नाकाम साजिश : बहू ने बनाई सास की हत्या की योजना

कुलदीप कौर पिछले कई महीनों से परेशान थी, लेकिन परेशानी की वजह उस की समझ में नहीं आ रही थी. उस का मन हर समय बेचैन रहता था. अजीबोगरीब विचार मन को उलझाए रखते थे. वह कितना भी अच्छा सोचने की कोशिश करती, मन सकारात्मक सोच की ओर न जा कर नकारात्मक सोच में ही डेरा जमाए रहता था.

बुरे विचारों से जैसे कुलदीप का नाता जुड़ गया था. मन को समझाने और बुरे विचारों से दूर रहने के लिए वह अपना अधिकांश समय गुरुद्वारे में व्यतीत करने लगी थी.

कुलदीप कौर की चिंता का विषय सात समंदर पार पंजाब में बैठी अपनी मां राजविंदर कौर थीं. हालांकि 57 वर्षीय राजविंदर कौर की देखभाल के लिए गांव के घर में उस की भाभी शगुनप्रीत कौर थी, लेकिन भाभी पर उसे भरोसा नहीं था.

कुलदीप के पति मनमोहन सिंह ने उसे कई बार समझाया भी था कि बेकार में चिंता करने से कोई फायदा नहीं है. अगर मन इतना ही परेशान है तो इंडिया का चक्कर लगा आओ. वहां अपनी मां से मिल लेना. लेकिन समस्या यह थी कि उन दिनों कुलदीप गर्भवती थी. डाक्टरों ने ऐसी हालत में हवाई यात्रा करने से मना कर रखा था. बहरहाल, इसी उधेड़बुन में कुलदीप कौर के दिन गुजर रहे थे.

भरापूरा परिवार था बलदेव सिंह का

कुलदीप कौर मूलत: गांव बुट्टर सिविया, थाना मेहता, जिला अमृतसर, पंजाब की रहने वाली थी. उस के जीवन के 16 बसंत भी अपने गांव बुट्टर में ही गुजरे थे. गांव में रहते ही उस ने जवानी की दहलीज पर पांव रखे थे. कुलदीप का छोटा सा परिवार था.

पिता बलदेव सिंह और मां राजविंदर कौर के अलावा उस के 2 भाई थे गगनदीप सिंह और सरबजीत सिंह. तीनों भाईबहनों का आपस में बहुत प्यार था. वे तीनों बहनभाई कम दोस्त ज्यादा लगते थे. आपस में इन की कोई बात एकदूसरे से छिपी नहीं रहती थी.

बलदेव सिंह जाट सिख किसान थे. उन के पास खेती की ज्यादा जमीन तो नहीं थी, पर जितनी थी वह परिवार की हर जरूरत पूरी करने के लिए काफी थी. इसीलिए बलदेव सिंह ने अपने तीनों बच्चों को सिर उठा कर आजादी से जीना सिखाया था.

उन्होंने तीनों बच्चों को अपनी हैसियत के हिसाब से पढ़ाया था. बच्चों के लिए अभी वह और भी बहुत कुछ करना चाहते थे, पर साल 2002 में उन की मौत हो गई.

बलदेव सिंह की मौत के बाद पूरे परिवार की जिम्मेदारियां राजविंदर कौर के कंधे पर आ गई थीं. उस वक्त उन का बड़ा बेटा गगनदीप जवानी की दहलीज पर कदम रख चुका था. वह मां का हाथ बंटा कर उस का सहारा बन गया. घर की गाड़ी फिर से अपनी स्पीड से दौड़ने लगी थी.

साल 2008 इस परिवार के लिए अच्छा साबित हुआ. इसी साल कुलदीप कौर के लिए एक अच्छे परिवार का रिश्ता आया, लड़के का नाम मनमोहन सिंह था. वह अच्छे घर का पढ़ालिखा गबरू जाट था और आस्ट्रेलिया में अपना कारोबार करता था. राजविंदर कौर को मनमोहन और उस का परिवार कुलदीप के लिए पसंद आया. कुलदीप को भी मनमोहन सिंह पसंद था. दोनों परिवारों की रजामंदी के बाद सन 2008 में कुलदीप कौर और मनमोहन सिंह की शादी धूमधाम से संपन्न हो गई. इस शादी से सभी लोग खुश थे.

अचानक हो गई गगनदीप की मौत

खुशी का माहौल था, पर कहीं अनहोनी मुंह पसारे इस परिवार की खुशियों को लीलने के लिए घात लगाए बैठी थी. कुलदीप की शादी के कुछ दिनों बाद ही इस परिवार को तब बड़ा झटका लगा, जब अचानक गगनदीप की मौत हो गई.

गगनदीप की मौत का सदमा उस की मां राजविंदर कौर और उस के छोटे भाईबहन को भीतर तक तोड़ गया. कुलदीप की समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसे नाजुक मौके पर वह अपनी मां और छोटे भाई सरबजीत को अकेला छोड़ कर पति के साथ आस्ट्रेलिया जाए या यहीं रह कर उन का साथ दे.
संसार का नियम है, यहां लोग आतेजाते हैं, सब कुछ समय की गति से चलता रहता है. जबकि समय का चक्र और संसार के कामकाज कभी नहीं रुकते. वक्त का मरहम बड़े से बड़ा घाव भर देता है. बहरहाल, अपनी मां और भाई को दिलासा दे कर कुलदीप कौर अपने पति मनमोहन सिंह के साथ आस्ट्रेलिया चली गई. कुलदीप को आस्ट्रेलिया गए 10 साल बीत गए थे.

इस बीच वह सरताज सिंह और सम्राट सिंह 2 बच्चों की मां बन गई थी. उस के पीछे मायके में छोटे भाई सरबजीत सिंह की भी शगुनप्रीत कौर के साथ शादी हो गई थी. सरबजीत भी 2 बच्चों बेटी मनतलब कौर और बेटे वारिसदीप सिंह का बाप बन गया था.

कुलदीप की अपनी मां और भाई से हर हफ्ते फोन पर बातें होती रहती थीं. सभी अपनीअपनी जिंदगी में मशगूल थे कि साल 2015 की एक मनहूस खबर ने कुलदीप को अंदर तक तोड़ कर रख दिया. इस घटना से राजविंदर कौर की तो जैसे दुनिया ही उजड़ गई थी. उसे अपने पति और बड़े बेटे गगनदीप की मौत का इतना दुख नहीं हुआ था, जितना दुख सरबजीत की मौत का हुआ.

सरबजीत की मौत बड़े रहस्यमय तरीके से हुई थी. वह रात को खाना खा कर ऐसा सोया कि सोता ही रह गया. सरबजीत अपने परिवार का एकमात्र सहारा था. उस की मौत से परिवार की गाड़ी पूरी तरह लड़खड़ा गई.

वक्त ने ताजा जख्मों पर एक बार फिर से मरहम लगाया. राजविंदर कौर ने अपने आप को पूरी तरह से अकेला मान कर जीना सीख लिया था. समय का चक्र फिर से अपनी रफ्तार से चलने लगा. कुलदीप मां को फोन करकर के सांत्वना देती रहती थी. सैकड़ों मील दूर बैठी कुलदीप और कर भी क्या सकती थी. इसी तरह दिन गुजरते गए थे और साल 2016 आ गया.
दूसरे बेटे की मौत से टूट गई मां

कुलदीप कौर ने महसूस किया कि सरबजीत सिंह की मौत के बाद गांव से उस की मां के जो फोन आते थे, वह काफी मायूसी भरे होते थे. सुन कर कुलदीप को ऐसा लगता था, जैसे उस की मां बहुत परेशान और दुखी हैं. उस ने बहुत बार मां से इस बारे में पूछा भी था, पर मां ने उसे कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया था. वह बहुत दुखी लग रही थीं. ज्यादा कुरेद कर पूछने पर राजविंदर ने सिर्फ इतना ही बताया कि पिछले कुछ समय से शगुन का चालचलन ठीक नहीं है.

कुलदीप कौर ने जब शगुन से इस बारे में बात की तो उस ने बताया, ‘‘दीदी, ऐसी कोई बात नहीं है. बीजी को एक तो बेटे की मौत का सदमा है, ऊपर से अकेलापन परेशान करता है. कभीकभी शुगर की बीमारी की वजह से भी उन्हें घबराहट होने लगती है. आप चिंता न करें, मैं सब संभाल लूंगी.’’

शगुन की गोलमोल बातें कुलदीप की समझ से बाहर थीं. वह अच्छी तरह जानती थी कि शगुन बहुत चालाक है. वह सच्ची बात कभी नहीं बताएगी. इसीलिए कुलदीप ने अपने गांव के कुछ खास लोगों को फोन कर के विनती की कि वे उस के घर हो रहे क्रियाकलापों पर नजर रखें. गांव के जानकार लोगों ने कुलदीप कौर की बात मान कर राजविंदर के घर पर नजर रखनी शुरू कर दी.

बाद में उन्होंने कुलदीप को बताया कि उस की मां के घर में सामने से तो सब कुछ ठीक नजर आता है. शगुन लोगों के सामने तो राजविंदर कौर का बहुत खयाल रखती है. बाकी उन की पीठ पीछे घर में सासबहू का आपस में कैसा बर्ताव है, कुछ कहा नहीं जा सकता. बहरहाल, ऐसा जवाब सुन कर कुलदीप कौर मन मसोस कर रह जाती थी और अपनी मां की सलामती की दुआ करती थी.

29 अक्तूबर, 2016 को शगुन ने कुलदीप कौर को आस्ट्रेलिया फोन कर के खबर दी कि बीजी का देहांत हो गया है. शगुन ने मौत की वजह राजविंदर का शुगर लेवल कम हो जाना बताया था. उन दिनों कुलदीप गर्भवती थी, डाक्टरों ने उसे यात्रा के लिए मना कर रखा था सो अपने घर के एकांत में कुलदीप ने छाती पीट कर मां की मौत का मातम मना लिया. अब उस के मायके के परिवार में सिवाय उस के कोई और नहीं बचा था.

राजविंदर की मौत के बाद 2-4 बार शगुन के फोन उसे आए थे, पर वह बिना सिरपैर की बातें ही किया करती थी. एक बात थी जो हर समय कुलदीप को परेशान कर रही थी. उसे हर समय ऐसा लगता था जैसे उस की मां की मौत स्वाभाविक नहीं थी. जरूर उस के साथ कोई अनहोनी घटी थी, पर क्या हुआ और कैसे यह बात उस की समझ में नहीं आती थी.

मां सरबजीत की मौत के बाद शगुन गांव की कोठी और सारी जमीन की मालकिन बन गई थी. कुलदीप अकसर यह भी सोचा करती थी कि कहीं उस की मां की मौत किसी षडयंत्र की वजह से तो नहीं हुई.
बहरहाल, कुलदीप ने एक बार फिर से अपने गांव के भरोसेमंद लोगों से अपनी मां की मौत से परदा उठाने के लिए विनती की. इस बात का पता लगाने में गांव के कुछ खास लोगों को पौने 2 साल का समय लग गया.

जुलाई 2018 में कुलदीप कौर को सूचना मिली थी कि उस की मां राजविंदर कौर की मौत में उस की भाभी शगुन का हाथ था. यह सुन कर वह ज्यादा हैरान नहीं हुई, क्योंकि उसे शगुन पर शुरू से ही शक था. यह तो दूर का मामला था, अगर वह कहीं पास होती तो कब की अपनी मां की मौत से परदा उठा देती.
खैर, अब भी देर नहीं हुई थी और अब वह पूरी तरह से यात्रा करने लायक थी. बीती जुलाई के दूसरे सप्ताह में वह आस्ट्रेलिया से भारत अपने गांव पंजाब पहुंच गई. जब अपने मायके के घर पहुंच कर उस ने वहां का नजारा देखा तो हैरान रह गई. उस की मां के घर 2 अनजान आदमी बैठे शगुन के साथ हंसीमजाक कर रहे थे.

गुस्से से बिफरते हुए जब कुलदीप कौर ने पूछा, ‘‘भाभी, ये लोग कौन हैं?’’ तो शगुन ने मिमियाते हुए जवाब दिया, ‘‘दीदी, तुम्हारे भाई की मौत के बाद ये दोनों खेतों में काम करने में मदद करते हैं.’’

कुलदीप को शक हुआ भाभी पर

कुलदीप अच्छी तरह जानती थी कि शगुन जो बता रही है, बात वह नहीं है. पर उस वक्त उस ने चुप रहना ही बेहतर समझा. कुलदीप के आने की वजह से वे दोनों व्यक्ति वहां से चले गए. अगले दिन सुबह उठ कर कुलदीप नहाईधोई और गुरुद्वारे चली गई.

अरदास के बाद वह अपने मौसा हरदयाल सिंह को साथ ले कर सीधे एसएसपी (देहात) अमृतसर परमपाल सिंह के पास जा पहुंची. कुलदीप ने अपनी मां की हत्या का शक जताते हुए उन्हें बताया कि मां की मौत में उस की भाभी और कुछ अन्य लोगों का हाथ है.

एसएसपी परमपाल सिंह ने कुलदीप द्वारा दिए प्रार्थनापत्र पर नोट लिख कर उसे संबंधित थाना मेहता भेज दिया. साथ ही उन्होंने थानाप्रभारी अमनदीप सिंह को फोन कर आदेश दिया कि इस मामले की गुत्थी जल्द से जल्द सुलझाएं. कुलदीप कौर ने उसी दिन थानाप्रभारी अमनदीप से मिल कर आस्ट्रेलिया जाने से ले कर अपनी गैरहाजिरी में अपने भाई और मां की मौत का सारा हाल विस्तार से कह सुनाया.

कुलदीप कौर की पूरी बात सुनने के बाद अमनदीप सिंह ने तत्काल अपने खास मुखबिरों को शगुन और उस के साथियों की कुंडली खंगालने के काम पर लगा दिया. जल्दी ही उन्हें रिपोर्ट भी मिल गई.

एसएसपी के आदेश पर उन्होंने कुलदीप कौर की शिकायत को आधार बना कर उसी दिन यानी 30 जुलाई, 2018 को राजविंदर कौर की हत्या का मुकदमा भादंसं की धारा 302, 201, 120बी और 34 पर दर्ज कर के काररवाई शुरू कर दी.

अमनदीप सिंह ने उसी दिन एएसआई कमलबीर सिंह, हवलदार जतिंदर सिंह, महिंदरपाल सिंह, कांस्टेबल महकप्रीत सिंह और लेडी हवलदार हरजिंदर कौर को साथ ले कर बुट्टर गांव पहुंचे और देर शाम शगुनप्रीत कौर और उस के आशिक सतनाम सिंह को हिरासत में ले लिया.

हत्या के इस मामले का तीसरा आरोपी जसबीर सिंह भाग निकला था. संभवत: उसे पुलिस काररवाई की भनक लग गई थी. जसबीर की गिरफ्तारी के लिए पुलिस लगातार छापेमारी कर रही थी, पर वह पुलिस के हाथ नहीं लगा.

पुलिस ने की काररवाई

थानाप्रभारी अमनदीप सिंह ने जब शगुनप्रीत और सतनाम सिंह से पूछताछ की तो दोनों आरोपियों ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. इस के बाद उसी दिन राजविंदर कौर की हत्या के आरोप में शगुन और सतनाम सिंह को अदालत में पेश कर आगामी पूछताछ के लिए पुलिस रिमांड पर ले लिया गया. रिमांड के दौरान पूछताछ में राजविंदर की मौत की जो कहानी पता चली, वह कुछ इस तरह थी—
शगुनप्रीत कौर बचपन से ही दिलफेंक और महत्त्वाकांक्षी थी. शादी से पहले अपने गांव में उस के कई युवकों के साथ नाजायज संबंध थे. अपने पति सरबजीत की मौत से पहले भी उस का गांव के कई युवकों के साथ नैनमटक्का चल रहा था, पर परदे के पीछे. क्योंकि तब उसे अपने पति का डर था.
लेकिन पति की मौत के बाद उस ने सरेआम यारियां जोड़नी शुरू कर दी थीं. अब उसे रोकनेटोकने वाला नहीं था. शगुन के अपने गांव के ही एक युवक सतनाम सिंह के साथ नाजायज संबंध बन गए थे. सतनाम आवारा आदमी था और नशीली वस्तुएं बेचता था.

