जिद ने उजाड़ा आशियाना – भाग 3

इकबाल शफकत को समझाता रहता था कि वह उस से बहुत प्यार करता है और उस के बिना रह नहीं सकता. इस के बावजूद शफकत जयपुर में मकान ले कर अलग रहने की जिद पर अड़ी थी. उस का कहना था कि वह तो नौकरी कर ही रही है, अगर वह भी यहां आ जाएगा तो उसे भी बढि़या नौकरी मिल लाएगी. दोनों कमाएंगे और आराम से रहेंगे.  वैसे चाहे इकबाल जयपुर चला भी जाता, लेकिन शक की वजह से वह वहां नहीं जाना चाहता था. यही नहीं, वह यह भी नहीं चाहता था कि शफकत वहां रहे. इसीलिए वह जयपुर नहीं जा रहा था.

शफकत के जयपुर में रहने की जिद से इकबाल परेशान रहने लगा था. उसे लगने लगा था  कि शफकत बेवफा हो गई है. दोनों ही अपनीअपनी जिद पर अड़े थे. जब अब्दुल्ला को पता चला कि शफकत और इकबाल के बीच ठीक नहीं चल रहा है तो उस ने इकबाल को फोन किया. पहले तो उस ने दोस्त को समझाया. लेकिन जब वह अपनी जिद पर अड़ा रहा तो अब्दुल्ला ने कहा, ‘‘इकबाल, अगर तुम शफकत को ज्यादा परेशान करोगे और उस की बात नहीं मानोगे तो किसी दिन मैं तुम्हें गोली मार दूंगा.’’

कभी रूम पार्टनर और दोस्त रहे अब्दुल्ला ने गोली मारने की बात की तो इकबाल को भी गुस्सा आ गया. अब वह इस परेशानी से छुटकारा पाने के बारे में सोचने लगा. अब वह इस बात को ले कर काफी परेशान रहने लगा था, क्योंकि बात अब जान लेने तक पहुंच गई थी.

काफी सोचविचार कर 16 अगस्त को इकबाल ने नूंह से एक देसी कट्टा और 10 कारतूस खरीदे. 19 अगस्त को उस ने अपने गांव बिछोर से एक बोलेरो जीप किराए पर की और जयपुर पहुंच गया. बोलेरो के ड्राइवर से उस ने कहा था कि वह जयपुर अपनी बीवी को विदा कराने जा रहा है. जयपुर पहुंच कर उसने रामगंज में रैगरों की कोठी के पास बोलेरो रुकवा कर ड्राइवर से कहा, ‘‘तुम यहीं रुको, मैं दस मिनट में अपनी बीवी और बच्चे को ले कर आ रहा हूं. उस के बाद गांव चलेंगे.’’

इकबाल वहां से रैगरों की कोठी स्थित अपनी ससुराल की ओर पैदल ही चल पड़ा. उस समय दोपहर के 12 बज रहे थे. जब वह अपनी ससुराल पहुंचा तो घर में शफकत, उस के अब्बा शमशाद अहमद और अम्मी मौजूद थीं. इकबाल का 10 महीने का बेटा अथर पालने में सो रहा था.

इकबाल ने सासससुर से दुआसलाम की तो वे दामाद की खातिरदारी की तैयारी करने लगे. तभी इकबाल ने पैंट की जेब से कट्टा निकाला और वहां बैठी शफकत पर फायर कर दिया.  यह गोली शफकत के कंधे में लगी. सासससुर के आतेआते उस ने फुर्ती से एक और गोली भरी और उस पर चला दी, जो शफकत के पैर में लगी. इसी के साथ चीखपुकार मच गई.

इकबाल गोलियां चला कर भागा, लेकिन रैगरों की कोठी में गोलियां चलने की आवाज सुन कर पुलिस पौइंट पर ड्यूटी पर तैनात सिपाही उस दिशा में दौड़ पड़े, इसलिए इकबाल पकड़ा गया. रामगंज का यह इलाका जयपुर में सब से संवेदनशील माना जाता है. इसलिए गोली चलने की सूचना मिलते ही थाना रामगंज के थानाप्रभारी रामकिशन बिश्नोई तुरंत दलबल के साथ मौके पर पहुंच गए.

गोलियां चलाने वाला इकबाल पकड़ा जा चुका था. गोलियां लगने से घायल शफकत को इलाज के लिए तुरंत सवाई मानसिंह अस्पताल ले जाया गया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. थाने ला कर इकबाल से पूछताछ की गई. इस के बाद उसे उसी दिन अदालत में पेश कर के विस्तारपूर्वक पूछताछ के लिए 3 दिनों के पुलिस रिमांड पर ले लिया गया.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि शफकत को 5 महीने का गर्भ था. उस के पेट में पल रहा बच्चा लड़की थी. इकबाल ने गुस्से में पत्नी को गोली तो मार दी, लेकिन रिमांड के दौरान वह यही दुआ करता रहा कि उस की पत्नी की मौत न हो और वह जल्दी से जल्दी ठीक हो जाए.  लेकिन शफकत तो तुरंत मर चुकी थी. इकबाल बीवी के लिए बहुत बेचैन था, शायद इसलिए पुलिस ने उसे बताया नहीं था कि शफकत की मौत हो चुकी है.

शफकत की मौत और इकबाल के जेल चले जाने से अथर अनाथ हो गया है. अब उस की देखभाल मौसी और नानानानी कर रहे हैं. शमशाद अहमद चाहते थे कि जमाई जयपुर आ जाते, शफकत और वह नौकरी कर के अराम से अपना जीवन बिताते. लेकिन दोनों की जिद से उन का प्यार का आशियाना उजड़ गया. इस तरह दिल्ली से शुरू हुई उन की ‘लव स्टोरी’ जयपुर में खत्म हो गई. अब इकबाल भी अपने किए पर आंसू बहाते हुए पछता रहा है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

आशिक पति ने ली जान – भाग 1

एटा-कासगंज रोड पर स्थित है एक गांव असरौली, जो कोतवाली (देहात) क्षेत्र के अंतर्गत आता है. इसी गांव के रहने वाले चोखेलाल के परिवार में पत्नी पार्वती के अलावा 3 बेटियां सावित्री, बिमला, मोहरश्री तथा 2 बेटे सत्यप्रकाश और चंद्रपाल थे. सत्यप्रकाश खेतीकिसानी में बाप की मदद करता था तो चंद्रपाल सड़क पर खोखा रख कर अंडे बेचता था. चोखेलाल की गुजरबसर आराम से हो रही थी. उन्होंने सभी बच्चों की शादियां भी कर दी थीं. सभी अपनेअपने परिवार के साथ खुश थे. उन की छोटी बेटी मोहरश्री का विवाह कासगंज के कस्बा नदरई में प्रकाश के साथ हुआ था.

सब से छोटी होने की वजह से मोहरश्री मांबाप की ही नहीं, भाईबहनों की भी लाडली थी. शादी के लगभग डेढ़ साल बाद वह एक बेटे की मां बन गई. यह खुशी की बात थी, लेकिन बेटा पैदा होने के कुछ दिनों बाद ही उस के पति प्रकाश का दिमागी संतुलन बिगड़ गया और एक दिन वह घर से गायब हो गया. घर वालों ने उसे बहुत ढूंढ़ा, लेकिन उस का कुछ पता नहीं चला.

पति के गायब होते ही ससुराल में मोहरश्री की स्थिति गंभीर हो गई. ससुराल वालों का मानना था कि उसी की वजह से प्रकाश गायब हुआ है, इसलिए उसे दोषी मान कर सभी उसे परेशान करने लगे. चंद्रपाल मोहरश्री से मिलने उस की ससुराल गया तो उसे लगा कि बहन यहां खुश नहीं है. वह उसे अपने यहां लिवा लाया.

घर आ कर मोहरश्री ने जब मांबाप और भाइयों से ससुराल वालों के बदले व्यवहार के बारे में बताया तो सभी ने तय किया कि अब उसे ससुराल नहीं भेजा जाएगा. लेकिन ससुराल वालों ने खुद ही मोहरश्री की सुधि नहीं ली. अब घर वालों को उस की चिंता सताने लगी, क्योंकि अभी उस की उम्र कोई ज्यादा नहीं थी.  अकेली जवान औरत के लिए जीवन काटना बहुत मुश्किल होता है. अगर कोई ऊंचनीच हो जाए तो सभी उन्हीं को दोष देते हैं, इसलिए पिता और भाइयों ने तय किया कि वे मोहरश्री की शादी कहीं और कर देंगे.

मोहरश्री को जब पता चला कि घर वाले उस की दूसरी शादी करना चाहते हैं तो उस ने कहा, ‘‘आप लोगों को मेरे लिए परेशान होने की जरूरत नहीं है. मैं अपने बेटे के सहारे जी लूंगी. सभी के साथ मेहनतमजदूरी कर के जिंदगी बीत जाएगा.’’  लेकिन पिता और भाई उस की इस बात से सहमत नहीं थे. वे किसी भी तरह मोहरश्री का घर बसाना चाहते थे. वह बहुत ही सीधीसादी थी. उस के स्वभाव की वजह से गांव का हर आदमी उस की मदद और सम्मान करता था. यही वजह थी कि इस परेशानी में भी वह खुश थी.

चोखेलाल की बड़ी बेटी सावित्री एटा में ब्याही थी. मायके आने पर जब उसे पता चला कि घर वाले मोहरश्री का पुन: विवाह करना चाहते हैं तो उस ने बताया कि उस के पड़ोस में रहने वाली रानी का भाई दामोदर शादी लायक है. अगर सभी लोग तैयार हों तो वह बात चलाए.

