ओयो होटल का रंगीन अखाड़ा – भाग 3

इस पर पुलिस की तीनों टीमों ने 27 सितंबर की रात को सेक्टर 41 के आई ब्लौक में प्लौट नंबर 64 पर बने ओयो होटल को चारों तरफ से घेर कर छापा मारा. एकएक कमरे की तलाशी ली गई तो पुलिस कमरा नंबर 203 में बंधक बना कर रखे गए अजय प्रताप तक पहुंच गई.

उन के कमरे में 3 लोग मिले, जिन में से एक राकेश कुमार उर्फ रिंकू फौजी निवासी गांव चेहडका, जिला भिवाड़ी, राजस्थान था. दूसरा युवक दीपक पुत्र राजेश कुमार भी इसी गांव का रहने वाला था, जबकि इसी कमरे में एक महिला सुनीता गुर्जर उर्फ बबली मिली जो आगाहपुर गांव में सेक्टर 41 की ही रहने वाली थी.

पुलिस ने अचानक उस कमरे में धड़ाधड़ प्रवेश किया और अजय प्रताप को अपने कब्जे में ले लिया. साथ ही कमरे में मौजूद तीनों लोगों को हिरासत में लिया तो सुनीता गुर्जर उर्फ बबली भड़क उठी. उस ने पुलिस को हड़काना शुरू कर दिया, ‘‘औफिसर, इस बदतमीजी की वजह जान सकती हूं?’’

‘‘मैडम, बदतमीजी की वजह आप को पता होगी, फिर भी हम थाने चल कर इस की असली वजह बताएंगे.’’ रणविजय सिंह ने जवाब दिया.

जब पुलिस ने उन्हें बताया कि उन्हें अजय प्रताप का अपहरण कर फिरौती मांगने के आरोप में गिरफ्तार किया जा रहा है तो सुनीता गुर्जर फिर भड़क उठी. उस ने अधिकारियों को धमकाते हुए बताया कि वह बीजेपी की नेता और सोशल वर्कर है. उन की इस गलती की सजा अभी दिलवाएगी.

इस के बाद उस ने कुछ लोगों को फोन किया और फोन करने के बाद धमकी दी कि अभी देखो, थोड़ी देर में तुम को तुम्हारे बाप लोग फोन करेंगे तो देखना तुम कैसे छोड़ोगे.

एडिशनल डीसीपी रणविजय सिंह ने अपनी पुलिस की नौकरी में ऐसे बहुत से छुटभैए नेता देखे थे जो किसी अपराध में पकडे़ जाने पर पुलिस को ऐसी गीदड़भभकियां देते हैं. उन्हें इस बात का भी इल्म था कि कई बार पुलिस ऐसी धमकियों के प्रभाव में आ कर ऐसे लोगों को छोड़ देती है. लेकिन यह मामला जिस तरह का था, उसे देखने के बाद रणविजय सिंह किसी धमकी में नहीं आए और सभी को हिरासत में ले कर पुलिस थाना सेक्टर 49 लौट आए.

पुलिस टीम अपहृत अजय प्रताप सिंह की होंडा सिटी कार के साथ होटल के रजिस्टर तथा होटल के सीसीटीवी कैमरों की डीवीआर भी साथ ले आए.

कैसे फंसे अजय

जब पुलिस ने थाने आ कर थोड़ी सी सख्ती बरती और आरोपियों को सुषमा वर्मा से की गई बातचीत की काल रिकार्डिंग तथा उन के फोन की काल डिटेल्स दिखा कर पुख्ता सबूत सामने रखे तो आरोपियों ने अपना गुनाह कबूल कर लिया और खुलासा किया कि उन्होंने अपने 2 फरार साथियों के साथ मिल कर अजय प्रताप को हनीट्रैप में फंसाया था और उन से मोटी फिरौती वसूलने की योजना थी.

अजय प्रताप ने बताया कि उन्होंने गूगल पर मसाज कराने वाले किसी पार्लर का नंबर सर्च किया था, जिस के बाद उन्हें जस्ट डायल पर नोएडा में मसाज कराने वाला एक नंबर हासिल हुआ. उन्होंने उस नंबर पर फोन किया था.

26 सितंबर को शाम 4 बजे अजय ने जब मसाज सेवा देने वाले उस पार्लर के नंबर पर बात की तो दूसरी तरफ से बात करने वाले ने बताया कि उन के पास एक से एक खूबसूरत लड़कियां है जो सिर्फ मसाज ही नहीं करती बल्कि जिस्म की भूख भी मिटाती हैं.

फोन करने वाले ने इतना प्रलोभन दिया कि अजय प्रताप का मन मचलने लगा. उन्होंने उसी वक्त मसाज कराने का इरादा कर लिया, जब फोन करने वाले ने उन्हें वाट्सऐप पर उन लड़कियों की फोटो भेजीं, जिन में से किसी से भी वे मसाज करा सकते थे.

बस उन्हीं लडकियों की खूबसूरत और मादक तसवीरें देख कर अजय प्रताप घर का सामान लाने के बहाने कार ले घर से निकल पडे़. लेकिन घर से निकल कर जब उन्होंने मसाज वाले नंबर पर फोन कर के पूछा कि कहां आना है तो उन्हें लौजिक्स सिटी सेंटर बुलाया गया. वहां उन्हें दीपक नाम का शख्स मिला जो उन्हें सेक्टर 41 के आई ब्लाक में ओयो होटल पर ले आया.

शाम को 6 बजे जब वे होटल पहुंचे तो वहां उन की गाड़ी पार्किंग में खड़ी करवा कर इसी होटल के रूम नंबर 203 में ले जाया गया, जहां पहले से ही राकेश फौजी उर्फ रिंकू और बरौला नोएडा के 48बी में रहने वाला अनिल शर्मा और सेक्टर 27 के मकान नंबर 618 में रहने वाला आदित्य मौजूद थे.

वहां पहुंचने के कुछ देर तक तो अजय प्रताप उन चारों से बात करते रहे. जब काफी वक्त गुजर गया और मसाज करने वाली लड़कियां नहीं आईं तो उन्होंने उन लड़कियों को बुलाने को कहा, जिन के फोटो उन्हें भेजे गए थे. उस के बाद अचानक उन चारों का गिरगिट की तरह रंग बदल गया.

उन लोगों ने अजय प्रताप को कुरसी से बांध दिया और धमकी देने लगे कि परिवार के होते हुए वह लड़कियों से मसाज के नाम पर अय्याशी करता है तो अजय प्रताप के होश उड़ गए. क्योंकि उन्हें सपने में गुमान नहीं था कि ऐसा भी हो सकता है.

होटल के कमरे में मौजूद चारों लोगों ने उन्हें धमकाना शुरू कर दिया कि वे थाने में फोन कर के पुलिस को बुलाएंगे और उसे पुलिस के हवाले कर देंगे.

उन्होंने अजय प्रताप की काल रिकौर्डिंग सुनवाई तो वे और ज्यादा डर गए. अपने ओहदे की संवेदनशीलता और पारिवारिक बदनामी के कारण वह उन के आगे हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाने लगे.

उसी वक्त उन में से किसी एक के फोन करने पर एक महिला ने आई, जिसे देख कर वे सभी मैम… मैम कह कर बात करने लगे. उस महिला के बारे में चारों ने बताया कि वह नोएडा क्राइम ब्रांच की इंसपेक्टर हैं और उसे पकड़ने के लिए आई हैं.

सुनीता ने खुद को इंसपेक्टर बता कर अजय प्रताप को धमकाना शुरू कर दिया और उन्हें आतंकित करने लगी कि जब वह गिरफ्तार हो कर अय्याशी के जुर्म में जेल जाएगा तो उस की ऐसी बदनामी होगी कि न उस का परिवार रहेगा, न ही नौकरी.

हाईप्रोफाइल हसीनाओं का रंगीन खेल – भाग 2

उमेश निराला कालेज में इंटरमीडिएट में पढ़ रहा था. उमेश और अनीता की मुलाकातें धीरेधीरे बढ़ती गईं और दोनों एकदूसरे को चाहने लगे. प्यार परवान चढ़ा तो उनके बीच की सारी दूरियां खत्म हो गईं.

उमेश और अनीता का अवैध रिश्ता आम हुआ तो अनीता के पिता को बड़ा दुख हुआ. उन्होंने बेटी को समझाया, घरपरिवार की इज्जत का वास्ता दिया, लेकिन अनीता की समझ में नहीं आया. वह तो आसमान में उड़ने लगी थी. उस ने उमेश के अलावा और भी कई बौयफ्रैंड बना लिए थे, जिन के साथ वह घूमतीफिरती और मौजमस्ती करती थी. अनीता की बदचलनी का असर उस की दोनों छोटी बहनों पर भी पड़ने लगा. वे भी उसी की राह पर चल पड़ी थीं.

अनीता के कदम बहके तो पिता को उस के ब्याह की चिंता सताने लगी. उन्होंने उस के हाथ पीले करने को स्वयं तो दौड़धूप शुरू की ही, नातेरिश्तेदारों से भी कह दिया कि वह अनीता के लिए कोई लड़का बताएं. एक रिश्तेदार के माध्यम से उन्हें एक लड़का पसंद आ गया. लड़के का नाम था राघवेंद्र कुमार शुक्ला.

राघवेंद्र के पिता अजय कुमार शुक्ला उन्नाव जिले के अचलगंज कस्बे के रहने वाले थे. उन के 3 बच्चों में राघवेंद्र सब से बड़ा था. वह पढ़ालिखा तो था किंतु बेरोजगार था. उस का मन खेती में नहीं लगता था और उसे नौकरी भी नहीं मिल रही थी. सो वह आवारा घूमता था. अनीता के पिता ने राघवेंद्र को देखा तो यह सोच कर उसे पसंद कर लिया कि पढ़ालिखा है. शरीर से भी स्वस्थ है, नौकरी आज नहीं तो कल मिल ही जाएगी.

