अधूरी मौत-भाग 2 : क्यों अपने ही पति की खूनी बन गई शीतल

‘‘अच्छा होता तुम भी हमारे साथ ऊपर चलते. एक टेंट तुम्हारे लिए भी लगवा देते.’’ अनल गाड़ी से उतरते हुए बोला.

‘‘नहीं साहब, मैं नहीं चल सकता. मैं आज अपने परिवार के साथ रहूंगा. यहां आप को टेंट 24 घंटे के लिए दिया जाएगा. उस में सभी सुविधाएं होती हैं. आप खाना बनाना चाहें तो सामान की पूरी व्यवस्था कर दी जाती है और मंगवाना चाहें तो ये लोग बताए समय पर खाना डिलीवर भी कर देते हैं. यहां कैंप फायर का अपना ही  मजा है. इस से जंगली जानवरों का खतरा भी कम रहता है.’’ ड्राइवर ने बताया.

लगभग एक घंटे की चढ़ाई के बाद दोनों पहाड़ी की सब से ऊंची चोटी पर थे.

‘‘हाय कितना सुंदर लग रहा है. यहां से घर, पेड़, लोग कितने छोटेछोटे दिखाई पड़ रहे हैं. ऐसा लगता है जैसे नीचे बौनों की बस्ती हो. मन नाचने को कर रहा है,’’ शीतल खुश हो कर बोली, ‘‘दूर तक कोई नहीं है यहां पर.’’

‘‘अरे शीतू, संभालो अपने आप को ज्यादा आगे मत बढ़ो. टेंट वाले ने बताया है ना नीचे बहुत गहरी खाई है.’’ अनल ने चेतावनी दी.

‘‘यहां आओ अनल, एक सेल्फी इस पौइंट पर हो जाए.’’ शीतल बोली.

‘‘लो आ गया, ले लो सेल्फी.’’ अनल शीतल के नजदीक आता हुआ बोला.

‘‘वाह क्या शानदार फोटो आए हैं.’’ शीतल मोबाइल में फोटो देखते हुए बोली.

‘‘चलो तुम्हारी कुछ स्टाइलिश फोटो लेते हैं. फिर तुम मेरी लेना.’’

‘‘अरे कुछ देर टेंट में आराम कर लो. चढ़ कर आई हो, थक गई होगी.’’ अनल बोला.

‘‘नहीं, पहले फोटो.’’ शीतल ने जिद की, ‘‘तुम यह गौगल लगाओ. दोनों हथेलियों को सिर के पीछे रखो. हां और एक कोहनी को आसमान और दूसरी कोहनी को जमीन की तरफ रखो. वाह क्या शानदार पोज बनाया है.’’ शीतल ने अनल के कई कई एंगल्स से फोटो लिए.

‘‘अब उसी चट्टान पर जूते के तस्मे बांधते हुए एक फोटो लेते हैं. अरे ऐसे नहीं. मुंह थोड़ा नीचे रखो. फोटो में फीचर्स अच्छे आने चाहिए. ओफ्फो…ऐसे नहीं बाबा. मैं आ कर बताती हूं. थोड़ा झुको और नीचे देखो.’’ शीतल ने निर्देश दिए.

तस्मे बांधने के चक्कर में अनल कब अनबैलेंस हो गया पता ही नहीं चला. अनल का पैर चट्टान से फिसला और वह पलक झपकते ही नीचे गहरी खाई में गिर गया. एक अनहोनी जो नहीं होनी थी हो गई.

‘‘अनल…अनल…अनल…’’ शीतल जोरजोर से चीखने लगी. उस ने ड्राइवर को फोन लगाया.

‘‘भैया, अनल पैर फिसलने के कारण खाई में गिर गए हैं. कुछ मदद करो.’’ शीतल जोर से रोते हुए बोली.

‘‘क्या..?’’ ड्राइवर आश्चर्य से बोला, ‘‘यह तो पुलिस केस है. मैं पुलिस को ले कर आता हूं.’’

लगभग 2 घंटे बाद ड्राइवर पुलिस को ले कर वहां पहुंच गया.

‘‘ओह तो यहां से पैर फिसला है उन का.’’ इंसपेक्टर ने जगह देखते हुए शीतल से पूछा.

‘‘जी.’’ शीतल ने जवाब दिया.

‘‘आप दोनों ही आए थे, इस टूर पर या साथ में और भी कोई है?’’ इंसपेक्टर ने प्रश्न किया.

‘‘जी, हम दोनों ही थे. वास्तव में यह हमारा डिलेड हनीमून शेड्यूल था.’’ शीतल ने बताया.

‘‘देखिए मैडम, यह खाई बहुत गहरी है. इस में गिरने के बाद आज तक किसी के भी जिंदा रहने की सूचना नहीं मिली है. सुना है.

‘‘आप के घर में और कौनकौन हैं?’’ इंसपेक्टर ने पूछा.

‘‘अनल के पिताजी हैं सिर्फ. जोकि पैरालिसिस से पीडि़त हैं और बोलने में असमर्थ.’’ शीतल ने बताया, ‘‘इन का कोई भी भाई या बहन नहीं हैं. 5 साल पहले माताजी का स्वर्गवास हो गया था.’’

‘‘तब आप के पिताजी या भाई को यहां आना पड़ेगा.’’ इंसपेक्टर बोला

‘‘मेरे परिवार से कोई भी इस स्थिति में नहीं है कि इतनी दूर आ सके.’’ शीतल ने कहा.

‘‘आप के हसबैंड का कोई दोस्त भी है या नहीं.’’ इंसपेक्टर ने झुंझला कर पूछा.

‘‘हां, अनल का एक खास दोस्त है वीर है. उन्हीं ने हमारी शादी करवाई थी.’’ शीतल ने जवाब दे कर इंसपेक्टरको वीर का नंबर दे दिया.

इंसपेक्टर ने वीर को फोन कर थाने आने को कहा.

‘‘सर, लगभग 60 मीटर तक सर्च कर लिया मगर कोई दिखाई नहीं पड़ा. अब अंधेरा हो चला है, सर्चिंग बंद करनी पड़ेगी.’’ सर्च टीम के सदस्यों ने ऊपर आ कर बताया.

‘‘ठीक है मैडम, आप थाने चलिए और रिपोर्ट लिखवाइए. कल सुबह सर्च टीम एक बार फिर भेजेंगे.’’ इंसपेक्टर ने कहा, ‘‘वैसे कल शाम तक मिस्टर वीर भी आ जाएंगे.’’

दूसरे दिन शाम के लगभग 4 बजे वीर थाने पहुंच गया. इंसपेक्टर ने पूरी जानकारी उसे देते हुए पूछा, ‘‘वैसे आप के दोस्त के और उन की पत्नी के आपसी संबंध कैसे हैं?’’

‘‘अनल और शीतल की शादी को 9 महीने हो चुके हैं और अनल ने मुझ से आज तक ऐसी कोई बात नहीं कही, जिस से लगे कि दोनों के बीच कुछ एब्नार्मल है.’’ वीर ने इंसपेक्टर को बताया.

‘‘और आप की भाभीजी मतलब शीतलजी के बारे में क्या खयाल है आपका?’’ इंसपेक्टर ने अगला प्रश्न किया.

‘‘जी, वो एक गरीब घर से जरूर हैं मगर उन की बुद्धि काफी तीक्ष्ण है. उन्होंने बिजनैस की बारीकियों पर अच्छी पकड़ बना ली है. अनल भी अपने आप को चिंतामुक्त एवं हलका महसूस करता था.’’ वीर ने बताया.

‘‘देखिए, आप के बयानों के आधार पर हम इस केस को दुर्घटना मान कर समाप्त कर रहे हैं. यदि भविष्य में कभी लाश से संबंधित कोई सामान मिलता है तो शिनाख्त के लिए आप को बुलाया जा सकता है.’’ इंसपेक्टर ने कहा.

‘‘जी बिलकुल.’’

‘‘वीर भैया, अनल की आत्मा की शांति के लिए सभी पूजापाठ पूरे विधिविधान से करवाइए. मैं नहीं चाहती अनल की आत्मा को किसी तरह का कष्ट पहुंचे.’’ शहर पहुंचने पर भीगी आंखों के साथ शीतल ने हाथ जोड़ कर कहा.

‘‘जी भाभीजी आप निश्चिंत रहिए,’’ वीर बोला.

एक दिन वीर ने शीतल से कहा, ‘‘करीब 6 महीने पहले अनल ने एक बीमा पौलिसी ली थी, जिस में अनल की प्राकृतिक मौत होने पर 5 करोड़ और दुर्घटना में मृत्यु होने पर 10 करोड़ रुपए मिलने वाले हैं. यदि आप कहें तो इस संदर्भ में काररवाई करें.’’

‘‘वीर भाई साहब, आप जिस बीमे के बारे में बात कर रहे हैं, उस के विषय में मैं पहले से जानती हूं और अपने वकीलों से इस बारे में बातें भी कर रही हूं.’’ शीतल ने रहस्योद्घाटन किया.

अनल का स्वर्गवास हुए 45 दिन बीत चुके थे. अब तक शीतल की जिंदगी सामान्य हो गई थी. धीरेधीरे उस ने घर के सभी पुराने नौकरों को निकाल कर नए नौकर रख लिए थे. हटाने के पीछे तर्क यह था कि वे लोग उस से अनल की तरह नरम व पारिवारिक व्यवहार की अपेक्षा करते थे. जबकि शीतल का व्यवहार सभी के प्रति नौकरों जैसा व कड़ा था. नए सभी नौकर शीतल के पूर्व परिचित थे.

इस बीच शीतल लगातार वीर के संपर्क में थी तथा बीमे की पौलिसी को जल्द से जल्द इनकैश करवाने के लिए जोर दे रही थी.

अधूरी मौत-भाग 1 : क्यों अपने ही पति की खूनी बन गई शीतल

‘‘मेरे दिल ने जो मांगा मिल गया, जो कुछ भी चाहा मिला.’’ शीतल उस हिल स्टेशन के होटल के कमरे में खुदबखुद गुनगुना रही थी.

‘‘क्या बात है शीतू, बहुत खुश नजर आ रही हो.’’ अनल उस के पास आ कर कंधे पर हाथ रखते हुए बोला.

‘‘हां अनल, मैं आज बहुत खुश हूं. तुम मुझे मेरे मनपसंद के हिल स्टेशन पर जो ले आए हो. मेरे लिए तो यह सब एक सपने के जैसा था.

‘‘पिताजी एक फैक्ट्री में छोटामोटा काम करते थे. ऊपर से हम 6 भाईबहन. ना खाने का अतापता होता था ना पहनने के लिए ढंग के कपड़े थे. किसी तरह सरकारी स्कूल में इंटर तक पढ़ पाई. हम लोगों को स्कूल में वजीफे के पैसे मिल जाते थे, उन्हीं पैसों से कपड़े वगैरह खरीद लेते थे.

‘‘एक बार पिताजी कोई सामान लाए थे, जिस कागज में सामान था, उसी में इस पर्वतीय स्थल के बारे में लिखा था. तभी से यहां आने की दिली इच्छा थी मेरी. और आज यहां पर आ गई.’’ शीतल होटल के कमरे की बड़ी सी खिड़की के कांच से बाहर बनते बादलों को देखते हुए बोली.

‘‘क्यों पिछली बातों को याद कर के अपने दिल को छोटा करती हो शीतू. जो बीत गया वह भूत था. आज के बारे में सोचो और भविष्य की योजना बनाओ. वर्तमान में जियो.’’ अनल शीतल के गालों को थपथपाते हुए बोला.

‘‘बिलकुल ठीक है अनल. हमारी शादी को 9 महीने हो गए हैं. और इन 9 महीनों में तुम ने अपने बिजनैस के बारे में इतना सिखापढ़ा दिया है कि मैं तुम्हारे मैनेजर्स से सारी रिपोर्ट्स भी लेती हूं और उन्हें इंसट्रक्शंस भी देती हूं. हिसाबकिताब भी देख लेती हूं.’’ शीतल बोली.

‘‘हां शीतू यह सब तो तुम्हें संभालना ही था. 5 साल पहले मां की मौत के बाद पिताजी इतने टूट गए कि उन्हें पैरालिसिस हो गया. कंपनी से जुड़े सौ परिवारों को सहारा देने वाले खुद दूसरे के सहारे के मोहताज हो गए.

‘‘नौकरों के भरोसे पिताजी की सेहत गिरती ही जा रही थी. तुम नई थीं, इसीलिए पिताजी का बोझ तुम पर न डाल कर तुम्हें बिजनैस में ट्रेंड करना ज्यादा उचित समझा. पिताजी के साथ मेरे लगातार रहने के कारण उन की सेहत भी काफी अच्छी हो गई है. हालांकि बोल अब भी नहीं पाते हैं.

‘‘मैं चाहता हूं कि इस हिल स्टेशन से हम एक निशानी ले कर जाएं जो हमारे अपने लिए और उस के दादाजी के लिए जीने का सहारा बने.’’ अनल शीतल के पीछे खड़ा था. वह दोनों हाथों का हार बना कर गले में डालते हुए बोला.

‘‘वह सब बातें बाद में करेंगे. अभी तो 7 दिन हैं, खूब मौके मिलेंगे.’’ शीतल बोली.

अगली सुबह अनल ने कहा, ‘‘देखो, आज 5 विजिटिंग पौइंट्स पर चलना है. 9 बजे टैक्सी आ जाएगी. हम यहां से नाश्ता कर के निकलते हैं. लंच किसी सूटेबल पौइंट पर ले लेंगे.’’

‘‘हां, मैं तैयार होती हूं.’’ शीतल बोली.

‘‘सर, आप की टैक्सी आ गई है.’’ नाश्ते के बाद होटल के रिसैप्शन से फोन आया.

‘‘ठीक है हम नीचे पहुंचते हैं.’’ अनल बोला.

दिन भर घुमाने के बाद ड्राइवर ने दोनों को होटल में छोड़ दिया. शीतल अनल के कंधे का सहारा ले कर टैक्सी से निकलते हुए बोली, ‘‘अनल, जब हम घूम कर लौट रहे थे तब उस संकरे रास्ते पर क्या एक्सीडेंट हो गया था? ट्रैफिक जाम था. तुम देखने भी तो उतरे थे.’’

‘‘एक टैक्सी वाले से एक बुजुर्ग को हलकी सी टक्कर लग गई. बुजुर्ग इलाज के लिए पैसे मांग रहा था. इसीलिए पूरा रास्ता जाम था.’’ अनल ने बताया. ‘‘ऐसा ही एक एक्सीडेंट हमारी जिंदगी में भी हुआ था, जिस से हमारी जिंदगी ही बदल गई.’’ अनल ने आगे जोड़ा.

‘‘हां मुझे याद है. उस दिन पापा मेरे रिश्ते की बात करने कहीं जा रहे थे. तभी सड़क पार करते समय तुम्हारे खास दोस्त वीर की स्पीड से आती हुई कार ने उन्हें टक्कर मार दी. जिस से उन के पैर की हड्डी टूट गई और वह चलने से लाचार हो गए.’’ शीतल बोली.

‘‘हां, और तुम्हारे पिताजी ने हरजाने के तौर पर तुम्हारी शादी वीर से करने की मांग रखी.’’

‘‘मेरा रिश्ते टूटने की सारी जवाबदारी वीर की ही थी. इसलिए हरजाना तो उसी को देना था न.’’ शीतल अपने पिता की मांग को जायज ठहराते हुए बोली.

