
जितेंद्र दूबे बेटियों को बेटे से कम नहीं आंकते थे. बेटियों की शिक्षादीक्षा पर भी वह खर्च करने में पीछे नहीं रहते थे. बेटियां भी पिता के विश्वास पर खरा उतरने की कोशिश करती थीं.
तीनों बेटियों में नेहा बीए में थी, रागिनी 11वीं उत्तीर्ण कर के 12वीं में आई थी और सिया 10वीं पास कर के 11वीं में आई थी. रागिनी, नेहा और सिया दोनों से बिलकुल अलग स्वभाव की थी.
रागिनी पढ़ाईलिखाई से ले कर घर के कामकाज तक मन लगा कर करती थी. वह शर्मीली और भावुक लड़की थी. जरा सी डांट पर उस की आंखों से गंगायमुना बहने लगती थी, इसलिए घर वाले उसे बड़े लाड़प्यार से रखते थे.
बात 2015 के करीब की है. उस समय रागिनी और सिया दोनों सलेमपुर के भारतीय संस्कार स्कूल में अलगअलग क्लास में पढ़ती थीं. रागिनी 10वीं में थी और सिया 9वीं में. दोनों बहनें रोजाना बजहां गांव से हो कर पैदल ही स्कूल आतीजाती थी. स्कूल जातेआते उन पर बजहां गांव के ग्रामप्रधान कृपाशंकर तिवारी के बेटे आदित्य उर्फ प्रिंस की नजर पड़ गई.
प्रिंस पहली ही नजर में रागिनी पर फिदा हो गया. रागिनी साधारण शक्लसूरत की थी लेकिन उस में गजब का आकर्षण था. रागिनी और सिया जब भी स्कूल जातीं, प्रिंस गांव के बाहर 2-3 दोस्तों के साथ उन के इंतजार में खड़ा मिलता. दोनों बहनें उन सब से किनारा कर के राह बदल कर निकल जाती थीं.
ऐसा नहीं था कि दोनों बहनें उन के इरादों से अनजान थीं, इसलिए वे उन से बचने की कोशिश करती थीं. रागिनी प्रिंस से जितनी दूर भागती थी, वह उतना ही उस के करीब आने की कोशिश करता था. वह रागिनी से एकतरफा मोहब्बत करने लगा था. प्रिंस को रागिनी को देखे बिना चैन नहीं मिलता था.
आदित्य तिवारी उर्फ प्रिंस उसी बजहां गांव का रहने वाला था, जहां से हो कर रागिनी और सिया स्कूल जाती थीं. उस के पिता कृपाशंकर तिवारी बजहां के ग्रामप्रधान थे. तिवारी की इलाके में तूती बोलती थी.
कृपाशंकर तिवारी का बेटा प्रिंस बाप के नक्शेकदम पर चल रहा था. पिता की तरह ही वह अभिमानी हो गया था. दूसरों को वह तुच्छ और कीड़ेमकोड़ों से ज्यादा कुछ नहीं समझता था. जब भी वह घर से निकलता तो अकेला नहीं होता था. उस के साथ 5-6 लड़कों की टोली रहती थी. उन में उस के चचेरे भाई नीरज तिवारी, सोनू तिवारी और दोस्त दीपू यादव खास थे.
ये तीनों उस के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार रहते थे. दोस्तों पर वह पैसा पानी की तरह बहाता था. जब से रागिनी प्रिंस के दिल में उतरी थी, तब से उस का दिन का चैन रातों की नींद उड़ गई थी. वह रागिनी से तथाकथित एकतरफा मोहब्बत करने लगा था.
उसे पाने के लिए वह किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार था. जबकि रागिनी उस से प्यार करना तो दूर की बात, उस से घृणा करना भी अपनी तौहीन समझती थी.
प्रिंस रागिनी के प्यार में इस कदर पागल था कि उस ने खुद को कमरे में कैद कर लिया था. न तो वह यारदोस्तों से पहले की तरह मिलता था और न ही उन से बातें करता था. प्रिंस की हालत देख कर उस के दोस्त नीरज, सोनू और दीपू तीनों परेशान थे.
यार की जिंदगी की सलामती की खातिर तीनों ने फैसला किया कि चाहे कुछ भी हो जाए, चाहे सूली पर ही क्यों न चढ़ना पड़े, दोस्त के प्यार को उस के कदमों में ला कर डाल देंगे.
एक दिन की बात है नीरज, सोनू और दीपू ने मिल कर रागिनी और सिया को स्कूल जाते वक्त रास्ते में रोक लिया. तीनों के अचानक रास्ता रोकने से दोनों बहनें बुरी तरह डर गईं. उस के बाद नीरज और सोनू ने प्रिंस के प्रेम करने वाली बातें बता कर रागिनी पर दबाव बनाया कि वह प्रिंस के प्यार को स्वीकार ले. लेकिन रागिनी ने उन तीनों को दुत्कार दिया.
रागिनी की बातें सीधे नीरज के दिल पर छुरी की तरह लगी थीं. उसे कतई उम्मीद नहीं थी कि रागिनी उसे ऐसा जवाब देगी. रागिनी की बातों से उसे धक्का लगा. चूंकि मामला भाई के प्यार से जुड़ा था, इसलिए वह रागिनी के अपमान को अमृत समझ कर पी गया.
उस समय तो नीरज और उस के दोस्तों ने रागिनी को कोई जवाब नहीं दिया, लेकिन यह बात नीरज ने अपने तक ही सीमित नहीं रखी.
घर पहुंच कर उस ने यह बात प्रिंस को बता दी. भाई की बात सुन कर प्रिंस गुस्से से उबल पड़ा. उसे लगा कि रागिनी में इतनी हिम्मत कहां से आ गई जो उस ने उस के प्यार को ठुकरा दिया. वह उस के प्यार को ठुकरा सकती है तो वह भी उसे जीने नहीं देगा. अगर वह मेरी नहीं हो सकती तो मैं उसे किसी और की भी नहीं होने दूंगा.
नीरज और उस के दोस्तों ने प्रिंस के गुस्से को और हवा दे दी. रागिनी के प्यार में मर मिटने वाला जुनूनी आशिक प्रिंस रागिनी द्वारा प्रेम प्रस्ताव ठुकराए जाने पर एकदम फिल्मी खलनायक की तरह बन गया. उस दिन के बाद से रागिनी जब भी कहीं आतीजाती दिखती, प्रिंस चारों दोस्तों के साथ अश्लील शब्दों का प्रयोग कर के उसे छेड़ता रहता. वह अपने आवारा दोस्तों को ले कर उस के घर तक पहुंच जाता और घर वालों को धमकाता.
प्रिंस की आवारागर्दी और राह आतेजाते आए दिन छेड़छाड़ करने से रागिनी और उस के घर वाले परेशान हो गए थे. डर के मारे रागिनी ने घर से बाहर निकलना बंद कर दिया था. वह स्कूल भी नहीं जा रही थी. प्रिंस का खौफ रागिनी के दिल में उतर गया था.
जब बात हद से आगे बढ़ गई तो रागिनी के पिता जितेंद्र दूबे ने बांसडीह थाने में प्रिंस और उस के दोस्तों के खिलाफ लिखित शिकायत दी. प्रधान कृपाशंकर की ऊंची पहुंच और दरोगा के हस्तक्षेप की वजह से मामला वहीं का वहीं रफादफा हो गया. इस के बाद प्रिंस और भी उग्र हो गया. उसे लग रहा था कि जितेंद्र दूबे की इतनी हिम्मत कैसे हो गई कि उस के खिलाफ थाने में शिकायत करने पहुंच गया.
बात अप्रैल, 2017 की है. प्रिंस अपने तीनों दोस्तों नीरज, सोनू और दीपू यादव को ले कर दोबारा जितेंद्र दूबे के घर गया और उन्हें धमकाया कि आज के बाद तुम्हारी बेटी रागिनी अगर पढ़ने स्कूल गई तो वह दिन उस की जिंदगी का आखिरी दिन होगा.
प्रिंस की धमकी से रागिनी के घर वाले डर गए. उन्होंने उस दिन से रागिनी को स्कूल भेजना बंद कर दिया. प्रिंस की धमकी से डर कर रागिनी कई महीनों तक स्कूल नहीं गई.
उस साल रागिनी का इंटरमीडिएट था. स्कूल में परीक्षा फार्म भरे जा रहे थे. परीक्षा फार्म भरने के लिए वह 8 अगस्त, 2017 को छोटी बहन सिया के साथ स्कूल जा रही थी. पता नहीं कैसे प्रिंस को उस के जाने की खबर मिल गई और उस ने दोस्तों के साथ मिल कर उसे मार डाला.
पुलिस ने रागिनी हत्याकांड के नामजद 5 आरोपियों में से 2 आरोपियों प्रिंस और दीपू यादव को गोरखपुर भागते समय गिरफ्तार कर लिया था. बाकी के 3 आरोपी प्रधान कृपाशंकर, नीरज तिवारी और सोनू फरार थे.
एसपी सुजाता सिंह ने फरार आरोपियों को गिरफ्तार करने के सख्त आदेश दे दिए थे. आरोपियों को गिरफ्तार कराने के लिए मृतका की बड़ी बहन नेहा दूबे ने सैकड़ों छात्रछात्राओं के साथ कलेक्ट्रेट परिसर में धरनाप्रदर्शन किया. परिवार के सदस्यों को मिल रही धमकी के लिए नेहा ने पुलिस प्रशासन को जिम्मेदार ठहराया.
कांग्रेस के नेता सागर सिंह राहुल ने भी लापरवाही बरतने के लिए पुलिस प्रशासन को कोसा. पूरे बलिया के सभ्य नागरिक जितेंद्र दूबे के साथ थे. रागिनी को न्याय दिलाने के लिए रोज धरनाप्रदर्शन किए जा रहे थे.
पुलिस पर फरार आरोपियों को बचाने के आरोप लगने लगे थे. जब चारों ओर से पुलिस की आलोचना होने लगी, तब कहीं जा कर पुलिस सक्रिय हुई और फरार आरोपियों प्रधान कृपाशंकर तिवारी, सोनू तिवारी और नीरज तिवारी के ऊपर शिकंजा कसा तो एकएक कर के तीनों ने कोर्ट में आत्मसमर्पण कर दिया.
रागिनी दूबे हत्याकांड के पांचों आरोपियों कृपाशंकर तिवारी, प्रिंस तिवारी, नीरज तिवारी, सोनू तिवारी और दीपू यादव जेल पहुंच गए थे.
पुलिस ने इस मुकदमे में भादंसं की धाराओं 147, 148, 149, 302, 354ए व 7/8 पोक्सो एक्ट के अंतर्गत पांचों आरोपियों के खिलाफ 26 अक्तूबर, 2017 को न्यायालय में आरोपपत्र दाखिल कर दिया. इस के बाद यह मुकदमा न्यायालय में सवा 2 साल तक चलता रहा.
