उल्टी पड़ी चाल : कैसे सामने आई काजी वहीद की हकीकत – भाग 2

‘‘आप ने खुद किस्सा कह कर बात साफ कर दी. यह सरासर मनघडंत कहानी है. वह सरासर झूठ बोल रहा है. घर की तलाश में वह मेरे औफिस में आता रहता था. 14 अक्तूबर की शाम भी वह आया था. मैं ने उस से कहा था जल्द ही अच्छा घर बताऊंगा.

‘‘बातोंबातों में मैं ने एक लाख का जिक्र किया था कि पार्टी ने एक लाख रुपए की पेमेंट कर के सेल एग्रीमेंट बनवा लिया है, जिस के अनुसार पार्टी एक माह के अंदर बाकी के 5 लाख रुपए अदा कर के मेरे घर का कब्जा ले लेगी. इस बीच बिक्री के पूरे दस्तावेज तैयार हो जाएंगे.’’

‘‘यानी आप ने मुल्जिम को यह बता दिया था कि आप के घर में एक लाख की रकम रखी है?’’ वकील इस्तेगासा ने चालाकी से पूछा.

‘‘जी हां, बिलकुल उसे यह बात खबर हो गई थी. अगले दिन ही शैतान ने मेरे घर पर धावा बोल दिया और ऐसा वक्त चुना जब मैं घर पर नहीं था. उसे मालूम था मेरी बीवी रशीदा कमजोर और बीमार है. उस ने इस का फायदा उठाते हुए मेरे घर से एक लाख उड़ा लिए और जब रशीदा ने उस का विरोध किया तो उस का गला घोंट कर मार डाला.

‘‘इत्तफाक से मैं उस दिन जल्दी घर आ गया और मैं ने उसे तेजी से मेरे घर से जाते हुए देख लिया. मैं समझा अपना कोई बचा हुआ सामान लेने आया होगा, पर जब मैं बेडरूम में दाखिल हुआ, मैं ने अपनी बीवी को मुर्दा हालत में पड़े देखा.’’ काजी ने रोनी आवाज में कहा.

वकील इस्तेगासा ने अपनी जिरह खत्म करते हुए कहा, ‘‘योर औनर, यह इंसान नहीं वहशी दरिंदा है. इसे जितनी सख्त सजा दी जाए कम है.’’

अपनी बारी पर जज से इजाजत ले कर मैं बिटनेस बौक्स के करीब पहुंच गया.

‘‘काजी साहब, मैं आप से सादा सा सवाल पूछूंगा. सच बताइए क्या आप वाकई अपना मकान बेचना चाहते थे?’’ मैं ने चुभते लहजे में पूछा.

‘‘आप का क्या मतलब है? अगर मुझे मकान बेचना ना होता तो मैं पार्टी से एक लाख रुपए वसूल कर के सेल एग्रीमेंट पर दस्तखत क्यों करता?’’ उस ने गुस्से से कहा.

‘‘इस सेल एग्रीमेंट के अनुसार पार्टी को एक माह के अंदर 5 लाख रुपए अदा कर के मकान का कब्जा ले लेना था. क्या आप ने मकान पार्टी के हवाले कर दिया है?’’

‘‘नहीं, मैं अभी तक अपने ही मकान में रह रहा हूं.’’

‘‘एग्रीमेंट के मुताबिक इस शर्त पर आप अमल नहीं करते तो आप को पार्टी को डील कैंसल कर के 2 लाख देने पड़ते क्या आप ने 2 लाख अदा किए?’’

‘‘दुनिया में सब इंसान मुल्जिम की तरह फरेबी और मतलबी नहीं होते. मेरी बीवी के कत्ल और एक लाख की चोरी के बाद पार्टी ने मुझ पर कोई दबाव नहीं डाला और कहा कि अगर मैं घर ना बेचना चाहूं तो उन के एक लाख रुपए सहूलियत से वापस कर दूं. और मैं ने उधार ले कर रकम लौटा दी. इस तरह मामला सेटल हो गया.’’

‘‘इस तरह के मामलात इतनी आसानी से सेटल नहीं होते. सेल एग्रीमेंट की एक नकल जिस में आप ने एक लाख एडवांस लिए थे, अदालत में पेश करते तो यह एक पक्का सबूत होता.’’

‘‘अगर अदालत का हुक्म होगा तो मैं एग्रीमेंट की कौपी ले आऊंगा.’’

‘‘और अगर पार्टी की गवाही की जरूरत पड़ी तो?’’

‘‘तो मैं पार्टी को भी अदालत में ला सकता हूं.’’

‘‘क्या मैं इस पार्टी का नामपता जान सकता हूं?’’

‘‘मैं आप को कोई भी जवाब देने का पाबंद नहीं हूं. अगर अदालत मुझ से कहेगी तो बता दूंगा.’’

‘‘काजी साहब, आप अदालत में ना तो सेल एग्रीमेंट की कौपी पेश कर सकते हैं और ना पार्टी को हाजिर कर सकते हैं. यह बिक्री सिर्फ एक साजिशी ड्रामा था जो आप ने मेरे क्लाइंट को फंसाने के लिए रचा था. हकीकत तो यह है, काजी साहब, आप इस मकान को बेचने का हक ही नहीं रखते. फिर कहां की पार्टी और कहां का सेल एग्रीमेंट?’’

काजी का चेहरा पीला पड़ गया. वह हकलाया, ‘‘यह…यह… आप क्या कह रहे हैं?’’

‘‘एक लाख दे कर 2 कमरे मिलने पर वह बेहद खुश था, पर काजी ने अपनी मक्कारी और साजिश से उसे कटघरे में खड़ा कर दिया. उस का कसूर बस इतना है कि उस ने काजी की बातों का भरोसा किया. काजी से उसे जज्बात की मार मारी थी, जिस की वजह से वह बिना किसी लिखापढ़ी के इतना बड़ा सौदा कर बैठा.’’

विपक्ष के वकील ने जमानत का विरोध करते हुए कहा, ‘‘मुलजिम पढ़ालिखा समझदार आदमी है. बैंक में काम करता है. वह इतना बेवकूफ हरगिज नहीं हो सकता कि आंख बंद कर के किसी के बहकावे में एक लाख इनवेस्ट कर दे. यह बेहद चालाक आदमी है. अपनी मजबूरी का रोना रो कर काजी का किराएदार बना. फिर बीमार बीवी की खिदमत कर के उन के दिल में जगह बना ली. काफी दिनतक वह उन के घर में रहा, जब उस का मकसद पूरा हो गया तो उस ने काजी वहीद साहब से घर छोड़ कर जाने की बात की और साथ ही एक लाख रुपए की डिमांड भी की.

‘‘जब काजी ने कहा कि घर पर उस का एक पैसा भी खर्च नहीं हुआ है, तब वह गुस्से से पागल हो गया. दोनों के बीच काफी झगड़ा हुआ. तभी मुलजिम ने उन्हें खतरनाक अंजाम भुगतने की धमकी दी और 15 अक्तूबर की शाम को धमकी पूरी कर दिखाई.

‘‘मौका पा कर वह ऐसे वक्त पर मकतूला के घर में घुसा, जब उस का शौहर नहीं था. उस ने अलमारी से एक लाख रुपए चोरी किए. मकतूला के विरोध करने पर उस ने उसे गला घोंट कर मार दिया. जब वह घर से फरार हो रहा था, तभी काजी वहां पहुंच गया.

‘‘उस ने उसे जाते देख लिया, काजी फौरन घर में घुसा. हकीकत किसी बम की तरह उस के सिर पर फटी. उस की बीवी बेडरूम में मुर्दा पड़ी थी. उसे गला घोंट कर मार दिया गया था और खुली अलमारी से एक लाख रुपए गायब थे.’’

मैं ने अपने मुवक्किल की जमानत पर जोर देते हुए कहा, ‘‘योर औनर, विपक्ष के वकील सच्चाई को तोड़मरोड़ कर सामने रख रहे हैं. ना तो मेरे मुवक्किल ने उस की बीवी का कत्ल किया और ना ही उस की अलमारी से एक लाख रुपए चुराए.

उलझी हुई पहेली, जो सुलझ गई – भाग 1

पेड़ो के नीचे एक लड़की का निर्वस्त्र शव बरामद हुआ था, जो खरोंचों से भरा था. आशंका थी कि बलात्कार के बाद उस की हत्या की होगी. मृतका के पास मिले कागजातों से पता चला कि वह शव असिस्टेंट बैंक मैनेजर नव्या का था. उस की कार भी वहां से कुछ दूर खड़ी मिली. पुलिस वाले मुस्तैदी से अपने काम में जुटे थे. तभी जीप रुकी और एसआई राघव उतरे.

