प्यार किसी का, लुटा आशियाना किसी का – भाग 2

अगले दिन निर्धारित समय पर शशि अकेली ही यज्ञस्थल की ओर चल दी. उस वक्त उस के दिमाग में कई सवाल उमड़घुमड़ रहे थे. वह सवालों की उधेड़बुन में यज्ञस्थल पर पहुंच गई. जब शशि वहां पहुंची तो उसे यह देख कर हैरानी हुई कि एहसान भी वहीं बैठा था. उसे लगा मानो वह उसी का इंतजार कर रहा हो.

प्यार के पंछियों की पहली उड़ान

एहसान की नजर शशि से टकराई तो दोनों के दिल खुशी से धड़क उठे. अनायास ही शशि मुसकरा दी तो एहसान के दिल के फूल खिल गए. जवाब में वह भी मुसकरा दिया. शशि वहां से निकली और एहसान को देखते हुए यज्ञस्थल से बाहर आ गई. मानो उस ने इशारा किया हो कि वह भी बाहर आए.

आगेआगे शशि और पीछेपीछे एहसान चलते हुए दोनों सुरक्षित जगह पर पहुंचे और एकदूसरे को देखने लगे. अनायास एहसान शशि के करीब आया और उस ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘मेरा नाम एहसान है और मैं पास के गांव कोहरावां का रहने वाला हूं.’’

थोड़ा शरमाते हुए शशि बोली, ‘‘मेरा नाम शशि है और मैं इसी गांव में रहती हूं. मुझे तुम्हारा चेहरा जानापहचाना सा लग रहा था. शायद मैं ने कभी तुम्हें देखा हो, लेकिन कल ही मेरा ध्यान तुम पर गया.’’

‘‘शशि…बड़ा ही प्यारा नाम है. तुम सचमुच अप्सराओं की तरह सुंदर हो. मुझे तुम्हारा नाम और तुम दोनों ही बहुत पसंद हो. क्या मैं तुम्हें पसंद हूं?’’ एहसान ने उत्सुकता में पूछा.

शशि ने ‘हां’ में सिर हिला दिया, साथ ही कहा भी, ‘‘एहसान, सिर्फ परिचय से कोई एकदूसरे का नहीं हो जाता, बल्कि उस के लिए एकदूसरे के बारे में सारी बात जानना भी जरूरी होता है. तभी दो दिल एकदूसरे के करीब हो सकते हैं.’’

‘‘बिलकुल ठीक कहा शशि, आओ हम उस पेड़ के नीचे बैठ कर बातें करते हैं.’’ कहते हुए एहसान शशि के साथ पेड़ की छांव में जा बैठा और बातें करने लगा. दोनों ने एकदूसरे को विस्तार से अपनेअपने परिवारों के बारे में बताया.

एहसान ने कहा, ‘‘जिंदगी हमारी है, इसलिए अपनी जिंदगी के बारे में सिर्फ हम ही निर्णय ले सकते हैं. तुम मुझ से मिलने के लिए रोज यहीं आना. यहां लोगों की नजर हम पर नहीं पड़ेगी. बोलो, आओगी न?’’

‘‘हां एहसान, मैं जरूर आऊंगी. तुम मेरा इंतजार करना.’’ शशि ने कहा और वहां से अपने घर की ओर चल दी.

शशि आज ऐसे खुश थी, मानो कोई बड़ा खजाना मिल गया हो. वह एहसान की यादों में इतनी खो गई थी कि कब सवेरा हुआ और कब वह उस के पास पहुंच गई, उसे पता ही नहीं चला. एहसान भी उसी पेड़ की छांव में उस का बेसब्री से इंतजार कर रहा था. दोनों एकदूसरे से मिल कर काफी खुश हुए. एहसान शशि से रोमांटिक बातें करने लगा तो शशि शरमा गई, लेकिन बोली कुछ नहीं. तब एहसान ने पूछा, ‘‘शशि, तुम्हें पता है कि तुम कितनी सुंदर हो?’’

‘‘हां, मुझे पता है, पर इस में मेरा क्या कुसूर है?’’ शशि ने पूछा.

‘‘इस में तुम्हारा कोई कुसूर नहीं है. कुसूर है तो सिर्फ तुम्हारी सुंदरता का, जिस ने मेरा दिल चुरा लिया है. मेरे इस दिल को अपने पास संभाल कर रखना. इसे कभी तोड़ना नहीं.’’ एहसान ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘यह कैसी बातें कर रहे हो? मैं भला तुम्हारा दिल कैसे तोड़ सकती हूं? हमारा मिलन तो जन्मजन्मांतर का है. तुम्हें देख कर मुझे पहली ही नजर में ऐसा लगा जैसे तुम मेरे हो और मैं तुम्हारे पास खिंची चली आई.’’ शशि ने अपनी भावना व्यक्त करते हुए कहा.

‘‘मैं कितना खुशकिस्मत हूं कि तुम मुझे यज्ञ में अनायास ही मिल गई. शायद मेरे नसीब में लिखा था तुम्हें पाना.’’ कहते हुए एहसान ने शशि के हाथ को चूमा तो वह शरमा गई.

उन दोनों का प्यार दिनोंदिन परवान चढ़ने लगा. लेकिन गांव का माहौल कुछ ऐसा होता है कि अधिक दिनों तक कोई भी बात किसी से छिपी नहीं रह सकती. एहसान और शशि के प्रेमिल संबंध भी लोगों से छिपे नहीं रह सके.

लालजी को पता चला तो उस ने शशि की खूब पिटाई की और उसे सख्त हिदायत दी कि वह आज के बाद एहसान से मिलने की भूल कर भी कोशिश न करे, नहीं तो उस से बुरा कोई नहीं होगा. उस के घर से निकलने पर भी पाबंदी लगा दी गई. लालजी अब जल्द से जल्द शशि के हाथ पीले कर देना चाहता था. शशि के कारण पूरे गांव में उस की बदनामी हो रही थी. मिश्रिख थानाक्षेत्र के ही अमजदपुर गांव में रामप्रसाद अपने परिवार के साथ रहते थे और खेतीकिसानी करते थे. परिवार में पत्नी रामकली के अलावा 3 बेटियां श्रीकांती, महिमा व सरिता थीं और 2 बेटे बबलू और सोनू.

रामप्रसाद अपनी 2 बेटियों का विवाह कर चुके थे. उन्होंने बड़े बेटे बबलू का भी विवाह कर दिया था. बबलू लखनऊ में रह कर ड्राइवरी करता था. जबकि सोनू अभी अविवाहित था. सोनू पिता के साथ खेती में हाथ बंटाता था.

लालजी को एक रिश्तेदार के माध्यम से सोनू और उस के परिवार के बारे में पता चला तो वह सोनू के पिता रामप्रसाद से जा कर मिले. बात आगे बढ़ी और जल्द ही शशि का रिश्ता सोनू के साथ तय हो गया. शशि ने लाख विरोध किया लेकिन उस की एक नहीं चली.

प्यार में अड़ंगा, शशि हुई परेशान

इसी साल 9 मार्च को धूमधाम से शशि और सोनू का विवाह हो गया. शशि को न चाहते हुए भी विवाह कर के ससुराल जाना पड़ा. वह एहसान के साथ जिंदगी गुजारने का सपना देख रही थी, लेकिन उस के घर वालों ने उस के सपनों को तोड़ दिया था.

पगफेरे की रस्म के लिए जब शशि अपने मायके गई तो वह एहसान से मिली और उस के गले लग कर बिलखबिलख कर रोई. एहसान की भी आंखें गीली हो आईं. वह शशि की हालत देख कर बेचैन हो उठा. उस ने सांत्वना दे कर किसी तरह शशि को शांत किया. फिर उस से कहा कि हम कभी अलग नहीं होंगे, कोई भी हमें जुदा नहीं कर सकता.

शशि जब तक मायके में रही, एहसान से मिलती रही. वहां से वापस ससुराल आई तो मोबाइल पर चोरीछिपे एहसान से बातें करने लगी.

महात्मा गांधी की परपोती धोखाधड़ी में पहुंची जेल

दक्षिण अफ्रीका के डरबन की एक अदालत में 7 जून को एक अहम सुनवाई होनी थी. ज्यूरी के लोग पूरी तैयारी से अपनीअपनी जगहों पर आ चुके थे. कोर्ट में दोनों पक्षों के वकीलों, कोर्ट के कर्मचारियों और न्यायाधीश के अतिरिक्त मुकदमे के वादी, प्रतिवादी पक्षों के दरजनों लोग मौजूद थे. पूरी दुनिया में कोविड-19 की महामारी, वैक्सीनेशन, औक्सीजन और भारत में कहर बन कर टूटी कोरोना वायरस संक्रमण की हो रही चर्चा के बीच मीडिया में इस सुनवाई को ले कर भी जिज्ञासा बनी हुई थी. गहमागहमी का माहौल था.

अंतिम फैसले पर सब की नजरें टिकी थीं. इस की वजह यह थी कि मामले की जो आरोपी महिला थी, उस का संबंध महात्मा गांधी के परिवार और दक्षिण भारत की राजनीति में एक बड़े नाम के साथ जुड़ा था. पूरा मामला हाईप्रोफाइल होने के साथसाथ 6 साल पुराना कारोबारी धोखाधड़ी का था.

यह आरोप एस.आर. महाराज नाम के एक बिजनैसमैन की शिकायत पर दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रीय अभियोजन प्राधिकरण (एनपीए) के द्वारा लगाया गया था.

करीब 6 साल से जमानत पर चल रही 56 वर्षीया आरोपी महिला कठघरे में हाजिर हो चुकी थीं. अदालत की काररवाई शुरू होते ही अभियोजन पक्ष की तरफ से आरोपी के परिचय के साथसाथ न्यायाधीश के सामने उस पर लगे फरजीवाड़े के तमाम आरोप प्रस्तुत कर दिए गए थे.

प्रोसिक्यूटर द्वारा कहा गया कि धोखाधड़ी की आरोपी आशीष लता रामगोबिन ने अपनी पूर्व सांसद मां इला गांधी की इमेज और अपने परदादा महात्मा गांधी की वैश्विक कीर्ति का सहारा ले कर इस काम को अंजाम दिया था. इला गांधी भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पोती हैं.

वह दक्षिण अफ्रीका में 9 साल तक सांसद रह चुकी हैं और भारत सरकार द्वारा पद्म विभूषण से भी नवाजी जा चुकी हैं. वह राजनीतिक रसूख वाली जानीमानी मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं.

अभियोजन पक्ष द्वारा पेश किए गए दस्तावेजों के जवाब में आरोपी आशीष लता की तरफ से वैसा कोई ठोस सबूत पेश नहीं किया जा सका, जिन से अगस्त 2015 में उद्योगपति एस.आर. महाराज के साथ धोखाधड़ी का लगा आरोप गलत साबित हो सकता था.

नतीजा कुछ समय में ही दक्षिण अफ्रीकी कानून के मुताबिक आशीष लता को अफ्रीकी मुद्रा में 62 लाख रैंड ( करीब 3 करोड़ 22 लाख रुपए) की धोखाधड़ी, जालसाजी का दोषी ठहराते हुए 7 साल जेल की सजा सुना दी गई.

महाराज ने उन्हें कथित तौर पर भारत से ऐसी खेप के आयात और सीमा शुल्क कर के समाशोधन के लिए 62 लाख रैंड दिए थे, जिस का कोई अस्तित्व ही नहीं था. इस में आशीष लता की तरफ से लाभ का एक हिस्सा देने का वादा भी किया गया था.

समाजसेविका के रूप में पहचान थी आशीष लता की

वर्ष 2015 में जब इस संबंध में उन के खिलाफ सुनवाई शुरू हुई थी, तब एनपीए के ब्रिगेडियर हंगवानी मूलौदजी ने कहा था कि उन्होंने संभावित निवेशक को यकीन दिलाने के लिए कथित रूप से फरजी चालान और दस्तावेज दिए थे. उस में भारत से लिनेन के 3 कंटेनर आने की जानकारी दी गई थी.

आशीष लता इंटरनैशनल सेंटर फौर नौन वायलेंस नामक एक गैरसरकारी संगठन के एक प्रोग्राम की संस्थापक और कार्यकारी निदेशक रह चुकी थीं.

हालांकि उन के खिलाफ लगे आरोपों में फरजीवाड़े की रकम भारतीय बैंकों को करीब 23 हजार करोड़ रुपए का चूना लगाने वाले विजय माल्या, मेहुल चौकसी और नीरव मोदी की तुलना में बहुत ही कम है. फिर भी हर भारतीय को आशीष लता का कारनामा क्षुब्ध कर गया है. कारण वह उस बापू की परपोती हैं, जिन्होंने जीवन भर सत्य को अपनाया, सत्य का प्रयोग किया, सत्य की रक्षा के लिए संघर्ष किया और सत्य के लिए जिया.

आज जब भी किसी को अपनी सत्यता का हवाला देना होता है तो वह बापू के अपनाए गए तरीके से प्रदर्शन करता है. लोग अंतर्द्वंद्व और आत्मग्लानि के मौकों पर बापू की प्रतिमा के आगे मौन धारण कर आत्मशुद्धि के लिए बैठ जाते हैं.

इस अनुसार यह कहा जा सकता है कि आशीष लता ने न केवल इस सत्यनिष्ठा को आंच पहुंचाई, बल्कि बापू की वैश्विक कीर्ति पर ही कालिख पोतने का काम किया. यह बात हैरानी के साथसाथ अफसोस करने जैसी है.

बात करीब 6 साल पहले उस समय की है, जब एक दिन उद्योगपति एस.आर. महाराज अपनी लग्जरी गाड़ी की पिछली सीट पर बैठे औफिस जा रहे थे. उसी दौरान लैपटौप में अपने बैंक के बैलेंसशीट पर एक नजर डालने के बाद वह मेल चैक करने लगे थे. पहले उन्होंने अपने एग्जीक्यूटिव्स के रोजमर्रा के मेल चैक किए. उन्हें जरूरी जवाब दिए, फिर वैसे मेल चैक करने लगे, जो पहली बार आए थे.

एक मेल को देख कर चौंकते हुए उन की नजर ठहर गई. कारण वह सामान्य हो कर भी खास मेल था. उस में फाइनैंस की रिक्वेस्ट थी, जिस से थोड़े समय में ही अच्छी आमदनी का वादा किया गया था.

हालांकि उन के पास आए दिन इस तरह के मेल आते रहते थे, जिसे वे खुद विस्तार से पढ़ने के बजाय उस की डिटेल से जानकारी के लिए अपने सेक्रेटरी को फारवर्ड कर दिया करते थे.

महाराज की बढ़ी रुचि

लेकिन उस मेल में महाराज को जिज्ञासा भेजने वाले को ले कर भी हुई थी. उन्होंने तुरंत जवाब टाइप कर दिया, ‘‘आई नोटिस्ड योर रिक्वेस्ट, विल रिप्लाई सून!’’ यह बात साल 2015 के मई महीने की थी.

थोड़ी देर में महाराज दक्षिण अफ्रीका के डरबन स्थित अपनी कंपनी के औफिस ‘न्यू अफ्रीका अलायंस फुटवेयर डिस्ट्रीब्यूटर्स’ के चैंबर में पहुंच गए. वह इस कंपनी के निदेशक हैं. कंपनी जूतेचप्पल, कपड़े और लिनेन के आयात, बिक्री एवं निर्माण का काम करती है. कंपनी का एक और काम प्रौफिट और मार्जिन के तहत दूसरी कंपनियों की आर्थिक मदद भी करना है.

एस.आर. महाराज ने अपने सेक्रेटरी को बुला कर कहा, ‘‘मिस्टर सुथार, आज ही मुझे उस मेल की तुरंत डिटेल्स दो, जिस में फाइनैंस की रिक्वेस्ट की गई है.’’

‘‘कौन सा मेल… जिसे समाजसेवी महिला आशीष लता रामगोबिन ने भेजा है?’’

‘‘हांहां वही. वह कोई आम महिला नहीं हैं. उन्होंने अपने परिचय में जो लिखा है, शायद तुम ने उस पर गौर नहीं किया.’’ उन्होंने कहा.