बाहुबली ग्रामप्रधान कृपाशंकर तिवारी ने मुकदमे को खत्म करने के लिए वादी जितेंद्र दूबे को खूब धमकाया. घटना की एकमात्र चश्मदीद गवाह सिया को गवाही न देने के लिए गुंडे भेज कर रागिनी जैसा अंजाम भुगतने की धमकियां दी गईं, लेकिन ऐसी धमकी का न तो जितेंद्र दूबे पर असर हुआ और न ही सिया पर.
बाहुबली कृपाशंकर तिवारी को कानून के अंतर्गत मुंहतोड़ जवाब देने के लिए जितेंद्र दूबे ने कमर कस ली थी. इस दौरान अभियोजन पक्ष के सरकारी वकील सुनील कुमार ने अदालत को घटना से संबंधित तमाम सबूत दिए, साथ ही 12 गवाहों की गवाहियां कराईं.
बचाव पक्ष के अधिवक्ता अशोक कुमार ने अपने मुवक्किलों को बचाने की भरपूर कोशिश की, लेकिन वे ऐसा कोई सबूत पेश नहीं कर पाए, जो उन्हें बचा पाता.
12 सितंबर, 2019 को दोनों अधिवक्ताओं की बहस पूरी हुई. न्यायाधीश चंद्रभानु सिंह ने दोनों अधिवक्ताओं की बहस सुनी और अपना फैसला सुरक्षित रखा.
9 दिनों बाद यानी 20 सितंबर, 2019 को उन्होंने अपना फैसला सुनाया, जिस में पांचों अभियुक्त दोषी ठहराए गए. फैसला सुनाए जाने तक पांचों अभियुक्त जेल में ही बंद थे.
गवाहों के बयानों और सबूतों के आधार पर न्यायाधीश चंद्रभानु सिंह ने रागिनी दूबे की हत्या के मामले में सही न्याय कर दिया था.
कभी दोस्ती तो कभी तथाकथित प्यार के झांसे में आ कर कई लड़कियां ब्लैकमेलरों के चक्कर में फंस जाती हैं. मतलब शरीर ही नहीं, उन से पैसे भी मांगे जाते हैं.
‘‘तुझे क्या लगता है कि आत्महत्या कर लेने से तेरी समस्या दूर हो जाएगी?’’
‘‘समस्या दूर हो या न हो, लेकिन मैं हमेशा के लिए इस दुनिया से दूर हो जाऊंगी. तू नहीं जानती नेहा मेरा खानापीना, सोना यहां तक कि पढ़ना भी दूभर हो गया है. हर वक्त डर लगा रहता है कि न जाने कब उस का फोन आ जाए और वह मुझे फिर अपने कमरे में बुला कर…’’ कहते हुए रंजना (बदला नाम) सुबक उठी तो उस की रूममेट नेहा का कलेजा मुंह को आने लगा. उसे लगा कि वह अभी ही खुद जा कर उस कमबख्त कलमुंहे मयंक साहू का टेंटुआ दबा कर उस की कहानी हमेशा के लिए खत्म कर दे, जिस ने उस की सहेली की जिंदगी नर्क से बदतर कर दी है.
अभीअभी नेहा ने जो देखा था, वह अकल्पनीय था. रंजना खुदकुशी करने पर आमादा हो आई थी, जिसे उस ने जैसेतैसे रोका था लेकिन साथ ही वह खुद भी घबरा गई थी. उसे इतना जरूर समझ आ गया था कि अगर थोड़ा वक्त रंजना से बातचीत कर गुजार दिया जाए तो उस के सिर से अपनी जिंदगी खत्म कर लेने का खयाल उतर जाएगा. लेकिन उस की इस सोच को कब तक रोका जा सकता है. आज नहीं तो कल रंजना परेशान हो कर फिर यह कदम उठाएगी. वह हर वक्त तो रूम पर रह नहीं सकती.
रंजना को समझाने के लिए वह बड़ेबूढ़ों की तरह बोली, ‘‘इस में तेरी तो कोई गलती नहीं है, फिर क्यों किसी दूसरे के गुनाह की सजा खुद को दे रही है. यह मत सोच कि इस से उस का कुछ बिगड़ेगा, उलटे तेरी इस बुजदिली से उसे शह और छूट ही मिलेगी. फिर वह बेखौफ हो कर न जाने कितनी लड़कियों की जिंदगी बरबाद करेगा, इसलिए हिम्मत कर के उसे सबक सिखा. यह बुजदिली तो कभी भी दिखाई जा सकती है. जरा अंकलआंटी के बारे में सोच, जिन्होंने बड़ी उम्मीदों और ख्वाहिशों से तुझे यहां पढ़ने भेजा है.’’
रंजना पर नेहा की बातों का वाजिब असर हुआ. उस ने खुद को संभालते हुए कहा, ‘‘फिर क्या रास्ता है, वह कहने भर से मानने वाला होता तो 3 महीने पहले ही मान गया होता. जिस दिन वह तसवीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल कर देगा, उस दिन मेरी जिंदगी तो खुद ही खत्म हो जाएगी. जिन मम्मीपापा की तू बात कर रही है, उन पर क्या गुजरेगी? वे तो सिर उठा कर चलने लायक तो क्या, कहीं मुंह दिखाने लायक भी नहीं रहेंगे.’’
‘‘एक रास्ता है’’ नेहा ने मुद्दे की बात पर आते हुए कहा, ‘‘बशर्ते तू थोड़ी सी हिम्मत और सब्र से काम ले तो यह परेशानी चुटकियों में हल हो जाएगी.’’ माहौल को हलका बनाने की गरज से नेहा ने सचमुच चुटकी बजा डाली.
‘‘क्या, मुझे तो कुछ नहीं सूझता?’’
‘‘कोड रेड पुलिस. वह तुझे इस चक्रव्यूह से ऐसे निकाल सकती है कि सांप भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी.’’
कोड रेड पुलिस के बारे में रंजना ने सुन रखा था कि पुलिस की एक यूनिट है जो खासतौर से लड़कियों की सुरक्षा के लिए बनाई गई है और एक काल पर आ जाती है. ऐसे कई समाचार उस ने पढ़े और सुने थे कि कोड रेड ने मनचलों को सबक सिखाया या फिर मुसीबत में पड़ी लड़की की तुरंत मदद की.
रंजना को नेहा की बातों से आशा की एक किरण दिखी, लेकिन संदेह का धुंधलका अभी भी बरकरार था कि पुलिस वालों पर कितना भरोसा किया जा सकता है और बात ढकीमुंदी रह पाएगी या नहीं. इस से भी ज्यादा अहम बात यह थी कि वे तसवीरें और वीडियो वायरल नहीं होंगे, इस की क्या गारंटी है.
इन सब सवालों का जवाब नेहा ने यह कह कर दिया कि एक बार भरोसा तो करना पड़ेगा, क्योंकि इस के अलावा कोई और रास्ता नहीं है. मयंक दरअसल उस की बेबसी, लाचारगी और डर का फायदा उठा रहा है. एक बार पुलिस के लपेटे में आएगा तो सारी धमाचौकड़ी भूल जाएगा और शराफत से फोटो और वीडियो डिलीट कर देगा, जिन की धौंस दिखा कर वह न केवल रंजना की जवानी से मनमाना खिलवाड़ कर रहा था, बल्कि उस से पैसे भी ऐंठ रहा था.
कलंक बना मयंक
20 वर्षीय रंजना और नेहा के बीच यह बातचीत बीती अप्रैल के तीसरे सप्ताह में हो रही थी. दोनों जबलपुर के मदनमहल इलाके के एक हौस्टल में एक साथ रहती थीं और अच्छी फ्रैंड्स होने के अलावा आपस में कजिंस भी थीं.
रंजना यहां जबलपुर के नजदीक के एक छोटे से शहर से आई थी और प्रतिष्ठित परिवार से थी. आते वक्त खासतौर से मम्मी ने उसे तरहतरह से समझाया था कि लड़कों से दोस्ती करना हर्ज की बात नहीं है, लेकिन उन से तयशुदा दूरी बनाए रखना जरूरी है.
बात केवल दुनिया की ऊंचनीच समझाने की नहीं, बल्कि अपनी बड़ी हो गई नन्हीं परी को आंखों से दूर करते वक्त ढेरों दूसरी नसीहतें देने की भी थी कि अपना खयाल रखना. खूब खानापीना, मन लगा कर पढ़ाई करना और रोज सुबहशाम फोन जरूर करना, जिस से हम लोग बेफिक्र रहें.
यह अच्छी बात थी कि रंजना को बतौर रूममेट नेहा मिली थी, जो उन की रिश्तेदार भी थी. जबलपुर आकर रंजना ने हौस्टल में अपना बोरियाबिस्तर जमाया और पढ़ाईलिखाई और कालेज में व्यस्त हो गई. मम्मीपापा से रोज बात हो जाने से वह होम सिकनेस का शिकार होने से बची रही. जबलपुर में उस की जैसी हजारों लड़कियां थीं, जो आसपास के इलाकों से पढ़ने आई थीं, उन्हें देख कर भी उसे हिम्मत मिलती थी.
मम्मी की दी सारी नसीहतें तो उसे याद रहीं लेकिन लड़कों वाली बात वह भूल गई. खाली वक्त में वह भी सोशल मीडिया पर वक्त गुजारने लगी तो देखते ही देखते फेसबुक पर उस के ढेरों फ्रैंड्स बन गए. वाट्सऐप और फेसबुक से भी उसे बोरियत होने लगी तो उस ने इंस्टाग्राम पर भी एकाउंट खोल लिया.
इंस्टाग्राम पर वह कभीकभार अपनी तसवीरें शेयर करती थी, लेकिन जब भी करती थी तब उसे मयंक साहू नाम के युवक से जरूर लाइक और कमेंट मिलता था. इस से रंजना की उत्सुकता उस के प्रति बढ़ी और जल्द ही दोनों में हायहैलो होने लगी. यही हालहैलो होतेहोते दोनों में दोस्ती भी हो गई. बातचीत में मयंक उसे शरीफ घर का महसूस हुआ तो शिष्टाचार और सम्मान का पूरा ध्यान रखता था. दूसरे लड़कों की तरह उस ने उसे प्रपोज नहीं किया था.
मयंक बुनने लगा जाल
20 साल की हो जाने के बाद भी रंजना ने कोई बौयफ्रैंड नहीं बनाया था, लेकिन जाने क्यों मयंक की दोस्ती की पेशकश वह कुबूल कर बैठी, जो हौस्टल के रूम से बाहर जा कर भी विस्तार लेने लगी. मेलमुलाकातों और बातचीत में रंजना को मयंक में किसीतरह का हलकापन नजर नहीं आया. नतीजतन उस के प्रति उस का विश्वास बढ़ता गया और यह धारणा भी खंडित होने लगी कि सभी लड़के छिछोरे टाइप के होते हैं.