देवनारायण ने राघवेंद्र के पिता अजय कुमार शुक्ला से उस के ब्याह की बात चलाई तो वह राजी हो गए. इस के बाद सन 2010 में अनीता की शादी राघवेंद्र के साथ हो गई.शादी के बाद अनीता ससुराल आई तो सभी ने उस के रूप की तारीफ की. राघवेंद्र भी सुंदर पत्नी पा कर इतरा उठा. सब खुश थे पर अनीता खुश नहीं थी. उसे एक तो बेरोजगार पति मिला था, दूसरे उस की स्वच्छंदता पर प्रतिबंध लग गया था. इसलिए वह परेशान रहती थी. घर से बाहर आनेजाने को ले कर उस की तूतूमैंमैं पति से भी होती थी और सासससुर से भी.

अनीता ने जैसेतैसे 3 साल ससुराल में बिताए. इस बीच वह एक बेटे की मां भी बनी. उस के बाद अनीता को ले कर घर में कलह होने लगी. दरअसल, अनीता ने शादी के पहले के अपने प्रेमियों के साथ घूमनाफिरना शुरू कर दिया था. उन के साथ वह बहाने से उन्नाव तो कभी बदरका घूमने निकल जाती थी. राघवेंद्र तथा उस के परिवार से यह बात अधिक दिनों तक छिपी नहीं रही.

वह समझ गए कि अनीता बदचलन है. राघवेंद्र ने पत्नी पर अंकुश लगाना चाहा तो वह पति को ही आंखें दिखाने लगी, ‘‘ज्यादा टोकाटाकी की तो थाने जा कर घरेलू हिंसा और दहेज उत्पीड़न की रिपोर्ट दर्ज करा दूंगी. सभी जेल में दिखाई दोगे. इज्जत नीलाम होगी अलग से.’’धमकी से डर कर राघवेंद्र ने अनीता को उस की मरजी और हाल पर छोड़ दिया. अनीता ने पति को तो दबाव में ले लिया पर ससुराल वालों को नहीं दबा सकी. वह घर में ऐसी औरत को भला कैसे बरदाश्त करते जो बदचलन हो.

लिहाजा सब मिल कर उसे घर से निकालने पर तुल गए.अनीता जानती थी कि अकेली औरत कटी पतंग की तरह होती है. नाम के लिए ही सही, लेकिन पुरुष साथ हो तो वह अनेक मुसीबतों से सुरक्षित रहती है. अपनी इसी सोच के तहत अनीता घर से तो निकली पर पति को भी साथ ले गई. अनीता पति के साथ कानपुर आ गई और किदवईनगर में किराए का कमरा ले कर रहने लगी. वहां राघवेंद्र दादानगर स्थित एक फैक्ट्री में नौकरी करने लगा. अनीता ने भी नौकरी ढूंढ ली और काम पर जाने लगी.

छोटीछोटी उन नौकरियों में वेतन भी मामूली था और मेहनत अधिक थी. अत: आमदनी बढ़ाने के लिए अनीता ने किसी दूसरे काम की तलाश शुरू कर दी. इसी तलाश में अनीता एक कालगर्ल रैकेट की सरगना से जा टकराई. सरगना ने जौब दिलाने का झांसा दे कर अनीता को अपने जाल में फंसाया और फिर देहव्यापार के धंधे में उतार दिया. अनीता खूबसूरत और जवान थी. उस की डिमांड अधिक होती थी, अत: वह खूब पैसे कमाने लगी.राघवेंद्र प्राइवेट नौकरी करता रहा और अनीता देहव्यापार के गंदे तालाब की मछली बनी रही. हालांकि राघवेंद्र को पत्नी का धंधा कतई पसंद नहीं था, मगर वह उसे रोक नहीं पाता था. जब भी अनीता से कुछ कहता तो वह उसे डराधमका कर चुप रहने को विवश कर देती थी. तब राघवेंद्र खून का घूंट पी कर रह जाता.

अनीता ने जब जिस्मफरोशी के धंधे के सभी गुर सीख लिए तो उस ने अपना अलग रैकेट बना लिया. उस के रैकेट में पेशेवर कालगर्ल्स थीं. इस के अलावा वह अपने स्तर से नई कालगर्ल भी तैयार करती थी. इस के लिए अनीता गरीब मजबूर व सुंदर लड़कियों को टारगेट करती. वह उन्हें रुपयों या फिर नौकरी दिलाने का लालच दे कर अपने जाल में फंसाती फिर देहव्यापार में उतार देती. शर्मनाक बात तो यह रही कि अनीता ने अपनी जवान व खूबसूरत सगी बहनों को भी देह के धंधे में उतार दिया. उन के पति ही उन की दलाली करने लगे.

अनीता घर में ही देहव्यापार करती थी. वह ग्राहक से फुल नाइट के 5 से 10 हजार रुपए लेती थी. जो ग्राहक कालगर्ल को बाहर ले जाना चाहते थे, उन्हें अतिरिक्त चार्ज देना पड़ता था. कालगर्ल का सारा खर्चा कस्टमर को ही देना पड़ता था.पुलिस के भय से अनीता किसी एक मकान में लंबे अरसे तक नहीं रहती थी. स्थानीय पुलिसकर्मियों से वह सांठगांठ बनाए रखती थी. 2019 के जनवरी महीने में अनीता ने चकेरी थाने के श्यामनगर क्षेत्र के रामपुरम में एक मकान 15 हजार रुपए महीने के किराए पर लिया. यह मकान अजय सिंह का था.

इसी किराए के मकान में अनीता अपना हाईप्रोफाइल सैक्स रैकेट का संचालन करने लगी थी. उस ने अपना दायरा भी बढ़ा लिया था. वह शहर के बाहर भी कालगर्ल्स भेजने लगी थी. अनीता ने शहर के बाहर कालगर्ल भेजने का 25 हजार रुपया तय कर रखा था. वह वाट्सऐप, फेसबुक के जरिए भी ग्राहकों को युवतियों की फोटो भेज कर सौदा तय करती थी और ग्राहकों की डिमांड पर दूसरे शहरों से भी कालगर्ल्स बुलाती थी.बड़े शहरों के जिस्मफरोशी के दलाल उस के संपर्क में थे. अनीता का पति राघवेंद्र भी अब पत्नी के अनैतिक धंधे में शामिल हो गया था. पैसों का लेनदेन वही करने लगा था.

रामपुरम में अनीता का धंधा खूब फलफूल रहा था कि पड़ोसियों की नजर उस के धंधे पर पड़ गई. उन्होंने इस की जानकारी आईजी मोहित अग्रवाल को दी और उस के सैक्स रैकेट का भंडाफोड़ हो गया.
पुलिस छापे में पकड़ी गई अंकिता, अनीता की सगी बहन थी. वह अपने पति आशुतोष झा के साथ नौबस्ता थाना क्षेत्र के पशुपतिनगर में रहती थी. वहीं पर एक मंदिर में दोनों की मुलाकात हुई, जो बाद में प्यार में बदल गई. तब अंकिता ने आशुतोष के साथ प्रेम विवाह किया था. आशुतोष मधुबनी, बिहार का रहने वाला था.आशुतोष से शादी करने के बाद अंकिता पशुपतिनगर में रहने लगी. आशुतोष प्राइवेट नौकरी करता था. इस नौकरी से वह न तो अपनी जरूरतें पूरी कर पाता था और न ही अंकिता की ख्वाहिशें. 2-3 सालों में ही प्यार का नशा उतर गया था और वे दोनों आर्थिक परेशानी से जूझने लगे थे. अंकिता सदैव चिंताग्रस्त रहने लगी थी.

जिगरी दोस्त ने कुछ इस तरह से रची ‘दृश्यम’ की कहानी – भाग 3

वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की मौजूदगी में साहिब खान उर्फ बंटी से पूछताछ की गई तो मुनव्वर के परिवार के 6 लोगों की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

मुनव्वर हसन मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला मुजफ्फरनगर का रहने वाला था. वह पिछले 15 सालों से उत्तरी दिल्ली के बुराड़ी में रह रहा था. उस का प्रौपर्टी डीलिंग का धंधा अच्छाखासा चल रहा था. अकसर वह विवादित और झगड़े वाली प्रौपर्टी ही खरीदता था. इस तरह की प्रौपर्टी में उसे अच्छा मुनाफा होता था. साहिब खान उर्फ बंटी से उस की लगभग 8 साल पहले मुलाकात हुई थी. उस ने 8 साल पहले मुनव्वर की मार्फत बुराड़ी में एक प्लौट खरीदा था. इस के बाद बंटी का मुनव्वर के साथ उठनाबैठना हो गया था.

बंटी मूलरूप से मेरठ का रहने वाला था और वह थोड़ा धाकड़ किस्म का आदमी था. चूंकि दोनों एक ही इलाके के रहने वाले थे, इसलिए जल्द ही दोनों के बीच गहरी दोस्ती हो गई. मुनव्वर को लगा कि अगर बंटी को अपना पार्टनर बना ले तो धंधा अच्छा चल सकता है. इस संबंध में मुनव्वर ने बंटी के पिता से बात की तो उन्होंने बंटी को उस के साथ पार्टनरशिप में प्रौपर्टी का काम करने की इजाजत दे दी. इस के बाद मुनव्वर और बंटी पार्टनरशिप में धंधा करने लगे. कुछ ही दिनों में बंटी मुनव्वर का विश्वासपात्र बन गया.

बुराड़ी के कई प्लौटों, अपार्टमेंट और मकानों पर अवैध कब्जा करने में बंटी ने मुनव्वर का साथ दिया. इस काम के लिए वह कई बार अपने इलाके के बदमाशों को भी लाया. दबंग भूमाफिया छवि के कारण मुनव्वर का पूरे इलाके में खौफ था. लोग उस से डरते थे. कोई भी भला आदमी उस से पंगा नहीं लेना चाहता था. मुनव्वर ने अपनी इसी दबंगई के चलते करोड़ों रुपए की संपत्ति अर्जित कर ली थी.

अपनी दबंगई को भुनाने के लिए उस ने सन 2009 में दिल्ली के बादली विधानसभा क्षेत्र से बीएसपी के टिकट पर चुनाव लड़ा. वह चुनाव तो नहीं जीत सका, पर उस की राजनैतिक गलियारे में पैठ बन गई.  अब उस का रुतबा और ज्यादा बढ़ गया. बंटी उस का ऐसा दोस्त था, जो साए की तरह उस के साथ रहता था. इलाके में दोनों की जोड़ी मशहूर थी.

