शशिकला उर्फ बेबी पाटणकर : ड्रग सामाज्य की मल्लिकाशार्ट स्टोरी – भाग 2

सौरव टूर्स एंड ट्रैवल्स के नाम से बेबी पाटणकर का एक चालू खाता था. मुंबई की वर्ली पुलिस ने 30 दिसंबर, 2014 को बेबी की बहू सारिका और उस के भतीजे को 24 ग्राम मेफेड्रोन के साथ गिरफ्तार करने के बाद इस खाते से लगभग 37 लाख रुपए जब्त किए थे. उस मामले में बेबी पाटणकर वांछित थी.

उन दिनों मुंबई क्राइम ब्रांच के एक अधिकारी ने कहा था, ‘यह स्पष्ट है कि बेबी के खातों में पाया गया पैसा ड्रग्स से कमाया गया है, क्योंकि चारपहिया वाहनों को किराए पर देने के धंधे से इतना मुनाफा कमाना संभव नहीं है.’

बेबी पाटणकर मुंबई वर्ली के सिद्धार्थ नगर झुग्गियों में 4 कमरों के घर में बेटों सतीश और गिरीश, बहुओं और पोतेपोतियों के साथ रहती थी. उस के 5 भाई हैं- अर्जुन, किशन, भरत, वसंत और शत्रुघ्न उर्फ बादशाह पीर खान. जबकि भरत और वसंत अब नहीं रहे, किशन कल्याण जेल में एक हत्या के मामले में बंद है जिस के लिए अर्जुन और शत्रुघ्न ने जेल की सजा काट ली है.

मुंबई के तत्कालीन पुलिस उपायुक्त (क्राइम ब्रांच) धनंजय कुलकर्णी ने कहा कि बेबी पाटणकर के धर्मराज  कालोखे के साथ नाजायज रिश्ते  थे, लेकिन पिछले कुछ महीनों से (उन दिनों) उन के संबंधों में खटास आ गई थी.

मुंबई नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो यानी एनसीबी ने सुशांत सिंह राजपूत केस में रिया चक्रवर्ती को गिरफ्तार किया, उसी का डीआईजी साजी मोहन कभी ड्रग्स का बड़ा कारोबारी था. अभी वह 12 साल से जेल की सजा काट रहा है. और जिस मुंबई पुलिस ने कंगना रनौत के कथित ड्रग कनेक्शन की जांच शुरू की है, उस का ट्रैक रिकौर्ड समझना हो तो हमें बेबी पाटणकर के बारे में जानना होगा.

5 साल पहले जब बेबी पकड़ी गई तो उस केस में पहले ही कई पुलिस वाले पकड़े जा चुके थे. कई अफसरों की नौकरी से छुट्टी हो गई थी. यह देश का शायद पहला मामला था, जब पुलिस स्टेशन में बने लौकर से ड्रग्स बरामद की गई थी. बेबी के दोस्त और कांस्टेबल धर्मराज कालोखे ने इसे अपने लौकर में रखा था.

बेबी यानी शशिकला पाटणकर का बचपन मुंबई के वर्ली, कोलीवाडा में बीता. इस इलाके में मारिया नाम का एक चर्चित गुंडा रहता था. किसी बात पर बेबी के भाइयों का उस से झगड़ा हुआ और उन्होंने मारिया का कत्ल कर दिया. इस केस में चारों भाइयों को जेल हो गई.

भाइयों की गिरफ्तारी के 2 महीने के अंतराल में बेबी की मां केशरबाई और पिता पांडुरंग माझगांवकर की मौत हो गई.

तब बेबी 6 साल की थी. ऐसी हालत में उस ने घरघर जा कर काम करना शुरू कर दिया, जबकि उस के एक और भाई अर्जुन ने किसी गैराज में नौकरी कर ली. मारिया के मर्डर में अर्जुन गिरफ्तार नहीं हुआ था. दोनों की रोजमर्रा का जीवनबसर बस किसी तरह चल रहा था.

15 साल की उम्र में बेबी की शादी वर्ली कोलीवाडा के ही रमेश पाटणकर से हो गई. वह शराबी था. लेकिन 1991 में रमेश को दिल का दौरा पड़ा जिस से उस की मौत हो गई. इस के बाद बेबी ने 5 साल तक मुंबई की मशहूर साधना मिल में काम किया. बाद में वह मिल भी बंद हो गई.

अयूब से सीखा ड्रग्स का धंधा

बेबी फिर से घरों में काम करने लगी. इसी बीच उस के भाइयों की मारिया मर्डर केस में सजा पूरी हो गई और वे जेल से छूट कर वापस आ गए. इस के बाद उस के एक भाई भरत ने अच्छा जीवन जीने का फैसला कर अपने इलाके की ही भारती से शादी कर ली और वर्ली के सिद्धार्थनगर इलाके में रहने लगा. तब बेबी भी उस के बगल वाले घर में रहने लगी. भरत और भारती के घर में भारती का भाई बल्लू भी रहता था, जो ड्रग्स ले कर नशे का आदी हो चुका था. वह पड़ोसी अयूब से ड्रग खरीदता था.

साल 1996 में जब एक दिन बेबी अपने भाई के घर पर थी, तब उस के घर में चोरी हो गई. इस की उस ने वर्ली थाने में एफआईआर दर्ज करवाई. कुछ देर बाद उस के घर वर्ली पुलिस थाने  की टीम पहुंची. इस में कांस्टेबल धर्मराज कालोखे भी था. चोरी के बहाने बेबी के घर हुई मुलाकात में धर्मराज की बेबी से हद से कुछ ज्यादा नजदीकियां बढ़ीं.

बेबी भी अयूब के साथ ड्रग बेचने लगी. तब बल्लू को भी ड्रग्स की अपनी तलब पूरी करने में किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं हुई. अयूब को जब मुंबई से बाहर जाना होता था तो वह ड्रग्स बेबी के घर में रख देता था. तब बेबी ही उसे बेचती थी.

अयूब की साल 1997 में ब्लड प्रेशर बढ़ने से मौत हो गई. अयूब का बचा माल बेबी ने बेचा और फिर उस की मां से यह पता किया कि वह ड्रग्स कहां से मंगाता था.

इस के बाद बेबी अपनी भाभी भारती और उस के भाई बल्लू के साथ वर्ली में ड्रग्स का धंधा करने लगी. वर्ली पुलिस स्टेशन के नजदीक एंटी नार्कोटिक्स सेल की यूनिट भी है. जब वहां के कुछ सिपाहियों को बेबी के कारोबार का पता चला तो उन्होंने बेबी से अपना हफ्ता तय कर लिया.

पुलिस वालों और बेबी के रिश्तों का यह मामला कई सालों तक छिपा रहा. पर 9 मार्च, 2015 को महाराष्ट्र के सातारा पुलिस ने खंडाला में मुंबई के मरीन लाइंस के पुलिसकर्मी धर्मराज कालोखे के ठिकाने पर छापा मारा तो वहां से 110 किलोग्राम ड्रग मिली.

अगले दिन धर्मराज के मरीन लाइंस पुलिस स्टेशन में उस के लौकर से भी 12 किलोग्राम ड्रग्स बरामद हुई तब धर्मराज कालोखे धरा गया, लेकिन पुलिस स्टेशन के अंदर ड्रग्स मिलने से पूरे देश में हंगामा मच गया.

उस तहकीकात में धर्मराज ने बेबी पाटणकर का नाम लिया, लेकिन कई दिन तक बेबी किसी को मिली नहीं. हां, बेबी की फोन मीडिया में आने पर सब उसे पहचान जरूर गए थे.

पप्पू स्मार्ट : मोची से बना खौफनाक गैंगस्टर – भाग 2

गिरोह बनाने के बाद पप्पू स्मार्ट एवं उस के भाइयों ने जाजमऊ, हरजेंद्र नगर, कानपुर देहात व अन्य क्षेत्रों में दरजनों की संख्या में अवैध संपत्तियों पर कब्जा कर बड़ा कारोबार खड़ा कर लिया और अकूत संपदा अर्जित कर ली.

पप्पू स्मार्ट गिरोह के सदस्य जमीन कब्जाने के लिए पहले मानमनौती करते. न मानने पर जान से मारने की धमकी देते फिर भी न माने तो मौत के घाट उतार देते. पप्पू रंगदारी भी वसूलता था तथा धोखाधड़ी भी करता था. आपराधिक गतिविधियों से उस ने करोड़ों की संपत्ति अर्जित कर ली थी. इस तरह वह जरायम का बादशाह बन गया था.

बेच डाला राजा ययाति का किला

पप्पू स्मार्ट व उस का गिरोह आम लोगों को ही प्रताडि़त नहीं करता था, बल्कि सरकारी संपत्तियों पर भी कब्जा करता था. तमाम सरकारी संपत्तियों को उस ने धोेखाधड़ी कर बेच दिया था. इसलिए उसे भूमाफिया भी घोषित कर दिया गया था.

पप्पू स्मार्ट ने सब से बड़ा कारनामा किया राजा ययाति के किले पर कब्जा करने का. दरअसल, जाजमऊ क्षेत्र में गंगा किनारे महाभारत कालीन राजा ययाति का किला है जो खंडहर में तब्दील हो गया है.

यह किला राज्य पुरातत्त्व विभाग की संपत्ति है. इस की देखरेख कानपुर विकास प्राधिकरण करता है. लेकिन इस किले को अपना बता कर पप्पू स्मार्ट ने कब्जा कर लिया और एक बड़े भूभाग को बेच कर बस्ती बसा दी.

एडवोेकेट संदीप शुक्ला की शिकायत पर आईजी आलोक सिंह एवं तत्कालीन एसपी अनुराग आर्य ने पप्पू स्मार्ट के खिलाफ चकेरी थाने में मुकदमा दर्ज कराया और गैंगस्टर एक्ट के तहत काररवाई की तथा उस की तमाम संपत्तियों को सीज भी किया.

राजनीतिक संरक्षण भी आया काम

पप्पू स्मार्ट जानता था कि पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों पर रौब गांठना है तो राजनीतिक चोला ओढ़ना जरूरी है, अत: उस ने सोचीसमझी रणनीति के तहत समाजवादी पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली और पार्टी का सदस्य बन गया.

सपा के जनप्रतिनिधियों से उस ने दोस्ती कर ली और उन का खास बन गया. सपा शासन काल में उस की तूती बोलने लगी. पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों में उस ने पैठ बना ली. अपने रौब के बल पर ही पप्पू स्मार्ट ने एक डबल बैरल बंदूक व एक रिवौल्वर का लाइसेंस हासिल कर लिया.

यही नहीं, उस ने अपने भाइयों तौफीक उर्फ कक्कू व आमिर उर्फ बिच्छू को भी रिवौल्वर का लाइसेंस दिलवा दिया.

हालांकि चकेरी थाने में पुलिस ने तीनों भाइयों की हिस्ट्रीशीट खोल रखी थी. उन की हिस्ट्रीशीट में बताया गया था कि गिरोह के खिलाफ हत्या, हत्या का प्रयास, जबरन वसूली, मारपीट, जान से मारने की धमकी, जमीनों पर कब्जे, गुंडा एक्ट तथा गैंगस्टर एक्ट के मामले दर्ज है.

पप्पू स्मार्ट का घनिष्ठ संबंध कुख्यात अपराधी वसीम उर्फ बंटा से था. वह फरजी आधार कार्ड व अन्य कागजात तैयार करता था. पप्पू स्मार्ट भी उस से कागजात तैयार करवाता था. उस के फरजी कागजातों से लोग पासपोर्ट बनवा कर विदेश तक का सफर करते थे. यूपी एसटीएफ की वह रडार पर था.

काफी मशक्कत के बाद एसटीएफ कानपुर इकाई ने उसे रेलबाजार के अन्नपूर्णा गेस्टहाउस से धर दबोचा. उस के साथ उस का भाई नईम भी पकड़ा गया. उस के पास से भारी मात्रा में सामान बरामद हुआ. सऊदी अरब मुद्रा रियाल तथा 6780 रुपए बरामद हुए.

एसटीएफ ने उसे जेल भेज दिया, तब से वह जेल में है. इस मामले में पप्पू स्मार्ट का नाम भी आया था. लेकिन राजनीतिक पहुंच के चलते वह बच गया.

बसपा नेता और हिस्ट्रीशीटर पिंटू सेंगर से हुई दोस्ती

पप्पू स्मार्ट का एक जिगरी दोस्त था नरेंद्र सिंह उर्फ पिंटू सेंगर. वह मूलरूप से कानपुर देहात जनपद  के गोगूमऊ गांव का रहने वाला था. लेकिन पिंटू सेंगर अपने परिवार के साथ कानपुर के चकेरी क्षेत्र के मंगला बिहार में रहता था.

वह बसपा नेता, भूमाफिया व हिस्ट्रीशीटर था. उस के पिता सोने सिंह गोगूमऊ गांव के प्रधान थे और मां शांति देवी गजनेर की कटेठी से जिला पंचायत सदस्य थी.

पिंटू सेंगर जनता के बीच तब चर्चा में आया, जब उस ने पूर्व मुख्यमंत्री व बसपा सुप्रीमो मायावती को उन के जन्मदिन पर उपहार स्वरूप चांद पर जमीन देने की पेशकश की थी.

कानपुर की छावनी सीट से उस ने बसपा के टिकट पर विधानसभा का चुनाव भी लड़ा लेकिन हार गया था. बसपा शासन काल में उस की तूती बोलती थी. वह अपनी हैसियत विधायक से कम नहीं आंकता था.

राजनीतिक संरक्षण के चलते ही पिंटू सेंगर ने जमीन कब्जा कर करोड़ों रुपया कमाया. उस के खिलाफ चकेरी थाने में कई मुकदमे दर्ज हुए और उस का नाम भूमाफिया की सूची में भी दर्ज हुआ.

चूंकि पिंटू सेंगर व पप्पू स्मार्ट एक ही थैली के चट्टेबट्टे थे. दोनों ही भूमाफिया और हिस्ट्रीशीटर थे, अत: दोनों में खूब पटती थी. जमीन हथियाने में दोनों एकदूसरे का साथ देते थे. जबरन वसूली, रंगदारी में भी वे साथ रहते थे.

पप्पू स्मार्ट को सपा का संरक्षण प्राप्त था, जबकि पिंटू सेंगर को बसपा का. दोनों अपनी अपनी पार्टी के कार्यक्रमों में हिस्सा ले कर अपनी उपस्थिति दर्ज कराते थे.

लेकिन एक दिन यह दोस्ती जमीन के एक टुकड़े को ले कर कट्टर दुश्मनी में बदल गई. दरअसल, रूमा में नितेश कनौजिया की 5 बीघा जमीन थी. यह जमीन नितेश ने जाजमऊ के प्रौपर्टी डीलर मनोज गुप्ता को बेच दी.

इस की जानकारी पिंटू सेंगर को हुई तो उस ने नितेश को धमकाया और पुन: जमीन बेचने की बात कही. दबाव में आ कर बाद में नितेश ने वह जमीन एक अनुसूचित जाति के व्यक्ति के नाम कर दी.

सुभाष सिंह ठाकुर उर्फ बाबा : अंडरवर्ल्ड डौन का भी महागुरु – भाग 2

सुभाष कुछ ही महीनों में मायानगरी के बारे में समझ गया था कि अगर यहां रहना है तो दब कर नहीं, बल्कि लोगों को दबा कर रहना होगा. मुंबई में यूं तो बड़ी संख्या में पूर्वांचल के लोग रहते थे, लेकिन उन का कोई माईबाप नहीं था. पूर्वांचल के कुछ लोग दबंगई भी करते थे, लेकिन मजबूरी में उन्हें भी लोकल मराठी गुंडों के लिए ही काम करना होता था.

सुभाष के पास ताकत भी थी और हिम्मत भी और साथ में लीडरशिप वाले गुण भी थे. इसलिए उस ने आए दिन होने वाले पुलिस के उत्पीड़न से बचने के लिए पूर्वांचल के ऐसे नौजवान लड़कों का गुट बनाना शुरू कर दिया, जो दिलेर थे और उन के सपने बडे़ थे.

सुभाष की मेहनत रंग लाई. उस ने 20-25 ऐसे नौजवानों का गुट बना लिया जो उस के एक इशारे पर कुछ भी करने को तैयार थे. इस के बाद सुभाष ने पहले वसई और विरार इलाके में सक्रिय मराठी गुंडों के खिलाफ लड़ना शुरू किया, जो लोकल मार्केट में उगाही करते थे. सुभाष ठाकुर ने उन दुकानदारों से पहले हफ्ता वसूली शुरू की, जिन से पहले मराठी गुंडे वसूली करते थे.

मुंबई उन दिनों तेजी से आबाद हो रही थी. बड़ीबड़ी इमारतें बन रही थीं. बिल्डिंग बनाने और प्रौपर्टी के धंधे में बड़ा मुनाफा था. लेकिन जमीन से जुड़े विवाद के कारण बिल्डरों को सब से ज्यादा नेता, पुलिस और गुंडों की मदद लेनी पड़ती थी.

सुभाष ठाकुर ने वसूली की रकम से होने वाली कमाई से कुछ हथियार खरीद कर अपने लड़कों को दिए, जिस के बूते वे बिल्डरों के पास जा कर प्रोटेक्शन मनी की मांग करने लगे. एकडेढ़ साल के बाद ही पूरे वसई और विरार में सुभाष ठाकुर को ठाकुरजी के नाम से पुकारा जाने लगा. वह महंगी गाडि़यों में घूमने लगा. और कई दरजन पूर्वांचल के नौजवान उस के गिरोह में शामिल हो गए.

सुभाष ठाकुर बिल्डरों से सहीसलामत बिना रुकावट काम करने के बदले मोटी रकम वसूल करने लगा. दूसरा गुट कोई परेशानी पैदा न करे, इस की वो गारंटी देता था. जमीन से जुड़ा कोई भी लफड़ा हो, ठाकुर गिरोह बिल्डरों की तमाम परेशानियां दूर करने लगा.