‘‘वीर तो बेचारा पहले से ही शादीशुदा था, वह कैसे शादी कर सकता था? मेरी मम्मी की मौत के बाद वीर की मां ने मुझे बहुत संभाला और पिताजी को पैरालिसिस होने के बाद तो वह मेरे लिए मां से भी बढ़ कर हो गईं.

‘‘कई मौकों पर उन्होंने मुझे वीर से भी ज्यादा प्राथमिकता दी. उस परिवार को मुसीबत से बचाने के लिए ही मैं ने तुम से शादी की.

‘‘मेरे बिजनैस की पोजीशन को देखते हुए कोई भी पैसे वाली लड़की मुझे मिल जाती. मैं किसी गरीब घर की लड़की से शादी करने के पक्ष में था ताकि वह पिताजी की देखभाल कर सके.’’

‘‘मतलब तुम्हें एक नौकरानी चाहिए थी जो बीवी की तरह रह सके.‘‘शीतल के स्वर में कुछ कड़वापन था.

‘‘बड़ेबुजुर्गों के मुंह से सुना था कि जोडि़यां स्वर्ग में बनती हैं. मगर हमारी जोड़ी सड़क पर बनी. लेकिन मुझे तुम से कोई शिकायत नहीं हैं. मैं ने पिछले 9 महीनों में एक नई शीतल गढ़ दी है, जो मेरा बिजनैस हैंडल कर सकती है. बस एक ही ख्वाहिश और है जिसे तुम पूरा कर सकती हो.’’ अनल हसरतभरी निगाहों से शीतल की तरफ देखते हुए बोला.

‘‘अनल, पहाड़ों पर चढ़नेउतरने के कारण बदन दर्द से टूट रहा है. कोई पेनकिलर ले कर आराम से सोते हैं. वैसे भी सुबह 4 बजे उठना पड़ेगा सनराइज पौइंट जाने के लिए. यहां सूर्योदय साढ़े 5 बजे तक हो ही जाता है.’’ शीतल सपाट मगर चुभने वाले लहजे में बोली.

अनल अपना सा मुंह ले कर बिस्तर में दुबक गया.

अगली सुबह ड्राइवर आया तो शीतल उस से बोली, ‘‘ड्राइवर भैया, आज ऐसी जगह ले चलो जो एकदम से अलग सा एहसास देती हो.’’

‘‘जी मैडम, यहां से 20 किलोमीटर दूर है. इस टूरिस्ट प्लेस की सब से ऊंची जगह. वहां से आप सारा शहर देख सकती हैं, करीब एक हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है.

‘‘वहां पर आप टेंट लगा कर कैंपिंग भी कर सकते है. यहां टेंट में रात को रुकने का अपना ही रोमांच है. वहां आप को डिस्टर्ब करने के लिए कोई नहीं होगा.’’ ड्राइवर ने उस जगह के बारे में बताया.

‘‘और लोग भी तो होते होंगे वहां पर?’’ अनल ने पूछा.

‘‘सामान्यत: भीड़ वाले समय में 2 टेंटों के बीच लगभग 100 मीटर की दूरी रखी जाती है. आप की इच्छानुसार आप का टेंट नो डिस्टर्ब वाले जोन में लगा देंगे.’’ ड्राइवर ने बताया.

‘‘चलो ना अनल. ऐसी जगह पर तुम्हारी इच्छा भी पूरी हो जाएगी.’’ शीतल जोर देते हुए बोली.

‘‘चलो भैया आज उसी टेंट में रुकते हैं.’’ अनल खुश होते हुए बोला.

लगभग एक घंटे के बाद वह लोग उस जगह पर पहुंच गए.

‘‘साहब, यहां से लगभग एक किलोमीटर आप को संकरे रास्ते से चढ़ाई करनी है.’’ ड्राइवर गाड़ी पार्किंग में लगाते हुए बोला.

पासवर्ड: प्यार की अनोखी कहानी

उस के पीछे कोई आ रहा है. उस ने पलट कर देखा तो उस के पीछे एक लड़की सीढि़यां चढ़ रही थी. उस ने उसे देखा तो उस की नजर उस के चेहरे से फिसल कर कहीं और ही मुड़ गई. उसे यह अनुभव पहली नजर में ही नहीं बल्कि उस ने जब भी लड़की को देखा, तबतब हुआ था. पता नहीं उस के चेहरे में ऐसा क्या था कि वह जब भी दिखाई दे जाती, अनायास प्रकाश की आंखें उस की ओर चली जाती थीं. मगर टिकी नहीं रहती थीं. क्या यह उस के आकर्षण की वजह से था. लेकिन उसे लगता था, आकर्षण के अलावा भी उस में कुछ और था.

सहज आत्मविश्वास और हर किसी के प्रति अवहेलना का भाव. अपने आकर्षक होने की सहज अनुभूति और मिलीजुली मासूमियत. जैसे उसे इस बात का गहरा अहसास हो कि वह युवा है, पर उसे इस का अहसास न हो कि जवानी क्या है. उस के चेहरे का खोजता हुआ भाव उस की सुंदरता को और बढ़ा देता था. उस की आंखों से ऐसा लगता था, जैसे वह बाहर कम अपने अंदर ज्यादा देखती है. चुस्त जींस और चुस्त टौप, मानो उस ने अपनी नजरों से नहीं, दूसरों की नजरों से प्रकाश की ओर देखा हो.

उस के बड़ेबड़े बालों और सुंदर चेहरे की बड़ीबड़ी आंखों के अलावा प्रकाश की नजर फिसल कर जहां मुड़ी थी, वह उसी में खो गया था, जिस की वजह से उस की चाल धीमी हो गई थी. पर उस पर कोई फर्क नहीं पड़ा था. वह उसी तरह तेजी से सीढि़यां चढ़ती हुई उस के बगल से निकल गई.

प्रकाश को लगा, अब उसे भी चाल बढ़ानी होगी. क्योंकि अब वह यह देखे बिना नहीं रह सकता था कि वह किस फ्लैट में जाती है.

यह जानने के लिए प्रकाश ने अपनी चाल बढ़ा दी. वह उसी तीसरी मंजिल पर पहुंच कर रुक गई, जहां प्रकाश को जाना था. वह फ्लैट नंबर था 303. प्रकाश का फ्लैट नंबर 301 था. वह लड़की सामने वाले फ्लैट में आई है, यह जान कर उसे बहुत खुशी हुई. पर यह कौन है, क्योंकि उस फ्लैट में प्रकाश ने उसे आज पहली बार देखा था.

उसे लगा, कोई रिश्तेदार होगी, किसी काम से आई होगी. वह प्रकाश के मन को भा गई थी, इसलिए एक बार और देखने के लोभ में उस ने अपने फ्लैट का मुख्य दरवाजा खुला छोड़ दिया. इस में वक्त ने उस का साथ यह दिया कि उस दिन उस के फ्लैट में कोई नहीं था. सभी एक शादी में गए हुए थे. प्रकाश दरवाजे के बाहर नजरें टिकाए बेचैनी से ताक रहा था कि वह बाहर निकले ताकि वह उसे एक नजर देख ले.

घंटों बीत गए, पर वह नहीं निकली. वह टकटकी लगाए उस के फ्लैट का दरवाजा ताकता रहा. धीरेधीरे वह निराश होने लगा.

पर शाम होते ही फ्लैट का दरवाजा खुला. प्रकाश के शरीर में जैसे जान आ गई. एक बार उसे और देखने के लिए वह फुरती से उठा और बाहर आ गया. तब तक वह लिफ्ट में घुस गई थी. प्रकाश ने फटाफट दरवाजा लौक किया और लिफ्ट के चक्कर में न पड़ कर तेजी से सीढि़यां उतरने लगा. उस के ग्राउंड फ्लोर पर पहुंचने के साथ ही लिफ्ट भी नीचे पहुंच गई थी. लिफ्ट का दरवाजा खोल कर वह बाहर निकली और सामने सड़क की ओर चल पड़ी.

लड़की के रेशम जैसे काले लंबे बाल, सुडौल देह, वह लड़की सुंदर ही नहीं प्रकाश को अद्भुत भी लगी. उस की चाल गजब की थी. उसे देख कर कोई भी उस के प्रेम में पड़ सकता था. प्रकाश की नजर उस पर से हट नहीं रही थी. वह मेनरोड पार कर के सामने दुकान पर पहुंच गई. अब प्रकाश उसे सामने से मन भर कर देखना चाहता था. इसलिए वह वहीं सोसाइटी के गेट पर खड़ा रहा. उसे सामने से आता देख वह खो गया.

इस के बाद तो क्रम सा बन गया. प्रकाश उस के आगेपीछे चक्कर लगाने लगा. इसी के साथ उस ने लड़की के बारे में एकएक जानकारी जुटा ली. उस का नाम श्रुति था. उस के सामने वाले फ्लैट में उस की मौसी रहती थीं. वह मौसी के यहां रह कर बीटेक की अपनी पढ़ाई कर रही थी. इस के पहले वह हौस्टल में रह कर पढ़ रही थी. वहां कोई बवाल हो गया था, जिस की वजह से वह मौसी के यहां रहने आ गई थी.

प्रकाश ने उस से बात करने की कोशिश शुरू कर दी. पर उस की बातों का वह छोटा सा जवाब दे कर उसे टाल देती थी. फिर भी वह उस के पीछे पड़ा रहा. प्रकाश अकसर देखता, वह उस के फ्लैट के दरवाजे के पास खड़ी हो कर अपने मोबाइल में कुछ करती रहती थी. ऐसे में जब प्रकाश से उस का सामना होता तो धीरे से मुसकरा देती. इस से प्रकाश को लगा कि शायद वह उसे पसंद करने लगी है. पर क्यों, यह उसे पता नहीं था.

पर एक दिन जब प्रकाश ने अपने ओपन वाईफाई में पासवर्ड सेट कर दिया तो सच्चाई का पता चल गया. उस के पासवर्ड सेट करने के बाद जब वह बाहर निकला तो वह उस की ओर बढ़ी. उसे अपनी ओर आते देख प्रकाश के दिल की धड़कन बढ़ गई. शरीर में रोमांच सा हुआ.

प्रकाश के पास आ कर उस ने अपनी आवाज में शहद सी मिठास लाते हुए कहा, ‘‘आप अपने वाईफाई का पासवर्ड दे देंगे क्या?’’

‘‘क्यों नहीं, श्योर. लाइए, मैं आप के मोबाइल में कनेक्ट कर देता हूं.’’

श्रुति ने मोबाइल दिया, तो प्रकाश ने कांपते हाथों से वाईफाई का पासवर्ड सेट कर दिया. उस ने थैंक्स कहते हुए उस का मोबाइल नंबर मांगा तो प्रकाश ने फटाफट अपना नंबर सेव करा दिया. प्रकाश ने उस का नंबर मांगा तो उस ने भी बेहिचक अपना नंबर बता दिया. प्रकाश को उस का नाम पता था, फिर भी बात को आगे बढ़ाने के लिए उस ने उस का नाम पूछा.

‘‘मेरा नाम श्रुति है.’’ कह कर वह चली गई.

नंबर मिलने के बाद प्रकाश वाट्सऐप पर गुडमौर्निंग और गुडनाइट के मैसेज भेजने लगा. श्रुति की ओर से बराबर जवाब भी आता था. अकसर जानबूझ कर प्रकाश पासवर्ड बदल देता था. श्रुति का तुरंत फोन आ जाता था. कभीकभार वह वाट्सऐप पर मैसेज कर के पूछ लेती थी. एक दिन पासवर्ड बदल कर जैसे ही प्रकाश बाहर निकला, श्रुति सामने आ गई. उस ने पासवर्ड पूछा तो जवाब में प्रकाश ने कहा, ‘‘आई लव यू.’’

गुस्सा हो कर श्रुति ने कहा, ‘‘मैं वाईफाई का पासवर्ड पूछ रही हूं और तुम ‘आई लव यू’ कह रहे हो. तुम इस तरह की बात करोगे, मैं ने कभी सोचा भी नहीं था.’’

इस के अलावा भी श्रुति ने बहुत कुछ कहा. प्रकाश जवाब में जो कुछ कहना चाहता था, वह उसे सुनने को तैयार ही नहीं थी. अपनी बात कह कर वह पैर पटकती हुई चली गई. प्रकाश ने वाट्सऐप पर रिक्वेस्ट की, पर उस ने मैसेज खोल कर देखा ही नहीं. अंत में प्रकाश ने टेक्स्ट मैसेज भेजा कि ‘आई लव यू’ मैं ने तुम्हें नहीं कहा, वह तो वाईफाई का पासवर्ड है.

अगले दिन श्रुति मिली तो उस ने कहा, ‘‘तुम ने ऐसा जानबूझ कर किया था न? ऐसा कर के मुझे परेशान किया. तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए. तुम्हें बता दूं कि मुझे ऐसी बातों में रुचि नहीं है.’’

‘‘अगर किसी को किसी से पहली नजर में प्यार हो जाए तो…’’ प्रकाश ने कहा.

‘‘और दूसरी नजर में ब्रेकअप हो जाए तो…’’ जवाब में श्रुति ने कहा.

‘‘यह तुम्हारा वहम है.’’

‘‘और प्रेम हो जाए यह?’’ श्रुति ने कहा.

‘‘यह मेरा अनुभव है. किस से हुआ है प्रेम?’’ प्रकाश ने पूछा.

‘‘मैं यह नहीं बताऊंगी. पर हुआ है, यह निश्चित है.’’

‘‘क्यों नहीं बता सकती?’’ प्रकाश ने सवाल कर दिया.

‘‘अगर वह मांगे तो जीवन ही नहीं, सांसें भी दे दूं,‘‘ श्रुति ने कहा, ‘‘तुम ने कभी किसी से प्यार किया है या सिर्फ वाईफाई का पासवर्ड ही ‘आई लव यू’ रखा है?’’

‘‘किया है न, तभी तो  ‘आई लव यू’ पासवर्ड रखा है. सीधेसीधे कहने की हिम्मत नहीं पड़ी तो पासवर्ड के बहाने कह दिया. अब तुम कहो, उस दिन तो तुम ने बहुत कुछ कह दिया. उस से तो..’’

‘‘मुझे अच्छे तो तुम भी लगते थे, पर तब तक इस बारे में कुछ सोचा नहीं था. पर जब सोचा तो लगा कि तुम ने यह पासवर्ड सेट करने के बजाय सच में ‘आई लव यू’ कहा होता तो…’’ श्रुति ने कहा.

उस की बात बीच में ही काट कर प्रकाश ने कहा, ‘‘तो क्या तुम भी..?’’

‘‘हां, पर अब यह पासवर्ड किसी दूसरी लड़की को मत बताना.’’ श्रुति ने कहा.

इसी के साथ दोनों हंस पड़े.

बातों बातों में: क्यों सुसाइड करना चाहती थी अवनी

मन कड़ा कर के वह छलांग लगाने ही जा रही थी कि किसी ने पीछे से उस का हाथ पकड़ लिया. देखा वह एक युवक था. युवक की इस हरकत पर अवनी को गुस्सा आ गया. उस ने नाराजगी से कहा, ‘‘कौन हो तुम, मेरा हाथ क्यों पकड़ा? छोड़ो मेरा हाथ. मुझे बचाने की कोशिश करने की कोई जरूरत नहीं है. यह मेरी जिंदगी है, इस का जो भी करना होगा, मैं करूंगी. हां प्लीज, किसी भी तरह का कोई उपदेश देने की जरूरत नहीं है.’’