‘‘सर, मैं कुछ ज्यादा नहीं समझ पाया.’’ सेक्रेटरी बोला.

‘‘उस ने जिस के लिए काम की बात कही है वह एक विश्वसनीय परिवार से ताल्लुक रखता है. वह भरोसे के लायक है. उस परिवार ने भारत में सामाजिक उत्थान के लिए कई बेमिसाल काम किए हैं. उन के साथ भारत के राष्ट्रपिता का दरजा हासिल कर चुके महात्मा गांधी का नाम जुड़ा है. उन के साथ जल्द ही मीटिंग की डेट फिक्स कर दो.’’

ऐसे हुआ आशीष लता पर विश्वास

उद्योगपति महाराज का यह मजबूत आत्मविश्वास बनने की वजहें भी कम नहीं थीं. उस बारे में वे कई बातें पहले से जानते थे और कुछ जानकारी बाद में मालूम कर ली थीं. फाइनैंस की रिक्वेस्ट महात्मा गांधी की परपोती आशीष लता रामगोबिन ने भेजी थी.

उन्होंने अपने परिचय में दक्षिण अफ्रीका की राजनीति में सक्रिय महिला इला गांधी की बेटी लिखा था, जिन्होंने रंगभेद के खिलाफ काम किया था. तत्कालीन सरकार से सीधी टक्कर ली थी.

उन्होंने निर्वासन की यातना झेली थी. उस के खात्मे के बाद सन 1994 से 2003 तक अफ्रीकन नैशनल कांग्रेस की सदस्य के रूप में सांसद रह कर लोकहित में कई कार्य किए थे. उन के पति का नाम स्व. मेवा रामगोबिन है. वह महात्मा गांधी और कस्तूरबा गांधी के 4 बेटों हरिलाल, मणिलाल, रामदास और देवदास में दूसरे बेटे मणिलाल मोहनदास गांधी की बेटी हैं.

मणिलाल पहली बार 1897 में दक्षिण अफ्रीका गए थे. महात्मा गांधी ने 1904 में डरबन के पास ‘द फीनिक्स सेटलमेंट’ नामक एक जगह की स्थापना की थी. वहीं उन्होंने एक ग्रामसंस्था भी स्थापित की थी और सत्याग्रह के साथ अपने अनूठे क्रांतिकारी प्रयोग किए थे. इस दौरान मणिलाल 1906 से 1914 के बीच क्वाजुलु नटाल और ग्वाटेंग में रहे. फिर वापस भारत आ गए.

जबकि महात्मा गांधी ने डरबन से अपना साप्ताहिक अखबार अंगरेजी और गुजराती में ‘इंडियन ओपिनियन’ भी छापना शुरू कर दिया था. इस की शुरुआत 1903 में ही हुई थी.

बाद में महात्मा गांधी ने उस अखबार के विशेष रूप से गुजराती खंड प्रकाशन में सहायता के लिए मणिलाल को दक्षिण अफ्रीका भेज दिया था. वहां मणिलाल सन 1920 में उस के संपादक बन गए और लंबे समय तक इस की जिम्मेदारी संभाली.

उन्होंने सन 1927 में सुशीला मशरूवाला से शादी की थी, जो बाद में उन की प्रिंटिंग प्रैस की पार्टनर बन गईं. उन से 3 संतानें सीता, अरुण और इला हुए. ये सभी दक्षिण अफ्रीका के ही नागरिक बन गए. आशीष लता की मां इला का नाम दक्षिण अफ्रीका की राजनीति में बड़ा नाम है. उन का जन्म वहां के क्वाजुलु नटाल में सन 1940 में हुआ था. उन्होंने हर तरह की हिंसा के खिलाफ संघर्ष किया.

इस के लिए उन्होंने गांधी डेवलपमेंट ट्रस्ट बनाया, जो अहिंसा के लिए काम करता है. साथ ही महात्मा गांधी के नाम एक मार्च कमेटी भी बनाई गई है.

विभिन्न सामाजिक कार्यों को देखते हुए सन 2002 में वह ‘कम्युनिटी आफ क्राइस्ट इंटरनैशनल पीस अवार्ड’ से सम्मानित की जा चुकी हैं. भारत सरकार ने भी वर्ष 2007 में उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया था. दक्षिण अफ्रीका में रह रहे महात्मा गांधी परिवार के कई सदस्यों में कीर्ति मेनन, स्वर्गीय सतीश धुपेलिया, उमा धुपेलिया मेस्त्री, इला गांधी और आशीष लता रामगोबिन शामिल हैं.

3 दिसंबर, 1965 को जन्म लेने वाली आशीष लता रामगोबिन का रहनसहन हिंदू रीतिरिवाज पर आधारित है एवं प्रोफेशनल पहचान सामाजिक कार्यकर्ता और उद्यमिता के रूप में है. वैसे उन की नागरिकता दक्षिण अफ्रीका की है.

उन के 4 छोटे भाईबहनों में आशा और आरती बहनें हैं, जबकि किदार और खुश भाई हैं. उन की फेसबुक अकाउंट के अनुसार उन्होंने सन 1988 में उरबन के ग्लेनहैवेन सकेंडरी स्कूल से सेकेंडरी तक पढ़ाई पूरी कर क्वाजुलु नटाल यूनिवर्सिटी से ग्रैजुएशन किया है.

फिर दक्षिण अफ्रीका की यूनिवर्सिटी से पब्लिक एडमिनिस्ट्रैशन से पोस्ट ग्रैजुएट तक की पढ़ाई की. बाद में प्रोफ्रेशनल ट्रेनिंग और कोचिंग इंडस्ट्री के गुर सीखे. स्वयंसेवी संस्थाओं के लिए सरकारी प्रोजेक्ट, गवर्नेंस की बारीक जानकारियां, पं्रोजेक्ट एवं प्रोग्राम का मूल्यांकन, प्रोजेक्ट ड्राफ्ंिटग और एंटरप्रेन्योरशिप में महारत हासिल कर ली.

आशीष लता की शादी एक कारोबारी मार्क चूनू से हुई थी. उन से तलाक हो चुका है, लेकिन अपनी 2 संतानों बेटा और बेटी के साथ रहती हैं. वे अभी किशोर उम्र के हैं. उन का करियर स्वयंसेवी संस्था इंटरनैशनल सेंटर नान वायलेंस से जुड़ा है, जिस की वह संस्थापक और ओनर हैं.

वह उस की कार्यकारी निदेशक भी हैं. उन की पहचान राजनीतिज्ञ और पर्यावरण कार्यकर्ता की भी है. न्यूजएंडजिप वेब पोर्टल के अनुसार, उन्होंने 29 जनवरी, 2000 को महात्मा गांधी के नक्शेकदम पर चलते हुए एक नान वायलेंस संस्था स्थापित की थी. साथ ही उन्होंने 2016 से 5 साल तक यूनाइटेड ट्रेड सोल्यूशन के मैनेजिंग डायरेक्टर की जिम्मेदारी निभाई. इस तरह उन्होंने स्वयंसेवी संस्था के लिए डोनेशन जुटाने का काम करने के साथसाथ बिजनैस करते हुए अच्छी पूंजी अर्जित कर ली है.

लग गई धोखाधड़ी की कालिख

आशीष लता के बारे में कई वैसी बातें भी हैं, जो उन्हें खास बनाने के लिए काफी हैं. जैसे उन्होंने अपने परदादा महात्मा गांधी और मां इला गांधी के कदमों पर चलने की निर्णय लिया है. उन्होंने अपने एनजीओ के माध्यम से घरेलू हिंसा की शिकार औरतों और बच्चों की मदद की है. वह दक्षिण अफ्रीका के समारोहों में अपने परिवार के साथ शामिल होती रही हैं.

आशीष लता रामगोबिन की उद्योगपति एस.आर. महाराज से मुलाकात सन 2015 में ही हो गई थी. दोनों की पहली मीटिंग के दौरान महाराज ने फाइनैंस की जरूरत के बारे में पूछा, ‘‘आप को पैसा क्यों चाहिए?’’

‘‘दरसअल, हम ने भारत से लिनेन के 3 कंटेनर मंगवाए हैं, जो बंदरगाह पर पड़े हैं. आयात लागत और सीमा शुल्क पेमेंट करने में दिक्कत आ गई है. माल को साउथ अफ्रीकन हौस्पिटल ग्रुप नेट केयर को डिलीवर करना है.’’ लता ने सिलसिलेवार ढंग से जवाब दिया.

‘‘पैसे की वापसी का भरोसा क्या है?’’ महाराज के फाइनैंस एडवाइजर ने पूछा.

‘‘ये रहे नेट केयर कंपनी और हमारे साथ एग्रीमेंट बनाने के डाक्युमेंट्स. इस में सारी बातें लिखी हैं.’’ आशीष लता ने कहा.

‘‘कितना फाइनैंस करना होगा?’’ उन्होंने पूछा.

‘‘6.2 मिलियन रैंड की जरूरत है. उस की डिटेल्स की मूल कौपी दे रही हूं. आयात किए गए माल के खरीद की रसीद यह रही.’’ लता ने आश्वासन दिया.

‘‘इस में मेरा प्रौफिट क्या होगा?’’ महाराज ने पूछा.

‘‘उस बारे में भी फाइनैंस की रिक्वेस्ट डिटेल्स के साथ दी गई है.’’ लता ने साथ लाए डाक्युमेंट्स के पन्ने पलट कर दिखाए. उन के द्वारा सौंपे गए डाक्युमेंट्स पर महाराज ने एक सरसरी निगाह दौड़ाई और अपने फाइनैंस एडवाइजर को सौंपते हुए उस का बारीकी से अध्ययन करने का निर्देश दिया.

‘‘थोड़ा वक्त दीजिए. वैसे मुझे आप पर और आप की पहचान के साथसाथ पारिवारिक इमेज पर पूरा भरोसा है. डाक्युमेंट्स की जांचपरख तो महज औपचारिकता भर है. जल्द ही फाइनैंस संबंधी सारी प्रक्रिया पूरी करवा दूंगा.’’ एस.आर. महाराज बोले.

‘‘बहुतबहुत धन्यवाद, जितना जल्द हो सके फाइनैंस करवा दें तो अच्छा रहेगा.’’ लता ने आभार जताते हुए आग्रह किया.

‘‘…लेकिन हां, मेरे प्रौफिट की हिस्सेदारी में देरी नहीं होनी चाहिए. इस मामले में हमारी कंपनी काफी सख्त है.’’ महाराज ने साफसाफ कहा.

इसी बीच कंपनी के फाइनैंस एडवाइजर ने आशंका जताई, ‘‘सर, इस में कुछ डाक्युमेंट्स कम हैं.’’

‘‘कोई बात नहीं, बता दो. जितनी जल्द हो सके, लताजी उसे जमा करवा देंगी. बैंक अकाउंट स्टेटमेंट और रिटर्न की डिटेल्स भी मंगवा लेना.’’

‘‘हांहां, क्यों नहीं, बाकी के सारे डाक्युमेंट्स एक हफ्ते में आप को मिल जाएंगे.’’ लता ने कहते हुए एक बार फिर महाराज को धन्यवाद दिया.

इस तरह दोनों की पहली मीटिंग संभावनाओं से भरी रही. बहुत जल्द ही एक महीने के भीतर ही 3 मीटिंग्स और हुईं और आशीष लता को जरूरत के मुताबिक फाइनैंस मिल गया. उस के बाद मुनाफे के साथ रकम वापसी की एक महीने बाद की एक डेडलाइन तय हो गई.

कहते हैं कि बिजनैसमैन एस.आर. महाराज की कंपनी ने जिस तरह से फाइनैंस करने में जितनी तत्परता दिखाई, उतनी ही सुस्ती आशीष लता की तरफ से बरती गई.

समय पर नहीं लौटाई रकम

महाराज की कंपनी को समय पर भुगतान नहीं मिलने पर उन्होंने कंपनी के नियम और शर्तों के मुताबिक आशीष लता को नोटिस भेज दिया. नोटिस का सही जवाब नहीं मिलने पर कंपनी ने लता द्वारा जमा करवाए गए डाक्यूमेंट्स की जांच करवाई.

जांच में लता द्वारा किए गए कई दावे गलत साबित हुए. जिस में माल की खरीद के हस्ताक्षरित खरीद का आदेश और नेटकेयर बैंक खाते में भुगतान से संबंधित था. कंपनी ने पाया कि उन के द्वारा जमा किए गए डाक्युमेंट्स जाली थे और उन के साथ नेटकेयर ने कभी कोई व्यवस्था ही नहीं की थी. यहां तक कि लिनेन के कंटेनर बंदरगाह पर पहुंचे ही नहीं थे.

इस फरजीवाड़े का पता चलते ही कंपनी के डायरेक्टर एस.आर. महाराज ने आशीष लता के खिलाफ कोर्ट में केस कर दिया. 2015 में लता के खिलाफ कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई.

सुनवाई के दौरान एनपीए के ब्रिगेडियर हंगवानी मूलौदजी ने कहा कि लता ने इनवैस्टर को यकीन दिलाने के लिए फरजी दस्तावेज और चालान दिखाए थे. भारत से लिनेन का कोई कंटेनर दक्षिण अफ्रीका आया ही नहीं था.

हालांकि सुनवाई के दौरान लता ने सबूत पेश करने के लिए समय मांगा और जमानत की अरजी दाखिल की. लता की पारिवारिक इमेज को ध्यान में रखते हुए अक्तूबर 2015 में 50 हजार रैंड (करीब 2.68 लाख रुपए) की जमानत राशि पर पर उन्हें छोड़ दिया गया.

जमानत पर रिहा हुई आशीष लता ने कुल 6 साल तक राहत की सांस ली, किंतु उन के कारनामे दिनप्रतिदिन और मजबूत होते चले गए और 7 जून, 2021 को डरबन की अदालत ने आशीष लता रामगोबिन को धोखाधड़ी और जालसाजी का दोष सिद्ध करते हुए 7 साल की सजा सुनाई. कथा लिखे जाने तक वह दक्षिण अफ्रीका की जेल में थीं.

 

चाची का चित्तचोर : चाची के जाल में फंसा मदनमोहन

राजस्थान के अलवर जिले के भिवाड़ी शहर के थाना यूआईटी के थानाप्रभारी सुरेंद्र कुमार को 15 फरवरी, 2021 की सुबह फोन पर सूचना मिली कि सेक्टर  4 व 5 के बीच सड़क पर एक व्यक्ति का शव पड़ा है. सूचना पा कर थानाप्रभारी सुरेंद्र कुमार पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर जा पहुंचे.

मौके पर उन्हें वास्तव में एक युवक का शव पड़ा मिला. उन्होंने जब शव की जांच की तो उस के दोनों पैरों के अंगूठों से चमड़ी उधड़ी हुई दिखी. प्रथमदृष्टया ऐसा लग रहा था मानो मृतक की हत्या कहीं और कर के शव यहां ला कर डाला गया हो.

पुलिस ने इस नजर से भी जांच की कि मृतक कहीं दुर्घटना का शिकार तो नहीं हो गया. मगर मौकाएवारदात और शव को देखने से ऐसा नहीं लग रहा था. शव पर और किसी जगह चोट या रगड़ के निशान या खून निकला हुआ नहीं था. मामला सीधे हत्या का लग रहा था. मामला संदिग्ध लगा तो थानाप्रभारी सुरेंद्र कुमार ने मामले की जानकारी अपने उच्चाधिकारियों को दे दी.

भिवाड़ी एसपी राममूर्ति जोशी के संज्ञान में मामला आया तो उन्होंने एएसपी अरुण मच्या को घटनास्थल पर जा कर मामला देखने के निर्देश दिए. एएसपी अरुण मच्या और फूलबाग थानाप्रभारी जितेंद्र सिंह भी घटनास्थल पर आ गए.

पुलिस अधिकारियों ने एफएसएल टीम को भी वहां बुला कर साक्ष्य इकट्ठा करवाए. पुलिस अधिकारियों ने जांचपड़ताल के बाद शव को पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भिजवा दिया. शव की शिनाख्त नहीं हुई थी. लेकिन जब तक शिनाख्त नहीं हो जाती. तब तक पुलिस हाथ पर हाथ धर कर बैठने वाली नहीं थी. पुलिस ने अज्ञात शव मिलने का मामला दर्ज कर लिया.

