चार्ल्स शोभराज : नेपाल से छूटा, फ्रांस में बसा – भाग 4

सन 1988 तक शोभराज जेल में रहा और मुकम्मल शांति से रहा. तिहाड़ जेल में वह आदत के मुताबिक किताबें मंगा कर पढ़ता रहा. इस में कोई शक नहीं कि वह एक अच्छा पाठक और लेखक भी था.

कम पढ़ेलिखे शोभराज की फिलासफी में भी गहरी दिलचस्पी थी. वह अकसर जर्मनी के प्रसिद्ध दार्शनिक फ्रैडरिक नीत्शे की किताबें पढ़ता रहता था. यह वही नीत्शे थे जिन का यह वाक्य आज तक भी खूब चर्चित है कि ईश्वर की मृत्यु हो गई है.

मुमकिन है अपराधबोध से ग्रस्त शोभराज नास्तिक कहे जाने वाले नीत्शे की थ्योरी में यह खोजता रहा हो कि ईश्वर का कोई अस्तित्व है भी या नहीं. मुमकिन यह भी है कि वह दैवीय सजाओं से डरता हो.

लेकिन एक जरायमपेशा मुलजिम का दर्शनशास्त्र में गहरे तक दखल रखना यह तो बताता है कि अपराधी भी बुद्धिजीवी होते हैं और रहस्यों के प्रति उन में भी सहज जिज्ञासा होती है.

शोभराज ने कितनी हत्याएं कीं, यह शायद अब पता चले. क्योंकि लिखने और खुद की जिंदगी पर लिखवाने की अपनी आदत से वह बाज आएगा, ऐसा लगता नहीं. कई नामी मीडिया संस्थानों को उस ने मुंहमांगी कीमत पर अपनी जिंदगी के राज बेचे.

अपनी आधी जिंदगी के लगभग शोभराज ने जेलों में गुजारी. वह जिस जेल में भी रहा, पूरी शानोशौकत से रहा. दिल्ली की तिहाड़ जेल में उस ने सब से लंबा वक्त गुजारा. लेकिन यहां भी वह ज्यादा टिका नहीं और जेल प्रशासन को धता बताते हुए 1986 में फरार हो गया.

यह वह वक्त था, जब थाईलैंड की सरकार भारत पर शोभराज के प्रत्यर्पण के लिए लगातार दबाब बना रही थी. तिहाड़ से शोभराज के छूमंतर होने के रोचक किस्से को उस की जिंदगी पर बनी एक फिल्म ‘मैं और चार्ल्स’ में दिखाया गया है.

चार्ल्स की भूमिका निभाने वाले इस फिल्म के हीरो रणदीप हुड्डा ने नेपाल की जेल में उस से मुलाकात भी की थी.

तिहाड़ से फरारी पर उठे सवाल

तिहाड़ से वह नाटकीय और चमत्कारिक तरीके से फरार हुआ था, जिस पर मीडिया ने सरकार को खूब कोसा था. पूरी दुनिया में एक बार फिर शोभराज की चर्चा थी.

देश भर की पुलिस शोभराज को खोज रही थी. ज्यादा नहीं 3 हफ्ते बाद ही शोभराज गोवा के पणजी के ओकाकीरियो रेस्तरां में पकड़ा भी गया.

उसे गिरफ्तार करने वाले इंसपेक्टर मधुकर जेड़े की खूब पीठ थपथपाई गई थी, जिन्होंने यह बयान दिया था कि शोभराज को लड़कियां, शराब और हिप्पी बहुत पसंद हैं. इसलिए उन्हें अंदाजा था कि वह यहां जरूर आएगा और ऐसा हुआ भी.

अगर आप कभी पणजी जाएं तो ओ कोकीरियो रेस्तरां जरूर जाएं, जहां कुरसी पर बैठे चार्ल्स शोभराज की मूर्ति आज भी रखी हुई है. वह कितना बड़ा सेलिब्रिटी हो गया था, यह इस बात का जीताजागता सबूत है.

लेकिन लगता नहीं कि पुलिस ने उसे पकड़ा था, बल्कि लगता ऐसा है कि यह सब प्री प्लांड था. क्योंकि इस बार गिरफ्तारी के बाद उस की सजा 10 साल और बढ़ा दी गई थी. अब उसे 1997 तक जेल में रहना था और यही शोभराज चाहता था. क्योंकि भारत सरकार उस के प्रत्यर्पण के लिए राजी हो गई थी.

थाईलैंड में उस के खिलाफ हत्या के कोई दरजन भर मामले दर्ज थे और वहां के कानून के मुताबिक उसे फांसी की सजा होनी तय थी, जिस से बचने के लिए शोभराज ने यह नायाब तरीका ढूंढ निकाला था.

शोभराज को यह मालूम था कि थाईलैंड के कानूनों के मुताबिक 20 साल बाद आरोप ज्यादा प्रभावी या धारदार नहीं रह जाते. इसलिए वह ज्यादा से ज्यादा वक्त भारत में बिताना चाहता था. फरारी और फिर गिरफ्तारी उस का रचा और स्पांसर किया ड्रामा ही ज्यादा लगता है.

बैक टू फ्रांस

1997 तक शोभराज ईमानदारी से तिहाड़ में रहा और कोई उपद्रव या भागने की कोशिश उस ने नहीं की. बल्कि आदत के मुताबिक वह किताबें पढ़ता रहा. तिहाड़ में उस की अच्छीखासी लायब्रेरी बन गई थी. अब तक दुनिया बहुत बदल चुकी थी.

उस की तीसरी प्रेमिका मेरी, जो लंबे समय तक अपराधों में उस की भागीदार रही थी, की 1984 में ही कैंसर से मौत हो चुकी थी. अजय दास का कहीं अतापता नहीं था कि वह जिंदा है या मर चुका है. लेकिन पुलिस उसे जिंदा मान उस की तलाश में है.

तिहाड़ में सजा काट कर शोभराज शांति से वापस फ्रांस चला गया और 6 साल यानी 2003 तक सुकून से रहा. इस दौरान उस के नाम कोई जुर्म दर्ज नहीं हुआ.

थाईलैंड से भी प्रत्यर्पण की आवाजें आनी बंद हो गई थीं, जो उस के हक की बात थी. लेकिन न जाने क्या सोच कर एकाएक ही वह नेपाल जा पहुंचा, जहां उस पर हत्या के 2 मामले दर्ज थे.

यह भी कम हैरानी की बात नहीं कि शोभराज नेपाल में खुद मीडियाकर्मियों से मिला और उन्हें इंटरव्यू भी दिए. आने के मकसद में उस ने हैंडीक्राफ्ट्स और शाल का कारोबार शुरू करना बताया था.

ऐसा लगता है कि वह जानबूझ कर खुद को गिरफ्तार कराने नेपाल पहुंचा था. अगर ऐसा था तो उस की यह मंशा भी पूरी हुई. उसे गिरफ्तार कर लिया गया, क्योंकि 28 साल पहले उस ने नेपाल में 2 अमेरिकियों को चाकू से गोद कर मारा था.

दोनों लाशें काठमांडू के बाहरी इलाके में मिली थीं. शोभराज पर फरजी कागजों पर यात्रा करने के आरोप भी थे, जो उस की प्रोफाइल के लिहाज से बेहद मामूली थे. मुकदमा चला और साल 2004 में उसे उम्रकैद की सजा 20 साल सुनाई गई, जोकि उस ने 21 दिसंबर, 2022 को पूरी कर ली.

इस से पहले नेपाल की जेल में रहते ही साल 2008 में एक सुंदर नेपाली युवती निहिता बिस्वास से उस की शादी की खबर भी बड़ी और चर्चित खबरों में से एक थी. निहिता शोभराज से 43 साल छोटी थी.

बाद में निहिता रियल्टी शो बिग बौस के सीजन 5  में नजर आई थी, जहां उस ने शोभराज से न केवल शादी करने का बल्कि उस से शारीरिक संबंध बनाने का भी दावा किया था. फिल्म ‘मैं और चार्ल्स’ में निहिता की भूमिका एक्ट्रैस ऋचा चड्ढा ने निभाई थी.

अब चार्ल्स शोभराज आजाद है, जिस पर अभी भी कई आरोप और हैं. मुमकिन है पुरानी  फाइलें कुछ और राज उगलें. मुमकिन यह भी है कि शोभराज खुद ही कोई नया कारनामा खड़ा कर दे. उस की रिहाई का छिटपुट विरोध भी हुआ, पर वह बेअसर रहा.

शोभराज फिर अपने देश फ्रांस में है लेकिन 78 साल का यह बूढ़ा अपराधी कब क्या कर दे, कोई कुछ नहीं कह या सोच पा रहा. जिस की जिंदगी पर ढेरों किताबें लिखी गईं और फिल्में बनीं, लेकिन उस के अंदर वहां तक कम ही लोग झांक पाए, जहां से यह आवाज आती है कि आखिर मेरा गुनाह क्या था? मुझे क्यों दूसरे बच्चों की तरह मांबाप का प्यार नहीं मिला?    द्य

तांत्रिक जलेबी बाबा : औरतों पर डोरे डालने का बुरा नतीजा – भाग 4

अमर पुरी ने जीरो पावर वाला बल्ब भी बुझा दिया और महिला के जिस्म को आगोश में भर कर एक ओर लुढ़क गया.

अमर पुरी ने सोचा था होश में आने के बाद वह महिला यदि जान जाएगी कि उस का रेप किया गया है तो अपनी बदनामी के डर से वह चुप्पी साध लेगी, लेकिन यह अमर पुरी की भूल थी. उस महिला ने होश में आने के बाद यह अहसास होते ही कि उस की अस्मत से बाबा ने खिलवाड़ किया है, शोर मचा दिया.

अमर पुरी कुछ करने की स्थिति में आता, उस से पहले ही वह महिला उस के कमरे से निकल कर बाहर आ गई और रोतीकलपती हुई उस क्षेत्र के थाने में पहुंच गई.

उस ने बाबा अमर पुरी पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगा कर अपनी रिपोर्ट दर्ज करा दी तो उसी रात अमर पुरी को गिरफ्तार कर के थाने में लाया गया और हवालात में बंद कर दिया गया.

जगह तो बदल ली लेकिन सोच नहीं

महिला के बयान ले कर उस की जांच शुरू की जाती, उस से पहले ही इस मामले ने विचित्र मोड़ ले लिया. बाबा अमर पुरी के इशारे पर उस महिला को  पहले काफी डरायाधमकाया गया. वह नहीं डरी तो उसे रुपयों का प्रलोभन दिया गया.

वह अपने पति से परेशान थी ही, मोटी रकम ले कर अपनी रिपोर्ट वापस लेने पर राजी हो गई. बाबा दिन निकलने से पहले ही हवालात से बाहर आ गया. यह घटना वर्ष 2017 में घटित हुई थी.

इस घटना से अमर पुरी को बदनामी झेलनी पड़ी, इसलिए उस ने वह कमरा छोड़ दिया और टोहाना (फतेहाबाद) में ही दूसरे स्थान पर एक कमरा किराए पर ले कर अपनी तंत्रमंत्र और ज्योतिष की दुकान फिर से शुरू कर दी. उस की गांठ में पैसा था ही, इसी पैसों से अमर पुरी ने अपनी तंत्रमंत्र और ज्योतिष विद्या का धुंआधार प्रचार करवाया.

अपनी पुरानी शिष्य मंडली को भी अपने तथाकथित ज्योतिष ज्ञान का बखान करने के लिए मैदान में उतार दिया. जल्दी ही इस नई जगह पर भी अपनी समस्याओं, दुखदर्द का समाधान करवाने वालों की भीड़ लग गई. यहां अमर पुरी ने खुद को सिद्ध महंत अमर पुरी नागा साधु के रूप में खुद का परिचय करवाया.

तंत्रमंत्र की आडंबर भरी यह दुकान ऐसी चली कि अमर पुरी के हजारों लोग शिष्य बन गए. टोहाना ही नहीं देश के अन्य शहरों में भी उस के भक्तों की संख्या तेजी से बढ़ने लगी.

तंत्रमंत्र के साथसाथ अमर पुरी ने प्रवचन देने का कार्य भी शुरू कर दिया. उस ने बाजार से धर्मग्रंथ खरीदे और उन का चिंतनमनन कर के थोड़ाबहुत ज्ञान प्राप्त कर लिया था. अब प्रवचन के लिए उस के बुलावे भी आने लगे.

पूरे टोहाना में वह सिद्ध अमर पुरी नागा साधु के रूप में प्रसिद्ध हो गया. उस ने दोनों हाथों से नोट बटोरे, इन से टोहाना में एक प्लौट भाटिया नगर में खरीद लिया और उस पर श्री बाबा बालकनाथ नाम से भव्य मंदिर का निर्माण करवा लिया. यह मंदिर वार्ड नंबर-19 में था.

अमर पुरी ने मंदिर के गर्भगृह में अपनी तंत्रमंत्र और ज्योतिष साधना की दुकान स्थापित कर ली, यहीं पर अमर पुरी ने अपने रहने, खानेपीने की व्यवस्था कर ली. यहां उस के पुराने शिष्यों की फिर से बैठकें जमने लगीं. नशापत्ता फिर से शुरू हो गया. इस से अमर पुरी का मन युवा और जवान नारी को आगोश में समेटने के लिए फिर से मचलने लगा.

100 से ज्यादा महिलाओं को बनाया शिकार उस के साधनास्थल पर अमीर और गरीब घरों की महिलाएं अपनी समस्याएं ले कर आती ही रहती थीं. अमर पुरी ने इन्हें ही अपनी मौजमस्ती के लिए शिकार बनाने के लिए नया तरीका ईजाद कर लिया.

