विचित्र संयोग : चक्रव्यूह का भयंकर परिणाम – भाग 2

इमारत के चारों और घूमते हुए पीछे एक जगह रुक कर प्रकाश राय ने खन्ना से पूछा, “ये कमरे किस के है?”

“सफाई कर्मचारियों और वाचमैन के .”

“कितने वाचमैन हैं?”

“2 हैं. इन की ड्यूटी 2 शिफ्टों में है. सुबह 8 बजे से रात 8 बजे और रात 8 बजे से सवेरे 8 बजे तक.”

“इन के खाने की छुट्टी?”

“वो तो सर, ये अपनी सुविधा के अनुसार खाने जाते हैं. वैसे भी यह समस्या पहली शिफ्ट में आती है. ज्यादातर ये अपना खाना साथ लाते हैं. इसी कमरे में वे खाना खाते हैं. तब तक हम यहां के स्वीपर को गेट पर बैठा देते हैं.”

“दोनों के नाम क्या हैं और इन के घर कहां है?”

“कल नाइट शिफ्ट पर नारायण था. वह सेक्टर-10 में रहता है. मौर्निंग शिफ्ट में जो अभी पौने 8 बजे आया है, उस का नाम भास्कर है, वह खोड़ा में रहता है.”

“अच्छा, यहां स्वीपर कितने हैं?”

“एक ही है साहब, रणधीर और उस की पत्नी देविका. ये दोनों अपने दोनों बच्चों के साथ यहीं रहते हैं. बाहर का काम रणधीर और टायलेट वगैरह साफ करने का काम देविका करती है.”

खन्ना से बात करतेकरते प्रकाश राय इमारत के गेट पर आ गए. तभी एसएसपी, एसपी और सीओ भी आ गए. इन्हीं अधिकारियों के साथ डौग स्क्वायड की टीम भी आई थी. ऊपर जांच चल रही थी. प्रकाश राय एक सिपाही के साथ नीचे रुक गए, बाकी सभी अधिकारी ऊपर चले गए.

प्रकाश राय देविका के बारे में सोच रहे थे. वह सभी के घर में आजा सकती थी. वाचमैन जरूरी काम के बिना किसी फ्लैट में जा नहीं सकते थे. नारायण जो रात की ड्यूटी पर था, उसी के रहते हत्या हुई थी. लेकिन उस से पूछताछ करने पर प्रकाश राय के हाथ कोई सूत्र नहीं लगा. उस ने धनंजय को मीट ले आने जाते और लौटते देखा था बस.

“अच्छा नारायण, धनंजय साहब के जाने के बाद तुम यहीं थे क्या? यहां से कहीं नहीं गए?”

“साहब, मैं यहां से वहां राउंड मार रहा था और नीचे की लाइन बंद कर रहा था. रणधीर ने पंप चालू किया या नहीं, यह

देखने भी गया था.”

“यानी इस दौरान कोई ऊपर जा सकता था?”

“साहब, आप जो कह रहे हैं, वह संभव है.”

“अच्छा नारायण, सुबह तुम ने किसी अनजान आदमी को बाहर जाते तो नहीं देखा?”

“साहब, मेरे रहते कोई अंदर गया ही नहीं तो बाहर कैसे…?”

“सुनो नारायण, रात को ही कोई अंदर आ गया होगा या किसी के यहां मेहमान के रूप में आया होगा तो…?”

नारायण चुप हो गया. उसे अपनी बुद्धि पर तरस आने लगा. कुछ सोच कर बोला, “साहब, दूध वाला और पेपर वाला, ये दोनों आए थे. गनपत दूध वाला जब आया था, धनंजय साहब घर में ही थे. उन्होंने ही दूध लिया होगा. उस के जाने के बाद ही वह मीट लेने चले गए थे. वह ‘ए’ विंग के 7 फ्लैटों में दूध सप्लाई करता है, बाकी के सभी लोग 9 बजे डेयरी की गाड़ी से दूध लेते हैं.”

“पेपरवाला नरेश धनंजय साहब के जाने के बाद आया था. 2-3 मिनट में ही वह लौट गया था. सिर्फ एक व्यक्ति मुझे याद है रणधीर. धनंजय साहब के जाने के बाद रणधीर सफाईवाला झाडू और प्लास्टिक की बाल्टी ले कर सीढिय़ां साफ करने गया था. धनंजय साहब के लौटने से पहले नीचे आ कर वह ‘बी’ इमारत मे चला गया था.”

“ठीक है नारायण.” कह कर प्रकाश राय ने इशारे से सिपाही को पास बुला कर कहा, “तुम किसी बहाने से बाहर जाओ और थोड़ी देर बाद लौट कर नारायण से गप्पें मारते हुए रणधीर के बारे में कुछ पता लगाने की कोशिश करो.”

प्रकाश राय के ऊपर पहुंचते ही दयाशंकर ने धनंजय से उन का परिचय कराया. धनंजय के कंधे पर हाथ रखते हुए और सहानुभूति जताते हुए प्रकाश राय ने कहा, “धनंजय, तुम्हारे साथ जो हुआ, उस का मुझे बेहद अफसोस है. मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूं कि अगर तुम्हारा सहयोग मिलेगा तो मैं खूनी को कानून के शिकंजे में जकड़ कर ही रहूंगा. आओ, अंदर चलते हैं.”

अंदर फिंगरप्रिंट्स वाले प्रिंट्स की तलाश में लगे थे और फोटोग्राफर फोटो खींच रहा था. प्रकाश राय ने खून से लथपथ रोहिणी की लाश देखी. फिर वह कमरे का निरीक्षण करने लगे. वह सिर्फ एक ही बात सोच रहे थे कि हत्यारा मुख्य द्वार से आया था या दरवाजे से लग कर जो पैसेज है उस में से किचन पार कर के आया था? पैसेज की जांच के लिए वह किचन के दरवाजे पर आए तो किचन टेबल पर ढेर सारा मीट और मछलियां देख कर चौंके. खाने वाले सिर्फ 2 और सामान इतना.

प्रकाश राय बैडरूम में लौट आए. सबइंसपेक्टर दयाशंकर और एएसआई राजेंद्र सिंह अलमारी को सील कर रहे थे. आश्चर्य की बात यह थी कि अलमारी का लौकर खुला था. उस में चाबियां लटक रही थीं. अलमारी का सारा सामान ज्यों का त्यों था, जो इस बात का प्रमाण था कि हत्यारे ने सिर्फ लौकर का माल साफ किया था.

बैडरूम में दूसरी अलमारी भी थी. उसे हाथ नहीं लगाया गया था. दयाशंकर ने प्रकाश राय की ओर प्रश्नभरी नजरों से देखा और फिर धनंजय से कहा, “मिस्टर विश्वास, आप जरा यह अलमारी खोलने की मेहरबानी करेंगे?”

धनंजय ने एक बार प्रकाश राय को और फिर दयाशंकर की ओर देखते हुए पूछा, “मैं इन चाबियों को हाथ लगा सकता हूं?”

प्रकाश राय ने फिंगरप्रिंट्स एक्सपर्ट को प्रश्नभरी नजरों से देखा. एक्सपर्ट ने गर्दन हिलाते हुए अनुमति दे दी. धनंजय ने पहली अलमारी से चाबी निकाल कर दूसरी अलमारी खोली. प्रकाश राय ने गौर से देखा, अलमारी का सारा सामान ज्यों का त्यों था. कहीं कोई उलटपुलट नहीं की गई थी.

पहली अलमारी के लौकर से चोरी गए सामान के बारे में धनंजय से पूछा, “धनंजय, तुम्हारे अंदाज से कितना सामान चोरी गया होगा?”

“रोहिणी के जेवरात ही लगभग 30-40 लाख रुपए के थे. 40-42 हजार नकदी भी थी.”

“इतनी नकदी तुम घर में रखते हो?”

“नहीं साहब, कल शनिवार था, रोहिणी ने 40 हजार रुपए बैंक से निकाले थे. बैंक में हम दोनों का जौइंट एकाउंट है. कल सवेरे यह रकम मैं एक टूरिस्ट कंपनी में जमा कराने वाला था.”

“कारण?”