कभीकभी आदमी को उन्हीं लोगों से मात मिल जाती है, जिन पर वे आंख मूंद कर विश्वास करते हैं. उसी तरह बंटी भी आस्तीन का सांप निकला. लेकिन इस की शुरुआत मुनव्वर ने ही की थी. दरअसल एक बार मुनव्वर ने बंटी से 20 लाख रुपए लिए. बारबार मांगने के बावजूद मुनव्वर उस के पैसे नहीं लौटा रहा था. इस के अलावा मुनव्वर ने बंटी के एक प्लौट पर भी कब्जा कर लिया था.

बंटी जब भी उस से अपने पैसे मांगता, वह उसे अंजाम भुगतने की धमकी दे कर चुप करा देता था. मुनव्वर के इस व्यवहार से बंटी परेशान हो चुका था. 20 लाख रुपए कोई छोटी रकम नहीं होती, जो वह छोड़ देता. वह अकसर यही सोचता कि मुनव्वर से अपने पैसे कैसे वसूल करे? मुनव्वर की इन्हीं हरकतों से बंटी के मन में उस के लिए नफरत पैदा हो गई, पर वह दिखावे के तौर पर उस का और उस के परिवार का वफादार बना रहा.

उसी बीच 19 जनवरी, 2017 को मुनव्वर दुष्कर्म के आरोप में जेल चला गया. इस के बाद बंटी ही उस के परिवार की देखरेख करता रहा. वह भी पत्नी और एक बच्चे के साथ बुराड़ी में ही रहता था. वह अपने परिवार के साथसाथ मुनव्वर की बीवी और 4 बच्चों का हर तरह से खयाल रख रहा था. यही नहीं, वह मुनव्वर के केस की पैरवी भी कर रहा था.

एक दिन बंटी अपने औफिस में अकेला बैठा था, तभी उस के दिमाग में आया कि उस ने तो मुनव्वर को बड़ा भाई मानते हुए पूरी ईमानदारी से उस का साथ दिया, पर मुनव्वर ने उस की वफा का ऐसा सिला दिया, जिसे वह भुला नहीं पा रहा है.

उसे पता ही था कि मुनव्वर के पास दो, ढाई करोड़ रुपए की संपत्ति है. उसी समय उस के मन में लालच आ गया कि अगर मुनव्वर और उस के बीवीबच्चों को ठिकाने लगा दिया जाए तो उस की सारी संपत्ति पर उस का कब्जा हो सकता है. उस ने तय कर लिया कि वह उस धोखेबाज के साथ ऐसा ही करेगा.

मुनव्वर जेल में था. उस के बाहर आने से पहले ही वह उस की पत्नी और बच्चों को इस तरह ठिकाने लगाना चाहता था कि किसी को भी उस पर शक न हो. बंटी ने मल्टीप्लेक्स में फिल्म ‘दृश्यम’ देखी थी. अचानक उस फिल्म की कहानी याद आ गई. इसी फिल्म की कहानी के आधार पर उस ने मुनव्वर के परिवार की हत्या कर शवों को ठिकाने लगाने का विचार किया.

इस के बाद बंटी ने यह फिल्म कई बार देखी. औफिस में जब भी वह अकेला होता, यही फिल्म देखता. वह एक खौफनाक साजिश रचने लगा. आखिर उस ने एक फूलप्रूफ योजना बना डाली. योजना में उस ने अपने दोस्त दीपक और 5 पेशेवर हत्यारों फिरोज, जुल्फिकार, जावेद, उस के भाई वाहिद और जसवंत को शामिल किया. ये सारे बदमाश मेरठ के रहने वाले थे.

बंटी के पिता की मेरठ में लोहा और स्टील के गेट वगैरह बनाने का कारखाना है. मेरठ के समोली गांव का जुल्फिकार उस के पिता के यहां वेल्डिंग का काम करता था. वह पेशेवर शूटर था. उस के काम छोड़ने पर उसी के गांव का रहने वाला फिरोज वहां वेल्डिंग का काम करने लगा था. वह भी बदमाश था. इन्हीं दोनों के जरिए बंटी की अन्य बदमाशों से जानपहचान हुई थी. बंटी कई बार इन्हें प्रौपर्टी पर कब्जा करने के लिए दिल्ली भी लाया था. 3 लाख रुपए में बंटी ने उन से डील फाइनल कर दी.

योजना को कैसे अंजाम देना है, यह बात बंटी ने पहले ही उन्हें बता दी थी. 20 अप्रैल, 2017 को मुनव्वर के बच्चों की परीक्षाएं समाप्त हुईं. सोनिया ने जब से मुनव्वर से लवमैरिज की थी, तब से उस के घर वाले उस से खफा थे. कभीकभार वह अपनी बहन और मां से फोन पर बातें कर लेती थी.

21 अप्रैल को बंटी अपनी एसएक्स-4 कार से सोनिया उर्फ इशरत को उस की बहन से मिलाने सहारनपुर ले गया. इशरत अपनी जवान बेटियों अर्शिता उर्फ अर्शी और आरजू को घर पर नहीं छोड़ना चाहती थी, इसलिए दोनों बेटियों को भी साथ ले गई थी.

बहन से मिलने के बाद इशरत 22 अप्रैल को दिल्ली लौट रही थी, तभी रास्ते में बंटी को दीपक मिला. बंटी ने उसे भी कार में बैठा लिया. रात साढ़े 11 बजे के करीब सभी दौराला के समोली गांव पहुंचे. वहीं से वह कार को अख्तियारपुर के जंगल में 3 किलोमीटर अंदर ले गया.

वैसे तो इशरत और उस के बच्चे बंटी पर विश्वास करते थे. इस के बावजूद इशरत ने जब कार को जंगल में ले जाने की वजह पूछी तो बंटी ने कहा कि इस समय हाईवे पर बहुत जाम मिलता है, इसलिए शौर्टकट से चल रहा है. इस पर इशरत चुप हो गई.

ओयो होटल का रंगीन अखाड़ा – भाग 2

रात को करीब 10 बजे अजय का अपहरण करने वालों से सुषमा की ये आखिरी बात थी. इसी के बाद से सुषमा की जान गले में अटकी थी और वह पूरी रात बेचैनी से घर के भीतर टहलती रही. उसे बारबार लग रहा था कि कहीं कोई वाकई उस की एकएक गतिविधि पर नजर तो नहीं रख रहा.

सोचते-सोचते रात आंखोंआंखों में बीत गई. आखिरकार सुषमा ने सुबह अपने पति के बौस को फोन कर के सारी बात बताई. उन्होंने कहा कि वह घर में रहें, कुछ ही देर में पुलिस पहुंच जाएगी.

ठीक वैसा ही हुआ, जैसा अजय के बौस ने कहा था. सुषमा का घर जिस इलाके में है, वह सैंट्रल नोएडा पुलिस के अंडर में आता है. कुछ ही देर में उस के घर की डोरबैल बजी, उस ने दरवाजा खोला तो सादे लिबास में नोएडा पुलिस के एडीशनल कमिश्नर लव कुमार, सैंट्रल नोएडा पुलिस डीसीपी राजेश कुमार सिंह, एडीशनल कमिश्नर रणविजय सिंह, एसीपी विमल कुमार सिंह और सेक्टर 49 थाने के एसओ सुधीर कुमार सिंह सामने खड़े थे.

दरअसल, सुषमा ने जब अपने पति के बौस को अजय के किडनैप होने की जानकारी और इस की एवज में फिरौती मांगने की बात बताई तो डीआरडीओ की तरफ से नोएडा के कमिश्नर आलोक सिंह को फोन कर के इस मामले में गोपनीय ढंग से काम कर के जल्द से जल्द अजय प्रताप सिंह को अपहर्त्ताओं के कब्जे से मुक्त कराने को कहा गया.

डीआरडीओ का एक्शन

डीआरडीओ देश के सुरक्षा उपकरणों व प्रतिष्ठानों से जुड़ा ऐसा संगठन है जो रक्षा मंत्रालय के अधीन काम करता है. अजय प्रताप सिंह इसी संस्था से जुड़े वैज्ञानिक थे. उन के पास संस्था से जुड़ी संवेदनशील जानकारियां भी रहती थीं.

इसलिए जैसे ही पुलिस कमिश्नर को यह जानकारी मिली, उन्होंने एडिशनल कमिश्नर लव कुमार को सारी जानकारी दे कर बेहद गोपनीय ढंग से अजय प्रताप को अपहर्त्ताओं के कब्जे से मुक्त कराने का औपरेशन शुरू करने का आदेश दिया.

इस के बाद लव कुमार ने तड़के ही तमाम अधिकारियों की आपात बैठक बुलाई और सभी अफसरों को सादे कपड़ों में अजय प्रताप के घर पहुंचने को कहा.

अधिकारियों ने अपना परिचय देने के बाद जब सुषमा से अजय प्रताप सिंह के अपहरण से जुड़ी सारी जानकारियां मांगी तो उन्होंने वह पूरा घटनाक्रम बयान कर दिया, जो अब तक हुआ था.

पुलिस ने सुषमा से वे दोनों नंबर हासिल कर लिए, जिन पर पहले पति अजय प्रताप से बात हुई थी और दूसरी बार अपहर्त्ता ने फोन कर के रकम की मांग की थी. सुषमा वर्मा से पुलिस ने एक लिखित शिकायत भी ले ली. सादे लिबास में पुलिस के कुछ लोगों और महिला पुलिस की कुछ तेजतर्रार पुलिसकर्मियों को सुषमा के पास छोड़ कर पुलिस टीम वापस लौट गई.

सुषमा की शिकायत पर उसी दिन थाना 49 पर भादंसं की धारा 364ए के तहत फिरौती के लिए अपहरण का मामला दर्ज कर लिया गया.

डीसीपी राजेश कुमार सिंह ने एडिशनल डीसीपी रणविजय सिंह की निगरानी में एक विशेष टीम का गठन कर दिया. एसीपी विमल कुमार सिंह के नेतृत्व में गठित इस टीम में थाना सेक्टर 49 के थानाप्रभारी सुधीर कुमार सिंह के अलावा एसआई विकास कुमार, महिला एसआई प्रीति मलिक, हैड कांस्टेबल प्रभात कुमार, जय विजय, कांस्टेबल सुबोध कुमार, सुदीप कुमार,अंकित पंवार और महिला कांस्टेबल रेनू यादव को शामिल किया गया.