मोहरश्री की शादी में उस के पहले पति का बेटा कृष्णा बाधा बन रहा था. घर वाले चाहते थे कि वह बेटे को मायके में छोड़ दे, लेकिन मोहरश्री इस के लिए तैयार नहीं थी. उस का कहना था कि वह उसी आदमी से शादी करेगी, जो उस के बेटे को अपनाएगा. सावित्री ने बताया कि दामोदर मोहरश्री के बेटे को अपना सकता है, इसलिए सभी को उस के फोन का इंतजार था.

सावित्री ने फोन कर के बताया कि दामोदर अपनी बहन रानी के साथ सावित्री को देखने आ रहा है तो घर वालों ने तैयारी शुरू कर दी. देखासुनी के बाद मोहरश्री और दामोदर की शादी इस शर्त पर हो गई कि वह मोहरश्री के पहले पति के बेटे कृष्णा को अपना नाम देगा.

दामोदर जिला फर्रुखाबाद के थाना पाटियाली के गांव शाहपुर का रहने वाला था. उस की 2 बहनें और 2 भाई थे. दोनों भाई पंजाब में नौकरी करते थे. शादी के बाद मोहरश्री बेटे के साथ शाहपुर आ गई.  ससुराल आने पर पता चला कि दामोदर की कमाई से घर नहीं चल सकता. इसलिए उस ने दामोदर को अपने मायके असरौली चलने को कहा.

दामोदर असरौली जाने को राजी नहीं हुआ तो मोहरश्री ने फोन द्वारा सारे हालात अपने भाई चंद्रपाल को बताए तो वह खुद शाहपुर पहुंचा और सभी को असरौली ले आया. इस तरह लगभग 10 साल पहले दामोदर परिवार के साथ ससुराल आ गया था.  ससुराल आ कर वह पूरी तरह से निश्चिंत हो गया. चंद्रपाल ने भागदौड़ कर के उसे एटा रोड पर स्थित आलोक की फैक्ट्री में चौकीदारी की नौकरी दिला दी. फैक्ट्री में उसे रहने के लिए कमरा भी मिल गया था. इस तरह एक बार फिर मोहरश्री की जिंदगी ढर्रे पर आ गई.

समय के साथ मोहरश्री दामोदर के 3 बच्चों अजय, सुमित और प्रेमपाल की मां बनी. शुरूशुरू में तो दामोदर का व्यवहार कृष्णा के प्रति ठीक रहा, लेकिन जब उस के अपने 3-3 बेटे हो गए तो उस का व्यवहार एकदम से बदल गया. अब वह बातबात में कृष्णा से मारपीट करने लगा. मोहरश्री को यह बिलकुल अच्छा नहीं लगता था. उस ने देखा कि दामोदर बच्चों में भेदभाव कर रहा है तो उस ने उसे टोका. लेकिन दामोदर पर इस का कोई असर नहीं पड़ा. कृष्णा के प्रति उस की हिंसा बढ़ती ही जा रही थी.

मोहरश्री ने दामोदर से शादी जीवन को सुखी बनाने के लिए की थी. लेकिन दामोदर तनाव पैदा करने लगा था. परिवार बढ़ा तो घर में आर्थिक तंगी रहने लगी. बहन की परेशानी देख कर चंद्रपाल ने एक खेत पट्टे पर ले कर बहन को दे दिया. मोहरश्री मेहनत कर के खेत की कमाई से बच्चों को पालने लगी. उस ने बेटों को समझाया कि वे अपनी जिंदगी संवारना चाहते हैं तो मेहनत कर के पढ़ें.

दामोदर न तो अच्छा पति साबित हुआ और न अच्छा बाप. इसलिए मोहरश्री को उस से कोई उम्मीद नहीं थी. उस ने चौकीदारी वाली नौकरी भी छोड़ दी थी. अपना खर्च चलाने के लिए वह खेतों में चोरी से शराब बना कर बेचने लगा था. जब इस बात का पता मोहरश्री को चला तो वह बहुत नाराज हुई. लेकिन दामोदर पर इस का कोई असर नहीं हुआ.

भांजे के इश्क में फंसी रीना – भाग 3

नए रिश्ते से रीना को बहुत संतुष्टि मिली. मन को तृप्ति मिल गई. सूरज की बलिष्ठ बाहों से जब वह अलग हुई, तब शरमाती हुर्र्ई अपने कपड़े सहेजने लगी. वह कुछ बोलती इस से पहले ही सूरज ने उसे एक बार फिर होंठ चूम लिए. बोला, ‘‘तुम खुद को अकेला मत समझना.’’

सूरज के दिल को तसल्ली मिली कि वह कल तक जिसे प्यार भरी नजरों से देखता था, उस ने उस की भावना को समझा. उस के बाद रीना और सूरज अकसर रात के अंधेरे में भी मिलने लगे. मामीभांजे का इश्क बहुत दिनों तक छिपा नहीं रह पाया. एक रात रामहेत ने रीना को सूरज के कमरे से बाहर निकलते हुए देख लिया. उस के आते ही रामहेत ने उस के बाल खींचते हुए पिटाई कर दी. रीना की चीख सुन कर सूरज उसे बचाने आ गया. उसे भी रामहेत ने डांट कर भगा दिया. सूरज सहम गया और चुपचाप अपने कमरे में चला गया.

कुछ दिनों तक सूरज और रीना का प्यार सूना रहा, वे नहीं मिले. लेकिन मर्यादा लांघ चुकी रीना सूरज कोई उपाय निकालने के लिए बोली, जिस से वे हमेशा के लिए साथ हो जाएं. रीना को पता था कि उस के सूरज के साथ संबंध को ले कर भी रामहेत उस की पिटाई करता है. सूरज भी समझ गया था कि रामहेत उस के और रीना के संबंध के आड़े आने वाला पत्थर है. इसी समस्या से छुटकारा पाने के लिए उस ने रीना से बात की. रीना एक झटके में बोल पड़ी, ‘‘इस पत्थर को ही हटा देते हैं, बस तुम साथ देना.’’

20 जनवरी, 2023 की रात थी. जब रामहेत घर आया, तब वह नशे में मदहोश था. रीना रामहेत से कुछ नहीं बोली. उस ने अपने बेटे को आवाज लगा दी कि पापा से कहे कि खाना खा लें. इसे रामहेत ने अपनी तौहीन समझा और तिलमिला गया. उस ने रीना के साथ गालीगलौज शुरू कर दी, ‘‘हरामजादी तूने मुझ से खाने के लिए नहीं कहा, अभी तेरी खबर लेता हूं,’’ इतना कहते ही रामहेत ने रीना को धुन डाला.

इस के बाद वह गुस्से में पैर पटकते हुए कमरे में पड़ी चारपाई पर बेसुध हो कर पसर गया. इस पिटाई ने आग में घी का काम किया. रीना पति से और भी घृणा करने लगी. रीना को पहले ही सूरज की सहमति मिल गई थी और फिर इस घटना के बाद वे अपनी योजना को सफल बनाने के लिए एकजुट हो गए.

23 जनवरी की रात को भी पत्नी की भावनाओं से अनजान रामहेत शराब के नशे में चूर हो कर अपने घर आया था. भांजे के प्यार में पागल हुई रीना ने उस रोज पिता को डांट लगाई, ‘‘तुम अपनी आदत से बाज नहीं आ रहे हो, मैं तुम्हें समझा देती हूं कि अगर आज के बाद दारू पी कर आए तो मुझ से बुरा कोई नहीं होगा.’’

“क्या कर लेगी तू, तेरा दिमाग खराब हो गया है. मैं दारू पीऊं या कुछ भी करूं, तू कौन होती है मुझे रोकने वाली. खुद तो कुतिया सी बेशर्म बनी फिरती है. पता नहीं कितने मर्दों के साथ रात बिता चुुकी है. एक को तो मैं ही जानता हूं…’’

“बकवास बंद कर, मैं तुझे भी जानती हूं और तेरी औकात भी. तू एक नंबर का दारूबाज है. मुझ पर लांछन लगाता है. मैं सूरज से प्यार करती हूं. …और हां, अब उसी के साथ रहूंगी.’’ यह सुनते ही रामहेत तैश में आ गया और रीना को मारने के लिए आगे बढ़ा, लेकिन नशा अधिक होने के कारण लडख़ड़ा कर गिर पड़ा.

“निठल्ला कहीं का, तेरी इतनी हिम्मत जो दारू पी कर मुझ पर हाथ उठाए, रुक अभी तुझे मजा चखाती हूं.’’ रीना बिफरती हुई बोली और उस की जेब से मोबाइल फोन निकाल लिया. उसी से सूरज को फोन कर बोली, ‘‘अच्छा मौका है आ जाओ. आज इसे ठिकाने लगा ही देते हैं.’’

फोन सुन कर सूरज तुरंत छत के रास्ते से रामहेत के घर में आ गया. सूरज ने रामहेत को दबोच लिया और उस का गला कस कर दबा दिया. उस ने हाथपैर चलाए तो रीना ने कस कर पकड़ लिए. रामहेत ज्यादा विरोध नहीं कर पाया और उस की वहीं मौत हो गई. तब तक करीब आधी रात हो चुकी थी. भांजे के साथ पति की हत्या करने के बाद सूरज रामहेत की लाश को कंधे पर लाद कर अपने घर की छत पर ले गया, जहां से उस ने लाश को घर के पीछे फेंक दिया.

