श्रद्धा मर्डर केस : 35 टुकड़ों में बिखर गया प्यार – भाग 5

सारा सामान जुटाने के बाद लाश को कमरे से जुड़े बाथरूम में ले जा कर आरी से कई टुकड़े काटे. हाथपैर और धड़ के 35 टुकड़े किए. फिर वह पौलीथिन में पैक कर फ्रिज में रख दिए. रूम फ्रेशनर को कमरे में फैला दिया. थोड़े से पानी भरे बरतन में गुलाब की पंखुड़ी डाल कर वह बरतन बालकनी में रख दिया, ताकि कमरे से बदबू नहीं आए.

उस के बाद उस ने 18 दिनों तक यानी 5 जून तक श्रद्धा के 35 टुकड़ों में कटी लाश को ठिकाने लगाता रहा. वह टुकड़ों को बैग में डाल कर रोजाना आधी रात में महरौली के जंगल के अलगअलग हिस्से में फेंकता रहा.

पुलिस की छानबीन से पाया गया कि उस ने करीब 20 किलोमीटर के दायरे में तमाम टुकड़े फेंके थे. उस ने 100 फुटा एमबी रोड, श्मशान के पास के नाले, महरौली के जंगल और छतरपुर में धान मिल परिसर में ये टुकड़े फेंके थे.

जब तक फ्रिज में लाश रखी रही, तब वह औनलाइन खाना मंगा कर खाता रहा. बचा हुआ खाना भी उसी फ्रिज में रखता था, जिस में प्रेमिका की लाश के टुकड़े रखे थे. जब कभी उसे श्रद्धा के साथ गुजारे गए हसीन पलों की याद आती तो फ्रिज में रखे उस के सिर को बाहर निकाल कर गालों को स्पर्श कर लेता था.

फ्लैट में वह सामान्य तरह की दिनचर्या का पालन कर रहा था. जब तक लाश के टुकड़ों को ठिकाने नहीं लगा देता, तब तक नहीं सोता था. हालांकि लाश को काटते हुए आरी से उस का भी हाथ कट गया था. उस की मरहमपट्टी के लिए पास के ही डा. अनिल कुमार की क्लिनिक पर गया था.

जख्मी आफताब के बारे में डाक्टर ने पुलिस को बताया कि वह 20 मई की सुबह के समय उन के क्लिनिक आया था. उस का हाथ कटा हुआ था और खून भी निकल रहा था. वह बहुत आक्रामक और बेचैन लग रहा था.

जब मैं ने चोट के बारे में उस से पूछा तो उस ने बताया कि फल काटते समय उस का हाथ कट गया था. वह बातें काफी कौन्फिडेंस के साथ आंखें मिला कर कर रहा था. वह अंगरेजी में बोल रहा था. उस ने बताया कि वह मुंबई से है और दिल्ली आया है, क्योंकि यहां आईटी सेक्टर में अच्छा अवसर है.

उस ने श्रद्धा के शव के 35 टुकड़े कर दिए थे, लेकिन वह सिर को क्षतविक्षत नहीं कर पाया था. फ्रिज में रखे सिर को अपने प्यार की याद में बारबार निहारता था. श्रद्धा के सिर को उस ने सब से आखिर में ठिकाने लगाया था.

श्रद्धा के शव को ठिकाने लगाने के दौरान आफताब बदबू से बचने के लिए कई कैमिकल्स का इस्तेमाल भी करता रहा. पुलिस सूत्रों के मुताबिक वह आर्थोबोरिक ऐसिड (बोरिक पाउडर), फार्मेल्डिहाइड और सलफ्यूरिक एसिड खरीद कर लाया था. इस की जानकारी उस ने गूगल सर्च कर मालूम की थी.

श्रद्धा की हत्या के बाद आफताब ने खुद को बचाने के लिए न केवल उस की लाश के टुकड़ों को ठिकाने लगाया, बल्कि किसी को शक न हो, इसलिए श्रद्धा का इंस्टाग्राम अकाउंट भी लगातार चलाता रहा. वह श्रद्धा बन कर उस के दोस्तों से चैटिंग करता था.

फिर उस ने 10 जून को इंस्टाग्राम चलाना बंद कर दिया. इसी तरह से आफताब ने श्रद्धा की हत्या के बाद उस के क्रेडिट कार्ड का बिल भी चुकाया. उसे यह डर था कि अगर उस के के्रडिट कार्ड का बिल नहीं चुकाया तो ड्यू डेट के बाद बैंक से श्रद्धा के घर वालों के पास काल जाएगी और फिर वे श्रद्धा से संपर्क करने की कोशिश करेंगे.

दक्षिणी दिल्ली के वसंत कुंज और महरौली के आसपास बेहद घने और 43 एकड़ में फैले जंगलों में श्रद्धा की लाश के टुकड़े की तलाश करना काफी चुनौती का काम है.

कथा लिखे जाने तक दिल्ली पुलिस को महरौली के जंगल से लाश के 12 पार्ट ही मिले थे, जिन के बारे यह कहना मुश्किल था कि वह श्रद्धा के ही हो सकते हैं. पुलिस उस के सिर को तलाश नहीं कर पाई थी.

सिर मिलने से मृतका की पहचान साबित हो सकती है, लेकिन पुलिस श्रद्धा के पिता के डीएनए से मिलान कर शव की शिनाख्त की कोशिश कर रही थी. हड्डियों को डीएनए सैंपलिंग के लिए भेजा गया था.

आफताब का शातिराना और संदिग्ध अंदाज

पुलिस ने बताया कि आफताब ने वारदात को अंजाम देने के बाद खून साफ करने के लिए फ्रिज और कमरे को सल्फर हाइपोक्लोरिक एसिड से साफ किया. इसी वजह से खून के धब्बे नहीं मिले. केवल एक धब्बा किचन में मिला था, पर जांच रिपोर्ट आने से पहले यह कहना मुश्किल है वो खून किस का है.

दिल्ली पुलिस ने आरोपी आफताब को फ्लैट पर ले जा कर क्राइम सीन को रीक्रिएट कर हत्याकांड की तह में जाने की कोशिश की है. आफताब की आदतों और उस के दूसरी लड़कियों के साथ संबंध होने के खुलासे के बाद हत्याकांड के कई कारण बताए जा रहे हैं.

सीन रीक्रिएशन से यह पता चला कि वारदात की रात जब अफताब और श्रद्धा के बीच झगड़ा हुआ था, तब आफताब ने पहले श्रद्धा की जम कर पिटाई की थी.

पिटाई से श्रद्धा बेसुध हो गई थी, जिस के बाद आफताब श्रद्धा की छाती पर बैठ गया था और उस का गला दबा कर मार डाला था. क्राइम सीन रीक्रिएट करने के लिए दिल्ली पुलिस फ्लैट में एक पुतला ले कर गई थी. घटनास्थल पर आफताब को भी ले जाया गया था.

आफताब अमीन पूनावाला मुंबई का रहने वाला है. कहने को तो वह एक बढि़या शेफ है. जिस तरह श्रद्धा ने मुंबई के एक नामी संस्थान से मास कम्युनिकेशन में मास्टर डिग्री की थी तो आफताब ने भी मुंबई के एक नामी कालेज एल.एस. रहेजा से बैचलर इन मैनेजमेंट स्टडीज की पढ़ाई की थी.

आफताब को फूड ब्लौगिंग का शौक है. इस ने खुद का फूड ब्लौग वेबसाइट बनाया है. इस का सोशल मीडिया प्रोफाइल देखने पर कई चौंकाने वाली बातें सामने आईं. उस के सोशल मीडिया प्रोफाइल से पता चला कि वह एलजीबीटीक्यू कम्युनिटी यानी स्त्रीस्त्री, पुरुषपुरुष समलैंगिक और बाइसैक्सुअल समुदाय, एसिड विक्टिम और वीमन राइट्स का समर्थक है.

दीपावली पर पटाखों की जगह अपने अंदर के अंहकार को जलाने की बात करने वाले आफताब ने अपने कई शातिराना और संदिग्ध अंदाज से पुलिस को चकमा देने की कोशिश की है. पुलिस इस ऐंगल से भी पुलिस जांच कर रही है कि कहीं ओपन रिलेशनशिप और गे लेस्बियन का शौक हत्या की वजह तो नहीं है.

उस ने हत्या की वारदात के 10-12 दिनों के बाद ही बंबल डेटिंग ऐप के जरिए ही एक युवती को दिल्ली के फ्लैट पर बुलाया था. उस के साथ शारीरिक संबंध भी बनाए थे. उस दौरान श्रद्धा की लाश के टुकड़े फ्रिज में ही रखे हुए थे.

आफताब ने मुंबई पुलिस को न केवल चकमा दिया, बल्कि अपने परिवार की नजरों में भी सहज और सामान्य बना रहा. इसे देखते हुए दिल्ली पुलिस की निगाह में श्रद्धा मर्डर केस का एकमात्र आरोपी आफताब मानसिक तौर पर बेहद शातिर है.

दिल्ली पुलिस द्वारा गिरफ्तारी के बाद उसे अपनी कंपनी से ईमेल पर नौकरी से निकाले जाने का नोटिस भी मिला. वह उस वक्त तक एक निजी कंपनी क्लाइंट सर्विसिंग वर्टिकल में एक एसोसिएट के तौर पर काम कर रहा था.

उस ने हत्या के करीब एकदो सप्ताह बाद ही कालसेंटर में काम करना शुरू कर दिया था. उस का काम कंपनी के उत्पादों और सेवाओं को बेचना था. लेकिन पिछले 8-9 दिनों से काम पर नहीं आने के कारण उसे टर्मिनेशन नोटिस भेज गया था.

इस केस में नएनए खुलासे होने के क्रम में यह भी पता चला कि श्रद्धा को मई में मौत के घाट उतारने के बाद भी आफताब उस के एटीएम और क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल करता रहा.

इस के अलावा उस ने श्रद्धा के अकाउंट से औनलाइन पैसे भी ट्रांसफर किए. आफताब की इस एक गलती ने उस की पोल खोल दी और पुलिस को केस को सुलझाने में मदद मिली.

श्रद्धा का फोन 26 मई, 2022 को बंद हुआ था और पुलिस ने जांच में पाया कि श्रद्धा का फोन 22 मई से 26 मई के बीच औनलाइन पैसे ट्रांसफर करने के लिए इस्तेमाल हुआ. इस दौरान श्रद्धा के बैंक अकाउंट से 54 हजार रुपए आफताब के अकाउंट में ट्रांसफर हुए थे और जिस समय फोन से औनलाइन ट्रांजैक्शन हुआ, तब फोन की लोकेशन छतरपुर (दिल्ली) ही थी.

कथा लिखने तक पुलिस आफताब के खिलाफ ज्यादा से ज्यादा सबूत जुटाने की कोशिश कर रही थी ताकि वह अदालत से उसे सख्त सजा दिलवाने में सफल हो सके. पुलिस उस का नारको टेस्ट भी कराने की तैयारी कर रही थी. द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

अनिता की समझदारी : इंस्पेक्टर सबको थाने क्यों ले गए

गरमी की छुट्टियों में पापा को गोआ का अच्छा और सस्ता पैकेज मिल गया तो उन्होंने एयरटिकट बुक करा लिए. अनिता और प्रदीप की तो जैसे मुंहमांगी मुराद पूरी हो गई थी. एक तरफ जहां हवाईयात्रा का मजा था वहीं दूसरी तरफ गोआ के खूबसूरत बीचिज का नजारा देखने की खुशी थी. अनिता ने जब से अपने सहपाठी विजय से उस की गोआ यात्रा का वृत्तांत सुना था तब से उस के मन में भी गोआ घूमने की चाह थी.

आज तो उस के पांव जमीं पर नहीं पड़ रहे थे. बस, इंतजार था कि कब यात्रा का दिन आए और वे फुर्र से उड़ कर गोआ पहुंच गहरे, अथाह समुद्र की लहरों का लुत्फ उठाएं. उस का मन भी समुद्र की लहरों की तरह हिलौरे मार रहा था. अनिता 12वीं व प्रदीप 10वीं कक्षा में आए थे. हर साल पापा के साथ वे किसी हिल स्टेशन पर रेल या बस द्वारा ही जा पाते थे, लेकिन पहली बार हवाई यात्रा के लुत्फ से मन खुश था.

आखिर इंतजार की घडि़यां समाप्त हुईं और वह दिन भी आ गया जब वे अपना सामान पैक कर कैब से एयरपोर्ट पहुंचे और चैकिंग वगैरा करवा कर हवाईजहाज में बैठे. करीब ढाई घंटे के मजेदार हवाई सफर के बाद वे दोपहर 3 बजे गोआ एयरपोर्ट पहुंच गए, जहां बाहर होटल का कर्मचारी हाथ में तख्ती लिए उन्हें रिसीव करने आया था. बाहर निकलते ही सामने होटल के नाम की तख्ती लिए कर्मचारी को देख प्रदीप बोला, ‘‘वह रहा पापा, हमारे होटल का कर्मचारी.’’

पापा उस ओर मुखातिब हुए और उस व्यक्ति को अपना परिचय दिया. उस ने उन्हें एक तरफ खड़े होने को कहा और अन्य सवारियों को देखने लगा. फिर सब सवारियों के आ जाने पर उस ने अपनी ट्रैवलर बस बुलाई और सब को ले कर होटल रवाना हो गया. अनिता ने जिद कर खिड़की की सीट ली. ट्रैवलर बस सड़क किनारे लगे ऊंचेऊंचे नारियल के पेड़ों से पटी सड़कों पर दौड़ती जा रही थी. हरियाली, समुद्र के साइडसीन व मांडवी नदी पर बने पुल से बस गुजरी तो बड़ेबड़े क्रूज को नदी में तैरते देख अनिता ‘वाऊ’ कहे बिना न रही. होटल पहुंचे तो शाम हो चुकी थी. पापा ने बताया, ‘‘यहां क्रूज का लुत्फ उठाना अलग ही मजा देता है, थोड़ा आराम कर लेते हैं फिर क्रूज के सफर का मजा लेंगे.’’

ठीक 6 बजे सभी फ्रैश हो कर क्रूज की सवारी के लिए रवाना हो गए. रास्ते में प्राकृतिक नजारे, हरियाली, नारियल के पेड़ों का मनोरम दृश्य देखते ही बनता था. अनिता और प्रदीप ने कईर् सैल्फी लीं.

टैक्सी से उतरते ही सामने खड़े क्रूज को देख वे हतप्रभ रह गए. आते समय मांडवी नदी में तैरता क्रूज कैसे छोटी सी नाव सा दिख रहा था, पर वास्तव में दोमंजिला यह जहाज कितना बड़ा है. क्रूज के अंदर का नजारा भी दिलचस्प था. यहां छत पर डीजे बज रहा था तो निचली मंजिल पर खानेपीने की दुकान व अन्य इंतजाम था. क्रूज की छत से सनसैट का बहुत ही सुंदर नजारा दिख रहा था. लगभग एक घंटा क्रूज का लुत्फ उठा, मांडवी नदी की सैर कर स्टेज पर वहां के लोकल नृत्य देख वे फूले न समाए. उन्होंने यहां कई फोटो लिए. उन का यहां से वापस आने का मन नहीं कर रहा था.

अगले दिन जब वे बीचिज घूमने निकले तो अनिता ने डिमांड की कि अंजुना बीच चलते हैं, क्योंकि उस के सहपाठी विजय ने वहां के अप्रतिम सौंदर्य के बारे में बताया था.

‘‘हांहां, क्यों नहीं,’’ पापा ने कहा और टैक्सी से वे अंजुना बीच के लिए रवाना हो गए. अंजुना तट के पास वर्ष 1920 में निर्मित अलबुकर्म का महल है जो 8 स्तंभों से घिरा है. इसे देख वे बीच पर आ कर लहरों का मजा लेने लगे.

तभी पापा के पास 2 व्यक्ति आए और अपने होटल के बारे में बताते हुए बोले, ‘‘हम सिर्फ होटल का प्रचार कर रहे हैं साथ ही आप को गिफ्ट भी देंगे. आज के लकी स्कीम वाले ब्रौशर हमें दिए गए हैं. बस, आप अपना फोन नंबर और कहां से आए हैं बताएं और कार्ड स्क्रैच करें,’’ ब्रौशर में कई मुफ्त गिफ्ट के फोटो छपे थे.