देखते ही देखते अस्सी का दशक पूरा होतेहोते सुभाष ठाकुर पूरे मुंबई शहर का एक ऐसा नाम बन गया, जिस के कारनामों से उन दिनों के मुंबई के डौन हाजी मस्तान, वरदाराज और करीम लाला भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके.

ये वो दौर था, जब मुंबई में 2 नाम अपराध की दुनिया में तेजी के साथ उभर रहे थे और वे दोनों बड़ा गैंगस्टर बनने के लिए अपने हाथपांव मार रहे थे. इन में एक था मुंबई पुलिस की क्राइम ब्रांच के एक कांस्टेबल का बेटा दाऊद इब्राहिम कासकर और दूसरा था सदाशिव निखलजे यानी छोटा राजन.

ये दोनों ही इलाकाई मराठी दंबगों के लिए छोटेमोटे अपराध करते थे. लेकिन उन्हें लगा कि बड़ा काम करना है और संगठित तरीके से अपराध करना है तो सुभाष ठाकुर का साथ मिलना जरूरी है. लिहाजा उन दोनों ने ही सुभाष ठाकुर का दामन थाम लिया.

सुभाष ठाकुर को भी भरोसे के कुछ ऐसे लोगों की जरूरत थी, जो लोकल मराठी हों. लिहाजा सुभाष ने दोनों को अपने गैंग में जगह दे दी. तीनों के अपनेअपने काम थे. कोई किसी के काम में हस्तक्षेप नहीं करता था. जरूरत होती तो तीनों एक साथ हो जाते. इसी तालमेल के कारण जल्द ही तीनों के संबध गहरे हो गए.

दाऊद ने बनाया सुभाष ठाकुर को गुरु

जुर्म की काली दुनिया में सुभाष ठाकुर का नाम तेजी से मशहूर हो रहा था. उस के नाम की दहशत भी मुंबई में नजर आने लगी थी. बाबा का नाम मुंबई अंडरवर्ल्ड में छाने लगा था. वह वहां के बिल्डरों और बड़े कारोबारियों पर शिकंजा कसता जा रहा था. एक वक्त था जब उस का कारोबार यूपी से ले कर मुंबई तक फैला हुआ था.

वैसे तो दाऊद का असल काम सोने और विदेशों से आने वाले दूसरे सामानों की स्मगलिंग का था. लेकिन हत्या, अपहरण व बिल्डरों, फाइनैंसरों से वसूली करने के गुर उस ने सुभाष ठाकुर के गैंग में शामिल होने के बाद सीखे थे. इस के बाद ही वह मुंबई का डौन बना था.

नब्बे का दशक आतेआते सुभाष ठाकुर से मिली ताकत के बल पर दाऊद इब्राहिम इतना ताकतवर हो गया और उस के खाते में इतने बड़ेबड़े गुनाह दर्ज हो गए कि पुलिस एनकाउंटर के डर से उसे मुंबई छोड़ कर दुबई में शरण लेनी पड़ी.

लेकिन तब तक मुंबई में उस ने अपराध का साम्राज्य इतना विकसित कर लिया था कि यहां का धंधा देखने के लिए उस ने छोटा राजन को कमान सौंप दी. छोटा राजन और दाऊद भले ही बड़े डौन बन चुके थे, लेकिन सुभाष ठाकुर उन के लिए तब भी बड़े भाई जैसा ही था.

उन दिनों मुंबई में एक दूसरा डौन भी तेजी से उभर रहा था. दगड़ी चाल में रहने वाला अरुण गवली उन दिनों लोकल मराठी गुंडों का तेजी से उभरता हुआ बौस था.

यूं तो मुंबई अपराध जगत में उन दिनों कई गैंगस्टर सक्रिय थे, लेकिन गवली और दाऊद का जिक्र करना इसलिए जरूरी है कि गवली जहां लोकल मराठी लोगों का गैंग चलाने वाले हिंदू डौन था तो दाऊद के गैंग में उन दिनों ज्यादातर मुसलिम और पठान जाति के गुंडों की भरमार थी. इसीलिए दाऊद के गिरोह से अकसर गवली गिरोह की टकराहट होती रहती थी.

लेकिन बाद के दिनों में जब दाऊद दुबई चला गया तो ये टकराहट दुश्मनी में बदल गई. इस दुश्मनी के बीच अरुण गवली के भाई पापा गवली की उस के दुश्मन ने हत्या कर दी.

आरोप लगा कि गवली के भाई को दाऊद ने मरवाया है. बस फिर क्या था, अरुण गवली ने अपने भाई पापा गवली की हत्या का बदला लेने के लिए दाऊद की कमर तोड़ने की कसम खा ली. उस ने अपने 4 शूटरों को इस काम पर लगा दिया. जिन्हें टारगेट दिया गया था दाऊद के बहनोई इब्राहिम पारकर को खत्म करने का.

मौके का इंतजार किया जाने लगा. आखिरकार 20 साल पहले 26 जुलाई, 1992 को नागपाड़ा में गैंगस्टर अरुण गवली के 4 शूटरों ने दाऊद इब्राहिम के बहनोई इब्राहिम पारकर की हत्या कर दी थी. इस हत्याकांड ने दाऊद को झकझोर कर रख दिया था क्योंकि दाऊद की बहन हसीना उस की सब से करीबी मानी जाती थी.

इब्राहिम पारकर की हत्या को गवली के 5 शूटरों शैलेश हलदनकर, बिपिन शेरे, राजू बटाटा, संतोष पाटील और दयानंद पुजारी ने अंजाम दिया था. जो वारदात के बाद मौके से फरार हो गए थे.

दाऊद अपने बहनोई के कत्ल को भूला नहीं और उस ने इब्राहिम की हत्या में शामिल शूटरों को सबक सिखाने का फैसला किया. पुलिस तब तक एक हत्यारे दयानंद पुजारी को गिरफ्तार कर जेल भेज चुकी थी.

छोटा राजन ने संभाला दाऊद का कारोबार

करीब एक महीने बाद इन में से 2, शैलेश हलदनकर और विपिन शेरे किसी विवाद में पब्लिक के हाथ लग गए. लोगों ने इन्हें मारा. जिस से वे घायल हो गए. पुलिस ने उन्हें इलाज के लिए जेजे अस्पताल में भरती करा दिया था.

दाऊद के दुबई में शिफ्ट होने के बाद छोटा राजन के साथ उस का बहनोई इब्राहिम पारकर मुंबई में दाऊद का कारोबार देखता था. बहनोई की मौत धंधे के साथ पारिवारिक रूप से भी दाऊद के लिए बड़ा झटका थी.

पति की मौत के बाद हसीना पारकर ने मुंबई में उस का कारोबार संभाल लिया. जल्द ही मुंबई के अपराध जगत में उस के नाम का भी सिक्का चलने लगा.

जैसे ही दाऊद को इब्राहिम के कातिलों के जेजे अस्पताल में भरती होने की सूचना मिली, उस ने उसी वक्त दोनों कातिलों को सबक सिखाने का फैसला कर लिया. क्योंकि दाऊद को पता था कि अगर उस ने कातिलों पर वार नहीं किया तो मुंबई में उस के अपराध का साम्राज्य छिन्नभिन्न हो जाएगा.

लिहाजा दाऊद ने मुंबई में अपने सेनापति छोटा राजन से कहा कि गवली के दोनों शूटरों को पुलिस कस्टडी में ही अस्पताल में खत्म करना है.

काम थोड़ा मुश्किल जरूर था लेकिन नामुमकिन नहीं. क्योंकि राजन जानता था जब तक भाई सुभाष ठाकुर का साथ उस के साथ है, तब तक कोई काम नामुमकिन नहीं. लिहाजा उस ने सुभाष ठाकुर से दाऊद के बहनोई की हत्या का बदला लेने के लिए बात की और अपना साथ देने के लिए तैयार भी कर लिया.

संयोग से अरुण गवली से सुभाष ठाकुर के संबंध भी ठीक नहीं थे, लिहाजा ठाकुर ने राजन को साथ देने का वायदा कर दिया. ये उन दिनों की बात है जब यूपी का रहने वाला बृजेश सिंह हत्या की कुछ वारदातों को अंजाम देने के बाद पुलिस के डर से मुंबई भाग गया था और सुभाष ठाकुर की शरण में रह कर छोटेमोटे अपराध कर रहा था.

छोटा राजन ने मांगा सुभाष ठाकुर से सहयोग

छोटा राजन के अनुरोध पर सुभाष ठाकुर ने गवली के दोनों शूटरों को अस्पताल में खत्म करने की जो प्लानिंग तैयार की, वो एकदम फिल्मी पटकथा जैसी थी.

अगर यह कहें तो गलत न होगा कि मुंबई अंडरवर्ल्ड में दाऊद के इशारे पर गवली गिरोह के शूटरों की पुलिस हिरासत में की गई हत्या अंडरवर्ल्ड में पहली गैंगवार थी, जिस के बाद मुंबई की सड़कों पर गिरोहबाजी का ऐसा सिलसिला शुरू हुआ था, जिस के दौरान मुंबई की सड़कें खून से लाल हो गई थीं.

अब्दुल रज्जाक : दूधिया से बना गैंगस्टर – भाग 2

शहर में रज्जाक की दहशत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जुलाई 2020 में न्यू आनंद नगर, हनुमानताल निवासी मोहम्मद शब्बीर ने अब्दुल रज्जाक की आपराधिक गतिविधियों और अनैतिक कार्य से बनाई गई संपत्ति के बारे में लिखित शिकायत की थी.

आरोपी रज्जाक, उस के बेटे सरताज ने शिकायतकर्ता पर बयान बदलने का दबाव बनाया. अक्तूबर 2020 में शब्बीर ने फिर से शिकायत की तो बापबेटे ने ऐसा धमकाया कि वह आज तक अपना बयान नहीं दर्ज करा पाया.

रज्जाक की दहशत और खौफ के चलते इलाके के लोग डरते थे. आरोपी पर 14 मार्च, 2012 को एनएसए की काररवाई हुई थी. बावजूद उस की आदतों में कोई सुधार नहीं हुआ. उस के कृत्य और आपराधिक वारदात को देखते हुए एसपी सिद्धार्थ बहुगुणा के प्रतिवेदन पर जिला दंडाधिकारी कर्मवीर शर्मा ने 3 महीने के लिए एनएसए में निरुद्ध करने का आदेश जारी करते हुए वारंट जारी किया.

अकसर दोनों गैंगों में होती थी गैंगवार

दोनों गैंगों के बीच रंजिश इस कदर थी कि एकदूसरे को गैंग के लोग फूटी आंख भी नहीं सुहाते थे. इसी रंजिश का नतीजा  7 अप्रैल, 2004 को जबलपुर के कपूर क्रौसिंग के पास देखने को मिला था. उस दिन मंडला में रेत खदान की नीलामी थी.

रज्जाक और महबूब अली दोनों गैंग के लोग नीलामी में बढ़चढ़ कर बोली लगा रहे थे. हथियारों से लैस दोनों गैंग के लोग वहां मौजूद थे. आखिरकार रेत खदान का ठेका महबूब अली के भाई रहमान को मिल गया था.

रहमान मंडला से रेत नाका का टेंडर ले कर कार से जबलपुर लौट रहा था. मौका पा कर रज्जाक के बेटे सरफराज और गैंग में शामिल मजीद करिया और अब्बास ने अन्य साथियों के साथ मिल कर रहमान अली की कार पर फायरिंग कर दी.

फायरिंग में रहमान अली तो बच निकला, मगर कार में सवार रहमान के दोस्त रजनीश सक्सेना की मौत हो गई. इस के अलावा बबलू खान और चमन कोरी को गंभीर चोटें आई थीं.

इस प्रकरण में भी गोरखपुर थाने में रहमान अली की शिकायत पर हत्या, हत्या के प्रयास का मामला रज्जाक, उस के बेटे सरफराज आदि के खिलाफ दर्ज हुआ था. रज्जाक शातिर बदमाश था, यही वजह थी कि कपूर क्रौसिंग पर हुई  रजनीश सक्सेना की हत्या के प्रकरण की जांच में रहमान अली का दावा पलट गया था.

रज्जाक ने अपने रसूख के दम पर जांच में यह साबित कर दिया कि रहमान अली ने अपने साथियों के साथ मिल कर ही रजनीश की हत्या की थी और सरफराज को उस के दोस्तों के साथ फंसाने की साजिश रची गई थी. इस मामले में गोरखपुर पुलिस ने उलटे रहमान अली व अन्य को गिरफ्तार कर जेल भेजा था.

अब्दुल रज्जाक के जुर्म की डायरी में अपराध के तमाम पन्ने दर्ज हैं. अब्दुल रज्जाक इस के बाद जमीन कब्जाने, जमीन खाली कराने से ले कर धमकी दे कर पैसे वसूलने सहित कई तरह के अपराध करने लगा था.

उस की दहशत इस तरह कायम हुई कि कई राजनीतिक दल से जुड़े लोग भी उस से अपने राजनीतिक विरोधियों को ठिकाने लगाने या फिर धमकाने के लिए उस का इस्तेमाल करने लगे.

रज्जाक पर पहले बीजेपी के कुछ कद्दावर नेताओं का वरदहस्त रहा था, बाद में वह कांग्रेस नेताओं का भी खास बन गया था.

अब्दुल रज्जाक जबलपुर शहर का नामी डौन बन चुका था. 2006 में रज्जाक ने गोहलपुर निवासी मोहम्मद अकरम के घर में घुस कर जान से मारने की धमकी दी थी. अकरम ने जब इस की शिकायत पुलिस थाने में दर्ज की और अदालत में मुकदमा चला तो आरोपी ने गवाहों को धमका कर अपने पक्ष में कर लिया था.

बाप सेर तो बेटा सवा सेर

जुर्म की स्याह राहों पर अकेला रज्जाक ही नहीं, उस के बेटे भी उस के साथ कदमताल कर रहे थे. अब्दुल रज्जाक के 3 बेटों में सरफराज और सरताज जुर्म की दुनिया के बेताज बादशाह हैं, उन्हें इस मुकाम पर पहुंचाने में रज्जाक का बड़ा हाथ है.

कुछ साल पहले 2007 में रज्जाक के बेटे सरताज ने जेल में कुरान फाड़े जाने की अफवाह फैला कर शहर में दंगे कराने का भी प्रयास किया था. इस मामले में कई थानों में उस के खिलाफ मामले दर्ज हुए थे. आरोपी सरताज के खिलाफ कानूनी काररवाई हुई तो वह 5 साल तक फरार रहने में सफल रहा. इस के बाद वह गिरफ्तार हो पाया.

2009 में रज्जाक ने बरेला निवासी सुमन पटेल की जमीन कब्जा करने का प्रयास किया था. विरोध करने पर उस के घर में घुस कर गुर्गों से धमकी दिलवाई थी.

जबलपुर शहर के पुलिस थानों में रज्जाक के खिलाफ लगातार बढ़ रहे मुकदमों की संख्या को देखते हुए कलेक्टर ने 16 मार्च, 2012 को उस के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत काररवाई करते हुए उसे जबलपुर जेल भेज दिया.

इस के दूसरे दिन 17 मार्च, 2012 को रज्जाक के बेटे सरताज को नरसिंहपुर जिले के गांव रांकई पिपरिया से गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया.

जबलपुर जेल में बापबेटे के एक साथ रहने से जेल में भी गैंगवार की आशंका बढ़ गई थी, जिसे देखते हुए जेल के अधिकारियों ने रज्जाक को ग्वालियर और उस के बेटे सरताज को सागर सेंट्रल जेल शिफ्ट कर दिया था.

रज्जाक की बेनामी संपत्ति

अब्दुल रज्जाक ने कई बेनामी संपत्ति अपने करीबियों और 100 से अधिक शेल कंपनियों के नाम पर बनाई है. रज्जाक ने सीधी में ग्रेनाइट का 800 हेक्टेयर में खनन का पट्टा ले रखा था. अनूपपुर शहडोल में भी उस के ग्रेनाइट व आयरन  के 16 पट्टे हैं.

बैतूल, शहगढ़ सागर, कटनी छपरा, स्लिमनाबाद, बहोरीबंद, सिहोरा, नरसिंहपुर, देवास, छतरपुर में बड़े पैमाने पर लीज ले रखी है, पिछले 12 सालों में 165 खनिज पट्टे करवा कर खुद अपने बेटों के साथ मिल कर खनन का कारोबार कर रहा है. माइनिंग से ही करोड़ों रुपए की कमाई रज्जाक को हर महीने होती है.

रज्जाक के मुंबई, गोवा, हैदराबाद समेत देश के कई दूसरे शहरों में कारोबार हैं. रज्जाक के विरार मुंबई के भाई ठाकुर और वहीं के राजूभाई से कारोबारी रिश्ते हैं. राजू विरार और भाई ठाकुर के बारे में कहा जाता है कि दोनों दाऊद इब्राहिम की डी कंपनी से जुड़े हैं.

रज्जाक जबलपुर, सिहोरा, कटनी, नरसिंहपुर जिले में पिछले 10 सालों में 6000 एकड़ जमीन का मालिक बन बैठा है.

पुलिस को मिली रज्जाक की काल डिटेल्स में इस बात का खुलासा हुआ है कि रज्जाक पाकिस्तान, बांग्लादेश, दुबई में बैठे अपने आकाओं से बात करता था.

रज्जाक के बारे में कहा जाता है कि वह काली कमाई से होने वाली आमदनी अपने पास नहीं रखता था. वह इतना शातिर है कि अपना सारा पैसा चश्मे के व्यापार से जुड़े एक राजनीतिक दल के प्रवक्ता के घरों में रखता था. इसी तरह नया मोहल्ला, बड़ी ओमती, रद्दी चौकी व आनंद नगर के कई घरों में इस के पैसे रखे जाते थे.

पुलिस सूत्रों के हवाले से मिली जानकारी में यह बात भी पता चली है कि वह 80 से 100 करोड़ तो इन लोगों के पास हर वक्त कैश रखता था. हिस्ट्रीशीटर अब्दुल रज्जाक के काले कारनामे एकएक कर सामने आने के बाद पुलिस की जांच में यह बात सामने आई है कि अपनी काली करतूत छिपाने के लिए पत्नी के नाम से कारोबार करता है. अधिकतर संपत्ति और कारोबार पत्नी सुबीना बेगम के नाम पर है.

