इंसाफ चाहिए इस निर्भया को – भाग 1

फोन की घंटी बजी तो अख्तर खान ने स्क्रीन पर नंबर देखा. नंबर जानापहचाना था, इसलिए उस ने तुरंत फोन रिसीव किया. तब दूसरी ओर से पूछा गया कि कौन, अख्तर खान बोल रहे हैं तो अख्तर खान ने कहा, ‘‘हां…हां गुड्डी, मैं अख्तर खान ही बोल रहा हूं. कहो, क्या आदेश है?’’

‘‘अरे खान साहब, आदेश कोई नहीं है. एक अच्छी सी बात है. एक बड़ा ही प्यारा सा माल आया है. आप शौकीन आदमी हैं, इसलिए उसे सब से पहले आप के सामने ही पेश करना चाहती हूं. आप पहले आदमी होंगे, जिस के साथ वह हमबिस्तर होगी.’’ गुड्डी ने मनुहार सा करते हुए कहा.

‘‘अरे गुड्डी, पहले माल तो दिखाओ. माल देखने के बाद ही आने, न आने के बारे में सोचूंगा.’’ अख्तर खान ने कहा.

गुड्डी ने तुरंत वाट्सऐप पर एक लड़की का फोटो भेज दिया. फोटो देख कर अख्तर खान की आंखें चमक उठीं. उस ने तुरंत पूछा, ‘‘मैडम, इस का रेट क्या होगा?’’

‘‘पूरे 10 हजार लगेंगे.’’ गुड्डी ने कहा.

‘‘गुड्डी, 10 हजार में तो किसी बिकाऊ हीरोइन को खरीदा जा सकता है. यह मुंबई से लाई गई कोई हीरोइन थोड़े ही है?’’ अख्तर खान ने कहा.

‘‘अख्तर साहब, यह हीरोइन भले नहीं है, पर हीरोइन से कम भी नहीं है. इसे दिल्ली से लाया गया है. एक बार चखोगे, तो गुलाम बन जाओगे. उस के बाद इस लड़की को ही नहीं, गुड्डी को भी नहीं भूल पाओगे. खान साहब, रेट की बात छोड़ो, अगर लड़की पसंद है तो आ जाओ. फाइनल डील तो मैडम मंजू ही करेंगी.’’ गुड्डी ने कहा.

‘‘गुड्डी मैं इस समय रावतसर ही हूं. तुम कह रही हो तो आधे घंटे में पहुंच रहा हूं. सीधे मैडम मंजू के घर ही पहुंचूंगा.’’

आधे घंटे बाद अख्तर खान हनुमानगढ़ जंक्शन के मोहल्ला सुरेशिया स्थित मंजू मैडम के घर पर था. चायनाश्ते के बाद अख्तर खान को बैडरूम में सजीधजी बैठी लड़की दिखाई गई तो उस की आंखें चमक उठीं. उस ने कुरते की जेब में हाथ डाला और 7 हजार रुपए निकाल कर मंजू के हाथों पर रख दिए. बिना किसी हीलहुज्जत के रुपए मुट्ठी में दबा कर मंजू बैडरूम से बाहर निकल गई. यह मार्च, 2017 के पहले सप्ताह की बात है.

तहसील रावतसर के गांव कल्लासर के रहने वाले सुमेरदीन का बेटा अख्तर खान रंगीनमिजाज युवक था. देहव्यापार का कारोबार करने वाली मंजू अग्रवाल और उस की सहायिका गुड्डी मेघवाल से उस की कई सालों पुरानी जानपहचान थी. अख्तर खान की खेती की जमीन में ‘जिप्सम’ के रूप में प्रचुर मात्रा में खनिज पाया गया है, जिस की वजह से इलाके में उस की गिनती धनी लोगों में होती है.

मंजू के बैडरूम में उस कमसिन लड़की के साथ घंटे, डेढ़ घंटे गुजार कर अख्तर खान संतुष्ट हो कर अपने घर लौट गया. जातेजाते उस ने मंजू और गुड्डी के प्रति आभार भी व्यक्त किया था. इस के बाद मंजू और गुड्डी द्वारा बुलाए गए कई ग्राहकों को उस लड़की ने संतुष्ट किया था.

रात हो गई थी. थक कर चूर हो चुकी उस लड़की ने लगभग रोते हुए कहा, ‘‘आंटी, अब और नहीं सह पाऊंगी शरीर का पोरपोर दर्द कर रहा है.’’

‘‘बस बेटा, आखिरी ग्राहक बचा है. वह एक बड़ा अफसर है. उस के लिए तुझे एक होटल में जाना होगा. जगतार तुझे वहां ले जाएगा. बस आधे घंटे की बात है.’’ मंजू ने सख्त लहजे में प्यार से कहा.

लड़की में मना करने की हिम्मत नहीं थी. इसलिए आधे घंटे में फ्रेश हो कर वह तैयार हो गई. जगतार उसे मोटरसाइकिल से संगम होटल ले गया. लड़की को बताए गए कमरे में पहुंचा कर वह स्वागत कक्ष में आ कर बैठ गया. आधे घंटे बाद लड़की रिशेप्शन पर आई तो जगतार उसे ले कर मंजू के घर आ गया.

2 दिन पहले ही मंजू के घर जबरदस्ती लाई गई यह लड़की बीते एक सप्ताह के हर लम्हे को याद कर के आंसुओं के सागर में गोते लगा रही थी. वहीं उस से देहव्यापार कराने वाली मंजू अग्रवाल पहले ही दिन की कमाई से निहाल हो उठी थी. एक ही दिन में उस की 22 हजार रुपए की कमाई हो चुकी थी.

लड़की, जिसे निर्भया कह सकते हैं, उसे दिल्ली से ला कर मंजू के हाथों बेचा गया था. वह मंजू के लिए सोने का अंडा देने वाली मुर्गी साबित हुई थी. 2 दिन पहले ही मंजू ने उसे दिल्ली के दलाल सुनील बागड़ी के माध्यम से गोलू और निशा से एक लाख रुपए में खरीदा था.

लेकिन मंजू ने अभी उन्हें 30 हजार रुपए ही दिए थे. बाकी के 70 हजार 15 दिनों बाद देने थे, अब तक की कमाई को देख कर मंजू को यही लगा कि उस ने जो पैसे इस लड़की पर लगाए हैं, वे 5-7 दिनों में ही निकल आएंगे. उस के बाद तो उस के घर रुपयों की बरसात होगी.

घर में निर्भया के कदम पड़ते ही मंजू के दिन फिर गए थे. उस के घर ग्राहकों की लाइन लग गई थी. एक बार जो निर्भया के साथ मौज कर लेता था, उस का दीवाना बन जाता था. उसे बाहर ले जाने के लिए मंजू ग्राहकों से मुंह मांगी रकम लेती थी. निर्भया कहीं मुंह ना खोल दे या भाग न जाए, इस के लिए 2-3 लड़के हमेशा उस पर नजर रखते थे. अगर वह ग्राहक के पास जाने से मना करती तो उसे डरायाधमकाया जाता.

मासूम और नाबालिग निर्भया शरीर के साथसाथ मानसिक रूप से भी मंजू ही नहीं, उस के गुर्गों की दासी बन चुकी थी. उस की शारीरिक कसावट और रूपलावण्य में गजब का आकर्षण था. उसे होटल में ले जाने वाला आदमी ग्राहक से पहले खुद उस के साथ मौज करता था. कमाई के चक्कर में मंजू ने उसे मशीन बना दिया था.

मंजू ने तमाम लड़कियों को अपने घर में रख कर धंधा करवाया था, लेकिन बरकत तो निर्भया के आने पर ही हुई थी. सुरेशिया इलाके में मंजू के 2 मकान थे. गुड्डी उस के पड़ोस में ही रहती थी. पहले वह मंजू के यहां देहधंधा करती थी. उम्र ज्यादा हो गई तो वह मंजू के लिए दलाली करने लगी थी. मंजू अपने ग्राहकों की हर सुखसुविधा का खयाल रखती थी.

उस ने अपने मकान के एक कमरे को फाइव स्टार होटल के कमरे की तरह सजा रखा था. वह ग्राहकों के लिए शबाब के साथसाथ शराब भी उपलब्ध कराती थी. बीते एक महीने में मंजू ने निर्भया से अपनी रकम तो वसूल कर ही ली थी, अच्छाखासा फायदा भी कमा लिया था.

निर्भया के चहेतों ने उस से शादी करने के लिए मंजू के सामने मुंहमांगी रकम देने की भी बात कही थी. मंजू तैयार भी थी, पर निर्भया का आईडी प्रूफ नहीं था, इसलिए वह शादी नहीं करवा पा रही थी. मंजू यह भी जानती थी कि एक तो निर्भया नाबालिग है, इस के अलावा वह दलित समुदाय से भी है. लेकिन अंधाधुंध कमाई के चक्कर में उस की आंखों पर परदा पड़ा हुआ था.

आस्तीन का सांप : स्वाति बनी शिकार

उस दिन गुरुवार था. तारीख थी 2018 की 13 दिसंबर. कोटा के विशेष न्यायिक मजिस्ट्रैट (एनआई एक्ट) राजेंद्र बंशीलाल की अदालत में काफी भीड़ थी. वजह यह थी कि एक नृशंस हत्यारे को उस के अपराध की सजा सुनाई जानी थी. हत्यारे का नाम लालचंद मेहता था और जिन्हें उस ने मौत के घाट उतारा था, वह थीं बीएसएनएल की उपमंडल अधिकारी स्वाति गुप्ता. लालचंद मेहता उन का ड्राइवर रह चुका था. उस के अभद्र व्यवहार को देखते हुए स्वाति गुप्ता ने घटना से 2 दिन पहले ही उसे नौकरी से निकाला था.

3 साल पहले 21 अगस्त, 2015 की रात को लालचंद ने स्वाति की हत्या उन के घर के बाहर तब कर दी थी, जब वह औफिस से लौट कर घर पहुंची थीं. लालचंद ने स्वाति गुप्ता पर चाकू से 10-15 वार किए थे. इस केस में गवाहों के बयान, पुलिस द्वारा जुटाए गए सबूत और अन्य साक्ष्य अदालत के सामने पेश किए जा चुके थे. दोनों पक्षों के वकीलों की जिरह भी हो चुकी थी. सजा के मुद्दे पर बचाव पक्ष के वकील ने कहा था, ‘‘आरोपी का परिवार है, उसे सुधरने का अवसर देने के लिए कम सजा दी जाए.’’

जबकि लोक अभियोजक नित्येंद्र शर्मा तथा परिवादी के वकील मनु शर्मा और भुवनेश शर्मा ने दलील दी थी कि आरोपी लालचंद मेहता मृतका स्वाति का ड्राइवर-कम-केयरटेकर था. परिवादी पक्ष ने उस की हर तरह से मदद की थी, लेकिन उस ने मामूली सी बात पर जघन्य हत्या कर दी थी. इसलिए अदालत को उस के प्रति जरा भी दया नहीं दिखानी चाहिए.

विशेष न्यायिक मजिस्ट्रैट राजेंद्र बंशीलाल जब न्याय के आसन पर बैठ गए तो अदालत में मौजूद सभी लोगों की नजरें उन पर जम गईं. गिलास से एक घूंट पानी पीने के बाद न्यायाधीश ने एक नजर भरी अदालत पर डाली. फिर फाइल पर नजर डाल कर पूछा, ‘‘मुलजिम कोर्ट में मौजूद है?’’

‘‘यस सर,’’ एक पुलिस वाले ने जवाब दिया जो लालचंद को कस्टडी में लिए हुए था.

न्यायाधीश राजेंद्र बंशीलाल ने अपने 49 पेजों के फैसले की फाइल पलटते हुए कहना शुरू किया, ‘‘अदालत ने इस केस के सभी गवाहों को गंभीरतापूर्वक सुना, प्रस्तुत किए गए साक्ष्यों को कानून की कसौटी पर परखा, जानसमझा. बचाव पक्ष और अभियोजन पक्ष की सभी दलीलों को सुना. तकनीकी साक्ष्यों का गहन अध्ययन किया. पूरे केस पर गंभीरतापूर्वक गौर करने के बाद अदालत इस नतीजे पर पहुंची कि लालचंद मेहता ने स्वाति की हत्या बहुत ही नृशंस तरीके से की. यहां तक कि जब उस का चाकू हड्डियों में अटक गया, तब भी उस ने चाकू को जोरों से खींच कर निकाला और फिर वार किए. निस्संदेह यह उस का गंभीर, जघन्य और हृदयविदारक कृत्य था.’’

इस केस का निर्णय जानने से पहले आइए जान लें कि 35 वर्षीय गजेटेड औफिसर स्वाति गुप्ता को क्यों जान गंवानी पड़ी.

बुधवार 20 अगस्त, 2015 को रिमझिम बरसात हो रही थी. रात गहरा चुकी थी और तकरीबन 9 बज चुके थे. बूंदाबादी तब भी जारी थी. घटाटोप आकाश को देख कर लगता था कि देरसवेर तूफानी बारिश होगी.

कोटा शहर के आखिरी छोर पर बसे उपनगर आरके पुरम के थानाप्रभारी जयप्रकाश बेनीवाल तूफानी रात के अंदेशे में अपने सहायकों से रात्रि गश्त को टालने के बारे में विचार कर रहे थे, तभी टेलीफोन की घंटी से उन का ध्यान बंट गया. उन्होंने रिसीवर उठाया तो दूसरी तरफ से भर्राई हुई आवाज आई, ‘‘सर, मेरा नाम दीपेंद्र गुप्ता है. मेरी पत्नी स्वाति गुप्ता का कत्ल हो गया है. हत्यारा मेरा ड्राइवर-कम-केयरटेकर रह चुका लालचंद मेहरा है.’’