वह बाजार से बेहोशी की दवा खरीद लाया. जो महिला या कुंवारी लड़की उसे पसंद आ जाती थी, उन्हें पूजाअर्चना के बहाने साधनास्थल में रोक लेता, पहले उसे बेहोशी की दवा चाय या जल में मिला कर पीने को देता, वह महिला बेहोश हो जाती तो उस के वस्त्र उतार कर उन की अपने मोबाइल से न्यूड वीडियो बनाता, फिर उन के साथ दुष्कर्म करता.

होश में आने के बाद जो महिला या लड़की पुलिस में जाने की धमकी देती, उन्हें उन की न्यूड वीडियो दिखा कर बदनाम कर देने की बात कह कर जुबान बंद रखने की धमकी देता था.

अपनी न्यूड वीडियो के वायरल होने के भय से यौन उत्पीड़न की शिकार वह महिलाएं, युवतियां चुप्पी साध लेने पर विवश हो जातीं.

अमर पुरी ने उन की इस चुप्पी का भरपूर फायदा उठाना शुरू कर दिया, जब उस का दिल करता वह उन्हें अपने बिस्तर पर बुला लेता. किसी अमीर घर की महिला को उस की न्यूड वीडियो का भय दिखा कर मोटी धनराशि लाने के लिए ब्लैकमेल करता. कहते हैं पाप किसी भी तरह किया जाए, एक न एक दिन उस का राज सामने आ ही जाता है.

अमर पुरी द्वारा यौन उत्पीड़न की शिकार 2 महिलाओं ने अमर पुरी की ज्यादती से तंग आ कर टोहाना के सिटी थाने में अपने साथ रेप करने, न्यूड वीडियो बना कर ब्लैकमेल करने की रिपोर्ट दर्ज करवाई तो पुलिस हरकत में आ गई. अमर पुरी के साधनास्थल पर 20 जुलाई, 2018 को पुलिस ने छापा डाला और अमर पुरी को गिरफ्तार कर लिया.

उस के साधनास्थल से तकरीबन 120 महिलाओं, युवतियों की न्यूड वीडियो क्लिप बरामद हुईं तो मीडिया ने यह खबर टीवी पर प्रसारित कर के टोहाना (फतेहाबाद) हरियाणा में ही नहीं, पूरे देश में सनसनी फैला दी.

धर्म की आड़ ले कर ऐसा दुष्कर्म करने वाले इस ढोंगी तांत्रिक की करतूत जान कर सभी हैरान रह गए. उसे अपना धर्मगुरु मानने वाले लोगों ने अमर पुरी के साधनास्थल में तोड़फोड़ कर के अपना गुस्सा निकाला तो पुलिस भी हरकत में आ गई. पुलिस ने ढोंगी तांत्रिक अमर पुरी के खिलाफ ठोस सबूत इकट्ठे कर लिए.

4 साल बाद इन्हीं सबूतों के आधार पर अमर पुरी को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाया गया. अमर पुरी के दुष्कर्मों की अश्लील वीडियो ही उस के खिलाफ बड़ा सबूत बनीं. सजा सुनाने के बाद पुलिस ने उसे अपनी हिरासत में लेने के बाद जेल भेज दिया.  द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा का नाटकीय रूपांतरण किया गया है.

दो जासूस और अनोखा रहस्य – भाग 4

अनवर मामू के घर छुट्टियां बिताने आए साहिल और फैजल वहां हुए अजयजी के कत्ल की गुत्थी सौल्व करने में जुट गए थे. एक कोड हल होने पर दूसरा कोड उन्हें मुंह चिढ़ाता. पहले कोड को फैजल ने सीज साइफर के सिद्धांत से हल किया उस ने एक शब्द का उदाहरण दे कर बताया व कोड का अर्थ सुझाया, चाकुओं के पीछे देखें. अब वे चाकू ढूंढ़ने लगे, उन्होंने अभयजी की हर संदिग्ध जगह खंगाली पर चाकू न मिले.

फिर अंत में वे अजय की पत्नी के आग्रह पर उन के घर चाय पीने गए तो वहां उन्हें अचानक दरवाजे के ऊपर वाली दीवार पर बीचोबीच 2 कटारें क्रौस का चिह्न बनाती लगी हुई दिखीं. उन्हें उतार कर देखा और उन पर लिपटी टेप हटाई तो एक चाबी मिली, जो एक कागज में लिपटी थी. उन्होंने उलटपलट कर देखा कागज पर एक और कोड लिखा था. वे अचंभे में पड़ गए. एक और पहेली उन्हें मुंह चिढ़ा रही थी.

साहिल ने यास्मिन को चाबी दिखा कर पूछा, ‘‘क्या आप जानती हैं कि यह चाबी कहां की है?’’ यास्मिन ने हाथ में ले कर ध्यान से चाबी को देखा और ना में सिर हिला दिया.

‘‘घर और दुकान दोनों जगह की तो अभी हम ने तलाशी ली ही है. वहां कहीं भी ऐसी कोई अलमारी या ताला नहीं था, जिस के लिए ऐसी चाबी की जरूरत हो,’’ इंस्पैक्टर रमेश बोले, ‘‘एक बात तो साफ है कि यह चाबी किसी साधारण ताले की नहीं है और इस कागज पर जो लिखा है, यह जरूर इस ताले को खोलने का रास्ता है. मेरे खयाल से यहां जरूर कोई गुप्त तिजोरी होनी चाहिए, जिस का लौक इस कोड से खुलेगा.’’

‘‘क्या आप को इस बारे में कोई जानकारी है?’’ साहिल ने यास्मिन से पूछा.

‘‘नहीं, अजय ने कभी इस तरह की किसी तिजोरी का जिक्र मुझ से नहीं किया.’’

‘‘अच्छा, अजय की बैकग्राउंड के बारे में कुछ बताइए. आप की तो उन से शादी हुए कम से कम 25-30 साल हो गए होंगे. उन के बारे में जान कर केस सौल्व करने में हमें जरूर कुछ मदद मिलेगी,’’ इंस्पैक्टर रमेश बोले.

‘‘दरअसल, बात यह है कि हमारी शादी को अभी 6 साल हुए थे, जिस जनरल स्टोर में मैं नौकरी करती थी, वहीं हमारी मुलाकात हुई थी. मैं अनाथाश्रम में पलीबढ़ी हूं और मेरा कोई परिवार नहीं है. अजय ने भी मुझे यही बताया था कि वे भी अनाथाश्रम में ही पले हैं और उन के आगेपीछे कोई नहीं है. इसीलिए इतनी उम्र तक हम लोगों की शादी नहीं हो पाई थी दोनों की एक जैसी बैकग्राउंड की वजह से ही शायद हम एकदूसरे की तकलीफ को समझ पाए और पहली मुलाकात के कुछ दिन बाद ही हम ने शादी कर ली. कुछ साल हम मेरठ में रहे और फिर एक शांत जिंदगी बिताने की चाह में यहां रामगढ़ आ कर बस गए.

‘‘अनाथाश्रम की जिंदगी ने हमें जो अकेलापन दिया था, हम उस से बाहर कभी निकल ही नहीं पाए और इसीलिए कभी किसी से घुलेमिले भी नहीं. बचपन से छोटेमोटे काम कर के अपनी जिंदगी बसर करते हुए जो थोड़ेबहुत रुपए हम ने जमा किए थे, उन्हीं से यह घर और दुकान खरीद कर हम खुशीखुशी जिंदगी बिता रहे थे कि अचानक ये सब हो गया…’’ कहते हुए यास्मिन की आंखों में आंसू छलक आए, लेकिन अपने भावों पर काबू पा कर अगले ही पल वह दृढ़ता से बोली, ‘‘फिलहाल मेरी सब से पहली इच्छा है कि मेरे पति का हत्यारा जल्द पकड़ा जाए और इस के लिए मुझ से आप की जो भी मदद हो सकेगी, मैं करूंगी.’’

‘‘फैजल, तुम्हीं ने अजय का लिखा पहला कोड हल किया था न? तो देखो और सोचो. इस कोड का क्या हल हो सकता है,’’ इंस्पैक्टर रमेश ने फैजल को वह कागज देते हुए कहा.

‘‘जी, मैं भी समझने की कोशिश तो कर रहा हूं पर कुछ सूझ नहीं रहा है,’’ माथे पर उंगली रगड़ते हुए फैजल बोला, ‘‘वैसे भी काफी देर हो गई है. घर पर सब लोग चिंता कर रहे होंगे. अभी तो हम चलते हैं. जैसे ही कुछ समझ आएगा तो आप को फोन करेंगे,’’ कहते हुए फैजल ने उन से बिदा ली. फिर साहिल, फैजल और अनवर घर के लिए चल दिए.

वे लोग अभी मुश्किल से 2-3 किलोमीटर ही चले होंगे कि अचानक साहिल ने फैजल को कुहनी मारी और धीमी आवाज में बोला, ‘‘फैजल, मुझे लग रहा है कि कोई हमारा पीछा कर रहा है.’’

‘‘बिलकुल मुझे भी काफी देर से ऐसा लग रहा है. यह हरे रंग की आल्टो लगातार हमारे पीछे चल रही है.’’

‘‘अरे, नहींनहीं…आल्टो नहीं, वह काली बाइक, देखो,’’ उस ने सामने लगे शीशे की ओर इशारा किया, ‘‘वह बाइक हमारे पीछे लगी हुई है.’’

‘‘नहींनहीं…वह तो हरी आल्टो है, जो हमारे पीछे लगी है.’’

‘‘अच्छा रुको…ड्राइवर भैया, आप एक काम करो, गाड़ी सीधे घर ले जाने के बजाय थोड़ी देर ऐसे ही सड़कों पर इधरउधर घुमाते रहो. अभी सब पता चल जाएगा,’’ साहिल ने कहा तो ड्राइवर गाड़ी इधरउधर घुमाने लगा.

15 मिनट में ही उन्हें समझ आ गया कि वास्तव में कोई एक नहीं, बल्कि आल्टो और बाइक दोनों ही उन का पीछा कर रही थीं.

‘‘आखिर ये लोग हमारा पीछा कर क्यों रहे हैं?’’

‘‘जाहिर है अपना भेद खुल जाने के डर से कातिल के पेट में मरोड़ उठ रहे हैं. कल इन का भी कुछ इंतजाम करना पड़ेगा.’’

घर पहुंच कर खाना वगैरा खा कर दोनों फिर से पहेली को हल करने में जुट गए.

‘‘चलो, हम स्टैप बाए स्टैप चलने की कोशिश करते हैं,’’ साहिल ने सुझाया, ‘‘हमारे पास है एक चाबी. चाबी का मतलब है कि कहीं कोई ताला है जो इस से खुलना है. अब क्योंकि यह थोड़ा सीक्रेट टाइप का ताला है, तो इसे खोलने के लिए कोई कोड होना चाहिए, जो यहां कागज पर लिखा है. घर और दुकान तो हम सब देख ही चुके हैं. अब इस ताले के होने के लिए 2 ही जगह बचती हैं या तो कहीं किसी दीवार के अंदर कोई गुप्त तिजोरी है या फिर कोई बैंक लौकर या गुप्त लौकर है. पेपर पर लिखा यह कोड उस जगह की लोकेशन बताएगा और अगर लौकर है तो उस का नंबर बताएगा. तू ने चैक किया फैजल कि यह कहीं कोई और साइफर तो नहीं है?’’

‘‘मैं ने काफी सोचा, लेकिन जितनी तरह के कोड मुझे आते हैं, उन में से कोई भी इस पर अप्लाई नहीं होता, अगर हम इसे बैंक लौकर मान कर चलते हैं तो बैंक लौकर के लिए हमें बैंक का नाम और लौकर नंबर चाहिए और ये दोनों तो अजय की पत्नी यास्मिन को पता ही होंगे.’’

‘‘नहीं फैजल, अगर उन्हें पता होता, तो अजय इन्हें यों कोड में लिख कर न जाता. इस का सीधा सा मतलब है कि ये लौकर उन की जानकारी में नहीं हैं और इस कोड का कुछ हिस्सा नंबर है और कुछ बैंक का नाम. अब देख इसे, क्या तू सौल्व कर सकता है?’’

कागजपैंसिल ले कर फैजल काफी देर तक इस पर माथापच्ची करता रहा पर नतीजा वही सिफर. थकहार कर दोनों सो गए.

सुबह नाश्ते की टेबल पर बैठे फैजल का दिमाग अब भी उसी पहेली के इर्दगिर्द घूम रहा था. तभी अचानक वह जोर से चिल्लाया, ‘‘वह मारा पापड़ वाले को.’’

‘‘क्या हुआ, क्या हुआ? कुछ सूझा तुझे क्या?’’ बगल में बैठे साहिल ने पूछा.

‘‘हां, बिलकुल सूझा और कुछ नहीं, पूरा सूझा,’’ उस ने सामने पड़ा पहेली वाला पेपर उठाया और उस के नीचे 2 अलगअलग नंबर लिख दिए. यह देख, ये जो लैटर्स यहां लिखे हैं, वे सारे के सारे हर नंबर की स्पैलिंग का पहला अक्षर हैं. जैसे जीरो के लिए र्ं, 1 के लिए हृ, 2 और 3 दोनों ञ्ज से शुरू होते हैं, तो उन के लिए ञ्ज2 और ञ्जद्ध का प्रयोग किया हुआ है. इस तरह से ये 2 नंबर बन रहे हैं, 8431729 और 109 लेकिन इस टिक मार्क (क्क) का मतलब पल्ले नहीं पड़ रहा.

‘‘अरे, छोड़ उसे, इतना तो हो गया. अब फटाफट पुलिस को साथ ले कर सब बैंकों में जा कर चैक करते हैं ज्यादा बैंक तो यहां होंगे नहीं.’’

‘‘बेटा, हमारे गांव में ज्यादा नहीं तो भी कम से कम 15-16 बैंक तो हैं ही,’’ अपने कमरे से बाहर आते अनवर मामू बोले, ‘‘तो हो गई तुम्हारी दूसरी पहेली भी सौल्व…देखूं तो जरा,’’ उन्होंने कागज उठाया और उसे देखने लगे.

