वेब सीरीज रिव्यू : रंगबाज सीजन 1 – भाग 3

शिव प्रकाश से क्यों चिढ़ गए थे मंत्रीजी

रंगबाज के छठे एपिसोड में गालियों की भरमार है और साथ ही बौलीवुड का भद्दा चेहरा इस वेब सीरीज से भी अछूता नहीं रहा है. इस सीरीज के सातवें एपिसोड का नाम ‘अपहरण’ रखा गया है. एपिसोड की शुरुआत में पटना की जेल को दिखाया गया है, जहां पर मंत्रीजी रमाशंकर तिवारी का खास आदमी वहां पर बंद चंद्रभान सिंह से मिलने जाता है.

तिवारीजी का आदमी कहता है कि शिव प्रकाश के ऊपर आप का हाथ है इसलिए तिवारीजी कुछ नहीं कर रहे हैं. चंद्रभान सिंह उस से कहता है कि तुम लोग अपना विवाद आपस में ही निपटा लो. इस के बाद सीरियल की कास्टिंग शुरू हो जाती है.

अगले सीन में रमाशंकर तिवारी (मंत्रीजी) पुलिस अधिकारी से शिव प्रकाश के ऊपर लगे केसों की प्रगति के बारे में पूछते हैं. अधिकारी कहता कि काम शुरू हो गया है.

शिव प्रकाश की प्रेमिका बबीता शर्मा उस से फोन पर बात करती है और कहती है कि तुम्हारे कहने पर हम ने लखनऊ छोड़ दिया और यहां पर आ गए. यहां भी तुम से नहीं मिल पा रहे हैं. तब शिव प्रकाश उसे समझाता है कि तुम चिंता मत करो, हम जल्द ही मिलेंगे. फिर शिवप्रकाश कहता है कि क्या तुम चलोगी हमारे साथ नेपाल या बैंकाक हमेशा के लिए?

सर्विलांस टीम उन दोनों की बातचीत सुन लेती है. अगले सीन में रमाशंकर के खास आदमी रंजन और शिवप्रकाश शुक्ला की मुलाकात दिखाई गई है. रंजन कहता है, बहुत बड़ा फौज बना लिए हो तुम?

शिव प्रकाश कहता है, ताज्जुब कर रहे हो तुम. फिर दोनों में बहस होने लगती है, रमाशंकर का आदमी कहता है मुझे पता है किस के बलबूते पर बोल रहे हो तुम. हमें पता है.

शिव प्रकाश कहता है, रंजन भैया यह तो वक्तवक्त की बात है. रंजन कहता है कि कुबेर को छोड़ दो और गोरखपुर से दूर रहो. शिव प्रकाश उस से दोटूक कहता है एक करोड़ दे दो, छोड़ देंगे. दोनों में फिर बहस होने लगती है.

शिव प्रकाश कहता है कि रंजन भैया अपने बाप तिवारी से कह दो कि कुबेर की जिम्मेदारी उन की है. और एक बात और सुनो, गोरखपुर तुम्हारे बाप का नहीं है, जब जी होगा, हम आएंगे. यह कह कर दोनों पार्टियां चली जाती हैं.

इस पार्ट में रंजन के आदमी शिव प्रकाश शुक्ला के आदमियों पर कुबेर चंद्र के छोडऩे के बाद फायरिंग शुरू कर देते हैं और फिर शिव प्रकाश के आदमी रंजन के सभी आदमियों को ढेर कर रंजन को पकड़ लेते हैं. रंजन उन से कहता है कि उस की आखिरी ख्वाहिश यह है कि वह एक ब्राह्मण है और ब्राह्मण के हाथ से ही मरना चाहता है. उस के बाद शिव प्रकाश के आदमी रंजन को मार देते हैं.

तभी अगला दृश्य शिव प्रकाश शुक्ला की बहन के मंगनी का दिखाया जाता है, जहां पर एकाएक पुलिस आ धमकती है, पुलिस अधिकारी प्रमोद शुक्ला से कहता है, 5 केस दर्ज हैं आप के बेटे के ऊपर, पहले हत्या अब फिरौती. पुलिस अधिकारी घर में पुलिस वालों को चारों ओर तलाशी लेने का हुक्म देता है और प्रमोद शुक्ला को गाली देते हुए कहता है कि तुम ने ऐसी… औलाद पैदा की है तो दंड भी भुगतोगे ही.

प्रमोद शुक्ला गिड़गिड़ाते दिखते हैं और बहन चिंतित हो जाती है. उस के बाद वहां सन्नाटा छा जाता है. तभी शिव प्रकाश शुक्ला अपनी बहन श्वेता को फोन कर के उस की परेशानी पूछता है.

बहन ने रोते हुए बता दिया कि उस की मंगनी रुकवा दी, पुलिस वाले घर आए थे, वे आप को खोज रहे थे. उन्होंने पापा को भी गालियां दीं. यह सुन कर शिव प्रकाश शुक्ला उस आदमी को गोली मार देता है, जिस से वह अभी तक बातें कर रहा था और अपने गैंग में शामिल होने का औफर दे रहा था.

छठे एपिसोड में भी जगहजगह गालियों के डायलौग भरपूर दिखाए गए हैं. ठाकुरब्राह्मण की आपस में लड़ाई और ब्राह्मणब्राहमण के बीच में प्रतिद्वंदिता और लड़ाई को इस में अधिक से अधिक प्रदर्शित किया गया है. हकीकत में श्रीप्रकाश शुक्ला की असली कहानी इस से एकदम भिन्न है जो लेखक, निर्देशक ने दिखाने के बजाय घृणा की भावना को अधिक से अधिक प्रदर्शित करने का प्रयास किया है, जो वास्तव में एकदम निंदनीय है.

वेब सीरीज के आठवें एपिसोड का नाम ‘राष्ट्रीय स्तर का आतंकवादी’ रखा गया है, जिस की शुरुआत एक टीवी शो इंडियाज मोस्ट वांटेड से शुरू होती है.

एसटीएफ की कैसे हुई प्लानिंग

एपिसोड के अगले सीन में एसटीएफ के कार्यालय में पुलिस अधिकारी सिद्धार्थ पांडे बबीता शर्मा के बारे में कुछ सूचना देता है. सिद्धार्थ पांडे पुलिस कमिश्नर से शिव प्रकाश शुक्ला की स्टोरी इंडियाज मोस्ट वांटेड के कार्यक्रम में प्रसारित होने की बात करता है कि आज रात को चैनल में उस की कहानी प्रदर्शित की जा रही है.

अगले दृश्य में पुलिस कमिश्नर और एसटीएफ अधिकारी सिद्धार्थ पांडे शिव प्रकाश शुक्ला के बारे में बातचीत कर रहे हैं. मुख्यमंत्री वहां पर आते हैं और पुलिस कमिश्नर का परिचय कराते हैं.

रमाशंकर तिवारी और मुख्यमंत्री वहां एक नया एसटीएफ बनाने की घोषणा करते हैं, जिसे डीजीपी शर्मा के निर्देशन पर सिद्धार्थ पांडे लीड करेंगे और शिव प्रकाश शुक्ला के गैंग का सफाया करेंगे. सिद्धार्थ पांडे स्वचालित हथियार और अच्छी सर्विलांस सुविधा की मांग करते हैं, पुलिस अधिकारियों को निर्देशित किया जाता है कि शिव प्रकाश किसी भी हालत में बचना नहीं चाहिए.

उस के अगले दृश्य में शिव प्रकाश अपने साथी से कहता है कि अभी यहां से निकलना होगा, पहले नेपाल फिर गोरखपुर, मेरी बहन श्वेता की शादी है. उस का साथी कहता है कि यूपी सरकार ने एक स्पैशल टास्क फोर्स आप को पकडऩे के लिए बनाई है.

शिव प्रकाश शुक्ला कहता है कि वह किसी से नहीं डरता. साथी समझाता है कि एसटीएफ सीधे गोली मारती है, इसलिए कानपुर के बजाय पटना चलते हैं वहां मेरी चंद्रभान सिंह से बात हो गई है. कानपुर गए तो आप के साथसाथ आप के परिवार वाले भी मुसीबत में पड़ जाएंगे. साथी कहता है कि रोड से जाने में चैकिंग का खतरा है, इसलिए ट्रेन से चलेंगे.

दूसरे सीन में पुलिस अधिकारी सिद्धार्थ पांडे रोड पर सघन चैकिंग का हुक्म अपनी टीम को देते हैं. पुलिस चैकिंग के अभियान में जी तोड़ से दिनरात जुटी हुई है. अगले सीन में शिव प्रकाश शुक्ला अपने साथियों के साथ ट्रेन में बैठा दिखाई दे रहा है.

सभी साथी कह रहे हैं कि शिव प्रकाश शुक्ला को अब मंत्री तिवारी के विरुद्ध विधायक का चुनाव लडऩा चाहिए. तभी टीटी आ कर उन से टिकट मांगता है तो शिव प्रकाश शुक्ला सीधे टीटी पर रिवौल्वर तान देता है. उस के साथी टीटी की बुरी तरह से पिटाई कर देते हैं.

तभी शिव प्रकाश शुक्ला को चंद्रभान फोन पर कहता है, पटना मत आओ, यहां पर गड़बड़ हो सकता है, तुम ऐसा करो मोकामा निकल जाओ. वह अपना क्षेत्र है, चिंता की कोई बात नहीं है. हमारा लड़का लोग वहां पर खड़ा तुम्हारा इंतजार कर रहा है.

अगले सीन में शिव प्रकाश शुक्ला एक शांत सी जगह से अपनी प्रेमिका बबीता से बात करता हुआ दिखाई देता है. शुक्ला पूछता है नया घर कैसा लगा? बबीता कहती है, घर अच्छा है बस सामान आना है और तुम्हारा इंतजार है. तुम आओ जल्दी, शिव प्रकाश कहता है, भैया कहते हैं रुको अभी. कुछ और इंतजार करना पड़ेगा.

तभी एक बच्चा मिलता है. शिव प्रकाश उस से बातें करने लगता है उस के बाद शिव प्रकाश को अपना बचपन याद आ जाता है. उस के पिता, उस की बहन उसे सारा बचपन दिखाई देने लगता है. आगे शिव प्रकाश अपने साथियों के साथ बिहार के एक सुनसान क्षेत्र में शराब पीते हुए बातचीत कर रहा है.

इस बीच पुलिस की एसटीएफ टीम को बबीता का सही लोकेशन पता चल जाती है. टीम का सदस्य कंप्यूटर में लोकेशन को ट्रैक करने वाले साथी से टीम के साथ चलने के लिए कहता है तो वह कोई बहाना बना कर टीम के साथ चलने से मना कर देता है. वह कंप्यूटर एक्सपर्ट अब टीवी में शिव प्रकाश शुक्ला की कहानी देखने लगता है और फिर वह बबीता के घर पर जा कर पूछताछ करता दिखाई देता है. उधर टीवी में ऐंकर शिव प्रकाश शुक्ला की हत्याओं की एकएक कर के वारदातें दिखाता रहता है.

तभी वह बबीता शर्मा से टकरा जाता है यानी कि वह बबीता शर्मा को पहचान जाता है और उस का घर भी देख लेता है और इसी के साथ आठवें एपिसोड का समापन भी हो जाता है.

आठवें एपिसोड में भी कलाकारों का अभिनय औसत दरजे का रहा है. एपिसोड में एक टीवी होस्ट एक स्पैशल टास्क से अधिकारी से इस तरह व्यवहार कर रहा है जैसे पुलिस अधिकारी एक फालतू चीज हो. ऐसा भला वास्तविक जीवन में कैसे संभव हो सकता है, जिस से साफसाफ दिखता है कि इस सीन की कल्पना लेखक की शायद अपनी खोपड़ी की उपज है.

एक इतना बड़ा गैंगस्टर ट्रेन में बिना टिकट, बिना रिजर्वेशन अपने साथियों के साथ यात्रा करता हुआ दिखाया गया है. उस के बाद उस के साथी टीटी के साथ बुरी तरह से मारपीट करते हैं, कोई यात्री प्रतिरोध करता हुआ या उस सीन को देखता हुआ नहीं दिखाई दे रहा है. न ही टीटी द्वारा किसी को कंप्लेंट कराते दिखाया गया है, जबकि ट्रेन में हमेशा सुरक्षा गार्ड रहते हैं. कहानी को जगहजगह काल्पनिक बना दिया गया है, हकीकत से एकदम परे.

शिव प्रकाश को किस ने दी थी मुख्यमंत्री की सुपारी

एपिसोड के अंतिम भाग का नाम क्लाइमेक्स अर्थात ‘चरमोत्कर्ष’ के नाम पर रखा गया है, एपिसोड की शुरुआत में प्रमोद शुक्ला अपने बेटे शिव प्रकाश को आवाज देते दिखाई दे रहे हैं. बचपन में वह शिव प्रकाश को स्कूल जाने के बहाने सिनेमा जाने से पीटते हुए दिखाई दे रहे हैं.

फिर अगले सीन में प्रमोद शुक्ला अखबार पढ़ते हुए दिख रहे हैं कि शिव प्रकाश ने ली मुख्यमंत्री की सुपारी 8 करोड़ रुपए. यह देख कर वह चिंतित हो जाते हैं. मंत्री रमाशंकर तिवारी भी समाचार पत्र देख रहे हैं. इस के बाद एपिसोड की कास्टिंग शुरू हो जाती है.

अगले सीन में दिल्ली में शिव प्रकाश का साथी लैंडलाइन फोन से अपने घर पर बात करता दिखाई दे रहा है. फोन करने के बाद वह वापस लौट कर इधरउधर देखते हुए उस कमरे में आ जाता है, जहां पर गैंगस्टर शिव प्रकाश छिपा हुआ है.

उधर दूसरे सीन में टीवी शो का एंकर अपना मोस्टवांटेड एपिसोड समाप्त करता है. तभी दूसरे दिन शिव प्रकाश शुक्ला टीवी शो के एंकर को गाली देते हुए कहता है यदि तुम ने दोबारा मेरा शो दिखाया तो अच्छा नहीं होगा. एंकर गिड़गिड़ाते हुए कहता है, ”सर, सर वो लोग हमें जो लिख कर देते हैं, हम वही करते हैं. हम तो एक एक्टर भर हैं.’’

