बेवफा पत्नी और वो : पति को मिली मौत

चुनाव नजदीक होने की वजह से 11 नवंबर, 2013 को मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में चुनाव प्रचार शबाब पर था. तमाम पुलिसकर्मी दीवाली के बाद से ही दिनरात चुनावी ड्यूटी कर रहे थे. प्रचार का शोर, नेताओं की सभाएं और जनसंपर्क खत्म होने के बाद ही पुलिसवालों को थोड़ा सुकून मिल सकता था. रात 10 बजे तक चुनावी होहल्ला कम हुआ तो रोजाना की तरह पुलिस वालों ने इत्मीनान की सांस ली.

थाना पिपलानी के थानाप्रभारी सुधीर अरजरिया खापी कर अगले दिन के कार्यक्रमों के बारे में सोच रहे थे कि तभी उन्हें फोन द्वारा सूचना मिली कि बरखेड़ा पठानिया के एक खंडहर में एक युवक की अधजली लाश पड़ी है. घटनास्थल पर जाने के लिए वह तैयार हो कर थाने से निकल ही रहे थे तो गेट पर सीएसपी कुलवंत सिंह मिल गए. उन्हें भी साथ ले कर वह बताए गए पते पर रवाना हो गए.

कुछ ही देर में थानाप्रभारी सुधीर अरजरिया अपनी जीप से बरखेड़ा के सेक्टर-ई स्थित एक खंडहरनुमा मकान पर पहुंच गए. फोन करने वाले ने उन्हें यहीं अधजली लाश पड़ी होने की बात बताई थी. वहां उन्हें कुछ जलने की गंध महसूस हुई, इसलिए वह समझ गए कि लाश यहीं पड़ी है. वह साथियों के साथ खंडहर के अंदर पहुंचे तो सचमुच वहां कोने में एक युवक की झुलसी लाश पड़ी थी. ऐसा लग रहा था, जैसे कुछ देर पहले ही वह जलाई गई थी.

पुलिस की जीप देख कर आसपास के कुछ लोग आ गए. पुलिस ने उन लोगों से लाश की शिनाख्त करानी चाही. लेकिन चेहरा झुलस जाने की वजह से कोई उसे पहचान नहीं सका. लाश का चेहरा ही ज्यादा जला था. जबकि उस के कपड़े काफी हद तक जलने से बच गए थे. शायद हत्यारों ने ऐसा इसलिए किया था कि उस की शिनाख्त न हो सके. पुलिस ने कपड़ों की तलाशी ली तो पैंट की जेब में 5 हजार रुपए के अलावा घरेलू गैस की एक परची मिली. वह परची प्रियंका गैस एजेंसी की थी, जिस में उपभोक्ता का नाम मनीष तख्तानी लिखा था.

परची पर पंचवटी कालोनी का पता भी था. मृतक सोने की अंगूठी पहने था. पुलिस ने सारी चीजें कब्जे में ले लीं. इस के बाद थानाप्रभारी ने फोन कर के थाने से एक कांस्टेबल को मनीष तख्तानी के घर का पता बता कर वहां जाने को कहा.

मरने वाले की जेब से मिली नकदी और अंगूठी से साफ था कि यह हत्या लूटपाट के इरादे से नहीं की गई थी. हत्या के पीछे कोई दूसरी वजह थी. मरने वाले की कदकाठी ठीकठाक थी. एक आदमी उस का कुछ नहीं बिगाड़ सकता था. इस का मतलब हत्यारे एक से ज्यादा थे.

थाने से भेजा गया कांस्टेबल पंचवटी कालोनी के मकान नंबर ए-43 पर पहुंचा तो वहां उस की मुलाकात दिलीप तख्तानी से हुई. उस ने उन्हें बताया कि बरखेड़ा के एक खंडहर में एक लाश मिली है, जिस की पैंट की जेब से गैस की एक परची मिली है, जिस पर मनीष तख्तानी लिखा है. यह मनीष कौन है?

यह बात सुन कर दिलीप के होश उड़ गए, क्योंकि मनीष उन्हीं का बेटा था. वह बोले, ‘‘आप को धोखा हुआ है. मेरा बेटा कहीं गया हुआ है, वह थोड़ी देर में आ जाएगा.’’

दिलीप तख्तानी ने यह बात कह तो दी, लेकिन उन का मन नहीं माना. उन्होंने उसी समय घर से कार निकाली और उस कांस्टेबल के साथ उस जगह के लिए रवाना हो गए, जहां लाश पड़ी थी. कदकाठी और अधजले कपड़ों को देखते ही दिलीप तख्तानी रो पड़े. उन्होंने बताया कि यह लाश उन के बेटे मनीष की ही है.

दिलीप तख्तानी के अनुसार, मनीष दुकान से कार से निकला था. लेकिन उस खंडहर के आसपास कहीं कोई कार नजर नहीं आई. मनीष का मोबाइल फोन भी नहीं मिला था. थानाप्रभारी ने घटनास्थल की आवश्यक काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. इस के बाद सर्विलांस सेल के माध्यम से उन्होंने मनीष के फोन की लोकेशन का पता कराया तो उस की लोकेशन एमपीनगर (जोन-1) के पास चेतक ब्रिज की मिली.

थानाप्रभारी सुधीर अरजरिया उसी समय चेतक ब्रिज पर जा पहुंचे. वहां उन्हें एक कार दिखाई दी. दिलीप तख्तानी ने कार पहचान कर बताया कि मनीष की ही कार है. कार का मुआयना किया गया तो सीटों पर खून के धब्बे नजर आए. मनीष का मोबाइल भी कार में ही पड़ा था. कार की इग्नीशन में चाबी भी लगी थी. यह सब देख कर यही लगा कि मनीष की हत्या कार में ही की गई थी. उस के बाद हत्यारे लाश को ठिकाने लगाने के लिए खंडहर में ले गए थे. पुलिस ने कार और अन्य सामान को भी कब्जे में ले लिया.

अब तक की जांच में पता चल गया था कि मनीष शहर के जानेमाने बिजनेसमैन दिलीप तख्तानी का बेटा था. पुलिस ने अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर आगे की जांच शुरू कर दी. मनीष के घर वालों के अनुसार मनीष हंसमुख स्वभाव का था. उस का पूरा ध्यान अपने बिजनेस पर रहता था.

उस की पत्नी सपना का रोरो कर बुरा हाल था. आंखें सूज चुकी थीं. पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में उस ने बताया था कि मनीष को कई लोगों से पैसा लेना था. लगता है, उसी लेनदेन के चक्कर में उस की हत्या की गई है. पुलिस को सपना की बात में दम नजर आया, इसलिए पुलिस ने इस बात को ध्यान में रख कर आगे की जांच शुरू की. मनीष की उम्र भी 32-33 साल थी, इसलिए पुलिस जांच में लव ऐंगल को भी ध्यान में रख जांच कर रही थी.

पुलिस ने मनीष की एमपीनगर जोन-2 स्थित दुकान पर काम करने वाले नौकरों से पूछताछ की तो पता चला कि 11 नवंबर, 2013 की शाम को 4 बजे के आसपास उन के मोबाइल पर किसी का फोन आया था. फोन पर बात करने के बाद उन्होंने दुकान संभालने वाले अपने मामा विनोद तख्तानी से कहा था कि उन्हें लौटने में देर हो सकती है, इसलिए वह दुकान बंद कर देंगे. इतना कह कर मनीष अपनी कार से चले गए थे.

पुलिस को जब पता चला कि शाम को किसी का फोन आने के बाद मनीष दुकान से निकला था, इसलिए पुलिस मनीष के नंबर की काल डिटेल्स निकलवा कर यह जानने की कोशिश करने लगी कि उस के फोन पर किस का फोन आया था.

पुलिस को जल्दी ही पता चल गया कि 11 नवंबर की शाम 4 बजे मनीष की जिस नंबर से बात हुई थी, वह नंबर हर्षदीप सलूजा का था. पुलिस ने हर्षदीप सलूजा के बारे में मनीष के घरवालों से पूछा तो उन्होंने बताया कि वह उन के एक परिचित का बेटा जिन से उन के पारिवारिक संबंध हैं. दोनों ही परिवारों का एकदूसरे के यहां आनाजाना है. घर वालों की इस बात से पुलिस संतुष्ट नहीं हुई. वह एक बार हर्षदीप से पूछताछ करना चाहती थी.

पुलिस हर्षदीप को थाने बुला कर पूछताछ करती, उस के पहले ही पुलिस को पता चला कि मृतक मनीष की पत्नी सपना एक महीने पहले बिना बताए कहीं चली गई थी. तब मनीष ने उस की गुमशुदगी भी दर्ज कराई थी. बाद में वह अपने आप घर आ गई तो पुलिस ने इसे घरेलू विवाद मान कर कोई तूल नहीं दिया.

हत्यारों का पता न लगने पर व्यापारियों की नाराजगी बढ़ती जा रही थी. पुलिस ने इलाके के कई बदमाशों को उठा कर पूछताछ की, लेकिन हत्या का खुलासा नहीं हुआ था. इस का नतीजा यह निकला कि मनीष के हत्यारों को गिरफ्तार करने की मांग करते हुए सिंधी समुदाय आक्रोशित हो कर सड़क पर उतर आया. पुलिस अधिकारियों ने लोगों को जल्द से जल्द केस खोलने का आश्वासन दे कर आक्रोशित लोगों को शांत किया.

इस के बाद पुलिस की कई टीमें बना कर इस मामले की छानबीन में लगा दी गईं. उसी दौरान मनीष के चाचा ने हत्या का इशारा हर्षदीप की तरफ किया. पुलिस को हर्षदीप पर पहले से ही शक था, इसलिए पूछताछ के लिए उसे थाने बुला लिया गया.

पूछताछ में वह पहले मनीष की हत्या से इनकार करता रहा. लेकिन जब पुलिस ने उस से पूछा कि हत्या वाले दिन उस ने सपना से 2 बार और मनीष को एक बार फोन कर के क्या बात की थी तो पुलिस की इस बात का उस के पास कोई संतोषजनक जवाब नहीं था. लिहाजा पुलिस ने उस से सख्ती से पूछताछ शुरू कर दी. मजबूर हो कर उस ने सच्चाई उगल दी. उस ने मनीष की हत्या की जो कहानी पुलिस के सामने बयां की, वह बहुत ही चौंकाने वाली निकली.

भोपाल की पंचवटी कालोनी के ए ब्लौक में रहने वाले दिलीप तख्तानी का एक ही बेटा था मनीष तख्तानी. दिलीप तख्तानी मूलरूप से पाकिस्तान के रहने वाले थे. देश विभाजन की त्रासदी झेल कर वह अकेले ही भारत आए थे और यहां उन्होंने अपनी मेहनत के बलबूते अपना प्लाईवुड का बिजनेस स्थापित किया. वह शहर के जानेमाने बिजनेसमैन थे. शहर के विभिन्न इलाकों में उन की प्लाईवुड की कुल 6 दुकानें थीं. करोड़ों की हैसियत रखने वाले दिलीप ने अपनी सभी दुकानें एकलौते बेटे मनीष के नाम खोली थीं. उन्होंने बेटे को बिजनेस के सारे गुण सिखा कर उसे एमपीनगर जोन-2 की दुकान सौंप दी थी.