जवाब देने के बजाय युवक जोर से हंसा. उस की इस ढिठाई पर अवनी तिलमिला उठी. उस ने गुस्से में कहा, ‘‘न तो मैं ने इस समय हंसने वाली कोई बात कही, न ही मैं ने कोई जोक सुनाया, फिर तुम हंसे क्यों? और हां, तुम अपना नाम तो बता दो कि कौन हो तुम?’’

‘‘एक मिनट मेरी बात तो सुनो. जिंदगी के आखिरी क्षणों में मेरा नाम जान कर क्या करोगी. लेकिन अब तुम ने पूछ ही लिया है तो बताए देता हूं. मेरा नाम अमन है.’’

‘‘मुझे अब किसी की कोई बात नहीं सुननी. तुम यह बताओ कि हंसे क्यों?’’

‘‘तुम्हें जब किसी की कोई बात सुननी ही नहीं है तो मैं कैसे बताऊं कि हंसा क्यों?’’

‘‘इसलिए कि मैं यह कह रही थी कि…’’ अवनी थोड़ा सकपकाई.

इसके बाद थोड़ी चुप्पी के बाद कहा, ‘‘इसलिए कि अगर तुम्हें आत्महत्या न करने के बारे में कुछ सीखसलाह देनी हो तो वह सब

मुझे नहीं सुनना. मैं कह रही थी कि… मुझे नहीं लगता कि इस में कोई हंसने जैसी बात थी. वैसे भी मेरा हाथ पकड़ने का तुम्हें कोई अधिकार नहीं है.’’

‘‘ओह सौरी… रियली सौरी.’’ अमन ने अवनी का हाथ छोड़ दिया.

‘‘इट्स ओके… अब बताइए क्यों हंसे?’’

‘‘अब जब तुम मरने ही जा रही हो तो अंतिम पलों में कुछ भी जानने से क्या फायदा?’’

‘‘मात्र एक छोटा सा कुतूहल… नथिंग एल्स…’’

‘‘ओके… लेकिन मरने वाले की अंतिम इच्छा पूरी होनी चाहिए, वरना आत्मा भूत बन भटकती रहेगी और भूत मुझे जरा भी पसंद नहीं हैं.’’

‘‘यह जो तुम घुमाफिरा कर कह रहे हो, इस के बजाय सीधेसीधे कह दो न. क्योंकि अब मुझे देर हो रही है.’’

‘‘आज ही तो मुझे हंसी आई है, वह भी तुम्हारे भ्रम पर. कुछ भ्रम भी कितने मजेदार होते हैं. पर सभी का जानना जरूरी नहीं है.’’

‘‘भ्रम… मेरा? कैसा, किस चीज का और कैसा भ्रम?’’

‘‘बाप रे, एक साथ इतने सारे सवाल?’’

‘‘तुम इसी तरह बातें करते हुए मूल बात को खत्म करना चाहते हो.’’

‘‘बात खत्म करना चाहता हूं, वह भी तुम्हारी. नहीं जी, सुंदर लड़कियों की बात खत्म करने की बेवकूफी मैं नहीं कर सकता.’’

‘‘बस… बस, मस्का लगाने की कोई जरूरत नहीं है. लड़कियों को फंसाने का यह बहुत सरल उपाय है. पर यहां तुम्हारी दाल गलने वाली नहीं है. तुम्हें सीधीसीधी बात करनी है या नहीं?’’ अवनी की बातों में गुस्सा झलक रहा था. चेहरा भी गुस्से से थोड़ा लाल था.

‘‘अरे बाबा, एकदम सीधीसादी बात है. तुम ने कहा कि मुझे बचाने की कोई जरूरत नहीं है. मुझे तुम्हारे इसी भ्रम पर हंसी आ गई थी. वैसे भी हंसने की मेरी आदत नहीं है.’’

‘‘इस में भ्रम कैसा, फिर तुम ने मेरा हाथ क्यों पकड़ा?’’

‘‘तुम्हें बचाने के लिए नहीं, कुछ बताने के लिए.’’

‘‘क्या बताने के लिए?’’

‘‘यही कि अगर तुम्हारा इरादा सचमुच मरने का है तो इस के लिए यह जगह ठीक नहीं है. हां, हाथपैर तुड़वाने हों तो अलग बात है.’’

‘‘मतलब’’

‘‘मतलब साफ है. जरा ध्यान से नीचे देखो. यह खाई गहरी तो है, पर इस में गिर कर मौत हो जाएगी, इस की कोई गारंटी नहीं है.’’

‘‘इस गहरी खाई में कोई इतनी ऊंचाई से कूदेगा तो मरेगा नहीं तो क्या होगा.’’

‘‘आई एम सौरी टू से… पर तुम्हारा आब्जर्वेशन पावर यानी निरीक्षण शक्ति बहुत कमजोर है.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘देख नहीं रही हो खाई में नीचे कितने पेड़ हैं. कहीं जमीन दिखाई दे रही है? अगर तुम यहां से कूदती हो तो गारंटी नहीं कि जमीन पर ही गिरो. किसी पेड़ पर गिरोगी तो हाथपैर तो टूट जाएगा, पर जान नहीं जाएगी. पेड़ में फंस गई तो न मर सकती हो न जी सकती हो. न नीचे जा सकती हो, न ऊपर आ सकती हो. त्रिशंकु की तरह लटकी रहोगी.

‘‘बस, उसी दृश्य की कल्पना कर के हंस पड़ा था. तुम पेड़ पर लटकी रहोगी तो देखने में कैसा लगेगा? बचाने के लिए भी चिल्लाओगी तो कोई बचाने के लिए भी नहीं पहुंच सकेगा. क्योंकि तुम्हारी आवाज किसी तक पहुंचेगी ही नहीं.’’

अवनी ने नीचे देखा. अमन की बात सच थी. नीचे घाटी पेड़ों से भरी थी. कहीं भी जमीन नहीं दिख रही थी. उस में फंस जाने की संभावना से नकारा नहीं जा सकता था. पर अभी उस का गुस्सा वैसा ही था. उस ने कहा, ‘‘लगता है, तुम्हारा दिमाग ठीक नहीं है. पेड़ में भी फंस गई तो नीचे गिर ही जाऊंगी. पेड़ मुझे पकड़ तो नहीं लेगा.’’

‘‘ओह यस, यू आर राइट. यह तो मैं ने सोचा ही नहीं, यू आर जीनियस.’’

‘‘फिर खुशामद, मैं ने पहले ही कह दिया है कि इस की कोई जरूरत नहीं है.’’

‘‘यस, यह तो मुझे पता है कि अब तुम्हारी खुशमद करने की मुझे कोई जरूरत नहीं है. यह सीधीसादी बात मैं सोच ही नहीं सका. जबकि तुम ने आगे तक सोच लिया. इसीलिए मैं ने कहा. तुम्हारी परफेक्ट प्लानिंग, अब तुम कूद सकती हो. गो अहेड…’’

अवनी ने अमन को गौर से देखा, वह उस का मजाक तो नहीं उड़ा रहा? पर अमन गंभीर दिखाई दिया. वह खाई में गौर से झांक रहा था. न चाहते हुए अवनी के मुंह से निकल गया, ‘‘तुम भी नीचे जाना चाहते हो क्या?’’

‘‘नहीं…नहीं.’’ उसी तरह खाई में झांकते हुए अमन ने कहा.

‘‘लग तो ऐसा रहा है, जैसे खाई के पेड़ गिन रहे हो?’’ अवनी ने व्यंग्य किया.

‘‘नहीं जी, इस तरह पेड़ गिनने में मेरी कोई रुचि नहीं है.’’

‘‘तो इस तरह गिद्ध की तरह नीचे…’’

अवनी को बीच में ही रोक कर अमन ने कहा, ‘‘थैंक्स फार कौम्पलीमैंट्स, पर जरा नीचे देखिए.’’

‘‘क्या है वहां?’’

‘‘नीचे, एकदम नीचे तक पेड़ हैं. साफ दिखाई दे रहे हैं.’’

‘‘हां, तो क्या हुआ इन का?’’

‘‘इन्हें देख कर तुम्हारे मन में कोई विचार नहीं आया?’’

‘‘इस में विचार क्या करना है?’’

‘‘कोई महान विचार नहीं, एकदम सीधासादा, सिंपल, शुद्ध विचार.’’

अवनी की नाक फूलने पिचकने लगी. रंग भी लाल गुड़हल की तरह हो गया. किसी के मरते वक्त भला कोई इस तरह का मजाक करता है. लड़के बड़े होशियार होते हैं. इस पर भी विश्वास नहीं किया जा सकता. अवनी का मन हुआ उसे ठीक से सुना दे.

‘‘इस में इतना उत्तेजित मत होइए. मैं तुम्हें समझाता हूं. तुम जो कह रही हो सच है, सौ प्रतिशत सच. कोई पेड़ तुम्हें पकड़ नहीं लेगा. चलो मान लेते हैं वह छोड़ देगा. पर मेरी बात भी एकदम झुठलाई नहीं जा सकती. छलांग लगाने के बाद तुम किसी पर गिरी तो उस में फंस जाओगी.

‘‘कहां फंसोगी, यह कोई निश्चित नहीं है. क्योंकि पेड़ पर फंसने के बाद जमीन और पेड़ में ज्यादा अंतर नहीं रह जाएगा. पेड़ पर और फिर जमीन पर गिरने पर हाथ पैर जरूर टूट जाएंगे. उस के बाद तो परेशानी और बढ़ जाएगी. इसलिए चलो मैं इस की अपेक्षा अच्छी जगह बताता हूं, जहां पर मर जाना निश्चित है. एक छलांग और खेल खत्म, पूरी गारंटी के साथ.’’ अमन ने कहा.

‘‘तुम मरने की जगह खोजने के एक्सपर्ट हो क्या?’’

‘‘नहीं दरअसल, हम दोनों एक ही गाड़ी की सवारी हैं, इसलिए…’’

‘‘यानी कि तुम भी मेरी तरह…’’

‘‘हां, मैं भी तुम्हारी तरह यहां मरने के भव्य इरादे के साथ आया हूं. इसीलिए अच्छी और गारंटेड जगह की तलाश कर रहा था. काफी शोध के बाद मैं ने यह निष्कर्ष निकाला है कि संदेह वाला कोई भी काम करना ठीक नहीं है. जो भी काम करो, पक्का करो.’’

‘‘इस का मतलब तुम भी यहां आत्महत्या करने आए हो?’’

‘‘शंका का कोई समाधान नहीं है. इस सुनसान जगह पर घूमने नहीं आया, वह भी अकेले. तुम्हारी जैसी सुंदर लड़की साथ हो, तब इस सुनसान जगह पर आने में फायदा है.’’

‘‘बस, अब कुछ मत कहिएगा.’’

अवनी चुपचाप खड़ी अमन को ताक रही थी. उस ने अचानक कहा. ‘‘छोड़ो इस अंतहीन चर्चा को. पर तुम तो पुरुष हो. तुम्हें मरने की क्या जरूरत पड़ गई?’’

‘‘क्यों, दुखी होने का अधिकार केवल औरतों का है क्या? तुम्हारा मानना है कि हम दुखी नहीं हो सकते?’’

‘‘पुरुष प्रधान समाज में सहन करने वाला काम ज्यादातर महिलाओं के हिस्से में आता है. इस से…’’

‘‘यह तुम्हारी व्यक्तिगत मान्यता है. इस अंतिम समय में मेरी इच्छा किसी तरह का वादविवाद करने की नहीं है. चलिए, मैं तुम्हें मरने की परफेक्ट जगह बताता हूं. अगर तुम्हारा मन हो तो चलो मेरे साथ. एक से दो भले.

‘‘जीवन में कोई अच्छा साथी नहीं मिला तो कोई बात नहीं, कम से कम मरते समय तो अच्छा साथी मिल गया. जीवन में हमसफर तो सभी को मिलते हैं, मौत का हमसफर किसे मिलता है. अकेले मरने में उतना मजा नहीं आता, अब तो तुम्हारे जैसा साथी पा कर मरने में भी मजा आ जाएगा.’’

‘‘तुम पर ऐसा कौन सा पहाड़ टूट पड़ा, जो तुम मरने आ गए?’’ अवनी ने पूछा. उस की हैरानी अभी खत्म नहीं हुई थी. भला पुरुष को कौन सा दुख हो सकता है, जो इस तरह मरने आ जाएगा. उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि यह लड़का भी उस की तरह आत्महत्या करने आया है.’’

‘‘छोड़ो न अब इस बात को. मैं ने कहा न, मुझे अब चर्चा में कोई रूचि नहीं है. दुख का नगाड़ा बजाने से क्या फायदा. मुझे पता है, मेरे मरने से मांबाप को बहुत तकलीफ होगी. वे बहुत रोएंगे. पर अब क्या, मर जाने के बाद मैं तो देखूंगा नहीं. मर जाने के बाद कौन देखता है, जिस को जो करना होगा, करता रहेगा.’’

इस के बाद अमन ने जेब से च्यूइंगम निकाल कर अवनी की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘लो च्यूइंगम खाओगी? अपनी इस अंतिम मुलाकात की सहयात्री के रूप में अंतिम भेंट.’’

‘‘एक नंबर के स्वार्थी हो. तुम्हें मम्मीपापा के रोने की जरा भी चिंता नहीं. तुम्हें उन से कोई मतलब नहीं.’’

‘‘यह तुम कह रही हो, तुम भी तो…?’’

अवनी चुप हो गई. वह सोच में पड़ गई. उसे सोच में डूबा देख कर अमन ने कहा. ‘‘छोड़ो इन फालतू के विचारों को. अगर इस तरह सब के बारे में सोचने लगे तो मर नहीं पाएंगे. लो यह च्युंगम खाओ.’’

‘‘मरते समय यह च्युंगम तुम भी न…’’

‘‘च्युंगम मुझे बहुत प्रिय है. तुम इसे एक तरह से आदत कह सकती हो. मरने से पहले अपनी अंतिम इच्छा खुद ही पूरी करनी है.’’ मुंह में च्युंगम डालते हुए अमन ने लंबी सांस ले कर कहा, ‘‘आज की यह अंतिम च्युंगम तुम भी ले लो… लेनी है या नहीं?’’

अवनी सोच में डूबी थी. उसे इस तरह सोच में डूबी देख कर अमन ने कहा, ‘‘च्युंगम ही है, कोई जहर नहीं. फिर जहर ही होगा, अब मुझ पर या तुम पर कौन सा फर्क पड़ने वाला है. इस के बाद तो हमें खाई में छलांग लगाने की भी जरूरत नहीं पडे़गी.’’

अवनी ने च्युंगम ले कर मुंह में रख लिया.

‘‘छलांग लगाने के लिए ज्यादा हिम्मत की जरूरत नहीं है, पर थोड़ा डर जरूर लगता है. तुम्हें डर नहीं लग रहा? अमन ने पूछा’’

‘‘जब मरना है तो डर किस बात का.’’

‘‘पर मुझे तो डर लग रहा है. नीचे गिरने पर कितना लगेगा, कहां लगेगा, गिरते ही जान निकल जाएगी, यह निश्चित तो नहीं. गिरने के बाद थोड़ी देर भी जीवित रहे तो… बाप रे कितनी तकलीफ होगी. मरने से पहले वह पीड़ा सहन करनी पड़ेगी. मरना कोई आसान काम नहीं है. ‘मरने के एक हजार सरल उपाय’ नाम की एक किताब के बारे में सुना था. तुम ने इस किताब के बारे में सुना है कि नहीं?’’

