पत्नी के प्रेमी से सुख की लालसा

उस दिन मई 2021 की 11 तारीख थी. तीर्थनगरी हरिद्वार के पथरी थाने के थानाप्रभारी अमर चंद्र शर्मा अपने औफिस में बैठे कुछ आवश्यक काम निपटा रहे थे, तभी उन के पास एक महिला आई और बोली, ‘‘साहब, मेरी मदद कीजिए.’’

वह महिला बड़े ही दुखी लहजे में बोली, ‘‘मेरा नाम अंजना है और मैं रानी माजरा गांव में रहती हूं. साहब, परसों 9 मई को मेरा पति संजीव सुबह फैक्ट्री गया था, लेकिन शाम को वापस नहीं लौटा. उस के न लौटने पर उस की फैक्ट्री व परिचितों के घर जा कर पता किया लेकिन उस का कुछ पता नहीं चला. उस के बारे में कुछ पता न चलने पर मैं आप के पास मदद मांगने आई हूं. अब आप ही मेरे पति को तलाश सकते हैं.’’

‘‘ठीक है, हम तुम्हारे पति को खोज निकालेंगे. तुम लिखित तहरीर दे दो और साथ में अपने पति की एक फोटो दे दो.’’ थानाप्रभारी ने कहा.

‘‘ठीक है साहब. मुझे शक है कि मेरे गांव के ही प्रधान ने मेरे पति को गायब कराया है. कहीं उस ने मेरे पति के साथ कुछ गलत न कर दिया हो. इस बात से मेरा दिल बैठा जा रहा है.’’ वह बोली.

‘‘ठीक है, जांच में सब पता लगा लेंगे. अगर प्रधान का इस सब में हाथ हुआ तो उसे सजा जरूर दिलाएंगे.’’ इंसपेक्टर शर्मा ने उसे आश्वस्त करते हुए कहा.

‘‘ठीक है साहब,’’ कह कर वह महिला अंजना वहां से चली गई. कुछ ही देर में वह वापस लौटी और एक तहरीर और फोटो थानाप्रभारी शर्मा को दे गई तो उन्होंने संजीव की गुमशुदगी की सूचना दर्ज करा दी.

थानाप्रभारी शर्मा अभी कुछ प्रयास करते, उस से पहले ही अगले दिन फिर अंजना उन से मिलने आ गई. उस ने गांव के प्रधान द्वारा अपने पति को मार देने का आरोप लगाते हुए लाश जंगल में पड़ी होने की आशंका जाहिर की.

उस ने यह बात उस की इस हरकत से इंसपेक्टर शर्मा को उस पर शक हो गया. ऐसी हरकत तो इंसान तभी करता है, जब वह खुद उस मामले में संलिप्त हो और दूसरे को फंसाने की कोशिश करता है.

अंजना भी जिस तरह से गांव के प्रधान को बारबार इंगित कर रही थी, उस से यही लग रहा था कि अंजना का अपने पति संजीव को गायब कराने में हाथ है और इस में वह गांव के प्रधान को फंसाना चाहती है.

संजीव ने गांव के कई विकास कार्यों के बारे में सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांग रखी थी. इस से प्रधान और संजीव के बीच विवाद चल रहा था. इसी का फायदा शायद अंजना उठाना चाहती थी.

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अंजना पर शक हुआ तो इंसपेक्टर शर्मा ने अंजना के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई. उस में एक नंबर पर अंजना की काफी बातें होने की बात पता चली. 9 मई को भी कई बार बातें हुई थीं. दोनों की लोकेशन भी कुछ देर के लिए साथ में मिली.

अंजना पर जब शक पुख्ता हो गया तो 16 मई, 2021 को थानाप्रभारी शर्मा ने अंजना को पूछताछ के लिए थाने बुलाया. फिर महिला कांस्टेबलों बबीता और नेहा की मौजूदगी में अंजना से काफी सवाल किए, जिन का सही से अंजना जवाब नहीं दे पाई. जब सख्ती की गई तो अंजना ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया.

अंजना ने ही अपने पति संजीव की हत्या की थी. हत्या में उस का साथ उस के प्रेमी शिवकुमार उर्फ शिब्बू ने दिया था, जोकि धनपुरा गांव में रहता था. उसी ने हत्या के बाद संजीव की लाश पैट्रोल डाल कर जलाई थी. पुलिस ने शिवकुमार को उस के घर से गिरफ्तार कर लिया.

दोनों की निशानदेही पर पीपली गांव के जंगल के काफी अंदर जा कर संजीव की अधजली लाश पुलिस ने बरामद कर ली. मौके से ही हत्या में प्रयुक्त रस्सी और प्लास्टिक बोरी भी बरामद हो गई.

लाश को पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिया गया. दोनों अभियुक्तों से पूछताछ के बाद जो कहानी निकल कर सामने आई, वह काफी हैरतअंगेज थी.

उत्तराखंड के शहर हरिद्वार के पथरी थाना क्षेत्र के गांव रानी माजरा में रहता था संजीव. संजीव पदार्था स्थित पतंजलि की फूड पार्क कंपनी में काम करता था. परिवार के नाम पर उस की पत्नी और 12 साल का बेटा सनी था.

जब परिवार का मुखिया सही न चले तो परिवार का बिगड़ना तय होता है. संजीव में कई गलत आदतें थीं, जिस से अंजना काफी परेशान रहती थी. संजीव को अप्राकृतिक यौन संबंध बनवाने का शौक था, जिस के चलते वह शारीरिक और मानसिक रूप से बीमार भी रहता था.

कभीकभी उस की मानसिक स्थिति काफी बदतर हो जाती थी. घर के सामने से कोई कुत्ता गुजर जाता तो वह कुत्ते को जम कर मारतापीटता था. कई बार उस ने पुलिस कंट्रोल रूम में फोन कर के पुलिसकर्मियों को गालियां दीं. पुलिसकर्मियों ने शिकायत की तो उस की हालत देख कर थाना स्तर से कोई काररवाई नहीं की जाती. उस के दिमाग में कब क्या फितूर बस जाए कोई नहीं जान सकता था.

धनपुरा गांव में रहता था 45 वर्षीय शिवकुमार उर्फ शिब्बू. शिवकुमार के परिवार में पत्नी, एक बेटी और एक बेटा था. शिवकुमार दूध बेचने का काम करता था. संजीव के घर वह पिछले 10 सालों से दूध देने आता था.

संजीव से उस की दोस्ती थी. संजीव ने शिवकुमार को अपनी पत्नी अंजना से मिलाया. दोनों मे दोस्ती कराई. दोस्ती होने पर शिवकुमार दूध देने घर के अंदर तक आने लगा. अंजना से वह घंटों बैठ कर बातें करने लगा. कुछ ही दिनों में वे दोनों काफी घुलमिल गए. उन के बीच हंसीमजाक भी होने लगा.

एक दिन दूध देने के बाद शिवकुमार अंजना के पास बैठ गया. उसे देखते हुए बोला, ‘‘भाभी, लगता है आप अपना खयाल नहीं रखती हो?’’

अंजना को उस की बात सुन कर हैरत हुई, बोली, ‘‘अरे, भलीचंगी तो हूं …और कैसे खयाल रखूं?’’

‘‘सेहत पर तो आप ध्यान दे रही हो, जिस से स्वस्थ हो लेकिन अपने हुस्न को निखारनेसंवारने में बिलकुल भी ध्यान नहीं दे रही हो.’’

‘‘ओह! तो यह बात है. मैं भी सोचूं कि मैं तो अच्छीखासी हूं.’’ फिर दुखी स्वर में बोली, ‘‘अपने हुस्न को संवार कर करूं भी तो क्या.  जिस के साथ बंधन में बंधी हूं, वह तो ध्यान ही नहीं देता. उस का शौक भी दूसरी लाइन का है. मुझे खुश करने के बजाय खुद को खुश करने के लिए लोगों को ढूंढता फिरता है.’’

‘‘क्या मतलब…?’’ चौंकते हुए बोला.

शिवकुमार कुछकुछ समझ तो गया था लेकिन अंजना से खुल कर पूछने के लिए उस से सवाल किया.

‘‘यही कि वह आदमी है और आदमी से ही प्यार करता है, उसे औरत में कोई लगाव नहीं है. जैसेतैसे उस ने कुछ दिन मुझे बेमन से खुशी दी, जिस की वजह से एक बेटा हो गया. उस के बाद उस ने मेरी तरफ देखना ही बंद कर दिया. उस के शौक ही निराले हैं.’’

इस पर शिवकुमार उस से सुहानुभूति जताते हुए बोला, ‘‘यह तो आप के साथ अत्याचार हो रहा है, शारीरिक और मानसिक दोनों तरह से. आप कैसे सह लेती हो इतना सब?’’

‘‘क्या करूं…जब नसीब में ही सब लिखा है तो भुगतना तो पडे़गा ही.’’ दुख भरे लहजे में अंजना ने कहा.

‘‘जैसे वह आप का खयाल नहीं रखता, वैसे आप भी उस का खयाल मत रखो. आप का भी अपना वजूद है, आप को भी अपनी खुशी का खयाल रखने का हक है.’’ उस ने उकसाया.

‘‘खुद को खुश रखने की कोशिश भी करूं तो कैसे, संजीव मेरी खुशियों में आग लगाने में पीछे नहीं हटता. अब उस से बंध गई हूं तो उस के साथ ही निभाना पड़ेगा.’’

‘‘आप अपनी खुशी के लिए कोई भी कदम उठा सकती हैं. इस के लिए आप पर कोई बंधन नहीं है. जरूरत है तो आप के एक कदम बढ़ाने की.’’

‘‘कदम तो तभी बढ़ेंगे, जब कोई मंजिल दिखे. बिना मंजिल के कदम बढ़ाने से कोई फायदा नहीं, उलटा कष्ट ही होगा.’’ वह बेमन से बोली.

‘‘मंजिल तो आप के सामने ही है लेकिन आप ने देखने की कोशिश ही नहीं की.’’ शिवकुमार ने अंजना की आंखों में देखते हुए कहा.

शिवकुमार की बात सुन कर अंजना ने भी उस की आंखों में देखा तो वहां उसे अपने लिए उमड़ता प्यार दिखा. अंजना के दिल को सुकून मिला कि उसे भी कोई दिल से चाहता है और उस का होना चाहता है.

‘‘लेकिन शिव, हम दोनों का ही अपना बसाबसाया परिवार है. ऐसे में एकदूसरे की तरफ कदम बढ़ाना सही होगा.’’ अंजना ने सवाल किया.

‘‘मेरी छोड़ो, अपनी बात करो. कौन सा परिवार… परिवार के नाम पर पति और एक बेटा. पति ऐसा कि जो अपने लिए ही मस्ती खोजता रहता है, जिसे अपनी पत्नी की जरूरतों का कोई खयाल नहीं और न ही उस की भावनाओं की कद्र करता है. ऐसे इंसान से दूर हो जाना बेहतर है.’’

‘‘कह तो तुम ठीक रहे हो शिव. जब उसे मेरा खयाल नहीं तो मैं क्यों उस की चिंता करूं.’’

‘‘हां भाभी, मैं आप को वह सब खुशियां दूंगा, जिस की आप हकदार हैं. बस आप एक बार हां तो कहो.’’

अंजना ने उस की बात सुन कर मूक सहमति दी तो शिवकुमार ने उसे बांहों में भर कर कर सीने से लगा लिया. उस के बाद शिवकुमार ने अंजना को वह खुशी दी, जो अंजना पति से पाने को तरसती थी. उस दिन शिवकुमार ने अंजना की सूखी जमीन को फिर से हराभरा कर दिया.

फिर तो उन के बीच नाजायज संबंध का यह रिश्ता लगभग हर रोज निभाया जाने लगा. अंजना का चेहरा अब खिलाखिला सा रहने लगा. वह अब अपने को सजानेसंवारने लगी थी. शिवकुमार के बताए जाने पर वह शिवकुमार के दिए जाने वाले कच्चे दूध से चेहरे की सफाई करती. दूध उबालने के बाद पड़ने वाली मोटी मलाई को अपने चेहरे पर लगाती, जिस से उस के चेहरे की चमक बनी रहे.

 

समय का पहिया निरंतर आगे बढ़ता गया. संजीव से उन के संबंध छिपे नहीं रहे. उसे पता चला तो उसे बिलकुल गुस्सा नहीं आया. अमूमन कोई भी पति अपनी पत्नी के अवैध रिश्ते के बारे में जानता तो गुस्सा करता, पत्नी के साथ मारपीट लड़ाईझगड़ा करता, लेकिन संजीव के मामले में ऐसा कुछ नहीं था. उस के दिमाग में तो और ही कुछ चल रहा था. जो उस के दिमाग में चल रहा था उसे सोच कर वह मंदमंद मुसकरा रहा था.

अब संजीव दोनों पर नजर रखने लगा. एक दिन उस ने दोनों को शारीरिक रिश्ता बनाते रंगेहाथ पकड़ लिया. उसे आया देख कर शिवकुमार और अंजना सहम गए.

संजीव ने दोनों को एक बार खा जाने वाली नजरों से देखा, फिर उन के सामने कुरसी डाल कर आराम से बैठ गया और बोला, ‘‘तुम दोनों अपना कार्यक्रम जारी रखो.’’

उस के बोल सुन कर शिवकुमार और अंजना हैरत से एकदूसरे को देखने लगे. उन के आश्चर्य की सीमा नहीं थी. संजीव ने जो कहा था उन की उम्मीद के बिलकुल विपरीत था. संजीव के दिमाग में क्या चल रहा है, दोनों यह जानने के लिए उत्सुक थे.

उन दोनों को हैरत में पड़ा देख कर संजीव मुसकरा कर बोला, ‘‘चिंता न करो, मुझे तुम दोनों के संबंधों से कोई एतराज नहीं है. मैं तो खुद तुम दोनों को संबंध बनाते देखने को आतुर हूं.’’

संजीव के बोल सुन कर अंजना के अंदर की औरत जागी, ‘‘कैसे मर्द हो जो अपनी ही बीवी को पराए मर्द के साथ बिस्तर पर देखना चाहते हो. तुम इतने गिरे हुए इंसान हो, मैं तो सपने में भी नहीं सोच सकती थी.’’

‘‘तुम्हारे प्रवचन खत्म हो गए हों तो आगे का कार्यक्रम शुरू करो.’’ बड़ी ही बेशरमी से संजीव बोला.

‘‘क्यों कोई जबरदस्ती है, हम दोनों ऐसा कुछ नहीं करेंगे.’’ अंजना ने सपाट लहजे में बोल दिया.

संजीव ठहाके लगा कर हंसा, फिर बोला, ‘‘मुझे न बोलने की स्थिति में नहीं हो तुम दोनों. मैं ने बाहर वालों को तुम दोनों के नाजायज संबंधों के बारे में बता दिया तो समाज में मुंह दिखाने लायक नहीं रहोगे.’’

बदनामी का भय इंसान को अंदर तक हिला कर रख देता है. अंजना और शिवकुमार भी बदनाम नहीं होना चाहते थे. वैसे भी जिस से उन को डरना चाहिए था, वह खुद उन को संबंध बनाने की छूट दे रहा था. ऐसे में दोनों ने संबंध बनाए रखने के लिए संजीव की बात मान ली.

अंजना और शिवकुमार शारीरिक संबंध बनाने लगे. संजीव उन के पास ही बैठ कर अपनी आंखों से उन को ऐसा करते देखता रहा और आनंदित होता रहा. किसी पोर्न मूवी में फिल्माए जाने वाले दृश्य की तरह ही सब कुछ वहां चल रहा था.

अंजना के साथ संबंध बनाने के बाद संजीव ने शिवकुमार से अपने साथ अप्राकृतिक संबंध बनाने को कहा. शिवकुमार ने न चाहते हुए उस की बात मान ली. संजीव को उस की खुशी दे दी. अब तीनों के बीच बेधड़क संबंधों का यह नाजायज खेल बराबर खेला जाने लगा.

अंजना और शिवकुमार को संजीव ब्लैकमेल कर रहा था. दोनों को अपने प्यार में बाधा पहुंचाने वाला और बदनाम करने की धमकी देने वाला संजीव अब अखरने लगा था. उस से छुटकारा पाने का एक ही तरीका था, वह था उसे मौत की नींद सुला देने का. दोनों ने संजीव को ठिकाने लगाने का फैसला किया तो उस पर योजना भी बना ली.

शिवकुमार का फेरूपुर गांव में खेत था, उसी में उस ने अपना एक अलग मकान बनवा रखा था. 9 मई को अंजना संजीव को यह कह कर वहां ले गई कि वहीं तीनों मौजमस्ती करेंगे. संजीव अंजना के जाल में फंस गया. उस के साथ शिवकुमार के मकान पर पहुंच गया. शिवकुमार वहां पहले से मौजूद था.

शिवकुमार के पहुंचते ही शिवकुमार ने अंजना को इशारा किया. अंजना ने तुरंत पीछे से संजीव को दबोच लिया. दुबलापतला संजीव अंजना के चंगुल से तमाम कोशिशों के बाद भी छूट न सका.

शिवकुमार ने संजीव के गले में रस्सी का फंदा डाल कर कस दिया, जिस से दम घुटने से संजीव की मौत हो गई. शिवकुमार ने उस की लाश प्लास्टिक बोरी में डाल कर बोरी बंद कर दी और उस बोरी को बाइक पर रख कर वह पीपली गांव के जंगल में ले गया और जंगल में काफी अंदर जा कर संजीव की लाश फेंक दी. लाश ठिकाने लगा कर वह वापस आ गया.

