प्यार, सेक्स और हत्या : प्यार बना हैवान

‘‘सीमा, देखो शाम का समय है. मौसम भी मस्तमस्त हो रहा है. घूमने का मन कर रहा है. चलो, हम लोग कहीं घूम कर आते हैं.’’ लखनऊ के स्कूटर इंडिया के पास रहने वाली सीमा नाम की लड़की से उस के बौयफ्रैंड कैफ ने मोबाइल पर बात करते हुए कहा.

‘‘कैफ, अभी तो कोई घर में है नहीं, बिना घर वालों के पूछे कैसे चलें?’’ सीमा ने अनमने ढंग से मोहम्मद कैफ को जबाव दिया.

‘‘यार जब घर में कोई नहीं है तो बताने की क्या जरूरत है? हम लोग जल्दी ही वापस आ जाएंगे. जब तक तुम्हारे पापा आएंगे उस के पहले ही हम वापस लौट आएंगे. किसी को कुछ पता भी नहीं चलेगा.’’ कैफ को जैसे ही यह पता चला कि घर में सीमा अकेली है, वह जिद करने लगा. सीमा भी अपने प्रेमी कैफ को मना नहीं कर पाई.

सीमा के पिता सीतापुर जिले के खैराबाद के रहने वाले थे. लखनऊ में इंडस्ट्रियल एरिया में स्थित एक प्राइवेट कंपनी में वह शिफ्ट के हिसाब से काम करते थे.

सीमा ने पिछले साल बीएससी में एडमिशन लिया था. इसी बीच कोरोना के कारण स्कूलकालेज बंद हो गए. इस के बाद वह अपने पिता रमेश कुमार के पास रहने चली आई थी. सीमा के एक छोटा भाई और एक बहन भी थी.

घर में वह बड़ी थी. इसलिए पिता की मदद के लिए उस ने पढ़ाई के साथ नादरगंज में चप्पल बनाने की एक फैक्ट्री में नौकरी कर ली.

गांव और शहर के माहौल में काफी अंतर होता है. लखनऊ आ कर सीमा भी यहां के माहौल में ढलने लगी थी. चप्पल फैक्ट्री में काम करते समय वहां कैफ नाम के लड़के से उस की दोस्ती हो गई. यह बात फैक्ट्री के गार्ड को पता चली तो वह भी उसे छेड़ने की कोशिश करने लगा.

यह जानकारी जब सीमा के पिता को हुई तो उन्होंने चप्पल फैक्ट्री से बेटी की नौकरी छुड़वा दी.

नौकरी छोड़ने के बाद सीमा ज्वैलरी शौप पर नौकरी करने लगी. कैफ के साथ दोस्ती प्यार में बदल चुकी थी. अब वह घर वालों को बिना बताए उस से मिलने जाने लगी थी. दोनों के बीच शारीरिक संबंध भी बन चुके थे. 12 जून की शाम करीब साढ़े 7 बजे सीमा के पिता रमेश कुमार अपनी ड्यूटी पर जा रहे थे. सीमा उस समय शौप से वापस आ चुकी थी.

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रमेश कुमार ने सीमा को समझाते कहा, ‘‘बेटी रात में कहीं जाना नहीं. कमरे का दरवाजा बंद कर लो. खाना खा कर चुपचाप सो जाना.’’

‘‘जी पापा, आप चिंता न करें. मैं कहीं नहीं जाऊंगी. घर पर ही रहूंगी.’’

इस के बाद पिता के जाते ही कैफ का फोन आ गया और सीमा उसे मना करती रही पर उस की जबरदस्ती के आगे वह कुछ कर नहीं सकी.

शाम 8 बजे के करीब कैफ सीमा के घर के पास आया और उसे बुला लिया. मां ने शाम 5 बजे के करीब बेटी से फोन पर बात की थी. उसे हिदायत दी थी कि कहीं जाना नहीं. पिता ने भी उसे समझाया था कि घर में ही रहना, कहीं जाना नहीं. इस के बाद भी सीमा ने बात नहीं मानी. वह अपने प्रेमी मोहम्मद कैफ के साथ चली गई.

पिता जब अगली सुबह 8 बजे ड्यूटी से वापस घर आए तो सीमा वहां नहीं थी. उन्होंने सीमा के फोन पर काल करनी शुरू की तो उस का फोन बंद था. यह बात उन्होंने अपनी पत्नी को बताई तो बेटी की चिंता में वह सीतापुर से लखनऊ के लिए निकल गई.

इस बीच पिपरसंड गांव के प्रधान रामनरेश पाल ने सरोजनीनगर थाने में सूचना दी कि गहरू के जंगल में एक लड़की की लाश पड़ी है. लड़की के कपडे़ अस्तव्यस्त थे. देखने में ही लग रहा था कि पहले उस के साथ बलात्कार किया गया है. गले में दुपट्टा कसा हुआ था. पास में ही शराब, पानी की बोतल, 2 गिलास, एक रस्सी और सिगरेट के टुकड़े भी पड़े थे.

घटना की सूचना पुलिस कमिश्नर डी.के. ठाकुर, डीसीपी (सेंट्रल) सोमेन वर्मा और एडिशनल डीसीपी (सेंट्रल) सी.एन. सिन्हा को भी दी गई. पुलिस ने छानबीन के लिए फोरैंसिक और डौग स्क्वायड टीम को भी लगाया.

इस बीच तक सीमा के मातापिता भी वहां पहुंच चुके थे. पुलिस ने अब तक मुकदमा अज्ञात के खिलाफ कायम कर के छानबीन शुरू कर दी थी.

सीमा के घर वालों ने पुलिस को बताया कि मोहम्मद कैफ नाम के लड़के पर उन्हें शक है. दोनों की दोस्ती की बात सामने आई थी. पुलिस ने मोहम्मद कैफ के मोबाइल और सीमा के मोबाइल की काल डिटेल्स चैक करनी शुरू की.

पुलिस को कैफ के मोबाइल को चैक करने से पता चला कि उस ने सीमा से बात की थी. उस के बाद से सीमा का फोन बंद हो गया. अब पुलिस ने कैफ को पकड़ा और उस से पूछताछ की तो प्यार, सैक्स और हत्या की दर्दनाक कहानी सामने आ गई.

12 जून, 2021 की शाम मोहम्मद कैफ अपने 2 दोस्तों विशाल कश्यप और आकाश यादव के साथ बैठ कर ताड़ी पी रहा था. ये दोनों दरोगाखेड़ा और अमौसी गांव के रहने वाले थे. ताड़ी का नशा तीनों पर चढ़ चुका था. बातोंबातों में लड़की की बातें आपस में होने लगीं.

कैफ ने कहा, ‘‘ताड़ी पीने के बाद तो लड़की और भी नशीली दिखने लगती है.’’

आकाश बोला, ‘‘दिखने से काम नहीं होता. लड़की मिलनी भी चाहिए.’’

कैफ उसे देख कर बोला, ‘‘तुम लोगों का तो पता नहीं, पर मेरे पास तो लड़की है. अब तुम ने याद दिलाई है तो आज उस से मिल ही लेते हैं.’’

यह कह कर कैफ ने सीमा को फोन मिलाया और कुछ देर में वह सीमा को बुलाने चला गया.

इधर आकाश और विशाल को भी नशा चढ़ चुका था. दोनों भी इस मौके का लाभ उठाना चाहते थे. उन को पता था कि कैफ कहां जाता है. ये दोनों जंगल में पहले से ही पहुंच गए और वहीं बैठ कर पीने लगे.

सीमा और कैफ ने जंगल में संबंध बनाए. तभी विशाल और आकाश वहां पहुंच गए. वे भी सीमा से संबंध बनाने के लिए दबाव बनाने लगे. पहले तो कैफ इस के लिए मना करता रहा, बाद में वह भी सीमा पर दबाव बनाने लगा.

जब सीमा नहीं मानी तो तीनों ने जबरदस्ती उस के साथ बलात्कार करने का प्रयास किया. अब सीमा ने खुद को बचाने के लिए शोर मचाना चाहा और कच्चे रास्ते पर भागने लगी. इस पर विशाल ने सीमा की पीठ पर चाकू से वार किया. सीमा इस के बाद भी बबूल की झडि़यों में होते हुए भागने लगी.

‘‘इसे मार दो नहीं तो हम सब फंस जाएंगे.’’ विशाल और आकाश ने कैफ से कहा.

सीमा झाडि़यों से निकल कर जैसे ही बाहर खाली जगह पर आई, तीनों ने उसे घेर लिया. ताबड़तोड़ वार करने के साथ ही साथ उस के गले को भी दबा कर रखा. मारते समय चाकू सीमा के पेट में होता हुआ पीठ में फंस गया और वह टूट गया. 15 से 20 गहरे घाव से खून बहने के कारण सीमा की मौत हो गई. पेट में चाकू के वार से सीमा का यूरिनल थैली तक फट गई थी.

2 महीने पहले जब सीमा ने मोहम्मद कैफ से दोस्ती और प्यार में संबंध बनाए थे, तब यह नहीं सोचा था कि एक दिन उसे यह दिन देखना पड़ेगा.

लखनऊ पुलिस ने एसीपी स्वतंत्र कुमार सिंह की अगुवाई में बनी पुलिस टीम को पुरस्कार दिए जाने की घोषणा की. पुलिस ने मोहम्मद कैफ और उस के दोनों साथी विशाल और आकाश को भादंवि की धारा 302 में गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया.

(कथा में सीमा और उस के परिजनों के नाम बदल दिए गए हैं

बदनामी से बचने के लिए खेला मौत का खेल – भाग 3

इस कहानी की शुरुआत 2 साल पहले सन 2014-15 से शुरू हुई थी. 27 साल का विपिन शुक्ला खूबसूरत युवक था. हंसीमजाक करना उस की आदत में था. वह एयरफोर्स की वाइव्ज एसोसिएशन की कैंटीन में काम करता था. इस कैंटीन में एयरफोर्स के अफसरों जवानों की पत्नियां घरेलू सामान खरीदने आती हैं.

सार्जेंट शैलेश की खूबसूरत पत्नी अनुराधा भी यहां से सामान खरीदा करती थी. एक बच्चे की मां अनुराधा काफी खूबसूरत थी. उसे देखते ही शादीशुदा विपिन अपना दिल हार बैठा था. उस ने बात को आगे बढ़ाने के लिए पहल करते हुए अनुराधा से हंसीमजाक और छेड़छाड़ शुरू कर दी.

अनुराधा ने इस का विरोध करते हुए विपिन को काफी खरीखोटी भी सुनाई, पर उस ने उस का पीछा नहीं छोड़ा. धीरेधीरे अनुराधा को विपिन की छेड़छाड़ और हंसीमजाक में आनंद आने लगा. इस से विपिन की हिम्मत बढ़ गई.

पहले दोनों में प्यार का इजहार हुआ, फिर मुलाकातें शुरू हुई. वक्त के साथ दोनों के बीच अवैधसंबंध भी बन गए. उसी बीच अनुराधा गर्भवती हो गई और शादीशुदा होते हुए भी विपिन पर शादी के लिए दबाव डालने लगी. उस का कहना था कि वह अपने पति को छोड़ देगी और विपिन अपनी पत्नी को तलाक दे दे. लेकिन विपिन ने अनुराधा की इस बात को मानने से इनकार कर दिया.

उस बीच शैलेश को भी अपनी पत्नी के विपिन शुक्ला के साथ अवैध संबंध होने और उस के गर्भवती होने की जानकारी मिल गई. उस ने अनुराधा को आड़े हाथों लेते हुए खूब फटकार लगाई. इस बात को ले कर पतिपत्नी के बीच क्लेश भी शुरू हो गया. यह बात पिछले साल की है.

रोजरोज के क्लेश से तंग आ कर शैलेश अनुराधा को अपनी ससुराल उत्तराखंड ले गया और वहां उस ने यह बात अनुराधा के मातापिता और भाई को बताई तो उन्होंने भी अनुराधा को डांटते हुए फौरन विपिन से संबंध खत्म करने को कहा.

शैलेश और अनुराधा कुछ दिन उत्तराखंड रह कर बठिंडा लौट आए. वापस आने के बाद अनुराधा ने विपिन से बातचीत करनी बंद कर दी. बारबार बुलाने पर भी जब अनुराधा ने विपिन से बात नहीं की तो नाराज हो कर वह अनुराधा को बदनाम करने लगा.

वह कालोनी वालों और कैंटीन में काम करने वाले अन्य कर्मचारियों को अपने और अनुराधा के अवैधसंबंधों की कहानियां चटखारे लेले कर सुनाता. इस से सार्जेंट शैलेश और उस की पत्नी अनुराधा की बदनामी होने लगी. शैलेश अपने अधिकारियों और कालोनी वालों से नजर मिलाने में कतराने लगा.

एक दिन शैलेश ने विपिन से मिल कर उसे समझाया, ‘‘देखो शैलेश, गलती चाहे किसी की भी रही हो, अब यह बात यहीं दफन कर दो. पिछली सभी बातों को भूल कर भविष्य में हमें बदनाम करना बंद कर दो.’’