अवनी ने ‘न’ में सिर हिला दिया.

‘‘मैं ने भी खाली सुना है देखा नहीं है. अगर पढ़ने को मिल जाती तो बहुत अच्छा होता. मरने का कोई सरल उपाय सूझ जाता. पर वह किताब यहां मिलती ही नहीं है. इस तरह की किताब न तो यहां मिलती है, न यहां के लेखक लिखते हैं. इस तरह का काम विदेशी लेखक ही करते हैं. छोड़ो इस बात को, अब इस सब के लिए बहुत देर हो चुकी है. चलो, अब उठो, जो करना है, करते हैं.’’

कोई जवाब देने के बजाय अवनी चुपचाप अमन को ताकती रही. जबकि अमन की नजरें सामने दिखाई दे रहे सूरज पर टिकी थीं. अवनी की ओर नजर घुमा कर उस ने धीरे से पूछा, ‘‘पांच मिनट और बैठ कर इंतजार कर सकते हैं?’’

‘‘किस का इंतजार?’’

‘‘सूर्य के अंतर्ध्यान होने की, देखो न उधर. अस्त होने की तैयारी में है. कल का उगता सूरज तो अब हम देख नहीं पाएंगे, चलो आज का अस्त होता सूरज ही देख लें. पर एक तरह से यह हमारा भ्रम ही है. यह सूरज यहां अस्त हो रहा है तो कहीं उग रहा होगा. यही नहीं, सूरज तो एक ही है, पर सवेरा रोजरोज अलग होता है.

‘‘कब, कौन सवेरा क्या रंग लाता है, कौन जानता है? अस्त होता सूरज मनुष्य को दार्शनिक बना देता है. देखो न, जातेजाते सूरज कैसा रंग वैभव फैला रहा है.’’ अमन ने सूरज की ओर ऊंगली उठा कर इशारा किया तो अवनी उसी ओर देखने लगी. आकाश में संध्या की लालिमा फैल रही थी. पहाड़ के उस पार का दृश्य बड़ा अद्भुत था.

‘‘चलो, अब अपने इरादे को अंतिम अंजाम देते हैं, तैयार हो जाओ.’’ अमन ने कहा, पर अवनी ने कोई जवाब नहीं दिया. थोड़ी देर दोनों मौन का आवरण ओढ़े च्यूइंगम चबाते रहे.

सूरज धीरेधीरे क्षितिज से ओझल हो रहा था. पक्षी पेड़ों पर कलरव कर रहे थे. इस तरह घाटी में अनजाना शोर फैल रहा था. अचानक अवनी ने धीमे से कहा, ‘‘मुझे बचाने के लिए आप को बहुतबहुत धन्यवाद… क्षणिक आवेश से उबारने के लिए…’’

‘‘मैं कोई तुम्हें बचाने के लिए थोड़े ही…मैं तो खुद…’’

अमन अपनी बात पूरी कर पाता, उस के पहले ही अवनी ने कहा, ‘‘आई एम श्योर, तुम यहां आत्महत्या करने नहीं आए थे.’’

शाम के धुंधलके में अमन के चेहरे पर हलकी मुसकराहट फैल गई तो अवनी की आंखों में नए जीवन की चमक थी. पेड़ और घाटी पक्षियों के कोलाहल से गूंज रही थी.

पढ़ा लिखा अमानुष : अपनी बेटी का किया शिकार

जूनियर इंजीनियर सुशील कुमार पिछले 2 सालों से मेरठ की ट्यूबवेल कालोनी स्थित सरकारी कालोनी में अपने परिवार के साथ रह रहा था.उस की नियुक्ति सिंचाई विभाग में थी. उस के परिवार में पत्नी मोनिका उर्फ डौली के अलावा 2 बेटियां और एक बेटा था. सब से बड़ी बेटी सोनी (परिवर्तित नाम) 14 साल की थी.

बात 13 मार्च, 2019 की सुबह करीब 9 बजे की है. जेई सुशील कुमार की पत्नी मोनिका अपनी बड़ी बेटी सोनी के साथ अस्पताल गई थी. थोड़ी देर बाद जब वह घर लौटी तो वहां का खौफनाक मंजर देख कर उस की चीख निकल गई. उस के रोनेबिलखने की आवाजें सुन कर आसपास रहने वाले लोग उस के यहां चले आए. सभी के मन में जिज्ञासा हो गई कि पता नहीं अचानक जेई साहब के यहां क्या हो गया. लेकिन लोगों ने एक कमरे में जब जेई सुशील कुमार की खून से सनी लाश बैड पर पड़ी देखी तो सन्न रह गए. लोग समझ नहीं पा रहे थे कि यह सब कैसे हो गया. कमरे का सारा सामान भी बिखरा हुआ था.

मोनिका ने उसी समय अपने देवर अजय कुमार को फोन कर के इस घटना की जानकारी दी. बड़े भाई की हत्या होने की बात सुन कर अजय भी अवाक रह गया. अजय सहारनपुर के पास स्थित अपने पैतृक गांव सलोनी में रहता था. भाई का दुखद समाचार सुन कर वह परिवार के अन्य लोगों के साथ मेरठ की तरफ रवाना हो गया. उसी दौरान मोनिका ने थाना सिविल लाइंस में फोन कर के पति की हत्या की सूचना दे दी.
मेरठ के सिविल लाइंस थानाप्रभारी अब्दुर रहमान सिद्दीकी को जैसे ही घटना की जानकारी मिली तो वह अपने स्टाफ के साथ नलकूप विभाग की कालोनी की ओर रवाना हो गए.

थानाप्रभारी ने घटनास्थल का बारीकी से मुआयना किया. उन्होंने फोरैंसिक टीम तथा डौग स्क्वायड को भी घटनास्थल पर बुला लिया. बैड पर मृतक जेई सुशील कुमार के हाथपैर तथा मुंह कपड़े से बंधे थे तथा उस के गले को किसी तेज धारदार हथियार से रेता गया था.

बैड के अलावा बैडरूम में चारों तरफ खून के छींटे दिख रहे थे तथा कमरे का सामान इधरउधर बिखरा पड़ा था. इस के अलावा जेई साहब के क्वार्टर के सामने वाले एक क्वार्टर के दरवाजे पर भी खून के छींटे दिखाई दिए.

घटनास्थल पर मिले तमाम फोरैंसिक नमूने एकत्र करने के बाद उन्होंने क्वार्टर के दूसरे कमरे का भी मुआयना किया. दरअसल, इस सरकारी क्वार्टर में 2 कमरे थे. दूसरे कमरे का सारा सामान भी बिखरा हुआ था और अलमारी खुली पड़ी थी.

यह सब देख कर ऐसा लग रहा था जैसे हत्या की यह वारदात लूटपाट के इरादे से की गई हो. शायद सुशील कुमार ने लुटेरों का विरोध किया होगा. जिस पर लुटेरों ने उस की निर्ममतापूर्वक हत्या कर दी होगी.

मृतक की पत्नी मोनिका से जब इस घटना के बारे में थानाप्रभारी ने पूछा तो उस ने रोते हुए बताया कि वह सुबह 9 बजे के आसपास अपनी बड़ी बेटी सोनी के साथ डाक्टर के पास गई थी. उस समय उस के पति चाय पीने के बाद नहाने जाने की तैयारी कर रहे थे. जबकि दोनों छोटे बच्चे घर से बाहर खेलने गए थे.

डाक्टर के पास से जब वह घर लौटी तो देखा कि क्वार्टर के दरवाजे की कुंडी बाहर से बंद थी. दरवाजा खोलने पर उसे बैड पर पति की लाश पड़ी मिली. यह सारी घटना महज आधे घंटे के अंतराल के दौरान घट गई थी.

मृतक की पत्नी और कालोनी के कुछ अन्य लोगों से पूछताछ करने के बाद सुशील कुमार की लाश पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दी.

काररवाई के बाद पुलिस ने सुशील कुमार के बैडरूम को अपने कब्जे में ले लिया. वहां पर कुछ पुलिसकर्मियों को निगरानी के लिए छोड़ कर थानाप्रभारी अब्दुर रहमान सिद्दीकी वापस थाने लौट आए. पुलिस ने मोनिका की शिकायत पर अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या और लूटपाट का मामला दर्ज कर लिया. थानाप्रभारी इस केस की आगे की तहकीकात थाने के ही इंसपेक्टर मुकेश कुमार को सौंप दी.

इंसपेक्टर मुकेश कुमार ने हत्या के इस सनसनीखेज मामले की तफ्तीश को आगे बढ़ाते हुए मृतक जेई के सामने रहने वाले दूसरे जेई भारत यादव को हिरासत में ले लिया. क्योंकि उन के दरवाजे पर खून के छींटे मिले थे. पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में जेई भारत यादव ने खुद को निर्दोष बताते हुए कहा कि सुबह वह अपने र्क्वाटर में मौजूद थे. लेकिन इस दौरान उन्होंने सुशील कुमार के क्वार्टर से चीखने जैसी कोई आवाज नहीं सुनी.

अलबत्ता मोनिका ने भारत यादव पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि भारत यादव के उस के पति से अच्छे संबंध नहीं थे इसलिए इस घटना में उस का हाथ हो सकता है. लेकिन जब अगले 36 घंटे की पूछताछ में इंसपेक्टर मुकेश कुमार को इस घटना में भारत यादव के ऊपर संदेह नहीं हुआ तो उन्होंने उसे शहर में ही रहने की ताकीद कर घर जाने की इजाजत दे दी.

उधर पोस्टमार्टम के बाद सुशील कुमार की लाश अतिम संस्कार के लिए उस के घर वालों को सौंप दी गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया गया कि सुशील कुमार की मौत गला कटने के कारण अधिक खून निकल जाने की वजह से हुई थी.

काल डिटेल्स में मिला क्लू

पुलिस जांच में यह भी पता चला कि सुबह 9 और साढ़े 9 बजे के बीच कालोनी के लोगों ने किसी को भी मृतक के क्वार्टर की तरफ आतेजाते नहीं देखा था. जब कहीं से कोई क्लू नहीं मिला तो पुलिस ने मृतक सुशील कुमार और उस की पत्नी मोनिका के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई.

मोनिका के मोबाइल की काल डिटेल्स देख कर इंसपेक्टर मुकेश कुमार चौंक उठे. पता चला कि पिछले कुछ महीने से लगातार एक मोबाइल नंबर पर उस की लगातार बातें होती आ रही हैं. बातचीत का यह सिलसिला उस के पति की हत्या के बाद भी जारी था.

पुलिस ने उस मोबाइल नंबर की भी डिटेल निकलवाई तो पता चला यह सिमकार्ड पवन कुमार सैनी के नाम रजिस्टर्ड था, जो राजस्थान के गंगानगर का रहने वाला था. जब इंसपेक्टर मुकेश कुमार ने मोनिका को थाने में बुला कर इस मोबाइल नंबर के बारे में सख्ती से पूछताछ की तो उस का चेहरा सफेद पड़ गया. उस ने बड़ी ही आसानी से पति की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली. पति की हत्या को स्वीकार करते हुए उस ने जो कुछ बताया, सुन कर वहां उपस्थित सभी पुलिस अधिकारी हैरान रह गए.

उस से की गई पूछताछ के बाद उसी दिन पुलिस टीम श्रीगंगानगर पहुंची और वहां से पवन को हिरासत में ले आई. उस से जब इस घटना के बारे में पूछताछ की तो थोड़ी देर तक आनाकानी करने के बाद उस ने मोनिका के साथ मिल कर उस के पति सुशील कुमार की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली.

मेरठ के एसएसपी नितिन तिवारी और एसपी डा. अखिलेश नारायण सिंह ने 16 मार्च, 2019 को एक प्रैस कौन्फ्रैंस आयोजित कर इस सनसनीखेज हत्याकांड का परदाफाश कर दिया.

उत्तर प्रदेश के जिला सहारनपुर का एक गांव है सलोनी. यह गांव थाना सरसावाला के अंतर्गत आता है. जेई सुशील कुमार इसी गांव का रहने वाला था. वह अपनी पत्नी मोनिका व 3 बच्चों के साथ मेरठ के सिंचाई विभाग के सरकारी क्वार्टर में रहता था. उस के पास सभी भौतिक सुखसुविधाएं थीं.

मोनिका अपने पति और तीनों बच्चों के साथ बेहद खुश थी. लेकिन पिछले कुछ महीनों से वह पति के चालचलन में कुछ परिवर्तन महसूस कर रही थी.

दरअसल, सुशील ने उस में रुचि लेनी बहुत कम कर दी थी. इस का पता लगाने के लिए जब मोनिका ने एक दिन पति के मोबाइल फोन की जांचपड़ताल की तो एक दिन उसे पता चला कि पति के कुछ महिलाओं के साथ अवैध संबंध हैं, जिन के साथ वह बराबर संपर्क में रहता है.

यह जान कर मोनिका के दिल को बहुत चोट पहुंची. उस ने पति को आकर्षित करने के कई हथकंडे अपनाए, लेकिन सुशील के व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आया. यह सब देख कर उस ने पति से बदला लेने की ठानी और अपने मोबाइल से एक सोशल साइट पर जा कर दूसरे लड़कों से रोमांटिक चैटिंग करनी शुरू कर दी. सोशल साइट पर उस की मुलाकात पवन कुमार सैनी नाम के युवक से हुई. पवन सैनी राजस्थान के श्रीगंगानगर के गांव नाहरावाली का रहने वाला था.

मोनिका की पवन से गहरी दोस्ती हो गई. मोनिका को पवन बहुत अच्छा लगा, इसलिए उस ने उस से प्यार का इजहार कर दिया. अब मोनिका पवन से मिलने के लिए उतावली हो रही थी. लिहाजा मोनिका ने एक दिन उसे मेरठ के एक होटल में मिलने के लिए बुलाया.

मोनिका के कहने पर पवन श्रीगंगानगर से चल कर मेरठ के एक होटल में पहुंच गया. मोनिका भी उसी होटल में पहुंच गई. पहली बार मिलने पर दोनों ही बहुत खुश हुए. पवन उम्र में उस से छोटा था.

होटल के बंद कमरे में दोनों ने एकदूसरे पर प्यार लुटाते हुए काफी वक्त गुजारा. एकदूसरे को प्यार करते रहने की कसमें खाईं. इस हसीन और रोमांचक मुलाकात के बाद पवन ने मोनिका से फिर मिलने आने का वादा किया और वापस श्रीगंगानगर लौट गया.

इस घटना के बाद वे दोनों अपनी सुविधा और मौके के अनुसार एक दूसरे को फोन कर अपने दिल की बात कर लेते थे. जब मोनिका के मन में पवन से मिलने की इच्छा हिलोरें मारती तो वह उसे मेरठ बुला लेती थी. पवन अभी कुंवारा था, इसलिए वह खुद भी मोनिका से मिलने की ताक में रहता था.

करीब ढाई साल तक अवैध संबंधों का यह सिलसिला बड़ी खामोशी से चलता रहा. मोनिका और पवन दोनों एकदूसरे को पा कर बहुत खुश थे. तभी एक दिन अचानक मोनिका की 14 वर्षीय किशोर बेटी सोनी ने उसे जो कुछ बताया, उसे सुन कर उस के पैरों तले की जमीन खिसक गई.

