बदनामी से बचने के लिए खेला मौत का खेल – भाग 1

विपिन ने रात का खाना अपनी पत्नी कुमकुम के साथ खाया था. खाना खाने के बाद उसे गुड़ खाने की आदत थी. उस ने पत्नी से गुड़ मांगा. कुमकुम पति को गुड़ दे कर टेबल के बरतन समेटने लगी. गुड़ खाते हुए विपिन ने पत्नी से कहा कि वह जरा टहल कर आता है और घर के बाहर निकल गया. रात का खाना खा कर टहलना विपिन की पुरानी आदत थी. कुमकुम घर का काम निपटाने लगी. काम निपटा कर वह बिस्तर पर लेट कर पति का इंतजार करने लगी. यह 8 फरवरी, 2017 की बात है.

विपिन मूलरूप से गांव बेनीनगर, जिला गोंडा, उत्तर प्रदेश का रहने वाला था. उस के पिता का नाम त्रिवेणी शुक्ला था. 27 साल का विपिन कई साल पहले पंजाब के जिला बठिंडा में आ कर बस गया था. वहां उसे बठिंडा एयरबेस के एयरफोर्स स्टेशन में एयरफोर्स कर्मचारियों द्वारा बनाई गई कैंटीन एयरफोर्स वाइव्ज एसोसिएशन में नौकरी मिल गई थी.

इस कैंटीन में ज्यादातर एयरफोर्स के अधिकारियों की पत्नियां ही घरेलू सामान खरीदने आया करती थीं. विपिन सुबह 9 बजे से शाम के 7 बजे तक कैंटीन में रहता था. उस के बाद घर आ कर वह कुछ देर आराम करता. इस के बाद रात का खाना खा कर टहलने निकल जाता. टहलते हुए एयरफोर्स कालोनी का एक चक्कर लगाना उस की दिनचर्या में शामिल था.

एयरफोर्स की कैंटीन में काम करने की वजह से उसे एयरफोर्स कालोनी का स्टाफ क्वार्टर रहने के लिए मिला हुआ था, जिस में वह अपनी पत्नी के साथ रहता था. उन दिनों उस के घर गांव से उस के पिता और चाचा संतोष शुक्ला भी आए हुए थे. बहरहाल बिस्तर पर लेटेलेटे कुमकुम की आंख लग गई. जब उस की नींद टूटी तो विपिन लौट कर नहीं आया था. घबरा कर उस ने घड़ी की ओर देखा.

रात के 12 बजने वाले थे. विपिन अभी तक लौट कर नहीं आया था. पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था. आधे घंटे में वह लौट कर आ जाता था, पर उस रात… कुमकुम उठी और बगल वाले कमरे में गई, जहां सो रहे विपिन के पिता और चाचा को जगा कर उस ने विपिन के अब तक घर न लौटने की बात बताई. वे भी चिंतित हो उठे. इस के बाद सभी विपिन की तलाश में निकल पड़े.

तलाश में पड़ोस के भी 5-7 लोग साथ हो गए थे. पूरी रात ढूंढने पर भी विपिन का कहीं पता नहीं चला. अगले दिन यानी 9 फरवरी, 2017 की सुबह कुमकुम अपने ससुर और चचिया ससुर के साथ कैंटीन पर गई. विपिन वहां भी नहीं था.

इस के बाद उस ने एयरफोर्स के अधिकारियों को विपिन के लापता होने की सूचना दी. उसी दिन कुमकुम ने बठिंडा के थाना सदर की पुलिस चौकी बल्लुआना जा कर विपिन की गुमशुदगी दर्ज करा दी. इस के बाद सभी अपने स्तर से भी विपिन की तलाश करते रहे.  पर उस का कहीं कोई सुराग नहीं मिला.

धीरेधीरे विपिन को लापता हुए एक सप्ताह बीत गया. इस मामले में एयरफोर्स के अधिकारियों ने भी कोई विशेष काररवाई नहीं की थी. पुलिस ने भी इस मामले को गंभीरता से नहीं लिया था.

हर ओर से निराश हो कर 14 फरवरी, 2017 को कुमकुम बठिंडा के एसएसपी स्वप्न शर्मा के औफिस जा कर उन से मिली और पति के लापता होने की जानकारी दे कर निवेदन किया कि उस के पति की तलाश करवाई जाए.

एसएसपी स्वप्न शर्मा ने उसी समय फोन द्वारा थाना सदर के थानाप्रभारी वेदप्रकाश को आदेश दिया कि मुकदमा दर्ज कर के इस मामले में तुरंत काररवाई करें. इस के बाद पुलिस चौकी बल्लुआना में कुमकुम के बयान नए सिरे से दर्ज किए गए, इस बार कुमकुम ने आशंका व्यक्त की थी कि या तो उस के पति विपिन शुक्ला का अपहरण हुआ है या हत्या कर के लाश कहीं छिपा दी गई है. कुमकुम के इस बयान के आधार पर पुलिस ने विपिन की गुमशुदगी के साथ अपहरण का मुकदमा दर्ज कर काररवाई शुरू कर दी.

इस के बाद भी विपिन की गुमशुदगी को एक सप्ताह और बीत गया. इन 15 दिनों में पुलिस और एयरफोर्स के अधिकारियों द्वारा ढंग से कोई काररवाई नहीं की गई. इसी का नतीजा था कि विपिन शुक्ला का कोई सुराग इन लोगों के हाथ नहीं लगा. इस बीच कुमकुम एसएसपी स्वप्न शर्मा से 2-3 बार मिल कर गुहार लगा चुकी थी.

मेजर का खूनी इश्क : शैलजा के इंकार ने ली जान – भाग 5

निखिल शैलजा के प्यार में पागल हो चुका था. उस ने शैलजा को मनाने की कोशिश जारी रखी. उसे पता चला कि शैलजा अभी भी बेस अस्पताल जाती रहती हैं तो उस ने अपने बेटे को पेट दर्द की बात बता कर अस्पताल में भरती करा दिया. वह अस्पताल में शैलजा से मिलने की कोशिश करता रहता था.

उस की सनक को देखते हुए शैलजा ने उस से दूरी बना ली. बेटे की तीमारदारी के लिए निखिल ने अपनी पत्नी नलिनी को अस्पताल में छोड़ दिया था. 22 जून, 2018 को भी मेजर निखिल हांडा ने शैलजा से मिलने की इच्छा जाहिर की. उन्होंने मना कर दिया तो वह विनती करने लगा कि आखिरी बार मिल लो. इस के बाद मैं परेशान नहीं करूंगा.

आखिर दीवानगी में बन गया हत्यारा

शैलजा मान गई और उन्होंने 23 जून को अस्पताल में मिलने के लिए कह दिया. निखिल अब एक दिलजला आशिक बन गया था. उस ने तय कर लिया था कि यदि इस बार भी शैलजा ने उस की बात नहीं मानी तो वह उसे जिंदा नहीं छोड़ेगा. इस के लिए उस ने सर्जिकल ब्लेड भी खरीद लिया था.

23 जून को सुबह करीब साढ़े 8 बजे निखिल ने शैलजा को फोन किया तो उस ने कह दिया कि वह कुछ देर में अस्पताल पहुंच रही है. रोजाना मेजर अमित ही औफिस जाते समय पत्नी को अस्पताल छोड़ देते थे लेकिन उस दिन शैलजा ने उन के साथ जाने से यह कह कर मना कर दिया कि वह आज अस्पताल देर से जाएगी. बाद में उस ने पति के सरकारी ड्राइवर को फोन कर के बुला लिया और ड्राइवर ने शैलजा को अस्पताल के गेट पर उतार दिया.

मेजर निखिल को उस दिन शैलजा से मिलने का बेसब्री से इंतजार था. अस्पताल में भरती बेटे को देखने के बाद वह अस्पताल के गेट पर पहुंचा और वहां से शैलजा को अपनी कार में बैठा लिया. इस के बाद वह अस्पताल कैंपस से बाहर निकल गया. निखिल ने फिर से शैलजा को समझाने की कोशिश की. उधर शैलजा भी उसे समझा रही थी कि वह फालतू की बातें न करे. तबाही के अलावा इन से कुछ हासिल नहीं होगा.