इस के अलावा दूसरी स्टार टू टीम के एसआई शावेज खान तथा जोन फर्स्ट की सर्विलांस टीम के एसआई नवशीष कुमार को शामिल किया गया.

सभी टीमों को बता दिया गया था कि मामला बेहद संवेदनशील है, इसलिए बिना विलंब किए और बिना किसी को भनक लगे सावधानी से औपरेशन को अंजाम देना है.

गठित की गई टीमों में काम का बंटवारा कर दिया गया कि किसे इस औपरेशन में क्या भूमिका निभानी है.

एडिशनल डीसीपी रणविजय सिंह ने गठित की गई टीमों के साथ कोऔर्डिनेशन का जिम्मा खुद संभाला लिया. सर्विलांस टीम ने सुषमा वर्मा से मिले दोनों मोबाइल नंबरों के साथ अजय प्रताप सिंह के नंबर की काल डिटेल्स निकाली और तीनों नंबरों को सर्विलांस पर लगा कर निगरानी शुरू कर दी.

स्टार टू की टीम ने फिरौती के लिए अपहरण करने वाले बदमाशों की धरपकड़ और उन के ठिकानों पर छापेमारी का काम शुरू कर दिया. जबकि इस मामले के जांच अधिकारी थानाप्रभारी सुधीर कुमार सिंह ने अपने थाने की टीम के साथ सर्विलांस टीम से मिल रही जानकारी के आधार पर धरपकड़ शुरू कर दी.

सर्विलांस टीम को पता चला कि शाम को 5 बजे के बाद जब अजय प्रताप सिंह का फोन बंद हुआ था, तो उस से पहले उन्होंने आखिरी बार 3 नंबरों पर बात की थी. उन सभी नंबरों की लोकेशन सेक्टर 41 में आगाहपुर के पास बने ओयो होटल की पाई गई. इतना ही नहीं, फोन बंद होते समय अजय प्रताप के फोन की लोकेशन भी पुलिस को इसी होटल की मिली.

पुलिस को मिली राह

जानकारी बेहद महत्त्वपूर्ण थी, लेकिन इस पर ठोस काररवाई करने से पहले अधिकारी यह पुष्टि कर लेना चाहते थे कि उक्त होटल से अपहरण करने वालों का कोई वास्ता है या नहीं. क्योंकि अगर सर्विलांस के आधार पर वहां छापा मारा जाता और अजय प्रताप नहीं मिलते तो उन की जान को खतरा हो सकता था.

लिहाजा अधिकारियों ने एसओ सुधीर कुमार की टीम के एक तेजतर्रार हैड कांस्टेबल जय विजय सिंह को फरजी ग्राहक बना कर ओयो होटल भेजा. जय विजय सिंह ने सेक्टर 41 के ओयो होटल में पहुंच कर वहां एक कमरा बुक कराया और खुद को काम के सिलसिले में पूर्वी उत्तर प्रदेश से आया हुआ बताया.

कमरा बुक करने के बाद जब जय विजय ने होटल में चल रही गतिविधियों की निगरानी शुरू की तो दूसरी मंजिल पर बने 2 कमरों के आसपास कुछ संदिग्ध गतिविधियां दिखीं.

जय विजय ने होटल की पार्किंग की छानबीन की तो वहां अजय प्रताप सिंह की वह होंडा सिटी कार भी खड़ी दिखाई दी, जिस का नंबर सुषमा वर्मा से मिला था.

जय विजय को जब यकीन हो गया कि हो न हो अजय प्रताप को ओयो होटल के अंदर ही छिपाकर रखा गया है तो उस ने अधिकारियों को सूचना दे दी.

रागिनी दूबे हत्याकांड : प्यार की शिकार बनीं रागिनी – भाग 2

सूचना पा कर थानेदार बृजेश शुक्ल पुलिस टीम के साथ अस्पताल पहुंच गए. रागिनी की हत्या की सूचना मिलते ही गांव वाले और जितेंद्र दूबे के जानने वाले अस्पताल पहुंचने लगे. उन का गुस्सा पुलिस वालों पर निकल रहा था. वे पुलिस मुर्दाबाद के नारे लगा रहे थे.

स्थिति को संभाल पाना पुलिस वालों के लिए मुश्किल हो रहा था. जैसेतैसे स्थिति पर काबू पाया जा सका. भीड़ को अलग कर के पुलिस ने कानूनी काररवाई शुरू कर दी. सब से पहले उन्होंने लाश का मुआयना किया. हत्यारों ने रागिनी के गले पर चाकू से वार कर के उसे मौत के घाट उतारा था.

थानेदार शुक्ल ने शव का पंचनामा भर कर उसे पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया. उस के बाद एकमात्र चश्मदीद गवाह सिया से हत्यारों के बारे में पूछताछ की. सिया हत्यारों को पहचाती थी. उस ने थानेदार को उन के बारे में सब कुछ बता दिया.

हत्यारे बजहां गांव के रहने वाले ग्राम प्रधान कृपाशंकर तिवारी का बेटा आदित्य तिवारी उर्फ प्रिंस, भतीजे सोनू तिवारी, नीरज तिवारी और दीपू यादव थे. चाकू से वार प्रिंस ने किया था और उस की मदद सोनू, नीरज और दीपू ने की थी.

सिया ने जो बयान पुलिस को दिया उस के अनुसार मामला कुछ इस तरह था. प्रधान का बेटा प्रिंस सालों से रागिनी को तंग कर रहा था. वह रागिनी से तथाकथित एकतरफा प्रेम करता था, लेकिन रागिनी उसे पसंद नहीं करती थी. रागिनी ने प्रिंस की हरकतों पर कोई तवज्जो नहीं दी, तो वह ओछी हरकतों पर उतर आया. वह रागिनी को रास्ते में आतेजाते छेड़ने लगा.

वह भद्देभद्दे कमेंट करता था. लेकिन रागिनी ने उसे पलट कर जवाब नहीं दिया. वह उस की हरकतों को बरदाश्त करती रही. पर जब पानी सिर के ऊपर से गुजरने लगा तो उस ने अपने घर वालों को प्रिंस की हरकतों के बारे में बता दिया.

बेटी की परेशानी सुन कर जितेंद्र को दुख भी हुआ और क्रोध भी आया. बात बेटी के मानसम्मान से जुड़ी थी. वह इतनी बड़ी बात को नजरअंदाज नहीं कर सकते थे. जितेंद्र उसी समय शिकायत ले कर ग्रामप्रधान कृपाशंकर तिवारी के घर जा पहुंचे.

कृपाशंकर घर पर ही मिल गया. जितेंद्र दूबे ने उस के बेटे की ओछी हरकतों का पिटारा उस के सामने खोल दिया. लेकिन प्रधान ने उन की शिकायत पर कोई ध्यान नहीं दिया, उलटे उन्हें ही डांटडपट कर वहां से भगा दिया. जितेंद्र अपना सा मुंह ले कर घर लौट आए.

जाहिर है इस का परिणाम उलटा ही निकलना था. शाम को आवारागर्दी कर के घर लौटे बेटे से कृपाशंकर ने पूछा कि बांसडीह के पंडित जितेंद्र तुम्हारी शिकायत ले कर आए थे. तुम उन की बेटी को आतेजाते छेड़ते हो, तंग करते हो.

इस पर प्रिंस ने सफाई दी कि यह सब झूठ है. मैं ने किसी के साथ कोई बदसलूकी नहीं की. मैं तो उस की बेटी को जानता तक नहीं, छेड़ने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता. पंडित मुझे बदनाम करने के लिए झूठ बोल रहा है.

उस समय प्रिंस ने पिता की आंखों में धूल झोंक कर खुद को बचा लिया. उस के पिता ने उस की बातों पर यकीन भी कर लिया. पैसे और ताकत के गुरूर में अंधे पिता को बेटे की करतूत दिखाई नहीं दी. इस के बाद प्रिंस को रागिनी मामूली सी लड़की लगने लगी.

गुस्से में उस ने रागिनी से बदला लेने की ठान ली. रागिनी ने यह बात अपने घर में क्यों बताई और उस का पिता जितेंद्र दूबे शिकायत ले कर उस के पिता के पास क्यों गया, दोनों ही बातें प्रिंस को कचोट रही थीं. आखिरकार प्रिंस ने वही किया, जो उस ने करने की ठान ली थी.

बहरहाल, थानेदार बृजेश शुक्ल ने जितेंद्र दूबे की तहरीर पर 5 नामजद आरोपियों आदित्य उर्फ प्रिंस, ग्रामप्रधान कृपाशंकर तिवारी, उन के दोनों भतीजों सोनू तिवारी व नीरज तिवारी तथा दीपू यादव के खिलाफ हत्या व छेड़छाड़ की धाराओं में मुकदमा दर्ज कर लिया.

मामला बेहद गंभीर और दिल दहला देने वाला था. दिनदहाड़े हुई घटना से पूरा इलाका थर्रा उठा था. एसपी सुजाता सिंह इस मामले को ले कर बेहद गंभीर थीं. उन्होंने अपराधियों को गिरफ्तार करने के सख्त आदेश दिए.

कप्तान का आदेश मिलते ही थानेदार बृजेश शुक्ल और उन की पुलिस टीम ने आरोपियों को गिरफ्तार करने के लिए कमर कस ली. फलस्वरूप जिले से सटे उन बाहरी इलाकों की चारों ओर से नाकाबंदी कर दी गई, जो दूसरे जिलों में जा कर खुलते थे.

अपराधियों को पकड़ने के लिए पुलिस मुस्तैद थी. जल्दी ही पुलिस को इस का लाभ भी मिल गया. बलिया से हो कर गोरखपुर जाने वाली रोड पर 2 आरोपी आदित्य तिवारी उर्फ प्रिंस और दीपू यादव उस समय पुलिस के हत्थे चढ़ गए जब वे जिला छोड़ कर गोरखपुर भाग रहे थे.