इस केस को सुलझाने के लिए एएसपी अरुण मच्या के निर्देशन में एक पुलिस टीम गठित की गई. इस टीम में यूआईटी थानाप्रभारी सुरेंद्र कुमार के साथ फूलबाग थानाप्रभारी जितेंद्र सिंह सोलंकी, एसआई अखिलेश, हैडकांस्टेबल मुकेश कुमार, राकेश कुमार, मोहनलाल, कर्मवीर, रामप्रकाश, राजेंद्र, संतराम, सुरेश, ओमप्रकाश व ऊषा को शामिल किया गया.

मृतक की हुई शिनाख्त

इस पुलिस टीम ने मृतक के फोटो एवं पैंफ्लेट बना कर भिवाड़ी में सार्वजनिक स्थानों पर लगवा कर लोगों से शव की शिनाख्त की अपील की. साथ ही पुलिस टीम ने 2 दिन में लगभग 800 घरों में संपर्क कर शव की शिनाख्त कराने की कोशिश की. वहीं पुलिस टीम ने सीसीटीवी फुटेज भी खंगाले.

सीसीटीवी फुटेज में एक बाइक पर एक युवक और महिला किसी व्यक्ति को बीच में बैठा कर ले जाते दिखे. पुलिस ने मृतक की शिनाख्त कर ली. मृतक का नाम कमल सिंह उर्फ कमल कुमार था. मृतक कमल निवासी उमराया, छाता, जिला मथुरा का रहने वाला था और इन दिनों भिवाड़ी की प्रधान कालोनी, सेक्टर-2 में रह रहा था.

पुलिस ने मृतक कमल के घर जा कर पूछताछ की तो मृतक की बीवी जमना देवी अपने पति की हत्या की बात सुन कर रोने लगी.

पुलिस ने उसे ढांढस बंधाया और पूछताछ की. जमना देवी ने बताया कि उस का पति कमल एटीएम से रुपए निकलवाने गया था. जबकि मृतक के बड़े भाई भीम सिंह ने पुलिस को बताया कि 14 फरवरी, 2021 की रात कमल सिंह की पत्नी जमना देवी उन के घर आई थी. वह उस से बाइक की चाबी यह कह कर मांग कर लाई थी कि कमल को बल्लभगढ़ जाना है.

भीम सिंह ने तब बाइक की चाबी जमना को दे दी थी. पुलिस को लगा कि मृतक की बीवी गुमराह कर रही है. तब पुलिस ने उस से सख्ती से पूछताछ करने के साथ ही सीसीटीवी फुटेज जमना देवी को दिखाई. सीसीटीवी फुटेज में बाइक पर बैठी महिला के कपड़े एवं जमना के पहने कपड़े एक ही थे.

पुलिस को पक्का यकीन हो गया कि कमल की हत्या में उस की पत्नी जमना का हाथ है. तब पुलिस ने जमना से कड़ी पूछताछ की. पूछताछ में जमना टूट गई. उस ने कबूल कर लिया कि अपने प्रेमी और भतीजे मदनमोहन के साथ मिल कर पति की हत्या की थी.

तब पुलिस ने मृतक कमल सिंह की बुआ के पोते 19 वर्षीय मदनमोहन को फरीदाबाद, हरियाणा से गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने मदनमोहन को मोबाइल की लोकेशन के आधार पर साइबर सेल एक्सपर्ट की मदद से धर दबोचा था.

पुलिस गिरफ्त में आते ही मदनमोहन समझ गया कि उस का भांडा फूट गया है. इसलिए उस ने भी कमल सिंह की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. इस तरह 19 फरवरी, 2021 को पुलिस ने हत्या के इस मामले से परदा हटा दिया. मदनमोहन को यूआईटी थाना पुलिस थाने ले आई.

शव की शिनाख्त होने के बाद कमल सिंह के शव का मैडिकल बोर्ड से पोस्टमार्टम कराया गया. मृतक के भाई भीम सिंह की तरफ से जमना देवी उर्फ लक्ष्मी जादौन और मदनमोहन जादौन के खिलाफ भादंसं की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

आरोपियों जमना देवी उर्फ लक्ष्मी और उस के प्रेमी भतीजे मदनमोहन से की गई पूछताछ में जो कहानी प्रकाश में आई, वह इस प्रकार निकली—

कमल सिंह और भीम सिंह जादौन सगे भाई थे. कई साल पहले वह अपने गांव उमराया, थाना छाता, जिला मथुरा, उत्तरप्रदेश से राजस्थान के अलवर के भिवाड़ी शहर में आ बसे थे. दोनों भाई भिवाड़ी में किराए के मकान में रहते थे. दोनों भाई माश मेटल कंपनी चौक भिवाड़ी में नौकरी करते थे.

शादी के बाद दोनों भाई अलग हो गए थे. कमल सिंह अपनी पत्नी जमना देवी उर्फ लक्ष्मी के साथ प्रधान कालोनी, सेक्टर-2 में किराए के मकान में रहता था. वहीं भीम सिंह अपने बीवीबच्चों के साथ रामनिवास कालोनी, भिवाड़ी में रहता था. दोनों एक ही कंपनी में काम करते थे. दोनों की तनख्वाह भी अच्छीखासी थी. जिस से घरपरिवार का खर्च आराम से चल रहा था.

शादी में दे बैठे दिल

जमना करीब एक साल पहले कमल की बुआ के पोते की शादी में गांव सांखी, मथुरा गई थी. शादी में वैसे भी सब लोग अच्छे कपड़े और शृंगार कर के शामिल होते हैं. महिलाएं और युवतियां तो ऐसे मौके पर सजनेसंवरने में कोई कसर नहीं छोड़तीं.

जमना ने भी मेकअप करा कर अच्छे कपड़े पहने. वह बहुत खूबसूरत लग रही थी. शादी श्रीचंद जादौन के बड़े बेटे की थी. दूल्हे का छोटा भाई मदनमोहन भी उस समय खूब सजाधजा हुआ था. वह शक्लसूरत से भी ठीक ही था. दूल्हे के आसपास घूमते मदनमोहन और जमना की नजरें एकदूसरे से मिलीं तो दोनों एकदूसरे से नजरें नहीं हटा सके.

मदन को जहां जमना प्यारी लगी थी, वहीं जमना को भी मदन भा गया था. मदन उस समय 18 साल का गबरू जवान था. दोनों का रिश्ता वैसे तो चाचीभतीजे का था मगर उन की आंखों में एकदूजे के लिए अलग ही चाहत थी.

दोनों एकदूसरे को ऐसे देख रहे थे, मानो उन के अलावा उन के लिए वहां कोई और था ही नहीं. मदन ने जब भी इधरउधर देख कर जमना की तरफ देखा, वह उसे ही देखती मिली. मदनमोहन ने तब मौका पा कर जमना चाची से कहा, ‘‘चाची, क्या खूबसूरत लग रही हो. नयनों के तीर चुभो कर मेरा दिन घायल कर दिया.’’

सुन कर जमना हंस कर बोली, ‘‘तुम्हारे नयनों ने मेरा भी दिल घायल कर दिया. अब इस की मरहमपट्टी तुम्हें ही करनी पड़ेगी.’’

‘‘बंदा अभी हाजिर है. आप हुक्म करें. मैं दिल का नया डाक्टर हूं.’’ वह बोला.

‘‘अच्छा, तो डाक्टर साहब से दिल घायल हुआ उस का इलाज आज जरूर कराएंगे.’’ जमना ने हंस कर कहा.

ये बातें हो तो मजाक में रही थीं मगर दोनों के मन में एकदूजे के लिए चाहत जाग उठी थी. दोनों शादी के दौरान एकदूसरे से मिलते रहे. एकदूसरे की खूबसूरती की तारीफों के पुल बांधते रहे.

मौका रात में मिला तो दोनों एकदूसरे की बांहों में समा गए. उन का चाचीभतीजे का रिश्ता वासना की आग में जल कर खाक हो गया. दोनों में एक नया रिश्ता कायम हो गया, जिस का अंत बहुत बुरा होने वाला था.

अगले दिन जमना जब गांव सांखी बुआ सास के घर से भिवानी आने की तैयारी कर रही थी तो मदनमोहन ने कहा, ‘‘चाची, मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं. तुम्हारे जाने के बाद मुझे तुम्हारी बहुत याद आएगी.’’

‘‘आज के बाद चाची नहीं जमना कहोगे.’’ जमना बोली.

तब मदनमोहन बोला, ‘‘जैसा आप का हुकम मेरी प्यारी डार्लिंग जमना. मुझे हर रोज फोन करना. मिलने भी बुलाना. क्योंकि मैं तुम्हारी जुदाई बरदाश्त नहीं कर पाऊंगा.’’

‘‘जरूर मेरे राजा, मुझे भी तुम्हारी बहुत याद सताएगी. याद करूं तब दौड़े आना.’’ वह बोली.

‘‘जरूर आऊंगा.’’ मदन ने जमना की ओर देखते हुए रुआंसे स्वर में कहा.

इस के बाद दोनों ने एकदूसरे का मोबाइल नंबर लिया. जमना भिवाड़ी आ गई. वह भिवाड़ी आ जरूर गई थी, लेकिन अपना दिल तो भतीजे मदनमोहन के पास छोड़ आई थी. यही हाल मदनमोहन का भी था. उसे जमना के बगैर कुछ भी अच्छा नहीं लगता था. मगर करते भी तो क्या. दोनों फोन पर बातें कर के दिल को तसल्ली देते रहते.

एक दो बार मदनमोहन भिवाड़ी भी आया और हसरतें पूरी कर वापस गांव मथुरा लौट आया. उन के बीच अवैध संबंध बने तो दोनों को दुनिया फीकी लगने लगी. मौका मिलने पर मदन भिवाड़ी आ कर जमना देवी से मिल जाता. दोनों कमल सिंह की गैरमौजूदगी में रास रचाते थे.

दोनों एकदूसरे से कोसों दूर रहते थे. एक भिवाड़ी में तो दूसरा मथुरा में. ऐसे में हर रोज मिलना संभव नहीं था. ऐसे में वे दोनों फोन पर बातें कर जी हलका करते थे.

घटना से 6 महीने पहले एक दिन कमल ने अपनी पत्नी जमना को किसी से हंसहंस कर अश्लील बातें करते पकड़ लिया. तब कमल ने उस से पूछा कि किस से बातें कर रही थी. जमना ने बताया कि वह मदनमोहन से ही बात कर रही थी. तब उस ने कहा, ‘‘अरे शर्म नहीं आई तुझे उस से ऐसी बातें करते. अगर आज के बाद किसी से भी इस तरह की बात की तो मुझ से बुरा कोई नहीं होगा.’’

तब जमना ने कसम खा कर पति से कहा कि वह भविष्य में कभी भी मदनमोहन से बात नहीं करेगी. जमना ने पति से यह वादा कर तो लिया लेकिन मदन से बात किए बिना उस का मन नहीं लग रहा था. तब उस ने एक नई सिम ले ली. फिर वह उस नए नंबर से चोरीछिपे मदन से बतिया लेती. कमल ने सोचा कि बीवी ने मदनमोहन से बात करनी छोड़ दी है.

2 महीने बाद जमना को पुन: मदनमोहन से फोन पर बातें करते समय कमल ने पकड़ लिया. तब कमल ने जमना को जम कर पीटा और मदनमोहन को भी फोन कर के धमकाया, ‘‘हरामजादे, तेरे खिलाफ अपनी बीवी से बलात्कार करने का मुकदमा दर्ज कराऊंगा. तब तू सुधरेगा.’’

इतनी पिटाई के बाद भी जमना नहीं सुधरी. उसे अपने प्रेमी से बात करनी नहीं छोड़ी.

इस के बाद कमल सिंह ने एक बार फिर बीवी को मदनमोहन से बात करते पकड़ा. तब बीवी को पीटा और मदनमोहन को धमकी दी कि उस ने अगर 2 लाख रुपए नहीं दिए तो वह बलात्कार का मामला दर्ज करा कर सारे परिवार व रिश्तेदारों से तुम दोनों के अवैध संबंधों की पोल खोल देगा.

मदनमोहन डर गया. उस ने कहा कि उस के पास इतने रुपए नहीं हैं. वह रुपए किस्तों में दे देगा. वह बलात्कार की रिपोर्ट दर्ज न कराएं. इस के बाद कमल ने 14 फरवरी, 2021 को फोन कर मदनमोहन को भिवाड़ी बुलाया. शाम 5 बजे मदनमोहन भिवाड़ी स्थित कमल के घर आया. इस के बाद कमल और मदनमोहन ने साथ बैठ कर शराब पी.

जब शराब का नशा चढ़ा तो कमल ने मदनमोहन से पूछा कि 2 लाख रुपए देगा तो बलात्कार का मामला दर्ज नहीं कराऊंगा. तब मदनमोहन ने कहा कि वह किस्तों में रुपए जरूर दे देगा.

इस के बाद कमल, जमना व मदनमोहन कमरे में एक ही बैड पर सो गए. कमल के दिमाग में तो उस समय कुछ और ही चल रहा था. वह चुपके से उठा और पास में सो रही अपनी बीवी और मदनमोहन के इस तरह फोटो खींचने लगा जैसे वे दोनों एक साथ सो रहे हैं.

फोटो खींच कर कमल ने मदनमोहन और जमना को जगा कर कहा, ‘‘अब मैं रिश्तेदारों को फोन कर के बुलाता हूं और पूरी कालोनी के लोगों को बुला कर बताता हूं कि मैं ने तुम दोनों को शारीरिक संबंध बनाते रंगेहाथों पकड़ा है.’’

तब कमल की पत्नी जमना बोली कि ऐसा मत करो. लेकिन कमल नहीं माना और जिद करने लगा कि वह लोगों को तुम्हारे अवैध संबंधों के बारे में बता कर ही रहेगा.

अपनी पोल खुलने के डर से मदनमोहन ने कमल सिंह को पकड़ लिया और जमना ने अपनी चुन्नी पति के गले में डाल कर जोर से कस दी, जिस से कमल की मृत्यु हो गई. तब मदन और जमना के हाथपांव फूल गए. मगर कमल तो मर चुका था.

तब दोनों ने कमल की लाश ठिकाने लगाने की योजना बनाई, जिस के तहत जमना उसी समय अपने जेठ भीम सिंह के घर गई और उन की बाइक की चाबी यह कह कर ले आई कि कमल को अभी एटीएम से पैसे निकालने बल्लभगढ़ जाना है.

जमना और मदन ने कमल की बाइक पर रात करीब एक बजे कमल के शव को इस तरह दोनों के बीच बिठा कर रखा जैसे किसी बीमार को अस्पताल ले जा रहे हैं. दोनों बाइक पर शव को बाबा मोहनराम के जंगलों में डालने के लिए रवाना हुए लेकिन सड़क पर आने पर बाइक के पीछे पुलिस गश्त की मोटरसाइकिल देख कर मदनमोहन ने बाइक हेतराम चौक से सेक्टर-5 की तरफ मोड़ दी.

सेक्टर-5 व 6 वाली रोड पर बस की लाइट दिखाई देने पर दोनों ने शव को सेक्टर-5 में खाली प्लौट के सामने सड़क किनारे पटक दिया और वापस घर आ गए. मोटरसाइकिल पर मृतक कमल के पैर जमीन पर लटक रहे थे, जिस के कारण दोनों पैरों के अंगूठे आगे से रगड़ कर छिल गए थे. लाश ठिकाने लगाने के बाद आरोपी मदनमोहन फरीदाबाद चला गया.

अगली सुबह यानी 15 फरवरी, 2021 सड़क पर शव देख कर साढ़े 7 बजे थाना यूआईटी भिवाड़ी फेज-3 के थानाप्रभारी सुरेंद्र कुमार को किसी राहगीर ने शव पड़े होने की सूचना दी. इस के बाद थानाप्रभारी पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंचे.

