नाबालिग के यौन शोषण की कभी न खत्म होने वाली कहानी

कहा जाता है- हरि अनंत हरि कथा अनंता वैसे ही समाज की आम भाषा में यह कहा जा सकता है – नाबालिक के यौन शोषण की कहानी  अनंत है.

यह सच है कि इसके लिए सरकार ने नियम कायदे बना दिए हैं कानून बन चुका है. और जब बच्चों के साथ यौन शोषण करने वालों में कोई कोई पुलिस पकड़ में आता है तो चर्चा का सबब बन जाता है कि कैसा अनर्थ हो रहा है.कुल मिलाकर के यह बात दोहराई जाती है कि नाबालिग के यौन शोषण की कहानी अनंत है

आइए… आज इस रिपोर्ट में हम इस महत्वपूर्ण सामाजिक मसले पर ऐसे पक्ष उद्घाटित कर रहे हैं जो आपको चौकाएंगे. दरअसल, बच्चों के शोषण की अनेक घटनाएं हो रही हैं ऐसे में इस महत्वपूर्ण मसले पर सामाजिक दृष्टिकोण से हर एक तरीके से रोक लगाने की आवश्यकता है. यहां यह बताना भी लाजिमी होगा कि 10 मासूम बच्चों में  सिर्फ 7 बच्चे यौन शोषण के आज भी शिकार हो रहे हैं और नाम मात्र के मामले ही सामने आ रहे हैं उसके अनुसार बच्चों के साथ दुष्कर्म करने वाले आसपास के परिजन परिवारिक इष्ट मित्र ही पाए गए हैं.

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इसलिए इसी रिपोर्ट के माध्यम से आपको सावधान करते हुए कुछ महत्वपूर्ण जानकारी दी जा रही है. जिसमें सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अगर हमारे परिवार में नन्हे बच्चे हैं तो हम जागरूक रहे, हमारी जागरूकता के बगैर बच्चों के साथ यौन शोषण संभव हो सकता है.

और नाबालिग की शादी कर दी!

ऐसे ही एक सनसनीखेज मामले में छत्तीसगढ़  के जिला रायगढ़ के थाना  लैलूंगा की पुलिस द्वारा एक बालिका को परवरिश व घरेलू काम कराने के नाम पर सुन्दरगढ़ (ओडिशा) ले जाकर उसकी जबरजस्ती युवक के साथ शादी कराने वाले आरोपी पिता-पत्र को ओडिशा से पकड़ लिया गया है. हमारे  संवाददाता को  जांच अधिकारी लक्ष्मण प्रसाद पटेल ने बताया  – बालिका की मां  दिनांक 15 मई को थाना लैलूंगा में  रिपोर्ट दर्ज कर बताई कि रोजी मजदूरी का काम कर अपने बच्चों का पालन पोषण कर ती है. करीब चार माह पहले सुन्दरगढ़, ओडिशा में रहने वाला ईश्वर महाकुल  उसकी पंद्रह वर्षीय बेटी रानी (काल्पनिक नाम)  को अपने साथ ले गया और वादा किया कि बालिका घर का काम काज करेगी, मैं उसे बेटी की तरह रख कर पढ़ाऊंगा.

भरोसा कर महिला  ने अपने परिवारवालों से सलाह लेकर जान परिचित होने के कारण उस व्यक्ति के साथ बेटी को भेज दिया. कुछ माह बाद अपने रिस्तेदारो के साथ अपनी बेटी को देखने सुंदरगढ़ ओडिशा गई तो  देखा ईश्वर महाकुल के घर में बालिका से बहुत ज्यादा काम कराया जा रहा था, यही नही नाबालिक बालिका की शादी  ईश्वर महाकुल ने अपने बेटे गणेश बारीक के साथ जबरजस्ती करा दी है.

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यह सब देख कर बालिका की मां भौचक्र रह गई. सबसे बड़ा अपराध यह की बालिका के  परिवारवालों को कथित विवाह की जानकारी भी नहीं दी गई . और जब महिला ने अपनी बेटी को अपने साथ लेकर अपने घर लैलूंगा जाऊंगी कहा तो उसे झगड़ा कर भगा दिया गया . अंततः महिला ने बेटी का शोषण किये जाने के संबंध में थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई. पुलिस के समक्ष यह मामला आया तो जिला रायगढ़ पुलिस ने मामला पंजीबद्ध कर लिया.
जांच अधिकारी लक्ष्मण प्रसाद पटेल ने बताया आरोपी पिता-पुत्र  आरोपी ईश्वर बारीक पिता चक्रधर बारीक उम्र 50 वर्ष उसके पुत्र गणेश बारीक उम्र 21 साल दोनों निवासी ग्राम कुराई महकुलपारा थाना तलसरा जिला सुन्दरगढ़ ओडिशा को हिरासत में लेकर उनके बयान लिए गए और गंभीर अपराध पाए जाने पर मामला पंजीबद्ध किया गया. प्रकरण में साक्ष्य के आधार पर आरोपियों के विरूद्ध धारा 9, 10 बालविवाह प्रतिषेध अधिनियम, 4, 8 पास्को एक्ट जोड़ी गई है.

मौत का सौदागर : लालच ने बनाया हत्यारा

25नंवबर, 2020 को देव दिवाली का त्यौहार होने के कारण एक ओर जहां रतलाम के लोग अपने आंगन में गन्ने से बने मंडप तले शालिग्राम और तुलसी का विवाह उत्सव मना रहे थेवहीं दूसरी ओर शहर भर के बच्चे दीवाली की बची आतिशबाजी खत्म करने में लगे थे. चारों तरफ धूमधड़ाके का माहौल था.

 

लेकिन इस से अलग औद्योगिक थाना इलाके में कब्रिस्तान के पास बसे राजीव नगर में युवक बेवजह ही सड़क पर यहां से वहां चक्कर लगाते हुए कालोनी के एक तिमंजिला मकान पर नजर लगाए हुए थे.

यह मकान गोविंद सेन का था. लगभग 50 वर्षीय गोविंद सेन का स्टेशन रोड पर अपना सैलून था. उन का रिश्ता ऐसे परिवार से रहा जिस के पास काफी पुश्तैनी संपत्ति थी. पारिवारिक बंटवारे में मिली बड़ी संपत्ति के कारण उन्होंने राजीव नगर में यह आलीशान मकान बनवा लिया था.

इस की पहली मंजिल पर वह स्वयं 45 वर्षीय पत्नी शारदा और 21 साल की बेटी दिव्या के साथ रहते थे. जबकि बाकी मंजिलों पर किराएदार रहते थे. उन की एक बड़ी बेटी भी थीजिस की शादी हो चुकी थी.

इस परिवार के बारे में आसपास के लोग जितना जानते थेउस के हिसाब से गोविंद सिंह की पत्नी घर पर अवैध शराब बेचने का काम करती थी. जबकि उन की बेटी को खुले विचारों वाली माना जाता था. लोगों का मानना था कि दिव्या एक ऐसी लड़की है जो जवानी में ही दुनिया जीत लेना चाहती थी. उस की कई युवकों से दोस्ती की बात भी लोगों ने देखीसुनी थी.

पिता के सैलून चले जाने के बाद वह दिन भर घर में अकेली रहती थी. मां शारदा और बेटी दिव्या से मिलने आने वालों की कतार लगी रहती थी. मोहल्ले वाले यह सब देख कर कानाफूसी करने के बाद हमें क्या करना’ कह कर अनदेखी करते देते थे.

25 नवंबर की रात जब चारों ओर देव दिवाली की धूम मची हुई थी. राजीव नगर की इस गली मे घूम रहे युवक कोई साढे़ बजे के आसपास गोविंद के घर के सामने से गुजरे और सीढ़ी चढ़ कर ऊपर चले गए. सामने के मकान से देख रहे युवक ने जानबूझ कर इस बात पर खास ध्यान नहीं दिया. जबकि उन का चौथा साथी गोविंद के घर जाने के बजाय कुछ दूरी पर जा कर खड़ा हो गया.

रात कोई सवा बजे थकाहारा गोविंद दूध की थैली लिए घर लौटा. गोविंद सीढि़यां चढ़ कर ऊपर पहुंच गया. इस के कुछ देर बाद वे तीनों युवक उन के घर से निकल कर नीचे आ गए.

जिस पड़ोसी ने उन्हें ऊपर जाते देखा थासंयोग से उस ने तीनों को वापस उतरते भी देखा तो यह सोच कर उस के चेहरे पर मुसकराहट तैर गई कि घर लौटने पर उन युवकों को अपने घर में मौजूद देख कर गोविंद सेन की मन:स्थिति क्या रही होगी.

तीनों युवकों ने नीचे खड़ी दिव्या की एक्टिवा स्कूटी में चाबी लगाने की कोशिश कीलेकिन संभवत: वे गलत चाबी ले आए थे. इसलिए उन में से एक वापस ऊपर जा कर दूसरी चाबी ले आयाजिस के बाद वे दिव्या की एक्टिवा पर बैठ कर चले गए.

26 नवंबर की सुबह के बजे रतलाम में रोज की तरह सड़कों पर आवाजाही शुरू हो गई थी. लेकिन गोविंद सेन के घर में अभी भी सन्नाटा पसरा हुआ था. कुछ देर में उन के मकान में किराए पर रहने वाली युवती ज्वालिका अपने कमरे से बाहर निकल कर दिव्या के घर की तरफ गई.

दिव्या की हमउम्र ज्वालिका एक प्राइवेट अस्पताल में नौकरी करती थी. गोविंद की बेटी भी एक निजी कालेज से बीएससी की पढ़ाई के साथ नर्सिंग का कोर्स कर रही थी. महामारी के कारण आजकल क्लासेस बंद थींइसलिए वह अपनी बड़ी बहन की कंपनी में नौकरी करने लगी थी.

ज्वालिका और दिव्या एक ही एक्टिवा इस्तेमाल करती थीं. जब जिस को जरूरत होतीवही एक्टिवा ले जाती. लेकिन इस की चाबी हमेशा गोविंद के घर में रहती थी. सो काम पर जाने के लिए एक्टिवा की चाबी लेने के लिए ज्वालिका जैसे ही गोविंद के घर में दाखिल हुईचीखते हुए वापस बाहर आ गई.

उस की चीख सुन कर दूसरे किराएदार भी बाहर आ गए. उन्हें पता चला कि गोविंद के घर के अंदर गोविंदउस की पत्नी और बेटी की लाशें पड़ी हैं. घबराए लोगों ने यह खबर नगर थाना टीआई रेवल सिंह बरडे को दे दी.

कुछ ही देर में वह अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंच गए और मामले की गंभीरता को देखते हुए इस तिहरे हत्याकांड की खबर तुरंत एसपी गौरव तिवारी को दी.

कुछ ही देर में एसपी गौरव तिवारी एएसपी सुनील पाटीदारएफएसएल अधिकारी अतुल मित्तल एवं एसपी के निर्देश पर माणकचौक के थानाप्रभारी अयूब खान भी मौके पर पहुंच गए.

तिहरे हत्याकांड की खबर पूरे रतलाम में फैल गईजिस से मौके पर जमा भारी भीड़ जमा हो गई. मौकाएवारदात की जांच में एसपी गौरव तिवारी ने पाया कि शारदा का शव बिस्तर पर पड़ा थाजिस के सिर में गोली लगी थी. उन की बेटी दिव्या की लाश किचन के बाहर दरवाजे पर पड़ी थी. दिव्या के हाथ में आटा लगा हुआ था और आधे मांडे हुए आटे की परात किचन में पड़ी हुई थी.

इस से साफ हुआ कि पहले बिस्तर पर लेटी हुई शारदा की हत्या हुई होगी. गोली की आवाज सुन कर दिव्या बाहर आई होगी तो हत्यारों ने उसे भी गोली मार दी होगी. गोविंद की लाश दरवाजे के पास पड़ी थीइस का मतलब उस की हत्या सब से बाद में हुई थी. उन के पैरों में जूते थे और हाथ में दूध की थैली.