“अगले महीने मैं और रोहिणी घूमने के लिए जाने वाले थे.” कहते हुए उस ने प्रकाश राय को चेकबुक थमा दी. उन्होंने चेकबुक देखा. धनंजय सही कह रहा था. राजेंद्र सिंह को चेकबुक देते हुए उन्होंने कहा, “राजेंद्र सिंह, इस चेकबुक को भी कब्जे में ले लो और ‘एवन ट्रैवेल्स’ के एजेंट का स्टेटमेंट भी ले लो. रकम बरामद होने पर प्रमाण के रूप में यह सब काम आएगा.”

इस के बाद गैलरी में आ कर प्रकाश राय ने इशारे से एक सिपाही को बुला कर दबी आवाज में कहा, “तुम नीचे जा कर रणधीर से बातें करो और किसी बहाने से उस के घर में जा कर देखो, कहीं कुछ सामान दिखाई देता है क्या? रणधीर संदिग्ध है. बात करतेकरते उस से कहो कि साहब को नारायण पर शक है. वह जरूर कुछ न कुछ बताएगा.”

सिपाही के रवाना होते ही प्रकाश राय किचन में आए. एसआई दयाशंकर और एएसआई राजेंद्र सिंह किचन का निरीक्षण कर रहे थे. प्रकाश राय ने धनंजय से कहा, “धनंजय साहब, बुरा मत मानिएगा. मैं एक बात जानना चाहता हूं. तुम और रोहिणी, सिर्फ 2 लोग हो, इस के बावजूद इतना सारा गोश्त और मछली?”

“साहब, आज मेरे घर पार्टी थी. मेरे औफिस के 2 अधिकारी आशीष तनेजा और देवेश तिवारी अपनीअपनी बीवियों के साथ खाना खाने आने वाले थे. बारीबारी से हम तीनों एकदूसरे के घर अपनी पत्नियों सहित जमा होते हैं और खातेपीते हैं. इस रविवार को मेरे यहां इकट्ठा होना था.”

“तुम हमेशा फाइन चिकन एंड मीट शौप से ही मीट लाते हो?”

“जी सर.”

इतने में सचमुच आशीष तनेजा और देवेश तिवारी अपनीअपनी पत्नियों के साथ धनंजय के घर आ पहुंचे. रोहिणी की हत्या के बारे में सुन कर वे कांप उठे. सक्सेना उन्हें अपने फ्लैट में ले गए. सवेरे 9 बजे धनंजय के मातापिता भी अलकनंदा आ पहुंचे थे. सक्सेना ने फोन कर के उन से कहा था कि रोहिणी सीरियस है. सक्सेना ने दिल्ली में रह रहे रोहिणी के मातापिता को भी खबर कर दी थी.

कंजूस पिता की ज़िद का नतीजा – भाग 2

पुलिस को यह बात पहले ही पता लग चुकी थी कि हमलावर जिस मोटरसाइकिल से आए थे वह हरियाणा की थी. लाल कमल भी हरियाणा में ही रह रहा था. इस से पुलिस को शक होने लगा कि कहीं लाल कमल ने ही तो पिता को ठिकाने नहीं लगवा दिया. उस के फोन नंबर की भी काल डिटेल्स निकलवाई गई तो पता चला कि घटना वाले दिन उस के फोन की लोकेशन पानीपत में ही थी.

फिर भी पुलिस टीम लाल कमल पुंज से पूछताछ करने के लिए पानीपत पहुंच गई. पुलिस ने जब उस से उस के पिता की हत्या के बारे में मालूमात की तो उस ने बताया कि उन के मर्डर की सूचना निष्ठा ने दी थी. उस के बाद ही वह दिल्ली गया था.

‘‘क्या तुम्हारे पास कोई मोटरसाइकिल है?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘हां सर, मेरे पास हीरो की पैशन बाइक है.’’ लाल कमल ने बताया.

पारसराम पर हमला करने के बाद हमलावर लाल रंग की पैशन बाइक से फरार हुए थे इसलिए पुलिस को लाल कमल पर शक होने लगा. पुलिस ने उस से कुछ कहने के बजाए उस के दोस्तों से पूछताछ की तो पता चला कि कमल अपने पिता से  नाराज रहता था. उन्होंने उसे अपनी प्रौपर्टी से हिस्सा देने से मना कर दिया था.

इस जानकारी के बाद पुलिस का शक विश्वास में बदलने लगा. बिना किसी सुबूत के पुलिस लाल कमल को टच करना ठीक नहीं समझ रही थी. इसलिए वह सुबूत जुटाने में लग गईर्. पुलिस को लाल कमल की बाइक का नंबर भी मिल गया था. अब पुलिस यह जानने की कोशिश करने लगी कि 21 अक्तूबर को कमल की बाइक दिल्ली आई थी या नहीं.

पारसराम पुंज की हत्या 21 अक्तूबर को हुई थी. इसलिए पुलिस ने पानीपत से दिल्ली वाले रोड पर जितने भी पेट्रौल थे, सब के सीसीटीवी कैमरों की घटना से 2 हफ्ते पहले तक की फुटेज देखी कि कहीं कमल ने किसी पेट्रोल पंप पर पैट्रोल तो नहीं भराया था. इस काम में कई दिन लगे लेकिन कोई सफलता नहीं मिली.

दिल्ली पुलिस ने करनाल हाइवे पर कई सीसीटीवी कैमरे लगा रखे हैं. उन कैमरों की मानिटरिंग अलीपुर थाने में होती है और वहीं पर उन कैमरों की डिजिटल वीडियो रिकौर्डिंग होती है. थानाप्रभारी शैलेंद्र तोमर, इंसपेक्टर रमेश कलसन और हेड कांस्टेबल सत्यप्रकाश ने थाना अलीपुर जा कर 21 अक्तूबर 2013 की फुटेज देखी. उस हाईवे पर रोजाना हजारों की संख्या में वाहन गुजरते हैं, इसलिए 2-3 दिनों तक फुटेज देखने की वजह से उन की आंखें भी सूज गई. लेकिन सफलता की उम्मीद में उन्होंने इस की परवाह नहीं की. वह अपने मिशन में लगे रहे.

उन की कोशिश रंग लाई. फुटेज में लाल कमल पुंज की पैशन मोटरसाइकिल नंबर एचआर 60 डी 7511 दिखाई दे गई. बाइक चलाने वाले के अलावा उस पर एक युवक और बैठा था. कपड़ों और कदकाठी से लग रहा था कि बाइक लाल कमल चला रहा था. रिकौर्डिंग में उस बाइक की दिल्ली आते समय और रात को दिल्ली से जाते समय की फुटेज मौजूद थी. यह सुबूत मिलने के बाद पुलिस ने लाल कमल पुंज से फिर पूछताछ की तो उस ने बताया कि 21 अक्तूबर को वह अपने दोस्त दिनेश मणिक के साथ दिल्ली गया था लेकिन वह सुदर्शन पार्क नहीं गया था.

पुलिस को लगा कि वह झूठ बोल रहा है इसलिए पुलिस उसे और दिनेश माणिक को पूछताछ के लिए पानीपत से दिल्ली ले आई. पुलिस ने दोनों से अलगअलग पूछताछ करनी शुरू कर दी. वे दोनों सच्चाई को ज्यादा देर तक नहीं छिपा सके. उन्होंने स्वीकार कर लिया कि पूर्व कैप्टन पारस राम पुंज की हत्या उन्होने ही की थी. दोनों से पूछताछ के बाद उन की हत्या की जो कहानी सामने आई वह इस प्रकार थी.

पश्चिमी दिल्ली के मोतीनगर क्षेत्र स्थित सुदर्शन पार्क के मकान नंबर बी-462 में रहने वाले पारसराम पुंज सेना में कैप्टन थे. उन की शादी ऊषा से हुई थी, जो मूल रूप से उड़ीसा की रहने वाली थी. बाद में ऊषा 2 बेटों लाल कमल उर्फ सोनू और दीपक उर्फ बाबू के अलावा एक बेटी की मां बनी. 3 बच्चों के साथ ऊषा हंसीखुशी से रह रही थी. लेकिन कैप्टन पारसराम का स्वभाव कुछ अलग था. वह आर्मी की तरह अपने घर में भी डिक्टेटरशिप चलाते थे. और छोटीछोटी बातों पर पत्नी और बच्चों को गलती की सजा देते थे.