उस के बाद दोनों चुपके से रात के अंधेरे में घर से फावड़ा ले कर निकले. रामहेत की लाश को घर के पिछवाड़े से उठाया और सरसों के खेत में ले जा कर दफना दी. इस के लिए रीना और सूरज ने मिल कर करीब 3 फुट गहरा गड्ïढा खोदा था. लाश को उस में डाल कर खेत समतल बना कर पति को दफना दिया था. इस के बाद दोनों वापस घर लौट आए. उन्हें उम्मीद थी कि रामहेत की हत्या एक पहेली बन कर रह जाएगी और वे कभी पकड़े नहीं जाएंगे, लेकिन रामहेत के मोबाइल फोन से रीना द्वारा सूरज को फोन करने की गलती भारी पड़ गई.

मुरैना में रामहेत मर्डर केस की खबर क्षेत्र में फैल चुकी थी. पूछताछ के बाद पुलिस ने सूरज और रीना की निशानदेही पर पुलिस ने सरसों के खेत से रामहेत की लाश बरामद कर ली. लाश को पोस्टमार्टम के लिए ग्वालियर भिजवा दिया गया. पुलिस ने रामहेत की गुमशुदगी का मुकदमा ग्वालियर, मुरैना में पति का मर्डर के दोनों आरोपियों को पुलिस ने भादंवि की धारा 302, 201, 120बी, 34 में निरुद्ध कर उन्हें न्यायालय में पेश किया, जहां से रीना को ग्वालियर जेल की महिला सेल में उस की एक वर्षीय बेटी के साथ और सूरज को मुरैना जेल भेज दिया गया. केस की जांच एसएचओ रविंद्र कुमार कर रहे थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

भांजे के इश्क में फंसी रीना – भाग 2

पुलिस सूरज को भी उठा कर थाने ले आई. जब उस से सख्ती से पूछताछ की गई, तब उस ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए रामहेत के साथ घटित मामले का सच उगल दिया. रीना और सूरज के बयानों के आधार पर रामहेत के बारे में चौंकाने वाली जो जानकारी मिली, वह इस प्रकार है—

मध्य प्रदेश के मुरैना जिले के बुद्धिराम का पुरा में रहने वाले तुलाराम जाटव का छोटा परिवार था. वह अपनी गरीबी के कारण बेटे रामहेत को पढ़ा नहीं पाया था. जवान होने पर वह मेहनतमजदूरी व छोटेमोटे काम करने लगा. समय रहते उस की शादी मुरैना में ही शहनाई गार्डन निवासी रीना से हो गई थी. शादी के कुछ साल पंख लगे सपने की तरह कैसे उड़ गए, पता ही नहीं चला. उस का खर्चा तब बढ़ गया, जब वह एक बेटे और 2 बेटियों का पिता बन गया. रीना भी महत्त्वाकांक्षी थी. वह जबतब पति से पैसे मांगती रहती थी.

पैसे नहीं मिलने पर पति से झगडऩे लगती थी. कुछ समय में ही पूरा घर सिर पर उठा लेती थी. जबकि रामहेत पैसे की तंगी से परेशान रहता था. परेशानी का समाधान नहीं निकल पा रहा था. इसी दौरान तनाव में वह शराब पीने लगा था. धीरेधीरे यह आदत बन गई थी. शाम को अकसर शराब पी कर घर आने लगा था. जबकि उस की जेब खाली रहती थी. घर लौटने पर इसी बात को ले कर पत्नी से उस की कहासुनी हो जाती थी. मांबाप के बीच होने वाली कलह से बच्चे भी तंग आ गए थे. दिनप्रतिदिन उन दोनों झगड़े बढ़ गए थे. शराब के नशे में रामहेत रीना की पिटाई तक कर देता था.

एक दिन रामहेत ने रीना की इस कदर पिटाई कर दी कि उस की कलाई की चूडिय़ां टूट कर कलाई और हथेली में चुभ गई. खून निकल आया. वह भागीभागी पड़ोस में रह रहे सूरज के पास चली गई. सूरज ने उस के हाथों से खून निकलता देख तुरंत डिटौल लगा दी. जब वह वहां से चलने को हुई, तब सूरज ने उस का हाथ पकड़ लिया. बोला, ‘‘मामी, थोड़ी देर यहीं बैठो, जब उस का गुस्साशांत हो जाएगा, तब चली जाना.’’

“नहीं छोटी बेटी को दूध पिलाना है,’’ रीना बोली और अपने घर चली आई. बिछावन पर लेटी बेटी को उठा लिया और दूध पिलाने लगी.

“हरामजादी कहां गई थी? अपने यार के यहां…’’ रामहेत गालियां बकता हुआ रीना को पीटने लगा. इसी बीच उसे तुलाराम की आवाज आई. वह बोले, ‘‘आज फिर तू पी कर आया है? कमाताधमाता तो है नहीं, उल्टे बहू पर मर्दानगी दिखाता है, हरामखोर कहीं का!’’

पिता की डांटभरी आवाज सुन कर रामहेत के हाथ रुक गए थे. पास में ही उस की बिरादरी का युवक सूरज जाटव रहता था. वह रीना को मामी कह कर बुलाता था. रीना उस की एक तरह से मुंहबोली मामी थी. दोनों के बीच मिलनाजुलना होता रहता था. वह अकसर रीना को पति से पिटने से बचाता था. उस रोज भी रीना के पास आ गया था और रामहेत से झगड़ा नहीं करने को समझाने लगा. उस की सलाह सुन कर रामहेत और ज्यादा भडक़ गया. रामहेत ने उसे रीना से दूर रहने के लिए बोला,

‘‘ज्यादा रीना का हिमायती बनने की जरूरत नहीं है. देख रहा हूं कि तू उस के करीब आने की कोशिश कर रहा है.’’ अभी तक तो सूरज रीना का हमदर्द बना हुआ था, लेकिन रामहेत की बातों से उसे महसूस हुआ कि वह उसे गलत नजरिए से देख रहा है. रामहेत की यह बात उस के दिमाग में उमडऩेघुमडऩे लगी. रीना भले ही साधारण सुंदर थी, लेकिन शरीर में मादकता थी. चलने पर कमर लचकती थी.

जब मेकअप कर लेती थी तो साड़ीब्लाउज में वह बहुत ही अच्छी दिखती थी. सूरज और रीना की उम्र में वैसे तो 10 साल का अंतर था, लेकिन रीना की उम्र 20-22 की अल्हड़ युवती की तरह दिखती थी. वह सूरज से काफी घुलीमिली थी. बाजार काकाम उसी से करवाती थी. इस कारण दोनों में अच्छी पटती थी. अत: दोनों हर तरह की बातें काफी देर तक करते रहते थे. उन के बीच हंसीठिठोली भी होती रहती थी.

मजाक में सूरज को छेड़ती हुई कह देती थी कि वह शादी कब करेगा? जवाब में सूरज भी मजाक में बोल देता कि उस के रहते शादी की जरूरत नहीं है. यह सुन कर रीना शरमा जाती थी और फिर वह रीना की तारीफ के पुल बांध देता था. उस की जवानी की कसम खाता हुआ उस का हाथ चूम लेता था. यह सब रीना के दिल को भी अच्छा लगता था. धीरेधीरे कर रीना भी अपने दिल की बात सूरज से करने लगी थी.

उस ने एक दिन मजाक में बोल दिया कि अगर वह उस की बराबर उम्र की होती, वह उस से शादी कर लेती. लेकिन यह बात सच थी कि रीना पति से किसी भी तरह से खुश नहीं थी.  रीना इस बात को ले कर भी बेचैन रहती थी. उदास भी रहने लगी थी. एक बार सूरज ने उस की उदासी का कारण पूछा.रीना बात को टालती हुई सिर्फ इतना ही कह पाई थी कि वह अभी कुंवारा है, इसलिए उस की उदासी का कारण नहीं समझेगा.

जबकि सूरज इतना भी नासमझ नहीं था कि रीना की उदासी का कारण नहीं समझे. उस रोज उस ने रीना के दोनों हाथ पकड़ लिए थे और भावुकता से बोला था, ‘‘मैं तुम्हें बहुत चाहता हूं, मुझ से तुम्हारा दर्द नहीं देखा जाता.’’ यह कहना था कि रीना उस के गले लग गई. सूरज उस का पीठ सहलाते हुए उसे ले कर कमरे में चला गया. जब रीना उस से अलग हुई, तब सूरज ने उसे चूमना शुरू कर दिया. रीना ने भी इस का विरोध नहीं किया. फिर रीना के हाथ भी सूरज के अंगों पर घूमने लगे. दोनों के शरीर में वासना की आग भभक उठी थी, लिहाजा उन्होंने अपनी हसरतें पूरी कर लीं.

भांजे के इश्क में फंसी रीना – भाग 1

मुरैना के स्टेशन रोड थाना क्षेत्र में बुद्धाराम का पुरा गांव निवासी रामहेत 3 दिनों से दिखाई नहीं दिया था. इस कारण आसपास के लोग उस की पत्नी रीना से पूछताछ करने लगे थे. पहले तो वह चुप लगा जाती थी, फिर थोड़ा रुक कर बताती थी कि काम के सिलसिले में मुरैना से बाहर ग्वालियर गए हुए हैं. जब उस से पूछा जाता कि रामहेत ग्वालियर से कब आएगा? इस पर वह बेरुखी से जवाब देती, ‘‘पता नहीं.’’

“कब गया, हमें तो कुछ बताया ही नहीं?’’ रामहेत के दोस्त ने कहा.

“अरे, मुझे भी कहां कुछ बताया था. अचानक आधी रात को उठा और जाने को तैयार हो गया,’’ रीना बोली.

“गजब का मर्द है! उस के लायक यहां काम नहीं था क्या, जो परदेस में चला गया? वहां क्या कमाएगा, क्या खाएगा और क्या बचाएगा?’’

