पत्नी बनने की जिद ने करवाया कत्ल – भाग 2

रशीद के साथ नरगिस की मुलाकात तब हुई जब वह अपनी एक पड़ोसन के लिए संदूक खरीदने उस की दुकान पर गई थी. रशीद को अचानक नरगिस अच्छी लगने लगी थी. वह उस से बात करना चाहता था पर उस दिन साथ में दूसरी औरत होने की वजह से बात नहीं कर सका. लेकिन बातचीत कर के उसे पता लग गया था कि वह फिरोजाबाद के रामगढ़ थाने के पास की गली में रहती है.

नरगिस को देखने के बाद रशीद के दिल में खलबली मच गई थी. वह उस से मिलना चाहता था, इसलिए एक दिन वह दुकान बंद कर के थाना रामगढ़ के नजदीक पहुंच कर आसपास के लोगों से नरगिस के बारे में पूछने लगा. लेकिन कोई उसे कुछ नहीं बता पाया. फिर अचानक उसे गली की नुक्कड़ पर नरगिस मिल गई.

नरगिस ने उसे देखा तो कहा, ‘‘अरे, तुम यहां कैसे?’’

‘‘अपने किसी दोस्त से मिलने आया था.’’ रशीद ने बहाना बनाया.

नरगिस ने उसे अपने घर चलने को कहा तो वह उस के साथ चल दिया.

नरगिस के घर पहुंच कर रशीद ने उस के हालात का जायजा लिया. उस के प्रति सहानुभूति दिखाई तो नरगिस के दिल में रुका हुआ लावा भी फूट पड़ा. उस ने बताया कि शौहर की मौत के बाद जिंदगी बहुत मुश्किल हो गई है. रशीद ने महसूस किया कि नरगिस को भी किसी मर्द के सान्निध्य की जरूरत है. इसी का उस ने फायदा उठाने का फैसला लिया. पर नरगिस का दिल टटोलना भी जरूरी था, लिहाजा उस दिन वह कुछ ही देर में फिर से मिलने का वादा कर के चला आया. उस ने नरगिस को अपना मोबाइल नंबर दे दिया और कहा जब भी किसी चीज की जरूरत हो, वह उस से बेझिझक कह सकती है.

नरगिस को भी एक दोस्त की जरूरत थी, अत: धीरेधीरे वे दोनों मोबाइल पर दिल की बातें करने लगे. रशीद जब नरगिस के घर जाता तो बच्चों के लिए कुछ खानेपीने की चीजें भी ले जाता. इस से नरगिस के बच्चे भी उस के साथ घुलमिल गए थे. बातचीत के दौरान नरगिस को यह जानकारी हो गई थी कि रशीद शादीशुदा ही नहीं, 2 बच्चों का बाप भी है.

लेकिन उसे तो एक सहारे की जरूरत थी इसलिए उस का रशीद के प्रति झुकाव बढ़ता गया. एक दिन नरगिस देर शाम को उस की दुकान पर आई. कुछ देर बाद जब वह जाने लगी तो रशीद ने उस का हाथ पकड़ लिया और आई लव यू कहते हुए अपने मन की बात कह डाली. नरगिस ने उसे घूर कर देखा और तमक कर बोली, ‘‘कुछ देर बाद तुम घर आ जाना. मैं खाना बना कर रखूंगी. तभी बात करेंगे.’’ इस के बाद वह चली गई.

रशीद का दिल बल्लियों उछल रहा था. नरगिस जैसी हसीन औरत का सामीप्य जो उसे मिलने वाला था. उस समय वह भूल गया कि शिकोहाबाद में उस की पत्नी और बच्चे भी हैं. रशीद ने उस दिन अन्य दिनों की अपेक्षा पहले ही दुकान बंद कर दी. फिर कुछ देर इधरउधर टहलता रहा. हलका अंधेरा होने पर उस ने नरगिस के घर का रुख कर दिया. जब वह उस के घर पहुंचा तो देखा कि उस के बच्चे सो चुके थे और वह उस का इंतजार कर रही थी.

औपचारिक बातचीत के बाद नरगिस ने खाना लगा दिया. रशीद ने नरगिस को भी साथ बैठा कर खाना खिलाया. खाना खाने के बाद वह उसे कमरे में ले आई. अब कमरे में रशीद और नरगिस के अलावा तनहाई थी जो उन्हें कोई गुनाह करने को उकसा रही थी. उस रात उन्होंने अपनी हसरतें पूरी कीं. रात काली और लंबी जरूर थी लेकिन उन के लिए खुशनुमा थी. सुबह रशीद ने चलते समय कुछ रुपए नरगिस के हाथ में रखते हुए कहा, ‘‘ये खर्चे के लिए हैं.’’ फिर बोला, ‘‘तुम खाना बहुत अच्छा बनाती हो.’’ नरगिस भी हंसते हुए बोली, ‘‘आज से तुम्हें ये खाना रोज मिलेगा.’’

रशीद चला गया पर नरगिस का अधूरापन पूरा कर गया था. वह खुश थी. उसे एक सहारा मिल गया था. शाम को उस ने खाना बनाया और टिफिन ले कर रशीद की दुकान पर पहुंच गई. उसे देखते ही रशीद बोला, ‘‘अरे तुम यहां, मैं तो अपने घर शिकोहाबाद जाने वाला था.’’

‘‘हां, चौंक क्यों रहे हो. जब रोज शाम का खाना तुम्हें यहीं मिल जाया करेगा. तब शिकोहाबाद जा कर क्या करोगे.’’ वह बोली.

इस के बाद नरगिस का रशीद की दुकान पर आनाजाना होने लगा. रशीद को जब रोजाना ही शाम का खाना मिलने लगा तो उस ने शिकोहाबाद में अपने घर जाना बंद कर दिया. कई दिनों तक वह घर नहीं गया तो उस की पत्नी सलमा को चिंता होने लगी. उस ने पति को फोन किया तो रशीद ने दुकान पर काम ज्यादा होने का बहाना कर दिया.

फिर एक दिन रशीद नरगिस को बताए बिना अपने घर चला गया. नरगिस जब खाना ले कर उस की दुकान पर पहुंची तो दुकान का ताला बंद देख कर उस ने रशीद को फोन मिलाया. तब उसे उस के घर जाने की जानकारी मिली. अगले दिन रशीद आया तो नरगिस ने उस से शिकायत की.

उस ने रशीद से कहा कि उस का रोजरोज दुकान पर आना ठीक नहीं है. उस ने उसे मक्खनपुर में ही किराए का कमरा लेने की सलाह दी. रशीद को उस की सलाह उचित लगी. इसलिए उस ने मक्खनपुर में किराए का कमरा ले लिया. अब नरगिस वहीं शाम का खाना ले कर पहुंच जाती और फिर सारी रात प्रेमी के आगोश में होती थी. करीब 6 महीने तक उन दोनों के बीच गुपचुप तरीके से संबंध बने रहे. कभीकभी नरगिस यह सोच कर डरती थी कि कहीं रशीद उसे छोड़ न दे.

उस का रशीद पर कोई कानूनी हक तो था नहीं, जो वह उस पर अधिकार जताती. वह रशीद के मन की बात टटोलना चाहती थी. एक दिन बातों ही बातों में नरगिस ने उस की पत्नी सलमा के बारे में कुछ कह दिया तो रशीद भड़क उठा. नरगिस को लगा कि अभी सही वक्त नहीं आया है. रशीद को अपना बनाने में कुछ वक्त देना होगा और कुछ ऐसा करना होगा जिस से वह पत्नी को छोड़ उसी का हो जाए.

वासना की बयार में बिजली का करंट – भाग 2

इसलामनगर से करीब 30 किलोमीटर की दूरी पर दहगवां एक विकसित गांव है, जो कस्बे का रूप ले चुका है. दहगवां बदायूं जिले के ही थाना जरीफनगर के अंतर्गत आता है. इसे नगर पंचायत का दरजा मिल चुका है. पहली बार वहां चेयरमैन चुना जाना है. दहगवां से करीब 7 किलोमीटर दूर गांव परड़या है.

यहीं शबनम का भरापूरा परिवार रहता है. संभ्रांत लोगों में उन की गिनती होती है.

शबनम की शादी के बाद से ही उस के परिजन परेशान रहने लगे थे. आए दिन शबनम का पति और ससुरलवालों से झगड़े निपटाए जाते थे. शबनम की जिद के चलते शरीफ को 4 साल दहगवां में किराए का मकान ले कर रहना पड़ा था. तब लोग उन पर काफी तंज कसा करते थे.

शरीफ ने एक दिन शबनम को घर ला कर समझाने की कोशिश की. शरीफ और उस के घर वालों ने उसे काफी समझाया. यहां तक कि पंचायत हुई, लेकिन पंचायत में भी कोई खास समाधान नहीं निकल पाया.

आखिरकार, शरीफ शबनम को उस के मायके में ही छोड़ कर दिल्ली चला गया. कुछ दिन बाद शबनम बच्चे को ले कर अपनी ससुराल इसलामनगर पहुंची और ताला तोड़ कर रहने लगी. तब शबनम ने शरीफ से फोन पर माफी मांगते हुए नए सिरे से जिंदगी शुरू करने की बात कही. साथ ही वादा किया कि वह आइंदा सलीम से कोई संबंध नहीं रखेगी.

पत्नी की बात सुन कर शरीफ ने उसे माफ तो कर दिया, साथ ही बच्चों के भविष्य के लिए सही रास्ते पर चलने को कहा. शबनम ने भी वादा करते हुए कहा कि ऐसा ही होगा. वह पुरानी बातों को दिमाग से निकाल दे और हम लोग मेहनत कर अधूरे मकान को पूरा करेंगे. पत्नी की बात पर यकीन करने के अलावा शरीफ के पास और कोई रास्ता भी नहीं था.

शबनम के इस माफीनामे और पति के प्रति वफादारी में कितनी सच्चाई थी, इस का पता तो तब चला जब शबनम ने सलीम से मिलनेजुलने का तरीका बदल लिया.

दोनों के मकान के उत्तरी दीवार की ओर कई प्लौट खाली थे. काफीकाफी दूरी पर इक्कादुक्का मकान बने थे. प्लौटों की तरफ से शबनम के कमरे के आंगन की दीवार काफी नीची थी. इस दीवार पर ही बांस प्लास्टिक का टटिया टिकाया हुआ था.

दीवार और टटिया के बीच के गैप को बरसाती पन्नी से ढंक दिया गया था. सलीम को शबनम के घर में  घुसने का यह एक गुप्त रास्ता मिल गया था, जिस का फायदा सलीम उठाने लगा था. वह उस रास्ते से रात में किसी समय शबनम के घर में घुस जाता था. फिर बेफिक्र हो कर दोनों अपने जिस्म की आग शांत करते थे. फिर सलीम उसी रास्ते से अपने घर चला जाता था.

उत्तरी दीवार से घर में उतरने में आ रही दिक्कत को दूर करने के लिए शबनम ने सीमेंट के खाली कट्टों में मिट्टी भर कर दीवार से सटा कर रख दिए थे.

मिलने से पहले शबनम अपने बच्चों को नींद की गोलियां खिला देती थी. उस के बाद सलीम को मोबाइल से खबर कर देती थी. सलीम पीछे के रास्ते से रात में शबनम के घर में घुस जाता था. दोनों रंगरलियां मनाते फिर सलीम मिट्टी से भरे कट्टे पर चढ़ कर इधरउधर देखता हुआ अपने घर चला जाता था.