पापा ने फोन नंबर व नाम आदि लिखवाया व कार्ड स्क्रैच किया तो उस में मोबाइल लिखा मिला जिस से पापा के चेहरे पर भी मुसकुराहट आ गई. फिर उन दोनों ने उत्साहित होते हुए पापा को बताया कि हम आप को अपना होटल दिखाएंगे. जहां ले जाना व वापस छोड़ना फ्री रहेगा, फिर गिफ्ट देंगे.

पापा को लालच भी आया सो वे उन की बात मान टैक्सी में बैठ गए, लेकिन अनिता को यह अटपटा लग रहा था. वह मन ही मन सोच रही थी कि भला कोई किसी को फ्री में कुछ भी क्यों देगा? लगभग 2 किलोमीटर चल कर वह टैक्सी वाला उन्हें एक महलनुमा होटल के रिसैप्शन पर छोड़ कर चला गया. रिसैप्शन पर बैठी रिसैप्शनिस्ट ने पापा से हाथ मिलाया व अपना परिचय देते हुए बताया कि हम आप तीनों के लिए गिफ्ट भी प्रोवाइड करेंगे. बस, आप यह फौर्म भर दें.

फौर्म में नाम, पता, फोन नंबर और क्रैडिट कार्ड की डिटेल तक मांगी गई थी. साथ ही उन्होंने क्रैडिट कार्ड दिखाने को भी कहा. फिर अंदर से 2 युवतियां आईं जो देखने में ठीक नहीं लग रही थीं, उन्होंने भी पापा से हाथ मिलाया. रिसैप्शनिस्ट ने बताया कि ये दोनों युवतियां आप को होटल दिखाएंगी, लेकिन अनिता को उन की बातें खल रही थीं, ‘आखिर क्यों कोई फ्री में किसी को महंगे मोबाइल गिफ्ट करेगा सिर्फ होटल दिखाने के लिए?’ तभी उन में से एक युवती बड़ी अदा दिखाती हुई बोली, ‘‘आइए न, आप को होटल दिखाती हूं. हमारे होटल में हर तरह की सुविधा है.’’

अभी वह कुछ और कहती कि अनिता ने पापा को बुलाया और कहा, ‘‘पापा क्या आप मेरी बात समझ पाएंगे. मुझे लगता है ये लोग फ्रौड हैं. रूम दिखाने के बहाने कस्टमर को रूम में ले जाते हैं और युवती को अकेले में तंग करने का आरोप लगाते हैं फिर उसे ब्लैकमेल करते हैं.

‘‘पिछली बार मेरे क्लासफैलो विजय और उस के दोस्त गोआ आए थे तो उन के साथ बिलकुल ऐसी ही घटना घटी थी. उस ने मुझे बताया था. ये युवतियां भी मुझे कुछकुछ ऐसा ही इशारा करती दिखती हैं. बी अलर्ट पापा.’’ अनिता की बात सुन पापा का भी माथा ठनका, लेकिन तभी होटल की युवती बोली, ‘‘रुक क्यों गए. चलिए न,’’ और पापा का हाथ पकड़ कर ले जाने लगी.

पापा को लगा अनिता ठीक कह रही है यह इतने अपनेपन से हमें क्यों होटल दिखाएगी, लेकिन वे विरोध नहीं कर पाए. तब तक अनिता ने मम्मी व प्रदीप को भी सारी बात बता दी थी, ‘‘मम्मी आप ही सोचिए, कोई युवती इस तरह किसी का हाथ पकड़ कर ले जाती है भला?’’ अब मम्मी व प्रदीप ने भी पापा को रोका, प्रदीप बोला, ‘‘पापा, दीदी ठीक कह रही हैं, कोई हमें फ्री में गिफ्ट, फ्री में गाड़ी में यहां लाना व वापस छोड़ना क्यों करेगा भला? जरूर दाल में कुछ काला है.’’

अब पापा को भी किसी अनहोनी की आशंका लगी, अत: वे रूड होते हुए बोले, ‘‘छोड़ो मेरा हाथ, नहीं देखना मुझे तुम्हारा होटल,’’ फिर वे रिसैप्शन पर गए और वहां से अपना डिटेल भरा फौर्म ले कर फाड़ दिया और बोले, ‘‘फ्री के झांसे में हम नहीं आने वाले हटो, अगर गिफ्ट देना था, होटल ही दिखाना था तो क्रैडिट कार्ड की डिटेल क्यों भरवाईं,’’ कहते हुए पापा बाहर निकल गए. पीछेपीछे अनिता, प्रदीप व मम्मी भी चल दिए. होटल की ये युवतियां जाल में फंसा मुरगा हाथ से निकलने पर कुढ़ती हुई अपना सा मुंह ले कर रह गईं. बाहर आ कर वे राहत महसूस करते हुए अनिता की तारीफ कर रहे थे. उन्हें लग रहा था जैसे वे किसी बड़ी मुसीबत में फंसने से बच गए हैं. अब वे वापस अंजुना बीच जाने का रास्ता पूछना चाहते थे कि तभी वहां एक नवविवाहित जोड़ा आपस में लड़ता दिखा. वे दोनों एकदूसरे पर इलजाम लगा रहे थे तुम्हारे कारण ही फंसे, युवती कहती तुम ने मोबाइल गिफ्ट का लालच किया.

उन की बातें सुन अनिता को अपनी कहानी से जुड़ता वाकेआ लगा सो अनिता ने उन से पूछा, तो पता चला कि ठीक उसी तरह उस जोड़े को भी अंजुना बीच से मोबाइल गिफ्ट का सब्जबाग दिखा कर होटल लाया गया था. अंदर जा कर होटल दिखाने के बहाने होटल की उन लड़कियों ने मोबाइल व पर्स तक छीन लिया.

फौर्म में भरी क्रैडिट कार्ड की डिटेल दिखा कर बोले इस में लिखा है कि तुम इस कार्ड से पेमैंट करोगे. उन्होंने पुलिस बुलानी चाही पर उन्होंने बाउंसर रखे हुए हैं जो पकड़ कर उन्हें सड़क पर फेंक गए. अनिता ने फिर समझदारी दिखाई और बोली, ‘‘पापा, हमें पुलिस को कंप्लेंट कर इन की मदद करनी चाहिए.’’

‘‘नहीं,’’ वह युवक बोला, ‘‘उन्होंने फौर्म में हमारा, हमारे होटल का पता व रूम नंबर भी लिखवाया है और कहा है कि अगर तुम ने शिकायत की तो वहीं बाउंसर भेज कर पिटाई करवा देंगे.’’

‘‘ओह, तो क्या उन की धमकी से डर कर शिकायत भी नहीं करोगे. पापा, आप शिकायत कीजिए, हम अपना वाकेआ भी बताएंगे.’’

पापा को लगा अनिता ठीक कह रही है अत: उन्होंने पास के थाने में जा कर शिकायत की. पुलिस ने भी मुस्तैदी दिखाते हुए छापा मारा तो उस होटल से कई युवतियां पकड़ी गईं. यह एक गैंग था. पकड़े जाने पर रिसैप्शनिस्ट ने बताया कि हमारे गैंग के लोग बीच पर आए भोलेभाले लोगों को गिफ्ट के लालच में फ्री में गाड़ी में बैठा कर यहां लाते हैं. ‘‘फिर हम लोग होटल दिखाने के बहाने उन की सारी डिटेल भी लिखवा लेते हैं व होटल घुमाते हुए युवतियां पुरुष पर छेड़छाड़ का इलजाम लगा उन्हें धमकाती हैं. फिर इज्जत बचाने के लिए वे लोग सब दे जाते हैं व किसी से कहते भी नहीं.’’

इंस्पैक्टर ने सभी को गाड़ी में बैठाया और थाने ले आए जहां मीडिया वाले भी पहुंच चुके थे. सभी अनिता की समझदारी की तारीफ कर रहे थे. पापा ने भी अनिता की पीठ थपथपाई, ‘‘अनिता, आज तुम्हारी समझदारी से न केवल हम सब लुटने से बच गए बल्कि इस कपल्स का लुटा सामान भी वापस मिल पाया और गैंग का भंडाफोड़ हुआ सो अलग. मुझे तुम पर गर्व है बेटी.

’’ सुबह होटल के रैस्टोरैंट में नाश्ते को पहुंचे तो वहां पड़े अखबार में अनिता की समझदारी के चर्चे पढ़ कर पापा गर्व महसूस कर रहे थे. आसपास के लोगों को भी घटना का पता चला तो उन्होंने आ कर अनिता की पीठ थपथपाई व उस की समझदारी की तारीफ की. नाश्ता कर वे अपने अगले पड़ाव वैगेटोर बीच की ओर प्रस्थान कर गए. इस घटना ने उन की गोआ यात्रा को अविस्मरणीय बना दिया था.

श्रद्धा मर्डर केस : 35 टुकड़ों में बिखर गया प्यार – भाग 4

वह सीधे मुंबई के थाना वसई गए और श्रद्धा की गुमशुदगी की शिकायत की. करीब 50 दिन निकल गए, लेकिन मुंबई पुलिस को श्रद्धा के बारे में पता लगाने में रत्ती भर भी सफलता नहीं मिली. हार कर वह दिल्ली आए और 8 नवंबर को दिल्ली आ कर बेटी श्रद्धा के गुमशुदा होने की शिकायत की.

उन के साथ बेटा भी आया था. उन्हें आफताब और श्रद्धा के फ्लैट का पता नहीं मालूम था. वे सिर्फ इतना जानते थे कि उन्होंने छतरपुर में कहीं किराए का फ्लैट लिया है, जो महरौली थानांतर्गत आता है.

विकास वाकर ने पुलिस को श्रद्धा और आफताब के लिवइन रिलेशन के बारे में पूरी जानकारी दी. उन के और श्रद्धा के अलावा आफताब की हुई बातचीत के बारे में भी विस्तार से बताया. उन के मोबाइल नंबर भी दिए.

विकास और उन के बेटे से मिली जानकारी के आधार पर पुलिस ने तहकीकात शुरू करते हुए दोनों के मोबाइल फोन की लोकेशन की जांच की, जो एक साथ कई दिनों तक दिल्ली के छतरपुर में मिली. किंतु बाद में श्रद्धा का फोन बंद मिला. उस के जरिए पुलिस ने छतरपुर में आफताब के एड्रैस का पता लगा लिया.

पुलिस जांच करते हुए उस पते पर पहुंची, जहां आफताब रहता था. वह पता दिल्ली के छतरपुर में गली नंबर-1 के एक मकान का था. पुलिस जब विकास को ले कर वहां गई, तब उन्हें उस मकान पर ताला लगा मिला.

पुलिस को शक हुआ कि जरूर आफताब लड़की के साथ कुछ गलत करने के बाद फरार हो गया है. हिंदू लड़की और मुसलिम लड़के के बीच प्रेम संबंध और उन के परिजनों के विरोध को देखते हुए पुलिस लव जिहाद ऐंगल से भी जांचपड़ताल करने लगी.

सर्विलांस की मदद से आखिरकार शनिवार यानी 12 नवंबर, 2022 को आफताब दिल्ली पुलिस की गिरफ्त में आ गया. उस से पूछताछ की गई. पुलिस ने पाया कि उस के चेहरे पर किसी तरह की परेशानी या अफसोस नहीं था.  वह हर बात का जवाब अंगरेजी में दे रहा था. वह हिंदी जानता था, लेकिन अंगरेजी में बात करने में खुद को ज्यादा सहज महसूस कर रहा था. एसएचओ ने सीधा सवाल पूछा, ‘‘श्रद्धा कहां है?’’

उस ने भी सीधा सा जवाब दिया,‘‘आइ डोंट नो. मुझे नहीं मालूम.’’

‘‘नहीं मालूम. वह तुम्हारे साथ आई थी न? अब कहां है?’’ एसएचओ ने डांट लगाई.

‘‘चली गई?’’ आफताब के इतना बोलते ही एसएचओ ने उसे एक झापड़ लगाया, ‘‘कहां चली गई? तुम्हारी प्रेमिका है, लिवइन पार्टनर  है. ऐसे कहां चली जाएगी?’’

‘‘मुझे क्या पता? वह अब मेरे साथ नहीं है.’’ आफताब थोड़ा खीझता हुआ बोला.

‘‘…तो कहां है?’’ कहते हुए उन्होंने उस का कालर पकड़ा और तड़ातड़ 2-3 झापड़ लगा दिए.

‘‘आई किल्ड हर…उसे मार डाला मैं ने.’’ झापड़ की मार से तिलमिलाए हुए आफताब के मुंह से निकल गया.

आफताब ने स्वीकार कर लिया सच

इतना कह कर वह निश्चिंत हो गया. यह बता कर कि वह मर चुकी है उस के चेहरे पर जरा भी शिकन नहीं दिख रही थी. एसएचओ ने अगला सवाल किया, ‘‘क्यों और कैसे मारा?’’

‘‘उस ने मुझे काफी गुस्सा दिला दिया था. एक ही सवाल बारबार पूछती रहती थी.  गुस्से में उस का गला दबा दिया और मर गई.’’ आफताब बोला.

यह सुनते ही पास खड़े श्रद्धा के पिता अवाक रह गए. आफताब उन की तरफ देख कर बोलने लगा, ‘‘वह बारबार शादी की जिद करती थी. मैं उसे कितना समझाता कि आप लोगों को हमारी शादी मंजूर नहीं. उस रोज उस ने मुझे वही बात बोलबोल कर बेहद दुखी कर दिया था. तब मैं ने उस की हत्या कर दी.’’

यह सुन कर श्रद्धा के पिता और पुलिस वाले भी हैरान रह गए.

‘‘कब किया यह सब? डैडबौडी कहां है?’’ एसएचओ ने सवाल किया.

‘‘18 मई को… उस की बौडी जंगल में फेंक दी.’’ आफताब निश्चिंत हो कर महरौली के घने जंगल की ओर इशारा करता हुआ बोला.

‘‘जंगल में! अकेले? …और कोई था तुम्हारे साथ?’’

‘‘मैं ने अकेले ही श्रद्धा की बौडी को फेंका.’’

‘‘आश्चर्य है. पूरी बात विस्तार से बताओ. यह लो पहले पानी पियो…’’ कहते हुए एसएचओ ने उस की ओर पानी की बोतल बढ़ा दी.

उस के बाद आफताब ने जो कुछ बताया, उसे सुन कर सभी के रोंगटे खड़े हो गए. कारण उस ने श्रद्धा की लाश के साथ जो किया था, वह कोई हैवान ही कर सकता है. वह एकदम अनहोनी और डरावनी खौफनाक हौलीवुड फिल्मों जैसी थी.

आफताब द्वारा श्रद्धा की मौत और उस की लाश को ठिकाने लगाने की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार है—

श्रद्धा की गला घुटने से हुई मौत की वारदात 18 मई की आधी रात के समय हुई थी. दोनों के बीच शादी को ले कर हुए विवाद के बाद दोनों ने एकदूसरे को काफी भलाबुरा कहा था. इस दौरान गुस्से में आए आफताब पर श्रद्धा ने एक थप्पड़ जड़ दिया था. जिस से आफताब ने गुस्से में दोनों हाथों से श्रद्धा की गरदन पकड़ ली.

जब श्रद्धा तेजी से चिल्लाने लगी, तब उस ने एक हाथ से उस का मुंह दबा दिया. जब उसे श्रद्धा की मौत हो जाने का अहसास हुआ, तब तक बहुत देर हो चुकी थी. श्रद्धा की नब्ज थमने पर उसे मालूम हुआ कि उस की मौत हो चुकी है.

फिर पकडे़ जाने के डर से उस ने लाश को ठिकाने लगाने की सोची. शांति से योजना बनाई. हौरर वेब सीरीज देखने लगा, ताकि बचाव का कोई तरीका मिल जाए.

ओटीटी प्लेटफार्म पर सर्च करते हुए उस ने हौलीवुड वेब सीरीज ‘डेक्स्टर’ देखी. उस के सीरियल किलर के कैरेक्टर से लाश को ठिकाने लगाने का तरीका जाना.

इस सीरीज में सीरियल किलर द्वारा लाश के टुकड़ों को अलगअलग जगहों पर फेंकते हुए दिखाया जाता है. उसे देख कर ही आफताब को आइडिया मिल गया.

