भिखारी बनाने वाला खतरनाक गैंग – भाग 1

राम प्रकाश पाठक सुबह 10 बजे कानपुर के किदवई नगर चौराहा स्थित अपनी दुकान पर पहुंचे तो वहां एक युवक बैठा था. उस का शरीर कांप रहा था और शरीर से दुर्गंध भी आ रही थी. उसे देख कर लग रहा था कि उसे आंखों से पूरी तरह दिखाई न दे रहा हो.

उन्होंने दुकान का शटर खोलने के लिए उस युवक से थोड़ा आगे बढ़ कर बैठने के लिए कहा तो वह युवक बोला, ‘‘पंडितजी, आप ने पहचाना मुझे? मैं सुरेश मांझी, यहीं पर लेबर का काम करता था. रोज लेबर मंडी आता था. मैं ने आप की आवाज पहचान ली है.’’

‘पंडितजी’ संबोधन सुन कर राम प्रकाश पाठक चौंक पडे़. क्योंकि उन को जाननेपहचानने वाले लोग ही उन्हें पंडितजी कह कर बुलाते थे. फिर भी उन्होंने उस युवक से कहा, ‘‘मैं ने तुम्हें नहीं पहचाना.’’

अभी पंडितजी और उस युवक में बातचीत हो ही रही थी, तभी पास में ही मौजूद अमित नाम का मजदूर वहां आ गया. उस ने उस युवक को गौर से देखा फिर बोला, ‘‘क्या तुम सुरेश हो?’’

‘‘हां भैया, मैं सुरेश मांझी हूं. और तुम?’’

‘‘मेरा नाम अमित है. हम दोनों ने कई बार साथसाथ काम किया है. इसलिए मैं ने तुम्हें पहचान लिया. लेकिन तुम्हारी यह दुर्दशा कैसे हुई?’’

‘‘अमित भैया, यह लंबी कहानी है. पहले तुम मेरे भाई रमेश को खबर दे दो. ताकि मेरी जान बच सके. वह यशोदा नगर के एस ब्लौक नाला रोड पर रहता है.’’ वह युवक बोला.

पंडित राम प्रकाश पाठक ने अमित को कुछ रुपए दे कर सुरेश मांझी के भाई के घर भेज दिया. अमित पूछतेपाछते किसी तरह रमेश के घर पहुंच गया और सुरेश मांझी के बारे में जानकारी दी. अमित की बात सुन कर रमेश मांझी चौंक पड़ा. क्योंकि उस का भाई सुरेश मांझी पिछले 6 महीने से लापता था और उस की खोज में वह जुटा हुआ था.

कुछ देर बाद ही रमेश अमित के साथ किदवई नगर चौराहे पर आ गया, जहां उस का भाई उस समय नाजुक हालत में पड़ा था. पहली नजर में छोटे भाई सुरेश को देख कर रमेश उसे पहचान ही नहीं पाया. क्योंकि वह तो शरीर से हृष्टपुष्ट 25 वर्षीय युवक था और जो सामने था, वह बेहद दयनीय स्थिति में था.

लेकिन जब उस ने उस से बातचीत की और घरपरिवार के बारे में जानकारी ली तो वह समझ गया कि यह युवक उस का भाई सुरेश मांझी ही है. उस के बाद रमेश अपने छोटे भाई सुरेश को अपने घर यशोदा नगर ले आया. यह बात 30 अक्तूबर, 2022 की है.

घर ला कर रमेश ने भाई सुरेश के शरीर से फटेपुराने बदबूदार कपड़ों को अलग किया और साफसुथरे कपड़े पहनाए. इस के बाद उसे अपने हाथ से खाना खिलाया. भाई की दशा देख कर रमेश का कलेजा मुंह को आ गया था.

वह न चल पा रहा था और न ठीक से बोल पा रहा था. आंखों से दिखाई भी नहीं दे रहा था. शरीर में संक्रमण फैला था, जिस से शरीर से बदबू भी आ रही थी.

सुरेश मांझी की यह दुर्दशा कैसे हुई या किस ने की? इस बाबत रमेश ने भाई सुरेश मांझी से पूछताछ की. सुरेश के दिलोदिमाग में दहशत भरी थी, इसलिए उस ने कुछ भी बताने से इंकार कर दिया. लेकिन जब रमेश ने उसे प्यार से समझाया तो उस ने बताया कि वह भीख मंगवाने वाले गिरोह के चंगुल में फंस गया था. उसी गिरोह के लोगों ने उस की यह दशा की है.

अपने भाई सुरेश मांझी के इलाज के लिए रमेश दरदर भटकने लगा. वह उसे भरती कराने के लिए नौबस्ता व यशोदा नगर क्षेत्र के 3 अस्पतालों में गया, लेकिन सुरेश की हालत देख कर किसी भी प्राइवेट अस्पताल ने उसे भरती नहीं किया. हताश हो कर वह उसे घर वापस ले आया. 2 दिन तक सुरेश घर पर ही तड़पता रहा.

3 नवंबर, 2022 की सुबह 10 बजे रमेश मदद के लिए यशोदा नगर (वार्ड 95) के सभासद प्रशांत शुक्ला के आवास पर पहुंचा.

रमेश ने तब बताया कि करीब 6 महीने पहले उस का भाई भीख मंगवाने वाले गिरोह के चंगुल में फंस गया. गिरोह के सदस्यों ने उसे अपाहिज बना दिया. आंखें भी फोड़ दीं. जब यह गंभीर बीमारी से पीडि़त हुआ और भीख मांगने के लायक नहीं रहा तो उसे छोड़ गए.

रमेश की व्यथा सुन कर सभासद प्रशांत शुक्ला ने रमेश को पूर्ण सहयोग का भरोसा दिया. प्रशांत शुक्ला कानपुर नगर निगम में सब से कम उम्र (23 वर्ष) के तेजतर्रार सभासद हैं.

प्रशांत शुक्ला को लगा कि मामला बेहद गंभीर है. अत: उन्होंने देर करना उचित नहीं समझा. वह रमेश व उस के पीडि़त भाई सुरेश को साथ ले कर थाना नौबस्ता पहुंचे. थाने पर उस समय एसएचओ संजय पांडेय मौजूद थे. प्रशांत शुक्ला ने उन्हें नौबस्ता क्षेत्र में भीख मंगवाने वाला गिरोह के बारे में जानकारी देते हुए उन के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर गिरफ्तार करने की मांग की.

एसएचओ संजय पांडेय ने तब रमेश व उस के पीडि़त भाई सुरेश मांझी से पूछताछ की. लेकिन उन की समझ में यह बात नहीं आई कि जब भीख मंगवाने वाले गिरोह ने सुरेश मांझी के हाथपैर तोड़ दिए थे. आंखें खराब कर दी थीं तो फिर भीख मंगवाने के बजाय उसे किदवई नगर ला कर क्यों छोड़ दिया.

असमंजस की स्थिति में एसएचओ संजय पांडेय ने रिपोर्ट दर्ज नहीं की. इस पर पुलिस का ढुलमुल रवैया देख कर सभासद प्रशांत शुक्ला का गुस्सा फूट पड़ा. उन्होंने दरजनों कार्यकर्ताओं को थाने बुलवा लिया और थाने पर हंगामा शुरू कर दिया. यही नहीं, उन्होंने पीडि़त की रिपोर्ट दर्ज न किए जाने की जानकारी उसी समय क्षेत्रीय विधायक सतीश महाना को भी दे दी.

नौबस्ता थाने पर हंगामा शुरू हुआ तो पुलिस के हाथपांव फूलने लगे. एसएचओ संजय पांडेय ने हंगामे की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दी तो पुलिस कमिश्नर बी.पी. जोगदंड, डीसीपी (साउथ) प्रमोद कुमार तथा एसीपी (गोविंद नगर) विकास पांडेय थाना नौबस्ता आ गए.

पुलिस अधिकारियों ने सभासद प्रशांत शुक्ला को आश्वासन दिया कि पीडि़त की रिपोर्ट भी दर्ज होगी और उचित काररवाई भी की जाएगी, लेकिन इस से पहले हंगामा शांत होना चाहिए.

पुलिस के आश्वासन पर हंगामा शांत हो गया. उस के बाद पुलिस अधिकारियों ने पीडि़त सुरेश मांझी व उस के बड़े भाई रमेश से विस्तृत पूछताछ की. सुरेश मांझी अपाहिज जरूर था, लेकिन उस का दिमाग काम कर रहा था. उस की एक आंख से थोड़ाथोड़ा दिखाई दे रहा था.

उस ने बताया कि लगभग 6 माह पहले लेबर मंडी किदवई नगर में उसे विजय नागर नाम का युवक मिला था. वह नट जाति का है और मछरिया स्थित गुलाबी बिल्डिंग के पास रहता है.

विजय ने उसे दिल्ली में अच्छी नौकरी लगवाने का लालच दिया और फिर अपने घर ले गया. फिर विजय उस की बहन तारा व बहनोई ने उसे यातनाएं दे कर अपंग बना दिया. इस के बाद वह भीख मंगवाने वाले गिरोह के पास दिल्ली छोड़ आया.

एक महीना पहले जब वह बीमार पड़ा तो राज नागर उसे किदवई नगर चौराहा (कानपुर) छोड़ कर भाग गया.

926 करोड़ की डकैती, जो हो नहीं पाई – भाग 1

पुलिस कांस्टेबल सीताराम की जयपुर की सी स्कीम के रमेश मार्ग स्थित एक्सिस बैंक की चेस्ट ब्रांच में ड्यूटी थी. 5 फरवरी की रात करीब 2 बजे वह बैंक की चेस्ट ब्रांच पर पहुंच गया. सीताराम जब पहुंचा तो बैंक का निजी सुरक्षा गार्ड प्रमोद मेनगेट पर तैनात था. सीताराम को आया देख कर प्रमोद ने उसे नमस्कार किया. सीताराम ने भी उस के अभिवादन का जवाब देते हुए पूछा, ‘‘प्रमोदजी, बैंक के अंदर आज ड्यूटी पर कौनकौन हैं?’’

कड़ाके की ठंड में रात में बैंक के बाहर ड्यूटी दे रहे प्रमोद ने जवाब में कहा, ‘‘साहब, रतिराम और मानसिंह ड्यूटी पर हैं.’’

‘‘ठीक है प्रमोदजी, उन दोनों से मेरी अच्छी पटरी बैठती है.’’ सीताराम ने अपनी टोपी सिर पर लगाते हुए कहा, ‘‘दोनों से बात करते हुए पता ही नहीं लगता कि कब रात गुजर गई.’’

कह कर कांस्टेबल सीताराम बैंक के अंदर जाने लगा, तभी जैसे उसे कुछ याद आया. उस ने पलट कर प्रमोद से कहा, ‘‘भैयाजी, ठंड ज्यादा पड़ रही है. रात का समय है. संभल कर होशियारी से ड्यूटी करना.’’

सीताराम की इस बात पर प्रमोद ने हंसते हुए कहा, ‘‘भाईसाहब, आप देखते ही हो कि मैं अपनी ड्यूटी पर किस तरह मुस्तैद रहता हूं.’’

प्रमोद की बात सुन सीताराम हंसते हुए अंदर बैंक में चला गया. सीताराम ने बैंक के अंदर पहुंच कर देखा तो उस के साथी पुलिसकर्मी रतिराम और मानसिंह रेस्टहाउस में थे. सीताराम ने अपनी बंदूक संभाली और ड्यूटी पर खड़ा हो गया.

सीताराम को बैंक के अंदर आए हुए करीब आधा घंटा ही हुआ होगा कि उस ने बैंक के बाहर मेनगेट से किसी के कूद कर आने और कुछ टूटने जैसी आवाज सुनी. सीताराम चौंकन्ना हो गया. वह बैंक के अंदर बनी खिड़की से मुंह बाहर निकाल कर चिल्लाया, ‘‘कौन है?’’

