
पिता और भाई के पकड़े जाने पर मोहर सिंह इंसपेक्टर उदयराज सिंह से मिला. उस ने उन्हें बताया कि जब वह अपने भांजे पूरन के साथ रचना को विदा करा कर ले आ रहा था तो रचना एक बैग लिए थी, उस में उस ने सफेद कपड़े लपेट कर कोई चीज रख रखी थी. उस बैग को उस ने किसी को छूने नहीं दिया था. उस बैग को ला कर उस ने घर की उस अलमारी में रख दिया था, जिस में 3 हजार रुपए और चांदी के कुछ गहने रखे थे. रचना के साथसाथ रुपए और गहने भी गायब हैं.
मोहर सिंह की बात सुन कर इंसपेक्टर उदयराज सिंह को यह सारा मामला रहस्यमय लगा. इसलिए रहस्य को उजागर करने की जिम्मेदारी उन्होंने एसएसआई शंभू सिंह को सौंप दी.
शंभू सिंह मामले की जांच शुरू करते उस के पहले ही बिहारी को पता चल गया कि जिस दिन से रचना गायब है, उसी दिन से उस का भांजा रामेश्वर भी गायब है. बिहारी को रचना और रामेश्वर के संबंधों का पता था ही, इसलिए उसे लगा कि रचना रामेश्वर के साथ ही भाग गई है.
उस ने यह बात घर वालों को बताई तो घर वाले कुछ लोगों को ले कर रामेश्वर के घर पहुंचे. तब रामेश्वर के घर वालों ने साफ कह दिया कि अब वे लोग रचना को भूल जाएं. इस से साफ हो गया कि रचना रामेश्वर के साथ भागी थी. तब उन्होंने पूरी बात जांच अधिकारी शंभू सिंह को बताई तो उन्होंने अपनी जांच का केंद्र रामेश्वर को बना लिया.
शंभू सिंह ने रामेश्वर का मोबाइल फोन सर्विलांस पर लगवा दिया. पता चला कि रामेश्वर घर वालों से लगातार बातें कर रहा है. इस से साफ हो गया कि रामेश्वर ने जो भी किया है, वह घर वालों को पता है. सर्विलांस से पुलिस ने पता कर लिया कि रामेश्वर भोपाल में है.
शंभू सिंह ने रामेश्वर के 2 भाइयों को तो हिरासत में ले ही लिया था, इंसपेक्टर उदयराज सिंह ने एसआई चंद्रभान के नेतृत्व में 2 सिपाही तथा एक महिला सिपाही पवित्रा शर्मा की टीम को भी भोपाल रवाना कर दिया. भोपाल में रामेश्वर और रचना कहां रह रहे हैं, यह पता लगाने में उन्हें ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी.
दरअसल, रामेश्वर रचना के साथ जिस मकान में रह रहा था, वह एक सिपाही ब्रजेश कुमार का था. रचना की हरकतों से ब्रजेश कुमार को संदेह हो गया था कि यह ये दोनों घर से भागे हुए हैं. कमरा किराए पर देते समय उस ने रामेश्वर से उस के बारे में पूरी जानकारी ले ली थी, इसलिए उस ने मथुरा पुलिस को उन के वहां होने की जानकारी दे दी थी.
मथुरा से गई पुलिस टीम ने भोपाल पुलिस की मदद से सिपाही ब्रजेश कुमार के घर छापा मारा. रामेश्वर तो भागने में सफल हो गया, लेकिन रचना को पुलिस ने पकड़ लिया. शायद रामेश्वर को संदेह हो गया था.
21 अक्तूबर, 2014 को पुलिस रचना को थाना गोवर्धन ले आई. जब रचना के आने की जानकारी लोगों को हुई तो उस की एक झलक पाने के लिए वहां भीड़ इकट्ठा हो गई. थाने में की गई पूछताछ में रचना ने रामेश्वर के साथ भागने की जो कहती सुनाई, वह इस प्रकार थी.