उधर मेजर निखिल की पत्नी नलिनी को भी शक हो गया था कि उस का पति शैलजा के पीछे दीवाना बन गया है. उसी समय नलिनी का निखिल के मोबाइल पर फोन आया. निखिल ने फोन का स्पीकर औन कर उस से बात की. नलिनी उस के और शैलजा के बारे में बात कर रही थी. निखिल ने पत्नी को डांटते हुए काल डिसकनेक्ट कर दी. फिर वह शैलजा से बोला, ‘‘तुम्हारे लिए मैं पत्नी से लड़ रहा हूं और उसे तलाक देने को तैयार हूं लेकिन तुम बात समझने की कोशिश ही नहीं कर रहीं.’’

‘‘निखिल, यह तुम्हारी बेकार की जिद है. तुम अस्पताल में अपनी बीवीबच्चे के पास जाओ.’’ शैलजा ने सलाह दी.

निखिल को लगा कि अब यह नहीं मानेगी तो उस ने गाड़ी के डैशबोर्ड से सर्जिकल ब्लेड निकाला. उस समय कार बरार स्क्वायर में थी और सड़क सुनसान थी. इस से पहले कि शैलजा कुछ समझ पाती, उस ने सर्जिकल ब्लेड बराबर की सीट पर बैठी शैलजा के गले पर चला दिया. कार में खून फैलने लगा तो उस ने साइड का दरवाजा खोल कर शैलजा को धक्का दे कर सड़क पर गिरा दिया. इस के बाद उस ने तड़पती हुई शैलजा के ऊपर

2-3 बार कार चढ़ा दी, जिस से उस की मौके पर ही मौत हो गई. यह उस ने इसलिए किया ताकि मामला दुर्घटना का लगे.

शैलजा का फोन कार में ही गिर गया था, जिस का सिम निकाल कर उस ने तोड़ दिया और फोन भी पत्थर से कुचल दिया. उस की गाड़ी के अंदर और टायरों पर खून लगा था जो उस ने एक जगह धुलवा दिया लेकिन टायरों का खून पूरी तरह साफ नहीं हुआ था.

इस के बाद वह अस्पताल में अपने बेटे को देखने गया. वहां से चितरंजन पार्क में रहने वाले अपने चाचा राघवेंद्र के पास गया और उन से 20 हजार रुपए लिए. फिर उस ने भाई रजत के साथ बीयर पी.

गाड़ी में कोई सबूत न रहे, इस के लिए वह उस के टायर बदलवाना चाहता था या उस की अच्छी तरह धुलाई करवाना चाहता था. मेरठ में पोस्टिंग के दौरान उस की कुछ गैराज वालों से पहचान हो गई थी, इसलिए वह दिल्ली से मेरठ चला गया, जहां पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया.

मेजर निखिल से पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे 25 जून को पटियाला हाउस कोर्ट में महानगर दंडाधिकारी मनीषा त्रिपाठी की अदालत में पेश कर के 96 घंटे के लिए पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि में उस की निशानदेही पर एक कूड़ेदान से शैलजा का कुचला हुआ मोबाइल बरामद किया गया. लेकिन पुलिस हत्या में प्रयुक्त सर्जिकल ब्लेड, आरोपी के खून सने कपड़े, शैलजा का पर्स, छाता, कार से खून साफ करने वाला तौलिया बरामद नहीं कर सकी.

आरोपी मेजर निखिल राय हांडा से विस्तार से पूछताछ के बाद उसे फिर से न्यायालय में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित

प्यार में हारी हसीन मौडल : प्रेम न मिलने की दी खुद को सजा

मौडलिंग और क्षेत्रीय फिल्मों की दुनिया में अनगिनत लड़कियां कदम रखती हैं. अपवाद को छोड़ दिया जाए तो किस्मत के सितारे उन्हीं के चमकते हैं, जो प्रतिभा के साथ मेहनत करती हैं. खूबसूरती के अपने मायने होते हैं. आकर्षक नैननक्श वाले चेहरों को लोग पसंद करते हैं. रिचा खूबसूरत थी तो उस के भी कद्रदानों की कोई कमी नहीं थी. सैकड़ों लोग उस के दीवाने थे. वह एक बेहद हसीन मौडल और अदाकारा थी. कई साल पहले उस के कदम सफलता की सीढि़यों पर पड़ने शुरू हुए तो उस की खुशियों को जैसे पंख लग गए थे.

उस ने सालों से अपनी आंखों में बसे सपनों को साकार किया था. ऐसी कई मौडल थीं जो वक्त के साथ गुमनामी के अंधेरे में खो गई थीं, लेकिन रिचा का जादू लोगों के सिर पर चढ़ कर बोलता था. वह लगातार ऊंचाइयों को छू रही थी.

रिचा हिमाचल प्रदेश के सुंदर उपजाऊ पहाडि़यों वाले कांगड़ा जिले के प्रसिद्ध शहर धर्मशाला से लगे उपनगर नगरोटाबंगवां की रहने वाली थी. पहाड़ी वादियों में उस की फिल्में और म्यूजिक वीडियो एलबम धूम मचाती थीं. वह कई दरजन हिमाचली फिल्मों और एलबमों में काम कर चुकी थी. उस ने कुछ तमिल व पंजाबी फिल्मों में भी काम किया था.

इतना ही नहीं वह साउथ के चर्चित अभिनेता नागार्जुन के साथ भी फिल्म कर चुकी थी. रिचा मिस नगरोटा भी रह चुकी थी. इसके बाद वह मिस हिमाचल बनी. उस की गिनती हिमाचल की सब से खूबसूरत मौडलों में होती थी. लोग उस के इस कदर दीवाने थे कि वह जहां भी शूटिंग के लिए जाती थी, वहां लोगों की भीड़ लग जाती थी.

रिचा के पास नाम था, शोहरत थी और अच्छी जिंदगी जीने लायक दौलत भी थी. वह खुश रहने वाली लड़की थी और निजी जिंदगी में भी हंसतीमुसकराती रहती थी. कोई भी उसे देख कर नहीं कह सकता था कि रिचा परेशान होगी.

बाहरी दिखावे को छोड़ दिया जाए तो किसी के अंदर के खालीपन, अवसाद या उस के दिमाग में क्या चल रहा है, को जानना संभव नहीं होता. कई बार जो होता है वैसा दिखता नहीं है और जो दिखता है वह होता है. रिचा के साथ भी शायद ऐसा ही कुछ था. यह बात अलग थी कि लोग उस सब से बेखबर थे.

दिसंबर, 2016 में मौसम बेहद सर्द हो चला था. कभी बर्फबारी होती तो कभी बारिश. पर्यटकों के लिहाज से ऐसा मौसम जरूर लुभावना होता है, लेकिन इस से स्थानीय लोगों की दिनचर्या बिगड़ जाती है. रिचा को गायकी और अदाकारी के अभ्यास के लिए प्रतिदिन नगरोटा से धर्मशाला आना पड़ता था. ठंड में मुश्किल आई तो उस ने धर्मशाला के मोहल्ला गमरू में अपने लिए किराए पर कमरा ले लिया और वहां अकेले रहने लगी. इस से उस का आनेजाने का समय भी बचा और सर्दी से भी बचाव हो गया.

रिचा सुबह जल्दी उठ जाया करती थी और 9 बजे से 10 बजे के बीच स्टूडियो या प्रैक्टिस के लिए चली जाती थी, लेकिन 20 जनवरी, 2017 को ऐसा नहीं हुआ. उस दिन रिचा के कमरे का दरवाजा नहीं खुला तो घर में रहने वाले मकान मालिक के परिवार को उस की फिक्र हुई. पहले उन्होंने सोचा कि रिचा शायद देर से सोई होगी, जब थोड़ा और समय बीता तो वह सोचने पर मजबूर हो गए. उन से नहीं रहा गया तो उन्होंने रिचा के कमरे के दरवाजे पर दस्तक दी, लेकिन अंदर कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई.

जब कई बार दस्तक व आवाज देने पर भी रिचा ने कोई उत्तर नहीं दिया तो उन्होंने खिड़की के रास्ते अंदर देखने का प्रयास किया.  अंदर का नजारा देख कर उन के होश उड़ गए. रिचा पंखे के सहारे लटकी हुई थी. अविलंब इस की सूचना पुलिस को दी गई. सूचना पा कर धर्मशाला थानाप्रभारी कुलदीप राजा मौके पर आ पहुंचे.