सीताराम के चिल्लाने पर जवाब में कोई आवाज नहीं आई तो उस ने बाहर झांक कर देखा. उसे 4-5 लोग नजर आए. रात करीब ढाई बजे बैंक के अंदर लोगों को देख कर सीताराम एक बार तो घबरा गया, लेकिन तुरंत ही उस ने खुद को संभाला और हिम्मत से काम लेते हुए बंदूक ले कर थोड़ा बाहर तक आया.

बाहर देखा तो उसे 10 से भी ज्यादा लोग नजर आए. उन के हाथों में हथियार थे. किसी ने रूमाल से तो किसी ने मंकी कैप से और किसी ने मफलर से चेहरे ढंक रखे थे. इन में से 4-5 लोग बैंक का मेनगेट फांद कर अंदर आ गए थे. इन्होंने बैंक की बिल्डिंग का चैनल गेट भी खोल लिया था.

इतने सारे हथियारबंद लोगों को देख कर सीताराम समझ गया कि उन लोगों के इरादे ठीक नहीं हैं. वे बदमाश हैं और बैंक लूटने आए हैं. सीताराम ने इधरउधर देखा कि बैंक का गार्ड प्रमोद कहीं नजर आ जाए, लेकिन उसे वह कहीं नजर नहीं आया. सीताराम को लगा कि इन बदमाशों को नहीं रोका गया तो ये लोग बैंक लूट ले जाएंगे और हो सकता है किसी को मार भी डालें.

सीताराम का समय पर लिया गया निर्णय सही साबित हुआ

सीताराम ने एक पल सोचा कि अंदर रेस्टहाउस से अपने साथी पुलिसकर्मियों रतिराम व मानसिंह को बुलाने जाए या नहीं. इतना समय नहीं था. अगर वह साथी पुलिसकर्मियों को बुलाने जाता तो हो सकता था तब तक बदमाश बैंक के अंदर चेस्टरूम तक पहुंच जाते. सीताराम ने तुरंत फैसला लिया. उस ने बदमाशों को ललकारा और अपनी बंदूक से हवाई फायर कर दिया.

फायर होते ही बदमाश हड़बड़ा गए और तेजी से मेनगेट फांद कर वापस भागने लगे. उन के साथी जो बैंक के बाहर खड़े थे, वे भी फटाफट वहां खड़ी गाड़ी में बैठ गए. इस के बाद सभी बदमाश गाड़ी से भाग गए.

बदमाशों के भागने पर सीताराम बैंक की बिल्डिंग से बाहर निकला तो देखा बाहर ड्यूटी पर तैनात बैंक के गार्ड प्रमोद के हाथपैर बंधे हुए थे. सीताराम ने उस के हाथपैर खोले. प्रमोद  बेहद घबराया हुआ था. वह सीताराम से लिपट कर बोला, ‘‘भाईसाहब, आज तो आप ने हमारी जान बचा ली वरना वे बदमाश हमें मार सकते थे.’’

सीताराम ने उसे ढांढस बंधाते हुए कहा कि चिंता मत करो, जो बदमाश आए थे, वे भाग गए हैं. तब तक हवाई फायर की आवाज सुन कर बैंक के रेस्टहाउस से पुलिसकर्मी रतिराम व मानसिंह भी वहां आ गए.

यह सारा घटनाक्रम मुश्किल से 3 मिनट में हो गया था. कांस्टेबल सीताराम ने सब से पहले फोन कर के पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना दी. सूचना देने के 5-7 मिनट में ही पुलिस गश्ती दल बैंक के बाहर पहुंच गया.

पुलिस के गश्ती दल ने बैंक के निजी सुरक्षा गार्ड प्रमोद कुमार से पूछताछ की. करौली के रहने वाले प्रमोद ने बताया कि एक्सिस बैंक प्रशासन ने उसे बाहरी हिस्से में सुरक्षा की जिम्मेदारी दे रखी है.

प्रमोद ने पुलिस को बताया कि रात करीब ढाई बजे वह बैंक के बाहरी हिस्से में राउंड ले रहा था. जब वह पीछे की ओर चैकिंग करने गया था, तभी बैंक के आगे वाले हिस्से के गेट से किसी के कूदने की आवाज आई. इस पर वह मेनगेट की तरफ आया तो देखा कि 2 युवकों ने मुंह पर नकाब पहना हुआ था और उन के हाथों में पिस्तौलें थीं.

मैं उन्हें रोक ही रहा था कि 3 और युवक मेनगेट से बैंक के अंदर आ गए. उन लोगों ने पिस्तौल कनपटी पर लगा कर मुझे पकड़ कर नीचे गिरा दिया. मुझ से चाबी छीन ली, उसी चाबी से एक युवक ने चेस्ट ब्रांच के गेट से पहले वाले चैनल गेट का ताला खोल लिया. एक युवक ने मेरा मुंह बंद कर दिया और 2 युवक मेरे ऊपर बैठ गए. बाकी बचे एक युवक ने मेरे हाथ बांध दिए.

वे मेरे पैर बांध रहे थे, तभी बैंक के अंदर से सीताराम के चिल्लाने की आवाज आई. इस पर बदमाश घबरा गए. इस के कुछ सैकेंड बाद ही गोली चलने की आवाज सुनाई दी. गोली चलने की आवाज सुन कर सभी बदमाश बैंक के गेट को फांद कर बाहर भाग गए. प्रमोद ने बताया कि जो बदमाश बैंक के अंदर घुसे थे, उन्होंने आपस में कोई बात नहीं की थी. फायरिंग की आवाज सुन कर सिर्फ इतना कहा कि भागो यहां से. इस के बाद सीताराम ने आ कर मुझे संभाला और पुलिस को सूचना दी.

क्राइम पेट्रोल देखकर किया घिनौना अपराध

बुधवार 2 मई की रात के लगभग 9 बजे कोटा के पुलिस अधिकारियों की बैठक चल रही थी. मुख्य मुद्दा था मार्बल व्यवसाई परिवार के बेटे विशाल मेवाड़ा के अपहरण और फिरौती का. कोटा में नित नए अपराधों से सकपकाई पुलिस के लिए यह गंभीर चुनौती थी.

दरअसल, वाकया कुछ ऐसा था जो ढाई साल पहले घटित रुद्राक्ष हांडा कांड के अंदेशों को बल दे रहा था, जिस में फिरौती के लिए किए गए अपहरण में बच्चे की हत्या भी कर दी गई थी. पुलिस अधीक्षक अंशुमान भोमिया ने एक पल अपने अधीनस्थ अफसरों पर सरसरी नजर दौड़ाने के बाद कहना शुरू किया, ‘‘आप के सामने फिर एक नया इम्तिहान है. हमें एकएक कदम बहुत सोचसमझ कर उठाना होगा.’’

बुधवार 2 मई की शाम करीब 7 बजे बोरखेड़ा के थानाप्रभारी महावीर सिंह जिस समय अपने थाने में बैठे थे, तभी लगभग 45-46 साल की रुआंसी औरत कमरे में दाखिल हुई. कुलीन और संपन्न परिवार की लगने वाली उस महिला के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं. महावीर सिंह ने उसे सांत्वना देते हुए पूछा, ‘‘क्या बात है, आप कौन हैं और इस तरह परेशान और घबराई हुई क्यों हैं?’’

‘‘परेशानी की तो बात यह है थानेदार साहब, मेरा बेटा गायब है, उस का अपहरण कर लिया गया है.’’ महिला ने अपनी बात सिलसिलेवार बतानी शुरू की, ‘‘साहब, मेरा नाम भूलीबाई है. मैं मार्बल कारोबारी बनवारी लाल मेवाड़ा की पत्नी हूं. मेरा 19 साल का बेटा विशाल मेवाड़ा कोटा के योगीराज पौलीटेक्निक कालेज में पढ़ रहा था. वह वहां से गायब हो गया.’’

महावीर सिंह ने उन्हें पानी का गिलास थमाते हुए कहा, ‘‘आप निश्चिंत हो कर पूरी बात बताइए.’’

एक ही बार में पानी का गिलास खाली कर के महिला ने कहना शुरू किया, ‘‘हम खैराबाद कस्बे में रहते हैं. मेरा बेटा विशाल कोटा में रह कर पौलीटेक्निक कालेज में पढ़ रहा था. पति बनवारीलाल कारोबार के सिलसिले में सूरत गए हुए हैं. अपहर्त्ताओं ने मंगलवार पहली मई को मेरे पति को मोबाइल पर फोन कर के 15 लाख की फिरौती मांगी है.’’

पलभर रुकने के बाद भूलीबाई ने कहना शुरू किया, ‘‘पति को मोबाइल पर पहला फोन दोपहर बाद 4 बजे आया, जिस में एक आदमी ने विशाल के अपहरण करने की इत्तिला देते हुए 15 लाख की रकम का इंतजाम करने को कहा और इस के साथ ही फोन काट दिया. करीब 15 मिनट बाद फिर उसी आवाज में धमकी भरा फोन आया कि पुलिस को खबर की तो विशाल को जान से मार दिया जाएगा. इस के साथ ही फोन बंद हो गया.’’

‘‘फिर उस के बाद कोई फोन आया?’’ थानाप्रभारी महावीर सिंह के स्वर में हैरानी का भाव स्पष्ट था.

‘‘रात 11 सवा 11 बजे मेरे पति का फोन आया. उन्होंने बताया कि 11 बज कर 1 मिनट पर उन के पास आए फोन काल में कहा गया था कि रकम कहां ले कर आना है, इस बाबत अगले दिन शाम 4 बजे बताएंगे और इस के साथ ही फोन बंद कर दिया.’’

‘‘आप के पति ने उन्हें क्या जवाब दिया?’’

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‘‘क्या कहते,’’ भूलीबाई ने सुबकते हुए कहा, ‘‘मेरे पति ने तो बड़ी आजिजी के साथ कहा कि तुम को जो रकम चाहिए, हम देंगे. बस हमारे बेटे को कुछ नहीं होना चाहिए.’’

लेकिन अगले ही पल भूलीबाई ने जो कहा, वह चौंकाने वाला था. उन्होंने बताया, ‘‘मेरे पति इस बात को ले कर हैरान थे कि फोन करने वाला जो कोई भी था, हमारे बेटे के मोबाइल से ही फोन कर रहा था.’’ इस के साथ ही भूलीबाई फूटफूट कर रोने लगी.

गहरी सांस लेते हुए महावीर सिंह ने कहा, ‘‘कोई और बात जो आप कहना चाहें.’’

‘‘हां साहब,’’ भूलीबाई ने जैसे याद करते हुए कहा, ‘‘साहब, मुझे फोन करने से पहले मेरे पति ने विशाल के मामा को फोन कर के विशाल के अपहरण की खबर देने के साथ उस के कमरे पर जा कर उसे तलाश करने को कहा था. उस का मामा दिनेश कोटा में ही रहता है. दिनेश ने विशाल के कमरे पर जा कर देखा तो वह वहां नहीं मिला. दिनेश ने मेरे पति को तो यह बात बताई ही, मुझे भी फोन कर के कोटा आने को कहा.’’

बोरखेड़ा थानाप्रभारी ने रिपोर्ट दर्ज करने के साथ ही फौरन इस घटना और घटनाक्रम के बारे में पुलिस अधीक्षक अंशुमान भोमिया को जानकारी दी. इस के बाद तत्काल पुलिस सक्रिय हो गई. आननफानन में पुलिस अधिकारियों की बुलाई गई बैठक की वजह यही थी.

भोमिया साहब को मालूम था कि इतने संपन्न परिवार के बेटे के अपहरण की बाबत जब लोगों को पता चलेगा तो लोग पुलिस को आड़े हाथों लेने से पीछे नहीं हटेंगे.