पुलिस ने मृतक की बाइक और जमना देवी व मदनमोहन के मोबाइल जब्त कर के पूछताछ के बाद दोनों को भिवाड़ी कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

बेटी ने दी बाप के कत्ल की सुपारी : भाग 2

अगले दिन राकेश की हत्या की जांच का काम तेजी से शुरू हो गया. कातिल तक पहुंचने के लिए पुलिस के पास बस अब एक ही रास्ता था कि वह इलाके में लगे सीसीटीवी की फुटेज का सहारा ले कर पता लगाए कि राकेश को गोली मारने वाले कौन लोग थे.

हांलाकि इस दौरान क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर धर्मेंद्र पंवार ने अपनी टीम के साथ इलाके में सक्रिय लूटपाट गिरोह से जुड़े कई बदमाशों को हिरासत में ले कर पूछताछ कर ली थी. सत्यता की जांच के लिए तमाम बदमाशों के मोबाइल नंबरों की लोकेशन भी देखी गई, मगर इस वारदात में किसी के भी शामिल होने की पुष्टि नहीं हो सकी.

सीसीटीवी से खुलना शुरू हुआ राज

इधर थानाप्रभारी अवनीश गौतम ने स्टेशन से घटनास्थल तक लगे 6 सीसीटीवी कैमरों की जांच की, तो पता चला कि उन में से एक खराब था. कुल बचे 5 सीसीटीवी कैमरे बाकायदा काम कर रहे थे. पुलिस को पूरी उम्मीद थी कि अगर हत्यारे काफी दूर से राकेश रूहेला का पीछा कर रहे थे तो कहीं न कहीं वे सीसीटीवी फुटेज में जरूर कैद हुए होंगे.

थाना पुलिस ने क्राइम ब्रांच की मदद से इन सभी सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखनी शुरू कर दीं. इसी बीच 12 अप्रैल को कोतवाली प्रभारी अवनीश गौतम का तबादला हो गया. उन की जगह जितेंद्र सिंह कालरा आए.

जितेंद्र सिंह कालरा को यूपी पुलिस में सुपरकौप के नाम से जाना जाता है. कार्यभार संभालते ही नए थानाप्रभारी का सामना सब से पहले राकेश रूहेला के पेचीदा केस से हुआ. उन्होंने इस मामले में अब तक की गई जांच पर नजर डाली.

राकेश हत्याकांड के हर पहलू को बारीकी से समझने के बाद कालरा को लगा कि जांच आगे बढ़ने से पहले उन्हें उन सीसीटीवी फुटेज को जरूर देखना चाहिए.

कालरा ने क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर धर्मेंद्र पंवार और उन की टीम के साथ बैठ कर फुटेज देखने का काम शुरू किया. 5 घंटे तक फोरैंसिक एक्सपर्ट के साथ सीसीटीवी फुटेज देखने के बाद आखिर पुलिस को एक बड़ी कामयाबी मिली.

पता चला कि जिस जगह राकेश रूहेला को गोली मारी गई थी, उस से 50 कदम की दूरी पर एक इलैक्ट्रौनिक शौप से राकेश ने कुछ सामान खरीदा था. उसी समय 2 युवक राकेश का पीछा करते हुए दिखे. इन में से एक के हाथ में तमंचे जैसा हथियार दिखाई दे रहा था.

हालांकि उन के चेहरे पूरी तरह तो नहीं दिख रहे थे, लेकिन आकृति देख कर ऐसा कोई भी व्यक्ति जिस ने उन लोगों को पहले कभी देखा हो, पहचान कर बता सकता था कि वे कौन हैं. सब से पहले थानाप्रभारी ने उस रात घटनास्थल के चश्मदीदों, इस के बाद मुकेश को थाने बुला कर उन से फुटेज देख कर कातिल की पहचान करने को कहा.

राकेश रूहेला की पत्नी कृष्णा व दोनों बेटियों तथा कृष्णा के देवर मुकेश ने सीसीटीवी में दिखे उन 2 लोगों को पहचानने से साफ इनकार कर दिया. लेकिन पुलिस को 2 ऐसे व्यक्ति मिल गए, जिन्होंने जांच को एक नई दिशा दे दी.

जिस किराने की दुकान के सामने राकेश को गोली मारी गई थी, उस समय उस दुकान के पास शैलेंद्र सिंह और राकेश का बेटा विशाल खड़े थे, उन्होंने सीसीटीवी में दिख रहे संदिग्धों की पहचान कर ली. शैलेंद्र ने फुटेज में दिख रहे दोनों युवकों की पहचान कर बताया कि राकेश को गोली मार कर जो युवक भागे थे, उन की आकृति बिलकुल सीसीटीवी फुटेज में दिखाई पड़ रहे युवकों जैसी ही थी.

संदेह गहराता गया, दायरा छोटा होता गया

शैलेंद्र ने बताया कि इन में से एक युवक को उस ने कई बार उसी गली में आतेजाते देखा था, जहां राकेश का घर था. कालरा ने गली के नुक्कड़ पर खड़े रहने वाले कुछ दूसरे लोगों से कुरेद कर पूछा तो उन्होंने भी दबी जुबान से बताया कि उन्होंने उस युवक को कई बार दिन में राकेश के घर आतेजाते देखा था.

इस के बाद थानाप्रभारी कालरा ने मृतक के परिजनों को भी सीसीटीवी फुटेज दिखाई. परिवार के सभी सदस्यों में से सिर्फ राकेश के 20 वर्षीय बेटे विशाल ने बताया कि सीसीटीवी में दिख रहे युवक का नाम समीर है, जो उस की बहन वैष्णवी उर्फ काव्या का पूर्व सहपाठी है और अकसर काव्या से मिलने के लिए भी आता था.

यह बात चौंकाने वाली थी. क्योंकि जब सीसीटीवी में दिख रहे युवक को राकेश की पत्नी व बेटियां जानतीपहचानती थीं तो उन्होंने उसे पहचानने से इनकार क्यों किया.

थानाप्रभारी कालरा को साफ लगने लगा कि दाल में कुछ काला है. क्योंकि जबजब उन्होंने कृष्णा और उस की दोनों बेटियों से पूछताछ की, तबतब वो रोनेबिलखने के साथ पूछताछ के मकसद को भटका देती थीं.

कालरा ने मृतक की पत्नी कृष्णा और उस के बच्चों के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि कृष्णा की छोटी बेटी काव्या और समीर के बीच घटना के 2 दिन पहले से दिन और रात में कई बार बातचीत हुई थी. इतना ही नहीं जिस वक्त वारदात को अंजाम दिया गया, उस के कुछ देर बाद भी 3-4 बार दोनों के बीच लंबी बातचीत हुई थी. समीर के मोबाइल नंबर की लोकेशन भी घटनास्थल के पास की मिली.

अब पूरी तरह साफ हो चुका था कि राकेश रूहेला की हत्या में कहीं न कहीं समीर शामिल है. पुलिस को यह भी पता चल गया कि समीर मोहल्ला हाजीपुरा नाला पटरी में रहने वाले डा. जरीफ का बेटा है.

समीर आया पुलिस की पकड़ में

थानाप्रभारी कालरा के पास अब समीर को पूछताछ के लिए हिरासत में लेने के लिए तमाम सबूत थे. उन्होंने टीम के सदस्यों को उस का सुराग लगाने को कहा. आखिर एक कांस्टेबल की सूचना पर उन्होंने 17 अप्रैल को नाला पटरी के पास खेड़ी करमू के रेस्तरां से उसे हिरासत में ले लिया. उस समय उस के साथ मृतक राकेश की बेटी काव्या के अलावा समीर का चचेरा भाई शादाब भी था.

थानाप्रभारी ने समीर को थाने ले जा कर पूछताछ की तो उसे टूटने में ज्यादा वक्त नहीं लगा. समीर ने कबूल कर लिया कि राकेश रूहेला की हत्या उस ने ही अपने चचेरे भाई शादाब के साथ मिल कर की थी और हत्या करने के लिए काव्या ने ही उसे मजबूर किया था. समीर से पूछताछ के बाद हत्या की जो हैरतअंगेज कहानी सामने आई, वह चौंकाने वाली थी.

काव्या की समीर के साथ पिछले 3 सालों से दोस्ती थी. वे दोनों हाईस्कूल में साथ पढ़ते थे. इंटरमीडिएट तक पढ़ाई के बाद काव्या कैराना स्थित एक कालेज से बीएससी करने लगी, जबकि समीर को उस के घर वालों ने एमबीबीएस की कोचिंग करने के लिए राजस्थान के कोटा में अपने एक रिश्तेदार के पास भेज दिया.

हसबैंड बनाम बौयफ्रैंड : सबक सिखाने के लिए रची साजिश – भाग 2

संगीता को भरोसा ही नहीं होता था कि यह वही रंजन है, जो पहली बार प्रेग्नेंट होने की खबर सुन कर कैसे उछलने लगा था और अब 2 बच्चों के बाद एकदो नहीं, बल्कि 5 बार उस का अबौरशन करा चुका था. उस ने कई बार रंजन को समझाने की कोशिश की, पर एवज में हमेशा झिड़कियां और नसीहतें सुनने को मिलीं कि मुझे मत सिखाओ कि मुझे क्या करना है. ऐसे बेरुखे जवाब सुन कर संगीता का पारा और चढ़ जाता था.

संगीता की मजबूरी बड़े होते दोनों बेटे थे, इसलिए अकसर वह चुप रह जाया करती थी. हर रोज की कलह का बच्चों पर बुरा असर पड़ेगा, यह भी वह खूब समझती थी, पर क्या करे, यह उस की समझ में नहीं आ रहा था. तय था, वह कमजोर पड़ने लगी थी. डगमगाते आत्मविश्वास को वह संभालने की जितनी कोशिश करती, उतनी ही अनुपात में बिखरती भी जाती थी. कल तक जो ऐश्वर्य, वैभव लुभाता था, वही अब उसे काटने लगा था.

पति की सभ्य आवारगी या अय्याशी से समझौता कर लेना संगीता को हार लग रहा था, इसलिए उस ने एक खतरनाक फैसला ले लिया कि क्यों न बच्चों सहित खुदकुशी कर ली जाए या फिर ऐसा कुछ किया जाए, जिस से रंजन को सबक मिले. इस खतरनाक सोच ने दांपत्य की कड़वाहट और बढ़ा दी.

कशमकश की घुटन से या कैद से छुटकारा पाने के लिए संगीता को बेहतर लगा कि कुछ किया जाए और कुछ ऐसे अंदाज में किया जाए कि पति का बदनुमा चेहरा बेनकाब हो जाए. उस की करतूतें दुनिया के सामने आ जाएं और उसे अपने किए की सजा भी मिले. बेटे भी आगे चल कर पिता की राह जाएंगे, यह सोच कर ही उस के अंदर बैठी मां कांप उठती थी. उच्च वर्ग के वैभव व विलासिता पर मध्यमवर्गीय संस्कार भारी पड़ने लगे.

उसी दौरान उस की मुलाकात सतीश कोटवानी से हुई. वह भी कटनी का ही रहने वाला खूबसूरत स्मार्ट युवक था, जिस से संगीता की पहचान फेसबुक के जरिए हुई थी. कब यह परिचय हायहैलो की औपचारिकताएं लांघ कर इतना गहरा गया कि एकदम अनौपचारिक और अंतरंग हो गया, इस का अहसास भी संगीता को अन्य नवयुवतियों की तरह नहीं हुआ.

बात केवल फेसबुक या मोबाइल फोन तक ही सीमित नहीं रही, वह सतीश से मिलने भी लगी थी और मिलने चोरीछिपे न जाना पड़े, इस के लिए उस ने उस के साथ एक जिम और फिर कोचिंग क्लास जौइन कर ली थी. अब कोई खास परदेदारी संगीता और सतीश के बीच नहीं रह गई थी.

इस पर रंजन या ससुराल के किसी दूसरे सदस्य ने ऐतराज नहीं जताया तो यह उन का बड़प्पन ही था. संगीता के पति रंजन से कड़वे रिश्तों की बात जरा भी सतीश से छिपी नहीं रह गई थी. संगीता ने सतीश को जब यह बताया कि वह किस तरह पति को सबक सिखाना चाहती है तो वह अनमना हो उठा. एक अच्छे दोस्त की भूमिका निभाते हुए उस ने संगीता को ऊंचनीच समझाई, पर वह अपनी जिद पर अड़ी रही.

वह 22 दिसंबर का दिन था, जब संगीता दोनों बेटों सहित कार द्वारा कटनी से जबलपुर पहुंची. कार हमेशा की तरह ग्रोवर परिवार का भरोसेमंद ड्राइवर सूर्यप्रकाश पांडेय चला रहा था, जो मैडम के मिजाज को बेहतर समझने लगा था. जबलपुर में दाखिल होते ही संगीता ने ड्राइवर को समदडिया मौल चलने को कह कर यह बता दिया कि वह वहां मैटिनी शो देखेगी.

इसी बीच वह कुछ देर के लिए एक सहेली के साथ रुकी, फिर एक पुराने परिचित की दुकान पर कार रुकवा कर उस ने कुछ दवाइयां खरीदीं. समदडिया ग्रुप महाकौशल इलाके का जानामना नाम है. यह सिविक सैंटर में बना है, जो जबलपुर का अपने आप में एक लैंडमार्क हो गया है. सूर्यप्रकाश ने कार पार्किंग में खड़ी की तो संगीता दोनों बेटों के साथ मौल में चली गई.

सूर्यप्रकाश पांडेय के अंदाजे के मुताबिक संगीता को 5-6 बजे तक वापस आ जाना चाहिए था. लेकिन जब वह 7-8 बजे तक नहीं आई तो उसे चिंता होने लगी. शायद मैडम और बच्चे शौपिंग में लग गए होंगे, यह सोच कर उस ने और इंतजार करना ही मुनासिब समझा. उस ने रात 9 बजे तक इंतजार किया.

10 बजतेबजते सूर्यप्रकाश का सब्र टूटने लगा तो उस ने डरतेडरते संगीता के मोबाइल पर फोन किया तो वह स्विच औफ मिला. कुछ नहीं सूझा तो वह मालकिन को ढूंढने मौल में जा घुसा, पर काफी देर ढूंढने के बाद भी संगीता और बच्चे कहीं नहीं दिखे तो वह घबरा गया. कुछ सोच कर उस ने तय किया कि इस की खबर मैडम की मां सुषमा कोहली को प्रेमनगर स्थित उन के घर जा कर दी जाए.

ऐसा ही उस ने किया भी. बुजुर्ग सुषमा सब कुछ तो नहीं, काफी कुछ बेटीदामाद के संबंधों के बारे में जानती थीं. संगीता गायब है और उस का फोन भी बंद है, यह सोच कर ही वह किसी अनहोनी की आशंका से कांप उठीं और तुरंत ओमती थाने पहुंच कर बेटी की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखा दी. फोन पर यह खबर दामाद रंजन को भी उन्होंने दे दी. रंजन तुरंत कटनी से जबलपुर के लिए रवाना हो गए.

ओमती थानाप्रभारी अरविंद चौबे का माथा ठनका. क्योंकि मामला एक संभ्रांत करोड़पति परिवार की बहू और 2 बेटों के गायब होने का था, जिस में अपहरण की आशंका भी थी. वह तुरंत समदडिया मौल पहुंचे और किसी सुराग की उम्मीद में गार्डों से ले कर समदडिया मौल के मुलाजिमों से संगीता और उस के बच्चों के बाबत पूछताछ की.

दरोगा की कातिल पत्नी : मां-बेटी बने पिता के कातिल – भाग 2

सुबह हो गई, भौंदे खान तब भी घर नहीं लौटे. अनीस उस रोज शहर से बाहर गया हुआ था. सुबह जब वह घर लौटा तो सास जाहिदा ने उसे यह बात बताई. अनीस ने सास से कहा कि वह कुछ देर बाद पुलिस लाइन जा कर देख आएगा कि आखिर बात क्या है. लेकिन उस से पहले ही उसे भौंदे खान की लाश मिलने की सूचना मिल गई.

सीओ (सदर) सुमित शुक्ला और थानाप्रभारी डी.सी. शर्मा की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर ऐसी कौन सी वजह रही होगी जिस के कारण उन की हत्या की गई. मामला लूटपाट का नहीं था क्योंकि उन की मोटरसाइकिल, कलाई घड़ी और जेब में उन का पर्स ज्यों का त्यों बरामद हुआ था. पर्स में आईडी कार्ड से ले कर डेबिट कार्ड तथा कुछ रुपए सहीसलामत पाए गए थे.

