जानलेवा फेसबुक फ्रैंडशिप

आजकल तकरीबन हर कोई सोशल मीडिया खासतौर से फेसबुक, ट्विटर और ह्वाट्सऐप पर मौजूद है. कई लोगों के लिए इन साइटों पर रहना जरूरत की बात है, तो ज्यादातर लोग इन के जरीए अपना वक्त काटते हैं.

हैरानी की बात है कि अब तेजी से लड़कियां भी फेसबुक पर दिख रही हैं. बड़े शहरों की लड़कियों को पछाड़ते हुए अब देहातों और कसबों की लड़कियां भी फेसबुक पर अकाउंट खोल कर दोस्त बनाने लगी हैं और उन से चैट यानी लिखित में बातचीत करने लगी हैं.

फेसबुक पर दोस्त बना कर उन से चैट करने पर घर वालों को कोई खास एतराज नहीं होता, क्योंकि उन्हें स्मार्टफोन और कंप्यूटर की ज्यादा जानकारी नहीं होती, इसलिए लड़कियां बेखौफ हो कर अपने बौयफ्रैंड से बातें करती हैं.

ये बातें कभीकभी ऐसे जुर्म की भी वजह बन जाती हैं, जिस से नादान लड़कियां मुसीबत में पड़ जाती हैं, इसलिए अब जरूरी हो चला है कि फेसबुक का इस्तेमाल सोचसमझ कर और एहतियात बरतते हुए किया जाए, नहीं तो हालात मध्य प्रदेश के इंदौर की प्रिया जैसे भी हो सकते हैं.

आशिक बना कातिल

17 साला प्रिया इंदौर के गीता नगर इलाके के कृष्णा नगर अपार्टमैंट्स में तीसरी मंजिल पर रहती थी. हाईस्कूल में पढ़ रही प्रिया पढ़ाई की अहमियत समझती थी, इसलिए इंजीनियर बनने की अपनी ख्वाहिश पूरी करने के लिए उस ने अभी से आईआईटी की भी तैयारी शुरू कर दी थी और कोचिंग क्लास में  जाती थी.

प्रिया के पिता श्याम बिहारी रावत एक कोचिंग इंस्टीट्यूट में काम करते हैं और मां किरण पेशे से ब्यूटीशियन हैं. हालांकि ये लोग कोई बहुत बड़े रईस नहीं हैं, लेकिन इज्जत से गुजारे लायक कमाई आराम से हो जाती थी. पूजा इन दोनों की एकलौती लड़की थी.

दूसरी लड़कियों की तरह पूजा भी फेसबुक का इस्तेमाल करती थी और उस के कई दोस्त भी बन गए थे.

प्रिया जानती थी कि फेसबुक पर लड़कों या अनजान लोगों से दोस्ती करना अब खतरे से खाली बात नहीं, इसलिए वह ऐसी फ्रैंड रिक्वैस्ट मंजूर नहीं करती थी, जिन में सामने वाला जानपहचान का न हो.

एक दिन पूजा को प्रियांशी नाम की लड़की ने फ्रैंड रिक्वैस्ट भेजी, तो उस ने इसे मंजूर कर लिया, क्योंकि प्रियांशी लड़की थी और उस की प्रोफाइल भी प्रिया को ठीकठाक लगी थी.

धीरेधीरे प्रिया और प्रियांशी की फेसबुक पर दोस्ती गहराने लगी और दोनों चैटिंग करने लगीं. इस दौरान प्रिया ने प्रियांशी से कई दिली बातें कीं और अपना और अपनी मम्मी का मोबाइल नंबर भी उसे दे दिया.

लेकिन एक दिन प्रियांशी की हकीकत प्रिया के सामने खुल ही गई कि वह लड़की नहीं, बल्कि लड़का है. उस का असली नाम अमित यादव है. वह 24 साल का है और पेशे से सौफ्टवेयर इंजीनियर है.

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अमित ने असलियत बताते हुए प्रिया से मुहब्बत का इजहार किया, तो धोखा खाई प्रिया तिलमिला उठी और उस ने अमित का अकाउंट ब्लौक कर दिया.

गूजरखेड़ी गांव का रहने वाला अमित अब तक प्रिया, उस के घर और स्वभाव के बारे में चैट के जरीए प्रिया से ही काफीकुछ जानकारी हासिल कर चुका था, इसलिए उस ने प्रिया के मोबाइल पर फोन कर उस से अपनी मुहब्बत का इजहार किया. तब भी प्रिया ने उसे झिड़क दिया.

जब प्रिया ने अमित का फोन रिसीव करना बंद कर दिया, तो एकतरफा प्यार में पागल इस सिरफिरे आशिक ने मैसेज भेजने शुरू कर दिए.

प्रिया को अब समझ आ गया था कि धोखे या गलती से ही सही, वह एक गलत और झक्की नौजवान से फेसबुक पर दोस्ती कर के फंस चुकी है, तो उस ने पीछा छुड़ाने के लिए उस पर ध्यान देना ही बंद कर दिया.

इस अनदेखी और बेरुखी से अमित और भी तिलमिला गया, जो यह मान कर चल रहा था कि चूंकि वह प्रिया से प्यार करता है, इसलिए यह उस की जिम्मेदारी है कि वह भी उसे प्यार करे. हालांकि उसे मन में कहीं न कहीं एहसास होने लगा था कि प्रिया सख्तमिजाज और उसूलों वाली लड़की है.

हिम्मत न हारते हुए अमित ने प्रिया की मां किरण को फोन किया और सारी बात बताई. इस पर किरण ने प्रिया से पूछा, तो उस ने मां को साफसाफ बता दिया कि अमित एक धोखेबाज लड़का है, जिस ने लड़की बन कर फेसबुक पर उस से दोस्ती की और अब जबरदस्ती प्यारमुहब्बत की बातें कर रहा है.

बेरहमी आशिक की

मां किरण ने आजकल के जमाने को देख शुरू में तो बेटी की तरह ही अमित को झिड़क दिया.

यह देख कर अमित गिड़गिड़ाया, ‘‘आंटी, मुझे बस एक बार प्रिया से बात कर लेने दें, फिर मैं कभी फोन नहीं करूंगा.’’

दुनिया देख चुकीं किरण यहीं गच्चा खा गईं. उन्होंने सोचा था कि लड़का एकतरफा प्यार में पागल हो गया है और कहीं ऐसा न हो कि गुस्से में आ कर बेटी को कोई नुकसान पहुंचा दे, इसलिए जब

27 सितंबर, 2016 की सुबह उस का दोबारा फोन आया, तो उन्होंने उसे घर आने की इजाजत दे दी, लेकिन इस शर्त पर कि बात दरवाजे के बाहर से ही होगी.

अमित तो मानो इसी फिराक में था, इसलिए वह किरण की हर बात मानता गया और सुबह के तकरीबन 10 बजे उन के घर पहुंच गया.

जब किरण ने उसे दरवाजे से ही टरकाना चाहा, तो वह फिर दुखी होने की ऐक्टिंग करते हुए बोला, ‘‘यहां बाहर खड़ेखड़े क्या बात होगी. अंदर आने दें तो इतमीनान से बात कर लूंगा.’’

किरण ने उसे अंदर आने दिया. अंदर आ कर अमित ने बाथरूम जाने की बात कही और बाथरूम में चला भी गया.

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अंदर कमरे में प्रिया स्कूल जाने के लिए अपना बैग लगा रही थी कि अमित ने बगैर कुछ कहे या मौका दिए पीछे से चाकू निकाल कर उस पर जानलेवा हमला कर दिया.

प्रिया हमले से घबराई और चीखी तो किरण उस के कमरे की तरफ भागीं, पर जब तक अमित प्रिया पर चाकू के दर्जनभर वार कर चुका था, जो पीठ के अलावा पेट, सीने और चेहरे पर लगे थे.

बदहवास सी किरण बेटी को बचाने बीच में आईं, तो अमित ने उन पर भी हमला बोल दिया. मौका पा कर प्रिया बाथरूम में जा घुसी और डर के मारे भीतर से दरवाजा बंद कर लिया.

शोर सुन कर अपार्टमैंट्स के कई लोग किरण के फ्लैट की तरफ भागे, तो उन्होंने हाथ में चाकू लिए एक नौजवान यानी अमित को भागते देखा. दूसरी मंजिल पर आ कर उस ने भीड़ देखी, तो अपने बचाव के लिए वह नीचे कूद गया.

इधर लोग किरण के घर में गए और हालात देख कर बाथरूम का दरवाजा तोड़ा. वहां प्रिया बेहोश पड़ी थी. लोगों ने तुरंत पुलिस को खबर की और प्रिया को कार में डाल कर अस्पताल की तरफ भागे, पर इलाज के दौरान ही प्रिया ने दम तोड़ दिया.

अमित नीचे कूद तो गया, लेकिन उस के हाथपैर की हड्डियां टूट गईं, इसलिए भाग नहीं सका और गिरफ्तार हो गया. उसे जेल वार्ड में रखा गया.

अमित अपने बयानों में पुलिस को यह कहते हुए बरगलाने की कोशिश करने लगा कि प्रिया उस पर जबरदस्ती करने का झूठा इलजाम लगा रही थी और उसी ने 100 नंबर पर फोन कर पुलिस को बुलाया था.

पर यह बहानेबाजी ज्यादा नहीं चली और जल्दी ही एकतरफा प्यार में पगलाए इस आशिक का जुर्म सामने आ गया.

प्रिया के पिता श्याम बिहारी ने जब बेटी की हत्या की खबर सुनी, तो सदमे के चलते वे बेहोश हो गए और होश में आते ही हत्यारे अमित को फांसी की सजा देने की मांग करने लगे.

एहतियात बरतना है जरूरी

जिस ने भी इस अपराध के बारे में सुना, वह सन्न रह गया और फेसबुक जैसी साइट को कोसता नजर आया कि आजकल यह जुर्म का नया जरीया बन गया है, इसलिए लड़कियों को जरा संभल कर रहना चाहिए.

बात सच भी है, क्योंकि लड़कियां फेसबुक पर ज्यादा से ज्यादा फ्रैंड्स बनाना अपनी शान की बात समझती हैं. हालांकि प्रिया ने अमित को लड़की समझ कर उस से दोस्ती की थी, पर इस हादसे से लगता है कि फेसबुक का इस्तेमाल करते समय लड़कियों को कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए, नहीं तो वे भी प्रिया की तरह किसी हादसे या जुर्म का शिकार हो सकती हैं:

* यह जरूरी नहीं कि जो फ्रैंड रिक्वैस्ट भेज रही है, ये हकीकत में लड़की हो, इसलिए उसे प्रोफाइल की बारीकी से जांच कर लेनी चाहिए कि फैमिली फोटो डाले गए हैं या नहीं.  कितने फ्रैंड्स कौमन हैं. अगर कौमन फ्रैंड्स न हों या कम हों, तो भी फ्रैंड रिक्वैस्ट कबूल नहीं करनी चाहिए.

* किसी भी अनजान शख्स की फ्रैंड रिक्वैस्ट कबूल न करें.

* अपने प्रोफाइल में मोबाइल नंबर नहीं डालना चाहिए, न ही चैटिंग में किसी को देना चाहिए.

* अगर सामने वाली लड़की ज्यादा अपनापन दिखाए, तो चौकन्ना हो जाएं. अकसर जब 2 अनजान लड़कियां दोस्त बनती हैं, तो एकदूसरे से यह जरूर पूछती हैं कि तुम्हारा कोई बौयफ्रैंड है क्या? तुम ने कभी सैक्स किया है क्या? ऐसी बातें करने वाली लड़की को भाव नहीं देना चाहिए.

* घर का पता किसी को न दें.

* फेसबुक का पासवर्ड भी किसी को न दें.

