगंज थाने में उस पर कई आपराधिक मुकदमे दर्ज थे, पुलिस का मुखबिर होने की वजह से उस के सिर पर थानेदार और अन्य पुलिसकर्मियों का हाथ था. इसीलिए वह किसी से न दबता था और न ही डरता था. मुखबिर होने की वजह से पुलिस भी उस के छोटेमोटे अपराधों को नजरअंदाज कर देती थी.

दुर्गेश रमेश की दबंगई से तंग आ चुका था. दबंगई के साथ ही वह उस से छोटीछोटी बात पर भिड़ जाता और मारपीट करने पर उतर आता था. आखिर दुर्गेश यह कब तक सहन करता, यहीं से उन की दोस्ती में दरार आ गई.

खुद को कमजोर समझने वाला दुर्गेश धीरेधीरे रमेश से अलग हो गया और उस ने अपनी एक अलग मंडली बना ली. इस मंडली में शामिल थे राशिद खान, संदीप यादव, मनीश साहनी, नवनीत मिश्रा उर्फ लकी, अंगेश सिंह और बृजेश यादव उर्फ मंटू.

अब दुर्गेश यादव रमेश से ताकतवर बन कर उस के सामने आना चाहता था ताकि रमेश से अपने अपमान का बदला ले सके. लेकिन यह इतना आसान नहीं था. क्योंकि रमेश अपने साथ हमेशा लोडेड पिस्टल ले कर चलता था. दुर्गेश यही सोचता था कि काश मेरे पास भी पिस्टल होती तो सारी की सारी गोलियां उस के सीने में उतार कर उस से अपना बदला ले लेता.

दोस्त से जानी दुश्मन बने दुर्गेश और रमेश एकदूसरे को देख लेने के लिए दुश्मनी के मैदान में बड़ी लकीर खींच चुके थे.

इस बीच एक और रोमांचक कहानी ने जन्म ले लिया. रोमांचक कहानी की मूल कड़ी थी दुर्गेश की प्रेमिका रूपाली. दुर्गेश और रूपाली दोनों एकदूसरे को दिलोजान से मोहब्बत करते थे.

बात दिसंबर 2018 की है. रूपाली कैंट थाना क्षेत्र स्थित व्हील पार्क में दुर्गेश से मिली. उस दिन वह बेहद उदास थी. उस की उदासी देख कर दुर्गेश तड़प उठा. जब उस ने रूपाली से उस की उदासी का कारण पूछा तो वह फफक कर रो पड़ी. वह बोली, ‘‘तुम्हारा दोस्त रमेश पिछले कई दिनों से मेरे साथ बदतमीजी कर रहा है. जातेआते रास्ते में छेड़ता है. ऊलजलूल फब्तियां कसता है.’’ यह सुन कर गुस्से से दुर्गेश की आंखें सुर्ख हो गईं.

रूपाली की बातें सुन कर दुर्गेश बोला, ‘‘उस कमीने से मैं ने कब की दोस्ती तोड़ दी है. अब वह मेरा दोस्त नहीं, दुश्मन है. तुम्हें छेड़ना उसे बहुत महंगा पड़ेगा. तुम चिंता क्यों करती हो. मैं उसे इस की ऐसी सजा दूंगा जिस की उस ने कल्पना तक नहीं की होगी.’’

दरअसल दुर्गेश उर्फ शेरू से 36 का आंकड़ा होने के बाद रमेश का दिल दुर्गेश की प्रेमिका रूपाली पर आ गया था. रमेश उस से एकतरफा प्यार करने लगा था. लेकिन रूपाली दुर्गेश के प्रति वफादार थी. उस ने रमेश को कभी लिफ्ट नहीं दी. रूपाली के कठोर व्यवहार से तमतमाया रमेश रूपाली को आतेजाते रास्ते में छेड़ने लगा था.

दुर्गेश यादव जानता था कि वह कभी अकेले दम रमेश से मुकाबला नहीं कर सकता. बदले के जुनून में दुर्गेश ने रमेश को मात देने के लिए आखिरकार रास्ता निकाल ही लिया. इस खेल में उस ने महराजगंज जिले में तैनात सिपाही विकास यादव को शामिल कर लिया. सिपाही विकास यादव दुर्गेश का दूर का रिश्तेदार था. उस के बूते पर दुर्गेश खुद को रमेश से ताकतवर समझने लगा था.

दुर्गेश ने रमेश यादव को ठिकाने लगाने के लिए अपने दोस्तों राशिद खान, संदीप यादव, मनीष साहनी, नवनीत मिश्रा उर्फ लकी, अंगेश सिंह व अपने भाई बृजेश यादव उर्फ मंटू के साथ मिल कर एक योजना बनाई. इस योजना में उस ने सिपाही विकास यादव को भी शामिल कर लिया था. योजना को अंजाम देने के लिए उस ने 23 जनवरी, 2019 की तारीख पक्की कर दी थी.

इस के एक दिन पहले यानी 22 जनवरी को रूपाली को ले कर दुर्गेश और रमेश के बीच हाथापाई हुई थी. इस में रमेश फिर से दुर्गेश पर भारी पड़ गया था.

योजना के अनुसार, 23 जनवरी की रात शाहपुर इलाके की रेलवे डेयरी कालोनी के पास दुर्गेश उर्फ शेरू ने दोस्तों को मीट और लिट्टी की दावत दी थी. दावत में राशिद खान, संदीप यादव, मनीष साहनी, नवनीत मिश्रा, अंगेश सिंह, बृजेश यादव के अलावा सिपाही विकास यादव भी शामिल हुआ था.

दावत में मीट और लिट्टी के साथ शराब भी चली. जब शराब रंग दिखाने लगी तो दुर्गेश ने रमेश को फोन कर दावत खाने के बहाने रेलवे डेयरी कालोनी बुलाया.

उस समय रमेश गोरखपुर रेलवे स्टेशन के बाहर अपने दोस्त अरविंद उर्फ रानू के साथ खड़ा था. दुश्मनी के बावजूद रमेश दुर्गेश के कहने पर रानू के साथ रेलवे डेयरी कालोनी पहुंच गया. उस समय रात के साढ़े 11 बज रहे थे.

रमेश और रानू के पहुंचते ही दुर्गेश और उस के दोस्त चौकन्ने हो गए. रमेश को देखते ही दुर्गेश को रूपाली वाली बात याद आ गई और उस का खून खौल उठा. दुर्गेश ने रमेश और रानू को बैठने के लिए बोला तो रमेश ने पूछा, ‘‘तुम ने मुझे यहां क्यों बुलाया?’’

दुर्गेश ने कहा कि तुम बैठो तो सही तुम्हें बताता हूं कि मैं ने तुम्हें क्यों बुलाया है. तब तक दुर्गेश का भाई बृजेश यादव उर्फ मंटू पीछे से रमेश पर टूट पड़ा. रमेश समझ गया कि यहां रुकना खतरे से खाली नहीं है. जैसे ही रमेश वहां से वापस जाने के लिए पीछे मुड़ा तभी दुर्गेश ने पिस्टल निकाल कर रमेश की खोपड़ी से सटा कर गोली चला दी. गोली लगते ही रमेश का भेजा उड़ गया.

दोस्त को गोली लगी देख रानू सन्न रह गया और जान बचाने के लिए वह तेजी से भागा. रानू को भागते देख दुर्गेश का छोटा भाई बृजेश और राशिद खान उस के पीछे भागे और 15 मीटर की दूरी पर उसे भी गोली मार दी.

गोली लगते ही रानू ने भी मौके पर दम तोड़ दिया. हालांकि रानू की रमेश और दुर्गेश की दुश्मनी के बीच कोई भूमिका नहीं थी. वह घटनास्थल पर मौजूद था और हत्या का एकमात्र गवाह भी, इसलिए दुर्गेश ने उसे भी मार दिया.

दुर्गेश यादव व राशिद खान से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया. इस के बाद पुलिस ने इस दोहरे हत्याकांड के सभी आरोपियों को एकएक कर के गिरफ्तार कर लिया. सिपाही विकास यादव को इस घटना से अलग कर के उस के खिलाफ विभागीय जांच कराई जा रही है. फिलहाल पुलिस का कहना है कि उस का इस घटना से कोई लेनादेना नहीं था. यदि जांच में वह दोषी पाया गया तो उस के खिलाफ भी मुकदमा पंजीकृत किया जाएगा.

9 मार्च, 2019 को राशिद खान की जमानत के लिए अदालत में अरजी दाखिल की गई थी. घटना की गंभीरता को देखते हुए सरकारी वकील की बहस के बाद न्यायाधीश ने उस की जमानत अरजी रद्द कर दी थी. कथा लिखने तक पुलिस सभी आरोपियों के खिलाफ अदालत में आरोप पत्र दाखिल करने की तैयारी कर रही थी.          द्य

—कथा में रूपाली और सिपाही विकास यादव परिवर्तित नाम हैं. कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

कहानी सौजन्य: सत्यकथा, मई 2019

बेसमेंट में छिपा राज

उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के थाना चितबड़ा के अंतर्गत फिरोजपुर गांव के रहने वाले नरेंद्र कुमार सिंह पेशे से डाक्टर हैं.  नरेंद्र सिंह चितबड़ा में ही अपना क्लिनिक चलाते हैं. उन के परिवार में उन की पत्नी आशा सिंह के अलावा 3 बेटे हैं.

सब से बड़े बेटे मनीष कुमार सिंह ने ग्रैजुएशन की और वह दिल्ली आ गया. दिल्ली आ कर मनीष ने ट्रांसपोर्ट का काम शुरू कर दिया. वह टैक्सियां किराए पर चलवाने लगा. मनीष शादीशुदा है. मंझला बेटा पंकज 4 साल पहले गाजियाबाद आया और यहां जीटी रोड पर स्थित इंस्टीट्यूट औफ मैनेजमेंट एजुकेशन में एलएलबी में दाखिला ले लिया.

पंकज का एक छोटा भाई भी है, जो इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद बंगलुरु की एक निजी कंपनी में नौकरी कर रहा है. नरेंद्र सिंह की जिंदगी में सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन इस साल अक्तूबर महीने में अचानक ही उन की जिंदगी में भूचाल आ गया.

10 अक्तूबर, 2019 की सुबह करीब 10 बजे का वक्त था. पंकज का भाई मनीष साहिबाबाद थाने पहुंचा. उस वक्त ड्यूटी औफिसर के रूप में एसआई जितेंद्र कुमार मौजूद थे. मनीष ने उन्हें बताया कि उस का छोटा भाई पंकज गिरधर एनक्लेव स्थित नवीन त्यागी के मकान नंबर 109 में किराए पर रहता है. वह 9 अक्तूबर की सुबह करीब 10 बजे से लापता है.