हत्या की खबर सुनते ही थानाप्रभारी के चेहरे का रंग बदल गया. उन्होंने पूछा, ‘‘आप अपना पता बताइए.’’

‘‘ई-25, सेक्टर कालोनी, आर.के. पुरम.’’

‘‘ठीक है, मैं फौरन पहुंच रहा हूं.’’ कहते हुए थानाप्रभारी ने फोन डिसकनेक्ट कर दिया. बेनीवाल पुलिस फोर्स के साथ उसी वक्त घटनास्थल की तरफ रवाना हो गए. उस समय रात के करीब साढ़े 9 बज रहे थे.

थानाप्रभारी बेनीवाल अपनी टीम के साथ 15 मिनट में दीपेंद्र गुप्ता के आवास पर पहुंच गए. उन के घर के बाहर भीड़ लगी हुई थी. बेनीवाल की जिप्सी आवास के मेन गेट पर पहुंची. जिप्सी से उतर कर जैसे ही वह आगे बढ़े तो एकाएक उन के पैर खुदबखुद ठिठक गए. गेट पर खून ही खून फैला था. उन्होंने बालकनी की तरफ नजर दौड़ाई तो व्हीलचेयर पर बैठे एक व्यक्ति को लोग संभालने की कोशिश कर रहे थे, जो बुरी तरह बिलख रहा था.

स्थिति का जायजा लेने के बाद थानाप्रभारी बेनीवाल ने फोन कर के एसपी सवाई सिंह गोदारा को वारदात की सूचना दे दी. इस से पहले कि बेनीवाल तहकीकात शुरू करते, एसपी तथा अन्य उच्चाधिकारी फोटोग्राफर व फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट के साथ वहां पहुंच गए..

एसपी सवाई सिंह गोदारा और उच्चाधिकारियों के साथ थानाप्रभारी बेनीवाल बालकनी में व्हीलचेयर पर बैठे बिलखते हुए व्यक्ति के पास गए. पता चला कि दीपेंद्र गुप्ता उन्हीं का नाम था. बेनीवाल के ढांढस बंधाने के बाद उन्होंने बताया, ‘‘सर, फोन मैं ने ही किया था.’’

दीपेंद्र गुप्ता ने उन्हें बताया कि उस की पत्नी स्वाति गुप्ता बीएसएनएल कंपनी में उपमंडल अधिकारी थीं. लगभग 9 बजे वह कार से घर लौटी थीं.

जब वह मेनगेट बंद करने गई तभी अचानक वहां छिपे बैठे उन के पूर्व ड्राइवर लालचंद मेहता चाकू ले कर स्वाति पर टूट पड़ा और तब तक चाकू से ताबड़तोड़ वार करता रहा जब तक स्वाति के प्राण नहीं निकल गए. चीखतीचिल्लाती स्वाति लहूलुहान हो कर जमीन पर गिर पड़ीं.

दीपेंद्र की रुलाई फिर फूट पड़ी. उन्होंने सुबकते हुए कहा, ‘‘अपाहिज होने के कारण मैं अपनी पत्नी को हत्यारे से नहीं बचा सका. बादलों की गड़गड़ाहट में हालांकि स्वाति की चीख पुकार और मेरा शोर भले ही दब गया था, लेकिन जिन्होंने सुना वे दौड़ कर पहुंचे, लेकिन तब तक लालचंद भाग चुका था.’’

एक पल रुकने के बाद दीपेंद्र गुप्ता बोले, ‘‘संभवत: स्वाति की सांसों की डोर टूटी नहीं थी, इसलिए पड़ोसी लहूलुहान स्वाति को तुरंत ले अस्पताल गए, लेकिन…’’ कहतेकहते दीपेंद्र का गला फिर रुंध गया.

‘‘स्वाति को बचाया नहीं जा सका. मुझ से बड़ा बदनसीब कौन होगा. जिस की पत्नी को उस के सामने वहशी हत्यारा चाकुओं से गोदता रहा और मैं कुछ नहीं कर पाया?’’

वहशी हत्यारे की करतूत और लाचार पति की बेबसी पर एक बार तो पुलिस अधिकारियों के दिल में भी हूक उठी.

एसपी सवाई सिंह गोदारा ने कुछ सोचते हुए कहा, ‘‘हत्यारे के बारे में मालूम है. वह जल्द ही पुलिस की गिरफ्त में होगा.’’ उन्होंने बेनीवाल से कहा, ‘‘बेनीवाल, मैं चाहता हूं हत्यारा जल्द से जल्द तुम्हारी गिरफ्त में हो. अभी से लग जाओ उस की तलाश में.’’

इस बीच फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट और फोटोग्राफर अपना काम कर चुके थे.

‘‘…और हां,’’ एसपी ने बेनीवाल का ध्यान वहां लगे सीसीटीवी कैमरों की तरफ दिलाते हुए कहा, ‘‘इस मामले में लालचंद को पकड़ना तो पहली जरूरत है ही. लेकिन सीसीटीवी फुटेज भी खंगालो, फुटेज में पूरी वारदात नजर आ जाएगी.’’

पुलिस की तत्परता कामयाब रही और देर रात लगभग 2 बजे आरोपी लालचंद को रावतभाटा रोड स्थित मुरगीखाने के पास से गिरफ्तार कर लिया गया. पुलिस ने उस के कब्जे से हत्या में इस्तेमाल किया गया चाकू भी बरामद कर लिया.

इस बीच दीपेंद्र गुप्ता की रिपोर्ट पर भादंवि की धारा 402 और 460 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया था. गुप्ता परिवार ने खुद पाला था मौत देने वाले को मौके पर की गई पूछताछ के बाद पुलिस ने स्वाति गुप्ता की लाश मोर्चरी भिजवा दी. पोस्टमार्टम के बाद स्वाति का शव अंत्येष्टि के लिए घर वालों को सौंप दिया गया.

पुलिस के लिए अहम सवाल यह था कि आखिर इतनी हिंसक मनोवृत्ति के व्यक्ति को दीपेंद्र गुप्ता ने ड्राइवर जैसे जिम्मेदार पद पर कैसे नौकरी पर रख लिया. लालचंद पिछले 20 सालों से दीपेंद्र गुप्ता के यहां नौकरी कर रहा था. आखिर उसे किस की सिफारिश पर नौकरी दी गई थी. पुलिस ने यह सवाल दीपेंद्र गुप्ता से पूछा ‘‘उस आदमी के बारे में तो अब मुझे कुछ याद नहीं आ रहा.’’ दीपेंद्र गुप्ता ने कहा, ‘‘उस का कोई रिश्तेदार था, जिस के कहने पर मैं ने लालचंद को अपने यहां नौकरी पर रखा था. लालचंद झालावाड़ जिले के मनोहरथाना कस्बे का रहने वाला था. शायद उस का सिफरिशी रिश्तेदार भी वहीं का था.’’

बेनीवाल ने पूछा, ‘‘जब वह पिछले 20 सालों से आप को यहां काम कर रहा था तो जाहिर है काफी भरोसेमंद रहा होगा. फिर अचानक ऐसा क्या हो गया कि आप ने उसे नौकरी से निकाल दिया.’’

‘‘उस में 2 खामियां थीं…’’ कहतेकहते दीपेंद्र गुप्ता एक पल के लिए सोच में डूब गए. जैसे कुछ याद करने की कोशिश कर रहे हों.

वह फिर बोले, ‘‘दरअसल, उसे एक तो शराब पीने की लत थी और दूसरे वह परिवार की जरूरतों का रोना रो कर हर आठवें दसवें दिन पैसे मांगता. शुरू में मुझे उस की दारूबाजी की खबर नहीं थी. पारिवारिक मुश्किलों का हवाला दे कर वह इस तरह पैसे मांगता था कि मैं मना नहीं कर पाता था. लेकिन स्वाति को यह सब ठीक नहीं लगता था.

दीपेंद्र गुप्ता ने आगे कहा, ‘‘स्वाति ने मुझे कई बार रोका और कहा, ‘बिना किसी की जरूरत को ठीक से समझे बगैर इतनी दरियादिली आप के लिए नुकसानदायक हो सकती है.’ लेकिन मैं ने यह कह कर टाल दिया कि कोई मजबूरी में ही पैसे मांगता है.’’

बेनीवाल दीपेंद्र की बातों को सुनने के साथसाथ समझने की भी कोशिश कर रहे थे. दीपेंद्र ने आगे कहा, ‘‘लेकिन…लालचंद ने शायद मेरी पत्नी स्वाति की आपत्तियों को भांप लिया था. कई मौकों पर मैं ने उसे स्वाति से मुंहजोरी भी करते देखा. मैं ने उसे आड़ेहाथों लेने की कोशिश की. लेकिन उस की मिन्नतों और आइंदा ऐसाकुछ नहीं करने की बातों पर मैं ने उसे बख्श दिया.’’

दीपेंद्र गुप्ता से लालचंद के बारे में काफी जानकारियां मिलीं. लालचंद पिछले 20 सालों से गुप्ता परिवार के यहां काम कर रहा था. अपंग गुप्ता के लिए उसे निकाल कर नए आदमी की तलाश करना पेचीदा काम था.

दरअसल, दीपेंद्र गुप्ता भी एक सफल बिजनैसमैन थे, लेकिन जीवन में घटी एक घटना ने सब कुछ बदल कर रख दिया. दीपेंद्र गुप्ता को उन के दोस्त विनय गुप्ता के नाम से जानते थे. कभी शैक्षिक व्यवसाय से जुड़े दीपेंद्र का लौर्ड बुद्धा कालेज नाम से अपना शैक्षणिक संस्थान था. लेकिन सन 2011 में चंडीगढ़ से कोटा लौटते समय हुए एक रोड ऐक्सीडेंट में उन्हें गंभीर चोटें आईं. ऊपर से इलाज के दौरान उन्हें पैरालिसिस हो गया. तब उन्हें अपना संस्थान बेचना पड़ा.

उन की पत्नी स्वाति गुप्ता उपमंडल अधिकारी थीं, जिन का अच्छाखासा वेतन घर में आता था. इस के अलावा गुप्ता ने अपने आवास के एक बड़े हिस्से को किराए पर भी दे दिया, जिस से मोटी रकम मिलती थी. लालचंद मेहता को दीपेंद्र गुप्ता ने सन 2003 में ड्राइवर की नौकरी पर रखा था. उन की शादी स्वाति से सन 2004 में हुई थी, यानी लालचंद मेहता उन की शादी के एक साल पहले से ही उन के यहां नौकरी कर रहा था.

दीपेंद्र गुप्ता के व्हीलचेयर पर आने के बाद लालचंद सिर्फ ड्राइवर ही नहीं रहा, बल्कि गुप्ता का केयरटेकर भी बन गया. एक तरह से अब दीपेंद्र गुप्ता लालचंद पर निर्भर हो गए थे. लालचंद ने उन की इस लाचारी का फायदा उठाया. वह शराब पी कर घर आने लगा था. गुप्ता के सामने ही स्वाति से बदतमीजी से पेश आने लगा था. अब वह पैसे भी दबाव के साथ मांगने लगा था. उस पर गुप्ता की इतनी रकम उधार हो गई थी कि अपनी 2 सालों की तनख्वाह से भी नहीं चुका सकता था.

उस की दाबधौंस 20 अगस्त, 2015 को दीपेंद्र गुप्ता के सामने आई. उस समय वह दारू के नशे में धुत था. उस की आंखें चढ़ी हुई थीं और स्वाति से अनापशनाप बोल कर पैसे ऐंठने पर उतारू था.

आजिज आ कर स्वाति ने डांटा था लालचंद को पानी सिर से गुजर चुका था. इस से पहले कि गुप्ता कुछ कह पाते, स्वाति ने उसे दो टूक लफ्जों में कह दिया, ‘‘तुम्हें इतना पैसा दिया जा चुका है कि तुम सात जनम तक नहीं उतार सकते. तुम परिवार की जरूरतों के बहाने पैसे मांगते हो और दारू में उड़ा देते हो. फौरन यहां से निकल जाओ. आइंदा इधर का रुख भी मत करना.’’

एसपी सवाई सिंह गोदारा ने इस मामले की सूक्ष्मता से जांच कराई. इस केस में चश्मदीद गवाह कोई नहीं था, लेकिन तकनीकी साक्ष्य इतने मजबूत थे कि उन्हीं की बदौलत केस मृत्युदंड की सजा तक पहुंच पाया.

घर में लगे सीसीटीवी कैमरों में पूरी वारदात की फुटेज मिल गई थी, जिस में लालचंद स्वाति गुप्ता पर चाकू से वार करता हुआ साफ दिखाई दे रहा था.

जांच के दौरान मौके से मिले खून के धब्बे, चाकू में लगा खून और पोस्टमार्टम के दौरान मृतका के शरीर से लिए गए खून के सैंपल का मिलान कराया गया. मौके से मिले फुटप्रिंट का भी आरोपी के फुटप्रिंट से मिलान कराया गया. इन सारे सबूतों को अदालत ने सही माना.

न्यायाधीश राजेंद्र बंशीलाल ने सारे सबूतों, गवाहों और दोनों पक्षों के वकीलों की जिरह सुनने के बाद 49 पेज का फैसला तैयार किया था. अभियुक्त लालचंद को दोषी पहले ही करार दे दिया गया था. 13 दिसंबर, 2018 को उसे सजा सुनाई जानी थी.