बेटे ने बिजनेस संभाल लिया तो दिलीप ने खंडवा की रहने वाली सपना से उस की शादी कर दी. यह 6 साल पहले की बात है. शादी के वक्त मनीष का परिवार ईदगाह हिल्स में रहता था. वहीं पड़ोस में हर्ष का भी परिवार रहता था. दिलीप तख्तानी ने अपने एकलौते बेटे मनीष की शादी में दिल खोल कर पैसा खर्च किया था. पूरे हफ्ते मोहल्ले में जश्न का माहौल रहा था. नाचनेगाने वालों में हर्ष अव्वल था. उस वक्त उस की उम्र महज 17 साल थी. वह मनीष को पूरा सम्मान देते हुए भइया कहता था.

मनीष की खूबसूरत बीवी सपना को देख कर किशोर हर्ष के दिलोदिमाग में कुछकुछ होने लगा था. फिर तो सपना भाभी को देखने और उस से बातें करने के लिए वह मनीष के यहां कुछ ज्यादा ही आनेजाने लगा था. किसी ने इस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया. शादी के 2 साल बाद सपना ने एक बेटी को जन्म दिया, जिस का नाम इशिता रखा गया.

मनीष को अपने कारोबार में काफी समय देना पड़ता था. पारिवारिक संबंधों के चलते हर्ष के घर आनेजाने पर न तो कोई रोकटोक थी, न ही किसी को ऐतराज था. बातचीत के दौरान वे काफी करीब आ गए थे. मोहब्बत और वासना का अंकुर कब हर्ष और सपना के दिलों में फूटा और फलाफूला, इस का अहसास उन्हें शायद हद से गुजर जाने के बाद हुआ.

उसी दौरान तख्तानी परिवार पंचवटी कालोनी स्थित अपने नए मकान में रहने आ गया, जबकि हर्षदीप सलूजा के घर वाले अवधपुरी में शिफ्ट हो गए. दोनों ही परिवार अलगअलग जगहों पर रहने जरूर चले गए, लेकिन हर्ष और सपना की मेलमुलाकातों पर कोई फर्क नहीं पड़ा. दोनों अब घर से बाहर खासतौर से गुरुद्वारों में मिलने लगे थे.

बाद में हर्ष ने एक अलग मकान किराए पर ले लिया, जिस में हर्ष से मिलने के लिए सपना अकसर आनेजाने लगी. वहीं वे अपनी हसरतें पूरी करते थे. कभीकभी सपना मनीष से मायके जाने की बात कह कर घर से निकल जाती. लेकिन वह मायके न जा कर हर्ष के कमरे पर पहुंच जाती. वहां 1-2 दिन रह कर वह ससुराल लौट आती.

ससुराल में भी सपना अलग कमरे में सोती थी. रात होने पर हर्ष खिड़की के रास्ते सपना के कमरे में आ जाता था और इच्छा पूरी कर के अपने घर चला जाता था. लंबे समय तक दोनों का इसी तरह मिलनाजुलना चलता रहा. मजे की बात यह थी कि हर्ष और सपना के घर वालों में से किसी को भी उन के अवैध संबंधों के बारे में भनक नहीं लगी.

एक शादीशुदा औरत के कदम बहकते हैं तो उसे तमाम दुश्वारियों का सामना करना पड़ता है. सपना अब दो नावों पर सवार थी. हर्ष सपना को ले कर गंभीर था. वह उस के साथ अलग दुनिया बसाने के सपने देखने लगा था. परेशानी तब शुरू हुई, जब हर्ष सपना से शादी करने की जिद करने लगा. यही नहीं, उस ने चेतावनी भी दे दी कि अगर उस ने शादी से मना किया तो वह आत्महत्या कर लेगा.

हर्ष की इस जिद से सपना की नींद उड़ गई. उस के सामने एक तरफ घर की इज्जत और मानमर्यादाएं थीं तो दूसरी तरफ हर्षदीप का समर्पण था. जिस की वजह से वह भंवर में फंस चुकी थी. इस बीच सपना का व्यवहार मनीष के प्रति काफी बदल गया था.

सपना के बदले व्यवहार पर मनीष को शक हुआ तो उस ने उस के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. इस से मनीष को पता चला कि उस की सब से ज्यादा बातचीत हर्ष से होती थी. उस ने जब उस से पूछा कि वह हर्ष से इतनी देर क्यों बातें करती है तो उस ने हंगामा खड़ा कर दिया. लेकिन बाद में नारमल हो कर माफी मांग प्यार जताने लगी. मनीष सपना को बहुत चाहता था, इसलिए उस ने उसे माफ कर दिया. यही नहीं, उस ने उसे एक महंगी कार दिलाई और खर्च के लिए एटीएम कार्ड भी दे दिया.

बकौल हर्ष, वह और सपना एकदूसरे से बहुत प्यार करते थे, इसलिए किसी भी कीमत पर शादी करना चाहते थे. लेकिन मनीष इस में आड़े आ रहा था. कई बार उस ने सपना से शादी करने को कहा. लेकिन हर बार सपना शादीशुदा होने और मनीष का बहाना बना कर उस की बात टाल गई. लिहाजा उस ने तय कर लिया कि सपना को पाने के लिए वह मनीष नाम के इस अड़ंगे को अपने रास्ते से हटा देगा. इस के लिए उस ने किराए के हत्यारों का सहारा लिया. भाड़े के हत्यारे कौन थे, पुलिस के पूछने पर हर्ष ने 2 लोगों के नाम बताए थे.

उन दोनों को भी पुलिस ने धर दबोचा. लेकिन किसी की हत्या की बात से वे साफ मुकर गए. वारदात के वक्त उन के मोबाइल फोन की लोकेशन भी दूसरी जगह की मिली थी. लेकिन अमीन नाम का तीसरा युवक, जो हर्ष का नौकर भी था और दोस्त भी, ने पूछताछ में बताया कि हर्ष अकसर उस से पूछता रहता था कि किसी की हत्या का सब से आसान और सुरक्षित तरीका कौन सा है, तब उस ने बताया था कि अगर किसी की हत्या अकेले की जाए तो पकड़े जाने की गुंजाइश कम रहती है.

भाड़े के हत्यारों की बात झूठी निकली तो अकेले हर्ष ने कैसे मनीष की हत्या की, इस सवाल का जवाब हालफिलहाल यही समझ में आ रहा है कि हर्ष ने मनीष की हत्या का पूरा मन बना कर 11 नवंबर, 2013 को मनीष को फोन कर के किसी बहाने से चेतक ब्रिज के पास बुलाया. उस ने 6 महीने पहले एक पिस्टल भी खरीद ली थी. पूरी तैयारी के साथ वह मोटरसाइकिल से चेतक ब्रिज पहुंच गया. मोटरसाइकिल एक ओर खड़ी कर के वह मनीष की कार में पीछे की सीट पर बैठ कर बातें करने लगा. उसी दौरान हर्ष ने पहली गोली मनीष के सिर पर मारी. उस के बाद बाहर आ कर 2 गोलियां और मारीं.

मनीष की मौत हो गई तो हर्ष ने उस की लाश को बगल वाली सीट पर इस तरह से बैठाया कि देखने में वह जीताजागता इंसान लगे. ऐसा हुआ भी. चुनाव के दौरान चल रही वाहनों की भारी चैकिंग से बचने के लिए वह मनीष की लाश सहित कार को बरखेड़ा ले गया. वहां खंडहरनुमा मकान में लाश डाल कर उस के चेहरे पर ज्वलनशील पदार्थ डाल कर आग लगा दी. लाश को ठिकाने लगाने के बाद वह फिर चेतक ब्रिज आ गया.

रास्ते से फोन कर के उस ने अपने नौकर अमीन को पानी ले कर बुलाया और खून के धब्बे धोए. कार में चाबी उस ने इस उम्मीद के साथ लगी छोड़ दी थी कि किसी और की नजर इस पर पड़ जाए और वह कार चुरा ले जाए. इस से कत्ल की गुत्थी और उलझ जाती.

बहरहाल ऐसा नहीं हो सका. मनीष की हत्या का राज खुल गया. हर्ष ने यह भी बताया कि मनीष की हत्या की बात सपना को मालूम थी. उस ने हत्या के लिए डेढ़ लाख रुपए भी देने का वादा किया था. एडवांस के रूप में उस ने 50 हजार रुपए दिए भी थे.

हर्ष से पूछताछ के बाद पुलिस ने सपना को भी थाने बुला लिया. उस से भी सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने भी स्वीकार किया कि वह हर्ष से प्यार करती थी. लेकिन उस ने शादी की बात से इनकार कर दिया था. उस का कहना था कि शादी के लिए वह मना करती थी तो हर्ष खुदकुशी कर लेने या मनीष की हत्या करने की धमकी देता था. उस की इस बात से वह डर जाती थी. अंत में उस ने कहा कि न तो उसे हत्या के बारे में कुछ मालूम था, न ही उस ने कोई पैसे दिए थे.

पुलिस ने हर्षदीप सलूजा, अमीन और सपना से विस्तार से पूछताछ कर के न्यायालय में पेश किया, जहां से तीनों को जेल भेज दिया गया. इस घटना में सब से बड़ा नुकसान इशिता का हुआ, जो मां के गुनाह की सजा अपनी मौसी के पास रह कर भुगत रही है.

—कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित

लड़की, लुटेरा और बस – भाग 6

मैं ने लड़की से उस के जख्म के बारे में पूछा तो वह बोली, “इंसपेक्टर साहब, वह चरस के नशे में लड़कियों से बेहूदा हरकतें कर रहा था. मुझ से बरदाश्त नहीं हुआ तो मैं ने मना किया. वह मेरे पीछे पड़ गया. मुझे बाजुओं से पकड़ कर अगली सीट पर ले जाने लगा. लेक्चरार जो वहीं थी, उन्होंने उस पर अपना पर्स दे मारा. लेकिन पिस्तौल नहीं गिरा. उस ने उन पर गोली चला दी, जो बाजू में लगी. वह सीटों के बीच गिर पड़ीं. मैं ने उस बास्टर्ड के लंबे बाल पकड़ लिए.

अगर उस वक्त कोई अन्य लड़की मदद को आ जाती तो हम उस का तियापांचा कर देते. लेकिन सभी इतनी डरी हुई थीं कि कोई भी आगे नहीं बढ़ी. उस ने फिर गोली चला दी, जो मेरी जांघ में लगी. उस के बाद अस्पताल पहुंच कर मुझे होश आया.”

मैं लड़की से बातें कर रहा था कि डाक्टर ने आ कर मुझ से कहा, “पुलिस स्टेशन से आप का फोन आ गया है.”

मैं ने जा कर फोन रिसीव किया. एसपी साहब ने मुझे फौरन बुलाया था. मैं समझ गया कि मीङ्क्षटग में कोई खास फैसला हुआ है. जब मैं वहां पहुंचा तो एसपी साहब ने कहा, “नवाज खान, कमिश्नर साहब ने हमें एक कोशिश करने की इजाजत दी है, लेकिन बहुत मुश्किल से. उन का आदेश है कि सवारियों में से किसी का भी कोई नुकसान नहीं होना चाहिए. मैं ने उन्हें यकीन दिलया है और वादा किया है कि ऐसा ही होगा. हम ने एक प्लान बनाया है. क्या तुम इस के लिए अपनी मरजी से खुद को पेश कर सकते हो?”