“ये तो वही जाने,’’ रीना बोलती हुई तेज कदमों से घर आ गई थी.

अभी वह चौखट लांघी ही थी कि उस के ससुर ने आवाज लगाई, ‘‘अरे बहू! सुनती हो, रामहेत का कोई फोन आया क्या?’’

“नहीं, अभी नहीं आया, उस बेशर्म का फोन आएगा, तब सब से पहले तुम्हें बताऊंगी. लो देख लो.’’ यह कह कर हाथ से पकड़े मोबाइल को अपने ससुर तुलाराम की ओर बढ़ा दिया.

“अरे बहू, तुम तो नाराज हो गई. मुझे तो चिंता हो रही है. ग्वालियर जाने से पहले वह मुझ से मिला तक नहीं, पता नहीं क्यों?’’ तुलाराम बोला.

“मैं तो जाने से पहले बोली थी बाबूजी का आशीर्वाद ले लो, लेकिन वह अपनी मरजी का मालिक जो ठहरा.’’

“होली आने वाली है, तुम भी उसे फोन कर लिया करो.’’ तुलाराम बोला.

“मैं क्या करूं? उसे फोन करकर के थक गई हूं. उस का मोबाइल फोन हमेशा बंद बताता है तो कभी टों…टों करने लगता है,’’ रीना बोली.

“अपने भांजे सूरज को बोल वह ग्वालियर जा कर पता कर लेगा. पता नहीं क्यों मेरा दिल घबरा रहा है.’’

“अब उसे क्या कहूं? तुम्हीं जा कर देख आओ, कहीं पोहे का ठीहा लगाता होगा या मजदूरी कर रहा होगा हरामखोर, कमीना इंसान है.’’

“इतनी बेरुखी से क्यों बोलती हो? गाली तो मत दो, तुम्हारा पति है!’’

तुलाराम जब भी रीना से रामहेत के बारे में बातें करता तो वह चिढ़ जाती थी. तुलाराम समझ नहीं पा रहा था कि वह ऐसा क्यों कर रही है. फिर वह यही सोच कर चुप जाता था कि मियांबीवी के बीच की आपसी बात है. तुलाराम जाटव को आशंका थी कि उस का बेटा घर छोड़ कर कहीं चला गया है. वह तब और परेशान हो जाता था, जब उस के दिमाग में बात आती थी कि रामहेत किसी गलत कामधंधे में तो नहीं लग गया. कई महीने से काफी उलझन में दिख रहा था.

वह जहां भी जाता, अपने बेटे के बारे में पूछता था. एक तरह से वह उस की तलाश करने लगा था. उस के दोस्तों से पूछताछ करने लगा था, किंतु वे भी रामहेत के बारे में कुछ नहीं बता रहे थे. तुलाराम को रामहेत के बारे में मालूम करने की हर कोशिश नाकाम रही. तब वह थकहार कर मुरैना के स्टेशन रोड थाने जापहुंचा. वह एसएचओ रविंद्र कुमार से मिला.

तुलाराम ने बताया कि उन का 35 वर्षीय बेटा रामहेत जाटव उर्फ लल्लू 23 जनवरी, 2023 से घर नहीं लौटा है. वह पत्नी रीना से काम के सिलसिले में ग्वालियर जाने की बात बोला था. उसे ले कर चिंता इसलिए भी हो रही है, क्योंकि उस का फोन भी नहीं आया है. और उस का फोन बंद आ रहा है. तुलाराम की शिकायत और जानकारी के आधार पर थाने में 26 जनवरी, 2023 को पुलिस ने रामहेत की गुमशुदगी की सूचना दर्ज कर ली.

एसएचओ रविंद्र कुमार ने इस सूचना से एसपी आशुतोष बागरी और एडिशनल एसपी रायसिंह नरवरिया समेत एसपी (सिटी) अतुल सिंह को अवगत करा दिया. इस के लिए एक टीम बनाई गई. तुलाराम से मिली जानकारी से पुलिस इतना तो समझ ही गई थी कि बाकी की जानकारी रामहेत की पत्नी से मिल सकती है. एसएचओ ने रीना को तुरंत थाने बुलवा कर उस से रामहेत के बारे में पूछताछ की. इसी सिलसिले में पुलिस ने उस का और रामहेत का मोबाइल नंबर ले कर सर्विलांस पर लगा दिया.

रीना पहले तो उसी तरह जवाब देती रही, जैसा पड़ोसियों और अपने ससुर को दे चुकी थी. उस की पति के प्रति बेरुखी दिखाने वाला जवाब सुन कर पुलिस को उस के चरित्र को ले कर संदेह हुआ. यहां तक कि उस की बौडी लैंग्वेज और हावभाव भी पुलिस को अजीब लगा. पुलिस ने बातचीत के दौरान यह भी महसूस किया कि रीना को पति के लापता होने की कोई चिंता नहीं थी. उस के साथ जब सख्ती के साथ पूछताछ की गई, तब उस ने जो सच्चाई उगली, उस में अनैतिक संबंध की कहानी उजागर हो गई और रामहेत के बारे में भी जानकारी मिल गई.

एसएचओ ने रामहेत और उस की पत्नी रीना के मोबाइल नंबर ले कर उन की काल डिटेल्स निकलवाई. काल डिटेल्स का अध्ययन करने पर पता चला कि रीना एक नंबर पर सब से ज्यादा बातें किया करती थी, जिस दिन 23 जनवरी, 2023 को रामहेत घर से काम पर जाने की कह कर लापता हुआ. उस दिन भी रामहेत के नंबर से उस नंबर पर काफी लंबी बात हुई थी. उस नंबर की जांच हुई तो वह रामहेत के ठीक बगल में रहने वाले सूरज का निकला. जबकि वह पड़ोस में रहता था और वह उसे मामी कह कर बुलाता था.

जिद ने उजाड़ा आशियाना – भाग 2

इकबाल और शफकत का प्यार जब इतना गहरा हो गया कि वे जुदा होने के नाम पर घबराने लगे तो एक दिन इकबाल ने हंसते हुए कहा, ‘‘शफकत, तुम मेरे चक्कर में कहां पड़ रही हो? शायद तुम्हें पता नहीं कि मैं पहले से ही शादीशुदा हूं. मेरी एक बेटी भी है. लेकिन मेरी बीवी मुझ से अलग रहती है, जिस के लिए मुझे गुजाराभत्ता देना पड़ता है.’’

शफकत अब तक इकबाल के प्यार में इस कदर डूब चुकी थी कि उस की इन बातों पर उसे विश्वास नहीं हुआ, इसलिए इस बात को मजाक समझ कर वह उस के साथ जिंदगी के सुनहरे सपने बुनती रही. दोनों के दिल एकदूसरे के लिए मचल रहे थे. इकबाल शफकत से बेपनाह मोहब्बत करने लगा था, इसलिए एक दिन उस ने अपने दिल की बात अब्दुल्ला से कह दी, ‘‘दोस्त, आप की भतीजी शफकत से मुझे प्यार हो गया है. मैं उस से निकाह करना चाहता हूं. आप अपने भैया से बात करो.’’

अब्दुल्ला को इस निकाह से कोई ऐतराज नहीं था. इकबाल और शफकत पढ़ेलिखे और समझदार थे. दोनों ही अपना अच्छाबुरा सोचनेसमझने लायक थे. इसलिए दोनों के निकाह में उसे कोई बुराई नजर नहीं आई. इस के बाद अब्दुल्ला जयपुर गया तो उस ने भाई शमशाद से शफकत और इकबाल के रिश्ते की बात चलाई. थोड़ी नानुकुर के बाद शमशाद ने इस रिश्ते की मंजूरी दे दी.

इकबाल के पहले निकाह की बात जब अब्दुल्ला को ही नहीं मालूम थी तो शमशाद को कैसे मालूम होती. शफकत से उस ने कहा था तो उस ने इसे मजाक समझा था, इसलिए उस के पहले निकाह की बात राज ही बनी रही. शमशाद अहमद के हामी भरने के बाद 23 दिसंबर, 2012 को इकबाल और शफकत का निकाह दिल्ली में हो गया.

इस निकाह में शफकत के घर वालों के साथ रिश्तेदार भी शरीक हुए थे, लेकिन इकबाल के घर वालों के साथ केवल कुछ दोस्त ही आए थे. शफकत के घर वालों ने इस बात पर ज्यादा तूल नहीं दिया, क्योंकि अब्दुल्ला और इकबाल में अच्छी दोस्ती थी, इसलिए सब को यही लगा था कि वह उसे अच्छी तरह जानता होगा. उस के व्यवहार से भी वाकिफ होगा.

निकाह के बाद इकबाल अपनी बेगम शफकत को गांव बिछोर ले गया. बिछोर में रहते हुए भी शफकत को इकबाल के पहले निकाह की जानकारी नहीं हो सकी. जबकि सच्चाई यह थी कि उस का हरियाणा के नूंह की ही रहने वाली साजिदा से 26 मई, 2006 को निकाह हो चुका था. 2 साल बाद साजिदा ने एक बेटी को जन्म दिया था, जिस का नाम इकबाल ने सदर रखा था.

बेटी के जन्म के कुछ दिनों बाद इकबाल और साजिदा के बीच जमीन नाम कराने को ले कर मनमुटाव हो गया. यह मनमुटाव इतना बढ़ा कि साजिदा ने इकबाल और उस के घर वालों के खिलाफ दहेज प्रताड़ना की रिपोर्ट दर्ज करा दी. रिपोर्ट दर्ज होने के बाद पुलिस ने इकबाल, उस के वालिद याकूब खां और मां जमीला को गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया. यह दिसंबर, 2008 की बात थी.

