वासना में बनी पतिहंता : पत्नी ही बनी कातिल – भाग 3

सुनीता से नजदीकियां बढ़ाने के लिए मनदीप रोज बेटी को स्कूल छोड़ने के लिए आने लगा. इधर सुनीता भी मनदीप पर पूरी तरह फिदा हो थी. आग दोनों तरफ बराबर लगी थी. इस का एक कारण यह था कि अपनी उम्र के 40वें पड़ाव पर पहुंचने के बाद और 3 युवा बच्चों की मां होने के बावजूद सुनीता के शरीर में गजब का आकर्षण था.

दिन भर हाड़तोड़ मेहनत करने के बाद पति सुनील जब घर लौटता तो खाना खाते ही सो जाता था. जबकि उस की बगल में लेटी सुनीता उस से कुछ और ही अपेक्षा करती थी. लेकिन सुनील उस की जरूरत को नहीं समझता था. उसे मनदीप जैसे ही किसी पुरुष की तलाश थी, जो उस की तमन्नाओं को पूरा कर सके.

यही हाल मनदीप का भी था. पत्नी से मनमुटाव होने के कारण वह उसे अपने पास फटकने नहीं देती थी, इसलिए जल्दी ही सुनीता और मनदीप में दोस्ती हो गई, जिसे नाजायज रिश्ते में बदलते देर नहीं लगी थी. पति और बच्चों को स्कूल भेजने के बाद सुनीता स्कूल जाने के बहाने घर से निकलती और मनदीप के साथ घूमतीफिरती. कई महीनों तक दोनों के बीच यह संबंध चलते रहे.

इसी बीच अचानक सुनील को सुनीता के बदले रंगढंग ने चौंका दिया. उस ने अपने बच्चों से इस बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि स्कूल से लौटने के बाद मम्मी बनसंवर कर न जाने कहां जाती हैं और आप के काम से लौटने के कुछ देर पहले वापस लौट आती हैं. सुनील को तो पहले से ही शक था, उस ने सुनीता का पीछा किया और उसे मनदीप के साथ बातें करते पकड़ लिया. यह 2 मई, 2019 की बात है.

मनदीप की बात को ले कर सुनील का सुनीता से खूब झगड़ा हुआ और उस ने सुनीता का स्कूल जाना बंद करवा दिया. यहां तक कि उस ने उस का फोन भी उस से ले लिया.

बाद में सुनीता ने माफी मांग कर भविष्य में ऐसी गलती दोबारा न करने की कसम खाई और स्कूल जाना शुरू कर दिया था. बात करने के लिए मनदीप ने उसे एक नया फोन और सिमकार्ड दे दिया था. वे दोनों फोन पर बातें करते, मिल भी लेते थे. पर अब वे पहले जैसे आजाद नहीं थे.

इस तरह चोरीछिपे मिलने से सुनीता परेशान हो गई. एक दिन सुनीता ने अपने मन की पीड़ा जाहिर करते हुए मनदीप से कहा, ‘‘मनदीप, तुम कैसे मर्द हो, जो एक मरियल से आदमी को भी ठिकाने नहीं लगा सकते. तुम भी जानते हो कि सुनील के जीते जी हमारा मिलना मुश्किल हो गया है.’’

मनदीप ने उसे भरोसा दिया कि काम हो जाएगा. फिर दोनों ने मिल कर सुनील की हत्या की योजना बनाई. अब मनदीप के सामने समस्या यह थी कि वह यह काम अकेले नहीं कर सकता था.

नवंबर, 2019 में मनदीप जब जालसाजी के केस में जेल गया था, तब उस की मुलाकात जेल में बंद पंकज राजपूत से हुई थी. पंकज लुधियाना के थाना टिब्बा में दर्ज दफा 307 के केस में बंद था.

दोनों की जेल में मुलाकात हुई और दोस्ती हो गई थी. कुछ दिन बाद मनदीप की जमानत हो गई और वह जेल से बाहर आ गया. बाहर आने के बाद वह बीचबीच में पंकज से जेल में मुलाकात करने जाता रहता था.

सुनील की हत्या की योजना बनाने के बाद उस ने जेल जा कर पंकज को अपनी समस्या के बारे में बताया. पंकज ने उसे अपने 2 साथियों रमन और प्रकाश के बारे में बताया.

उस ने मनदीप के फोन से रमन को फोन कर मनदीप का साथ देने को कह दिया. रमन ने इस काम के लिए 10 हजार रुपए मांगे, जो मनदीप ने दे दिए थे. रमन और प्रकाश ने अपने साथ सन्नी को भी शामिल कर लिया था.

सुनीता ने किराए के हत्यारों को सुनील का पूरा रुटीन बता दिया कि वह कितने बजे काम पर जाता है, कितने बजे किस रास्ते से घर लौटता है, वगैरह.

इन बदमाशों ने तय किया कि सुनील को घर लौटते समय रास्ते में कहीं घेर लिया जाएगा. सुनील की हत्या के लिए 20 मई, 2019 का दिन चुना गया था पर टाइमिंग गलत होने से उस दिन सुनील बच गया.

अगले दिन 21 मई को रात 8 बजे मनदीप सन्नी को अपने साथ ले कर बीआरएस नगर से अपनी जेन कार द्वारा एक धार्मिक स्थल पर पहुंचा. रमन और प्रकाश भी बाइक से वहां पहुंच गए थे. इस के बाद चारों सुनील के मालिक की कोठी के पास मंडराने लगे.

सुनील अपने मालिक की कोठी पर फैक्ट्री की चाबियां देने के बाद अपनी इलैक्ट्रिक साइकिल से घर के निकला तो चीमा चौक के पास चारों ने उसे घेर कर जेन कार में डाल लिया. उस की साइकिल सन्नी ले कर चला गया जो उस ने लेयर वैली में फेंक दी थी.

सुनील को कार में डालने के बाद मनदीप ने उस के सिर पर लोहे की रौड से वार कर उसे घायल कर दिया. फिर सब ने मिल कर उस की खूब पिटाई की. इस के बाद साइकिल की चेन उस के गले में डाल कर उस का गला घोंट दिया.

सुनील की हत्या करने के बाद वे उस की लाश को सिटी सेंटर ले आए और सड़क किनारे सुनसान जगह पर फेंक कर रात 11 बजे तक सड़कों पर घूमते रहे. इस के बाद सभी अपनेअपने घर चले गए. शाम साढ़े 7 बजे से रात के 11 बजे तक सुनीता लगातार फोन द्वारा मनदीप के संपर्क में थी. वह उस से पलपल की खबर ले रही थी.

रिमांड अवधि के दौरान पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त चेन भी बरामद कर ली, लेकिन कथा लिखे जाने तक मृतक की साइकिल बरामद नहीं हो सकी.

रिमांड खत्म होने के बाद पुलिस ने सुनील की हत्या के अपराध में उस की पत्नी सुनीता, सुनीता के प्रेमी मनदीप उर्फ दीपा, रमन, प्रकाश और सन्नी को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

बाप का इश्क बेटी को ले डूबा – भाग 2

जरूरी काररवाई पूरी कर के मुंबई पुलिस बच्ची के शव को अपने कब्जे में ले कर मुंबई लौट आई और उसे पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भेज दिया. इधर जब अंजलि की हत्या की बात उस बिल्डिंग और आसपड़ोस के रहने वालों को पता लगी तो लोगों में आक्रोश फूट पड़ा.

देखते ही देखते पुलिस स्टेशन के सामने हजारों की भीड़ जमा हो गई. भीड़ पुलिस के खिलाफ नारेबाजी करने लगी. भीड़ तब तक शांत नहीं हुई, जब तक एसएसपी राजतिलक रोशन, एसपी मंजुनाथ शिंगे और एएसपी जयंत वंजवले ने पुलिस थाने आ कर 24 घंटे के अंदर हत्यारे को गिरफ्तार करने का आश्वासन नहीं दिया.

मामले को तूल पकड़ते देख पुलिस के बड़े अधिकारियों की आंखों से नींद गायब हो गई थी. उन्होंने जांच टीम को शीघ्र से शीघ्र अंजलि के हत्यारों को गिरफ्तार करने का निर्देश दिए. पुलिस टीम ने अंजलि के परिवार और आसपास के लोगों से गहराई से पूछताछ करने के अलावा इलाके में लगे सभी सीसीटीवी कैमरों की फुटेज भी खंगाली. लोकमान्य तिलक स्कूल के एक सीसीटीवी कैमरे की फुटेज में अंजलि एक महिला के साथ नालासोपारा स्टेशन की तरफ जाते हुए दिखाई दी.

वह महिला कौन थी और कहां से आई थी, यह जानने के लिए पुलिस टीम ने उस का स्केच बनवा कर जब मामले की जांच की तो पता चला कि वह महिला कई बार अंजलि के स्कूल और उस के घर साईं अपर्णा बिल्डिंग के आसपास संदिग्ध अवस्था में दिखाई दी थी. जिस दिन अंजलि गायब हुई थी, उस दिन भी वह बिल्डिंग परिसर में आई थी.

पुलिस जांच का चक्र तेजी से घूम रहा था. उस महिला का स्केच पूरे शहर में चिपकवाने के अलावा जनपद के सभी पुलिस थानों को भी भेज दिया गया. इस के अलावा स्केच अंजलि के पिता संतोष सरोज को भी दिखाया गया.

स्केच देखते ही संतोष ने अपना सिर पीट लिया. उस ने कहा कि यह तो उस की प्रेमिका है. पुलिस ने संतोष को सीसीटीवी कैमरे में अंजलि के साथ जाने वाली उस महिला की फुटेज दिखाई तो संतोष ने कहा कि यह उस की प्रेमिका अनीता वाघेला है और यह नालासोपारा (पूर्व) के नगीनदास पाड़ा इलाके में रहती है.

बिना देर किए पुलिस टीम अनीता के घर पहुंच गई. वह घर पर ही मिल गई. पुलिस उसे हिरासत में ले कर थाने लौट आई. पुलिस ने जब उस से अंजलि की हत्या के बारे में पूछताछ की तो उस ने आसानी से अपना जुर्म स्वीकार कर लिया. अनीता से पूछताछ के बाद अंजलि की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह प्यार में चोट खाई नागिन के प्रतिशोध वाली निकली—

22 साल की अनीता का रंग हालांकि बहुत साफ नहीं था, लेकिन कुदरत ने उसे कुछ इस तरह गढ़ा था कि जो भी उसे देखता, देखता ही रह जाता था. सांवले सौंदर्य की मालकिन अनीता के जिस्म की कसावट और फिगर देख मनचले गहरी सांसें लेते हुए फिकरे कसते थे. इस के अलावा अनीता खुले विचारों वाली महत्त्वाकांक्षी युवती थी.

आमतौर पर अनीता जैसी महत्त्वाकांक्षी युवतियां जो सपने देखती हैं, उन्हें किसी भी कीमत पर या कोई भी जोखिम उठा कर पूरा करने की कोशिश करती हैं.

यह अलग बात है कि इस के लिए उन्हें जो कीमत चुकानी पड़ती है, वह कभीकभी भारी पड़ जाती है. तब उन के पास हाथ मलने और अपनी नादानियों पर पछताने के सिवा कुछ नहीं रह जाता. यही हाल अनीता का हुआ था. वह आंख मूंद कर संतोष सरोज पर भरोसा कर के प्यार करने की भूल कर बैठी थी.

मूलरूप से गुजरात की रहने वाली अनीता वाघेला अपने मातापिता और भाईबहनों के साथ नालासोपारा (पूर्व) के नगीनदास पाड़ा इलाके में रहती थी. वह अपने और परिवार के लिए कैटरिंग का काम किया करती थी. उस की और संतोष सरोज की मुलाकात करीब 7 साल पहले नगीनदास पाड़ा के आटो स्टैंड पर हुई थी.

