मेरी नहीं तो किसी की नहीं – भाग 3

उस ने चंद्रशेखर की आवाज को कोई तरजीह नहीं दी. फिर वह उस ओर चला गया, जहां एक पेड़ के नीचे उस की बाइक खड़ी थी. सोचों का बवंडर चंद्रशेखर को झकझोरने लगा था. रूपा आखिर इतनी निर्मोही, बेमुरव्वत कैसे हो गई. वह अपने गांव की ओर बढ़ चला.

2 पखवाड़े बाद उस ने रूपा से मिलने का मंसूबा बनाया. किसी तरह से वह रूपा से मिलने में कामयाब भी रहा. अब की बार वह रूपा से मिल कर ठोस निर्णय लेने के पक्ष में था. वह उस स्थान पर खड़ा रहा, जहां पर रूपा से

मिलना था.

रूपा वहां आई, काफी इंतजार करवाने के बाद वह चंद्रशेखर से मिली. चंद्रशेखर ने किसी तरह की भूमिका नहीं बांधी. वह सीधे मुद्दे पर आ गया, ‘‘रूपा, मैं तुम से शादी करना चाहता हूं.’’

रूपा ने उसी अंदाज में जवाब दिया, ‘‘मैं तुम से शादी नहीं कर सकती.’’

चंद्रशेखर रूपा की ओर टकटकी लगा कर देखता हुआ बोला, ‘‘आखिर, तुम मुझ से शादी क्यों नहीं कर सकतीं? अच्छाभला कमा लेता हूं. घर से भी संपन्न हूं. अपनी हैसियत से बढ़ कर तुम्हें वह सब कुछ देने का प्रयास करूंगा, जिस की तुम ख्वाहिश रखती होगी.’’

‘‘चंद्रशेखर, मैं साफसाफ बता देती हूं कि मैं तुम से किसी भी कीमत पर शादी नहीं कर सकती.’’

चंद्रशेखर कुछ बोलने वाला ही था कि रूपा ने हाथ उठा कर चुप रहने का इशारा किया, ‘‘मेरे घर के लोग मेरी शादी जहां करेंगे, मुझे मंजूर होगा. उन की इच्छा के विरुद्ध मैं कुछ नहीं कर पाऊंगी. मैं पहले ही कह चुकी हूं कि मैं तुम से प्यार नहीं करती. और हां, अभी तक जो कुछ तुम ने मुझे दिया है. जस के तस लौटा रही हूं.’’ रूपा ने एक कैरीबैग चंद्रशेखर की ओर बढ़ा दिया.

‘‘अपने पास ही रखो इसे, मैं दी हुई चीज वापस नहीं लेता.’’

‘‘तुम्हारी मरजी. और हां, यह खयाल रखना कि आइंदा मुझ से मिलने की कोशिश मत करना.’’

रूपा जाने को हुई तो चंद्रशेखर ने धमकी दी, ‘‘रूपा, तुम्हारी शादी होगी तो सिर्फ मुझ से होगी. मैं तुम्हें किसी और की दुलहन बनते नहीं देख सकता. तुम मेरी नहीं हो सकतीं तो किसी और की भी नहीं बन पाओगी, याद रखना.’’

कुछ दिनों तक चंद्रशेखर के हवास पर रूपा का इनकार डंक मारता रहा. जलन की आग ने चंद्रशेखर को बुरी तरह सुलगा रखा था. उसे करार तभी आता जब या तो रूपा उस की हो जाती या वह रूपा के वजूद को मिटा देता.

उस पर पागलपन काबिज हो चुका था. दिमागी संतुलन खोता जा रहा था. आखिर उस ने एक योजना बना ली. उसी के तहत वह रूपा की रैकी करने लगा.

11 फरवरी, 2021 को दोपहर करीब सवा बजे रूपा अपनी बहन हेमलता के साथ दवा लेने एक मैडिकल स्टोर पर पहुंची. चंद्रशेखर कई दिनों से रूपा की टोह में लगा था.

किसी छलावे की तरह चंद्रशेखर रूपा के सामने पहुंच गया. उस के साथ बाइक पर उस के 2 दोस्त भरत निषाद और गोपाल यादव भी थे. अप्रत्याशित रूप से अपने सामने चंद्रशेखर को देख कर रूपा घबरा गई.

चंद्रशेखर ने दोनों को अपने साथ इसलिए रखा था कि किसी तरह का व्यवधान आने पर भरत निषाद और गोपाल यादव उस की मदद करेंगे.

तभी फुरती से देशी तमंचा निकाल कर चंद्रशेखर रूपा की ओर तानते हुए बोला, ‘‘रूपा, तुम मेरी नहीं तो किसी की नहीं.’’

चंद्रशेखर का खूंखार चेहरा देख कर रूपा ने डर कर भागना चाहा तभी चंद्रशेखर ने उस की कलाई पकड़ ली. उस की बड़ीबहन हेमलता ने बीचबचाव करने की कोशिश की. जब तक वह कामयाब होती तब तक गोली रूपा की कनपटी के बाहर हो चुकी थी.

गोली लगते ही रूपा जमीन पर गिर पड़ी. किसी को कुछ समझ में नहीं आया. वे तीनों बाइक पर बैठ कर वहां से भाग गए.

चंद्रशेखर के कहने पर उस के दोस्तों ने उसे नदी मोड़ के पास बाइक से उतार दिया. वारदात को अंजाम देने के बाद दोपहर सवा 2 बजे चंद्रशेखर सीधे थाना सिटी कोतवाली, महासमुंद पहुंचा और आत्मसमर्पण कर दिया. पुलिस को उस ने रूपा की हत्या करने की बात बता दी.

थानाप्रभारी ने उसे हिरासत में ले लिया और पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. थानाप्रभारी ने यह सूचना उच्चाधिकारियों को दे दी. कुछ ही देर में एडिशनल एसपी मेघा टेंभुरकर साहू, एसपी प्रफुल्ल ठाकुर के अलावा पुलिस अधिकारी शेर सिंह बंदे, यू.आर. साहू, संजय सिंह राजपूत (साइबर सेल प्रभारी) योगेश कुमार सोनी, टीकाराम सारथी आदि भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

पुलिस ने मृतका के घर वालों से पूछताछ करने के बाद रूपा की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

इस के बाद उसी दिन शाम के समय आरोपी भरत निषाद और गोपाल यादव को उन्हीं के गांव मुडैना से गिरफ्तार कर लिया गया.

तीनों आरोपियों से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें कोर्ट में पेश कर 15 फरवरी तक पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि पूरी होने से पहले ही पुलिस ने उन्हें फिर से कोर्ट में पेश कर महासमुंद जेल भेज दिया.

उल्टी पड़ी चाल : कैसे सामने आई काजी वहीद की हकीकत – भाग 3

‘‘मकतूल के शौहर ने मक्कारी और चालबाजी से मुलजिम के एक लाख रुपए अपने घर की ऊपरी मंजिल बनवाने में खर्च करवाए. यह रकम मुलजिम ने बैंक से कर्ज ली थी. जब काजी का मकसद पूरा हो गया तो उस ने एक खूबसूरत साजिश कर के मुलजिम को घर छोड़ने पर राजी कर लिया और फिर अपनी बीवी के कत्ल में फंसा कर पुलिस के हवाले कर दिया.’’

दोनों तरफ से बहस और दलीलें चलती रहीं. जज ने जमानत रद्द करते हुए फुरकान को न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया. अगली तारीख 15 दिन बाद की थी. मुझे अदालत में फुरकान के घर के लोग नजर नहीं आए.

अली मुराद जीजान से दामाद की मदद कर रहा था. मैं ने अली मुराद से कहा, ‘‘अली मुराद, केस बहुत उलझा हुआ है. फुरकान को तब तक रिहाई नहीं मिल सकती जब तक कि ऊपरी मंजिल बनाने में काजी वहीद झूठा साबित न हो जाए. इस के लिए कई लोगों से तुम्हें अंदर की हकीकत मालूमात करनी पड़ेगी.’’

मैंने उसे कुछ लोगों के नाम बताए और काम बता दिए. अली मुराद ने मुझ से वादा किया कि वह जरूरी जानकारी ले कर आएगा.

अगली पेशी पर जज ने मुलजिम का जुर्म पढ़ कर सुनाया. मुलजिम ने जुर्म से साफ इनकार कर दिया था. विपक्ष का वकील तरहतरह के सवाल करता रहा, पर फुरकान अपनी बात पर डटा रहा कि वह बेकसूर है. अपनी बारी पर मैं ने जिरह की शुरुआत करते हुए कहा, ‘‘तुम जनवरी से ले कर मार्च तक 3 महीने मकतूला रशीदा के घर किराएदार की हैसियत से रहे. उस के बाद क्या हुआ?’’

‘‘जी हां, यह सही है. हम 3 महीने एक साथ एक परिवार की तरह रहे. मार्च में वहीद काजी ने कुछ रकम खर्च कर के छत पर छोटा सा घर बनाने की औफर दी. मैं ने बैंक से लोन ले कर उस के औफर पर अमल कर डाला.’’

‘‘तुम ने बैंक से कितना कर्ज लिया था?’’

‘‘मैं ने बैंक  से एक लाख कर्ज लिया था. 75 हजार वहीद काजी को 2 कमरे बनाने को दिए. 25 हजार वुडवर्क में खर्च हुए. मुझे 2 कमरे पूरे एक लाख रुपए में पडे़ थे.’’

‘‘तुम कौमर्स पढ़ेलिखे आदमी हो. बैंक में काम करते हो, उस के बावजूद तुम ने इतनी बड़ी डील बिना किसी लिखतपढ़त के कैसे कर ली?’’

‘‘आप सही कह रहे हैं, पर उस वक्त काजी की मोहब्बत भरी बातों ने मेरी अक्ल पर पर्दा डाल दिया था. मैं उस के फ्रौड को समझ नहीं सका और बिना कागजी काररवाई के एक लाख रुपया खर्च कर दिया.’’