योजना के तहत 11 मई, 2021 को अंजना ने पथरी थाने में पति की गुमशुदगी दर्ज करा दी. अंजना ने ग्राम प्रधान पर हत्या का शक जाहिर किया, जिस से हत्या में ग्रामप्रधान फंस जाए. इधर अंजना को पता नहीं क्यों भय सताने लगा कि वे दोनों किसी बड़ी मुसीबत में फंसने वाले हैं.

इस भय के कारण 14 मई को ईद के दिन अंजना ने शिवकुमार से संपर्क किया और शिवकुमार से कहा कि लाश को पैट्रोल डाल कर जला दो. शिवकुमार ने फिर से जंगल जा कर संजीव की लाश पर पैट्रोल डाल कर जला दी.

लेकिन दोनों की ज्यादा होशियारी काम न आई, दोनों पुलिस के हत्थे चढ़ गए. चूंकि अंजना ही वादी थी, ऐसे में पीडि़त को गुनहगार साबित करना पुलिस के लिए टेढ़ी खीर साबित होता है. लेकिन थानाप्रभारी अमर चंद्र शर्मा ने बड़ी सूझबूझ से पहले पुख्ता सुबूत जुटाए, फिर अंजना को उस के प्रेमी शिवकुमार के साथ गिरफ्तार किया.

थानाप्रभारी शर्मा ने दोनों के खिलाफ भादंवि की धारा 302/201/120बी के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया. कानूनी औपचारिकताएं पूरी कर दोनों को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधार

चाहत दूसरी शादी की : पति बना रिश्तों में बोझ

21अप्रैल, 2021 को सुबह के यही कोई 6 बजे थे. तभी गांव सबरामपुरा के रहने वाले राकेश ओझा के घर से रोने की आवाज आने लगी. घर में एक महिला जोरजोर से रोते हुए कह रही थी, ‘‘अरे मेरे भाग फूट गए रे..मेरे पति ने फांसी लगा ली रे..कोई आओ रे. बचाओ रे..’’

रुदन सुन कर आसपड़ोस के लोग दौड़ कर राकेश ओझा के घर पहुंचे. तब तक मृतक की पत्नी मंजू ओझा ने कमरे में पंखे के हुक से साड़ी का फंदा बना कर झूलते मृत पति को फंदे से नीचे उतार लिया था.

राकेश ओझा की लाश के पास उस की पत्नी मंजू सुबकसुबक कर रो रही थी. मृतक का बड़ा भाई राजकुमार ओझा भी खबर सुन कर वहां पहुंच गया था. वह भी भाई की मौत पर आश्चर्यचकित रह गया.

राजकुमार ओझा ने यह सूचना थाना कालवाड़ में दे दी. सूचना पा कर थानाप्रभारी गुरुदत्त सैनी पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर जा पहुंचे.

घटनास्थल की जांच कर वीडियोग्राफी व फोटोग्राफी कराई गई. मृतक की पत्नी मंजू ओझा से भी पूछताछ की गई. मंजू ने बताया कि रात में राकेश ने किसी समय साड़ी का फंदा गले में डाल कर फांसी लगा ली. आज सुबह जब मैं उठ कर कमरे में आई तो इन्हें फांसी पर लटका देख कर नीचे उतारा कि शायद जिंदा हों. मगर यह तो चल बसे थे. इतना कह कर वह फिर रोने लगी.

पुलिस ने वहां मौजूद मृतक के भाइयों और अन्य परिजनों से भी पूछताछ की. पूछताछ के बाद पुलिस को मामला संदिग्ध लग रहा था. आसपास के लोगों ने थानाप्रभारी को बताया कि राकेश आत्महत्या नहीं कर सकता. उसी समय मंजू रोने का नाटक करते हुए पुलिस की बातों को गौर से सुन रही थी. पुलिस वाले जब चुप होते तो वह रोने लग जाती. पुलिस वाले आपस में बोलते तो मृतक की पत्नी चुप हो कर सुनने लगती.

थानाप्रभारी गुरुदत्त सैनी ने संदिग्ध घटना की खबर उच्चाधिकारियों को दे कर दिशानिर्देश मांगे. जयपुर (पश्चिम) डीसीपी प्रदीप मोहन शर्मा के निर्देश पर एडिशनल डीसीपी राम सिंह शेखावत, एसीपी (झोटवाड़ा) हरिशंकर शर्मा ने कालवाड़ थानाप्रभारी से राकेश ओझा की संदिग्ध मौत मामले की पूरी जानकारी ले कर उन्हें कुछ दिशानिर्देश दिए.

थानाप्रभारी गुरुदत्त सैनी ने घटनास्थल की काररवाई पूरी करने के बाद शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. पोस्टमार्टम के बाद शव परिजनों को सौंप दिया गया. मृतक राकेश का शव ले कर उस की पत्नी मंजू ओझा अपने देवर, जेठ वगैरह एवं तीनों बच्चों के साथ अपने पति के पुश्तैनी गांव रुआरिया, मुरैना लौट गई.

गांव रुआरिया में राकेश का अंतिम संस्कार कर दिया गया. राकेश ओझा बेहद जिंदादिल इंसान था. ऐसे में उस के इस तरह आत्महत्या करने की बात किसी के भी गले नहीं उतर रही थी. राकेश ओझा की मौत पुलिस को संदिग्ध लगी थी. पुलिस को जब पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिली तो शक पुख्ता हो गया.

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पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार मृतक राकेश को गला घोंट कर मारा गया था. तब डीसीपी प्रदीप मोहन शर्मा ने एक टीम गठित कर निर्देश दिए कि जल्द से जल्द राकेश ओझा हत्याकांड का परदाफाश कर हत्यारोपियों को गिरफ्तार किया जाए. टीम में एसीपी हरिशंकर शर्मा, थानाप्रभारी गुरुदत्त सैनी आदि को शामिल किया गया. टीम का निर्देशन एडिशनल डीसीपी रामसिंह शेखावत के हाथों सौंपा गया.

पुलिस टीम ने साइबर सेल की मदद लेने के साथ मृतक के पड़ोस के लोगों से भी जानकारी ली. पुलिस टीम को जानकारी मिली कि मृतक की बीवी मंजू के पड़ोस में रहने वाले बीरेश उर्फ सोनी ओझा से अवैध संबंध थे. राकेश और बीरेश ओझा दोस्त थे और दोनों पीओपी का काम करते थे.

बीरेश अकसर राकेश की गैरमौजूदगी में उस के घर आयाजाया करता था. लोगों ने यहां तक कहा कि बीरेश जैसे ही राकेश की गैरमौजूदगी में उस के घर जाता, मंजू और बीरेश कमरे में बंद हो जाते थे.

यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस ने मंजू और बीरेश उर्फ सोनी ओझा के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई. काल डिटेल्स से पता चला कि जिस रात को राकेश की हत्या हुई थी, उस रात 10 बजे मंजू और बीरेश के बीच बात हुई थी. उस के बाद भी हर रोज दिन में कईकई बार बात होती रही. राकेश की हत्या से पहले भी मंजू और बीरेश के बीच दिन में कई बार बात होने का पता चला.

पुलिस को पुख्ता प्रमाण मिल गए थे कि राकेश की हत्या कर के उसे आत्महत्या दिखाने की साजिश रची गई थी. इस के बाद पुलिस ने बीरेश ओझा की गिरफ्तारी के प्रयास शुरू किए. मगर वह कहीं चला गया था. कुछ दिन बाद वह जैसे ही अपने घर आया, कांस्टेबल सुनील कुमार को इस की खबर मिल गई. तब पुलिस ने 27 अप्रैल, 2021 को उसे हिरासत में ले लिया.

बीरेश को थाना कालवाड़ ला कर पूछताछ की गई. पूछताछ में वह ज्यादा देर तक पुलिस के सवालों के आगे टिक नहीं पाया और अपनी प्रेमिका मंजू ओझा के कहने पर राकेश ओझा की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली. इस के बाद पुलिस ने मृतक की पत्नी मंजू को भी गिरफ्तार कर लिया.

मंजू ओझा और बीरेश ओझा उर्फ सोनी से पूछताछ के बाद जो कहानी प्रकाश में आई, वह इस प्रकार से है—

राकेश ओझा मूलरूप से मध्य प्रदेश के मुरैना जिले के गांव रुआरिया का रहने वाला था. वह काफी पहले गांव से जयपुर आ कर पीओपी का कामधंधा करने लगा था. राकेश की शादी मंजू से हुई थी. मंजू गोरे रंग की अच्छे नैननक्श की खूबसूरत युवती थी. शादी के कुछ महीने बाद राकेश पत्नी मंजू को भी अपने साथ जयपुर ले आया था.

राकेश तीजानगर इलाके के सबरामपुरा में किराए का घर ले कर बीवी के साथ रहता था. वक्त के साथ मंजू 3 बच्चों की मां बन गई. इन में एक बेटी और 2 बेटे हैं, जिन की उम्र 7 साल, 4 साल और 2 साल है.

राकेश पीओपी का अच्छा कारीगर था. इस कारण उस की मजदूरी भी अच्छी थी. वह महीने में 20-25 हजार रुपए आसानी से कमा लेता था. इस कारण उस के परिवार कागुजरबसर अच्छे से हो जाती थी. राकेश का छोटा भाई घनश्याम और बड़ा भाई राजकुमार भी जयपुर में काम करते थे. ये भी अपने परिवारों के साथ अलगअलग किराए पर रहते थे.

राकेश के पड़ोस में बीरेश उर्फ सोनी ओझा भी रहता था. बीरेश भी पीओपी का काम करता था. इसलिए दोनों दोस्त बन गए. बीरेश कुंवारा था और देखने में हैंडसम था. दोस्ती के नाते वह राकेश के घर आनेजाने लगा.

बीरेश की नजर राकेश की बीवी मंजू पर पड़ी तो वह उस के रूपयौवन पर मर मिटा. मंजू की उम्र उस समय 33 साल थी और वह उस समय 2 बच्चों की मां थी. इस के बावजूद उस की उम्र 20-22 से ज्यादा नहीं लगती थी.

मंजू का गोरा रंग व मादक बदन बीरेश की निगाहों में चढ़ा तो वह मंजू के इर्दगिर्द मंडराने लगा. बीरेश अकसर मौका पा कर राकेश की गैरमौजूदगी में उस के घर आता और मंजू की खूबसूरती की तारीफें करता. मंजू समझ गई कि आखिर बीरेश उस से क्या चाहता है.

राकेश ज्यादातर समय अपने काम पर बिताता और रात को घर लौटता तो खाना खा कर सो जाता. पत्नी की इच्छा पर वह ध्यान नहीं देता था. ऐसे में मंजू ने अपने से उम्र में 6 साल छोटे बीरेश से पहले नजदीकियां बढ़ाईं और फिर अपनी हसरतें पूरी कीं. इस के बाद यह सिलसिला चलता रहा.

बीरेश नई उम्र का जवान लड़का था. ऊपर से वह कुंवारा भी था. ऐसे में मंजू उसे पति से ज्यादा चाहने लगी.

काफी समय तक दोनों लुपछिप कर गुलछर्रे उड़ाते रहे. किसी को कानोंकान खबर नहीं हुई. मगर जब अकसर राकेश की गैरमौजूदगी में बीरेश उस के घर आ कर दरवाजा बंद करने लगा तो आसपास के लोगों में कानाफूसी होने लगी. इसी दौरान मंजू तीसरे बच्चे की मां बन गई.

मंजू और बीरेश की बातें और आपस में व्यवहार देख कर राकेश को उन के संबंधों पर शक होने लगा था. ऐसे में राकेश को एक पड़ोसी ने इशारों में कह दिया कि बीरेश से दोस्ती खत्म करो. उस का घर आना बंद कराओ. यही तुम्हारे लिए ठीक रहेगा.

इस के बाद राकेश ने मंजू से सख्ती करनी शुरू कर दी तो मंजू बौखला गई. उस की आंखों में पति खटकने लगा.

मौका मिलने पर मंजू अपने प्रेमी बीरेश से मिली. दोनों काफी दिनों बाद मिले थे. मंजू ने बीरेश से कहा, ‘‘राकेश को हमारे संबंधों पर शक हो गया है. वह तुम से बात करने की मनाही करता है. लेकिन मैं तुम्हारे बगैर जी नहीं पाऊंगी. राकेश हम दोनों को जीने नहीं देगा. ऐसा कुछ करो कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे.’’

‘‘मंजू, मैं भी तुम्हारे बिना जी नहीं सकता. राकेश को रास्ते से हटा कर हम दोनों शादी कर लेंगे. इस के बाद हम अपने हिसाब से मौजमजे से जिंदगी जिएंगे.’’ बीरेश बोला.

‘‘मैं भी तुम से शादी करना चाहती हूं, मगर यह राकेश की मौत के बाद ही संभव है. हमें ऐसी योजना बनानी है कि राकेश की हत्या को आत्महत्या साबित करें. बाद में जब मामला ठंडा पड़ जाएगा तब हम शादी कर लेंगे.’’ मंजू ने कहा.

इस के बाद दोनों ने योजना बना ली. 20 अप्रैल, 2021 की रात मंजू ने तीनों बच्चों को खाना खिला कर कमरे में सुला दिया और उन के कमरे का दरवाजा बाहर से बंद कर दिया.

मंजू ने राकेश को खाने में नींद की गोलियां दे दी थीं, जिस से वह कुछ ही देर में गहरी नींद में चला गया. फिर रात 10 बजे मंजू ने बीरेश को फोन कर घर बुला लिया.

बीरेश और मंजू राकेश के कमरे में पहुंचे. बीरेश ने राकेश के गले में कपड़ा लपेट कर कस दिया. थोड़ा छटपटाने के बाद वह मौत की आगोश में चला गया.

राकेश मर गया. तब बीरेश और मंजू ने साड़ी राकेश के गले में लपेट कर उस के शव को पंखे के हुक से लटका दिया ताकि लोगों को लगे कि राकेश ने आत्महत्या की है.

इस के बाद बीरेश अपने घर चला गया और मंजू सो गई. अगली सुबह 6 बजे उठ कर मंजू ने योजनानुसार राकेश के कमरे में जा कर रोनाचिल्लाना शुरू कर दिया.

तब रोने की आवाज सुन कर आसपड़ोस के लोग और मृतक के भाई वगैरह घटनास्थल पर आए. तब तक मंजू ने राकेश का शव फंदे से उतार कर फर्श पर रख लिटा दिया था. इस के बाद पुलिस को सूचना दी गई और पुलिस ने काररवाई कर राकेश ओझा हत्याकांड का परदाफाश किया.

पुलिस ने राजकुमार ओझा की तरफ से मंजू ओझा और उस के प्रेमी बीरेश ओझा उर्फ सोनी के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201, 120बी के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली.

आरोपियों से मोबाइल और गला घोंटने का कपड़ा व साड़ी जिस का फंदा बनाया गया था, पुलिस ने बरामद कर ली. पूछताछ के बाद मंजू और बीरेश को 28 अप्रैल, 2021 को कोर्ट में  पेश कर न्यायिक हिराससत में भेज दिया गया.

पति और कातिल, दोनों में से कौन बड़ा हैवान – भाग 3

मौसी ने पूछा तो उस ने शराब के नशे में बताया कि उस से एक बड़ा गुनाह हो गया है. उस ने किसी औरत को मार दिया है. मौसी ने पुलिस को बताया कि यह सुन कर वह बहुत डर गई थी, इसलिए उस ने रामवीर से कह दिया कि वह तुरंत यहां से चला जाए. क्योंकि वह किसी पचड़े में नहीं पड़ना चाहती.

रामवीर तक पहुंचने के लिए उस की मौसी अंतिम सिरा थी, जहां से उस के मिलने की उम्मीद थी, लेकिन इस के बाद पुलिस को उस की कोई खबर नहीं मिली.

रामवीर तक पहुंचने का कोई रास्ता नहीं बचा था, लिहाजा एसीपी अंकिता शर्मा ने क्राइम ब्रांच की साइबर टीम को जांच के काम में साथ जोड़ कर रामवीर के मोबाइल को ट्रैक करने के काम पर लगा दिया.

रामवीर के मोबाइल की ट्रैकिंग के दौरान पुलिस को पता चला कि रामवीर लगातार सोनी के पति संदीप के साथ बातचीत कर उस के साथ संपर्क में बना हुआ था. पुलिस ने जब संदीप से पूछा कि क्या रामवीर साहू ने उस के साथ संपर्क किया है तो वह साफ मुकर गया कि रामवीर ने उस के साथ कोई संपर्क किया है.

पुलिस टीम समझ गई कि दाल में कुछ काला है जिस कारण संदीप सफेद झूठ बोल रहा है. पुलिस ने संदीप को बिना कुछ बताए उस के और रामवीर के मोबाइल की मौनिटरिंग और उस पर नजर रखनी शुरू कर दी.

7 फरवरी, 2022 को दोपहर में मोबाइल ट्रैकिंग से पता चला कि वे दोनों महामाया फ्लाईओवर के नीचे आपस में मिलने वाले हैं. इस सूचना के बाद थानाप्रभारी बी.एस. राठी ने अपनी टीम के साथ सादा कपड़ों में आसपास छिप कर निगरानी शुरू कर दी.

दोपहर करीब 3 बजे रामवीर साहू पहचान छिपाने के लिए सिर पर कपड़े का साफा बांध कर संदीप से मिलने पहुंचा तो पुलिस ने उन दोनों को हिरासत में ले लिया.

पुलिस की टीम दोनों को ले कर थाने पहुंची और उन से पूछताछ हुई तो मामूली पूछताछ के बाद ही सोनी यादव की हत्या का खुलासा हो गया.