‘‘लाश को सब से पहले किस ने देखा था?’’ राघव ने कांस्टेबल से पूछा.

‘‘इस आदिवासी लड़की ने सर.’’ कांस्टेबल एक दुबलीपतली लड़की की ओर इशारा कर के बोला, ‘‘ये खाना बनाने के लिए यहां से सूखी लकडि़यां ले जाती है.’’

‘‘हुम्म.’’ राघव ने उस लड़की पर नजर डालते हुए अगला सवाल किया, ‘‘और मृतका के घर वाले…’’

‘‘ये हैं सर.’’ कांस्टेबल की उंगली घटनास्थल से थोड़ा हट के खड़े कुछ लोगों की ओर घूम गई. राघव उन के पास गए. एक से पूछा, ‘‘आप का मरने वाली से रिश्ता?’’

‘‘पति हूं उस का.’’ उस ने शून्य में देखते हुए जवाब दिया.

‘‘नाम?’’

‘‘मुकुल.’’

‘‘और ये लोग…’’ राघव ने उस के साथ खड़े लोगों के बारे में जानना चाहा.

‘‘यह मेरा छोटा भाई प्रताप और ये मेरे पापा.’’ मुकुल ने वहां खडे़ नौजवान और बुजुर्ग से राघव का परिचय कराया. राघव गौर से मुकुल का चेहरा देख रहे थे. उस के चेहरे पर अपनी बीवी की मौत का कोई दुख दिखाई नहीं दे रहा था. उसी समय कुछ पुरुष और महिलाएं रोते हुए वहां पहुंचे. पुलिस उन को घेरे के अंदर जाने से रोकने लगी.

‘‘साहब, मैं इस का पिता हूं.’’ उन में से एक ने किसी तरह कहा.

‘‘हम यहां कुछ जरूरी काम कर रहे हैं.’’ एक कांस्टेबल ने उसे समझाने की गरज से कहा, ‘‘थोड़ी देर में लाश आप को हैंडओवर कर देंगे.’’

एक औरत की स्थिति देख राघव ने अंदाजा लगा लिया कि वह मृतका की मां होगी. लाश का पंचनामा कर उन्होंने उसे पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. भीड़ छंटने लगी थी. शाम को राघव मुकुल के घर पूछताछ के लिए पहुंचे, वो घर पर अकेला मिला. उन्होंने उस से सवाल किया, ‘‘आप को अपनी पत्नी की मौत के बारे में किस से पता चला और आप उस समय कहां थे?’’

‘‘मुझे किसी सिपाही ने फोन किया था लाश मिलने के बारे में…’’ वह सिर झुकाएझुकाए बोला, ‘‘मैं यहीं पर था.’’

‘‘आप ने उसे आखिरी बार कब देखा?’’ उन्होंने अगला प्रश्न किया.

‘‘जब कल सुबह वो औफिस के लिए निकली थी.’’

‘‘उस के बाद बात नहीं हुई?’’

‘‘नहीं, उस को कौन सा मुझ से बात करना पसंद था.’’ मुकुल ने लंबी सांस लेते हुए कहा, ‘‘वो औफिसर हो गई थी, अपने बड़ेबड़े ओहदे वाले परिचितों से उस का ज्यादा संपर्क रहता था.’’

राघव समझ गए कि अहं के टकराव ने रिश्तों को तोड़ दिया है. अपनी बात कहतेकहते मुकुल रो पड़ा. उस ने अपनी जो पारिवारिक कहानी बताई, उस के अनुसार वह किराना स्टोर चलाता था. ज्यादा पढ़ालिखा न होने के कारण खुद तो कभी नौकरी की तैयारी नहीं कर सका, लेकिन अपनी जिंदगी में ग्र्रैजुएट नव्या के आने के बाद उस को परीक्षाएं देने के लिए प्रेरित जरूर किया.

पति की कोशिश रंग लाई पर नव्या ने अपना अलग रंग दिखाया

नव्या भी पढ़ना चाहती थी लेकिन घर की खराब आर्थिक स्थिति ने उस के सपने चुरा लिए थे. वह खुशीखुशी मुकुल की बात मान गई. मुकुल ने उस की पढ़ाई का सारा खर्च उठाने से ले कर हर तरह का सहयोग किया, जिस का सुखद परिणाम भी सामने आया. नव्या ने कुछ ही प्रयासों में बैंक पीओ का इम्तिहान पास कर लिया.

मुकुल की खुशी का ठिकाना नहीं था लेकिन उस के अरमानों को किसी की नजर लग गई. नव्या का अफेयर अपने एक युवा अधिकारी विमल से चलने लगा. पति अब उसे गंवार और बेकार लगने लगा था. घर में झगड़े शुरू हो गए लेकिन मुकुल उसे तलाक देने में अपनी हार देख रहा था. इसलिए वह उसे तरहतरह से समझाने में लगा रहा. नव्या के घर वाले भी पशोपेश में पड़ गए थे. एक तरफ मुकुल जैसा मध्यवर्गीय लेकिन सुलझा हुआ दामाद, दूसरी ओर विमल की शानोशौकत.

राघव वहां से चल पड़े. अगले दिन पोस्टमार्टम के बाद नव्या का शव उस के मायके वालों को सौंप दिया गया. मुकेश ने उस पर कोई दावा नहीं जताया था और न ही दाहसंस्कार में उस के परिवार से कोई शामिल हुआ. नव्या के मांबाप लगातार मुकुल को खूनी बता रहे थे.

लेकिन राघव इस केस में आगे कुछ करने से पहले पोस्टमार्टम रिपोर्ट देख लेना चाहते थे. उन्होंने केस से जुड़े सभी लोगों को शहर छोड़ कर कहीं नहीं जाने को कहा और पोस्टमार्टम रिपोर्ट का इंतजार करने लगे.

जल्द ही वह भी आ गई. नव्या के साथ मौत से पहले सामूहिक बलात्कार की पुष्टि हुई. लेकिन आश्चर्य की बात ये थी कि मौत का कारण ज्यादा नींद की गोलियां लेना बताया गया था.

राघव का दिमाग चकराने लगा कि भला ये कौन से नए अपराधी आ गए जो जंगल में में जा कर बलात्कार करें और फिर नींद की गोली दे कर हत्या. मारना ही था तो गला दबा सकते थे, चाकू का इस्तेमाल कर सकते थे.

वैसे भी लाश की हालत से स्पष्ट था कि दोषियों ने हैवानियत की सभी सीमाएं पार कर डाली थीं और अगर नव्या ने बलात्कार के कारण दुखी हो कर आत्महत्या की थी तो उस सुनसान इलाके में उस के पास नींद की गोलियां आईं कैसे? उस का तो बैग तक उस की कार में ही रह गया था. इस के अलावा किसी दवा का कोई खाली रैपर आदि भी वहां से नहीं मिला था.

मेरी नहीं तो किसी की नहीं – भाग 1

रूपा परेशान थी. सड़क किनारे खड़ी वह कभी सड़क पर आतीजाती गाडि़यों को देखती तो कभी कलाई घड़ी की ओर. जैसेजैसे घड़ी की सुइयां आगे को सरक रही थीं, उस की बेचैनी भी बढ़ती जा रही थी. परेशान लहजे में वह स्वयं ही बड़बड़ाई, ‘लगता है, आज फिर लेट हो जाऊंगी कालेज के लिए.’

उस के चेहरे पर झुंझलाहट के भाव नुमाया हो रहे थे. एक बार फिर उस ने उम्मीद भरी निगाहों से दाईं ओर देखा. कोई चार पहिया मार्शल गाड़ी आ रही थी. रूपा ने इशारा कर के गाड़ी रुकवा ली. ड्राइवर ने उस से पूछा, ‘‘कहां जाना है?’’

‘‘मैं कालेज जाने को लेट हो रही हूं. कोई साधन नहीं मिल रहा. अगर आप मुझे लिफ्ट दे देंगे तो मेहरबानी होगी.’’ रूपा बोली.

‘‘हां हां, मैं कालेज की ओर ही जा रहा हूं. आओ, मैं तुम्हें छोड़ दूंगा.’’ कहते हुए ड्राइवर ने गेट खोल दिया. रूपा तनिक झिझकी फिर ड्राइवर की बगल वाली सीट पर जा बैठी.