उस जमाने में एक लाख रुपए बहुत बड़ी रकम होती थी. मैं वहीद काजी की चालाकी और मक्कारी जज के सामने लाना चाहता था. इसलिए मैं ने अपने सवालों का रुख बदल दिया.

‘‘तुम्हें पहली बार काजी के फ्रौड का अहसास कब हुआ?’’

‘‘सितंबर के आखिर में काजी ने मुझ से कहा कि मकान खरीदने के लिए एक पार्टी मिल गई है, जो 6 लाख रुपए देने को तैयार है. काजी ने मकान पर 2 लाख खर्च किए थे और मैं ने एक लाख. उस ने मुझे 2 लाख देने की औफर दी और मुझे उस की बात माननी पड़ी. क्योंकि ऊपरी मंजिल के मालिकाना हक के कागजात मेरे पास नहीं थे.

‘‘2 कमरों के बारे में काजी ने जितने वादे किए थे, सब जुबानी थे. जब भी मैं लिखित की बात करता वह बहाने बना कर टाल देता. इसलिए उस के औफर को मानने के अलावा मेरे पास कोई और रास्ता नहीं था.’’

मैं ने देखा जज बहुत ध्यान से सारी बात सुन रहा था और नोट भी करता जा रहा था. मैं ने कहा, ‘‘काजी ने मकान की बिक्री की स्कीम के बारे में क्या कहा?’’

‘‘उस ने मुझे सलाह दी कि मैं कुछ अरसे के लिए अपनी ससुराल में शिफ्ट हो जाऊं. मकान बिकते ही वो मुझे 2 लाख दे देगा, जिस से मैं नए घर का बंदोबस्त कर सकता था.’’

विपक्ष का वकील काफी देर से चुप था. उस ने ऐतराज उठाया, ‘‘अदालत में रशीदा मर्डर केस की सुनवाई हो रही है. मकान की नहीं.’’

मैं ने कहा, ‘‘जनाबे आली, रशीदा मर्डर केस मकान और एक लाख रुपए से इस तरह जुड़ा हुआ है कि उसे अलग नहीं किया जा सकता. यहीं से मर्डर केस का राज खुलेगा.’’ जज ने ऐतराज खारिज कर दिया और तेज लहजे में कहा, ‘‘जिरह जारी रखी जाए.’’

मैं ने आगे पूछा, ‘‘उस के बाद काजी ने क्या कहा?’’

‘‘एक बार फिर काजी ने मुझे धोखा देना चाहा कि हम एक बड़ा मकान खरीद लेंगे और फिर साथ रहेंगे. पर अब मुझे अक्ल आ चुकी थी. मैं ने साफ इनकार कर दिया. अक्तूबर के पहले हफ्ते में मैं अपनी ससुराल में शिफ्ट हो गया. उस के बाद 10-12 दिन तक मैं लगभग रोज ही अपनी रकम की मांग करता रहा. पर काजी टस से मस नहीं हुआ. हर बार कोई न कोई बहाना बना कर टाल देता.

‘‘14 अक्तूबर की शाम मेरी काजी से तेज झड़प हुई. मैं ने उससे 2 लाख की रकम की डिमांड की. काजी ने मुझे पुराने अहसान याद दिलाए और एक तकरीर कर डाली. आखिर तंग आ कर मैं ने कहा, ‘मुझे 2 लाख नहीं चाहिए, आप मेरे पैसे ही लौटा दीजिए.’

‘‘उस ने गुस्से से कहा कि जब तुम खुद अपना नुकसान कर रहे हो और एक लाख छोड़ रहे हो तो कल शाम घर आ जाना. मैं तुम्हें पैसे लौटा दूंगा. आज मेरे पास मेरे मकान का एक लाख रुपया बयाना आने वाला है. क्योंकि मकान का सेल एग्रीमेंट हो जाएगा. कल शाम 8 बजे तुम आ जाओ, तुम्हारे पैसे मैं तुम्हारे मुंह पर दे मारूंगा.’’

‘‘तो क्या दूसरे दिन तुम्हें तुम्हारे पैसे मिल गए थे?’’

‘‘नहीं जनाब, जब 15 अक्तूबर की शाम 8 बजे मैं उस के घर पहुंचा तो वह घर पर नहीं मिला. देर तक घंटी बजाने, दरवाजा पीटने और पुकारने पर भी कोई बाहर नहीं आया. मैं मायूस हो कर वहां से लौट आया.’’

‘‘क्या घंटी बजाते या वापसी पर तुम्हें किसी ने देखा था?’’

‘‘रशीदा के शौहर काजी वहीद ने फुरकान को अपने घर में किराएदार की हैसियत से रखा था. कुछ दिनों बाद उन्होंने उसे ऊपरी मंजिल पर शिफ्ट कर दिया. बाद में घर बेचने के बहाने उसे बेदखल कर दिया. जब फुरकान ने हिसाब मांगा तो उसे कत्ल के इलजाम में बंद करवा दिया.’’

‘‘ओह, बहुत अफसोसनाक बात है. आप के कहे मुताबिक 2 दिन पहले यानी 15 अक्तूबर को उसे गिरफ्तार किया गया और 16 अक्तूबर को पुलिस ने फुरकान को अदालत में पेश कर के रिमांड ले लिया होगा. मतलब इस वक्त वह पुलिस कस्टडी में है.’’ मैं ने कागज पर लिखते हुए कहा.

‘‘जी, आप ठीक कह रहे हैं.’’

‘‘अच्छा यह बताइए कौन से थाने में बंद है और हां मुझे सही तरीके से बताएं कि आप के दामाद फुरकान और काजी वहीद के बीच कैसे ताल्लुकात थे. इस मुसीबत के वक्त फुरकान के घर वाले कहां हैं?’’

उस ने ठंडी सांस ले कर कहा, ‘‘घर वालों ने उस का बायकाट कर रखा है. वे लोग फुरकान और मेरी बेटी की शादी के सख्त खिलाफ थे. शादी के मौके पर फुरकान ने खुशामद कर के उन्हें शामिल कर लिया था. शादी के बाद करीब 3 महीने मेरी बेटी असमत ससुराल में रही, पर लड़ाईझगड़े और तनाव इस हद तक बढ़ गए कि उन्हें किराए पर घर ले कर अलग होना पड़ा.’’

मेरी नहीं तो किसी की नहीं – भाग 2

रास्ते में उस ने एक पेड़ के नीचे बाइक खड़ी की. फिर रूपा को मालिक से हुई तकरार के बारे में बताया. सुन कर रूपा गंभीर हो गई. वह बोली, ‘‘उन्होंने जो कुछ कहा, वह अपनी जगह सही है. अच्छाखासा काम हाथ से निकल गया.’’

‘‘तुम क्यों परेशान हो रही हो रूपा, काम चला गया तो क्या हुआ. हाथपैर और मेरा हुनर थोड़े ही चला गया है.’’ चंद्रशेखर ने उसे समझाया, ‘‘काम करना है तो कहीं भी कर लेंगे. तुम पर ऐसी दरजनों गाडि़यां और नौकरियां कुरबान.’’

फिर चंद्रशेखर जेब के अंदर हाथ डाल कर बंद मुट्ठी निकाल कर बोला, ‘‘गेस करो रूपा, इस मुट्ठी में क्या है?’’

‘‘मुझे क्या मालूम.’’ वह बोली.

‘‘सोचो न.’’

‘‘टौफी है क्या?’’ रूपा ने पूछा.

‘‘नहीं…और कुछ, बताओ.’’

रूपा ने दिमाग पर जोर डाला. फिर उस ने अनभिज्ञता से कंधे उचकाए. तभी चंद्रशेखर बोला, ‘‘चलो, अपनी आंखें बंद करो…और हाथ आगे बढ़ाओ.’’

रूपा ने आंखें बंद कर के अपनी हथेलियां उस के सामने खोल दीं. तभी चंद्रशेखर ने रूपा की हथेली पर कुछ रख कर कहा, ‘‘अब अपनी आंखें खोलो.’’

रूपा ने आंखें खोलीं. एक अंगूठी थी जो अमेरिकन डायमंड की थी और जगमगा रही थी.

अंगूठी पर पेड़ के पत्तों से छन कर आती हुई सूर्य की किरणें पड़ रही थीं. और रिफ्लेक्ट हो कर सात रंगों की किरणें बिखर रही थीं. अंगूठी देख कर रूपा बहुत खुश हुई.

‘‘कैसा लगा?’’ चंद्रशेखर ने पूछा.

‘‘बहुत सुंदर…बहुत ही प्यारा है.’’

‘‘पहन कर दिखाओ जरा.’’

‘‘जब लाए ही हो तो तुम्हीं पहना दो न.’’ कहती हुई रूपा ने अपना हाथ चंद्रशेखर की ओर बढ़ा दिया. रूपा के हाथ से अंगूठी ले कर रूपा को पहना दी. उस की अंगुली में अंगूठी अच्छी लग रही थी.

सड़क के किनारे गन्ने का एक खेत था. चंद्रशेखर ने उस ओर इशारा किया तो रूपा बोली, ‘‘गन्ना खाना चाहते हो तो जाओ ले आओ.’’

‘‘ऐसा करते हैं दोनों वहीं खेत में चलते हैं.’’

‘‘नहीं…नहीं मुझे गन्ने के झुरमुटों से डर लगता है. मैं नहीं जाऊंगी.’’

चंद्रशेखर ने जिद की तो रूपा को झुकना पड़ा. फिर दोनों गन्ने के खेत की ओर बढ़े और खेत में भीतर घुस गए. दोचार कदम चलने के बाद रूपा ठिठकी. तो चंद्रशेखर बोला, ‘‘अरे, आओ न… आओ, आती क्यों नहीं. अच्छा सा गन्ना तोडें़गे.’’

