शशिकला उर्फ बेबी पाटणकर : ड्रग सामाज्य की मल्लिकाशार्ट स्टोरी – भाग 1

आज हर क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी लगातार बढ़ती जा रही है. अपराध के क्षेत्र में भी महिलाएं पुरुषों से आगे निकली हैं. चंबल के बीहड़ों की कुछ हसीनाओं के खौफ के किस्से आज भी सुनाए जाते हैं. ऐसी ही मुंबई की एक हसीना है शशिकला उर्फ बेबीताई पाटणकर.

बेबीताई के बारे में हम जितना जानना चाहेंगे, जितना पढ़नालिखना चाहेंगे, उतना कम ही है. क्योंकि बेबीताई कोई नन्ही सी बेबी नही हैं, बल्कि वह सफेद पाउडर की दुनिया की समृद्ध मलिका है.

सफेद पाउडर मतलब जिसे हम गर्द, ब्राऊन शुगर और कई विभिन्न नामों से जानते हैं. इसी सफेद पाउडर के धंधे की बेबीताई पाटणकर 100 करोड़ की लेडी डौन है.

शक्तिवर्द्धक दवा मेफेड्रोन (एमडी), जिसे लोकप्रिय रूप से म्याऊंम्याऊं कहा जाता है, को कथित तौर पर एक महिला द्वारा मुंबई लाया गया था, जो 1980 के दशक में शहर में दूध बेचती थी.

फिल्मों में ड्रग्स के काले कारोबार की कहानियां आप ने कई देखी होंगी. हम देश की आर्थिक राजधानी मुंबई की एक ऐसी लेडी के बारे में बता रहे हैं, जो ड्रग्स के धंधे की रानी है. इस के रुतबे की कहानी जान कर दंग रह जाएंगे आप.

ड्रग्स के कारोबार की माफिया बेबीताई पाटणकर एक ऐसी ड्रग्स क्वीन है, जो साड़ी पहनती है. गले में मंगलसूत्र और माथे पर बड़ी सी बिंदी लगाती है.

किसी हौलीवुड फिल्म से कम नहीं है बेबी पाटणकर की कहानी. आज से कुछ सालों पहले बेबी अपने परिवार का पेट पालने के लिए मुंबई के घरों में दूध बेचा करती थी.

बताया जाता है कि उस के घर में कई सदस्य ड्रग्स के आदी थे. इसी बीच उसे ड्रग्स से होने वाली कमाई के बारे में पता लगा. फिर क्या था, उस ने हिम्मत दिखाते हुए दूध बेचने का काम छोड़ कर ड्रग्स की दुनिया में कदम रखा.

वैसे शशिकला उर्फ बेबी के पास खोने के लिए कुछ नहीं था. वह धीरेधीरे ड्रग्स की दुनिया में अपनी पहचान बनाती गई. उस ने पहले ब्राउन शुगर और हशीश बेची और फिर मेफेड्रोन नाम की ड्रग्स का लेनदेन करने लगी.

जुर्म की दुनिया में अकसर लोगों के नामकरण होते हैं, वैसा ही कुछ हुआ शशिकला के साथ. लोगों ने उसे बेबी नाम से बुलाना शुरू कर दिया और इसी तरह उस का नाम बेबी पड़ा.

ड्रग्स के धंधे को बेबी अकेली ही चलाती थी. अप्रैल 2015 में मेफेड्रोन ड्रग्स मामले में पुलिस ने बेबी को महाराष्ट्र के नवी मुंबई के पनवेल से गिरफ्तार किया था, लेकिन उसे जमानत मिल गई थी.

बेबी के बारे में यह भी बताया जाता है कि ड्रग तसकरी में अपना सिक्का जमाने के बाद उस ने पुलिस के खबरी के तौर पर भी काम किया और कुछ बड़े ड्रग माफियाओं को पकड़वाने में पुलिस की मदद की.

100 करोड़ की मालकिन है बेबी

जानकारी के अनुसार, शशि के पास कई आलीशान कारें हैं और मुंबई के वर्ली में एक बंगला है, जिस की कीमत 2 करोड़ के आसपास बताई जा रही है.

पुलिस जानकारी के अनुसार, उस के कम से कम 3 बैंक अकाउंट थे, जिन में कम से कम 40-40 लाख रुपए जमा थे. कुल मिला कर बताया जाता है कि उस के पास 100 करोड़ की चलअचल संपत्ति है. पिछले साल गिरफ्तारी के बाद सत्र न्यायालय ने बेबी को 5 लाख के बेल बांड पर जमानत दे दी थी.

शशिकला पाटणकर उर्फ बेबी अपने 5 भाइयों में एकलौती थी और सब से छोटी थी.  मुंबई के वर्ली स्थित झुग्गीझोपडि़यों में रहने वाली शशिकला पाटणकर ने जब ड्रग्स बेचनी शुरू की थी, तब शुरुआत में वह आसानी से पुलिस की पकड़ में आ जाती थी, लेकिन 1980-90 के दशक में उस ने अचानक अपना कारोबार बढ़ाया.

उस कारोबार से बेबी पाटणकर ने एमडी बनने से पहले मुंबई में मारिजुआना और ब्राउन शुगर का कारोबार शुरू किया था. और उसी से संपत्ति और कीमती सामान अर्जित किया. फिर मध्य मुंबई, लोनावाला और पुणे के साथ मुंबई के ही वर्ली में अचल संपत्ति में निवेश किया.

धीरेधीरे दूध बेचने वाली बेबी की पहचान मुंबई के इलाकों में ड्रग्स डीलर की हो गई. जल्दी ही वह अपने पति रमेश पाटणकर से अलग हो गई और अपने बच्चों के साथ अलग घर में रहने लगी. यह वह समय था, जब बेबी पर हत्या के आरोप भी लगे थे.

साल 1993 में उस के अपने चचेरे भाइयों मनीष और विवेक ने उस के खिलाफ केस दर्ज कराया था और कहा था कि बेबी ने उन की मां को जला कर मार दिया. पर उस बारे में यह भी कहा जाता है कि मनीष और विवेक की मां भी ड्रग्स के कारोबार में आ गई थी और वह धीरेधीरे शशिकला को टक्कर दे रही थी.

बिजनैस में बढ़ती प्रतिद्वंदिता ही उस की हत्या का कारण बनी थी. इस घटना के कुछ सालों बाद शशिकला मेफेड्रोन का धंधा करने लगी. कहा जाता है कि यह एक ऐसा ड्रग होता है जो उस समय कोकिन से ज्यादा आसानी से उपलब्ध था.

शशिकला पाटणकर पर पुलिस की नजर तब टेढ़ी हुई, जब एक पुलिस कांस्टेबल धर्मराज कालोखे के ठिकाने से 114 किलोग्राम मेफेड्रोन, जिसे म्याऊंम्याऊं भी कहा जाता है, बरामद किया गया था.

इस कांस्टेबल ने उस वक्त कहा था कि इस ड्रग्स को शशिकला ने उसे दिया था. कहा जाता है कि इस के बाद शशिकला को पकड़ने के लिए 100 पुलिस वालों की एक टीम बनाई गई थी.