दरअसल, संदीप ने बताया कि उसी ने अपनी पत्नी सोनी की हत्या रामवीर साहू के द्वारा पैसा दे कर करवाई थी.

संदीप की जब सोनी से शादी हुई तब दोनों की जिंदगी बेहद खुशहाल थी और संदीप सोनी को प्यार भी बहुत करता था. लेकिन एक दिन सोनी जब बाथरूम में नहा रही थी तो संदीप ने वैसे ही उस का मोबाइल चैक कर लिया.

उस दिन संदीप यह देख कर हैरान रह गया कि उस की बीवी सोनी उसे धोखा दे रही थी. शादी से पहले से ही उस के अपने गांव के अजय से संबंध थे. संदीप ने सोनी की सच्चाई उस पर उजागर नहीं होने दी, लेकिन इस दिन के बाद से वह सोनी से छुटकारा पाने की तरकीब सोचने लगा.

सोनी से छुटकारा पाने की सोच के पीछे एक दूसरी वजह यह भी थी कि अपनी ससुराल कासगंज में आतेजाते संदीप अपनी सब से छोटी साली रानी, जो सभी बहनों में सब से ज्यादा सुंदर थी, को पसंद करने लगा था.

सोनी से छुटकारा पाने की एक वजह यह भी थी कि डेढ़ साल होने को आया लेकिन अभी तक सोनी के मां बनने की कोई गुंजाइश नहीं बनी तो संदीप ने डाक्टरों को दिखाया तो उन्होंने बताया कि सोनी के मां बनने की संभावना बहुत कम है.

संदीप के पास सोनी से छुटकारा पाने की 3 वजह हो गई थीं. अब वह किसी भी हालत में सोनी से छुटकारा पा कर अपनी साली से शादी करने का फैसला कर चुका था.

संदीप ने फैसला किया कि अगर सही योजना बना कर सोनी की हत्या करवा दी जाए तो रानी से शादी का रास्ता साफ हो सकता है.

इस काम को कैसे अंजाम दिया जाए, यह बात सोच ही रहा था कि 19 जनवरी को अचानक उस की कालोनी में रहने वाला रामवीर जो उस का दोस्त भी बन चुका था, शाम को हमेशा की तरह दारू पीने के बाद उस के पास कचौरी खाने आया.

काम खत्म करने की तैयारी कर रहे संदीप से अचानक रामवीर ने अपनी आर्थिक तंगी का रोना रोते हुए कह दिया कि जिंदगी में पैसा बहुत बड़ी चीज है. इस को हासिल करने के लिए किसी का खून भी करना पड़े तो कर देना चाहिए.

रामवीर के मुंह से यह बात सुनते ही संदीप के दिमाग की बत्ती जलने लगी, उसे लगा कि अगर बात बढ़ाई जाए तो रामवीर उस का काम कर सकता है.

‘‘तो भाई कर दे तू भी खून. कमा ले पैसा.’’ संदीप ने अपनी तरफ से रामवीर को परखने के लिए पत्ता फेंका.

‘‘अरे भाई ऐसे ही किसी का खून कैसे कर दूं. कोई काम बताए, माल दे तभी तो करूं ये काम भी.’’

‘‘अगर मैं कोई काम बताऊं तो करेगा?’’ संदीप ने लोहा गरम होते देख तुरंत पूछ लिया.

‘‘तुझे किस का काम कराना है और तू पैसा कहां से देगा,’’ रामवीर की पुतलियां भी सोच में सिकुड़ गईं.

‘‘वो छोड़, तुझे तेरे काम का पैसा मिलेगा. पहले ये बता काम करेगा,’’ संदीप ने पूछा.

‘‘हां भाई, माल देगा तो काम क्यों नहीं करूंगा.’’ रामवीर ने उत्साहित होते हुए कहा.

‘‘तो ठीक है, मेरी बीवी को मार दे, पूरे 70 हजार रुपए दूंगा.’’

‘‘अबे पागल हो गया है क्या तू, जो अपनी बीवी को मरवाना चाहता है?’’ रामवीर ने फटी आंखों से पूछा.

‘‘वजह एक नहीं कई हैं भाई. एक तो कमीनी का शादी के पहले से ही गांव में किसी यार से चक्कर चल रहा है. दूसरा वह मां नहीं बन सकती और तीसरा मुझे उस की छोटी बहन बहुत पसंद है. इस का काम तमाम हो जाए तो मैं उस से शादी कर लूंगा.’’ संदीप ने इस दिन अपने मन की बात रामवीर को बताई तो उस ने कहा कि अभी शराब बहुत पी ली है. वह काम करेगा या नहीं, इस बारे में सोच कर कल बताएगा.

मामला बनता देख संदीप ने चलते समय रामवीर को 3 हजार रुपए दे दिए. रामवीर फिर से शराब के ठेके पर गया और फिर शराब पी और रात को घर चला गया. रामवीर ने सुबह शराब का नशा उतर जाने पर संदीप की कही बातों पर विचार किया तो काफी सोचविचार कर दोपहर एक बजे फिर से महामाया फ्लाईओवर के नीचे संदीप के ठिकाने पर पहुंच गया.

संदीप ने उस से पूछा, ‘‘क्या इरादा किया भाई?’’

‘‘इरादा तो ठीक है भाई, लेकिन तूने अपनी बीवी के मौत की कीमत बहुत कम लगाई है.’’

‘‘क्यों, तुझे कितना चाहिए?’’ संदीप ने पूछा.

‘‘देख, तू अपना दोस्त है तेरी परेशानी भी जायज है. लेकिन भी अगर कम से कम डेढ़ लाख खर्च करे तो काम किया जा सकता है.’’

थोड़ी देर तक संदीप और रामवीर के बीच कत्ल करने के लिए दी जाने वाली रकम को ले कर सौदेबाजी होती रही.

जब संदीप ने देखा कि रामवीर इस से कम पैसा लेने के लिए टस से मस नहीं हो रहा तो उस ने कहा, ‘‘ठीक है भाई, तुझे इतने ही पैसे मिलेंगे लेकिन काम बड़ी सफाई से होना चाहिए. काम होते ही सुबह पैसे दे दूंगा.’’ कहते हुए संदीप ने जेब से 2 हजार रुपए और निकाले और रामवीर की तरफ बढ़ाते हुए कहा, ‘‘हो सके तो आज ही काम कर दे. शाम तक कालोनी में वैसे भी सन्नाटा रहेगा, मैं यहां हूं और सोनी घर में अकेली है. बस, जा कर ठिकाने लगा दे.’’

सारी बात तय हो गई तो डेढ़ लाख में सोनी को मारने की बात कह कर रामवीर वहां से निकल गया. उस ने उसी समय अपना मोबाइल भी बंद कर दिया. क्योंकि उस ने टीवी सीरियलों में देखा था कि मोबाइल की लोकेशन से पुलिस कातिल को खोज लेती है.

सब से पहले वह निकट के शराब ठेके पर पहुंचा. जम कर शराब पी. उस के बाद करीब 4 बजे संदीप के घर पहुंच कर दरवाजा खटखटाया.

उस वक्त पूरी कालोनी में सन्नाटा पसरा हुआ था. सोनी ने अंदर से ही पूछा, ‘‘कौन है?’’ तो उस ने बता दिया, ‘‘भाभीजी, मैं हूं साहू. संदीप ने आप को देने के लिए पैसे भेजे हैं.’’ रामवीर ने बात ही ऐसी की थी कि सोनी ने दरवाजा खोल दिया. वैसे भी वह साहू को जानती थी.

लेकिन जैसे ही सोनी ने दरवाजा खोला रामवीर ने उस के चेहरे पर एक जोरदार घूंसा मारा. सोनी की नाक पर घूंसा लगते ही उस की आंखों के सामने अंधेरा छा गया. वह चीखते हुए कमरे के बीचोंबीच फर्श पर गिर पड़ी.

इतना मौका काफी था रामवीर के लिए. वह झट से कमरे में घुसा और दरवाजा भीतर से बंद कर जमीन पर पड़ी सोनी की तरफ पलटा. लेकिन कुछ पलों के लिए अचेत हुई सोनी पर निगाह पड़ते ही शराब के नशे में धुत रामवीर की आंखों में वासना के डोरे तैरने लगे.

दरअसल, चेहरे पर वार होने से संतुलन खो कर गिरने वाली सोनी के कपड़े इस कदर अस्तव्यस्त हो गए कि जांघों तक दिख रही सोनी की नग्न गोरी देह को देख कर रामवीर के शरीर के रोंगटे खड़े हो गए.

उस ने सोचा कि सोनी को मारना तो है ही, क्यों न उस से पहले वह अपनी वासना की आग बुझा ले. यही सोच कर उस ने उस के साथ जमीन पर ही शारीरिक संबंध बनाने शुरू कर दिए.

लेकिन अपनी उत्तेजना के अतिरेक में वह कुछ करता, उस से पहले ही सोनी की चेतना लौट आई और वह शोर मचाने को कोशिश करते हुए विरोध करने लगी.

एक तो शराब का नशा, ऊपर से वासना का जुनून, सोनी रामवीर के लंबेचौड़े शरीर के नीचे दबी पड़ी थी. उस को शांत करने के लिए रामवीर ने सोनी के सिर को दोनों कनपटी से पकड़ कर 3-4 बार फर्श पर पटक दिया. सोनी कुछ पल छटपटाई, फिर उस का शरीर शांत हो गया.

लेकिन सोनी के शांत होते ही रामवीर के भीतर वासना का उफान आ गया. इस बात से अनजान कि सोनी की मौत हो चुकी है, रामवीर उस के जिस्म से खेलते हुए अपनी कामवासना शांत करता रहा.

जब वासना का भूत उतरा तो देखा कि अचेत पड़ी सोनी के सिर से काफी खून बह चुका था और वह मर चुकी थी. उस ने सोनी की साड़ी को घुटनों से नीचे कर दिया. कई बार उस के शव को हिला कर देखा कि उस में जान तो नहीं बाकी है.

करीब 5 बजे रामवीर ने घर का दरवाजा खोल कर देखा कि बाहर कोई है तो नहीं और उस के बाद रास्ता साफ देख कर वह कमरे का दरवाजा बंद कर के वहां से फरार हो गया. वारदात को अंजाम देने के बाद वह इतना सहम गया कि संदीप से भी संपर्क नहीं किया.

रामवीर ने 2 दिन तक अपना मोबाइल फोन भी औन नहीं किया. जब संदीप को बाद में पुलिस ने यह बात बताई कि उस के कातिल ने मौत के बाद इस के साथ संबंध बनाए थे तो उस को रामवीर पर बहुत गुस्सा आया.

कुछ दिन बाद गिरफ्तारी के डर से इधरउधर भागते फिर रहे रामवीर ने जब पैसे मांगने के लिए संदीप से फोन पर बात करते हुए संपर्क करना शुरू किया, तभी पुलिस को मोबाइल सर्विलांस के जरिए संदीप पर भी शक होना शुरू हो गया.

इस मामले में न तो मोबाइल फोन की काल डिटेल्स से कोई मदद मिली. क्योंकि कातिल और साजिश रचने वाले के बीच कोई फोन संपर्क रिकौर्ड ही नहीं था. न ही रामवीर अपने फोन को औन कर के घटनास्थल पर गया था. न ही घटना का कोई चश्मदीद था, न ही रामवीर को घटनास्थल पर जाते किसी सीसीटीवी ने कैद किया था. इसलिए पुलिस अंधेरे में हाथपांव मार रही थी.

लेकिन अपने डर के कारण अगर रामवीर अपना घर छोड़ कर गायब नहीं होता और बाद में वह फोन पर संदीप से संपर्क नहीं करता तो शायद पुलिस कभी सोनी के हत्यारों तक पहुंच ही नहीं पाती.

अपनी साली को पाने की चाहत में संदीप ने अपनी बेवफा बीवी को मरवाने की साजिश रच कर जो घिनौना अपराध किया वो तो गलत था ही, लेकिन रामवीर ने सोनी की हत्या कर उस के मृत शरीर से वासना की जो भूख शांत की, वह हैवानियत की सभी सीमाओं से परे थी.

संदीप और रामवीर से पूछताछ के बाद पुलिस ने हत्या के इस मामले में साजिश की धारा 120बी जोड़ कर दोनों आरोपियों को अदालत में पेश कर दिया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

—कथा पुलिस की जांच व आरोपियों से पूछताछ पर आधारित

आशिकी में बेटी की बलि : बेटी आई प्रेम के आड़े

राजस्थान के कोटा जिले के थाना बुढ़ादीव के गांव बोरखेड़ा में सुमित पुत्र हरदेव यादव अपनी पत्नी पुष्पा यादव उर्फ टीना (25 वर्ष) और इकलौती बेटी नंदिनी (4 साल) के साथ रहता था. सुमित सीधासादा इंसान था. वहीं उस की पत्नी टीना उर्फ पुष्पा रंगीनमिजाज युवती थी. सुमित का दिन जहां मेहनतमजदूरी करने में बीतता था, वहीं टीना का दिन मोबाइल देख कर गुजरता था.

सुमित और टीना की शादी को करीब 6 साल हो चुके थे. इन 6 सालों में टीना एक बेटी नंदिनी की मां बन गई थी. उस का बदन कसा था और हसरतें उफान पर थीं. वह चाहती थी कि सुमित उसे सारी रात बांहों में भर कर जन्नत की सैर कराए. मगर इस के उलट सुमित दिन भर कामधंधे में खपने के कारण इतना थक जाता था कि शाम को घर लौट कर खाना खा कर बिस्तर पर जा पड़ता था.

टीना जब रसोई का काम निपटा कर पति के पास आती तो वह नींद में खर्राटे भरता मिलता था. यह देख कर टीना का मन कसैला हो जाता था. वह दिन भर इसी सोच में रहती कि आज पति उसे शारीरिक सुख देगा. मगर रात में थकामांदा पति उसे सोता मिलता.

वह कभीकभी सोचा करती कि कैसे मर्द से ब्याह किया जो घोड़े बेच कर हर रात सो जाता है. उसे तनिक भी बीवी को प्यार करने की इच्छा नहीं होती. औरत भूखी रह सकती है मगर वह बिना शारीरिक प्यार के नहीं रह सकती.

सुमित कभीकभार ही टीना से शारीरिक संबंध बनाता था. मगर टीना चाहती थी कि उसे पति हर रात प्यार करे. वह पति से शर्म के मारे कह नहीं पाती थी.

समय का पहिया घूमता रहा. एक दिन टीना किसी रिश्तेदार को मोबाइल पर फोन लगा रही थी. 3-4 बार घंटी बजने के बाद फोन उठा कर कोई शख्स बोला, ‘‘हैलो.’’

‘‘हां जी, आप कौन बोल रहे हैं?’’ टीना ने कहा तो फोन उठाने वाला बोला, ‘‘आप कौन हैं?’’

‘‘मैं तो टीना बोल रही हूं बोरखेड़ा, कोटा से.’’

‘‘टीना जी, मैं प्रह्लाद सहाय जयपुर से बोल रहा हूं. कहिए मैं आप की क्या सेवा करूं. फोन कैसे किया?’’ उस शख्स ने कहा.

सुन कर टीना बोली, ‘‘सौरी, आप को रौंग नंबर लग गया. मैं कहीं और फोन लगा रही थी.’’

‘‘रौंग नंबर लगा तो कोई बात नहीं. हम दोस्त तो बन ही सकते हैं. फोन पर बात कर के अच्छा लगा. वैसे आप की आवाज बड़ी मीठी और प्यारी है.’’ प्रह्लाद बोला.

‘‘तारीफ के लिए शुक्रिया. वैसे बातें आप भी बड़ी प्यारी करते हैं. मैं नंबर सेव कर लेती हूं. फुरसत में बात करते हैं.’’

‘‘ओके, मैं भी आप का नंबर सेव कर लेता हूं.’’ प्रह्लाद सहाय बोला.

टीना ने काल डिसकनेक्ट कर दी. दोनों ने एकदूसरे के नंबर सेव कर लिए.

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रौंग नंबर से शुरू हुई इस बातचीत के बाद वह दोनों अकसर फोन पर करने लगे. बात नहीं करने पर उन्हें कुछ भी अच्छा नहीं लगता था. एक दिन दोनों ने फोन पर बातों ही बातों में प्यार का इजहार कर दिया और टीना ने प्रेम आमंत्रण स्वीकार भी कर लिया.

प्रह्लाद को टीना ने बता दिया था कि वह एक 6 साल की बेटी नंदिनी की मां है. प्रह्लाद ने टीना से कहा कि वह नंदिनी को अपनी बेटी बना लेगा और पालनपोषण करेगा.

टीना यादव यह जान कर बहुत खुश हुई कि उस का प्रेमी उस की बेटी को अपना रहा है. वह उस की प्यार भरी बातों के जाल में उलझती चली गई. वह भूल गई कि वह शादीशुदा और एक बेटी की मां है.

टीना भूल गई कि उस के मातापिता ने उसे डोली में बिठा कर विदा करते हुए कहा था, ‘‘बेटी, सुखदुख, अमीरीगरीबी आतेजाते रहेंगे. मगर ससुराल के घर से तेरी अर्थी ही उठनी चाहिए. इस के अलावा ससुराल के घर से कभी कदम बाहर नहीं रखना.’’

टीना प्रह्लाद पर इतना विश्वास करने लगी कि वह पति का घर छोड़ कर उस के पास जाने को तैयार हो गई थी. पति के साथ अग्नि के समक्ष सात फेरे ले कर जन्मों तक साथ निभाने की कसमें खाने वाली टीना शादी के मात्र 6 साल बाद ही पति की पीठ में खंजर घोंप कर प्रेमी का घर आबाद करने को उतावली हो रही थी.