“जनाब, मैं तो पहले ही खुद को पेश कर चुका हंू, आदेश दीजिए कि मुझे करना क्या है?” मैं ने बड़े ही आत्मविश्वास से कहा.

एसपी साहब ने सारा प्लान मुझे समझाया. उस वक्त 3 बज रहे थे. प्लान बहुत ज्यादा महत्त्व का तो नहीं था, पर नजमा, शारिक और गुरविंदर के लिए कुछ करने का मौका था.

सुबह के साढ़े 4 बज रहे थे. सख्त सर्दी थी. चारों ओर गहरा अंधेरा था. कुत्तों के भौंकने की आवाज कभीकभी सुनाई दे रही थी. हम झाडिय़ों के बीच खड़े थे. 30 गज के फासले पर बस हलकी सी दिखाई दे रही थी, जिस में कालेज की लड़कियां ,लेक्चरार और एक 3 साल की बच्ची पिछले 14 घंटे से जिंदगी और मौत के बीच झूल रही थी.

मेरे साथ पुलिस के 6 जवान 2 इंसपेक्टर और कई सबइंसपेक्टर थे. मैं अभीअभी वहां पहुंचा था. लेकिन बाकी के लोग शाम से ही वहां जमे थे. मैं ने उन से अब तक की प्रगति के बारे में पूछा. उस के बाद मैं बस तक जाने को तैयार हो गया. मैं आम सिपाही की ड्रैस में था. हाथों में एक बड़ा टिफिन था, जिस में 2-3 आदमियों का खाना था.

दरअसल, बदरू ने करीब डेढ़ घंटे पहले भूख से बेहाल हो कर खाने की फरमाइश की थी. उस की यही फरमाइश मीङ्क्षटग में इस काररवाई का सबब बनी थी. 14 घंटों में पहली बार कोई आदमी बस के करीब जा रहा था. इस से पहले शाम को 2 सिपाही जख्मी औरतों को बस के बाहर से उठा कर लाने के लिए गए थे, लेकिन उस वक्त उजाला था. किसी काररवाई का मौका नहीं था. चांद की रोशनी में बस का साया किसी भूत की तरह लग रहा था.

एक इंसपेक्टर ने थोड़ा आगे बढ़ कर जोर से चिल्ला कर कहा, “बदरू, सिपाही खाना ला रहा है, ले लो.”

कोई जवाब नहीं आया, केवल खिडक़ी का शीशा खोलने की आवाज आई. मैं धडक़ते दिल के साथ झाडिय़ों में से निकला और टिफिन ले कर बस की ओर बढ़ा. हमारे मंसूबों की कामयाबी इस बात पर निर्भर करती थी कि बदरू खुद खाना लेने के लिए हाथ बाहर निकाले या कम से कम खिडक़ी में नजर आए. मैं नपेतुले कदमों से बस के करीब पहुंचा. अपने रिवाल्वर को हाथ लगा कर देखा. बस के करीब पहुंच कर मैं ने टिफिन ऊपर उठाया.

उस वक्त मेरी सारी उम्मीदों पर पानी फिर गया, जब खिडक़ी में एक लडक़ी का डरासहमा चेहरा दिखाई दिया. उस ने हाथ बढ़ा कर मुझ से टिफिन थाम लिया. बस के अंदर अंधेरा था. किसी के रोने की आवाज आ रही थी. उसी वक्त मुझे लडक़ी के सिर के ऊपर 2 लाल चमकती आंखें और मुलजिम का सिर दिखाई दिया. वह झाडिय़ों में छिपे किसी दरिंदे की तरह लग रहा था. मैं ने जरा पीछे हट कर बस के दरवाजे पर दबाव डाला, वह बंद था.

अब लौट आने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं था. देरी मुलजिम को शक में डाल सकती थी. मुरदा कदमों के साथ मैं लौट आया. एसपी साहब वायरलैस पर रिपोर्ट का इंतजार कर रहे थे. मैं ने उन्हें नाकामी की खबर दी.

उन्होंने फैसला सुना दिया, “नवाज खान, अब तुम लौट आओ. कमिश्नर साहब ने सख्त हिदायत दी है कि इस के आगे कोई काररवाई नहीं होगी. उन का आदेश है कि तुम तुरंत थाने पहुंचो. इनायत खां से बात हो चुकी है, वह राजी है. उन का आदेश है कि बस की लड़कियों को जल्द से जल्द रिहा कराया जाए.”

मैं एसपी साहब की बात का मतलब अच्छी तरह समझ रहा था. एक मासूम लडक़ी को एक दरिंदे के हवाले किया जा रहा था. मेरा दिमाग भन्ना गया. लानत है ऐसी नौकरी और ऐसी जिंदगी पर. यह समझौता नहीं, कत्ल था. मैं ऐसा नहीं होने दूंगा, ज्यादा से ज्यादा क्या होगा, मेरी नौकरी और जान चली जाएगी या डिप्टी कमिश्नर की बेटी और नवासी को नुकसान पहुंचेगा. पर मैं यह जुल्म नहीं होने दूंगा.

मैं ने एक फैसला किया और अपनी जगह पर खड़ा हो गया. एक सबइंसपेक्टर ने पूछा, “क्या हुआ जनाब?”

“कुछ नहीं, मैं वापस थाने जा रहा हूं. एसपी साहब ने बुलाया है.”

साथियों से अलग हो कर मैं सडक़ की ओर आया और बाएं घूम कर झाडिय़ों में दाखिल हो गया. करीब एक फर्लांग का चक्कर काट कर मैं बस की दूसरी तरफ निकला. अब मैं अपनी काररवाई के लिए आजाद था. इस काररवई का इरादा ही मेरी कामयाबी थी. मैं सुकून में था. जब इंसान खतरे में कूदने की ठान ले तो रास्ता आसान लगता है.

लड़की, लुटेरा और बस – भाग 5

\मुझे अपने कानों पर यकीन नहीं हुआ. इस का मतलब नजमा के मांबाप को मजबूर किया जा रहा था कि वे अपनी बेटी एक गुंडे के हवाले कर दें. क्या हमारी पुलिस इतनी नकारा हो चुकी थी कि जिन लोगों का काम रक्षा करना है, वही उन्हें मौत की तरफ धकेल रहे थे.

मैं ने कहा, “सर, इस तरह के हादसे तो होते ही रहते हैं. क्या एक गुंडे की खातिर कानून की धज्जियां उड़ाई जाएंगी.”

“नवाज खान, तुम सही कह रहे हो, पर हम लोग ऐसा करने को मजबूर हैं, क्योंकि डिप्टी कमिश्नर साहब की बेटी और नवासी भी उसी बस में हैं. उन की बेटी गल्र्स कालेज में लेक्चरार है. उस के साथ उस की 3 साल की बच्ची भी है. डीसी साहब के लिए उन दोनों की जिंदगी हर चीज से ज्यादा प्यारी है.

“अभी 3-4 महीने पहले उन की बीवी एक बम धमाके में मारी गई थी. अभी वह इस सदमे से उबरे भी नहीं हैं कि यह हादसा हो गया. वह बेहद डरे हुए हैं. उन का आदेश है कि कुछ भी हो, उन की बेटी और नवासी को नुकसान नहीं पहुंचना चाहिए. उन की बेटी और नवासी आगे की सीट पर हैं. अगर हम बदरू पर काररवाई करते हैं और वह हथगोला फेंकता है तो अगली 3-4 सीटों पर एक भी सवारी जिन्दा नहीं बचेगी.

“डिप्टी कमिश्नर साहब और कमिश्नर साहब ने और्डर दिया है कि मामले को बिलकुल खुफिया रखा जाए. जैसे भी हो, बदरू की मांग पूरी की जाए. इसलिए कल दोपहर डिप्टी कमिश्नर साहब ने खुद नजमा के अब्बू इनायत खां से बता की थी.

“फिर उसे कमिश्नर साहब के पास ले गए थे. दोनों इस मामले को शांति से हल करना चाहते हैं. चाहे इस के लिए कोई भी कीमत अदा करनी पड़े. भले वह नजमा ही क्यों न हो. यह मामला करीब करीब हल भी हो चुका था, लेकिन शाम को नजमा गायब हो गई. हम सब उस की तलाश में लग गए. देर रात वह हमें मिल भी गई.”

मैं अंग्रेज अफसर की सोच पर हैरान था. अपने खून को बचाने के लिए कानून को बेबस कर के मासूम की कुरबानी को राजी था. मैं ने एसपी साहब से पूछा, “अब क्या प्रोग्राम है?”

एसपी साहब ने कहा, “अभी डेढ़ बज रहे हैं. ठीक 5 मिनट बाद कमिश्नर साहब की कार हमें लेने आ रही है. उन से मीङ्क्षटग के बाद ही कुछ तय हो सकेगा?”

मैं ने कहा, “जनाब, यह बात काफी लोगों को मालूम हो चुकी है. अगर इस मामले को इस तरह से हल किया गया तो पुलिस की बड़ी बदनामी होगी. मेरा खयाल है कि इस शर्मनाक समझौते के बजाय हमें हालात का मुकाबला बहादुरी से करना चाहिए. इस के लिए मैं सब से पहले खुद को पेश करता हूं.”

थोड़ी देर इस बात पर बहस होती रही. एसपी साहब किसी भी काररवाई के सख्त खिलाफ थे. उन का कहना था कि एक तो इस तरह हम अपनी जान भी खतरे में डालेंगे, दूसरे यह कमिश्नर साहब और डिप्टी कमिश्नर साहब के और्डर के खिलाफ होगा. उन्होंने मुझे एक फाइल पढऩे को दी है.”

उसी वक्त गाड़ी आ गई. दोनों अफसर कमिश्नर साहब के पास चले गए. मैं फाइल देखने लगा. इस में बदरू के बारे में जानकारी थी. वह मैट्रिक फेल नौजवान था. मांबाप मर चुके थे, मोहल्ले में वह आवारा और चरसी के रूप में मशहूर था. फिल्मों का बेहद शौकीन था. अभी मैं फाइल पढ़ ही रहा था कि बाहर से चीखपुकार की आवाजें आने लगीं.

मैं बाहर आया तो शोर लौकअप की ओर से आ रहा था. गुरविंदर सिंह ने शारिक को जकड़ रखा था. वह सलाखों से अपना सिर टकरा रहा था. उस की पेशानी से खून बह रहा था, “मुझे छोड़ दे गुरविंदर, मुझे मर जाने दे. मैं जी कर क्या करूंगा?”

लौकअप खोल कर 3-4 सिपाही अंदर घुसे. उन लोगों ने शारिक को पकड़ा तो अचानक गुरविंदर छलांग लगा कर लौकअप से बाहर निकल गया. मैं दरवाजे पर ही था. अगर मैं जरा भी चूकता तो वह निकल भागता. उसे दबोच कर लौकअप के अंदर किया. वह बहुत गुस्से में था. उस ने कहा, “मुझे जाने दो, मुझे नजमा को बचाना है, नहीं तो मेरा यार मर जाएगा.”