* फ्रैंड कहीं बाहर होटल या पार्क वगैरह में मिलने बुलाए, तो सख्ती दिखाते हुए मना कर देना चाहिए. आजकल लोग गिरोह बना कर भी फेसबुक पर भोलीभाली लड़कियों को फांसने लगे हैं.

* अगर यह पता चल जाए कि सामने जो लड़की थी, वह असल में लड़का है, तो उस से धीरेधीरे कन्नी काटनी चाहिए. ब्लौक कर देने या भड़कने से गुस्से में आ कर लड़का कोई भी खतरनाक कदम उठा सकता है.

* इस के बाद भी बात न बने, तो मांबाप या घर के बड़ों को भरोसे में लेते हुए सारी बात बता देनी चाहिए.

हम तुम साइबर कैफे में बंद हों और…

एक लड़की और एक लड़का साइबर कैफे के काउंटर पर पहुंचे. लड़के की उम्र 18 से 20 साल के बीच की थी. लड़की ने दुपट्टे से अपना चेहरा ढक रखा था. लड़का भी कैप और बड़ा सा काला चश्मा लगाए हुए था.

काउंटर पर बैठे शख्स ने उन्हें देखा और पूछा, ‘‘कितने घंटे?’’

लड़का बोला, ‘‘एक घंटा.’’

इस के बाद लड़के ने अपनी जेब से सौ रुपए का एक नोट उसे थमाया और वह जोड़ा एक छोटे से कमरे में दाखिल हो गया और अंदर से किवाड़ बंद कर लिया.

काउंटर पर बैठे आदमी ने उस जोड़े से न तो पहचानपत्र लिया और न ही रजिस्टर में उन का नामपता दर्ज किया, जबकि आईटी ऐक्ट के तहत यह जरूरी है.

हर साइबर कैफे के नोटिस बोर्ड पर पहचानपत्र की फोटोकौपी जमा करने, पोर्न साइट नहीं देखने और न डाउनलोड करने की हिदायत लिखी रहती है, लेकिन उस पर शायद ही अमल किया जाता हो.

बिहार की राजधानी पटना समेत हर शहर में ज्यादातर साइबर कैफे में सैक्स का खेल धड़ल्ले से चल रहा है. अगस्त महीने में एक लड़की के साथ हुए गैंग रैप के मामले में एक साइबर कैफे को चलाने वाले अनिल कुमार की गिरफ्तारी हो चुकी है.

पटना में कंकड़बाग, एक्जिबिशन रोड, अशोक राजपथ, राजेंद्र नगर, राजा बाजार के तकरीबन 15 साइबर कैफे का मुआयना करने के बाद यह साफ हो गया कि कैफे संचालक रुपयों के लालच में साइबर कैफे के बंद केबिनों में रंगरलियां मनाने की खुली छूट दे रहे हैं.

आमतौर पर साइबर कैफे में एक घंटे की फीस 20 रुपए होती है, लेकिन जोड़े एक घंटे के लिए केबिन में बंद होने के सौ रुपए तक दे देते हैं.

पटना में तो पुलिस की सख्ती की वजह से ज्यादातर कैफे वालों ने केबिनों से दरवाजे और परदे तो हटा दिए हैं, पर बाकी शहरों में ऐसा नहीं हो सका है.

पटना कालेज में पढ़ने वाले एक प्रेमी जोड़े का दर्द है कि बड़े शहरों में तो प्रेमी जोड़े पार्कों, मैट्रो, मल्टीप्लैक्सों, सुपर मार्केट वगैरह में 2-3 घंटे साथ गुजार लेते हैं. लेकिन पटना जैसे छोटे शहरों में इस तरह की सुविधा नहीं है.

छोटा शहर होने की वजह से किसी न किसी गली, सड़क, मार्केट में जोड़ों के पहचान वाले या रिश्तेदार घूमते मिल जाते हैं. इस डर से प्रेमी बेखौफ हो कर साथ समय नहीं गुजार पाते हैं.

कुछ जोड़ों से पूछा गया कि पुलिस की रोक के बाद भी वे क्यों साइबर कैफे के केबिनों में बैठते हैं और उस में क्या करते हैं?

इस सवाल पर एक छात्र तैश में आ कर बोला कि लड़का और लड़की साइबर कैफे में जाते हैं, तो पुलिस को इस से क्यों एतराज है? यह जरूरी नहीं है कि साइबर कैफे में जाने वाला हर नौजवान जोड़ा प्रेम करने के लिए ही वहां जाता है. कई जोड़ों के घरों पर कंप्यूटर और इंटरनैट की सुविधा नहीं है, तो वे किसी इम्तिहान का नतीजा देखने, नौकरियों के बारे में पता करने या पढ़ाई से जुड़ी किसी भी तरह की जानकारी हासिल करने के लिए साइबर कैफे जाते हैं, पर पुलिस छापामारी के दौरान कैफे में मौजूद हर जोड़े को एक ही डंडे से हांकने लगती है.

इस बारे में पटना के सिटी एसपी चंदन कुशवाहा कहते हैं कि आईटी ऐक्ट (सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000) के तहत साइबर कैफे में सैक्स करने, सैक्स वीडियो या आपत्तिजनक सामग्री डाउनलोड या अपलोड करने पर कानूनी कार्यवाही की जाती है. इस ऐक्ट की धारा 78 के तहत इंस्पैक्टर लैवल के अफसर को जांच का हक मिला हुआ है. धारा 80 के तहत आईटी ऐक्ट का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ पुलिस को बगैर वारंट के किसी को गिरफ्तार करने या छापा मारने का अधिकार मिला हुआ है.

आईटी मामलों के जानकार मयंक बताते हैं कि आईटी ऐक्ट की धाराएं इतनी लचीली और पेचीदा हैं कि पुलिस किसी भी साइबर मामले को अपराध बता कर उस के खिलाफ कार्यवाही कर सकती है.

मगध महिला कालेज की बीए सैकंड ईयर की एक छात्रा पुलिस के इस रवैए पर तैश में कहती है कि पुलिस बड़े और खतरनाक अपराधियों को तो पकड़ नहीं पाती है, जिस की भड़ास वह साइबर कैफे या पार्कों में बैठे जोड़ों पर निकालती है.

अपराधियों को पकड़ने में अकसर नाकाम रहने वाली पुलिस साथ घूम रहे या पार्कों या कैफे में बैठे जोड़ों के साथ अपराधियों से भी बदतर सुलूक करती है. यह क्या गैरकानूनी नहीं है?

बालिग लड़का और लड़की अगर एकसाथ घूम रहे हैं, तो पुलिस को क्या परेशानी है? किसी पब्लिक प्लेस पर बैठ कर किसी तरह का भोंड़ा या भड़काऊ प्रदर्शन गैरकानूनी है. साइबर कैफे के केबिन में अगर कोई जोड़ा प्यार के गीत गा रहा हो, तो पता नहीं पुलिस को क्या परेशानी होने लगती है?

साइबर कैफे के केबिन में बैठना किसी भी नजर से गैरकानूनी नहीं है. आईटी ऐक्ट के तहत कैफे में बैठने वाले हर किसी से उस के पहचानपत्र की फोटोकौपी रिकौर्ड में रखना जरूरी है. अमूमन कैफे चलाने वाले लोगों से न तो उन के पहचानपत्र की फोटोकौपी लेते हैं और न ही उन का नामपता रजिस्टर में लिखते हैं.

रिटायर्ड पुलिस अफसर एके सिंह कहते हैं कि साइबर कैफे में आए हर आदमी से उस का पहचानपत्र लेना संचालक का काम है. अगर किसी का पहचानपत्र नहीं लिया गया है, तो इस के लिए संचालक खुद ही जिम्मेदार है, न कि ग्राहक. पैसों के लालच में संचालक पहचानपत्र नहीं लेते हैं.

पुलिस अफसरों का कहना है कि अपराधी किसी भी साइबर कैफे से किसी शख्स को जान से मारने की धमकी देने, रंगदारी वसूलने और किसी भी तरह के अपराध से जुड़ा ईमेल कर सकते हैं.

पहचानपत्र की फोटोकौपी और उन के आनेजाने का समय रिकौर्ड में नहीं रखने पर कैफे संचालक भी फंस सकते हैं. सभी तरह का रिकौर्ड रखने पर कैफे संचालक तो कानून के फंदे में फंसेंगे ही, साथ ही पुलिस को भी मुजरिम तक पहुंचने में आसानी होती है.

पुलिस ने सभी साइबर कैफे संचालकों को केबिन और परदे हटाने का आदेश दिया है, इस के बाद भी केबिन के अंदर और परदों के पीछे इश्कबाजी का खेल बेधड़क चल रहा है.

एक साइबर कैफे के स्टाफ ने बताया कि पुलिस साइबर कैफे के संचालकों को नियमकायदों पर अमल करने की घुट्टी तो पिलाती है, लेकिन करारे नोट की चमक के आगे खुद ही कानून को भूल जाती है. हर कैफे वाले को हर महीने ‘चढ़ावा’ चढ़ाने के लिए मजबूर किया जाता है और इस के लिए इलाके के हिसाब से ‘चढ़ावा’ भी फिक्स कर रखा है.

स्टेज डांसर : जान पर खेल कर करती हैं मनोरंजन

उत्तर प्रदेश के लखीमपुर जिले की बात है. शादी का दावत समारोह चल रहा था. एक तरफ दावत में आए लोग लजीज खाने का स्वाद ले रहे थे, तो दूसरी तरफ मस्त अदाओं का जादू बिखेरती एक स्टेज डांसर अपने डांस से सब के दिल खुश कर रही थी. कई लोग शराब के नशे में स्टेज के नीचे डांस कर रहे थे. पूरी तरह से मस्ती भरा माहौल था.

डांस के लिए अलगअलग गानों की फरमाइश भी हो रही थी. इस बीच ‘नथनियां पे गोली मारे सैयां हमार..’ गाना बजने लगा. स्टेज पर अपने दिलकश अंदाज दिखाती वह डांसर गाने की धुन पर लहराने लगी. उस की मस्त अदाओं का जादू नीचे डांस कर रहे लोगों पर छाने लगा.

एक नौजवान पर यह नशा कुछ इस कदर छाया कि वह अपने साथ लाई बंदूक लहराते हुए डांस करने लगा और डांस करतेकरते डांसर के करीब जाने लगा.  डांसर स्टेज पर डांस कर रही थी और वह नौजवान नीचे था. नाचतेनाचते उस की बंदूक का ऊपरी नली वाला हिस्सा डांसर की स्कर्ट के नीचे पहुंच जाता था.

डांसर ने जब यह देखा, तो वह स्टेज पर पीछे की तरफ खिसक गई. उस के संकेत पर गाने के बोल बदल गए, पर वह नौजवान उसी गाने को फिर से बजाने की बात करने लगा. उस की जिद पर ‘नथनियां पे गोली मारे सैयां हमार…’ गाना दोबारा बजने लगा. डांसर अनमनी सी डांस करने लगी.

अब वह नौजवान स्टेज पर चढ़ कर उस डांसर के साथ डांस करने लगा. इस से परेशान हो कर वह स्टेज से वापस जाने लगी, तो उस नौजवान ने बंदूक लहराते हुए उसे रोका. जब वह नहीं रुकी, तो उस पर गोली चला दी.

इस कांड में अच्छी बात यह रही कि गोली डीजे के स्पीकर पर जा लगी. हां, गोली चलने से शादी समारोह में हंगामा जरूर मच गया.

लेकिन एक डांसर…

गोली चले और डांसर को न लगे, ऐसा हर बार नहीं होता है. 3 नवंबर, 2016 को पंजाब के भटिंडा में मैरिज पैलेस हाल में एक शादी समारोह में डांसर कुलविंदर कौर 3 लड़कियों के साथ स्टेज पर डांस कर रही थी. डांस पंजाबी गानों पर हो रहा था.