विपिन ने उस समय तो शैलेश की बात मान कर वादा कर लिया, पर वह अपनी बात पर कायम नहीं रह सका. उस की छिछोरी हरकतें जारी रहीं. विपिन जब अपनी हरकतों से बाज नहीं आया और पानी सिर के ऊपर से गुजरने लगा तो शैलेश ने अपने साले शशिभूषण को बठिंडा बुला लिया. शशिभूषण नेवी में नौकरी करता था.

शैलेश के बुलाने पर जब शशिभूषण बठिंडा पहुंचा तो शैलेश, अनुराधा और शशिभूषण ने रोजरोज की इस बदनामी से अपना पीछा छुड़ाने के लिए विपिन का गला घोंट कर दफन करने की योजना बना डाली.

अपनी योजना पर अच्छी तरह सोचविचार कर उसे अमली जामा पहनाने के लिए सब से पहले शैलेश ने अपने अधिकारियों को अपना क्वार्टर बदलने की अर्जी दी. उसे एयरफोर्स कालोनी में क्वार्टर नंबर 214/10 अलाट था. उस ने अधिकारियों को मौजूदा क्वार्टर में कुछ कमियां बता कर नया क्वार्टर अलाट करा लिया.

योजना के अनुसार, नए क्वार्टर में जाने की तारीख 8 फरवरी, 2017 तय की गई. 8 फरवरी को रात का खाना खा कर विपिन अपनी आदत के अनुसार टहलने के लिए निकला तो शैलेश उसे अपने क्वार्टर के पास ही मिल गया. विपिन को देखते ही शैलेश ने कहा, ‘‘यार, मैं तुम्हारे घर ही जा रहा था.’’

‘‘क्यों क्या बात हो गई?’’ विपिन ने हैरानी से पूछा तो शैलेश ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘यार, तुम तो जानते ही हो कि आज मुझे क्वार्टर बदलना है. काफी सामान तो पैक कर चुका हूं. बस कुछ सामान बचा है. तुम चल कर पैक करवा दो. उस के बाद अनुराधा के हाथ की चाय पीएंगे.’’ शैलेश ने यह बात जानबूझ कर कही थी.

सुन कर विपिन झट से तैयार हो गया. शैलेश विपिन को ले कर अपने पुराने क्वार्टर पर पहुंचा. सामान पैक करते हुए विपिन जब नीचे की ओर झुका, तभी उस ने पीछे से विपिन के सिर पर कुल्हाड़ी का भरपूर वार कर दिया. बिना चीखे ही विपिन फर्श पर ढेर हो गया. शशिभूषण ने भी उस की गरदन पर एक वार कर के सिर धड़ से अलग कर दिया.

इस के बाद तीनों ने मिल कर विपिन की लाश को एक बड़े ट्रंक में डाल कर बाहर से ताला लगा दिया और घर के अन्य सामान के साथ लाश वाला ट्रंक भी नए क्वार्टर में ले आए.

विपिन की हत्या करने के बाद जहां शैलेश ने चैन की सांस ली थी, वहीं उसे यह चिंता भी सताने लगी थी कि विपिन की लाश को ठिकाने कैसे लगाया जाए. वह कुछ सोच पाता, उस के पहले ही उसे अगले दिन अपने अधिकारियों से पता चला कि विपिन रात से घर से लापता है. यह सुन कर उस ने लाश ठिकाने लगाने का इरादा त्याग दिया.

उस ने सोचा कि कुछ दिनों में मामला ठंडा हो जाएगा तो इस विषय पर वह सोचेगा. पर विपिन की पत्नी कुमकुम के बारबार एयरफोर्स और पुलिस के अधिकारियों के पास चक्कर लगाने से मामला ठंडा होने के बजाए गरमाता गया.

लाश को ठिकाने लगाना जरूरी था. फरवरी का महीना होने के कारण मौसम बदल रहा था. ज्यादा दिनों तक लाश को रखा नहीं जा सकता था, इसलिए सोचविचार कर शैलेश ने 19 फरवरी को विपिन की लाश के छोटेछोटे 16 टुकड़े किए और उन्हें पौलिथिन की अलगअलग थैलियों में भर फ्रिज में रख दिया.

शैलेश ने सोचा था कि वह किसी रोज मौका देख कर 2-3 थैलियों को बाहर ले जा कर वीरान जगह पर फेंक देगा, जहां कुत्ते या जंगली जानवर उन्हें खा जाएंगे. कुछ टुकडों को जला देगा और कुछ को नाले या गटर में फेंक देगा. लेकिन इस के पहले ही 21 फरवरी को पुलिस ने उसे और उस की पत्नी अनुराधा को गिरफ्तार कर के उस के घर से फ्रिज में रखे लाश के 16 टुकड़े बरामद कर लिए.

अभियुक्त सार्जेंट शैलेश कुमार और अनुराधा को उसी दिन अदालत में पेश कर के थानाप्रभारी वेदप्रकाश ने 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर ले लिया. रिमांड अवधि में शैलेश और अनुराधा की निशानदेही पर उन के घर से हत्या में इस्तेमाल की गई कुल्हाड़ी और मृतक विपिन शुक्ला का मोबाइल बरामद कर लिया गया. पूछताछ और पुलिस काररवाई पूरी कर के दोनों को अदालत में पेश किया गया, जहां से दोनों को जिला जेल भेज दिया गया.

अपनी बेइज्जती का बदला लेने के लिए शैलेश ने जिस तरह अपने दिमाग का इस्तेमाल किया था, वह काबिले तारीफ था. उस की योजना फूलप्रूफ थी. लेकिन लाश ठिकाने लगाने में की गई देर ने उस की पोल खोल दी. बहरहाल अब पतिपत्नी जेल में हैं और इस हत्या के लिए तीसरे दोषी शशिभूषण की पुलिस सरगर्मी से तलाश कर रही है.

बठिंडा के सरकारी अस्पताल के डाक्टरों ने मृतक विपिन की लाश के टुकड़ों का पोस्टमार्टम कर ने से इनकार करते हुए कहा कि तकनीकी कारणों और पुख्ता सबूतों के लिए पोस्टमार्टम फरीदकोट के मैडिकल कालेज में करवाना ठीक रहेगा.

मृतक की पत्नी कुमकुम का आरोप है कि अगर एयरफोर्स और स्थानीय पुलिस सही समय पर काररवाई करती तो उस के पति की लाश इस तरह 16 टुकड़ों में न मिलती. विपिन की लाश 12 दिनों तक सलामत थी. इस के बाद ही हत्यारों ने उस के टुकड़े किए थे.

कुमकुम का यह भी कहना है कि उस के पति के अनुराधा के साथ अवैधसंबंध नहीं थे. हकीकत में शैलेश और अनुराधा विपिन को ब्लैकमेल कर रहे थे. विपिन की हत्या करने से पहले पतिपत्नी दोनों रोजाना शाम को उन के घर आते थे और देर रात तक बैठ कर बातें व हंसीमजाक करते थे. लेकिन 8 फरवरी के बाद वे एक बार भी उन के घर नहीं आए और ना ही विपिन की तलाश में उन्होंने कोई सहयोग किया.

पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

प्रेमिका का एसिड अटैक : सोनम ने की प्रेम की हद पार

पहली मंजिल पर रह रहे किराएदार के कमरे से सुबहसुबह तेज चीखने की आवाज भूतल पर रह रहे मकान मालिक सुरेशचंद्र की पत्नी ने सुनी. आवाज सुन कर एक बार तो वह सोच में पड़ गईं. लेकिन दूसरे ही पल लगातार आ रही चीखों को सुन कर वह एक ही सांस में सीढि़यां चढ़ कर किराएदार नर्स सोनम पांडेय के कमरे में पहुंच गईं. क्योंकि चीख उसी के कमरे से आ रही थी. वहां का दृश्य देख कर उन की आंखें आश्चर्य से फटी रह गईं. पीछेपीछे मकान मालिक सुरेशचंद्र भी वहां पहुंच गए.

कमरे के फर्श पर सोनम और देवेंद्र झुलसे हुए पड़े थे. वहीं पर एक स्टील का डब्बा पड़ा था. कमरे में तेजाब की तेज दुर्गंध आ रही थी. दोनों ही तेजाब की जलन और दर्द से तड़प रहे थे. उस समय सुबह के यही कोई 7 बज रहे थे. इसी बीच झुलसी हालत में ही देवेंद्र ने अपने दोस्त शिवम को फोन किया.

कुछ ही देर में शिवम आटो ले कर वहां पहुंच गया. वह आननफानन में घायल देवेंद्र को आटो में ले कर अस्पताल जाने लगा. इस पर मकान मालिक सुरेशचंद्र ने उस से कहा कि वह घायल सोनम को भी साथ ले जाए. क्योंकि इलाज की उसे भी जरूरत है. तब शिवम ने कहा, ‘‘मैं पहले देवेंद्र को अस्पताल में भरती करा दूं वह ज्यादा झुलस गया है. इस के बाद सोनम को ले जाऊंगा.’’ इस तरह वह देवेंद्र को वहां से ले कर चला गया.

जब शिवम सोनम को काफी देर तक लेने नहीं आया तो सुरेशचंद्र ने इस की सूचना थाना हरीपर्वत के थानाप्रभारी अरविंद कुमार को दे दी. थानाप्रभारी सूचना मिलते ही मौके पर पहुंच गए. उन्होंने तेजाब से झुलसी सोनम को एक निजी अस्पताल में भरती कराया. वहीं अस्पताल में भरती 80 फीसदी झुलसे देवेंद्र की उपचार के दौरान दोपहर करीब ढाई बजे मौत हो गई.

पुलिस ने मरने से पहले देवेंद्र के मजिस्ट्रैट के सामने बयान दर्ज करा लिए थे. उस ने अपने बयान में सोनम पांडेय को एसिड अटैक के लिए जिम्मेदार बताया था. देवेंद्र के घर वालों को जब यह जानकारी उस के दोस्त शिवम ने दी तो उस के घर में रोना शुरू हो गया. वह 5 बहनों के बीच अकेला भाई था, रोतेरोते मां और बहनों की हालत बिगड़ गई. दरअसल, यह मामला उत्तर प्रदेश के आगरा शहर के थाना हरीपर्वत क्षेत्र स्थित शास्त्रीनगर का है.

देवेंद्र ने अपने बयान में बताया था कि 25 मार्च, 2021 की सुबह सोनम ने उसे अपने कमरे में लगे पंखे को ठीक करने के लिए बुलाया था. जैसे ही देवेंद्र कमरे में आया तो सोनम ने स्टील के डब्बे में रखा तेजाब उस के ऊपर उड़ेल दिया. अचानक हुए इस हमले से वह खुद को बचा नहीं सका.

एसिड अटैक के दौरान नर्स सोनम पर भी तेजाब गिर गया था, जिस से वह भी झुलस गई थी. अब प्रश्न यह था कि सोनम ने देवेंद्र के ऊपर एसिड अटैक क्यों किया?

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पुलिस ने मकान मालिक सुरेशचंद्र से बात की तो उन्होंने पुलिस को बताया कि सोनम पहले शास्त्रीनगर में ही स्थित किसी दूसरे मकान में रहती थी. 5 महीने से वह उन के मकान में किराए पर रह रही थी. देवेंद्र को वह अपना पति बताती थी. वह कमरे पर उस के पास 10-12 दिनों में आता और 1-2  दिन रुक कर चला जाता था. उस का कहना था कि पति बाहर काम करते हैं.

वहीं सूचना पा कर अस्पताल पहुंचे देवेंद्र के घर वालों ने इन सब बातों से अनभिज्ञता जताई. उन का कहना था कि  सोनम के देवेंद्र से संबंध होने की उन्हें जानकारी नहीं थी. उन्होंने बताया कि देवेंद्र अविवाहित था और उस की 28 अप्रैल को शादी होने वाली थी. देवेंद्र की मां कुसुमा ने सोनम पांडेय पर बेटे की हत्या का आरोप लगाया.

सोनम के कमरे की तलाशी के दौरान पुलिस ने स्टील का एक डब्बा बरामद किया. संभवत: इस एक लीटर वाले डब्बे में दूध लाया जाता होगा. इस में ही तेजाब रखा हुआ था. इस डब्बे की तली में तेजाब भी मिला. वहीं कमरे से देवेंद्र के जले हुए कपड़े व जूते भी मिले. पुलिस ने इन साक्ष्यों को जब्त कर जरूरी काररवाई के बाद फोरैंसिक लैब भेज दिया.

घटना की जानकारी मिलने पर एसपी (सिटी) रोहन प्रमोद बोत्रे ने घटनास्थल का निरीक्षण किया व अस्पताल भी गए. उन्होंने पत्रकारों को बताया कि सोनम और देवेंद्र के बीच प्रेम संबंध थे. आरोपी युवती को गिरफ्तार कर लिया गया है. चूंकि वह भी एसिड की चपेट में आ कर झुलसी है, इसलिए इलाज के लिए उसे अस्पताल में भरती कराया गया है.

पुलिस ने जरूरी काररवाई करने के बाद देवेंद्र के शव को पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिया. पुलिस ने मामले की गहनता से जांच की. जांच में पता चला कि सोनम पांडेय मूलरूप से उत्तर प्रदेश के औरैया जिले के भागूपुर की रहने वाली शादीशुदा युवती है. सोनम की शादी करीब 10 साल पहले गुजरात में हुई थी. शादी के कुछ दिनों बाद ही पतिपत्नी के बीच लड़ाईझगड़ा रहने लगा. इस दौरान वह एक बेटे की मां भी बन गई. शादी के 2 साल बाद ही वह अपने बेटे को ले कर अपने मायके आ गई.