रचना रामेश्वर से प्यार करती थी और उसी से शादी भी करना चाहती थी. लेकिन जब उस की शादी बिहारी से हो गई तो उस ने सोचा कि शायद उस के नसीब में बिहारी ही था. संयोग से बिहारी रामेश्वर का मामा था. शादी के बाद रचना ने सोचा था कि अब वह रामेश्वर से बात नहीं करेगी. लेकिन लगातार मिलते रहने की वजह से रामेश्वर ने उस के दिल में फिर वही जगह बना ली, जो पहले थी.
रामेश्वर और रचना को एकदूसरे से चिपके देख कर बिहारी पत्नी के साथ मारपीट करने लगा. परेशान हो कर उस ने रामेश्वर के साथ भाग जाने का फैसला कर लिया. पकड़े जाने के डर से उस ने लोगों को भ्रमित करने के लिए नागिन बनने का ड्रामा रचा था.
पूरी योजना बना कर रामेश्वर ने एक संपेरे से नागिन खरीदी. उसे छोड़ कर वे भाग गए. बाद में पता चला कि वह नागिन नहीं, नाग है. उसी की वजह से बात पुलिस तक पहुंची.
पूछताछ के बाद पुलिस ने रचना को अदालत में पेश किया, जहां मजिस्ट्रेट के सामने उस के बयान हुए. चूंकि उस ने ऐसा कोई अपराध नहीं किया था कि उसे जेल भेजा जाता, इसलिए मजिस्ट्रेट के आदेश पर उसे मांबाप के हवाले कर दिया गया. पुलिस को अब रामेश्वर की तलाश है. अब देखना यह है कि रचना की आगे की जिंदगी पति के साथ बीतती है या प्रेमी के साथ.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
रचना और रामेश्वर इसी निश्चिंतता का फायदा उठा रहे थे. लेकिन रचना को भगा ले जाना रामेश्वर के लिए आसान नहीं था. रचना को भगा कर ले जाने से एक तो उस के ननिहाल वाले दुश्मन बन जाते, दूसरे पकड़े जाने पर वह जेल भी जा सकता था.
रचना और रामेश्वर के प्रेमसंबंधों से रचना की ससुराल वाले पूरी तरह बेखबर थे. वे मामी भांजे के इस संबंध के बारे में सोच भी नहीं सकते थे. रचना और रामेश्वर ने एक होने की जो योजना बनाई थी, धीरेधीरे वह सफलता की ओर बढ़ रही थी. रचना ससुराल वालों को लगातार यह विश्वास दिलाने की कोशिश कर रही थी कि वह पूर्व जन्म में नागिन थी. इसलिए नाग उस के सपनों में आते हैं.
रचना जल्दी से जल्दी रामेश्वर के साथ कहीं दूर निकल जाना चाहती थी. वह हमेशा इसी उधेड़बुन में लगी रहती थी, इसलिए उस का किसी काम में मन नहीं लगता था. उस के इस रवैए से परेशान हो कर अकसर सास बिहारी से शिकायत करती. तब बिहारी रचना को डांटता. लेकिन रचना पर इस सब का कोई असर नहीं हो रहा था.
रचना की सास देखती थी कि जब भी उस का नवासा रामेश्वर घर आता है, वह रचना के आगेपीछे ही घूमता रहता है. यह बात उसे अच्छी नहीं लगती थी, इसलिए एक दिन उस ने टोका, ‘‘रामेश्वर, तू कोई कामधंधा क्यों नहीं करता. इधरउधर बेमतलब घूमता रहता है.’’
‘‘नानी, आप चिंता न करें, एक दिन मैं ऐसा काम करूंगा कि आप हैरान रह जाएंगी.’’ रामेश्वर ने कहा.