उस दिन वह अपने काम पर जाने के लिए काफी लेट हो रही थी. तब वह अपनी मंजिल तक संतोष के आटोरिक्शा से पहुंची थी. अनीता आटो से उतर कर चली तो गई लेकिन उस की शोख चंचल निगाहें, मुसकराता चेहरा संतोष के दिमाग में ही घूमता रह गया. उस की पहली ही झलक में संतोष अपना होशोहवास खो बैठा था, यह जानते हुए भी कि वह एक शादीशुदा और एक बच्ची का बाप है.

लेकिन वह यह सब भूल कर अनीता का सामीप्य पाना चाहता था. इस के लिए वह अकसर नगीनदास पाड़ा के आटो स्टैंड पर अनीता के आने का इंतजार करता था. वह दिख जाती तो वह मुसकराते हुए उस से अपने आटो में चलने की बात कहता. अनीता को तो किसी न किसी आटो से जाना ही था, लिहाजा वह संतोष के आग्रह पर उस के ही आटो में बैठ जाती.

2-4 बार संतोष के आटो से आनेजाने के बाद अनीता और संतोष के बीच बातों का सिलसिला शुरू हो गया. स्वयं को अविवाहित बता कर उस ने अनीता को अपने प्रभाव में ले लिया. बातों और मिलने का सिलसिला शुरू हो गया तो दोनों एकदूसरे के करीब आ गए. जब भी अनीता को संतोष के साथ कहीं घूमने के लिए जाना होता तो वह संतोष को बेझिझक फोन कर बुला लेती. इस तरह दोनों में गहरी दोस्ती हो गई.

दोस्ती का दायरा बढ़ा तो अनीता के मन में संतोष के प्रति प्यार का अंकुर फूट पड़ा. वह सरोज को अपने मनमंदिर में बैठा कर गृहस्थ जीवन के सुंदर सपने देखने लगी. जिस का संतोष ने भरपूर फायदा उठाया.

उस ने अनीता को शादी का लालच दे कर उस का अपनी पत्नी की तरह इस्तेमाल किया. 7 सालों में अनीता 2 बार गर्भवती भी हुई. लेकिन संतोष ने अपनी कोई न कोई मजबूरी बता कर उस का गर्भपात करवा दिया था.

वासना में बनी पतिहंता : पत्नी ही बनी कातिल – भाग 2

एएसआई सुनील कुमार ने मृतक की फैक्ट्री में उस के साथ काम करने वालों के अलावा उस के मालिक प्रवीण गर्ग से भी पूछताछ की. यहां तक कि मृतक के पड़ोसियों से भी मृतक और उस के परिवार के बारे में जानकारी हासिल की गई, पर कोई क्लू हाथ नहीं लगा.

सब का यही कहना था कि सुनील सीधासादा शरीफ इंसान था. उस की न तो किसी से कोई दुश्मनी थी और न कोई लड़ाईझगड़ा. अपने घर से काम पर जाना और वापस घर लौट कर अपने बच्चों में मग्न रहना ही दिनचर्या थी.

एएसआई सुनील की समझ में एक बात नहीं आ रही थी कि मृतक की लाश इतनी दूर सिटी सेंटर के पास कैसे पहुंची, जबकि उस के घर आने का रूट चीमा चौक की ओर से था. उस की इलैक्ट्रिक साइकिल भी नहीं मिली. महज साइकिल के लिए कोई किसी की हत्या करेगा, यह बात किसी को हजम नहीं हो रही थी.

बहरहाल, अगले दिन मृतक की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी आ गई. रिपोर्ट में बताया गया कि मृतक के सिर पर किसी भारी चीज से वार किया गया था और उस का गला चेन जैसी किसी चीज से घोटा गया था. मृतक के शरीर पर चोट के भी निशान थे. इस से यही लग रहा था कि हत्या से पहले मृतक की खूब पिटाई की गई थी. उस की हत्या का कारण दम घुटना बताया गया.

पोस्टमार्टम के बाद लाश मृतक के घर वालों के हवाले कर दी गई. सुनील की हत्या हुए एक सप्ताह बीत चुका था. अभी तक पुलिस के हाथ कोई ठोस सबूत नहीं लगा था. मृतक की साइकिल का भी पता नहीं चल पा रहा था.

एएसआई सुनील कुमार ने एक बार फिर इस केस पर बड़ी बारीकी से गौर किया. उन्होंने मृतक की पत्नी, भाई और अन्य लोगों के बयानों को ध्यान से पढ़ा. उन्हें पत्नी सुनीता के बयानों में झोल नजर आया तो उन्होंने उस के फोन की कालडिटेल्स निकलवा कर चैक कीं.

सुनीता की काल डिटेल्स में 2 बातें सामने आईं. एक तो उस ने पुलिस को यह झूठा बयान दिया था कि पति ने उसे 8 बजे फोन कर कहा था कि वह घर आ रहा है, खाना तैयार रखना.

लेकिन कालडिटेल्स से पता चला कि मृतक ने नहीं बल्कि खुद सुनीता ने उसे सवा 8 बजे और साढ़े 8 बजे फोन किए थे. दूसरी बात यह कि सुनीता की कालडिटेल्स में एक ऐसा नंबर था, जिस पर सुनीता की दिन में कई बार घंटों तक बातें होती थीं. घटना वाली रात 21 मई को भी मृतक को फोन करने के अलावा सुनीता की रात साढ़े 7 बजे से ले कर रात 11 बजे तक लगातार बातें हुई थीं.

यह फोन नंबर किस का था, यह जानने के लिए एएसआई सुनील कुमार ने मृतक के भाई और बेटे से जब पूछा तो उन्होंने अनभिज्ञता जाहिर की. बहरहाल, एएसआई सुनील कुमार ने 2 महिला सिपाहियों को सादे लिबास में सुनीता पर नजर रखने के लिए लगा दिया. साथ ही मुखबिरों को सुनीता की जन्मकुंडली पता लगाने के लिए कहा. इस के अलावा उन्होंने उस फोन नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि वह नंबर आई ब्लौक निवासी मनदीप सिंह उर्फ दीपा का है.

मनदीप पेशे से आटो चालक था. सन 2018 में वह जालसाजी के केस में जेल भी जा चुका था. मनदीप शादीशुदा था और उस की 3 साल की एक बेटी भी थी. हालांकि उस की शादी 4 साल पहले ही हुई थी, लेकिन उस की पत्नी से नहीं बनती थी. पत्नी ने उस के खिलाफ वूमन सेल में केस दायर कर रखा था.

सुनीता पर नजर रखने वाली महिला और मुखबिरों ने यह जानकारी दी कि सुनीता और मनदीप के बीच नाजायज संबंध हैं. इस बीच फोरैंसिक लैब भेजा गया मृतक का फोन ठीक हो कर आ गया, जिस ने इस हत्याकांड को पूरी तरह बेनकाब कर दिया.

एएसआई सुनील कुमार ने उसी दिन सुनीता को हिरासत में ले कर पूछताछ की तो वह अपने आप को निर्दोष बताते हुए पुलिस को गुमराह करने के लिए तरहतरह की कहानियां सुनाने लगी. जब उसे महिला हवलदार सुरजीत कौर के हवाले किया गया तो उस ने पूरा सच उगल दिया.

सुनीता की निशानदेही पर उसी दिन 3 जून को 30 वर्षीय मनदीप सिंह उर्फ दीपा, 18 वर्षीय रमन राजपूत, 23 वर्षीय सन्नी कुमार और 21 वर्षीय प्रकाश को भाई रणधीर सिंह चौक से जेन कार सहित गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में सभी ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए बताया कि उन्होंने सुनीता और मनदीप के कहने पर सुनील की हत्या की थी.

पांचों अभियुक्तों को उसी दिन अदालत में पेश कर 3 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया गया. रिमांड के दौरान हुई पूछताछ में सुनील हत्याकांड की जो कहानी सामने आई, वह पति और जवान बच्चों के रहते परपुरुष की बांहों में देहसुख तलाशने वाली एक औरत के मूर्खतापूर्ण कारनामे का नतीजा थी.

सुनील जब धागा फैक्ट्री में अपनी नौकरी पर चला जाता था तो सुनीता घर पर अकेली रह जाती थी. इसी के मद्देनजर उस ने पास ही स्थित प्ले वे स्कूल में चपरासी की नौकरी कर ली. पतिपत्नी के कमाने से घर ठीक से चलने लगा.

इसी प्ले वे स्कूल में मनदीप उर्फ दीपा की बेटी भी पढ़ती थी. पहले मनदीप की पत्नी अपनी बेटी को स्कूल छोड़ने और लेने आया करती थी, पर एक बार मनदीप अपनी बेटी को स्कूल छोड़ने आया तब उस की मुलाकात सुनीता से हुई.

सुनीता को देखते ही वह उस का दीवाना हो गया. हालांकि सुनीता उस से उम्र में 10-11 साल बड़ी थी, पर उस में ऐसी कशिश थी, जो मनदीप के मन भा गई. यह बात करीब 9 महीने पहले की है.

बेगम बनने की चाह में गवाया पति – भाग 2

पुलिस ने उसी समय अनवर शाह को भी उस ने घर से उठा लिया. चूंकि पिंकी पहले ही पूरी बात बता चुकी थी, इसलिए अनवर ने भी बिना किसी टालमटोल के अपना अपराध स्वीकार करते हुए पास के गांव नारायणपुर स्थित अपने खेत में दफन सुनील की लाश बरामद करवा दी.

पुलिस ने अनवर और पिंकी से विस्तार से पूछताछ की तो सुनील की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

मध्य प्रदेश के भैंसोड़ा गांव की रहने वाली पिंकी बचपन से ही काफी खूबसूरत और चंचल स्वभाव की थी. उस का काम दिन भर गांव की गलियों में धमाचौकड़ी मचाना था. बताते हैं कि इस दौरान किशोरावस्था में ही गांव के कुछ युवकों ने उस के चंचल स्वभाव का फायदा उठा कर उस के साथ यौन संबंध बनाने शुरू कर दिए थे. पिंकी को भी यह सब अच्छा लगता था. इसी वजह से उस के मांबाप ने काफी कम उम्र में ही उस की शादी बामनखेड़ा में रहने वाले सुनील कुमार के संग कर दी थी.

सुनील सीधा सच्चा युवक था. पत्नी को वह जितना प्यार करता था, उतना ही अपने मातापिता का सम्मान भी करता था. यह बात पिंकी को अच्छी नहीं लगती थी. वह सासससुर से दूर रहना चाहती थी, इसलिए सुनील पर गांव छोड़ कर शहर में रहने के लिए दबाव बनाने लगी. जिस के चलते करीब 10 साल पहले सुनील देवास में आ कर विजय रोड स्थित एक दुकान पर नौकरी करने लगा.

धीरेधीरे पैसे जोड़ कर उस ने विशाल नगर में एक मकान भी बनवा लिया. पिंकी अब तक 2 बच्चों की मां बन चुकी थी. उम्र भी 30 के आसपास पहुंच गई थी. लेकिन उस की सुंदरता में वह कसक अभी बाकी थी जो किसी को भी अपना दीवाना बनाने की कूवत रखती थी.

विशाल नगर में पिंकी के पड़ोस में अनवर शाह रहता था. अनवर खेती के अलावा ट्रैक्टर चलाने का काम करता था. कोई 2 साल पहले एक रोज उस की नजर सुबहसुबह धूप में बैठ कर बाल सुखाती पिंकी पर पड़ी तो वह उस के हुस्न पर फिदा हो गया.

अनवर औरतों का पुराना खिलाड़ी था. अपने खेत में काम करने वाली कई महिलाओं के साथ उस के यौनसंबंध थे. जिस दिन उस ने पिंकी को देखा, उसी दिन से उसे पाने की कोशिश करने लगा. इस के लिए उस ने सब से पहले सुनील से दोस्ती बढ़ाई और इस बहाने उस के घर आनेजाने लगा.