शगुन ने प्रेमी के साथ बनाई योजना

जसबीर सिंह सतनाम के नशे के धंधे में उस का भागीदार था. उसे जब शगुन और सतनाम के संबंधों का पता चला तो बहती गंगा में हाथ धोने के लिए वह भी मचलने लगा. शगुन को इस बात से कोई ऐतराज नहीं था, बल्कि वह खुश थी कि उस के 2-2 चाहने वाले हैं. सरबजीत की मौत के बाद सतनाम सिंह शगुन के ही घर पर रहने लगा था.

यह बात राजविंदर को मंजूर नहीं थी. सतनाम के वहां रहने का वह विरोध करती थी. शगुन अपनी मनमानी पर उतर आई थी. उसे न तो सास का कोई डर था और न शरम. वह तो बस हवा में उड़ी चली जा रही थी.
जब राजविंदर कौर का विरोध बढ़ गया तो शगुन ने उसे रास्ते से हटाने की योजना बना डाली. इस के 2 फायदे थे, एक तो राजविंदर की मौत के बाद उसे कोई रोकनेटोकने वाला नहीं रहता और दूसरे सारी जमीनजायदाद उस के नाम हो जाती.

यह अलग बात थी कि राजविंदर की मौत के बाद सब कुछ उसे ही मिलने वाला था, पर उसे सब्र नहीं था. दूसरे उसे यह भी डर था कि मरने से पहले राजविंदर जायदाद किसी और के नाम न कर जाएं.
शगुनप्रीत और उस के आशिक सतनाम सिंह ने मिल कर राजविंदर कौर की हत्या की योजना बनाई. इस के लिए उन्होंने गांव के ही जसबीर सिंह को चुना और उसे ढाई लाख रुपए देने का वादा कर के तैयार कर लिया.

अपनी योजना के अनुसार, 28 अक्तूबर 2016 की आधी रात को तीनों ने मिल कर सोते समय राजविंदर कौर को गला दबा कर मार डाला. अगली सुबह योजना के तहत शगुन ने कुछ देर गांव वालों के सामने राजविंदर की बीमारी का नाटक रचा और बाद में शोर मचा कर यह खबर फैला दी कि शुगर लेवल कम होने की वजह से राजविंदर की मौत हो गई है.

इतना ही नहीं, वह इतनी शातिर निकली कि रिश्तेदारों को बताए बिना ही जल्दबाजी में गांव के कुछ लोगों को साथ ले कर सास का अंतिम संस्कार भी करा दिया. बाद में उस ने कुलदीप कौर को भी फोन कर के इस की खबर दे दी थी.

राजविंदर कौर की हत्या की योजना में शगुन और सतनाम सिंह ने ढाई लाख रुपए की सुपारी दे कर जसबीर को अपने साथ शामिल तो कर लिया था, पर हत्या के बाद उन्होंने उसे पैसे देने से इनकार कर दिया था.

जसबीर काफी समय तक उन से पैसे मांगता रहा, जब उन्होंने पैसे देने से बिलकुल इनकार कर दिया तो गुस्से में आ कर उस ने गांव के कुछ लोगों के सामने इस बात का खुलासा कर दिया. गांव वाले पहले से ही तीनों पर नजर रखे हुए थे, सो उन्होंने यह खबर फोन द्वारा कुलदीप को दे दी.

रिमांड की अवधि समाप्त होने पर थानाप्रभारी अमनदीप सिंह ने शगुनप्रीत कौर और उस के प्रेमी सतनाम सिंह को अदालत में पेश किया, जहां से दोनों को जिला जेल भेज दिया गया. इस अपराध का तीसरा आरोपी जसबीर सिंह फरार था.

पुलिस सूत्रों पर आधारित

हसबैंड बनाम बौयफ्रैंड : सबक सिखाने के लिए रची साजिश – भाग 3

लेकिन कोई खास बात हाथ नहीं लगी, सिवाय इस तसल्ली के कि उन का अपहरण नहीं हुआ है. क्योंकि जबलपुर जैसे बड़े शहर के व्यस्ततम इलाके के मौल से एक साथ 3 लोगों का अपहरण इतनी शांति से संपन्न हो जाना संभव नहीं था. सीसीटीवी फुटेज से पता चला कि संगीता दोपहर 3 बजे के लगभग मौल के दूसरे दरवाजे से बाहर गई थीं.

पर वह है कहां, इस सवाल का जवाब ढूंढने की चुनौती अब पुलिस वालों के सामने थी. इधर जैसे ही मीडिया वालों को एक धनाढ्य परिवार की बहू के मौल से बगैर कुछ बताए लापता हो जाने की खबर मिली, संगीता और उस के गुमशुदा बेटों को ले कर खासा बवाल मच गया. तरहतरह के सवाल न्यूज चैनल्स पर पूछे जा रहे थे और आशंकाएं भी जताई जा रही थीं. दूसरे दिन के समाचार पत्र भी संगीता ग्रोवर की रहस्यमय गुमशुदगी से रंगे पड़े थे.

संगीता के मायके व ससुराल वालों ने भी उसे खोजना शुरू कर दिया था. परिचितों के अलावा संगीता की सभी सहेलियों से पूछताछ की गई, पर कोई भी उस के बारे में खास जानकारी नहीं दे सका.

दूसरे दिन दोपहर 12 बजे जा कर इस राज से परदा हटा, जब यह अफवाह उड़ी कि संगीता ग्रोवर ने खुदकुशी कर ली है. दरअसल लगभग 12 बजे दोपहर को एसपी कटनी को कोरियर द्वारा संगीता का 12 पृष्ठों का सुसाइड नोट मिला, जिस में विस्तार से संगीता ने अपने ससुर को संबोधित करते हुए अपनी व्यथा लिखी थी और पति रंजन ग्रोवर पर तरहतरह के गंभीर अरोप लगाए थे.

आमतौर पर इतना लंबा सुसाइड नोट कोई नहीं लिखता कि वह उपन्यास जैसा हो, इसलिए पुलिस वाले इस बात को ले कर निश्चिंत हो चुके थे कि संगीता ने बेटों सहित खुदकुशी नहीं की है. पर वह है कहां, यह जानना जरूरी हो चला था, जिस से जबलपुर कटनी में बढ़ते बवाल और सवालों की रफ्तार को रोका जा सके.

अपनी खोजबीन में पुलिस टीम जबलपुर के डुमना एयरपोर्ट गई और वहां के सीसीटीवी फुटेज खंगाले तो संगीता दोनों बेटों सहित दिल्ली जाने वाली हवाई जहाज में सवार होती दिखी, साथ ही दिखा रंजन ग्रोवर का दोस्त या संगीता का प्रेमी सतीश कोटवानी. टिकिटों की खोजबीन की गई तो 2 अहम बातें ये पता चलीं कि टिकिट 15 दिसंबर को ही बुक करा लिए गए थे और संगीता नाम बदल कर सफर कर रही थी.

उस का टिकिट जसप्रीत कोटवानी के नाम से बुक था. बताने और छिपाने को अब कुछ खास नहीं रह गया था, सिवाय इस के कि संगीता पति के दोस्त या अपने प्रेमी सतीश कोटवानी के साथ अपनी मरजी से दिल्ली गई या भागी थी और इस की वजह भी उस ने विस्तार से अपने सुसाइड नोटनुमा पत्र में लिख दिया था.

संगीता का पकड़ा जाना जरूरी था, इसलिए एसपी एम.एस. सिकरवार की हिदायत पर टीआई अरविंद चौबे ने पुलिस की एक टीम तुरंत दिल्ली के लिए रवाना कर दी. संगीता के मोबाइल फोन की लोकेशन भी दिल्ली की ही मिल रही थी.

यह पुलिस टीम दिल्ली पहुंच भी नहीं पाई थी कि संगीता के मोबाइल फोन की लोकेशन गुजरात के भावनगर की मिलने लगी. पुलिस वाले कटनी के व्यापारियों के बढ़ते गुस्से के चलते परेशान थे, इसलिए खासतौर से उन्होंने संगीता और सतीश के मोबाइल ट्रेस किए हुए थे. दिल्ली के बजाए चारों भावनगर में हैं, यह जान कर पुलिस वालों को तुरंत समझ आ गया कि इतनी जल्दी ये लोग रेल या सड़क के रास्ते तो दिल्ली से भावनगर जा नहीं सकते, जाहिर है उन्होंने फिर हवाई यात्रा की है. नाकाम चालाकी दिखाते हुए संगीता और सतीश, दोनों ने अपने सिम बदल लिए थे. पर वे मोबाइल फोन पुराना ही इस्तेमाल कर रहे थे, इसलिए उन के ईएमआईई नंबरों के जरिए उन की लोकेशन आसानी से पकड़ में आ रही थी.

तीसरे दिन पुलिस टीम ने भावनगर जा कर एक फाइव स्टार होटल से इन लोगों को पकड़ लिया. यहां भी संगीता जसप्रीत कोटवानी के नाम से ही ठहरी थी. भावनगर से अलगअलग कारों से उन्हें जबलपुर लाया गया तो मामले की सनसनी खत्म हुई, जिस का सार यह था कि खोदा पहाड़ निकली चुहिया. क्योंकि ऐसा तो आजकल बेहद आम हो चला है कि लड़कियां या बहुएं कभीकभार अपने यार के साथ भाग जाती हैं. जबलपुर आ कर संगीता ने ससुराल और पति के पास जाने से सख्ती से इनकार कर दिया तो उसे अपनी मां के पास भेज दिया गया. सतीश को उस के घर जाने दिया गया. दोनों बालिग थे और अपनीअपनी मरजी से गए थे, इसलिए उस पर किसी तरह का कोई आपराधिक कृत्य नहीं बनता था.

जबलपुर में भी संगीता अपने सुसाइड नोट वाले कथनों पर अड़ी रही, जो अब बयानों की शकल में दर्ज हुए कि उस का पति रंजन क्रूर और अय्याश है. पति से वह किस हद तक नफरत करने लगी थी, यह उस के लिखने में भी झलकता था कि उस के हाथों अंतिम संस्कार होना भी उसे गवारा नहीं. रंजन ने 5 बार उस का अबौरशन करवाया और कुछ दिनों पहले कान्हा किसली नेशनल पार्क में उसे शराब पी कर दोस्तों के साथ नाचने को मजबूर किया. अपने ससुर को संबोधित करते हुए उस ने यह भी लिखा था कि जब आप झूठे गवाह खड़े कर के हत्या के मामले से अपने भांजे को रिहा करवा सकते हैं तो बेटे की करतूत ढंकने के लिए क्या कुछ नहीं कर सकते. संगीता को डर था कि अगर वह कटनी या जबलपुर में आत्महत्या करती तो सच दुनिया के सामने नहीं आ पाता और यह सच उतना वीभत्स नहीं होता, जितना कि वह बताना चाह रही थी. पीनापिलाना आजकल आम बातें हैं. रही बात पतिपत्नी के बीच कलह की तो सिवाय बारबार गर्भपात कराए जाने के दूसरे आरोप बहुत ज्यादा गंभीर नहीं हैं.

रंजन ज्यादती और गलती कर रहा था, इस में कोई शक नहीं, पर वे कितनी गंभीर थीं, इस का फैसला अब अदालत में होगा, जहां काम भावुकता से नहीं, बल्कि गवाहों और सबूतों की बिना पर होता है. जबलपुर वापस आ कर जितना जहर पति के खिलाफ संगीता ने उगला, उस से ज्यादा अपने दोस्त सतीश की वकालत की. वह यह कहती रही कि सतीश की वजह से ही वह और उस के बेटे जिंदा बच पाए, नहीं तो उस ने खुदकुशी का इरादा कर लिया था. जाहिर है, उस की मुमकिन कोशिश यह है कि कोई उस की और सतीश की दोस्ती को गलत नजरिए से न देखे. उलट इस के पति की लड़कियों से दोस्ती को ले कर वह दुखी रहती थी तो यह दोहरापन नहीं तो और क्या है.

बेटी ने दी बाप के कत्ल की सुपारी : भाग 3

दरअसल, समीर के पिता जरीफ बीएएमएस डाक्टर थे और शामली में अपना क्लीनिक चलाते थे. उन की चाहत थी कि समीर बड़ा हो कर डाक्टर बने. इसीलिए उन्होंने डाक्टरी की कोचिंग के लिए उसे कोटा भेज दिया था. उन के रिश्तेदार का बेटा भी समीर के साथ ही एमबीबीएस की तैयारी कर रहा था.

काव्या से शुरू हुई समीर की दोस्ती गुजरते वक्त के साथ प्यार में बदल गई थी. काव्या के प्रति समीर की चाहत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता था कि एक दिन उस ने अपने हाथ पर उस का नाम भी गुदवा लिया. काव्या को यह तो पता था कि समीर उस पर मरता है लेकिन उसे ये नहीं मालूम था कि उस की दीवानगी में वह उस का नाम अपने हाथ पर भी गुदवा लेगा.

इधर इंटरमीडिएट के बाद दोनों चोरीछिपे पढ़ाई के बहाने कभी घर में तो कभी घर के बाहर मिलतेजुलते थे. धीरेधीरे यह बात राकेश के कानों तक जा पहुंची. राकेश की पत्नी कृष्णा के संबध भी अपने पति से ठीक नहीं थे.

दरअसल, तेजतर्रार और चंचल स्वभाव वाली कृष्णा के चरित्र पर राकेश को पहले से ही शक था. राकेश को भनक थी कि कृष्णा उस के ड्यूटी जाने के बाद घर से बाहर अपने चाहने वालों से मिलती रहती है. राकेश को तो इस बात का भी शक था कि कृष्णा के चाहने वाले उस से मिलने के लिए घर में भी आते हैं.

यही कारण था कि अकसर राकेश और कृष्णा के बीच झगड़ा होता रहता था. अपनी इसी झल्लाहट में राकेश कृष्णा पर अकसर हाथ भी छोड़ देता था. जब राकेश शराब पी लेता तो वह कृष्णा को न सिर्फ गालियां देता, बल्कि मारपीट करने के दौरान यहां तक तंज कस देता कि उसे शक है कि उस की तीनों औलाद असल में उस की हैं या किसी और की.

पिता का विरोध करने के लिए जब उस की दोनों बेटियां वैशाली और वैष्णवी उर्फ काव्या कोशिश करतीं तो उन्हें भी राकेश की मार का शिकार होना पड़ता.

इस दौरान जब एक दिन राकेश को पता चला कि काव्या का चक्कर समीर नाम के एक मुसलिम युवक से चल रहा है तो उन का गुस्सा और बढ़ गया. उस ने पत्नी के साथ अब दोनों बेटियों पर भी लगाम कसनी शुरू कर दी. हालांकि समीर एमबीबीएस की तैयारी करने के लिए कोटा जरूर चला गया था, लेकिन वह हर हफ्ते चोरीछिपे अपने परिवार को बताए बिना शामली आता और काव्या से मिल कर चला जाता था.

काव्या और समीर की दोस्ती और परवान चढ़ रहे प्यार की कहानी की खबर काव्या की मां कृष्णा और उस की बड़ी बहन वैशाली को थी. इस की जानकारी राकेश को जब मोहल्ले के कुछ लोगों से मिली तो उस ने काव्या के साथ सख्ती से पेश आना शुरू कर दिया.

राकेश थक गया था लोगों के ताने सुन कर

शक की आग में जल रहे राकेश के गुस्से में एक दिन उस समय घी पड़ गया, जब वह अपनी ड्यूटी से घर लौट रहा था. मोहल्ले के ही एक व्यक्ति ने उसे रोक कर कहा, ‘‘राकेश भाई, आंखों पर ऐसी कौन से पट्टी बांध रखी है आप ने, जो दूसरे मजहब का एक लड़का सरेआम आप की बेटी को ले कर घूमता है. आप के घर आताजाता है. लेकिन न तो आप उसे रोक रहे हैं और न ही आप की धर्मपत्नी. अरे भाई अगर कोई डर या कोई दूसरी वजह है तो हमें बताओ, हम रोक देंगे उस लड़के को.’’