सोनी ने बताया कि उस के पापा पिछले कुछ महीनों से उस के साथ जबरन गलत काम करते हैं और मना करने पर वह उस के साथ मारपीट करते हैं.

मोनिका ने हिम्मत कर के यह बात पति से पूछी तो उलटे वह आगबबूला हो उठा और चुप रहने को कहा. इतना ही नहीं, उस ने यह भी धमकी दी कि अगर यह बात किसी को बताई तो वह तीनों बच्चों को मौत के घाट उतार देगा.

पानी चढ़ गया सिर से ऊपर

मोनिका ने कई बार पति को समझाने की कोशिश की, लेकिन सुशील अपनी हरकतों से बाज नहीं आया. पानी सिर से ऊपर जाता देख कर मोनिका ने सुशील की इस गंदी हरकत के बारे में अपनी सास परीक्षा देवी को बताया. अपने बेटे की करतूत सुन कर परीक्षा ने ऐसे पढ़ेलिखे बेटे को लानत दी. इतना ही नहीं, उन्होंने बेटे सुशील को समझाने की कोशिश की, मगर वह कुछ भी समझने की जगह उलटे मरनेमारने पर उतारू हो गया.

यह देख कर परीक्षा से बहू मोनिका से कहा कि ऐसे राक्षस का घर में रहना ठीक नहीं है. इसे तो समाज में जिंदा रहने का भी अधिकार नहीं है. सास की बात सुन कर मोनिका मन ही मन बहुत खुश हुई क्योंकि पति के मरने के बाद पूरी तरह से अपने प्रेमी पवन सैनी के साथ रहने की आजादी मिलती.

मोनिका एक तीर से दो शिकार कर रही थी. उसे अब सुशील से नफरत हो चुकी थी. वह सुशील की हत्या करने के बाद पवन के साथ अपनी जिंदगी शुरू करना चाहती थी. मोनिका ने पति को ठिकाने लगाने के बारे में सास से बात की तो उन्होंने मोनिका को कुछ रुपए भी दे दिए ताकि वह किसी और से सुशील की हत्या करा सके.

इस के बाद मोनिका ने पवन को मेरठ बुला कर उस से कहा कि अगर वह उसे हमेशा के लिए पाना चाहता है तो उसे पति को ठिकाने लगाना होगा. आखिर में पवन अपनी माशूका के साथ जिंदगी गुजारने की खातिर उस के पति की हत्या करने के लिए तैयार हो गया. इस काम के लिए मोनिका ने अपनी बड़ी बेटी सोनी को भी शामिल कर लिया.

बेटी भी हो गई बाप की हत्या में शामिल

दरअसल वह भी अपने बाप के अत्याचारों से इतनी तंग आ चुकी थी कि उसे मौत के घाट उतारने के लिए मम्मी का साथ देने में उस ने एक पल के लिए भी नहीं सोचा.

योजना के अनुसार, 12 मार्च, 2019 को मोनिका का प्रेमी पवन श्रीगंगानगर से मेरठ पहुंचा और वहां एक होटल में ठहर गया. अगले दिन 13 मार्च की सुबह मोनिका ने पवन के मोबाइल पर फोन कर उसे अपने क्वार्टर के बाहर बुला लिया. उस समय लोगों का अधिक आनाजाना नहीं था.

इसी बीच सोनी अपने पापा सुशील के पास पहुंची. सुशील कुमार उस समय अपने बैड पर बैठा हुआ था. सोनी ने प्यार से मनुहार करते हुए उसे एक खेल खेलने के लिए कहा तो वह इस के लिए फौरन राजी हो गया. दरअसल, वह सोनी को कभी किसी बात के लिए मना नहीं करता था.

इस के बाद पहले तो उस ने पापा सुशील कुमार की दोनों आंखों पर पट्टी बांधी. फिर उस के हाथ और पैरों को भी मजबूती से बांध दिया. तब तक मोनिका भी कमरे में आ गई. उस ने पति को बंधे देखा तो पवन को कमरे में आने के लिए फोन किया.

पवन चाकू ले कर वहां पहुंच गया. पवन को देखकर मोनिका की आंखें चमक उठीं. उस ने पति के सिर को पकड़ कर पीछे की ओर खींचा और पवन को जल्दी से उस की गरदन काटने का इशारा किया. शायद तभी सुशील को अपने साथ कुछ गलत होने का आभास हो गया था, इसलिए वह बचने के लिए छटपटाने लगा. लेकिन उस की बेटी सोनी ने उस के हाथ और पैर पकड़ लिए ताकि पवन आसानी से अपने काम को अंजाम दे सके. तभी पवन ने चाकू से सुशील की गरदन रेत डाली.

जब सुशील की लाश तड़प कर ठंडी पड़ गई तो पवन ने दूसरे कमरे में जा कर अपने कपड़ों से खून साफ किया और वहां से अपने होटल लौट गया. उस के जाने के बाद मोनिका और सोनी ने सुशील के खून के छींटे सामने रहने वाले जेई भारत यादव के दरवाजे पर लगा दिए ताकि साजिश के तहत इस कत्ल का आरोप उस के सिर मढ़ा जा सके.

दरअसल भारत यादव और सुशील के बीच किसी बात को ले कर खटपट होती रहती थी. इस के बाद उस ने घर के कपड़े और अलमारियों का सामान इस प्रकार कमरे में फेंक दिया ताकि यह मामला लूटपाट का लगे. फिर दोनों मांबेटी कमरों का दरवाजा बंद कर अस्पताल जाने के बहाने घर से बाहर निकल गईं. आधे घंटे के बाद दोनों वापस लौट आईं और घर में लूटपाट होने तथा पति की हत्या की झूठी खबर लोगों में फैला दी.

विवेचनाधिकारी इंसपेक्टर मुकेश कुमार ने हत्या में प्रयुक्त चाकू और खून से सने पवन के कपड़े बरामद करने के बाद सुशील कुमार हत्याकांड के दोनों आरोपियों पवन और मोनिका को स्थानीय अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

सोनी को बाल न्यायालय में पेश कर बाल सुधारगृह भेजा गया. बाद में इस हत्याकांड में शामिल चौथी आरोपी जेई सुशील कुमार की मां परीक्षा देवी को भी सहारनपुर स्थित उन के पुश्तैनी घर से गिरफ्तार कर अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें भी जेल भेज दिया गया.

सौजन्य- मनोहर कहानियां, मई 2019

मन की खोट : परिवाज बना प्यार का दुश्मन

बिजनैसमैन सुरेंद्र जायसवाल ने भी नेहा को पाने के लिए यही किया. लेकिन वह पिता की मौत के बाद घर में नेहा और उस की मां सपना ही रह गई थीं. पिता ही कमाने वाले थे, उन के न होने पर घर की माली हालत काफी खराब थी. मांबेटी को समझ नहीं आ रहा था कि अपना जीवन आगे कैसे चलाएं.

सपना को खुद की चिंता कम और जवान बेटी की ज्यादा चिंता थी. वह सोच रही थी कि किसी तरह बेटी की शादी हो जाए तो वह इस बड़ी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाएगी. क्योंकि गरीब की जवान होती बेटी हर किसी की आंखों में चढ़ जाती है. नेहा के पिता मनोहरलाल लखनऊ के ठाकुरगंज इलाके में रहते थे. उन का छोटा सा कारोबार था. उन की मृत्यु के बाद कारोबार तो बंद हो ही गया, साथ ही घर में रखी जमापूंजी भी कुछ दिनों में खत्म हो गई.

मनोहरलाल के एक दोस्त थे सुरेंद्र जायसवाल. सुरेंद्र का पहले से ही मनोहरलाल के घर आनाजाना था. उन की मृत्यु के बाद सुरेंद्र जायसवाल का मदद के बहाने सपना के घर आनाजाना कुछ ज्यादा ही बढ़ गया. सुरेंद्र बिजनैसमैन थे और रकाबगंज में रहते थे. वह सपना के घर का पूरा खर्च उठाने लगे. एक दिन सुरेंद्र ने नेहा और उस की मां सपना के सामने प्रस्ताव रखा कि नेहा को कपड़े की दुकान खुलवा देते हैं. वह दुकान पर काम करेगी तो उस का मन भी लगा रहेगा, साथ ही चार पैसे की आमदनी भी होगी.

इस पूरी मदद के पीछे समाज और सपना को सुरेंद्र की इंसानियत दिखाई दे रही थी, पर असल में इस के पीछे सुरेंद्र का मकसद कुछ और ही था. वह किसी भी तरह नेहा के करीब जाना चाहता था. हालांकि नेहा सुरेंद्र की बेटी की उम्र की थी, इस के बावजूद उस की नीयत में खोट था.

सुरेंद्र नेहा पर दोनों हाथों से पैसे खर्च कर रहा था, इसलिए धीरेधीरे नेहा का झुकाव भी उस की तरफ हो गया. दोनों में करीबी रिश्ते बन गए. समय के साथ नेहा को इस बात का आभास हो गया था कि सुरेंद्र शादीशुदा है और उस के साथ यह संबंध बहुत दिनों तक नहीं चल सकेंगे.

इस के बाद नेहा ऐसे साथी को तलाशने लगी जो उस का हमउम्र हो. इसी दौरान नेहा की दोस्ती प्रभात से हो गई. नेहा प्रभात को पसंद करती थी. फलस्वरूप दोनों की दोस्ती जल्दी ही प्यार में बदल गई. दोनों ने शादीशुदा जोड़े की तरह रहना शुरू कर दिया. नेहा और प्रभात ने अपने परिजनों से बात कर के शादी करने का फैसला कर लिया.

उधर सुरेंद्र को नेहा और प्रभात के संबंधों की जानकारी मिली तो उसे यह बात अच्छी नहीं लगी. वह उन दोनों को अलग कराना चाहता था, इसलिए उस ने उस की मां सपना के कान भरे और उसे प्रभात के प्रति भड़काया.

सपना ने इस बारे में नेहा से बात की तो उस ने कह दिया कि वह और प्रभात एकदूसरे को बहुत चाहते हैं और दोनों ने जीवन भर साथ रहने का फैसला कर लिया है. इस पर सपना ने कहा कि ऐसा हरगिज नहीं हो सकता क्योंकि प्रभात अच्छा लड़का नहीं है.

मां और सुरेंद्र के आगे नेहा की एक नहीं चली. सुरेंद्र ने दबाव बना कर न सिर्फ नेहा को प्रभात से अलग कराया बल्कि उस ने नेहा की तरफ से महिला थाने में प्रभात के खिलाफ उत्पीड़न की शिकायत भी दर्ज करा दी.

प्रभात का साथ छूट जाने के बाद नेहा फेसबुक पर ज्यादा समय बिताने लगी. फेसबुक के जरिए नेहा की दोस्ती शरद निगम से हुई. चैटिंग और बातचीत से दोनों के बीच घनिष्ठता बढ़ गई. बातचीत से पता चला कि शरद लखनऊ के ठाकुरगंज की बंशीविहार कालोनी में रहता है और एचसीएल में सौफ्टवेयर इंजीनियर है.

उस के पिता सरकारी विभाग में एकाउंटेंट थे जो रिटायर हो चुके थे. शरद उन का एकलौता बेटा था. शरद के बारे में यह जानकारी मिलने के बाद नेहा के मन में लड्डू फूटने लगे. फलस्वरूप शरद में नेहा की दिलचस्पी बढ़ गई.

बात आगे बढ़ी तो नेहा और शरद की मुलाकातें होने लगीं. दोनों घर से बाहर भी मिलने लगे. कुछ समय के बाद नेहा शरद को अपने घर भी बुलाने लगी. जल्दी ही इस की जानकारी सुरेंद्र जायसवाल को हो गई.

सुरेंद्र ने नेहा को शरद से दूर रहने को कहा. साथ ही उस ने शरद को धमकी भी दी कि वह नेहा से दूर रहे. लेकिन उन दोनों में से कोई भी उस की बात को मानने को तैयार नहीं था. शरद ने सुरेंद्र की धमकी पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया.

इस पर अपराधी स्वभाव के सुरेंद्र को गुस्सा आ गया. उस ने शरद को रास्ते से हटाने की ठान ली. वह नेहा को तो ज्यादा कुछ नहीं कह सकता था पर शरद को अपने रास्ते से हटाने के लिए उस ने योजना बनानी शुरू कर दी. उस ने अपने दोस्त सूरज से रेकी करानी शुरू कर दी कि शरद नेहा से मिलने कब आता है.

22 जुलाई, 2019 को शरद नेहा से मिलने उस के घर आया. इस के बाद दोनों सहारागंज मौल घूमने गए. वहां दोनों ने रौयल कैफे में खाना खाया. सूरज नेहा और शरद पर नजर रख रहा था. उसी दिन सुरेंद्र और सूरज ने शरद को मारने का प्लान बना लिया.

सुरेंद्र और सूरज यही सोच कर उन का पीछा करने लगे कि सुनसान जगह मिलते ही शरद को गोली मार देंगे. उन्होंने अपनी बाइक शरद की बाइक के पीछे लगा दी. लेकिन हजरतगंज से ठाकुरगंज के बीच उन्हें शरद को टपकाने का मौका नहीं मिला.

22 जुलाई का मौका चूकने के बाद भी सुरेंद्र के मन की आग नहीं बुझी थी. उस ने सूरज से सही मौके की तलाश में लगे रहने को कहा.

23 जुलाई, 2019 को शरद शाम को करीब 6 बजे अपने औफिस से निकला. वह औफिस से अपने घर न जा कर सीधे नेहा के घर गया. करीब 3 घंटे वह नेहा के घर पर रहा. इस बात की सूचना जब सुरेंद्र को मिली तो उस का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया. तभी सुरेंद्र ने सूरज से कहा, ‘‘सूरज, आज फील्डिंग सही से करनी है. आज इसे आउट कर ही देंगे.’’

‘‘भैया, चिंता मत करो. आज तो यह आउट होने से नहीं बचेगा. शरद आज हाथ से नहीं निकल पाएगा.’’ सूरज बोला.

सुरेंद्र और सूरज दोनों शरद के वहां से निकलने की राह देखने लगे. दोनों उस के इंतजार में घात लगाए बैठे थे. शरद जब घर जाने के लिए वहां से निकला तो दोनों ने काफी दूर तक उस का पीछा किया. लेकिन रास्ते में उन्हें गोली चलाने का मौका नहीं मिला.

करीब साढ़े 10 बजे शरद अपने घर के पास पहुंचा. कैंपवेल रोड पर मरी माता के मंदिर के पास सुनसान जगह दिखी तो सूरज अपनी बाइक शरद की बाइक के बराबर में चलाने लगा. तभी सूरज के पीछे बैठे सुरेंद्र ने शरद के हेलमेट से रिवौल्वर सटा कर उसे गोली मार दी.

सिर में गोली लगने के बाद शरद वहीं गिर गया. इस के बाद सुरेंद्र और सूरज वहां से फरार हो गए. गोली की आवाज सुन कर लोग अपने घरों से बाहर निकल आए. लोगों ने खून से लथपथ पड़े शरद को पहचान लिया. इस के बाद उस के परिजनों को सूचना दे दी गई.

शरद को लखनऊ मैडिकल कालेज के ट्रामा सेंटर पहुंचाया गया. लेकिन डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. घटना की सूचना पाते ही आईजी एस.के. भगत और एसएसपी कलानिधि नैथानी सहित तमाम पुलिस अफसर घटनास्थल पर पहुंच गए. पुलिस ने वहां के सीसीटीवी फुटेज देख कर इस मामले को हल करने का प्रयास शुरू कर दिया.

