रिंकी ने भले ही आलोक से दोस्ती के लिए मना कर दिया था, लेकिन आलोक निराश नहीं हुआ था. अब वह रोजाना नर्सिंग होम के गेट पर खड़े हो कर रिंकी का इंतजार करने लगा. लेकिन रिंकी उस की ओर देखे बगैर आगे बढ़ जाती थी. रिंकी की यह बेरुखी उसे काफी पीड़ा पहुंचा रही थी. जब काफी दिन गुजर गए और रिंकी ने उसे लिफ्ट नहीं दी तो रिंकी को अपने जाल में फांसने के लिए उस ने एक योजना बना डाली.
डिलीवरी के केस के चलते एक दिन रिंकी कुमारी नर्सिंग होम से कुछ देर से निकली. देर हो जाने की वजह से उस का खाना बनाने का मन नहीं हो रहा था, इसलिए रास्ते में पड़ने वाले एक होटल में उस ने खाना खाया. इस तरह उसे और देर हो गई. काम की अधिकता की वजह से वह काफी थक गई थी, इसलिए कमरे पर पहुंच कर उस ने कपड़े बदले और आराम करने के लिए लेट गई. लेटते ही उस की आंखें बंद होने लगीं. तभी उस के कानों में दरवाजा थपथपाने की आवाज पड़ी. अर्द्धनिद्रा में वह थी ही, इसलिए उस ने बाहर से किस ने दरवाजा खटाखटाया है, यह पूछे बगैर ही दरवाजा खोल दिया.
रिंकी के दरवाजा खोलते ही गुपचुप तरीके से पीछा कर रहे आलोक ने फुरती से अंदर आ कर इस तरह दरवाजा बंद कर के कुंडी लगा दी कि रिंकी समझ ही नहीं पाई. जब तक मामला उस की समझ में आया, आलोेक अंदर आ चुका था. उतनी रात को आलोक को कमरे के अंदर देख कर रिंकी सहम उठी.
उस ने डांटने वाले अंदाज में कहा, ‘‘तुम, यहां क्यों आ गए? तुरंत मेरे कमरे से बाहर निकल जाओ, वरना मैं शोर मचा कर मोहल्ले वालों को इकट्ठा कर लूंगी. उस के बाद तुम्हारी क्या गति होगी, तुम कल्पना भी नहीं कर सकते.’’
‘‘यार, तुम बेकार ही गुस्सा करती हो. हम प्यार करने के मूड में आए हैं और तुम मुझे दुत्कार रही हो. प्यार करने वाले से प्यार से बात की जाती है, इस तरह भगाया नहीं जाता.’’ आलोक ने प्यार से कहा.
आलोक के यह कहने पर रिंकी का गुस्सा और बढ़ गया. उस ने आगे बढ़ कर आलोक का गिरेबान पकड़ कर दरवाजे की ओर धकेलते हुए कहा, ‘‘सीधी तरह से यहां से जाते हो या बुलाऊं पड़ोसियों को?’’
रिंकी के इस गुस्से पर आलोक सहम उठा. उस ने झटके से अपना गिरेबान छुड़ाया और जेब से चाकू निकाल कर बोला, ‘‘अब एक भी शब्द बोला तो मुझ से बुरा कोई नहीं होगा. यह चाकू देख रही हो न, यह किसी के साथ कोई रियायत नहीं करता. तुम्हारे इसी कमरे में यह चाकू अपने पेट में घुसेड़ लूंगा. उस के बाद मेरी हत्या के आरोप में तुम्हें जेल जाना पड़ेगा. तुम लाख सफाई दोगी, लेकिन तुम्हारी बात पर कोई विश्वास नहीं करेगा. तुम्हें तो पता ही है कि मैं तुम्हारे प्यार में पागल हूं. पागल प्रेमी के लिए ऐसा करना कोई मुश्किल काम नहीं है.’’
रिंकी हाथ जोड़ कर कातर स्वर में बोली, ‘‘मैं तो वैसे ही बेबस और लाचार हूं. क्यों मेरी बेबसी का फायदा उठा रहे हो?’’
‘‘मैं तुम्हारी लाचारी का फायदा नहीं उठा रहा. मैं तुम से प्यार करता हूं और तुम्हें अपनी बनाना चाहता हूं. मैं तुम से शादी करूंगा रिंकी.’’ आलोक ने कहा.
‘‘यह सब कहने की बातें हैं. आज तुम प्यार की बात कह कर मुझ से शादी करने का वादा कर रहे हो. मुझे पाने के बाद अपना यह वादा भूल जाओगे. तुम्हारे घर वाले मुझ जैसी लाचार मजबूर लड़की से तुम्हारी शादी क्यों करेंगे? ये सब कहने की बातें हैं. प्यार का नाटक कर के मेरा सब लूट लोगे, उस के बाद छोड़ कर चल दोगे.’’