अब 61 साल की हो चुकी ड्रग माफिया शशिकला उर्फ बेबी पाटणकर, जिसे साल 2015 में मुंबई पुलिस ने गिरफ्तार किया था, ने पिछले 30 सालों में नशीले पदार्थों के व्यापार में शानदार वृद्धि हासिल की थी.

मसलन बेबी पाटणकर को उस के प्रेमी, पुलिस कांस्टेबल धर्मराज कालोखे को 9 मार्च को गिरफ्तार किया गया था और बाद में सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था. साथ ही आगे कालोखे और बेबी पाटणकर  के बेटे सतीश को भी मामले में गिरफ्तार कर लिया था.

बेबी पाटणकर के 22 बैंक खाते थे. उस ने एक खाते में सावधि जमा (एफडी) के लिए 1.45 करोड़ रुपए जमा किए थे.

राजू ठेहठ : अपराध की दुनिया का बादशाह – भाग 1

आनंदपाल की मौत के बाद राजू ठेहठ के गैंग की ताकत बढ़ गई है. वह जेल से ही अपने गैंग को संचालित करता है. राजू यह बात अच्छी तरह जानता है कि कोई भी गैंगस्टर स्वाभाविक मौत नहीं मरता. या तो वह पुलिस की गोली का निशाना बनता है या फिर अपने दुश्मन की गोली का. इसलिए अब वह किसी तरह राजनीति में आने की कोशिश कर रहा है.

राजस्थान के सीकर जिले के ठेहठ गांव का रहने वाला राजेंद्र उर्फ राजू ठेहठ और बलबीर बानूड़ा में गहरी दोस्ती थी. दोनों पक्के दोस्त थे. वे साथ में शराब के ठेके लिया करते थे. दिनरात एकदूजे के साथ रहते थे. साथ में खाना तो होता ही था, दोनों एकदूसरे से कोई बात भी नहीं छिपाते थे. उन में गहरी छनती थी.

राजू ठेहठ और बलबीर बानूड़ा शराब के ठेके ले कर अच्छा मुनाफा कमा रहे थे. कहते हैं न कि दोस्ती के बीच जब धन बेशुमार आने लगता है, तब दोस्ती में यह धन दरार पैदा करा देता है. यही बात इन दोनों में हुई. इन में मतभेद हुए तो ये शराब के ठेके अलगअलग लेने लगे.

ऐसे में दोनों के बीच होड़ लग गई कि कौन ज्यादा पैसे कमाए. वैसे तो दोनों ही व्यवहारिक थे लेकिन जब उन के पास मोटा पैसा आया तो वे अकड़ दिखाने लगे. उन के शराब ठेकों पर अकसर मारपीट होने लगी. यानी वह रौबरुतबा कायम करने लगे.

उन की दोस्ती टूटने की भी एक वजह थी. दरअसल, बलबीर बानूड़ा का रिश्ते में साला लगता था विजयपाल. विजयपाल शराब के ठेके पर सेल्समैन था. सन 2005 की बात है. विजयपाल की किसी बात को ले कर राजू ठेहठ से अनबन हो गई. राजू ठेहठ ने अपने गुर्गों के साथ विजयपाल की जबरदस्त पिटाई की, जिस से विजयपाल की मौत हो गई.

बस, उसी दिन से राजू ठेहठ और बलबीर बानूड़ा की दोस्ती टूट गई. दोनों एकदूसरे के खून के प्यासे हो गए. उन्होंने अपनेअपने गैंग बना कर एकदूसरे पर हमले शुरू कर दिए.

विजयपाल की हत्या का बदला लेने के लिए बलबीर बानूड़ा उतावला हो रहा था. बलबीर बानूड़ा के गैंग से उन्हीं दिनों आनंदपाल आ जुड़ा. बस फिर क्या था. वे राजू ठेहठ का काम तमाम करने का मौका तलाशने लगे.

राजू ठेहठ गैंग और बलबीर बानूड़ा गैंग के गुंडे आपस में जबतब टकराने लगे. जिस गैंग का व्यक्ति मारा जाता, उस गैंग के लोग बदला ले लेते. इस तरह दोनों गैंग के बीच खूनी खेल शुरू हो गया था.

गैंगवार से पुलिस की नींद उड़ गई थी. पुलिस इन सभी के पीछे हाथ धो कर पड़ी थी. आनंदपाल, बलबीर बानूड़ा और राजू ठेहठ के ऊपर अलगअलग थानों में मुकदमे दर्ज होने लगे.

राजू ठेहठ पर विजयपाल की हत्या का मुकदमा चल रहा था. आनंदपाल ने अपने मित्र की मौत का बदला जीवनराम गोदारा की हत्या कर ले लिया. इस तरह कुख्यात अपराधी राजू ठेहठ और आनंदपाल की गहरी दुश्मनी हो गई. दोनों एकूसरे के खून के प्यासे बन गए थे.

सन 2012 में पुलिस ने जयपुर से बलबीर बानूड़ा को गिरफ्तार कर लिया था. इस के 8 महीने बाद ही आनंदपाल को भी गिरफ्तार कर लिया गया. दोनों जेल में रह कर ही अपने गैंग का संचालन कर रहे थे.

आनंदपाल और राजू ठेहठ में हो गई दुश्मनी

इस के बाद सन 2013 में राजू ठेहठ भी पकड़ा गया. जेल में रहते हुए ही आनंदपाल और बलबीर बानूड़ा ने सुभाष को राजू ठेहठ की हत्या के लिए तैयार कर दिया. मौका मिलने पर सुभाष ने सीकर जेल में ही राजू ठेहठ को गोली मारी, जो उस के जबड़े में लगी लेकिन वह बच गया.

इस के बाद राजू ठेहठ ने इस का बदला लेने के लिए बीकानेर जेल में बंद आनंदपाल पर अपने आदमियों से फायरिंग करवाई, जिस में आनंदपाल तो बच गया लेकिन बलबीर बानूड़ा चपेट में आ गया और जेल में ही उस की मौत हो गई.

इस वारदात को अंजाम देने वाले राजू ठेहठ के आदमी को उसी वक्त जेल में पीटपीट कर मार दिया गया था. राजू ठेहठ का भाई ओम ठेहठ भी गैंग से जुड़ा था और वह भाई राजू के कंधे से कंधा मिला कर गैंग चलाता था. इन शातिर गैंगस्टरों के एक इशारे पर धन्नासेठ लाखों रुपए दे देते थे.

राजू ठेहठ और आनंदपाल का इतना खौफ था कि उन के आदमी फोन कर के सेठ लोगों को धमकी देते कि ‘सेठ जीना है तो 20 लाख शाम तक पहुंचा देना.’ सेठ की क्या मजाल कि वह इन्हें मना करे. मना करने वाले को ये लोग दूसरी दुनिया में भेज देते थे. इन की नागौर, सीकर, चुरू, बीकानेर, जयपुर, अजमेर आदि जिलों में तूती बोलती थी.

बाद में आनंदपाल पेशी के दौरान फरार हो गया और इस के बाद पुलिस द्वारा किए गए एक एनकाउंटर में वह मारा गया था. उस की मौत से राजू ठेहठ एकमात्र ऐसा गैंगस्टर था, जिस को सब से ज्यादा खुशी हुई. वह बलबीर बानूड़ा को पहले ही निपटा चुका था. अब पुलिस ने आनंदपाल को निपटा कर उसे दोहरी खुशी दे दी थी.