2 कलेक्टरों की बरसती थी इस पर कृपा

रज्जाक ने उत्तर प्रदेश के बांदा के हथियार तस्कर उमर कट्टा से बड़े पैमाने पर अवैध हथियारों की खरीदी की है. उस ने अवैध तरीके से खरीदे इन हथियारों को अपने गांव रांकई, लिंगा पिपरिया, सर्रापीपर से लगे गांव में छिपा कर अपने करीबियों के यहां जमा करवा रखे हैं. जबलपुर में कई रियल एस्टेट के धंधे में इस के सीधे या परोक्ष रूप से जुड़ाव की जानकारी सामने आई है.

सीधी के कलेक्टर रहे विशेष गड़पाले और कटनी कलेक्टर रहे प्रकाश चंद जांगड़े के रहते कई शस्त्र लाइसेंस दोनों जिले से रज्जाक के परिजनों और खास गुर्गों के नाम जारी हुए थे. जैसे ही रज्जाक का प्रकरण तूल पकड़ा, कटनी शस्त्र शाखा से लाइसेंस संबंधी फाइल ही गुम हो गई.

नेस्तनाबूद हुआ मेरठ का चोरबाजार

मेरठ के सोतीगंज को गाडि़यों के ‘कमेले’ के नाम से जाना जाता है, जहां चोरी की गाडि़यों के पुरजेपुरजे अलग कर दिए जाते थे. ढाई दशक से होने वाला ये काम किसी से छिपा नहीं था, लेकिन इस बाजार पर एक आईपीएस अफसर की ऐसी नजर लगी कि चंद महीनों में ही इस के नेस्तनाबूद होने की गूंज पूरे देश में सुनाई पड़ रही है.

पूर्वी उत्तर प्रदेश में पलेबढ़े सूरज राय के लिए मेरठ एकदम अलग तरह के माहौल का शहर था. एकदम नया शहर और नए मिजाज के लोग थे. आईपीएस सूरज राय मेरठ (सदर) के सहायक पुलिस अधीक्षक पद पर 2 दिसंबर, 2020 को नियुक्त हो कर आए थे.

तैनाती के 2 दिन बाद ही सूरज अपनी मां के साथ मेरठ के सदर बाजार कैंट इलाके में स्थित प्रतिष्ठित औघड़नाथ मंदिर में दर्शन करने  के लिए गए. मंदिर में दर्शन व पूजा के बाद मंदिर परिसर में कृष्ण मंदिर के पुजारी को उदास देख कर सूरज राय ने उन से सहज ही पूछ लिया, ‘‘क्या बात है पुजारीजी, बड़े उदास लग रहे हो. सब खैरियत है तबीयत ठीक है ना?’’

‘‘सब कुछ ठीक है साहब, बस थोड़ा नुकसान हो गया इसीलिए मन परेशान है.’’ पुजारी ने कहा.

‘‘क्षमा चाहता हूं पुजारीजी, क्या बड़ा नुकसान हो गया जो इतनी चिंता में हैं. बता दीजिए, हो सकता है हम कुछ मदद कर दें.’’ सूरज राय ने सरल स्वभाव में पूछ भी लिया.

‘‘नुकसान छोटा है लेकिन हमारे जैसे गरीब लोगों के लिए बड़ा भी है. दरअसल, बेटे की बाइक चोरी हो गई है हीरो होंडा पैशन. 3-4 महीने पहले ही खरीदवाई थी और कल चोरी हो गई.’’ पूजा की थाली सूरज राय के हाथों में वापस करते हुए पुजारी ने कहा.

‘‘फिर तो हम ही आप की मदद कर पाएंगे पुजारीजी.’’ सूरज राय बोले.

सूरज राज ने अपना परिचय दे कर पुजारी को बताया कि वह सदर सर्किल के सीओ हैं और वे बाइक चोरी की रिपोर्ट लिखवाएं, पुलिस उन की गाड़ी को जरूर बरामद कर लेगी.

परिचय जानने के बाद भी पुजारी के चेहरे पर आशा की चमक दिखाई नहीं पड़ी तो उन्होंने पुजारी से पूछ ही लिया, ‘‘महाराजजी, आप को कोई खुशी नहीं हुई क्या?’’

‘‘नहीं साहब, रिपोर्ट तो हम ने लिखा दी थी कल ही. लेकिन इस गाड़ी का मिलना आसान काम नहीं है. आप शायद नहीं जानते, यहां सोतीगंज है, जहां एक बार चोरी की गाड़ी चली जाए तो वह उसी तरह कतराकतरा हो जाती है, जैसे पशुओं के कमेले में मरे हुए जानवर की हड्डी, खाल, मांस और दूसरे हिस्सों के छोटेछोटे हिस्सों में बांट कर बहुत सारे लोगों को बेच दिया जाता है. बस, फर्क ये है कि सोतीगंज चोरी की मोटरसाइकिल और कारों के बेचे जाने का वो बाजार है, जहां एक बार गाड़ी पहुंच गई तो उस का मालिक भी नहीं पहचान सकता कि वहां मौजूद छोटेछोटे पुरजों में से कौन सा पुरजा उस की गाड़ी का है.’’

पुजारीजी ने इतने साधारण ढंग से एएसपी सूरज राय को ये बात समझाई कि ज्यादा कहे बिना ही वह सारी बात समझ गए.

उन्होंने पुजारी से कहा कि वह कोशिश करेंगे कि उन के बेटे की बाइक जल्द बरामद हो जाए.

यह कह कर सूरज राय अपनी माताजी के साथ वहां से चले गए. लेकिन सोतीगंज को ले कर कही गई हर बात उन के कानों में पिघले हुए शीशे की तरह उतर गई.

सूरज राय ने खंगाली कबाडि़यों की कुंडली

एएसपी सूरज राय ने उसी दिन अपने सर्किल के तीनों थानों के प्रभारी और वहां तैनात सबइंसपेक्टरों की एक मीटिंग बुलाई. उन्होंने सभी से एकएक कर सोतीगंज के बाजार के बारे में जानकारी ली कि आखिर वहां क्या होता है, क्यों इस इलाके के बारे में लोगों की धारणा इतनी गलत है.

इस के बाद उन के सामने जो कहानी सामने आई, उसे सुन कर तो एएसपी सूरज राय को लगा कि मानो वे मुंबई के कौफर्ड मार्केट के बारे में कोई कहानी सुन रहे हैं, जहां चोरी व तसकरी कर के लाया गया इंपोर्टेड सामान खुलेआम मिलता है.

सूरज राय ने जब अपने मातहत अफसरों से पूछा कि सोतीगंज बाजार के कबाडि़यों के खिलाफ वे काररवाई क्यों नहीं करते तो कारण भी पता चल गया कि इस बाजार में सब कुछ इतना संगठित तरीके से होता है कि पुलिस को कोई सबूत हाथ नहीं लगता.

स्थानीय पुलिस ही नहीं, दूसरे राज्यों व दूसरे जिलों की पुलिस भी अकसर वाहन चोरों से पूछताछ के बाद वहां छापा मारने आती है. पहली बात तो इस इलाके से किसी को गिरफ्तार कर के ले जाना ही बेहद मुश्किल काम है लेकिन अगर कोई ले भी जाए तो पुलिस के पास ऐसे साक्ष्य ही नहीं होते कि इन कबाडि़यों को बहुत दिनों तक सलाखों के पीछे रखा जा सके.

सूरज राय को जो कुछ जानकारी मिली, जाहिर है उस में बहुत सी बातें ऐसी थीं जो हकीकत में पुलिस के सामने एक चुनौती होती है. लेकिन सूरज राय औघड़नाथ मंदिर के पुजारी की पीड़ा और तंज सुनने के बाद इतने बेचैन हो चुके थे कि उन्होंने मन बना लिया था कि जो आज तक नहीं हो सका, उसे वह संभव कर के दिखाएंगे. वह चोरी की गाडि़यों के कमेले सोतीगंज का वजूद मिटा कर रहेंगे.

कहते हैं, जहां चाह होती है वहां राह होती है. एएसपी सूरज राय ने जो ठाना था मुश्किल जरूर था, लेकिन नामुमकिन नहीं. लिहाजा उन्होंने अपने सर्किल के सभी थानाप्रभारियों को आदेश दिया कि वे अपने स्टाफ और मुखबिरों को लगा कर ऐसी लिस्ट बनाएं, जिस से पता चले कि कि सोतीगंज के कबाड़ी बाजार में कितने दुकानदार हैं, जो चोरी किए वाहनों को खरीद कर उसे कटवाते हैं और फिर पुरजापुरजा कर के बेच देते हैं.

किस कबाड़ी के खिलाफ स्थानीय पुलिस से ले कर बाहर से आने वाली पुलिस टीमों की क्या शिकायतें हैं. इन कबाडि़यों के गोदाम कहां हैं, उन के साथ कितने लोग काम करते हैं और क्या उन के पास गाडि़यों के पुरजे बेचने का कोई वैध पंजीकरण है तथा वे ये पुरजे कहां से लाते हैं, इस का विवरण रखने के उन के पास क्या इंतजाम हैं.

करीब एक पखवाड़े बाद जब एएसपी सूरज राय ने दोबारा मीटिंग ली तो मातहत अफसरों ने उन के सामने सोतीगंज बाजार के बारे में मांगी गई तमाम जानकारियों का पुलिंदा रख दिया.

सवाल था कि अब इस पर काररवाई कैसे हो. लिहाजा सूरज राय ने सब से पहले अपने एसएसपी अजय साहनी और एडीजी स्तर के अधिकारियों को विश्वास में ले कर अपने इरादों से अवगत कराया और उन से अनुमति हासिल की.

इस के बाद उन्होंने जनवरी, 2021 के शुरुआती हफ्ते में ही स्थानीय पुलिस और पीएसी के अतिरिक्त बल को साथ ले कर सब से पहले बाइक चोरी करने वालों के खिलाफ अभियान छेड़ दिया.

सूरज ने सोतीगंज में सक्रिय दोपहिया वाहनों के कबाड़ माफिया मन्नू कबाड़ी और इरफान उर्फ राहुल काला पर पर सब से पहले शिकंजा कसते हुए उन्हें गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस काररवाई का विरोध इस बाजार की फितरत है, लेकिन सूरज राय की तैयारी पूरी थी. जिस ने भी विरोध किया उसे बल प्रयोग कर के सलाखों के पीछे पहुंचा दिया गया. सब से बड़ी चुनौती उस दुरुस्त कागजी काररवाई की थी, जिस के अभाव में अभी तक ये कबाड़ माफिया छूट जाते थे.

मन्नू कबाड़ी से शुरू हुई काररवाई

इस के लिए सूरज राय ने गैंगेस्टर ऐक्ट के सेक्शन 14 (1) का सहारा लिया. इस सेक्शन के अनुसार अगर जांच अधिकारी को यह जानकारी मिलती है कि अपराधी ने अपनी संपत्ति अपराध के बल पर अर्जित की है तो उस संपत्ति को जब्त किया जा सकता है.

सूरज राय ने मन्नू कबाड़ी की फाइल खोली. उस से संपत्ति की जानकारी, पिछले 10 साल के इनकम टैक्स रिटर्न, बैंक स्टेटमेंट मांगे गए तो पाया गया कि मन्नू कबाड़ी के पास संपत्ति से जुड़े कोई भी दस्तावेज मौजूद नहीं हैं.

सूरज राय ने सब से पहले गैंगेस्टर ऐक्ट के सेक्शन 14 (1) का उपयोग कर के मन्नू कबाड़ी की 6 बीघा जमीन, 2 बसें और एक करोड़ से अधिक की बेनामी संपत्ति जब्त की.

मन्नू कबाड़ी के जरिए सूरज राय इस पूरे बाजार के सभी कबाडि़यों को एक बड़ा संदेश देना चाहते थे. इसलिए उस की संपत्ति से जुड़े दस्तावेजों के तहसील से जमीन के कागज, रजिस्ट्रार औफिस से रजिस्ट्रैशन के पेपर, संभागीय परिवहन कार्यालय से वाहनों की जानकारी के साथ नगर निगम और आयकर विभाग से जानकारी जुटाने में 6 महीने से अधिक समय लग गया.

एएसपी सूरज राय ने हर विभाग से जानकारी जुटाने के लिए अलगअलग टीमों का गठन किया था. इसी प्रक्रिया के

तहत मार्च में गिरफ्तार हुए राहुल काला के सोतीगंज में गोदाम और उस के मकान की कुर्की कराई गई.

इस कड़ी काररवाई का असर यह हुआ कि मेरठ और आसपास के जिलों में अचानक कुछ ही महीनों में दोपहिया वाहनों की चोरी में 70 फीसद की गिरावट आ गई. क्योंकि दोपहिया वाहनों की बिक्री के सब से बड़े सौदागर सलाखों के पीछे पहुंच चुके थे और छोटे कबाड़ी चोरी का माल खरीदने में या तो सावधानी बरत रहे थे या बच रहे थे.

मन्नू कबाड़ी के भाई जावेद और आकिब भी दोपहिया वाहन काटने के धंधे में सहयोग करते थे, लेकिन इन का कोई आपराधिक इतिहास नहीं था. लेकिन सूरज राय ने जावेद और आकिब को गुंडा ऐक्ट में नामजद करवा कर उन की हिस्ट्रीशीट खुलवाई तथा 6 महीने के लिए दोनों को जिलाबदर करा दिया.

सोतीगंज में एक साल के दौरान करीब 10 से 12 हजार चोरी के दोपहिया वाहन काटे जाते थे, जिसे मई 2021 तक आतेआते पुलिस ने पूरी तरह बंद करा दिया.

सोतीगंज में दोपहिया वाहनों की कटान भले ही बंद हो गई थी, लेकिन चारपहिया वाहनों की कटान अभी भी जारी थी. इसी बीच एसएसपी अजय साहनी का तबादला हो गया और जून में प्रभाकर चौधरी ने एसएसपी की कमान संभाली.

प्रभाकर चौधरी को सूरज राय के सोतीगंज बाजार के खिलाफ छेड़े गए अभियान की जानकारी मिल चुकी थी, इसलिए उन्होंने सूरज राय को बुला कर कहा कि छोटी मछलियों का शिकार बहुत हो गया सूरज, अब बड़े मगरमच्छों का सफाया करो.

अपराध के खिलाफ संघर्ष करने वाले किसी पुलिस अधिकारी के लिए अपने उच्चाधिकारी का ऐसा आदेश किसी संजीवनी बूटी से कम नहीं होता. जो अभियान थोड़ा सुस्त हुआ, सोतीगंज में वही अभियान अब चारपहिया वाहनों की चोरी और अवैध कटान के धंधे को नेस्तनाबूद करने के इरादे से दोबारा शुरू हो गया.

प्रभाकर चौधरी ने कबाड़ माफिया के इस कमेले के खिलाफ अभियान चलाने की पूरी जिम्मेदारी सूरज राय को सौंप दी. काररवाई करने के इरादे पहले से ही थे, इसीलिए सूरज राय ने तैयारी भी पहले से कर रखी थी.

सोतीगंज के 2 बड़े माफिया हाजी गल्ला और हाजी इकबाल के कारोबार से जुड़ी सारी जानकारियां उन्होंने पहले से जुटा कर पूरी फाइल तैयार करा ली थी. उन के घर, कारोबारी ठिकानों, गोदामों साथ में काम करने वालों से ले कर काली कमाई से हासिल की गई संपत्ति के बारे में पूरी जानकारी हासिल कर ली थी.

इस के बाद अगस्त 2021 में शुरू हुआ मेरठ पुलिस का वह अभियान जिस की गूंज पूरे देश में सुनाई पड़ने लगी.

कबाड़ बाजार की बड़ी मछली है हाजी गल्ला

हाजी गल्ला उर्फ हाजी नईम कितना बड़ा चोर, चोरी के माल को खरीदने वाला कितना बड़ा कबाड़ी है, इस का अनुमान आप इस तथ्य से लगा सकते हैं कि उस के खिलाफ चोरी व लूट के वाहन खरीदने के 32 मुकदमे अलगअलग थानों में दर्ज हैं. बेटों के साथ हाजी गल्ला के फरार होते ही पुलिस ने उस के व उस के बेटों के खिलाफ गैंगस्टर ऐक्ट के तहत काररवाई शुरू कर दी.

साल 2017 से पहले हाजी गल्ला उर्फ हाजी नईम पर कभी काररवाई नहीं हुई. 2017 से पहले पुलिस ने गल्ला के घर पर कभी दबिश नहीं दी थी. हाजी गल्ला के पैसों की धमक सत्ता के गलियारों तक गूंजती थी, वह सत्ताधारी नेताओं से साठगांठ बड़ी मजबूती से रखता था.

उस की ताकत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अखिलेश यादव की सरकार में हाजी गल्ला ने एक मंत्री से सांठगांठ कर रात में ही एक इंसपेक्टर और एक उच्च अधिकारी का ट्रांसफर करा दिया था.

हाजी गल्ला का दुस्साहस ऐसा था कि उस के गुर्गे थानों में खुलेआम कहते फिरते थे कि गल्ला पर हाथ डालने का मतलब है मेरठ से ट्रांसफर.

लेकिन सूरज राय इस बार हाजी गल्ला को पुलिस और कानून की ताकत का अहसास कराने की सौंगध ले चुके थे. लिहाजा उन्होंने हाजी गल्ला के खिलाफ एकत्र किए गए सबूतों के आधार पर उसे गिरफ्तार करने के लिए उस के ठिकानों पर छापेमारी शुरू कर दी.

जब हाजी गल्ला के ऊपर सूरज राय की अगुवाई में पहली बार पुलिस प्रशासन का डंडा चला तो हाजी गल्ला अपने 4 बेटों के साथ भाग निकला और किसी बिल में जा कर छिप गया.

पुलिस प्रशासन ने उस पर पर 50 हजार का ईनाम घोषित कर दिया. लेकिन इस बार पुलिस गल्ला की फरारी से संतुष्ट हो कर चुप बैठने वाली नहीं थी. इस बार काली कमाई के इस कबाड़ी को कंगाल बनाने की सारी तैयारी थी.