रचना और रामेश्वर की मुलाकातें चोरीछिपे होती थीं. लेकिन उन के बातव्यवहार, हावभाव और हरकतों से घर वालों को संदेह होने लगा था. इस के बावजूद कोई उन पर नजर नहीं रख रहा था. सभी को लगता था कि दोनों हमउम्र हैं और उन का हंसीमजाक का रिश्ता है, इसलिए थोड़ा खुल गए हैं.
लेकिन एक दिन दोपहर में बिहारी ने रचना और रामेश्वर को जिस हालत में देखा, वह हैरान करने वाला था. रचना रामेश्वर की बांहों में समाई थी. संदेह तो पहले से ही था, उस दिन अपनी आंखों से पत्नी को भांजे की बांहों में देख कर बिहारी के शरीर में आग लग गई. वह रामेश्वर की ओर लपका, लेकिन वह भाग खड़ा हुआ. इस के बाद बिहारी ने अपना सारा गुस्सा रचना पर उतार दिया.
पति के पिटने के बाद रचना के प्यार का जुनून कम होने के बजाय पहले से ज्यादा बढ़ गया. पत्नी की घिनौनी हरकत बिहारी घर वालों से नहीं बता सका, इसलिए वह अंदर ही अंदर घुटने लगा. इस का नतीजा यह निकला कि वह बातबात में रचना की पिटाई करने लगा. दोनों के बीच एक दरार पैदा हो गई, जो दिनोंदिन चौड़ी होती जा रही थी. एक दिन ऐसा भी आ गया, जब परेशान हो कर रचना अपने मायके चली गई.
रचना के मायके जाने से पतिपत्नी के बीच पैदा हुए तनाव की जानकारी बिहारी के घर वालों को तो हो ही गई, ससुराल वालों को भी हो गई थी. सभी ने सोचा कि कुछ दिनों में सब ठीक हो जाएगा. लेकिन हाकिम सिंह की परेशानी तब बढ़ गई, जब कई महीने बीत जाने के बाद भी रचना को कोई विदा कराने नहीं आया.
उन्होंने समधी को फोन किया तो पतिराम ने कहा, ‘‘परेशान मत होइए समधीजी, जल्दी ही मैं बहू को विदा कराने के लिए बिहारी को भेज रहा हूं.’’
पतिराम ने अच्छी तरह बात की थी, इसलिए हाकिम सिंह को लगा कि चिंता की कोई बात नहीं है. जब सब ठीकठाक है तो अगर उस की ससुराल से कोई नहीं आता तो वह स्वयं ही रचना को छोड़ आएगा. लेकिन उसे ऐसा नहीं करना पड़ा, क्योंकि पतिराम ने अपने यहां देवी जागरण कराया तो रचना का जेठ मोहर सिंह भांजे पूरन के साथ रचना को विदा कराने मांगरौली जा पहुंचा.
रचना ससुराल जाना तो नहीं चाहती थी, लेकिन वह देख रही थी कि उस की वजह से मम्मीपापा बहुत परेशान है, इसलिए वह मना नहीं कर सकी और जेठ के साथ ससुराल आ गई.
रचना काफी दिनों बाद ससुराल आई थी, इसलिए सास ने उसे हाथोंहाथ लिया. बिहारी को भी लगा कि अब रचना को अपनी गलती का अहसास हो गया होगा, इसलिए उस ने भी उस से प्यार से बात की. रचना का भी व्यवहार सामान्य था. देवी जागरण का जो आयोजन था, वह भी धूमधाम से हो गया. लेकिन इस के बाद उस घर में जो कुछ हुआ, वह काफी हैरान करने वाला था.
31 मई, 2014 की रात पतिराम का पूरा परिवार खापी कर आराम से सोया. जब अगले दिन सुबह बिहारी सो कर उठा तो रचना बिस्तर से गायब थी. वह घर में भी कहीं नहीं थी. बिहारी को याद आया कि वह रात में किसी से फोन पर बात कर रही थी. उस ने करवट ले कर वहां देखा, जहां रचना सोती थी तो वहां उस के वे कपड़े, चूडि़यां और मंगलसूत्र पड़ा दिखाई दिया, जिसे वह रात में पहन कर सोई थी. उसी के साथ एक चिट्ठी भी रखी थी.