सीकर जिले के रानोली गांव के विजयपाल हत्याकांड में आरोपी गैंगस्टर राजू ठेहठ और उस के साथी मोहन माडोता को कोर्ट ने सन 2018 में उम्रकैद की सजा सुनाई. 23 जून, 2005 को ठेहठ ने विजयपाल की हत्या कर दी थी. सीकर अपर सेशन न्यायाधीश सुरेंद्र पुरोहित ने यह सजा सुनाई.

सीकर और शेखावटी में बदमाशों के बीच गैंगवार शुरू होने के बाद थमने का नाम ही नहीं ले रही थी. राजू ठेहठ को उम्रकैद की सजा के बाद लगा था कि गैंग खत्म होगा, मगर ऐसा नहीं हो सका. पुलिस सूत्रों के अनुसार जेल से ही राजू और उस का भाई ओम ठेहठ गैंग को संचालित कर रहे थे.

खैर, आनंदपाल गैंग के सब से बड़े दुश्मन राजू ठेहठ की जान को खतरा था. सीकर पुलिस को आशंका थी राजू ठेहठ के दुश्मन मौका मिलते ही उसे गोलियों से छलनी कर देंगे. यही वजह थी कि सीकर पुलिस राजू ठेहठ की कोर्ट में पेशी के दौरान भारी पुलिस सुरक्षा और बुलेटप्रूफ जैकेट पहना कर ले जाती थी.

बेखौफ गैंगस्टर : दो पुलिस अफसरों की हत्या

पंजाब का लुधियाना शहर हौजरी और गर्म कपड़ों के थोक व्यापार के लिए पूरे भारत में जाना जाता है. लुधियाना और उस के आसपास गर्म कपड़े बनाने के सैकड़ों छोटेबड़े उद्योग हैं. हर साल सर्दियों की शुरुआत से पहले ही खरीदारी के लिए यहां देश भर के व्यापारी आते हैं. इसी लुधियाना शहर से करीब 45 किलोमीटर दूर एक शहर जगराओं है.

इसी साल 15 मई की बात है. पुलिस के सीआईए स्टाफ के एएसआई दलविंदर सिंह और भगवान सिंह को शाम को करीब 6 बजे सूचना मिली कि जगराओं की नई दाना मंडी में एक ट्र्रक में नशे की बड़ी खेप आई है. इस सूचना पर दोनों एएसआई एक होमगार्ड जवान राजविंदर के साथ अपनी निजी स्विफ्ट कार से मौके पर रवाना हो गए.

15-20 मिनट बाद जब वह वहां पहुंचे तो उन्होंने वहां एक कैंटर ट्र्रक खड़ा देखा. पुलिस वाले अपनी गाड़ी एक तरफ साइड में खड़ी कर उस ट्र्रक के पास पहुंचे और आसपास खड़े लोगों से पूछताछ करने लगे.

वहां मौजूद लोगों से उन्हें कुछ पता नहीं चला, तो एएसआई भगवान सिंह ट्र्रक में आगे बने ड्राइवर केबिन में चढ़ गए. भगवान सिंह ने ट्र्रक में ड्राइविंग सीट पर बैठे शख्स को पहचान लिया. उसे देखते ही बोले, ‘‘ओए पुत्तर, तू तो जयपाल भुल्लर है.’’

वह शख्स भी भगवान सिंह की बात सुन कर समझ गया कि यह पुलिसवाला है. उस ने फुरती से अपने कपड़ों में से पिस्तौल निकाली और उस की कनपटी पर गोलियां मार दीं. गोलियां लगने से भगवान सिंह ट्र्रक से नीचे गिर गए. उन के सिर से खून बह निकला. गोली की आवाज सुन कर ट्र्रक के पास खड़े दूसरे एएसआई दलविंदर सिंह तेजी से ट्र्रक में चढ़ने लगे, तो पास में खड़ी एक आई-10 कार में सवार कुछ लोग बाहर निकल आए.

वे लोग उन पुलिस वालों से मारपीट करने लगे. मारपीट के दौरान एक शख्स ने दलविंदर सिंह को भी गोली मार दी. गोली लगने से वह भी लहूलुहान हो गए. इस के बाद भी बदमाश नहीं रुके बल्कि दलविंदर और होमगार्ड जवान राजविंदर सिंह से मारपीट करते रहे. राजविंदर जैसेतैसे बदमाशों से अपनी जान बचा कर भाग निकला.

जब यह घटनाक्रम चल रहा था तो मंडी में कुछ युवक क्रिकेट खेल रहे थे. उन युवकों ने गोलियां चलने की आवाज सुनी तो वे वीडियो बनाने लगे और बदमाशों को पकड़ने के लिए दौड़े. इस पर बदमाशों ने गोलियां चला कर उन युवकों को धमकाया.

उन युवकों के डर कर रुक जाने पर बदमाशों ने ट्र्रक से सामान निकाल कर अपनी आई-10 कार में रखा. इस के बाद बदमाशों ने वहां लहूलुहान पड़े पुलिस के दोनों अधिकारियों की पिस्तौलें निकालीं और उस ट्र्रक व कार में सवार हो कर भाग गए.

पुलिस के दोनों एएसआई गोलियां लगने से तड़प रहे थे. बदमाशों के भागने के बाद वहां लोगों की भीड़ जुट गई. पुलिस को सूचना दी गई. पुलिस ने घायल पड़े दोनों एएसआई को अस्पताल पहुंचाया, जहां डाक्टरों ने दोनों को मृत घोषित कर दिया.

सरेआम दिनदहाड़े पुलिस के 2 अधिकारियों की गोलियां मार कर हत्या कर देने की घटना से पूरे शहर और आसपास के इलाकों में सनसनी फैल गई. अफसरों ने पहुंच कर मौकामुआयना किया. जांच शुरू कर दी गई. बदमाशों की तलाश में शहर के सभी रास्तों पर नाके लगा दिए. पूरे पंजाब में रेड अलर्ट जारी कर दिया गया.

बदमाशों की तलाश में भागदौड़ कर रही पुलिस को कुछ ही देर बाद मोगा रोड पर एक ढाबे के बाहर वह ट्र्रक खड़ा मिल गया, जिसे बदमाश भगा ले गए थे. ट्र्रक में अफीम और चिट्टा बरामद हुआ. ट्र्रक के पिछले हिस्से में तलाशी के दौरान पुलिस को कई ब्रांडेड कपड़े मिले. इस से यह अंदाज लगाया गया कि ट्र्रक में कई लोग सवार थे. पुलिस ने वह ट्र्रक जब्त कर लिया.

ट्र्रक के नंबर की जांचपड़ताल की, तो वह फरजी निकला. यह नंबर फरीदकोट के एक जमींदार की मर्सिडीज कार का निकला. जांच में पता चला कि यह ट्र्रक मोगा के गांव धल्ले के रहने वाले एक शख्स के नाम पर था. उस ने ट्र्रक दूसरे को बेच दिया. इस के बाद भी यह ट्र्रक 2 बार आगे बिकता रहा.