अपहरण के इस मामले में किसी बड़े गिरोह का हाथ हो सकता है, यह सोच कर पुलिस अधीक्षक अंशुमान भोमिया ने क्षेत्राधिकारी नरसीलाल मीणा और राजेश मेश्राम के अलावा सर्किल इंसपेक्टर श्रीचंद सिंह, महावीर सिंह, आनंद यादव, मुनींद्र सिंह, लोकेंद्र पालीवाल, विजय शंकर शर्मा और एसआई महेश कुमार, एएसआई दिनेश त्यागी, कमल सिंह और प्रताप सिंह के नेतृत्व में 7 टीमों का गठन किया और विशाल के अपहर्त्ताओं का पता लगाने की जिम्मेदारी अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक समीर कुमार को सौंप दी.

अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक समीर कुमार के निर्देश पर स्पैशल स्टाफ ने बड़ी संख्या में लोगों से गहनता से पूछताछ की. करीब 100 से अधिक टीवी फुटेज निकाले, लेकिन कोई काम की बात मालूम नहीं हो सकी.

पुलिस को तब हैरानी हुई, जब विशाल के कुछ दोस्तों ने बताया कि उन के पास विशाल का फोन आया था. उस ने हम से 2-3 सौ रुपए की जरूरत बताते हुए पैसों की मांग की थी. लेकिन इस से पहले कि उस से इतनी छोटी रकम मांगने की वजह पूछते, उस का फोन संपर्क टूट गया.

पुलिस ने अंडरवर्ल्ड को भी खंगाला लेकिन लाख सिर पटकने के बावजूद पुलिस ऐसे किसी शातिर गिरोह का पता नहीं लगा सकी, जिस से इस मामले में कोई जानकारी मिल पाती. इस मामले में पुलिस ने फिरौती के लिए कुख्यात गिरोहों का पुलिस रिकौर्ड भी टटोला.

तमाम पुलिस रिकौर्ड जांचने के बाद अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक समीर कुमार इस नतीजे पर पहुंचे कि विशाल के अपहरण में कम से कम किसी नामी गिरोह का हाथ नहीं है.

पौलीटेक्निक की पढ़ाई करते हुए विशाल बोरखेड़ा के इलाके की आकाश नगर कालोनी में उसी कालेज में पढ़ने वाले मनोज मीणा के साथ किराए के कमरे में रहता था. पुलिस ने मनोज की गतिविधियों को पूरी तरह टटोला, लेकिन कहीं कोई संदिग्ध बात नजर नहीं आई.

जिस समय पुलिस विशाल के रूम पार्टनर मनोज मीणा समेत अन्य दोस्तों से गहनता से पूछताछ कर रही थी, तभी इस बात का पता चला कि विशाल के दोस्ताना रिश्ते विक्रांत उर्फ हिमांशु, प्रदीप और विजेंद्र भाटी उर्फ लकी से कुछ ज्यादा ही गहरे थे.

विशाल के मकान मालिक के मुताबिक इन तीनों लड़कों का विशाल के पास वक्तबेवक्त कुछ ज्यादा ही आनाजाना था. यह सूचना मिलते ही पुलिस ने उन्हें पूछताछ के घेरे में ले लिया, लेकिन हर सवाल पर तीनों पुलिस को छकाते रहे. पुलिस को लगा भी कि कहीं यह उस का भ्रम तो नहीं, फिर भी पुलिस ने अपनी जांच की दिशा नहीं बदली.

अब तक विशाल के पिता बनवारी लाल मेवाड़ा सूरत से कोटा लौट आए थे. उन्होंने पुलिस की जानकारी में इजाफा करते हुए बताया कि उन्हें मंगलवार को दोपहर बाद 4 बजे, फिर सवा 4 बजे तथा बाद में रात को 11 बज कर एक मिनट पर फोन आए थे.

रात को आने वाले फोन काल में अपहर्त्ताओं का कहना था कि फिरौती की रकम ले कर उन्हें दरा के निकट रेलवे क्रौसिंग पर पहुंचना होगा. कब, यह बाद में बताएंगे. अपहर्त्ता का यह भी कहना था कि रकम मिलने के एक घंटे बाद ही विशाल को छोड़ दिया जाएगा.

बनवारी लाल ने यह सब बताते हुए पुलिस से यह शंका भी जाहिर की कि फोन काल जब विशाल के मोबाइल से की जा रही थीं तो क्या उसे सुरक्षित मान लिया जाना चाहिए.

गुरुवार 3 मई की सुबह जब पुलिस इसी मुद्दे पर मंथन कर रही थी, तभी एक ग्रामीण की सूचना ने अधिकारियों को स्तब्ध कर दिया. सूचना बोरखेड़ा से करीब 20 किलोमीटर दूर नोताड़ा और मानस गांव के वन क्षेत्र के बीच बहने वाली नदी की कराइयों में एक लाश पड़ी होने की थी.

हजार अंदेशों में घिरी पुलिस के लिए यह सूचना चौंकाने वाली थी. पुलिस टीम तुरंत वहां के लिए रवाना हो गई. पुलिस के साथ विशाल के पिता बनवारीलाल भी थे. चंद्रलोई नदी का यह तटीय क्षेत्र हालांकि कुदरती रूप से मनोहारी था, जहां शहरी कोलाहल से ऊबे लोगों या फिर सैलानियों का आनाजाना था.

क्षेत्राधिकारी राजेश मेश्राम चंद्रलोई नदी की कराइयों के पास जीप रुकवा कर अपनी टीम के साथ नीचे उतर गए. तभी उन की नजर 3-4 फुट ऊंची झाडि़यों की कतार की तरफ चली गई. वहां पर एक युवक औंधा पड़ा नजर आया.

पुलिस के जवानों ने शव को सीधा किया तो बनवारीलाल वहीं पछाड़ खा कर गिर गए. शव विशाल का ही था. उस का चेहरा कुचल दिया गया था. लाश नमक की परत में लिपटी हुई थी. राजेश मेश्राम लाश पड़ी होने की स्थिति देख कर एक पल में ही भांप गए कि हत्या कहीं और की गई थी, लेकिन पुलिस को भटकाने के लिए लाश को यहां ला कर फेंका गया होगा.

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विशाल की हत्या बहुत ही निर्ममतापूर्वक की गई थी. उस की गरदन किसी तेजधार हथियार से रेती गई थी. संघर्ष का कोई चिह्न नहीं था. घटनास्थल की सारी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद राजेश मेश्राम ने शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. उसी दिन पोस्टमार्टम के बाद लाश मृतक के पिता को सौंप दी गई.

यह अजीब इत्तफाक था कि अभी शव के पंचनामे की काररवाई हो ही रही थी कि राजेश मेश्राम को एएसपी से सूचना मिली कि पूछताछ में अपराधी टूट गए हैं और उन्होंने अपना जुर्म कबूल कर लिया है.

अपराध का यह तानाबाना 3 सनकी और खुराफाती लड़कों ने बुना था. आईटीआई डिप्लोमा कर चुका विक्रांत उर्फ हिमांशु बोरखेड़ा का ही रहने वाला था. आईटीआई में डिप्लोमा कर चुका विक्रांत इस हद तक सनकी था कि सनक में वह अपनी कलाइयों में ब्लेड मार कर खुद ही कई जगह अपने हाथों को जख्मी कर चुका था.

बृजेंद्र सिंह भाटी उर्फ लकी कोटा के नजदीकी कस्बे कैथून का रहने वाला था. वह औटोमोबाइल से जुड़ी एक कंपनी में काम करता था और बोरखेड़ा में ही किराए पर कमरा ले कर रह रहा था.

तीसरा साथी प्रदीप उर्फ बिन्नी रोजीरोजगार के लिए गोलगप्पों का ठेला लगाता था. बिन्नी भिंड का बाशिंदा था और कोटा की मन्ना कालोनी में रह रहा था. सनक में तीनों एक से बढ़ कर एक थे. तीनों लगभग 18 से 20 साल की उम्र के थे.

पूछताछ में पता चला कि तीनों की हसरतों के पखेरू आसमानी उड़ान भरते रहे, नतीजतन मौजमस्ती और अय्याशी के शौक के लिए जितना भी कमाते थे, पूरा नहीं पड़ता था. तीनों की इस मंडली में विशाल शामिल हुआ तो बोरखेड़ा में ही रहने वाले विक्रांत उर्फ हिमांशु की बदौलत.

दारूबाजी के महंगे शौक में संपन्न बाप का बेटा विशाल उन के लिए काफी काम का था. विक्रांत, बृजेंद्र और प्रदीप की साझा ख्वाहिश थी तो एक ही कि कोई ऐसा शख्स हाथ चढ़ जाए, जिस से इतना पैसा मिल सके कि मौजममस्ती के लिए तरसना न पड़े.

नशे के सुरूर में एक दिन विशाल का काल ही उस की जुबान पर बैठ गया और वह कह बैठा, ‘‘आज की पार्टी मेरी तरफ से.’’

‘‘किस खुशी में?’’ पूछने पर विशाल ने कह दिया, ‘‘आज ही मेरे पिता को एक बड़े सौदे में भारीभरकम रकम मिली है. इसलिए जश्न होना चाहिए.’’

फिर क्या था, तीनों की आंखों में लालच चमक उठा. पार्टी खत्म होने के बाद तीनों सनकी सिर जोड़ कर बैठे तो बदनीयती जुबान पर आ गई. तीनों की जुबान पर एक ही बात थी, ‘अगर यह बड़ी रकम हमारे हाथ आ जाए तो मजे ही मजे हैं.’ लेकिन सवाल था कि कैसे?

कैसे का आइडिया भी अनायास ही मिल गया. उन के लिए संयोग था और विशाल के लिए दुर्भाग्य कि इत्तफाक से तीनों आपराधिक घटना पर आधारित क्राइम पैट्रोल सीरियल देखते थे. एक कहानी ऐसी ही एक घटना पर आधारित थी, जिस में पैसों की खातिर 3 सिरफिरे अपने दोस्त से ही दगा करते हैं और उस की हत्या कर देते हैं.

फिरौती की घटना पर बुनी गई इस कहानी ने इन तीन तिलंगों को भी दगाबाजी की राह दिखा दी. योजना बनाई गई कि शराब की पार्टी में विशाल को इतनी पिला दी जाए कि वह होश खो बैठे. फिर उसे काबू में कर के उस के पिता से 15 लाख की फिरौती मांगी जाए.

तीनों का मानना था कि एकलौती औलाद के लिए एक दौलतमंद बाप 15 लाख क्या 15 करोड़ भी दे सकता है.

सवाल था कि विशाल बुलाने पर तयशुदा ठिकाने पर आ भी जाए और अपना मोबाइल भी इस्तेमाल न करना पड़े. यह योजना मंगलवार को कामयाब भी हो गई.  इन लोगों ने सुबह 10 बजे बोरखेड़ा पहुंच कर एक सब्जी वाले के मोबाइल से फोन कर के विशाल को बुलाया और वहां से उसे बृजेंद्र के रामराजपुरा स्थित खेत पर ले गए.

सब्जी वाले को यह कह कर विश्वास में लिया कि भैया, हमारे मोबाइल की बैटरी खत्म हो गई है, इसलिए एक जरूरी फोन कर लेने दो. सब्जी वाला झांसे में आ गया. दोपहर 12 बजे रामराजपुरा पहुंच कर दारू का दौर चला तो विशाल को जम कर दारू पिलाई गई, ताकि वह होश खो बैठे. ऐसा ही हुआ भी.

नशे में बेसुध विशाल के मोबाइल से बृजेंद्र ने पहले विशाल को अपने कब्जे में होने की बात की, फिर 15 लाख की मांग करते हुए धमकी दी कि पुलिस को इत्तला दी तो बेटा जिंदा नहीं बचेगा. असहाय पिता बनवारीलाल ने सहमति जता दी तो उसे पैसे पहुंचाने का निर्धारित स्थान भी बता दिया गया.

एसपी भोमिया साहब ने पूछा, ‘‘जब बाप ने फिरौती की रकम देने का भरोसा दे दिया था तो बेटे को क्यों मारा?’’