जब तक कप्तान साहब ड्यूटी पर रहते थे, घर के सभी लोग अमनचैन से रहते थे, लेकिन उन के छुट्टियों पर घर आते ही घर में एकदम से खामोशी छा जाती थी. घर के सभी सदस्य भीगीबिल्ली बन कर रह जाते थे. उन के डर की वजह से घर वाले ज्यादा नहीं बोलते थे. वह सोचते थे कि पता नहीं किस बात पर उन्हें सजा मिल जाए. कप्तान पारसराम परिवार के सदस्यों को सेना के जवानों की तरह कड़े अनुशासन में रखना चाहते थे. वह यह बात नहीं समझते थे कि सेना और समाज के नियम कायदों में जमीनआसमान का अंतर होता है.

सेना से रिटायर होने के बाद पारसराम ने चांदनी चौक इलाके में सर्जिकल सामान बेचने की दुकान खोल ली. उन के तीनों बच्चे पढ़ रहे थे. शाम को दुकान से घर लौटने के बाद वह किसी न किसी बात को ले कर पत्नी से झगड़ने लगते थे. कभीकभी वह उस की पिटाई भी कर देते थे.

पारसराम स्वभाव से बेहद कंजूस थे. पत्नी को खर्चे के लिए जो भी पैसे देते थे, एकएक पैसे का हिसाब लेते थे. उन की इजाजत के बिना वह एक भी पैसा खर्चे करने से डरती थी. इस तरह पति के रिटायर होने के बाद ऊषा अंदर ही अंदर घुटती जा रही थी. फिर एक दिन वह किसी को भी बिना बताए बेटी को ले कर कहीं चली गई, जिस का आज तक कोई पता नहीं चला. यह करीब 20 साल पहले की बात है.

पारसराम ने पत्नी को संभावित जगहों पर तलाशा, लेकिन वह नहीं मिली. बाद में सन 1995 में पारसराम ने अनीता नाम की महिला से शादी कर ली. करनाल के एक गांव की रहने वाली अनीता की पहली शादी यमुनानगर हरियाणा में हुई थी. लेकिन पति की मौत हो जाने की वजह से उस की जिंदगी में अंधेरा छा गया था. पारसराम से शादी कर के वह मोतीनगर के सुदर्शन पार्क स्थित उन के घर में रहने लगी. 3 मंजिला मकान में उस का परिवार ही रहता था. उस ने मकान का कोई भी फ्लोर किराए पर नहीं उठाया था.

पारसराम ने चांदनी चौक में दुकान खरीदने के अलावा रोहिणी सेक्टर-23 में भी 200 वर्ग गज का एक प्लौट खरीद कर डाल दिया था. इसी बीच अनीता एक बेटी की मां बन गई जिस का नाम निष्ठा रखा गया. पारसराम ने बड़े बेटे लाल कमल को भी अपने साथ सर्जिकल सामान की दुकान पर बैठाना शुरू कर दिया था. उस ने पत्राचार से ही बीकाम किया.

लाल कमल पारसराम के साथ दुकान पर बैठता जरूर था लेकिन उस की मजाल नहीं थी कि वह वहां के पैसों से अपने शौक पूरे कर सके. जवान बच्चों का अपना भी कुछ खर्च होता है इस बात को पारसराम नहीं समझते थे. वह चाहते तो बच्चों का दाखिला किसी अच्छे स्कूल में करा सकते थे लेकिन कंजूस होने की वजह से उन्होंने ऐसा नहीं किया. बेटी निष्ठा का दाखिला भी उन्होंने नजदीक के ही एक सरकारी स्कूल में करा दिया था.

पारसराम घमंडी स्वभाव के थे. वह मोहल्ले वालों से भी उसी अंदाज में बात करते थे. तानाशाही रवैये की वजह से मोहल्ले वालों से उन की अकसर नोकझोंक होती रहती थी. कभीकभी तो वह गली में रेहड़ी पर सब्जी बेचने वालों से भी झगड़ बैठते थे. उन की पत्नी और बच्चे उन की इस आदत से परेशान थे.

सन 2006 में पारसराम ने लाल कमल की शादी पानीपत की ज्योति से करा दी. शादी होने के बाद लाल कमल का खर्च बढ़ गया, लेकिन पिता उसे खर्च के लिए पैसे नहीं देते थे. पारसराम अपनी पेंशन और दुकान की कमाई अपने पास ही रखते थे. इस से लाल कमल काफी परेशान रहता था. इस के अलावा अपनी बहू के प्रति भी उन की नीयत खराब हो चुकी थी. ज्योति ससुर की नीयत भांप चुकी थी. उस ने यह बात पति को बताई तो लाल कमल ने अपनी मां अनीता से शिकायत की. अनीता ने पति से डरते हुए यह बात पूछी तो उन्होंने उल्टे पत्नी को ही डांट दिया.

खुल गया रानी का राज

27 सितंबर, 2016 को उत्तर प्रदेश के जिला मुरादाबाद शहर से करीब 10 किलोमीटर दूर गांव फरीदपुर के नजदीक स्ड्डिथत अंडरपास से जरा सी दूरी पर एक युवक की लाश पड़ी मिली. सुबह सुबह लोग जब अपने खेतों पर जा रहे थे, तभी उन की नजर हाईवे के नीचे कच्ची रोड पर चली गई थी. लाश वहीं पड़ी थी. किसी ने फोन कर के इस की सूचना थाना मैनाठेर को दे दी. थानाप्रभारी राजेश सोलंकी उसी समय थाने पहुंचे थे. मामला मर्डर का था, इसलिए सूचना मिलते ही वह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

उन्होंने देखा, मृतक 25-26 साल का था और उस की लाश लहूलुहान थी.थानाप्रभारी ने लाश का बारीकी से निरीक्षण किया. मृतक के गले व सिर पर किसी तेजधार हथियार के गहरे घाव थे. उस की लाश के पास ही शराब की खाली बोतल और 2 गिलास पड़े मिले. इस से अनुमान लगाया गया कि हत्या से पहले हत्यारे ने मृतक के साथ शराब पी होगी. घटनास्थल पर काफी भीड़ इकट्ठी हो चुकी थी.

थानाप्रभारी ने भीड़ से मृतक की शिनाख्त कराई तो किसी ने उस का नाम हरि सिंह बताते हुए कहा कि यह मुरादाबाद-संभल रोड पर स्थित गांव लालपुर हमीर का रहने वाला है. थानाप्रभारी ने एक सिपाही को हरि सिंह के घर भेज कर उस की हत्या की खबर भिजवा दी. उस की पत्नी रानी उस समय अपने मायके वारीपुर भमरौआ में थी. जैसे ही उसे पति की हत्या की खबर मिली, उस का रोरो कर बुरा हाल हो रहा था.

मृतक के परिजन घटनास्थल पर पहुंच चुके थे. पुलिस ने उन से संक्षिप्त पूछताछ कर के घटनास्थल की काररवाई पूरी की और लाश को पोस्टमार्टम के लिए मुरादाबाद भेज दिया.

मृतक हरि सिंह के चाचा ओमप्रकाश की तरफ से पुलिस ने अज्ञात हत्यारों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली. एसएसपी नितिन तिवारी ने थानाप्रभारी राजेश सोलंकी को घटना के शीघ्र खुलासे के निर्देश दिए. थानाप्रभारी ने सब से पहले हरि सिंह के गांव लालपुर हमीर जा कर उस के घर वालों से पूछताछ की. घर वालों ने बताया कि उन की किसी से कोई रंजिश नहीं है. वैसे भी हरि सिंह बहुत सीधासादा था.

26 सितंबर, 2016 की शाम को उस के मोबाइल पर किसी का फोन आया था. फोन पर बात करने के बाद वह यह कह कर घर से गया था कि जरूरी काम है, थोड़ी देर में लौट आएगा. लेकिन वह वापस नहीं आया. सुबह उस की हत्या की जानकारी मिली.

राजेश सोलंकी ने हरि सिंह की पत्नी रानी से भी बात की. उस ने बताया कि हमारी किसी से कोई रंजिश नहीं है. पता नहीं यह सब कैसे हो गया. रानी से बातचीत करते समय राजेश सोलंकी की नजर उस की बौडी लैंग्वेज पर टिकी हुई थी.