कुछ समय बाद वह आगरा आ कर नर्स की नौकरी करने लगी थी. वह सिकंदरा बाईपास स्थित एक अस्पताल में नर्स थी. बेटा ननिहाल में ही रह रहा था. सोनम ने अब तक अपने पति से तलाक नहीं लिया था. उस ने अपने साथी कर्मचारियों को भी अपने शादीशुदा होने के बारे में नहीं बताया था.

28 वर्षीय देवेंद्र राजपूत मूलरूप से उत्तर प्रदेश के कासगंज जिले के सहावर क्षेत्र के गांव बाहपुर का रहने वाला था. देवेंद्र चिकित्सा क्षेत्र में बचपन से ही रुचि रखता था. इसलिए उस ने लैब टैक्नीशियन का कोर्स किया था.

सुनहरे भविष्य की तलाश में वह आगरा आ गया था और पिछले 8 साल से लाल पैथ लैब में सहायक के पद पर काम कर रहा था. वह आगरा के ही खंदारी इलाके में किराए पर रहता था.

चूंकि सोनम और देवेंद्र एक ही फील्ड से जुड़े थे, एक दिन काम के दौरान दोनों की जानपहचान हो गई. साथसाथ काम करते पहले दोनों में दोस्ती हुई, जो बाद में प्यार में बदल गई.

पिछले 3 सालों से दोनों लिवइन रिलेशन में रह रहे थे. सोनम ने अपने मकान मालिक को बता रखा था कि देवेंद्र उस का पति है. इस तरह देवेंद्र का जब मन होता, वह सोनम से मिलने उस के कमरे पर चला जाता था. इसी बीच सोनम को पता चला कि देवेंद्र की शादी कहीं और तय हो गई है.

इस जानकारी से सोनम का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. क्योंकि वह देवेंद्र पर शादी करने का दबाव बना रही थी. सोनम ने घटना से कुछ दिन पहले देवेंद्र से कहा, ‘‘मैं तुम से बहुत प्यार करती हूं और तुम से शादी करना चाहती हूं.’’

देवेंद्र को सोनम के बारे में पता चल चुका था कि वह शादीशुदा है और उस के एक बच्चा भी है. देवेंद्र तो सोनम के साथ पिछले 3 साल से केवल टाइम पास कर रहा था. देवेंद्र ने उसे समझाते हुए कहा,‘‘सोनम तुम शादीशुदा हो. तुम्हारे एक बेटा भी है. और तुम ने अब तक अपने पति से तलाक भी नहीं लिया है. ऐसे में हम शादी कैसे कर सकते हैं? ऐसी स्थिति में मेरे घर वाले भी शादी के लिए तैयार नहीं होंगे. फिर मेरी भी शादी तय हो चुकी है.’’

देवेंद्र की इन बातों ने आग में घी डालने का काम किया. सोनम अपना आपा खो बैठी. उस ने मन ही मन तय कर लिया कि वह अपने प्रेमी को किसी और का हरगिज नहीं होने देगी. अपने खतरनाक मंसूबे की भनक उस ने देवेंद्र को नहीं लगने दी.

इस बीच देवेंद्र ने सोनम के कमरे और उस से मिलनाजुलना भी बंद कर दिया. अपनी योजना को अंजाम देने के लिए सोनम ने 25 मार्च, 2021 की सुबह देवेंद्र को फोन कर कमरे का पंखा ठीक करने के बहाने अपने पास बुलाया था.

देवेंद्र सोनम के कमरे पर पहुंचा तो उन दोनों के बीच शादी की बात को ले कर गरमागरमी हुई. इस के बाद सोनम ने स्टील के डब्बे में पहले से लाए तेजाब से देवेंद्र पर अटैक कर दिया, जिस से वह गंभीर रूप से सिर से पैर तक झुलस गया.

जानकारी मिलने पर घटना के दूसरे दिन सोनम के पिता आगरा आ गए. उन्होंने घायल बेटी को एस.एन. मैडिकल कालेज में भरती कराया. वहां उपचार होने से उस की हालत में सुधार हुआ. हालांकि उस समय तक उस के बयान दर्ज नहीं हो सके थे.

प्रेमिका के तेजाबी हमले ने एक साथ 3 परिवारों के अरमानों को झुलसा दिया. 5 बहनों में इकलौता भाई और एक मां से उस का घर का चिराग छीन लिया. मां और बहनें देवेंद्र के सिर पर सेहरा बांधने की तैयारी में जुटी थीं. शादी के कार्ड भी छप गए थे.

शादी में बुलाने वालों को कार्ड भेजने की तैयारी चल रही थी. वहीं कासगंज की रहने वाली जिस युवती से देवेंद्र का रिश्ता तय हो गया था और एक महीने बाद दोनों को फेरे लेने थे, उस के अरमानों को भी तेजाब से हमेशा के लिए झुलसा दिया.

पोस्टमार्टम के बाद देवेंद्र का शव रात 9 बजे जब घर पहुंचा तो बेटे का शव देख कर मां बेहोश हो गईं. वहीं पांचों बहनें अपने छोटे भाई के शव से लिपट कर रोने लगीं. पूरे गांव में शोक का माहौल था. उधर जिस घर में देवेंद्र की बारात जानी थी वहां उस की मौत की खबर पहुंचने से कोहराम मच गया.

दूसरे दिन शुक्रवार की सुबह देवेंद्र का शोकपूर्ण माहौल में अंतिम संस्कार किया गया. सभी का कहना था कि देवेंद्र की हत्यारोपी को सख्त से सख्त सजा मिलनी चाहिए. कहानी लिखे जाने तक प्रेमिका का इलाज चल रहा था. ठीक होने पर उसे जेल जाना पड़ेगा.

देश भर में हर साल एसिड अटैक की तमाम घटनाएं होती हैं, वह भी तेजाब पर बैन लगाए जाने के बाद. एसिड अटैक एक खतरनाक अपराध है, जो महिला हो या पुरुष सभी की जिंदगी तबाह कर देता है. सुप्रीम कोर्ट के सख्त आदेशों के बाद भी देश में गैरकानूनी रूप से होने वाली एसिड की बिक्री पर रोक नहीं लगाई जा सकी है.

एसिड बिक्री को ले कर जो कानून हैं, उन्हें सख्ती के साथ जमीन पर उतारा जाना बेहद जरूरी है. एसिड अटैक से पीडि़त व्यक्ति के निजी, सामाजिक, पारिवारिक और आर्थिक जीवन पर बेहद बुरा प्रभाव पड़ता है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

मजे का इश्क बना आफत : खुद ही बना हत्यारा

6 जुलाई, 2021 की बात है. मध्य प्रदेश के सतना जिला मुख्यालय से तकरीबन 90 किलोमीटर दूर स्थित अमदरा थाने में किसी ने फोन कर के सूचना दी कि नैशनल हाईवे-30 पर रैगवां गांव के नजदीक एक जीप और कार में जबरदस्त भिड़ंत हुई है. सूचना देने वाले ने खुद को कार चालक बताते हुए कहा कि कि दुर्घटनास्थल पर एक बच्चा काफी रो रहा है.

यह सूचना मिलने के बाद अमदरा पुलिस कुछ ही देर में घटनास्थल पर पहुंच गई. घटनास्थल सिंहवासिनी मंदिर के पास था. वहां 2 साल का एक बच्चा बहुत रो रहा था, जबकि दुर्घटना के कोई चिह्न वहां नजर नहीं आ रहे थे. वहां कुछ दूरी पर एक जीप जरूर खड़ी मिली, तब पुलिस बच्चे को थाने ले आई. थाने में भी वह बहुत रो रहा था. उसे खानेपीने की चीजें दे कर किसी तरह चुप कराया.

अब यह प्रश्न उठ रहा था कि आखिर ये बच्चा किस का हो सकता है? कौन है जो उसे वहां छोड़ कर चला गया? उस के परिजन कौन हो सकते हैं? दुर्घटना की झूठी खबर किस ने और क्यों दी? इत्यादि…

इस बात की तफ्तीश चल ही रही थी कि एक बार फिर थाने में किसी का फोन आया. उन के द्वारा दी गईसूचना सन्न कर देने वाली थी. सूचना मिली कि नैशनल हाइवे-30 पर रैगवां गांव की झाडि़यों के पास एक महिला की लाश पड़ी है.

देर न करते हुए थानाप्रभारी हरीश दुबे अपने सहयोगियों के साथ घटनास्थल पर जा पहुंचे. थोड़ी देर में ही मैहर की एसडीपीओ हिमाली सोनी भी पहुंच गईं. अमदरा पुलिस साथ में उस बच्चे को भी ले गई थी.

बच्चा महिला की लाश को देखते ही मम्मी…मम्मी… कह कर रोने लगा. यह देख पुलिस भी भौचक्की रह गई. बच्चे को चुप करवा कर पुलिस ने बच्चे से पूछा कि मम्मी को किस ने मारा है?

2 साल के उस बच्चे ने तुरंत जवाब दिया ‘‘पापा ने.’’

2 साल के बच्चे के इन 2 शब्दों से इतना तो स्पष्ट हो ही गया था कि करीब 30-32 साल की महिला की वह लाश उस बच्चे की मां की है. पास ही एमपी 21सीए 3195 नंबर की एक जीप भी खड़ी थी.

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पुलिस उस जीप की छानबीन करते हुए लाश के साथ उस के किसी कनेक्शन का अंदेशा भी जता रही थी. पुलिस ने बारीकी से जीप की जांच की. जीप में बच्चे के जूते, बिखरी चूडि़यां मिलीं. उस के बाद पुलिस को जीप, बच्चा और औरत की लाश के साथ कनेक्शन का मामला समझ में आ गया था.

थानाप्रभारी को 6 जुलाई, 2021 की सुबह 10 बजे की सूचना के अनुसार सिंहवासिनी मंदिर के पास बच्चा मिला था. उसी दिन दोपहर 2 बजे महिला की लाश मिली थी. इस पर सतना के एसपी धर्मवीर सिंह ने मैहर की एसडीपीओ हिमाली सोनी और अमदरा थाना टीआई हरीश दुबे के नेतृत्व में 3 टीमें गठित कर दीं.

इन टीमों में एसआई लक्ष्मी बागरी, अजीत सिंह, एएसआई दीपेश कुमार, अशोक मिश्रा, दशरथ सिंह, अजय त्रिपाठी, हैडकांस्टेबल अशोक सिंह, कांस्टेबल जितेंद्र पटेल, गजराज सिंह, नितिन कनौजिया, अखिलेश्वर सिंह, दिनेश रावत, महिला कांस्टेबल पूजा चौहान आदि को शामिल किया गया.

तीनों टीमें अलगअलग दिशाओं में आरोपियों की तलाश में जुट गई थीं. अमदरा थाने की टीम टीआई हरीश दुबे के नेतृत्व में उस जीप के मालिक के पास पहुंच गई जो मृतका के पास सड़क पर खड़ी मिली थी. वह जीप राधेश्याम नाम के व्यक्ति की थी. वह कटनी जिले में रीठी का निवासी था.

पूछताछ के दौरान राधेश्याम ने बताया वह जीप उस ने अखिलेश यादव नाम के व्यक्ति को किराए पर दी थी. पुलिस टीम तुरंत अखिलेश के घर जा धमकी थी. वह घर पर नहीं था. 2 अन्य टीमें रैपुरा और जबलपुर में भी उस की खोज कर रही थीं.

इसी सिलसिले में अखिलेश यादव के भाई से भी पूछताछ की गई. उसे विश्वास में ले कर अखिलेश की लोकेशन पर नजर रखी गई. इस तरह से घटना की जानकारी के 24 घंटे के अंदर ही अखिलेश और उस के साथी पुलिस के हाथ लग गए, जिन के संबंध महिला की हत्या से थे.

गहन छानबीन से पुलिस को पता चला कि बरामद लाश आदिवासी महिला मेमबाई (32 वर्ष) की थी. मेमबाई कटनी जिले के गांव रीठी की रहने वाली थी. पुलिस को आरोपी तक पहुंचने में ज्यादा मुश्किल इसलिए भी नहीं आई, क्योंकि कई सुराग जीप में ही मिल गए थे.

पुलिस को मेमबाई और अखिलेश के मधुर संबंधों के बारे में जो कुछ और जानकारी मिली, वह काफी चौंकाने वाली थी.

इस हत्याकांड में भले ही किसी तरह की धनसंपदा के लालच की बू नहीं आ रही थी, लेकिन शादीशुदा औरत से प्यार में अंधे व्यक्ति द्वारा मजबूरी और बौखलाहट में उठाया गया कदम जरूर कहा जा सकता है. उस की विस्तृत कहानी इस प्रकार निकली—

अखिलेश जवानी की दहलीज पर था. एक भावी जीवनसाथी के सपनों में खोया हुआ अपनी जीवनसंगिनी को ले कर कल्पनाएं करता रहता था.