लिहाजा पुलिस ने हाजी गल्ला व उस के बेटों फुरकान, अलीम, बिलाल व इलाल के खिलाफ अदालत से अगस्त 2021 महीने में ही कुर्की वारंट हासिल कर लिया.

गल्ला को जैसे ही इस की जानकारी मिली तो सिंतबर में एक दिन मौका पा कर उस ने अपने चारों बेटों के साथ अदालत में सरेंडर कर दिया. जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

हाजी गल्ला के ठिकाने कहांकहां हैं और उस का नेटवर्क कितना बड़ा है, इस का पता लगाने के लिए पुलिस ने उसे 3 दिन के रिमांड पर ले कर गहन पूछताछ की.

मेरठ में कबाड़ के कमेले के नाम से मशहूर सोतीगंज के बारे में आगे जानने से पहले हाजी गल्ला के बारे में जानना बेहद जरूरी है, जो इस कथानक का सब से अहम पात्र है.

गल्ला उर्फ नईम की कहानी शुरू होती है साल 1990 से जब गल्ला के पिता निजाम कुरसी बुनते थे और तैयार माल बाजार में बेचते थे. उस से पूरे परिवार का पेट पलता था.

साल 1993 में गल्ला जो पेशे से बाइक मैकेनिक था, उस ने पिता के कारोबार के साथ ही सोतीगंज में दोपहिया वाहनों के रिपेयरिंग की दुकान खोली. धीरेधीरे गल्ला कबाड़ वाला बन गया और इसी कबाड़ के धंधे की आड़ में उस ने चोरी की बाइक काटने का धंधा शुरू किया.

दिल्ली में वाहनों की बढ़ती संख्या और सुरक्षित पार्किंग की जगह न होने से वाहन चोरी करना आसान हो गया था. 50 हजार की बाइक को वाहन चोर मेरठ के सोतीगंज में 5 से 10 हजार में बेच देते और गल्ला जैसे कबाड़ी कुछ ही मिनटों में उसे काट कर उस के हर पुरजे को अलग कर देते और फिर उन पुरजों को अलगअलग खुलेआम बेच कर 30 हजार से अधिक की कमाई कर लेते.

हाजी गल्ला ने मुनाफे के इसी गणित को समझा और इस का पूरा फायदा उठा कर गाडि़यों के कटान के धंधे का सरताज बन बैठा. बाइक और इस के बाद चोरी के चारपहिया वाहनों को काटने का धंधा जोरों से चल निकला और इस अवैध कारोबार को उस ने धीरेधीरे सोतीगंज के अलावा कई स्थानों पर फैला दिया.

हाजी गल्ला पर पहली सख्त काररवाई जनवरी, 2015 में तत्कालीन युवा एएसपी और 2011 बैच के आइपीएस अधिकारी अभिषेक सिंह ने की थी.

अभिषेक ने हाजी गल्ला के वेस्ट एंड रोड स्थित गोदाम पर छापा मार कर बड़ी संख्या में वहां से गाडि़यों के अवैध कलपुरजे बरामद किए थे. इस के बाद 10 फरवरी, 2015 को हाजी गल्ला को गिरफ्तार कर लिया गया था.

इस धंधे से अरबपति हो गया हाजी गल्ला

हालांकि बाद में हाजी गल्ला न केवल जमानत पर रिहा हो गया बल्कि उस ने अपनी राजनैतिक पहुंच का फायदा उठा कर प्रोन्नत हो कर मेरठ के एसपी (सिटी) के पद पर तैनात हुए अभिषेक सिंह का दूसरे जिले में तबादला भी करवा दिया.

इस के बाद हाजी गल्ला बिना किसी डर के अपने अवैध कारोबार में लगा रहा. पुलिस में भी हाजी गल्ला की राजनीतिक पहुंच का डर बैठ गया था.

बेशुमार दौलत कमाई और 2021 में हाजी गल्ला पहले करोड़पति और फिर अरबपति हो गया. हाजी गल्ला ने पिछले 25 सालों में अरबों रुपए का कारोबार खड़ा कर लिया. उस ने सोतीगंज व सदर बाजार इलाके में 2 आलीशान मकान खड़े कर दिए. 5 साल पहले पटेल नगर में कोठी खरीदी.

इस के अलावा गल्ला के उत्तराखंड में भी 100 करोड की संपत्ति खरीदने की बात सामने आई. गल्ला के कई प्लौट सदर बाजार इलाके में थे, जिन में ऊंची बाउंड्री कर गोदाम बना रखे थे. 6 गोदाम और कैंट जैसी जगह में फार्महाउस बना हुआ था.

गल्ला ने जितनी भी संपत्ति हासिल की थी, वो चोरी की गाडि़यों के कबाड़ को बेच कर अर्जित की गई थी. लेकिन उस की संपत्तियों में सब से चर्चित प्रौपर्टी थी वेस्ट एंड रोड की वो 235 नंबर की कोठी, जो असल में रक्षा मंत्रालय की संपत्ति है और 15 साल पहले हाजी गल्ला ने इस पर कब्जा कर के गोरखधंधे से अपने नाम करा ली थी.

60 साल के हाजी नईम उर्फ गल्ला वैसे तो मेरठ के सदर बाजार थाना क्षेत्र के सोतीगंज का रहने वाला है. सोतीगंज व सदर बाजार इलाके में गल्ला के कुछ समय पहले तक उस के 6 गोदाम थे. इन गोदामों में चोरी व लूट के वाहन काटे जाते थे.

सोतीगंज के कबाडि़यों की 65 करोड़ की संपत्ति जब्त

हाजी नईम ने 2016 में देहलीगेट थाना क्षेत्र के पटेलनगर में 353 वर्गगज में 3 मंजिला आलीशान कोठी सवा 2 करोड़ रुपए में खरीदी थी. इस समय पटेल नगर की इस कोठी की कीमत सरकारी तौर पर 4 करोड़ 10 लाख रुपए है.

जांच में सामने आया कि गल्ला ने अपने गिरोह के साथ मिल कर चोरी के वाहन काटने से अवैध संपत्ति अर्जित करते हुए इस कोठी को खरीदा था.

दूसरी तरफ रक्षा मंत्रालय का कहना है कि हाजी गल्ला के बंगला नंबर 235 की 2048 वर्गमीटर जमीन पर बना गोदाम रक्षा मंत्रालय की संपत्ति है जिस के संबध में रक्षा संपदा विभाग की तरफ से रिपोर्ट दर्ज कराई गई है.

इसी जमीन पर बने आलीशान बंगले में हाजी गल्ला चोरी और लूट के वाहनों को कटवाता था, जिस की बाजार कीमत करीब 15 करोड़ रुपए आंकी गई है.

मेरठ पुलिस ने पहली जनवरी, 2022 को इसी 235 नंबर बंगले को कुर्क कर लिया. इस बंगले को कबाड़ी हाजी नईम उर्फ गल्ला ने 15 साल पहले फरजी दस्तावेजों के सहारे अपने नाम पर पंजीकृत करा लिया था.

बंगला नंबर 235 का एक भाग चोरी के वाहन कटान का मुख्य केंद्र था. इस बंगले के गेट ऐसे डिजाइन किए गए थे कि ट्रक और 16 पहिया वाहन आसानी से दाखिल हो जाते थे. बंगले का गेट इतना बड़ा था कि बड़े से बड़ा वाहन आसानी से अंदर दाखिल हो जाया करता था.

लेकिन इस गेट के अंदर दाखिल होने में पुलिस को खासी मशक्कत करनी पड़ी. पुलिस जब इस बंगले के अंदर दाखिल हुई तो चारों तरफ सिर्फ और सिर्फ वाहनों के पुरजे देख कर दंग रह गई.

हाजी गल्ला के इस अवैध बंगले के अंदर दाखिल होते ही पुलिस को लगा, जैसे वे किसी जंगल में दाखिल हो गए हों. बंगले के अंदर मौजूद वाहनों के पुरजेपुरजे चीखचीख कर गवाही दे रहे थे कि यहां क्या काम हो रहा था.

हाजी इकबाल भी निकला बड़ा माफिया

पुलिस ने हाजी गल्ला के बाद इस इलाके के दूसरे सब से बड़े कबाड़ी हाजी इकबाल और तीसरे बड़े कबाड़ माफिया शाकिब उर्फ गद्दू को भी बेनकाब कर दिया. पुलिस ने जब इस इलाके के दूसरे सब से बड़े

कबाड़ी हाजी इकबाल के खिलाफ काररवाई शुरू की तो उस के भी जबरदस्त कारनामे उजागर हुए.

आरोप है कि इकबाल ने सोतीगंज में गुरुद्वारा रोड पर 5 करोड़ रुपए की कीमत की वक्फ बोर्ड की जमीन पर कब्जा किया हुआ था. यहां पर इकबाल चोरी के वाहन काटता और गाडि़यों में इंजन चेसिस नंबर बदलने का धंधा करता था. वक्फ बोर्ड ने इस की शिकायत पुलिस में दर्ज करा दी है जिस के बाद पुलिस ने गैंगस्टर ऐक्ट के तहत इस संपत्ति को भी जब्त कर लिया.

इकबाल का नेटवर्क भी दूसरे जिलों तक फैला हुआ था. लखनऊ में चोरी की 500 गाडि़यां पुलिस ने बरामद की थीं. इन में इकबाल के बेटे अफजाल, अबरार का नाम भी सामने आया था. सोतीगंज के कबाडि़यों के पंजाब के अलावा उत्तराखंड में भी जमीन बताई गई. जहां पर करोड़ों की जमीन होनी बताई जा रही है. कबाडि़यों ने दूसरे राज्यों में होटल और अन्य कारोबार भी चला रखे हैं.

लूट और चोरी के वाहन काटने वाले सोतीगंज के हाजी गल्ला सहित 18 कबाडि़यों की संपत्ति का रिकौर्ड पुलिस खंगालने में जुट गई. बैंक खातों से ले कर संपत्ति की जानकारी लेने के लिए अब पुलिस के साथ जीएसटी की टीम भी लग गई.

पुलिस का दावा कि 18 कबाडि़यों ने गिरोह बना कर कई राज्यों में अपना नेटवर्क फैलाया था. सोतीगंज के कबाडि़यों पर शिकंजा कस चुकी पुलिस अब गिरफ्तार किए गए गल्ला व इकबाल के अलावा, जीशान उर्फ पौवा, मन्नू उर्फ मोईनुद्दीन, गद्दू और राहुल काला सहित अन्य कबाडि़यों की काली कमाई से अर्जित अवैध संपत्तियों का पता लगाने में जुट गई.

इन सभी के खिलाफ दस्तावेजी सबूत जुटा कर पुलिस ने इन के खिलाफ गैंगस्टर ऐक्ट सेक्शन 14 (1) के तहत काररवाई कर के इन्हें जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दिया. कबाड़ी गद्दू की 5 करोड़ की संपत्ति जब्त करने की काररवाई भी पुलिस ने शुरू कर दी.

चेसिस नंबर भी बदलने में माहिर थे माफिया

एसएसपी प्रभाकर चौधरी के आदेश पर सितंबर महीने में गाजियाबाद स्थित पुलिस फोरैंसिक लैब की एक टीम को भी सोतीगंज बुलाया गया. फोरैंसिंक टीम ने यहां बिक रहे गाडि़यों के 110 इंजनों की जांच की. जांच में पता चला कि इन में से 70 से ज्यादा इंजनों पर दर्ज नंबर से छेड़छाड़ की गई थी.

फोरैंसिक टीम ने 30 गाडि़यों के मूल इंजन नंबर भी प्राप्त कर लिए, जिन के आधार पर यह पता चला कि ये इंजन चोरी की गाडि़यों से निकाले गए हैं. इस के बाद पुलिस ने सोतीगंज में चोरी की गाडि़यों के अवैध कटान से जुड़े 50 दूसरे कबाड़ कारोबारियों को गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस ने इस अभियान में तेजी लाते हुए सोतीगंज में मोटर पार्ट्स बेचने वाली 300 दुकानों की एक सूची तैयार कर सभी दुकानों की अलगअलग फाइलें बनाईं. इन सभी दुकानों का ब्यौरा वाणिज्यकर विभाग को भेज कर इन का जीएसटी रजिस्ट्रैशन कराने का अनुरोध किया, ताकि इन दुकानों से बिकने वाले मोटर पार्ट्स पर नजर रखी जा सके.

कागजी काररवाई को दुरुस्त रखने के लिए दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के सेक्शन 91 और 149 का सहारा लिया गया है. 91 सीआरपीसी के अनुसार विवेचक किसी भी अपराध से संबंधित सूचना किसी से भी मांग सकता है. इस के तहत सोतीगंज में 101 दुकानदारों को नोटिस जारी कर उन के

यहां बिकने वाले सभी सामानों की जानकारी मांगी गई.

सीआरपीसी के सेक्शन 149 में पुलिस को संज्ञेय अपराध रोकने के लिए काररवाई करने की शक्ति दी गई है. इस के तहत दुकानदारों को जारी नोटिस में निर्देश दिया कि जांच जारी रहने तक प्रतिष्ठान में रखे मोटर पार्ट्स व अन्य सामानों से कोई भी छेड़छाड़ न की जाए. इसी नोटिस के चलते सोतीगंज में मोटर पार्ट्स की दुकानें पहली बार 12 दिसंबर से लगातार बंद हैं.

कुख्यात वाहन माफियाओं ने चोरी के वाहनों का धंधा कर के अरबों रुपए की संपत्ति जुटाई थी. लेकिन अब पुलिस ने इस चोर बाजारी का धंधा करने वालों पर नजरें टेढ़ी कर ली हैं. पिछले 5 महीनों में पुलिस ने 32 से ज्यादा वाहन माफियाओं के खिलाफ गैंगस्टर की काररवाई को अंजाम दिया.

इस के अलावा इन की 40 करोड़ से ज्यादा की संपत्ति को कुर्क कर ली. वहीं पुलिस ने वाहन चोरी और चोरी के पार्ट्स बेचने वाले 100 से ज्यादा आरोपियों की क्राइम कुंडली तैयार कर ली.

पुलिस ने बाकायदा ऐसे दुकानदारों को नोटिस भी जारी कर दिए. वहीं नोटिस का जवाब न देने तक दुकानें बंद करवा दीं.

मेरठ का सोतीगंज आटो पार्ट्स मार्केट अब बंद हो गया. जिन गलियों में कभी आटो पार्ट्स मिलते थे, वहां अब कपड़े की दुकानें लगने लगी हैं. जो लोग आटो पार्ट्स बिक्री के नाम पर भरीपूरी कार को ठिकाने लगा दिया करते थे, वो अब विंटर वियर बेच रहे हैं. सोतीगंज कार बाजार को मेरठ पुलिस अब बंद करा चुकी है.

रद्दी, कोयला और चारे की बिक्री का केंद्र बन गया कबाड़ का कमेला

क्याआप ने कभी सोचा है कि दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब आदि जगहों से रोजाना सैकड़ों कारें और दोपहिया वाहन चोरी हो जाते हैं, पर ये सभी चोरी के वाहन गायब कहां हो जाते हैं और इन के गायब होने में उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के सोतीगंज इलाके का क्या हाथ था?

सोतीगंज एक ऐसा बाजार था, जिस में शामिल पूरा तंत्र मुसलिम समुदाय से था, चोरी करने वाले अधिकांश वाहन चोर भी मुसलिम समाज से थे तो इन्हें खरीद कर व काट कर पूरे भारत में आटो पार्ट्स की आपूर्ति करने वाले भी यही लोग थे.

मेरठ के सोतीगंज में हाल के दिनों तक लगभग 32 बड़े कबाड़खाने थे और इन सभी कबाड़खानों के मालिक मुसलिम हैं. उन्हें चोरी का माल हड़प लेने में इतनी विशेषज्ञता हासिल है कि वे पूरी कार को सिर्फ 20 मिनट में काट देते हैं और कार के हर हिस्से को अलग कर के पूरे भारत में आटो पार्ट्स बाजार में बड़ी पैकिंग के साथ बेचने के लिए भेज देते हैं.

पुलिस ने अब तक जो सबूत जुटाए हैं, उस के मुताबिक सोतीगंज के चोर बाजार से अवैध रूप से करीब 48 अरब रुपए की संपत्ति बनाई गई है, वह भी बिना किसी निवेश के.

वैसे इलाके के इतिहास पर नजर डालें तो सोतीगंज बाजार हमेशा से चोरी की गाडि़यों के लिए फेमस नहीं था. यहां 1960 के दौर में रद्दी, कोयला, पशुओं का चारा बिका करता था. सन 1980 के बाद से दौर बदलना शुरू हुआ और यह चोरी की गाडि़यों के पार्ट्स का गढ़ बन गया.

कहते हैं कि सब से पहले यहां 4 दुकानें खुली थीं. फिर क्या, घरों के अंदर दुकानें और गोदाम खुलते गए और कुछ ही सालों में सोतीगंज बाजार चोरी की गाडि़यों के पार्ट्स की बिक्री और नई गाड़ी तैयार कर उन्हें बेचने का गढ़ बनता गया. आज यहां की तंग गलियों में सैकड़ों की संख्या में दुकानें और गोदाम बन गए.

दोपहिया हो या चारपहिया, यहां चोरी, पुरानी और ऐक्सिडेंट में खराब हुई गाडि़यां आतीं और सजसंवर कर बाहर निकलतीं. सोतीगंज मार्केट एशिया की सब से बड़ी स्क्रैप मार्केट बन गया.

सोतीगंज मार्केट में आज के दौर की गाडि़यों के हिस्से तो मिलते ही थे, यहां पर सालों पुरानी और दूसरे विश्वयुद्ध के दौर की विंटेज जीप के टायर, 45 साल पहले की एंबेसडर कार का ब्रेक पिस्टन, 1960 की बनी महिंद्रा जीप क्लासिक का गीयर बौक्स तक मिल जाया करता था.