एसपी ने आंखें तरेरते हुए हड़काया तो विक्रांत ने उगल दिया, ‘‘हमें डर था कि रकम देने के बाद विशाल हमारा भेद खोलने से नहीं चूकेगा. इसलिए उसे मारना पड़ा.’’

‘‘कैसे और कब?’’ एसपी ने पूछा, ‘‘दरिंदे बन गए तुम लोग? कैसे मारा?’’

‘‘हत्या तो हम ने चाकुओं से कर दी थी. बाद में पहचान मिटाने के लिए उस पर नमक भी लपेट दिया. लेकिन…’’ उस ने बिन्नी और लक्की की तरफ देखते हुए कहा, ‘‘ये दोनों संतुष्ट नहीं थे, इसलिए लोहे की रौड से उस के चेहरे पर इतने वार किए कि लाश पहचान में न आ सके. साहब, विशाल की हत्या तो हम ने 2 बजे ही कर दी थी.’’

‘‘फिर?’’

‘‘फिर…’’ अटकते हुए विक्रांत ने बताया, ‘‘इस के बाद लाश को बोरे में भरा और बाइक पर लाद कर नार्दर्न बाईपास के पास चंद्रलोई नदी की कराइयों में डाल आए और घर आ कर सो गए.’’

‘‘नींद आ गई तुम्हें?’’ एसपी भोमिया उन्हें नफरत भरी नजर से देखते हुए बुरी तरह बरस पड़े, ‘‘तुम ने तो शैतान को भी मात दे दी. लानत है तुम पर.’’

एसपी भोमिया ने मामले का रहस्योद्घाटन करते हुए मीडिया से कहा, ‘‘कैसी विचित्र बात है, ऐसे सीरियल से लोग जागरूक कम होते हैं लेकिन अपराधियों को अपराध के नए तरीके सीखने का मौका मिल जाता है.’’

कथा लिखे जाने तक तीनों आरोपी न्यायिक अभिरक्षा में थे.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

हीरे की ललक में उमड़े लोग – भाग 1

सन 1973 में देवानंद और जीनत अमान की एक फिल्म आई थी ‘हीरा पन्ना’. इस फिल्म का एक गाना ‘पन्ना की तमन्ना है कि हीरा मुझे मिल जाए… चाहे मेरी जान जाए चाहे मेरा दिल जाए…’ बहुत लोकप्रिय हुआ था. किशोर कुमार और लता मंगेशकर द्वारा गाए इस गीत का मुखड़ा मध्य प्रदेश के पन्ना जिले की हीरा खदानों में रातदिन मेहनत कर हीरा खोजने वालों पर सटीक बैठता है.

पन्ना में करीब 25 हजार लोग इसी उम्मीद से दिनरात पहाड़ खोद रहे हैं. नदी की रेत छान रहे हैं. इन में से कुछ ने तो परिवार सहित यहां डेरा डाल रखा है. मध्य प्रदेश के पन्ना की धरती बेशकीमती हीरे उगलती है. इस हीरे को पाने के लिए लोग कोई भी कुरबानी देने को तैयार हैं.

मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की संयुक्त परियोजना से दोनों राज्यों के किसानों की सिंचाई और पीने के पानी की समस्या दूर करने के लिए पन्ना जिला मुख्यालय से करीब 25 किलोमीटर दूर अजयगढ़ के पास रुंझ नदी पर डैम बनाने का काम चल रहा है.

करीब 4 महीने पहले यहां खुदाई के दौरान एक ठेकेदार को एक हीरा मिला था. यह खबर जंगल में आग की तरह फैल गई. इस के बाद यहां पन्ना जिले के अलावा नजदीकी छतरपुर, सतना और उत्तर प्रदेश के लोग हीरे की तलाश में पहुंचने शुरू हो गए और देखते ही देखते रुंझ नदी की तलहटी में एक अस्थाई बस्ती बस गई है.

लोग दिनरात यहीं डटे रहते हैं. लोगों की आवश्यकता के लिए यहां सब्जी, दूध समेत कई किराना दुकानें भी खुल चुकी हैं. सुबह पौ फटने से शाम होने तक 20 से 25 हजार लोग रुंझ नदी के 6 किलोमीटर के दायरे में गैंती, फावड़ा, तसला और छलनी ले कर हीरे तलाश रहे हैं.

पन्ना की रुंझ नदी में बन रहे बांध के पास हीरे तलाशने वालों की बढ़ती भीड़ को देखने और नदी में हीरा मिलने का सच जानने से हम भी अपने आप को रोक नहीं पाए. जिला मुख्यालय पन्ना से आगे अजयगढ़ का घाट उतरते ही दाएं हाथ पर एक कच्चा पक्का सा रास्ता जाता है, जहां मुड़ते ही किसी मेले जैसा आभास होने लगता है.

सब से पहले चाय पकौड़े की 2-3 छोटीबड़ी दुकानें, कुछ अलसाए से खोमचे जिन पर बुंदेलखंडी में बतियाते और चाय सुड़कते लोगों को देखा. थोड़ा आगे बढ़ने पर दुकानों पर बड़ी संख्या में बिकते हुए तसला, फावड़ा, छलनी को देखा तो आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा.

थोड़ा और आगे बढ़े तो बाईं तरफ बांध की तनी हुई ऊंची दीवारें और ठीक सामने की ओर बड़ेबड़े पत्थर और उन को खोदने पर छोटेछोटे पोखर बने हुए थे. जिन में लोग छलनी में मिट्टी को हिलाहिला कर साफ करने में व्यस्त दिखाई दे रहे थे.

यहां कुछ लोग छोटीछोटी कुदालियों से मिट्टी खोद रहे थे तो उस से ज्यादा लोग पानी में मिट््रटी छान कर कंकड़ सहेज रहे थे और कुछ लोग मिट्टी घुल जाने के बाद बचे कंकड़ पत्थरों को कपड़े पर बिखेर कर सुखा कर उन में नजरें गड़ा कर हीरे की तलाश कर रहे थे.

हीरे के चक्कर में हर चमकीले पत्थर को सावधानी से उठा कर सहेज कर रख रहे थे, मगर वे यह नहीं समझ रहे थे कि ‘हर चमकीला पत्थर हीरा नहीं होता.’

नदी में हीरा तलाशने में जुटे लोग अपने काम में इतने मगन रहते हैं कि उन्हें किसी से बात करने तक की फुरसत नहीं रहती. हम ने एक बुजुर्ग को नदी में रेत छानते देख कर बातचीत शुरू कर दी, ‘‘क्या नाम है आप का और कहां से आए हैं?’’

‘‘हरिराम रैकवार. मैं छतरपुर जिले के नयागांव का रहने वाला हूं.’’ बुजुर्ग ने बताया.

‘‘उम्र कितनी होगी आप की?’’

‘‘यही कोई 63 साल.’’

‘‘आप के साथ और कोई आया है?’’

‘‘कोई नहीं, अकेला ही आया हूं. एक हफ्ता बीत गया, मगर हीरा नहीं मिला. कसम खा कर आया हूं कि जब तक हीरा नहीं मिलेगा, घर नहीं लौटूंगा.’’

डैम की खुदाई कर रहे ठेकेदार ने यहां से 80 हजार टन के लगभग चाल को अवैध तरीके से स्टोर कर के रखा था. चाल मिट्टी की उस परत को कहते हैं, जिस में हीरा पाया जाता है. जब खनिज विभाग को ठेकेदार की यह करतूत पता चली तो उस मिट्टी को जब्त कर अपनी निगरानी में ले लिया है.

हम नदी पार कर पहाड़ी की ओर पहुंचे तो देखा कि लोगों ने हीरे की तलाश में पूरी पहाड़ी को छलनी कर दिया है. 500 फीट ऊंचाई तक लोगों ने पहाड़ी में छोटेछोटे गुफानुमा गड्ढे कर दिए हैं.

बीते 4 महीने में यहां कई हादसे भी हो चुके हैं, मगर कोई हादसा पुलिस डायरी में दर्ज नहीं है. जिस पहाड़ी पर लोग खुदाई कर रहे हैं, वह सीधी ढलान वाली है, जहां पर चढ़ने और उतरने दोनों में खतरा है.

पूरे इलाके में चारों ओर गड्ढे और मिट्टी छोड़ चुके सागौन पेड़ की जड़ें नजर आ रही हैं. कई पेड़ तो उखड़ गए हैं और कुछ पेड़ सूख गए हैं.

200 रुपए में मिलता है एक पट्टा

एक पेड़ के पास हीरे की तलाश में खुदाई कर रहे लवकुश नगर के रहने वाले हरिचरण जाटव ने हाथों में एक पत्थर दिखाते हुए बताया,‘‘यहां पर खुदाई करतेकरते मेरे हाथों में छाले पड़ गए हैं, तब जा कर ये कच्चा हीरा मिला है.’’

हथेली पर पड़े छालों को दिखाते हुए वे बताते हैं,‘‘इस काम में मेहनत बहुत है.’’

हरिचरण जैसे हजारों लोग यहां हीरे की तमन्ना ले कर आ रहे हैं, परंतु  सभी को हीरा तो नहीं मिल सकता. पहाड़ी पर कच्चा हीरा मिल जाता है, जिस की कोई कीमत नहीं होती.

ब्लैक डायमंड के लालच में जिंदगी को दांव पर लगाते हजारों लोग पहाड़ी के ऊपर  पत्थर और मिट्टी की खुदाई कर चाल निकालते हैं.

खुदाई से निकलने वाली इस चाल को लोग नदी की तलहटी में ले जा कर धोते हैं. इस प्रक्रिया में लोगों को दिन में कई बार पहाड़ी से उतरनाचढ़ना पड़ता है.

पन्ना में हीरा तलाशने का काम राजा महाराजाओं के दौर में भी चलता था. राजशाही के समय में हीरा राजघराने के महेंद्र भवन में जमा होता था. तब हीरे के बदले में लोगों को उन की जरूरत का राशन और दूसरी सामग्री राजशाही की ओर से दी जाती थी.

गोंड बस्ती से बुंदेला राज्य की राजधानी और फिर जिला बना पन्ना ‘हीरा नगरी’ के नाम से प्रसिद्ध है और यह मध्य प्रदेश के उत्तरपूर्व विंध्याचल की सुरम्य पर्वत शृंखलाओं के बीच स्थित है.

कुंवारे थे, कुंवारे ही रह गए – भाग 1

हरियाणा के जिला सोनीपत के खरखौदा स्थित दिल्ली चौक पर अकसर गहमागहमी रहती है, लेकिन 27 दिसंबर को वहां कुछ अलग ही माहौल था. 40 से ज्यादा युवा और अधेड़ सजेधजे वहां इधरउधर टहल रहे थे. इन में किसी के हाथों पर मेंहदी लगी थी तो किसी के सिर पर सेहरा था. इन में से कुछ ऐसे लड़के भी थे, जिन्होंने ब्यूटीपार्लर जा कर फेशियल भी करवाया था, ताकि उन का चेहरा खूबसूरत लगे.

ज्यादातर क्लीनशेव्ड थे, वे चाहे अधेड़ थे या युवा. सभी के चेहरे खुशी से दमक रहे थे. उन के हावभाव और हरकतें देख कर यही लगता था कि इन्हें किसी का बेसब्री से इंतजार है. इन के साथ उन के एक या दो रिश्तेदार भी थे. सभी लोग दिल्ली की ओर से आने वाले वाहनों को टकटकी लगाए देख रहे थे.

दरअसल, ये सभी दूल्हे थे, जिन की शादी होनी थी. इन दूल्हों और उन के घर वालों से कहा गया था कि सुबह 9 बजे तक दिल्ली से एक बस आएगी, जिस में बैठ कर दूल्हों और उन के एकएक रिश्तेदार को दिल्ली स्थित तीसहजारी अदालत के पास पहुंचना है. वहीं बगल में स्थित अनाथ आश्रम में इन सब की एक साथ शादी कराई जाएगी.