शिव प्रकाश शुक्ला अपनी प्रेमिका बबीता से बात करता है. सर्विलांस टीम एकदम अलर्ट हो कर उन की बातों को गौर से सुनने लगती है. बबीता कहती है कि अखबार में कुछ आ रहा है, टीवी में कुछ आ रहा है. हम तुम्हारे लिए परेशान हो गए.

शिव प्रकाश कहता है कि तुम घबराओ मत.

उन दोनों की बातचीत को सुन कर एसटीएफ अधिकारी सिद्धार्थ पांडे और उन की टीम अलगअलग तरीके से प्लान बनाने लग जाती है.

दूसरे दृश्य में शिव प्रकाश शुक्ला अपनी टीम के सहयोगी तनुज को कहीं चलने के लिए कहता है. फिर अगले दृश्य में शिव प्रकाश की बहन तैयार होती दिखती है, तभी उस का मोबाइल बजने लगता है. शिव प्रकाश शुक्ला बारबार बहन को फोन कर रहा है, मगर कोई फोन नहीं उठाता है.

फिर शिव प्रकाश साथियों के साथ गाड़ी में जाता दिखाई दे रहा है. उस के साथी पूछते हैं कि अब कहां चलें गोरखपुर या गाजियाबाद?

उधर एसटीएफ ने योजना के अनुसार सारी दुकानें बंद करा दीं.

अगले सीन में शिव प्रकाश की बहन की शादी की तैयारियां हो रही हैं, लड्डू बनाए जा रहे हैं, नाचगाना हो रहा है. तभी गाजियाबाद में 2 लोग बाइक पर दिखाई देते हैं. एसटीएफ टीम का सदस्य महादेव पिस्टल निकाल लेता है, तभी वहां पर एक बड़ी गाड़ी आती दिखाई ती है, जिस में शिव प्रकाश शुक्ला अपनी पिस्टल ले कर उतरता है और साथियों से कहता है, ”आते हैं अभी थोड़ी देर में, फिर गोरखपुर निकलेंगे. ‘

महादेव एसटीएफ अधिकारी सिद्धार्थ पांडे को वायरलेस पर सिगनल कर देता है, तभी गाड़ी में बैठे शिव प्रकाश के साथियों को कुछ शक सा होता है. अगले सीन में शिव प्रकाश अपने घर पर फोन करता है.

अगले दृश्य में शिव प्रकाश का एक साथी अपने साथियों से कहता है कि मुझे आज सुबह से ही कुछ ऐसा लग रहा है, जैसे कोई हमें देख रहा है. साथी कहते हैं, वहम है तुम्हारा.

पुलिस को किस ने दी थी शिव प्रकाश की सूचना

अगले दृश्य में शिव प्रकाश का एक साथी गाड़ी से बाहर आता है उसे शक हो जाता है तो वह ‘गाड़ी निकाल’ कह कर चिल्लाता है, तभी एसटीएफ का सदस्य महादेव उसे गोली मार कर ढेर कर देता है. गोली की आवाज बबीता को भी सुनाई देती है, तभी वहां पर पुलिस की टीम शिव प्रकाश के सभी साथियों को ढेर कर देती है.

शिव प्रकाश के ऊपर भी फायरिंग शुरू हो जाती है. शिव प्रकाश शुक्ला अपनी पोजीशन बारबार बदलता है. तभी बबीता ‘शिव.. शिव’ चिल्लाते हुए अपने फ्लैट से बाहर निकल आती है. सिद्धार्थ पांडे और शिव प्रकाश शुक्ला एकदूसरे पर गोलियां बरसाना शुरू कर देते हैं. पुलिस की टीम शिव प्रकाश को चारों ओर से घेर लेती है.

तभी शिव प्रकाश अपनी पिस्तौल में गोली भर कर सीना तान कर कर पूरी पुलिस टीम का मुकाबला करने सामने बेझिझक, बिना डरे निकल कर आ जाता है और गोलियां बरसानी शुरू कर देता है. वह कुछ पुलिसकर्मियों को मार भी डालता है, तभी शिव प्रकाश के पेट में गोली लगती है और वह जमीन पर गिर जाता है.

उस का मोबाइल छिटक कर कुछ दूरी पर गिर जाता है. तभी बबीता शिव प्रकाश को फोन करती है. शिव प्रकाश अपना पेट पकड़े अपनी सारी मैगजीन खाली कर देता है. उसी समय उस की नजर अपने मोबाइल पर पड़ती है, जो बज रहा था. बबीता दिखाई पड़ती है जो फोन करते दिखाई दे रही है. तभी सिद्धार्थ पांडे कहते हैं, शिव प्रकाश शुक्ला. वह उस की ओर पिस्टल तान देते हैं. वहां पर अब बबीता, कंप्यूटर औपरेटर, शिव प्रकाश शुक्ला और सिद्धार्थ पांडे सभी एकदूसरे को देखते हुए दिखाई देते हैं.

फ्लैट से तभी बबीता जोर से चिल्लाती है, ‘शिव…शिव…शिव…’ और फिर एसटीएफ अधिकारी सिद्धार्थ पांडे शिव प्रकाश शुक्ला को गोलियों से छलनी कर देता है. बबीता शर्मा यह दृश्य देख कर जोरजोर से रोने लगती है. उस का प्रेमी जमीन पर पड़ा अपनी आखिरी सांसें ले रहा होता है तो दूसरी तरफ वह जोरजोर से रो रही है.

उधर अगले सीन में शिव प्रकाश शुक्ला की बहन की शादी में उस के मातापिता नाच रहे हैं, बहन श्वेता हंस रही है. उस की बहन श्वेता, मां और पिता प्रमोद शुक्ला को शिव प्रकाश अपने साथ नाचता हुआ दिखाई दे रहा है. रमाशंकर तिवारी खुश हो कर पार्टी करता दिखाई दे रहा है और चंद्रभान सिंह उदास चेहरा लिए खड़ा दिखाई दे रहा है.

शिव प्रकाश शुक्ला की खून भरी गोलियों से छलनी लाश जमीन पर पड़ी है और इस तरह यह नवां एपिसोड भी समाप्त हो जाता है.

इस में जबरदस्ती कंप्यूटर औपरेटर पात्र को ठूंस दिया गया लगता है. वह न तो पुलिस वाला है, न उस ने प्राइवेट जासूसी की कहां पर ट्रेनिंग ली है, न उस की कदकाठी ही ऐसी है कि वह निजी तौर पर इतना बड़ा जोखिम ले कर इतने बड़े गैंगस्टर शिव प्रकाश की प्रेमिका की जासूसी केवल अपने स्तर पर वह भी बिना आदेश लिए कर सके.

वह कलाकार नौसिखिया सा दिखाई दे रहा है. लगता है जासूसी उपन्यास पढ़पढ़ कर उस ने इतना बड़ा जोखिम ले कर यह कारनामा कर दिखाया है. इस नवें एपिसोड की यह सब से बड़ी कमजोरी साफसाफ नजर भी आ रही है.

यदि पूरे वेब सीरीज रंगबाज सीजन 1 का आकलन करें तो इस में गिनती के 2-4 सीन हैं, जिन में एक्शन और खूनखराबा देखने को मिलता है, वरना इस पूरी वेब सीरीज में शिव प्रकाश शुक्ला जो भागतेबचते दिखाई पड़ता है या फिर अपनी गर्लफ्रेंड से बातें करते हुए दिखाई देता है.

वेब सीरीज 9 एपिसोड की है और हर एपिसोड 30 से 35 मिनट का है. लेकिन फिर भी यह वेब सीरीज हमें बोर करती है.

वेब सीरीज रिव्यू : रंगबाज सीजन 1 – भाग 2

शिव प्रकाश ने क्यों की विधायक की हत्या

अगला दृश्य इमरजेंसी का दिखाया जाता है, जब देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी लगा दी थी. जेपी आंदोलन को उस में दिखाया गया है.

दूसरी ओर, गोरखपुर के छात्र जाति के हिसाब से अपनाअपना वर्चस्व स्थापित कर रहे थे, ब्राह्मण और ठाकुरों का राजनीतिक वर्चस्व स्थापित हो रहा था. पूरे गोरखपुर में उस समय चारों ओर हिंसा का तांडव फैलता जा रहा था. रामशंकर तिवारी और साही के बीच हिंसा की राजनीति बढ़ती जा रही थी.

रामशंकर तिवारी एक सभा को संबोधित करते हुए कहते हैं ब्राह्मïण के बस 3 काम हैं भिक्षा, शिक्षा और दीक्षा. जरूरत पडऩे पर हम सभी वो कार्य करने में सक्षम हैं जो एक समय में क्षत्रियों ने किया था. ब्राह्मण सर्वोच्च था सर्वोच्च रहेगा.

दूसरी तरफ राजनीतिक प्रतिद्वंदी नरेंद्र साही की सभा दिखाई गई है, जहां पर वह अपना भाषण देना शुरू कर देते हैं. तभी उस भीड़ के बीच में से शिव प्रकाश शुक्ला आ कर सीधे मंच तक पहुंच जाता है और खुलेआम हजारों की संख्या में लोगों से घिरे विधायक नरेंद्र साही की गोली मार कर हत्या कर देता है. वहां पर भगदड़ मच जाती है.

दूसरे दृश्य में रामशंकर तिवारी को उस के आदमी द्वारा खबर मिलती है कि काम हो गया. उस के बाद रामशंकर तिवारी ब्राह्मण एकता जिंदाबाद के नारे लगाता है. तभी वहां पर शिव प्रकाश शुक्ला के पिता प्रमोद शुक्ला दिखाई देते हैं. रामशंकर तिवारी उन से कहता है, तुम्हारा बिटवा पढ़ाईलिखाई से काफी आगे बढ़ गया है.

नरेंद्र साही की दिनदहाड़े हत्या की खबर चारों ओर फैल जाती है. उस के बाद शिव प्रकाश एक और हत्या कर देता है. फिर एक के बाद एक कर के शिव प्रकाश शुक्ला हत्या कर देता है.

सीरीज के इसी भाग में एक दरोगा शिव प्रकाश शुक्ला को बिहार आने का निमंत्रण देता है. वह शिव प्रकाश शुक्ला की बात बिहार के सरगना रवि किशन से कराता है. रवि किशन शिव प्रकाश को बिहार बुलाता है. एपिसोड समाप्त हो जाता है.

तीसरे एपिसोड में जैसा कि नाम दिया गया है भिक्षा, शिक्षा और दीक्षा. मगर इस के अनुरूप इस का नहीं दिखाई दिया है. इस एपिसोड में निर्देशक पात्रों के साथ न्याय करते हुए बिलकुल भी नहीं दिखा. एक गुंडा खुलेआम किसी का भी मर्डर पुलिस कर देता है. पुलिस, प्रशासन यहां तक कि जनता को भी यह इतना बड़ा खूनी बिलकुल ही दिखाई नहीं देता. पुलिस में भूमिका कर रहा दरोगा जो गैंगस्टर शिव प्रकाश शुक्ला को बिहार आने का निमंत्रण देने आता है, वह किसी भी एंगल से पुलिस का एक सिपाही तक नहीं लगता. एक नौसखिया सा दिखाई देता है.

चौथा एपिसोड वेव सीरीज रंगबाज सीजन वन का नाम ‘नाम है शंकर तिवारी’ है, जिस में एक विशाल भीड़ दिखाई देती है, जिस में लालू प्रसाद यादव एक सभा में भाषण देते दिखाई दे रहे हैं. उस के बाद दिवंगत नेता रामविलास पासवान भी भाषण दे रहे हैं. तभी गुंडे दिनदहाड़े लोगों को गोलियों से भून रहे हैं.

एपिसोड के पहले सीन में 2 लोग बातचीत कर रहे हैं. इस के बाद बिहार से आया दरोगा शिव प्रकाश शुक्ला के साथ ट्रेन में बैठा हुआ दिखता है, जहां पर वह एक महिला से बातचीत करने लगता है.

किस शर्त पर दिलाया था रेलवे का ठेका

अगले दृश्य में रामशंकर तिवारी विधायक साही के अंतिम संस्कार में जाने की तैयारी करता है. रामशंकर तिवारी को उस का आदमी बताता है कि शिव प्रकाश शुक्ला मर्डर कर के बिहार चला गया है. अगले दृश्य में रवि किशन और साकिब सलीम की मुलाकात को दिखाया गया है. दोनों आपस में बातचीत करते हैं.

रवि किशन उस समय जेल में है. वह साकिब सलीम यानी शिव प्रकाश शुक्ला को समझाता है कि वह उसे इसलिए पसंद करता है क्योंकि उस का काम करने का तरीका भी पहले ऐसा ही था. वह शिव प्रकाश शुक्ला को समझाता है कि वह कोई ऐसा काम करे, जिस से उस का नाम हो और पैसा भी जम कर बरसे. वह उसे कहता है कि उस के पास रेलवे का ठेका है. वह उसे इस बार रेलवे का ठेका दिला देगा. बदले में उसे उस का एक काम करना होगा.

उस के बाद शिव प्रकाश शुक्ला अपने आदमियों से बात करता दिखाई देता है. अगले दृश्य में पुलिस टीम शिव प्रकाश शुक्ला की दिनचर्या के बारे में बात करते दिखाई देेते हैं. वे आपस में गुफ्तगू करने लगते हैं, तभी सर्विलांस में शिव प्रकाश शुक्ला और उस की प्रेमिका के बीच बातचीत शुरू हो जाती है.

पुलिस की विशेष टीम उन की आवाज को रिकौर्ड करना शुरू कर दे रही होती है. शिव प्रकाश शुक्ला और प्रेमिका दोनों बहुत ही सैक्सी अंदाज में बातें करने लगते हैं.