यहां कबाड़ के ऐसेऐसे कारीगर बैठे थे, जो कुछ ही घंटों में दोपहिया और चारपहिया गाडि़यों के हर पार्ट अलग कर के रख देते थे. इंजन, पहिए, दरवाजे, बौडी, सीट सब अलगअलग दुकानों पर भेज दी जाती थीं. फिर उन्हीं पुरजों को कबाड़ बना कर मेरठ से ले कर दिल्ली के जामा मसजिद और गफ्फार मार्केट तक में बेचा जाता था.

सोतीगंज मार्केट में चोरी की गाडि़यों के सैकड़ों कौन्ट्रैक्टर सक्रिय थे, जो दिल्ली एनसीआर, वेस्ट यूपी, हरियाणा, उत्तराखंड, पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश और पड़ोसी देश नेपाल तक चोरी की गाडि़यों को अपने यहां मंगवा कर उन्हें काटने का धंधा करते थे.

सोतीगंज बाजार में चोरी की गाडि़यों के आरोपी कई तरह से काम करते थे. अगर गाड़ी की स्थिति ठीक है तो फिर चेसिस, इंजन वगैरह बदल कर उसे बेच भी दिया जाता था. अगर गाड़ी की कंडीशन ठीक नहीं होती तो उसे कबाड़ में खपा दिया जाता.

दुर्घटनाग्रस्त नीलाम गाडि़यों के कागजात भी बेचे जाते थे. लग्जरी गाडि़यों के रजिस्ट्रैशन एक से डेढ़ लाख रुपए में, सामान्य गाडि़यों को 40-50 हजार में बेचते थे.

कबाड़ी पुलिस से भी कर बैठते थे मारपीट

मेरठ का सोतीगंज एक ऐसा आपराधिक तिलिस्म है, जिस से मेरठ का पुलिसप्रशासन कभी खौफ खाता था. चोरी की गाडि़यों के कलपुरजे अवैध रूप से बेचे जाने की सूचना पर 23 जनवरी, 2015 को पहली बार मेरठ के सोतीगंज में दिल्ली पुलिस की स्पैशल क्राइम ब्रांच की टीम और सदर पुलिस बड़ी छापेमारी करने पहुंची थी.

पुलिस के सोतीगंज पहुंचने पर हथियारों से लैस कबाडि़यों ने हमला कर दिया. पुलिस को घेर कर पीटा और गाडि़यों के अवैध कटान में शामिल जान मोहम्मद को पुलिस कस्टडी से छुड़ा लिया. पुलिस को जान बचा कर भागना पड़ा. बाद में पुलिस ने 7 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया.

इस से पहले भी 16 नवंबर, 2014 को मेरठ के सदर थाने की पुलिस ने सोतीगंज में चल रहे अवैध मोटर गैराज की जांच के लिए अभियान शुरू किया. पहले ही दिन पुलिस को कबाडि़यों ने घेर कर मारपीट की. नतीजा पुलिस को अभियान बंद करना पड़ा.

बौलीवुड फिल्म सरीखी ये घटनाएं बताती हैं कि मेरठ में सदर थाने से सटा हुआ सोतीगंज इलाके में कबाड़ माफिया किस कदर बेखौफ थे. लेकिन इसी सोतीगंज का माहौल अब पूरी तरह से बदल चुका है. यहां चल रही मोटर पार्ट्स की दुकानें पहली बार 12 दिसंबर से बंद हैं. ग्राहकों से पटी रहने वाली सड़कों पर सन्नाटा है.

कबाड़ माफियाओं के गोदामों और घर पर कुर्की के नोटिस चस्पा हैं. पुलिस दबिश मार कर सोतीगंज के मोटर गैराज में रखे सामानों की जांच में जुटी है.

इस सोतीगंज में हुआ यह अभूतपूर्व बदलाव उस वक्त चर्चा में आया जब 18 दिसंबर को शाहजहांपुर में गंगा एक्सप्रेसवे के शिलान्यास के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में इस का जिक्र किया.

साल 1991 के बाद उदारीकरण के दौर में भारतीय बाजार महंगी इंपोर्टेड गाडि़यों के लिए खुला. 4 और 2 पहिया गाडि़यों की अचानक बाजार में आवक बढ़ी. दिल्ली, पंजाब, हरियाणा में मोटर बाइक और कारों की बिक्री में इजाफा हुआ.

इसी के साथ मेरठ के सोतीगंज इलाके में गाडि़यों की मरम्मत का धंधा भी शुरू हुआ. साल 1995 तक सोतीगंज में गाडि़यों की मरम्मत करने के लिए छोटेबड़े करीब 25 ही गैराज थे जो ढाई दशक बाद वर्ष 2021 में बढ़ कर 1000 से अधिक हो गए.

दिल्ली-एनसीआर, पंजाब, हरियाणा समेत देश के कई हिस्सों से गाडि़यां चोरी हो कर सोतीगंज कटने के लिए पहुंचती लगीं. चोरी की गाडि़यों को सस्ते में खरीद कर उन के पार्ट्स बेच कर कबाड़ कारोबारी 20 से 30 गुना मुनाफा कमाते थे.

तेजी से इस अवैध कारोबार के बढ़ने के पीछे यही अर्थशास्त्र था. पुलिस के अनुमान के मुताबिक सोतीगंज में एक साल में चोरी की गाडि़यां काट कर निकाले गए मोटर पार्ट्स का सालाना कारोबार 1000 करोड़ रुपए से अधिक है.

इंजन पार्ट्स की पूरी मार्केट बंद हो जाने के बाद अब सैकड़ों लोग बेरोजगार हो गए हैं. सोतीगंज को वाहन कटने के कलंक से मुक्ति दिलाने के बाद पुलिस की जिम्मेदारी यहां पर बेरोजगार हुए लोगों के पुनर्वास का माहौल बनाने की है ऐसा नहीं हुआ तो सोतीगंज में फिर गाडि़यां कटने को पहुंचने लगेंगी.

बदन सिंह बद्दो : हौलीवुड एक्टर जैसे कुख्यात गैंगस्टर – भाग 1

बदन सिंह बद्दो मूलरूप से पंजाब का रहने वाला है. उस के पिता चरण सिंह पंजाब के जालंधर से 1970 में मेरठ आए और यहां के एक मोहल्ला पंजाबीपुरा में बस गए. चरण सिंह एक ट्रक ड्राइवर थे. ट्रक चला कर उस आमदनी से किसी तरह अपने 7 बेटेबेटियों के बड़े परिवार को पाल रहे थे.

बदन सिंह बद्दो सभी भाईबहनों में सब से छोटा था. 8वीं के बाद उस ने स्कूल जाना बंद कर दिया. कुछ बड़ा हुआ तो बाप के साथ ट्रक चलाने लगा. एक शहर से दूसरे शहर माल ढुलाई के दौरान उस का वास्ता पहले कुछ छोटेमोटे अपराधियों से और फिर शराब माफियाओं से पड़ा. उस ने कई बार पैसे ले कर शराब की खेप एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाई.

धीरेधीरे पश्चिमी यूपी के बौर्डर के इलाकों में उस ने बड़े पैमाने पर शराब की तस्करी शुरू कर दी. फिर स्मगलिंग के बड़े धंधेबाजों से उस की दोस्ती हो गई.

वह स्मगलिंग का सामान बौर्डर के आरपार करने लगा. हरियाणा और दिल्ली बौर्डर पर तस्करी से उस ने खूब पैसा कमाया. इस के बाद तो वह पूरी तरह अपराध के कारोबार में उतर गया और उस की दिन की कमाई लाखों में होने लगी. दिखने के लिए बद्दो खुद को ट्रांसपोर्ट के बिजनैस से जुड़ा दिखाता रहा, मगर उस का धंधा काला था.

अपराध की राह पर बड़ी तेजी से आगे बढ़ते बद्दो की मुलाकात जब पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 2 बड़े बदमाश सुशील मूंछ और भूपेंद्र बाफर से हुई तो इन दोनों के साथ उस का मन लग गया. इन के साथ ने बद्दो को निडर बनाया.

बद्दो ने कई गुर्गे पाल लिए जो उस के इशारे पर सुपारी ले कर हत्या और अपहरण का धंधा चलाने लगे. सुशील मूंछ और बद्दो के गठजोड़ ने जमीनों पर अवैध कब्जे का धंधा भी शुरू कर दिया. सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जे कर वहां दुकानें बना कर करोड़ों में खरीदनेबेचने के इस धंधे में सरकारी सिस्टम में बैठी काली भेड़ें भी शामिल थीं, जो अपना हिस्सा ले कर किसी भी फाइल को आगे बढ़ा देती थीं.

बदन सिंह बद्दो और सुशील मूंछ की दोस्ती जब बहुत गहरी हुई तो भूपेंद्र बाफर और सुशील मूंछ में दूरियां बढ़ गईं और एक समय वह आया जब बाफर सुशील मूंछ का दुश्मन हो गया. तब मूंछ और बद्दो एकदूसरे का सहारा बन गए.

सुशील मूंछ का बड़ा गैंग था. विदेश तक उस के कारनामों की गूंज थी. जरायम की दुनिया के इन 2 बड़े कुख्यातों का याराना पुलिस फाइल और अपराध की काली दुनिया में बड़ी चर्चा में रहता था. दोस्ती भी अजीबोगरीब थी.

हैरतअंगेज था कि जब एक किसी अपराध में गिरफ्तार हो कर जेल जाता तो दूसरा बाहर रहता था और धंधा संभालता था. 3 दशकों तक ये दोनों पुलिस से आंखमिचौली खेलते रहे. मूंछ जब 3 साल जेल में बंद रहा तो उस दौरान बद्दो जेल से बाहर था. मूंछ का सारा काम बद्दो संभालता था.

वहीं 2017 में जब बद्दो को उम्रकैद की सजा हुई तो मूंछ बाहर था और बद्दो की पूरी मदद कर रहा था. 2019 में जब बद्दो पुलिस को चकमा दे कर कस्टडी से फरार हुआ तो दूसरे ही दिन सुशील मूंछ ने सरेंडर कर दिया और जेल चला गया. पुलिस कभी भी इन दोनों की साजिश को समझ नहीं पाई.

कहते हैं कि बद्दो को कस्टडी से फरार करवाने की सारी प्लानिंग सुशील मूंछ ने की. इस के लिए पुलिस और कुछ सफेदपोशों को बड़ा पैसा खिलाया गया. लेकिन बद्दो कहां है यह राज आज तक पुलिस सुशील मूंछ से नहीं उगलवा पाई. कहा जाता है कि वह दुनिया के किसी कोने में बैठ कर हथियारों का धंधा करता है.

पर्सनैलिटी में झलकता रईसी अंदाज

बदन सिंह बद्दो सिर्फ 8वीं पास था, लेकिन उस में बात करने की सलाहियत ऐसी थी कि लगता वह दर्शन शास्त्र का कोई बड़ा गहन जानकार हो. बातबात में वह शायरी और महापुरुषों के वक्तव्यों को कोट करता था.

एक पार्टी के दौरान जब एक रिपोर्टर ने उस से पूछ लिया कि जरायम की दुनिया से कैसे जुड़ गए तो विलियम शेक्सपियर को कोट करते हुए बद्दो ने कहा, ‘ये दुनिया एक रंगमंच है और हम सब इस मंच के कलाकार.’

पश्चिमी उत्तर प्रदेश का कुख्यात गैंगस्टर बदन सिंह बद्दो अब खुल कर लग्जरी लाइफ जीने लगा था. बद्दो का रहनसहन देख कर कोई भी उस के रईसी शौक का अंदाजा आसानी से लगा सकता है. लूई वीटान जैसे महंगे ब्रांड के जूते और कपड़े पहनना बदन सिंह बद्दो को अन्य अपराधियों से अलग बनाता है. वह आंखों पर लाखों रुपए मूल्य के विदेशी चश्मे लगाता है. हाथों में राडो और रोलैक्स की घडि़यां पहनता है.

बदन सिंह बद्दो महंगे विदेशी हथियार रखने का भी शौकीन है. उस के पास विदेशी नस्ल की बिल्लियां और कुत्ते थे, जिन के साथ वह अपनी फोटो फेसबुक पर भी शेयर करता था. इन तसवीरों को देख कर कोई कह नहीं सकता कि मासूम जानवरों को गोद में खिलाने वाले इस हंसमुख चेहरे के पीछे एक खूंखार गैंगस्टर छिपा हुआ है.

बुलेटप्रूफ कारों का लंबा जत्था उस के साथ चलता था. उस के महलनुमा कोठी में सीसीटीवी कैमरे समेत आधुनिक सुरक्षा तंत्र का जाल बिछा है.

ब्रांडेड कपड़े और जूते पहन कर जब वह किसी फिल्मी हस्ती की तरह विदेशी हथियारों से लैस बौडीगार्ड्स और बाउंसर्स की फौज के साथ घर से निकलता तो आसपास देखने वालों की भीड़ लग जाती थी. वह हमेशा बुलेटप्रूफ बीएमडब्ल्यू या मर्सिडीज कार से ही चलता था. उस की शानोशौकत भरी जिंदगी देख कर कोई यकीन नहीं करता था कि वह एक हार्डकोर क्रिमिनल है.

गैंगस्टरों का गढ़ बनता पंजाब और पुलिस की बढ़ती परेशानी

जरा नब्बे के दशक की मुंबई को याद करें. महानगर मुंबई में सक्रिय दरजनों छोटेबडे़ क्रिमिनल गैंग के खौफ ने लोगों की नींद उड़ा रखी थी. अपहरण, फिरौती, हफ्तावसूली आम बात थी. क्रिमिनल गैंग के बीच की रंजिश और अंडरवर्ल्ड में वर्चस्व की लड़ाई को ले कर खूनी गैंगवार भी अपने चरम पर था. उस समय मुंबई में इतने क्रिमिनल गैंग सक्रिय थे कि पुलिस के लिए उन्हें सूचीबद्ध करना मुश्किल हो रहा था. फिर भी अंडरवर्ल्ड में दाऊद, छोटा राजन, सुलेमान, छोटा शकील और अरुण गावली जैसे बड़े नाम थे.

इस समय पंजाब में भी नब्बे के दशक वाले मुंबई जैसी हालत बन चुके हैं, जो काफी चिंताजनक होने के साथसाथ हैरान करने वाली बात है. पंजाब ने अतीत में सिख चरमपंथियों द्वारा प्रायोजित आतंकवाद का खूनी और हिंसक दौर अवश्य देखा था, लेकिन संगठित, आक्रामक और खुल्लमखुल्ला कानून एवं व्यवस्था को चुनौती देने वाले संगठित अपराध के मामले में उस का कोई इतिहास नहीं रहा है.

मादक पदार्थों के धंधे ने पंजाब में अनेक क्रिमिनल गैंग पैदा किए हैं. कल तक जो आपराधिक मानसिकता वाले नौजवान आतंकवाद की तरफ आकर्षित हो रहे थे, वे अब मादक पदार्थों के धंधे में ऊंचे मुनाफे को देखते हुए क्रिमिनल गैंग तैयार करने लगे हैं.

देखते ही देखते पंजाब में अनेक खतरनाक क्रिमिनल गैंग तैयार हो गए और पुलिस एक तरह से कुंभकर्णी नींद सोती रही. इन क्रिमिनल गैंगों को किसी न किसी रूप से राजनीतिक संरक्षण प्राप्त था. शायद यह भी एक बड़ी वजह थी कि पुलिस लगातार चुनौती बनते जा रहे गैंगों के विरुद्ध प्रभावी काररवाई नहीं कर सकी और ये गैंग दुस्साहसी और खतरनाक होते गए.

कुकुरमुत्तों की तरह पंजाब में क्रिमिनल गैंग पैदा हुए तो जल्दी ही जरायम की दुनिया में वर्चस्व को ले कर उन में आपसी मारकाट शुरू हो गई. यह गैंगवार पुलिस के लिए सिरदर्द बन गया. खूनी गैंगवार को रोकने के लिए पुलिस पर जब दबाव पड़ा तो उस ने कुछ गैंगस्टरों को गिरफ्तार कर के जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दिया.crime news

पर गैंगस्टरों के खिलाफ कोई भी काररवाई करने में पुलिस ने बड़ी देर कर दी. गैंगस्टर अब तक बडे़ खतरनाक और दुस्साहसी हो चुके थे. सोशल मीडिया का भरपूर इस्तेमाल करने वाले गैंगस्टरों की धमक और हिम्मत का सही अंदाजा पुलिस को उस समय कुछकुछ हुआ, जब वे पुलिस पर हमला कर के हिरासत से अपने साथियों को छुड़ाने के साथ अपने विरोधियों को मारने जैसी अत्यंत दुस्साहस से भरी काररवाइयां करने लगे.

सभी गैंगस्टर कमोवेश जवान हैं और उन के काम करने का स्टाइल फिल्मों से प्रभावित लगता है. वे सोशल मीडिया पर पुलिस को खुल्लमखुल्ला चुनौती देते हुए विरोधी ग्रुप के लोगों की हत्या करने और जेल में बंद अपने साथियों को छुड़ाने जैसी बात कहने लगे हैं. पुलिस ने शुरू में ऐसी धमकियों को गंभीरता से नहीं लिया. आतंकवाद जैसा गंभीर समस्या का सामना कर चुकी पंजाब पुलिस का खयाल था कि गैंगस्टरों में इतनी हिम्मत नहीं कि जेलों में बंद अपने साथियों को जेल से छुड़ा सकें.

पुलिस का उक्त खयाल उस की खुशफहमी ही साबित हुआ. गैंगस्टरों ने जैसा कहा, वैसा कर के दिखा भी दिया. आतंकवादी भी ऐसी हिम्मत कर सके थे, जैसी हिम्मत इन गैंगस्टरों ने कर दिखाई. पंजाब की नाभा जेल काफी सुरक्षित मानी जाती रही है.

नाभा जेल को सुरक्षित और अभेद्य समझते हुए खूंखार और खतरनाक अपराधियों को उसी में रखने को सुरक्षा एजेंसियां प्राय: प्राथमिकता देती रही हैं. गिरफ्तारी के बाद पंजाब के खतरनाक विक्की गौंडर गैंग के कुछ खूंखार सदस्यों को इसी जेल में रखा गया था.