मयंक भी जबलपुर के नजदीक गाडरवारा कस्बे से आया था. यह इलाका अरहर की पैदावार के लिए देश भर में मशहूर है. बातों ही बातों में मयंक ने उसे बताया था कि पढ़ाई के साथसाथ वह एक कंपनी में पार्टटाइम जौब भी करता है, जिस से अपनी पढ़ाई का खर्च खुद उठा सके.
अपने इस बौयफ्रैंड का यह स्वाभिमान भी रंजना को रिझा गया था. कैंट इलाके में किराए के कमरे में रहने वाला मयंक कैसे रंजना के इर्दगिर्द जाल बुन रहा था, इस की उसे भनक तक नहीं लगी.
दोस्ती की राह में फूंकफूंक कर कदम रखने वाली रंजना को यह बताने वाला कोई नहीं था कि कभीकभी यूं ही चलतेचलते भी कदम लड़खड़ा जाते हैं. इसी साल होली के दिनों में मयंक ने रंजना को अपने कमरे पर बुलाया तो वह मना नहीं कर पाई.
उस दिन को रंजना शायद ही कभी भूल पाए, जब वह आगेपीछे का बिना कुछ सोचे मयंक के रूम पर चली गई थी. मयंक ने उस का हार्दिक स्वागत किया और दोनों इधरउधर की बातों में मशगूल हो गए. थोड़ी देर बाद मयंक ने उसे कोल्डड्रिंक औफर किया तो रंजना ने सहजता से पी ली.
रंजना को यह पता नहीं चला कि कोल्डड्रिंक में कोई नशीली चीज मिली हुई है, लिहाजा धीरेधीरे वह होश खोती गई और थोड़ी देर बाद बेसुध हो कर बिस्तर पर लुढ़क गई. मयंक हिंदी फिल्मों के विलेन की तरह इसी क्षण का इंतजार कर रहा था. शातिर शिकारी की तरह उस ने रंजना के कपड़े एकएक कर उतारे और फिर उस के संगमरमरी जिस्म पर छा गया.
कुछ देर बाद जब रंजना को होश आया तो उसे महसूस हुआ कि कुछ गड़बड़ हुई है. पर क्या हुई है, यह उसे तब समझ में नहीं आया. मयंक ने ऐसा कुछ जाहिर नहीं किया, जिस से उसे लगे कि थोड़ी देर पहले ही उस का दोस्त उसे कली से फूल और लड़की से औरत बना चुका है. दर्द को दबाते हुए लड़खड़ाती रंजना वापस हौस्टल आ कर सो गई.
कुछ दिन ठीकठाक गुजरे, लेकिन जल्द ही मयंक ने अपनी असलियत उजागर कर दी. उस ने एक दिन जब ‘उस दिन’ का वीडियो और तसवीरें रंजना को दिखाईं तो उसे अपने पैरों के नीचे से जमीन खिसकती नजर आई. खुद की ऐसी वीडियो और फोटो देख कर शरीफ और इज्जतदार घर की कोई लड़की शर्म से जमीन में धंस जाने की दुआ मांगने लगती. ऐसा ही कुछ रंजना के साथ हुआ.
दोस्त नहीं, वह निकला ब्लैकमेलर
वह रोई, गिड़गिड़ाई, मयंक के पैरों में लिपट गई कि वह यह सब वीडियो और फोटो डिलीट कर दे. लेकिन मयंक पर उस के रोनेगिड़गिड़ाने का कोई असर नहीं हुआ. तुम आखिर चाहते क्या हो, थकहार कर उस ने सवाल किया तो जवाब में ऐसा लगा मानो सैकड़ों प्राण, अजीत, रंजीत, प्रेम चोपड़ा और शक्ति कपूर धूर्तता से मुसकरा कर कह रहे हों कि हर चीज की एक कीमत होती है जानेमन.
यह कीमत थी मयंक के साथ फिर वही सब अपनी मरजी से करना जो उस दिन हुआ था. इस के अलावा उसे पैसे भी देने थे. अब रंजना को समझ आया कि उस का दोस्त या आशिक जो भी था, ब्लैकमेलिंग पर उतारू हो आया है और उस की बात न मानने का खामियाजा क्याक्या हो सकता है, इस का अंदाजा भी वह लगा चुकी थी.
मरती क्या न करती की तर्ज पर रंजना ने उस की शर्तें मानते हुए उसे शरीर के साथसाथ 10 हजार रुपए भी दे दिए. लेकिन उस ने उस की तसवीरें और वीडियो डिलीट नहीं किए. उलटे अब वह रंजना को कभी भी अपने कमरे पर बुला कर मनमानी करने लगा था. साथ ही वह उस से पैसे भी झटकने लगा था.
रंजना चूंकि जरूरत से ज्यादा झूठ बोल कर मम्मीपापा से पैसे नहीं मांग सकती थी, इसलिए एक बार तो उस ने मम्मी की सोने की चेन चुरा कर ही मयंक को दे दी.
रंजना 3 महीने तक तो चुपचाप मयंक की हवस पूरी कर के उसे पैसे भी देती रही, लेकिन अब उसे लगने लगा था कि वह एक ऐसे चक्रव्यूह में फंस गई है, जिस से निकलना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है. ऐसे में उस ने अपनी जिंदगी खत्म करने का फैसला ले लिया.
नेहा अगर वक्त रहते न बचाती तो वह अपने फैसले पर अमल भी कर चुकी होती. लेकिन नेहा ने उसे न केवल बचा लिया, बल्कि मयंक को भी उस के किए का सबक सिखा डाला.
नेहा ने कोड रेड पुलिस टीम को इस ब्लैकमेलिंग के बारे में जब विस्तार से बताया तो टीम ने रंजना को कुछ इस तरह समझाया कि वह आश्वस्त हो गई कि उस की पहचान भी उजागर नहीं होगी और वे फोटो व वीडियो भी हमेशा के लिए डिलीट हो जाएंगे. साथ ही मयंक को उस के जुर्म की सजा भी मिलेगी.
कोड रेड की इंचार्ज एसआई माधुरी वासनिक ने रंजना को पूरी योजना बताई, जिस से मय सबूतों के उसे रंगेहाथों धरा जा सके. इतनी बातचीत के बाद रंजना का खोया आत्मविश्वास भी लौटने लगा था.
योजना के मुताबिक फुल ऐंड फाइनल सेटलमेंट के लिए 26 अप्रैल को रंजना ने मयंक को भंवरताल इलाके में बुलाया. सौदा 20 हजार रुपए में तय हुआ. उस वक्त सुबह के कोई 6 बजे थे, जब मयंक पैसे लेने आया. कोड रेड के अधिकारी पहले ही सादे कपड़ों में चारों तरफ फैल गए थे.
माधुरी वासनिक फोन पर रंजना के संपर्क में थीं. जैसे ही मयंक रंजना के पास पहुंचा तो पुलिस वालों ने उसे चारों तरफ से घेर लिया. शुरू में तो वह माजरा समझ ही नहीं पाया और दादागिरी दिखाने लगा. लेकिन जैसे ही उसे पता चला कि सादा लिबास में ये लोग पुलिस वाले हैं तो उस के होश फाख्ता हो गए. जल्द ही वह सच सामने आ गया जो मयंक के कैमरे में कैद था.
मयंक का मोबाइल देखने के बाद जब इस बात की पुष्टि हो गई कि रंजना वाकई ब्लैकमेल हो रही थी तो बहुत देर से उस का इंतजार कर रहे पुलिस वालों ने उस की सड़क पर ही तबीयत से धुनाई कर डाली. पुलिस ने उसे कई तमाचे रंजना से भी पड़वाए, जिन्हें मारते वक्त उस के चेहरे पर प्रतिशोध के भाव साफसाफ दिख रहे थे.
तमाशा देख कर भीड़ इकट्ठी होने लगी तो पुलिस वाले मयंक को जीप में बैठा कर थाने ले गए और उस पर बलात्कार और ब्लैकमेलिंग का मामला दर्ज कर के उसे हवालात भेज दिया.
फिल्म अभी बाकी है
ब्लैकमेलिंग की एक कहानी का यह सुखद अंत हर उस लड़की के नसीब में नहीं होता जो किसी मयंक के जाल में फंसी छटपटा रही होती है और थकहार कर खुदकुशी करने के अलावा उसे कोई रास्ता नजर नहीं आता.
इस मामले से यह तो सबक मिलता है कि लड़कियां अगर हिम्मत से काम लें और पुलिस वालों के साथसाथ घर वालों को भी सच बता दें, तो बड़ी मुसीबत से बच सकती हैं. नेहा की दिलेरी और समझ रंजना के काम आई, इस से लगता है कि सहेलियों को भी भरोसे में ले कर ब्लैकमेलरों को सबक सिखाया जा सकता है.
ऐसी हालत में आत्महत्या करना समस्या का समाधान नहीं है. समाधान है ब्लैकमेलर्स को उन की मंजिल हवालात और अदालत का रास्ता दिखाना. मगर इस के पहले यह भी जरूरी है कि अकेले रह रहे लड़कों पर भरोसा कर के उन से अकेले में न मिला जाए.
इस पर पुलिस की तीनों टीमों ने 27 सितंबर की रात को सेक्टर 41 के आई ब्लौक में प्लौट नंबर 64 पर बने ओयो होटल को चारों तरफ से घेर कर छापा मारा. एकएक कमरे की तलाशी ली गई तो पुलिस कमरा नंबर 203 में बंधक बना कर रखे गए अजय प्रताप तक पहुंच गई.
उन के कमरे में 3 लोग मिले, जिन में से एक राकेश कुमार उर्फ रिंकू फौजी निवासी गांव चेहडका, जिला भिवाड़ी, राजस्थान था. दूसरा युवक दीपक पुत्र राजेश कुमार भी इसी गांव का रहने वाला था, जबकि इसी कमरे में एक महिला सुनीता गुर्जर उर्फ बबली मिली जो आगाहपुर गांव में सेक्टर 41 की ही रहने वाली थी.
पुलिस ने अचानक उस कमरे में धड़ाधड़ प्रवेश किया और अजय प्रताप को अपने कब्जे में ले लिया. साथ ही कमरे में मौजूद तीनों लोगों को हिरासत में लिया तो सुनीता गुर्जर उर्फ बबली भड़क उठी. उस ने पुलिस को हड़काना शुरू कर दिया, ‘‘औफिसर, इस बदतमीजी की वजह जान सकती हूं?’’
‘‘मैडम, बदतमीजी की वजह आप को पता होगी, फिर भी हम थाने चल कर इस की असली वजह बताएंगे.’’ रणविजय सिंह ने जवाब दिया.