पुलिस ने अनुमान लगाया कि हत्यारे हत्या करने के बाद भागना चाहते होंगेलेकिन भागते समय ही गोविंद घर लौट आएजिस से उन की भी हत्या कर दी गई होगी. पड़ोसियों ने गोविंद को बजे घर आते देखा था. उस के बाद लोगों को घर से बाहर जाते देखा. इस से यह साफ हो गया कि शारदा और दिव्या की हत्या बजे के पहले की गई होगी. जबकि गोविंद की हत्या बजे हुई होगी. पुलिस ने जांच शुरू की तो गोविंद सेन के परिवार के बारे में जो जानकरी निकल कर सामने आईउस से पुलिस को शक हुआ कि हत्याएं प्रेम प्रसंग या अवैध संबंध को ले कर की गई होंगी.

लेकिन गोविंद के एक रिश्तेदार ने इस बात को पूरी तरह गलत करार देते हुए बताया कि गोविंद ने कुछ ही समय पहले 30 लाख रुपए में गांव की अपनी जमीन बेची थी.

दूसरा घटना के दिन ही शारदा और दिव्या ने डेढ़ लाख रुपए की ज्वैलरी की खरीदारी की थीजो घर में नहीं मिली. इस कारण पुलिस लूट के एंगल से भी जांच करने में जुट गई. चूंकि मौके पर संघर्ष के निशान नहीं थे और हत्यारे गोविंद की बेटी की एक्टिवा भी साथ ले गए थे. इस से यह साफ हो गया कि वे जो भी रहे होंगेपरिवार के परिचित रहे होंगे और उन्हें गाड़ी की चाबी रखने की जगह भी मालूम थी.

हत्यारों ने वारदात का दिन देव दिवाली का सोचसमझ कर चुना. इसलिए आतिशबाजी के शोर में किसी ने भी पड़ोस में चलने वाली गोलियों की आवाज पर ध्यान नहीं दिया था.

मामला गंभीर था इसलिए आईजी राकेश गुप्ता ने मौके का निरीक्षण करने के बाद हत्यारों की गिरफ्तारी पर 30 हजार रुपए के ईनाम की घोषणा कर दी.

वहीं एसीपी गौरव तिवारी ने 10 थानों के टीआई और लगभग 60 पुलिसकर्मियों की एक टीम गठित कर दीजिस की कमान  थानाप्रभारी अयूब खान को सौंपी गई. इस टीम ने इलाके के पूरे सीसीटीवी कैमरे खंगालेइस के अलावा घटना के समय राजीव नगर में स्थित मोबाइल टावर के क्षेत्र में सक्रिय 70 हजार से अधिक फोन नंबरों की जांच शुरू की.

दिव्या को एक बोल्ड लड़की के रूप में जाना जाता था. उस की कई लड़कों से दोस्ती थी. कुछ दिन पहले उस ने एक अलबम मैनूं छोड़ के…’ में काम किया था. इस अलबम में भी उस की एक दुर्घटना में मौत हो जाती है. पुलिस ने उस के साथ काम करने वाले युवक अभिजीत बैरागी से भी पूछताछ की लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला.

घटना वाले दिन से ले कर चंद रोज पहले तक दिव्या ने जिन युवकों से फोन पर बात की थीउन सभी से पुलिस ने पूछताछ की. गोविंद सेन की एक्टिवा देवनारायण नगर में लावारिस खड़ी मिली. तब पुलिस ने वहां भी चारों ओर लगे सीसीटीवी कैमरों के फुटेज जमा कर हत्यारों का पता लगाने की कोशिश शुरू की.

जिस में दोनों जगहों के फुटेज से संदिग्ध युवकों की पहचान कर ली गईजिन्हें घटना से पहले इलाके में पैदल घूमते देखा गया था. और बाद में वही युवक दिव्या की एक्टिवा पर जाते हुए सीसीटीवी कैमरे में कैद हुए.

जाहिर है हर बड़ी घटना के आरोपी भले ही कितनी भी दूर क्यों न भाग जाएंवे घटना वाले शहर में पुलिस क्या कर रही है. इस बात की जानकारी जरूर रखते हैंयह बात एसपी गौरव तिवारी जानते थे. इसलिए उन्होंने जानबूझ कर जांच के दौरान मिले महत्त्वपूर्ण सुराग को मीडिया के सामने नहीं रखा था.

दरअसलजब पुलिस सीसीटीवी के माध्यम से हत्यारों के भागने के रूट का पीछा कर रही थी तभी देवनारायण नगर में आ कर दोनों संदिग्धों ने दिव्या की एक्टिवा छोड़ दी थी. वहां पहले से एक युवक स्कूटर ले कर खड़ा थाजिसे ले कर वे वहां से चले गए. जबकि स्कूटर वाला युवक पैदल ही वहां से गया था.

इस से एसपी को शक था कि तीसरा युवक स्थानीय हो सकता हैजो आसपास ही रहता होगा. बात सही थीवह अनुराग परमार उर्फ बौबी थाजो विनोबा नगर में रहता था.

इंदौर से बीटेक करने के बाद भी उस के पास कोई काम नहीं था. वह इस घटना में शामिल था और पुलिस की गतिविधियों पर नजर रखे हुए था. इसलिए जब उसे पता चला कि पुलिस को उस का कोई फुटेज नहीं मिला तो वह लापरवाही से घर से बाहर घूमने लगा.

जिस के चलते नजर गड़ा कर बैठी पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर पूछताछ की. उस से मिली जानकारी के दिन बाद ही पुलिस ने दाहोद (गुजरात) से लाला देवल निवासी खरेड़ी गोहदा और वहीं से रेलवे कालोनी रतलाम निवासी गोलू उर्फ गौरव को गिरफ्तार कर लिया. उन से पता चला कि पूरी घटना का मास्टरमांइड दिलीप देवले हैजो खरेड़ी गोहद का रहने वाला है.

यही नहीं पूछताछ में यह भी साफ हो गया कि जून 20 में दिलीप देवल ने ही अपने ताऊ के बेटे सुनीत उर्फ सुमीत चौहान निवासी गांधीनगररतलाम और हिम्मत सिंह देवल निवासी देवनारायण के साथ मिल कर डा. प्रेमकुंवर की हत्या की थी. जिस से पुलिस ने सुनीत और हिम्मत को भी गिरफ्तार कर लिया.

इन से पता चला कि तीनों हत्याएं लूट के इरादे से की गई थीं. दिलीप के बारे में पता चला कि वह रतलाम में ही छिप कर बैठा है. पुलिस को यह भी पता चला कि वह मिडटाउन कालोनी में किराए के मकान में रह रहा है. और पुलिस तथा सीसीटीवी कैमरे से बचने के लिए पीछे की तरफ टूटी बाउंड्री से आताजाता है.

यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस ने पीछे की तरफ खाचरौद रोड पर उसे घेरने की योजना बनाईजिस के चलते दिसंबर, 2020 को वह पुलिस को दिख गया. पुलिस टीम ने उसे ललकारा तो दिलीप ने पुलिस पर गोलियां चलानी शुरू कर दींजवाबी काररवाई में पुलिस ने भी गोलियां चलाईं.

कुछ ही देर में मास्टरमाइंड दिलीप मारा गया. इस प्रकार असंभव से लगने वाले तिहरे हत्याकांड के सभी आरोपियों को पुलिस ने महज दिन में सलाखों के पीछे पहुंचा दिया. इस में टीम प्रभारी अयूब खान और एसआई सहित पुलिसकर्मी भी घायल हुए.

लौकडाउन में घर में सैलून चलाना महंगा पड़ा गोविंद को गोविंद सेन पिछले 22 साल से स्टेशन रोड पर सैलून चलाते थे. लौकडाउन के दौरान वह चोरीछिपे अपने घर बुला कर लोगों की कटिंग करते रहे. दिलीप भी उन से कटिंग करवाने घर जाया करता था. जहां उस ने गोविंद की अमीरी देख कर उन्हें शिकार बनाने की योजना बनाई थी.

दिलीप के साथियों ने बताया कि शारदा और दिव्या की हत्या करने की योजना तो वे पहले से ही बना कर आए थे. लेकिन अंतिम समय में गोविंद भी अपनी दुकान से लौट कर आ गए थे. इसलिए उन की भी हत्या करनी पड़ी. आरोपियों ने बताया कि उस के घर से उन्हें 30 लाख रुपए मिलने की उम्मीद थी. लेकिन उन्हें केवल 20 हजार नकद और कुछ जेवर ही मिले थे.

दिलीप अपने कारनामों का कोई सबूत नहीं छोड़ना चाहता था. इसलिए लूट के दौरान सामने वाले की सीधे हत्या कर देता था.

दिलीप अब तक एक ही तरीके से हत्याएं कर चुका थाइसलिए पुलिस उसे साइकोकिलर मानती थी. दिलीप के साथियों का कहना था कि पुलिस से बचने के लिए हत्या तो करनी ही पड़ेगी मर्डर इज मस्ट.

मजबूर औरत की यारी : निर्दोष को क्यों मिली सजा

राधा नाम की जिस औरत की वजह से प्रांशु का कत्ल किया गया, उस बेचारी को इस अपराध की भनक तक नहीं थी. इस की वजह शायद यह थी कि वह लल्लन और प्रांशु को जो देह सुख दे रही थी, वह उस गरीब की मजबूरी थी. उस ने सोचा भी न होगा कि दो दोस्तों… रायबरेली के डलमऊ थानाक्षेत्र में एक गांव है गुरदीन का पुरवा मजरा रसूलपुर. गंगाघाट के पास

खेल रहे कुछ बच्चों ने वहां एक युवक की लाश पड़ी देखी. बच्चों ने लाश देखी तो शोर मचा कर आसपास के लोगों को बुला लिया. कुछ ही देर में यह खबर दूरदूर तक फैल गई. खबर सुन कर रसूलपुर गांव के प्रधान भी वहां पहुंच गए. उन्होंने फोन कर के घटना की सूचना डलमऊ थाने को दे दी.

सूचना पा कर इंसपेक्टर श्रीराम पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. मृतक की उम्र लगभग 20-25 साल थी. उस के गले पर रस्सीनुमा किसी चीज से कसे जाने के निशान थे, शरीर पर भी चोट के निशान थे.

घटनास्थल के आसपास का निरीक्षण किया गया तो वहां से लगभग 2 किलोमीटर दूर हीरो कंपनी की एक बाइक लावारिस खड़ी मिली. संभावना थी कि वह मृतक की ही रही होगी.

इसी बीच सीओ (डलमऊ) आर.पी. शाही भी मौके पर पहुंच गए. उन्होंने लाश व घटनास्थल का निरीक्षण किया, वहां मौजूद लोगों से लाश की शिनाख्त कराई, लेकिन कोई भी लाश को नहीं पहचान सका. पुलिस अभी अपना काम कर ही रही थी कि एक व्यक्ति कुछ लोगों के साथ वहां पहुंचा. उस ने लाश देख कर उस की शिनाख्त अपने 20 वर्षीय बेटे प्रांशु तिवारी के रूप में की. यह बात 25 फरवरी, 2020 की है.

शिनाख्त करने वाले मदनलाल तिवारी थे और वह डलमऊ कस्बे के शेरंदाजपुर मोहल्ले में रहते थे. मदनलाल तिवारी ने बताया कि प्रांशु एक दिन पहले 24 फरवरी की शाम 7 बजे घर से निकला था.

उसे उस के दोस्त पिंटू जोशी और पप्पू जोशी बुला कर ले गए थे. ये दोनों डलमऊ में टिकैतगंज में रहते हैं. संभवत: उन्होंने ही प्रांशु को मारा होगा. मदनलाल तिवारी से प्रारंभिक पूछताछ के बाद पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दी.

थाने आ कर इंसपेक्टर श्रीराम ने मदनलाल की लिखित तहरीर पर पिंटू जोशी व पप्पू जोशी के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.