पति के मरने का जो गम होना चाहिए, वह उस के चेहरे पर दिखाई नहीं दे रहा था. वह बात करने में डर रही थी और उन से निगाहें चुरा रही थी. थानाप्रभारी ने अपने अनुभव से अनुमान लगाया कि कहीं न कहीं दाल में काला जरूर है. लेकिन बिना ठोस सबूत के उस पर हाथ डालना ठीक नहीं था. लिहाजा वह उस से यह कह कर लौट आए कि अगर किसी पर शक हो तो फोन कर के बता देगी.

इस के बाद पुलिस ने हरि सिंह के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई. काल डिटेल्स से पता चला कि हरि सिंह के मोबाइल पर जो आखिरी काल आई थी, वह संभल जिले के थाना नरवासा के गांव बारीपुर भमरौआ के ओंकार सिंह की थी. पुलिस ने दबिश दे कर उसे पकड़ा और पूछताछ के लिए उसे थाना मैनाठेर ले आई.

थाने में उस से हरि सिंह की हत्या के बारे में गहनता से पूछताछ की गई तो पहले तो वह खुद को निर्दोष बताता रहा, लेकिन जब उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो वह टूट गया. उस ने अपना अपराध कबूल करते हुए बताया कि हरि सिंह की हत्या उस ने ही की थी. उस ने उस की हत्या की जो कहानी बताई, वह अवैध संबंधों पर आधारित थी.

हरि सिंह मुरादाबाद के थाना मैनाठेर के गांव लालपुर हमीर के रहने वाले रामकिशोर की पहली पत्नी का बेटा था. दरअसल, रामकिशोर ने अपनी पत्नी शांति देवी की मृत्यु के बाद मुरादाबाद के मोहल्ला बंगला गांव की चंद्रकला से शादी कर ली थी. हरि सिंह शांति देवी से पैदा हुआ था. रामकिशोर दूसरी पत्नी चंद्रकला के साथ मुरादाबाद में ही रहने लगा था. करीब 5 साल बाद रामकिशोर की भी मृत्यु हो गई तो हरि सिंह की परवरिश उस की दादी हरदेई ने की थी.

हरि सिंह जवान हो गया तो राजमिस्त्री का काम करने लगा. बाद में उस की शादी संभल जिले के थाना नरवासा के अंतर्गत आने वाले गांव बारीपुर भमरौआ की रानी से हो गई. यह 7 साल पहले की बात है. शादी के 4 साल बाद उन के यहां एक बेटा हुआ, जिस का नाम जितिन रखा गया. यह शादी हरि सिंह के दूर के रिश्ते के बहनोई रोहताश ने करवाई थी. शादी के बाद रोहताश सिंह और उन के बच्चों का हरि सिंह के यहां आनाजाना बढ़ गया.

रोहताश का एक बेटा था ओमकार सिंह. वह इंटरमीडिएट तक पढ़ा था और बनठन कर रहता था. वह भी हरि सिंह के घर खूब आता जाता था. उस की रानी से बहुत पटती थी. रानी रिश्ते में उस की मामी लगती थी, इस नाते वह उस से हंसीमजाक कर लेता था.

हरि सिंह राजमिस्त्री था. दिन भर काम करने के कारण शाम को थकामांदा घर आता तो वह पत्नी को ज्यादा समय नहीं दे पाता. खाना खाने के बाद वह जल्द ही सो जाता. यह बात रानी को अखरती थी. पति की इस उदासीनता की वजह से रानी का झुकाव ओमकार की तरफ हो गया.

मामी के इस आमंत्रण को ओमकार समझ गया. हरि सिंह के घर से निकलते ही वह उस के घर पहुंच जाता और अपनी लच्छेदार बातों से उस ने मामी का दिल जीत लिया. लिहाजा एक दिन ऐसा आया, जब दोनों ने अपनी सीमाएं लांघ कर अपनी हसरतें पूरी कर लीं. यानी दोनों के बीच अवैध संबंध बन गए.

घर में हरि सिंह की दादी हरदेई और पत्नी रानी ही रहती थीं. दादी मोहल्ले में औरतों से बतियाने चली जाती तो रानी घर में अकेली रह जाती. ओमकार इसी का फायदा उठा कर उस के घर पहुंच जाता. इस तरह काफी दिनों तक दोनों मौजमस्ती करते रहे.

जाहिर है, अवैध संबंध छिपाए नहीं छिपते. मोहल्ले की औरतों को इस बात का शक हो गया कि ओमकार हरि सिंह की गैरमौजूदगी में ही उस के घर क्यों आता है, किसी तरह यह बात हरि सिंह के कानों तक पहुंच गई. इस से हरि सिंह का भी माथा ठनका. उस ने पत्नी से साफ कह दिया कि वह ओमकार से कह दे कि उस की गैरमौजूदगी में यहां कतई ना आए.

इस के बाद भी ओमकार ने हरि सिंह के घर आना बंद नहीं किया. यह जानकर हरि सिंह ने ओमकार से साफ कह दिया कि वह उस के घर न आया करे. इस के अलावा उस ने पत्नी को भी खूब खरीखोटी सुनाई. आखिर ओमकार ने हरि सिंह के यहां आनाजाना बंद कर दिया. हरि सिंह की सख्ती के बाद रानी और ओमकार की मुलाकातें नहीं हो पा रही थीं. दोनों ही बहुत परेशान थे. ऐसे में दोनों को हरि सिंह अपनी राह का कांटा दिखाई देने लगा.

एक दिन किसी तरह मौका मिलने पर रानी ने ओमकार से मुलाकात की. उस ने ओमकार से कहा, ‘‘हरि को हमारे संबंधों की जानकारी हो चुकी है. उस ने मेरे ऊपर जो सख्ती की है, उस हालत में मैं नहीं रह सकती. मुझे तुम इस तनावभरी जिंदगी से निकालो. किसी तरह हरि को ठिकाने लगा दो. इस के बाद ही हम लोग चैन से रह सकते हैं.’’

उस की बातों में आ कर ओमकार हरि सिंह की हत्या करने के लिए तैयार हो गया.

26 सितंबर, 2016 को हरि सिंह की दादी हरदेई ने शाम का खाना बनाने के बाद उस से खाने को कहा. हरि सिंह की पत्नी रानी 2 दिन पहले अपने मायके चली गई थी, इसलिए खाना दादी ने बनाया था. हरि सिंह खाना खाने के लिए बैठा ही था कि उस के मोबाइल पर ओमकार का फोन आया. वह ओमकार की काल रिसीव करना नहीं चाह रहा था, लेकिन उस ने सोचा कि हो सकता है, कोई खास बात हो जो वह फोन कर रहा हो.

यही सोच कर उस ने फोन उठाया तो ओमकार बोला, ‘‘मामा, तुम्हारे लिए एक अच्छी खबर है. मेरे एक मिलने वाले का मकान बनना है. बड़ी पार्टी है. ऐसा करते हैं, दोनों मिल कर मकान का ठेका ले लेते हैं. पैसे मैं लगाऊंगा. पार्टी से आज ही बात करनी है. अगर आज बात नहीं हुई तो वह पार्टी किसी दूसरे ठेकेदार के पास चली जाएगी. तुम जल्दी चले आओ, मैं बाहर सड़क पर इंतजार कर रहा हूं. अगर बात बन गई तो पार्टी से आज ही थोड़ाबहुत एडवांस ले लेंगे.’’

हरि सिंह लालच में आ गया. वह दादी से यह कह कर घर से निकल गया कि थोड़ी देर में लौट कर खाना खाएगा. जब वह सड़क पर आया तो वहां मोटरसाइकिल लिए ओमकार खड़ा था. हरि सिंह को देखते ही वह बोला, ‘‘मामा, जल्दी से कस्बा सिरसी चलो.’’

हरि सिंह इस के लिए राजी हो गया. वह ओमकार सिंह की मोटरसाइकिल पर बैठ गया. रास्ते में ओमकार सिंह ने बताया कि जिस पार्टी से बात करनी है, वह सिरसी कस्बे की पुलिस चौकी के सामने खड़ी है. थोड़ी देर में दोनों सिरसी पहुंच गए. वहां जा कर देखा तो पार्टी नहीं मिली. ओमकार सिंह ने किसी को फोन किया, फिर बताया कि पार्टी किसी जरूरी काम से संभल चली गई है. उस ने यहीं इंतजार करने को कहा है.