बाद में सभी जमानत पर रिहा हुए. इस के बाद पारिवारिक न्यायालय के आदेश पर इकबाल को साजिदा को हर महीने 3 हजार रुपए गुजाराभत्ता देना पड़ रहा था.

शफकत गांव बिछोर में ही रह रही थी, जबकि इकबाल दिल्ली रह कर अपनी पढ़ाई कर रहा था. बीचबीच में वह गांव भी जाता रहता था. 2-4 बार वह शफकत को भी दिल्ली ले आया. जयपुर शहर में रह कर पढ़ीलिखी शफकत को उम्मीद थी कि पढ़ाई पूरी होने के बाद इकबाल की नौकरी लग जाएगी तो वह उस के साथ दिल्ली या किसी अन्य शहर में रह कर मजे से जिंदगी गुजारेगी. इसी उम्मीद में वह गांव में रह रही थी.

9 नवंबर, 2013 को शफकत ने एक बेटे को जन्म दिया. इकबाल ने उस का नाम अथर रखा. शफकत का निकाह हुए एक साल से ज्यादा हो गया, एक बेटा भी हो गया, इस के बाद भी इकबाल उसे साथ रखने को तैयार नहीं था. शहर में रहने वाली शफकत को बिछोर जैसे छोटे से गांव में अच्छा नहीं लगता था.

दिन भर परदे में रहने और पढ़ाईलिखाई का कोई उपयोग न होने से शफकत कुंठित होने लगी. उसे घुटन सी होने लगी तो वह इकबाल से जयपुर चल कर रहने के लिए कहने लगी. जबकि इकबाल इस के लिए राजी नहीं था. वह दिल्ली में रह कर पढ़ाई पूरी करना चाहता था. इसी बात को ले कर दोनों में अनबन रहने लगी.

शफकत जब बारबार जयपुर चल कर रहने की जिद करने लगी तो इकबाल को उस के चरित्र पर संदेह होने लगा. उसे लगने लगा कि इस का वहां किसी लड़के से प्रेम संबंध होगा, इसीलिए यह जयपुर चलने की जिद कर रही है. शक ऐसी बला है, जिस से जल्दी पीछा नहीं छूटता. यही हाल इकबाल का हुआ. इस तरह उस की और शफकत की प्रेम कहानी में शक का घुन लग गया, जो दांपत्य के विश्वास को धीरेधीरे खोखला करने लगा.

शफकत की छोटी बहन का निकाह लखनऊ में तय हुआ, जिसे अप्रैल, 2014 में होना था. संयोग से उसी बीच इकबाल के छोटे भाई अब्बास का भी निकाह तय हो गया. शफकत की बहन का निकाह पहले था, इसलिए शमशाद अहमद अपनी बीवी के साथ एक दिन बिछोर गए और शफकत को विदा करा लाए. अब तक शक की वजह से इकबाल और शफकत के बीच मनमुटाव इतना बढ़ गया था कि इकबाल न तो शफकत की बहन की शादी में गया और न ही शफकत इकबाल के भाई की शादी में आई.

बिछोर से जयपुर आने के बाद शफकत ने अपने गुजरबसर के लिए नौकरी ढूंढ़ ली. उसे एक प्राइवेट स्कूल में मैथ और साइंस पढ़ाने की नौकरी मिल गई. भले ही वह इकबाल से दूर थी और जयपुर में नौकरी कर रही थी, लेकिन उस की इकबाल से मोबाइल पर बातचीत होने के साथ वाट्सएप पर चैटिंग भी होती रहती थी.

इस बातचीत और चैटिंग में शफकत उसे जयपुर आ कर रहने के लिए कहती थी. इस बात पर इकबाल को गुस्सा आ जाता तो वह उसे भलाबुरा कहता. इस के बाद शफकत भी उसे उसी तरह जवाब देती. पुलिस के अनुसार, शफकत उसे चिढ़ाने के लिए यह भी कहने लगी थी कि उस ने दूसरा हमसफर ढूंढ लिया है, इसलिए अब वह उस के साथ नहीं जाएगी.

जिद ने उजाड़ा आशियाना – भाग 1

अदालत के आदेश पर बीवी पर गोली चलाने वाले इकबाल को जेल पहुंचाने आई पुलिस टीम उसे जेल स्टाफ को सौंपने के लिए लिखापढ़ी की काररवाई कर रही थी, तभी थाना रामगंज के थानाप्रभारी रामकिशन बिश्नोई के रीडर जगदीश चौधरी ने इकबाल को जो बताया, उसे सुन कर उस का चेहरा सफेद पड़ गया. उस की आंखों से पश्चाताप के आंसू बहने लगे.

जेल में ऐसा होना आम बात है. लेकिन इकबाल का मामला कुछ अलग तरह का था. वह नासमझ नहीं, पढ़ालिखा इंसान था. दिल्ली के जामिया मिल्लिया विश्वविद्यालय से एम.फिल. कर रहा था. पढ़ालिखा और समझदार होने के बावजूद उस ने गुस्से में बीवी को एक नहीं, 2 गोलियां मार दी थीं. उस ने गोलियां ऐसी जगह मारी थीं, जिस से वह मरे न, लेकिन वह मर गई थी.

इस बात की जानकारी इकबाल को तब तक नहीं थी. उसे यही मालूम था कि उस का अस्पताल में इस इलाज चल रहा है. यही वजह थी कि जेल स्टाफ को सौंपते समय जब रीडर जगदीश चौधरी ने उसे बताया कि उस की बीवी शफकत मर चुकी है तो वह सन्न रह गया था.

बीवी की मौत के बारे में जान कर इकबाल की आंखों से आंसू बहने लगे थे. उस के दोनों हाथ दुआओं के लिए उठ गए थे. इस के बाद हथेली से आंसू पोंछते हुए उस ने कहा, ‘‘साहब, मैं शफकत से बहुत प्यार करता था और शायद इतना ही प्यार हमेशा करता रहूंगा. आप मेरे सासससुर से कहिएगा कि वे उस की कब्र पर कोई निशान लगा कर रखेंगे. मैं जेल से बाहर आऊंगा तो बाकी की जिंदगी उसी की कब्र पर बिताऊंगा. क्योंकि अब मैं सिर्फ उसी का हो कर रहना चाहता हूं. मैं अपने सासससुर से भी दूर नहीं रहना चाहता. ताउम्र उन से नाता बनाए रखना चाहता हूं.’’

जयपुर (उत्तर) के थाना रामगंज की पुलिस ने इकबाल को 19 अगस्त को अपनी बीवी शफकत को गोली मारने के आरोप में गिरफ्तार किया था. लेकिन अस्पताल पहुंचतेपहुंचते शफकत की मौत हो गई थी. पुलिस ने इकबाल को अदालत में पेश कर के पूछताछ के लिए 3 दिनों के पुलिस रिमांड पर ले लिया था.

उस की मनोस्थिति को देखते हुए पुलिस ने उसे यह नहीं बताया था कि शफकत अब इस दुनिया में नहीं रही. बीवी की मौत के बारे में जानकारी न होने की वजह से इकबाल रिमांड अवधि के दौरान खुदा से शफकत के जल्द से जल्द ठीक होने की दुआएं मांगता रहा.

लेकिन रिमांड अवधि खत्म होने पर अदालत के आदेश पर इकबाल को न्यायिक हिरासत में भेजा गया तो उसे जेल पहुंचाने आई पुलिस टीम में शामिल रीडर जगदीश चौधरी ने जब उसे बताया कि शफकत अब इस दुनिया में नहीं रही तो उस ने रोते हुए कहा, ‘‘आप झूठ बोल रहे हैं. ऐसा कैसे हो सकता है. उस ने साथ जीने और मरने की कसमें खाई थीं. वह मुझे इस तरह छोड़ कर नहीं जा सकती. सासससुर ने शफकत को मेरे साथ नहीं भेजा, इसीलिए मैं ने उसे गोली मारी थी. मुझे पता नहीं था कि इस तरह वह मेरा साथ छोड़ देगी.’’

इकबाल की बातें सुन कर पुलिस वालों को भी उस पर दया आ गई थी. पुलिस वालों ने इकबाल को समझाबुझा कर शांत किया और उसे जेलकर्मियों के हवाले कर दिया. जेल वाले उसे बैरक में ले गए. जेल की बैरक में पहुंच कर इकबाल अपनी मोहब्बत की दुनिया में खो गया. उस की आंखों के सामने शफकत से प्यार, निकाह और बेटे अथर के पैदा होने से ले कर गोली मारने तक की पूरी घटना फिल्म की तरह चलने लगी.

हरियाणा के नूंह जिले की पुन्हाना तहसील के गांव बिछोर के रहने वाले याकूब खां के बड़े बेटे इकबाल ने गांव से इंटर पास कर के आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली के जामिया मिल्लिया विश्वविद्यालय में दाखिला ले लिया था.  जिन दिनों इकबाल एमए कर रहा था, उस की जानपहचान अब्दुल्ला से हुई. लखनऊ का रहने वाला अब्दुल्ला इकबाल से सीनियर था. उस समय वह जामिया से ही पीएचडी कर रहा था, साथ ही वह किसी प्राइवेट स्कूल में पढ़ाता भी था.