इंसपेक्टर श्रीराम ने केस की जांच शुरू की. सब से पहले उन्होंने गांव के लोगों से पूछताछ की. पता चला मृतक प्रांशु तिवारी के सुरजीपुर गांव की राधा नाम की महिला से नाजायज संबंध थे. जब इस बात की और गहराई से छानबीन की गई तो राधा के प्रांशु के अलावा प्रांशु के पड़ोसी अशोक निषाद उर्फ कल्लन से भी नाजायज संबंध होने की बात सामने आई.

इस बात को ले कर दोनों में विवाद भी हो चुका था. यह जानकारी मिलने के बाद इंसपेक्टर श्रीराम ने सोचा कि कहीं प्रांशु की हत्या इसी महिला से संबंधों के चलते तो नहीं हुई. पुलिस को यह भी पता चला कि पिंटू जोशी और पप्पू जोशी आपराधिक प्रवृत्ति के हैं.

इंसपेक्टर श्रीराम का शक तब और मजबूत हो गया, जब कल्लन अपने घर से फरार मिला. पिंटू और पप्पू भी फरार थे. इंसपेक्टर श्रीराम ने उन का पता लगाने के लिए अपने विश्वस्त मुखबिरों को लगा दिया.

घटना से 2 दिन बाद यानी 27 फरवरी को पुलिस ने मुखबिर की सूचना पर आरोपी पिंटू जोशी, पप्पू जोशी और अशोक निषाद उर्फ कल्लन को सुरजीपुर शराब ठेके के पीछे मैदान से गिरफ्तार कर लिया.

कोतवाली में जब उन से सख्ती से पूछताछ की गई तो तीनों ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया और अपने चौथे साथी डलमऊ के भीमगंज मोहल्ला निवासी राजकुमार का नाम भी बता दिया.

राधा उत्तर प्रदेश के जिला रायबरेली के डलमऊ थानाक्षेत्र के गांव सुरजीपुर में रहती थी. 35 वर्षीय राधा 2 बच्चों की मां थी. उस के पति का नाम बबलू था जो कहीं बाहर रह कर नौकरी करता था. अपनी नौकरी से वह इतने पैसे नहीं जुटा पाता कि उस के बीवीबच्चों का खर्च चल सके. बड़ी मुश्किल से परिवार की दोजून की रोटी मिल पाती थी.

एक तो पति घर से दूर और उस पर आर्थिक अभाव. दोनों ही बातों ने राधा को परेशान कर रखा था. शरीर की आग तो बुझना दूर पेट की आग को शांत करने तक के लाले पड़े थे. ऐसे में राधा का तनमन बहकने लगा. बड़ी उम्मीद ले कर वह अपनी जरूरत के पुरुष को तलाशने लगी.

अशोक निषाद उर्फ कल्लन डलमऊ कस्बे के शेरंदाजपुर मोहल्ले में रहता था. कल्लन के पिता राजेंद्र शराब के एक ठेके पर सेल्समैन थे. कल्लन के 2 भाई और एक बहन थी. कल्लन सब से बड़ा था.

22 वर्षीय कल्लन भी सुरजीपुर के शराब ठेके पर सेल्समैन की नौकरी करता था. डलमऊ से सुरजीपुर की दूरी महज 2 किलोमीटर थी. काम पर वह अपनी बाइक से आताजाता था.

कल्लन ने राधा के हुस्न को देखा तो उसे पाने की चाहत पाल बैठा. उस के पति के काफी समय से दूर होने और आर्थिक अभाव के बारे में कल्लन जानता था. राधा से नजदीकी बढ़ाने के लिए वह उस से हमदर्दी दिखाने लगा.

राधा कल्लन के बारे में सब जानती थी. वह उस से 12 साल छोटा था. राधा को समझते देर नहीं लगी कि कल्लन उस से क्यों हमदर्दी दिखा रहा है. यह बात समझते ही उस के चेहरे पर मुसकान और आंखों में चमक आ गई. फिर उस का झुकाव भी कल्लन की ओर हो गया.

एक दिन कल्लन राधा के घर के सामने से जा रहा था तो राधा घर की चौखट पर बैठी थी. उस समय दूरदूर तक कोई नजर नहीं आ रहा था. अच्छा मौका देख कर कल्लन बोला, ‘‘राधा, मुझे तुम्हारे बारे में सब पता है. तुम्हारी कहानी सुन कर ऐसा लगता है कि तुम्हारी जिंदगी में सिर्फ दुख ही दुख है.’’

‘‘कल्लन, मैं ने तुम्हारे बारे में जो सुन रखा था, तुम उस से भी कहीं ज्यादा अच्छे हो, जो दूसरों का दुख बांटने की हिम्मत रखते हो. वरना इस जालिम दुनिया में कोई किसी के बारे में कहां सोचता है.’’

‘‘राधा, दुनिया में इंसानियत अभी भी जिंदा है. खैर, तुम चिंता मत करो. आज से मैं तुम्हारा हर तरह से खयाल रखूंगा. चाहो तो बदले में तुम मेरा कुछ काम कर दिया करना.’’

‘‘ठीक है, तुम मेरे बारे में इतना सोच रहे हो तो मैं भी तुम्हारा काम कर दिया करूंगी.’’

यह सुन कर कल्लन ने राधा के कंधे पर सांत्वना भरा हाथ रखा तो राधा ने अपनी गरदन टेढ़ी कर के उस के हाथ पर अपना गाल रख कर आशा भरी नजरों से उस की तरफ देखा. कल्लन ने मौके का फायदा उठाने के लिए राधा के हाथों पर 5 सौ रुपए रखते हुए कहा, ‘‘ये रख लो, तुम्हें इन की जरूरत है.’’

राधा तो वैसे भी अभावों में जिंदगी गुजार रही थी, इसलिए उस ने कल्लन द्वारा दिए गए पैसे अपनी मट्ठी में दबा लिए. इस से कल्लन की हिम्मत और बढ़ गई. वह हर रोज राधा से मिलने उस के घर जाने लगा.

वह राधा के बच्चों के लिए खानेपीने की चीजें ले कर आता था. कभीकभी वह राधा को पैसे भी देता था. इस तरह वह राधा का खैरख्वाह बन गया.

राधा हालात के थपेड़ों में डोलती ऐसी नाव थी, जिस का मांझी उस के पास नहीं था. इसलिए वह कल्लन के अहसान अपने ऊपर लादती चली गई.

स्वार्थ की दीवार पर अहसानों की ईंट पर ईंट चढ़ती जा रही थी, जिस के चलते राधा भी कल्लन का पूरा ख्याल रखने लगी थी. वह उसे खाना खाए बिना नहीं जाने देती थी. लेकिन कल्लन के मन में तो राधा की देह की चाहत थी, जिसे वह हर हाल में पाना चाहता था.

एक दिन उस ने कहा, ‘‘राधा, तुम खुद को अकेली मत समझना. मैं हर तरह से तुम्हारा बना रहूंगा.’’

यह सुन कर राधा उस की तरफ चाहत भरी नजरों से देखने लगी. कल्लन समझ गया कि वह पूरी तरह शीशे में उतर चुकी है, इसलिए उस के करीब आ गया और उस के हाथ को अपनी दोनों हथेलियों के बीच दबा कर बोला, ‘‘सच कह रहा हूं राधा, तुम्हारी हर जरूरत पूरी करना अब मेरी जिम्मेदारी है.’’

हाथ थामने से राधा के शरीर में भी हलचल पैदा हो गई थी. कल्लन के हाथों की हरकत बढ़ने लगी थी. इस का नतीजा यह निकला कि दोनों बेकाबू हो गए और अपनी हसरत पूरी कर के ही माने.

कल्लन ने राधा की सोई हुई भावनाओं को जगाया तो उस ने देह सुख की खातिर सारी नैतिकताओं को ठेंगा दिखा दिया. कल्लन और राधा के अवैध संबंध बने तो फिर बारबार दोहराए जाने लगे.

राधा को कल्लन के पैसों का लालच तो था ही, अब वह उस से खुल कर पैसे मांगने लगी. कल्लन चूंकि उस के जिस्म का लुत्फ उठा चुका था, इसलिए पैसे देने में कोई गुरेज नहीं करता था. इस तरह एक तरफ राधा की दैहिक जरूरतें पूरी होने लगी थीं तो दूसरी तरफ कल्लन उस की आर्थिक जरूरतें पूरी करने लगा था. काफी अरसे बाद राधा की जिंदगी में फिर से रंग भरने लगे थे.

डलमऊ के शेरंदाजपुर मोहल्ले में कल्लन के पड़ोस में मदनलाल तिवारी का परिवार रहता था. मदनलाल पूर्व सैनिक थे. वह सन 2003 में सेना से रिटायर हुए थे. परिवार में उन की पत्नी अनीता के अलावा एक बेटी व 3 बेटे प्रांशु, अजीत और बऊआ थे.

20 वर्षीय प्रांशु बीए द्वितीय वर्ष की पढ़ाई कर रहा था. उस की और कल्लन की अच्छी दोस्ती थी. दोनों साथ खातेपीते थे.

एक दिन शराब के नशे में कल्लन ने प्रांशु को अपने और राधा के संबंधों के बारे में बता दिया. यह सुन कर प्रांशु चौंका. यह उस के लिए चिराग तले अंधेरा वाली बात थी.

कुंवारा प्रांशु किसी भी औरत के सान्निध्य के लिए तरस रहा था. राधा की हकीकत पता चली तो उसे अपनी मुराद पूरी होती दिखाई दी. राधा अपने शबाब का दरिया बहा रही थी और उसे खबर तक नहीं थी. वह भी राधा से बखूबी परिचित था.

प्रांशु के दिमाग में तरहतरह के विचार आने लगे. वह सोचने लगा कि जब कल्लन राधा के साथ रातें रंगीन कर सकता है तो वह क्यों नहीं.

अगले दिन प्रांशु कल्लन से मिला तो बोला, ‘‘तुम राधा से मेरे भी संबंध बनवाओ, नहीं तो मैं तुम्हारे संबंधों की बात पूरे गांव में फैला दूंगा.’’

कल्लन का राधा से कोई दिली लगाव तो था नहीं, वह तो उस की वासना की पूर्ति का साधन मात्र थी. उसे दोस्त के साथ बांटने में कोई परेशानी नहीं थी. वैसे भी प्रांशु का मुंह बंद करना जरूरी था.

इसलिए उस ने राधा को प्रांशु की शर्त बताते हुए समझाया, ‘‘देखो राधा, अगर हम ने उस की बात नहीं मानी तो वह हमारी पोल खोल देगा. पूरे गांव में हमारी बदनामी हो जाएगी. इसलिए तुम्हें उसे खुश करना ही पड़ेगा.’’

राधा के लिए जैसा कल्लन था, वैसा ही प्रांशु भी था. उस ने हां कर दी. इस बातचीत के बाद कल्लन ने यह बात प्रांशु को बता दी. फलस्वरूप वह उसी दिन शाम को राधा के घर पहुंच गया. दोनों पहले से ही बखूबी परिचित थे, दोनों में बातें भी होती थीं.

सारी बातें चूंकि पहले से तय थीं, इसलिए दोनों के बीच अब तक बनी संकोच की दीवार गिरते देर नहीं लगी. प्रांशु से शारीरिक संबंध बने तो राधा को एक अलग तरह की सुखद अनुभूति हुई. प्रांशु कल्लन से अधिक सुंदर, स्वस्थ था और बिस्तर पर खेले जाने वाले खेल का भी जबरदस्त खिलाड़ी था.

जोश में भी वह होश व संयम से खेल को देर तक खेलता था. जबकि कल्लन इस के ठीक विपरीत था.

राधा की ख्वाहिशों का उसे बिलकुल भी ख्याल नहीं रहता था. ऐसे में राधा प्रांशु के ज्यादा नजदीक आने लगी और कल्लन से दूरी बनाने लगी. प्रांशु के संपर्क में आने के बाद वह कल्लन को और उस के अहसानों को भूलने लगी.

कल्लन को भी समझते देर नहीं लगी कि राधा प्रांशु की वजह से उस से दूरी बना रही है. यह बात उसे अखरने लगी. राधा को फंसाने की सारी मेहनत उस ने की और प्रांशु बिना किसी मेहनत के फल खा रहा था. इस बात को ले कर प्रांशु और कल्लन में मनमुटाव रहने लगा.