डांस करने वाली लड़कियों ने शालीन कपड़े पहन रखे थे. इस के बाद भी समारोह में हिस्सा ले रहे बहुत से लोग उन डांसरों को देखदेख कर मस्त हो रहे थे. कई तो ऐसे थे, जो डांसरों के ग्रीनरूम में घुसे जा रहे थे. उन में से एक लक्की उर्फ बिल्ला भी था. वह डांसर कुलविंदर कौर के ग्रीनरूम में घुस कर उस से अपने साथ डांस करने को कहने लगा. कुलविंदर कौर ने उसे समझाया, पर वह माना नहीं.

थोड़ी देर बाद बिल्ला ग्रीनरूम से बाहर चला आया और जब कुलविंदर कौर डांस करने आई, तो वह अपनी बंदूक लहरा कर डांस करने लगा.

वह बीचबीच में बंदूक दिखा कर कुलविंदर कौर को डराने की कोशिश कर रहा था. कुलविंदर ने जब उस की ओर ध्यान नहीं दिया, तो बिल्ला ने डांस करतेकरते अपनी बंदूक से गोली चला दी. गोली सीधी कुलविंदर कौर को जा लगी और वह वहीं स्टेज पर गिर गई.

गोली की आवाज गाने की तेज आवाज में तुरंत समझ में नहीं आई. स्टेज के पास खड़े लोगों ने कुलविंदर के शरीर को घसीट कर स्टेज से नीचे किया. इसी बीच चारों तरफ अफरातफरी मच गई. बिल्ला भाग गया.

कुलविंदर कौर की एक साथी डांसर पूजा ने बताया कि बिल्ला कुलविंदर को पहले से परेशान कर रहा था. डीजे वालों ने उसे मना कर दिया था, इस के बाद भी वह माना नहीं. डीजे वालों ने आयोजकों से भी शिकायत की, पर वे लोग कुछ कर नहीं सके.

पुलिस ने 3 दिन बाद बिल्ला को पकड़ लिया और जेल भेज दिया.

दर्ज न करा सकी मुकदमा

 मुंबई की एक डांसर रेखा को डीजे चलाने वाले कई लोग बुलाते थे. उसे एक डांस के 10 हजार रुपए मिलते थे. वह मुंबई से बाहर भी डांस करने जाती थी. एक बार में वह हफ्तेभर के लिए अपने कार्यक्रम बनाती थी और 70 से 80 हजार रुपए कमा कर वापस मुंबई चली जाती थी.

एक बार रेखा समस्तीपुर, बिहार में शादी में डांस करने गई, तो कुछ लोग उस से मिले और पैसे दे कर सैक्स करने का औफर दिया. रेखा को यह सब पसंद नहीं था. उस ने मना कर दिया. इस के बाद वह स्टेज पर डांस करने लगी. रात में 2 बजे उस का काम खत्म हुआ, तो वह डीजे वालों की कार से वापस अपने होटल जाने लगी.

रास्ते में 5 लोग आए और उस की गाड़ी को रोक लिया. उन्होंने डीजे वालों को जान से मारने की धमकी दे कर रेखा को उठा कर अपनी कार में डाल लिया. जातेजाते वे लोग डीजे वालों से कह गए, ‘अगर किसी को बताया, तो रेखा को मार देंगे. अगर चुप रहे, तो रेखा को यहीं छोड़ जाएंगे.’

रेखा भी कुछ नहीं कर सकी. उन लोगों ने रेखा को 2 दिन तक अपने पास रखा और उस के साथ रेप किया. 2 दिन बाद रात को रेखा को वहीं छोड़ दिया गया, जहां से उसे उठाया था.

रेखा होटल गई. वह पुलिस में शिकायत दर्ज कराना चाहती थी, पर डीजे वालों ने उसे मना किया. तब मजबूरी में वह चुप हो गई. रेखा अब बिहार ही नहीं, उत्तर प्रदेश के किसी भी कार्यक्रम में नहीं जाती है.

डांसर को दी धमकी

भोजपुरी फिल्मों में डांस करने वाली एक लड़की शादी के समारोह में गैस्ट बन कर डांस करने गई थी. वहां उसे कुछ खास लोगों के सामने ही डांस करने को कहा गया था. गैस्ट हाउस के कमरे में एक जगह डांस हो रहा था. कई लोग डांसर से चिपकचिपक कर डांस करने लगे.

डांस करते समय एक नौजवान डांसर के बेहद करीब आ कर डांस करने लगा. डांसर ने उस को अपने से दूर करने की कोशिश की, इस के बाद भी वह नहीं माना और डांसर के अंगों को यहांवहां छूने लगा.

डांसर ने उसे मना किया, तो रिवौल्वर निकाल कर उस की कनपटी पर लगा दी. यह बात आयोजक और गैस्ट हाउस के मालिक तक पहुंच गई. वे लोग भाग कर आए, तो डांसर की जान बच सकी.

डांसर रेखा कहती है, ‘‘डांसर भले ही सब के मनोरंजन का ध्यान रख कर स्टेज पर अपनी कला दिखाती हो, पर नशे में चूर देखने वालों की नजर में उस की कीमत देह बेचने वाली जैसी होती है. उन्हें लगता है कि डांसर का परिवार नहीं होता. वह अच्छे चालचलन वाली नहीं होती है. ऐसे लोग डांसर की तुलना धंधे वाली से करते हैं.

‘‘इस के उलट डांसर अपनी मेहनत से पैसे कमाती है. उस का भी पसीना निकलता है. डांस करना उस का पेशा होता है. उस के पास सरकारी नौकरी नहीं होती. उसे समाज से भी सिक्योरिटी नहीं मिलती.

‘‘स्टेज डांस से लोगों का मनोरंजन होता है, पर डांसर की जान पर बनी रहती है. लोग यह नहीं सोचते कि अपने घरपरिवार को पालने के लिए डांसर ऐसा करती है.’’

शर्म से झुक गया शहर

लखनऊ के एक रिसोर्ट में पार्टी चल रही थी. पार्टी में डांस और खाना परोसने के लिए कुछ लड़कियों को इवैंट मैनेजर ने बुलाया था. पार्टी के लिए हाल के साथ 3 कमरे भी किराए पर लिए गए थे.

पार्टी के समय ही कुछ लोगों ने नशे में डांस कर रही लड़कियों और खाना परोस रही लड़कियों से छेड़छाड़ शुरू कर दी. जब लड़कियों ने विरोध किया, तो उन को एक कमरे में जबरन बंद कर उन के साथ जोरजबरदस्ती शुरू कर दी.

लड़कियों ने किसी तरह से इस बात की जानकारी इवैंट मैनेजर को दी, तब जा कर वे अपनी जान बचा सकीं.

इस बात की शिकायत लखनऊ पुलिस से की गई. पुलिस ने रिसोर्ट के मैनेजर और पार्टी के आयोजकों समेत वहां मौजूद कई लोगों के खिलाफ मुकदमा कायम किया.

पुलिस की तेजी के चलते लड़कियों की इज्जत बच गई. इस के बाद भी घटना की जानकारी जब लोगों के सामने आई, तो अदब के शहर में रहने वालों का सिर शर्म से झुक गया. लखनऊ भी ऐसे शहरों की लाइन में खड़ा हो गया, जिस में बाकी शहर खड़े थे.

लखनऊ में डांस शो का आयोजन करने वाले एक इवेंट मैनेजर कहते हैं, ‘‘डांस करने वाली लड़कियों को ले कर समाज की सोच में बदलाव आने के साथ ही साथ ऐसे लोगों में कानून का डर होना चाहिए. डांसर के साथ इस तरह की घटनाएं ज्यादातर ऐसे प्रदेशों में होती हैं, जहां की कानून व्यवस्था खराब है. जहां शिकायत करने पर पुलिस समय पर नहीं पहुंचती है.

‘‘महाराष्ट्र और दूसरी जगहों पर उत्तजेक डांस होने के बाद भी कोई घटना नहीं होती, वहीं दूसरी तरफ पंजाब में शालीन कपड़े पहन कर डांस करने वाली डांसर पर गोली चल जाती है. इस की चर्चा एक  महीने के बाद तब होती है, जब घटना का वीडियो वायरल होता है.’’

लेनदेन पर मनमानी

केवल डांस देखते समय ही मनमानी नहीं होती है, बल्कि डांस के बदले पैसा देते समय भी इवैंट मैनेजर और डांस ग्रुप चलाने वालों को तरहतरह से परेशान किया जाता है.

आगरा की रहने वाली सरिता डांस ग्रुप चलाती हैं. उन के ग्रुप में 4 लड़कियां और 3 लड़के होते हैं. वे अपने शो के लिए 35 से 50 हजार रुपए लेती हैं.

सरिता कहती हैं, ‘‘डांस ग्रुप को बुक कराते समय लोग पूरा पैसा नहीं देते. कई बार कुछ पैसे दे कर बाकी का चैक दे देते हैं, जो बाउंस हो जाता है. ऐसे में पैसा लेने के लिए हमें कईकई चक्कर लगाने पड़ते हैं.

‘‘कई बार लोग पैसा देने के नाम पर डांसर लड़कियों के साथ सैक्स संबंध बनाने का दबाव डालते हैं. परेशानी की बात यह है कि कई डांस ग्रुप वाले ज्यादा पैसा लेने के लिए ऐसे समझौते कर जाते हैं, जिस से दूसरों पर भी ऐसा करने का दबाव बनता है.’’

डांस ग्रुप में डांस करने वाली एक लड़की विशाखा बताती है, ‘‘स्टेज पर डांस करते समय या पार्टी में डांस के समय लोग चाहते हैं कि डांसर कम से कम कपड़े पहने. कई बार तो ऐसे कपड़ों को पहनने की डिमांड करते हैं, जिन को पहन कर डांस करना मुनासिब नहीं होता है.

‘‘डांस ग्रुप चलाने वाले लोग पैसा कमाने के लिए हर तरह के समझौते करते हैं. हमें तो कम पैसे मिलते हैं, पर सब से ज्यादा मुसीबत हमें ही झेलनी पड़ती है. डांस करने वाली ज्यादातर लड़कियां कम उम्र की होती हैं. उन में उतना अनुभव भी नहीं होता. इस वजह से वे हालात को संभाल नहीं पाती हैं.’’

किसी डांसर को तमाम तरह के समझौते करने पड़ते हैं, तब कहीं उस को चार पैसे मिलते हैं. डांस ग्रुप के लोग भी उसे तब तक ही बुलाते हैं, जब तक वह नई रहती है.

डांस ग्रुप चलाने वाले लोग कई बार डांसर को बंधुआ मजदूर की तरह रखना चाहते हैं. वे यह कोशिश करते हैं कि डांसर केवल उन के ग्रुप के साथ ही डांस करे. जब डांसर ज्यादा पैसे देने वाले दूसरे ग्रुप के साथ जाना चाहती है, तो वे लोग उस का विरोध करते हैं.

विशाखा बताती है कि डांसर के सामने भी तमाम परेशानियां होती हैं, इस के बाद भी वह खुल कर अपनी बात कह नहीं पाती है. अगर कोई डांसर अपने साथ हुई वारदात की शिकायत करती है, तो डीजे चलानेवाले और डांस ग्रुप चलाने वाले उसे झगड़ा करने वाली मान कर उस के साथ काम नहीं करते. ऐसे में डांसर भी छोटीछोटी वारदातों में चुप रह जाती है.

(जिन डांसरों से बात हुई है, उन के नाम बदल दिए गए हैं)     

चार्ल्स शोभराज : नेपाल से छूटा, फ्रांस में बसा – भाग 1

जितने भी जघन्य अपराध चार्ल्स शोभराज ने किए, उन के लिए एक हद तक ही उसे दोषी ठहराया जा सकता है. क्योंकि गलत नहीं कहा जाता कि मां के पेट से कोई मुजरिम नहीं बल्कि एक बच्चा पैदा होता है, जो कच्ची मिट्टी की तरह होता है. जैसी परवरिश, माहौल और हालात उसे मिलते हैं, वह उन में ढलता जाता है.