सलीम दिखने में भले ही आकर्षक नहीं था. रंग गहरा सांवला था, जिसे काला भी कहा जा सकता है. भोंडा सा चेहरा, कदकाठी भी सामान्य से कम थी, लेकिन शरीरिक कसावट किसी भी औरत को आकर्षित करने के लिए काफी थी. सलीम में सैक्स के प्रति अधिक रुचि को देखते हुए वह उसे सैक्सी घोड़ा कहा करती थी.

शबनम से पहले मोहल्ले की एक और महिला से भी सलीम का प्रेम संबंध था. वह बिरादरी के अख्तर की पत्नी को भगा ले गया था. दोनों एक ही बिरादरी के थे, जिस के कारण मामला रफादफा हो गया. कुछ दिन साथ रखने के बाद महिला को उस के पति के हवाले कर दिया था.

जब सलीम और शबनम वासना की बयार में बहे जा रहे थे. उन पर किसी भी तरह की कोई रोकटोक नहीं थी. उन के मन में केवल आशंका थी तो यह कि शरीफ के आने या उस की जानकारी होने पर उन की मौजमस्ती में कभी भी खलल पड़ सकती है. यही सोच कर दोनों ने एक योजना बनाई.

योजना के मुताबिक शबनम ने 3 जुलाई, 2022 को सुबहसुबह पति शरीफ को फोन किया. कलपती आवाज में बोली कि बड़े बेटे की तबीयत खराब है. वह जिस हालत में है तुरंत घर आ जाएं. बेटे की तबीयत खराब की खबर सुनते ही शरीफ घबरा गया और उसी दिन शाम के 6 बजे के करीब घर आ गया. घर आ कर देखा तो बेटा ठीकठाक था. वह खेलकूद रहा था.

इस तरह अचानक बुलाने पर उस ने नाराजगी जताई. शबनम ने नाराज पति को बांहों में भर कर उस की नाराजगी दूर करने की कोशिश की. कुछ हद तक इस में उसे सफलता मिल गई.

काफी दिनों बाद पत्नी से मिलने पर शरीफ शबनम की बाहों में समा गया. उस का गुस्सा दूर हो गया. जब बच्चों ने दरवाजा खटखटाया, तब उस ने शबनम को खुद से अलग किया.

शरीफ इसलामनगर पंचायत से करीब 4 किलोमीटर की दूरी पर मऊकलां गांव का मूल निवासी था. वह सैफी यानी बढ़ई समुदाय के रहमान खानदान में 5 भाइयों में एक था. उस्मान, मेहरबान, एहसान, इरफान और शरीफ सभी भाई फरनीचर बनाने का काम जानते थे.

पांचों भाइयों ने 50 से 100 गज तक के प्लौट ले कर इसलामनगर में अपनेअपने घर बना लिए थे. उन के बीच आपसी मेलजोल था. एक भाई गांव में ही रहता था. दूसरा भाई इरफान इसलामनगर में डीजे संचालक के यहां मजदूरी करता है, जिस के चलते वह देर रात तक ही घर लौट पाता था. 3 भाई दिल्ली में अलगअलग जगहों पर काम करते हैं.

शबनम ने 3 जुलाई की आधी रात को ही करीब 2 बजे शरीफ के बड़े भाई उस्मान को फोन किया. उस ने नींद में आननफानन में घबराहट के साथ फोन रिसीव किया. सिसकियां भरते हुए शबनम ने बताया कि आप के भाई को बिजली ने पकड़ लिया है और उन की मौत हो गई है.

इतना बताने के बाद उस की सिसकियां थोड़ी कम हो गईं. फिर उस ने धीमी गमगीन आवाज में करंट लगने की पूरी घटना का जिक्र किया. उस ने बताया कि रात के एक बजे जब आंखें खुलीं, तब उस ने शरीफ को अपनी चारपाई पर नहीं पाया. कमरे में नजर दौड़ाने पर शरीफ को इनवर्टर के तारों से चिपका देखा.

शरीफ को बिजली का करंट लगने की बात सुन कर उस्मान को गहरा सदमा लगा. साथ ही उसे आश्चर्य हुआ कि यह खबर उस ने पड़ोस में रह रहे इरफान को क्यों नहीं दी. वैसे इस की जानकारी उस ने अपने सभी भाइयों और रिश्तेदारों को भी दे दी.

आश्चर्य की बात यह भी थी कि इरफान की पत्नी फरहीन घर पर ही थी, लेकिन उसे पड़ोस में रहने वाले देवर शरीफ की मृत्यु की भनक तक न लगी.

उस्मान भागाभागा शरीफ के घर आया. वहां इरफान की पत्नी फरहीन से मालूम हुआ कि रात के करीब 12 बजे उसे किवाड़ों पर आहट महसूस हुई थी. उस की नींद से आंखें खुलीं. वह समझ नहीं पाई. उस ने तुरंत यह जान कर दरवाजा खोल दिया कि शायद उस का पति इरफान आया हो. किंतु उस ने सलीम को शरीफ के घर से जाते हुए देखा.

शरीफ की अचानक मौत से घर में मातम का माहौल बन गया था. सभी रोने लगे थे. बच्चे एक कोने में गुमसुम बैठे थे. सुबह होते ही शबनम के घर काफी भीड़ जमा हो गई थी. शरीफ की लाश देख कर हर कोई हत्या होने की ही आशंका जाहिर कर रहा था. जबकि शबनम हर किसी से एक ही बात कह रही थी कि रात में पता नहीं वह किसी समय इनवर्टर में कुछ करने लगे और उस के तार से चिपक गए. बिजली करंट से उन की मौत हो गई.

इस हादसे की सूचना शरीफ के भाई इरफान ने पुलिस को दी. थाने से 2 सिपाही आए और मौका मुआयना किया. उन्होंने पाया कि शरीफ के शरीर में चोट और करंट के कई जगह निशान हैं.

सोने के व्यापारी को ले डूबी रंगीनमिजाजी – भाग 1

मई, 2016 को स्पेन में मलागा की अदालत से आने वाले एक चर्चित मामले के फैसले का लोगों को बड़ी बेसब्री से इंतजार था. आरोपी और पीडि़त के परिजनों से ले कर मीडिया के लोगों तक को फैसला सुनने की उत्सुकता थी. यह हाईप्रोफाइल मामला ब्रिटेन के 48 वर्षीय सोने के व्यापारी एंडी बुश की हत्या का था. उन की हत्या 5 अप्रैल, 2014 को स्पेन के शहर मारबेला के कोस्टा डेल सोल नामक मशहूर बीच पर स्थित होटल हौलिडे विला में उन की पूर्व प्रेमिका द्वारा गोली मार कर की गई थी. हत्या का आरोप 26 वर्षीया स्विमवियर मौडल मायका मैरीका कुकुकोवा पर था. अपराध साबित हो जाने के बाद उसे सजा के लिए दोषी करार दिया जा चुका था.

अदालत में बुश की 22 वर्षीया बेटी एल्ली अपनी 44 वर्षीया बुआ रशेल के साथ मौजूद थी. जबकि ज्यूरी के सामने सिर झुकाए चिंतातुर बैठी आरोपी कुकुकोवा अपने चेहरे को हथेली से बारबार ढंकने का प्रयास कर रही थी. ऐसा लगता था, जैसे वह किसी से खासकर एल्ली और रशेल से नजरें मिलाने से बचना चाह रही हो. हालांकि सुनवाई के दौरान उन तीनों का अदालत में पहले भी कई बार आमनासामना हो चुका था, लेकिन तब वे अपनीअपनी बातों को साबित करने की कोशिश करते हुए इतनी अधिक असहज महसूस नहीं करती थीं, जितना कि उन्हें फैसले की घड़ी के वक्त महसूस हो रहा था.

मायका मैरीका कुकुकोवा अपने बचाव के लिए हर संभव प्रयास कर चुकी थी. लेकिन सबूतों के अभाव में उस की दलीलों को खारिज कर दिया गया था. फिर भी क्यूडेड ला जस्टिका के निर्णायक मंडल द्वारा उसे एक और अंतिम मौका दिया गया था, ताकि वह बचाव संबंधी औपचारिक याचिका दायर कर सके.

कुकुकोवा ने भले ही बचाव के लिए कोई याचिका नहीं दायर की थी, लेकिन इतना जरूर कहा था कि बुश ने उस के ऊपर हमला किया था और उस ने अपनी आत्मरक्षा में उसे गोली मारी थी.

बुश को चोट पहुंचाने का उस का कोई मकसद कभी नहीं था, क्योंकि अपनी उम्र से दोगुनी उम्र का होने के बावजूद वह उस से बेइंतहा मोहब्बत करती थी. उस ने भावुकता के साथ कहा था कि वह उसे किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहती थी, लेकिन उन के प्रेम में किसी तीसरे के शामिल होने से वह काफी दुखी थी.

निर्णायक मंडल ने फैसला सुनाने के दरम्यान कहा कि घटना के 6 महीने पहले ही कुकुकोवा और बुश के बीच संबंध खराब हो चुके थे. वह ईर्ष्या, द्वेष की भावना से भरी हुई थी.

सरकारी वकीलों को उम्मीद थी कि इस मामले में 26 वर्षीया मौडल कुकुकोवा को 25 साल की जेल की सजा तो सुनाई ही जाएगी, लेकिन जजों के निर्णायक मंडल ने उसे 15 साल की सजा सुनाने के साथ बुश की 21 वर्षीया बेटी को 1,22,000 पाउंड और 44 वर्षीया बहन रशेल को 30,500 पाउंड की राशि जुरमाने के तौर पर देने का आदेश दिया.

इसी के साथ न्यायाधीश ने यह भी कहा कि आरोपी का पूर्व का कोई आपराधिक रिकौर्ड नहीं है. उस ने जो भी अपराध किया है, वह भावुकता में किया है. इस लिहाज से उसे अपना पक्ष रखने का एक और मौका दिया जाता है लेकिन बचाव के अंतिम मौके का भी कुकुकोवा को कोई लाभ नहीं मिल पाया.

अदालत ने फैसले से संबंधित 17 पृष्ठों का दस्तावेज बुश के परिजनों को भी दे दिया. इस फैसले पर भले ही एल्ली और उस की बुआ रशेल ने न्याय मिलने का संतोष व्यक्त किया, लेकिन बुश से तलाक ले चुकी एल्ली की मां ने ट्विटर पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए लिखा कि कुकुकोवा को कम सजा हुई है. उसे कम से कम 20 साल की सजा होनी चाहिए थी. वह अदालत में अपनी बेटी के साथ नहीं थी, लेकिन उस ने खुद उस की भावनाओं को काफी शिद्दत के साथ महसूस करते हुए कई ट्वीट किए थे.

अदालती सुनवाई और जांचपड़ताल की काररवाई में पाया गया था कि बुश को .38 की रिवौल्वर से 3 गोलियां मारी गई थीं. 2 गोलियां उस के सिर में लगी थीं, जबकि एक गोली उस के कंधे में लगी थी. न्यायाधीश ने फैसले में कहा कि बुश का हाथ रिवौल्वर के साथ इस तरह से रखा गया था, ताकि पहली नजर में लगे कि उस ने आत्महत्या की है. हत्या के बाद कुकुकोवा बुश की महंगी हमर गाड़ी से करीब 3012 किलोमीटर दूर स्लोवाकिया स्थित अपने घर चली गई थी, जहां उस का प्रेमी इंतजार कर रहा था.

कुकुकोवा ने न केवल 2 देशों की सीमाएं लांघीं, बल्कि इस लंबी यात्रा को 27 घंटे में पूरा भी किया. हालांकि कुछ दिनों बाद ही उसे स्लोवाकिया स्थित उस के पुश्तैनी गांव नोवा बोसाका से हिरासत में ले लिया गया था. उस की गिरफ्तारी स्पैनिश अधिकारियों के अनुरोध पर यूरोपीय वारंट के आधार पर की गई थी.