डरतीझिझकती रूपा चंद्रशेखर के पीछे चलने लगी. गन्ने के सूखे भूरे पत्ते पैरों में दब कर चर्रमर्र की आवाज कर रहे थे. जब दोनों काफी भीतर घुस गए तब चंद्रशेखर ने अपनी बाइक और सड़क की ओर देखा. लेकिन झुरमुटों की वजह से कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था. अचानक चंद्रशेखर ठिठका. उसे ठिठकते देख कर रूपा भी ठिठक पड़ी.

चंद्रशेखर उस की ओर देखते हुए मुसकराया, ‘‘रूपा, यहां तक चली आई. गन्ना ही खाना होता तो इतनी दूर आने की क्या जरूरत थी. पहले ही न तोड़ लेता.’’

‘‘फिर क्यों आए इतनी दूर? मैं अभी भी नहीं समझी.’’

चंद्रशेखर के होंठों पर शरारत उभर आई. वह रूपा के करीब पहुंचा

और उस के हाथों को अपने हाथ में ले लिया, ‘‘रूपा…’’

चंद्रशेखर ने तर्जनी अंगुली को अंगुली पर रखा तो रूपा बोली, ‘‘ओह… इसलिए मुझे यहां इतनी दूर लाए हो.’’

‘‘हां, तुम तो जानती हो कि वहां तो ऐसा कुछ कर नहीं पाते, जगह भी मुफीद नहीं थी. यहां भला हमें कौन देखेगा.’’ कह कर चंद्रशेखर ने रूपा को अपने बाहुपाश में लेना चाहा. वह कोई ठोस निर्णय ले पाता कि उस ने देखा रूपा उस के पीछे देख रही है.

वह पीछे पलटा तो एक गाय तेजी से दौड़ती आ रही थी. गाय के पीछे से रखवाली करने वाले किसान की हा…हू.. की आवाज उन दोनों के कानों तक पहुंची. रूपा बोली, ‘‘चलो, यहां से. गाय आ रही है. लगता है, किसान गांव के पीछेपीछे आ रहा है.’’

फिर कई गायों का झुंड गन्ने में घुस आया. किसान की आवाज भी करीब आती जा रही थी. फिर रूपा वहां नहीं ठहरी. वह हाथों से गन्ने के पत्तों को अलग करती हुई वहां से भागी. चंद्रशेखर भी हड़बड़ाए अंदाज में बाइक की ओर भागा.

रूपा हांफ रही थी. वह हांफती हुई बोली, ‘‘खा लिए गन्ने? ऊपर से देखो…’’ उस के सैंडिल की पट्टी एक ओर से उखड़ गई थी. पत्तों से हाथपैर अलग छिल गए थे.

रूपा बोली, ‘‘कहां ला कर फंसा दिया.’’

फिर दोनों वहां ठहरे नहीं. बाइक पर बैठ कर चले गए.

इस के बाद दोनों की मेलमुलाकातों की चर्चाएं पहले कानाफूसी में तब्दील हुईं. फिर बेलसोंडा में दोनों की मुलाकात और प्यार की चर्चाएं होने लगीं. यह बात रूपा के पिता सुरेंद्र और मां जमुना के कानों तक भी पहुंची.

चूंकि लड़की बालिग हो चुकी थी और बगावत पर उतर सकती थी. इसलिए सुरेंद्र ने रूपा को अपनी बड़ी बेटी हेमलता की ससुराल में उस के पास भेज दिया. रूपा हेमलता के यहां 20-25 दिन रह कर पिता के घर आ गई.

इस बीच चंद्रशेखर ट्रक चलाने लगा था. गुजरे हुए समय में रूपा और चंद्रशेखर ने सैकड़ों ख्वाब देखे थे. गांव आने के बाद कुछ समय तक सब कुछ ठीक चलता रहा.

20-25 दिनों की जुदाई के बाद चंद्रशेखर और रूपा की मुलाकात हुई. चंद्रशेखर ने उस से शिकायत की, ‘‘रूपा, तुम अपनी बहन के पास रायपुर जा कर इतनी मशगूल हो गईं कि एक फोन तक नहीं किया.’’

‘‘मेरे पास फोन था ही कहां,’’ रूपा सफाई में बोली.

‘‘क्यों, कहां गया तुम्हारा फोन?’’

‘‘घर वालों ने ले लिया था.’’

‘‘नंबर तो जानती हो. फोन किसी से मांग लेती.’’

‘‘मैं दीदी की देखभाल में थी.’’

‘‘यह क्यों नहीं कहतीं कि मैं याद ही नहीं रहा तुम्हें.’’ चंद्रशेखर ने कहा.

‘‘नहीं…नहीं, ऐसी बात नहीं है. हमारा मिलना और हमारा प्यार गांव वालों की नजरों में आ चुका है. अब ऐसा लगता है कि हमें एकदूसरे से नहीं मिलना चाहिए.’’ रूपा बोली.

‘‘रूपा…तुम मिलने की बात पर अटकी हो, मैं तो तुम से शादी करना चाहता हूं.’’ चंद्रशेखर बोला.

‘‘हमारे चाहने से क्या होगा? घर वालों और समाज की मंजूरी भी जरूरी है.’’ रूपा तनिक चिढ़ गई.

‘‘रूपा, तुम्हारी यह बात गलत है. बताओ, जब तुम ने मुझ से प्यारर किया था तो क्या घर, समाज और परिवार से पूछ कर किया था?’’

‘‘नहीं, उस वक्त मुझ पर घरपरिवार और समाज का दबाव नहीं था. और आज मैं इन तीनों की निगाहों में हूं. मुझ में इतनी ताकत नहीं है कि मैं इन से लड़ कर विद्रोह कर सकूं.’’ रूपा ने कहा.

‘‘यह बात तुम्हें उस वक्त सोचनी चाहिए थी, जब प्यार की डगर पर चंद कदम ही बढ़ी थीं. अब तो हम बहुत दूर निकल आए हैं रूपा. इस का मतलब, तुम मेरा साथ नहीं दोगी?’’

‘‘माना कि हम दोनों साल भर साथ रहे, दोस्त की तरह. लेकिन इस अपनेपन को प्यार का नाम नहीं दिया जा सकता.’’

कुछ पलों तक हैरानगी, बेचारगी से रूपा की ओर देख कर चंद्रशेखर बोला, ‘‘ऐसा मत कहो रूपा. हमारी चाहत को अपनेपन का लबादा मत ओढ़ाओ. मैं ने तुम्हें और खुद को ले कर ढेरों ख्वाब देखे हैं. तुम्हारे विचार जान कर जी चाहता है कि इसी सड़क पर किसी वाहन के नीचे कुचल कर मर जाऊं.’’

वह गहरी सांस ले कर फिर बोला, ‘‘सचमुच मैं बहुत दूर निकल आया हूं तुम्हारे साथ, अब वापस लौटना मुमकिन नहीं.’’

‘‘सड़क पर सिर पटक कर मरना चाहते हो, ऐसा कर के क्या यह जाहिर करना चाह रहे हो कि तुम मेरे बिना जी नहीं सकते?’’ रूपा तीखे शब्दों में बोली.

चंद्रशेखर रूपा की बात सुन कर पहली बार आपे से बाहर होता हुआ बोला, ‘‘मत भूलो रूपा कि जिस सड़क पर मैं स्वयं को फना करने का माद्दा रखता हूं. यहीं इस सड़क पर तुम्हारे साथ भी कर सकता हूं.’’

वह फिर गिड़गिड़ाया, ‘‘प्लीज रूपा, ऐसा मत कहो.’’

‘‘चंद्रशेखर, तुम समझने का प्रयास नहीं कर रहे हो या फिर समझना नहीं चाहते.’’

‘‘रूपा, तुम क्या समझाना चाह रही हो? और मैं क्या नहीं समझ रहा हूं?’’

‘‘तो सुनो, फिर कह रही हूं कि जिसे तुम प्यार समझ रहे हो, वह प्यार नहीं. सिर्फ दोस्ती थी.’’ इस के बाद चंद्रशेखर के होंठों से बेबसी में शब्द निकले, ‘‘रूपा, जिस प्यार को तुम दोस्ती का नाम दे रही हो, इस से अच्छा है कि इसे बेनाम ही रहने दो. मैं देख रहा हूं तुम्हारा व्यवहार बदल रहा है.’’

चंद्रशेखर अभी कुछ और बोलने ही जा रहा था कि रूपा यह कहते हुए वहां से चली गई कि तुम्हें जो समझना है, समझते रहो. इतना मान कर चलो कि अब मैं तुम से कभी नहीं मिलूंगी.

उलझी हुई पहेली, जो सुलझ गई – भाग 2

इसी उधेड़बुन में वे नव्या के मायके पहुंचे. नव्या के मांबाप फिर मुकुल का नाम ले कर शोर मचाने लगे. राघव ने उन को समझाया.

‘‘देखिए हम मुलजिम को जरूर पकड़ेंगे लेकिन जल्दबाजी किसी निर्दोष को फंसा सकती है, इसलिए हमारा सहयोग कीजिए.’’

नव्या के पिता ये सुन कर शांत हुए. उन्होंने हर तरह से सहयोग देने की बात कही.

राघव ने पूछा, ‘‘नव्या का मुकुल के अलावा किसी से कोई विवाद था?’’

‘‘नहीं इंसपेक्टर साहब.’’ नव्या के पिता बोले, ‘‘उस की तो सब से दोस्ती थी, बैंक में भी सब उस से खुश रहते थे.’’

‘‘और विमल से उस का क्या रिश्ता था?’’ राघव ने उन के चेहरे पर गौर से देखते हुए सवाल किया. वे इस पर थोड़ा अचकचा गए.

‘‘व…वो…वो…दोस्ती थी उस से भी… मुकुल बेकार में शक किया करता था उन के संबंध पर.’’