‘‘तो तुम्हारे हिसाब से ये 2 नंबर किसी बैंक लौकर की तरफ इशारा कर रहे हैं और इन में से यह पहला अकाउंट नंबर और दूसरा लौकर नंबर होना चाहिए.’’

‘‘हां मामू, लेकिन इतने सारे बैंक्स में से हम उसे ढूंढ़ेंगे कैसे?’’

‘‘ढूंढ़ना क्यों है तुम्हें? सीधे यस बैंक जाओ न, क्योंकि जो निशान बना है, यह यस बैंक का ही तो लोगो है. मेरे क्लिनिक के एकदम सामने ही है यह बैंक और उस का साइनबोर्ड सारा दिन मेरी आंखों के सामने ही रहता है.’’

‘‘वाह मामू, आप भी कमाल की बुद्धि रखते हैं,’’ शरारत से एक आंख दबाते हुए फैजल मुसकराया.

एक घंटे बाद इंस्पैक्टर रमेश को साथ ले कर वे लोग यस बैंक पहुंच गए. पूछताछ से पता चला कि वह अकाउंट 8 दिन पहले ही किसी संजीव नामक व्यक्ति ने खोला है. पुलिस केस होने की वजह से लौकर खोलने में उन्हें कोई अड़चन नहीं आई. जब लौकर खुला तो उस में से सिर्फ एक मोबाइल फोन निकला. फोन को कस्टडी में ले कर वे पुलिस स्टेशन आ गए.

‘‘इस का सारा डाटा चैक करना पड़ेगा,’’ कुरसी पर बैठता साहिल बोला, ‘‘तभी कुछ काम की बात पता चल सकती है.’’

कुछ देर उस मोबाइल को चार्ज करने के बाद उस ने औन कर के चैक किया, लेकिन उस में कहीं ऐसा कुछ नहीं था, जो अजय की मौत या किसी और रहस्य पर कोई और रोशनी डाल सके.’’

तभी फैजल को कुछ याद आया, ‘‘और हां अंकल, एक बात तो हम आप को बताना भूल ही गए. कल जब हम वापस जा रहे थे, तो कोई हमारा पीछा कर रहा था.’’

‘‘अच्छा, यह तो चिंता की बात है,’’ इंस्पैक्टर रमेश के माथे पर शिकन उबर आई, ‘‘मैं 2 कौंस्टेबल तुम दोनों की सुरक्षा के लिए तैनात कर देता हूं, जो हर समय तुम्हारे साथ रहेंगे.’’

काफी देर फोन से माथापच्ची करने के बाद साहिल बोला, ‘‘इस फोन में तो कुछ भी नहीं है अंकल, आप एक काम कीजिए, इस का सिम कार्ड चैक करवाइए कि वह किस के नाम पर है. शायद उस से कुछ पता चले,’’ फिर उस ने फोन का बैक कवर खोला और सिम निकालने के लिए जैसे ही बैटरी को हटाया, चौंक पड़ा. बैटरी के नीचे कागज की एक छोटी सी स्लिप रखी हुई थी.

‘‘अरे, यह क्या है?’’ वह बड़बड़ाया. फिर परची को खोल कर देखा. उस पर कुछ लिखा था, जिसे उस ने पढ़ कर सब को सुनाया, ‘‘सामने है मंजिल, महादेव की गली, सावन की रिमझिम में खिलती हर कली, धरम पुत्री से होगा जब सामना, पासवर्ड के बिना बनेगा काम न.’’

‘‘यह तो बहुत ही क्लियर मैसेज है. हमारी मंजिल हमें मिलने ही वाली है समझो,’’ फैजल उत्साह से बोला.

‘‘यहां कोई महादेव नाम की गली नहीं है,’’ अनवर कुछ सोचते हुए बोले.

इंस्पैक्टर रमेश ने भी ना में सिर हिलाया और बोले, ‘‘हो सकता है कि कहीं किसी दूर के या छोटेमोटे महल्ले में कोई अनजान सी गली हो. मैं सिपाहियों से पूछता हूं,’’ कहते हुए उन्होंने रामदीन को पुकारा,’’ रामदीन, जरा बाहर बाकी सब सिपाहियों से पूछ कर आओ, उन में से शायद कोई इस गली को जानता हो.’’

रामदीन, जो बड़ी उत्सुकता से सारी बातें सुन रहा था, बोला, ‘‘साहब, महादेव गली तो पता नहीं, लेकिन लालगंज से थोड़ी दूरी पर काफी अंदर जाने के बाद एक मार्केट है. वहां एक छोटी सी इमारत है, जिस का नाम मंजिल है और उस के बिलकुल सामने जो सड़क जा रही है, उस का नाम है शंकर गली. हो सकता है इस कविता में इसी जगह का जिक्र किया गया हो.’’

‘‘वाह रामदीन भैया, क्या ब्रिलियंट दिमाग है तुम्हारा,’’ उत्साह से उछलता फैजल रामदीन का हाथ पकड़ कर एक ही सांस में बोल गया. बाकी सब भी जल्दी से उठ खड़े हुए, ‘‘चलो, वहीं चलते हैं. वहीं पर ही आगे का भी कुछ न कुछ सुराग मिलेगा.’’

काले चश्मे वाली दो आंखें उन्हें जाते हुए देख रही थीं.

चांद की चाहत में थानेदार – भाग 3

गांव जाने के बाद भी कमलदान चारण जकिया से मोबाइल पर संपर्क में रहा. इस बीच वह वाट्सऐप पर मैसेज भी भेजता रहा. वह 12 जून, 2017 की शाम को जोधपुर लौट आया. जोधपुर लौटने पर उस ने 12 जून की शाम को जकिया को फोन कर के नई सड़क स्थित एक होटल में बुलाया. जकिया ने मां की बीमारी का बहाना बना कर उस दिन उसे टाल दिया.

अगले दिन यानी 13 जून को कमलदान चारण ने जकिया को फोन कर के शाम को उस के घर आने की बात कही तो जकिया ने एसीबी को सूचित कर दिया. एसीबी अधिकारियों ने शाम होते ही जकिया के घर के आसपास डेरा डाल दिया. एसीबी के डीएसपी जगदीश सोनी ने जकिया को पहले ही समझा दिया था कि थानाप्रभारी कमरे में आ कर गलत हरकत करने की कोशिश करने लगे तो वह कोल्ड कौफी मंगाने के बहाने फोन कर देगी. जकिया ने ऐसा ही किया, जिस के बाद एसीबी द्वारा वह गिरफ्तार कर लिया गया.

थानाप्रभारी की गिरफ्तारी से जोधपुर पुलिस की बड़ी बदनामी हुई. जोधपुर पुलिस कमिश्नर अशोक राठौड़ ने इस पूरे मामले की जांच बोरानाड़ा के एसीपी सिमरथाराम को सौंप दी. वहीं पुलिस कमिश्नर के निर्देश पर डीसीपी (पश्चिम) समीर कुमार सिंह ने थानाप्रभारी कमलदान चारण को 14 जून को निलंबित कर दिया. एसीबी ने उसी दिन शाम को कमलदान चारण को मजिस्ट्रैट के घर पर पेश किया. न्यायाधीश ने चारण को 2 दिनों के रिमांड पर एसीबी को सौंप दिया.

रिमांड के दौरान एसीबी ने एक लाख रुपए के चैक के बारे में पूछताछ की तो कमलदान चारण ने कहा कि उस के पास कोई चैक नहीं था. एक लाख रुपए नकद लेने की बात से भी उस ने इनकार कर दिया. प्यार और दोस्ती के सवाल पर उन्होंने कहा कि वह उस महिला से प्रेम नहीं करता, बल्कि वही उसे फंसा रही थी.

एसीबी ने जब उसे रिकौर्डिंग सुनाई तो उस ने कहा कि यह आवाज उस की नहीं है. कमलदान चारण ने एसीबी को बताया कि जब उन्होंने 3 जून को उस महिला के पति पंकज को अफीम के साथ गिरफ्तार किया था, तब से वह रोजाना थाने आ कर रोती थी. पति के जेल जाने के बाद वह खुद को बेसहारा बता कर बारबार मदद की गुहार लगाती थी. जिस से उसे उस पर तरस आ गया और यही उस की गलती थी.

उस औरत ने आंसुओं की आड़ में उसे हनीट्रैप में फंसाया. वह तो उसे दिलासा दे कर सहारा देने की कोशिश कर रहा था. अफीम वाले मामले में और भी कई लोगों के नाम आने की संभावना है, इसी वजह से उस ने उन के खिलाफ यह साजिश रची.

जोधपुर पुलिस कमिश्नर अशोक राठौड़ ने चारण की गिरफ्तारी को एक सबक बताया. उन्होंने 15 जून को जोधपुर पुलिस कमिश्नरेट के सभी अधिकारियों व थानाप्रभारियों को एक पत्र लिख कर कहा है कि ईमानदारी व ड्यूटी में कमी बरदाश्त नहीं होगी. पत्र में लिखा गया है कि इस घटना से पुलिस की प्रतिष्ठा पर आंच आई है, लेकिन अच्छी बात यह है कि गंदगी बाहर हो गई.

एसीबी ने रिमांड अवधि पूरी होने पर कमलदान चारण को 16 जून को अदालत में पेश किया, जहां से उसे न्यायिक अभिरक्षा में भेज दिया गया.

बाद में पुलिस ने नए सिरे से जांच कर के 19 जून, 2017 की देर रात को गणपत बिश्नोई को अफीम की तस्करी के मामले में लिप्त होने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने उसे 4 दिनों के रिमांड पर लिया. पुलिस ने जकिया की वह कार भी जब्त कर ली है, जिसे छोड़ने के लिए जकिया ने कमलदान चारण को रिश्वत दी थी.

22 जून को पुलिस ने निलंबित थानाप्रभारी कमलदान चारण को भी अफीम तस्करी के मामले में गिरफ्तार किया है. उसे पहले जेल से प्रोडक्शन वारंट पर लिया गया. थाने में पूछताछ और गिरफ्तार आरोपी गणपत बिश्नोई से क्रौस एग्जामिनेशन के बाद उसे गिरफ्तार किया गया.

कमलदान चारण अफीम तस्करी के उस मामले में गिरफ्तार हुआ, जिस में वह परिवादी था. यानी परिवादी ही आरोपी बन गया. उसे एनडीपीएस एक्ट के सेक्शन 59 के तहत गिरफ्तार किया गया है. यह धारा एन्फोर्समेंट एजेंसियों के लिए बनी हैं. जो अफसर अपनी ड्यूटी भूल कर अवैध गतिविधियों में लिप्त हो जाता है और आरोपियों को बचाने का प्रयास करता है, उसे इस सेक्शन के तहत गिरफ्तार किया जाता है. इस सेक्शन में जमानत मिलने के आसार बहुत कम होते हैं. इस धारा में न्यूनतम सजा 10 साल और अधिकतम 20 साल है. अब बात करें जकिया चौहान की. जकिया जोधपुर की रहने वाली है. वह 29 सितंबर, 2008 को जोधपुर से अचानक गायब हो गई थी.

उसी साल 4 अक्तूबर को उस के अपहरण का मुकदमा दर्ज हुआ था. बाद में वह दिसंबर में लौट आई थी. तब उस ने कहा था कि वह अपनी मरजी से गई थी. उस समय जकिया की एक युवक से दोस्ती की बात सामने आई थी.

बाद में सन 2009 में उस ने जोधपुर के नामी कांट्रैक्टर के बेटे साहिल से निकाह कर लिया था. साहिल से जकिया को एक बेटा हुआ. बेटा इस समय 7 साल का है. कुछ समय बाद साहिल और जकिया में विवाद होने लगा. यह विवाद इतना बढ़ गया कि करीब 7-8 महीने पहले दोनों में तलाक हो गया.

तलाक होने पर साहिल ने जकिया को कुछ रकम दी. जकिया ने उन पैसों से ब्लैक मैजिक कैफे शुरू किया. कहा जाता है कि इस कैफे में हुक्का बार भी चलता है. जोधपुर  में अन्य हुक्का बार पर पुलिस ने कई बार काररवाई की, लेकिन जकिया के हुक्का बार पर कभी काररवाई नहीं हुई.

पंकज वैष्णव मूलरूप से फलौदी का रहने वाला है. जोधपुर के रातनाड़ा में उस का मकान है. वह कपड़े का काम करता था. जकिया से जानपहचान हुई तो दोनों ने विवाह कर लिया. गणपत बिश्नोई फींच के पास रोहिचा का रहने वाला है. वह बीटेक कर रहा है. गणपत जकिया के ब्लैक मैजिक कैफे में काम करता था.

यह बात भी सामने आई है कि गणपत जकिया का दोस्त था और जकिया उसे बचाना चाहती थी. गणपत का पिता ओमाराम बिश्नोई अफीम का धंधा करता था. उस के खिलाफ अफीम तस्करी के 3 मामले दर्ज हैं. गणपत ही अपने गांव से अफीम लाया था.

वह पंकज के साथ कार में सवार हो कर अफीम बेचने जा रहा था. वह जिसे अफीम बेचने जा रहा था, उसी ने मुखबिरी कर दोनों को पकड़वा दिया. वह ग्राहक हिस्ट्रीशीटर था और बाद में चारण का मुखबिर बन गया था.

अफीम तस्करी में पुलिस ने जो कार जब्त की है, जकिया ने वह कार अपने धर्मभाई की बताई थी. पुलिस की जांच में पता चला कि 15 लाख रुपए की यह कार जकिया ने ही खरीदी थी और उस की किस्तें भी वह खुद ही चुका रही थी. साहिल ने इस कार का एक दिन भी उपयोग नहीं किया था. अफीम तस्करी के मामले का पता चलने पर साहिल ने जकिया से इस बात पर झगड़ा भी किया था.