पुलिस कमरे का दरवाजा तोड़ कर अंदर दाखिल हुई. पुलिस ने देखा रिचा ने ग्रे कलर की टी-शर्ट और छींटदार लोअर पहना हुआ था. उस का शव एक गर्म चादर के सहारे पंखे से लटका हुआ था. लटकने के बाद उस के घुटने लगभग जमीन पर टिक गए थे. कमरे में एक बेड के अलावा एक कंप्यूटर व जरूरत का अन्य सामान मौजूद था.

रिचा के परिजनों को भी सूचना दे दी गई. खबर मिलते ही उन के होश उड़ गए. वे लोग तुरंत धर्मशाला के लिए चल दिए. रिचा आत्महत्या जैसा घातक कदम उठा सकती है, ऐसा उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था.

सोचने वाली बात यह थी कि चकाचौंध भरी जिंदगी के पीछे आखिर कौन सा अंधेरा था, जिस के लिए रिचा को आत्महत्या के लिए मजबूर होना पड़ा. आखिर उस की ऐसा कौन सी मजबूरी थी जिस की वजह से वह जिंदगी की जंग हार कर अपनी सांसों की डोर को खुद ही तोड़ने पर मजबूर हो गई थी. पुलिस ने रिचा के शव को नीचे उतारा.

मामला सीधे तौर पर आत्महत्या का था. बिस्तर पर ही रिचा का मोबाइल रखा था. एसपी संजीव गांधी को इस की सूचना मिली तो उन्होंने इस मामले में गहनता से जांच करने के निर्देश दिए. फोरैंसिक लैब की निदेशक मीनाक्षी महाजन के निर्देशन में फोरैंसिक एक्सपर्ट की टीम भी वहां आ गई.

पुलिस ने रिचा का मोबाइल अपने कब्जे में ले कर उस की जांच की तो पता चला कि उस ने एक नंबर पर रात 2 से 3 बजे के बीच कई बार काल की थी लेकिन संभवत: उस की बात नहीं हुई थी, क्योंकि काल के साथ ड्यूरेशन टाइम जीरो था.

इस से यह बात साफ हो गई कि वह देर रात तक किसी बात को ले कर परेशान थी. सुबह के समय उस के नंबर पर अलगअलग नंबर से कई मिस काल जरूर आई थीं. लेकिन तब तक वह दुनिया को अलविदा कह चुकी थी. इन में एक नंबर वह भी था जिस पर रिचा ने देर रात कई बार बात करने की कोशिश की थी.

पुलिस ने कमरे के सामान की बारीकी से जांच की तो घटनास्थल पर एक 3 पेज का सुसाइड नोट मिला. उस नोट से पता चला कि रिचा का संदीप नामक किसी युवक से प्रेमप्रसंग चल रहा था और वह उस की बेरुखी से बेहद आहत थी. रिचा ने 3 पेजों में कई बातों का जिक्र किया था. संदीप का मोबाइल नंबर भी सुसाइड नोट में लिखा था.

संदीप के नंबर से रिचा के मोबाइल पर सुबह भी काल की गई थी. निस्संदेह वह उस से बात करना चाहता था. इस के अलावा उस के कई एसएमएस भी थे, जिन्हें पढ़ कर पता चलता था कि दोनों के बीच अनबन थी.

चर्चित अदाकारा की आत्महत्या की खबर पूरे शहर में फैल चुकी थी. वहां लोगों का जमावड़ा लग गया. तब तक रिचा के घर वाले भी वहां आ गए थे. पुलिस ने उन से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि रिचा और संदीप एकदूसरे से प्यार करते थे और शादी करने वाले थे. यह बात परिवार में किसी से छिपी नहीं थी. लेकिन संदीप अकसर उस के साथ मारपीट करता था. उस की मौत का जिम्मेदार वही है. उन से संदीप के बारे में पता चला कि वह प्रशिक्षु कांस्टेबल है और ऊना में उस का प्रशिक्षण चल रहा है.

पुलिस ने मृतक के शव को पोस्टमार्टम के लिए डा. राजेंद्र प्रसाद मैडिकल कालेज एवं अस्पताल भिजवा दिया. साथ ही उस के घर वालों की तरफ से संदीप के खिलाफ भादंवि की धारा 303 व 34 के अंतर्गत मुकदमा दर्ज कर लिया. अगले दिन अखबारों में रिचा आत्महत्या प्रकरण सुर्खियों में आ गया.

पोस्टमार्टम के बाद उस का शव उस के घर वालों को सौंप दिया. पुलिस ने रिचा के मोबाइल की काल डिटेल्स हासिल की तो पता चला कि संदीप व उस के बीच अकसर बातें हुआ करती थीं. बातों का यह दौर कभी कम तो कभी ज्यादा चलता था. पुलिस ने रिचा की काल रिकौर्डिंग्स को भी सुना, जिस से दोनों के रिश्ते की कड़वाहट पुख्ता हो गई.

पुलिस ने उस से गहराई से पूछताछ की, जिस के बाद पता चला कि संदीप के साथ दोस्ती से शुरू हुआ उस का सफर पहले प्यार में बदला और बाद में प्यार के इस रिश्ते में ऐसा बेरुखी भरा बदलाव आया कि वह उस की जिंदगी को भी लील गया.

दरअसल 24 वर्षीय खूबसूरत रिचा मौडलिंग के क्षेत्र में जाना चाहती थी. उस की खूबसूरती की सभी तारीफ किया करते थे. जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही पढ़ाई के साथसाथ उस ने इस के लिए प्रयास भी शुरू कर दिए थे. अपनी मेहनत के बल पर उस ने कम उम्र में ही एक्टिंग व मौडलिंग के क्षेत्र में खुद को स्थापित भी कर लिया. उस ने स्थानीय वह बाहरी कई म्यूजिक कंपनियों के साथ हिमाचली, गढ़वाली व पंजाबी वीडियो एलबम के साथ ही फिल्मों में भी काम किया.

रिचा व्यवहारकुशल भी थी और सुंदर भी. अभ्यास भी वह जम कर करती थी, जिस के बल पर उसे खूब काम मिला. वह ऐसी अदाकारा थी, जिस ने बिना किसी गौडफादर के अपनी प्रतिभा को साबित किया. वह काफी ऊंचाइयों पर पहुंच गई थी.

रिचा को हिंदी सीरियलों के औफर भी मिले, लेकिन वह हिमाचल प्रदेश में रह कर ही काम करना चहती थी. करीब एक साल पहले रिचा की मुलाकात एक प्रोग्राम के दौरान संदीप से हुई. पहली मुलाकात में ही दोनों ने एकदूसरे के दिलों पर अपनी छाप छोड़ी और मोबाइल नंबरों का आदानप्रदान भी कर लिया. दोनों के बीच अकसर बातें होने लगीं.

दोनों के बीच बातों के अलावा कुछ मुलाकातें भी हुईं. दिन, तारीख व साल के साथ उन की दोस्ती गहराती गई. उन की यह दोस्ती प्यार में कब बदल गई, इस का पता उन दोनों को पता ही नहीं चला. बातोंमुलाकातों के इसी दौर में दोनों के दिलों में चाहत ने जन्म ले लिया और यही चाहत एक प्यार का पौधा बन कर अंकुरित हो गई. रिचा के दिल में पहली बार किसी युवक ने अपनी जगह बनाई थी.

प्यार उस शै का नाम है जो बिना आहट किए दिल के दरवाजे खोल कर उस में चुपके से बस जाती है. इस का पता इंसान को तब चलता है, जब उस के दिल की धड़कनें खुदब खुद कुछ कहने लगती हैं. जब कोई प्यार का पाठ पढ़ता है तो दिल की धड़कनें उसी का नाम लेती हैं, जिस की सूरत उस में बसी होती है. दोनों अपने प्यार को कैद किए हुए थे. रिचा व संदीप प्यार का इजहार करने के लिए उचित अवसर की तलाश में रहने लगे. एक दिन संदीप ने अपने दिल की बात रिचा से कह दी.