मनीष ने एसआई जितेंद्र कुमार को बताया कि 8 अक्तूबर की शाम को उस की पंकज से फोन पर बात हुई थी, तब तक वह ठीक था. अगले दिन यानी 9 अक्तूबर को जब उस ने पंकज को दोपहर 12 बजे फोन किया तो उस का मोबाइल स्विच्ड औफ मिला.

मनीष ने बताया कि उस ने सोचा या तो पंकज के फोन की बैटरी खत्म हो गई होगी या वह क्लास में होगा. यही सोच कर उस ने ज्यादा परवाह नहीं की. लेकिन दोपहर बाद जब 3 बजे से रात 8 बजे तक कई बार फोन करने पर भी पंकज का फोन स्विच्ड औफ मिला तो उसे घबराहट होने लगी.

मनीष ने बताया कि पंकज नवीन त्यागी के जिस फ्लैट में रहता था, उस में उस का एक रूम पार्टनर संजय भी था. संजय भी पंकज के साथ इंस्टीट्यूट औफ मैनेजमेंट एजुकेशन से एलएलबी की पढ़ाई कर रहा था. उस ने संजय से अपने भाई पंकज के बारे में पूछा कि वह कहां है और उस का फोन क्यों नहीं लग रहा?

तब संजय ने बताया कि पंकज 9 अक्तूबर की सुबह करीब पौने 10 बजे उस से यह कह कर फ्लैट से निकला था कि वह अपने साइबर कैफे जा रहा है. दोपहर में जब वह कालेज के लिए निकले तो उसे वहीं पर मिले. पंकज ने एक साइबर कैफे भी खोल रखा था. संजय ने बताया कि जब वह साढ़े 12 बजे साइबर कैफे पहुंचा तो वहां ताला लटका हुआ मिला.

संजय को आसपड़ोस के लोगों ने बताया कि आज तो कैफे खुला ही नहीं.

संजय को समझ नहीं आया कि दुकान खोलने के लिए आया पंकज उसे बिना बताए कहां चला गया. यही जानने के लिए उस ने पंकज को फोन किया तो उस का मोबाइल स्विच्ड औफ मिला.

चूंकि संजय को कालेज पहुंचना था इसलिए उस ने उस वक्त यही सोचा कि शायद पंकज को कोई मिल गया होगा और वह उसे बिना बताए कहीं चला गया होगा. यह सोच कर वह कालेज चला गया.

शाम को 5 बजे वह जब कालेज से लौटा तो उस ने पाया कि पंकज का साइबर कैफे तब भी बंद था.

फ्लैट पर पहुंचने के बाद संजय ने खाना बनाया और पंकज का इंतजार करने लगा. इस दौरान उस ने कई बार पंकज के मोबाइल पर फोन किया, लेकिन हर बार मोबाइल स्विच्ड औफ मिला.

अब संजय को भी पंकज की चिंता होने लगी थी. वह सोच ही रहा था कि क्या करे, इसी बीच पंकज के भाई मनीष का फोन आ गया तो उस ने सारी बात मनीष को बता दी. क्योंकि रात हो चुकी थी. इसलिए मनीष को यह नहीं सूझा कि वह क्या करे.

मनीष ने रात में ही पंकज के लापता होने की बात अपने पिता डा. नरेंद्र कुमार सिंह को बताई तो वे भी चिंतित हो उठे. पिता ने अनिष्ट की आशंका जताते हुए मनीष से अगली सुबह थाने जा कर इस संबंध में रिपोर्ट दर्ज कराने को कहा.

इस के बाद अगली सुबह यानी 10 अक्तूबर को मनीष थाना साहिबाबाद पहुंचा और ड्यूटी पर तैनात एसआई जितेंद्र कुमार को अपने भाई पंकज के लापता होने की सारी बात विस्तार से बता दी.

इस के बाद मनीष की तहरीर पर पुलिस ने भादंसं की धारा 365 के अंतर्गत अज्ञात अपराधियों के खिलाफ मुकदमा पंजीकृत कर लिया.

साहिबाबाद थाने के थानाप्रभारी जे.के. सिंह के निर्देश पर एसआई जितेंद्र कुमार ने ही जांच का काम शुरू कर दिया.

अपहरण के ऐसे मामलों में पुलिस अकसर पीडि़त के मोबाइल फोन की काल डिटेल से ही उस तक पहुंचने का प्रयास करती है. एसआई जितेंद्र कुमार ने पंकज के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवा ली. उन्होंने कांस्टेबल संजीव, विपिन और प्रवेश को ऐसे लोगों की सूची तैयार करने के काम पर लगा दिया, जिन से पंकज की सब से ज्यादा बातचीत होती थी और अंतिम बार उस ने किन लोगों के साथ बातचीत की.

2 दिन गुजर गए और पुलिस की अब तक की जांच बेनतीजा रही.

इधर मनीष के पिता डा. नरेंद्र सिंह भी बलिया से उस के पास दिल्ली आ गए थे. मनीष के कुछ परिजन और रिश्तेदार भी पंकज के लापता होने की जानकारी मिलने पर गाजियाबाद पहुंच गए. सभी लोग अपनेअपने तरीके से पंकज की तलाश में जुटे थे.

इसी सिलसिले में मनीष 12 अक्तूबर की सुबह एक बार फिर गिरधर एनक्लेव पहुंचा जहां पंकज रहता था. मनीष के दिमाग में न जाने क्यों कल से यह बात आ रही थी कि उसे मुन्ना से पंकज के बारे में जानकारी करने के लिए मिलना चाहिए.

दरअसल, 3 महीने पहले पंकज 15 दिन के लिए गिरधर कालोनी के ही मकान नंबर 51 के मालिक मुन्ना के घर में किराए पर रहा था.

मुन्ना से पंकज के काफी अच्छे संबंध थे. क्योंकि पंकज मुन्ना के 2 बेटों और 2 बेटियों को ट्यूशन पढ़ाता था. इन्हीं संबंधों के नाते मुन्ना ने पंकज को अपना फ्लैट कुछ दिन के लिए रहने को दे दिया था. मुन्ना के मकान में पंकज 15 दिन ही रहा था. उस ने उस का मकान खाली कर दिया और नवीन त्यागी के मकान में जा कर रहने लगा. वहां उस ने साथ में पढ़ने वाले एक दोस्त  पंकज को भी पार्टनर के रूप में साथ रख लिया था.

मनीष को पता था कि मुन्ना और उस के परिवार से पंकज के काफी अच्छे संबंध थे. उस ने सोचा कि क्यों न एक बार मुन्ना और उस के परिवार से मिल कर पता कर ले. हालांकि जिस दिन मनीष ने पंकज के अपहरण का मुकदमा दर्ज कराया था, उस दिन भी वह मुन्ना से मिला था. मुन्ना ने पंकज के इस तरह लापता होने पर काफी आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा था कि वह तो बेहद शरीफ और अच्छा लड़का है.

लेकिन 12 तारीख की सुबह जब मनीष मुन्ना के घर पहुंचा तो वहां ताला लटका मिला. मुन्ना के मकान में जो किराएदार रहते थे, उन के परिवार की महिलाएं तो मिलीं, लेकिन पुरुष सदस्य काम पर जा चुके थे. पूछने पर महिलाओं ने मनीष को बताया कि मकान मालिक मुन्ना तो अपने परिवार के साथ 11 अक्तूबर  की सुबह से ही वहां नहीं है.

मुन्ना के 3 मंजिला मकान में ग्राउंड फ्लोर पर वह खुद रहता था, जबकि पहली और दूसरी मंजिल पर किराएदार रहते थे. चौथी मंजिल पर भी एक कमरा बना था जो खाली था. पंकज उसी कमरे में कुछ दिन रहा था.

जब मनीष ने मुन्ना के फ्लैट पर ताला लटका देखा तो वह असमंजस में पड़ गया कि आखिर पूरा परिवार कहां चला गया.

मनीष समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे, क्या न करे. इसी दौरान उस की नजर ग्राउंड फ्लोर पर उस हिस्से पर पड़ी, जहां से बेसमेंट की तरफ सीढि़यां उतर रही थीं. सीढि़यों से उतरते हुए मनीष बेसमेंट में पहुंच गया. वहां काफी अंधेरा था. अचानक उसे एक अजीब सी गंध का एहसास हुआ.

मनीष ने अपने मोबाइल की टौर्च जला कर देखा तो वहां कई जगह इधरउधर सीमेंट बिखरा था और कबाड़ भी फैला था. ऐसा लग रहा था था कि वहां कुछ रोज पहले ही राजमिस्त्री ने कोई काम किया है.

उसे जो गंध आ रही थी, ऐसी गंध हमेशा किसी जानवर या मरे हुए इंसान से उठती है. लेकिन कमरे में ऐसा कुछ नहीं दिख रहा था. मनीष ने जांच अधिकारी जितेंद्र कुमार को फोन कर के सारी बात बता दी.

एसआई जितेंद्र कुमार, हैडकांस्टेबल कृष्णवीर और रविंद्र को ले कर कुछ ही देर में मुन्ना के मकान पर पहुंच गए.

पुलिस जब बेसमेंट में पहुंची तो बदबू का अहसास उन्हें भी हुआ. मोबाइल टौर्च से पर्याप्त उजाला होने पर एक सिपाही ने कमरे में लगा बिजली का बोर्ड तलाश कर बंद पड़ी लाइटेंजला दीं, जिस से कमरा प्रकाश से भर गया. अब उस हालनुमा कमरे में सब कुछ साफसाफ दिखाई पड़ रहा था. कमरे के बीचोबीच ढेर सारा कबाड़ पड़ा था. कमरे में जहांतहां सीमेंट और बदरपुर फैला हुआ था.

जांच अधिकारी जितेंद्र कुमार ने सब से पहले अपने सहयोगी सिपाहियों की मदद से मकान में रहने वाले किराएदारों की मौजूदगी में बेसमेंट में बने दोनों कमरों के ताले तोड़े. लेकिन दोनों कमरों में ऐसी कोई चीज नहीं मिली, जिस से पता चलता कि बदबू कहां से आ रही है.

पुलिस ने हाल के बीचोबीच पड़ा कबाड़ का सामान हटाया तो देखा उन के नीचे फूस बिछी हुई थी. जब वहां से फूस को हटाया गया तो नीचे टाट की बोरियां बिछी मिलीं.

पुलिस टीम ने टाट की इन बोरियों को भी हटाया, तो उस के नीचे काफी बड़े क्षेत्र में फर्श के ताजा प्लास्टर होने के निशान साफ दिख रहे थे. टाट की बोरियां हटाने के बाद कमरे में आ रही दुर्गंध और भी ज्यादा तेज हो गई थी.

जितेंद्र कुमार को लगने लगा कि हो न हो, इस फर्श के नीचे ऐसा कुछ जरूर दबा है जिस की वजह से वहां बदबू फैली हुई है.