ये सभी दूल्हे और उन के रिश्तेदार खरखौदा के दिल्ली चौक पर खड़े हो कर दिल्ली से आने वाली बस का इंतजार कर रहे थे. बस के आने का समय 9 बजे बताया गया था, इसलिए ये सभी दूल्हे 9 बजे से पहले ही वहां आ गए थे. क्योंकि उन्हें डर था कि अगर बस चली गई तो वे रह जाएंगे.

वहां आए ये सभी दूल्हे सोनीपत, जींद, रोहतक, झज्जर आदि जिलों के रहने वाले थे. बस को 9 बजे तक आ जाना था, लेकिन 10 बज गए. दिल्ली से बस नहीं आई. इस बीच दूल्हों के घरों से कभी भाई तो कभी मां तो कभी दोस्त का फोन कर के पूछता कि वे दिल्ली के लिए चल पडे़ या खरखौदा में ही खड़े हैं.

दूल्हे क्या जवाब देते. कुछ देर तो कहते रहे कि अभी बस नहीं आई है, थोड़ी देर में आ जाएगी. जैसे ही वे यहां से निकलेंगे, बता देंगे. लेकिन जब बस का इंतजार करतेकरते 11 बज गए और बस का कोई अतापता नहीं था. तो दूल्हों और उन के साथ आए रिश्तेदारों को बेचैनी होने लगी. घर वालों के फोन बारबार आ ही रहे थे, जिस से वे झुंझलाने लगे.

उन दूल्हों में से कुछ के रिश्तेदारों ने सुशीला को फोन किया. लेकिन उस का मोबाइल फोन बंद था. इस के बाद तो सब ने सुशीला को फोन करने शुरू कर दिए, लेकिन उस से बात नहीं हो सकी. ये सभी सुशीला को इसलिए फोन कर रहे थे, क्योंकि शादी कराने की जिम्मेदारी उसी ने ले रखी थी.

शादी की बातचीत करने के लिए उस के साथ मोनू भी आया था. कुछ लोगों के पास मोनू का भी फोन नंबर था. उसे भी फोन किया गया. उस का भी फोन बंद था, इसलिए उस से भी बात नहीं हो सकी. मोनू थाना कलां का रहने वाला था.

society

शादी कराने के लिए सुशीला ने उन दूल्हों के घर वालों से अच्छेखासे पैसे लिए थे. किसी से 45 हजार रुपए तो किसी से 60 हजार रुपए तो किसी से 90 हजार रुपए. सुशीला ने ही सब से दिल्ली से बस आने और वहां जा कर अनाथालय में सभी की सामूहिक शादी कराने की बात कही थी. उसी के कहने पर ये सभी लोग खरखौदा में इकट्ठे हुए थे.

लेकिन अब सुशीला से बात नहीं हो पा रही थी. मोनू का भी कुछ अतापता नहीं था. सुशीला और मोनू के मोबाइल फोन बंद बता रहे थे. इन के पास सुशीला और मोनू के अलावा किसी अन्य का मोबाइल नंबर नहीं था. इसी तरह दोपहर के 12 बज गए. वहां एकत्र दूल्हे और उन के रिश्तेदार तरहतरह की चर्चाएं करने के साथ धोखा खाने यानी शादी के नाम पर ठगे जाने की आशंका जाहिर करने लगे.

सभी दूल्हे पहुंच गए सुशीला के घर

इंतजार करतेकरते थक चुके लोगों ने कहा कि सुशीला खरखौदा में ही तो रहती है, चलो उस के घर चलते हैं. उसी से पूछते हैं कि अभी तक बस क्यों नहीं आई? सभी सुशीला के घर पहुंचे तो वह घर पर ही मिल गई. मोनू भी सुशीला के ही घर पर था.

सभी ने सुशीला और मोनू से बस न आने के बारे में पूछा तो सुशीला ने कहा, ‘‘देखो मैं पता करती हूं. शादी कराने की बात दिल्ली में रहने वाली मेरी भाभी अनीता ने कही थी. उन्हीं के कहने पर मैं ने दिल्ली से बस आने की बात बताई थी.’’

इस के बाद सुशीला ने सब के सामने अनीता को फोन किया. पता चला कि उस का भी फोन बंद है. कई बार कोशिश करने के बाद भी जब अनीता से भी बात नहीं हो सकी तो दूल्हों और उन के रिश्तेदारों को गुस्सा आ गया. उन्हें यकीन हो गया कि शादी के नाम पर वे ठगे गए हैं.

कुछ लोग सुशीला से अपने पैसे वापस मांगने लगे. उन का कहना था कि उन्होंने कर्ज ले कर उसे पैसे दिए हैं. अब वह शादी नहीं करा रही है तो उन के पैसे वापस करे. कुछ दूल्हों का कहना था कि अब वे बिना दुलहन के कौन सा मुंह ले कर अपने घर जाएंगे. कुछ दूल्हे ऐसे भी थे, जिन के घर वालों ने बेटे की शादी की खुशी में बहूभोज के लिए मैरिज होम तक बुक करा लिया था. डीजे वगैरह का भी इंतजाम किया था.

कुछ दूल्हे ऐसे भी थे, जिन के घर वालों ने शादी की सारी रस्में करा का उन्हें यहां तक पहुंचाया था. जो खातेपीते घर के दूल्हे थे, उन्होंने अपने रिश्तेदारों से बताया था कि लड़की के घर वाले गरीब हैं. इसलिए शादी करने के बाद बहू के साथ घर आएंगे तो उन सब की खातिरदारी घर पर करेंगे.

पैसे मांगने पर सुशीला ने कहा कि पैसे तो वह अनीता को दे चुकी है. इसलिए पैसे नहीं दे सकती. 2-3 घंटे तक सुशीला के घर पर हंगामा होता रहा. जब लोगों को ना तो पैसे वापस मिले और ना ही शादी होने की कोई सूरत नजर आई तो वे सुशीला और मोनू को पकड़ कर थाना खरखौदा ले गए. शादी के नाम पर हुई ठगी को एक दूल्हे का पिता बरदाश्त नहीं कर सका और वह थाने में ही बेहोश हो कर गिर पड़ा. लोगों ने उसे संभाला.

श्रद्धा मर्डर केस : 35 टुकड़ों में बिखर गया प्यार – भाग 5

सारा सामान जुटाने के बाद लाश को कमरे से जुड़े बाथरूम में ले जा कर आरी से कई टुकड़े काटे. हाथपैर और धड़ के 35 टुकड़े किए. फिर वह पौलीथिन में पैक कर फ्रिज में रख दिए. रूम फ्रेशनर को कमरे में फैला दिया. थोड़े से पानी भरे बरतन में गुलाब की पंखुड़ी डाल कर वह बरतन बालकनी में रख दिया, ताकि कमरे से बदबू नहीं आए.

उस के बाद उस ने 18 दिनों तक यानी 5 जून तक श्रद्धा के 35 टुकड़ों में कटी लाश को ठिकाने लगाता रहा. वह टुकड़ों को बैग में डाल कर रोजाना आधी रात में महरौली के जंगल के अलगअलग हिस्से में फेंकता रहा.

पुलिस की छानबीन से पाया गया कि उस ने करीब 20 किलोमीटर के दायरे में तमाम टुकड़े फेंके थे. उस ने 100 फुटा एमबी रोड, श्मशान के पास के नाले, महरौली के जंगल और छतरपुर में धान मिल परिसर में ये टुकड़े फेंके थे.

जब तक फ्रिज में लाश रखी रही, तब वह औनलाइन खाना मंगा कर खाता रहा. बचा हुआ खाना भी उसी फ्रिज में रखता था, जिस में प्रेमिका की लाश के टुकड़े रखे थे. जब कभी उसे श्रद्धा के साथ गुजारे गए हसीन पलों की याद आती तो फ्रिज में रखे उस के सिर को बाहर निकाल कर गालों को स्पर्श कर लेता था.

फ्लैट में वह सामान्य तरह की दिनचर्या का पालन कर रहा था. जब तक लाश के टुकड़ों को ठिकाने नहीं लगा देता, तब तक नहीं सोता था. हालांकि लाश को काटते हुए आरी से उस का भी हाथ कट गया था. उस की मरहमपट्टी के लिए पास के ही डा. अनिल कुमार की क्लिनिक पर गया था.

जख्मी आफताब के बारे में डाक्टर ने पुलिस को बताया कि वह 20 मई की सुबह के समय उन के क्लिनिक आया था. उस का हाथ कटा हुआ था और खून भी निकल रहा था. वह बहुत आक्रामक और बेचैन लग रहा था.

जब मैं ने चोट के बारे में उस से पूछा तो उस ने बताया कि फल काटते समय उस का हाथ कट गया था. वह बातें काफी कौन्फिडेंस के साथ आंखें मिला कर कर रहा था. वह अंगरेजी में बोल रहा था. उस ने बताया कि वह मुंबई से है और दिल्ली आया है, क्योंकि यहां आईटी सेक्टर में अच्छा अवसर है.

उस ने श्रद्धा के शव के 35 टुकड़े कर दिए थे, लेकिन वह सिर को क्षतविक्षत नहीं कर पाया था. फ्रिज में रखे सिर को अपने प्यार की याद में बारबार निहारता था. श्रद्धा के सिर को उस ने सब से आखिर में ठिकाने लगाया था.

श्रद्धा के शव को ठिकाने लगाने के दौरान आफताब बदबू से बचने के लिए कई कैमिकल्स का इस्तेमाल भी करता रहा. पुलिस सूत्रों के मुताबिक वह आर्थोबोरिक ऐसिड (बोरिक पाउडर), फार्मेल्डिहाइड और सलफ्यूरिक एसिड खरीद कर लाया था. इस की जानकारी उस ने गूगल सर्च कर मालूम की थी.

श्रद्धा की हत्या के बाद आफताब ने खुद को बचाने के लिए न केवल उस की लाश के टुकड़ों को ठिकाने लगाया, बल्कि किसी को शक न हो, इसलिए श्रद्धा का इंस्टाग्राम अकाउंट भी लगातार चलाता रहा. वह श्रद्धा बन कर उस के दोस्तों से चैटिंग करता था.

फिर उस ने 10 जून को इंस्टाग्राम चलाना बंद कर दिया. इसी तरह से आफताब ने श्रद्धा की हत्या के बाद उस के क्रेडिट कार्ड का बिल भी चुकाया. उसे यह डर था कि अगर उस के के्रडिट कार्ड का बिल नहीं चुकाया तो ड्यू डेट के बाद बैंक से श्रद्धा के घर वालों के पास काल जाएगी और फिर वे श्रद्धा से संपर्क करने की कोशिश करेंगे.

दक्षिणी दिल्ली के वसंत कुंज और महरौली के आसपास बेहद घने और 43 एकड़ में फैले जंगलों में श्रद्धा की लाश के टुकड़े की तलाश करना काफी चुनौती का काम है.

कथा लिखे जाने तक दिल्ली पुलिस को महरौली के जंगल से लाश के 12 पार्ट ही मिले थे, जिन के बारे यह कहना मुश्किल था कि वह श्रद्धा के ही हो सकते हैं. पुलिस उस के सिर को तलाश नहीं कर पाई थी.

सिर मिलने से मृतका की पहचान साबित हो सकती है, लेकिन पुलिस श्रद्धा के पिता के डीएनए से मिलान कर शव की शिनाख्त की कोशिश कर रही थी. हड्डियों को डीएनए सैंपलिंग के लिए भेजा गया था.

आफताब का शातिराना और संदिग्ध अंदाज

पुलिस ने बताया कि आफताब ने वारदात को अंजाम देने के बाद खून साफ करने के लिए फ्रिज और कमरे को सल्फर हाइपोक्लोरिक एसिड से साफ किया. इसी वजह से खून के धब्बे नहीं मिले. केवल एक धब्बा किचन में मिला था, पर जांच रिपोर्ट आने से पहले यह कहना मुश्किल है वो खून किस का है.