27 नवंबर, 2016 को चौंकाने वाली अप्रत्याशित काररवाई करते हुए विक्की गौंडर गैंग के सदस्यों ने पूरी तैयारी के साथ बेहद सुरक्षित मानी जाने वाली नाभा जेल पर धावा बोल कर सारी सुरक्षा व्यवस्था को धता बताते हुए वहां बंद अपने 6 साथियों को छुड़ा कर फिल्मी अंदाज में भाग खड़े हुए. गौंडर गैंग के सारे सदस्य पुलिस की वरदी में आए थे.

नाभा जेल की इस घटना ने यह साबित कर दिया कि पंजाब में सक्रिय क्रिमिनल गैंग कितने खतरनाक हो चुके हैं और वे जैसा कहते हैं, वैसा करने में समर्थ भी हैं. नाभा जेल से अपराधियों को भगाने के मास्टरमाइंड विक्की गौंडर ने इस के बाद विरोधी गैंग के लोगों पर हमले शुरू कर के गैंगवार को और भयानक रूप दे दिया.

सारी कोशिशों के बाद भी पुलिस खतरनाक और तेजतर्रार गैंगस्टरों के सामने असहाय और फिसड्डी साबित हुई. पुलिस की सारी सावधानियां और दावों के बावजूद नाभा जेल से अपराधियों को भगाने के लिए जिम्मेदार गैंगस्टर विक्की गौंडर ने अपने कुछ साथियों के साथ मिल कर 20 अप्रैल, 2017 को गुरदासपुर के गांव कोठे पराला में दुश्मन गैंग के सरगना हरप्रीत उर्फ सूबेदार और उस के 2 साथियों सुखचैन तथा हैप्पी को सरेआम मौत के घाट उतार दिया.crime news

इतना ही नहीं, अपने खूनी कारनामे को महिमामंडित करते हुए इस घटना को फेसबुक पर भी डाला. इस वारदात के बाद पंजाब पुलिस के एक अधिकारी ने स्वीकार किया कि गैंगस्टरों को ले कर पंजाब में स्थिति लगातार गंभीर होती जा रही है और अगर शीघ्र ही इस से निपटा नहीं गया तो पंजाब की शांति को एक बार फिर से खतरा हो सकता है. हिंसा, हिंसा है, यह आप की मर्जी है कि इस पर आतंकवाद का ठप्पा लगाएं या आम अपराध का.

पंजाब में गैंगवार की स्थिति कितनी विस्फोटक और गंभीर हो रही है, इस का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि पंजाब सरकार मकोका की तर्ज पर पकोका कानून बनाने की तैयारी कर रही है. स्मरण रहे कि मकोका की मदद से मुंबई पुलिस को अपराधियों से निपटने में आसानी हुई थी.

पंजाब पुलिस की माने तो इस समय पंजाब में 60 के करीब छोटेबड़े गैंग सक्रिय हैं. इन गैंगों से जुड़े 35 गैंगस्टर को पुलिस बेहद खतरनाक मानती है और शीघ्र ही उन्हें जेल की सलाखों के पीछे देखना चाहती है. गैंगस्टरों को काबू किए बिना नशे के कारोबार पर अंकुश लगाना मुश्किल है.

पंजाब के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की छवि अपराधियों के प्रति कठोर रवैया रखने वाले प्रशासक वाली रही है. हालिया चुनाव उन्होंने पंजाब के लिए नासूर बन चुके नशे के मुद्दे पर जीता है. ऐसे में नशे की समस्या के साथसाथ गैंगस्टरों से भी निपटना उन के लिए दोहरी चुनौती है.   crime news

अब्दुल रज्जाक : दूधिया से बना गैंगस्टर – भाग 1

यूंतो मध्य प्रदेश के जबलपुर को संस्कारधानी कहा जाता है, मगर यह शहर मुजरिम और उन के ठिकानों के लिए भी जाना जाता है. जबलपुर शहर में अब्दुल रज्जाक, महादेव पहलवान, पिंकू काला, छोटू चौबे की डबल टू डबल टू गैंग, विजय यादव की वी कंपनी, सावन बेन की सावन हौआ गैंग, रावण उर्फ ऋषभ शर्मा जैसे दरजनों गैंगस्टरों का आतंक रहा है.

इन गैंगस्टरों का काम शहर में अपने बाहुबल के दम पर रंगदारी वसूलना और सुपारी ले कर हत्या जैसी वारदात को अंजाम देना था. इन गैंगस्टर में अब्दुल रज्जाक उर्फ रज्जाक पहलवान का रिकौर्ड ज्यादा खौफनाक रहा है.

अब्दुल रज्जाक का बचपन भी जबलपुर के ओमती थाना इलाके के रिपटा नाला के पास नया मोहल्ला में बीता है. जबलपुर के इस कुख्यात गैंगस्टर रज्जाक पहलवान के नाम से बड़ेबड़े अपराधी भी खौफ खाते हैं.

30 साल की उम्र में जुर्म की दुनिया में कदम रखने वाला अब्दुल रज्जाक आज भले ही 62 साल का हो गया है, मगर मध्य प्रदेश के खूंखार गैंगस्टर्स की लिस्ट में उस का नाम अभी भी शुमार किया जाता है.

कभी पुलिस की आंखों की किरकिरी रहे अब्दुल रज्जाक पर मध्य प्रदेश के अलावा उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र के पुलिस थानों में करीब 86 आपराधिक मामले दर्ज हैं. इतना ही नहीं, इटली और अमेरिका मेड रायफल और धारदार हथियारों के दम पर जबलपुर में अपने जुर्म का साम्राज्य खड़ा करने वाले  कुख्यात गैंगस्टर अब्दुल रज्जाक के गैंग में सैकड़ों की संख्या में उस के गुर्गों की पूरे इलाके में तूती बोलती है.

अब्दुल रज्जाक की आसपास के जिलों में ही नहीं बल्कि मुंबई, गोवा, हैदराबाद जैसे शहरों के अलावा दुबई, दक्षिण अफ्रीका में भी करोड़ों रुपयों की प्रौपर्टी के साथ माइनिंग का अवैध कारोबार भी फैला हुआ है.

अब्दुल रज्जाक के गैंग में उस के भाई, बेटे और भतीजे के साथ बड़ा गिरोह है, जिस पर जमीन कब्जाने, गैंगवार, अवैध हथियारों की तसकरी, हत्या, बमबारी जैसे संगीन मामलों में मध्य प्रदेश के अलगअलग थानों में केस दर्ज है. आरोपी अपने बाहुबल का उपयोग कर के अदालतों में गवाहों को पलट देता है. चुनावों में शराब और पैसे बांट कर नेताओं को अपने हाथ की कठपुतली बनाने वाले कुख्यात रज्जाक पर बीजेपी और कांग्रेस दोनों पार्टियों के नेताओं की छत्रछाया हमेशा बनी रही, जिस से उस के अपराध सिर चढ़ कर बोलते रहे.

नरसिंहपुर में पुलिस एनकाउंटर में ढेर जबलपुर के कुख्यात बदमाश गोरखपुर निवासी विजय यादव को रज्जाक ने ही अपराध का ककहरा सिखाया.

एक वक्त ऐसा भी आया, जब विजय यादव को उस ने अपना चौथा बेटा बना लिया था. विजय यादव घर भी नहीं जाता था. पर बाद में इन दोनों के रिश्तों में खटास आ गई. यही खटास विजय यादव के अंत की वजह भी बनी.

रज्जाक गैंग का संबंध दूसरे प्रदेश के अपराधियों से भी है. यही वजह है कि दूसरे प्रदेशों में आपराधिक घटनाओं को अंजाम देने के बाद अपराधी फरारी काटने रज्जाक के ठिकानों पर महीनों पड़े रहते हैं.

रज्जाक के खौफ के चलते या तो गवाह बदल जाते हैं या फिर शिकायतकर्ता ही अपनी रिपोर्ट वापस ले लेते हैं. इस गैंगस्टर के डर से कई लोगों ने अपनी कीमती जमीन उसे औनेपौने दामों पर बेच दी. कई तो दहशत में उस के खिलाफ थाने में शिकायत तक नहीं करा पाए.

आरोपी ने जबलपुर, कटनी, नरसिंहपुर, हैदराबाद, गोवा, मुंबई, दुबई, साउथ अफ्रीका तक होटल, खनिज, प्रौपर्टी का बिजनैस खड़ा कर लिया है. खुद उस का बेटा सरताज पहले से दुबई में शिफ्ट हो चुका है.

डेयरी के धंधे से गैंगस्टर बनने तक का सफर

अब्दुल रज्जाक कभी अपने परिवार के साथ मिल कर दूध का धंधा करता था. रज्जाक को बचपन से ही पहलवानी और कसरत का शौक था, इसी कारण लोग उसे पहलवान के नाम से जानते थे.

पहलवानी करतेकरते ताकत और दौलत का नशा रज्जाक पर इस कदर हावी हुआ कि उस ने दूध डेयरी के बाद टोल टैक्स वसूलने वाले टोल बूथ के ठेके लेने शुरू कर दिए. यहीं से उस के गैंगस्टर बनने की दिलचस्प कहानी शुरू होती है.

अब्दुल रज्जाक का जन्म 1959 में मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के छोटे से मुसलिम बाहुल्य गांव राकई पिपरिया में हुआ था. उस के वालिद अब्दुल वहीद रज्जाक के जन्म के कुछ ही महीनों के बाद अपनी पैतृक संपत्ति बेच कर राकई से जबलपुर के नया मोहल्ला में रहने लगे थे.

अब्दुल वहीद ने गौर नदी के पास बरेला में दूध की डेयरी खोल कर अपने धंधे की शुरुआत की. रज्जाक ने क्राइस्ट चर्च स्कूल से 8वीं तक पढ़ाई की और फिर पिता के साथ दूध की डेयरी में हाथ बंटाने लगा. डेयरी के धंधे में खूब पैसा कमाने के बाद रज्जाक ने वहां पर 40 एकड़ जमीन खरीद ली.

दूध डेयरी से हुई कमाई के बाद रज्जाक 1990 में टोल टैक्स बैरियर के ठेके में उतरा. रज्जाक ने प्रकाश खंपरिया, लखन घनघोरिया (कांग्रेस विधायक एवं पूर्व कैबिनेट मंत्री), शमीम कबाड़ी, सिविल लाइंस स्थित पुराने आरटीओ परिसर में रहने वाले मुन्ना मालवीय (फैक्ट्री में तब एकाउंटेंट) के साथ मिल कर मंडला जिले के बीजाडांडी, सिवनी जिले के छपारा, नागपुर के भंडारा और जबलपुर के तिलवारा और मेरेगांव में टोल बूथ के ठेके ले लिए थे. अपनी गुंडागर्दी और दहशत की वजह से देखते ही देखते वह ठेकेदारी के इस कारोबार में स्थापित हो गया.

पुलिस के रिकौर्ड में इस कुख्यात गैंगस्टर के जुर्म का हर पन्ना स्याह है. ठेके के धंधे में उतरने के बाद रज्जाक की प्रतिस्पर्धा बढ़ गई थी. इस के बाद उस ने अपना एक गैंग बना लिया. गोरखपुर का महबूब अली गैंग भी इसी धंधे में था.

टोल नाका का ठेका लेने के बाद रज्जाक का सामना टोलनाका ठेकेदार महबूब अली से हुआ. उन दिनों जबलपुर सहित आसपास के जिलों के कई टोल बूथों के ठेके महबूब अली के पास थे.

बादशाहत कायम करने के लिए गैंगवार

1991 में रज्जाक ने टोल बूथों की नीलामी में बढ़चढ़ कर बोली लगाई और महबूब अली के ठेके हथिया लिए. इस बात को ले कर महबूब अली रज्जाक को अपना सब से बड़ा दुश्मन समझने लगा. टोल ठेका में वर्चस्व स्थापित करने से शुरू हुई गिरोहबंदी गैंगवार में तब्दील हो गई.

रज्जाक ने बसस्टैंड मदनमहल में पहली बार 6 फरवरी, 1996 को महबूब गैंग पर जानलेवा हमला कर दिया. इस प्रकरण में रज्जाक के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज हुई थी. यहीं से रज्जाक चर्चाओं में आया और उस की बादशाहत कायम हुई.

रज्जाक ने अपनी बादशाहत कायम करने के लिए अपने गुर्गों की मदद से लोगों को धमकी देना, मकान और जमीन को कौडि़यों के भाव में खरीदना शुरू कर दिया.

महबूब अली की सल्तनत पर जब रज्जाक ने कब्जा कर लिया तो महबूब अली गैंग भी रज्जाक से इंतकाम लेने के लिए कमर कस चुकी थी. जबलपुर शहर में दोनों गैंगों के बीच आए दिन मारपीट और खूनखराबा की घटनाएं आम हो चुकी थीं. शहर के लोग हरदम इन के खौफ के साए में रहते थे.

रज्जाक पर हमले की फिराक में रह रहे महबूब अली ने 29 अगस्त, 2000 को हाईकोर्ट जबलपुर के पास अब्दुल रज्जाक पर गोली चला कर कातिलाना हमला किया. इस वारदात के बाद दोनों गैंग एकदूसरे के खून के प्यासे बन गए.

पैसे और प्रभाव से पलट जाते थे गवाह

अब्दुल रज्जाक अपने ऊपर हुए कातिलाना हमले से इस कदर बौखला गया कि हर वक्त वह बदला लेने की योजना बनाता रहता. आखिरकार 14 जुलाई, 2003 को गोरखपुर क्षेत्र में महबूब अली के छोटे भाई अक्कू उर्फ अकबर की गोली मार कर हत्या कर दी गई.

इस हत्या में अब्दुल रज्जाक सहित उस के गैंग के 19 गुर्गों को आरोपी बनाया गया था. लेकिन रज्जाक ने पैसे और अपने प्रभाव का उपयोग कर गवाहों को प्रभावित कर दिया. इस के चलते कोर्ट से वह दोषमुक्त हो गया.

रज्जाक इस मामले में धारा 120बी आईपीसी का आरोपी बना था, मगर उस ने घटना वाले दिन को ग्वालियर स्टेशन पर आरपीएफ में बिना टिकट यात्रा में खुद का चालान करा कर प्रकरण से बचने के प्रयास में सफल रहा.

2006 में रज्जाक ने गोहलपुर निवासी मोहम्मद अकरम के घर में घुस कर जान से मारने की धमकी दी थी. इन सभी मामलों में आरोपी ने गवाहों को धमका कर अपने पक्ष में कर लिया था.

गैंगस्टरों का खूनी खेल : देश में फैला रहा डर

इसी साल 22 मई की बात है. सुबह के करीब सवा 5 बजे होंगे. श्रीगंगानगर शहर के जवाहरनगर इलाके में मीरा चौक के पास स्थित मेटेलिका जिम के बाहर एक कार आ कर रुकी. इस कार में 5 युवक सवार थे. इन में से 2 युवक कार में ही बैठे रहे और 3 जिम की तरफ बढ़ गए.

जिम का मेनगेट खुला था. तीनों युवक जिम के औफिस में चले गए. जिधर एक्सरसाइज करने की मशीनें लगी हुई थीं, वहां के दरवाजे का लौक बायोमेट्रिक तरीके से बंद था. इस गेट के पास सोफे पर ट्रेनर साजिद सो रहा था. उन तीनों युवकों में से एक युवक ने साजिद को जगाया और उसे पिस्तौल दिखाते हुए गेट खोलने को कहा. साजिद ने मना किया तो उन्होंने उसे जान से मारने की धमकी दी. डर की वजह से घबराए साजिद ने बायोमेट्रिक मशीन में अंगुली लगा कर गेट खोल दिया.

गेट खुलते ही 2 युवक जिम के अंदर घुस गए और तीसरे युवक ने साजिद से उस का मोबाइल छीन कर तोड़ दिया. फिर तीसरा युवक भी जिम में घुस गया. जिम के अंदर विनोद चौधरी उर्फ जौर्डन मशीनों पर एक्सरसाइज कर रहा था. ज्यादा सुबह होने के कारण उस समय जिम में वह अकेला ही था.

जिम में घुसे तीनों युवकों ने पिस्तौलें निकालीं और विनोद को निशाना बना कर दनादन गोलियां दाग दीं. विनोद निहत्था था, उस ने जिम का शीशा तोड़ कर बाहर भागने की कोशिश की, लेकिन वह कामयाब नहीं हो सका.

लगातार गोलियां लगने से विनोद के शरीर से खून बहने लगा और वह छटपटाता हुआ एक तरफ लुढ़क गया. मुश्किल से 8-10 मिनट में विनोद को मौत के घाट उतार कर वे तीनों युवक वहां से चले गए. यह वारदात पुलिस चौकी से मात्र 200 मीटर की दूरी पर हुई थी.

जिम के ट्रेनर साजिद ने विनोद उर्फ जौर्डन की हत्या की सूचना तुरंत पुलिस और अन्य लोगों को दे दी. सूचना मिलने पर पुलिस के अधिकारी मौके पर पहुंच गए. शहर में चारों तरफ नाकेबंदी करा दी गई. जौर्डन की हत्या की खबर पूरे शहर में आग की तरह फैल गई. सैकड़ों लोग मौके पर जमा हो गए.

जौर्डन की हत्या से शहर में दहशत सी फैल गई. इस का कारण यह था कि 36 वर्षीय जौर्डन पर शहर के पुरानी आबादी, कोतवाली, सदर और जवाहरनगर थाने में मारपीट, छीनाझपटी और प्राणघातक हमले के करीब दरजन भर मामले दर्ज थे.

मौके पर पहुंचे पुलिस अधिकारियों ने जांचपड़ताल की. फिर जौर्डन की हत्या के एकमात्र प्रत्यक्षदर्शी जिम के ट्रेनर साजिद से पूछताछ की. जिम में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज निकाली गई. विधिविज्ञान प्रयोगशाला की टीम भी बुला ली गई. इस टीम ने मौके से गोलियों के खोखे और अन्य साक्ष्य जुटाए. जौर्डन के शरीर पर सिर से पैर तक 15 से ज्यादा गोलियों के निशान थे. जरूरी काररवाई करने के बाद पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए सरकारी अस्पताल भेज दिया.