2 साल पहले की बात है. अखिलेश की जिंदगी मजे में कट रही थी. उस का कामधंधा भी गति पर था. वह पेशे से ड्राइवर था.

अखिलेश रीठी गांव के सिंघइया टोला में रहता था, जबकि मेमबाई के पति गोविंद प्रसाद आदिवासी का मकान गांव रीठी में बना हुआ था.

अखिलेश एक अस्पताल की एंबुलैंस चलाता था. उस का अकसर उसी रास्ते से गुजरना होता था, जहां मेमबाई अपने पति और बच्चों के साथ रहती थी. इसी आनेजाने में एक दिन उस की निगाह अदिवासी युवती मेमबाई पर पड़ गई, जिस की खूबसूरती उस के मांसल देह से टपकती थी. उसे देखते ही अखिलेश उस का दीवाना बन बैठा था.

मेमबाई अभी जवानी के शबाब में थी. बातें भी बड़ी मजेदार करती थी. अखिलेश से उस की अचानक मुलाकात हो गई. पहली ही नजर में उसे देखा तो देखता ही रह गया था, और जब उस से बातें करने की शुरुआत की तो ऐसे लगा जैसे उस की बातें सुनता ही रहे.

फिर दोनों के बीच बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया. बात बढ़ी, परवान चढ़ी और आंखों के रास्ते दोनों एकदूसरे के दिल में उतर गए.

अखिलेश को जब मालूम हुआ कि मेमबाई 3 बच्चों की मां है, तब उसे थोड़ा झटका लगा. लेकिन तब तक तो बहुत देर हो चुकी थी. कारण वह उसे अपना दिल दे चुका था. उस के मन मिजाज में अपनी इच्छाओं और तमन्नाओं का बीजारोपण कर चुका था. उस ने मन को दृढ़ता से समझा लिया था कि ‘शादीशुदा है तो क्या हुआ, प्यार तो उसी से करेगा. वह उस का पहला प्यार जो है.’

यह ठीक वैसी ही बात थी, जैसे कहा जाता है कि प्यार अंधा होता है. अखिलेश को मेमबाई अक्की कह कर बुलाती थी. वह उस से उम्र में छोटा था. बहुत जल्द ही वह मेमबाई के प्यार में काफी हद तक अंधा हो गया. उस की वह सब तमाम जरूरतें पूरी करने लगा था, जो मेमबाई को अपने मजदूर पति गोविंद आदिवासी से नसीब नहीं हो पाती थीं.

उन के जिस्मानी संबंध भी बन गए. उन के प्रेम संबंध में एक बार यौनसंबंध की दखल हो गई तो फिर उन का यह सिलसिला बन गया. अखिलेश को इस में आनंद आने लगा. इस में कोई खलल नहीं आने पाए, इस के लिए वह मेमबाई और उस के परिवार पर पैसे खर्च करने लगा. उन की हर जरूरतों के लिए तैयार रहने लगा.

जब गोविंद अपने काम के लिए घर से बाहर होता, तब अखिलेश उस के घर के अंदर घुस जाता. उस के दिलोदिमाग पर अखिलेश का बांकपन छा गया था. वैसे गोविंद जान चुका था कि अखिलेश के उस की पत्नी से अवैध संबंध हैं, फिर भी वह चुप रहता था. इस की वजह यह थी कि अखिलेश उस की आर्थिक मदद भी करता था.

कभीकभी गोविंद की मेमबाई से कहासुनी हो जाती तो वह उलटे पति पर ही हावी हो जाती थी. वह मुंह बनाती हुई पति को कोसती, ‘‘मैं तो केवल बच्चे पैदा करने की मशीन हूं न, तुम से मुझे न सुख मिल रहा है और न सुकून.’’

पत्नी के ताने सुनसुन कर उस के कान पक गए थे, लेकिन वह पलट कर कभी जवाब नहीं देता था. कई बार उस के तंज का जवाब देने के लिए पत्नी से केवल इतना कहता, ‘‘जा, चली जा, जहां सुख मिले और चैन.’’

फिर एक दिन मेमबाई फटेहाल जिंदगी को लात मारती हुई अपने आशिक अखिलेश के साथ चली आई. साथ में अपने अबोध बेटे राज को भी ले आई.

2 बेटियों को वह पति गोविंद के भरोसे छोड़ आई. पति से बेवफाई कर मेमबाई अपने दिलदार अखिलेश के साथ कटनी के भट्टा मोहल्ला में एक किराए के मकान में रहने लगी. वहीं उस ने अपनी गृहस्थी बसा ली.

अखिलेश की कमाई से मेमबाई के कई सपने पूरे हुए. अपने बेटे राज के लिए भी ख्वाब बुनने लगी. अखिलेश भी माशूका के हाथों में अपनी महीने भर की कमाई रख देता था. इस का पता जब अखिलेश के मातापिता को चला, तब वे उस से काफी खफा हो गए और विरोध करने लगे.

वे नहीं चाहते थे कि उन का बेटा किसी शादीशुदा महिला के साथ रहे. उन्होंने अपने घर अपनी मनपसंद बहू के सपने देखे थे.

मांबाप के विरोध के आगे अखिलेश की एक नहीं चली. उसे आखिरकार उन की पसंद की लड़की से ही ब्याह करना पड़ा. उस का रूपा यादव से ब्याह हो गया. अब अखिलेश के सामने 2 महिलाओं के बीच पिसने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था.

वह प्रेमिका और पत्नी के बीच के संबंधों को ले कर चिंतित रहने लगा. मेमबाई ने भी महसूस किया कि उस के बुने सपने बिखरने में अब ज्यादा वक्त नहीं लगने वाला है.

इस पर अखिलेश और मेमबाई के बीच कहासुनी भी होने लगी. अखिलेश परिस्थितियों को संभालने के लिए अपनी कमाई का आधाआधा दोनों को देने लगा.

मेमबाई तो मान गई, लेकिन ब्याहता रूपा यादव से उस की बातबात पर तल्खी बनी रही. कई बार उस की छोटीछोटी बातों की नाराजगी या शिकायतों का गुस्सा फूट पड़ता था.

यही नहीं मेमबाई पुरानी बातों को ले कर अखिलेश को ताने देने लगी थी, ‘‘काहे लाए थे, जब दूसरी शादी करनी थी. पहले तो हमारा रूप बहुत भाता था, अब घर में सुंदरी ले आए हो तो हम बंदरिया लग रहे हैं.’’

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अखिलेश इन तानों पर प्रतिक्रिया देता, ‘‘जो मिलता है उस में आधाआधा इसलिए ही तो कर दिए हैं. इतने में ही काम चलाना होगा. हम तुम्हें घर से भगा तो नहीं रहे.’’

इस तरह से दोनों के बीच रोजाना झगड़े होने लगे थे. दिनप्रतिदिन अखिलेश टूटने लगा था. अब अखिलेश के परिवार वाले भी उस पर दवाब बनाने लगे थे. उस की पत्नी का भी पारा चढ़ने लगा था. वह भी जब तब अखिलेश को ताने मारने लगी थी.

अखिलेश ने भी मन ही मन ठान लिया कि अब मेमबाई को रास्ते से हटाना ही पड़ेगा. एक दिन अखिलेश ने एक योजना बनाई. 3 दोस्तों को बुलाया. उन के साथ उस ने मैहर की मां शारदा के दर्शन करने का प्लान बनाया. प्लान में सोहन लोधी, अजय यादव और एक नाबालिग बालक को शामिल कर लिया.

प्लान की रूपरेखा तैयार करने के बाद वह घर में नाराज बैठी मेमबाई से बोला, ‘‘चलो, एक दिन मैहर शारदा मां के दर्शन कर आते हैं. वैसे भी इस समय बहुत लोग जा रहे हैं.’’

यह सुन कर मेमबाई के चेहरे पर मुसकान आ गई. खुशी से बोली, ‘‘मैं भी सोच रही थी, लेकिन तुम जितना खर्च दे रहे हो उस से पेट भरना तक मुश्किल है.’’

अखिलेश ने कहा, ‘‘मंदिरवंदिर चल कर पहले मन को पवित्र कर के आना चाहिए. इस से मन को शांति मिलती.’’

मेमबाई ने कहा, ‘‘ठीक है फिर कल ही चलो.’’

अखिलेश तो जैसे तैयार ही बैठा था बोला, ‘‘तैयार हो जाना और राज को भी ले लेना.’’

मेमबाई तो खुश थी, जो उस के चेहरे और हावभाव से झलक रहा था. अखिलेश भी प्लान के मुताबिक सही उठ रहे कदम से मन ही मन खुश हो रहा था.

अगले ही दिन यानी 5 जुलाई, 2021 को अखिलेश ने पहले से ही 3195 रुपए किराए में राधेश्याम की जीप बुक कर ली. उस पर अपने दोस्तों को बैठा लिया. दोनों साथी मेमबाई के साथ बीच वाली सीट पर बैठ गए और एक साथी पीछे. उन दोस्तों में से एक को मेमबाई अच्छी तरह पहचानती थी, इसलिए उस ने जरा भी सवालजवाब नहीं किया. अखिलेश जीप खुद चला रहा था.

वे सभी निर्धारित समय के अनुसार मैहर पहुंच गए, लेकिन वे मंदिर में दर्शन के लिए नहीं गए. इस पर मेमबाई को शक हुआ. इस से पहले कि वह कुछ पूछती, अखिलेश ने जीप को यूटर्न दे कर घुमा ली. तब तक अंधेरा हो चुका था.

उसी समय जीप की पिछली सीट पर बैठे अखिलेश के एक साथी ने अपने लोअर का नाड़ा निकाला और मेमबाई के गले में फंसा दिया. यह देख बगल में बैठे अन्य साथियों ने मेमबाई के हाथपैर कस कर जकड़ लिए. मेमबाई छटपटा कर रह गई.

संयोग से नाड़ा टूट गया. तभी फुरती के साथ अखिलेश ने जीप रोकी और रस्सी निकालते हुए बीच वाली सीट की तरफ भागा.

तब तक जीप का गेट खोल कर मेमबाई बाहर निकलने की कोशिश करने लगी, लेकिन जीप से उतरने से पहले ही अखिलेश उस के गले में रस्सी बांध चुका था. वह जीप के अंदर ही छटपटा कर रह गई.

अंत में वह हार गई. अखिलेश और उस के साथियों ने गला घोंट कर उसे मौत के घाट उतार दिया. लाश को राष्ट्रीय राजमार्ग 30 में आने वाले गांव रैगवां की झाडि़यों के बीच फेंक कर वे फरार हो गए.

इस पूरे मामले की तहकीकात के बाद अमदरा पुलिस ने सभी आरोपियों अखिलेश यादव (25 वर्ष) उर्फ अक्की निवासी ग्राम सिंघइया टोला, जिला कटनी, सोहन लोधी (19 वर्ष) व अजय यादव (18 वर्ष) निवासी ग्राम लोधी जिला पन्ना (मध्य प्रदेश) के खिलाफ हत्या कर लाश छिपाने का मामला दर्ज कर उन्हें निचली अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

प्यार में मिली मौत की सौगात

उत्तर प्रदेश के उन्नाव जनपद के औरास थाना क्षेत्र के टिकरा सामद गांव के रहने वाले परमेश्वर कनौजिया का नाम खुशहाल लोगों में गिना जाता था. इस के साथ ही उन की गांव में अच्छी धाक भी थी. इस का एक कारण यह भी था कि उन की पत्नी उर्मिला देवी टिकरा सामद गांव की पूर्व प्रधान रह चुकी थी.

जब तक परमेश्वर कनौजिया के परिवार में ग्राम प्रधानी रही, तब तक वह गांव वालों के हर सुखदुख में शुमार होते रहे लेकिन अगले चुनाव में हाथ से ग्राम प्रधानी चली जाने के बाद वह अपने 3 बेटों जिस में बड़े रिंकू, मझले जितेंद्र व 18 वर्षीय छोटे बेटे धर्मेंद्र के साथ मुंबई के बांद्रा रेलवे स्टेशन के पास रेलवे कालोनी में लौंड्री का काम करने लगे थे.

यहां रहते हुए उन का छोटा बेटा धर्मेंद्र काम के साथ पढ़ाई भी करता रहा और साल 2020 में उस ने 12वीं की परीक्षा भी दी थी.

लेकिन साल 2020 लगते ही कोरोना के चलते देश के हालात खराब होने लगे तो सरकार ने देश भर में लौकडाउन लगाने का फैसला कर लिया तो लोग शहरों से वापस अपने गांव में पलायन करने लगे.

चूंकि मुंबई में लौकडाउन होने से सारे कामधंधे बंद होने लगे थे, ऐसे में परमेश्वर कनौजिया को भी लौंड्री का बिजनैस अस्थाई रूप से बंद करना पड़ा.

शुरू में परमेश्वर कनौजिया को लगा कि सरकार कुछ दिनों बाद लौकडाउन खोल देगी. लेकिन बाद में जब उन्हें लौकडाउन में ढील के कोई आसार नहीं दिखे तो उन्होंने अप्रैल 2020 में अपने तीनों बेटों के साथ गांव वापस आने का फैसला कर लिया और किसी तरह लौकडाउन के समय में ही मुंबई से गांव लौट आए.