थानाप्रभारी डी.सी. शर्मा को लग रहा था कि दरोगा मेहरबान अली की हत्या का मामला उतना सीधा नहीं है, जितना कि नजर आ रहा है. इसलिए उन्होंने एक टीम मेहरबान अली के परिवार और उन के मेलजोल वालों के बारे में जानकारी एकत्र करने के लिए गठित कर दी, जिस में एसएसआई रामनरेश यादव, महिला एसआई ज्योति त्यागी, कांस्टेबल अनूप मिश्रा, माधुरी के साथ एक दरजन पुलिस वाले शामिल थे.

थानाप्रभारी ने यह कदम यूं ही नहीं उठाया, बल्कि उन्हें 2 महीने पहले दरोगा मेहरबान अली के घर में हुई एक ऐसी घटना याद आ गई जिस की तफ्तीश खुद उन्होंने ही की थी.

मेहरबान अली उर्फ भौंदे खान मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला मुजफ्फरनगर की तहसील बुढ़ाना के गांव कसेरवा के रहने वाले थे. वह उत्तर प्रदेश पुलिस में सब इंसपेक्टर के पद पर तैनात थे. उन की नियुक्ति उत्तर प्रदेश के अलगअलग जिलों में रहने के बाद सन 2007 में शाहजहांपुर जिले की पुलिस लाइन में वायरलैस सेल में हुई थी.

वह थाना सदर क्षेत्र के मोहल्ला एमनजई जलालनगर में अपने दामाद अनीस के साथ रहते थे. मकान की दूसरी मंजिल पर अनीस अपनी पत्नी सबा के साथ रहता था. अनीस मशीनरी टूल की ट्रेडिंग का धंधा करता था. जिस के सिलसिले में उसे अकसर शहर से बाहर भी आनाजाना पड़ता था.

जिस दिन मेहरबान अली गायब हुए थे, अनीस उस दिन शहर से बाहर गया हुआ था. मेहरबान अली के परिवार में उन की पत्नी जाहिदा के अलावा 5 बेटियां व एक बेटा था. बड़ी बेटी सबा की शादी अनीस के साथ डेढ़ साल पहले हुई थी. उस से छोटी 4 बेटियां सना, जीनत, इरम, आलिया तथा एक बेटा मोहसिन है, जो परिवार में सब से छोटा है. दूसरे नंबर की बेटी सना खान की 2 महीने पहले हत्या हो गई थी. थानाप्रभारी डी.सी. शर्मा ने ही उस मामले की जांच की थी.

दरोगा की बेटी की हुई थी हत्या

सना जी.एस. कालेज में बीए फाइनल की छात्रा थी. वह यूपी पुलिस परीक्षा की तैयारी कर रही थी. इस के लिए वह रामनगर कालोनी स्थित एक कोचिंग सेंटर, अपनी छोटी बहन जीनत के साथ जाती थी. 7 अप्रैल, 2018 को भी सना जीनत के साथ कोचिंग सेंटर से बाहर निकल कर 200 मीटर दूर पहुंची थी. तभी अरशद वहां आया. वह अपने एक दोस्त के साथ बाइक पर सवार था. उस ने सना से बात करने के लिए दोनों बहनों को रोक लिया.

अरशद भी उन के साथ उसी कोचिंग सेंटर में जाता था. दोनों आपस में अच्छे दोस्त थे. अरशद सना से बात करने लगा. बात करतेकरते दोनों जैसे ही इलाके के डा. मुबीन के घर के पास पहुंचे तभी अरशद की सना से किसी बात को ले कर नोकझोंक और गालीगलौज होने लगी. तभी गुस्से में आ कर अरशद ने जेब से तमंचा निकाल कर सना को गोली मार दी. गोली उस के सीने पर लगी और वह वहीं जमीन पर गिर पड़ी. गोली मारते ही अरशद अपने दोस्त के साथ बाइक से फरार हो गया था.

इधर, बहन को गोली लगते ही जीनत जोरजोर से चीखने लगी. जीनत की चीखपुकार सुन कर कोचिंग सेंटर से अन्य छात्र बाहर आ गए. उन्होंने खून से लथपथ सना को देखा तो तुरंत एंबुलेंस को फोन किया. लेकिन एंबुलेंस के आने से पहले ही कोचिंग के दोस्त सना को मोटरसाइकिल पर बीच में बैठा कर अस्पताल ले गए. लेकिन अस्पताल पहुंचने पर डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.

जिस इलाके में वारदात हुई वह सदर थाना क्षेत्र में आता है. सना के पिता मेहरबान अली चूंकि पुलिस में ही दरोगा थे, इसलिए थानाप्रभारी डी.सी. शर्मा ने मामले को गंभीरता से लिया. जीनत के बयान के आधार पर सना की हत्या की रिपोर्ट दर्ज की गई.

अरशद नाम के जिस युवक ने सना को गोली मारी थी उस के बारे में जानकारी हासिल करने में पुलिस को ज्यादा वक्त नहीं लगा. अरशद प्रतापगढ़ के थाना कन्हई के कठहार गांव का रहने वाला था. उस के पिता जहीरूद्दीन सिद्दीकी भी उत्तर प्रदेश पुलिस में थे. अरशद के चाचा सौराब खां शाहजहांपुर में ही बतौर कांस्टेबल तैनात थे. अरशद उन्हीं के साथ रहता था. वह पुलिस लाइन में रह कर पुलिस सेना में भरती होने की तैयारी करता था. इसलिए वह रोजाना दौड़ लगाने के लिए पुलिस लाइन के परेड ग्राउंड में जाता था.

उसी ग्राउंड में सना खान और उस की बहन जीनत भी दौड़ने आती थी. वह भी पुलिस में भरती होने की तैयारी कर रही थीं. बातों ही बातों में अरशद की उन से दोस्ती हो गई. सना मन ही मन अरशद को पसंद करने लगी और जल्द ही दोनों का अकेले में मिलनाजुलना शुरू हो गया. लेकिन अरशद सना की बहन जीनत को ज्यादा पसंद करता था और उसी के साथ निकाह करना चाहता था. जीनत भी अरशद को चाहने लगी थी.

अरशद जब जीनत के साथ हंसीमजाक करता तो सना को ये बात नागवार गुजरती थी. उस ने इस बात पर अरशद को कई बार झिड़कते हुए कह दिया था कि वह उसे पसंद करती है इसलिए वह उस की बहन जीनत पर गलत नजर न रखे.

सना के कई बार ऐसा कहने पर एक दिन अरशद ने सना से साफ कह दिया कि वह उस से नहीं बल्कि जीनत को पसंद करता है और उस से निकाह करना चाहता है. इस के बाद से सना अरशद के जीनत से मेलजोल का विरोध करने लगी. इतना ही नहीं उस ने अपनी मां जाहिदा और पिता मेहरबान अली को भी यह बात बता दी थी. जिस पर जीनत को घर वालों से डांट भी पड़ी थी.

आधी-अधूरी प्रेम कहानी : पिंकी की प्रेम कहानी पर पिता का वार

पिंकी जिम ट्रेनर रोशन को दिलोजान से प्यार करती थी. इस के बावजूद उस के पिता शंकर लाल ने मरजी के खिलाफ उस की शादी मुकेश से कर दी. शादी के 5 दिन बाद ही पिंकी अपने प्रेमी रोशन के साथ भाग गई. इस के बाद भी ऐसा क्या हुआ कि उस की प्रेम कहानी अधूरी ही रह गई?

इसी साल 16 फरवरी को बसंत पंचमी थी. उस दिन अबूझ सावा था. कोरोना के कारण पूरे देश में बहुत सी शादियां अटकी हुई थीं. इस का कारण था कि

शादियों के लिए सरकार ने लौकडाउन खुलने के बाद शादी समारोह में केवल 50 लोगों के शामिल होने की ही अनुमति दी थी. हालांकि बाद में कुछ राज्यों में 100 लोगों तक की छूट दे दी गई.

राजस्थान में कोरोना का संक्रमण कुछ कम होने पर इस साल जनवरी में राज्य सरकार ने शादी समारोह में 200 लोगों के शामिल होने की अनुमति दे दी थी. इस से करीब 10 महीने बाद शादियों में रौनक बढ़ गई थी. इस से पहले कोरोनाकाल में जो शादियां हो रही थीं, उन में केवल घरपरिवार के लोग और नजदीकी रिश्तेदार ही शामिल हो पा रहे थे.

बसंत पंचमी पर अबूझ सावा होने और छूट का दायरा बढ़ने के कारण सभी जगह शादियों की धूम मची हुई थी. राजस्थान के दौसा शहर में शंकर लाल सैनी की बेटी पिंकी की शादी थी. उस की शादी के लिए दौसा जिले के ही लालसोट इलाके से मुकेश (बदला हुआ नाम) की बारात आई थी.

दौसा शहर के रामकुंड इलाके में रहने वाले शंकर लाल ने अपनी हैसियत के मुताबिक बारात की आवभगत की. निकासी के बाद बारात जब शंकर लाल के मकान की दहलीज पर पहुंची, तो शादी के लाल जोड़े में सजी पिंकी की सहेलियां दूल्हे को देख कर पिंकी को छेड़ने लगीं.

अपने दूल्हे को देखने और सहेलियों की छेड़छाड़ के बावजूद पिंकी के चेहरे पर कोई खुशी नहीं थी. भले ही पिंकी ने शादी के लिए ब्यूटीपार्लर से मेकअप कराया था, लेकिन उस के चेहरे पर रौनक नहीं थी.

न तो वह अपने घरपरिवार वालों से हंसबोल रही थी और न ही सहेलियों की चुहल का कोई जवाब दे रही थी. लग रहा था जैसे वह दूसरे खयालों में खोई हुई हो. सहेलियों ने उस से पूछा भी, लेकिन पिंकी ने कोई जवाब नहीं दिया.

खाना खाते समय दूल्हे मुकेश ने भी पिंकी को हंसाने की कोशिश की, लेकिन पिंकी ने न तो अपने भावी पति की बातों पर ध्यान दिया और न ही देवरों की फरमाइश पूरी की. गुमसुम पिंकी को देख कर सब लोग सोच रहे थे कि मातापिता के घर का मोह नहीं छूट पा रहा है.

फेरों के दौरान भी पिंकी गुडि़या की तरह शांत बैठी रही. वह पंडित के बताए अनुसार वैवाहिक रस्में निभाती रही. दूल्हे के साथ अग्नि के समक्ष सात फेरे लेने के बाद भी पिंकी के हावभाव में कोई बदलाव नहीं आया. शादी के सभी नेगचार होने के बाद 17 फरवरी, 2021 को तड़के बारात विदा हो गई. पिंकी अपनी ससुराल चली गई.

ससुराल पहुंच कर भी पिंकी के चेहरे पर कोई रौनक या हंसीखुशी नहीं आई. पति मुकेश ने उसे कुरेदने की बहुत कोशिश की, लेकिन वह केवल हां और न में ही सिर हिलाती रही. लगता था जैसे उस के होंठ सिले हुए हों. सास, ननद और भाभियों ने भी पिंकी की परेशानी जानने की कोशिश की, लेकिन उस ने किसी को कुछ नहीं बताया.

रस्मोरिवाज के मुताबिक नवविवाहिता शादी के 2-3 दिन बाद ही वापस अपने मायके आती है. तब वह 1-2 दिन मायके में रुकती है. इस के बाद दूल्हा अपने 2-4 घर वालों के साथ आ कर पत्नी को वापस अपने घर ले जाता है.

पिंकी भी 2 दिन ससुराल में रुकने के बाद अपने मायके दौसा आ गई. मायके में मां सहित घरपरिवार और मोहल्ले की

महिलाओं ने पिंकी से उस के दूल्हे और ससुरालवालों के बारे में तरहतरह के सवाल पूछे, लेकिन पिंकी ने किसी का भी जवाब ढंग से नहीं दिया.

शंकर लाल सैनी और घर के बाकी लोग समझ नहीं पा रहे थे कि पिंकी को क्या परेशानी है? उसे कोई दुखतकलीफ नहीं थी. फिर वह शादी से खुशी क्यों नहीं है? पिंकी के घर वालों ने उस की सहेलियों से भी इस बारे में पूछा, लेकिन कोई खास बात पता नहीं लगी.

इस बीच, 21 मार्च को लालसोट स्थित पिंकी के ससुराल से उस का पति मुकेश और परिवार के 2-4 लोग उसे लेने आने वाले थे. लेकिन इस से पहले ही 21 मार्च को पिंकी घर से गायब हो गई. परिवार वालों ने आसपड़ोस में पूछताछ की, तो पता चला कि वह अपने प्रेमी रोशन महावर के साथ भाग गई है.

रोशन दौसा शहर के ही झालरा का बास में रहता था. वह पार्षद का चुनाव लड़ चुका था. रोशन के पिता रामजीलाल महावर पूर्व पार्षद हैं. रोशन जिम ट्रेनर है. पिंकी जब रोशन के साथ चली गई, तो पिंकी के ताऊ ने रोशनलाल महावर सहित 3-4 लोगों के खिलाफ पिंकी का अपहरण कर ले जाने का मुकदमा दर्ज करा दिया.

दौसा से भाग कर रोशन और पिंकी जयपुर चले गए. जयपुर में उन्होंने हाईकोर्ट में लिवइन रिलेशनशिप में रहने के लिए याचिका दायर की. न्यायाधीश के समक्ष पिंकी ने अपनी इच्छा से प्रेमी रोशन के साथ रहने की बात कही. हाईकोर्ट ने उन्हें अनुमति दे दी. साथ ही पुलिस को निर्देश दिए कि पिंकी और रोशन को सुरक्षा मुहैया कराई जाए.

पिंकी को ले कर रोशन एक मार्च को जयपुर से दौसा में झालरा का बास स्थित अपने घर पहुंचा. पिंकी के दौसा वापस आने की जानकारी उस के मातापिता को भी मिल गई. उसी दिन कुछ घंटे बाद पिंकी के परिवार के कुछ लोग झालरा का बास पहुंचे और रोशन से मारपीट कर पिंकी को जबरन अपने साथ ले गए. इस पर रोशन ने दौसा के महिला थाने में पिंकी के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज करा दी.

शंकर लाल खुद पहुंचा थाने

मार्च महीने की 3 तारीख को रात के तकरीबन ढाई बजे एक अधेड़ आदमी दौसा शहर के महिला थाने पहुंचा. उस ने पेंटशर्ट पहन रखी थी. पैरों में चप्पलें थीं. उस के बाल बिखरे हुए थे और दाढ़ी बढ़ी हुई थी. वह आदमी थका और बुझा हुआ सा लग रहा था.

महिला थाने के गेट पर संतरी रायफल लिए खड़ा था. थाने में उस समय ज्यादा स्टाफ नहीं था. रात में वैसे भी वहां ज्यादा पुलिस वाले नहीं रहते.

क्योंकि महिला थाने में रात में कभीकभार ही फरियादी आते हैं. यहां न तो कोई चोरीडकैती के मामले आते हैं और न ही रात की गश्त की जिम्मेदारी होती है. इसलिए ज्यादातर पुलिस वाले अपने घर या थाने में बने क्वार्टरों में चले जाते हैं. थाने में ड्यूटी औफिसर और 2-4 पुलिस वाले ही रहते हैं. उस रात एएसआई पुखराज मीणा थाने में ड्यूटी औफिसर थे.

गेट पर खड़े संतरी ने बिजली की रोशनी में उस आदमी के चेहरे की तरफ देखते हुए पूछा, ‘‘क्या काम है, इतनी रात को क्यों आए हो?’’

उस आदमी ने लरजती जुबान से कहा, ‘‘बड़े साहब से मिलना है.’’

‘‘क्यों, क्या बात है, जो रात में साहब से मिलने के लिए आए हो.’’ संतरी ने पूछा.

‘‘साहब, मेरी बेटी का कत्ल हो गया है.’’ उस आदमी ने निराशाभरी आवाज में कहा.

कत्ल की बात सुन कर संतरी चौंका. उस ने अपनी रायफल संभाली और उस आदमी को थाने के अंदर ड्यूटी औफिसर पुखराज मीणा के पास ले गया.