न्यायाधीश ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा, ‘‘इस में कोई दो राय नहीं कि लालचंद मेहता ने जिस तरह स्वाति की जघन्य हत्या की, वह रेयरेस्ट औफ रेयर की श्रेणी में आता है. लेकिन इस के साथ ही हमें यह भी देखना होगा कि उस ने केवल स्वाति की हत्या ही नहीं की बल्कि अपाहिज दीपेंद्र गुप्ता का सहारा भी छीन लिया. साथ ही उन की मासूम बेटी के सिर से मां का साया भी उठ गया.’’

न्यायाधीश राजेंद्र बंशीलाल ने आगे कहा, ‘‘सारी बातों के मद्देनजर दोषी लालचंद को मृत्युदंड और 30 हजार रुपए जुरमाने की सजा देती है.’’

फैसला सुनाने के बाद न्यायाधीश अपने चैंबर में चले गए.

जज द्वारा सजा सुनाए जाने के बाद पुलिस ने मुलजिम लालचंद मेहता को हिरासत में ले लिया. अदालत द्वारा मुलजिम को मौत की सजा सुनाए जाने पर लोगों ने संतोष व्यक्त किया.

तांत्रिक को न्योते का खतरनाक नतीजा

उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के नौशाद नामक शख्स के गेहूं के खेत में 11 अप्रैल, 2016 की सुबह लोगों ने एक नौजवान की लाश देख कर पुलिस को सूचना दी. तकरीबन 30 साला नौजवान खून से लथपथ था. उस की हत्या किसी धारदार हथियार से गरदन काट कर की गई थी. उस की पैंट भी नदारद थी. पुलिस नौजवान की शिनाख्त कराने में नाकाम रही. मामला दर्ज कर के पुलिस ने जांचपड़ताल शुरू कर दी. कई दिनों तक कोई नतीजा नहीं निकला.

इधर 16 अप्रैल, 2016 को दिल्ली के जहांगीरपुरी इलाके के कुछ लोग थाना कोतवाली पहुंचे. उन लोगों के मुताबिक, उन के परिवार का एक नौजवान ब्रजेश यादव लापता था. उन्हें पता चला कि उन के यहां कोई लाश मिली है.

पुलिस ने फोटो और बरामद सामान दिखाया, तो मृतक की पहचान ब्रजेश के रूप में हो गई.

पुलिस को ताज्जुब यह था कि वे लोग दिल्ली से बागपत किस सूचना पर पहुंचे थे. ब्रजेश के परिवार वालों ने अपने साथ आए नौजवान की ओर इशारा कर के बताया कि वह तांत्रिक है और उस के सिर पर आए जिन्न ने ही बताया था कि लापता ब्रजेश बागपत में यमुना किनारे मरा मिला है.

पुलिस को उस तथाकथित तांत्रिक की हरकतें कुछ ठीक नहीं लगीं, तो उसे हिरासत में ले लिया गया. उस तांत्रिक से सख्ती से पूछताछ हुई, तो मामला खुला.

यों उलझे जाल में

दरअसल, गिरफ्तार तांत्रिक इलियास बागपत इलाके का ही रहने वाला था. आवारागर्दी और ठगबाज लोगों की संगत ने उसे पाखंडी बना दिया. उस ने दाढ़ी बढ़ाई और सफेद कपड़े पहन कर तंत्रमंत्र के ढोंग कर लोगों को ठगना शुरू कर दिया. उस ने अपने कई आवारा दोस्त भी अपने साथ मिला लिए, जो उस के चमत्कार के किस्से लोगों को मिर्चमसाला लगा कर सुनाते थे.

समाज में पाखंडियों पर भरोसा करने वाले लोगों की कमी नहीं होती. आज भी लोग तांत्रिकों की तमाम बुरी करतूतों के बाद अपनी तकलीफों का इलाज झाड़फूंक, तंत्रमंत्र में खोजते हैं. ऐसे ही लोगों के पैसे पर वह भी मौज करने लगा.

जहांगीरपुरी के रहने वाले राजू यादव की पत्नी लीला देवी की तबीयत खराब रहती थी. पहले उस का डाक्टर से इलाज कराया. जब उसे कोई फायदा नहीं हुआ, तो उन्होंने मुल्लामौलवियों में झाड़फूक के सहारे इलाज की खोज शुरू कीं. वे इलियास से मिले, तो उस ने खुद को पहुंचा हुआ तांत्रिक बताया और तंत्र विद्या के बल पर इलाज करने को तैयार हो गया.

यादव परिवार उसे आसान शिकार लगा. अपने सिर पर वह जिन्न आने की बात करता और इलाज करने का ढोंग करता. चमत्कार की आस में पूरा परिवार उस के झांसे में आ गया.

इलियास अकसर उस के घर पहुंच जाता. इस दौरान उस की खूब इज्जत होती और मुंहमांगी रकम भी मिलती. जिन्न को खुश करने के नाम पर वह शराब और कबाब की दावत भी उड़ाता.

यादव परिवार उसे न्योता दे कर सोच रहा था कि वह उन्हें सारे दुखों से नजात दिला देगा. पाखंड के दम पर तांत्रिक मौज करता रहा. महीनों इलाज का फायदा नहीं दिखा, तो उस ने बहका दिया कि बुरी आत्माओं का साया पूरे परिवार पर है. उन्होंने लीला देवी को जकड़ लिया है. वे आत्माएं धीरेधीरे ही उस की तंत्र क्रियाओं से जाएंगी.

एक दिन लीला देवी का बेटा ब्रजेश अचानक गायब हुआ, तो परिवार के लोगों ने उस की खोजबीन शुरू की. दिल्ली में कई जगह वह उसे ढूंढ़ते रहे. कोई समझ नहीं पा रहा था कि वह कहां चला गया था.

इस खोजबीन में इलियास भी उन के साथ रहता. जब सभी थक गए, तो इलियास ने तंत्र विद्या के बल पर ब्रजेश का पता लगाने की बात की और तंत्र क्रिया के नाम पर रुपए ऐंठ लिए. इस के बाद उस ने बताया कि उस के सिर पर आए जिन्न ने बताया है कि बागपत में यमुना किनारे ब्रजेश को मार दिया गया है.

सब लोगों के साथ वह भी थाने पहुंचा, तो उस की बात एकदम सच निकली, लेकिन वह पुलिस के जाल में खुद ही उलझ गया.

इसलिए की हत्या

दरअसल, यादव परिवार तांत्रिक  इलियास का पूरी तरह मुरीद हो गया था. उन के पैसे पर वह मौज कर रहा था. तंत्र क्रियाओं के नाम पर शराब के साथ दावतें लेता था. परिवार की एक लड़की को भी उस ने अपने प्रेमजाल में फांस लिया और डोरे डालने शुरू कर दिए. ब्रजेश को उस की हरकतें पसंद नहीं आईं. उसे यह भी लगने लगा कि तंत्र क्रिया की आड़ में इलियास उन लोगों को लूट रहा है.

इलियास को यह बात अखर गई. यादव परिवार उस के लिए सोने के अंडे देने वाली मुरगी बन गया था. उन की जायदाद पर उस की नजर थी. सभी का विश्वास उस ने अपने पाखंड से जीत लिया था. अपने पाखंड के पैर जमाए रखने के लिए उस ने ब्रजेश को ही रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया.

एक दिन उस ने ब्रजेश को बताया कि उसे अपनी तंत्र क्रियाओं से पता चला है कि बागपत में गंगा किनारे खजाना दबा हुआ है, लेकिन उसे वह खुद नहीं निकाल सकता. उस ने ब्रजेश को समझाया कि उसे वह निकाल ले, बाद में दोनों आधाआधा बांट लेंगे. ऐसे में उस से जिन्न भी नाराज नहीं होंगे.

ब्रजेश को उस ने यह भी समझाया कि वह यह बात किसी को न बताए, वरना खजाना गायब हो जाएगा और उस के हाथ कुछ भी नहीं आएगा. ब्रजेश उस के झांसे में आ गया.

10 अप्रैल की शाम को वह इलियास के साथ बागपत पहुंच गया. अंधेरा होने पर इलियास उसे खेत में ले गया. ब्रजेश को जान का खतरा महसूस हुआ, तो वहां दोनों के बीच लड़ाई हो गई, लेकिन इलियास ने गंड़ासे से उस की गरदन काट कर हत्या कर दी.

ब्रजेश की पहचान जल्द न हो, इसलिए उस ने उस की पैंट उतार कर छिपा दी. इस दौरान इलियास के माथे पर भी चोट आई. बाद में वह ब्रजेश के परिवार में पहुंचा. वह भी ब्रजेश की खोजबीन कराता रहा. उस पर शक न हो, इसलिए उस ने जिन्न वाली मनगढ़ंत कहानी बताई.

पाखंडी की पोल खुलने से यादव परिवार के पास पछताने के सिवा कुछ नहीं बचा था. तांत्रिक को न्योता दे कर उस ने धनदौलत और बेटा गंवा दिया था. पाखंडी तांत्रिक अब सलाखों के पीछे है, लेकिन अपनी करतूत का उसे कोई अफसोस नहीं है.

तांत्रिक के कहने पर बनाया चोर

एक नौजवान को तांत्रिक के कहने पर पूरे गांव ने चोर मान लिया. मामला बदायूं के लभारी गांव में सामने आया. दरअसल, हरीकश्यप नामक शख्स के घर से 15 अप्रैल, 2016 को कुछ गहने चोरी हो गए थे. हरी अपने एक तांत्रिक गुरु की शरण में पहुंच गया.

तांत्रिक ने पहले पूरी बात सुनी और उस का शक जान कर एक परची पर ‘द’ शब्द से शुरू होने वाला नाम लिख कर उसे थमा दिया. हरी का शक एक झोंपड़ी में रहने वाले दिनेश पर चला गया. अगले दिन गांव में तांत्रिक की मौजूदगी में पंचायत हो गई.

तांत्रिक का कहा लोगों के लिए पत्थर की लकीर हो गया. तांत्रिक ने उस पर जुर्माना थोपने के साथ ही अपनी 5 हजार फीस और आनेजाने का खर्चा भी मांग लिया. दिनेश ने जुर्माना भरने से मना किया, तो उसे गांव से निकल जाने का फरमान सुनाया गया. दिनेश पुलिस की शरण में पहुंच गया.

थाई मसाज की आड़ में : जिस्मफरोशी का काला धंधा – भाग 1

पहली अगस्त, 2017 को भीलवाड़ा के एडीशनल एसपी गोपालस्वरूप मेवाड़ा अपने औफिस में बैठे थानाप्रभारी से किसी आपराधिक मामले पर चर्चा कर रहे थे, तभी अंजान नंबर से उन के मोबाइल पर फोन आया. उस समय वह गंभीर मसले पर विचार कर रहे थे, इसके बावजूद उन्होंने फोन रिसीव कर के जैसे ही मोबाइल कान से लगाया, दूसरी ओर से फोन करने वाले ने कहा, ‘‘सर, आजकल आप शहर में रोजाना कोई न कोई बड़ा धमाका कर रहे हैं, इसलिए अपराधियों में दहशत छाई हुई है.’’

‘‘भई वह तो ठीक है, यह मेरी ड्यूटी भी है,’’ गोपालस्वरूप मेवाड़ा ने जवाब में कहा, ‘‘पर यह बताइए कि आप ने फोन क्यों किया है, आप कौन बोल रहे हैं?’’

‘‘सर, आप यही समझ लीजिए कि हम आप के शुभचिंतक हैं.’’ फोन करने वाले ने कहा.

‘‘चलो, यह भी ठीक है, पर मैं यह जानना चाहता हूं कि आप ने फोन क्यों किया है? आप को कोई शिकायत हो तो बताइए, अभी मैं थोड़ा व्यस्त हूं.’’ गोपालस्वरूप मेवाड़ा ने फोन करने वाले की चिकनीचुपड़ी बातें सुन कर पीछा छुड़ाने के लिए कहा.

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‘‘सर, मेरी कोई शिकायत नहीं है. मैंने तो आप को यह बताने के लिए फोन किया था कि शहर में आजकल तितलियों की बहार आई हुई है.’’ फोन करने वाले ने कहा.

तितलियों की बात सुन कर एसपी साहब ने कहा, ‘‘तितलियों की बहार का क्या मतलब? तुम कहना क्या चाहते हो? जो भी कहना है, साफसाफ कहो.’’

‘‘सर, शहर में देशी ही नहीं, विदेशी तितलियां भी आने लगी हैं. ये तितलियां मसाज पार्लरों में आ रही हैं.’’ फोन करने वाले ने कहा.

‘‘क्या मसाज पार्लरों में गलत काम भी हो रहे हैं?’’ गोपालस्वरूप मेवाड़ा ने फोन करने वाले से पूछा.

‘‘सर, यह पता करना पुलिस का काम है. इस बारे में आप पता करवा लीजिए.’’ उस आदमी ने इतना कह कर फोन काट दिया.

फोन कटने के बाद गोपालस्वरूप मेवाड़ा उस आदमी की बातों पर विचार करने लगे. उन्हें मामला गंभीर लगा तो थानाप्रभारी से उस फाइल पर बाद में चर्चा करने की बात कह कर उसे भेज दिया. इस के बाद अपने खास मुखबिरों को फोन कर के यह पता लगवाया कि शहर में कहांकहां मसाज पार्लर और स्पा सैंटर चल रहे हैं, साथ ही यह भी पता करवाया कि इन मसाज पार्लरों में किस तरह की गतिविधियां चल रही हैं?