राघव ने इस समय इस से ज्यादा कुछ पूछना ठीक नहीं समझा. वो वहां से निकल गए. अगले कुछ दिन इधरउधर हाथपैर मारते बीते. उन्होंने नव्या के बैंक जा कर उस के बारे में जानकारियां जुटाईं. सब ने साधारण बातें ही बताई. कोई नव्या और विमल के रिश्तों के बारे में कुछ कहने को तैयार नहीं था.

राघव ने नव्या के उस शाम बैंक से निकलते समय की सीसीटीवी फुटेज निकलवा कर देखी. वह अकेली ही अपनी कार में बैठती दिख रही थी. राघव की अन्य कर्मचारियों से तो बात हुई, लेकिन विमल से मुलाकात नहीं हो सकी, क्योंकि वह नव्या की मौत के बाद से ही छुट्टी पर चला गया था.

उन्होंने उस का पता निकलवाया और अपनी टीम के साथ उस के घर जा धमके. वह उन को देख कहने लगा, ‘‘इंसपेक्टर साहब, मैं खुद बहुत दुखी हूं नव्या के जाने से, पागल जैसा मन हो रहा मेरा, मुझे परेशान मत करिए.’’

विमल की हकीकत क्या थी?

‘‘हम भी आप के दुख का ही निवारण करने की कोशिश में हैं विमल बाबू.’’ राघव ने अपना काला चश्मा उतारते हुए कहा, ‘‘आप भी मदद करिए, हम दोषियों को जल्द से जल्द सलाखों के पीछे डालना चाहते हैं.’’

‘‘पूछिए, क्या जानना चाहते हैं आप.’’ वो सोफे पर निढाल होता बोला. सवालजवाब का दौर चलने लगा. विमल ने बताया कि उस ने उस दिन नव्या को औफिस के बाद अपने घर बुलाया था. लेकिन उस ने मना कर दिया कि पति से झगड़ा और बढ़ जाएगा. वह अपनी कार से निकल गई थी. उस ने अगले दिन किसी पारिवारिक कारण से औफिस न आने की बात की थी. हां, विमल ने भी ये नहीं स्वीकारा कि नव्या से उस की बहुत अच्छी दोस्ती से ज्यादा कोई नाता था.

‘‘ठीक है, विमल बाबू.’’ राघव ने उठते हुए कहा, ‘‘आप का धन्यवाद. फिर जरूरत होगी तो याद करेंगे… बस आप ये शहर छोड़ कर कहीं मत जाइएगा.’’

‘‘जी जरूर.’’

राघव की जीप वहां से चल दी. अब तक इस केस में कुछ भी ऐसा हाथ नहीं लग पाया था जिस से तसवीर साफ हो. उन्होंने अपने मुखबिरों के माध्यम से भी पता लगाना चाहा कि नव्या की हत्या के लिए क्या किसी लोकल गुंडे ने सुपारी ली थी. लेकिन ऐसा भी कुछ मालूम नहीं हो सका. किसी गैंग की भी ऐसी कोई सुपारी लेने की बात सामने नहीं आ पा रही थी.

शाम को राघव घर जाने के लिए निकलने ही वाले थे कि सिपाही ने एक लिफाफा ला कर दिया और बोला, ‘‘साब, ये अभी आया डाक से… लेकिन भेजने वाले का कोई नाम, पता नहीं लिखा.’’

राघव ने लिफाफे को खोला. उस में एक सीडी और चिट्ठी थी. उन्होंने उसे पढ़ना शुरू किया. उस में लिखा था, ‘‘इंसपेक्टर साहब, आप को नव्या के बैंक में जो सीसीटीवी फुटेज दिखाई गई, वो पूरी नहीं थी. विमल ने उस में पहले ही एडिटिंग करा दी थी. नव्या की मौत वाली शाम विमल उस के साथ उस की ही कार में निकला था. आप को इस बात का सबूत इस सीडी में मिल जाएगा.’’

चिट्ठी पढ़ते ही राघव की आंखों में चमक आ गई. उन्होंने जल्दी से उसे अपने लेपटौप पर लगाया. वाकई वीडियो में विमल उस शाम नव्या की कार में अंदर बैठता दिख रहा था. राघव को अपना काम काफी हद बनता लगा. वे सिपाहियों के साथ सीधे विमल के घर पहुंचे. देखा कि वह कहीं जाने के लिए पैकिंग कर रहा था. राघव पुलिसिया अंदाज में उस से बोले, ‘‘कहां चले विमल बाबू? आप को शहर से बाहर जाने को मना किया था न?’’

वो उन्हें वहां पा कर घबरा गया और हकलाने लगा.

‘‘म…मैं क…कहीं नहीं जा रहा. बस सामान सही कर रहा था.’’

‘‘इस की जरूरत अब नहीं पड़ेगी.’’ राघव ने फिर कहा, ‘‘चल थाने, वहीं सब सामान मिलेगा तुझे.’’

विमल कसमसाता रहा, खुद को निर्दोष बताता रहा लेकिन सिपाहियों ने उसे जीप में डाल लिया. लौकअप में राघव के थप्पड़ विमल को चीखने पर मजबूर कर रहे थे. वह किसी तरह बोला, ‘‘सर, मैं ने कुछ नहीं किया, हां मैं उस के साथ निकला जरूर था लेकिन रास्ते में उतर गया था, वो आगे चली गई थी.’’

‘‘तो हम से ये बात छिपाई क्यों?’’ राघव ने उसे कड़कदार 2 थप्पड़ और लगाते हुए पूछा.

‘‘म्म्म मैं घब…घबरा गया था साहब कि कहीं मेरा नाम शक के दायरे में न आ जाए.’’

राघव ने उस के सैंपल लैब में भिजवा दिए जिस से नव्या के गुप्तांगों और कपड़ों पर मिले वीर्य से उस का मिलान करा के जांच की जा सके. रिपोर्ट तीसरे दिन ही आ गई. सचमुच नव्या के जिस्म से जितने लोगों के वीर्य मिले थे, उन में एक विमल से मैच कर गया.

राघव ने मारमार के विमल की देह तोड़ दी. उन्होंने उस से पूछा, ‘‘बोल, बोल तूने नव्या को क्यों मारा?’’

विमल ने खोला भेद, लेकिन अधूरा

‘‘साब मैं ने कुछ नहीं किया.’’ वो जोरजोर से रोते हुए बोला, ‘‘हां मैं ने कार में उस के साथ जिस्मानी संबंध जरूर बनाए थे लेकिन उस को मारा नहीं… मैं सैक्स कर के उतर गया था उस की गाड़ी से.’’

‘‘स्साला.’’ राघव का गुस्सा बढ़ता जा रह था. वे उस पर गरजे, ‘‘रुकरुक के बातें बता रहा है. जैसेजैसे भेद खुलता जा रहा है वैसेवैसे रंग बदल रहा है. तू मुझ से करेगा होशियारी?’’

उन्होंने फिर से मुक्का ताना लेकिन विमल बेहोश होने लगा था. वे उसे वहीं छोड़ कर बाहर निकले.

‘‘इस को तब तक कुरसी से मत खोलना जब तक ये पूरी बात न बता दे.’’ शर्ट पहनतेपहनते उन्होंने सिपाही को आदेश दिया. वहां नव्या के मायके वाले भी आए हुए थे. विमल के बारे में जान कर उन्हें मुकुल पर लगाए अपने आरोपों पर बहुत पछतावा हो रहा था.

‘‘इस ने अपना जुर्म कबूल किया क्या इंसपेक्टर साहब?’’ नव्या के पिता ने जानना चाहा.

‘‘नहीं, अभी तक अपनी बेगुनाही का रोना रो रहा है. चालू चीज लगता है ये.’’ राघव ने लौकअप की ओर देख के उत्तर दिया. नव्या के मांबाप सीधे मुकुल के घर पहुंचे.

‘‘बेटा, हम को माफ कर देना, हम ने आप पर शक किया.’’ नव्या की मां उस से बोली. मुकुल ने धीरे से मुसकरा के सिर हिलाया. तब तक उस की मां चायपानी ले आई थी. कुछ दिन बीत गए. राघव ने विमल से सच जानने के लिए पूरा जोर लगा रखा था लेकिन वह यही दोहराता रहता कि वो निर्दोष है. उस के वकील के आ जाने से अब उस पर सख्ती करना भी मुश्किल लग रहा था.

जेल में बंद कैदियों की दास्तान

मुझे अपनी सहेली, जो कि जज हैं, के साथ जेल में सैक्स अपराध के आरोपों में बंद कैदियों से बात करने का मौका मिला था. एक 24 साला कैदी ने बताया, ‘‘मैं गांव का रहने वाला हूं. शहर में मैं एक कारखाने में काम करता था. मैं जिस मकान में रहता था, वे दोनों पतिपत्नी ही उस मकान में रहते थे. उन की शादी को कई साल हो चुके थे, मगर उन के कोई बच्चा नहीं हुआ था.

‘‘30 साला मकान मालिक भी एक कारखाने में चौकीदारी करता था और रात की ड्यूटी करता था. एक रात जब वह ड्यूटी पर चला गया, तो उस की पत्नी मेरे कमरे में आई. उस समय मैं शराब पी रहा था. उस ने इतने झीने कपड़े पहन रखे थे कि उस के शरीर के सभी मादक अंग साफसाफ दिखाई दे रहे थे.

‘‘वह मुझे देख कर मुसकराने लगी.  मैं हैरानी से उस की ओर देखने लगा, तो वह मुसकराते हुए बोली, ‘मुझे नहीं पिलाओगे क्या?’

‘‘इतना सुन कर मैं ने उसे एक पैग बनाया, तो उसे पी कर वह मुझ से बुरी तरह से लिपट कर बोली, ‘मैं अब रातभर तुम से मजे लूंगी. मेरा पति तो कुछ कर नहीं पाता है. वह जरा सी देर में पस्त हो जाता है. मैं प्यासी ही रह जाती हूं.’