जितेंद्र कुमार ने बेसमेंट से बाहर आ कर थानाप्रभारी जे.के. सिंह को फोन पर मुन्ना के मकान में इस संदिग्ध गतिविधि के बारे में बताया तो थानाप्रभारी भी कुछ अन्य पुलिसकर्मियों के साथ गिरधर एनक्लेव में मुन्ना के मकान पर पहुंच गए. तब तक जितेंद्र कुमार ने अपने एक सिपाही को भेज कर 2-3 मजदूर बुलवा लिए थे.

थानाप्रभारी जे.के. सिंह ने निरीक्षण किया तो संदेह की सब से बड़ी बात यह मिली कि जिस स्थान पर प्लास्टर किया गया था, वहां दबाने पर जमीन दब रही थी. ऐसा लग रहा था कि यह प्लास्टर 2-3 दिन पहले ही किया गया हो और इस का भराव ठीक से नहीं किया गया था.

बहरहाल, थानाप्रभारी जे.के. सिंह को भी मामला संदिग्ध लगा. सीओ डा. राकेश कुमार मिश्रा और एसडीएम को सारी बात बता कर मौके पर आने का अनुरोध किया.

गिरधर एनक्लेव में एक के बाद एक पुलिस की गाडि़यां आने के कारण मुन्ना के मकान के बाहर कालोनी के लोगों की भीड़ जुट गई.

सीओ राकेश मिश्रा और एसडीएम के आने के बाद मोहल्ले के कुछ लोगों को गवाह बना कर उस जगह फर्श की खुदाई कराई गई, जहां ताजा प्लास्टर हुआ था.

करीब 4 फुट की खुदाई होते ही पुलिस की आंखें फटी रह गईं. 6 फुट गहरे और 2 फुट चौडे़ गड्ढे की मिट्टी निकाली तो वहां से एक लाश निकली. मजदूरों की मदद से वह लाश गड्ढे से बाहर निकाली. उस के चेहरेमोहरे से मिट्टी हटा कर देखा तो वह लाश पंकज की ही निकली. लाश देखते ही मनीष ‘मेरा भाई पंकज’ कहते हुए सिर पकड़ कर वहीं जमीन पर बैठ गया. पंकज के गले में रस्सी बंधी थी, जिस से जाहिर था कि उसी रस्सी से उस का गला दबाया गया था.

थोड़ी ही देर में पंकज का रूम पार्टनर संजय भी मौके पर आ गया. लाश के शरीर पर जो कपड़े थे, उन्हें देख कर संजय ने भी बता दिया कि पंकज यही कपड़े पहन कर 9 तारीख की सुबह घर से निकला था.

लाश मुन्ना के घर के बेसमेंट में मिली थी और मुन्ना अपने परिवार के साथ घर से लापता था. लिहाजा पहली नजर में यह शक हो रहा था कि कहीं न कहीं इस हत्या के पीछे मुन्ना और उस के परिवार का ही हाथ है.

सूचना पा कर एसएसपी सुधीर कुमार सिंह और एसपी (सिटी) मनीष कुमार मिश्रा भी घटनास्थल पर पहुंच गए. जरूरी जांच करने के बाद पंकज का शव पोस्टमार्टम के लिए गाजियाबाद की मोर्चरी भिजवा दिया. पंकज का शव मिलने की बात सुन कर उस के पिता और दूसरे रिश्तेदार भी गाजियाबाद आ गए.

इस बीच एसएसपी ने पूरा मामला जानने के बाद पंकज सिंह हत्याकांड की जांच के लिए सीओ डा. राकेश कुमार मिश्रा के निर्देशन में एक विशेष जांच टीम का गठन कर दिया. टीम में इंसपेक्टर जे.के. सिंह के अलावा एसआई जितेंद्र कुमार, राजीव बालियान, हैडकांस्टेबल कृष्णवीर, रविंद्र, कांस्टेबल संजीव सिंह, विपिन, प्रवेश और महिला हैडकांस्टेबल सुमित्रा को शामिल किया गया. टीम का नेतृत्व इंसपेक्टर जे.के. सिंह कर रहे थे.

जांच का काम हाथ में लेते ही इंसपेक्टर जे.के. सिंह ने रिपोर्ट में भादंवि की धारा 302 और जोड़ दी. टीम ने सब से पहले गिरधर एनक्लेव में लगे सीसीटीवी कैमरे की जांच कराई. एक फुटेज में पंकज सुबह करीब सवा 9 बजे लोअर पहने हुए सेब खाता हुआ कालोनी के बाहर से भीतर आता हुआ दिखा था. लेकिन उस के बाद वह कालोनी से बाहर की तरफ निकलते नहीं दिखा. इलाके के कुछ प्रत्यक्षदर्शियों ने भी पंकज को मुन्ना के घर की तरफ जाते देखा था.

जांचपड़ताल की इसी कड़ी में जब पंकज के मोबाइल की काल डिटेल्स की छानबीन की गई तो पता चला कि सुबह सवा 10 बजे पंकज के मोबाइल की लोकेशन झंडापुर टावर की थी. यह टावर गिरधर एनक्लेव के पीछे बने रेलवे ट्रैक के आसपास है. जो मुन्ना के घर के काफी समीप है. इस से यह बात स्पष्ट हो गई कि जिस समय पंकज के साथ कोई हादसा हुआ, उस समय वह या तो मुन्ना के घर के आसपास था या घर के भीतर था.

अब तक आए सभी साक्ष्य इस बात की गवाही दे रहे थे कि पंकज की हत्या मुन्ना और उस के परिवार के किसी सदस्य ने मिल कर की है.

पंकज की काल डिटेल्स में यह बात भी सामने आई कि पंकज के फोन पर अकसर मुन्ना की काल आतीजाती थी. पंकज और मुन्ना के वाट्सऐप पर भी मैसेज का काफी आदानप्रदान होता था, लेकिन वाट्सऐप चैट में क्या था, इसे जानने के लिए दोनों के मोबाइल फोन का होना जरूरी था.

पता चला कि मुन्ना बिहार के नवादा जिले का रहने वाला है. किसी तरह पुलिस ने मुन्ना का पता हासिल कर लिया, जिस के बाद इंसपेक्टर जे.के. सिंह ने एसआई राजीव बालियान और जितेंद्र कुमार की अगुवाई में एक टीम नवादा (बिहार) के लिए रवाना कर दी.

20 अक्तूबर को पुलिस टीम जब नवादा में मुन्ना के घर पहुंची, तो पता चला कि मुन्ना अपने परिवार के साथ अपने गांव में आया जरूर था, लेकिन 2 दिन पहले ही वह घर जाने की बात कह कर वापस चला गया.

काफी कुरेदने के बावजूद भी पुलिस टीम को मुन्ना के रिश्तेदारों से यह बात पता नहीं चल सकी कि मुन्ना इस समय कहां गया है. थकहार कर साहिबाबाद थाने की पुलिस टीम वापस लौट आई.

इसी दौरान साहिबाबाद थाने में एसएसआई प्रमोद कुमार की नियुक्ति हुई तो इंस्पेक्टर जे.के. सिंह से ले कर पंकज हत्याकांड की जांच का काम उन के सुपुर्द कर दिया गया. प्रमोद कुमार ने जांच का काम हाथ में लेते ही अब तक हुई जांच के बारे में पूरा अध्ययन किया.

जांच अधिकारी प्रमोद कुमार ने टीम के साथ उन तमाम संभावित ठिकानों पर दबिशें देनी शुरू कर दीं, जहां मुन्ना या उस के परिवार के मिलने की संभावना थी. लेकिन मुन्ना चालाक था. पुलिस जहां भी पहुंचती, वह उस से पहले ही उस ठिकाने से निकल लेता.

पुलिस को मुन्ना के कुछ ऐसे करीबी लोगों के मोबाइल नंबर मिल गए, जिन से मुन्ना के न सिर्फ कारोबारी संबंध थे, बल्कि वह उन के साथ काफी उठताबैठता भी था.

पुलिस ने उन नंबरों को सर्विलांस पर लगा दिया. आखिर इस से पुलिस को 2 नवंबर, 2019 को जानकारी मिली कि मुन्ना अपने परिवार के साथ साहिबाबाद रेलवे स्टेशन पर मौजूद है और वहां से वह ट्रेन पकड़ कर कोलकाता जाने वाला है.  पुलिस टीम तत्काल साहिबाबाद रेलवे स्टेशन पहुंच गई और उसे दबोच लिया.

दरअसल हुआ यूं था कि मुन्ना ने नोएडा में अपने एक दोस्त, जिस के औफिस में वह प्रौपर्टी डीलिंग का काम देखता था, को फोन कर के अपने मुसीबत में होने की बात बताई. उस ने दोस्त से कुछ पैसे साहिबाबाद रेलवे स्टेशन पर भिजवाने के लिए कहा, जहां वह ट्रेन का इंतजार कर रहा था. पुलिस टीम ने जब मुन्ना के उस दोस्त से पूछताछ की तो उस ने सच उगल दिया और पुलिस मुन्ना तक पहुंच गई.

मुन्ना और उस के परिवार को थाने ला कर जब सीओ राकेश कुमार मिश्रा के समक्ष पूछताछ हुई तो कुछ ही देर में पंकज की हत्या का सच सामने आ गया. मुन्ना ने कबूल कर लिया कि उस ने अपनी पत्नी सुलेखा और छोटी बेटी अंकिता के साथ मिल कर पंकज की हत्या की थी.

मुन्ना, सुलेखा और अंकिता से पूछताछ के बाद पंकज हत्याकांड की जो कहानी सामने आई वह इस प्रकार निकली—

दिल्ली से सटे साहिबाबाद शहर में स्थित गिरधर एनक्लेव में रहने वाला हरिओम उर्फ मुन्ना कुछ साल पहले तक कबाड़ी का काम करता था. कबाड़ के काम से उसे खूब आमदनी हुई. जिस से उस ने गिरधर एनक्लेव में प्लौट खरीद कर उस पर 3 मंजिला मकान बना लिया. मकान के 2 मंजिल उस ने किराए पर दे दिए, जिस से अच्छीखासी आमदनी होने लगी.

3 साल पहले मुन्ना ने कबाड़ का काम बंद कर दिया और कुछ दिन खाली रहा. लेकिन 2 साल पहले उस ने नोएडा में अपने एक दोस्त, जो प्रौपर्टी डीलिंग का काम करता था, के दफ्तर पर जा कर बैठना शुरू कर दिया. जहां वह दोस्त के प्रौपर्टी डीलिंग के काम को संभालता था. प्रौपर्टी की जो डील वह खुद करता था उस में दोस्त को वह हिस्सा देता था.

मुन्ना के परिवार में पत्नी सुलेखा के अलावा 2 बेटे और 2 बेटियां थीं. मुन्ना की सब से बड़ी बेटी अनीशा (21) अंकिता (19) बेटा दीपक (17) और राकेश (15) साल के हैं.