पुलिस अधिकारियों ने बदमाशों के चंगुल से जान बचा कर भागे होमगार्ड जवान राजविंदर सिंह से पूछताछ की तो पता चला कि ड्रग्स की सूचना पर वे मौके पर गए थे. वहां ट्र्रक की चैकिंग के दौरान एएसआई भगवान सिंह ने जयपाल भुल्लर को पहचान लिया था. इस पर जयपाल ने उसे गोलियां मार दी थीं.

बाद में एएसआई दलविंदर आगे बढ़े तो जयपाल के साथी बदमाशों ने उन पर भी गोलियां चला दीं. होमगार्ड जवान राजविंदर सिंह के परचा बयान पर पुलिस ने जयपाल भुल्लर और उस के साथियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया.  दूसरे दिन पुलिस ने दोनों शहीद एएसआई भगवान सिंह और दलविंदर सिंह के शवों का पोस्टमार्टम कराया. इस के बाद शव उन के घरवालों को सौंप दिए. दलविंदर का शव

उन के घर वाले अपने पैतृक गांव तरनतारन ले गए.

भगवान सिंह का अंतिम संस्कार जगराओं में शेरपुरा रोड पर राजकीय सम्मान से किया गया. उन के 11 साल के बेटे ने मुखाग्नि दी. भगवान सिंह के अंतिम संस्कार में डीजीपी (रेलवे) संजीव कालड़ा, आईजी नौनिहाल सिंह, डीसी वरिंदर शर्मा आदि मौजूद रहे. डीजीपी ने ट्वीट कर दोनों शहीद पुलिसकर्मियों के परिवार वालों को एकएक करोड़ रुपए और आश्रित को नौकरी देने का ऐलान किया.

पुलिस ने जांचपड़ताल के लिए मौके के आसपास और बदमाशों के भागने के रास्तों की सीसीटीवी फुटेज देखी. इन से साफ हो गया कि दोनों पुलिसकर्मियों की हत्या कुख्यात गैंगस्टर जयपाल भुल्लर और उस के साथियों ने की थी.

पुलिस ने जयपाल के 3 साथियों की पहचान खरड़ निवासी जसप्रीत सिंह जस्सी, लुधियाना के सहोली निवासी दर्शन सिंह और मोगा के माहला खुर्द निवासी बलजिंदर सिंह उर्फ बब्बी के रूप में की.

हमलावरों पर किया ईनाम घोषित

जगराओं पुलिस ने इन चारों के पोस्टर जारी कर ईनाम भी घोषित कर दिया. पंजाब के डीजीपी दिनकर गुप्ता ने जयपाल पर 10 लाख रुपए, बलजिंदर सिंह उर्फ बब्बी पर 5 लाख रुपए, जसप्रीत सिंह उर्फ जस्सी और दर्शन सिंह पर 2-2 लाख रुपए का ईनाम घोषित किया.

जयपाल भुल्लर का नाम पंजाब पुलिस के लिए नया नहीं है. पुलिस का हर नयापुराना मुलाजिम उस के नाम से परिचित है. जयपाल पर हत्या, अपहरण, डकैती, तसकरी, फिरौती आदि संगीन अपराधों के 45 से ज्यादा मामले दर्ज हैं. बलजिंदर उर्फ बब्बी के खिलाफ हत्या का केस दर्ज है. जस्सी और दर्शन कुख्यात तसकर हैं. जयपाल पंजाब सहित कई राज्यों का मोस्टवांटेड अपराधी है.

जयपाल का दोनों एएसआई की हत्या की वारदात से 5 दिन पहले ही पुलिस से आमनासामना हुआ था. 10 मई को लुधियाना के दोराहा में जीटी रोड पर नाकेबंदी के दौरान पुलिस ने कार में सवार 2 युवकों को रोका था. चैकिंग के दौरान बहसबाजी होने पर दोनों युवकों ने वहां तैनात एएसआई सुखदेव सिंह और हवलदार सुखजीत सिंह को हमला कर घायल कर दिया था. बाद में दोनों युवक कार से भाग गए थे.

हुलिया बदलने में माहिर था जयपाल

भागते समय ये युवक एएसआई सुखदेव सिंह से पिस्तौल भी छीन ले गए थे. पुलिस वालों से मारपीट करने वाले दोनों युवक करीब 25-30 साल के पगड़ीधारी सिख थे. उन्होंने सफेद कुरतापायजामा पहन रखा था. हाथापाई के दौरान एक युवक का पर्स गिर गया था. इस पर्स में गुरप्रीत सिंह के नाम से ड्राइविंग लाइसैंस मिला था.

पुलिस को बाद में जांच में पता चला कि इस घटना में हमलावरों में एक युवक जयपाल था. पर्स भी उसी का गिरा था. पर्स में मिले ड्राइविंग लाइसैंस पर फोटो जयपाल की लगी थी, लेकिन फरजी नाम गुरप्रीत सिंह लिखा हुआ था.

खास बात यह थी कि जगराओं में दोनों एएसआई की हत्या की वारदात के वक्त जयपाल क्लीन शेव था. यानी उस ने 5 दिन में ही अपना हुलिया बदल लिया था. वह बारबार हुलिया बदल कर ही पुलिस को चकमा देता रहता था.

पुलिस ने जयपाल और उस के साथियों की तलाश में छापे मारे, तो पता चला कि गैंगस्टर जयपाल भुल्लर जोधां के गांव सहोली में अपने साथी कुख्यात तसकर दर्शन सिंह के खेतों में पिछले डेढ़ महीने से रहा था. दोराहा नाके पर हुई घटना से पहले वह केशधारी सरदार के रूप में रहता था. बाद में उस ने अपना रूप बदल कर चेहरा क्लीन शेव कर लिया.

जयपाल की तलाश में पुलिस ने सर्च अभियान शुरू किया. पुलिस को इनपुट मिले थे कि वारदात से पहले और बाद में जयपाल लुधियाना के आसपास के गांवों में आताजाता रहा है. इन गांवों में उस के ठिकाने हैं.

इसे देखते हुए 17 मई को एडिशनल डीपीसी जसकिरणजीत सिंह तेजा, एसीपी जश्नदीप सिंह और डेहलो थानाप्रभारी सुखदेह सिंह बराड़ के नेतृत्व में पुलिस ने करीब डेढ़ दरजन गांवों में एकएक घर की तलाशी ली. इस दौरान किराएदारों का भी रिकौर्ड जुटाया गया.

दूसरी ओर, कुछ सूचनाओं के आधार पर लुधियाना और जगराओं पुलिस ने चंडीगढ़ में छापे मारे. इन छापों में कुछ लोगों को हिरासत में लिया गया. इन लोगों से पता चला कि जयपाल फरजी ड्राइविंग लाइसैंस दिखा कर कई महीने तक चंडीगढ़ में एक एनआरआई के मकान में किराए पर भी रहा था.

जयपाल के छिपने के ठिकानों का पता लगाने के लिए पुलिस की आर्गनाइज्ड क्राइम कंट्र्रोल यूनिट (ओक्कू) टीम ने उस के भाई अमृतपाल को बठिंडा जेल से प्रोडक्शन वारंट पर हासिल किया. उस से पूछताछ की, लेकिन कोई पते की बात मालूम नहीं हो सकी. बाद में पुलिस ने उसे वापस जेल भेज दिया.