खून की बात सुन कर ड्यूटी औफिसर ने उस आदमी को गौर से देखा. फिर पास में रखी कुरसी पर बैठने का इशारा करते हुए उस से पूछा, ‘‘तुम्हारा नाम क्या है और कहां रहते हो?’’

‘‘साहब, मेरा नाम शंकर लाल सैनी है. मैं रामकुंड इलाके में रहता हूं.’’ उस आदमी ने कहा.

शंकर लाल सैनी का नाम सुन कर पुखराज मीणा को याद आया कि 2-3 दिन पहले ही एक युवती पिंकी का अपहरण हुआ था. वह शंकर लाल की बेटी थी. पिंकी के अपहरण का आरोप रोशन के परिवार के लोगों पर था और उन के खिलाफ मुकदमा भी दर्ज था.

पिंकी और शंकर के नाम याद आने पर ड्यूटी औफिसर ने पूछा, ‘‘क्या तुम वही शंकर हो, जिस की बेटी का अपहरण हुआ था.’’

‘‘हां साहब, पिंकी मेरी ही बेटी थी.’’ शंकर ने सुबकते हुए कहा.

‘‘तुम्हारी बेटी का खून कैसे हो गया?’’ ड्यूटी औफिसर ने शंकर से सवाल किया.

‘‘साहब, मैं ने ही अपनी बेटी पिंकी को मार डाला. उस की लाश घर में ही पड़ी है.’’ शंकर ने रोते हुए बताया.

मामला गंभीर था. इसलिए ड्यूटी औफिसर पुखराज मीणा ने अपने उच्चाधिकारियों को घटना की जानकारी दी.

सूचना मिलने पर पुलिस के अधिकारी शंकर लाल के मकान पर पहुंचे. शंकर को भी पुलिस अपनी हिरासत में उस के घर ले गई. घर में पिंकी की लाश पड़ी थी. उस ने एफएसएल टीम को भी मौके पर बुला लिया. इस काररवाई में सुबह हो गई.

मौके की काररवाई पूरी करने के बाद पुलिस ने पिंकी की लाश पोस्टमार्टम के लिए दौसा के सरकारी अस्पताल भेज दी.

महिला थाने के एएसआई पुखराज मीणा ने कोतवाली थाने में पिंकी की हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराई. पोस्टमार्टम होने के बाद घरवालों ने शव का दाह संस्कार कर दिया. पुलिस ने बेटी की हत्या के आरोप में शंकर को गिरफ्तार कर लिया.

पूछताछ के बाद अपहरण के आरोप में 4 मार्च को ही पिंकी की मां चमेली देवी के अलावा परिवार के 6 अन्य लोगों को भी गिरफ्तार कर लिया गया.

आरोपियों से की गई पूछताछ के बाद औनर किलिंग की जो कहानी सामने आई, वह पिंकी की अधूरी प्रेमकथा है.

शादी के पांचवें दिन ही बेटी प्रेमी के साथ भाग गई, तो शंकर और उस के परिवार को लगा कि उन की इज्जत मिट्टी में मिल गई है. बदनामी के डर और अपनी इज्जत बनाए रखने के लिए उस ने बेटी के खून से ही अपने हाथ रंग लिए.

रामकुंड इलाके में रहने वाला 47 साल का शंकर लाल सैनी फलसब्जी का ठेला लगाता है. उस के परिवार में पत्नी चमेली देवी के अलावा 4 बेटियां और सब से छोटा 10 साल का बेटा है. 19 साल की पिंकी 12वीं तक पढ़ी थी. करीब 2 साल से उस का प्रेम प्रसंग जिम ट्रेनर रोशन से चल रहा था. वह रोशन से दिल से प्यार करती थी और उसी के साथ घर बसाना चाहती थी.

पिंकी का कर लिया अपहरण

पिंकी के घरवालों को जब उस के प्रेम प्रसंग का पता चला, तो उन्होंने उसे समझाने की कोशिश की. उसे बताया कि वह लड़का उन की जातिबिरादरी का नहीं है. पिंकी नहीं मानी तो घरवालों ने उस पर बंदिशें लगा दीं. घर वालों की रोकटोक और बंदिशों के बावजूद पिंकी के मन में रोशन के प्रति प्यार कम नहीं हुआ, बल्कि बढ़ता ही गया.

बेटी के प्रेम प्यार के चक्कर को खत्म करने के लिए शंकर ने अपनी पत्नी से बात कर जल्द से जल्द उस के हाथ पीले करने का फैसला किया.

बेटी की शादी के लिए उस ने रिश्तेदारों और मिलनेजुलने वालों से कहा. आखिर लालसोट के रहने वाले मुकेश से पिंकी का रिश्ता तय हो गया.

पिंकी इस रिश्ते के खिलाफ थी, लेकिन वह कुछ कर नहीं पा रही थी. घर वालों के कड़े पहरे के कारण वह घर से बाहर भी नहीं निकल पा रही थी.

कोरोना का संक्रमण कम होने पर लौकडाउन खुला तो शंकर ने पिंकी की शादी का मुहूर्त निकलवाया. 16 फरवरी, 2021 को मुकेश के साथ पिंकी की धूमधाम से शादी हो गई. पिंकी इस शादी के खिलाफ थी, लेकिन घर वालों के दबाव के कारण उसे अपने दिल पर पत्थर रख कर मुकेश के साथ फेरे लेने पड़े. वह पिता के घर से विदा हो कर बुझे मन से ससुराल चली गई, लेकिन वह अपने प्रेमी रोशन को नहीं भूली.

ससुराल से पहली बार मायके आने पर उसे अपने सपने पूरे होते नजर आए. 21 फरवरी को जब पति और ससुराल वाले उसे लेने को आने वाले थे, उस से कुछ देर पहले ही वह बहाना बना कर घर से निकल गई और रोशन के पास पहुंच गई. पिंकी को देख कर रोशन का प्यार भी हिलोरे मारने लगा. फिर दोनों दौसा से जयपुर चले गए.

हाईकोर्ट ने उन्हें साथ रहने की इजाजत दे दी तो पहली मार्च को वे दौसा आ गए. उसी दिन रोशन के घर से पिंकी का अपहरण हो गया. पुलिस 3 दिन तक पिंकी को ढूंढ नहीं सकी. 3 मार्च की रात पिंकी को उस के पिता ने ही मार डाला.

पिंकी की हत्या के मामले में पुलिस की दोहरी लापरवाही की बात सामने आई है. हाईकोर्ट ने जब पुलिस को इस प्रेमी जोड़े को सुरक्षा मुहैया कराने के निर्देश दिए थे तो उन्हें सुरक्षा क्यों नहीं दी गई? अगर उन्हें सुरक्षा दी जाती, तो पिंकी का अपहरण नहीं होता और शायद आज वह जीवित होती.

पिंकी के अपहरण के बाद भी पुलिस ने लापरवाही बरती. केस दर्ज होने के बाद भी पुलिस ने मामले को गंभीरता से नहीं लिया और 3 दिन तक उसे ढूंढ नहीं सकी. रोशन का कहना है कि जब उन्होंने पुलिस को पिंकी के अपहरण की बात बताई, तो पुलिस ने उस से यही कहा कि उसे उस के परिवार के लोग ही तो ले गए हैं.

पुलिस की लापरवाही का मामला उठने पर दौसा के एसपी अनिल बेनीवाल ने सफाई दी कि हाईकोर्ट के आदेश की सूचना उन्हें नहीं थी. हाईकोर्ट ने कपल की सुरक्षा के लिए जयपुर की अशोक नगर थाना पुलिस को कहा था. अशोक नगर थाना पुलिस प्रेमी जोड़े की इच्छा पर उन्हें जयपुर के त्रिवेणी नगर छोड़ आई थी.

पिंकी को 3 दिन तक नहीं ढूंढ पाने के सवाल पर एसपी का कहना था कि अपहरण की शिकायत पर नाकेबंदी की गई और उस की तलाश की जा रही थी. बाद में जांच में पता चला कि पिंकी का अपहरण कर उसे करौली जिले में एक गोदाम में रखा गया था. उसे 3 मार्च की रात को हत्या से कुछ समय पहले ही दौसा में पिता के घर लाया गया था.

मानवाधिकार आयोग आया हरकत में

पुलिस की लापरवाही की बातें सामने आने पर राज्य मानवाधिकार आयोग ने 5 मार्च, 2021 को इस मामले में प्रसंज्ञान लिया. आयोग के सदस्य न्यायाधिपति महेश चंद शर्मा ने डीजीपी, आईजी (जयपुर रेंज) और दौसा एसपी को निष्पक्ष जांच करने और प्रगति रिपोर्ट संबंधित दंडनायक के समक्ष प्रस्तुत करने के आदेश दिए. दौसा कलेक्टर को भी उचित कदम उठाने के आदेश दिए गए. उन्होंने 30 मार्च को सभी अधिकारियों को तथ्यात्मक रिपोर्ट आयोग में पेश करने को कहा. न्यायाधिपति ने अपने आदेश में लिखा कि पिंकी की हत्या की खबरें पढ़ कर उन का हृदय द्रवित हो गया है.

एक पिता बेटी को पालपोस कर बड़ा करता है. उसे दुनिया की हर खुशी देना चाहता है. फिर वह कैसे उस का गला दबा कर निर्मम हत्या कर सकता है? यह अत्यंत हृदयविदारक घटना है, जो मानवता को शर्मसार करने वाली है. ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए जरूरी कदम उठाए जाने चाहिए.

जयपुर रेंज आईजी हवासिंह घुमारिया ने जांच कराई, तो इस मामले में पुलिस की लापरवाही की बातों की पुष्टि हुई. इस के बाद 5 मार्च, 2021 को दौसा के महिला थानाप्रभारी लोकेंद्र सिंह और दौसा कोतवाली थानाप्रभारी सुगन सिंह को हटा कर लाइन हाजिर कर दिया गया. 2 दिन बाद 7 मार्च को इन दोनों पुलिस इंसपेक्टरों को निलंबित कर दिया गया.

बहरहाल, दिखावे की शान और इज्जत के लिए शंकर लाल ने अपनी शादीशुदा बेटी को मौत की नींद सुला दिया. पहली गलती पिंकी के मातापिता की यह रही कि उन्होंने उस की मरजी के खिलाफ उस की शादी की. दूसरी लापरवाही पुलिस की रही.

अगर पुलिस सुरक्षा दे देती तो शायद पिंकी का अपहरण नहीं होता. पिंकी का अपहरण होने के बाद भी पुलिस सक्रिय हो जाती, तो शायद रोशन और पिंकी की प्रेम कहानी अधूरी नहीं रहती.

माया के लिए बड़ा गुनाह : अपनी ही पत्नी की हत्या

लालच की भी एक हद होती है, लेकिन पैसे के लिए अनुज ने सारी हदें पार कर दी थीं. उस ने शालिनी की हत्या की ही योजना नहीं बनाई बल्कि एक तीर से 2 निशाने लगाने की सोची. लेकिन…

8  जनवरी, 2021 की बात है. सुबह के करीब 5 बजे थे. गुजरात के सूरत जिले के पुणा पुलिस थाने को एक अहम सूचना मिली. सूचना देने वाले व्यक्ति ने इंसपेक्टर वी.यू. गड़रिया को फोन पर बताया कि कुमारियां गांव के सर्विस रोड स्थित रघुवीर सिलियम मार्केट के सामने बुरी तरह जख्मी एक महिला पड़ी है. उस के सिर पर गहरी चोट है. मामला सड़क दुर्घटना का लगता है. आप शीघ्र काररवाई करें.

इस जानकारी को इंसपेक्टर वी.यू. गड़रिया ने गंभीरता से लिया. अपने सहायकों को साथ ले कर वह तत्काल घटनास्थल की ओर रवाना हो गए.

घटनास्थल पुणा पुलिस थाने से लगभग एक किलोमीटर दूर था. पुलिस वहां मुश्किल से 10 मिनट में पहुंच गई. इस बीच घटना की जानकारी पूरे इलाके में फैल चुकी थी और वहां अच्छाखासा मजमा लग गया था.

पुलिस टीम जब वहां पहुंची तो खून ही खून फैला हुआ था. खून के अलावा वहां कुछ नहीं था. पुलिस टीम ने जब वहां मौजूद लोगों से पूछताछ की तो मालूम हुआ कि उन के आने के पहले एक एंबुलैंस आई और उसे उठा कर इलाज के लिए पास ही के स्मीमेर अस्पताल ले गई.

इंसपेक्टर वी.यू. गड़रिया को मामला गंभीर लगा. उन्होंने यह जानकारी अपने उच्चाधिकारियों को दे दी. इस के बाद उन्होंने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया.

निरीक्षण करने के बाद वह सीधे स्मीमेर अस्पताल पहुंचे. वहां पता चला कि उस महिला की उपचार के दौरान ही मौत हो गई थी. महिला को उस की ससुराल के लोग अस्पताल लाए थे. वह भी अस्पताल में ही मौजूद थे. थानाप्रभारी ने उन से पूछताछ की तो मालूम हुआ कि मृतक महिला का नाम शालिनी था. उस की मौत अस्पताल लाने के 20 मिनट बाद हुई थी.

शालिनी के पति अनुज कुमार यादव उर्फ मोनू ने बताया कि वह अपनी पत्नी शालिनी के साथ सुबह 5 बजे अकसर उस रोड पर मौर्निंग वाक के लिए जाता था. एक घंटे की वाक के बाद वे अपने घर आ जाते थे.

घटना के समय टहलते हुए जब वह अपनी पत्नी से कुछ दूर आगे चल रहा था, तभी अचानक रेत से भरा एक ट्रक तेजी से आया और शालिनी को रौंदता हुआ वड़ोदरा की तरफ निकल गया. घबराहट में जब तक वह कुछ समझ पाता, तब तक ट्रक उस की आंखों से ओझल हो गया था.

सुनसान सड़क होने के कारण उसे जल्दी कोई मदद भी नहीं मिली. वह अपना फोन घर भूल आया था. जिस की वजह से मजबूरन उसे शालिनी को घायलावस्था में वहीं छोड़ कर एंबुलैंस लाने के लिए जाना पड़ा.

अस्पताल के डाक्टरों के बयानों के बाद पुलिस ने शालिनी के शव का बारीकी से मुआयना किया और उसे पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भिजवा दिया.

थानाप्रभारी थाने लौट आए. शुरुआती जांचपड़ताल में जहां एक तरफ मामला हिट ऐंड रन का बन रहा था, वहीं दूसरी तरफ शालिनी की हत्या की साजिश से भी इनकार नहीं किया जा सकता था. बहरहाल, शालिनी के पति अनुज यादव की शिकायत पर पुलिस ने ड्राइवर और ट्रक के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया.

दूसरी ओर जब इस हादसे की खबर शालिनी के मायके वालों को मिली तो उन के पैरों तले से जमीन सरक गई. उन की बेटी शालिनी किसी हादसे का शिकार हो गई, यह बात उन के गले नहीं उतर रही थी. उन के पूरे परिवार में बेटी को ले कर कोहराम मच गया. उस की मां, बहनों और भाइयों का रोरो कर बुरा हाल था. शालिनी के पिता धनीराम यादव ने फोन पर इंसपेक्टर वी.यू. गड़रिया से बात की और दूसरे दिन शाम होतेहोते वह आगरा जिले में स्थित अपने गांव से सूरत आ गए.

साजिश का संदेह

शालिनी के पिता धनीराम यादव ने शालिनी की मौत को एक सोचीसमझी साजिश बता कर उस की ससुराल वालों को संदेह के राडार पर खड़ा कर दिया. मायके वाले शालिनी के शव पर अपना दावा करते हुए उस का दाह संस्कार अपने गांव ले जा कर करना चाहते थे. साथ ही वे शालिनी की 2 वर्षीय बेटी को भी अपने संरक्षण में लेना चाहते थे. लेकिन इस के लिए शालिनी के ससुराल वाले तैयार नहीं थे. ससुराल वाले उस का शव हासिल करने की कोशिश में लगे थे.