जब पुलिस ने उन्हें बताया कि उन्हें अजय प्रताप का अपहरण कर फिरौती मांगने के आरोप में गिरफ्तार किया जा रहा है तो सुनीता गुर्जर फिर भड़क उठी. उस ने अधिकारियों को धमकाते हुए बताया कि वह बीजेपी की नेता और सोशल वर्कर है. उन की इस गलती की सजा अभी दिलवाएगी.
इस के बाद उस ने कुछ लोगों को फोन किया और फोन करने के बाद धमकी दी कि अभी देखो, थोड़ी देर में तुम को तुम्हारे बाप लोग फोन करेंगे तो देखना तुम कैसे छोड़ोगे.
एडिशनल डीसीपी रणविजय सिंह ने अपनी पुलिस की नौकरी में ऐसे बहुत से छुटभैए नेता देखे थे जो किसी अपराध में पकडे़ जाने पर पुलिस को ऐसी गीदड़भभकियां देते हैं. उन्हें इस बात का भी इल्म था कि कई बार पुलिस ऐसी धमकियों के प्रभाव में आ कर ऐसे लोगों को छोड़ देती है. लेकिन यह मामला जिस तरह का था, उसे देखने के बाद रणविजय सिंह किसी धमकी में नहीं आए और सभी को हिरासत में ले कर पुलिस थाना सेक्टर 49 लौट आए.
पुलिस टीम अपहृत अजय प्रताप सिंह की होंडा सिटी कार के साथ होटल के रजिस्टर तथा होटल के सीसीटीवी कैमरों की डीवीआर भी साथ ले आए.
कैसे फंसे अजय
जब पुलिस ने थाने आ कर थोड़ी सी सख्ती बरती और आरोपियों को सुषमा वर्मा से की गई बातचीत की काल रिकार्डिंग तथा उन के फोन की काल डिटेल्स दिखा कर पुख्ता सबूत सामने रखे तो आरोपियों ने अपना गुनाह कबूल कर लिया और खुलासा किया कि उन्होंने अपने 2 फरार साथियों के साथ मिल कर अजय प्रताप को हनीट्रैप में फंसाया था और उन से मोटी फिरौती वसूलने की योजना थी.
अजय प्रताप ने बताया कि उन्होंने गूगल पर मसाज कराने वाले किसी पार्लर का नंबर सर्च किया था, जिस के बाद उन्हें जस्ट डायल पर नोएडा में मसाज कराने वाला एक नंबर हासिल हुआ. उन्होंने उस नंबर पर फोन किया था.
26 सितंबर को शाम 4 बजे अजय ने जब मसाज सेवा देने वाले उस पार्लर के नंबर पर बात की तो दूसरी तरफ से बात करने वाले ने बताया कि उन के पास एक से एक खूबसूरत लड़कियां है जो सिर्फ मसाज ही नहीं करती बल्कि जिस्म की भूख भी मिटाती हैं.
फोन करने वाले ने इतना प्रलोभन दिया कि अजय प्रताप का मन मचलने लगा. उन्होंने उसी वक्त मसाज कराने का इरादा कर लिया, जब फोन करने वाले ने उन्हें वाट्सऐप पर उन लड़कियों की फोटो भेजीं, जिन में से किसी से भी वे मसाज करा सकते थे.
बस उन्हीं लडकियों की खूबसूरत और मादक तसवीरें देख कर अजय प्रताप घर का सामान लाने के बहाने कार ले घर से निकल पडे़. लेकिन घर से निकल कर जब उन्होंने मसाज वाले नंबर पर फोन कर के पूछा कि कहां आना है तो उन्हें लौजिक्स सिटी सेंटर बुलाया गया. वहां उन्हें दीपक नाम का शख्स मिला जो उन्हें सेक्टर 41 के आई ब्लाक में ओयो होटल पर ले आया.
शाम को 6 बजे जब वे होटल पहुंचे तो वहां उन की गाड़ी पार्किंग में खड़ी करवा कर इसी होटल के रूम नंबर 203 में ले जाया गया, जहां पहले से ही राकेश फौजी उर्फ रिंकू और बरौला नोएडा के 48बी में रहने वाला अनिल शर्मा और सेक्टर 27 के मकान नंबर 618 में रहने वाला आदित्य मौजूद थे.
वहां पहुंचने के कुछ देर तक तो अजय प्रताप उन चारों से बात करते रहे. जब काफी वक्त गुजर गया और मसाज करने वाली लड़कियां नहीं आईं तो उन्होंने उन लड़कियों को बुलाने को कहा, जिन के फोटो उन्हें भेजे गए थे. उस के बाद अचानक उन चारों का गिरगिट की तरह रंग बदल गया.
उन लोगों ने अजय प्रताप को कुरसी से बांध दिया और धमकी देने लगे कि परिवार के होते हुए वह लड़कियों से मसाज के नाम पर अय्याशी करता है तो अजय प्रताप के होश उड़ गए. क्योंकि उन्हें सपने में गुमान नहीं था कि ऐसा भी हो सकता है.
होटल के कमरे में मौजूद चारों लोगों ने उन्हें धमकाना शुरू कर दिया कि वे थाने में फोन कर के पुलिस को बुलाएंगे और उसे पुलिस के हवाले कर देंगे.
उन्होंने अजय प्रताप की काल रिकौर्डिंग सुनवाई तो वे और ज्यादा डर गए. अपने ओहदे की संवेदनशीलता और पारिवारिक बदनामी के कारण वह उन के आगे हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाने लगे.
उसी वक्त उन में से किसी एक के फोन करने पर एक महिला ने आई, जिसे देख कर वे सभी मैम… मैम कह कर बात करने लगे. उस महिला के बारे में चारों ने बताया कि वह नोएडा क्राइम ब्रांच की इंसपेक्टर हैं और उसे पकड़ने के लिए आई हैं.
सुनीता ने खुद को इंसपेक्टर बता कर अजय प्रताप को धमकाना शुरू कर दिया और उन्हें आतंकित करने लगी कि जब वह गिरफ्तार हो कर अय्याशी के जुर्म में जेल जाएगा तो उस की ऐसी बदनामी होगी कि न उस का परिवार रहेगा, न ही नौकरी.
उमेश निराला कालेज में इंटरमीडिएट में पढ़ रहा था. उमेश और अनीता की मुलाकातें धीरेधीरे बढ़ती गईं और दोनों एकदूसरे को चाहने लगे. प्यार परवान चढ़ा तो उनके बीच की सारी दूरियां खत्म हो गईं.
उमेश और अनीता का अवैध रिश्ता आम हुआ तो अनीता के पिता को बड़ा दुख हुआ. उन्होंने बेटी को समझाया, घरपरिवार की इज्जत का वास्ता दिया, लेकिन अनीता की समझ में नहीं आया. वह तो आसमान में उड़ने लगी थी. उस ने उमेश के अलावा और भी कई बौयफ्रैंड बना लिए थे, जिन के साथ वह घूमतीफिरती और मौजमस्ती करती थी. अनीता की बदचलनी का असर उस की दोनों छोटी बहनों पर भी पड़ने लगा. वे भी उसी की राह पर चल पड़ी थीं.
अनीता के कदम बहके तो पिता को उस के ब्याह की चिंता सताने लगी. उन्होंने उस के हाथ पीले करने को स्वयं तो दौड़धूप शुरू की ही, नातेरिश्तेदारों से भी कह दिया कि वह अनीता के लिए कोई लड़का बताएं. एक रिश्तेदार के माध्यम से उन्हें एक लड़का पसंद आ गया. लड़के का नाम था राघवेंद्र कुमार शुक्ला.
राघवेंद्र के पिता अजय कुमार शुक्ला उन्नाव जिले के अचलगंज कस्बे के रहने वाले थे. उन के 3 बच्चों में राघवेंद्र सब से बड़ा था. वह पढ़ालिखा तो था किंतु बेरोजगार था. उस का मन खेती में नहीं लगता था और उसे नौकरी भी नहीं मिल रही थी. सो वह आवारा घूमता था. अनीता के पिता ने राघवेंद्र को देखा तो यह सोच कर उसे पसंद कर लिया कि पढ़ालिखा है. शरीर से भी स्वस्थ है, नौकरी आज नहीं तो कल मिल ही जाएगी.
देवनारायण ने राघवेंद्र के पिता अजय कुमार शुक्ला से उस के ब्याह की बात चलाई तो वह राजी हो गए. इस के बाद सन 2010 में अनीता की शादी राघवेंद्र के साथ हो गई.शादी के बाद अनीता ससुराल आई तो सभी ने उस के रूप की तारीफ की. राघवेंद्र भी सुंदर पत्नी पा कर इतरा उठा. सब खुश थे पर अनीता खुश नहीं थी. उसे एक तो बेरोजगार पति मिला था, दूसरे उस की स्वच्छंदता पर प्रतिबंध लग गया था. इसलिए वह परेशान रहती थी. घर से बाहर आनेजाने को ले कर उस की तूतूमैंमैं पति से भी होती थी और सासससुर से भी.
अनीता ने जैसेतैसे 3 साल ससुराल में बिताए. इस बीच वह एक बेटे की मां भी बनी. उस के बाद अनीता को ले कर घर में कलह होने लगी. दरअसल, अनीता ने शादी के पहले के अपने प्रेमियों के साथ घूमनाफिरना शुरू कर दिया था. उन के साथ वह बहाने से उन्नाव तो कभी बदरका घूमने निकल जाती थी. राघवेंद्र तथा उस के परिवार से यह बात अधिक दिनों तक छिपी नहीं रही.
वह समझ गए कि अनीता बदचलन है. राघवेंद्र ने पत्नी पर अंकुश लगाना चाहा तो वह पति को ही आंखें दिखाने लगी, ‘‘ज्यादा टोकाटाकी की तो थाने जा कर घरेलू हिंसा और दहेज उत्पीड़न की रिपोर्ट दर्ज करा दूंगी. सभी जेल में दिखाई दोगे. इज्जत नीलाम होगी अलग से.’’धमकी से डर कर राघवेंद्र ने अनीता को उस की मरजी और हाल पर छोड़ दिया. अनीता ने पति को तो दबाव में ले लिया पर ससुराल वालों को नहीं दबा सकी. वह घर में ऐसी औरत को भला कैसे बरदाश्त करते जो बदचलन हो.
लिहाजा सब मिल कर उसे घर से निकालने पर तुल गए.अनीता जानती थी कि अकेली औरत कटी पतंग की तरह होती है. नाम के लिए ही सही, लेकिन पुरुष साथ हो तो वह अनेक मुसीबतों से सुरक्षित रहती है. अपनी इसी सोच के तहत अनीता घर से तो निकली पर पति को भी साथ ले गई. अनीता पति के साथ कानपुर आ गई और किदवईनगर में किराए का कमरा ले कर रहने लगी. वहां राघवेंद्र दादानगर स्थित एक फैक्ट्री में नौकरी करने लगा. अनीता ने भी नौकरी ढूंढ ली और काम पर जाने लगी.