उस की सब से बड़ी बेटी अनीशा शारीरिक रूप से थोड़ी कमजोर थी और अकसर बीमार रहती थी. यही कारण रहा कि 2-3 साल पहले 10वीं पास करने के बाद उस की पढ़ाई छूट गई. उस से छोटी बेटी अंकिता स्वस्थ होने के साथ बेहद खूबसूरत भी थी. लेकिन बड़ी बहन के बीमार होने के कारण मुन्ना ने उस की तीमारदारी के लिए अंकिता की पढ़ाई भी 10वीं के बाद छुड़वा दी.

हालांकि दोनों बेटों की पढ़ाई लगातार जारी रही. बड़ा बेटा दीपक इस बार 12वीं कक्षा में था. पिछले साल जब अनीशा स्वस्थ हो गई तो मुन्ना ने अनीशा और अंकिता का एक साथ 11वीं कक्षा में एडमिशन करा दिया.

क्योंकि मुन्ना के चारों ही बच्चे पढ़नेलिखने में थोड़ा कमजोर थे. संयोग से सत्यम एनक्लेव में अपने साइबर कैफे में ट्यूशन पढ़ाने वाला पंकज सिंह एक दिन मुन्ना के संपर्क में आया. पता चला कि मुन्ना ने पंकज से अपने चारों बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने के बारे में बात की.

करीब 5 महीने पहले मुन्ना के चारों बच्चे ट्यूशन पढ़ने के लिए पंकज के साइबर कैफे पर जाने लगे. पंकज सुबह करीब साढ़े 9 बजे तक साइबर कैफे खोल लेता था. इस के बाद वह साढ़े 12 बजे तक बच्चों को ट्यूशन पढ़ाता था. इस दौरान अगर कोई टाइपिंग का वर्क ले कर दुकान पर आ जाता, तो वह उस का भी काम कर देता था.

कुल मिला कर पंकज वकालत की पढ़ाई करने के साथसाथ अपना खर्च चलाने के लिए साइबर कैफे और ट्यूशन पढ़ाने का काम करता था, जिस से उस की जिंदगी आराम से गुजर रही थी. जब से मुन्ना के चारों बच्चे पंकज से ट्यूशन पढ़ने लगे थे, तब से उस के कालेज जाने के बाद चारों बच्चों में से ही कोई उस के साइबर कैफे पर बैठ कर उस का संचालन करते थे. शाम को कालेज से आने के बाद पंकज फिर साइबर कैफे संभाल लेता था.

पंकज पढ़ालिखा और आकर्षक व्यक्तित्व का नौजवान था. अंकिता यूं तो पंकज से उम्र में काफी छोटी थी लेकिन डीलडौल और अपने सुडौल बदन की वजह से वह एकदम जवान दिखती थी. न जाने कब और कैसे अंकिता ट्यूशन पढ़तेपढ़ते पंकज के करीब आती चली गई.

यही कारण था कि पंकज से जब भी एकांत में वह मिलती तो गाहेबगाहे पंकज से कुछ ऐसी निजी बातें करने लगती, जिस से धीरेधीरे पंकज भी उस की तरफ आकर्षित हो गया. जल्द ही उन दोनों की नजदीकियों ने प्रेम का रूप धारण कर लिया.

अब कुछ ऐसा होने लगा कि जब भी दोनों को थोड़ा सा एकांत मिलता तो वे एकदूसरे से प्यार भरी बातें करते. कभीकभी झूठ बोल कर अंकिता पंकज के साथ पिक्चर देखने भी चली जाती और पंकज उसे रेस्टोरेंट्स में लंच या डिनर कराने भी ले जाता.

इसी दौरान 3 महीने पहले अचानक पंकज के मकान मालिक ने रिपेयर कराने के लिए जब अपना फ्लैट खाली कराया तो अंकिता के कहने पर मुन्ना के तीसरे फ्लोर पर स्थित कमरे में आ कर रहने लगा. मुन्ना के घर में आ कर पंकज की अंकिता के साथ नजदीकी और ज्यादा बढ़ गई. दोनों के बीच कुछ ऐसे रिश्ते भी बन गए जो शादी से पहले एक लड़की और लड़के के बीच नहीं होने चाहिए.

हालांकि अभी तक मुन्ना या उस के परिवार के किसी सदस्य को दोनों के संबंध की भनक नहीं लगी थी. लेकिन 15 दिन बाद अचानक पंकज ने मुन्ना का मकान छोड़ दिया. वह नवीन त्यागी के मकान में जा कर रहने लगा.

मुन्ना के परिवार में मुन्ना के अलावा किसी के पास भी एंड्रायड मोबाइल फोन नहीं था. मुन्ना की पत्नी सुलेखा के पास मोबाइल फोन जरूर था, लेकिन वह भी साधारण फोन था. अगर परिवार में बच्चों को किसी से बात करनी होती थी तो वह अपने पिता या मां सुलेखा का फोन ही इस्तेमाल करते थे.

अंकिता पंकज से बात करने के लिए वाट्सऐप चैट का इस्तेमाल करती थी. लेकिन मुन्ना उस की चोरी पकड़ न पाया. क्योंकि चैटिंग करने के बाद वह चैट हिस्ट्री को डिलीट कर देती थी. ऐसा लंबे समय से चल रहा था. लेकिन इस घटना से करीब एक महीना पहले अचानक रात को सोते समय मुन्ना की आंखें खुल गईं और वह उठ कर बैठ गया. उस ने देखा बगल में रखा उस का फोन गायब था.

वह अपने कमरे से बाहर निकला तो देखा अंकिता अपने कमरे के बाहर फोन ले कर उस पर चैटिंग कर रही थी.

‘‘इतनी रात को तू किस से बातें कर रही है,’’ अचानक पीछे से अपने पिता मुन्ना की आवाज सुन कर अंकिता हड़बड़ा गई और उस ने झटपट फोन बंद कर दिया.

‘‘कुछ नहीं पापा, अपनी एक फ्रैंड से बात कर रही थी थोड़ा होमवर्क छूट गया था, उसी की फोटो मंगवा रही थी.’’ अंकिता ने अपनी सफाई में जवाब दिया और फोन पिता के हाथ में थमा दिया.

कमरे में जा कर मुन्ना अपने मोबाइल की काल डिटेल्स और वाट्सऐप चेक करने लगा कि आखिर अंकिता किस से बातें कर रही थी.

वाट्सऐप चैक करने के बाद मुन्ना की आंखें फटी रह गईं. क्योंकि वाट्सऐप की उस चैटिंग में अंकिता और पंकज के बीच चैट पर जिस तरह की बातें हो रही थीं, वह इशारा कर रहीं थीं कि दोनों के बीच में न सिर्फ घनिष्ठ रिश्ते हैं, बल्कि उन दोनों के बीच कुछ ऐसा भी हो गया है, जो पिता के लिए नाकाबिलेबरदाश्त था.

मुन्ना ने उसी रात अपनी पत्नी को जगा कर पंकज और अंकिता के बीच हो रही वाट्सऐप चैट के बारे में बताया तो पत्नी सुलेखा भी गंभीर हो गई.

पतिपत्नी की वह रात दोनों की आंखों में ही कट गई. रात भर मुन्ना और उस की पत्नी सुलेखा बात करते रहे कि ऐसी स्थिति में क्या किया जाए.

सुबह होते ही मुन्ना और उस की पत्नी सुलेखा ने अंकिता को अपने कमरे में बुलाया और उसे पंकज के साथ हुई बातचीत की चैट दिखा कर सच बताने को कहा.

मातापिता के सामने आशिकी का सच आया तो एक ही मिनट में अंकिता की रूह कांप उठी. वह अपने मांबाप की नजरों में गिरना नहीं चाहती थी. साथ ही उसे अपनी पिटाई का भी डर हुआ. इसलिए एक ही पल में उस ने बचने का बहाना तलाश कर लिया.

‘‘मैं ने कुछ नहीं किया पापा, पंकज सर मुझ से जबरदस्ती करते हैं. बोलते हैं कि मुझ से दोस्ती करो, नहीं तो तुम्हें फेल करवा दूंगा. पापा, मैंने जब उन की शिकायत आप से करने को कहा तो धमकी देने लगे, मैं तुम्हारे भाईबहनों को ट्यूशन पढ़ाना बंद कर दूंगा और उन्हें भी फेल करा दूंगा.’’

कहते हैं इंसान को अपनी औलाद का झूठ भी सच लगता है, और दूसरे का सच भी झूठ नजर आता है. मुन्ना की पत्नी सुलेखा ने अपनी बेटी अंकिता से प्यार और पुचकार कर यह सच भी उगलवा लिया कि पंकज ने उस के साथ कई बार शारीरिक संबंध भी बनाए हैं.

मुन्ना को जैसे ही इस बात की जानकारी मिली उस के तनबदन में आग लग गई. मुन्ना ने उसी वक्त फैसला कर लिया कि वह अपनी बेटी की अस्मत पर हाथ डालने वाले को जिंदा नहीं छोड़ेगा.

बस उसी दिन से मुन्ना के सिर पर पंकज को खत्म करने का जुनून सवार हो गया. उस के विवेक ने काम करना बंद कर दिया कि यह कदम उठाने के बाद उस का और उस के परिवार का क्या अंजाम होगा.

मुन्ना ने साजिश का तानाबाना बुनना शुरू कर दिया कि किस तरह पंकज की हत्या की जाए. काफी सोचविचार करने के बाद मुन्ना ने फैसला किया कि किसी तरह पंकज को अपने घर बुला लिया जाए और फिर घर में ही उस की हत्या कर दी जाए.

फिर साजिश के तहत उस की पत्नी सुलेखा ने बेटी अंकिता को बहलाफुसला कर पूरी तरह अपने भरोसे में ले लिया. उस ने अंकिता को इस बात के लिए राजी कर लिया कि वह किसी तरह पंकज को घर में बुला लेगी.

8 अक्तूबर, 2019 को दशहरा था.  उस दिन जब अंकिता पंकज से ट्यूशन पढ़ने गई तो उस ने धीरे से पंकज के कान में बोल दिया कि कल सुबह मम्मीपापा कहीं चले जाएंगे, जबकि अनीशा और दोनों भाई स्कूल चले जाएंगे, लिहाजा वह घर पर अकेली होगी. अंकिता ने पंकज से कहा कि वह साइबर कैफे जाने से पहले सुबह 10 बजे के आसपास उस से घर पर मिलने चला आए.

अंकिता के इसी बुलावे पर 9 अक्तूबर की सुबह करीब पौने 10 बजे पंकज घर से निकला. और अंकिता के घर पहुंच गया. ऊपर की मंजिल पर रहने वाले किराएदार अपने काम पर जा चुके थे. पंकज ने जब अंकिता के घर की कालबेल बजाई तो मुन्ना और उस की पत्नी समझ गए कि पंकज आ गया है, लिहाजा वे दोनों बाथरूम में छिप गए.