बिहारी ने चिट्ठी खोली. रचना ने उस में लिखा था, ‘‘मैं नागिन बन चुकी हूं. सुबह मैं जिस हालत में मिलूं, मुझे जंगल में छोड़ दिया जाए.’’
चिट्ठी पढ़ कर बिहारी सन्न रह गया. उस ने इधरउधर देखा तो कमरे में उसे एक काला सांप दिखाई दिया. वह चीखा तो पूरा घर इकट्ठा हो गया. उस ने पूरी बात घर वालों को बताई तो सभी हैरान रह गए. कुछ ही देर में यह बात पूरे गांव में फैल गई. इस के बाद पूरा गांव पतिराम के घर इकट्ठा हो गया.
पतिराम ने हाकिम सिंह को फोन किया कि उन की बेटी रचना नागिन बन गई है. हाकिम सिंह भी हैरान रह गया. वह पत्नी रामवती को ले कर बेटी की ससुराल पहुंचा. पूरी हकीकत जानने के बाद वह उस नागिन को अपने साथ ले आया, जिस के बारे में बताया गया था कि सुबह यही कमरे में मिली थी.
रचना के नागिन बन जाने की बात आसपास फैली तो दूरदूर से लोग उस नागिन को देखने हाकिम सिंह के घर आने लगे. उत्सुकतावश बगल के गांव के रहने वाले सपेरे सोना और अमर भी नागिन को देखने हाकिम सिंह के घर आ पहुंचे. उन्होंने उस नागिन को देखा तो उन्होंने बताया कि यह नागिन नहीं, बल्कि नाग है और इस की जहर की थैली निकाल दी गई है, इसलिए यह किसी को काट नहीं रहा है.
यह जान कर हाकिम सिंह को लगा कि रचना की ससुराल वालों ने उस की बेटी को गायब कर के अपने गुनाहों पर परदा डालने के लिए यह षडयंत्र रचा है कि उस की बेटी नागिन बन गई है.
बात विश्वास करने लायक नहीं थी, इसलिए हाकिम सिंह ने थाना गोवर्धन जा कर रचना की ससुराल वालों के खिलाफ भादंवि की धारा 498, 506, 354 और 314 दहेज ऐक्ट के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया.
इंसपेक्टर उदयराज सिंह भी नागिन वाली कहानी से हैरान थे. जब रचना की ससुराल वालों को पता चला कि हाकिम ने उन के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी है तो वे परेशान हो उठे. इंसपेक्टर उदयराज सिंह ने पतिराम के घर छापा मारा तो बाकी लोग तो फरार हो गए, लेकिन पतिराम और रोहतान उन की पकड़ में आ गए.
जब रचना को पता चला कि घर वालों ने उस की शादी तय कर दी है तो उस ने तुरंत रामेश्वर को फोन किया. प्रेमिका की शादी तय हो जाने की बात सुन कर वह बेचैन हो उठा. वह रचना से शादी तो करना चाहता था, लेकिन उस की मजबूरी यह थी कि अभी वह बेरोजगार था. उस के पास इतना पैसा भी नहीं था कि वह रचना को भगा ले जाता.
इसलिए उस ने मजबूरी जाहिर करते हुए पूछा, ‘‘रचना, तुम्हारी शादी कहां तय हुई है?’’
‘‘जब तुम कुछ कर नहीं सकते तो यह जान कर क्या करोगे?’’ रचना तुनक कर बोली.
‘‘भले ही अभी कुछ नहीं कर पा रहा हूं, लेकिन हमारे हालात हमेशा ऐसे ही थोड़े रहेंगे. जब सब ठीकठाक हो जाएगा, तब तो कुछ कर सकेंगे. इसीलिए पूछ रहा था.’’ रामेश्वर ने रचना को सांत्वना देते हुए कहा.