रिचा को उस की बात पर कोई हैरानी नहीं हुई, क्योंकि वह जानती थी कि संदीप उसे चाहने लगा है. उस के सामने प्यार का इजहार करने के लिए उस के दिल की कलीकली खिल गई. वह मुस्करा दी. हालांकि उस की मुसकराहट में ही वह सच्चाई छिपी थी जो संदीप उस के मुंह से सुनना चाहता था. फिर भी उस ने पूछ लिया, ‘‘बताओ न, करती हो मुझ से प्यार?’’

‘‘बहुत ज्यादा, लेकिन ये बताओ कि कभी तुम मेरा साथ छोड़ तो नहीं दोगे?’’ रिचा ने आशंकित होते हुए कहा तो संदीप बोला, ‘‘ऐसा कभी हो सकता है क्या?’’ बात वहीं खत्म हो गई.

बीतते वक्त के साथ दोनों ने एक साथ जीनेमरने की कसमें खा लीं. समय अपनी गति से चलता रहा. रिचा दिल की सच्ची लड़की थी. वह संदीप को टूट कर चाहती थी. प्यार में दोनों ने हमेशा एक होने का फैसला कर लिया था. संदीप ने उसे यकीन दिलाया था कि वह अपनी बात से कभी पीछे नहीं हटेगा. देखतेदेखते कई महीने बीत गए.

रिचा ने संदीप से अपने प्रेमिल रिश्तों की बात अपने घर वालों को भी बता दी थी. उस ने घर वालों को विश्वास दिलाया था कि संदीप अच्छा लडका है और वह उस से जरूर शादी करेगा. रिचा अपने पैरों पर खड़ी थी. अच्छाबुरा भी समझती थी, इसलिए उस की खुशी के लिए किसी ने उस के रिश्ते पर कोई आपत्ति नहीं की. लेकिन प्यार में हर किसी को मुकाम मिल जाए, यह जरूरी नहीं. रिचा के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. प्यार में कुछ बातों की हकीकत वक्त के साथ ही पता चलती है. इस मामले में भी ऐसा ही हुआ.

रिचा संदीप को उस का शादी का वादा याद दिलने लगी तो वह कटाकटा सा रहने लगा. उसे संदीप से ऐसी उम्मीद कतई नहीं थी. वह किसी न किसी बहाने से बात को टाल जाता था. इस से रिचा परेशान रहने लगी. इसी बीच उसे पता चला कि संदीप की दोस्ती किसी अन्य युवती के साथ भी है. रिचा को लगा कि वह उसे धोखा दे रहा है. एक दिन उस ने इस मुद्दे पर संदीप से बात की तो वह हत्थे से उखड़ गया और उस ने रिचा को ही कटघरे में खड़ा करने की कोशिश की. यह दिसंबर, 2016 की बात थी.

इस घटना के बाद दोनों के बीच अकसर झगड़ा होने लगा. हालांकि कुछ दिनों में धीरेधीरे दोनों सामान्य हो गए. 1 जनवरी, 2017 को नए साल का जश्न मनाने के लिए रिचा संदीप व अन्य दोस्तों के साथ हिमाचल के ही मैक्लोडगंज गई. कुछ दिन सब ठीक रहा, लेकिन उन के बीच फिर झगड़ा शुरू हो गया. हालात तब बिगड़े जब संदीप उस के साथ मारपीट व दुर्व्यवहार भी करने लगा. उस के बदले व्यवहार ने रिचा को तोड़ कर रख दिया.

रिचा चाहती तो किनारा कर सकती थी उसे कई चाहने वाले भी मिल सकते थे लेकिन वह संदीप को दिलोजान से प्यार करती थी. उस से दूर होने की कल्पना कर के ही वह निराश हो जाती थी. गलती संदीप की होने पर भी वह खुद हारने में यकीन रखती थी. खुद हार कर वह प्यार को जिताती थी. उस के बेपनाह प्यार का आलम यह था कि वह किसी भी सूरत में संदीप को खोना नहीं चाहती थी.

संदीप से उस की शादी जल्द हो इस के लिए उस ने बाहर शूटिंग पर जाने के कई प्रोग्राम छोड़ दिए थे. हालांकि यह सब उस के  कैरियर के लिए अच्छा नहीं था, लेकिन संदीप के लिए वह यह कुर्बानी देने को भी तैयार थी. दूसरी ओर संदीप पूरी तरह बेरुखी पर उतर आया था, जबकि वह चाहती थी कि वह उस से जल्द से जल्द शादी कर ले. रिचा तनाव के दौर से गुजर रही थी. अपनी परेशानियों का जिक्र वह अपनी सहेलियों से किया करती थी.

रिश्तों के मनमुटाव को दूर करने के लिए वह एक दिन संदीप के पास ऊना भी गई, लेकिन दोनों के बीच झगड़ा हो गया तो वह वापस आ गई.

11 जनवरी की रात मोबाइल फोन पर भी उस की संदीप से नोकझोंक हुई तो संदीप ने शादी करने से साफ इनकार कर दिया. उस ने रिचा के साथ दुर्व्यवहार भी किया. अचानक दिल पर लगी इस बड़ी चोट ने उसे तोड़ कर रख दिया. अवसाद के दौर में उस ने देर रात अपनी एक सहेली को कई बार फोन किया. लेकिन उस की बात नहीं हो सकी. कोई हालात को संभाल पाता, उस से पहले ही रिचा ने सुसाइड नोट पर कलम के जरिए अपना दर्द उकेरा. शुरुआती 2 पन्नों पर उस ने अपनी व संदीप की मौजूदा स्थिति के बारे में लिखा, जबकि अंतिम आधे पन्ने में आत्महत्या का कारण बताया.

रिचा ने अपनी मौत का जिम्मेदार संदीप को बताते हुए घातक कदम उठा लिया. उस की मौत उस के चाहने वालों को भी निराश कर गई.

पूछताछ के बाद पुलिस ने संदीप को माननीय न्यायालय के समक्ष पेश किया, जहां से उसे 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया. काश! रिचा की तरह संदीप  ने भी प्यार के रिश्ते को उतनी ही खूबसूरती से निभाया होता और वक्त पर रिचा को संभाल लिया होता तो निश्चित तौर पर आज वह प्रतिभाशाली खूबसूरत अदाकारा जिंदा होती. कथा लिखे जाने तक संदीप की जमानत नहीं हो सकी थी.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
सहयोगी : आर. गुलेरिया     

पैसों की भूखी एक प्रेमिका का हैरतअंगेज खेल

आज एक की बांहों में, तो कल दूसरे की बांहों में. इस तरह के कई प्रेमी देखने को मिल जाएंगे, पर कई लड़कों से इश्क लड़ा कर उन के पैसों पर ऐश करने का शौक रखने वाली लड़कियां कम ही मिलती हैं. विदिशा, मध्य प्रदेश की स्वीटी (बदला हुआ नाम) उन में से एक थी. उसे बौयफ्रैंड बनाने का शौक था. वह आए दिन नएनए बौयफ्रैंड बनाती थी. जिस की जेब उसे तंग लगने लगती, वह उस को अपनी जिंदगी से दूर कर देती थी.

हाल ही में स्वीटी ने गोपाल रैकवार को अपने हुस्न के जाल में फंसाया. कुछ समय तक उस के पैसों पर खूब ऐश की. जब उस ने महसूस किया कि गोपाल की जेब तंग हो रही है, तो उस ने एक बकरा काट कर बेचने वाले मोटे आसामी अकरम को हुस्न का चारा दिखा कर अपना आशिक बना लिया और उसे हलाल करने लगी.

इस बात का पता गोपाल को चला. वह स्वीटी को अकरम से दूर रखने की कोशिश करने लगा. स्वीटी कम होशियार नहीं थी. उस ने दोनों हाथों में लड्डू हासिल करने के लिए अपने प्रेमियों के सामने दिल्ली सरकार के ईवनऔड वाले फार्मूले की तरह तारीख को आपस में बांट लेने का औफर रखा.

गोपाल को स्वीटी का औफर पसंद नहीं आया, तो उस की लाश शहर के बाहर एक कुएं में मिली. मध्य प्रदेश के विदिशा जिले के लोहांगीपुरा की रहने वाली 19 साला स्वीटी दिखने में काफी खूबसूरत थी. उस के पिता की मौत कई साल पहले हो गई थी. उस की विधवा मां बच्चों की सही तरीके से देखभाल नहीं कर पा रही थी. वह मंडी में मजदूरी कर के अपने तीनों बच्चों का पेट पाल रही थी.