अंकिता ने दरवाजा खोला और पंकज घर के भीतर दाखिल हो गया तो अंकिता ने दरवाजा भीतर से बंद कर लिया. पंकज को इस बात का जरा भी एहसास नहीं हुआ कि वह आज एक बड़ी साजिश का शिकार होने वाला है. अंकिता के साथ बैठ कर बात करते हुए पंकज को चंद मिनट ही बीते थे कि तब तक बाथरूम का दरवाजा खोल कर मुन्ना और उस की पत्नी सुलेखा बाहर आ गए.

कमरे में आते ही मुन्ना ने अपने हाथ में पकड़ी एक रस्सी पंकज के गले में डाल कर उस का फंदा पंकज के गले में कसना शुरू कर दिया.

सुलेखा और अंकिता ने पंकज के हाथपांव पकड़ लिए, ताकि वह चंगुल से छूटने न पाए. मुश्किल से 5 मिनट लगे और पंकज की दम घुटने से मौत हो गई. पंकज की हत्या करने के तुरंत बाद मुन्ना ने उस का मोबाइल स्विच औफ कर दिया.

पंकज की हत्या करने के बाद मुन्ना उस की पत्नी और अंकिता पंकज का शव उठा कर बेसमेंट में ले आए. मुन्ना ने इस वारदात से 4 दिन पहले ही अपने बेसमेंट के फ्लैट के हाल का फर्श तोड़ कर उस में 6 फुट गहरा , 6 फुट लंबा और करीब 2 फुट चौड़ा एक गड्ढा खोदा.

गड्ढे को भरने के बाद उस पर नया फर्श बनाने के लिए सीमेंट, बालू और डस्ट भी पहले ही ला कर रख दिया गया था.

मुन्ना किसी भी हाल में उसी रात पंकज के शव को ठिकाने लगाना चाहता था. इस दौरान मुन्ना की पत्नी सुलेखा ने किसी भी बच्चे को नीचे बेसमेंट में नहीं आने दिया. रात करीब 10 बजे तक मुन्ना ने बेसमेंट में खोदे गए गड्ढे में पंकज की लाश डाल कर ऊपर से मिट्टी डाल दी. और तोड़े गए बेसमेंट के फर्श को बनाने का काम पूरा कर लिया.

अगले दिन फर्श के उस स्थान पर टाट की बोरी बिछा कर ऊपर से घासफूस रख दी गई और बेसमेंट के एक कमरे में रखा ढेर सारा कबाड़ का फरनीचर व दूसरा सामान ऊपर से रख दिया ताकि किसी को कोई शक न हो.

मुन्ना को पंकज का शव अपने ही घर में दबाने का आईडिया दृश्यम फिल्म को देख कर आया था.

पंकज की हत्या कर शव को अपने मकान के बेसमेंट में दबाने के बाद हरिओम उर्फ मुन्ना को लगा था कि मामला अब खत्म हो गया और किसी को उस पर शक नहीं होगा.

अगले दिन जब पंकज का भाई मनीष उसकी तलाश में साहिबाबाद आया तो वह मुन्ना से भी मिला था, क्योंकि पंकज कुछ दिन न सिर्फ उस के मकान में रहा था बल्कि वह उस के चारों बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ाता था. उस वक्त मुन्ना ने मनीष के साथ हमदर्दी जताते हुए पंकज को तलाश करने का नाटक भी किया था.

लेकिन जब मुन्ना को इस बात की जानकारी मिली की पुलिस ने पंकज की हत्या का मुकदमा अपहरण के रूप में दर्ज कर लिया है और उस के मोबाइल की काल डिटेल्स खंगाली जा रही है तथा कालोनी के सीसीटीवी कैमरे देखे जा रहे हैं तो वह अचानक पकड़े जाने के डर से घबरा गया. 10 अक्तूबर की रात को ही उसने फरार होने का फैसला कर लिया.

घर के कुछ जरूरी सामान, सभी बच्चों के पहनने के कपड़े, जरूरी दस्तावेज और घर के सभी गहने नकदी समेट कर 11 अक्तूबर की सुबह ही वह परिवार समेत फरार हो गया. जाने से पहले मुन्ना ने अपने किराएदारों को बता दिया था कि वह बिहार में अपने किसी रिश्तेदार के यहां होने वाले शादी समारोह में शामिल होने के लिए जा रहा है, आने में उसे कुछ वक्त लगेगा.

अपना घर छोड़ कर फरार हुआ मुन्ना पहले करीब एक हफ्ते तक बिहार में अपने गांव नवादा में रहा. इस दौरान मुन्ना ने एक नया मोबाइल और सिम कार्ड ले लिया था. जिसके जरिए वह अपने करीबी लोगों से लगातार संपर्क करके पंकज हत्याकांड में हुई पुलिस की जांच की जानकारी ले रहा था.

जब उसे पता चला कि पुलिस उस के गांव तक पहुंच सकती है. तो पुलिस के वहां पहुंचने से 2 दिन पहले ही मुन्ना परिवार के साथ वापस गाजियाबाद आ गया. खोड़ा कालोनी में उस के कुछ रिश्तेदार रहते थे. कुछ दिनों तक वह अलगअलग रिश्तेदारों के यहां रहा. पूछने पर उस ने रिश्तेदारों को यही बताया कि एक लड़के से उसका झगड़ा हो गया था, जिस में पुलिस उसे फंसाना चाहती है, इसीलिए वह पुलिस से बचने के लिए इधरउधर छिपता फिर रहा है.

इस दौरान मुन्ना ने तय कर लिया था कि वह जब तक पंकज की हत्याकांड का मामला शांत नहीं हो जाता तब तक गिरधर एनक्लेव में अपने फ्लैट पर नहीं जाएगा. इसलिए उस ने अपने कुछ रिश्तेदारों दोस्तों और प्रौपर्टी डीलिंग में साथ काम करने वाले दोस्त से बड़ी रकम एकत्र की और कोलकाता भागने की तैयारी कर रहा था. ताकि वहां रह कर कुछ समय तक वह छोटामोटा धंधा कर के परिवार का पेट पाल सके, लेकिन इसी दौरान उसे पुलिस ने दबोच लिया.

मुन्ना से पूछताछ में पता चला कि पंकज की हत्या को अंजाम देने के लिए उस की पत्नी सुलेखा और बेटी अंकिता ने उस का साथ दिया था.

लिहाजा पुलिस ने इस केस में साजिश रचने की धारा 120 बी और सबूत छिपाने की धारा 201 जोड़ कर अंकिता और उस की मां सुलेखा को भी आरोपी बना दिया. तीनों आरोपियों को गिरफ्तार कर उन से आवश्यक पूछताछ के बाद उन्हें सीजेएम कोर्ट में पेश किया गया जहां से उन्हें डासना जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस की जांच, आरोपियों से पूछताछ व पीडि़त परिवार से मिली जानकारी पर आधारित

दो गज जमीन के नीचे: क्यों बेमौत मारा गया वो शख्स

दरअसल मैं इस कहानी में कोई नहीं हूं, न ही इस में मौजूद पात्रों से अब मेरा कोई रिश्ता है. कह सकते हैं कि मैं वह हूं जो इन सब के बीच न हो कर भी हो. वजूद सिर्फ दो जोड़ी आंखों का मानिए, जो हमेशा इन पात्रों के इर्दगिर्द मौजूद है.

कहानी के इन मुख्य चरित्रों के सामने दूर की एक बिल्डिंग में मेरा निवास है और सरकारी स्कूल में सामान्य सी टीचर हूं. वैसे सामान्य रह कर भी असामान्य हो जाने के गुर में मैं माहिर हूं. ये आप पर आगे की कडि़यों में जाहिर होगा.  तो चलिए हमारी इन दो आंखों के जरिए आप उन पात्रों के जीवन में प्रवेश करें जिन्होंने अपने स्वार्थ, छोटी सोच और छल की वजह से यह कहानी रची.

दूसरी मंजिल पर स्थित मेरे फ्लैट की खिड़की की सीध में एक 3 मंजिला बिल्डिंग है. इस में कुल 8 फ्लैट हैं. इन में से नीचे वाले पीछे के एक फ्लैट पर हमारी नजर रहेगी और ठीक इस बिल्डिंग के पीछे वाली बिल्डिंग में हमारी अदृश्य आवाजाही होगी.

8 फ्लैटों के समूह वाली बिल्डिंग का नाम ‘भव्य निलय’ और पीछे वाली दुमंजिली बिल्डिंग का नाम ‘निरंजन कोठी’ है. निरंजन कोठी का मालिक निरंजन बत्रा 52 साल का एक हट्टाकट्टा अधेड़ है, जिस के चलनेफिरने और बात करने का लहजा मात्र 35 साल के व्यक्ति जैसा है.

उस की पहचान में शायद ही कोई ऐसी युवती हो जो उस के शोख लहजों पर फिदा न हो. उस की एक खास विशेषता यह भी है कि वह अपना कारोबार बहुत बदलता है. कभी टूरिज्म ट्रैवल, कभी साइबर कैफे और मोबाइल शौप, कभी स्टेशनरी तो कभी ठेकेदारी, बंदा बड़ा अनप्रेडिक्टेबल है. कहूं तो रहस्यमय भी. वो अकेला जीना और अकेला राज करना चाहता है, लेकिन उसे स्त्रियों की कमी नहीं है. लिहाजा वह उन का उपयोग कर के फेंकने से नहीं कतराता.

निरंजन की फिलहाल एक बीवी है जिस की उम्र 24 साल है. हुआ यह था कि पहली शादी वाली पत्नी के चले जाने के बाद उस ने 9 साल बिना शादी के बिताए और लड़कियों से उस के संबंध जारी रहे. अभी ऐसे ही दिन निकल रहे थे कि वह 21 साल की एक लड़की से ब्याह कर बैठा.

यह लड़की उस के साइबर कैफे में अकसर ही आती थी. निरंजन लड़कियों को शीशे में उतारने की कला में माहिर था. इस लड़की के साइबर कैफे से उस के घर तक पहुंचने में ज्यादा दिन नहीं लगे.

रात भर की रंगीनियों के बाद जब सुबह लड़की की आंखें खुलीं तो उसे दिमाग कुछ ठिकाने पर महसूस हुआ. उसे घर में विधवा मां की याद आई. उस की बेचैनी की सुध हुई और वह घर वापस जाने के लिए तड़प उठी. लेकिन तब तक उस के अनजाने ही उस की जिंदगी पर निरंजन की पकड़ मजबूत हो गई थी.

निरंजन के सख्त रवैए से भयभीत हो लड़की घबरा गई. वह उस की हर शर्त को मानने के प्रस्ताव पर तुरंत राजी हो गई. निरंजन ने उसे उस की कोठी पर आते रहने का फरमान सुनाया. स्थिति कुछ ऐसी थी कि उसे लाचार हो कर मानना पड़ा.

