वचन : मेवाड़ के राजा के सामने अजीत ने कैसे दिखाई अपनी वीरता

वैशालपुर के ठाकुर प्रताप सिंह की बेटी थी राजबाला. वह बेहद सुंदर और धैर्यवान होने के साथ चतुर भी थी. आसपास के रजवाड़ों में ऐसी गुणों की खान कोई न थी. राजबाला का गोरा रंग, सुतवां नाक, कजरारे बड़ेबड़े नैन और गुलाब की पंखुडि़यों जैसे गुलाबी होंठ, भरा और कसा बदन, कमर तक लटकती स्याह काली केशराशि और मोहक मुसकान देख कर लोग उसे ऐसे ताकते रह जाते थे, जैसे वह किसी दूसरे लोक से आई कोई अप्सरा हो.

मगर हकीकत में वह कोई अप्सरा नहीं, बल्कि राजपूत बाला राजबाला थी. अपने पति को वह प्राणों से अधिक प्यार करती थी और जीवन भर कभी भी ऐसा अवसर न आया, जब उस ने पति की इच्छा के खिलाफ कोई काम किया हो.

राजबाला का विवाह अमरकोट रियासत की सोडा राजधानी के राजा अनार सिंह के पुत्र अजीत सिंह से हुआ था. अनार सिंह के पास बहुत बड़ी सेना थी, जिस से कभीकभी वह लूटमार भी किया करते थे.

एक बार ऐसा हुआ कि राव कोटा का राजकोष कहीं से आ रहा था. इस की खबर अनार सिंह को लग गई. तब अनार सिंह अपनी सेना ले कर राजकोष लूटने चल पड़े. राव कोटा के सिपाही बड़े वीर थे. दोनों सेनाओं में जम कर युद्ध हुआ. अंत में अनार सिंह की पराजय हुई और उन की सारी सेना तितरबितर हो गई.

इस पराजय के कारण अनार सिंह का सोडा में रहना असंभव हो गया. कोटा के राजा राव ने अनार सिंह की जागीर छीन ली और उन्हें देश निकाले का फरमान सुना दिया. अनार सिंह अब अपने किए पर पछता रहे थे.

मगर जो होना था, वह तो हो चुका था. अंत में वह सोडा को छोड़ कर काले वस्त्र धारण कर काले घोड़े पर बैठ कर स्याह काली रात के अंधेरे में दूसरे राज्य के एक छोटे से गांव में जा बसे.

अनार सिंह का हाथ तो पहले से ही तंग था, अब हालत और भी खराब हो गए. कहावत है कि रिजक (धन) बिन राजपूत कैसा. यहां तक कि देश निकाला मिलने के थोड़े समय बाद में दुख और लाज के मारे उन्होंने प्राण त्याग दिए.

अनार सिंह की मृत्यु के बाद उन की पत्नी ठकुरानी अपने पुत्र अजीत सिंह को बड़े कष्ट उठा कर पालने लगी. अजीत सिंह की उम्र उस समय 13 वर्ष रही होगी. किंतु बांकपन और वीरता में वह अपनी उम्र के बालकों से कहीं बढ़ कर था. इस कुल की धीरेधीरे यह दुर्दशा हो गई कि अजीत सिंह की माता दूसरों का कामकाज कर के निर्वाह करने लगी. इस प्रकार उस दुखिया की भी कुछ समय बाद मृत्यु हो गई.

राजबाला के साथ अजीत सिंह के विवाह की बातचीत उस के पिता के जीते जी हो गई थी. हालांकि अनार सिंह का यह कुल अति दरिद्र हो गया था. परंतु राजपूत लोग सदा से अपने वचन का सम्मान करते थे.

राजपूतानियां भी प्राय: अति हठी होती थीं. एक बार जब किसी के साथ उन का नाम निकल जाए, फिर वह कभी किसी दूसरे के साथ विवाह करना उचित नहीं समझती थीं.

अजीत सिंह अब बिलकुल अनाथ था. वह किसी प्रकार अपना निर्वाह न कर सकता था. किंतु उसे आशा थी कि उस के युवा होने पर शायद कोटा का राजा उस के पिता की जागीर उसे दे देगा, जिस का वह वारिस है. बस, वह इसी आशा से जी रहा था.

एक बार अजीत सिंह ने एक राजपूतानी को प्रताप सिंह के यहां इसलिए भेजा था कि वह अपनी पुत्री का विवाह उस के साथ करने को राजी है या नहीं? उस समय राजबाला भी युवती थी. वह विवाह का समाचार सुन कर अपनी सहेलियों से कहने लगी, ‘‘बहनो, मैं ने अपने पति को नहीं देखा, वह कैसे हैं?’’

सहेलियां बोलीं, ‘‘तुम्हारे पति अति सुंदर, बुद्धिमान और वीर हैं.’’

पति की प्रशंसा सुन कर राजबाला अति प्रसन्न हुई और कहने लगी, ‘‘मेरे पति वीर हैं, चतुर हैं और सुंदर हैं. ये ही सब बातें एक राजपूत में होनी चाहिए. सब कहते हैं कि उन के पास धन नहीं है. न सही, जहां बुद्धि और पराक्रम है, वहां धन अपने आप ही आ जाता है.’’

राजबाला ने किसी तरह उस राजपूतानी से मिल कर कहा, ‘‘तुम जा कर मेरे पति से कहो कि यहां लोग तुम्हारी दरिद्रता का समाचार कहते रहते हैं, परंतु मैं आज से ही नहीं, कई सालों से आप की हो चुकी हूं. आप मेरे पति हैं, मैं आप की बुराई सुनना नहीं चाहती. इसलिए आप स्वयं आ कर पिताजी से कह कर मुझे ले जाएं. मैं गरीबी और अमीरी में सदा आप का साथ दूंगी. किसी का वश नहीं कि मेरी बात को टाल सके. यदि विवाह होगा तो आप के साथ होगा, नहीं तो राजबाला प्रसन्नतापूर्वक प्राण त्याग करेगी.’’

जिस समय राजपूतानी ने राजबाला का यह संदेश अजीत सिंह को सुनाया. वह बहुत खुश हुआ और कहने लगा, ‘‘यह कैसे संभव है कि मेरे जीते जी कोई और राजबाला को ब्याह ले जाए.’’

राजबाला के कहे अनुसार अजीत सिंह ने उस के पिता प्रताप सिंह को विवाह के लिए कहलवा भेजा. जिस के जवाब में प्रताप सिंह ने कहा, ‘‘विवाह को तो हम तैयार हैं. क्योंकि हम ने तुम्हारे पिता को वचन दिया था. परंतु इस समय तुम्हारी आर्थिक हालत सही नहीं है. ऐसा करो कि तुम 20 हजार रुपए इकट्ठा कर के लाओ, जिस से यह मालूम हो कि तुम मेरी बेटी को सुखी रख सकोगे. जब तक तुम्हारे पास 20 हजार रुपए न हों तो विवाह के बारे में भी तुम्हारा सोचना व्यर्थ है.’’

आखिर प्रताप सिंह की बात भी उचित थी. कोई भी पिता अपनी ऐशोआराम में पली बेटी का विवाह ऐसे किसी व्यक्ति के साथ कैसे कर सकता है, जिस का खुद निर्वाह करना मुश्किल होता हो.

अजीत सिंह सोच में डूब गया. परंतु बेचारा क्या करता. अंत में उसे जैसलमेर के एक सेठ मोहता का ध्यान आया, जिस के यहां से उस के पिता का लेनदेन था.

वह सेठ मोहता के पास गया और उस से कहा, ‘‘सेठजी, तुम मेरे घराने के पुराने महाजन हो. 20 हजार रुपए के बिना मेरा विवाह नहीं हो रहा है. विवाह करना जरूरी है, परंतु तुम जानते हो कि मेरे पास इस समय न जागीर है, न ही कुछ और है. अगर पुराने संबंधों का विचार कर के और मुझ पर विश्वास करते हुए मुझे 20 हजार रुपए दे सको तो दे दो. मैं सूद सहित वापस कर दूंगा.’’

सेठ मोहता ने अजीत सिंह को बड़े ध्यान से देख कर कहा, ‘‘ये लो, ये 20 हजार रुपए रखे हैं. लेकिन एक शर्त है, वो यह कि तुम यह वचन दो कि जब तक तुम मेरे रुपए वापस न लौटा दोगे, तब तक अपनी पत्नी से मिलन नहीं करोगे. अगर ऐसा करते हो तो यह रुपए ले लो.’’

ऐसे वचन को निभाना बड़ी कठिन बात थी. परंतु रुपए मिलने का और कोई उपाय भी तो न था. अत: वह राजी हो गया और रुपए ले कर अपनी ससुराल वैशालपुर आया.

अपने वचन के अनुसार प्रताप सिंह ने दोनों का विवाह कर दिया. यह किसी को जरा भी खबर न हुई कि रुपए कहां से आए. विवाह के बाद रीतिरिवाज के अनुसार दूल्हा दुलहन दोनों के लिए एक महल दे दिया गया. वे कई दिन तक उस में रहे, परंतु सेज पर सोते समय अजीत सिंह अपने और पत्नी के बीच नंगी तलवार रख कर सोता था.

राजबाला को उन के इस प्रकार के बर्ताव से बड़ा आश्चर्य हुआ और मन ही मन सोचने लगी, ‘सचमुच मेरे पति बड़े सुंदर हैं, चतुर और वीर हैं, पर नामालूम बीच में नंगी तलवार रख कर सोने का क्या मतलब है?’

कई दिन इसी तरह बीत गए, परंतु राजबाला को इतना साहस नहीं हुआ कि कुछ पूछती. अंत में एक दिन दोनों में बातचीत होने लगी. राजबाला ने साहस कर के पूछा, ‘‘प्राणनाथ, मैं देखती हूं कि आप प्राय: ठंडी और गहरी सांसें लेते रहते हैं. इस से पता चलता है कि आप को कोई बड़ा कष्ट हो रहा है. मैं तो आप के चरणों की दासी हूं, मुझ से छिपाना उचित नहीं है. मैं विचार करूंगी कि किस प्रकार आप की चिंता दूर हो सकती है.’’

राजबाला की बात सुन कर उस का दिल भर आया और मुंह नीचा कर के उस ने चुप्पी साध ली. राजबाला ने फिर कहा, ‘‘स्वामी, घबराने की कोई बात नहीं है. इस संसार में सभी पर विपत्ति आती है. चिंता व्यर्थ है. संसार में हर रोग की दवा है. आप चिंता न कीजिए, मुझ से कहिए. यथासंभव मैं आप की सहायता करूंगी. यदि मेरे मरने से भी आप को सुख मिलता है या आप का भला होता है तो मेरे प्राण आप की सेवा को हर समय तैयार हैं.’’

राजबाला का इतना कहना था कि अजीत सिंह ने राजबाला का हाथ पकड़ लिया और दुखभरे शब्दों में अपनी सब कथा कह सुनाई.

जब अजीत सिंह यह सब कह चुका तो राजबाला ने कहा, ‘‘स्वामी, आप ने बड़ा त्याग कर के मुझे मोल लिया है. मैं कभी आप की इस कृपा को नहीं भूल सकती. पर यह ऐसी जगह नहीं है, जहां 20 हजार रुपए मिल सकें. इसलिए इसे छोड़ना उचित है.

‘‘मैं इसी समय मरदाना वेश धारण करती हूं. मैं और आप संगसंग रहेंगे. जब कोई आप से मेरे बारे में पूछे तो आप साले बहनोई बताएं. चलिए, परदेश चल कर महाजन के 20 हजार रुपए चुकाने का उपाय करें.’’

आधी रात का समय था, जब पतिपत्नी में इस प्रकार की बातचीत हुई. सब लोग बेसुध सो रहे थे. राजबाला ने मरदाना वेश धारण किया. अजीत सिंह और राजबाला दोनों महल से बाहर आए और घोड़ों पर सवार हो कर चल दिए.

कई दिन के सफर के बाद 2 सुंदर बांके युवक घोड़ों पर सवार उदयपुर में दिखाई दिए. उस समय मेवाड़ की राजगद्दी पर महाराज जगत सिंह राज करते थे. राणा महल की छत पर बैठे नगर को देख रहे थे. नए राजपूतों को देख कर उन का हाल जानने के लिए राणा ने 2 दूतों को भेजा.

थोड़ी देर में दोनों राजपूत राणा के सामने लाए गए. जब दोनों राजपूत प्रणाम कर चुके तो महाराज ने पूछा, ‘‘तुम कौन हो? कहां से आए हो? और कहां जा रहे हो?’’

अजीत सिंह ने उत्तर दिया, ‘‘महाराज, हम दोनों राजपूत हैं. मेरा नाम अजीत सिंह और ये मेरे साले हैं. इन का नाम गुलाब सिंह है. नौकरी की तलाश में आप के यहां आए हैं. सौभाग्य से आप के दर्शन हो गए. अब आगे क्या होगा, नहीं मालूम.’’

राजा राजपूतों के ढंग को देख कर बहुत प्रसन्न हुए और राजपूतों के नाम पर मोहित हो कर महाराज ने हंस कर उत्तर दिया, ‘‘तुम लोग मेरे यहां रहो. एक हवेली तुम्हारे रहने के लिए दी जाती है. खानपान के लिए अतिरिक्त 5 हजार रुपए और दिए जाएंगे.’’

राजबाला और अजीत सिंह दोनों अब उदयपुर में रहने लगे, परंतु 20 हजार रुपए की चिंता सदा लगी रहती थी. रुपए जुटाने का कोई उपाय नहीं सूझ रहा था. वह वर्षा ऋतु के आरंभ में यहां आए थे और वर्षा ऋतु बीत गई.

फिर दशहरे का त्यौहार आया. इस पर राजपूताना में बड़ा उत्सव मनाया जाता है. उदयपुर में पाड़े (भैंसे) का वध किया जाता है. महाराज के साथ सब सामंत, जागीरदार, सरदार घोड़ों पर सवार हुए. उन के साथ गुलाब सिंह और अजीत सिंह भी चल दिए.