छोटीछोटी उन नौकरियों में वेतन भी मामूली था और मेहनत अधिक थी. अत: आमदनी बढ़ाने के लिए अनीता ने किसी दूसरे काम की तलाश शुरू कर दी. इसी तलाश में अनीता एक कालगर्ल रैकेट की सरगना से जा टकराई. सरगना ने जौब दिलाने का झांसा दे कर अनीता को अपने जाल में फंसाया और फिर देहव्यापार के धंधे में उतार दिया. अनीता खूबसूरत और जवान थी. उस की डिमांड अधिक होती थी, अत: वह खूब पैसे कमाने लगी.राघवेंद्र प्राइवेट नौकरी करता रहा और अनीता देहव्यापार के गंदे तालाब की मछली बनी रही. हालांकि राघवेंद्र को पत्नी का धंधा कतई पसंद नहीं था, मगर वह उसे रोक नहीं पाता था. जब भी अनीता से कुछ कहता तो वह उसे डराधमका कर चुप रहने को विवश कर देती थी. तब राघवेंद्र खून का घूंट पी कर रह जाता.
अनीता ने जब जिस्मफरोशी के धंधे के सभी गुर सीख लिए तो उस ने अपना अलग रैकेट बना लिया. उस के रैकेट में पेशेवर कालगर्ल्स थीं. इस के अलावा वह अपने स्तर से नई कालगर्ल भी तैयार करती थी. इस के लिए अनीता गरीब मजबूर व सुंदर लड़कियों को टारगेट करती. वह उन्हें रुपयों या फिर नौकरी दिलाने का लालच दे कर अपने जाल में फंसाती फिर देहव्यापार में उतार देती. शर्मनाक बात तो यह रही कि अनीता ने अपनी जवान व खूबसूरत सगी बहनों को भी देह के धंधे में उतार दिया. उन के पति ही उन की दलाली करने लगे.
अनीता घर में ही देहव्यापार करती थी. वह ग्राहक से फुल नाइट के 5 से 10 हजार रुपए लेती थी. जो ग्राहक कालगर्ल को बाहर ले जाना चाहते थे, उन्हें अतिरिक्त चार्ज देना पड़ता था. कालगर्ल का सारा खर्चा कस्टमर को ही देना पड़ता था.पुलिस के भय से अनीता किसी एक मकान में लंबे अरसे तक नहीं रहती थी. स्थानीय पुलिसकर्मियों से वह सांठगांठ बनाए रखती थी. 2019 के जनवरी महीने में अनीता ने चकेरी थाने के श्यामनगर क्षेत्र के रामपुरम में एक मकान 15 हजार रुपए महीने के किराए पर लिया. यह मकान अजय सिंह का था.
इसी किराए के मकान में अनीता अपना हाईप्रोफाइल सैक्स रैकेट का संचालन करने लगी थी. उस ने अपना दायरा भी बढ़ा लिया था. वह शहर के बाहर भी कालगर्ल्स भेजने लगी थी. अनीता ने शहर के बाहर कालगर्ल भेजने का 25 हजार रुपया तय कर रखा था. वह वाट्सऐप, फेसबुक के जरिए भी ग्राहकों को युवतियों की फोटो भेज कर सौदा तय करती थी और ग्राहकों की डिमांड पर दूसरे शहरों से भी कालगर्ल्स बुलाती थी.बड़े शहरों के जिस्मफरोशी के दलाल उस के संपर्क में थे. अनीता का पति राघवेंद्र भी अब पत्नी के अनैतिक धंधे में शामिल हो गया था. पैसों का लेनदेन वही करने लगा था.
रामपुरम में अनीता का धंधा खूब फलफूल रहा था कि पड़ोसियों की नजर उस के धंधे पर पड़ गई. उन्होंने इस की जानकारी आईजी मोहित अग्रवाल को दी और उस के सैक्स रैकेट का भंडाफोड़ हो गया.
पुलिस छापे में पकड़ी गई अंकिता, अनीता की सगी बहन थी. वह अपने पति आशुतोष झा के साथ नौबस्ता थाना क्षेत्र के पशुपतिनगर में रहती थी. वहीं पर एक मंदिर में दोनों की मुलाकात हुई, जो बाद में प्यार में बदल गई. तब अंकिता ने आशुतोष के साथ प्रेम विवाह किया था. आशुतोष मधुबनी, बिहार का रहने वाला था.आशुतोष से शादी करने के बाद अंकिता पशुपतिनगर में रहने लगी. आशुतोष प्राइवेट नौकरी करता था. इस नौकरी से वह न तो अपनी जरूरतें पूरी कर पाता था और न ही अंकिता की ख्वाहिशें. 2-3 सालों में ही प्यार का नशा उतर गया था और वे दोनों आर्थिक परेशानी से जूझने लगे थे. अंकिता सदैव चिंताग्रस्त रहने लगी थी.
रात को करीब 10 बजे अजय का अपहरण करने वालों से सुषमा की ये आखिरी बात थी. इसी के बाद से सुषमा की जान गले में अटकी थी और वह पूरी रात बेचैनी से घर के भीतर टहलती रही. उसे बारबार लग रहा था कि कहीं कोई वाकई उस की एकएक गतिविधि पर नजर तो नहीं रख रहा.
सोचते-सोचते रात आंखोंआंखों में बीत गई. आखिरकार सुषमा ने सुबह अपने पति के बौस को फोन कर के सारी बात बताई. उन्होंने कहा कि वह घर में रहें, कुछ ही देर में पुलिस पहुंच जाएगी.
ठीक वैसा ही हुआ, जैसा अजय के बौस ने कहा था. सुषमा का घर जिस इलाके में है, वह सैंट्रल नोएडा पुलिस के अंडर में आता है. कुछ ही देर में उस के घर की डोरबैल बजी, उस ने दरवाजा खोला तो सादे लिबास में नोएडा पुलिस के एडीशनल कमिश्नर लव कुमार, सैंट्रल नोएडा पुलिस डीसीपी राजेश कुमार सिंह, एडीशनल कमिश्नर रणविजय सिंह, एसीपी विमल कुमार सिंह और सेक्टर 49 थाने के एसओ सुधीर कुमार सिंह सामने खड़े थे.
दरअसल, सुषमा ने जब अपने पति के बौस को अजय के किडनैप होने की जानकारी और इस की एवज में फिरौती मांगने की बात बताई तो डीआरडीओ की तरफ से नोएडा के कमिश्नर आलोक सिंह को फोन कर के इस मामले में गोपनीय ढंग से काम कर के जल्द से जल्द अजय प्रताप सिंह को अपहर्त्ताओं के कब्जे से मुक्त कराने को कहा गया.
डीआरडीओ का एक्शन
डीआरडीओ देश के सुरक्षा उपकरणों व प्रतिष्ठानों से जुड़ा ऐसा संगठन है जो रक्षा मंत्रालय के अधीन काम करता है. अजय प्रताप सिंह इसी संस्था से जुड़े वैज्ञानिक थे. उन के पास संस्था से जुड़ी संवेदनशील जानकारियां भी रहती थीं.
इसलिए जैसे ही पुलिस कमिश्नर को यह जानकारी मिली, उन्होंने एडिशनल कमिश्नर लव कुमार को सारी जानकारी दे कर बेहद गोपनीय ढंग से अजय प्रताप को अपहर्त्ताओं के कब्जे से मुक्त कराने का औपरेशन शुरू करने का आदेश दिया.
इस के बाद लव कुमार ने तड़के ही तमाम अधिकारियों की आपात बैठक बुलाई और सभी अफसरों को सादे कपड़ों में अजय प्रताप के घर पहुंचने को कहा.
अधिकारियों ने अपना परिचय देने के बाद जब सुषमा से अजय प्रताप सिंह के अपहरण से जुड़ी सारी जानकारियां मांगी तो उन्होंने वह पूरा घटनाक्रम बयान कर दिया, जो अब तक हुआ था.
पुलिस ने सुषमा से वे दोनों नंबर हासिल कर लिए, जिन पर पहले पति अजय प्रताप से बात हुई थी और दूसरी बार अपहर्त्ता ने फोन कर के रकम की मांग की थी. सुषमा वर्मा से पुलिस ने एक लिखित शिकायत भी ले ली. सादे लिबास में पुलिस के कुछ लोगों और महिला पुलिस की कुछ तेजतर्रार पुलिसकर्मियों को सुषमा के पास छोड़ कर पुलिस टीम वापस लौट गई.
सुषमा की शिकायत पर उसी दिन थाना 49 पर भादंसं की धारा 364ए के तहत फिरौती के लिए अपहरण का मामला दर्ज कर लिया गया.
डीसीपी राजेश कुमार सिंह ने एडिशनल डीसीपी रणविजय सिंह की निगरानी में एक विशेष टीम का गठन कर दिया. एसीपी विमल कुमार सिंह के नेतृत्व में गठित इस टीम में थाना सेक्टर 49 के थानाप्रभारी सुधीर कुमार सिंह के अलावा एसआई विकास कुमार, महिला एसआई प्रीति मलिक, हैड कांस्टेबल प्रभात कुमार, जय विजय, कांस्टेबल सुबोध कुमार, सुदीप कुमार,अंकित पंवार और महिला कांस्टेबल रेनू यादव को शामिल किया गया.
इस के अलावा दूसरी स्टार टू टीम के एसआई शावेज खान तथा जोन फर्स्ट की सर्विलांस टीम के एसआई नवशीष कुमार को शामिल किया गया.
सभी टीमों को बता दिया गया था कि मामला बेहद संवेदनशील है, इसलिए बिना विलंब किए और बिना किसी को भनक लगे सावधानी से औपरेशन को अंजाम देना है.
गठित की गई टीमों में काम का बंटवारा कर दिया गया कि किसे इस औपरेशन में क्या भूमिका निभानी है.
एडिशनल डीसीपी रणविजय सिंह ने गठित की गई टीमों के साथ कोऔर्डिनेशन का जिम्मा खुद संभाला लिया. सर्विलांस टीम ने सुषमा वर्मा से मिले दोनों मोबाइल नंबरों के साथ अजय प्रताप सिंह के नंबर की काल डिटेल्स निकाली और तीनों नंबरों को सर्विलांस पर लगा कर निगरानी शुरू कर दी.
स्टार टू की टीम ने फिरौती के लिए अपहरण करने वाले बदमाशों की धरपकड़ और उन के ठिकानों पर छापेमारी का काम शुरू कर दिया. जबकि इस मामले के जांच अधिकारी थानाप्रभारी सुधीर कुमार सिंह ने अपने थाने की टीम के साथ सर्विलांस टीम से मिल रही जानकारी के आधार पर धरपकड़ शुरू कर दी.