सुमित को तो अपने कामधंधे से ही फुरसत नहीं थी. उसे पता नहीं था कि जिस की खुशी के लिए वह मेहनतमजदूरी करता है कि उसे किसी तरह की परेशानी नहीं हो. लेकिन वही बीवी किसी गैरमर्द को अपना बना चुकी है और वह घर से फुर्र होने वाली है.

सुमित तो सोचता था कि टीना उस के साथ खुश है. वह उस की खुशी के लिए क्या कुछ नहीं करता था. 11 नवंबर, 2020 को भी हर रोज की तरह सुमित काम पर निकल गया. शाम को घर लौटा तो उस की बीवी टीना और बेटी नंदिनी घर पर नहीं थी.

आसपड़ोस में सुमित ने बीवी और बेटी की खोजबीन की मगर वे नहीं मिलीं. सुमित ने टीना के मोबाइल पर भी फोन किया. मगर मोबाइल स्विच्ड औफ था.

सुमित कई दिन तक अपने स्तर पर बीवी और बेटी की खोजबीन करता रहा. जब उन की कोई खोजखबर नहीं मिली तो थकहार कर वह 16 दिसंबर, 2020 को बुढ़ादीत थाने पहुंचा. सुमित ने थानाप्रभारी अविनाश कुमार को सारी बात बता कर पत्नी और बेटी नंदिनी की गुमशुदगी लिखा दी.

गुमशुदगी दर्ज होने के बाद पुलिस की बहुत दिन तक नींद नहीं खुली. जब सुमित थाने के चक्कर पर चक्कर काटने लगा तो पुलिस हरकत में आई. इस के बाद इटावा डीएसपी विजयशंकर शर्मा के निर्देशन व थाना बुढ़ादीत थानाप्रभारी  अविनाश कुमार के नेतृत्व में एक पुलिस टीम गठित की गई.

इस पुलिस टीम में थानाप्रभारी अविनाश कुमार के अलावा हैडकांस्टेबल सुरेशचंद्र वर्मा, सतपाल, प्रह्लाद, पूरन सिंह, महिला कांस्टेबल माली को शामिल किया गया.

पुलिस टीम ने मामले की जांच शुरू की. तकनीकी जांच और मुखबिर से पता चला कि सुमित की पत्नी टीना उर्फ पुष्पा जयपुर जिले के थाना मनोहरपुर के गांव उदावाला में प्रेमी प्रह्लाद सहाय के साथ रह रही है.

पुलिस टीम ने 13 मई, 2021 को सुमित की पत्नी टीना और उस के प्रेमी प्रह्लाद सहाय को हिरासत में ले लिया. लेकिन टीना के साथ उस की बेटी नंदिनी नहीं थी. टीना और प्रह्लाद से पुलिस टीम ने नंदिनी के बारे में पूछताछ की.

टीना ने बताया कि नंदिनी अपने दादादादी के पास है. पुलिस ने पता किया. दादादादी के पास नंदिनी नहीं थी. तब पुलिस ने प्रह्लाद सहाय से और टीना से अलगअलग पूछताछ की. टीना ने बताया कि नंदिनी को बसस्टैंड पर अकेली छोड़ दिया था.

पुलिस को उस की बातों पर यकीन नहीं था. इस कारण पुलिस ने गुमराह कर रहे प्रह्लाद व टीना से कड़ी पूछताछ की तो दोनों ने नंदिनी की हत्या की बात कबूल ली.

टीना को जब पता चला कि उस के प्रेमी ने नंदिनी की हत्या की स्वीकारोक्ति कर ली है, तब टीना भी टूट गई. उस ने भी बेटी की हत्या का गुनाह कबूल कर लिया.

प्यार की खातिर मासूम बेटी की हत्या की बात सुन कर पुलिस भी आश्चर्यचकित रह गई. पूछताछ करने पर टीना की एक ऐसी कुमाता वाली छवि उभर कर सामने आई, जिस ने अपने से 20 बरस बड़े प्रेमी प्रह्लाद की खातिर इकलौती बेटी की हत्या कर उस का शव सरिस्का जंगल में फेंक दिया.

दोनों आरोपियों से की गई पूछताछ के बाद प्यार में अंधी एक औरत की जो कहानी प्रकाश में आई, इस प्रकार है—

राजस्थान के कोटा जिले के बुढ़ादीत थानांतर्गत बोरखेड़ा गांव निवासी सुमित यादव से टीना उर्फ पुष्पा की शादी हो जरूर गई थी, लेकिन वह उस से खुश नहीं थी. क्योंकि वह उस की शारीरिक जरूरत को नहीं समझता था. इसीलिए वह अपने पति को पसंद नहीं करती थी. मगर लोकलाज के कारण वह उसे ढो रही थी.

टीना की हसरतें उफान मारती थीं. मगर सुमित को इस की परवाह नहीं थी. टीना 4 साल की बेटी की मां हो गई थी, लेकिन वह इतनी खूबसूरत थी कि उस का गदराया बदन देख कर कोई भी मर्द उसे पाने को बेताब हो उठता था.

ऐसे में जयपुर के गांव उदावाला, निवासी प्रह्लाद सहाय से रौंग काल के जरिए उस की बात हुई तो उसे लगा कि प्रह्लाद उस के लिए ही बना है. इसलिए उस ने उस से नजदीकी बढ़ा ली.

बातोंबातों में दोनों इतने खुल गए कि फोन पर प्यार का इजहार हो गया. इतना ही नहीं, दोनों ने जीवन भर साथ निभाने का फैसला भी ले लिया.

एक दिन उस से प्रह्लाद ने कहा, ‘‘मैं तुम्हारी बेटी को अपनी बेटी के रूप में स्वीकार कर लूंगा. तुम उसे ले कर जयपुर के लिए निकल जाओ. मैं तुम दोनों को घर ले आऊंगा.’’

यह सुन कर टीना खुश हो गई. फिर वह 11 नवंबर, 2020 को पति सुमित के काम पर जाने के बाद अपनी बेटी नंदिनी को ले कर बोरखेड़ा से जयपुर आ गई, जहां से प्रह्लाद टीना और नंदिनी को ले कर अपने गांव उदावाला आ गया. टीना और प्रह्लाद पतिपत्नी की तरह रहने लगे. प्रह्लाद ने आसपड़ोस में कहा कि उस ने टीना से लव मैरिज की है.

प्रह्लाद अधेड़ उम्र का था वहीं टीना जवान थी. टीना जैसी सुंदर प्रेमिका पा कर प्रह्लाद निहाल हो गया था. प्रह्लाद ने टीना को तनमनधन से सुख दिया. टीना अपने प्रेमी की दीवानी हो गई. प्रह्लाद भी स्त्री सुख से वंचित था. अधेड़ उम्र में जब जवान प्रेमिका मिली तो वह रोजाना अपनी हसरतें पूरी करता.

दोनों मौजमस्ती से दिन गुजार रहे थे. 9 जनवरी, 2021 की शाम नंदिनी सीढि़यों से गिर कर घायल हो गई. अगले दिन 10 जनवरी को नंदिनी को प्रह्लाद और टीना शाहपुरा अस्पताल ले गए. डाक्टर ने नंदिनी को देख कर कहा कि उसे जयपुर ले जाओ. इस पर प्रह्लाद व टीना नंदिनी को उदावाला घर ले आए.

प्रह्लाद ने टीना से कहा, ‘‘टीना, अगर नंदिनी को जयपुर ले जाएंगे तो लाखों रुपए इलाज में खर्च होंगे. इस के बाद भी क्या पता नंदिनी बचे कि नहीं. ऐसा करते हैं कि पैसा बचाने के लिए नंदिनी को ही मार डालते हैं.’’

सुन कर मां की ममता पसीजने के बजाय बोली, ‘‘सही कह रहे हैं, आप. वैसे सुमित के खून को हमतुम क्यों पालेंपोसें.’’

उसी रात नंदिनी को सोते हुए शाल मुंह पर दबा कर टीना और प्रह्लाद ने मार डाला. रात भर लाश वहीं पड़ी रही. अगले दिन 11 जनवरी, 2021 को नंदिनी का शव ले कर प्रह्लाद और टीना अलवर जिले के सरिस्का जंगल में पहुंचे और सुनसान जगह पर डाल कर वापस उदावला लौट आए.

शाम को उदावला आने पर प्रह्लाद के आसपड़ोस के लोगों ने जब नंदिनी के बारे में पूछा. तब उन से कहा कि नंदिनी को दादादादी के पास छोड़ आए हैं. टीना ने अपनी 4 बरस की बेटी को मारने के बावजूद टीना सामान्य बनी रही.

उस के चेहरे पर शिकन तक नहीं थी. उलटे वह तो अपने को आजाद महसूस कर रही थी. उधर टीना और नंदिनी के 11 नवंबर, 2020 को घर से गायब होने पर टीना का पति सुमित यादव दोनों की रिश्तेदारी में एक महीने से ज्यादा समय तक खोजबीन करता रहा.

जब कहीं भी बीवी और बेटी का पता नहीं चला तब वह थकहार कर 16 दिसंबर, 2020 को थाना बुढ़ादीत पहुंच कर बीवी टीना उर्फ पुष्पा और बेटी नंदिनी की गुमशुदगी दर्ज कराई. यानी गुमशुदगी दर्ज कराने से पहले ही नंदिनी की हत्या कर दी गई थी. गुमशुदगी के बाद भी पुलिस की नींद देर से खुली.

टीना और नंदिनी के गायब होने के तुरंत बाद अगर सुमित पुलिस थाने में गुमशुदगी की प्राथमिकी दर्ज करा देता और पुलिस समय पर काररवाई करती तो नंदिनी जिंदा होती.

प्रह्लाद सहाय और टीना उर्फ पुष्पा से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

पति और कातिल, दोनों में से कौन बड़ा हैवान – भाग 2

सोनी के घर वालों से कत्ल और कातिल का कोई सुराग नहीं मिला था. इसलिए सेक्टर-126 थाने की पुलिस ने आसपड़ोस के लोगों से भी पूछताछ की ताकि पता चल सके कि सोनी का चालचलन कैसा था और संदीप की गैरमौजूदगी में किसी ने उस के घर में किसी को आतेजाते तो नहीं देखा था. लेकिन कालोनी के लोगों से पूछताछ में भी कोई मदद नहीं मिली.

अब बारी थी संदीप से कुछ अहम मुद्दों पर पूछताछ करने की. संदीप ने पुलिस को बताया कि उस की पत्नी के शायद अपने ही गांव के अजय नाम के लड़के से शादी से पहले ही संबंध थे. संदीप ने आशंका जताई कि हो सकता है उस ने ही सोनी को मार दिया हो.

यह जानकारी बेहद महत्त्वपूर्ण थी. इसलिए पुलिस की एक टीम उसी दिन कासगंज रवाना हो गई और अजय को हिरासत में ले कर नोएडा ले आई.

दरअसल, अजय को पूछताछ के लिए लाने का आधार यह था कि पुलिस ने संदीप से मिली जानकारी के आधार पर सोनी के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई और जब उसे खंगाला गया तो पता चला कि सोनी और अजय के बीच हर दिन कई बार फोन पर लंबीलंबी बातें होती थीं और वाट्सऐप पर मैसेज का आदानप्रदान भी होता था.

मोबाइल काल डिटेल्स की रिपोर्ट साफ बता रही थी कि दोनों के बीच साधारण संबंध नहीं थे. अजय से जब पूछताछ हुई तो पहले उस ने पुलिस को बरगलाने का प्रयास किया, लेकिन जब उस के साथ सख्ती की गई तो वह टूट गया और कुबूल कर लिया कि सोनी के साथ उस के पिछले कई सालों से संबंध थे.

सोनी की जब से शादी हुई थी, इस के बाद भी जब वह अपने गांव आती थी तो दोनों मौका मिलने पर एकांत में मिल कर अपनी पुरानी मोहब्बत की यादों को ताजा करते रहते थे.

थानाप्रभारी राठी ने जब अजय का मोबाइल फोन चैक कराया तो उन्हें उस में सोनी तथा अजय के कुछ ऐसी अवस्था के फोटो मिले जो दोनों के बीच के नाजायज रिश्ते को साबित करते थे.

लेकिन अजय के फोन की काल डिटेल्स रिपोर्ट और उस की लोकेशन से कहीं भी यह साबित नहीं हो रहा था कि वह सोनी की हत्या वाले दिन या उस से पहले नोएडा आया था या फिर उस ने किसी संदिग्ध नंबर पर बात की थी.

इंसपेक्टर राठी एक बात तो अच्छी तरह समझ गए कि अजय और सोनी के बीच संबंध होने के बावजूद अजय के पास सोनी की हत्या का कोई मोटिव नहीं था, लेकिन संदीप जिस को यह बात पता थी कि उस की बीवी के अजय से संबंध हैं तो उस के पास तो सोनी की हत्या करने का पुख्ता आधार था.

‘एक सीधे से दिखने वाले अनपढ़ आदमी ने पुलिस को कैसे अपने जाल में फंसा कर गुमराह कर दिया,’ बड़बड़ाते हुए राठी ने मुक्का मेज पर मारते हुए उसी समय एसआई राजेंद्र सिंह को तत्काल सोनी के पति संदीप यादव की काल डिटेल्स निकलवाने का आदेश दिया.

थानाप्रभारी राठी को न जाने क्यों यकीन होने लगा था कि सोनी की हत्या के पीछे कहीं न कहीं संदीप का हाथ हो सकता है, इसीलिए उन्होंने उस की काल डिटेल्स निकलवाई थी. लेकिन उस में कोई ऐसी जानकारी, संदिग्ध नंबर या लोकेशन नहीं मिली, जिस से इस मामले में अजय की भूमिका को साबित किया जा सके.

एक सप्ताह बीत चुका था पुलिस को सोनी की पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल गई थी. जिस बात का शक था वही हुआ. लक्ष्मी की मौत सिर में चोट लगने से हुई थी. इतना ही नहीं, उस की मौत के बाद उस के साथ शारीरिक संबंध भी बनाया गया था.

बस यही वो कारण था जिस की वजह से पुलिस को संदीप यादव पर किए गए शक से अपना ध्यान हटाना पड़ा. क्योंकि कोई भी पति किसी दूसरे आदमी को अपनी पत्नी की हत्या के बाद उस के शव के साथ ऐसा घिनौना काम न तो खुद करेगा न ही किसी दूसरे को करने देगा.

संदीप को संदेह से बाहर करने का दूसरा कारण यह भी था कि एक तो उस की काल डिटेल्स में कोई संदिग्ध बात नहीं मिली.

दूसरे महामाया फ्लाईओवर के नीचे रेहड़ी पटरी लगाने वाले कई लोगों से पूछताछ के बाद इस बात की पुष्टि भी हो गई थी कि संदीप यादव उस शाम को हमेशा की तरह शाम को 6 बजे अपना काम खत्म कर के साइकिल ले कर वहां से गया था.

इस के बाद संदीप पर शक करने की कोई वजह पुलिस के पास नहीं थी. राठी ने एक बार फिर से घटनास्थल के आसपास रहने वाले लोगों से पूछताछ करने का फैसला किया.

इसी कड़ी में पुलिस इलाके के हर घर में जा कर पूछताछ कर रही थी, लेकिन पुलिस ने तब पहली बार नोटिस किया कि एक प्लौट पर बना कमरा ऐसा था, जो घटना वाली रात को पूछताछ करते हुए भी पुलिस को बंद मिला और एक सप्ताह बाद जब पुलिस ने दोबारा छानबीन की तब भी बंद पाया गया.

पुलिस ने जब आसपास के लोगों से इस मकान में रहने वाले शख्स के बारे में पूछा तो पता चला कि बुलंदशहर के छतारी कस्बे का रहने वाला रामवीर साहू उस कमरे में रहता है.

रामवीर साहू पहले तो गुड़ बेचने का काम करता था, लेकिन 3-4 महीनों से वह आटोरिक्शा चलाने का काम कर रहा था. लोगों ने बताया कि जिस दिन सोनी की हत्या हुई, उस दिन सुबह के वक्त तो वह अपने घर में दिखा था, लेकिन इस के बाद से वह किसी को दिखाई नहीं दिया.

यह जानकारी साहू को संदेह के दायरे में लाने के लिए काफी थी. पुलिस ने जब संदीप यादव से रामवीर साहू के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि कालोनी में रहने के कारण उस की साहू से जानपहचान तो है लेकिन वह उस के बारे में बहुत अधिक नहीं जानता.

संदीप ने बताया कि कभीकभी साहू महामाया मेट्रो स्टेशन के नीचे जहां वह कचौरी बेचता है, सवारी लेने के लिए आ कर खड़ा हो जाता था. संदीप ने बताया कि इसी कारण अकसर उस की साहू से बातचीत हो जाती थी.

संदीप और कालोनी के दूसरे लोगों से साहू के बारे में जो सब से महत्त्वपूर्ण जानकारी मिली, वह यह थी कि वह अकसर शराब के नशे में रहता था. शराब तो मजदूर तबके के ज्यादातर लोग पीते हैं लेकिन साहू एक तरह से शराब का लती था. दिन हो या रात, वह अकसर शराब के नशे में दिख जाता था.

साहू के बारे में कुछ और जानकारी एकत्र की गई तो पता चला कि वह अविवाहित था और इस इलाके में आने से पहले अपनी बहन के पास छलेरा गांव में रहता था.