मुंबई से गांव वापस आने के बाद लौकडाउन के चलते कोई कामधंधा करना संभव नहीं था. इसलिए परमेश्वर कनौजिया अपनी पत्नी और बच्चों के साथ पूरा दिन घर पर ही बिता रहे थे. लेकिन उन का छोटा बेटा धर्मेंद्र कनौजिया अकसर ही गांव में टहलने निकल जाता था.

उधर जैसेजैसे देश में कोरोना के केस कम हुए तो सरकार ने भी लौकडाउन में छूट देनी शुरू कर दी थी, जिस से धीरेधीरे कामकाज भी पटरी पर आना शुरू हो चुका था.

साल 2020 का जुलाई आतेआते तमाम लोग जो मुंबई, दिल्ली जैसे शहरों से वापस गांव आ गए थे, वे फिर से कामकाज की तलाश में वापस जाना शुरू कर चुके थे.

लेकिन परमेश्वर कनौजिया अभी भी गांव से वापस मुंबई नहीं गए थे. ऐसे में वह अपने बेटों के साथ घर के कामकाज निबटाते रहे.

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रोज की तरह परमेश्वर कनौजिया का छोटा बेटा धर्मेंद्र कनौजिया दोपहर का खाना खा कर 19 अगस्त, 2020 को भी घर से टहलने निकला था, लेकिन हर रोज की तरह वह जब शाम तक वापस न लौटा तो परिजन धर्मेंद्र के मोबाइल पर काल लगाने लगे. लेकिन उस का फोन भी स्विच्ड औफ बताया जा रहा था.

ऐसे में परमेश्वर कनौजिया अपने परिजनों के साथ धर्मेंद्र की तलाश में घर से निकल कर आसपास पता करने लगे, लेकिन धर्मेंद्र के बारे में किसी से कुछ भी पता नहीं चला.

परमेश्वर कनौजिया को धर्मेंद्र के गायब होने का कोई कारण भी समझ नहीं आ रहा था, क्योंकि वह और उन के परिवार के सभी सदस्य धर्मेंद्र से बेहद प्यार करते थे, इसलिए कभी उसे डांटफटकार भी नहीं पड़ती थी.

वह ज्यादा परेशान हो उठे थे. वहीं उन की किसी से दुश्मनी भी नहीं थी जिस से लगे कि किसी ने दुश्मनी निकालने के लिए उन के बेटे को गायब कर दिया हो. रही बात कहीं जाने की तो वह हाल में ही लौकडाउन के चलते मुंबई से आया था.

वह अपने घर के लोगों के साथ धर्मेंद्र के दोस्तों और परिचितों के यहां जब देर रात तक उसे खोजते रहे और उस का कोई पता नहीं चला तो उन्होंने पुलिस को बेटे की गुमशुदगी की सूचना देने का निर्णय लिया और 20 अगस्त की सुबह थाना औरास पहुंचे.

थानाप्रभारी राजबहादुर को घटना की जानकारी दे कर उस की गुमशुदगी दर्ज करने की मांग की. लेकिन थानाप्रभारी ने जांच की बात कह कर उन्हें लौटा दिया.

थाने से पुलिस से अपेक्षित सहयोग न मिलने से निराश हो कर धर्मेंद्र के पिता गांव वापस लौट आए और फिर से आसपास तलाश करने लगे. परमेश्वर कनौजिया अपने दोनों बेटों के साथ धर्मेंद्र की तलाश कर ही रहे थे कि उन्हें अपने घर से करीब 300 मीटर दूर धर्मेंद्र की चप्पलें पड़ी हुई मिल गईं.

धर्मेंद्र के चप्पल मिलने के बाद उस के घर वालों के मन में तमाम तरह की आशंकाएं जन्म लेने लगी थीं. घर वाले किसी अनहोनी के अंदेशे के साथ चप्पल मिलने वाली जगह से आगे बढ़े तो 200 मीटर दूर गिरिजाशंकर द्विवेदी के आम के बाग के पास से निकले सकरैला नाले में धर्मेंद्र का औंधे मुंह शव पड़ा देखा, जहां धर्मेंद्र का पूरा शरीर पानी में और सिर बाहर था. इसे देख कर सभी बदहवास हो रोने लगे.

इस के बाद रोतेबिलखते धर्मेंद्र  के पिता परमेश्वर कनौजिया ने औरास थानाप्रभारी राजबहादुर को घटना की सूचना दी. धर्मेंद्र की हत्या की सूचना पा कर थानाप्रभारी राजबहादुर ने इस की  सूचना अपने उच्चाधिकारियों को दी और वह अपनी टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

घटनास्थल पर पहुंचने के बाद थानाप्रभारी ने ग्रामीणों की मदद से धर्मेंद्र कनौजिया के शव को बाहर निकलवाया. उधर घटना की सूचना पा कर बांगरमऊ सीओ गौरव त्रिपाठी भी मौके पर पहुंच चुके थे.

नाले से धर्मेंद्र की लाश बाहर निकालने के बाद पिता परमेश्वर व मां उर्मिला देवी का कहना था कि उन के बेटे की हत्या की गई है और शरीर में मारपीट जैसे चोट के निशान भी हैं क्योंकि धर्मेंद्र के चेहरे पर सूजन, पैंट की जेब में मिले मोबाइल में खून के निशान थे. जिस के आधार पर वे बारबार बेटे की हत्या किए जाने की बात दोहरा रहे थे.

वहीं दूसरी ओर पुलिस का कहना था कि मृतक धर्मेंद्र की लाश पर किसी तरह के चोट का निशान नहीं दिखाई पड़ रहा था. लिहाजा पोस्टमार्टम से पहले कहना मुश्किल था कि उस की हत्या की गई है. मौके की काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने तक पुलिस ने जांच शुरू कर दी थी और मृतक के पिता परमेश्वर कनौजिया से किसी से दुश्मनी होने की बात पूछी तो उन्होंने बताया कि उन का या उन के परिवार के किसी भी सदस्य का किसी से भी झगड़ा या दुश्मनी नहीं थी.

इधर पुलिस धर्मेंद्र की मौत के कारणों को ले कर छानबीन कर ही रही थी कि अगले दिन पोस्टमार्टम की रिपोर्ट पुलिस को मिल गई. लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट में धर्मेंद्र की मौत का कारण स्पष्ट नहीं था. इस वजह से धर्मेंद्र का विसरा सुरक्षित कर जांच के लिए भेज दिया गया. जिस के कुछ दिनों बाद ही विसरा की जांच रिपोर्ट भी आ गई. विसरा रिपोर्ट में धर्मेंद्र की मौत जहर से होनी बताई गई थी.

विसरा रिपोर्ट मिलने के बाद यह तो साफ हो गया था कि धर्मेंद्र की हत्या की गई है. लेकिन पुलिस को हत्या का कोई कारण नजर नहीं आ रहा था जिस के आधार पर हत्यारों तक पहुंचा जा सके. इसलिए पुलिस के सामने हत्या के कारण और हत्यारों तक पहुंचना चुनौती बना हुआ था.

ऐसे में पुलिस ने सर्विलांस की मदद से धर्मेंद्र के हत्यारों तक पहुचने का प्रयास शुरू कर दिया और मृतक के मोबाइल नंबर की पिछले एक सप्ताह की काल डिटेल्स खंगालनी शुरू कर दी.

धर्मेंद्र की हत्या के लगभग एक महीना बीतने को था, लेकिन पुलिस अभी भी हत्या के कारणों का पता लगाने व हत्यारों तक पहुंचने में नाकाम रही थी. धर्मेंद्र की काल डिटेल्स के आधार पर भी हत्यारों तक पहुंचना पुलिस को कठिन लग रहा था.

इधर पुलिस धर्मेंद्र की हत्या के मामले की जांच कर ही रही थी, इसी दौरान परमेश्वर कनौजिया को पता चला कि धर्मेंद्र के गायब होने वाले दिन आखिरी बार उसे गांव के ही रहने वाले लक्ष्मण, राहुल कनौजिया, संजीत कुमार, उस के भाई रंजीत कनौजिया के साथ देखा गया था.

यह जानकारी मिलते ही परमेश्वर कनौजिया ने 17 सितंबर, 2020 को औरास थाने पहुंच कर संजीत व रंजीत, राहुल और लक्ष्मण के खिलाफ बेटे की हत्या में शामिल होने की नामजद रिपोर्ट दर्ज करा दी.

जब पुलिस आरोपियों के घर पहुंची तो सभी हत्यारोपी घर से फरार मिले. इस के आधार पर आरोपियों पर पुलिस का शक और भी पुख्ता हो गया. पुलिस ने आरोपियों की धरपकड़ के लिए काफी प्रयास किए, लेकिन आरोपी हाथ नहीं आए.

धर्मेंद्र की हत्या के कई माह बीत चुके थे और पुलिस लगातार आरोपियों के घर और संभावित ठिकानों पर दबिश दे रही थी लेकिन इस मामले में पुलिस के हाथ अब भी खाली थे.

इसे ले कर मृतक के घर वाले आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए कई बार एसपी सुरेशराव आनंद कुलकर्णी के साथसाथ उच्चाधिकारियों से गुहार भी लगा चुके थे.

इसी बीच थानाप्रभारी राजबहादुर की जगह औरास थाने की कमान तेजतर्रार हरिप्रसाद अहिरवार को सौंप दी गई थी.

चूंकि इस मामले का परदाफाश न होना पुलिस के लिए सिरदर्द बना हुआ था. ऐसे में एसपी सुरेशराव आनंद कुलकर्णी और एएसपी शशिशेखर ने खुद इस मामले पर नजर रखते हुए थानाप्रभारी हरिप्रसाद अहिरवार को केस का जल्द से जल्द खुलासा करने का निर्देश दिया.

अब नए थानाप्रभारी हरिप्रसाद अहिरवार  ने नए सिरे से आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए जाल बिछाना शुरू किया. इसी बीच उन्हें 20 मई, 2021 को मुखबिरों से खबर मिली कि लक्ष्मण, राहुल, संजीत रंजीत उन्नाव की मड़ैचा तिराहे के पास हैं और कहीं भागने की फिराक में हैं.

इस सूचना के बाद थानाप्रभारी हरिप्रसाद अहिरवार ने हैडकांस्टेबल दिलीप सिंह, कांस्टेबल प्रशांत, हर्षदीप व आशीष के साथ जाल बिछा कर मड़ैचा तिराहे से चारों को गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस आरोपियों को पकड़ कर थाने ले आई और धर्मेंद्र कनौजिया की हत्या के बारे में पूछताछ करने लगी. लेकिन चारों ही धर्मेंद्र की हत्या में शामिल होने की बात से नकारते रहे.

जब पुलिस को लगा कि आरोपी आसानी से हत्या की बात कुबूलने वाले नहीं हैं तो कड़ाई से पूछताछ की गई. इस पूछताछ में चारों टूट गए और उन्होंने धर्मेंद्र की हत्या की बात कुबूल ली.

आरोपी लक्ष्मण ने बताया कि उन लोगों ने वारदात वाले दिन राहुल, संजीत व रंजीत की मदद से धर्मेंद्र को गांव के बगीचे में बुला कर मछली के साथ शराब पार्टी रखी थी. जहां पहले से ही धर्मेंद्र की हत्या करने के लिए जहर खरीद कर रख लिया था.

आरोपियों ने धर्मेंद्र को जम कर शराब पिलाई और जब वह नशे में धुत हो गया तो मौका देख राहुल ने उस के शराब के गिलास में जहर मिला दिया. जहर मिली शराब पीने के बाद धर्मेंद्र अचेत हो कर गिर पड़ा. इस के बाद धर्मेंद्र की मौत का इंतजार करते रहे और जब उस की मौत हो गई तो धर्मेंद्र की लाश सकरैला नाले में फेंक दी.

पुलिस ने जब आरोपियों से हत्या का कारण पूछा तो आरोपी लक्ष्मण ने बताया कि धर्मेंद्र कनौजिया उस की बेटी से प्रेम करता था और वह अकसर उस के घर उस की बेटी से मिलने आया करता था.

लक्ष्मण ने बताया कि वह अकसर दोनों को समझाता रहता था. लेकिन धर्मेंद्र के सिर पर प्रेम का मानो भूत सवार था.

धर्मेंद्र लगातार उस की बेटी के साथ नजदीकियां बढ़ाता जा रहा था. इसी बीच लक्ष्मण के घर पर गांव के ही राहुल का आनाजाना शुरू हो गया, उस ने भी जब पहली बार लक्ष्मण की बेटी को देखा तो उस की खूबसूरती और चढ़ती जवानी को देख उस पर लट्टू हो गया.

अब राहुल लक्ष्मण के बेटी को देखने अकसर बहाने से उस के घर आने लगा था. वह जब भी आता तो लक्ष्मण की बेटी को देख अपनी सुधबुध खो बैठता था. उस के मन में लक्ष्मण की बेटी को ले कर कब प्यार की कोपलें पनपने लगीं, उसे पता ही नहीं चला.

लेकिन उस के सामने एक बड़ी समस्या धर्मेंद्र था. क्योंकि वह भी उसी के चक्कर में अकसर लक्ष्मण के घर आया करता था. इधर लगातार राहुल के घर आने से लक्ष्मण की बेटी का प्यार धर्मेंद्र से कम होता गया और वह राहुल की तरफ आकर्षित होने लगी.