सर्विलांस टीम को पता चला कि शाम को 5 बजे के बाद जब अजय प्रताप सिंह का फोन बंद हुआ था, तो उस से पहले उन्होंने आखिरी बार 3 नंबरों पर बात की थी. उन सभी नंबरों की लोकेशन सेक्टर 41 में आगाहपुर के पास बने ओयो होटल की पाई गई. इतना ही नहीं, फोन बंद होते समय अजय प्रताप के फोन की लोकेशन भी पुलिस को इसी होटल की मिली.
पुलिस को मिली राह
जानकारी बेहद महत्त्वपूर्ण थी, लेकिन इस पर ठोस काररवाई करने से पहले अधिकारी यह पुष्टि कर लेना चाहते थे कि उक्त होटल से अपहरण करने वालों का कोई वास्ता है या नहीं. क्योंकि अगर सर्विलांस के आधार पर वहां छापा मारा जाता और अजय प्रताप नहीं मिलते तो उन की जान को खतरा हो सकता था.
लिहाजा अधिकारियों ने एसओ सुधीर कुमार की टीम के एक तेजतर्रार हैड कांस्टेबल जय विजय सिंह को फरजी ग्राहक बना कर ओयो होटल भेजा. जय विजय सिंह ने सेक्टर 41 के ओयो होटल में पहुंच कर वहां एक कमरा बुक कराया और खुद को काम के सिलसिले में पूर्वी उत्तर प्रदेश से आया हुआ बताया.
कमरा बुक करने के बाद जब जय विजय ने होटल में चल रही गतिविधियों की निगरानी शुरू की तो दूसरी मंजिल पर बने 2 कमरों के आसपास कुछ संदिग्ध गतिविधियां दिखीं.
जय विजय ने होटल की पार्किंग की छानबीन की तो वहां अजय प्रताप सिंह की वह होंडा सिटी कार भी खड़ी दिखाई दी, जिस का नंबर सुषमा वर्मा से मिला था.
जय विजय को जब यकीन हो गया कि हो न हो अजय प्रताप को ओयो होटल के अंदर ही छिपाकर रखा गया है तो उस ने अधिकारियों को सूचना दे दी.
सूचना पा कर थानेदार बृजेश शुक्ल पुलिस टीम के साथ अस्पताल पहुंच गए. रागिनी की हत्या की सूचना मिलते ही गांव वाले और जितेंद्र दूबे के जानने वाले अस्पताल पहुंचने लगे. उन का गुस्सा पुलिस वालों पर निकल रहा था. वे पुलिस मुर्दाबाद के नारे लगा रहे थे.
स्थिति को संभाल पाना पुलिस वालों के लिए मुश्किल हो रहा था. जैसेतैसे स्थिति पर काबू पाया जा सका. भीड़ को अलग कर के पुलिस ने कानूनी काररवाई शुरू कर दी. सब से पहले उन्होंने लाश का मुआयना किया. हत्यारों ने रागिनी के गले पर चाकू से वार कर के उसे मौत के घाट उतारा था.
थानेदार शुक्ल ने शव का पंचनामा भर कर उसे पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया. उस के बाद एकमात्र चश्मदीद गवाह सिया से हत्यारों के बारे में पूछताछ की. सिया हत्यारों को पहचाती थी. उस ने थानेदार को उन के बारे में सब कुछ बता दिया.
हत्यारे बजहां गांव के रहने वाले ग्राम प्रधान कृपाशंकर तिवारी का बेटा आदित्य तिवारी उर्फ प्रिंस, भतीजे सोनू तिवारी, नीरज तिवारी और दीपू यादव थे. चाकू से वार प्रिंस ने किया था और उस की मदद सोनू, नीरज और दीपू ने की थी.
सिया ने जो बयान पुलिस को दिया उस के अनुसार मामला कुछ इस तरह था. प्रधान का बेटा प्रिंस सालों से रागिनी को तंग कर रहा था. वह रागिनी से तथाकथित एकतरफा प्रेम करता था, लेकिन रागिनी उसे पसंद नहीं करती थी. रागिनी ने प्रिंस की हरकतों पर कोई तवज्जो नहीं दी, तो वह ओछी हरकतों पर उतर आया. वह रागिनी को रास्ते में आतेजाते छेड़ने लगा.
वह भद्देभद्दे कमेंट करता था. लेकिन रागिनी ने उसे पलट कर जवाब नहीं दिया. वह उस की हरकतों को बरदाश्त करती रही. पर जब पानी सिर के ऊपर से गुजरने लगा तो उस ने अपने घर वालों को प्रिंस की हरकतों के बारे में बता दिया.
बेटी की परेशानी सुन कर जितेंद्र को दुख भी हुआ और क्रोध भी आया. बात बेटी के मानसम्मान से जुड़ी थी. वह इतनी बड़ी बात को नजरअंदाज नहीं कर सकते थे. जितेंद्र उसी समय शिकायत ले कर ग्रामप्रधान कृपाशंकर तिवारी के घर जा पहुंचे.
कृपाशंकर घर पर ही मिल गया. जितेंद्र दूबे ने उस के बेटे की ओछी हरकतों का पिटारा उस के सामने खोल दिया. लेकिन प्रधान ने उन की शिकायत पर कोई ध्यान नहीं दिया, उलटे उन्हें ही डांटडपट कर वहां से भगा दिया. जितेंद्र अपना सा मुंह ले कर घर लौट आए.
जाहिर है इस का परिणाम उलटा ही निकलना था. शाम को आवारागर्दी कर के घर लौटे बेटे से कृपाशंकर ने पूछा कि बांसडीह के पंडित जितेंद्र तुम्हारी शिकायत ले कर आए थे. तुम उन की बेटी को आतेजाते छेड़ते हो, तंग करते हो.
इस पर प्रिंस ने सफाई दी कि यह सब झूठ है. मैं ने किसी के साथ कोई बदसलूकी नहीं की. मैं तो उस की बेटी को जानता तक नहीं, छेड़ने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता. पंडित मुझे बदनाम करने के लिए झूठ बोल रहा है.
उस समय प्रिंस ने पिता की आंखों में धूल झोंक कर खुद को बचा लिया. उस के पिता ने उस की बातों पर यकीन भी कर लिया. पैसे और ताकत के गुरूर में अंधे पिता को बेटे की करतूत दिखाई नहीं दी. इस के बाद प्रिंस को रागिनी मामूली सी लड़की लगने लगी.
गुस्से में उस ने रागिनी से बदला लेने की ठान ली. रागिनी ने यह बात अपने घर में क्यों बताई और उस का पिता जितेंद्र दूबे शिकायत ले कर उस के पिता के पास क्यों गया, दोनों ही बातें प्रिंस को कचोट रही थीं. आखिरकार प्रिंस ने वही किया, जो उस ने करने की ठान ली थी.
बहरहाल, थानेदार बृजेश शुक्ल ने जितेंद्र दूबे की तहरीर पर 5 नामजद आरोपियों आदित्य उर्फ प्रिंस, ग्रामप्रधान कृपाशंकर तिवारी, उन के दोनों भतीजों सोनू तिवारी व नीरज तिवारी तथा दीपू यादव के खिलाफ हत्या व छेड़छाड़ की धाराओं में मुकदमा दर्ज कर लिया.
मामला बेहद गंभीर और दिल दहला देने वाला था. दिनदहाड़े हुई घटना से पूरा इलाका थर्रा उठा था. एसपी सुजाता सिंह इस मामले को ले कर बेहद गंभीर थीं. उन्होंने अपराधियों को गिरफ्तार करने के सख्त आदेश दिए.
कप्तान का आदेश मिलते ही थानेदार बृजेश शुक्ल और उन की पुलिस टीम ने आरोपियों को गिरफ्तार करने के लिए कमर कस ली. फलस्वरूप जिले से सटे उन बाहरी इलाकों की चारों ओर से नाकाबंदी कर दी गई, जो दूसरे जिलों में जा कर खुलते थे.
अपराधियों को पकड़ने के लिए पुलिस मुस्तैद थी. जल्दी ही पुलिस को इस का लाभ भी मिल गया. बलिया से हो कर गोरखपुर जाने वाली रोड पर 2 आरोपी आदित्य तिवारी उर्फ प्रिंस और दीपू यादव उस समय पुलिस के हत्थे चढ़ गए जब वे जिला छोड़ कर गोरखपुर भाग रहे थे.
पुलिस दोनों गिरफ्तार अभियुक्तों को ले कर थाना बांसडीह रोड पहुंची और उन से रागिनी दूबे हत्याकांड की गहनता से पूछताछ की. पहले तो प्रधान के बेटे प्रिंस ने अपने पिता की ताकत की धौंस झाड़ी, अकड़ भी दिखाई, लेकिन पुलिस की अकड़ के सामने उस की अकड़ ढीली पड़ गई.
आखिरकार दोनों ने पुलिस के सामने अपने घुटने टेक दिए और अपना जुर्म कबूल कर लिया. बाकी के तीनों आरोपी मौके से फरार हो गए थे. यह 10 अगस्त, 2017 की बात है.
आदित्य तिवारी उर्फ प्रिंस और दीपू यादव से पुलिसिया पूछताछ और बयानों के आधार पर दिल दहला देने वाली घटना की जो कहानी सामने आई, वह मानव मन को झिंझोड़ देने वाली थी.
55 वर्षीय जितेंद्र दूबे मूलत: बलिया जिले के गांव बांसडीह के रहने वाले थे. उन का 6 सदस्यों का भरापूरा परिवार था. पतिपत्नी और 4 बच्चे, जिन में 3 बेटियां नेहा, रागिनी और सिया व 1 बेटा अमन था. जितेंद्र निजी व्यवसाय से अपने परिवार का भरणपोषण करते थे. उन का परिवार खुशहाल था और मजे से जी रहा था.
जितेंद्र दूबे ने अपने बच्चों में संस्कार, आदर्श और मानमर्यादा कूटकूट कर भरी थी. बांसडीह के लोग उन की बेटियों की मिसाल देते थे. उन की बेटियां न तो बेवजह किसी के घर उठतीबैठती थीं और न ही फालतू में गप्पें लड़ाती थीं.
अगले भाग में पढ़ें- प्रिंस को रागिनी को देखे बिना चैन नहीं मिलता था.
उस दिन जनवरी, 2020 की 5 तारीख थी. आईजी मोहित अग्रवाल अपने कार्यालय में कानपुर शहर की कानूनव्यवस्था पर पुलिस अधिकारियों के साथ मीटिंग कर रहे थे. दरअसल, नागरिकता कानून को ले कर शहर में धरनाप्रदर्शन जारी थे, जिस से शहर की कानूनव्यवस्था बिगड़ती जा रही थी. इस बिगड़ती कानूनव्यवस्था को सुधारने के लिए ही उन्होंने पुलिस अधिकारियों को बुलाया था ताकि शहर में कोई हिंसक प्रदर्शन न हो और अमनचैन कायम रहे.