इतने में ही एक गुप्तचर ने आ कर खबर दी, ‘‘महाराज की जय हो. पाड़े के स्थान पर एक सिंह की खबर है.’’

राणा ने राजपूतों से कहा, ‘‘वीरों, आज का दिन धन्य है जो सिंह आया है. ऐसा अवसर बड़ी कठिनाई से मिलता है. अब पाड़े का ध्यान छोड़ कर सिंह का शिकार करो.’’

बस, फिर क्या था. हांके वालों ने सिंह को जा कर घेर लिया और उस के निकलने के लिए केवल एक ही रास्ता रखा जिधर राजा और सरदार उस सिंह का इंतजार कर रहे थे.

महाराज हाथी पर थे. वह चाहते थे कि स्वयं सिंह का शिकार करें. इसलिए उन्होंने और सरदारों को उचितउचित स्थान पर खड़ा कर दिया. जब सिंह ने देखा कि उसे लोग घेर रहे हैं तो वह राणा की ओर बढ़ा.

उसे देख का राणा डर गए क्योंकि उन्होंने  पहले कभी इतना बड़ा सिंह नहीं देखा था. उसे मारना आसान काम नहीं था. सब सरदार लोग भी डर गए. सिंह झपट कर राणा के हाथी पर आया और उस के मस्तक से मांस का लोथड़ा नोच कर पीछे हट गया.

राणा के हाथ से भय के मारे तीरकमान भी छूट गए. सिंह फिर छलांग लगाने को ही था कि गुलाब सिंह ने दूर से देखा और अजीत सिंह से कहा, ‘‘ठाकुर साहब, महाराज की जान खतरे में है. उन्हें ऐसे कठिन समय में छोड़ना अति कायरता की बात है. मुझ से अब देखा नहीं जाता. प्रणाम, मैं जाता हूं.’’

तभी गुलाब सिंह का घोड़ा तीर की तरह सनसनाता हुआ आगे बढ़ा, हाथी अपना धैर्य छोड़ चुका था. सिंह फिर छलांग लगाने को ही था कि हवा के झोंके की तरह आ कर गुलाब सिंह ने उसे अपने भाले के निशाने पर ले लिया. भाले सहित सिंह जमीन पर गिरा.

बस, फिर क्या था, सवार ने एक ऐसा हाथ तलवार का मारा कि सिंह का सिर अलग जा गिरा. उसी समय उस के कान और पूंछ काट कर घोड़े की जीन के नीचे रख कर लोगों के बीच जा पहुंचा और बातचीत करने लगा.

परंतु उस ने इस काम को इतनी फुरती में किया कि किसी को ज्ञात भी न हुआ कि वह घुड़सवार कौन था, जिस ने सिंह को मारा. सिंह के मरने पर चारों ओर राजा की जयजयकार होने लगी. सब लोगों ने अपनीअपनी जगह से आ कर राजा को घेर लिया. सरदारों ने कहा, ‘‘ईश्वर ने आज बड़ी दया की. हम सब की जान में जान आई.’’

जब सभी बधाई दे चुके तो राजा ने कहा, ‘‘वह कौन बहादुर था, जिस ने आज मेरी प्राणों की रक्षा की. उस को मेरे सामने लाओ. मैं उसे ईनाम दूंगा.’’

परंतु मारने वाला बहुत दूर खड़ा था. वह अपने को उजागर करना भी नहीं चाहता था. राणा ने थोड़ी देर तक राह देखी. परंतु जब कोई नहीं आया तो खुशामदी दरबारी लोग अपनेअपने मित्रों के नाम बताने लगे.

राणा ने कहा, ‘‘नहीं, मैं ने उसे जाते हुए देखा है. हालांकि ठीकठीक नहीं कह सकता, परंतु पहचान तो उसे अवश्य लूंगा. उस के मुख की सुंदरता मेरी आंखों में खपी जाती है.’’

राजा की बात सुन कर सब चुप हो गए और सवारी महल की ओर चली. जब राणा फाटक पर पहुंचे तो हाथी से उतर कर आज्ञा दी, ‘‘एकएक आदमी मेरे सामने से हो कर निकल जाएं.’’

आज्ञानुसार बारीबारी से सभी लोग राणा के सामने से निकल कर महल में चले गए. जब गुलाब सिंह जाने लगा तो राणा ने उसे देख कर पूछा, ‘‘क्या सिंह को तुम ने मारा है?’’

गुलाब सिंह ने सिर झुका कर कहा, ‘‘जिस को श्रीमान कहें, वही सिंह का वध कर सकता है. सिंह की मृत्यु तो आप की आज्ञा के अधीन है.’’

राणा बोले, ‘‘मैं समझता हूं, सिंह तुम ने ही मारा है परंतु मैं यह यकीन से नहीं कह सकता, क्योंकि तीव्रगति से दौड़ते घोड़े ने मुझे इतना अवसर न दिया कि मैं मारने वाले को ठीक से पहचान सकता.’’

अजीत सिंह भी निकट था, वह बोला, ‘‘अनाथों के नाथ, सिंह के कान और पूंछ नहीं हैं, इस से ज्ञात होता है कि उस को मारने वाले ने प्रमाण के लिए उस के कान और पूंछ काट लिए हैं.’’

राणा ने गुलाब सिंह से कहा, ‘‘कान और पूंछ हाजिर करो.’’

गुलाब सिंह ने तुरंत घोड़े की जीन के नीचे से निकाल कर उन्हें राणा के सामने पेश किया. राणा बोले, ‘‘राजपूतो, तुम बड़े वीर हो. आज से तुम मेरे संग रहो. मैं तुम्हें अपना अंगरक्षक नियुक्त करता हूं.’’

हालांकि दोनों राजपूत संग रहते थे परंतु रात के समय दोनों को अलगअलग हो जाना पड़ता था. अजीत सिंह तो रात को दरबार में रहता था और राजबाला (गुलाब सिंह) की ड्यूटी राजा के सुख भवन में थी. एक दिन राजबाला अपनी बेबसी पर नीचे स्वर में मल्हार के राग गाने लगी.

अजीत सिंह ने राजबाला के राग को सुना. उस के हृदय में भी वही भाव उद्दीप्त हो गया. उस ने भी राजबाला के राग में स्वर मिला दिया. राणा की रानी बहुत चतुर थी. दोनों गाने वालों के राग की आवाज रात के समय उस के कानों में पड़ी.

उस ने राणा से कहा, ‘‘मुझे ज्ञात होता है कि ये दोनों राजपूत जो तुम्हारी सेवा में हैं स्त्री और पुरुष हैं. यह जो पुरुष रानी निवास पर पहरे पर है, अवश्य यह स्त्री है. कोई कारण है, जिस से ये एकदूसरे से नहीं मिलते और मन ही मन कुढ़ते हैं.’’

राणा खूब ठहाके मार कर हंसे फिर बोले, ‘‘खूब, तुम्हें खूब सूझी. ये दोनों सालेबहनोई हैं. सदा से संग रहते हैं. आज यह यहां ड्योढ़ी पर हैं कि कभी अलग नहीं होंगे. इन दोनों में गाढ़ी प्रीत है.’’

रानी बोली, ‘‘महाराज, आप जो कहते हैं सत्य होगा, परंतु मेरी भी बात मान लीजिए. इन की परीक्षा कीजिए. अपने आप ही झूठसच ज्ञात हो जाएगा.’’

राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ और तुरंत ही अजीत सिंह और गुलाब सिंह दोनों को अपने महल में बुला भेजा. दोनों बड़े डरे कि क्या बात है. कोई नई आफत तो नहीं आई.

उन्होंने राणा के सामने जा कर प्रणाम किया. तब राणा ने पूछा, ‘‘गुलाब सिंह और अजीत सिंह यह बताओ कि तुम दोनों मर्द हो या तुम में से कोई स्त्री है?’’

दोनों चुप थे. क्या उत्तर देते. राणा ने फिर वही प्रश्न किया, ‘‘तुम दोनों बोलते क्यों नहीं? तुम्हें जो दुख हो कहो. मेरे अधिकार में होगा तो अभी इसी समय दूर कर दूंगा. लाज, भय की कोई बात नहीं.’’

अजीत सिंह ने सिर झुका कर राणा को अपनी सारी कहानी कह सुनाई. राणा ने उसी समय दासी को बुला कर कहा, ‘‘देखो, यह जो बहन मरदाना वेश में खड़ी है, मेरी पुत्री है. इस को अभी महल में ले जा कर स्त्रियों के कपड़े पहना दो और महल में रहने के लिए अलग स्थान दो, हर प्रकार से इन को आराम दो.’’

राजबाला राणा को प्रणाम कर उन की आज्ञा मान कर उसी समय सिर झुका कर महल में चली गई.

इस के बाद राणा ने अजीत सिंह से कहा, ‘‘राजपूत, मैं तेरे बापदादा के नाम को जानता हूं. तेरा वचनबद्ध होना धन्य है. मैं ने आज तक अपनी आयु में ऐसा योगी नहीं देखा था. तू मनुष्य नहीं देवता है. जा महल में अब अपनी स्त्री से बात कर.’’

रात को किसी को नींद नहीं आई. सुबह होते ही राणा ने 20 हजार रुपए सूद सहित अजीत सिंह को दिए.

वह उसी समय ऊंटनी पर चढ़ कर जैसलमेर की ओर चल दिया. कई दिन के सफर के बाद अजीत सिंह जैसलमेर मोहता सेठ के पास पहुंचा और सूद सहित 20 हजार रुपए सौंप दिए.

एक बरस से अजीत सिंह का कोई अतापता नहीं था. बनिया अपने रुपयों से निराश हो गया था परंतु उसे कोई रंज न था. क्योंकि वह अजीत सिंह के पिता अनार सिंह से बहुत कुछ ले चुका था. रुपए वापस पा कर सेठ बहुत खुश हुआ और बोला, ‘‘तुम वास्तव में क्षत्रिय हो, तुम जानते हो कि वचन क्या होता है. तुम महान हो.’’

अजीत सिंह सेठ के रुपए दे कर उदयपुर आया और राणा के पैरों पर गिर पड़ा, ‘‘आप ने मेरी लाज रख ली.’’

राणा ने राजबाला को प्राणरक्षक देवी का खिताब दिया. वह उदयपुर में इसी नाम से विख्यात थीं. वह जब कभी राणा के महल में उन के होते हुए जाती, राणा बेटी कह कर पुकारते थे.

पतिपत्नी दोनों राणा के कृपापात्र बन गए. राणा उन्हें बहुत प्यार करते थे, मानो वे उन के ही बेटेबेटी हों. राजबाला और उस के पति के लिए एक अलग से महल बनवा दिया गया और उन्हें एक जागीर भी अलग प्रदान की कई.

सेठ के रुपए चुका कर उदयपुर जाने के बाद उस रात जब बिस्तर पर अजीत सिंह और राजबाला सोए, तब उन के बीच तलवार नहीं थी. दोनों ने अपना वचन धर्म निभाया था और उस दिन दो जिस्म एक जान बन गए थे.

इश्क के चक्कर में : नादिर को मिली मौत – भाग 3

‘‘झगड़ा सिर्फ इतनी बात पर हुआ था या कोई और वजह थी?’’ मैं ने पूछा.

‘‘यह आप रियाज से ही पूछ लीजिए. मेरा भाई सीधासादा था, बेमौत मारा गया.’’ जवाब में माजिद ने कहा.

‘‘आप को लगता है कि रियाज ने धमकी के अनुसार बदला लेने के लिए तुम्हारे भाई का कत्ल कर दिया है.’’

‘‘जी हां, मुझे लगता नहीं, पूरा यकीन है.’’

‘‘जिस दिन कत्ल हुआ था, सुबह आप सो कर उठे तो आप का भाई घर पर नहीं था?’’

‘‘जब मैं सो कर उठा तो मेरी बीवी ने बताया कि नादिर घर पर नहीं है.’’

‘‘यह जान कर आप ने क्या किया?’’

‘‘हाथमुंह धो कर मैं उस की तलाश में निकला तो पता चला कि छत पर नादिर की लाश पड़ी है.’’

‘‘पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, नादिर का कत्ल रात 1 से 2 बजे के बीच हुआ था. क्या आप बता सकते हैं कि नादिर एक बजे रात को छत पर क्या करने गया था? आप ने जो बताया है, उस के अनुसार नादिर बीमार था. छत पर ताला भी लगा था. इस हालत में छत पर कैसे और क्यों गया?’’

‘‘मैं क्या बताऊं? मुझे खुद नहीं पता. अगर वह जिंदा होता तो उसी से पूछता.’’

‘‘वह जिंदा नहीं है, इसलिए आप को बताना पड़ेगा, वह ऊपर कैसे गया? क्या उस के पास डुप्लीकेट चाबी थी? उस ने मकान मालिक से चाबी नहीं ली तो क्या पीछे से छत पर पहुंचा?’’

‘‘नादिर के पास डुप्लीकेट चाबी नहीं थी. वह छत पर क्यों और कैसे गया, मुझे नहीं पता.’’

‘‘आप कह रहे हैं कि आप का भाई सीधासादा काम से काम रखने वाला था. इस के बावजूद उस ने गुस्से में 2-3 बार रियाज से मारपीट की. ताज्जुब की बात तो यह है कि रियाज की लड़ाई सिर्फ नादिर से ही होती थी. इस की एक खास वजह है, जो आप बता नहीं रहे हैं.’’

‘‘कौन सी वजह? मैं कुछ नहीं छिपा रहा हूं.’’

‘‘अपने भाई की रंगीनमिजाजी. नादिर सालिक खान की छोटी बेटी फौजिया को चाहता था. वह फौजिया को रियाज के खिलाफ भड़काता रहता था. उस ने उस के लिए शादी का रिश्ता भी भेजा था, जबकि फौजिया नादिर को इस बात के लिए डांट चुकी थी. जब उस पर उस की डांट का असर नहीं हुआ तो फौजिया ने सारी बात रियाज को बता दी थी. उसी के बाद रियाज और नादिर में लड़ाईझगड़ा होने लगा था.’’