उस की आंखों में आंसू चमक रहे थे. फिर वह शारिक से लिपट कर बोला, “मुझे माफ कर यार, देख ले मैं कितना मजबूर हूं.”

अजीब परेशान करने वाले हालात थे. एक बेगुनाह लडक़ी और उस की मां पर जुल्म हो रहा था. उस का आशिक अलग मरने को तैयार था. दोस्त हर खतरा उठाने को राजी था और जुल्म करने वाले वे थे, जिन्हें बचाना चाहिए था यानी कानून के रखवाले. मैं ने फैसला कर लिया कि मैं इन लोगों के लिए जरूर कुछ करूंगा, भले ही मुझे अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़े. इस के लिए मुझे उन 2 जख्मी औरतों से मिलना था.

रात ढाई बज रहे थे, पर जाना जरूरी था. आज का दिन और रात इन्हीं हंगामों में गुजरी. मैं अस्पताल पहुंचा. ड्यूटी पर तैनात डाक्टर ने पहले तो मुझे मिलने से रोका, पर मैं ने कहा कि बहुत जरूरी है तो वह मुझे लडक़ी के पास ले गया. लडक़ी बिस्तर पर लेटी थी. थोड़ी देर पहले उस का एक छोटा सा औपरेशन हुआ था. पर वह होश में थी. थरसिया नाम की वह एंग्लोइंडियन लडक़ी सेकैंड ईयर की स्टूडैंट थी.

पहले मैं ने उस का हाल पूछा, इस के बाद बड़े प्यार से उस से बातें करने लगा. उस ने मुझे बताया कि वह बड़ा गुस्सैल आदमी है. लगातार सिगरेट पीता है. पूरी बस में चरस की बदबू फैली हुई थी, जिस में सांस लेना मुश्किल था. लडक़ी ने डिटेल में बस के अंदर की स्थिति बताई. बदरू ने बड़ी होशियारी से बस को कब्जे में किया हुआ था.

उस ने आगे की 2-3 सीटें खाली करा ली थीं. ड्राइवर को सब से पिछली वाली सीट पर भेज दिया था. बस के दरवाजे की सिटकनी अंदर से लगा दी थी. बस में एक ही दरवाजा था. उस के एक हाथ में पिस्तौल और दूसरे में हथगोला था. लड़कियों को धमकाता रहता था. न खुद कुछ खाया, न किसी को कुछ खाने दिया.

लड़की, लुटेरा और बस – भाग 4

इस बीच नजमा को होश आ गया तो उस ने शारिक के घर फोन कर दिया. इस के बाद वह शारिक को ले कर वापस आया तो उसे देख कर नजमा हैरान रह गई. गुरविंदर सिंह ने दोनों को सलाह दी कि वे उस के गांव चले जाएं, वहां वे पूरी तरह से सुरक्षित रहेंगे. उस का बाप एक बड़ा जमींदार और रसूखदार आदमी था. क्या किया जाए, अभी वे लोग सोच ही रहे थे कि मैं वहां पहुंच गया. लेकिन अभी भी कुछ बातें मुझे उलझन में डाल रही थीं.

नजमा का बाप चुपचाप फौरन उस की शादी क्यों कर रहा था? उन लोगों ने शारिक से शादी का इरादा क्यों बदल दिया था? अंग्रेज डीसी इस मामले में इतनी दिलचस्पी क्यों ले रहा था?

अब तक उस के करीब 10-12 फोन आ चुके थे. शायद एसपी साहब जानते हों, पर उन्होंने कुछ बताया नहीं था. इसी उधेड़बुन में मैं टहलता हुआ मुंशी के कमरे की तरफ निकल गया. वहां 2 लोग अपनी लड़कियों के गायब होने की रिपोर्ट लिखा रहे थे. वे लड़कियां रोजाना कालेज की बस से घर आती थीं, पर आज बस ही नहीं आई थी. उन लोगों ने कालेज जा कर पता किया तो जानकारी मिली कि बस लड़कियों को ले कर कालेज से चली गई थी.

पूरी बात बताने में कालेज का स्टाफ टालमटोल कर रहा था. वे दोनों झिकझिक कर रहे थे कि कुछ और पैरेंट्स वहां आ गए. उन की भी लड़कियां घर नहीं पहुंची थीं. वे सब भी परेशान थे. 4 बजे के करीब उन्हें बताया गया कि बस मिल गई है और लड़कियां एक घंटे में घर पहुंच जाएंगी.

कुछ देर में कालेज की अंग्रेज ङ्प्रसिपल आ गई. उस ने बताया कि गल्र्स कालेज की बस में 2 गुंडे सवार हो गए थे. वे ड्राइवर को पिस्तौल दिखा कर बस को वीराने में ले गए हैं, पर खतरे की कोई बात नहीं है. उन्होंने किसी लडक़ी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया है. वे रुपए की मांग कर रहे हैं. कमिश्नर साहब ने उन की बात मान ली है. थोड़ी देर में बस वापस कालेज पहुंच जाएगी.

कुछ पैरेंट्स वापस जाने लगे तो उन्हें यह कह कर रोक लिया गया कि एसपी साहब के आदेश के अनुसार किसी को जाने की इजाजत नहीं है, लड़कियों के आने तक सभी को यहां रुकना पड़ेगा. इस के बाद जो भी अपनी लड़कियों के बारे में पूछने आया, उसे वहीं रोक लिया गया. रात 8 बजे बाहर से आने वाले एक आदमी से पता चला कि एक लेक्चरार और एक लडक़ी को जख्मी हालत में अस्पताल में भरती कराया गया है. उन की हालत हर किसी से छिपाई जा रही है.

रिपोर्ट लिखाने वाले दोनों आदमी सगे भाई थे और वकील थे. बड़े भाई की 2 लड़कियां बस में बंधक थीं. दोनों बड़ी होशियारी से कालेज से निकल कर थाने पहुंच गए थे. मैं ने जब उन की बातें सुनीं तो लगा कि मामला बड़ा गंभीर है. लड़कियों से भरी बस 2 गुंडों के रहमोकरम पर थी. किसी वजह से पुलिस सख्त काररवाई करने से बच रही थी और पूरे मामले को छिपाने की कोशिश कर रही थी. परेशान पैरेंट्स को कालेज में ही रोक लिया गया था, ताकि बात खुले न.

उसी वक्त एक सबइंसपेक्टर ने आ कर बताया कि डीएसपी साहब बुला रहे हैं. मैं अंदर पहुंचा तो वे काफी परेशान थे. एक चिट देते हुए वह मुझ से बोले, “नवाज खान इस आदमी को अभी गिरफ्तार करो.”

मैं ने चिट देखी, उस पर अरुण अग्रवाल एडवोकेट लिखा था, साथ ही उस का पता भी लिखा था. यह अरुण अग्रवाल वही आदमी था, जो मुंशी के पास लड़कियों की गुमशुदगी लिखवा रहे थे. मैं ने पूछा, “सर, आखिर यह मामला क्या है?”

डीएसपी ने रूखे स्वर में कहा, “मामले के चक्कर में मत पड़ो. बस समझो टौप सीके्रट है.”

अब मुझे इस पूरे मामले से दहशत होने लगी थी. मैं ने आगे झुक कर दृढ़ता से कहा, “सर, कुछ टौप सीक्रेट नहीं है. आप क्यों एक बिगड़े हुए मामले को और बिगाड़ रहे हैं?”

डीएसपी साहब नाराज हो कर बोले, “तुम्हें क्या मालूम, क्या मामला है?”

मैं ने कहा, “जनाब, मुझे पता है. 2 गुंडों ने कालेज की बस अगवा कर ली है. 2 लोगों को जख्मी भी कर दिया है और बाकी लड़कियों की ङ्क्षजदगी खतरे में है. जब मुझे पता है तो और लोगों को भी पता होगा. आप को मालूम नहीं कि अभी थोड़ी देर पहले अरुण अग्रवाल इस मामले की रिपोर्ट लिखवा रहा था. आप ने और्डर देने में थोड़ी देर कर दी.”

एसपी और ज्यादा परेशान हो गए. मुझ से बैठने को कह कर बोले, “मुझे लगता है नवाज खान, तुम्हें सारी बात बता देनी चाहिए. जैसा कि तुम जानते हो, बस अगवा हो चुकी है और उस में गोली भी चल गई है, जिस से एक लेक्चरार और एक स्टूडैंट घायल हो गई हैं. स्थिति यह है कि बस में सिर्फ एक बदमाश है. उस का नाम बदरु है. वह सनकी और खतरनाक आदमी है.

“बस अगवा करने के बाद उस ने एक बड़ी अजीब सी मांग रखी है. उस का कहना है कि एक लडक़ी, जो उस की महबूबा है, उसे उस के हवाले कर दिया जाए. वह उस के बिना जिन्दा नहीं रह सकता. और वह लडक़ी कोई और नहीं, इनायत खां की बेटी नजमा है.

“बदरू काफी दिनों से उस के पीछे पड़ा था. कुछ दिनों पहले उस ने नजमा को रास्ते में परेशान भी किया था. उस पर उस के भाइयों ने बदरू की जम कर पिटाई की थी. पर वह बहुत ढीठ और जिद्दी है. वह सिर्फ नजमा को अगवा करने के लिए बस में घुसा था. लेकिन नजमा बस में नहीं थी, क्योंकि कल वह कालेज नहीं गई थी.

“नजमा को न पा कर वह गुस्से से पागल हो गया और ड्राइवर के सिर पर पिस्तौल रख कर उसे वीराने में चलने को मजबूर किया. अब वह बस सडक़ से हट कर वीराने में झाडिय़ों के बीच खड़ी है. बस का कंडक्टर किसी तरह से भागने में कामयाब हो गया. उसी ने कालेज जा कर इस घटना की सूचना दी.

“मैं ने खुद मौके पर जा कर बदरू से बात की. वह आधा पागल है. उस के पास एक हथगोला और भरी पिस्तौल है. उस ने मुझे खिडक़ी से बम दिखाया था. वह एक ही बात कह रहा है कि उसे उस की महबूबा नजमा और 5 लाख रुपए चाहिए. वह अन्य किसी लडक़ी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगा. उस की मांग पूरी कर दो.”

“जनाब, क्या आप ने उस की मांग पूरी करने का फैसला कर लिया है?”

“हां, शायद उस की मांग पूरी करनी ही पड़ेगी.” उन्होंने कहा.

पत्नी और प्रेमी के प्यार में पिसा करन – भाग 4

शाम तक इस टीम ने आ कर जो कुछ बताया, उस से एसएचओ उत्साह से भर गए. पुलिस टीम के अनुसार राधा का अनुराग से शादी से पहले का संबंध जुड़ा हुआ था. रघु सिंह के पड़ोस में रहने वाली 2-3 महिलाओं ने दबी जुबान में बताया था कि राधा की कलाई पर ब्लेड से खुरच कर अंगरेजी का ‘ए’ अक्षर लिखा हुआ है.

एसएचओ उपेंद्र छारी ने पुलिस टीम को भिंड जिले के चतुर्वेदी नगर से अनुराग चौहान को थाने में लाने को भेज दिया. उस टीम में एसआई शिवप्रताप राजावत, एएसआई सत्यवीर सिंह, सिपाही बनवारीलाल, सविता, बाबू सिंह, महेश कुमार, आरक्षक आनंद दीक्षित, यतेंद्र सिंह राजावत, राहुल यादव, हरपाल चौहान, इरशाद, सुनीता अमर दीप और रामकुमार आदि शामिल थे.