बदमाशों की तलाश में पुलिस ने लुधियाना, अमृतसर और मालेरकोटला सहित कई शहरों में छापे मारे और कई लोगों से पूछताछ की. विभिन्न जेलों में बंद जयपाल के साथियों से भी पूछताछ की.

इन में पता चला कि दोनों पुलिस मुलाजिमों की हत्या की वारदात तक जयपाल करीब 6 महीने से जगराओं के गांव कोठे बग्गू में किराए के मकान में रह रहा था. वह इसी मकान से नशीले पदार्थों की तसकरी का धंधा चला रहा था.

पुलिस ने 19 मई, 2021 को जयपाल के साथी ईनामी बदमाश दर्शन सिंह के मकान की तलाशी ली. इस में जिम की एक किट बरामद हुई. इस किट में हथियार और 300 कारतूस मिले.

इस के अलावा अलगअलग वाहनों की 8-10 आरसी भी मिलीं. ये आरसी उन वाहनों की थीं, जो हाईवे पर लूटे या चोरी किए

गए थे. पुलिस ने दर्शन सिंह की पत्नी सतपाल कौर को हिरासत में ले कर उस से पूछताछ की. 8 राज्यों की पुलिस जुटी तलाश में   पुलिस ने पंजाब और राजस्थान के उस के छिपने के संभावित ठिकानों पर भी छापे मारे. इस के अलावा ओक्कू टीम ने जयपाल के साथी गगनदीप जज को बठिंडा जेल से प्रोडक्शन वारंट पर हासिल किया.

गगनदीप ने जयपाल के साथ मिल कर फरवरी 2020 में लुधियाना में एक कंपनी से 32 किलोग्राम सोना लूटा था. गगनदीप को जयपाल के लगभग हर राज पता थे. इसी उम्मीद में उस से पूछताछ की गई, लेकिन पुलिस उस से भी कुछ नहीं उगलवा सकी. गगन से मिली कुछ जानकारियों के आधार पर पुलिस ने जयपाल की तलाश में उत्तर प्रदेश और राजस्थान के 8-10 गांवों में छापे मारे, लेकिन कुछ हासिल नहीं हुआ.

2 पुलिसकर्मियों की हत्या की वारदात के एक सप्ताह बाद भी जयपाल और उस के साथियों का कोई सुराग नहीं मिलने पर पंजाब पुलिस ने अन्य राज्यों की पुलिस से संपर्क किया. इस के बाद 8 राज्यों की पुलिस की कोऔर्डिनेशन टीम बनाई गई. इस में पंजाब के अलावा हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली, चंडीगढ़, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के चुनिंदा पुलिस अफसरों को शामिल किया गया.

जयपाल के साथ फरार उस के साथी खरड़ निवासी जसप्रीत सिंह उर्फ जस्सी की पत्नी लवप्रीत कौर को मोहाली की सोहाना थाना पुलिस ने 20 मई को गिरफ्तार कर लिया. मोहाली में पूर्वा अपार्टमेंट में उस के फ्लैट से करीब 8 बैंकों की पासबुक और दूसरे अहम दस्तावेज मिले. पुलिस ने बैंकों से स्टेटमेंट निकलवाई, तो पता चला कि इन खातों में करोड़ों रुपए का लेनदेन हो रहा था.

कहा जाता है कि लवप्रीत इस फ्लैट में अकेली रहती थी जबकि उस की ससुराल खरड़ गांव में है.

लोगों को गुमराह करने के लिए जसप्रीत उस से अलग रहता था, लेकिन असल में उस का पत्नी लवप्रीत से लगातार संपर्क था. वह इसी फ्लैट में आ कर पत्नी से मिलता था.

लगातार चल रहे तलाशी अभियान के दौरान पुलिस ने जयपाल को शरण देने और उस की मदद करने वाले 5 लोगों को 21 मई को गिरफ्तार कर लिया. इन से कई हथियार और कारतूसों के अलावा 29 वाहनों की फरजी आरसी, 8 खाली आरसी कार्ड, टेलीस्कोप, पंप एक्शन गन आदि भी बरामद हुए.

गिरफ्तार आरोपियों में कैंटर मालिक मोगा के गांव धल्ले का रहने वाला गुरुप्रीत सिंह उर्फ लक्की और उस की पत्नी रमनदीप कौर, दर्शन सिंह का दोस्त सहोली गांव निवासी गगनदीप सिंह, जगराओं के आत्मनगर का रहने वाला जसप्रीत सिंह और सहोली गांव के रहने वाले नानक चंद धोलू शामिल रहे.

इन से पूछताछ में पता चला कि जयपाल और उस के साथी गाडि़यां लूटने और चोरी करने के बाद उन की फरजी आरसी और नंबर प्लेट तैयार करते थे. फरजी आरसी तैयार करने के लिए उन्होंने एक माइक्रो मशीन ले रखी थी.

पूछताछ के बाद पुलिस ने जयपाल और जसप्रीत सिंह के सोशल मीडिया अकाउंट ब्लौक करवा दिए. पता चला था कि ये बदमाश अपने सोशल मीडिया अकाउंट के जरिए युवाओं को जोड़ते और गैंग में शामिल होने के लिए तैयार करते थे.फिरोजपुर निवासी जयपाल भुल्लर पंजाब ही नहीं कई राज्यों में खौफ का पर्यायवाची नाम है. जिस जयपाल के पीछे 8 राज्यों की पुलिस लगी हुई थी, उस जयपाल के पिता भूपिंदर सिंह पंजाब पुलिस में इंसपेक्टर थे. कहा जाता है कि पिता के कारण ही जयपाल के पुलिस महकमे में कई मुलाजिम अच्छे जानकार हैं. इसलिए वह पुलिस की आंखों में धूल झोंकता रहता था.

पुलिस को जांच में यह भी पता लग गया था कि इस वारदात में जयपाल और उस का साथी जस्सी शामिल था. इसी का नतीजा रहा कि जयपाल ने 5 दिन बाद ही 15 मई को जगराओं में 2 एएसआई को मौत की नींद सुला दिया.

बदमाश दर्शन सिंह कुख्यात तसकर है. उस के खिलाफ भी कई मामले दर्ज हैं. उस के नजदीकी रिश्तेदार पंजाब पुलिस में एसपी के पद पर हैं. दर्शन सिंह जेल भी जा चुका है.

करीब 5 साल पहले हत्या के मामले में अच्छा चालचलन बता कर लुधियाना की ब्रोस्टल जेल से 2 साल 4 महीने की उस की सजा माफ कर दी गई थी. जेल से बाहर आने के बाद वह जयपाल के साथ मिल कर

नशा तसकरी और लूटपाट की बड़ी वारदातें करने लगा.

पंजाब पुलिस की ओक्कू टीम ने दोनों एएसआई की हत्या की वारदात में शामिल गैंगस्टर दर्शन सिंह और बलजिंदर सिंह उर्फ बब्बी को 29 मई, 2021 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर जिले से गिरफ्तार कर लिया. इन को पनाह देने वाले हरचरण सिंह को भी पकड़ लिया गया है.