‘‘राम सिंह चाचा की कोई रिश्तेदारी मडौरा में है, वहीं किसी के यहां तय कराई है.’’ रचना ने जवाब दिया.
‘‘मडौरा में किस के यहां हो रही है? वहां तो मेरा ननिहाल है. कहीं तुम्हारी शादी बिहारी से तो नहीं हो रही है?’’ रामेश्वर ने चहक कर कहा, ‘‘मुझे पता चला है कि बिहारी मामा की शादी तय हो गई है. लेकिन मुझे यह नहीं मालूम कि उन की शादी कहां तय हुई है.’’
‘‘शायद उन्हीं के साथ हो रही है. वह तुम्हारे सगे मामा हैं?’’ रचना ने हैरानी से पूछा.
‘‘हां, बिहारी मेरे सगे मामा हैं. अगर उन के साथ तुम्हारा विवाह हो रहा है तो हम पहले की ही तरह मिलते रहेंगे. उस के बाद जब हमारे हालात सुधर जाएंगे तो हम भाग कर शादी कर लेंगे.’’ रामेश्वर ने कहा.
‘‘शादी के बाद क्या होगा, यह बाद की बात है, दूसरे के घर जा कर स्थिति कैसी बनेगी, यह तो वहां जाने पर ही पता चलेगा न? मैं तुम पर कैसे भरोसा कर सकती हूं? जब तुम अभी कुछ नहीं कर सकते तो दूसरी की हो जाने के बाद तुम मेरे लिए क्या कर पाओगे? अब मुझे तुम पर विश्वास नहीं रहा.’’ कह कर रचना ने फोन काट दिया.
अपने इस कायर प्रेमी पर रचना को बहुत गुस्सा आया था. वह समझ गई कि यह सिर्फ बड़ी बड़ी बातें कर के केवल सपने दिखा सकता है, कर कुछ नहीं सकता. एक से एक प्रेमी हैं, जो प्रेमिका के लिए जान देने को तैयार रहते हैं. एक यह है, जो बहाने बना कर पीछा छुड़ा कर भाग रहा है. यही सब सोच कर उस ने तय कर लिया कि अब वह उस से बात नहीं करेगी. अगर ससुराल में मिलेगा तो दुत्कार कर भगा देगी.
रचना का विवाह बिहारी से हो गया. वह विदा हो कर ससुराल आ गई. इस तरह वह अपने प्रेमी रामेश्वर की मामी बन गई. शादी में रामेश्वर मामा की बारात में तो गया ही था, बारात लौटी तो रचना से मिलने के चक्कर में रुक भी गया. उसे उम्मीद थी कि मौका मिलेगा तो रचना उस से बात करेगी. लेकिन रचना ने उस की ओर देखा तक नहीं. अगर कभी सामने पड़ा भी तो उस ने मुंह फेर लिया.
रामेश्वर की समझ में नहीं आ रहा था कि वह रचना को कैसे समझाए कि वह उसे बहुत प्यार करता है. लेकिन उसे भगा कर अपनी अलग दुनिया बसाने का उस के पास कोई साधन नहीं था, इसलिए वह पीछे हट गया था. रचना के लिए उस के मन में जो चाहत है, वह आज भी कम नहीं हुई है. रामेश्वर काफी परेशान था, क्योंकि वह प्रेमिका को दिखाए सपनों को पूरा नहीं कर सका था.
रामेश्वर जब भी मामा के यहां आता, रचना से बात करने की कोशिश करता. लेकिन रचना उसे मौका ही नहीं देती थी. संयोग से एक दिन वह ऐसे मौके पर मामा के घर पहुंचा, जब रचना घर में अकेली थी. उसे देख कर रचना को गुस्सा आ गया. उस ने उस से तुरंत वापस जाने को कहा.