शिव प्रकाश शुक्ला को उस की प्रेमिका के साथ सैक्स सीन करते हुए दिखाया गया है. प्रेमिका बताती है कि घर के बारे में कुछ खोजखबर है या नहीं, तुम्हारी बहन की शादी फिक्स कर दी गई है. उस के बाद सीधे मंत्रीजी का सीन आ जाता है, जिस में उन का सहयोगी कहता है कि शिव प्रकाश घूमने नहीं बल्कि चंद्रभान सिंह से मिलने के लिए गया था.

फिर एकदम दूसरा सीन आ जाता है जिस में शिवप्रकाश शुक्ला अपने घर पर अपनी बहन से कहता है, ”श्वेता, तुम्हारी शादी फिक्स हो गई, हमें बताया तक नहीं गया.’’

मां कहती है तुम्हें क्या बताना, तुम घर पर रहते भी हो. उस के पिता उसे डांटते हैं और वह फिर एक बड़ी रकम अपनी बहन के हाथ में दे कर वहां से चला जाता है.

फिर अगले सीन में चंद्रभान सिंह (रवि किशन) को जेल में एक्सरसाइज करते हुए दिखाया गया है. फिर चंद्रभान सिंह का एक सहयोगी उसे फोन देते हुए कहता है कि मंत्रीजी (तिवारीजी) का फोन है. फोन पर तिवारी चंद्रभान सिंह को कहता है कि फसल जो बोएगा, वही काटेगा. मतलब शिव प्रकाश शुक्ला मेरा आदमी है उस से दूर रहिए आप.

अगले सीन में शिव प्रकाश शुक्ला अपनी प्रेमिका अहाना कुमरा से बातचीत करता हुआ दिखाई पड़ता है. तभी रणवीर शौरी के नेतृत्व में टीम वहां पर जा पहुंचती है, जहां पर शिव प्रकाश शुक्ला ठहरा हुआ है. लेकिन शिव प्रकाश शुक्ला वहां की रसोई से भाग निकलता है.

अगले दृश्य में पुलिस की सहायता कर रहे प्रोफेसर शिव प्रकाश शुक्ला की ओर पिस्तौल तान कर उसे रुकने के लिए कहते हैं तो शिव प्रकाश शुक्ला उन की हत्या कर देता है.

चौथे एपिसोड में निर्देशक ने बेशर्मी की सारी सीमाएं लांघ डाली हैं. प्रेमी और प्रेमिका के बीच ऐसी बातचीत किसी पोर्न फिल्म से कम नहीं है, निर्मातानिर्देशक ने सोचा होगा ऐसी बातचीत कर के शायद टीआरपी बढ़ जाएगी, बल्कि असल में यह बेहद ही बेशर्मी से गढ़ा गया दृश्य है.

रंगबाज वेब सीरीज के 5वें एपिसोड को ‘शिव प्रकाश किस के साथ है’ नाम दिया गया है. इस के पहले दृश्य में मंत्री रमाशंकर तिवारी का फोन शिव प्रकाश के लिए आता है, जिस में वह शिव प्रकाश को लखनऊ वाला काम करने को कहते हैं और कहते हैं कि सब्र करो हम पर भरोसा रखो.

उस के बाद कोर्ट परिसर का दृश्य आता है, जिस में कुछ लोग मंत्री रमाशंकर तिवारी के पास रेलवे के ठेके के लिए अपनी फरियाद ले कर आते हैं. वे कहते हैं कि रेलवे का ठेका लखनऊ वाले रविंदर सिंह को मिल गया है. मंत्रीजी कहते हैं कि अब तुम्हारा काम हो जाएगा. शिव प्रकाश शुक्ला तुम्हारा काम कर देगा.

शिव प्रकाश को मंत्री रमाशंकर तिवारी के आदमी का फोन आता है, जिस में वह कहता है कि एक मंत्री को आज ही निपटाना है. वह शिव प्रकाश को मंत्री की पूरी जानकारी देता है. शिव प्रकाश अपने मोबाइल में एक नया सिम डालता है.

दूसरी तरफ शिव प्रकाश के मातापिता और बहन एक साड़ी की दुकान में खरीदारी करते दिखाई देते हैं. दुकानदार शिव प्रकाश के मातापिता से साडिय़ों के पैसे लेने से मना कर देता है कि आप से हम भला पैसे कैसे ले सकते हैं, आप हमारे ऊपर बस अपना आशीर्वाद बनाए रखें. उसी समय श्वेता (शिव प्रकाश की बहन) की एक सहेली उसे वहां से ले जा कर उस की बात शिव प्रकाश से कराती है. बहन उस से कहती है कि यदि वह नहीं आया तो वह अपनी न शादी करेगी न मंगनी. शिव प्रकाश बहन से आने का वायदा करता है. वह कहता है यदि मंगनी में नहीं आ पाया तो शादी में जरूर आएगा.

शिव प्रकाश मंत्री को गोली मार देता है. तभी शिव प्रकाश के साथी उस से कहते हैं कि अब तो वह राष्ट्रीय स्तर पर फेमस हो रहे हैं.

अगले सीन में चंद्रभान सिंह जेल में वौलीबाल का मैच कैदियों के बीच में जो खेला जा रहा है, उसे कुरसी पर बैठ कर देख रहा है, तभी वह फोन से शिव प्रकाश से बात करते हुए कहता है कि अब गोरखपुर में कुछ नहीं रखा है. तुम अब लखनऊ ही जाओ. शिव प्रकाश गोरखपुर न जा कर लखनऊ की ओर निकल पड़ता है.

किस ने कराई बिहार के मंत्री की हत्या

अगले दृश्य में समाचार में आता है बिहार में मंत्री की हत्या हो गई है, जिसे गोरखपुर के शिव प्रकाश शुक्ला गैंग ने अंजाम दिया है. इस खबर को मंत्री रमाशंकर तिवारी अपने विशेष चेले के साथ टीवी में देखते नजर आ रहे हैं, जहां पर रमाशंकर तिवारी अपने चेले से कहते हैं कि लखनऊ वाला काम किसी और को दे दो. देखते हैं यह अब कब तक गोरखपुर नहीं आता है. बहन की सगाई में तो आएगा ही.

पांचवें एपिसोड में भी कुछ नयापन सा बिलकुल भी नहीं दिया गया है. सभी कलाकारों का काम केवल औसत दरजे का रहा है. एक गैंगस्टर बिहार की जेल में बैठ कर फाइवस्टार होटल जैसे आनंद में अपना जीवन गुजार रहा है. जेल में ही बैठ कर हत्याओं की सुपारी ले रहा है.

जेल में रह कर ही रेलवे के बड़ेबड़े ठेके ले रहा है, यह बात बिलकुल भी गले से नहीं उतरती. एपिसोड का नाम ‘शिव प्रकाश किस के साथ है’ का अर्थ इस एपिसोड से बच्चा भी निकाल सकता है कि शिव प्रकाश अब रमाशंकर तिवारी के साथ नहीं बल्कि गैंगस्टर चंद्रभान सिंह के साथ है.

इस वेब सीरीज के एपिसोड नंबर 6 की कहानी ‘माता का जागरण’ के नाम से दी गई है. इस में एसटीएफ चीफ सिद्धार्थ पांडे शिव प्रकाश शुक्ला की प्रेमिका के बारे में अपनी टीम के सदस्यों से बातचीत कर रहे होते हैं कि ये आखिर उस की प्रेमिका बबीता कौन हो सकती है.

रमाशंकर तिवारी अपने भतीजे रमेश के साथ शिव प्रकाश की प्रेमिका रश्मि की मंगनी तय कर देता है.

शिव प्रकाश अपना अड्ïडा लखनऊ में जमा लेता है. वहां हो रहे एक जागरण से वह अपने गैंग के द्वारा कुबेरचंद्र अरोड़ाका एक करोड़ रुपए की फिरौती के लिए अपहरण कर लेता है. अरोड़ा तिवारी का आदमी था. अपने वफादार के अपहरण पर रमाशंकर तिवारी तिलमिला जाता है.

तिवारी अपने खास आदमी को पटना चंद्रभान सिंह के पास जाने को कहता है और कहता है कि चंद्रमान सिंह को टटोलो. शागिर्द चंद्रभान सिंह के पास जाने की हामी भर लेता है और इसी के साथ यह छठां एपिसोड समाप्त हो जाता है.

वेब सीरीज रिव्यू : रंगबाज सीजन 1 – भाग 1

लेखक : सिद्धार्थ मिश्रा

निर्देशक : भाव धूलिया

निर्माता : अजय जी राय

कलाकार: साकिब सलीम, अहाना कुमरा, तिग्मांशु धूलिया, रवि किशन, रणवीर शौरी, भारत चावला और सौरभ गोय.

रंगबाज 1990 के दशक की गोरखपुर की देहाती पृष्ठभूमि पर आधारित एक भारतीय वेब सीरीज है. इसे 22 दिसंबर, 2018 को जी-5 ओरिजनल के रूप में रिलीज किया गया था.

रंगबाज गोरखपुर के नौजवान शिव प्रकाश शुक्ला (साकिब सलीम) की कहानी है. शिव प्रकाश शुक्ला की बहन को एक मवाली सरेआम बाजार में छेड़ता है और यह बात जब उसे पता चलती है तो गुस्से से बेकाबू हो कर देसी कट्टा ले कर उस मवाली के पास पहुंच जाता है, लेकिन वहां गलती से गोली चल जाती है और शिव प्रकाश शुक्ला से उस मवाली का कत्ल हो जाता है. उस के बाद एक नेता शिव प्रकाश शुक्ला को बचाता है और फिर वह उस नेता के लिए काम करने लग जाता है.

इस तरह उत्तर प्रदेश के गैंगस्टर श्रीप्रकाश शुक्ला की कहानी को इस वेब सीरीज में उकेरा गया है. सीरीज में कुल मिला कर 9 एपिसोड हैं, जिस में 9 कहानियों को अलगअलग दिखाया गया है. रंगबाज वेब सीरीज की स्पीड कहींकहीं पर थोड़ी स्लो दिखाई पड़ती है.

रंगबाज के पहले एपिसोड की कहानी का नाम ‘गैंगस्टर का मोबाइल फोन’ है. इस पहले एपिसोड की शुरुआत एक गाड़ी से होती है, जिस में कुछ गुंडे बैठे हुए होते हैं. वे सब गैंगस्टर शिव प्रकाश शुक्ला की प्रेमिका के घर पहुंच जाते हैं. शिव प्रकाश का दोस्त प्रेमिका को शिव प्रकाश शुक्ला का दिया हुआ गिफ्ट दे देता है.

उस के बाद प्रेमी और प्रेमिका के बीच मोबाइल से बातचीत होती है. उसी दौरान गैंगस्टर के फोन पर कुछ आवाजें आती हैं. वह प्रेमिका से कहता है, ”लगता है कुछ गड़बड़ है.’’

तभी पुलिस की गाडिय़ों के सायरनों की आवाज जोरजोर से सुनाई पड़ती है. इस वेब सीरीज में भी गंदीगंदी गालियों का भरपूर प्रयोग किया गया है, जो डायरेक्टर की फूहड़ मानसिकता को दर्शाता है.

पुलिस गैंगस्टर के ऊपर फायरिंग शुरू कर देती है तो गैंगस्टर खुद गाड़ी के आगे से अपनी स्वचालित एके-47 से पुलिस के ऊपर फायर झोंक देता है. तभी गैंगस्टर मंत्रीजी को फोन करता है और वह मंत्रीजी को धमकाते हुए कहता है, ”पुलिस मेरे पीछे लगी हुई है, अब तो लगता है कि मुझे पुलिस को यह बताना ही पड़ेगा कि गुडग़ांव वाले एमएलए का मर्डर आप ने करवाया था.’’

वह मंत्री को धमकी देते हुए कहता है, ”व्यवस्था कीजिए वरना कर देंगे हम तुम्हें फेमस.’’

पुलिस और गैंगस्टर के बीच में अब आंखमिचौली का खेल चलने लगता है और पुलिस का सिपाही गैंगस्टर को निकलने का इशारा कर देता है और गैंगस्टर शिव प्रकाश की गाड़ी आसानी से निकल जाती है.

अगले सीन में कहानी एक बार फिर फ्लैशबैक में चली जाती है. यहां पर गैंगस्टर शिव प्रकाश शुक्ला के परिवार को दिखाया गया है.

शिव प्रकाश कैसे आया अपराध की दुनिया में

शिव प्रकाश की बहन बाजार से जा रही होती है, तभी एक शोहदा उस के कंधे पर हाथ रख कर उस के साथ छेड़छाड़ शुरू कर देता है, जिस की खबर सारी जगह से फैलतेफैलते उन के घर तक पहुंच जाती है.

शिव प्रकाश के मातापिता अपनी बेटी की इस बदनामी से शर्मसार हो जाते हैं. जब यह बात शिव प्रकाश शुक्ला को पता चलती है तो वह अपनी बहन से बात करता है और बहन से शोहदे के बारे में पूछताछ करता है. गैंगस्टर के पिता उसे समझाते हैं कि वह गुस्सा न करे, वह पुलिस में जा कर शिकायत लिखा देंगे.

मगर शिव प्रकाश शुक्ला यह सब बरदाश्त नहीं कर पाता और उस शोहदे के पास पहुंच जाता है और फिर दोनों में गुत्थमगुत्था होने लगती है. तभी गुस्से से गैंगस्टर शिव प्रकाश शुक्ला से गोली चल जाती है और शोहदे की गोली लगने से मौत हो जाती है. शिव प्रकाश शुक्ला उस के बाद घबरा जाता है और अपनी बाइक से घर लौट आता है.

शिव प्रकाश शुक्ला के पिता उस की पिटाई करने लगते हैं कि उस ने उस युवक को जान से क्यों मार दी. अब आगे उस का भविष्य क्या होगा?

शिव प्रकाश शुक्ला रोते हुए पिता को बताता है कि पापा गोली गलती से चल गई. मुझे माफ कर दो पापा, मुझे बचा लो पापा. उस के पिता कहते हैं कि चौबेजी का बेटा वकालत करता है. वह कह रहा था कि आज सरेंडर कर दे.