कहते हैं कि गरीब की बेटी जल्दी ही जवान हो जाती है. ऐसा ही स्वीटी के साथ भी हुआ. अपनी ख्वाहिशों को पूरा करने के लिए उस ने अपने हुस्न को ही चारा बना लिया. उस ने खातेपीते घरों के लड़कों को पटाना शुरू किया. स्वीटी के हुस्न को पाने के लालच में कई लड़के बहुत कुछ लुटाने को तैयार थे. वह उन्हें हुस्न का स्वाद चखाती, इस के बदले में उन से मोटी रकम लेती. उस रकम से वह ऐश करती.

स्वीटी को मोटरसाइकिल चलाने का शौक था.  विदिशा और बीना की भीड़ भरी सड़कों पर तेज स्पीड में मोटरसाइकिल चला कर वह लोगों के आकर्षण का केंद्र बन चुकी थी.

गोपाल खातेपीते घर से था. वह स्वीटी की खूबसूरती के जाल में फंस कर उस से प्यार करने लगा. वह उस पर मनमाना खर्च भी करने लगा. जब भी वे दोनों मोटरसाइकिल पर शहर में घूमने निकलते, तो स्वीटी गोपाल को पीछे बिठा कर मोटरसाइकिल खुद चलाती थी. उस वक्त गोपाल स्वीटी की कमर को कस कर पकड़ लेता था.

पूरे शहर में दोनों के प्यार की चर्चा हो रही थी. यह बात गोपाल के घर वालों तक भी पहुंच गई. उन्हें स्वीटी का स्वभाव बिलकुल भी पसंद नहीं था. वे स्वीटी को चालू किस्म की लड़की मानते थे. गोपाल के परिवार वालों ने समझाते हुए उसे स्वीटी से दूर रहने की हिदायत दी, पर गोपाल पर स्वीटी के प्यार का नशा बुरी तरह से चढ़ा हुआ था.

इधर स्वीटी ने महसूस किया कि गोपाल का हाथ कुछ तंग होता जा रहा है. ऐसे में वह दूसरे प्रेमी की तलाश में लग गई. एक दिन स्वीटी की मुलाकात 28 साला अकरम से हुई. वह मांस बेचने का धंधा करता था. उस की कमाई अच्छी थी. स्वीटी ने उसे अपने हुस्न के जाल में फंसा लिया. वह उस पर दिल खोल कर खर्च करने लगा.

स्वीटी इस बात का ध्यान रखती थी कि उस की और अकरम की दोस्ती की खबर गोपाल को न लगे. इस के लिए वह गोपाल से भी मिलती रही. गोपाल से स्वीटी और अकरम की दोस्ती की खबर ज्यादा दिनों तक छिपी नहीं रह सकी. उस ने स्वीटी पर अपना हक जताते हुए उसे अकरम से दूर रहने की हिदायत दी.

स्वीटी ने गोपाल से कहा, ‘‘तुम मेरे मामले में दखलअंदाजी मत करो. मैं किस से मिलूंगी या नहीं मिलूंगी, यह मेरा पर्सनल मामला है. तुम अगर चाहते हो कि मेरा प्यार तुम्हें भी बराबर मिलता रहे, तो मेरे पास एक फार्मूला है. तुम दिल्ली सरकार के ईवनऔड फार्मूले की तरह तारीख तय कर लो. मैं उस दिन तुम्हारे पास रहूंगी और अगले दिन अकरम के साथ.’’

गोपाल को उस की बात पसंद नहीं आई. वह स्वीटी को हमेशा अपनी बांहों में रखना चाहता था. उस ने स्वीटी के फार्मूले को मानने से इनकार कर दिया. इधर गोपाल स्वीटी को रोकने में लगा था कि वह अकरम से न मिले. साथ ही, अकरम को भी वह बारबार मोबाइल कर के स्वीटी से दूर रहने की हिदायत देता रहा था.

अकरम ने स्वीटी को फोन कर के कहा, ‘‘अपने आशिक गोपाल को संभाल ले, वरना मैं उसे ऊपर पहुंचा दूंगा.’’

स्वीटी को गोपाल अब सिरदर्द लगने लगा था, क्योंकि वह काफी टोकाटाकी करने लगा था.

स्वीटी ने अकरम से कहा, ‘‘रोजरोज के झगड़े से अच्छा है कि गोपाल को निबटा ही दें.’’

अपनी प्रेमिका का आदेश मिलते ही अकरम ने 28 मार्च, 2016 की रात को गोपाल को अपनी दुकान पर बुलाया. अपने नौकर सुरेश पाल के साथ मिल कर उस ने गोपाल को जम कर शराब पिलाने के बाद उस की हत्या कर दी.

अकरम ने यह सूचना स्वीटी को दे दी. गोपाल की हत्या की खबर सुन कर स्वीटी काफी खुश हुई. वह अकरम की दुकान पर पहुंच गई. वहां तीनों ने जम कर शराब पी और जश्न मनाया.

बाद में पुलिस ने हत्या के आरोप में अकरम, उस के नौकर सुरेश पाल व स्वीटी को गिरफ्तार कर लिया. इस केस की जांच कर रहे अधिकारी राजेश तिवारी का कहना है, ‘‘जवानी के जोश में नौजवानों को किसी बात का होश ही नहीं रहता है. लड़के खेलीखाई लड़की से मेलजोल बढ़ाते वक्त उस पर भरोसा न रखें, क्योंकि ऐसी लड़की अपने फायदे के लिए कुछ भी कर सकती है.’’

मेजर का खूनी इश्क : शैलजा के इंकार ने ली जान – भाग 4

इस पत्रिका में फोटो छपने के बाद शैलजा की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. उन के पति मेजर अमित द्विवेदी की पोस्टिंग उस समय दीमापुर में थी. मौडलिंग आदि के काम से वह कभीकभी दिल्ली आती रहती थीं. शैलजा सोशल साइट्स पर काफी सक्रिय रहती थीं. फेसबुक पर अच्छे लोगों से दोस्ती करना उन का शौक था.

फेसबुक के जरिए सन 2015 में उन की दोस्ती निखिल राय हांडा से हुई. निखिल ने खुद को दिल्ली का व्यापारी बताया तो शैलजा ने भी झूठ बोलते हुए खुद को एक बैंक औफिसर की पत्नी बताया.

फेसबुक पर झूठ से शुरू हुई दोस्ती

जबकि सच्चाई यह थी कि निखिल सेना में मेजर था और उस समय उस की पोस्टिंग जम्मूकश्मीर में थी. निखिल वैसे मूलरूप से दिल्ली का रहने वाला था. उस की परवरिश फौजी परिवेश में हुई थी. उस के पिता ए.आर. हांडा सेना में कर्नल थे.

पिता की तरह निखिल भी सैन्य अधिकारी बनना चाहता था. इस के लिए उस के पिता उस का मार्गदर्शन करते रहे. ग्रैजुएशन के बाद पिता ने निखिल का विवाह नलिनी से कर दिया था. नलिनी एक सीधीसादी युवती थी जबकि तेजतर्रार निखिल को अल्ट्रा मौडर्न लड़कियां पसंद थीं.

विवाह के बाद निखिल ने नैशनल डिफेंस एकेडमी (एनडीए) की परीक्षा दी. उस परीक्षा में वह पास हो गया. एनडीए की पढ़ाई करने के बाद उसे अशोक की लाट के साथ सेना की वरदी मिली. उस की पहली पोस्टिंग मेरठ इन्फ्रैंट्री में हुई. इस के बाद उस का तबादला जम्मूकश्मीर हो गया था.

मेजर निखिल राय हांडा की शादी नलिनी से हो जरूर गई थी, लेकिन वह उसे दिल से नहीं चाहता था. उस ने फेसबुक पर 2 एकाउंट बनाए. एक में उस ने खुद को दिल्ली का बिजनैसमैन बताया तो दूसरे में सेना का मेजर. उसे मौडर्न लड़कियों से दोस्ती करने का शौक था.