बहरहाल, इस मामले में पूर्व थानाप्रभारी कमलदान चारण, पंकज वैष्णव और गणपत बिश्नोई जेल पहुंच गए हैं.

जहां चारण को यह मामला उलटा पड़ गया, वहीं जकिया ने भी जिस कार को छुड़ाने के लिए एक लाख रुपए की रिश्वत दी, वह कार जब्त हो गई. जकिया का आरोप है कि उस के पति पंकज वैष्णव को पुलिस ने अफीम के झूठे मामले में फंसाया है.

– कथा पुलिस सूत्रों व अन्य रिपोर्ट्स पर आधारित

स्ट्रीट जस्टिस : सजा देने का नया तरीका – भाग 3

मामला बढ़ता देख आखिर बठिंडा के एसपी (हैडक्वार्टर) भूपेंद्र सिंह और ड्यूटी मजिस्ट्रैट के रूप में रामपुराफुल के एसडीएम-1 सुभाष चंदर खटके विनोद के घर वालों से मिले. बातचीत करने के साथसाथ इन अधिकारियों ने उन के बयान भी दर्ज किए, साथ ही भरोसा भी दिया कि इस मामले में दूसरी एफआईआर दर्ज कर घटना के जिम्मेदार लोगों को नामजद करते हुए उन्हें गिरफ्तार कर के उन पर बाकायदा मुकदमा चलाया जाएगा.

इस भरोसे के बाद शांत हो कर उन लोगों ने विनोद का शव ले तो लिया, लेकिन एक शर्त भी रख दी. शर्त यह थी कि नई एफआईआर दर्ज करने के बाद जब तक पुलिस उन्हें उस की अधिकृत प्रति नहीं दे देगी, तब तक वे विनोद का अंतिम संस्कार नहीं करेंगे.

यह शर्त भी मान ली गई. उसी दिन विनोद के भाई कुलदीप अरोड़ा के बयान के आधार पर पुलिस ने भादंवि की धाराओं 364/341/186/120बी/148 एवं 149 के तहत नई एफआईआर दर्ज कर के उस में 13 लोगों को नामजद किया.

वे 13 लोग थे, गांव की सरपंच चरणजीत कौर, अमरिंदर सिंह राजू, भिंदर सिंह, पूर्ण सिंह, बड़ा सिंह, दर्शन सिंह, मनदीप कौर, गुरप्रीत सिंह, जगदेव सिंह, निम्मा सिंह, हरपाल सिंह, सीरा सिंह और गुरसेवक सिंह. ये सभी लोग गांव भागीवांदर के रहने वाले थे. इन के अलावा पुलिस ने दर्जन भर अज्ञात लोगों के इस कांड में शामिल होने का जिक्र किया था.

मामला दर्ज होने के बाद एफआईआर की प्रति शिकायतकर्ता कुलदीप अरोड़ा को दे दी गई. इस के बाद 10 जून की शाम तलवंडी साबो की लेलेवाल रोड पर स्थित श्मशान घाट में भारी पुलिस सुरक्षा के बीच विनोद का अंतिम संस्कार कर दिया गया. बेटे के अंतिम दर्शन के लिए विनोद के पिता विजय अरोड़ा को भी पुलिस सुरक्षा में गोबिंदपुरा मौडर्न जेल से वहां लाया गया था.

इलाके में पुलिस की गश्त लगातार जारी थी. दरअसल, इस घटनाक्रम का वीडियो वायरल होने के बाद सोशल मीडिया के माध्यम से यह मामला पूरी दुनिया में फैल गया था. कोई इस कदम को सराह रहा था तो कोई इसे पंजाब में कानूनव्यवस्था की नाकामी बता रहा था.

केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने इस हत्याकांड के लिए पंजाब की मौजूदा कांग्रेस सरकार को जिम्मेदार ठहराया. मीडिया में अपना बयान जारी करते हुए उन्होंने खुलासा किया कि कैप्टन अमरिंदर सिंह ने पंजाब के मुख्यमंत्री बनने पर शपथ लेते समय पंजाब से एक महीने के भीतर नशे को पूरी तरह खत्म करने का वादा किया था, लेकिन ऐसा कर पाने में वह पूरी तरह नाकाम रहे हैं.

यही वजह थी कि भागीवांदर में नशा बेचने वाले 25 साल के युवक का लोगों ने बेरहमी से कत्ल कर दिया. पुलिस ने गांव वालों की शिकायत पर ड्रग तस्करों के खिलाफ समय रहते सख्त एवं व्यापक काररवाई की होती तो नशे से बरबाद हो रहे युवकों के घर वालों को इस तरह कानून अपने हाथों में लेने की नौबत न आती. राजनेताओं को उतने ही वादे करने चाहिए, जो व्यावहारिक रूप से निभाए जा सकें.

यहां यह कहना अतिशयोक्ति न होगा कि इस घटना के बाद पंजाब की एसटीएफ की टीम ने तेजी से नशा तस्करों को पकड़ने में अपनी अहम भूमिका निभानी शुरू कर दी है. इन में पुरुष, महिलाएं सभी तरह के लोग हैं. इन से करोड़ों का नशीला पदार्थ भी बरामद किया गया है.

यों तो यह एक लंबी सूची बनती जा रही है, लेकिन इस समय सब से चर्चित मामला पुलिस इंसपेक्टर इंदरजीत सिंह का है. उन पर आरोप है कि नशा तस्करों को पकड़तेपकड़ते वह खुद ही ड्रग्स डौन बन गए.

खाकी वर्दी पहन कर और सीने पर गैलेंट्री अवार्ड का तमगा लगा कर वह समानांतर ड्रग्स किंग बन गए. लंबे पुलिस रिमांड पर ले कर एसटीएफ उन से सघन एवं व्यापक पूछताछ कर रही है. एसटीएफ प्रमुख का दावा है कि वर्दी वाले इस गुंडे से गहन पूछताछ के बाद पंजाब के ड्रग तस्करी में एक नया अविश्वसनीय, लेकिन बौलीवुड की फिल्मों सरीखा रोचक अध्याय जुड़ने वाला है.

आगे खतरा यह भी है कि स्ट्रीट जस्टिस के नाम पर लोग खाकी कौलर वाले इस कथित अपराधी को अदालत में ही घेर कर मार न दें. नशा तस्करों को घेर कर लोगों द्वारा मार डालने के कुछ अन्य अपुष्ट समाचार भी प्रकाश में आए हैं. इन में 18 जून, 2017 को पटियाला के कस्बा समाना में शराब तस्कर सतनाम सिंह को पीटपीट कर मौत के घाट उतारने व उस के साथी को बुरी तरह घायल करने के आरोप में एफआईआर दर्ज हो चुकी है.

थाना सदर समाना के थानाप्रभारी हरमनप्रीत सिंह चीमा के बताए अनुसार, 17 जून, 2017 की रात 10 बजे 2 व्यक्ति अपनी स्विफ्ट कार से देशी शराब की 30 पेटियां ले कर पंजाब की सीमा में दाखिल हुए थे. गांव रामनगर के पास पहले से खड़े कुछ लोगों ने उन्हें रुकने का इशारा किया. न रुकने पर उन लोगों ने अपनी स्कौर्पियो से पीछा कर कार को टक्कर मार कर खाईं में पलट दी.

शराब की तमाम पेटियां इधरउधर बिखर गईं. कार में सवार दोनों लोग घायल हो कर बाहर आ गिरे तो उन लोगों ने लोहे की छड़ों और लाठियों से उन की जम कर पिटाई कर दी और भाग गए. सूचना मिलने पर पुलिस मौके पर पहुंची. बुरी तरह घायल काका सिंह के बयान पर अज्ञात लोगों के खिलाफ कत्ल एवं कत्ल के इरादे वगैरह की धाराओं पर एफआईआर दर्ज की गई. काका सिंह का साथी सतनाम सिंह इस मामले में मारा गया, जिस के घर वालों ने अस्पताल में हंगामा किया तो मामले में 5 लोगों हरदीप सिंह, सरबजीत सिंह, परगट सिंह, मंगतराम और अशोक सिंगला को नामजद किया गया.

बहरहाल, विनोद उर्फ सोनू अरोड़ा के मामले में जहां उस के घर वाले अभियुक्तों की गिरफ्तारी को ले कर धरना दिए बैठे हैं, वहीं भागीवांदर गांव के लोगों का कहना है कि गिरफ्तारी होगी तो पूरे गांव की होगी, वरना 13 लोगों को गिरफ्तार करने पुलिस भूल कर भी गांव में न आए.

सरपंच चरणजीत कौर के बताए अनुसार, गांव की 3 पीढि़यों को नशे की दलदल में धकेलने वाले विनोद उर्फ सोनू और उस के साथियों ने लोगों का जीना मुहाल कर रखा था. गांव के नौजवानों को नशा सप्लाई करने के साथ उन्हें इस धंधे में शामिल कर उन का जीवन तबाह कर रहा था. पुलिस भी इस मामले में कुछ खास नहीं कर रही थी.

समय रहते अगर गांव वालों की शिकायत पर पुलिस ने ठीक से कारवाई की होती तो शायद ऐसा कदम उठाने की नौबत न आती. दोनों पक्षों की ओर से रोजरोज मिलने वाली चेतावनियों के बीच पुलिस वाले खुद को फंसा हुआ महसूस कर रहे हैं. ऐसे में अभी तक नामजद अभियुक्तों में से किसी एक की भी गिरफ्तारी नहीं हो पाई है.

प्रियंका को मिला मौत का शेयर – भाग 3

हिमांशु के साथ एक युवक और आया था. टीआई ने हिमांशु से उस के बारे में पूछा तो हिमांशु के बोलने से पहले वह युवक बोला, ‘‘सर, मैं आशीष साहू हूं और दयालबंद में मेरा मैडिकल स्टोर है. प्रियंका अकसर मेरे यहां आया करती थी और अपनी स्कूटी मेरी दुकान के सामने ही खड़ी करती थी.’’

यह सुन कर प्रदीप आर्य उस से निश्चिंत हो गए.

उन्होंने प्रियंका की सहेलियों का शाम को ही बयान लिया. एक सहेली राधिका ने बताया, ‘‘सर, 15 नवंबर, 2022 को देर शाम मेरे पास आशीष साहू का फोन आया था. उस ने कहा था कि प्रियंका की स्कूटी मेरी दुकान के सामने खड़ी है. मुझे दुकान बंद करनी है, स्कूटी आप ले जाओ, तो मैं स्कूटी ले आई साथ में उन्होंने एक बैग भी दिया.’’

यह सुन कर के प्रदीप आर्य की छठी इंद्री मानो जाग गई. उन्होंने हिमांशु से पूछा, ‘‘प्रियंका के मामले में यह आशीष साहू कहां से आ गया? कौन है यह? आप लोग क्या जानते हैं और क्या जब उस से मुलाकात की थी तो स्कूटी और बैग वाली बात उस ने बताई थी.’’

‘‘सर, मैं जब बिलासपुर आया तो आशीष साहू से ही मिला था और सब से पहले प्रियंका के बारे में बात की थी. उस ने इन सब बातों का तो कोई जिक्र नहीं किया.’’ हिमांशु बोला.

प्रदीप आर्य ने जांच और पूछताछ के लिए आशीष साहू को तलब किया तो उस ने कहा, ‘‘हां, यह सच है कि प्रियंका सिंह 15 नवंबर को मेरे मैडिकल स्टोर पर आई थी और स्कूटी और बैग छोड़ कर चली गई थी. यह बात मैं ने इसलिए नहीं बताई थी कि इन्हें राधिका ने तो बता ही दिया होगा.’’

पुलिस प्रियंका सिंह की गुमशुदगी के मामले में धीरेधीरे आगे बढ़ रही थी. कोई सूत्र नहीं मिल रहा था. 20 नवंबर, 2022 को आशीष साहू के पड़ोसी राम कुमार ने पुलिस को फोन कर बताया कि आशीष साहू के घर से बड़ी बदबू आ रही है.

यह जानकारी मिलते ही टीआई प्रदीप आर्य पुलिस टीम के साथ आशीष साहू के घर आ पहुंचे. उन्होंने महसूस किया कि घर के आसपास दुर्गंध फैली हुई है. उन्होंने आशीष से पूछा, ‘‘क्या बात है, किस चीज की बदबू आ रही है?’’

‘‘नहीं सर, मुझे तो कोई बदबू नहीं आ रही,’’ आशीष ने सहज रूप से जवाब दिया.

टीआई ने जब पुलिस टीम को उस के घर की तलाशी कर के जांच करने के लिए कहा तो आशीष साहू की हवाइयां उड़ने लगीं. थोड़ी देर में पुलिस ने आशीष साहू की कार में रखी प्रियंका सिंह की लाश बरामद कर ली, जो पौलीथिन में बंधी हुई थी. पुलिस ने आशीष साहू को हिरासत में ले लिया.

पुलिस ने आशीष साहू से पूछताछ की तो थोड़ी देर में वह टूट गया और उस ने प्रियंका की हत्या की जो कहानी बताई, वह कुछ इस प्रकार थी—

15 नवंबर, 2022 को दिन मंगलवार था. लगभग 2 बजे दोपहर अचानक प्रियंका सिंह आशीष के मैडिकल स्टोर पर आई तो उस ने हमेशा की तरह उस का स्वागत किया. मगर उस दिन प्रियंका सिंह की त्यौरी चढ़ी हुई थी.

उसे देख कर ही आशीष घबरा गया. उसे बमुश्किल शांत कर बैठाया और बातचीत शुरू की तो प्रियंका ने छूटते ही गुस्से में कहा, ‘‘क्या हुआ मेरे रुपए का, मुझे तो लगता है कि तुम मुझे यूं ही चक्कर पर चक्कर लगवाते रहोगे.’’

आशीष ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘प्रियंका, मुझे थोड़ा वक्त दो, मैं शेयर मार्केट में पूरी तरह बरबाद हो गया हूं. धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा.’’