2-3 घंटे में ही उन्हें मुखबिरों से जो जानकारियां मिलीं, वे चौंकाने वाली थीं. उन्होंने तुरंत अपने सूचना तंत्र से उन जानकारियों की पुष्टि करवाई. वे जानकारियां सही निकलीं तो गोपालस्वरूप मेवाड़ा ने पुलिस अधिकारियों की एक टीम बनाई. टीम में शामिल प्रशिक्षु डीएसपी दिनेश परिहार को कुछ बातें समझा कर प्राइवेट कार से सामान्य कपड़ों में शहर के महावीर पार्क के पास स्थित स्पा पैलेस भेज दिया.

कोतवाली से करीब 3 सौ मीटर दूर स्थित इस स्पा पैलेस पर दिनेश परिहार एक पढ़ेलिखे व्यापारी की तरह कार से उतरे. उन्होंने एक नजर स्पा पैलेस की बिल्डिंग पर डाली. बाहर से वह किसी मध्यम शहर के मसाज पार्लर जैसा नजर आ रहा था. लेकिन वह स्पा पैलेस का शीशे का दरवाजा खोल कर अंदर दाखिल हुए तो वहां की चमकदमक देख कर दंग रह गए. अंदर दाखिल होते ही रिसैप्शन पर चुस्त पोशाक पहने बैठी युवती ने मुसकरा कर उन का स्वागत करते हुए कहा, ‘‘वेलकम सर, मैं आप की क्या सेवा कर सकती हूं?’’

‘‘यार, मैं तो यहां घूमने आया था. आप के स्पा का नाम सुना तो आप से मिलने चला आया,’’ दिनेश परिहार ने एक शौकीनमिजाज नौजवान की तरह अपनी पैंट की जेब से महंगी सिगरेट का पैकेट निकालते हुए कहा, ‘‘क्या मैं यहां सिगरेट पी सकता हूं?’’

‘‘सौरी सर, यहां स्मोकिंग अलाऊ नहीं है. इसकी वजह यह है कि हमारे यहां विदेशी लड़कियां भी काम करती हैं. उन्हें स्मोकिंग से एलर्जी है. इस के अलावा हमारे कस्टमर भी ऐतराज करते हैं.’’ रिसैप्शनिस्ट ने मोहक मुसकान बिखेरते हुए कहा.

‘‘ओके, आप कह रही हैं तो हम सिगरेट नहीं पीते हैं.’’ दिनेश ने रिसैप्शन के पास दीवारों पर लगी मसाज के अलगअलग तरीकों वाली तसवीरों पर नजर डालते हुए कहा.

‘‘सर, पहले आप हमारे स्पा पर कभी नहीं आए?’’ रिसैप्शनिस्ट ने पूछा.

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‘‘यू आर राइट, मैं जयपुर का रहने वाला बिजनैसमैन हूं. आप के स्पा पैलेस का नाम सुना तो मसाज कराने का मूड बन गया और आप के यहां चला आया.’’ दिनेश ने रिसैप्शनिस्ट के चेहरे को गौर से देखते हुए कहा.

‘‘यस सर, योर मोस्ट वेलकम.’’ युवती ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘सर, हमारे यहां 900 रुपए एंट्री फीस लगती है. पहले आप उसे जमा करा दीजिए, उस के बाद जैसा और जिस लड़की से मसाज करवाना चाहेंगे, आप को उस का अलग से पैसा देना होगा.’’

‘‘डोंट वरी,’’ दिनेश ने पैंट की जेब से नोटों से भरा पर्स निकाल कर उस में से 5-5 सौ रुपए के 2 नोट रिसैप्शनिस्ट को देते हुए कहा, ‘‘यह लीजिए, एंट्री फीस.’’

युवती ने एक हजार रुपए कैश काउंटर में रख कर सौ रुपए का नोट लौटाते हुए कहा, ‘‘सर, योर गुडनेम प्लीज.’’

‘‘व्हाय…’’ दिनेश ने सौ रुपए का नोट युवती को देते हुए कहा, ‘‘ये आप के लिए टिप है.’’

‘‘थैंक्स सर,’’ युवती ने कहा, ‘‘हम रजिस्टर मेंटेन करते हैं, इसलिए आप का नाम जानना चाहती हूं.’’

‘‘ठीक है, आप को फार्मैलिटी करनी है तो लिख लीजिए दिनेश फ्राम जयपुर.’’ दिनेश ने जानबूझ कर सरनेम छिपाते हुए कहा.

‘‘सर, आप मोबाइल नंबर भी बता दीजिए तो हम आप को भविष्य में हमारी नई सेवाओं की समयसमय पर जानकारी देते रहेंगे.’’ युवती ने कहा.

‘‘ओह नो, आप अभी मोबाइल नंबर छोडि़ए,’’ दिनेश ने कहा, ‘‘मुझे आप की सर्विसेज पसंद आईं तो मैं खुद ही मौका मिलने पर यहां हाजिर हो जाऊंगा.’’

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‘‘ओके सर, प्लीज सिट औन सोफा,’’ युवती ने कहा, ‘‘हमारी मसाज गर्ल आप को ब्रोशर दिखाएगी. आप उन में से पसंद कर लीजिए कि कौन सी मसाज कराएंगे.’’

दिनेश सामने रखे सोफे पर बैठ गए. रिसैप्शनिस्ट ने इंटरकौम से एक युवती को बुला कर कहा, ‘‘यह सर मसाज कराना चाहते हैं, इन से बात कर लीजिए.’’

चुस्त कपड़े पहने वह युवती ब्रोशर ले कर दिनेश के बगल में बैठ गई और अपने उभारों को दिखाते हुए बोली, ‘‘सर, आप कैसी गर्ल्स से मसाज कराना चाहेंगे, इंडियन बेबी से या फौरनर बेबी से?’’

‘‘वाव, आप के यहां फौरनर गर्ल्स भी हैं?’’ दिनेश ने चौंकते हुए कहा, ‘‘तब तो आज मजा आ जाएगा. लेकिन पहले आप उस ब्यूटी के दीदार तो कराइए.’’

‘‘सर, आप मेरे साथ आइए.’’ युवती ने उठते हुए कहा.

वह युवती दिनेश को पहली मंजिल पर ले गई, जहां गलियारे के दोनों तरफ 8-10 कमरे बने हुए थे. पांच सितारा होटलों की तरह सजे गलियारे और उन कमरों में तमाम सुविधाएं थीं. कमरों में मद्धिम रोशनी के बीच एसी के अलावा बैड, मसाज टेबल और शौवर आदि लगे हुए थे.

खुद को बचाने के लिए मार दिया दोस्त को

कंधे पर बैग टांग कर घर से निकलते हुए राजा ने मां से कहा कि वह 2 दिनों के लिए बाहर जा रहा है तो मां ने पूछा, ‘‘अरे कहां जा रहा है, यह तो बताए जा.’’ लेकिन जब बिना कुछ बताए ही राजा चला गया तो माधुरी ने झुंझला कर कहा, ‘‘अजीब लड़का है, यह भी नहीं बताया कि कहां जा रहा है?’’

यह 19 अक्तूबर, 2016 की बात है. मीरजापुर की कोतवाली कटरा के मोहल्ला पुरानी दशमी में अशोक कुमार का परिवार रहता था. उन के परिवार में पत्नी माधुरी के अलावा 4 बेटों में राजन उर्फ राजा सब से छोटा था. उस की अभी शादी नहीं हुई थी. अशोक कुमार के परिवार का गुजरबसर रेलवे स्टेशन पर चलने वाले खानपान के स्टाल से होता था.

अशोक कुमार के 2 बेटे उन के साथ ही काम करते थे, जबकि 2 बेटे गोपाल और राजा मुगलसराय रेलवे स्टेशन पर स्थित होटल जननिहार में काम करते थे. चूंकि मीरजापुर और मुगलसराय स्टेशन के बीच बराबर गाडि़यां चलती रहती हैं, इसलिए उन्हें आनेजाने में कोई परेशानी नहीं होती थी.

राजा 2 दिनों के लिए कह कर घर से गया था, जब वह तीसरे दिन भी नहीं लौटा तो घर वालों ने सोचा कि किसी काम में लग गया होगा, इसलिए नहीं आ पाया. लेकिन जब चौथे दिन भी वह नहीं आया तो घर वालों को चिंता हुई. दरअसल इस बीच उस का एक भी फोन नहीं आया था. घर वालों ने फोन किया तो राजा का फोन बंद था. जब राजा से बात नहीं हो सकी तो उस की मां माधुरी ने उस के सब से खास दोस्त रवि को फोन किया. उस ने कहा, ‘‘राजा दिल्ली गया है. मैं भी इस समय बाहर हूं.’’

इतना कह कर उस ने फोन काट दिया था. राजा का फोन बंद था, इसलिए उस से बात नहीं हो सकती थी. उस के दोस्त रवि से जब भी राजा के बारे में पूछा जाता, वह खुद को शहर से बाहर होने की बात कह कर राजा के बारे में कभी कहता कि इलाहाबाद में है तो कभी कहता फतेहपुर में है. अंत में उस ने अपना मोबाइल बंद कर दिया.

जब राजा का कहीं पता नहीं चला तो परेशान अशोक कुमार मोहल्ले के कुछ लोगों को साथ ले कर कोतवाली कटरा पहुंचे और राजा के गायब होने की तहरीर दे कर गुमशुदगी दर्ज करा दी.

कोतवाली पुलिस ने गुमशुदगी तो दर्ज कर ली, लेकिन काररवाई कोई नहीं की. इस के बाद अशोक कुमार 26 अक्तूबर को समाजवादी पार्टी के युवा नेता और सभासद लवकुश प्रजापति के अलावा मोहल्ले के कुछ प्रतिष्ठित लोगों को साथ ले कर मीरजापुर के एसपी अरविंद सेन से मिले और उन्हें अपनी परेशानी बताई.

अशोक कुमार की बात सुन अरविंद सेन ने तत्काल कटरा कोतवाली पुलिस को काररवाई का आदेश दिया. कोतवाली पुलिस ने राजा के बारे में पता करने के लिए उस के दोस्त रवि से पूछताछ करनी चाही, लेकिन वह घर से गायब मिला. अब तक राजा को गायब हुए 10 दिन हो गए थे. रवि घर पर नहीं मिला तो पुलिस ने उस का मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगवा दिया, क्योंकि उस ने अपना मोबाइल बंद कर दिया था.

पुलिस की लापरवाही से तंग आ कर बेटे के बारे में पता करने के लिए अशोक कुमार ने अदालत का दरवाजा खटखटाया. मामला न्यायालय तक पहुंचा तो पुलिस ने तेजी दिखानी शुरू की. 28 अक्तूबर, 2016 को राजा के दोस्त रवि और उस के पिता को एसपी औफिस के पास एक मिठाई की दुकान से पकड़ कर कोतवाली लाया गया. लेकिन उन से की गई पूछताछ में कोई जानकारी नहीं मिली तो पुलिस ने उन्हें छोड़ दिया. इसी तरह अगले दिन भी हुआ.

संयोग से उसी बीच एसपी अरविंद सेन ही नहीं, कोतवाली प्रभारी का भी तबादला हो गया. मीरजापुर जिले के नए एसपी कलानिधि नैथानी आए. दूसरी ओर कटरा कोतवाली प्रभारी की जिम्मेदारी इंसपेक्टर अजय श्रीवास्तव को सौंपी गई. अशोक कुमार 9 नवंबर को नए एसपी कलानिधि नैथानी से मिले. एसपी साहब ने तुरंत इस मामले में काररवाई करने का आदेश दिया. उन्हीं के आदेश पर कोतवाली प्रभारी ने अपराध संख्या 1232/2016 पर भादंवि की धारा 364 के तहत मुकदमा दर्ज कर के काररवाई शुरू कर दी.

इस घटना को चुनौती के रूप में लेते हुए एसपी कलानिधि नैथानी ने कोतवाली प्रभारी कटरा, प्रभारी क्राइम ब्रांच स्वाट टीम एवं सर्विलांस को ले कर एक टीम गठित कर दी. इस टीम ने मुखबिरों द्वारा जो सूचना एकत्र की, उसी के आधार पर 14 नवंबर, 2016 को राजा के दोस्त रवि कुमार को मीरजापुर के नटवां तिराहे से गिरफ्तार कर लिया.

उस से राजा के बारे में पूछा गया तो उस ने उस के गायब होने के पीछे की जो कहानी सुनाई, उसे सुन कर पुलिस वाले जहां हैरान रह गए, वहीं रवि के पकड़े जाने की खबर सुन कर कोतवाली आए राजा के घर वाले रो पड़े. क्योंकि उस ने राजा की हत्या कर दी थी.

उत्तर प्रदेश के जिला बुलंदशहर के थाना नरसैना के गांव रूखी के रहने वाले नरेश कुमार पीएसी में होने की वजह से मीरजापुर में परिवार के साथ रहते हैं. वह पीएसी की 39वीं वाहिनी में स्वीपर हैं. रवि कुमार उन्हीं का बेटा था. उस की दोस्ती राजा से हो गई थी, इसलिए कभी वह उस से मिलने मुगलसराय तो कभी उस के घर आ जाया करता था. दोनों में पक्की दोस्ती थी.