मायका मैरीका कुकुकोवा एक जमाने में बहुचर्चित स्विमवियर मौडल रही. सन 1990 में उस का जन्म स्लोवाकिया के एक गांव नोवा बोसाका में हुआ था. ग्रामीण परिवेश के साधारण परिवार में पलीबढ़ी कुकुकोवा जब किशोरावस्था में आई तो उसे अहसास होने लगा कि उस के अंदर खूबसूरती के साथसाथ हीरोइन बनने के भी तमाम गुण मौजूद हैं. जब उस के दोस्तों ने उस की सुंदरता की तारीफ के पुल बांधे तो उस की सपनीली आंखों में मौडलिंग की रंगीन दुनिया तैरने लगी.

कुकुकोवा के मातापिता ने उसे अपनी मनमर्जी से कैरियर चुनने की आजादी दे रखी थी. उस ने मौडलिंग के लिए कोशिश की तो थोड़े प्रयास में ही उसे मौका मिल गया. मौडलिंग की दुनिया में शुरुआत की पहली कोशिश में ही उसे सफलता मिल गई.

आगे भी सफलता की सीढि़यां चढ़ने में उसे ज्यादा वक्त नहीं लगा. ऊंची जगह बनाने के लिए भी उसे अधिक संघर्ष नहीं करना पड़ा. उस की खूबसूरती और पहली ही नजर में किसी को भी आकर्षित कर लेने वाले ग्लैमर की वजह से उस का आगे का रास्ता खुदबखुद बनता चला गया.

प्यार पर प्रहार : आशिक बना कातिल – भाग 1

प्रियंका और कृष्णा प्यार की पींगें भर रहे थे. दोनों का प्यार दोस्तों के बीच चर्चा का विषय बन गया था. कृष्णा तिवारी की उम्र जहां 25 वर्ष थी, वहीं प्रियंका श्रीवास 21 साल की थी. दोनों अकसर छत्तीसगढ़ के बिलासपुर शहर की सड़कों पर एकदूसरे का हाथ थामे घूमते हुए दिख जाते.  कृष्णा उसे अपनी बुलेट मोटरसाइकिल पर भी घुमाता था. दोनों का प्रेम परवान चढ़ रहा था.

कृष्णा तिवारी उर्फ डब्बू मूलत: कोनी, बिलासपुर का रहने वाला था और प्रियंका पास के ही बिल्हा शहर के मुढ़ीपार गांव की थी. वह बिलासपुर में अपने मौसा जोगीराम के यहां रह कर बीए फाइनल की पढ़ाई कर रही थी.

एक दिन कृष्णा ने शहर के विवेकानंद गार्डन में घूमतेघूमते प्रियंका से कहा, ‘‘प्रियंका, आज मैं तुम से एक बहुत खास बात कहने जा रहा हूं,जिस का शायद तुम्हें बहुत समय से इंतजार होगा.’’

‘‘क्या?’’ प्रियंका ने स्वाभाविक रूप से कहा.

‘‘मैं तुम से शादी करना चाहता हूं,’’ कृष्णा बोला, ‘‘मैं चाहता हूं कि हम दोनों शादी कर लें या फिर घरपरिवार से कहीं दूर भाग चलें.’’

‘‘नहींनहीं, मैं भाग कर शादी नहीं कर सकती, वैसे भी अभी मैं पढ़ रही हूं. शादी होगी तो मेरे मातापिता की सहमति से ही होगी.’’

‘‘तब तो प्यार भी तुम्हें मम्मीपापा की आज्ञा ले कर करना चाहिए था.’’ कृष्णा ने उस की खिल्ली उड़ाते हुए मीठे स्वर में कहा.

‘‘देखो, प्यार और शादी में बहुत बड़ा फर्क है. तुम मुझे अच्छे लगे तो तुम से दोस्ती हो गई और फिर प्यार हो गया.’’ प्रियंका ने सफाई दी.

‘‘अच्छा, यह तो बड़ी कृपा की आप ने हुजूर.’’ कृष्णा ने विनम्र भाव से कहा, ‘‘अब कुछ और कृपा बरसाओ, मेरी यह इच्छा भी पूरी करो.’’

‘‘देखो डब्बू, तुम मेरे पापा को नहीं जानते. वह बड़े ही गुस्से वाले हैं. मैं मां को तो मना लूंगी मगर पापा के सामने तो बोल तक नहीं सकती. वो तो अरे बाप रे…’’ कहतेकहते प्रियंका की आंखें फैल गईं और चेहरा सुर्ख हो उठा.

‘‘प्रियंका, तुम कहो तो मैं पापा से बात करूं या फिर उन के पास अपने पापा को भेज दूं. मुझे यकीन है कि हमारे खानदान, रुतबे को देख कर तुम्हारे पापा जरूर हां कह देंगे. बस, तुम अड़ जाना.’’ कृष्णा ने समझाया.

‘‘देखो कृष्णा, हमारे घर के हालात, माहौल बिलकुल अलग हैं. मैं किसी भी हाल में पापा से बहस या सामना नहीं कर सकती. तुम अपने पापा को भेज दो, हो सकता है बात बन जाए.’’ प्रियंका बोली.

‘‘और अगर नहीं बनी तो?’’ कृष्णा ने गंभीर होते हुए कहा.

‘‘नहीं बनी तो हमारे रास्ते अलग हो जाएंगे. इस में मैं क्या कर सकती हूं.’’ प्रियंका ने जवाब दिया.

एक दिन कृष्णा तिवारी के पिता लक्ष्मी प्रसाद तिवारी प्रियंका श्रीवास के पिता नारद श्रीवास से मिलने उन के घर पहुंच गए. नारद श्रीवास का एक बेटा और 2 बेटियां थीं. वह किराने की एक दुकान चलाते थे.

लक्ष्मी प्रसाद ने विनम्रतापूर्वक अपना परिचय देते हुए कहा, ‘‘भाईसाहब, मैं आप से मिलने बिलासपुर से आया हूं. आप से कुछ महत्त्वपूर्ण बातचीत करना चाहता हूं.’’

कृष्णा के पिता ने की कोशिश

नारद श्रीवास ने उन्हें ससम्मान घर में बिठाया और खुद सामने बैठ गए. लक्ष्मी प्रसाद तिवारी हाथ जोड़ कर बोले, ‘‘मैं आप के यहां आप की बड़ी बेटी प्रियंका का अपने बेटे कृष्णा के लिए हाथ मांगने आया हूं.’’

यह सुन कर नारद श्रीवास आश्चर्यचकित हो कर लक्ष्मी प्रसाद की ओर ताकते रह गए. उन के मुंह से बोल नहीं फूट रहे थे. तब लक्ष्मी प्रसाद बोले, ‘‘भाईसाहब, मेरे बेटे कृष्णा को आप की बिटिया पसंद है. हालांकि हम लोग जाति से ब्राह्मण हैं, मगर बेटे की इच्छा को ध्यान में रखते हुए आप के पास चले आए. आशा है आप इनकार नहीं करेंगे.’’

यह सुन कर नारद श्रीवास के चेहरे का रंग बदलने लगा. उन्होंने लक्ष्मी प्रसाद से कहा, ‘‘देखो तिवारीजी, आप मेरे घर आए हैं, ठीक है. मगर मैं अपनी बिटिया का हाथ किसी गैरजातीय लड़के को नहीं दे सकता.’’

‘‘मगर भाईसाहब, अब समय बदल गया है. मेरा आग्रह है कि आप घर में चर्चा कर लें. बच्चों की खुशी को देखते हुए अगर आप हां कर देंगे तो यह बड़ी अच्छी बात होगी.’’ लक्ष्मी प्रसाद ने सलाह दी.

‘‘देखिए पंडितजी, मैं समाज के बाहर बिलकुल नहीं जा सकता. फिर प्रियंका के लिए मेरे पास एक रिश्ता आ चुका है. वे लोग प्रियंका को पसंद कर चुके हैं. मैं हाथ जोड़ता हूं, आप जा सकते हैं.’’ नारद श्रीवास ने विनम्रता से कहा तो लक्ष्मी प्रसाद तिवारी अपने घर लौट गए.

पत्नी बनने की जिद ने करवाया कत्ल – भाग 1

11 दिसंबर, 2016 की बात है. उत्तर प्रदेश के जिला शिकोहाबाद के थाना मक्खनपुर के 2 कांस्टेबल क्षेत्र में रात्रि गश्त पर निकले थे, तभी उन्होंने मक्खनपुर गांव के ही एक अधबने मकान से जबरदस्त धुआं उठते देखा. वे दोनों उस मकान में घुसे तो प्लास्टिक की बोरियों में आग लगी देखी. उन्होंने इस की सूचना थानाप्रभारी देवेंद्र सिंह और अग्निशमन दल को फोन कर के दे दी.

कुछ ही देर में थानाप्रभारी वहां पहुंच गए. उन्होंने जब गौर किया तो उन्हें इंसान के पैर दिखे जिन में बिछुए थे. वह समझ गए कि यह किसी महिला की लाश है. तब तक अग्निशमन दल की टीम भी वहां आ चुकी थी. टीम ने जब आग बुझाई तो वहां वास्तव में एक महिला की लाश निकली. वह लाश झुलस चुकी थी. फिर भी चेहरा इतना तो बचा था कि उस की शिनाख्त हो सकती थी.

गांव के जो लोग वहां इकट्ठे थे, उन से लाश की शिनाख्त कराई तो इकबाल ने उस की पुष्टि अपनी भाभी नरगिस के रूप में की. उस ने बताया कि भाई महबूब की मौत के बाद यह रशीद के साथ रहती थी. रशीद शिकोहाबाद के रुकुनपुरा का रहने वाला था और शिकोहाबाद शहर में संदूक बनाने का काम करता था. प्रारंभिक पूछताछ में पुलिस को काफी जानकारी मिल चुकी थी, इसलिए पुलिस ने मौके की जरूरी काररवाई पूरी कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

अज्ञात हत्यारे के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर पुलिस ने रशीद की तलाश में उस के रुकुनपुरा स्थित घर पर दबिश दी पर वह घर पर नहीं मिला. शिकोहाबाद में जो उस की संदूक की दुकान थी, वह भी बंद मिली. इस से पुलिस को उस पर पूरा शक होने लगा.

रशीद के जो भी ठिकाने थे, पुलिस ने उन सभी जगहों पर उसे तलाशा पर उस का पता नहीं चला. उस ने अपना मोबाइल फोन भी बंद कर रखा था. ऐसे में थानाप्रभारी ने सादे कपड़ों में एक कांस्टेबल को उस के घर पर नजर रखने के लिए लगा दिया.

करीब 15 दिन बाद आखिर एक मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने रशीद को शिकोहाबाद के बसस्टैंड से हिरासत में ले लिया. वह वहां दिल्ली जाने वाली बस का इंतजार कर रहा था. थाने ला कर जब उस से नरगिस की हत्या के सिलसिले में पूछताछ की गई तो उस ने स्वीकार कर लिया कि उस के सामने हालात ऐसे बन गए थे, जिस से उसे उस की हत्या करने के लिए मजबूर होना पड़ा. इस के बाद उस ने उस की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार निकली—

नरगिस पश्चिम बंगाल के रहने वाले सलीम की बेटी थी. सलीम मेहनतमजदूरी कर के जैसेतैसे परिवार का पालनपोषण कर रहे थे. आज भी ऐसे युवक, जिन की किसी वजह से शादी नहीं हो पाती है, वे पश्चिम बंगाल, बिहार और उड़ीसा जैसे राज्यों का रुख करते हैं. इन राज्यों के कुछ करीब अभिभावक अपनी बेटी के भविष्य को देखते हुए बेटियों का हाथ उन युवकों के हाथ में दे देते हैं. वे बाकायदा सामाजिक रीतिरिवाज से शादी करते हैं. इसी तरह नरगिस की शादी भी उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद के रामगढ़ के रहने वाले महबूब से हुई थी.