निखिल और शैलजा द्विवेदी के बीच करीब 6 महीने तक फेसबुक और वाट्सऐप के जरिए बात होती रही. कभीकभी वे फोन पर भी बातें कर लेते थे. दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ने लगीं तो दोनों ही मुलाकात के लिए बेचैन होने लगे. शैलजा मौडलिंग के सिलसिले में दीमापुर से दिल्ली आती रहती थी. एक बार मेजर निखिल हांडा भी छुट्टी ले कर दिल्ली आ गया.

दोनों की मुलाकात एक रेस्टोरेंट में हुई. पहली मुलाकात में ही निखिल हांडा शैलजा को दिल दे बैठा. उस ने शैलजा की खूबसूरत छवि को अपने दिल में बसा लिया. उसी दिन निखिल ने उन्हें बता दिया कि वह वास्तव में सेना में मेजर है. शैलजा ने भी अपनी सच्चाई बता दी कि उस के पति भी सेना में मेजर हैं और इस समय उन की पोस्टिंग दीमापुर में है. यह बात सुन कर निखिल खुश हुआ. बाद में दोनों की फोन के जरिए बातचीत जारी रही. निखिल अपने साथ पत्नी को नहीं रखता था पर समयसमय पर अपने परिवार से मिलने दिल्ली आता रहता था.

मेजर निखिल हांडा की शैलजा के प्रति दीवानगी बढ़ती जा रही थी. वह चाहता था कि वह शैलजा के नजदीक रहेगा तो उस से रोजाना मुलाकात हो सकेगी. यही सोच कर उस ने सेना के अधिकारियों से अनुरोध कर के अपना तबादला दीमापुर करवा लिया.

अब तक वह 2 बच्चों का पिता बन चुका था. उस ने कोशिश कर के दीमापुर में शैलजा के घर के पास ही आवास ले लिया. एक दिन अपने घर आयोजित जन्मदिन की पार्टी में शैलजा ने मेजर निखिल को भी आमंत्रित किया. उसी दौरान उस की मेजर अमित द्विवेदी से मुलाकात हुई.

शैलजा अमित को केवल दोस्त समझती थी, जबकि अमित उसे चाहने लगा था. दीमापुर में रहते ही मेजर अमित का संयुक्त राष्ट्र शांति अभियान पर सूडान जाने के लिए चयन हो गया. उन्हें प्रतिनियुक्ति पर सूडान जाना था. वहां जाने से पहले उन्हें दिल्ली में 2 महीने की ट्रेनिंग करनी थी. अमित ने उसी समय शैलजा के साथ प्लान बना लिया था कि वह पूरे परिवार को भी सूडान व अन्य देशों की यात्रा कराएंगे. चूंकि अमित को ट्रेनिंग करनी थी, इसलिए वह परिवार सहित दिल्ली आ गए.

उधर शैलजा की निखिल से फोन पर बातचीत होती रहती थी. अकसर शैलजा के फोन पर लगे रहने पर अमित ने शैलजा को समझाया कि यह स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं है. एक दिन अमित ने पत्नी को निखिल से वीडियो काल करते देख लिया तो उन्हें अच्छा नहीं लगा. उन्होंने पत्नी से कहा कि निखिल उन्हें पसंद नहीं है, इसलिए वह उस से बात न किया करें.

बढ़ती गई निखिल की दीवानगी

इस के बाद शैलजा ने निखिल से दूरी बनानी शुरू कर दी. निखिल को यह जानकारी मिल चुकी थी कि मेजर अमित सूडान जा रहे हैं. वह इसी का फायदा उठाते हुए शैलजा से नजदीकियां बढ़ाना चाहता था. लेकिन शैलजा के रुख को वह समझ नहीं पाया. निखिल छुट्टी ले कर 2 जून को शैलजा से मिलने दिल्ली आ गया. दिल्ली आ कर उसे पता चला कि शैलजा अमृतसर में अपने मायके में है तो वह अमृतसर पहुंच गया. अचानक निखिल को देख कर शैलजा चौंक गईं.

निखिल के अनुरोध पर शैलजा उस के साथ एक रेस्टोरेंट चली गई. तभी मेजर निखिल ने उस के सामने अपना प्यार जाहिर कर दिया. लेकिन शैलजा ने साफ कह दिया कि वह उसे केवल अपना दोस्त समझती है, इस के आगे कुछ नहीं.

निखिल ने यहां तक कह दिया कि वह अपनी पत्नी को तलाक दे देगा. शैलजा ने उसे समझाया कि वह अपने दिल से गलतफहमी निकाल दे और अपने बीवीबच्चों को देखें, यही ठीक रहेगा. तब निखिल मुंह लटका कर घर आ गया.

2-4 दिन बाद शैलजा भी दिल्ली आ गई. एक दिन शैलजा की एड़ी में दर्द हुआ तो वह सेना के बेस अस्पताल पहुंचीं, जहां उन्हें भरती कर लिया गया. यह बात मेजर निखिल को पता लगी तो वह भी उसी अस्पताल में माइग्रेन का दर्द होने का बहाना बना कर अस्पताल में भरती हो गया.

उस दौरान वह शैलजा से भी मिला पर उस ने निखिल को लिफ्ट नहीं दी. शैलजा ने अपनी छुट्टी कराई तो निखिल भी घर आ गया. बाद में वह फिजियोथेरैपी कराने के लिए अस्पताल जाती रहती थी.

एक माशूका का खौफनाक बदला

मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल जिले सीधी का एक गांव है नौगवां दर्शन सिंह, जिस में ज्यादातर आदिवासी या फिर पिछड़ी और दलित जातियों के लोग रहते हैं.

शहरों की चकाचौंध से दूर बसे इस शांत गांव में एक वारदात ऐसी भी हुई, जिस ने सुनने वालों को हिला कर रख दिया और यह सोचने पर भी मजबूर कर दिया कि राजो (बदला नाम) ने जो किया, वैसा न पहले कभी सुना था और न ही किसी ने सोचा था.

इस गांव का एक 20 साला नौजवान संजय केवट अपनी ही दुनिया में मस्त रहता था. भरेपूरे घर में पैदा हुए संजय को किसी बात की चिंता नहीं थी. पिता की भी अच्छीखासी कमाई थी और खेतीबारी से इतनी आमदनी हो जाती थी कि घर में किसी चीज की कमी नहीं रहती थी.

बचपन की मासूमियत

संजय और राजो दोनों बचपन के दोस्त थे. अगलबगल में होने के चलते दोनों पर एकदूसरे के घर आनेजाने की कोई रोकटोक नहीं थी. 8-10  साल की उम्र तक दोनों साथसाफ बेफिक्र हो कर बचपन के खेल खेलते थे. चूंकि चौबीसों घंटे का साथ था, इसलिए दोनों में नजदीकियां बढ़ने लगीं और उम्र बढ़ने लगी, तो दोनों में जवान होने के लक्षण भी दिखने लगे.

संजय और राजो एकदूसरे में आ रहे इन बदलावों को हैरानी से देख रहे थे. अब उन्हें बजाय सारे दोस्तों के साथ खेलने के अकेले में खेलने में मजा आने लगा था.

जवानी केवल मन में ही नहीं, बल्कि उन के तन में भी पसर रही थी. संजय राजो को छूता था, तो वह सिहर उठती थी. वह कोई एतराज नहीं जताती थी और न ही घर में किसी से इस की बात करती थी.

धीरेधीरे दोनों को इस नए खेल में एक अलग किस्म का मजा आने लगा था, जिसे खेलने के लिए वे तनहाई ढूंढ़ ही लेते थे. किसी का भी ध्यान इस तरफ नहीं जाता था कि बड़े होते ये बच्चे कौन सा खेल खेल रहे हैं.

जवानी की आग

यों ही बड़े होतेहोते संजय और राजो एकदूसरे से इतना खुल गए कि इस अनूठे मजेदार खेल को खेलतेखेलते सारी हदें पार कर गए. यह खेल अब सैक्स का हो गया था, जिसे सीखने के लिए किसी लड़के या लड़की को किसी स्कूल या कोचिंग में नहीं जाना पड़ता.

बात अकेले सैक्स की भी नहीं थी. दोनों एकदूसरे को बहुत चाहने भी लगे थे और हर रोज एकदूसरे पर इश्क का इजहार भी करते रहते थे. चूंकि अब घर वालों की तरफ से थोड़ी टोकाटाकी शुरू हो गई थी, इसलिए ये दोनों सावधानी बरतने लगे थे.