रामवीर साहू थानाप्रभारी राठी के रडार पर आ चुका था. उन्होंने साहू की बहन का पता हासिल कर लिया और छलेरा में जा कर जब उस की बहन से उस के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि 20 जनवरी, 2022 की रात को वह उस के पास आया था लेकिन उस ने बहुत शराब पी रखी थी.

अगली सुबह जब उस ने साहू को शराब पी कर अपने घर आने की बात पर खरीखोटी सुनाई तो वह दोपहर को वहां से गांव जाने की बात कह कर चला गया. साहू के बारे में जैसेजैसे जानकारियां मिल रही थीं, उस के खिलाफ शक का दायरा बढ़ता जा रहा था.

सोनी हत्याकांड की जांच में अब तक हुई प्रगति के बारे में जब एडीसीपी रणविजय सिंह को साहू के बारे में तमाम जानकारियां मिलीं तो उन्होंने थानाप्रभारी राठी को उस के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाने के लिए कहा.

राठी ने काल डिटेल्स निकलवा कर उस के फोन को ट्रेसिंग पर भी लगवा दिया. एसआई राजेंद्र सिंह के नेतृत्व में पुलिस की एक टीम लगातार साहू के पीछे लगी थी. पुलिस टीम बुलंदशहर में उस के गांव छतारी पहुंची तो पता चला कि साहू 21 जनवरी को अपने गांव आया तो था लेकिन गांव में कोई नहीं था.

क्योंकि उस का एक भाई दिल्ली के शाहदरा इलाके में रहता है. उस की बेटी की 10 फरवरी को शादी थी. उसी में शरीक होने के लिए मातापिता और परिवार के दूसरे लोग गए हुए थे.

पुलिस की एक टीम रामवीर साहू के भाई अजयवीर के घर का पता ले कर वहां पहुंची तो पता चला कि 23 जनवरी को रामवीर वहां आया जरूर था, लेकिन परिवार को उस का शराब पीना पसंद नहीं था और उस ने खूब शराब पी हुई थी. इसलिए परिवार वालों ने उसे वहां से यह कह कर भगा दिया कि उन के यहां शराबियों के लिए कोई जगह नहीं है.

पुलिस टीम को वहीं से यह जानकारी मिली कि रामवीर की एक मौसी इंद्रवती उत्तरपूर्वी दिल्ली के घड़ौली में रहती है, जिन से उस की खूब पटती भी है. हो सकता है रामवीर उन के यहां गया हो.

मौसी का पता ले कर जब पुलिस टीम घड़ौली में उस की मौसी इंद्रवती के घर पहुंची तो पता चला कि 25 जनवरी को रामवीर उन के यहां आया था, लेकिन वह काफी शराब पिए हुए था और काफी डरासहमा हुआ था.

पति और कातिल, दोनों में से कौन बड़ा हैवान – भाग 1

ग्रेटर नोएडा के सेक्टर-94 में एक गांव है नोरंगाबाद. इस गांव में छलेरा गांव के जिन लोगों की जमीन नोएडा अथारिटी ने अधिग्रहीत की थी, उन्हें इस के बदले में मुआवजे के साथ अलगअलग साइज के प्लौट भी नियम के अनुसार यहां आवंटित किए गए थे.

चूंकि अभी इस इलाके में ज्यादा आबादी और विकास नहीं हुआ है, इसलिए जिन लोगों को यहां प्लौट मिले थे, उन में से कुछ ने अपने प्लौट की घेराबंदी कर के उस में एक या 2 कमरे बना कर उन्हें मजदूर तबके के लोगों को किराए पर दे दिया. सेक्टर 94 के इस इलाके में अभी सिर्फ मजदूर पेशा लोगों के ही 15 से 20 परिवार किराए पर रहते हैं. इस इलाके में बिजली पानी तो है लेकिन घनी आबादी न होने के कारण शाम होते ही यहां सन्नाटा पसर जाता है.

इसी इलाके में छलेरा गांव के रहने वाले चरणसिंह का भी प्लौट था, जिस में उन्होंने बाउंड्री करवा कर उस में एक कमरा, शौचालय, स्नानघर और रसोई बना कर उसे किराए पर दिया हुआ था.

पिछले डेढ़ साल से इस कमरे में मूलरूप से अलीगढ़ का रहने वाला संदीप यादव (24) अपनी पत्नी सोनी यादव (22) के साथ किराए पर रहता था. संदीप की डेढ़ साल पहले ही कासगंज की रहने वाली सोनी से शादी हुई थी.

दोनों की शादी कोरोना के बीच लौकडाउन के दौरान हुई थी. संदीप पहले सेक्टर-94 में ही हिंडन बैराज के पास किराए के किसी दूसरे कमरे में अपने एक दोस्त के साथ रहता था. लेकिन शादी के बाद गृहस्थी होने के कारण उस ने चरण सिंह का मकान किराए पर ले लिया.

संदीप शादी से पहले तो नोएडा में एक बड़े ढाबे पर काम करता था. लेकिन लौकडाउन के बाद जब नौकरी चली गई और शादी हो गई तो पेट पालने और जीवन चलाने के लिए उस ने महामाया फ्लाईओवर के नीचे साइकिल पर ही आलू की सब्जी और खस्ता कचौरी बेचने का काम शुरू कर दिया.

संयोग से काम भी ठीकठाक चलने लगा और संदीप नौकरी से ज्यादा अपने काम से पैसा कमाने लगा. कुल मिला कर घरगृहस्थी मजे से चलने लगी.

अपने घर पर ही पत्नी सोनी की मदद से वह सुबह के वक्त खस्ता कचौरी और सब्जी खुद तैयार करता और फिर साइकिल पर रख कर उसे बेचने के लिए हर सुबह 10 से 11 बजे तक महामाया फ्लाईओवर के नीचे पहुंच जाता और शाम को 5 बजे तक अपना माल बेच कर वापस घर लौट जाता था.

20 जनवरी को भी संदीप यादव हर रोज की तरह सुबह करीब साढ़े 10 बजे साइकिल पर कचौरी और सब्जी ले कर सेक्टर-94 स्थित घर से निकला था और शाम को करीब 7 बजे घर लौटा.

घर के बाहर साइकिल खड़ी करने के बाद हमेशा की तरह संदीप ने सोनी को बाहर से ही दरवाजा खोलने के लिए आवाज लगाई. लेकिन काफी देर तक जब दरवाजा नहीं खुला तो उस ने दरवाजे को धकेलते हुए थोड़ा कड़ी आवाज में कहा क्या बात है महारानी बहरी हो गई है या कान में तेल डाल लिया है.

कमरे में गहन अंधकार और सन्नाटा पसरा हुआ था. अन्य दिनों की अपेक्षा संदीप को इस दिन पत्नी सोनी का यह व्यवहार कुछ अजीब लग रहा था.

संदीप ने अनुमान से दरवाजे के पास लगे बिजली के बोर्ड को टटोल कर कमरे की लाइट जला दी. कमरे में रोशनी होते ही संदीप फर्श पर सोनी की खून से लथपथ लाश पड़ी दिखी.

लाश देखते ही संदीप के गले से चीख निकल गई. सिर को पकड़ कर संदीप गला फाड़ कर रोने लगा. कालोनी के मकान एकदूसरे से काफी दूर बने थे.

लेकिन शाम के सन्नाटे में संदीप के रोने और चीखने की आवाजें इतनी तेज थीं कि चंद समय में ही वहां कालोनी में रहने वाले कई मजदूर परिवार एकत्र हो गए. वैसे भी उस समय ज्यादातर लोग अपने काम से घर लौटते हैं.

सभी ने संदीप को अपनी पत्नी की लाश के पास फूटफूट कर रोते देखा. कालोनी के एकत्रित हुए मजदूरों में से ही किसी ने तब तक निकट की ओखला पुलिस चौकी के इंचार्ज राजेंद्र सिंह को जा कर इस हादसे की सूचना दी तो वह तत्काल ही अपने मातहत पुलिसकर्मियों को ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए.

कालोनी के लोगों ने संदीप की पत्नी सोनी की हत्या के बारे में जो खबर दी थी, वह एकदम सही थी. लिहाजा घटनास्थल का मुआयना कर राजेंद्र सिंह ने सेक्टर-126 थाने के प्रभारी भरत कुमार राठी को हत्या की इस वारदात से अवगत करा दिया.

थानाप्रभारी राठी भी हैडकांस्टेबल मोनू, जगपाल सिंह और कांस्टेबल अमित कुमार के साथ जब तक घटनास्थल पर पहुंचे, तब तक वायरलैस पर जानकारी पा कर नोएडा जोन-1 की एसीपी अंकिता शर्मा और एडिशनल डीसीपी रणविजय सिंह भी मौके पर पहुंच गए.

क्राइम और फोरैंसिक टीमों ने भी घटनास्थल पर पहुंच कर अपना काम शुरू कर दिया. संदीप ने बताया कि सुबह जब वह घर से गया था तब उस की पत्नी एकदम ठीक थी. शाम को 7 बजे लौटा तो पत्नी की लाश घर में पड़ी मिली.

संदीप से पूछताछ में पता चला कि घर में लूटपाट जैसी कोई वारदात नहीं हुई थी. जिस का मतलब साफ था कि किसी ने सोनी की हत्या की नीयत से ही इस वारदात को अंजाम दिया था.

थानाप्रभारी राठी ने जब गहराई से लाश का निरीक्षण किया तो देखा कि कातिल ने बेदर्दी के साथ किसी चीज से सोनी के चेहरे पर वार किया था जिस के कारण नाक पर काफी गहरा जख्म था और वहां से बहने वाला खून जम कर काला पड़ चुका था. एक खास बात यह थी कि कातिल ने बड़ी बेहरमी के साथ सोनी के सिर को शायद कई बार जमीन पर दे कर मारा होगा. क्योंकि सिर के पिछले हिस्से में काफी चोट लगी थी और वहां से काफी खून भी बहा था.

घटनास्थल के निरीक्षण से एक बात यह भी साफ हुई कि सोनी का शायद कातिल के साथ काफी संघर्ष हुआ होगा. क्योंकि उस के बदन के कपड़े काफी अस्तव्यस्त हो चुके थे.

ब्लाउज के आगे का हिस्सा पूरी तरह फटा हुआ था और शरीर पर पहनी हुई साड़ी भी घुटनों से ऊपर तक खिसकी हुई थी, जिससे लग रहा था कि उस के साथ कातिल ने या तो शारीरिक संबंध बनाए होंगे या फिर इस का प्रयास किया होगा.

उच्चाधिकारियों के निर्देश पर जांच की सभी औपचारिकताएं पूरी कर के थानाप्रभारी राठी ने सोनी यादव के शव को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया. एडिशनल डीसीपी रणविजय सिंह के आदेश पर थानाप्रभारी राठी ने दफा 302 आईपीसी यानी हत्या का मुकदमा पंजीकृत कर के जांचपड़ताल का काम खुद अपने हाथों में ले लिया.

एक बात थी जो पुलिस की समझ से परे थी. वह यह कि संदीप यादव ने बताया था कि उस की न तो किसी से दुश्मनी है न ही घर में लूटपाट हुई है. वैसे भी संदीप के घर में लूटपाट के लिए कोई ऐसी कीमती चीज भी नहीं थी कि उस के लिए बदमाश किसी की जान ले लें.

हां, जिस संदिग्ध हाल में सोनी का शव मिला था, उस से यह जरूर लग रहा था कि कोई ऐसा जरूर है जिस की सोनी के ऊपर नीयत खराब थी.

थानाप्रभारी राठी को एक बार संदीप यादव से कुछ खास बिंदुओं को ले कर पूछताछ करनी जरूरी लगी. लिहाजा उन्होंने अगली सुबह पोस्टमार्टम के बाद जब सोनी के शव का अंतिम संस्कार हो गया तो संदीप को पूछताछ के लिए थाने बुलाया.

इस दौरान सोनी के घर वाले भी अगली सुबह तक उस की हत्या की सूचना पा कर उस के घर पहुंच गए थे. सोनी मूलरूप से उत्तर प्रदेश के कासगंज कस्बे की रहने वाली थी, उस के परिवार में मातापिता के अलावा 2 भाई और 4 बहनें थीं. 2 भाई शैलेश व अखिलेश यादव से बड़ी एक बहन थी, जबकि 3 बहनें छोटी थीं.

परिवार की दोनों सब से छोटी लड़कियों को छोड़ कर सभी की शादी हो चुकी थी. सोनी की शादी 2020 के मध्य में कोरोना लौकडाउन के दौरान करीब डेढ़ साल पहले हुई थी.

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जब पुलिस ने सोनी के भाई अखिलेश से उस की बहन के बारे में पूछा तो उस ने अपने बहनोई संदीप पर कोई शक तो नहीं जताया, लेकिन उस की यह शिकायत थी कि जब संदीप के पास रहने का कोई सुरक्षित ठिकाना नहीं था तो उन्हें सोनी को ऐसे स्थान पर ला कर रखना ही नहीं चाहिए था.

उस ने अपनी बहन सोनी से कहा भी था कि जब तक संदीप रहने के लिए कोई दूसरी जगह नहीं ले लेता, वह वापस नहीं जाए. लेकिन सोनी ने उस की एक नहीं मानी, जिस का खमियाजा उस की जान के रूप में चुकाना पड़ा.

चौधरी की भूलभुलैया : अपनी ही बनाई योजना में फंसा – भाग 3

उस के जाने के बाद मैं ने मुराद की ओर देखा, वह मेरे इशारों को समझ गया था. उस की उम्र लगभग 25 साल होगी. उस की आंखों में लोमड़ी सी मक्कारी भरी थी. वह बड़ी ढिठाई से बोला, ‘‘थानेदार साहब, मुझे यहां किस अपराध में गिरफ्तार कर के लाया गया है?’’

मैं ने उस की आंखों में आंखें डाल कर कहा, ‘‘तुम्हें बहुत गंभीर अपराध में गिरफ्तार किया गया है. अगर तुम ने अपना अपराध आसानी से स्वीकार कर लिया तो फायदे में रहोगे.’’

वह मेरी बात से थोड़ा डरा, लेकिन कुछ देर बाद बोला, ‘‘जब मैं ने कोई अपराध ही नहीं किया तो किस बात को स्वीकार कर लूं?’’

मैं ने अपनी दराज में से कपड़े में लिपटा एक रिवौल्वर निकाला और उस की एक झलक उसे दिखाते हुए बोला, ‘‘इसे पहचानते हो?’’

रिवौल्वर को देख कर उस की आंखों में लोमड़ी जैसी चमक आ गई. मैं समझ गया कि उस ने रिवौल्वर को पहचान लिया है. उस ने बड़ी ढिठाई से कहा, ‘‘यह तो हथियार है. इस का मुझ से क्या संबंध है?’’

मैं ने उस की आंखों में आंखें डाल कर कहा, ‘‘इस रिवौल्वर का तुम से बहुत गहरा संबंध है. शराफत से मान जाओ, नहीं तो बहुत बड़ी मुसीबत तुम्हारा इंतजार कर रही है.’’

‘‘मैं किस बात को मान लूं?’’ उस ने अकड़ कर जवाब दिया.

‘‘यह मान लो कि तुम ने यह रिवौल्वर बशारत की चारे वाली गाड़ी में घास के अंदर छिपाया था.’’

‘‘यह झूठ है.’’ वह चीखा.

मैं ने कड़क कर कहा, ‘‘यह थाना है, तुम्हारी खाला का घर नहीं, ज्यादा तेज आवाज में बोलोगे तो जबान निकाल कर बाहर फेंक दूंगा.’’

मेरे तेवर बदलते देख कर वह कुछ नरम पड़ते हुए बोला, ‘‘सर, मैं इस रिवौल्वर के बारे में कुछ नहीं जानता.’’

‘‘मैं बताता हूं,’’ मैं ने तीखे स्वर में कहा, ‘‘यह वह रिवौल्वर है, जिस से तुम्हारे साथी मुश्ताक और सुग्गी की हत्या की गई है और यह काम तुम्हारे अलावा कोई नहीं कर सकता.’’

मेरी इस बात से वह और भी नरम हो कर बोला, ‘‘आप के पास इस बात का क्या सबूत है?’’

मैं ने थोड़ा झूठ मिला कर कहा, ‘‘पहला सब से बड़ा सबूत तो यह है कि इस पर तुम्हारी अंगुलियों के निशान हैं, जिन की जांच मैं ने फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट से करवा ली है.’’

वह मेरी चाल में आ गया. उस ने कहा, ‘‘यह नहीं हो सकता, मैं ने तो…’’ वह बोलतेबोलते रुक गया. वह कुछ ऐसी बात कहना चाह रहा था, जो उसे फांसी तक ले जाती.

मैं ने उस की बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘‘वह इसलिए न कि तुम ने घास में रिवौल्वर छिपाते वक्त उस पर से अपनी अंगुलियों के निशान मिटा दिए थे.’’

वह बोला, ‘‘आप तो मुझे पागल कर देंगे.’’

‘‘पागल तो तुम हो, मैं तो तुम्हारे पागलपन का इलाज कर रहा हूं. बताओ, पागलपन में तुम ने उन दोनों की हत्या की थी, उन्होंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था?’’

‘‘मैं ने किसी की हत्या नहीं की है.’’ उस की हठधर्मी जाने का नाम नहीं ले रही थी.

‘‘इस का मतलब यह है कि तुम शराफत की जबान नहीं समझते. तुम्हारी जबान खुलवाने के लिए चमन को बुलाना पड़ेगा.’’

‘‘सर, आप से कोई बड़ी गलती हो गई है.’’