रवि का एक चचेरा भाई दीपेश उर्फ दीपू फिरोजाबाद के टुंडला की सरस्वती कालोनी में किराए का कमरा ले कर पत्नी के साथ रहता था. वह वहां दर्शनपाल उर्फ जेपी की गाड़ी चलाता था. जेपी की बहन राजमिस्त्री का काम करने वाले प्रवीण कुमार से प्यार करती थी. यह जेपी को पसंद नहीं था. उस ने बहन को समझाया . बहन नहीं मानी तो प्रेमी से उसे जुदा करने के लिए उस ने प्रवीण कुमार को ठिकाने लगाने का मन बना लिया.

यह काम वह अकेला नहीं कर सकता था, इसलिए उस ने अपने ड्राइवर दीपेश उर्फ दीपू को साथ मिलाया और 13 अक्तूबर, 2016 को बहन के प्रेमी प्रवीण कुमार को अगवा कर लिया. दोनों उसे शहर से बाहर ले गए और गोली मार कर हत्या कर दी. दोनों के खिलाफ इस हत्या का मुकदमा थाना टुंडला में दर्ज हुआ. चूंकि इस मुकदमे में एससी/एसटी एक्ट भी लगा था, इसलिए पुलिस दोनों के पीछे हाथ धो कर पड़ गई. दर्शनपाल उर्फ जेपी तो गिरफ्तार हो गया, लेकिन दीपेश उर्फ दीपू फरार चल रहा था.

पुलिस उस की गिरफ्तारी के लिए जगहजगह छापे मार रही थी. पुलिस दीपेश को तेजी से खोज रही थी. इस स्थिति में पुलिस से बचने के लिए वह मीरजापुर आ गया था. टुंडला में घटी घटना के बारे में उस ने चचेरे भाई रवि को बता कर कहा, ‘‘रवि, मैं बुरी तरह फंस गया हूं. अगर तुम मेरी मदद करो तो मैं बच सकता हूं.’’

इस के बाद राजा और दीपेश ने योजना बनाई कि किसी ऐसे आदमी को खोजा जाए, जिसे टुंडला ले जा कर हत्या कर के उस की लाश को जला दिया जाए और लाश के पास दीपेश अपनी कोई पहचान छोड़ दे, जिस से पुलिस समझे कि लाश दीपेश की है और उस की हत्या हो चुकी है. इस के बाद पुलिस उस का पीछा करना बंद कर देगी.

जब ऐसे आदमी की तलाश की बात आई तो रवि को अपने दोस्त राजा उर्फ राजन की याद आई. क्योंकि राजा का हुलिया दीपेश से काफी मिलताजुलता था. फिर क्या था, दोनों ने राजा को ठिकाने लगाने की योजना बना डाली, उसी योजना के तहत उस ने 18 अक्तूबर को राजा को फोन कर के कहा, ‘‘राजा, हम लोगों ने किराए पर एक गाड़ी की है, जिस से कल यानी 19 अक्तूबर को दिल्ली घूमने चलेंगे. मेरा चचेरा भाई दीपेश भी आया हुआ है, वह भी साथ चलेगा. मैं चाहता हूं कि तुम भी चलो.’’

राजा तैयार हो गया तो रवि ने 19 अक्तूबर, 2016 को पीएसी कालोनी के एक परिचित की गाड़ी बुक कराई और राजा को साथ ले कर दिल्ली के लिए चल पड़ा. योजना के अनुसार रास्ते में पैट्रोल खरीद लिया गया. इस के बाद उन्होंने बीयर खरीदी और राजा को जम कर पिलाई. वह नशे में हो गया तो रात 11 बजे के करीब फिरोजाबाद के थाना पचोखरा के गांव सराय नूरमहल और गढ़ी निर्भय के बीच सुनसान स्थान पर पेशाब करने के बहाने गाड़ी रुकवाई और राजा को उतार कर मारपीट कर पहले उसे बेहोश किया, उस के बाद पैट्रोल डाल कर जला दिया.

जब उन्हें विश्वास हो गया कि राजा मर गया है तो पहचान के लिए दीपेश ने अपना जूता राजा की लाश के पास रख दिया, जिस से बाद में उस लाश की पहचान उस की लाश के रूप में हो. इस के बाद दीपेश ने फिरोजाबाद पुलिस को मोबाइल से फोन कर के कहा, ‘‘मैं दीपेश उर्फ बाबू बोल रहा हूं. 3-4 बदमाश मेरा पीछा कर रहे हैं. मुझे बचा लीजिए अन्यथा ये मुझे मार डालेंगे.’’

जिस जगह पर रवि और दीपेश ने राजा को जलाया था, दीपेश का घर वहां से करीब 8 किलोमीटर दूर था. दीपेश ने इस जगह को यह सोच कर चुना था, जिस से पुलिस को लगे कि वह चोरीछिपे अपने गांव आया था. बदमाशों को पता चल गया तो उन्होंने उसे मार डाला. पुलिस को फोन कर के रवि और दीपेश फरार हो गए. जबकि पुलिस सर्विलांस के माध्यम से लोकेशन के आधार पर उन की तलाश में मीरजापुर से फिरोजाबाद तक उन के पीछे लगी थी. दीपेश तो फरार हो गया, लेकिन रवि मीरजापुर तो कभी सोनभद्र तो कभी सिगरौली जा कर छिपा रहा. आखिर ज्यादा दिनों तक वह पुलिस की नजरों से बच नहीं पाया और 14 नवंबर को उसे पकड़ लिया गया.

पूछताछ के बाद रवि की निशानदेही पर पुलिस ने पैट्रोल का डिब्बा, वह गाड़ी जेस्ट कार संख्या यूपी 63जेड 8586, जिस से वे राजा को ले गए थे, बरामद कर ली. इस के बाद उसे उस स्थान पर भी ले जाया गया, जहां उस ने दीपेश के साथ मिल कर राजा को जलाया था. राजा के पिता अशोक कुमार भी साथ थे, इसलिए उन्होंने राजा के अधजले कपड़ों को पहचान लिया था. पुलिस ने रवि को प्रैसवार्ता में पेश किया, जहां उस ने अपना अपराध स्वीकार कर के हत्या की सारी कहानी सुना दी.

घटना का खुलासा होने के बाद कोतवाली पुलिस ने राजा उर्फ राजन की गुमशुदगी हत्या में तब्दील कर आरोपी रवि को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. दीपेश उर्फ दीपू की तलाश में पुलिस ने ताबड़तोड़ छापे मारने शुरू कर दिए तो दबाव में आ कर उस ने फिरोजाबाद की अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया. अदालत ने उसे जेल भेज दिया था.

नौसिखिया डाक्टरों से आप भी रहें सावधान

अजमत खान उत्तर प्रदेश पुलिस में सर्विलांस ऐक्सपर्ट सिपाही था. वह बुखार से पीडि़त हुआ. 11 अक्तूबर, 2015 को वह उत्तर प्रदेश के जनपद बुलंदशहर के जिला अस्पताल में इलाज के लिए पहुंचा. उस वक्त वहां तैनात इमर्जैंसी प्रभारी डाक्टर सचिन ने अजमत खान को 2 इंजैक्शन लगा दिए. अजमत खान खुश था कि अब उसे आराम मिल जाएगा, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया. घर पहुंचने के 24 घंटे के अंदर ही अजमत खान के बदन में सूजन आ गई. हालत ज्यादा बिगड़ने पर उसे तुरंत एक प्राइवेट अस्पताल में भरती कराया गया. वहां पता चला कि बिना जांचपड़ताल किए और मर्ज को ठीक से समझे बिना ही दिए गए इंजैक्शनों ने उस की यह हालत की थी.

डाक्टर की यह करतूत जब सुर्खियों में आई, तो बजाय कोई कार्यवाही करने के अस्पताल प्रशासन ने उसे छुट्टी पर ही भेज दिया.

उधर अजमत खान का शरीर गलना शुरू हो गया. गंभीर हालत के चलते उसे दिल्ली के अपोलो अस्पताल में भरती कराया गया. उस के शरीर से खून रिसने लगा. वह कोमा में चला गया और उस के गुरदों ने भी काम करना बंद कर दिया. कई दिनों के बाद उस ने दम तोड़ दिया.

मामले ने तूल पकड़ा और आरोपी डाक्टर को मरीज की अनदेखी का जिम्मेदार माना गया. डाक्टर के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर उसे गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया गया. नौसिखिया डाक्टर भी हर बड़ेछोटे अस्पतालों में पाए जाते हैं. कहने को उन के पास डिगरियां होती हैं, लेकिन वे असल होती हैं या थोड़ीबहुत पढ़ाई कर के हासिल की गई होती हैं, इसे कोई नहीं जानता.

कई बार डिगरी लेने के तुरंत बाद ही डाक्टर अपना निजी अस्पताल खोल कर बैठ जाते हैं. वे अनुभव को तवज्जुह नहीं देते, जिस के नतीजे कभीकभी घातक साबित होते हैं.

गाजियाबाद के रहने वाले फूड इंस्पैक्टर शिवराज सिंह दिल की बीमारी से पीडि़त थे. 29 नवंबर, 2015 को उन्होंने एक लैब में ब्लड सैंपल दिया. सैंपल लेने वाला नौजवान नौसिखिया था. उस की लापरवाही से हाथ में इंजैक्शन से हवा चली गई. नतीजतन, शिवराज का हाथ सूज कर नीला पड़ गया.

उस लैब को चलाने वालों ने अपनी लापरवाही से पल्ला झाड़ने की कोशिश की, लेकिन पुलिस को खबर की गई, तो उन्होंने गलती मानी. पता चला कि लोगों का ब्लड सैंपल एक नौसिखिया ले रहा था. उस के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी गई.

बरेली जिले की एक डाक्टर ने तो अनाड़ीपन की हदों को ही लांघ दिया. जचगी के दर्द के बाद नाजिम नामक नौजवान ने अपनी पत्नी मेराज को सुभाष नगर इलाके में डाक्टर राधा शर्मा के घर में बने अस्पताल में भरती कराया. डिलीवरी के दौरान उस से 10 हजार रुपए जमा कराने को कहा गया, जो उस ने जमा करा दिए.

मेराज ने नौर्मल डिलीवरी से एक बेटी को जन्म दिया. डाक्टर ने सिंकाई की बात कह कर नवजात के सीने पर इलैक्ट्रौनिक सिंकाई मशीन रख दी. इस से उस का सीना जल गया. कुछ देर बाद ही उस की मौत हो गई.

मामला बिगड़ने पर डाक्टर राधा शर्मा ने समझौते की कोशिश की, लेकिन इस बात की शिकायत पुलिस से की गई, तो पुलिस ने डाक्टर राधा शर्मा को गिरफ्तार कर लिया.

जांच में पता चला कि राधा शर्मा के पास एक ट्रेनिंग सैंटर से प्रसव सहायक का सर्टिफिकेट था. इस के बल पर उस ने खुद को डाक्टर घोषित कर के घर में ही अस्पताल खोल लिया था.

4 कमरों के अस्पताल में उस ने एक कमरे में ओपीडी बनाई हुई थी. फरवरी महीने में वह 2 नवजात बच्चों की मौत के मामले में जेल गई थी, लेकिन हाईकोर्ट से जमानत ले कर बाहर आ गई थी.

जेल से बाहर आ कर भी डाक्टर राधा शर्मा का अनाड़ीपन खत्म नहीं हुआ और न ही कोई सबक लिया गया. उस ने फिर से नया कारनामा कर दिया. इस के बाद पुलिस ने न केवल उस के अस्पताल को सील कर दिया, बल्कि उसे पेशेवर अपराधी घोषित कर दिया.

सहारनपुर के रहने वाले अनिल कुमार को बुखार था. वह एक डाक्टर के पास पहुंचा. उसे वहां इंजैक्शन लगाया गया. इस के बाद उस की तबीयत अचानक बिगड़ गई और देखते ही देखते उस की मौत हो गई. इस मामले में मुकदमा दर्ज करा दिया गया.

पता चला कि जिस ने अनिल को इंजैक्शन लगाया था, वह नौसिखिया कंपाउंडर टीटू था. बुलंदशहर जिले के किसान छोटू गिरी के 6 साला बेटे अजय की खेलते समय कुहनी की हड्डी टूट गई. वे उसे इलाज के लिए जिला अस्पताल ले गए. डाक्टर ने उस का एक्सरे कराया और प्लास्टर लगा दिया गया. अगले 5 दिनों में आराम मिलना तो दूर अजय की हालत और भी ज्यादा बिगड़ गई.

बाद में उन्होंने दिल्ली ले जा कर बेटे का इलाज कराया, तो पता चला कि डाक्टर ने हड्डी ही गलत तरीके से जोड़ दी थी, जिस की वजह से अजय बहुत परेशान था.

हड्डी जोड़ने वाले उस डाक्टर के खिलाफ पुलिस में शिकायत की गई.

गाजियाबाद जनपद में मोतियाबिंद के आपरेशन के चक्कर में 8 मरीजों की जिंदगी में अंधेरा छा गया. आंखों के एक अस्पताल के बाहर औफर वाला बोर्ड लगा था कि उन के यहां मोतियाबिंद का सफल आपरेशन केवल 2 हजार रुपए में किया जाता है.

डाक्टरों ने एक ही दिन में कई आपरेशन कर डाले. इसे लापरवाही कहें या नौसिखियापन, 8 मरीजों की एक आंख की रोशनी जाती रही. इन मरीजों में फूलवती, राजेंद्री देवी, जगवती, फरजाना, जुम्मन, अमाना खातून, शिक्षा देवी व नेपाल शामिल थे. मामले के खुलने पर अस्पताल के खिलाफ जांच बैठा दी गई.