महबूब का अपना निजी घर था, जहां वह अपने 5 भाइयों के साथ रहता था. कालांतर में उस के 3 बड़े भाई मुंबई चले गए. घर में वह और उस का छोटा भाई इकबाल ही रह गया था. दोनों भाई मजदूरी कर के अपना घर चला रहे थे. नरगिस के आ जाने से उन्हें समय पर पकीपकाई रोटी मिल जाती थी. समय बीतता गया और नरगिस 4 बच्चों की मां बन गई.

नरगिस पति के साथ खुश थी. मांबाप के घर गरीबी के अलावा कुछ नहीं था पर यहां पति और देवर अपनी कमाई ला कर उस के हाथ पर रखते तो वह खुश हो जाती. उस ने भी अपनी जिम्मेदारी से घरगृहस्थी को अच्छे से संभाल लिया था.

महबूब मजदूरी कर के जब घर लौटता तो वह थकामांदा होता था. लेकिन पिछले कुछ दिनों से उस की तबीयत खराब रहने लगी थी. वह शारीरिक रूप से भी कमजोर हो गया था. उसे सांस फूलने की शिकायत हो गई थी. इस की वजह से उस का काम पर जाना भी मुश्किल हो गया था. फिर एक दिन ऐसा आया कि उस ने खाट पकड़ ली. इस के बाद वह फिर उठ नहीं सका.

पति के बीमार होने के बाद नरगिस परेशान रहने लगी. देवर जो कमा कर लाता, उस से घर का खर्च ही चल पाता था. पैसे के अभाव में वह पति का इलाज तक नहीं करा पा रही थी. फिर मजबूरी में उस ने चूड़ी के कारखाने में काम करना शुरू कर दिया. धीरेधीरे गृहस्थी की गाड़ी फिर पटरी पर आ गई पर महबूब को बीमारी ने बुरी तरह जकड़ लिया और इलाज के अभाव में एक दिन उस की मौत हो गई.

पति का साया सिर से उठने के बाद नरगिस बुरी तरह टूट गई और बुरे दिनों में देवर इकबाल ने भी उस का साथ छोड़ दिया. नरगिस को बच्चों की चिंता खाए जा रही थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. इसी बीच एक दिन उस की मुलाकात रशीद नाम के एक आदमी से हुई. रशीद रुकुनपुरा थाना शिकोहाबाद का रहने वाला था और मक्खनपुर में संदूक बनाने का काम करता था.

वासना की बयार में बिजली का करंट – भाग 1

सलीम जब अपने बिस्तर पर लेटा, तब उस की आंखों के सामने शबनम का चेहरा घूम गया. उस का मुंह बिचका कर बोलना, आंखों से इशारे करना और मांसल देह बारबार नजरों के सामने एक पिक्चर की तरह उस के मस्तिष्क में घूम रहा था. उस की आंखों से नींद गायब थी.

उस के दिमाग से उस की चंचल आंखें, अदाएं और मादकता के साथ मटकती देह हट ही नहीं रही थी. पहली मुलाकात में ही शबनम उस के दिल में उतर गई थी. वह उस से दोबारा मिलने के लिए बेचैन हो गया था.

दरअसल, सलीम का शबनम से आमनासामना पहली बार तब हुआ था, जब वह उस के मकान के एकदम पीछे अपने पति शरीफ और 3 बच्चों के साथ काफी समय से रह रही थी. उन का मकान उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले में इसलाम नगर के मोहल्ला मुस्तफाबाद में है. सलीम का मकान नया, मगर अधबना है. करीब 40 गज के इस मकान से सटा ही शरीफ का मकान है.

विवाहित और 3 बच्चों का बाप सलीम 4 भाई हैं. वे मूलरूप से इसलाम नगर से करीब 25 किलोमीटर दूर आटा नामक गांव के रहने वाले हैं. वह गांव बहजोई हाईवे पर है. सलीम इसलाम नगर में पिछले 6 सालों से रह रहा था.

बात इसी साल सर्दियों के दिनों की है. सलीम के बच्चे छत पर धूप में गेंद से खेल से रहे थे. खेलतेखेलते उन की गेंद उछलती हुई शरीफ की छत पर चली गई. वहां से लुढ़कती गेंद बरसाती पन्नी के बनाए गए छप्परनुमा टटिया पर जा गिरी.

इस बारे में बच्चों ने सलीम को बताया और गेंद लाने को कहा. छत तो दोनों की मिली हुई थी, लेकिन शरीफ ने कमरे के आगे आंगन में बांसों से टटिया बना कर छत के आगे डाल ली थी.

सलीम ने शरीफ की छत पर जा कर लंबे बांस से गेंद निकालने की कोशिश की. लेकिन गेंद फिसल पर शरीफ के घर में चली गई. तब सलीम ने छत से आवाज दी, लेकिन उस के घर से कोई जवाब नहीं आया. फिर वह अपनी छत से नीचे उतर कर सड़क के रास्ते से शरीफ के घर जा पहुंचा.

शरीफ के मुख्य दरवाजे से पहले उस के भाई इरफान का मकान है.

इस तरह शरीफ के घर में कोई भी दाखिल होने पर उस की जानकारी पहले इरफान के परिवार को हो जाती है. सलीम जब शरीफ के मुख्य दरवाजे पर पहुंचा, तब इरफान की पत्नी फरहीन पूछ बैठी, ‘‘किस से मिलना है?’’

‘‘शरीफ भाई से,’’ सलीम तुरंत बोला. इस पर फरहीन बेरुखी से बोली, ‘‘शरीफ घर पर नहीं है.’’

तभी शरीफ की पत्नी शबनम खुले दरवाजे का परदा हटाती हुई बाहर निकली. वह बोली, ‘‘हां, बताओ क्या बात है?’’

सलीम की नजर जैसे ही शबनम पर पड़ी, वह अपने होशोहवास खो बैठा. उसे टकटकी बांधे देखने लगा. शबनम ने जब दोबारा सवाल किया तब खयालों में खोए सलीम का ध्यान टूटा. हकलाता हुआ बोला, ‘‘जी..जी… वो भाभीजी! बात यह है कि बच्चों की गेंद आप के घर में आ गई है. वही लेने आया हूं.’’

शबनम कुछ बोले बगैर तेजी से पलटती हुई अंदर चली गई. सलीम उस के पलटने के अंदाज को देखता रह गया. कुछ पल में ही शबनम ने गेंद ला कर सलीम को पकड़ा दी और तिरछी नजर डालते हुए शिकायती लहजे में बोली, ‘‘बच्चों को हिदायत कर देना कि गेंद मेरे घर में दोबारा नहीं आने पाए.’’

सलीम कुछ नहीं बोला. सिर्फ उसे घूरता रहा. जबकि शबनम एकदम से तल्ख लहजे में बोली, ‘‘घूरते क्यों हो? कभी औरत नहीं देखी क्या? अबकी बार गेंद घर में आई तो नहीं दूंगी…’’

सलीम कुटिल मुसकराहट के साथ बोला, ‘‘भाभीजी, कैसी बातें कर रही हैं, इस गेंद को भी रख लो. पड़ोसियों का तो हक बहुत होता है. …और आप जैसी पड़ोसी हो तो बात ही कुछ और है.’’

‘‘आप जैसी का मतलब?’’ शबनम बोली.

‘‘आप जैसी का मतलब मदमस्त..’’ यह बात सलीम ने शबनम के एकदम कान के पास जा कर बोली. शबनम कुछ नहीं बोली. आंखें चौड़ी कीं और तेजी से पलटती हुई परदे के पीछे चली गई. दरवाजा भी बंद कर लिया. सलीम गेंद ले कर अपने घर चला आया.

कई दिन गुजर गए, लेकिन उस दिन की शबनम की छोटी सी मुलाकात को सलीम भूल नहीं पा रहा था. वह इसी फिराक में रहने लगा कि शबनम बाजार वगैरह कब जाती है?

इसलाम नगर का मोहल्ला मुस्तफाबाद नई आबादी में शामिल है. यहां से मार्केट काफी दूरी पर है. एक दिन उस ने शबनम को हाथ में थैला लिए बाजार की तरफ जाते देख लिया. वह चुपके से उस के पीछे हो लिया. कुछ दूरी पर चलता हुआ बाजार की भीड़ में शामिल हो गया, लेकिन नजर शबनम पर गड़ाए रहा.

संयोग से दोनों एक दुकान के पास टकरा गए. सलीम तुरंत बोल पड़ा, ‘‘भाभीजी आप? अकेली हैं? लाइए, भारी थैला मुझे पकड़ा दीजिए.’’

शबनम ने पहले की तरह ही कुछ बोले बगैर अपना थैला उसे पकड़ा दिया और साथसाथ चलने लगी. कुछ कदम चलने के बाद सलीम ने ही टोका, ‘‘आप नाराज हैं क्या? कुछ बोल नहीं रहीं.’’

‘‘आखिर में पड़ोसियों का हक होता है, देखो तुम पर हक जता रही हूं. तुम काम आ रहे हो,’’ बोलती हुई शबनम मुसकराई.

‘‘समोसा चाट खानी है?’’ सलीम बोला.

‘‘सस्ते में निपटाना चाहते हो. कबाब खिलाओ तब जानें,’’ शबनम ने कहा.

‘‘अरे कबाब क्या चीज है, चलिए उसी के मजे लेते हैं.’’ सलीम बोला.

उस के बाद दोनों ने बाजार में मजे में कबाब खाए और घर आ गए. उस के बाद दोनों का सिलसिला चल पड़ा. वे बाजार में मिलनेजुलने लगे. समय मिलता तो इकट्ठे समय गुजारते हुए एकदूसरे के मन की बातें करने लगे.

इस बीच सलीम शबनम की सुंदरता की तारीफ करता और शबनम अपनी ऊबी हुई जिंदगी का रोना रोती. तब वह उसे सुनहरी जिंदगी के सपने दिखाते हुए हिम्मत बंधाता.

जल्द ही दोनों के दिल में एकदूसरे के प्रति चाहत पैदा हो गई. पति की उपेक्षा के चलते शबनम कामेच्छा की आग में तपी हुई थी, जबकि सलीम शबनम के यौवन को देख कर वासना की पूर्ति की चाहत के खयालों में डूबा रहने लगा था. एक सच तो यह भी था कि दोनों एकांत की ताक में रहने लगे थे. संयोग से एक रोज वह मौका भी मिल गया और दोनों ने अपनी हसरतें भी पूरी कर लीं.

दूसरी तरफ सलीम और शबनम का घर और बाजार एक साथ आनाजाना पड़ोसियों की आंखों में चुभने लगा. इस की शिकायत शबनम की ससुराल वाले और पति शरीफ तक पहुंची. तब शरीफ के घर वाले उस पर निगरानी रखने लगे.

शरीफ बढ़ई का काम करने दिल्ली जाता, तब वह अपने घर वालों से सलीम और शबनम के संबंध के बारे में जानकारी लेता रहता था. वह फोन पर ही शबनम को डांटताफटकारता रहता था. इस तरह घर में कलह होने लगी. शरीफ से झगड़ा होने पर शबनम मायके चली जाती थी.