वह लाश को ठिकाने लगाना चाहता था, लेकिन लाश को कैसे बाहर ले जाता. दिल्ली में उस के पास कार भी नहीं थी. अकेले लाश को कैसे ठिकाने लगाता. इसलिए

सोचा कि अब उसे कई टुकड़ों में काट कर ठिकाने लगाया जाए. अब ऐसा करने के लिए उस ने अपने पुराने फूड ब्लौगर वाला तरीका चुना.

उस ने तय कर लिया कि वह लाश के छोटेछोटे टुकड़े कर के फ्लैट में ही रख लेगा और फिर उन्हें थोड़ाथोड़ा कर के ठिकाने लगाता रहेगा.

होटल मैनेजमेंट की पढ़ाई के दौरान उसे बताया गया था कि गोश्त को ज्यादा दिनों तक फ्रैश कैसे रखा जाता है. वही तरीका आफताब ने अपनाया.

अगले रोज 19 मई, 2022 को वह बाजार से पहले चापड़, आरी और 300 लीटर का फ्रिज खरीद लाया. साथ में कई रूम फ्रेशनर और गुलाब की पंखुडि़यां भी ले आया. तब तक लाश को 24 घंटे तक कमरे में ही छिपाए रखा.

तांत्रिक का इंद्रजाल : समाज में फैल रहा अंधविश्वास – भाग 3

गणेश ने एक कागज की पुडि़या सुनीता को देते हुए कहा था कि इसे सब्जी में डाल देना, इस में अभिमंत्रित भभूत (भस्म) है, जो हर बला से सब को बचा कर रहेगी.

सुनीता बहुत खुश थी, उसे भरोसा था कि बंजारा बाबा के द्वारा किए जाने वाले तांत्रिक अनुष्ठान से उस के गहने वापस मिल जाएंगे. बाबा द्वारा दी गई भभूत उस ने सब्जी में डाल दी.

रात के 11 बजने वाले थे तभी बाबा ने सुनीता को बुला कर कहा, ‘‘आप तीनों खाना खा कर थोड़ा आराम कर लें, तांत्रिक अनुष्ठान में 2 घंटे से भी ज्यादा का समय लगेगा.’’

तांत्रिक अनुष्ठान देखने को बाबा ने पहले ही मना कर दिया था, इसलिए सुनीता, योगेश और दिव्यांश ने एक साथ बैठ कर खाना खाया और अपनेअपने पलंग पर लेट गए. बिस्तर पर पहुंचते ही वे कब बेहोश हो गए, उन्हें पता ही नहीं चला.

इधर जैसे ही तांत्रिक अनुष्ठान खत्म हुआ तो बाबा ने मोनू को अंदर जा कर देखने को कहा. मोनू ने घर के अंदर जा कर देखा तो तीनों सो चुके थे. उस ने तसल्ली के लिए आवाज दे कर पुकारा, मगर योगेश का परिवार सब्जी में मिलाई गई जहरीली भभूत के असर से बेहोश हो चुका था.

मौके का फायदा उठा कर दोनों ने तांत्रिक क्रिया में इस्तेमाल की गई धारदार कुल्हाड़ी निकाल ली. देखते ही देखते तीनों के सिर पर जोरदार प्रहार कर उन का गला भी रेत दिया.

कुल्हाड़ी के वार से खून के छींटे दोनों के कपड़ों पर पड़ चुके थे. तीनों का काम तमाम कर गणेश और मोनू ने अलमारी में रखे गहने और रुपए निकाले और सारा सामान समेट कर वे बाइक से भाग गए.

जिस ढंग से दोनों ने घटना को अंजाम दिया था, उन्हें पकड़े जाने का जरा भी खौफ नहीं था. इसलिए वे रात को ही अपनी बाइक से हरदा जिले के अपनेअपने गांव पहुंच गए थे. पुलिस की सघन पूछताछ में जब इस बात का खुलासा हुआ कि गणेश और मोनू तंत्रमंत्र के लिए बनापुरा आते थे, वे पुलिस की नजरों से ज्यादा दिन छिप नहीं सके.

सिवनी मालवा पुलिस ने तांत्रिक गणेश और मोनू को उन के गांव से गिरफ्तार कर लिया. आरोपियों के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201, 460, 380 के तहत अपराध दर्ज कर 8 नवंबर, 2021 को दोनों को कोर्ट में पेश कर एक दिन के पुलिस रिमांड पर ले कर पूछताछ में सारे मामले का खुलासा हुआ.

तांत्रिक की निशानदेही पर घटना में प्रयुक्त कुल्हाड़ी, खून से सने हुए कपड़े और योगेश के घर से चुराए हुए रुपए, सोने का मंगलसूत्र बरामद कर लिया. 10 नवंबर को दोनों को कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उन्हें होशंगाबाद जेल भेज दिया गया.        द्य

—कथा पुलिस सूत्रों और मीडिया रिपोर्ट पर आधारित

गैंगस्टर बनने के लिए किए 4 मर्डर – भाग 3

चर्चित फिल्म ‘पुष्पा’ के पुष्पा की तरह वह साइकिल से चलता था. वह केसली से 65 किलोमीटर दूर सागर साइकिल से ही आया था. केकरा गांव से शिवप्रसाद साइकिल ले कर 65 किलोमीटर का सफर तय कर के  सागर पहुंचा था.

25 अगस्त को वह कोतवाली क्षेत्र के कटरा बाजार स्थित एक धर्मशाला में रूम ले कर रुका था. और यहां कैंट थाना क्षेत्र में 27 अगस्त की रात कारखाने में तैनात चौकीदार कल्याण लोधी (50) के सिर पर हथौड़ा मार कर हत्या कर दी.

शिवप्रसाद भी पुष्पा की तरह गिरफ्तार होने के बाद पुलिस के सामने नहीं झुका, बल्कि उस ने विक्ट्री साइन दिखाया. उसे इन  वारदातों को ले कर किसी तरह का अफसोस नहीं था. इसी तरह ‘हैकर’ मूवी को देख कर शिवप्रसाद ने साइबर क्राइम सीखने की कोशिश की.

सागर में चौकीदार की हत्या के बाद आरोपी उस का मोबाइल ले कर भागा था और उस का पैटर्न लौक भी उस ने खोल लिया था.

सीरियल किलर शिवप्रसाद वारदात को अंजाम देने के बाद दिन भर सोशल मीडिया के साथ खबरों पर पैनी नजर रखता था. सागर से भोपाल आने के बाद भी वह दिन भर इंटरनेट, मीडिया व खबरों पर नजर बनाए रखे था. इसी वजह से उसे पता चल गया था कि पुलिस किलर की गिरफ्तारी के लिए सक्रिय हो गई है. वह भोपाल में रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड के आसपास घूमता रहा.

जब उस ने कल्याण लोधी का कत्ल किया तो उस के मोबाइल का सिम कार्ड फेंकने के बाद मोबाइल अपने साथ ले गया. सागर में आर्ट ऐंड कामर्स कालेज के गार्ड शंभुदयाल को मार कर उस ने कल्याण का मोबाइल वहां छोड़ शंभुदयाल का मोबाइल अपने पास रख लिया था. मोबाइल उस ने स्विच्ड औफ कर रखा था. इधर सागर पुलिस ने भी शंभु के मोबाइल नंबर को सर्विलांस पर लगा रखा था.

शिवप्रसाद ने पहली सितंबर की रात करीब 11 बजे मोबाइल चालू किया तो सागर पुलिस को लोकेशन पता चल गई. टीम भोपाल के लिए रवाना हो गई. सागर पुलिस भोपाल पहुंचती, इस से पहले शिवप्रसाद ने मोबाइल बंद कर दिया.

रात करीब डेढ़ बजे से पुलिस उसे बैरागढ़, कोहेफिजा, लालघाटी इलाके में खोजती रही, लेकिन वह नहीं मिला. रात करीब साढ़े 3 बजे शिवप्रसाद ने टाइम देखने के लिए एक बार फिर मोबाइल औन किया तो पुलिस को उस की लोकशन लालघाटी इलाके में पता चली. पुलिस ने तड़के उसे दबोच लिया.

खबरों पर रखता था कड़ी नजर

4 चौकीदारों की हत्या करने वाला सीरियल किलर 19 वर्षीय शिवप्रसाद वारदात के बाद इंटनरेट मीडिया व अखबारों पर पैनी नजर रखता था. वह वारदात के बाद सुबह ही अखबार पढ़ता. वहीं इंटरनेट और सोशल मीडिया पर भी वारदात को ले कर आने वाली प्रतिक्रियाओं पर नजर रखता था.

वारदात के पहले वह वहां की अच्छी तरह से पड़ताल करता और हत्या करते समय कोशिश करता कि उस का चेहरा सीसीटीवी कैमरे में कैद न होने पाए. सागर में हुई हत्या की ये वारदातें उस ने रक्षाबंधन के बाद अपने गांव केकरा से आ कर ही प्लान की थीं.

वह अपनी मां से बोल कर आया था कि वह बहुत जल्द नाम कमाएगा, इस के बाद उस ने सागर में 3 हत्याएं कर दीं. सागर के बाद उस ने अलगअलग जिलों में हत्या करने की योजना बनाई थी, लेकिन भोपाल में एक अन्य चौकीदार की हत्या के बाद वह पकड़ा गया.

शिवप्रसाद ने 27 अगस्त को भैंसा गांव के एक कारखाने में काम करने वाले 57 वर्षीय कल्याण सिंह के सिर पर हथौड़ा मार कर हत्या की. वारदात के बाद आरोपित कल्याण सिंह का मोबाइल अपने साथ ले आया. उस ने मोबाइल की सिम फेंक दी.

शंभुदयाल की हत्या के बाद शिवप्रसाद शंभुदयाल की साइकिल व मोबाइल अपने साथ ले गया और कटरा क्षेत्र के एक लौज में रुका. उस ने सुबह उठ कर सारे अखबार भी पढ़े और अपनी अगली रणनीति पर लग गया.

30 अगस्त की रात वह रतौना गांव पहुंचा और मंगल सिंह की हत्या कर दी, इस के बाद वह ट्रेन से भोपाल चला गया.

सीरियल किलर शिवप्रसाद धुर्वे को सागर पुलिस ने रिमांड पर ले कर जब पूछताछ की तो उस ने पुलिस को बताया कि 2016 में वह घर से निकला. पुणे, गोवा, चेन्नै, केरल समेत अन्य जगह मजदूरी की. उसे जल्द ही इस बात का आभास हो गया कि मजदूरी कर के पेट भरा जा सकता है, लेकिन ऐशोआराम हासिल नहीं हो सकते.

अपराधियों को देख कर वह भी फेमस होने का सपना देखने लगा. उसे अपराध की दुनिया का रास्ता सब से आसान लगा. आरोपी इतना शातिर है कि रिमांड के दौरान वह पूछताछ के दौरान जरा भी नहीं घबराया और पुलिस को कई कहानियां सुनाता रहा.

आधुनिक हथियार खरीद कर बनना चाहता था गैंगस्टर

सीरियल किलर शिवप्रसाद ने बेबाकी से बताया कि उसे बेकसूर लोगों को मारने का मलाल तो है. उस के निशाने पर पुलिसकर्मी भी थे. उसे अफसोस भी है कि उस का सपना अधूरा रह गया.

रिमांड पूरी होने के बाद उसे 6 सितंबर को कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

पुलिस पूछताछ में उस ने इस बात को स्वीकार किया कि उस का अगला निशाना ड्यूटी के दौरान सोने वाले पुलिसकर्मी थे.

भोपाल के गांधी मैडिकल कालेज में मनोरोग विभाग के रिटायर्ड प्रोफेसर और एचओडी डा. आर.एन. साहू ने इस प्रकार के बरताव को एक तरह का दिमागी रोग बताया है. उन का कहना है कि इस प्रकार के व्यक्ति की मानसिकता गड़बड़ रहती है. दिमाग में एक ही सोच आती है और वे बिना उद्देश्य के किसी को भी मार देते हैं.

यह एक प्रकार का दिमागी रोग है, इस में आदमी के भीतर पैथोलौजिक चैंजेस आते हैं और कैमिकल इमबैलेंस हो जाता है.

ऐसे में उन का व्यवहार असामान्य हो जाता है. सामान्य रूप से वे बाहर से तो ठीक दिखते हैं, इस कारण उन्हें पहचानना मुश्किल होता है.

ऐसे लोगों के व्यवहार को वही लोग ज्यादा समझते हैं, जो उन के नजदीकी रहते हैं. घर वाले, दोस्त या रिश्तेदार ही उन की मनोदशा को अच्छी तरह बता सकते हैं. ऐसे रोगी का समय रहते इलाज कराने के बाद ऐसी घटनाओं को रोका जा सकता है.    द्य

डॉक्टर और इंजीनियर बनाने लगे कैंसर की नकली दवाएं – भाग 3

डा. पवित्रा जल्दी से जल्दी अमीर बनने के चक्कर में ऐसा फंसा कि मौत का सौदागर बनने के लिए तैयार हो गया. उस ने अपने काम के लिए चीन से ही एमबीबीएस की पढ़ाई कर डाक्टर बने अनिल कुमार को साथ में ले कर यह गोरखधंधा शुरू कर दिया.

चीन से एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी करने के बाद डा. पवित्रा 5 साल पहले दिल्ली आया और उस के बाद 3 बड़े अस्पतालों जीटीबी अस्पताल, सुपर स्पैशियालिटी कैंसर इंस्टीट्यूट और दीपचंद बंधु अस्पताल में नौकरी की. जीटीबी अस्पताल में ही पवित्रा की दोस्ती डा. अनिल से हुई थी, जो बिहार का रहने वाला है. अनिल बेहद महत्त्वाकांक्षी था. उस से मुलाकात के बाद तो डा. पवित्रा के इरादों को पंख लग गए.

अमीर बनने के लिए नकली दवाइयों के धंधे में उतरने की तैयारी उस ने तेज कर दी. सब से पहले पवित्रा ने अपने ममेरे भाई शुभम मन्ना और दूसरे साथियों को इस में जोड़ना शुरू किया. मसलन, दवा कहां बनेगी, उस की पैकिंग कहां होगी, बाजार और ग्राहकों तक दवाइयां किस तरह पहुचेंगी. इस के लिए पूरी टीम बन गई.

किस का क्या काम रहेगा, सब कुछ तय हो गया. बेंगलुरु से बीटेक करने के बाद पवित्रा के ममेरे भाई शुभम ने कई मल्टीनैशनल कंपनियों में काम किया था. जब पवित्रा ने उसे कैंसर की नकली दवाइयों के धंधे के बारे में बता कर उस से होने वाले मुनाफे के बारे में बताया तो शुभम भी अपने भाई पवित्रा के साथ नकली दवाइयों के धंधे में जुड़ गया.

पवित्रा ने दवाओं के धंधे की देखरेख करने के लिए आईटीआई डिप्लोमा पास पंकज और अंकित को अपने पास नौकरी पर रख लिया. वह दवाओं को पैक करने के अलावा मार्केट में सप्लाई और कुरियर भी करते थे.

गन्नौर की फैक्ट्री में बनती थीं दवाएं

रामकुमार उर्फ हरबीर की गन्नौर, सोनीपत में आरडीएम बायोटेक के नाम से दवा बनाने की फैक्ट्री है. खुद को एम्स का डाक्टर बता कर डा. पवित्रा ने रामकुमार से कैंसर की नकली दवाएं बनवानी शुरू कीं. लेकिन बाद में रामकुमार के ऊपर यह भेद खुल गया कि ये दवाइयां नकली हैं. इसलिए फिर से इस काम के लिए ज्यादा पैसे लेने शुरू कर दिए.

चंडीगढ़ का रहने वाला एकांश फार्मा कंपनी चलाता है. एकांश की चंडीगढ़ में मैडियार्क फार्मा नाम से फर्म है. वह रामकुमार की कंपनी को खाली कैप्सूल के अलावा अन्य सामान उपलब्ध करवाता था. एकांश इंडिया मार्ट के जरिए भी दवाएं बेचता था. वहीं, प्रभात कुमार की दिल्ली के चांदनी चौक स्थित भागीरथ प्लेस में आदित्य फार्मा के नाम से दवा विक्रेता फर्म है.