उस दिन कालोनी के व्यक्ति का ताना सुन कर राकेश के तनबदन में आग लग गई. ऐसा पहली बार नहीं हुआ था. इस से पहले भी अलगअलग लोगों ने दबी जुबान में इस बात की शिकायत की थी, लेकिन अब काव्या की शिकायतें खुल कर होने लगीं. खुद राकेश ने भी एकदो बार समीर को अपने घर आते देखा था.

राकेश ने पहले समीर को समझा कर कह दिया कि वह उस के घर न आया करे, क्योंकि काव्या से उस का मिलनाजुलना उन्हें पसंद नहीं है. बाद में जब समझाने पर भी समीर नहीं माना तो उस ने समीर को एक बार 2-3 थप्पड़ भी जड़ दिए. साथ ही धमकी भी दी कि अगर फिर कभी काव्या से मिलने की कोशिश की तो वह उसे पुलिस को सौंप देंगे.

इस के बाद से समीर ने काव्या से मिलने में सावधानी बरतनी शुरू कर दी. अब या तो वह काव्या से सिर्फ उस के घर पर ही मिलता था या फिर दोनों शहर से बाहर कहीं दूर जा कर मिलते थे.

राकेश के ड्यूटी पर निकल जाने के बाद घर में क्याक्या होता, यह खबर रखने के लिए राकेश ने अपने घर में सीसीटीवी कैमरे लगवा लिए. इन सीसीटीवी कैमरों का मौनीटर उस ने अपने मोबाइल फोन में इंस्टाल करवा लिया. इसी सीसीटीवी के जरिए वह राज खुल गया, जिस का राकेश को शक था. उस ने मौनीटर पर खुद देखा कि किस तरह उस की गैरमौजूदगी में उस की पत्नी और बेटी से मिलने के लिए उन के आशिक उसी के घर में आते हैं.

पहले पत्नी उतरी विरोध पर

पत्नी और बेटी के चरित्र के इस खुलासे के बाद राकेश का मन बेटियों और पत्नी के प्रति खट्टा हो गया. राकेश के लिए पत्नी और बेटियों के साथ मारपीट करना अब आए दिए की बात हो गई.

रोजरोज की मारपीट और बंधनों से परेशान कृष्णा ने एक दिन अपनी दोनों बेटियों के सामने खीझते हुए बस यूं ही कह दिया कि जिंदा रहने से तो अच्छा है कि ये इंसान मर जाए, पता नहीं वो कौन सा दिन होगा जब हमें इस आदमी से छुटकारा मिलेगा.

बस उसी दिन काव्या के दिलोदिमाग में ये बात बैठ गई कि जब तक उस का पिता जिंदा है, वह और उस की मांबहनें आजादी की सांस नहीं ले सकतीं, न ही अपनी मरजी से जिंदगी जी सकती हैं.

काव्या के दिमाग में उसी दिन से उधेड़बुन चलने लगी कि आखिर ऐसा क्या किया जाए कि उस का पिता उन के रास्ते से हट जाए. अचानक उस की सोच समीर पर आ कर ठहर गई. उसे लगने लगा कि समीर उस से जिस कदर प्यार करता है, बस एक वही है, जो उस की खातिर ये काम कर सकता है.

लेकिन इस के लिए जरूरी था कि समीर को भावनात्मक रूप से और लालच दे कर इस काम के लिए तैयार किया जाए. इस बात का जिक्र काव्या ने अपनी मां से किया तो उस ने भी हामी भर दी. बस फिर क्या था काव्या मौके का इंतजार करने लगी.

एक दिन मौका मिल गया. समीर ने रोजरोज चोरीछिपे मिलने से परेशान हो कर काव्या से कहा कि वह इस तरह मिलनेजुलने से परेशान हो चुका है, क्यों न वे दोनों भाग जाएं और शादी कर लें.

पिता को बताया जल्लाद

काव्या ने कहा कि वह उस से भाग कर नहीं बल्कि पूरे जमाने के सामने ही शादी करेगी लेकिन इस के लिए एक समस्या है. काव्या ने समीर से कहा कि उस के पिता उन के प्रेम में बाधा बने हैं. उन के जीते जी कभी वे दोनों एक नहीं हो सकते. उन के मेलजोल के कारण ही पिता आए दिन पूरे परिवार के साथ मारपीट करते है.

साली का नशा : क्यों देनी पड़ी 5 लोगों को जान

भरी दोपहर का वक्त था. आलोक की दुकान में मटकतीलचकती अमिषा घुसते ही बोली, ‘‘क्यों जीजाजी, अब लेडीज का भी सामान बेचने लगे?’’

‘‘आप के लिए ही तो लाए हैं,’’ आलोक मुसकराते हुए बोला.

‘‘मेरे लिए! क्या मतलब है आप का?’’ अमिषा बोली.

‘‘मतलब यह कि अब आप को अंडरगारमेंट्स के लिए दूसरी दुकान पर नहीं जाना पड़ेगा. ब्रांडेड आइटम लाया हूं. एकदम आप की फिटिंग के लायक.’’ आलोक दुकान के एक कोने की ओर इशारा करते हुए बोला, जहां मौडलों की बड़ी फोटो लगी थी.

‘‘जीजाजी, तब तो आप को सेल्सगर्ल रखनी पड़ेगी,’’ अमिषा झट से बोल पड़ी.

‘‘सेल्सगर्ल क्यों, ग्राहक को मैं नहीं दिखा सकता क्या?’’ आलोक बोला.

‘‘अच्छा चलो, मैं ट्रायल करती हूं. मेरे लिए दिखाइए.’’

‘‘तुम्हारा साइज तो मुझे पता है,’’ आलोक चुटकी लेते हुआ बोला.

‘‘धत्त! बड़े बेशर्म हो.’’ यह कहती अमिषा शरमाती हुई जैसे मटकती आई थी, वैसी ही तेज कदमों से चली गई. आलोक देर तक उसे जाते देखता रहा.

यह बात 2 साल पहले की है. अधेड़ उम्र के आलोक माथुरकर नागपुर में गारमेंट की दुकान चलाता था. दुकान से मात्र 10 मीटर की दूरी पर ही बोबडे परिवार रहता था. बोबडे परिवार से उस का गहरा रिश्ता था, कारण वह उस की ससुराल थी.

परिवार में उस के 60 वर्षीय ससुर देवीदास बोबडे, 55 वर्षीया सास लक्ष्मी बाई और 22 वर्षीया अविवाहित साली अमिषा बोबड़े रहते थे. ससुर देवीदास एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी में सुरक्षा गार्ड की नौकरी करते थे.

देवीदास की बड़ी बेटी विजया से आलोक ने प्रेम विवाह किया था. विजया भी विवाह से पहले अकसर आलोक की दुकान पर आती थी, वहीं वह आलोक से प्रेम करने लगी थी. अमिषा विजया से करीब 10 साल छोटी थी.

मिट गईं दूरियां

आलोक के पिता उपेंद्र माथुरकर सालों पहले रोजीरोटी के लिए नागपुर शहर आ कर बस गए थे. उन्होंने पांचपावली इलाके में कपड़ों की सिलाई का काम शुरू किया था. आलोक उन का इकलौता बेटा था.

उस का पढ़ाई में मन नहीं लगा. इस कारण वह पिता के पुश्तैनी काम में लग गया था. कपड़े की सिलाई के अलावा कपड़े की अच्छी जानकारी थी, सो उस ने अच्छीखासी गारमेंट की दुकान खोल ली थी, जिस से परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी हो गई थी.

आलोक का अपना सुखीसंपन्न परिवार था. उस के 2 बच्चे थे, जिन में बेटी परी 14 साल की और बेटा साहिल 11 साल का था. विजया आलोक के साथ खुश रहते हुए दांपत्य जीवन का निर्वाह कर रही थी, लेकिन आलोक रंगीनमिजाज किस्म का आदमी था.

दूसरी लड़कियों पर नजरें रखना और फूहड़ मजाक करना उस की आदत में शामिल था. साली को देखते ही उस के मन में तरहतरह के रोमांटिक विचार उमड़ने लगते थे.

जब भी मौका लगता, दुकान से ससुराल चला जाता था, साली के साथ हंसीमजाक कर समय बिताया करता था. उस की सास न चाहते हुए भी चुप रहती थी.

मजाकमजाक में एक दिन आलोक ने साली को अकेला पा कर बांहों में भर लिया. अमिषा उस दिन किसी तरह से उस की बाहों से छूटी, लेकिन जल्द ही जीजा के आगे आत्मसमर्पण कर दिया. आलोक ने इस बारे में किसी को नहीं बताने की हिदायत दी.

अमिषा भी एक बार सैक्स का स्वाद लगने पर बेचैन रहने लगी. दूसरी तरफ आलोक उस के साथ अंतरंग संबंध बनाने के लिए मौके की तलाश में रहने लगा.

साली की सुंदरता और सैक्स का काकटेल उस के दिमाग में नशे की तरह छा गया था. और फिर उन्होंने अनैतिक संबंध को ही जीवन का एक हिस्सा बना लिया.

दोनों इस रिश्ते को ज्यादा दिनों तक छिपा कर नहीं रख पाए. पहले आलोक की पत्नी विजया ने जीजासाली को अंतरंग रिश्ते बनाते रंगेहाथों पकड़ा. उस ने अपने पति की जम कर झाड़ लगाई. बहन को भी समझाया. फिर भी दोनों अपनी मस्ती में डूबे रहे.

जल्द ही इस की भनक अमिषा की मां और पिता को भी लग गई. उन्होंने अमिषा को तो आडे़ हाथों लिया ही, साथ में आलोक माथुरकर को भी नहीं छोड़ा. हालांकि बेटी की इस हरकत पर उन्हें गहरा धक्का लगा था.

उन्होंने अमिषा को प्यार से समझाया. अपनी रिश्तेदारी, समाज में बदनामी और उस की बहन के घर की बरबादी का वास्ता दिया. मांबाप के समझानेबुझाने का असर अमिषा पर सिर्फ इतना हुआ कि उस ने आलोक से दूरियां बना लीं. यह बात जनवरी, 2021 की थी.

सिर से पांव तक अमिषा के रंग में डूबे आलोक को उस की दूरियां बरदाश्त नहीं हो रही थीं. वह जितना ही अमिषा के पास जाने की कोशिश कर रहा था, वह उस से उतनी दूर होती जा रही थी.

कई बार मौका देख कर अपनी ससुराल भी गया, लेकिन सासससुर के मौजूद रहने के कारण अमिषा से बात तक नहीं कर पाया. वह जब भी ससुराल जाता, उसे नसीहत सुनने को मिलती.

बेटी और दामाद का रिश्ता न खराब हो, इस के लिए उन्होंने अमिषा के योग्य कोई अच्छा सा लड़का ढूंढ कर उस की शादी कर देने में ही भलाई समझी.

इस बात की जानकारी जब आलोक  को लगी तो उस का खून खौल उठा. उस ने मन ही मन यह तय किया कि अगर अमिषा उस की नहीं तो वह उसे किसी और की भी नहीं होने देगा. इसी बात को ले कर वह अमिषा को फोन पर तरहतरह की धमकियां भी देने लगा था.

अप्रैल, 2021 के महीने में लौकडाउन के समय तो आलोक ने हद ही कर दी. एक दिन दोपहर को मौका देख कर वह अपनी ससुराल गया. जाते ही अमिषा के साथ जोरजबरदस्ती करने लगा. वह अपनी हरकत में कामयाब होता, इस के पहले वहां अमिषा के मांबाप आ गए.

उन्होंने आलोक को न केवल डांटाफटकारा, बल्कि उस के खिलाफ स्थानीय थाने में शिकायत भी दर्ज करवा दी. पुलिस ने परिवारिक मामले को ध्यान में रखते हुए आलोक पर फौरी तौर पर काररवाई की. उस से माफीनामा लिखवाया और चेतावनी दे कर छोड़ दिया.

बदले की आग

बात आईगई हो गई, किंतु आलोक अमिषा के साथ वासना पूर्ति की आग में तपता रहा. वह मौके की ताक में रहते हुए बदले की भावना से भी भर चुका था.

पुलिस के हस्तक्षेप के बाद अमिषा के घर वालों को थोड़ी राहत जरूर मिली थी, जबकि आलोक ने पुलिस की काररवाई और माफीनामे को प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था. अब उसे अपनी ससुराल और अमिषा से नफरत हो गई थी. उन्हें सबक सिखाने के लिए उस ने एक खतरनाक योजना बना ली थी.

उस ने मई महीने में औनलाइन कुछ घरेलू सामान मंगाया. उस में उस ने एक लंबा मटन काटने का चाकू भी मंगवा लिया.

23 जून की रात 10 बजे के करीब आलोक अपनी ससुराल जा पहुंचा. घर पर अमिषा अकेली थी. पिता देवीदास अपनी ड्यूटी पर चले गए थे. मां लक्ष्मीबाई पड़ोस के बच्चे के नामकरण कार्यक्रम में गई हुई थी.

अमिषा अपने कमरे में बैठी अपनी दोस्त के साथ मोबाइल पर चैट कर रही थी. अचानक अपने कमरे में आलोक को देख वह चौंक गई. हड़बड़ाते हुए पूछा, ‘‘जीजाजी आप?’’

उस ने मोबाइल को वैसे ही छोड़ दिया. जिस में उन के बीच की बातें रिकौर्ड होने लगीं.

‘‘हां मैं, तुम किस से बातें कर रही थीं?’’ आलोक ने कहा.

‘‘आप से मतलब, मैं अपने मन की मालकिन हूं, जिस से चाहूंगी बात करूंगी.’’ अमिषा ने कड़क शब्दों में कहा.

आलोक जलभुन गया. वह बोला, ‘‘तुम ने मेरी शिकायत पुलिस में क्यों की थी?’’

‘‘आप की हरकत से घर वाले सब परेशान हो गए थे. बेशर्मी की हद होती है. सब के सामने मुझे जलील कर दिया.’’ अमिषा ने सख्ती से कहा.

इस बात पर आलोक का गुस्सा फूट पड़ा था. उस ने कहा, ‘‘अब मैं तुम्हें इस लायक ही नहीं छोड़ूंगा कि तुम पुलिस थाने जा सको.’’

यह कहते हुए आलोक ने अमिषा को पकड़ लिया था. अमिषा खुद को आलोक से छुड़ाने की कोशिश करने लगी. काफी कोशिशें कीं मगर सफल नहीं हुई. सैक्स का उन्माद उतर जाने के बाद ही अमिषा उस के चंगुल से आजाद हो पाई.

आलोक द्वारा हाथ से मुंह बंद किए जाने के कारण शोर नहीं मचा पाई. घर से बाहर जाने की कोशिश करने लगी. मगर आलोक ने उसे इस का मौका नहीं दिया. छिपा कर लाए चाकू से एक झटके में अमिषा का गला रेत दिया. वह जमीन पर गिर पड़ी.

खून से लथपथ अमिषा तड़पती रही और आलोक बुत बना उसे देख रहा. इस के पहले कि अमिषा के प्राणपखेरू उड़ते, कमरे में अमिषा की मां लक्ष्मीबाई आ गई. बेटी अमिषा की हालत देख कर चीखते हुए बोली, ‘‘आलोक, यह तुम ने क्या किया?’’

आलोक ने लक्ष्मीबाई के गले पर चाकू फिराते हुए कहा, ‘‘चिल्लाओ मत, पड़ोसी आ जाएंगे.’’

और फिर उस ने लक्ष्मीबाई का गला भी एक झटके में रेत डाला. आधे घंटे तक वहीं रहने के बाद वह अपने घर आ गया था.

बताते हैं कि अपनी ससुराल से वापस घर आने के बाद भी आलोक का क्रोध शांत नहीं हुआ. उसी क्रोध में उस ने पहले अपनी पत्नी की हत्या कर दी. फिर मासूम बेटे साहिल और बाद में बेटी परी को भी मौत की नींद सुला दिया.