तभी शिव प्रकाश शुक्ला के घर पर मंत्रीजी की गाडिय़ों का काफिला आ जाता है. मंत्री शिव प्रकाश शुक्ला के पिता से कहता है, ”आप ने तो हमें पराया ही बना दिया. बाहर वालों से कांड का पता चला हमें.’’

उस के बाद मंत्रीजी शिव प्रकाश शुक्ला से कहते हैं कि तुम ने जो कुछ किया ठीक किया. घबराओ मत मैं तुम्हारे साथ हूं. और फिर मंत्रीजी के आदमी शिव प्रकाश शुक्ला को वहां से ले जाते हैं. बाद में वह शुक्ला को बैंकाक में पहुंचा देते हैं.

एपिसोड में उस के बाद फिर पुराना सीन आ जाता है, जिस में पुलिस टीम गैंगस्टर शिव प्रकाश शुक्ला के मोबाइल फोन को सर्विलांस पर ट्रैक करती दिखाई देती है.

इस कहानी को एक बड़े लेवल पर दिखाया जा सकता था, लेकिन यहां पर इसे काफी साधारण तरीके से प्रस्तुत किया गया है. इसलिए इस में मनोरंजन की डोज दर्शक को नहीं मिल पाई है.

इस एपिसोड में कई बार यहां तक कि बारबार कई सीनों को एकदम से रोक कर दूसरा सीन चालू हो जाता है. कुछ समय तक तो कोई भी इसे बरदाश्त कर सकता है, लेकिन जब बारबार यही क्रम दोहराया जाता है तो एक समय ऐसा आ जाता है कि दर्शक बोरियत सी महसूस करने लग जाता है. गैंगस्टर के तौर पर साकिब सलीम और पौलिटीशियन के तौर पर तिग्मांशु धूलिया का काम भी कोई खास नहीं है.

रवि किशन और अहाना कुमरा का काम इस में काफी साधारण सा दिखाई देता है, क्योंकि उन के लिए इस में करने के लिए कुछ विशेष था ही नहीं. कहानी में भी इस में कुछ विशेष दम नहीं है. यूपी का रंगबाज क्या होता है, ये समझने के लिए साकिब सलीम को कुछ दिन यूपी के गोरखपुर, इलाहाबाद या लखनऊ में गुजारने चाहिए थे.

इस सीरीज के दूसरे एपिसोड का नामकरण ‘जवान होना’ के नाम से किया गया है. इस दूसरे एपिसोड में डीएसपी चौबे शिव प्रकाश शुक्ला के पिता प्रमोद शुक्ला की हिम्मत बढ़ाते हुए दिखता है. इस सीन में कानून की धज्जियां उड़ती दिखती हैं. बाद में पता चलता है कि मंत्रीजी ने ही डीएसपी चौबे को शुक्ला के घर भेजा था.

उधर बैंकाक में बैठे शिव प्रकाश शुक्ला को अपने घर वालों और प्रेमिका की चिंता होती है. वह एक दिन अपने घर फोन करने की कोशिश करता है, लेकिन उस का साथी उसे फोन करने से रोक लेता है. तब उस का साथी उसे एक क्लब में ले जाता है, जहां तमाम खूबसूरत लड़कियां उसे रिझाने में लग जाती हैं. शिव प्रकाश वहां कोई भी एंजौय नहीं करता क्योंकि उसे तो अपनी प्रेमिका की याद आती है.

मंत्रीजी ने क्यों दिया शिव प्रकाश को संरक्षण

अगला दृश्य मंत्रीजी शिवप्रकाश के पिता को फोन कर के समझाते हैं कि वह बेटे की चिंता न करें, सही समय पर वह आ जाएगा.

दूसरे सीन में शिव प्रकाश का साथी उसे बैंकाक में एक मर्डर करने को कहता है और उसे एक पिस्टल देते हुए कहता है कि ये आदमी जो सामने लाल कमीज में बैठा है, तुम्हें इसे मारना है. यह मंत्रीजी का पैसा ले कर भागा है. गोरखपुरिया है. यह मंत्रीजी का हुक्म है.

शिव प्रकाश उस का पीछा करते हुए गोली चलाता है, मगर गोली नहीं चलती और गोरखपुरिया और उस का साथी शिव प्रकाश को पीटने लगते हैं. तभी वहां पर शिव प्रकाश का साथी आ कर उन्हें कहता है बस करो. शिव प्रकाश से उस का साथी कहता है, चलो तुम इस परीक्षा में अब पास हो गए हो. चलो, अब वापस चलो. तुम्हारा गोरखपुर लौटने का समय हो गया है. उस के बाद उस क ा साथी प्लेन में बिठा कर हिंदुस्तान ले आता है.

शिव प्रकाश प्लेन से उतर कर टैक्सी में अपने साथी के साथ बैठ जाता है और वह अपने साथी से पूछता है हम कहां जा रहे हैं? उस का साथी कहता है, गुरुजी तुम से मिलना चाहते हैं और उसे मंत्रीजी पास ले कर आ जाता है.

मंत्रीजी शिवप्रकाश से कहते हैं, आजादी मुबारक हो, अब बड़ा काम करने का वक्त आ गया है. फिर मंत्रीजी उसे अपने एक पुराने दुश्मन विधायक को मारने का आदेश देते हैं. उस के बाद दूसरा एपिसोड समाप्त हो जाता है.

दूसरे एपिसोड में भी सभी कलाकारों का काम औसत दरजे का रहा है. एक एसपी रैंक के अधिकारी का गैंगस्टर के पिता के घर पर जाना और उन्हें संरक्षण देना, भारतीय समाज पर नेताओं और प्रशासन की भूमिका को दर्शाता है कि आज नेता तो भ्रष्ट हैं ही, पुलिस प्रशासन भी अब नेताओं की जूती बन कर रह गया है.

रंगबाज सीजन वन के तीसरे एपिसोड की कहानी भिक्षा, शिक्षा और दीक्षा पर आधारित है. एपिसोड की शुरुआत में 1974 में गोरखपुर विश्वविद्यालय को दिखाया गया है, जहां पर कुछ गुंडे विश्वविद्यालय की एक कक्षा में घुस कर मारपीट करने लगते हैं.

मारमीट करने से पहले वे सब लड़कियों को क्लास से बाहर जाने को कहते हैं और पढ़ाने वाले प्रोफेसर को भी वहां से बाहर निकाल देते हैं. गुंडों को फिर शिव प्रकाश और उस के साथी पीट देते हैं. उस के बाद वेब सीरीज की कास्टिंग शुरू हो जाती है.

पहले दृश्य में पुलिस अधिकारी सिद्धार्थ पांडेय (रणवीर शौरी) के पास एक विशेष मुखबिर आ कर बताता है कि शिवप्रकाश का दिल्ली से गोरखपुर जाने का प्लान है. पुलिस अधिकारी फिर अपने मातहतों को कुछ आदेश देता है. तभी दूसरे दृश्य में शिव प्रकाश शुक्ला अपनी प्रेमिका से बातें करता दिखाई देता है.

अहाना कुमरा, शिव प्रकाश को उस के मातापिता की याद दिलाती है तो गैंगस्टर शिव प्रकाश शुक्ला सीधे अपने घर पहुंच जाता है. शिव प्रकाश की बहन और मां उस से खुशी से लिपट जाते हैं.

अगले दृश्य दृश्य में शिव प्रकाश के साथी उसे किसी को मारने के लिए कहते हैं. शिव प्रकाश अपनी प्रेमिका से बातें करता दिखाया गया है. अगले सीन में पुलिस टीम प्रेमीप्रेमिका की बातों को रिकौर्ड करती दिखाई देती है. फिर शिव प्रकाश शुक्ला परशुराम होस्टल में तनुज को मिलने के लिए बुलाता है और अपने गिरोह में शामिल कर लेता है.

वेब सीरीज रिव्यू : इंस्पेक्टर अविनाश – भाग 3

नंदिनी की कातिल निगाहेंक्यों जमी थीं जेठ पर

सातवें एपीसोड में बबलू को तलाशने की बात होती है. वह अपनी टीम के साथ दुख व्यक्त करते हैं कि वह एक बच्चा नहीं बचा पाए. आगे की कहानी में बबलू भागाभागा फिर रहा होता है. देवी से बात करना चाहता है, पर वह फोन काट देती है. तब वह शेख के पास जाता है. पर वह भी दुत्कार कर भगा देता है.

तब बबलू अपनी प्रेमिका और हर अपराध में सहयोगी पिंकी को अविनाश के पास भेज कर आत्मसमर्पण की बात करता है. पर वह आत्मसमर्पण कर पाता, उस के पहले ही देवी अपने सहयोगियों के साथ जा कर बबलू के गैंग की हत्या कर देती है. इसी के साथ शेख बबलू को जिंदा दफन करवा देता है. देवी की भूमिका अभिमन्यु सिंह ने की है तो अजीमुद्दीन गुलाम शेख की भूमिका अमित सियाल ने की है.

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इस की जानकारी इंस्पेक्टर अविनाश को हो जाती है. उन्हें यह भी पता चल जाता है कि राकेश अग्रवाल के बेटे का अपहरण शेख ने ही करवाया था और उसी के कहने पर बबलू ने बच्चे की हत्या कर दी थी. यह सब वोटों के लिए किया गया था.

शेख रफीक गाजी के भाई इमरान गाजी को देवी मां से मिलवाता है, जो उसे पिस्टल देती है. इस के बाद इमरान गाजी कालेज का चुनाव लड़ता है और गुंडई के बल पर जीत भी जाता है.  इमरान गाजी का रोल जोहैब फारुकी ने किया है. यह अपनी भूमिका में बिलकुल नहीं जमता.

आठवें और अंतिम एपीसोड में इंस्पेक्टर अविनाश शेख के घर मिलने जाते हैं, जहां शेख और अविनाश की कहासुनी होती है, जिस में दोनों ही एकदूसरे को धमकाते हैं. इस के बाद गृहमंत्री का भाई नशा कर रहा होता है तो उस की पत्नी नंदिनी उसे फोन करती है.

वह फोन नहीं उठाता तो वह अपने जेठ यानी गृहमंत्री के पास चली जाती है और सैक्स करने का औफर देती है. मंत्रीजी मजबूर हो कर उस का यह औफर स्वीकार करते हैं, क्योंकि उन का भाई पत्नी को संतुष्ट नहीं कर पा रहा था. घर की इज्जत बचाने के लिए वह उस की इच्छा पूरी करते हैं.

शेख ने क्यों की अपने अम्मीअब्बू की हत्या

दूसरी ओर इंस्पेक्टर अविनाश मिश्रा देवी मां यानी देवीकांत चतुर्वेदी को अपने औफिस बुलाते हैं. दोनों ही एकदूसरे को देख लेने की धमकी देते हैं. अविनाश उस से बबलू पांडेय के गैंग के मारे जाने के बारे में पूछते हैं. पर वह सबूत की बात करता है.

दोनों के ही पास पौलिटिकल पावर है. इसलिए देवी उल्टीसीधी बातें कर के चला जाता है. इस के बाद उस स्कूल में एक बच्चे की हत्या हो जाती है, जिस स्कूल में अविनाश का बेटा पढ़ता है. लेकिन इस का खुलासा अभी नहीं होता, शायद इस के बारे में आने वाले सीजन में दिखाया जाए.

इसी एपीसोड में शेख के बारे में फ्लैशबैक में दिखाया जाता है कि उस की बहन रुखसाना, जिस का रोल जिया सिद्दीकी ने किया है, को उस के अम्मीअब्बू बेच देते हैं तो शेख अपने अम्मीअब्बू की हत्या कर के घर में आग लगा देता है और अपनी बहन को बचाने जाता है, जहां बहन की रीढ़ में गोली लग जाती है, जिस की वजह से वह हमेशा के लिए अपाहिज हो जाती है.

गृहमंत्री राकेश अग्रवाल से मिलने उन के घर जाते हैं और उन से बताते हैं उन के बेटे की हत्या अजीमुद्दीन गुलाम शेख ने करवाई है. तब अग्रवाल इंस्पेक्टर अविनाश से मिलते हैं और कहते हैं कि पैसा चाहे जितना लगे, पर वह शेख को गिड़गिड़ाते हुए, चीखते हुए, जान की भीख मांगते हुए सुनना और मरते हुआ देखना चाहते हैं.

इलेक्शन के लिए देवी और शेख हथियार मंगाते हैं, जो राज्य में सभी जगह बाहुबलियों के पास भिजवा दिए जाते हैं. इसी बीच छात्र नेता इमरान गाजी अविनाश के पिता की पिटाई कर देता है.

आगे क्या हुआ, श्रीप्रकाश शुक्ला को कैसे मारा गया, शेख और देवी का क्या हुआ, यह देखने के लिए अगले सीजन का इंतजार करना होगा.

रणदीप हुड्डा

रणदीप हुड्डा का जन्म 20 अगस्त, 1976 को हरियाणा के रोहतक में डा. रणबीर हुड्डा और आशा हुड्डा के घर हुआ था. रणदीप के पिता डा. रणबीर हुड्डा सर्जन हैं तो मां सामाजिक कार्यकर्ता.

रणदीप का ज्यादातर समय अपनी दादी के साथ रोहतक में ही बीता, क्योंकि उस के मातापिता का अधिकतर समय यात्रा में ही बीतता था. वे ज्यादातर मध्यपूर्व में ही रहते थे. उन की बड़ी बहन अंजलि सांगवान एमबीबीएस डाक्टर हैं और छोटा भाई संदीप हुड्डा एक सौफ्टवेयर इंजीनियर है.

रणदीप की पढ़ाई मोतीलाल नेहरू स्कूल औफ स्पोट्र्स हरियाणा के एक बोर्डिंग स्कूल से हुई, जहां उस ने तैराकी और घुड़सवारी में राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीते. इस के बाद उसे थिएटर में रुचि पैदा हुई तो वह स्कूल के नाटकों में हिस्सा लेने लगा. घर वाले चाहते थे कि वह डाक्टर बने, इसलिए उस का दाखिला दिल्ली पब्लिक स्कूल आर.के. पुरम में करा दिया गया.