प्रभात की मुलाकात पहले डा. अनिल से हुई थी. वह उस की दुकान पर आताजाता था. अनिल ने ही प्रभात को कैंसर की नकली दवाइयां बेचने का औफर दिया था. मोटा मुनाफा कमाने के चक्कर में प्रभात कैंसर की नकली दवाइयां बेचने के लिए राजी हो गया.

दरअसल, प्रभात गंभीर रोगों जैसे कैंसर की ही दवा बेचने की ट्रेडिंग करता था. प्रभात अपने ग्राहकों को पूरे भारत के अलावा चीन व दूसरे देशों में दवाएं भेजता था. पुलिस को पूछताछ में पता चला कि वे शौपिंग साइट से ही हर साल 25 करोड़ रुपए की कैंसर की नकली दवा बेच देता था.

रामकुमार की जिस फैक्ट्री में दवाइयां बनाई जाती थीं, वह पिछले करीब साढ़े 5 साल से बादशाही रोड स्थित आरडीएम बायोटेक कंपनी के नाम से चल रही थी. पहले इस में फूड सप्लीमेंट बनाने का काम होता था. इस के लिए केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन से लाइसेंस लिया गया था.

इतना ही नहीं, साल 2020 में रामकुमार ने जिला आयुर्वेदिक अधिकारी कार्यालय से भी देसी दवा बनाने का लाइसेंस लिया था. फैक्ट्री में फूड सप्लीमेंट ‘जिनोव्हे’ के नाम से बनाया जाता था. दिलचस्प बात थी कि फैक्ट्री में कभी निरीक्षण ही नहीं हुआ.

हालांकि अब जबकि फैक्ट्री में कैंसर की नकली दवाएं बनाने का दिल्ली पुलिस ने खुलासा किया है तो जिला आयुर्वेदिक विभाग ने इस का लाइसेंस निरस्त कर इसे सील कर दिया है.

बहरहाल, गन्नौर की फैक्ट्री में प्रोटीन पाउडर तैयार किया जाता था. उसे बाद में  गाजियाबाद ले जाने के बाद खाली कैप्सूलों में भर कर इस को कैंसर की दवा के रूप में पैक कर दिया जाता था. बाद में शुभम मन्ना उस पर एक्सपायरी डेट और दूसरी तरह की जरूरी हिदायतें प्रिंट कर देता था.

कैप्सूलों में भरते थे प्रोटीन पाउडर

ये काम गाजियाबाद के लोनी स्थित ट्रोनिका सिटी में होता था, जहां मास्टरमाइंड डा. पवित्रा नारायण और इस के ममेरे भाई शुभम मन्ना ने गोदाम बनाया हुआ था. इस गोदाम की देखरेख और दवाओं की सप्लाई के लिए इन लोगों ने अंकित शर्मा उर्फ अंकू उर्फ भज्जी और पंकज सिंह बोहरा को रखा हुआ था.

आरोपियों से पूछताछ में खुलासा हुआ कि कैंसर के कैप्सूल में कैमिकल की जगह प्रोटीन पाउडर भरा जाता था, जो मक्के के आटे का स्टार्च होता था. बाद में जब दवाओं की लेबलिंग हो जाती थी तो नकली दवाओं को भागीरथ प्लेस समेत अन्य बड़े मैडिकल स्टोरों को सस्ती कीमत पर बेच दिया जाता था.

साथ ही भारत में ये लोग शौपिंग साइट इंडिया मार्ट पर औनलाइन दवा मंगवाने के इच्छुक लोगों को औनलाइन भी दवा बेचते थे. यह गैंग भारत, अमरीका, इंग्लैंड, बांग्लादेश और श्रीलंका की 7 बड़ी कंपनियों के 20 से अधिक ब्रांड की कैंसर की नकली दवाएं बना कर बेचता था.

पुलिस ने अब तक इन के कब्जे से करीब 9 करोड़ रुपए मूल्य की नकली दवाएं, 16 लाख रुपए और पैकिंग का सामान, खाली डिब्बे, बिना नाम की दवाइयां, तारीख और बैच नंबर डालने की मशीनें व अन्य सामान बरामद किया है.

मास्टरमाइंड पवित्रा नारायण के फ्लैट से भी भारी मात्रा में दवाएं बरामद हुईं. इन के कब्जे से दवा बनाने का कच्चा माल, 12 मोबाइल फोन और लैपटाप तथा वारदात में इस्तेमाल एक स्कूटी भी बरामद की गई.

क्राइम ब्रांच की टीम को डा. पवित्रा के 2 सहयोगी डा. रसैल (बांग्लादेश निवासी) और डा. अनिल (बिहार निवासी) की तलाश है. पुलिस छानबीन के दौरान पता चला है कि दोनों आरोपी चीन फरार हो गए हैं.

जांच में यह भी पता चला है कि मौत के काले कारोबार से डा. पवित्रा ने गुरुग्राम में करीब 9 करोड़ के 2 प्लौट खरीदे हुए हैं. इस के अलावा दुर्गापुर, पश्चिम बंगाल में एक नर्सिंग होम के लिए करोड़ों की जमीन खरीदी है. इन लोगों ने डा. अनिल के साथ मिल कर नेपाल में भी करोड़ों की जमीन में पैसा निवेश किया हुआ है.

सभी सातों आरोपियों के पास से करीब 8 करोड़ रुपए की जो दवाएं बरामद हुई हैं, वह करीब 4 महीने का स्टाक था. पुलिस के सामने डा. पवित्रा ने कुबूल किया कि पिछले 4 सालों के दौरान वह 100 करोड़ से ज्यादा की दवाई बेच चुका है.

कैंसर के लिए इस्तेमाल होने वाली दवाइयों की कीमत 5 हजार रुपए से ले कर 2 लाख के बीच में है. गैंग के सदस्य आधे दामों पर ही दवाएं उपलब्ध करा देते थे. इसलिए उन की दवाइयों की खूब डिमांड थी. देशभर में दवाओं की डिलीवरी के लिए ‘वी फास्ट’ कुरियर बुक करते थे.

अपराध शाखा की जिन टीमों ने कैंसर की नकली दवा के इन सौदागरों को गिरफ्तार किया है. क्राइम ब्रांच के विशेष आयुक्त रविंद्र यादव ने उस टीम को पुरस्कृत करने की घोषणा की है. पुलिस टीम अब यह भी पता लगाने में जुटी है कि मौत का ये सामान दिल्ली एनसीआर में किन दुकानों तक पहुंचता था.द्य

—कथा पुलिस की जांच व आरोपियों के कुबूलनामे पर आधारित

श्रद्धा मर्डर केस : 35 टुकड़ों में बिखर गया प्यार – भाग 3

श्रद्धा को एक ही गम खाए जा रहा था कि आखिर वह कब तक बिनब्याही लिवइन पार्टनर के साथ बनी रहेगी. उसे विवाहिता का अस्तित्व कैसे मिलेगा? मुश्किल यह थी कि आफताब कोर्टमैरिज के लिए भी राजी नहीं था.

दिन बीतते रहे और नोकझोंक के साथ श्रद्धा और आफताब की जिंदगी भी आगे बढ़ती रही. एक दिन आफताब के डेटिंग ऐप पर आफताब की तरफ किसी लड़की की रिक्वेस्ट देखी तो वह चौंक गई. उस बारे में श्रद्धा ने पूछा.

आफताब ने इस का उस ने रूखेपन से जवाब दिया, ‘‘क्यों, कोई और मुझ से डेटिंग नहीं कर सकती क्या? तुम से अधिक मेरे इंस्टाग्राम पर फालोअर हैं. ब्लौग के व्यूअर्स लाख तक पहुंचने वाले हैं.’’

‘‘मेरे पूछने का तुम गलत अर्थ निकाल रहे हो, यह तो चोर की दाढ़ी में तिनका वाली बात हुई न,’’ श्रद्धा ने भी करारा जवाब दिया.

‘‘तुम को तो पता है न, बंबल पर फीमेल की रिक्वेस्ट ही मान्य होती है, मेल की नहीं. इस का मतलब तो साफ है न कि मैं ने उसे अप्रोच नहीं किया है, बल्कि उस ने मुझ से डेटिंग की रिक्वेस्ट की है. अब उसे रेसिपी सीखनी है तो इस में मैं क्या कर सकता हूं?’’ वह बोला.

बन गई नए ठिकाने की योजना

इस तकरार का अंत श्रद्धा के सौरी से हो गया, लेकिन मन अस्थिर बना रहा. दिमाग में संदेह के कुलबुलाते कीड़े को शांत नहीं कर पाई थी. साल 2022 आ गया. सब कुछ  पहले की तरह सामान्य होने लगा. घूमनेफिरने, बाजार, मौल, मल्टीप्लेक्स और टूरिज्म की मौजमस्ती के अड्डे  पर चहलपहल शुरू हो गई. आवागमन सामान्य हो गया.

इन सब के बावजूद मुंबई में श्रद्धा और आफताब के लिए नया कुछ नजर नहीं आ रहा था. आफताब ने ही पहल की और श्रद्धा को खुश करने के लिए घूमने की योजना बनाई.

‘‘सुना है, दिल्ली में आईटी का अच्छा हब बन चुका है. एनसीआर गुड़गांव और नोएडा में आईटी प्रोफैशनल्स की मांग है. वहां रहने का खर्च भी कम है,’’ आफताब बोले जा रहा था और श्रद्धा उस के बोलने के अंदाज को प्यार से निहार रही थी.

बीच में ही बोल पड़ी, ‘‘…और वहां रेस्टोरेंट और फाइव स्टार होटलों में भी तुम जैसे शेफ की मांग है,’’ कहती हुई वह हंस पड़ी.

‘‘सही कहा तुम ने. आखिर वह कैपिटल है. वहां से हमें विदेश जाने के मौके मिल सकते हैं. कुछ नहीं तो स्टार्टअप तो शुरू कर ही सकते हैं. मल्टीनैशनल कंपनियां हैं, विदेशी पूंजी है..’’ आफताब बोला.

‘‘तो दिल्ली में रहने का इरादा है. वह मेरे लिए एकदम अनजाना मैट्रोपौलिटन है,’’ श्रद्धा ने चिंता जताई.

‘‘अनजाना है, लेकिन वहां के लोग बड़े दिलवाले हैं,’’ कहते हुए आफताब ने श्रद्धा को गले लगा लिया.

इस तरह दोनों ने जनवरी, 2022 में ही दिल्ली में जमने की नई योजना बना ली, लेकिन दिल्ली की सर्दी के बारे में सुन कर उन्होंने गरमी शुरू होने पर दिल्ली जाने का मन बनाया.

आखिरकार योजना के मुताबिक दोनों 5 मई, 2022 को मुंबई से दिल्ली आ गए. उन्होंने पहाड़गंज के होटल में खुद को पतिपत्नी बता कर कमरा लिया. यहां एक दिन रहने के बाद वे हिमाचल प्रदेश चले गए और विभिन्न होटलों में छुट्टियां बिताते हुए दोबारा 8 मई को वापस दिल्ली आ गए. फिर उन्होंने पहाड़गंज के होटल में कमरा ले लिया और 11 मई तक वहीं ठहरे.

इस बीच दिल्ली में रहने के लिए कमरे की तलाश भी करते रहे. उन्हें महरौली के छतरपुर इलाके में  प्रौपर्टी डीलर के माध्यम से किराए का एक फ्लैट मिल गया. वहां वे 12 मई से रहने लगे.

इस दौरान मिली खुशियों को श्रद्धा फेसबुक और इंस्टाग्राम आदि में अपडेट करती जा रही थी. उस की आखिरी पोस्ट 11 मई को हुई थी. उस के बाद घर की व्यवस्था करने में समय ही नहीं मिल पाया था.

जिंदगी की नई शुरुआत अच्छी हुई. अपनीअपनी उम्मीदें लिए हुए वे जोश से भरे हुए थे. श्रद्धा को उम्मीद थी कि निश्चित तौर पर वह यहां आफताब के साथ शादी रचा कर सेटल हो जाएगी, जबकि आफताब अभी भी लक्ष्य को ले कर दुविधा में था.

खासकर श्रद्धा के साथ निकाह के लिए घर वालों को मनाने में असफल रहा था और उस के पिता ने भी उस से संबंध तोड़ने का अपना फैसला सुना दिया था. यानी कुछ अच्छा और नया किया जाना था, किंतु उन की पुरानी जिंदगी भी पीछा नहीं छोड़ रही थी.

हंसीखुशी में 6 दिन कैसे निकल गए, उन्हें पता ही नहीं चला. आफताब के मन में क्या चल रहा था, इस का श्रद्धा जरा भी अंदाजा नहीं लगा पर रही थी. करिअर और भविष्य को ले कर कभी कुछ तो कभी कुछ बातें करता था. शादी की बात जैसे ही होती, सिरे से गुस्से में आ जाता था.

चिंतित पिता ने की पहल

श्रद्धा नए शहर में अपनी नई जिंदगी की नई राह पर दौड़ लगाने को तैयार थी. जबकि मुंबई में उस के पिता विकास वाकर उसे ले कर चिंतित थे. उन की पिछले कई महीने से श्रद्धा से बात नहीं हुई थी. मई के बाद उन्होंने श्रद्धा का कोई नई पोस्ट भी नहीं देखी था.

उन्होंने लक्ष्मण नाडर से बेटी के बारे में पूछा. इस पर लक्ष्मण ने बताया कि उस की भी श्रद्धा से 14 मई के बाद कोई बात नहीं हुई है और 4 माह बीत चुके हैं, इस बीच उस ने भी कोई फोन नहीं किया है. आज 14 सितंबर है. श्रद्धा दिल्ली जा कर इतनी लापरवाह कैसे हो गई?

विकास वाकर ने लक्ष्मण से उस के बारे में पता करने को कहा, लेकिन उस का कोई पता नहीं चल पाया. आफताब से बात हुई, तब उस ने बताया कि वह दिल्ली में उस के साथ नहीं है. कहां गई उसे नहीं मालूम.

यह जान कर पिता और भी चिंतित हो गए कि पिछले कई महीनों से श्रद्धा की कोई अपडेट उस के दोस्त के पास नहीं थी और वह आफताब के साथ भी नहीं है. महीनों से उस का फोटो भी अपडेट नहीं हो रहा था. न वाट्सऐप पर और न ही फेसबुक पर. इसी अपडेट से उस के पिता अपनी बेटी की खोजखबर लेते थे.

तब वह अनहोनी की आशंकाओं से घिर गए कि कहीं न कहीं और कुछ न कुछ उन की बेटी के साथ गलत तो हुआ है.

नकली नोटों को असली बनाने की शातिर चाल

कोलकाता में पिछले दिनों नकली नोटों का एक बड़ा और अनोखा मामला सामने आया. गिरफ्तार चंद्रशेखर जायसवाल पुराने और सड़ेगले असली नोटों के ‘सिल्वर सिक्योरिटी थ्रेड’ को निकाल कर उस से नकली नोट तैयार करता था. एक और बड़ी बात यह कि चंद्रशेखर न केवल नकली भारतीय करेंसी तैयार करता था, बल्कि डौलर, यूरो समेत कई अन्य देशों की भी नकली करेंसियां उस के यहां से बरामद हुई हैं. यह तो थी एक खबर.

आइए, अब देखते हैं नकली नोटों का कारोबारी चंद्रशेखर जायसवाल अपना यह कारोबार किस तरह चला रहा था. मध्य कोलकाता के बऊबाजार में 2 लाख रुपए के नकली नोटों के साथ चंद्रशेखर जायसवाल नामक एक व्यक्ति की गिरफ्तारी हुई. इस के बाद कांकुड़गाछी स्थित उस के घर से 10 करोड़ रुपए के नकली नोट बरामद हुए. इस से पहले नकली नोटों के ऐसे कई मामले सामने आए हैं.

इन मामलों से पता चला है कि बरामद नकली नोट की छपाई पाकिस्तान व बंगलादेश में होती है और पाकिस्तान, बंगलादेश और नेपाल की सीमा से हमारे देश में ये नकली नोट पहुंचाए जाते हैं. लेकिन चंद्रशेखर जायसवाल का मामला कई माने में अनोखा साबित हो रहा है. चूंकि यह मामला नकली विदेशी करेंसी से भी जुड़ा है, इसीलिए जांच एजेंसी की नजर में यह मामला देश की आंतरिक सुरक्षा से भी जुड़ा हुआ है.