यही नहीं, वह जब भी सुनील के घर आता, उस के बच्चों के लिए खानेपीने की चीजें जरूर ले जाता. इस का नतीजा यह निकला कि कुछ समय बाद वह बच्चों को टौफी, चौकलेट देने के बहाने ऐसे समय पर भी सुनील के घर आने लगा, जब पिंकी घर पर अकेली होती थी.

अनवर था औरतों का शिकारी……………..

पिंकी के साथ भाभी का रिश्ता तो वह पहले ही बना चुका था, सो कभीकभी 2-4 मिनट रुक कर उस से बात भी करने लगा. अनवर जानता था कि कहानी 2-4 मिनट से ही शुरू हो कर पूरी रात तक पहुंचती है. इसलिए इस दौरान मौका मिलने पर वह पिंकी की सुंदरता की तारीफ करने से भी पीछे नहीं रहता था.

इतना ही नहीं, कभीकभार पिंकी की गोद से उस का बच्चा अपनी गोद में लेने के बहाने वह उस के नाजुक अंगों को छूने की भी कोशिश करता था. इस से पिंकी को जल्द ही अनवर के मन की बात समझ में आ गई.

इस के बाद उस के दिमाग में अनवर की चाहत लावा बन कर फूटने लगी. इसलिए उस ने भी अनवर के लिए अपने मन की लगाम को ढील देनी शुरू कर दी. इस से अनवर समझ गया कि मछली दाना निगल चुकी है.

2 साल पहले वह ईद के दिन जानबूझ कर ऐसे समय में पिंकी के घर गया, जब सुनील घर पर नहीं था. अनवर को देख कर पिंकी ने मुसकराते हुए उसे ईद की बधाई दी.

‘‘अपनी मुबारकबाद अपने पास ही रखिए, मुझे नहीं चाहिए.’’ अनवर ने गुस्सा होने का नाटक करते हुए कहा. ‘‘क्यों, मेरी मुबारकबाद में ऐसा क्या खोट है जो तुम्हें नहीं चाहिए?’’ पिंकी ने पूछा.

‘‘अरे, मुबारकबाद देनी ही है तो गले मिल कर दो. मालूम है आज सुबह से मैं ने किसी को मुबारकबाद नहीं दी. छिप कर घर में बैठा था कि सब से पहले आप से ही मुबारकबाद लूंगा. इसलिए मुबारकबाद देनी है तो गले मिल कर दो.’’

‘‘अच्छा बाबा, अंदर आ जाओ या बाहर दुनिया के सामने गले लगूंगी.’’ कहते हुए पिंकी उसे अपने साथ अंदर ले आई. फिर गहरी सांस लेते हुए उस के गले से लिपट गई.

अनवर को इसी मौके का इंतजार था. इस के बाद वह समझ गया कि पिंकी पूरी तरह उस के जाल में फंस चुकी है. इसलिए उस ने पिंकी को तभी अपनी बांहों से दूर किया, जब उस ने अगले दिन दोपहर में मिल कर उस के साथ एकांत में कुछ पल बिताने का वादा किया.

पिंकी की हां सुनते ही अनवर ने जेब से नया चमचमाता मोबाइल फोन निकाल कर उस के हाथ में देते हुए कहा, ‘‘ये लो दीवाने का ईद का पहला तोहफा. जब भी मौका मले मुझे फोन लगा दिया करो.’’

पिंकी ने उस के हाथ से मोबाइल ले कर चुपचाप छिपा कर रख दिया. ताकि उस पर सुनील की नजर न पड़े. पूरी रात पिंकी और अनवर ने अपनेअपने घरों में बेचैनी से काटी दूसरे दिन सुबह होते ही जब सुनील दुकान पर जाने के लिए घर से निकला, पिंकी ने नए मोबाइल से अनवर को फोन लगा कर कह दिया कि वह दोपहर होने का इंतजार नहीं कर सकती, इसलिए वह अभी घर आ जाए.

इश्क में सिर कलम : परिवार जान का दुश्मन

19 साल की कीर्ति हमेशा की तरह घर से बाजार जाने को कह कर निकली थी. मां को बताया था कि वह पहले कांता के पास जाएगी. उसे भी साथ में जाना है. उस को अपने लिए कुछ जरूरी सामान खरीदना है. रास्ते में ही उस का भाई कुणाल मिल गया. वह ट्यूशन पढ़ कर साइकिल से घर लौट रहा था. उस ने टोका था, ‘‘कहां जा रही है अकेली?’’

कुणाल कीर्ति से केवल एक साल छोटा था. भाई को भी उस ने सहमते हुए वही कहा, जो मां से बता कर निकली थी. इस पर उस ने सवाल भी किए थे, ‘‘लेकिन, कांता का घर तो पीछे रह गया?’’ कुणाल ने उस से कहा.

इस पर सफाई देते हुए वह बोली, ‘‘कांता खेत पर गई हुई है, रास्ते में मिल जाएगी.’’

उस के बाद कीर्ति तेजी से आगे बढ़ गई और कुणाल तेजी से साइकिल के पैडल मारते हुए वहां से चला गया.

उस के जाते ही कीर्ति अपने आप से बोलने लगी, ‘हुंह… बड़ा आया सवाल- जवाब करने वाला. खुद तो ट्यूशन के बहाने दोस्तों के साथ घूमता फिरता है और हमें रोकताटोकता रहता है.’

इस के बाद कीर्ति अपने प्रेमी अविनाश के पास एक निश्चित जगह पर पहुंच गई, जो उस का इंतजार कर रहा था. उसे देखते ही अविनाश खुश हो गया. वह अपने मोबाइल में टाइम दिखा कर चहकती हुई बोली, ‘‘देखो, आज मैं ने तुम्हारी शिकायत पूरी कर दी है. एकदम समय पर पहुंच गई हूं.’’

‘‘मुझे तुम्हारा भाई घर जाते हुए दिखा था, तब लगा तुम शायद आज नहीं आ पाओगी, लेकिन तुम ने तो वाकई कमाल कर दिया.’’ खुशी और आश्चर्य से अविनाश ने उस के हाथ पकड़ लिए.

‘‘चलो, उधर पीछे की ओर बैठते हैं. मैं तुम्हारे लिए कुछ लाई हूं.’’ कीर्ति स्कूल की पुरानी बिल्डिंग की ओर इशारा करती हुई बोली.

‘‘हां चलो, मैं ने वहां पर एक अच्छी जगह देखी है, जहां अब कोई आताजाता नहीं है. और वहां बैठने लायक थोड़ी साफसफाई भी है.’’ अविनाश बोला.

उस के बाद दोनों सरकारी स्कूल की पुरानी बिल्डिंग के पिछवाड़े खाली जगह पर चले गए. वहां छोटेबड़े पेड़पौधे लगे थे. हरियाली थी. मनमोहक जगह थी. लोगों की नजरों से बच कर कुछ समय वहां बिताया जा सकता था.

दोनों वहीं एक पेड़ की ओट में बैठ गए. कीर्ति अपने साथ पीठ पर लादे छोटा सा बैग उतार कर खोलने लगी. उस में से गांठ लगी पौलीथिन निकाली.

‘‘क्या है इस में?’’ अविनाश ने जिज्ञासावश पूछा.

‘‘अभी बताती हूं. इस में तुम्हारी पसंद का नाश्ता है. मैं ने खासकर तुम्हारे लिए कांदापोहा बनाया है. लेकिन मिर्ची तेज लगेगी. तुम्हें पसंद है न, इसीलिए हरी मिर्च ज्यादा डाली हैं.’’ कीर्ति पौलीथिन पैक की गांठ खोलती हुई बोली.

‘‘अरे वाह! मेरी पसंद का तुम कितना खयाल रखती हो. मैं भी तुम्हारे लिए कुछ ले कर आया हूं.’’ अविनाश सामने बैठते हुए बोला.

‘‘क्या लाए हो दिखाओ,’’ कीर्ति बोली.

‘‘पहले पोहा खा लेता हूं, फिर दिखाता हूं, खूशबू अच्छी आ रही है.’’ अविनाश बोला.

‘‘देखो कैसा कलर है पोहा का. नमक कम लगे तो बताना अलग से पुडि़या में है.’’ कीर्ति तब तक पोहा एक छोटी सी थर्मो प्लेट में निकाल चुकी थी.

अविनाश ने भी अपने बैग से एक छोटा सा पैकेट निकाल लिया था. उसे देखते ही कीर्ति चहक पड़ी, ‘‘अरे हेडफोन! यह महंगा वाला लगता है…’’

‘‘हां, थोड़ा महंगा है, लेकिन कार्डलैस है. तुम को औनलाइन पढ़ाई में दिक्कत आ रही थी, इसलिए तुम्हारे लिए खरीदा है.’’ अविनाश बोला. उस ने पैकेट खोल कर गले में पहनने वाले हेडफोन को उस के गले में डाल दिया.

‘‘पोहा भी खाओ ना,’’ कीर्ति खुशी से बोली.

‘‘कीर्ति हम लोग कब तक छिप कर मिलते रहेंगे. तुम्हारा भाई हमेशा हमें शक की निगाह से देखता है. वो है तो उम्र में छोटा लेकिन पता नहीं क्यों उस की नजरें हमेशा हमें तरेरती रहती हैं.’’

‘‘क्या करूं अविनाश, मैं भी उस से परेशान रहती हूं. पता नहीं इस हेडफोन को ले कर कितने सवालजवाब करे.’’

‘‘बोल देना मैं ने ट्यूशन पढ़ा कर कमाए पैसों से खरीदा है.’’

इस तरह कीर्ति और अविनाश का आपसी प्रेम परवान चढ़ने लगा था. वे एकदूसरे के दिलों की भावना को गहराई से समझने लगे थे, उन के बीच प्रेम में कोई छलावा या दिखावा नहीं था. केवल एक ही बात मन को कचोटती थी कि उन्हें मिलने के लिए घर वालों से कई तरह के झूठ बोलने पड़ते थे. ऐसा करते हुए कीर्ति कई बार परेशान हो जाती थी. मन दुखी हो जाता था.

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महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में वैजापुर तहसील के लाड़गांव शिवार की रहने वाली कीर्ति को गांव के ही अविनाश संजय थोरे से प्यार हो गया था. दोनों अकसर ही छिपछिप कर मिलते और घंटों प्यारभरी बातों में डूबे रहते थे. इस बीच उन्होंने हर तरह के सपने बुने थे.

उन के बीच पढ़ाईलिखाई से ले कर सिनेमा, संगीत, फैशन, मौडल, एंटरटेनमेंट, हाटबाजार, शहरी मौल मल्टीप्लेक्स और कोरोना तक की बातें होती थीं.

कई बार वे आलिया भट्ट से ले कर अमिताभ बच्चन और दीपिका पादुकोण से ले कर रणवीर, अक्षय और विराट कोहली को ले कर चर्चा और बहस करने लगते थे.

जब मोदी, राहुल, प्रियंका की बातें होतीं तब दोनों चिढ़ जाते थे. अविनाश कहता कि हमें राजनीति से कोई मतलब नहीं है. कीर्ति भी तुनकती हुई कहती, मुझे कौन सी राजनीति से मतलब है. अरे, लौकडाउन लगने से वे बातों में आ जाते हैं. मैं क्या करूं.

प्यार परवान चढ़ा तो दोनों ने जीवन भर साथ रहने का निश्चय कर लिया. इस बारे में उन्होंने अपनीअपनी किताबें हाथ में ले कर कसम खाई कि वे शादी करेंगे एकदूसरे के साथ ही.

उन्होंने अपनी किताबों पर एकदूसरे का नाम लिख कर अदलाबदली भी कर ली थी. हालांकि दोनों को ही मालूम था कि परिवार और बिरादरी वाले उन की शादी में रोड़ा अटकाएंगे. वजह थी दोनों ही जातियों के बीच बरसों से चला आ रहा मनमुटाव.