प्रियंका ने लगभग रोते हुए कहा, ‘‘देखो आशीष, तुम ने क्या कहा था, तुम साफसाफ मुझ से बोले थे कि जो भी रिस्क है वह तुम्हारा होगा. अब मेरे पैसे दबाए तो यह अच्छी बात नहीं है.’’

आशीष साहू ने दुख भरे स्वर में कहा, ‘‘देखो, सच्चाई यह है कि शेयर का मार्केट कोई भी मोड़ ले सकता है. जब वह हम ने कमाए तो मैं ने तुम्हें दिए, अब अगर डूब गए हैं तो मैं क्या करूं. फिर भी मैं बोल रहा हूं कि मैं धीरेधीरे तुम्हारे सारे रुपए दे दूंगा.’’

‘‘देखो, मैं ने रुपए जिन से लिए हैं उन से क्या कहूं. मुझे लग रहा है कि तुम मुझे बेवकूफ बना रहे हो. मैं जानती हूं कि तुम्हारी नीयत खराब हो गई है और मैं कुछ नहीं जानती, मुझे आज पैसे चाहिए वरना…’’

इतना सुनना था कि आशीष दोनों हाथ जोड़ कर बोला, ‘‘देखो, हम शांति से भी बात कर सकते हैं प्लीज. तुम्हारा पैसा मिल जाएगा, आज ही मिल जाएगा.’’

यह कह कर प्रियंका के गुस्से को शांत कर उस ने मैडिकल का शटर नीचे गिरा दिया. और मौका मिलते ही उस ने प्रियंका सिंह का गला दबा कर उसे जमीन पर पटक दिया.

आशीष ने प्रियंका सिंह के सिर पर एक डंडा दे मारा, वह दर्द से बिलबिला उठी. आननफानन में आशीष साहू ने क्लोरोफार्म रुई में रख कर उसे सुंघा दी. थोड़ी ही देर में प्रियंका बेहोश हो गई. आशीष साहू ने अब उस के बाद प्रियंका के टुकड़ेटुकड़े कर के लाश पौलीथिन में डाल कर फ्रिज में रख दी.

उस ने निश्चय कर लिया था कि रात को अपनी कार में पौलीथिन में रखी हुई लाश को डाल कर के ठिकाने लगा देगा. मगर रात होतेहोते उस की हिम्मत टूट गई. 4 दिनों तक लाश फ्रिज में ही पड़ी रही. इस बीच दुकान पर आ कर वह बैठता और दुकान में फैल रही बदबू को रोकने के लिए सेंट और अगरबत्ती का प्रयोग करता रहा.

फिर आशीष ने प्रियंका के शव को 19 नवंबर, 2022 की देर रात 3 बजे अपनी कार में डाला. यह सारा दृश्य सामने की दुकान के सीसीटीवी कैमरे में कैद हो गया. उस ने सोचा कि प्रियंका के शव को कहीं ठिकाने लगा देगा. वह गाड़ी ले कर के निकला भी, मगर उस की हिम्मत नहीं हुई तो उस ने गाड़ी घर के गैरेज में खड़ी कर दी.

टिकरापारा, बिलासपुर के रहने वाले 27 वर्षीय आशीष साहू द्वारा अपना अपराध स्वीकार करने के बाद पुलिस ने 20 नवंबर, 2022 को देर शाम को उसे गिरफ्तार कर मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी मनीष दुबे के अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.       द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

तलाक के डर से बच्चे की बलि

9 जुलाई, 2017 की शाम 6 बजे के करीब घर के बाहर गली में बच्चों के साथ खेल रहा सुनील का 3 साल का बेटा यश अचानक लापता हो गया. सुनील मध्य प्रदेश के जिला इंदौर के थाना गौतमपुरा के गांव गढ़ी बिल्लौदा का रहने वाला था. बेटे के गायब होने का पता चलते ही वह गांव वालों की मदद से उसकी तलाश में लग गया.

काफी खोजबीन के बाद भी जब बेटे का कुछ पता नहीं चला तो सुनील ने गांव के कुछ लोगों के साथ थाना गौतमपुरा जा कर बेटे की गुमशुदगी दर्ज करवा दी थी. सुनील बेटे की गुमशुदगी भले ही दर्ज करवा आया था, लेकिन घर लौट कर उस से रहा नहीं गया. वह पूरी रात बेटे की तलाश में इधरउधर भटकता रहा. जहां भी संभव हो सका, उस ने बेटे को खोजा.

लेकिन सुनील की सारी मेहनत तब बेकार गई, जब सुबह मुंहअंधेरे सुनील के पड़ोसी दिलीप बागरी ने शोर मचाया कि सुनील का बेटा यश उस के आंगन में बेहोश पड़ा है.

दिलीप के शोर मचाते ही पूरा गांव उस के आंगन में जमा हो गया. गांव वालों ने यश को टटोला तो पता चला कि वह मर चुका है. तुरंत इस बात की सूचना थाना गौतमपुरा पुलिस को दी गई.

सूचना मिलते ही थाना गौतमपुरा के थानाप्रभारी हीरेंद्र सिंह राठौर पुलिस बल के साथ गांव गढ़ी बिल्लौदा पहुंच गए. उन्होंने यश को गौर से देखा तो उन्हें भी लगा कि बच्चा मर चुका है. उन्होंने लाश का निरीक्षण किया तो उसे देख कर ही लग रहा था कि बच्चे के पूरे शरीर में सुई चुभोई गई है. उस के पूरे शरीर से खून रिस रहा था.

बच्चे के मुंह पर भी अंगुलियों के निशान थे, जिस से अंदाजा लगाया गया कि बच्चे का मुंह भी दबाया गया था. संभवत: मुंह दबाने से ही दम घुटने के कारण बच्चे की मौत हुई थी. सुई चुभोने से पुलिस को अंदाजा लगाते देर नहीं लगी कि तंत्रमंत्र में बच्चे की हत्या की गई थी. इस के बाद घटनास्थल की औपचारिक काररवाई पूरी कर हीरेंद्र सिंह राठौर ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

यह साफसाफ तंत्रमंत्र में हत्या का मामला था, इसलिए हीरेंद्र सिंह इस बात पर विचार करने लगे कि आखिर बच्चे की हत्या किस ने की है? तंत्रमंत्र के अलावा हत्या की कोई दूसरी वजह भी नहीं दिखाई दे रही थी. क्योंकि सुनील इतना पैसे वाला आदमी नहीं था कि कोई फिरौती के लिए उस के बेटे का अपहरण करता. उस का कोई ऐसा दुश्मन भी नहीं था कि दुश्मनी में उस के बेटे का कत्ल किया गया हो.

इस के अलावा थानाप्रभारी ने यह भी पता कराया कि सुनील का किसी अन्य औरत से चक्कर तो नहीं था? जिस की वजह से उस ने पत्नी और बेटे से छुटकारा पाने के लिए ऐसा किया हो.

जिस दिलीप बागरी के आंगन में यश का शव मिला था, उस से भी पूछताछ की गई. उस ने कहा, ‘‘साहब, मैं मासूम बच्चे की हत्या क्यों करूंगा? मैं तो उसे अपने बच्चे की तरह प्यार करता था. रात 12 बजे तक तो मैं सुनील के साथ ही था. उस के बाद घर आ कर सो गया था. बच्चे की चिंता में मैं ने रात में खाना भी नहीं खाया था.’’

दिलीप बागरी ने जिस तरह गिड़गिड़ाते हुए सफाई दी थी, उस से हीरेंद्र सिंह राठौर को लगा कि शयद किसी अन्य ने बच्चे की हत्या कर के इसे फंसाने के लिए लाश इस के आंगन में फेंक दी है. यही सोच कर वह थाने लौट आए. थाने आ कर उन्होंने यश की गुमशुदगी की जगह उस की हत्या का मुकदमा दर्ज कर मामले की खुद ही जांच शुरू कर दी.

कई दिनों तक वह इस मामले की विवचेना करते रहे, पर हत्यारे तक पहुंचने की कौन कहे, वह यह तक पता नहीं कर सके कि मासूम यश की हत्या क्यों की गई थी?

जब हीरेंद्र सिंह राठौर इस मामले में कुछ नहीं कर सके तो आईजी हरिनारायण चारी ने उन का तबादला कर उन की जगह पर गौतमपुरा का नया थानाप्रभारी अनिल वर्मा को बनाया.

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अनिल वर्मा थोड़ा तेजतर्रार अधिकारी थे. अब तक की गई हीरेंद्र सिंह की जांच का अध्ययन कर के पूरी बात उन्होंने डीआईजी हरिनारायण चारी, एडिशनल एसपी पंकज कुमावत तथा एसडीओपी अमित सिंह राठौर को बताई तो सभी अधिकारियों ने एक बार फिर दिलीप बागरी से थोड़ा सख्ती से पूछताछ करने का आदेश दिया.

क्योंकि दिलीप बागरी ने भले ही अपनी सफाई में बहुत कुछ कहा था, पर सभी को उसी पर शक था. अनिल वर्मा ने दिलीप से पूछताछ करने से पहले मुखबिरों से उस के बारे में पत कराया. मुखबिरों से उन्हें पता चला कि दिलीप इधर बेटे की चाह में तंत्रमंत्र के चक्कर में पड़ा था. बेटे के लिए ही वह एक के बाद एक कर के 3 शादियां कर चुका है.

बेटे के ही चक्कर में उस की पहली पत्नी की मौत हुई थी. यह जानकारी मिलने के बाद अनिल वर्मा ने दिलीप और उस की दोनों पत्नियों पुष्पा और संतोष कुमारी को थाने बुलवा लिया. थाने में दिलीप और उस की पत्नियों से अलगअलग पूछताछ की जाने लगी तो तीनों के बयानों में काफी विरोधाभास पाया गया.

इस से अनिल वर्मा का संदेह गहराया तो उन्होने दिलीप बागरी से सख्ती से पूछताछ शुरू की. पुलिस की सख्ती के आगे दिलीप टूट गया और उस ने अपनी दोनों पत्नियों संतोष कुमारी और पुष्पा के साथ मिल कर यश की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इस के बाद उस ने यश की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी—

दिलीप की पहली शादी 17 साल की उम्र मे गौतमपुरा के नजदीक के गांव इंगोरिया की रहने वाली सज्जनबाई से हुई थी. सज्जनबाई नाम से ही नहीं, स्वभाव से भी सज्जन थी. उस ने दिलीप की घरगृहस्थी तो संभाल ही ली थी, समय पर 2 बेटियों को जन्म दे कर उस का घरआंगन महका दिया था.

2 बेटियां पैदा होने के बाद सज्जनबाई और बच्चे नहीं चाहती थी. इसलिए उस ने दिलीप से औपरेशन कराने को कहा. लेकिन दिलीप इतने से संतुष्ट नहीं था. उसे तो बेटा चाहिए था, इसलिए औपरेशन कराने से मना करते हुए उस ने कहा, ‘‘बिना बेटे के इस संसार से मुक्ति नहीं मिलती, इसलिए जब तक बेटा पैदा नहीं हो जाता, तुम औपरेशन के बारे में सोचना भी मत.’’

पति के आदेश की अवहेलना करना सज्जनबाई के वश में नहीं था. क्योंकि दिलीप ने साफ कह दिया था कि उसे एक बेटा चाहिए ही चाहिए. अगर वह उस का कहना नहीं मानेगी तो वह उसे तलाक दे कर दूसरी शादी कर लेगा. दिलीप ऐसा कर भी सकता था, क्योंकि उस की जाति में यह कोई मुश्किल काम नहीं था.

इसलिए सज्जनबाई चुप रह गई. कुछ दिनों बाद सज्जनबाई तीसरी बार गर्भवती हुई. जबकि उस की उम्र तो अभी शादी लायक भी नहीं थी और वह तीसरे बच्चे की मां बनने जा रही थी. दुर्भाग्य से दिलीप का बेटे का बाप बनने का सपना पूरा नहीं हो सका. क्योंकि बच्चे को जन्म देते समय सज्जनबाई ही नहीं, उस के बच्चे की भी मौत हो गई थी.

संयोग से पैदा होने वाला बच्चा बेटा ही था. दिलीप को पत्नी और बेटे की मौत का दुख तो हुआ, लेकिन चूंकि ज्यादा दिनों तक वह अकेला नहीं रह सकता था, फिर उसे बेटा भी चाहिए था, जो दूसरी पत्नी लाने के बाद ही पैदा हो सकता था. इसलिए उस ने उज्जैन के नागदा के नजदीक के गांव उन्हेल की रहने वाली पुष्पा से दूसरी शादी कर ली. पुष्पा के घर आते ही वह बेटा पैदा करने की कोशिश में जुट गया. साल भर बाद ही पुष्पा ने बेटे को जन्म दिया, लेकिन दुर्भाग्य से वह 3 महीने का हो कर गुजर गया.

इस तरह से एक बार फिर दिलीप की आशाओं पर पानी फिर गया. बेटे की मौत से वह काफी दुखी था. लेकिन उसे इस बात का अहसास हो गया था कि पुष्पा से उसे बेटा हो सकता है, इसलिए वह इस दुख को भुला कर एक बार फिर बेटा पैदा करने की कोशिश में लग गया. पुष्पा गर्भवती तो हुई, लेकिन कुछ महीने बाद उस का गर्भपात हो गया.

इस से दिलीप को वहम होने लगा कि जरूर कोई ऐसी बात है, जो उसे बेटे का बाप बनने में बाधा डाल रही है. वह पड़ोस के गांव में रहने वाले तांत्रिक बलवंत से जा कर मिला. पूरी बात सुनने के बाद तांत्रिक बलवंत ने कहा, ‘‘तुझे बेटा कहां से होगा, तेरी पत्नी की कोख में तो डायन बैठी है. वही उस की संतान को खा जाती है.’’