गिरफ्तार चंद्रशेखर जायसवाल ने कबूल किया कि सिल्वर सिक्योरिटी थ्रेड उसे रिजर्व बैंक की पटना शाखा के एक ठेकेदार की मारफत मिला करते थे. हावड़ा जिले के डोमजुड़ में चंद्रशेखर जायसवाल बाकायदा नकली नोटों का एक बड़ा कारखाना चलाता था. स्पैशल टास्क फोर्स ने इसी कारखाने के गोदाम में छापेमारी कर के नकली नोट बनाने के तमाम सामान बरामद किए हैं. 

टस्क फोर्स के अधिकारी अमित जावलगी के अनुसार, छापेमारी में सब से चौंकाने वाला जो सामान बरामद हुआ है वह पुराने खस्ताहाल, सड़ेगले असली पुराने नोटों की 20 बोरियां हैं. पूछताछ में चंद्रशेखर ने एजेंसी के अधिकारियों के सामने कबूल किया कि इस की आपूर्ति रिजर्व बैंक का एक ठेकेदार किया करता था. कारखाने से पुराने असली नोटों के अलावा नोट छापने वाले कागज, स्टैंप, स्याही के साथ 450 नकली नोटों की बोरियां भी बरामद हुई हैं. बरामद हुए नकली नोटों में केवल 500 और 1000 रुपए के नोट थे. 

आयरन स्क्रैप के कारोबारी चंद्रशेखर का यह कारखाना स्थानीय रूप से लोहे की कील बनाने वाले कारखाने के रूप में जाना जाता था. स्थानीय लोगों को कारखाने की चारदीवारी के उस पार लोहे के स्क्रैप का ढेर दिखता था. स्थानीय रूप से प्रचारित यही किया गया था कि कारखाने में स्क्रैप को गला कर विभिन्न साइज की कीलें तैयार की जाती हैं. लेकिन इस कारखाने में पिछले 2 साल से नकली नोट छापे जा रहे थे.

मामले की जांच कर रही स्पैशल टास्क फोर्स की जांच से खुलासा हुआ कि गिरफ्तार चंद्रशेखर के नकली नोटों का कारोबार खास कोलकाता और डोमजुड़ के बीच फलफूल रहा था. छापेमारी में इस कारखाने से न केवल नकली भारतीय नोट बरामद हुए, बल्कि डौलर और यूरो समेत टर्की, जिम्बाब्वे व अन्य कई देशों की करेंसियों के भी नकली नोट बरामद हुए. जाहिर है इस कारखाने से चंद्रशेखर विदेश में भी अपना कारोबार चला रहा था. इसीलिए इस मामले को राष्ट्रीय जांच एजेंसी को सौंप दिया गया.

रिजर्व बैंक की सुरक्षा में सेंध

नकली नोट में सिक्योरिटी थ्रेड का इस्तेमाल अपनेआप में एक अनोखा खुलासा था. चंद्रशेखर के कारखाने में तैयार नकली नोटों को ‘ग्रेड वन’ नकली नोट बताया गया. इस की वजह, नकली नोट में बाकायदा सिक्योरिटी थ्रेड का इस्तेमाल है. नकली नोट की जांच का काम जितना आगे बढ़ता गया, जांच अधिकारी के आगे एक से बढ़ कर एक चौंकाने वाले तथ्य सामने आए. अब तक नकली नोट तैयार करने का जितना भी खुलासा हुआ है उस में असली नोट जैसे कागज का इस्तेमाल करने, वाटर मार्क की नकल और उम्दा स्याही के इस्तेमाल की बातें सामने आई थीं.

सिक्योरिटी थ्रेड का इस्तेमाल पहली बार हुआ है. इसीलिए यह रिजर्व बैंक की सुरक्षा में सेंध का मामला बन गया. टास्क फोर्स के अधिकारी बताते हैं कि नकली नोट छापने के लिए भी विशेष रूप से प्रशिक्षित लोगों की जरूरत होती है. कारखाने में 20 कर्मचारी अत्याधुनिक मशीन पर नकली नोट छापते थे. चंद्रशेखर के पास ऐसे 3 प्रशिक्षित कर्मचारी थे, जिन्हें वह मुंबई से ले कर आया था.

चूंकि इस से पहले ऐसा कोई मामला टास्क फोर्स के सामने नहीं आया था इसीलिए टास्क फोर्स ने रिजर्व बैंक के नोट विशेषज्ञों से भी पत्र लिख कर जानना चाहा कि पुराने असली नोट के ‘सिल्वर सिक्योरिटी थ्रेड’ का इस्तेमाल नकली नोटों में कैसे किया जा सकता है? मजेदार बात यह कि रिजर्व बैंक के नोट विशेषज्ञों के लिए भी यह बड़ा चौंकाने वाला मामला था. रिजर्व बैंक के नोट विशेषज्ञों की राय में सिक्योरिटी थ्रेड को निकाल कर फिर से इस्तेमाल करना कोई नामुमकिन बात भी नहीं है.

दरअसल, यह सिक्योरिटी थ्रेड चांदी की पन्नी हुआ करती थी. नोट भले ही सड़ जाए, लेकिन चांदी की पन्नी को फिर भी निकाला जा सकता है. रिजर्व बैंक के अनुसार, पन्नी का फिर से इस्तेमाल पूरी तरह से भले ही नहीं किया जा सकता हो लेकिन आंशिक तौर पर किया ही जा सकता है. रिजर्व बैंक ने यह भी माना कि हर रोज कोलकाता के तमाम बैंकों से बड़े पैमाने पर नकली नोट पकड़े जा रहे हैं.

जांच में पता चला कि नकली नोट का कारोबार करने वालों में से अब तक किसी ने सिक्योरिटी थे्रड का इस्तेमाल नहीं किया है. नकली नोटों में असली सिक्योरिटी थे्रड का इस्तेमाल इतनी सफाई से किया गया था कि नकली नोटों की शिनाख्त लगभग नामुमकिन ही थी. 

कोलकाता पुलिस के इतिहास में नकली नोट का इतना बड़ा कारोबार इस से पहले कभी नहीं पकड़ा गया था. जब इस मामले का खुलासा हुआ तो सब से पहले मध्य कोलकाता के बड़ा बाजार में आतंक का माहौल देखा गया. रुपए का लेनदेन मुश्किल हो गया. गौरतलब है कि बड़ाबाजार के थोक कारोबार का एक बड़ा हिस्सा नकदी में चलता है. जांच कर रही टास्क फोर्स का कहना है कि बैंकों के जरिए नकली नोट कोे लंबे समय तक चलाते जाना इतना भी सहज नहीं है. नकली नोट का कारोबार थोक बाजार में अधिक होता है, क्योंकि थोक बाजार से ये नोट आसानी से बैंकों तक पहुंच जाते हैं.

पुराने नोट का निबटारा

रिजर्व बैंक के एक अधिकारी ने नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर बताया कि पहले रिजर्व बैंक द्वारा पुराने, फटे, सड़ेगले नोटों को एक तय समय के बाद जला कर नष्ट कर दिया जाता था. इस के बाद कुछ वर्ष पहले पुराने नोटों को नीलाम करने का चलन शुरू हुआ. इस के लिए पहले पेपर कटर मशीन में डाल कर उस के टुकड़ेटुकड़े करना जरूरी है. इस के बाद ही इन्हें नीलाम किया जा सकता है.

नियमानुसार इन स्क्रैप नोटों को कटर मशीन में डाल कर इन में रिजर्व बैंक के गवर्नर के हस्ताक्षर समेत नोटों में वाटर मार्क और सिक्योरिटी थ्रेड वाले हिस्से कुछ इस तरह नष्ट करना जरूरी है, ताकि उन का फिर से इस्तेमाल न किया जा सके.

टास्क फोर्स अधिकारी अमित जावलगी ने बताया कि रिजर्व बैंक के गवर्नर के हस्ताक्षर, वाटर मार्क और सिक्योरिटी थ्रेड नष्ट करने के बाद ही सड़ेगले, पुराने नोटों की नीलामी होती है. नीलामी में रिजर्व बैंक में पंजीकृत कंपनी ही भाग ले सकती है. पंजीकृत कंपनी ही रिजर्व बैंक का ठेकेदार कहलाती है.

ठेकेदार कंपनी इन सड़ेगले नोटों का व्यवहार अपने तरीके से कर सकती है. पर पुराने नोट का ठेकेदार कंपनी कुछ भी करे, उस का पूरा दायित्व ठेकेदार कंपनी का होता है. लेकिन नियमानुसार रिजर्व बैंक से प्राप्त सड़ेगले नोट ठेकेदार कंपनी के मारफत किसी भी सूरत में बाहरी लोगों के हाथों तक पहुंचना गैरकानूनी है. 

रिजर्व बैंक के ऐसे ही एक ठेकेदार की मारफत चंद्रशेखर असली नोट का सिक्योरिटी थे्रड हासिल किया करता था. नीलामी से प्राप्त असली नोट से सिक्योरिटी थे्रड को निकाल कर उस का इस्तेमाल बड़ी सफाई से नकली नोटों में किया जाता था. यही कारण है कि कभीकभी असलीनकली नोट की परखने वाली मशीन भी गच्चा खा जाया करती है.

बहरहाल, ठेकेदार की शिनाख्त हो चुकी है और उस से पूछताछ में पता चला कि सिक्योरिटी थे्रड प्राप्त करने के लिए चंद्रशेखर पुराने नोट खरीदने में उस के मूल्य से दोगुना पैसा खर्च किया करता था. 50 हजार रुपए से भी कम कीमत के सड़ेगले खस्ताहाल नोटों को चंद्रशेखर 1 लाख रुपए में खरीद लेता था. कारखाने में नकली नोटों पर यह सिल्वर थ्रेड बिठा दिया जाता था. 

टास्क फोर्स के अधिकारी का कहना है कि इस से पहले पश्चिम बंगाल में जो भी नकली नोट बरामद हुए हैं, उन में से ज्यादातर पाकिस्तान व बंगलादेश में छपे थे. पाकिस्तान में छपे नोट असली नोट के काफी करीब हुआ करते हैं. डोमजुड़ से बरामद हुए नकली नोट असली भारतीय नोट के करीब तो नहीं, लेकिन पाकिस्तान में तैयार किए गए भारतीय नोट के ज्यादा करीब थे.

छोटे नोटों की किल्लत

जांच में जो तथ्य निकल कर सामने आया है वह यह कि छोटे नोटों की किल्लत के बीच नकली बड़े नोटों का बाजार चलता है. गौरतलब है कि कोई भी राज्य क्यों न हो, हर राज्य के बड़े शहरों से ले कर गांवदेहात और कसबे में 20 और 50 रुपए के नोटों की किल्लत आम है. वहीं, ज्यादातर एटीएम में 100, 500 और 1000 रुपए के ही नोट मिलते हैं. दरअसल, बड़े नोटों का छुट्टा 50-100 रुपए की खरीदारी में आसानी से हो जाता है. ये नोट दुकानदार की मारफत हाथोंहाथ हर जगह पहुंच जाते हैं.

जहां तक छोटे नोटों की किल्लत का सवाल है, राष्ट्रीयकृत बैंक सारा दोष यह कह कर रिजर्व बैंक के मत्थे मढ़ देते हैं कि वहां से पर्याप्त मात्रा में छोटे नोट नहीं आते. एक अधिकारी का कहना है कि शालबनी, देवास और नासिक से नोट रिजर्व बैंक की विभिन्न शाखाओं में पहुंचते हैं. नोट का शालबनी कारखाना रिजर्व बैंक के अधीन है, लेकिन देवास और नासिक के कारखानों पर मालिकाना हक केंद्रीय वित्त मंत्रालय का है.

रिजर्व बैंक की किसी शाखा को किस डिनौमिनेशन यानी किस मूल्य का कितना नोट भेजा जाए, वित्त वर्ष की शुरुआत में ही यह मुंबई स्थित रिजर्व बैंक के मुख्यालय में तय हो जाता है.

अब इस बारे में रिजर्व बैंक के एक सूत्र का कहना है कि 50 और 20 रुपए के नोट की किल्लत के कई कारण हैं. इन का आवंटन 10 रुपए, 100 रुपए, 500 रुपए और 1000 रुपए के नोट की तुलना में महज 10 से 20 प्रतिशत होने के कारण इन की किल्लत बनी रहती है.

साल के दौरान समयसमय पर 20 और 50 रुपए का संकट बना रहता है. लेकिन इस तरह की किल्लत की समस्या हर वित्त वर्ष के अंत में अधिक देखी जाती है. इस की वजह यह है कि जिस तरह के कागज में 20 और 50 रुपए के नोटों की छपाई होती है, उस के आयात में कभीकभी दिक्कत पेश आती है.

वहीं एटीएम में 100 रुपए का नोट न मिलने के बारे में आईसीआईसीआई बैंक के एक अधिकारी का कहना है कि किसी एटीएम में रुपए स्टोर करने की जो जगह है उस में एक बार में अधिकतम 50 लाख रुपए से अधिक नहीं डाले जा सकते.

अब अगर मशीन में 100 रुपए के नोट डाले जाएं तो 50 लाख रुपए से कम राशि ही डाली जा सकेगी. यही कारण है कि ज्यादातर एटीएम में 500 और 1000 रुपए के ही नोट डाले जाते हैं. 100 रुपए के नोट भी एटीएम में डाले जाते हैं लेकिन कम संख्या में. साफ है, इन्हीं स्थितियों का लाभ उठा कर नकली नोटों का कारोबार फलताफूलता है.

ममता, मजहब और माशूक

मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की सीमाओं को जोड़ने वाली धार्मिक नगरी चित्रकूट में यों तो साल भर श्रद्धालुओं की आवाजाही बनी रहती है, लेकिन तीजत्यौहार के दिनों में भक्तों का जो रेला यहां उमड़ता है, उसे संभालने में पुलिस प्रशासन के पसीने छूट जाते हैं. ऐसे में यदि व्यवस्था में जरा सी चूक हो जाए तो पुलिस प्रशासन के लिए समस्या खड़ी कर सकती है. लिहाजा पुलिस व प्रशासन भीड़भाड़ वाले दिनों में अपनी तरफ से पूरी कोशिश करते हैं कि व्यवस्था और सुविधाओं में कोई कमी न रह जाए.

इस साल भी जनवरी के दूसरे सप्ताह से ही चित्रकूट में श्रद्धालुओं के आने का सिलसिला शुरू हो गया था, जिन का इंतजार पंडेपुजारियों के अलावा स्थानीय व्यापारी भी करते हैं. कहा जाता है कि मकर संक्रांति की डुबकी श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक लाभ पहुंचाती है और यदि डुबकी सूर्य के मकर राशि में प्रवेश के समय लगाई जाए तो हजार गुना ज्यादा पुण्य मिलता है.

14 जनवरी, 2018 को मकर संक्रांति की डुबकी लगाने के लिए लाखों लोग चित्रकूट पहुंच चुके थे. श्रद्धालु अपनी हैसियत के मुताबिक लौज, धर्मशाला व मंदिर प्रांगणों में ठहरे हुए थे. वजह कुछ भी हो पर यह बात दिलचस्प है कि चित्रकूट आने वालों में बहुत बड़ी तादाद मामूली खातेपीते लोगों यानी गरीबों की रहती है. उन्हें जहां जगह मिल जाती है, ठहर जाते हैं और डुबकी लगा कर अपने घरों को वापस लौट जाते हैं.

चित्रकूट में दरजनों प्रसिद्ध मंदिर और घाट हैं, जिन का अपना अलगअलग महत्त्व है. हर एक मंदिर और घाट की कथा सीधे राम से जुड़ी है. कहा यह भी जाता है कि चित्रकूट में राम और तुलसीदास की मुलाकात हुई थी. इन्हीं सब बातों की वजह से यहां लगने वाले मेले में देश के दूरदराज के हिस्सों से श्रद्धालु आते हैं.

मेले में आए लोग श्री कामदगिरि पर्वत की परिक्रमा भी जरूर करते हैं. लगभग 7 किलोमीटर की यह पदयात्रा करीब 4 घंटे में पूरी हो जाती है. 14 जनवरी को भी श्रद्धालु श्री कामदगिरि की परिक्रमा कर रहे थे, तभी कुछ ने यूं ही जिज्ञासावश पहाड़ी के नीचे झांका तो उन की आंखें फटी की फटी रह गईं.