दिल्ली पुलिस ने आरोपी आफताब को फ्लैट पर ले जा कर क्राइम सीन को रीक्रिएट कर हत्याकांड की तह में जाने की कोशिश की है. आफताब की आदतों और उस के दूसरी लड़कियों के साथ संबंध होने के खुलासे के बाद हत्याकांड के कई कारण बताए जा रहे हैं.

सीन रीक्रिएशन से यह पता चला कि वारदात की रात जब अफताब और श्रद्धा के बीच झगड़ा हुआ था, तब आफताब ने पहले श्रद्धा की जम कर पिटाई की थी.

पिटाई से श्रद्धा बेसुध हो गई थी, जिस के बाद आफताब श्रद्धा की छाती पर बैठ गया था और उस का गला दबा कर मार डाला था. क्राइम सीन रीक्रिएट करने के लिए दिल्ली पुलिस फ्लैट में एक पुतला ले कर गई थी. घटनास्थल पर आफताब को भी ले जाया गया था.

आफताब अमीन पूनावाला मुंबई का रहने वाला है. कहने को तो वह एक बढि़या शेफ है. जिस तरह श्रद्धा ने मुंबई के एक नामी संस्थान से मास कम्युनिकेशन में मास्टर डिग्री की थी तो आफताब ने भी मुंबई के एक नामी कालेज एल.एस. रहेजा से बैचलर इन मैनेजमेंट स्टडीज की पढ़ाई की थी.

आफताब को फूड ब्लौगिंग का शौक है. इस ने खुद का फूड ब्लौग वेबसाइट बनाया है. इस का सोशल मीडिया प्रोफाइल देखने पर कई चौंकाने वाली बातें सामने आईं. उस के सोशल मीडिया प्रोफाइल से पता चला कि वह एलजीबीटीक्यू कम्युनिटी यानी स्त्रीस्त्री, पुरुषपुरुष समलैंगिक और बाइसैक्सुअल समुदाय, एसिड विक्टिम और वीमन राइट्स का समर्थक है.

दीपावली पर पटाखों की जगह अपने अंदर के अंहकार को जलाने की बात करने वाले आफताब ने अपने कई शातिराना और संदिग्ध अंदाज से पुलिस को चकमा देने की कोशिश की है. पुलिस इस ऐंगल से भी पुलिस जांच कर रही है कि कहीं ओपन रिलेशनशिप और गे लेस्बियन का शौक हत्या की वजह तो नहीं है.

उस ने हत्या की वारदात के 10-12 दिनों के बाद ही बंबल डेटिंग ऐप के जरिए ही एक युवती को दिल्ली के फ्लैट पर बुलाया था. उस के साथ शारीरिक संबंध भी बनाए थे. उस दौरान श्रद्धा की लाश के टुकड़े फ्रिज में ही रखे हुए थे.

आफताब ने मुंबई पुलिस को न केवल चकमा दिया, बल्कि अपने परिवार की नजरों में भी सहज और सामान्य बना रहा. इसे देखते हुए दिल्ली पुलिस की निगाह में श्रद्धा मर्डर केस का एकमात्र आरोपी आफताब मानसिक तौर पर बेहद शातिर है.

दिल्ली पुलिस द्वारा गिरफ्तारी के बाद उसे अपनी कंपनी से ईमेल पर नौकरी से निकाले जाने का नोटिस भी मिला. वह उस वक्त तक एक निजी कंपनी क्लाइंट सर्विसिंग वर्टिकल में एक एसोसिएट के तौर पर काम कर रहा था.

उस ने हत्या के करीब एकदो सप्ताह बाद ही कालसेंटर में काम करना शुरू कर दिया था. उस का काम कंपनी के उत्पादों और सेवाओं को बेचना था. लेकिन पिछले 8-9 दिनों से काम पर नहीं आने के कारण उसे टर्मिनेशन नोटिस भेज गया था.

इस केस में नएनए खुलासे होने के क्रम में यह भी पता चला कि श्रद्धा को मई में मौत के घाट उतारने के बाद भी आफताब उस के एटीएम और क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल करता रहा.

इस के अलावा उस ने श्रद्धा के अकाउंट से औनलाइन पैसे भी ट्रांसफर किए. आफताब की इस एक गलती ने उस की पोल खोल दी और पुलिस को केस को सुलझाने में मदद मिली.

श्रद्धा का फोन 26 मई, 2022 को बंद हुआ था और पुलिस ने जांच में पाया कि श्रद्धा का फोन 22 मई से 26 मई के बीच औनलाइन पैसे ट्रांसफर करने के लिए इस्तेमाल हुआ. इस दौरान श्रद्धा के बैंक अकाउंट से 54 हजार रुपए आफताब के अकाउंट में ट्रांसफर हुए थे और जिस समय फोन से औनलाइन ट्रांजैक्शन हुआ, तब फोन की लोकेशन छतरपुर (दिल्ली) ही थी.

कथा लिखने तक पुलिस आफताब के खिलाफ ज्यादा से ज्यादा सबूत जुटाने की कोशिश कर रही थी ताकि वह अदालत से उसे सख्त सजा दिलवाने में सफल हो सके. पुलिस उस का नारको टेस्ट भी कराने की तैयारी कर रही थी. द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

श्रद्धा मर्डर केस : 35 टुकड़ों में बिखर गया प्यार – भाग 4

वह सीधे मुंबई के थाना वसई गए और श्रद्धा की गुमशुदगी की शिकायत की. करीब 50 दिन निकल गए, लेकिन मुंबई पुलिस को श्रद्धा के बारे में पता लगाने में रत्ती भर भी सफलता नहीं मिली. हार कर वह दिल्ली आए और 8 नवंबर को दिल्ली आ कर बेटी श्रद्धा के गुमशुदा होने की शिकायत की.

उन के साथ बेटा भी आया था. उन्हें आफताब और श्रद्धा के फ्लैट का पता नहीं मालूम था. वे सिर्फ इतना जानते थे कि उन्होंने छतरपुर में कहीं किराए का फ्लैट लिया है, जो महरौली थानांतर्गत आता है.

विकास वाकर ने पुलिस को श्रद्धा और आफताब के लिवइन रिलेशन के बारे में पूरी जानकारी दी. उन के और श्रद्धा के अलावा आफताब की हुई बातचीत के बारे में भी विस्तार से बताया. उन के मोबाइल नंबर भी दिए.

विकास और उन के बेटे से मिली जानकारी के आधार पर पुलिस ने तहकीकात शुरू करते हुए दोनों के मोबाइल फोन की लोकेशन की जांच की, जो एक साथ कई दिनों तक दिल्ली के छतरपुर में मिली. किंतु बाद में श्रद्धा का फोन बंद मिला. उस के जरिए पुलिस ने छतरपुर में आफताब के एड्रैस का पता लगा लिया.

पुलिस जांच करते हुए उस पते पर पहुंची, जहां आफताब रहता था. वह पता दिल्ली के छतरपुर में गली नंबर-1 के एक मकान का था. पुलिस जब विकास को ले कर वहां गई, तब उन्हें उस मकान पर ताला लगा मिला.

पुलिस को शक हुआ कि जरूर आफताब लड़की के साथ कुछ गलत करने के बाद फरार हो गया है. हिंदू लड़की और मुसलिम लड़के के बीच प्रेम संबंध और उन के परिजनों के विरोध को देखते हुए पुलिस लव जिहाद ऐंगल से भी जांचपड़ताल करने लगी.

सर्विलांस की मदद से आखिरकार शनिवार यानी 12 नवंबर, 2022 को आफताब दिल्ली पुलिस की गिरफ्त में आ गया. उस से पूछताछ की गई. पुलिस ने पाया कि उस के चेहरे पर किसी तरह की परेशानी या अफसोस नहीं था.  वह हर बात का जवाब अंगरेजी में दे रहा था. वह हिंदी जानता था, लेकिन अंगरेजी में बात करने में खुद को ज्यादा सहज महसूस कर रहा था. एसएचओ ने सीधा सवाल पूछा, ‘‘श्रद्धा कहां है?’’

उस ने भी सीधा सा जवाब दिया,‘‘आइ डोंट नो. मुझे नहीं मालूम.’’

‘‘नहीं मालूम. वह तुम्हारे साथ आई थी न? अब कहां है?’’ एसएचओ ने डांट लगाई.

‘‘चली गई?’’ आफताब के इतना बोलते ही एसएचओ ने उसे एक झापड़ लगाया, ‘‘कहां चली गई? तुम्हारी प्रेमिका है, लिवइन पार्टनर  है. ऐसे कहां चली जाएगी?’’

‘‘मुझे क्या पता? वह अब मेरे साथ नहीं है.’’ आफताब थोड़ा खीझता हुआ बोला.

‘‘…तो कहां है?’’ कहते हुए उन्होंने उस का कालर पकड़ा और तड़ातड़ 2-3 झापड़ लगा दिए.

‘‘आई किल्ड हर…उसे मार डाला मैं ने.’’ झापड़ की मार से तिलमिलाए हुए आफताब के मुंह से निकल गया.

आफताब ने स्वीकार कर लिया सच

इतना कह कर वह निश्चिंत हो गया. यह बता कर कि वह मर चुकी है उस के चेहरे पर जरा भी शिकन नहीं दिख रही थी. एसएचओ ने अगला सवाल किया, ‘‘क्यों और कैसे मारा?’’

‘‘उस ने मुझे काफी गुस्सा दिला दिया था. एक ही सवाल बारबार पूछती रहती थी.  गुस्से में उस का गला दबा दिया और मर गई.’’ आफताब बोला.

यह सुनते ही पास खड़े श्रद्धा के पिता अवाक रह गए. आफताब उन की तरफ देख कर बोलने लगा, ‘‘वह बारबार शादी की जिद करती थी. मैं उसे कितना समझाता कि आप लोगों को हमारी शादी मंजूर नहीं. उस रोज उस ने मुझे वही बात बोलबोल कर बेहद दुखी कर दिया था. तब मैं ने उस की हत्या कर दी.’’

यह सुन कर श्रद्धा के पिता और पुलिस वाले भी हैरान रह गए.

‘‘कब किया यह सब? डैडबौडी कहां है?’’ एसएचओ ने सवाल किया.

‘‘18 मई को… उस की बौडी जंगल में फेंक दी.’’ आफताब निश्चिंत हो कर महरौली के घने जंगल की ओर इशारा करता हुआ बोला.

‘‘जंगल में! अकेले? …और कोई था तुम्हारे साथ?’’

‘‘मैं ने अकेले ही श्रद्धा की बौडी को फेंका.’’

‘‘आश्चर्य है. पूरी बात विस्तार से बताओ. यह लो पहले पानी पियो…’’ कहते हुए एसएचओ ने उस की ओर पानी की बोतल बढ़ा दी.

उस के बाद आफताब ने जो कुछ बताया, उसे सुन कर सभी के रोंगटे खड़े हो गए. कारण उस ने श्रद्धा की लाश के साथ जो किया था, वह कोई हैवान ही कर सकता है. वह एकदम अनहोनी और डरावनी खौफनाक हौलीवुड फिल्मों जैसी थी.

आफताब द्वारा श्रद्धा की मौत और उस की लाश को ठिकाने लगाने की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार है—

श्रद्धा की गला घुटने से हुई मौत की वारदात 18 मई की आधी रात के समय हुई थी. दोनों के बीच शादी को ले कर हुए विवाद के बाद दोनों ने एकदूसरे को काफी भलाबुरा कहा था. इस दौरान गुस्से में आए आफताब पर श्रद्धा ने एक थप्पड़ जड़ दिया था. जिस से आफताब ने गुस्से में दोनों हाथों से श्रद्धा की गरदन पकड़ ली.