स्कूली पढ़ाई पूरी कर के रणदीप आस्ट्रेलिया चला गया, जहां उस ने व्यवसाय प्रबंधन और मानव संसाधन प्रबंधन में मास्टर डिग्री ली और इस बीच उस ने चीनी रेस्त्रां, कार धोने, वेटर के रूप में और 2 साल तक टैक्सी ड्राइवर के रूप में काम किया. फिर वह दिल्ली आ गया, जहां एक एयरलाइन के विपणन विभाग में काम करने के साथ मौडलिंग और शौकिया थिएटर में काम करना शुरू किया.

नाटक ‘टू टीच हिज ओन’ के अभ्यास के दौरान निर्देशक मीरा नायर ने अपनी आगामी फिल्म में एक भूमिका  के लिए औडिशन देने को हुड्डा से संपर्क किया.

फिल्मों के अलावा रणदीप हुड्डा सुष्मिता सेन के साथ अपने संबंधों को ले कर सुर्खियों में आया, लेकिन बाद में उस का यह संबंध टूट गया. हुड्डा की फिल्मों के अलावा सामाजिक कार्यों में भी रुचि है.

उर्वशी रौतेला

उर्वशी रौतेला 25 फरवरी, 1994 को हरिद्वार में एक गढ़वाली राजपूत मीरा रौतेला और मनवर सिंह रौतेला परिवार में पैदा हुई थी. उस का परिवार कोटद्वार में रहता था, इसलिए उर्वशी की पढ़ाई कोटद्वार के सेंट जोसेफ कौन्वेंट स्कूल में हुई. कालेज की पढ़ाई उस ने दिल्ली के गार्गी कालेज से की.

उर्वशी 15 साल की थी, तभी उसे विल्स लाइफस्टाइल फैशन इंडिया फैशन वीक में ब्रेक मिला. उस ने मिस टीन इंडिया 2009 का खिताब भी जीता. एक युवा मौडल के रूप में उस ने लक्मे फैशन वीक, अमेजन फैशन वीक, बौंबे फैशन वीक और दुबई फैशन वीक के लिए शो स्टौपर के रूप में रैंप वाक किया.

रौतेला ने इंडियन प्रिंसेज 2011 और मिस एशियन सुपर मौडल 2011 का खिताब भी जीता. उस ने मिस टूरिज्म क्वीन औफ द ईयर 2011 का खिताब भी जीता है, जो चीन में हुआ था. वह यह खिताब जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनी.

इसी बीच उसे फिल्म ‘इश्कजादे’ का औफर मिला था, पर उस ने इस औफर को ठुकरा दिया था. क्योंकि उस का ध्यान मिस यूनिवर्स प्रतियोगिता पर था. उस ने भारत की ओर से इस प्रतियोगिता का प्रतिनिधित्व जरूर किया, पर उसे स्थान नहीं मिला.

रौतेला ने अपने हिंदी फिल्म करिअर की शुरुआत ‘सिंह साब द ग्रेट’ से की, जिस में उस ने सनी देओल के साथ मुख्य भूमिका निभाई थी. फिर तो धीरेधीरे उसे फिल्मों में काम मिलने लगा और वह व्यस्त होती गई.

वेब सीरीज रिव्यू : इंस्पेक्टर अविनाश – भाग 2

मंत्रीजी के बेडरूम में क्यों गई थी नंदिनी

इस के बाद शुरू होता है फिल्मी ड्रामा. इंस्पेक्टर अविनाश के पास एक महिला का फोन आता है, जो उन्हें बताती है कि बिट्टू चौबे ऋषिकेश में छिपा है. बाद में पता चला कि यह सूचना बिट्टू चौबे की पत्नी ने ही दी थी. इंस्पेक्टर अविनाश अपनी टीम के साथ ऋषिकेश पहुंच जाते हैं और फिल्मी स्टाइल में बिट्टू चौबे को मार गिराते हैं.

यहां एक नौटंकी यह होती है कि पति के एनकाउंटर के बाद अचानक उस की पत्नी घटनास्थल पर पहुंच जाती है और पति की लाश देख कर फूटफूट कर रोने लगती है. तब इंस्पेक्टर अविनाश उस के हाथों में कुछ रुपए थमाते हैं. यहां पता चलता है कि किरण कौशिक की हत्या शूटर बिट्टू चौबे ने ही की थी.

इस के बाद राज्य के डीजीपी समर प्रताप सिंह एसटीएफ टीम के साथ खुशी सेलिब्रेट कर रहे होते हैं तो अचानक उन्हें याद आता है कि इस बात को राज्य के गृहमंत्री को भी बताना चाहिए. वह गृहमंत्री को फोन करते हैं तो फोन उन के छोटे भाई की पत्नी नंदिनी उठाती है.

डीजीपी मंत्रीजी से बात कराने को कहते हैं तो नंदिनी फोन ले कर मंत्रीजी के कमरे के सामने जाती है. उस समय मंत्रीजी पूरे जोश के साथ सैक्स कर रह होते हैं, जिस का अहसास नंदिनी को हो जाता है. वह उदास हो जाती है, क्योंकि उस का नशेड़ी पति कभी उस के साथ सैक्स नहीं करता था. इस की वजह यह थी कि नशे की लत की वजह से वह सैक्स करने लायक ही नहीं रह गया था.

नंदिनी मंत्रीजी का दरवाजा खटखटाती है तो मंत्रीजी बेमन से गाउन पहन कर दरवाजा खोलते है. वह उन्हें फोन थमाती है तो वह फोन ले कर अंदर चले जाते हैं. पर उस समय नंदिनी का मन सैक्स के लिए बेचैन हो उठा था, इसलिए वह मंत्रीजी के कमरे के बाहर ही खड़ी रहती है. नंदिनी की भूमिका में आयशा एस. मेमन है, जो खूबसूरत भी है और सैक्सी भी.

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सेलिब्रेशन के दौरान ही इंस्पेक्टर अविनाश की टीम के सदस्य बलजीत सिंह को अपनी पत्नी की याद आती है, जिस से उन की अधिक शराब पीने की वजह से लड़ाई हो गई थी. बलजीत की पत्नी सुमन डाक्टर है. बलजीत का रोल शालीन भनोट ने किया है, जो एक युवा कलाकार है. वह उसे फोन करता है, पर वह फोन नहीं उठाती, जिस से वह दुखी हो जाता है. अविनाश उसे समझाते हैं.

भाटी को किस ने लगाया जहर का इंजेक्शन

अगले दृश्य में गुड्डू अंसारी का जिक्र आता है, जो अवैध हथियार सप्लाई करता था. एसटीएफ यानी इंस्पेक्टर अविनाश मिश्रा की टीम गुड्डू अंसारी की शुगर मिल पर पहुंचती है, जहां हथियारों से भरा ट्रक पकड़ा जाता है.

मुठभेड़ में गुड्डू अंसारी और उस के गैंग के सारे सदस्य मारे जाते हैं. लेकिन गुड्डू के यहां हथियार खरीदने आया भाटी फिल्मी स्टाइल में भाग निकलता है तो अविनाश मिश्रा उसे फिल्मी स्टाइल में ही पकड़ते हैं और ला कर उसे इंट्रोगेशन रूम में बंद कर देते हैं.

भाटी से पूछताछ चल रही होती है कि स्पैशल सेल का अधिकारी दासगुप्ता अपनी टीम के साथ एसटीएफ के औफिस पहुंच जाता है और बवाल कर देता है. उसी बीच पूछताछ के दौरान भाटी की मौत हो जाती है, जिस से इंस्पेक्टर अविनाश सकते में आ जाते हैं. अपनी टीम पर वह चिल्लाते हैं.

इस की बड़ी वजह यह थी कि उन्हें जो जानना था, वह जान नहीं पाए थे. दूसरी वजह इस से एसटीएफ की बड़ी बदनामी हुई, क्योंकि उस की मौत एसटीएफ की हिरासत में हुई थी. इसी वजह से रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में इनक्वायरी के आदेश हो गए. पूरी टीम को जांच का सामना करना पड़ता है.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि भाटी की मौत जहर से हुई थी, जिस में भाटी को चाय पिलाने वाले कांस्टेबल लक्ष्मीकांत को सस्पेंड कर दिया जाता है. पर बाद में पता चलता है कि भाटी को जहर इंजेक्शन से दिया गया था, इसलिए लक्ष्मीकांत का सस्पेंशन खत्म हो जाता है. लक्ष्मीकांत की भूमिका में वी. शांतनु है.

बीचबीच में पारिवारिक ड्रामा भी चलता रहता है. अंत में दिखाया जाता है कि अजीमुद्दीन गुलाम शेख किसी डाक्टर को फोन कर के कहता है कि आप ने काम को बहुत अच्छी तरह अंजाम दिया है, जिस के लिए मैं आप को नजराना भिजवा रहा हूं और फिर एक बैग में रुपए भर कर वह अपने आदमी से भिजवाता है.

एसटीएफ क्यों बनी थी बाराती

चौथे एपीसोड की शुरुआत बड़े ही भयानक दृश्य से होती है. एक आदमी को बांध कर रखा जाता है, जिस का पूरा शरीर खून से लथपथ है. शेख यानी अजीमुद्दीन गुलाम शेख उस के शरीर में ड्रिल मशीन चला कर उसे टौर्चर करता है और अंत में उस की हत्या कर देता है. पर यहां यह नहीं बताया गया कि शेख उस के साथ ऐसा क्यों करता है?

इस के बाद इंस्पेक्टर अविनाश एक नाचने वाली यानी मीटू पंजाबन के यहां जाते हैं, जहां उन्हें मुजफ्फरनगर के नामी बदमाश रफीक गाजी के बारे में पता चलता है. यहां पर मीटू पंजाबन का रोल आकांक्षा पुरी ने किया है. पर साथ ही यह भी पता चलता है कि पूरा गांव उस की मदद के लिए खड़ा रहता है. तब इंस्पेक्टर अविनाश मिश्रा अपनी टीम को बाराती बना कर रफीक के गांव जाते हैं और उसे पकड़ कर जंगल में लाते हैं, जहां उस का एनकाउंटर कर देते हैं.

रफीक गाजी के अंतिम संस्कार में शेख पहुंचता है और मुसलिमों को भड़काता है, खासकर रफीक के छोटे भाई को बदला लेने के लिए उकसाता है. रफीक से मुठभेड़ में बलजीत को गोली लग जाती है.

इस के बाद शेख गृहमंत्री वीरभूषण से मिलता है और उन्हें धमकी देता है कि वह एसटीएफ को थोड़ा काबू में रखें, क्योंकि ज्यादातर उसी के सपोर्टर मारे जा रहे हैं. जब वह बाहर निकलने लगता है तो व्यवसायी राकेश अग्रवाल मिल जाता है, जिन से पैसों के लेनदेन की बात होती है.

दूसरी ओर अविनाश की टीम श्रीप्रकाश शुक्ला को ठिकाने लगाने की बात करती है. तभी पता चलता है कि भाटी ने एसटीएफ औफिस से जो फोन किया था, वह कोई देवी है.

चौथे एपीसोड में ही लक्ष्मीकांत ड्यूटी पर वापस आता है. इस के बाद इंस्पेक्टर अविनाश मिश्रा देवी यानी देवीकांत चतुर्वेदी से मिलने उस के घर यानी विशाल मठ जाते हैं, जहां कस्टडी में मारे गए भाटी को ले कर चर्चा होती है, साथ ही इंस्पेक्टर अविनाश भाटी को ले कर देवी को धमकी भी देते हैं.

40 बच्चों का क्यों किया था अपहरण

पांचवें एपीसोड की शुरुआत डीजीपी समर प्रताप सिंह के घर से पारिवारिक ड्रामे से होती है. इस के बाद गृहमंत्री के घर का पारिवारिक ड्रामा दिखाया जाता है, जिस में वह अपने छोटे भाई शशि की पत्नी नंदिनी को पिस्टल देते हुए राजनीति में आने को कहते हैं.

दूसरी ओर देवी शेख के घर जाता है और राजनीति की बातें करते हुए इंस्पेक्टर अविनाश के बारे में कहता है कि गृहमंत्री ने उसे उन के पीछे लगा रखा है. शेख और गृहमंत्री अपनीअपनी बिसात बिछाने में लगे हैं.

इसी एपीसोड में अग्रवाल के बेटे गट्टू का अपहरण हो जाता है, जिस की जांच एसटीएफ को सौंप दी जाती है. इस में इंस्पेक्टर अविनाश मिश्रा जेल में बंद एक अपराधी की मदद लेते हैं. पर इस मामले में इंस्पेक्टर अविनाश फेल हो जाते हैं.

बबलू पांडेय नाम का अपराधी फिरौती भी ले जाता है और बच्चे की हत्या भी कर देता है, जिस का इंस्पेक्टर अविनाश को काफी मलाल होता है. शेख अग्रवाल के यहां उन के बेटे के अंतिम संस्कार में आता है और लोगों को सरकार के खिलाफ भड़काता है.

छठें एपीसोड में इंस्पेक्टर अविनाश का बेटा स्कूल से घर नहीं आता. इस के बाद पूरा पुलिस बल अविनाश के बेटे की तलाश में लग जाता है. तभी पता चलता है कि 40 बच्चों को ट्रक में भर कर तस्करी के लिए ले जाया जा रहा है.

अविनाश मिश्रा की टीम उन बच्चों को आजाद कराती है. अविनाश मिश्रा ड्राइवर को मार देते हैं. घर लौट कर आते हैं तो थोड़ी देर में उन का बच्चा आ जाता है. इस के बाद वह बबलू पांडेय के पीछे पड़ जाते हैं. बबलू इस से घबरा कर अपने आका शेख से मदद मांगता है. पर वह मदद करने के बजाय उसे दुत्कार कर भगा देता है.

बीचबीच में पारिवारिक ड्रामा चलता है. अस्पताल में भरती बलजीत का इलाज उस की पत्नी सुमन कर रही होती है. वह उस से संबंध सुधारने की कोशिश करता है.