बेलसोंडा से उस का कालेज करीब 8 किलेमीटर दूर महासमुंद में था. वह करीब 10 मिनट में अपने कालेज पहुंच गई.

कालेज के सामने पहुंचते ही ड्राइवर ने गाड़ी रोक दी. उतर कर रूपा थैंक यू कह कर तेज कदमों से चली ही थी कि ड्राइवर ने उसे आवाज दी, ‘‘सुनो…’’

सुनते ही रूपा ने ड्राइवर की तरफ पलट कर देखा तो ड्राइवर ने रुमाल उठा कर रूपा की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘ये शायद आप का है.’’

गुलाबी रंग के उस रुमाल के एक किनारे पर सफेद रंग के थागे से कढ़ाई की गई थी. उस पर रूपा लिखा हुआ था.

‘‘हां, मेरा ही है.’’ रूपा उस से रुमाल लेते हुए बोली.

‘‘आप का नाम रूपा है?’’ ड्राइवर ने पूछा. रूपा ने हौले से सिर हिला दिया और मुसकरा कर कालेज की तरफ चली गई.

ड्राइवर तब तक रूपा को देखता रहा जब तक वह दिखाई देती रही. रूपा के ओझल होते होने के बाद ही वह वहां से गया. युवक ड्राइवर का नाम चंद्रशेखर था और वह नदी मोड़ घोड़ारी का रहने वाला था. रूपा से वह बहुत प्रभावित हुआ.

इस रूट पर उस का अकसर आनाजाना होता था. इस के बाद वह रूपा के आनेजाने के समय उस रोड पर चक्कर लगाने लगा.

जब भी रूपा उसे मिलती, वह ऐसा जाहिर करता मानो अचानक उस से मुलाकात हो गई हो. वह रूपा को कार से उस के कालेज तक और कभी कालेज से उस के घर के पास तक छोड़ देता.

रूपा इस बात को समझने लगी थी कि इत्तफाक बारबार नहीं होता.

महीने में वह कई बार महासमुंद से बेलसोंडा और बेलसोंडा से महासमुंद आईगई होगी.

सफर भले ही 10 मिनट का होता था लेकिन दोनों को सुकून चौबीस घंटे के लिए मिल जाया करता था. इस बीच दोनों एकदूसरे के बारे  में काफी कुछ जान चुके थे. इस छोटी सी यात्रा के दरमियान दोनों एकदूसरे से खुल गए थे. धीरेधीरे दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ती गईं और कभीकभी वे गाड़ी से लंबी दूरी के लिए घूमने निकलने लगे.

एक दिन चंद्रशेखर लौंग ड्राइव पर निकला तो मार्शल गाड़ी के मालिक ने उसे देख लिया. मालिक ने उस समय तो कुछ नहीं कहा लेकिन शाम को उस ने चंद्रशेखर से पूछा, ‘‘तुम गाड़ी में किस लड़की को बिठा कर घूमते हो?’’

‘‘साहब, किसी को ले कर नहीं घूमता. बस एकदो बार बेलसोंडा की रहने वाली एक लड़की को उस के कालेज तक छोड़ा था. इस से ज्यादा कुछ नहीं.’’

चंद्रशेखर ने आगे कहा, ‘‘साहब,मैं पूरी ईमानदारी के साथ आप की सेवा करता रहा हूं. आप के हर आदेश पर मैं ने तुरंत अमल किया है और आप इतनी सी बात को ले कर मुझ पर नाराज हो रहे हैं.’’

मार्शल के मालिक ने साफसाफ कह दिया, ‘‘तुम्हारे लिए यह इतनी सी बात होगी लेकिन कल को कोई ऊंचनीच हो गई तो जवाबदेही तो मेरी होगी. अगर तुम्हें नौकरी करनी है तो ठीक से करो. सैरसपाटे के इतने ही शौकीन हो तो खुद की गाड़ी खरीद लो. फिर जहां चाहो, जिसे चाहो बिठा कर घूमते रहना.’’ मालिक ने दोटूक कह दिया.

चंद्रशेखर को मालिक की बात चुभ गई. उस ने बिना किसी पूर्वसूचना के नौकरी छोड़ दी. दूसरेतीसरे दिन वह रूपा से एक निश्चित जगह पर मिलने पहुंचा. वह अपनी बाइक से गया था. बाइक की सीट पर बैठा वह रूपा का इंतजार कर रहा था.

कुछ देर बाद रूपा वहां पहुंची. रूपा के बोलने से पहले ही चंद्रशेखर ने कहा, ‘‘बाइक पर बैठो.’’

रूपा बाइक पर बैठ गई तो वह बाइक ले कर चल दिया. उस वक्त उस की बाइक का रुख महासमुंद की ओर न हो कर रायपुर जाने वाली सड़क की ओर था. रूपा को यह पता नहीं था कि उस के प्रेमी ने नौकरी छोड़ दी है.

उल्टी पड़ी चाल : कैसे सामने आई काजी वहीद की हकीकत – भाग 1

उस रोज औफिस में काफी भीड़ नजर आ रही थी. मेरा पहला क्लाइंट छोटे कद का गोलमटोल सा आदमी था. उस के चेहरे पर हलकी सी दाढ़ी थी. अंदर आते ही उस ने झुक कर मुझे सलाम किया. कुरसी पर बैठने के बाद वह बोला, ‘‘बेग साहब, मेरा नाम अली मुराद है. मैं काफी अरसे से आप को तलाश कर रहा था. मुझे आप के दोस्त हमीद बिजली वालों ने भेजा है. बहुत तारीफ कर रहे थे आप की.’’

‘‘अच्छा, आप को हमीद साहब ने भेजा है. वह मेरे अच्छे दोस्त हैं. बताइए आप का क्या मामला है?’’

अली मुराद ने जवाब दिया, ‘‘मसला मेरा नहीं, मेरे दामाद फुरकान का है. वह बहुत अच्छा इंसान है. उस की अच्छाई ही उस के लिए मुसीबत बन गई.’’

‘‘कैसी मुसीबत?’’ मैं ने पूछा.

‘‘फुरकान पर कत्ल का इलजाम है. उसे 2 रोज पहले पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है.’’

‘‘किस के कत्ल के इलजाम में गिरफ्तार किया है?’’

‘‘फुरकान के मकान मालिक की बीवी रशीदा के कत्ल के इलजाम में.’’

‘‘आप पूरी बात बताइए, अली मुराद.’’

‘‘नहीं जनाब, दरवाजा आड़ में है. किसी की नजर नहीं पड़ सकती थी. मैं वहां से वहीद काजी के औफिस गया, लेकिन वहां भी ताला पड़ा था. मैं ने सारा हाल अपने ससुर को सुना दिया. सुन कर वह भी परेशान हुए. हम ने तय किया कि दूसरे दिन थाने जा कर काजी के फ्रौड की रिपोर्ट दर्ज करा देंगे पर बदकिस्मती से 15 अक्तूबर की रात 11 बजे पुलिस ने मुझे रशीदा के कत्ल और एक लाख रुपए की चोरी के इलजाम में गिरफ्तार कर लिया.’’

इसी के साथ अदालत खत्म हो गई और पेशी की अगली तारीख मिल गई.

अगले 2-3 महीनों में इस्तेगासा की तरफ से 5 गवाहों को अदालत में पेश किया गया, जो वहीद काजी के इलाके के थे. इन गवाहों ने काजी की मर्जी के मुताबिक बयान दिए जो, फुरकान को मुजरिम ठहराते थे. ऐसी कोई खास बात नहीं हुई, जो बताई जाए. इस बीच अली मुराद मुझ से बराबर मिलता रहा और मेरी मांगी हुई जानकारी जुटाता रहा. उस का बड़ा दामाद हैदराबाद से मिलने आया और फुरकान के बाइज्जत बरी होने की तरकीबे बताता रहा.

मंजर इसी अदालत का था. आज की पेशी में काजी वहीद गवाह की हैसियत से कटघरे में खड़ा था. उस ने वही बयान दिया जो पहले दिया था. उस का खुलासा उस के वकील के सवालों से हो जाएगा.

वकील ने पहला सवाल पूछा, ‘‘काजी साहब, आप की मुलजिम के बारे में क्या राय है?’’