जिस प्रकार शालिनी के पिता धनीराम यादव ने उस के पति और ससुराल वालों को शालिनी की मौत का जिम्मेदार ठहरा कर उन पर आरोप लगाया था, उस से मामला उलझ गया था. दोनों तरफ बातों में कितनी सच्चाई है, पुलिस अधिकारी इस का अध्ययन कर अपनी जांच की रूपरेखा तैयार कर ही रहे थे कि सूरत की सीबीसीआईडी के हाथों में चला गया.

पोस्टमार्टम के बाद शालिनी का शव उस के पिता धनीराम यादव को सौंप दिया गया. जो उसे अपने गांव ले गए. अपनी बेटी का दाह संस्कार करने के बाद धनीराम यादव ने सूरत के नए पुलिस कमिश्नर अजय कुमार तोमर से मुलाकात कर बेटी की मौत के मामले की निष्पक्ष जांच कराने की मांग की.

पुलिस कमिश्नर अजय कुमार तोमर इस मामले पर पहले से ही नजर बनाए हुए थे. उन्होंने शालिनी के केस को गंभीरता से लेते हुए उन्हें इंसाफ दिलाने का भरोसा दिया.

इस के पहले कि पुलिस अधिकारी केस की जांच को ले कर कोई काररवाई करते, शालिनी की मौत को ले कर पूरे शहर में सनसनी फैल गई.

हुआ यह कि शालिनी की मौत को ले कर कई दैनिक अखबारों ने दिलचस्पी लेते हुए उसे हाईलाइट कर दिया. जिस से लोगों में पुलिस के प्रति गुस्सा भर गया.

पुलिस अधिकारियों ने किसी तरह लोगों को समझाया.

सीबीसीआईडी के प्रमुख आर.आर. सरवैया मामले की जांच करने में जुट गए. सरवैया काफी सुलझे हुए तेजतर्रार अधिकारी थे. उन की अपनी अलग पहचान थी.

मामले की जिम्मेदारी लेते ही उन्होंने अपने स्टाफ के इंसपेक्टर प्रदीप सिंह बाला को साथ ले कर केस की जांच शुरू कर दी. उन्होंने अपने स्तर पर अस्पताल और घटनास्थल का दोबारा निरीक्षण किया. उन्होंने वहां लगे सीसीटीवी कैमरों के फुटेज देखने के साथसाथ वहां के निवासियों के बयान लिए.

उन के बयानों का क्राइम ब्रांच अधिकारियों ने जब बारीकी से अध्ययन किया तो उन्हें दाल में कुछ काला नजर आया. जब उन्होंने मामले की जांच की तो पूरी दाल ही काली निकली. सुबहसुबह जिस रोड पर वह वाक करने जाते थे, उस समय वह रोड एकदम सुनसान रहती थी.

फिर इतनी सुबह उन के वहां मौर्निंग वाक पर जाने का क्या मतलब था. इस का मतलब शालिनी के पति अनुज कुमार यादव का बयान संदिग्ध था. जो आरोप शालिनी के पिता ने उस पर लगाया था, वह अपराध की श्रेणी में आता था. इस के साथ पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी रहस्यमय थी.

क्राइम ब्रांच अधिकारियों ने जब इस की तह में जाना शुरू किया तो शालिनी के ससुराल वाले कुछ इस प्रकार उलझे कि उन के हौसले पस्त हो गए और शालिनी हत्याकांड का सच बाहर आ गया. साजिश कितनी गहरी थी, यह जान कर जांच अधिकारी भी सन्न रह गए. पैसों की भूख ने शालिनी के ससुराल वालों को अपराध की दलदल में धकेल दिया था.

25 वर्षीय अनुज कुमार यादव उर्फ मोनू मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला इटावा के रहने वाले सोहन सिंह यादव का एकलौता बेटा था. सोहन सिंह यादव कई साल पहले काम की तलाश में गुजरात के शहर सूरत आए थे और सूरत की एक सिक्योरिटी कंपनी में नौकरी करने लगे. जब वह सारे नियमकायदे जान गए तो उन्होंने खुद की सेवा सिक्योरिटी एजेंसी खोल ली.

थोड़े ही दिनों में उन की सिक्योरिटी एजेंसी अच्छी चल निकली और उन के पास 100-150 गार्ड हो गए. सूरत शहर में उन की कई शाखाएं खुल गईं. अच्छा पैसा आया तो उन्होंने अपने रहने के लिए कुमारियां

गांव स्थित सारथी रेजीडेंसी में अच्छा सा फ्लैट ले लिया.

सूरत में उन की और सिक्योरिटी एजेंसी की प्रतिष्ठा थी. वह सूरत के सम्मानित नागरिक बन गए थे. परिवार में उन की पत्नी और बेटे के अलावा एक बेटी पूजा उर्फ नीरू थी, जिस की शादी बुलंदशहर के सरपंच के बेटे रघुवेश यादव से हो गई थी. शादी के बाद भी पूजा अपनी ससुराल में कम और मायके में ज्यादा रहती थी.

अनुज उर्फ मोनू महत्त्वाकांक्षी था, वह पैसों का लोभी था. पढ़ाई खत्म करने के बाद उस का मन पिता की सिक्योरिटी एजेंसी में नहीं लगा. उस ने अपनी ट्रांसपोर्ट कंपनी खोल ली. उसे यह लुभावना सपना उस के नौकर मोहम्मद नईम उर्फ पप्पू ने दिखाया था, जो 5 साल पहले उस केपिता की सिक्योरिटी एजेंसी में गार्ड की सर्विस करता था. सिक्योरिटी की नौकरी छोड़ कर वह ट्रांसपोर्ट की लाइन में चला गया था.

लालच की हद

अनुज उर्फ मोनू का ट्रांसपोर्ट का कारोबार जब ठीकठाक चलने लगा तो पिता सोहन सिंह यादव ने दिसंबर, 2017 में उत्तर प्रदेश के आगरा जिले के गांव जाफरापुर निवासी धनीराम यादव की बेटी शालिनी के साथ उस की शादी कर दी. धनीराम यादव गांव के जानेमाने काश्तकार थे. उन्होंने बेटी की शादी में अपनी हैसियत के अनुसार दानदहेज दिया.

शालिनी जिन सपनों को ले कर ससुराल आई थी, उस के उन सपनों की हकीकत जल्दी ही सामने आ गई. शादी के 4 महीने बाद ही ससुराल वाले उस के मायके वालों से 5 लाख रुपयों की मांग करने लगे. कुछ दिनों बाद वह शालिनी को प्रताडि़त भी करने लगे थे.

यह बात शालिनी के मायके वालों को पता लगी तो उन्हें बहुत दुख हुआ. उन्होंने अनुज को बुला कर 2 लाख रुपए दे दिए और बाकी 3 लाख रुपए आलू की फसल बेच कर देने का वादा कर लिया.

इतना करने के बाद भी शालिनी के प्रति जब ससुराल वालों का व्यवहार नहीं बदला तो वह जा कर शालिनी को मायके ले आए. लेकिन एक महीने बाद ही उस की ससुराल वाले उसे वापस अपने घर ले गए.

इस बीच शालिनी मां बनी और एक बच्ची को जन्म दिया. अनुज के परिवार वालों को बेटी पैदा होने की जरा भी खुशी नहीं हुई. शालिनी को बेटी होने की भी प्रताड़ना भी सहनी पड़ती थी. यहां तक कि शालिनी को अपने पास फोन तक रखने की इजाजत नहीं थी.

अनुज तो दहेज को ले कर शालिनी को तरहतरह से प्रताडि़त करता था. उस की बहन पूजा उर्फ नीरू, पिता सोहन सिंह यादव और उस के 2 चचेरे भाई गोपाल और गंगाराम यादव भी इस में पीछे नहीं रहते थे.

पैसों का भूखा अनुज अपने परिवार के साथ शालिनी पर अत्याचार तो करता ही था, उन की योजना बीमा कंपनियों को भी चूना लगाने की थी. ट्रांसपोर्ट के कारोबार में होने के कारण बीमे का फंडा उसे अच्छी तरह मालूम था. इसीलिए उस ने अपने पूरे परिवार के लिए नकली दस्तावेज दे कर जीवन बीमा पौलिसी करा ली थीं. पिता, बहन और पत्नी की पौलिसियों का वह स्वयं नौमिनी था और अपनी पौलिसी का नौमिनी उस ने अपने पिता को बनाया था.

परफेक्ट प्लानिंग

जीवन बीमा की 3-4 किस्तें के बाद अनुज अपने पिता और बहन का फरजी डेथ सर्टिफिकेट लेने के लिए अपनी बहन के सरपंच ससुर के पास बुलंदशहर गया. मगर वहां पूजा के पति रघुवेश की वजह से वह अपनी योजना में सफल नहीं हुआ. इस पर भाईबहन ने मिल कर रघुवेश यादव को दहेज के आरोप में गिरफ्तार करवा दिया.

समय अपनी गति से चल रहा था. धीरेधीरे  शालिनी की शादी को 2 साल से अधिक समय हो गया. बेटी एक साल की हो गई थी. फिर भी शालिनी के प्रति उस की ससुराल वालों का व्यवहार नहीं बदला. इस से नाराज शालिनी के घर वालों ने सन 2019 में शालिनी के ससुराल वालों पर धावा बोल दिया और उन की अच्छी तरह पिटाई कर दी.

इस के बाद शालिनी का व्यवहार भी बदल गया. उस ने अपनी ससुराल वालों से डरना छोड़ दिया. ससुराल वालों का जबजब सुर बदलता, तबतब शालिनी उन्हें अपने मायके वालों की धमकी दे देती थी. इस का प्रतिकूल असर उस के पति अनुज पर पड़ता था, जिसे अनुज अपना अपमान समझता था.

इस अपमान की आग अनुज के दिल में ऐसी लगी कि उस ने शालिनी का अस्तित्व ही मिटा डालने का फैसला कर लिया. उस ने शालिनी और उस के मायके वालों से एक खौफनाक अंदाज में अपने अपमान का बदला लेने की ठान ली.

इस के लिए उस ने शालिनी के प्रति एक खतरनाक साजिश रच डाली. इस साजिश में उस ने अपने पुराने कर्मचारी सिक्योरिटी गार्ड और ट्रक ड्राइवर मोहम्मद नईम उर्फ पप्पू को भी शामिल कर लिया.

उस ने शालिनी की 30 लाख की जीवन बीमा पौलिसी तो पहले से ही करवा रखी थी. इस के बाद उस ने अपने कारोबार के लिए नवंबर में शालिनी के नाम पर 33 लाख का एक डंपर खरीद लिया. उस डंपर का भी उस ने बीमा करा लिया था.

बीमा की पौलिसी के अनुसार अगर डंपर मालिक की किसी दुर्घटना में मौत हो जाती तो डंपर का पूरा पैसा माफ हो जाता. इस तरह योजना को अंजाम देने पर अनुज को 63 लाख रुपए का फायदा होता.

साजिश को दिया अंजाम

इस साजिश को सफल बनाने के लिए अनुज ने पहले शालिनी और उस के ससुराल के लोगों के प्रति अपना व्यवहार ठीक किया. फिर घटना के 15 दिन पहले से अनुज शालिनी को साथ ले कर मौर्निंग वाक के लिए कुमारियां गांव के सर्विस रोड पर जाने लगा.

अपनी तरफ धीरेधीरे बढ़ती हुई मौत से अनभिज्ञ शालिनी अपने पति अनुज का साथ देने लगी. इस साजिश में शामिल मोहम्मद नईम को अनुज ने ढाई लाख रुपए देने का वादा किया था. मोहम्मद नईम की अपनी मजबूरी थी. उसे अपनी बेटी की शादी करनी थी. इसलिए वह राजी हो गया था.

साजिश के तहत घटना के दिन मोहम्मद नईम ने घटना से 5 घंटे पहले बालू भरी अपनी ट्रक ला कर घटनास्थल से कुछ दूरी पर खड़ी कर दी.

अपने तय समय के अनुसार सुबह साढ़े 4 बजे जब अनुज अपनी पत्नी शालिनी के साथ उस सर्विस रोड पर आया तो मोहम्मद नईम सावधान हो गया . अनुज और शालिनी आपस में बातें करते हुए जब रघुवीर सैलियम मार्केट के पास आए, उसी समय अनुज ने सुनसान माहौल देख कर शालिनी का कस कर गला दबा दिया.

शालिनी उस का विरोध भी न कर पाई और बेहोश हो गई. उस ने शालिनी को गिरने नहीं दिया, वह उसे पकड़े रहा. शालिनी के बेहोश होते ही अनुज का इशारा पा कर मोहम्मद नईम तेजी से अपनी ट्रक उन के पास से ले कर गुजरा तो अनुज ने शालिनी को ट्रक की तरफ धक्का दिया.

इस के पहले कि शालिनी के चिथड़े उड़ जाते, मोहम्मद नईम का मन बदल गया. वह अपने ट्रक को कट मार कर निकाल ले गया. लेकिन फिर भी ट्रक की टक्कर से शालिनी लहूलुहान हो गई.

अनुज कुछ दूर जा कर खड़ा हो गया. कुछ देर बाद रोड पर जब हलचल बढ़ी तो वह हरकत में आ गया. उस दिन वह जानबूझ कर अपना फोन घर छोड़ आया था. किसी का फोन मांग कर उस ने फोन कर के एंबुलैंस बुलाई और शालिनी को अस्पताल ले गया. लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी. इलाज के दौरान उस की मौत हो गई.

पूछताछ में पुलिस को गुमराह करने के लिए अनुज ने शालिनी की मौत की एक मनगढ़ंत कहानी सुना दी थी.

अनुज कुमार यादव उर्फ मोनू से पूछताछ के बाद पुलिस ने शालिनी की हत्या में शामिल ससुर सोहन सिंह यादव, ननद पूजा उर्फ नीरू यादव, गोपाल और गंगाराम यादव को गिरफ्तार कर लिया.

उन की निशानदेही पर फरार ट्रक ड्राइवर मोहम्मद नईम को भी क्राइम ब्रांच के अधिकारियों ने छापा मार कर सूरत के फाल आरटीओ के पास से गिरफ्त में ले लिया और आगे की जांच के लिए सूरत के पुणा थानाप्रभारी को सौंप दिया.

कथा लिखे जाने तक शालिनी के मायके वाले उस की 2 वर्षीय बेटी को अपने संरक्षण में लेने के लिए कानूनी सलाह ले रहे थे. वह अनुज के रिश्तेदारों के पास रह रही थी.

पति परदेस में तो डर काहे का : देवर के प्रेम ने बनाया हत्यारा – भाग 2

‘‘तुम्हारी बनियान मैं कैसे ला सकता हूं? मुझे नंबर थोड़े ही पता है.’’ सोनू बोला.

‘‘साइज देख कर भी नहीं ला सकते?’’

‘‘बेकार की बातें मत करो, साइज देख कर अंदाजा होता है क्या?’’

‘‘तुम बिलकुल गंवार हो. अंदर आओ साइज दिखाती हूं.’’ कहती हुई मोना कमरे में चली गई. सोनू भी उस के पीछेपीछे कमरे में चला गया.

कमरे में पहुंचते ही मोना ने साड़ी का पल्लू नीचे गिरा दिया और सीना फुलाते हुए बोली, ‘‘लो नाप लो साइज. खुद पता चल जाएगा.’’

‘‘मुझ से साइज मत नपवाओ भाभी, वरना बहुत पछताओगी.’’

‘‘पछता तो अब भी रही हूं, तुम्हारे भैया से शादी कर के.’’ मोना ने अंगड़ाई लेते हुए साड़ी का पल्लू सिर पर डालते हुए कहा.

‘‘क्यों?’’ सोनू ने पूछा तो मोना बोली, ‘‘महीने दो महीने बाद घर आते हैं, वह भी 2 दिन रह कर भाग जाते हैं. और मैं ऐसी बदनसीब हूं कि देवर भी साइज नापने से डरता है. कोई और होता तो साइज नापता और…’’ मोना की आंखों में नशा सा उतर आया था. अभी तक सोनू मोना की बातों को केवल मजाक में ले रहा था. उस में उसी हिसाब से कह दिया, ‘‘जब भैया नौकरी से आएं तो उन्हीं को दिखा कर साइज पूछना.’’