इसी बीच कल्लन का रोड एक्सीडेंट हो गया और उस के एक पैर में फ्रैक्चर हो गया. जब उस का प्रांशु से विवाद हुआ तो प्रांशु ने कल्लन से कहा कि वह उस की दूसरी टांग भी तुड़वा देगा. कल्लन को उस की यह धमकी चुभ गई. इस के बाद उस ने कांटा बने प्रांशु को रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया.

कल्लन की दोस्ती डलमऊ के ही मोहल्ला टिकैतगंज में रहने वाले शातिर अपराधी पिंटू जोशी और पप्पू उर्फ गिरीश जोशी से थी. ये दोनों प्रांशु के भी दोस्त थे.

कल्लन ने पिंटू जोशी से प्रांशु की हत्या करने को कहा. उस ने हत्या की एवज में 25 हजार रुपए देने की बात भी कही. पिंटू तो अपराधी था ही, इसलिए वह प्रांशु की हत्या करने को तैयार हो गया. उस की सहमति के बाद कल्लन ने सुपारी की रकम के आधे पैसे यानी साढ़े 12 हजार रुपए पिंटू को दे दिए.

पिंटू ने पप्पू के साथसाथ इस योजना में भीमगंज मोहल्ला निवासी राजकुमार को भी शामिल कर लिया. चारों ने मिल कर प्रांशु की हत्या की योजना बनाई.

24 फरवरी की शाम 7 बजे पिंटू और पप्पू जोशी कल्लन की बाइक से प्रांशु के घर पहुंचे. पार्टी देने की बात कह कर वे प्रांशु को सुरजीपुर ले गए.

वहां ये लोग शराब के ठेके के पीछे खाली पड़े मैदान में पहुंचे तो वहां कल्लन और राजकुमार पहले से मौजूद थे. सब ने वहां बैठ कर शराब पी और खाना खाया गया. पिंटू कल्लन और प्रांशु के बीच सुलह कराने का नाटक करते हुए प्रांशु को मनाने लगा. इस बात पर प्रांशु और कल्लन के बीच देर रात तक बहस चलती रही. फिर प्रांशु के शराब के नशे में होने पर सब ने मिल कर क्लच वायर से गला कस कर उस की हत्या कर दी.

पिंटू और पप्पू कल्लन की बाइक पर प्रांशु की लाश रख कर उसे गुरदीप का पुरवा में गंगाघाट के किनारे ले गए. उन्होंने उस की लाश फेंक दी और फरार हो गए. घटना के बाद से सभी अपने घरों से फरार हो गए थे. लेकिन मुखबिर की सूचना पर गिरफ्तार कर लिए गए.

पुलिस ने अभियुक्तों से पूछताछ करने के बाद उन की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त हीरो बाइक नंबर यूपी33क्यू 6990 भी बरामद कर ली. हत्या में प्रयुक्त क्लच वायर भी बरामद कर लिया गया. फिर आवश्यक कानूनी औपचारिकताएं पूरी कर के तीनों अभियुक्तों को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक अभियुक्त राजकुमार को पुलिस गिरफ्तार नहीं कर पाई थी.       द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

चार राज्यों तक फैले खून के छींटे – भाग 2

दीप्ति के फेसबुक अकांउट में तो पुलिस को ऐसा कोई संदिग्ध नहीं मिला, जिस से कातिल तब पहुंचने में मदद मिलती. लेकिन फेसबुक की जांचपड़ताल में यह जरूर पता चला कि दीप्ति का फेसबुक अकाउंट आखिरी बार 29 नवंबर को अपडेट हुआ था. उस दिन दीप्ति ने ही एक मैसेज डाला था. इस से पहले उस ने 27 नवंबर को दिमाग अपसेट होने का एक मैसेज डाला था.

इस से पुलिस ने अनुमान लगाया कि संभवत: वह अपनी मां की मौत के बाद काफी दुखी रही होगी. पुलिस को अंदेशा हुआ कि कोई परिचित व्यक्ति दीप्ति की इस स्थिति का फायदा उठाना चाह रहा होगा.

धारूहेड़ा पुलिस दीप्ति की हत्या की गुत्थी सुलझाने में बुरी तरह उलझ कर रह गई थी. उस की हत्या किस कारण से की गई और वह दिल्ली से धारूहेड़ा कैसे पहुंची, इस का अभी तक पता नहीं चला पाया था. हत्यारों का कोई सुराग नहीं मिला था. यह खुलासा भी नहीं हो पाया था कि उस की हत्या दिल्ली में की गई थी या हरियाणा में.

अभी पुलिस प्रयासों में जुटी ही थी कि 11 दिसंबर की शाम को रेवाड़ी जिले की एसएसपी नाजनीन भसीन के पास सूरत पुलिस के एक उच्चाधिकारी का फोन आया, जिन्होंने बताया कि सूरत के थाना सरथाना की पुलिस ने हेमंत लांबा नाम के शख्स को गिरफ्तार किया है, जिस ने एक टैक्सी चालक तथा दिल्ली में रहने वाली अपनी प्रेमिका दीप्ति की हत्या करने का जुर्म कबूल किया है.

पकड़े गए युवक ने पुलिस को बताया है कि दीप्ति की हत्या कर के उस ने शव को धारूहेड़ा इलाके में फेंक दिया था.  पूरी जानकारी मिलने के बाद रेवाड़ी एसएसपी को दीप्ति हत्याकांड से जुड़ी तमाम बातें याद आ गईं.

उन्होंने सूरत के पुलिस अधिकारी को आवश्यक जानकारी दे कर अपनी टीम के तत्काल सूरत पहुंचने का आश्वासन दिया.

उसी दिन उन्होंने पुलिस हैडक्वार्टर से डीएसपी हंसराज के साथ इंसपेक्टर सुधीर कुमार को सूरत रवाना कर दिया. देर रात तक रेवाड़ी से गई पुलिस टीम सड़क के रास्ते सफर तय कर के सूरत के पुलिस स्टेशन सरथाना पहुंच गई, जहां उन्होंने एसएचओ टी.आर. चौधरी से मुलाकात की.

बातचीत में पता चला कि जिस हेमंत लांबा को पुलिस ने पकड़ा है, उस ने केवल दीप्ति की ही हत्या नहीं की, बल्कि इस चक्कर में उस ने एक और हत्या को भी अंजाम दिया था.

34 वर्षीय हेमंत लांबा को इंसपेक्टर सुधीर कुमार के समक्ष लाया गया, तो वह उसे देख कर चौंक पड़े, क्योंकि वह कोई साधारण इंसान नहीं, बल्कि बेहद आकर्षक व्यक्तित्व  का मालिक था. पुलिस ने उस से सूरत में ही पूछताछ शुरू कर दी.

हेमंत लांबा फिटनैस इंडस्ट्री का जानामाना नाम था. उस की पहचान एक बौडी बिल्डर व फिटनैस एक्सपर्ट के तौर पर होती थी. वह नैशनल अवार्डी बीटेक सिविल इंजीनियर था. वह बौडी स्टेरोन हेल्थकेयर प्रा. लि. दिल्ली का चेयरमैन व बौडी स्टेरोन नैशनल बौडी बिल्डिंग ऐंड स्पोर्ट्स फेडरेशन का राष्ट्रीय महासचिव भी था. उस ने लार्जस्ट स्पोर्ट्स ऐंड फिटनैस चैंपियनशिप का आयोजन भी किया था.

इस के अलावा वह लांबा ग्रुप औफ इंडस्ट्रीज का चेयरमैन भी था. हेमंत लांबा उत्तम नगर, दिल्ली के विश्वास पार्क निवासी एक समृद्ध परिवार का युवक था. नामचीन आदमी होने के साथ वह अय्याश भी था.

वह लड़कियों को कपड़े की तरह बदलता था. 3 महीने पहले हेमंत और दीप्ति की जानपहचान फेसबुक के जरिए हुई थी. जल्द ही दोनों की मेलमुलाकातें होने लगीं और दोनों एकदूसरे पर जान छिड़कने लगे. दोनों अक्सर साथ घूमते, होटलों में खाना खाते और साथसाथ शौपिंग करते. हेमंत ने उस से शादी करने का वादा किया था.

पिछले कुछ दिनों से दीप्ति हेमंत पर दबाव बना रही थी कि वह उसे कहीं घुमाने के लिए ले चले. दीप्ति की इसी जिद के कारण 6 दिसंबर को हेमंत ने उसे फोन कर के कहा कि आज वह उसे लौंग ड्राइव पर ले जाना चाहता है. सुन कर दीप्ति खुश हुई.

6 दिसंबर को वह दीप्ति को घुमाने के बहाने अपनी अकोर्ड गाड़ी में ले कर निकला. दिन भर दोनों इधरउधर साथ घूमते रहे. हमेशा की तरह एक बार फिर दीप्ति ने हेमंत से शादी करने की ख्वाहिश जताई तो हेमंत ने कहा कि वह जल्द ही उस की ये ख्वाहिश पूरी करेगा.

उस दिन दोनों बेहद खुश थे. शाम को जब दीप्ति ने घर चलने के लिए कहा तो हेमंत बोला कि जब लौंग ड्राइव पर निकले हैं तो घर जाने की क्या जल्दी है. अभी तो रात बाकी है. चलते हैं कहीं दिल्ली से दूर.

कहते हुए हेमंत ने गाड़ी गुड़गांव की तरफ मोड़ दी. शाम का धुंधलका शुरू होते ही हेमंत ने शराब और बीयर की बोतलें ले लीं. फिर 2-3 घंटे तक इधरउधर गाड़ी घुमाते हुए हेमंत खुद भी शराब के पैग लेता रहा और दीप्ति को भी 2-3 बीयर के कैन पिला दिए.

रात के करीब 10 बजे जब हेमंत और दीप्ति दोनों पर शराब का अच्छाखासा सुरूर छा गया, तो हेमंत ने गुड़गांव के पास एक सुनसान जगह पर गाड़ी रोक दी.

सुनसान जगह देख हेमंत ने दीप्ति को अपनी लाइसैंसी रिवौल्वर से एक के बाद एक 2 गोली मार कर उस की हत्या कर दी. हत्या के बाद उस ने शव को डिक्की में डाला और अगली सीट पर फैले खून को कपडे़ व पानी से साफ कर दिया. इस के बाद उस ने कार धारूहेड़ा की तरफ बढ़ा दी.

रात करीब 11 बजे उस ने नंदरामपुर बास रोड पर एक सुनसान जगह देख गाड़ी रोकी और दीप्ति का शव डिक्की से निकाल कर खाली प्लौट में एक फेंक दिया. दीप्ति का मोबाइल उस ने अपनी जेब में डाल लिया था. दीप्ति का शव फेंकने के बाद हेमंत वापस दिल्ली लौट आया.

दिल्ली आ कर उस ने हत्या में इस्तेमाल की गई अपनी गाड़ी को 6 दिसंबर की रात में ही एक डीलर को बेचने की कोशिश की, लेकिन गाड़ी नहीं बिकी तो वह मायापुरी पहुंचा. वहां उस ने रात को 1 बजे गाड़ी एक कबाड़ी को बेच दी. गाड़ी बेचने से हेमंत की जेब में बड़ी रकम आ गई थी.

रात करीब ढाई बजे हेमंत ने अपने साथ लाए दीप्ति के फोन से जयपुर के लिए ओला कैब बुक की. जनकपुरी का रहने वाला कैब चालक देवेंद्र सिंह अपनी इनोवा गाड़ी से हेमंत को ले कर जयपुर की ओर चल पड़ा.

रास्ते में करीब 4 बजे हेमंत ने दीप्ति के मोबाइल से उस के पिता के मोबाइल नंबर पर दीप्ति की तरफ से वाट्सऐप मैसेज किया कि वह ठीक है.

सुबह करीब 9 बजे हेमंत जयपुर पहुंचा और वहां के एक होटल में ठहर गया. वहां उस ने वाईफाई के जरिए दीप्ति के मोबाइल पर इंटरनेट चलाया तो उसे सोशल मीडिया पर चल रही खबरों के जरिए पता चला कि धारूहेड़ा पुलिस ने दीप्ति का शव बरामद कर लिया है और उस की पहचान भी हो चुकी है.