रचना के गुस्से की परवाह किए बगैर रामेश्वर ने गिड़गिड़ाते हुए कहा, ‘‘रचना, मैं आज भी तुम से उतना ही प्यार करता हूं, जितना पहले करता था. यही नहीं, मैं तुम्हें इतना ही प्यार पूरी जिंदगी करता रहूंगा और किसी दूसरी लड़की से शादी भी नहीं करूंगा. मैं मजबूर था, भावनाओं में बह कर मैं तुम्हें भगा तो ले जाता, लेकिन बाद में जो परेशानी होती, उस का दोष तुम मुझे ही देती.’’
रचना ने जब रामेश्वर की बात पर गंभीरता से विचार किया तो उस की बात उसे सच लगी. लेकिन उस के सपनों की दुनिया तो उजड़ चुकी थी. रामेश्वर उसे बारबार विश्वास दिला रहा था कि वह आज भी उसे उतना ही प्यार करता है. इसलिए रचना ने कहा, ‘‘केवल प्यार करने से थोड़े ही कुछ होगा, कुछ करोगे भी या इसी तरह सिर्फ प्यार ही करते रहोगे? तुम्हें पता होना चाहिए कि तुम्हारे मामा बिहारी को आज भी मैं मन से स्वीकार नहीं कर पाई हूं.’’
‘‘अब तुम मेरी मामी बन चुकी हो, ऐसे में मैं क्या कर सकता हूं?’’ रामेश्वर ने कहा.
‘‘अगर तुम कुछ नहीं कर सकते तो मेरी नजरों के सामने आते ही क्यों हो?’’ रचना ने उसे झिड़का.
‘‘ऐसा मत कहो रचना. मैं तुम्हें देखे बगैर नहीं रह सकता. अगर तुम भी मुझे पहले की ही तरह प्यार करती हो तो मैं वादा करता हूं कि तुम जैसा कहोगी, मैं वैसा ही करूंगा.’’
‘‘तो फिर जैसे भी हो सके, तुम मुझे यहां से निकालो.’’ रचना ने कहा.
इस के बाद रामेश्वर और रचना के प्यार का सिलसिला एक बार फिर पहले ही तरह चल पड़ा. वे नए सिरे से अपनी अलग दुनिया बसाने की योजना बनाने लगे. काफी सोचविचार कर रचना और रामेश्वर ने जो योजना बनाई, उसी के अनुसार रचना काम करने लगी. एक दिन उस ने अपनी सास से कहा, ‘‘अम्माजी, आजकल मेरे सपनों में नाग बहुत आते हैं. वे कहते हैं कि मैं पूर्वजन्म में नागिन थी, इसलिए मुझे वे अपने साथ ले जाएंगे.’’
सास ने समझाया, सपना तो सपना होता है, वह सिर्फ दिखाई देता है, कभी सच नहीं होता. वह उस के बारे में सोचे ही न. लेकिन रचना लगातार सास से सपने का जिक्र करती रही. वह लगभग रोज बताती कि सपने में उसे नाग दिखाई देते हैं और कहते हैं कि वे उसे छोड़ेंगे नहीं.
रचना की बातों से ससुराल वाले परेशान रहने लगे थे. धीरेधीरे उस की शिकायतें कुछ ज्यादा ही बढ़ती गईं तो ससुराल वालों ने उसे कुछ दिनों के लिए मायके भेज दिया. सपने वाली बात जान कर हाकिम सिंह और रामवती को भी चिंता हुई. उन्हें असलियत का पता तो था नहीं, इसलिए उन्होंने झाड़फूंक भी कराई. उन्हें लगता था कि रचना अपने प्रेमी को भूल चुकी होगी. इसलिए वे निश्चिंत थे.
उत्तर प्रदेश के जिला मथुरा के थाना छाता के गांव मांगरौली के रहने वाले हाकिम सिंह की 3 बेटियों में रचना दूसरे नंबर की थी. वह थोड़ा चंचल स्वभाव की थी, इसलिए हर समय घर की रौनक बनी रहती थी. लेकिन अब उस की यही चंचलता मांबाप को परेशान करने लगी थी, क्योंकि वह जवान हो चुकी थी.