अपराध की दुनिया में जयपाल भले ही ऊंची उड़ान भर रहा था, लेकिन उस का हश्र भी वही हुआ, जो ऐसे अपराधियों का होता है. पकड़े गए उस के सहयोगियों से पुलिस को जयपाल का सुराग मिल गया. इस के बाद 9 जून, 2021 को पश्चिम बंगाल

के कोलकाता में हुए एक एनकाउंटरमें जयपाल भुल्लर और उस का साथी जसप्रीत जस्सी मारा गया.

ये लोग फरजी नाम से कोलकाता के पास बीरभूम के सिगुरी इलाके के शापूरजी हाउसिंग कौंप्लैक्स में छिपे हुए थे. इन के किराए के इस फ्लैट में लाखों रुपए नकद, आधुनिक हथियार, ड्रग्स के पैकेट, फरजी ड्राइविंग लाइसैंस, पासपोर्ट आदि बरामद हुए. पंजाब पुलिस को जयपाल का सुराग मध्य प्रदेश के एक टोलनाके के सीसीटीवी कैमरों से मिला था. इन बदमाशों के मारे जाने से इन के आतंक का अंत हो गया.

पप्पू स्मार्ट : मोची से बना खौफनाक गैंगस्टर – भाग 1

उत्तर प्रदेश का कानपुर शहर 2 मायनों में खास है. पहला उद्योग के मामले में. यहां का चमड़ा उद्योग दुनिया में मशहूर है और दूसरा जरायम के लिए. कानपुर में दरजनों गैंगस्टर हैं, जो शासनप्रशासन की नींद हराम किए रहते हैं. ये गैंगस्टर राजनीतिक छत्रछाया में फलतेफूलते हैं. हर गैंगस्टर किसी न किसी पार्टी का दामन थामे रहता है. पार्टी के दामन तले ही वह शासनप्रशासन पर दबदबा कायम रखता है.

जघन्य अपराध के चलते जब गैंगस्टर पकड़ा जाता है और जेल भेजा जाता है, तब पार्टी के जन प्रतिनिधि उसे छुड़ाने के लिए पैरवी कर पुलिस अधिकारियों पर दबाव डालते हैं. ऐसे में पुलिस की लचर कार्य प्रणाली से गैंगस्टर को जमानत मिल जाती है. जमानत मिलने के बाद वह फिर से जरायम के धंधे में लग जाता है.

कानपुर शहर का ऐसा ही एक कुख्यात गैंगस्टर है आसिम उर्फ पप्पू स्मार्ट. जुर्म की दुनिया का वह बादशाह है. उस के नाम से जनता थरथर कांपती है. पप्पू स्मार्ट थाना चकेरी का हिस्ट्रीशीटर अपराधी है.

पुलिस रिकौर्ड में पप्पू स्मार्ट का एक संगठित गिरोह है, जिस में अनेक सदस्य हैं. पुलिस अभिलेखों में यह गिरोह डी 123 के नाम से पंजीकृत है. इस के साथ ही उस का नाम चकेरी थाने की भूमाफिया सूची में भी दर्ज है.

पप्पू स्मार्ट और उस के गिरोह के खिलाफ कानपुर के अलावा प्रदेश के विभिन्न जिलों में 35 केस दर्ज हैं जिन में हत्या, हत्या का प्रयास, रंगदारी, अवैध वसूली, मारपीट, जान से मारने की धमकी, सरकारी जमीनों पर कब्जे, गुंडा एक्ट तथा गैंगस्टर एक्ट के मुकदमे हैं.

पप्पू स्मार्ट की दबंगई इतनी थी कि उस ने अपने गिरोह की मदद से जाजमऊ स्थित महाभारत कालीन ऐतिहासिक राजा ययाति का खंडहरनुमा किला कब्जा कर के बेच डाला और अवैध बस्ती बसा दी. वर्तमान समय में पप्पू स्मार्ट अपने दोस्त बसपा नेता व हिस्ट्रीशीटर नरेंद्र सिंह उर्फ पिंटू सेंगर की हत्या के जुर्म में कानपुर की जेल में बंद है.

आसिम उर्फ पप्पू स्मार्ट कौन है, उस ने जुर्म की दुनिया में कदम क्यों और कैसे रखा, फिर वह जुर्म का बादशाह कैसे बना? यह सब जानने के लिए उस के अतीत में झांकना होगा.

कानपुर महानगर के चकेरी थानांतर्गत एक मोहल्ला है हरजेंद्र नगर. इसी मोहल्ले में मोहम्मद सिद्दीकी रहता था. उस के परिवार में बेगम मेहर जहां के अलावा 4 बेटे आसिम उर्फ पप्पू, शोएब उर्फ पम्मी, तौसीफ उर्फ कक्कू तथा आमिर उर्फ बिच्छू थे.

मोहम्मद सिद्दीकी मोची का काम करता था. हरजेंद्र नगर चौराहे पर उस की दुकान थी. यहीं बैठ कर वह जूता गांठता था. चमड़े का नया जूता बना कर भी बेचता था. उस की माली हालत ठीक नहीं थी. बड़ी मुश्किल से वह परिवार को दो जून की रोटी जुटा पाता था.

आर्थिक तंगी के कारण मोहम्मद सिद्दीकी अपने बेटों को अधिक पढ़ालिखा न सका. किसी ने 5वीं दरजा पास की तो किसी ने 8वीं. कोई हाईस्कूल में फेल हुआ तो उस ने पढ़ाई बंद कर दी. पढ़ाई बंद हुई तो चारों भाई अपने अब्बूजान के काम में हाथ बंटाने लगे.

बेटों की मेहनत रंग लाई और मोहम्मद सिद्दीकी की दुकान अच्छी चलने लगी. आमदनी बढ़ी तो घर का खर्च मजे से चलने लगा. कर्ज की अदायगी भी उस ने कर दी और सुकून की जिंदगी गुजरने लगी.

मामा से सीखा जुर्म का पाठ

चारों भाइयों में आसिम उर्फ पप्पू सब से बड़ा तथा शातिरदिमाग था. उस का मन दुकान के काम में नहीं लगता था. वह महत्त्वाकांक्षी था और ऊंचे ख्वाब देखता था. उस के ख्वाब छोटी सी दुकान से पूरे नहीं हो सकते थे. अत: उस का मन भटकने लगा था. उस ने इस विषय पर अपने भाइयों से विचारविमर्श किया तो उन्होंने भी उस के ऊंचे ख्वाबों का समर्थन किया.

लेकिन अकूत संपदा अर्जित कैसे की जाए, इस पर जब आसिम उर्फ पप्पू ने मंथन किया तो उसे अपने मामूजान की याद आई. पप्पू के मामा रियाजुद्दीन और छज्जू कबूतरी अनवरगंज के हिस्ट्रीशीटर थे और अपने जमाने में बड़े ड्रग्स तसकर थे.

आसिम उर्फ पप्पू ने अपनी समस्या मामू को बताई तो वह उस की मदद करने को तैयार हो गए. उन्होंने पप्पू से कहा कि साधारण तौरतरीके से ज्यादा दौलत नहीं कमाई जा सकती. इस के लिए तुम्हें जरायम का ककहरा सीखना होगा.