पुलिस दोनों गिरफ्तार अभियुक्तों को ले कर थाना बांसडीह रोड पहुंची और उन से रागिनी दूबे हत्याकांड की गहनता से पूछताछ की. पहले तो प्रधान के बेटे प्रिंस ने अपने पिता की ताकत की धौंस झाड़ी, अकड़ भी दिखाई, लेकिन पुलिस की अकड़ के सामने उस की अकड़ ढीली पड़ गई.

आखिरकार दोनों ने पुलिस के सामने अपने घुटने टेक दिए और अपना जुर्म कबूल कर लिया. बाकी के तीनों आरोपी मौके से फरार हो गए थे. यह 10 अगस्त, 2017 की बात है.

आदित्य तिवारी उर्फ प्रिंस और दीपू यादव से पुलिसिया पूछताछ और बयानों के आधार पर दिल दहला देने वाली घटना की जो कहानी सामने आई, वह मानव मन को झिंझोड़ देने वाली थी.

55 वर्षीय जितेंद्र दूबे मूलत: बलिया जिले के गांव बांसडीह के रहने वाले थे. उन का 6 सदस्यों का भरापूरा परिवार था. पतिपत्नी और  4 बच्चे, जिन में 3 बेटियां नेहा, रागिनी और सिया व 1 बेटा अमन था. जितेंद्र निजी व्यवसाय से अपने परिवार का भरणपोषण करते थे. उन का परिवार खुशहाल था और मजे से जी रहा था.

जितेंद्र दूबे ने अपने बच्चों में संस्कार, आदर्श और मानमर्यादा कूटकूट कर भरी थी. बांसडीह के लोग उन की बेटियों की मिसाल देते थे. उन की बेटियां न तो बेवजह किसी के घर उठतीबैठती थीं और न ही फालतू में गप्पें लड़ाती थीं.

अगले भाग में पढ़ें- प्रिंस को रागिनी को देखे बिना चैन नहीं मिलता था.

जिगरी दोस्त ने कुछ इस तरह से रची ‘दृश्यम’ की कहानी – भाग 2

मुनव्वर की किसी ने हत्या कर दी थी. वह लहूलुहान कमरे में पड़ा था. बंटी के चीखने की आवाज सुन कर पड़ोस के लोग आ गए. मुनव्वर की हत्या पर सभी हैरान थे कि इतने दबंग आदमी की हत्या किस ने कर दी? बंटी ने इस की खबर पुलिस कंट्रोल रूम को दी. कुछ ही देर में पुलिस कंट्रोल रूम की वैन आ पहुंची. सूचना पा कर थाना बुराड़ी के अतिरिक्त थानाप्रभारी नरेश कुमार भी पुलिस बल के साथ आ पहुंचे.

पुलिस ने क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम को भी बुला लिया था. टीम ने मौके से सबूत जुटा लिए. पुलिस ने काररवाई शुरू की. मुनव्वर को 3 गोलियां मारी गई थीं. उस के घर का सारा सामान यथावत था, इसलिए लूट की आशंका का कोई सवाल ही नहीं था. जिस तरह से उस पर गोलियां चलाई गई थीं, उस से यही लग रहा था कि हत्यारों का मकसद सिर्फ उस की हत्या करना था. उस की हत्या कर के वे वहां से चले गए थे.

उस बिल्डिंग में रहने वाले अन्य लोगों से बात की गई तो किसी ने भी गोली चलने की आवाज सुनने से इनकार कर दिया था. सूचना पा कर उत्तरी जिले के डीसीपी जतिन नरवाल भी आ गए थे. मौकामुआयना करने के बाद उन्होंने भी लोगों से मुनव्वर के बारे में जानकारी हासिल की.crime story in hindi

मुनव्वर के बीवीबच्चे पहले से ही गायब थे. अब उसे भी ठिकाने लगा दिया गया था. कहीं यह परिवार किसी की साजिश का शिकार तो नहीं हो गया, पुलिस अधिकारी आपस में इस बात पर चर्चा करने लगे. पुलिस ने मौके की जरूरी काररवाई कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. डीसीपी जतिन नरवाल ने इस मामले को सुलझाने के लिए एसीपी सिविल लाइंस इंद्रावती के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई. यह टीम अलगअलग दृष्टिकोण से केस की जांच करने में जुट गई.

चूंकि मुनव्वर दबंग प्रवृत्ति का आदमी था और ज्यादातर वह विवादित संपत्ति का सौदा करता था. इतना ही नहीं, वह अपनी दबंगई के बूते विवादित संपत्ति पर कब्जा भी कर लेता था.

उस पर जमीन पर कब्जा करने, अपहरण, हत्या के प्रयास, दुष्कर्म, आर्म्स एक्ट आदि के दरजन भर से ज्यादा मुकदमे चल रहे थे. अपनी दबंगई के बूते उस ने बुराड़ी, करावल नगर, स्वरूपनगर आदि में करीब 2 करोड़ की संपत्ति अर्जित कर रखी थी. पुलिस इस बात को ले कर भी चल रही थी कि कहीं दूसरे धर्म की लड़की से शादी करना तो उसे नहीं ले डूबा. इन के अलावा पुलिस पैसे के लेनदेन के ऐंगल को भी ध्यान में रख कर जांच कर रही थी.

हत्यारे ने मुनव्वर को उस के घर में ही मार दिया. उस की पत्नी और बच्चे महीने भर से गायब थे. यह दिमाग में आने लगा था कि कहीं उन्हें भी तो ठिकाने नहीं लगा दिया गया? मुनव्वर का सब से ज्यादा विश्वसनीय और करीबी दोस्त बंटी उर्फ साहिब खान ही था. वह उस का कारोबारी पार्टनर ही नहीं था, बल्कि उस के सुखदुख का साथी भी था. इस के अलावा उस का एक और दोस्त था दीपक.

पुलिस ने इन दोनों से यह जानने की कोशिश की कि मुनव्वर का किसी से कोई झगड़ा या रंजिश तो नहीं थी. बंटी ने बताया कि कई प्रौपर्टियों को ले कर झगड़े तो हुए, लेकिन उन में से किसी की इतनी हिम्मत नहीं कि वे मुनव्वर से ऊंची आवाज में भी बात कर सकें. उस ने बताया कि फूल सिंह के जिस मकान में वह रह रहा था, वह हिस्सा भी कब्जाया हुआ था.

पुलिस ने संतनगर की भगत सिंह कालोनी की गली नंबर-4 में रहने वाले मकान मालिक फूल सिंह से पूछताछ की. फूल सिंह ने बताया कि उस ने अपने दोस्त जगदीश के साथ मिल कर यह मकान बनाया था. मकान के फ्लोर उस ने अलगअलग बेच दिए थे. 5 लाख रुपए न देने पर जगदीश ने सैकेंड फ्लोर पर कब्जा कर लिया था. छत को ले कर दोनों के बीच विवाद चल रहा था.

बाद में जगदीश ने अपना हिस्सा एक वकील को बेच दिया था. वह वकील मुनव्वर का मामा था. मुनव्वर झगड़ालू और दबंग था. वकील मुनव्वर और बंटी से उसे धमकी दिलवा कर पूरे मकान पर कब्जा करने की कोशिश करने लगा. बाद में मुनव्वर ने ही अपने मामा के खरीदे मकान पर कब्जा कर लिया था.

फूल सिंह ने पुलिस को यह भी बताया कि मुनव्वर के पैरोल पर आने के बाद बंटी का उस के यहां बारबार आनाजाना लगा रहा. गेट खोलने को ले कर उस का बंटी से विवाद भी हुआ था. तब बंटी ने उसे जान से मारने की धमकी दी थी. उस ने बताया कि 20 मई, 2017 की सुबह करीब पौने 7 बजे 3 लोग आए. उन्होंने दरवाजा खटखटाया.

तब मुनव्वर ने आ कर गेट खोला. वे तीनों मुनव्वर के साथ ही ऊपर चले गए थे. बंटी उन तीनों से पहले मुनव्वर के पास आ चुका था. उसी समय वह तैयार हो कर तीसहजारी कोर्ट के लिए निकल गया था. शाम को जब वह घर लौटा तो घर के सामने पुलिस की गाडि़यां देख कर हैरान रह गया.

पुलिस को फूल सिंह निर्दोष लगा तो उसे घर भेज दिया. इस के बाद पुलिस ने बंटी और दीपक से अलगअलग पूछताछ की. बंटी ने इस बात से मना कर दिया कि वह 20 मई को सुबह मुनव्वर से मिलने उस के घर गया था. बंटी और दीपक के बयानों में काफी विरोधाभास था.

चूंकि बंटी ही मुनव्वर के बीवीबच्चों को ढूंढने की ज्यादा पैरवी कर रहा था और उस के बयान भी विरोधाभासी थे, इसलिए पुलिस को उसी पर शक होने लगा. पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया. उस के फोन की काल डिटेल्स निकलवा कर उस का अध्ययन किया तो पता चला कि अप्रैल, 2017 में बंटी का सहारनपुर और मेरठ जाना हुआ था. इस के अलावा उस की मेरठ के कुछ नंबरों पर खूब बातें हुई थीं.

जिन नंबरों पर उस की बातें हुई थीं, पुलिस ने उन नंबरों की भी काल डिटेल्स निकलवाई तो वे फोन नंबर आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों के पाए गए. इस के बाद पुलिस को बंटी पर ही संदेह हुआ. काल डिटेल्स के आधार पर बंटी से सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने ऐसा राज उगला, जिस के लिए पुलिस परेशान हो रही थी.crime story in hindi

बंटी ने स्वीकार कर लिया कि उस ने न केवल मुनव्वर की हत्या कराई है, बल्कि उस की पत्नी और बच्चों को भी जमींदोज कर दिया है. यानी मुनव्वर और उस के पूरे परिवार की हत्या कराने वाला कोई और नहीं, साहिब खान उर्फ बंटी ही निकला.