इस केस की रिपोर्ट ठाकुरगंज थाने में लिखी गई. इंसपेक्टर ठाकुरगंज नीरज ओझा ने सीओ दुर्गाप्रसाद तिवारी के मार्गदर्शन में जांच शुरू कर दी.

हत्या के तरीके से यह साफ हो गया था कि हत्या लूट के इरादे से नहीं की गई है. ऐसे में मामला प्रेम प्रसंग से जोड़ कर देखा जाने लगा. पुलिस ने सीसीटीवी और सोशल मीडिया की नेटवर्किंग साइट से मामले को खोलने का काम शुरू किया.

शरद के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स और सोशल साइट से पता चला कि शरद के प्रेम संबंध नेहा नाम की एक लड़की से थे. सोशल मीडिया की छानबीन में यह भी पता चल गया कि नेहा के साथ ठाकुरगंज के ही रहने वाले एक कारोबारी सुरेंद्र जायसवाल के भी संबंध थे.

पुलिस ने नेहा से पूछताछ की. नेहा से बातचीत में सुरेंद्र की भूमिका और भी खुल कर सामने आ गई. पुलिस ने सुरेंद्र को उस के घर पर तलाशा लेकिन वह नहीं मिला. मुखबिरों से पता चला कि वह नेपाल भाग गया है. इस से पुलिस का शक यकीन में बदल गया.

नेपाल में पैसा खत्म होने पर सुरेंद्र पैसे के इंतजाम के लिए वापस लखनऊ आया. तभी मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया.

उस ने आसानी से शरद की हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया. उस ने पुलिस को बता दिया कि इस हत्या में उस का दोस्त सूरज भी शामिल था. सुरेंद्र की निशानदेही पर पुलिस ने सूरज को भी गिरफ्तार कर लिया.

दोनों से पूछताछ कर पुलिस ने उन्हें हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. कथा लिखने तक आरोपी सुरेंद्र जायसवाल और उस का दोस्त सूरज जेल में बंद थे.

—मनोहरलाल, सपना और नेहा परिवर्तित नाम हैं

सौजन्य- सत्यकथा, अक्टूबर 2019

ऊंची उड़ान : जिम्मेदारियों के बनाया शिकार

घटना 13 नवंबर, 2018 की है. तृप्ति जय तेलवानी जिस समय अपने 3 साल के बेटे के साथ पुणे शहर के थाना चिखली पहुंची, उस वक्त दोपहर का एक बजने वाला था. महिला एसआई रत्ना सावंत उस समय किसी पुराने मामले की फाइल देख रही थीं. घबराई और रोती हुई तृप्ति जब उन के पास पहुंची तो वह समझ गई कि इस के साथ जरूर कुछ गलत हुआ है.

उन्होंने तृप्ति को सामने कुरसी पर बैठा कर उस से इत्मीनान से बात की. उस ने आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘मैडम मेरा नाम तृप्ति जय तेलवानी है. मैं चिखली के घरकुल इलाके की साईं अपार्टमेंट सोसायटी में पति के साथ रहती हूं.’’ कह कर तृप्ति फिर से रोने लगी.

एसआई रत्ना सावंत ने उसे धीरज बंधाते हुए कहा, ‘‘देखिए, आप रोइए मत. आप के साथ जो भी हुआ है, मुझे विस्तार से बताएं ताकि मैं आप की मदद कर सकूं.’’

रत्ना सावंत की सहानुभूति पर तृप्ति अपने आंसू पोंछते हुए बोली, ‘‘मैडम, मैं बरबाद हो गई हूं. मेरी तो दुनिया ही उजड़ गई. मेरे पति ने फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली है.’’

तृप्ति की बात सुन कर एसआई रत्ना सावंत चौंकी. वह उसी समय पुलिस टीम के साथ मौके की ओर रवाना हो गईं. इस की सूचना उन्होंने उच्चाधिकारियों को भी दे दी थी.

एसआई रत्ना सावंत अपनी टीम के साथ जब मौके पर पहुंचीं तो वहां लोगों की भीड़ लगी थी. मृतक जय तेलवानी के मातापिता और अन्य लोग भी वहां मौजूद थे.

पुलिस जब बैडरूम  में पहुंची तो बैड पर जय तेलवानी का शव पड़ा था. मांबाप और अन्य लोग उस के शव के साथ लिपट कर रो रहे थे. एसआई रत्ना सावंत ने जब लाश का निरीक्षण किया तो उस के गले पर फंदे का निशान देख कर उन्हें पहली नजर में मामला आत्महत्या का लगा.

एसआई रत्ना सावंत ने मृतक की पत्नी तृप्ति जय तेलवानी से इस संबंध में पूछताछ की तो उस ने बताया कि वह पिछले कुछ दिनों से अपनी लाइलाज बीमारी से परेशान थे. इन्हें ब्लड कैंसर था. आज सुबह जब मैं 11 बजे अपने बच्चे को लेने स्कूल गई तो ये ठीक थे, लेकिन जब स्कूल से लौटी तो दरवाजा अंदर से बंद मिला.

कई बार कालबैल बजाने और आवाज देने के बाद भी जब दरवाजा नहीं खुला, न कोई आहट हुई तो मैं घबरा गई. मैं ने दूसरी चाबी ला कर दरवाजा खोला तो मेरी चीख निकल गई. जय गले में साड़ी बांध कर पंखे से लटके हुए थे.

चीखनेचिल्लाने की आवाजें सुन कर पड़ोसी फ्लैट में आ गए. उन्होंने पति को नीचे उतार कर बैड पर लिटा दिया और अस्पताल जाने के लिए एंबुलेंस भी मंगा ली, लेकिन तब तक उन की मौत हो चुकी थी.

पुलिस की जांच में आत्महत्या के निशान तो मिल रहे थे, लेकिन आत्महत्या का कारण समझ नहीं आ रहा था. तृप्ति तेलवानी अपने बयान में जिस लाइलाज बीमारी की बात कह रही थी, उस बीमारी के संबंध में वह यह भी नहीं बता सकी कि जय का किस अस्पताल में इलाज चल रहा था.

यह बात पुलिस के गले नहीं उतर रही थी. जब मृतक को ब्लड कैंसर था तो उस का किसी अस्पताल में इलाज क्यों नहीं कराया. और फिर बिना जांच कराए यह कैसे पता चला कि जय को ब्लड कैंसर है. उसी दौरान थानाप्रभारी बालाजी सोनटके मौकाएवारदात पर पहुंच गए. उन के साथ फोरैंसिक टीम भी थी.

मौकामुआयना करने के बाद अधिकारियों ने मृतक के घर वालों से इस बारे में पूछताछ की. इस के बाद वह थानाप्रभारी को आवश्यक दिशानिर्देश दे कर चले गए.

वरिष्ठ अधिकारियों के जाने के बाद थानाप्रभारी बालाजी सोनटके ने मौके की काररवाई पूरी कर के जय तेलवानी के शव को पोस्टमार्टम के लिए पुणे के सेसून डाक अस्पताल भेज दिया. थानाप्रभारी ने इस मामले की जांच एसआई रत्ना सावंत को सौंप दी.

एसआई रत्ना सावंत ने मृतक जय तेलवानी की कैंसर की बीमारी के संबंध में आसपड़ोस के लोगों से बात की. उन्होंने बताया कि इस बारे में उन्हें वाट्सऐप मैसेज द्वारा ही जानकारी मिली थी कि जय तेलवानी को ब्लड कैंसर है. लेकिन यह बात जय तेलवानी ने नहीं बताई, वह तो एकदम स्वस्थ दिखता था.

अगले दिन पुलिस के पास पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी आ गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में कैंसर जैसी घातक बीमारी का कोई जिक्र नहीं था. इस का मतलब यह था कि सोशल मीडिया पर जय तेलवानी को कैंसर रोगी होने की बात किसी ने एक सोचीसमझी साजिश के तहत फैलाई थी. यह बात फैला कर किसे लाभ हो सकता है, पुलिस इस की जांच में जुट गई.

इसी दौरान जय तेलवानी के मातापिता पुलिस थाने पहुंचे. उन्होंने थानाप्रभारी बालाजी सोनटके को बताया कि उन के बेटे की आत्महत्या की जिम्मेदार उन की बहू तृप्ति है. इस के बाद पुलिस ने अपनी तफ्तीश का रुख तृप्ति की तरफ मोड़ दिया.

तृप्ति पर नजर रख कर जांच अधिकारी उस वीडियो की तलाश में जुट गईं जो सोशल मीडिया पर वायरल हुई थी. इस वीडियो में जय तेलवानी को कैंसर रोगी बता कर आर्थिक सहायता की मांग की गई थी.

बताया जाता है कि यह वीडियो देख कर जय तेलवानी मानसिक रूप से परेशान हो गए थे. चूंकि वह भलेचंगे स्वस्थ थे और किसी ने उन का कैंसर रोगी का वीडियो बना लिया. वह वीडियो क्लिप जांच अधिकारी रत्ना सावंत को को भी मिल गई थी.

पुलिस की आईटी टीम ने जब उस वीडियो की जांच की तो पता चला कि तृप्ति ने ही उसे सोशल मीडिया प्लेटफार्म टिकटौक पर अपलोड किया था. तृप्ति के खिलाफ सबूत मिल गया तो पुलिस ने उसे पूछताछ के लिए थाने बुला लिया. वीडियो के आधार पर जब तृप्ति तेलवानी से पूछताछ की गई तो पहले तो वह साफ मुकर गई, लेकिन बाद में उस ने अपना गुनाह स्वीकार कर लिया.

21 वर्षीय तृप्ति तेलवानी ने बताया कि अपनी महत्त्वाकांक्षा और ख्वाहिशें पूरी करने के लिए उस ने सोशल मीडिया का सहारा लिया था. पूछताछ में यह बात सामने आई है कि पूछताछ में यह बात सामने आई है कि वह पुणे के छोटे से गांव की रहने वाली थी लेकिन उस के सपनों की उड़ान ऊंची थी. उस ने अपने दोस्तों और सहेलियों के बीच अपना एक क्रेज बना कर रखा था.

कालेज समय में नित नए फैशन के कपड़े पहनना, दिल खोल कर पैसे खर्च करना उस का शौक बन गया था. उस के इस अनापशनाप खर्च और मांग पर मांबाप परेशान रहते थे.

उन्हें चिंता इस बात की भी थी कि आगे चल कर इस लड़की का क्या होगा. वह तृप्ति को समझाने की काफी कोशिश करते थे पर तृप्ति ने मांबाप की सलाह को कभी गंभीरता से नहीं लिया.

तृप्ति के लक्षणों को देखते हुए मांबाप ने 16 साल की उम्र में ही उस की शादी पिपरी चिचवड़, पुणे के रहने वाले देवीदास तेलवानी के बेटे जय तेलवानी के साथ कर दी. यह 2017 की बात है. जय तेलवानी उस परिवार का एकलौता बेटा था.

25 वर्षीय जय तेलवानी सीधासादा युवक था. वह अपनी पढ़ाई पूरी कर अपने एक रिश्तेदार के प्लंबिंग बिजनैस में सहयोगी था.

तृप्ति को बहू के रूप में पा कर देवीदास और सभी घर वाले खुश थे. उन्हें क्या पता था कि तृप्ति के सुंदर चेहरे के पीछे उस की कितनी गंदी सोच छिपी है. इस का एहसास उन्हें धीरेधीरे होने लगा था.

आजादी के साथ रहने वाली तृप्ति को ससुराल जेल की तरह लगती थी. वह वहां से बाहर निकलने के लिए फड़फड़ाने लगी तो सास ने उसे समाज की मर्यादा का पाठ पढ़ाया. उस ने सास की सीख न सिर्फ हवा में उड़ा दी बल्कि वह उन से झगड़ने भी लगी.

बातबात पर वह जय तेलवानी के मांबाप और परिवार वालों से लड़ बैठती थी, जिसे ले कर जय परेशान हो जाता था. जब वह तृप्ति को समझाने की कोशिश करता तो उस का सीधा जवाब होता, ‘‘मेरी शादी तुम्हारे साथ हुई है, तुम्हारे मांबाप और परिवार वालों के साथ नहीं.’’

आखिरकार रोजरोज की किचकिच से तंग आ कर जय के परिवार वालों ने तृप्ति जो चाहती थी, वही कर दिया. उन्होंने उसे चिखली के साईं अपार्टमेंट घरकुल सोसायटी में एक किराए का फ्लैट ले कर दे दिया. अब तृप्ति पूरी तरह से आजाद थी. उस के मन में जो आता, वह करती थी. अनापशनाप खर्चा, पार्टी और सहेलियों दोस्तों के साथ कंपीटिशन करना उस की आदत में शुमार हो गया.

इस बीच वह एक बच्चे की मां भी बन गई थी. फिर भी उस की आदतों में कोई सुधार नहीं आया था. वह जब तृप्ति को समझाने की कोशिश करता तो वह यह कह कर उसे चुप करा देती कि भगवान ने जिंदगी दी है तो ऐश करो.

तृप्ति का मन घर के कामों के बजाए सोशल मीडिया पर अधिक लगता था. वह फेसबुक, वाट्सऐप पर अपने नएपुराने मित्रों के साथ चैटिंग में लगी रहती थी.

पति से नईनई फरमाइश करती थी. नहीं मिलने पर उस से झगड़ा करती थी. लाचार जय किसी तरह उस की मांगें पूरी करता. पैसे न होने पर वह दोस्तों से पैसे उधार लेता. इस के लिए कर्जदार भी हो गया. लाखों रुपए का कर्जदार होने के बावजूद भी तृप्ति के व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आया था.

हर रोज नएनए फैशनपरस्त कपड़े पहन कर वह अलगअलग ऐंगल से फोटो खींच कर उन्हें फेसबुक और वाट्सऐप पर डालती और यह दिखाने की कोशिश करती कि वह भी किसी से कम नहीं है.

इस के लिए जब पति मना करता तो वह जय से झगड़ा कर के मारपीट पर उतर आती थी. इतना ही नहीं, वह पति पर व्यंग्य कसते हुए कहती, ‘‘तुम्हारी तरह मेरे दोस्त और सहेलियां भिखारी नहीं हैं. वे सब मेरे फोटो लाइक करते हैं. मुझ से फेसबुक और वाट्सऐप पर बातें करते हैं. देशविदेश की सैर करते हैं. वहां के खूबसूरत फोटो भेजते हैं. तुम ने आज तक मेरे लिए क्या किया है? देशविदेश तो छोड़ो, कभी पुणे तक में नहीं घुमाया. पता नहीं मेरे मांबाप ने तुम में क्या देखा था. मेरी तो किस्मत ही फूट गई है. तुम में मेरे शौक पूरे कराने की भी हैसियत नहीं है.’’

‘‘तृप्ति जब तुम यह सब जानती हो तो हैसियत से बड़े सपने क्यों देखती हो? हमारी आर्थिक स्थिति तुम्हारे दोस्तों जैसी नहीं है. मैं एक मामूली इंसान हूं. तुम्हारे लिए मैं लाखों रुपए का कर्ज तो पहले ही ले चुका हूं. अब और कर्ज नहीं ले सकता.’’ जय तेलवानी बोला.