अकसर मायके वाले समझाबुझा कर उसे ससुराल भेज देते. इस बीच शबनम का सलीम से मेलजोल बना रहा. दोनों एकदूसरे से जुदा होने को तैयार नहीं थे. शरीफ कमाई कर के खर्च करने के लिए जितनी रकम शबनम को देता, उस में सामान्य तौर पर खानपान या दूसरी जरूरतें ही पूरी हो पाती थीं. सलीम के संपर्क में आने पर शबनम के रहनसहन में तब्दीली आ गई थी.

उन दिनों इसलामनगर में स्थित शाह सदरुद्दीन रहमतुल्ला अलेह का उर्स चल रहा था. दरगाह पर चादर चढ़ाने वालों का तांता लगा था. इसलामनगर और आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों से लोग सदरुद्दीन के मजार में गहरी आस्था रखते हैं.

बात पहली जून, 2022 की है. शबनम और सलीम भी वहां आए हुए थे. उन्हें शबनम के भाई ने एक साथ देख लिया था. इस की जानकारी उस ने तुरंत शरीफ को दे दी. वह सीधा दरगाह पर ही पहुंच गया. आव देखा न ताव, मेले में ही उस ने सलीम को खूब खरीखोटी सुनाई.

होहल्ला होने पर सलीम वहां से चला आया. जबकि शरीफ शबनम को डांटताफटकारता घर आया.

अगले रोज 2 जून की सुबह वह शबनम और बच्चों को ले कर अपने गांव चला गया.  शबनम के 4 भाई अनीस, जुगनू, नूरुद्दीन और नफीस का गांव में काफी रुतबा था. उन की 5 बहनों में से 4 का विवाह हो चुका था. 3 अन्य बहनें ठीकठाक रह रही थीं.

भोगनाथ का भोग : क्या पूरे हो पाए भोगनाथ के अरमान – भाग 1

कड़ाके की सर्दी हो और ऊपर से बरसात हो जाए तो सर्दी के तेवर और भी भयावह हो जाते हैं. रोज की तरह दोपहर को भोगनाथ बिट्टू के घर पहुंचा तो वह रजाई में लिपटी बैठी थी. दोनों एकदूसरे को देख कर मुसकराए, फिर हथेलियां रगड़ते हुए भोगनाथ बोला, ‘‘आज तो गजब की सर्दी है.’’

‘‘इसीलिए तो रजाई में दुबकी बैठी हूं,’’ बिट्टू बोली, ‘‘रजाई छोड़ने का मन ही नहीं कर रहा, लेकिन तुम इतनी ठंड में कहां घूम रहे हो?’’

‘‘घूम नहीं रहा, सुबह से तुम्हें देखा नहीं था, इसलिए रोज की तरह तुम से मिलने चला आया,’’ भोलानाथ ने जवाब दिया, ‘‘सोचा था, तुम आग ताप रही होगी तो मैं भी हाथ सेंक लूंगा, लेकिन यहां तो हालात दूसरे ही है. लगता है मुझ से ज्यादा तुम्हें गर्मी की जरूरत है. दूसरे तरीके से हाथ सेंक कर मुझे तुम्हारी ठंड दूर करनी होगी.’’  कहने के बाद भोगनाथ ने बिट्टू का चेहरा अपने हाथों में ले लिया.

बिट्टू ने एक झटके से अपना चेहरा अलग कर लिया और ठंडे हो गए गालों पर हथेलियां मलते हुए बोली, ‘‘हटो भी, कितने ठंडे हैं तुम्हारे हाथ, एकदम बर्फ जैसे.’’

‘‘बिट्टू, कुछ चीजें ठंडी जरूर लगती हैं, लेकिन उन की तासीर बड़ी गर्म होती है,’’ भोगनाथ ने चुहल की, ‘‘मेरी बात पर विश्वास न हो तो आजमा कर देख लो. 2 मिनट में मेरे हाथ तुम्हें गर्म तो लगने ही लगेंगे, खुद भी इतनी गर्म हो जाओगी कि रजाई शरीर से उतार फेंकोगी.’’

भोगनाथ के कथन का आशय समझ कर बिट्टू के गाल सुर्ख हो गए. वह उसे मीठी फटकार लगाते हुए बोली, ‘‘मैं तुम से कई बार कह चुकी हूं कि इस तरह की बातें मत किया करो. लेकिन तुम हो कि मानते ही नहीं.’’

भोगनाथ ने थोड़ा आगे की ओर झुक कर बिट्टू की आंखों में झांका, ‘‘तो फिर कैसी बातें किया करूं?’’

‘‘वैसी ही अच्छीअच्छी बातें, जैसे दूसरे प्रेमी करते हैं.’’

‘‘प्रेमियों की बात कहीं से भी शुरू हो, जिस्म पर ही पहुंच कर खत्म होती है.’’

‘‘भोग, अभी हमारी शादी नहीं हुई है.’’

‘‘शादी भी जल्दी हो जाएगी.’’

‘‘तब जो मन में आए, बातें कर लेना.’’

‘‘बातें तो अभी भी कर रहा हूं. शादी के बाद तो कुछ और करूंगा.’’

बिट्टू को उस की बातों में रस आने लगा. मुसकरा कर उस ने पूछा, ‘‘शादी के बाद क्या करोगे?’’

‘‘कह कर बताऊं या कर के?’’

‘‘फिर शुरू हो गए.’’

‘‘उकसा तो तुम ही रही हो,’’ भोगनाथ मुसकराया, ‘‘लगता है तुम्हारा मन डोल रहा है.’’

जवाब में मुंह खोलने के लिए बिट्टू ने मुंह खोला ही था कि तभी हवा का तेज झोंका बरसात की ठंडी फुहारों को खुले दरवाजे के भीतर तक ले आया. ठंड से बिट्टू और भोगनाथ दोनों के बदन सिहर उठे. बिट्टू ने रजाई को और मजबूती से लपेट लिया, ‘‘उफ! यह बारिश और यह ठंड आज किसी की जान ले कर ही मानेगी.’’

‘‘किसी की क्या, फिलहाल तो मेरी जान पर ही बनी हुई है.’’

‘‘वो कैसे?’’

‘‘तुम ने तो सर्दी से अपना बचाव कर रखा है, मैं खुले दरवाजे के सामने खड़ा ठंड से कांप रह हूं.’’

‘‘तो दरवाजा भेड़ कर तुम भी रजाई ओढ़ लो.’’ बिट्टू के मुंह से अनायास निकल गया. यह बात उस ने कैसे कह दी. वह खुद ही नहीं समझ पाई.

भोगनाथ को शायद इसी पल की प्रतीक्षा थी. बिट्टू ने उस से दरवाजा भेड़ने को कहा था, पर उस ने दरवाजा बंद कर के सिटकनी लगा दी. उस के पास आ कर बिटटू की रजाई में घुसने लगा, ‘‘बिट्टू, तुम कितनी गर्म हो. अपने जैसा मुझे भी गर्म कर दो न?’’

‘‘मेरी रजाई में तुम कहां घुसे आ रहे हो,’’ बिट्टू ने हड़बड़ा कर कहा, ‘‘कोई आ जाए तो मैं मुफ्त में बदनाम हो जाऊंगी.’’

‘‘इश्क की दुनिया में उन का ही नाम होता है, जो बदनाम होते हैं.’’

‘‘समझने की कोशिश करो भोग,’’ बिट्टू ने प्रतिरोध किया, ‘‘तुम लड़के हो, तुम्हारा कुछ नहीं बिगड़ेगा लेकिन मैं किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहूंगी.’’

‘‘मैं चाहता भी नहीं हूं कि कोई तुम्हारा मुंह देखे. तुम्हारा मुंह देखने के लिए मैं हूं न.’’ भोगनाथ ने रजाई के साथसाथ बिट्टू को भी जकड़ लिया. बिट्टू के बदन में ठंड की सिहरन दौड़ी तो पुरुष स्पर्श की मादक अनुभूति भी हुई.

गर्म रजाई और बिट्टू के तन की गरमी से भोगनाथ का शरीर सुलगने लगा. रजाई के भीतर से ही उस ने बिट्टू की कमर में हाथ डाल दिया. बिट्टू के तनमन में चिंगारियां सी चटखने लगीं. आनंद की उठती लहरों से उस की पलकें मुंदने लगीं और सांसों की रफ्तार तेज हो गई.

दोनों चुप थे, लेकिन उन की शारीरिक गतिविधियां एकदूसरे से बहुत कुछ कह रही थीं. मस्ती में भर कर वह भोगनाथ को अपने ऊपर खींचने लगी. बिट्टू की देह को मस्त और बहकते देख कर भोगनाथ ने उसे निर्वस्त्र किया, फिर स्वयं भी निर्वस्त्र हो गया. इस के बाद दोनों एकदूसरे में समा गए.

कुछ देर में जब दोनों के तन की आग ठंडी हुई तो दोनों एकदूसरे की बांहों से आजाद हुए. उस के बाद ही बिट्टू को पता चला कि पुरुष संसर्ग कितना आनंददायक होता है.

उत्तर प्रदेश के जिला सीतापुर के पिसावां थाना क्षेत्र के गांव सरवाडीह में भगौती रहता था. उस के परिवार में उस की पत्नी रामश्री और 2 बेटियां बिट्टू, सीमा और एक बेटा शोभित था. भगौती पिसावां कस्बे में एक दुकान पर लोहे की ग्रिल बनाने का काम करता था. भगौती को मिलने वाली मजदूरी से घर का खर्च बड़ी मुश्किल से चल पाता था. घर की आर्थिक स्थिति काफी खराब थी.

घर में बिट्टू भाईबहनों में सब से बड़ी थी. बात उस समय की है, जब बिट्टू की उम्र 16 साल थी. यौवन की दहलीज पर बिट्टू की खूबसूरती निखर गई थी.

भगौती के मकान से कुछ दूरी पर केदार रहता था. उस के परिवार में पत्नी जयरानी और 3 बेटों भोगनाथ, पिंटू और शिवा के अलावा 1 बेटी सविता थी. केदार मेहनतमजदूरी कर के  परिवार का भरणपोषण करता था. दोनों के घरों में काफी मेलजोल था और एकदूसरे के घर भी आनाजाना था.

आनेजाने के दौरान जवान होती बिट्टू पर भोगनाथ की नजर पड़ी तो उस की मदमस्त काया देख कर उस की नजरें उस पर जम गईं. जैसी लड़की की चाहत उस के दिल में थी, बिट्टू ठीक वैसी थी. बिट्टू का हसीन चेहरा उस की आंखों के रास्ते उस के दिल में उतरता चला गया.

घर के रास्ते पहले से खुले हुए थे. भोगनाथ की बिट्टू से खूब पटती थी. उस का कारण भी था, बिट्टू भी दिल ही दिल में भोगनाथ को पसंद करने लगी थी. धीरेधीरे वह भी उस की तरफ खिंचती चली गई. दोनों एकदूसरे से दिल ही दिल में प्यार करते थे. अपने प्यार का इजहार करने के लिए उन के पास पर्याप्त अवसर थे. इसलिए उन्हें न मोहब्बत के इजहार में वक्त लगा न इश्क के इकरार में.

मंजू और उसके 2 प्रेमी : घरगृहस्थी को किया बरबाद

सुबह के यही कोई 7 बजे थे, तभी धार जिले के अमझेरा थानाप्रभारी रतनलाल मीणा को थाना इलाके में एक युवक द्वारा आत्महत्या करने की खबर मिली.  सूचना पाते ही टीआई मीणा के निर्देश पर एसआई राजेश सिंघाड पुलिस टीम को ले कर मौके पर पहुंच गए, जहां कमरे की छत पर लगभग 28 वर्षीय अजय भायल की लाश  छत में लगे कुंदे के सहारे फांसी पर लटकी थी.