अब वह धर्मेंद्र की जगह राहुल से प्यार करने लगी और दोनों में काफी नजदीकियां भी बढ़ चुकी थीं. इस वजह से अब वह धर्मेंद्र से दूरी बनाने लगी थी. लेकिन धर्मेंद्र दूरी नहीं बनाना चाहता था क्योंकि वह उस से हद से ज्यादा प्यार करने लगा था.

लक्ष्मण ने बताया कि उस की बेटी राहुल से प्यार के चलते धर्मेंद्र से पीछा छुड़ाना चाहती थी, लेकिन धर्मेंद्र उस से दूर जाने के बजाय और करीब आने की कोशिश करने लगा था.

कई बार मना करने के बावजूद भी धर्मेंद्र का रोजाना घर आना उसे बरदाश्त नहीं था. इसलिए उस ने धर्मेंद्र को रास्ते से हटाने का खौफनाक निर्णय ले लिया. इस के लिए लक्ष्मण ने बेटी के दूसरे प्रेमी राहुल के साथ ही संजीत कुमार, उस के भाई रंजीत को भी धर्मेंद्र की हत्या की साजिश में शामिल कर लिया.

फिर तय प्लान के अनुसार धर्मेंद्र को विश्वास में ले कर उसे शराब और मछली की पार्टी के लिए गांव से सटे बगीचे में बुलाया, जहां 19 अगस्त, 2020 को पार्टी के दौरान उस के शराब के पैग में जहर मिला कर उस की हत्या कर दी और लाश पास के नाले में फेंक दी.

पुलिस ने धर्मेंद्र की हत्या के नौवें महीने में साजिश का परदाफाश कर दिया और आरोपियों के बयान दर्ज कर धारा 302, 201, 34 भादंवि के तहत न्यायलय में पेश कर जेल भेज दिया है. कथा लिखे जाने तक आरोपी जेल में ही थे.

सिरफिरा आशिक : बना अपनी ही प्रेमिका का कातिल

घटना 13 मार्च, 2021 की है, उस समय दिन के यही कोई 10 बज रहे थे, मनीषा गेडाम अपनी पेइंगगेस्ट सहेली जेनेट के साथ बैठ कर गपशप कर रही थी कि तभी जेनेट के मोबाइल पर काल आई, ‘‘जेनेट, फोन मत काटना प्लीज, मुझे मनीषा से कुछ खास बात करनी है. एक मिनट के लिए उसे फोन दो.’’

‘‘मनीषा, मैं सागर बोल रहा हूं, मैं तुम से एक बार मिलना चाहता हूं. फिर मैं तुम्हें कभी नहीं मिलूंगा. मैं इस समय तुम्हारी बिल्डिंग के नीचे खड़ा हूं. प्लीज, तुम नीचे आ जाओ.’’

उस की यह बात सुन कर जेनेट और मनीषा दोनों इमारत के नीचे आईं और पूछा, ‘‘तुम यहां क्यों आए हो?’’

‘‘मैं जौब के लिए विदेश जा रहा हूं. यह देखो मेरी टिकट आ गई है,’’ अपने मोबाइल में टिकट का फोटो दिखाते हुए बोला.

‘‘ठीक है, अब तुम मुझे भूल जाओ. तुम विदेश जाते हो तो जाओ, इस से मुझे क्या.’’ मनीषा ने कहा

‘‘पर मेरी एक विनती है मनीषा, तुम मेरे साथ सिर्फ एक दिन बिताओ. हम कहीं घूमनेफिरने चलते हैं. शाम को मैं तुम्हें वापस घर पर छोड़ दूंगा. हम दोनों महाबलेश्वर जाएंगे.’’ सागर ने विनती करते हुए कहा, ‘‘अगर तुम आती हो तो… क्योंकि इस के बाद मैं तुम्हें कभी नहीं मिलूंगा, तुम्हें यहां छोड़ने के बाद मैं सीधे अपने गांव चला जाऊंगा.’’

अपने पूर्व प्रेमी आनंदराव गुडव उर्फ सागर की इस विनती पर मनीषा यह सोच कर उस के साथ जाने को तैयार हो गई कि चलो इस के बाद उस से पीछा तो छूट जाएगा. वह उस की बाइक पर बैठ कर निकल गई.

सुबह 10 बजे की गई मनीषा जब काफी रात तक नहीं लौटी तो मनीषा की सहेली जेनेट को उस की चिंता हुई, उस ने उसे कई बार फोन लगाया. लेकिन हर बार उस का फोन स्विच्ड औफ बता रहा था.

आखिरकार परेशान हो कर जेनेट ने सारी बातें मनीषा के भाई प्रतीक को बताईं. जेनेट की बातें सुन कर प्रतीक के होश उड़ गए थे. प्रतीक ने कहा, ‘‘ये सारी बातें तुम मां को बताओ, मैं भी मां से बात करता हूं.’’

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प्रतीक की सलाह पर जेनेट ने मनीषा की मां चित्रा से संपर्क किया और उन्हें सारी बातें बताईं. यह सुन कर वह बेहोश सी हो गई थीं. जब उन्हें होश आया तो मां ने पुलिस थाने में मनीषा की शिकायत दर्ज कराने के लिए कहा था.

परिवार वालों के कहने पर जेनेट पुणे के चंदननगर थाने पहुंच कर थानाप्रभारी सुनील जाधव से मिली और उन्हें सारी जानकारी दी. तब थानाप्रभारी ने मनीषा की गुमशुदगी दर्ज कर ली.

थानाप्रभारी सुनील जाधव ने इस मामले को संज्ञान में तो लिया, लेकिन जिस तरह से उन्हें काररवाई करनी चाहिए थी, वैसा कुछ नहीं हुआ. पुलिस इस मामले को एक साधारण शिकायत की तरह जांच करती रही. गायब मनीषा की बरामदगी की कोशिश करने के बजाय पुलिस सामान्य तौर पर मनीषा की तलाश करती रही.

इसी तरह 13-14 दिन निकल जाने के बाद मनीषा के घर वालों का धैर्य टूटने लगा तो मनीषा का भाई पुणे आया और एसीपी नामदेव चौहान से मिल कर उन्हें सारी बातें बताईं और अपनी बहन मनीषा के गायब होने में सागर का हाथ बताया. उस ने कहा कि वह उस से एकतरफा प्यार करता था और अकसर उसे परेशान किया करता था. एसीपी नामदेव चौहान ने मामले की जांच इंसपेक्टर (क्राइम) सुनील थोपटे को सौंप दी.

वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देशन पर इंसपेक्टर सुनील थोपटे ने सहायकों की एक टीम बनाई, जिस में उन्होंने एएसआई गजानंद जाधव, भालचंद जाधव, सिपाही गणेश आवाले को शामिल कर मामले की जांच शुरू कर दी.

जांच में पता चला कि आनंदराव गुडव उर्फ सागर अमरावती जिले के थाना चादुर बाजार क्षेत्र में स्थित पपलपुरा गांव का रहने वला था. पुणे पुलिस ने जब सागर का फोन ट्रैक किया तो उस की लोकेशन चादुर बाजार क्षेत्र की मिली.

यह जानकारी मिलने पर पुणे पुलिस सक्रिय हो गई. तुरंत चादुर बाजार थाने से संपर्क कर उन्हें सारी बातें बता कर पुणे पुलिस की एक टीम सागर के गांव के लिए रवाना हो गई. गांव पहुंच कर पुलिस टीम ने चादुर बाजार पुलिस की सहायता से आनंदराव गुडव उर्फ सागर को अपनी गिरफ्त में लिया.

इंसपेक्टर सुनील थोपटे ने उस से पूछताछ की तो वह पहले तो इधरउधर की बातें कर पुलिस टीम को गुमराह करता रहा. लेकिन जब पुलिस ने थोड़ी सी सख्ती दिखाई तो वह टूट गया और अपना गुनाह कुबूल करते हुए कहा कि वह मनीषा की हत्या कर चुका है. उस ने मनीषा हत्याकांड की जो कहानी बताई, वह कुछ इस प्रकार थी.

28 साल की सुंदर और महत्त्वाकांक्षी मनीषा गेडाम महाराष्ट्र के जिला अमरावती के गांव श्रीकृष्ण नगर की रहने वाली थी. उस के पिता का नाम बापूराव गेडाम था.

परिवार में मां चित्रा के अलावा 3 भाईबहन थे. भाई का नाम प्रतीक और बड़ी बहन का नाम सुहासिनी गेडाम था. सुहासिनी की शादी हो चुकी थी. वह अपने परिवार के साथ पुणे के हडपसर की शिंदे बस्ती में रहती थी. भाई प्रतीक अमरावती के पाटे कालेज में इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था.

परिवार में प्यार था. पिता बापूराव गेडाम अपनी बड़ी बेटी सुहासिनी से कभीकभी मिलने के लिए पुणे आतेजाते रहते थे.

मनीषा बीए तक पढ़ाई करने के बाद पुणे के मंत्री अपार्टमेंट विजयनगर में स्थित आईजीटी कंपनी में नौकरी करने लगी थी. वह अपनी एक सहेली जेनेट अमित पारकर के साथ पेइंगगेस्ट की तरह रहने लगी थी.

बेटी की राजदार मां होती है. मनीषा हर छोटीबड़ी बात मां से शेयर करती थी, इसलिए मनीषा ने जब अपनी मां चित्रा को बताया कि वह अपने कालेज के एक लड़के सागर गुडव से प्यार करती है और दोनों शादी कर के अपना एक सुनहरा संसार बसाना चाहते हैं तो मां को एक झटका सा लगा था.

उन्होंने कुछ सोचते हुए कहा, ‘‘वह लड़का कैसा है?’’

‘‘अच्छा है मां,’’ मनीषा ने बताया.

‘‘ठीक है, इस विषय में मैं तुम्हारे पापा से बात करती हूं.’’

शाम को घर आए पति बापूराव गेडाम को चित्रा ने जब बेटी मनीषा के बारे में बताया तो वह दंग रह गए. लेकिन करते भी तो क्या, मामला नाजुक था.

उन्होंने सागर के बारे में पता लगाया तो उस के विषय में उन्हें जो जानकारी मिली, उस से उन की आंखों के आगे अंधेरा छा गया था. वह उन का दामाद बनने लायक नहीं था. क्योंकि वह शराब सप्लायर के अलावा कई गलत काम करता था.

मौका देख कर मनीषा को परिवार वालों ने समझाया और कहा, ‘‘बेटी, तुम जिस से शादी करना चाहती हो वह संभव नहीं है.’’

‘‘क्यों पापा, सागर में बुराई क्या है?’’ मनीषा ने पूछा.

‘‘बेटी, उस में एक बुराई हो तो बताऊं, वह अपराधी प्रवृत्ति का लड़का है. तुम होशियार और समझदार हो. तुम जो करोगी, अच्छा करोगी. लेकिन बेटी समाज में अपनी भी कुछ इज्जत और मानसम्मान है. क्या तुम चाहती हो कि समाज में अपनी गरदन झुक जाए.’’ पिता ने कहा.

परिवार वालों के समझाने पर मनीषा ने सागर से शादी करने का अपना इरादा बदल दिया और उस से शादी करने से साफसाफ मना कर दिया था. कहा कि वह अपने परिवार वालों की पंसद से शादी करेगी.

मनीषा की इस बात से सागर के तनबदन में आग सी लग गई थी. पहले उस ने मनीषा को कई बार फोन किया. फोन बंद पा कर सागर ने मनीषा का रास्ता रोकना, उस पर दबाब और धमकाना शुरू किया, ‘‘देखो मनीषा, मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं. अगर तुम मुझे से शादी नहीं करोगी तो अंजाम बहुत बुरा होगा. मैं तुम्हें तो तकलीफ दूंगा ही, तुम्हारे पूरे परिवार को खत्म कर दूगा.’’

सागर के इस तरह के बर्ताव से परेशान हो कर मनीषा अपनी बहन सुहासिनी के घर पुणे चली गई थी. यह बात 2018 की है.

पुणे आने के कुछ दिनों बाद मनीषा को एक अच्छी सी नौकरी मिल गई थी. मनीषा की नौकरी लगने के बाद वह अपनी बहन का घर छोड़ जेनेट के साथ जा कर शेयरिंग में रहने लगी और अपना मोबाइल नंबर भी बदल दिया था.

मनीषा का नंबर बदल जाने के बाद सागर पागल सा हो गया था. मनीषा का नंबर पाने के लिए वह एक दिन उस के घर पहुंच गया. घर पर मनीषा की मां मिली. पूछने पर मां चित्रा ने उसे मनीषा के बारे में कुछ नहीं बताया तो सागर ने मां चित्रा को उन के साथ मारपीट की और उन्हें डरायाधमकाया.

उस की धमकियों से डरी चित्रा अपने एक रिश्तेदार के साथ चादुर बाजार थाने पहुंच गईं और सागर के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवा दी. जिस पर पुलिस ने सागर को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. उस के जेल जाने के बाद थोडे़ दिनों तक तो माहौल शांत रहा.