इस तरह के मामले यह बताने के लिए काफी हैं कि मरीजों की जिंदगी से नौसिखिया डाक्टर किस हद तक खिलवाड़ कर रहे हैं.

लाला लाजपतराय मैडिकल कालेज के सुपरिंटैंडैंट डाक्टर सुभाष सिंह कहते हैं कि किसी डाक्टर को डिगरी मिल जाना ही काफी नहीं होता, उसे प्रैक्टिस भी करनी होती है. डाक्टरी का पेशा गंभीर है. मामूली सी लापरवाही भी किसी मरीज की जिंदगी ले सकती है.

इस मसले पर डाक्टर वीपी सिंह कहते हैं कि किसी डाक्टर पर शक हो, तो उस की जांच कराई जा सकती है. लापरवाही और अनाड़ीपन से बचने के लिए डाक्टर के बारे में उचित जांचपड़ताल भी मरीजों को कर लेनी चाहिए.

हिम्मत ने दिलाई वरदी वालों को सजा

बीकौम की छात्रा स्मिता भादुड़ी न तो कोई पेशेवर अपराधी थी और न ही किसी थाने में उस के खिलाफ कोई केस दर्ज था. उस का गुनाह महज इतना था कि वह अपने दोस्त के साथ कार में बैठ कर बातें कर रही थी. बदमाशों की सूचना पर वहां पहुंचे तथाकथित बहादुर पुलिस वालों ने जोश में आ कर सरकारी असलहे से गोलियां दाग दीं. एक गोली ने स्मिता का सीना चीर दिया.

पुलिस वालों ने ऐसा इसलिए किया, क्योंकि उन के सिर पर ऐनकाउंटर के बदले मैडल और प्रमोशन पाने का जुनून सवार था. बेगुनाह छात्रा की हत्या का मामला सीबीआई को दिया गया. आखिरकार 3 पुलिस वालों को कुसूरवार मान कर उन्हें माली जुर्माने के साथसाथ उम्रकैद की सजा सुनाई गई.

इसे लाचारी, इंसाफ की राह में कानूनी दांवपेंच की चाल कहें या कुछ और, अपनी होनहार बेटी स्मिता को खो चुके परिवार को इंसाफ के लिए 15 साल का लंबा, थकाऊ और पीड़ा देने वाला इंतजार करना पड़ा.

ऐनकाउंटर में शामिल पुलिस वाले इस दौरान न केवल आजाद रहे, बल्कि बचने के लिए तरहतरह के हथकंडे अपनाते रहे. इतना ही नहीं, लंबे वक्त में मजे से नौकरी कर के वे अपने पदों से रिटायर भी हो गए.

पुलिस के डरावने चेहरे से रूबरू हुए स्मिता के परिवार के दर्द का हिसाब शायद कोई कानून नहीं दे सकता है. कुसूरवार पुलिस वाले अब सलाखों के पीछे हैं.

इस मामले से सीख भी मिलती है कि किसी की जान की कीमत पर मैडल व प्रमोशन पाने की ख्वाहिश देरसवेर सलाखों के पीछे पहुंचा कर भविष्य अंधकारमय भी कर देती है.

यों मारी गई होनहार छात्रा

स्मिता ऐनकाउंटर मामला रोंगटे खड़े कर देता है. स्मिता भादुड़ी उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले की मोदी कालोनी में रहती थी. उस के पिता एसके भादुड़ी मोदी कंपनी में बतौर इंजीनियर थे. उन के परिवार में पत्नी प्रतिमा के अलावा 2 बेटियां थीं, बड़ी प्रीति और छोटी स्मिता. उन का एक बेटा सुप्रियो भी था.

21 साला स्मिता बीकौम के आखिरी साल की छात्रा थी. स्मिता की दोस्ती मोहित त्योगी से थी. दोनों के बीच मुलाकातें होती रहती थीं. साल 2000 में 14 जनवरी की सर्द शाम थी वह. स्मिता अपने घर से मोहित से मिलने के लिए निकली. वे दोनों कार नंबर यूपी15जे-0898 से घूमने निकल गए.

दिल्लीदेहरादून हाईवे से सटे गांव सिवाया की कच्ची सड़क पर कार रोक कर वे बातें करने लगे. वहां कार खड़ी देख किसी ने बदमाश होने के शक में पुलिस को खबर दे दी.

इसी बीच शाम के तकरीबन साढ़े 7 बजे इलाकाई थाना दौराला इंस्पैक्टर अरुण कौशिक, सिपाही भगवान सहाय व सुरेंद्र के साथ जीप ले कर वहां पहुंच गए. उन्होंने सोचा कि कोई बड़ा गैंग होगा. अपने पीछे पुलिस की गाड़ी देख मोहित ने कार आगे बढ़ा दी. इस पर पुलिस वालों ने पीछा करते हुए एकसाथ 11 गालियां दाग दीं. गोलियां कार पर भी लगीं और एक गोली ने स्मिता के सीने को चीर दिया. कुछ ही देर में उस की मौत हो गई.

बुरी तरह घबराया मोहित कार रोक कर सरैंडर करने की मुद्रा में फौरन बाहर आ गया. पुलिस वालों ने उसे पीटपीट कर दोहरा कर दिया. इस बीच इंस्पैक्टर अरुण कौशिक ने पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना दे दी थी कि बदमाशों से मुठभेड़ हो गई है और दोनों तरफ से गोलीबारी हो रही है.

मौके पर पहुंचे तब के एसएसपी आरपी सिंह को भी गुमराह करने की कोशिश की गई, लेकिन दहशतजदा मोहित की जबानी हकीकत खुलते ही सभी के होश उड़ गए.

छींटदार सलवारसूट व सफेद रंग का कार्डिगन पहने खून से लथपथ स्मिता कार की सीट पर पड़ी थी. नासमझी का परिचय दे कर इंस्पैक्टर ने खून से अपने हाथ रंग लिए थे. बेगुनाह छात्रा की मौत पर तीनों पुलिस वालों को फौरन सस्पैंड कर दिया गया.

जिन दिनों यह ऐनकाउंटर हुआ था, उन दिनों पुलिस वालों के सिर पर जुनून सवार था कि ऐनकाउंटर करो और प्रमोशन पाओ. दरअसल, पुलिस की नौकरी में थोड़ी बहादुरी से प्रमोशन पा लिया जाता था. इंस्पैक्टर अरुण कौशिक भी इसी फोबिया के शिकार थे. पुलिस ने समझदारी दिखाई होती, तो स्मिता आज जिंदा होती.

चश्मदीद गवाह मोहित की तरफ से इंस्पैक्टर अरुण कौशिक, सिपाही भगवान सहाय व सुरेंद्र के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर लिया गया. खाकी पर खून के छींटे लगने का मामला तूल पकड़ गया. तीनों आरोपियों को जेल भेज दिया गया.

इंसाफ की लंबी लड़ाई

यह मामला उस समय के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी तक पहुंचा, तो केस सीबीआई को चला गया. सीबीआई 3 साल तक जांच करती रही. इस बीच तीनों आरोपी जेल से छूट गए और बहाली पा कर नौकरी करने लगे. इतना ही नहीं, इंस्पैक्टर अरुण कौशिक सीओ भी बन गए.

केस वापस लेने के लिए सीबीआई ने 26 फरवरी, 2004 को कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की. अदालत में सुनवाई कई साल चलती रही. आरोपी पुलिस वालों ने पीडि़त परिवार पर कई तरह से दबाव बनाया. मोहित को डरायाधमकाया गया, लेकिन इंसाफ की आस में उस ने हार नहीं मानी. तीनों आरोपियों ने मामले को खत्म करने के लिए हाईकोर्ट से स्टे ले लिया और मजे से नौकरी की.

आरोपियों ने कानूनी हथकंडे अपना कर अदालत बदलने की मांग की और कई सुनवाई पर पेश नहीं हुए. नौकरी कर के तीनों रिटायर भी हो गए.

सालों चले केस में गाजियाबाद स्थित सीबीआई की विशेष अदालत ने हत्या, जानलेवा हमले व मारपीट का कुसूरवार करार देते हुए आखिरकार 14 दिसंबर, 2015 को तीनों आरोपियों को उम्रकैद व डेढ़डेढ़ लाख रुपए जुर्माने की सजा सुनाई.

जज नवनीत कुमार ने अपनी टिप्पणी में कहा कि मामला विरल से विरलतम अपराध की श्रेणी में आता है. वरिष्ठ लोक अभियोजन अधिकारी कुलदीप पुष्कर की इस मामले में अदालत में दी गई यह दलील माने रखती है कि पुलिस का काम कानून का पालन करना और कराना है. अगर पुलिस ही कानून का पालन न करे और कानून का गलत इस्तेमाल कर किसी की हत्या कर दे, तो ऐसे हालात में समाज में दहशत फैलती है.

कुसूरवार पुलिस वालों पर आरोप साबित होने में 15 साल, 9 महीने और 16 दिन लग गए. सजा होते ही तीनों को डासना जेल भेज दिया गया.

दर्द से गुजरा परिवार

बेटी की मौत से दुखी भादुड़ी परिवार जिस गम, दहशत और दर्द के दरिया से गुजरा, उस की भरपाई कानून की कोई धारा नहीं करती. पुलिस का घिनौना रूप आज भी उन्हें डराने का काम करता है. उन चंद लफ्जों ने इंजीनियर एसके भादुड़ी की दुनिया हिला दी थी, जब एक पुलिस अफसर ने उन से कहा, ‘आप की बेटी को पुलिस ने गलती से गोली मार दी है और उस की मौत हो गई है.’

उस रात की यादें कोई नहीं भुला पाता. सिरफिरे पुलिस वालों की करतूत से हंसतेखेलते परिवार पर स्मिता की मौत के साथ ही गम व मुसीबतों का पहाड़ टूट गया.

बेटी स्मिता की मौत के गम में मां प्रतिमा भादुड़ी डिप्रैशन में आ गईं. लाख समझाने पर भी वे बेटी का दर्द नहीं भुला सकीं. ज्यादा दवाओं के सेवन से उन का लिवर खराब हो गया. वे बीमार हुईं, तो इलाज कराया गया. परिवार माली रूप से परेशान हो गया. बाद में साल 2011 में उन की मौत हो गई.

स्मिता का भाई सुप्रियो ग्राफिक डिजाइनर है. दोनों बापबेटे अकेले रहते हैं. अदालत के फैसले से वे खुश तो हैं, लेकिन कहते हैं कि ऐसा करने वालों को फांसी होनी चाहिए थी.

क्या सबक लेगी पुलिस

स्मिता का मामला उन पुलिस वालों के लिए एक सबक है, जो वरदी की हनक में बिना सोचेसमझे कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं. मानवाधिकार उल्लंघन के मामले में अव्वल दर्जा हासिल कर रही उत्तर प्रदेश पुलिस में ऐसे पुलिस वालों की एक बड़ी जमात है, जो गंभीर आरोपों से दामन दागदार किए हुए है. उन के कारनामे जनता में डर पैदा करते हैं.

पुलिस से आम आदमी कितना सुरक्षित महसूस करता है, इस का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि लोग आज भी थाने में आने से डरते हैं. पुलिस अगर बेगुनाहों के खून से हाथ रंगने लगे, तो बात सोचने वाली हो जाती है. स्मिता का मामला सबक जरूर देता है कि गलत कामों की सजा देरसवेर मिलती जरूर है. इस मामले में पुलिस वाकई सबक लेगी, इस में शक है.

पटरियों पर बलात्कार : समाज में होता अपराध – भाग 1

31 अक्तूबर, 2017 की शाम भोपाल में खासी चहलपहल थी. ट्रैफिक भी रोजाना से कहीं ज्यादा था. क्योंकि अगले दिन मध्य प्रदेश का स्थापना दिवस समारोह लाल परेड ग्राउंड में मनाया जाना था. सरकारी वाहन लाल परेड ग्राउंड की तरफ दौड़े जा रहे थे.

सुरक्षा व्यवस्था के चलते यातायात मार्गों में भी बदलाव किया गया था, जिस की वजह से एमपी नगर से ले कर नागपुर जाने वाले रास्ते होशंगाबाद रोड पर ट्रैफिक कुछ ज्यादा ही था. इसी रोड पर स्थित हबीबगंज रेलवे स्टेशन के बाहर तो बारबार जाम लगने जैसे हालात बन रहे थे.

एमपी नगर में कोचिंग सेंटर और हौस्टल्स बहुतायत से हैं, जहां तकरीबन 85 हजार छात्रछात्राएं कोचिंग कर रहे हैं. इन में लड़कियों की संख्या आधी से भी अधिक है. आसपास के जिलों के अलावा देश भर के विभिन्न राज्यों के छात्र यहां नजर आ जाते हैं.

शाम होते ही एमपी नगर इलाका छात्रों की आवाजाही से गुलजार हो उठता है. कालेज और कोचिंग आतेजाते छात्र दीनदुनिया की बातों के अलावा धीगड़मस्ती करते भी नजर आते हैं. अनामिका भी यहीं के एक कोचिंग सेंटर से पीएससी की कोचिंग कर रही थी. अनामिका ने 12वीं पास कर एक कालेज में बीएससी में दाखिला ले लिया था.