18-20 साल की उम्र में गलत नहीं कहा जाता कि जिस्म की प्यास बुझती नहीं है, बल्कि जितना बुझाने की कोशिश करो उतनी ही ज्यादा भड़कती है. संजय और राजो को तो तमाम सहूलियतें मिली हुई थीं, इसलिए दोनों अब बेफिक्र हो कर सैक्स के नएनए प्रयोग करने लगे थे.

इसी दौरान दोनों शादी करने का भी वादा कर चुके थे. एकदूसरे के प्यार में डूबे कब दोनों 20 साल की उम्र के आसपास आ गए, इस का उन्हें पता ही नहीं चला. अब तक जिस्म और सैक्स इन के लिए कोई नई बात नहीं रह गई थी.

दोनों एकदूसरे के दिल के साथसाथ जिस्मों के भी जर्रेजर्रे से वाकिफ हो चुके थे. अब देर बस शादी की थी, जिस के बाबत संजय ने राजो को भरोसा दिलाया था कि वह जल्द ही मौका देख कर घर वालों से बात करेगा.

उन्होंने सैक्स का एक नया ही गेम ईजाद किया था, जिस में दोनों बिना कपड़ों के आंखों पर पट्टी बांध लेते थे और एकदूसरे के जिस्म को सहलातेटटोलते हमबिस्तरी की मंजिल तक पहुंचते थे. खासतौर से संजय को तो यह खेल काफी भाता था, जिस में उसे राजो के नाजुक अंगों को मनमाने ढंग से छूने का मौका मिलता था. राजो भी इस खेल को पसंद करती थी, क्योंकि वह जो करती थी, उस दौरान संजय की आंखें पट्टी से बंधी रहती थीं.

शुरू हुई बेवफाई

जैसा कि गांवदेहातों में होता है, 16-18 साल का होते ही शादीब्याह की बात शुरू हो जाती है. राजो अभी छोटी थी, इसलिए उस की शादी की बात नहीं चली थी, पर संजय के लिए अच्छेअच्छे रिश्ते आने लगे थे.

यह भनक जब राजो को लगी, तो वह चौकन्नी हो गई, क्योंकि वह तो मन ही मन संजय को अपना पति मान चुकी थी और उस के साथ आने वाली जिंदगी के ख्वाब यहां तक बुन चुकी थी कि उन के कितने बच्चे होंगे और वे बड़े हो कर क्याक्या बनेंगे.

शादी की बाबत उस ने संजय से सवाल किया, तो वह यह कहते हुए टाल गया, ‘तुम बेवजह चिंता करते हुए अपना खून जला रही हो. मैं तो तुम्हारा हूं और हमेशा तुम्हारा ही रहूंगा.’

संजय के मुंह से यह बात सुन कर राजो को तसल्ली तो मिली, पर वह बेफिक्र न हुई.

एक दिन राजो ने संजय की मां से पड़ोसनों से बतियाते समय यह सुना कि  संजय की शादी के लिए बात तय कर दी है और जल्दी ही शादी हो जाएगी.

इतना सुनना था कि राजो आगबबूला हो गई और उस ने अपने लैवल पर छानबीन की तो पता चला कि वाकई संजय की शादी कहीं दूसरी जगह तय हो गई थी. होली के बाद उस की शादी कभी भी हो सकती थी.

संजय उस से मिला, तो उस ने फिर पूछा. इस पर हमेशा की तरह संजय उसे टाल गया कि ऐसा कुछ नहीं है.

संजय के घर में रोजरोज हो रही शादी की तैयारियां देख कर राजो का कलेजा मुंह को आ रहा था. उसे अपनी दुनिया उजड़ती सी लग रही थी. उस की आंखों के सामने उस के बचपन का दोस्त और आशिक किसी और का होने जा रहा था. इस पर भी आग में घी डालने वाली बात उस के लिए यह थी कि संजय अपने मुंह से इस हकीकत को नहीं मान रहा था.

इस से राजो को लगा कि जल्द ही एक दिन इसी तरह संजय अपनी दुलहन ले आएगा और वह घर के दरवाजे या खिड़की से देखते हुए उस की बेवफाई पर आंसू बहाती रहेगी और बाद में संजय नाकाम या चालाक आशिकों की तरह घडि़याली आंसू बहाता घर वालों के दबाव में मजबूरी का रोना रोता रहेगा.

बेवफाई की दी सजा

राजो का अंदाजा गलत नहीं था. एक दिन इशारों में ही संजय ने मान लिया कि उस की शादी तय हो चुकी है. दूसरे दिन राजो ने तय कर लिया कि बचपन से ही उस के जिस्म और जज्बातों से खिलवाड़ कर रहे इस बेवफा आशिक को क्या सजा देनी है.

वह कड़कड़ाती जाड़े की रात थी. 23 जनवरी को उस ने हमेशा की तरह आंख पर पट्टी बांध कर सैक्स का गेम खेलने के लिए संजय को बुलाया. इन दिनों तो संजय के मन में लड्डू फूट रहे थे और उसे लग रहा था कि शादी के बाद भी उस के दोनों हाथों में लड्डू होंगे.

रात को हमेशा की तरह चोरीछिपे वह दीवार फांद कर राजो के कमरे में पहुंचा, तो वह उस से बेल की तरह लिपट गई. जल्द ही दोनों ने एकदूसरे की आंखों पर पट्टी बांध दी. संजय को बिस्तर पर लिटा कर राजो उस के अंगों से छेड़छाड़ करने लगी, तो वह आपा खोने लगा.

मौका ताड़ कर राजो ने इस गेम में पहली और आखिरी बार बेईमानी करते हुए अपनी आंखों पर बंधी पट्टी उतारी और बिस्तर के नीचे छिपाया चाकू निकाल कर उसे संजय के अंग पर बेरहमी से दे मारा. एक चीख और खून के छींटों के साथ उस का अंग कट कर दूर जा गिरा.

दर्द से कराहता, तड़पता संजय भाग कर अपने घर पहुंचा और घर वालों को सारी बात बताई, तो वे तुरंत उसे सीधी के जिला अस्पताल ले गए.

संजय का इलाज हुआ, तो वह बच गया, पर पुलिस और डाक्टरों के सामने झूठ यह बोलता रहा कि अंग उस ने ही काटा है.

पर पुलिस को शक था, इसलिए वह सख्ती से पूछताछ करने लगी. इस पर संजय के पिता ने बयान दे दिया कि संजय को पड़ोस में रहने वाली लड़की राजो ने हमबिस्तरी के लिए बुलाया था और उसी दौरान उस का अंग काट डाला, जबकि कुछ दिनों बाद उस की शादी होने वाली है.

पुलिस वाले राजो के घर पहुंचे, तो उस के कमरे की दीवारों पर खून के निशान थे, जबकि फर्श पर बिखरे खून पर उस ने पोंछा लगा दिया था.

तलाशी लेने पर कमरे में कटा हुआ अंग नहीं मिला, तो पुलिस वालों ने राजो से भी सख्ती की.

पुलिस द्वारा बारबार पूछने पर जल्द ही राजो ने अपना जुर्म स्वीकारते हुए बता दिया कि हां, उस ने बेवफा संजय का अंग काट कर उसे सजा दी है और वह अंग बाहर झाडि़यों में फेंक दिया है, ताकि उसे कुत्ते खा जाएं.

दरअसल, राजो बचपन के दोस्त और आशिक संजय पर खार खाए बैठी थी और बदले की आग ने उसे यह जुर्म करने के लिए मजबूर कर दिया था.

राजो चाहती थी कि संजय किसी और लड़की से जिस्मानी ताल्लुकात बना ही न पाए. यह मुहब्बत की इंतिहा थी या नफरत थी, यह तय कर पाना मुश्किल है, क्योंकि बेवफाई तो संजय ने की थी, जिस की सजा भी वह भुगत रहा है.

राजो की हिम्मत धोखेबाज और बेवफा आशिकों के लिए यह सबक है कि वह दौर गया, जब माशूका के जिस्म और जज्बातों से खेल कर उसे खिलौने की तरह फेंक दिया जाता था. अगर अपनी पर आ जाए, तो अब माशूका भी इतने खौफनाक तरीके से बदला ले सकती है.