अपने पूरे परिवार की हत्या के बाद आलोक का मन शांत हुआ, लेकिन वह विक्षिप्तावस्था में आ चुका था. उस ने कमरे के पंखे से लटक कर अपनी जीवनलीला भी समाप्त कर ली. इस तरह से एक घंटे के भीतर 6 हत्या- आत्महत्या की वारदात की जानकारी अगले रोज हुई.

जून महीने की 24 तारीख को दिन के करीब 11 बज चुके थे, नागपुर में में पाचपावली के रहने वाले आलोक माथुरकर का दरवाजा नहीं खुला था. उन के पड़ोस में रहने वाले भोसले परिवार को हैरानी हुई.

रोज सुबह 8 बजे फ्रैश हो कर अपने काम में लग जाने वाले का घर बंद होने पर भोसले परिवार के लोगों ने मकान की कालबेल दबाई. दरवाजा खटखटाया, आवाज दी.

कई बार ऐसा करने के बाद भी जब दरवाजा नहीं खुला और न मकान के भीतर से कोई आवाज आई, तब वह किसी अनहोनी की आशंका से घबरा गए.

मकान के पीछे लगी खिड़की के पास गए. हलके से धक्के के साथ खिड़की खुल गई. भीतर का मंजर देख कर भोसले परिवार के होश उड़ गए. उन की आंखों के सामने आलोक का सब से छोटा बेटा खून से लथपथ जमीन पर पड़ा था.

उन्होंने मामले की खबर पहले मकान मालिक प्रमोद भिभिकर और फिर थानाप्रभारी जयेश भंडारकर को दी.

कई हत्याओं से सहमा शहर

थाने की ड्यूटी पर तैनात एसआई राज राठौर को मामले की डायरी बनाने का आदेश मिला. जबकि इस की सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को देने के बाद एएसआई संदीप बागुल, एसआई राज राठौर, हैडकांस्टेबल रवि पाटिल कुछ समय में ही घटनास्थल पर पहुंच गए. इस बीच यह खबर आग की तरह पूरे इलाके में फैल गई थी.

पुलिस टीम ने दरवाजा तोड़ कर मकान में प्रवेश किया. अंदर 3 लाशें जमीन पर खून से सनी हुई थीं, जबकि एक पंखे से झूल रही थी. पंखे से झूलती लाश की पहचान आलोक माथुरकर के रूप में हुई और बाकी लाशें उस की पत्नी विजया और उस के बच्चों परी एवं साहिल की थीं.

थानाप्रभारी जयेश भंडारकर अपने सहायकों के साथ अभी घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रहे थे कि तभी पुलिस कमिश्नर अमितेश कुमार, एडिशनल पुलिस कमिश्नर सुनील फुलारी के साथ फोटोग्राफर और फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट भी मौकाएवारदात पर पहुंच गए.

उसी समय उन्हें पास में ही एक दूसरे हत्याकांड की सूचना मिली. थानाप्रभारी ने पुलिस की दूसरी टीम को दूसरे घटनास्थल पर भेज दिया.

दोनों घटनास्थल महज 10 मीटर की दूरी पर ही थे. दूसरा स्थान आलोक की ससुराल था, जहां उस की सास लक्ष्मीबाई और साली अमिषा मृत पड़ी थीं. दोनों घटनाओं में सभी की गरदन भी चाकू से रेती गई थी.

परिवार के मुखिया देवीदास ने पुलिस को बताया कि सभी हत्याओं के पीछे उस के दामाद आलोक का ही हाथ है.

दोनों घटनास्थल की तमाम औपचारिकताएं पूरी करने के बाद लाशों का पंचनामा कर पोस्टमार्टम के लिए नागपुर मैडिकल कालेज भेज दिया गया. उस के एकमात्र गवाह के तौर पर देवीदास से थाने में पूछताछ की गई.

मौके पर बरामद मोबाइल की रिकौर्डिंग से आलोक और अमिषा के बीच संबंधों का खुलासा हो गया. फिंगरप्रिंट से भी आलोक द्वारा हत्याओं को अंजाम दिए जाने की पुष्टि हो गई.

एक ही दिन में 6 लोगों की हत्या और आत्महत्या के मामले की गुत्थी को कुछ घंटों में ही सुलझा लिया गया और जांच एडिशनल पुलिस कमिश्नर सुशील फुलारी को सौंप दी गई. 2 परिवारों में अगर कोई बचा था तो वह थे आलोक के ससुर देवीदास. उन की किस्मत थी जो उस रात अपनी ड्यूटी पर थे. किंतु वे उस किस्मत का क्या करते, जब उन्हें कोई अपना कहने वाला ही नहीं रहा.

बिना ईमान की औरत : शादाब के घर में रचा हत्या का खेल

फोन पर उस की बुआ के बेटे रिजवान कुरैशी ने बताया कि 3-4 दिन पहले 4-5 लोगों ने उस के बहन बहनोई के घर में घुस कर उन के साथ मारपीट की और उस के बहनोई की हत्या कर के उस की बहन गुलशबा को अगवा कर ले गए.

मैं मौके पर मौजूद था. मैं ने जब उन का विरोध किया तो उन्होंने मारपीट कर मुझे भी घायल कर दिया. गुलशबा अपने पति मनोज सोनी उर्फ कैफ के साथ नायगांव परिसर स्थित बिट्ठलनगर के फ्लैट में रहती थी.

इस के पहले कि शादाब कुरैशी रिजवान से इस बारे में कोई बात पूछता, फोन कट गया. कई बार कोशिश के बाद भी जब रिजवान से संपर्क नहीं हो पाया तो सच्चाई जानने के लिए शादाब बहन के फ्लैट पर पहुंच गया.

फ्लैट के बाहर लोगों की भीड़ जमा थी, अंदर से थोड़ी बदबू भी आ रही थी. पड़ोसियों ने बताया कि यह फ्लैट 3-4 दिनों से बंद पड़ा है. उन्होंने फोन कर के उस फ्लैट के मालिक को बुला लिया था. मामला संदिग्ध था, इसलिए मकान मालिक ने मामले की जानकारी स्थानीय पुलिस थाने को दे दी थी.

रात करीब एक बजे थाना शांतिनगर के थानाप्रभारी किशोर जाधव अपने सहायक पीआई मनजीत सिंह बग्गा, एसआई जी.के. वाघ, दिनेश लोखंडे, एएसआई डी.के. सोनवणे, सिपाही सुनील इंथापे, टी.बी. वड़ को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए.

पुलिस ने देखा कि गुलशबा के फ्लैट पर ताला लटका हुआ था. चूंकि उस ताले की चाबी किसी के पास नहीं थी, इसलिए पुलिस ने ताले को तोड़ दिया. दरवाजा खुलते ही अंदर से तेज बदबू का झोंका आया, जिस से वहां खड़े लोगों का सांस लेना मुश्किल हो गया.

नाक पर रूमाल रख कर पुलिस टीम जब कमरे में गई तो वहां का नजारा देख कर स्तब्ध रह गई. फर्श पर खून के जमे हुए धब्बे नजर आ रहे थे, जो सूख कर काले पड़ गए थे.

दरवाजे के पीछे कपड़ों का एक पुलिंदा रखा हुआ था, जिस से ढेर सारा खून निकल कर बाहर आ गया था. उस पुलिंदे को खोला गया तो उस में एक आदमी की लाश थी. लाश का धड़ और सिर दोनों अलगअलग थे. शादाब कुरैशी ने उस लाश की शिनाख्त अपने बहनोई मनोज कुमार सोनी उर्फ कैफ के रूप में की.

लाश देख कर लग रहा था कि उस की हत्या 3-4 दिन पहले की गई होगी,जिस से शव में सड़न पैदा हो गई थी. थानाप्रभारी किशोर जाधव ने इस की सूचना अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी. खबर पाते ही ठाणे जिले के डीसीपी मनोज पाटिल, एसीपी मुजावर तत्काल मौकाएवारदात पर आ गए. उन्होंने भी मृतक के साले शादाब और अन्य लोगों से पूछताछ की.

घटनास्थल की काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने शव पोस्टमार्टम के लिए भिवंडी के आईजीएस अस्पताल भेज दिया. इस के बाद पुलिस ने शादाब कुरैशी की तरफ से हत्या की रिपोर्ट दर्ज कर के मामले की जांच सहायक पीआई मंजीत सिंह बग्गा को सौंप दी. शादाब ने शक अपनी बुआ के बेटे रिजवान पर ही जताया था. फुफेरे भाई के अलावा रिजवान रिश्ते में शादाब का साला भी था.

संदेह के दायरे में रिजवान कुरैशी

शुरुआती जांच में रिजवान कुरैशी पुलिस के रडार पर आ गया था. उस ने जिस प्रकार से मामले की जानकारी शादाब कुरैशी को दी थी, वह आधीअधूरी थी. इस के अलावा मृतक के तीनों बच्चे अपने नानी के घर सहीसलामत थे. बच्चों की मां गुलशबा खुद उन्हें बच्चों को मायके छोड़ कर आई थी. ऐसे में गुलशबा के अपहरण का तो सवाल नहीं उठता था. एपीआई मंजीत सिंह बग्गा के निर्देशन में पुलिस टीम उस के घर गई तो वह घर से गायब मिला.

पुलिस ने जब रिजवान कुरैशी के बारे में गहराई से जांचपड़ताल की तो पता चला कि रिजवान कुरैशी का चरित्र ठीक नहीं है. मृतक की पत्नी के साथ उस के अवैध संबंध थे. यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस ने गुलशबा को भी जांच के घेरे में शामिल कर लिया.

इस के बाद पुलिस ने रिजवान के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई. काल डिटेल्स में यह जानकारी मिल गई कि रिजवान की किनकिन लोगों से बात होती थी. पुलिस ने उन लोगों से पूछताछ शुरू कर दी. इस पूछताछ के बाद पुलिस को रिजवान के बारे में महत्त्वपूर्ण सूचना मिल गई.

इस के बाद एपीआई मंजीत सिंह बग्गा ने एसआई दिनेश लोखंडे, कांस्टेबल सुनील इंथापे, टी.बी. वड़, के.टी. मोहिते की एक टीम बना कर उन्हें रिजवान कुरैशी और गुलशबा की गिरफ्तारी के लिए रवाना कर दिया.

10 जनवरी, 2018 को यह टीम उत्तर प्रदेश के जिला रायबरेली पहुंच गई. वहां दबिश दे कर पुलिस ने रिजवान और गुलशबा को गिरफ्तार कर लिया. वे दोनों अपने एक जानकार के यहां छिपे हुए थे. पुलिस उन्हें ट्रांजिट रिमांड पर ले कर थाना शांतिनगर ले आई.

थानाप्रभारी किशोर जाधव ने उन दोनों से मनोज कुमार सोनी उर्फ कैफ की हत्या के बारे में पूछताछ की तो उन्होंने थोड़ी सख्ती के बाद कैफ की हत्या करने की बात स्वीकारते हुए जो कहानी बताई वह एहसान फरामोशी की सारी हदें पार कर देने वाली थी—

इंसानियत का तकाजा

करीब 10 साल पहले 28 वर्षीय गुलशबा कुरैशी मनोज कुमार सोनी उर्फ कैफ को उत्तर प्रदेश के आगरा दिल्ली हाईवे पर काफी दयनीय हालत में भटकती हुई मिली थी. मनोज उस हाइवे पर कटलरी की दुकान लगाता था. उस समय गुलशबा की स्थिति बहुत खराब थी, उस के मुंह से आवाज तक नहीं निकल पा रही थी. लग रहा था जैसे वह कई दिनों से भूखी है.

वह मनोज कुमार सोनी के पास आ कर ऐसे गिर गई, जैसे बेहोश हो गई हो. उस की हालत देख मनोज कुमार घबरा गया. उस ने उसे अपनी दुकान के पास ही लिटाया और उस के मुंह पर पानी के छींटे मारे. कुछ देर बाद गुलशबा को होश आया तो उस ने उसे पानी पिलाया. पानी पीते ही उस की चेतना धीरेधीरे लौट आई.

इस के बाद गुलशबा ने मनोज को अपनी आपबीती बताई. गुलशबा ने उसे बताया कि वह मुंबई की रहने वाली है और वहीं के एक युवक से प्यार करती थी. वह युवक उसे घुमाने के लिए दिल्ली लाया था. दिल्ली के एक होटल में वे दोनों कई दिनों तक साथ रहे.

फिर वह युवक उसे होटल में छोड़ कर कहीं चला गया. होटल वालों ने उसे धक्के मार कर निकाल दिया. किसी तरह वह भटकती हुई यहां तक पहुंची है. अब वह अपने घर वापस नहीं लौट सकती क्योंकि घर वाले उस से बहुत नाराज हैं.

गुलशबा की आपबीती सुनने के बाद मनोज कुमार को उस से सहानुभूति हो गई. उस ने उसे धीरज बंधाया और अपनी दुकान बंद कर के खाना खिलाने के लिए एक होटल पर ले गया. बाद में वह उसे ले कर नई दिल्ली रेलवे स्टेशन आया और कहा, ‘‘देखो, अब तुम जहां जाना चाहती हो, चली जाओ. मैं तुम्हारी टिकट का बंदोबस्त कर दूंगा. अच्छा यही होगा कि तुम अपने मांबाप के पास लौट जाओ. उन से माफी मांग लेना. मुझे यकीन है कि वे तुम्हें माफ कर देंगे.’’

लेकिन गुलशबा ने मनोज कुमार सोनी की बात नहीं मानी. वह बोली, ‘‘मैं अब क्या मुंह ले कर उन के पास जाऊंगी. शायद वे मुझे माफ कर भी दें लेकिन समाज में हमारी क्या इज्जत रहेगी. ऐसी स्थिति में मैं वहां नहीं जाऊंगी.’’

गुलशबा की यह बात सुन कर मनोज कुमार थोड़ा गंभीर हो गया. उस ने कहा, ‘‘ठीक है, अगर तुम वहां नहीं जाना चाहती हो तो यह बताओ कि तुम्हारा और कोई रिश्तेदार है, जिस के यहां तुम जाना चाहोगी. मैं वहां जाने का बंदोबस्त कर दूंगा.’’

‘‘अब मेरा कोई नहीं है. मैं कहीं नहीं जाना चाहती. मेरे नसीब में जो लिखा है, वह होगा.’’ कहते हुए गुलशबा ने अपना सिर झुका लिया.

गुलशबा के इस उत्तर से मनोज कुमार सोनी एक अजीब स्थिति में फंस गया था. अगर वह कहीं जाना नहीं चाहती तो उस का क्या होगा. एक अकेली अंजान औरत के लिए शहर सुरक्षित नहीं था. उस के साथ कुछ भी हो सकता था.

काफी समझाने के बाद भी जब गुलशबा कहीं जाने के लिए राजी नहीं हुई तो मजबूरन मनोज कुमार यह सोच कर उसे अपने घर ले आया कि मौका देख कर उसे उस के मातापिता के पास भेज देगा. लेकिन ऐसा हो नहीं सका.

मनोज कुमार के घर आने के बाद गुलशबा कुछ दिनों तक तो उदास रही फिर धीरेधीरे उस के चेहरे की उदासी घटने लगी. वक्त के साथ मनोज कुमार के साथ घुलमिल गई. मनोज कुमार अपने घर में अकेला रहता था. गुलशबा ने मनोज के घर के सारे कामकाज संभाल लिए थे.

30 वर्षीय मनोज कुमार सोनी राजस्थान के रहने वाले जगदीश प्रसाद सोनी का बेटा था. रोजीरोटी के लिए वह दिल्लीआगरा हाइवे पर कटलरी की दुकान चलाता था. वह दुकान का सारा सामान मुंबई से लाता था और आगरा घूमने आने वाले सैलानियों को बेचता था, जिस से उसे अच्छीखासी कमाई हो जाया करती थी.