यह सब 6 महीने चला और लड़की गर्भवती हो गई. रायता अब ज्यादा ही फैल चुका था. लड़की ने छिपे हुए बटन कैमरे से खुद निरंजन के साथ के अंतरंग क्षणों का वीडियो बना लिया. फिर वह वीडियो क्लिप निरंजन को भेज कर धमकी दी, ‘सारा बिजनैस ठप हो जाएगा अगर मैं ने यह वीडियो वायरल कर दी तो.

‘‘मैं तो गरीब घर की लड़की हूं और क्या लुटेगा. बहुत हुआ तो शहर छोड़ दूंगी. लेकिन इस तरह लूट कर मुझे फेंकने नहीं दूंगी. मेरी मां को बेइज्जती से बचाने का एक ही रास्ता है कि तुम मुझे और मेरे होने वाले बच्चे को अपना लो. मुझ से शादी कर लो.’

समाज में निरंजन बड़े धौंस से रहता था. कोठी, गाड़ी, एक साथ कई बिजनैस, उस का डीलडौल सब उस की धौंस की वजह से थे. आखिर ऊंट आ ही गया पहाड़ के नीचे.

इस तरह लड़की नताशा उस की बीवी बन गई. अभी 4 साल हुए थे उन की शादी को. फिर यूं अचानक निरंजन बत्रा की लाश रात गए उस की कोठी पर मिलना, पुलिस की रेड, नताशा को पुलिस कस्टडी में लिया जाना, जमानत पर सुबह तक उस का घर वापस आ जाना, माजरा आखिर क्या था?

रात से ले कर सुबह तक कोठी में अंदरबाहर लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा था. मीडिया वाले भी थे, पुलिस सब को बाहर ठेल रही थी. नताशा काले ब्लाउज, नेट वाली जौर्जेट की वाइट साड़ी में उन्मुक्त केश आंखों में आंसू हौल के फर्श पर बिखरी सी बैठी थी. इस के बावजूद लोगों के आकर्षण का केंद्र थी.

उस की आंखों में खुद को निर्दोष साबित करने की पीड़ा थी या वियोग की पीड़ा, अभी कुछ नहीं कहा जा सकता था. हां, मेरे होंठों पर जरूर विद्रूप की एक हलकी रेखा फैल गई. मैं ने इसे खुद से छिपाते हुए भी तुरंत वहां से दूर हट जाना ही ठीक समझा.

4-5 दिनों तक निरंजन बत्रा के घर भीड़ लगी रही. मांबाप कोई थे नहीं और संतान अब तक उस ने होने नहीं दी थी. किसी भी तरह उस ने अपने आसपास परिवार पैदा नहीं होने दिया. उसे उस की स्वच्छंदता में खलल नहीं चाहिए थी. नताशा इस वक्त अकेली ही जूझ रही थी.

निरंजन की मौत के बाद चचेरे, ममेरे भाई आसपास मंडराते नजर आए. 4 साल निरंजन के साथ रह कर नताशा इतनी तो चतुर हो ही गई थी कि चील, बाज और गिद्धों को पहचान ले. उस ने बड़ी ही चतुराई से उन्हें नजरअंदाज करते हुए रफादफा किया.

नताशा अब कठघरे में थी. सारा शक उसी पर था. जांच जारी थी. यह बात भी सच थी कि रात के 11 बजे जब कत्ल का खुलासा हुआ, तब तक नताशा और निरंजन घर में अकेले थे और दोनों इस के पहले तक चीखचीख कर लड़ रहे थे, पड़ोसियों ने सुना था.

पुलिस अपनी ओर से शिनाख्त में व्यस्त थी, लेकिन मैं नताशा से मिलने के लिए उतावली थी. क्या निरंजन जैसे सख्त जान आदमी नताशा जैसी साधारण डीलडौल वाली लड़की से मात खाया होगा.

रात के 10 बज रहे थे जब मैं ने नताशा का दरवाजा खटखटाया. घर में छोटा सा टेलरिंग शौप चलाने वाली विधवा मां की जिस मुरछाई सी बेटी के रूप में नताशा ने इस घर में अपनी उपस्थिति की मुहर लगाई थी, आज वह सिग्नेचर पूरी तरह बदल चुका था.

थकी बोझिल और चिंतित रहने के बावजूद वह अपनी शौर्ट्स और क्रौप टौप में गजब ढा रही थी. वैसे उस के चेहरे पर उलझन की लकीरें साफ थीं, मुझे देख कर अवाक रह गई. शायद इसलिए कि मुझे कभी देखा नहीं था.

मैं ने उस से कहा, ‘‘मैं पर्णा हूं, तुम्हारी मदद कर सकती हूं.’’  ‘‘किस सिलसिले में?’’

‘‘मासूम क्यों बनती हो? मुझ से मदद लिए बिना तुम इस भंवर से पार नहीं पा सकती.’’

‘‘आइए, अंदर आइए. आप कौन हैं? कैसे मदद करेंगी मेरी?’’

सीआईडी की तरह पूरे हौल का नजरों से मुआयना करते हुए मैं ने पूछा, ‘‘कहां पड़ी थी लाश और किस हाल में थी?’’

सवाल पूछा तो सही लेकिन मेरा ध्यान कहीं और चला गया था.  कुछ भी तो नहीं बदला था. बस कुछ सामान इधर से उधर हुए थे और कुछ नए जुड़े थे.

नताशा ने जो कुछ कहा, उस का आधा हिस्सा ही कानों तक पहुंचा और बाकी मैं स्वयं ही देख कर समझने की कोशिश कर रही थी. नताशा कुछ उतावली हो रही थी, ‘‘आप किस तरह मदद करेंगी?’’

‘‘निरंजन के बारे में तुम कितना आश्वस्त हो? मैं जानती हूं वह चंचल मति था, नई लड़कियां उस की बहुत बड़ी कमजोरी थीं.’’

‘‘सच मानिए, मैं ने उसे नहीं मारा. मैं उसे मार भी नहीं सकती. खासकर चाकू घोंप कर तो कभी नहीं.’’ बेसहारा नताशा जैसे अंधेरे में ही तिनके को पकड़ने की कोशिश में लगी थी.

‘‘लेकिन तुम ने पहले उसे शराब में जहर मिला कर पिलाया, तब चाकू से…’’  ‘‘मैं ने ऐसा कुछ नहीं किया, उलटा उसी ने…’’ ‘‘उसी ने? क्या किया था उस ने?’’

‘‘मैं अभी हफ्ते भर पहले मिसकैरेज से निकली हूं. उस ने मुझ से छिपा कर दवा दे दी थी ताकि मेरा बच्चा खत्म हो जाए.’’ ‘‘अच्छा, तो इस बार भी?’’  ‘‘मतलब… इस बार भी मतलब?’’ मुझे पढ़ने की नाकाम कोशिश में उस का चेहरा लाल हो गया था, फिर उस ने आगे कुछ समझने का प्रयास करते हुए कहा, ‘‘हां, इस बार भी. शादी कर तो ली थी उस ने, लेकिन बाद में उसे लगा कि मेरे बच्चे के कारण वह जिम्मेदारियों में बंध जाएगा, इसलिए पहली बार भी मुझे मजबूर किया था उस ने.’’

नताशा का ध्यान खुद की तरफ ही था, ‘‘अच्छा ही है.’’ मैं ने बात बढ़ाते हुए कहा, ‘‘तुम्हें कैसे पता कि उस ने दवा खिलाई थी?’’

‘‘उस ने शरबत में घोल कर दवा खिलाई थी. जब तक समझ पाती पी चुकी थी मैं. बेबी नष्ट करने को ले कर वह वैसे भी मुझ से लड़ता रहता था.’’

‘‘कहीं और अफेयर था उस का?’’

अचानक जैसे होश आया हो उसे. एक सहारे के फेर में कहीं उस ने राज तो जाया नहीं कर दिए? शायद उसे निरंजन के लड़ते रहने की बात जाहिर करने का अफसोस था क्योंकि इस से नताशा के कत्ल का अंदेशा पुख्ता होता था.

उस ने हड़बड़ा कर पूछा, ‘‘आप हैं कौन? बताती क्यों नहीं?’’

‘‘मैं जो कोई भी हूं, बस जानो कि तुम से सहानुभूति है और मुझे लगता है कि इस मामले में तुम निर्दोष हो.’’

‘‘दीदी. मैं आप को दीदी कह सकती हूं? बड़ी ही हैं आप मुझ से.’’

‘‘20 साल बड़ी हूं तो कह ही सकती हो. इतना जान लो निरंजन ने अपनी पहली बीवी के बच्चे को भी मारा था.’’

‘‘क्या कहती हैं आप? आप को कैसे पता?’’ ‘‘तुम मेरा परिचय ढूंढने की कोशिश मत करो, बस जानकारी जुटाओ.’’

निरंजन बिंदास किस्म का इंसान था. वह अपने अटल यौवन और शोख अंदाज का भरपूर लाभ उठाना चाहता था. स्त्रियां उस के डीलडौल और मस्ताने अंदाज पर दीवानी भी थीं. उस का पहला बच्चा 3 साल का  मेंटली रिटार्डेड बेटा था. उस की बड़ी जिम्मेदारी बन कर उभर रहा था.

एक तरह से उस की आजादी पर पहरा. उस की मां के नौकरी पर जाने और आया की जरा सी लापरवाही ने उसे अपने बच्चे को मार देने को उकसाया और वह कर गुजरा.

नौकरी से आ कर मरे हुए बच्चे को जब सीने से लगा कर उस मां ने कसम खाई कि निरंजन को बेमौत मरते देख कर ही उसे चैन मिलेगा, तब उस में इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह कानून की नजर में निरंजन का अपराध साबित कर सके.

‘‘दीदी, अब आप ही बताइए कि मैं इस जाल से कैसे मुक्ति पाऊं? अभी हम लोग रात गए बच्चे के मिसकैरेज को ले कर लड़ ही रहे थे कि वह दनदनाता हुआ घर से निकल गया. इस के पहले मैं लोगों से सुन चुकी थी कि निरंजन भव्य निलय में रहने वाले एक दंपति के घर रोजाना जाने लगा है.’’

‘‘जहरा खातून और अली बाबर के घर?’’  ‘‘हां, आप को कैसे मालूम?’’

बात बनाने वाली औरतें उसे खूब पसंद हैं. जहरा खातून इसी ढांचे की है, पति कमाता नहीं है अलबत्ता बीवी के कपड़े की दुकान में सेल्समैन जरूर है. जहरा ने निरंजन को तीरेनजर से आरपार कर रखा था. पान वाले होंठ, रसीले गुलाबी. पायल वाली ठुमकती एडि़यां और लचकती कमर से निरंजन बेकाबू था.