‘‘खुदगर्ज, नालायक, अहसान फरामोश इंसान है. मैं ने उस के साथ इतनी नेकी की. फिर भी उस ने मेरी बीवी का कत्ल कर दिया.’’ इस्तेगासा के वकील ने बड़ी चालाकी से जिरह को एक खास रास्ते पे डालते हुए पूछा, ‘‘मुलजिम का दावा है कि उस ने एक लाख रुपए आप की छत पर 2 कमरे बनाने में खर्च किए जो उस ने बैंक से लोन लिए थे. क्या यह सच है?’’

‘‘यह सही है कि उस ने बैंक से एक लाख रुपए लोन लिया था, पर मेरी छत पर कमरे बनाने में एक पैसा भी खर्च नहीं किया. घर की ऊपरी मंजिल मैं ने अपनी कमाई से बनवाई. यह शख्स झूठ बोल रहा है.’’

‘‘क्या आप मुल्जिम का झूठ साबित कर सकते हैं?’’

‘‘हां, मैं ने जो रेत, सीमेंट, सरिया की रसीदें अदालत में पेश की हैं, वह मेरे नाम पर है और मार्च महीने की हैं. जबकि मुल्जिम को लोन 25 मई को मिला था. वह कैसे यह सामान खरीद सकता था? आप बेकार की बातें छोड़ कर मेरी बीवी के कातिल को उस के अंजाम तक पहुंचाएं.’’

वकील इस्तेगासा ने अपनी फाइल में से कुछ कागजात निकाल कर जज की तरफ बढ़ाते हुए कहा, ‘‘जनाबे आली काजी वहीद ने ऊपरी मंजिल बनाने के लिए जो भी सामान खरीदा था, यह उस की रसीदें हैं जो उसी के नाम पर मार्च में काटी गई हैं. जबकि इस में मुल्जिम का बैंक रिकार्ड है, जिस में उसे एक लाख का लोन 25 मई को दिया गया. इस से साबित होता है कि उस ने घर बनाने में एक भी पैसा खर्च नहीं किया. उस का दावा झूठा है. यह सब एक साजिश है.’’

जज ने कागज ले कर गौर से देखना शुरू कर दिया. मैं सारी बातें ठंडे दिमाग से सुन रहा था. मेरे पास जवाबी हमला करने के लिए काफी मसाला था. जज ने कहा, ‘‘वकील साहब, जिरह जारी रखें.’’

वकील ने काजी से पूछा, ‘‘काजी साहब, मुल्जिम का दावा है कि कत्ल के एक दिन पहले 14 अक्तूबर को वह आप से आप के औफिस में मिला था. आप ने उस से वादा किया था कि आप उसे एक लाख रुपया 15 अक्तूबर की शाम को अदा कर देंगे. यह क्या किस्सा है?’’

परी हूं मैं : तरुण ने दिखाई मुझे मेरी औकात – भाग 4

विराज सब समझ कर भी पूर्ण समर्पण भाव से तरुण और अपनी शादी को संभाल रही थी. मेरे सीने पर सांप लोट गया जब मालूम पड़ा कि विराज उम्मीद से है, और सब से चुभने वाली बात यह कि यह खबर मुझे राजीव ने दी.

‘‘आप को कैसे मालूम?’’ मैं भड़क गई.

‘‘तरुण ने बताया.’’

‘‘मुझे नहीं बता सकता था? मैं इतनी दुश्मन हो गई?’’

विराज, राजीव से सगे जेठ का रिश्ता निभाती है. राजीव की मौजूदगी में कभी अपने सिर से पल्लू नीचे नहीं गिरने देती है, जोर से बोलना हंसना तो दूर, चलती ही इतने कायदे से है…धीमेधीमे, मुझे नहीं लगता कि राजीव से इस बारे में उस की कभी कोई बात भी हुई होगी.

लेकिन आज राजीव ने जिस ढंग से विराज के बारे में बात की , स्पष्टतया उन के अंदाज में विराज के लिए स्नेह के साथसाथ सम्मान भी था.

चर्चा की केंद्रबिंदु अब विराज थी. तरुण ने विराज को डिलीवरी के लिए घर भेजने के बजाय अपनी मां एवं नानी को ही बुला लिया था. वे लोग विराज को हथेलियों पर रख रही थीं. मेरी हालत सचमुच विचित्र हो गई थी. राजीव अब भी किताबों में ही आंखें गड़ाए रहते हैं.

और विराज ने बेटे को जन्म दिया. तरुण पिता बन गया. विराज मां बन गई पर मैं बड़ी मां नहीं बन पाई. तरुण की मां ने बच्चे को मेरी गोद में देते हुए एकएक शब्द पर जोर दिया था, ‘लल्ला, ये आ गईं तुम्हारी ताईजी, आशीष देने.’

बच्चे के नामकरण की रस्म में भी मुझे जाना पड़ा. तरुण की बहनें, बूआओं सहित काफी मेहमानों को निमंत्रित किया गया. कार्यक्रम काफी बड़े पैमाने पर आयोजित किया गया था. इस पीढ़ी का पहला बेटा जो पैदा हुआ है. राजीव अपने पुराने नातेरिश्ते से बंधे फंक्शन में बराबरी से दिलचस्पी ले रहे थे. तरुण विराज और बच्चे के साथ बैठ चुका तो औरतों में नाम रखने की होड़ मच गई. बहनें अपने चुने नाम रखवाने पर अड़ी थीं तो बूआएं अपने नामों पर.

बड़ा खुशनुमा माहौल था. तभी मेरी निगाहें विराज से मिलीं. उन आंखों में जीत की ताब थी. सह न सकी मैं. बोल पड़ी, ‘‘नाम रखने का पहला हक उसी का होता है जिस का बच्चा हो. देखो, लल्ला की शक्ल हूबहू राजीव से मिल रही है. वे ही रखेंगे नाम.’’

सन्नाटा छा गया. औरतों की उंगलियां होंठों पर आ गईं. विराज की प्रतिक्रिया जान न सकी मैं. वह तो सलमासितारे जड़ी सिंदूरी साड़ी का लंबा घूंघट लिए गोद में शिशु संभाले सिर झुकाए बैठी थी.

मैं ने चारोें ओर दृष्टि दौड़ाई, शायद राजीव यूनिवर्सिटी के लिए निकल चुके थे. मेरा वार खाली गया. तरुण ने तुरंत बड़ी सादगी से मेरी बात को नकार दिया, ‘‘भाभी, आप इस फैक्ट से वाकिफ नहीं हैं शायद. बच्चे की शक्ल तय करने में मां के विचार, सोच का 90 प्रतिशत हाथ होता है और मैं जानता हूं कि विराज जब से शादी हो कर आई, सिर्फ आप के ही सान्निध्य में रही है, 24 घंटे आप ही तो रहीं उस के दिलोदिमाग में.

इस लिहाज से बच्चे की शक्ल तो आप से मिलनी चाहिए थी. परिवार के अलावा किसी और पर या राजीव सर पर शक्लसूरत जाने का तो सवाल ही नहीं उठता. यह तो आप भी जानती हैं कि विराज ने आज तक किसी दूसरे की ओर देखा तक नहीं है. वह ठहरी एक सीधीसादी घरेलू औरत.’’

औरत…लगा तरुण ने मेरे पंख ही काट दिए और मैं धड़ाम से जमीन पर गिर गई हूं. मुझे बातबात पर परी का दरजा देने वाले ने मुझे अपनी औकात दिखा दी. मुझे अपने कंधों में पहली बार भयंकर दर्द महसूस होने लगा, जिन्हें तरुण ने सीढ़ी बनाया था, उन कंधों पर आज न तरुण की बांहें थीं और न ही पंख.

पड़ोसन का चसका : रिश्तो का अपमान

नूप की उम्र 17 साल थी. वह पास के ही एक स्कूल में 12वीं जमात में पढ़ता था. एक दिन जब वह स्कूल से घर आया तो देखा कि उस की मम्मी के साथ एक खूबसूरत औरत बैठी थी. वह औरत जवान थी और काफी पढ़ीलिखी भी लग रही थी.

मम्मी ने अनूप को बताया कि वह औरत साथ वाले घर में अपने पति के साथ रहने आई है. बातों ही बातों में जब पता चला कि माया नाम की वह खूबसूरत पड़ोसन इंगलिश में एमए है तो अनूप की मम्मी ने बिना देर किए माया के यहां अनूप का ट्यूशन लगवा दिया.

अनूप तो अपनी माया भाभी के पास पढ़ने के खयाल से ही झूमने लगा था. अगले हफ्ते से अनूप का ट्यूशन शुरू हुआ तो वह पढ़ने से ज्यादा माया भाभी पर नजरें टिका कर रखता था.