गुलशबा को अपने प्रति समर्पित देख कर अविवाहित मनोज कुमार सोनी का भी झुकाव उस की तरफ हो गया. वे दोनों अब एकदूसरे की जरूरतें महसूस करने लगे थे, जिस के चलते उन के दिलों में एकदूसरे के प्रति चाहत पैदा हो गई. मन के साथसाथ तन का भी मिलन हो जाने के बाद दोनों अब सोतेजागते अपने जीवन के सतरंगी सपने सजाने लगे. मनोज गुलशबा से शादी करना चाहता था. लेकिन उन के बीच समाज और धर्म की दीवार खड़ी थी.

गुलशबा की तरफ से तो रास्ता साफ था लेकिन मनोज कुमार सोनी के घर वालों को यह रिश्ता पसंद नहीं था. उन की भी समाज में इज्जत थी. मनोज ने घर वालों की बातों को दरकिनार करते हुए खुद मुसलिम धर्म अपना कर गुलशबा से निकाह कर लिया. उस ने अपना नाम बदल कर कैफ रख लिया था.

गुलशबा से शादी कर के मनोज कुमार सोनी उर्फ कैफ खुश था. गुलशबा को भी अचानक में ही सही, पर एक ऐसा पति मिल गया था जो उस का हर तरह से पूरा ध्यान रख रहा था. मनोज रातदिन मेहनत कर के पत्नी को अपनी क्षमता के अनुसार सुखसुविधाएं दे रहा था.

पति के प्यार में गुलशबा भी अपनी बीती जिंदगी के पलों को भुला कर अपनी गृहस्थी में रम गई थी. दोनों के जीवन के 8 साल कैसे निकल गए, पता ही नहीं चला. इस बीच गुलशबा 2 बच्चों की मां बन गई. कुल मिला कर उस की गृहस्थी की गाड़ी हंसीखुशी से चल रही थी.

समय अपनी गति से चल रहा था. मनोज के कहने पर गुलशबा ने अपने मायके वालों से भी बातचीत करनी शुरू कर दी थी, जिस से उस के उन से भी संबंध सामान्य हो गए थे. बेटी खुश थी, उस का जीवन सुखी था, इस से ज्यादा एक मातापिता को और क्या चाहिए. मायके वालों का उस के पास आनाजाना शुरू हो गया.

8 सालों तक एक ही जगह पर रह कर जब गुलशबा का मन भर गया तो वह कुछ दिनों के लिए अपने मायके चली गई. गुलशबा चाहती थी कि उस का पति मुंबई में ही अपना धंधा शुरू कर के वहीं रहे तो वह मायके वालों के करीब आ जाएगी.

यही सोच कर उस ने एक दिन कैफ को समझाते हुए कहा, ‘‘जो काम तुम आगरा में करते हो, वही काम मुंबई में भी कर सकते हो. और फिर तुम सामान तो मुंबई से ही लाते हो. सामान लाने में खर्च भी होता है. मुंबई में काम करने से यह खर्चा भी बचेगा.’’

मनोज कुमार सोनी उर्फ कैफ को पत्नी का सुझाव अच्छा लगा. फिर वह सन 2016 में आगरा वाली दुकान किराए पर दे कर अपने परिवार के साथ मुंबई चला गया और अपनी ससुराल के नजदीक नायगांव में किराए का घर ले कर रहने लगा.

बेटी के नजदीक आने पर मायके वाले भी खुश हुए क्योंकि उन का जब भी मन होता गुलशबा से मिलने के लिए आते रहते थे. मुंबई में गुलशबा ने एक बच्ची को जन्म दिया, जिस का नामकरण काफी धूमधाम से हुआ. जहां गुलशबा अपने मायके वालों के करीब रह कर खुश थी, वहीं मनोज उर्फ कैफ थोड़ा चिंतित और परेशान था. इस की वजह यह थी कि मुंबई में उस का कारोबार ठीक नहीं चल पा रहा था. आगरा की दुकान भी बंद हो चुकी थी.

मनोज चाहता था लौटना पर गुलशबा नहीं मानी

यह सब सोच कर मनोज ने आगरा वापस लौटने का फैसला कर लिया पर गुलशबा मुंबई छोड़ने के लिए तैयार नहीं थी. उस ने पति को कह दिया कि वह अपने तीनों बच्चों के साथ अकेली ही मुंबई में रह लेगी, क्योंकि उस के मायके वाले पास में हैं. मनोज ने भी उस की बात मान ली. पत्नी और बच्चों की तरफ से चिंतामुक्त हो कर मनोज आगरा लौट आया. वापस लौट कर उस ने अपना व्यवसाय फिर से जमा लिया.

कुछ दिनों बाद उस का धंधा पहले की तरह चलने लगा. वह अपने धंधे में व्यस्त हो गया तो गुलशबा अपनी गृहस्थी में. लेकिन वक्त का पहिया कुछ इस प्रकार से घूमा कि उन का सुखमय परिवार तिनके की तरह बिखर गया. अपने कारोबार में मनोज कुमार उर्फ कैफ कुछ इस तरह उलझा कि अपनी पत्नी गुलशबा के लिए वक्त ही नहीं निकाल पाता था. वह साल में 2-4 बार ही गुलशबा को वक्त दे पाता था, जिस के कारण उस के और पत्नी के बीच की दूरियां बढ़ गई थीं.

मनोज कुमार का समय तो उस के कामों में निकल जाता था, लेकिन गुलशबा को उस की याद आती थी. वह अधिक दिनों तक पति की इन दूरियों को बरदाश्त नहीं कर पाई, लिहाजा 27 वर्षीय रिजवान कुरैशी से उस के नाजायज संबंध बन गए. रिजवान गुलशबा के भाई शादाब कुरैशी का साला था, जिस का गुलशबा के यहां आनाजाना लगा रहता था.

रिजवान से अवैध संबंध बन जाने के बाद गुलशबा ने पति की चिंता करनी बंद कर दी. बल्कि जब कभी पति से फोन पर बात होती तो वह उस से कह देती कि यहां की कोई चिंता मत करो और अपने काम पर ध्यान दो. पत्नी की चहकती बातों से मनोज को लगता कि गुलशबा खुश है. इस तरह गुलशबा पति के भरोसे का खून करती रही.

पत्नी के अवैध संबंधों की खबर किसी तरह मनोज के पास पहुंची तो उस के होश उड़ गए. उस ने सोचा भी न था कि जिस गुलशबा को वह रोड से उठा कर अपने घर लाया, जिस की खातिर उस ने अपना धर्म बदला, अपने घर वालों तक से बगावत की, जिसे उस ने जीने का सहारा दिया, उसे सारे ऐशोआराम दिए, वह उस के एहसानों का बदला इस प्रकार से चुकाएगी.

इस बात की सच्चाई की तह में जाने के लिए मनोज कुमार जब मुंबई गया तो उसे पत्नी का व्यवहार कुछ अजीब सा लगा. उस के पहुंचने पर पत्नी जिस तरह खुश हो जाती थी, उसे उस के चेहरे पर वह खुशी देखने को नहीं मिली. पत्नी के हावभाव से वह इतना तो समझ ही गया था कि उस के पास पत्नी और रिजवान कुरैशी के बारे में जो खबर पहुंची थी, वह कोई कोरी अफवाह नहीं थी.

इस के बाद वह खबर की पुष्टि में लग गया. इस के लिए वह सूत्र तलाशने लगा. उस ने पड़ोसियों और अपने बच्चों से बात की तो इस बात की पुष्टि हो गई कि रिजवान गुलशबा से मिलने अकसर आता रहता है. कभीकभी तो वह उस के फ्लैट पर भी रुक जाता था.

इस बारे में उस ने गुलशबा से बात की तो वह सरासर झूठ बोल गई. उस ने कहा कि उस की पड़ोसियों से बनती नहीं है, इसलिए वे सब उसे बदनाम कर रहे हैं. रिजवान तो उस का भाई जैसा है.

अपनी नौटंकी से कुछ समय के लिए तो गुलशबा ने पति को अपने झांसे में ले लिया. लेकिन 2-4 दिन में ही उस की हकीकत मनोज के सामने आ गई. मनोज ने पत्नी को रिजवान के साथ रंगेहाथों पकड़ लिया. तब मनोज ने गुलशबा की जम कर पिटाई की.

पोल खुल जाने के बाद गुलशबा को बेइज्जती महसूस हुई. यह बात उस के मायके वालों को भी पता लग गई. इस सच्चाई का पता लग जाने के बाद मनोज पत्नी को मुंबई में अकेले नहीं छोड़ना चाहता था. उस ने गुलशबा और बच्चों को आगरा ले जाने का फैसला कर लिया.

उस ने पत्नी से कहा कि अब हम आगरा में रहेंगे. पर गुलशबा ने मुंबई छोड़ कर जाने से मना कर दिया. इस बात पर दोनों में झगड़ा भी हुआ. मनोज उसे ले जाने की जिद पर अड़ा था.

गुलशबा ने रिजवान को फोन कर बता दिया कि मनोज उसे आगरा ले जाने की जिद कर रहा है और वह यहां से जाना नहीं चाहती. इस बारे में वह कुछ करे. रिजवान भी नहीं चाहता था कि गुलशबा वहां से जाए, इसलिए गुलशबा को ले कर वह परेशान हो उठा.

लिखी गई हत्या की पटकथा

किसी तरह से उस ने गुलशबा से मुलाकात की और मनोज कुमार सोनी उर्फ कैफ को अपने बीच से हटाने की योजना तैयार कर ली. फिर अपनी योजना के अनुसार 2 जनवरी, 2018 की दोपहर में वह मनोज कुमार सोनी के फ्लैट पर पहुंच गया. जिस समय वह फ्लैट में आया, उस समय मनोज खाना खा कर सो रहा था. बच्चे घर के बाहर खेलने के लिए गए हुए थे.

मौका अच्छा था. वह गुलशबा के साथ उस के कमरे में गया और उस पर हमला कर दिया. लेकिन वह कामयाब नहीं हो सका. अपनी जान बचाने के लिए मनोज रिजवान से भिड़ गया, जिस में रिजवान कुरैशी जख्मी हो गया.

अपने पति को रिजवान कुरैशी पर भारी होते देख गुलशबा ने रिजवान कुरैशी की मदद की. उस ने पति के दोनों हाथ पकड़ लिए, तभी झट से रिजवान ने मनोज का गला रेत दिया. मनोज नीचे गिर गया तो रिजवान ने उस का सिर काट कर धड़ से अलग कर दिया. इस के बाद दोनों ने उस के धड़ और सिर को कपड़ों के पुलिंदे में बांध कर दरवाजे के पीछे छिपा दिया. फिर उन्होंने कमरे की सफाई की.

शाम होतेहोते गुलशबा अपने तीनों बच्चों को अपने मायके में छोड़ कर फ्लैट पर आ गई. फिर घर के दरवाजे पर ताला लगा कर वह रिजवान कुरैशी के साथ उत्तर प्रदेश निकल गई, जहां पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया. लेकिन इस के पहले रिजवान कुरैशी ने पुलिस और घर वालों का ध्यान भटकाने के लिए शादाब कुरैशी और अपने सारे रिश्तेदारों को एक मनगढ़ंत कहानी सुना दी थी.

थानाप्रभारी किशोर जाधव और एपीआई मंजीत सिंह बग्गा ने गिरफ्तार रिजवान कुरैशी और गुलशबा से विस्तृत पूछताछ के बाद उन के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201, 34 के तहत मुकदमा दर्ज कर उन्हें तलोजा जेल भेज दिया. कथा लिखे जाने तक दोनों अभियुक्त न्यायिक हिरासतऌ में थे. आगे की जांच एपीआई मंजीत सिंह बग्गा कर रहे थे.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

दरोगा की कातिल पत्नी : मां-बेटी बने पिता के कातिल – भाग 3

अरशद ने मारा था सना को

जीनत ने यह बात अरशद को बताई तो अरशद ने सना की हत्या कराने का फैसला कर लिया. उस ने सोचा कि सना के न रहने पर उसे जीनत से मिलने में कोई बाधा नहीं आएगी. इस बारे में अरशद ने अपने गांव के बचपन के दोस्त सलमान से बात की. सलमान अरशद का साथ देने के लिए तैयार हो गया और एक दिन उस ने सना को गोली मार दी.

हत्याकांड की जानकारी मिलने के बाद सदर पुलिस ने अगले 24 घंटे में ही अरशद को गिरफ्तार कर के उस के कब्जे से हत्या में प्रयुक्त 315 बोर का देशी तमंचा, 2 कारतूस और मोटरसाइकिल बरामद कर ली थी.

अरशद से पूछताछ में पता चला था कि हत्या में मदद करने वाला उस का दूसरा साथी भी प्रतापगढ़ जिले के गांव कढ़ार का रहने वाला सलमान है, तो पुलिस ने सलमान की गिरफ्तारी के प्रयास करते हुए कई बार उस के ठिकानों पर दबिशें दीं, लेकिन सलमान हर बार पुलिस की पकड़ में आने से बचता रहा.

आखिरकार एसपी सुभाष चंद्र शाक्य ने उस की गिरफ्तारी पर 25 हजार रुपए का ईनाम घोषित कर दिया. जिस के एक हफ्ते बाद सलमान को सदर पुलिस ने रोडवेज बस स्टैंड से गिरफ्तार कर लिया. आरोपी को न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

थानाप्रभारी डी.सी. शर्मा को अनायास सना की हत्या करने वाले कातिल अरशद का वह कबूल नामा भी याद आने लगा जब उस ने बताया था कि सना चाहती थी कि अगर वह उस के पिता मेहरबान अली को मार देने में उस की मदद करे तो अनुकंपा के आधार पर उन की नौकरी उसे मिल जाएगी.

सना ने अरशद से ये भी कहा था कि यदि वह ऐसा कर देगा तो वह उस से शादी कर लेगी. अरशद ने ये भी बताया था कि सना ने उस से कहा था कि उस के पिता उस की मां और सभी बहनों के साथ न सिर्फ मारपीट करते हैं बल्कि सभी बहनों पर पाबंदियां भी लगाते हैं. लेकिन अरशद ने सना का ये औफर इसलिए ठुकरा दिया था, क्योंकि वह सना से नहीं बल्कि उस की बहन जीनत से प्यार करता था.

घर वालों के बयानों में मिला विरोधाभास

उस वक्त तो थानाप्रभारी को लगा था कि अरशद शायद अपने बचाव में और सना को ही दोषी ठहराने के लिए झूठी कहानी गढ़ रहा है. लेकिन अब जबकि दरोगा मेहरबान अली की हत्या हुई तो उन्हें अरशद के उस बयान में सच्चाई नजर आने लगी. उन्हें लगने लगा कि संभव है, मेहरबान अली की हत्या का राज कहीं न कहीं उन के घर में ही छिपा हो.

अगली सुबह सब से पहले उन्होंने पुलिस टीम के साथ मेहरबान अली के घर का दौरा किया. उन्होंने एकएक कर के मेहरबान अली की पत्नी और उस की बेटियों से पूछताछ की. उन्होंने सभी से मेहरबान अली के शनिवार को घर से बाहर जाने का घटनाक्रम पूछा था. तो न जाने क्यों मांबेटियों के बयानों में एक के बाद एक कई विरोधाभास नजर आए.

किसी ने बताया कि वह दोपहर को खाना खा कर ड्यूटी चले गए थे. किसी ने बताया कि वह सुबह 10 बजे ही रात की ड्यूटी कर के घर लौटे थे और शाम को घर से गए थे. यह भी पता चला कि उन्होंने रात को घर न लौटने पर पुलिस लाइन में फोन कर के उन के घर न लौटने के बारे में पूछा था. लेकिन वहां से पता चला कि उस दिन मेहरबान अली ड्यूटी पर आए ही नहीं थे.

थानाप्रभारी शर्मा ने एसएसआई रामनरेश यादव को पुलिस लाइन में बने वायरलैस कंट्रोल रूम भेजा तो उन्हें पता चला कि मेहरबान अली के बारे में जानकारी लेने के लिए उन की पत्नी जाहिदा ने पुलिस लाइन में कोई फोन नहीं किया था. यह सुन कर थानाप्रभारी का शक यकीन में बदलने लगा कि हो न हो मेहरबान अली के कातिल उन के घर में ही छिपे हैं.