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उपाय के नाम पर पुष्पा की झाड़फूंक शुरू हो गई. दिलीप कोई खतरा नहीं उठाना चाहता था, इसलिए उस ने संतोष कुमारी से एक और शादी कर ली. उस का सोचना था कि पुष्पा से बेटा नहीं होगा तो संतोष कुमारी से तो हो ही जाएगा. लेकिन शायद उस की किस्मत ही खराब थी. संतोष कुमारी को बेटा होने की कौन कहे, गर्भ ही नहीं ठहरा.

बेटे के लिए दिलीप तो परेशान था ही, उस की दोनों पत्नियां पुष्पा और संतोष कुमार भी परेशान रहने लगी थीं, उन की परेशानी की वजह यह थी कि बेटे के चक्कर में कहीं दिलीप उन्हें तलाक दे कर चौथी शादी न कर ले. क्योंकि उन्हें पता था कि बेटे के लिए दिलीप कुछ भी कर सकता है.

दिलीप चौथी ही नहीं, बेटे के लिए पांचवीं शादी भी कर सकता था. तलाक के बारे में सोच कर पुष्पा और संतोष परेशान रहती थीं. अपनी परेशानी पुष्पा ने पिता मनोहर सिंह को बताई तो वह भी परेशान हो उठे. क्योंकि वह भी दामाद की सोच को अच्छी तरह जानते थे. दामाद को न वह रोक सकते थे, न उन की बात उस की समझ में आ सकती थी.

इसलिए बेटी का भविष्य खराब न हो, यह सोच कर वह पुष्पा को नागदा के पास स्थित गांव उमरनी के रहने वाले तांत्रिक अंबाराम आगरी के पास ले गए. पुष्पा की पूरी बात सुनने के बाद अंबाराम ने कहा, ‘‘तुम्हारी कोख में जो डायन बैठी है, वह मासूम बच्चे की बलि मांग रही है. जिस बच्चे की बलि दी जाए, वह मांबाप की पहली संतान हो. बलि के बाद तुम्हें जो गर्भ ठहरेगा, वह बेटा ही होगा और जीवित भी रहेगा.’’

तांत्रिक अंबाराम ने जो उपाय बताया था, ससुराल आ कर पुष्पा ने उसे पति दिलीप बागरी और सौत संतोष कुमारी को बताया. दिलीप तो थोड़ा कसमसाया, पर पति के तलाक के डर से संतोष कुमारी राजी हो गई. लेकिन समस्या थी मासूम बच्चे की, जो मांबाप की पहली संतान हो.

लेकिन तीनों ने जब इस विषय पर गहराई से विचार किया तो उन्हें पड़ोस में रहने वाले सुनील का 3 साल का बेटा यश याद आ गया. वह मांबाप की पहली संतान था और पड़ोसी होने के नाते दिलीप के घर आताजाता रहता था.

इस के बाद दिलीप और उस की पत्नियों ने यश की बलि देने का मन बना लिया. मासूम बच्चा मिल गया तो दिलीप ने अंबाराम से मिल कर पूछा कि बलि कब और कैसे देनी है? इस तरह अपने घर का चिराग रोशन करने के लिए दिलीप ने पड़ोसी सुनील के घर का चिराग बुझाने का मन बना लिया. अंबाराम ने बलि देने के लिए अमावस्या या पूर्णिमा का दिन बताया था.

9 जून को पूर्णिमा थी, इसलिए 8 जून को पुष्पा, दिलीप और संतोष कुमारी ने अगले दिन बलि देने की तैयारी कर के यश को अगवा करने की योजना बना डाली. इस के बाद दिलीप रोज की तरह सट्टा खेलने बड़नगर चला गया. शाम को जैसे ही यश दिलीप के घर आया, संतोष कुमारी और पुष्पा ने उसे कमरे में बंद कर के दिलीप को फोन कर के काम हो जाने की सूचना दे दी.

दिलीप उत्साह से गांव के लिए चल पड़ा. जब वह गांव पहुंचा, यश के गायब होने का हल्ला मच चुका था. पूरा गांव मासूम यश की तलाश में लगा था. दिलीप भी गांव वालों के साथ यश की तलाश का नाटक करने लगा. रात एक बजे तक वह गांव वालों के साथ यश की तलाश में लगा रहा.

जब सभी अपनेअपने घर चले गए तो दिलीप भी अपने घर आ गया. इस के बाद दोनों पत्नियों के साथ मिल कर जिस तरह तांत्रिक अंबाराम ने बलि देने की बात बताई थी, उसी तरह सभी बलि देने की तैयारी करने लगे. यश पड़ोसियों की खतरनाक योजना से बेखबर गहरी नींद में सो रहा था. अंबाराम के बताए अनुसार, दिलीप उसे उठा कर कमरे के अंदर ले गया और वहां बिछी रेत पर लिटा कर तांत्रिक के बताए अनुसार, मासूम यश के शरीर में पिनें चुभोने लगा. पीड़ा से बिलबिला कर मासूम यश रोने लगा तो संतोष और पुष्पा ने उस का मुंह दबा दिया.

दिलीप लगातार यश के होंठों, गर्दन और कंधे पर पिन चुभोता रहा. जहां पिन चुभती, वहां से खून रिसने लगता, जो बह कर रेत में समा जा रहा था. इसी तरह करीब 3 घंटे तक दिलीप यश के शरीर में पिन चुभोता रहा, क्योंकि उसे तब तक यह करना था, जब तक उस मासूम की मौत न हो जाए.

लगभग 3 घंटे बाद जब यश की मौत हुई, तब तक करीब साढ़े 3 बज चुके थे. इस के बाद यश की लाश को ला कर आंगन में रख दिया गया, जिस जगह उस मासूम का खून गिरा था, उसी के ऊपर बिना बिस्तर बिछाए दिलीप ने अपनी दोनों पत्नियों पुष्पा और संतोष कुमारी के साथ शारीरिक संबंध बनाए.

क्योंकि तांत्रिक अंबाराम ने दिलीप से कहा था कि मासूम की बलि देने पर जो खून निकलेगा, उस के सूखने से पहले ही उस के ऊपर जितनी भी औरतों से वह शारीरिक संबंध बनाएगा, सभी को 9 महीने बाद बेटा पैदा होगा और वे जीवित भी रहेंगे. इस तरह बेटा पाने की खुशी में दिलीप, पुष्पा और संतोष कुमारी ने जश्न मनाया.

दिलीप, पुष्पा और संतोष कुमारी को तांत्रिक अंबाराम पर इतना भरोसा था कि यश की लाश उन के आंगन में भले मिलेगी, फिर भी पुलिस उन तीनों पर जरा भी संदेह नहीं करेगी. लेकिन ऐसा हो नहीं सका.

दिलीप और उस की पत्नियों से पूछताछ के बाद अनिल वर्मा ने उज्जैन के रेलवे स्टेशन से तांत्रिक अंबाराम को भी गिरफ्तार कर लिया था. उसे थाने ला कर पूछताछ की गई तो उस का कहना था कि उस की नीयत दिलीप की दोनों पत्नियों पर खराब हो गई थी.

उस का सोचना था कि बच्चे की हत्या के आरोप में दिलीप जेल चला जाएगा तो बाद में उस की दोनों पत्नियां संतोष और पुष्पा आसानी से उस के कब्जे में आ जाएंगी. इसीलिए उस ने बलि देने के बाद बच्चे की लाश को घर के आंगन में रखने के लिए कहा था, ताकि दिलीप आसानी से कानून के शिकंजे में फंस जाए.

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पूछताछ के बाद अनिल वर्मा ने दिलीप, पुष्पा, संतोष कुमारी और तांत्रिक अंबाराम को अदालत में पेश किया, जहां से सभी को जेल भेज दिया गया. बेटे की चाहत में दिलीप ने अपना घर तो बरबाद किया ही, पड़ोसी के मासूम बेटे की जान ले कर उस के घर का भी चिराग बुझा दिया.

इस में सब से ज्यादा दोषी तो तांत्रिक अंबाराम है, जिस ने अपनी कुंठित भावना को पूरी करने के लिए 2 घर बरबाद कर दिए.

बेपटरी जिंदगी और लापरवाह अफसर

रेलवे की सुरक्षा और क्षमता बढ़ाने के लिए बजट में इस बार 1.48 लाख करोड़ रुपए खर्च करने का प्रस्ताव रखा गया है.  इस पैसे का इस्तेमाल सुरक्षा, इन्फ्रास्ट्रक्चर व रेलवे को हाइटैक बनाने में किया जाएगा. लेकिन, बजट के बाद संसद की लोकलेखा समिति की सदन में पेश की गई रिपोर्ट पर गंभीर सवाल उठाए गए हैं.

मल्लिकार्जुन खड़गे की अध्यक्षता वाली लोकलेखा समिति ने रेलवे की कार्यप्रणाली की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि 150 खतरनाक चिह्नित पुलों, पटरियों तथा ट्रेनों की गति पर प्रतिबंध लगाने के बावजूद रेलवे बोर्ड को 31 पुलों को मंजूरी देने में 213 महीने यानी 17 साल से अधिक का समय लग गया.

घटिया गुणवत्ता

लोकलेखा समिति ने रेलवे बोर्ड पर अपनी टिप्पणी में कहा है कि ब्रिटिश शासनकाल में बनाए गए कुछ पुल अच्छी स्थिति में हैं पर आजादी के बाद बनाए व मरम्मत किए गए पुल घटिया गुणवत्ता वाले हैं. रेल पटरियों का भी ऐसा ही हाल है. यह सब रेल अधिकारियों व ठेकेदारों की मिलीभगत से हुआ है. रिपोर्ट में कुशल कर्मचारियों की कमी पर भी सवाल उठाए गए हैं.

ऐसे में महज रेल बजट बढ़ा देने से क्या यात्रियों की सुरक्षा व्यवस्था पर भरोसा किया जा सकता है? रेल दुर्घटनाओं का ग्राफ लगातार बढ़ रहा है.

अव्यवस्था की मार

रेलयात्रा में लगातार जानमाल का खतरा बना हुआ है. रेल व्यवस्था राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी और निकम्मे अधिकारियों, कर्मचारियों के चलते भारी अव्यवस्था के दौर से गुजर रही है लेकिन फिर भी बुलेट ट्रेन चलाए जाने का शोर है. यात्रियों की जान की सुरक्षा को ले कर कोई गंभीर नहीं है. सरकार और उस के मुलाजिम दोनों ‘मनसा वाचा कर्मणा’ चोर हैं. यही कारण है कि पिछले कुछ महीनों से होने वाले रेल हादसों की अहम वजह स्टाफ का नकारापन रहा है, मगर सरकार द्वारा इन नकारे स्टाफ पर कोई कार्यवाही नहीं की गई है.

सरकार संसद के भीतर तो यह स्वीकार करती है कि रेल दुर्घटनाओं में रेलकर्मी दोषी हैं, मगर उन को गिरफ्तार करवाने, कठोर सजा दिलवाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाती. लगता है कि सरकार मरने वाले यात्रियों को पिछले जन्म का फल मान कर पौराणिक सोच को पोषित करना चाहती है, बस.

लापरवाही की हद

सरकारी आंकड़े खुद चीख रहे हैं कि रेल हादसों के लिए स्टाफ की लापरवाही जिम्मेदार है, फिर भी सरकार है कि उन दोषी रेल अधिकारियों, कर्मचारियों पर कोई आपराधिक कार्यवाही करने से बचती है. मात्र अनुशासनात्मक कार्यवाही कर अगली बार फिर मौत पर मातम मनाती है और आखिर में मौत के मुलाजिमों को मुक्त कर देती है. यही कारण है कि अब तक स्टाफ की कमी से हुई दुर्घटनाओं में कार्यवाही का कोई बड़ा उदाहरण स्थापित नहीं हो सका कि जिस से स्टाफ सहमा हो और रेल दुर्घटनाएं रुकी हों.

होते होते बचा हादसा

25 सितंबर, 2017 (एक ही ट्रैक पर आई 3 ट्रेनें) : इलाहाबाद के निकट एक ही ट्रैक पर आई दूरंतो ऐक्सप्रैस सहित 3 ट्रेनें एकसाथ टकराने से बालबाल बच गईं.

29 सितंबर, 2017 को बिना गार्ड के रवाना हुई ट्रेन :  उत्तर प्रदेश के उन्नाव में गंगा घाट रेलवेस्टेशन से मालगाड़ी को बिना गार्ड के ही रायबरेली के लिए रवाना कर दिया गया.

हादसों की वजह सिर्फ स्टाफ

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार में 3 वर्षों तक रेलमंत्री रहे सुरेश प्रभु के कार्यकाल में छोटे बड़े कुल 300 रेल हादसे हुए, जिनमें से सिर्फ साल 2017 में जनवरी से अगस्त तक 31 हुए. तब के रेलमंत्री सुरेश प्रभु ने दुर्घटनाओं के बाबत नैतिक आधार पर इस्तीफा देने की पेशकश की, जिस के बाद तत्कालीन ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल को यह मंत्रालय मिला. मगर हादसे हैं कि अब भी थमने का नाम नहीं ले रहे.

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19 जुलाई, 2017 को संसद में सुरेश प्रभु ने रेलवे स्टाफ की लापरवाही की वजह से हुई दुर्घटनाओं के बाबत बताया था कि साल 2015-2016 में हुए कुल 107 हादसों में 55 और साल 2016-2017 में 85 हादसों में से 56 हादसे सिर्फ स्टाफ की लापरवाही से हुए. इसी तरह नीति आयोग की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2012 से साल 2016-2017 तक प्रत्येक 10 रेल दुर्घटनाओं में से 6 स्टाफ की चूक की वजह से हुई हैं. नीति आयोग की ही एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2017 में 31 मार्च तक 104 विभिन्न दुर्घटनाओं में 66 दुर्घटनाएं स्टाफ की लापरवाही से हुई हैं.