लाड़गांव शिवार में 2 उपनाम के परिवारों में विवाह संबंध नहीं होते हैं. यह कोई एक गोत्र वाला मामला नहीं है, बल्कि दोनों के बीच वर्चस्व और मानमर्यादा की लड़ाई का है. एक पक्ष का मानना है कि उन के नाम वाले लोग ही गांव के मुखिया रहे हैं, इसलिए यहां उन की ही चलेगी.

जबकि दूसरे पक्ष का तर्क होता है कि वह भी उसी जाति से ताल्लुक रखते हैं और उन्होंने भी राज किया है, इसलिए उन का वर्चस्व और मानसम्मान ज्यादा होना चाहिए. इस भाव के कारण दोनों बिरादरी के लोग एकदूसरे को नीचा दिखाने की जुगत में लगे रहते हैं.

ऐसे गांव में जब कीर्ति और अविनाश के दिलों में एकदूसरे के लिए प्यार की कोपलें फूटीं तो वे शादी की इच्छा घर वालों से बताने में डर गए. उन्हें पता था कि दोनों के घर वाले इस के लिए कभी भी राजी नहीं होंगे. अलबत्ता बात का बतंगड़ बन जाएगा और नौबत मरनेमारने तक आ जाएगी. तब दोनों प्रेमियों ने भाग कर शादी करने का फैसला कर लिया. जून 2021 में दोनों ने किसी को बताए बिना घर से भाग कर पुणे के आलंदी में विवाह कर लिया.

इस शादी की सूचना जब कीर्ति के पिता संजय मोटे को मिली, तो उस ने घर में तांडव शुरू कर दिया. वह आगबबूला हो गया. उसे लगा कि बेटी के इस कदम से उस की प्रतिष्ठा धूमिल हो गई है. गांव भर के आगे उस की नाक कट गई है. इस तनाव के चलते उस ने अपनी पत्नी शोभा पर ही बेटी को नहीं संभाल पाने का आरोप मढ़ दिया.

वह आए दिन अपनी पत्नी को कोसने लगा. उस के साथ गालीगलौज और मारपीट तक शुरू कर दी. हर गलती के लिए वह अपनी पत्नी को ही दोषी ठहरा देता. यही नहीं, कीर्ति के छोटे भाई कुणाल पर भी जबतब बाप का गुस्सा फूटने लगा.

संजय मोटे के उग्र तेवरों के कारण पूरा परिवार बुरी तरह तनाव में आ गया था. सब के दिमाग में यह बात बैठ गई कि कीर्ति ने प्रेम विवाह कर गांव भर में उन की इज्जत मिट्टी में मिला दी है.

कुछ दिनों बाद कीर्ति और अविनाश लाड़गांव आ कर रहने लगे. कीर्ति के अपनी ससुराल में पति के साथ रहने की खबर कीर्ति के घर वालों को मिली.

उन्हें यह भी मालूम हुआ कि कीर्ति को अविनाश के घर वालों ने अपना लिया है. कीर्ति अपनी ससुराल में रचबस गई थी. खुशी की बात यह थी कि वह गर्भवती थी. उस के पेट में 2 माह का गर्भ था.

कीर्ति की मां शोभा को जब दोनों के गांव लौटने का समाचार मिला तो एक दिन वह जा कर बेटीदामाद से उन के घर पर मिल आई. बेटी और दामाद से बड़ी आत्मीयता से मिली. कीर्ति ने महसूस किया कि उस की मां को अब उस की अविनाश से शादी को ले कर कोई शिकायत नहीं है.

मां ने मीठीमीठी बातें कर पिता को भी मना लेने का वादा किया. जबकि सच्चाई तो यह थी उस की मां भीतर ही भीतर सुलग रही थी. उस के दिलोदिमाग में खुराफाती योजना बन चुकी थी. यह बात उस ने केवल अपने बेटे संकेत को बताई.

योजना के मुताबिक ही 5 दिसंबर, 2021  को शोभा फिर अपने बेटे कुणाल के साथ कीर्ति की ससुराल गई. उस वक्त कीर्ति खेत में अपने सासससुर के साथ काम कर रही थी. मां और भाई को आया देख वह खेत का काम छोड़ कर खुशीखुशी घर दौड़ी आई.

उस ने बड़े प्यार से मां और भाई को पानी का गिलास दिया और चाय बनाने के लिए रसोई में चली गई. उस समय उस का पति अविनाश भी घर पर ही था, लेकिन तबियत ठीक नहीं होने के कारण वह दूसरे कमरे में लेटा हुआ था.

अचानक अविनाश को रसोई में बरतनों के गिरने की आवाज सुनाई दी. वह बिस्तर से उठ कर रसोई में आया. वहां का नजारा देख कर तो उस के होश ही उड़ गए. वह रसोई के दरवाजे पर ठिठक गया. हाथपैर जैसे सुन्न पड़ गए.

रसोई में शोभा यानी उस की सास ने अपनी बेटी कीर्ति के दोनों पैर कस कर पकड़ रखे थे और उस का छोटा भाई कुणाल एक धारदार हथियार कोयता से बहन की गरदन पर वार पर वार किए जा रहा था.

मां और भाई के हमले से कीर्ति बुरी तरह छटपटा रही थी. मगर उस की छटपटाहट क्षण भर में ठहर गई और भाई ने अंतिम वार कर उस की गरदन को धड़ से अलग कर दिया.

बहन का सिर बालों से पकड़ कर लहराते हुए दूसरे हाथ में खून सना कोयता लिए दरवाजे पर खड़े अविनाश को मारने के लिए झपटा. बीमार अविनाश कमजोरी महसूस कर रहा था. वह किसी तरह वहां से बच कर निकल भागा.

कीर्ति का भाई बहन का सिर हाथ में ले कर बाहर बरामदे में आया. बाहर खड़ी भीड़ को उस ने बहन का खून टपकता सिर दिखाया. मोबाइल निकाल कर सेल्फी खींची और फिर मां को मोटरसाइकिल पर बैठा कर पुलिस थाने जा पहुंचा. थाने में उस ने हत्या का जुर्म स्वीकारते हुए सरेंडर कर दिया.

वैजापुर के डीएसपी कैलाश प्रजापति ने इस बारे में मीडिया को जानकारी दी. उन्होंने कहा कि औनर किलिंग का यह रोंगटे खड़े कर देने वाला कांड है. छोटे भाई ने जिस बेरहमी से अपनी बड़ी बहन की हत्या की, उसे देख कर पुलिस भी थर्रा गई.

उन्होंने बताया कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला है कि कीर्ति 2 महीने की गर्भवती थी. एक मां द्वारा एक होने वाली मां की ऐसी जघन्य हत्या समाज की संकीर्ण मानसिकता बताती है.

अपनी झूठी इज्जत के लिए अपने खून का भी खून करने में लोग नहीं हिचकते हैं और यहां तो एक महिला ने ऐसा कांड कर डाला. इन दोनों से पूछताछ में पता चला कि ये लोग कीर्ति की हत्या की योजना पहले से ही बना कर बैठे थे. बस मौके की तलाश थी, जो उस रोज मिल गया था.

इस मामले में मां और बेटे के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत हत्या का आरोपी बनाया गया है. आधार कार्ड और स्कूल प्रमाण पत्र के अनुसार कुणाल नाबालिग था, इसलिए न्यायालय ने उसे नाबालिग मानते हुए औरंगाबाद के बाल न्यायालय के समक्ष हाजिर करने के आदेश दिए. जहां से उसे जुवेनाइल होम भेज दिया गया. जबकि मां शोभा को हत्या के आरोप में जेल भेजा गया है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में कुणाल परिवर्तित नाम है.

बाप का इश्क बेटी को ले डूबा – भाग 1

उत्तर प्रदेश के जिला वाराणसी के रहने वाले भालचंद्र सरोज अपने परिवार के साथ महानगर मुंबई के तालुका वसई के उपनगर नालासोपारा की साईं अपर्णा बिल्डिंग में लगभग 30 सालों से रह रहे थे. अपनी रोजीरोटी के लिए उन्होंने उसी बिल्डिंग के परिसर में किराने की दुकान खोल ली थी.

परिवार में उन की पत्नी के अलावा एक बेटा संतोष सरोज था, जिस की शादी उन्होंने मालती नाम की लड़की से कर दी थी. संतोष की एक बेटी थी अंजलि. भालचंद्र सरोज का एक छोटा सा परिवार था, उन का जीवन हंसीखुशी के साथ व्यतीत हो रहा था. संतोष 10वीं जमात से आगे नहीं पढ़ सका था, इसलिए भालचंद्र ने उसे एक आटोरिक्शा खरीदवा दिया था. किराने की दुकान और आटो से जो कमाई होती थी, उस से उन की घरगृहस्थी आराम से चल रही थी.

अंजलि अपने मातापिता के अलावा दादादादी की भी लाडली थी. संतोष भले ही खुद नहीं पढ़लिख सका था, लेकिन बेटी को उच्चशिक्षा दिलाना चाहता था. इसीलिए उस ने अंजलि का दाखिला जानेमाने लोकमान्य तिलक इंगलिश स्कूल में करवा दिया था. परिवार में सब कुछ ठीकठाक चल रहा था. इसी दौरान एक ऐसी घटना घटी, जिस का दुख यह परिवार जिंदगी भर नहीं भुला सकेगा.

बात 24 मार्च, 2018 की है. संतोष सरोज की 5 वर्षीय बेटी अंजलि हमेशा की तरह उस शाम 7 बजे बच्चों के साथ खेलने के लिए बिल्डिंग से नीचे आई तो फिर वह वापस नहीं लौटी. वह बच्चों के साथ कुछ देर तक तो अपने दादा भालचंद्र सरोज की दुकान के सामने खेलती रही. फिर वहां से खेलतेखेलते कहां गायब हो गई, किसी को पता नहीं चला.

जब वह 8 बजे तक वापस घर नहीं आई तो उस की मां मालती को उस की चिंता हुई. जिन बच्चों के साथ वह खेलने गई थी, मालती ने उन से पूछताछ की तो उन्होंने अनभिज्ञता जाहिर की. उसी दौरान संतोष घर लौटा तो मालती ने बेटी के गुम हो जाने की बात पति को बताते हुए उस का पता लगाने के लिए कहा.

संतोष बिल्डिंग से उतरने के बाद अंजलि को इधरउधर ढूंढने लगा. वहीं पर उस के पिता की दुकान थी. वह पिता की दुकान पर पहुंचा और उन से अंजलि के बारे में पूछा. पोती के गायब होने की बात भालचंद्र को थोड़ी अजीब लगी. उन्होंने बताया कि कुछ देर पहले तक तो वह यहीं पर बच्चों के साथ खेल रही थी. इतनी देर में कहां चली गई.

उन्हें भी पोती की चिंता होने लगी. वह भी दुकान बंद कर के बेटे के साथ उसे ढूंढने के लिए निकल गए. संभावित जगहों पर तलाशने के बाद भी जब वह नहीं मिली तो उन की चिंता और बढ़ गई.

अंजलि के गायब होने की बात जब पड़ोस के लोगों को पता चली तो वे भी उसे खोजने लगे. वहां आसपास खुले गटर और नालों को देखने के बाद भी अंजलि का कहीं पता नहीं चला. बेटी की चिंता में मां मालती की घबराहट बढ़ती जा रही थी. चैत्र नवरात्रि होने की वजह से लोग यह भी आशंका व्यक्त कर रहे थे कि कहीं उसे तंत्रमंत्र की क्रियाएं करने वालों ने तो गायब नहीं कर दिया.