चार्ल्स शोभराज बीती 21 दिसंबर को 19 साल की लंबी सजा काटने के बाद नेपाल की एक जेल से रिहा हुआ. वह जुर्म की दुनिया में एक किंवदंती बन चुका है, जो रिहाई के बाद भी सुर्खियों में रहा.

उसे देख कर लगता नहीं कि वह कभी खूंखार और पेशेवर मुजरिम रहा होगा. जब वह जेल से बाहर आया तो एक संभ्रांत, रईस और समझदार बुजुर्ग लग रहा था. एकदम फिट चुस्तदुरुस्त ठीक वैसा ही जैसा अपनी जवानी के दिनों में दिखता था. एक कामयाब स्मार्ट बिजनैसमैन, एक मौडल या फिर कोई बड़ा आफीसर.

चार्ल्स की जिंदगी की कहानी वाकई फिल्मों जैसी है, जिस में उतारचढ़ावों की भरमार है. उस में रहस्य है, रोमांच है, उस से भी ज्यादा रोमांस है, हिंसा है, चालाकी भी है. और यह खतरनाक मैसेज भी कि जरूरत से ज्यादा आत्मविश्वास और जोखिम भी कभीकभी दुनिया, समाज, सभ्यता और शांति के लिए खतरा बन जाते हैं, बशर्ते उन्हें सही दिशा न मिले तो. यही सब चार्ल्स के साथ हुआ था.

शोभराज एक अंतरराष्ट्रीय प्रेम कथा का पात्र है जिस का पूरा नाम चार्ल्स गुरुमुख शोभराज होतचंद भवनानी कभी हुआ करता था. कहानी 1940 के दशक से शुरू होती है, जब पूरी दुनिया अस्थिरता के दौर से गुजर रही थी. लोग कमाने, खाने और सेटल होने की चिंता में यहां से वहां पलायन कर रहे थे. भारत भी इस से अछूता नहीं था.

इसी दौर में बड़ी तादाद में भारतीय रोजगार की तलाश में यूरोप और दीगर देशों की तरफ भाग रहे थे, जिन्हें गिरमिटिया के खिताब से नवाजा गया था.

ऐसा ही एक महत्त्वाकांक्षी शख्स था शोभराज हेचर्ड भवनानी, जो सिंधी समुदाय से था. पेशे से दरजी और कपड़ा व्यवसायी. भवनानी 1940 के लगभग वियतनाम गए थे और फिर वहीं के हो कर रह गए.

उन्होंने दक्षिणी वियतनाम के सब से बड़े शहर साइगन में डेरा डाला और थोड़ाबहुत पैसा कमाने के बाद जैसा कि आमतौर पर विदेश जाने वाले लोग करते हैं, प्यार करने लगे. उन की प्रेमिका का नाम था त्रान लोआंग फुन, वह पेशे से सेल्सगर्ल थी.

साइगन शहर, जो अब हो ची मिन्ह के नाम से जाना जाता है, में हेचर्ड ने टेलरिंग की दुकान खोल ली जो ठीकठाक चलती थी. हेचर्ड और त्रान एकदूसरे से प्यार करने लगे, लेकिन उन्होंने शादी नहीं की बल्कि लिविंग टुगेदर में रहे. इन दोनों के प्यार की निशानी एक बेटे की शक्ल में 6 अप्रैल, 1944 को दुनिया में आई, जिसे आज दुनिया चार्ल्स शोभराज के नाम से जानती है.

मांबाप के प्यार से वंचित रहा बचपन

इस वक्त में वियतनाम में कुछ भी ठीक नहीं था. देश फ्रांस से आजाद होने के लिए छटपटा रहा था. राजनीतिक और सामाजिक अस्तव्यस्तता के अलावा हिंसा के चलते लोग सहज तरीके से न तो रह पा रहे थे और न ही बेफिक्री से जी पा रहे थे.

शोभराज चूंकि फ्रांसीसी उपनिवेश में पैदा हुआ था, इसलिए कानून के मुताबिक उसे फ्रांस की नागरिकता मिल गई. यह बाद की बात है कि वह किसी सीमा से बंधा नहीं रहा बल्कि जुर्म के लिए उस ने आधी दुनिया की सैर की और जहां भी गया, वहीं खौफनाक वारदातों को अंजाम दिया और अपने नाम और काम के झंडे गाड़ कर आया.

बचपन में वह उतना ही मासूम था, जितना कि संकर नस्ल के एक बच्चे को होना चाहिए. लेकिन उस की मासूमियत परवान नहीं चढ़ पाई. क्योंकि जल्द ही हेचर्ड और त्रान अलग हो गए. तब शोभराज की उम्र इतनी नहीं थी कि वह साथ रहने के और अलगाव के रत्ती भर भी माने समझता.

हालांकि चार्ल्स शोभराज बनने के बाद भी शायद ही वह कभी समझ पाया हो कि मांबाप अलग क्यों हो गए थे और क्यों पिता ने उसे कभी अपनाया नहीं, जिस के सीने से लगने के लिए वह जिंदगी भर तरसता रहा.

हेचर्ड और त्रान को अलग होने का कोई मलाल नहीं हुआ. शोभराज मां के हिस्से में आया जिस ने फ्रांसीसी सैन्य अधिकारी अलफोंस डार्यु से शादी कर ली. जो एक तरह से शोभराज का सौतेला लेकिन ऐसा वैधानिक पिता हो गया, जिस ने कभी उसे अपना नाम नहीं दिया.

हालांकि सौतेले पिता की तरह अलफोंस ने कभी शोभराज के प्रति क्रूरता नहीं दिखाई, लेकिन कभी पिता की तरह दुलारा भी नहीं. पत्नी के प्रेमी का बेटा होने के नाते शोभराज बस उस के लिए था, इस से ज्यादा कुछ नहीं था. यानी वह पिता के प्यार और गोद से महरूम रहा और यह बात जिंदगी भर शोभराज को सालती भी रही.

लेकिन धीरेधीरे शोभराज का मन सौतेले पिता के प्रति भी आक्रोश से भरने लगा. क्योंकि वह अपने सगे बेटे यानी शोभराज के सौतेले भाई आंद्रे को तो प्यार करते थे. मां का झुकाव भी आंदे्र की तरफ बढ़ने लगा था. यही आंद्रे जवान हो कर शोभराज के कई अपराधों में सहयोगी भी रहा.

दुनिया समझते और होश संभालते शोभराज के लिए यह सब असहनीय और तकलीफदेह था, जो अपने आप से ही सवाल करता रहता था कि आखिर मेरा कसूर क्या है, जो मुझे मांबाप का प्यार नहीं मिला. मुझे किस गलती की सजा भुगतनी पड़ रही है.

एक उपेक्षित और त्रासद बचपन गुजारने के बाद शोभराज जब किशोर हुआ तो उस ने सवाल पूछना, रोनागाना और झींकना छोड़ दिया और अपने कदम जुर्म की दुनिया में दाखिल कर दिए. पर यह एहसास तब उसे भी नहीं रहा होगा कि वह बड़ा नामी चर्चित और कुख्यात मुजरिम बन जाएगा.

इस के पहले चार्ल्स को एक फ्रेंच बोर्डिंग स्कूल भेजा गया था, जो उस के लिए एक बेकार की जगह थी. वहां उस का मन नहीं लगा और अकसर वह गैरहाजिर रहता था और जब हाजिर रहता था तो टीचर्स के लिए खासी सिरदर्दी पैदा करता रहता था.

अकसर जो बच्चे उपेक्षा और मांबाप की मजबूरी में पलते हैं, उन की जिंदगी आसान नहीं होती. वे प्रतिशोध और भड़ास से भरे होते हैं. यही शोभराज के साथ हो रहा था, जिस के सिर पर किसी का हाथ नहीं था. कोई संरक्षण नहीं था.

स्ट्रीट जस्टिस : सजा देने का नया तरीका – भाग 1

पंजाब में पिछले लंबे अरसे से नशा भारी परेशानी का सबब बना हुआ है. इस बार सूबे में कांग्रेस की सरकार बनने के पीछे का मुख्य कारण भी यही था. क्योंकि कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणापत्र में पंजाब से नशे को समूल खत्म करने का वादा किया था.

17 मार्च, 2017 को पंजाब राजभवन में प्रदेश के 26वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेते समय कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस की इस घोषणा को एक बार फिर से दोहराया था कि आने वाले एक महीने में उन की सरकार पंजाब से नशे का नामोनिशान मिटा देगी.

इस के बाद जल्दी ही एडीजीपी हरप्रीत सिंह सिद्धू की अगुवाई में एक स्पैशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) का गठन किया गया, जिस में करीब 2 दर्जन आईपीएस और पीपीएस अधिकारियों के अलावा अन्य अफसरों को शामिल किया गया. इन का काम युद्धस्तर पर काररवाई कर के नशा कारोबारियों को काबू कर के पंजाब से ड्रग्स के धंधे को पूरी तरह मिटाना था.

एसटीएफ को मुखबिरों से इस तरह की जानकारी मिलती रहती थी कि पंजाब में ड्रग्स के धंधे के पीछे न केवल एक बड़ा माफिया काम कर रहा है, बल्कि कई बड़े कारोबारी और पुलिसकर्मी भी इस काम में लगे हैं. बीते 3 सालों में पंजाब पुलिस के ही 61 कर्मचारी नशे का धंधा करने के आरोप में गिरफ्तार किए जा चुके हैं. इन में इंटेलीजेंस के कर्मचारियों के अलावा होमगार्ड के जवान, सिपाही, हवलदार और डीएसपी जैसे अधिकारी तक शामिल थे.

लेकिन मुख्यमंत्री के आदेश पर बनी हाईप्रोफाइल एसटीएफ के हत्थे अभी तक कोई भी नशा कारोबारी नहीं चढ़ा. थाना पुलिस द्वारा नशे के छोटेमोटे धंधेबाजों को नशे की थोड़ीबहुत खेप के साथ अलगअलग जगहों से धरपकड़ जरूर चल रही थी. पर एसटीएफ का कोई कारनामा अभी सामने नहीं आया.

crime

शायद ये लोग छोटी मछलियों के बजाय किसी बड़े मगरमच्छ पर जाल फेंकने की फिराक में थे. जो भी हो, आम लोग इस बुरी लत से परेशान थे. पुलिस पर से भी लोगों का विश्वास उठता जा रहा था. बड़ेबड़े कथित ड्रग स्मगलर अदालत से बाइज्जत बरी हो रहे थे. इस समस्या का कोई सीधा समाधान नजर नहीं आ रहा था. जबकि नशे की चपेट में आ कर घर के घर बरबाद हो रहे थे.

बरसों पहले पंजाब में पनपे आतंकवाद पर जब काबू पाना मुश्किल हो गया था तो लोगों ने अपने दम पर आतंकियों से लोहा ले कर उन्हें धराशाई करना शुरू कर दिया था. इस का बहुत ही अच्छा परिणाम भी सामने आया था. जागरूक एवं दिलेर किस्म के लोगों द्वारा उठाए गए इस कदम ने आतंकवाद के ताबूत में आखिरी कील का काम किया था.

अब नशे के मुद्दे पर भी तमाम लोगों की सोच इसी तरह की बनने लगी थी. यहां हम जिस युवक का जिक्र कर रहे हैं, उस का नाम विनोद कुमार उर्फ सोनू अरोड़ा था. उस पर नशे का कारोबार करने का आरोप था.

बताया जाता है कि बठिंडा के कस्बा तलवंडी साबो और आसपास के इलाकों में नशा सप्लाई कर के उस ने तमाम युवकों को नशे की लत लगा दी थी. इन इलाकों के लोग उस से बहुत परेशान थे और उसे समझासमझा कर थक चुके थे. उस पर किसी के कहने का कोई असर नहीं हो रहा था. धमकाने पर भी वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा था.