हैरत की बात तो यह थी कि माया भाभी उसे कभी इस बात के लिए टोकती नहीं थीं. वे कभी कौपी पकड़ाने के बहाने उस के हाथों को छूती थीं तो कभी उसे अपने करीब बिठाती थीं.

शुक्रवार का दिन था. अनूप रोज की तरह माया भाभी के पास पढ़ने गया, पर भाभी तो कुछ बीमार दिख रही थीं. उन्होंने अनूप को बैडरूम में आ कर पढ़ने के लिए कहा.

जब अनूप बैड पर बैठा पढ़ रहा था तो उस का ध्यान अपनी पढ़ाई पर कम और माया भाभी पर ज्यादा था.

माया भाभी अचानक कराहीं तो अनूप को लगा कि उन की तबीयत बिगड़ रही है. वह उन्हें पानी पिलाने लगा तो उन्होंने गिलास उस के हाथ से ले कर पानी अपनी गरदन पर उड़ेल लिया. उन्होंने अनूप को पानी पोंछने के लिए कहा तो अनूप उन की बात मान कर वैसा ही करने लगा.

पर माया भाभी की मंशा कुछ और ही थी. उन्होंने अनूप को अपनी तरफ खींचा और उसे चूम लिया.

पहले अनूप थोड़ा सकपकाया, मगर खुद को दूर करने के बजाय उस ने माया भाभी के वश में रहना ज्यादा अच्छा समझा. इस के बाद तो वे दोनों उसी बैड पर प्यार का ट्यूशन पढ़ने लगे.

माया भाभी और अनूप के इन नाजायज संबंधों का सिलसिला तकरीबन 2-3 हफ्तों तक चला. न किसी को शक हुआ, न उन्होंने किसी की परवाह ही की.

लेकिन एक दिन जब माया भाभी के पति दिनेश औफिस से बिना बताए जल्दी घर लौटे और उन्होंने डोरबैल बजाने से बेहतर अपने पास रखी चाबी से दरवाजा खोला तो चौंक गए.

अनूप और अपनी पत्नी माया को बिस्तर पर देख दिनेश हैरान रह गए. उन्होंने दोनों को खूब गालियां दीं.

अनूप किसी तरह अपने कपड़े उठा कर वहां से भागा. वह घर पहुंचा और अपने कमरे का दरवाजा बंद कर के वहीं बैठा रहा.

कुछ देर बाद जब मम्मीपापा आए तो उन्होंने जबरदस्ती अनूप को कमरे से निकाला और खरीखोटी सुनाई. पापा ने तो उसे कई चांटे भी जड़ दिए.

जब माया और अनूप के नाजायज संबंधों की जानकारी दूसरे लोगों को लगी तो उन का मजाक बनाया जाने लगा. अनूप को खूंटे से बांधने की हिदायतें दी जाने लगीं. माया का तो घर से बाहर निकलना ही बंद हो गया था.

स्कूल में भी अनूप को कोई छिछोरा कहता तो कोई बेशर्म. इन तानों से अनूप की जिंदगी नरक बन गई थी.

एक दिन अनूप माया भाभी के घर जा पहुंचा. माया ने दरवाजा खोला तो अनूप ने उन के मुंह पर थप्पड़ जड़ दिया और जेब से ब्लेड निकाल कर उन की गरदन पर चलाने की कोशिश की.

जब माया चिल्लाईं तो आसपड़ोस के कुछ लोगों ने अनूप को रोका और उस की मां को वहां बुलाया.

माया तो बच गईं, पर अनूप को उन की जान लेने की कोशिश के जुर्म में बाल सुधारगृह भेज दिया गया.

इसी तरह अगस्त, 2015 की बात है. 23 साला प्रवीण को पुलिस ने 3 लोगों के खून के इलजाम में उस के घर से गिरफ्तार किया था.

प्रवीण ने अपनी 37 साला पड़ोसन रीना और उस के 2 बच्चों की हत्या की थी. हत्या की वजह भी यही थी कि रीना इन्हीं बातों से तिलमिलाए प्रवीण को पिछले एक साल से जिस्मानी संबंध बनाने के लिए मजबूर कर रही थी. पर अब प्रवीण इस रिश्ते को खत्म करना चाहता था. रीना उसे ऐसा करने नहीं दे रही थी. इसी के चलते प्रवीण ने रीना और उस के 12 साल के बेटे आदिल और 5 साल की बेटी साहित्य की हत्या कर दी.

इस तरह के नाजायज संबंधों में अकसर लड़के की उम्र औरत से छोटी होती है, पर आने वाले खतरों के शिकार वे दोनों ही किसी न किसी तरह से होते हैं. किसी औरत की उम्र ज्यादा होने के चलते उस के लिए ऐसे संबंध केवल मनोरंजन का जरीया मात्र हो सकते हैं, इसलिए जवान होते लड़कों को इन के आने वाले खतरों के बारे में सचेत रहना बहुत जरूरी है.

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मामला कुछ और था

सुबह का वक्त था. शहर के किनारे बसे गांव की बड़ी सड़क पर भीड़ जमा थी. कुछ अखबारों के पत्रकार भी खड़े थे और थोड़ी ही देर में पुलिस भी वहां आ पहुंची. लोकल अखबार के एक पत्रकार ने अपने एक दोस्त को भी फोन कर के वहीं बुला लिया, जो लोकल न्यूज चैनल में पत्रकार था.

सड़क पर बारिश का पानी भरा पड़ा था. एक गड्ढे के पास एक जोड़ी चप्पलें पड़ी हुई थीं, जो किसी औरत की थीं.

पत्रकारों ने कैमरे से उन चप्पलों की कई तसवीरें पहले ही खींच ली थीं. पुलिस भी उन चप्पलों को देख कर तरहतरह की कानाफूसी कर रही थी.

कुछ ही देर में सारे पत्रकार एक नौजवान लड़के के पास जमा हो गए, जो लोटे में पानी लिए खड़ा था. शायद वह शौच के लिए जा रहा होगा, लेकिन तब तक पत्रकारों की टोली ने उसे रोक लिया. थोड़ी ही देर में पता चला कि उस नौजवान लड़के की वजह से ही यहां भीड़ जमा थी.

दरअसल, कुछ देर पहले जब वह लड़का शौच के लिए जा रहा था, तभी उस की नजर इन एक जोड़ी चप्पलों पर पड़ी थी, जो किसी औरत की ही थीं. उसे किसी अनहोनी का डर हुआ.

उस नौजवान लड़के ने झट से अपना कैमरे वाला मोबाइल फोन निकाला और उन चप्पलों की तसवीर खींच कर सोशल साइट पर डाल दी. नीचे लिख दिया, ‘आज फिर एक औरत दरिंदों की शिकार हो गई.’

चप्पलें भी इस तरह पड़ी हुई थीं, मानो सचमुच में वे किसी औरत के भागने के दौरान ही उतरी हों. जब लोगों ने उन चप्पलों वाली तसवीर को इंटरनैट पर नीचे लिखी हुई लाइन समेत देखा, तो हल्ला मच गया.

अखबार के एक पत्रकार की नजर भी इस तसवीर पर पड़ गई. वह तुरंत इस जगह आ पहुंचा. उस के पहुंचते ही दूसरे कई पत्रकार और पुलिस भी पहुंच गई. पत्रकारों और पुलिस के पहुंचते ही गांव के लोगों की भीड़ भी जमा हो गई.

गांव की कुछ औरतें, जो भीड़ में खड़ी थीं, अलगअलग तरह की बातें कर रही थीं. उन में से कुछ का कहना था कि उन्होंने रात को किसी जनाना चीख को अपने कानों से सुना था. इतना कहना था कि भीड़ में यह बात आग की तरह फैल गई.

पत्रकारों के कान में जब यह बात पड़ी, तो उन्होंने उन औरतों की तरफ अपना ध्यान लगा दिया. सब के सब औरतों से यही पूछते थे कि उन्होंने कितने बजे चीख सुनी थी? कितनी औरतों की चीख थी या सिर्फ एक औरत की चीख थी?

औरतें भरी भीड़ में अपना घूंघट भी ठीक से नहीं उठा पा रही थीं, तो बोलतीं क्या?