अब्दुल्ला से इकबाल की जानपहचान हुई तो वह उसी के साथ उसी के कमरे में रहने लगा. साथ रहने की वजह से दोनों की दोस्ती और गहरी हो गई तो वे अपनेअपने परिवारों तथा दुखदर्द के साथसाथ दुनियाजहान की बातें करने लगे. अब्दुल्ला के रिश्ते के एक भाई शमशाद अहमद जयपुर में रहते थे. मूलरूप से वह उत्तर प्रदेश के जिला बिजनौर के थाना नांगल सोती के गांव सबलपुरा बीतरा के रहने वाले थे. सन 2008 में वह अपने परिवार के साथ जयपुर आ गए थे और वहां वह रामगंज स्थित रैगरों की कोठी में किराए का मकान ले कर रहने लगे थे.

शमशाद अहमद एमए पास थे, लेकिन उन्होंने नौकरी करने के बजाय व्यवसाय को महत्व दिया. जयपुर में उन्होंने हल्दियों का रास्ता में बच्चों के कपड़ों की दुकान खोली, जो बढि़या चल रही है. दुकान से उन्हें ठीकठाक आमदनी होती थी, जिस से वह आराम की जिंदगी बसर कर रहे थे. वह खुद पढ़ेलिखे थे, इसलिए उन्होंने अपने बच्चों की भी पढ़ाई पर विशेष ध्यान दिया. शमशाद की 6 संतानों में 4 बेटियां और 2 बेटे थे. शफकत उन की दूसरे नंबर की बेटी थी. उस का पूरा नाम था शफकत खानम.

अब्दुल्ला और इकबाल में जब कभी घरपरिवार और नातेरिश्तेदारों की बातें होतीं तो कभीकभी शमशाद अहमद की बेटी शफकत का भी जिक्र हो जाता. शफकत जयपुर के वैदिक कन्या कालेज से बीएससी कर रही थी. उसी बीच अब्दुल्ला के साथ इकबाल भी एकदो बार जयपुर घूमने गया.

चूंकि वहां अब्दुल्ला भाई के घर रुकता था, इसलिए दोस्त होने के नाते इकबाल भी वहीं रुकता था. इसी आनेजाने और घर में रुकने की वजह से इकबाल और शफकत खानम के दिलों में एकदूसरे के लिए चाहत पैदा हो गई. इस के बाद कभीकभी इकबाल से मिलने के लिए शफकत अपने चाचा अब्दुल्ला के पास दिल्ली आने लगी.

अब तक दोनों एकदूसरे से काफी खुल चुके थे. अब्दुल्ला को दोस्त पर विश्वास था, इसलिए वह शफकत को उस के साथ अकेली छोड़ कर चला जाता था. ऐसे में ही एक दिन इकबाल और शफकत शाहरुख खान की फिल्म ‘बाजीगर’ देख रहे थे तो टीवी स्क्रीन पर गाना आया, ‘किताबें बहुत सी पढ़ी होंगी तुम ने, मगर कोई चेहरा भी तुम ने पढ़ा है..?’

इस लाइन के पूरा होते ही शफकत ने इकबाल की कलाई थाम कर शरारत भरे अंदाज में कहा, ‘‘क्या तुम ने भी किसी का चेहरा पढ़ा है?’’

इकबाल उस की शरारत को समझ गया. इसलिए गाने की लय से लय मिलाते हुए बोला, ‘‘पढ़ा है, मेरी जां नजर से पढ़ा है…’’

अब भला शफकत क्यों चुप रहती. उस ने गाने को आगे बढ़ाया, ‘‘बता, मेरे चेहरे पर क्याक्या लिखा है?’’

इस तरह शरारतशरारत में मोहब्बत का इजहार हो गया तो कभी इकबाल शफकत से मिलने जयपुर जाने लगा तो कभी शफकत उस से मिलने दिल्ली आने लगी. इन मुलाकातों में दोनों साथसाथ जीनेमरने की कसमें खाते हुए भविष्य के सपने बुनने लगे.

पाक प्यार में नापाक इरादे – भाग 2

पुलिस ने देखा कि सर्वेश इस तरह लाइन पर नहीं आ रही है तो पुलिस ने उस के साथ ऐसा खेल खेला कि बड़ी आसानी से वह उस में फंस गई. पुलिस ने उस से कहा था कि नेत्रपाल उन के कब्जे में है और उस ने बता दिया है कि तुम्हारी मदद से उसी ने पाकेश की हत्या की थी.

सर्वेश एकदम से बोली, ‘‘साहब, वह झूठ बोल रहा है. मैं ने उस से पाकेश की हत्या के लिए नहीं कहा था. उस ने अपने आप उस की हत्या की थी.’’

इस तरह सर्वेश ने सच्चाई उगल दी. इस के बाद लंबी पूछताछ में पुलिस ने सर्वेश से पाकेश की हत्या की पूरी कहानी उगलवा ली, जो इस प्रकार थी.

उत्तराखंड के जसपुर से लगभग 30 किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश के जिला बिजनौर का एक गांव है मोहद्दीपुर हसनपुर. कृपाल सिंह का परिवार इसी गांव में रहता था. उस के पास जो खेतीबाड़ी थी, उसी में मेहनत कर के वह गुजरबसर कर रहा था. शादी के बाद बड़ा बेटा हरियाणा में जा कर रहने लगा था. उस से छोटा धर्मवीर मंदबुद्धि था.

भाईबहनों में पाकेश सब से छोटा था, जो खेतीबाड़ी में कृपाल सिंह की मदद करता था. धर्मवीर मंदबुद्धि था, इसलिए उस की शादी नहीं हो रही थी. तब कृपाल सिंह ने सोचा कि वह पाकेश की शादी कर दें, क्योंकि उस की शादी के लिए लोग आने लगे थे.

बिजनौर के थाना रेहड के पास एक गांव है देहलावाला. उसी गांव के रहने वाले देवेंद्र सिंह चौहान की बेटी सर्वेश कृपाल सिंह को पसंद आ गई तो उस ने पाकेश की शादी उसी से कर दी.

देवेंद्र सिंह भी कृपाल सिंह की ही तरह सीधासादा आदमी था. लेकिन उस की पत्नी मूर्ति देवी काफी तेजतर्रार थी और घर में उसी की चलती थी. सर्वेश ने जैसा अपने घर में देखा था, वैसा ही कुछ ससुराल में करने की कोशिश करने लगी. पाकेश सीधा और शांत स्वभाव का था, इसलिए चंचल स्वभाव वाली सर्वेश को ससुराल में अपनी चलाने में जरा भी परेशानी नहीं हुई.

देहलावाला गांव की गिनती इलाके में अच्छे गांवों में नहीं होती, क्योंकि यहां की कई औरतें देह के धंधे से जुड़ी थीं. वे खुद तो यह धंधा करती ही थीं, अपने साथ कई लड़कियों को भी जोड़ रखा था. इसी देह के धंधे की कमाई से उन के रहनसहन में और गांव के अन्य लोगों के रहनसहन में जमीनआसमान का अंतर था.

उन्हीं के रहनसहन को देख कर सर्वेश की मां मूर्ति देवी भी गांव छोड़ कर काशीपुर आ गई थी. काशीपुर आने के बाद उस ने भी वही रास्ता अपना लिया था और नोट कमाने लगी थी. हालांकि सर्वेश को मां के इस धंधे की जानकारी नहीं थी. लेकिन मां के रहनसहन को ही देख कर उस की भी काशीपुर में रहने की इच्छा होने लगी थी.

शादी के कुछ दिनों बाद ही कृपाल सिंह की मौत हो गई थी, इसलिए पाकेश अकेला पड़ गया था. वह सीधासादा तो था ही, इसलिए सर्वेश जैसा कहती थी, वह वैसा ही करती थी. सर्वेश उस पर काशीपुर चलने के लिए दबाव बनाने लगी. वह पत्नी को बहुत प्यार करता था, इसलिए उसे नाराज नहीं करना चाहता था. पत्नी के कहने पर ही उस ने अपनी एक एकड़ जमीन बेचने का मन बना लिया.

गांव की जमीन बिकते ही सर्वेश अपनी मां की मदद से काशीपुर में घर बनाने के लिए प्लौट ढूंढने लगी. मूर्ति देवी की काशीपुर के कई प्रौपर्टी डीलरों से अच्छी जानपहचान थी. उन्हीं प्रौपर्टी डीलरों की मदद से मूर्ति देवी ने सर्वेश को बाजपुर रेलवे लाइन के किनारे काशीपुर विकास कालोनी में एक प्लौट दिला दिया.

काशीपुर में प्लौट तो खरीद लिया गया, लेकिन जब उस की रजिस्ट्री करानी हुई तो पाकेश और सर्वेश में तकरार होने लगी. पाकेश उस प्लौट की रजिस्ट्री अपने नाम से कराना चाहता था, जबकि सर्वेश चाहती थी कि रजिस्ट्री उस के नाम हो. इस बात को ले कर विवाद ज्यादा बढ़ा तो पाकेश को ही झुकना पड़ा. क्योंकि वह पत्नी को नाराज नहीं करना चाहता था.

सर्वेश के नाम प्लौट की रजिस्ट्री करा कर पाकेश ने घर बनवा लिया. अब तक सर्वेश 2 बच्चों की मां बन चुकी थी, जिन में बेटा तुषार और बेटी गार्गी थी. सर्वेश ने अपने दोनों बच्चों का दाखिला भी काशीपुर में करा दिया था.

काशीपुर में गुजरबसर के लिए पाकेश महुआखेड़ा की फैक्ट्री में नौकरी करने लगा था. पाकेश का घर जिस मोहल्ले में था, वहां अभी इक्कादुक्का घर ही बने थे. दोनों बच्चे स्कूल चले जाते थे और पाकेश अपनी नौकरी पर. उस के बाद सर्वेश घर में अकेली रह जाती, ऐसे में उस के लिए समय काटना मुश्किल हो जाता था.