घटना के समय घर में अजय की पत्नी मंजू मौजूद थी, जिस ने शुरुआती पूछताछ में बताया कि रात को हम दोनों खाना खा कर अपने बिस्तर पर सो गए थे. जिस के बाद सुबह उठ कर उस ने पति को फांसी पर लटका देखा तो उस ने लोगों को घटना की जानकारी दी.

एसआई सिंघाड को मंजू के हावभाव कुछ अजीब लगे. क्योंकि मंजू बेबाक हो कर घटना की जानकारी दे रही थी. जबकि एक जवान पति के मरने के बाद किसी भी औरत का इस तरह बात करना असंभव था. वह भी तब जब उस के पति का शव उस के सामने फांसी के फंदे पर झूल रहा हो. एसआई राजेश सिंघाड ने यह बात अपने ध्यान में नोट कर शव को फंदे से उतारा. उन्होंने पूरी स्थिति से टीआई रतनलाल मीणा को अवगत कराया. शव पोस्टमार्टम के लिए भेजने से पहले उन्होंने पूरे घर की अच्छी तरह से तलाशी ली, पर वहां कहीं भी कोई सुसाइड नोट नहीं मिला. यह बात 26 अगस्त, 2020 की है.

यह आत्महत्या है या अजय की हत्या की गई है, यह तय करने के लिए पुलिस को पोस्टमार्टम रिपोर्ट का इंतजार था. तब तक मामला संदिग्ध था. इस दौरान प्रारंभिक पूछताछ में अजय के घर वालों ने अपने बेटे की मौत को हत्या  बताते हुए उस की पत्नी मंजू पर शक जाहिर किया.

उन का कहना था कि मंजू का चालचलन ठीक नहीं था, जिस के कारण पतिपत्नी में आए दिन झगड़ा होता रहता था. इतना ही नहीं, जिस रात अजय का शव फांसी पर लटका मिला उस रात भी उस की पत्नी और अजय के बीच झगड़ा होने की बात पुलिस की जानकारी में आई, मगर मंजू ने इस बात से इनकार कर दिया.

उस का कहना था कि उस के पति कई दिनों से परेशान रहने लगे थे. मैं ने उन से परेशानी का कारण भी जानने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने इस बारे में कुछ नहीं बताया.

जांच अधिकारी एसआई राजेश सिंघाड ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने से पहले ही जांच कर पता कर लिया था कि मृतक अजय और उस की पत्नी दोनों न केवल शराब पीने के शौकीन थे, बल्कि गांव में अवैध रूप से शराब का धंधा भी करते थे.

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जाहिर सी बात है जहां शराब का धंधा होता हो, वहां लड़ाईझगड़ा होना कोई अजूबा नहीं है. इसलिए दोनों के झगडे़ पर कोई ध्यान नहीं देता था.

इस बीच पुलिस को अजय की पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल गई, जिस में साफ बताया गया कि अजय की मौत फांसी लगने के पहले ही हो चुकी थी. बात साफ थी कि उस की हत्या करने के बाद उसे आत्महत्या साबित करने की गरज से फांसी पर लटकाया गया था.

चूंकि अजय का शव घर के अंदर मिला था और रात में उस की 25 वर्षीय बेहद खूबसूरत पत्नी मंजू उस के साथ में थी. इसलिए टीआई मीणा जानते थे कि यह संभव नहीं है कि पत्नी घर में सोती रहे और कोई बाहर से आ कर पति की हत्या कर के चला जाए.

इसलिए उन के निर्देश पर जांच अधिकारी एसआई सिंघाड ने मृतक की पत्नी मंजू से बारबार पूछताछ की, जिस में एक समय ऐसा आया कि वह खुद अपने बयानों में उलझ गई, जिस से उस ने अपने 2 प्रेमियों मनोहर और सावन निवासी राजपुरा के साथ मिल कर पति की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली.

पुलिस ने आरोपियों के ठिकानों पर छापे मार कर उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया, जिस के बाद अपने दोनों प्रेमियों के साथ मिल कर हत्या कर दिए जाने की कहानी इस प्रकार से सामने आई.

अजय मध्य प्रदेश के जिला धार के गांव नालापुरा में अपनी पत्नी मंजू के साथ रहता था. अजय के पास आय का कोई साधन नहीं था. इसलिए अजय ने घर पर छोटीमोटी किराने की दुकान खोल रखी थी, जिस से उस का मुश्किल से ही गुजारा हो पाता था.

अजय की पत्नी मंजू जितनी खूबसूरत थी, उतनी ही दिमाग से तेज भी थी इसलिए उस ने अजय को सलाह दी कि अकेला गुड़, तेल बेचने से उन की दालरोटी नहीं चलने वाली, इसलिए हम किराने की ओट में शहर से शराब ला कर बेचना शुरू कर देते हैं, जिस से काफी कमाई हो सकती है. इस काम में अजय ने पुलिस का डर होने की बात कही तो मंजू ने कहा कि यह बात तुम मुझ पर छोड़ दो.

अजय पत्नी की बात पर राजी हो गया, जिस से उस ने शहर से शराब ला कर दुकान में रख कर बेचनी शुरू कर दी थी. कहना नहीं होगा कि शराब पीने वाले रेट के चक्कर में नहीं पड़ते, इसलिए गांव के शौकीन लोग मंजू से मुंहमांगे दाम पर शराब खरीदने लगे.

गांव का संपन्न किसान मनोहर पडियार भी शराब का शौकीन था. इसलिए जब उसे पता चला कि मंजू और अजय गांव में शराब बेचने लगे हैं, तब से मनोहर ने शहर से शराब खरीदनी ही बंद कर दी.

मंजू जानती थी कि शराब के शौकीन मजबूरी में ही महंगी शराब उस से खरीदते हैं, वरना लोग शहर से ही अपने लिए शराब खरीद कर लाते थे. लेकिन मनोहर उस का रोज का ग्राहक था. इसलिए एक दिन मंजू ने मनोहर से पूछ लिया, ‘‘अब शहर से शराब खरीद कर नहीं लाते क्या?’’

‘‘मेरा यहां रोजरोज आना तुम्हें अच्छा नहीं लगता क्या?’’ मनोहर ने उलटा उसी से सवाल कर दिया.

‘‘नहीं, यह बात नहीं है, बस ऐसे ही पूछ लिया.’’ वह बोली.

‘‘अब पूछ लिया है तो कारण भी सुन लो. तुम जिस बोतल को हाथ लगा देती हो न, उस बोतल का नशा और भी बढ़ जाता है. इसलिए मुझे तुम्हारे यहां की शराब अच्छी लगती है.’’  मनोहर ने मंजू की प्रशंसा करते हुए कहा.

‘‘ऐसा है क्या?’’ मनोहर की बात सुन कर मंजू ने मुसकराते हुए बोली.

‘‘हां, क्योंकि तुम्हारे छू भर लेने से शराब में तुम्हारा नशा भी घुल जाता है.’’ मनोहर ने मुसकराते हुए कहा और शराब की बोतल पकड़ते समय मंजू की अंगुलियां दबा दीं.

मंजू बच्ची तो थी नहीं, जो इस का मतलब न समझती हो. लेकिन वह अपने रोज के ग्राहक को नाराज नहीं करना चाहती थी, इसलिए मुसकराते हुए बोली, ‘‘क्या बात है मनोहर बाबू, आज पीने से पहले ही चढ़ गई क्या?’’

‘‘हां, तुम से चार बातें जो हो गईं.’’ मनोहर ने उस से कहा और अपनी बोतल ले कर चला गया.

उस दिन के बाद से मनोहर और मंजू के बीच अनकहे तौर पर नजदीकी बढ़ने लगी. जिस से कुछ दिनों बात मनोहर मंजू के घर में ही बैठ कर शराब पीने लगा.

मंजू भी शराब पीने की शौकीन थी, सो एक दिन वह भी मनोहर के साथ पेग से पेग भिड़ाने लगी. जिस के चलते शराब के नशे में दोनों के बीच अवैध संबंध बन गए.

मंजू खूबसूरत और जवान थी. मनोहर को उस की जरूरत थी और मंजू को मनोहर के पैसों की. इसलिए मनोहर उस पर पैसे लुटाते हुए लगभग रोज ही मंजू के साथ उस वक्त समय बिताने लगा, जब उस का पति अजय दुकान का सामान लेने शहर गया होता था.

राजपुरा गांव का रहने वाला सावन हेयर कटिंग सैलून चलाता था. वह शराब का शौकीन भी था और मनोहर का दोस्त भी. इसलिए कभीकभार वह मनोहर के साथ मंजू के यहां शराब पीने चला जाया करता था.

इस दौरान वह जल्दी ही समझ गया कि मनोहर और मंजू के बीच शारीरिक संबंध भी हैं तो मौके का फायदा उठा कर उस ने मनोहर से कहा कि वह उसे भी मंजू संग सोने का मौका दिलवा दे.

मनोहर ने मंजू से सावन को एक बार खुश करने को कहा तो मंजू थोड़ी नानुकुर के बाद मान गई. लेकिन इस के बाद कुछ ऐसा हुआ कि मनोहर के अलावा सावन के साथ भी मंजू के स्थाई अवैध संबंध बन गए.

चूंकि मनोहर और सावन दोनों दोस्त थे और साथ में ही शराब पीया करते थे, इस कारण कई बार वे दोनों एक साथ मंजू के संग अय्याशी कर चुके थे. लेकिन कोरोना के कारण देश में लौकडाउन लग जाने से अजय का सामान खरीदने के लिए शहर जाना बंद हो गया. दूसरा उस के पास शराब का स्टौक भी खत्म हो गया.

इस से अजय और मंजू की कमाई पर ब्रेक तो लगा ही, साथ ही मंजू के संग मनोहर और सावन की अय्याशी पर भी ब्रेक लग गया. जिस से दोनों दोस्त मंजू से मिलने के लिए परेशान होने लगे. इस बीच एक दिन गांव में अपने दोस्तों के साथ अजय को ताश खेलते देख मनोहर और सावन मंजू के घर पहुंच गए और एक साथ मंजू के संग वासना का खेल खेलने लग गए. इसी बीच अजय के घर आ जाने से तीनों रंगेहाथ पकड़े गए.

पत्नी को अय्याशी का घिनौना खेल खेलते देख अजय पागल हो कर गुस्से में उस की पिटाई करने लगा. जिस के बाद तो यह आए दिन का काम होने लगा. अजय बातबात पर उस की अय्याशी का ताना दे कर उसे पीटने लगा. इस से मंजू तंग आ गई. उस ने यह बात अपने प्रेमियों को बताई तो वे अजय के साथ रंजिश रखने लगे.

इस दौरान लौकडाउन फिर से हट जाने से मंजू अवैध शराब बेचने लगी, मनोहर शराब लेने उस की दुकान पर अभी भी जाया करता था. लेकिन अब पहले जैसी अय्याशी संभव नहीं थी. इसलिए मनोहर और सावन दोनों ही अजय को रास्ते से हटाने की सोचने लगे थे.

आरोपियों ने बताया कि घटना की रात अजय फिर मंजू को उस के अवैध संबंध को ले कर उस के साथ मारपीट कर रहा था. इस बात की जानकारी मंजू ने मनोहर को फोन पर दी तो मनोहर सावन को ले कर मंजू के घर पहुंच गया. जहां उस ने अजय को समझाबुझा कर अपने साथ शराब पीने को राजी कर लिया.