‘‘इतना कह कर वह मेरा हाथ पकड़ कर बिस्तर पर ले गई और फिर हम दोनों ने वह किया, जो हमें नहीं करना चाहिए था. उस के बाद तो हम दोनों का यह रोजाना का ही खेल हो गया था.

‘‘एक साल तक हम दोनों का यह खेल चलता रहा, मगर एक रात उस का पति अचानक गांव से लौट आया.

‘‘मकान की एक चाबी उस के पास थी. जब कमरे में उस की बीवी नहीं मिली, तो वह मेरे कमरे पर आया. मेरे कमरे की लाइट जली हुई थी और कमरे का दरवाजा भी खुला हुआ था.

‘‘मैं और उस की बीवी अपने खेल में मस्त थे. यह देख कर उस ने अपने पड़ोसियों को वहां पर बुला लिया.

‘‘जब उस की बीवी ने अपने आपको फंसता हुआ देखा, तो वह रोते हुए बोली, ‘यह मुझे रोजाना जबरदस्ती पकड़ लेता है. मैं मना करती हूं, तो यह मेरे पति को जान से मारने की धमकी देता है. मैं डर कर इस की हवस का शिकार होती हूं. इसे खूब मारो और पुलिस के हवाले कर दो, तभी इस नीच से हमारा पीछा छूटेगा.’

‘‘उस की इन बातों को सुन कर उस के पति और पड़ोसियों ने मुझे खूब मारा और फिर पुलिस के हवाले कर दिया था.

‘‘मेरे बारे में जब मांबाप को मालूम हुआ, तो उन्होंने दुखी हो कर खुदकुशी कर ली. मकान मालकिन के चक्कर में मेरी जिंदगी बरबाद हो गई है,’’ कहते हुए वह कैदी बुरी तरह रोने लगा.

एक 55 साला कैदी से भी बात करने का मौका मिला. वे बोले, ‘‘मैं एक गांव के राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में प्राचार्य था. मैं अनुशासनप्रिय था. मेरी इस बात के चलते शहर से रोजाना स्कूल आने वाली 2 टीचर मुझ से नाराज रहती थीं. वे रोज ही देर से स्कूल आती थीं.

‘‘एक दिन देर से आने वाली एक टीचर को अपने कमरे में बुला कर डांटा, तो उस ने अपना ब्लाउज फाड़ कर

बुरी तरह से दहाड़ मार कर रोते हुए ‘बचाओबचाओ’ की आवाज लगा कर स्टाफ को वहां बुला लिया.

‘‘जब स्टाफ वहां आया, तो उस ने रोते हुए बताया कि मैं उस की आबरू से खिलवाड़ कर रहा था. दूसरी टीचर भी सभी से कह रही थी कि यही हरकत मैं कई बार उस से भी कर चुका हूं.

‘‘तब तक गांव के और लोग भी वहां आ गए थे. उन्होंने मुझे टीचर के नाम पर  कलंक मान कर उसी समय पुलिस को फोन कर मुझे गिरफ्तार करा दिया था.

‘‘बाद में मुझे पता चला कि उन्हें अपनी एक रिश्तेदार प्राचार्य को मेरे उस स्कूल में लाना था, ताकि वे अपनी मरजी से स्कूल आएंजाएं.’’

उन प्राचार्य की दास्तान सुन कर मुझे और मेरी जज सहेली को यकीन ही नहीं हो पा रहा था कि स्कूल के एक प्राचार्य के साथ ऐसी भी घिनौनी साजिश रच कर उन की जिंदगी बरबाद करने वाली टीचर भी शिक्षा विभाग में मौजूद हैं.

फिर हमें सैक्स अपराध के आरोप में जेल में बंद एक 40 साला कैदी ने बताया, ‘‘मैं अपने एक दोस्त की मदद करने की भूल की सजा भुगत रहा हूं.

‘‘उस की छोटी बहन की शादी थी. उस ने कहा कि मैं पैसे उधार ले कर उस की मदद कर दूं. मैं ने किसी जानपहचान वाले से पैसे उधार ले कर उस की मदद कर दी.

‘‘उस की बहन की शादी को काफी समय हो गया था, मगर मेरे उस दोस्त ने मुझे एक भी पैसा नहीं लौटाया था.

‘‘एक दिन मैं ने उस दोस्त से पैसे मांगे, तो वह साफ मुकर गया कि मैं ने उसे पैसे दिए ही नहीं थे.

‘‘मैं ने उसे याद दिलाते हुए पैसों के लिए कहा, तो दोस्त और उस की बीवी ने मुझे सैक्स अपराध के आरोप में जेल भिजवाने की साजिश रची.

‘‘मुझे उस की बीवी ने अपने घर पर बुलाया. मैं जब उस के घर गया, तो वह बड़े प्यार से बोली, ‘तुम्हारे दोस्त तो पैसों के इंतजाम के लिए बाहर गए हुए हैं.  3-4 दिन बाद लौटेंगे. तब तक आप यहीं रहें. मुझे मर्द के साथ सोए बगैर रात में नींद नहीं आती है. रातभर खूब मजे लेंगे,’ कह कर उस ने मुझे शराब पिलाई.

‘‘शराब पिलाने के बाद वह मुझ से बोली कि मैं उसे अपनी गोद में उठा कर पलंग पर ले जाऊं और उस के बदन के कपड़ों को फाड़ते हुए ऐसा करूं, जैसे तुम मुझ से जबरदस्ती कर रहे हो.

‘‘उस की इन बातों को सुन कर मैं ने ऐसा ही किया था. जब वह दर्द से चिल्लाने लगी, तो उस का पति आ गया.

‘‘अपनी बीवी को इस हालत में

देख वह बौखला गया. बोला, ‘तू ने मेरी बीवी के साथ यह क्या किया. अभी तुझे गिरफ्तार कराता हूं,’ कह कर उस ने मुझे गिरफ्तार करा दिया.’’

उस कैदी की दुखभरी दास्तान सुन कर मैं और मेरी जज सहेली मन ही मन सोच रही थीं कि यह कैसा जमाना आ गया है कि किसी पर रहम खा कर उस की मदद करते हैं, तो मदद पाने वाला अपनी मदद करने वाले के खिलाफ ही साजिश रच कर उस की जिंदगी तबाह कर देता है.

जेल से लौटते समय मैं और मेरी जज सहेली जेल में बंद सैक्स अपराध के इन आरोपी कैदियों की दास्तान सुन कर इसी नतीजे पर पहुंची थीं कि ज्यादातर  कैदी दूसरों की साजिश के शिकार हो कर ऐसी बदहाल जिंदगी जीने को मजबूर हो रहे हैं.

उल्टी पड़ी चाल : कैसे सामने आई काजी वहीद की हकीकत – भाग 2

‘‘आप ने खुद किस्सा कह कर बात साफ कर दी. यह सरासर मनघडंत कहानी है. वह सरासर झूठ बोल रहा है. घर की तलाश में वह मेरे औफिस में आता रहता था. 14 अक्तूबर की शाम भी वह आया था. मैं ने उस से कहा था जल्द ही अच्छा घर बताऊंगा.

‘‘बातोंबातों में मैं ने एक लाख का जिक्र किया था कि पार्टी ने एक लाख रुपए की पेमेंट कर के सेल एग्रीमेंट बनवा लिया है, जिस के अनुसार पार्टी एक माह के अंदर बाकी के 5 लाख रुपए अदा कर के मेरे घर का कब्जा ले लेगी. इस बीच बिक्री के पूरे दस्तावेज तैयार हो जाएंगे.’’

‘‘यानी आप ने मुल्जिम को यह बता दिया था कि आप के घर में एक लाख की रकम रखी है?’’ वकील इस्तेगासा ने चालाकी से पूछा.

‘‘जी हां, बिलकुल उसे यह बात खबर हो गई थी. अगले दिन ही शैतान ने मेरे घर पर धावा बोल दिया और ऐसा वक्त चुना जब मैं घर पर नहीं था. उसे मालूम था मेरी बीवी रशीदा कमजोर और बीमार है. उस ने इस का फायदा उठाते हुए मेरे घर से एक लाख उड़ा लिए और जब रशीदा ने उस का विरोध किया तो उस का गला घोंट कर मार डाला.

‘‘इत्तफाक से मैं उस दिन जल्दी घर आ गया और मैं ने उसे तेजी से मेरे घर से जाते हुए देख लिया. मैं समझा अपना कोई बचा हुआ सामान लेने आया होगा, पर जब मैं बेडरूम में दाखिल हुआ, मैं ने अपनी बीवी को मुर्दा हालत में पड़े देखा.’’ काजी ने रोनी आवाज में कहा.

वकील इस्तेगासा ने अपनी जिरह खत्म करते हुए कहा, ‘‘योर औनर, यह इंसान नहीं वहशी दरिंदा है. इसे जितनी सख्त सजा दी जाए कम है.’’

अपनी बारी पर जज से इजाजत ले कर मैं बिटनेस बौक्स के करीब पहुंच गया.

‘‘काजी साहब, मैं आप से सादा सा सवाल पूछूंगा. सच बताइए क्या आप वाकई अपना मकान बेचना चाहते थे?’’ मैं ने चुभते लहजे में पूछा.

‘‘आप का क्या मतलब है? अगर मुझे मकान बेचना ना होता तो मैं पार्टी से एक लाख रुपए वसूल कर के सेल एग्रीमेंट पर दस्तखत क्यों करता?’’ उस ने गुस्से से कहा.

‘‘इस सेल एग्रीमेंट के अनुसार पार्टी को एक माह के अंदर 5 लाख रुपए अदा कर के मकान का कब्जा ले लेना था. क्या आप ने मकान पार्टी के हवाले कर दिया है?’’

‘‘नहीं, मैं अभी तक अपने ही मकान में रह रहा हूं.’’