अपने शक को पुख्ता करने के लिए जब उन्होंने वायरलैस औफिस में मेहरबान अली की ड्यूटी का चार्ट निकलवाया तो जानकारी मिली कि मेहरबान अली इस सप्ताह रात की ड्यूटी पर तैनात थे. वह शुक्रवार की रात को ड्यूटी कर के शनिवार सुबह अपने घर आए थे.

डी.सी. शर्मा सोचने लगे कि अगर मेहरबान अली रात की ड्यूटी कर के घर लौटे थे तो दोपहर साढ़े 12 बजे वह भला दोबारा ड्यूटी पर क्यों जाएंगे. अब उन्हें लगने लगा कि मेहरबान अली को ले कर घर वाले झूठ बोल रहे हैं. इस झूठ का परदाफाश करना ही पड़ेगा.

थानाप्रभारी पुलिस टीम और फोरेंसिक टीम को ले कर एक बार फिर मेहरबान अली के घर पहुंचे. उन्होंने जब उन के घर व आसपास के घरों का निरीक्षण किया तो अनायास उन की नजर उन के घर के सामने वाले घर की छत पर लगे सीसीटीवी कैमरे पर पड़ी.

सीसीटीवी कैमरे से मिला क्लू

संयोग से सीसीटीवी कैमरे की दिशा ऐसी थी कि मेहरबान अली के घर आनेजाने वाला हर शख्स वीडियो में कैद हो सकता था. उन्होंने सीसीटीवी की फुटेज देखी तो अचानक मेहरबान अली हत्याकांड का पूरा सच सब के सामने आ गया.

सीसीटीवी वीडियो में 23 जून, 2018 को सुबह 9 बजे दरोगा मेहरबान अली घर के अंदर दाखिल होते दिखे थे. संभवत: वह उस वक्त अपनी ड्यूटी से लौटे थे. लगभग डेढ़ घंटे बाद घर के अंदर 2 अन्य लोग जाते दिखे लेकिन देर रात तक वह दोनों वापस लौटते नहीं दिखे. इस के बाद रात होने तक कोई असामान्य बात नहीं दिखी. लेकिन रात को 10 बजे के बाद अचानक मेहरबान अली की पत्नी व बेटियों की असामान्य गतिविधियां दिखाई पड़ीं.

करीब 10 बजे मेहरबान अली की पत्नी जाहिदा दरवाजे तक आई कुछ देर रोड पर इधरउधर देखा और लौट गई. उस के बाद कुछ देर बाद उस की बेटी आलिया और इरम बाहर आईं उन्होंने भी गली में इधरउधर देखा और वहां रुक कर मोबाइल देखती रहीं फिर वापस घर में भीतर चली गईं. इस के बाद मेहरबान अली की बड़ी बेटी शबा भी बाहर आई और कुछ देर रुक कर वह भी अंदर चली गई.

ऊंचे ओहदे वाला रिश्ता : शक ने ली साक्षी की जान

हर मातापिता की इच्छा होती है कि उन के बच्चे पढ़ाईलिखाई कर के आगे बढ़ें, उन की शादियां हों और वे अपनी दुनिया में खुश रहें. अशोक कुमार की बेटी साक्षी इंडियन आर्मी में मिलिट्री नर्सिंग सर्विसेज में लेफ्टिनेंट थी. साल 2017 में उस का सेलेक्शन हुआ था.

दिल्ली के तिलकनगर इलाके के रहने वाले अशोक कुमार को बेटी के आर्मी में सेलेक्शन के वक्त बधाइयां देने वालों का तांता लग गया था. तब वह खुशी से फूले नहीं समाए. जाहिर है यह बड़े गर्व की बात थी.

साक्षी की शादी नवनीत शर्मा के साथ हुई थी. नवनीत वायुसेना में स्क्वाड्रन लीडर थे. दोनों ही हरियाणा की अंबाला छावनी में तैनात थे. उन का 2 साल का एक बेटा भी था.

लोग अशोक कुमार को खुशनसीब इंसान मानते थे. कामयाब बेटी के पिता होने के नाते लोगों का सोचना भी ठीक था, लेकिन किसी इंसान की असल जिंदगी में क्या कुछ चल रहा होता है, इस बात को कोई नहीं जान पाता.

अशोक कुमार के साथ भी कुछ ऐसा ही था. बेटी को ले कर वह परेशान रहते थे. इस की बड़ी वजह यह थी कि बेटी का वैवाहिक जीवन उम्मीदों के विपरीत था. 20 जून, 2021 की रात का वक्त था, जब अशोक कुमार के मोबाइल पर साक्षी का फोन आया. उन्होंने बेटी से बात शुरू की.

‘‘हैलो! साक्षी बेटा कैसी हो?’’

‘‘पापा, यहां कुछ भी अच्छा नहीं चल रहा, मैं बहुत परेशान हो चुकी हूं.’’ साक्षी के लहजे में परेशानी छिपी हुई थी, जिसे अशोक कुमार ने भांप लिया था.

उन्होंने धड़कते दिल से पूछा, ‘‘क्या हुआ बेटा?’’

‘‘पापा, नवनीत मुझे लगातार परेशान करते हैं, हद इतनी हो गई है कि मेरे साथ मारपीट भी की जाती है. पता नहीं कब तक ऐसा चलेगा.’’ वह बोली.

‘‘सब्र कर बेटा. समय के साथ सब ठीक हो जाएगा. मैं समझाऊंगा उसे.’’ अशोक कुमार ने समझाया.

‘‘यह समझने वाले नहीं हैं. पता नहीं क्या होगा पापा. मैं बाद में बात करती हूं.’’ साक्षी ने सुबकते हुए फोन काट दिया.

बेटी की बातों से अशोक परेशान हो गए. उन्होंने अपने दामाद नवनीत का मोबाइल नंबर डायल किया, लेकिन कोई रिस्पांस नहीं मिला. उन्हें याद आया कि उन का नंबर दामाद ने ब्लौक किया हुआ था.

साक्षी भी यह बात अपने परिजनों को बता चुकी थी कि मायके वालों के नंबर ब्लौक लिस्ट में हैं.

इस के बाद उन्होंने साक्षी के ससुर चेतराम शर्मा को फोन किया, ‘‘भाईसाहब, आप ही बच्चों को समझाइए, काफी समय से यही सब चल रहा है. साक्षी का अभी फोन आया था और वह बता रही थी कि उस के साथ मारपीट भी की जा रही है.’’

‘‘देखिए भाईसाहब, यह उन का आपस का मामला है. नवनीत तो मेरी बात सुनता ही नहीं तो बताओ, मैं भी क्या कर सकता हूं.’’ चेतराम शर्मा बोले.

उन की बात सुन कर अशोक कुमार को बहुत निराशा हुई. इस से ज्यादा वह कर भी क्या कर सकते थे अलबत्ता वह चिंतित जरूर हो गए.

अशोक ने यह बात अपने बेटे सौरभ को बताई. उन का पूरा परिवार पूरी रात चैन की नींद नहीं सो सका. 21 जून की सुबह के करीब साढ़े 6 बजे नवनीत की मां लक्ष्मी का फोन आया और उन्होंने बताया कि साक्षी ने सुसाइड कर लिया है.

यह सुनते ही अशोक के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उन का फोन केवल सूचनात्मक था. इस से ज्यादा उन्होंने कोई बात नहीं की. बेटी की मौत की खबर से अशोक के परिवार में कोहराम मच गया. आननफानन में पितापुत्र दिल्ली से अंबाला के लिए रवाना हो गए.

नवनीत और साक्षी रेसकोर्स स्थित आवास नंबर 115/04 में रहते थे. अशोक और सौरभ से वहां कोई बात करने को भी तैयार नहीं था. वह सीधे रेजीमेंट बाजार पुलिस चौकी पहुंचे और नवनीत व उस के परिजनों के खिलाफ बेटी को दहेज के लिए प्रताडि़त करने की तहरीर दे दी. पुलिस पहले ही इस मामले की तहकीकात में जुटी हुई थी.

दरअसल, पुलिस कंट्रोल रूम को 21 जून की सुबह इस घटना की सूचना मिली थी. कंट्रोल रूम से यह सूचना थाने को फ्लैश की गई. मामला हाईप्रोफाइल था, लिहाजा एसएसपी हमीद अख्तर ने अधीनस्थों को इस मामले में तत्काल सक्रिय होने के निर्देश दे दिए थे.

डीएसपी रामकुमार, इंसपेक्टर विजय व चौकी इंचार्ज कुशलपाल ने जांचपड़ताल शुरू की. पुलिस ने साक्षी के परिजनों की तहरीर पर दहेज उत्पीड़न की धाराओं में मुकदमा दर्ज कर लिया. साक्षी के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया. साथ ही उन के पति नवनीत को भी गिरफ्तार कर लिया गया.

ओहदे थे ऊंचे पर जिंदगी थी नीरस

पुलिस की जांचपड़ताल और परिजनों से की गई पूछताछ में ऊंचे ओहदों के पीछे की ऐसी कहानी निकल कर सामने आई, जिस ने हर किसी को सोचने पर मजबूर कर दिया. देश सेवा के लिए आर्मी जौइन करने वाली साक्षी की निजी जिंदगी में वास्तव में अंधेरा लिए हुए एक बड़ा तूफान चल रहा था.

साक्षी और नवनीत के बीच जानपहचान थी. पहले दोनों के बीच दोस्ती हुई और फिर यह दोस्ती प्यार में बदल गई. नवनीत का परिवार हरियाणा के पंचकूला जिले के पिंजोर कस्बे का रहने वाला था. नवनीत स्क्वाड्रन लीडर थे और साक्षी लेफ्टिनेंट. दोनों ही ऊंचे पद पर थे.

12 दिसंबर, 2018 को दोनों विवाह बंधन में बंध गए. साक्षी के परिजनों की आर्थिक स्थिति बहुत ज्यादा अच्छी नहीं थी. फिर भी उन्होंने अपनी हैसियत के अनुसार शादी में खर्च किया. शादी के बाद कुछ महीनों तक तो सब ठीक चलता रहा.

साक्षी ने एक बेटे को भी जन्म दिया. दोनों अच्छे पद पर थे. परिवार की खुशियों में चारचांद लगाने के लिए बेटा भी हो चुका था, लेकिन जिंदगी में कई बार पद और सुखसुविधाओं से खुशियों के मायने नहीं होते.

साक्षी और नवनीत के बीच मनमुटाव रहने लगा था. साक्षी ने शुरू में तो अपने परिवार में कुछ नहीं बताया, परंतु जब बात हद से ज्यादा बढ़ने लगी तो एक दिन उस ने अपने पिता को सारी बातें बताईं, ‘‘पापा, सोचा नहीं था कि ये लोग ऐसे होंगे.’’

बेटी की बात पर अशोक थोड़ा सकपका गए ‘‘मैं समझा नहीं बेटी?’’

‘‘पापा, ये लोग मुझे दहेज के लिए ताना मारते हैं. कभी कहते हैं कि गाड़ी नहीं दी, कभी कहते हैं कि रिश्तेदारों का मान नहीं रखा.’’ साक्षी ने बताया.

‘‘बेटी, इस से ज्यादा हम कर भी क्या सकते थे. तुम दोनों कमाते हो क्या किसी चीज की कोई कमी है. परिवार में यह सब बातें तो चलती रहती हैं. नवनीत को तुम समझाना.’’ अशोक ने कहा.

‘‘मैं ने बहुत समझाया है पापा, लाइफ को एडजस्ट तो बहुत कर रही हूं.’’ साक्षी बोली.

बेटी की बातें सुन कर अशोक कुमार को बहुत अफसोस हुआ. उन्होंने सोचा कि वक्त के साथ एक दिन सब ठीक हो जाएगा. यूं भी इंसान ऐसे मामलों में सकारात्मक ही सोचता है.

लालच ने घोली कड़वाहट

कहते हैं कि जब किसी परिवार में अनबन, शक और लालच जैसी चीजें घर कर जाएं, तो फिर कलह का वातावरण बन जाता है बिखराव बढ़ता चला जाता है.

साक्षी के परिवार में भी ऐसा ही हो रहा था. साक्षी के पिता और भाई ने भी नवनीत को समझाया, लेकिन उन्होंने उन्हें परिवार के मामले में दखल  न देने की नसीहत दे डाली.

साक्षी की जिंदगी में एक बार अनबन का सिलसिला शुरू हुआ, तो फिर उस ने रुकने का नाम नहीं लिया. बाद में हालात बिगड़ते देख अशोक खुद भी बेटी के घर गए और दोनों को समझा कर आए.

कुछ दिन तो सब ठीक रहा, बाद में स्थिति पहले जैसी ही हो गई. रिश्तों में दूरियां तब और भी बढ़ गईं जब नवनीत साक्षी पर शक करने लगे.

शक का दायरा इतना बढ़ गया कि नवनीत ने घर के बैडरूम तक में सीसीटीवी कैमरे लगवा दिए. साक्षी के पिता और भाई फोन करते तो नवनीत झल्ला जाते. उन्होंने दोनों के नंबर तक ब्लौक कर दिए. साक्षी परिजनों को बताती थी कि उस के साथ मारपीट भी की जाने लगी है.

साक्षी के परिजनों को पूरी उम्मीद थी कि एक दिन सब ठीक जाएगा, लेकिन यह भी सच है कि इंसान सोचता कुछ है और हो कुछ और जाता है. परिवार के बिगड़े हालात के बीच आखिर साक्षी 20 जून, 2021 की रात जिंदगी की जंग हार गई.

पतिपत्नी के बीच अनबन में 20 जून को एक तूफान आया. दोनों के बीच झगड़ा और मारपीट हुई. साक्षी ने यह बात अपने पिता को भी फोन पर बताई थी. नवनीत के अनुसार, उन्होंने साक्षी को देर रात कपड़े के सहारे पंखे से झूलते हुए पाया. इस के बाद उन्होंने उसे नीचे उतारा और मिलिट्री हौस्पिटल ले गए, जहां डाक्टरों ने साक्षी को मृत घोषित कर दिया.

इस के बाद हौस्पिटल से पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना दी गई. साक्षी की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत का कारण हैंगिग आया. नवनीत के घर पर लगे कैमरों की सीसीटीवी फुटेज डिलीट हो चुकी थी.

साक्षी के परिजनों का आरोप था कि सारी फुटेज को सच्चाई छिपाने के मकसद से डिलीट किया गया.

प्रताड़ना बनी मौत की वजह

साक्षी के परिजनों का साफ कहना था कि वह मानसिक व शारीरिक प्रताड़ना से तंग आ चुकी थी. उन के दहेज के आरोपों में सच्चाई है तो सोचने वाली बात है कि बड़े पदों पर नौकरी करने वाले अच्छेखासे पढ़ेलिखे लोग भी दहेज के लालच में किस स्तर तक जा सकते हैं.

हालांकि दूसरी तरफ नवनीत शर्मा ने जेल जाने से पहले पुलिस कस्टडी में मीडिया के सामने अपने ऊपर लगाए गए सभी आरोपों से साफ इंकार कर दिया.

साक्षी ने वास्तव में आत्महत्या की या उस की हत्या की गई, पुलिस इस पहलू की भी बारीकी से जांच कर रही थी. प्रकरण की और भी सच्चाई तो पुलिस की पूर्ण जांच के बाद ही सामने आएगी.

अदालत इस मामले में सबूतों के आधार पर फैसला भी करेगी. लेकिन जब साक्षी नवनीत और उन के परिजनों की फितरत को समझ गई थी और जब उस का वहां तालमेल नहीं बैठ रहा था, तब वह वक्त रहते ऐसे रिश्ते से पीछा छुड़ा लेती तो शायद ऐसी नौबत कभी नहीं आती.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

प्यार के लिए अपराध : अपने ही परिवार को बनाया निशाना

गांव की एक बहुत प्रचलित कहावत है, ‘भूख न देखे रूखा भात, प्यार न जाने जातपात और नींद न देखे टूटी खाट’. वास्तव में पे्रम जाति और धर्म का बंधन नहीं देखता है. कई बार वह ऊंचनीच और नातेरिश्तों को भी भूल जाता है.