उस का मकसद एक अच्छी सरकारी नौकरी पाना था, इसलिए उस ने कालेज की पढ़ाई के साथ प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी शुरू कर दी थी. सर्दियां शुरू होते ही अंधेरा जल्दी होने लगा था. इसलिए 7 बजे जब कोचिंग क्लास छूटी तो अनामिका ने जल्द हबीबगंज रेलवे स्टेशन पहुंचने के लिए रेलवे की पटरियों वाला रास्ता चुना.

रेलवे लाइनें पार कर शार्टकट रास्ते से जाती थी स्टेशन

अनामिका विदिशा से रोजाना ट्रेन द्वारा अपडाउन करती थी. उस के पिता भोपाल में ही रेलवे फोर्स में एएसआई हैं और उन्हें हबीबगंज में ही स्टाफ क्वार्टर मिला हुआ है पर वह वहां जरूरत पड़ने पर ही रुकती थी. उस की मां भी पुलिस में हवलदार हैं.

कोचिंग से छूट कर अनामिका हबीबगंज स्टेशन पहुंच कर विदिशा जाने वाली किसी भी ट्रेन में बैठ जाती थी. फिर घंटे सवा घंटे में ही वह घर पहुंच जाती थी, जहां उस की मां और दोनों बड़ी बहनें उस का इंतजार कर रही होती थीं.

रोजाना की तरह 31 अक्तूबर को भी वह शार्टकट के रास्ते से हबीबगंज स्टेशन की तरफ जा रही थी. एमपी नगर से ले कर हबीबगंज तक रेल पटरी वाला रास्ता आमतौर पर सुनसान रहता है. केवल पैदल चल कर पटरी पार करने वाले लोग ही वहां नजर आते हैं. बीते कुछ सालों से रेलवे पटरियों के इर्दगिर्द कुछ झुग्गीबस्तियां भी बस गई हैं, जिन मेें मजदूर वर्ग के लोग रहते हैं. यह शार्टकट अनामिका को सुविधाजनक लगता था, क्योंकि वह उधर से 10-12 मिनट में ही रेलवे स्टेशन पहुंच जाती थी.

अनामिका एक बहादुर लड़की थी. मम्मीपापा दोनों के पुलिस में होने के कारण तो वह और भी बेखौफ रहती थी. शाम के वक्त झुग्गीझोपडि़यों और झाडि़यों वाले रास्ते से किसी लड़की का यूं अकेले जाना हालांकि खतरे वाली बात थी, लेकिन अनामिका को गुंडेबदमाशों से डर नहीं लगता था.

उस वक्त उस के जेहन में यही बात चल रही थी कि विदिशा जाने के लिए कौनकौन सी ट्रेनें मिल सकती हैं. वैसे शाम 6 बजे के बाद विदिशा जाने के लिए 6 ट्रेनें हबीबगंज से मिल जाती हैं, इसलिए नियमित यात्रियों को आसानी हो जाती है. नियमित यात्रियों की भी हर मुमकिन कोशिश यही रहती है कि जल्दी प्लेटफार्म तक पहुंच जाएं. शायद देरी से चल रही कोई ट्रेन खड़ी मिल जाए और ऐसा अकसर होता भी था कि प्लेटफार्म तक पहुंचतेपहुंचते किसी ट्रेन के आने का एनाउंसमेंट सुनाई दे जाता था.

एमपी नगर से कोई एक किलोमीटर पैदल चलने के बाद ही रेलवे के केबिन और दूसरी इमारतें नजर आने लगती हैं तो आनेजाने वालों को उन्हें देख कर बड़ी राहत मिलती है कि लो अब तो पहुंचने ही वाले हैं.

बदमाश ने फिल्मी स्टाइल में रोका रास्ता

यही उस दिन अनामिका के साथ हुआ. पटरियों के बीच चलते स्टेशन की लाइटें दिखने लगीं तो उसे लगा कि वक्त पर प्लेटफार्म पहुंच ही जाएगी. जब दूर से आरपीएफ थाना दिखने लगा तो अनामिका के पांव और तेजी से उठने लगे.

लेकिन एकाएक ही वह अचकचा गई. उस ने देखा कि गुंडे से दिखने वाले एक आदमी ने फिल्मी स्टाइल में उस का रास्ता रोक लिया है. अनामिका यही सोच रही थी कि क्या करे, तभी उस बदमाश ने उस का हाथ पकड़ लिया. आसपास कोई नहीं था और थीं भी तो सिर्फ झाडि़यां, जो उस की कोई मदद नहीं कर सकती थीं. अनामिका के दिमाग में खतरे की घंटी बजी, लेकिन उस ने हिम्मत नहीं हारी और उस बदमाश से अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश करने लगी.

प्रकृति ने स्त्री जाति को ही यह खूबी दी है कि वह पुरुष के स्पर्श मात्र से उस की मंशा भांप जाती है. अनामिका ने खतरा भांपते हुए उस बदमाश से अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश तेज कर दी. अनामिका ने उस पर लात चलाई, तभी झाडि़यों से दूसरा गुंडा बाहर निकल आया. तुरंत ही अनामिका को समझ आ गया कि यह इसी का ही साथी है.

मदद के लिए चिल्लाने का कोई फायदा नहीं हुआ

अभी तक तीनों रेल की पटरियों के नजदीक थे, जहां कभी भी कोई ट्रेन आ सकती थी. बाहर आए दूसरे गुंडे ने भी अनामिका को पकड़ लिया और दोनों उसे घसीट कर नजदीक बनी पुलिया की तरफ ले जाने लगे. अनामिका ने पूरी ताकत और हिम्मत लगा कर उन से छूटने की कोशिश की पर 2 हट्टेकट्टे मर्दों के चंगुल से छूट पाना अब नाममुकिन सा था. अनामिका का विरोध उन्हें बजाए डराने के उकसा रहा था, इसलिए वे घसीटते हुए उसे पुलिया के नीचे ले गए.

उन्होंने अनामिका को लगभग 100 फुट तक घसीटा लेकिन इस दौरान भी अनामिका हाथपैर चलाती रही और मदद के लिए चिल्लाई भी लेकिन न तो उस का विरोध काम आया और न ही उस की आवाज किसी ने सुनी.

आखिरकार अनामिका हार गई. दोनों गुंडों ने उस के साथ बलात्कार किया. इस बीच वह इन दोनों के सामने रोईगिड़गिड़ाई भी. इतना ही नहीं, उस ने अपनी हाथ घड़ी, मोबाइल फोन और कान के बुंदे तक उन के हवाले कर दिए पर इन गुंडों का दिल नहीं पसीजा. ज्यादती के पहले ही खींचातानी में अनामिका के कपड़े तक फट चुके थे.

उन दोनों की बातचीत से उसे इतना जरूर पता चल गया कि इन बदमाशों में से एक का नाम अमर और दूसरे का गोलू है. जब इन दोनों ने अपनी कुत्सित मंशाएं पूरी कर लीं तो अनामिका को लगा कि वे उसे छोड़ देंगे. इस बाबत उस ने उन दरिंदों से गुहार भी लगाई थी.

पटवारी की दुधारी तलवार से बच कर रहना

‘साहब, मैं कभी पाकिस्तान तो क्या, प्रदेश के किसी दूसरे जिले में भी नहीं गया. जैसेतैसे कर के मैं अपने परिवार की गाड़ी खींच रहा हूं.’’ हाथ बांधे सुलेमान बाड़मेर के तत्कालीन एसडीएम की अदालत में गिड़गिड़ा रहा था. यह सन 1975 के शुरुआती दिनों की बात है.

‘‘सुलेमान, तुम्हारे इलाके के पटवारी ने रिपोर्ट दी है कि तुम कुछ दिनों पहले अनाधिकृत रूप से पाकिस्तान भाग गए थे. इसलिए तुम्हारी पुश्तैनी कृषि भूमि को राजस्थान टीनेंसी एक्ट के तहत जब्त किए जाने की काररवाई विचाराधीन है.’’ उपखंड अधिकारी ने कहा.

सुलेमान फिर गिड़गिड़ाया, ‘‘साहब, पाकिस्तान भाग जाने का आरोप झूठा है. हां, उन दिनों मैं रोजीरोटी के लिए परिवार के साथ कहीं दूसरी जगह जरूर चला गया था. पटवारीजी ने मेरे बारे में झूठी रिपोर्ट दी है. गरीब होने के कारण मैं उन की सेवा नहीं कर सकता. इसीलिए उन्होंने नाराज हो कर झूठ लिख दिया है.’’

एसडीएम सुलेमान की फाइल फिर से पलटने लगे. तहसीलदार के निर्णय के खिलाफ सुलेमान ने एसडीएम की अदालत में अपील की थी. आखिरकार एसडीएम ने सुलेमान की गैरहाजिरी में उस की 24 बीघा कृषि भूमि को जब्त कर सरकारी घोषित कर दिया था. तारीख पेशी की जानकारी नहीं होने के कारण सुलेमान उस दिन अदालत में नहीं था.

सुलेमान को जब यह जानकारी मिली तो उसे बड़ा धक्का लगा. उस ने अपनी व्यथा अपने पड़ोसी चौथमल को बताई. चौथमल उस के साथ हुई नाइंसाफी से द्रवित हो उठा. उस ने सुलेमान को राजस्थान हाईकोर्ट जाने की सलाह दी. इतना ही नहीं, वह सुलेमान के साथ जोधपुर स्थित हाईकोर्ट गया और एसडीएम के आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट की सिंगल बेंच में अपील दायर कर दी. वहां भी कई सालों तक केस चला.

अंत में वहां का फैसला भी सुलेमान के पक्ष में नहीं आया. इस के बाद चौथमल ने हाईकोर्ट की ही डबल बेंच में अपील दाखिल करा दी.

पिछले महीने खंडपीठ के माननीय न्यायाधीश गोविंद माथुर और एस.पी. शर्मा ने सिंगल बेंच के आदेश को निरस्त करते हुए आदेश दिया कि किसी नागरिक के देश में किसी अन्य क्षेत्र में चले जाने से उस के खिलाफ टीनेंसी एक्ट की काररवाई अनुचित है. आदेश सुनते ही सुलेमान की आंखों में खुशी के आंसू छलक आए.

राजस्व विभाग के अंतिम छोर के प्यादे ‘पटवारी’ की गलत रिपोर्ट के कारण गरीब सुलेमान 40 सालों तक अदालतों के धक्के खाता रहा. यह तो पटवारी के क्रियाकलापों की बानगी मात्र है, लेकिन राजस्थान के ही हनुमानगढ़ के पटवारी ने अधिकारियों व अन्य लोगों से सांठगांठ कर के फरजीवाड़े का जो खेल खेला, सुन कर आप जरूर चौंक जाएंगे.

देहातों में आज भी बरसों पुरानी एक लोकोक्ति प्रचलित है, ‘ऊपर करतार, नीचे पटवार’. यहां पटवार का मतलब पटवारी यानी लेखपाल से है. लेखपाल राजस्व महकमे का प्यादा होता है. ब्रिटिश हुकूमत काल में कृषि संबंधी लेखाजोखा व लगान वसूली अमीन करता था, जो पटवारी का ही पर्याय होता था. तहसील के मामलों में पटवारी की जांच आख्या को महत्त्वपूर्ण माना जाता है. अपने स्वार्थ की वजह से कुछ पटवारी अपनी कलम से स्याह को सफेद और सफेद को स्याह करने से नहीं चूकते.

राजस्थान प्रदेश का एक जिला है हनुमानगढ़. इसी जिले की पीलीबंगा तहसील का गांव है पड़ोपल बारानी. 10-12 हजार की आबादी वाले इस गांव की कृषि भूमि किलाबंदी के अभाव में आज भी खसरों में समाहित है. इस क्षेत्र में कभी घग्घर नदी का बहाव था, जिस से क्षेत्र की लाल व दोमट मिट्टी बारानी होने के बावजूद बहुत उपजाऊ है. इसी कारण यहां की कृषि भूमि जिले के और क्षेत्रों की अपेक्षा कुछ महंगी है.

सन 2012 के आसपास का वाकया है. इस क्षेत्र में पटवारी संजीव मलिक की नियुक्ति हुई. कहा जाता है कि अनुकंपा के आधार पर नौकरी पाने वाले संजीव की पहुंच राष्ट्रीय स्तर की एक राजनीतिक पार्टी के आला पदाधिकारियों तक थी. शातिरदिमाग संजीव मलिक की ऊंची महत्त्वाकांक्षाएं थीं. अपने क्षेत्र की सरकारी भूमि खाली देख कर उस की आंखें चमक उठीं. वह भूमि उसे सोने का अंडा देने वाली मुरगी नजर आ रही थी.

पर वह सोने के अंडे देने वाली मुरगी उसे उच्चाधिकारियों के सहयोग के बिना मिलनी असंभव थी. इस बेशकीमती कृषि भूमि के सहारे उस ने करोड़पति बनने का सपना संजो लिया था. इस के लिए उस ने दिमागी घोड़े दौड़ाने शुरू कर दिए.

अधिकारियों से संबंध बनाने के लिए उस ने अपने घर पर एक पार्टी का आयोजन किया, जिस में कानूनगो से ले कर एसडीएम तक को आमंत्रित किया. कुल मिला कर 15 मेहमान जुटे.

भोज छोटा था, पर मकसद बहुत ऊंचा था. शाही दावत के रूप में आयोजित इस भोज में संजीव ने शराब और कबाब की भी व्यवस्था की थी. सभी मेहमानों ने इस भोज की जी खोल कर प्रशंसा की.