मैं ने उसे एक मुक्का मार कर कहा, ‘‘गलती के बच्चे, क्या यह सही नहीं है कि कल दोपहर बाद 3 बजे तुम बशारत से खेतों पर मिले थे और बैलगाड़ी में चारा लदवाने में उस की मदद की थी?’’

वह इस बात से मुकरते हुए बोला, ‘‘मैं ने उस की शक्ल तक नहीं देखी.’’

मैं ने उस की आंखों में झांक कर कहा, ‘‘कल जब तुम उस के पास पहुंचे तो बशारत ने तुम से कहा था कि डेरे से फायरिंग की कैसी आवाज आई थी, इस पर तुम ने कहा था कि मैं तो नहर पार वाले खेतों की ओर से आ रहा हूं, इसलिए फायरिंग का कुछ पता नहीं.’’

‘‘यह बिलकुल झूठ है.’’

‘‘क्या झूठ है, फायरिंग का होना या बशारत का तुम से पूछना और उसे जवाब देना?’’

‘‘मैं बशारत की बात कर रहा हूं, मैं उस से न तो मिला था और न ही उस से कोई बात हुई थी.’’

‘‘तुम्हारा मतलब दूसरी बात ठीक है. फायरिंग वास्तव में हुई थी.’’

‘‘जी हां, फायरिंग की आवाज सुन कर तो मैं डेरे की ओर भागा था.’’

वह मेरे बिछाए जाल में फंस गया था, मैं ने उस से पूछा, ‘‘जब फायरिंग हुई थी, तब तुम कहां थे?’’

‘‘मैं नहर पार वाले खेतों में था.’’

‘‘तुम डेरे से इतनी दूर वहां क्या कर रहे थे?’’

उस ने कहा, ‘‘कल दोपहर में मैं ने और मुश्ताक ने एक साथ खाना खाया था. खाने के बाद मुश्ताक ने मुझ से नहर पार वाली जमीन पर जाने के लिए कहा. उधर कुछ काम था, मैं 2 बजे वहां चला गया और अपने काम में लग गया. कुछ ही देर हुई थी कि डेरे की ओर से फायरिंग की आवाज सुनाई दी. मैं सब काम छोड़ कर डेरे की ओर भागा. जब मैं वहां पहुंचा तो मुश्ताक और सुग्गी को बड़ी खराब हालत में देखा, वे खून में नहाए हुए थे.

‘‘उन की लाशें देख कर मैं तुरंत चौधरी के पास गया और उन्हें पूरी बात बताई. चौधरी मेरे साथ आए और देख कर थूथू करने लगे. बस यही कहानी थी सर.’’

‘‘बहुत अच्छी कहानी गढ़ी है तुम ने. तुम ने बशारत के बयान को तो झूठा बता दिया, बिलकीस के बारे में तुम क्या कहते हो?’’

‘‘क्या बिलकीस ने भी मेरे बारे में कुछ कहा है?’’

‘‘हां, उस ने बहुत कुछ कहा है.’’

‘‘क्या…क्या…’’ वह घबराते हुए बोला.

‘‘बताने का कोई फायदा नहीं, उस के बयान को तो तुम पहले ही झुठला चुके हो.’’

‘‘मैं समझा नहीं थानेदार साहब,’’ वह हैरत से मेरी ओर देखने लगा.

मैं ठहर कर बोला, ‘‘अभी कुछ देर पहले तुम ने कहा था कि मुश्ताक और सुग्गी के अवैध संबंधों का तुम्हें पता नहीं था और दूसरी ओर तुम बिलकीस को यह पट्टियां पढ़ाते रहे हो कि वह अपने पति पर नजर रखे, क्योंकि सुग्गी के साथ उस का कोई चक्कर चल रहा है और वह मुश्ताक से मिलने डेरे पर आती रहती है.’’

‘‘यह बात गलत है, मैं ने कभी बिलकीस से कोई बात नहीं की.’’

उस की बातों से लग रहा था कि वह हार मानने वाला नहीं है. मैं ने उस की आंखों में झांक कर कहा, ‘‘बशारत झूठा है और बिलकीस ने भी तुम्हारे बारे में गलत बयान दिया है. लेकिन एक बात याद रखो, तुम मेरे हत्थे चढ़े हो, मैं तुम्हें सीधा अदालत ले जाऊंगा और साथ में दोनों गवाहों को भी. फिर बिलकीस और बशारत की गवाही तुम्हें सीधा जेल भिजवा देगी.’’

मैं ने चमन शाह को बुला कर कहा कि यह तुम्हारा केस है, इसे ले जाओ और इस की अच्छी तरह खातिर करो. वह उसे अपने साथ ले गया.

अंधेरा होने से पहले चौधरी गनी थाने आया, वह काफी गरम दिखाई दे रहा था. आते ही बोला, ‘‘मलिक साहब, यह आप ने क्या अंधेर मचा रखी है. आप ने हत्यारे को खुला छोड़ कर एक निर्दोष को पकड़ लिया.’’

मैं ने अंजान बन कर कहा, ‘‘आप किस हत्यारे और किस निर्दोष की बात कर रहे हैं?’’

‘‘मैं बशारत और मुराद की बात कह रहा हूं.’’

‘‘अच्छा तो आप यह कहना चाहते हैं कि बशारत हत्यारा और मुराद निर्दोष है.’’

‘‘इस में क्या शक है?’’

‘‘आप के पास इस का कोई सबूत?’’ मैं ने पूछा.

वह मुझे घूरते हुए बोला, ‘‘सबूत तो आप के पास भी नहीं है.’’

‘‘मेरे पास बहुत सबूत हैं, सुबह तक दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा.’’ मैं ने पूरे विश्वास से कहा.

चौधरी बहुत गुस्से में दिखाई दे रहा था. मुराद उस का खास आदमी था. वह उस के बचाव के लिए बोला, ‘‘या तो आप बशारत को भी बंद करें या मुराद को छोड़ दें.’’

मैं ने उसी के स्वर में जवाब दिया, ‘‘अब आप मुझे थानेदारी सिखाएंगे?’’

‘‘आप अच्छा नहीं कर रहे हैं, मलिक साहब.’’ उस की आवाज में धमकी छिपी थी.

‘‘मैं जो कुछ भी कर रहा हूं, सोचसमझ कर रहा हूं. मैं अपने काम में किसी का दखल सहन नहीं कर सकता. अब आप जा सकते हैं.’’ मेरे इस व्यवहार से वह मुझे घूरता रहा, फिर फुफकारते हुए बोला, ‘‘मैं मुराद से कुछ बात करना चाहता हूं.’’

मैं ने इनकार कर दिया.

वह पैर पटक कर जाते हुए कहने लगा, ‘‘मैं तुम्हें देख लूंगा थानेदार.’’

‘‘बता कर देखने आना चौधरीजी, ताकि मैं तैयार हो कर बैठूं.’’

मैं ने चमन शाह को बुलाया और मुराद के बारे में जरूरी निर्देश दिए कि अगर कोई मुराद से मिलने आए तो उसे हवालात के पास फटकने तक नहीं देना.

अगला दिन बड़ा हंगामे वाला गुजरा. मुश्ताक और सुग्गी की लाशें आ गईं. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के हिसाब से उन की मौत दोपहर 2 और 3 बजे के बीच हुई थी. यह रिपोर्ट मेरे अनुमान की पुष्टि कर रही थी. दोनों को उन की बेखबरी में गोली मारी गई थी. उन्हें संभलने का भी मौका नहीं मिला था.

रिपोर्ट के मुताबिक मुश्ताक को 4 और सुग्गी को 2 गोलियां मारी गई थीं, जिस से दोनों की मौत मौके पर ही हो गई थी. मैं ने जरूरी कागज तैयार कर के लाशें उन के घर वालों को सौंप दीं. फिर मैं ने हवलदार चमन शाह से पूछा कि हवालाती का क्या हाल है, उस ने कुछ कबूला या नहीं.

उस ने मूंछों पर ताव दे कर कहा, ‘‘क्या बात करते हैं सरजी, आप का शिष्य हूं, नाकाम कैसे हो सकता हूं. मैं ने उस से अपराध कबूलवा लिया है.’’

‘‘इस का मतलब है कि वह बयान देने के लिए तैयार है. उसे मेरे पास ले आओ.’’

कुछ देर बाद वह उसे ले आया. मैं समझ रहा था कि उस की हत्या ईर्ष्या की वजह से हुई होगी, लेकिन उस के बयान के मुताबिक दोनों की हत्या चौधरी के कहने पर की गई थी.

मुराद के बयान के मुताबिक चौधरी और सुग्गी के आपस में अवैध संबंध थे. यह चक्कर तब शुरू हुआ था, जब सुग्गी चौधरी की बीमार पत्नी नरगिस की मालिश करने आती थी. उसी दौरान चौधरी ने उस से संबंध बना लिए थे. इन दोनों का मिलन चलता रहा. इसी बीच चौधरी को पता लगा कि सुग्गी के संबंध उस के नौकर मुश्ताक से भी हैं. यह जान कर उसे बहुत गुसा आया. उस ने दोनों को समझाने की कोशिश की, लेकिन वे नहीं माने और पहले से ज्यादा मिलने लगे.

अंत में मजबूर हो कर चौधरी ने मुराद से उन की हत्या करने के लिए कह दिया. घटना के दिन मुराद ने ही खाला मुखतारा को सुग्गी को बुलाने के लिए भेजा था और कहा था कि उसे मुश्ताक ने बुलाया है.

मुराद जानता था कि सुग्गी बशारत को खाना खिलाने के बाद सीधे मुश्ताक से मिलने आएगी. उस ने मुश्ताक से कहा कि वह नहर पार वाले खेतों पर जा रहा है. उस समय मुश्ताक ट्यूबवैल वाले कमरे में था. मुराद उन्हें धोखा देने के लिए वहां से चला गया. फिर उन की आंख बचा कर कमरे के पीछे चला गया और कमरे में आ कर तख्त के पीछे रिवौल्वर तैयार कर के खड़ा हो गया.

सुग्गी जैसे ही आई, मुश्ताक ने उसे कमरे में बुलाया और दरवाजा बंद कर लिया. दोनों मस्ती करने लगे. मुराद चुपके से निकला और दोनों को गोली मार दी. जब उस ने देखा कि दोनों मर गए हैं तो उस ने तख्त को कमरे से निकाल कर कबाड़ वाले कमरे में रख दिया.

जब मैं जांच के लिए वहां पहुंचा तो मुझे उस कमरे में कोई तख्त नहीं दिखाई दिया. दोनों की हत्या कर के चौधरी की योजना के अनुसार मुराद रिवौल्वर को बशारत के सामान में छिपाना चाहता था, जिस से छानबीन के दौरान पुलिस का शक बशारत पर ही जाए.

मुराद का बयान बहुत खास था. उस ने चौधरी के कहने से मुश्ताक और सुग्गी की हत्या की थी, इसलिए चौधरी भी इस अपराध में बराबर का भागीदार था और यह उसे जेल में डालने के लिए काफी था. मैं ने चौधरी को खुद गिरफ्तार करने का फैसला किया और हवलदार चमन से कहा कि मुराद की देखभाल जरूरी है, किसी को हवालात के पास तक आने नहीं देना.

मैं कांस्टेबल आफताब को साथ ले कर हवेली की ओर चल दिया. हमारी जीप चौधरी  की हवेली पहुंची. उस वक्त चौधरी हवेली से निकल रहा था. अगर हमें थोड़ी देर हो जाती तो वह चला जाता. मुझे देख कर चौधरी ठिठका. मेरा दिल तो कर रहा था कि उसे इसी समय हथकड़ी पहना दूं, लेकिन मैं उस से थोड़ी ठिठोली करना चाहता था.

मैं ने कहा, ‘‘चौधरी साहब, सब कुशल तो है? बनठन कर सुबहसुबह कहां चले?’’

‘‘मैं डीएसपी साहब से मिलने जा रहा हूं.’’ उस ने बताया.

‘‘कोई खास समस्या आ गई है क्या?’’

वह कहने लगा, ‘‘मलिक साहब, जिन अधिकारियों के आगे आप लोग सावधान की मुद्रा में खड़े होते हैं, वे मेरे दोस्तों में हैं. आप को पता नहीं चौधरी गनी कितना ताकतवर है.’’

उस ने मुझे हवेली में बैठने के लिए भी नहीं कहा. उसे यह पता नहीं था कि अभी कुछ ही देर में मैं उसे हवालात में डालने वाला हूं. मैं ने उसे और अधिक उल्लू बनाने के लिए कहा, ‘‘चौधरी साहब, मुझे आप की पावर का पता लग गया है. मेरे थाने में बडे़ अधिकारियों के भेजे हुए कुछ लोग आए बैठे हैं. लगता है, आप की पहुंच बहुत ही ऊपर तक है. तभी आप ने मेरी शिकायत ऊपर कर दी है.’’

‘‘आप ने भी तो बहुत अंधेर मचा रखी है.’’

मैं ने कहा, ‘‘जो हुआ, सो हुआ. इस समय आप मेरे साथ थाने चलें. मुराद का केस निपटाना है. मैं ने उसे हवालात में बंद कर के बहुत बड़ी गलती की है. आप डीएसपी साहब से फिर कभी मिल लेना.’’

वह मेरे झांसे में आ गया और बोला, ‘‘अच्छा, थाने में कौन आए हैं, क्या एसपी साहब ने अपने आदमी भेजे हैं?’’

इस बात से यह पता लग गया कि उस ने एसपी तक मेरी शिकायत की है. मैं ने कहा, ‘‘यहां खड़ेखड़े क्या बात होगी. आप मेरे साथ थाने चलें, वहीं चल कर बात करेंगे.’’

वह खुश हो गया और हम लोग थाने पहुंच गए. वहां मैं ने चौधरी को अपने कमरे में बिठाया. उस ने कमरे में चारों ओर देखा. दरअसल, वह यह देखना चाह रहा था कि कौन आया है.

मैं ने उस से कहा, ‘‘टांग के दर्द ने आप की अक्ल भी छीन ली है. मैं वर्दी पहने बैठा हूं और आप को मैं दिखाई नहीं दे रहा, वह बंदा मैं ही हूं.’’

‘‘आप मुझे धोखा दे कर यहां लाए हैं, यह आप ने अच्छा नहीं किया.’’

‘चौधरी साहब, मैं केस की तफ्तीश पूरी कर चुका हूं. मुझे इस केस में आप की बहुत जरूरत है. आप के कहने से मुराद ने सुग्गी और मुश्ताक की हत्या की है.’’ फिर मैं ने उसे पूरी कहानी सुना दी.

वह कुरसी से खड़ा हो कर तैश में बोला, ‘‘यह क्या बदतमीजी है?’’

मैं भी खड़ा हो कर बोला, ‘‘यह बदतमीजी नहीं, बल्कि सच्चाई है. जो कुछ आप ने सुना, वह मुराद का बयान है. आप ही के आदेश पर उस ने सुग्गी और मुश्ताक को निर्दयता से गोलियां मारीं.’’

उस का चेहरा एकदम सफेद पड़ गया, वह बोला, ‘‘क्या उस ने मेरे खिलाफ बयान दे दिया है, उस की इतनी हिम्मत?’’

मैं ने कहा, ‘‘चौधरी साहब, यह आप की हवेली नहीं, थाना है. अब आप भी पुलिस कस्टडी में हैं. आप भी मुराद के साथ जेल की ताजी ठंडी हवा का मजा लोगे.’’

वह बहुत गुस्सा हुआ और पैर पटकते हुए बोला, ‘‘उस की मैं अभी जबान काट लूंगा.’’

कह कर वह दरवाजे की ओर भागा. मैं ने तुरंत हवलदार चमन को आवाज दे कर कहा, ‘‘इसे देखो.’’

चमन शाह पहले से ही तैयार था, लेकिन चौधरी ने तेजी से उसे धक्का दिया, जिस से चमन डगमगा गया. वह संभल कर चौधरी के पीछे भागा. मैं अपने कमरे से निकला तो फायरिंग की आवाज आई.

मैं ने भाग कर देखा तो हवालात के बाहर चमन शाह ने चौधरी को दबोच रखा था और दूसरे कांस्टेबल उस से रिवौल्वर छीनने की कोशिश कर रहे थे. मैं ने हवालात में देखा तो मुराद जमीन पर उल्टा पड़ा था और उस के शरीर से खून बह रहा था. उस ने उस का सीना छलनी कर दिया था.

चौधरी ने मेरा काम आसान कर दिया था, अब किसी तफ्तीश की जरूरत नहीं थी. उसे फांसी के फंदे तक पहुंचाने के लिए यही सबूत काफी थे.

मैं ने कागज तैयार कर के मुराद की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी और चौधरी को अदालत में पेश कर दिया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. मुकदमा चला और उसे फांसी की सजा हो गई.

चौधरी की भूलभुलैया : अपनी ही बनाई योजना में फंसा – भाग 2

मुझे मुखतारा की बात को सच मानना पड़ा. चौधरी बोला, ‘‘मलिक साहब, आप जानते नहीं, सुग्गी किस तरह की औरत थी. छलफरेब उस की नसनस में था. जो औरत अपने पति की नहीं हुई, वह किसी और की कैसे हो सकती है.’’

मैं ने कहा, ‘‘ठीक है चौधरी साहब, आप ने यह तो साबित कर दिया कि सुग्गी को आप ने हवेली पर नहीं बुलाया था, पर मैं ने सुना है कि वह आप की हवेली के अकसर चक्कर लगाती थी.’’