मामू की बात सुन कर आसिम उर्फ पप्पू राजी हो गया. उस के बाद छज्जू कबूतरी से ही पप्पू एवं उस के भाइयों ने अपराध का ककहरा सीखा. सब से पहले इन का शिकार हुआ हरजेंद्र नगर चौराहे पर रहने वाला एक सरदार परिवार, जिस के घर के सामने पप्पू की मोची की दुकान थी.

चारों भाइयों ने अपने मामा छज्जू कबूतरी की मदद से उस सरदार परिवार को प्रताडि़त करना शुरू किया. मजबूर हो कर सरदार परिवार घर छोड़ कर पंजाब पलायन कर गया.

इस मकान पर पप्पू और उस के भाइयों ने कब्जा कर लिया और जूते का शोरूम खोल दिया. जिस का नाम रखा गया स्मार्ट शू हाउस. दुकान की वजह से आसिम उर्फ पप्पू का नाम पप्पू स्मार्ट पड़ गया.

पप्पू स्मार्ट के खिलाफ पहला मुकदमा वर्ष 2001 में कोहना थाने में आईपीसी की धारा 336/436 के तहत दर्ज हुआ. इस में धारा 436 गंभीर है, जिस में किसी भी उपासना स्थल या घर को विस्फोट से उड़ा देना या आग से जला देने का अपराध बनता है. दोषी पाए जाने पर अपराधी को आजीवन कारावास की सजा हो सकती है.

इस मुकदमे के बाद पप्पू स्मार्ट ने मुड़ कर नहीं देखा. साल दर साल उस के जुर्म की किताब के पन्ने थानों के रोजनामचे में दर्ज होते रहे.

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पप्पू स्मार्ट ने एक संगठित गिरोह बना लिया, जिस में 2 उस के सगे भाई तौसीफ उर्फ कक्कू तथा आमिर उर्फ बिच्छू शामिल थे. इस के अलावा बबलू सुलतानपुरी, वसीम उर्फ बंटा, तनवीर बादशाह, गुलरेज, टायसन जैसे अपराधियों को अपने गिरोह में शामिल कर लिया. पूर्वांचल के माफिया सऊद अख्तर, सलमान बेग, साफेज उर्फ हैदर तथा महफूज जैसे कुख्यात अपराधियों के संपर्क में भी वह रहने लगा.

सुभाष सिंह ठाकुर उर्फ बाबा : अंडरवर्ल्ड डौन का भी महागुरु – भाग 1

उत्तर प्रदेश में इसी साल विधानसभा चुनाव का मौका था. अचानक यूपी की वाराणसी जेल में बंदियों से मुलाकात और उन से मिलने वालों की आमद बढ़ गई थी. बंदियों से मुलाकात करने वाले लोग कोई साधारण इंसान नहीं थे. राजनीतिक दलों से जुड़े नेता और प्रभावशाली लोग अचानक फलों और मिठाइयों के टोकरे ले कर जिस शख्स से मिलने के लिए आ रहे थे, वह भी कोई साधारण इंसान नहीं था.

साढ़े 6 फुट से भी ज्यादा ऊंचाई और विशालकाय शरीर वाले उस अधेड़ कैदी के सिर के घने बाल पक कर पूरी तरह सफेद हो चुके थे.

चेहरे पर बढ़ी लंबी सफेद दाढ़ी और मूंछ उस के व्यक्तित्व को और भी ज्यादा संजीदा बना रही है. उस के लंबे घने बालों को संवारने के लिए बांधा गया लंबा पटकेनुमा रुमाल उसे रुआबदार बना रहा था.

झक सफेद कपड़े पहने वह रुआबदार कैदी जब हाथों की अंगुलियों में महंगी सिगरेट दबाए उस खास बड़ी सी बैरक में आता है तो वहां पहले से इंतजार में बैठे मुलाकाती और दूसरे कैदी सम्मान में खडे़ हो जाते हैं.

इन में से कुछ तो इस तरह उस के पैरों में झुक कर सजदा करते हैं, मानो उन के लिए वह भगवान हो. आरामदायक सोफेनुमा कुरसी पर बैठने के बाद वह करिश्माई शख्स सुनवाई शुरू कर देता है.

एक के बाद एक सामने बैठे लोग अपनी फरियाद सुनाते हैं. वहां कुछ ऐसे कैदी भी मौजूद होते हैं, जो देखने से ही खतरनाक किस्म के प्रभावशाली लगते हैं. लेकिन वह शख्स उन सभी को हिदायतें देता है.

एकदो घंटे तक ये दरबार चलता है. इस दौरान जेल के अधिकारी व कर्मचारी भी बीच में आते रहते हैं. आगंतुकों के आनेजाने का सिलसिला चलता रहता है. खानेपीने के लिए फल, ड्राईफ्रूट और चायकौफी आते रहते हैं. एकदो घंटे के बाद ये दरबार खत्म हो जाता है.

ऐसे दृश्य आमतौर पर हिंदी फिल्मों में देखने और सुनने को मिलते हैं. लेकिन ये किसी फिल्म का दृश्य नहीं, बल्कि यूपी के बनारस जेल की ऐसी हकीकत है जो हर रोज दिखाई देती है. हां, ये अलग बात है कि जब प्रदेश में चुनाव हुए तो जेल में लगने वाले इस दरबार की रौनक कुछ ज्यादा ही बढ़ गई थी.

बनारस की इस जेल में बंद जिस खास बंदी का हम जिक्र कर रहे हैं, उस शख्स का नाम है सुभाष सिंह ठाकुर उर्फ बाबा उर्फ बाबा ठाकुर. ये वो शख्स है, जो कई जेलों में रहने के बाद पिछले 2 सालों से बनारस की जेल में अपनी उम्रकैद की सजा काट रहा है.

जेल में ही लगता है दरबार

वैसे तो बाबा ठाकुर इस जेल में बंदी की हैसियत से रहता है. लेकिन उस की शख्सियत  और रसूख कुछ ऐसा है कि वह इस जेल का राजा है. जिस का हर रोज दरबार लगता है.

लंबी दाढ़ी व बाल अब सुभाष सिंह ठाकुर की पहचान बन चुकी है. लोग उसे अब बाबाजी कहते हैं. जरायम की दुनिया के लोग हों या राजनीतिक जगत की हस्तियां, हर कोई बाबा ठाकुर का सम्मान करता है. जेल के अंदर और बाहर रहने वाले लोगों के लिए जेल के अंदर सुभाष ठाकुर का दरबार लगता है.

इस दरबार में जेल के अधिकारी से ले कर कर्मचारी तक मौजूद होते हैं. बाहर से मिलने आने वाले कारोबारी से ले कर नेता और फरियादी इस दरबार में पहुंच कर बाबा ठाकुर को अपनी फरियाद सुनाते हैं.

हर फरियादी की समस्या का समाधान होता है दरबार में

दिलचस्प बात यह है कि लोगों की फरियाद सुनी ही नहीं जाती, बल्कि उस का निदान भी किया जाता है. मामला चाहे दिल्ली, यूपी का हो या मायानगरी मुंबई का. बाबा ठाकुर के एक इशारे पर लोगों के काम हो जाते हैं. हो भी क्यों न, इस देश में आज जितने भी डौन, गैंगस्टर और माफिया हैं, बाबा ठाकुर एक तरह से उन सब का महागुरु है.