‘‘एग्रीमेंट के मुताबिक इस शर्त पर आप अमल नहीं करते तो आप को पार्टी को डील कैंसल कर के 2 लाख देने पड़ते क्या आप ने 2 लाख अदा किए?’’

‘‘दुनिया में सब इंसान मुल्जिम की तरह फरेबी और मतलबी नहीं होते. मेरी बीवी के कत्ल और एक लाख की चोरी के बाद पार्टी ने मुझ पर कोई दबाव नहीं डाला और कहा कि अगर मैं घर ना बेचना चाहूं तो उन के एक लाख रुपए सहूलियत से वापस कर दूं. और मैं ने उधार ले कर रकम लौटा दी. इस तरह मामला सेटल हो गया.’’

‘‘इस तरह के मामलात इतनी आसानी से सेटल नहीं होते. सेल एग्रीमेंट की एक नकल जिस में आप ने एक लाख एडवांस लिए थे, अदालत में पेश करते तो यह एक पक्का सबूत होता.’’

‘‘अगर अदालत का हुक्म होगा तो मैं एग्रीमेंट की कौपी ले आऊंगा.’’

‘‘और अगर पार्टी की गवाही की जरूरत पड़ी तो?’’

‘‘तो मैं पार्टी को भी अदालत में ला सकता हूं.’’

‘‘क्या मैं इस पार्टी का नामपता जान सकता हूं?’’

‘‘मैं आप को कोई भी जवाब देने का पाबंद नहीं हूं. अगर अदालत मुझ से कहेगी तो बता दूंगा.’’

‘‘काजी साहब, आप अदालत में ना तो सेल एग्रीमेंट की कौपी पेश कर सकते हैं और ना पार्टी को हाजिर कर सकते हैं. यह बिक्री सिर्फ एक साजिशी ड्रामा था जो आप ने मेरे क्लाइंट को फंसाने के लिए रचा था. हकीकत तो यह है, काजी साहब, आप इस मकान को बेचने का हक ही नहीं रखते. फिर कहां की पार्टी और कहां का सेल एग्रीमेंट?’’

काजी का चेहरा पीला पड़ गया. वह हकलाया, ‘‘यह…यह… आप क्या कह रहे हैं?’’

‘‘एक लाख दे कर 2 कमरे मिलने पर वह बेहद खुश था, पर काजी ने अपनी मक्कारी और साजिश से उसे कटघरे में खड़ा कर दिया. उस का कसूर बस इतना है कि उस ने काजी की बातों का भरोसा किया. काजी से उसे जज्बात की मार मारी थी, जिस की वजह से वह बिना किसी लिखापढ़ी के इतना बड़ा सौदा कर बैठा.’’

विपक्ष के वकील ने जमानत का विरोध करते हुए कहा, ‘‘मुलजिम पढ़ालिखा समझदार आदमी है. बैंक में काम करता है. वह इतना बेवकूफ हरगिज नहीं हो सकता कि आंख बंद कर के किसी के बहकावे में एक लाख इनवेस्ट कर दे. यह बेहद चालाक आदमी है. अपनी मजबूरी का रोना रो कर काजी का किराएदार बना. फिर बीमार बीवी की खिदमत कर के उन के दिल में जगह बना ली. काफी दिनतक वह उन के घर में रहा, जब उस का मकसद पूरा हो गया तो उस ने काजी वहीद साहब से घर छोड़ कर जाने की बात की और साथ ही एक लाख रुपए की डिमांड भी की.

‘‘जब काजी ने कहा कि घर पर उस का एक पैसा भी खर्च नहीं हुआ है, तब वह गुस्से से पागल हो गया. दोनों के बीच काफी झगड़ा हुआ. तभी मुलजिम ने उन्हें खतरनाक अंजाम भुगतने की धमकी दी और 15 अक्तूबर की शाम को धमकी पूरी कर दिखाई.

‘‘मौका पा कर वह ऐसे वक्त पर मकतूला के घर में घुसा, जब उस का शौहर नहीं था. उस ने अलमारी से एक लाख रुपए चोरी किए. मकतूला के विरोध करने पर उस ने उसे गला घोंट कर मार दिया. जब वह घर से फरार हो रहा था, तभी काजी वहां पहुंच गया.

‘‘उस ने उसे जाते देख लिया, काजी फौरन घर में घुसा. हकीकत किसी बम की तरह उस के सिर पर फटी. उस की बीवी बेडरूम में मुर्दा पड़ी थी. उसे गला घोंट कर मार दिया गया था और खुली अलमारी से एक लाख रुपए गायब थे.’’

मैं ने अपने मुवक्किल की जमानत पर जोर देते हुए कहा, ‘‘योर औनर, विपक्ष के वकील सच्चाई को तोड़मरोड़ कर सामने रख रहे हैं. ना तो मेरे मुवक्किल ने उस की बीवी का कत्ल किया और ना ही उस की अलमारी से एक लाख रुपए चुराए.

उलझी हुई पहेली, जो सुलझ गई – भाग 1

पेड़ो के नीचे एक लड़की का निर्वस्त्र शव बरामद हुआ था, जो खरोंचों से भरा था. आशंका थी कि बलात्कार के बाद उस की हत्या की होगी. मृतका के पास मिले कागजातों से पता चला कि वह शव असिस्टेंट बैंक मैनेजर नव्या का था. उस की कार भी वहां से कुछ दूर खड़ी मिली. पुलिस वाले मुस्तैदी से अपने काम में जुटे थे. तभी जीप रुकी और एसआई राघव उतरे.

‘‘लाश को सब से पहले किस ने देखा था?’’ राघव ने कांस्टेबल से पूछा.

‘‘इस आदिवासी लड़की ने सर.’’ कांस्टेबल एक दुबलीपतली लड़की की ओर इशारा कर के बोला, ‘‘ये खाना बनाने के लिए यहां से सूखी लकडि़यां ले जाती है.’’

‘‘हुम्म.’’ राघव ने उस लड़की पर नजर डालते हुए अगला सवाल किया, ‘‘और मृतका के घर वाले…’’

‘‘ये हैं सर.’’ कांस्टेबल की उंगली घटनास्थल से थोड़ा हट के खड़े कुछ लोगों की ओर घूम गई. राघव उन के पास गए. एक से पूछा, ‘‘आप का मरने वाली से रिश्ता?’’

‘‘पति हूं उस का.’’ उस ने शून्य में देखते हुए जवाब दिया.

‘‘नाम?’’

‘‘मुकुल.’’

‘‘और ये लोग…’’ राघव ने उस के साथ खड़े लोगों के बारे में जानना चाहा.

‘‘यह मेरा छोटा भाई प्रताप और ये मेरे पापा.’’ मुकुल ने वहां खडे़ नौजवान और बुजुर्ग से राघव का परिचय कराया. राघव गौर से मुकुल का चेहरा देख रहे थे. उस के चेहरे पर अपनी बीवी की मौत का कोई दुख दिखाई नहीं दे रहा था. उसी समय कुछ पुरुष और महिलाएं रोते हुए वहां पहुंचे. पुलिस उन को घेरे के अंदर जाने से रोकने लगी.

‘‘साहब, मैं इस का पिता हूं.’’ उन में से एक ने किसी तरह कहा.

‘‘हम यहां कुछ जरूरी काम कर रहे हैं.’’ एक कांस्टेबल ने उसे समझाने की गरज से कहा, ‘‘थोड़ी देर में लाश आप को हैंडओवर कर देंगे.’’

एक औरत की स्थिति देख राघव ने अंदाजा लगा लिया कि वह मृतका की मां होगी. लाश का पंचनामा कर उन्होंने उसे पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. भीड़ छंटने लगी थी. शाम को राघव मुकुल के घर पूछताछ के लिए पहुंचे, वो घर पर अकेला मिला. उन्होंने उस से सवाल किया, ‘‘आप को अपनी पत्नी की मौत के बारे में किस से पता चला और आप उस समय कहां थे?’’

‘‘मुझे किसी सिपाही ने फोन किया था लाश मिलने के बारे में…’’ वह सिर झुकाएझुकाए बोला, ‘‘मैं यहीं पर था.’’

‘‘आप ने उसे आखिरी बार कब देखा?’’ उन्होंने अगला प्रश्न किया.

‘‘जब कल सुबह वो औफिस के लिए निकली थी.’’

‘‘उस के बाद बात नहीं हुई?’’

‘‘नहीं, उस को कौन सा मुझ से बात करना पसंद था.’’ मुकुल ने लंबी सांस लेते हुए कहा, ‘‘वो औफिसर हो गई थी, अपने बड़ेबड़े ओहदे वाले परिचितों से उस का ज्यादा संपर्क रहता था.’’

राघव समझ गए कि अहं के टकराव ने रिश्तों को तोड़ दिया है. अपनी बात कहतेकहते मुकुल रो पड़ा. उस ने अपनी जो पारिवारिक कहानी बताई, उस के अनुसार वह किराना स्टोर चलाता था. ज्यादा पढ़ालिखा न होने के कारण खुद तो कभी नौकरी की तैयारी नहीं कर सका, लेकिन अपनी जिंदगी में ग्र्रैजुएट नव्या के आने के बाद उस को परीक्षाएं देने के लिए प्रेरित जरूर किया.

पति की कोशिश रंग लाई पर नव्या ने अपना अलग रंग दिखाया

नव्या भी पढ़ना चाहती थी लेकिन घर की खराब आर्थिक स्थिति ने उस के सपने चुरा लिए थे. वह खुशीखुशी मुकुल की बात मान गई. मुकुल ने उस की पढ़ाई का सारा खर्च उठाने से ले कर हर तरह का सहयोग किया, जिस का सुखद परिणाम भी सामने आया. नव्या ने कुछ ही प्रयासों में बैंक पीओ का इम्तिहान पास कर लिया.