सभी लोग अंजलि की खोजबीन कर के थक गए तो उन्होंने पुलिस की मदद लेने का फैसला किया. लिहाजा वे रात करीब 11 बजे तुलीज पुलिस थाने पहुंच गए. थानाप्रभारी किशोर खैरनार से मिल कर उन लोगों ने उन्हें सारी बातें बताईं और अंजलि की गुमशुदगी दर्ज करवा दी. अंजलि का सारा विवरण दे कर उन्होंने उस का पता लगाने का अनुरोध किया. थानाप्रभारी ने अंजलि का पता लगाने का आश्वासन दे कर उन्हें घर भेज दिया.

थाने से घर लौटे सरोज परिवार का मन अशांत था. उन का दिल अपनी मासूम बच्ची को देखने के लिए तड़प रहा था. वह रात उन के लिए किसी कालरात्रि से कम नहीं थी. सुबह होते ही संतोष सरोज का परिवार फिर से अंजलि की खोज में निकल गया. उन्होंने उस की गुमशुदगी के पैंफ्लेट छपवा कर रेलवे स्टेशनों के अलावा बसस्टैंड और सार्वजनिक जगहों पर लगवा दिए.

उधर थानाप्रभारी किशोर खैरनार ने अंजलि की गुमशुदगी की जांच सहायक पीआई के.डी. कोल्हे को सौंप दी. के.डी. कोल्हे ने जब मामले पर गहराई से विचार किया, तो उन्हें लगा कि या तो बच्ची का फिरौती के लिए अपहरण किया गया है या फिर उसे किसी दुश्मनी या तंत्रमंत्र क्रिया के लिए उठा लिया गया है.

उन्होंने सरोज परिवार से भी कह दिया कि यदि किसी का फिरौती मांगने के संबंध में फोन आए तो वह उस से प्यार से बात करें और इस की जानकारी पुलिस को जरूर दे दें.

जांच के लिए पीआई के.डी. कोल्हे ने पुलिस की 6 टीमें तैयार कीं, जिस में उन्होंने एपीआई राकेश खासरकर, नितिन विचारे, शिवाजी पाटिल, एसआई भरत सांलुके, हैडकांस्टेबल सुरेश शिंदे, कांस्टेबल भास्कर कोठारी, महेश चह्वाण आदि को शामिल किया. सभी टीमें अलगअलग तरीके से मामले की जांच में जुट गईं.

पुलिस ने अंजलि के फोटो सहित गुमशुदगी का संदेश अनेक वाट्सऐप गु्रप में भेजा और उसे अन्य लोगों को भी भेजने का अनुरोध किया. पीआई के.डी. कोल्हे दूसरे दिन अपनी जांच की कोई और रूपरेखा तैयार करते, इस के पहले ही उन्हें स्तब्ध कर देने वाली एक खबर मिली.

खबर गुजरात के नवसारी रेलवे पुलिस की तरफ से आई थी. रेलवे पुलिस ने मुंबई पुलिस को बताया कि जिस बच्ची की उन्हें तलाश है, वह बच्ची मृत अवस्था में नवसारी रेलवे स्टेशन के बाथरूम में पड़ी मिली है. किसी ने गला काट कर उस की हत्या की है.

सूचना मिलते ही पुलिस की एक टीम अंजलि के परिवार वालों को ले कर तुरंत नवसारी रेलवे स्टेशन के लिए रवाना हो गई. नवसारी रेलवे पुलिस ने जब संतोष सरोज और उस के परिवार वालों को बच्ची की लाश दिखाई तो वे सभी दहाड़ मार कर रोने लगे, क्योंकि वह लाश अंजलि की ही थी.

वासना में बनी पतिहंता : पत्नी ही बनी कातिल – भाग 1

सुनील अपनी ड्यूटी से रोजाना रात 9 बजे तक अपने घर वापस पहुंच जाता था. पिछले 12 सालों से उस का यही रूटीन था. लेकिन 21 मई, 2019 को रात के 10 बज गए, वह घर नहीं लौटा.

पत्नी सुनीता को उस की चिंता होने लगी. उस ने पति को फोन मिलाया तो फोन भी स्विच्ड औफ मिला. वह परेशान हो गई कि करे तो क्या करे. घर से कुछ दूर ही सुनीता का देवर राहुल रहता था. सुनीता अपने 18 वर्षीय बेटे नवजोत के साथ देवर राहुल के यहां पहुंच गई. घबराई हुई हालत में आई भाभी को देख कर राहुल ने पूछा, ‘‘भाभी, क्या हुआ, आप इतनी परेशान क्यों हैं?’’

‘‘तुम्हारे भैया अभी तक घर नहीं आए. उन का फोन भी नहीं मिल रहा. पता नहीं कहां चले गए. मुझे बड़ी चिंता हो रही है. तुम जा कर उन का पता लगाओ. मेरा तो दिल घबरा रहा है. उन्होंने 8 बजे मुझे फोन पर बताया था कि थोड़ी देर में घर पहुंच रहे हैं, खाना तैयार रखना. लेकिन अभी तक नहीं आए.’’

45 वर्षीय सुनील मूलरूप से उत्तर प्रदेश के रहने वाले मोहनलाल का बड़ा बेटा था. सुनील के अलावा उन के 3 बेटे और एक बेटी थी. सभी शादीशुदा थे. सुनील लगभग 13 बरस पहले काम की तलाश में लुधियाना आया था. कुछ दिनों बाद यहीं के जनकपुरी इंडस्ट्रियल एरिया स्थित प्रवीण गर्ग की धागा फैक्ट्री में उस की नौकरी लग गई. फिर वह यहीं के थाना सराभा नगर के अंतर्गत आने वाले गांव सुनेत में किराए का घर ले कर रहने लगा. बाद में उस ने अपनी पत्नी और बच्चों को भी लुधियाना में अपने पास बुला लिया.

जब सुनील ने धागा फैक्ट्री में अपनी पहचान बना ली तो अपने छोटे भाई राहुल को भी लुधियाना बुलवा लिया. उस ने राहुल की भी एक दूसरी फैक्ट्री में नौकरी लगवा दी. राहुल भी अपने बीवीबच्चों को लुधियाना ले आया और सुनील से 2 गली छोड़ कर किराए के मकान में रहने लगा.

पिछले 12 सालों से सुनील का रोज का नियम था कि वह रोज ठीक साढे़ 8 बजे काम के लिए घर से अपनी इलैक्ट्रिक साइकिल पर निकलता था और पौने 9 बजे अपने मालिक प्रवीण गर्ग की गुरुदेव नगर स्थित कोठी पर पहुंच जाता. वह अपनी साइकिल कोठी पर खड़ी कर के वहां से फैक्ट्री की बाइक द्वारा फैक्ट्री जाता था. इसी तरह वह शाम को भी साढ़े 8 बजे छुट्टी कर फैक्ट्री से मालिक की कोठी जाता और वहां बाइक खड़ी कर अपनी इलैक्ट्रिक साइकिल द्वारा 9 बजे तक अपने घर पहुंच जाता था.

पिछले 12 सालों में उस के इस नियम में 10 मिनट का भी बदलाव नहीं आया था. 21 मई, 2019 को भी वह रोज की तरह काम पर गया था पर वापस नहीं लौटा. इसलिए परिजनों का चिंतित होना स्वाभाविक था. राहुल अपने भतीजे नवजोत और कुछ पड़ोसियों को साथ ले कर सब से पहले अपने भाई के मालिक प्रवीण गर्ग की कोठी पर पहुंचा.

प्रवीण ने उसे बताया कि सुनील तो साढ़े 8 बजे कोठी पर फैक्ट्री की चाबियां दे कर घर चला गया था. प्रवीण ने राहुल को सलाह दी कि सब से पहले वह थाने जा कर इस बात की खबर करे. प्रवीण गर्ग की सलाह मान कर राहुल सीधे थाना डिवीजन नंबर-5 पहुंचा और अपने सुनील के लापता होने की बात बताई.

उस समय थाने में तैनात ड्यूटी अफसर ने राहुल से कहा, ‘‘अभी कुछ देर पहले सिविल अस्पताल में एक आदमी की लाश लाई गई थी, जिस के शरीर पर चोटों के निशान थे. लाश अस्पताल की मोर्चरी में रखी है, आप अस्पताल जा कर पहले उस लाश को देख लें. कहीं वह लाश आप के भाई की न हो.’’

राहुल पड़ोसियों के साथ सिविल अस्पताल पहुंच गया. अस्पताल में जैसे ही राहुल ने स्ट्रेचर पर रखी लाश देखी तो उस की चीख निकल गई. वह लाश उस के भाई सुनील की ही थी.

राहुल ने फोन द्वारा इस बात की सूचना अपनी भाभी सुनीता को दे कर अस्पताल आने के लिए कहा. उधर लाश की शिनाख्त होने के बाद आगे की काररवाई के लिए डाक्टरों ने यह खबर थाना दुगरी के अंतर्गत आने वाली पुलिस चौकी शहीद भगत सिंह नगर को दे दी. सुनील की लाश उसी चौकी के क्षेत्र में मिली थी.

दरअसल, 21 मई 2019 की रात 10 बजे किसी राहगीर ने लुधियाना पुलिस कंट्रोलरूम को फोन द्वारा यह खबर दी थी कि पखोवाल स्थित सिटी सेंटर के पास सड़क किनारे एक आदमी की लाश पड़ी है. कंट्रोलरूम ने यह खबर संबंधित पुलिस चौकी शहीद भगत सिंह नगर को दे दी थी.

सूचना मिलते ही चौकी इंचार्ज एएसआई सुनील कुमार, हवलदार गुरमेल सिंह, दलजीत सिंह और सिपाही हरपिंदर सिंह के साथ मौके पर पहुंचे. उन्होंने इस की सूचना एडिशनल डीसीपी-2 जस किरनजीत सिंह, एसीपी (साउथ) जश्नदीप सिंह के अलावा क्राइम टीम को भी दे दी थी.

लाश का निरीक्षण करने पर उस की जेब से बरामद पर्स से 65 रुपए और एक मोबाइल फोन मिला. फोन टूटीफूटी हालत में था, जिसे बाद में चंडीगढ़ स्थित फोरैंसिक लैब भेजा गया था. लाश के पास ही एक बैग भी पड़ा था, जिस में खाने का टिफिन था. मृतक के सिर पर चोट का निशान था, जिस का खून बह कर उस के शरीर और कपड़ों पर फैल गया था.

उस समय लाश की शिनाख्त नहीं हो पाने पर एएसआई सुनील कुमार ने मौके की काररवाई पूरी कर लाश सिविल अस्पताल भेज दी थी.

अस्पताल द्वारा लाश की शिनाख्त होने की सूचना एएसआई सुनील कुमार को मिली तो वह सिविल अस्पताल पहुंच गए. उन्होंने अस्पताल में मौजूद मृतक की पत्नी सुनीता और भाई राहुल से पूछताछ कर उन के बयान दर्ज किए और राहुल के बयानों के आधार पर सुनील की हत्या का मुकदमा अज्ञात हत्यारों के खिलाफ दर्ज कर आगे की तहकीकात शुरू कर दी.

बेगम बनने की चाह में गवाया पति – भाग 1

28 अक्तूबर, 2018 की बात है. सुबह के 11 बज चुके थे. देवास शहर के थाना सिविल लाइंस के टीआई  विवेक कनोडिया अपने औफिस में बैठे थे, तभी एक महिला उन के पास आई. उस ने टीआई को अपने  पति के गुम होने की बात बताई. उस युवती ने अपना नाम पिंकी बता कर कहा कि वह विशाल सोसायटी में अपने पति सुनील कुमार के साथ रहती है. कल करवाचौथ का त्यौहार था. त्यौहार के बाद पति और मैं एक ही कमरे में सोए हुए थे. सुबह जब मेरी आंख खुली तो पति बिस्तर पर नहीं थे. हमारे मेनगेट की कुंडी भी बाहर से बंद थी, जो पड़ोसी से खुलवाई. पति को कई जगह ढूंढा, जब कहीं पता नहीं चला तो थाने चली आई.

मामला गंभीर था. टीआई को लगा कि या तो पति-पत्नी के बीच कोई झगड़ा हो गया होगा या फिर सुनील का किसी दूसरी औरत से चक्कर चल रहा होगा. लेकिन पिंकी ने लड़ाई झगड़े या पति का किसी दूसरी औरत से चक्कर की जानकारी होने से न केवल इनकार किया, बल्कि बताया कि कल करवाचौथ की रात हम दोनों काफी खुश थे.

पिंकी ने यह भी बताया कि सुनील अपना मोबाइल तो छोड़ गए लेकिन घर में रखे 20 हजार रुपए और कुछ चैक अपने साथ ले गए. मामला समझ से परे था. टीआई विवेक कनोडिया ने सुनील कुमार की गुमशुदगी दर्ज करने के बाद पास के गांव बामनखेड़ा में रहने वाले सुनील के मातापिता को बुलवा कर उन से पूछताछ की. उन्होंने बताया कि बहू-बेटे हंसी-खुशी साथ रह रहे थे.

सुनील देवास की एक दुकान पर काम करता था. उस ने 3 साल पहले विशाल नगर में 3 कमरे का अपना मकान बनवा लिया था. इस के बावजूद वह विशालनगर की सोसायटी में ही रहता था. मातापिता ने अपने गांव में रहने वाले अयूब नाम के युवक पर शक जाहिर किया.

टीआई विवेक कनोडिया ने पुलिस टीम भेज कर अयूब को थाने बुलवा लिया. उन्होंने अयूब से पूछताछ की, लेकिन कोई जानकारी निकल कर सामने नहीं आई. इस के बाद पुलिस ने सुनील के दुकान मालिक भंवर जैन से सुनील के चरित्र आदि के बारे में जानकारी जुटाई.

भंवर जैन ने बताया कि सुनील उन की दुकान में कई साल से काम कर रहा है. वह काफी ईमानदार व भरोसे का आदमी है. दुकानदार ने सुनील के प्रेमप्रसंग व नशाखोरी की आदत से भी इनकार किया.

पिंकी से पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस के पास कोई पर्सनल फोन नहीं है. पति ही अपने पास मोबाइल रखते थे जो वह घर पर छोड़ गए. टीआई ने सुनील के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई तो उस से कोई लाभ नहीं हुआ. इस से मामला धीरेधीरे अंधकार से घिरने लगा.

इधर सुनील के मातापिता 10 दिन तक थाने के चक्कर लगाते रहे. बेटे के बारे में कोई पता नहीं लगने की बात पर वह उदास मन से गांव लौट जाते. इसी तरह 3 महीने बीत गए.

एक रोज जब सुनील के पिता मायाराम थाना सिविल लाइंस पहुंचे तो टीआई विवेक कनोडिया ने इस बात पर गौर किया कि सुनील के पिता तो अपने बेटे की खोजखबर के लिए थाने आते हैं, लेकिन सुनील की पत्नी पिंकी गुमशुदगी दर्ज करवाने के बाद एक बार भी थाने नहीं आई.

इस पर उन्होंने मायाराम से सुनील की पत्नी पिंकी के बारे में पूछा तो वह बोले, ‘‘उसे क्या फर्क पड़ना है, साहब. उसे तो कोई दूसरा मर्द मिल जाएगा. वह तो अपने मांबाप के घर जा कर बैठी है और बुलाने पर भी नहीं आ रही है.’’

मायाराम की बात सुन कर टीआई विवेक कनोडिया समझ गए कि इस मामले की बागडोर पिंकी के हाथ में है. उन्होंने तुरंत कांस्टेबल कनेश को भेज कर पिंकी को थाने बुलवा लिया. पूछताछ के बाद उन्होंने पिंकी को हिदायत दी कि जब तक इस केस की जांच न हो जाए, तब तक वह देवास छोड़ कर कहीं न जाए. न मायके और न ही कहीं और.

टीआई गोपनीय तरीके से पिंकी पर नजर गड़ाए हुए थे. उन्हें उस की एकएक हरकत की खबर मिल रही थी. उन्होंने अपने खबरी पिंकी के आसपास लगा रखे थे. टीआई के खबरी ने उन्हें बताया कि पिंकी दिन भर किसी से फोन पर बात करती रहती है.

यह सूचना मिलने के बाद टीआई ने सुनील के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि उस मोबाइल पर तो किसी का फोन आया ही नहीं था. फिर पिंकी किस फोन पर बात करती है. पिंकी ने यह पहले ही बता दिया था कि उस के पास कोई दूसरा मोबाइल नहीं है.

टीआई समझ गए कि सुनील के लापता होने का राज पिंकी के दूसरे मोबाइल में छिपा हो सकता है. इसलिए 5 जनवरी, 2019 को उन्होंने यह सारी जानकारी एसपी देवास को दे दी. फिर एसपी के निर्देश पर उन्होंने एक टीम पिंकी के घर भेजी.

पुलिस टीम ने पिंकी के घर की तलाशी ली तो गेहूं की बोरी में छिपा कर रखा गया एक मोबाइल पुलिस के हाथ लग गया. मोबाइल हाथ आते ही पिंकी का चेहरा उतर गया. पुलिस ने उस मोबाइल फोन का काल लौग चैक किया तो पता चला कि उस मोबाइल पर दिन भर में बीसियों बार केवल एक ही नंबर से फोन आताजाता था.

जांच के बाद वह नंबर पड़ोस में रहने वाले अनवर शाह का निकला. इस आधार पर जब पुलिस ने पिंकी से थोड़ी सख्ती की तो वह टूट गई. उस ने स्वीकार कर लिया कि प्रेमी अनवर शाह के साथ मिल कर उस ने पति की हत्या कर लाश एक खेत में दबा दी है.

हम मर जाएंगे : परिवार वालों ने किया जुदा

22 फरवरी की सुबह 6 बजे रामपुर गांव के कुछ लोग मार्निंग वाक पर निकले तो उन्होंने पानी की टंकी के पास लिंक मार्ग से 50 मीटर दूर खेत में एक युवक को बुरी तरह से जख्मी हालत में पड़े देखा. युवक की जान बचाने के लिए उन में से किसी ने थाना खानपुर पुलिस को सूचना दे दी.

सूचना प्राप्त होते ही खानपुर थानाप्रभारी विश्वनाथ यादव पुलिस टीम के साथ घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. उन्होंने पुलिस अधिकारियों को भी सूचित कर दिया था.

विश्वनाथ यादव जिस समय वहां पहुंचे, उस समय ग्रामीणों की भीड़ जुटी थी. भीड़ को परे हटाते हुए वह खेत में पहुंचे, जहां युवक जख्मी हालत में पड़ा था. युवक की उम्र 24 साल के आसपास थी. उस के सिर में गोली मारी गई थी, जो आरपार हो गई थी. उस के एक हाथ में पिस्टल थी तथा दूसरी पिस्टल उस के पैर के पास पड़ी थी.

जामातलाशी में उस के पास से 2 मोबाइल फोन, आधार कार्ड तथा पुलिस विभाग का परिचय पत्र मिला, जिस में उस का नामपता दर्ज था. परिचय पत्र तथा आधार कार्ड से पता चला कि युवक का नाम अजय कुमार यादव है तथा वह बभरौली गांव का रहने वाला है. तुरंत उस के घर वालों को सूचना दे दी गई.

इंसपेक्टर विश्वनाथ यादव अभी निरीक्षण कर ही रहे थे कि एसपी डा. ओमप्रकाश सिंह, एएसपी गोपीनाथ सोनी तथा डीएसपी राजीव द्विवेदी आ गए. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया तथा युवक के पास से बरामद सामान का अवलोकन किया.

देखने से ऐसा लग रहा था कि युवक ने आत्महत्या का प्रयास किया था. अब तक अजय के पिता रामऔतार यादव भी घटनास्थल आ गए थे. वह आत्महत्या की बात से सहमत नहीं थे.

चूंकि अजय यादव मरणासन्न स्थिति में था, अत: पुलिस अधिकारियों ने उसे इलाज हेतु तत्काल सीएचसी (सैदपुर) भिजवाया लेकिन वहां के डाक्टरों ने हाथ खड़े कर दिए और उसे बीएचयू ट्रामा सेंटर रैफर कर दिया. इलाज के दौरान अजय यादव की मौत हो गई.

चूंकि अजय यादव सिपाही था, अत: उस की मौत को एसपी डा. ओमप्रकाश सिंह ने गंभीरता से लिया. उन्होंने जांच के लिए एक पुलिस टीम का गठन किया, जिस में क्राइम ब्रांच, सर्विलांस टीम तथा स्वाट टीम को शामिल किया गया.

इस टीम ने सब से पहले घटनास्थल का निरीक्षण किया, फिर बरामद सामान को कब्जे में लिया. सर्विलांस सेल प्रभारी दिनेश यादव ने अजय के पास से बरामद दोनों फोन की काल डिटेल्स निकाली तो पता चला कि 22 फरवरी की रात 3 बजे एक फोन से अजय के फोन पर एक वाट्सऐप मैसेज भेजा गया था, जिस में लिखा था, ‘तत्काल मिलने आओ, नहीं तो हम मर जाएंगे.’

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जिस मोबाइल फोन से मैसेज भेजा गया था, उस फोन की जानकारी की गई तो पता चला कि वह मोबाइल फोन इचवल गांव निवासी राजेश सिंह की बेटी सोनाली सिंह के नाम दर्ज था. जबकि फोन मृतक अजय की जेब से बरामद हुआ था.

अजय और सोनाली का क्या रिश्ता है? उस ने 3 बजे रात को अजय को मैसेज क्यों भेजा? जानने के लिए पुलिस टीम सोनाली सिंह के गांव इचवल पहुंची और उस के पिता राजेश सिंह से पूछताछ की.

राजेश सिंह ने बताया कि उस की बेटी सानिया उर्फ सोनाली सिंह आज सुबह से गायब है. हम ने सैदपुर कैफे से उस की औनलाइन एफआईआर भी कराई है. राजेश सिंह ने एफआईआर की कौपी भी दिखाई.

राजेश सिंह की बात सुन कर पुलिस टीम का माथा ठनका. राजेश सिंह को गुमशुदगी रिपोर्ट दर्ज करानी थी, तो थाना खानपुर में करानी चाहिए थी. आनलाइन रिपोर्ट क्यों दर्ज कराई? दाल में जरूर कुछ काला था. यह औनर किलिंग का मामला हो सकता था. संभव था अजय और सोनाली सिंह प्रेमीप्रेमिका हों और इज्जत बचाने के लिए राजेश सिंह ने अपनी बेटी की हत्या कर दी हो.

ऐसे तमाम प्रश्न टीम के सदस्यों के दिमाग में आए तो उन्होंने शक के आधार पर राजेश सिंह के घर पर पुलिस तैनात कर दी. साथ ही पुलिस सानिया उर्फ सोनाली सिंह की भी खोज में जुट गई. अजय का मोबाइल फोन खंगालने पर उस का और सोनाली सिंह का विवाह प्रमाण पत्र मिला, जिस में दोनों की फोटो लगी थी.

प्रमाण पत्र के अनुसार दोनों 5 नवंबर, 2018 को कोर्टमैरिज कर चुके थे. इस प्रमाण पत्र को देखने के बाद पुलिस टीम का शक और भी गहरा गया. पुलिस टीम ने सोनाली सिंह के पिता राजेश सिंह व परिवार के 4 अन्य सदस्यों को पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया.

23 फरवरी, 2021 की सुबह पुलिस टीम को इचवल गांव में राजेश सिंह के खेत में एक युवती की लाश पड़ी होने की सूचना मिली. पुलिस टीम तथा अधिकारी घटनास्थल पर पहुंचे और लाश का निरीक्षण किया.