इस की वजह यह थी कि पहाड़ी के नीचे की तरफ लगे बिजली के एक खंभे पर एक लड़की की लाश लटकी थी. शोर हुआ तो देखते ही देखते परिक्रमा करने वाले लोग वहां रुक कर लाश देखने लगे.

पुलिस को बुलाने या सूचना देने के लिए किसी को कहीं दूर नहीं जाना पड़ा. क्योंकि भीड़ जमा होने पर परिक्रमा पथ पर तैनात पुलिस वाले खुद ही वहां पहुंच गए. पुलिस वालों ने जब खंभे पर लटकी लड़की की लाश देखी तो उन्होंने तुरंत इस की खबर आला अफसरों को दी. कुछ ही देर में थाना नयापुरा के थानाप्रभारी पुलिस टीम के साथ वहां पहुंच गए. पुलिस लाश उतरवाने में लग गई.

पुलिस काररवाई के चलते भीड़ यह निष्कर्ष निकाल चुकी थी कि लड़की अपने घर वालों के साथ आई होगी और खाईं में गिर गई होगी. लेकिन पुलिस ने जब खंभे से लाश उतारी तो न केवल पुलिस वाले बल्कि मौजूद भीड़ भी हैरान रह गई. क्योंकि तकरीबन 11-12 साल की लग रही उस लड़की के मुंह में कपड़ा ठूंसा हुआ था.

मुंह में कपड़ा ठूंसा होने पर मामला सीधेसीधे हत्या का लगने लगा. पुलिस भी यह मानने लगी कि हत्या कहीं और कर के लाश यहां ला कर फेंकी होगी. क्योंकि अभी तक आसपास के किसी थाने से किसी लड़की की गुमशुदगी की खबर नहीं आई थी.

चित्रकूट में लड़की की लाश मिलने की खबर आग की तरह फैली तो लोग तरहतरह की बातें करने लगे. पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. अगले दिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई, जिस में बताया गया कि उस लड़की की हत्या गला घोंट कर की गई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आधार पर पुलिस ने अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धाराओं 302 और 201 के तहत मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी.

उस वक्त चित्रकूट में बाहरी लोगों की भरमार थी. इसी वजह से लाश की शिनाख्त नहीं हो पाई थी. फिर भी पुलिस कोशिश में लग गई कि शायद कोई सुराग मिल जाए. अब तक की जांच से यह स्पष्ट हो गया था कि मृतका चित्रकूट की न हो कर कहीं बाहर की रही होगी.

इस तरह के ब्लाइंड मर्डर पुलिस के लिए न केवल चुनौती बल्कि सरदर्द भी बन जाते हैं. इस मामले में भी यही हो रहा था. हत्यारों तक पहुंचने के लिए लाश की शिनाख्त जरूरी थी.

पुलिस वालों ने सब से पहले सीसीटीवी फुटेज देखने का फैसला लिया, लेकिन यह भी आसान काम नहीं था, क्योंकि मकर संक्रांति के वक्त चित्रकूट में सैकड़ों कैमरे लगे हुए थे. यह जरूरी नहीं था कि सभी फुटेज देखने के बाद भी इतनी भीड़भाड़ में वह लड़की दिख जाए. पर सीसीटीवी फुटेज देखने के अलावा पुलिस के पास कोई और रास्ता भी नहीं था.

चित्रकूट में इस हत्या की चर्चा तेज होने लगी तो सतना के एसपी राजेश हिंगणकर ने मामला अपने हाथ में ले लिया. उन्होंने जांच में जुटी पुलिस के साथ बैठक की और कुछ दिशानिर्देश दिए. पुलिस टीम के लिए यह काम भूसे के ढेर से सुई ढूंढने जैसा था. पुलिस टीम सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखने में जुट गई. पुलिस की मेहनत रंग लाई.

12 जनवरी, 2018 की एक फुटेज में एक युवक और युवती के साथ वह लड़की दिखी तो पुलिस वालों की आंखें चमक उठीं.

उत्साहित हो कर पुलिस ने और फुटेज खंगालीं तो इस बात की पुष्टि हो गई कि जिस लड़की की लाश पुलिस ने बरामद की थी, वह वही थी जो फुटेज में युवकयुवती के साथ थी. यह फुटेज जानकीकुंड अस्पताल की थी, जहां युवक व युवती मरीजों वाली लाइन में लगे थे.

उस दिन स्नान के लिए वहां लाखों लोग आए थे. इसलिए यह पता लगाना आसान नहीं था कि वह युवक और युवती कहां के रहने वाले थे, इसलिए पुलिस ने ये फुटेज सोशल मीडिया पर भी वायरल कर दिए, जिस से उन तक जल्द से जल्द पहुंचा जा सके.

फुटेज सोशल मीडिया पर डालने के बाद भी पुलिस को उन के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. इस पर हत्यारे का सुराग देने पर 10 हजार रुपए का इनाम भी घोषित कर दिया गया. इसी दौरान पुलिस वालों ने जानकीकुंड अस्पताल के रजिस्टर की जांच भी शुरू कर दी थी.

अस्पताल में आए मरीज का नामपता जरूर लिखा जाता है लेकिन हजारों की भीड़ में यह पता लगा पाना मुश्किल काम था कि जो चेहरे कैमरे में दिख रहे थे, उन के नाम क्या थे. इस के बाद भी पुलिस वाले नामपते छांटछांट कर अंदाजा लगाने में लगे रहे कि वे कौन हो सकते हैं. इस प्रक्रिया में 25 दिन निकल चुके थे और लाख कोशिशों के बाद भी पुलिस के हाथ कामयाबी नहीं लग रही थी.

चित्रकूट के लोगों की दिलचस्पी भी अब मामले में बढ़ने लगी थी. उन्हें सस्पेंस इस बात को ले कर था कि देखें पुलिस कैसे हत्यारों तक पहुंचती है और पहुंच भी पाती है या नहीं.

अस्पताल के रजिस्टर में दर्ज जिन नामों पर पुलिस ने शक किया और जांच की, उन में एक नाम उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के विजय और उस की पत्नी आरती का भी था. एसपी के निर्देश पर एक पुलिस टीम विजय के गांव ऐंझी पहुंच गई.

विजय से सीधे पूछताछ करने के बजाय पुलिस ने पहले उस के बारे में जानकारी हासिल की तो एक जानकारी यह मिली कि उस की 10-11 साल की एक बेटी नेहा भी थी, जो लगभग एक महीने से नहीं दिख रही है.

पुलिस ने चित्रकूट से लड़की की जो लाश बरामद की थी, उस की उम्र भी 10-12 साल थी. यह समानता मिलने पर पुलिस की जिज्ञासा बढ़ गई. इस के बाद पुलिस विजय के घर पहुंच गई. उस समय उस की पत्नी आरती भी घर पर मौजूद थी. पुलिस ने जब उन दोनों से उन की बेटी नेहा के बारे में पूछा तो वह बोले कि उन की कोई बेटी नहीं थी, केवल एक बेटा ही है.

उन की बातों से लग रहा था कि वह झूठ बोल रहे हैं क्योंकि उनके पड़ोसियों ने बता दिया था कि इन की 10-11 साल की एक बेटी नेहा थी, जो पता नहीं कहां चली गई है. इसी शक के आधार पर पुलिस विजय और उस की पत्नी आरती को चित्रकूट ले आई.

थाने में उन दोनों से जब पूछताछ शुरू हुई तो दोनों साफ मुकर गए कि उन की कोई बेटी भी है. तब पुलिस ने उन्हें सीसीटीवी फुटेज दिखाई, जिस में उन के साथ 10-11 साल की बच्ची थी. फुटेज देखते ही दोनों बगले झांकने लगे. उसी समय दोनों ने आंखों ही आंखों में कुछ बात की और चंद मिनटों में ही बेटी की हत्या का राज उगल दिया.

पुलिस वाले यह जान कर आश्चर्यचकित रह गए कि आरती का असली नाम सबीना शेख है और वह मुसलमान है. सबीना की शादी सन 2006 में उत्तर प्रदेश के जिला फतेहपुर के ही निवासी जाहिद अली से हुई थी. जाहिद से उसे 2 बच्चे हुए, पहली बेटी सिमरन और दूसरा बेटा साजिद जो 5 साल का है.

सबीना जाहिद के साथ रह जरूर रही थी, लेकिन उस के साथ उस की कभी पटरी नहीं बैठी, क्योंकि सबीना किसी और को चाहती थी.

दरअसल सबीना और विजय एकदूसरे को बचपन से चाहते थे, लेकिन सबीना की शादी घर वालों ने उस की मरजी के खिलाफ जाहिद से कर दी थी, इसलिए सबीना जाहिद के साथ रह जरूर रही थी, लेकिन उसे वह दिल से नहीं चाहती थी.

उस ने तो अपने दिल में विजय को बसा रखा था. जब दिल नहीं मिले तो उन के बीच बातबेबात झगड़ा रहने लगा. अपनी कलह भरी जिंदगी सुकून से गुजारने की गरज से सबीना ने शादी के 9 साल बाद विजय को टटोला. उसे यह जान कर खुशी हुई कि विजय उसे आज भी पहले की तरह चाहता है और उसे बच्चों सहित अपनाने को तैयार है.

बस फिर क्या था बगैर कुछ सोचेसमझे एक दिन वह पति को बिना बताए विजय के साथ भाग गई. यह सन 2015 की बात है.  योजनाबद्ध तरीके से दोनों भाग कर ऐंझी गांव आ कर रहने लगे. सबीना अपने बच्चों को भी साथ ले आई थी, जिस पर विजय को कोई ऐतराज नहीं था.

अपने पुराने और पहले आशिक के साथ रह कर सबीना खुश थी. उधर जाहिद ने भी बीवी के गायब होने पर कोई भागदौड़ नहीं की, क्योंकि वह तो खुद सबीना से छुटकारा पाना चाहता था. सबीना अब हिंदू के साथ रह रही थी, इसलिए उस ने खुद का नाम आरती सिंह, बेटी सिमरन का नाम नेहा सिंह और बेटे साजिद का नाम बदल कर आशीष सिंह रख लिया था.

नए पति के साथ खुशीखुशी रह रही सबीना को थोड़ाबहुत डर अपने मायके वालों से लगता था कि अगर उन्हें पता चला तो वे जरूर फसाद खड़ा कर सकते हैं. साजिद उर्फ आशीष ने तो विजय को पापा कहना शुरू कर दिया था, लेकिन सिमरन विजय को पिता मानने को तैयार नहीं थी. सिमरन उर्फ नेहा चूंकि 10-11 साल की हो चुकी थी, इसलिए वह दुनियाजहान को समझने लगी थी. उस का दिल और दिमाग दोनों विजय को पिता मानने को तैयार नहीं थे.

आरती की बड़ी इच्छा थी कि नेहा विजय को पापा कहे. इस बाबत शुरू में तो आरती और विजय ने उसे बहुत बहलायाफुसलाया, लेकिन इस्लामिक माहौल में पली सिमरन हमेशा विजय को मामू ही कहती थी. जब इस संबोधन पर सबीना ने सख्ती से पेश आना शुरू किया तो वह सिमरन के इस मासूमियत भरे सवाल का कोई जवाब वह नहीं दे पाई कि आप ही तो कहती थीं कि ये मामू हैं, अब इन्हें पापा कैसे कह दूं. मेरे अब्बू तो दूसरे गांव में रहते हैं.

इस से विजय और सबीना की परेशानी बढ़ने लगी थी. वजह मामू और अब्बा के मुद्दे पर सिमरन बराबरी से विवाद और तर्क करने लगी थी. दोनों को डर था कि यह उजड्ड और बातूनी लड़की कभी भी उन का राज खोल सकती है क्योंकि गांव में कोई इन की असलियत नहीं जानता था. अगर गांव वाले सच जान जाएंगे तो धर्म के ठेकेदार इन का रहना और जीना मुहाल कर देते.

जब लाख समझाने और धमकाने से भी बात नहीं बनी यानी सिमरन विजय को पिता मानने को तैयार नहीं हुई तो खुद सबीना ने विजय को इशारा किया कि इस से तो अच्छा है कि सिमरन का मुंह हमेशा के लिए बंद कर दिया जाए. विजय भी इस के लिए तैयार हो गया.

दोनों ने मकर संक्रांति पर चित्रकूट जाने की योजना बनाई और सिमरन से कहा कि वहां तुम्हारी आंखों की जांच भी करा देंगे. सिमरन जिद्दी जरूर थी, पर इतनी समझदार अभी नहीं हुई थी कि सगी मां के मन में पनप रही खतरनाक साजिश को भांप पाती.

12 जनवरी, 2018 को चित्रकूट आ कर दोनों ने जानकीकुंड अस्पताल में सिमरन उर्फ नेहा की आंखों की फ्री जांच करवाई और उस दिन उन्होंने विभिन्न मंदिरों में दर्शन किए. 13 जनवरी, 2018 को इस अंतरधर्मीय परिवार ने चित्रकूट में परिक्रमा की और रात में नरसिंह मंदिर के प्रांगण में आ कर सो गए.

2 दिन घूमनेफिरने के बाद थकेहारे दोनों बच्चे तो जल्द सो गए, लेकिन दुनिया के सामने दोहरी जिंदगी जीते विजय और आरती उर्फ सबीना की आंखों में नींद नहीं थी. रात 12 बजे के लगभग दोनों ने गहरी नींद में सोई नेहा उर्फ सिमरन का गला मफलर से घोंट डाला.

उस के मर जाने की तसल्ली होने के बाद दोनों यह सोच कर लाश को झाडि़यों में फेंक आए कि सिमरन की लाश को जल्द ही चीलकौए और जानवर नोचनोच कर खा जाएंगे और उन के जुर्म की भनक किसी को भी नहीं लगेगी. लाश खाईं में गिराने के बाद वे दोनों बेटे को ले कर गाजियाबाद भाग गए और कुछ दिन इधरउधर भटकने के बाद ऐंझी पहुंच गए.

पहाड़ी से लाश गिराते समय इत्तफाक से नेहा की लाश का बायां पांव खंभे में उलझ गया और लाश लटकी रह गई.

9 फरवरी, 2018 को जब सारे राज खुले तो हर किसी ने इसे वासना के लिए ममता का गला घोंटने वाली शर्मनाक वारदात कहा. बात सच भी थी, जिस का दूसरा पहलू सबीना और विजय की यह बेवकूफी थी कि वे नाम बदल कर चोरीछिपे रह रहे थे.

सबीना जाहिद से तलाक ले कर सीना ठोंक कर विजय से शादी करती तो शायद सिमरन भी विजय को पिता के रूप में स्वीकार कर लेती, पर इसे इन दोनों की बुजदिली ही कहा जाएगा कि धर्म और समाज के दबाव से लड़ने के बजाय उन्होंने एक मासूम की हत्या कर के अपनी जिंदगी खुशहाल बनने का ख्वाब देख डाला. कथा संकलन तक दोनों जेल में थे.

मौत जो बन गई पहेली

6 जनवरी 2020 को रात करीब 10 बजे का वक्त था. ग्रेटर नोएडा के गौर सिटी एवेन्यू-5 में रहने वाले 40 साल के वर्किंग प्रोफेशनल गौरव चंदेल गुरुग्राम स्थित अपने दफ्तर से नोएडा एक्सटेंशन में स्थित अपने घर लौट रहे थे. रास्ते में चंदेल ने अपनी पत्नी प्रीति को फोन कर के कहा कि वह रात 10 बजे तक घर पहुंच जाएंगे. लेकिन वे दिल्ली एनसीआर के हमेशा रहने वाले जाम के कारण जब समय पर घर नहीं पहुंचे तो आदतन उन की पत्नी प्रीति ने रात करीब साढ़े 10 बजे फिर से गौरव चंदेल को फोन कर के पूछा कि वह घर कब तक पहुंचेंगे.

ज्यादा बात तो नहीं हो सकी लेकिन गौरव ने पत्नी को इतना जरूर बताया कि वह पर्थला चौक पर हैं और थोड़ी देर में घर पहुंच जाएंगे. पूछने पर उन्होंने पत्नी को इतना ही बताया था कि वह इस वक्त अपनी गाड़ी के पेपर चैक करा रहे हैं. इस के बाद गौरव ने फोन डिसकनेक्ट कर दिया. लेकिन उस के पहले प्रीति ने फोन पर दूसरी तरफ से स्पष्ट सुना था. गौरव से कोई कह रहा था कि कार सड़क किनारे ले लो. प्रीति को लगा कि शायद पुलिस वाले होंगे जो चैकिंग कर रहे होंगे.