वैसे तो वह कंजूस था, लेकिन मनपसंद औरतों पर लुटाने में उसे कोई गुरेज भी नहीं था. वह और जहरा इसी ताक में रहते कि कब अली बाबर घर से बाहर हो और उन्हें अकेले में मौका मिले. लेकिन मौके थे कि लंबे समय तक मिले नहीं. दोनों झल्लाए हुए थे.

‘‘दीदी, निरंजन के घर से बाहर हो जाने के बाद मैं सोफे पर पसरी पड़ी थी. मैं अंदर से मर चुकी थी. पत्नी के नाते उस से मेरा लगाव अब बिलकुल ही खत्म था. उस ने मेरी हैसियत जबरदस्ती गले पड़ी वाली कर रखी थी. अपनी जिंदगी वह अलग जीता था. मैं बस तड़पतड़प कर जी रही थी.

‘‘अभी मैं सोफे पर ही पड़ी थी कि वह धड़धड़ाते हुए अंदर आया और मुझे संभलने का मौका दिए बगैर मेरी नाक पर दवा लगा रुमाल रख दिया. जहां तक मुझे याद है, उस के साथ जहरा खातून भी थी.’’

‘‘यानी तुम तब बेहोश थी जब तुम्हारे घर कुछ खतरनाक खेल खेले गए?’’ ‘‘जी.’’

‘‘इसलिए तुम पुलिस की पूछताछ का जवाब नहीं दे पा रही हो. और बेहोश करने के बाद काम आया कपड़ा बाद में लाश के पास पाया गया.’’

‘‘जी दीदी, मगर आप? आप प्लीज बताइए, आप हैं कौन? क्यों मेरी मदद कर रही हैं?’’  ‘‘निरंजन के पास पैसा तो काफी था. क्या वह घर की तिजोरी में पैसे अब भी रखता था?’’  ‘‘हां, कभी जरूरत पड़े तो.’’

‘‘सही फरमाया, काले कामों में सफेद पैसे जरूरत के वक्त काम नहीं आते. तो हम एक बढि़या वकील करते हैं और जरूरत हुई तो खुफिया एजेंसी की मदद लेंगे. रही बात मेरी, तो सही समय आने दो अभी तुक्का मत लगाना.’’

मैं ने उसे गहरी मुसकान से देखा और घर से निकल गई. मेरी खुद की जांच अपने तरीके से चल रही थी. नताशा को सरकारी वकील दिया गया था लेकिन उस के लिए मेरे खुद के वकील लगाने के प्रस्ताव को कोर्ट से मंजूरी मिल गई.

हम ने अपने स्तर पर नए सिरे से पड़ताल शुरू की.  इधर जब से यह केस हुआ था, न जाने क्यों जहरा तो जहरा, उस का पति अली बाबर तक कहीं दिखाई नहीं दे रहा था. उन का कारोबार घर में ही था और वह अच्छे खातेपीते लोग थे. अचानक घर में ताला लगा नजर आने लगा. लोगों के बीच कानाफूसी हुई, लेकिन मर्डर मिस्ट्री में कौन नाक डाले. वैसे भी जमाने में नाक ही ऐसी चीज है जिस की फिक्र में बड़ेबड़े संभले रहते हैं.

लेकिन मुझे तसल्ली नहीं थी. मैं ने एक रात 12 बजे अपने डर और दायरों को दरकिनार करते हुए भव्य निलय का रुख किया.

जहरा के घर क्या वाकई ताला जड़ चुका है या कुछ और बाकी भी है.  भव्य निलय जाने से पहले मैं ने हिम्मत बटोरी, क्योंकि कई रिस्क लेने थे. और हां, ये लेने ही थे क्योंकि इस के बिना मैं खुद भी बेचैन थी.

मैं ने बुरका पहना, छोटी सी अटैची ली, भव्य निलय के फाटक पर पहुंची. यहां गार्ड को जवाब देना था, कहा, ‘‘जहरा आपा से मिलने आई हूं. उन की खाला की बेटी हूं.’’

‘‘पर मैडम, वे तो यहां नहीं हैं.’’  ‘‘अरे, फिर मैं इतनी रात गए कहां रुकूंगी. मेरी ट्रेन लेट हो गई, अब तो कोई होटल भी नहीं मिलेगा, कुछ करो.’’ मैं ने गार्ड को 50 रुपए का नोट थमाया.

नोट की चोट सीधे दिमाग पर पड़ती है. बंदा ढीला पड़ गया. मुझे पीछे गली वाले दरवाजे की तरफ ले गया और बताया कि जहरा ने किसी को भी बताने को मना किया है. दरअसल पुलिस से पंगा है. इन की निगरानी की वजह से इन के घर के सामने दरवाजे पर ताला लगा है.

‘‘अच्छा है, आप उन का साथ दे रहे हैं वरना मेरी आपा का क्या होता.’’

मैं ने जहरा को फोन लगाने का नाटक किया और उसे लगे हाथ वहां से रवाना कर दिया. गार्ड के जाने के बाद मैं खिड़की से नजारे देखने की कोशिश करने लगी. आश्चर्य! यह निरंजन था जहरा के साथ. मेरा अंदेशा सही था. निरंजन और जहरा अपनी मनमानी पर थे, आजादी के जश्न में मग्न.

उन्हें इस तरह कैमरे में कैद कर और खुद को उन्हें देखते रहने की जिल्लत से बचा कर मैं निकलने को हुई. एक अच्छेखासे अभिनय के साथ मैं गार्ड के सामने से गुजरी. गार्ड कहता रह गया, ‘‘अरे मैडम, कहां जा रही हो?’’

मैं सिसकते हुए दौड़ती रही और कहती रही, ‘‘आपा के साथ पता नहीं कौन गैरमर्द है. मुझे घुसने ही नहीं दिया. जाने आपा कैसे बदल गईं.’’

इतनी देर में मैं काफी तेज भाग कर गली में आ चुकी थी और गार्ड के भौचक रह जाने से ले कर मेरे नदारद होने तक कई मिनट के फासले बड़ी सफाई से अंधरे में गुम हो चुके थे.

मेरे दिमाग में गुत्थी लगभग सुलझ चुकी थी, लेकिन साबित कैसे किया जाए. ये लोग खर्च बचाने और सुरक्षित रहने के लिए खुद के ही घर में अय्याशी करते हैं लेकिन बाहर वालों की आंखों में धूल झोंके रखने के लिए बाहर ताला लगाते हैं.

यानी लगे हाथ यह भी बात है कि निरंजन अगर जिंदा है तो लाश किस की है? और अली बाबर के बाहर माल लेने जाने की बात भी कहां तक सच्ची है?

इन्हें रंगेहाथ पकड़ कर जिरह करनी पड़ेगी. मैं ने वकील से पहले अकेले में मिलना सही समझा. उन्हें वीडियो रिकौर्डिंग दिखाई और सारी बातें बताईं.

वकील ने कहा, ‘‘मैडम आप ने लगभग एंड गेम खेल लिया है समझो, खुफिया एजेंसी की जरूरत नहीं पड़ेगी.’’

बात साफ थी कि निरंजन और जहरा की अय्याशी की वजह से ये सारे खूनी तमाशे हुए और नताशा की सफाई कार्यक्रम के तहत उसे फंसाने की साजिश की गई. लेकिन सवाल यह था कि आखिर लाश किस की थी? कहीं जहरा के शौहर अली बाबर की तो नहीं? लाश को उन्होंने बुरी तरह गोद दिया था, चेहरा तेजाब से झुलसाया गया था. वे शायद इस खुशफहमी में थे कि निरंजन की अनुपस्थिति को उस का कत्ल मान लिए जाने में दिक्कत नहीं आएगी.

खून हुए महीना भर हो चुका था. जांच के पीछे से उन की रंगरलियां तो जहरा के घर में चल ही रही थीं लेकिन सवाल यह था कि उन की जिंदगी की गाड़ी चल कैसे रही थी? न तो निरंजन बिजनैस संभाल रहा था और न ही जहरा कपड़े बेच रही थी. जमापूंजी के लिए दिन में उन्हें बैंक भी तो जाना था. कौन था जो उन की मदद कर रहा था?’’

खैर, ढेरों सवालों के साथ वकील साहब और मैं पुलिसिया जांच के संपर्क में थे.

हम ने पुलिस को वीडियो दिखाया और दोनों को तब धर दबोचा गया, जब दोनों रात में जहरा के घर मौज में डूबे थे. निरंजन के चेहरे का पानी उतर चुका था. वह बदहवास सा पुलिस की गिरफ्त में था. उस ने सोचा नहीं था कि उस की चालाकी इस तरह पकड़ी जा सकेगी.

दरअसल, उसे उस सामान्य सी टीचर की असामान्य सी उपस्थिति का अंदाजा नहीं था. मैं ने पुलिस से अनुरोध किया था कि अगर परिणाम जल्द चाहते हैं, तो मुझे भी जिरह का मौका दिया जाए. प्लानिंग के अनुसार वकील, पुलिस और जज की उपस्थिति में शुरुआती जिरह के लिए निरंजन की कोठी का चयन किया गया.

नताशा के सामने निरंजन और जहरा को बिठाया गया. मैं ने सवाल पूछने की इजाजत मांगी. ये सवाल कायदे के अनुसार संबंधित अधिकारियों को पहले ही बताए जा चुके थे.

कई सवालों की बेल मेरा सवाल था— ‘‘नताशा, यदि निरंजन मर चुका होता तो उस की पूरी संपत्ति तुम्हारी होती. क्योंकि उस की पहली बीवी का कोई अतापता नहीं है. तो अचानक निरंजन को जिंदा देख कर तुम्हें लगा नहीं कि मुसीबत वापस कैसे आई?

‘‘क्योंकि तुम तो यही जानती थी कि वह मर चुका था. जिस

किसी ने भी मारा हो, आखिर लाश तो पुलिस तुम्हारे घर से ले गई थी. दूसरे क्या तुम अब खुश हो कि तुम हत्या के आरोप से छूट सकती हो?’’

‘‘मैं ने किसी की भी हत्या तो की नहीं थी, इसलिए मेरे छूट जाने का मुझे पूरा विश्वास था. लेकिन उस के आने से मेरी पुरानी मुसीबत के दोहराव की पूरी संभावना न हो, इस का डर था.’’

‘‘कौन सी मुसीबत?’’  ‘‘गुलामी.’’

मैं दूसरे सवाल पर आ गई, ‘‘नताशा क्या तुम जानती हो कि हम ने जान लिया है कि पिछले दिनों तुम ने ही उन खूनियों को निरंजन की इस कोठी में आसरा दिया और पुलिस को इस बारे में इत्तला भी नहीं दी? जबकि तुम जानती हो हत्या उस ने की है.’’