ऐसे में प्यार की पगडंडी पर चल कर कभीकभी ऐसे कदम भी उठ जाते हैं, जो अपराध को भी बढ़ावा देने से पीछे नहीं हटते. लखनऊ शहर के रसूलपुर आशिक अली के रहने वाले मनोज कुमार की 19 साल की बेटी खुशबू कुमार की कहानी भी कुछ इसी तरह की है.

खुशबू की शहर के ही लालशाह का पुरवा मलौली के रहने वाले विनय यादव के साथ दोस्ती हो गई थी. 21 साल का विनय खुशबू को बेहद प्यार करता था.

लेकिन उन के बीच जातपात की गहरी खाई थी. दोनों ही परिवारों को इन की दोस्ती पसंद नहीं थी. इस के बाद भी विनय और खुशबू किसी भी तरह एकदूसरे को छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे.

लेकिन परेशानी यह थी कि उन्हें साथ रहने का रास्ता नहीं दिख रहा था. अच्छी बात यह थी कि विनय और खुशबू के बीच एक सामंजस्य बना हुआ था. दोनों ही मिल कर अपने दिल की बात कर लेते थे.

इस बात की खबर जब खुशबू के घर वालों को होती तो वे विनय के घर वालों से शिकायत करते, जिस से दोनों परिवारों के बीच तनातनी हो जाती थी. जिसे प्रेमी युगल भी घबरा जाते. खुशबू पर भी मनोज इस बात का दबाव बनाता कि वह विनय से मिलना छोड़ दे.

एक दिन खुशबू ने विनय से कहा, ‘‘विनय, तुम अब यह देखो कि हम लोग कैसे एक साथ रह सकते हैं. क्योंकि अब घर में परेशानियां बढ़ने लगी हैं. हमारा तुम्हारा इस तरह मिलना संभव नहीं हो पाएगा. मैं कब तक घर वालों से झगड़ा करती रहूंगी.’’

‘‘खुशबू तुम्हें लगता है कि जैसे मैं कुछ सोचता नहीं. ऐसी बात नहीं है. पर मेरी समझ में कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा. पहले तो सिटी में नौकरी कर लेता था. लौकडाउन हुआ तो नौकरी चली गई. अब तो अपने खर्च उठाना और भी मुश्किल हो गया है. अपने पास घर और नौकरी दोनों नहीं होगी तो काम ही नहीं चलेगा.’’ विनय ने खुशबू को अपनी परेशानी से अवगत कराते हुए समझाया.

खुशबू को वह समय याद आ रहा था जब उस की पहली मुलाकात विनय से हुई थी. विनय उसे हर लड़के से अलग लगता था. हमेशा उस का खयाल रखता और बहुत सारी चीजें भी देता रहता था. खुशबू और विनय के बीच जब थोड़ी दोस्ती बढ़ गई तो खुशबू उस के साथ शादी और बाकी जीवन गुजरबसर करने के सपने देखने लगी.

खुशबू ने सोचा था कि जब उस के घर परिवार के लोग इस दोस्ती और प्यार को शादी के रिश्ते में बदलने नहीं देंगे तो वह गांव छोड़ कर विनय के साथ शहर चली जाएगी. वहां दोनों साथसाथ रहेंगे. विनय नौकरी करेगा और वह घर को संभालेगी. विनय के वापस आने का इंतजार करेगी.

ऐसे ही हसीन सपनों में दोनों का समय गुजर रहा था. अब दोनों ही अपनी दोस्ती को रिश्ते में बदलने का इंतजार कर रहे थे.

इसी बीच पिछले साल कोरोना महामारी बढ़ने पर लौकडाउन लग गया तो दुकानें, होटल, फैक्ट्री आदि पिछले साल बंद हो गईं, जिस से बहुत सारे लोग घर बैठ गए.

शुरुआत में लगा कि 10-20 दिनों में लौकडाउन खत्म जाएगा. उस के बाद बाजार और कामधंधे शुरू हो जाएंगे. लेकिन धीरेधीरे करीब 3 माह का समय बीत गया था. सारा कारोबार चौपट हो चुका था.

3 माह के बाद जब विनय अपने काम पर वापस गया तो उसे बताया गया कि अब औफिस में काम कम हो गया है. लिहाजा अब उस की वहां जरूरत नहीं रह गई.

उस के बाद जब विनय ने अपने 3 माह का बकाया वेतन मांगा तो कहा गया कि जब तुम ने काम हीं नहीं किया तो वेतन किस बात का. तुम ने मार्च महीने में 20 दिन काम किया था. उन 20 दिनों का पैसा ले लो और अब नौकरी पर नहीं आना है.

विनय का गांव तो लखनऊ से 20-22 किलोमीटर ही दूर था. ऐसे में वह रोज साइकिल और आटो से आताजाता था. खुशबू को साथ रखने की योजना की वजह से उस ने उस समय लखनऊ में एक कमरा किराए पर ले लिया था.

इस का भी 5 हजार रुपए देना पड़ता था. ऐसे में जब वह वहां अपना रखा सामान लेने गया तो मकान मालिक ने 15 हजार रुपए किराए के मांगे. विनय के पास उतना तो नहीं था. उसे 10 हजार औफिस से मिले थे, उसी में से 8 हजार मकान मालिक को दे कर अपना सामान साथ ले आया. कोरोना के बाद शहर से जैसे उस का नाता टूट गया.

कोरोना ने जिस तरह से काम धंधों पर रोक लगाई, उस से विनय और खुशबू जैसे युवाओं के सामने भी अपने भविष्य को ले कर प्रश्नचिह्न लगा दिए. बेरोजगारी ने आगे के सभी रास्ते बंद कर दिए.

यह उम्मीद थी कि 3 महीने के बाद जब लौकडाउन खुलेगा तो सब कुछ पटरी पर आ जाएगा. लेकिन इस के बाद भी कोई कामधंधा नहीं बढ़ा. मार्च, 2021 में जब कोरोना का संकट फिर से बढ़ा तो विनय को जो कामधंधा मिल जाता था, वह भी बंद हो गया.

विनय और खुशबू अपने जीवन को ले कर गंभीर थे. एक दिन विनय ने कहा, ‘‘खुशबू, अगर हमारे पास 15-20 लाख रुपए होते तो हम अपना काम भी शुरू कर लेते और एक रहने की जगह भी बना लेते, जिस से कम से कम हमें किराया तो नहीं देना पड़ता.’’

‘‘विनय, पैसे तो मिल सकते हैं. बस सावधानी बरतने की जरूरत है. और यदि हम पकड़े न जाएं तो मदद हो सकती है.’’ खुशबू ने कहा.

‘‘तुम रास्ता बताओ. बाकी हम कर लेंगे. किसी को कुछ पता नहीं चलेगा.’’ विनय ने उत्सुकता दिखाई और खुशबू को पूरा भरोसा दिलाते हुए कहा.

‘‘देखो विनय, मेरे घर में इतने रुपए और जेवर रखे हैं, जिन को मिला कर जितने पैसों की तुम बात कर रहे हो उतने हो जाएंगे. हम लोग एक दिन वह रुपए किसी तरह चोरी कर लें. चोरी होने से यह भी नहीं पता चलेगा कि किस ने यह काम किया है. फिर जब सब काम हो जाएगा, तब हम साथसाथ रहने लगेंगे.’’ खुशबू बोली.

खुशबू को उस के घर वाले भी मानसिक रूप से इतना परेशान करते थे कि वह किसी भी तरह से अपने घर में रहने को तैयार नहीं थी. अपने घर में चोरी की योजना बनाते समय उसे किसी भी तरह का डर या संकोच भी नहीं हुआ.

इधर विनय ने अपने साथी गांव के रहने वाले शुभम यादव को भी इस योजना में शामिल कर लिया.

खुशबू के साथ योजना बनाते समय विनय ने उसेनींद की 8 गोलियां ला कर दीं और कहा कि 4-4 गोलियां काढे़ में डाल कर रात में अपने मम्मी और पापा को पिला देना. जिस से वे रात भर गहरी नींद में सोते रहेंगे.

खुशबू ने 28 मई, 2021 की रात ऐसा ही किया. जब उस के मातापिता गहरी नींद में सो गए तो विनय और शुभम ने खुशबू के साथ मिल कर उस के घर से 13 लाख रुपए नकद और 3 लाख के जेवर चोरी कर लिए.

जेवर और रुपए ले कर विनय और शुभम चले गए. सुबह जब खुशबू के पिता मनोज कुमार सो कर उठे तो देखा कि उन की अलमारी टूटी हुई थी और उस में रखी नकदी व जेवर गायब थे.

वह थाना गोसाईंगंज गए. वहां पर उन्होंने यह जानकारी थानाप्रभारी अमरनाथ वर्मा को दी तो थानाप्रभारी ने अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 457 और 380 आईपीसी के तहत अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया.

लखनऊ के पुलिस कमिशनर धु्रवकांत ठाकुर के निर्देशन में डीसीपी ख्याति गर्ग, एडिशनल डीसीपी (साउथ) पुर्णेंदु सिंह, एसीपी स्वाति चौधरी, इंसपेक्टर गोसाईंगंज अमरनाथ वर्मा ने अपनी टीम के साथ चोरों को पकड़ने का काम शुरू किया.

पुलिस टीम में एसआई जय सिंह, दीपक कुमार पांडेय, विवेक कुमार, फिरोज आलम सिद्दीकी, अनिल कुमार, हैडकांस्टेबल अमीर हमजा, अकबर, सुशील चौहान, अंकित यादव, राजेश कुमार, पूनम शर्मा, मजीत सिंह, सुनील कुमार और रवींद्र कुमार शामिल थे.

मोबाइल की काल डिटेल्स में खुशबू और विनय के बीच बातचीत और रात में दोनों की लोकेशन एक होने से पुलिस का शक खुशबू पर गया. पुलिस ने खुशबू से पूछताछ की तो उस ने सच कबूल लिया. खुशबू की बताई बातों के आधार पर पुलिस ने पहले विनय और फिर शुभम को हिरासत में ले लिया. सभी ने अपना अपराध कबूल कर लिया.

पुलिस ने विनय, खुशबू और शुभम की निशानदेही पर चोरी गए रुपए और जेवर बरामद कर लिए. इस के बाद इन सभी को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

प्रेमी की जल समाधि : अपने ही प्रेमी को उतारा मौत के घाट

9  जून, 2021 की बात है. उत्तर प्रदेश के चंदौसी शहर का रहने वाला इस्तफर खान अपने मोहल्ले के कुछ लोगों को साथ ले कर शहर की कोतवाली पहुंचा. उस ने कोतवाल देवेंद्र कुमार शर्मा से मुलाकात कर बताया, ‘‘साहब, मेरा बेटा फहीम खान पिछले महीने की 19 तारीख से गायब है. उस का कहीं पता नहीं चल रहा है.’’

‘‘क्या..? वह 19 मई से गायब है और पुलिस के पास 20 दिन बाद आए हो? इतने दिनों तक कहां थे?’’ कोतवाल देवेंद्र कुमार शर्मा ने हैरानी से पूछा.

‘‘साहब, हम सब घर वाले अपने स्तर से उसे तलाश कर रहे थे. हम ने उसे सभी जगह पर ढूंढा मगर उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. उस का मोबाइल फोन भी बंद आ रहा है.’’ कहते हुए इस्तफर की आंखों में आंसू छलक आए.

‘‘कितनी उम्र है तुम्हारे बेटे की और वह क्या करता है? वह गायब कैसे हुआ? सब विस्तार से बताओ.’’ कोतवाल ने कहा.

‘‘साहब, मेरा बेटा फहीम खान शादीश्ुदा है, उस के 2 बच्चे भी हैं. वह मकानों और कोठियों में रंगाईपुताई का काम ठेके पर लेता है. दूसरे शहरों में भी उस का ठेका चलता रहता है. 19 मई, 2021 को वह काम के सिलसिले में अलीगढ़ गया था. वह जब कभी बाहर जाता था तो अपनी बीवी और घर वालों से फोन पर बात करता रहता था.

लेकिन उस के जाने के एकदो दिनों तक फोन नहीं आया तो हम ने उस का नंबर मिलाया. उस का फोन बंद आ रहा था. तब से आज तक उस का फोन बंद ही आ रहा है.

‘‘इस से हम लोगों की चिंता बढ़ गई. अलीगढ़ में उस का काम कहां चल रहा था, यह तो हमें पता नहीं. फिर भी हम ने अपने स्तर से उसे सभी जगह ढूंढा. जब कहीं नहीं मिला तो हुजूर हम आप के पास आए हैं. आप उस का पता लगा दीजिए.’’ रोआंसे हो कर हाथ जोड़ते हुए इस्तफर गिड़गिड़ाया.

‘‘देखिए, आप ने थाने आने में बहुत देर कर दी. फिर भी हम उस के बारे में पता लगाने की कोशिश करेंगे. आप बेटे का एक फोटो और तहरीर लिख कर दे दीजिए. चिंता मत करो, पुलिस जल्द ही उस की खोजबीन

कर लेगी.’’

इस के बाद इस्तफर ने लिख कर लाई हुई तहरीर और बेटे का फोटो कोतवाल साहब को दे दिया. इस के आधार पर फहीम खान की गुमशुदगी दर्ज कर ली. कोतवाल देवेंद्र कुमार शर्मा ने यह जानकारी अपने उच्चाधिकारियों को भी दे दी.

गुमशुदगी दर्ज होने के बाद कोतवाल देवेंद्र कुमार शर्मा ने जांच चौकी इंचार्ज एसआई उमेंद्र मलिक को सौंप दी. वह अपनी टीम के साथ गुमशुदा फहीम की तलाश में जुट गए. पुलिस ने फहीम खान का मोबाइल सर्विलांस पर लगा दिया. उस के फोन की अंतिम लोकेशन अलीगढ़ की मिली. जिस इलाके की लोकेशन मिली थी, पुलिस टीम ने अलीगढ़ पहुंच कर उस इलाके के सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी, लेकिन कोई सुराग नहीं मिला.

कोतवाल देवेंद्र कुमार शर्मा ने फहीम के बारे में जांच कराई तो पता चला कि वह आशिकमिजाज व्यक्ति था. तब उन्होंने इसी दिशा में जांच करने के निर्देश एसआई उमेंद्र मलिक को दिए.

शाहिदा से चल रहा था चक्कर

इंसपेक्टर की लाइन पर काम करते हुए चौकी इंचार्ज उमेंद्र मलिक ने जांच शुरू की. चौकी इंचार्ज को जानकारी मिली कि फहीम का रामपुर जिले के पटवाई गांव की शाहिदा के साथ चक्कर चल रहा था.

फहीम की शाहिदा से मुलाकात उस की एक परिचित अफसाना ने कराई थी. अफसाना अलीगढ़ के फिरदौस नगर की रहने वाली थी और उस का निकाह सलीम उर्फ शंभू से हुआ था. सलीम फिरदौस नगर में ही अफसाना के साथ किराए पर रहता था. वह फहीम के घर भी आतीजाती थी.

यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस टीम एक बार फिर अलीगढ़ पहुंची और सलीम व उस की पत्नी अफसाना को पूछताछ के लिए चंदौसी ले आई.

पुलिस ने उन दोनों से फहीम के बारे में पूछा तो वे अनभिज्ञता जताने लगे कि सलीम को जानते ही नहीं हैं, लेकिन जब उन से सख्ती की गई तो उन्होंने स्वीकार कर लिया कि फहीम इस वक्त दुनिया में नहीं है. हत्या करने के बाद उन्होंने उस की लाश हरदुआगंज की नहर में फेंक दी थी.

हत्या की खबर सुनते ही पुलिस भी चौंक गई. पुलिस को फहीम की लाश बरामद करनी थी इसलिए उन दोनों को साथ ले कर हरदुआगंज में नहर के ऊपर बने पुल पर पहुंची. वहीं से उन्होंने उस की लाश नहर में फेंकी थी.