मुकुल की खुशी का ठिकाना नहीं था लेकिन उस के अरमानों को किसी की नजर लग गई. नव्या का अफेयर अपने एक युवा अधिकारी विमल से चलने लगा. पति अब उसे गंवार और बेकार लगने लगा था. घर में झगड़े शुरू हो गए लेकिन मुकुल उसे तलाक देने में अपनी हार देख रहा था. इसलिए वह उसे तरहतरह से समझाने में लगा रहा. नव्या के घर वाले भी पशोपेश में पड़ गए थे. एक तरफ मुकुल जैसा मध्यवर्गीय लेकिन सुलझा हुआ दामाद, दूसरी ओर विमल की शानोशौकत.

राघव वहां से चल पड़े. अगले दिन पोस्टमार्टम के बाद नव्या का शव उस के मायके वालों को सौंप दिया गया. मुकेश ने उस पर कोई दावा नहीं जताया था और न ही दाहसंस्कार में उस के परिवार से कोई शामिल हुआ. नव्या के मांबाप लगातार मुकुल को खूनी बता रहे थे.

लेकिन राघव इस केस में आगे कुछ करने से पहले पोस्टमार्टम रिपोर्ट देख लेना चाहते थे. उन्होंने केस से जुड़े सभी लोगों को शहर छोड़ कर कहीं नहीं जाने को कहा और पोस्टमार्टम रिपोर्ट का इंतजार करने लगे.

जल्द ही वह भी आ गई. नव्या के साथ मौत से पहले सामूहिक बलात्कार की पुष्टि हुई. लेकिन आश्चर्य की बात ये थी कि मौत का कारण ज्यादा नींद की गोलियां लेना बताया गया था.

राघव का दिमाग चकराने लगा कि भला ये कौन से नए अपराधी आ गए जो जंगल में में जा कर बलात्कार करें और फिर नींद की गोली दे कर हत्या. मारना ही था तो गला दबा सकते थे, चाकू का इस्तेमाल कर सकते थे.

वैसे भी लाश की हालत से स्पष्ट था कि दोषियों ने हैवानियत की सभी सीमाएं पार कर डाली थीं और अगर नव्या ने बलात्कार के कारण दुखी हो कर आत्महत्या की थी तो उस सुनसान इलाके में उस के पास नींद की गोलियां आईं कैसे? उस का तो बैग तक उस की कार में ही रह गया था. इस के अलावा किसी दवा का कोई खाली रैपर आदि भी वहां से नहीं मिला था.

मेरी नहीं तो किसी की नहीं – भाग 1

रूपा परेशान थी. सड़क किनारे खड़ी वह कभी सड़क पर आतीजाती गाडि़यों को देखती तो कभी कलाई घड़ी की ओर. जैसेजैसे घड़ी की सुइयां आगे को सरक रही थीं, उस की बेचैनी भी बढ़ती जा रही थी. परेशान लहजे में वह स्वयं ही बड़बड़ाई, ‘लगता है, आज फिर लेट हो जाऊंगी कालेज के लिए.’

उस के चेहरे पर झुंझलाहट के भाव नुमाया हो रहे थे. एक बार फिर उस ने उम्मीद भरी निगाहों से दाईं ओर देखा. कोई चार पहिया मार्शल गाड़ी आ रही थी. रूपा ने इशारा कर के गाड़ी रुकवा ली. ड्राइवर ने उस से पूछा, ‘‘कहां जाना है?’’

‘‘मैं कालेज जाने को लेट हो रही हूं. कोई साधन नहीं मिल रहा. अगर आप मुझे लिफ्ट दे देंगे तो मेहरबानी होगी.’’ रूपा बोली.

‘‘हां हां, मैं कालेज की ओर ही जा रहा हूं. आओ, मैं तुम्हें छोड़ दूंगा.’’ कहते हुए ड्राइवर ने गेट खोल दिया. रूपा तनिक झिझकी फिर ड्राइवर की बगल वाली सीट पर जा बैठी.

बेलसोंडा से उस का कालेज करीब 8 किलेमीटर दूर महासमुंद में था. वह करीब 10 मिनट में अपने कालेज पहुंच गई.

कालेज के सामने पहुंचते ही ड्राइवर ने गाड़ी रोक दी. उतर कर रूपा थैंक यू कह कर तेज कदमों से चली ही थी कि ड्राइवर ने उसे आवाज दी, ‘‘सुनो…’’

सुनते ही रूपा ने ड्राइवर की तरफ पलट कर देखा तो ड्राइवर ने रुमाल उठा कर रूपा की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘ये शायद आप का है.’’

गुलाबी रंग के उस रुमाल के एक किनारे पर सफेद रंग के थागे से कढ़ाई की गई थी. उस पर रूपा लिखा हुआ था.

‘‘हां, मेरा ही है.’’ रूपा उस से रुमाल लेते हुए बोली.

‘‘आप का नाम रूपा है?’’ ड्राइवर ने पूछा. रूपा ने हौले से सिर हिला दिया और मुसकरा कर कालेज की तरफ चली गई.

ड्राइवर तब तक रूपा को देखता रहा जब तक वह दिखाई देती रही. रूपा के ओझल होते होने के बाद ही वह वहां से गया. युवक ड्राइवर का नाम चंद्रशेखर था और वह नदी मोड़ घोड़ारी का रहने वाला था. रूपा से वह बहुत प्रभावित हुआ.

इस रूट पर उस का अकसर आनाजाना होता था. इस के बाद वह रूपा के आनेजाने के समय उस रोड पर चक्कर लगाने लगा.

जब भी रूपा उसे मिलती, वह ऐसा जाहिर करता मानो अचानक उस से मुलाकात हो गई हो. वह रूपा को कार से उस के कालेज तक और कभी कालेज से उस के घर के पास तक छोड़ देता.

रूपा इस बात को समझने लगी थी कि इत्तफाक बारबार नहीं होता.

महीने में वह कई बार महासमुंद से बेलसोंडा और बेलसोंडा से महासमुंद आईगई होगी.

सफर भले ही 10 मिनट का होता था लेकिन दोनों को सुकून चौबीस घंटे के लिए मिल जाया करता था. इस बीच दोनों एकदूसरे के बारे  में काफी कुछ जान चुके थे. इस छोटी सी यात्रा के दरमियान दोनों एकदूसरे से खुल गए थे. धीरेधीरे दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ती गईं और कभीकभी वे गाड़ी से लंबी दूरी के लिए घूमने निकलने लगे.

एक दिन चंद्रशेखर लौंग ड्राइव पर निकला तो मार्शल गाड़ी के मालिक ने उसे देख लिया. मालिक ने उस समय तो कुछ नहीं कहा लेकिन शाम को उस ने चंद्रशेखर से पूछा, ‘‘तुम गाड़ी में किस लड़की को बिठा कर घूमते हो?’’

‘‘साहब, किसी को ले कर नहीं घूमता. बस एकदो बार बेलसोंडा की रहने वाली एक लड़की को उस के कालेज तक छोड़ा था. इस से ज्यादा कुछ नहीं.’’

चंद्रशेखर ने आगे कहा, ‘‘साहब,मैं पूरी ईमानदारी के साथ आप की सेवा करता रहा हूं. आप के हर आदेश पर मैं ने तुरंत अमल किया है और आप इतनी सी बात को ले कर मुझ पर नाराज हो रहे हैं.’’

मार्शल के मालिक ने साफसाफ कह दिया, ‘‘तुम्हारे लिए यह इतनी सी बात होगी लेकिन कल को कोई ऊंचनीच हो गई तो जवाबदेही तो मेरी होगी. अगर तुम्हें नौकरी करनी है तो ठीक से करो. सैरसपाटे के इतने ही शौकीन हो तो खुद की गाड़ी खरीद लो. फिर जहां चाहो, जिसे चाहो बिठा कर घूमते रहना.’’ मालिक ने दोटूक कह दिया.

चंद्रशेखर को मालिक की बात चुभ गई. उस ने बिना किसी पूर्वसूचना के नौकरी छोड़ दी. दूसरेतीसरे दिन वह रूपा से एक निश्चित जगह पर मिलने पहुंचा. वह अपनी बाइक से गया था. बाइक की सीट पर बैठा वह रूपा का इंतजार कर रहा था.

कुछ देर बाद रूपा वहां पहुंची. रूपा के बोलने से पहले ही चंद्रशेखर ने कहा, ‘‘बाइक पर बैठो.’’

रूपा बाइक पर बैठ गई तो वह बाइक ले कर चल दिया. उस वक्त उस की बाइक का रुख महासमुंद की ओर न हो कर रायपुर जाने वाली सड़क की ओर था. रूपा को यह पता नहीं था कि उस के प्रेमी ने नौकरी छोड़ दी है.

उल्टी पड़ी चाल : कैसे सामने आई काजी वहीद की हकीकत – भाग 1

उस रोज औफिस में काफी भीड़ नजर आ रही थी. मेरा पहला क्लाइंट छोटे कद का गोलमटोल सा आदमी था. उस के चेहरे पर हलकी सी दाढ़ी थी. अंदर आते ही उस ने झुक कर मुझे सलाम किया. कुरसी पर बैठने के बाद वह बोला, ‘‘बेग साहब, मेरा नाम अली मुराद है. मैं काफी अरसे से आप को तलाश कर रहा था. मुझे आप के दोस्त हमीद बिजली वालों ने भेजा है. बहुत तारीफ कर रहे थे आप की.’’

‘‘अच्छा, आप को हमीद साहब ने भेजा है. वह मेरे अच्छे दोस्त हैं. बताइए आप का क्या मामला है?’’

अली मुराद ने जवाब दिया, ‘‘मसला मेरा नहीं, मेरे दामाद फुरकान का है. वह बहुत अच्छा इंसान है. उस की अच्छाई ही उस के लिए मुसीबत बन गई.’’

‘‘कैसी मुसीबत?’’ मैं ने पूछा.