सच्चाई जान कर पुलिस अधिकारी भी हैरान रह गए. क्योंकि बंटी मुनव्वर का दोस्त ही नहीं, बल्कि बिजनैस पार्टनर भी था. डीसीपी जतिन नरवाल को जब पता चला कि बुराड़ी का मुनव्वर वाला मामला खुल गया है तो वह थाने आ पहुंचे. एसीपी इंद्रावती उन से पहले ही वहां पहुंच चुकी थीं.

हाईप्रोफाइल हसीनाओं का रंगीन खेल – भाग 1

उस दिन जनवरी, 2020 की 5 तारीख थी. आईजी मोहित अग्रवाल अपने कार्यालय में कानपुर शहर की कानूनव्यवस्था पर पुलिस अधिकारियों के साथ मीटिंग कर रहे थे. दरअसल, नागरिकता कानून को ले कर शहर में धरनाप्रदर्शन जारी थे, जिस से शहर की कानूनव्यवस्था बिगड़ती जा रही थी. इस बिगड़ती कानूनव्यवस्था को सुधारने के लिए ही उन्होंने पुलिस अधिकारियों को बुलाया था ताकि शहर में कोई हिंसक प्रदर्शन न हो और अमनचैन कायम रहे.

दोपहर 12 बजे मीटिंग समाप्त होने के बाद आईजी मोहित अग्रवाल ने अपनी समस्या समाधान के लिए आए आगंतुकों से मिलना शुरू किया. इन्हीं आगंतुकों में अधेड़ उम्र के 2 व्यक्ति भी थे, जो आईजी साहब से मिलने आए थे. अपनी बारी आने पर वे दोनों आईजी साहब के कक्ष में पहुंचे और हाथ जोड़ कर अभिवादन किया.

आईजी साहब ने उन पर एक नजर डाली. कुरसी पर बैठने का संकेत किया. इस के बाद उन से पूछा, ‘‘आप लोगों का कैसे आगमन हुआ? बताइए, क्या समस्या है?’’ तभी उन में से एक ने कहा, ‘‘सर, हम चकेरी थाने के श्यामनगर मोहल्ले में रहते हैं. हमारे घर के पास अजय सिंह का आलीशान मकान है. उस मकान में वह खुद तो नहीं रहते लेकिन उन्होंने मकान किराए पर दे रखा है. मकान की पहली मंजिल पर 2 अफसर रहते हैं पर भूतल पर जो किराएदार है, उस की गतिविधियां बेहद संदिग्ध हैं. उस के घर पर अपरिचित युवकयुवतियों का आनाजाना लगा रहता है. हम लोगों को शक है कि वह किराएदार अपनी पत्नी के सहयोग से सैक्स रैकेट चलाता है.

‘‘सर, हम लोग इज्जतदार हैं. इन लोगों के आचारव्यवहार का असर हमारी बहूबेटियों पर पड़ सकता है. इसलिए आप से विनम्र निवेदन है कि इस मामले में उचित कानूनी काररवाई करने का कष्ट करें.’’आईजी मोहित अग्रवाल ने आगंतुकों की बात गौर से सुनी और फिर उन्हें आश्वासन दिया कि वह इस सूचना की जांच कराएंगे. अगर सूचना सही पाई गई तो दोषियों के खिलाफ काररवाई की जाएगी.  ‘‘ठीक है, लेकिन सर हमारा नाम गुप्त रहना चाहिए वरना वे लोग हमारा जीना दूभर कर देंगे.’’ जाते समय उन में से एक बोला.आईजी मोहित अग्रवाल को आगंतुकों ने जो जानकारी दी थी, वह वाकई चौंकाने वाली थी. एकबारगी तो उन्हें उन की खबर पर विश्वास नहीं हुआ, पर इसे अविश्वसनीय समझना भी उचित नहीं था. अत: उन्होंने तत्काल एसपी (क्राइम) राजेश कुमार यादव को कार्यालय बुलवा लिया.

एसपी (क्राइम) राजेश कुमार यादव आईजी कार्यालय पहुंचे तो मोहित अग्रवाल ने उन्हें आगंतुकों द्वारा दी गई सूचना के बारे में बताया और कहा कि अगर सूचना की पुष्टि होती है तो दोषियों के खिलाफ जल्द काररवाई करें.  एसपी (क्राइम) राजेश कुमार यादव ने चकेरी थानाप्रभारी रणजीत राय को इस गुप्त सूचना की सत्यता लगाने के निर्देश दिए, तो थानाप्रभारी ने मुखबिरों को लगा दिया.उसी दिन शाम 5 बजे मुखबिरों ने थानाप्रभारी रणजीत राय को इस बारे में जो जानकारी दी, उस ने सूचना की पुष्टि कर दी.

उन्होंने बताया कि श्यामनगर क्षेत्र के रामपुरम में एचएएल अफसर का एक मकान है, जिस की देखरेख उस का बेटा अजय सिंह करता है.  इस मकान की पहली मंजिल पर पैरा मिलिट्री फोर्स के 2 अफसर रहते हैं. भूतल पर राघवेंद्र शुक्ला अपनी पत्नी अनीता के साथ रहता है. अनीता ही अपने पति के साथ मिल कर वहां सैक्स रैकेट का चलाती है. इस मकान में वह पिछले एक साल से रह रही है.

मुखबिरों से पुख्ता जानकारी मिलने की सूचना थानाप्रभारी ने तत्काल एसपी (क्राइम) राजेश कुमार यादव को दे दी. इस के बाद राजेश यादव ने सैक्स रैकेट का परदाफाश करने के लिए एक पुलिस टीम गठित की. इस टीम में उन्होंने सीओ (कलेक्टरगंज) श्वेता सिंह, थानाप्रभारी रणजीत राय, एसआई (क्राइम ब्रांच) डी.के. सिंह, अर्चना, कांस्टेबल अनूप कुमार, अनुज, मनोज, कविता, रीता आदि को शामिल किया.

5 जनवरी, 2020 को रात 8 बजे थानाप्रभारी रणजीत राय ने सीओ (कलेक्टरगंज) श्वेता सिंह के निर्देश पर अनीता शुक्ला के रामपुरम स्थित मकान पर छापा मारा. मकान के अंदर एक कमरे का दृश्य देख कर थानाप्रभारी वहीं ठिठक गए.

कमरे में एक महिला अर्धनग्न अवस्था में बिस्तर पर चित पड़ी थी. उस के साथ एक युवक कामक्रीड़ा में लीन था. पुलिस पर निगाह पड़ते ही युवकयुवती ने दरवाजे से भागने का प्रयास किया, पर दरवाजे पर खड़े पुलिसकर्मियों ने उन्हें दबोच लिया.दूसरे कमरे में 2 अन्य युवतियां सजीसंवरी बैठी थीं. शायद वे ग्राहक के आने के इंतजार में थीं. महिला दरोगा अर्चना ने उन्हें अपनी हिरासत में ले लिया. इसी समय 3 युवतियों तथा 2 युवकों ने मुख्य दरवाजे की ओर भागने का प्रयास किया, किंतु सीओ श्वेता सिंह व अन्य पुलिसकर्मियों ने उन्हें दबोच लिया.

इस तरह पुलिस छापे में सरगना सहित 6 युवतियां, 2 दलाल तथा एक ग्राहक पकड़ा गया. मकान की तलाशी ली गई तो वहां से कामवर्धक दवाएं, स्प्रे, कंडोम तथा अन्य आपत्तिजनक सामग्री के अलावा 4 मोबाइल फोन तथा कुछ नगदी भी बरामद हुई. पुलिस पकड़े गए युवकयुवतियों को थाना चकेरी ले आई.

जिस मकान में सैक्स रैकेट चलता था, उस का मालिक अजय सिंह था. संदेह के आधार पर पुलिस ने उसे भी थाने बुलवा लिया. अजय सिंह एक अफसर का बेटा था, अत: उसे छोड़ने के लिए थानाप्रभारी के पास रसूखदारों के फोन आने लगे.लेकिन इंसपेक्टर रणजीत राय ने जांचपड़ताल के बाद ही रिहा करने की बात कही. अजय सिंह ने भी स्वयं को निर्दोष बताया और कहा कि उस ने तो उन लोगों को मकान किराए पर दिया था. उसे सैक्स रैकेट की जानकारी नहीं थी.

सीओ श्वेता सिंह ने जिस्मफरोशी के आरोप में पकड़े गए युवकयुवतियों से पूछताछ की तो युवतियों ने अपना नाम अनीता शुक्ला, अंकिता झा, सरिता तिवारी, पूनम, नीलम तथा नेहा बताया. इन में अनीता शुक्ला सैक्स रैकेट की संचालिका थी. अंकिता तथा सरिता अनीता की सगी छोटी बहनें थीं. तीनों बहनें जिस्मफरोशी के धंधे में लिप्त थीं.युवकों ने अपने नाम राघवेंद्र शुक्ला, आशुतोष झा तथा सत्यम द्विवेदी बताए. इन में राघवेंद्र शुक्ला और आशुतोष झा सगे साढ़ू थे और अपनीअपनी पत्नियों के लिए दलाली करते थे. जबकि लालकुर्ती कैंट (कानपुर) का रहने वाला सत्यम द्विवेदी ग्राहक था.

चूंकि सैक्स रैकेट के सभी आरोपियों ने अपना जुर्म कबूल कर लिया था, अत: सीओ श्वेता सिंह ने स्वयं वादी बन कर अनैतिक देह व्यापार निवारण अधिनियम 1956 की धारा 3, 4, 5, 6, 7 के तहत अनीता शुक्ला, अंकिता झा, सरिता तिवारी, नीलम, पूनम, नेहा, राघवेंद्र शुक्ला, आशुतोष झा तथा सत्यम द्विवेदी के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी.इन सब से पुलिस ने जब पूछताछ की तो देह व्यापार में लिप्त युवतियों ने इस धंधे में आने की अपनी अलगअलग मजबूरी बताई.

कालगर्ल्स सरगना अनीता उन्नाव जिले के बेहटा गांव की निवासी थी. उस की 2 छोटी बहनें और थीं, जिन के नाम अंकिता तथा सरिता थे. इन 3 बहनों का एक इकलौता भाई भी था, जो बचपन में ही रूठ कर घर से चला गया था. वह दिल्ली में रहता है और दाईवाड़ा (नई सड़क) स्थित एक किताब की दुकान में काम करता है.अनीता खूबसूरत थी. उस ने जब जवानी की दहलीज पर कदम रखा तो उस के पैर डगमगा गए. उस का मन पढ़ाई में कम और प्यारमोहब्बत में ज्यादा रमने लगा. वह बीघापुर स्थित पार्वती इंटर कालेज में 10वीं में पढ़ती थी. कालेज आतेजाते ही उस की मुलाकात उमेश से हुई.