दूसरी ओर बेटे की पुलिस की नौकरी से नफरत करने वाले अविनाश के पिता उसे धिक्कारते हैं कि राकेश अग्रवाल के बेटे की जगह उन का पोता वरुण भी हो सकता था. इसी के साथ फ्लैशबैक में इंस्पेक्टर अविनाश का बचपन दिखाया जाता है.

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कहानी आगे बढ़ती है तो कानपुर में एक बहुत ही दुखद घटना घट जाती है, जिस में एक 3 बदमाश घर में घुस कर लूटपाट तो करते ही हैं, साथ ही घर की 3 महिलाओं के साथ दुष्कर्म भी करते हैं. इस घटना से पूरा प्रदेश सिहर उठता है.

मामला एसटीएफ को सौंपा जाता है तो इंस्पेक्टर अविनाश अपनी टीम के साथ बदमाशों की खोज में लग जाते हैं. एक बदमाश का स्केच बनवा कर आखिर वह बदमाशों तक पहुंच ही जाते हैं और तीनों बदमाशों को मार गिराते हैं.

वेब सीरीज रिव्यू : इंस्पेक्टर अविनाश – भाग 1

लेखक: राहुल शुक्ला, समीर अरोड़ा, उत्कर्ष खुराना, संजय मासूम

निर्देशक: नीरज पाठक

कलाकार: रणदीप हुड्डा, अभिमन्यु सिंह, उर्वशी रौतेला, अमित सियाल, फ्रेडी दारूवाला, गोविंद नामदेव, जाकिर हुसैन, किरण कुमार, राहुल मित्रा, वरुण मिश्रा, वी शांतनु, प्रवीण सिंह सिसोदिया, आयशा एस. मेमन, संदीप चटर्जी, आकांक्षा पुरी आदि.

यह वेब सीरीज एक एंटरटेनिंग थ्रिलर है. उत्तर प्रदेश के सुपरकौप कहे जाने वाले अविनाश मिश्रा के किरदार में रणदीप हुड्डा ने खुद को बहुत ही शानदार तरीके से ढालने की कोशिश की है. उत्तर प्रदेश की भाषा भी वह अच्छी तरह बोल लेता है.

जियो सिनेमा पर 8 एपीसोड में रिलीज हुई वेब सीरीज ‘इंस्पेक्टर अविनाश’ के साथ उत्तर प्रदेश के एनकाउंटर स्पैशलिस्ट अविनाश मिश्रा एक बार फिर चर्चा में आ गए हैं. उत्तर प्रदेश के हमीरपुर में पैदा हुए अविनाश मिश्रा साल 1982 में पुलिस में भरती हुए थे.

एसटीएफ का गठन होने से ले कर साल 2009 तक वह एसटीएफ में रहे. डिप्टी एसपी के पद से वह रिटायर हुए थे. उन के पिता स्वतंत्रता सेनानी थे. वह बिलकुल नहीं चाहते थे कि बेटा पुलिस की नौकरी में जाए. लेकिन अविनाश मिश्रा की जिद थी पुलिस में जाने की. उन में अपराधियों के सफाए का जुनून था.

उत्तर प्रदेश के अपराधों से परिचय कराने वाली इस सीरीज के लेखकों ने सच्ची घटनाओं पर कहानी लिखने की कोशिश तो की है, पर देखा जाए तो वह बढिय़ा कहानी लिख नहीं पाए. जबकि इस के एक लेखक संजय मासूम ने मनोहर कहानियां के संपादकीय विभाग में कई सालों तक काम भी किया है और उन्होंने कई हिट फिल्मों के डायलौग भी लिखे हैं.

अगर किसी के जीवन पर कहानी लिखी जा रही है तो उस के जीवन की एकएक घटना को बारीकी से देखना और लिखना चाहिए. यह कोई फिल्म तो थी नहीं कि समय का बंधन था, इसलिए इसे और विस्तार से लिखा जा सकता था, जिस से सीरीज और ज्यादा रोमांचक और दर्शनीय बना जाती.

सीरीज में ऐसी तमाम कमियां हैं, जो दर्शकों को सीरीज में अधूरी सी लगती हैं और उस के रोमांच को भी कम करती हैं. साथ ही उसे सोचने पर मजबूर करती हैं कि उस का क्या हुआ होगा?

इंस्पेक्टर अविनाश जब बिट्टू चौबे का एनकाउंटर करते हैं तो अविनाश उस की पत्नी के हाथों में कुछ रुपए थमाते हैं, वह भी भीड़ के सामने. यह सीन तो बिलकुल हजम नहीं होता. डायरेक्टर को यहां पर ध्यान देना चाहिए था. वह उस की मदद अलग तरह से भी करवा सकते थे.

इस के अलावा जब भाटी की मौत होती है और यह पता चलता है कि उसे इंजेक्शन से जहर दिया गया था तो इस बात को बीच में छोड़ देना एक तेजतर्रार पुलिस वाले के लिए अच्छा नहीं लगता.

बबलू पांडेय की प्रेमिका पिंकी को लापता कर देना भी सोचने को मजबूर करता है, जबकि अग्रवाल के बेटे के अपहरण की वह एक मजबूत गवाह और कड़ी थी. उसी ने इंस्पेक्टर अविनाश की बबलू पांडेय से बात भी कराई थी. इसी तरह इंस्पेक्टर अविनाश का बेटा लापता होता है और फिर अचानक घर वापस आ जाता है, पर यहां यह नहीं बताया जाता कि वह कहां था.

इसी तरह की सीरीज में और भी तमाम कमियां हैं, जो एक सत्यकथा को झूठा साबित करने की कोशिश करती हैं.

इस ओर न तो डायरेक्टर ने ध्यान दिया, न लेखकों ने. इस सीरीज ने दर्शकों को अपनी ओर खींचा जरूर है, लेकिन लेखकों और डायरेक्टर ने बारीकी से एकएक बात पर ध्यान दिया होता तो शायद यह सीरीज और ज्यादा लोकप्रिय होती और मील का पत्थर भी साबित होती, साथ ही एक जीवित चरित्र को और लोकप्रियता दिलाती. इस में ऐसे तमाम दृश्य हैं, जो सत्य लगने के बजाय सिनेमाई लगते हैं, जो एक सत्यकथा को झूठा साबित करते हैं.

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पहले एपीसोड की शुरुआत में ही यानी प्रस्तावना में इंस्पेक्टर अविनाश का आतंक दिखाया गया है. एक थाने में अचानक एक माफिया सरगना महाकाल सिंह उपस्थित होता है, जिसे देख कर सारे पुलिस वाले घबरा जाते हैं. लेकिन पता चलता है कि वह माफिया थाने पर अटैक करने नहीं, बल्कि आत्मसमर्पण करने आया था. उस का कहना था कि जेल में रह कर वह जिंदा तो रहेगा, क्योंकि बाहर अविनाश मिश्रा उसे जीने नहीं देगा.

महाकाल सिंह की भूमिका किसी छोटेमोटे कलाकार ने की है. इस के बाद इंस्पेक्टर अविनाश मिश्रा ने एक माफिया नेता का एनकाउंटर गंगा में डुबकी लगा कर किया.

क्यों बनानी पड़ी एसटीएफ

कहानी में आगे न्यायालय परिसर में इंस्पेक्टर अविनाश मिश्रा को दिखाया जाता है, जहां उन के जिंदाबाद के नारे लग रहे होते हैं. न्यायालय में वह इसलिए आए हैं, क्योंकि उन पर 3 लड़कों के फरजी एनकाउंटर का आरोप था. उन्होंने न्यायालय में जज के सामने स्वीकार भी किया कि उन्होंने ही ये एनकाउंटर किए थे और मौकाएवारदात पर वह शराब पी कर गए थे.

इसी के बाद फ्लैशबैक में सीरीज शुरू होती है. इंस्पेक्टर अविनाश मिश्रा की भूमिका रणदीप हुड्डा ने की है. जैसा कि रणदीप के बारे में कहा जाता है कि वह एक अच्छा कलाकार है, उसी तरह उस ने इंस्पेक्टर अविनाश की भूमिका बखूबी निभाई भी है.

उस समय उत्तर प्रदेश में गुंडों का आतंक था. हालात यह थे कि एक माफिया (श्रीप्रकाश शुक्ला) ने तो मुख्यमंत्री की हत्या की सुपारी ले ली थी. ऐसे में राज्य के मुख्यमंत्री गृहमंत्री की उपस्थिति में पुलिस अधिकारियों की मीटिंग करते हैं.

मुख्यमंत्री की भूमिका में जहां किरण कुमार है, वहीं गृहमंत्री की भूमिका फ्रेडी दारूवाला ने की है. ये दोनों कलाकार भले ही मंझे हुए हैं, पर मुख्यमंत्री की भूमिका में न तो किरण कुमार ही जमता है और न ही गृहमंत्री की भूमिका में फ्रेडी दारूवाला. ये दोनों ही कलाकार नौटंकी करते लगते हैं.

मीटिंग में प्रदेश के डीजीपी समर प्रताप सिंह एक ऐसी पुलिस फोर्स गठित करने की बात करते हैं, जो प्रदेश के अपराधियों को काबू कर सके और उन्हें उन के किए की सजा दे सके.

डीजीपी समर प्रताप सिंह की भूमिका में जाकिर हुसैन है. वह सीरीज में दिखाई तो कम दिया है. इस के बाद स्पैशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) का गठन होता है, जिस में इंस्पेक्टर अविनाश मिश्रा को प्रभारी बनाया जाता है. इसी के बाद अपराधियों को काबू करने का मिशन शुरू होता है.

पहले एपीसोड में अयोध्या में आरडीएक्स पहुंचाने और एक मंदिर में बम रखने की घटना दिखाई जाती है. इंस्पेक्टर अविनाश की टीम पहले तो उन आतंकियों को चलती ट्रेन से पकड़ती है, उस के बाद मंदिर परिसर में रखे बमों को निष्क्रिय करती है. वैसे यह सब फिल्मी अंदाज में दिखाया जाता है.

इसी बीच धर्म को बढ़ावा देने वाली एक घटना दिखाई जाती है कि एक आतंकी, जो मंदिर में छिपा था, पुलिस के बीच से भागता है. पर जब इंस्पेक्टर अविनाश उसे फिल्मी अंदाज में पकड़ते हैं तो वह कहता है कि बस एक मिनट बाकी है. पूरी पुलिस फोर्स बम की तलाश में लग जाती है.

जब सभी ऊपरी मंजिल पर पहुंचते हैं तो देखते हैं कि बिजली के बौक्स के पास एक बंदर एक तार को पकड़ कर दांत से काट रहा है. उसे केला फेंक कर भगाया जाता है तो बम निष्क्रिय करने वाला एक्सपर्ट बताता है कि बंदर ने तो पहले ही तार काट कर बम निष्क्रिय कर दिया है. सभी श्रद्धा से बंदर की ओर देखते हैं.

यहां यह दृश्य फिल्मी लगता है, पर इस दृश्य को डाल कर जहां आस्था को भुनाने की कोशिश की गई लगती है. वहीं लोगों को आस्तिक बनाने की भी कोशिश की गई है.

दूसरे एपीसोड में शुरुआत में अविनाश मिश्रा को एक मुखबिर बरकत से मिलते दिखाया जाता है. तब इंस्पेक्टर अविनाश कहते हैं कि यही मुखबिर हमारी ताकत हैं, तंत्र हैं और मायाजाल हैं. इस के बाद एक दृश्य दिखाया जाता है, जिस में एक आदमी अपनी ही पत्नी के साथ जबरदस्ती सैक्स करता है. बाद में पता चलता है कि उस का नाम बिट्टू चौबे है, जो एक शूटर है. बिट्टू चौबे की भूमिका में रेश लांबा है, जो सचमुच में एक शूटर लगता है.

इस के बाद विपक्ष के एक कद्दावर नेता की बेटी किरन कौशिक की हत्या हो जाती है. इस मामले की जांच जो इंस्पेक्टर देवी कर रहा है, उस के साथ डीजीपी अविनाश मिश्रा को भी इस मामले की जांच करने के लिए कहते हैं. इंस्पेक्टर अविनाश को काल डिटेल्स से पता चलता है कि किरण का संबंध विधायक जगजीवन यादव से था. जगजीवन यादव की भूमिका में राहुल मित्रा है. यह कोई बहुत चर्चित कलाकार नहीं है.

जगजीवन यादव पर शक करने की वजह यह थी कि किरण और उस के बीच रात को लंबीलंबी बातें होती थीं. अविनाश जगजीवन यादव के पास पहुंच जाते हैं. उसे उस की असलियत बता कर धमकाते हैं. बदले में विधायक भी धमकी देता है. तब विधायक का एक आदमी इंस्पेक्टर को अलग ले जा कर फाइल दबाने की बात करता है. इस के बदले इंस्पेक्टर अविनाश अपने मुखबिर बरकत की मदद करने को कहते हैं.

सुलतान औफ दिल्ली (वेब सीरीज रिव्यू)

सुलतान औफ दिल्ली (वेब सीरीज रिव्यू) – भाग 4

मिलन लूथरिया निर्मातानिर्देशक के साथ गीतकार भी इस वेब सीरीज के लिए बने हैं. फिल्म में संगीत अनु मलिक, अमाल मलिक, संगीत और सिद्धार्थ ने दिया है. संगीत दर्शकों को सुनने में काफी अच्छा भी लगेगा. सस्पेंस और थ्रिलर के दौरान बजने वाला संगीत आप को 1978 में रिलीज हुई फिल्म ‘डान’ से मेल खाता हुआ नजर आएगा.

ताहिर राज भसीन

फिल्म के मुख्य किरदार ताहिर राज भसीन अभिनय का आजमाया हुआ चेहरा है. भसीन ने इस वेब सीरीज से पहले 2014 में ‘मर्दानी’ में नेगेटिव रोल किया है. मल्टीस्टारर फिल्म 2019 में आई ‘छिछोरे’ में भी उस ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

इस के अलावा रणवीर कपूर अभिनीत पहले वर्ल्ड कप क्रिकेट कप्तान कपिल देव की बायोपिक फिल्म ’83’ में ताहिर राज भसीन ने सुनील गावस्कर की भूमिका निभाई थी. भसीन का जन्म दिल्ली के पंजाबी परिवार में हुआ था. भसीन ने टीवी सीरियलों में भी काम किया था.