इस से हेमंत को लगा कि अब पुलिस जल्द ही यह भी पता लगा लेगी कि दीप्ति की हत्या  किस ने की है. उसे लगा कि अब पुलिस उस तक पहुंच जाएगी.

हवस के पुजारी : राजेंद्र शर्मा क्यों हुआ जेल में गिरफ्त

10 मार्च, 2016 की सुबह सैकड़ों लोग भोपाल के पौश इलाके टीटी नगर के कस्तूरबा स्कूल के सामने बने शीतला माता मंदिर के इर्दगिर्द इकट्ठा हो रहे थे. उस दिन वहां कोई धार्मिक जलसा नहीं हो रहा था और न ही यज्ञहवन या भंडारा था. भीड़ गुस्से में थी. कुछ लोगों के हाथ में लोहे के सरिए थे. देखते ही देखते लोगों ने मंदिर के पीछे बनी दीवार तोड़ डाली, जो इस मंदिर के 58 साला पुजारी राजेंद्र शर्मा के घर की थी.

अभी भीड़ तोड़फोड़ कर ही रही थी कि दनदनाती हुई पुलिस की गाडि़यां आ खड़ी हुईं. पुलिस वाले नीचे उतरे और भीड़ को तितरबितर करने की कोशिश करने लगे, लेकिन उन के पास लोगों खासतौर से औरतों के इस सवाल का कोई जवाब नहीं था कि जब परसों उन की बेटी की इज्जत इसी मंदिर में लुट रही थी, तब पुलिस कहां थी?

इस सवाल के जवाब से ज्यादा अहम पुलिस वालों के लिए यह था कि भीड़ पुजारी के घर को और ज्यादा नुकसान न पहुंचा पाए, लिहाजा, पुलिस वालों ने औरतों को समझाया और 4 लोगों को तोड़फोड़ और बलवे के इलजाम में गिरफ्तार कर लिया.

यों फंसाया शिकार

कस्तूरबा नगर में झुग्गीझोंपडि़यां भी काफी तादाद में हैं. यहां के बाशिंदों की अपनी अलगअलग परेशानियां हैं, जिन्हें दूर करने वे इस मंदिर में अपना माथा झुकाने आया करते थे. मंदिर का पुजारी राजेंद्र शर्मा नकद चढ़ावा और प्रसाद बटोरता था और इस के एवज में भगवान की तरफ से गारंटी भी देता था कि यों ही चढ़ावा चढ़ाते रहो, आज नहीं तो कल जब भी तुम्हारी बारी आएगी, भगवान जरूर सुनेगा और परेशानी दूर करेगा.

ऐसी ही एक हैरानपरेशान औरत ललिता बाई (बदला नाम) थी, जिस का पति जगन्नाथ प्रसाद (बदला नाम) शराब की लत का शिकार हो कर निकम्मा हो चला था. नशे में धुत्त रहने वाले जगन्नाथ को घरगृहस्थी तो दूर की बात है, जवान हो रही बेटी आशा (बदला नाम) की भी चिंता नहीं थी कि वह 12 साल की हो रही है और जैसेतैसे 5वीं जमात तक पहुंची है.

ललिता की चिंता यह थी कि अगर पति ने नशा करना नहीं छोड़ा, तो बेटी के हाथ पीले करना मुश्किल हो जाएगा. काफी समझाने के बाद भी जगन्नाथ की शराब की लत नहीं छूटी, तो ललिता उसे मंदिर ले गई और पुजारी राजेंद्र शर्मा के आगे अपना दुखड़ा रोया. पुजारी राजेंद्र शर्मा तो मानो इसी दिन का इंतजार कर रहा था. उस ने ललिता को एक टोटका बता दिया कि रोजाना मंदिर में दीया लगाओ, तो जगन्नाथ की शराब की लत छूट सकती है.

इस मशवरे के पीछे इस पुजारी की मंशा यह थी कि जगन्नाथ के घर से रोज दीया रखने तो ललिता आने से रही, क्योंकि माहवारी के दिनों में औरतें मंदिर में पैर रखना तो दूर की बात है, नजदीक से भी नहीं गुजरतीं. ऐसे में जाहिर है कि कभी न कभी ललिता अपनी बेटी आशा को भेजेगी और तभी वह अपनी हवस की आग बुझा लेगा. और ऐसा हुआ भी. 8 मार्च, 2016 की शाम को दीया रखने आशा आई, तो ललिता की तो नहीं, पर राजेंद्र शर्मा की मुराद पूरी हो गई. जैसे ही आशा ने दीया लगाया, तो राजेंद्र ने उसे मंदिर की एक परिक्रमा लगाने को भी कहा.

आशा ने मंदिर का चक्कर लगाया और मंदिर के सामने आ खड़ी हुई. इस पर राजेंद्र ने उसे एक और दीया मंदिर के भीतर आ कर लगाने को कहा. जैसे ही वह दीया लगाने मंदिर के अंदर गई, तो हवस के इस पुजारी ने उसे खींच लिया और इज्जत तारतार कर दी. अपनी हवस पूरी करने के बाद राजेंद्र शर्मा ने रोती कराहती आशा को धमकी दी कि अगर किसी को कुछ बताया, तो अंजाम अच्छा नहीं होगा.

घर आ कर आशा ने मां ललिता को अपने साथ मंदिर में हुई ज्यादती की बात बताई, तो ललिता का खून खौल गया. ललिता ने कुछ खास लोगों को बात बता कर सीधे थाने का रुख किया. मंदिर की तरह थाने में भी ललिता की सुनवाई नहीं हुई और मौजूदा पुलिस वाले उसे टरकाने की कोशिश करते हुए रिपोर्ट लिखने में आनाकानी करने लगे, पर अब तक महल्ले के काफी लोग थाने के बाहर जमा हो चुके थे. लिहाजा, पुलिस को पुजारी राजेंद्र शर्मा के खिलाफ बलात्कार की रिपोर्ट लिखनी पड़ी और उसे गिरफ्तार भी करना पड़ा.

दूसरे दिन 9 मार्च, 2016 को जैसे ही मंदिर में नाबालिग से बलात्कार की खबर आम हुई, तो लोगों ने जीभर कर पुजारी राजेंद्र शर्मा को कोसा, लेकिन यह कम ही लोगों ने सोचा कि मंदिर में बैठी शीतला माता ने क्यों नहीं आशा की इज्जत बचाई? क्यों फिल्मों की तरह उस का त्रिशूल उड़ कर राजेंद्र शर्मा की छाती में जा घुसा? क्यों किसी सांप ने आ कर उसे नहीं डसा, जो मंदिर में हैवानियत कर रहा था?

ऐयाशी के अड्डे

देवी ने कुछ नहीं किया, तो 10 मार्च, 2016 को गुस्साए लोगों ने ही इंसाफ करने की ठान ली, पर पुलिस बीच में आ गई, तो मामला आयागया हो गया. लेकिन यह हादसा कई सच उजागर कर गया कि मंदिर बलात्कार करने के लिए महफूज जगह है, क्योंकि ये भगवान के घर हैं, इसलिए यहां कुछ गलत नहीं हो सकता. लेकिन हकीकत में मंदिर हमेशा से ही पंडेपुजारियों की ऐयाशी के अड्डे रहे हैं.

घनी बस्तियों में बने मंदिरों में तो दुकानदारी के खराब होने के डर से थोड़ाबहुत लिहाज चलता है, पर शहर से दूर सुनसान और नदी किनारे बने मंदिरों में शाम होते ही चिलम सुलग उठती है और गांजे के धुएं से पूरा माहौल ही गंधाने लगता है. दिनभर तो साधुसंत घरघर जा कर भीख मांगते हैं और शाम को अफीमगांजा और शराब के सेवन से अपनी थकान उतारते हैं.

भोपाल की बस्तियों में बने नाजायज मंदिरों पर कब्जा जमाने की नीयत से ज्यादातर पुजारी वहीं पर ही घर बना कर रहने लगे हैं, क्योंकि जमीनों के दाम आसमान छू रहे हैं और अहम बात यह कि अगर इलाका रिहायशी हो, तो दुकान खुद ब खुद चल पड़ती है.

लोग सुबहशाम मंदिर का घंटा बजाते हैं, पैसाप्रसाद चढ़ाते हैं और पुजारी की भी खासी इज्जत करते हैं, क्योंकि वही उन्हें बताता है कि किस उपाय से कौन सा दुख दूर होगा. पति जगन्नाथ की शराब पीने की आदत तो इस से नहीं छूटी, उलटे नाबालिग बेटी की इज्जत देवी की आंखों के सामने तारतार होते लुट गई. इस से कुछ लोगों की आंखें खुलीं, तो उन्होंने बलवा कर डाला, जो समस्या का हल नहीं कहा जा सकता.

समस्या का हल है भगवान और उस का राग अलाप कर दोनों हाथों से पैसा बटोरते पंडेपुजारियों की असलियत समझना कि देवी या देवता कुछ नहीं कर सकते, लेकिन इन की आड़ में पुजारी जो न करे सो कम है. सालभर मंदिरों में धार्मिक जलसे हुआ करते हैं. गरीबों से कहा जाता है कि भगवान सभी की गरीबी दूर करेगा.

ऐसा होता तो अब तक देश में एक भी गरीब न बचता, लेकिन चढ़ावे के चक्कर में गरीब हर तरफ से लुटपिट रहा है और उन की औरतों की इज्जत ये पुजारी कैसे करते हैं, भोपाल की 2 वारदातों ने इसे उजागर किया है. हालांकि आसाराम बापू जैसे भी नाबालिग लड़की की इज्जत अपने आश्रम में ही लूटने के इलजाम में जेल की सजा काट रहे हैं, पर उन से यह सबक कौन सीखता है कि मंदिर जाने से पाप नहीं धुलते, बल्कि पाप होने देने के मौके बढ़ जाते हैं.

यह भी बनी शिकार

दानदक्षिणा ले कर भक्तों के लोकपरलोक सुधरवाने का दावा करने वाले पुजारियों का खुद का लोक कितना बिगड़ा होता है, इस की एक और मिसाल भोपाल में ही 15 मार्च, 2016 को देखने में आई. 38 साला गोमती (बदला नाम) को उस के पति ने तलाक दे दिया था, इसलिए वह रोजगार और काम की तलाश में रायसेन से भोपाल चली आई और बाग दिलकुशा इलाके में किराए के मकान में रहने लगी.

घर के पास बने मंदिर में गोमती रोज जाने लगी, तो पुजारी दुर्गा प्रसाद दुबे ने उसे अपनी बातों के जाल में फंसा लिया और 6 साल तक उस का जिस्मानी शोषण किया. इस के एवज में शादी का वादा भी किया. पर जब दुर्गा प्रसाद दुबे का जी गोमती से भरने लगा, तो वह शादी के वादे से मुकरने लगा. घरों में झाड़ूपोंछा और बरतनकपड़े धो रही गोमती जैसेतैसे अपने जवान होते बेटे का पेट पालती थी. वह पुजारी की बीवी बनने का सपना देखने लगी थी. जब यह ख्वाब टूटा, तो वह भी सीधे थाने गई और पुजारी की ज्यादतियों और देह शोषण के खिलाफ रिपोर्ट लिखाई. पुलिस ने दुर्गा प्रसाद दुबे को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

चार राज्यों तक फैले खून के छींटे – भाग 1

हेमंत लांबा सुंदर, स्वस्थ और पैसे वाले परिवार से था. दीप्ति भी व्यवसाई पिता की एकलौती बेटी थी. हेमंत के अपने प्रति लगाव को देख दीप्ति ने अपने नजरिए से ठीक ही सोचा था कि वह हेमंत से शादी करेगी. लेकिन जब बात शादी की आई तो हेमंत ने न केवल अपनी इस प्रेयसी की हत्या कर दी, बल्कि अपना अपराध छिपाने के लिए ड्राइवर देवेंद्र को भी मार डाला. लेकिन… हरियाणा के जिला रेवाड़ी में एक कस्बा है धारूहेड़ा. इस कस्बे के नंदरामपुर बास रोड की रामनगर कालोनी के पास सड़क पर लोगों की भीड़ और पुलिस की मौजूदगी बता रही थी कि वहां कोई अनहोनी हुई है.