सिरसी से संभल की दूरी करीब 10 किलोमीटर है. कुछ देर दोनों वहीं खड़े इंतजार करते रहे. तभी ओमकार ने हरि सिंह से कहा कि तुम अपने घर फोन कर लो कि देर से लौटोगे. इस पर हरि सिंह ने बताया कि घर पर फोन नहीं है. फोन तो उसी के पास है. जब वहां खड़ेखड़े काफी देर हो गई और संभल से पार्टी भी नहीं आई तो हरि सिंह बोला, ‘‘चलो, कल बात कर लेंगे.’’

ओमकार ने कहा कि चलो जब यहां तक आए हैं तो एकदो पैग लगा लें. हो सकता है जब तक हम यह काम करें, तब तक पार्टी आ जाए. इतना कहने के बाद ओमकार शराब की दुकान से एक बोतल खरीद लाया. पास ही अंडे के ठेले से गिलास ले कर दोनों ने शराब पी. जो थोड़ी शराब बोतल में बची थी, वह ओमकार ने अपनी बाइक की डिक्की में रख ली और गिलास भी रख लिए.

शराब पीने के बाद ओमकार ने कहा, ‘‘देखो मामाजी, तुम्हारे घर वाले इंतजार कर रहे होंगे और मेरे भी. हो सकता है पार्टी को कोई जरूरी काम आ गया हो, इसलिए अब सुबह उस से बात कर लेंगे. मैं ऐसा करता हूं कि पहले तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ देता हूं, उस के बाद अपने घर चला जाऊंगा.’’

इस के बाद हरि सिंह उस की बाइक के पीछे बैठ गया. कुछ दूर चल कर ओमकार ने सड़क किनारे बसे राजस्थानी खानाबदोशों की झुग्गी के पास अपनी बाइक रोक दी.  खानाबदोश लोहे के सामान बना कर बेचते थे. उन से उस ने 80 रुपए में एक गंडासा खरीदा. हरि सिंह ने उस से पूछा कि वह इस का क्या करेगा तो उस ने बताया कि घर के आसपास काफी जंगली पौधे उग आए हैं, उन्हें काटेगा. वह गंडासा उस ने बाइक की डिक्की में रख लिया.

हरि सिंह उस की योजना से अनभिज्ञ था. उसे क्या पता था कि वह गंडासा जंगली पौधे काटने के लिए नहीं, बल्कि उस की हत्या के लिए खरीदा है. बाइक जब हरि सिंह के गांव के नजदीक पहुंची तो ओमकार ने कहा, ‘‘मामा, अभी थोड़ी शराब बची है. अगर मैं इसे घर ले जाऊंगा तो घर वाले फेंक देंगे. क्योंकि वे लोग शराब से बहुत नफरत करते हैं और जब यह फेंकी जाएगी तो मुझे बहुत दुख होगा. ऐसा करते हैं कि एकएक पैग और ले लेते हैं.’’

हरि सिंह ओमकार की बात को टाल नहीं सका. दोनों जिस जगह खड़े हो कर बातें कर रहे थे, उन्होंने वहां बैठ कर शराब पीना ठीक नहीं समझा. लिहाजा वे वहां से कुछ दूर चले गए. फिर सड़क की साइड में बैठ कर उन्होंने शराब पी.

हरि सिंह एक तो पहले से ही ज्यादा पिए हुए था. 2 पैग और लगाने के बाद उसे ज्यादा नशा हो गया, जिस से वह लड़खड़ाने लगा. तभी ओमकार ने बाइक संभालते हुए कहा कि यह स्टार्ट नहीं हो रही है, थोड़ा धक्का लगा दे. बाइक गियर में थी, इसलिए आगे नहीं बढ़ सकी. इस पर ओमकार ने गाड़ी स्टैंड पर खड़ी कर के हरि सिंह से कहा कि वह ब्रेक दबाए. नशे में झूमते हुए हरि सिंह ने झुक कर दोनों हाथों से ब्रेक दबाए, ठीक उसी समय ओमकार ने बाइक की डिक्की से गंडासा निकाल कर उस की गरदन पर ताबड़तोड़ प्रहार करने शुरू कर दिए.

नशे की हालत में हरि सिंह को संभलने तक का मौका नहीं मिला. वह निढाल हो कर नीचे गिर पड़ा. कुछ ही देर में उस की मौत हो गई. ओमकार सिंह ने उसे हिलाडुला कर देखा तो वह मर चुका था. वह वहां से अपने घर चला गया. उस ने गांव बारी भमरौआ पहुंच कर रानी को हरि सिंह की हत्या की खबर दे दी. उस ने उस से कह दिया कि जब उसे हरि सिंह की हत्या की खबर मिले तो वह रोने का नाटक करे, जिस से किसी को शक न हो.

पुलिस ने ओमकार से पूछताछ के बाद रानी को भी गिरफ्तार कर लिया. उस ने भी स्वीकार कर लिया कि पति की हत्या की साजिश में वह भी शामिल थी. ओमकार की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त गंडासा भी बरामद कर लिया. इस के बाद दोनों को 28 सितंबर, 2016 को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया. इस मामले की तफ्तीश थानाप्रभारी राजेश सोलंकी कर रहे हैं.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

बीवी की आशनाई लायी बर्बादी – भाग 1

उत्तर प्रदेश के हरदोई-कानपुर मार्ग पर हरदोई जिला मुख्यालय से 27 किलोमीटर की दूरी पर एक  कस्बा है बिलग्राम. यहां हरदोई का थाना कोतवाली भी है. इसी कोतवाली क्षेत्र में एक गांव है हैबतपुर. यह गांव बिलग्राम से 4 किलोमीटर पहले ही मुख्य मार्ग पर स्थित है. इसी गांव में रामभजन सक्सेना का परिवार रहता था. मेहनतमजदूरी कर के गुजरबसर करने वाले रामभजन के परिवार में पत्नी सुमित्रा देवी के अलावा 4 बेटे और 4 बेटियां थीं.

रामभजन ने अपने दूसरे नंबर के बेटे रामचंद्र का विवाह लगभग 12 साल पहले हरदोई के ही थानाकोतवाली शहर के अंतर्गत आने वाले गांव पोखरी की रहने वाली रमाकांती से कर दिया था. उस के पिता गंगाराम की मौत हो चुकी थी. उस के 6 भाई और 2 बहनें थीं. भाईबहनों में वह सब से छोटी थी. उस के भाइयों ने मिलजुल कर उस की शादी रामचंद्र से कर दी थी.

रमाकांती ससुराल आई तो उसे ससुराल में रामचंद्र के साथ गृहस्थी बसाने में कोई परेशानी नहीं हुई, क्योंकि ससुराल में सभी अलगअलग अपनेअपने घरों में रहते थे. रामचंद्र भी अन्य भाइयों की तरह मेहनतमजदूरी कर के गुजरबसर कर रहा था. इसलिए रमाकांती के लिए जैसे हालात मायके में थे, वैसे ही ससुराल में भी मिले. रमाकांती एक के बाद एक कर के तीन बेटियों और 2 बेटों यानी 5 बच्चों की मां बनी. इस समय उस की बड़ी बेटी 10 साल की है तो छोटा बेटा 1 साल का.

रामचंद्र का जिस हिसाब से परिवार बढ़ा, उस हिसाब से आमदनी नहीं बढ़ पाई, इसलिए उसे गुजरबसर में परेशानी होने लगी. गांव में मेहनतमजदूरी से इतना पैसा नहीं मिल पाता था कि वह परिवार का खर्चा उठा सकता. जब वह हर तरह से कोशिश कर के हार गया तो उस ने परिवार सहित कहीं बाहर जा कर काम करने का विचार किया.

उस ने जानपहचान वालों से बात की कि वह ऐसे कौन से शहर जाए, जहां उसे आसानी से काम मिल जाए. उस के गांव के कुछ लोग अंबाला में रहते थे. उन्होंने उसे अंबाला चलने की सलाह दी तो वह उन्हीं के साथ पत्नी और बच्चों को ले कर अंबाला चला गया.