‘‘हां मलिक साहब, वह हफ्ते में 1-2 बार हवेली आती थी.’’ वह थोड़ा रुक कर बोला, ‘‘बात यह है मलिक साहब, मेरी पत्नी का नीचे का हिस्सा पैरलाइज है. सुग्गी को तेल मालिश करने के लिए बुलाया जाता था.’’

उस का बयान सुन कर मैं ने कहा, ‘‘ठीक है चौधरी साहब, अब मैं चलता हूं. लेकिन कल आप मुराद को थाने जरूर भेज दें, उस का बयान लेना है.’’

मैं जीप में बैठ कर गांव के अंदर की ओर जा रहा था, क्योंकि मुझे बशारत के घर के आगे से जाने पर पता लग जाता कि वह आया या नहीं. अभी तांगा चल ही रहा था कि एक औरत जीप के आगे आई. ड्राइवर बोला, ‘‘इस का खसम तो हराम की मौत मारा गया, अब पता नहीं यह क्या चाहती है?’’

मैं ने उस से पूछा, ‘‘क्या यह मुश्ताक की पत्नी बिलकीस है?’’

वह कहने लगा, ‘‘हां, वही है.’’

‘‘मुझे मौत चाहिए दारोगाजी, जब मेरा पति नहीं रहा तो मैं जी कर क्या करूंगी. डायन मेरे पति को खा गई.’’ बोलतेबोलते उस का गला रुंध गया. बिलकीस को देख कर मुझे हैरानी हुई, क्योंकि मुश्ताक बड़ा सुंदर था लेकिन वह छोटे कद की सांवली औरत थी.

मैं ने उस से पूछा, ‘‘बीबी, तुम बिलकीस हो, क्या तुम उस डायन के बारे में कुछ बताओगी?’’

वह बोली, ‘‘आइए थानेदार साहब, मेरे घर आओ, मैं सब कुछ बताऊंगी.’’

मैं ने उस की बात मान ली.

‘‘तुम ने सुग्गी को डायन कहा, वास्तव में वह डायन ही थी.’’ मैं ने उस से हमदर्दी जताते हुए कहा, ‘‘अब मुझे बताओ, उन दोनों के बीच यह चक्कर कब से चल रहा था?’’

‘‘थानेदारजी, मैं बहुत दुखी औरत हूं.’’ वह सिसकते हुए बोली, ‘‘मैं एक कालीकलूटी औरत हूं. मुश्ताक को गोरीचिट्टी औरत चाहिए थी. मैं ने उस से कई बार कहा कि किसी सुंदर सी औरत से निकाह कर ले. मैं नौकरानी बन कर रह लूंगी, लेकिन वह नहीं माना. मुझे क्या पता था कि वह इस तरह घर से बाहर क्या गुल खिलाता फिर रहा है.’’

मैं ने उस से कहा, ‘‘बिलकीस, अगर तुम चाहती हो कि मैं तुम्हारे पति के हत्यारे को पकड़ूं तो मुझे बताओ कि उन दोनों के बीच यह चक्कर कब से चल रहा था?’’

‘‘यह तो पता नहीं. लेकिन मुझे कुछ दिनों पहले ही पता लगा था.’’

‘‘तुम्हें यह बात किस से पता लगी?’’

‘‘मुझे मुराद ने एक महीने पहले बताया था. उस ने कहा था कि अपने पति की देखभाल करो, वह सुग्गी से मिलता है और सुग्गी उस से मिलने डेरे पर जाती है.’’

‘‘तो तुम ने उस पर नजर रखी?’’

‘‘नहीं जी, मैं ने मुश्ताक पर भरोसा किया और समझा कि सुग्गी को ले कर तो किसी को भी बदनाम किया जा सकता है. लेकिन आज की घटना से मुझे पूरा यकीन हो गया कि मुराद की बात सच थी.’’

मैं ने उस से कहा, ‘‘तुम्हें मुश्ताक से इस बात की पुष्टि करनी चाहिए थी.’’

वह बोली, ‘‘दरअसल, मुराद ने मुझे कसम दे रखी थी.’’

मैं ने उस से पूछा, ‘‘अच्छा, यह बताओ तुम्हें किसी पर शक है?’’

वह बोली, ‘‘जब मैं ने देखा ही नहीं तो किस का नाम लूं. लेकिन इस सब का जिम्मेदार मैं सुग्गी को समझती हूं.’’

उठते हुए मैं ने कहा, ‘‘अच्छा बिलकीस, मैं तुम्हारे पति के हत्यारे को जरूर पकड़ूंगा. इस बीच अगर तुम्हें कुछ पता लगे तो मुझे जरूर बताना.’’

उस ने पूछा कि पति की लाश कब मिलेगी. इस पर मैं ने उसे बताया कि जैसे ही लाश अस्पताल से आएगी, मैं खबर कर दूंगा.

वहां से मैं सीधा बशारत के घर पहुंचा. वहां फरमान मिला, उस ने बताया कि वह अभी तक नहीं आया है. मैं ने उस से कहा कि जैसे ही वह आए, मुझे खबर कर देना.

मैं रात का खाना खा कर घर पर बैठा था कि कांस्टेबल आफताब ने आ कर बताया, ‘‘सर, बशारत आया है. उस के साथ उस का साढ़ू भी है. वे चारे से लदी बैलगाड़ी पर आए हैं.’’

मैं थाने पहुंचा और दोनों को अपने कमरे में बुलाया. मैं ने फरमान से पूछा, ‘‘तुम्हारी इस से कोई बात हुई?’’

वह बोला, ‘‘बातें तो बहुत हुई हैं जनाब, लेकिन वही बात जो मैं कह रहा था, उन की हत्या में इस का कोई हाथ नहीं है.’’

मैं ने बशारत की ओर देखते हुए कहा, ‘‘मुझे सचसच बताओ कि तुम ने ये हत्याएं क्यों कीं?’’

उस ने कहा कि इस में उस का कोई हाथ नहीं है.

मैं ने कहा, ‘‘अच्छा तो तुम शराफत की जबान नहीं समझते. तुम्हारे साथ कोई दूसरा तरीका आजमाना पड़ेगा.’’

मैं ने हवलदार को आवाज लगाई. बशारत यह सुन कर कांप गया और रोनी सूरत बना कर कहने लगा, ‘‘जनाब, एक तो मेरी पत्नी की हत्या हो गई और उल्टा आप मुझे ही दबा रहे हैं.’’

‘‘सारे कायदेकानून तुम्हें अभी पढ़ाए जाएंगे, तुम आसानी से छूटने वाले नहीं हो.’’

बशारत की उम्र 40 के लगभग होगी. छोटा कद, चेहरे पर चेचक के दाग, एक टांग से लंगड़ा, पतलादुबला, किसी भी तरह सुग्गी के मेल का नहीं था. ऐसा ही बिलकीस और मुश्ताक का जोड़ था.

हवलदार चमन कमरे में आया तो मैं ने फरमान से कहा कि वह कमरे से बाहर जा कर बैठे. जब जरूरत होगी, बुला लेंगे. वह चला गया तो मैं ने बशारत की ओर देख कर कहा, ‘‘हां भाई, आसानी से बताएगा या सच उगलवाने के लिए हमें मेहनत करनी पड़ेगी.’’

वह कांपते हुए बोला, ‘‘हुजूर, मैं बिलकुल निर्दोष हूं, मैं ने किसी की हत्या नहीं की है.’’

मैं ने उस से कहा, ‘‘चौधरी के डेरे पर जो घटना घटी, वह तुम्हें पता है या मैं बताऊं?’’

‘‘मुझे पता है चौधरी के डेरे पर किसी ने मेरी पत्नी और मुश्ताक की हत्या कर दी है और उस का आरोप मेरे ऊपर लगाया जा रहा है.’’

‘‘स्थिति के हिसाब से शक तो तुम पर ही जाएगा.’’

‘‘हुजून, मुझे क्या पता. मेरे घर से तो दोपहर में वह ठीकठाक गई थी.’’ कहते हुए उस ने गरदन झुका ली.

उस की गरदन झुकी देख कर मैं समझ गया कि वह इस घटना से बहुत दुखी है, इसलिए मैं ने उसे धीरेधीरे कुरेदना शुरू किया. मैं ने उस से पूछा, ‘‘सुग्गी, खाना ले कर तुम्हारे पास कब पहुंची थी?’’

उस ने बताया, ‘‘उस वक्त दोपहर का एक बजने वाला था.’’

‘‘तुम्हारे पास वह कितनी देर रही?’’

उसे कुछ हिम्मत सी हुई, उस ने निर्भीक हो कर कहा, ‘‘यही कोई 20-25 मिनट यानी कोई डेढ़ बजे दोपहर तक.’’

मैं ने उस की आंखों में झांकते हुए कहा, ‘‘तुम रोज सूरज छिपने से पहले घर आ जाते हो, आज इतनी देर कैसे हो गई, कहां थे तुम?’’

‘‘मैं लंगरवाल चला गया था. शफी से अपने पैसे लेने. यह बात मैं ने सुग्गी को भी बता दी थी कि मैं रात तक घर पहुंचूंगा.’’

मैं ने हवलदार चमन को कमरे से बाहर जाने के लिए कहा, क्योंकि वह उस की मौजूदगी में डराडरा बोल रहा था. उस के जाते ही मैं ने उसे बैठने को कहा.

‘‘तुम लंगरवाल कितने बजे गए थे? यह समझ लेना कि मैं आंखें मूंद कर तुम्हारी बातों पर यकीन नहीं कर लूंगा. मैं एक आदमी भेज कर शफी से तुम्हारी बातों की पुष्टि करवाऊंगा.’’

‘‘आप कैसे भी पता कर लें, मैं वहां करीब 4 बजे गया था.’’

मैं ने धीरे से पूछा, ‘‘तुम्हें सुग्गी और मुश्ताक के संबंधों का पता था?’’

वह धीरे से बोला, ‘‘नहीं हुजूर, मुझे इस बारे में कुछ नहीं पता था.’’

‘‘तुम्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है. मैं तुम्हारी बात किसी से नहीं कहूंगा. सचसच बताओ, तुम्हें कुछ पता था?’’

‘‘थानेदारजी, मैं ने आप से कसम खाई है, मुझे कुछ भी पता नहीं था.’’

‘‘तुम्हारी शादी को कितने दिन हो गए?’’

‘‘कोई 7 साल.’’

‘‘फिर तो तुम अपनी पत्नी को अच्छी तरह समझते होगे?’’

वह कुछ उलझ सा गया और मेरी ओर देख कर बोला, ‘‘जी?’’

‘‘देखो, बुरा मत मानना. हम केस की तफ्तीश बड़ी गहराई से करते हैं और हर तरह के सवाल करते हैं. मैं ने तुम्हारी पत्नी के बारे में कुछ अच्छी बातें नहीं सुनीं.’’

वह पलक झपकते ही मेरी बात की गहराई तक पहुंच गया. वह बोला, ‘‘आप ने ठीक ही सुना है.’’

‘‘तुम तो उस के पति थे, तुम उसे समझाते.’’

उस ने अपना चेहरा दोनों हाथों में छिपा लिया और टूटे हुए दिल से बोला, ‘‘मैं उसे क्या समझाता, उस पर मेरा जोर नहीं चलता था.’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘हुजूर, दुनिया मुझे उस का पति कहती है, लेकिन यह बात नहीं है.’’ वह रोनी सूरत बना कर कहने लगा, ‘‘असल बात यह है कि आज तक सुग्गी ने मुझे अपने पास तक नहीं आने दिया.’’

‘‘तुम्हारा दिमाग तो खराब नहीं है बशारत, तुम 5 साल के बेटे नवेद के बाप हो.’’

उस ने बड़े दुख से कहा, जैसे उस की आवाज किसी कुएं से आ रही हो, ‘‘थानेदार साहब, भाग्य में अगर औलाद लिखी हो तो मिल ही जाती है, कभी बाप की कोशिश से और कभी मां के जरिए से.’’

बशारत हिचकियों से रोने लगा. वह रोता रहा और अपनी कहानी सुनाता रहा. ऐसी कहानी जो सुग्गी ने उस से जूते की नोक पर लिखवाई थी. जब से उस का विवाह सुग्गी के साथ हुआ था, वह उस की सुंदरता के आगे सिर झुकाए रहता था. जैसा वह कहती थी, वह वही करता था.

मैं ने उस के साढ़ू फरमान को बुलवा कर कहा, ‘‘आज की रात बशारत लौकअप में रहेगा, कल मैं एक सिपाही लंगरवाल भेज कर इस के जाने की पुष्टि कराऊंगा. इस की बात सच हुई तो मैं इसे छोड़ दूंगा.’’

अगले दिन सुबह मैं सरकारी काम से हैडक्वार्टर चला गया. जब दोपहर को वापस थाने आया तो हवलदार चमन ने बताया, ‘‘सरजी, आप के लिए अच्छी खबर है. जिस रिवौल्वर से हत्या की गई थी, वह मिल गया है.’’

मैं उछल पड़ा, ‘‘कहां है रिवौल्वर, कहां से मिला?’’

हवलदार ने बताया कि फरमान दे कर गया है, वह कह रहा था कि यह जानवरों के चारे के ढेर से मिला था. वह अभी कुछ देर में थाने आने के लिए कह कर गया है.

मैं ने जो सिपाही लंगरवाल भेजा था, वह आ गया और उस ने शफी से बशारत के वहां पहुंचने की पुष्टि करा ली थी. मैं ने बशारत को बुला कर कहा, ‘‘बशारत, हत्या में इस्तेमाल रिवौल्वर मिल गया है.’’

उस ने पूछा, ‘‘कहां से मिला?’’

‘‘तुम्हारी बैलगाड़ी पर लदे चारे के ढेर से.’’

वह हकला कर बोला, ‘‘गाड़ी में…किस ने रखा?’’

‘‘यह तो तुम ही बताओगे,’’ मैं ने कपड़े में लिपटे हुए रिवौल्वर की एक झलक उसे दिखाते हुए कहा, ‘‘इसे तुम्हारा साढ़ू चारे के ढेर से लाया है. इसे या तो तुम ने चारे में रखा होगा या फरमान ने.’’

‘‘मैं…मैं ने तो नहीं छिपाया, लेकिन…’’ वह बोलतेबोलते रुक गया, जैसे उसे कोई बात याद आ गई हो.

मैं ने उसे डांटते हुए कहा, ‘‘लेकिन के बाद तुम्हारी जबान को ब्रेक क्यों लग गया?’’

‘‘मुझे लगता है, यह मुराद का कारनामा है.’

मुराद के नाम से मैं चौंक पड़ा. मैं ने उस से पूछा, ‘‘क्या कहना चाहते हो?’’

वह माथे पर हाथ मार कर बोला, ‘‘यह बात मुझे कल रात क्यों याद नहीं आई?’’

‘‘अब याद आ गई है तो बताओ.’’

‘‘हुजूर, नहीं भूलूंगा, अब मुझे याद आया. जब मैं चारा बैलगाड़ी पर लाद रहा था तो मुराद मेरे पास आया था. उस ने कहा, ‘चाचा, लाओ घास बैलगाड़ी पर लादने में तुम्हारी मदद करता हूं.’ फिर वह चारा लादने लगा. मुझे 101 प्रतिशत यकीन है, मेरी नजर बचा कर उसी ने रिवौल्वर चारे में रख दिया होगा.’’

वह आगे बोला, ‘‘वह मेरे पास करीब साढ़े 3 बजे आया था. मैं ने उस से पूछा कि डेरे की ओर से गोलियां चलने की आवाजें आ रही थीं. सब ठीक तो है न. इस पर उस ने बताया कि उसे कुछ नहीं पता, क्योंकि वह नहर पार वाले खेतों से आ रहा है. फिर वह मेरे पास ज्यादा देर नहीं रुका. मैं भी लंगरवाल चला गया.’’

‘‘तुम ने गोलियों की आवाज मुराद के आने से पहले किस समय सुनी थी?’’

‘‘उस के आने से कोई एक घंटा पहले.’’

मैं ने फरमान और बशारत को जाने के लिए कहा, क्योंकि मुझे इस हत्या में उन का हाथ नहीं लग रहा था. उन के जाने के बाद मैं ने हवलदार से पूछा कि क्या मुराद आया था. उस ने इनकार कर दिया.

‘‘नहीं आया तो अब आएगा.’’ हवलदार मेरा इशारा समझ गया.

‘‘अभी आया सर, उसे लाता हूं.’’

‘‘देखो, 2 कांस्टेबलों को साथ ले कर सीधे चौधरी के डेरे पर जाओ. इस समय वह वहीं मिलेगा. उसे गिरफ्तार कर के ले आओ. और हां, मुराद को चौधरी से नहीं मिलने देना और न ही बात करने देना.’’

शाम से कुछ देर पहले हवलदार चमन मुराद को गिरफ्तार कर के ले आया. मैं ने पूछा, ‘‘इस सरकारी सांड को गिरफ्तार करने में कोई परेशानी तो नहीं हुई?’’

वह बोला, ‘‘परेशानी तो नहीं हुई, लेकिन अपने आप को बहुत तीसमारखां समझ रहा है. मुझे डीएसपी, एसपी की धमकियां दे रहा था.’’

‘‘तुम समझे नहीं चमन, राजा का कुत्ता भी प्रजा को बहुत नीच समझता है.’’

‘‘मेरे लिए क्या हुकुम है सर?’’

‘‘अभी तुम इसे मेरे पास छोड़ जाओ, मैं इसे शराफत का पाठ सिखाऊंगा.’’