बड़ी बेटी की शादी करने के बाद हाकिम सिंह रचना की शादी के बारे में सोचने लगे थे. लेकिन रचना ने यह कह कर शादी से मना कर दिया कि वह पढ़ना चाहती है. चूंकि वह पढ़ने में ठीकठाक थी, इसलिए हाकिम सिंह ने सोचा कि अगर बेटी पढ़ना चाहती है तो इस में बुराई क्या है.
रचना गांव की लड़कियों में सब से ज्यादा खूबसूरत थी. वह बनसंवर कर तो रहती ही थी, उसे अपनी खूबसूरती पर गुरुर भी था, इसलिए वह सपने भी अपने ही जैसे खूबसूरत साथी के देखती थी.
हाकिम सिंह के पड़ोस में ही राम सिंह का घर था. राम सिंह उसी की जाति बिरादरी का था, इसलिए दोनों परिवारों में खूब पटती थी. इसी वजह से एकदूसरे के यहां आनाजाना भी खूब था. राम सिंह की ससुराल मथुरा के ही थाना शेरगढ़ के गांव राम्हेरा में थी. उन के साले का बेटा रामेश्वर उन के यहां खूब आताजाता था. वह जब भी आता, बूआ के यहां कईकई दिनों तक रुकता.
रामेश्वर शक्लसूरत से तो ठीकठाक था ही, कदकाठी से भी मजबूत था. बातें भी वह बड़ी मजेदार करता था. बूआ के यहां आनेजाने और कईकई दिनों तक रहने की वजह से रचना से भी उस की अच्छीखासी जानपहचान हो गई थी. दोनों में बातें भी खूब होने लगी थी. अपनी लच्छेदार बातों से रामेश्वर रचना को धीरेधीरे अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश करने लगा था.
कुछ ही दिनों में रचना को लगने लगा कि वह जैसा साथी चाहती है, रामेश्वर बिलकुल वैसा ही है. दिल में यह खयाल आते ही उस के मन में रामेश्वर से मिलने की बेचैनी होने लगी. इस का नतीजा यह हुआ कि रामेश्वर जब भी आता, रचना ज्यादा से ज्यादा समय राम सिंह के घर ही बिताती.
रामेश्वर बेवकूफ नहीं था कि वह रचना के दिल की बात न भांप पाता. रचना के मन में उस के लिए क्या है, इस बात का अहसास होते ही रामेश्वर फूला नहीं समाया. बात ही ऐसी थी. रचना जैसी खूबसूरत लड़की के मन में उस के प्रति चाहत जागना सामान्य बात नहीं थी. उस की जगह कोई भी होता, उस का भी यही हाल होता.
रचना के मन में उस के लिए क्या है, इस बात का अहसास होने के बाद भला रामेश्वर ही क्यों पीछे रहता. वह भी अपनी चाहत व्यक्त करने की कोशिश करने लगा यह बात चूंकि किसी के सामने कही नहीं जा सकती थी. इसलिए वह मौके की तलाश में रहने लगा. रामेश्वर की यह तलाश जल्दी ही पूरी हो गई. एक दिन वह बूआ के घर जा रहा था, तभी रास्ते में रचना मिल गई. उस समय वह स्कूल से आ रही थी.
रामेश्वर को तो जैसे मुंहमांगी मुराद मिल गई. क्योंकि उस के मिलते ही रचना ने सहेलियों का साथ छोड़ दिया था. वह रामेश्वर से बातें करने में इस तरह तल्लीन हो गई कि उस की सारी सहेलियां उस से काफी आगे निकल गईं. रामेश्वर को ऐसे ही मौके की तलाश थी. उस ने मौका देख कर दिल की बात कह दी. रचना ने पहले से ही इरादा बना रखा था, इसलिए उसे हामी भरते देर नहीं लगी.