दोपहर 12 बजे मीटिंग समाप्त होने के बाद आईजी मोहित अग्रवाल ने अपनी समस्या समाधान के लिए आए आगंतुकों से मिलना शुरू किया. इन्हीं आगंतुकों में अधेड़ उम्र के 2 व्यक्ति भी थे, जो आईजी साहब से मिलने आए थे. अपनी बारी आने पर वे दोनों आईजी साहब के कक्ष में पहुंचे और हाथ जोड़ कर अभिवादन किया.
आईजी साहब ने उन पर एक नजर डाली. कुरसी पर बैठने का संकेत किया. इस के बाद उन से पूछा, ‘‘आप लोगों का कैसे आगमन हुआ? बताइए, क्या समस्या है?’’ तभी उन में से एक ने कहा, ‘‘सर, हम चकेरी थाने के श्यामनगर मोहल्ले में रहते हैं. हमारे घर के पास अजय सिंह का आलीशान मकान है. उस मकान में वह खुद तो नहीं रहते लेकिन उन्होंने मकान किराए पर दे रखा है. मकान की पहली मंजिल पर 2 अफसर रहते हैं पर भूतल पर जो किराएदार है, उस की गतिविधियां बेहद संदिग्ध हैं. उस के घर पर अपरिचित युवकयुवतियों का आनाजाना लगा रहता है. हम लोगों को शक है कि वह किराएदार अपनी पत्नी के सहयोग से सैक्स रैकेट चलाता है.
‘‘सर, हम लोग इज्जतदार हैं. इन लोगों के आचारव्यवहार का असर हमारी बहूबेटियों पर पड़ सकता है. इसलिए आप से विनम्र निवेदन है कि इस मामले में उचित कानूनी काररवाई करने का कष्ट करें.’’आईजी मोहित अग्रवाल ने आगंतुकों की बात गौर से सुनी और फिर उन्हें आश्वासन दिया कि वह इस सूचना की जांच कराएंगे. अगर सूचना सही पाई गई तो दोषियों के खिलाफ काररवाई की जाएगी. ‘‘ठीक है, लेकिन सर हमारा नाम गुप्त रहना चाहिए वरना वे लोग हमारा जीना दूभर कर देंगे.’’ जाते समय उन में से एक बोला.आईजी मोहित अग्रवाल को आगंतुकों ने जो जानकारी दी थी, वह वाकई चौंकाने वाली थी. एकबारगी तो उन्हें उन की खबर पर विश्वास नहीं हुआ, पर इसे अविश्वसनीय समझना भी उचित नहीं था. अत: उन्होंने तत्काल एसपी (क्राइम) राजेश कुमार यादव को कार्यालय बुलवा लिया.
एसपी (क्राइम) राजेश कुमार यादव आईजी कार्यालय पहुंचे तो मोहित अग्रवाल ने उन्हें आगंतुकों द्वारा दी गई सूचना के बारे में बताया और कहा कि अगर सूचना की पुष्टि होती है तो दोषियों के खिलाफ जल्द काररवाई करें. एसपी (क्राइम) राजेश कुमार यादव ने चकेरी थानाप्रभारी रणजीत राय को इस गुप्त सूचना की सत्यता लगाने के निर्देश दिए, तो थानाप्रभारी ने मुखबिरों को लगा दिया.उसी दिन शाम 5 बजे मुखबिरों ने थानाप्रभारी रणजीत राय को इस बारे में जो जानकारी दी, उस ने सूचना की पुष्टि कर दी.
उन्होंने बताया कि श्यामनगर क्षेत्र के रामपुरम में एचएएल अफसर का एक मकान है, जिस की देखरेख उस का बेटा अजय सिंह करता है. इस मकान की पहली मंजिल पर पैरा मिलिट्री फोर्स के 2 अफसर रहते हैं. भूतल पर राघवेंद्र शुक्ला अपनी पत्नी अनीता के साथ रहता है. अनीता ही अपने पति के साथ मिल कर वहां सैक्स रैकेट का चलाती है. इस मकान में वह पिछले एक साल से रह रही है.
मुखबिरों से पुख्ता जानकारी मिलने की सूचना थानाप्रभारी ने तत्काल एसपी (क्राइम) राजेश कुमार यादव को दे दी. इस के बाद राजेश यादव ने सैक्स रैकेट का परदाफाश करने के लिए एक पुलिस टीम गठित की. इस टीम में उन्होंने सीओ (कलेक्टरगंज) श्वेता सिंह, थानाप्रभारी रणजीत राय, एसआई (क्राइम ब्रांच) डी.के. सिंह, अर्चना, कांस्टेबल अनूप कुमार, अनुज, मनोज, कविता, रीता आदि को शामिल किया.
5 जनवरी, 2020 को रात 8 बजे थानाप्रभारी रणजीत राय ने सीओ (कलेक्टरगंज) श्वेता सिंह के निर्देश पर अनीता शुक्ला के रामपुरम स्थित मकान पर छापा मारा. मकान के अंदर एक कमरे का दृश्य देख कर थानाप्रभारी वहीं ठिठक गए.
कमरे में एक महिला अर्धनग्न अवस्था में बिस्तर पर चित पड़ी थी. उस के साथ एक युवक कामक्रीड़ा में लीन था. पुलिस पर निगाह पड़ते ही युवकयुवती ने दरवाजे से भागने का प्रयास किया, पर दरवाजे पर खड़े पुलिसकर्मियों ने उन्हें दबोच लिया.दूसरे कमरे में 2 अन्य युवतियां सजीसंवरी बैठी थीं. शायद वे ग्राहक के आने के इंतजार में थीं. महिला दरोगा अर्चना ने उन्हें अपनी हिरासत में ले लिया. इसी समय 3 युवतियों तथा 2 युवकों ने मुख्य दरवाजे की ओर भागने का प्रयास किया, किंतु सीओ श्वेता सिंह व अन्य पुलिसकर्मियों ने उन्हें दबोच लिया.
इस तरह पुलिस छापे में सरगना सहित 6 युवतियां, 2 दलाल तथा एक ग्राहक पकड़ा गया. मकान की तलाशी ली गई तो वहां से कामवर्धक दवाएं, स्प्रे, कंडोम तथा अन्य आपत्तिजनक सामग्री के अलावा 4 मोबाइल फोन तथा कुछ नगदी भी बरामद हुई. पुलिस पकड़े गए युवकयुवतियों को थाना चकेरी ले आई.
जिस मकान में सैक्स रैकेट चलता था, उस का मालिक अजय सिंह था. संदेह के आधार पर पुलिस ने उसे भी थाने बुलवा लिया. अजय सिंह एक अफसर का बेटा था, अत: उसे छोड़ने के लिए थानाप्रभारी के पास रसूखदारों के फोन आने लगे.लेकिन इंसपेक्टर रणजीत राय ने जांचपड़ताल के बाद ही रिहा करने की बात कही. अजय सिंह ने भी स्वयं को निर्दोष बताया और कहा कि उस ने तो उन लोगों को मकान किराए पर दिया था. उसे सैक्स रैकेट की जानकारी नहीं थी.
सीओ श्वेता सिंह ने जिस्मफरोशी के आरोप में पकड़े गए युवकयुवतियों से पूछताछ की तो युवतियों ने अपना नाम अनीता शुक्ला, अंकिता झा, सरिता तिवारी, पूनम, नीलम तथा नेहा बताया. इन में अनीता शुक्ला सैक्स रैकेट की संचालिका थी. अंकिता तथा सरिता अनीता की सगी छोटी बहनें थीं. तीनों बहनें जिस्मफरोशी के धंधे में लिप्त थीं.युवकों ने अपने नाम राघवेंद्र शुक्ला, आशुतोष झा तथा सत्यम द्विवेदी बताए. इन में राघवेंद्र शुक्ला और आशुतोष झा सगे साढ़ू थे और अपनीअपनी पत्नियों के लिए दलाली करते थे. जबकि लालकुर्ती कैंट (कानपुर) का रहने वाला सत्यम द्विवेदी ग्राहक था.
चूंकि सैक्स रैकेट के सभी आरोपियों ने अपना जुर्म कबूल कर लिया था, अत: सीओ श्वेता सिंह ने स्वयं वादी बन कर अनैतिक देह व्यापार निवारण अधिनियम 1956 की धारा 3, 4, 5, 6, 7 के तहत अनीता शुक्ला, अंकिता झा, सरिता तिवारी, नीलम, पूनम, नेहा, राघवेंद्र शुक्ला, आशुतोष झा तथा सत्यम द्विवेदी के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी.इन सब से पुलिस ने जब पूछताछ की तो देह व्यापार में लिप्त युवतियों ने इस धंधे में आने की अपनी अलगअलग मजबूरी बताई.
कालगर्ल्स सरगना अनीता उन्नाव जिले के बेहटा गांव की निवासी थी. उस की 2 छोटी बहनें और थीं, जिन के नाम अंकिता तथा सरिता थे. इन 3 बहनों का एक इकलौता भाई भी था, जो बचपन में ही रूठ कर घर से चला गया था. वह दिल्ली में रहता है और दाईवाड़ा (नई सड़क) स्थित एक किताब की दुकान में काम करता है.अनीता खूबसूरत थी. उस ने जब जवानी की दहलीज पर कदम रखा तो उस के पैर डगमगा गए. उस का मन पढ़ाई में कम और प्यारमोहब्बत में ज्यादा रमने लगा. वह बीघापुर स्थित पार्वती इंटर कालेज में 10वीं में पढ़ती थी. कालेज आतेजाते ही उस की मुलाकात उमेश से हुई.
सदियों से अनचाही सी रवायत चली आ रही है कि धनदौलत और ताकत वाले अपने से कमतर लोगों को दबा कर रखते हैं और उन का मनमाना शोषण करते हैं. यह बात तब और घातक हो जाती है जब ऐसे लोग कमजोरों की बहूबेटियों पर नजरें जमाने लगते हैं. अमीर घर के आदित्य उर्फ प्रिंस द्वारा रागिनी की हत्या भी इसी सब की शृंखला थी. लेकिन कानून ने…
उस रोज सितंबर 2019 की 20 तारीख थी. बलिया के जिला एवं सत्र (विशेष) न्यायाधीश चंद्रभानु
सिंह को बलिया के बहुचर्चित रागिनी दूबे हत्याकांड में फैसला सुनाना था. दोनों पक्षों के वकीलों की दलीलें पूरी हो चुकी थीं. अभियुक्त कृपा शंकर तिवारी, आदित्य तिवारी उर्फ प्रिंस, नीरज तिवारी, सोनू तिवारी और दीपू यादव अदालत में मौजूद थे. उन के अलावा अदालत में फैसला सुनने वालों की भी भीड़ थी.