जब श्रद्धा तेजी से चिल्लाने लगी, तब उस ने एक हाथ से उस का मुंह दबा दिया. जब उसे श्रद्धा की मौत हो जाने का अहसास हुआ, तब तक बहुत देर हो चुकी थी. श्रद्धा की नब्ज थमने पर उसे मालूम हुआ कि उस की मौत हो चुकी है.

फिर पकडे़ जाने के डर से उस ने लाश को ठिकाने लगाने की सोची. शांति से योजना बनाई. हौरर वेब सीरीज देखने लगा, ताकि बचाव का कोई तरीका मिल जाए.

ओटीटी प्लेटफार्म पर सर्च करते हुए उस ने हौलीवुड वेब सीरीज ‘डेक्स्टर’ देखी. उस के सीरियल किलर के कैरेक्टर से लाश को ठिकाने लगाने का तरीका जाना.

इस सीरीज में सीरियल किलर द्वारा लाश के टुकड़ों को अलगअलग जगहों पर फेंकते हुए दिखाया जाता है. उसे देख कर ही आफताब को आइडिया मिल गया.

वह लाश को ठिकाने लगाना चाहता था, लेकिन लाश को कैसे बाहर ले जाता. दिल्ली में उस के पास कार भी नहीं थी. अकेले लाश को कैसे ठिकाने लगाता. इसलिए

सोचा कि अब उसे कई टुकड़ों में काट कर ठिकाने लगाया जाए. अब ऐसा करने के लिए उस ने अपने पुराने फूड ब्लौगर वाला तरीका चुना.

उस ने तय कर लिया कि वह लाश के छोटेछोटे टुकड़े कर के फ्लैट में ही रख लेगा और फिर उन्हें थोड़ाथोड़ा कर के ठिकाने लगाता रहेगा.

होटल मैनेजमेंट की पढ़ाई के दौरान उसे बताया गया था कि गोश्त को ज्यादा दिनों तक फ्रैश कैसे रखा जाता है. वही तरीका आफताब ने अपनाया.

अगले रोज 19 मई, 2022 को वह बाजार से पहले चापड़, आरी और 300 लीटर का फ्रिज खरीद लाया. साथ में कई रूम फ्रेशनर और गुलाब की पंखुडि़यां भी ले आया. तब तक लाश को 24 घंटे तक कमरे में ही छिपाए रखा.

तांत्रिक का इंद्रजाल : समाज में फैल रहा अंधविश्वास – भाग 3

गणेश ने एक कागज की पुडि़या सुनीता को देते हुए कहा था कि इसे सब्जी में डाल देना, इस में अभिमंत्रित भभूत (भस्म) है, जो हर बला से सब को बचा कर रहेगी.

सुनीता बहुत खुश थी, उसे भरोसा था कि बंजारा बाबा के द्वारा किए जाने वाले तांत्रिक अनुष्ठान से उस के गहने वापस मिल जाएंगे. बाबा द्वारा दी गई भभूत उस ने सब्जी में डाल दी.

रात के 11 बजने वाले थे तभी बाबा ने सुनीता को बुला कर कहा, ‘‘आप तीनों खाना खा कर थोड़ा आराम कर लें, तांत्रिक अनुष्ठान में 2 घंटे से भी ज्यादा का समय लगेगा.’’

तांत्रिक अनुष्ठान देखने को बाबा ने पहले ही मना कर दिया था, इसलिए सुनीता, योगेश और दिव्यांश ने एक साथ बैठ कर खाना खाया और अपनेअपने पलंग पर लेट गए. बिस्तर पर पहुंचते ही वे कब बेहोश हो गए, उन्हें पता ही नहीं चला.

इधर जैसे ही तांत्रिक अनुष्ठान खत्म हुआ तो बाबा ने मोनू को अंदर जा कर देखने को कहा. मोनू ने घर के अंदर जा कर देखा तो तीनों सो चुके थे. उस ने तसल्ली के लिए आवाज दे कर पुकारा, मगर योगेश का परिवार सब्जी में मिलाई गई जहरीली भभूत के असर से बेहोश हो चुका था.

मौके का फायदा उठा कर दोनों ने तांत्रिक क्रिया में इस्तेमाल की गई धारदार कुल्हाड़ी निकाल ली. देखते ही देखते तीनों के सिर पर जोरदार प्रहार कर उन का गला भी रेत दिया.

कुल्हाड़ी के वार से खून के छींटे दोनों के कपड़ों पर पड़ चुके थे. तीनों का काम तमाम कर गणेश और मोनू ने अलमारी में रखे गहने और रुपए निकाले और सारा सामान समेट कर वे बाइक से भाग गए.

जिस ढंग से दोनों ने घटना को अंजाम दिया था, उन्हें पकड़े जाने का जरा भी खौफ नहीं था. इसलिए वे रात को ही अपनी बाइक से हरदा जिले के अपनेअपने गांव पहुंच गए थे. पुलिस की सघन पूछताछ में जब इस बात का खुलासा हुआ कि गणेश और मोनू तंत्रमंत्र के लिए बनापुरा आते थे, वे पुलिस की नजरों से ज्यादा दिन छिप नहीं सके.

सिवनी मालवा पुलिस ने तांत्रिक गणेश और मोनू को उन के गांव से गिरफ्तार कर लिया. आरोपियों के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201, 460, 380 के तहत अपराध दर्ज कर 8 नवंबर, 2021 को दोनों को कोर्ट में पेश कर एक दिन के पुलिस रिमांड पर ले कर पूछताछ में सारे मामले का खुलासा हुआ.

तांत्रिक की निशानदेही पर घटना में प्रयुक्त कुल्हाड़ी, खून से सने हुए कपड़े और योगेश के घर से चुराए हुए रुपए, सोने का मंगलसूत्र बरामद कर लिया. 10 नवंबर को दोनों को कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उन्हें होशंगाबाद जेल भेज दिया गया.        द्य

—कथा पुलिस सूत्रों और मीडिया रिपोर्ट पर आधारित

गैंगस्टर बनने के लिए किए 4 मर्डर – भाग 3

चर्चित फिल्म ‘पुष्पा’ के पुष्पा की तरह वह साइकिल से चलता था. वह केसली से 65 किलोमीटर दूर सागर साइकिल से ही आया था. केकरा गांव से शिवप्रसाद साइकिल ले कर 65 किलोमीटर का सफर तय कर के  सागर पहुंचा था.

25 अगस्त को वह कोतवाली क्षेत्र के कटरा बाजार स्थित एक धर्मशाला में रूम ले कर रुका था. और यहां कैंट थाना क्षेत्र में 27 अगस्त की रात कारखाने में तैनात चौकीदार कल्याण लोधी (50) के सिर पर हथौड़ा मार कर हत्या कर दी.

शिवप्रसाद भी पुष्पा की तरह गिरफ्तार होने के बाद पुलिस के सामने नहीं झुका, बल्कि उस ने विक्ट्री साइन दिखाया. उसे इन  वारदातों को ले कर किसी तरह का अफसोस नहीं था. इसी तरह ‘हैकर’ मूवी को देख कर शिवप्रसाद ने साइबर क्राइम सीखने की कोशिश की.

सागर में चौकीदार की हत्या के बाद आरोपी उस का मोबाइल ले कर भागा था और उस का पैटर्न लौक भी उस ने खोल लिया था.

सीरियल किलर शिवप्रसाद वारदात को अंजाम देने के बाद दिन भर सोशल मीडिया के साथ खबरों पर पैनी नजर रखता था. सागर से भोपाल आने के बाद भी वह दिन भर इंटरनेट, मीडिया व खबरों पर नजर बनाए रखे था. इसी वजह से उसे पता चल गया था कि पुलिस किलर की गिरफ्तारी के लिए सक्रिय हो गई है. वह भोपाल में रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड के आसपास घूमता रहा.

जब उस ने कल्याण लोधी का कत्ल किया तो उस के मोबाइल का सिम कार्ड फेंकने के बाद मोबाइल अपने साथ ले गया. सागर में आर्ट ऐंड कामर्स कालेज के गार्ड शंभुदयाल को मार कर उस ने कल्याण का मोबाइल वहां छोड़ शंभुदयाल का मोबाइल अपने पास रख लिया था. मोबाइल उस ने स्विच्ड औफ कर रखा था. इधर सागर पुलिस ने भी शंभु के मोबाइल नंबर को सर्विलांस पर लगा रखा था.

शिवप्रसाद ने पहली सितंबर की रात करीब 11 बजे मोबाइल चालू किया तो सागर पुलिस को लोकेशन पता चल गई. टीम भोपाल के लिए रवाना हो गई. सागर पुलिस भोपाल पहुंचती, इस से पहले शिवप्रसाद ने मोबाइल बंद कर दिया.

रात करीब डेढ़ बजे से पुलिस उसे बैरागढ़, कोहेफिजा, लालघाटी इलाके में खोजती रही, लेकिन वह नहीं मिला. रात करीब साढ़े 3 बजे शिवप्रसाद ने टाइम देखने के लिए एक बार फिर मोबाइल औन किया तो पुलिस को उस की लोकशन लालघाटी इलाके में पता चली. पुलिस ने तड़के उसे दबोच लिया.

खबरों पर रखता था कड़ी नजर

4 चौकीदारों की हत्या करने वाला सीरियल किलर 19 वर्षीय शिवप्रसाद वारदात के बाद इंटनरेट मीडिया व अखबारों पर पैनी नजर रखता था. वह वारदात के बाद सुबह ही अखबार पढ़ता. वहीं इंटरनेट और सोशल मीडिया पर भी वारदात को ले कर आने वाली प्रतिक्रियाओं पर नजर रखता था.

वारदात के पहले वह वहां की अच्छी तरह से पड़ताल करता और हत्या करते समय कोशिश करता कि उस का चेहरा सीसीटीवी कैमरे में कैद न होने पाए. सागर में हुई हत्या की ये वारदातें उस ने रक्षाबंधन के बाद अपने गांव केकरा से आ कर ही प्लान की थीं.

वह अपनी मां से बोल कर आया था कि वह बहुत जल्द नाम कमाएगा, इस के बाद उस ने सागर में 3 हत्याएं कर दीं. सागर के बाद उस ने अलगअलग जिलों में हत्या करने की योजना बनाई थी, लेकिन भोपाल में एक अन्य चौकीदार की हत्या के बाद वह पकड़ा गया.

शिवप्रसाद ने 27 अगस्त को भैंसा गांव के एक कारखाने में काम करने वाले 57 वर्षीय कल्याण सिंह के सिर पर हथौड़ा मार कर हत्या की. वारदात के बाद आरोपित कल्याण सिंह का मोबाइल अपने साथ ले आया. उस ने मोबाइल की सिम फेंक दी.

शंभुदयाल की हत्या के बाद शिवप्रसाद शंभुदयाल की साइकिल व मोबाइल अपने साथ ले गया और कटरा क्षेत्र के एक लौज में रुका. उस ने सुबह उठ कर सारे अखबार भी पढ़े और अपनी अगली रणनीति पर लग गया.

30 अगस्त की रात वह रतौना गांव पहुंचा और मंगल सिंह की हत्या कर दी, इस के बाद वह ट्रेन से भोपाल चला गया.

सीरियल किलर शिवप्रसाद धुर्वे को सागर पुलिस ने रिमांड पर ले कर जब पूछताछ की तो उस ने पुलिस को बताया कि 2016 में वह घर से निकला. पुणे, गोवा, चेन्नै, केरल समेत अन्य जगह मजदूरी की. उसे जल्द ही इस बात का आभास हो गया कि मजदूरी कर के पेट भरा जा सकता है, लेकिन ऐशोआराम हासिल नहीं हो सकते.

अपराधियों को देख कर वह भी फेमस होने का सपना देखने लगा. उसे अपराध की दुनिया का रास्ता सब से आसान लगा. आरोपी इतना शातिर है कि रिमांड के दौरान वह पूछताछ के दौरान जरा भी नहीं घबराया और पुलिस को कई कहानियां सुनाता रहा.