‘‘उसे पैसे और रहने के लिए सुरक्षित आसरा चाहिए था. वह आसानी से मुझे अपनी कोठी और दुकान नहीं देना चाहता था. वैसे भी इस के बिना 30 साल की जहरा भला उस के साथ कितने दिन रहती? फिर अली बाबर भी पैसे के लिए अपनी बीवी को निरंजन के हवाले करने से गुरेज नहीं करता था. तो इसे अली बाबर को भी पैसे देने होते थे.’’

‘‘उस ने तुम से संपर्क कब साधा?’’

‘‘आप के मुझ से बात कर के चले जाने के लगभग महीने भर बाद वह और जहरा आए थे. मैं बेतरह चौंक पड़ी थी, कहा उस के रहने के लिए उसे कोठी में बने सुसज्जित तहखाना दे दूं. जैसे मैं दुकान संभाल रही हूं, वैसे ही संभालती रहूं, कोठी में भी अपना आधा हिस्सा समझूं.

‘‘बस जहरा के साथ मुझे उस के रिश्ते में परेशानी न हो और उसे कमाई का सारा हिसाब बताती रहूं साथ ही उस के डिमांड को पूरा करती रहूं. अगर इस बीच उसे धोखे में रख कर कोई कदम उठाया तो वह मेरी जिंदगी का आखिरी दिन होगा.’’

‘‘तो तुम मान गई?’’ ‘‘मेरे सामने वापसी का कोई चारा नहीं था. उधर मेरी मां मर चुकी थी. किराए का घर था जो हाथ से जा चुका था. इन की बात नहीं मानती तो ये दोनों मिल कर मेरा कत्ल कर देते.’’

पुलिस अब निरंजन से मुखातिब थी. उस से कहा, ‘‘चलो, अब तुम भी अली बाबर के कत्ल का किस्सा सुना ही दो.’’

मैं ने निरंजन को चौंकते देखा. पुलिस के अधिकारी उसे चौंकते देख भी अनजान से बने रहे. उन्होंने दोबारा दबाव बनाया, ‘‘क्या हुआ, बोलते क्यों नहीं बाबर को कैसे और क्यों मारा तुम दोनों ने?’’

‘‘हम ने उसे नहीं मारा.’’ निरंजन ने इसी में कुछ मौके तलाशने शुरू कर दिए ताकि पुलिस को बरगला कर फिलहाल केस लटकाया जा सके.

‘‘अली बाबर मरा नहीं है, चाहो तो उसे फोन कर लो. हम ही बात करवा सकते हैं.’’ कहते हुए निरंजन और जहरा के चेहरों पर उम्मीद  की लकीरें दिखने लगी थीं.

‘‘चलो, फोन लगाओ.’’ पुलिस के कहते ही निरंजन ने एक नंबर डायल किया और तुरंत उधर से हैलो की आवाज सुनाई पड़ी जैसे कोई तैयार ही बैठा था.

पुलिस के अधिकारी ने तुरंत फोन उस के हाथ से ले कर जैसे ही हैलो कहा, उस तरफ की आवाज लड़खड़ा गई.

‘‘क्यों गार्ड जी, मायके की याद आ रही थी जो कानून से खेल गए?’’ पुलिस के इतना कहते ही निरंजन और जहरा के चेहरे का रंग उड़ गया.

‘‘धोखा नहीं दे सकते जनाब, हम आप जैसों को रास्ते पर लाने के लिए ही पैदा हुए हैं, समझे. वो लाश तुम्हारी नहीं थी, ये तो फोरैंसिक विभाग ने पहले ही पता कर लिया था, मगर वो अली बाबर की भी नहीं थी. कहो क्यों?’’ पुलिस की बातें सुन निरंजन और जहरा आंखें चुराने की कोशिश करते दिखे.

‘‘अली बाबर पैसों का भूखा था और इस का फायदा उठा कर तुम ने उसे तस्करी के जाल में फांस कर यहां से दूर उत्तर प्रदेश के उस के गांव भेज रखा है. पहले तो उस से गांजे की तस्करी करवाते हो. उसे उस का थोड़ाबहुत हिस्सा दे कर भविष्य के स्वप्नजाल में उलझा कर उसे गांव में ही छिपे रहने को कहते हो. इधर गार्ड को अली बाबर बना कर पेश करते हो ताकि मनमरजी उस से कहला सको.

‘‘अली बाबर हमारे कब्जे में है समझे. अब सीधे मुंह बता दो कि वह लाश किस की थी और तुम ने नताशा की आंखों में धूल झोंक कर उसे इस कत्ल में फांसा किस तरह?’’

‘‘नताशा से शादी के बाद मैं घर में मन रमाने को राजी नहीं था और न ही बच्चे पैदा करने में दिलचस्पी दिखाई. तब नताशा मेरे साथ लड़ाई करने लगी. अपनी आजादी में खलल पड़ता देख मैं परेशान हो गया. तब तक जहरा का जादू भी मुझ पर चलने लगा था. मैं ने अली बाबर को बिजनैस के सिलसिले में बाहर भेजने का प्लान बनाते हुए अपनी दुकान पर एक अच्छे हैंडसम लड़के को रख लिया.

‘‘बच्चे मुझे पसंद नहीं थे. बेकार समय खराब करते हैं, जिम्मेदारी बढ़ाते हैं सो नताशा को कहीं और व्यस्त करना जरूरी था ताकि वह मेरे अलावा भी कुछ सोच सके. मुझे ऐसे भी दूसरे बिजनैस संभालने पड़ते तो मैं ने उसे दुकान पर भेजना शुरू किया. अकेलेपन में उस की घनिष्ठता उस लड़के के साथ बढ़ती रही और इस में मेरी शह पा कर उन का डर खत्म हो गया.’’

अवाक थी मैं. ये कैसा इंसान था. उस ने आगे कहना जारी रखा, ‘‘अंतत: इन की दोस्ती शरीर के आखिरी पड़ाव में पहुंचने लगी और तब मैं बहुत बुरा महसूस करने लगा जब मेरी ब्याहता मेरे ही शह पर मेरी दुकान पर काम करने वाले लड़के से गर्भवती हो गई.

‘‘उस बच्चे की जिम्मेदारी मुझ पर सौंपने की कोशिश करने लगी. अगर वह चुपचाप बात यहीं खत्म कर लेती तो कोई बात नहीं थी, लेकिन उस ने बच्चे के लिए सोचना शुरू कर दिया था, जबकि उस लड़के को इन बातों से कोई मतलब नहीं था. जो भी करना था, वही करती लेकिन बच्चे वाले पचड़े से मुझे दूर ही रखती.’’

इस बात पर उन तीनों के अलावा सब भौचक थे. हमारी गुत्थी अब आखिरी मंजिल पर लगभग पहुंचने वाली थी. सभी सांसें रोके उस की बात सुन रहे थे.

उस ने कहना जारी रखा, ‘‘हम उसे बहला कर जहर वाली शराब पिला कर अपने साथ लाए थे. तब नताशा आंखें बंद किए सोफे पर पड़ी थी. इस के पहले घर से निकलते वक्त नताशा के साथ महीने भर का गर्भ गिर जाने को ले कर काफी लड़ाई हुई थी. क्योंकि मैं ने उसे मिसकैरेज की दवा उस की गैरजानकारी में पिलाई थी.

मैं ने और जहरा ने मिल कर नताशा के नाक पर बेहोशी की दवा वाला रूमाल रखा. फिर हम ने उस अधमरे शख्स को सोफे पर लिटा कर चाकू से कई वार कर के खत्म किया, तेजाब से चेहरा जलाया और उस की मौत का यकीन हो जाने पर नताशा को फंसाने का सारा इंतजाम कर लिया.

‘‘मैं अपने गांव की तरफ भाग निकला और हमारे प्लान के मुताबिक जहरा ने यह सोच कर कत्ल का हल्ला किया कि इस से कभी मेरी खबर नहीं ली जाएगी और हम चुपचाप सब कुछ समेट कर विदेश चले जाएंगे, नताश केस में फंस जाएगी. अली बाबर से जहरा का संपर्क टूट जाएगा और उसे रुपए देने से हमेशा के लिए मुक्ति मिल जाएगी.’’

‘‘वो शख्स आखिर कौन था, जिस की हत्या हुई?’’ हमारे वकील अब साफ शब्दों में सुनना चाह रहे थे.

‘‘वही लड़का, जिसे मैं ने दुकान पर रख कर नताशा के साथ मिलनेजुलने के मौके दिए.’’

पुलिस अधिकारियों की ओर देखते हुए वकील ने कहा, ‘‘इन का उद्देश्य एक साथ कई तीर मारना था. बीवी से ले कर उस के बौयफ्रैंड, इधर खुद के रंगरलियों पर खर्च के लिए गांजे की तस्करी और अय्याशी के लिए पार्टनर पति को दूर रखने की चालाकी, अपने खून का नाटक रच अय्याशी को छिपाने की कोशिश, बीवी को खून के इलजाम में अंदर कर खुद की संपत्ति को बीवी के नाम करने से बचाने की चेष्टा. एक साथ कितने स्वार्थ?’’

अब नताशा चुप नहीं रह पाई. मेरी ओर देख कर उस ने पूछा, ‘‘लेकिन आप ने अब तक नहीं बताया कि आप कौन हैं?’’

मेरे चेहरे पर मुसकान थी. खुद की कही बात का मैं ने लाज रखा था. अब परदा उठना ही चाहिए.

‘‘मैं निरंजन की पहली बीवी हूं और इस ने मेरे बेटे की पहली बलि ली थी. इसे याद होगा या नहीं, मुझे इस की वह बात हर पल याद रही जो इस ने मुझ से कहा था. याद है निरंजन, क्या कहा था तुम ने?

‘‘स्कूल से लौटने के बाद जब मैं ने अपने 3 साल के बेटे के कत्ल का दोषी पाया तुम्हें, तभी मैं ने बददुआ दी कि एक मां को रुला कर तुम ने अच्छा नहीं किया. इस ने मुझ से कहा था क्या कर लेगी तू, एक सरकारी स्कूल की मामूली सी टीचर.’’

निरंजन चौंका और मेरी ओर देखता रहा. मैं ने तुरंत अपने आधे ढंके चेहरे को सब के सामने अनावृत्त कर दिया. मेरे चेहरे के साथ अब सारे परदे अनावृत्त हो गए थे. हट गए थे.

पुलिस के एक अधिकारी ने कहा, ‘‘निरंजन की पहली बीवी पर्णा का साथ मिला तो हम इतने पेचीदे राज आसानी से सुलझा पाए, पर नताशा का अपराध छिपा कर अपराधी को पनाह देने के एवज में कुछ सजा तो स्वीकार करनी पड़ेगी.’’

बेमौत मरे एक शख्स की लाश के 2 गज जमीन के नीचे जितने भी राज दफन थे, उन का खुलासा होना और दोषियों का सजा पाना कानून की जीत थी. और इस जीत का जश्न मैं अपने बेटे की यादों में महसूस कर पा रही हूं.