गुनाहगारों को सजा नहीं

रेलवे की बड़ी दुर्घटनाओं में जांच के लिए संसद ने एक कानून बना कर रेलवे संरक्षा आयोग बनाया है. निष्पक्ष जांच के लिए इस आयोग को केंद्रीय नागरिक उड्यन मंत्रालय के अधीन रखा गया है. इस आयोग का मुखिया संरक्षा आयुक्त होता है, जो रेलवे के अलग अलग जोन का काम देखने वाले 5 आयुक्तों के साथ काम करता है. संरक्षा आयोग के पास इतना काम होता है कि लंबे अरसे तक जांच ही चलती रहती है. दूसरा, इस आयोग का इतिहास है कि इस के आयुक्त ज्यादातर रेलवे के ही लोग होते हैं, इस से भी जांच का कार्य काफी हद तक प्रभावित होता है.

यही कारण है कि बड़ी से बड़ी दुर्घटनाओं में दोषियों पर आज तक कोई ठोस कार्यवाही नहीं की जा सकी है, जिससे स्टाफ की लापरवाही से दुर्घटनाएं होती रहती हैं. फलस्वरूप, रेलयात्रियों की जान जाने पर दोषी सजा नहीं, मजा काटता है.

पानी में जनता की गाढ़ी कमाई

रेलवे के दोषी अधिकारियों, कर्मचारियों पर कोई कठोर कार्यवाही न करने के कारण दुर्घटनाओं के साथ साथ इन से होने वाला आर्थिक नुकसान भी बढ़ता चला जा रहा है, जो जनता की गाढ़ी कमाई है.

संसद में हुई बहस के दौरान जो आंकड़े बताए गए हैं (आशंका है कि सरकारी स्वभाव के अनुसार बहुतकुछ छिपा भी लिया गया हो), उन के अनुसार, रेल दुर्घटनाओं के कारण साल 2014-2015 में 70.07 करोड़ रुपए का आर्थिक नुकसान हुआ है.

सुरक्षा के बजाय दूध, दवाई और वाईफाई का झांसा : मोदी सरकार अच्छे दिन के जुमले से सत्ता में तो आ गई मगर रेलयात्रा के दौरान होने वाले मौतरूपी मर्ज को जड़ से न दूर कर, ट्वीट करने पर दूध और दवाई मुहैया कराने की वाहवाही लूटने में लग गई. इस के साथ ही बुलेट ट्रेन चलाने का दावा, ट्रेन में वाईफाई उपलब्ध करवाने का दावा और अब तो ट्रेन में ही शौपिंग कराने का दावा करने में लगी है. जबकि यात्री सुरक्षित अपने गंतव्य तक पहुंच पाएगा, यह सुनिश्चित नहीं है.

नियम है, नकेल नहीं

रेलवे के एक रिटायर्ड जनरल मैनेजर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि भारतीय रेलवे की नियम पुस्तिका के अनुसार, ट्रैक के रखरखाव हेतु प्रतिदिन 3-4 घंटे निर्धारित हैं, मगर ऐसा हो नहीं पाता. ज्यादातर नियम स्टाफ की लापरवाही की भेंट चढ़ जाते हैं. कभी कभी ट्रैक के खाली न होने या फिर ट्रेन के विलंब से चलने की वजह से भी ऐसा होता है. वे बताते हैं कि भारतीय रेल की प्रक्रिया बहुत अच्छी तरह से सुपरिभाषित, लिखित और वितरित की जाती है, यदि उसका सही से पालन हो जाए तो शायद ही कोई दुर्घटना हो.

सुरक्षा सुस्त, किराया चुस्त

हाल के दिनों में रेलवे ने टिकट में फ्लैक्सी रेट जैसे नए नए शिगूफे छोड़ कर जम कर आमदनी बढ़ाई है. अकसर रेलयात्री यह कहते हुए मिल जाते हैं कि प्रथम श्रेणी की यात्रा का खर्च उतनी ही दूरी के विमान यात्रा के खर्च के लगभग बराबर है.

ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि जब मुसाफिर का मुख्य मकसद एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचना है तो क्या रेलवे उस स्थान तक सुरक्षित पहुंचाने की गारंटी भी गंभीरता से लेता है. जवाब है, नहीं. तथ्य यह है कि 1 रुपए में मात्र 7 पैसा ही रख रखाव के लिए लगाया जाता है, बाकी दूसरे कामों में इस्तेमाल हो जाता है. हालांकि, साल 2014-2015 के मुकाबले सुरक्षा पर खर्च होने वाली रकम को साल 2017-2018 में 42,430 करोड़ रुपए से बढ़ा कर 65,241 करोड़ रुपए कर दिया गया है.

लाइफलाइन नहीं, किलरलाइन

रेलवे देश की लाइफलाइन कहलाती है, मगर इस के राजनीतिकरण ने इसे लगभग ‘किलरलाइन’ में तबदील कर दिया है. देखने में आता है कि गठबंधन सरकारों में यह मंत्रालय किसी मजबूत दल की झोली में ही रहा और ज्यादातर काम राष्ट्रीय स्तर पर न हो कर, क्षेत्रीय स्तर पर ही किए गए. पूर्व में अलग से पेश होने वाले रेलवे बजट में पश्चिम बंगाल, बिहार, रायबरेली, अमेठी जैसे क्षेत्रों को खास सौगातें मिलती रही हैं.

ऐसे में हाल ही में हुई रेल दुर्घटनाओं के ऊपर अगर लालू प्रसाद यादव यह तंज कसते हैं कि खूंटा बदलने से नहीं, संतुलित आहार देने व खुराक बदलने से भैंस ज्यादा दूध देगी तो इसे महज एक राजनीतिक बयान नहीं समझा जाना चाहिए, बल्कि इस को समग्र परिप्रेक्ष्य में देखना चाहिए. वास्तव में किसी मंत्री का मंत्रालय बदल देने से रेलवे का भला नहीं हो पाएगा. बेहतर होगा कि रेलवे में भ्रष्टाचार, गैरजिम्मेदाराना कार्यसंस्कृति समाप्त हो और रेलवे स्टाफ व मंत्रालय जनता के प्रति जवाबदेह बनें.

अब तक के जितने भी रेल मंत्री बने हैं, सभी ने रेल सुरक्षा पर बड़ी बड़ी बातें की हैं. फिलहाल वर्तमान रेल मंत्री पीयूष गोयल ने रेल की बदहाल स्थिति पर कोई सुधारात्मक कदम उठाया है, ऐसा तो लगता नहीं.

हाल में हुए प्रमुख रेल हादसे

हाल में स्टाफ के नकारेपन से कई दुर्घटनाएं हुईं. हद तो तब हो गई जब एक ही दिन में 4-4 रेल हादसे हुए और मोदी सरकार ने उन पर कोई कार्यवाही नहीं की.

24 नवंबर, 2017 : उत्तर प्रदेश के मानिकपुर में वास्कोडिगामापटना सुपरफास्ट ट्रेन की 12 बोगियां बेपटरी हो गईं, जिस से पितापुत्र समेत 3 यात्रियों की मौत हो गई और 9 यात्री घायल हो गए.

29 सितंबर, 2017 : मुंबई के एलफिंस्टन रोड उपनगरीय रेलवे स्टेशन के फुटओवर ब्रिज पर मची भगदड़ से 22 लोगों की मौत हो गई और 32 लोग घायल हो गए.

6 सितंबर, 2017 (एक ही दिन में 4 हादसे) : नए रेलमंत्री पीयूष गोयल की ताजपोशी के एक ही दिन बाद 4 रेल हादसे देश के अलगअलग हिस्सों में हुए. पहली घटना उत्तर प्रदेश के सोनभद्र में घटी जिस में शक्तिपुंज ऐक्सप्रैस के 7 डब्बे बेपटरी हो गए. दूसरी, नई दिल्ली के मिंटो ब्रिज स्टेशन के निकट रांचीदिल्ली राजधानी ऐक्सप्रैस का इंजन और पावरकार उतर गया. तीसरी, महाराष्ट्र में खंडाला के निकट मालगाड़ी पटरी से उतर गई. चौथी, फरुखाबाद और फतेहगढ़ के पास दिल्लीकानपुर कालिंदी ऐक्सप्रैस क्षतिग्रस्त होने से बच गई.

17 अगस्त, 2017 : उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर के निकट खतौली में पुरीउत्कल ऐक्सप्रैस के हादसे में 23 लोगों की जानें गईं, जबकि 150 से ज्यादा लोग घायल हुए.

22 अगस्त, 2017 : उत्तर प्रदेश के औरैया में कैफियत ऐक्सप्रैस के डंपर से टकराने के कारण 9 कोच पटरी से उतर गए, दर्जनों यात्री घायल हो गए.

21 मई, 2017 : उत्तर प्रदेश के उन्नाव स्टेशन के पास लोकमान्य तिलक सुपरफास्ट ट्रेन के 8 कोच पटरी से उतर गए, जिस में 30 यात्री गंभीर रूप से घायल हो गए.

15 अप्रैल, 2017 : मेरठलखनऊ राजधानी ऐक्सप्रैस के 8 कोच रामपुर के पास पटरी से उतर गए. इस में लगभग 1 दर्जन यात्री घायल हुए.

दलित उत्पीड़न से धूमिल होती समाज की छवि

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से महज 58 किलोमीटर की दूरी पर उन्नाव शहर है. यहां के वारासगवर इलाके के सथनी गांव में 22 फरवरी को 19 साल की मोनी नामक लड़की को जिंदा जला दिया गया.

मोनी साइकिल से एक दिन अपने गांव से बाजार की तरफ जा रही थी. इतने में कुछ लड़के साइकिल से आए और उसे खेतों में खींच ले गए, फिर उस पर पैट्रोल छिड़क कर आग लगा दी. जान बचाने के लिए लड़की सड़क की ओर भागी पर उस की मदद करने वाला कोई न था. बदमाश लड़की को जलता छोड़ कर भाग गए. लड़की जल कर मर गई.

पुलिस ने 2 दिनों बाद विकास नामक एक लड़के को पकड़ कर जेल भेज दिया. विकास पर आरोप है कि उस की मोनी से दोस्ती थी. दोस्ती में दरार पड़ी तो उस ने यह कांड कर दिया. किसी लड़की को आज के सभ्य समाज में जिंदा जलाने की घटना क्रूर राजाओं और तानाशाहों की याद दिलाती है.

केंद्र और प्रदेश में सरकारें चला रही भारतीय जनता पार्टी के लिए उन्नाव महत्त्वपूर्ण जिला है. भाजपा के साक्षी महाराज यहां से सांसद है. उन के क्षेत्र में दलित लड़की की बर्बर हत्या से पता चलता है कि दबंगों का मनोबल कितना बढ़ा हुआ है.

प्रदेश सरकार में महत्त्वपूर्ण पद संभाल रहे विधानसभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित का कार्यक्षेत्र भी उन्नाव ही है. एक ओर केंद्र से ले कर प्रदेश तक दोनों सरकारें ‘बेटी बचाव बेटी पढ़ाओ’ की बात कर रही हैं, तो वहीं दूसरी ओर इन्हीं सरकारों के दौर में लड़कियां जलाई जा रही हैं.

उन्नाव की घटना से कुछ ही दिनों पहले उत्तर प्रदेश की शिक्षानगरी कहे जाने वाले इलाहाबाद शहर में एक दलित युवक को एक रैस्टोरैंट में पीटपीट कर मार डाला गया. मारपीट की छोटी सी वजह थी. दोनों घटनाओं में सरेआम लोगों ने अकेले को मारा. उन्नाव की मोनी को पैट्रोल छिड़क कर जलाया गया तो इलाहाबाद के युवक को नाली के किनारे पीटपीट कर मार डाला गया. युवक के मरने के बाद भी उस को पीटा जाता रहा.

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एनकाउंटर को सही ठहराते हुए उन्नाव और इलाहाबाद की घटनाएं पूरी तरह से बर्बरता से भरी हैं. यह तब है जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कहते हैं, ‘‘बदमाशों को उन की ही भाषा में जवाब दिया जाए.’’ पुलिस ने कुछ एनकाउंटर्स कर सनसनी फैलाने की कोशिश की पर दबंगों पर असर पड़ता तो ऐसी घटनाएं न घटतीं.

हिंदुत्व के नाम पर दबंगई

योगीराज में ये हिंदुत्व की रक्षा के नाम पर चोला बदल चुके हिंदू रक्षा के नाम पर दबंग और गुंडे सक्रिय हो गए हैं. ये भगवा गमछाधारी बन गए हैं. अब इन को किसी पार्टी के झंडे तक की जरूरत नहीं रह गई है. ऐसे दबंग नेताओं के लिए भीड़ जुटाने में भी आगे हो जाते हैं. जहां अच्छे काम में 5 लोग एकसाथ नहीं खड़े होते वहां ये लोग हत्या जैसे जघन्य अपराध करने पर भी बहुत सारे लोगों को तैयार कर लेते हैं.

उन्नाव और इलाहाबाद दोनों शहरों की ही घटनाओं में दबंगों का साथ देने वाले दूसरे लोग भी थे. कासगंज में हुए दंगे में भी ऐसे ही दबंग शामिल थे.

इन को कानून की परवा नहीं होती. कासगंज में धारा 144 लागू होने के बाद भी तिरंगा यात्रा निकालने की अनुमति लेने की जरूरत नहीं समझी गई.

प्रदेश में अगर कानून का राज होता तो लोगों में जरूर कानून का डर होता और एक के बाद एक बर्बर घटनाएं नहीं घटतीं. गौरक्षा और धर्म के नाम पर कानून तोड़ने वाले जब बचने लगे तो दूसरे दबंगों का भी मनोबल बढ़ने लगा. ये अब उद्दंड हो गए हैं. हर गांव गली में जाति की खाई लगातार गहरी होती जा रही है.