काशीपुर आने के बाद सर्वेश का अपनी मां के यहां आनाजाना बढ़ गया था. इसी आनेजाने में उसे मां की हकीकत का पता चल गया. वैसे तो वह महुआखेड़ा की किसी फैक्ट्री में नौकरी करती थी, लेकिन उस की कमाई का मुख्य स्रोत लड़कियों की दलाली थी. यह काम वह मोबाइल फोन से करती थी. उसे लड़कियों की दलाली से अच्छी कमाई हो रही थी.

मां की हकीकत जान कर सर्वेश ने भी उसी राह पर चलने का इरादा बना लिया. उस ने पाकेश से दिन में अकेली रहने वाली परेशानी बता कर एक जूता फैक्ट्री में नौकरी कर ली. उसी जूता फैक्ट्री में उस की मुलाकात नेत्रपाल से हुई. नेत्रपाल वहां सुपरवाइजर था. सर्वेश जितनी खूबसूरत थी, उस से कहीं ज्यादा चंचल और शोख थी.

नेत्रपाल उत्तर प्रदेश के जिला मुरादाबाद के गांव चतरपुर का रहने वाला था. उस का गांव महुआखेड़ा के नजदीक ही था, इसलिए वह घर से ही अपनी ड्यूटी पर आताजाता था. उस की अभी शादी नहीं हुई थी. इसलिए नेत्रपाल के नेत्र सर्वेश से लड़े तो वह उस के लिए पागल हो उठा. जबकि सर्वेश 2 बच्चों की मां थी. लेकिन उस की कदकाठी ऐसी थी कि देखने में वह कुंवारी लगती थी.

कुछ ही दिनों में नेत्रपाल सर्वेश के लिए ऐसा पागल हुआ कि दिनरात उसी के बारे में सोचने लगा. नेत्रपाल के पास सर्वेश का मोबाइल नंबर था ही, इसलिए वह छुट्टी के बाद भी फोन कर के उस से बातें करने लगा.

पाकेश पूरे दिन नौकरी पर रहता था. शाम को थकामांदा आता तो खाना खा कर सो जाता. उसे इस बात की भी चिंता नहीं रहती थी कि पत्नी क्या कर रही है. सर्वेश इसी बात का फायदा उठा कर नेत्रपाल से देर रात तक बातें करती रहती. मोबाइल पर बातें करतेकरते ही नेत्रपाल सर्वेश को अपने इतने नजदीक ले आया कि मौका मिलते ही उस ने उस से अवैध संबंध बना लिए.

नेत्रपाल से संबंध बनने के बाद सर्वेश को पाकेश की अपेक्षा नेत्रपाल की जरूरत ज्यादा महसूस होने लगी थी. सर्वेश को जब भी मौका मिलता, नेत्रपाल को फोन कर देती. नेत्रपाल को उस के फोन का इंतजार रहता ही था, संदेश मिलते ही वह सर्वेश के घर आ जाता.

सवालों के घेरे में मोटिव, मर्डर, वेपन और चश्मदीद – भाग 3

हद तो तब हो गई, जब सीरत का कस्टडी रिमांड हासिल करने के लिए उसे सुबह अदालत में पेश किया गया. वहां माननीय जज से उस ने सीधे कहा कि एकम ने अपने लाइसैंसी रिवौल्वर से आत्महत्या की थी. डर जाने की वजह से वह उस की लाश को ठिकाने लगाने की भूल कर बैठी. अब पुलिस उसे एकम के कत्ल के झूठे केस में फंसा रही है.

माननीय जज ने सीरत को 2 दिनों के कस्टडी रिमांड में रखने का आदेश देते हुए पुलिस से कहा था कि मामला हाईप्रोफाइल है, जांच में कहीं कोई कमी नहीं होनी चाहिए. उसी दिन मोहाली के फेज-6 स्थित सिविल अस्पताल के 3 डाक्टरों मनहर सिंह, हिम्मत मोहन सिंह और कुलदीप सिंह ने एकम के शव का पोस्टमार्टम किया. पोस्टमार्टम की वीडियोग्राफी और स्टिल फोटोग्राफी भी कराई गई.

अपनी रिपोर्ट में डाक्टरों ने लिखा कि गोली एकम के सिर में कान के पास से होते हुए दिमाग को चीर कर दूसरी तरफ निकल गई थी. लेकिन रिपोर्ट में एकम के जिस्म पर किसी चोट का कोई उल्लेख नहीं था. मृतक का विसरा ले कर रासायनिक परीक्षण के लिए खरड़ स्थित फोरैंसिक लैब में भिजवा दिया गया था. एकम के भाई और पिता को पहले से ही मोहाली पुलिस पर भरोसा नहीं था. उन का आरोप था कि एसपी पंधेर आरोपियों को बचा रहे हैं. इस बात की शिकायत करने के लिए वे 20 मार्च को पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह से मिले.

मुख्यमंत्री के आदेश पर एसपी पंधेर को इस केस से अलग कर मोहाली के युवा एसएसपी कुलदीप सिंह चाहल की अगुवाई में स्पैशल इनवैस्टीगेटिव टीम (एसआईटी) का गठन कर दिया गया, साथ ही यह आदेश भी पारित किया गया कि इस केस की छानबीन के संबंध में एसएसपी अपनी रिपोर्ट तैयार कर रोजाना मुख्यमंत्री को भेजा करेंगे. ऐसा ही किया भी जाने लगा था, लेकिन पूछताछ में समस्या यह आ रही थी कि जब सीरत से पूछताछ की जाने लगी तो वह कभी अपने कपड़े फाड़ने लगती तो कभी चीखचीख कर थाना सिर पर उठा लेती. वह अपने बच्चों से मिलवाने की जिद भी कर रही थी.

उस की हरकतों से परेशान हो कर पुलिस वाले थाने से बाहर निकल कर अधिकारियों को फोन करने लगते थे. सीरत के इसी नाटक में 2 दिन का कस्टडी रिमांड खत्म हो गया. अब उस का लाई डिटेक्टर टेस्ट करवाने की कवायद शुरू की गई. उस की रिमांड अवधि भी 6 दिनों की करवा ली गई. लेकिन सीरत ने लाई डिटेक्टर टेस्ट करवाने से मना कर दिया. इस बीच सीसीटीवी कैमरे की एक ऐसी फुटेज पुलिस के हाथ लग गई, जिस में सीरत अकेली सीढि़यों से सूटकेस घसीटते हुए नीचे ला रही थी और बारबार खून के धब्बे साफ कर रही थी.

इस से लगा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि वाकई उस ने अकेले ही इस हत्याकांड को अंजाम दिया हो और अब जानबूझ कर अन्य लोगों को फंसाने का प्रयास कर रही हो. जबकि उस की अपने भाई से पिछले लंबे अरसे से बोलचाल नहीं थी.

6 दिनों का कस्टडी रिमांड भी निकल गया. लेकिन पुलिस सीरत से जरूरी पूछताछ नहीं कर सकी. 27 मार्च को उसे अदालत में पेश कर के रिमांड अवधि बढ़ाने की मांग की गई तो सक्षम जज ने मना करते हुए सीरत को न्यायिक हिरासत में नाभा की हाई सिक्योरिटी जेल भेज दिया. अब पुलिस बिना अदालत की अनुमति के उस से एक भी सवाल नहीं पूछ सकती थी. जबकि एकम परिवार के सदस्य न्याय की खातिर बारबार पुलिस के बड़े अधिकारियों से गुहार लगा रहे थे.

3 अप्रैल, 2017 को सीरत के भाई विनय प्रताप सिंह बराड़ उर्फ विन्नी ने एसएसपी के सामने आत्मसमर्पण कर दिया. उस से मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ की गई, जिस में वह बेकसूर पाया गया. उसे रिहा करने के अलावा पुलिस के पास कोई उपाय नहीं था. इसी तरह 10 अप्रैल को सीरत की मां जसविंदर कौर ने भी अपने वकील के साथ एसएसपी कुलदीप सिंह चाहल के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया. उस से भी पुलिस ने पूछताछ की. वह भी पूछताछ में बेकसूर पाई गई तो उसे भी छोड़ दिया गया.

यह एक निहायत उलझा हुआ हाईप्रोफाइल केस था. सीरत के पिता का तभी देहांत हो गया था, जब वह काफी छोटी थी. उस का लालनपालन उस के मामा अजीत सिंह मोफर ने किया था, जो बाद में पंजाब की सरदूलगढ़ सीट से कांग्रेसी विधायक चुने गए थे. सीरत की मरजी के अनुसार एकम से शादी करवाने में भी उस के इस मामा ने अपना पूरा सहयोग दिया था. सीरत की अपने भाई से नहीं बनती थी. वह उस की शादी में भी शामिल नहीं हुआ था.

कहते हैं कि सीरत आधुनिक विचारों की खुले हाथों खर्च करने वाली औरत थी. सन 2011 में जिन दिनों एकम पंजाब एग्रो विभाग में मैनेजर के पद पर कार्यरत था, वहां करोड़ों रुपए का घोटाला हुआ था. इस बारे में आपराधिक केस भी दर्ज हुआ था, जिस में कुछ अन्य लोगों के अलावा एकम और सीरत भी आरोपी थे.

यह केस अभी भी मोहाली की एक अदालत में चल रहा है. एकम हत्याकांड में तभी कुछ सामने आ सकेगा, जब कड़ी से कड़ी जोड़ कर व्यापक छानबीन की जाएगी. पुलिस भी खुल कर सामने नहीं आ रही है. केस को ले कर उस के पास शायद कुछ ऐसे पत्ते हैं, जिन्हें वह अभी खोलना नहीं चाहती. वक्त आने पर ही शायद खोल कर केस को मजबूत करे.