आखिरी दलीलों के बाद न्यायाधीश चंद्रभानु सिंह ने फैसला लिख कर सुरक्षित रख लिया था. जब उन्होंने फैसले की फाइल उठा कर सामने रखी तो अदालत में सन्नाटा छा गया.
न्यायाधीश चंद्रभानु सिंह ने अदालत में मौजूद पांचों अभियुक्तों पर उड़ती सी नजर डाल कर फैसला सुनाना शुरू किया, ‘अदालत में पेश किए गए तमाम सबूतों और 12 गवाहों की गवाहियों से पांचों अभियुक्त दोषी साबित हुए हैं. इसलिए यह अदालत दोषियों कृपाशंकर तिवारी, आदित्य तिवारी, नीरज तिवारी और सोनू तिवारी को उम्रकैद की सजा सुनाती है. उम्रकैद के साथसाथ इन चारों को 50-50 हजार का जुर्माना भी भरना होगा.’
एक पल रुक कर न्यायाधीश चंद्रभानु सिंह ने आगे कहा, ‘एक अभियुक्त दीपू यादव जो किशोर है का मामला अभी बाल न्यायालय में विचाराधीन है. पांचों मुजरिम जमानत पर चल रहे थे. तत्काल प्रभाव से पांचों के जमानत बांड निरस्त किए जाते हैं. अदालत 4 मुजरिमों को जेल भेजने का आदेश देती है. जबकि पांचवें दोषी दीपू यादव को बाल कारागर भेजा जाएगा.’
अदालत के आदेश का तत्काल पालन हुआ. पुलिस ने पांचों दोषियों को गिरफ्त में ले लिया, जिन में से कृपाशंकर तिवारी, आदित्य तिवारी, नीरज तिवारी और सोनू तिवारी को जिला कारागर भेज दिया गया, जबकि दीपू यादव को बालगृह भेजा गया.
जिस केस में इन लोगों को सजा सुनाई गई थी, वह 2 साल पहले 8 अगस्त, 2017 को हुआ था. उस दिन नाबालिग रागिनी दूबे के साथ जो कुछ हुआ वह दिल दहला देने वाला था. धनदौलत और गुरूर में अंधे बजहां ग्रामप्रधान कृपाशंकर तिवारी के बेटे आदित्य तिवारी उर्फ प्रिंस ने एकतरफा प्यार में अपने दोस्तों के साथ मिल कर नाबालिग रागिनी दूबे के साथ जो हैवानियत भरा खेल खेला था, उस से इंसानियत भी शरमा गई थी.
8 अगस्त, 2017 की सुबह रागिनी दूबे तैयार हो कर अपनी बहन सिया के साथ स्कूल जाने के लिए घर से निकली थी. इन बहनों का घर बलिया जिले की बांसडीह रोड थाने के अंतरगत आने वाले बांसडीह गांव में था. रागिनी और सिया सलेमपुर के भारतीय संस्कार स्कूल में पढ़ती थी. रागिनी 12वीं में थी और सिया 11वीं में.
दरअसल डर की वजह से रागिनी महीनों से स्कूल नहीं जा पाई थी. उसे बोर्ड की परीक्षा के फार्म के बारे में पता करना था कि फार्म कब भरा जाएगा. साथ ही गैरहाजिरी में छूटी पढ़ाई के बारे में भी जानना था. इसीलिए वह बहन के साथ स्कूल जा रही थी.
रागिनी और सिया अकसर पड़ोस के गांव बजहां के काली मंदिर के रास्ते से स्कूल जाती थीं. उस दिन भी वे बातें करती हुई उसी रास्ते स्कूल जा रही थीं. जब दोनों बहनें काली मंदिर के पास पहुंची, तो अचानक 2 बाइक आड़ेतिरछे उन के सामने आ कर खड़ी हो गईं. दोनों बाइकों पर 4 युवक सवार थे.
अचानक सामने आ कर रुकी बाइकों को देख रागिनी और सिया सकपका गईं, क्योंकि वे दोनों बाइकों से भिड़तेभिड़ते बची थीं.
उन युवकों की इस हरकत पर रागिनी को गुस्सा आया तो वह उन पर चिल्लाई, ‘‘दिखता नहीं है क्या तुम्हें? अंधे हो गए हो?’’
‘‘दिखता भी है और अंधा भी नहीं हूं. बोल, क्या कर लेगी?’’ गुरूर में डूबा युवक बाइक से उतरते हुए बोला, वह आदित्य तिवारी उर्फ प्रिंस था. उस ने आगे कहा, ‘‘जा तुझे जो करना है, कर लेना. मैं नहीं डरता. मैं यहां से नहीं हटूंगा.’’
‘‘देखो, शराफत से हमारा रास्ता छोड़ दो और हमें जाने दो.’’
‘‘अगर रास्ता नहीं छोड़ा तो क्या करोगी?’’ प्रिंस अकड़ते हुए बोला.
‘‘दीदी, क्यों बहस करती हो इन से. मां ने कहा था कि इन के मुंह मत लगना. इन के मुंह लगोगी तो कीचड़ के छींटे हम पर ही पड़ेंगे.’’ सिया ने रागिनी को समझाया.
‘‘देख, तेरी छोटी बहन कितनी समझदार है, कितनी समझदारी भरी बातें कर रही है.’’ प्रिंस ने रागिनी पर तंज कसा.
‘‘नहीं सिया नहीं, आज मैं रास्ता नहीं बदलूंगी और न ही इन कमीनों से डरूंगी. बहुत जी ली, इन चांडालों से डरडर के. इन कुत्तों ने मेरा जीना हराम कर रखा है. इन से जितना डरेंगे, ये हमें उतना ही डराएंगे. इन्हें इन की औकात दिखानी ही पड़ेगी.’’
‘‘ओ, झांसी की रानी.’’ प्रिंस गुर्राया, ‘‘किसे औकात दिखाएगी तू, मुझे. तुझे पता है किस से पंगा ले रही है. प्रधान कृपाशंकर तिवारी का बेटा हूं. प्रिंस नाम है मेरा. मिनटों में छठी का दूध याद दिला दूंगा. तेरी औकात क्या है कुतिया. मैं ने तुझे स्कूल जाने से मना किया था कि तू स्कूल नहीं जाएगी.’’
‘‘हां, तो.’’ रागिनी डरी नहीं बल्कि प्रिंस के सामने तन कर खड़ी हो गई, ‘‘तू होता कौन है, मुझे कहीं जाने से रोकने वाला?’’
‘‘दीदी, क्यों बेकार की बहस किए जा रही हो.’’ सिया बोली, ‘‘चलो यहां से.’’
‘‘नहीं सिया, तुम चुप रहो.’’ रागिनी ने सिया से कहा, ‘‘कहीं नहीं जाऊंगी यहां से. रोजाना मरमर के जीने से तो अच्छा है एक बार मर जाएं. मैं जिल्लत की जिंदगी नहीं जीना चाहती. इन दुष्टों को इन के किए की सजा मिलनी ही चाहिए.’’ रागिनी सिया पर चिल्लाई.
‘‘तूने दुष्ट किसे कहा कमीनी? ’’
‘‘तुझे, और किसे.’’
धीरेधीरे दोनों के बीच विवाद बढ़ता गया. बात बढ़ती देख प्रिंस के दोस्त अपनी बाइक से नीचे उतर आए और उस के पास जा खड़े हुए, सिया रागिनी को समझाने में लगी थी कि लड़कों से पंगा मत लो, यहां से चलो. लेकिन उस ने सिया की एक न सुनी.
गुस्से से लाल हुए प्रिंस ने आव देखा न ताव, रागिनी को जोर से धक्का मारा. वह लड़खड़ा कर जमीन पर जा गिरी. रागिनी अभी संभलने की कोशिश कर ही रही थी कि प्रिंस उस पर टूट पड़ा. प्रिंस को रागिनी से भिड़ता देख उस के तीनों साथी भी उस का साथ देने लगे.
सब ने मिल कर रागिनी को कब्जे में ले लिया. दोस्तों का साथ पा कर इंसान से हैवान बने प्रिंस ने कमर में खोंस कर रखे फलदार चाकू से रागिनी के गले पर ताबड़तोड़ वार कर के उसे मौत के घाट उतार दिया. इस के बाद चारों बाइक पर सवार हो कर भाग गए.
घटना इतनी अप्रत्याशित थी कि न तो रागिनी ही कुछ समझ पाई थी और न ही सिया. आंखों के सामने बहन की हत्या होते देख सिया के मुंह से दर्दनाक चींख निकल गई. उस की चीख इतनी तेज थी की गांव वाले घरों से बाहर निकल आए और उस ओर दौड़े, जिधर से चीखने की आवाज आई थी.
उन्होंने देखा एक लड़की खून से सनी जमीन पर मरी पड़ी थी. वहीं दूसरी लड़की उस के पास बैठी दहाड़ मार कर रो रही थी. गांव वालों को समझते देर नहीं लगी कि मृतका उस की बहन है.
दिन दहाड़े हुई इस लोमहर्षक घटना से लोग सन्न रह गए. उन्हें लगा कि वाकई बदमाशों के हौसले इतने बुलंद हो गए हैं कि उन्होंने राह चलते बहूबेटियों का जीना हराम कर दिया है. गांव वालों ने इस घटना की सूचना बांसडीह रोड थाने के थानाप्रभारी बृजेश शुक्ल को दे दी.
गांव वाले जानते थे कि मृतका का नाम रागिनी दूबे है. जो पास के गांव बांसडीह निवासी जितेंद्र दूबे की बेटी है. उन्होंने यह खबर जितेंद्र दूबे को भी दे दी. बेटी की हत्या की सूचना मिलते ही दूबे परिवार में कोहराम मच गया.
जितेंद्र दूबे तुरंत घटना स्थल की ओर दौड़े. उन के पीछेपीछे उन की पत्नी वंदना और बड़ी बेटी नेहा भी थीं. शव के पास बैठी सिया दहाड़ मारमार कर रो रही थी. रागिनी की रक्तरंजित लाश देख जितेंद्र का गुस्सा फूट पड़ा. जैसेतैसे उन्होंने खुद पर काबू पाया और बेटी को टैंपो में लाद कर जिला अस्पताल ले गए, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.
तभी जितेंद्र को बीते 2-3 दिन पहले की बात याद आ गई. कुछ शरारती तत्त्वों ने उन के घर आ कर धमकी दी थी कि अगर रागिनी स्कूल गई तो वह दिन उस की जिंदगी का आखिरी दिन होगा. आखिरकार हत्यारे अपने मंसूबों में कामयाब हो ही गए थे.
अगले भाग में पढ़ें- तुम उन की बेटी को आतेजाते छेड़ते हो, तंग करते हो.