ऐसे में जब लोगों को यह लगता है कि सामने वाला उस से नीची जाति का है तो वह और भी ज्यादा हिंसक हो कर उस को पीटने लगता है. दलितों के साथ हो रही घटनाओं के पीछे पाखंडी सोच का बड़ा हाथ है. इस को रोज बढ़ावा दिया जा रहा है.

धर्म की आड़ में प्रवचनों द्वारा लोगों को लगातार यह बताया जा रहा है कि समाज में अलगअलग खेमे भगवान की देन हैं. यह पिछले जन्मों में किए गए पापों का फल है. दबंगई करनेवाले जानते हैं कि उन पर उंगली नहीं उठाई जाएगी क्योंकि यह समाज का दस्तूर है.

दलितों को आज भी धार्मिक कहानियों में यही समझाया जाता है कि सवर्णों व उच्च जाति की सेवा करो, तभी कल्याण होगा. यही सोच एक दलित लड़की को जिंदा जलाने को प्रेरित करती है. आज तक जिन बाबाओं के आश्रमों का परदाफाश हुआ वहां सब से अधिक दलित लड़कियां ही पाई गईं. इस से भी समाज में ऊंचनीच के अंतर को समझा जा सकता है.

खामोश हैं दलित संगठन

दलितों के संगठन इन घटनाओं पर चुप्पी साधे हुए हैं. बहुजन समाज पार्टी की चुप्पी सब से बड़ी है. इस तरह की घटनाओं पर भाजपा के नेता कौशल किशोर दोनों ही जगहों पर गए और वहां पीडि़त परिवारों की मदद का पूरा भरोसा दिलाया. दलितों के मुखर न होने की प्रमुख वजह यह है कि भाजपा ने हिंदुत्व के नाम पर इन को अपने साथ कर लिया था.

देश और प्रदेश के तमाम बडे़ दलित नेता भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े और अब वे भाजपा के साथ हैं. ऐसे में वे चुप हैं. दलित संख्या में अधिक हैं. ऐसे में नेता उन को साथ रख कर वोट लेने तक उन के साथ रहते हैं. बाद में वे उन की मूल समस्याओं पर चुप हो जाते हैं. दलित अपने से ऊंची जातियों से मेलजोल नहीं रख पाते हैं. ऊंची जातियों वालों का मानना है कि दलितों को वैसे ही रहना चाहिए जैसे वे सदियों से रहते आए हैं.

आज जिस तरह दबंगों के हौसले बुलंद हैं उस से सरकार की छवि खराब हो रही है. इलाहाबाद और उन्नाव की दोनों ही घटनाओं में पुलिस ने पहले मुकदमा दर्ज नहीं किया. इलाहाबाद और उन्नाव की घटनाओं के वीडियो और फोटो जब सोशल मीडिया पर वायरल हुए तब पुलिस हरकत में आई.

थाना स्तर पर आज भी दलित पीडि़त के पक्ष में कोई कार्यवाही नहीं होती है. सरकार यह कह कर अपना पल्ला झाड़ती रहती है कि वह प्रेमप्रसंग है, वह पारिवारिक विवाद है वगैरहवगैरह. असल में तो यह वर्णवाद है, वह भी सदियों पुराना.

सरकार के संरक्षण से बढ़ रही दबंगई

–आर एस दारापुरी (पूर्व आईपीएस, सदस्य – उत्तर प्रदेश स्वराज समिति)

उत्तर प्रदेश में दलितों के प्रति बढ़ रही हिंसक घटनाओं पर जहां बहुत सारे दलित नेता और दल चुप्पी साधे हैं वहीं अवकाशप्राप्त आईपीएस अधिकारी और उत्तर प्रदेश स्वराज समिति के सदस्य आर एस दारापुरी पूरी तरह से मुखर हैं. वे कहते हैं, ‘‘दलितों पर हिंसक घटनाओं की शुरुआत मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के शपथ लेते ही शुरू हो गई थी. जब सहारनपुर के शब्बीरपुर गांव में कहा गया, ‘अगर यूपी में रहना है तो योगीयोगी कहना है’. इस नारे में ही बाद में वंदेमातरम भी जोड़ दिया गया. यही नहीं, वहां बाबासाहेब को ले कर भी आपत्तिजनक टिप्पणियां की गईं. इस से हिंदुत्व के नाम पर काम करने वालों का हौसला बढ़ गया.

‘‘सरकार के इस कदम से खुली गुंडई, हिंसा और दबंगई को संरक्षण मिलने लगा. कई तरह की वाहनियां और सेनाएं अपनाअपना विरोध प्रदर्शन करने लगीं. इस से समाज का माहौल खराब हुआ. समाज में कानून का भय खत्म हो गया. समाज में एक हिंसक वातावरण बन गया है जो पूरे समाज के लिए घातक है.’’

दलित आंदोलन की चुप्पी पर दारापुरी ने कहा, ‘‘बसपा के समय से दलित आंदोलन कमजोर हो गया था. बाबासाहेब हमेशा कहते थे कि हिंदूराष्ट्र समाज के लिए घातक होगा. यहां पर शंबूक और बाली की तरह लोगों के वध होंगे. सीता की तरह महिलाओं के साथ अन्याय होगा. वे हमेशा देश में हिंदूराष्ट्र की स्थापना का विरोध करते रहे.

‘‘कांशीराम आंदोलन की जगह उस तरह काम करते थे जिस में दलित कमजोर बन कर उन के पीछेपीछे चलता रहे. जिस वजह से आज भी दलित मुखर हो कर अपनी बात नहीं कह पा रहा है. आज वह फिर से बसपा का साथ छोड़ ऊंची जातियों की अगुआई करने वालों के पीछे खड़ा हो गया है. इस के साथ ही भाजपा ने दलित नेताओं को अपने पक्ष में कर लिया, इसलिए दलित चुप हैं. उन को समझ में ही नहीं आ रहा है कि वे क्या करें?’’

चार्ल्स शोभराज : नेपाल से छूटा, फ्रांस में बसा – भाग 3

भारत में 70 का दशक बेहद उठापटक वाला था. राजनीति करवट बदल रही थी और गरीबी अभिशाप सा बन चुकी थी. देश की औद्योगिक राजधानी मुंबई में इफरात से गैंगस्टर्स पैदा होने और पनपने लगे थे. सट्टा गलीमोहल्लों में सरेआम चल रहा था और गैंगवार से शहर हर वक्त दहशत की गिरफ्त  में रहता था.

छोटेबड़े मुजरिमों की भीड़ में शोभराज भी शामिल हो गया. शुरुआत में उस ने कोई बड़ा जोखिम नहीं उठाया और छोटीमोटी स्मगलिंग और चोरियां करता रहा, जिस का एक्सपर्ट वह पेरिस से ही था.

इसी दौरान उस ने जुएसट्टे में भी हाथ और किस्मत आजमाई. इसी दरम्यान उस के कई दोस्त बने, लेकिन वे स्थाई नहीं रहे. क्योंकि शोभराज सहज किसी पर भरोसा नहीं करता था.

इस रसिया पर मरती थीं लड़कियां

बहुत सी खूबियों के मालिक शोभराज की एक खूबी यह भी थी कि उस ने कभी एक जगह टिक कर अपराध नहीं किए. मुंबई में जब उसे हमपेशा लोगों और पुलिस से खतरा महसूस होने लगा तो वह काबुल भाग गया लेकिन टिका वहां भी नहीं.

1975 तक शोभराज फ्रांस, वियतनाम, अफगानिस्तान, ग्रीस, ईरान और पाकिस्तान के फेरे लगाता रहा. कार चोरी के अलावा ड्रग स्मगलिंग उस ने जम कर की और खूब पैसा कमाया और उसे खर्च भी शाही तरीके से किया.

औरतों के रसिया इस अपराधी पर लड़कियां मरती थीं. वह अपनी पर्सनैलिटी और वाकपटुता के दम पर किसी को भी खड़ेखड़े ही खरीद लेता था.

चैंटल के जाने के बाद उस की जिंदगी में मेरी आंद्रे लेक्लार्क नाम की सैक्सी और बेइंतिहा खूबसूरत लड़की आई. मेरी कनाडा की थी और पेशे से नर्स हुआ करती थी. उस के जरिए ही दिल्ली के रहने वाले अजय चौधरी नाम के शख्स से शोभराज की मुलाकात हुई. स्वभाव से मेरी और अजय दोनों ही अपराधी मानसिकता के थे, इसलिए तीनों गिरोह बना कर वारदातों को अंजाम देने लगे.

अब तक शोभराज के नाम कोई बड़ा यानी हत्या का जुर्म दर्ज नहीं था. वह चोरी के आरोप में ही पकड़ा जाता रहा था, जिस में आमतौर पर उसे जमानत मिल जाया करती थी.

बिकनी किलर के नाम से हुआ प्रसिद्ध

छोटेमोटे अपराधों से शायद उस का मन भर चुका था, जो अब वह बड़ा और रोमांचक कुछ करना चाहता था. मेरी, अजय और उस के बौस शोभराज की तिकड़ी इसी मकसद से थाईलैंड की राजधानी बैंकाक जा पहुंची. यहां तीनों सुनियोजित तरीके से ज्यादातर पर्यटकों को निशाना बनाते थे.

उन दिनों हिप्पी संस्कृति शबाब पर थी. दुनिया भर के लोग खासतौर से युवा शांति और अध्यात्म की तलाश में थाईलैंड आते थे, जो उन्हें धर्मस्थलों में तो नहीं मिलती थी, पर ड्रग्स के नशे में मिल जाती थी.

शोभराज खुद को रत्न व्यवसायी भी बताता था और पर्यटकों से अंतरंगता बढ़ने पर उन्हें ड्रग्स का लालच देता था. शांति बेचने का यह तरीका चल निकला और इन तीनों ने बहुत कम वक्त में बहुत ज्यादा पैसा लूट और ठगी के जरिए बनाया.

अब तक अजय और मेरी का मुख्य काम शिकार लाना भर होता था. इस के बाद का काम शोभराज संभाल लेता था, जिस के बातचीत करने के अंदाज पर हर कोई फिदा हो जाता था.

शोभराज अपने असल नाम से ज्यादा बिकनी किलर के नाम से प्रसिद्ध हुआ. यह सिलसिला भी थाईलैंड से ही शुरू हुआ और इतने दिलचस्प तरीके से हुआ कि एक झटके में दुनिया उसे जानने लगी.

वह साल 1975 का ही वाकया है, जब थाईलैंड के पटाया शहर से बिकनी पहने एक युवती की लाश मिली थी. इस युवती को शोभराज का पहला शिकार माना जाता है, जिस का नाम टेरेसा नोलटन था. इस के बाद कार्नेलिया हेमकर और हेनरिकस बिनटैंजा ेकी जली हुई लाशें मिलीं. फिर तो थाईलैंड में ऐसे नजारे आम हो गए, जिन में टूरिस्ट नशे में धुत थे और ड्रग्स के ओवरडोज के चलते मरे थे और कुछ की हत्या की गई थी.

मरें किसी भी तरीके से, लेकिन उन की जेबें शोभराज, अजय और मेरी खाली कर यह आध्यात्मिक मैसेज भी दे देते थे कि आदमी खाली हाथ आता है और खाली हाथ ही जाता है.

ऐसी वारदातें चूंकि शोभराज एक जुनून के तहत एक के बाद एक कर रहा था, इसलिए उसे सीरियल किलर भी करार दे दिया गया. मान यह भी लिया गया था कि वह साइको है और एक हद तक यह सच भी था.

कुछ लोगों ने उसे सर्पेंटाइल के खिताब से नवाज दिया. शोभराज के शिकारों में लड़कियां ज्यादा होती थीं, क्योंकि वे आसानी से उस के झांसे में आ जाती थीं. टेरेसा नोलटन की लाश के बाद तो कई लाशें ऐसी भी मिली थीं, जिन्हें देख कर ही लोगों की रूह कांप जाया करती थी. कुछ लोगों को समुद्र में डुबो कर मारा गया था तो कुछ का शरीर चाकू से गोद दिया गया था. कइयों को तो जिंदा ही जला दिया गया था.

अजय और मेरी का नया काम इन लाशों को ठिकाने लगाने का भी हो गया था, जो शिकार को पहले बहलाफुसला कर शोभराज तक ले जाते थे. अधिकतर शिकारों को वह जानबूझ कर ड्रग्स का ओवरडोज देता था, जिस से कि वे विरोध न कर पाएं.

थाईलैंड में एक दौर ऐसा भी आया था, जब पर्यटक वहां जाने के नाम से ही कांपने लगे थे. थाईलैंड का पुलिस प्रशासन और सरकार भी सब हैरान थे कि यह हो क्या रहा है और कौन कर रहा है.

जांच में जब शक की सुई शोभराज की तरफ घूमी तो वह वापस भारत आ गया. लेकिन अब तक दुनिया भर में थाईलैंड में मिली लाशों को ले कर हाहाकार मच चुका था. खासतौर से बिकनी वाली लाशों को ले कर तो तरहतरह के सच्चेझूठे, हैरतंगेज और सनसनीखेज किस्से गढ़े जाने लगे थे.

थाईलैंड से शोभराज दिल्ली आ गया. लेकिन अपराध करने की लत उसे ठीक उसी तरह लग चुकी थी जैसे वह दूसरों को ड्रग्स की लत लगाता था. जुलाई, 1976 में फ्रांस से आए कुछ इंजीनयरिंग के छात्रों को नशे का सामान देने की कोशिश करता वह दिल्ली पुलिस द्वारा एक होटल में धर लिया गया.

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चूंकि वह कई वारदातों में मोस्टवांटेड था, इसलिए पुलिस ने धोखाधड़ी और हत्या के कुछ मामले उस पर दर्ज किए. लेकिन किस्मत के धनी इस चालबाज पर हत्या का कोई आरोप साबित नहीं हो पाया. दूसरे मामलों में उसे 12 साल की सजा सुनाई गई.