‘‘मुझे ऐसी किसी बात की जानकारी नहीं है. मैं ने रिश्ता नहीं भिजवाया था.’’

‘‘खैर, यह बताइए कि 2 साल पहले आप के फ्लैट के समने एक बेवा औरत सकीरा बेगम रहती थीं, आप को याद हैं?’’

माजिद हड़बड़ा कर बोला, ‘‘जी, याद है.’’

‘‘उस की एक जवान बेटी थी रजिया, याद आया?’’

‘‘जी, उस की जवान बेटी रजिया थी.’’

‘‘अब यह बताइए कि सकीरा बेगम बिल्डिंग छोड़ कर क्यों चली गई?’’

‘‘उस की मरजी, यहां मन नहीं लगा होगा इसलिए छोड़ कर चली गई.’’

‘‘माजिद साहब, आप असली बात छिपा रहे हैं. क्योंकि वह आप के लिए शर्मिंदगी की बात है. आप बुरा न मानें तो मैं बता दूं? आप का भाई उस बेवा औरत की बेटी रजिया पर डोरे डाल रहा था. उस की इज्जत लूटने के चक्कर में था, तभी रंगेहाथों पकड़ा गया. यह रजिया की खुशकिस्मती थी कि झूठे प्यार के नाम पर वह अपना सब कुछ लुटाने से बच गई. इस बारे में बताने वालों की कमी नहीं है, इसलिए झूठ बोलने से कोई फायदा नहीं है. सकीरा बेगम नादिर की वजह से बिल्डिंग छोड़ कर चली गई थीं.’’

‘‘जी, इस में नादिर की गलती थी, इसलिए मैं ने उसे खूब डांटा था. इस के बाद वह सुधर गया था.’’

‘‘अगर वह सुधर गया था तो आधी रात को छत पर क्या कर रहा था? क्या आप इस बात से इनकार करेंगे कि नादिर सकीरा बेगम की बेटी रजिया से छत पर छिपछिप कर मिलता था? इस के लिए उस ने छत के ताले की डुप्लीकेट चाबी बनवा ली थी. जब इस बात की खबर दाऊद साहब को हुई तो उन्होंने ताला बदलवा दिया था.’’

उस ने लड़खड़ाते हुए कहा, ‘‘यह भी सही है.’’

अगली पेशी पर मैं ने इनक्वायरी अफसर से पूछताछ की. उस का नाम साजिद था. मैं ने कहा, ‘‘नादिर की हत्या के बारे में आप को सब से पहले किस ने बताया?’’

‘‘रिकौर्ड के अनुसार, घटना की जानकारी 18 अप्रैल की सुबह 10 बजे दाऊद साहब ने फोन द्वारा दी थी. मैं साढ़े 10 बजे वहां पहुंच गया था.’’

‘‘जब आप छत पर पहुंचे, वहां कौनकौन था?’’

‘‘फोन करने के बाद दाऊद साहब ने सीढि़यों पर ताला लगा दिया था. मैं वहां पहुंचा तो मृतक की लाश टंकी के पीछे ब्लौक पर पड़ी थी. अंजाने में पीछे से उस की खोपड़ी पर जोरदार वार किया गया था. उसी से उस की मौत हो गई थी. लोहे के वजनी रेंच से वार किया गया था.’’

‘‘हथियार आप को तुरंत मिल गया था?’’

‘‘जी नहीं, थोड़ी तलाश के बाद छत के कोने में पड़े कबाड़ में मिला था.’’

‘‘क्या आप ने उस पर से फिंगरप्रिंट्स उठवाए थे?’’

‘‘उस पर फिंगरप्रिंट्स नहीं मिले थे. शायद साफ कर दिए गए थे.’’

‘‘घटना वाली रात मृतक छत पर था, वहीं उस का कत्ल किया गया था. सवाल यह है कि जब छत पर जाने वाली सीढि़यों के दरवाजे पर ताला लगा था तो मृतक छत पर कैसे पहुंचा? इस बारे में आप कुछ बता सकते हैं?’’

जज साहब काफी दिलचस्पी से हमारी जिरह सुन रहे थे. उन्होंने पूछा, ‘‘मिर्जा साहब, इस मामले में आप बारबार किसी लड़की का जिक्र क्यों कर रहे हैं? इस से तो यही लगता है कि आप उस लड़की के बारे में जानते हैं?’’

‘‘जी सर, कुछ हद तक जानता हूं.’’

‘‘तो आप मृतक की प्रेमिका का नाम बताएंगे?’’ जज साहब ने पूछा.

‘‘जरूर बताऊंगा सर, पर समय आने दीजिए.’’

पिछली पेशी पर मैं ने प्यार और प्रेमिका का जिक्र कर के मुकदमे में सनसनी पैदा कर दी थी. यह कोई मनगढ़ंत किस्सा नहीं था. इस मामले में मैं ने काफी खोज की थी, जिस से मृतक नादिर के ताजे प्यार के बारे में पता कर लिया था. अब उसी के आधार पर रियाज को बेगुनाह साबित करना चाहता था.

इश्क के चक्कर में : नादिर को मिली मौत – भाग 2

नगीना से मुझे कुछ काम की बातें पता चलीं, जो आगे जिरह में पता चलेंगी. मैं रियाज के घर से निकल रहा था तो सामने के फ्लैट से कोई मुझे ताक रहा था. हर फ्लैट में 2 कमरे और एक हौल था. इमारत का एक ही मुख्य दरवाजा था. हर मंजिल पर आमनेसामने 2 फ्लैट्स थे. एक तरफ जीना था.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, 17 अप्रैल की रात 2 बजे के करीब नादिर की हत्या हुई थी. उसे इसी बिल्डिंग की छत पर मारा गया था. उस की लाश पानी की टंकी के करीब एक ब्लौक पर पड़ी थी. उस की हत्या बोल्ट खोलने वाले भारी रेंच से की गई थी.

अगली पेशी पर अभियोजन पक्ष की ओर से कादिर खान को पेश किया गया. कादिर खान भी उसी बिल्डिंग में रहता था. बिल्डिंग के 5 फ्लैट्स में किराएदार रहते थे और एक फ्लैट में खुद मकान मालिक रहता था. अभियोजन के वकील ने कादिर खान से सवालजवाब शुरू किए.

लाश सब से पहले उसी ने देखी थी. उस की गवाही में कोई खास बात नहीं थी, सिवाय इस के कि उस ने भी रियाज को झगड़ालू और गुस्सैल बताया था. मैं ने पूछा, ‘‘आप ने मुलाजिम रियाज को गुस्सैल और लड़ाकू कहा है, इस की वजह क्या है?’’

‘‘वह है ही झगड़ालू, इसलिए कहा है.’’

‘‘आप किस फ्लैट में कब से रह रहे हैं?’’

‘‘मैं 4 नंबर फ्लैट में 4 सालों से रह रहा हूं.’’

‘‘इस का मतलब दूसरी मंजिल पर आप अकेले ही रहते हैं?’’

‘‘नहीं, मेरे साथ बीवीबच्चे भी रहते हैं.’’

‘‘जब आप बिल्डिंग में रहने आए थे तो रियाज आप से पहले से वहां रह रहा था?’’

‘‘जी हां, वह वहां पहले से रह रहा था.’’

‘‘कादिर खान, जिस आदमी से आप का 4 सालों में एक बार भी झगड़ा नहीं हुआ, इस के बावजूद आप उसे झगड़ालू कह रहे हैं, ऐसा क्यों?’’

‘‘मुझ से झगड़ा नहीं हुआ तो क्या हुआ, वह झगड़ालू है. मैं ने खुद उसे नादिर से लड़ते देखा है. दोनों में जोरजोर से झगड़ा हो रहा था. बाद में पता चला कि उस ने नादिर का कत्ल कर दिया.’’

‘‘क्या आप बताएंगे कि दोनों किस बात पर लड़ रहे थे?’’

‘‘नादिर का कहना था कि रियाज उस के घर के सामने से गुजरते हुए गंदेगंदे गाने गाता था. जबकि रियाज इस बात को मना कर रहा था. इसी बात को ले कर दोनों में झगड़ा हुआ था. लोगों ने बीचबचाव कराया था.’’

‘‘और अगले दिन बिल्डिंग की छत पर नादिर की लाश मिली थी. उस की लाश को आप ने सब से पहले देखी थी.’’

एक पल सोच कर उस ने कहा, ‘‘हां, करीब 9 बजे सुबह मैं ने ही देखी थी.’’

‘‘क्या आप रोज सवेरे छत पर जाते हैं?’’

‘‘नहीं, मैं रोज नहीं जाता. उस दिन टीवी साफ नहीं आ रहा था. मुझे लगा कि केबल कट गया है, यही देखने गया था.’’

‘‘आप ने छत पर क्या देखा?’’

‘‘जैसे ही मैं ने दरवाजा खोला, मेरी नजर सीधे लाश पर पड़ी. मैं घबरा कर नीचे आ गया.’’

‘‘कादिर खान, दरवाजा और लाश के बीच कितना अंतर रहा था?’’

‘‘यही कोई 20-25 फुट का. ब्लौक पर नादिर की लाश पड़ी थी. उस की खोपड़ी फटी हुई थी.’’

‘‘नादिर की लाश के बारे में सब से पहले आप ने किसे बताया?’’

‘‘दाऊद साहब को बताया था. वह उस बिल्डिंग के मालिक हैं.’’

‘‘बिल्डिंग के मालिक, जो 5 नंबर फ्लैट में रहते हैं?’’

‘‘जी, मैं ने उन से छत की चाबी ली थी, क्योंकि छत की चाबी उन के पास रहती है.’’

‘‘उस दिन छत का दरवाजा तुम्हीं ने खोला था?’’

‘‘जी साहब, ताला मैं ने ही खोला था?’’

‘‘ताला खोला तो ब्लौक पर लाश पड़ी दिखाई दी. जरा छत के बारे में विस्तार से बताइए?’’

‘‘पानी की टंकी छत के बीच में है. टंकी के करीब 15-20 ब्लौक छत पर लगे हैं, जिन पर बैठ कर कुछ लोग गपशप कर सकते हैं.’’

‘‘अगर ताला तुम ने खोला तो मृतक आधी रात को छत पर कैसे पहुंचा?’’

‘‘जी, यह मैं नहीं बता सकता. दाऊद साहब को जब मैं ने लाश के बारे में बताया तो वह भी हैरान रह गए.’’

‘‘बात नादिर के छत पर पहुंचने भर की नहीं है, बल्कि वहां उस का बेदर्दी से कत्ल भी कर दिया गया है. नादिर के अलावा भी कोई वहां पहुंचा होगा. जबकि चाबी दाऊद साहब के पास थी.’’

‘‘दाऊद साहब भी सुन कर हैरान हो गए थे. वह भी मेरे साथ छत पर गए. इस के बाद उन्होंने ही पुलिस को फोन किया.’’

इसी के बाद जिरह और अदालत का वक्त खत्म हो गया.

मुझे तारीख मिल गई. अगली पेशी पर माजिद की गवाही शुरू हुई. वह सीधासादा 40-42 साल का आदमी था. कपड़े की दुकान पर सेल्समैन था. फ्लैट नंबर 2 में रहता था. उस ने कहा कि नादिर और रियाज के बीच काफी तनाव था. दोनों में झगड़ा भी हुआ था. उसी का नतीजा यह कत्ल है.

अभियोजन के वकील ने सवाल कर लिए तो मैं ने पूछा, ‘‘आप का भाई कब से कब तक अपनी नौकरी पर रहता था?’’

‘‘सुबह 11 बजे से रात 8 बजे तक. 9 बजे तक वह घर आ जाता था.’’

‘‘कत्ल वाले दिन वह कितने बजे घर आया था?’’

‘‘उस दिन मैं घर आया तो वह घर पर ही मौजूद था.’’

‘‘माजिद साहब, पिछली पेशी पर एक गवाह ने कहा था कि उस दिन शाम को उस ने नादिर और रियाज को झगड़ा करते देखा था. क्या उस दिन वह नौकरी पर नहीं गया था?’’

‘‘नहीं, उस दिन वह नौकरी पर गया था, लेकिन तबीयत ठीक न होने की वजह से जल्दी घर आ गया था.’’

‘‘घर आते ही उस ने लड़ाईझगड़ा शुरू कर दिया था?’’

‘‘नहीं, ऐसा कुछ भी नहीं है. घर आ कर वह आराम कर रहा था, तभी रियाज खिड़की के पास खड़े हो कर बेहूदा गाने गाने लगा था. मना करने पर भी वह चुप नहीं हुआ. पहले भी इस बात को ले कर नादिर और उस में मारपीट हो चुकी थी. नादिर नाराज हो कर बाहर निकला और दोनों में झगड़ा और गालीगलौज होने लगी.’’

उस मोड़ पर : क्या अपने गुनाहगार को बचा पाई पारुल

नर्स स्नेहा बहुत घबराई हुई थी. डा. पारुल के कक्ष में प्रवेश करते ही उस ने जल्दबाजी में कहा, ‘‘डाक्टर जल्दी चलिए. उसे गोलियां लगी हैं, तुरंत औपरेशन करना होगा.’’

‘‘ठीक है, फौरमैलिटी पूरी कराओ और औपरेशन थिएटर में ले चलो. मैं आती हूं.’’

‘‘उस के साथ कोई नहीं है डाक्टर, 2 आदमी आटोरिक्शा से लाए थे. छोड़ कर चले गए. फौरमैलिटी किस से पूरी कराएं?’’

‘‘पुलिस को इनफार्म कर के औपरेशन की तैयारी करो.’’