दरअसल किसी राहगीर ने रामनगर कालोनी में सड़क किनारे एक खाली प्लौट में एक युवती का खून से लथपथ शव देखा तो उस ने फोन कर के यह सूचना पुलिस नियंत्रण कक्ष को दे दी थी. इस सूचना पर वहां पीसीआर की गाड़ी पहुंची. राहगीर की सूचना सही थी, इसलिए पीसीआर ने यह सूचना धारूहेड़ा इलाके की पुलिस को दे दी.

सूचना मिलने पर धारूहेड़ा थाने के एसएचओ सुधीर कुमार अपने मातहतों के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. राहगीर ने पूछताछ में बताया कि वह दिल्ली से आया था और पैदल अपने घर की तरफ जा रहा था, तभी उस की नजर खाली प्लौट में पड़ी लाश पर गई तो उस ने पुलिस को सूचना दे दी.

देखने से पहली नजर में ही स्पष्ट हो रहा था कि जिस युवती का शव है, उस की हत्या सिर और पेट में गोलियां मार कर की गई थी. युवती के शरीर पर पुलिस को ऐसा कोई निशान नहीं मिला, जिस से उस की पहचान हो पाती. इंसपेक्टर सुधीर कुमार को लग रहा था कि मृतका आसपास के इलाके की ही रहने वाली होगी.

उन्होंने सुबह होने का इंतजार किया और उजाला होने पर आसपास की कालोनियों के लोगों को बुला कर शव की शिनाख्त कराने की कोशिश की, लेकिन पुलिस को कोई सफलता नहीं मिली.

इस बीच शव मिलने की जानकारी पा कर धारूहेड़ा के डीएसपी मोहम्मद जमाल और रेवाड़ी जिले की एसएसपी नाजनीन भसीन भी क्राइम ब्रांच और फोरैंसिक टीम ले कर घटनास्थल पर पहुंच गई थीं.

फोरैंसिक टीम ने वारदात वाली जगह की फोटो व शव को उलटपलट कर उस के फोटो लेने शुरू कर दिए. जिस युवती की लाश थी, उस की उम्र करीब 20 साल से ऊपर रही होगी. वह काले रंग की जींस और उसी रंग का बनियान पहने थी, जिस के ऊपर उस ने गेहुएं रंग की जैकैट पहन रखी थी. फोरैंसिक टीम ने जब युवती की जींस और जैकेट की तलाशी ली तो उस की जेब से उस का आईडी प्रूफ और एक ब्यूटीपार्लर का विजिटिंग कार्ड मिला.

विजिटिंग कार्ड किसी पैरिस ब्यूटी पार्लर, दिल्ली का था, जबकि शव के साथ मिली आईडी में दीप्ति गोयल पुत्री हनुमान प्रसाद गोयल निवासी संगरिया, जिला हनुमानगढ़, राजस्थान लिखा था.

आईडी मिलने के बाद 2 चीजें साफ हो गईं कि युवती की उम्र करीब 22 वर्ष थी और वह इस इलाके की रहने वाली नहीं थी. पुलिस के पास अब 2 ऐसी चीजें थीं, जिस से उस की शिनाख्त कराना आसान हो गया था.

आवश्यक जांचपड़ताल के बाद युवती के शव को पोस्टमार्टम के लिए रेवाड़ी जिला अस्पताल भिजवा दिया गया.

चूंकि पुलिस को शक था कि कहीं युवती के साथ किसी तरह का दुष्कर्म तो नहीं किया गया है, इसलिए एसएसपी नाजनीन भसीन ने शव का पोस्टमार्टम एक मैडिकल बोर्ड द्वारा कराए जाने की संस्तुति दी. साथ ही दुष्कर्म के बिंदु पर भी जांच के निर्देश दिए.

शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजने के बाद डीएसपी मोहम्मद जमाल ने धारूहेड़ा कोतवाली में अज्ञात हत्यारों के खिलाफ युवती की हत्या का केस दर्ज करा दिया. इस मामले की जांच का दायित्व इंसपेक्टर सुधीर कुमार को सौंपा गया.

डीएसपी ने जांच अधिकारी की मदद के लिए धारूहेड़ा थाने के स्टाफ और सीआईए स्टाफ को मिला कर एक विशेष टीम का गठन कर दिया.

पुलिस ने सब से पहले विजिटिंग कार्ड और आईडी प्रूफ के आधार पर जांचपड़ताल शुरू की. एक टीम को हनुमानगढ़ भेजा गया. दूसरी टीम ने विजिटिंग कार्ड पर लिखे फोन नंबरों पर काल कर के छानबीन करनी शुरू कर दी.

5 घंटे की मशक्कत के बाद यह जानकारी मिल गई कि मृतका कौन थी. आईडी प्रूफ के आधार पर और ब्यूटी पार्लर के विजिटिंग कार्ड में दिए गए फोन नंबरों को खंगालते हुए पुलिस उस सिरे तक पहुंच गई, जहां से युवती की पहचान होनी थी.

पता चला कि मृतका दीप्ति हनुमानगढ़ जिले के संगरिया निवासी एक प्रतिष्ठित व्यापारी हनुमान प्रसाद की इकलौती बेटी दीप्ति थी. उस की मां का निधन हो चुका था. दीप्ति के पिता का संगरिया में आढ़त का व्यवसाय है.

पिछले 2 साल से वह दिल्ली  के रोहिणी में अपनी ननिहाल में रह कर फैशन डिजाइनिंग की पढ़ाई कर रही थी. ननिहाल में फोन पर बात करने से पता चला कि दीप्ति 6 दिसंबर को पार्क में घूमने की बात कह कर घर से निकली थी, लेकिन उस के बाद वापस नहीं लौटी थी.

यह भी पता चला कि पैरिस ब्यूटी पार्लर पर दीप्ति 2 घंटे ट्रेनिंग लेने के लिए जाती थी. संगरिया गई पुलिस टीम दीप्ति के पिता हनुमान प्रसाद को ले कर धारूहेड़ा लौट आई. उन्हेें रेवाड़ी ले जा कर जब दीप्ति का शव दिखाया गया, तो उन्होंने पहचान कर बता दिया कि शव उन की बेटी दीप्ति का ही है.

दीप्ति के शव की आधिकारिक रूप से पहचान हो चुकी थी. पुलिस ने कागजी खानापूर्ति के बाद जांचपड़ताल तेज कर दी. अगली सुबह दीप्ति के शव का पोस्टमार्टम भी हो गया, जिस के बाद उस का शव उस के घर वालों के सुपुर्द कर दिया गया.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट से 2 बातें साफ हो गईं. एक तो यह कि दीप्ति के साथ दुष्कर्म नहीं हुआ था. दूसरे उसे 2 गोली मारी गई थीं. दीप्ति के पिता से पुलिस को दीप्ति  का मोबाइल नंबर मिल गया था, साथ ही एक हैरान कर देने वाली जानकारी भी मिली थी.

पुलिस को दीप्ति के शव के पास से कोई मोबाइल फोन नहीं मिला था. जबकि उस के पिता ने बताया कि सुबह करीब 4 बजे दीप्ति के फोन से उन के फोन पर एक वाट्सऐप मैसेज आया था, जिस में उस ने लिखा था कि पापा मैं ठीक हूं.

हैरानी की बात यह भी थी कि दीप्ति के शव के बारे में पुलिस को अलसुबह करीब साढे़ 3 बजे सूचना मिली थी. इस का मतलब उस की हत्या रात में किसी वक्त की गई थी.

ऐसे में यह संभव नहीं था कि वह सुबह 4 बजे पिता को वाट्सऐप मैसेज करती. इस से जाहिर था कि दीप्ति का फोन उस के कातिल के पास रहा होगा. इस से लग रहा था कि दीप्ति  का कातिल उस का कोई परिचित रहा होगा. पुलिस को अब यह गुत्थी भी सुलझानी थी कि दीप्ति की हत्या दिल्ली में हुई थी या धारूहेड़ा में.

इंसपेक्टर सुधीर कुमार ने साइबर सेल की मदद से उसी दिन दीप्ति का मोबाइल सर्विलांस पर लगवा दिया. साथ ही उस की काल डिटेल्स भी निकलवा ली. सीडीआर के अध्ययन से सामने आया कि दीप्ति की हत्या होने के बाद उस का फोन अगले दिन सुबह करीब 9 बजे तक चालू था.

इस दौरान उस के फोन पर कई काल आई थीं, जिन में कुछ वाट्सऐप की मिस्ड काल भी थीं. इस मोबाइल फोन की आखिरी लोकेशन जयपुर में थी, इस के बाद दीप्ति का फोन स्विच्ड औफ हो गया था.

पुलिस टीम को लग रहा था कि दीप्ति दिल्ली से धारूहेड़ा किसी अनजान शख्स  के साथ तो नहीं आई होगी. जाहिर है, उस के साथ जो शख्स था, वह उस का खास परिचित रहा होगा. इसलिए पुलिस टीम ने दीप्ति के घर वालों से उस के सोशल मीडिया अकाउंट की जानकारी ले कर खंगालना शुरू कर दिया.

हाईप्रोफाइल हसीनाओं का रंगीन खेल – भाग 3

अंकिता का अपनी बहन अनीता के घर आनाजाना लगा रहता था. बहन के ठाठबाट से अंकिता प्रभावित थी. वह उस की अहसानमंद भी थी, क्योंकि वह उस की आर्थिक मदद कर देती थी. एक दिन अंकिता ने बातोंबातों में उस से कहा, ‘‘अनीता दीदी, मैं सदैव परेशानी में रहती हूं. आशुतोष इतना नहीं कमा पाता कि हमारा गुजारा हो सके. दीदी, हमें भी कोई धंधा बताओ ताकि हमारा भी गुजारा हो सके.’’

अनीता ने अंकिता के चेहरे पर नजरें गड़ा दीं. फिर कुछ क्षण बाद बोली, ‘‘जो धंधा मैं करती हूं, तू भी शुरू कर दे, कुछ ही दिनों में तेरे दिन भी बहुर जाएंगे.’’‘‘कौन सा धंधा दीदी?’’ अंकिता ने अचकचा कर पूछा.
‘‘वही जिस्मफरोशी का.’’ अनीता ने बताया. ‘‘दीदी, यह आप क्या कह रही हैं, यह तो बहुत गंदा काम है. क्या आप यही करती हो?’’

‘‘हां, अंकिता मैं यही धंधा करती हूं. बता, इस में गलत क्या है? देख ले, इस में कमाई बहुत है. सोच ले, मन करे तो आ जाना.’’ अंकिता एक सप्ताह तक पसोपेश में पड़ी रही. उस के बाद वह राजी हो गई. फिर अनीता ने बहन को देह धंधे में उतार दिया. आशुतोष झा ने भी प्राइवेट नौकरी छोड़ दी और पत्नी की देह की दलाली करने लगा. अंकिता सजधज कर बहन के अड्डे पर पहुंच जाती और जिस्म का धंधा करती. आशुतोष पत्नी के लिए ग्राहक तलाश कर लाता.छापे वाले दिन अंकिता पति आशुतोष झा के साथ बहन के घर पहुंची ही थी कि पुलिस का छापा पड़ गया और वह पति के साथ पकड़ी गई.

जिस्मफरोशी के अड्डे से पकड़ी गई सरिता फतेहपुर जिले के असोम कस्बे की रहने वाली थी. सरिता अनीता की सब से छोटी बहन थी. उस का विवाह असोम निवासी बलवीर के साथ हुआ था. बलवीर फेरी लगा कर कपड़े बेचता था. कपड़े के व्यवसाय में उसे कभी घाटा तो कभी मुनाफा होता था. उसी से वह जैसेतैसे अपनी गृहस्थी चलाता था.