पास ही के गांव भागीवांदर के लोग तो उस से बेहद खफा थे. वहां के कई आदमी उस के खिलाफ शिकायतें ले कर पुलिस के पास गए थे. पुलिस उस के खिलाफ केस दर्ज कर भी लेती थी, लेकिन वह अदालत से जमानत पर छूट जाता था. नशा तस्करी के 5 केस उस पर दर्ज थे.

विनोद कई बार जेल जा चुका था, लेकिन जमानत पर छूटते ही फिर से इस गलीज धंधे में लग जाता था. 22 मई, 2017 को पुलिस ने उस के पिता विजय कुमार पर भी स्मैक का केस दर्ज किया था, जिस के बाद से वह मौडर्न जेल, गोबिंदपुरा में बंद था.

8 जून, 2017 की बात है. सुबह करीब 9 बजे का वक्त था. विनोद अपनी मोटरसाइकिल पर तलवंडी साबो से अपने गांव लेलेवाल जा रहा था. इस गांव में जाने के लिए मुख्य सड़क से लिंक रोड मुड़ती है. विनोद उसी लिंक रोड पर पहुंचा था कि स्कौर्पियो गाड़ी व टै्रक्टर ट्रौली पर सवार दर्जनों लोगों ने पास आ कर उसे चारों तरफ से घेर लिया. उन के पास पिस्तौलें, लोहे की मोटीमोटी छड़ें, हैंडपंप के हत्थे और गंडासे वगैरह थे.

अनहोनी को भांप कर विनोद फिल्मी अंदाज से बचताबचाता लेलेवाल की ओर भागा. पीछा कर रहे लोग उधर भी उस का पीछा करते रहे. उस समय उस की मोटरसाइकिल की रफ्तार बहुत तेज थी, जिस की वजह से वह अपने घर पहुंच गया. लेकिन मोटरसाइकिल से उतर कर विनोद घर के भीतर घुस पाता, उस के पहले ही लोगों ने उसे पकड़ कर पीटना शुरू कर दिया. इस के बाद उसे स्कौर्पियो में डाल कर गांव भागीवांदर ले गए.

वहां खुले रास्ते पर लिटा कर पहले तो उन्होंने उस की जम कर बेरहमी से पिटाई शुरू कर दी. उस के बाद गंडासे से उस का एक हाथ और दोनों पैर काट दिए. यह सब करते समय कई लोगों ने इस घटना की वीडियो बना कर इस चेतावनी के साथ सोशल मीडिया पर डाल दिया कि आगे से जो भी नशे के धंधे में लिप्त पाया जाएगा, उस का ऐसा ही हश्र होगा. क्योंकि पंजाब से नशा मिटाने का अब और कोई रास्ता नहीं बचा है.

इस बीच जमीन पर लहूलुहान पड़ा विनोद उन लोगों से दया की भीख मांगता रहा, लेकिन किसी को उस पर दया नहीं आई. लोग उस पर फब्तियां कस रहे थे कि अब वह अपने उन आकाओं को क्यों नहीं बुलाता, जिन के साथ मिल कर ड्रग्स का धंधा कर के उन की नौजवान पीढ़ी को नशे के अग्निकुंड में झोंक रहा था.

विनोद पर तरस खाना तो दूर की बात, पूरा गांव यही चाह रहा था कि वह तिलतिल कर के मौत के आगोश में समाए और उस के इस लोमहर्षक अंत का नजारा वे लोग भी देखें, जो नशे के हक में हैं. जमीन पर लहूलुहान पड़ा विनोद शायद कुछ देर बाद वहीं दम तोड़ भी देता, लेकिन किसी तरह बात पुलिस तक पहुंच गई.

प्रियंका को मिला मौत का शेयर – भाग 1

आशीष ने 500-500 रुपए की गड्डियां प्रियंका के सामने मेज पर रखते हुए कहा, ‘‘यह लो तुम्हारे डेढ़ लाख रुपए, वह भी मूलधन में से नहीं, बल्कि शेयर में जो इनवैस्ट कया था, उसी के लाभ के हैं.’’

प्रियंका फायदे की बात सुन कर खुश हुई. तभी आशीष ने कहा, ‘‘प्रियंका, यह देख कर शायद तुम्हें विश्वास नहीं हो रहा है, मगर यह सच है कि मैं जो कहता हूं उस से कभी पीछे नहीं हटता.’’

प्रियंका सिंह की मुलाकात अभी हाल ही में आशीष साहू से अचानक ही हुई थी. वह छत्तीसगढ़ की इस्पात नगरी भिलाई के सैक्टर-7 की रहने वाली थी. पिता बृजेश सिंह एक सरकारी बैंक में मैनेजर थे और वह प्रशासनिक सेवा (आईएएस) की पढ़ाई करने छत्तीसगढ़ की राजधानी बिलासपुर के मन्नू चौक में स्थित एक हौस्टल में रह रही थी.

24 वर्षीय प्रियंका सिंह देखने में तीखे नाकनक्श की आकर्षक युवती थी. वह जब स्कूटी पर हौस्टल से निकलती तो नौजवानों की आंखें उसे देखती रह जाती थीं. आशीष साहू भी उसे अकसर देखा करता था.

एक दिन अचानक ही उस ने देखा कि प्रियंका सिंह स्कूटी से आ रही है, वह उस के मैडिकल स्टोर के सामने आ कर रुकी.

आशीष साहू ने सोचा कि इसे शायद किसी दवाई आदि की जरूरत होगी. वह प्रसन्न भाव से उस की ओर देख रहा था और मन ही मन खुश था कि जिस लड़की को वह अकसर आतेजाते देखता था, आखिर आज उस की दुकान पर आई हुई है.

प्रियंका ने उस से मधुर स्वर में कहा, ‘‘मैं पास ही कोचिंग सेंटर में पढ़ाई करती हूं. वहां कोई मेरी स्कूटी के साथ छेड़छाड़ करते हैं तो क्या मैं आप के यहां यह गाड़ी पार्किंग कर सकती हूं?’’

आशीष साहू ने मुसकरा कर कहा, ‘‘आप बेझिझक अपनी गाड़ी यहां खड़ी कर सकती हैं. यहां आप की स्कूटी पूरी तरह सुरक्षित रहेगी.’’

इस तरह प्रियंका सिंह और आशीष साहू की मुलाकात धीरेधीरे दोस्ती में बदलने लगी.

अब प्रियंका सिंह हौस्टल से चल कर सीधे आशीष साहू के दयालबंद स्थित मैडिकल स्टोर पर आ कर रुकती. वह अपनी स्कूटी खड़ी करती, हायहैलो होती और वह देखते ही देखते आशीष साहू की आंखों से ओझल हो जाती.

एक दिन आशीष ने साहस कर के उस से बातचीत शुरू की. प्रियंका सिंह के आने के पहले ही उस ने चाय मंगा रखी  थी. आशीष ने बड़े ही लरजते हुए कहा, ‘‘प्रियंका, आज तो आप को हमारे यहां चाय पीनी ही होगी. देखो, समय पर आज चाय आ गई है.’’

इस पर प्रियंका सपाट लहजे में बोली, ‘‘हम तो चाय पीते ही नहीं.’’

यह सुन कर आशीष साहू मानो आकाश से जमीन पर गिर पड़ा. क्या कहे अब उसे समझ में नहीं आ रहा था. मगर प्रियंका सिंह दयानतदारी दिखा कर हौलेहौले चलते हुए उस के नजदीक पहुंच गई.

प्रियंका सिंह को पास आते देख कर उसे कुछ अच्छा लगा और उस ने तत्काल कुछ सोचा और घबराहट में कहा, ‘‘अगर आप चाय नहीं पीतीं तो ठंडा पी लीजिए.’’

आशीष साहू की यह बात सुन कर प्रियंका खिलखिला कर हंस पड़ी. वह बोली, ‘‘ठंडा तो नहीं, मगर कौफी जरूर पी लूंगी.’’

इस के बाद धीरेधीरे दोनों में प्रतिदिन हंसीमजाक और बातचीत होने लगी. एक दिन प्रियंका सिंह ने कहा, ‘‘आशीष, तुम्हारे मैडिकल स्टोर पर तो ज्यादा ग्राहक दिखाई नहीं देते.’’

इस पर आशीष साहू ने रहस्यमय ढंग से कहा, ‘‘मैडिकल की दुकान तो सिर्फ मेलमुलाकात की जगह है, मेरा एक दूसरा काम भी चलता है.’’

‘‘अच्छा, क्या दूसरा काम है आप का?’’ प्रियंका ने उत्सुकता से पूछा.

मुसकराते हुए आशीष साहू ने कहा, ‘‘मैं शेयर बाजार में रुपए से खेलता हूं.’’

‘‘अच्छा! अरे वाह, शेयर में तो अच्छी कमाई हो जाती होगी?’’

‘‘हां, मेरा सारा खर्चा उसी से ही तो चलता है और यह मेरा अच्छा लक ही है कि मैं ने जब भी शेयर में पैसे लगाए, तो फायदे में ही रहा हूं.’’

प्रियंका सिंह की उम्र मात्र 24 साल थी, मगर रुपएपैसों के प्रति उसे बहुत ही ज्यादा आकर्षण था. वह अच्छे घर की थी.

पिता के अनुशासन में रुपएपैसों को ले कर के हाथों से बंधी रहती थी. घर में एकएक रुपए का हिसाब देना पड़ता था. पिता बृजेश सिंह बैंक में मैनेजर थे, मगर बड़ा परिवार होने के कारण वह रुपए परिवार में कुछ इस तरह खर्च हो जाते, जैसे आग में घी के छींटे.

हालांकि पिता बृजेश सिंह ने बच्चों की पढ़ाईलिखाई में कोई कोताही नहीं की थी. इसीलिए शायद बचपन से ही उस ने यह सोच रखा था कि उसे बड़ी हो कर खूब सारे रुपए कमाने हैं.

प्रशासनिक सेवा में आने की लगन उस में इसीलिए पैदा हुई थी कि जिला दंडाधिकारी का पद और भरपूर पैसे उस की झोली में एक दिन इस रास्ते ही चल कर आ सकते हैं.

कुछ सोच कर के आशीष साहू से प्रियंका ने कहा, ‘‘क्या शेयर के खेल में सचमुच आप की अच्छी पकड़ है?’’

‘‘हां, अभी 2 दिन पहले ही मैं ने अच्छी कमाई की है. 15 दिनों में ही मैं ने लगभग एक लाख रुपए कमा लिए.’’

आशीष की बातें सुन कर के प्रियंका सिंह की मानो आंखें फटी रह गईं. उस के चेहरे और बातचीत का स्वर धीरेधीरे बदलने लगा. उस ने आंखों को गोलगोल घुमाते हुए कहा, ‘‘अगर मैं तुम्हें कुछ रुपए दूं तो क्या तुम उसे भी शेयर में लगा कर के…’’

प्रियंका सिंह यह अधूरा वाक्य कह कर के चुप हो गई. उस के मुंह से बोलने के शब्द ही नहीं थे कि वह क्या कहे कैसे कहे. मगर आशीष साहू मानो सब कुछ समझ गया और शायद वह जो अपनी बढ़ाई और ऊंचीऊंची बातें कर रहा था, उसे एक ठौर मिल गया.

दो जासूस और अनोखा रहस्य – भाग 1

‘’साहिल, उठो, आज सोते ही रहोगे क्या ’’

अनीता की आवाज सुन कर साहिल उनींदा सा बोला, ‘‘क्या मां, तुम भी न, आज छुट्टियों का पहला दिन है. आज तो चैन से सोने दो.’’

‘‘ठीक है, सोते रहो, मैं तो इसलिए उठा रही थी कि फैजल तुम से मिलने आया था. चलो, कोई बात नहीं, उसे वापस भेज देती हूं.’’ फैजल का नाम सुनते ही साहिल झटके से उठा, ‘‘फैजल आया है  इतनी सुबहसुबह, जरूर कोई खास बात है. मैं देखता हूं,’’ वह उठा और दौड़ता हुआ बाहर के कमरे में पहुंच गया.