जौर्डन ने दोस्ती नहीं स्वीकारी तो मिली गोली

जौर्डन के चाचा धर्मपाल ने उसी दिन जवाहरनगर थाने में उस की हत्या का मुकदमा दर्ज करा दिया. इस में बताया कि उस का भतीजा विनोद उर्फ जौर्डन अलसुबह पुरानी आबादी में उदयराम चौक के पास स्थित घर से जिम के लिए निकला था. वह अपने अतीत को भुला कर अब समाजसेवा के काम करता था. अब वह खिलाडि़यों का नेतृत्व करता था और बुराइयों के खिलाफ आवाज उठाता था.

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जौर्डन को गैंगस्टर लारेंस, अंकित भादू, संपत नेहरा, अमित काजला, आरजू विश्नोई, झींझा और विशाल पचार ने जान से मारने की धमकी दी थी. इस के अलावा श्रीगंगानगर के ही रहने वाले सट्टा किंग राकेश नारंग व करमवीर ने भी उसे चेतावनी दी थी.

धर्मपाल ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि जौर्डन ने एक बार मुझे बताया था कि इन लोगों ने उसे मरवाने के लिए 25 से 50 लाख रुपए में गैंगस्टर बुक कर उस की हत्या की सुपारी दे रखी थी.

जौर्डन की हत्या का मामला साफतौर पर अपराधी गिरोहों से जुड़ा हुआ था. इसलिए पुलिस ने सभी पहलुओं को ध्यान में रख कर जांचपड़ताल शुरू की. जांच में यह भी पता चला कि कुख्यात गैंगस्टर श्रीगंगानगर में अपने गैंग को बढ़ाना चाहता था. इस के लिए उस ने जौर्डन की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया था, लेकिन जौर्डन ने मना कर दिया.

इस बात को ले कर लारेंस उस से रंजिश रखने लगा. लारेंस ने जौर्डन को धमकी भी दी थी. लारेंस अब अजमेर जेल में बंद है. लारेंस गैंग के शूटर संपत नेहरा, अंकित भादू, रविंद्र काली, हरेंद्र जाट आदि ने दहशत पैदा करने के लिए श्रीगंगानगर में नवंबर, 2017 में पुलिस इंसपेक्टर भूपेंद्र सोनी के भांजे पंकज सोनी की सरेआम गोलियां मार कर हत्या कर दी थी.

इसी 26 जनवरी को श्रीगंगानगर के हिंदूमलकोट बौर्डर पर पंजाब पुलिस ने कुख्यात गैंगस्टर विक्की गोंडर, प्रेमा लाहौरिया समेत 3 बदमाशों का एनकाउंटर किया था. इस के बाद सतर्क हुई श्रीगंगानगर पुलिस ने पंकज सोनी हत्याकांड में 30 जनवरी को लारेंस गिरोह के 2 गुर्गे पकड़े थे.

पुलिस को इन बदमाशों के मोबाइल से अजमेर जेल में बंद गैंगस्टर लारेंस से वाट्सऐप पर हुई चैटिंग की जानकारी मिली. चैटिंग में दोनों गुर्गे हिस्ट्रीशीटर विनोद चौधरी उर्फ जौर्डन की रेकी की सूचनाएं लारेंस को दे रहे थे. इस से पुलिस को इस बात का अंदाजा हो गया था कि लारेंस जौर्डन को मरवाना चाहता था.

इस के बाद श्रीगंगानगर पुलिस ने जौर्डन को बुला कर सतर्क रहने को कहा था. कुछ दिन पहले कुछ लोगों ने भी जौर्डन को संभल कर रहने को कहा था. धमकियां मिलने के बाद जौर्डन काफी सतर्क रहता भी था. वह घटना से करीब 15 दिन पहले से ही जिम जाने लगा था. वह समय बदलबदल कर जिम जाता था.

अपनी कार को भी वह जिम के सामने न खड़ी कर के आसपास खड़ी करता था. लेकिन फिर भी बदमाशों ने उसे मौत के घाट उतार दिया था. इस का मतलब यह था कि कोई न कोई लगातार उस की हरेक गतिविधि पर नजर रखे हुए था.

श्रीगंगानगर में इसी तरह 17 अगस्त, 2016 को जिम में एक युवक की हत्या कर दी गई थी. उस समय पुरानी आबादी स्थित ग्रेट बौडी फिटनेस सेंटर में पुरानी लेबर कालोनी में रहने वाले दीपक उर्फ बिट्टू शर्मा की हत्या की गई थी. दीपक उस दौरान हत्या के प्रयास के मामले में जमानत पर छूटा हुआ था. पुलिस इन सभी बिंदुओं को ध्यान में रख कर जांच करने लगी.

जौर्डन की हत्या वाले दिन ही शाम को उस के घर वाले और रिश्तेदार जवाहरनगर थाने पहुंचे और वहां धरना दे कर बैठ गए. उन्होंने मामले की जांच स्पैशल औपरेशन ग्रुप यानी एसओजी से कराने और हत्यारों को जल्द पकड़ने की मांग की. मांग पूरी नहीं होने तक उन्होंने जौर्डन का शव नहीं लेने की बात कही. पुलिस अधिकारियों ने थाने पहुंच कर उन्हें समझाया और आश्वासन दिया कि जांच एसओजी से करा कर हत्यारों को गिरफ्तार कर लिया जाएगा. इस आश्वासन के बाद ही उन्होंने धरना समाप्त किया.

पंजाब और हरियाणा के बड़े आपराधिक गिरोह के तार जौर्डन की हत्या से जुड़े होने की संभावना को देखते हुए पुलिस ने कई जगह छापेमारी कर के संदिग्ध लोगों को हिरासत में लिया. कई लोगों से पूछताछ की गई, लेकिन पुलिस को कोई ठोस जानकारी नहीं मिली.

जांच सौंपी गई एसओजी को

दूसरे दिन 23 मई को जौर्डन हत्याकांड की जांच एसओजी को सौंप दी गई. इस के लिए एसओजी के आईजी दिनेश एम.एन. ने एएसपी संजीव भटनागर के साथ एक टीम का गठन किया.

इस टीम को श्रीगंगानगर पुलिस के साथ समन्वय बना कर अंतरराज्यीय संगठित अपराधी गिरोहों के खिलाफ कड़ी काररवाई के निर्देश दिए गए. इस के साथ यह भी तय किया गया कि इस मामले में पंजाब पुलिस की ओकू (आर्गनाइज्ड क्राइम कंट्रोल यूनिट) टीम का भी सहयोग लिया जाएगा. पंजाब की ओकू टीम ने 26 जनवरी को गैंगस्टर विक्की गोंडर व उस के साथियों का एनकाउंटर किया था.

3 डाक्टरों के मैडिकल बोर्ड से पोस्टमार्टम कराने के बाद जौर्डन का शव उस के परिजनों को सौंप दिया गया. पुलिस के पहरे में 4 घंटे तक चले पोस्टमार्टम में पता चला कि जौर्डन को 16 गोलियां लगी थीं. इन में 3 गोलियां उस के सिर, 6 सीने पर, 3 पेट में और 4 गोलियां उस के दोनों हाथों पर लगी थीं. परिजनों ने भारी पुलिस की मौजूदगी में शव का अंतिम संस्कार कर दिया.

एसओजी की टीम जयपुर से उसी दिन श्रीगंगानगर पहुंच गई. एसओजी टीम के साथ एसपी हरेंद्र कुमार, एएसपी सुरेंद्र सिंह राठौड़, सीआई नरेंद्र पूनिया व जवाहरनगर थानाप्रभारी प्रशांत कौशिक ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. इस में एसओजी टीम ने कुछ महत्त्वपूर्ण साक्ष्य जुटाए.

सीसीटीवी फुटेज भी देखी. दूसरी ओर श्रीगंगानगर पुलिस ने गैंगस्टर अंकित भादू और संपत नेहरा की तलाश में कई जगह छापे मारे. पुलिस की एक टीम घटनास्थल के आसपास वारदात के समय हुई मोबाइल काल्स खंगालने में जुटी रही.

तीसरे दिन भी श्रीगंगानगर पुलिस की 3 टीमें और एसओजी की टीम अलगअलग तरीके से जांच में जुटी रहीं. पुलिस ने कई जगह छापेमारी की, लेकिन अंकित भादू और संपत नेहरा का कोई सुराग नहीं मिला. अलबत्ता जांचपड़ताल में पुलिस को यह जानकारी मिली कि जौर्डन की हत्या के लिए अंकित भादू, संपत नेहरा और उन के साथी 22 मई को सफेद कार से हनुमानगढ़ की तरफ से श्रीगंगानगर में मेटेलिका जिम पहुंचे थे और वारदात के बाद उसी कार से हनुमानगढ़ रोड की ओर भाग गए थे.

सोशल मीडिया पर सक्रिय था गैंगस्टर लारेंस

श्रीगंगानगर पुलिस ने ओकू टीम की मदद से पंजाब में स्टूडेंट आर्गनाइजेशन औफ पंजाब यूनिवर्सिटी यानी सोपू से जुड़े कई युवाओं को भी इस मामले में तलाश किया. दरअसल, पंजाब व चंडीगढ़ इलाके में हजारों युवा सोपू संगठन से जुड़े हुए हैं. इन में चुनाव व सदस्यता को ले कर गुटबाजी भी है. इस में गैंगस्टर लारेंस की गैंग का काफी प्रभाव है. भादू और नेहरा भी इसी संगठन के जरिए लारेंस से जुड़े थे. इसीलिए पुलिस इस संगठन से जुड़े आपराधिक गतिविधियों में लिप्त युवाओं की तलाश कर रही थी.

बीकानेर आईजी विपिन पांडे ने रेंज की पुलिस को भादू और नेहरा को जिंदा या मुर्दा पकड़ने के लिए एक्शन मोड पर रहने के निर्देश दे रखे थे.

पुलिस की इन तमाम काररवाइयों के बीच 24 मई को सोशल मीडिया पर यह खबर चलती रही कि हनुमानगढ़ जिले के नोहराभादरा इलाके में राजस्थान पुलिस ने भादू और नेहरा का एनकाउंटर कर दिया है. इस खबर से दिन भर सनसनी फैली रही. एसपी हरेंद्र कुमार ने इन खबरों को अफवाह बताया, तब जा कर इस पर विराम लगा.

एनकाउंटर की अफवाह उड़ने के दूसरे ही दिन 25 मई को लारेंस के गुर्गे अंकित भादू ने अपने फेसबुक अकाउंट को अपडेट करते हुए जौर्डन की हत्या की जिम्मेदारी ली. उस ने फेसबुक पर लिखा कि फेक आईडी बना कर कमेंट कर रहे हो.

एक बाप के हो तो डायरेक्ट मैसेज करो. जौर्डन को चैलेंज कर के ठोक्यो है. जिस को वहम हो, वो अपना मोबाइल नंबर इनबौक्स कर दे और बदला ले ले. यह भी समझना चाहिए कि बाप बाप ही होता है और बेटा बेटा रहता है. रही बात प्रेसीडेंट की तो वह भी खड़ा होगा और जीतेगा भी. जिस मां के लाल में दम हो वो आ जाए. थारो बाप 3 स्टेट पर राज करे है.

फेसबुक पर भादू की ओर से खुला चैलेंज दिए जाने के बाद पुलिस की साइबर सेल ने उस के फालोअर्स और फेसबुक पर भादू की पोस्ट पर कमेंट करने वाले लोगों को तलाशना शुरू कर दिया, ताकि भादू के बारे में सुराग मिल सके. उधर बीकानेर के आईजी विपिन पांडे भी श्रीगंगानगर पहुंच गए. उन्होंने घटनास्थल का निरीक्षण किया और अधिकारियों की बैठक कर जौर्डन हत्याकांड की पूरी जांच रिपोर्ट ली.

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पकड़े गए कई गुर्गे

छापेमारी के बीच पंजाब की अबोहर पुलिस ने 26 मई, 2018 को लारेंस के 3 गुर्गों को हथियारों सहित पकड़ा. इन में राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले के सांगरिया इलाके का अभिषेक गोदारा, हनुमानगढ़ क्षेत्र की नोहर तहसील का विकास सिंह जाट और पंजाब के बल्लुआना क्षेत्र का नरेंद्र सिंह शामिल था.

इन में अभिषेक गैंगस्टर लारेंस की बुआ का बेटा है. वह जोधपुर में एमएससी का छात्र है, लेकिन कुछ समय से श्रीगंगानगर में रह रहा था. राजस्थान पुलिस को शक है कि लारेंस ने जौर्डन की रेकी के लिए अभिषेक को श्रीगंगानगर भेजा था. इसलिए वह किराए के मकान में रह रहा था. श्रीगंगानगर के एसपी हरेंद्र कुमार इन तीनों आरोपियों से पूछताछ के  लिए उसी दिन अबोहर पहुंच गए.

जौर्डन की हत्या के छठे दिन भी पुलिस ने राजस्थान, हरियाणा व पंजाब में कई जगह दबिश डाली लेकिन न तो भादू व नेहरा का पता चला और न ही जौर्डन हत्याकांड के ठोस सुराग मिले. इस दौरान श्रीगंगानगर पुलिस ने शहर में पेइंगगेस्ट हौस्टलों की भी जांचपड़ताल शुरू कर दी.

गैंगस्टर लारेंस के गिरोह की बढ़ती वारदातों के सिलसिले में 29 मई को हनुमानगढ़ में एटीएस के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक उमेश मिश्रा की अध्यक्षता में पुलिस की अंतरराज्यीय समन्वय बैठक हुई. इस बैठक में हरियाणा, पंजाब व राजस्थान के पुलिस अफसर शामिल हुए.

इन में राजस्थान से उमेश मिश्रा के अलावा एडीजी राजीव शर्मा, एसओजी के आईजी दिनेश एम.एन., बीकानेर आईजी विपिन पांडे, चुरू एसपी राहुल बारहट, श्रीगंगानगर एसपी हरेंद्र कुमार, हनुमानगढ़ एसपी यादराम फांसल, हरियाणा से सिरसा के एसपी हमीद अख्तर, भिवानी एसपी गंगाराम पूनिया, हांसी एसपी प्रतीक्षा गोदारा आदि मुख्य थे.

बैठक का विषय जौर्डन हत्याकांड पर फोकस रहा. साथ ही तीनों राज्यों की पुलिस के लिए सिरदर्द बने गैंगस्टरों और उन के गुर्गों को पकड़ने तथा उन की आपराधिक गतिविधियों पर रोक लगाने के संबंध में भी फैसले लिए गए.

इस बैठक के दूसरे ही दिन 30 मई, 2018 को अंकित भादू ने अपना फेसबुक अकाउंट अपडेट किया. भादू ने लिखा कि अगर परिस्थितियों पर आप की पकड़ मजबूत है तो जहर उगलने वाले आप का कुछ नहीं बिगाड़ सकते.

31 मई, 2018 को श्रीगंगानगर पुलिस ने पंजाब पुलिस के साथ मिल कर गैंगस्टर लारेंस विश्नोई के पंजाब स्थित पैतृक गांव दुतारांवाली विश्नोइयान और राजांवाली में छापेमारी की.  11 गाडि़यों में सवार हो कर पहुंचे 90 से ज्यादा पुलिस अधिकारियों व जवानों ने करीब 2 घटे तक सर्च अभियान चलाया. इस के अलावा 2 पुलिस टीमें भादू व नेहरा की तलाश में जुटी रहीं.

श्रीगंगानगर में चल रही जांचपड़ताल में पुलिस को पता चला कि जौर्डन की हत्या से पहले उस की रेकी की गई थी. पुलिस ने जौर्डन की रेकी करने के मामले में एक नाबालिग किशोर को 3 जून को जयपुर से पकड़ लिया. इस किशोर ने ही जौर्डन के घर से निकल कर जिम जाने की सूचना हत्यारों को दी थी. वह करीब एक साल से अंकित भादू के गिरोह से जुड़ा हुआ था और उस से कई बार मिल भी चुका था.

किशोरों को बनाया जाता था सहायक

यह किशोर श्रीगंगानगर के पुरानी आबादी इलाके का रहने वाला था. जौर्डन भी इसी इलाके का रहने वाला था. पूछताछ और घटनास्थल का सत्यापन कराने के बाद इस किशोर को निरुद्ध कर बाल न्यायालय में पेश कर सुधारगृह भेज दिया गया. 12वीं में पढ़ रहे इस किशोर ने पुलिस पूछताछ में गिरोह से जुड़े श्रीगंगानगर के रहने वाले कुछ सक्रिय सदस्यों के नाम भी बताए.

इस किशोर के पकडे़ जाने से पुलिस अधिकारियों के सामने यह बात आई कि गैंगस्टर कम उम्र के युवाओं व नाबालिगों को ग्लैमर दिखा कर अपने जाल में फांस लेते हैं और उन को संगठन से जोड़ कर पदाधिकारी बना देते हैं. इस के बाद उन को किसी काम का जिम्मा सौंप देते हैं. कम उम्र के युवा सही व गलत का अंदाज नहीं लगा पाते.

पुलिस ने बाद में सोपू संगठन से जुड़े 3 पदाधिकारियों सहित 5 युवाओं को गिरफ्तार कर भविष्य में इस संगठन से न जुड़ने की पाबंदी लगा दी. बाद में इन को जमानत पर छोड़ दिया गया. इन युवकों के परिजनों को भी उन पर नजर रखने की हिदायत दी गई.

एक तरफ पुलिस भादू और नेहरा की तलाश में जुटी थी, दूसरी तरफ 4 जून को एक नया मामला सामने आ गया. गैंगस्टर अंकित भादू और संपत नेहरा के नाम से श्रीगंगानगर के कांग्रेसी नेता जयदीप बिहाड़ी व अरोड़वंश ट्रस्ट के पूर्व अध्यक्ष जोगेंद्र बजाज को वाट्सऐप काल कर 25 लाख रुपए की रंगदारी मांगी गई.