वहां उसे लालू मंडी स्थित सिलाई का धागा बनाने वाली एक फैक्ट्री में नौकरी मिल गई, जहां उसे 3 सौ रुपए रोज मिलते थे. पास की ही एक अन्य सिलाई धागा फैक्ट्री में उस ने रमाकांती को भी नौकरी दिला दी. फैक्ट्री के पास ही उस ने एक मकान में किराए का एक कमरा ले लिया और उसी में पत्नीबच्चों के साथ रहने लगा. वह मकान चंडीगढ़ के रहने वाले किसी सरदार का था. मकान काफी बड़ा था, जिस में तमाम किराएदार रहते थे. अंबाला में पतिपत्नी इतना कमा लेते थे कि उन की आसानी से गुजरबसर होने लगी.

रमाकांती सुबह से दोपहर तक की शिफ्ट में काम करती थी. इस के बाद वह कमरे पर आ जाती और बच्चों के साथ रहती. जबकि रामचंद्र 12 घंटे की ड्यूटी करता था. वह सुबह जल्दी निकलता तो घर आने में रात के 9 बज जाते थे.

कोई भी आदमी सुबह से ले कर देर रात तक मेहनत करेगा तो जाहिर है, वह थक कर चूर हो जाएगा. रामचंद्र भी जब घर लौट कर आता तो उस का भी वही हाल होता था. घर पहुंच कर वह खाना खाता और चारपाई पर लेट कर खर्राटे भरने लगता. जबकि 5 बच्चों की मां बनने के बाद भी रमाकांती की हसरतें जवान थीं. उस का मन हर रात पति से मिलने को होता, जबकि रामचंद्र की थकान उस की इच्छाओं का गला घोंट देती थी. वह हर रात पति की बांहों में गुजारना चाहती, जबकि पति के सो जाने की वजह से यह संभव नहीं हो पाता था.

जिस मकान में रामचंद्र परिवार के साथ किराए पर रहता था, उसी मकान में सूरज भी एक कमरा किराए पर ले कर रह रहा था.  बिहार के रहने वाले 25 वर्षीय सूरज की अभी शादी नहीं हुई थी. वह भी धागा बनाने वाली उसी फैक्ट्री में नौकरी करता था, जिस में रामचंद्र करता था. एक ही मकान में रहने की वजह से सूरज और रमाकांती में परिचय हो गया था. जब भी दोनों का आमनासामना होता, एकदूसरे को देख कर मुसकरा देते. धीरेधीरे दोनों में बातचीत भी होने लगी.

सूरज कुंवारा था, इसलिए उस का महिलाओं की ओर आकर्षित होना स्वाभाविक ही था. इसी आकर्षण की वजह से 5 बच्चों की मां रमाकांती के शारीरिक कसाव और आंखों की कशिश में वह ऐसा डूबा कि उस के आगे उसे बाकी की सारी औरतें बेकार लगने लगीं. वह जब भी उसे देखता उस की कामनाएं अंगड़ाइयां लेने लगतीं. रमाकांती पर उस का मन डोला तो वह उसे अपनी कल्पनाओं की दुल्हन मान कर उस के बारे में न जाने क्याक्या सोचने लगा.

रमाकांती पर दिल आते ही सूरज उस पर डोरे डालने लगा. जल्दी ही रमाकांती को भी उस के मन की बात पता चल गई. उसे एक ऐसे मर्द की चाहत थी भी, जो रामचंद्र की जगह ले सके. इसलिए उस का भी झुकाव सूरज की ओर हो गया. जब सूरज ने रमाकांती की आंखों में प्यास देखी तो वह उस के आगेपीछे चक्कर लगाने लगा.

सूरज रामचंद्र के घर भी आनेजाने लगा. वह रमाकांती को भाभी कहता था. इसी रिश्ते की आड़ में वह हंसीमजाक भी करने लगा. इसी हंसीमजाक में कभीकभी वह मन की बात भी कह जाता.

विचित्र संयोग : चक्रव्यूह का भयंकर परिणाम – भाग 1

रविवार के सुबह सात बजे के लगभग धनवानों का इलाका सेक्टर-15ए अभी सोया पड़ा था. चारों ओर शांति फैली थी. वीआईपी इलाका होने के कारण यहां सवेरा यों भी जरा देर से उतरता है, क्योंकि यहां रात का आलम ही कुछ और होता है. चहलपहल थी तो सिर्फ सेक्टर-2 के पीछे के इलाके में. सवेरे 4 बजे से ही यहां मछलियों का बाजार लग जाता है. ट्रौली रिक्शे और टैंपो रुक रहे थे और उन के साथ ही मछलियों के ढेर लग रहे थे. मछलियां लाने के लिए यहां टैंपो और ट्रौली रिक्शों की लाइन लगी थी.

इसी बाजार के पास फाइन चिकन एंड मीट शौप है, जहां सवेरे 4 बजे से ही बकरों को काटने और उन्हें टांगने का काम शुरू हो जाता है. इस इलाके के लोग इसी दुकान से गोश्त खरीदना पसंद करते थे. सामने स्थित डीटीसी बस डिपो से बसें बाहर निकलने लगी थीं. डिपो के एक ओर नया बास गांव है, जिस में स्थानीय लोगों के मकान हैं. डिपो के सामने पुलिस चौकी है, जिस के बाहर 2-3 सिपाही बेंच पर बैठ कर गप्पें मार रहे थे और चौकी के अंदर बैठे सबइंसपेक्टर आशीष शर्मा झपकियां ले रहे थे.

गांव के पीछे के मयूरकुंज की अलकनंदा इमारत की पांचवी मंजिल के एक फ्लैट में एक सुखी जोड़ा रहता था. यह फ्लैट सेक्टर-62 की एक सौफ्टवेयर कंपनी में काम करने वाले धनंजय विश्वास का था. फ्लैट में धनंजय अपनी पत्नी रोहिणी के साथ रहते थे.

रोहिणी दिल्ली में पंजाब नेशनल बैंक में प्रोबेशनरी औफिसर थी. वह आगरा की रहने वाली थी. 2 वर्ष पूर्व धनंजय से उस का विवाह हुआ था. इस से पहले धनंजय दिल्ली में अपने मातापिता के साथ रहता था. विवाह के बाद उस के सासससुर ने यह फ्लैट खरीदवा दिया था. रोहिणी वाकई रोहिणी नक्षत्र के समान सुंदर थी. धनंजय और उस की जोड़ी खूब फबती थी.

धनंजय के औफिस का समय सवेरे 9 बजे से शाम 6 बजे तक था. वह औफिस अपनी कार से जाता था. लेकिन लौटने का उस का कोई समय निश्चित नहीं था. रोहिणी शाम साढ़े छह बजे तक घर लौट आती थी. इन हालात में पतिपत्नी शाम का खाना साथ ही खाया करते थे. हां, छुट्ïटी के दिनों दोनों मिल कर हसंतेखेलते खाना बनाते थे. धनंजय हर रविवार को सेक्टर-2 में लगने वाली मछली बाजार से मछलियां और फाइन चिकन एंड मीट शौप की दुकान से मीट लाता था.

पहली जून की सुबह 6 बजे फ्लैट की घंटी बजने पर दूध देने वाले गनपत से दूध ले कर धनंजय फटाफट तैयार हो कर मीट लेने के लिए निकल गया. रोहिणी को वह सोती छोड़ गया था. वह कार ले कर निकलने लगा तो चौकीदार ने हंसते हुए पूछा, “साहब, आज रविवार है न, मीट लेने जा रहे हो?”

धनंजय ने हंस कर कार आगे बढ़ा दी थी. फाइन चिकन एंड मीट शौप पर आ कर उस ने 2 किलोग्राम मीट और एक किलोग्राम कीमा लिया. इस के बाद उस ने रास्ते में मछली और नाश्ते के लिए अंडे, ब्रेड, मक्खन और 4 पैकेट सिगरेट लिए. लगभग साढ़े 7 बजे वह फ्लैट पर लौट आया. वाचमैन नीचे ही था, साफसफाई करने वाले अपने काम में लगे थे. ऊपर पहुंच कर उस ने ‘लैच की’ से दरवाजा खोला. दरवाजे के अंदर अखबार पड़ा था, जिसे नरेश पेपर वाला दरवाजे के नीचे से अंदर सरका गया था. अखबार उठाते हुए उस ने रोहिणी को आवाज लगाई, “उठो भई, मैं तो बाजार से लौट भी आया.”