 

शक के कफन में दफन हुआ प्यार – भाग 3

ननिहाल जाने के बहाने मिलता था प्रेमिका से

विवेक बघांव पहुंचा तो उसे देख कर नाना रामधनी खुश हुए. उन्हें क्या पता था कि उन का नाती उन से नहीं, अपनी प्रेमिका चंदना से मिलने आया है. नानानानी से मिलना तो एक बहाना था. नानानानी से मिलने के बाद विवेक चंदना से मिलने उस के घर गया.

घर में चंदना और उस की मां ही थीं. विवेक को देखते ही चंदना का चेहरा खिल उठा. वह उसे हसरत भरी नजरों से देखती रही. विवेक से वह कहना तो बहुत कुछ चाहती थी, लेकिन मां के डर की वजह से कुछ नहीं बोल पाई.

मुंह से भले ही न सही पर इशारोंइशारों में दोनों के बीच काफी बातें हुईं. वैसे भी जब दो प्रेमी दिल की गहराई से एकदूसरे को प्यार करते हों तो उन्हें अपनी बात कहने के लिए शब्दों की जरूरत नहीं होती.

नाश्ता वगैरह करने के बाद विवेक जब घर से निकलने लगा तो चंदना उसे विदा करने कमरे से बाहर आई. तभी उस ने झटके में मोबाइल फोन उस के हाथों में थमा दिया और बोला, ‘‘यह तुम्हारे लिए गिफ्ट है.’’ चंदना ने झट से फोन अपनी समीज के अंदर रख लिया ताकि कोई देख न सके. उस रात विवेक नाना के घर पर ही रुक गया. अगली सुबह वह अपने घर मऊनाथ भंजन लौट आया.

फोन मिल जाने से दोनों के बीच की दूरियां मिट गईं. भले ही वे एकदूसरे की सूरत देख नहीं पा रहे थे, लेकिन प्यार भरी मीठीमीठी बातें कर के अपने दिल को तसल्ली दे लेते थे. एक दिन चंदना की छोटी बहन वंदना ने उसे मोबाइल पर किसी से बात करते सुन लिया.

उस ने जब इस बारे में बहन से पूछा तो वह घबरा गई. उस ने वंदना को इस बारे में किसी से कुछ भी न बताने को कहा तो वह मान गई. वंदना ने वाकई किसी से कुछ नहीं बताया. हां, चंदना ने उसे यह नहीं बताया था कि वह किस से और क्यों बातें करती थी. धीरेधीरे दोनों का प्रेम जवां होता रहा.

वे अपने प्यार को ले कर भविष्य के सुनहरे सपने संजोने लगे. रेत के ढेर पर ख्वाबों का आशियाना बनाने लगे. इसी बीच इन प्रेमियों के साथ एक नई घटना घट गई. पता नहीं दोनों के प्यार को किस की नजर लग गई थी.

अचानक बदल गया चंदना का व्यवहार

विवेक ने महसूस किया कि चंदना अब उसे पहले जैसा प्यार नहीं कर रही है. पता नहीं क्यों वह उस से कटने लगी थी. पहले वह विवेक के फोन की घंटी बजते ही काल रिसीव कर लेती थी, पर अब लगातार फोन की घंटियां बजती रहती थीं. न तो चंदना काल रिसीव करती थी और न ही मिस्ड काल करती थी.

चंदना के इस व्यवहार पर विवेक को गुस्सा आता था. हद तो तब हो गई जब विवेक चंदना को काल करता तो वह अकसर दूसरी काल पर व्यस्त मिलती थी.

विवेक का शक पुख्ता हो गया था कि चंदना का किसी और के साथ संबंध बन चुका है. इसीलिए वह उस से कटीकटी सी रहने लगी है. इस बात को ले कर चंदना और विवेक के बीच विवाद हो गया. विवेक ने उसे बहुत भलाबुरा कहा. उस के बाद चंदना ने विवेक से बात करनी बंद कर दी.

बाद में विवेक ने किसी तरह चंदना को मना लिया और उस से माफी मांग ली. उस ने वादा किया कि अब दोबारा उस से ऐसी गलती नहीं होगी. चंदना से माफी मांग कर विवेक ने एक पैंतरा चला था. उस ने सोच लिया था कि अगर चंदना उस की नहीं हुई तो किसी और की भी नहीं होगी.

इसीलिए उस ने चंदना से माफी मांग कर उसे विश्वास में लिया ताकि कभी बुलाने पर वह उस की बात सुन ले. प्यार में अंधी चंदना को इस बात का तनिक भी भान नहीं था कि विवेक उस के पीठ पीछे क्या षडयंत्र रच रहा है.

विवेक ईर्ष्या की आग में जल रहा था. वह दिनरात इसी सोच में डूबा रहता था कि चंदना उस की नहीं हुई तो किसी और की भी नहीं होगी. आखिर विवेक ने उस की हत्या की योजना बना डाली. योजना बनाने के बाद विवेक बाजार जा कर एक फलदार चाकू खरीद लाया और उसे अपने बैग में छिपा दिया.

16 मार्च की सुबह विवेक मां से नानी के घर जाने को कह कर घर से निकला और बस स्टैंड जा पहुंचा. वहां से वह गाजीपुर जाने वाली एक सरकारी बस में बैठ गया. गाजीपुर पहुंचने के बाद उस ने चंदना को फोन कर के बताया कि वह मिलने आ रहा है. गांव के बाहर लल्लन यादव के खेत के पास पहुंचो, कुछ जरूरी बातें करनी हैं.

विवेक का फोन आने के बाद चंदना मां से खेतों पर जाने की बात कह कर विवेक के बताए स्थान पर जाने के लिए चल दी. चंदना को क्या पता था कि जो उस से मिलने आ रहा है, वह उस का वफादार प्रेमी नहीं बल्कि मौत है.

साढ़े 9 बजे के करीब चंदना लल्लन यादव के खेत पर पहुंच गई. वहां खेत के चारों ओर कोई नहीं था. तब तक विवेक भी वहां पहुंच गया. प्रेमिका को देख कर विवेक हौले से मुसकराया तो चंदना ने भी उसी अंदाज में मुसकरा कर जवाब दिया. फिर चंदना ने उस से बुलाने की वजह पूछी तो विवेक गुस्से से लाल हो गया और उसे भद्दीभद्दी गालियां देते हुए बोला, ‘‘मैं ने तुम्हारे लिए खुद को बरबाद कर दिया. तुम पर पानी की तरह पैसे बहाए. तुम ने बदले में मुझे क्या दिया बेवफाई. मेरे प्यार को ठुकरा कर दूसरों की बाहों में रंगरलियां मना रही हो. ऐसा मैं हरगिज होने नहीं दूंगा. अगर तुम मेरी नहीं हुई तो तुम्हें किसी और की भी होने नहीं दूंगा.’’

विवेक ने किया चाकू से वार

चंदना कुछ समझ पाती, इस से पहले ही विवेक ने बैग से फलदार चाकू निकाला और उस की गरदन पर जोरदार वार कर दिया. चंदना हवा में लहराती हुई जमीन पर जा गिरी. उस के बाद विवेक तब तक उस के पेट और गरदन पर वार करता रहा, जब तक उस के प्राणपखेरू नहीं उड़ गए. चंदना की निर्मम हत्या करने के बाद विवेक उस की लाश घसीटते हुए गेहूं के खेत में ले गया और लाश को ठिकाने लगा कर आराम से घर लौट आया.

विवेक ने जिस चालाकी और सफाई से काम किया था, उसे देख कर उसे लगा था कि पुलिस उस तक कभी नहीं पहुंच सकती. लेकिन पुलिस ने उस की सोच पर पानी फेर दिया. जिस शक की आग में वह जल रहा था, उसी शक की आग ने उसे खाक में मिला दिया.

प्यार का ये मतलब नहीं होता कि किसी की निर्मम तरीके से हत्या कर दे. विवेक अगर समझदारी से काम लेता तो चंदना भी इस दुनिया में सांस ले रही होती. लेकिन एक शक की चिंगारी ने सब कुछ तहसनहस कर दिया.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित