‘किलर सूप’ रिव्यू : मनोज वाजपेयी और कोंकणा सेन की डार्क थ्रिलर कॉमेडी

आर्या सीजन 3 : माफिया क्वीन बनी सुष्मिता सेन की जोरदार वापसी

वेब सीरीज रिव्यू : हंटर टूटेगा नहीं, तोड़ेगा

‘द रेलवे मेन’ रिव्यू : भोपाल गैस त्रासदी का गुमनाम हीरो – भाग 4

यशराज फिल्म्स को जारी किए गए लीगल नोटिस में दस्तगीर परिवार ने कहा था कि यह कहानी उन के पिता गुलाम दस्तगीर की कहानी है, इस पर फिल्म बनाने का अधिकार उन्होंने पहले ही स्माल बौक्स प्रोडक्शन कंपनी को दे दिया था.

शादाब दस्तगीर ने कहा, ”आधेअधूरे फैक्ट्स के साथ सीरीज ‘द रेलवे मेन’ के 4 एपिसोड बना दिए. आखिरी एपिसोड में बताया गया कि स्टेशन मास्टर श्मशान तक पहुंच जाते हैं, जबकि ऐसा बिलकुल नहीं है, हमारे पिता तो खुद चल कर घर तक आए थे.

”वाईआरएफ ने हमारे परिवार से मिलना तक उचित नहीं समझा. अगर निर्माता और निर्देशक हमारे परिवार से मिलते तो हम उन्हें बेहद दिलचस्प और करीबी तथ्यों से अवगत करवा देते. इसलिए यह वेब सीरीज उन के पिता की छवि को दर्शकों के सामने सही ढंग से पेश नहीं करती.’’

नोटिस के जवाब में यशराज फिल्म्स की ओर से दस्तगीर परिवार को कहा गया कि पब्लिक डोमेन से मिली जानकारी का इस्तेमाल कर के यह फिल्म बनाई गई है. 50 सेकेंड के टीजर के आधार पर यह कैसे कह सकते हैं कि इस से आप के पिता या परिवार की छवि को गलत तरीके से पेश किया जा रहा है?

साथ ही यह तत्कालीन डिप्टी स्टेशन सुपरिटेंडेंट गुलाम दस्तगीर की बायोपिक नहीं है. वहीं, जुलाई 2021 में राइट्स किसी अन्य प्रोडक्शन हाउस को दिए जाने पर जवाब मिला कि यह सीरीज उस से पहले ही बन कर तैयार हो गई थी. इसलिए यशराज फिल्म्स और नेटफ्लिक्स ने किसी भी तरह का कोई उल्लंघन नहीं किया.

हालांकि, अब पूरी सीरीज रिलीज होने पर दस्तगीर परिवार ने निर्माता यशराज फिल्म्स पर मुकदमा करने और अदालत का दरवाजा खटखटाने का फैसला किया है.

तत्कालीन डिप्टी स्टेशन सुपरिटेंडेंट गुलाम दस्तगीर के बेटे शादाब ने तथ्यहीन करार दिया, शादाब दस्तगीर ने कहा कि ‘द रेलवे मेन’ वेब सीरीज में अहम किरदार उन के पिता (गुलाम दस्तगीर) की है. भूमिका को दबाने के लिए कल्पनातीत किरदारों को खड़ा किया गया.

मसलन, इमाद (बाबिल खान) नाम का किरदार हकीकत में कभी नहीं था. आखिर रेलवे में जौइनिंग के पहले बिना ट्रेनिंग के किस को सिग्नल ठीक करने भेजा जाएगा और इंजन चलाने दिया जाएगा? वहीं स्टेशन पर एक्सप्रैस बैंडिट (दिव्येंदु शर्मा) जैसा कोई चोर शख्स नहीं था. जहरीली गैस की वजह से गुलाम दस्तगीर बीमार रहने लगे थे.

हादसे के 4 साल बाद यानी 1988 में गुलाम दस्तगीर ने रिटायरमेंट ले लिया था. उन का ज्यादातर समय अस्पतालों के चक्कर काटते ही बीता. बता दें कि साल 2003 में परिवार के मुखिया और भोपाल गैस त्रासदी के हीरो गुलाम दस्तगीर की मौत हो गई थी. गैस त्रासदी से हवा में फैले जहर ने ऐसा तांडव मचाया कि आज तक उस के घाव भर नहीं सके हैं. गैस पीडि़तों की आने वाली पीढिय़ां तक तमाम बीमारियों से जूझ रही हैं.

भोपाल गैस हादसे के जिम्मेदार आरोपियों को कभी सजा नहीं हुई. उस वक्त यूसीसी के अध्यक्ष वारेन एंडरसन मामले का मुख्य आरोपी था. लेकिन मुकदमे के लिए पेश नहीं हुआ. पहली फरवरी, 1992 को भोपाल की कोर्ट ने एंडरसन को फरार घोषित कर दिया. सितंबर 2014 में एंडरसन की अमेरिका में मौत हो गई.

वेब सीरीज ‘द रेलवे मेन’ का संगीत सेम स्लाटर का कोई दम नहीं रखता. छायांकन भी रुबैस का कुछ खास नहीं है, गैस त्रासदी के असली हीरो रेलवे कर्मियों की कहानी सत्यता से बहुत दूर दिखती है. बेहतर होता असली हीरो गुलाम दस्तगीर जैसे पात्रों पर वेब सीरीज बनाते.

आर. माधवन

‘थ्री इडियट’ फिल्म में फोटोग्राफी का शौक रखने वाले आर. माधवन को शायद ही कोई भूल सकता है. उस का पूरा नाम रंगनाथन माधवन है, लेकिन उसे आर. माधवन के नाम से जाना जाता है. वह सिर्फ अभिनेता ही नहीं, बल्कि लेखक, निर्देशक और निर्माता भी है. माधवन के द्वारा बनाई गई हाल में एक फिल्म को राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुका है. यह कहें कि अपने करिअर के दौरान माधवन को एक राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार, 4 दक्षिण फिल्मफेयर पुरस्कार और एक तमिलनाडु राज्य फिल्म पुरस्कार सहित कई पुरस्कार हासिल हुए हैं.

माधवन ने मणिरत्नम की रोमांटिक ड्रामा फिल्म ‘अलाई पेयुथे’ में अभिनय कर के तमिल सिनेमा में पहचान बनाई थी. 2001 की 2 सब से ज्यादा कमाई करने वाली तमिल फिल्मों ‘मिन्नाले’ और ‘दम दम दम’ में यादगार भूमिकाओं के साथ एक रोमांटिक हीरो के रूप में अपनी छवि बना ली थी.

इस के बाद उस ने ‘कन्नथिल मुथामित्तल’ (2002), ‘रन’ (2002), ‘जेजे’ (2003) और ‘एथिर्री’ (2004) जैसी फिल्मों से और अधिक महत्त्वपूर्ण और व्यावसायिक सफलता हासिल की.

2000 के दशक के मध्य में माधवन की हिंदी में यादगार फिल्मों में राकेश ओमप्रकाश मेहरा की ‘रंग दे बसंती’ (2006), मणिरत्नम की बायोपिक ‘गुरु’ (2007) और कौमेडी ड्रामा ‘3 इडियट्स’ (2009) थीं.

बौक्स औफिस पर हिट ‘तनु वेड्स मनु’ (2011) और ‘वेट्टई’ (2012) में दिखाई देने के बाद माधवन ने अभिनय से ब्रेक ले लिया. हालांकि उस की वापसी वाली फिल्में, रोमांटिक कौमेडी-ड्रामा ‘तनु वेड्स मनु रिटन्र्स’ (2015), द्विभाषी स्पोट्र्स ड्रामा ‘इरुधि सुत्रु’ (2016) और क्राइम फिल्म ‘विक्रम वेधा’ (2017) थी.

केके मेनन

‘द रेलवे मेन’ में रेलवे स्टेशन के इंचार्ज की भूमिका में केके मेनन है. उस का किरदार इफ्तखार सिद्दीकी का है. वह भारतीय सिनेमा का एक जानापहचाना अभिनेता है.

मेनन ने छोटीछोटी भूमिकाएं निभा कर काफी लोकप्रियता हासिल की है.  विज्ञापनों से करिअर शुरू करने वाले मेनन ने 2007 में ‘लाइफ इन ए… मेट्रो’, ‘एनिमी’ (2013), और ‘रहस्य’ (2015) खास तरह के अय्याश और व्यभिचारी पति का किरदार निभा कर अलग पहचान बना ली थी.

2008 में, वह ‘ए फ्यू गुड मेन’ पर आधारित शौर्य में दिखाई दिया. उस में उस ने एक क्रूर सेना ब्रिगेडियर की भूमिका निभाई थी. 2009 में उस ने ‘द स्टोनमैन मर्डर्स’ में अभिनय किया, जहां उस ने स्टोनमैन सीरियल किलर की तलाश में एक पुलिस अधिकारी की भूमिका निभाई.

उस की चर्चित फिल्मों में ‘शाहिद’, ‘चालीस चौरासी’, ‘भिंडी बाजार’, ‘भेजा फ्राई 2’, ‘हुक या क्रुक’, ‘गुलाल’, ‘मुंबई मेरी जान’ आदि रही हैं.

बाबिल खान

इरफान खान के बेटे बाबिल खान ने कम उम्र में ही अपनी पहचान बना ली है. उस ने ‘कला’ (2022) के साथ बौलीवुड में अभिनय की शुरुआत की थी. इस फिल्म में उस के साथ तृप्ति डिमरी थी, जो बाद में ‘एनिमल’ से लोकप्रिय हो गई.

अपने करिअर की शुरुआत एक कैमरा सहायक के रूप में की. ‘द रेलवे मेन’ (2023) में उस के अभिनय को भी काफी पसंद किया गया. पिता इरफान की गिनती अगर बेहतर अभिनेता के रूप में होती है तो मां सुतापा सिकंदर एक चर्चित लेखिका हैं.

2023 में उसे नेटफ्लिक्स ओरिजिनल फिल्म ‘फ्राइडे नाइट प्लान’ में जूही चावला के बेटे सिद्धार्थ मेनन की भूमिका निभाते हुए देखा गया था. उस के बाद उसे यशराज फिल्म्स की वेब शृंखला ‘द रेलवे मेन’ में अभिनय का मौका मिला, जो भोपाल गैस त्रासदी की एक कहानी है. उस की भूमिका दिव्येंदु शर्मा, केके मेनन और आर. माधवन के साथ है. वह शुजीत सरकार की ‘द उमेश क्रौनिकल्स’ में अमिताभ बच्चन के साथ भी अभिनय करने वाला है.

‘द रेलवे मेन’ रिव्यू : भोपाल गैस त्रासदी का गुमनाम हीरो – भाग 3

भोपाल की सड़कों पर बेतरतीब बिखरा हुआ सामान, जगहजगह इंसानों और जानवरों की लाशें ही लाशें पड़ी हुई थीं. दिसंबर में शादियों का सीजन शुरू हो जाता है तो टुल बाराती और बैंडबाजे वाले तक सड़कों पर मृत पड़े हुए थे.

जैसेतैसे वापस हिम्मत कर के मैं स्टेशन परिसर में दाखिल हुआ तो वहां भी कुछ ऐसा ही मंजर दिखा. यात्रियों के बैग, मुंह से झाग उगलते शव और चारों तरफ सन्नाटा. मतलब श्मशान घाट में तब्दील एक स्टेशन और लाशों में तब्दील लोग.

मैं जब अपने पिता की केबिन में घुसा तो एक अंकल जो शायद रेलवे कर्मचारी थे, वहां बैठे दिखे. मैं ने पता किया तो उन्होंने बताया कि आप के पिता (डिप्टी सुपरिटेंडेंट) की हालत ज्यादा खराब थी और वह बेहोश पड़े हुए थे तो रिलीफ टीम ने उन को एंबुलेंस से हमीदिया अस्पताल रेफर कर दिया.

इस के बाद साइकिल उठा कर मैं हमीदिया पहुंचा तो वहां भी लाशों और जिंदगी मौत के बीच जंग लड़ रहे लोगों को देख कर सिहर उठा. डाक्टरों पर जैसा बन पड़ रहा था, वैसा इलाज कर रहे थे, क्योंकि किसी को मालूम नहीं था कि हवा में उड़े जहर का सही इलाज क्या है?

अस्पताल परिसर में अपने लोगों को गंवाने वालों की हालत देख मैं हताश निराश घर लौट आया. घर में हम सभी लोग बेहद चिंतित थे, लेकिन देखा कि एकाएक पिताजी करीब सुबह साढ़े 11 बजे दरवाजे पर लडख़ड़ाते हुए आ गए. अस्पताल से उन को प्राथमिक उपचार दे कर घर के लिए रवाना कर दिया गया था. लेकिन जब हम ने देखा कि पिता की आंखों का एरिया फूल के कुप्पा और लाल हो चुका था और शरीर भी लगभग पूरी तरह जवाब दे चुका था. गले से आवाज नहीं निकल पा रही थी.

बस, घर में घुसते ही वह सिर्फ इतना ही कह पाए ‘स्टेशन सुपरिटेंडेंट धुर्वे साहब भी नहीं रहे…’ दोपहर होतेहोते पूरे शहर को पता लग चुका था कि इस भयावह मंजर के पीछे कोई मिर्ची या गोभी की गंध नहीं, बल्कि कीटनाशक बनाने वाली यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से निकली मिथाइल आइसोसाइनेट गैस थी.

इस के कुछ दिन बाद थोड़ीबहुत सेहत ठीक होने पर खुद डिप्टी एसएस गुलाम दस्तगीर ने अपने परिवार में उस काली रात की खौफनाक दास्तां बयां की थी.

बेटे शादाब के मुताबिक, बेहद अनुशासनप्रिय और अपने कर्तव्य के प्रति समर्पित मेरे पिता 2 दिसंबर, 1984 की रात 12 बजे से पहले रेलवे स्टेशन भोपाल पहुंच चुके थे. और रोजाना की तरह ही अपने केबिन में डायरी मेंटेन करने लगे.

इसी दौरान, प्लेटफार्म पर भगदड़ जैसी आवाज सुनाई पड़ी. बाहर आ कर देखा तो चौतरफा हाहाकार मचा हुआ था. लोग एकदूसरे को रौंदते हुए आगे बढ़े जा रहे थे तो तमाम लोग मौके पर ढहे जा रहे थे. एक अजीब किस्म की गंध फैली हुई थी. लोग सांस नहीं ले पा रहे थे. देखतेदेखते भागते दौड़ते लोग लाशों में तब्दील होने लगे. कइयों के मुंह से झाग निकलने लगा और आंखें लाल हो गईं.

स्वयं के विवेक से फैसला नहीं लिया गया होता तो…

उधर, स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर-1 पर मुंबई गोरखपुर एक्सप्रेस हजारों यात्रियों से लदी हुई खड़ी थी. ट्रेन का करीब 32 मिनट का हाल्ट था. गाड़ी में बैठे यात्रियों के बीच भी चीखपुकार मची हुई थी. यह देख पिता ने अपने कर्मचारी से ट्रेन का सिग्नल देने को कहा. लेकिन देखा कि सिग्नलमैन खुद मृत पड़ा हुआ था.

यही नहीं, तत्कालीन स्टेशन सुपरिटेंडेंट हरीश धुर्वे समेत तमाम रेलवे अधिकारी और कर्मचारियों की कुछ ही घंटों में मौत हो गई थी. वहीं, कुछ जान बचा कर स्टेशन से भाग निकले थे. ऐसे में गुलाम दस्तगीर खुद ही लोको पायलट के पास पहुंचे, लेकिन पायलट ने बिना किसी आधिकारिक आदेश के ट्रेन को आगे बढ़ाने से मना कर दिया.

यह देख खांसतेछींकते और हांफते डिप्टी एसएस गुलाम दस्तगीर ने दौड़दौड़ कर इंजन में बैठे लोको पायलट और ट्रेन के आखिरी छोर पर गार्ड को अपनी जवाबदारी पर हाथ से इंडेंट लिख कर दिया. लोको पायलट और गार्ड ने आशंका जताई कि तय समय से पहले ट्रेन को आगे बढ़ाने पर कोई दुर्घटना भी हो सकती है, लेकिन डिप्टी एसएस गुलाम ने कहा कि स्टेशन पर रहोगे तो हजारों यात्रियों की जान चली जाएगी.

आखिरकार, गुलाम दस्तगीर ने अपने जोखिम पर ट्रेन को रवाना करवाया. दस्तगीर ने भोपाल के दोनों ओर निकटतम बड़े रेलवे स्टेशनों इटारसी और विदिशा पर अपने सहयोगियों को संदेश भेजा और भोपाल की सीमा में दाखिल होने वाली ट्रेनों को रोकने के लिए कहा. आधिकारिक बाधाओं के बावजूद दस्तगीर अधिकारियों को ऐसा करने के लिए मनाने में कामयाब रहे.

बेटे शादाब बताते हैं, अकसर रेलवे कर्मचारी अपनी जेब में रुमाल रखते ही थे. उस रात मिथाइल आइसोसाइनेट रिसी तो किसी को कुछ पता नहीं था, लेकिन उस खतरनाक गंध से बचने के लिए लोगों ने अपनी मुंह और नाक को गीले कपड़े से ढंक लिया था.

यही नहीं, ट्रेन को अपने जोखिम पर स्टेशन से रवाना करने के बाद भी पिता नहीं रुके. उन्होंने पूरी रात गीले रुमाल की मदद से थोड़ीथोड़ी सांस ली और हांफते खांसते स्टेशन पर भागदौड़ कर के हजारों यात्रियों की जान बचाई. लेकिन हवा में घुले जहर ने आंखों को डैमेज करना शुरू कर दिया था.

दिवंगत गुलाम दस्तगीर कमोबेश एक गुमनाम नायक बने रहे. हालांकि, अब यानी 39 साल बाद त्रासदी की दास्तां बड़े रूप में चित्रित की गई है तो दस्तगीर परिवार इस बात से चिंतित और परेशान है कि उन के घर के दिवंगत मुखिया की भूमिका के साथ इस चित्रण में न्याय नहीं किया गया.

बातचीत में शादाब दस्तगीर कहते हैं, जिस तरह सर्वविदित है कि गैस त्रासदी का नाम लेने पर भोपाल का नाम ही लिया जाता है तो उस रात स्टेशन पर हजारों लोगों की जान बचाने वालों में हमारे पिता और रेलवे अधिकारी गुलाम दस्तगीर का ही नाम लिया जाएगा. लेकिन वेब सीरीज ‘द रेलवे मेन’ के निर्माताओं ने इस गुमनाम हीरो का नाम बदल कर ‘इफ्तखार सिद्दीकी’ कर दिया.

2 दिसंबर, 2021 में ‘द रेलवे मेन’ का टीजर रिलीज होने पर भोपाल में रहने वाले दस्तगीर परिवार ने प्रोडक्शन हाउस यशराज फिल्म्स (वाईआरएफ) को कानूनी नोटिस भेजा. कहा कि सीरीज का मुख्य किरदार इफ्तखार सिद्दीकी (केके मेनन) का असल नाम ‘गुलाम दस्तगीर’ किया जाए. किसी फिल्म में फिक्शन चलता है, मगर फैक्ट से छेड़छाड़ नहीं, आप किसी की कुरबानी को इस तरह नजरअंदाज नहीं कर सकते.

‘द रेलवे मेन’ रिव्यू : भोपाल गैस त्रासदी का गुमनाम हीरो – भाग 2

असल हीरो खो गया गुमनामी में

सन 1999 में महेश मथाई की फिल्म ‘भोपाल एक्सप्रैस’ आई थी, इस में एक अनूठा दृश्य होता है. एक बस्ती में खुले में ‘अमर अकबर एंथनी’ दिखाई जा रही है. प्रोजैक्टर की रोशनी परदे की ओर बह रही है. गीत चल रहा है, ‘शिरडी वाले साईंबाबा, आया है तेरे दर पे सवाली…’ साईंबाबा की मूर्ति में से नेत्र ज्योति निकलती है और नेत्रहीन निरूपा राय की आंखों में प्रवेश कर जाती है. उस की आंखों की रोशनी आ जाती है.

तभी इस आस्था भरने वाले प्रोजेक्टर के प्रकाश के कणों के साथ विषैली गैस का धुआं भी दर्शकों की तरफ बहता है. खौफनाक, क्रेग मेजिन (एचबीओ) की सीरीज ‘चर्नोबिल’ में भी एक ऐसा ही खौफनाक दृश्य होता है, जहां चर्नोबिल न्यूक्लियर पावर प्लांट में हादसा होता है.

उस का कोर रिएक्टर फट जाता है, रेडिएशन फैल जाता है. पास में फ्लैट्स बने होते हैं. रात को लोग, युवा, बच्चे, दंपति खाना खा कर घूमने निकले हैं, वे आसमान छू चुकी इस आग और काले धुएं को मौजमस्ती से पर्यटकों की तरह निहार रहे होते हैं और हंसीमजाक कर रहे होते हैं, सत्य से बिलकुल अंजान. एक युवती देखते हुए कहती है कि यह कितना सुंदर है न.

और उसी क्षण यूरेनियम रेडिएशन के हत्यारे कण हवा से उड़ कर उन के ऊपर गिर रहे होते हैं, उन की सांसों में अंदर जा रहे होते हैं, ऐसा ही ‘द रेलवे मेन’ में भी होता है, जहां अन्य यात्रियों के साथ वे 2 अनाथ बच्चे भी भोपाल स्टेशन पर बैठे हैं, जो पूर्व में यश चोपड़ा की फिल्मों के गीत गा कर हमारा मनोरंजन कर चुके होते हैं (इक रास्ता है जिंदगी, जो थम गए तो कुछ नहीं… कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है…) और जहरीली हवा उन की जान लेने को बढ़ रही होती है.

भोपाल एक्सप्रैस के अंत में नसीर के किरदार बशीर के शव पर क्रोध में भर कर रोने वाला केके का विस्फोटक दृश्य है, जिस में विजयराज भी फूटफूट कर रोता है. विचित्र संयोग कि केके उसी कहानी, उसी रेलवे स्टेशन, उसी कब्रिस्तान में फिल्म में होता है और इन्हीं जगहों पर ‘द रेलवे मेन’ में भी वापस पहुंचता है.

इस फिल्म और ‘द रेलवे मेन’ दोनों में एक कौमन शौट भी है, जहां एक महिला विषैली गैस से मर चुकी है और उस का जीवित बच्चा स्तन से दूध पी रहा है. बौलीवुड अभिनेता दिवंगत इरफान खान के बेटे बाबिल खान के करिअर का यह पहला सच्चा काम है. ‘कला’ उस का कमजोर परफारमेंस थी, जिसे ‘इरफान बायस’ के चलते सराहा गया.

‘द रेलवे मेन’ पहला प्रोजेक्ट है, जिस में बाबिल अपने पिता इरफान खान की वजह से नहीं, अपने फैशन और फोटो आप्स के लिए नहीं, बल्कि यंग लोको पायलट ईमाद रियाज के अपने किरदार की निष्ठा की वजह से अलग पहचान बनाता है.

दिव्येंदु के करिअर को इस पहले अपराधी के किरदार से अंत में थोड़ी गुडविल से दिल जीत जाता है. ‘द रेलवे मेन’ के किरदार इस तरह लिखे गए हैं और उन मूल्यों के लिए खड़े होते हैं कि उन्हें निभाने वाले ऐक्टर्स की ऐक्टिंग को फीता ले कर मापने आप नहीं बैठ सकते. कहानी अपने ही स्तर पर आप को अपनी गिरह में ले लेती है, लेकिन फिर भी इस में डीसेंट ऐक्टिंग जरूरी है.

मेरे लिए यह कोई जबरदस्त सीरीज नहीं है (जो होने की जरूरत भी नहीं है) लेकिन यह एक आलटाइम एंटरटेनिंग मिनी सीरीज है. ऐसी सीरीज जिस में कुछ सत्यता है, बाकी सब कुछ काल्पनिक सा है. हां, देखने में सीरीज जरूर ठीकठाक है. ऐसी धांसू भी नहीं कि जब दर्शक सीरीज देख कर उठेगा तो संतुष्ट महसूस करेगा.

वेब सीरीज ‘द रेलवे मेन’ भले ही भोपाल गैस त्रासदी के गुमनाम नायकों की कहानी बताई जा रही हो, लेकिन अपनी जान पर खेल कर हजारों रेल यात्रियों की जिंदगी बचाने वाला असल हीरो तो गुमनाम ही रह गया.

1984 की त्रासदी के नायक के योगदान का दुनिया जहान ने कोई खास जिक्र नहीं किया. अब 39 साल बाद किया भी तो असली नाम देने से ही कन्नी काट ली. यह कहते कहते शादाब थम से जाते हैं. सच तो यह है कि हम न जान लेने वालों को सजा दिला पाए और न जान बचाने वालों को शाबाशी…

ओटीटी प्लेटफार्म नेटफ्लिक्स पर आई ‘द रेलवे मेन’ के डायलौग से भोपाल के कोफेहिजा में रहने वाले शादाब दस्तगीर काफी इत्तफाक रखते हैं. लेकिन वेब सीरीज की कहानी और किरदारों को ले कर वह पूरी तरह सहमत नहीं हैं.

करीब 50 साल के शादाब दस्तगीर 1984 में भोपाल रेलवे स्टेशन के डिप्टी स्टेशन सुपरिटेंडेंट रहे दिवंगत गुलाम दस्तगीर के सब से छोटे बेटे हैं. शादाब का दावा है कि ‘द रेलवे मेन: द अनटोल्ड स्टोरी औफ भोपाल 1984’ में केके मेनन का किरदार पूरी तरह उन के पिता गुलाम दस्तगीर पर ही आधारित है.

क्या थी काली रात की हकीकत

1984 की उस काली रात (2-3 दिसंबर) की दास्तां सुनाते हुए शादाब बताते हैं कि उस साल मैं करीब 14 साल का था. पुराने भोपाल के एक घर में हमारा 5 सदस्यीय परिवार रहता था. 2 दिसंबर, 1984 की रात मां के साथ हम घर में 3 भाई थे. करीब 11 बजे पिता गुलाम दस्तगीर भोपाल रेलवे स्टेशन के लिए निकल गए थे. तभी आधी रात को हमारे मोहल्ले में चीखपुकार मचने लगी.

बाहर जा कर देखा तो लोग इधरउधर भाग रहे थे और एक अजीब सी गंध नथुनों में घुसी जा रही थी. ऐसा लग रहा था कि मानो किसी ने मिर्ची के गोदाम में आग लगा दी हो या फिर गोभी को बड़े पैमाने पर उबाला जा रहा हो.

गंध खतरनाक होती जा रही थी. कुछ समझ में नहीं आ रहा था. किसी ने बताया कि ऊंचाई वाले स्थान पर जा कर ही जान बचाई जा सकती है. भागतेभागते हांफते मां और तीनों भाई तमाम लोगों की तरह जेल पहाड़ी पर पहुंचे, लेकिन रात भर पिता की चिंता सताती रही.

भोपाल की हवा में जहरीली गंध थमने के बाद सुबह मां के साथ हम तीनों भाई घर लौटे तो देखा कि पिता अपनी ड्यूटी से नहीं लौटे थे. अमूमन नाइट ड्यूटी खत्म करने के बाद पिता सुबह करीब साढ़े 8 बजे तक लौट आते थे. किसी अनहोनी की आशंका के चलते मैं अपने पिता को ढूंढने साइकिल से निकल पड़ा, लेकिन रास्ते का मंजर देख ठिठक गया.

‘द रेलवे मेन’ रिव्यू : भोपाल गैस त्रासदी का गुमनाम हीरो – भाग 1

वास्तविक घटनाओं पर आधारित वेब सीरीज का हाल के दिनों में दर्शकों ने अकसर स्वागत किया है. ‘द रेलवे मेन’ (The Railway Man) उसी श्रेणी में आती है. मशहूर प्रोडक्शन कंपनी यशराज फिल्म्स ने भोपाल गैस त्रासदी (Bhopal Gas Tragedy) के हालातों को उजागर करने की कोशिश की है. यह इन की पहली वेब सीरीज है.

संगीत: सैम स्लेटर

छायांकन: रुबैस

संपादन: यश जयदेव रामचंदानी

कार्यकारी निर्माता: आदित्य चोपड़ा, उदय चोपड़ा

निर्देशक: शिव रवैल

ओटीटी: नेटफ्लिक्स

कलाकार: केके मेनन, आर. माधवन, दिव्येंदु शर्मा, बाबिल खान, सनी हिंदुजा, दिव्येंदु भट्टाचार्य,  जूही चावला, मंदिरा बेदी आदि.

वेब सीरीज ‘द रेलवे मेन’ की कहानी भोपाल रेलवे स्टेशन के इंचार्ज हैं इफ्तखार सिद्दीकी (केके मेनन) जो हर दिन की तरह ड्यूटी पर निकलने को हैं. अपने क्वार्टर से उन का बेरोजगार बेटा नवाज टीवी के आगे बैठ कर राजीव गांधी का भाषण देख रहा है, 1984 का साल है. दंगे हो चुके हैं. नफरत और कत्ल अब भी जारी है. टीवी पर राजीव गांधी चेहरे पर कोई शिकन लाए बिना कहते हैं, ”जब भी कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती थोड़ी हिलती है.’’

वह कोसते हुए कहता है, ”क्या हाल हो गया है सिखों का और इन्हें देखो.’’

नाश्ता लगाती मां कहती है कि उन की भी तो अम्मी है बच्चे. ऐसे हादसे के बाद क्या सही क्या गलत, समझ में नहीं आता.

सुन कर नवाज मां से उलझता है तो इफ्तखार साइलेंट सी चिढ़ के साथ पूछते हैं कि नौकरी का क्या हुआ नवाज? ब्यूरो गए थे? हम ने बोला था न, रेलवेज में पोस्टिंग है. मौका है, मुनासिब काम है, तनख्वाह भी ठीकठाक है.

तभी नवाज कहता है कि हजार बार कहा है अब्बू आप से, जिंदगी भर काले कपड़े पहन कर मैं सरकार की जी हुजूरी नहीं करूंगा.

इफ्तखार आगे कुछ नहीं कहते. अपने काम पर जाने को होते हैं कि नवाज पीठ किए उन से कहता है कि कल इंटरव्यू  है हमारा. यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड में.

जैसे ही उस के मुंह से यह निकलता है, इफ्तखार तुरंत पलटते हैं. जैसे कोई अनिष्ट, बदनाम नाम सुन लिया हो.

वह पूछते हैं, ”यूनियन कार्बाइड! अब तुम ऐसी जगह काम करोगे, जहां न कोई उसूल, न काम करने का कोई तौर तरीका. बस, पैसे कमाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं. ऐसी जगह पर काम करोगे? तुम्हें कोई मानसम्मान भी कमाना है या सिर्फ पैसे?’’

और इसे सुन कर नवाज पुष्ट तौर पर कुछ कह नहीं पाता. यहां पर पता चलता है कि इफ्तखार बहुत भले इंसान हैं. दूसरी बात यह पता चलती है कि कार्बाइड सन्निकट हादसे के बाद से नहीं, उस के पहले से पूरे भोपाल में बदनाम है.

4 एपिसोड में बनी नेटफ्लिक्स और यशराज एंटरटेनमेंट की यह सीरीज 2-3 दिसंबर, 1984 की रात की कहानी है. भोपाल की घनी आबादी के पास बने अमेरिकी पेस्टिसाइड कंपनी यूनियन कार्बाइड के संयंत्र में से विषैली गैस लीक हो जाती है (जिसे सीरीज में मुश्ताक खान का पात्र उबली गोभी जैसी बास कहता है) और हजारों लोग मारे जाते हैं.

सीरीज खुलती है और यूनियन कार्बाइड के दोषी चेयरमैन एंडरसन को भारत से बच कर भागने दिया जाता है. सिनेमा पर बहुत उम्दा लिखने वाले पत्रकार राजकुमार केसवानी ने, भोपाल गैस त्रासदी को करीब से कवर किया था. सीरीज में उन का, यानी पत्रकार जगमोहन कुमावत का किरदार जिसे (सनी हिंदुजा) ने निभाया. वह पहले एपिसोड के शुरू में ही कहता है कि ऐसा देश, जो न जान लेने वाले को सजा देता है और न जानें बचाने वाले को शाबाशी.

यहीं पर स्पष्ट होने लगता है कि जहां पहले की फिल्में इस बारे में थीं कि ट्रैजेडी हुई और दोषियों को सजा नहीं मिली. वहीं यह सीरीज उन लोगों के बारे में होगी, जिन्होंने जानें बचाईं.

सीरीज में रेलवे स्टेशन और रेलगाडिय़ों का पूरा सेट प्रोडक्शन टीम ने बनाया है, जिसे देख कर लगता है कि कोई असली स्टेशन है, जहां शूटिंग की गई है. ‘द रेलवे मेन’ का वायुमंडल कन्विंसिंग है. लेकिन बहुत अच्छा नहीं है. आयुष गुप्ता, शिव रवैल का स्क्रीनप्ले और डायलौग्स भी खास दमदार नहीं हैं. सैम स्लेटर का ओरिजिनल स्कोर उस गैस को सुन पाने में मदद करता है, जिसे देखा या छुआ नहीं जा सकता.

रिसर्च वर्क में रह गईं खामियां

सीरीज में एक बात जो बहुत ज्यादा खटकती है, वह यह कि इस गैस कांड का कहानी के पात्रों पर कैसे, कितना, किस लौजिक से असर होता है, यह बता पाने में संवाद स्मार्ट नहीं रहते. दर्शकों को स्वयं अपनी बुद्धि से समझना होता है. सीरीज में जब गैस वायुमंडल में फैल चुकी होती है तो बचने का कोई तरीका नहीं होता. बताया जाता है कि मुंह पर गीला कपड़ा बांध लो या किसी कमरे में बैठो तो शायद बचा जा सकता है.

अब यह दर्शकों को दी गई सीमित जानकारी के चलते जरा अस्पष्ट है. कमरे में भी बैठेंगे तो जहां से औक्सीजन आ रही है, वहां से गैस भी तो आएगी. सीरीज में कुछ लोग गैस पी कर बच जाते हैं, कुछ मर जाते हैं. इस का भी लौजिक नहीं मिलता.

कुछ कई घंटों के एक्सपोजर से मरते नहीं, कुछ चंद सेकेंड के एक्सपोजर से मर जाते हैं. एक व्यक्ति स्टेशन के कमरे से बाहर भागता है और चंद कदम के बाद गिर कर मर जाता है. इतनी तेजी से तो न्यूक्लियर रेडिएशन का एक्सपोजर पाया इंसान भी नहीं मरता.

कहने को कहा जा सकता है कि हर व्यक्ति का इम्यून सिस्टम अलग होता है, जैसे कि कोविड के समय देखने को मिला, लेकिन यह दायित्व सीरीज की पटकथा का है कि वह स्पष्ट नहीं दिखा. ‘द रेलवे मेन’ में कई प्रमुख किरदार हैं, जो कहानी के स्तंभ हैं. अपनी जड़ों में भरोसेमंद भी.

जैसे, आर. माधवन का रति पांडे का पात्र जो सेंट्रल रेलवे में जीएम है, उस की एंट्री सीरीज में काफी लेट होती है, लेकिन वहीं कुछ हद तक इस की ताकत भी होती है कि जब आप सारे किरदारों को देख चुके हों और कैरेक्टर सरप्राइज अब कुछ बचा नहीं है, तब माधवन आता है.

चूंकि यह किरदार स्ट्रगल नहीं कर रहा है, गैस से जूझ नहीं रहा है, बल्कि डेंजर एरिया के बाहर मौजूद है और वहां से प्रवेश करने जा रहा है.

इफ्तखार सिद्दीकी के रोल में केके मेनन हैं. एक सभ्य इंसान हैं. ड्यूटी ही जिन का धर्म है. वह राजनीति से परे रहते हैं, ठीक इसी तरह गोरखपुर एक्सप्रैस के बहादुर गार्ड (रघुबीर यादव) होते हैं, जो सिखों की हत्याओं को सही गलत ठहराने वाले बहस करते करते यात्रियों से कहते हैं कि आप लोग आवाज कम और माहौल थोड़ा शांत रखिए, नहीं तो अगले स्टेशन पर उतार दिए जाओगे. और मेरी मानें तो राजनीति से बचिए. इस से बीपी बढ़ेगा और कुछ नहीं.’’

इफ्तखार और इस गार्ड की तरह जितने भी नायकीय पात्र हैं, अंत में जब इफ्तखार के किरदार को ले कर सब खत्म सा हो जाता है, तब भी वह दर्शकों को चौंकाता है और कहानी रियलिज्म से फैंटेसी में परिवर्तित सी हो जाती है. यह एक सुख देने वाली चीज होती है.

‘किलर सूप’ रिव्यू : मनोज वाजपेयी और कोंकणा सेन की डार्क थ्रिलर कॉमेडी – भाग 4

सैक्स सीन पर डायरेक्टर हुआ कमजोर

सातवें एपिसोड में अरविंद शेट्टी के चौथा कार्यक्रम को दिखाया जाता है. जबकि उस की अंत्येष्टि से ले कर बाकी सारे शौट गायब हैं. यहां डायरेक्टर को अहसास हुआ कि वेब सीरीज काफी लंबी हो रही है.

चौथे वाले कार्यक्रम में खानसामा मेहरुन्निसा भी पहुंच जाती है. वह कहती है कि पुलिस मनीषा कोइराला को तलाश रही है. अभी तक उस ने कुछ नहीं बताया. यदि होटल में मेन शेफ बनाएगी तो वह राज ही रखेगी. उसी दौरान इंसपेक्टर हसन उसे गिरफ्तार कर ले जाता है, जिस की जमानत स्वाति शेट्टी करा देती है.

इसी एपिसोड में स्वाति शेट्टी के लिए अब लुकास काम करने लगता है. वह उमेश महतो वाली फोटो पर कैमिकल पाउडर डाल कर लिफाफे में रख देता है. इधर, कीर्तिमा का एक एसएमएस प्रभाकर के पास आता है. वह कहती है कि यदि वह आ कर नहीं मिलेगा तो पुलिस को सब कुछ बता देगी.

जब प्रभाकर मिलता है तो वह कहती है कि कैलिफोर्निया होटल का सपना उस ने क्यों तोड़ दिया. इस के अलावा वह पत्नी को तलाक देने की जानकारी दे कर उस के रिश्तों को ले कर बातचीत करती है. प्रभाकर शेट्टी भावुक हो जाता है और दोनों के बीच डायरेक्टर ने सैक्स सीन डाल दिया. तभी स्वाति की काल आती है और वह प्रभाकर के बारे में पूछती है, जिस के बारे में वह कोई जानकारी होने से इंकार कर देती है.

इस के बाद स्वाति उसे निर्माणाधीन कैलिफोर्निया होटल में बुलाती है. कीर्तिमा वीडियो दिखाते हुए कहती है कि यदि उस ने यह पुलिस को दिया तो सभी जेल जाएंगे. इस के बदले में वह स्वाति से कहती है कि प्रभाकर शेट्टी को वह तलाक दे. वहां लुकास आ जाता है और दोनों के बीच झगड़ा शुरू हो जाता है.

इसी दौरान कीर्तिमा का पैर फिसलता है और वह अपने ही कारणों से गिर कर मर जाती है. उस के बाद लुकास लाश को ठिकाने लगाने निकल पड़ता है. छानबीन करते हुए इंसपेक्टर हसन डिटेक्टिव किरण नडार के घर पहुंचता है.

यहां एक बार फिर एएसआई थुपाली का भूत आ कर उसे सबूतों के बारे में इशारा करता है. तब घबराते हुए उस की मां बताती है कि एक व्यक्ति आ कर उसे ले गया. लुकास लाश ले कर कीर्तिमा के घर पहुंचता है तो प्रभाकर शेट्टी देख लेता है. वह छिप कर वहां से भाग जाता है.

जांच करते हुए इंसपेक्टर हसन लुकास के घर पहुंच जाता है. यहां ताला तोड़ कर वह फोटो हासिल कर लेता है, जो छिपा कर लुकास ने रखी थी. यह सबूत भी एएसआई थुपाली का भूत इशारों में उसे बताता है. वहां डीएसपी को बुला कर फोटो दिखाया जाता है, जिस का रंग कैमिकल की वजह से उड़ जाता है.

इस के बाद इंसपेक्टर को कीर्तिमा के घर ले जाया जाता है. वह कहता है कि कीर्तिमा ही मनीषा कोइराला है. उस के लव लैटर भी वह दिखाता है.

वहीं खानसामा मेहरुन्निसा की तरफ से बनाया गया पोट्र्रेट भी कीर्तिमा से मेल खाता है. ऐसा करने के लिए स्वाति ही उस को बोलती है. कीर्तिमा की मौत की खबर सुन कर प्रभाकर उस के घर चला जाता है. वह उस की लाश देख कर काफी परेशान होता है.

कोंकणा सेन शर्मा

नेटफ्लिक्स पर जनवरी, 2024 में रिलीज हुई ‘किलर सूप’ की स्टोरी को अभिषेक चौबे ने लिखा है. उन्होंने ही फिल्म को डायरेक्ट भी किया है. कहानी को लिखने में उन के साथ उनेजा मर्चेंट, अनंत त्रिपाठी और हर्षद नलवाड़े ने भी योगदान दिया है. इस कारण वेब सीरीज 4 दिशाओं में जगहजगह भटकती नजर आई.

वेब सीरीज में हास्य पैदा करने वाला कोई भी संगीत दर्शक को देखने या सुनने को नहीं मिलेगा. कोंकणा सेन शर्मा जो आर्ट फिल्मों का जानापहचाना चेहरा है, वह ‘किलर सूप’ में लीड रोल निभा रही है.

उसे बौलीवुड में पत्रकारिता जगत पर केंद्रित फिल्म ‘पेज थ्री’ से काफी पहचान मिली थी. इस फिल्म को करते वक्त उसे ज्यादा परेशानी महसूस नहीं हुई. क्योंकि उस के पिता मुकुल शर्मा साइंस राइटर और पत्रकार भी रहे हैं. मां अपर्णा सेन हैं, जोकि अभिनेत्री के साथसाथ निर्देशक भी रही है.

उस की पहचान बंगाली परिवार के रूप में ज्यादा है. क्योंकि उस ने बंगला फिल्मों में कई जगह भूमिका निभाई है. उस का जन्म नई दिल्ली में 3 दिसंबर, 1979 को हुआ था. घर में उसे कोको नाम से पुकारा जाता है. उस ने 1983 में बाल कलाकार के रूप में ‘इंदिरा’ फिल्म में काम किया था.

इस के बाद 2001 में ‘एक जे आछे कान्या’ नाम के बांग्ला थ्रिलर में उस ने अभिनय किया था. कोंकणा सेन शर्मा के ‘किलर सूप’ में 2 जगहों पर सैक्स सीन फिल्माए गए हैं. दोनों ही सीन में कोंकणा सेन ने मर्यादाओं को तारतार नहीं किया. लेकिन, वह सीन देने में कामयाब रही.

वेब सीरीज में इन सीन की आवश्यकता नहीं थी. हालांकि वेब सीरीज के डायरेक्टर ने ओटीटी जगत में इसे परोसने के लिए स्टोरी के बीच में 2 जगहों पर जबरन उसे परोसा जरूर कह सकते हैं.

कोंकणा ने करीब 4 दरजन फिल्मों में अभिनय किया, इस के अलावा उस ने 3 फिल्मों का निर्माण भी किया. 2003 में आई फिल्म ‘मिस्टर ऐंड मिसेज अय्यर’ के लिए उसे राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार मिला.

मनोज बाजपेयी

मनोज बाजपेयी बौलीवुड के जानेमाने कलाकार हैं. उन का जन्म बिहार के पश्चिमी चंपारण जिले में हुआ था. शिक्षा दिल्ली से हासिल करने के बाद वह बैरी जौन के थिएटर ग्रुप से जुड़ गए थे.

उन्होंने गैंगस्टर लाइफ पर बनीं फिल्म ‘सत्या’ से बौलीवुड में जगह बनाई थी. हालांकि बौलीवुड में उन की लौंचिंग मध्य प्रदेश की कुख्यात डकैत फूलन देवी की बायोपिक फिल्म ‘बैंडिट क्वीन’ से हुई थी. यह फिल्म शेखर कपूर ने बनाई थी.

उन की नैचुरल स्टाइल रही है जोकि आज भी बरकरार है. वेब सीरीज में मनोज बाजपेयी अपनी तकदीर आजमा चुके हैं. वेब सीरीज ‘फेमिली मैन’ से वह ओटीटी पर सिक्का जमा चुके हैं.

लेकिन ‘किलर सूप’ में अभिनय के नाम पर वह कई जगहों पर संघर्ष करते नजर आए. सरल शब्दों में कहें तो अनुभवी कलाकार होने के नाते उन्हें इस बात का आभास हो गया था कि डायरेक्टर ने कौमेडी के नाम पर सीरियस वेब सीरीज बना दी है.

यह बात समझदार दर्शक खुद समझ जाएंगे. डायरेक्टर ‘किलर सूप’ में हास्य पैदा करने में पूरी तरह असफल रहा.

पूरी वेब सीरीज को मर्डर मिस्ट्री की तरह मनोज बाजपेयी ने भी ट्रीट किया. नतीजतन कौमेडी के बजाय पूरी वेब सीरीज ही कौमेडी हो गई. इस कारण कोई छाप दर्शकों के जेहन में नहीं चढ़ सकी. मनोज बाजपेयी ने भी ‘किलर सूप’ में 2 जगहों पर सैक्स सीन दिया है. इस से पहले ‘गैंग्स आफ वासेपुर’ में भी उस ने ऐसा किया है.

एक सीन में वह कोंकणा सेन के साथ इंटीमेंट है, जबकि दूसरा सीन उस के यहां अकाउंटेंट का काम करने वाली कीर्तिमा के साथ फिल्माया गया है. दोनों सैक्स सीन काफी सतही फिल्माए गए हैं. वेब सीरीज में कई जगह डबल रोल के चक्कर में मनोज से भूल हुई है कि वह किस पात्र का अभिनय कर रहा है.

उदाहरण के तौर पर 5 रशियन लड़कियों के साथ पार्टी में प्रभाकर का अभिनय करते वक्त वह बिना स्टिक के दिखाई दिया. इस बात को डायरेक्टर भी पकडऩे में कामयाब नहीं हुआ. ऐसे ही कई चूक मनोज से वेब सीरीज में जगहजगह पर हुई हैं.

सयाजी शिंदे

सयाजी शिंदे ‘किलर सूप’ में एक परिपक्व कलाकार की भूमिका में है. उस का जन्म 13 जनवरी, 1959 को महाराष्ट्र में हुआ था. वह मराठी फिल्मों का चर्चित चेहरा है. सयाजी शिंदे ने तमिल, तेलुगु, कन्नड़, गुजराती समेत अन्य भाषाओं की फिल्मों में भी काम किया है. शिंदे ने मराठी थिएटर ग्रुप 1975 में जौइन किया, तब से आज भी वह सक्रिय है.

सयाजी शिंदे एक मध्यमवर्गीय किसान परिवार से है. बौलीवुड में नाम कमाने से पहले शिंदे ने महाराष्ट्र सरकार के सिंचाई विभाग में पार्टटाइम चौकीदारी का भी काम किया था. इस कारण उस की डायलौग डिलीवरी में वह कौमन मैन का भाव बखूबी झलकता है.

‘किलर सूप’ रिव्यू : मनोज वाजपेयी और कोंकणा सेन की डार्क थ्रिलर कॉमेडी – भाग 3

किस ने की थी थुपाली की हत्या

चौथा एपिसोड एसएमएस से शुरू होता है. प्रभाकर और स्वाति को लगता है कि उस की कंपनी से पैसा चोरी करने की जानकारी भाई अरविंद शेट्टी को लग गई है. उस ने ही वह एसएमएस किया है. इधर, इंसपेक्टर हसन के सामने एएसआई थुपाली का भूत कई बार थाने में काम और जांच करते वक्त आताजाता है.

इसी एपिसोड में चेन्नै से मानिकम की तरफ से भेजे गए भांजे सूर्या की एंट्री भी होती है. इधर, थाने में उमेश महतो के ब्लैकमेल करने के पीछे के कारण को प्रभाकर शेट्टी काल्पनिक कहानी बताता है. वह कहता है कि मसाज पार्लर में जा कर वह सैक्स करता था. क्योंकि वह सैक्स एडिक्ट है. इसी जानकारी को उजागर करने की धमकी दे कर वह ब्लैकमेल कर रहा था.

उधर, पूछताछ करने के बाद अरविंद शेट्टी का दाहिना हाथ लुकास भी अपने स्तर पर पुलिस वालों की मदद से छानबीन करने लगता है. पुलिस वाला बुरका पहनने वाली मनीषा कोइराला को ले कर सस्पेंस खोलता है. वहीं स्वाति शेट्टी को एसएमएस का शक प्रभाकर शेट्टी के यहां काम करने वाली अकाउंटेंट कीर्तिमा पर जाता है. वह शक की नजर से उस से बात करती है तो कीर्तिमा भड़क जाती है. कई बैंकों के लोन और प्रौपर्टी मोर्टगेज होने की जानकारी देे कर प्रभाकर के सारे राज खोल देती है.

इंसपेक्टर हसन जांच करते हुए अवैध शराब का अड्डा चलाने वाले 3 युवकों पर शक करता है. उसे लगता है कि उन्होंने ही एएसआई थुपाली की हत्या की है. उन्हें उसी सुसाइड पौइंट पर ले जाता है. तफ्तीश के दौरान खोजी कुत्ता दफन लाश तक पहुंचा देता है. इसी बीच प्रभाकर शेट्टी के पास ब्लैकमेलर का दूसरा एसएमएस आता है. उस में 2 करोड़ रुपए की फिरौती मांगी जाती है.

स्वाति शेट्टी को बातचीत के दौरान पता चल जाता है कि ब्लैकमेलर अरविंद शेट्टी की बेटी अपेक्षा है. वह खुल कर अपनी बात उस के सामने रखती है. इधर, डिटेक्टिव किरण नडार के घर लुकास पहुंच जाता है. वहां उस का आमनासामना उस की बूढ़ी मां से हो जाता है. लुकास धमका कर उस के घर मिली तसवीरें ले कर चला जाता है. इस में उमेश महतो के साथ स्वाति शेट्टी होती है.

वहीं प्रभाकर शेट्टी उस की कंपनी में काम करने वाली कीर्तिमा के शो में जाता है. यहां उस को किस करते हुए उस की पत्नी स्वाति पकड़ लेती है. वेब सीरीज में निरंतरता बरकरार तो है, लेकिन सबूत मिलने और उस के पीछे काम करने की कमी जगहजगह देखने को मिलेगी.

पुलिस जांच को डायरेक्टर ने बना दिया  कौमेडी

वेब सीरीज का पांचवां एपिसोड अपेक्षा से शुरू होता है. वह फ्रांस जाना चाहती है, लेकिन अरविंद शेट्टी चाहता है कि वह इंडिया में रह कर उस की कंपनी संभाले. इसी बात पर नाराज हो कर वह स्वाति शेट्टी की मदद से अपने अपहरण की कहानी गढ़ती है.

स्वाति इसलिए तैयार होती है क्योंकि उसे बैंकों के नोटिस मिलते हैं, जिस के लिए नकली प्रभाकर शेट्टी दबाव में तैयार होता है. वह भाई के पास जा कर उमेश महतो की धमकी बता कर अपेक्षा को बंधक बनाने की झूठी कहानी बता कर 5 करोड़ रुपए मांगता है.

वहीं इंसपेक्टर हसन को दफन लाश में कैमरा मिल जाता है. उसी जगह पर कटेफटे फोटो भी मिलते हैं, जिस में एक तसवीर उमेश महतो की होती है, लेकिन मनीषा कोइराला का चेहरा गायब होता है.

इस एपिसोड में भी एएसआई थुपाली का भूत आता है और वह इंसपेक्टर हसन को सबूत मिलने वाली जगह पर इशारा कर के पहुंचाता है. उमेश महतो के नाम पर अपहरण की रकम लेने के लिए अपेक्षा और स्वाति बुरका पहन कर निकल रही होती है, तभी वहां लुकास आ जाता है. वह जबरिया अपेक्षा को लेने जाता है.

इस दौरान स्वाति शेट्टी का उस के साथ संघर्ष होता है. तब वह बताता है कि उमेश महतो और उस के साथ खींचे हुए फोटो उस के पास हैं. उन फोटो को वह अरविंद शेट्टी को देने जा रहा होता है, तब उस को अपमानित कर देता है. इस कारण वह फोटो की बात छिपा लेता है. लुकास और स्वाति के संघर्ष के दौरान अपेक्षा बैट से वार कर के उसे बेहोश कर देती है. जिसे स्वाति रस्सी से बांध कर स्टोररूम में पटक देती है.

जब अरविंद शेट्टी रकम देने के लिए राजी नहीं होता है तो उस की बेटी अपेक्षा सूर्या जो मानिकम के कहने पर डील करने आया होता है, उस को कंपनी के भीतर चल रहे घपले की जानकारी देती है. जिस कारण डील में नुकसान झेल कर अरविंद शेट्टी फिरौती की रकम प्रभाकर के जरिए भेजता है, लेकिन निगरानी के लिए अपने 2 आदमी लगा देता है. उन्हें चकमा दे कर प्रभाकर स्वाति और अपेक्षा घर पहुंच जाते हैं. वहां पहले से अरविंद शेट्टी होता है.

इंसपेक्टर हसन तफ्तीश करते हुए मोर्चरी पहुंच जाता है. यहां हास्यास्पद सीन डायरेक्टर ने बनाया है. वेब सीरीज में पुलिस जांच को कई बार कार्टून स्टाइल में बताने की कोशिश की गई है. पोस्टमार्टम रूम में डाक्टर खाना खाते हुए इंसपेक्टर हसन को मौत की वजह और लाश के हुलिए के बारे में जानकारी देता है.

उधर अरविंद शेट्टी और उस की बेटी के साथसाथ प्रभाकर और स्वाति के बीच नोकझोक चल रही होती है, लेकिन अरविंद शेट्टी गन निकाल लेता है, जिसे उस की बेटी छीन लेती है. इसी छीनाझपटी के दौरान गोली अरविंद शेट्टी को ही लग जाती है. इस पूरे वाकए को कीर्तिमा अपने मोबाइल में कैद कर लेती है.

सैक्स सीन पर डायरेक्टर हुआ कमजोर

सीरीज के छठें एपिसोड में इंसपेक्टर हसन जांच करते हुए खानसामा मेहरुन्निसा के पास चला जाता है. वह मनीषा कोइराला की जानकारी मांगता है. तभी उस को डीएसपी उदया रेड्डी का फोन आता है. वह बताता है कि अरविंद शेट्टी को गोली लग गई है.

मामले की जांच करने हसन अस्पताल पहुंच जाता है, लेकिन डाक्टर उस के होश में न होने से इस बात के लिए इंकार कर देते हैं. इधर, डीएसपी और इंसपेक्टर हसन के सामने पूरा परिवार काल्पनिक कहानी बताता है. लेकिन भावनाओं में घिरी अपेक्षा पूरा सच बता देती है. हालांकि वह अपहरण की कहानी और उस के बाद मिली रकम की बात छिपा लेती है.

अस्पताल के वाशरूम में एक बार फिर एएसआई थुपाली का भूत दिखाई देता है, जिस के बाद वह जबरिया अरविंद शेट्टी के कमरे में घुस कर पूछताछ करता है. वह कहता है कि मनीषा कोइराला कौन है वह उस को बताए. तभी वहां डाक्टर आ जाते हैं और उसे बाहर कर देते हैं.

इस के अलावा इंसपेक्टर के साथ हमराह आयशा डाक्टर को बातचीत के बहाने ब्लौक करती है. ऐसा करते वक्त वह उमेश महतो और स्वाति शेट्टी की नर्सिंग कोर्स करते वक्त कालेज में खींचे गए फोटो देख लेती है. वहीं स्वाति शेट्टी इंसपेक्टर हसन को यह बोल कर रवाना कर देती है कि अरविंद के होश में आने पर वह उस को बता देगी.

अस्पताल में ही कीर्तिमा भी आ जाती है. उस को देख कर प्रभाकर शेट्टी उस से अरविंद शेट्टी को गोली लगने की बात छिपा लेता है. तभी वहां स्वाति आ जाती है और उसे जबरन वहां से ले जाती है. इंसपेक्टर हसन खानसामा मेहरुन्निसा के घर चला जाता है. वहां उस की पार्टनर 2 हजार रुपए ले कर मनीषा कोइराला का नंबर दे देती है.

प्रभाकर शेट्टी और स्वाति घर पहुंच कर अरविंद शेट्टी के खून को साफ करते हुए दिखाए गए हैं. इसी दौरान डायरेक्टर ने फिर से जबरन सैक्स सीन डाला है, जिस में सिर्फ स्वाति कैमरे में दिखाई देती है. अब सवाल यह उठता है कि पुलिस जांच करते हुए मौके पर क्यों नहीं पहुंची.

दूसरा ऐसी अवस्था में जब गोली चली होती है, वहां अभिनेत्री को जबरन वेब सीरीज बेचने के लिए नग्नता का सहारा डायरेक्टर ने लिया है. उसी घर में कुछ देर बाद इंसपेक्टर हसन आता है. वह उमेश महतो की सिम के बारे में बताता है. यह सुन कर प्रभाकर शेट्टी बेहोश हो जाता है. उसे भी अस्पताल ले जाया जाता है.

अस्पताल में भरती अरविंद शेट्टी होश में आ जाता है. वहां डीएसपी उदया रेड्डी बयान दर्ज कराने के लिए बोलता है. तब वह बेटी के बयान को अपना बता कर पुलिस को हस्तक्षेप करने से रोक देता है.

इस के बाद अपेक्षा से बात करतेकरते अरविंद शेट्टी की मौत हो जाती है. ऐसा होते ही प्रभाकर शेट्टी के पास कीर्तिमा के मोबाइल से भेजा वीडियो आता है, जिस में अरविंद को गोली मारने वाली घटना होती है. इस को देख कर वह परेशान हो जाता है.

‘किलर सूप’ रिव्यू : मनोज वाजपेयी और कोंकणा सेन की डार्क थ्रिलर कॉमेडी – भाग 2

वेब सीरीज के दूसरे एपिसोड में अमेरिकी मूल के फेलोशिप करने आए डिटेक्टिव किरण नडार के क्राइम सीन से शुरुआत होती है. इस एपिसोड में ज्यादातर जगहों पर सीन को जोडऩे में डायरेक्टर नाकामयाब हुआ है.

जांच अधिकारी एएसआई थुपाली के सामने महिला आती है. वह बिना कुछ वजह बुरके वाली महिला जहां खानासामा मेहरुन्निसा कोचिंग देती है, उस का पता बता देती है. इसी एपिसोड में एएसआई थुपाली का थोड़ा फ्लैशबैक दिखाया गया है. वह आईपीएस बनने की भी तैयारी कर रहा होता है. इस में राबर्ट फ्रौस्ट की कविता के कई अंश सुनने को मिलेंगे.

यह अंश पूरी वेब सीरीज में कई जगह दर्शकों के सामने आएंगे. नडार के घर की जांच करते वक्त भी दर्शकों को हैरानी होगी. क्योंकि इंसपेक्टर हसन जब नडार की मां से बातचीत करता है, तभी एएसआई थुपाली को उस का चालू कंप्यूटर मिल जाता हैं.

उस में दूसरा संयोग यह भी बताया गया है कि एएसआई को कंप्यूटर का फोल्डर खोलते ही प्रभाकर शेट्टी और नडार के बीच हो रही बातचीत मिल जाती है. इस को वह चोरी कर लेता है और इंसपेक्टर हसन को बताता है.

इंसपेक्टर हसन फोन कर के प्रभाकर शेट्टी को थाने तलब करता है. इस से पहले स्वाति शेट्टी के दिमाग में खुराफात सूझती है. इस खुराफात को भी दर्शक अंतिम एपिसोड तक समझ नहीं सकेंगे. वह एसिड अटैक की काल्पनिक कहानी बनाती है.

जबकि नकली प्रभाकर शेट्टी, जो वास्तव में उमेश महतो है, उस की बाईं आंख पर कैमिकल की मदद से कपास की मदद से एसिड बना कर लैप लगा कर उस पर हमला करने की कहानी बनाती है. इस कहानी को पुलिस जांच का विषय सब से अंतिम एपिसोड में डायरेक्टर ने बनाया है.

एएसआई थुपाली खानसामा मेहरुन्निसा के घर भी पूछताछ करने चला जाता है. वहां खानसामा के साथ रहने वाली महिला जो ब्यूटीपार्लर चलाती है, रिश्वत ले कर एएसआई को मनीषा कोइराला का नाम और नंबर बता देती है. इसी नंबर की बदौलत पूरी फिल्म डायरेक्टर ने कई जगहों पर घुमा दी है. इधर, जख्मी हालत में नकली प्रभाकर शेट्टी इलाज के लिए भरती करने पहुंचता है.

अस्पताल में यहांवहां की बातें बताते हुए इंसपेक्टर हसन के सामने स्वाति शेट्टी कपोल कहानी बताती है. इसी दौरान स्वाति को अहसास होता है कि प्रभाकर शेट्टी का लौकेट भी उस के साथ दफन है. यहां डायरेक्टर दोबारा उस को लाश निकालने के लिए जंगल भेज देता है.

इस बारे में दर्शकों को तुरंत नहीं पता चलता. ऐसा करने के पहले वह उमेश महतो के घर लगी उस की तसवीरें ले कर कई अन्य सबूतों को भी समेट कर जंगल निकल जाती है. ऐसा करते वक्त बुरका पहन कर आई स्वाति शेट्टी को जल्दी में भागते हुए एएसआई थुपाली देख लेता है. वह उस के पीछेपीछे चला जाता है. हालांकि इस से पहले उमेश महतो के घर में जा कर वह प्रभाकर को लिखे गए धमकी भरे पत्र के हिस्से को हासिल कर लेता है.

यह सब कुछ बहुत जल्दी मेें डायरेक्टर ने दिखाया. मतलब अधिकांश जगह पर सबूत पुलिस के पास चल कर आते हैं. किसी तरह की जांच या कोई तकनीक दर्शकों को देखने को नहीं मिलेगी. जंगल में स्वाति शेट्टी को उस का पीछा कर रहे एएसआई थुपाली के आसपास होने की भनक लग जाती है.

ऐसा करतेकरते एएसआई सुसाइड पौइंट पर चला जाता है. यहां वह इंसपेक्टर हसन को काल करने के लिए नेटवर्क तलाशते हुए जाता है. लेकिन, पीछे से अचानक स्वाति को पा कर वह डर जाता है. वह सर्विस रिवौल्वर निकालता है और हवा में फायर करने के बाद अचानक खाई में गिर जाता है. इस के बाद स्वाति शेट्टी दफन लाश के पास आती है और उस में लौकेट निकालने के बाद एसिड डाल कर अपने दम पर लाश को फिर दफना देती है.

सीरीज में क्यों घूमता है भूत

तीसरे एपिसोड की शुरुआत एएसआई थुपाली की लाश मिलने से होती है. इधर, अरविंद शेट्टी की बेटी अपेक्षा पिता की फर्म में हुई 5 करोड़ 80 लाख रुपए की फरजी एंट्री को पकड़ लेती है. वेब सीरीज के डायरेक्टर ने प्रभाकर शेट्टी की कंपनी में काम करने वाली कीर्तिमा के साथ किसिंग सीन दिखा कर फिल्म को रोमांचक बनाने की कोशिश करते हैं.

यह सब कुछ अस्पताल में होता है. तभी वहां पर स्वाति शेट्टी आ जाती है. इस के अलावा बयान दर्ज करने के लिए इंसपेक्टर हसन भी पहुंचता है. नकली प्रभाकर शेट्टी कहता है कि उमेश महतो को उस के और भाई की कंपनी में हुई अनियमितता की बात पता होती है. उसे छिपाने के लिए घूस मांगने की वह कपोल कहानी बता देता है.

इसी तफ्तीश के दौरान पता चलता है कि एएसआई थुपाली की लाश मिली है. इंसपेक्टर हसन को थुपाली से काफी लगाव था. उस की मौत के बाद वह नशा करने लगता है. वह जब क्राइम सीन में जाता है तो वहां एएसआई का भूत उसे अपने ही घटनास्थल पर ले जाता दिखाई देता है. ऐसे ही सपने में आने वाले भूत वेब सीरीज में दर्शकों को काफी जगह दिखाई देंगे.

मतलब किसी तरह की भौतिक जांच या वैज्ञानिक सबूतों के साथ 3-3 व्यक्तियों की संदिग्ध मौत को ले कर गंभीरता का काफी अभाव देखने को मिलेगा. वहीं इंसपेक्टर हसन सिलसिलेवार हुई संदिग्ध मौत के मामले में उमेश महतो का हाथ बताता है. यह जानकारी वह डीएसपी उदया रेड्डी को देता है.

डायरेक्टर ने दोनों के बीच कई जगह संवाद के जरिए फिल्म को कौमेडी बना दिया है. दूसरे सरल शब्दों में कहें कि कास्टिंग गलत की गई है.

डीएसपी को बताया जाता है कि एएसआई की बाइक अभी नहीं मिली है. वहां ब्रीफिंग के दौरान मनीषा कोइराला शब्द जरूर निकलता है, जिस को इंसपेक्टर हसन नजरअंदाज कर के उमेश महतो पर केस को फोकस करने का दावा करता है.

तीसरे एपिसोड में प्रभाकर शेट्टी के विदेश में रहने वाले बेटे सैंडी की अचानक एंट्री होती है. उस की एंट्री क्यों हुई, इस का मकसद समझ नहीं आ सका. इंसपेक्टर हसन छानबीन करने के लिए एएसआई थुपाली के घर चला जाता है. वहीं अरविंद शेट्टी का दाहिना हाथ लुकास उमेश महतो की छानबीन कर चुका होता है.

एएसआई थुपाली के घर कुकिंग क्लास के खानसामा मेहरुन्निसा की परची मिलती है. इधर, नडार की मां का नकाबपोश लुकास से सामना हो जाता है. इस से पहले उमेश महतो की तसवीर उस को मिल जाती है, जिस में स्वाति शेट्टी अंतरंग होती है. वह नडार की मां को चुप रहने की धमकी दे कर चला जाता है. नकली प्रभाकर यह जानता है कि उस का भाई अरविंद शेट्टी उमेश महतो को ठिकाने लगाने के लिए लुकास की मदद से तलाश रहा है.

उधर, पुलिस भी उमेश महतो के सभी ठिकानों पर जा कर दबिश दे रही होती है. वहीं तफ्तीश करते हुए इंसपेक्टर हसन को अवैध अहाते के एक ठिकाने पर एएसआई की लावारिस बाइक मिल जाती है. वहां उमेश महतो भी आताजाता था.

इसी बीच नकली उमेश महतो के मोबाइल पर एक एसएमएस आता है, जिस में ब्लैकमेलर कहता है कि उस ने 31 करोड़ 12 लाख 60 हजार पांच सौ पैंतालीस रुपए चोरी किए हैं.