धनंजय के फ्लैट में सुखसुविधा के सभी आधुनिक सामान मौजूद थे. उस ने डाइनिंग टेबल पर सारा सामान रख कर 2 बड़ी प्लेटें उठाईं. एक में उस ने गोश्त और दूसरे में मछली निकाली. फ्लैट के हौल में शानदार दरी बिछी थी और कीमती सोफे सजे थे. एक कोने में टीवी और डीवीडी प्लेयर रखा था. दूसरे कोने में शो केस के नीचे टेलीफोन रखा था, वहीं मेज पर लैपटौप था. पीछे की ओर गैलरी थी, जहां से दिल्ली की ओर जाने वाली सडक़ के साथसाथ दूर तक फैली हरियाली और नोएडा गेट दिखाई देता था.

इस हौल के बाईं ओर बैडरूम का दरवाजा था. बैडरूम में डबल बैड, गोदरेज की 2 अलमारियां और एक ड्रेसिंग टेबल था. बैडरूम से लग कर ही एक छोटा गलियारा था. गलियारे में ही टौयलेट और बाथरूम था. सारा सामान डाइनिंग टेबल पर रखने के बाद बैडरूम में घुसते ही धनंजय की चीख निकल गई, “रोहिणी?”

उस की सुंदर पत्नी, उसे जीजान से चाहने वाली जीवनसंगिनी, जो अभी रात में उस के सीने पर सिर रख कर सोई थी, जिसे वह सुबह की मीठी नींद में छोड़ कर गया था, रक्त से सराबोर बैड पर मरी पड़ी थी. रोहिणी के गले, सीने और पेट से उस वक्त भी खून रिस रहा था, जिस से सफेद बैडशीट लाल हो गई थी.

कुछ क्षणों बाद धनंजय रोहिणी का नाम ले कर चीखता हुआ बाहर की ओर भागा. उस के अड़ोसपड़ोस में 3 फ्लैट थे. दाईं ओर के 2 फ्लैटों में सक्सेना और मिश्रा तथा बाईं ओर के फ्लैट में रावत रहते थे. पागलों की सी अवस्था में धनंजय ने सक्सेना के फ्लैट की घंटी पर हाथ रखा तो हटाया ही नहीं. वह पड़ोसियों के नाम लेले कर चिल्ला रहा था.

कुछ क्षणों बाद तीनों पड़ोसी बाहर निकले. वे धनंजय की हालत देख कर दंग रह गए. धनंजय कांप रहा था. वह कुछ कहना चाहता था, पर उस के मुंह से शब्द नहीं निकल रहे थे. उस के कंधे पर हाथ रख कर सक्सेना ने पूछा, “क्या हुआ विश्वास?”

सक्सेना रिटायर्ड कर्नल थे. उन्होंने ही नहीं, मिश्रा और रावत ने भी किसी अनहोनी का अंदाजा लगा लिया था. धनंजय ने हकलाते हुए कहा, “रो…हि…णी.”

सक्सेना, उन का बेटा एवं बहू, मिश्रा और रावत उस के फ्लैट के अंदर पहुंचे. बैडरूम का हृदयविदारक दृश्य देख कर सक्सेना की बहू डर के मारे चीख पड़ी और उलटे पांव भागी. अपने आप को संभालते हुए सक्सेना ने कोतवाली पुलिस को फोन लगा कर घटना की सूचना दी. कोतवाली में उस समय ड्ïयूटी पर सबइंसपेक्टर दयाशंकर थे.

दयाशंकर ने मामला दर्ज कर के मामले की सूचना अधिकारियों को दी और खुद 2 सिपाही ले कर अलकनंदा के लिए निकल पड़े. उन के पहुंचते ही वहां के चौकीदार ने उन्हें सलाम किया. लोगों के बीच से जगह बनाते हुए दयाशंकर सीधे पांचवीं मंजिल पर पहुंचे. लोग सक्सेना के घर में जमा थे. धनंजय सोफे पर अपना सिर थामे बैठा था.

दयाशंकर के पहुंचते ही धनंजय उठ कर खड़ा हो गया. आगे बढ़ कर सक्सेना ने अपना परिचय दिया और धनंजय के फ्लैट की ओर इशारा किया. थोड़ी ही देर में फोरैंसिक टीम के सदस्य भी आ पहुंचे. इंसपेक्टर प्रकाश राय भी आ पहुंचे थे.

उन के वहां पहुंचते ही एक व्यक्ति सामने आया, “गुडमौर्निंग सर? आप ने मुझे पहचाना? मैं रिटायर्ड इंसपेक्टर खन्ना. इन फ्लैटों की सुरक्षा व्यवस्था मेरे जिम्मे है. सोसाइटी के सेक्रैटरी ने फोन पर मुझे सूचना दी. दयाशंकर साहब से मुझे पता चला कि आप आ रहे हैं.”

प्रकाश राय को खन्ना का चेहरा जानापहचाना लगा. मगर उन्हें याद नहीं आया कि वह उस से कहां मिले थे. सीधे ऊपर न जा कर उन्होंने इमारत को गौर से देखना शुरू किया. इमारत में ‘ए’ और ‘बी’ 2 विंग थे. दोनों विंग के लिए अलगअलग सीढिय़ां थीं. धनंजय ‘ए’ विंग में रहता था. इमारत के गेट पर ही वाचमैन के लिए एक छोटी सी केबिन थी, जिस में से आनेजाने वाला हर व्यक्ति उसे दिखाई देता था.

कंजूस पिता की ज़िद का नतीजा – भाग 1

पारसराम पुंज सेना के कैप्टन पद से रिटायर जरूर हो गए थे लेकिन लोगों पर हुकुम और डिक्टेटरशिप चलाने की उन की  आदत नहीं गई थी. सेवानिवृत्त के बाद यह बात उन की समझ में नहीं आई थी कि सेना और समाज के नियमों में जमीनआसमान का अंतर होता है. अपने घर वालों के साथ मोहल्ले वालों पर भी वह अपनी हिटलरशाही दिखाते थे. घर वालों की बात दूसरी थी, लेकिन मोहल्ले वाले या और दूसरे लोग उन के गुलाम तो थे नहीं जो उन की डिक्टेटरशिप सहते. लिहाजा इसी सब को ले कर मोहल्ले वालों से उन की अकसर कहासुनी होती रहती थी. उन की पत्नी अनीता उन्हें समझाने की कोशिश करती तो वह उलटे ही उसे डांट देते थे. उन के घर में पत्नी के अलावा एक बेटी निष्ठा थी.

22 अक्तूबर, 2013 को करवाचौथ का त्यौहार था. इस त्यौहार के मौके पर महिलाओं के साथसाथ आजकल तमाम लड़कियां भी हाथों पर मेंहदी लगवाने लगी है. करवाचौथ से एक दिन पहले 21 अक्तूबर को निष्ठा भी अपने हाथों पर मेंहदी लगवा कर रात 8 बजे घर लौटी थी. उस समय घर पर पारसराम कुंज ही मौजूद थे. निष्ठा की मां अनीता पंजाबी बाग स्थित एक संत के आश्रम में गई हुई थीं. तभी निष्ठा ने कहा, ‘‘पापा, मम्मी ने बाहर से सरगी (करवाचौथ का सामान) लाने को कहा था, आप ले आइए.’’

मार्केट पारसराम पुंज के घर से कुछ ही दूर था. वह पैदल ही सरगी का सामान लेने बाजार चले गए. जब वह सामान खरीद कर घर लौटे उन के दोनों हाथों में सामान भरी पौलिथिन की थैलियां थीं. अभी वह अपने दरवाजे पर पहुंचे ही थे कि किसी ने उन के ऊपर चाकू से हमला कर दिया. दर्द से छटपटा कर उन्होंने जोर से बेटी को आवाज लगाई. उस समय तकरीबन साढ़े 8 बज रहे थे.

निष्ठा ने जब पिता के चीखने की आवाज सुनी. तब वह पहली मंजिल पर थी. चीख की आवाज सुन कर निष्ठा ने सोचा कि शायद आज फिर पापा का किसी से झगड़ा हो गया है. वह जल्दीजल्दी सीढि़यों से उतर कर नीचे आई. घर का मुख्य दरवाजा भिड़ा हुआ था उस ने जैसे ही दरवाजा खोला उस के पिता सामने गिरे पड़े थे और हाथ में चाकू लिए एक युवक वहां से भाग रहा था. कुछ आगे एक युवक लाल रंग की मोटरसाइकिल पर बैठा था. जिस ने सिर पर हेलमेट लगा रखा था. कुछ लोग गली में मौजूद थे लेकिन उन्हें पकड़ने की किसी की भी हिम्मत नहीं हुई. युवक मोटरसाइकिल पर बैठ कर भाग गए.