इस बात पर तृप्ति को इतना गुस्सा आया कि उस ने अपने पति के गाल पर एक जोरदार तमाचा जड़ दिया और कहा, ‘‘चुपचाप रहो, मूर्ख इंसान. तुम क्या जानो सपना क्या होता है?’’

तृप्ति के इस व्यवहार से जय सन्न रह गया. उसे तृप्ति से ऐसी आशा नहीं थी. उसे गुस्सा तो बहुत आया लेकिन कड़वा घूंट समझ कर पी गया. उस ने सोचा बात बढ़ाने से क्या फायदा, बदनामी उस की ही होगी.

लेकिन उस की इस चुप्पी से तृप्ति का हौसले बुलंद हो गए. वह आए दिन जय से छोटीछोटी बातों को ले कर उलझ जाती थी. इतना ही नहीं, वह सोशल मीडिया पर अपने पति की बुराई कर सहानुभूति बटोरती थी.

उस ने और ज्यादा सहानुभूति पाने के लिए अपना टिकटौक एकाउंट खोला और उस पर नईनई वीडियो बना कर अपलोड करने लगी. बिना यह सोचे कि आगे चल कर इस का क्या नतीजा निकलेगा.

तृप्ति का सोशल मीडिया पर इतना ज्यादा एक्टिव होना जय और उस के परिवार वालों को बुरा लगता था. तृप्ति पति पर बुरी तरह हावी थी. ऊपर से सोशल मीडिया में जय की जो बदनामी हो रही थी, वह अलग बात थी. जय ने जबजब पत्नी को समझाने की कोशिश की, तबतब वह भड़क जाती थी. कहती थी कि क्या अच्छा है, क्या बुरा मैं सब समझती हूं. मैं जो कर रही हूं करने दो. तुम लोग हमारे बीच में मत पड़ो. नहीं तो मैं कुछ कर लूंगी तो पछताओगे.

तृप्ति की आत्महत्या करने की धमकी से जय और उस का पूरा परिवार डर गया था. तृप्ति अपने दोस्तों के साथ नएनए वीडियो तैयार करती और सोशल मीडिया पर अपलोड कर देती. इस से उसे सहानुभूति तो मिलती ही थी, एकाउंट में अच्छाखासा पैसा भी आ जाता था. जिन्हें वह अपने शौक और यारदोस्तों के साथ पार्टियों में खर्च करती थी.

घर और परिवार की बदनामी से तृप्ति का कोई लेनादेना नहीं था. हद तो तब हो गई जब एक दिन तृप्ति ने जय से बड़ी रकम की मांग कर दी. उस ने पैसे देने में असमर्थता जताई तो तृप्ति ने योजना बना कर अपने पति पर एक वीडियो बनाई.

उस वीडियो में उस ने पति को ब्लड कैंसर का मरीज बताया. फिर उस वीडियो में उस ने किसी दूसरे की आवाज डाल कर के सोशल मीडिया पर डाल दिया. साथ ही उस ने आर्थिक मदद करने का भी अनुरोध किया.

इस से तृप्ति को ढेर सारी सहानुभूति तो मिली ही, साथ ही उस के एकाउंट में काफी पैसा भी आया. लेकिन इस से जय को जिस मानसिक तनाव से गुजरना पड़ा, उसे वह बरदाश्त नहीं कर पाया. उस की सारे दोस्तों और नातेरिश्तेदारों में काफी बदनामी हुई.

पत्नी के इस कृत्य से वह अपनों से नजरें नहीं मिला पा रहा था, क्योंकि अब वह लोगों की नजरों में कैंसर का ऐसा मरीज बन गया था, जो लोगों से इलाज के लिए पैसे मांग रहा था. लोग उसे सहानुभूति की नजरों से देखते और धीरज बंधाते थे.

वह उस बीमारी को ले कर जी रहा था, जिस का उसे पता ही नहीं था. वह तृप्ति के व्यवहार से बुरी तरह टूट गया था. अंतत: उस ने एक दिन दिल दहला देने वाला निर्णय ले लिया. अपने मांबाप से फोन पर बात करने के बाद जय ने मौत को गले लगा लिया.

जय तेलवानी के परिवार वालों की शिकायत और सोशल मीडिया की जांचपड़ताल कर एसआई रत्ना सावंत ने तृप्ति से पूछताछ कर उसे विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया. उस के विरुद्ध भादंवि की धारा 306 के तहत मामला दर्ज कर कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उसे यरवदा जेल भेज दिया गया.

सौजन्य- सत्यकथा, सितंबर 2019

वचन-भाग 3 : मेवाड़ के राजा के सामने अजीत ने कैसे दिखाई अपनी वीरता

राणा ने कहा, ‘‘नहीं, मैं ने उसे जाते हुए देखा है. हालांकि ठीकठीक नहीं कह सकता, परंतु पहचान तो उसे अवश्य लूंगा. उस के मुख की सुंदरता मेरी आंखों में खपी जाती है.’’

राजा की बात सुन कर सब चुप हो गए और सवारी महल की ओर चली. जब राणा फाटक पर पहुंचे तो हाथी से उतर कर आज्ञा दी, ‘‘एकएक आदमी मेरे सामने से हो कर निकल जाएं.’’

आज्ञानुसार बारीबारी से सभी लोग राणा के सामने से निकल कर महल में चले गए. जब गुलाब सिंह जाने लगा तो राणा ने उसे देख कर पूछा, ‘‘क्या सिंह को तुम ने मारा है?’’

गुलाब सिंह ने सिर झुका कर कहा, ‘‘जिस को श्रीमान कहें, वही सिंह का वध कर सकता है. सिंह की मृत्यु तो आप की आज्ञा के अधीन है.’’

राणा बोले, ‘‘मैं समझता हूं, सिंह तुम ने ही मारा है परंतु मैं यह यकीन से नहीं कह सकता, क्योंकि तीव्रगति से दौड़ते घोड़े ने मुझे इतना अवसर न दिया कि मैं मारने वाले को ठीक से पहचान सकता.’’

अजीत सिंह भी निकट था, वह बोला, ‘‘अनाथों के नाथ, सिंह के कान और पूंछ नहीं हैं, इस से ज्ञात होता है कि उस को मारने वाले ने प्रमाण के लिए उस के कान और पूंछ काट लिए हैं.’’

राणा ने गुलाब सिंह से कहा, ‘‘कान और पूंछ हाजिर करो.’’

गुलाब सिंह ने तुरंत घोड़े की जीन के नीचे से निकाल कर उन्हें राणा के सामने पेश किया. राणा बोले, ‘‘राजपूतो, तुम बड़े वीर हो. आज से तुम मेरे संग रहो. मैं तुम्हें अपना अंगरक्षक नियुक्त करता हूं.’’

हालांकि दोनों राजपूत संग रहते थे परंतु रात के समय दोनों को अलगअलग हो जाना पड़ता था. अजीत सिंह तो रात को दरबार में रहता था और राजबाला (गुलाब सिंह) की ड्यूटी राजा के सुख भवन में थी. एक दिन राजबाला अपनी बेबसी पर नीचे स्वर में मल्हार के राग गाने लगी.

अजीत सिंह ने राजबाला के राग को सुना. उस के हृदय में भी वही भाव उद्दीप्त हो गया. उस ने भी राजबाला के राग में स्वर मिला दिया. राणा की रानी बहुत चतुर थी. दोनों गाने वालों के राग की आवाज रात के समय उस के कानों में पड़ी.

उस ने राणा से कहा, ‘‘मुझे ज्ञात होता है कि ये दोनों राजपूत जो तुम्हारी सेवा में हैं स्त्री और पुरुष हैं. यह जो पुरुष रानी निवास पर पहरे पर है, अवश्य यह स्त्री है. कोई कारण है, जिस से ये एकदूसरे से नहीं मिलते और मन ही मन कुढ़ते हैं.’’

राणा खूब ठहाके मार कर हंसे फिर बोले, ‘‘खूब, तुम्हें खूब सूझी. ये दोनों सालेबहनोई हैं. सदा से संग रहते हैं. आज यह यहां ड्योढ़ी पर हैं कि कभी अलग नहीं होंगे. इन दोनों में गाढ़ी प्रीत है.’’

रानी बोली, ‘‘महाराज, आप जो कहते हैं सत्य होगा, परंतु मेरी भी बात मान लीजिए. इन की परीक्षा कीजिए. अपने आप ही झूठसच ज्ञात हो जाएगा.’’

राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ और तुरंत ही अजीत सिंह और गुलाब सिंह दोनों को अपने महल में बुला भेजा. दोनों बड़े डरे कि क्या बात है. कोई नई आफत तो नहीं आई.

उन्होंने राणा के सामने जा कर प्रणाम किया. तब राणा ने पूछा, ‘‘गुलाब सिंह और अजीत सिंह यह बताओ कि तुम दोनों मर्द हो या तुम में से कोई स्त्री है?’’

दोनों चुप थे. क्या उत्तर देते. राणा ने फिर वही प्रश्न किया, ‘‘तुम दोनों बोलते क्यों नहीं? तुम्हें जो दुख हो कहो. मेरे अधिकार में होगा तो अभी इसी समय दूर कर दूंगा. लाज, भय की कोई बात नहीं.’’

अजीत सिंह ने सिर झुका कर राणा को अपनी सारी कहानी कह सुनाई. राणा ने उसी समय दासी को बुला कर कहा, ‘‘देखो, यह जो बहन मरदाना वेश में खड़ी है, मेरी पुत्री है. इस को अभी महल में ले जा कर स्त्रियों के कपड़े पहना दो और महल में रहने के लिए अलग स्थान दो, हर प्रकार से इन को आराम दो.’’

राजबाला राणा को प्रणाम कर उन की आज्ञा मान कर उसी समय सिर झुका कर महल में चली गई.

इस के बाद राणा ने अजीत सिंह से कहा, ‘‘राजपूत, मैं तेरे बापदादा के नाम को जानता हूं. तेरा वचनबद्ध होना धन्य है. मैं ने आज तक अपनी आयु में ऐसा योगी नहीं देखा था. तू मनुष्य नहीं देवता है. जा महल में अब अपनी स्त्री से बात कर.’’

रात को किसी को नींद नहीं आई. सुबह होते ही राणा ने 20 हजार रुपए सूद सहित अजीत सिंह को दिए.

वह उसी समय ऊंटनी पर चढ़ कर जैसलमेर की ओर चल दिया. कई दिन के सफर के बाद अजीत सिंह जैसलमेर मोहता सेठ के पास पहुंचा और सूद सहित 20 हजार रुपए सौंप दिए.

एक बरस से अजीत सिंह का कोई अतापता नहीं था. बनिया अपने रुपयों से निराश हो गया था परंतु उसे कोई रंज न था. क्योंकि वह अजीत सिंह के पिता अनार सिंह से बहुत कुछ ले चुका था. रुपए वापस पा कर सेठ बहुत खुश हुआ और बोला, ‘‘तुम वास्तव में क्षत्रिय हो, तुम जानते हो कि वचन क्या होता है. तुम महान हो.’’

अजीत सिंह सेठ के रुपए दे कर उदयपुर आया और राणा के पैरों पर गिर पड़ा, ‘‘आप ने मेरी लाज रख ली.’’

राणा ने राजबाला को प्राणरक्षक देवी का खिताब दिया. वह उदयपुर में इसी नाम से विख्यात थीं. वह जब कभी राणा के महल में उन के होते हुए जाती, राणा बेटी कह कर पुकारते थे.

पतिपत्नी दोनों राणा के कृपापात्र बन गए. राणा उन्हें बहुत प्यार करते थे, मानो वे उन के ही बेटेबेटी हों. राजबाला और उस के पति के लिए एक अलग से महल बनवा दिया गया और उन्हें एक जागीर भी अलग प्रदान की कई.

सेठ के रुपए चुका कर उदयपुर जाने के बाद उस रात जब बिस्तर पर अजीत सिंह और राजबाला सोए, तब उन के बीच तलवार नहीं थी. दोनों ने अपना वचन धर्म निभाया था और उस दिन दो जिस्म एक जान बन गए थे.

वचन-भाग 2 : मेवाड़ के राजा के सामने अजीत ने कैसे दिखाई अपनी वीरता

सेठ मोहता ने अजीत सिंह को बड़े ध्यान से देख कर कहा, ‘‘ये लो, ये 20 हजार रुपए रखे हैं. लेकिन एक शर्त है, वो यह कि तुम यह वचन दो कि जब तक तुम मेरे रुपए वापस न लौटा दोगे, तब तक अपनी पत्नी से मिलन नहीं करोगे. अगर ऐसा करते हो तो यह रुपए ले लो.’’

ऐसे वचन को निभाना बड़ी कठिन बात थी. परंतु रुपए मिलने का और कोई उपाय भी तो न था. अत: वह राजी हो गया और रुपए ले कर अपनी ससुराल वैशालपुर आया.

अपने वचन के अनुसार प्रताप सिंह ने दोनों का विवाह कर दिया. यह किसी को जरा भी खबर न हुई कि रुपए कहां से आए. विवाह के बाद रीतिरिवाज के अनुसार दूल्हा दुलहन दोनों के लिए एक महल दे दिया गया. वे कई दिन तक उस में रहे, परंतु सेज पर सोते समय अजीत सिंह अपने और पत्नी के बीच नंगी तलवार रख कर सोता था.

राजबाला को उन के इस प्रकार के बर्ताव से बड़ा आश्चर्य हुआ और मन ही मन सोचने लगी, ‘सचमुच मेरे पति बड़े सुंदर हैं, चतुर और वीर हैं, पर नामालूम बीच में नंगी तलवार रख कर सोने का क्या मतलब है?’

कई दिन इसी तरह बीत गए, परंतु राजबाला को इतना साहस नहीं हुआ कि कुछ पूछती. अंत में एक दिन दोनों में बातचीत होने लगी. राजबाला ने साहस कर के पूछा, ‘‘प्राणनाथ, मैं देखती हूं कि आप प्राय: ठंडी और गहरी सांसें लेते रहते हैं. इस से पता चलता है कि आप को कोई बड़ा कष्ट हो रहा है. मैं तो आप के चरणों की दासी हूं, मुझ से छिपाना उचित नहीं है. मैं विचार करूंगी कि किस प्रकार आप की चिंता दूर हो सकती है.’’

राजबाला की बात सुन कर उस का दिल भर आया और मुंह नीचा कर के उस ने चुप्पी साध ली. राजबाला ने फिर कहा, ‘‘स्वामी, घबराने की कोई बात नहीं है. इस संसार में सभी पर विपत्ति आती है. चिंता व्यर्थ है. संसार में हर रोग की दवा है. आप चिंता न कीजिए, मुझ से कहिए. यथासंभव मैं आप की सहायता करूंगी. यदि मेरे मरने से भी आप को सुख मिलता है या आप का भला होता है तो मेरे प्राण आप की सेवा को हर समय तैयार हैं.’’

राजबाला का इतना कहना था कि अजीत सिंह ने राजबाला का हाथ पकड़ लिया और दुखभरे शब्दों में अपनी सब कथा कह सुनाई.

जब अजीत सिंह यह सब कह चुका तो राजबाला ने कहा, ‘‘स्वामी, आप ने बड़ा त्याग कर के मुझे मोल लिया है. मैं कभी आप की इस कृपा को नहीं भूल सकती. पर यह ऐसी जगह नहीं है, जहां 20 हजार रुपए मिल सकें. इसलिए इसे छोड़ना उचित है.