सरिता महत्त्वाकांक्षी थी. वह पति की कमाई से संतुष्ट नहीं थी. सरिता अपनी बहनों के घर आतीजाती थी. वह उन के ठाटबाट देख कर मन ही मन कुढ़ती थी. उस ने बहनों से कमाई और ठाटबाट का रहस्य जाना तो उस ने भी बहनों का साथ पकड़ लिया और जिस्मफरोशी का धंधा करने लगी. उस ने पति बलवीर को भी राजी कर लिया. बलवीर भी पत्नी की देह का दलाल बन गया.सरिता कुछ ही समय में इस धंधे की खिलाड़ी बन गई. वह असोम तथा फतेहपुर से ग्राहक तथा लड़कियां भी फंसा कर लाने लगी. इस के एवज में अनीता उसे कमीशन भी देती थी.

छापे वाले दिन सरिता को ग्राहक के साथ उन्नाव जाना था लेकिन ग्राहक आने से पहले ही वह पुलिस के हत्थे चढ़ गई. उस दिन उस का पति बलवीर उस के साथ अड्डे पर नहीं आया था, जिस से वह बच गया.पुलिस रेड में पकड़ी गई नेहा फतेहपुर की रहने वाली थी. 4 भाईबहनों में वह सब से छोटी थी. उस के पिता प्राइवेट नौकरी कर परिवार का पालनपोषण करते थे. नेहा की शादी कल्याणपुर निवासी रमेश के साथ हुई थी.

रमेश शराबी था, जो कमाता था वह सब शराब में ही उड़ा देता था. नेहा विरोध करती तो वह उसे मारतापीटता था. लगभग 3 साल उस ने जैसेतैसे पति के साथ बिताए, फिर उस का साथ छोड़ कर मायके आ गई.पिता उस की दूसरी शादी रचा कर गृहस्थी बसाना चाहते थे, लेकिन नेहा राजी नहीं हुई. नेहा पिता पर बोझ नहीं बनना चाहती, अत: वह कानपुर आ गई और दादानगर स्थित एक प्लास्टिक फैक्ट्री में काम करने लगी. लेकिन यह नौकरी उसे ज्यादा समय तक रास नहीं आई.

वह पढ़ीलिखी थी सो दूसरी नौकरी की तलाश में जुट गई. इसी तलाश में उस की मुलाकात कालगर्ल सरगना अनीता शुक्ला से हुई. अनीता ने उसे अच्छी नौकरी लगवाने का झांसा दिया और उस की आर्थिक मदद करने लगी. नेहा जवान और खूबसूरत थी. अनीता ने उस को देहसुख का चस्का भी लगा दिया. इस के बाद अनीता ने उसे देहव्यापार के धंधे में उतार दिया.

नेहा फैशनेबल थी. वह जींसटौप पहनती थी. ग्राहक उसे देखते ही पसंद कर लेता था. अनीता नेहा की बुकिंग दिल्ली, आगरा जैसे बड़े शहरों को करती थी और भारीभरकम रकम वसूलती थी. छापे वाले दिन नेहा का सौदा 10 हजार रुपए में तय था. ग्राहक कार से उसे लेने आ रहा था. लेकिन इसी बीच पुलिस का छापा पड़ गया और वह पकड़ी गई.

पुलिस छापे में पकड़ी गई पूनम, असोम (फतेहपुर) की रहने वाली थी. उस का पति फतेहपुर खागा रोड पर टैंपो चलाता था. वह इतना कमा लेता था कि अपनी पत्नी व 2 बच्चों का पालनपोषण हो जाता था. लेकिन एक दिन उस का टैंपो ट्रक से भिड़ गया, जिस से वह बुरी तरह जख्मी हो गया. उस का साल भर इलाज चला पर वह चल न सका. उस का एक पैर खराब हो गया. फिर हमेशा के लिए बिस्तर ही उस का साथी बन गया था.

पूनम के पास जो जमापूंजी थी, वह सब उस ने पति के इलाज में लगा दी. वह कर्जदार भी हो गई. बच्चों के भूखों मरने की नौबत जब आ गई तब उसे घर के बाहर कदम निकालना पड़ा. वह फतेहपुर में एक चूड़ी की दुकान पर काम करने लगी. इसी चूड़ी की दुकान पर पूनम की मुलाकात कालगर्ल सरिता से हुई.

सरिता ने पूनम को अच्छी नौकरी दिलवाने का झांसा दिया और अपनी बहन अनीता से मिलवाया. अनीता ने पूनम की मजबूरी समझी और फिर प्रलोभन दे कर सैक्स के धंधे में उतार दिया.पूनम को शुरू में तो धंधा करने में झिझक हुई, किंतु जब शरीर की भरपूर कीमत मिलने लगी तो वह इस धंधे में रम गई. छापे वाले दिन उस का रात भर का सौदा 5 हजार रुपए में तय हुआ था. वह अपने ग्राहक के साथ कमरे में बिस्तर पर थी, तभी पुलिस का छापा पड़ा और वह पकड़ी गई.

जिस्म का धंधा करते पकड़ी गई नीलम भी असोम (फतेहपुर) की रहने वाली थी. उस का पति मानसिक रोगी था. घर में ही पड़ा रहता था.सासससुर और 3 बच्चों का बोझ उस के कंधे पर था. उस की मजबूरी का फायदा असोम की रहने वाली सरिता ने उठाया. सरिता ने उसे अपनी बड़ी बहन अनीता से मिलवाया. अनीता ने नीलम को समाज की कड़वी सच्चाई से अवगत कराया और फिर जिस्म बेचने को राजी कर लिया.

मजबूरी में नीलम देह का सौदा करने लगी. हालांकि नीलम का पति और सासससुर यही समझते थे कि नीलम किसी कंपनी में नौकरी करती है और कंपनी के काम से उसे बाहर जाना पड़ता है. छापे वाली रात नीलम ग्राहक के इंतजार में थी, तभी पुलिस का छापा पड़ गया और वह पकड़ी गई.

देहव्यापार के अड्डे पर अय्याशी करते रंगेहाथ पकड़ा गया सत्यम द्विवेदी कानपुर नगर के छावनी थाने के लालकुर्ती मोहल्ले का रहने वाला था. वह कपड़े का व्यापार करता था और अय्याश प्रवृत्ति का था.

एक रंगीनमिजाज दोस्त के माध्यम से वह श्यामनगर क्षेत्र में स्थित अनीता के अड्डे पर पहुंचा था. पूनम नाम की कालगर्ल को पसंद कर उस ने पूरी रात का सौदा 5 हजार रुपए में तय किया था. पूनम के साथ वह कमरे में हमबिस्तर था, तभी पुलिस का छापा पड़ा और वह पकड़ा गया. 6 जनवरी, 2020 को थाना चकेरी पुलिस ने देहव्यापार के अड्डे से पकड़े गए सभी आरोपियों को कानपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से सभी को जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा संकलन सूत्रों पर आधारित. महिला पात्रों के नाम परिवर्तित किए गए हैं.

औरतों के साथ घिनौनी वारदात जारी

इस वारदात को अंजाम देने में गांव के वार्ड सदस्य और सरपंच भी शामिल थे. मां बेटी ने स्थानीय थाने में मामला दर्ज कराया जहां वार्ड पार्षद मोहम्मद खुर्शीद, सरपंच मोहम्मद अंसारी, मोहम्मद शकील, मोहम्मद इश्तेखार, मोहम्मद शमशुल हक, मोहम्मद कलीम के साथसाथ दशरथ ठाकुर को मुलजिम बनाया गया.

वैसे, पुलिस सुपरिंटैंडैंट मानवजीत सिंह ढिल्लों के मुताबिक मोहम्मद शकील और दशरथ ठाकुर को गिरफ्तार कर लिया गया था.

महिला आयोग की अध्यक्ष दिलमणि मिश्रा ने उस इलाके का दौरा किया और वे पीडि़ता से मिल कर उस की हरमुमकिन मदद करने और इंसाफ दिलाने की कोशिश कर रही हैं. केंद्रीय महिला आयोग को भी इस मामले की जानकारी दी गई है.

डीएम राजीव रोशन ने इस वारदात की निंदा करते हुए कहा है कि यह घिनौना अपराध है. कुसूरवारों को बख्शा नहीं जाएगा. हर हाल में कड़ी कार्यवाही होगी.

पत्थरदिल होते लोग

इस तरह की वारदातें जब कहीं होती हैं तो अच्छेखासे जागरूक लोग भी चुप्पी साध लेते हैं. अगर लोकल लोग इस का विरोध करते तो शायद इस तरह की वारदात नहीं घटती. अगर दबंगों का मनोबल इसी तरह बढ़ता गया तो वह दिन दूर नहीं जब निहायत कमजोर लोगों की जिंदगी हमआप जैसों की चुप्पी की वजह से दूभर हो जाएगी.

आज हमारे समाज में इतनी गिरावट आती जा रही है कि किसी औरत को नंगा कर के घुमाना, उस के साथ छेड़छाड़ करना और रेप तक करते हुए उस का वीडियो वायरल करना आम बात हो गई है.

समाज को धार्मिक और संस्कारी बनाने का ठेका लेने वाले साधुसंन्यासी और मौलाना इन वारदातों पर चुप्पी साधे रहते हैं. अभी हाल के दिनों में वैशाली, आरा, रोहतास, जहानाबाद, कैमूर, मधुबनी, गया और नालंदा में औरतों को नंगा कर के सरेआम सड़कोंगलियों में घुमाए, पीटे और सताए जाने की कई वारदातें हो चुकी हैं और यह सिलसिला जारी है.

अगर हम हाल के कुछ सालों की वारदातें देखें तो वर्तमान समाज की नंगी तसवीरें हमारे सामने दिखाई पड़ती हैं:

* 20 अगस्त, 2018. बिहार के आरा जिले के बिहियां इलाके में एक नौजवान की हत्या में शामिल होने के शक में उग्र भीड़ ने एक औरत को नंगा कर के उसे पीटते हुए सरेआम पूरे बाजार में घुमाया.

* 17 अगस्त, 2017. उत्तर प्रदेश के इटावा में दबंगों ने औरतों को पीटते हुए नंगा किया.

* 9 अगस्त, 2017. महाराष्ट्र में एक औरत को नंगा कर के घुमाया गया. उस औरत की गलती यह थी कि उस ने एक प्रेमी जोड़े को आपस में मिलाने का काम किया था.

* 22 अप्रैल, 2017. एक पिता ने प्रेम करने के एवज में अपनी ही बेटी को नंगा कर के घुमाया.

* 1 मई, 2014. बैतूल के चुनाहजुरि गांव में एक औरत के बाल मूंड़ कर उसे नंगा कर के पीटते हुए पूरे गांव में घुमाया. उस औरत का गुनाह यह था कि उस की छोटी बहन ने दूसरी जाति के लड़के के साथ शादी कर ली थी.

* 19 दिसंबर, 2010. पश्चिम बंगाल में एक औरत को पंचायत के फैसले के मुताबिक उस की पिटाई करते हुए नंगा कर के घुमाया गया. उस औरत पर आरोप था कि उस का किसी के साथ नाजायज रिश्ता था.

* खड़गपुर के पास मथकथ गांव में एक औरत को नाजायज रिश्ता बनाने के आरोप में उस की नंगा कर के पिटाई की गई.

इन वारदातों में ज्यादातर नौजवान शामिल रहते हैं जो औरतों के साथ बदतमीजी करने से ले कर उन के बेहूदा वीडियो बनाने तक में शामिल होते हैं. हमारे समाज के इन नौजवानों को क्या हो गया है जो ये अपने गुरु और अपने मातापिता की इज्जत तक का थोड़ा सा भी खयाल नहीं रखते हैं? मातापिता भी इस में बराबर के कुसूरवार हैं जो लड़कियों को तो बातबात पर तमीज सिखाते रहते हैं, लेकिन लड़कों को नहीं.