चौधरी की भूलभुलैया : अपनी ही बनाई योजना में फंसा – भाग 1

उन दिनों मैं नजीबाबाद में तैनात था. एक दिन एक दोहरे हत्याकांड का मामला सामने आया. मैं एक कांस्टेबल को ले कर घटनास्थल पर पहुंच गया. मई का महीना था. तेज गरमी पड़ रही थी. हत्या की वारदात चौधरी गनी के डेरे पर हुई थी, जो गांव टिब्बी का रहने वाला था. उस डेरे में नीची छतों के कमरे थे और एक कमरे में दोनों मृतकों की लाशें चारपाई पर रखी थीं, जो एक चादर से ढंकी थीं.

कमरे में जितने लोग थे, चौधरी ने सब को बाहर कर के दरवाजा बंद कर दिया. इस के बाद उस ने लाशों के ऊपर से चादर खींच दी. मेरी नजर लाशों पर पड़ी तो मैं ने शरम से नजरें दूसरी ओर फेर लीं. लाशें मर्द और औरत की थीं और दोनों नग्न हालत में एकदूसरे से लिपटे हुए थे. चौधरी ने कहा, ‘‘मैं ने इसीलिए सब को बाहर निकाला था.’’

मैं ने पूछा, ‘‘कौन हैं ये दोनों?’’

उस ने मर्द की ओर इशारा कर के कहा, ‘‘यह तो मुश्ताक है, मेरा नौकर और यह औरत बशारत की पत्नी सुगरा है.’’

मैं ने दोनों लाशों का बारीकी से निरीक्षण किया. जांच से पता लगा कि दोनों जब एकदूसरे में खोए हुए थे, तभी किसी ने दोनों पर पूरा रिवौल्वर खाली कर दिया था. दोनों के शरीर का ऊपरी भाग खून में नहाया हुआ था. पहली नजर में यह बदले की काररवाई लगती थी. दोनों जवान और सुंदर थे. देखने के बाद मैं ने लाशों पर चादर डाल दी.

‘‘यह किस का काम हो सकता है?’’ मैं ने चौधरी गनी से पूछा.

वह अपनी एक टांग को दबाते हुए बोला, ‘‘यह आप जांच कर के पता लगा सकते हैं.’’

‘‘लेकिन आप का दिमाग क्या कहता है?’’ मैं ने पूछा.

‘‘मुझे बशारत मतलब सुगरा के पति पर शक है.’’

‘‘क्या आप ने बशारत से पूछताछ की है?’’

‘‘मैं ने एक आदमी उस के घर भेजा था, लेकिन वह घर पर नहीं मिला.’’

‘‘इस का मतलब उसे अभी तक इस घटना का पता नहीं लगा.’’

‘‘मलिक साहब, वह खुद ही इधरउधर निकल गया होगा.’’

चौधरी की बात से मैं समझ गया कि वह बशारत को मुश्ताक और सुगरा का हत्यारा समझ रहा है. मैं ने उस की आंखों में देखते हुए कहा, ‘‘चौधरी साहब, आप इस घटना के बारे में क्या जानते हैं?’’

‘‘कुछ ज्यादा नहीं.’’ उस का एक हाथ फिर अपनी बाईं टांग की ओर गया.

‘‘आप की टांग में क्या हो गया है, जो आप बारबार हाथ लगा रहे हैं.’’

‘‘मेरी टांग में कुछ दिनों से बहुत दर्द हो रहा है.’’ वह कुछ रुक कर बोला, ‘‘मैं तो यहां हवेली में आराम कर रहा था कि मुराद दौड़ते हुए आया. उस ने बताया कि मुश्ताक और सुगरा को किसी ने मार दिया है. मैं ने डेरे पर जा कर लाशों को देखा और एक आदमी बशारत को देखने के लिए भेज दिया. फिर हवेली पहुंच कर मंजूरे को आप के पास थाने भेजा और मुश्ताक की पत्नी को भी खबर कर दी. वह बेचारी रोपीट रही है.’’

मुश्ताक की पत्नी बिलकीस लाशों को देखने के लिए कहती रही, लेकिन मुराद ने उस से कह दिया कि जब तक पुलिस काररवाई नहीं हो जाती, वह उसे देखने नहीं देगा.

मैं ने जरूरी काररवाई कर के लाशों को जिला अस्पताल भिजवा दिया और कमरे की बारीकी से जांच की. कमरे में एक ओर खिड़की थी, खिड़की में कोई जाली या सरिए नहीं लगे थे. वहां एक चारपाई थी, जिस पर दोनों की लाशें रखी थीं.

चारपाई को रंगते हुए खून नीचे फर्श पर गिरा था, जो जम गया था. हत्या करने का कोई भी हथियार अथवा कोई भी ऐसी चीज नहीं मिली, जो हत्या की जांच में मदद कर पाती. कमरे के बाहर कुछ लोग खडे थे. मैं ने उन में से एक समझदार से आदमी की ओर इशारा कर के उसे बुलाया. मैं ने उस से पूछा, ‘‘चाचा, तुम्हारा नाम क्या है?’’

‘‘जी, रहमत…रहमत अली.’’

‘‘क्या तुम भी इसी गांव में रहते हो?’’

उस ने हां में जवाब दिया तो मैं ने उस का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘चाचा, तुम मेरे साथ आओ.’’

मैं उसे एक कमरे में ले गया, जिस में खेती का सामान और कबाड़ रखा था. उस सामान में मैं हत्या करने वाला हथियार देख रहा था, साथ ही चाचा से भी बात कर रहा था.

इस के बाद मैं ने 2 और कमरों की तलाशी ली, लेकिन काम की कोई चीज नहीं मिली. मेरे पास सरकारी ताला था, मैं ने उस कमरे में ताला लगा कर उसे सील कर दिया, जिस में उन दोनों की लाशें मिली थीं.

कुछ और लोगों से बात कर के मैं रहमत को साथ ले कर डेरे से निकल कर टिब्बी गांव की ओर चल दिया. मैं चलतेचलते उस से बात कर रहा था. उस से काम की कई बातें पता लगीं, जो मैं आगे बताऊंगा.

चौधरी गनी ने मुझ से कहा था कि घटनास्थल से सीधा हवेली आऊं, लेकिन मैं ने पहले बशारत से मिलने की सोची. मैं पूछतेपूछते बशारत के घर तक पहुंच गया.

बशारत का घर गांव के बीचोबीच था, लेकिन वह घर में नहीं था. एक आदमी फरमान ने बताया कि वह खेतों में भी नहीं है. हम सब उस का इंतजार कर रहे हैं. उस ने गली में इधरउधर देखते हुए कहा, ‘‘आप अंदर आ जाएं सरकार, कुछ देर और खड़े रहे तो यहां मेला लग जाएगा.’’

‘‘तुम्हारे साढ़ू ने कारनामा ही ऐसा किया है, मेला तो लगेगा ही.’’

वह परेशान सा हो कर बोला, ‘‘समझ नहीं आ रहा, उस ने ऐसा काम कैसे कर दिया.’’

मैं अंदर एक कमरे में बैठ गया, जहां पहले से ही फरमान की पत्नी और बच्चे बैठे थे.

में ने उन्हें अपना परिचय दे कर बताया कि मैं कस्बा नजीबाबाद के थाने का इंचार्ज हूं. गांव टिब्बी मेरे ही थाने में आता है.

फरमान ने सिर हिला दिया, लेकिन उस की पत्नी कुबरा चुप नहीं रही. वह बोली, ‘‘थानेदार साहब, आप ने काररवाई करने में इतनी जल्दी क्यों की? कम से कम बशारत के आने का तो इंतजार कर लेते. लाशों को बाद में भी अस्पताल भिजवाया जा सकता था. हम अपनी बहन का मुंह भी नहीं देख सके.’’ इतना कह कर वह रोने लगी.

‘‘पागलों जैसी बातें न कर कुबरा, ऐसी हालत में उन का मुंह देखती. कुछ शरम है कि नहीं?’’ फरमान ने उसे झिड़का.

‘‘मैं गरमी की वजह से लाशों को अधिक देर तक नहीं रख सकता था.’’ मैं ने कुबरा से कहा, ‘‘तसल्ली रखो, पोस्टमार्टम के बाद लाशों को आप के हवाले कर दिया जाएगा, फिर आप अच्छी तरह अपनी बहन का मुंह देख लेना.’’

वह बोली, ‘‘थानेदार साहब हम चौधरियों के डेरे तक गए थे, लेकिन उस कमीने मुराद ने हमें कमरे के अंदर नहीं जाने दिया.’’

‘‘तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है कुबरा, हालात को समझने की कोशिश करो. तुम्हारी छोटी बहन ने ऐसी हरकत कर के हमारी नाक कटवा दी, अब तुम बाकी की कसर भी पूरी करना चाहती हो.’’ फरमान ने उसे डांटते हुए कहा.

मैं ने कुबरा को तसल्ली देते हुए कहा, ‘‘बीवी, मैं तुम्हारा दुश्मन नहीं हूं, चौधरी गनी ने ही मुराद को वहां खड़ा किया था. मृतक मुश्ताक की पत्नी भी अपने पति का मुंह देखने वहां पहुंची थी, लेकिन मुराद ने उसे भी अंदर नहीं जाने दिया.’’ फरमान ने मेरी ओर देखते हुए कहा, ‘‘मलिक साहब, आप की बातों से लग रहा है कि आप इस हत्या में बशारत पर शक कर रहे हैं.’’

‘‘क्या मैं बशारत पर शक करने के मामले में सही नहीं हूं?’’ मैं ने उसे जवाब देने के बजाय उल्टा सवाल कर दिया.

मेरा सवाल सुन कर वह इधरउधर देखने लगा, फिर बोला, ‘‘मेरा मतलब यह है कि बशारत…इतना हिम्मत वाला नहीं है.’’

सुगरा यानी सुग्गी के बेखौफ व्यवहार के बारे में मुझे रहमत अली ने भी बताया था. अब फरमान की बातों से लग रहा था कि वह अपनी साली के कारनामों से खुश नहीं था.

‘‘फरमान, पत्नी का मामला ऐसा होता है कि कमजोर आदमी भी अपनी इज्जत के लिए टार्जन बन जाता है. अगर उस ने हत्या नहीं की तो गायब क्यों हो गया?’’

‘‘यह बात तो मेरी समझ में भी नहीं आ रही. मैं ने उसे खेतों में भी देखा और गांव में भी, लेकिन उस का कहीं पता नहीं लगा. वह आज बैलगाड़ी भी ले गया था. कह रहा था कि वापसी में अपने और मेरे जानवरों के लिए चारा ले आएगा, लेकिन अभी तक नहीं आया.’’

कुबरा कहने लगी, ‘‘हम भी बशारत के इंतजार में अपना घर छोड़े बैठे हैं, छोटे बच्चे की भी तो समस्या है.’’

‘‘कौन सा छोटा बच्चा?’’

वह बोली, ‘‘सुग्गी का एक ही तो बच्चा है नवेद. उसे किस के पास छोड़ें. फरमान कहते हैं इसे अपने साथ ले चलो, वैसे भी वह हमारे ही घर में रहता है.’’

मैं ने नवेद के बारे में कुरेद कर पूछा तो कुछ बातें सामने आने लगीं. कुबरा ने बताया, ‘‘आज दोपहर सुग्गी जब बशारत के लिए खेतों पर खाना ले कर जाने लगी तो उस ने 5 साल के नवेद को मेरे पास छोड़ दिया था. वह हमारे घर खुशी से रहता है.’’

मैं ने उस से पूछा, ‘‘क्या वह रोज इसी वक्त खाना ले कर जाती थी?’’

‘‘जी हां, वह इसी समय खाना ले कर जाती थी,’’ वह संकोच से बोली, ‘‘और जाते वक्त नवेद को हमारे घर छोड़ जाती थी.’’

‘‘क्या बात है कुबरा, तुम इतनी बेचैन क्यों हो?’’ मैं ने उस के अंदर की उलझन को पहचान कर कहा, ‘‘तुम मुझे उलझी हुई दिखाई दे रही हो. अगर कोई परेशानी हो तो बताओ.’’

‘‘दरअसल, मैं एक बात बताना भूल गई. पता नहीं उस बात का कोई महत्त्व है भी या नहीं.’’

मैं ने जल्दी से कहा, ‘‘बताओ तो सही.’’

‘‘आज सुग्गी ने जाते हुए कहा था कि उसे वापस लौटने में देर हो जाएगी.’’ वह रोते हुए बोली, ‘‘मुझे क्या पता था कि उसे इतनी देर हो जाएगी कि वापस ही नहीं लौटेगी.’’

मैं ने उस से पूछा, ‘‘कुबरा बीबी, यह बताओ सुग्गी ने यह क्यों कहा था कि देर हो जाएगी, क्या उस ने कारण बताया था?’’

उस ने आंसू पोंछते हुए कहा कि सुग्गी ने बताया था कि बशारत को खाना खिलाने के बाद वह चौधरियों की हवेली जाएगी.

मैं ने पूछा, ‘‘वह चौधरियों की हवेली क्यों जाना चाहती थी?’’

‘‘चौधरी गनी ने उसे किसी काम के लिए बुलाया था.’’

मैं ने पूछा, ‘‘कौन सा काम?’’

‘‘यह तो उस ने नहीं बताया, लेकिन चौधरी गनी इस गांव के मालिक हैं, वह किसी को भी तलब कर सकते हैं.’’

मैं सोचने लगा, जब चौधरी गनी से मैं बात कर रहा था तो उस ने सुग्गी को बुलाने के बारे में नहीं बताया था. मुझे लगा कि कहीं कोई गड़बड़ जरूर है. मैं ने उस से पूछा, ‘‘सुग्गी से बुलाने की बात किस ने कही थी?’’

‘‘मासी मुखतारा आई थी.’’

‘‘मासी मुखतारा कौन है और कहां रहती है?’’

‘‘मासी मुखतारा हवेली में काम करती है और वहीं रहती है.’’

मैं ने मुखतारा को भी अपने दिमाग में रखा. इस से पहले 3 और नाम थे चौधरी गनी, बशारत और मुराद. यहां से निपट कर मुझे हवेली जाना था. मैं चौधरी गनी की हवेली की ओर जाने लगा तो फरमान भी मेरे साथ चलने लगा. तभी एक छोटा सा गोराचिट्टा बच्चा घर से निकल कर आया और बोला, ‘‘खालू, मेरे अब्बाअम्मा कब आएंगे?’’

फरमान चौधरी की हवेली तक मेरे साथ आया. मैं ने उस से कहा कि तुम बशारत के घर में ही रहना और जैसे ही वह आए, मुझे खबर कर देना. मैं इधर चौधरी की हवेली में बैठा हूं.

चौधरी ने बड़े तपाक से मेरा स्वागत किया. उस ने अपनी बैठक में बिठाया. उस की बैठक की सजावट देख कर लगा कि वास्तव में वह उस इलाके का राजा था. मैं ने उस से पूछा, ‘‘मुराद कहां है?’’

चौधरी बोला, ‘‘वह डेरे पर गया है, मंजूर भी उस के साथ है. दोनों वहीं रहेंगे, सोएंगे भी वहीं.’’

‘‘डेरे के कमरे पर तो मैं ने ताला डाल दिया है.’’

‘‘वहां 2 कमरे और भी हैं. वैसे आजकल गरमी है, वे अहाते में ही सोते हैं.’’ इतना कह कर चौधरी ने पूछा, ‘‘आप बशारत के घर काफी देर तक रहे हैं, कोई नुक्ता हाथ लगा या नहीं?’’

‘‘हां, एक सिरा हाथ तो लगा है, देखो उस से काम चलता है या नहीं.’’

सुन कर चौधरी के कान खड़े हो गए. वह तुरंत बोला, ‘‘आप कौन से सिरे की बात कर रहे हैं?’’

‘‘चौधरी साहब, जो सिरा मेरे हाथ लगा है, उस के दूसरे किनारे पर आप खड़े हैं.’’

‘‘मतलब?’’ वह चौंका.

मैं ने क हा, ‘‘मुझे पता लगा है कि आप ने सुग्गी को कल दोपहर अपने डेरे पर बुलाया था.’’

उस के चेहरे का रंग फीका पड़ गया. वह बोला, ‘‘आप को यह बात किस ने बताई?’’

‘‘पहले आप इस बात की पुष्टि करें, फिर उस का नाम बताऊंगा.’’

‘‘नहीं, मैं ने उसे नहीं बुलाया था.’’

मैं ने कहा, ‘‘आज दोपहर जब सुग्गी बशारत का खाना ले कर खेतों पर जा रही थी, तो उस ने अपने बेटे नवेद को फरमान के घर छोड़ा और उस की पत्नी कुबरा से कहा कि वापस लौटने में उसे देर हो जाएगी, क्योंकि उसे मासी मुखतारा ने कहा है कि चौधरी की हवेली जाना है.’’

वह गुस्से से बोला, ‘‘उस दुष्ट औरत ने झूठ बोला है, आप उसे जानते नहीं. वह औरत…लेकिन छोड़ो मरने वाले को बुरा नहीं कहना चाहिए.’’

‘‘तो चौधरी साहब आप इस बात से इनकार करते हैं कि मासी मुखतारा उसे बुलाने नहीं गई थी?’’

‘‘हां, बिलकुल मैं इनकार करता हूं. आप को अभी पता लग जाएगा.’’ उस ने मुखतारा को बुलाया तो वह तुरंत आ गई. देखने में वह बहुत तेज औरत लग रही थी. उस ने आते ही कहा, ‘‘नहीं, मैं ने कुछ नहीं कहा, पिछले 3 दिन से तो मैं ने सुग्गी की शक्ल भी नहीं देखी.’’