इतने सफल कलाकार होने के बावजूद वेब सीरीज की सफलता के लिए भसीन को अंग प्रदर्शन का सहारा लेना पड़ा. वेब सीरीज में एक अन्य अभिनेता निशांत दहिया को भी सफल कलाकार बनने के लिए अंग प्रदर्शन का सहारा लेना पड़ा. अभी तक वेब सीरीज में महिला कलाकारों से अंग प्रदर्शन का करार कर के उसे हिट कराने का काम डायरेक्टर करते चले आए हैं.

यह ओटीटी जगत में पुरुषों की फूहड़ता के बढ़ रहे चलन की तरफ इशारा कर रहा है. इस से पहले ओटीटी के लिए सैफ अली खान ने ऐसा किया था. इन दोनों कलाकारों ने जहां अपने कपड़ों को उतारा, वहां ऐसे कोई भी हालात नहीं बन रहे थे. इस के बावजूद फिल्म डायरेक्टरों ने प्रचार के लिए इस फूहड़ सीन को बना कर उसे प्रमोशन एजेंडा में शुमार कराया, ऐसा प्रतीत होता है.

इन दोनों शौट के दौरान शानदार डायलौग डिलीवरी होनी थी, जो नहीं हुई. अगर यहां डायलौग डिलीवरी होती तो डायरेक्टर को पुरुषों के न्यूड सीन के सक्सेस रेट की नहीं सूझती.

अंजुम शर्मा

फिल्म में ताहिर राज भसीन का करीबी दोस्त और वेब सीरीज के अंत में दर्शकों को काफी सदमा देने वाला चरित्र अंजुम शर्मा का है. यह अभिनेता भी अपने फिल्मों में बेहतर काम के चलते सुर्खियां बटोर रहा है. मुंबई में जन्मे अंजुम शर्मा ने वेब सीरीज में नीलेंदु बंगाली की भूमिका निभाई है.

वह पूरी फिल्म में 60 के दशक में रहने वाले स्मार्ट बौय के लुक में हैं. मिलन लूथरिया के साथ काम करने का उस के लिए यह दूसरा मौका था. इस से पहले वह ‘वंस अपान ए टाइम इन मुंबई’ में काम कर चुका है. इस के अलावा ‘मिर्जापुर’ में उस ने शरद शुक्ला की भूमिका निभाई थी.

अंजुम शर्मा ने ‘स्लम डौग मिलिनेयर’ से बौलीवुड में कदम रखा था. उसे काफी अरसे से सफलता की तलाश थी. वह अमिताभ बच्चन के साथ 2016 में बनी ‘वजीर’ में भी भूमिका निभा चुका है. ‘सुलतान औफ दिल्ली’ वेब सीरीज अर्जुन भाटिया और नीलेंदु बंगाली के आसपास बनाई गई है.

अनुप्रिया गोयनका

इस वेब सीरीज में अनुप्रिया गोयनका ने कई जगह संभोग और आलिंगन होने वाले शौट दिए हैं. मूलरूप से कानपुर की रहने वाली अनुप्रिया गोयनका ने जिस तरह से खुल कर फूहड़ता का प्रदर्शन किया, वह उस के लिए निकट भविष्य में काफी घातक साबित होगा. क्योंकि उस ने अपने बौलीवुड करिअर की शुरुआत विज्ञापनों से की थी, जिस में यूपीए सरकार के लिए बनाए गए विज्ञापनों में वह जगहजगह दिखाई गई थी. तब और अभी फिल्म के शौट उसे परेशान कर सकते हैं.

वेब सीरीज से पूर्व अनुप्रिया सलमान खान अभिनीत फिल्म ‘टाइगर जिंदा है’ में नर्स की महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा चुकी है. पिता कपड़ा कारोबारी रहे हैं. वह शाहिद कपूर की पत्नी का भी रोल संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘पद्मावत’ में निभा चुकी है. फिल्म जगत में भाग्य आजमाने वह 2008 में मुंबई पहुंची थी. इस वेब सीरीज से पहले ‘असुर 2’ और ऋतिक रोशन अभिनीत फिल्म ‘वार’ में भी अनुप्रिया काम कर चुकी है.

मौनी राय

‘सुलतान औफ दिल्ली’ में चौथा चेहरा मौनी राय के रूप में नयनतारा का दिखाया गया है. वह कोलकाता में बार डांसर दिखाई गई हैं. वेब सीरीज के आखिर में नीलेंदु बंगाली की पत्नी बनती है. लेकिन यह कब और कैसे हुआ, वह दर्शक पता नहीं कर सकेंगे.

इस के अलावा उस के बच्चा होने की भी जानकारी अचानक दर्शकों को मिलेगी. मौनी राय के साथ वेब सीरीज का मुख्य किरदार अर्जुन भाटिया संबंध बनाते हुए दिखेगा. यह भी कैसे हुआ, इस में सस्पेंस है. मौनी राय अपने हौट लुक के कारण सोशल मीडिया में काफी लोकप्रिय रहती है. उस ने अनेक टीवी सीरियलों में काम किया है.

वह एकता कपूर की छत्रछाया में बने सीरियल ‘सास भी कभी बहू थी’ और ‘नागिन’ में महत्त्वपूर्ण किरदार निभा चुकी है. इसी किरदार के कारण वह टेलीविजन जगत का काफी चर्चित चेहरा है. इस के अलावा 2011 में प्रदर्शित सीरियल ‘देवों के देव महादेव’ में भी अभिनय के कारण लोगों की निगाह में आ चुकी है.

मौनी राय का पश्चिम बंगाल में जन्म हुआ था. वह दिल्ली स्थित जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी से मास कम्युनिकेशन का कोर्स कर चुकी है. उन्होंने पहली बार अक्षय कुमार के साथ ‘गोल्ड’ फिल्म में उस की पत्नी का किरदार निभाया था. यह फिल्म 2018 में प्रदर्शित हुई थी. इस के बाद 2022 में प्रदर्शित ‘ब्रह्मïास्त्र’ फिल्म में भी काम कर चुकी है.

प्रस्तुति: केशव राज पांडे

सुलतान औफ दिल्ली (वेब सीरीज रिव्यू) – भाग 3

राजेंद्र प्रताप सिंह को फिल्म डायरेक्टरों ने पूरी तरह से नग्न दिखाया है. उसे नग्न हालत में संजना भी देख कर वहां से चली जाती है. इस के बाद वह सीधे अर्जुन भाटिया के घर पहुंचती है, जहां उसे प्रीति मिलती है. उधर, इटावा पहुंचने पर अर्जुन भाटिया और नीलेंदु बंगाली को पुलिस दबोच लेती है.

पुलिस दोनों का एनकाउंटर करती, उस से पहले जेल से जिसे छुड़ाया गया था, वह उन्हें बचाने में कामयाब हो जाता है. यहां पुलिस अधिकारी राज भी उजागर करता है कि उसे मारने के लिए जगन सेठ से टिप मिली थी. यह सब कुछ दर्शकों के सामने बहुत जल्दीजल्दी में बिना निरंतरता के साथ परोसा गया है. इसलिए सातवें एपिसोड में भी कहानी दर्शकों को जोड़ने में कामयाब नहीं रहती है.

इटावा जाते वक्त पुराने भाप के इंजन को दिखाया गया है, जिसे 90 के दशक में चलने वाली डीजल इंजन के जरिए चलते हुए आसानी से देख सकते हैं.

‘सुलतान औफ दिल्ली’ वेब सीरीज का आठवां एपिसोड ‘फ्यूड’ नाम से बनाया गया है, जिस में दिल्ली के स्थानीय माफिया मना करने के बावजूद दबाव में उस की छत्रछाया में काम करने के लिए राजी हो जाते हैं. अब जगन सेठ के बजाय दिल्ली की माफिया मंडी में अर्जुन भाटिया का सिक्का चलने लगता है. यह सब कुछ अर्जुन भाटिया की पत्नी की गोद भराई में होता है.

इसी कार्यक्रम में रक्षा सचिव को भी बुलाया जाता है. वह उसे पटना में उस का एक काम करने के लिए बोलता है, जिसे पूरा करने की जिम्मेदारी नीलेंदु बंगाली को मिलती है. लेकिन इस दौरान वह कुछ ऐसा बोलता है कि रक्षा सचिव को वह बात चुभती है. अफसर के जाने के बाद थोड़ी नोंकझोंक अर्जुन भाटिया के साथ नीलेंदु की होती है.

उसी दौरान कार्यक्रम में बुलाए गए राजेंद्र प्रताप सिंह नीलेंदु को उस के साथ काम करने का प्रस्ताव देता है, जिसे वह एक सिरे से खारिज कर देता है.

जगन सेठ के लिए काम करने वाला अर्जुन भाटिया एबी प्राइवेट लिमिटेड नाम से कंपनी चलाता है, जिस में उस का पार्टनर नीलेंदु भी होता है. वह काम करने के लिए पटना जाता है. वहां पहुंचने से पहले नीलेंदु शराब पी लेता है. जिस कारण नशे में बनता हुआ काम भी बिगड़ जाता है.

इधर, राजेंद्र प्रताप सिंह का शिप जिस में हथियारों का कंसाइनमेंट होता है, वह खराब हो जाता है. उसे ले जाने वाले को चुप रहने के लिए राजेंद्र प्रताप सिंह कहता है. उधर, उस की पत्नी एक बच्ची को जन्म देती है, जिस से वह नाखुश नजर आता है.

वह बेटी का मुंह देखने के बजाय पत्नी को अस्पताल में छोड़ जाता है. इस एपिसोड में भी दर्शकों के लिए दोनों डायरेक्टर बेवकूफी के अलावा कोई उत्साह पैदा करने में कामयाब नहीं हो पाते हैं. एपिसोड के अंत में अर्जुन और नीलेंदु की कट्टर दोस्ती को आसानी से टूटते हुए दिखाया गया है.

वेब सीरीज का नौवां एपिसोड दर्शकों को पसंद आने के बजाय मातम मनाने वाला ज्यादा है. नीलेंदु बंगाली जो अपने करीबी दोस्त अर्जुन भाटिया का मुखबिर हो जाता है, वेब सीरीज में उस का अचानक एक ट्रक जिस में लड़की सप्लाई और चरस बेचने की बात सिर्फ सुनाई दी है.

यह धंधा कब और कैसे करने लगता है, पहले से आठवें एपिसोड में यह साफ नहीं होता है. उस का ट्रक पलट जाता है, जिस में सारी लड़कियां बेवजह मारी जाती हैं. इस का आरोप वह संधू पर लगा देता है और पुलिस को सौंप देता है. अर्जुन भाटिया को यह भी पता चल जाता है कि संधू और नीलेंदु मिल कर राजेंद्र प्रताप सिंह के लिए मुखबिरी कर रहे होते हैं.

नीलेंदु कोलकाता पहुंच जाता है, उस को राजेंद्र के एक आदमी डेनियल को बौर्डर पार कराने की जिम्मेदारी उसे देता है. इस की जानकारी अर्जुन भाटिया को लग जाती है. इधर, अचानक संजना भी अर्जुन के लिए आवेश में आने लगती है. उस की झड़प राजेंद्र प्रताप सिंह से होती है और फिर धक्का लगने से गिर कर वह मर जाती है.

मरने के बाद उपजे कोई हालात वेब सीरीज में देखने को नहीं मिलेंगे. कोलकाता में फिल्म डायरेक्टर की मदद से अर्जुन भाटिया वहां पहुंच जाता है जहां डेनियल को छिपा कर नीलेंदु बंगाली रखता है. यहां डायरेक्टर फिर एक मूर्खता दिखाई है. एक तरफ डेनियल को वह अपने काबू में करना दिखाते हैं. इसी बीच कब नीलेंदु किन हालात में भाग जाता है, यह रहस्य दर्शकों को नहीं मिलेगा.

इस के बाद सीधा फोन राजेंद्र प्रताप सिंह को लगता है. अर्जुन भाटिया कहता है कि उसे डेनियल के बदले में नीलेंदु चाहिए. दोनों रेलवे क्रासिंग पर मिलते हैं. यहां अर्जुन बांह फैला कर नीलेंदु को गले लगाता है और अचानक उसे ट्रेन के सामने फेंक देता है.

उस के मरने की जानकारी उस की पत्नी नयनतारा को देता है. साथ में वह नीलेंदु के हिस्से की रकम भी देता है. इधर, दूसरे सीन में शंकरी देवी कहती है कि अर्जुन के दोस्त की जगह आज वह होता.

यह बात सुनने के बाद राजेंद्र प्रताप सिंह बाथटब में डुबो कर उसे भी मार देता है. उधर, एक बार फिर अचानक अर्जुन भाटिया अपने दोस्त नीलेंदु की पत्नी के पास पहुंचता है और उस के साथ शारीरिक संबंध बनाने लगता है. यानी डायरेक्टरों ने एक बार फिर फूहड़ता दिखाई है. यहां एपिसोड खत्म हो जाता है.

आखिर 2 डायरेक्टरों ने मिल कर दर्शकों की भावनाओं को काफी ठेस पहुंचाई है. उन्हें वेब सीरीज में कोई भी मसाला या संदेश नहीं मिलता. दर्शकों को सिर्फ साढ़े 5 घंटे तक बोझ में बनाए रखा कि आखिर वह उसे देख क्यों रहे हैं.

सुपर्ण एस. वर्मा एवं मिलन लूथरिया

सुलतान औफ दिल्ली वेब सीरीज अर्णब रे की किताब पर आधारित है, जिस का स्क्रीनप्ले सुपर्ण एस. वर्मा ने लिखा है. वेब सीरीज का डायरेक्शन सुपर्ण एस. वर्मा और मिलन लूथरिया ने मिल कर किया है. यह वेब सीरीज हिंदी के अलावा 6 अन्य भाषाओं तमिल, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम, बंगाली और मराठी में भी रिलीज हुई है. वेब सीरीज की शूटिंग मुंबई के साथसाथ पंजाब और गुजरात में भी हुई है.