दूसरे दिन 22 वर्षीय अनुराग चौहान को थाने में लाया गया तो उस का चेहरा सफेद पड़ा हुआ था. उपेंद्र छारी ने बगैर समय गंवाए अनुराग से पूछा, “राधा का पति करन कहां है अनुराग?”

“म… मुझे क्या मालूम सर.” अनुराग ने नीचे मुंह कर के कहा. उपेंद्र छारी ने हैडकांस्टेबल प्रमोद पाराशर को इशारा किया.

हैडकांस्टेबल प्रमोद पाराशर ने अनुराग के साथ थोड़ी सख्ती से पूछताछ की तो अनुराग टूट गया. उस ने कहा, “सर, मैं ने करन भदौरिया की हत्या कर के उस की लाश जला दी है.”

इस खुलासे पर सभी चौंक गए. एसएचओ ने अनुराग को घूरा, “तुम ने करन की हत्या क्यों की?”

“सर, मुझे मेरी प्रेमिका राधा भदौरिया ने पति करन की हत्या करने के लिए कहा था. मेरा और राधा का 4 साल से प्रेम संबंध है. राधा की शादी उस की मरजी के खिलाफ करन भदौरिया से 9 मई, 22 को हो गई थी. राधा करन के साथ मजबूरी में रह रही थी, वह मुझे रोज फोन कर के रोते हुए कहती थी, मुझे अपने पास बुला लो, मैं करन को पति का प्यार नहीं दे सकती.

“8 फरवरी, 2023 को राधा ने मुझे फोन कर के बताया कि 14 फरवरी को उस का जन्मदिन है. मैं ने विजयवाड़ा से करन को जन्मदिन सेलिब्रेट करने के लिए कोट पोरसा बुलाया है. वह 9 फरवरी, 2023 को अंडमान एक्सप्रैस से ग्वालियर आ रहा है, उसे निपटा दो.”

पत्नी ने कराया मर्डर

कुछ क्षण रुक कर अनुराग ने आगे बताया, “सर, मैं ने अपने दोस्त करन तोमर को घर बुलाया और उस की बाइक से हम ग्वालियर आ गए. बाइक करन तोमर को सौंप कर मैं ने प्लेटफार्म टिकट खरीदा और प्लेटफार्म पर विजयवाड़ा से ग्वालियर आ रही ट्रेन का इंतजार करने लगा.

“दोपहर में ट्रेन आई तो करन बैग ले कर नीचे उतरा. मैं ने उस का पीछा किया. वह बस में सवार हुआ तो मैं भी बस में सवार हो कर करन से दोस्ती गांठ ली. उस से कहा कि मैं भी पोरसा जा रहा हूं. मेहगांव में मेरे दोस्त कार ले कर खड़े हैं, हम कार से पोरसा चलेंगे. करन मान गया.”

लंबी सांस ले कर अनुराग ने बताया, “मेहर गांव से मैं अपने दोस्त की कार डीई 100 बी 6347 से पोरसा के लिए रवाना हुआ, करन को मैं ने ड्राइविंग कर रहे किशन के साथ आगे बिठाया. मैं शैलेंद्र बघेल के साथ कार की पिछली सीट पर बैठा. मैं ने सुनसान इलाका आते ही करन के गले में गमछा डाल कर उस का गला घोंट कर हत्या कर दी. उस की लाश पांडरी मंदिर के आगे बीहड़ में डाल कर पैट्रोल से जला दी और घर आ गए.

“दूसरे दिन हम तीनों कार ले कर फिर पांडरी मंदिर के बीहड़ में गए. करन की अधजली लाश को एक बोरे में भर कर मैं ने थाना सहसों के आगे चंबल नदी में फेंक दिया और मैं ने राधा को उस के रास्ते का कांटा निकाल फेंकने की बात बता दी.”

अनुराग द्वारा करन भदौरिया की हत्या केस का खुलासा होने के बाद हत्यारिन पत्नी राधा भदौरिया को उस की ससुराल से गिरफ्तार कर लिया गया. उस ने बहुत होहल्ला मचाया, चीखचीख कर बोली, “आप लोग मुझे झूठे आरोप में फंसा रहे हैं. करन मेरा पति था, मैं अपना सुहाग क्यों उजाड़ूंगी.”

एसएचओ उपेंद्र छारी ने जब उस का सामना लौकअप में बंद अनुराग से करवाया तो राधा ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया. उसी दिन अनुराग की निशानदेही पर करन तोमर और शैलेंद्र बघेल को भिंड से गिरफ्तार कर के थाना गोहद चौराहा में लाया गया. पुलिस ने हत्या में इस्तेमाल कार और करन तोमर की बाइक भी जब्त कर ली. अनुराग को साथ ले जा कर करन की लाश के कुछ अधजले हिस्से और कपड़े बरामद कर लिए गए.

करन की गुमशुदगी को अब भादंवि की धारा 302, 120बी, 305, 201 व 11/13 एमपीडी एक्ट के तहत दर्ज कर लिया गया. रघुसिंह भदौरिया बेटे की हत्या अपनी ही कुलच्छिनी बहू द्वारा करवाए जाने पर गश खा कर गिर पड़े. वह उस दिन को कोसने लगे, जब राधा को बहू के रूप में उन्होंने पसंद किया था, लेकिन अब क्या हो सकता था. उन का लाडला बेटा करन पत्नी राधा की नफरत का शिकार बन गया था.

एसएचओ उपेंद्र छारी ने करन भदौरिया मर्डर केस के अभियुक्तों राधा भदौरिया, अनुराग चौहान, करन तोमर, किशन, शैलेंद्र बघेल के खिलाफ पुख्ता सबूत एकत्र कर के उन्हें कोर्ट में पेश कर जेल की राह दिखा दी थी.

बार डांसर की बेवफाई – भाग 3

शादी के बाद कुछ महीने तो बड़े चैन से गुजरे, लेकिन बाद में आर्थिक तंगी सामने आ खड़ी हुई. वजह यह थी कि वे दोनों कैटरिंग के जिस काम से जुड़े थे, वह मौसमी शादियों और पार्टियों के बूते पर चलता था, जब शादियों का मौसम नहीं होता था तो दोनों की आय का स्रोत बंद हो जाता था. 2-4 पार्टियों के लिए काम मिल भी जाता तो उस से गुजारा नहीं होता था.

जब आर्थिक हालात बिगड़ते गए तो पूजा को फिर से डांस बार का रुख करना पड़ा. जबकि आसिफ कैटरिंग के काम से ही जुड़ा रहा. पूजा इस बार डांसबार में लौटी तो वह पहले वाली पूजा नहीं थी.  शादी के बाद वह काफी बदल गई थी. इस बार डांसबार में आ कर मां की तरह पूजा के भी कदम बहक गए. फलस्वरूप वह भी अपनी मां मंदा के रास्ते पर चल निकली.

शारीरिक सुख और पैसों की चाह में पूजा के कई पुरुष मित्र बन गए. जिन के साथ वह घूमनेफिरने और पार्टियों में जाने लगी. अब वह रात को अकसर नशे में घर लौटने लगी थी. आसिफ को यह बिलकुल पसंद नहीं था. जब वह पूजा को इस सब के लिए मना करता था तो वह उलटा जवाब देती थी.

इन बातों को ले कर पूजा और आसिफ में कभीकभी झगड़ा हो जाता था और बात मारपीट तक पहुंच जाती थी. एक बार तो आसिफ ने गुस्से में पूजा को इतना पीटा कि उस ने साकी नाका पुलिस थाने जा कर उस के खिलाफ शिकायत दर्ज करवा दी.   फलस्वरूप आसिफ को जेल जाना पड़ा. जब तक वह जमानत पर जेल के बाहर आया तब तक उस के प्रति पूजा का मन बदल चुका था. अब वह आसिफ के साथ नहीं रहना चाहती थी. वह उस का मोह छोड़ कर अपनी मौसी की लड़की लता के पास नागपुर चली गई.

लता भी नागपुर के बीयर बारों में आर्केस्ट्रा पर नाचने का काम करती थी. जाने से पहले पूजा ने जब लता को फोन कर के अपनी आप बीती बताई तो लता ने उसे नागपुर आने की सलाह दी. लता की सलाह पर पूजा नागपुर चली आई थी और लता के साथ बीयर बारों में काम करने लगी थी.

एक महीने बाद आसिफ ने पूजा से संपर्क कर के उस से माफी मांगी तो उस ने आसिफ को नागपुर बुला लिया. नागपुर आ कर आसिफ ने कैटरिंग का काम करना शुरू कर दिया. उस के नागपुर आने के बाद पूजा ने जाटवरोड़ी बस्ती में किराए का मकान ले लिया. आसिफ और वह उसी मकान में पतिपत्नी की तरह रहने लगे. इस के बावजूद पूजा का चालचलन वही रहा जो मुंबई में था. नागपुर में भी उस ने कई पुरुष मित्र बना लिए थे.

पूजा के पुराने रंगढंग देख कर आसिफ को बहुत दुख हुआ क्योंकि उस के लिए उस ने खुद को बिलकुल बदल लिया था. आसिफ ने पूजा को समझाने की कोशिश की लेकिन वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आई. इस से आसिफ को उस से नफरत हो गई.

27 अप्रैल 2014 की रात उस नफरत की आग में घी डालने का काम उस पार्टी ने किया था जो पूजा के मकान की छत पर आयोजित की गई थी. यह पार्टी पूजा के एक दोस्त के बर्थडे की थी. पार्टी के लिए शराब और चिकन वगैरह की पूरी व्यवस्था की गई थी.

उस पार्टी में सारे लोग शराब पी कर आर्केस्ट्रा की धुन और हलकी पीली रोशनी के बीच एकदूसरे की बाहों में झूल रहे थे. पार्टी में आसिफ भी मौजूद था, जो पूजा की हर हरकत को देख रहा था. पूजा शराब के नशे में पार्टी में एक युवक की बाहों में अश्लीलता की हदें पार करते हुए झूल रही थी.

वह युवक उस के नाजुक अंगों से छेड़खानी कर रहा था. यह सब देख कर आसिफ का खून खौल रहा था. लेकिन वह मजबूर था क्योंकि वह युवक उस इलाके का माना हुआ बदमाश था. जब आसिफ से यह सब नहीं देखा गया तो वह पार्टी छोड़ कर नीचे चला आया और अपने बिस्तर पर लेट गया.

जब पार्टी खत्म हुई तो पूजा भी नीचे कमरे में गई और आसिफ के पास लेट कर सो गई. आसिफ उस वक्त जाग रहा था. उस की आंखों से नींद कोसों दूर थी. उस की आंखों में पूजा की बेवफाई घूम रही थी. उस के दिमाग में बैठा शैतान उस की सोचनेसमझने की शक्ति को लील गया था. ऐसी विश्वासघाती बीवी से तो अच्छा है, वह बिना उस के ही रहे, यह सोच कर आसिफ बिस्तर से उठा और कमरे में रखे कटर ब्लेड से एक झटके में पूजा का गला काट दिया.