डा. पारुल औपरेशन थिएटर में पहुंचीं तो तो घायल व्यक्ति को औपरेशन टेबल पर लिटाया जा चुका था. उस के दाएं हाथ में गोली और चेहरे व छाती पर छर्रे लगे थे. पूरा चेहरा खून में डूबा था.

वार्डबौय और नर्सें खून साफ कर रही थीं. डाक्टर पारुल ने उसे इंजेक्शन दिया, फिर उस के चेहरे की ओर देखते हुए बोलीं, ‘‘हो सकता है, कोई सी आंख डैमेज हुई हो. मदद करो, मैं देखती हूं.’’

गनीमत थी, आंखें बच गई थीं. छर्रे माथे और चेहरे पर लगे थे. उस का चेहरा देख  डा. पारुल पलभर के लिए सकपकाई. उन के चेहरे पर कई भाव आ कर चले गए, जिन्हें उन के स्टाफ ने नहीं देखा. तभी एक नर्स ने कहा, ‘‘डाक्टर, इस के हाथ का खून नहीं रुक रहा. गोली अभी बांह में है. जहर फैलने का डर है.’’

‘‘मैं ने ट्रेनक्सा इंजेक्शन दे दिया है, थोड़ी देर में रुक जाएगा. हां, इस का होश में आना जरूरी है ताकि इस से पूछ कर इस के घर वालों को सूचित किया जा सके. कोशिश करो,’’ डा. पारुल ने कहा, ‘‘आज डा. नितिन बिस्वास भी देर से आएंगे. मुझे अकेले ही सब कुछ करना होगा.’’

डा. पारुल ने उस की आंखों पर पट्टी लगा कर छर्रों की जगह पर टांके लगा दिए. पहले टांके लगाना जरूरी था. इस काम में बहुत ज्यादा देर नहीं लगी. हां, यह काम करते हुए उन के हाथों की कंपकंपाहट साफ दिख रही थी. नर्सों ने कंपकंपाहट इसलिए महसूस की, क्योंकि पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था.

थोड़ी देर बाद वह होश में आ गया. दाएंबाएं गरदन घुमा कर वह हलकी चीख के साथ कराहा, ‘‘मेरे हाथ में बहुत दर्द है. गोली अंदर फंसी है, जहर फैलने का डर है. इस का कुछ करिए. मेरी जान निकली जा रही है.’’

‘‘शांत रह कर चुपचाप लेटे रहो, करते हैं.’’ डा. पारुल ने थोड़े सख्त स्वर में कहा और चुप हो गईं. वार्डबौय और नर्स आश्चर्य में थीं कि उस के होश में आने के बाद भी डाक्टर ने उस का नामपता क्यों नहीं पूछा. लेकिन सब उन के सख्त मिजाज को जानते थे, इसलिए चुप रहे.

तभी एक वार्डबौय ने आ कर कहा, ‘‘डाक्टर, पुलिस आई है. इंसपेक्टर घायल का बयान लेने की बात कर रहा है.’’

‘‘कह दो मरीज होश में नहीं है. हाथ में गोली लगी है. पहले औपरेशन होगा फिर बयान,’’ डा. पारुल ने कहा.

औपरेशन थिएटर में मौजूद नर्स और वार्डबौय आश्चर्य में थे कि जब वह व्यक्ति होश में है तो डाक्टर पारुल ने ऐसा क्यों कहा. लेकिन कोई कुछ नहीं बोला. घायल व्यक्ति अभी भी दर्द से चीख और कराह रहा था. हाथ का कुछ करने की गुहार लगा रहा था.

तभी डा. पारुल जेब से फोन निकाल कर डा. नितिन बिस्वास से बात करते हुए बोलीं, ‘‘एक घायल आया है, आप अस्पताल आ जाइए. दाएं हाथ में गोली लगी है, निकालनी पड़ेगी.’’

डा. बिस्वास ने क्या कहा, किसी को पता नहीं चला. फोन जेब में डाल कर डा. पारुल अपने स्टाफ की ओर देख कर बोलीं, ‘‘डा. बिस्वास आ रहे हैं, तब तक मैं इस का दर्द कम करती हूं. छर्रों की जगह टांके लग चुके हैं. आप लोग बाहर जाइए.’’

यह बात भी किसी की समझ में नहीं आई. क्योंकि औपरेशन के समय कोई डाक्टर ऐसा नहीं करता. डा. पारुल तो कतई नहीं करती थी. बहरहाल, डाक्टर का आदेश था, सब औपरेशन थिएटर के बाहर चले गए. उन के जाने के बाद डा. पारुल ने घायल व्यक्ति का सिर ऊंचा किया और उस के पैरों की ओर जा कर खड़ी हो गईं. फिर उस की ओर देख कर बोलीं, ‘‘आंखें ठीक हैं, धीरेधीरे पट्टी हटा दो और मेरी तरफ देखो.’’

पट्टी हटा कर उस व्यक्ति ने डा. पारुल की ओर देखा तो उस की रुह कांप गई. कराहट बंद हो गई. पारुल ने कहा, ‘‘पहचाना, हौस्टल लौटते वक्त काली कार में मेरा किडनैप. तुम्हारे फार्महाउस का बैडरूम. कितना रोईचिल्लाई थी मैं, गिड़गिड़ाई थी, छोड़ने के लिए गुहार लगाई थी. तुम्हारे इसी हाथ ने मेरे अंगअंग को छुआ था, खरोंचा था. याद आया?’’

उस व्यक्ति की आंखों के सामने एकएक दृश्य घूम गया. दृश्य डा. पारुल की आंखों के सामने भी घूम रहे थे. हिम्मत कर के वह गिड़गिड़ाया, ‘‘मुझे माफ कर दो डाक्टर. मेरे हाथ में जहर फैल गया तो…डाक्टर का काम तो जिंदगी देना होता है.’’

‘‘डाक्टर पहले इंसान होता है फिर डाक्टर. तुम्हारे इस हाथ के बारे में सोचती हूं तो आज भी मेरी नसनस में चींटियां रेंगने लगती हैं.’’ डा. पारुल का चेहरा क्रोध से सुर्ख हो गया. गुस्से से सिर फटने लगा तो उन्होंने उस का घायल हाथ पकड़ कर बुरी तरह झकझोर दिया.

वह दर्द से तड़प उठा, चीखाचिल्लाया. उस के चीखनेचिल्लाने से डा. पारुल को अजीब सी संतुष्टि मिली. तभी अनायास उन्हें अपने गाल पर पड़े थप्पड़ का दर्द याद आया. उन का हाथ खुदबखुद गाल पर चला गया. कानों में उस के कहे शब्द टीसने लगे, ‘चुपचाप पड़ी रह साली, चीखचीख कर मेरा दिमाग आउट मत कर.’

अचानक डा. पारुल का दायां हाथ उठा और झन्नाटेदार आवाज के साथ घायल के गाल पर जा पड़ा, ‘‘चुपचाप पड़ा रह जानवर, चीखचीख कर मेरा दिमाग आउट मत कर.’’

खुद को डा. पारुल के रहमोकरम पर जान कर उस ने शांत होने की कोशिश की. लेकिन कुछ देर बाद फिर से उस की दर्दभरी कराहटें गूंजने लगीं.

अपने पाशविक कृत्य से डा. पारुल के अस्तित्व और रुह को लहूलुहान करने वाला उन के सामने बेबस लाचार पड़ा था. ठीक वैसे ही जैसे वह उस की हैवानियत के सामने मजबूर हो कर अपनी इज्जत लुटवाती रही थी.  और वह वहशी दरिंदा बन कर अपनी मनमानी करता रहा था.

डा. पारुल को वह दृश्य याद आया तो उन का रोमरोम सुलग उठा. मन हुआ सर्जिकल नाइफ उठा कर वह भी अपनी मनमानी कर ले. लेकिन उन के अंदर के इंसान ने उन्हें इस की इजाजत नहीं दी.

न चाहते हुए भी उस के गंदे शब्द डा. पारुल के मनोमस्तिष्क को मथते रहे, ‘तुम्हारे गालों के सामने मक्खन मलाई भी फेल, तिस पर केसर की खुशबू वाले होंठ. अब अगले 3 दिनों तक तुम मेरी बांहों को अमृत पान कराओगी…’ एकएक शब्द याद था उन्हें.

उस के जहर बुझे गंदे शब्द डा. पारुल के कानों में पिघले सीसे की तरह उतरते रहे. लग रहा था जैसे तेज विस्फोट के साथ सिर फट जाएगा. लेकिन विस्फोटक तरल बन कर आंखों के रास्ते बहने लगा.

डा. पारुल खुद को इस स्थिति से उबारने के लिए चुपचाप कोने में फर्श पर जा बैठीं. एकएक दृश्य उन की आंखों के सामने घूमता रहा. आंसू बहते रहे. न जाने कब तक. घायल के कराहने की आवाज भी उन के कानों तक नहीं पहुंच रही थी.

तभी अचानक उन्हें झटका सा लगा. अंदर से सवाल उठा, ‘कहीं मैं अपने फर्ज से गद्दारी तो नहीं कर रही? डाक्टर का काम जान लेना नहीं बचाना होता है. घाव को नासूर बनाना नहीं, ठीक करना होता है. तू अपने फर्ज के साथ गद्दारी नहीं कर सकती. भूल जा सब और उसे सिर्फ मरीज समझ कर इलाज कर.’

डा. पारुल झटके से उठीं, घड़ी देखी. 3 घंटे बीत चुके थे. उन्होंने स्टाफ को बुलाया और घायल के हाथ से गोली निकालने लगीं. तभी डा. नितिन बिस्वास आ गए. उन्होंने हाथ का परीक्षण किया.

फिर पारुल की ओर देख कर बोले, ‘‘क्या कर रही हो तुम ये, कोई फायदा नहीं. हाथ में जहर फैल चुका है. काटने के अलावा कोई रास्ता नहीं. तैयारी करो.’’

डा. पारुल ने विस्फारित आंखों से एक बार डा. बिस्वास की ओर देखा और फिर औपरेशन टेबल से नीचे झूलते उस के हाथ की ओर.

उस का नाम दिग्विजय सिंह था. कभी नामचीन गुंडा रहा था. लेकिन अब इज्जतदार अमीर था, पेशे से बिल्डर. शानदार बिल्डिंग में रहता था. 2 फार्महाउसों का मालिक. दायां हाथ कट चुका था. पट्टियों में लिपटा हाथ लिए वह अस्पताल के बैड पर लेटा था. इंसपेक्टर मनीष ने उस का बयान लिया तो उस ने औपरेशन थिएटर की कोई बात नहीं बताई. अलबत्ता गोली चलाने वाले कुछ संदिग्ध लोगों के बारे में जरूर बता दिया.

अपने हिस्से की ईमानदारी : अंबर को बफादारी का क्या सिला मिला

प्रस्तुति: कलीम उल्लाह

नादिर गुलशन इकबाल के एक शानदार मकान में रहता था. उस के पास बहुत पैसा था. वह कोई काम नहीं करता था. बस, जरूरतमंद लोगों को पैसे ब्याज पर देता था. इस काम से उसे अच्छीखासी आमदनी थी और उस से बहुत आराम से गुजारा होता था. नादिर का कहना था कि यही उस का बिजनैस है और बिजनैस से मुनाफा लेना कोई बुरी बात नहीं है.

कर्ज के तौर पर दिए गए पैसों का ब्याज वह हर महीने वसूल करता था. नादिर ने पैसे वसूल करने के लिए कुछ कारिंदे भी रखे हुए थे. अगर कोई आदमी पैसे देने में आनाकानी करता था तो कारिंदे गुंडागर्दी पर उतर आते थे, कर्जदार के हाथपैर तोड़ देते थे और कभीकभी गोलियां भी मार देते थे. नादिर ने आसपास के थानेदारों को पटा रखा था.

एक दिन नादिर का दोस्त अकरम अपने एक परिचित युवक नोमान को ले कर उस के पास आया. नोमान एक शरीफ आदमी लग रहा था. उस के चेहरे से दुख और परेशानी झलक रही थी.

अकरम ने नादिर से नोमान का परिचय कराया और कहा, ‘‘नादिर भाई, ये आजकल कुछ परेशानी में फंसे हुए हैं. आप इन की मदद कर दीजिए. नोमान आप का पैसा जल्द वापस कर देंगे. इन का होजरी का कारोबार है.’’

‘‘अच्छा, कितने पैसों की जरूरत है आप को?’’ नादिर ने पूछा.

नोमान ने कहा, ‘‘नादिर भाई, मुझे 5 लाख की जरूरत है. मैं ने आज तक किसी से कर्ज नहीं लिया, लेकिन इस बार मजबूर हो गया हूं.’’

‘‘लेकिन अकरम,’’ नादिर ने अपने दोस्त की तरफ देखते हुए पूछा, ‘‘इस बंदे की जमानत कौन लेगा?’’

‘‘नादिर साहब,’’ नोमान बोला, ‘‘मैं एक शरीफ आदमी हूं. सदर में मेरी दुकान और अल आजम स्क्वायर में मेरा फ्लैट है. मैं आप के पैसे ले कर कहीं भागूंगा नहीं.’’

‘‘आप भाग ही नहीं सकते,’’ नादिर हंसते हुए बोला, ‘‘खैर, 5 लाख के लिए आप को हर महीने 50 हजार ब्याज देना पड़ेगा, आप को मंजूर है?’’

नोमान ने 50 हजार ब्याज देने से इनकार कर दिया. लेकिन अकरम के कहने पर नादिर 30 हजार महीना ब्याज पर राजी हो गया. नादिर ने कहा कि ब्याज की रकम कम करना उस के नियम के खिलाफ है लेकिन नोमान एक अच्छा आदमी लग रहा है, इसलिए इतनी छूट दे दी.

नादिर के दोस्त अकरम ने कहा, ‘‘नादिर भाई, मैं ने आप दोनों को मिलवा दिया है. अब जो भी मामला है, वह आप दोनों का है. आप हर तरह से तसल्ली करने के बाद इन्हें पैसा दें. फिर इन्होंने मूल रकम या ब्याज दिया या नहीं या आप ने इन के साथ कोई ज्यादती की, मुझे इस से कोई लेनादेना नहीं. आगे आप दोनों जानें.’’