‘‘क्या बात है, फैजल, कोई केस आ गया क्या ’’

‘‘अरे भाई, केस से भी ज्यादा धांसू बात है मेरे पास,’’ हाथ में पकड़ी चिट्ठी को लहराते हुए फैजल बोला, ‘‘देखो, अनवर मामूजान का लैटर आया है, वही जो रामगढ़ में रहते हैं. उन्होंने छुट्टियां बिताने के लिए हम दोनों को वहां बुलाया है. बोलो, चलोगे ’’

‘‘नेकी और पूछपूछ  यह भी कोई मना करने वाली बात है भला. वैसे भी अगर हम ने मना किया, तो मामू का दिल टूट जाएगा न,’’ कहतेकहते साहिल ने ऐसी शक्ल बनाई कि फैजल की हंसी छूट गई.

‘‘अच्छा, जाना कब है  तैयारी भी तो करनी होगी न ’’ साहिल ने पूछा.

‘‘चार दिन बाद मामू के एक दोस्त अब्बू की दुकान से कपड़ा लेने यहां आ रहे हैं. 2 दिन वे यहां रुकेंगे और वापसी में हमें अपने साथ लेते जाएंगे,’’ फैजल ने बताया.

‘‘हुर्रे…’’ साहिल जोर से चिल्लाया, ‘‘कितना सुंदर है पूरा रामगढ़. वहां नदी में मछलियां पकड़ना और स्विमिंग करना, सारा दिन गलियों में मटरगश्ती करना, मामू की खुली गाड़ी में खेतों के बीच घूमना और सब से बढ़ कर मामी के बनाए स्वादिष्ठ व्यंजन खाना. इस बार तो छुट्टियों का मजा आ जाएगा.’’

साहिल और फैजल दोनों बचपन के दोस्त थे. दिल्ली के मौडल टाउन इलाके में वे दादादादी के समय से बिलकुल साथसाथ वाली कोठियों में दोनों परिवार रहते आ रहे थे. दोस्ती की यह गांठ तीसरी पीढ़ी तक आतेआते और मजबूत हो गई थी. दोनों को एकदूसरे के बिना पलभर भी चैन नहीं आता था. लगभग एक ही उम्र के, एक ही स्कूल में 10वीं क्लास में पढ़ते थे दोनों. साहिल एकदम गोराचिट्टा और थोड़ा भारी बदन का था. उस की गहरी, काली आंखें और सपाट बाल उस के अंडाकार चेहरे पर खूब फबते थे. ऊपर से वह चौकोर फ्रेम का मोटे शीशे वाला चश्मा पहनता था जो उस की पर्सनैलिटी में चार चांद लगा देता था.

दूसरी तरफ फैजल एकदम दुबलापतला था और उस के गाल अंदर पिचके हुए थे. उस के घुंघराले ब्राउन बाल थे और आंखें गहरी नीली. सांवला रंग होने के बावजूद उस के चेहरे में ऐसी कशिश थी कि देखने वाला देखता ही रह जाता था.

दोनों को बचपन से ही जासूसी का बड़ा शौक था. दोनों का एक ही सपना था कि बड़े हो कर उन्हें स्मार्ट और जीनियस जासूस बनना है इसीलिए हर छोटीबड़ी बात को बारीकी से देखना उन की आदत बन गई थी. एक बार पड़ोस के घर से कुछ सामान चोरी हो जाने पर दोनों ने खेलखेल में जासूस बन कर चोरी की तहकीकात कर कुछ ही घंटे में जब घर के माली को सुबूतों सहित चोर साबित कर दिया था, तोे सब हैरान रह गए थे. घर वालोें के साथसाथ पुलिस इंस्पैक्टर आलोक जो उस केस पर काम कर रहे थे, ने भी उन की बड़ी तारीफ की थी. फिर तो छोटेमोटे केसों के लिए इंस्पैक्टर उन्हें बुला कर सलाह भी लेने लगे थे.

साहिल के घर के पिछवाड़े एक छोटा सा कमरा था जिसे उन्होंने अपनी वर्कशौप बना लिया था. एक आधुनिक कंप्यूटर में अपराधियों की पहचान करने से संबंधित कई सौफ्टवेयर उन्होंने डाल रखे थे, जो केसों को सौल्व करने में उन के काम आते थे.

कंप्यूटर के अलावा उन के पास स्पाई कैमरे, नाइट विजन ग्लासेज, मैग्नीफाइंग ग्लास, स्पाई पैन, पावरफुल लैंस वाली दूरबीन और लेटैस्ट मौडल के मोबाइल भी थे जो समयसमय पर उन के काम आते थे. उन के जासूसी के शौक को देखते हुए साहिल के बैंक मैनेजर पिता ने बचपन से ही उन्हें कराटे की ट्रेनिंग दिलवानी शुरू कर दी थी और 8वीं क्लास तक आतेआते दोनों ब्लैक बैल्ट हासिल कर चुके थे.

अनवर मामूजान के यहां वे दोनों पहले भी एक बार जा चुके थे और दोनों को वहां बड़ा मजा आया था. सो इस बार भी वे वहां जाने के लिए बड़े उत्साहित थे. सोमवार की सुबह खुशीखुशी घर वालों से विदा ले कर दोनों गाड़ी में बैठे व रामगढ़ के लिए रवाना हो गए.

जब वे रामगढ़ पहुंचे तो उस समय शाम के 4 बज रहे थे. हौर्न की आवाज सुनते ही उन के मामूजान अनवर और मामी सकीना अपने दोनों बच्चों जुनैद और जोया के साथ गेट पर आ खड़े हुए. दोनों बच्चे दौड़ कर उन से लिपट गए, ‘‘भाईजान, आप हमारे लिए क्या गिफ्ट लाए हैं ’’ 9 साल की जोया ने पूछा.

‘‘आप अपने वे जादू वाले पैन और कैमरे लाए हैं कि नहीं  मैं ने आप को फोन कर के याद दिलाया था,’’ 11 साल का जुनैद अधीरता से बोला.

‘‘अरे भई, लाए हैं, सबकुछ लाए हैं, पहले घर के अंदर तो घुसने दो,’’ फैजल हंसते हुए बोला, ‘‘आदाब मामू, आदाब मामीजान.’’

‘‘अरे मामू, आप आज क्लिनिक नहीं गए ’’ अनवर मामू के पैर छूने को झुकता हुआ साहिल बोला.

‘‘नहीं, तुम दोनों के आने की खुशी में जनाब क्लिनिक से छुट्टी ले कर घर में ही बैठे हैं,’’ मुसकराते हुए सकीना मामी बोलीं, ‘‘चलो, अंदर चल कर थोड़ा फ्रैश हो लो तुम लोग, फिर गरमागरम चायनाश्ते के साथ बैठ कर बातें करेंगे.’’

तांत्रिक जलेबी बाबा : औरतों पर डोरे डालने का बुरा नतीजा – भाग 1

10जनवरी, 2023. मंगलवार का दिन था. उस दिन हरियाणा के फतेहाबाद की फास्टट्रैक कोर्ट परिसर में पांव रखने की जगह नहीं थी. अतिरिक्त जिला जज बलवंत सिंह का कोर्टरूम लोगों की भीड़ से खचाखच भरा हुआ था. इन में पुलिस, वकील और स्थानीय लोग शामिल थे.

कोर्ट के कटघरे में जो मुजरिम खड़ा था, वह टोहाना का चर्चित तंत्रमंत्र ज्ञाता तांत्रिक एवं महंत अमर पुरी उर्फ बिल्लू था.

हट्टाकट्टा शरीर, गोरा रंग. चेहरे पर दाढ़ीमूंछ और ललाट पर लंबा तिलक. उम्र यही कोई 63 के आसपास. देखने में वह सादगी और सुलझे व्यक्तित्व का लग रहा था. जबकि हकीकत यह थी कि वह महाधूर्त, अय्याश, लंपट और कामुक प्रवृत्ति का था.

अमर पुरी पर आरोप था कि उस ने 120 महिलाओं का यौन शोषण किया था तथा उन की न्यूड वीडियो बना कर उन्हें ब्लैकमेल किया था. उस पर यह आरोप सिद्ध हो गए थे. 5 जनवरी, 2023 को उस पर आरोप तय कर देने के बाद 10 जनवरी को उसे सजा सुनाई जानी थी.

ठीक समय पर अतिरिक्त जिला जज बलवंत सिंह अपने चैंबर से निकल कर अपनी सीट पर आए तो उन के सम्मान में सभी अपनी जगह पर उठ कर खड़े हो गए. जज ने उन्हें बैठ जाने का इशारा किया और अपना स्थान ग्रहण कर लिया.

एक उचटती सी नजर कटघरे में सिर झुका कर खड़े अमर पुरी पर डालने के बाद उन्होंने अपने सामने रखी फाइल पर नजरें जमा दीं और बहुत गंभीर स्वर में कहना शुरू किया, ‘‘आज न्याय के कटघरे में जो व्यक्ति खड़ा है, उस का नाम अमर पुरी है. साधुसंतों का चोला पहन कर धर्म की आड़ में घिनौना खेल खेलने वाला व्यक्ति, जिस ने 120 महिलाओं की धार्मिक आस्था को ठेस पहुंचाई. उन के विश्वास को छला, उन को नशीला पेय पिला कर उन के न्यूड वीडियो बनाए, उन का यौन शोषण किया और उन्हें ब्लैकमेल कर के रुपए ऐंठे. ऐसा व्यक्ति किसी भी तरह दया का पात्र नहीं हो सकता.

‘‘यह अदालत अमर पुरी को आईटी एक्ट, एनडीपीएस एक्ट और आर्म्स एक्ट में दोषी करार दे कर 5 साल तथा रेप केस में 14 साल की सजा सुनाती है, यह सजा एक साथ चलेगी. इस पर 35 हजार का जुरमाना भी लगाया जाता है.’’

कटघरे में खड़ा ढोंगी संत अमर पुरी सजा सुनते ही रोने और गिड़गिड़ाने लगा, रहम की भीख मांगने लगा. लेकिन अतिरिक्त जिला जज बलवंत सिंह सजा सुनाने के बाद उठ कर खड़े हो गए. अदालत की काररवाई समाप्त कर के वह अपने चैंबर में चले गए तो कटघरे में खडे़ अमर पुरी को पुलिस वालों ने कस्टडी में ले लिया. वह अभी भी फूटफूट कर रो रहा था. अमर पुरी के कुकर्मों के बारे में जानने से पहले हम इस ढोंगी के बारे में बताते हैं.

पंजाब के मनसा जिले से आ कर टोहाना (हरियाणा) में बसने वाले अमर पुरी के मांबाप बहुत ही गरीब थे. अमर पुरी का जन्म टोहाना में ही 16 मई, 1958 को हुआ. उस की पढ़ाई में कोई रुचि नहीं थी. उस ने टोहाना के राजकीय उच्च विद्यालय से जैसेतैसे 4 क्लास पास किया, 5वीं में फेल होने के बाद वह फिर कभी विद्यालय में नहीं गया.

वह आवारा किस्म के लड़कों के साथ संगत करने लगा. वहीं से उसे शराब, बीड़ी पीने का शौक लग गया. उसे सही राह पर लाने के लिए मांबाप ने उस की शादी कर दी. तब पत्नी के आकर्षण ने उसे ऐसा बांधा कि वह गलत यारदोस्तों की संगत छोड़ कर पत्नी के दामन से चिपक गया.

परिवार तो बढ़ा लेकिन आमदनी नहीं

रातदिन पत्नी के आगेपीछे मंडराने का परिणाम यह निकला कि वह एक लड़की का बाप बन गया. मांबाप का अपना ही खर्च पूरा नहीं हो पाता था. परिवार बढ़ने लगा तो उन्होंने अमर पुरी को कामधंधा करने के लिए कहा. उधर अमर पुरी की पत्नी ने भी उस पर मेहनतमजदूरी करने का दबाव बनाया तो अमर पुरी ने एक फैक्ट्री में नौकरी तलाश कर ली.