सुपर्ण एस.वर्मा काफी संवेदनशील फिल्म डायरेक्टर रहे हैं. वह ‘फैमिली मैन’ के दूसरे सीजन के 5 एपिसोड को भी डायरेक्ट कर चुके हैं. वे उसी वेब सीरीज के दूसरे एपिसोड में वह मुख्य कलाकार मनोज बाजपेयी के सामने जर्नलिस्ट उमेश जोशी बन कर आते भी हैं. करीब 2 मिनट के इस अंश में उन्होंने पत्रकार के जीवन को साकार करने का प्रयास किया.

सुपर्ण एस. वर्मा वास्तविक जीवन में पत्रकार रहे थे. इस के बाद वह फिल्म डायरेक्शन के क्षेत्र में आए. इस के पहले वह 2023 में ही ‘राणा नायडू’ और ‘द ट्रायल’ वेब सीरीज को भी डायरेक्ट कर चुके हैं. वेब सीरीज के दूसरे डायरेक्टर मिलन लूथरिया महेश भट्ट के भतीजे हैं. यह उन की असली पहचान नहीं है. वह क्राइम बेस्ड फिल्मों को बनाने के जानकार माने जाते हैं.

लूथरिया ने 1993 में आई ‘लुटेरा’ फिल्म से करिअर की शुरुआत की थी. उन्होंने 2007 में ‘वंस अपान ए टाइम इन मुंबई’ अजय देवगन और सैफ अली खान अभिनीत 1999 में बनी फिल्म ‘कच्चे धागे’, अमिताभ बच्चन और संजय दत्त, अक्षय खन्ना अभिनीत 2014 में प्रदर्शित ‘दीवार’ फिल्म बना चुके हैं.

इस के अलावा जौन अब्राहम, नाना पाटेकर के साथ 2006 में ‘टैक्सी नंबर 9211’ जैसी कई सफल फिल्मों का निर्माण किया है. ऐसे 2 धुरंधरों से ‘सुलतान औफ दिल्ली’ वेब सीरीज को बनाने में कई तरह की तकनीकी चूक हुई है.

‘सुलतान औफ दिल्ली’ वेब सीरीज डेढ़ दरजन कलाकारों को ले कर बनाई गई है.  इस में करीब 70 स्टंटमैन और 11 लोकेशन मैनेजर लिए गए, जिन्होंने शौट को फिल्माने में बखूबी काम किया. सभी लोकेशन शानदार थे और मुठभेड़ कहीं से सतही नहीं मान सकते. लेकिन, वे दर्शकों को जोड़ने में संवादहीनता के कारण पिट गए.

सुलतान औफ दिल्ली (वेब सीरीज रिव्यू) – भाग 2

जब अर्जुन भाटिया और नीलेंदु बंगाली हीरा ले रहे होते हैं, तब पुलिस वहां छापा मार कर सभी को गिरफ्तार कर ले जाती है. जहां गिरफ्तारी होती है वहां गुप्त स्थान पर दोनों छिपे होते हैं. अर्जुन और नीलेंदु यह जान जाते हैं कि पुलिस के पास उन के हुलिए का स्कैच मौजूद है.

हालांकि स्कैच बनाते वक्त हीरा कारोबारी फिल्मी मैग्जीन के चेहरे देख कर हुलिया पुलिस को नोट करा देता है. यह बात छिपे अर्जुन और नीलेंदु नहीं जानते थे. इस कारण नीलेंदु फोन लगा कर एयरहोस्टेस से वापस जाने का समय पूछता है. उसी वक्त दोनों भी एयरपोर्ट पहुंच जाते हैं.

यहां एयरहोस्टेस के पर्स में मौका मिलते ही अर्जुन भाटिया हीरा छिपा देता है, जिसे नीलेंदु हवाई जहाज के शौचालय में ही एयरहोस्टेस के पर्स से निकाल लेता है. वह उस के साथ ही एयरहोस्टेस के घर जाता है.

यह बात अर्जुन भाटिया फोन कर के जगन सेठ को बता देता है. उस वक्त राजेंद्र प्रताप सिंह भी वहां मौजूद होता है. यहां शंकरी देवी उस को कहती है कि जगन सेठ के सामने वह कमजोर साबित हो रहा है. इसलिए कोई चालाकी करनी होगी. जिस के बाद पुलिस की रेड पड़ती है. जहां रेड पड़ती है, वहां नीलेंदु बंगाली एयरहोस्टेस के कमरे में होता है. पुलिस को आते हुए अर्जुन भाटिया देखता है और वह नीलेंदु को बचाने के लिए कूद पड़ता है.

अर्जुन भाटिया पुलिस वालों के पैरों में गोली मारता है. इसी बीच एक गोली पुलिस वाले के सिर पर जा कर लगती है. लेकिन, वह अर्जुन भाटिया की गन से नहीं चलती. वह कुछ समझता, तब तक नीलेंदु तो भाग जाता है और अर्जुन भाटिया पुलिस की पकड़ में आ जाता है.

वेब सीरीज का पांचवां एपिसोड मध्यांतर तक काफी बोरियत भरा है. डायरेक्टर अर्जुन भाटिया की कहानी के साथ न्याय नहीं कर सके. इस में कोई दोराय नहीं है कि कास्ट किए गए कलाकार नाम के लिए मोहताज हैं, लेकिन डायरेक्टरों का नजरिया उन के अभिनय को कमजोर करता चला गया.

पांचवें एपिसोड का शीर्षक ‘रूल्स औफ द गेम’ है. हालांकि रूल और गेम दर्शकों को अमूमन हर एपिसोड में सोचसोच कर तलाशने पड़ेंगे.

पांचवें एपिसोड में अर्जुन भाटिया की प्रेमिका संजना पर राजेंद्र प्रताप सिंह डोरे डालने लगता है. इधर, अर्जुन को जेल से छुड़ाने के लिए जगन सेठ वकील से ले कर तमाम दांवपेंच लगाता है. लेकिन, इन्हें डायरेक्टर सटीक तरीके से पेश करने में कामयाब नहीं हुए.

वेब सीरीज में जान डालने के लिए डायरेक्टर के नजरिए पुलिस का थर्ड डिग्री अर्जुन भाटिया पर फिल्माया गया. यह काफी बोझिल है, जिस में जान फूंकना संभव ही नहीं है. डायलौग डिलीवरी से ले कर सीन क्रिएशन में चुतियापा किया है.

हवालात और पुलिस के बीच में कोई तालमेल नहीं रहा. जबकि अर्जुन भाटिया ने कई पुलिस वालों को गोली मारी थी, उसे बेहद हलके में प्रस्तुत कर दिया गया. जबकि मीडिया और जगन सेठ पर उस की आंच डायरेक्टर दिखा ही नहीं सके.

डायरेक्टरों की सब से ज्यादा बेवकूफी तब लगी, जब जगन सेठ की परछाई बने रहने वाले संधू का राज वह अचानक खोल देते हैं. दरअसल, अर्जुन अपनी प्रेमिका की शादी राजेंद्र प्रताप सिंह के साथ होने को ले कर नाराज चल रहा होता है. वह उस से बदला लेना चाहता है, जिसे बड़ी आसानी से जगन सेठ भांप लेता है. वह उसे समझता है कि अभी बदला लेने का वक्त नहीं है.

तब अर्जुन कहता है कि पुलिस वाले को दूसरी गोली किस ने मारी, यह पता लगाया जाना चाहिए. ऐसा कहते ही डायरेक्टर संधू की तरफ कैमरा ले जाते हैं और पूरा राज बड़ी आसानी से खोल देते हैं.

पांचवें एपिसोड में यह साफ हो जाता है कि संधू सोचीसमझी रणनीति के तहत राजेंद्र प्रताप सिंह के लिए काम कर रहा है. इधर, राजेंद्र प्रताप सिंह सुहागरात की सेज पर संजना के सामने अर्जुन का नाम ले कर यह बता देता है कि वह उस के सारे राज जानता है.

‘सुलतान औफ दिल्ली’ वेब सीरीज के छठें एपिसोड की शुरुआत बिना मतलब बैंक डकैती से होती है. इस एपिसोड का नाम ‘नाइट्स इन वाइट सैटिन’ दिया गया है.

जगन सेठ के कहने पर कोलकाता के फिल्म डायरेक्टर को हथियारों की डिलीवरी देने अर्जुन भाटिया और नीलेंदु बंगाली जाते हैं. वहां फिल्म डायरेक्टर बैंक लूटने के लिए प्रपोजल रख देता है. बैंक लूटने से पहले अर्जुन और नीलेंदु एक क्लब में पहुंचते हैं.

यहां बार डांसर के रूप में नयनतारा दर्शकों के सामने आती है. वह आइटम सांग गाती है जिस के बोल दर्शकों के जेहन पर कोई प्रभाव नहीं डाल सके. वहीं संगीत आर.डी. बर्मन पैटर्न पर बना कर काफी आकर्षक जरूर लगा है. यहां नयनतारा नीलेंदु से दोस्ती करती है, लेकिन निगाहें अर्जुन पर रहती हैं. वह फिल्म डायरेक्टर के शूटिंग में पहुंचती है.

यहां वास्तविक फिल्म डायरेक्टर ने पुलिस प्रशासन की व्यवस्था को बौना साबित किया है. वह भी कोलकाता जैसे शहर में, पुलिस कमिश्नर के सामने डाकघर में जमा सारी नकदी लूटी जाती है. उस के बावजूद एक बार फिर यहां मीडिया का हंगामा और किसी तरह का कवरेज नहीं दिखाया गया.

बैंक डकैती के बाद आसानी से अर्जुन भाटिया दिल्ली लौट आता है. उसे लौटने के लिए जगन सेठ कहता है. क्योंकि उसे इस बात का अहसास हो जाता है कि राजेंद्र प्रताप सिंह उस के साथ कोई गेम खेल रहा है. वहीं जगन सेठ अपना चुनाव हार जाता है.

इधर, राजेंद्र प्रताप सिंह अपने इरादे खुल कर जगन सेठ को बता देता है. ऐसा करते वक्त उस के सामने शंकरी देवी आती है, जिस को जगन सेठ पहले से जानता है लेकिन अर्जुन भाटिया बेखबर होता है. शंकरी देवी सुनियोजित तरीके से जगन सेठ को कहती है कि उस के एंपायर पर अर्जुन भाटिया बैठने जा रहा है. यह सब कुछ बेहद हलके तरीके से दोनों डायरेक्टरों ने पेश किया है.

फिल्म में दर्शकों के लिए उत्साह पैदा करने के लिए एपिसोड के मध्यांतर से पहले संजना के साथ शारीरिक संबंध बनाते हुए राजेंद्र प्रताप सिंह को दिखाया गया है. इस से ऐसा लगता है कि डायरेक्टर इंटीमेट सीन के लिए पगलाए हुए हैं. यानी उन के भेजे में यही फूहड़ता भरी हुई है. ऐसा करते वक्त शंकरी देवी भी वहां आती है. यह एपिसोड भी दर्शकों में कोई प्रभाव नहीं डाल सका.

सुलतान औफ दिल्ली वेब सीरीज के सातवें एपिसोड में दर्शक हैरान रह जाएंगे. दरअसल, 3 साल पहले का बता कर एक अचंभित करने वाला दृश्य सामने आता है. अर्जुन भाटिया को अपना पिता मिलता है. वह पिता जिस को उस ने पहले एपिसोड में जला दिया था. हालांकि यह नहीं बताया गया था कि वह मरा है कि जीवित.

इस सस्पेंस को दोनों डायरेक्टर सातवें एपिसोड में खोलते हैं. पिता उसे दोबारा मिलता है, जिस को शराब पीने की बुरी लत लगी होती है. वह अपने बेटे से कहता है कि उसे मार दे. ऐसा कहने पर अर्जुन भाटिया उसे उठा कर डैम में फेंक देता है.

इधर, राजेंद्र प्रताप सिंह के कहने पर जमुना प्रसाद जो सरकारी अधिकारी है और गन बनाने के ठेके देता है, वह जगन सेठ के ठिकानों पर छापे मारता है. हालांकि उस से पहले अर्जुन भाटिया उन अवैध हथियारों को फारुख मस्तान के ठिकानों पर छिपाने में कामयाब हो जाता है.

उस वक्त जश्न में नीलेंदु और अर्जुन को जगन सेठ के गुर्गे बौस बोल कर गोद में उठा लेते हैं. यह बात उसे चुभती है और शंकरी देवी की बोली बात याद आती है. इसी एपिसोड में जगन सेठ दोनों को सुनियोजित तरीके से ठिकाने लगाने के बहाने इटावा भेज देता है, जहां रास्ते में जाते वक्त अर्जुन और नीलेंदु अपना राज बताते हैं. जबकि पूरे एपिसोड में उन की घनिष्ठता बताने के लिए डायरेक्टर ने दूसरा एपिसोड बनाया था.

नीलेंदु बताता है कि वह कोलकाता की बार डांसर नयनतारा को पत्नी बनाने वाला है. वहीं अर्जुन कहता है कि वह उस गैरेज मालिक की बेटी प्रीति से शादी करने जा रहा है, जिस के यहां पर वह पहले नौकरी करता था. इधर, राजेंद्र प्रताप सिंह की चाल जब खरी नहीं उतरती है तो वह शंकरी देवी के साथ शारीरिक संबंध आवेश में बनाता है.

ऐसा करते वक्त शंकरी देवी काफी चीखती है और उसे रोकना चाहती है. वह जब नहीं रुकता है तो शंकरी देवी कहती है कि वह भविष्य में उस की मरजी के बिना उसे टच भी नहीं कर सकेगा. तभी वहां जबरिया राजेंद्र प्रताप सिंह की पत्नी संजना पहुंच जाती है.