क्या यह सब बढ़ती धार्मिक  पाखंडीबाजी का नतीजा नहीं है जिस के मुताबिक औरतों को पैर की जूती माना गया है? राष्ट्रीय अपराध रिकौर्ड ब्यूरो के मुताबिक 2012 से 2015 तक औरतों के विरुद्ध अपराधों की तादाद में 34 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. दुष्कर्म के मामले में मध्य प्रदेश 4,391, महाराष्ट्र 4,144, राजस्थान 3,644, उत्तर प्रदेश 3,025, ओडिशा 2,251, दिल्ली 2,199, असम 1,733, छत्तीसगढ़ 1,560, केरल 1,256, पश्चिम बंगाल 1,129 के आंकड़े चौंकाते हैं. निश्चित रूप से यह एक सभ्य समाज की तसवीर तो नहीं हो सकती.

सवाल यह है कि धर्म, नैतिकता और शर्मिंदगी क्या सिर्फ लड़कियों के लिए है? जन्म से ले कर मरने तक किसी औरत के अपने मातापिता, पति और बेटे के अधीन ही जिंदगी बिताने की परंपरा आज भी सदियों से चली आ रही है.

यह ठीक है कि अब लड़कियों की जिंदगी में बदलाव आया है. आज वे भी हर क्षेत्र में परचम लहरा रही हैं, लेकिन आज भी उन के साथ दोयम दर्जे का ही बरताव होता है. जब एक लड़की के साथ बलात्कार की वारदात होती है तो परिवार और समाज द्वारा इज्जत के नाम पर उस की चर्चा और मुकदमा तक नहीं किया जाता है, जिस की वजह से बलात्कारी का मनोबल बढ़ जाता है.

इस से दुनियाभर में हमारे देश की कैसी इमेज बन रही है, क्या हमारे नेताओं को इस पर चिंता करने की जरूरत महसूस नहीं होती है?

भारत विश्व गुरु बनने की बात करता है और ऐसा होना भी चाहिए, लेकिन क्या हम 8 साल की मासूम बच्ची के साथ रेप कर के विश्व गुरु बन जाएंगे या रेप के बाद विचारधारा और धर्म पर राजनीति कर के?

जिस देश में स्कूलों और कालेजों में टीचरों की घोर कमी हो, अस्पतालों के हालात देख कर ही लोग बीमार दिखने लगते हों, बेरोजगारों की एक लंबी भीड़ हो और क्वालिटी ऐजुकेशन के नाम पर खिचड़ी खिला कर बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया जाता हो, क्या हम ऐसे माहौल में विश्व गुरु बनने के हकदार हैं?

जिस देश में वोट पाने के लिए नेता हेट स्पीच देने में वर्ल्ड रिकौर्ड बना चुके हों, जिस देश के नेता धर्म के नाम पर अपनी राजनीति चमकाते हों और जरूरत पड़ने पर धर्म के नाम पर नौजवानों की बलि चढ़ा देते हों, क्या ऐसी करतूतों से भारत की छवि विश्व जगत में खराब नहीं हुई है?

भारत में हो रही बलात्कार की वारदातें, चौकचौराहे पर गुस्साई भीड़ द्वारा लगातार की जा रही हत्याएं व सुप्रीम कोर्ट के 4 जजों द्वारा प्रैस कौंफ्रैंस कर के लोकतंत्र को बचाने की गुहार लगाना, क्या संचार क्रांति के इस दौर में हमारे देश के लिए इस सब पर सोचविचार करने का यह सही समय नहीं है? कई देशों ने अपने नागरिकों को अकेले भारत आने के बारे में चेतावनी देना शुरू कर दिया है.

भीड़ आखिर इतनी अराजक क्यों हो रही है? कानून को हाथ में लेने के लिए उसे कौन बोल या उकसा रहा है? शक के आधार पर या पंचायत के फैसले पर किसी औरत को नंगा कर के उस को पीटा जाना किसी लिहाज से जायज नहीं है, क्योंकि सरकार के तथाकथित समर्थकों को सोशल मीडिया पर मांबहन की गालियां देने का जो लाइसैंस दिया गया है वह अब सड़कों पर अपना असली रंग दिखाने लगा है.

यह सब इस देश के लिए बहुत बड़ा खतरा है. ऐसी वारदातों में कभीकभार ऐसी औरतें भी निशाने पर ले ली जाती हैं, जिन का कोई कुसूर नहीं होता है. वे ऐसे लोगों के गुस्से की भेंट चढ़ जाती हैं, जो उन्हें जानते तक नहीं हैं.

औरत को देवी का रूप बताने और उस की पूजा का ढोंग करने वाले इस देश के लोगों का यही चरित्र है.

(कहानी सौजन्य मनोहर कहानी)

ओयो होटल का रंगीन अखाड़ा – भाग 4

अजय प्रताप को तब तक पता नहीं था कि वह किस ट्रैप में फंस गए हैं, इसलिए उन्होंने किसी भी तरह इस मामले को निबटाने के लिए हाथपांव जोड़ने शुरू कर दिए. सुनीता ने कहा कि ठीक है वह इस मामले को अपने अधिकारियों के नोटिस में नहीं लाएगी, लेकिन उसे जल्द से जल्द 10 लाख रुपए का इंतजाम कर उन्हें देने होंगे.

सुनीता ने उन्हें बताया कि वह अपनी पत्नी को यह कह कर फोन करें कि उन्हें बदमाशों ने पकड़ लिया है और 10 लाख रुपए मांग रहे हैं क्योंकि उसे लड़की से मसाज की बात पता चल गई तो वह पैसा नहीं देगी, उलटे पत्नी की नजर में उन की इज्जत चली जाएगी.

सुनीता के दबाव में आ कर अजय ने उसी के नंबर से अपनी पत्नी सुषमा को फोन किया था. इस के बाद रात में कई बार अजय प्रताप की पिटाई की गई. इस के साथ ही वे लोग छोड़ने के लिए उन से मोलभाव करते रहे.

आरोपियों ने अजय प्रताप की पिटाई कर के उन का ऐसा वीडियो भी बना लिया था जिस में वह मसाज कराने के लिए लड़की की मांग कर रहे थे. बंधक बनाने वालों ने अजय को धमकी दी कि अगर उन्हें पैसे नहीं मिले तो वे यह वीडियो उस के परिवार वालों को भेज कर, फिर सोशल मीडिया पर वायरल कर देंगे.

लेकिन इस से पहले सुनीता और उस के साथी अजय प्रताप की पत्नी को अपने नंबर से फोन कर के एक बड़ी चूक कर गए थे. उन्हें शायद अजय की हैसियत तो पता चल गई थी लेकिन उन की पहुंच के बारे में पूरी तरह अंजान थे.

आइडिया सुनीता का था

दरअसल, सेक्टर-41 के जिस ओयो होटल में अजय प्रताप सिंह को अगवा कर रखा गया था, उस में 16 कमरे बने हुए हैं. होटल का संचालन सन 2017 से किया जा रहा था. राकेश उर्फ रिंकू फौजी ने यह होटल 1.60 लाख रुपए प्रतिमाह के किराए पर ले रखा था.

रिंकू की सुनीता के साथ जानपहचान थी, इसलिए उस का होटल में आनाजाना था. रिंकू का होटल वैसे तो ज्यादा नहीं चलता था, लेकिन सुनीता ने ही रिंकू को आइडिया दिया कि नोएडा में अय्याशी करने वाले लोग सुरक्षित जगह की तलाश में होटलों और गेस्टहाउसों का आसरा लेते हैं. इसलिए उस ने कुछ लोगों को अय्याशी के लिए होटल में कमरे देने शुरू किए.

इसी दौरान उसे आइडिया आया कि क्यों न जिस्मफरोशी का धंधा करने वाली लड़कियों को होटल में रख कर उन से मसाज कराने का काम शुरू कराया जाए. इस काम के लिए रिंकू ने दीपक, आदित्य और अनिल को भी अपने साथ जोड़ लिया.

अगाहपुर की रहने वाली सुनीता उर्फ बबली को इलाके में लोग भाजपा नेत्री के रूप में जानते थे. वह अकसर रिंकू के होटल में आतीजाती थी. उस का बड़ेबड़े लोगों में बैठनाउठना था. उस ने आइडिया दिया कि अगर मोटा पैसा कमाना है तो लड़कियों से मसाज कराने आने वाले लोगों को समाज में बदनाम करने की धमकी दे कर ब्लैकमेल किया जा सकता है. फिर वे आसानी से मोटी रकम दे देंगे.

रिंकू ने मसाज करने के लिए जस्ट डायल पर अपने कुछ मोबाइल नंबर रजिस्टर करवा रखे थे. लोग गूगल पर सर्च कर के जब बात करते तो वे उसे अपने ओयो होटल में बुला लेते थे. उन्होंने मसाज और जिस्मफरोशी का धंधा करने वाली कुछ लड़कियों की फोटो अपने पास रखी हुई थीं, ग्राहक के मांगने पर वे मसाज बाला की फोटो वाट्सऐप पर सेंड कर देते थे.

खूबसूरत लड़कियों की फोटो देख कर ग्राहक उसी तरह उन के जाल में फंस जाते थे, जिस तरह अजय प्रताप सिंह उन के जाल में फंसे थे.

बिगबौस 10 कंटेस्टेंट मनवीर गुर्जर को बताया रिश्तेदार

सुनीता गुर्जर ने पुलिस की पकड़ में आने के बाद यह भी बताया कि वह बिग बौस के एक बहुचर्चित कंटेस्टेंट मनवीर गुर्जर की भाभी है. उस ने पुलिस को मनवीर गुर्जर के परिवार के साथ अपनी फोटो और बिग बौस के दसवें सीजन में सलमान खान के साथ ली गई फोटो दिखाई तो पुलिस भी चकरा गई.

लेकिन पुलिस की एक टीम ने जब अगाहपुर में मनवीर गुर्जर के घर जा कर इस बात की छानबीन की तो पता चला कि गांव और एक ही बिरादरी होने के कारण मनवीर गुर्जर सुनीता को भाभी कहता था. उस का मनवीर के परिवार में आनाजाना भी था लेकिन मनवीर गुर्जर के परिवार से उस की कोई रिश्तेदारी या दूर का नाता तक नहीं था.

पुलिस पूछताछ में पता चला कि आरोपित दीपक और राकेश चचेरे भाई हैं. जबकि अनिल शर्मा उर्फ सौरभ तथा आदित्य उन के दोस्त हैं. उन्होंने सुनीता के बहकावे में आ कर शार्टकट से पैसा कमाने के चक्कर में मसाज की आड़ में लोगों को हनीट्रैप में फंसा कर उन्हें ब्लैकमेल कराने का काम शुरू किया था. लोग बदनामी के डर से 2-4 लाख दे कर अपनी जान छुड़ा लेते थे.

जब वे शिकार को फंसा कर लाते तो सुनीता क्राइम ब्रांच की इंसपेक्टर बन कर पहुंच जाती थी और जेल जाने तथा बदनामी का ऐसा भय दिखाती थी कि शिकार कुछ न कुछ दे कर अपनी जान छुड़ाता था.

पुलिस ने उन के होटल से जो रजिस्टर व दस्तावेज बरामद किए, उस में 800 से ज्यादा लोगों के नामपते दर्ज हैं. आंशका है कि उन में से कुछ ऐसे जरूर रहे होंगे, जिन्हें मसाज के नाम पर जाल में फंसा कर ब्लैकमेल किया गया होगा. पुलिस उन सभी लोगों की छानबीन कर रही है. पुलिस का दावा है कि यह गिरोह नोएडा व एनसीआर में हनीट्रैप की कई वारदात कर चुका है.

आरोपियों के पास से अजय प्रताप की कार, घटना में प्रयुक्त मोबाइल समेत अन्य दस्तावेज बरामद हुए हैं. एक आरोपी बरौला निवासी अनिल कुमार शर्मा को बाद में गिरफ्तार कर लिया गया, जबकि कथा लिखे जाने तक सेक्टर-27 निवासी आदित्य कुमार फरार था.

उत्तर प्रदेश के अपर मुख्य सचिव (गृह) अवनीश अवस्थी ने आरोपियों को पकड़ने वाली टीम को 5 लाख नकद पुरस्कार देने की घोषणा की है.