इस के बाद उस ने अजय से ही खरीद कर उसे खूब शराब पिलाई और जब उस ने देखा कि पर्याप्त नशा हो गया है तो सावन, मंजू और मनोहर तीनों ने मिल कर गला दबा कर अजय की हत्या कर दी. उस के बाद लाश को फांसी पर लटका दिया ताकि पुलिस समझे कि उस ने आत्महत्या की है.

लेकिन टीआई रतनलाल मीणा के नेतृत्व में एसआई राजेश सिंघाड की सटीक जांच से तीनों आरोपी हफ्ते भर में ही कानून की गिरफ्त में आ गए.

मंजू के बारे में बताया जाता है कि पति की हत्या करने के बाद उसे कानून का जरा भी डर नहीं था. इसलिए दोनों प्रेमियों संग मिल कर पति की हत्या के बाद उस के शव को फंदे पर लटका कर दोनों प्रेमियों संग मस्ती करते हुए शराब पीने के बाद खाना भी खाया और फिर जिस कमरे में पति की लाश लटकी थी, उसी कमरे में सो गई थी.

उस ने पुलिस को बताया कि सुबह उठने के बाद उस ने मोहल्ले वालों को बुला कर पति द्वारा आत्महत्या करने की बाद बताई.

पुलिस ने मंजू और उस के दोनों प्रेमियों मनोहर व सावन को गिरफ्तार करने के बाद कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

प्रेमिका के चक्कर में : रितेश का हत्यारा प्रेमी

मई महीने की 15 तारीख की सुबह करीब 10 बजे प्रेमा का ढाई साल का बड़ा बेटा रितेश चौहान अपने घर के बाहर खेल रहा था. प्रेमा जब घर से बाहर निकली तो उसे रितेश दिखाई न दिया. तब उस ने बेटे को आवाज लगाई, ‘‘रितेश, बेटा कहां हो?’’

लेकिन रितेश घर के आसपास कहीं न मिला. प्रेमा रितेश को घर के बाहर न पा कर घबरा गई. वह उसी समय अपने ससुर जगराम के पास गई, क्योंकि प्रेमा का पति जवाहर लाल एक दिन पहले ही गांव से दिल्ली गया था. प्रेमा रोते हुए ससुर जगराम से बोली, ‘‘बाबूजी, रितेश अभी कुछ देर पहले घर से बाहर खेल रहा था. लेकिन अब वह कहीं दिखाई नहीं दे रहा है.’’

बहू प्रेमा की बात सुन कर जगराम भी घबरा गए और उन्होंने घर के आसपास अपने ढाई वर्षीय पोते रितेश को आवाज देनी शुरू कर दी, लेकिन रितेश का कहीं पता नहीं चला.

इस के बाद प्रेमा देवी, ससुर जगराम और प्रेमा देवी के 2 देवर सहित परिवार के सभी सदस्य बदहवासी की अवस्था में उसे इधरउधर ढूंढने लगे. लेकिन रितेश का कहीं नहीं मिला. परिवार वालों ने उसे आसपास के खेतों, बागबगीचों में हर जगह ढूंढा, पर उस के बारे में कहीं कोई जानकारी नहीं मिली.

रितेश के गायब होने की खबर एक दिन पहले दिल्ली गए उस के पिता जवाहरलाल को भी फोन द्वारा दे दी गई. बेटे के गायब होने की खबर पा कर जवाहर भी घबरा गया और वह उसी दिन दिल्ली से अपने घर के लिए चल पड़ा. इधर प्रेमा का रोरो कर बुरा हाल हो गया था.

रितेश के गायब होने की सूचना जंगल में आग की तरह आसपास के गांवों में भी फैल चुकी थी. लोग जी जान से रितेश को खोजने में लगे थे. तभी किसी ने रितेश के दादा जगराम को बताया कि चचेरा भाई संदीप चौहान रितेश को साइकिल पर बैठा कर कहीं ले जा रहा था.

रितेश के परिजनों ने संदीप को पकड़ कर उस से कड़ाई से पूछा कि रितेश के साथ उस ने क्या किया है तो संदीप बोला, ‘‘मुझे नहीं पता और न ही मैं ने रितेश को देखा है.’’

लोग बारबार संदीप से रितेश के बारे में पूछते रहे लेकिन संदीप रितेश के बारे में अनभिज्ञता ही जाहिर करता रहा.

इस के बाद लोगों के कहने पर जगराम ने स्थानीय थाने सोनहा पहुंच कर पोते के गायब होने की जानकारी देते हुए संदीप पर उसे गायब करने का आरोप लगाया.

जगराम की शिकायत को थानाप्रभारी अशोक कुमार सिंह ने गंभीरता से लिया. उन्होंने अपने उच्चाधिकारियों को भी घटना की सूचना दे दी.

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सूचना पा कर एसपी आशीष श्रीवास्तव, सीओ (रुधौली) धनंजय सिंह कुशवाहा, स्वाट, एसओजी और सर्विलांस और डौग स्क्वायड टीम के साथ पहुंच गए. इस के अलावा रुधौली सर्किल के सभी थानों को भी रितेश की खोज में लगा दिया गया.

पुलिस स्वाट और डौग स्क्वायड टीम के साथ रितेश को खोजने में लगी हुई थी, लेकिन उस का कहीं पता नहीं चल रहा था और उधर पुलिस जगराम की शिकायत पर आरोपी संदीप के घर पहुंची तो वह भी घर पर नहीं मिला.

अगले दिन 16 मई की सुबह पुलिस ने संदीप को गांव के पास से धर दबोचा. जब पुलिस ने उस से रितेश के बारे में पूछताछ की तो उस ने बताया कि वह रितेश को बिसकुट टौफी दिलाने ले गया था. जिस के बाद उस ने रितेश को उस के घर पर छोड़ दिया था.

पुलिस को संदीप के बातचीत के लहजे से कुछ शक हुआ, फिर पुलिस ने उस से सख्ती से पूछताछ शुरू कर दी, जिस से संदीप टूट गया. इस के बाद उस ने अपने रिश्ते के भतीजे ढाई वर्षीय रितेश की हत्या किए जाने की बात कबूल कर ली.

उस ने बताया कि रितेश की हत्या उस ने गांव की ही महिला पार्वती के कहने पर की थी. पार्वती उस की प्रेमिका है. उस ने पुलिस को बताया कि हत्या करने के बाद रितेश की लाश खाजेपुर के जंगल में छिपा दी थी.

पुलिस ने हत्यारोपी महिला पार्वती को भी उस के घर से गिरफ्तार कर लिया. उस के घर से पुलिस को रितेश की चप्पलें और वारदात में प्रयुक्त साइकिल भी बरामद हो गई. रितेश की लाश बरामद करने के लिए पुलिस दोनों आरोपियों को खाजेपुर के जंगल में ले गई. वहां एक गड्ढे से रितेश की लाश बरामद कर ली गई.

रितेश की हत्या और उस की लाश मिलने की जानकारी जैसे ही उस की मां प्रेमा को मिली तो वह बेसुध हो कर गिर पड़ी, उधर बाकी परिजनों का भी रोरो कर बुरा हाल था.

रितेश की लाश की बरामदगी के बाद पुलिस ने जरूरी काररवाई कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. संदीप और पार्वती से विस्तार से पूछताछ की गई तो उन्होंने ढाई वर्षीय रितेश की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार थी—

उत्तर प्रदेश के जिला बस्ती के सोनहा थाना क्षेत्र के दरियापुर जंगल टोला उकड़हवा की रहने वाली पार्वती देवी का पति अहमदाबाद में रह कर नौकरी करता था. पार्वती कुछ दिनों गांव में रहती तो कुछ दिनों अहमदाबाद में अपने पति के साथ गुजारती थी.

शादी के बाद पार्वती 4 बेटियों और एक बेटे की मां बन चुकी थी. इस के बावजूद भी वह अपने पति से संतुष्ट नहीं थी. इसलिए वह किसी ऐसे साथी की तलाश में थी, जो उस की ख्वाहिशें पूरी कर सके.

पार्वती अहमदाबाद से जब अपने गांव आती तो हरिराम का लड़का संदीप चौहान कभीकभार उस के घर आ जाता था. पार्वती जब हृष्टपुष्ट संदीप को देखती तो उस के दिल में चाहत की हिलारें उठ जाती थीं. उसे अपने जाल में फांसने के लिए वह उस से अश्लील मजाक करने लगती.

संदीप बच्चा तो था नहीं, इसलिए वह पार्वती के इशारों को समझने लगा था. आखिर एक दिन पार्वती ने मौका पा कर संदीप से अपने दिल की बात कह दी, ‘‘संदीप, तुम मुझे बहुत अच्छे लगते हो. तुम्हें देख कर मुझे कुछकुछ होने लगता है.’’

पार्वती की तरफ से खुला आमंत्रण पा कर संदीप भी खुद पर काबू नहीं रख सका. इस के बाद दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कीं. फिर तो उन्हें जब भी मौका मिलता, अपनी हसरतें पूरी कर लेते.

इधर जब पार्वती गांव से अपने पति के पास अहमदाबाद चली जाती तो फिर उसे संदीप की याद सताती थी. इसलिए वह फिर से गांव भाग आती थी.

कहा जाता है कि इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपता है, उसी तरह से पार्वती और संदीप के अवैध संबंध की बात धीरेधीरे आसपड़ोस में भी फैलने लगी थी. लोग जब भी दोनों को देखते तो कानाफूसी करने लगते थे. यह बात धीरेधीरे संदीप के घर वालों को भी पता चल चुकी थी. जिस के बाद संदीप के घर वालों ने उसे समझाया भी, लेकिन पार्वती पर कोई असर नहीं पड़ा.

रितेश की हत्या के लगभग 2 महीने पहले एक दिन संदीप चौहान के रिश्ते की भाभी प्रेमा की पार्वती के साथ किसी बात को ले कर कहासुनी हो गई. इसी दौरान तूतूमैंमैं के दौरान प्रेमा ने पार्वती और संदीप के संबंधों को ले कर कटाक्ष कर दिया. बात बढ़ी तो प्रेमा ने इस की शिकायत सोनहा थाने में कर दी, जहां पुलिस ने दोनों को बुला कर समझायाबुझाया.

पार्वती को प्रेमा द्वारा थाने में बुलाया जाना नागवार लगा. उसे लगा कि उस ने कोई गलती नहीं की, उस के बावजूद भी उसे थाने बुला कर नीचा दिखाया गया. यह बात पार्वती के मन में गांठ कर गई और वह प्रेमा से बदला लेने की फिराक में लग गई.

थाने से आने के बाद पार्वती प्रेमा से बदले की फिराक में लगी रही. बदले की आग में झुलस रही पार्वती ने एक छोटी सी वजह से एक खौफनाक फैसला ले लिया था. उस ने इस के लिए अपने प्रेमी संदीप चौहान को मोहरा बनाने की चाल चली और संदीप के साथ मिल कर मासूम रितेश की हत्या की खौफनाक साजिश तैयार कर डाली.

संदीप चौहान पार्वती के साथ मिल कर पूरी प्लानिंग के साथ इस घटना को अंजाम देना चाहता था. इस के लिए उस ने प्रेमा के घर आनाजाना शुरू कर दिया और वह रोज रितेश के साथ खेलता और साइकिल पर बैठा कर अकसर उसे टौफी, बिसकुट दिलाने दुकान तक ले जाता था.

जब उसे लगा कि कोई उस पर शक नहीं करेगा तो पार्वती के साथ मिल कर रितेश की हत्या की साजिश को अंजाम तक पहुंचाने का फैसला कर लिया.