कालांतर में अमर पुरी 4 बेटियों और 2 बेटों का बाप बन गया. अब नौकरी की आय से गुजरबसर नहीं हो सकती थी. मांबाप का साया भी सिर से उठ गया था, जिस से वह हताशनिराश हो गया.

उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह बढ़ते परिवार का बोझ कैसे उठाए. एकदो बार उस के मन में यह खयाल भी आया कि वह किसी नदीतालाब में कूद कर अपनी जिंदगी समाप्त कर ले, ऐसा कर लेने से वह सब झंझटों से मुक्ति पा सकता है, किंतु उस के पीछे उस की बीवीबच्चों का क्या होगा, वह दरदर की ठोकरें खाते घूमेंगे, भीख मांगने पर मजबूर हो जाएंगे.

यही सब सोच कर उस ने आत्महत्या करने का विचार मन से निकाल दिया. वह फटेहाल जिंदगी से बाहर निकलना चाहता था. बहुत सोचविचार करने के बाद उस ने टोहाना के भीड़भाड़ वाले इलाके में जलेबी बेचने के लिए रेहड़ी लगा ली.

धीरेधीरे जलेबी बेचने का काम चल निकला. वह सुबह से रात के 10 बजे तक जलेबियां बनाता और बेचता. इस काम में इतनी कमाई होने लगी कि उस का परिवार का खर्च आराम से चलने लगा.

अमर पुरी को जलेबी बेचने का यह धंधा इतना भाया कि उस ने ताउम्र यही काम करने का विचार मन में बिठा लिया. उस ने एक बोर्ड बनवा कर लगवा लिया, जिस पर ‘अमर पुरी के पंजाबी तोहफे’ लिखवाया. लोगों को उस के हाथों से बनी जलेबियां इतनी पसंद आती थीं कि वह टोहाना में ‘जलेबी बाबा’ के नाम से मशहूर हो गया.

सब कुछ ठीकठाक चल रहा था कि अचानक पत्नी बीमार हो गई. इलाज करवाया लेकिन वह ठीक नहीं हुई और उस की मृत्यु हो गई. अमर पुरी को पत्नी का साथ छूट जाने का गहरा दुख पहुंचा लेकिन बच्चों का खयाल कर के वह इस दुख को सहन कर गया. वह अपना जलेबी का स्टाल चलाता रहा.

एक दिन उस के स्टाल पर एक सांवले रंग का मरियल सा व्यक्ति आया. उस के माथे पर काला तिलक लगा था, सफेद दाढ़ीमूंछ और सिर के खिचड़ी बालों ने उस व्यक्ति को

बहुत रहस्यमयी बना दिया था. वह सफेद धोतीकुरता पहने हुए था. वह व्यक्ति स्टाल पर आ कर अमर पुरी का चेहरा ध्यान से देखने लगा.

एक वेश्या की कहानी

आप मुझे किसी भी नाम से बुला सकते हैं… धंधे वाली या वेश्या. समाज में मुझे कभी भी इज्जत की नजरों से नहीं देखा गया है. मेरे पास हर तरह के ग्राहक आते हैं, इसलिए मुझे थोड़ीबहुत अंगरेजी भी आती है.

मैं मुंबई के करीब ही 15 किलोमीटर के दायरे में एक जिले में रहती हूं. आप रेड लाइट एरिया नियर मुंबई शब्द डाल कर कंप्यूटर पर सर्च करेंगे तो मेरा यह इलाका आसानी से मिल जाएगा. यहां पर तकरीबन 800 औरतें इसी धंधे में लगी हैं.

यों तो हम समाज से अलगथलग रहती हैं पर हमें सब की खबर रहती है. सर्जिकल स्ट्राइक से ले कर ईवीएम घोटाले तक… कश्मीर में पत्थरबाजी से ले कर नक्सली इलाकों में औरतों से किए गए बलात्कार तक…

आप के साफसुथरे किरदार वाले समाज में हमारी जिंदगी के बारे में जानने की बड़ी इच्छा होती है, जैसे हमारा अतीत क्या था? हम कैसे इस दलदल में आईं? हमारी बातचीत का लहजा क्या है? हमारा पहनावा… हमारी अछूत सी जिंदगी… हमारे ग्राहक… और हमारे एचआईवी मरीज होने का डर… सबकुछ जानना चाहते हैं.

कुछ लोगों को लगता है कि यह धंधा आसानी से पैसा कमाने का सब से अच्छा तरीका है. लोगों को लगता है कि हम इस पेशे में मरजी से आई हैं.

मैं एक बात जानना चाहती हूं कि आप किसी भी साधारण औरत से पूछिए कि अगर कोई मर्द आप को गलत नजर से देखता है तो कितना गुस्सा आता है? आप कितना असहज महसूस करती हैं?

जब उस ने आप को छुआ नहीं सिर्फ देखा तो आप असहज हो जाती हैं, तो हमें यह सब कर के कैसे अच्छा लगता होगा? यह सोच जानबूझ कर बनाई गई है कि यह पेशा अच्छा लगने की वजह से फलफूल रहा है.

आप के सभ्य समाज ने इस चलन को मंजूरी सी दे दी है कि मर्द हमारे शरीर को नोचने, तोड़ने और काटने का हक रखते हैं. यह आसानी से पैसा कमाने वाली सोच बिलकुल गलत है. इस पेशे में आने वाली लड़कियां ज्यादातर मजबूर होती हैं, अनपढ़ होती हैं… उन का परिवार बेहद गरीब और लाचार होता है. उन का कोई सहारा नहीं होता है.

कोई उन का ही नजदीकी दोस्त, रिश्तेदार, पड़ोसी उन की मजबूरी का फायदा उठाता है और पैसों के लिए ऐसे नरक में धकेल देता है. मेरे साथ काम करने वाली कुछ लड़कियां तो रद्दी से भी सस्ते दामों पर खरीदी गई हैं.

आमतौर पर 14 साल से 15 साल की लड़की 2,500 रुपए से ले कर 30,000 रुपए के बीच खरीदी जाती है. साल 2017 में एक 16 साल की और दूसरी 14 साल की 2 बहनों को सिर्फ 230 रुपए में खरीदा गया.

2 लड़कियां 230 रुपए में बिक गईं. अगर दोनों लड़कियों का कुल वजन 80 किलो भी था तो इस का मतलब 3 रुपए प्रति किलो… जरा याद कर के बताइए कि आप ने पिछली बार रद्दी अखबार किस भाव में बेचे थे?

शुरुआत के दिनों में खरीद कर लाई गईं लड़कियों को समझाने का काम हमें ही करना पड़ता है. कोई भी लड़की सिर्फ बात करने से नहीं मानती. फिर उसे खूब डरायाधमकाया जाता है. बहुत सारी लड़कियां डर के चलते मान जाती हैं और जो नहीं मानती हैं, उन के साथ बलात्कार करते हैं… मारतेपीटते हैं… बारबार, लगातार… जब तक वे इन जुल्मों के चलते टूट नहीं जातीं और काम करने के लिए हां नहीं कर देतीं.

पर कुछ लड़कियां फिर भी नहीं मानतीं. तब उन को बलात्कार करने के बाद बेहद बुरी तरह से सताया जाता है. कभीकभार उन की हत्या भी कर दी जाती है या वह लड़की खुदकुशी कर लेती है. ऐसी लड़कियों की लाश नदी किनारे या जंगल में पड़ी मिल जाती है जिसे लावारिस बता दिया जाता है.

मैं 18 साल से इस पेशे में हूं. मैं ने भी डर और जख्मों को भोगा है. हर पल मौत से भी बदतर रहा. दूसरी लड़कियों को इस दलदल में धकेले जाते हुए देखा है… और कोई कुछ नहीं कर पाता.

हम सिर्फ एक शरीर हैं. आप का साफसुथरा समाज सबकुछ देखता है और अपने काम में लग जाता है.

अब आइए बताती हूं… अपने ग्राहकों के बारे में.

पहले हमारे ग्राहक अधेड़ हुआ करते थे, पर अब नौजवान और यहां तक कि नाबालिग भी आते हैं.

इस पेशे का एक डरावना चेहरा यह भी है कि नाबालिग बहुत दरिंदे होते हैं. ये लड़के हम से अलगअलग डिमांड करते हैं. वे इंटरनैट पर जैसे सीन देखते हैं उन्हें दरिंदगी के साथ अपनाते हैं. हमारे मना करने पर खतरनाक हो जाते हैं क्योंकि पैसा दे कर मनमानी करना इन का हक है. ये लड़के काफी बेरहम होते हैं. पर हमारे पास चुनाव की गुंजाइश नहीं होती है. किसी तरह से उस वक्त को गुजारना होता है.

समाज में बैठे लोगों को लगता है कि हम बैठेबैठे मलाई खा रही हैं और हमारे पास बेतहाशा पैसे हैं. सच तो यह है कि हमारी हालत को देश के बजट जितना ही मुश्किल है समझना. हमें जब खरीदा जाता है तो वह रकम हमें ब्याज समेत चुकानी पड़ती है, जिसे हम 4 से 8 साल तक ही चुका पाती हैं.

क्या आप को पता है कि हमारी खरीद और बिक्री में लगी हुई पूंजी की ब्याज दरें कितनी होती हैं?

यह हमारा मालिक या दलाल तय करता है. लड़की की उम्र, खरीद की रकम, उस के चेहरेमोहरे… और आखिर में बिचौलिए होते हैं जिस में पुलिस और मानव अधिकार संस्थाएं चलाने वालों का भी हिस्सा होता है. सब मिल कर हमारी कीमत तय करते हैं.

यह भी एक बड़ा सच है कि एक धंधे वाली को मिलने वाले पैसे से बहुत से लोगों के घर पलते हैं. पर वह सभी लोग सभ्य समाज का हिस्सा बन जाते हैं और हम बदनाम गलियों की रोशनी…

शुरुआत के दिनों में सिर्फ हमें खाना और कपड़ा व मेकअप का कुछ सामान ही दिया जाता है. मुझे साल 1997 में महज 8,000 रुपए में खरीदा गया था. शुरू के 5 साल तक मुझे कभी कुछ नहीं मिला यानी 8,000 रुपए चुकाने के लिए मुझे 1000 से ज्यादा लोगों के साथ जिस्मानी संबंध बनाने पड़े.

मतलब प्रति ग्राहक मेरी लागत 8 रुपए थी. हालांकि अब इस समय हर लड़की को एक ग्राहक से 100 से 150 रुपए मिल रहे हैं.

आमतौर पर खुद का सौदा करने के लिए मजबूर एक लड़की महीने में 4,000 से 6,000 रुपए कमाती है. इस के बाद उसे घर का किराया 1,500 रुपए, खानापीना 3,000 रुपए, खुद की दवा 500 रुपए और बच्चों की पढ़ाईलिखाई अगर मुमकिन हो पाई तो 500 रुपए और सब से ज्यादा खर्च हमारे मेकअप का.

आप सोचते होंगे कि मेकअप की क्या जरूरत है? पर यदि मेकअप ही नहीं होगा तो ग्राहक हमारे पास नहीं आएगा.

पिछले 18 सालों में देशी और विदेशी तकरीबन 200 गैरसरकारी संस्थाएं देखी हैं. इन में से 7-8 को छोड़ कर बाकी सब फर्जी हैं.

ऐसा लगता है कि सरकारी और गैरसरकारी संस्थाएं मिल कर हमारी बस्तियों को बनाए रखने के लिए काम कर रही हैं.

हमारे लिए ऐसी संस्थाएं चंदा मांगती हैं, डौक्यूमैट्री फिल्में बनाती हैं… पर वह चंदा हमारे पास कभी नहीं पहुंचता.