दावत खाने के बाद विदा होते समय एक अधिकारी ने संजीव का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा, ‘‘भई मान गए संजीव, तुम्हारी जिंदादिली को. तुम्हारा प्रोग्राम बहुत अच्छा रहा. सचमुच मजा आ गया.’’

‘‘साहब, यह आप की ही कृपा का फल है और उम्मीद है कि इस नाचीज पर भविष्य में भी आप की कृपा बनी रहेगी.’’ उचित अवसर देख कर संजीव ने साहब का हाथ दबाते हुए दिल की मंशा जाहिर कर दी.

‘‘हां..हां… क्यों नहीं, कल सुबह औफिस में आ जाना. बैठ कर बातें करेंगे.’’ अधिकारी ने कहा.

संजीव का फेंका गया दूसरा पांसा भी सटीक पड़ा था. अगले दिन संजीव अपने अधिकारी के औफिस चला गया. दोनों में आधे घंटे तक गुफ्तगू होती रही. संजीव ने अपनी सोच जाहिर की तो साहब ने उस पर अपनी मौन स्वीकृति दे दी. पटवारी संजीव की भावी योजना में साहब की सीधे कोई भूमिका नहीं थी. केवल उन्हें चुप रहते हुए अपनी आंखें बंद रखनी थीं.

इस के बाद पटवारी संजीव ने अधिकारियों से सांठगांठ कर फरजी तरीके से भू आवंटन करना शुरू कर दिया. जो कोई उस का विरोध करता, वह मोटे गिफ्ट दे कर उस का मुंह बंद कर देता.

राजस्व विभाग में कामयाबी मिलने के बाद संजीव मलिक ने अगला कदम बैंकिंग प्रबंधन में पैठ बढ़ाने के लिए उठाया. शातिर संजीव ने एकदो व्यापारी मित्रों के सहयोग से इलाके के बैंक मैनेजरों को पटा लिया. वर्तमान में देश के सभी राष्ट्रीयकृत व सहकारी बैंक किसानों को उन की जोत वाली कृषि भूमि पर ऋण उपलब्ध करवा रहे हैं. हर बैंक का कृषक ऋण का कोटा निश्चित होता है. इसी का फायदा संजीव ने उठाया.

संजीव की सांठगांठ से बैंककर्मियों को दोहरा लाभ हो रहा था. एक तो उन का ऋण आवंटन का कोटा सहजता से पूरा हो रहा था, ऊपर से जेब भी गरम हो रही थी. जिस खेती की जमीन पर बैंक लोन देती थी, बैंककर्मी उस का सत्यापन बैंक में बैठेबैठे ही पूरा कर के रिपोर्ट लगा देते थे.

संजीव मलिक ने शुरू में अपने खासमखास छुटभैया नेता ओमप्रकाश व उस के भाई के सहयोग से भरोसेमंद ग्राहकों को फांसा. बाद में उस के नेटवर्क में अन्य क्षेत्रीय राजनेता भी जुड़ गए. संजीव ने ओमप्रकाश व उस के भाई के नाम 56 बीघा कृषि भूमि इंद्राज कर के उन्हें खातेदार घोषित किया. इतना ही नहीं, दोनों ही भाइयों के नाम से 10 लाख 29 हजार रुपए व साढ़े 8 लाख रुपए का कृषि ऋण भी एक बैंक से दिला दिया.

इसी प्रकार खसरा नंबर 1236 में मात्र 2 बिस्वा (1 बीघा का दसवां हिस्सा) रकबा राजकीय दर्ज था. पर लेखपाल से मिलीभगत कर इस खसरा में 40 बीघा रकबा दर्ज दिखा कर दोनों भाइयों के नाम 20-20 बीघा खातेदारी घोषित कर दी गई.

राजस्थान में प्रदेश सरकार राजस्व विभाग की सहायता से समयसमय पर जायज भूमिहीन कृषकों को भूमि आवंटन व निर्धारित दर से भूमि विक्रय करती है. भू आवंटन हेतु एसडीएम की अध्यक्षता में गठित कमेटी भू आवंटन करती है. क्षेत्र के भू अभिलेख निरीक्षक (कानूनगो), हलका पटवारी से संबंधित भूमि व कृषक की रिपोर्ट से संतुष्ट होने पर एसडीएम किसान को भू आवंटन करता है.

इस आवंटन का इंद्राज पटवार परत व सरकार परत में इंतकाल के रूप में दर्ज किया जाता है. इंतकाल की प्रक्रिया पूरी होने के साथ किसान भूमि का मालिकाना हक पा जाता है. पटवार परत जिसे आम बोलचाल में बही कहते हैं, वह पटवारी के पास तहसील कार्यालय में रहती है.

पटवारी के चोले में छिपा संजीव मलिक अब भू माफिया बन चुका था. अपेक्षित स्तर पर मिल रहे सहयोग के बल पर वह फरजी भू आवंटन से बेशुमार दौलत कमा रहा था. सन 2015 के अगस्त माह का वाकया है. क्षेत्र का एक किसान हेतराम संजीव मलिक से मिला. उस ने गिड़गिड़ाते हुए कहा, ‘‘पटवारीजी, गरीब आदमी हूं. मुझे भी एक मुरब्बा खातेदारी अलाट करवा दो.’’

‘‘देखो हेतराम, एक मुरब्बा का रेट 7 लाख है. तुम गरीब आदमी हो, इसलिए तुम्हारे 5 लाख लगेंगे. पैसे ले आओ, तुम्हारा काम कर दूंगा.’’

‘‘साहब, 5 लाख तो दूर, मेरे पास तो एक लाख भी नहीं हैं.’’

‘‘देखो हेतराम, पैसे ऊपर तक देने पड़ते हैं. तुम जैसे भी हो, पैसों की व्यवस्था कर लो. बाद में तुम्हें बैंक से केसीसी दिला दूंगा. इस से तुम्हारी जेब में 2-3 लाख ज्यादा आ जाएंगे.’’ संजीव ने कहा.

हेतराम ने जैसेतैसे कर मोटे ब्याज पर रुपए ले कर पटवारी को सौंप दिए. एक पखवाड़े में ही हेतराम एक मुरब्बा कृषि भूमि का मालिक बन गया. पटवारी संजीव मलिक ने हेतराम को उसी जमीन पर 8 लाख रुपए का लोन भी दिलवा दिया था. उस में से उस ने अपने हिस्से के 5 लाख रुपए ले लिए.

समय गुजरता रहा और पटवारी के ग्राहकों की संख्या बढ़ती रही. सूची में क्षेत्र के लोगों के अलावा एकचौथाई कृषक खातेदारी अधिकारों से वंचित हैं. ऐसे कृषकों को बैंकों के कृषि लोन या अन्य योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता था.

जब उन लोगों को पता चला कि पटवारी संजीव जरूरतमंद व्यक्तियों के बजाए अन्य लोगों को लाभ पहुंचा रहा है तो उन्होंने खातेदारी अधिकार के लिए आंदोलन शुरू कर दिया. अप्रैल, 2016 के दूसरे पखवाड़े में शुरू हुए इस आंदोलन में किसानों ने खातेदारी के साथसाथ पटवारी संजीव के कारनामे की जांच व तबादले की मांग भी जोड़ दी.

आंदोलन उग्र होता, इस से पहले ही जिला प्रशासन हरकत में आ गया. तत्कालीन जिलाधिकारी रामनिवास ने इस पूरे मामले की जांच मोहर के एडीएम सुखवीर सिंह चौधरी को सौंप दी. एडीएम ने व्यापक स्तर पर हुए भू घोटाले की जांच हेतु 2 जांच टीमें गठित कीं. पहली टीम में इंसपेक्टर राम सिंह मंद्रा के साथ पटवारी जसवंत सिंह, विनोद कुमार तथा दूसरी में इंसपेक्टर देवीलाल धिंपा के साथ हंसराज व राजकुमार को शामिल किया गया.

जांच टीमों ने सन 2005 से ले कर 2015 तक के तमाम खातों व जमा बंदियों की जांच की. जांच के दौरान पता चला कि आवंटित खसरों में अनुचित रूप से कांटछांट कर अन्य किसानों के नाम जोड़ दिए गए थे. फरजी स्तर पर खातेदारी अधिकार रेवडि़यों की तरह बांटे गए थे.

एडीएम सुखवीर सिंह ने बारीकी से जांच कर 40 पेज की रिपोर्ट तैयार कर के जिलाधिकारी के सामने प्रस्तुत की. रिपोर्ट के अनुसार, पटवारी व अन्य ने अनधिकृत रूप से 41 खाते जोड़े थे. कंप्यूटराइज जमा बंदियों में संविदाकर्मी उमाराम व संजीव मलिक के फरजीवाड़े को इंसपेक्टर उमाराम द्वारा आंखें मूंद कर तसदीक किए जाने का उल्लेख रिपोर्ट में था.

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि सन 1998 से ले कर 2001 तक की पटवार परत/सरकार परत कार्यालय में नहीं मिली. रकबा उपलब्ध नहीं होने के बावजूद फरजी ढंग से पटवार परत में कांटछांट व ओवरराइटिंग कर के किसानों को भू आवंटन किया गया.

जिलाधिकारी ने जांच रिपोर्ट के आधार पर तहसीलदार पीलीबंगा को 9 कर्मचारियों व 67 लाभान्वितों के खिलाफ आपराधिक मुकदमा दर्ज करवाने के आदेश दिए. इन में 5 महिलाएं भी थीं. इस जांच रिपोर्ट में पीलीबंगा के तत्कालीन उपखंड अधिकारी व तहसीलदार की भूमिका पर कोई टिप्पणी नहीं की गई थी.

पीलीबंगा के तत्कालीन तहसीलदार बसंत सिंह ने 23 अप्रैल, 2016 को थाने में भू अभिलेख निरीक्षक (कानूनगो) बनवारीलाल, जगदीश बैन, बृजलाल शर्मा, मदनलाल, उमाराम व 4 पटवारियों संजीव, वेदप्रकाश, रामचंद्र व ओमप्रकाश ताखर सहित 76 लोगों के विरुद्ध भांदंवि की धारा 420, 409, 467, 468, 471, 167 व 120बी के तहत रिपोर्ट दर्ज करा दी.

एक आरोपी महिला कृषक चंद्रावली जाट जो एक क्षेत्रीय नेताजी की मां है, को 8 खसरों में लगभग 65 बीघा रकबा आवंटित किया गया था. इस रकबे पर लाखों रुपए का कृषि लोन भी लिया गया था.

मुकदमा दर्ज होते ही राजस्व विभाग ने पटवारी संजीव मलिक को अपदस्थ कर दिया था. पर संजीव मलिक राजस्थान उच्च न्यायालय में राजनीतिक द्वेष का हवाला दे कर राहत पाने में सफल हो गया. मुकदमा दर्ज होते ही नामजद लोगों की नींद उड़ गई. संजीव मलिक के कृत्य से आहत किसानों ने अप्रैल में ही उच्च न्यायालय की शरण ली.

माननीय उच्च न्यायालय ने सुनवाई के बाद अक्तूबर, 2016 में जांच अधिकारी सीओ पीलीबंगा को तलब कर लिया. उच्च न्यायालय के दखल के बाद धीमी गति से चल रही पुलिस जांच में तेजी आ गई. सीओ विजय मीणा के निर्देश पर एएसआई हंसराज, हैडकांस्टेबल लिघमन, सुरेंद्र, अमीलाल व बलतेज सिंह ने नामजद पटवारी संजीव मलिक व उमाराम गिरदावर को उन के निवास स्थान से 3 दिसंबर, 2016 को गिरफ्तार कर लिया.

10 दिसंबर को इसी टीम ने पटवारी के सहायक श्रीचंद मेघवाल व संविदाकर्मी उदाराम को भी गिरफ्तार कर लिया. गिरफ्तार आरोपियों से व्यापक पूछताछ के बाद न्यायालय में पेश कर न्यायिक अभिरक्षा में भिजवा दिया गया.

पटवारी संजीव मलिक ने जिला मुख्यालय के नजदीक स्थित पौश इलाके ड्रीमलैंड सोसाइटी में एक भव्य बंगला बनवाया था. कहा जाता है कि उस के बंगले पर लग्जरी गाडि़यों का आनाजाना लगा रहता था. यह भी कहा जाता है कि बीसियों लाख रुपयों से बने उस के बाथरूम तक में एसी लगे हुए थे. कृषि भूमि आवंटन के फ्रौड में करोड़ों बनाने वाला साईं भक्त संजीव मलिक अपने 3 साथियों के साथ जेल में बंद है.

हजारों बीघा कृषि भूमि के फरजी आवंटन के इस सिलसिले में कमाए गए लाखों रुपयों की बंदरबांट ऊपर से नीचे तक हुई है. कई राजनेताओं पर भी आरोप लग रहे हैं. पूर्व में जिलाधिकारी हनुमानगढ़ ने सभी आवंटन रद्द करने के आदेश जारी किए थे.

पुलिस जांच मात्र राजस्व विभाग के निचले पायदान के कार्मिकों व नामजद किसानों के इर्दगिर्द घूम रही है. विभाग के आला अधिकारी अभी भी जांच से कोसों दूर हैं. जांच उन बैंककर्मियों की भी होनी चाहिए, जिन्होंने फरजी कागजातों के आधार पर खुले हाथों से लाखों के कृषि लोन मंजूर कर बंदरबांट की. पीडि़त किसानों ने राज्य सरकार से इस महाघोटाले की जांच सीबीआई से कराने की मांग की है.      ?

– कथा राजस्व व पुलिस सूत्रों के आधार पर