गला कटते ही पूजा लड़खड़ा कर फर्श पर गिर पड़ी. उस का गला काटने के बाद आसिफ ने मकान के बाहर आ कर दरवाजा बंद किया और ताला लगा कर मुंबई चला गया. लेकिन मुंबई आने के बाद भी उस के मन में पूजा के प्रति नफरत खत्म नहीं हुई थी. इसीलिए उस ने हत्या करने के बाद भी नागपुर में रहने वाले अपने एक दोस्त को फोन कर के पूजा के बारे में पूछा. दरअसल उसे शंका थी कि कहीं वह जीवित न रह गई हो. उस की यही गलती उसे महंगी पड़ी और वह फोन काल से पकड़ा गया.

आसिफ इस्माइल शेख से विस्तृत पूछताछ के बाद जांच अधिकारी सब इंसपेक्टर मुकुंद कवाड़े ने उस के विरुद्ध भादंवि की धारा 302, 202 के तहत मुकदमा दर्ज कर उसे अदालत में पेश किया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक वह नागपुर जेल में बंद था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

लड़की, लुटेरा और बस – भाग 3

मायूसी बढ़ रही थी कि अचानक वायरलैस जाग उठा. दूसरी ओर मेरा सबइंसपेक्टर बोला, “हैलो साहब थोड़ी देर पहले जीप के इंजन की आवाज सुनाई दी थी. पर अब नहीं सुनाई दे रही है.”

मैं ने कहा, “हसन, हम जीप पीछे करते हैं, तुम फिर बताओ.”

हम धीरेधीरे जीप पीछे करने लगे. हम थोड़ा पीछे लौटे थे कि उस की आवाज आई, “जी साहब, अब आवाज आ रही है.” हम थोड़ा और पीछे चले तो उस ने कहा, “अब ज्यादा तेज आवाज आ रही है.” हम ने जीप वहीं रोक दी.

सामने एक बड़ी सी कोठी थी. अपने 2 सिपाहियों और एक सबइंसपेक्टर को बाहर होशियारी से ड्यूटी देने के लिए कह कर कहा कि अगर फायर की आवाज आए तो तुरंत अंदर आ जाना. इस के बाद मैं ने गेट से अंदर झांका. चौकीदार वगैरह नहीं दिखाई दिया. गैराज में एक कार खड़ी थी, चारदीवारी ज्यादा ऊंची नहीं थी. मैं आसानी से अंदर कूद गया. गहरा सन्नाटा और अंधेरा था. धीरेधीरे मैं कोठी की ओर बढ़ा.

अचानक मेरे ऊपर हमला हुआ तो मैं फर्श पर गिर पड़ा. उस के हाथ में कोई लंबी वजनी चीज थी. जैसे ही उस ने मारने के लिए उठाया, मैं ने जोर से उस के पेट पर एक लात मारी. चोट करारी थी, वह पीछे दीवार से जा टकराया. जल्दी से खड़े हो कर मैं ने देखा, उस के हाथ में बैट था. जैसे ही उस ने मारने को बैट उठाया, मैं ने तेजी से एक बार फिर उस के पेट पर लात मारी. वह गिर पड़ा तो एक लात और उस के मुंह पर जमा दिया.

वह चकरा कर पलटा. एक और वार में वह बेसुध हो गया. तभी किसी ने पीछे से जोरदार धक्का दिया. इस के बाद वह मेरी कमर से लिपट गया. मैं ने फुरती से रिवौल्वर निकाली और हवाई फायर कर दिया. हमलावर ठिठका तो मैं ने पलट कर एक जोरदार घूंसा उस के मुंह पर मारा तो वह घुटनों के बल बैठ गया.

जैसा मैं ने साथियों से कहा था, फायर की आवाज सुनते ही वे अंदर आ गए. उन्होंने उसे पकड़ लिया और अंदर ले गए. अंदर सारी लाइटें जला दी गईं. वह काफी बड़ी कोठी थी. सामान ज्यादा नहीं था, लेकिन जो था, उस से लगा कि कोई स्टूडैंट वहां रहता है. मैं ने सबइंसपेक्टर से तलाशरी लेने को कहा. पल भर बाद वह एक खूबसूरत 17-18 साल की लडक़ी को ले कर मेरे सामने आ खड़ा हुआ. वह सलवारकमीज पहने थी, पैरों में जूती नहीं थी. वह काफी घबराई हुई थी.

वह कुछ कहना चाहती थी कि तभी एसपी, डीएसपी कुछ सिपाहियों के साथ आ पहुंचे. उन के साथ लडक़ी के घर वाले भी थे. लडक़ी मां से लिपट गई. वह नौजवान, जिस ने मुझ पर बाद में हमला किया था, उस की ठोड़ी से खून बह रहा था. उसे देख कर इनायत खां चीखा, “यही है वह कमीना शारिक, इसी ने मेरी बेटी को अगवा किया था.”

रात करीब 1 बजे हम थाने लौटे. उसी समय डीसी साहब का फोन आ गया. उन्हें खबर दे दी गई थी कि लडक़ी मिल गई है, मुलजिम पकड़े गए हैं. याकूब अली के बेटे शारिक ने अपने दोस्त गुरविंदर के साथ इस वारदात को अंजाम दिया था.

यह किस्सा कुछ यूं था. गुरविंदर सिंह कालेज में आखिरी साल में था. वह स्टूडैंट यूनियन का अध्यक्ष था. उस के साथ मिल कर शारिक ने यह काम किया था. डीसी साहब ने सब को बधाई और शाबासी दी. मेरा सिर दर्द खत्म हो गया था. लडक़ी मिल गई थी, पर मुझे लग रहा था कि अभी कोई बात मुझ से छिपी हुई है. बात कुछ और भी है. डीसी का इस मामले में इतना ज्यादा इंट्रैस्ट लेना मेरी समझ में नहीं आ रहा था.

शारिक और गुरविंदर सिंह से पूछताछ की तो बात खुल कर सामने आई कि अपहरण वाले दिन दोपहर को शारिक के औफिस नजमा ने फोन किया था कि बहुत बड़ी मुश्किल आ गई है, वह जल्दी से जल्दी उस से मिले. शारिक औफिस से छुट्टी ले कर नजमा से मिलने पहुंच गया. दोनों एक नजदीक के पार्क में मिले तो नजमा ने रोते हुए बताया कि उस का सौतेला बाप उस की शादी चंद घंटों के अंदर कहीं और कर रहा है. यह सुन कर शारिक हैरान रह गया.

2 महीने में उन दोनों की शादी होने वाली थी, जिस की तैयारियां भी चल रही थीं. नजमा ने आगे बताया कि उस के अब्बा बहुत परेशान थे. 2-3 बार उन्हें एक कार ले जाने और छोडऩे आई थी. बारबार फोन आ रहे थे. थोड़ी देर पहले उस ने अम्मी अब्बू की बातें छिप कर सुनी थीं.

अब्बू अम्मी को समझाने की कोशिश कर रहे थे, “रईसा, हमें नजमा की शादी वहां करनी ही पड़ेगी, वरना हम कौड़ीकौड़ी को मोहताज हो जाएंगे. लडक़ी के बारे में मत सोचो, अपने और अन्य बच्चों के बारे में सोचो. शादी करने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है.”

इस के बाद अम्मी रोते हुए बोलीं, “मेरी बिटिया का क्या होगा, दुनिया क्या कहेगी?”

अब्बू ने कहा, “उस की तुम फिकर मत करो, सब हो जाएगा. शादी कर के हम 2 महीनों के लिए कश्मीर चले जाएंगे. इतनेदिनों में लोग सब भूल जाएंगे.”

काफी बहस के बाद अम्मी मजबूरी में उस की इस शादी के लिए राजी हो गईं. कुछ ही घंटे में नजमा को किसी अजनबी आदमी के हवाले करने की बात तय हो गई.

शारिक नजमा की बातें सुन कर दंग रह गया. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह अपनी महबूबा को क्या और कैसे तसल्ली दे? बेहद परेशानी की इस हालत में वह एक होटल में जा बैठा. वहां उस के पक्के दोस्त गुरविंदर सिंह से उस की मुलाकात हो गई. उस ने उस की परेशानी की वजह पूछी तो उस ने दुखी मन से सारी बात बता दी.

गुरविंदर सिंह ने उस का दुख सुना और चुपचाप वहां से उठ कर चला गया. वह सीधे नजमा के घर पहुंचा और अपनी 2 सीटर गाड़ी कोठी के पीछे खड़ी कर के थोड़ी देर हालात जांचता रहा. इस के बाद मौका देख कर खिडक़ी से नजमा के कमरे में दाखिल हो गया और बड़ी होशियारी से उसे बेहोश कर के अपनी कोठी में ले कर आ गया. उसे एक कमरे में बंद कर के खुद शारिक की तलाश में निकल गया.

पत्नी और प्रेमी के प्यार में पिसा करन – भाग 3

“अगला जन्म किस ने देखा है अनुराग, मैं इसी जन्म में तुम्हारी दुलहन बनूंगी. तुम मेरा पहला और आखिरी प्यार हो. मेरे प्यार की कहानी तुम से शुरू हुई थी और तुम पर ही जा कर खत्म होगी.” राधा ने कहा और आगे झुक कर उस ने भावावेश में अनुराग के होंठ चूम लिए. वह फिर पार्क में नहीं रुकी. पार्क से बाहर निकलते वक्त उस की आंखों में आंसू झिलमिला रहे थे.

दुलहन के रूप में करन की मौत बन कर आई राधा

9 मई, 2022 को राधा और करन भदौरिया की धूमधाम से शादी हो गई. राधा भदौरिया खानदान की बहू बन कर कोट पोरसा में आ गई. अब यह राधा की ससुराल थी और करन उस का सुहाग. विवशता में राधा ने यह विवाह किया था, वह अनुराग के साथ अपने प्रेम और उसी से विवाह करने की बात मांबाप के सामने जुबान पर नहीं ला पाई. उस ने करन भदौरिया से शादी का विरोध करने का साहस भी नहीं जुटाया और बुझे मन से शादी की रस्में निभाते हुए करन के साथ सात फेरे ले लिए.

सुहागसेज पर करन ने अपना हक मांगा तो अनुराग की छवि मन में बसा कर खुद को करन के हवाले कर दिया. उस का मन तड़प रहा था और आंखों में नमी थी, जिसे करन नहीं देख पाया. एक सप्ताह वह राधा के साथ मौजमस्ती करता रहा. राधा भरे मन से उस की खुशियों की भागीदार बनती रही. 8वें दिन करन अपनी नौकरी पर विजयवाड़ा चला गया तो राधा ने चैन की सांस ली. उसे ऐसा लगा जैसे लंबी कैद काट कर वह आजाद हुई है.

करन विजयवाड़ा की टोल प्लाजा कंपनी में काम करता था. शुरूशुरू में वह 15 दिन में एक बार कोट पोरसा पत्नी राधा के मोह में आता रहा, फिर यह सिलसिला रुक गया. कारण कंपनी ने उस की ज्यादा नागा का नोटिस ले लिया था, उन्होंने करन को हिदायत दी थी कि वह मन लगा कर काम करे, ज्यादा छुट्टी लेने पर कंपनी का नुकसान होगा. करन मन मार कर रह गया था.