संदीप ने पुलिस पूछताछ में बताया कि वह हर रोज की तरह 15 मई, 2021 की सुबह करीब 10 बजे प्रेमा के घर पहुंचा, जहां रितेश को बाहर अकेले खेलते देख मौका पा कर उसे टौफी और बिसकुट दिलाने के बहाने  साइकिल पर बैठा कर ले गया.

अपनी प्रेमिका पार्वती के कहने पर वह उसे गांव से दूर खाजेपुर के जंगल में ले गया और वहीं उस की गला दबा कर हत्या कर दी. उस के शव को उस ने वहीं पर एक छोटे से गड्ढे में डाल कर पत्तियों से छिपा दिया.

ढाई वर्षीय रितेश के गायब होने के बाद खोजबीन में लगे परिजनों को जब यह पता चला कि आखिरी बार रितेश को संदीप के साथ साइकिल पर बैठे देखा गया था तो लोगों के शक की सुई संदीप पर टिक गई. जिस के बाद पुलिस के हिरासत में आने के बाद संदीप ने सब कुछ सचसच बता दिया.

जब लोगों को यह बात पता चली कि पार्वती और उस के प्रेमी संदीप ने जघन्य तरीके से मासूम रितेश की हत्या की है तो लोगों का गुस्सा बढ़ने लगा. पुलिस के उच्चाधिकारियों ने स्थिति को बिगड़ने से बचाने के लिए कुछ दिनों के लिए गांव में पीएसी की प्लाटून के साथ पुलिस बल तैनात कर दिया था.

पुलिस ने 24 घंटे के भीतर घटना का परदाफाश कर हत्यारोपी पार्वती और संदीप चौहान के खिलाफ आईपीसी की धारा 364 (अपहरण), 302 (हत्या), 201 (हत्या के बाद शव छिपाना), 120बी (वारदात की साजिश में सम्मिलित होने) का मुकदमा दर्ज कर आरोपियों को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

आरोपी पार्वती के गुनाहों के चलते जब उस की डेढ़ साल की बेटी को भी अपना समय जेल में बिताना होगा.

प्यार, सेक्स और हत्या : प्यार बना हैवान

‘‘सीमा, देखो शाम का समय है. मौसम भी मस्तमस्त हो रहा है. घूमने का मन कर रहा है. चलो, हम लोग कहीं घूम कर आते हैं.’’ लखनऊ के स्कूटर इंडिया के पास रहने वाली सीमा नाम की लड़की से उस के बौयफ्रैंड कैफ ने मोबाइल पर बात करते हुए कहा.

‘‘कैफ, अभी तो कोई घर में है नहीं, बिना घर वालों के पूछे कैसे चलें?’’ सीमा ने अनमने ढंग से मोहम्मद कैफ को जबाव दिया.

‘‘यार जब घर में कोई नहीं है तो बताने की क्या जरूरत है? हम लोग जल्दी ही वापस आ जाएंगे. जब तक तुम्हारे पापा आएंगे उस के पहले ही हम वापस लौट आएंगे. किसी को कुछ पता भी नहीं चलेगा.’’ कैफ को जैसे ही यह पता चला कि घर में सीमा अकेली है, वह जिद करने लगा. सीमा भी अपने प्रेमी कैफ को मना नहीं कर पाई.

सीमा के पिता सीतापुर जिले के खैराबाद के रहने वाले थे. लखनऊ में इंडस्ट्रियल एरिया में स्थित एक प्राइवेट कंपनी में वह शिफ्ट के हिसाब से काम करते थे.

सीमा ने पिछले साल बीएससी में एडमिशन लिया था. इसी बीच कोरोना के कारण स्कूलकालेज बंद हो गए. इस के बाद वह अपने पिता रमेश कुमार के पास रहने चली आई थी. सीमा के एक छोटा भाई और एक बहन भी थी.

घर में वह बड़ी थी. इसलिए पिता की मदद के लिए उस ने पढ़ाई के साथ नादरगंज में चप्पल बनाने की एक फैक्ट्री में नौकरी कर ली.

गांव और शहर के माहौल में काफी अंतर होता है. लखनऊ आ कर सीमा भी यहां के माहौल में ढलने लगी थी. चप्पल फैक्ट्री में काम करते समय वहां कैफ नाम के लड़के से उस की दोस्ती हो गई. यह बात फैक्ट्री के गार्ड को पता चली तो वह भी उसे छेड़ने की कोशिश करने लगा.

यह जानकारी जब सीमा के पिता को हुई तो उन्होंने चप्पल फैक्ट्री से बेटी की नौकरी छुड़वा दी.

नौकरी छोड़ने के बाद सीमा ज्वैलरी शौप पर नौकरी करने लगी. कैफ के साथ दोस्ती प्यार में बदल चुकी थी. अब वह घर वालों को बिना बताए उस से मिलने जाने लगी थी. दोनों के बीच शारीरिक संबंध भी बन चुके थे. 12 जून की शाम करीब साढ़े 7 बजे सीमा के पिता रमेश कुमार अपनी ड्यूटी पर जा रहे थे. सीमा उस समय शौप से वापस आ चुकी थी.

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रमेश कुमार ने सीमा को समझाते कहा, ‘‘बेटी रात में कहीं जाना नहीं. कमरे का दरवाजा बंद कर लो. खाना खा कर चुपचाप सो जाना.’’

‘‘जी पापा, आप चिंता न करें. मैं कहीं नहीं जाऊंगी. घर पर ही रहूंगी.’’

इस के बाद पिता के जाते ही कैफ का फोन आ गया और सीमा उसे मना करती रही पर उस की जबरदस्ती के आगे वह कुछ कर नहीं सकी.

शाम 8 बजे के करीब कैफ सीमा के घर के पास आया और उसे बुला लिया. मां ने शाम 5 बजे के करीब बेटी से फोन पर बात की थी. उसे हिदायत दी थी कि कहीं जाना नहीं. पिता ने भी उसे समझाया था कि घर में ही रहना, कहीं जाना नहीं. इस के बाद भी सीमा ने बात नहीं मानी. वह अपने प्रेमी मोहम्मद कैफ के साथ चली गई.

पिता जब अगली सुबह 8 बजे ड्यूटी से वापस घर आए तो सीमा वहां नहीं थी. उन्होंने सीमा के फोन पर काल करनी शुरू की तो उस का फोन बंद था. यह बात उन्होंने अपनी पत्नी को बताई तो बेटी की चिंता में वह सीतापुर से लखनऊ के लिए निकल गई.

इस बीच पिपरसंड गांव के प्रधान रामनरेश पाल ने सरोजनीनगर थाने में सूचना दी कि गहरू के जंगल में एक लड़की की लाश पड़ी है. लड़की के कपडे़ अस्तव्यस्त थे. देखने में ही लग रहा था कि पहले उस के साथ बलात्कार किया गया है. गले में दुपट्टा कसा हुआ था. पास में ही शराब, पानी की बोतल, 2 गिलास, एक रस्सी और सिगरेट के टुकड़े भी पड़े थे.

घटना की सूचना पुलिस कमिश्नर डी.के. ठाकुर, डीसीपी (सेंट्रल) सोमेन वर्मा और एडिशनल डीसीपी (सेंट्रल) सी.एन. सिन्हा को भी दी गई. पुलिस ने छानबीन के लिए फोरैंसिक और डौग स्क्वायड टीम को भी लगाया.

इस बीच तक सीमा के मातापिता भी वहां पहुंच चुके थे. पुलिस ने अब तक मुकदमा अज्ञात के खिलाफ कायम कर के छानबीन शुरू कर दी थी.

सीमा के घर वालों ने पुलिस को बताया कि मोहम्मद कैफ नाम के लड़के पर उन्हें शक है. दोनों की दोस्ती की बात सामने आई थी. पुलिस ने मोहम्मद कैफ के मोबाइल और सीमा के मोबाइल की काल डिटेल्स चैक करनी शुरू की.

पुलिस को कैफ के मोबाइल को चैक करने से पता चला कि उस ने सीमा से बात की थी. उस के बाद से सीमा का फोन बंद हो गया. अब पुलिस ने कैफ को पकड़ा और उस से पूछताछ की तो प्यार, सैक्स और हत्या की दर्दनाक कहानी सामने आ गई.

12 जून, 2021 की शाम मोहम्मद कैफ अपने 2 दोस्तों विशाल कश्यप और आकाश यादव के साथ बैठ कर ताड़ी पी रहा था. ये दोनों दरोगाखेड़ा और अमौसी गांव के रहने वाले थे. ताड़ी का नशा तीनों पर चढ़ चुका था. बातोंबातों में लड़की की बातें आपस में होने लगीं.

कैफ ने कहा, ‘‘ताड़ी पीने के बाद तो लड़की और भी नशीली दिखने लगती है.’’

आकाश बोला, ‘‘दिखने से काम नहीं होता. लड़की मिलनी भी चाहिए.’’

कैफ उसे देख कर बोला, ‘‘तुम लोगों का तो पता नहीं, पर मेरे पास तो लड़की है. अब तुम ने याद दिलाई है तो आज उस से मिल ही लेते हैं.’’

यह कह कर कैफ ने सीमा को फोन मिलाया और कुछ देर में वह सीमा को बुलाने चला गया.

इधर आकाश और विशाल को भी नशा चढ़ चुका था. दोनों भी इस मौके का लाभ उठाना चाहते थे. उन को पता था कि कैफ कहां जाता है. ये दोनों जंगल में पहले से ही पहुंच गए और वहीं बैठ कर पीने लगे.

सीमा और कैफ ने जंगल में संबंध बनाए. तभी विशाल और आकाश वहां पहुंच गए. वे भी सीमा से संबंध बनाने के लिए दबाव बनाने लगे. पहले तो कैफ इस के लिए मना करता रहा, बाद में वह भी सीमा पर दबाव बनाने लगा.

जब सीमा नहीं मानी तो तीनों ने जबरदस्ती उस के साथ बलात्कार करने का प्रयास किया. अब सीमा ने खुद को बचाने के लिए शोर मचाना चाहा और कच्चे रास्ते पर भागने लगी. इस पर विशाल ने सीमा की पीठ पर चाकू से वार किया. सीमा इस के बाद भी बबूल की झडि़यों में होते हुए भागने लगी.

‘‘इसे मार दो नहीं तो हम सब फंस जाएंगे.’’ विशाल और आकाश ने कैफ से कहा.

सीमा झाडि़यों से निकल कर जैसे ही बाहर खाली जगह पर आई, तीनों ने उसे घेर लिया. ताबड़तोड़ वार करने के साथ ही साथ उस के गले को भी दबा कर रखा. मारते समय चाकू सीमा के पेट में होता हुआ पीठ में फंस गया और वह टूट गया. 15 से 20 गहरे घाव से खून बहने के कारण सीमा की मौत हो गई. पेट में चाकू के वार से सीमा का यूरिनल थैली तक फट गई थी.

2 महीने पहले जब सीमा ने मोहम्मद कैफ से दोस्ती और प्यार में संबंध बनाए थे, तब यह नहीं सोचा था कि एक दिन उसे यह दिन देखना पड़ेगा.

लखनऊ पुलिस ने एसीपी स्वतंत्र कुमार सिंह की अगुवाई में बनी पुलिस टीम को पुरस्कार दिए जाने की घोषणा की. पुलिस ने मोहम्मद कैफ और उस के दोनों साथी विशाल और आकाश को भादंवि की धारा 302 में गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया.

(कथा में सीमा और उस के परिजनों के नाम बदल दिए गए हैं