मृतका राजेश सिंह की 25 वर्षीय बेटी सानिया उर्फ सोनाली सिंह थी. उस के सिर में गोली मारी गई थी. चेहरे को भी कुचला गया था. निरीक्षण के बाद पुलिस ने सोनाली सिंह के शव को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल गाजीपुर भेज दिया.

शव के पास से पिस्टल या तमंचा बरामद नहीं हुआ, लेकिन एक जोड़ी मर्दाना चप्पल तथा टूटी हुई चूडि़यां जरूर मिलीं. चप्पलों की पहचान मृतक सिपाही अजय के घर वालों ने की. उन्होंने पुलिस को बताया कि चप्पलें अजय की थीं.

पुलिस टीम ने हिरासत में लिए गए राजेश सिंह से बेटी सोनाली सिंह की हत्या के संबंध में पूछताछ की तो वह साफ मुकर गया. लेकिन जब उस से कड़ाई से पूछताछ की गई तो वह टूट गया और उस ने सोनाली सिंह तथा उस के प्रेमी अजय यादव की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. यही नहीं, उस ने हत्या में इस्तेमाल अजय यादव की बाइक यूपी81 एसी 5834 भी बरामद करा दी.

राजेश सिंह ने बताया कि उस की बेटी सानिया सिपाही अजय यादव से प्यार करती थी और दोनों ने कोर्ट में शादी भी कर ली थी. तब अपनी इज्जत बचाने के लिए उस ने दोनों को मौत की नींद सुलाने की योजना बनाई.

इस योजना में उस ने अपने पिता अवधराज सिंह, बेटे दीपक सिंह, भतीजे अंकित सिंह तथा पत्नी नीलम सिंह को शामिल किया. इस के बाद पहले सानिया की हत्या की फिर अजय की. उस के बाद दोनों के शव अलगअलग जगहों पर डाल दिए.

पुलिस अजय की हत्या को आत्महत्या समझे, इसलिए उस के एक हाथ में पिस्टल थमा दी तथा बेटी का मोबाइल फोन अजय की जेब में डाल दिया, ताकि लगे कि अजय ने पहले सोनाली सिंह की गोली मार कर हत्या की फिर स्वयं गोली मार कर आत्महत्या कर ली.

बेटी के शव के पास अजय की चप्पलें छोड़ना, सोचीसमझी साजिश का ही हिस्सा था. राजेश के बाद अन्य आरोपियों ने भी जुर्म कबूल कर लिया.

थानाप्रभारी विश्वनाथ यादव ने डबल मर्डर का परदाफाश करने तथा आरोपियों को गिरफ्तार करने की जानकारी एसपी डा. ओमप्रकाश सिंह को दी तो उन्होंने पुलिस लाइन स्थिति सभागार में प्रैसवार्ता की और आरोपियों को मीडिया के समक्ष पेश कर डबल मर्डर का खुलासा कर दिया.

चूंकि आरोपियों ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था, अत: थानाप्रभारी विश्वनाथ यादव ने मृतक के पिता रामऔतार यादव की तहरीर पर धारा 302 आईपीसी के तहत राजेश सिंह, अवधराज सिंह, दीपक सिंह, अंकित सिंह तथा नीलम सिंह के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली तथा सभी को विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया. पुलिस पूछताछ में जो कहानी प्रकाश में आई, उस में दोनों की हत्याओं की वजह मोहब्बत थी.

गाजीपुर जिले के खानपुर थाना अंतर्गत एक गांव है इचवल कलां. इसी गांव में ठाकुर राजेश सिंह अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी नीलम सिंह के अलावा बेटा दीपक सिंह तथा बेटी सानिया उर्फ सोनाली सिंह थी.

राजेश सिंह के पिता अवधराज सिंह भी उन के साथ रहते थे. पितापुत्र दबंग थे. गांव में उन की तूती बोलती थी. उन के पास उपजाऊ जमीन थी, जिस में अच्छी पैदावार होती थी. उन की आर्थिक स्थिति मजबूत थी.

राजेश सिंह की बेटी सोनाली उर्फ सानिया सुंदर, हंसमुख व मिलनसार थी. पढ़ाई में भी तेज थी. वह पंडित दीनदयाल उपाध्याय राजकीय डिग्री कालेज सैदपुर से बीए की डिग्री हासिल कर चुकी थी और बीएड की तैयारी कर रही थी. दरअसल, सानिया टीचर बन कर अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती थी. इसलिए वह कड़ी मेहनत कर रही थी.

सानिया उर्फ सोनाली के आकर्षण में गांव के कई युवक बंधे थे. लेकिन अजय कुमार यादव कुछ ज्यादा ही आकर्षित था. सानिया भी उसे भाव देती थी. सानिया और अजय की पहली मुलाकात परिवार के एक शादी समारोह में हुई थी. पहली ही मुलाकात में दोनों एकदूसरे के प्रति आकर्षित हो गए थे. इस के बाद जैसे जैसे उन की मुलाकातें बढ़ती गईं, वैसेवैसे उन का प्यार बढ़ता गया.

अजय कुमार यादव के पिता रामऔतार यादव सानिया के पड़ोस के गांव बभनौली में रहते थे. वह सीआरपीएफ में कार्यरत थे. लेकिन अब रिटायर हो गए थे और गांव में रहते थे. उन की 5 संतानों में 4 बेटियां व एक बेटा था अजय कुमार.

बेटियों की वह शादी कर चुके थे और बेटा अजय अभी कुंवारा था. रामऔतार यादव, अजय को पुलिस में भरती कराना चाहते थे, सो वह उस की सेहत का खास खयाल रखते थे. अजय बीए पास कर चुका था और पुलिस भरती की तैयारी कर रहा था. उस ने पुलिस की परीक्षा भी दी.

एक दिन अजय ने सानिया के सामने शादी का प्रस्ताव रखा तो वह गहरी सोच में डूब गई. कुछ देर बाद वह बोली, ‘‘अजय, मुझे तुम्हारा शादी का प्रस्ताव तो मंजूर है, लेकिन मुझे डर है कि हमारे घर वाले शादी को कभी राजी नही होंगे.’’

‘‘क्यों राजी नही होंगे?’’ अजय ने पूछा.

‘‘क्योंकि मैं ठाकुर हूं और तुम यादव. मेरे पिता कभी नहीं चाहेंगे कि ठाकुर की बेटी यादव परिवार में दुलहन बन कर जाए. मूंछ की लड़ाई में वह कुछ भी अनर्थ कर सकते हैं.’’

‘‘घर वाले राजी नहीं होंगे, फिर तो एक ही उपाय है कि हम दोनों कोर्ट में शादी कर लें.’’

‘‘हां, यह हो सकता है.’’ सानिया ने सहमति जताई.

इस के बाद 5 नवंबर, 2018 को सानिया उर्फ सोनाली और अजय कुमार ने गाजीपुर कोर्ट में कोर्टमैरिज कर के विवाह प्रमाण पत्र हासिल कर लिया. कोर्ट मैरिज करने की जानकारी सानिया के घर वालों को नहीं हुई, लेकिन अजय के घर वालों को पता था. उन्होंने सानिया को बहू के रूप में स्वीकार कर लिया.

दिसंबर, 2018 में अजय का चयन सिपाही के पद पर पुलिस विभाग में हो गया. ट्रेनिंग के बाद उस की पोस्टिंग अमेठी जिले के गौरीगंज थाने में हुई. अजय और सानिया की मुलाकातें चोरीछिपे होती रहती थीं. मोबाइल फोन पर भी उन की बातें होती रहती थीं. कोर्ट मैरिज के बाद उन का शारीरिक मिलन भी होने लगा था. इस तरह समय बीतता रहा.

जनवरी, 2021 के पहले हफ्ते में राजेश सिंह को अपनी पत्नी नीलम सिंह व बेटे दीपक सिंह से पता चला कि सानिया पड़ोस के गांव बभनौली के रहने वाले युवक अजय यादव से प्रेम करती है और दोनों ने कोर्ट मैरिज कर ली है.

दरअसल, नीलम सिंह ने बेटी को देर रात अजय से मोबाइल फोन पर बतियाते पकड़ लिया था. फिर डराधमका कर सारी सच्चाई उगलवा ली थी. यह जानकारी नीलम ने पति व बेटे को दे दी थी.

राजेश सिंह ठाकुर था. उसे यह गवारा न था कि उस की बेटी यादव से ब्याही जाए, अत: उस ने सानिया की जम कर पिटाई की और घर से बाहर निकलने पर सख्त पहरा लगा दिया. नीलम हर रोज डांटडपट कर तथा प्यार से बेटी को समझाती लेकिन सानिया, अजय का साथ छोड़ने को राजी नहीं थी.

21 फरवरी को अजय की चचेरी बहन की सगाई थी. वह 15 दिन की छुट्टी ले कर अपने गांव बभनौली आ गया. सिपाही अजय के आने की जानकारी राजेश सिंह को हुई तो उस ने अपने पिता अवधराज सिंह, बेटे दीपक सिंह, भतीजे अंकित सिंह तथा पत्नी नीलम के साथ गहन विचारविमर्श किया.

जिस में तय हुआ कि पहले अजय व सानिया को समझाया जाए, न मानने पर दोनों को मौत के घाट उतार दिया जाए. अवैध असलहा घर में पहले से मौजूद था.

योजना के तहत 22 फरवरी की रात 3 बजे राजेश सिंह व नीलम सिंह ने सानिया को धमका कर सिपाही अजय यादव के मोेबाइल फोन पर एक वाट्सऐप मैसेज भिजवाया, जिस में लिखा, ‘तत्काल मिलने आओ, नहीं तो हम मर जाएंगे.’

अजय ने मैसेज पढ़ा, तो उसे लगा कि सानिया मुसीबत में है. अत: वह अपनी मोटरसाइकिल से सानिया के गांव इचबल की ओर निकल पड़ा.

इधर मैसेज भिजवाने के बाद राजेश सिंह, नीलम सिंह, दीपक सिंह, अवधराज सिंह व अंकित सिंह ने सानिया उर्फ सोनाली को अजय का साथ छोड़ने के लिए हर तरह से समझाया. लेकिन जब वह नहीं मानी तो राजेश सिंह ने उसे गोली मार दी. फिर लाश को घर में छिपा दिया.

कुछ देर बाद अजय आया, तो उसे भी समझाया गया. लेकिन वह ऊंचे स्वर में बात करने लगा. इस पर वे सब अजय को बात करने के बहाने गांव के बाहर अंबिका स्कूल के पास ले गए.

वहां अजय सानिया को अपनी पत्नी बताने लगा तो उन सब ने उसे दबोच लिया और पिस्टल से उस के सिर में गोली मार दी और मरा समझ कर रामपुर गांव के पास सड़क किनारे खेत में फेंक दिया.

एक पिस्टल उस के हाथ में पकड़ा दी तथा दूसरी उस के पैर के पास डाल दी. सानिया का मोबाइल फोन भी अजय की पाकेट में डाल दिया. इस के बाद वे सब वापस घर आए और सानिया का शव घर के पीछे गेहूं के खेत में फेंक दिया. अजय की चप्पलें भी शव के पास छोड़ दीं.

सुबह राजेश व नीलम ने पड़ोसियों को बताया कि उन की बेटी सानिया बिना कुछ बताए घर से गायब है. फिर सैदपुर कस्बा जा कर कैफे से औनलाइन एफआईआर दर्ज करा दी. उधर रामपुर गांव के कुछ लोगों ने युवक को मरणासन्न हालत में देखा तो पुलिस को सूचना दी. पुलिस ने काररवाई शुरू की तो डबल मर्डर की सनसनीखेज घटना प्रकाश में आई.