‘‘मैं इसी समय मरदाना वेश धारण करती हूं. मैं और आप संगसंग रहेंगे. जब कोई आप से मेरे बारे में पूछे तो आप साले बहनोई बताएं. चलिए, परदेश चल कर महाजन के 20 हजार रुपए चुकाने का उपाय करें.’’

आधी रात का समय था, जब पतिपत्नी में इस प्रकार की बातचीत हुई. सब लोग बेसुध सो रहे थे. राजबाला ने मरदाना वेश धारण किया. अजीत सिंह और राजबाला दोनों महल से बाहर आए और घोड़ों पर सवार हो कर चल दिए.

कई दिन के सफर के बाद 2 सुंदर बांके युवक घोड़ों पर सवार उदयपुर में दिखाई दिए. उस समय मेवाड़ की राजगद्दी पर महाराज जगत सिंह राज करते थे. राणा महल की छत पर बैठे नगर को देख रहे थे. नए राजपूतों को देख कर उन का हाल जानने के लिए राणा ने 2 दूतों को भेजा.

थोड़ी देर में दोनों राजपूत राणा के सामने लाए गए. जब दोनों राजपूत प्रणाम कर चुके तो महाराज ने पूछा, ‘‘तुम कौन हो? कहां से आए हो? और कहां जा रहे हो?’’

अजीत सिंह ने उत्तर दिया, ‘‘महाराज, हम दोनों राजपूत हैं. मेरा नाम अजीत सिंह और ये मेरे साले हैं. इन का नाम गुलाब सिंह है. नौकरी की तलाश में आप के यहां आए हैं. सौभाग्य से आप के दर्शन हो गए. अब आगे क्या होगा, नहीं मालूम.’’

राजा राजपूतों के ढंग को देख कर बहुत प्रसन्न हुए और राजपूतों के नाम पर मोहित हो कर महाराज ने हंस कर उत्तर दिया, ‘‘तुम लोग मेरे यहां रहो. एक हवेली तुम्हारे रहने के लिए दी जाती है. खानपान के लिए अतिरिक्त 5 हजार रुपए और दिए जाएंगे.’’

राजबाला और अजीत सिंह दोनों अब उदयपुर में रहने लगे, परंतु 20 हजार रुपए की चिंता सदा लगी रहती थी. रुपए जुटाने का कोई उपाय नहीं सूझ रहा था. वह वर्षा ऋतु के आरंभ में यहां आए थे और वर्षा ऋतु बीत गई.

फिर दशहरे का त्यौहार आया. इस पर राजपूताना में बड़ा उत्सव मनाया जाता है. उदयपुर में पाड़े (भैंसे) का वध किया जाता है. महाराज के साथ सब सामंत, जागीरदार, सरदार घोड़ों पर सवार हुए. उन के साथ गुलाब सिंह और अजीत सिंह भी चल दिए.

इतने में ही एक गुप्तचर ने आ कर खबर दी, ‘‘महाराज की जय हो. पाड़े के स्थान पर एक सिंह की खबर है.’’

राणा ने राजपूतों से कहा, ‘‘वीरों, आज का दिन धन्य है जो सिंह आया है. ऐसा अवसर बड़ी कठिनाई से मिलता है. अब पाड़े का ध्यान छोड़ कर सिंह का शिकार करो.’’

बस, फिर क्या था. हांके वालों ने सिंह को जा कर घेर लिया और उस के निकलने के लिए केवल एक ही रास्ता रखा जिधर राजा और सरदार उस सिंह का इंतजार कर रहे थे.

महाराज हाथी पर थे. वह चाहते थे कि स्वयं सिंह का शिकार करें. इसलिए उन्होंने और सरदारों को उचितउचित स्थान पर खड़ा कर दिया. जब सिंह ने देखा कि उसे लोग घेर रहे हैं तो वह राणा की ओर बढ़ा.

उसे देख का राणा डर गए क्योंकि उन्होंने  पहले कभी इतना बड़ा सिंह नहीं देखा था. उसे मारना आसान काम नहीं था. सब सरदार लोग भी डर गए. सिंह झपट कर राणा के हाथी पर आया और उस के मस्तक से मांस का लोथड़ा नोच कर पीछे हट गया.

राणा के हाथ से भय के मारे तीरकमान भी छूट गए. सिंह फिर छलांग लगाने को ही था कि गुलाब सिंह ने दूर से देखा और अजीत सिंह से कहा, ‘‘ठाकुर साहब, महाराज की जान खतरे में है. उन्हें ऐसे कठिन समय में छोड़ना अति कायरता की बात है. मुझ से अब देखा नहीं जाता. प्रणाम, मैं जाता हूं.’’

तभी गुलाब सिंह का घोड़ा तीर की तरह सनसनाता हुआ आगे बढ़ा, हाथी अपना धैर्य छोड़ चुका था. सिंह फिर छलांग लगाने को ही था कि हवा के झोंके की तरह आ कर गुलाब सिंह ने उसे अपने भाले के निशाने पर ले लिया. भाले सहित सिंह जमीन पर गिरा.

बस, फिर क्या था, सवार ने एक ऐसा हाथ तलवार का मारा कि सिंह का सिर अलग जा गिरा. उसी समय उस के कान और पूंछ काट कर घोड़े की जीन के नीचे रख कर लोगों के बीच जा पहुंचा और बातचीत करने लगा.

परंतु उस ने इस काम को इतनी फुरती में किया कि किसी को ज्ञात भी न हुआ कि वह घुड़सवार कौन था, जिस ने सिंह को मारा. सिंह के मरने पर चारों ओर राजा की जयजयकार होने लगी. सब लोगों ने अपनीअपनी जगह से आ कर राजा को घेर लिया. सरदारों ने कहा, ‘‘ईश्वर ने आज बड़ी दया की. हम सब की जान में जान आई.’’

जब सभी बधाई दे चुके तो राजा ने कहा, ‘‘वह कौन बहादुर था, जिस ने आज मेरी प्राणों की रक्षा की. उस को मेरे सामने लाओ. मैं उसे ईनाम दूंगा.’’

परंतु मारने वाला बहुत दूर खड़ा था. वह अपने को उजागर करना भी नहीं चाहता था. राणा ने थोड़ी देर तक राह देखी. परंतु जब कोई नहीं आया तो खुशामदी दरबारी लोग अपनेअपने मित्रों के नाम बताने लगे.

अधूरी मौत-भाग 5 : क्यों अपने ही पति की खूनी बन गई शीतल

शीतल अब निश्चिंत हो गई. वह सोचने लगी, इस स्थिति से कैसे निपटा जाए. अगर वह सचमुच एक आत्मा हुई तो..? अरे उस ने खुद ने ही तो बता दिया है कि जहां भगवान होते हैं, वहां वह ठहर ही नहीं सकता. मतलब भगवान को साथ ले जाना होगा. और अगर वह खुद कोई फ्रौड हुआ, तो अपनी आत्मरक्षा के लिए रिवौल्वर साथ ले जाऊंगी. शीतल ने निर्णय लिया.

सुबह उठ कर उस ने अपने दोनों हाथों की कलाइयों, बाजुओं, गले यहां तक कि कमर में भी भगवान के फोटो वाली लौकेट पहन लिए, ताकि वह आत्मा उसे छूने से पहले ही समाप्त हो जाए. साथ ही रिवौल्वर भी अपने पर्स में रख ली.

ड्राइवर आज छुट्टी पर था. उस ने खुद गाड़ी चलाने का निर्णय लिया. वह निर्धारित समय से 15 मिनट पहले ही सुनसान पहाड़ी पर पहुंच गई. लेकिन अनल उस से भी पहले से वहां पहुंचा हुआ था.

‘‘ऐसा लगता है, तुम सुबह से ही यहां आ गए हो.’’ शीतल अनल की तरफ देखते हुए बोली.

‘‘शीतू, मैं तो रात से ही तुम्हारे इंतजार में बैठा हूं.’’ अनल बोला.

‘‘कौन सी इच्छा पूरी करना चाहते हो अनल?’’ शीतल अपने आप को संभालती हुई बोली.

‘‘बस एक ही इच्छा है, जो मैं मर कर भी नहीं जान पाया…’’ अनल थोड़ा रुकता हुआ बड़ी संजीदगी से बोला, ‘‘…कि तुम ने मुझे उस ऊंची पहाड़ी से धक्का क्यों दिया? इस का जवाब दो, इस के बाद मैं सदासदा के लिए तुम्हारी जिंदगी से दूर चला जाऊंगा.’’

‘‘हां, तुम्हें यह जवाब जानने का पूरा हक है. और यह सुनसान जगह उस के लिए उपयुक्त भी है. अनल तुम तो मेरी पारिवारिक स्थिति अच्छी तरह से जानते ही हो. मैं बचपन से बहनों के उतारे हुए पुराने कपड़े और बचीखुची रोटियों के दम पर ही जीवित रही हूं. लेकिन किस्मत ने मुझे उस मोड़ पर ला कर खड़ा कर दिया, जहां मेरे चारों ओर खानेपीने और पहनने ओढ़ने की बेशुमार चीजें बिखरी पड़ी थीं.

‘‘यह सब वे खुशियां थीं जिस का इंतजार मैं पिछले 23 साल से कर रही थी. एक तुम थे कि मुझे मां बनाने पर तुले थे. और मैं जानती थी, एक बार मां बनाने के बाद मेरी सारी इच्छाएं बच्चे के नाम पर कुरबान हो जातीं. और यह भी संभव था कि एक बच्चे के 3-4 साल का होने के बाद मुझ से दूसरे बच्चे की मांग की जाती.

‘‘अब तुम ही बताओ मेरी अपनी सारी इच्छाओं का क्या होता? क्या बच्चे और परिवार के नाम पर मेरी ख्वाहिशें अधूरी नहीं रह जातीं?

‘‘मैं अपनी इच्छाओं को किसी के साथ भी बांटना नहीं चाहती थी. न तुम्हारे साथ न बच्चों के साथ. मैं भरपूर जिंदगी जीना चाहती हूं सिर्फ अपने और अपने लिए.

‘‘उस पहाड़ी को देखते ही मैं ने मन ही मन योजना बना ली थी. इसी कारण स्टाइलिश फोटो के नाम पर ऐसा पोज बनवाया, जिस से मुझे धक्का देने में आसानी हो.’’

शीतल ने अपनी योजना का खुलासा किया, ‘‘मैं अब तक इस बात को भी अच्छी तरह से समझ चुकी हूं कि तुम कोई आत्मा नहीं हो. लेकिन मैं तुम्हें इसी पल आत्मा में तब्दील कर दूंगी.’’ कहते हुए शीतल ने अपने पर्स से रिवौल्वर निकालते हुए कहा, ‘‘हां, तुम्हारी लाश पुलिस को मिल जाएगी, तो मुझे बीमे का क्लेम भी आसानी से मिल जाएगा.’’ शीतल ने आगे जोड़ा.

‘‘देखो शीतल, दोबारा ऐसी गलती मत करो. तुम्हारे पीछे पुलिस यहां पर पहुंच ही चुकी है.’’ अनल शीतल को चेताते हुए बोला.

‘‘मूर्ख, मुझे छोटा बच्चा समझ रखा है क्या? तुम कहोगे पीछे देखो और मैं पीछे देखूंगी तो मेरी पिस्तौल छीन लोगे.’’ शीतल कातिल हंसी हंसते हुए बोली.

शीतल गोली चलाती, इस से पहले ही उस के पैर के निचले हिस्से पर किसी भारी चीज से प्रहार हुआ.

‘‘आ आ आ मर गई… ’’ कहते हुए शीतल जमीन पर गिर गई और हाथों से रिवौल्वर छूट गई. उस ने पीछे पलट कर देखा तो सचमुच में पुलिस खड़ी थी और साथ में वीर भी था.

‘‘आप का कंफेशन लेने के लिए ही यह ड्रामा रचा गया था मैडम. इस सारे घटनाक्रम की वीडियोग्राफी कर ली गई है. अनल ने कपड़ों में 3-4 स्पाइ कैमरे लगा रखे थे.’’ इंसपेक्टर ने कहा, ‘‘आप को कुछ जानना है?’’

‘‘हां इंसपेक्टर, मैं यह जानना चाहती हूं कि अनल का भूत कैसे पैदा किया गया? वह मेरी गैलरी में कैसे चढ़ा और उतरा? वह मेरे अलावा किसी और को दिखाई क्यों नहीं दिया?’’ शीतल ने अपनी जिज्ञासा रखी.

‘‘यह वास्तव में ठीक उसी तरह का शो था जैसा कि कई शहरों में होता है. लाइट एंड साउंड शो के जैसा लेजर लाइट से चलने वाला. इस की वीडियो अनल व वीर ने ही बनाई थी और इस का संचालन आप के बंगले के सामने बन रही एक निर्माणाधीन बिल्डिंग से किया जाता था.’’ इंसपेक्टर ने बताया, ‘‘और आप के ड्राइवर और चौकीदार तो बेचारे इस योजना में शामिल हो कर आप के साथ नमकहरामी नहीं करना चाहते थे. लेकिन जब उन्हें थाने बुलाया और पूरा मामला समझाया गया तो वह साथ देने को तैयार हो गए. ड्राइवर की आज की छुट्टी भी इसी पटकथा का एक हिस्सा है.’’

‘‘पहाड़ी पर इतनी ऊंचाई से गिरने के बाद भी अनल बच कैसे गया?’’ शीतल ने हैरानी से पूछा.

‘‘यह सारी कहानी तो मिस्टर अनल ही बेहतर बता सकेंगे.’’ इंसपेक्टर ने कहा.

‘‘शीतल, मैं 50 मीटर लुढ़कने के बाद खाई में उगे एक पेड़ पर अटक गया. इतना लुढ़कने और कई छोटेबड़े पत्थरों से टकराने के कारण मैं बेहोश हो गया. तुम ने लगभग 100 मीटर दूर पुलिस को घटनास्थल बताया. तुम चाहती थी कि मेरी लाश किसी भी स्थिति में न मिले.

‘‘पहले दिन पुलिस तुम्हारे बताए स्थान पर ढूंढती रही, मगर अंधेरा होने के कारण चली गई. लेकिन दूसरे दिन पुलिस ने उस पूरे इलाके में सर्चिंग की तो मैं एक पेड़ पर अटका हुआ बेहोश हालत में दिखाई दिया. चूंकि यह स्थान तुम्हारे बताए गए स्थान से काफी दूर और अलग था, अत: पुलिस को तुम पर शक पहले दिन से ही हो गया था. और वह मेरे बयान लेना चाहती थी. पुलिस ने तुम्हें बताए बिना मुझे अस्पताल में भरती करवा दिया. कुछ समय बेहोश रहने के बाद मैं कोमा में चला गया.

‘‘लगभग एक महीने के बाद मुझे होश आया और मैं ने अपना बयान पुलिस को दिया. तुम से गुनाह कबूल करवाना मुश्किल था, इसीलिए पुलिस से मिल कर यह नाटक करना पड़ा.’’ अनल ने बताया.

‘‘चलो, अब समझ में आ गया भूत जैसी कोई चीज नहीं होती.’’ शीतल बोली.

‘‘मैं ने तुम से वायदा किया था कि आज के बाद हम कभी नहीं मिलेंगे तो यह हमारी आखिरी मुलाकात होगी. मेरी अनुपस्थिति में  पिताजी का खयाल रखने के लिए बहुतबहुत धन्यवाद.’’ अनल हाथ जोड़ते हुए बोला.