‘‘ठीक है यार, मैं तुझ पर कोई इलजाम नहीं लगाऊंगा. अब यह मेरा मामला है, लेकिन मैं नोमान का मकान जरूर देखूंगा.’’ नादिर ने अकरम से कहा.

नोमान तुरंत बोला, ‘‘क्यों नहीं नादिर भाई, आप जब चाहें मकान देख लें बल्कि आप शुक्रवार को आ जाएं, मैं घर पर ही रहूंगा. दोनों एक साथ बैठ कर चाय पिएंगे.’’

अपनी संतुष्टि के लिए नादिर शुक्रवार को नोमान का घर देखने पहुंच गया. नोमान का फ्लैट बहुत अच्छा था. नोमान ने नादिर को देख कर फौरन फ्लैट का दरवाजा खोल दिया और कहा, ‘‘वेलकम नादिर भाई, मैं तो समझ रहा था कि शायद आप ने यूं ही कह दिया. आप तशरीफ नहीं लाएंगे.’’

‘‘क्यों नहीं आऊंगा. हमारे धंधे में जबान की बहुत अहमियत होती है. जो कह दिया, सो कह दिया.’’ नादिर बोला.

नोमान ने नादिर को ड्राइंगरूम में बिठा दिया. नादिर को पूरी तरह तसल्ली हो गई कि उस का पैसा कहीं नहीं जाएगा. वैसे भी नोमान शरीफ आदमी दिखाई दे रहा था.

‘‘माफ करना नादिर भाई, आज बेगम घर पर नहीं हैं, इसलिए आप को मेरे हाथ की चाय पीनी पड़ेगी.’’

‘‘अरे, इस की जरूरत नहीं है,’’ नादिर बोला.

‘‘यह तो हो ही नहीं सकता,’’ नोमान ने कहा, ‘‘मैं अभी हाजिर हुआ.’’

नोमान अंदर किचेन की तरफ चला गया. इस दौरान नादिर फ्लैट का निरीक्षण करता रहा. चाय और नमकीन आदि से निपटने के बाद नोमान ने पूछा, ‘‘तो फिर आप ने क्या फैसला किया?’’

‘‘ठीक है,’’ नादिर ने हामी भरी, ‘‘मुझे आप की तरफ से इत्मीनान हो गया है. मैं कल आऊंगा पैसे ले कर.’’

नोमान ने उस का शुक्रिया अदा किया और कहा, ‘‘यकीन करें, अगर इतनी जरूरत न होती तो मैं कभी पैसे नहीं लेता.’’

‘‘कोई बात नहीं,’’ नादिर मुसकरा दिया, ‘‘हम जैसों को जरूरत में ही याद किया जाता है. अब मैं चलता हूं.’’

नादिर अपने घर वापस आ गया. उस ने अपने दोस्त अकरम को फोन कर दिया, जिस ने नोमान का परिचय कराया था, ‘‘हां भाई, मुझे बंदा ठीक लगा. घर भी देख लिया है उस का. उसे कल पैसे दे दूंगा.’’

दूसरे दिन शाम को नादिर 5 लाख रुपए ले कर नोमान के घर पहुंच गया. दस्तक के जवाब में एक युवती ने दरवाजा खोला. वह एक सुंदर औरत थी. नादिर के अंदाज के अनुसार उस की उम्र 28-30 साल थी. वह प्रश्नसूचक नजरों से नादिर को देख रही थी.

‘‘मुझे नोमान से मिलना है,’’ नादिर ने कहा, ‘‘मेरा नाम नादिर है.’’

‘‘ओह! आप नादिर साहब हैं. नोमान ने मुझे आप के बारे में बताया था. मैं उन की मिसेज अंबर हूं. आप अंदर आ जाएं. नोमान शावर ले रहे हैं. मैं उन्हें बता देती हूं.’’

नादिर अंदर जा कर बैठ गया, उसी ड्राइंगरूम में जहां कल बैठा था. नोमान की पत्नी अंदर चली गई. नादिर को वह स्त्री बहुत अच्छी लगी थी. वैसे तो वह बहुत ज्यादा सुंदर नहीं थी, लेकिन उस में एक खास किस्म की कशिश जरूर थी. नादिर ने बहुत कम औरतों में ऐसा आकर्षण देखा था.

कुछ देर बाद नोमान की पत्नी अंबर चाय आदि ले कर आई और नादिर से बोली, ‘‘ये लें, चाय पिएं. नोमान आ रहे हैं.’’

वैसे तो अंबर चाय दे कर चली गई थी, लेकिन नादिर के लिए वह अभी तक उसी ड्राइंगरूम में थी. उस के बदन की खुशबू से पूरा कमरा महक रहा था. नादिर उस स्त्री से बहुत प्रभावित हुआ.

कुछ देर बाद नोमान नहा कर आ गया. दोनों ने बहुत गर्मजोशी से हाथ मिलाया. नादिर बोला, ‘‘नोमान, मैं तुम्हारे 5 लाख रुपए ले आया हूं.’’फिर उस ने अपनी जेब से नोटों की गड्डी निकाल कर मेज पर रख दी.

नोमान ने कहा, ‘‘बहुतबहुत शुक्रिया, मैं अभी आया.’’

‘‘तुम कहां चल दिए,’’ नादिर ने पूछा.

‘‘पहचान पत्र की फोटो कौपी लेने,’’ नोमान ने बताया.

‘‘अरे, रहने दो,’’ नादिर बेतकल्लुफी से बोला, ‘‘उस की जरूरत नहीं है.’’

फिर कुछ देर बाद वह चला गया.

नादिर लड़कियों और औरतों का शिकारी था. उसे अंदाजा हो गया था कि नोमान की पत्नी अंबर को हासिल करना कोई मुश्किल काम नहीं होगा. उस ने अंबर की आंखों के इशारे देख लिए थे, जो बहुत सामान्य लगते थे, लेकिन नादिर जैसे लोगों के लिए इतना ही बहुत था.

नादिर को एक महीने तक इंतजार करना था. उस ने नोमान से कहा था, ‘‘आप मेरे पास आने का कष्ट न करें. मैं स्वयं ही ब्याज की किस्त लेने आ जाया करूंगा. कुछ गपशप भी हो जाएगी और चाय भी चलती रहेगी.’’

ब्याज की किस्त वसूल करने के सिलसिले में नादिर बहुत कठोर था. वह मोहलत देने का विरोधी था. अगर वह मोहलत देता भी था, तो रोजाना के हिसाब से जुरमाना भी वसूल करता था. नादिर के साथ उस के गुंडे भी होते थे, इसलिए कोई इनकार नहीं करता था.

नादिर अपने समय पर नोमान के घर ब्याज की रकम लेने के लिए पहुंच गया. नोमान किसी काम से बाहर गया हुआ था. घर पर सिर्फ उस की बीवी थी. उस ने नादिर को प्रेमपूर्वक घर के अंदर बुला लिया. फिर उस के लिए चाय बना कर ले आई और खुद भी उस के सामने बैठ गई. चाय पीने के दौरान उस ने कहा, ‘‘नादिर साहब, अगर इस बार नोमान को पैसे देने में कुछ देर हो जाए तो बुरा तो नहीं मानेंगे.’’

‘‘क्यों, खैरियत तो है?’’ नादिर ने पूछा.

‘‘कहां खैरियत, मेरी अम्मी बीमार हैं. नोमान ने इस बार के पैसे उन के इलाज में लगा दिए,’’ अंबर ने बताया.

‘‘अरे चलें, कोई बात नहीं, उस से कह देना फिक्र न करे.’’

‘‘नोमान कह रहे थे कि आप रोजाना के हिसाब से जुरमाना भी वसूल करते हैं,’’ नोमान की पत्नी बोली.

‘‘अरे, उस की फिक्र न करें. ऐसा होता तो है लेकिन यह उसूल, नियम सब के साथ नहीं होता. अपने लोगों को छूट देनी पड़ती है,’’ नादिर ने अपने लोगों पर खास जोर दिया.

नोमान की पत्नी अंबर मुसकरा दी. उस की मुसकराहट देख कर नादिर का दिल खुश हो गया. फिर चाय की प्याली समेटते हुए अंबर का हाथ नादिर के हाथ से टकरा गया. नादिर के पूरे वजूद में जैसे करंट सा दौड़ गया.

‘‘मुझे पैसों की ऐसी कोई जल्दी नहीं है,’’ नादिर ने चलते हुए कहा, ‘‘और नोमान को जुरमाना देने की भी जरूरत नहीं है.’’

‘‘आप का बहुतबहुत शुक्रिया, हमारा कितना खयाल रखते हैं,’’ अंबर गंभीरता से बोली.

नादिर मदहोशी जैसी स्थिति में अपने घर वापस आ गया. शुरुआत हो गई थी. वह सोचने लगा काश! नोमान के पास कभी पैसे न हों और वह इसी तरह उस के घर जाता रहे.

10 दिन गुजर गए. नोमान की तरफ से कोई जवाब नहीं मिला. नादिर सोचने लगा, ‘हो सकता है उस की सास की तबीयत ज्यादा खराब हो गई हो या कुछ इसी तरह की बात हो.’

नादिर स्थिति जानने के बहाने नोमान के फ्लैट पर पहुंच गया. दस्तक के जवाब में एक अजनबी आदमी ने दरवाजा खोला और प्रश्नसूचक नजरों से नादिर को देखने लगा.

‘‘मुझे नोमान से मिलना है,’’ नादिर ने कहा.

‘‘नोमान?’’ उस ने आश्चर्य से दोहराया, फिर तत्काल बोला, ‘‘अच्छा, आप शायद पिछले किराएदार की बात कर रहे हैं.’’

‘‘पिछला किराएदार?’’ नादिर को बड़ा आश्चर्य हुआ.

‘‘जी भाई, वह तो 3 दिन हुए फ्लैट खाली कर के चले गए,’’ उस ने बताया.

‘‘कहां गए हैं?’’ नादिर ने पूछा.

‘‘सौरी, मुझे यह नहीं मालूम,’’ उस ने जवाब दिया.

नादिर गुस्से से कांपता हुआ उस बिल्डिंग से बाहर आ गया. यह पहला मौका था कि किसी ने उस को इस तरह धोखा दिया था. उस ने एस्टेट एजेंट से मालूम करने की कोशिश की लेकिन वह भी यह नहीं बता सका कि नोमान ने कहां मकान लिया.

नादिर के लिए यह बहुत बड़ा धक्का था. अगर नोमान की बीवी अंबर उस के हाथ लग जाती तो फिर यह कोई नुकसानदायक सौदा नहीं होता. लेकिन कमबख्त नोमान तो अपनी पत्नी और सामान के साथ गायब था.

नोमान ने यह भी नहीं बताया था कि सदर में उस की दुकान कहां है. फिर भी वह पूरे सदर में उस को तलाश करेगा. बस, यही एक सहारा था. लेकिन उसे उम्मीद नहीं थी कि वहां नोमान मिल जाएगा. ऐसा ही हुआ भी, सदर में नोमान नहीं मिला. लेकिन नादिर ने हिम्मत नहीं हारी. उस ने नोमान की तलाश जारी रखी. वह सोच रहा था कि नोमान कभी न कभी तो मिलेगा ही, शहर को छोड़ कर कहां जाएगा.

फिर एक दिन आखिर नोमान की पत्नी अंबर मिल ही गई. वह एक स्टोर से कुछ सामान खरीद रही थी. नादिर उस के बराबर में जा कर खड़ा हो गया. अंबर ने चौंक कर नादिर की तरफ देखा, ‘‘आप नादिर हैं न?’’ उस ने पूछा.

‘‘हां, मैं नादिर हूं और तुम्हारा पति कहां है?’’

‘‘पति? कौन पति?’’ अंबर ने आश्चर्य से पूछा.

नादिर बोला, ‘‘मैं नोमान की बात कर रहा हूं.’’

‘‘वह मेरा पति नहीं है,’’ अंबर बोली.

‘‘क्या?’’ नादिर हैरान रह गया, ‘‘तो फिर कौन है?’’

‘‘बाहर आएं, बताती हूं,’’ अंबर बोली.

वह नादिर को ले कर स्टोर से बाहर आ गई.

‘‘हां, अब बताओ, तुम क्या कह रही थीं?’’ नादिर ने कहा.

‘‘मैं कह रही थी कि नोमान मेरा पति नहीं बल्कि कोई भी नहीं है. उस ने मुझे इस नाटक के लिए किराए पर लिया था. मैं एक कालगर्ल हूं. मेरा तो यही काम है. उस ने मुझे 25 हजार रुपए दिए थे. नोमान ने मुझ से कहा था कि मुझे उस की बीवी का रोल करना है. मैं ने अपनी ड्यूटी की. उस से मेहनताना

लिया, खेल खत्म. उस का रास्ता अलग,  मेरा अलग.’’

‘‘क्या तुम मुझे उस समय नहीं बता सकती थीं कि तुम उस की बीवी होने का नाटक कर रही हो?’’ नादिर ने गुस्से से पूछा.

‘‘नादिर साहब, हर धंधे का अपनाअपना उसूल होता है. मैं ने उसे जबान दी थी, फिर आप को यह सब कैसे बताती?’’ अंबर बोली.

‘‘अब वह कहां है?’’ नादिर बोला.

‘‘यह मैं नहीं जानती. मैं ने उस से अपना मेहनताना ले लिया था, अब वह कहीं भी जाए. मेरा उस से कोई लेनादेना नहीं है. हां, आप भी मेरा मोबाइल नंबर ले लें, अगर कभी आप को मेरी जरूरत पड़ जाए तो मैं हाजिर हो जाऊंगी.’’