‘‘अगर पति बुद्धू हो तो भाभी का काम समझदार देवर को कर देना चाहिए.’’ मोना ने सोनू का हाथ पकड़ते हुए कहा.

‘‘क्याक्या काम कराओगी देवर से?’’ सोनू ने शरारत से पूछा.

‘‘जो देवर करना चाहे, भाभी मना नहीं करेगी. बस तुम्हारे अंदर हिम्मत होनी चाहिए.’’ मोना हंसी.

‘‘कल बात करेंगे.’’ कहते हुए सोनू वहां से चला गया.

दूसरे दिन सोनू मां की दवाई लेने बाजार जाने के लिए निकला तो मोना के घर जा पहुंचा. उस वक्त मोना खाना बना कर खाली हुई थी. सोनू को देखते ही वह चहक कर बोली, ‘‘बाजार जा रहे हो क्या?’’

‘‘मम्मी की दवाई लेने जा रहा हूं. तुम्हें कुछ मंगाना हो तो बोलो?’’ सोनू ने पूछा. मोना बोली, ‘‘बाजार में मिल जाए तो मेरी भी दवाई ले आना.’’ मोना ने चेहरे पर बनावटी उदासी लाते हुए कहा.

‘‘पर्ची दे दो, तलाश कर लूंगा.’’

‘‘मुंह जुबानी बोल देना कि ‘प्रेमरोग’ है, जो भी दवा मिले, ले आना.’’

‘‘भाभी, तुम्हें ये रोग कब से हो गया?’’ सोनू ने हंसते हुए पूछा.

‘‘ये बीमारी तुम्हारी ही वजह से लगी है.’’ मोना की आंखों में खुला निमंत्रण था.

‘‘फिर तो तुम्हें दवा भी मुझे ही देनी होगी.’’

‘‘एक खुराक अभी दे दो, आराम मिला तो और ले लूंगी.’’ कहते हुए मोना ने अपनी दोनों बांहें उठा कर उस की ओर फैला दीं.

सोनू कोई बच्चा तो था नहीं, न बिलकुल गंवार था, जो मोना के दिल की मंशा न समझ पाता. बिना देर लगाए आगे बढ़ कर उस ने मोना को बांहों में भर लिया. थोड़ी देर में देवरभाभी का रिश्ता ही बदल गया.

सोनू जब वहां से बाजार के लिए निकला तो बहुत खुश था. मन में कई महीनों की पाली उस की मुराद पूरी हो गई थी.

दरअसल, जब से मोना ने उसे इशारोंइशारों में रिझाना शुरू किया था, तभी से वह उसे पाने की कल्पना करने लगा था. उस ने आगे कदम नहीं बढ़ाया था तो केवल करीबी रिश्तों की वजह से. लेकिन आज मोना ने खुद ही सारे बंधन तोड़ डाले थे. धीरेधीरे मोना और सोनू का प्यार परवान चढ़ने लगा. मोना को सासससुर, जेठजेठानी किसी का डर नहीं था. वह परिवार से अलग और अकेली रहती थी. पति परदेश में नौकरी करता था, बालबच्चा कोई था नहीं. बच्चों के नाम पर सब से बड़े जेठ की

14 वर्षीय बेटी दिव्या ही थी जो रात को मोना के साथ सोती थी. वह भी इसलिए क्योंकि जाते वक्त मोना का पति बडे़ भैया से कह कर गया था मोना अकेली है, दिव्या को रात में सोने के लिए मोना के पास भेज दिया करें.

इस बीच वह शरारती देवर सोनू को बुला लेती थी. स्कूल से आने के बाद दिव्या कभी चाची के घर आ जाती तो कभी अपने घर रह कर काम में मां का हाथ बंटाती. कभीकभी वह अपनी सहेलियों को ले कर मोना के घर आ जाती और उसे भी अपने साथ खिलाती. मोना पूरी तरह सोनू के प्यार में डूब चुकी थी. वह चाहती थी कि दिन ही नहीं बल्कि पूरी रात सोनू के साथ गुजारे.

शाम ढल चुकी थी. अंधेरे ने चारों ओर पंख पसारने शुरू कर दिए थे. दिव्या को उस की मां मंजू ने कहा, ‘‘जब चाची के पास जाए तो किताबें साथ ले जाना, वहीं पढ़ लेना.’’ दिव्या ने ऐसा ही किया.

दिव्या चाची के घर पहुंची तो दरवाजे के किवाड़ भिड़े हुए थे. वह धक्का मार कर अंदर चली गई. अंदर जब चाची दिखाई नहीं दी तो वह कमरे में चली गई. कमरे में अंदर का दृश्य देख कर वह सन्न रह गई. वहां बेड पर सोनू और मोना निर्वस्त्र एकदूसरे से लिपटे पड़े थे. दिव्या इतनी भी अनजान नहीं थी कि कुछ समझ न सके. वह सब कुछ समझ कर बोली, ‘‘चाची, यह क्या गंदा काम कर रही हो?’’

दिव्या की आवाज सुनते ही सोनू पलंग से अपने कपड़े उठा कर बाहर भाग गया. मोना भी उठ कर साड़ी पहनने लगी. फिर मोना ने दिव्या को बांहों में भरते हुए पूछा, ‘‘दिव्या, तुम ने जो भी देखा, किसी से कहोगी तो नहीं?’’

‘‘जब चाचा घर वापस आएंगे तो उन्हें सब बता दूंगी.’’

‘‘तुम तो मेरी सहेली हो. नहीं तुम ऐसा कुछ नहीं करोगी.’’ मोना ने दिव्या को बहलाना चाहा, लेकिन दिव्या ने खुद को मोना से अलग करते हुए कहा, ‘‘तुम गंदी हो, मेरी सहेली कैसे हो सकती हो?’’

‘‘मैं कान पकड़ती हूं, अब ऐसा गंदा काम नहीं करूंगी.’’ मोना ने कान पकड़ते हुए नाटकीय अंदाज में कहा.

‘‘कसम खाओ.’’ दिव्या बोली.

‘‘मैं अपनी सहेली की कसम खा कर कहती हूं बस.’’

‘‘चलो खेलते हैं.’’ इस सब को भूल कर दिव्या के बाल मन ने कहा तो मोना ने दिव्या को अपनी बांहों में भर कर चूम लिया, ‘‘कितनी प्यारी हो तुम.’’

26 दिसंबर, 2016 की अलसुबह गांव के कुछ लोगों ने गांव के ही गजेंद्र के खेत में 14 वर्षीय दिव्या की गर्दन कटी लाश पड़ी देखी तो गांव भर में शोर मच गया. आननफानन में यह खबर दिव्या के पिता ओमप्रकाश तक भी पहुंच गई. उस के घर में कोहराम मच गया. परिवार के सभी लोग रोतेबिलखते, जिन में मोना भी थी घटनास्थल पर जा पहुंचे. बेटी की लाश देख कर दिव्या की मां का तो रोरो कर बुरा हाल हो गया. किसी ने इस घटना की सूचना थाना गोंडा पुलिस को दे दी.

सूचना मिलते ही गोंडा थानाप्रभारी सुभाष यादव पुलिस टीम के साथ गांव पींजरी के लिए रवाना हो गए. तब तक घटनास्थल पर गांव के सैकड़ों लोग एकत्र हो चुके थे. थानाप्रभारी ने भीड़ को अलग हटा कर लाश देखी. तत्पश्चात उन्होंने इस हत्या की सूचना अपने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को भी दे दी और प्रारंभिक काररवाई में लग गए.

थोड़ी देर में एसपी ग्रामीण संकल्प शर्मा और क्षेत्राधिकारी पंकज श्रीवास्तव भी पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर जा पहुंचे. लाश के मुआयने से पता चला कि दिव्या की हत्या उस खेत में नहीं की गई थी, क्योंकि लाश को वहां तक घसीट कर लाने के निशान साफ नजर आ रहे थे. मृत दिव्या के शरीर पर चाकुओं के कई घाव मौजूद थे.

जब जांच की गई तो जहां लाश पड़ी थी, वहां से 300 मीटर दूर पुलिस को डालचंद के खेत में हत्या करने के प्रमाण मिल गए. ढालचंद के खेत में लाल चूडि़यों के टुकड़े, कान का एक टौप्स, एक जोड़ी लेडीज चप्पल के साथ खून के निशान भी मिले.

जांच चल ही रही थी कि डौग एक्वायड के अलावा फोरेंसिक विभाग के प्रभारी के.के. मौर्य भी अपनी टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

प्यार किसी का, लुटा आशियाना किसी का – भाग 1

जिला सीतापुर के मिश्रिख थाना कोतवाली के अंतर्गत आने वाले गांव बदौव्वा में लालजी रहते थे. वह खेती करते थे. परिवार में उन की पत्नी रमा और 2 बेटी और 2 बेटे थे. उन सब में शशि सब से छोटी भी थी और अविवाहित भी. बाकी सभी का विवाह हो चुका था. शशि की उम्र 16 साल थी. उस ने गांव के ही सरकारी स्कूल से 8वीं कक्षा तक पढ़ाई की थी. खूबसूरत, चंचल और अल्हड़ स्वभाव की शशि के शरीर की बनावट और कमनीयता किसी की भी नजरों में चढ़ जाती थी. गांव में सुंदर युवती हो और उस के आगेपीछे मंडराने वाले मनचले न हों, यह नहीं हो सकता.

शशि के आगेपीछे घूमने वाले मनचलों की कमी नहीं थी. शशि को उन की घूरती नजरों से कोई दिक्कत नहीं थी, बल्कि उसे यह सब अच्छा लगता था. धीरेधीरे कई युवक उस के संपर्क में आए, लेकिन कोई भी शशि को प्रभावित नहीं कर पाया.

एक दिन गांव में काफी चहलपहल थी, क्योंकि वहां एक बड़े यज्ञ का आयोजन किया गया था. चूंकि धार्मिक अनुष्ठान था, इसलिए गांव वाले काफी उल्लास में थे और यज्ञस्थल पर जाने के लिए उत्साहित भी. यज्ञ में शामिल होने वालों में सभी समुदायों के लोग थे.

शशि भी यज्ञस्थल पर जाने के लिए तैयार थी. वह अपनी सहेली मीना के घर पहुंची और चहकती हुई बोली, ‘‘मीना, तुम भी चलो न मेरे साथ यज्ञ देखने.’’

‘‘हां शशि, मैं ने भी सुना है यज्ञ के बारे में. मेरा भी मन यज्ञ देखने का हो रहा है.’’ मीना ने कहा.

‘‘तो फिर जल्दी से तैयार हो जाओ और मेरे साथ चलो.’’ शशि बोली.

थोड़ी देर बाद मीना तैयार हो कर शशि के साथ पैदल ही यज्ञस्थल की ओर चल दी. दोनों बहुत खुश थीं और बातें करते हुए यज्ञस्थल की ओर चली जा रही थीं.

थोड़ी देर में दोनों यज्ञस्थल पर पहुंच गईं. वहां का भव्य नजारा देख कर दोनों का दिल खुशी से झूम उठा. पंडितों द्वारा मंत्रोच्चारण के साथ हवन किया जा रहा था. यज्ञ के धुएं से वातावरण सुगंधित था. शशि और मीना ने हाथ जोड़ कर नमन किया और वहीं बिछी दरी पर बैठ गईं.

अचानक शशि की नजर दूसरी ओर बैठे एक युवक पर चली गई. वह कोहरावां गांव का मोहम्मद एहसान था. कोहरावां बदौव्वा गांव के पास ही है. कोहरावां के मोहम्मद नवाब खेती और दूध की डेयरी का काम करते थे. मोहम्मद एहसान उन का ही बेटा था. वह पिता के दूध के काम में मदद करता था. 24 वर्षीय एहसान का एक बड़ा भाई था सलमान और एक छोटा मेराज.

शशि की जिंदगी में आया प्रेमी

शशि ने उसे देखा तो देखती ही रह गई. वह यह भी भूल गई कि वह धार्मिक अनुष्ठान में आई है. तभी एहसान की नजर शशि पर चली गई तो वह उसे एकटक देखता पा कर खुद भी उसे देखने लगा. शशि उसे देख कर मुसकरा दी तो एहसान को लगा जैसे उस के दिल पर किसी ने बरछी चला दी हो. वह अपनी सुधबुध खो बैठा. काफी देर तक दोनों एकदूसरे को निहारते रहे. तभी मीना शशि को ले कर वहां से जाने लगी तो एहसान का दिल छटपटा उठा. वह शशि को अपनी आंखों से ओझल नहीं होने देना चाहता था.

शशि भी जाते हुए बारबार पीछे मुड़ कर उसे ही देख रही थी. मीना ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘क्या बात है शशि, कोई मिल गया क्या जिसे तुम बारबार पीछे मुड़ कर देख रही हो? अरे मुझे भी कुछ बताओ या फिर खुद ही खुश होती रहोगी. बोलो भी…’’

दबाव देते हुए मीना ने पूछा तो शशि ऐसे सिटपिटा गई, मानो उस की चोरी पकड़ी गई हो. फिर भी उसे जवाब तो देना ही था. उस ने मीना को प्यार से झिड़कते हुए कहा, ‘‘ओह मीना, तुम भी शरारती हो गई हो. मैं भला यज्ञ की भव्यता के अलावा और किसे देख सकती हूं. तुम तो हमेशा मुझे शक की नजरों से देखती हो. अब चलो, किसी दुकान पर चाट खाई जाए.’’

‘‘हां, वह देखो सामने चाट की दुकान है. आओ, वहीं चलते हैं.’’ कहती हुई मीना शशि के साथ चाट की दुकान पर पहुंची और चाट खाने लगी.

शशि ने देखा कि एहसान भी यज्ञ छोड़ कर उस के पीछेपीछे बाहर चला आया था और उस से दूर खड़ा हो कर उसे एकटक देख रहा था. वह बारबार नजरें उस की तरफ घुमाती तो उसे अपनी ओर देखते हुए पाती. उस का दिल तेजी से धड़कने लगा, जैसे वह उस का काफी करीबी हो. पता नहीं क्यों वह शशि को अपना सा लग रहा था.

कुछ ऐसा ही एहसान को भी महसूस हो रहा था. उसे भी न जाने क्यों शशि अपने दिल के करीब लग रही थी. एहसान शशि के चेहरे को अपनी आंखों में बसा लेना चाहता था, ताकि वह दिल से ओझल न हो सके. शशि की नजर भी उस से नहीं हट रही थी. जब मीना ने देखा कि शशि एक खूबसूरत नौजवान को देख रही है तो उस ने शरारत करते हुए कहा, ‘‘अच्छा जी, तो ये बात है. लगता है, वह हमारी रानी को कुछ ज्यादा ही पसंद आ गया है.’’

‘‘धत, यह क्या बकवास कर रही है? मैं किसी को देखूंगी तो क्या वह मेरी पसंद का हो जाएगा? वह तो यूं ही उस पर मेरी नजर चली गई थी. अब चलो यहां से, नहीं तो तुम अपनी बकवास बंद नहीं करोगी.’’ शशि ने कहा.

‘‘हांहां, मैं कहां कह रही हूं कि तुम यहीं रुको, चलो यहां से.’’ कहती हुई मीना शशि का हाथ पकड़ कर चल दी तो एहसान मायूस हो गया. मानो कोई उस के दिल को चुरा कर ले जा रहा हो. वह शशि को तब तक देखता रहा, जब तक वह आंखों से ओझल नहीं हो गई.

घर पहुंच कर शशि एहसान के खयालों में खो गई. पता नहीं क्यों उस का दिल उस के लिए धड़क रहा था. रात में जबवह सोई तो उसे सपने में भी एहसान ही दिखाई दिया. वह उस से प्यार भरी बातें कर रहा था. शशि उस से मिल कर खुशी से चहक रही थी.

रात को सपने में कुछ ऐसा ही एहसान भी देख रहा था. अचानक उस की नींद टूट गई और वह हड़बड़ा कर उठ बैठा. मन की शांति के लिए उस ने गिलास ठंडा पानी पीया. फिर वह सोने की कोशिश करने लगा, लेकिन उसे नींद नहीं आई. उस ने फैसला किया कि वह कल भी यज्ञस्थल पर जाएगा. हो सकता है, उस खूबसूरत लड़की से एक बार फिर मुलाकात हो जाए.