पर्थला चौक से चंदेल का घर महज 4 किलोमीटर ही रह गया था. कायदे से अगले 10 या 15 मिनट में गौरव चंदेल को अपने घर पर होना चाहिए था. लेकिन काफी वक्त गुजर जाने के बाद भी वह अपने घर नहीं पहुंचे.आमतौर पर जब भी काम से फुरसत होती, गौरव अपनी पत्नी से फोन पर बातें किया करते थे. इस रोज भी दफ्तर से रवाना होने से पहले उन्होंने प्रीति को फोन किया था. इस हिसाब से गौरव को रात करीब 10 बजे तक गुरुग्राम से नोएडा एक्सटेंशन के अपने फ्लैट पर पहुंच जाना चाहिए था. गौरव चंदेल गुरुग्राम के उद्योग विहार स्थित सर्जिकल इक्विपमेंट बनाने वाली 3एम इंडिया लिमिटेड कंपनी में रीजनल मैनेजर थे.

गौरव चंदेल ने पत्नी से फोन पर जो कहा था, उस के हिसाब से गौरव को कम से कम अगले आधे घंटे यानी रात पौने 11 या 11 बजे तक घर पहुंच जाना चाहिए था. लेकिन जब 40-45 मिनट गुजर जाने के बाद भी गौरव घर नहीं पहुंचे तो प्रीति की बेचैनी बढ़ने लगी.अब उस ने गौरव को एक के बाद एक कई फोन किए. घंटी बजती रही लेकिन गौरव ने फोन नहीं उठाया. प्रीति को समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर अपनी गाड़ी के कागज चैक करवा रहे गौरव के साथ बीच रास्ते में ऐसा क्या हुआ कि वह न तो घर लौटे और न ही फोन उठा रहे हैं. ये हालत प्रीति ही नहीं, बल्कि पूरे चंदेल परिवार और रिश्तेदारों को बेचैन करने के लिए काफी थे.

लिहाजा प्रीति ने अब अपने पड़ोसियों से बात की और फोन पर ही कुछ और देर तक गौरव का पता लगाने की कोशिश चलती रही. लेकिन जब सारी कोशिशें नाकाम हो गईं तो उस ने आसपड़ोस में रहने वाले लोगों को बुलाया और सभी लोग सीधे बिसरख पुलिस स्टेशन पहुंचे.

थाने में उन के साथ वैसा ही हुआ जैसा कि आमतौर पर पुलिस थानों में होता है, बिसरख थाने के पुलिस वालों ने परेशान चंदेल परिवार को बहुत ठंडा रिस्पौंस दिया और ये समझाने की कोशिश की कि गौरव अपनी मरजी से कहीं चले गए होंगे और खुद ही वापस लौट आएंगे.चूंकि गौरव की पत्नी प्रीति को पूरे सीक्वेंस यानी घटनाक्रम का पता था तो वह पुलिस की बात मानने को तैयार नहीं हुई. ऐसे में जिद करने पर बिसरख के पुलिस वालों ने चंदेल परिवार को पहले थाना फेस-3 फिर चेरी काउंटी पुलिस चौकी और तब गौड़ सिटी पुलिस चौकी के लिए टरका किया.

परिवार के लोग पड़ोसियों के साथ इस चौकी से उस चौकी तक भटकते रहे, लेकिन हर जगह उन्हें वहां तैनात पुलिस वालों ने यह कह कर टरका दिया कि ये हमारे क्षेत्र का मामला नहीं है.इस तरह गौरव के परिवार वाले रात भर थाने और पुलिस चौकी में ढूंढते और पुलिस से फरियाद करते रहे. आधी रात बीत जाने के बाद परिवार के लोग फिर से बिसरख थाने पहुंचे. जहां इस बार उन्हें बिसरख थानाप्रभारी मनोज पाठक मिले.

पाठक को जब सारी बात पता चली तो उन्होंने गौरव की गुमशुदगी दर्ज करवा कर उन के फोन की लोकेशन ट्रेस करने के लिए उसी समय कुछ पुलिसकर्मियों को काम पर लगा दिया. कुछ ही देर में बिसरख पुलिस को पता चल गया कि गौरव के मोबाइल फोन की लोकेशन एक्टिव थी.पुलिस को नोएडा एक्सटेंशन के ही रोजा जलालपुर और हैबतपुर जैसे गांवों का पता चला जहां गौरव के मोबाइल फोन की लोकेशन नजर आ रही थी. परिजनों ने राहत की सांस ली. उन्हें लगा कि गौरव कुशल से है, लिहाजा परिवार तथा पड़ोस के लोगों ने पुलिस पर दबाव बनाया कि वह इन जगहों पर चल कर गौरव को तलाशने के लिए उन के साथ चले.

पुलिस को जिन मामलों में अपना कोई फायदा नजर नहीं आता, उन में वह बहुत मेहनत नहीं करना चाहती. लिहाजा पुलिस अनमने ढंग से चंदेल परिवार के साथ गौरव को ढूंढने के लिए गई. लेकिन रात के अंतिम पहर में इधरउधर भटकने के अलावा उन्हें कोई कामयाबी नहीं मिली.घर वाले खुद गौरव की तलाश में जुट गए. घर वालों ने पड़ोसियों के साथ मिल कर एक बार फिर पर्थला गोल चक्कर से गौड़ सिटी तक गौरव को ढूंढने का काम शुरू किया. क्योंकि गौरव को इसी रूट से अपने घर आना था और आखिरी बार उस की अपनी बीवी प्रीति से पर्थला चौक पर ही फोन पर बात हुई थी. इसी तमाम भागदौड में सुबह के करीब साढ़े 4 बज गए थे.

चंदेल परिवार से जुड़े लोगों की गाड़ी पर्थला चौक से गौड़ चौक की तरफ सर्विस लेन पर चल रही थी. तभी उन्हें हिंडन पुलिया से पहले एक क्रिकेट ग्राउंड के पास कोई जमीन पर पड़ा नजर आया.बेचैन घर वालों ने अंधेरे में उस शख्स को टटोलने की कोशिश की, लेकिन करीब पहुंचते ही सब के पैरों तले जमीन खिसक गई. क्योंकि ये गौरव ही थे, जो औंधे मुंह जमीन पर पड़े थे और उन के सिर से खून निकल रहा था. यहां तक की सांसें भी थम चुकी थीं.

प्रीति ने पति को इस हाल में देखा तो उस के जान हलक में आ गई और वह छाती पीट कर रोने लगी. लेकिन परिवार के कुछ लोगों को फिर भी करिश्मे की उम्मीद थी, लिहाजा वे सब फौरन गौरव को नजदीक के अस्पताल ले कर गए लेकिन वहां पहुंचते ही चिकित्सकों ने बताया कि उन की सांसें थम चुकी हैं.

गौरव की मौत की खबर पूरे चंदेल परिवार पर बिजली बन कर गिरी. रात भर गौरव को तलाशते रहे घर वालों को अब ये समझ नहीं आ रहा था कि वे करें तो क्या करें, क्योंकि गौरव तो मिल चुका था मगर जिंदा नहीं मुर्दा.

कुछ परिजनों ने खुद को संयत किया और तत्काल गौरव चंदेल की हत्या की सूचना बिसरख पुलिस को दी. जैसे ही बिसरख थानाप्रभारी मनोज पाठक को गौरव चंदेल की हत्या और उन का शव मिलने की सूचना मिली. वे आननफानन में अपने आला अधिकारियों को इस की सूचना दे कर सहयोगियों को ले कर उस निजी अस्पताल में पहुंचे, जहां परिजन गौरव चंदेल को ले कर गए थे.

पाठक ने अस्पताल जा कर परिजनों से पूछताछ कर के जानकारी हासिल की. उन्होंने पुलिस की एक टीम को मौके पर ही आगे की काररवाई करने के लिए छोड़ दिया और खुद एक टीम ले कर परिवार के कुछ सदस्यों को ले कर उस जगह पहुंच गए, जहां गौरव चंदेल की लाश मिली थी.घटनास्थल पर इलाके के सीओ और क्राइम टीम के लोग भी पहुंच गए. पुलिस ने घटनास्थल की फोटोग्राफी और रिकौर्डिंग करवाई ताकि अपराधियों तक पहुंचने का कोई सुराग मिल सके. लेकिन पुलिस को कोई ऐसी चीज हाथ नहीं लगी, जिस से कामयाबी मिलती. सवाल यह था कि अगर गौरव चंदेल की लाश वहां थी तो उन की कार
कहां गई.

इसी सवाल का जवाब पाने के लिए पुलिस की कुछ टीमों को आसपास के इलाकों में दौड़ाया गया. एक बात साफ हो रही थी कि गौरव चंदेल की हत्या ऐसे लोगों ने की थी, जिन का मकसद लूटपाट करना रहा होगा.  बहरहाल, पुलिस ने गौरव चंदेल की गुमशुदगी को अपराध संख्या 17 पर भारतीय दंड संहिता में लूटपाट की नीयत से हुई हत्या का मामला दर्ज कर लिया.इस की जांच का काम इंसपेक्टर मनोज पाठक को सौंप दिया गया. इधर, गौरव चंदेल की रहस्यमय ढंग से हुई गुमशुदगी और उन का शव बरामद की जानकारी मीडिया को भी लग चुकी थी. लिहाजा मीडिया ने पुलिस के खिलाफ अगले ही दिन से गौरव चंदेल हत्याकांड में बरती लापरवाही को ले कर परतें उधेड़नी शुरू कर दीं.

इधर उच्चाधिकारियों ने मामले के तूल पकड़ने पर न सिर्फ एसटीएफ को इस मामले का खुलासा करने की जिम्मेदारी सौंप दी बल्कि बिसरख पुलिस से एसएसपी ने जवाबतलब भी कर लिया कि किन परिस्थितियों में पुलिस ने लापरवाही बरती.इधर पुलिस जांच आगे बढ़ती रही, उधर वक्त बीतने के साथ पुलिस के खिलाफ लोगों का गुबार सामने आता रहा. नोएडा में गौरव चंदेल के परिवार को न्याय दिलाने के लिए लोग सडकों पर उतर आए. कैंडल मार्च से ले कर पुलिस के खिलाफ विरोध प्रर्दशन शुरू हो गए.

परेशानी यह थी कि गौरव अपने परिवार का एकलौता सहारा थे. परिवार में उन की वृद्ध मां और पत्नी प्रीति के अलावा 14 साल का एक बेटा ही था. दूर के कुछ रिश्तेदार जो नोएडा या आसपास के इलाकों में रहते थे, वे ही मामले का खुलासा कराने के लिए पुलिस के पास भागदौड़ कर रहे थे.

कानून व्यवस्था को ले कर जब सवाल खड़े होते हैं तो उस पर सियासत भी शुरू हो जाती है. सरकार और पुलिस के खिलाफ विपक्षी राजनीतिक दलों ने भी सवाल खड़े करने शुरू किए तो लखनऊ से सरकार ने भी नोएडा पुलिस पर दबाव बनाना शुरू कर दिया.पुलिस भी अब तक की जांच में किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकी थी. सवाल यह था कि गौरव चंदेल के मोबाइल पर आखिरी काल रात करीब साढ़े 10 बजे पत्नी की आई थी. तब चंदेल की लोकेशन पर्थला चौक थी.

इस के बाद अगले कुछ घंटों में चंदेल का मोबाइल 3 अलगअलग लोकेशन बता रहा था. पर्थला चौक के बाद दूसरी लोकेशन हैबतपुर थी. हैबतपुर पर्थला चौक से करीब साढ़े 3 किलोमीटर दूर है. लेकिन हैबतपुर चंदेल के घर के रूट पर नहीं पड़ता तो चंदेल उधर क्यों गया था. कहीं ऐसा तो नहीं उसे जबरन ले जाया गया?हैबतपुर के बाद चंदेल की दूसरी लोकेशन करीब 9 किलोमीटर दूर रोजा जलालपुर की थी. रोजा जलालपुर के बाद चंदेल के मोबाइल ने जिस आखिरी लोकेशन का पता दिया, वह थी सैदुल्लापुर. रोजा जलालपुर से करीब ढाई किलोमीटर आगे. ये तीनों ही लोकेशन मेनरोड से हट कर कच्ची सड़कों की थीं और चंदेल के घर के रूट पर तो बिलकुल भी नहीं.

इन 3 लोकेशन के बाद 7 जनवरी की सुबह खुद चंदेल की लाश जिस हिंडन नदी के किनारे मिली, वह इन तीनों लोकेशन से अलग थी. इस से साफ था कि गौरव चंदेल के साथ किसी कार जैकर गिरोह ने वारदात की थी.यह अनुमान इसलिए भी लगाया जा रहा था कि अभी तक न तो गौरव चंदेल की कार मिली थी और न ही उस में रखा लैपटौप और मोबाइल आदि बरामद हुए थे. गौरव चंदेल का मोबाइल भी आखिरी लोकेशन मिलने के बाद से लगातार बंद चल रहा था.

चूंकि पोस्टमार्टम रिपोर्ट से खुलासा हुआ था कि गौरव चंदेल के सिर में 2 गोलियां मारी गई थीं. आमतौर पर इस तरह की वारदात को लूटपाट करने वाले गिरोह ही अंजाम देते हैं. इसलिए नोएडा पुलिस ने अब सारा फोकस आसपास के इलाकों में सक्रिय उन गिरोह पर कर दिया जो कार जैकिंग और लूटपाट की वारदातों को अंजाम देते हैं.पुलिस की सब से बड़ी परेशानी कत्ल के साथसाथ कातिल की पहचान को ले कर भी थी. क्योंकि चंदेल की पत्नी प्रीति के मुताबिक आखिरी बातचीत के दौरान चंदेल अपनी गाड़ी के कागजात दिखा रहे थे. अब कागजात पुलिस वाले ही चैक करते हैं. तो क्या चंदेल की आखिरी मुलाकात पुलिसवालों से ही हुई थी? या फिर पुलिस के वेश में लुटेरे थे?

पुलिस सोच रही थी कि ये काम लुटेरों के अलावा किसी और का भी हो सकता है. चंदेल के किसी दुश्मन का तो ये काम नहीं था. इस बिंदु पर भी जांच हुई, मगर कोई सुराग हाथ नहीं लगा.अब सवाल ये भी था कि आखिर गौरव की ब्रैंड न्यू सेल्टोस कार कहां है? 2 मोबाइल, लैपटौप और दूसरी कीमती चीजें भी गायब थीं. तो क्या ये मामला लूट और उस के लिए हुए कत्ल का है.

अब तक की जांच में पुलिस के सामने खुलासा हुआ था कि गुरुग्राम की एक कंपनी में रीजनल मैनेजर का काम करने वाले गौरव खुशमिजाज इंसान थे. उन्हें कारों से बड़ा लगाव था और शायद यही वजह थी कि गौरव ने अपनेलिए बमुश्किल महीने भर पहले हाल ही में लौंच हुई किया सेल्टोस कार खरीदी थी.

कार खरीदने के दौरान शोरूम में खिंचवाई गई गौरव की तसवीर उस की खुशी और जिंदगी को ले कर उस की उम्मीदों की गवाह बन कर रह गई है. लेकिन इसी गौरव के साथ 6 और 7 जनवरी की दरमियानी रात को जो कुछ हुआ वो भी मानो एक पहेली बन कर रह गया.

गौरव चंदेल की हत्या में पुलिस की भूमिका को ले कर सवार यूं ही नहीं उठ रहे थे. अगर वारदात की रात सचमुच ग्रेटर नोएडा पुलिस की कार्यशैली पर गौर करें, तो सामने आ रहा था कि गौरव की जिंदगी बचाने के लिए पुलिस ने उस रात वह नहीं किया, जो उसे करना चाहिए था.बल्कि सच्चाई तो यह है कि मोबाइल फोन की लोकेशन निकाल लेने के बावजूद सीमा विवाद में उलझी ग्रेटर नोएडा की पुलिस उसे ढूंढने के बजाय टोपी ट्रांसफर करने के खेल में उलझी रही और यही वजह रही कि नोएडा के आखिरी एसएसपी वैभवकृष्ण ने बिसरख थाने के एसएचओ से इस सिलसिले में जवाबतलब किया था.