अखबारों के पत्रकार तो कौपी में खबर लिख रहे थे, तसवीरे खींच रहे थे, लेकिन लोकल टीवी चैनल के पत्रकार का कैमरा और माइक अभी तक इस जगह पर पहुंचा नहीं था. वैसे, उस ने फोन कर दिया था, तो थोड़ी ही देर में उस का कैमरामैन उस के पास पहुंचने ही वाला था.

पुलिस के आला अफसरों को भी इस घटना की खबर हो गई थी. वे वहां मौजूद पुलिस वालों से पलपल की जानकारी ले रहे थे. वह कौन औरत थी, जिस के साथ अनहोनी हुई थी, यह अभी तक पता नहीं चल सका था, जबकि पुलिस इस बात का पता लगाने की कोशिश कर रही थी.

पुलिस ने अब उस नौजवान लड़के से पूछताछ शुरू कर दी, जिस ने सब से पहले इन चप्पलों को पड़े हुए देखा था. नौजवान जितना खुल कर पत्रकारों से बोल रहा था, पुलिस से उतना ही दब कर बोल रहा था.

उस लड़के ने बताना शुरू किया, ‘‘साहब, मैं सुबह शौच के लिए जा रहा था कि तभी मेरी नजर इन बिखरी पड़ी चप्पलों पर पड़ गई.

‘‘मैं ने टैलीविजन पर अभी कुछ दिन पहले ही खबर देखी थी कि एक जगह इसी तरह औरतों के कपड़े बिखरे पड़े थे. बाद में पता चला कि वहां औरतों के साथ घिनौनी हरकत हुई थी.

‘‘यही सोच कर मैं ने इन चप्पलों की तसवीर खींच कर सोशल साइट पर डाल दी, फिर बाकी का तो आप जानते ही हैं.’’

उस नौजवान को ज्यादा बातें पता नहीं थीं, उस ने केवल चप्पलों को वहां  देख कर ही अंदाजा लगा लिया था. लेकिन औरतों की मंडली की तरफ से रात की चीख वाली खबर से लोगों की सोच यकीन में बदल गई.

गांव के लोग पत्रकारों से गांव की तारीफ कर कहते थे कि इस गांव में आज से पहले इस तरह की कोई घटना नहीं हुई है, लेकिन आजकल पता नहीं चलता कि कब क्या हो जाए, पर एक बात पक्की है, यह जो भी हुआ है, इस को हमारे गांव के किसी आदमी ने अंजाम नहीं दिया होगा, यह जरूर कोई बाहर का आदमी होगा, जो इतनी घिनौनी हरकत कर गया.

इस बात पर गांव के सभी लोगों का एक मत था. औरतें भी यही कह रही थीं. उन का कहना था कि वे आधी रात को भी सड़कों पर निकली हैं, लेकिन गांव के किसी भी आदमी ने उन को बुरी नजर से नहीं देखा. यहां तक कि रात को गांव के कुत्ते भी औरतों पर नहीं भूंकते. हां, कोई मर्द रात में आए तो कुत्ते उसे घर का रास्ता दिखा देते हैं.

टैलीविजन चैनल के पत्रकार का कैमरा आ चुका था, जिसे उस का कैमरामैन ले कर आया था. पत्रकार और कैमरामैन दोनों ने मिल कर झटपट तैयारी की और कैमरा उन चप्पलों पर फोकस कर दिया.

कैमरा चालू हुआ. पत्रकार ने बोलना शुरू किया. इतने में लोगों का हुजूम टैलीविजन चैनल के पत्रकार के पीछे जा खड़ा हुआ.

लोगों को खुद को टैलीविजन पर दिखने का खासा खौक था. टीवी चैनल का पत्रकार जिस अंदाज में खबर को कह रहा था, उस के कहने के अंदाज से लोगों के सीने में धड़कनों का औसत बढ़ गया था.

कुछ की तो हालत ऐसी थी कि अगर वह दरिंदा इस वक्त उन के सामने आ जाता, तो वे उस का खून पी जाते. औरतें उस का मुंह नोच कर उसे चप्पलों से पीटपीट कर मार डालतीं, बच्चे उस की आंखें फोड़ देते.

लेकिन पुलिस वाले सहमे हुए खड़े थे. उन्हें देख कर लगता था, जैसे वे उस दरिंदे को बचा लेते या उसे छोड़ कर खुद यहां से भाग जाते.

टैलीविजन चैनल के पत्रकार ने उस नौजवान लड़के से कैमरे के सामने बात की, जिस ने सब से पहले इन चप्पलों को देखा था. वह नौजवान कैमरे के सामने 2-4 बातों को बढ़ाचढ़ा कर कह चुका था. पुलिस वाले भी उस की बातों को ध्यान से सुन रहे थे.

नौजवान लड़के ने अभी जो कहा, वह पुलिस के बारबार पूछने पर भी नहीं बताया था. शायद सारी बड़ी खबर वह टैलीविजन पर ही देना चाहता होगा.

नौजवान लड़के से पूछने के बाद पत्रकार ने पुलिस के दारोगा से बात करनी शुरू कर दी. नौजवान शौच के लिए खेतों की तरफ खिसकने लगा, शायद उस से अब रुका नहीं जा रहा था.

लेकिन, उस लड़के ने जातेजाते 2-3 लोगों को खुद के टैलीविजन पर आने की खबर फोन पर दे दी. अगर इस समय उसे शौच के लिए जाने की जल्दी न होती, तो वह यहीं पर खड़ा होता, लेकिन मामला उस के हाथ में नहीं था.

पूरा रास्ता लोगों से भर गया था. जो भी इस खबर को सुनता, सीधा वहीं दौड़ा चला आता. गहमागहमी का माहौल चल रहा था, तभी एक 20 साल की लड़की भीड़ में आ खड़ी हुई. उस की नजर उन चप्पलों पर पड़ी, तो बरबस ही उन की तरफ बढ़ गई. जब तक कोई उस से कुछ कहता, उस ने झट से दोनों चप्पलें उठा लीं.

लड़की के चप्पलें उठाते ही पुलिस वालों ने उसे रोक दिया. दारोगा कड़क आवाज में बोले, ‘‘ऐ लड़की, ये चप्पलें कहां लिए जाती हो…’’

लड़की को देख कर लगता था कि वह नींद से उठ कर आई थी.

वह भर्राई आवाज में बोली, ‘‘ये मेरी चप्पलें हैं. आप को यकीन न हो, तो मेरे घर में जा कर पूछ लो.’’

लड़की के इतना कहते ही पुलिस वाले सतर्क हो गए. पत्रकारों का हुजूम लड़की के बगल में आ कर खड़ा हो गया. भीड़ भी लड़की के इर्दगिर्द जमा हो गई.

दारोगा लड़की की बात ध्यान से सुन रहे थे. उन्होंने फिर से सवाल किया, ‘‘लेकिन, तुम्हारी चप्पलें यहां कैसे आ गईं? क्या तुम्हारे साथ कोई हादसा हुआ था?’’

लड़की ने फिर सहमी सी आवाज में बताया, ‘‘रात में मेरी भैंस खुल गई थी और इसी तरफ भाग आई. उस को पकड़ने के चक्कर में मैं भी उस के पीछे भाग ली, लेकिन भागते समय मेरी चप्पलें यहीं रह गईं.

‘‘भैंस को तो मैं पकड़ कर ले गई, लेकिन चप्पलों को डर के मारे लेने न आई. मैं ने सोचा कि सुबह ले जाऊंगी.’’

पत्रकारों और पुलिस वालों के मुंह हैरत से खुले हुए थे. दारोगा ने लड़की को ध्यान से देखा. उसे देख कर लगता था कि वह सच बोल रही है.

दारोगा ने पक्का करने के लिए फिर से पूछा, ‘‘बेटी, क्या सचमुच यही बात है? तुम कोई बात छिपा तो नहीं रही हो? अगर कोई बात हो, तो तुम बिना डरेसहमे हम से कह सकती हो.’’

लड़की अब खुद हैरत में पड़ गई. वह बोली, ‘‘मैं सच बोल रही हूं.’’

दारोगा ने उस लड़की और उस के पिता का नाम पूछ लिया, जिस से बाद में कोई बात होने पर उस से पूछताछ की जा सके.

यह देख कर पत्रकारों ने अपना सिर पीट लिया. उन में से एक कह रहा था कि अगर यह लड़की अभी न आती, तो न जाने कितना बड़ा बवाल खड़ा हो गया होता. टैलीविजन चैनल के पत्रकार ने भी अपना कैमरा बंद कर दिया. भीड़ से

भी लोगों के सवालजवाब की आवाजें आने लगीं.