11 फरवरी, 2023 को रघुसिंह भदौरिया बड़ी बेचैनी से घर के आगे टहल रहे थे. उन की निगाहें सामने वाली उस सडक़ पर जमी थीं, जो कोट परोसा बाजार हो कर उन के दरवाजे की ओर आती थी. रघुसिंह को अपने बेटे करन के आने का इंतजार था.

करन हुआ अचानक लापता

करन ने दोपहर में उन्हें सूचना दे दी थी कि वह सकुशल विजयवाड़ा से ग्वालियर आ गया है और 2 बजे तक घर पहुंच जाएगा. लेकिन अब शाम के 6 बज रहे थे. करन का न फोन आया था, न वह खुद घर पहुंचा था. उस का फोन भी स्विच्ड औफ आ रहा था. रघुसिंह भदौरिया को घबराहट होने लगी थी.

वह पागलों की तरह बेटे की राह देख रहे थे कि उन का बड़ा बेटा अर्जुन घर आ गया. रघुसिंह भदौरिया ने उसे करन के अभी तक घर न आने की बात बताई तो वह भी परेशान हो गया. उस ने अपने सभी रिश्तेदारों को फोन कर के करन के विषय में पूछा, सभी से एक ही बात सुनने को मिली कि करन उन के घर नहीं आया है. फिर तो अर्जुन भी घबरा गया.

वह रात जैसेतैसे उन्होंने आंखों में काटी, सुबह रघुसिंह बड़े बेटे अर्जुन को ले कर थाना गोहद चौराहा पहुंच गए. एसएचओ उपेंद्र छारी ने दोनों की बदहवास हालत देख कर उन्हें पानी पिलवाया और उन के थाने आने का कारण पूछा.

“साहब, मेरा छोटा बेटा करन भदौरिया विजयवाड़ा से अंडमान एक्सप्रेस ट्रेन पकड़ कर कल दोपहर को ग्वालियर स्टेशन पर उतरा था. उस का फोन तब चालू था, उस ने मुझे बताया था कि वह 2 बजे तक घर आ जाएगा. लेकिन वह अभी तक घर नहीं पहुंचा है. उस का फोन भी स्विच्ड औफ आ रहा है. मुझे बहुत घबराहट हो रही है, आप मेरे बेटे की तलाश करवाइए.”

“आप अपनी रिपोर्ट लिखवा दीजिए और अपने बेटे की फोटो दे दीजिए. मैं पूरी कोशिश करूंगा कि आप के बेटे का पता चल जाए.” एसएचओ ने उन्हें आश्वासन देते हुए कहा.

रघुसिंह ने बेटे करन की गुमशुदगी दर्ज करा दी

एसएचओ उपेंद्र छारी ने करन की गुमशुदगी को बड़ी गंभीरता से लिया. उन्होंने भिंड जिले के सभी थानों में करन की फोटो फ्लैश कर के उन से करन को तलाश करने में मदद मांगी. लेकिन 2 दिन बीत जाने पर भी करन की कोई सूचना नहीं मिली. करन का मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगा दिया गया था, लेकिन वह मोबाइल स्विच्ड औफ था.

रघुसिंह से उन्होंने करन और उस की पत्नी राधा का मोबाइल नंबर लेकर सर्विलांस की मदद से उस की काल डिटेल्स निकलवाई तो वह चौंक गए. करन की पत्नी राधा के मोबाइल से एक नंबर पर इन 9 महीनों में 12,375 बार फोन किया गया था. इस नंबर की जांच की तो यह नंबर भिंड जिले में चतुर्वेदी नगर के रहने वाले अनुराग चौहान का निकला.

“यह अनुराग कौन है?” एसएचओ ने रघुसिंह को थाने बुला कर पूछा.

“मैं नहीं जानता साहब,” रघुसिंह ने सिर हिलाया.

“आप की बहू का चुतुर्वेदी नगर में कोई रहता है क्या? आप की बहू ने यहां रहने वाले अनुराग चौहान से शादी के बाद से 12,375 बार फोन किया है.”

“चतुर्वेदी नगर में तो राधा की मौसी रहती है साहब. उन का कोई बेटा नहीं है, पति भी कभी का स्वर्गवासी हो गया है.” रघुसिंह ने बताया.

“हं. मुझे अब करन की तलाश करने के लिए रास्ता मिलने लगा है. आप घर जाइए, करन के बारे में अब जल्दी पता चल जाएगा.” एसएचओ ने रहस्यभरी आवाज में कहा.

रघुसिंह के जाने के बाद एसएचअे उपेंद्र छारी ने एसआई शिवप्रताप राजावत, वैभव तोमर, कल्याण सिंह यादव और एएसआई सत्यवीर सिंह को रघुसिंह के घर के आसपड़ोस में रहने वाले लोगों से राधा के विषय में गुप्त तरीके से जानकारी जुटाने के लिए भेज दिया.

लड़की, लुटेरा और बस – भाग 2

फोन की घंटी बजी, मैं ने लपक कर फोन उठाया. दूसरी ओर मेरा एक सबइंसपेक्टर था, जिसे मैं ने शारिक के बारे में पता करने के लिए उस के दोस्तों के यहां और औफिस भेजा था. उस ने बताया, “दोस्तों से तो कुछ पता नहीं चला, लेकिन औफिस वालों से पता चला है कि 2 बजे शारिक के लिए किसी का फोन आया था. इस के बाद वह हड़बड़ा कर औफिस से निकल गया था. तब से वह किसी को दिखाई नहीं दिया.”

मोहल्ले वालों से पता चला था कि 8 दिन पहले नजमा के भाइयों ने किसी लडक़े की घर के पास जम कर पिटाई की थी. वजह मालूम नहीं हो सकी, पर वह लडक़ा शारिक नहीं था.

फोन एक बार फिर बजा. मैं ने रिसीवर उठा कर कान से लगाया तो दूसरी ओर से किसी लडक़ी की घबराई हुई आवाज आई, “अकबर भाई बोल रहे हैं न?”

मैं ने कहा, “हां.”

लडक़ी घबराहट में आवाज नहीं पहचान पाई और जल्दीजल्दी कहने लगी, “अकबर भाई, एक आदमी मुझे पकड़ कर यहां ले आया है. मुझे एक कमरे में बंद कर के खुद न जाने कहां चला गया है? यह फोन दूसरे कमरे में था, खिडक़ी का शीशा तोड़ कर किसी तरह मेरा हाथ वहां पहुंचा है. सारे दरवाजे बंद हैं. प्लीज, मेरे अब्बा तक खबर पहुंचा दें.”

इतना कह कर वह रोने लगी. मैं ने कहा, “मैं अकबर का दोस्त बोल रहा हूं. वह अभी घर पर नहीं है. आप यह बताएं कि आप बोल कहां से रही हैं?”

“यह मुझे नहीं मालूम. मुझे बेहोश कर के यहां लाया गया है. मुझे पता नहीं है.”

“तुम उसे पहचानती हो, जो तुम्हें वहां ले आया है?”

“नहीं, पर वह लंबातगड़ा आदमी है. पतलूनकमीज पहने है, हाथ में कड़ा भी है. वह मेरे कमरे की खिडक़ी से अंदर आया था. उस ने मेरे मुंह पर कोई चीज रखी और मैं बेहोश हो गई. प्लीज, कुछ कीजिए. शारिक या उस के अब्बा से बात करवा दीजिए.”

मैं ने कहा, “मिस नजमा, हम सब आप की तलाश में लगे हैं. लेकिन जब तक आप पता या जगह नहीं बताएंगी, हम कुछ नहीं कर सकते. खिडक़ी से देख कर कुछ अंदाजा नहीं लगता क्या?”

अब तक सभी फोन के पास आ कर खड़े हो गए थे और बात समझने की कोशिश कर रहे थे. मैं ने पूछा, “मिस नजमा, वह आदमी घर में है या कहीं बाहर गया है?”

“मुझे होश आया तो मैं ने गाड़ी स्टार्ट होने की आवाज सुनी. शायद वह कहीं बाहर गया है.”

मैं ने कहा, “मिस नजमा, फोन काट कर तुम टेलीफोन एक्सचैंज फोन करो. वे लोग पता लगा लेंगे कि तुम कहां से बोल रही हो. और इस के बाद एक्सचैंज का नंबर बता कर मैं ने फोन रख दिया. सभी जानने को बेचैन थे कि क्या हुआ. मैं ने उन्हें चुप रहने को कहा और एक्सचैंज फोन किया. सब की निगाहें फोन पर जमी थीं. एक्सचैंज वालों ने कहा, “जैसे ही नंबर ट्रेस होगा, पता बता देंगे.”

एकएक मिनट भारी पड़ रहा था. 15 मिनट बीत गए. घंटी नहीं बजी. मुझे ङ्क्षचता हो रही थी. इस के बाद एक्सचैंज से फोन आया कि उन्हें कहीं से कोई फोन नहीं किया गया. बात हो ही रही थी कि फोन आने का संकेत मिला. मैं ने फोन काट कर दोबारा फोन उठाया तो दूसरी ओर नजमा थी.

उस ने कहा कि वह एक्सचैंज फोन करने की कोशिश कर रही थी, पर कामयाब नहीं हुई, क्योंकि टेलीफोन करने के चक्कर में रिसीवर नीचे गिर गया. डायल में कोई खराबी आ गई है. वहां फोन नहीं लगा. बड़ी मुश्किल से न जाने कैसे आप को लग गया. वह रो रही थी और मिन्नतें कर रही थी कि उसे किसी तरह बचा लें, कहीं अगवा करने वाला आ न जाए.

हम कितने बेबस थे. एक मजबूर लडक़ी की फरियाद सुन रहे थे, पर उस के लिए कुछ कर नहीं पा रहे थे. वह बारबार कह रही थी, “अब फोन काटना मत, वरना दोबारा फोन नहीं मिल पाएगा.”

उसी बीच डीएसपी और एसपी साहब भी आ गए थे. याकूब अली का ड्राइंगरूम थाने का औफिस बन गया था. पूरी स्थिति जानने के बाद एसपी साहब ने कहा, “डीसी साहब का सख्त आदेश है कि किसी भी तरह जल्दी से जल्दी लडक़ी की तलाश की जाए.”

उसी समय नजमा के मांबाप भी दाखिल हुए. नजमा फोन पर थी. उस की आवाज सुन कर उस की मां जोरजोर से रोने लगी. तभी नजमा ने चीखते हुए कहा, “वह आ गया है, गाड़ी की आवाज आ रही है, वह किसी कमरे का दरवाजा खोल रहा है, उस के कदमों की आवाज साफ सुनाई दे रही है.”

मैं ने जल्दी से कहा, “मिस नजमा, हौसले से काम लो. मैं तुम से वादा करता हूं कि मैं तुम्हें जरूर बचाऊंगा.”

इसी के साथ मुझे दूर से गाडिय़ों और हौर्न की आवाजें आती सुनाई दीं. इस का मतलब वह घर किसी बड़ी सडक़ के किनारे था, जिस से बड़ी गाडिय़ां और ट्रक गुजरते थे. तभी उस की धीमी आवाज आई, “कोई दरवाजा खोल रहा है.”