इस तरह उन दोनों की मोहब्बत की बुनियाद रखी गई तो धीरेधीरे उस पर प्यार की दीवारें भी खड़ी होने लगीं. लेकिन उन के प्यार की इमारत तैयार होती, उस के पहले ही लोगों को उन पर शक होने लगा. इस की वजह यह थी कि रचना को लगता था कि वह जो कर रही है, किसी को पता नहीं है. वह बेखौफ होती गई. उस का बेखौफ होना ही उस के प्यार की चुगली कर गया. रामेश्वर से मिलनाजुलना, हंसना खिलखिलाना तमाम लोगों की नजरों में आया तो उस की इन्हीं हरकतों से उस की मां को भी संदेह हो गया.
संदेह हुआ तो रामवती रचना पर नजर रखने लगी. जल्दी ही उसे पता चल गया कि रचना का पड़ोसी राम सिंह के रिश्तेदार रामेश्वर से कुछ ज्यादा ही मिलनाजुलना होता है. रामवती के लिए यह चिंता की बात थी. उस से भी ज्यादा चिंता की बात यह थी कि बिटिया पढ़ीलिखी होने के साथसाथ बालिग भी हो चुकी थी. अगर वह कोई उलटासीधा कदम उठा लेती तो उन के पास तमाशा देखने के अलावा दूसरा कोई उपाय नहीं था. इसलिए उस ने हाकिम सिंह से पूरी बात बता कर जल्दी से जल्दी रचना के लिए घरवर ढूंढने को कहा.
बेटी की इस हरकत के बारे में जान कर हाकिम सिंह हैरान रह गया. जिस बेटी को उस ने हमेशा पलकों पर बैठाए रखा, वही उस की इज्जत का जनाजा निकालने पर तुली थी. हाकिम सिंह ने पत्नी की बातें सुन तो ली थीं, लेकिन उसे विश्वास नहीं हुआ था कि रचना ऐसा कर सकती है. सच्चाई जानने के लिए उन्होंने रचना से पूछा तो वह साफ मुकर गई. उस ने कहा कि उस का रामेश्वर से कोई लेनादेना नहीं है.
रचना ने भले ही झूठ बोल कर बाप को संतुष्ट कर दिया था, लेकिन हाकिम सिंह को अब रामेश्वर खटकने लगा था. उस ने राम सिंह से बात की. रामेश्वर भले ही रिश्तेदार था, लेकिन हाकिम सिंह पड़ोसी ही नहीं था, बल्कि जातिबिरादरी का भी था. बात गांव और परिवार की इज्जत की थी, इसलिए उस ने रामेश्वर को काफी डांटाफटकारा. उस ने उस से यहां तक कह दिया कि वह उस के घर तभी आए, जब कोई बहुत जरूरी काम हो.
रचना पर भी सख्ती की जाने लगी, जिस से रामेश्वर से उस का मिलनाजुलना नामुमकिन सा हो गया. बंदिशों से प्यार कम होने के बजाय बढ़ता ही है. रचना और रामेश्वर का प्यार बढ़ा जरूर, लेकिन वे कुछ कर पाते, उस के पहले ही राम सिंह की मदद से हाकिम सिंह ने रचना की शादी मथुरा के ही थाना गोवर्धन के गांव मडौरा के रहने वाले पतिराम के बेटे बिहारी से तय कर दी.
दरअसल, पतिराम की बेटी राम सिंह की सलहज थी. इसी रिश्ते की वजह से राम सिंह ने यह शादी तय करा दी थी. पतिराम का खाता पीता परिवार था. उस के 3 बेटे थे, मोहर सिंह, बिहारी सिंह और रोहतान सिंह. पतिराम के पास खेती की जो जमीन थी, उस पर पतिराम और उस के बेटे मेहनत से खेती करते थे, इसलिए घरपरिवार में खुशी और समृद्धि थी.