लेकिन जेल से छूटने के बाद सागर का वही नाटक शुरू हो गया था. उसे इस बीच किसी तरह मनीषा की सहेली जेनेट का फोन नंबर मिल गया था और वह मनीषा से बातें करने लगा. उसे शादी के लिए परेशान करने लगा. उस ने धमकी दी, ‘‘तुम अगर मुझ से शादी नहीं करोगी तो मैं तुम्हारी मां को खत्म कर दूंगा.’’ इस तरह की धमकी से कुछ दिन निकल गए थे.

14 फरवरी को बापूराव अपने बेटे प्रतीक के साथ पुणे में अपनी बड़ी बेटी सुहासिनी के यहां गए हुए थे, वहां उन की दोनों बेटियों के साथ उन का महाबलेश्वर घूमने का कार्यक्रम बन गया था. यहां सागर ने मनीषा को कई बार फोन किया था, पर मनीषा ने उस के एक भी फोन का जवाब नहीं दिया था, बल्कि अपना फोन स्विच्ड औफ कर दिया था.

इस से नाराज सागर वापस मनीषा के घर गया और उस की मां चित्रा से मारपीट की, मनीषा को जब यह जानकारी मिली तो वह अपने पापा और भाई के साथ गांव आई और चादुर बाजार थाने में सागर के खिलाफ शिकायत दर्ज करवा दिया. फिर वह वापस पुणे लौट आई थी.

पुलिस ने सागर को फिर से जेल भेज दिया. 15 दिन जेल में रहने के बाद जब सागर बाहर आया तो उसे मनीषा से सख्त नफरत हो गई थी और इस के लिए उस ने एक खतरनाक योजना तैयार कर ली थी. अपनी योजना के अनुसार वह पुणे आ गया था और उस की सहेली जेनेट को फोन किया. लेकिन उस दिन उस का काम नहीं बना, मनीषा ने उस दिन उस से बात करने से मना कर दिया था.

घटना के दिन मनीषा को आखिर सागर ने अपनी बातों के जाल फंसा ही लिया था और उस के साथ कुछ समय बिताने के लिए तैयार हो गई थी.

मनीषा के साथ सागर ने पहले महाबलेश्वर जाने की योजना बनाई. लेकिन चंदननगर पुणे रोड पर आने के बाद उस ने अपना इरादा बदल दिया. उस का मानना था कि वहां तक जाने में काफी रात हो जाएगी, इसलिए उस ने अपनी बाइक भाटघर की तरफ मोड़ दी.

जोगवाड़ी, ब्राह्मण घर घूमने के बाद भाटघर वाटर बैंक के पास एक पत्थर पर जा कर दोनों बैठ गए थे. इस के पहले कि वे कुछ बात करते, मनीषा का फोन आ गया था. जिस पर उस की लंबी बातचीत चलने लगी.

इस पर जब सागर ने पूछा कि फोन किस का था, तो मनीषा ने कहा, ‘‘तुम्हें क्या करना है, मेरा फोन है.’’

‘‘लेकिन…’’ सागर कुछ आगे बोलता. मनीषा ने उस की बातों को काटते हुए कहा, ‘‘मेरी तुम से शादी नहीं हुई है, जो तुम मुझ पर इतना दबाव बनाओगे.’’

इस बात को ले कर दोनों में काफी कहासुनी हुई और क्रोध में आ कर सागर ने पास में ही पडे़ पत्थर को उठा कर मनीषा के सिर पर दे मारा. पत्थर के जोरदार हमले से मनीषा की एक दर्दनाक चीख निकल कर वहां के शांत वातावरण में खो गई थी.

कुछ समय के बाद मनीषा के खत्म होते ही उस ने अपनी बाइक उठाई और अपने गांव अमरावती आ गया था. गांव आ कर अपना फोन बंद कर चुपचाप बैठ गया था, जहां से पुलिस ने उसे अपनी गिरफ्त में ले लिया था. फौरी तौर पर पूछताछ करने के बाद उसे उस जगह ले कर गए, जहां मनीषा की हत्या हुई थी.

उस जगह पहुंच कर के पुलिस ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. मनीषा का मोबाइल आदि को अपने कब्जे में ले कर लाश का पंचनामा तैयार किया. फिर वह पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

आनंदराव गुडव उर्फ सागर से विस्तार से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने भादंवि की धारा 364, 302, 34 के अंतर्गत मुकदमा कर उसे पुणे की यरवदा जेल भेज दिया.

सिसकती मोहब्बत : प्यार बना जान का कारण

—श्वेता पांडेय

महासमुंद जिले में स्थित श्रीराम कालोनी के पास स्वीपर कालोनी भी है. दोनों कालोनियों के बीच एक छोटा सा मैदान है. अगर वह मैदान नहीं होता तो दोनों कालोनियों को एक ही माना जाता. इसी श्रीराम कालोनी में पूनम यादव रहती थी, उस के 3 बेटे थे रोहित, शिव और कान्हा यादव.

इसी कालोनी में जीवन साहू भी अपने परिवार के साथ रहता थ. उस के 3 बेटियां थीं. हम इस कहानी में सिर्फ नीतू का ही उल्लेख कर रहे हैं जिस का संबंध इस कहानी से है. 24 वर्षीय नीतू साहू जीवन साहू की ही बेटी थी. एक ही मोहल्ले के बाशिंदे होने के कारण स्वाभाविक रूप से रोहित यादव और नीतू साहू की अकसर मुलाकात हो जाया करती थी.

इस का परिणाम यह निकला कि कब दोनों एकदूसरे को चाहने लगे, उन्हें पता ही नहीं चला. दोनों का एकदूसरे के प्रति आकर्षण बढ़ता जा रहा था. 3 महीने तक दोनों ने अपनी चाहतों को मन में ही छिपा कर रखा.

कभी न कभी तो इस चाहत को मुखर होना ही था. पहल रोहित यादव की ओर से हुई. एक दिन वह अपनी बाइक से कहीं जा रहा था कि उस की नजर कपड़े के शोरूप में गई. उस शोरूम के भीतर नीतू कपड़े पसंद करती दिखाई दी.

उस शोरूम का दरवाजा कांच का बना हुआ था, अत: अंदर की हलचल बाहर आतेजाते लोगों को दिखाई देती थी. उस शोरूम के बाहर रोहित ने बाइक खड़ी की और दरवाजा खोल कर अंदर घुस गया. वह सीधे उस काउंटर पर पहुंचा जहां नीतू कपड़े पसंद कर रही थी.

वहां ढेरों कपड़े बिखरे पड़े थे लेकिन उसे कुछ पसंद नहीं आ रहा था. नीतू के चेहरे पर झुंझलाहट साफसाफ दिखाई दे रही थी. रोहित ने उस के करीब पहुंच कर उस के कंधे पर हाथ रखा. नीतू चिहुंक कर पीछे पलटी. रोहित मुसकराते हुए बोला, ‘‘सूट खरीद रही हो क्या?’’

‘‘हां, कोई सूट जंच ही नहीं रहा.’’

‘‘क्या मैं इस में तुम्हारी कोई मदद कर सकता हूं?’’ बगैर नीतू को बोलने का मौका दिए काउंटर पर खड़ी लड़की की ओर मुखातिब होता हुआ अंगुली से इशारा करते हुए रोहित बोला, ‘‘मैडम, वो जो तीसरे रैक पर पिंक कलर का है, उसे दिखाइए.’’

पिंक कलर वाला सूट निकाल कर उस सेल्सगर्ल ने काउंटर पर रख दिया. रोहित सूट की तह खोल कर नीतू के सामने रखते हुए बोला, ‘‘यह तुम पर बहुत फबेगा.’’

उलटपलट कर देख कर नीतू ने भी उसे पसंद कर लिया. सहयोग के लिए शुक्रिया. पैक्ड सूट का पेमेंट कर नीतू काउंटर के स्टैंड पर रखा एक कैप हाथ में लेते हुए बोली, ‘‘ये कैप तुम पर बहुत जंचेगी.’’

फिर रोहित को कुछ बोलने का मौका दिए बगैर उस के सिर पर कैप लगाते हुए बोली, ‘‘देखो, बहुत जंच रहे हो.’’

रोहित ने पेमेंट करनी चाही, पर उस ने रोहित को ऐसा करने से रोका, ‘‘ये मेरी ओर से तुम्हारे लिए, प्लीज.’’

दोनों शोरूम से बाहर आए. नीतू बोली, ‘‘अच्छा किया तुम ने यहां आ कर. मेरी मदद हो गई.’’

‘‘कहां जाओगी?’’ रोहित ने पूछा.

नीतू जिस काम से आई थी, वह तो पूरा हो गया था. अब घर ही जाना था. वह कुछ कहती उस के पहले रोहित बोला, ‘‘कुछ समय मेरे लिए नहीं निकालोगी? एकएक कप कौफी हो जाए, उस के बाद मैं तुम्हें छोड़ दूंगा.’’

फिर खामोशी से उस ने उस के प्रस्ताव पर स्वीकृति दे दी. दोनों बाइक पर सवार हो कर कौफी शौप पर पहुंचे. रोहित ने बाइक स्टैंड पर खड़ी की. नीतू के एक हाथ में पौलीथिन का कैरीबैग था. उस के खाली हाथ को रोहित ने थाम लिया. नीतू ने देखा मगर बोली कुछ नहीं.

एक खाली टेबल पर दोनों पहुंचे. उस समय कौफी शौप में बहुत भीड़ थी. टेबल के आमनेसामने दोनों बैठ गए.

‘‘कुछ और लोगी?’’ रोहित ने पूछा.

नीतू ने इनकार में अपना सिर हिलाया.

‘‘सिर्फ कौफी,’’ रोहित ने 2 कप कौफी का और्डर दिया.

5 मिनट बाद कौफी सर्व हुई. खामोशी के साथ दोनों कौफी का सिप लेते रहे.

लब खामोश थे. निगाहें बातें कर रही थीं. कौफी खत्म कर दोनों कौफी शौप से बाहर आए. बाइक पर नीतू को बिठा कर रोहित श्रीराम कालोनी पहुंचा.

नीतू के घर से थोड़ी दूरी पर उस ने बाइक रोकी. नीतू बाइक से उतर कर अपने घर की ओर बढ़ी ही थी कि रोहित ने आवाज लगाई, ‘‘नीतू, सुनो.’’

नीतू ने पलट कर रोहित की ओर सवालिया निगाहों से देखा. रोहित बोला, ‘‘कल वहीं मिलोगी क्या उस सूट के साथ? सच्ची कह रहा हूं, उस सूट में तुम्हें देखना चाहता हूं.’’

नीतू मुसकराते हुए बोली, ‘‘सोचूंगी.’’

फिर वह वहां रुकी नहीं. घर की ओर बढ़ गई. उस ने एक बार पीछे पलट कर देखा तो रोहित बाइक की सीट पर बैठा उसे बाय कर रहा था.

करार के मुताबिक अगले दिन नीतू उस से नहीं मिली और न ही 3-4 दिन तक दिखाई दी. परेशान हो कर रोहित नीतू के घर के सामने बाइक की सीट पर बैठा टकटकी बांधे उस के घर की ओर देखता रहा.

एक घंटे इंतजार के बाद नीतू उसे घर की छत पर कपड़े डालती हुई दिखाई दी. रोहित ने हाथ हिला कर अपनी ओर आकर्षित करना चाहा लेकिन जानबूझ कर नीतू ने अनदेखा कर दिया.

रोहित को बहुत गुस्सा आया. इधरउधर देखा और पास से एक पत्थर उठा कर जोर से छत की ओर उछाल दिया. पत्थर नीतू के पास जा कर गिरा.

नीतू को मालूम था कि ऐसा किस ने किया होगा. उस ने चौंकने की शानदार एक्टिंग की. इधरउधर निगाहें घुमाने के बाद रोहित पर जा कर ठहर गईं. रोहित ने उसे हाथ से इशारा किया साथ ही हवा में मुक्का घुमाया.

रोहित के ऐसा करने पर नीतू खिलखिला कर हंस पड़ी. उस के हंसने से रोहित का गुस्सा और बढ़ गया. उस ने गुस्से में अपने सिर के बालों को नोचने का नाटक किया. नीतू को हाथ का पंजा दिखा कर इशारे से बताया 5 बजे. फिर उस ने हाथ उठा कर चाय की चुस्की का इशारा किया.

हरी झंडी मिलते ही रोहित के चेहरे पर रौनक आ गई. बाइक पर बैठा और चल पड़ा.  तय समय से 15 मिनट पहले रोहित कौफी शौप में जा कर एक टेबल के पास लगी कुरसी पर बैठ गया. घड़ी की सुइयां धीरेधीरे सरक रही थीं. सवा 5 होने जा रहा था. वह उठ कर बाहर जाने ही वाला था कि दरवाजा खोल कर नीतू आती दिखाई दी.

उठने को तत्पर रोहित फिर से वहीं बैठ गया. नीतू पिंक कलर का वही सूट पहन कर आई थी. टेबल के करीब पहुंच कर कुरसी पर बैठती हुई बोली, ‘‘ज्यादा इंतजार तो नहीं करना पड़ा हुजूर को? बस 15 मिनट लेट हुई हूं.’’