पुलिस ने गोताखोरों की मदद से जाल डलवा कर वहां लाश की खोजबीन कराई, लेकिन सफलता नहीं मिली. तब पुलिस ने उस क्षेत्र के थानों में संपर्क कर किसी पुरुष की लावारिस लाश बरामद करने के बारे में पूछा.

तब वहां के थानाप्रभारी ने बताया कि 28 मई को नहर के किनारे से 2 लाशें बरामद हुई थीं, जिन का अंतिम संस्कार भी कर दिया था. दोनों के कपड़े पुलिस के पास सुरक्षित रखे थे.

पुलिस ने वे कपड़े फहीम खान के घर वालों को दिखाए. इतने दिनों में कपड़ों की हालत भी खराब हो चुकी थी, लेकिन फहीम खान की पत्नी ने पेंट पहचान ली. क्योंकि उस ने पति फहीम की टाइट पेंट उधेड़ कर ढीली की थी.

इस के बाद पुलिस ने अफसाना की निशानदेही पर हत्या में शामिल उस की सहेली शाहिदा और उस के भाई जीशान को भी गिरफ्तार कर लिया. इन चारों से पूछताछ करने के बाद फहीम की हत्या के पीछे की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार थी—

उत्तर प्रदेश के सुप्रसिद्ध जनपद पीतल नगरी मुरादाबाद से सटा जिला संभल है. चांदी के वर्क बनाने के आवा, मेंथा, तंबाकू और आलू की खेती भी बड़े पैमाने पर की जाती है. साथ ही सींग व हड्डी से कंघी, बटन व अन्य शोपीस के कारोबार से संभल की पहचान भी दूरदूर तक हो गई है.

संभल से करीब 25 किलोमीटर की दूरी पर एक शहर जैसा तहसील मुख्यालय चंदौसी है. चंदौसी के सीकरी गेट मोहल्ले में स्थित पुलिस चौकी के बगल में ही इस्तफर खान का परिवार रहता था.

उस के 4 बेटे थे. तसव्वुर खान, फहीम खान और वसीम खान का विवाह हो चुका था. जबकि चौथा बेटा सलीम खान अविवाहित था. बेटों के अलावा इस्तफर की 4 बेटियां भी थीं, जिस में से एक की मृत्यु हो चुकी थी. फहीम खान रंगाईपुताई का ठेकेदार था.

मजार पर हुई थी मुलाकात

फहीम का अलीगढ़ में भी ठेके का काम चल रहा था. वहीं पर उस की एक दिन क्वारसी क्षेत्र के फिरदौस नगर के रहने वाले सलीम उर्फ शंभू से मुलाकात हुई, जो बाद में दोस्ती में बदल गई.

इस के बाद सलीम और उस की पत्नी अफसाना का फहीम के घर आनाजाना शुरू हो गया. एक तरह से दोनों के पारिवारिक संबंध हो गए थे.

धार्मिक विचारों का फहीम बदायूं में स्थित नामी मजार पर जाता रहता था. इन्हें छोटे सरकार और बड़े सरकार के नाम से जाना जाता है. एक बार अफसाना भी उस के साथ थी. मजार पर अफसाना की सहेली शाहिदा भी मिल गई. शाहिदा अफसाना की सहेली थी, जो रामपुर जिले के गांव हाजीनगर में रहती थी.

यह साल 2013 की बात है. शाहिदा की मां भी बदायूं शरीफ में अकसर आती थीं और कईकई दिन वहां रुकती थीं.

इन के 3 बेटे और 3 ही बेटियां हैं. रजिया, नाजिया व शाहिदा तथा भाई जीशान भी मां के साथ बदायूं आताजाता रहता था. शाहिदा अफसाना की सहेली बन गई थी.

फहीम पहली मुलाकात में ही शाहिदा को अपने दिल में बसा चुका था. बाद में इन दोनों की  फोन पर बातें होने लगीं. इन के बीच हुई दोस्ती प्यार में बदल चुकी थी. फहीम शाहिदा के ऊपर खूब पैसे खर्च करता था. क्योंकि उस समय तक वह अविवाहित था.

मिलते रहे छिपछिप कर

दोनों ही जिंदगी साथ गुजारने और भविष्य के सुनहरे सपनों का तानाबाना बुनते रहते. एक दिन फहीम खान की बांहों में समाई शाहिदा ने कहा कि हम कब तक ऐसे छिपछिप कर मिलते रहेंगे, जल्दी शादी करो और मुझे अपने घर ले चलो.

इस पर फहीम ने कहा, ‘‘अभी थोड़ा और इंतजार करना पड़ेगा. मैं ने सऊदी अरब जाने की योजना बना ली है और वहां नौकरी मिल गई है. वहां से खूब सारा पैसा कमा कर लाऊंगा, फिर दोनों अपने अलग घर में आराम से जिंदगी गुजारेंगे.’’

उसी दौरान फहीम सऊदी अरब चला गया. वह कई साल बाद वहां से लौटा तो काफी उपहार अपनी प्रेमिका शाहिदा को भी ला कर दिए.

एक दिन प्रेमीप्रेमिका दोनों अपने भविष्य का तानाबाना बुन रहे थे तभी शाहिदा के मोबाइल की घंटी बजी. फोन फहीम खान ने रिसीव किया.

काल करने वाले की बात फहीम के कानों में जैसे जहर घोल गई. वह बोला, ‘‘कैसी हो मेरी जान? मैं ने कल भी काल की थी, लेकिन रिसीव नहीं की. कोई परेशानी हो तो बताओ, गुलाम तुरंत हाजिर होगा.’’

फहीम कुछ देर तक चुपचाप उस की बातें सुनता रहा. फिर फोन करने वाले को उस ने गालियां दीं तो उस ने काल डिसकनेक्ट कर दी.

इस के बाद तो फहीम को गुस्सा आ गया. वह सोचने लगा कि कौन है, जो उस की प्रेमिका से इस तरह बात कर रहा था. कहीं ऐसा तो नहीं कि शाहिदा का ही प्रेमी हो.

फहीम ने इस बारे में शाहिदा से पूछताछ की तो उलटे शाहिदा फहीम से लड़ने के लिए तैयार हो गई. दोनों ओर से बात बढ़ गई तभी शाहिदा अपना आपा खो बैठी और फहीम खान पर हाथ उठा दिया, जिस से नाराज हो कर फहीम ने भी शाहिदा की जम कर पिटाई कर डाली.

अब फहीम ने तय कर लिया कि वह यह पता लगा कर रहेगा कि शाहिदा का किसी से चक्कर चल रहा है या नहीं. कुछ दिनों में फहीम ने जानकारी निकाल ली कि शाहिदा का किसी से चक्कर चल रहा है.

प्रेमिका शाहिदा किसी और युवक से प्रेम करने लगी है. शाहिदा की इस बेवफाई से फहीम खान को गहरा आघात लगा. इसी बात से दोनों के बीच ऐसी दरार पड़ी कि संबंधविच्छेद हो गए.

फहीम खान खोयाखोया सा रहने लगा. उस के दिल टूटने का एहसास परिजनों को हुआ तो उन्होंने फहीम खान का विवाह बरेली शहर में कर दिया. यह बात करीब 4 साल पहले की है. अब उस के 2 बच्चे भी हैं.

उधर शाहिदा से उस के दूसरे प्रेमी ने कई साल रिलेशनशिप रखी. दोनों छिपछिप कर मिलते रहे, लेकिन अंत शाहिदा के अनुमान के विपरीत निकला. दूसरे प्रेमी ने उस से शादी से साफ इनकार कर दिया. इस से शाहिदा के दिल के अरमां आंसुओं में बहने लगे.

रोरो कर शाहिदा का जीवन गुजरने लगा. परिजनों से भी उस का हाल देखा नहीं जाता था. शाहिदा ने कई बार आत्महत्या करने की कोशिश की लेकिन परिजनों की कड़ी निगरानी के कारण सफल न हो सकी.

शाहिदा को अपने पहले प्रेमी फहीम खान की याद सताने लगी, लेकिन फहीम खान का मोबाइल नंबर उस के पास नहीं था. शाहिदा  ने अपनी सहेली अफसाना से फहीम खान का मोबाइल नंबर लिया.

शाहिदा से संबंध टूटने के बाद फहीम खान ने अपना नंबर बदल लिया था. उस का अफसाना  से फोन से बातचीत व मेलजोल बरकरार था. अफसाना से फहीम का फोन नंबर ले कर एक दिन शाहिदा ने फहीम खान को फोन किया और मिलने की गुजारिश की. फहीम ने सोचा कि पुरानी घटना के जख्म माफी तलाफी से धुल जाएंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. बल्कि बाद में उन दोनों के बीच तल्खी और बढ़ गई.

और ज्यादा खराब हो गए संबंध

फहीम खान उस के फोन करने से और भी ज्यादा आक्रामक हो गया. दोनों में फोन पर जम कर नोकझोंक होती रहती.

यह बात शाहिदा के भाई जीशान को बहुत नागवार गुजरी. उसे लगा कि फहीम की वजह से ही उस की बहन दुखी है. लिहाजा उस ने अफसाना से बात कर के फहीम खान को ठिकाने लगाने की योजना बना डाली.

योजना के तहत अफसाना से फोन करा कर फहीम खान को 19 मई, 2021 को अलीगढ़ बुला लिया. उसी रात उसे खाने में नशीला पदार्थ खिलाया.

बेहोश हो जाने पर अफसाना व उस के पति सलीम उर्फ शंभू तथा जीशान और उस की बहन शाहिदा ने फहीम को ठिकाने लगाने की योजना बनाई. वे उसे हरदुआगंज क्षेत्र में स्थित नहर के बरेठा पुल पर ले गए और उस के शरीर से भारी पत्थर बांध कर नहर में जिंदा ही फेंक दिया. पानी में डूब जाने से फहीम की मौत हो गई.

चारों अभियुक्तों के गिरफ्तार हो जाने के बाद एसपी चक्रेश मिश्रा ने एक प्रैस कौन्फ्रैंस आयोजित कर इस मामले का खुलासा किया.

इस के बाद पुलिस ने हत्यारोपी शाहिदा, उस के भाई जीशान, सहेली अफसाना और उस के पति सलीम उर्फ शंभू को गिरफ्तार कर 23 जून, 2021 को न्यायालय के समक्ष पेश किया. वहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

पति परदेस में तो डर काहे का : देवर के प्रेम ने बनाया हत्यारा – भाग 3

घटनास्थल से बरामद कान के टौप्स और चप्पलें मृतका दिव्या की ही थीं. जबकि लाल चूडि़यों के टुकड़े उस के नहीं थे. इस से यह बात साफ हो गई कि दिव्या की हत्या में कोई औरत भी शामिल थी. डौग टीम में आई स्निफर डौग गुड्डी लाश और हत्यास्थल को सूंघने के बाद सीधी दिव्या के घर तक जा पहुंची. इस से अंदेशा हुआ कि दिव्या की हत्या में घर का कोई व्यक्ति शामिल रहा होगा.

पुलिस अधिकारियों की मौजूदगी में पंचनामा भर कर दिव्या की लाश को पोस्टमार्टम के लिए अलीगढ़ भिजवा दिया गया. पूछताछ में दिव्या के परिवार से किसी की दुश्मनी की बात सामने नहीं आई. अब सवाल यह था कि दिव्या की हत्या किसने और

किस मकसद के तहत की थी.

हत्या का यह मुकदमा उसी दिन थाना गोंडा में अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के अंतर्गत दर्ज हो गया. पोस्टमार्टम के बाद उसी शाम दिव्या का अंतिम संस्कार कर दिया गया.

दूसरे दिन थानाप्रभारी ने महिला सिपाहियों के साथ पींजरी गांव जा कर व्यापक तरीके से पूछताछ की. दिव्या की तीनों चाचियों से भी पूछताछ की गई. सुभाष यादव अपने स्तर पर पहले दिन ही दिव्या की हत्या की वजह के तथ्य जुटा चुके थे. बस मजबूत साक्ष्य हासिल कर के हत्यारों को पकड़ना बाकी था.

दिव्या की सब से छोटी चाची मोना से जब चूडि़यों के बारे में सवाल किया गया तो उस ने बताया कि वह चूड़ी नहीं पहनती, लेकिन जब तलाशी ली गई तो उस के बेड के पीछे से लाल चूडि़यां बरामद हो गईं, जो घटनास्थल पर मिले चूडि़यों के टुकड़ों से पूरी तरह मेल खा रही थीं. सुभाष यादव का इशारा पाते ही महिला पुलिस ने मोना को पकड़ कर जीप में बैठा लिया. पुलिस उसे थाने ले आई.

थाने में थानाप्रभारी सुभाष यादव को ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ी. मोना ने हत्या का पूरा सच खुद ही बयां कर दिया. सच सामने आते ही बिना देर किए गांव जा कर मोना के प्रेमी सोनू को भी गिरफ्तार कर लिया गया.

सोनू के अलावा नगला मोनी के रहने वाले मनीष को भी धर दबोचा गया. दोनों को थाने ला कर पूछताछ के बाद हवालात में डाल दिया गया. दिव्या हत्याकांड के खुलासे की सूचना एसपी ग्रामीण संकल्प शर्मा और सीओ इगलास पंकज श्रीवास्तव को दे दी गई.

दोनों अधिकारियों ने थाना गोंडा पहुंच कर थानाप्रभारी सुभाष यादव को शाबासी देने के साथ अभियुक्तों से खुद भी पूछताछ की.

पूछताछ में मोना के साथ उस के प्रेमी सोनू व उस के दोस्त ने जो कुछ बताया वह कुछ इस तरह था-

दिव्या ने सोनू को मोना के साथ शारीरिक संबंध बनाते देख लिया था. उस ने चाचा के घर लौटने पर उसे सब कुछ सचसच बता देने की बात भी कही थी. उस समय बात खत्म जरूर हो गई थी. फिर भी डर यही था कि बाल बुद्धि की दिव्या ने अगर यह बात जयकिंदर को बता दी तो उस का क्या हश्र होगा, इसी से चिंतित मोना व सोनू ने योजना बनाई कि जयकिंदर के आने से पहले दिव्या की हत्या कर दी जाए.

दिव्या हर रोज मोना के साथ ही सोती थी और अलसुबह चाची के साथ दौड़ लगाने जाती थी. कभीकभी वह दौड़ने के लिए वहीं रुक जाती थीं. जब कि मोना अकेली लौट आती थी. दिव्या को दौड़ का शौक था, ये बात घर के सभी लोग जानते थे. इसी लिए हत्या में मोना का हाथ होने की संभावना नहीं मानी जाएगी, यह सोच कर मोना ने सोनू के साथ योजना बना डाली, जिस में सोनू ने दूसरे गांव के रहने वाले अपने दोस्त मनीष को भी शामिल कर लिया.

26 दिसंबर को सोनू व मनीष पहले ही वहां पहुंच गए. मोना दिव्या को ले कर जब डालचंद के खेत के पास पहुंची तो घात में बैठे सोनू और मनीष ने दिव्या को दबोच कर चाकुओं से वार करने शुरू कर दिए. दिव्या ने बचने के लिए मोना का हाथ पकड़ा, जिस से उस के हाथ से 2 चूडि़यां टूट कर वहां गिर गईं. हत्यारे उसे खींच कर खेत में ले गए, जहां गर्दन काट कर उस की हत्या कर डाली. इसी छीनाझपटी में दिव्या के कान का एक टौप्स भी गिर गया था और चप्पलें भी पैरों से निकल गई थीं.

दिव्या की हत्या के बाद ये लोग लाश को खींचते हुए लगभग 300 मीटर दूर गजेंद्र के खेत में ले गए. इस के बाद सभी अपनेअपने घर चले गए.

हत्यारा कितना भी चतुर हो फिर भी कोई न कोई सुबूत छोड़ ही जाता है. जो पुलिस के लिए जांच की अहम कड़ी बन जाता है. ऐसा ही साक्ष्य मोना की चूडि़यां बनीं, जिस ने पूरे केस का परदाफाश कर दिया.