अभी तक तो मर्डर का न मोटिव सामने आया है, न मर्डर वेपन ही विश्वसनीय लग रहा है और न ही इस कांड का कोई चश्मदीद गवाह है. फिलहाल औटोचालक का रोल भी परदे के पीछे कर दिया गया है.

एकम के उस रात शराब न पीने की पुष्टि हो चुकी है. कहा जाता है कि वह एक महीने पहले ही शराब पीना छोड़ चुका था. उस का लाइसैंसी रिवौल्वर भी तब से थाने में जमा था, जब पंजाब में विधानसभा के चुनाव हुए थे. ऐसे में वह पिस्तौल किस की थी, जिस से गोली चलने की बात मान कर मौके से कब्जे में लिया गया.

फिलहाल, केस की ताजा स्थिति यह है कि न्यायिक हिरासत की अवधि समाप्त होने पर सीरत जब मोहाली की अदालत में पेश हुई तो उस की हिरासत अवधि बढ़ाते हुए माननीय जज ने आदेश दिया कि आगे उस की पेशी वीडियो कौन्फ्रैंसिंग से हुआ करेगी. मतलब सीरत को निजी रूप से अदालत में पेश नहीं होना पड़ेगा. सीरत ने अपने बच्चों की कस्टडी हासिल करने की बात भी जज से कही थी, जिस के लिए उसे संबंधित अदालत में अर्जी लगाने को कहा गया.

पुलिस का कहना है कि इस केस में अभी भी जांच जारी है. फिलहाल इस में किसी को क्लीनचिट नहीं दी गई है. जिन्हें छोड़ा गया है, उन्हें पूछताछ के लिए कभी भी फिर से बुलाया जा सकता है.

सवालों के घेरे में मोटिव, मर्डर, वेपन और चश्मदीद – भाग 2

लेकिन लंबे अरसे बाद 8 मार्च की रात एकम सिंह अचानक पिता के पास जा पहुंचा. उस समय वह काफी दुखी और परेशान था. रोते हुए उस ने पिता को बताया था कि वह अपनी जिंदगी से काफी परेशान है. उस की पत्नी और सास उसे परेशान कर रही हैं. उस ने यह भी बताया था कि कल उस के साथ बड़ा धोखा हो सकता है. इस के अलावा भी उस ने कई और चौंकाने वाली बातें बताई थीं.

जसपाल सिंह ने उसे आश्वस्त किया था कि वह जल्दी ही उस के घर आ कर इस मामले में उस की पत्नी और सास से बात कर के उस की समस्या का हल निकालने की कोशिश करेंगे. इस के बाद उन्होंने एकम से खाना खा कर जाने को कहा, लेकिन वह भूख न होने की बात कह कर चला गया था.

अगले दिन सवेरे ही दर्शन सिंह ढिल्लो को उस के किसी दोस्त ने फोन कर के एकम के साथ कोई हादसा होने की बात बताई थी. फोन सुनते ही वह उस के घर की ओर चल पड़ा था. एकम पहले चंडीगढ़ के सैक्टर-35 में किराए के मकान में रहता था, जहां वह 80 हजार रुपए महीना किराया देता था. करीब 20 दिनों पहले ही वह मोहाली में एक कनाल की इस कोठी की पहली मंजिल किराए पर ले कर बीवीबच्चों के साथ रहने आया था.

भाई के घर आने पर दर्शन सिंह को भाई के कत्ल के बारे में पता चला था तो उस ने फोन कर के पिता को भी बुला लिया था.

पुलिस ने लाश को कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए मोहाली के सिविल अस्पताल भिजवा दिया. इस के बाद डौग स्क्वायड और फोरैंसिक टीम का काम निपटाया गया. पुलिस ने दर्शन सिंह ढिल्लो की तहरीर पर भादंवि की धाराओं 302, 201 व 34 के तहत थाना मटौर में मुकदमा दर्ज कर के आगे की काररवाई शुरू कर दी.

चूंकि मृतक के सिर में गोली लगने का घाव साफ दिखाई दे रहा था, इसलिए पहली ही नजर में यह मामला गोली मार कर हत्या करने का लग रहा था. इसलिए मुकदमे में शस्त्र अधिनियम की धाराओं 25/54 एवं 59 का भी समावेश किया गया था.

दर्शन सिंह ने अपनी तहरीर में जिन लोगों को नामजद किया था, उस में सीरत कौर ढिल्लो, विनय सिंह बराड़ और जसविंदर कौर बराड़ थीं. इन में विनय एकम सिंह का साला था तो जसविंदर कौर सास. इन तीनों को मुख्यरूप से आरोपी बनाने के अलावा शिकायत में यह भी आशंका व्यक्त की गई थी कि वारदात के समय इन के साथ कुछ और लोग भी रहे होंगे.

इस की वजह मजबूत कदकाठी के लंबेतगड़े आदमी के साथ मारपीट करने और गोली मार कर हत्या करने के बाद उस की लाश को सूटकेस में ठूंस कर भरने का काम 2 महिलाएं और एक आदमी के वश की बात नहीं थी. फिर महिलाओं में भी एक औरत दुबलीपतली और बूढ़ी थी. मौके पर ही दर्शन सिंह ढिल्लो एक बात चीखचीख कर कह रहा था कि सीरत कौर पंजाब के एक बड़े कांग्रेसी नेता की सगी भांजी है, इसलिए पुलिस इस मामले को कतई गंभीरता से नहीं लेगी.

नामजद अभियुक्त फरार हो चुके थे. उन की तलाश में पुलिस ने भागदौड़ शुरू की. पुलिस को इस मामले में कोई सफलता मिलती, उस के पहले ही उसी दिन शाम को एक आदमी बड़ी सी गाड़ी में आया और नामजद मुख्य अभियुक्ता सीरत कौर को थाना मटौर में छोड़ गया. सीरत ने थानाप्रभारी के सामने जा कर आत्मसमर्पण कर दिया. पुलिस ने उसे हिरासत में ले कर औपचारिक पूछताछ शुरू की.

इस पूछताछ में पता चला कि सीरत की दोस्ती अपने भाई विनय प्रताप सिंह बराड़ के एक दोस्त से थी. इसी दोस्ती की वजह से उस ने भाई और उस के उस दोस्त के साथ मिल कर अपने पति को मौत के घाट उतार दिया था. इस बात की जानकारी उस की मां जसविंदर कौर को भी थी. सीरत के दोस्त ने एकम सिंह पर 2 गोलियां चलाई थीं. उन में से एक उस की खोपड़ी में लगी थी और दूसरी पिस्टल में ही फंस कर रह गई थी.

एकम को खत्म करने की योजना बना कर सभी शनिवार की रात घर आ गए थे. देर रात एकम घर आया तो पहले उस से मारपीट की गई. उस के बाद उसे जबरदस्ती बाथरूम में ले जाया गया और गोली मार दी गई. जब वह मर गया तो वहां पड़े खून के धब्बों को साफ कर के एकम की लाश को ठिकाने लगाने के लिए सूटकेस में ठूंस दिया गया.

सुबह सीरत अकेली सूटकेस को खींचती हुई नीचे ले आई. सूटकेस उतारते समय सीढि़यों में जहांतहां भी खून टपका, उस ने उसे साफ कर दिया. इस से पहले वह नीचे जा कर गाड़ी का गेट खोल कर इस बात का अंदाजा लगा आई थी कि सूटकेस को कहां रखना चाहिए.

इसी चक्कर में गाड़ी की चाबी डिक्की में गिर गई थी और इस बात से बेखबर सीरत ने डिक्की बंद कर दी थी. कार के दरवाजे खुले ही थे. सूटकेस नीचे ला कर जब वह सूटकेस गाड़ी में नहीं रख पाई तो वहां सवारी छोड़ने आए औटोचालक को रोक कर उस से मदद मांगी. सूटकेस रखवा कर वह चला तो गया, लेकिन सीरत को उस की बातों से लगा कि उसे उस पर शक हो गया है.

थोड़ी ही देर में सीरत कौर को पुलिस वैन आती दिखाई दी तो वह वहां से भाग गई. उस के बताए अनुसार, उस के साथ कोई अन्य औरत नहीं थी. औटोचालक ने पता नहीं क्यों झूठ बोला था. पुलिस की तो जैसे लौटरी निकल आई थी. जरा सी देर में बिना खास प्रयास के एक हाईप्रोफाइल मर्डर केस का खुलासा हो गया था. सीरत ने आत्मसमर्पण कर दिया था. अब अन्य अभियुक्तों को भी आसानी से पकड़ा जा सकता था.

परंतु रात में ही पुलिस की आशा निराशा में बदल गई. सीरत की गिरफ्तारी की सूचना पा कर रात में जब पुलिस के बड़े अधिकारी उस से पूछताछ करने थाने पहुंचे तो वह पिछले बयानों से मुकर गई. अब वह कहने लगी थी कि पति के अत्याचारों से तंग आ कर उस ने अकेले ही उस की हत्या की थी. एकम उस के चरित्र पर शक करते हुए उस से मारपीट करता था. पिछली रात भी वह शराब पी कर आया और उस से मारपीट करते हुए उस ने उस पर अपना रिवौल्वर तान दिया. मौका पा कर रिवौल्वर छीन कर उस ने उसी पर गोली चला दी.

रिवौल्वर के बारे में उस ने बताया कि वह घर की अलमारी में पड़ी है. लेकिन इस कांड में उस के साथ कोई और नहीं था. उस ने अकेले अपनी सुरक्षा को ध्यान में रख कर यह कत्ल किया है और वह अपना अपराध स्वीकार कर रही है.