पुलिस के पास फिर से बड़े अफसर का फोन आया. इस बार दारोगा ने पूरी बात उन्हें बताई. बड़े अफसर ने सोशल साइट पर उस नौजवान लड़के की डाली हुई तसवीर हटवाने की बात कह कर फोन काट दिया.

दारोगा ने उस नौजवान लड़के को तलाशना शुरू कर दिया, लेकिन वह कहीं नहीं दिखा. दारोगा ने सिपाहियों को उसे ढूंढ़ने का आदेश दे दिया. किसी लड़की ने बताया कि वह नौजवान उस तरफ के खेत में बैठा है. सिपाही भागते हुए उस नौजवान लड़के को पकड़ने के लिए खेत की तरफ जा पहुंचे.

सिपाहियों को अपनी तरफ आता देख वह जल्दी से उठ खड़ा हुआ और कपड़े ठीक कर खेत से बाहर निकल आया. सिपाही उस नौजवान लड़के को ले कर दारोगा के पास आ पहुंचे.

दारोगा ने उस नौजवान लड़के को फटकारते हुए कहा, ‘‘क्यों भाई, तुम ने बिना कुछ जाने ही चप्पलों की तसवीर खींच कर नीचे लिख दिया कि किसी औरत के साथ दरिंदगी हो गई है, जबकि ऐसा कुछ हुआ ही नहीं है.

‘‘आज तो तुम्हें छोड़ दे रहे हैं, पर आगे से ऐसा कुछ हुआ तो तुम्हारी खैर नहीं. अब जल्दी से उन तसवीरों को सोशल साइट से हटा दो.’’

लड़के ने फटाफट मोबाइल फोन निकाला और कुछ ही देर में अपनी डाली हुई तसवीरें हटा लीं.

दारोगा ने उस लड़के को जाने के लिए कह दिया और खुद भी उस जगह से चल दिए.

पत्रकारों की टोली भी वहां से चल दी. हर आदमी के पास किसी न किसी का फोन आ रहा था. लोग पूछ रहे थे कि क्या हुआ और हर आदमी यही कह रहा था कि मामला कुछ और था.

महबूबा के प्यार ने बना दिया बेईमान

अगर पत्नी पसंद न हो तो आज के जमाने में उस से छुटकारा पाना आसान नहीं है. क्योंकि दुनिया इतनी तरक्की कर चुकी है कि आज पत्नी को आसानी से तलाक भी नहीं दिया जा सकता. अगर आप सोच रहे हैं कि हत्या कर के छुटाकारा पाया जा सकता है तो हत्या करना तो आसान है, लेकिन लाश को ठिकाने लगाना आसान नहीं है. इस के बावजूद दुनिया में ऐसे मर्दों की कमी नहीं है, जो पत्नी को मार कर उस की लाश को आसानी से ठिकाने लगा देते हैं.

ऐसे भी लोग हैं जो जरूरत पड़ने पर तलाक दे कर भी पत्नी से छुटकारा पा लेते हैं. लेकिन यह सब वही लोग करते हैं, जो हिम्मत वाले होते हैं. हिम्मत वाला तो पुष्पक भी था, लेकिन उस के लिए समस्या यह थी कि पारिवारिक और भावनात्मक लगाव की वजह से वह पत्नी को तलाक नहीं देना चाहता था. पुष्पक सरकारी बैंक में कैशियर था. उस ने स्वाति के साथ वैवाहिक जीवन के 10 साल गुजारे थे. अगर मालिनी उस की धड़कनों में न समा गई होती तो शायद बाकी का जीवन भी वह स्वाति के ही साथ बिता देता.

उसे स्वाति से कोई शिकायत भी नहीं थी. उस ने उस के साथ दांपत्य के जो 10 साल बिताए थे, उन्हें भुलाना भी उस के लिए आसान नहीं था. लेकिन इधर स्वाति में कई ऐसी खामियां नजर आने लगी थीं, जिन से पुष्पक बेचैन रहने लगा था. जब किसी मर्द को पत्नी में खामियां नजर आने लगती हैं तो वह उस से छुटकारा पाने की तरकीबें सोचने लगता है. इस के बाद उसे दूसरी औरतों में खूबियां ही खूबियां नजर आने लगती हैं. पुष्पक भी अब इस स्थिति में पहुंच गया था. उसे जो वेतन मिलता था, उस में वह स्वाति के साथ आराम से जीवन बिता रहा था, लेकिन जब से मालिनी उस के जीवन में आई, तब से उस के खर्च अनायास बढ़ गए थे.

इसी वजह से वह पैसों के लिए परेशान रहने लगा था. उसे मिलने वाले वेतन से 2 औरतों के खर्च पूरे नहीं हो सकते थे. यही वजह थी कि वह दोनों में से किसी एक से छुटकारा पाना चाहता था. जब उस ने मालिनी से छुटकारा पाने के बारे में सोचा तो उसे लगा कि वह उसे जीवन के एक नए आनंद से परिचय करा कर यह सिद्ध कर रही है. जबकि स्वाति में वह बात नहीं है, वह हमेशा ऐसा बर्ताव करती है जैसे वह बहुत बड़े अभाव में जी रही है. लेकिन उसे वह वादा याद आ गया, जो उस ने उस के बाप से किया था कि वह जीवन की अंतिम सांसों तक उसे जान से भी ज्यादा प्यार करता रहेगा.

पुष्पक इस बारे में जितना सोचता रहा, उतना ही उलझता गया. अंत में वह इस निर्णय पर पहुंचा कि वह मालिनी से नहीं, स्वाति से छुटकारा पाएगा. वह उसे न तो मारेगा, न ही तलाक देगा. वह उसे छोड़ कर मालिनी के साथ कहीं भाग जाएगा.

यह एक ऐसा उपाय था, जिसे अपना कर वह आराम से मालिनी के साथ सुख से रह सकता था. इस उपाय में उसे स्वाति की हत्या करने के बजाय अपनी हत्या करनी थी. सच में नहीं, बल्कि इस तरह कि उसे मरा हुआ मान लिया जाए. इस के बाद वह मालिनी के साथ कहीं सुख से रह सकता था. उस ने मालिनी को अपनी परेशानी बता कर विश्वास में लिया.

इस के बाद दोनों इस बात पर विचार करने लगे कि वह किस तरह आत्महत्या का नाटक करे कि उस की साजिश सफल रहे. अंत में तय हुआ कि वह समुद्र तट पर जा कर खुद को लहरों के हवाले कर देगा. तट की ओर आने वाली समुद्री लहरें उस की जैकेट को किनारे ले आएंगी. जब उस जैकेट की तलाशी ली जाएगी तो उस में मिलने वाले पहचानपत्र से पता चलेगा कि पुष्पक मर चुका है.

उसे पता था कि समुद्र में डूब कर मरने वालों की लाशें जल्दी नहीं मिलतीं, क्योंकि बहुत कम लाशें ही बाहर आ पाती हैं. ज्यादातर लाशों को समुद्री जीव चट कर जाते हैं. जब उस की लाश नहीं मिलेगी तो यह सोच कर मामला रफादफा कर दिया जाएगा कि वह मर चुका है. इस के बाद देश के किसी महानगर में पहचान छिपा कर वह आराम से मालिनी के साथ बाकी का जीवन गुजारेगा.

लेकिन इस के लिए काफी रुपयों की जरूरत थी. उस के हाथों में रुपए तो बहुत होते थे, लेकिन उस के अपने नहीं. इस की वजह यह थी कि वह बैंक में कैशियर था. लेकिन उस ने आत्महत्या क्यों की, यह दिखाने के लिए उसे खुद को लोगों की नजरों में कंगाल दिखाना जरूरी था. योजना बना कर उस ने यह काम शुरू भी कर दिया. कुछ ही दिनों में उस के साथियों को पता चला गया कि वह एकदम कंगाल हो चुका है. बैंक कर्मचारी को जितने कर्ज मिल सकते थे, उस ने सारे के सारे ले लिए थे. उन कर्जों की किस्तें जमा करने से उस का वेतन काफी कम हो गया था. वह साथियों से अकसर तंगी का रोना रोता रहता था. इस हालत से गुजरने वाला कोई भी आदमी कभी भी आत्महत्या कर सकता था.