‘‘और वो 5 दिन जिस में तुम ने मुझ से मिलने का वादा किया था? वो इंतजार में शामिल नहीं है?’’

‘‘गुस्सा ठंडा कीजिए हुजूर.’’

फिर रोहित ने नारमल होते हुए कौफी मंगाई. कौफी पीते समय इधरउधर की बातें होती रहीं. मौका देख कर नीतू बोली, ‘‘तुम ने बुलाया मैं आ गई. हो गई तसल्ली.’’

‘‘5 दिन के इंतजार का ये सिला?’’

‘‘15 मिनट बहुत होते हैं जनाब.’’ कहते हुए नीतू कौफी शौप से बाहर निकल गई.

वक्त के साथ दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा. प्यार का अंकुर अब बड़ा दरख्त बन चुका था. दोनों साल भर से एकदूसरे को प्यार कर रहे थे. इन दिनों में इन लोगों ने साथ जीनेमरने की कसमें भी खाईं लेकिन इस का क्या किया जाए कि समय को कुछ और ही मंजूर था.

10 जुलाई, 2021 को श्रीराम कालोनी में रात 9 बजे किसी की जन्मदिन की पार्टी चल रही थी. उस वक्त रोहित नीतू के घर के सामने बल्कि दरवाजे पर चिल्लाचिल्ला कर नीतू का नाम ले कर दरवाजा पीटे जा रहा था.

पार्टी में व्यवधान हो रहा था. सोनू प्रजापति और जागेश्वर साहू ने रोहित को ऐसा करने से मना किया. इस बीच सोनू ने किशन पांडेय को फोन कर श्रीराम कालोनी पहुंचने को कहा. सोनू ने जिस समय किशन को फोन किया, उस वक्त वह थोड़ी ही दूरी पर था. 2 मिनट में ही वह वहां पहुंच गया.

आननफानन बाइक को स्टैंड पर खड़ी कर गुत्थमगुत्था हो रहे सोनू, जागेश्वर और रोहित के बीच में वह भी घुस गया. ये 3 और रोहित अकेला. फिर भी तीनों पर भारी पड़ रहा था.

स्ट्रीट लाइट की रोशनी उन तक पहुंच रही थी. होहल्ला सुन कर नीतू छत पर पहुंच गई. रोहित काबू में नहीं आ रहा था. तीनों को मांबहन की गालियां देते हुए देख लेने की धमकी दिए जा रहा था.

नीतू ने रोहित को पहचान लिया. नीतू ने देखा कि उन तीनों में से एक के हाथ में चाकू था जिसे उस ने ऊपर उठाया और बगैर मौका दिए रोहित पर वार करता चला गया. छत पर खड़ी नीतू चिल्लाई, ‘‘छोड़ दो उसे…छोड़ दो उसे. कोई बचाओ.’’

उन चारों के पास कोई मोहल्ले वाला नहीं आया तब नीतू ने प्रेमी को बचाने के लिए छत से नीचे छलांग लगा दी और रोहित की ओर बढ़ना चाहा लेकिन उस के पैरों ने जवाब दे दिया. उस के पैर फ्रैक्चर हो चुके थे. एक पैर टूट ही गया. फिर भी वह वहीं जमीन पर पड़ी हुई चीखतीचिल्लाती रही.

सोनू प्रजापति, जागेश्वर साहू और किशन पांडेय रोहित को चाकू से मार कर फरार हो गए. उन के भागने के बाद मोहल्ले वाले वहां पहुंचे, जहां रोहित अपने ही खून में डूबा हुआ था. किसी ने रोहित के चाचा लालू यादव और पिता पूनम यादव को दौड़ कर यह सूचना दी.

दोनों भाई वहां पहुंचे. रोहित खून से तरबतर पड़ा था. आननफानन में पुलिस को बुलाया गया. तत्काल रोहित को पास के जिला अस्पताल ले जाया गया, जहां चैकअप के बाद डाक्टरों ने रोहित को मृत घोषित कर दिया गया.

लालू यादव की रिपोर्ट पर महासमुंद सिटी कोतवाली में रिपोर्ट दर्ज कर ली गई. थानाप्रभारी शेर सिंह बंदे अपने साथ टीकाराम सारथी, सुशील शर्मा, योगेश सोनी आदि पुलिसकर्मियों को ले कर घटनास्थल पर पहुंचे.

वहां लोगों से पूछताछ करने पर पता चला कि रोहित पर 3 लोगों ने हमला किया था. लोगों ने यह भी बता दिया कि एक हमलावर कुम्हारपाड़ा का रहने वाला जग्गू साहू उर्फ जागेश्वर रायपुर की ओर भागा है.

तीनों फरारों के हुलिए के हिसाब से पुलिस ने जिले से बाहर जाने वाले रास्तों पर नाकाबंदी कर दी.

इस का नतीजा यह निकला कि महासमुंद के घोड़ारी के पास से पुलिस ने जागेश्वर को गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ करने पर उस ने 2 लोग सोनू प्रजापति जोकि मूर्तिकार है और किशन पांडेय को घटना में शामिल बताया.

घटना के अगले दिन पुलिस ने दोनों को अलगअलग जगहों से धर दबोचा. इन लोगों ने अपने बयानों में बताया कि रोहित की दबंगई पहले से ही उन की आंखों में खटक रही थी.

उस दिन हम ने रोहित को समझाया लेकिन वह उत्तेजित हो कर हम तीनों को ही गालियां देने लगा था. रोहित हाथापाई पर उतर आया था. तब हम लोगों ने मजबूर हो कर उसे सबक सिखाया.

उसी रात नीतू को जिला अस्पताल में एडमिट कराया गया. वह बारबार बेहोश हो रही थी. और जब भी होश आता तो एक ही सवाल करती, ‘‘रोहित…मेरा रोहित कैसा है?’’

जो भी हालचाल पूछने अस्पताल पहुंचता, हर किसी से यही पूछती कि रोहित कैसा है. ठीक तो है न. कथा लिखने तक वह अस्पताल में भरती थी. लोगों की खामोशी ने नीतू को बहुत कुछ समझा दिया है. अपने दर्द को भूल कर वह रोहित की सलामती की कामना करती हुई बैड पर पड़ी थी.

रोहित के चाचा लालू यादव की रिपोर्ट पर महासमुंद पुलिस ने भादंवि की धारा 302, 34 कायम कर आरोपियों को कोर्ट में पेश कर 14 दिनों के रिमांड पर ले लिया.

कहानी लिखी जाने तक पुलिस पड़ताल में जुटी हुई थी. हत्या में प्रयुक्त चाकू और घटना के समय पहन रखे कपड़े पुलिस ने जब्त कर लिए.

प्रेमी की जान बचाने के लिए नीतू ने छत से छलांग लगा दी थी, लेकिन इस के बाद भी उस का प्रेमी नहीं बच सका. कथा लिखने तक नीतू का अस्पताल में इलाज चल रहा था.

उसे इस बात की सूचना नहीं दी कि उस का प्रेमी रोहित अब इस दुनिया में नहीं है. प्रेमी की मौत की जब भी उसे जानकारी मिलेगी, यकीनन उसे बहुत बड़ा सदमा लगेगा.

बदनामी से बचने के लिए खेला मौत का खेल – भाग 2

पुलिस हर प्रकार से विपिन शुक्ला की तलाश कर के थक चुकी थी. मुखबिरों का भी सहारा लिया गया था. लेकिन उन से भी कोई लाभ नहीं मिला. शहर के बदनाम लोगों से भी पूछताछ की गई, पर नतीजा शून्य ही रहा.

इंसपेक्टर वेदप्रकाश पर एसएसपी स्वप्न शर्मा की ओर से काफी दबाव डाला जा रहा था. इसलिए उन्होंने नए सिरे से जांच करते हुए एयरफोर्स कालोनी के निवासियों और कैंटीन कर्मचारियों से पूछताछ की. इस पूछताछ में उन्हें लगा कि विपिन की गुमशुदगी में कालोनी के ही किसी आदमी का हाथ है.

उन्होंने अपने मुखबिरों को कालोनी वालों पर नजर रखने को कहा. पुलिस और मुखबिर कालोनी में सुराग ढूंढने में लगे थे. अगले दिन यानी 21 फरवरी को वेदप्रकाश ने शैलेश को पूछताछ करने के लिए थाने बुलाना चाहा तो पता चला कि बिना एयरफोर्स अधिकारियों से इजाजत लिए पूछताछ करना संभव नहीं है.

इस पर वेदप्रकाश ने एयरफोर्स के अधिकारियों से इजाजत ले कर सार्जेंट शैलेश से उन्हीं के सामने पूछताछ शुरू की. दूसरी ओर एसएसपी स्वप्न शर्मा के आदेश पर एसपी औपरेशन गुरमीत सिंह और डीएसपी देहात कुलदीप सिंह के नेतृत्व में एक सर्च टीम तैयार की गई, जिस में एयरफोर्स के अधिकारियों सहित 40 जवानों, छोटेबड़े 85 पुलिस वालों और 30 मजदूरों सहित एयरफोर्स के स्निफर डौग एक्सपर्ट की टीम को शामिल किया गया.

इस भारीभरकम टीम ने एयरफोर्स कालोनी में सुबह 9 बजे से सर्च अभियान शुरू करते हुए एकएक क्वार्टर की तलाशी लेनी शुरू की. दूसरी ओर सार्जेंट शैलेश से पूछताछ चल रही थी. पूछताछ में शैलेश ने बताया कि अन्य लोगों की तरह उस की भी विपिन से जानपहचान थी. लेकिन वह उस की गुमशुदगी के बारे में कुछ नहीं जानता. लेकिन थानाप्रभारी के पास कुछ ऐसी जानकारियां थीं, जिन्हें शैलेश छिपाने की कोशिश कर रहा था.

शैलेश से अभी पूछताछ चल ही रही थी कि कालोनी में सर्च अभियान चलाने वाली टीम में शामिल स्निफर डौग भौंकते हुए सार्जेंट शैलेश शर्मा के क्वार्टर में घुस गया. कुत्ते के पीछे पुलिस अफसर भी घुस गए. सार्जेंट शैलेश शर्मा को भी वहीं बुला लिया गया. पूरे क्वार्टर में अजीब सी दुर्गंध फैली थी. जब विश्वास हो गया कि इस क्वार्टर में लाश जैसी कोई चीज है तो पुख्ता सबूत के लिए इलाका मजिस्ट्रैट और तहसीलदार भसीयाना को बुला लिया गया.

सब की मौजूदगी में जब सार्जेंट शैलेश के क्वार्टर की तलाशी ली गई तो वहां से जो बरामद हुआ, उस की किसी ने कल्पना भी नहीं की थी. वहां का लोमहर्षक दृश्य देख कर पत्थरदिल एयरफोर्स और पुलिस के जवानों के भी दिल कांप उठे. कुछ लोगों को तो चक्कर तक आ गए.

क्वार्टर में लापता विपिन शुक्ला की लाश के 16 टुकड़े पड़े थे, जिन्हें काले रंग की 16 अलगअलग थैलियों में पैक कर के पैकेट बना कर फ्रिज में रखा गया था. लाश के टुकड़े बरामद होते ही सार्जेंट शैलेश ने इलाका मजिस्ट्रैट, तहसीलदार, एयरफोर्स के अधिकारियों और पुलिस के वरिष्ठ अफसरों के सामने अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

उस ने बताया कि उसी ने अपनी पत्नी अनुराधा और अपने साले शशिभूषण के साथ मिल कर विपिन शुक्ला की हत्या कर के लाश के टुकड़े कर के फ्रिज में रखे थे. पुलिस ने लाश के टुकडे़ और फ्रिज कब्जे में ले लिया. लाश के टुकड़ों का पंचनामा कर के उन्हें पोस्टमार्टम के लिए सरकारी अस्पताल भिजवा दिया.

अपहरण की धारा 365 के तहत दर्ज इस मुकदमे में योजनाबद्ध तरीके से की गई हत्या की धारा 302, 120बी और लाश को खुर्दबुर्द करने के लिए धारा 201 जोड़ दी गई. सार्जेंट शैलेश और उस की पत्नी अनुराधा को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. इस हत्या का तीसरा आरोपी शशिभूषण फरार हो गया था.

उस की तलाश में पुलिस टीम उत्तराखंड भेजी गई. उसी दिन शाम को यानी 21 फरवरी, 2017 को एसपी औपरेशन गुरमीत सिंह ने प्रैसवार्ता कर इस हत्याकांड के संबंध में विस्तार से जानकारी दी, साथ ही दोनों गिरफ्तार अभियुक्तों शैलेश और अनुराधा को मीडिया के सामने पेश किया.

पुलिस अधिकारियों द्वारा पूछताछ करने पर सार्जेंट शैलेश और अनुराधा ने विपिन शुक्ला की गुमशुदगी से ले कर हत्या करने तक की जो कहानी बताई, वह अवैधसंबंधों और बदनामी से बचने के लिए की गई हत्या का नतीजा थी—

सार्जेंट शैलेश मूलरूप से उत्तराखंड का निवासी था. लगभग 7 साल पहले उस की अनुराधा से शादी हुई थी. उस का एक 5 साल का बेटा है. इन दिनों उस की पत्नी गर्भवती थी.