‘‘फुरकान पर कत्ल का इलजाम है. उसे 2 रोज पहले पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है.’’

‘‘किस के कत्ल के इलजाम में गिरफ्तार किया है?’’

‘‘फुरकान के मकान मालिक की बीवी रशीदा के कत्ल के इलजाम में.’’

‘‘आप पूरी बात बताइए, अली मुराद.’’

‘‘नहीं जनाब, दरवाजा आड़ में है. किसी की नजर नहीं पड़ सकती थी. मैं वहां से वहीद काजी के औफिस गया, लेकिन वहां भी ताला पड़ा था. मैं ने सारा हाल अपने ससुर को सुना दिया. सुन कर वह भी परेशान हुए. हम ने तय किया कि दूसरे दिन थाने जा कर काजी के फ्रौड की रिपोर्ट दर्ज करा देंगे पर बदकिस्मती से 15 अक्तूबर की रात 11 बजे पुलिस ने मुझे रशीदा के कत्ल और एक लाख रुपए की चोरी के इलजाम में गिरफ्तार कर लिया.’’

इसी के साथ अदालत खत्म हो गई और पेशी की अगली तारीख मिल गई.

अगले 2-3 महीनों में इस्तेगासा की तरफ से 5 गवाहों को अदालत में पेश किया गया, जो वहीद काजी के इलाके के थे. इन गवाहों ने काजी की मर्जी के मुताबिक बयान दिए जो, फुरकान को मुजरिम ठहराते थे. ऐसी कोई खास बात नहीं हुई, जो बताई जाए. इस बीच अली मुराद मुझ से बराबर मिलता रहा और मेरी मांगी हुई जानकारी जुटाता रहा. उस का बड़ा दामाद हैदराबाद से मिलने आया और फुरकान के बाइज्जत बरी होने की तरकीबे बताता रहा.

मंजर इसी अदालत का था. आज की पेशी में काजी वहीद गवाह की हैसियत से कटघरे में खड़ा था. उस ने वही बयान दिया जो पहले दिया था. उस का खुलासा उस के वकील के सवालों से हो जाएगा.

वकील ने पहला सवाल पूछा, ‘‘काजी साहब, आप की मुलजिम के बारे में क्या राय है?’’

‘‘खुदगर्ज, नालायक, अहसान फरामोश इंसान है. मैं ने उस के साथ इतनी नेकी की. फिर भी उस ने मेरी बीवी का कत्ल कर दिया.’’ इस्तेगासा के वकील ने बड़ी चालाकी से जिरह को एक खास रास्ते पे डालते हुए पूछा, ‘‘मुलजिम का दावा है कि उस ने एक लाख रुपए आप की छत पर 2 कमरे बनाने में खर्च किए जो उस ने बैंक से लोन लिए थे. क्या यह सच है?’’

‘‘यह सही है कि उस ने बैंक से एक लाख रुपए लोन लिया था, पर मेरी छत पर कमरे बनाने में एक पैसा भी खर्च नहीं किया. घर की ऊपरी मंजिल मैं ने अपनी कमाई से बनवाई. यह शख्स झूठ बोल रहा है.’’

‘‘क्या आप मुल्जिम का झूठ साबित कर सकते हैं?’’

‘‘हां, मैं ने जो रेत, सीमेंट, सरिया की रसीदें अदालत में पेश की हैं, वह मेरे नाम पर है और मार्च महीने की हैं. जबकि मुल्जिम को लोन 25 मई को मिला था. वह कैसे यह सामान खरीद सकता था? आप बेकार की बातें छोड़ कर मेरी बीवी के कातिल को उस के अंजाम तक पहुंचाएं.’’

वकील इस्तेगासा ने अपनी फाइल में से कुछ कागजात निकाल कर जज की तरफ बढ़ाते हुए कहा, ‘‘जनाबे आली काजी वहीद ने ऊपरी मंजिल बनाने के लिए जो भी सामान खरीदा था, यह उस की रसीदें हैं जो उसी के नाम पर मार्च में काटी गई हैं. जबकि इस में मुल्जिम का बैंक रिकार्ड है, जिस में उसे एक लाख का लोन 25 मई को दिया गया. इस से साबित होता है कि उस ने घर बनाने में एक भी पैसा खर्च नहीं किया. उस का दावा झूठा है. यह सब एक साजिश है.’’

जज ने कागज ले कर गौर से देखना शुरू कर दिया. मैं सारी बातें ठंडे दिमाग से सुन रहा था. मेरे पास जवाबी हमला करने के लिए काफी मसाला था. जज ने कहा, ‘‘वकील साहब, जिरह जारी रखें.’’

वकील ने काजी से पूछा, ‘‘काजी साहब, मुल्जिम का दावा है कि कत्ल के एक दिन पहले 14 अक्तूबर को वह आप से आप के औफिस में मिला था. आप ने उस से वादा किया था कि आप उसे एक लाख रुपया 15 अक्तूबर की शाम को अदा कर देंगे. यह क्या किस्सा है?’’

परी हूं मैं : तरुण ने दिखाई मुझे मेरी औकात – भाग 4

विराज सब समझ कर भी पूर्ण समर्पण भाव से तरुण और अपनी शादी को संभाल रही थी. मेरे सीने पर सांप लोट गया जब मालूम पड़ा कि विराज उम्मीद से है, और सब से चुभने वाली बात यह कि यह खबर मुझे राजीव ने दी.

‘‘आप को कैसे मालूम?’’ मैं भड़क गई.

‘‘तरुण ने बताया.’’

‘‘मुझे नहीं बता सकता था? मैं इतनी दुश्मन हो गई?’’

विराज, राजीव से सगे जेठ का रिश्ता निभाती है. राजीव की मौजूदगी में कभी अपने सिर से पल्लू नीचे नहीं गिरने देती है, जोर से बोलना हंसना तो दूर, चलती ही इतने कायदे से है…धीमेधीमे, मुझे नहीं लगता कि राजीव से इस बारे में उस की कभी कोई बात भी हुई होगी.

लेकिन आज राजीव ने जिस ढंग से विराज के बारे में बात की , स्पष्टतया उन के अंदाज में विराज के लिए स्नेह के साथसाथ सम्मान भी था.

चर्चा की केंद्रबिंदु अब विराज थी. तरुण ने विराज को डिलीवरी के लिए घर भेजने के बजाय अपनी मां एवं नानी को ही बुला लिया था. वे लोग विराज को हथेलियों पर रख रही थीं. मेरी हालत सचमुच विचित्र हो गई थी. राजीव अब भी किताबों में ही आंखें गड़ाए रहते हैं.

और विराज ने बेटे को जन्म दिया. तरुण पिता बन गया. विराज मां बन गई पर मैं बड़ी मां नहीं बन पाई. तरुण की मां ने बच्चे को मेरी गोद में देते हुए एकएक शब्द पर जोर दिया था, ‘लल्ला, ये आ गईं तुम्हारी ताईजी, आशीष देने.’

बच्चे के नामकरण की रस्म में भी मुझे जाना पड़ा. तरुण की बहनें, बूआओं सहित काफी मेहमानों को निमंत्रित किया गया. कार्यक्रम काफी बड़े पैमाने पर आयोजित किया गया था. इस पीढ़ी का पहला बेटा जो पैदा हुआ है. राजीव अपने पुराने नातेरिश्ते से बंधे फंक्शन में बराबरी से दिलचस्पी ले रहे थे. तरुण विराज और बच्चे के साथ बैठ चुका तो औरतों में नाम रखने की होड़ मच गई. बहनें अपने चुने नाम रखवाने पर अड़ी थीं तो बूआएं अपने नामों पर.

बड़ा खुशनुमा माहौल था. तभी मेरी निगाहें विराज से मिलीं. उन आंखों में जीत की ताब थी. सह न सकी मैं. बोल पड़ी, ‘‘नाम रखने का पहला हक उसी का होता है जिस का बच्चा हो. देखो, लल्ला की शक्ल हूबहू राजीव से मिल रही है. वे ही रखेंगे नाम.’’

सन्नाटा छा गया. औरतों की उंगलियां होंठों पर आ गईं. विराज की प्रतिक्रिया जान न सकी मैं. वह तो सलमासितारे जड़ी सिंदूरी साड़ी का लंबा घूंघट लिए गोद में शिशु संभाले सिर झुकाए बैठी थी.

मैं ने चारोें ओर दृष्टि दौड़ाई, शायद राजीव यूनिवर्सिटी के लिए निकल चुके थे. मेरा वार खाली गया. तरुण ने तुरंत बड़ी सादगी से मेरी बात को नकार दिया, ‘‘भाभी, आप इस फैक्ट से वाकिफ नहीं हैं शायद. बच्चे की शक्ल तय करने में मां के विचार, सोच का 90 प्रतिशत हाथ होता है और मैं जानता हूं कि विराज जब से शादी हो कर आई, सिर्फ आप के ही सान्निध्य में रही है, 24 घंटे आप ही तो रहीं उस के दिलोदिमाग में.

इस लिहाज से बच्चे की शक्ल तो आप से मिलनी चाहिए थी. परिवार के अलावा किसी और पर या राजीव सर पर शक्लसूरत जाने का तो सवाल ही नहीं उठता. यह तो आप भी जानती हैं कि विराज ने आज तक किसी दूसरे की ओर देखा तक नहीं है. वह ठहरी एक सीधीसादी घरेलू औरत.’’

औरत…लगा तरुण ने मेरे पंख ही काट दिए और मैं धड़ाम से जमीन पर गिर गई हूं. मुझे बातबात पर परी का दरजा देने वाले ने मुझे अपनी औकात दिखा दी. मुझे अपने कंधों में पहली बार भयंकर दर्द महसूस होने लगा, जिन्हें तरुण ने सीढ़ी बनाया था, उन कंधों पर आज न तरुण की बांहें थीं और न ही पंख.