पुलिस की कई टीमें गौरव चंदेल हत्याकांड के आरोपियों तक पहुंचने के लिए लगातार काम कर रही थीं. पुलिस टीमें चंदेल की कार के अलावा उस के मोबाइल फोन को लगातार ट्रैक किया जा रहा था.

इसी दौरान 15 जनवरी को अचानक सर्विलांस टीम को गौरव चंदेल का एक मोबाइल फोन एक्टिव होने का पता चला. पुलिस टीमों ने उसी रात मोबाइल की लोकेशन के आधार पर मजदूरी करने वाले एक शख्स को हिरासत में ले लिया और उस से पूछताछ की जाने लगी.पूछताछ करने पर पता चला कि वह शख्स एक फैक्ट्री में काम करने वाला मामूली सा मजदूर था. 7 जनवरी को उसे गौरव चंदेल का मोबाइल फोन लावारिस अवस्था में उस स्थान से थोड़ी दूर झाडि़यों में पड़ा मिला था, जहां गौरव चंदेल की लाश मिली थी. रामकुमार नाम के इस राहगीर ने लावारिस पड़े इस मोबाइल को अपने पास रख लिया.

1 सप्ताह अपने पास रखने के बाद रामकुमार ने इस मोबाइल को 15 जनवरी की सुबह जैसे ही अपना नंबर डाल कर फोन किया, बिसरख पुलिस ने उसे दबोच लिया. पुलिस ने हर बिंदु पर इस बात की पुष्टि कर ली कि रामकुमार का संबंध किसी गैंग या अपराधी गिरोह से नहीं है.पूरी संतुष्टि होने के बाद पुलिस ने उसे रिहा तो कर दिया लेकिन न सिर्फ उस की निगरानी शुरू कर दी, बल्कि उसे यह भी ताकीद कर दिया कि पुलिस को जब भी उस की जरूरत पड़ेगी, वह पूछताछ के लिए थाने में हाजिर होगा.

मोबाइल फोन की इस बरामदगी से पुलिस को गौरव  चंदेल हत्याकांड की गुत्थी सुलझने की उम्मीद बढ़ गई थी. पुलिस चंदेल के मोबाइल की काल डिटेल्स खंगाल ही रही थी कि इसी दौरान पड़ोसी जनपद गाजियाबाद पुलिस की मसूरी थाना पुलिस को गौरव चंदेल की किया सेल्टोस कार लावारिस अवस्था में बरामद हो गई.

मसूरी पुलिस ने 16 जनवरी को ग्रेटर नोएडा से लगभग 40 किलोमीटर दूर गाजियाबाद के मसूरी की आकाश नगर कालोनी से कार लावारिस हालत में बरामद की थी. बरामदगी के वक्त कार लौक्ड थी.

गौरव चंदेल की कार किया सेल्टोस नंबर यूपी16सी एल0133 को कब्जे में ले कर पुलिस ने जांच शुरू कर दी. पुलिस ने कार की फोरैंसिक जांच भी शुरू करवा दी.

हालांकि बरामद की गई कार पर नंबर प्लेट नहीं लगी हुई थी. दरअसल हत्यारों ने गाड़ी की पहचान छिपाने के लिए नंबर प्लेट तोड़ डाली थी, लेकिन कार के शीशे पर लगे गेट पास से कार के चंदेल की होने की पुष्टि हो गई.आकाश नगर में  जिस मकान के बाहर यह कार खड़ी हुई थी, उस के आसपास सीसीटीवी कैमरे लगे थे. जब उन्हें खंगाला गया तो पुलिस को उस में कार को खड़ा करने वाले नजर आ गए. सीसीटीवी में दिख रहे लोगों की पहचान करने की कोशिश की गई मगर तसवीरें इतनी धुंधली थीं कि उन की पहचान नहीं हो सकी.

फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट की टीम ने गाड़ी की जांच की, मगर उस से कोई मदद नहीं मिली. अलबत्ता गौरव चंदेल का लैपटौप बैग, आईडी, मोबाइल व दूसरे सामान कार में नहीं मिले.इस मामले में नया ट्विस्ट तब आया, जब 3 दिन बाद मसूरी थाना पुलिस ने ही आकाश नगर इलाके में गौरव चंदेल की कार से करीब एक किलोमीटर दूर चिराग अग्रवाल नाम के एक कारोबारी की टियागो कार को बरामद किया.

उस कार की नंबर प्लेट बदली गई थी, लेकिन कार पर लगे स्टिकर से कार के सही नंबर का पता चल गया.चिराग अग्रवाल की टियागो कार मिलने के बाद यह बात साफ हो गई कि इस इलाके में सक्रिय कोई गिरोह है, जिस ने इन वारदातों को अंजाम दिया है. नोएडा और गाजियाबाद पुलिस के साथ यूपी एसटीएफ की टीम इलाके के बदमाशों और सक्रिय गैंगों की कुंडली खंगालने लगी. पुलिस की जांच मसूरी इलाके में सक्रिय मिर्ची गैंग पर आ कर ठहर गई.

एसटीएफ ने मिर्ची गैंग की फाइलें खंगालीं तो पता चला कि इस गिरोह का सरगना आशु जाट है. गैंग में कई और गुर्गे भी हैं जिन में से ज्यादातर का ताल्लुक पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर इलाके से है. ये गैंग दिल्ली के अलावा एनसीआर में वारदात को अंजाम दे कर वापस अपनेअपने इलाकों में लौट आता है.

यही वजह है कि पुलिस या तो इन तक पहुंच नहीं पाती या फिर उसे इन तक पहुंचने में काफी वक्त लग जाता है. इन का यानी वारदात को अंजाम देने का तरीका यह है कि ये या तो किराए की गाड़ी या आटो से किसी मौल या पौश इलाकों में घूम कर पहले रेकी करते हैं और फिर जैसे ही इन्हें कोई अकेला आदमी नजर आता है ये उसे टारगेट करते हैं.

वारदात को अंजाम देने वाला ये गैंग लाल मिर्च का पाउडर ले कर चलता है. किसी बहाने से बात की शुरुआत करने की कोशिश करते हैं. और जैसे ही कोई इन के जाल में वह फंस जाता है तो ये उस की आंखों में लाल मिर्च झोंक देते हैं. फिर उसे या तो जख्मी कर के लूट लेते हैं या फिर ये गैंग उस का अपहरण कर लेते हैं और मार देते हैं. दिल्ली एनसीआर में पिछले कई सालों में मिर्ची गैंग ने ऐसी कई वारदातों को अंजाम दिया है.

पुलिस का टारगेट अब मिर्ची गैंग और उस का सरगना आशु जाट था. आशु जाट तक पहुंचना इतना आसान नहीं था, लेकिन पुलिस ने उस तक पहुंचने के लिए मसूरी इलाके में ही रहने वाली आशु जाट की पत्नी पूनम की निगरानी शुरू करा दी और पूनम के मोबाइल फोन को सर्विलांस पर लगा दिया. गौरव चंदेल हत्याकांड के बाद आशु जाट एसटीएफ के अलावा आसपास के जिलों की पुलिस की नजरों में भी चढ़ चुका था. सब अपनी तरह से उस तक पहुंचने की रणनीति पर काम कर रहे थे.

लेकिन सफलता मिली हापुड़ पुलिस को. 26 जनवरी को हापुड़ जिले की सर्विलांस टीम को सूचना मिली कि आशु जाट की पत्नी पूनम आशु के एक करीबी सहयोगी के साथ मोटरसाइकिल पर सवार हो कर धौलाना थाना क्षेत्र के करणपुर जट्ट गांव में किसी से मिलने जाने वाली है.इस सूचना के बाद सर्विलांस टीम ने स्वाट टीम और धौलाना पुलिस के साथ उस इलाके की घेराबंदी कर दी.

सूचना सटीक निकली और पुलिस टीम ने दोनों को दबोच लिया. उस के पास से एक .32 बोर की पिस्टल भी बरामद हुई. आशु जाट की पत्नी पूनम से महिला पुलिस पूछताछ करने लगी, जबकि धौलाना थाने के एसएसआई राजीव कुमार शर्मा, शिकारपुर, बुलंदशहर निवासी उमेश से उस के गिरोह के सरगना आशु जाट के बारे में पूछताछ  करने लगे.

आशु जाट के बारे में तो उमेश कोई सटीक जानकारी नहीं दे सका, लेकिन उस ने बताया कि 6 जनवरी की रात उस ने आशु जाट व अपने 3 साथियों के साथ मिल कर ग्रेटर नोएडा में एक व्यक्ति की हत्या कर दी थी और उस की सेल्टोस कार लूट ली थी.जैसे ही पुलिस को पता चला कि उन के सामने गौरव चंदेल हत्याकांड का एक आरोपी है तो पुलिस ने कड़ी से कड़ी जोड़ते हुए लूट के सामान की बरामदगी का प्रयास शुरू कर दिया.उमेश ने बताया कि वे लूटे गए एक मोबाइल व लैपटौप को नोएडा के फेस-3 इलाके से बरामद करवा सकता है तो राजीव शर्मा की टीम उसे माल बरामद करने के लिए रवाना हो गई.

लेकिन उमेश पुलिस टीम की उम्मीदों से कहीं ज्यादा शातिर और चालाक निकला. पुलिस की गाड़ी जब गुलावठी मसूरी रोड पर डहाना गांव के पास से गुजर रही थी तो अचानक वह शौच के बहाने गाड़ी से उतरा. वह एसएसआई राजीव शर्मा के हाथ से उन की सरकारी पिस्टल छीन कर

भागने लगा.पुलिस ने पहले तो उसे पकड़ने की कोशिश की, मगर जब देखा कि वह उन की पकड़ से निकल सकता है तो उन्होंने उस पर गोली चला दी. एक के बाद एक 2 गोलियां उमेश के दाएं पैर में लगी और वो वहीं गिर पड़ा. इस के बाद पुलिस उसे घायलावस्था में ले कर अस्पताल पहुंची.

पूछताछ करने पर पता चला कि उमेश ने भागने का रास्ता खोजने के लिए ही पुलिस को लूट का माल बरामद करवाने का झांसा दिया था. लेकिन पुलिस को इतना तो पता चल ही चुका था कि मिर्ची गैंग ने ही गौरव चंदेल की हत्या को लूट के इरादे से अंजाम दिया था.पुलिस ने उसी दिन कविनगर के काजीपुरा इलाके में रहने वाले आशु जाट उर्फ प्रवीण उर्फ धर्मेंद्र की पत्नी पूनम के साथ उमेश के खिलाफ शस्त्र अधिनियम का मामला दर्ज कर लिया और आगे की काररवाई के लिए एसटीएफ तथा नोएडा पुलिस को सूचित कर दिया.

नोएडा पुलिस व एसटीएफ की टीम सूचना मिलने के तत्काल बाद धौलाना पहुंच गई और इस मामले की आगे की जांच अपने हाथ में ले ली. उमेश पर लूटपाट, अपहरण और हत्या के एक दरजन से ज्यादा मामले दर्ज हैं. इस गैंग के बौस यानी सरगना आशु जाट पर भी ऐसे ही 40 से ज्यादा मामले दर्ज हैं.

पुलिस उमेश की गिरफ्तारी को बड़ी उपलब्धि मान रही थी. लेकिन आशु जाट की गिरफ्तारी न होना और बदमाशों से लूट का कोई भी माल बरामद न होना उस की काररवाई पर प्रश्नचिह्न खड़े कर रहा था. हालांकि हापुड़ पुलिस की उमेश से पूछताछ के आधार पर दावा किया था कि 6 जनवरी को नोएडा के गौरव चंदेल का कत्ल मिर्ची गैंग ने ही किया था और इस कत्ल और लूटपाट में उमेश भी शामिल था.

उमेश ने पुलिस को पूछताछ में बताया था कि गौरव चंदेल वारदात वाली रात करीब साढ़े 10 बजे हिंडन विहार स्टेडियम के करीब सड़क किनारे अपनी कार रोक कर फोन पर बात कर रहे थे. उसी उमेश व उस के साथी कार के करीब पहुंचे. इस के बाद गौरव को .32 बोर के पिस्टल से 2 गोली मारीं और उन की कार ले कर मौके से फरार हो गए. हापुड़ पुलिस के मुताबिक गौरव चंदेल को जिस .32 बोर के पिस्टल से गोरी मारी गई वह पिस्टल और उस के साथ 3 गोलियां भी उमेश से बरामद हो गई हैं.

हापुड़ पुलिस का कहना है कि गौरव चंदेल के कत्ल का असली मास्टरमाइंड मिर्ची गैंग का सरगना आशु जाट है, जो अभी फरार है. लेकिन इतना सब होने के बाद भी नोएडा पुलिस हापुड़ पुलिस के इस दावे को ले कर चुप्पी साधे हुए है. पर क्यों? क्या हापुड़ पुलिस के दावे में कोई झोल है या फिर बात कुछ और है?

मामला चूंकि समूची राज्य की पुलिस की विश्वसनीयता का है, इसलिए हो सकता है कि नोएडा पुलिस हापुड़ पुलिस के दावों पर चुप हो. नोएडा पुलिस अब इस कोशिश में है कि किसी तरह मिर्ची गैंग का सरगना आशु उस के हाथ लग जाए तो उस की कुछ इज्जत बच सकती है.

इसी इंतजार में अभी तक गौरव चंदेल के कत्ल की गुत्थी सुलझा लेने का दावा करने से पुलिस बच रही है. दूसरा नोएडा पुलिस उमेश के बयान पर आंख मूंद कर भरोसा करने के बजाए पहले केस की सारी कडि़यों को भी जोड़ लेना चाहती है, ताकि आगे फजीहत न हो.

दिलचस्प बात यह है कि अपने गुडवर्क को बढ़ाचढ़ा कर बताने वाली नोएडा पुलिस न तो इस मामले में कोई जानकारी साझा कर रही है और न ही इस मामले में उसे अभी कोई दूसरी सफलता मिली है.

ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि क्या पुलिस ने शासन के दबाव और फजीहत से बचने के लिए मिर्ची गैंग के सरगना पर इस हत्या व लूटकांड का ठीकरा फोड़ा है या वास्तव में इसी गिरोह ने इस वारदात को अंजाम दिया था?

लेकिन ऐसे कई सवाल हैं जिस से ये पूरा मामला एक पहेली बन गया है. अगर आशु जाट के मिर्ची गैंग ने ही इस पूरी वारदात को अंजाम दिया था तो उन्होंने वारदात के बाद गौरव चंदेल से लूटी गई किया सेल्टोस कार मसूरी इलाके में लावारिस क्यों छोड़ी?

आमतौर पर लूटपाट के लिए वारदात को अंजाम देने वाले इन बदमाशों ने कीमती कार छोड़ कर सिर्फ गौरव चंदेल का एक मोबाइल व लैपटाप लूटा था. जबकि एक मोबाइल वे पहले ही उस जगह फेंक चुके थे, जहां गौरव चंदेल की हत्या कर के उसके शव को फेंका था.

पुलिस अभी तक गौरव चंदेल के डेबिट व क्रेडिट कार्ड तथा उस की सोने की चेन व अंगूछी के बारे में नहीं बता सकी है कि वे किस के पास हैं. अगर उमेश इस वारदात में शामिल था, तो पुलिस उस से इन सामानों का खुलासा क्यों नहीं करवा सकी? अगर पुलिस की कहानी पर विश्वास कर भी लिया जाए तो वे लूटे गए सामान कहां हैं?

सवाल उठ रहे हैं कि पुलिस ने इस मामले में फजीहत से बचने और गरदन बचाने के लिए केस का खुलासा तो कर दिया, लेकिन अभी तक उस के पास हत्या की ठोस वजह नहीं है.हो सकता है कि गौरव चंदेल की हत्या उस के किसी दुश्मन की सोची- समझी साजिश का कारनामा हो लेकिन पुलिस उस चक्रव्यूह को तोड़ने में नाकाम रही है. पुलिस ने सिर्फ मिर्ची गिरोह की कार्यशैली को देख कर इस के ऊपर हत्याकांड का ठीकरा फोड़ दिया है.