रागिनी दूबे हत्याकांड : प्यार की शिकार बनीं रागिनी – भाग 1

सदियों से अनचाही सी रवायत चली आ रही है कि धनदौलत और ताकत वाले अपने से कमतर लोगों को दबा कर रखते हैं और उन का मनमाना शोषण करते हैं. यह बात तब और घातक हो जाती है जब ऐसे लोग कमजोरों की बहूबेटियों पर नजरें जमाने लगते हैं. अमीर घर के आदित्य उर्फ प्रिंस द्वारा रागिनी की हत्या भी इसी सब की शृंखला थी. लेकिन कानून ने…

उस रोज सितंबर 2019 की 20 तारीख थी. बलिया के जिला एवं सत्र (विशेष) न्यायाधीश चंद्रभानु

सिंह को बलिया के बहुचर्चित रागिनी दूबे हत्याकांड में फैसला सुनाना था. दोनों पक्षों के वकीलों की दलीलें पूरी हो चुकी थीं. अभियुक्त कृपा शंकर तिवारी, आदित्य तिवारी उर्फ प्रिंस, नीरज तिवारी, सोनू तिवारी और दीपू यादव अदालत में मौजूद थे. उन के अलावा अदालत में फैसला सुनने वालों की भी भीड़ थी.

आखिरी दलीलों के बाद न्यायाधीश चंद्रभानु सिंह ने फैसला लिख कर सुरक्षित रख लिया था. जब उन्होंने फैसले की फाइल उठा कर सामने रखी तो अदालत में सन्नाटा छा गया.

न्यायाधीश चंद्रभानु सिंह ने अदालत में मौजूद पांचों अभियुक्तों पर उड़ती सी नजर डाल कर फैसला सुनाना शुरू किया, ‘अदालत में पेश किए गए तमाम सबूतों और 12 गवाहों की गवाहियों से पांचों अभियुक्त दोषी साबित हुए हैं. इसलिए यह अदालत दोषियों कृपाशंकर तिवारी, आदित्य तिवारी, नीरज तिवारी और सोनू तिवारी को उम्रकैद की सजा सुनाती है. उम्रकैद के साथसाथ इन चारों को 50-50 हजार का जुर्माना भी भरना होगा.’

एक पल रुक कर न्यायाधीश चंद्रभानु सिंह ने आगे कहा, ‘एक अभियुक्त दीपू यादव जो किशोर है का मामला अभी बाल न्यायालय में विचाराधीन है. पांचों मुजरिम जमानत पर चल रहे थे. तत्काल प्रभाव से पांचों के जमानत बांड निरस्त किए जाते हैं. अदालत 4 मुजरिमों को जेल भेजने का आदेश देती है. जबकि पांचवें दोषी दीपू यादव को बाल कारागर भेजा जाएगा.’

अदालत के आदेश का तत्काल पालन हुआ. पुलिस ने पांचों दोषियों को गिरफ्त में ले लिया, जिन में से कृपाशंकर तिवारी, आदित्य तिवारी, नीरज तिवारी और सोनू तिवारी को जिला कारागर भेज दिया गया, जबकि दीपू यादव को बालगृह भेजा गया.

जिस केस में इन लोगों को सजा सुनाई गई थी, वह 2 साल पहले 8 अगस्त, 2017 को हुआ था. उस दिन नाबालिग रागिनी दूबे के साथ जो कुछ हुआ वह दिल दहला देने वाला था. धनदौलत और गुरूर में अंधे बजहां ग्रामप्रधान कृपाशंकर तिवारी के बेटे आदित्य तिवारी उर्फ प्रिंस ने एकतरफा प्यार में अपने दोस्तों के साथ मिल कर नाबालिग रागिनी दूबे के साथ जो हैवानियत भरा खेल खेला था, उस से इंसानियत भी शरमा गई थी.

8 अगस्त, 2017 की सुबह रागिनी दूबे तैयार हो कर अपनी बहन सिया के साथ स्कूल जाने के लिए घर से निकली थी. इन बहनों का घर बलिया जिले की बांसडीह रोड थाने के अंतरगत आने वाले बांसडीह गांव में था. रागिनी और सिया सलेमपुर के भारतीय संस्कार स्कूल में पढ़ती थी. रागिनी 12वीं में थी और सिया 11वीं में.

दरअसल डर की वजह से रागिनी महीनों से स्कूल नहीं जा पाई थी. उसे बोर्ड की परीक्षा के फार्म के बारे में पता करना था कि फार्म कब भरा जाएगा. साथ ही गैरहाजिरी में छूटी पढ़ाई के बारे में भी जानना था. इसीलिए वह बहन के साथ स्कूल जा रही थी.

रागिनी और सिया अकसर पड़ोस के गांव बजहां के काली मंदिर के रास्ते से स्कूल जाती थीं. उस दिन भी वे बातें करती हुई उसी रास्ते स्कूल जा रही थीं. जब दोनों बहनें काली मंदिर के पास पहुंची, तो अचानक 2 बाइक आड़ेतिरछे उन के सामने आ कर खड़ी हो गईं. दोनों बाइकों पर 4 युवक सवार थे.

अचानक सामने आ कर रुकी बाइकों को देख रागिनी और सिया सकपका गईं, क्योंकि वे दोनों बाइकों से भिड़तेभिड़ते बची थीं.

उन युवकों की इस हरकत पर रागिनी को गुस्सा आया तो वह उन पर चिल्लाई, ‘‘दिखता नहीं है क्या तुम्हें? अंधे हो गए हो?’’

‘‘दिखता भी है और अंधा भी नहीं हूं. बोल, क्या कर लेगी?’’ गुरूर में डूबा युवक बाइक से उतरते हुए बोला, वह आदित्य तिवारी उर्फ प्रिंस था. उस ने आगे कहा, ‘‘जा तुझे जो करना है, कर लेना. मैं नहीं डरता. मैं यहां से नहीं हटूंगा.’’

‘‘देखो, शराफत से हमारा रास्ता छोड़ दो और हमें जाने दो.’’

‘‘अगर रास्ता नहीं छोड़ा तो क्या करोगी?’’ प्रिंस अकड़ते हुए बोला.

‘‘दीदी, क्यों बहस करती हो इन से. मां ने कहा था कि इन के मुंह मत लगना. इन के मुंह लगोगी तो कीचड़ के छींटे हम पर ही पड़ेंगे.’’ सिया ने रागिनी को समझाया.

‘‘देख, तेरी छोटी बहन कितनी समझदार है, कितनी समझदारी भरी बातें कर रही है.’’ प्रिंस ने रागिनी पर तंज कसा.

‘‘नहीं सिया नहीं, आज मैं रास्ता नहीं बदलूंगी और न ही इन कमीनों से डरूंगी. बहुत जी ली, इन चांडालों से डरडर के. इन कुत्तों ने मेरा जीना हराम कर रखा है. इन से जितना डरेंगे, ये हमें उतना ही डराएंगे. इन्हें इन की औकात दिखानी ही पड़ेगी.’’

‘‘ओ, झांसी की रानी.’’ प्रिंस गुर्राया, ‘‘किसे औकात दिखाएगी तू, मुझे. तुझे पता है किस से पंगा ले रही है. प्रधान कृपाशंकर तिवारी का बेटा हूं. प्रिंस नाम है मेरा. मिनटों में छठी का दूध याद दिला दूंगा. तेरी औकात क्या है कुतिया. मैं ने तुझे स्कूल जाने से मना किया था कि तू स्कूल नहीं जाएगी.’’

‘‘हां, तो.’’ रागिनी डरी नहीं बल्कि प्रिंस के सामने तन कर खड़ी हो गई, ‘‘तू होता कौन है, मुझे कहीं जाने से रोकने वाला?’’

‘‘दीदी, क्यों बेकार की बहस किए जा रही हो.’’ सिया बोली, ‘‘चलो यहां से.’’

‘‘नहीं सिया, तुम चुप रहो.’’ रागिनी ने सिया से कहा, ‘‘कहीं नहीं जाऊंगी यहां से. रोजाना मरमर के जीने से तो अच्छा है एक बार मर जाएं. मैं जिल्लत की जिंदगी नहीं जीना चाहती. इन दुष्टों को इन के किए की सजा मिलनी ही चाहिए.’’ रागिनी सिया पर चिल्लाई.

‘‘तूने दुष्ट किसे कहा कमीनी? ’’

‘‘तुझे, और किसे.’’

धीरेधीरे दोनों के बीच विवाद बढ़ता गया. बात बढ़ती देख प्रिंस के दोस्त अपनी बाइक से नीचे उतर आए और उस के पास जा खड़े हुए, सिया रागिनी को समझाने में लगी थी कि लड़कों से पंगा मत लो, यहां से चलो. लेकिन उस ने सिया की एक न सुनी.

गुस्से से लाल हुए प्रिंस ने आव देखा न ताव, रागिनी को जोर से धक्का मारा. वह लड़खड़ा कर जमीन पर जा गिरी. रागिनी अभी संभलने की कोशिश कर ही रही थी कि प्रिंस उस पर टूट पड़ा. प्रिंस को रागिनी से भिड़ता देख उस के तीनों साथी भी उस का साथ देने लगे.

सब ने मिल कर रागिनी को कब्जे में ले लिया. दोस्तों का साथ पा कर इंसान से हैवान बने प्रिंस ने कमर में खोंस कर रखे फलदार चाकू से रागिनी के गले पर ताबड़तोड़ वार कर के उसे मौत के घाट उतार दिया. इस के बाद चारों बाइक पर सवार हो कर भाग गए.

घटना इतनी अप्रत्याशित थी कि न तो रागिनी ही कुछ समझ पाई थी और न ही सिया. आंखों के सामने बहन की हत्या होते देख सिया के मुंह से दर्दनाक चींख निकल गई. उस की चीख इतनी तेज थी की गांव वाले घरों से बाहर निकल आए और उस ओर दौड़े, जिधर से चीखने की आवाज आई थी.