अच्छी फिल्म बनने पर डायरैक्टर को और काम करने वाले कलाकारों को अवार्ड मिल जाता है, और हम जहां के तहां फंसी रहती हैं.

हम भी काम करना चाहती हैं. हम आलसी नहीं हैं. पर सच तो यह है कि हमें इस दलदल से निकलने ही नहीं देना चाहते समाज के ये ठेकेदार. हम जैसी औरतों का 2 बार जन्म होता है. एक बार मां के पेट से… और दोबारा समाज में धंधे वाली के रूप में.

हमारी सामाजिक जिंदगी भी आप की जैसी ही है. हम भी उत्सव मनाते हैं. जैसे ईद, दीवाली, क्रिसमस… सबकुछ… उस की बहुत बड़ी वजह है कि हमारे इलाके में सभी राज्यों से और विदेशी जैसे नेपाल, बंगलादेश, म्यांमार, रूस, आयरलैंड और भी बहुत से देश की लड़कियां इस चक्रव्यूह में फंसी हुई हैं.

हमारा रहनसहन पहले अलग था, पर अब नहीं… हमारी भाषा अलग है, हमारे धर्म अलग हैं, हमारी जाति अलग है… पर 18 साल से एकसाथ रहतेरहते हम लोगों ने एकदूसरे को अपना लिया है.

क्या आप ने कभी सुना है कि ऐसे इलाके में कभी दंगे हुए? झगड़े हुए? नहीं… क्योंकि हम एकदूसरे के दर्द के रिश्ते से जुड़ी हुई हैं.

मुझे कभीकभी फख्र महसूस होता है धंधे वाली होने पर… क्योंकि हम में बहुत एकता है, प्यार है, ईमानदारी है, इनसानियत है… हम में दर्द है और दर्द के होने का एहसास भी जिंदा है.

पर जिस समाज से आप आते हैं उस समाज में इन सारी बातों के लिए कहीं कोई जगह नहीं है और इसीलिए हमारे लिए भी आप के उस समाज में कहीं कोई जगह नहीं है. न दिल में, न समाज में.

अगर कुछ मिला है तो वह है नफरत और बातबात पर वेश्या की गाली… आप के लिए यह गाली होगी, पर यह हमारी जिंदगी है. एक ऐसी जिंदगी जिस को हम ने खुद नहीं चुना. हमें जबरन इस में धकेला गया और निकलने नहीं दिया जा रहा है.

एक बार दिल पर हाथ रख कर बताइए कि क्या आसान है एक धंधे वाली की जिंदगी?

97 करोड़ की पुरानी करेंसी का खेल

आनंद खत्री का नाम पूरे कानपुर क्या देश भर के कारोबारी लोगों के बीच जानापहचाना है. उन की कई पीढि़यां कपड़ा कारोबार से जुड़ी रही हैं. कपड़ा व्यापार के साथ आनंद ने होटल और रियल एस्टेट का बिजनैस भी शुरू कर दिया था.

बीती 16 जनवरी की सुबह जब आनंद के सभी ठिकानों पर पुलिस की टीम के साथ आयकर और रिजर्व बैंक के अधिकारियों ने छापेमारी की तो पूरा कानपुर सकते में रह गया. शहर भर में यह बात तेजी से फैली.

हर आदमी यही सोच रहा था कि ऐसा क्या हो गया, जिस से आनंद खत्री के यहां पुलिस ने इतनी बड़ी काररवाई की है. कानपुर वासियों की आंखें तब खुली की खुली रह गईं, जब उन्हें पता चला कि आनंद खत्री के यहां से 97 करोड़ की पुरानी करेंसी वाले नोट मिले हैं. पुलिस ने जब गाडि़यों में बक्से लादने शुरू किए तो छापे का सच सामने आ गया.

नोटबंदी के एक साल बाद उत्तर प्रदेश की आर्थिक राजधानी कानपुर में 97 करोड़ की पुरानी करेंसी मिलना आश्चर्य की बात थी, क्योंकि पूरे देश में इतनी बड़ी संख्या में पुराने नोट बरामद होने का यह पहला मामला था.

नोटबंदी लागू होने के दिन 500 रुपए के 1716.6 करोड़ नोट और 1 हजार के 8 करोड़ नोट बाजार में थे. इस तरह से 15.44 लाख करोड़ के नोट प्रचलन में थे. इन में से 15.28 लाख करोड़ के नोट रिजर्व बैंक के पास वापस आ गए पर करीब 1 फीसदी नोट वापस नहीं आए. मतलब 16050 करोड़ रुपए के हजार और 5 सौ के नोट वापस नहीं आए.

रिजर्व बैंक इन नोटों को कालाधन मान कर चल रही थी. रिजर्व बैंक, आयकर विभाग सहित कुछ दूसरे विभागों के साथ मिल कर इन पैसों को तलाशने का काम कर रही है. मनी चेंजर व मल्टीनेशनल कंपनियों पर नजर रखने के दौरान आयकर विभाग को पता चला कि हैदराबाद और कानपुर में एनआरआई के जरिए पुरानी करेंसी को बदलने का काम हो रहा है.

crime story a corrupt game of 97 years old currency

यह जानकारी मिलने के बाद रिजर्व बैंक के 4 अफसरों की अगुवाई में आयकर और पुलिस विभाग ने कानपुर में खोजबीन शुरू की. पुलिस को यह पता चल गया था कि मनी चेंजर के इस गेम में कानपुर के नामी उद्योगपति आनंद खत्री की भूमिका संदेह के घेरे में है.

आनंद खत्री कानपुर के बड़े उद्योगपति हैं. कपड़े के बिजनैस के अलावा वह होटल संचालन और बिल्डर का काम भी करते हैं. प्रभावशाली आनंद खत्री के ऊपर हाथ डालना आसान नहीं था. ऐसे में पुख्ता जानकारी मिलनी जरूरी थी.

आनंद खत्री का परिवार कई पीढि़यों से कानपुर में कपड़ों का कारोबार करता आ रहा है. उन के पिता श्यामदास खत्री कानपुर में कपड़ा कमेटी के सदस्य रह चुके थे. उन का विभिन्न तरह के कपड़ों का थोक कारोबार था.

आनंद खत्री के 6 भाई हैं. आनंद अपने 3 भाइयों गोवर्धन, तुलसीदास और हरीश के साथ मिल कर काहू कोठी में कपड़ों का कारोबार देखते हैं. यहीं से वह प्रौपर्टी रीयल एस्टेट और होटल का कारोबार भी देखते हैं. पुलिस पूरे मामले में पक्की खबर होने के बाद ही आनंद खत्री पर हाथ डालने का साहस कर सकी.

आयकर विभाग के पास पुख्ता सबूत थे कि आनंद खत्री अपने साथियों के साथ मिलीभगत से मनी चेंजर का काम करते हैं. आनंद खत्री के नेटवर्क में कई ऐसे ब्रोकर थे, जो कमीशन ले कर उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश में रीयल एस्टेट कारोबारियों और बिजनैसमैन से पुराने नोट ले कर उन्हें नए नोटों में बदलने का काम कर रहे थे. इस के बदले वह मनी चेंजर ब्रोकर को कमीशन देते थे.

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दिल्ली और हैदराबाद से भी पुराने नोटों को नए में बदला जाना था. पुराने नोटों को दिल्ली और हैदराबाद ले जाने के 3 रास्ते थे. पहला रूट कानपुर से वाराणसी-कोलकाता-हैदराबाद का था, दूसरा रास्ता वाराणसी-बागपत-मीरजापुर वाया दिल्ली का था और तीसरा रूट दिल्ली से कोलकाता का.

पुलिस ने बताया कि नोट बदलने के इस खेल में नेपाल का कनेक्शन भी सामने आया है. पुलिस को आनंद खत्री के साथ काम करने वाले हैदराबाद निवासी कुटेश्वर के मोबाइल संदेश भी मिल गए, जिस में नोट बदलवाने संबंधी कई मैसेज थे. अब पुलिस के पास पुख्ता सबूत थे कि मनी चेंज का बड़ा खेल कानपुर में खेला जा रहा है.

16 जनवरी, 2018 को कानपुर पुलिस, आयकर विभाग और रिजर्व बैंक की टीम ने संयुक्त रूप से आनंद खत्री के कई ठिकानों पर छापेमारी की तो 96.44 करोड़ के पुराने नोट पकड़ में आ गए. ये नोट 80 फीट रोड और गुमटी नंबर 5 स्थित होटलों और आनंद खत्री के घर में बक्सों में भरे मिले.

पुलिस टीम की अगुवाई आईजी आलोक कुमार, एसएसपी अखिलेश कुमार, एसपी पश्चिम डा. गौरव ग्रोवर, एसपी पूर्व अनुराग आर्या सहित कई अधिकारियों ने की. पुलिस ने स्वरूपनगर थाने को अपना औफिस बना लिया था.

टीम को पुरानी करेंसी का तो पता चल चुका था, पर यह बात समझ नहीं आ रही थी कि इस करेंसी को कहां और कैसे खपाया जा रहा था. ऐसे में पुलिस ने नेपाल पुलिस के साथ मिल कर इस मामले को हल करने का प्रयास किया. पुलिस को लग रहा था कि नेपाल के जरिए ही पुरानी करेंसी नई करेंसी में बदली जा रही होगी.

आनंद खत्री के पास 40 से ज्यादा प्रौपर्टीज के दस्तावेज मिले. जबकि कैश में 3 करोड़ की जगह केवल 2 लाख रुपए ही मिले. शोरूम में कपड़े का भारी स्टौक मिला, जिस का मिलान करना कठिन काम था.

पुलिस ने आनंद खत्री के परिवार के लोगों से भी पूछताछ की. प्रौपर्टी के 40 दस्तावेज में से कई दूसरों के नाम पर निकले. पुलिस को बताया गया कि आनंद प्रौपर्टी की खरीदफरोख्त का काम करते हैं. ये दस्तावेज उन लोगों के हैं, जिन्होंने अपनी प्रौपर्टी बेचने के लिए दस्तावेज उन्हें दिए थे. पुलिस को यह बात समझ नहीं आई, इसलिए वह इस की तहकीकात में लग गई.

पुलिस ने इस मामले में 16 लोगों को गिरफ्तार किया. इन में आंध्र प्रदेश की रहने वाली महिला राजेश्वरी सहित लखनऊ के अनिल यादव, आनंद, मोहित, संतोष, संजय, संतकुमार, ओंकार, अनिल, रामाश्रय, संजय कुमार, धीरेंद्र गुप्ता, संजीव अग्रवाल, मनीष अग्रवाल और अली हुसैन प्रमुख थे.

अनिल यादव लखनऊ में रहता था. उस ने खुद को समाजवादी पार्टी के एक बडे़ नेता का करीबी बताया. वह प्रौपर्टी डीलिंग का काम करता था. ये लोग आपस में मिल कर इस खेल को अंजाम देते थे. नोटों की गिनती करना और कहानी का राजफाश करना सरल नहीं था.

ऐसे में नोटों की गिनती के काम को पूरा करना पहली जरूरत थी. मंगलवार 16 जनवरी से रिजर्व बैंक के 4 बड़े अधिकारियों के साथ यह काम शुरू हुआ.

2 बड़ी मशीनों से 4 घंटे की कड़ी मेहनत के बाद नोटों की गिनती शुरू हुई, जिस में कुल 96 करोड़ 62 लाख रुपए के नोट निकले. सीओ कोतवाली अजय कुमार ने सारे नोट अलगअलग बक्सों में बंद करा दिए. पकड़े गए लोगों के खिलाफ धोखाधड़ी, षडयंत्र रचने की धारा और एबीएन एक्ट के तहत रिपोर्ट दर्ज की गई. आरोपी 17 जनवरी की शाम कोर्ट में पेश किए गए, जहां से उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.