नादिर अपने आप पर लानत भेजता हुआ घर वापस चला गया. आज जिंदगी में पहली बार उस ने बुरी तरह धोखा खाया था. और वह भी ऐसा जिस की चोट बरसों महसूस होती रहेगी. आखिर 5 लाख कम तो नहीं होते.

सच्चा प्रेम : दुष्यंत और श्यामली का नया प्रेम

6 साल पहले की बात है. सोशल मीडिया ने पूरी रफ्तार से गति पकड़ ली थी. श्यामली ने भी फेसबुक पर अपना  एकाउंट बना लिया था. उसी साल उस का ग्रैजुएशन पूरा हुआ था. ग्रैजुएशन पूरा होते ही उसे एक मल्टीनैशनल कंपनी में अच्छी नौकरी मिल गई थी.

स्वभाव से चंचल, शांत और हमेशा दूसरे के बारे में पहले सोचने वाली श्यामली औफिस का काम पूरा कर के फेसबुक लौगइन कर के बैठ जाती थी. श्यामली की प्रोफाइल में उस की एक फ्रैंड प्रियंका थी. प्रियंका और श्यामली अकसर फेसबुक पर कोई न कोई पोस्ट डालती रहती थीं. उस के बाद उन पर आए कमेंट्स और लाइक भी वे ध्यान से पढ़तीं और जरूरी होता तो जवाब भी देतीं. फेसबुक चलाने में उन्हें इतना मजा आता था कि वे उस की दीवानी बन गई थीं.

उस दिन औफिस से निकलते ही श्यामली ने फेसबुक पर एक पोस्ट शेयर की. देखते ही देखते उस पर लाइक और कमेंट्स आने लगे. प्रियंका और श्यामली आने वाले कमेंट्स पर आपस में बातें कर रही थीं कि तभी प्रियंका के एक कौमन फ्रैंड ने भी उस पोस्ट पर कमेंट किया. उस का नाम था दुष्यंत. इस के बाद दुष्यंत, प्रियंका और श्यामली कमेंट बौक्स में ही बातें करने लगे थे.

2 दिन बाद जब श्यामली ने फेसबुक खोला तो उस में दुष्यंत की फ्रैंड रिक्वेस्ट आई थी. 2 दिनों तक सोचनेविचारने के बाद श्यामली ने उस की रिक्वेस्ट एक्सेप्ट कर ली. यहीं से शुरू हुई उस प्यार की शुरुआत, जो कभी श्यामली को मिल नहीं सका.

दुष्यंत ने कंप्यूटर साइंस से इंजीनियरिंग की पढ़ाई अभी जल्दी ही पूरी की थी. स्वभाव से शांत और भावनात्मक दुष्यंत हमेशा सोशल मीडिया पर ऐक्टिव रहता था. सोशल मीडिया पर ही श्यामली से उस की मुलाकात हुई थी. श्यामली और दुष्यंत अब फेसबुक फ्रैंड बन गए थे. हायहैलो से शुरू हुआ यह संबंध अब पूरे जोश से आगे बढ़ रहा था.

मार्निंग शिफ्ट होने की वजह से दुष्यंत सुबह जल्दी 5 बजे ही उठ जाता था. और उठने के साथ ही वह श्यामली को गुडमौर्निंग का मैसेज भेजता था. यह उस का रोजाना का नियम बन गया था.  दुष्यंत की सुबह श्यामली को मैसेज भेजने के साथ ही शुरू होती थी. इस के बाद श्यामली के मैसेज के इंतजार में उस का आधा दिन बीत जाता. उसे श्यामली अच्छी लगने लगी थी. किसी न किसी बहाने वह उस से बात करने का मौका खोजता रहता था. वह यही सोचता रहता था कि श्यामली कब औनलाइन हो और वह उसे मैसेज करे.

दुष्यंत एक संस्कारी घर का युवक था, इसलिए श्यामली को उस पर विश्वास करने में ज्यादा समय नहीं लगा. विश्वास होने के बाद श्यामली ने दुष्यंत को अपना फोन नंबर दे दिया था. वैसे तो श्यामली आज के जमाने की आधुनिक लड़की थी. फिर भी वह खुद को इस आधुनिक जमाने से दूर रखती थी. क्योंकि उसे पता था कि सोशल मीडिया पर दुनिया भर के गलत काम भी होते हैं.

दुष्यंत को उस ने एक महीने तक परखा था, उस के बाद उस ने उसे दोस्त के रूप में दिल से स्वीकार किया था. बाकी तो उसे कोई लड़का पसंद ही नहीं आता था.

नंबर मिलने के बाद वाट्सऐप पर गुडमौर्निंग के आगे भी बात बढ़ गई थी. जबकि श्यामली अभी भी उसे अच्छा दोस्त ही मान रही थी. दुष्यंत तो श्यामली के ही सपनों में दिनरात खोया रहता था. इस के बावजूद दुष्यंत कभी श्यामली से अपने प्यार का इजहार नहीं कर सका था. दूसरी ओर दुष्यंत के स्वभाव से प्रभावित हो कर श्यामली के मन में भी उस के लिए प्रेम का बीज अंकुरित होने लगा था. पर कोई संस्कारी लड़की कहां जल्दी अपने प्यार का इजहार करती है. फिर श्यामली तो वैसे भी अपने मन की बात जल्दी किसी से कहने वाली नहीं थी.

उसी तरह दुष्यंत भी हमेशा सोचता रहता था कि वह अपने मन की बात कैसे श्यामली से कहे. प्यार की बात कहने पर कहीं श्यामली नाराज न हो जाए. पता नहीं वह उस के बारे में क्या सोचती होगी, क्या वह भी उसी की तरह उसे प्यार करती है या नहीं. अगर वह अपने मन की बात उस से कहेगा तो वह कहीं बुरा तो नहीं मानेगी?

यही सब सोचतेसोचते दिन बीत रहे थे. दुष्यंत हमेशा इसी सोच में डूबा रहता था कि आखिर वह करे तो क्या करे, किस तरह वह श्यामली से अपने मन की बात कहे.

आखिर एक दिन उस ने हिम्मत कर के श्यामली से मन की बात कह ही दी. श्यामली ने कहा, ‘‘अरे… अरे अभी रुको, अभी तो दूसरा अध्याय बाकी है.’’

दुष्यंत श्यामली से अपने मन की पूरी बात यानी प्रेम का इजहार तो नहीं कर पाया, पर इतना तो जता ही दिया कि वह उसे पसंद करता है. उस ने यह भी कह दिया था, ‘‘मैं तुम्हें तुम्हारे घर देखने आना चाहता हूं. तुम अपने मम्मीपापा से कह देना. मैं अपने मम्मीपापा के साथ आऊंगा.’’

इतना कह कर दुष्यंत सपनों की दुनिया में खो गया.

आखिर वह घड़ी आ ही गई, जब दुष्यंत जा कर श्यामली से आमनेसामने मिला. दोनों परिवारों में आपस में बातचीत हुई. श्यामली को भी दुष्यंत अच्छा लगा. पर बौडीगार्ड जैसा शरीर होने की वजह से श्यामली के पिता को दुष्यंत पसंद नहीं आया.

श्यामली एकदम स्लिम और ट्रिम थी. दूसरी ओर 90 किलोग्राम वजन वाले 25 साल के युवक दुष्यंत को श्यामली के पिता ने रिजेक्ट कर दिया. इस बात से दुष्यंत को लगा कि वह श्यामली को पसंद नहीं है, इसलिए श्यामली ने उस के साथ शादी से मना कर दिया है.

समय समुद्र की लहरों की तरह पूरे जोश से आगे बढ़ रहा था. अब श्यामली और दुष्यंत के बीच बातें कम होने लगी थीं. कुछ दिनों में श्यामली की भी शादी हो गई और दुष्यंत को भी जीवनसाथी मिल गई थी.

दोनों ही अपनीअपनी जिंदगी में बहुत खुश थे. फिर भी जब कभी दुष्यंत एकांत में होता, तो उसे श्यामली की याद आ ही जाती थी. उसे इस बात का हमेशा अफसोस रहता कि वह श्यामली से अपने दिल की बात खुल कर कह नहीं सका. किसी तरह अपने मन को मना कर उस का पहला प्रेम पूरा नहीं हुआ, इस दर्द को दिल में छिपा कर अतीत से वर्तमान में आ जाता.

पूरे 3 साल बाद अचानक एक मौल में दुष्यंत और श्यामली की मुलाकात हो गई. दोनों के बीच हायहैलो हुई. दुष्यंत ने पूछा, ‘‘कैसी हो श्यामली?’’

‘‘मैं तो ठीक हूं. अपनी बताओ?’’ वह बोली.

दोनों ने एकदूसरे के बारे में पूछा. हालचाल जानने के बाद दोनों के बीच नौरमल बातें होने लगीं. बातचीत करते हुए दोनों अतीत में खो गए. उसी बातचीत में दुष्यंत ने हिम्मत कर के कह दिया कि वह उस से बहुत प्यार करता था, है और हमेशा करता रहेगा.

यह सुन कर श्यामली के पैरों के नीचे से जैसे जमीन खिसक गई. यह बात तो वह 3 साल पहले सुनना चाहती थी. पर उस समय यह बात दुष्यंत नहीं कह सका था. उस समय श्यामली भी इस बात को नहीं समझ सकी थी. दोनों का यह अनकहा प्रेम 3 साल से हृदय में जीवंत रहा. पर दोनों ही अपने इस प्रेम को एकदूसरे से कह नहीं सके थे.

आज पूरे 3 साल बाद जब दोनों ने अकेले में बात की तो दुष्यंत ने अपने प्रेम का इकरार कर लिया. वह बहुत अच्छा दिन था. दोनों के ही मन में एकदूसरे के लिए अनहद प्रेम था.  पर समय उन के हाथ से निकल गया था. अब दोनों की ही शादी हो गई थी और दोनों ही उम्र से अधिक समझदार हो चुके थे.

दोनों ही अपने जीवनसाथी के साथ विश्वासघात करने के बारे में सोच भी नहीं सकते थे. पर दोनों ने ही एकदूसरे को वचन दिया कि वे जीवन के अंत तक एकदूसरे के संपर्क में बने रहेंगे.

दुष्यंत और श्यामली आज भी एकदूसरे से बातें करते हैं, प्रेम व्यक्त करते हैं, एकदूसरे की भावनाओं को समझते हैं, पर दोनों ही अपनेअपने जीवनसाथी के प्रति पूरी तरह से वफादार बने हुए हैं. वे जीवनसाथी नहीं बन सके तो क्या हुआ, दोनों ही एकदूसरे से मन से जुड़ कर जीवन का आनंद ले रहे हैं.

तो क्या अपने पहले प्रेम से दिल से जुड़े रहना अपराध है? क्या शादी के बाद अपने जीवनसाथी के प्रति वफादारी दिखाते हुए मनपसंद आदमी से बात करना अपराध है?

अपने जीवनसाथी के प्रति वफादार रहते हुए दो प्रेमी जब अपने अधूरे रह गए प्रेम को एकदूसरे से इकरार करते हैं तो लोग इस संबंध को खराब नजरों से देखते हैं. पर दुष्यंत और श्यामली का कहना है कि अगर एकदूसरे से बात करने से दुख कम होता हो और खुशी मिलती हो तो इस में गलत क्या है.

प्रेम तो प्रेम होता है. शादी के पहले करो या बाद में, उस में पवित्रता, विश्वास और बिना स्वार्थ का लगाव होना चाहिए, जो केवल हृदय के भाव को जानसमझ सके.

इश्क के चक्कर में : नादिर को मिली मौत – भाग 1

मेरे मुवक्किल रियाज पर नादिर के कत्ल का इलजाम था. इस मामले को अदालत में पहुंचे करीब 3 महीने हो चुके थे, पर बाकायदा सुनवाई आज हो रही थी. अभियोजन पक्ष की ओर से 8 गवाह थे, जिन में पहला गवाह सालिक खान था. सच बोलने की कसम खाने के बाद उस ने अपना बयान रिकौर्ड कराया.

सालिक खान भी वहीं रहता था, जहां मेरा मुवक्किल रियाज और मृतक नादिर रहता था. रियाज और नादिर एक ही बिल्डिंग में रहते थे. वह तिमंजिला बिल्डिंग थी. सालिक खान उसी गली में रहता था. गली के नुक्कड़ पर उस की पानसिगरेट की दुकान थी.

भारी बदन के सालिक की उम्र 46-47 साल थी. अभियोजन पक्ष के वकील ने उस से मेरे मुवक्किल की ओर इशारा कर के पूछा, ‘‘सालिक खान, क्या आप इस आदमी को जानते हैं?’’

‘‘जी साहब, अच्छी तरह से जानता हूं.’’

‘‘यह कैसा आदमी है?’’

‘‘हुजूर, यह आवारा किस्म का बहुत झगड़ालू आदमी है. इस के बूढ़े पिता एक होटल में बैरा की नौकरी करते हैं. यह सारा दिन मोहल्ले में घूमता रहता है. हट्टाकट्टा है, पर कोई काम नहीं करता.’’

‘‘क्या यह गुस्सैल प्रवृत्ति का है?’’ वकील ने पूछा.

‘‘जी, बहुत ही गुस्सैल स्वभाव का है. मेरी दुकान के सामने ही पिछले हफ्ते इस की नादिर से जम कर मारपीट हुई थी. दोनों खूनखराबे पर उतारू थे. इस से यह तो नहीं होता कि कोई कामधाम कर के बूढ़े बाप की मदद करे, इधरउधर लड़ाईझगड़ा करता फिरता है.’’

‘‘क्या यह सच है कि उस लड़ाई में ज्यादा नुकसान इसी का हुआ था. इस के चेहरे पर चोट लगी थी. उस के बाद इस ने क्या कहा था?’’ वकील ने मेरे मुवक्किल की ओर इशारा कर के पूछा.

‘‘इस ने नादिर को धमकाते हुए कहा था कि यह उसे किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ेगा. इस का अंजाम उसे भुगतना ही पड़ेगा. इस का बदला वह जरूर लेगा.’’