मैं ने उस से कहा, “रिसीवर क्रेडिल के बजाय नीचे रख दो और खिडक़ी के टूटे शीशे के सामने खड़ी हो जाओ.”

उसी वक्त रिसीवर के नीचे गिरने की आवाज आई. शायद नजमा ने घबराहट में रिसीवर छोड़ दिया था. इस के बाद दरवाजा खुलने और किसी मर्द के कुछ कहने की आवाज आई. वह क्या कह रहा था, यह समझ में नहीं आ रहा था. इस के बाद दरवाजा बंद हुआ और बातें खत्म हो गईं. अब बस ट्रैफिक का शोर सुनाई दे रहा था.

एक तरकीब मेरे दिमाग में आई. मैं ने एसपी साहब से पूछा, “सर, आप की जीप में वायरलैस और रिसीवर है?”

उन्होंने कहा, “हां है.”

मैं ने भाग कर उन के ड्राइवर के पास जा कर कहा, “जल्दी से जीप का साइलैंसर निकाल दो.”

इस के बाद साहब से कहा, “मैं ने साइलैंसर निकलवा दिया है. मैं इस जीप से शहर की सडक़ों पर गुजरूंगा. आप अपना कान इस टेलीफोन से लगाए रखें. जब और जहां आप को हमारी जीप की आवाज सुनाई दे, आप वायरलैस से हमें खबर कर दें.”

बात डीएसपी साहब की समझ में आ गई. उन्होंने हैरत से मुझे देखा. एसपी साहब भी खुश और जोश में नजर आए. मैं कुछ बंदों के साथ फौरन जीप से रवाना हो गया. रात के साढ़े 10 बज रहे थे, पर सडक़ें जाग रही थीं. मैं ने वायरलैस चालू कर के एक सबइंसपेक्टर को पकड़ा कर बैठा दिया. मैं ने वे सडक़ें चुनी, जहां से भारी वाहन गुजरते थे. जीप तेजी से सडक़ों पर दौड़ रही थी. उस के शोर से लोग मुड़ कर देख रहे थे. आधा घंटे तक कुछ हासिल नहीं हुआ.

बार डांसर की बेवफाई – भाग 2

आसिफ जिस बीयर बार में कभीकभी बीयर पीने और डांस देखने जाता था, एक दिन अचानक उसी के डांस फ्लोर पर उस की नजर एक शोख चंचल हसीना से टकरा गईं. यह हसीना थी पूजा. वह उस डांसबार की सब से छोटी और सैक्सी बार डांसर थी. कच्ची उम्र की पूजा अपनी सुंदरता और नृत्यकला के बल पर डांसबार में आने वाले सभी ग्राहकों को अपनी ओर आकर्षित कर लेती थी. लेकिन उस के पास वही लोग जा पाते थे जिन की जेब में मोटी रकम होती थी.

पूजा भी पैसे वालों को ही भाव देती थी. ऐसी स्थिति में आसिफ की दाल कहां गलने वाली थी. वह छोटामोटा चोर था, उस के पास इतना पैसा नहीं होता था कि नोट दिखा कर पूजा का स्पर्श कर सके. आसिफ ने जब से पूजा को देखा था, उस का दीवाना हो गया था, पूजा उस के दिलोदिमाग पर छा गई थी. वह सोतेजागते पूजा के ही सपने देखने लगा था. इस बीच उस ने कई बार पूजा के करीब जाने की कोशिश भी की थी. लेकिन पूजा उसे भाव नहीं देती थी.

जब आसिफ को लगा कि बिना पैसे के कुछ नहीं हो सकता तो उस ने पूजा के करीब जाने का रास्ता ढूंढ निकाला. उस ने उसी डांसबार में वेटर की नौकरी कर ली. वेटर की नौकरी के दौरान उसे पूजा के पास जाने और उस से बातचीत करने का मौका मिलने लगा. कुछ दिन बाद उसे धक्का तब लगा जब पूजा उस डांसबार को छोड़ कर चली गई.

दरअसल पूजा ने डांसबार में नौकरी अपनी मां के दबाव में की थी. जब उसे वहां का माहौल ठीक नहीं लगा तो उस ने डांसबार की नौकरी छोड़ दी और एक कैटरर के यहां नौकरी करने लगी. जब यह बात आसिफ को पता चली तो उस ने भी डांसबार की नौकरी छोड़ दी.

थोड़ी कोशिश के बाद उसे भी उसी कैटरर के यहां काम मिल गया. इस तरह वह फिर से पूजा के पास आ गया. धीरेधीरे उस ने पूजा से नजदीकियां बनानी शुरू कर दीं. फलस्वरूप दोनों के बीच दुखदर्द की बातें होने लगीं. इसी के चलते जल्दी ही दोनों के बीच अच्छीभली दोस्ती हो गई. इस से आसिफ खूब खुश था.

आसिफ सोचता था कि जिस तरह पूजा ने उस की दोस्ती स्वीकार की है, उसी तरह एक दिन वह उस के प्यार को भी स्वीकार कर लेगी. उसे अपना सपना सच होता नजर आ रहा था. अब वह पूजा के साथ हंसीमजाक भी करने लगा था और उस की छोटीबड़ी हर बात का ध्यान भी रखता था. कैटरिंग के काम में रात को कभी देर हो जाती थी तो वह पूजा को उस के घर भी छोड़ने जाता था.

पहले तो पूजा ने आसिफ की तरफ ज्यादा ध्यान नहीं दिया, लेकिन जब उस ने अपने प्रति आसिफ का लगाव देखा, तो वह भी उस की तरफ झुकने लगी. फिर धीरेधीरे उस के दिल में भी प्यार के अंकुर फूटने लगे. वह आसिफ की बातों का जवाब उसी की तरह देने लगी.

अब जब भी आसिफ उसे छोड़ने उस के घर आता तो वह उसे घर के अंदर बुला लेती. उसे चायनाश्ता कराती और उस के साथ बैठ कर बातें करती. बातोंबातों में जब आसिफ को यह अहसास हुआ कि पूजा भी उसे चाहने लगी है, तो आसिफ ने उस के सामने शादी का प्रस्ताव रख दिया. बात जब शादी की आई तो पूजा ने अपने प्रेमी से कुछ भी छुपाना उचित नहीं समझा. उस ने आसिफ को अपने बारे में सब कुछ सचसच बता दिया.

पूजा के पिता का नाम हनुमंत यादव था और मां का मंदा यादव. आसिफ के पिता की तरह हनुमंत यादव भी एक आटो रिक्शा ड्राइवर था. वह अपनी पत्नी मंदा के साथ हर तरह से खुश था. लेकिन मंदा खुश नहीं थी. वह महत्त्वाकांक्षी महिला थी.   वह चाहती थी कि उस के पास खूब पैसा हो और वह खूब ऐश करे, घूमेफिरे, होटलों में जाए. लेकिन यह सब तभी संभव था जब घर की आर्थिक स्थिति अच्छी होती. आटो रिक्शा की कमाई से घर का खर्चा ही बड़ी मुश्किल से चलता था.

पूजा के जन्म के बाद खर्चा बढ़ने से जब घर की आर्थिक स्थिति और बिगड़ गई तो मंदा ने अपनी इच्छाओं को पूरी करने के लिए डांस बार में बतौर डांसर काम करने का फैसला किया. जहां पर हनुमंत यादव और मंदा रहते थे वहां आसपास कई बार डांसर रहती थीं. मंदा ने उन्हीं की मदद से बीयर बारों और आर्केस्ट्रा में नाचने का काम शुरू कर दिया.

एक तो मंदा खूबसूरत और गुदाज बदन वाली महिला थी, दूसरे उस ने अपनी पढ़ाई के दौरान डांस सीखा था, सो लोग उसे और उस के डांस को पसंद करने लगे. धीरेधीरे वह लोगों की पसंदीदा डांसर बन गई. मंदा जब डांस फ्लोर पर डांस करती थी तो अपनी अदाओं से मनचलों का मन मोह लेती थी. फलस्वरूप उस के ऊपर पैसों की बरसात होने लगी.

इस काम से मंदा भी खुश थी और उस के ग्राहक भी. लेकिन मंदा का पति हनुमंत यादव खुश नहीं था. वह मंदा को इस काम के लिए मना करता था. उस के मना करने के बावजूद मंदा नहीं मानती थी. मंदा के पास जब अच्छाभला पैसा आने लगा तो उस की पैसे की भूख बढ़ती गई. ज्यादा पैसा कमाने के चक्कर में मंदा ने नाचने के साथसाथ मनचलों के साथ बाहर जाना भी शुरू कर दिया. नतीजतन उस की देह महंगी ही सही, लेकिन दुकान बन कर रह गई.

जब यह बात हनुमंत यादव को पता चली तो उस ने मंदा पर पाबंदी लगानी शुरू कर दी. इस से मंदा और हनुमंत के बीच तकरार होने लगी. कुछ ही दिनों में यह तकरार इतनी बढ़ी कि दोनों में तलाक हो गया. तलाक के बाद मंदा ने हनुमंत यादव का घर छोड़ दिया. पूजा को वह अपने साथ ले आई थी. पति से अलग होने के बाद मंदा ने दूसरी शादी कर ली. दूसरे पति से मंदा एक बेटी और एक बेटे की मां बनी.

इस के बाद भी मंदा का स्वभाव और सोच वैसी की वैसी ही रही. वह अपनी मौजमस्ती में डूबी रहती थी. ऐसी हालत में रह कर पूजा ने किसी तरह अपनी पढ़ाई पूरी की. मंदा की उम्र ढलने लगी थी. अब उसे पहले जैसी आय भी नहीं होती थी. इसलिए उस की निगाहें जवान होती बेटी पर जमी थीं.

पूजा को हालांकि यह सब पसंद नहीं था, लेकिन मंदा ने उस के 16 साल की होते ही उसे डांसबार में भेज दिया. पूजा ने कई सालों तक डांस बारों में काम किया. पैसे के लिए वह मर्दों को लुभाती थी, लेकिन हर तरह के लालच देने के बावजूद वह किसी के साथ कहीं नहीं जाती थी.

पूजा ने अपनी जिंदगी की हकीकत आसिफ को बता दी. सुन कर आसिफ को अच्छा लगा. वह उस की बातों से इतना प्रभावित हुआ कि उस ने भी अपनी हकीकत उसे बता दी. साथ ही वादा भी किया कि अब वह अपनी पुरानी जिंदगी में कभी नहीं लौटेगा. हां दोनों ओर से थी, सो दोनों ने साथसाथ रहने का फैसला कर लिया.

पूजा ने अपनी मां का घर छोड़ दिया और आसिफ ने अपना. दोनों ने मुंबई स्थित साकी नाका की एक बस्ती में किराए का मकान ले लिया और लिव इन रिलेशनशिप में साथसाथ रहने लगे. पूजा और आसिफ के बीच एक ही रुकावट थी धर्म. लेकिन प्यार मजहब नहीं देखता. इस के लिए पूजा ने कह दिया कि उस के प्यार के लिए वह धर्म परिवर्तन भी कर लेगी. इस पर आसिफ ने कुछ धार्मिक औपचारिकताएं पूरी कर के उस का नाम अशरीफा रख दिया और उस से निकाह कर लिया. निकाह के बाद भी दोनों पूर्ववत प्यार से साथसाथ रहते रहे.