धमकियां मिलने से सहमे व्यापारियों के प्रतिनिधि मंडल ने एसपी से मुलाकात कर सुरक्षा मांगी. जिस मेटेलिका जिम में जौर्डन की हत्या की गई, उस जिम में जोगेंद्र बजाज का बेटा साझेदार था. धमकी मिलने पर बजाज के घर पर पुलिस तैनात कर दी गई. श्रीगंगानगर कोतवाली में बजाज को धमकी देने और रंगदारी मांगने के मामले में रिपोर्ट दर्ज की गई.

कांग्रेस नेता जयदीप बिहाणी के पास 5 जून को इंटरनेशनल नंबर से दोबारा काल आई. हालांकि बिहाड़ी ने वह काल रिसीव नहीं की. विशेषज्ञों का मानना है कि धमकी देने वाला लैपटाप या मोबाइल ऐप का इस्तेमाल कर काल कर रहा था. इस ऐप से जिस के पास काल आती है, उस के मोबाइल स्क्रीन पर इंटरनेशनल नंबर प्रदर्शित होते हैं.

गर्लफ्रैंड के चक्कर में पकड़ा गया संपत नेहरा

5 जून को आधी रात के बाद हरियाणा एसटीएफ की टीम ने जौर्डन की हत्या और व्यापारियों को धमका कर रंगदारी मांगने के आरोपी गैंगस्टर संपत नेहरा को आंध्र प्रदेश में दबोचने में सफलता हासिल कर ली. वह हैदराबाद की मइयापुर कालोनी के एक कौंप्लेक्स में छिपा हुआ था. पुलिस को उस के पास से अत्याधुनिक हथियार भी मिले. संपत नेहरा पर पंजाब पुलिस ने 5 लाख और हरियाणा पुलिस ने 50 हजार रुपए का ईनाम घोषित कर रखा था.

संपत नेहरा अपनी प्रेमिका को फोन करने के चक्कर में हरियाणा पुलिस के जाल में फंस गया. वह हिसार में रहने वाली अपनी प्रेमिका को फोन करता था. हरियाणा की एसटीएफ कई दिनों से उस की प्रेमिका की काल टेप कर रही थी. प्रेमिका का फोन टेप करने के दौरान ही पुलिस को संपत की लोकेशन की जानकारी मिल गई. इसी आधार पर पुलिस ने हैदराबाद में छापेमारी कर संपत को धर दबोचा.

संपत के पकड़े जाने पर उस की फेसबुक भी अपडेट होती रही. इस में समर्थकों ने पोस्ट डाल कर संपत की गिरफ्तारी की पुष्टि की. फेसबुक पोस्ट में कहा गया कि अपने भाई संपत नेहरा को हरियाणा पुलिस ने आंध्र प्रदेश से सहीसलामत पकड़ा है. उस के साथ पुलिस कुछ नाजायज कर सकती है. उस का एनकाउंटर भी किया जा सकता है.

मूलरूप से चंडीगढ़ का रहने वाला संपत नेहरा चंडीगढ़ पुलिस के ही एक जवान का बेटा है. वह 100 मीटर बाधा दौड़ का स्टेट लेवल का खिलाड़ी रहा है. चंडीगढ़ में पढ़ते हुए उस ने पंजाब के गैंगस्टर लारेंस विश्नोई के साथ मिल कर 3 राज्यों पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में आतंक फैला रखा था. उस के खिलाफ लूट, फिरौती, सुपारी ले कर हत्या करने और हत्या के प्रयास जैसे कई संगीन मामले दर्ज हैं.

पंजाब में जब आर्गनाइज्ड क्राइम कंट्रोल यूनिट (ओकू) बनी और गैंगस्टरों की धरपकड़ शुरू हुई तो फरीदकोट जेल में बंद लारेंस ने अपने शूटर संपत नेहरा, रविंद्र काली और हरेंद्र जाट के माध्यम से राजस्थान के जोधपुर में व्यापारियों को धमका कर रंगदारी मांगनी शुरू कर दी थी. गतवर्ष लारेंस के इशारे पर संपत, काली व हरेंद्र ने जोधपुर में व्यवसायी वासुदेव असरानी की हत्या कर दी थी. पिछले एक साल में इस गिरोह ने 5 हत्याएं कीं.

जून 2017 में संपत ने पंजाब के कोटकपुरा में लवी दचौड़ा नामक युवक की सरेआम गोलियां मार कर हत्या की थी. सीकर के पास एक पूर्व सरपंच की हत्या भी संपत ने ही की थी. पिछले साल 6 दिसंबर को उस ने श्रीगंगानगर में पुलिस इंसपेक्टर भूपेंद्र सोनी के भांजे पंकज सोनी की हत्या कर के सोनेचांदी के गहने और पौने 2 लाख रुपए लूट लिए थे.

पिछले साल ही 25 दिसंबर को उसी ने गुड़गांव में पूर्व केंद्रीय मंत्री नटवर सिंह के विधायक बेटे जगत सिंह की फार्च्युनर गाड़ी लूटी. इसी गाड़ी में सवार हो कर 17 जनवरी, 2018 को उस ने चुरू जिले के सादुलपुर में कोर्ट के अंदर गैंगस्टर अजय जैतपुरा की गोलियां मार कर हत्या कर दी थी.

संपत के खिलाफ हिसार में शराब ठेकेदार जयसिंह उर्फ धौलिया गुर्जर की गोली मार कर हत्या करने और संपत के इशारे पर उस के गुर्गों द्वारा बालरोग विशेषज्ञ डा. राजेश गुप्ता का पिस्तौल के बल पर अपहरण कर होंडा सिटी कार लूटने का मामला दर्ज है. हरियाणा में हत्या की 3 और लूट की 8 वारदातों के मामले दर्ज हैं.

सलमान खान को भी दी थी धमकी

गैंगस्टर लारेंस ने फिल्म अभिनेता सलमान खान को भी जोधपुर में मारने की धमकी दी थी. इसी तरह की खौफनाक वारदातों के दम पर डरा कर लारेंस का गिरोह व्यापारियों से रंगदारी वसूलता रहा. वासुदेव हत्याकांड में पूछताछ के लिए पुलिस लारेंस को पंजाब से जोधपुर ले गई थी. बाद में उसे अजमेर जेल में शिफ्ट कर दिया गया. आजकल लारेंस अजमेर जेल से ही अपने गैंग को औपरेट कर रहा है. उस के गिरोह में संपत नेहरा के अलावा अंकित भादू, काली, हरेंद्र आदि मुख्य हैं.

आरोप है कि संपत नेहरा ने श्रीगंगानगर के करीब 15 व्यापारियों से वाट्सऐप कालिंग कर के रंगदारी मांगी थी. इन में से 4 व्यापारियों ने उस तक रकम पहुंचा भी दी थी. पुलिस अब ऐसे व्यापारियों का पता लगा रही है, जिन्होंने संपत को रकम दी थी.

संपत की गिरफ्तारी के 2 दिन बाद ही 8 जून को कांग्रेस नेता और बिहाणी शिक्षा न्यास के अध्यक्ष जयदीप बिहाणी को धमकी भरा वाट्सऐप मैसेज आया. इस में कहा गया कि पुलिस उन की कितने दिन सुरक्षा करेगी. फिरौती के 50 लाख रुपए नहीं दिए तो अंजाम अच्छा नहीं होगा. पुलिस इस मामले की भी जांचपड़ताल करने लगी.

इस बीच श्रीगंगानगर पुलिस ने रिडमलसर निवासी हिमांशु खींचड़ उर्फ काका पिस्तौली को 7 जून को गिरफ्तार कर लिया. उस पर गैंगस्टरों का सहयोग करने और उन्हें शरण देने का आरोप है. वह ग्रैजुएट है और सोपू का सदस्य भी है. उस के पास अंतरराष्ट्रीय सिमकार्ड भी मिला.

श्रीगंगानगर पुलिस संपत नेहरा को हरियाणा से प्रोडक्शन वारंट पर ला कर पूछताछ करेगी. पुलिस का मानना है कि जौर्डन की हत्या में शामिल अंकित भादू और उस के बाकी साथी भी जल्दी ही सींखचों के पीछे होंगे.

सिद्धू मूसेवाला : गोलियों की तड़तड़ाहट में गुम हो गई आवाज – भाग 1

इस साल पंजाब में विधानसभा चुनाव के बाद राजनीतिक और सामाजिक बदलाव के अलग किस्म की आबोहवा बन गई थी. स्टैंडअप कौमेडी और पंजाबी फिल्मों में काम कर पंजाब की राजनीति में जगह बनाने वाले भगवंत मान की नई सरकार द्वारा कई फैसले लिए गए.

उन में एक बड़ा फैसला वीवीआईपी की सुरक्षा कम करने का भी सामने आया था. इसे ले कर सुरक्षा प्राप्त सेलिब्रेटीज की चिंता बढ़ गई थी. उस के ठीक एक दिन बाद ही हिंसा की जो वारदात हुई, उस की किसी ने कल्पना तक नहीं की थी.

रविवार की शाम 29 मई को 5 बजे का वक्त था. पंजाबी सिंगर और कांग्रेस नेता सिद्धू मूसेवाला ने गांव की सरपंच मां चरणजीत कौर सिद्धू से कहा कि वह अपनी मौसी से मिलने जाना चाहता है. चुनाव में व्यस्त होने के कारण काफी समय से मौसी से मिलनाबतियाना नहीं हो पाया था. वह उन का हालचाल लेना चाहता है.

सिद्धू की मां मानसा जिले में मूसेवाला गांव की सरपंच हैं और कांग्रेस के समर्थन में राजनीतिक पहचान रखती हैं.

पंजाब कांग्रेस में अच्छी पकड़ रखने की बदौलत ही कौर ने अपने सिंगर और मौडल बेटे शुभदीप सिद्धू को भी कांग्रेस से विधानसभा का टिकट दिलवा दिया था. सिद्धू मूसेवाला ने इस साल पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ा था, किंतु सफलता नहीं मिल पाई थी. वैसे उस रोज चरणजीत कौर अपने बेटे के मौसी से मिलने जाने की बात पर खुश हो गई थीं. उन्होंने पूछा, ‘‘तुम्हारे साथ और कौन जा रहा है?’’

‘‘जी, वो गुरप्रीत और गुरविंदर है न,‘‘सिद्धू ने बताया.

गुरविंदर सिंह उन का पड़ोसी और गुरप्रीत सिंह चचेरा भाई था. दोनों सिद्धू के खास दोस्तों की तरह थे.

‘‘गाड़ी तू ड्राइव करेगा?’’ चरणजीत बोलीं.

‘‘हां तो! क्या हुआ बेबे?’’ सिद्धू ने मां को जवाब दिया.

‘‘अरे पुत्तर मैंनू बोलूं गाड़ी तेजी से मत भगइयो…वैसे कौन वाली गाड़ी ले जा रहा है?’’ बेबे ने पूछा.

‘‘थार से ही चला जाता हूं,’’ सिद्धू ने बताया.

‘‘थार से क्यों, उस में कम जगह होती है. गनर कहां बैठेंगे?’’ बेबो ने चिंता जताई.

‘‘तू तो बेवजह चिंता करती है बेबे… पजेरो का पिछला पहिया पंक्चर है. गनर मेरे साथ नहीं जाएगा तो क्या हो जाएगा? थोड़ी दूर ही तो जाना है. जल्द लौट आऊंगा.’’

‘‘देख ले भई, जैसी तुम्हारी मरजी. रब तेरी खैर रखे.’’ मां हाथ ऊपर उठा कर लंबी सांस लेती हुई बोलीं.

‘‘तू किसी रब से कम है क्या बेबे!’’ यह कहते हुए सिद्धू ने मां के गले लगने के बाद पैर छूए. फिर लंबे कद भरते हुए थार की ड्राइविंग सीट पर जा बैठे. उस में पहले से ही उस के दोनों दोस्त बैठ चुके थे. एक अगली और दूसरा पिछली सीट पर.

सिद्धू की गाड़ी के पीछे लग गए हमलावर

सिद्धू के पास थार जीप के अलावा पजेरो एसयूवी, टोयोटा फौर्च्युनर, मर्सिडीज बेंज, रेंज रोवर और अपने जमाने की लोकप्रिय मौडर्न बन चुकी जीप भी थी. उस रोज उन्होंने महिंद्रा की थार जीप से मौसी के घर जाने का निर्णय लिया था, जो बुलेटप्रूफ भी नहीं थी.

हालांकि कम जगह वाली थार ले जाने का कारण मूसेवाला ने अपनी मां को जल्द लौट आना बताया था. इस कारण उन्होंने गनमैन को भी साथ ले जाने की भी जरूरत नहीं समझी और अपने दोनों दोस्तों के साथ निकल पड़े.

वे ज्यादा दूर नहीं निकले थे. करीब 500 मीटर पहुंचे होंगे, तभी एक गाड़ी पीछा करने लगी थी. वो गाड़ी थी कोरोला. थार की पिछली सीट पर बैठे एक दोस्त ने देखा कि उन की गाड़ी का एक कोरोला गाड़ी पीछा कर रही है.

वह बोला, ‘‘लगता है कोई हमारा पीछा कर रहा है.’’

इस पर दूसरा दोस्त बोला, ‘‘अरे, होगा कोई फैन.’’

उस गाड़ी को मूसेवाला ने भी देखा. फिर बोले, ‘‘अरे, ये मेरे फैंस होंगे. फोटो खिंचवाने के लिए पीछे आ रहे होंगे. मेरे साथ अकसर ऐसा होता है.’’

‘‘हो सकता है,’’ दोस्त बोला.

फिर एक दोस्त के कहने के कुछ देर बाद ही एक जगह पर 2 मोड़ आए, जहां से मूसेवाला बाईं तरफ निकले तो पीछा कर रही गाड़ी दाहिनी तरफ चली गई.

ऐसा होते ही सिद्धू मूसेवाला खुद ही दोस्तों से बोले, ‘‘देखो क्या कहा था मैं ने, वो गाड़ी चली गई. वो फैंस ही थे. पहले पीछेपीछे आ रहे थे, जब हम अपने दूसरे रास्ते पर आए तब वह अपने रास्ते चले गए.’’

‘‘हां मूसे, तू सही कह रहा है. लेकिन…’’ एक दोस्त बोला.

‘‘अरे, तू बहुत लेकिनवेकिन करता है. अबे तेरी की… न्यू सौंग पर क्या गजब के कमेंट आए हैं.’’ दूसरा दोस्त पहले वाले को मोबाइल दिखाता हुआ बोला.

‘‘तो फिर इसी खुशी में इस बार भाई का बर्थडे धमाकेदार होना चाहिए.’’

‘‘हां क्यों नहीं. मैं दू्ंगा तुम सब को बड़ी पार्टी. बोल कहां लेगा? दिल्ली का कोई फार्महाउस बुक करें?’’ गाड़ी ड्राइव करते हुए मूसेवाला बोल पड़े.

‘‘अरे…अरे… देख वही गाड़ी फिर से आ रही है,’’ पहले वाला दोस्त इस बार तेजी से हड़बड़ाहट के साथ बोला.

‘‘अरे आने दे न उसे, मैं तो अपने रास्ते पर हूं,’’ लेकिन मूसेवाला के इतना कहते ही दूसरे रास्ते से वही कोरोला कार अचानक थार के  साथसाथ चलने लगी. कुछ सेकेंड में ही थार के बिलकुल करीब आ गई. उस ने थार को ओवरटेक कर रोक लिया.

मूसेवाला ने भी तुरंत ब्रेक लगा दिए. थार वहीं एक झटके के साथ रुक गई. ठीक आगे कोरोला को देख कर मूसेवाला समझ गए कि उस में सवार फैंस नहीं, कोई और हैं. शायद उन के दुश्मन हो सकते हैं.

उन्होंने तुरंत अपने एक हाथ से पिस्टल निकाल लिया. मूसेवाला और पीछे बैठे दोस्त अभी सतर्क हो पाते कि इस से पहले ही कोरोला में सवार लोगों ने ताबड़तोड़ गोलियां दागनी शुरू कर दीं.

हमलावरों ने थार गाड़ी के टायरों में गोलियां मारीं, जिस से 3 टायर पंक्चर हो गए. इस अचानक हमले के बाद भी मूसेवाला ने दोस्तों से कहा, ‘‘डरने की जरूरत नहीं. हौसला रखो. मेरे पास पिस्टल है.’’ फिर मूसेवाला ने तुरंत पिस्टल निकाली और 2 फायर किए.

इसे देख हमलावर भी डर गए. और अपनी गाड़ी दूर कर ली. लेकिन इस के बाद ही मूसेवाला के पिस्टल की गोलियां खत्म हो गईं. उस वक्त इत्तफाक से मूसेवाला की पिस्टल में सिर्फ 2 ही गोलियां थीं.

फायरिंग बंद हो गई, लेकिन कुछ सेकेंड में ही वहां 2 बोलेरो गाड़ी भी आ गईं. उस में भी हमलावर सवार थे. हमलावरों की संख्या बढ़ गई. वे आधुनिक हथियारों से लैस थे. वे थार की बोनट पर चढ़ गए.

मूसेवाला को निशाना बना कर बरसाई गोलियां

सिर्फ मूसेवाला को ही निशाना बना कर अंधाधुंध गोलियां बरसाने लगे. जिस से पूरी गाड़ी में धुआं ही धुआं फैल गया. मूसेवाला लहूलुहान हो कर आगे बैठे दोस्त की गोद में गिर गए थे. उस के बाद हमलावरों ने इत्मीनान से मूसेवाला को चैक किया. एक हमलावर ने मूसेवाला के साथ सेल्फी तक ली. जब वे आश्वस्त हो गए कि उन की मौत हो चुकी है, तब वे वहां से फरार हो गए.

इस हिंसक वारदात के चश्मदीद मूसेवाला के दोनों दोस्त गुरविंदर सिंह और गुरप्रीत सिंह ही थे. वे भी घायल हो चुके थे. बाद में उन्होंने मीडिया को इस की जानकारी देते हुए पूरे घटनाक्रम के बारे में बताया. तुरंत मूसेवाला पर हमले की खबर तेजी से फैल गई.