पिता को लहूलुहान देख कर निष्ठा जोरजोर से रोने लगी. उस के रोने की आवाज सुन कर आसपास के लोग वहां आ गए. पीछे वाली गली में निष्ठा का ममेरा भाई नरेंद्र रहता था वह दौड़ीदौड़ी उस के पास गई और यह बात उसे बता दी. जब तक वह आया तब तक वहां काफी लोग जमा हो गए थे. मामा को लहूलुहान देख कर वह भी घबरा गया. लोगों को सहयोग से वह पारसराम को नजदीक के आचार्य श्री भिक्षु अस्पताल ले गया लेकिन डाक्टरों ने पारसराम पुंज को मृत घोषित कर दिया. इसी दौरान किसी ने पुलिस कंट्रोल रूम को फोन कर के सूचना दे दी कि मोतीनगर के सुदर्शन पार्क में स्थित मकान नंबर बी-462 के सामने एक आदमी का मर्डर हो गया है.

पीसीआर ने यह सूचना थाना मोतीनगर को दे दी. हत्या की खबर मिलते ही थानाप्रभारी शैलेंद्र तोमर, इंसपेक्टर (तफ्तीश) रमेश कलसन, हेडकांस्टेबल सत्यप्रकाश और कांस्टेबल कृष्णराठी आदि के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने देखा कि सुदर्शन पार्क के मकान नंबर बी-462 के सामने काफी मात्रा में खून पड़ा था. पता चला कि किसी ने रिटायर्ड कप्तान पारसराम पुंज को कई चाकू मारे हैं और उन्हें आचार्य श्री भिक्षु अस्पताल ले जाया गया है. थानाप्रभारी अस्पताल पहुंचे तो डाक्टरों से पता चला कि पारसरामकी अस्पताल लाने से पहले ही मौत हो गई थी.

पुलिस ने लाश कब्जे में ले कर उसे पोस्टमार्टम के लिए दीनदयाल अस्पताल भेज दिया. थानाप्रभारी ने सेना के पूर्व कैप्टन पारसराम पुंज की हत्या की खबर आला अधिकारियों को भी दे दी. थोड़ी देर में पुलिस उपायुक्त डीसीपी रणजीत सिंह और सहायक पुलिस आयुक्त ईश सिंघल भी मौकाएवारदात पर पहुंच गए. मौका मुआयना करने के बाद पुलिस अधिकारियों ने आसपास के लोगों से बात की. मृतक की बेटी निष्ठा और कुछ लोगों ने पुलिस को बताया कि उन्होंने हमलावर को हाथ में चाकू लिए वहां से भागते देखा था.

डीसीपी रणजीत सिंह ने इस केस को सुलझाने के लिए एसीपी ईश सिंघल के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई. टीम में थानाप्रभारी शैलेंद्र तोमर, इंसपेक्टर रमेश कलसन, एसआई गुलशन नागपाल, हेड कांस्टेबल सत्यप्रकाश, कांस्टेबल कृष्ण राठी, अमित कुमार आदि को शामिल किया गया.

पुलिस को घटनास्थल से ऐसा कोई सुबूत नहीं मिला जिस के सहारे हत्यारों तक पहुंचा जा सकता. यह एक तरह से ब्लाइंड मर्डर केस था. इसलिए पुलिस ने सब से पहले पूर्व कैप्टन पारसराम और उस के परिवार के बारे में छानबीन करनी शुरू की.

छानबीन में पता चला कि मृतक पारसराम पुंज तेजतर्रार व्यक्ति थे. उन के मिजाज की वजह से मोहल्ले के लोगों से उन की अकसर कहासुनी होती रहती थी. लेकिन वह मामूली कहासुनी की वजह से कोई उन की हत्या कर सकता है. पुलिस को ऐसा नहीं लग रहा था. फिर भी पुलिस ने मोहल्ले के उन लोगों से भी पूछताछ की जिन से कप्तान साहब की नोंकझोंक होती रहती थी.

इस के बाद पुलिस ने पारसराम पुंज और बेटी निष्ठा पुंज के मोबाइल फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई. इस से पता चला कि निष्ठा की कुछ नंबरों पर ज्यादा बातें होती थीं. 16 साल की निष्ठा जवान होने के साथ साथ खूबसूरत भी थी. इसी मद्देनजर पुलिस ने यह सोचना शुरू कर दिया कि कहीं निष्ठा का किसी लड़के के साथ कोई चक्कर तो नहीं चल रहा है. हो सकता है कप्तान साहब उस के प्यार में रोड़ा बन रहे हों और इसलिए उस ने अपने प्रेमी की मार्फत अपने पिता को ठिकाने लगवा दिया हो.

जिन नंबरों पर निष्ठा की ज्यादा बात होती थी, पुलिस ने उन का पता लगाया तो वह एक झुग्गी बस्ती में रहने वाले युवकों के नंबर निकले. पूछताछ के लिए पुलिस ने उन युवकों को थाने बुलवा कर पूछताछ करनी शुरू की. उन्होंने बताया कि उन की निष्ठा से केवल दोस्ती थी. उस के पिता के मर्डर से उन का कोई लेनादेना नहीं है. उन लड़कों से सख्ती से की गई पूछताछ के बाद भी कोई नतीजा सामने नहीं आया.

इसी बीच पुलिस टीम को मुखबिर से खास जानकारी यह मिली कि हमलावर लाल रंग की जिस पैशन मोटरसाइकिल से आए थे, उस पर हरियाणा का नंबर था. वह नंबर क्या था यह पता नहीं लग सका. जबकि बिना नंबर के मोटरसाइकिल ढूंढना आसान नहीं था.

जांच टीम ने एक बार फिर घटनास्थल से मेन रोड तक आने वाले रास्तों का मुआयना किया. उन्होंने देखा कि जहां पारसराम पुंज का मर्डर हुआ था, उस के सामने वाले मकान के बाहर सीसीटीवी कैमरा लगा हुआ था. संभावना थी कि कातिलों की और उन की मोटरसाइकिल की फोटो उस कैमरे में जरूर कैद हुई होगी. यही सोच कर पुलिस ने उस मकान के मालिक से बात की. उस ने बताया कि उस के कैमरे की डीवीआर नहीं हो रही. इस से पुलिस की उम्मीद पर पानी फिर गया.

जिस गली में पारसराम का मकान था उस के बाहर मोड़ पर सुरेश का चावल का गोदाम था. गोदाम के बाहर भी सीसीटीवी कैमरे लगे हुए थे. पूछताछ के बाद पता चला कि वहां लगे सीसीटीवी कैमरे भी काम नहीं कर रहे थे. पुलिस टीम जांच का जो कदम आगे बढ़ा रही थी, वह आगे नहीं बढ़ पाता था. इस तरह जांच करते हुए पुलिस को 2 सप्ताह बीत गए.

टीम ने निष्ठा के फोन की काल डिटेल्स का एक बार फिर अध्ययन किया. उस से पता चला कि घटना वाले दिन एक फोन नंबर पर निष्ठा की 4 बार बात हुई थी. उस नंबर के बारे में निष्ठा से पूछा गया तो उस ने बताया कि यह नंबर उस के भाई यानी कप्तान साहब की पहली पत्नी ऊषा से पैदा हुए बेटे लाल कमल पुंज का है. इस के बाद ही पुलिस को पता लगा कि कप्तान साहब ने 2 शादियां की थीं. निष्ठा उन की दूसरी पत्नी अनीता की बेटी थी.

पुलिस ने निष्ठा से पूछा कि उस की लाल कमल से क्या बात हुई थी? तो उस ने जवाब दिया कि उस ने घर का हालचाल जानने के लिए फोन किया था. उस ने यह भी बताया की लाल कमल कभीकभी घर भी आता रहता था. पूछताछ में जानकारी मिली कि लाल कमल अपनी पत्नी के साथ पानीपत में रहता है.

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