पुष्पक का दिल और दिमाग अपनी इस योजना को ले कर पूरी तरह संतुष्ट था. चिंता थी तो बस यह कि उस के बाद स्वाति कैसे जीवन बिताएगी? वह जिस मकान में रहता था, उसे उस ने भले ही बैंक से कर्ज ले कर बनवाया था. लेकिन उस के रहने की कोई चिंता नहीं थी. शादी के 10 सालों बाद भी स्वाति को कोई बच्चा नहीं हुआ था. अभी वह जवान थी, इसलिए किसी से भी विवाह कर के आगे की जिंदगी सुख और शांति से बिता सकती थी. यह सोच कर वह उस की ओर से संतुष्ट हो गया था.

बैंक से वह मोटी रकम उड़ा सकता था, क्योंकि वह बैंक का हैड कैशियर था. सारे कैशियर बैंक में आई रकम उसी के पास जमा कराते थे. वही उसे गिन कर तिजोरी में रखता था. उसे इसी रकम को हथियाना था. उस रकम में कमी का पता अगले दिन बैंक खुलने पर चलता. इस बीच उस के पास इतना समय रहता कि वह देश के किसी दूसरे महानगर में जा कर आसानी से छिप सके. लेकिन बैंक की रकम में हेरफेर करने में परेशानी यह थी कि ज्यादातर रकम छोटे नोटों में होती थी. वह छोटे नोटों को साथ ले जाने की गलती नहीं कर सकता था, इसलिए उस ने सोचा कि जिस दिन उसे रकम का हेरफेर करना होगा, उस दिन वह बड़े नोट किसी को नहीं देगा.

इस के बाद वह उतने ही बड़े नोट साथ ले जाएगा, जितने जेबों और बैग में आसानी से जा सके. पुष्पक का सोचना था कि अगर वह 20 लाख रुपए भी ले कर निकल गया तो उन्हीं से कोई छोटामोटा कारोबार कर के मालिनी के साथ नया जीवन शुरू करेगा. 20 लाख की रकम इस महंगाई के दौर में कोई ज्यादा बड़ी रकम तो नहीं है, लेकिन वह मेहनत से काम कर के इस रकम को कई गुना बढ़ा सकता है.

जिस दिन उस ने पैसे ले कर भागने की तैयारी की थी, उस दिन रास्ते में एक हैरान करने वाली घटना घट गई. जिस बस से वह बैंक जा रहा था, उस का कंडक्टर एक सवारी से लड़ रहा था. सवारी का कहना था कि उस के पास पैसे नहीं हैं, एक लौटरी का टिकट है. अगर वह उसे खरीद ले तो उस के पास पैसे आ जाएंगे, तब वह टिकट ले लेगा. लेकिन कंडक्टर मना कर रहा था.

पुष्पक ने झगड़ा खत्म करने के लिए वह टिकट 50 रुपए में खरीद लिया. उस टिकट को उस ने जैकेट की जेब में रख लिया. आत्महत्या के नाटक को अंजाम तक पहुंचाने के बाद वह फोर्ट पहुंचा और वहां से कुछ जरूरी चीजें खरीद कर एक रेस्टोरैंट में बैठ गया. चाय पीते हुए वह अपनी योजना पर मुसकरा रहा था. तभी अचानक उसे एक बात याद आई. उस ने आत्महत्या का नाटक करने के लिए अपनी जो जैकेट लहरों के हवाले की थी, उस में रखे सारे रुपए तो निकाल लिए थे, लेकिन लौटरी का वह टिकट उसी में रह गया था. उसे बहुत दुख हुआ.

घड़ी पर नजर डाली तो उस समय रात के 10 बज रहे थे. अब उसे तुरंत स्टेशन के लिए निकलना था. उस ने सोचा, जरूरी नहीं कि उस टिकट में इनाम निकल ही आए इसलिए उस के बारे में सोच कर उसे परेशान नहीं होना चाहिए. ट्रेन में बैठने के बाद पुष्पक मालिनी की बड़ीबड़ी कालीकाली आंखों की मस्ती में डूब कर अपने भाग्य पर इतरा रहा था. उस के सारे काम बिना व्यवधान के पूरे हो गए थे, इसलिए वह काफी खुश था.

फर्स्ट क्लास के उस कूपे में 2 ही बर्थ थीं, इसलिए उन के अलावा वहां कोई और नहीं था. उस ने मालिनी को पूरी बात बताई तो वह एक लंबी सांस ले कर मुसकराते हुए बोली, ‘‘जो भी हुआ, ठीक हुआ. अब हमें पीछे की नहीं, आगे की जिंदगी के बारे में सोचना चाहिए.’’

पुष्पक ने ठंडी आह भरी और मुसकरा कर रह गया. ट्रेन तेज गति से महाराष्ट्र के पठारी इलाके से गुजर रही थी. सुबह होतेहोते वह महाराष्ट्र की सीमा पार कर चुकी थी. उस रात पुष्पक पल भर नहीं सोया था, उस ने मालिनी से बातचीत भी नहीं की थी. दोनों अपनीअपनी सोचों में डूबे थे. भूत और भविष्य, दोनों के अंदेशे उन्हें विचलित कर रहे थे. दूर क्षितिज पर लाललाल सूरज दिखाई देने लगा था.

नींद के बोझ से पलकें बोझिल होने लगी थीं. तभी मालिनी अपनी सीट से उठी और उस के सीने पर सिर रख कर उसी की बगल में बैठ गई. पुष्पक ने आंखें खोल कर देखा तो ट्रेन शोलापुर स्टेशन पर खड़ी थी. मालिनी को उस हालत में देख कर उस के होंठों पर मुसकराहट तैर गई. हैदराबाद के होटल के एक कमरे में वे पतिपत्नी की हैसियत से ठहरे थे. वहां उन का यह दूसरा दिन था. पुष्पक जानना चाहता था कि मुंबई से उस के भागने के बाद क्या स्थिति है. वह लैपटौप खोल कर मुंबई से निकलने वाले अखबारों को देखने लगा.

‘‘कोई खास खबर?’’ मालिनी ने पूछा.

‘‘अभी देखता हूं.’’ पुष्पक ने हंस कर कहा.

मालिनी भी लैपटौप पर झुक गई. दोनों अपने भागने से जुड़ी खबर खोज रहे थे. अचानक एक जगह पुष्पक की नजरें जम कर रह गईं. उस से सटी बैठी मालिनी को लगा कि पुष्पक का शरीर अकड़ सा गया है. उस ने हैरानी से पूछा, ‘‘क्या बात है डियर?’’

पुष्पक ने गूंगों की तरह अंगुली से लैपटौप की स्क्रीन पर एक खबर की ओर इशारा किया. समाचार पढ़ कर मालिनी भी जड़ हो गई. वह होठों ही होठों में बड़बड़ाई, ‘‘समय और संयोग. संयोग से कोई नहीं जीत सका.’’

‘‘हां संयोग ही है,’’ वह मुंह सिकोड़ कर बोला, ‘‘जो हुआ, अच्छा ही हुआ. मेरी जैकेट पुलिस के हाथ लगी, जिस पुलिस वाले को मेरी जैकेट मिली, वह ईमानदार था, वरना मेरी आत्महत्या का मामला ही गड़बड़ा जाता. चलो मेरी आत्महत्या वाली बात सच हो गई.’’

इतना कह कर पुष्पक ने एक ठंडी आह भरी और खामोश हो गया.

मालिनी खबर पढ़ने लगी, ‘आर्थिक परेशानियों से तंग आ कर आत्महत्या करने वाले बैंक कैशियर का दुर्भाग्य.’ इस हैडिंग के नीचे पुष्पक की आर्थिक परेशानी का हवाला देते हुए आत्महत्या और बैंक के कैश से 20 लाख की रकम कम होने की बात लिखते हुए लिखा था—

‘इंसान परिस्थिति से परेशान हो कर हौसला हार जाता है और मौत को गले लगा लेता है. लेकिन वह नहीं जानता कि प्रकृति उस के लिए और भी तमाम दरवाजे खोल देती है. पुष्पक ने 20 लाख बैंक से चुराए और रात को जुए में लगा दिए कि सुबह पैसे मिलेंगे तो वह उस में से बैंक में जमा कर देगा. लेकिन वह सारे रुपए हार गया. इस के बाद उस के पास आत्महत्या करने के अलावा कोई चारा नहीं बचा, जबकि उस के जैकेट की जेब में एक लौटरी का टिकट था, जिस का आज ही परिणाम आया है. उसे 2 करोड़ रुपए का पहला इनाम मिला है. सच है, समय और संयोग को किसी ने नहीं देखा है.’