देश का सब से बड़ा माफिया डौन दाऊद इब्राहिम जो इन दिनों पाकिस्तान में है, वह भी बाबा ठाकुर का ही शागिर्द रहा है. यूपी के सब से बड़े डौन बाहुबली मुख्तार अंसारी से ले कर अतीक अहमद तक सुभाष ठाकुर से अदावत नहीं लेना चाहते.

अब राजनीति का लबादा ओढ़ चुके यूपी के बृजेश सिंह भी कभी इसी बाबा ठाकुर की शागिर्दी में काम कर के यूपी का सब से बड़ा डौन बना था.

वैसे तो यूपी के पूर्वांचल में बाहुबलियों का बोलबाला रहा है. चाहे सियासत हो या फिर ठेकेदारी, हर जगह किसी न किसी तरह से बाहुबली शामिल हैं.

पूर्वांचल में कई माफिया गैंगस्टर रहे हैं, लेकिन सुभाष सिंह ठाकुर उर्फ बाबा को यूपी का सब से बड़ा और पहला माफिया डौन कहा जाता है. उम्रकैद की सजा काट रहे बाबा ठाकुर के खिलाफ 50 से ज्यादा मामले दर्ज हैं, जिन में से कई मामलों में उसे दोषी करार दिया जा चुका है.

उम्रकैद की सजा मिलने के बाद सुभाष ठाकुर ने अपनी दाढ़ीमूंछें बढ़ा लीं, जिस कारण लोग उसे बाबाजी के नाम से पुकारने लगे. जेल में लगने वाले बाबा सुभाष ठाकुर के दरबार में हर समस्या का समाधान होता है.

चाहे किसी से पुरानी रंजिश या जमीन के लेनदेन का विवाद, कारोबार, झगड़ा हो या बदमाशों से मिलने वाली धमकी, बाबा के दरबार में जिस ने भी आ कर अपनी समस्या रखी, उस का समाधान जरूर होता है.

लेकिन हर काम की फीस ली जाती है. चुनाव में तो बाबा ठाकुर का खास दखल रहता है, खासकर पूर्वांचल की बात करें तो वहां की कई सीटों पर सुभाष ठाकुर उर्फ बाबा का सीधा प्रभाव होता है. इसीलिए पूर्वांचल में हर छोटेबड़े राजनीतिक दलों के नेता बाबा सुभाष ठाकुर से जीत का आशीर्वाद लेने के लिए जेल में आते हैं.

पिछले दिनों हुए विधानसभा चुनाव में संयुक्त प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव जब एक वैवाहिक कार्यक्रम में भाग लेने वाराणसी गए थे तो बीएचयू अस्पताल में बाबा ठाकुर से उन की मुलाकात के खूब चर्चे हुए थे.

दरअसल, बाबा सुभाष ठाकुर की ताकत का सभी को पता है, इसलिए सभी नेता उन के दरबार में आशीर्वाद लेने जाते हैं. पूर्वांचल में युवाओं का एक बड़ा वर्ग, खासतौर से ठाकुर लौबी के युवा बाबा ठाकुर को अपना हीरो मानते हैं. बाबा ठाकुर के एक इशारे पर वे कुछ भी कर गुजरने के लिए तैयार रहते हैं.

सुभाष सिंह ठाकुर कैसे बना डौन

सुभाष सिंह ठाकुर उर्फ बाबा इतना बड़ा गैंगस्टर कैसे बना, बड़ेबड़े भाई लोग उस से खौफ क्यों खाते हैं, इस की कहानी एकदम फिल्मी है.

70 से 80 के दशक के मध्य की बात है, जब वाराणसी के फूलपुर थानांतर्गत मंगारी गांव का रहने वाला 17 साल का नौजवान सुभाष ठाकुर काम की तलाश में छोटे से गांव से निकल कर सपनों की नगरी मुंबई गया था.

एक साधारण किसान परिवार का युवक सुभाष 5 बहनभाइयों में सब से बड़ा था. बहुत ज्यादा तो पढ़ नहीं सका, क्योंकि परिवार की माली हालत बहुत अच्छी नहीं थी. लेकिन सुभाष के सपने काफी बड़े थे. बचपन से ही वह बौलीवुड की हिंदी फिल्में देख कर उन में गुंडों के सरदारों के किरदार देख कर उन के जैसे रौबदार इंसान बनने के ख्वाब देखता था.

70 से 80 के दशक का यह वो दौर था, जब मुंबई में पूर्वांचल में रहने वाले बेरोजगार नौजवान तेजी से काम की तलाश में मुंबई जा रहे थे. इन में कोई टैक्सी चलाने लगा तो कोई ढाबों पर काम करने लगा तो कुछ ने पावभाजी बेचनी शुरू कर दी.

17 साल की उम्र में सुभाष भी ऐसे ही किसी छोटेमोटे काम को कर के बड़ा आदमी बनने के लिए मुंबई गया था.

नए काम की तलाश में जब सुभाष ठाकुर उर्फ बाबा ने पहली बार मायानगरी मुंबई में कदम रखा, तो शुरू में उसे काफी धक्के खाने पड़े. उस ने देखा कि मुंबई में लोकल मराठी गुंडे और दक्षिण भारतीय गुंडों के कुछ ऐसे छोटेछोटे गुट हैं, जो कोई काम नहीं करते. बल्कि अपनी दबंगई के बल पर दुकानदारों, छोटेमोटे कारोबारियों और टैक्सी वालों से हफ्तावसूली कर के ऐश की जिंदगी बसर करते हैं.

कुछ महीनों में जीतोड़ मेहनत के कई काम करने के बाद सुभाष को लगने लगा कि इस तरह के काम से वह अपना पेट तो भर सकता है, लेकिन कभी अपने उन सपनों को पूरा नहीं कर सकता, जिसे ले कर वह मायानगरी में आया है.

संयोग से उन दिनों एक ऐसा वाकया हो गया, जिस ने सुभाष की जिदंगी बदल दी. विरार इलाके में पावभाजी का ठेला लगाने वाले उस के एक दोस्त से हफ्तावसूली को ले कर मराठी गुंडों का झगड़ा हो गया. सुभाष कदकाठी और ताकत में ऐसा था कि किसी को भी पहली नजर में डरा देता था. सुभाष ने उस दिन पहली बार उन मराठी गुंडों की जम कर पिटाई कर दी.

अंजाम ये हुआ कि लोकल मराठी लड़कों ने पुलिस में अपनी सेटिंग के बूते सुभाष के खिलाफ थाने में रिपोर्ट दर्ज करवा दी. पुलिस ने सुभाष को उठा लिया और जम कर पिटाई कर के उसे जेल भेज दिया.

पूर्वांचल के नौजवानों का बनाया गुट

कुछ दिन बाद उस की जमानत तो हो गई, लेकिन जेल से बाहर आने के बाद भी पुलिस ने सुभाष को परेशान करना नहीं छोड़ा. लोकल मराठी लड़कों को स्थानीय नेताओं की शह थी, जिन के दबाव में पुलिस आए दिन सुभाष को झूठी शिकायत के आधार पर पकड़ लाती और परेशान करती.