आधुनिक हथियार खरीद कर बनना चाहता था गैंगस्टर

सीरियल किलर शिवप्रसाद ने बेबाकी से बताया कि उसे बेकसूर लोगों को मारने का मलाल तो है. उस के निशाने पर पुलिसकर्मी भी थे. उसे अफसोस भी है कि उस का सपना अधूरा रह गया.

रिमांड पूरी होने के बाद उसे 6 सितंबर को कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

पुलिस पूछताछ में उस ने इस बात को स्वीकार किया कि उस का अगला निशाना ड्यूटी के दौरान सोने वाले पुलिसकर्मी थे.

भोपाल के गांधी मैडिकल कालेज में मनोरोग विभाग के रिटायर्ड प्रोफेसर और एचओडी डा. आर.एन. साहू ने इस प्रकार के बरताव को एक तरह का दिमागी रोग बताया है. उन का कहना है कि इस प्रकार के व्यक्ति की मानसिकता गड़बड़ रहती है. दिमाग में एक ही सोच आती है और वे बिना उद्देश्य के किसी को भी मार देते हैं.

यह एक प्रकार का दिमागी रोग है, इस में आदमी के भीतर पैथोलौजिक चैंजेस आते हैं और कैमिकल इमबैलेंस हो जाता है.

ऐसे में उन का व्यवहार असामान्य हो जाता है. सामान्य रूप से वे बाहर से तो ठीक दिखते हैं, इस कारण उन्हें पहचानना मुश्किल होता है.

ऐसे लोगों के व्यवहार को वही लोग ज्यादा समझते हैं, जो उन के नजदीकी रहते हैं. घर वाले, दोस्त या रिश्तेदार ही उन की मनोदशा को अच्छी तरह बता सकते हैं. ऐसे रोगी का समय रहते इलाज कराने के बाद ऐसी घटनाओं को रोका जा सकता है.    द्य

डॉक्टर और इंजीनियर बनाने लगे कैंसर की नकली दवाएं – भाग 3

डा. पवित्रा जल्दी से जल्दी अमीर बनने के चक्कर में ऐसा फंसा कि मौत का सौदागर बनने के लिए तैयार हो गया. उस ने अपने काम के लिए चीन से ही एमबीबीएस की पढ़ाई कर डाक्टर बने अनिल कुमार को साथ में ले कर यह गोरखधंधा शुरू कर दिया.

चीन से एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी करने के बाद डा. पवित्रा 5 साल पहले दिल्ली आया और उस के बाद 3 बड़े अस्पतालों जीटीबी अस्पताल, सुपर स्पैशियालिटी कैंसर इंस्टीट्यूट और दीपचंद बंधु अस्पताल में नौकरी की. जीटीबी अस्पताल में ही पवित्रा की दोस्ती डा. अनिल से हुई थी, जो बिहार का रहने वाला है. अनिल बेहद महत्त्वाकांक्षी था. उस से मुलाकात के बाद तो डा. पवित्रा के इरादों को पंख लग गए.

अमीर बनने के लिए नकली दवाइयों के धंधे में उतरने की तैयारी उस ने तेज कर दी. सब से पहले पवित्रा ने अपने ममेरे भाई शुभम मन्ना और दूसरे साथियों को इस में जोड़ना शुरू किया. मसलन, दवा कहां बनेगी, उस की पैकिंग कहां होगी, बाजार और ग्राहकों तक दवाइयां किस तरह पहुचेंगी. इस के लिए पूरी टीम बन गई.

किस का क्या काम रहेगा, सब कुछ तय हो गया. बेंगलुरु से बीटेक करने के बाद पवित्रा के ममेरे भाई शुभम ने कई मल्टीनैशनल कंपनियों में काम किया था. जब पवित्रा ने उसे कैंसर की नकली दवाइयों के धंधे के बारे में बता कर उस से होने वाले मुनाफे के बारे में बताया तो शुभम भी अपने भाई पवित्रा के साथ नकली दवाइयों के धंधे में जुड़ गया.

पवित्रा ने दवाओं के धंधे की देखरेख करने के लिए आईटीआई डिप्लोमा पास पंकज और अंकित को अपने पास नौकरी पर रख लिया. वह दवाओं को पैक करने के अलावा मार्केट में सप्लाई और कुरियर भी करते थे.

गन्नौर की फैक्ट्री में बनती थीं दवाएं

रामकुमार उर्फ हरबीर की गन्नौर, सोनीपत में आरडीएम बायोटेक के नाम से दवा बनाने की फैक्ट्री है. खुद को एम्स का डाक्टर बता कर डा. पवित्रा ने रामकुमार से कैंसर की नकली दवाएं बनवानी शुरू कीं. लेकिन बाद में रामकुमार के ऊपर यह भेद खुल गया कि ये दवाइयां नकली हैं. इसलिए फिर से इस काम के लिए ज्यादा पैसे लेने शुरू कर दिए.

चंडीगढ़ का रहने वाला एकांश फार्मा कंपनी चलाता है. एकांश की चंडीगढ़ में मैडियार्क फार्मा नाम से फर्म है. वह रामकुमार की कंपनी को खाली कैप्सूल के अलावा अन्य सामान उपलब्ध करवाता था. एकांश इंडिया मार्ट के जरिए भी दवाएं बेचता था. वहीं, प्रभात कुमार की दिल्ली के चांदनी चौक स्थित भागीरथ प्लेस में आदित्य फार्मा के नाम से दवा विक्रेता फर्म है.

प्रभात की मुलाकात पहले डा. अनिल से हुई थी. वह उस की दुकान पर आताजाता था. अनिल ने ही प्रभात को कैंसर की नकली दवाइयां बेचने का औफर दिया था. मोटा मुनाफा कमाने के चक्कर में प्रभात कैंसर की नकली दवाइयां बेचने के लिए राजी हो गया.

दरअसल, प्रभात गंभीर रोगों जैसे कैंसर की ही दवा बेचने की ट्रेडिंग करता था. प्रभात अपने ग्राहकों को पूरे भारत के अलावा चीन व दूसरे देशों में दवाएं भेजता था. पुलिस को पूछताछ में पता चला कि वे शौपिंग साइट से ही हर साल 25 करोड़ रुपए की कैंसर की नकली दवा बेच देता था.

रामकुमार की जिस फैक्ट्री में दवाइयां बनाई जाती थीं, वह पिछले करीब साढ़े 5 साल से बादशाही रोड स्थित आरडीएम बायोटेक कंपनी के नाम से चल रही थी. पहले इस में फूड सप्लीमेंट बनाने का काम होता था. इस के लिए केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन से लाइसेंस लिया गया था.

इतना ही नहीं, साल 2020 में रामकुमार ने जिला आयुर्वेदिक अधिकारी कार्यालय से भी देसी दवा बनाने का लाइसेंस लिया था. फैक्ट्री में फूड सप्लीमेंट ‘जिनोव्हे’ के नाम से बनाया जाता था. दिलचस्प बात थी कि फैक्ट्री में कभी निरीक्षण ही नहीं हुआ.

हालांकि अब जबकि फैक्ट्री में कैंसर की नकली दवाएं बनाने का दिल्ली पुलिस ने खुलासा किया है तो जिला आयुर्वेदिक विभाग ने इस का लाइसेंस निरस्त कर इसे सील कर दिया है.

बहरहाल, गन्नौर की फैक्ट्री में प्रोटीन पाउडर तैयार किया जाता था. उसे बाद में  गाजियाबाद ले जाने के बाद खाली कैप्सूलों में भर कर इस को कैंसर की दवा के रूप में पैक कर दिया जाता था. बाद में शुभम मन्ना उस पर एक्सपायरी डेट और दूसरी तरह की जरूरी हिदायतें प्रिंट कर देता था.

कैप्सूलों में भरते थे प्रोटीन पाउडर

ये काम गाजियाबाद के लोनी स्थित ट्रोनिका सिटी में होता था, जहां मास्टरमाइंड डा. पवित्रा नारायण और इस के ममेरे भाई शुभम मन्ना ने गोदाम बनाया हुआ था. इस गोदाम की देखरेख और दवाओं की सप्लाई के लिए इन लोगों ने अंकित शर्मा उर्फ अंकू उर्फ भज्जी और पंकज सिंह बोहरा को रखा हुआ था.

आरोपियों से पूछताछ में खुलासा हुआ कि कैंसर के कैप्सूल में कैमिकल की जगह प्रोटीन पाउडर भरा जाता था, जो मक्के के आटे का स्टार्च होता था. बाद में जब दवाओं की लेबलिंग हो जाती थी तो नकली दवाओं को भागीरथ प्लेस समेत अन्य बड़े मैडिकल स्टोरों को सस्ती कीमत पर बेच दिया जाता था.

साथ ही भारत में ये लोग शौपिंग साइट इंडिया मार्ट पर औनलाइन दवा मंगवाने के इच्छुक लोगों को औनलाइन भी दवा बेचते थे. यह गैंग भारत, अमरीका, इंग्लैंड, बांग्लादेश और श्रीलंका की 7 बड़ी कंपनियों के 20 से अधिक ब्रांड की कैंसर की नकली दवाएं बना कर बेचता था.

पुलिस ने अब तक इन के कब्जे से करीब 9 करोड़ रुपए मूल्य की नकली दवाएं, 16 लाख रुपए और पैकिंग का सामान, खाली डिब्बे, बिना नाम की दवाइयां, तारीख और बैच नंबर डालने की मशीनें व अन्य सामान बरामद किया है.

मास्टरमाइंड पवित्रा नारायण के फ्लैट से भी भारी मात्रा में दवाएं बरामद हुईं. इन के कब्जे से दवा बनाने का कच्चा माल, 12 मोबाइल फोन और लैपटाप तथा वारदात में इस्तेमाल एक स्कूटी भी बरामद की गई.

क्राइम ब्रांच की टीम को डा. पवित्रा के 2 सहयोगी डा. रसैल (बांग्लादेश निवासी) और डा. अनिल (बिहार निवासी) की तलाश है. पुलिस छानबीन के दौरान पता चला है कि दोनों आरोपी चीन फरार हो गए हैं.

जांच में यह भी पता चला है कि मौत के काले कारोबार से डा. पवित्रा ने गुरुग्राम में करीब 9 करोड़ के 2 प्लौट खरीदे हुए हैं. इस के अलावा दुर्गापुर, पश्चिम बंगाल में एक नर्सिंग होम के लिए करोड़ों की जमीन खरीदी है. इन लोगों ने डा. अनिल के साथ मिल कर नेपाल में भी करोड़ों की जमीन में पैसा निवेश किया हुआ है.

सभी सातों आरोपियों के पास से करीब 8 करोड़ रुपए की जो दवाएं बरामद हुई हैं, वह करीब 4 महीने का स्टाक था. पुलिस के सामने डा. पवित्रा ने कुबूल किया कि पिछले 4 सालों के दौरान वह 100 करोड़ से ज्यादा की दवाई बेच चुका है.

कैंसर के लिए इस्तेमाल होने वाली दवाइयों की कीमत 5 हजार रुपए से ले कर 2 लाख के बीच में है. गैंग के सदस्य आधे दामों पर ही दवाएं उपलब्ध करा देते थे. इसलिए उन की दवाइयों की खूब डिमांड थी. देशभर में दवाओं की डिलीवरी के लिए ‘वी फास्ट’ कुरियर बुक करते थे.

अपराध शाखा की जिन टीमों ने कैंसर की नकली दवा के इन सौदागरों को गिरफ्तार किया है. क्राइम ब्रांच के विशेष आयुक्त रविंद्र यादव ने उस टीम को पुरस्कृत करने की घोषणा की है. पुलिस टीम अब यह भी पता लगाने में जुटी है कि मौत का ये सामान दिल्ली एनसीआर में किन दुकानों तक पहुंचता था.द्य

—कथा पुलिस की जांच व आरोपियों के कुबूलनामे पर आधारित