‘‘रिंकी, मैं ने तुम्हारे बारे में सब पता कर लिया है. मुझे तुम्हारी पिछली जिंदगी से कोई लेनादेना नहीं है. तुम अपने भविष्य के बारे में सोचो. नर्स की इस मामूली सी नौकरी में यह जीवन बीतने वाला नहीं है. अकेली औरत का इस समाज में जीना आसान नहीं है. मेरा अपना मकान है ही, मेरे घर में भी किसी चीज की कमी नहीं है. मेरे पिता भी मेरी खुशियों में आडे़ नहीं आएंगे. मैं अपनी बात कह कर जा रहा हूं. तुम मेरी बातों पर गौर करना. मैं तुम से झूठ नहीं बोल रहा हूं, यह याद रखना.’’
कह कर आलोक ने दरवाजा खोला और निकलने से पहले उस ने रिंकी के चेहरे को अपनी दोनों हथेलियों में ले कर उस के माथे को चूम कर कहा, ‘‘तुम ठंडे दिमाग से विचार करना. मैं तुम्हें सोचने के लिए पूरे 15 दिन दे रहा हूं. इस के बाद तुम अपना फैसला बता देना. अगर तुम नहीं चाहोगी तो मैं तुम्हारे रास्ते में कभी नहीं आऊंगा.’’
आलोक के जाने के बाद रिंकी ने दरवाजा बंद किया और बिस्तर पर बैठ गई. अब उस की आंखों से नींद गायब हो चुकी थी. वह अपनी जिंदगी के बारे में सोचने लगी. आलोक ने उसे ऐसे दोराहे पर खड़ा कर दिया था, जहां से उसे सूझ ही नहीं रहा था कि वह किधर जाए. उसे एक मजबूत सहारे की जरूरत तो थी ही. अगर आलोक अपने वादे पर खरा उतरता है तो वह मजबूत सहारा बन सकता है. यही सब सोचते हुए आखिर रिंकी को नींद आ ही गई.
रिंकी सोई भले देर से थी, लेकिन सुबह अपने समय पर ही उठी. घर के सारे काम निपटा कर वह समय से नर्सिंग होम पहुंच गई. लेकिन उस पूरे दिन उस का मन काम में नहीं लगा. उसे आलोक के किए वादे याद आते रहे. इसी सोचविचार में एकएक कर के 15 दिन बीत गए. 16वें दिन नर्सिंग होम की अपनी ड्यूटी समाप्त कर के रिंकी कमरे पर पहुंची. वह खाना बनाने की तैयारी कर रही थी कि दरवाजे पर दस्तक हुई.
रिंकी को समझते देर नहीं लगी कि कौन होगा. उस ने दरवाजा खोला, सचमुच बाहर आलोक खड़ा था. रिंकी कुछ कहती या पूछती, उस के पहले ही वह पूरे अधिकार के साथ अंदर आ गया और दरवाजा बंद कर लिया.
इस के बाद चारपाई पर आराम से बैठ कर बोला, ‘‘मैं आज तुम्हारा जवाब जानने आया हूं. तुम अपना निर्णय सुनाओ, उस के पहले एक बार फिर मैं तुम्हें बता दूं कि मैं तुम से बेइंतहा प्यार करता हूं और तुम्हें अपनी बनाना चाहता हूं. तुम्हारे मना करने से मैं तुम्हारे रास्ते से तो हट जाऊंगा, लेकिन शायद जी न पाऊं. इसलिए जो भी जवाब देना, खूब सोचविचार कर देना. क्योंकि अब मेरी यह जिंदगी तुम्हारे इसी निर्णय पर निर्भर है.’’
आलोक रिंकी को पूरी तरह इमोशनली ब्लैकमेल कर रहा था. यह बात रिंकी की समझ में नहीं आई. वह इस सोच में डूबी थी कि उसे क्या जवाब दे. वह नासमझ थी, तभी उस के पिता ने उस का विवाह उम्र में दोगुने आदमी के साथ कर दिया था. वह उस के प्रति समर्पित थी, इस के बावजूद वह उसे ठीक से नहीं रख सका. 22 साल की इस छोटी सी जिंदगी में वह परेशानियां ही परेशानियां उठाती आ रही थी. इस स्थिति में वह आलोक पर कैसे भरोसा करे.
रिंकी ने कोई जवाब नहीं दिया तो आलोक ने उस का एक हाथ अपने हाथों में ले कर कहा, ‘‘अभी पढ़ना चाहती हो न? तुम पढ़ो. मैं तुम्हारी मदद करूंगा. तम्हें शायद पता नहीं है कि मेरा छोटा भाई गूंगाबहरा है. इसलिए मैं अपने मांबाप का लाडला हूं. मैं अपने घर में जो कहता हूं, उसे मान लिया जाता है. मैं ने मास मीडिया की डिग्री ली है, जल्दी ही मुझे कहीं न कहीं नौकरी मिल ही जाएगी. अगर मेरे घर वाले तुम्हें नहीं भी अपनाएंगे तो अपने पैरों पर खड़े होने के बाद मैं तुम्हें अपने साथ रखूंगा.’’
इतना कह कर आलोक ने जेब से सिंदूर की डिब्बी निकाली और उस में से एक चुटकी सिंदूर निकाल कर रिंकी की मांग भर दी.