उन्होंने देखा एक लड़की खून से सनी जमीन पर मरी पड़ी थी. वहीं दूसरी लड़की उस के पास बैठी दहाड़ मार कर रो रही थी. गांव वालों को समझते देर नहीं लगी कि मृतका उस की बहन है.

दिन दहाड़े हुई इस लोमहर्षक घटना से लोग सन्न रह गए. उन्हें लगा कि वाकई बदमाशों के हौसले इतने बुलंद हो गए हैं कि उन्होंने राह चलते बहूबेटियों का जीना हराम कर दिया है. गांव वालों ने इस घटना की सूचना बांसडीह रोड थाने के थानाप्रभारी बृजेश शुक्ल को दे दी.

गांव वाले जानते थे कि मृतका का नाम रागिनी दूबे है. जो पास के गांव बांसडीह निवासी जितेंद्र दूबे की बेटी है. उन्होंने यह खबर जितेंद्र दूबे को भी दे दी. बेटी की हत्या की सूचना मिलते ही दूबे परिवार में कोहराम मच गया.

जितेंद्र दूबे तुरंत घटना स्थल की ओर दौड़े. उन के पीछेपीछे उन की पत्नी वंदना और बड़ी बेटी नेहा भी थीं. शव के पास बैठी सिया दहाड़ मारमार कर रो रही थी. रागिनी की रक्तरंजित लाश देख जितेंद्र का गुस्सा फूट पड़ा. जैसेतैसे उन्होंने खुद पर काबू पाया और बेटी को टैंपो में लाद कर जिला अस्पताल ले गए, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.

तभी जितेंद्र को बीते 2-3 दिन पहले की बात याद आ गई. कुछ शरारती तत्त्वों ने उन के घर आ कर धमकी दी थी कि अगर रागिनी स्कूल गई तो वह दिन उस की जिंदगी का आखिरी दिन होगा. आखिरकार हत्यारे अपने मंसूबों में कामयाब हो ही गए थे.

अगले भाग में पढ़ें- तुम उन की बेटी को आतेजाते छेड़ते हो, तंग करते हो.

जिगरी दोस्त ने कुछ इस तरह से रची ‘दृश्यम’ की कहानी – भाग 1

उत्तरी दिल्ली के बुराड़ी का रहने वाला मुनव्वर हसन काफी दबंग आदमी था. वह अपने दोस्त शाहिद उर्फ बंटी के साथ प्रौपर्टी डीलिंग का काम करता था. इसी धंधे से उस ने करोड़ों की संपत्ति जुटा रखी थी. चूंकि उस के पास अच्छाखासा पैसा था और इलाके में अच्छी जानपहचान थी, इसलिए वह राजनीति में कूद गया.

देखा जाए तो राजनीति में दबंग और आपराधिक प्रवृत्ति के लोग सफल हैं. यही सोच कर मुनव्वर हसन ने सन 2014 में दिल्ली के बादली विधानसभा क्षेत्र से बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा. चुनाव तो वह नहीं जीत सका, पर उस की तमाम नेताओं से अच्छी जानपहचान हो गई, जिस का फायदा वह अपने कारोबार में उठाने लगा.

मुनव्वर का कारोबार बहुत अच्छा चल रहा था, पर सन 2017 उस के और उस के परिवार के लिए परेशानी ही परेशानी ले कर आया. 19 जनवरी, 2017 को रेप के आरोप में उसे जेल जाना पड़ा. उस की पत्नी सोनिया उर्फ इशरत ने सोचा भी नहीं था कि उसे यह दिन भी देखना पड़ेगा. वैसे मुनव्वर हसन ने हिंदू लड़की से लवमैरिज की थी. सोनिया उत्तर प्रदेश के जिला सहारनपुर की रहने वाली थी. शादी के बाद सोनिया ने अपना नाम इशरत रख लिया.

सोनिया उर्फ इशरत की गृहस्थी की गाड़ी हंसीखुशी से चल रही थी. सोनिया मुनव्वर की 2 बेटियों आरजू और अर्शिता उर्फ अर्शी तथा 2 बेटों आकिब व शाकिब की मां थी. चूंकि मुनव्वर के पास पैसों की कमी नहीं थी, इसलिए सभी बच्चे अच्छे स्कूलों में पढ़ रहे थे.

मुनव्वर हसन के जेल जाने के बाद सोनिया उर्फ इशरत और उस के बच्चे परेशान हो गए. लेकिन उन की परेशानी की इस घड़ी में मुनव्वर के दोस्त साहिब खान उर्फ बंटी ने भरपूर साथ दिया. वह हर तरह से उन के परिवार की देखरेख कर रहा था. इतना ही नहीं, वह मुनव्वर के केस की पैरवी भी कर रहा था. वह उस से जेल में मिलने खुद तो जाता ही था, साथ ही उस की बीवीबच्चों को भी मिलवाने के लिए ले जाता था.

बंटी का संतनगर के कमल विहार में प्रौपर्टी डीलिंग का औफिस था. वह अपने औफिस पर रोजाना बैठता था. 24 अप्रैल को बंटी मुनव्वर के घर पहुंचा तो उस की बीवी और बच्चे गायब मिले. उस ने उस की बीवी इशरत को फोन किया तो वह भी बंद मिला. उस ने पड़ोसियों से पूछा कि दीदी दरवाजा खोल कर कहां चली गई. वह इशरत को दीदी कहता था. पड़ोसियों ने भी अनभिज्ञता जताई तो बंटी ने उस के दरवाजे पर ताला लगाया और अपने औफिस आ गया.crime story in hindi

बंटी शाम को फिर इशरत के घर पहुंचा तो दरवाजे पर उसे वही ताला लटका मिला, जो वह लगा गया था. वह 3-4 दिनों तक लगातार मुनव्वर के घर गया, हर रोज उसे वही ताला लगा मिला. बंटी ने इशरत और उस के बच्चों के रहस्यमय ढंग से गायब होने की जानकारी जेल में बंद मुनव्वर हसन को दी. मुनव्वर ने शंका व्यक्त की कि इशरत बच्चों को ले कर कहीं अपने मायके तो नहीं चली गई?

उस का मायका सहारनपुर में था. लेकिन यहां यह सवाल भी था कि यदि वह मायके जाती, घर को इस तरह खुला छोड़ कर क्यों जाती? बीवी और चारों बच्चों के गायब होने की बात सुन कर मुनव्वर परेशान हो उठा. पर उस समय वह जेल में था. बाहर होता तो अपने स्तर से उन की तलाश भी करता.

मुनव्वर का मन कर रहा था कि वह उसी समय जेल की चारदीवारी फांद कर बाहर निकल जाए और बीवीबच्चों को तलाशे. उस ने अपने दोस्त बंटी से कह दिया कि वह किसी भी तरह उसे अंतरिम जमानत पर जेल से बाहर निकलवाने की कोशिश करे. बंटी उस का जिगरी दोस्त था. वह वकील से मिल कर मुनव्वर को अंतरिम जमानत पर जेल से निकलवाने की कोशिश में लग गया.

बंटी की मेहनत रंग लाई और पत्नी तथा बच्चों को ढूंढने के लिए माननीय न्यायालय ने मुनव्वर को अंतरिम जमानत दे दी.

17 मई को मुनव्वर अपने दोस्त बंटी और दीपक के साथ घर पहुंचा तो उस समय रात के 11 बज रहे थे. अपना सूना घर देख कर उस की आंखों से आंसू टपक पड़े. बंटी और दीपक ने समझा कर भरोसा दिलाया कि वह दीदी और बच्चों को हर जगह ढूंढने की कोशिश करेंगे.

उस रात मुनव्वर को अपने ही घर में नींद नहीं आई. बीवीबच्चों को ले कर तरहतरह के खयाल उस के दिमाग में रात भर आते रहे. सुबह होने पर उस ने उस इलाके में रहने वाले अपने सभी जानने वालों से बीवीबच्चों के बारे में पूछा, पर कोई कुछ नहीं बता सका.

अचानक सभी के एक साथ गायब होने से मोहल्ले वाले भी हैरान थे. जब बीवीबच्चों की कहीं से कोई जानकारी नहीं मिली तो मुनव्वर हसन अपने दोस्त बंटी को ले कर 18 मई को थाना बुराड़ी पहुंचा और थानाप्रभारी को अपने पूरे परिवार के अचानक गायब होने की बात बताई. थानाप्रभारी ने उस की पत्नी और बच्चों की गुमशुदगी दर्ज करा कर उन की तलाश कराने का भरोसा दिया.crime story in hindi

थाने से लौट कर मुनव्वर अपने औफिस गया. वह अपने खास जानपहचान वालों से भी मिला. उस की पत्नी हिंदू थी. पत्नी के घर वाले उस से शादी करने को तैयार नहीं थे. मुनव्वर को इस बात की भी आशंका हो रही थी कि कहीं पत्नी के मायके वालों ने ही तो नहीं सब को गायब करा दिया?

उस की पत्नी सोनिया उर्फ इशरत का मायका सहारनपुर में था. मुनव्वर ने अपने विश्वासपात्र लोगों से इस बात का पता कराया तो जानकारी मिली कि मायके वालों को तो इशरत और बच्चों के गायब होने की जानकारी ही नहीं है.19 मई को पूरे दिन बंटी के साथ रह कर वह बीवीबच्चों की खोजता रहा.

अगले दिन यानी 21 मई की शाम को बंटी अपने औफिस में बैठा था. उस समय मुनव्वर उस के साथ नहीं था. उस ने मुनव्वर को फोन किया. फोन पर घंटी तो बज रही थी, पर मुनव्वर फोन उठा नहीं रहा था. बंटी ने थोड़ी देर बाद फिर उसे फोन किया. इस बार भी घंटी तो बजी, पर उस ने फोन नहीं उठाया. कई बार फोन करने के बाद भी जब उस ने फोन रिसीव नहीं किया तो वह उस के घर पहुंच गया. वह उस के कमरे में पहुंचा तो चीखता हुआ तुरंत बाहर आ गया.