इस के बाद अभियोजन के वकील ने कहा, ‘‘दैट्स आल हुजूर. इस धमकी के कुछ दिनों बाद ही नादिर की हत्या कर दी गई, इस से यही लगता है कि यह हत्या इसी आदमी ने की है.’’

उस के बाद मैं गवाह से पूछताछ करने के लिए आगे आया. मैं ने पूछा, ‘‘सालिक साहब, क्या आप शादीशुदा हैं?’’

‘‘जी हां, मैं शादीशुदा ही नहीं, मेरी 2 बेटियां और एक बेटा भी है.’’

‘‘क्या आप की रियाज से कोई व्यक्तितगत दुश्मनी है?’’

‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है.’’

‘‘तब आप ने उसे कामचोर और आवारा क्यों कहा?’’

‘‘वह इसलिए कि यह कोई कामधाम करने के बजाय दिन भर आवारों की तरह घूमता रहता है.’’

‘‘लेकिन आप की बातों से तो यही लगता है कि आप रियाज से नफरत करते हैं. इस की वजह यह है कि रियाज आप की बेटी फौजिया को पसंद करता है. उस ने आप के घर फौजिया के लिए रिश्ता भी भेजा था. क्या मैं गलत कह रहा हूं्?’’

‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. हां, उस ने फौजिया के लिए रिश्ता जरूर भेजा था, पर मैं ने मना कर दिया था.’’ सालिक खान ने हकलाते हुए कहा.

‘‘आप झूठ बोल रहे हैं सालिक खान, आप ने इनकार नहीं किया था, बल्कि कहा था कि आप पहले बड़ी बेटी शाजिया की शादी करना चाहते हैं. अगर रियाज शाजिया से शादी के लिए राजी है तो यह रिश्ता मंजूर है. चूंकि रियाज फौजिया को पसंद करता था, इसलिए उस ने शादी से मना कर दिया था. यही नहीं, उस ने ऐसी बात कह दी थी कि आप को गुस्सा आ गया था. आप बताएंगे, उस ने क्या कहा था?’’

‘‘उस ने कहा था कि शाजिया सुंदर नहीं है, इसलिए वह उस से किसी भी कीमत पर शादी नहीं करेगा.’’

‘‘…और उसी दिन से आप रियाज से नफरत करने लगे थे. उसे धोखेबाज, आवारा और बेशर्म कहने लगे. इसी वजह से आज उस के खिलाफ गवाही दे रहे हैं.’’

‘‘ऐसी कोई बात नहीं है. मैं ने जो देखा था, वही यहां बताया है.’’

‘‘क्या आप को यकीन है कि रियाज ने जो धमकी दी थी, उस पर अमल कर के नादिर का कत्ल कर दिया है?’’

‘‘मैं यह यकीन से नहीं कह सकता, क्योंकि मैं ने उसे कत्ल करते नहीं देखा.’’

‘‘मतलब यह कि सब कुछ सिर्फ अंदाजे से कह रहे हो?’’

मैं ने सालिक खान से जिरह खत्म कर दी. रियाज और मृतक नादिर गोरंगी की एक तिमंजिला बिल्डिंग में रहते थे, जिस की हर मंजिल पर 2 छोटेछोटे फ्लैट्स बने थे. नादिर अपने परिवार के साथ दूसरी मंजिल पर रहता था, जबकि रियाज तीसरी मंजिल पर रहता था.

रियाज मांबाप की एकलौती संतान था. उस की मां घरेलू औरत थी. पिता एक होटल में बैरा थे. उस ने इंटरमीडिएट तक पढ़ाई की थी. वह आगे पढ़ना चाहता था, पर हालात ऐसे नहीं थे कि वह कालेज की पढ़ाई करता. जाहिर है, उस के बाप अब्दुल की इतनी आमदनी नहीं थी. वह नौकरी ढूंढ रहा था, पर कोई ढंग की नौकरी नहीं मिल रही थी, इसलिए इधरउधर भटकता रहता था.

बैरा की नौकरी वह करना नहीं चाहता था. अब उस पर नादिर के कत्ल का आरोप था. मृतक नादिर बिलकुल पढ़ालिखा नहीं था. वह अपने बड़े भाई माजिद के साथ रहता था. मांबाप की मौत हो चुकी थी. माजिद कपड़े की एक बड़ी दुकान पर सेल्समैन था. वह शादीशुदा था. उस की बीवी आलिया हाउसवाइफ थी. उस की 5 साल की एक बेटी थी. माजिद ने अपने एक जानने वाले की दुकान पर नादिर को नौकरी दिलवा दी थी. नादिर काम अच्छा करता था. उस का मालिक उस पर भरोसा करता था. नादिर और रियाज के बीच कोई पुरानी दुश्मनी नहीं थी.

अगली पेशी के पहले मैं ने रियाज और नादिर के घर जा कर पूरी जानकारी हासिल  कर ली थी. रियाज का बाप नौकरी पर था. मां नगीना से बात की. वह बेटे के लिए बहुत दुखी थी. मैं ने उसे दिलासा देते हुए पूछा, ‘‘क्या आप को पूरा यकीन है कि आप के बेटे ने नादिर का कत्ल नहीं किया?’’

‘‘हां, मेरा बेटा कत्ल नहीं कर सकता. वह बेगुनाह है.’’

‘‘फिर आप खुदा पर भरोसा रखें. उस ने कत्ल नहीं किया है तो वह छूट जाएगा. अभी तो उस पर सिर्फ आरोप है.’’

बुरे फंसे यार: जब लालच में फंसे चोर

प्रस्तुति: शकील 

जैकब प्लाजा फाउंटेन के पास बेखयाली में खड़ा था. उस की नजरें उस लड़की पर जमी थीं जो फाउंटेन में सिक्के उछाल रही थी. कुछ और सिक्के पानी में फेंक कर वह चली गई. उस के बाद एक औरत आई. वह भी फाउंटेन में सिक्के उछाल रही थी. जैकब सोचा करता था कि किसी तरह दौलत हाथ आ जाए. लेकिन लोग इतने होशियार हो गए हैं कि जल्दी बेवकूफ भी नहीं बनते.

जैकब आजकल बहुत कड़की में था. उस ने सिर उठा कर आसमान की ओर देखा तो अनायास उस की नजर टाउन प्लाजा की खिड़की पर पड़ गई. खिड़की देख उस के दिमाग में एक आइडिया आ गया. उस ने खिड़की को गौर से देखा. वह खिड़की फाउंटेन के ठीक ऊपर बिल्डिंग की चौथी मंजिल पर स्थित ज्वैलरी शौप की थी. उस के दिमाग में हलचल मच गई.

इस बीच कुछ बच्चे आ गए थे, जो फाउंटेन में सिक्के उछाल रहे थे. जैकब वहां से टेलीफोन बूथ पर पहुंचा और अपने दोस्त ब्राउन को फोन लगाया. काफी दिनों से ब्राउन ने कोई वारदात नहीं की थी. पुलिस के पास उस का रिकौर्ड साफ था. जैकब ने कहा, ‘‘ब्राउन, एक अच्छा आइडिया है. हम दोनों मिल कर काम कर सकते हैं. मैं यहां फाउंटेन प्लाजा के पास हूं, आ जाओ. एक अच्छी जौब है.’’

‘‘मुझे बुद्धू तो नहीं बना रहे हो. मैं तुम्हें 2 घंटे बाद ब्रिज पार्क बार में मिलता हूं.’’ ब्रिज पार्क बार पुरसुकून जगह थी. जैकब और ब्राउन की मीटिंग के लिए एक अच्छी जगह. ब्राउन ने कहा, ‘‘अब बताओ, क्या कहानी है?’’

‘‘टाउन डायमंड एक्सचेंज के हम मुट्ठी भर पत्थर चुपचाप से उठा सकते हैं, जिस की कीमत करीब 5 लाख डौलर होगी.’’ जैकब ने धीरे से बताया.

‘‘क्या बकवास कर रहे हो, यह कैसे हो सकता है?’’

‘‘तुम यह काम कर सकते हो. मैं तुम्हारा बाहर इंतजार करूंगा.’’

‘‘बहुत खूब. यानी पुलिस मुझे दबोच ले और तुम बाहर इंतजार करो.’’ ब्राउन ने गुस्से से कहा.

‘‘कोई किसी को नहीं पकड़ेगा. तुम मेरी बात तसल्ली से सुनो. तुम किसी अमीरजादे की तरह चौथी मंजिल पर ज्वैलरी शौप पर पहुंचोगे और हीरों की एक ट्रे निकलवाओगे. वक्त दोपहर का होगा. इस वक्त बहुत कम ग्राहक होते हैं. उसी वक्त मैं हाल में हंगामा फैलाने का इंतजाम करूंगा. तुम फौरन मुट्ठी भर कीमती हीरे उठा लेना.’’

‘‘फिर मैं क्या करूंगा? क्या पत्थरों को निगल जाऊंगा?’’

‘‘यार पूरी बात तो सुनो. ऐसा कुछ नहीं है. सब की नजर बचा कर तुम मुट्ठी भर हीरे खिड़की से बाहर फेंक देना.’’

‘‘तुम्हारी बातें मेरे सिर से गुजर रही हैं. एसी की वजह से सारी खिड़कियां बंद होंगी.’’

‘‘मैं ने आज ही खिड़की खुली देखी है. उसी को देख कर यह आइडिया आया, क्योंकि कोई भी 4 मंजिल तय कर के हीरों के साथ नीचे नहीं उतर सकता. लेकिन हीरे अकेले 4 मंजिल उतर सकते हैं.’’

‘‘जैकब, मुझे यह पागलपन लग रहा है.’’ ब्राउन ने कहा.

‘‘तुम बात समझो. खिड़की काउंटर से ज्यादा दूर नहीं है. तुम हीरे उठा कर पलक झपकते ही खिड़की से बाहर उछाल देना. तुम्हें काउंटर से हट कर खिड़की तक जाने की भी जरूरत नहीं होगी. तुम अपनी जगह पर ही खड़े रहना. अगर तुम पर शक होता भी है तो तुम्हारी तलाशी ली जाएगी. तुम्हें मशीन पर खड़ा किया जाएगा, पर तुम्हारे पास से कुछ नहीं निकलेगा. मजबूरन तुम्हें छोड़ कर के वे दूसरे ग्राहकों को देखेंगे.’’

‘‘चलो ठीक है, हीरे बाहर चले जाएंगे. पर क्या तुम उन्हें कैच करोगे? एक तरफ कहते हो कि तुम हाल में हंगामा करोगे फिर बाहर पत्थरों का क्या होगा?’’ ब्राउन ने ताना कसा.

‘‘यही तो मंसूबे की खूबसूरती है.’’ जैकब मुसकराया, ‘‘खिड़की के ठीक नीचे खूबसूरत फव्वारा और हौज है. हीरे हौज की गहराई में चले जाएंगे. जैसे कि बैंक की वालेट में बंद हों. कोई भी वहां हीरे गिरते नहीं देख सकेगा, न कोई बाद में देख सकता है क्योंकि यह शीशे की तरह सफेद है. कीमती पत्थरों की यही तो खूबी है, कलर, कैरेट और कट बहुत जरूरी होते हैं.’’

‘‘पर जब सूरज की किरणें पड़ेंगी तो?’’

‘‘सूरज की किरणें पड़ने का सवाल ही नहीं उठता क्योंकि पानी पर पूरे समय बिल्डिंग और पेड़ों का साया रहता है. मैं ने सब चैक कर लिया है. जब तक किसी को पता न हो कोई उन के बारे में नहीं जान सकता. 2-3 दिन बाद हम रात को आएंगे और आराम से हीरे निकाल लेंगे.’’ जैकब ने समझाया.

ब्राउन ने सिर हिला कर कहा, ‘‘प्लान तो अच्छा है.’’

अगले दिन ठीक सवा 12 बजे ब्राउन टाउन प्लाजा की चौथी मंजिल पर पहुंच गया. गार्ड ने मामूली चैकिंग कर के उसे अंदर जाने दिया. हाल में बहुत कम ग्राहक थे. ब्राउन मौका देख कर ठीक खिड़की के सामने खड़ा हो गया. सिर झुका कर उस ने एक ट्रे की तरफ इशारा किया.

जैसे ही सेल्समैन ने ट्रे बाहर निकाली, जैकब प्रवेश द्वार के हैंडल पर हाथ रख कर झुका और धड़ाम से नीचे गिर गया. गेट पर खड़ा गार्ड उस की तरफ बढ़ा. अंदर के लोगों का ध्यान बंट गया. सब उस की तरफ देखने लगे.

‘‘मिस्टर, क्या हुआ? तुम ठीक हो न?’’ गार्ड ने उस पर झुक कर पूछा.

‘‘मुझे…मुझे…सांस…’’ फिर उस ने पानी के लिए इशारा किया.

कुछ कस्टमर भी वहां जमा हो गए. 2 सेल्समैन भी आ गए. एक पानी ले आया. बड़ी मुश्किल से उस ने थोड़ाथोड़ा पानी पीया. वह बुरी तरह हांफ रहा था.

जैकब की ऐक्टिंग बहुत शानदार थी. वह धीरेधीरे लड़खड़ाता हुआ लोगों के सहारे खड़ा हुआ. एक क्लर्क ने अपनी कुरसी पेश कर दी.

‘‘मैं शायद बेहोश हो गया था.’’ वह धीरे से बड़बड़ाया. ‘‘तुम्हें डाक्टर की जरूरत है?’’ क्लर्क ने पूछा.

‘‘नहीं…नहीं मुझे घर जाना है. आप का शुक्रिया. मैं अब ठीक महसूस कर रहा हूं.’’ उस ने ब्राउन की तरफ देखने की बेवकूफी नहीं की. बहुत धीरेधीरे गेट से बाहर निकल गया.