24 फरवरी, 2021 को थाना खानपुर पुलिस ने अभियुक्त राजेश सिंह, दीपक सिंह, अंकित सिंह, अवधराज सिंह तथा नीलम सिंह को गाजीपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

2 गज जमीन के नीचे : प्रेमियों का प्यार हुआ दफन

साल 2020 समाप्त होने में गिनती के दिन बचे थे. नया साल शीत लहर की चौखट पर खड़ा था. ऐसे में खरगोन जिला मुख्यालय से कुछ दूरी पर स्थित भीकनगांव के टीआई जगदीश प्रसाद गोयल पुलिस टीम के साथ गांव में रहने वाली छायाबाई के पिता को ले कर मोहनखेड़ी पहुंचे. पुलिस को देख कर गांव वालों की भीड़ भी संतोष गोलकर के नए बने मकान के सामने जमा हो गई.

दरअसल 2 दिन पहले गांव में अपने पिता के घर पर रहने वाली 25 वर्षीय छायाबाई अचानक लापता हो गई थी. जिस दिन छायाबाई लापता हुई, उसी रोज संतोष भी गांव से गायब था. दोनों का पे्रम प्रंसग पूरे गांव के लोगों की जुबान पर था, इसलिए गांव वालों का मानना था कि संतोष ही छायाबाई को ले कर भाग गया.

लेकिन छायाबाई के पिता को शक था कि उस की बेटी को संतोष ने अपने नए मकान में छिपा रखा है. इसी बात की जांच करने के लिए पुलिस मोहनखेड़ी आई थी.

संतोष के मकान में ताला पड़ा था. गांव में रहने वाले उस के मातापिता भी गायब थे. इसलिए पुलिस ने ताला तोड़ कर पूरे घर की तलाशी ली, लेकिन वहां केवल छिपकली और मकडि़यों के अलावा कोई तीसरा जीव दिखाई  नहीं दिया. इसलिए पुलिस टीम वापस लौट आई.  गांव वाले तो पहले ही मान चुके थे कि छायाबाई संतोष के साथ कहीं भाग गई है. अब पुलिस ने भी ऐसा ही मान लिया, लेकिन ऐसा मानने वालों के बीच केवल छायाबाई का परिवार ही ऐसा था, जो इस बात को मानने को राजी नहीं हो रहा था.

इसलिए  उन के बारबार कहने पर संतोष के मकान में एक कमरे के फर्श की खुदाई भी कर के देखी गई, लेकिन कुछ हाथ नहीं आया. धीरेधीरे गांव के लोग छायाबाई और संतोष को भूलने लगे और अपने कामों में जुट गए थे.

लेकिन छायाबाई के पिता लगातार बेटी की खोज में लगे हुए थे. कोई महीने भर बाद संतोष के बंद पडे़ मकान से आने वाली अजीब सी बदबू से लोग परेशान होने लगे. पहले तो लोगों ने इस पर ध्यान नहीं दिया, लेकिन बदबू लगातार बढ़ने से पड़ोसियों का ध्यान संतोष के बंद मकान पर गया.

इस बात की खबर छायाबाई के पिता को लगी तो वह दौड़ेदौड़े अपने समाज के नेता के पास पहुंचे और उन्हेें सारी बात बताई. वह नेता छायाबाई के पिता को खंडवा एसपी के पास ले गया और एसपी को सारी कहानी से अवगत कराया. संतोष छायाबाई के लापता होने के मामले में संदिग्ध तो था ही, इसलिए उस के मकान से आने वाली बदबू की जानकारी को खंडवा एसपी शैलेंद्र सिंह चौहान ने गंभीरता से लिया.

उन के निर्देश पर एएसपी (ग्रामीण) जितेंद्र पंवार ने एसडीपीओ प्रवीण कुमार उइके के नेतृत्व में एक पुलिस टीम प्रशासनिक अधिकारियों के साथ 27 जनवरी, 2021 को एक बार फिर मोहनखेड़ी भेजी.

संतोष गोलकर का मकान खोलते ही बदबू का तेज झोंका आने से पुलिस समझ गई की यह मांस सड़ने की बदबू है. इसलिए पूरे मकान की बारीकी से जांच की गई. जिस से पता चला कि तीसरे कमरे के फर्श में ताजा सीमेंट लगाया गया है.

इसलिए शक के आधार पर पुलिस ने उस जगह की खुदाई करवाई तो डेढ़ फुट नीचे एक कान की बाली और लगभग ढाई फुट नीचे एक लेडीज चप्पल मिली. जिन के बारे में बताया कि ये दोनों ही चीजें छायाबाई की हैं.

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खुदाई की गहराई बढ़ने के साथ बदबू भी बढ़ती जा रही थी. वास्तव में पुलिस का शक उस समय सही साबित हुआ, जब कोई 4 फुट की गहराई पर छायाबाई का सड़ागला शव बरामद हो गया.

इस के बाद जांच के लिए एफएसएल अधिकारी सुनील मकवाना भी पहुंच गए. जांच के बाद उन्होंने शव को लगभग एक महीने पुराना बताया. जिस के बाद उसे पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया. लेकिन शव की हालत अत्यधिक खराब होने की वजह से उस का पोस्टमार्टम इंदौर के एमवाई अस्पताल में किया गया.

जाहिर सी बात है कि अब तक पुलिस का मानना था कि संतोष छायाबाई को ले कर भाग गया है. लेकिन अब छायाबाई की लाश संतोष के मकान में दफन मिल चुकी थी. जबकि संतोष और उस का परिवार गायब था. इसलिए पुलिस का सीधा शक यही था की संतोष ने ही छायाबाई की हत्या की है.

चूंकि उस के परिवार के सभी सदस्य गायब थे, इसलिए वे भी शक के घेरे में थे. एसपी शैलेंद्र सिंह चौहान ने आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए एक टीम गठित कर दी, जिस ने मुखबिरों से मिली सूचना के आधार पर 6 फरवरी, 2021 को संतोष की मां सकुबाई, भाई सुनील एवं बुआ के बेटे अनिल को गिरफ्तार कर लिया.

संतोष की तलाश पुलिस तत्परता से कर रही थी. जिस के चलते टीआई जगदीश प्रसाद गोयल की टीम में शामिल एसआई अंतिमवाला भूरिया, एएसआई लक्ष्मीनारायण पाल, प्रधान आरक्षक नंदकिशोर राय, आरक्षक अभिलाष डोंगरे, जितेंद्र, कांस्टेबल अंजली रिछारिया एवं कमलेश की टीम ने सूचना मिलने पर उसे बैतूल से गिरफ्तार कर लिया. इस के बाद यह कहानी कुछ इस तरह सामने आई—

16 साल की उम्र में छायाबाई की शादी पास के ही गांव एकतासा में रहने वाले युवक  के साथ हुई थी. दोनों के 3 बच्चे भी हुए किंतु दोनों के बीच रिश्ता कुछ यूं बिगड़ा कि छायाबाई अपने पति का घर छोड़ कर मोहनखेड़ी में पिता के घर आ कर रहने लगी.

मोहनखेड़ी में ही संतोष भी रहता था. संतोष छायाबाई की उम्र का था और छायाबाई की शादी से पहले वह उस की गली में चक्कर लगाया करता था. संतोष की दीवानगी की जानकारी छायाबाई को भी थी, लेकिन उन का इश्क परवान चढ़ पाता, उस से पहले ही छायाबाई की शादी हो गई थी. इस के बाद यह कहानी वहीं खत्म हो गई थी.

कुछ दिन बाद संतोष की भी शादी हो गई. लेकिन करीब 3 साल पहले ही उस की पत्नी भी उसे छोड़ कर अपने मायके में जा कर रहने लगी. संतोष ने कुछ दिनों तक तो ध्यान नहीं दिया, लेकिन पत्नी की गैरमौजूदगी में शारीरिक जरूरतें परेशान करने लगीं तो उसे छायाबाई का ध्यान आया जो खुद भी अपने पति को छोड़ कर बैठी थी. इसलिए उस ने अगले दिन ही छायाबाई की खातिर उस की गली में चक्कर लगाने शुरू कर दिए.

छायाबाई भी कई साल से पति से अलग रह रही थी. जैसे ही उस ने संतोष को देखा तो उसे अपने किशोर उम्र की याद आ गई, जब संतोष उस के लिए गली में चक्कर लगाया करता था.

इसलिए एक दिन छायाबाई ने भी मौका देख कर उसे सकारात्मक संदेश दे दिया. जिस के 4 दिन बाद ही दोनों गांव के बाहर एकांत में मिले और अपनी हसरतें पूरी कर प्यार के बंधन में बंध गए.

छायाबाई मायके में रहते हुए अपने मातापिता के ऊपर बोझ नहीं बनना चाहती थी. इसलिए वह गांव के कुछ घरों में झाड़ूपोंछा करने लगी थी. वह सुबह घर से निकल कर पहले अपना काम करती थी फिर सीधे संतोष के पास पहुंच जाती थी, जहां दोनों एकदूसरे के तन की प्यास पूरी करते थे. फिर छायाबाई वापस घर चली जाती थी.

दोनों एकांत में रोज मिला करते थे, इसलिए इस बात की जानकारी गांव वालों को हो गई थी. छायाबाई के परिवार तक भी यह खबर पहुंच चुकी थी. पिता ने अपनी बेटी को समझाने की कोशिश की, लेकिन मामला हाथ से निकल चुका था.

इधर छायाबाई के साथ घर बसाने की ठान चुके संतोष ने अपना खेत बेच कर छायाबाई के लिए सपनों का घर बनवा दिया था. कुछ दिनों में संतोष का मकान बन कर तैयार हो गया तो वह छायाबाई को इस मकान में ला कर अय्याशी करने लगा.

बताया जाता है कि इसी दौरान छायाबाई की नजरें गांव के ही एक दूसरे युवक से लड़ गई थीं. वह संतोष की तुलना में रईस और जवान था. इसलिए छायाबाई संतोष से दूर जाने की कोशिश करने लगी.

इस बात की जानकारी लगने पर संतोष काफी खफा था. बताया जाता है कि उस ने छायाबाई की हत्या की योजना पहले से ही बना रखी थी. इसलिए उस ने पानी का एक अंडरग्राउंड टैंक बनाने के नाम पर एक कमरे में गहरा गड्ढा खुदवा लिया था. जिस के बाद उस ने 24 दिसंबर की रात को छायाबाई को अपने घर बुला कर पहले तो उस के साथ संबंध बनाए और फिर इसी दौरान मौका पा कर उस का गला दबा कर हत्या कर के शव को गड्ढे में डाल कर उस के ऊपर मिट्टी डाल दी और फरार हो गया.

उस ने सोचा था कि घर के अंदर लाश की खबर पुलिस को कभी नहीं मिल पाएगी. लेकिन एक महीने के बाद मकान से आ रही बदबू के बाद शक होने पर पुलिस ने लाश बरामद कर हत्या में सहयोग करने वाली संतोष की मां, भाई और अन्य 2 को गिरफ्तार कर लिया.

छायाबाई के लापता होने पर उस के पिता को उस की हत्या का शक हो गया था. इसलिए पिता के कहने पर पुलिस ने पहले भी एक बार संतोष के घर नए पर बने फर्श की खुदाई लाश की तलाश करने के लिए की थी. लेकिन उस समय कुछ नहीं मिला था. लेकिन बदबू आने पर जब दूसरे कमरे में खुदाई की गई तो वहां से छायाबाई का शव बरामद हुआ. गिरफ्तार किए मुख्य आरोपी संतोष के भाई ने बताया कि छायाबाई की हत्या कर लाश को गड्ढे में दबाने वाली बात संतोष ने सुबह घर आ कर बताई थी. इस के बाद वह घर से भाग गया था. संतोष के भाग जाने के बाद घर वालों ने पुलिस से बचने के लिए खुदाई वाली जगह पर फर्श बनवा दिया और घर का ताला लगा कर फरार हो गए.

पुलिस ने सभी आरोपियों से पूछताछ के बाद उन्हें कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.