इमारत से निकल कर वह फव्वारे की तरफ पहुंच गया. वहां ज्यादा भीड़ नहीं थी. फव्वारे की लंबीऊंची धाराएं बड़े हौज में गिर रही थीं. उस की तह में सिवाए सिक्कों के और कुछ नजर नहीं आ रहा था. जैकब का अंदाजा दुरुस्त था. खुशी में उस ने भी एक सिक्का उछाल दिया. वहां से वह सीधा अपने फ्लैट पर पहुंचा. 2 घंटे के बाद ब्राउन की काल आ गई.

‘‘काम हो गया?’’ जैकब ने बेचैनी से पूछा.

‘‘काम तो हो गया पर बस इतना ही वक्त मिला था कि हीरे पानी में फेंक दूं. उस के बाद तो हंगामा मच गया, पुलिस आ गई. मैं चुपचाप अपनी जगह पर खड़ा रहा. वहां से हिला तक नहीं.

शौप वालों ने कोई कसर उठा कर नहीं रखी. पुलिस भी मुस्तैद थी. मेरी 2 बार तलाशी ली गई, पर मेरे पास से कुछ भी बरामद नहीं हुआ. डायमंड एक्सचेंज वाले सख्त हैरान, परेशान थे.

‘‘किसी ने तुम्हारा जिक्र भी किया पर क्लर्क ने यह कह कर बात खत्म कर दी कि वह आदमी गेट के अंदर नहीं आया था. गेट से ही वापस चला गया था.

तुम्हारा मंसूबा शानदार था. शौप वाले मुझे छोड़ना नहीं चाहते थे, लेकिन पकड़ कर भी नहीं रख सकते थे. मैं निश्चिंत था. हर तरह की जांच करने के बाद करीब ढाई घंटे में मुझे छोड़ दिया गया. चलो, कल मिलते हैं ब्रिज पार्क में.’’

अगले दिन दोनों ब्रिज पार्क में बैठे बियर पी रहे थे. दोनों के चेहरे चमक रहे थे. जैकब ने कहा, ‘‘हम दोनों ने मिल कर शानदार कारनामे को अंजाम दिया है. ब्राउन, यह तो बताओ फिर वहां क्या हुआ?’’

‘‘मुझ से बारबार पूछा गया कि मैं ने क्या देखा. मेरा एक ही जवाब था कि मैं ने कुछ नहीं देखा. हां, मैं ने हीरे की ट्रे जरूर निकलवाई थी. इस से पहले कि मैं हीरों को देखता, एक आदमी धड़ाम से गेट पर गिर गया. मेरा ध्यान भी दूसरों की तरह उस तरफ चला गया.

‘‘मेरे साथ 4 और ग्राहक थे. मेरी पोजीशन हर तरह से साफ थी. हम सब की तलाशी बारबार ली गई. तंग आ कर एक्सरे तक ले डाला.

शायद पुलिस सोच रही थी कि हमारे पास कोई छिपा हुआ पाउच होगा और उसी में हीरे होंगे. पर सब बेकार गया. कुछ हासिल नहीं हुआ. तंग आ कर मुझे छोड़ दिया गया. मेरे बाद भी 2 आदमियों की जांच हो रही थी.’’ ब्राउन ने कहकहा लगाते हुए कहा.

‘‘अब क्या इरादा है?’’ ब्राउन ने बेचैनी से पूछा.

‘‘आज रात को वहां से हीरे निकाल लेंगे.’’ जैकब ने जवाब दिया.

ब्राउन बोला, ‘‘यार, घबराहट में मैं 5 हीरे ही बाहर फेंक सका.’’

जैकब ने कहा, ‘‘कोई बात नहीं. 5 लाख डौलर भी बहुत होते हैं.’’

जैकब और ब्राउन देर रात फव्वारे पर पहुंच गए. आज उन के ख्वाबों में रंग भरने की रात थी. दोनों ने जल्दी मुनासिब न समझी. दोनों एक कोने में काले कपड़ों में छिप कर बैठ गए. आधी रात तक का इंतजार किया.

लोगों की आवाजाही अब खत्म हो चुकी थी. फव्वारा अभी बंद था. पानी बिलकुल स्थिर था. इन्हें हीरे तलाश करने में मुश्किल नहीं हुई. 3 हीरे मिलने के बाद ब्राउन ने कहा, ‘‘जैकब, 3 काफी हैं, निकल चलते हैं.’’

‘‘नहीं यार, एक और तलाश कर लें फिर चलते हैं.’’ जैकब ने इसरार किया.

अचानक फ्लैश लाइट्स औन हो गईं. एकदम वे दोनों तेज रोशनी में नहा गए. एक कड़कती हुई आवाज सुनाई दी, ‘‘वहीं रुक जाओ.’’

दोनों अभी ही हौज से बाहर निकले थे. ‘मारे गए यार…’ जैकब ने फ्लैश लाइट्स से बाहर दौड़ लगाई. लेकिन पुलिस वाले गाड़ी से उतर कर वहां पहुंच गए. एक ने जैकब पर गन तान ली, दूसरे ने ब्राउन पर. दोनों हाथ ऊपर कर के खड़े हो गए. ‘‘ईजी औफिसर, गोली मत चलाना. आप ने हमें पकड़ लिया है.’’ ब्राउन ने डर कर कहा.

‘‘तुम ठीक समझे. जरा भी हलचल की तो गोली चल जाएगी.’’ गन वाला गुर्राया.

‘‘हौज से मिलने वाले सिक्के हर महीने चैरिटी के नाम पर यतीमखाने में दिए जाते हैं. तुम दोनों इतने बेईमान हो कि खैराती रेजगारी भी चुराने आ गए.

ठहरो, अभी तुम्हारी तलाशी होती है. जज कम से कम 3 महीने की सजा तो देगा ही. इन्हें गनपौइंट पर गाड़ी में डालो. पुलिस स्टेशन पर इन की तलाशी ली जाएगी.’’

दोनों मजबूरन हाथ उठाए उदास से गाड़ी में बैठ गए. ब्राउन धीरे से बोला, ‘‘बुरे फंसे यार.’’

वचन-भाग 1 : मेवाड़ के राजा के सामने अजीत ने कैसे दिखाई अपनी वीरता

वैशालपुर के ठाकुर प्रताप सिंह की बेटी थी राजबाला. वह बेहद सुंदर और धैर्यवान होने के साथ चतुर भी थी. आसपास के रजवाड़ों में ऐसी गुणों की खान कोई न थी. राजबाला का गोरा रंग, सुतवां नाक, कजरारे बड़ेबड़े नैन और गुलाब की पंखुडि़यों जैसे गुलाबी होंठ, भरा और कसा बदन, कमर तक लटकती स्याह काली केशराशि और मोहक मुसकान देख कर लोग उसे ऐसे ताकते रह जाते थे, जैसे वह किसी दूसरे लोक से आई कोई अप्सरा हो.

मगर हकीकत में वह कोई अप्सरा नहीं, बल्कि राजपूत बाला राजबाला थी. अपने पति को वह प्राणों से अधिक प्यार करती थी और जीवन भर कभी भी ऐसा अवसर न आया, जब उस ने पति की इच्छा के खिलाफ कोई काम किया हो.

राजबाला का विवाह अमरकोट रियासत की सोडा राजधानी के राजा अनार सिंह के पुत्र अजीत सिंह से हुआ था. अनार सिंह के पास बहुत बड़ी सेना थी, जिस से कभीकभी वह लूटमार भी किया करते थे.

एक बार ऐसा हुआ कि राव कोटा का राजकोष कहीं से आ रहा था. इस की खबर अनार सिंह को लग गई. तब अनार सिंह अपनी सेना ले कर राजकोष लूटने चल पड़े. राव कोटा के सिपाही बड़े वीर थे. दोनों सेनाओं में जम कर युद्ध हुआ. अंत में अनार सिंह की पराजय हुई और उन की सारी सेना तितरबितर हो गई.

इस पराजय के कारण अनार सिंह का सोडा में रहना असंभव हो गया. कोटा के राजा राव ने अनार सिंह की जागीर छीन ली और उन्हें देश निकाले का फरमान सुना दिया. अनार सिंह अब अपने किए पर पछता रहे थे.

मगर जो होना था, वह तो हो चुका था. अंत में वह सोडा को छोड़ कर काले वस्त्र धारण कर काले घोड़े पर बैठ कर स्याह काली रात के अंधेरे में दूसरे राज्य के एक छोटे से गांव में जा बसे.

अनार सिंह का हाथ तो पहले से ही तंग था, अब हालत और भी खराब हो गए. कहावत है कि रिजक (धन) बिन राजपूत कैसा. यहां तक कि देश निकाला मिलने के थोड़े समय बाद में दुख और लाज के मारे उन्होंने प्राण त्याग दिए.

अनार सिंह की मृत्यु के बाद उन की पत्नी ठकुरानी अपने पुत्र अजीत सिंह को बड़े कष्ट उठा कर पालने लगी. अजीत सिंह की उम्र उस समय 13 वर्ष रही होगी. किंतु बांकपन और वीरता में वह अपनी उम्र के बालकों से कहीं बढ़ कर था. इस कुल की धीरेधीरे यह दुर्दशा हो गई कि अजीत सिंह की माता दूसरों का कामकाज कर के निर्वाह करने लगी. इस प्रकार उस दुखिया की भी कुछ समय बाद मृत्यु हो गई.

राजबाला के साथ अजीत सिंह के विवाह की बातचीत उस के पिता के जीते जी हो गई थी. हालांकि अनार सिंह का यह कुल अति दरिद्र हो गया था. परंतु राजपूत लोग सदा से अपने वचन का सम्मान करते थे.

राजपूतानियां भी प्राय: अति हठी होती थीं. एक बार जब किसी के साथ उन का नाम निकल जाए, फिर वह कभी किसी दूसरे के साथ विवाह करना उचित नहीं समझती थीं.

अजीत सिंह अब बिलकुल अनाथ था. वह किसी प्रकार अपना निर्वाह न कर सकता था. किंतु उसे आशा थी कि उस के युवा होने पर शायद कोटा का राजा उस के पिता की जागीर उसे दे देगा, जिस का वह वारिस है. बस, वह इसी आशा से जी रहा था.

एक बार अजीत सिंह ने एक राजपूतानी को प्रताप सिंह के यहां इसलिए भेजा था कि वह अपनी पुत्री का विवाह उस के साथ करने को राजी है या नहीं? उस समय राजबाला भी युवती थी. वह विवाह का समाचार सुन कर अपनी सहेलियों से कहने लगी, ‘‘बहनो, मैं ने अपने पति को नहीं देखा, वह कैसे हैं?’’

सहेलियां बोलीं, ‘‘तुम्हारे पति अति सुंदर, बुद्धिमान और वीर हैं.’’

पति की प्रशंसा सुन कर राजबाला अति प्रसन्न हुई और कहने लगी, ‘‘मेरे पति वीर हैं, चतुर हैं और सुंदर हैं. ये ही सब बातें एक राजपूत में होनी चाहिए. सब कहते हैं कि उन के पास धन नहीं है. न सही, जहां बुद्धि और पराक्रम है, वहां धन अपने आप ही आ जाता है.’’

राजबाला ने किसी तरह उस राजपूतानी से मिल कर कहा, ‘‘तुम जा कर मेरे पति से कहो कि यहां लोग तुम्हारी दरिद्रता का समाचार कहते रहते हैं, परंतु मैं आज से ही नहीं, कई सालों से आप की हो चुकी हूं. आप मेरे पति हैं, मैं आप की बुराई सुनना नहीं चाहती. इसलिए आप स्वयं आ कर पिताजी से कह कर मुझे ले जाएं. मैं गरीबी और अमीरी में सदा आप का साथ दूंगी. किसी का वश नहीं कि मेरी बात को टाल सके. यदि विवाह होगा तो आप के साथ होगा, नहीं तो राजबाला प्रसन्नतापूर्वक प्राण त्याग करेगी.’’

जिस समय राजपूतानी ने राजबाला का यह संदेश अजीत सिंह को सुनाया. वह बहुत खुश हुआ और कहने लगा, ‘‘यह कैसे संभव है कि मेरे जीते जी कोई और राजबाला को ब्याह ले जाए.’’

राजबाला के कहे अनुसार अजीत सिंह ने उस के पिता प्रताप सिंह को विवाह के लिए कहलवा भेजा. जिस के जवाब में प्रताप सिंह ने कहा, ‘‘विवाह को तो हम तैयार हैं. क्योंकि हम ने तुम्हारे पिता को वचन दिया था. परंतु इस समय तुम्हारी आर्थिक हालत सही नहीं है. ऐसा करो कि तुम 20 हजार रुपए इकट्ठा कर के लाओ, जिस से यह मालूम हो कि तुम मेरी बेटी को सुखी रख सकोगे. जब तक तुम्हारे पास 20 हजार रुपए न हों तो विवाह के बारे में भी तुम्हारा सोचना व्यर्थ है.’’

आखिर प्रताप सिंह की बात भी उचित थी. कोई भी पिता अपनी ऐशोआराम में पली बेटी का विवाह ऐसे किसी व्यक्ति के साथ कैसे कर सकता है, जिस का खुद निर्वाह करना मुश्किल होता हो.

अजीत सिंह सोच में डूब गया. परंतु बेचारा क्या करता. अंत में उसे जैसलमेर के एक सेठ मोहता का ध्यान आया, जिस के यहां से उस के पिता का लेनदेन था.

वह सेठ मोहता के पास गया और उस से कहा, ‘‘सेठजी, तुम मेरे घराने के पुराने महाजन हो. 20 हजार रुपए के बिना मेरा विवाह नहीं हो रहा है. विवाह करना जरूरी है, परंतु तुम जानते हो कि मेरे पास इस समय न जागीर है, न ही कुछ और है. अगर पुराने संबंधों का विचार कर के और मुझ पर विश्वास करते हुए मुझे 20 हजार रुपए दे सको तो दे दो. मैं सूद सहित वापस कर दूंगा.’’